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Adultery शीला की लीला (५५ साल की शीला की जवानी)

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पिंटू के बात करने के तरीके से वैशाली काफी इंप्रेस हुई.. वो सोच रही थी.. आज पीयूष का कोई मेसेज क्यों नहीं आया?? कल रात को बड़ा बंदर बना फुदक रहा था.. आज कौन सा सांप सूंघ गया उसे? पता नहीं.. इंस्टाग्राम पर रील्स देखते हुए उसकी आँख कब लग गई पता ही नहीं चला

आधी रात के बाद अचानक वैशाली के फोन की रिंग बजी.. आँखें मलते हुए वैशाली ने फोन उठाया

"खिड़की खोल.. मैं बाहर खड़ा हूँ" फोन पर पीयूष था..

फोन कट करके उसने खिड़की खोली.. दूसरी तरफ पीयूष खड़ा था.. खिड़की पर लगी लोहे की ग्रील से हाथ डालकर पीयूष ने वैशाली के स्तन दबा दीये..

"क्या कर रहा है पागल.. !!" वैशाली को मज़ा तो बहोत आया पर उसे डर लग रहा था..

"कुछ नहीं होगा.. तू एक काम कर.. कमरे की लाइट ऑफ कर दे.. किसी को पता नहीं चलेगा.." पीयूष ने कहा.. ये आइडिया तो वैशाली को भी पसंद आ गया.. उसने लाइट बंद कर दी और अपनी टीशर्ट उतारकर टॉप-लेस हो गई..

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वो अब खिड़की से एकदम सटकर खड़ी हो गई.. इतने करीब, की खिड़की के सरियों के बीच से उसके स्तन पीयूष की तरफ बाहर निकल गए.. पीयूष पागलों की तरह उसकी निप्पलों को चूसने लगा.. और स्तनों की गोलाइयों को चाटने लगा.. वैशाली और पीयूष के शरीरों के बीच ये लोहे के सरिये विलन बनकर खड़े हुए थे.. पीयूष जमीन पर खड़ा था.. उसकी कमर के ऊपर का हिस्सा ही नजर आ रहा था.. इस अवस्था में उसके लंड तक पहुँच पाना वैशाली के लिए मुमकिन नहीं था.. और पीयूष अपने आप को और ऊंचा कर नहीं सकता था.. काफी देर तक.. बिना लंड या चूत की सह-भागिता के बिना ही फोरप्ले चलता रहा..

वैशाली के नग्न स्तनों के साथ खेलकर पीयूष इतना उत्तेजित हो गया था की उसका लंड सख्त होकर दीवार के खुरदरे प्लास्टर से रगड़ खा रहा था.. अद्भुत द्रश्य था.. वैशाली ने अपना हाथ लंबा कर पीयूष के लंड को पकड़ना चाहा पर पहुँच न पाई.. अति उत्तेजित होकर पीयूष खिड़की पर खड़ा हो गया और उसने अपना लंड सरियों के बीच से वैशाली के सामने रख दिया.. बेहद गरम हो चुकी वैशाली ने पहले तो लंड को मन भरकर चूसा.. कडक लोड़े को चूसने में मज़ा आ गया उसे..


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अब वैशाली भी बिस्तर पर खड़ी हो गई.. ताकि उसका और पीयूष का शरीर सीधी रेखा में आ जाए.. वो उस तरह खड़ी थी की उसकी गीली चूत पीयूष के लंड तक पहुँच सके.. सुपाड़े का स्पर्श अपनी पुच्ची पर होते ही वैशाली की आह्ह निकल गई.. वो उस सुपाड़े को अपनी चूत के होंठों पर और क्लिटोरिस पर रगड़ने लगी..

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वैशाली की चूत में इतनी खाज हो रही थी की उससे रहा नहीं गया.. उसने पीयूष का लंड अपनी तरफ खींचा.. और ऐसा खींचा की पीयूष के गले से हल्की सी चीख निकल गई.. पर वैशाली उसके दर्द की फिकर करती तो उसकी चूत कैसे शांत होती.. !! पीयूष की अवहेलना करते हुए उसने लंड को खींचकर.. अपनी चूत के अंदर तीन इंच जितना अंदर डाल दिया.. !! पीयूष दर्द से कराह रहा था.. पर वैशाली अपनी मनमानी करती रही.. उसकी चूत को तो ६ इंच से ज्यादा लंबे लंड की अपेक्षा थी.. पर फिलहाल मजबूरी के मारे.. तीन इंच से अपना काम चला रही थी..

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पीयूष के होंठों पर होंठ रखकर चूसते हुए वो बड़ी मस्ती से लंड को हाथ में लेकर अपनी चूत के अंदर बाहर करती रही.. पीयूष की पीड़ा और वैशाली के आनंद के बीच.. लंड और चूत के घर्षण के दौरान.. वैशाली के स्तन फूलगोभी जैसे कडक बन चुके थे.. जीवंत लंड से चुदने की उसकी हफ्तों पुरानी ख्वाहिश आज पूरी हो रही थी.. ऑर्गजम के उस सफर के दौरान.. वैशाली ने अनगिनत बार पीयूष को चूमा.. और अपनी क्लिटोरिस पर लंड की रगड़ खाते हुए.. थरथराते हुए झड़ गई.. स्खलित होते ही वो शरमाकर खिड़की से उतर गई..

पर पीयूष तो अभी भी मझधार में था..उसका लंड झटके मार रहा था.. और शांत होने के बिल्कुल मूड में नहीं था.. वैशाली पीयूष की इस समस्या को समझ गई.. इसलिए वो फिर से खड़ी हो गई.. और पीयूष के लंड को मुठियाने लगी.. पीयूष वैशाली के गोलमटोल स्तनों को दबाते हुए कांपता हुआ झड़ गया.. उसके लंड ने अंधेरे में तीन-चार जबरदस्त पिचकारियाँ छोड़ दी.. अंधेरे में वो पिचकारी कहाँ जाकर गिरी उसका दोनों में से किसी को पता नहीं चला..

एक बार ठंडे होने पर दोनों अंधेरे में बैठकर एक दूसरे के अंगों से खेलते रहे.. रात के दो बजे शुरू हुआ उनका प्रोग्राम साढ़े तीन बजे तक चला.. सेक्स तो आधे घंटे में ही निपट गया था पर बाकी का एक घंटा दोनों ने प्यार भरी बातों में गुजार दिया..

"अब मैं चलूँ??" वैशाली के गोरे गालों को चूमकर पीयूष ने कहा

"बैठ न यार थोड़ी देर.. ऐसा मौका बार बार कहाँ मिलता है.. कविता के वापिस लौटने के बाद ऐसे मिलना भी मुमकिन नहीं होगा.. तू उसकी बाहों में पड़ा होगा और मैं यहाँ बैठे बैठे तड़पती रहूँगी.. " एकदम धीमी आवाज में वैशाली ने कहा

पीयूष: "यार, मैं अब खड़े खड़े थक चुका हूँ.. चार बजे तो सोसायटी में चहल पहल शुरू हो जाएगी.. तेरा तो ठीक है की तू अपने घर के अंदर है.. मुझे बाहर भटकता देखकर कोई पूछेगा तो क्या जवाब दूंगा.. !! और वैसे भी.. अपना काम तो हो चुका है.. "

वैशाली ने अपनी उंगली से नापकर दिखाते हुए कहा "सिर्फ इत्ता सा अंदर गया था तेरा.. वो भी बड़ी मुश्किल से.. तू ऊपर चढ़कर धनाधन शॉट लगाए उसे सेक्स कहते है.. ये तो उंगली करने बराबर था.. "

बातें खतम ही नहीं हो रही थी.. आखिर में पीयूष ने जबरदाती वैशाली से हाथ छुड़ाया और अपने घर की ओर भाग गया.. वैशाली अभी भी टॉप-लेस थी.. सुबह के चार बज रहे थे.. वो बाथरूम जाकर आई और टीशर्ट पहन कर सो गई.. सुबह साढ़े सात बजे जब शीला ने उसे जगाया तब उसकी आँख खुली..

