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Thanks krish1152 bhainice update
Thanks a ton bhabhiji for the lovely commentsKya baat hai, itni kamuk batein ki hain tino ladies ne aapas mein, ke kya bataun inki madak batein sunkar koi bhi horni ho sakta/sakti hai.
Awesome super duper gazab jabardast sexiest lesbian update
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है संजय और शीला घर आते ही एक बार फिर से शुरू हो गए फाल्गुनी पिंटू को परपोज करना चाहती है वही वैशाली शीला से कम नहीं है बस दोनो मां बेटी को लन्ड दिखना चाहिए घर आकर वैशाली ने संजय को इग्नोर कर दिया है देखते हैं शीला दोनो पति पत्नी के रिश्ते को कैसे बचाती हैंजैसे जैसे समय बीतता गया.. राह कटती गई.. अपना शहर नजदीक आता गया.. शीला के मन को संकोच और शर्म ने घेर लिया.. वो सोचने लगी.. पिछले दो दिनों में क्या क्या नही हुआ.. !!! ऐसी सारी घटनाएं बड़ी सहजता से हो चुकी थी जिनके बारे में उसने कभी सपने में भी नही सोचा था..!! एक विदेशी से चुदवाया.. गोरी के साथ लेस्बियन सेक्स किया.. अपने दामाद से चुदवाया और गांड भी मरवाई.. और अंत में एक मामूली ड्राइवर से भी अपना भोसड़ा मरवा लिया.. !! शीला का गोरा चेहरा शर्म से लाल हो गया.. सुबह की पहली किरण धरती पर पड़ती है जैसी लालिमा नजर आती है वैसी ही कुछ शीला के चेहरे पर भी लिप्त थी..
गाड़ी तेजी से चलती हुए शहर में घुसी और कुछ ही मिनटों में शीला के घर के बाहर खड़ी हो गई.. सुबह के साढ़े दस बज रहे थे.. शीला को सब से पहले अनुमौसी ने देखा.. जो छत पर कपड़े सूखा रही थी
अनुमौसी: "आ गई शीला ?? कैसा रहा सफर?"
शीला: "अरे मौसी.. आप कैसी हो? घर पर सब कैसे है? कविता और पीयूष की कोई खबर?? कब लौट रहे है वो लोग?"
अनुमौसी: "हाँ, पीयूष का फोन आया था.. वो लोग आज शाम चार या पाँच बजे तक पहुँचने वाले है.. वो रसिक बेचारा रोज मुझे पूछता है की तू कब लौटनेवाली है?? पर तेरे लौटने का मुझे पता नही था इसलिए क्या जवाब देती!! " शीला और अनुमौसी बातों में व्यस्त थे तब संजय घर के अंदर घुस गया..
शीला: "मौसी, मैं आप को बताना ही भूल गई.. मैं अभी रसिक को फोन करती हूँ.. कल से दूध दे जाएँ.. "
अनुमौसी: "अगर अभी चाय वगैरह के लिए जरूरत हो तो मेरे घर से ले जा.. दामाद जी बेचारे थक गए होंगे.. एक काम करो.. तुम दोनों नहाकर मेरे घर पर ही आ जाओ.. मैं चाय तैयार रखूंगी.. और दोपहर का खाना भी मेरे ही घर खा लेना.. तू भी थकी होगी.. कहाँ खाना बनाने बैठेगी तू..!!"
शीला: "अरे नही नही मौसी.. मुझे तो भूख ही नही है.. संजय कुमार से पूछ लेती हूँ.. उन्हें जो भी खाना होगा, मैं बना दूँगी.. आप बस चाय बनाकर रखिए.. हम अभी आते है.. "
अनुमौसी: "ये कपड़े सूखा दु.. फिर चाय बनाती हूँ.. वैसे भी मुझे ग्यारह बजे चाय पीने की आदत हो गई है.. कविता रोज इस समय मुझे चाय बनाकर देती है और हम दोनों सास-बहु साथ में पीते है.. "
शीला: "ठीक है मौसी.. " शीला घर पहुंची और तुरंत अपनी बेग से सारा सामान अलमारी में रख दिया.. ताकि वैशाली को पता न चलें.. सारे कपड़े बिना इस्तेमाल हुए वापिस आए थे.. क्योंकी शीला ने ज्यादातर संजय का दिलाया टॉप और चड्डी पहनी थी.. और बाकी समय तो वो नंगी ही थी.. संजय ने जो टॉप उसे दिलाया था.. जो हाफ़िज़ के खींचने से फट गया था.. उसे शीला ने सीने से लगा लिया "ईसे तो मैं संभालकर रखूंगी.. गोवा की ट्रिप की याद के लिए" उसने सोचा.. अलमारी के एकदम अंदर वाले कोने में उसने वह टॉप छुपा दिया.. बाकी के कपड़े ठीक से लगाकर उसने अलमारी बंद कर दी..
संजय नहाकर बाथरूम से निकला "गुड मॉर्निंग, शीला.. !!"
खुद का दामाद जब नाम से पुकारें तब कैसा महसूस होता है !! शीला की नजर नीची हो गई..
शीला: "बेटा.. अब हम गोवा में नही है.. मैं बार बार तुम्हें याद नही दिलाऊँगी.. हमें सब कुछ भूल जाना होगा.. जॉन और उसके साथ वो कौन लड़की थी.. ?? सब कुछ भूल जाना पड़ेगा"
संजय ने पीछे से शीला को बाहों में भरते हुए कहा "ओह्ह मम्मी जी.. आप शायद हाफ़िज़ को भूल जाओगी पर मैं चार्ली को कभी नही भूल पाऊँगा.. कितनी टाइट चूत थी इस गोरी की.. आह्ह.. !!"
शीला: "छोड़ दे मुझे बेटा.. अनुमौसी कभी भी आ सकती है.. अगर हम दोनों को इस स्थिति में देख लेगी तो उन्हे अटैक आ जाएगा.. वो चिमनकाका इस उम्र में रंडवा हो जाएगा.. " कहते हुए शीला ने अपने आप को संजय की पकड़ से मुक्त करने की कोशिश करने लगी.. गोवा के वातावरण में बेहद खुली रहने वाली शीला.. घर पहुँचते ही सहमी सहमी सी रहने लगी थी
अपने दोनों स्तनों को ब्लाउस के ऊपर से दबाते हुए संजय को शीला ने कहा "अब तो तुम्हारी इच्छाएं शांत हो जानी चाहिए संजय बेटा.. पिछले दिनों में तूने कितनी बार इन्हें दबाया.. चूसा है.. काटा है.. अब तो छोड़ दे..!! छातियाँ दर्द करने लगी है मेरी "
अपना लंड शीला की गांड की खाई में रगड़ते हुए संजय ने कहा "मम्मी जी.. दर्द तो मेरा लंड भी कर रहा है.. पिछले दो दिनों में आपने ईसे पूरा निचोड़ जो लिया था.. पर आपका ये भरा भरा जिस्म देखते ही ऐसी इच्छा हो रही है.. की पूरा दिन बस आपके शरीर से खेलता रहूँ"
शीला: "बेटा.. तेरे इस लाडले को मेरे पिछवाड़े से दूर रख.. वरना मौसी के घर चाय ठंडी हो जाएगी.. और तेरा दर्द और बढ़ जाएगा.. मैं भी फिर ज्यादा देर तक शर्म का चोला पहने नही रह पाऊँगी.. मुझे उकसा मत.. !!"
संजय: "मम्मी जी, वैशाली तो शाम को आने वाली है.. तब तक तो मुझे मजे लूटने दीजिए.. !! फिर तो कभी ऐसा मौका मिलने नही वाला.. !!"
शीला: "पहले मौसी के घर जाकर चाय पीते है.. फिर वापिस आकर तुझे जो मर्जी में आए वो करना" शीला ने हथियार डाल दिए
शीला संजय का हाथ पकड़कर दरवाजे की तरफ खींचकर ले गई.. पर दरवाजा खोलने से पहले शीला ने संजय को बाहों में लेकर चूम लिया.. और उसके लंड को मुठ्ठी में दबा दिया..
चाय पीने के बाद के कार्यक्रम की तैयारी करते हुए शीला संजय को मौसी के घर ले गई.. चिमनलाल घर पर था नही.. मौसी, शीला और संजय ने साथ में चाय पी.. शीला और मौसी बातें करने लगे.. संजय घर वापिस आकर बिस्तर पर पड़े पड़े शीला का इंतज़ार करने लगा..
बिस्तर पर पड़े पड़े संजय सोच रहा था.. जितना वो शीला को करीब से जानता जा रहा था.. उतना ही उसके पीछे पागल होता जा रहा था.. कैसी गजब की स्त्री है मेरी सास.. !! वैसे अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में स्त्री हमेशा शरमाती है.. खासकर सेक्स के मामले में.. लेकिन मेरी सास शीला तो एकदम बोल्ड है.. एकदम बिंदास..!! सासु माँ का पूरा व्यक्तित्व जानने के बाद संजय को यकीन हो गया की वो जितनी दिखती थी उतनी शरीफ तो थी नही.. लेकिन फिर भी उसने अपनी सास के किसी लफड़े या अफेर के बारे में कुछ सुना नही था.. संजय मन ही मन जितना इस रहस्यमयी नारी के बारे में सोचता गया.. उतना ही उलझता गया.. हो सकता है की वो इतनी दूर रहता था उस वजह से उसे शीला के व्यभिचार या गुलछर्रों के बारे में कुछ सुना न हो.. वरना इतना तो उसे पक्का यकीन था की मम्मी जी के एक से ज्यादा मर्दों से संबंध होंगे.. कितने मर्दों ने चोदा होगा इस रंडी को.. !!! अपनी सास को रांड शब्द से मन में संबोधित करते ही संजय का लंड ठुमकने लगा.. पेंट के ऊपर से ही उसे सहलाते हुए वो मन में बोला.. "माय डिअर.. थोड़ा धीरज धर.. तेरी पसंद का छेद अभी आता ही होगा.. इतना उतावला मत बन.. जो मज़ा इंतज़ार में है वो मिलन में कहाँ.. !!"
कब उसके पेंट की चैन खुल गई और कब उसका उस्ताद बाहर निकल कर शीला की चूत ढूँढने लगा.. इसका संजय को पता ही नही लगा.. मन में शीला के विचार आते ही लंड बेकाबू हो जाता था.. संजय के पूरे जीवन में ऐसा कभी नही हुआ था की किसी स्त्री या लड़की का विचार करने से ही लंड खड़ा हो जाएँ.. पर उसकी सास ऐसी जबरदस्त थी की बिना चूत में लंड दलवाएं किसी भी मर्द का पानी निकाल दे.. वाह मम्मी जी..
"बेटा संजय.. बिना दरवाजा लॉक कीये ही अंदर आ गया?? कोई घुस गया होता तो.. और तुझे इस तरह मेरे बिस्तर पर नंगा पड़ा हुआ देख लेता तो?? शीला ने थोड़े गुस्से से कहा
"वो सब बातें बाद में.. आप पहले नजदीक आइए.. देखिए तो सही.. ये कैसे तैयार होकर बैठा है आपके इंतज़ार में" संजय ने अपना सख्त लंड दिखाते हुए कहा
शीला: "वो तैयार है तो मैँ भी तैयार हूँ मेरे राजा.. !!" संजय के लंड को सहलाते हुए शीला उसकी छाती पर अपने स्तन दबाकर लेट गई.. शीला के ब्लाउस की टाइट कटोरी में बंद बड़े बड़े स्तन संजय की छाती पर दबाव बना रहे थे.. दो स्तनों के बीच की गहरी खाई देखकर संजय बेताब हो गया.. उसका हाथ अपनी मनपसंद जगह पर पहुँच गया और शीला के पुष्ट पयोधरों को मसलते हुए शीला के कामुक होंठों को चूसने लगा.. शीला ने अपनी मुठ्ठी में संजय का लंड इतना टाइट पकड़कर रखा था की संजय की उत्तेजना दोगुनी हो गई..
सिसकियाँ भरते हुए संजय ने शीला के घाघरे के अंदर हाथ डाला.. "आह्ह संजु बेटा.. " अपनी जांघ पर मर्दाना हाथ फिरते ही शीला के बदन में वासना का भूचाल सा मच गया.. संजय का हाथ शीला की संगेमरमरी गदराई जांघों पर होते हुए ऊपर की तरफ जाने लगा.. सासुमाँ के गोरे घुटनों को वो दो घड़ी देखता ही रहा.. कप में रखे हुए वेनिला आइसक्रीम के स्कूप जैसे गोरे घुटने.. और उससे भी ज्यादा कोमल और नाजुक.. देखते ही संजय का लंड फुदकने लगा..
संजय छलांग लगाकर खड़ा हो गया.. बेड पर जगह होते ही गोल तकिया सटाकर शीला दीवार पर अपनी कमर टेककर बैठ गई.. संजय ने शीला का घाघरा उठाकर उसकी चूत के दर्शन कीये.. घुटनों से पैरों को मोड़ते हुए शीला ने पैर चौड़े कीये.. संजय शीला के घुटनों को चाटते हुए उसकी जांघों की ओर बढ़ने लगा था.. शीला ने आँखें बंद कर ली..
शीला: "आह्ह संजु बेटा.. जहां चाटने की जरूरत है वहाँ चाट.. ये क्या घुटनों और जांघों पर लगा हुआ है तू, इतनी मस्त चूत को छोड़कर!!!"
संजय: 'मम्मी जी.. आपका तो पूरा जिस्म ही चाटने लायक है.. मैं तो आपकी गांड भी चाट सकता हूँ.. आह्ह"
जैसे जैसे संजय का हाथ शीला की मुलायम चूत पर फिरता गया वैसे वैसे उसकी चूत से सावन-भादों की तरह पानी बहने लगा..