शीला ने फोन थमाते हुए वैशाली से कहा "ले, कविता का फोन है.. उसके मायके से.. कुछ बात करना चाहती है तुझसे.."

वैशाली सोच में पड़ गई.. कविता ने इतनी सुबह सुबह क्यों फोन किया होगा??

बात करते हुए वैशाली ने कहा "हैलो.. !!"

"हाई वैशाली.. गुड मॉर्निंग.. कैसी है तू?"

"मैं ठीक हूँ.. यार तू तो दो दिन का बोलकर वापिस लौटी ही नहीं.. पाँच दिन हो गए.. क्या बात है.. ससुराल लौटने का इरादा है भी या नहीं??" वैशाली ने कहा.. शीला फोन देकर किचन में चली गई..

कविता: "अरे यार.. मैं आई थी तो दो दिन के लिए.. फिर रोज कोई न कोई काम निकल आता है.. वरना इतने दिनों तक ससुराल से कौन दूर रह पाएगा.. !! अंडा और डंडा दोनों ससुराल में ही है.. अंडा तो चलो पापा के घर खाने मिल जाएगा.. पर बिना डंडे के मैं क्या करूँ??"

वैशाली: "वैसे आज कल की लड़कियों का मायके में कोई न कोई ए.टी.एम जरूर होता है.. जब भी मायके आती है तब आराम से इस्तेमाल कर लेती है.. वैसे तेरा भी कोई न कोई तो होगा न उधर.. जो तुझे डंडे की कमी न खलने दे.. हा हा हा हा हा हा.. !! वो सब छोड़ और जल्दी वापिस आने के बारे में सोच.. पीयूष तेरे बगैर मर रहा है यहाँ.. तुझे उसकी याद नहीं आती है क्या??"

कविता: "अरे यार.. सब कुछ याद आता है.. पर क्या करें.. मजबूरी का दूसरा नाम मास्टरबेशन.. हा हा हा हा.. !!"

वैशाली: "नई नई कहावतें बनाना छोड़ और ये बता की वापिस कब आ रही है.. !! मैं भी अकेली पड़ गई हूँ यार.. एक तेरी ही तो कंपनी थी.. और तू भी चली गई.. चल छोड़ वो सब.. ये बता, तेरी मम्मी की तबीयत कैसी है?"

कविता: "वैसे ठीक है.. थोड़ी सी कमजोरी है.. थोड़ा वक्त लगेगा.. शायद मुझे और रुकना पड़ें.. और मैं वहाँ आऊँ उससे पहले तो आप लोगों को यहाँ आना पड़ेगा.. गुरुवार को तो सगाई है.. पूरा दिन काम ही काम लगा रहता है.. तीन ही तो दिन बचे है.. वैसे आप लोग कब आने वाले हो?"

वैशाली: "सगाई वाले दिन ही आएंगे.. "

कविता: "ओके.. सुबह नौ बजे का मुहूरत है.. आप लोगों को जल्दी निकलना पड़ेगा.. उससे अच्छा तो ये होगा की आप सब बुधवार शाम को ही यहाँ आ जाएँ.. "

वैशाली: "अरे यार.. सब कुछ मुझे थोड़े ही तय करना है.. !! मम्मी पापा भी तो मानने चाहिए ना.. !! ले तू पापा से बात कर" कहते हुए वैशाली ने मदन को फोन थमा दिया.. फोन पर कविता ने बड़े प्यार से न्योता दिया और आग्रह किया इसलिए मदन बुधवार शाम तक आने के लिए राजी हो गया..

वैशाली को थोड़ी शॉपिंग करनी थी.. खुद के लिए नई ब्रा और पेन्टी खरीदनी थी.. उसने सोचा की ऑफिस के दौरान वो एक घंटा बीच में निकल जाएगी और खरीद लेगी.. उसने शीला को इशारे से बुलाया

वैशाली: "मम्मी.. पापा को कहिए ना की मुझे थोड़े पैसे चाहिए.. "

शीला: "अरे, तू खुद ही मांग लें"

वैशाली: "नहीं मम्मी.. मुझे पापा से पैसे मांगने में शर्म आती है.. अब जल्दी ही मैं अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती हूँ.. अच्छा नहीं लगता मांगना"

शीला: "अरे मदन.. जरा वैशाली को दो हजार रुपये देना"

मदन: "किस बात के लिए चाहिए भाई.. ??"

शीला: "तुम्हें जानकर क्या काम है?? होगी उसे जरूरत.. तुम बस पैसे देने से मतलब रखो.. "

मदन: "अरे.. बच्चों को पैसे देने से पहले पूछना भी तो जरूरी है की किस बात के लिए चाहिए.. !!"

शीला: "क्यों? तुम्हें वैशाली पर भरोसा नहीं है?"

वैशाली: "पापा ठीक कह रहे है मम्मी.. बात भरोसे की नहीं है.. पर जानना जरूरी है.. और हिसाब मांगना भी जरूरी है"

मदन: "देखा.. !! कितनी समझदार है मेरी बेटी.. !!"

शीला: "हे भगवान.. दो हजार रुपयों के लिए दो हजार बातें सुनाएगा ये आदमी.. ये ले बेटा.. " मदन के वॉलेट से पैसे निकालकर वैशाली को देते हुए कहा शीला ने

वैशाली: "थेंक यू पापा.. थेंक यू मम्मी.. " पर्स में पैसे रखकर वो नहाने चली गई..

तैयार होते ही.. पीयूष हाजिर हो गया.. और वैशाली उसके साथ ऑफिस चली गई

उन्हें जाते हुए देख शीला सोच रही थी.. कितनी अच्छी बनती है दोनों के बीच.. !!

सिर्फ चार दिनों में ही वैशाली और पीयूष की मित्रता और गाढ़ी हो चुकी थी.. पीयूष मौसम की यादों को वैशाली के सहारे भूलना चाहता था.. पर रोज घर में मौसम के नाम का जिक्र होता.. और भूलने के बजाए.. मौसम की यादें अधिक तीव्रता से परेशान करने लगती.. दो दिन बाद तो उसकी सगाई में जाना था..

पिछली रात की खिड़की-चुदाई के बाद.. वैशाली अपनी बातों में थोड़ी ज्यादा फ्री हो गई थी.. आजाद परिंदों की तरह बाइक पर जाते हुए दोनों एक दूसरे से ऐसे चिपके हुए थे जैसे दीवार पर छिपकली चिपकी हुई हो.. एक जगह बाइक की गति थोड़ी सी धीमी होने पर वैशाली ने पीयूष के कान में कहा

वैशाली: "हमें ऐसे डर डर कर ही मिलना होगा या फिर कभी शांति से करने का मौका भी मिलेगा?"