"अपनी पेंट उतार दे, संजु" साड़ी के पल्लू को हटाकर अपने ब्लाउस के हुक खोलते हुए शीला ने कहा "ऐसे समय पर कपड़ों पर बहोत गुस्सा आता है.. नीचे आग लगी हो तब ये कपड़े उतारना.. मेरा तो दिमाग तप जाता है"
संजय ने तुरंत उठकर अपनी पेंट और अन्डरवेर उतार फेंकी और मादरजात नंगे होकर.. शीला के पेट पर सवार होते हुए अपना लंड बिल्कुल उसके मुंह के सामने धर दिया.. एफील टावर की तरह नजर आ रहे उस विकराल कडक लंड को देखते ही शीला का मुंह अपने आप खुल गया.. जिससे संजय को मुख-मैथुन की शुरुआत करने में काफी आसानी हो गई.. वो थोड़ा सा आगे खिसका और अपना लंड शीला के होंठों तक ले गया.. दो कदम तुम चलो दो कदम हम चले.. उस हिसाब से शीला ने भी अपना मुंह आगे किया.. लंड और शीला के मुख का मिलन हो गया.. शीला कुल्फी की तरह संजय का लंड चूसने लगी.. और संजय ने शीला के सुंदर स्तनों को ब्रा से आजादी दिलाने का संग्राम शुरू कर दिया..
दोनों उरोजों को खोलकर उन्हें पागलों की तरह मसलने लगा संजय.. स्तन मर्दन और मुख मैथुन.. दोनों क्रियाओं के मजे साथ लूट रहे थे सास और दामाद.. संजय के कूल्हों को नाखूनों से कुरेदते हुए उसका लंड बड़ी ही मस्ती से चूस रही थी शीला.. उसके हाव भाव से यह स्पष्ट था की उसे बहोत मज़ा आ रहा था.. बीच बीच में वो संजय के अंडकोशों को भी बड़े प्यार से पुचकार लेती.. और एक बार तो उसने दोनों आँड़ों को अपने मुंह में भर लिया..
शीला संजय का लंड चूसने में व्यस्त थी तभी उसके मोबाइल की रिंग बजी.. रंग में भंग हो गया.. मुंह बिगाड़कर उसने लंड मुंह से निकाला और बोली "संजु बेटा.. वो मोबाइल मुझे देना जरा.. !!"
लंड लटकाते हुए संजय खड़ा हुआ और कोने के टेबल पर पड़ा मोबाइल लेने गया.. शीला ने अपनी चूत पर हाथ फेरते हुए दो उँगलियाँ अंदर डाल दी...
संजय स्क्रीन पर कॉलर का नाम देखकर चोंक उठा.. उसने फोन शीला के हाथ में थमा दिया.. शीला भी स्क्रीन पर दिख रहा नाम देखकर थोड़ा चोंक गई.. लेकिन फिर स्वस्थ होकर उसने फोन रिसीव किया.. फोन उठाते वक्त उसने अपने होंठ पर उंगली रखकर संजय को चुप रहने का इशारा भी किया..
"हैलो.. !!!"
एक हाथ से संजय का लंड हिलाते हुए दूसरे हाथ में फोन पकड़कर शीला ने बात करना शुरू किया
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चकाचक तैयार होकर जैसे ही कविता ने बस में एंट्री ली.. सब का एक साथ तपोभंग हो गया.. पूरी बस में इंपोर्टेड परफ्यूम की महक फैल गई.. कविता जब बस में घुसी तब शेर-शायरी का दौर चल रहा था.. किसी ने अभी अभी कोई शायरी कही थी.. शायरी की दाद देते हुए सब "वाह वाह" कर ही रहे थे के तब कविता ने प्रवेश किया था.. सब की नजर कविता के उछलते हुए स्तनों पर चिपक गई थी.. कविता को ये पता नही चला की लोग "वाह-वाह" शायरी पर बोल रहे थे या उसके उत्तेजक स्तनों को देखकर.. !!
"गुड मॉर्निंग एवरीबड़ी.. " कोयल जैसी आवाज में कविता ने सबका अभिवादन किया.. पीयूष पहले से ही विंडो सीट पर बैठा हुआ था.. हौले से उसके बगल में बैठते हुए इस बात का ध्यान रखा की पीयूष का हल्का सा भी स्पर्श उसे न हो.. परोक्ष तरीके से उसने पीयूष के साथ अपनी लड़ाई जारी रखी हुई थी.. वैसे कविता और पीयूष की जोड़ी देखने में बिल्कुल परफेक्ट थी.. मामूली से मन-मुटाव के कारण दोनों एक दूसरे से बात नही कर रहे थे.. ऊपर से मौसम के आने से उनके रिश्तों में और तनाव आ गया था.. पीयूष मौसम की जवानी का दीवाना हो चुका था.. उसे मौसम के अलावा ओर कोई नजर नही आता था.. इस बात को तो वैशाली ने भी नोटिस किया था और उसे भी बुरा लग रहा था.. पर वो कर भी क्या सकती थी??
बस चल पड़ी और सब आनंद से चिल्ला उठे.. सब से आगे की सीट पर रेणुका बैठी हुई थी.. बार बार वो मुड़कर पीयूष की तरफ देख लेती थी.. कल रात टॉइलेट में पीयूष ने उसे सबसे बढ़िया बर्थडे गिफ्ट जो दी थी.. !! पीयूष का वो स्पर्श.. और जिस तरह उसने झुककर चूत चाटी थी.. आह्ह.. उसके सामने राजेश की गिफ्ट का कोई मोल नही था.. घर पहुंचकर वो कोई ऐसा प्लान बनाना चाहती थी जिससे वो बिना किसी टेंशन के पीयूष से चुदवा सके.. बहोत ज्यादा बार पीयूष के सामने देखते रहने में खतरा था इसलिए रेणुका संभल गई.. पर पता नही क्यों.. वो अब कविता से नजरें नही मिला पा रही थी..
वैशाली, मौसम और फाल्गुनी.. सब से आखिरी सीट पर बैठी हुई थी.. और बड़े इत्मीनान से बातें कर रही थी.. पिछली रात के कार्यक्रम के बाद तीनों के बीच के सभी परदे हट चुके थे.. जब जिस्म ही नंगे हो चुके थे फिर शब्दों में क्या परहेज करना.. !!
वैशाली: "देख देख फाल्गुनी.. तेरा पिंटू आया.. आज साइट-सीइंग के वक्त मौका मिले तो तू जाकर प्रपोज कर दे.. ऐसा चांस फिर नही मिलेगा !!"
मौसम ने थोड़ा सोचकर कहा "हाँ फाल्गुनी.. अब तो तेरा सेक्स का डर भी चला गया है.. है ना.. !!"
तीनों लड़कियां एकदम धीमी आवाज में बातें कर रही थी.. मौसम सोच में इसलिए पड़ गई क्योंकि पिंटू उसकी बहन कविता का पुराना आशिक था.. फिर उसने सोचा की वो बातें अब पुरानी हो चुकी थी.. इसलिए फाल्गुनी प्रपोज करें भी तो कुछ गलत नही था..
वैशाली: "पिंटू कितना हेंडसम लग रहा है यार.. ब्लू कलर के टीशर्ट में जच रहा है.. मेरे मन को भी भा गया तेरा पिंटू.. अगर मुझे मौका मिले तो मैं डेट पर लेकर जाऊँ पिंटू को.. "
मौसम: "इस बस में बैठे कितने मर्द तुझे पसंद है वैशाली?? राजेश सर तो पसंद है ही.. वो तो सबको पता है.. अब पिंटू पर डोरे डाल रही है.. फिर कल पीयूष जीजू पर नियत बिगाड़ेगी.. सब मर्दों के साथ जो फ्लर्ट करे उसे क्या कहते है.. पता है ना तुझे??"
मौसम की कमर पर चिमटी काटते हुए वैशाली ने कहा "पता है मुझे.. ज्यादा ज्ञान मत दे मुझे.. मैं सोच रही थी.. अभी वक्त है हमारे पास.. फाल्गुनी से उसके किस्से सुनते है.. चल फाल्गुनी.. शुरू हो जा.. और बता की प्रिंसिपल ने कैसे चोदा था तुझे.. पहली बार करवाया तब कैसा महसूस हुआ था.. पल्लवी मैडम को सर की गोद में बैठी देखा उसके बाद क्या क्या हुआ.. सब कुछ डीटेल में बता.. हमें जानना है.. है ना मौसम ??"
"हाँ यार.. जल्दी बता फाल्गुनी.. " मौसम को वैसे भी फाल्गुनी का झूठ खटक रहा था..
फाल्गुनी: "उस दिन शनिवार था.. दोपहर को कॉलेज छूटने के बाद मैं जब लेडिज स्टाफ रूम में गई तब पल्लवी मैडम वहाँ अकेले बैठी थी.. मुझे अंदर बुलाकर उन्होंने दरवाजा बंद कर दिया.... "
बस धीरे धीरे माउंट आबू की ढलानों पर पानी की धारा की तरह आगे बढ़ रही थी.. खिड़की से नजर आ रहा नजारा अद्भुत था.. खिड़की से आती हवा से लहराती हुई अपनी बालों की लट को ठीक करते हुए फाल्गुनी ने बात आगे बढ़ाई
"मुझे बहोत डर लग रहा था.. पल्लवी मैडम मेरे पास कुर्सी पर बैठ गई और बोली 'फाल्गुनी, दो दिनों पहले तूने माथुर सर की चेम्बर में क्या देखा था?' मैंने कहा.. कुछ नही मैडम.. !! मुझे बहोत शर्म आ रही थी.. और संकोच भी हो रहा था.. उम्र में बड़ी और सन्माननीय मैडम के सामने मैं क्या बोलती.. उन्होंने कहा 'फाल्गुनी, मुझे पता है की तूने सब देख लिया है.. पर स्थिति ही कुछ ऐसी हुई थी.. हमें पता नही था की उस वक्त तू या कोई अंदर आ सकता था.. माथुर सर के चेम्बर में हाफ-डोर है जो लॉक हो नही सकता.. और मेइन डोर को हम लॉक कर नहीं सकते.. इसलिए तूने हमें देख लिया.. असल में फाल्गुनी, मिस्टर माथुर बहोत अच्छे इंसान है.. मुझे नौकरी भी उन्होंने ही दिलाई है.. अब जब तूने सबकुछ देख ही लिया है तो बेकार में लिपापोती करने की कोई जरूरत नही है.. तू कोई छोटी बच्ची तो है नही.. जो इतना न समझ पाएं की एक मर्द की गोद में बैठकर अपनी ब्रेस्ट दबवाने का अर्थ क्या होता है' कहते हुए मैडम ने मेरा हाथ पकड़कर अपनी ब्रेस्ट पर रख दिया.. यार वैशाली.. उस वक्त मेरी जो हालत हुई थी.. क्या बताऊँ.. !! मेरा हाथ उनके स्तन पर दबाते हुए पल्लवी मैडम बोली 'फाल्गुनी, प्लीज तू किसी को कुछ भी मत बतायाना.. मेरे और माथुर सर के बीच अफेर चल रहा है.. मैं अपने पति से जिस्मानी तौर पर बिल्कुल खुश नहीं हूँ.. इसलिए मेरे और सर के बीच संबंध बने.. इस शरीर की जरूरतों के सामने मैं लाचार हूँ.. तुझे भी यहाँ अकेले देखकर मेरी भावनाएं भड़क रही है'" बोलते बोलते फाल्गुनी का गला सुख गया
वैशाली और मौसम, दोनों फाल्गुनी की इस कहानी बुनने की कला को देख रहे थे.. मौसम सोच रही थी.. ये कमीनी फाल्गुनी अगर बॉलीवुड चली जाएँ तो टॉप की स्क्रिप्ट-राइटर बन सकती है.. जो घटना हुई ही नही है.. उसका कितना गजब और बारीक वर्णन कर रही है.. !!!
फाल्गुनी ने बात आगे बढ़ाई "मौसम, पिछली रात हम सब ने जो किया था वैसे ही पल्लवी मैडम ने उसके स्तन मेरे हाथों पर जबरदस्ती रगड़ना शुरू कर दिया.. जीवन में पहली बार मेरे साथ कोई ऐसा कर रहा था.. मैं बहोत डर गई थी.. " थोड़ा सा अटक कर फाल्गुनी ने मौसम की ओर देखा और बोली "तुझे पता है मौसम.. पल्लवी मैडम तेरे बारे में भी पूछ रही थी.. पर मैंने अब तक कोई जवाब नही दिया है" फाल्गुनी ने काल्पनी बम फोड़ते हुए कहा.. मौसम बखूबी जानती थी की ना तो पल्लवी मैडम और फाल्गुनी के बीच कुछ हुआ है.. और ना ही माथुर सर के साथ.. !! फाल्गुनी ने तो मेरे पापा के साथ सेक्स किया है और मुझे उल्लू बना रही है..
फिर भी मौसम ने चौंकने का अभिनय करते हुए कहा "क्या.. ??? क्या बात कर रही है? मतलब.. पल्लवी मैडम मेरा भी प्रोग्राम करवाना चाहती थी माथुर सर के साथ.. !!??"
फाल्गुनी: "अरे हाँ यार.. माथुर सर कह रहे थे की तेरे साथ जो लड़की घूमती है वो एकदम मस्त कोरा माल है.. एक बार मिल जाएँ तो मज़ा आ जाएँ" फाल्गुनी ने झूठ पर झूठ के तीर छोड़ना जारी रखा
वैशाली: "वो सब छोड़.. ये बता की पल्लवी मैडम ने उस दिन तेरे साथ क्या क्या किया??"
फाल्गुनी: "उस दिन तो उन्होंने ज्यादा कुछ किया नही.. पर हाँ.. वो मुझे लिपकिस करने की जिद करने लगी.. मैंने बहोत म अन्य किया पर वो मानी ही नही.. आखिर मुझे उनको किस करने देना पड़ा.. मुझे अच्छा तो बिल्कुल नही लगा मैडम से किस करना"
वैशाली ने उंगली करते हुए कहा "मैडम के साथ अच्छा नही लगा.. तो माथुर सर के साथ किस करने में मज़ा आया, ये कहना चाहती है?"
"नहीं यार.. क्या तू भी.. मुझे तो इतना डर लग रहा था की बात ही मत पूछो.. इनकार करूँ तो रिज़ल्ट खराब होने का डर और दूसरी तरफ.. पल्लवी मैडम और माथुर सर के बीच सेंडविच हो जाने का डर.. !!"
मौसम को अब इस झूठी कहानी सुनने में कोई दिलचस्पी नही थी.. वो बस में बैठे बाकी पेसेन्जर को देखने लगी.. जीजू और कविता दीदी चुपचाप बैठे थे.. उसे एक पल के लिए अपनी दीदी के लिए बुरा लग रहा था.. फिर उसने सोचा की पहल तो जीजू ने की थी.. उसमें उसकी क्या गलती?
इंसान अपने बुरे कर्म को छुपाने के लिए जितना दिमाग इस्तेमाल करता है उससे अगर आधा दिमाग भी अपने काम में लगाएं तो ऐसा कोई कार्य नही है जो नही हो सकता.. कोई कर्म अच्छा या बुरा नही होता.. अच्छा या बुरा तो उसका परिणाम होता है.. खराब परिणाम की अपेक्षा होने के बावजूद जब इंसान उसी कर्म में प्रवृत्त रहता है तब वहीं से उसकी अधोगति का मार्ग शुरू होता है "जानामी धर्मं नयमे प्रवृत्ति.. जानामी अधर्मंम् नयमे निवृत्ति" अर्थात "मुझे धर्म का ज्ञान है, लेकिन मेरी उसमें कोई दिलचस्पी नहीं है। मुझे अधर्म का भी ज्ञान है, लेकिन मैं अधर्म को छोड़ना नहीं चाहता" अपने अधर्मी कर्म का टोकरा दूसरे के सर पर दे मारना.. इंसान की पुरानी फितरत है..
मौसम ने पिंटू की ओर देखा.. वो अकेला सीट पर बैठे बैठे कुछ पढ़ रहा था.. दुनिया से अलिप्त.. लेकिन मौसम को कहाँ पता था की कविता के अत्यंत आकर्षक रूप को भोग न पाने के दुख को छुपाने के लिए वो किताब में मुंह छुपाकर अपने दुख को भुलाने की कोशिश कर रहा था
मौसम सोचने लगी.. क्या दीदी और पिंटू के बीच अब भी कुछ चल रहा होगा?? वैसे तो काफी समय हो गया था पर फिर भी कुछ कह नही सकते..मौसम के विचार तब थम गए जब बस एक भव्य मंदिर के पास आकर रुकी.. सब नीचे उतरे.. वैशाली और फाल्गुनी के चेहरे उत्तेजना से लाल थे.. क्योंकि पिछले आधे घंटे से उनके बीच फाल्गुनी की काल्पनीक कहानी के बारे में बातें हो रही थी.. दोनों का मानना था की मौसम को इस बारे में कुछ पता नही इसीलिए वह दोनों इस मन-घडन्त कहानी की बातें बड़े चाव से कर रहे थे.. लेकिन मौसम तो सब कुछ जान चुकी थी..
सब ने मंदिर में दर्शन कीये और बस में बैठ गए.. और बस चल दी.. साढ़े बारह का समय हो रहा था.. और तभी अपने पल्लू को ठीक करते हुए रेणुका ने खड़े होकर ये अनाउन्स किया "इसके साथ ही हमारी ट्रिप खतम हुई.. मुझे आशा है की आप सबको बहोत मज़ा आया होगा.. अब बढ़िया सा लंच लेकर हम वापिस लौटने का सफर शुरू करेंगे"
ड्राइवर ने बस को एक बढ़िया होटल के बाहर खड़ा कर दिया.. सब ने मजे से खाना खाया..और वापिस बस में आकर बैठ गए.. बस उनके शहर की ओर चल पड़ी
जैसे जैसे घर नजदीक आ रहा था कविता की उदासी बढ़ती जा रही थी.. क्यों की उसका और पीयूष का टयूनिंग माउंट आबू आने के बाद सुधारने के बजाए और खराब हो गया था..
बस में फिर से मज़ाक मस्ती का दौर शुरू हो गया.. वहीं अंताक्षरी.. नॉन-वेज जोक्स.. और छेड़छाड़ का सिलसिला चल पड़ा.. बातों ही बातों में कब उनकी बस ऑफिस के बाहर आकर कब खड़ी हो गई पता ही नही चला.. शाम के साढ़े सात बज गए पहुंचते पहुंचते.. सब थक चुके थे और घर जाकर खाना बनाने की इच्छा नही थी इसलिए पीयूष, कविता, वैशाली, मौसम और फाल्गुनी ने एक रेस्टोरेंट में डिनर करने का फैसला लिया..
माउंट आबू की इस ट्रिप में पीयूष और मौसम काफी करीब आ गए थे.. ट्रिप से पहले नादान मौसम बड़ी ही निर्दोषता से अपने जीजू को गला लगाती.. जो कहना हो बिंदास कह देती.. वही मौसम ट्रिप खतम होने के बाद जैसे एकदम शांत और परिपक्व हो गई थी.. वो अब पीयूष से ज्यादा बात नही कर रही थी.. पर पीयूष दिननर करते वक्त मौसम के जवान जिस्म को देखकर ये सोच रहा था की घर पहुँचने से पहले एकाध बार मौसम का स्पर्श मिल जाएँ तो मज़ा आ जाएँ.. तो दूसरे तरफ मौसम अपनी जवानी को ऐसे सिकुड़े हुए बैठी थी की स्पर्श तो दूर.. जिस्म का कोई खास हिस्सा दिखाई भी नही दे रहा था..
खाना खाकर उठाते वक्त पीयूष और मौसम की आँखें चार हुई.. मौसम की आँखों से एक अनकहा दर्द छलक पड़ा.. दोनों ने एक दूसरे को एक उदास स्माइल दी.. और घर की तरफ चल पड़े..
घर पहुंचते पहुंचते रात के साढ़े दस बज गए..
वैशाली: "ओके.. कल मिलते है कविता.. सब को गुड नाइट.. गुड नाइट पीयूष.. जवाब तो दे.. कम से कम!!" मौसम के सामने देख रहे पीयूष को गुस्से से कहा
पीयूष: "ओह.. हाँ हाँ.. गुड नाइट वैशाली!!"
वैशाली अपने घर के दरवाजे पर पहुंची और डोरबेल बजाई.. बेचारी मम्मी.. सो चुकी होगी.. थोड़ा जल्दी आ जाते तो अच्छा रहता.. मम्मी की नींद खराब न होती..
"आ रही हूँ.. !!" दरवाजे के पीछे से शीला की बुलंद आवाज सुनाई दी.. वैशाली को राहत हुई.. अब ज्यादा देर बाहर खड़ा रहना नही पड़ेगा.. वो बहोत थक चुकी थी और जल्द से जल्द सो जाना चाहती थी..
शीला ने दरवाजा खोला "आ गई बेटा.. !! " खुश होकर उसने वैशाली को गले लगा लिया.. दोनों घर के अंदर गए और तभी अपनी आँखें मलते हुए संजय बाहर निकला.. उसके आते ही पूरे ड्रॉइंग रूम में शराब की बदबू फैल गई..
संजय: "ओह वैशाली.. तुम आ गई? थोड़ा लेट हो गया तुम्हें आते आते "
संजय की बात को अनसुना कर वैशाली सीधे बेडरूम में चली गई.. शीला के मेइन बेडरूम के बगल में एक दूसरा बेडरूम था जहां वैशाली ने पहुंचकर अपने आप को बिस्तर पर फेंका.. शीला जब उसके कमरे में गई तब वैशाली को बिस्तर पर पैर फैलाएं लेटी हुए देखकर सोचने लगी "ये करती भी नही है और करने देती भी नही है"
अब वैशाली को कहाँ पता था की उसके आगमन से मम्मी और संजय के रंग में कैसा भंग हो गया था.. !! मन में क्रोध दबाकर बड़े ही प्यार से शीला ने वैशाली से कहा "बेटा.. तुझे अपने पति के कमरे में जाना चाहिए.. इतने दिनों बाद मिल रही हो.. पर तेरे चेहरे पर कोई खुशी ही नजर नही आ रही संजय को देखने की.. !! ऐसा कैसे चलेगा और कब तक चलेगा?? इतना भी क्या रूठना.. !! ऐसे ही चलता रहा तो एक दिन अलग होने की नोबत आ जाएगी.. याद रखना.. !!"
Thanks Ajju Landwalia bhaiWah vakharia Bhai,
Sabhi updates ek se badhkar ek he.........
Uttejna aur kamukta ke shikhar par pahucha diya aapne..........
Gazab bhai............simply awesome
बहुत ही कामुक गरमागरम अपडेट है दोनो मां बेटी एक जैसी है पहले तो नखरे करती है और फिर दोनो उत्तेजित होने के बाद चाहे कोई भी उससे चुदने में देरी नहीं करती है वैशाली पहले तो संजय के साथ मना कर देती है लेकिन गरम होते हैं संजय से चुदने को तैयार हो जाती हैं हाफिज शीला को घूरता जा रहा है वह उसे भोगना चाहता है लेकिन आज उसका कोई भी काम नही बनाअब वैशाली को कहाँ पता था की उसके आगमन से मम्मी और संजय के रंग में कैसा भंग हो गया था.. !!
मन में क्रोध दबाकर बड़े ही प्यार से शीला ने वैशाली से कहा "बेटा.. तुझे अपने पति के कमरे में जाना चाहिए.. इतने दिनों बाद मिल रही हो.. पर तेरे चेहरे पर कोई खुशी ही नजर नही आ रही संजय को देखने की.. !! ऐसा कैसे चलेगा और कब तक चलेगा?? इतना भी क्या रूठना.. !! ऐसे ही चलता रहा तो एक दिन अलग होने की नोबत आ जाएगी.. याद रखना.. !!"
शीला ऐसे प्रकार की स्त्री थी जो अपनी इच्छाओं और जज़्बातों को दबाने में नही मानती थी.. कैसे भी वो अपनी पसंद की चीज प्राप्त कर ही लेती थी.. वैशाली ने गलत समय पर एंट्री कर, उसके होने वाले ऑर्गैज़म की माँ चोद दी थी.. इसलिए वो व्याकुल हो गई थी.. वो सोच रही थी.. की अगर वैशाली सिर्फ ५ मिनट देर से आती तो कितना अच्छा होता.. उसके भोसड़े का पानी बस झड़ने ही वाला था.. संजय भी फूल स्पीड से चोद रहा था और बस आखिरी तीन चार धक्के लगाने की ही देर थी.. दोनों अपनी मंजिल पर पहुँचने की तैयारी में थे तभी.. कमबख्त डोरबेल बजी.. और सारे मूड की माँ-बहन एक हो गई..
शीला का दिमाग भन्ना रहा था.. वैशाली को क्या खबर.. यहाँ मेरी चूत में कैसी खुजली मची हुई है!! वैशाली के बगल में लेटी शीला ने अपनी चूत को शांत करने के लिए दोनों जांघों को आपस में दबा दिया.. अपने अधूरे स्खलन को भुलाने के लिए उसने वैशाली से बात छेड़ी थी..
पर वैशाली ने शीला की बात को आधे में ही काटकर कहा "मम्मी, मुझे संजय के साथ बात करने में भी इन्टरेस्ट नही.. साथ सोने की बात तो बहोत दूर की है"
शीला: "ऐसा कब तक चलेगा वैशाली? लगता है अब मुझे ही बात करके कोई रास्ता निकालना पड़ेगा.. तेरा जीवन मैं इस तरह बर्बाद होते नही देख सकती.. तू यही बेड पर लेटी रहना.. मैं संजय कुमार को जाकर समझाती हूँ.. जब तक मैं ना कहूँ तुम वहाँ मत आना.. बेकार में बात का बतंगड़ बना देगी तू.. " कहते ही शीला बेड से उठी और वैशाली के बेडरूम का दरवाजा बंद कर दिया
संजय के कमरे का दरवाजा खोलते ही शीला ने सुना "आ जाओ अंदर वैशाली.. " अंधेरे में अपने लंड को हिला रहे संजय को लगा की कमरे में वैशाली आई है.. इसलिए उसी नग्न अवस्था में उसने निःसंकोच टेबल-लैम्प की स्विच ऑन कर दी.. सामने अपनी सासु माँ को देखकर वो स्तब्ध हो गया.. लैम्प के उजाले में संजय का गोरा कडक लंड देखकर शीला मुस्कुराई और उसने दरवाजा अंदर से लॉक कर दिया..
संजय के बिल्कुल करीब आकर एकदम दबी हुई आवाज में बोली "बड़ी मुश्किल से वैशाली को उल्लू बनाकर आई हूँ.. मैं तो ये सोच रही थी की वैशाली तेरे साथ सोने आएगी और मुझे उस कमरे में बाकी की रात उंगली डालकर ही बितानी पड़ेगी.. पर वो कहावत है ना "दाने दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम"
संजय: "हाँ मम्मी जी.. और मेरे लंड पर लिखा है बस आपका ही नाम.. " कहकर संजय ने शीला को हाथ से खींचकर अपने ऊपर ले लिया.. शीला ऐसे खींची चली आई जैसे परवाना शमा को देखकर खींचा चला आता है.. शीला का पूरा गदराया शरीर संजय के ऊपर छा गया.. अब ना किसी औपचारिकता की जरूरत थी और ना ही किसी फॉरप्ले की.. वैशाली ने जब डोरबेल बजाई तब उनका कार्यक्रम जहां पर रुका था वहीं से दोनों ने शुरुआत की..