पीयूष: "यार.. मैं ठहरा शादी-शुदा आदमी.. इसलिए हमें डर डर कर ही करना होगा.. हाँ संयोग से कोई जबरदस्त चांस मिल जाएँ तो अलग बात है"

वैशाली: "पर ऐसे तो जरा भी मज़ा नहीं आता मुझे, पीयूष.. मुझे आराम से.. बिना किसी डर के करवाना है.. कुछ सेटिंग कर न यार.. ऐसे डर डर कर चोर की तरह सब कुछ करना.. ये भी कोई बात हुई!! सच कहूँ तो डरते डरते या जल्दबाजी में करने का कोई मतलब ही नहीं है.. इस क्रिया को तो आराम से ही करना चाहिए.. विशाल बेड पर.. नंगे होकर चुदाई करने में जो मज़ा है ना.. !! वो खिड़की पर लटककर करने में कैसे मिलेगा.. !!"

असंतोष का गेस जलते ही पीयूष के दिल की भांप, कुकर की सिटी की तरह ऊपर चढ़ी और बाहर निकलने लगी

ऑफिस करीब आते ही दोनों नॉर्मल लोगों की तरह बैठ गए.. गेट पर ही पिंटू मिल गया.. वो फोन पर लगा हुआ था.. जाहीर सी बात थी की वो कविता से ही बात कर रहा था.. पीयूष को देखते ही उसने फोन काट दिया और मुसकुराते हुए "गुड मॉर्निंग" कहा.. और अपनी कैबिन में घुस गया.. उसने फिर से कविता को फोन लगाया

पिंटू: "यार एकदम से पीयूष और वैशाली सामने मिल गए.. इसलिए फोन काटना पड़ा.. सॉरी.. अरे नहीं नहीं.. किसी ने हमारी बातें नहीं सुनी.. तू टेंशन मत ले यार.. "

वैशाली पिंटू की कैबिन का दरवाजा खोलने ही वाली थी की तब उसने आखिरी दो वाक्य सुन लिए.. वो सोचने लगी.. ऐसी तो क्या बात होगी जो पिंटू को इतना ध्यान रखना पड़ता है?? खैर, होगी कोई उसकी पर्सनल बात.. मुझे क्या.. !!

वैशाली ने कैबिन के बंद दरवाजे पर दस्तक दी.. और दरवाजा खोलकर अंदर झाँकते हुए बड़े ही प्यार से कहा "मे आई कम इन?"

पिंटू: "यू आर ऑलवेज वेलकम.. " अंदर से आवाज आई..

वैशाली ने हँसते हुए कैबिन में प्रवेश किया.. और पिंटू के सामने रखी कुर्सी पर बैठ गई.. पिंटू के टेबल पर फ़ाइलों का ढेर लगा था.. इसलिए उसने निःसंकोच वैशाली को बोल दिया

"सॉरी, आज मैं आपको कंपनी नहीं दे पाऊँगा.. आज वर्कलोड कुछ ज्यादा ही है"

वैशाली: "ओह.. नो प्रॉब्लेम पिंटू..वैसे काम का बोझ ज्यादा हो तो फोन पर कम बात किया करो और फटाफट काम पर लग जाओ.. मुझे भी मार्केट जाना है.. थोड़ा सा काम है.. मौसम को देने के लिए कोई गिफ्ट भी तो लेनी होगी.. !!"

पिंटू: "अरे हाँ यार.. ये तो मैं भूल ही गया.. मुझे भी न्योता मिला है.. प्लीज मेरा एक काम करोगी? आप जो भी गिफ्ट खरीदों.. उसमे मेरी भी हिस्सेदारी रखना.. इफ यू डॉन्ट माइंड.. !!"

वैशाली: "भला मैं क्यों माइंड करूंगी?? हाँ अगर आपने आपका हिस्सा नहीं दिया तो जरूर माइंड करूंगी.. हा हा हा.. वैसे.. कितना बजेट है आपका गिफ्ट के लिए?"

पिंटू: "एक हजार.. थोड़ा बहोत ऊपर नीचे होगा तो चलेगा.. "

वैशाली: "ठीक है.. इस बजेट में मुझे कुछ मिल जाएगा तो मैं फोन करूंगी.. अब मैं निकलती हूँ.. बाय"

पिंटू: "बाय.. एंड थेंकस"

वैशाली पिंटू की केबिन से निकल गई.. बाहर निकलकर उसने राजेश सर से इजाजत मांगी.. राजेश सर ने चपरासी को बुलाकर.. ऑफिस स्टाफ में से किसी का एक्टिवा दिलवा दिया वैशाली को.. जिसे लेकर वैशाली मार्केट की ओर निकल गई।

एक डेढ़ घंटा बीत गया पर वैशाली को अपनी पसंद की गिफ्ट ही नहीं मिल रही थी.. सस्ती वाली ठीक नहीं लग रही थी और जो पसंद आती वो बजेट के बाहर होती.. मुसीबत यह थी की वो घर से सिर्फ दो हजार लेकर ही निकली थी.. क्यों की मौसम की गिफ्ट के बारे में तो उसे ऑफिस आकर ही खयाल आया था..

आखिर उसे २२०० रुपये का एक पेंटिंग पसंद आ गया.. वैशाली ने तुरंत पिंटू को फोन किया.. पीयूष और पिंटू तब साथ ही बैठे थे..

पिंटू: "अरे कोई बात नहीं.. आपको पसंद है उतना ही काफी है..आप पैक करवा ही लीजिए"

वैशाली ने दुकानदार से थोड़ी सी नोक-झोंक के बाद आखिर २००० में सौदा तय किया.. गिफ्ट-पेक करवा कर वो ऑफिस आई.. और पीयूष की मौजूदगी में ही गिफ्ट पिंटू को दिखाई.. वैसे पेक हुई गिफ्ट पिंटू को नजर तो नहीं आने वाली थी.. पर फिर भी.. उसने मार्कर पेन से उस पर अपना और पिंटू दोनों का नाम लिखा.. पिंटू ने तुरंत वॉलेट खोलकर अपने हिस्से के एक हजार रुपये वैशाली को दे दीये..

शाम को पीयूष के साथ घर लौटते वक्त वैशाली ने एक लेडिज गारमेंट की शॉप के बाहर बाइक खड़ा रखने के लिए कहा.. बाहर डिस्प्ले में ब्रा और पेन्टीज लटक रही थी.. पीयूष समझ गया

वैशाली: "यार मुझे थोड़ी सी शॉपिंग करनी है.. फिर कल तो हमें जाने के लिए निकलना होगा.. दोपहर के बाद"

पीयूष: "यार ये बड़ा मस्त धंधा है.. कितने कस्टमरों के बॉल रोज नज़रों से नापने मिलेंगे"

वैशाली: "उससे अच्छा तू एक काम कर.. मर्दों के कच्छे बेचना शुरू कर दें.. देखने भी मिलेगा और कोई शौकीन कस्टमर हुआ तो छूने भी देगा.. बेवकूफ.. यहाँ रुकना जब तक मैं लौटूँ नहीं तब तक.. और यहाँ वहाँ नजरें मत मारना.. वरना बीच बाजार जूतों से पिटाई होगी"

पीयूष बाहर बाइक पर बैठा रहा.. थोड़ी देर में दुकानदार का हेल्पर बाहर आया और उसने कहा "साहब आप भी अंदर आइए और मैडम को मदद कीजिए.. क्या है की आप ऐसे बाहर बैठे रहेंगे तो और कस्टमर को आने में झिझक होगी.. हमारी सारी कस्टमर महिलायें ही होती है, इसलिए"

"ओह आई एम सॉरी.. आप सही कह रहे है.. " वैसे भी पीयूष अंदर जाना ही चाहता था.. बाइक पार्क करने के बाद वो अंदर आया और वैशाली के करीब ऐसे खड़ा हो गया जैसे उसका पति हो.. उसने हाथ इस तरह काउन्टर पर रख दिया था की उसकी कुहनी वैशाली के स्तनों की गोलाई को छु रही थी..