संजय का लंड मुठ्ठी में पकड़कर उसे अपनी धड़कती भोस के सुराख पर घिसते हुए.. लंड की चमड़ी को पीछे सरकाकर सुपाड़े को उजागर कर दिया.. और अपनी चिपचिपी गीली भोस पर रगड़ना शुरू कर दिया.. और धीमे से संजय के कान में बोली "आह्ह बेटा.. जरा जल्दी करना.. इससे पहले की कोई नई मुसीबत आ खड़ी हो.. जल्दी जल्दी मुझे झड़वा दे और तू भी पिचकारी मारकर खतम कर.. फिर मैं चुपचाप वैशाली के कमरे में चली जाऊँगी.. उफ्फ़फफ संजु.. अब रहा नही जाता.. अब चोद दे मुझे.. डाल दे अंदर" शीला उतावली हो रही थी..
शीला के पपीते जैसे बड़े स्तनों को मसलते हुए उत्तेजित संजय ने कहा "ओर कोई तो यहाँ आने नही वाला.. अगर वैशाली आ गई तो दिक्कत ही क्या है.. माँ और बेटी दोनों को एक साथ चोद दूंगा.. ऐसा मौका कब मिलेगा.. !! चाहो तो जाकर वैशाली को बुला लो.. फिर दोनों को साथ में रगड़ता हूँ"
शीला पहले से ही जबरदस्त उत्तेजित थी.. ऊपर से संजय ने माँ-बेटी दोनों को साथ में चोदने की बात करके उसे ओर गरम कर दिया था.. संजय के चेहरे पर अपने विशाल बबले झुलाते हुए वो बोली "ओह्ह संजु.. वो सब बाद में.. पहले मुझे ठंडा कर.. काश.. वैशाली थोड़ी देर बाद आई होती तो सब कुछ आराम से हो जाता.. और उसकी मौजूदगी में मुझे तुम्हारे कमरे में आने का जोखिम उठाना नही पड़ता.. !!"
संजय: "अरे मेरी रानी.. कर दूंगा तुझे ठंडा.. पर पहले मेरे लंड को थोड़ा सा चूस तो लो.. !! फिर न जाने ऐसा मौका कब मिलेगा.. ??" शीला के स्तनों को दबाते हुए संजय ने कहा और शीला ने तुरंत ही उस विनती का स्वीकार करते हुए संजय का लंड एक ही पल में लपक कर मुंह में ले लिया..
"आह्ह आह्ह मम्मी जी.. ओह्ह शीला.. जबरदस्त.. ओह्ह.. नही.. निकल जाएगा मेरा.. यार प्लीज" शीला तब तक चूसती रही जब तक की संजय की हालत खराब न हो गई और वो झड़ने की कगार पर नही आ गया.. साथ ही साथ उसने यह ध्यान भी रखा की संजय उसके मुंह में ही न झड़ जाएँ.. वरना उसके भोसड़े का क्या होता?? जिस डाली पर बैठी हो उसी डाली को काट दे ऐसी मूर्ख तो थी नही शीला.. !!
"बस्स बस्स मम्मी जी.. मज़ा आ गया.. !!" संजय आगे कुछ बोलता उससे पहले ही शीला उसके बगल में बेड पर टांगें चौड़ी करके बैठ गई और बोली
"चल आजा बेटा.. शुरू हो जा.. आज तो निर्दय होकर ऐसी चुदाई कर की मेरी चूत फट जाएँ.. और हाँ.. डालने से पहले थोड़ी देर चाट लेना.. मस्त चाटता है रे तू.. तेरे जाने के बाद बहोत याद आएगी इस चटाई की"
अपनी बेटी बगल के कमरे में सो रही थी और शीला बिंदास अपने दामाद से चुत चटवा रही थी.. जबरदस्त डेरिंगबाज औरत थी शीला.. !! जैसे जैसे संजय उसकी चूत को चाटता गया वैसे वैसे शीला का सुराख ओर चिपचिपा शहद छोड़ता गया.. जब शीला एकदम गरम हो गई तब उसने संजय को इशारा करके अपने ऊपर चढ़ने का न्योता दिया.. संजय भी रिधम में आकर.. अपनी पत्नी की मौजूदगी की परवाह कीये बिना.. सासु माँ की चूत में अपना लंड पेलकर बड़ी मस्ती से चोदने लगा.. जबरदस्त धक्के लगाते हुए जब संजय और शीला शांत हुए तभी दम लीया.. दोनों अपनी मनमानी कर चुके थे और हांफ रही शीला अपनी सांस नियंत्रित होने का इंतज़ार कर रही थी..
"संजय बेटा.. तेरे साथ बिताएं ये कुछ दिन मुझे हमेशा याद रहेंगे.. शाम को जब तेरे ससुरजी का फोन आया तब मैं उनकी साथ बात कर रही थी और तू जिस तरह मुझे उस वक्त छेड़ रहा था तब बहोत मज़ा आया था.. वो क्षण याद आते ही मेरी चूत में झटके लगने लगते है.. मैं मेरे पति से बात कर रही थी तब तू मेरी चूत चाट रहा था.. आह्ह.. मेरे स्तनों को मींज रहा था.. मैं बातों में व्यस्त थी तब तूने अपना सख्त लंड मेरे गालों पर रगड़ दिया था.. ईट वॉज जस्ट अमेजिंग.. मज़ा आ गया था बेटा.. फिर कभी चांस मिले तो और मजे करेंगे.. अब एक आखिरी बार मेरे गले लग जा"
दोनों ने एक दूसरे को अपने बाहुपाश में जकड़ते हुए एक जानदार किस कर ली.. संजय ने अपने पसंदीदा स्तनों को गाउन के ऊपर से ही दबाया और मसल लिया.. हाथ अंदर डालकर दोनों निप्पलों को मरोड़ा.. और शीला की गर्दन पर किस कर दी.. शीला ने भी संजय के लंड को उसकी सारी सेवा के बदले आभार प्रकट करते हुए चूम लिया..
शरीर की भूख सम्पूर्ण तृप्त करके सास और दामाद वापिस अपनी सामाजिक सृष्टि में लौट गए तब दोनों के चेहरे पर संतुष्टि के भाव झलक रहे थे.. अपने गाउन के हुक बंद कर रही शीला के स्तनों को वो आखिरी बार दबा रहा था.. आखिरी हुक बंद करते हुए शीला ने कहा " बस दामाद जी.. अब और शरात नही.. आजादी का समय पूरा हुआ.. मैं जाकर वैशाली को बुलाकर लाती हूँ.. मुझे कुछ महत्वपूर्ण बातों पर चर्चा करनी है तुम दोनों के साथ.. और सुन.. गुस्से में मैं अगर कुछ बोल दूँ तो बुरा मत मानना.. पिछले चार दिनों में.. हमने जो संबंध स्थापित किया है उसकी लाज रखना"
इतना कहकर शीला संजय के कमरे से बाहर निकली और वैशाली के रूम में गई.. उसे बुलाने.. पर जब वो वहाँ पहुंची तब उसने देखा की वैशाली तो खर्राटे मारते हुए सो रही थी.. "इतनी देर में नींद भी आ गई ईसे? पहले पता होता तो मैं इतनी जल्दी नही करती.. " शीला ने सोचा.. चलो जो हुआ अच्छा ही हुआ.. लालच बुरी बला है.. ज्यादा लालच ठीक नही.. उसने अपने मन को मनाया..
सोचते सोचते शीला बाथरूम गई और पेशाब करते हुए सामने लगे आईने को देखकर मन ही मन बोलने लगी "संजय और मदन.. दोनों चोदने में एक्सपर्ट है.. मदन भी संजय की तरह तड़पा तड़पाकर चोदता था.. दोनों तब तक लंड चूत में नही डालते थे जब तक शीला अंदर डलवाने के लिए बेबस न हो जाए.. शाम को जब शीला और संजय चोद रहे थे तभी मदन का फोन आया था.. वो याद आते ही शीला के बदन में एक सुरसुरी से मच गई.. रोमांचित हो गई याद करके.. मदन जब फोन पर उसके साथ जज्बाती हो रहा था तब वो संजय का लंड हिलाते हिलाते सुन रही थी.. जब मदन शीला से यह कह रहा था की वो उसे मिलने के लिए बेताब है.. तब संजय शीला की चूत के होंठों को चाट रहा था.. एक बार तो वो बात करते सिसक भी पड़ी.. लेकिन मदन को लगा की शायद शीला रो रही थी..
चौबीस महीनों के बाद.. मदन कल आ रहा था.. और अगर उसे मेरी आँखों में प्यास या तड़प नही दिखेगी तो वो क्या सोचेगा अगर मैं रसिक, रूखी, जीवा, रघु और संजय के संपर्क में नही आई होती.. तो बिना लंड देखे ही उसे २ साल बिताने पड़ते.. पर मदन के लिए तो उसे ऐसा ही अभिनय करना था जैसे वो पिछले दो साल से बिना सेक्स के.. जुदाई की आग में जल रही हो.. जो रात होते ही अपने पति की आगोश में अपनी चूत शांत करने के लिए चिपक जाएँ..
पिछले दो महीनों में.. जिंदगी ने कहाँ से कहाँ लाकर रख दिया.. !! ऐसे अटपटे विचार करते हुए शीला सोने जा रही थी तभी उसे याद आया की संजय उनकी राह देख रहा होगा.. जाकर उसे बता देती हूँ ताकि वो भी सो जाएँ.. सारी बातें सुबह कर लेंगे.. वैसे भी.. अब तो सिर्फ बातें ही करनी थी.. और कुछ तो होने से रहा.. !! वो संजय के कमरे में गई पर संजय सो चुका था.. हल्की रोशनी में पूरे बेड पर हाथ फैलाकर सो रहे अपने दामाद को थोड़ी देर तक देखती ही रही शीला.. !! सास और दामाद के बीच कितने सामाजिक परदे होते है.. हवस की एक ही आंधी ने सब कुछ तहस नहस कर दिया.. चुपचाप वो संजय के रूम से निकलकर वैशाली के रूम में आ गई और लेट गई.. रात के साढ़े बारह बज चुके थे.. थोड़ी ही देर में शीला की भी आँख लग गई..
सुबह हो गई.. प्रभात के सुनहरे किरण आज नई ज़िंदगी का आगाज ले कर आए थे शीला के लिए.. आज मदन वापिस आने वाला था..
शीला जागी और बाथरूम में घुस गई.. अपने सुंदर शरीर को साबुन से रगड़ रगड़कर साफ करने लगी.. जैसे पिछले दो महीनों में जो भी पाप और व्यभिचार कीये थे उन्हे धो देना चाहती हो.. !! अपनी चूत को भी उसने बराबर रगड़कर साफ किया.. कहीं किसी पुराने लंड की कोई निशानी बाकी न रह जाएँ..
लाल रंग की बांधनी साड़ी पहन कर शीला तैयार हो गई और नाश्ता बनाने किचन में गई.. ब्रेड-पकोड़े तल रही शीला को कुछ आवाज़ें सुनाई दी.. आवाज उसके बेडरूम से आ रही थी.. शायद वैशाली और संजय के बीच कुछ नोक-झोंक हो रही थी.. सुबह के नौ बजे ही दोनों शुरू हो गए!! शीला ने गेस की आंच को धीमा किया और बेडरूम की तरफ गई.. बेडरूम का दरवाजा बंद था.. वो कान लगाकर सुनने लगी..
"मुझे छूने की कोशिश भी मत करना संजय.. मुझे नही करवाना तेरे साथ.. तू चला जा.. आह्ह.. छोड़ मुझे.. मम्मी सुन लेगी.. " वैशाली की आवाज सुनकर शीला ने अंदाजा लगाया की संजय चोदने की जिद कर रहा था और वैशाली मना कर रही थी.. आगे क्या होता है वो बड़े ध्यान से सुनने लागि शीला..
संजय: "कितने दिन हो गए वैशाली.. !! तुझे मेरी जरा भी फिकर नही है.. मेरा कितना मन कर रहा है तुझे पता नही है.. ये देख.. कैसा तैयार हो गया है मेरा.. करीब आजा न यार.. क्यों तड़पा रही है.. मेरे लंड को देखकर जरा भी दया नही आती तुझे?"
वैशाली: "तेरा ये तो चौबीसों घंटे तैयार ही रहता है.. और ये सिर्फ मेरे लिए थोड़ी न खड़ा होता है.. !! तेरी वो रखेल है ना.. जा उसके पास.. और डाल उसकी चूत में.. मैं अपनी चूत को तेरे लंड से बर्बाद करवाना नही चाहती.. छोड़ मुझे!!"
वैशाली को संजय ने पकड़कर रखा होगा ऐसी कल्पना करने लगी शीला.. सेक्स से संलग्न किसी भी बात में शीला को हमेशा बहोत दिलचस्पी हो जाती.. सगी बेटी और दामाद को उनके निजी हरकतें करते हुए देखना या सुनना पाप है ये जानते हुए भी अपने आप को रोक नही पाई शीला..
संजय: "प्लीज जानु.. बहोत दिन हो गए.. एक बार मुंह में तो ले.. क्यों इतने नखरे कर रही है?? चल अब गुस्सा थूक दे और जल्दी जल्दी मुंह मे लेकर चूसना शुरू कर.. फिर मैं भी तेरी चुत को मस्त चाटूँगा.. आह्ह वैशाली.. दिन-ब-दिन तेरे स्तन तेरी मम्मी जैसे होते जा रहे है.. एकदम बड़े बड़े.. "
वैशाली: "ऊईईई माँ.. मर गई.. जरा धीरे से दबा स्टूपिड.. जब देखों तब मेरे बॉल पर ही टूट पड़ता है.. मेरे साथ जबरदस्ती मत कर.. वरना मम्मी को पता चल जाएगा.. एक बार कहा न मैंने.. मैं मुंह में नही लूँगी.. मुझे घिन आती है.. कौन जाने कितनी गंदी चूतों को चोदकर आया होगा तू.. !! और ऐसा गंदा लंड मैं चुसूँ?? छी.. !!"