अलग अलग डिजाइन और रंगों वाली.. पुरुषों के मन को लुभाने वाली ब्रा और पेन्टीज की ढेरों वराइइटी थी..

एक लड़के ने नेट वाली ब्रा दिखाते हुए कहा "मैडम, ये आप पर अच्छी जँचेगी.. दिखने में भी अच्छी है और आप के साइज़ की भी है.. आप चाहें तो इसे ट्राय कर सकते है.. चैन्जिंग रूम वहाँ है" इशारे से कोने में बने छोटे कैबिन को दिखाते हुए उसने कहा

पीयूष मन ही मन सोच रहा था.. साले चूतिये.. तुझे कैसे पता की वैशाली को ये ब्रा बहोत जँचेगी??.. जैसे पीयूष के विचारों को समझ गया हो वैसे वो लड़का वहाँ से हट गया और उसकी जगह सेल्सगर्ल आ गई..

वैशाली चार ब्रा लेकर ट्रायल रूम में गई.. और पीयूष शोकेस में लटक रही.. एक से बढ़कर एक ब्रांड की ब्रा और पेंटियों को देखता रहा.. प्लास्टिक के उत्तेजक पुतलों पर चढ़ाई हुई ब्रा और पेन्टी.. पुतले के उभार इतने उत्तेजक थे की देखकर ही कोई भी मर्द लार टपकाने लगे.. अचानक पीयूष को विचार आया.. मौसम के लिए भी एक ब्रा खरीद लेता हूँ.. उसे गिफ्ट देने के लिए.. अब ये काम वैशाली के लौटने से पहले कर लेना जरूरी था

उसने जल्दी जल्दी वहाँ खड़ी सेल्सगर्ल से कहा "मैडम, आप से एक रीक्वेस्ट है"

सेल्सगर्ल ने कातिल मुस्कान देते हुए कहा "हाँ हाँ कहिए सर.. !!"

पीयूष: "मुझे अपनी गर्लफ्रेंड के लिए ब्रा खरीदनी है मगर.. !!"

सेल्सगर्ल: "शरमाइए मत सर.. मैं समझ गई.. आपकी वाइफ के आने से पहले आप खरीद लेना चाहते है.. हैं ना.. !! कोई बात नहीं.. आप सिर्फ आपकी गर्लफ्रेंड की साइज़ बताइए.. मैं अभी पेक कर देती हूँ"

"साइज़?? साइज़ का तो पता नहीं.. !!" पीयूष का दिमाग चकरा गया

"सर सिर्फ अंदाजे से बता दीजिए.. उसके अलावा तो और कोई ऑप्शन नहीं है.. " नखरीले अंदाज में मुसकुराते हुए उस लड़की ने कहा

अब पीयूष उलझ गया.. वो फ़ोटो में लगी मोडेलों को देखकर.. मौसम के बराबर चूचियों वाली तस्वीर ढूँढने लगा.. ताकि साइज़ का पता चलें.. पर दिक्कत ये थी की आजकल की सारी ब्रांडस.. बड़ी बड़ी चूचियों वाली ही मॉडेल्स पसंद करते है.. उसमे से एक की भी चूचियाँ मौसम के साइज़ की नहीं थी.. यहाँ वहाँ नजर मार रहे पीयूष की आँखें तब चमक गई.. जब उस सेल्सगर्ल ने अपना दुपट्टा ठीक करने के लिए थोड़ा सा हटाया.. और पीयूष को मौसम की साइज़ की बराबरी का कुछ दिख गया.. उस सेल्सगर्ल के संतरें देखकर पीयूष ने अंदाजा लगा लिया था.. बिल्कुल मौसम जीतने ही थे.. साइज़ और सख्ती दोनों में.. शायद उन्नीस बीस का फर्क होगा पर उतना तो चलता है.. अब दिक्कत यह थी की उस लड़की को कैसे पूछें की उसकी साइज़ क्या है?? कहीं उसने हंगामा कर दिया तो?? दुकान वाला मारते मारते घर तक छोड़ने आएगा

"हम्ममम.. " गहरी सोच का नाटक करने लगा पीयूष

"सर जल्दी बताइए.. अगर मैडम आ गई तो आपकी इच्छा अधूरी रह जाएगी" उस लड़की ने फिर से अपना दुपट्टा ठीक करते हुए पीयूष को ललचाया

वैशाली अब कभी भी बाहर आ सकती थी.. एक एक पल किंमती था..

पीयूष काउन्टर पर झुककर उस सेल्सगर्ल के थोड़े करीब आया और चुपके से बोला "मैडम, प्लीज डॉन्ट माइंड.. मेरी गर्लफ्रेंड की कदकाठी आप के बराबर ही है.. !!"

चालक सेल्सगर्ल तुरंत बोली: "समझ गई सर.. मेरी साइज़ की दो ब्रा पैक कर देती हूँ"

"वैसे कितने की होगी एक ब्रा की कीमत?" पीयूष ने पूछा

"सर बारह सौ पचास की एक" सेल्सगर्ल ने बताया..

"फिर एक काम कीजिए.. सिर्फ एक ही पीस पैक करना" पीयूष ने कहा.. उसे ताज्जुब हो रहा था.. भेनचोद.. इत्ती सी ब्रा के इतने सारे पैसे?? वैसे मौसम के अनमोल स्तनों के सामने पैसा का कोई मोल नहीं था.. वैशाली के आने से पहले पीयूष ने पेमेंट कर दिया और ब्रा का पैकेट अपनी जेब में रख दिया..

तभी वैशाली ट्रायल रूम से बाहर आई.. उसने दो ब्रा पसंद की थी.. किंमत के बारे में उस सेल्सगर्ल से तोल-मोल के बाद आखिर उसने सात सौ रुपये में दोनों ब्रा खरीद ले.. ये देखकर ही पीयूष ने अपना माथा पीट लिया.. मर्द युद्ध लड़ने में काबिल जरूर हो सकते है.. लेकिन शॉपिंग के क्षेत्र में महिलाओं की बराबरी कभी नहीं कर सकते.. उनके बस की ही नहीं होती.. मर्द जब भी कुछ खरीदने जाता है तो यह तय होता है की वो उल्लू बनकर ही लौटेगा.. फिर वो साड़ी खरीदने जाए या तरकारी..

"थेंक यू.. " कहकर वैशाली पीयूष का हाथ पकड़कर दुकान के बाहर चली गई.. अचानक उसे कुछ याद आया और वो पीछे मुड़ी..

सेल्सगर्ल: "जी मैडम बताइए.. !!"