संजय: "अरे!!! मेरी जान.. चूत में लंड जाने से गंदा थोड़े ही हो जाता है.. !! अब नखरे बंद कर और चूसना शुरू कर.. भेनचोद तेरी माँ का घर है इसलिए ज्यादा नखरे चोद रही है.. अभी मेरे घर पर होते तो तेरी क्या हालत करता.. पता है ना तुझे.. !!"
शीला समझ गई.. संजय के अंदर का शैतान जाग उठा था.. उसके बाद थोड़ी देर तक कमरे से कोई आवाज नही आई.. शायद वैशाली संजय के शरण में जा चुकी थी.. शीला वापिस किचन में लौट गई और नाश्ता बनाने लगी..
लाल रंग की सुंदर साड़ी पहने हुए शीला.. एक आदर्श गृहिणी बन गई थी.. अनैतिकता का चोला उतार फेंक कर वह वापिस वफादार पत्नी का किरदार निभाने के लिए तैयार हो गई थी..
किचन में ब्रेड पकोड़े तलते हुए उसका मन तो बेडरूम में ही था.. क्या चल रहा होगा उन दोनों के बीच में?? एकदम आवाज़ें बंद क्यों हो गई होगी? पकोड़े तैयार हो गए.. प्लेट में सजाकर उसने टेबल पर रखे और तुरंत भागकर बेडरूम के दरवाजे पर पहुँच गई और सुनने लगी
वैशाली और संजय की बातें अब सुनाई दे रही थी
वैशाली: "आह्ह.. अब डाल भी दे अंदर.. गरम करने के बाद इतनी देर क्यों कर रहा है संजय? प्लीज.. मुझे फिर किचन में भी जाना है.. मम्मी अकेले सारा काम कर रही होगी.. तू सुबह सुबह ये सब लेकर बैठ जाता है ये मुझे जरा भी पसंद नही है.. !!"
संजय: "तो मैंने कहाँ तुझे पकड़ कर रखा है?? जा.. तेरी मम्मी की मदद कर.. मैं नही रोकूँगा.. "
वैशाली: "अब मुझे इतना एक्साइट करने के बाद बोल रहा है.. !! अब मुझ से बर्दाश्त नही हो रहा.. मुझे झड़ना है.. बाहर रगड़ना छोड़ और डाल दे अंदर.. आह्ह.. आग लगी है.. !!"
ये सुनकर शीला सोचने लगी .. अभी थोड़ी देर पहले तो कितनी नफरत से बात कर रही थी.. और अब गिड़गिड़ा रही है.. रात को तो संजय से सीधे मुंह बात तक नही की और अब उसका लंड चूत में लेने के लीये फुदक रही है..
चिपचिपी चूत में लंड के अंदर बाहर होने की आवाज कमरे में गूंजने लगी.. इन आवाजों से शीला परिचित थी.. वैशाली संजय के गोरे लंड को अपनी चूत की गहराइयों में अंदर बाहर करवाते हुए चूत की खुजली को मिटा रही थी.. धक्के लगाते वक्त संजय के हाव भाव कैसे होंगे?? पिछली रात ही शीला ने अनुभव किया था.. वो मन ही मन संजय और वैशाली की चुदाई की कल्पना करने लगी.. वैशाली को कितना मज़ा आ रहा होगा.. !!
कई स्त्री कितनी भी सीधी-साधी और सरल क्यों न हो अपने पति के साथ बेडरूम में ऐसा चाहती है की उसका पति जबरदस्ती करे.. उसे रौंद दे.. उसकी चूत के परखच्चे उड़ा दे.. उसके इनकार को अनदेखा कर उसे जबरदस्त चोद दे.. इसीलिए वैसी स्त्री संभोग की शुरुआत.. सभी चीजों के लिए ना - ना कहकर ही करती है.. और पुरुष को और ज्यादा आक्रामक बना देती है.. आवेश में आकर जब पुरुष जबरदस्ती उस पर चढ़ता है तब उसे दोगुना मज़ा आता है.. ये सब के साथ तो नही होता.. पर हाँ कुछ औरतें ऐसा जरूर चाहती है..
वैशाली की सिसकियाँ और कराहें सुनकर शीला के जिस्म में मीठी मीठी सुरसुरी होने लगी.. संजय के गोरे तगड़े लंड को याद करते हुए वो अपनी चूत को साड़ी के ऊपर से ही दबाकर उसे उत्तेजित होने से रोकने लगी..
"ओह्ह वैशाली.. गजब की टाइट है तेरी चूत.. आह्ह आह्ह ओह्ह मेरी जान.. तुझे चोदने का मज़ा ही अलग है.. " संजय की इस आवाज को सुनकर शीला अपने घाघरे में हाथ डालने के लिए मजबूर हो गई..
तभी शीला के घर की डोरबेल बजी.. भागकर शीला ने दरवाजा खोला.. सामने उसका पति मदन खड़ा था.. उसे देखते ही शीला भावुक हो गई.. एक ही पल में उसकी सारी उत्तेजना भांप बनकर उड़ गई.. पूरे दो सालों के बाद वो अपने पति को देख रही थी..
"ओह मदन.. तुम आ गए.. " कहते हुए मदन के गले लगकर रोने लगी शीला..
बाहर गाड़ी का ड्राइवर डीकी खोलकर सामान निकालने की तैयारी करते हुए खड़ा था.. वो भी इस पति पत्नी के मिलन को देखता रहा.. किसी भी विकार या वासना से अलिप्त इस शुद्ध मिलन की घड़ी को अनुमौसी और कविता भी अपने घर से देख रहे थे..
पल्लू से अपने आँसू पोंछते हुए शीला ने देखा की ड्राइवर उन दोनों को देखकर मुस्कुरा रहा था.. शीला शरमा गई.. और साथ ही साथ उसके चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान भी आ गई.. वो ड्राइवर और कोई नही.. पर हाफ़िज़ ही था..
शीला तुरंत मदन से अलग हो गई और उसका हाथ पकड़कर घर के अंदर ले गई..
"कितना प्यार है दोनों के बीच" अनुमौसी ने कविता से कहा "धन्य है शीला को.. !!दो दो साल तक बिना पति के रह पाना कितना मुश्किल होता है.. अच्छा हुआ जो मदन आ गया.. अब शीला के दुख के दिन खत्म हुए.." एक स्त्री को पुरुष के शारीरिक साथ की कितनी जरूरत होती है वो अनुमौसी बखूबी समझते थे.. उनकी बातों से उम्र और अनुभव दोनों का निचोड़ छलक रहा था.. कविता को अचानक पीयूष की याद आ गई और वो दुखी हो गई.. वो सोच रही थी.. शीला भाभी और मदन भैया इस उम्र में भी एक दूसरे को कितना प्यार करते है.. !! और यहाँ पीयूष को तो मेरी कदर ही नही है.. पता नही एकदम से उसे क्या हो गया.. वो पहले तो ऐसा नही था.. पिछले एकाध महीने से ही उसके स्वभाव में ये बदलाव आया है.. जैसे जैसे वो सोचती गई वैसे वैसे कविता को भी अपनी गलतियों का एहसास होने लगा था.. वो सोचने लगी.. कहीं मेरे और पिंटू के बीच के संबंध के बारे में पीयूष को पता तो नही चल गया होगा?? कांप उठी कविता
"किस सोच में डूब गई कविता.. ?? चाय उबलकर पतीली से बाहर गिर रही है.. ध्यान कहाँ है तेरा?? अभी चाय तेरे हाथ पर गिर जाती.. " अनुमौसी ने कविता की विचारशृंखला को तोड़ा और किचन के बाहर चली गई
शीला और मदन, इनोवा की डीकी से सामान उतारने लगे.. ड्राइवर हाफ़िज़ कैरियर पर रस्सी से बांधी हुई बेग को खोल रहा था.. और कार के टॉप से शीला के स्तनों के बीच की खाई को देखता जा रहा था
शीला और मदन दोनों अंदर आए.. शीला ने मदन को ड्रॉइंग रूम में ही बिठाया.. ताकि वैशाली और संजय को मिलन की आखिरी पलों में चरमसीमा हासिल करने में कोई खलल ना पड़े.. मंजिल पर पहुंचते वक्त कोई बाधा आ जाएँ तो क्या गुजरती है ये शीला बखूबी जानती थी.. कल रात ही ऐसा हुआ था जब वैशाली चुदाई के बीच ही टपक पड़ी थी
सामान लेकर हाफ़िज़ अंदर आया.. शीला उससे नजरें नही मिला पा रही थी.. वो चाहती थी की मदन उसे भाड़ा देकर जल्द से जल्द रवाना कर दे.. पर मदन को कहाँ पता था जिस गाड़ी में वो आया है उस गाड़ी का ड्राइवर उसकी बीवी को दो बार चोद चुका है.. !!
"तुमने मेरी बहोत मदद की है.. अंदर आओ.. शीला.. ड्राइवर भाई के लिए चाय बना दे.. बहोत ही अच्छा आदमी है.. " मदन का ये कहते ही शीला के छक्के छूट गए.. पर वो क्या करती!!
"आइए आइए भैया.. यहाँ सोफ़े पर बैठिए.. मैं आपके लिए चाय बनाकर लाती हूँ.. " ना चाहते हुए भी शीला को हाफ़िज़ का स्वागत करना पड़ा..
मन ही मन खुश होते हुए हाफ़िज़ सोफ़े पर बैठ गया.. शीला ने जब उसे पानी का ग्लास दिया तब हाफ़िज़ ने जानबूझकर शीला के हाथ को छु लिया.. शीला के जिस्म में बिजली दौड़ गई.. वो बेचारी इन सब से दूर भागना चाहती थी.. लेकिन स्थिति ही कुछ ऐसी थी की वो कुछ कर नही पाई.. वो तुरंत किचन में चली गई और मदन और हाफ़िज़ के लिए चाय बनाने लगी..
तीन कप चाय ट्रे में लेकर बाहर आई.. और तीनों चाय पीने लगे.. तभी बेडरूम का दरवाजा खुला और वैशाली संजय के साथ तृप्त होकर बाहर निकली
"पापा....!!!" कहते हुए वैशाली मदन से लिपट पड़ी
बाप और बेटी के इस भावुक मिलन के दौरान.. वैशाली की आँखों से टपकते आँसू.. अपने पिता संग मिलन की खुशी.. और संजय से मन-मुटाव का दुख.. दोनों व्यक्त कर रहे थे.. वैशाई अपने पापा के कंधे पर सर रखकर काफी देर तक रोती रही.. सृष्टि के सब से करुण द्रश्य में से एक था.. पहले तो मदन को पता नही चला.. पर जब वैशाली का रोना काफी देर तक चलता रहा तब उसे शक हुआ की कुछ तो हुआ था वैशाली के साथ.. कोई भी बाप अपनी बेटी को रोते हुए नही देख सकता.. बड़ी मुश्किल से मदन ने वैशाली को अपने आप से अलग किया और शीला को इशारा किया की वो वैशाली को अंदर ले जाएँ.. वैशाली को सांत्वना देते हुए शीला उसे अंदर किचन में ले गई.. वैशाली के आधे से ज्यादा आंसुओं का जवाबदार संजय ऐसे बैठा था जैसे उसे कुछ पता ही न हो.. पास पड़ा अखबार उठाकर पढ़ने लगा वो
मदन ने पर्स से पैसे निकालकर हाफ़िज़ को भाड़ा चुकाया.. जाते जाते हाफ़िज़ किचन के करीब से खाँसते हुए निकला.. शीला का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए.. लेकिन शीला ने उसकी तरफ देखा तक नही.. "चलिए मेमसाब.. मैं चलता हूँ. चाय पिलाने के लिए शुक्रिया.. कभी किराएं पर गाड़ी की जरूरत हो.. या और किसी भी चीज की जरूरत हो तो याद करना.. बंदा हाजिर हो जाएगा.. आपके जैसी पार्टियां बहोत कम मिलती है" शीला को आँख मारते हुए हाफ़िज़ ने कहा
शीला को एक पल के लिए अपने आप पर ही घिन आने लगी.. हे प्रभु.. मैं कैसी थी और कैसी बन गई.. !! अब ये मेरा काला भूतकाल मेरा पीछा नही छोड़ेगा.. कुछ अनहोनी ना हो जाए तो अच्छा है..
संजय खड़ा हुआ और किचन में आकर बोला "मम्मी जी.. मैं काम से बाहर जा रहा हूँ.. मेरा खाना मत बनाना.. पार्टी से मिलने जा रहा हूँ वहीं खाना खा लूँगा.. !!"
"बड़ा आया पार्टी वाला.. होगी कोई उसकी रांड.. मुझे तो मन भरकर भोग लिया.. उसका काम हो गया.. अब यहाँ रहकर क्या फायदा.. अब सस्ती चूतों के पीछे भटकता रहेगा मादरचोद" वैशाली मन में सोच रही थी..
संजय के चले जाने के बाद.. माँ, बेटी और मदन अकेले हुए.. तब तक मदन बाथरूम से नहाकर निकला था..