वैशाली उसके करीब गई और कुछ बात की.. फिर पीयूष की ओर मुड़कर बोली "जरा आठ सौ रुपये देना तो मुझे.. !!"

पीयूष को आश्चर्य हुआ.. अभी भी मौसम की ब्रा के लिए १२५० का चुना लग चुका था.. अब और आठ सौ?? भेनचोद इससे अच्छा तो वो मूठ मार लेता..

"हाँ हाँ.. ये ले" कहते हुए उसने वैशाली को पैसे दीये..

अब दोनों बाहर निकले और बाइक पर बैठकर निकल गए..

वैशाली: "बाहर बैठे बैठे कितनी लड़कियों के बबले नाप लिए? सच सच बता"

पीयूष: "अरे यार किसी के नहीं देखें.. आँख बंदकर बैठा था.. वैसे तूने वो आठ सौ रुपये का क्या लिया लास्ट में?"

वैशाली: "कविता के लिए भी एक ब्रा खरीद ली.. उसे पसंद आएगी"

पीयूष: "यार फालतू में खर्चा कर दिया.. उसके पास बहोत सारी ब्रा है"

वैशाली: "अब तो खरीद भी ली.. एक काम कर.. तू पहन लेना.. हा हा हा हा.. !!"

पीयूष: "एक बात कहूँ वैशाली.. !! तेरे बबले तो बिना ब्रा के ही अच्छे लगते है मुझे.. फिजूल में इन मस्त कबूतरों के ब्रा के अंदर कैद कर लेती है तू.. "

वैशाली: "अपनी होशियार अपने पास ही रख.. बिना ब्रा के बाहर निकलूँगी तो तेरे जैसे लफंगे नज़रों से ही चूस लेंगे मेरे बॉल"

पीयूष: "लड़के देखते है तो तुम्हें भी तो मज़ा आता है ना.. !! कोई तेरे बबले देखे तो कितना गर्व महसूस होता होगा.. !! अगर कोई ना देखें तब तो तुम लोग दुपट्टा ठीक करने के बहाने दिखा दिखा कर ललचाती हो.. !!"

वैशाली: "ऐसा कुछ नहीं होता.. कोई एक-दो लड़कियां ऐसा करती होगी.. तू सब को एक तराजू में मत तोल"

पीयूष: "अब तू ही सोच.. अभी तू बिना ब्रा पहने मेरे पीछे चिपक कर बैठी होती.. तो मुझे और तेरे बबलों दोनों की कितना मज़ा आता.. !!"

वैशाली: "हाँ.. और लोग भी देख देखकर मजे लेंगे उसका क्या?? ब्रा पहनी हो तब भी ऐसे घूर घूर कर देखते है सब.. जवान तो जवान.. साले ठरकी बूढ़े भी देखते रहते है.. "

दोनों बातें करते करते घर पहुँच गए.. वैशाली अपने घर गई और पीयूष अपने घर..

दूसरे दिन मौसम के घर जाने के लिए सब साथ निकलने वाले थे.. खाना खाने के बाद वैशाली, मदन और शीला बाहर झूले पर बैठे थे.. अनुमौसी और पीयूष भी साथ बैठे थे.. पीयूष ने पिंटू को फोन किया और बताया की वो भी साथ ही चलें..

वैशाली घर के अंदर गई और वहीं से पीयूष की आवाज लगाई.. "पीयूष, जरा मुझे मदद करना.. ये अटैची मुझसे खुल नहीं रही.. "

जैसे ही पीयूष घर के अंदर गया.. वैशाली ने उसे बाहों में जकड़ लिया और पागलों की तरह चूमती रही..

पीयूष: "अरे अरे अरे.. क्या कर रही है?? पागल हो गई है क्या?"

पीयूष के लंड पर हाथ फेरते हुए वैशाली ने कहा "हाँ पीयूष.. पागल हो गई हूँ.. अब कल से ये सब बंद हो जाएगा.. इसलिए एक आखिरी बार सेलिब्रेशन करना चाहती हूँ.. ये तेरा लंड कविता रोज डलवाती होगी.. साली किस्मत वाली है.. मुझे रोज मिलता तो कितना अच्छा होता.. !!"

वैशाली के स्पर्श का जादू पीयूष के लंड पर हावी हो रहा था.. पेंट के अंदर ९० डिग्री का कोण बनाकर खड़ा हो गया था.. ऐसी सूरत में भला पीयूष वैशाली के स्तनों को कैसे भूल जाता.. वैशाली का टीशर्ट ऊपर कर उसने दोनों उरोजों को चूस लिया.. और वैशाली ने पीयूष का लंड मुठ्ठी में पकड़कर मसल दिया.. यह सारी क्रिया मुश्किल से दो मिनट तक चली होगी.. पीयूष ने अपने होंठ साफ कर लिए और लंड को ठीक से अन्डरवेर के अंदर दबा दिया.. वैशाली ने भी अपनी ब्रा और टीशर्ट ठीक कर लिए.. पीयूष बाहर चला गया.. वैशाली की इच्छा धरी की धरी रह गई.. कविता के आने से पहले आखिरी बार चुदना चाहती थी वो.. पर क्या करती.. !!

पीयूष बाहर आकर कुर्सी पर झूले के सामने बैठ गया

पीयूष: "मदन भैया.. मैं अपने दोस्त की गाड़ी लेने जा रहा हूँ.. आप चलोगे?"

मदन: "नहीं यार.. मैं आज थोड़ा थका हुआ हूँ.. "

पीयूष: "अरे ज्यादा टाइम नहीं लगेगा.. यहाँ सब्जी मार्केट के पीछे ही जाना है.. आधे घंटे में तो लौट आएंगे.. मुझे भी कंपनी मिल जाएगी.. अकेले जाने में बोर हो जाऊंगा"

शीला: "एक मिनट पीयूष.. तू मार्केट के पीछे जाने वाला है?"

पीयूष: "हाँ भाभी"

शीला: "मदन, हम दोनों साथ चलते है.. कल कविता के घर जा रहे है तो मैंने सोचा.. मौसम इतने दिनों से बीमार थी तो उसके लिए कुछ फ्रूट्स ले चलें.. सामने ही रसिक का घर है.. आज सुबह ही वो कह रहा था की उसकी बीवी रूखी ने रबड़ी बनाई है.. भैया को पसंद हो तो शाम को ले जाना.. चल तुझे मैं आज रूखी की रबड़ी खिलाती हूँ.. " कहते हुए शीला ने मदन के पैर का अंगूठा अपने पैरों से दबा दिया.. शीला ने इशारों इशारों में मदन को ललचाया..

मदन ने शीला के कान में धीरे से कहा.. " क्या सच में रूखी की रबड़ी चखने मिलेगी?? तो मैं चलूँ.." शीला घूरती हुई उसके सामने देखने लगी और मदन हंस पड़ा

"ठीक है मैडम, आपका हुक्म सर-आँखों पर.. वैशाली को भी साथ ले चलते है" मदन ने कहा

शीला: "फिर हम चार लोग हो जाएंगे.. दो ऑटो करनी पड़ेगी.. "

वैशाली: "नहीं मम्मी.. आप लोग हो आइए.. मैं यहीं बैठी हूँ.. मौसी से बातें करूंगी.. हम सब चले जाएंगे तो वो अकेली पड़ जाएगी.. !!"

शीला: "ठीक है बेटा.. तू अनु मौसी से बातें कर.. हम एकाध घंटे में लौट आएंगे.. "

पीयूष, मदन और शीला चलते चलते गली के नाके तक आए और ऑटो से पीयूष के दोस्त के घर पहुँच गए.. वापिस आते वक्त रसिक के घर के पास रुक गए.. पुरानी शैली से बना हुआ मकान था रसिक का.. पर सजावट अच्छी थी.. मदन और शीला को देखकर रसिक खुश हो गया.. रसिक के माँ-बाप ने भी बड़े प्यार से उनका स्वागत किया

रसिक: "अरे भाभी, आपने फोन कर दिया होता तो अच्छा होता.. अभी तो रबड़ी बन रही है.. थोड़ी देर लगेगी.. आप बैठिए.. फिर गरम गरम रबड़ी खाने में मज़ा आएगा.. " रसिक की बातें सुनते हुए मदन की आँखें रूखी को तलाश रही थी

मदन को यहाँ वहाँ कुछ ढूंढते हुए देखकर शीला समझ गई..

शीला: "रूखी कहीं दिखाई नहीं दे रही?"

रसिक: "वो अंदर के कमरे में है.. लल्ला को दूध पीला रही है.. चार दिन बाद आज ठीक से दूध पी रहा है मेरा बेटा.. जुकाम और बुखार की वजह से पिछले कई दिनों से ठीक से दूध नहीं पी पा रहा था..चार दिनों से माँ और बेटा दोनों परेशान हो गए थे "

ये सुनते ही मदन की दिल की धड़कन थम सी गई.. ओह्ह हो.. चार दिन से बच्चे ने दूध नहीं पिया था.. और माँ परेशान हो रही थी.. बेटा पी नहीं पा रहा था इसलिए परेशान थी या छातियों में दूध भर जाने की वजह से.. !! यार.. दो दिन पहले यहाँ आया होता तो अच्छा होता

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तभी रूखी बाहर आई.. आह्ह.. रूखी का रूप देखकर.. मदन और पीयूष के साथ साथ शीला भी देखती रह गई..

रूखी ने शीला की आवाज सुनी इसलीये उसने सोचा की सिर्फ वही अकेली आई होगी.. इसलिए बिना चुनरी के वो बाहर आ गई.. बाहर आने के बाद उसने मदन और पीयूष को देखा.. रूखी ने चुनरी ओढ़ रखी होती तो भी वो उसके विशाल स्तन प्रदेश को ढंकने के लिए काफी नहीं थी.. और वो अभी अभी दूध पिलाकर खड़ी हुई थी.. इसलिए ब्लाउस के नीचे के दो हुक भी खुले हुए थे.. और स्तनों की गोलाई का निचला हिस्सा.. ब्लाउस के नीचे से नजर भी आ रहा था.. ब्लाउस की कटोरी के बीच का निप्पल वाला हिस्सा.. दूध टपकने से गीला हो रखा था.. देखते ही मदन के दिल-ओ-दिमाग में हाहाकार मच गया.. बहोत मुश्किल से उसने अपने आप पर कंट्रोल रखा

रूखी: "आइए आइए साहब.. आइए पीयूष भैया.. कैसे हो भाभी?? आप सब ने तो आज इस गरीब की कुटिया पावन कर दी"

रूखी के बड़े बड़े खरबूजों जैसे उभारों को ललचाई नज़रों से देखते हुए मदन ने कहा "अरे किसने कहा की आप गरीब है.. !!"

शीला ने मदन के पैर पर हल्के से लात मारकर उसे कंट्रोल में रहने की हिदायत देते हुए बात बदल दी "अरे रूखी.. क्या अमीर क्या गरीब.. हम सब एक जैसे ही तो है.. आप लोग दूध देते हो तभी तो हम चाय पी पाते है.. " शीला ने दांत भींचते हुए मदन की ओर गुस्से से देखते हुए उसे इशारों से कहा की अपनी नज़रों से रूखी के बबला चूसना बंद कर.. उसका पति तुझे देख रहा है.. !!

शीला: "हमारे घर तो कभी रबड़ी नहीं बनती.. इसलिए तुम्हारे घर आना पड़ा.. अब बताओ गरीब हम हुए या आप?? अब बाकी बातें छोडोन और साहब को रबड़ी चखाओ.. तेरी रबड़ी खाने के लिए ही उन्हें साथ लेकर आई हूँ.. " हर एक शब्द से रूखी और मदन को झटके लग रहे थे.. इन सारी बातों से पीयूष अनजान था.. उसकी नजर तो शीला भाभी के अद्भुत सौन्दर्य पर ही टिकी हुई थी.. आखिरी बार उस सिनेमा हॉल में भाभी के भरपूर स्तनों का आनंद नसीब हुआ था.. काश एक रात के लिए भाभी अकेले मिल जाए.. मैं और भाभी.. एक कमरे में बंद.. आहाहाहा..

शीला: "मदन, तू यहीं बैठ इन सब के साथ.. मैं और पीयूष सामने मार्केट से कुछ फ्रूट्स लेकर आते है.. तब तक तू रबड़ी का मज़ा लें और रसिक भैया से बातें कर.. तब तक हम लौट आएंगे.. " शीला ने जैसे पीयूष के मनोभावों को पढ़ लिया था..

रूखी: "हाँ हाँ भाभी.. आप हो आइए.. तब तक मैं साहब को रबड़ी खिलाती हूँ"

शीला और पीयूष दोनों बाहर निकले.. रोड की दूसरी तरफ काफी रेहड़ियाँ खड़ी थी फ्रूट्स की.. पर बीच में डिवाइडर पर रैलिंग लगी हुई थी.. इसलिए आगे जाकर यू-टर्न लेकर जाना पड़े ऐसी स्थिति थी..

शीला: "पीयूष, तू गाड़ी निकाल.. हम उस तरफ जाकर आते है"

पीयूष तुरंत गाड़ी लेकर आया.. और शीला बैठ गई.. ट्राफिक कुछ ज्यादा नहीं था.. और काफी अंधेरा था.. कुछ जगह स्ट्रीट-लाइट बंद थी इसलिए वहाँ काफी अंधेरा लग रहा था.. उस अंधेरी जगह से जब गाड़ी गुजर रही थी तब शीला ने पीयूष का हाथ गियर से हटाते हुए अपने दायें स्तन पर रख दिया और अपना हाथ उसके लंड पर.. और बोली "ये गियर तो ठीक से काम कर रहा है ना.. !!"

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पीयूष एक पल के लिए सकपका गया और शीला की तरफ देखता ही रहा

शीला: "उस दिन मूवी देखकर लौटें और तू चाबी देने आया था.. उसके बाद तो तू जैसे खो ही गया.. पहले तो रोज छत से मेरे बबलों को तांकता रहता था.. अब तो वो भी बंद कर दिया"

पीयूष बेचारा हतप्रभ हो गया.. शीला भाभी के इस आक्रामक हमले को देखकर.. सिर्फ पाँच मिनट जितना ही वक्त था दोनों के पास.. उसमे भी शीला भाभी ने पंचवर्षीय योजना जितना निवेश कर दिया.. लंड पर भाभी का हाथ फिरते ही उनके स्तनों पर पीयूष की पकड़ दोगुनी हो गई..