"आह.. अपने वतन में आकर कितना अच्छा लगता है.. मैं क्या बताऊँ वैशाली.. !! विदेश में सुख सुविधा का भंडार था.. पर जो सुकून अपने देश में आकर मिलता है वो कहीं नही मिलता.. " सोफ़े पर आराम से बैठते हुए मदन ने वैशाली से कहा
विदेश की बातें करते हुए मदन और वैशाली ने नाश्ता किया.. उसे ब्रेड पकोड़े बेहद पसंद थे इसीलिए शीला ने याद करके वही बनाए थे.. वहाँ विदेश में रहकर शीला के हाथ का बना भोजन वो कितना मिस कर रहा था ये बताया मदन ने.. खाने के अलावा.. शीला से दूर रहकर उसे कितनी तकलीफें झेलनी पड़ी उसका सारा ब्यौरा दे रहा था वो.. ये सुनकर शीला बेचैन हो गई.. अपने पति की जुदाई में उसने जो कारनामे कीये थे वो याद करके दुखी दुखी हो गई शीला.. मेरा पति वहाँ मेरी जुदाई के गम में तड़प रहा था.. और मैंने यहाँ क्या क्या कर दिया.. छी छी ची.. अपने आप पर ही घृणा होने लगी शीला को.. पर जो बीत गई सो बात गई.. अब कुछ नही हो सकती था
वैशाली सयानी और शादीशुदा थी.. वो समझ सकती थी की दो सालों के बाद मिले पति पत्नी को एकांत देना बेहद जरूरी था.. नाश्ता खतम करके वो खड़ी हो गई
वैशाली: "पापा.. मैं कविता और उसकी बहन मौसम से मिलकर आती हूँ.. तब तक आप और मम्मी बातें कीजिए.. और हाँ.. पापा से सब कुछ पूछ लेना मम्मी.. की वहाँ क्या गुल खिलाकर आए है " हँसते हँसते वैशाली ने शीला के कान में कहा "वहाँ की गोरी लड़कियां बेहद सुंदर और आकर्षक होती है.. अच्छे अच्छे उनके आगे फिसल जाते है.. पूछना तुम पापा से" खिलखिलाकर हँसते हुए वैशाली चली गई.. शीला भी हंस पड़ी..
बड़ी ही प्रेमभरी नज़रों से मदन शीला को हँसते हुए देखता रहा "शीला, तेरा ये हँसता हुआ चेहरा देखने के लिए मैं दो साल तक तरसा हूँ"
सम्पूर्ण एकांत.. वो भी दो सालों की जुदाई के बाद.. दो साल नही.. चौबीस महीने.. चौबीस महीने नही सातसौ तीस दिन.. !!! जुदाई के अनगिनत घंटों के बाद जाकर एकांत मिला था शीला और मदन को.. ऐसा नही है की जुदाई में इंसान सिर्फ सेक्स को ही मिस करता है.. उसके अलावा भी काफी बातें होती है.. सेक्स तो केवल दो इंसानों के मिलन से जुड़ी भावनाओ की आग का नाम है.. मदन शीला की गोद में सर रखकर सो गया.. शीला मदन के सर और क्लीन शेव चेहरे पर हाथ सहलाने लगी.. मदन की आँख में आँसू आ गए.. शीला की आँखें भी नम थी.. दोनों बिना कुछ कहें बस एक दूसरे के स्पर्श को महसूस कर रहे थे.. जैसे जनम जनम के बाद मिल रहे हो.. !!
Faguni aur vaishali ka Subodh ke sath gazab super duper threesomeवैशाली को बड़ा आश्चर्य हो रहा था.. कहीं मौसम को फाल्गुनी और उसके पापा के बारे में पता तो नही चल गया होगा.. !! उस दिन जब फाल्गुनी के साथ बाथरूम में बातें हुई थी तब कहीं मौसम ने सुन तो नही ली थी!! या फिर मौसम किसी और काम से ले जा रही हो?? पर किसी और काम के लिए वो मुझे क्यों साथ ले जा रही है?? पर लगता तो यही है की मौसम को पता चल गया है.. और वो ये भी जान चुकी है की मुझे इस बात का पता पहले से है.. इसीलिए तो मुझे साथ लिया है..
वैशाली का दिमाग स्कूटी के पहियों से भी तेज चल रहा था.. स्कूटी को एक कोने पर ले जाकर एक गली के पास खड़ा कर दिया मौसम ने और फिर कहा "वैशाली, तू यहाँ रुक.. मैं थोड़ी देर में आती हूँ.. दस मिनट से ज्यादा टाइम नही लगेगा.. तुझे साथ ले जाने में रिस्क है वरना तुझे साथ ले जाती.. जैसा मैंने कहा.. बात गंभीर है और सीक्रेट भी"
वैशाली: "हाँ हाँ.. मुझे कोई प्रॉब्लेम नही है.. पर जल्दी आना.. इस अनजान रास्ते पर अकेले खड़े रहने में मुझे डर लगता है"
मौसम: "चिंता मत कर.. मैं जल्दी वापिस आ जाऊँगी" कहते हुए मौसम उस गली के अंदर चली गई..
वैशाली का दिमाग चकरा रहा था.. कहाँ गई होगी? ऐसा क्या सीक्रेट होगा उसका? इस गली के अंदर क्या होगा?? वैशाली ने गली के अंदर थोड़ा सा अंदर जाकर देखा.. गली के आखिरी छोर पर एक गाड़ी पार्क थी.. कार का मॉडल और कलर देखकर वैशाली चोंक गई.. ये तो मौसम के पापा, सुबोधकांत की कार थी.. !! मतलब उनकी ऑफिस यहाँ थी.. तो मौसम जरूर फाल्गुनी और सुबोधकांत के बारे में जान गई होगी.. और इसी बात की तहकीकात करने आई है.. अब जब मौसम सब जान ही गई है.. तो फिर मुझे जाने में क्या दिक्कत!!
वैशाली के कदम अपने आप ही गली के अंदर चले गए.. और चलते मुसाफिर को मंजिल तक पहुँचने में देर नही लगती.. मुश्किल से थोड़ा आगे गई होगी और एक दरवाजे पर उसे मौसम के सेंडल पड़े नजर आए.. वैशाली की धड़कन तेज हो गई.. दरवाजे के ऊपर एक बोर्ड लगा था जिस पर लिखा था.. एस.के. एंटरप्राइज़.. धीरे से दरवाजा खोलकर वैशाली ने अंदर देखा.. उसे मौसम का हरा दुपट्टा नजर आया.. उसे यकीन हो गया की यही था सुबोधकांत का ऑफिस और मौसम का दुपट्टा भी इस बात का सबूत दे रहा था.. पक्का मौसम अपने बाप की लीला के दर्शन करने ऑफिस दौड़ी चली आई थी.. अब सवाल ये था.. की मौसम के रहते, वैशाली अंदर जाए कैसे??
ऑफिस के अंदर एक आगे की केबिन थी जहां मौसम खड़ी थी.. और पीछे वाली केबिन में शायद सुबोधकांत थे.. जिसे मौसम देख रही थी.. वैशाली ने बड़े ही आराम से मेइन दरवाजा खोला और लपककर मौसम के पीछे खड़ी हो गई.. सुबोधकांत की केबिन का दरवाजा आधे इंच जितना खुला हुआ था.. और अंदर का द्रश्य देखते ही मौसम और वैशाली दोनों दंग रह गए.. सुबोधकांत फाल्गुनी का टॉप ऊपर करके उसके स्तनों को चूस रहे थे.. !!
वैशाली ने धीरे से मौसम के कंधे पर अपना हाथ रख दिया.. घबराई मौसम ने एकदम से पीछे देखा.. वैशाली पर नजर पड़ते ही वो शरमा गई.. दोनों ने आँखों आँखों में सारी बात कर ली.. वैशाली ने मौसम के पीछे से अपने दोनों हाथ डालकर उसके स्तनों को पकड़ लिया.. और उन्हे दबाते हुए मौसम की गर्दन के पीछे किस करने लगी.. अपने बाप के कारनामे देखकर मौसम भी अपनी चूत को खुजाते हुए वैशाली के बालों में उँगलियाँ फेरने लगी.. पीठ पर चुभ रहे वैशाली के उन्नत स्तनों की गर्माहट और साथ ही साथ स्तनों का मर्दन.. मौसम किसी अलौकिक दुनिया में पहुँच गई.. उसकी सांसें बेहद भारी हो गई थी..
जैसे जैसे उसके पापा फाल्गुनी के जवान शरीर के साथ खिलवाड़ करते.. उसके स्तनों को चूसते देखती गई.. वैसे वैसे मौसम और उत्तेजित होती गई.. सुबोधकांत ने फाल्गुनी का हाथ अपने लंड पर रख दिया.. और ये सीन देखकर मौसम के स्तनों पर वैशाली की पकड़ और मजबूत हो गई..
"आह्ह.. जरा धीरे कर वैशाली.. दर्द हो रहा है.. अगर बहुत चूल मची हो तो तू भी अंदर चली जा.. मेरे बूब्स को क्यों दबोच रही है? " एकदम फुसफुसाते हुए मौसम ने वैशाली के कान में कहा..
जवाब में वैशाली ने मौसम के ड्रेस के अंदर हाथ डालने की कोशिश की पर ड्रेस इतना टाइट था की हाथ अंदर गया ही नही.. ऊपर से मौसम के स्तन उत्तेजित होकर और फूल गए थे.. और इतना दबाव बना रहे थे की देखकर लगता था जैसे मौसम की ड्रेस अभी फट जाएगी.. वैशाली अंदर हाथ न डाल पाई पर उसने खुद के स्तनों को मौसम की पीठ पर रगड़कर कसर निकाली.. उसका दूसरा हाथ मौसम की चूत तक ले जाकर.. हौले हौले सलवार के ऊपर से उसकी रसीली कुंवारी चूत को सहला रहा था..
वैशाली ने मौसम के ड्रेस की चैन को पीछे से खींचकर.. उसकी सुंदर गोरी पीठ को खुला कर दिया.. अब वैशाली का हाथ बड़ी ही आसानी से मौसम के स्तनों तक जा पहुंचा.. ब्रा को ऊपर करके उसने मौसम के स्तनों पर अपने हथेली से स्पर्श करते ही एक जबरदस्त स्पार्क हुआ.. और दोनों की हवस प्रखरता से प्रज्वलित हो गई
सुबोधकांत फाल्गुनी की निप्पलों को मसल रहा था और उसी वक्त वैशाली मौसम की निप्पलों को भी मसलने लगी.. मौसम की आँखें बंद सी होने लगी.. मन ही मन में वो ऐसा महसूस कर रही थी जैसे उसकी निप्पल वैशाली नही पर उसके पापा मसल रहे थे.. मौसम की चूत रस छोड़ते हुए उसकी पेन्टी को गीला कर रही थी.. सलवार के ऊपर से हाथ फेर रही वैशाली भी गीली हो रही पेन्टी को महसूस कर रही थी.. वैशाली ने आपा खोकर मौसम की पूरी चुत को कपड़े के ऊपर से ही अपनी मुठ्ठी में भरकर दबा दिया.. चूत पर दबाव आते ही मौसम को थोड़ी सी राहत हुई.. अपने बाप को अपनी खास सहेली के होंठों को बेताबी से चूसते हुए देखकर उसकी चुत में जबरदस्त खुजली होने लगी थी.. उससे अब रहा नही जा रहा था..
वैशाली और मौसम केबिन के अंदर का द्रश्य देखकर उत्तेजना और हवस से झुलसने लगे.. वैशाली मौसम के जिस्म को पीछे से दबोचे जा रही थी.. कमर के ऊपर सम्पूर्ण नग्न फाल्गुनी के स्तनों पर सुबोधकांत टूट पड़े.. दोनों हाथों से बेरहमी से उसने फाल्गुनी के बबलों को इतनी जोर से मसला की फाल्गुनी की आँखों में पानी आ गया.. वो दोनों धीरे से कुछ बात भी कर रहे थे पर मौसम या वैशाली को सुनाई नही दे रहा था..
मौसम अपने अंगों पर हो रही वैशाली की हरकतों का मज़ा लेते हुए अपने बाप और सहेली के गुलछर्रों को देख रही थी.. फाल्गुनी की पेन्टी के अंदर हाथ डालकर सुबोधकांत उसकी चूत से खेलने लगे.. चूत पर मर्दाना हाथ का स्पर्श होते ही फाल्गुनी सुबोधकांत से लिपट गई.. और उनके चेहरे को चूमने लगी.. चूमते हुए वह सुबोधकांत के शर्ट के बटन खोलने लगी और शर्ट को उतार दिया.. हेंडसम पर्सनालिटी वाले सुबोधकांत की चौड़ी छाती पर बालों के जंगल को देखकर वैशाली और मौसम भी गरम हो गए..
फाल्गुनी ने सुबोधकांत के पेंट की चैन खोली और उनका लंड बाहर निकाला.. अपने बाप का खुला लंड देखकर मौसम स्तब्ध हो गई.. ये वही अंग था जिसके रस से मौसम का जन्म हुआ था.. पुरुष का ये सख्त अंग.. किसी कुंवारी लड़की के मन में शर्म या हया को जन्म दे सकता है.. पर किसी अनुभवी स्त्री के लिए.. चूत की गहराई तक जाकर.. बच्चेदानी पर चोट करने वाला उपकरण था.. वैशाली काफी समय से लंड के लिए तरस रही थी.. उससे दोगुनी उम्र के पुरुष का लंड पकड़ने में शरमा रही फाल्गुनी पर वैशाली को गुस्सा आ रहा था.. उसके मुंह से निकल गया
"ये मादरचोद शरमा क्यूँ रही है? कितना मस्त लंड है यार.. !! मौसम, मैं तो उसे एक घंटे तक चुस्ती रहूँ फिर भी मेरा मन न भरें.. अंदर घुसाने पर कितना मज़ा आएगा यार.. !! ये सारी खुजली एकदम शांत हो जाए.. बाप रे.. काफी बड़ा है.. मन कर रहा है की अभी अंदर चली जाऊ और फाल्गुनी को धकेलकर तेरे पापा का लंड पकड़ लू.. "
मौसम: "तो चली जा अंदर.. और बुझा ले अपने जिस्म की प्यास.. !!"
वैशाली: "सही में यार.. बहोत मस्त लंड है तेरे पापा का.. इस उम्र में भी उनकी फिटनेस गजब की है.. मुझे तो सच में उनसे चुदवाने का मन कर रहा है.. यार, देख ना.. कैसे ऊपर नीचे झटके खा रहा है.. ये फाल्गुनी बेकार में समय बर्बाद कर रही है.. "
वैशाली ने अपना एक स्तन बाहर निकाला.. और मौसम को अपनी ओर घुमा दिया.. उसे नीचे झुकाकर अपनी निप्पल मौसम के मुंह में दे दी.. बिना शरमाये मौसम चूसने लगी क्योंकि वह खुद भी बहोत गरम थी.. वैशाली मौसम की सलवार के अंदर हाथ डालकर उसकी चूत में उंगली आगे पीछे करने लगी.. गीली पुच्ची में उंगली पुच-पुच की आवाज करते अंदर बाहर हो रही थी.. मौसम की चूत में फिंगर-फकिंग करते हुए वैशाली की हवस बेकाबू हो गई थी
वैशाली की कामुक बातें.. मुंह में उसकी निप्पल.. चूत में उसकी उंगली और सामने चल रही पापा और फाल्गुनी की रंगीन चुदाई.. इन सब के संयोजन से मौसम की चूत ने पानी छोड़ दिया.. किसी दूसरी दुनिया में पहुँच गई वो.. उसकी आँखें ऊपर चढ़ गई.. आह्ह आह्ह के उद्गार करते हुए वो वैशाली के शरीर पर ढल गई.. अचानक वज़न आने से दोनों असंतुलित होकर पास पड़े टेबल से टकराए और उसकी आवाज से सब चोंक उठे.. घबराकर मौसम खड़ी हुई.. अपने जिस्म को दुपट्टे से ढँकते हुए वो ऑफिस से बाहर भाग गई.. उधर आवाज सुनकर चोंके हुए सुबोधकांत ने अपनी केबिन का दरवाजा खोला.. वो अपना लंड भी पेंट के अंदर डालना भूल गए थे.. इस अचानक हरकत से सुबोधकांत का लंड सिकुड़ गया..
वैशाली अपने आप को संभाल पाती उससे पहले ही सुबोधकांत अपनी केबिन से लंड लटकाए हुए बाहर निकले.. बाहर वैशाली को खुले हुए स्तन के साथ खड़ी देखकर उनके आश्चर्य का कोई ठिकाना नही रहा
सुबोधकांत: "अरे तुम?? यहाँ कैसे.. ?? यहाँ का पता किसने दिया तुम्हें?"
वो आगे कुछ बोलते उससे पहले ही वैशाली उनसे लिपट गई और चूमने लगी.. सुबोधकांत को पता नही चल रहा था की ये सब अचानक क्या हो रहा था.. !!! पर फाल्गुनी से बड़े स्तन को खुला देख उनके लंड ने एक झटका जरूर लिया..
"इन सब बातों का टाइम नही है अभी अंकल.. मैं अभी बहोत गरम हूँ"
फाल्गुनी डरते हुए बाहर निकली और उसने देखा की सुबोधकांत और वैशाली एक दूसरे से लिपटे हुए थे.. वैशाली का चेहरा फाल्गुनी की तरफ था.. सुबोधकांत को पता नही था की फाल्गुनी बाहर आ चुकी है.. वैशाली ने फाल्गुनी को आँख मारी.. फाल्गुनी शरमाकर केबिन के अंदर चली गई..
तुरंत घुटनों पर बैठकर वैशाली ने सुबोधकांत का लंड मुंह मे ले लिया.. उसके मुंह की गर्मी से लंड पल भर में सख्त होकर लहराने लगा.. बाहर खड़ी मौसम, दरवाजे को हल्का सा खोलकर अपने बाप का लंड चूस रही वैशाली को देख रही थी.. वो अभी भी कांप रही थी..
जिस तरह वैशाली लंड चूस रही थी उससे साफ जाहीर हो रहा था की उसकी तड़प कितनी तीव्र थी.. मौसम बाहर खड़े ये देखकर घबरा रही थी की कहीं उसके पापा को पता न चल जाए की वो वैशाली के साथ थी और उनकी रंगरेलियों को देख चुकी थी.. !! दरवाजे से छुपकर देख रही मौसम पकड़े जाने के डर से थर थर कांप रही थी.. लेकिन वो चाहकर भी वहाँ से जा न सकी.. इतने करीब से वैशाली और पापा की हवस-लीला को देख रही मौसम को डर के साथ साथ चूत की खुजली भी सता रही थी जो उसे वहाँ से जाने से रोक रही थी.. उसकी कुंवारी जवान चूत लंड लेने के लिए बेचैन हो रही थी.. वैशाली ने साहस किया तो उसे लंड मिल गया.. मौसम ने आज एक महत्वपूर्ण पाठ सिख लिया था.. मजे करने के लिए साहस करना बेहद जरूरी था.. बिना साहस, सिद्धि नही मिलती.. और लंड भी नही मिलता.. !!
ऑफिस के बाहर सुमसान गली में खड़ी मौसम कपड़ों के ऊपर से ही अपने स्तनों को भींच रही थी.. मन ही मन उसने तय कर लिया था की एक बार तो जीजू के साथ चुदवाना ही पड़ेगा.. चाहे कुछ भी हो जाए.. अब मौका मिले तो शरमाकर वक्त बर्बाद नही करना है.. उस समय का भरपूर उपयोग कर पूरा मज़ा लेना है.. नही तो जीजू और मेरी दोनों की इच्छाएं अधूरी रह जाएगी..
शर्म से पानी पानी हो रही मौसम की नज़रों के सामने वैशाली अपने दोनों स्तनों को बेशर्मी से सुबोधकांत के हवाले करते हुए निप्पल चुसवा रही थी.. वैशाली के बड़े बड़े बबले देखकर सुबोधकांत का लंड लोहे की पाइप जैसा सख्त होकर ऊपर नीचे हो रहा था.. मौसम ने अपने पापा का विकराल लंड देखकर आँखें बंद कर ली.. और करती भी क्या.. !!
अपनी सहेली के उरोजों को मसल रहे पापा को देखकर मौसम के दिमाग में एकदम गंदा खयाल आया.. छी.. छी.. अपने सगे बाप के बारे में ऐसा सोचना कितना गलत है.. !! अपने आप पर ही घृणा होने लगी मौसम को.. दूसरी तरफ फाल्गुनी अंदर ऑफिस में बैठकर वैशाली और सुबोधकांत की कामुक हरकतों को देखकर ज्यादा गरम हो रही थी.. वैसे जब सुबोधकांत उसे छोड़कर बाहर निकलें तब उसका ऑर्गजम बाकी था.. बीच राह में छोड़कर गए लंड का वो बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी.. टेबल पर पड़ी पेन लेकर फाल्गुनी अपनी चूत पर रगड़ने लगी..
वैशाली की हरकतें सुबोधकांत को पागल बना रही थी.. फाल्गुनी के मुकाबले वो अनुभवी थी इसलिए जिस तरह वो सहयोग दे रही थी उससे सुबोधकांत हतप्रभ थे.. उसके प्रत्येक स्पर्श में अनुभवी स्त्री की झलक थी.. चाहे सुबोधकांत के लंड को सहलाने की बात हो या उसके अंडकोशों को दबाने की.. सुबोधकांत वैशाली के अर्धनग्न शरीर पर भूखे भेड़िये की तरह टूट पड़ा था.. इतना गदराया बदन.. आहाहा.. वैशाली के जिस्म के मुकाबले फाल्गुनी का जिस्म काफी साधारण लगने लगा सुबोधकांत को.. अक्सर पुरुषों को सेक्स करते वक्त बेशर्म औरतें ज्यादा पसंद होती है.. वैशाली आखिर थी तो शीला की ही बेटी.. हवस और उत्तेजना में उसका कोई सानी नही था.. वो भी सुबोधकांत पर ऐसे टूट पड़ी जैसे आज के बंद उसे लंड मिलने वाला ही न हो.. और यहाँ किसी बात का कोई डर नही था.. फाल्गुनी और मौसम से तो वो खुल ही चुकी थी.. अब यहाँ उसे चुदवाने से कोई रोक नही सकता था..
जैसे जैसे वैशाली सोचती गई वैसे वैसे उसे महसूस हुआ की सुबोधकांत से चुदवाने में कोई खतरा नही था.. उसका सहयोग और बढ़ने लगा और उसके अंदर की भूखी स्त्री खिलने लगी.. जिसका सीधा फायदा सुबोधकांत को मिल रहा था.. वैशाली जवान थी.. खूबसूरत थी.. गदराए जिस्म वाली थी.. उसका भरा हुआ शरीर किसी भी मर्द को आकर्षित करने के काबिल था.. उसके स्तन बड़े बड़े थे और दो स्तनों के बीच की खाई इतनी नशीली थी किसी भी पुरुष को देखकर ही बीच में लंड डालने का मन हो जाए..
अब तक फाल्गुनी ने मौसम को देखा नही था इसलिए उसकी मौजूदगी के बारे में उसे पता नही चला था.. और सामने जब इतना बड़ा कांड चल रहा हो.. साथ में खुद की चूत में भी आग लगी हो.. तब और कहीं ध्यान जाता भी कैसे??
अपनी उत्तेजक हरकतों से वैशाली.. न केवल सुबोधकांत को मजे दे रही थी.. बल्कि साथ साथ फाल्गुनी और मौसम को प्रेक्टिकल ट्यूशन भी दे रही थी.. आज की इस क्लास के बाद मौसम और फाल्गुनी को सेक्स का पाठ कहीं और सीखने जाने की जरूरत नही पड़ने वाली थी.. वह दोनों परीक्षा में बैठकर उत्तीर्ण होने जीतने तैयार हो जाने वाले थे..
मौसम ने आज जीवन में पहली दफा किसी को लंड चूसते देखा था.. जिस अंग को वो मुंह में लेने लायक नही मानती थी.. वही अंग अभी उसे महंगी लोलिपोप जैसा लग रहा था.. जैसे जैसे मौसम वैशाली को अपने पापा का लंड चूसते देखती रही उसके मन में पीयूष जीजू का लंड चूसने की इच्छा और अधिक तीव्र होने लगी.. कभी कभी बेहद उत्तेजित होकर वैशाली पूरा लंड निगल जाती.. और कुछ सेकंडों के लिए वैसे ही स्थिर रहती तब मौसम को ताज्जुब होता की इतने लंबे समय तक वैशाली किस तरह इतना बड़ा लंड अंदर ले पा रही है.. !! एक पल के लिए तो मौसम को उलटी करने का मन होने लगा
अब तक के कार्यक्रम देखकर मौसम और फाल्गुनी ने लंड चूसना सीख लिया था.. लंड चूसते हुए अचानक वैशाली की नजर.. दरवाजे के पीछे से देख रही मौसम पर पड़ी.. उसने बड़ी ही चालाकी से सुबोधकांत को घुमाकर उनकी पीठ मौसम की ओर कर दी ताकि वो पकड़ी न जाए.. मौसम का डर अब चला गया..
अब मौसम को अपने पापा के कूल्हें नजर आ रहे थे.. लंड छोड़कर वैशाली खड़ी हुई और सुबोधकांत के गले लग गई.. उनकी बालों वाली छाती से अपने स्तनों को रगड़ते हुए वो उन्हे उनकी केबिन में खींच गई.. जहां फाल्गुनी कोने में पड़े सोफ़े पर पैर चौड़े कर अपनी चूत पर पेन रगड़ रही थी.. फाल्गुनी की आँखें बंद होने के कारण उसे पता नही चला की वैशाली और सुबोधकांत अंदर केबिन में आ चुके थे.. जब वैशाली ने फाल्गुनी के एक स्तन को दबाया तब उसने अचानक आँख खोली और शरमा गई..
वैशाली: "साली हरामजादी.. अपने बाप के उम्र के अंकल से चुदवाते वक्त तो शर्म नही आई थी तुझे.. तो अब क्यों शरमा रही है?"
फाल्गुनी को अब शर्म छोड़नी ही पड़ी क्योंकि उसका एक स्तन वैशाली चूस रही थी और दूसरा स्तन सुबोधकांत ने मुंह में ले रखा था.. साथ साथ दोनों फाल्गुनी की चूत में भी बारी बारी उंगली करने लगे.. एक साथ दो लोगों का स्पर्श पाकर फाल्गुनी की बची-कूची शर्म भी हवा हो गई.. और उसने सुबोधकांत के लंड को मुठ्ठी में पकड़ लिया.. वैशाली की लार से पूरा लंड गीला और चिपचिपा था.. फाल्गुनी का शरीर तब अकड़ कर सख्त हो गया जब वैशाली की जीभ उसकी चूत पर चलने लगी..
धीरे धीरे तीनों ने अपने सारे कपड़े उतार दिए.. और मादरजात नंगे हो गए.. कौन क्या कर रहा था उसकी परवाह कीये बगैर सब अपनी इच्छाओं को संतुष्ट करने में लग गए.. वैशाली सुबोधकांत का लंड अपनी चूत मे लेने के लिए तड़प रही थी.. सांप जैसे अपने शिकार को सूंघ रहा हो वैसे ही सुबोधकांत का सुपाड़ा वैशाली के चूत के होंठों को सूंघ रहा था..
अपने आप को अनुकूल पोजीशन में सेट करके वैशाली ने सुबोधकांत के लंड को अपनी चूत के छेद पर रखकर एक धक्का दिया.. आधा लंड अंदर घुस गया और वैशाली आनंद से नाच उठी.. हररोज चुदवाने की आदत वाली वैशाली को अपने पति से अनबन के बाद लंड के लाले पड़ गए थे.. अपने ससुराल में वो कहीं मुंह मार न सकी.. और बगैर लंड लिए उसे चलता नही था.. अच्छा हुआ की वो अपने मायके आ गई.. और उसे हिम्मत, पीयूष, राजेश सर और सुबोधकांत का लंड मिला.. वरना वो पागल हो जाती..
हिम्मत के साथ रोज रोज कर पाना मुमकिन नही था इसलिए उसने पीयूष को पटाया.. लेकिन पीयूष पड़ोस में ही रहता था.. किसी को पता चल जाने का डर था.. और आज कल तो वो भी मौसम में डूबा रहता था और उसकी तरफ देखता नही था.. राजेश सर के साथ उस छोटे से संभोग में मज़ा आया था पर तब बड़े टेंशन में उसने चुदवाया था.. वैशाली बड़े आराम से बिना किसी चिंता के चुदवाना चाहती थी और वो मौका आज उसे मिल ही गया..