"भाभी, आप को तो रोज सपने में चोदता हूँ.. आपका खयाल आते ही मेरा उस्ताद टाइट हो जाता है.. आप तो जीती-जागती वायग्रा की गोली हो.. पर पहले आप अकेली थी.. अब तो मदन भैया और वैशाली दोनों है.. इसलिए मैं क्या करूँ?? मन तो बहोत करता है मेरा.. !!"

शीला: "अरे पागल.. मौका ढूँढना पड़ता है.. वो ऐसे तेरी गोद में पके हुए फल की तरह नहीं आ टपकेगा.. देख.. मैंने कैसे अभी मौका बना लिया.. !! मदन को रूखी की छाती से लटकाकर.. !! हा हा हा हा.. !!"

"भाभी.. ब्लाउस से एक तो बाहर निकालो... तो थोड़ा चूस लूँ.. अब तो रहा नहीं जाता" स्तनों को मजबूती से मसलते हुए पीयूष ने कहा

"आह्ह.. ये ले.. जल्दी करना.. कोई देख न ले.. " शीला ने अपनी एक कटोरी से स्तन को बाहर खींच निकाला.. पीयूष ने तुरंत गाड़ी को साइड में रोक लिया.. अंधेरे में हजार वॉल्ट के बल्ब की तरह शीला की चुची जगमगाने लगी.. पीयूष ने झुककर शीला की निप्पल को मुंह में लेकर चूसना शुरू कर दिया.. चटकारे लेते हुए.. और कहा "भाभी.. इसे खुला ही छोड़ दो.. जब तक हम वापिस न लौटें.. तब तक मैं इसे देखते रहना चाहता हूँ.. कितना मस्त है यार.. !!"

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शीला: "आह्ह पीयूष.. मदन के आने के बाद अपने बीच सब कुछ बंद हो गया.. मुझे भी सारी पुरानी बातें बड़ी याद आती है.. तू कुछ सेटिंग कर तो हम दोनों बाहर कहीं मिलें.. !!"

पीयूष: "वो तो बहोत मुश्किल है भाभी.. पर फिर भी मैं कुछ कोशिश करता हूँ"

शीला का एक स्तन बाहर ही लटक रहा था जिसे उसने अपने पल्लू से ढँक दिया था..इस तरह की साइड से पीयूष उसे देख सकें.. पीयूष अब बड़े ही आराम से और धीमी गति से गाड़ी चला रहा था.. थोड़े थोड़े अंतराल पर वो भाभी के इस अर्ध-आवृत गोलाई को नजर भर कर देख लेता और खुद ही अपने लंड को भी मसल लेता..

लंबा राउन्ड लगाकर उसने यू-टर्न लिया और कार के सेब वाले की रेहड़ी के पास रोक दी.. शीला ने अपनी खुली हुई चुची को ब्लाउस के अंदर डाल दिया.. ब्लाउस के हुक बंद किए और उतरकर दो किलो सेब खरीदें.. वो वापिस गाड़ी में बैठ गई.. जिस लंबे रास्ते आए थे उसी रास्ते पर पीयूष ने गाड़ी को फिर से मोड लिया.. और उस दौरान.. शीला ने जिद करके पीयूष का लंड बाहर निकलवाया और ड्राइव करते पीयूष का लंड झुककर चूस भी लिया.. रसिक का घर नजदीक आते ही शीला ठीक से बैठ गई.. गाड़ी पार्क करते ही पीयूष ने पहले तो अपना लंड पेंट के अंदर डालकर चैन बंद कर ली और फिर हॉर्न बजाकर मदन को बाहर बुलाया..

मदन बाहर आता उससे पहले शीला आगे की सीट से उठकर पीछे बैठ गई.. ताकि मदन को किसी भी तरह का कोई शक होने की गुंजाइश न रहे

मदन बाहर आया और पीयूष के बगल की सीट पर बैठते हुए बोला "वाह.. मज़ा आ गया.. कितने सालों के बाद रबड़ी का स्वाद मिला.. वहाँ अमेरिका में भी पेक-टीन में रबड़ी मिलती थी.. पर स्वाद बिल्कुल भी नहीं.. आज तो दिल खुश हो गया मेरा शीला.. "

शीला: "टीन की रबड़ी क्यों खाता था तू?? वो मेरी बनाकर नहीं खिलाती थी तुझे रबड़ी??"

पीयूष: "ये मेरी कौन है मदन भैया??" स्वाभाविक होकर पूछे सवाल के बाद अचानक पीयूष को उस रात मदन के लैपटॉप में देखे हुए वीडियोज़ याद आ गये..

मदन: "अरे कोई नहीं है यार.. ये तेरी भाभी फालतू में मुझ पर शक करती है.. दरअसल जहां मैं पेइंग गेस्ट बनकर रहता था उसकी मालकिन थी वो.. हम दोनों अच्छे दोस्त थे.. इसलिए शीला मुझे ताने मारती रहती है.. "

शीला: "हाँ पीयूष.. मदन और मेरी के बीच तो रबड़ी खिलाने वाले संबंध नहीं थे.. वैसे मेरा ये मानना है की एक जवान पुरुष और औरत कभी सिर्फ दोस्त नहीं हो सकते.. वो या तो प्रेमी हो सकते है या अपरिचित.. जवान जोड़ों के बीच अगर कोई सामाजिक संबंध न हो तो सिर्फ एक ही संबंध होने की संभावना होती है.. !!"

मदन: "यार तू पागलों जैसी बात मत कर.. अब पहले जैसा नहीं है.. मर्द और औरत सिर्फ दोस्त भी तो हो सकते है.. अरे विदेश में तो कपल्स बिना शादी किए मैत्री-समझौता कर साथ में खुशी खुशी रहते भी है और सेट ना हो तो अलग भी बड़े आराम से हो जाते है.. "

शीला: "तो तुझे क्या लगता है.. उस दौरान दोनों के बीच शारीरिक संबंध नहीं बनते होंगे??"

शीला: "अरे भाभी.. मैत्री-समझौते में तो सब कुछ होता है.. सेक्स भी"

शीला: "अच्छा.. !! मतलब दोस्ती यारी में सेक्स की इजाजत भी होती है.. !! दो लोग अपनी सहमति से सेक्स करें उसे आप लोग मैत्री का नाम देते हो.. तो फिर उसमें और शादी में क्या अंतर?"

मदन: "तू समझ ही नहीं रही.. अब तुझे कैसे समझाऊँ.. !!"

शीला: "कुछ समझना नहीं है मुझे.. सब समझ आता है मुझे.. मैंने भी ये बाल धूप में सफेद नहीं किए है.. "

पति पत्नी की इस नोंक-झोंक को सुनते हुए पीयूष गाड़ी चला रहा था.. वैसे शीला की बात से वो सहमत था.. दुनिया को उल्लू बनाने के लिए स्त्री और पुरुष उनके गुलछर्रों को मित्रता का नाम दे देते है.. !!

मज़ाक-मस्ती और हल्की-फुलकी बातें करते हुए तीनों घर पहुँच गए..

उस रात.. खरीदी हुई ब्रा ट्राय करते वक्त वैशाली ने पीयूष को बहोत याद किया.. काफी सारे हॉट मेसेज भेजें चैट पर.. सुबह जल्दी उठना था इसलिए दोनों ने एक दूसरे को गुड नाइट विश किया और सो गए..
 