वैशाली की चूत में सुबोधकांत का आधा लंड घुसा ही था तब फाल्गुनी ने कहा "वैशाली, पहले मेरा तो खतम हो जाने दे.. फिर तू करवा लेना.. तुझे देखकर अंकल बाहर भागे और मेरा अधूरा रह गया.. मैं तब से बैठी तड़प रही हूँ.. नीचे चुनचुनी हो रही है कब से.. अगर अंकल जल्दी अंदर डालेंगे नही तो मैं पागल हो जाऊँगी.. ओह्ह.. देख ना.. कब से इस पेन को घिसे जा रही हूँ.. अंकल प्लीज पहले मुझे करो फिर वैशाली के साथ करना"
अपने दोनों स्तनों को विजातीय और सजातीय दोनों पात्रों से चुसाई होते देख फाल्गुनी की हवस पराकाष्ठा पर पहुँच गई थी.. वैशाली ने फाल्गुनी की चिपचिपी चूत में दो उँगलियाँ डालकर अंदर बाहर किया.. और फिर फाल्गुनी को सोफ़े पर उलटे होकर डॉगी स्टाइल में हो जाने को कहा.. सुबोधकांत का लंड पकड़कर वैशाली ने उसे फाल्गुनी की चूत की तरफ खींच और उसके सुराख पर सुपाड़ा रख दिया.. जानी पहचानी चूत पर सुपाड़े ने वीर्य की एक बूंद गिराकर चुंबन किया.. उत्तेजना के कारण और पेन से घिसाई करने के बाद चिपचिपी चूत में सुबोधकांत का लंड एक धक्के में घुस गया.. फाल्गुनी के चूतड़ों को दोनों हाथों से फैलाकर लंड के शानदार योनि-प्रवेश का नजारा बिल्कुल करीब से देखने लगी वैशाली..
सोफ़े पर घोड़ी बनी फाल्गुनी अपनी चूत में सुबोधकांत के लंड के धक्के खा रही थी.. तभी वैशाली उसकी पीठ पर इस तरह सवार हो गई की उसके दोनों स्तन सुबोधकांत के बिल्कुल सामने आ जाए.. और अपनी नंगी चूत को फाल्गुनी की कमर पर रगड़ते हुए.. सुबोधकांत का सर अपने भव्य स्तनों के बीच दबा दिया..
लंड पर महसूस होती फाल्गुनी की चूत की गर्मी.. और चेहरे पर वैशाली के स्तनों की गर्माहट का एहसास.. सुबोधकांत की तो जैसे लॉटरी लग गई थी.. लयबद्ध तरीके से कमर को हिलाते हुए फाल्गुनी ने पूरा लंड अंदर ले लिया था.. फुला हुआ लोडा पूरा अंदर तक घुसते ही उसकी नाजुक चूत सहम गई.. उसे दर्द होने लगा
"आह्ह.. मर गई.. ऊई माँ.. थोड़ा सा बाहर निकालिए अंकल.. !!" फाल्गुनी चीख रही थी.. पर उसका कोई विरोध नही था.. ये तो आनंद भरी चीखें थी.. कुछ पीड़ाएं ऐसी होती है जिसमे अद्वितीय आनंद छुपा होता है.. अपने प्रियतम के हाथों स्तन मर्दन से होती पीड़ा का अनुभव करने के लिए हर माशूका दुनिया से छुपकर.. अपने चेहरे को दुपट्टे से ढँककर.. गली गली फिरती नजर आती है.. उस पीड़ा में जो आनंद की अनुभूति होती है वैसा ही कुछ फाल्गुनी को भी महसूस हो रहा था.. वैशाली भी सुबोधकांत के लंड को अंदर बाहर होते देखकर अपने स्तनों को जोर से मसलवाते हुए उसी पीड़ा भरे आनंद के मजे लूट रही थी..
सुबोधकांत वैशाली के स्तनों की साइज़ पर फ़ीदा हो चुके थे.. इतने बड़े होने के बावजूद एकदम सख्त थे वैशाली के स्तन.. वैशाली के होंठों पर किस करते हुए सुबोधकांत ने कहा
"लगता है ज्यादा इस्तेमाल नही हुए है.. इसीलिए इतने टाइट है"
वैशाली: "हाँ अंकल.. मेरे पति से मेरी जमती नही है इसलिए जिस्मानी सुख के लिए तड़प रही हूँ.. फाल्गुनी ने मुझे माउंट आबू में आप दोनों के संबंधों के बारे में बताया तब से दिल कर रहा था की कब मुझे भी आप के साथ करने का मौका मिलें.. !! फाल्गुनी का हो जाए बाद में मेरे साथ भी करोगे ना अंकल, प्लीज??"
ये एक ऐसी रीक्वेस्ट थी जिसे दुनिया का कोई मर्द मना नही कर सकता.. सुबोधकांत हवस से पागल हो रहा था.. वैशाली जैसा कडक माल सामने से चुदने के लिए विनती कर रहा हो तब कौन भला इनकार करेगा?? वैशाली के दोनों स्तनों को तहसनहस करते हुए सुबोधकांत ने कहा
"तेरे साथ भी करूंगा मेरी जान.. तेरी चूत चाटकर पहले गरम करूंगा और फिर तसल्ली से चोदूँगा.. और ऐसा चोदूँगा की तेरे पति की कमी तुझे महसूस नही होगी.. जब मन करें मेरी ऑफिस पर चली आना.. तुझे रानी बनाकर चोदूँगा.. !!" उत्तेजक बातें करते हुए सुबोधकांत ने फाल्गुनी की चूत का फ़ालूदा बना दिया.. उनके दमदार लंड के हर धक्के पर फाल्गुनी आह-आह कर रही थी..
"डॉन्ट वरी फाल्गुनी.. अभी दर्द सहन कर ले.. अंकल का मोटा है इसलिए दर्द हो रहा है.. पर शादी के बाद बिल्कुल तकलीफ नही होगी तुझे और तेरे पति का बड़ी आसानी से अंदर चला जाएगा.. " संकरी चूत में लंड अंदर बाहर होने से कराह रही फाल्गुनी के लटक रहे बबलों को दबाते हुए वैशाली ने कहा
"वैशाली यार.. तेरे बोल बड़े मस्त है.. मेरे इतने बड़े होते तो कितना अच्छा होता.. ?? वैसे तेरे इतने बड़े बड़े हुए कैसे?" फाल्गुनी ने पूछा.. वह देख सकती थी की सुबोधकांत का सारा ध्यान वैशाली के बड़े स्तनों पर था और उसे स्त्री सहज ईर्ष्या हो रही थी
फाल्गुनी के लटकते स्तनों को पकड़कर मसलते हुए वैशाली ने कहा "ओह फाल्गुनी.. तू रोज अंकल से बॉल दबवाना और चुदवाते रहना.. वो जीतने ज्यादा दबाएंगे उतने ही बड़े होते जाएंगे तेरे.. और रोज चूत में अंकल के लंड का पानी जाएगा तो उससे पोषण पाकर तेरे स्तन मुझ जैसे बड़े हो जाएंगे.. जितना ज्यादा चुदवाएगी उतने बड़े होंगे " खिलखिलाकर हँसते हुए मज़ाक करने लगी वैशाली
जितना मज़ा सुबोधकांत को फाल्गुनी के साथ संभोग करने में आ रहा था उतना ही मज़ा उन्हें वैशाली की कामुक बातों में भी आ रहा था.. सुबोधकांत ने जीवन में पहली बार किसी जवान लड़की को इस तरह खुली भाषा का प्रयोग करते हुए सुना था.. इन नंगी बातों को सुनकर उनका लंड.. फाल्गुनी की चूत के अंदर और सख्त हो रहा था.. और ये फाल्गुनी भी महसूस कर रही थी.. पहले के मुकाबले आज उसे कुछ ज्यादा ही दर्द हो रहा था.. वो यही सोचकर परेशान हो रही थी की अंकल आज पिछली बार के मुकाबले ज्यादा आक्रामक क्यों लग रहे थे.. !! वैसे इतनी बार चुदने के बाद तो दर्द कम होना चाहिए.. फिर आज क्यों इतना दर्द हुआ? क्या हर बार के मुकाबले आज उनका लंड ज्यादा मोटा था?
हकीकत तो यह थी.. फाल्गुनी की कमसिन जवानी के साथ वैशाली का जोबन साथ मिलते ही.. सुबोधकांत का लंड उत्तेजना से फूल गया था.. दो लड़कियों को एक साथ भोगने का सुबोधकांत के लिए भी पहला मौका था.. वह भी एक कारण था.. !!
सुबोधकांत ने अपने धक्कों की गति बढ़ा दी और फाल्गुनी की चूत में हाहाकार मच गया.. उनकी केबिन का दरवाजा खुला ही था इसलिए मौसम भी एकदम बाहर खड़े हुए यह सारा नजारा देख पा रही थी.. अपनी दोनों सहेलियों को पापा से चुदते हुए देख वो बेकाबू होकर अपने स्तन मसल रही थी..
उसी वक्त मौसम के मोबाइल की रिंग बजी.. अब तक छुपकर बैठी मौसम की पोल खुलने वाली थी.. हड़बड़ाते हुए मौसम ने फोन काट दिया.. और दरवाजे से दूर डस्टबिन के पीछे छुप गई..
"किसका फोन बजा??" सुबोधकांत ने वैशाली से पूछा.. वैशाली ने जवाब नही दिया पर सुबोधकांत को पक्का यकीन हो गया की बाहर जरूर कोई था.. सुबोधकांत के चेहरे के हावभाव देख वैशाली भी चौकन्ना हो गई.. अगर अंकल को डाउट गया और वो बाहर गए तो मौसम पकड़ी जाएगी..
"अरे अंकल, वो तो बाहर से कोई गुजरा होगा और उसका मोबाइल बजा होगा.. " कहते हुए वैशाली ने अपने अमोघ-शस्त्र जैसे स्तनों के बीच सुबोधकांत का सर दबा दिया.. वैशाली के भरपूर स्तनों को मुंह में लेकर चूसते हुए सुबोधकांत मोबाइल की रिंग को भूल गए.. और उस स्वर्गीय आनंद का लुत्फ उठाने लगे
अब मौसम ने अपने कपड़े ठीक कीये.. और मोबाइल स्विच ऑफ कर दिया.. और चुपके से अपनी स्कूटी की ओर चल दी.. उसके हर कदम के साथ उसकी चूचियाँ ऊपर नीचे हो रही थी.. आते जाते लोगों की नजर उस जवान स्तन-युग्म पर चिपक गई थी.. मौसम गली के बाहर जाकर स्कूटी के पास खड़ी रहकर वैशाली का इंतज़ार करने लगी.. आते जाते लोगों की नज़रों से परेशान होकर उसने स्कूटी स्टार्ट किया और पास के एक गार्डन की बैठक पर जा बैठी.. आज उसने जो कुछ भी देखा था वो उसे ज़िंदगी भर याद रहने वाला था.. उम्र के ऐसे मुकाम पर उसने यह द्रश्य देखा था जब की वह खुद जवानी के महासागर की उन्मादक लहरों में गोते खा रही थी.. पापा इतने कामुक होंगे उसका उसे अंदाजा नही था.. अपने पापा का जितना सन्मान उसकी नज़रों में था वह सब एक ही पल में खाक हो कर रह गया.. मेरे पापा ऐसे ??? छी..छी..छी.. क्या पापा को मेरी मौजूदगी के बारे में पता चल गया होगा? क्या उन्होंने मेरे मोबाइल की रिंग सुन ली होगी?
मौसम ने तुरंत अपनी ब्रा में दबाए मोबाइल को बाहर निकाला और स्विच ऑन किया.. सब से पहला काम उसने अपना रिंगटोन बदलने का किया.. ताकि फिर कभी सुबोधकांत उस रिंगटोन को सुनकर शक न करें..
मौसम विचार कर रही थी की वैशाली को कैसे बताऊँ की मैं यहाँ गार्डन में बैठी हूँ?? अभी क्या कर रही होगी वो? बहोत ही हॉट है वैशाली.. पापा के साथ सब काम पूरा करके ही आएगी.. फाल्गुनी भी हरामी छुपी रुस्तम निकली.. जितनी भोली लगती है वैसी है नही.. कितनी मस्ती से पापा से चुदवा रही थी.. !! फिर वो सेक्स की बातें करते वक्त इतना डरती क्यों थी?? अभी तो उसके चेहरे पर कोई डर नही था.. या फिर मेरे साथ नाटक करती थी?? अब तक तो उसने फाल्गुनी और पापा के कारनामों के बारे में सिर्फ सुना ही था.. आज अपनी सगी आँखों से देख भी लिया.. सारे भेद आज खुल चुके थे.. पापा को अपनी बेटी की उम्र की लड़की के साथ ये सब करने में शर्म नही आई होगी?? दोनों के बीच ये प्रेम प्रकरण की शुरुआत कैसे हुई होगी? पहल पापा ने की होगी या फाल्गुनी ने? अनगिनत सवालों से मौसम का दिमाग घिर चुका था पर जवाब नही थे
लगभग एक घंटा बीत चुका था पर वैशाली लौटी नही थी.. मौसम को अपनी जगह पर ना देखकर वो फोन तो जरूर करती.. बैठे बैठे मौसम बोर हो रही थी.. कितनी देर लगा दी वैशाली ने?? अब तक उसकी आग नही बुझी?? क्या करूँ? फोन करूँ उसे? पर पापा को पता चल जाएगा.. फोन तो नही कर सकती..
बिल्कुल उसी वक्त पीयूष, कविता, शीला और मदन ने उसी बागीचे में प्रवेश किया जहां मौसम बैठी हुई थी.. मौसम उनको देखकर घबरा गई और झाड़ियों के पीछे छुपने जा ही रही थी की तब शीला ने उसे देख लिया..
Thanks Dharmendra Kumar Patel bhaiबहुत ही शानदार कामुक अपडेट