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पिंटू के बात करने के तरीके से वैशाली काफी इंप्रेस हुई.. वो सोच रही थी.. आज पीयूष का कोई मेसेज क्यों नहीं आया?? कल रात को बड़ा बंदर बना फुदक रहा था.. आज कौन सा सांप सूंघ गया उसे? पता नहीं.. इंस्टाग्राम पर रील्स देखते हुए उसकी आँख कब लग गई पता ही नहीं चला

आधी रात के बाद अचानक वैशाली के फोन की रिंग बजी.. आँखें मलते हुए वैशाली ने फोन उठाया

"खिड़की खोल.. मैं बाहर खड़ा हूँ" फोन पर पीयूष था..

फोन कट करके उसने खिड़की खोली.. दूसरी तरफ पीयूष खड़ा था.. खिड़की पर लगी लोहे की ग्रील से हाथ डालकर पीयूष ने वैशाली के स्तन दबा दीये..

"क्या कर रहा है पागल.. !!" वैशाली को मज़ा तो बहोत आया पर उसे डर लग रहा था..

"कुछ नहीं होगा.. तू एक काम कर.. कमरे की लाइट ऑफ कर दे.. किसी को पता नहीं चलेगा.." पीयूष ने कहा.. ये आइडिया तो वैशाली को भी पसंद आ गया.. उसने लाइट बंद कर दी और अपनी टीशर्ट उतारकर टॉप-लेस हो गई..

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वो अब खिड़की से एकदम सटकर खड़ी हो गई.. इतने करीब, की खिड़की के सरियों के बीच से उसके स्तन पीयूष की तरफ बाहर निकल गए.. पीयूष पागलों की तरह उसकी निप्पलों को चूसने लगा.. और स्तनों की गोलाइयों को चाटने लगा.. वैशाली और पीयूष के शरीरों के बीच ये लोहे के सरिये विलन बनकर खड़े हुए थे.. पीयूष जमीन पर खड़ा था.. उसकी कमर के ऊपर का हिस्सा ही नजर आ रहा था.. इस अवस्था में उसके लंड तक पहुँच पाना वैशाली के लिए मुमकिन नहीं था.. और पीयूष अपने आप को और ऊंचा कर नहीं सकता था.. काफी देर तक.. बिना लंड या चूत की सह-भागिता के बिना ही फोरप्ले चलता रहा..

वैशाली के नग्न स्तनों के साथ खेलकर पीयूष इतना उत्तेजित हो गया था की उसका लंड सख्त होकर दीवार के खुरदरे प्लास्टर से रगड़ खा रहा था.. अद्भुत द्रश्य था.. वैशाली ने अपना हाथ लंबा कर पीयूष के लंड को पकड़ना चाहा पर पहुँच न पाई.. अति उत्तेजित होकर पीयूष खिड़की पर खड़ा हो गया और उसने अपना लंड सरियों के बीच से वैशाली के सामने रख दिया.. बेहद गरम हो चुकी वैशाली ने पहले तो लंड को मन भरकर चूसा.. कडक लोड़े को चूसने में मज़ा आ गया उसे..


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अब वैशाली भी बिस्तर पर खड़ी हो गई.. ताकि उसका और पीयूष का शरीर सीधी रेखा में आ जाए.. वो उस तरह खड़ी थी की उसकी गीली चूत पीयूष के लंड तक पहुँच सके.. सुपाड़े का स्पर्श अपनी पुच्ची पर होते ही वैशाली की आह्ह निकल गई.. वो उस सुपाड़े को अपनी चूत के होंठों पर और क्लिटोरिस पर रगड़ने लगी..

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वैशाली की चूत में इतनी खाज हो रही थी की उससे रहा नहीं गया.. उसने पीयूष का लंड अपनी तरफ खींचा.. और ऐसा खींचा की पीयूष के गले से हल्की सी चीख निकल गई.. पर वैशाली उसके दर्द की फिकर करती तो उसकी चूत कैसे शांत होती.. !! पीयूष की अवहेलना करते हुए उसने लंड को खींचकर.. अपनी चूत के अंदर तीन इंच जितना अंदर डाल दिया.. !! पीयूष दर्द से कराह रहा था.. पर वैशाली अपनी मनमानी करती रही.. उसकी चूत को तो ६ इंच से ज्यादा लंबे लंड की अपेक्षा थी.. पर फिलहाल मजबूरी के मारे.. तीन इंच से अपना काम चला रही थी..

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पीयूष के होंठों पर होंठ रखकर चूसते हुए वो बड़ी मस्ती से लंड को हाथ में लेकर अपनी चूत के अंदर बाहर करती रही.. पीयूष की पीड़ा और वैशाली के आनंद के बीच.. लंड और चूत के घर्षण के दौरान.. वैशाली के स्तन फूलगोभी जैसे कडक बन चुके थे.. जीवंत लंड से चुदने की उसकी हफ्तों पुरानी ख्वाहिश आज पूरी हो रही थी.. ऑर्गजम के उस सफर के दौरान.. वैशाली ने अनगिनत बार पीयूष को चूमा.. और अपनी क्लिटोरिस पर लंड की रगड़ खाते हुए.. थरथराते हुए झड़ गई.. स्खलित होते ही वो शरमाकर खिड़की से उतर गई..

पर पीयूष तो अभी भी मझधार में था..उसका लंड झटके मार रहा था.. और शांत होने के बिल्कुल मूड में नहीं था.. वैशाली पीयूष की इस समस्या को समझ गई.. इसलिए वो फिर से खड़ी हो गई.. और पीयूष के लंड को मुठियाने लगी.. पीयूष वैशाली के गोलमटोल स्तनों को दबाते हुए कांपता हुआ झड़ गया.. उसके लंड ने अंधेरे में तीन-चार जबरदस्त पिचकारियाँ छोड़ दी.. अंधेरे में वो पिचकारी कहाँ जाकर गिरी उसका दोनों में से किसी को पता नहीं चला..

एक बार ठंडे होने पर दोनों अंधेरे में बैठकर एक दूसरे के अंगों से खेलते रहे.. रात के दो बजे शुरू हुआ उनका प्रोग्राम साढ़े तीन बजे तक चला.. सेक्स तो आधे घंटे में ही निपट गया था पर बाकी का एक घंटा दोनों ने प्यार भरी बातों में गुजार दिया..

"अब मैं चलूँ??" वैशाली के गोरे गालों को चूमकर पीयूष ने कहा

"बैठ न यार थोड़ी देर.. ऐसा मौका बार बार कहाँ मिलता है.. कविता के वापिस लौटने के बाद ऐसे मिलना भी मुमकिन नहीं होगा.. तू उसकी बाहों में पड़ा होगा और मैं यहाँ बैठे बैठे तड़पती रहूँगी.. " एकदम धीमी आवाज में वैशाली ने कहा

पीयूष: "यार, मैं अब खड़े खड़े थक चुका हूँ.. चार बजे तो सोसायटी में चहल पहल शुरू हो जाएगी.. तेरा तो ठीक है की तू अपने घर के अंदर है.. मुझे बाहर भटकता देखकर कोई पूछेगा तो क्या जवाब दूंगा.. !! और वैसे भी.. अपना काम तो हो चुका है.. "

वैशाली ने अपनी उंगली से नापकर दिखाते हुए कहा "सिर्फ इत्ता सा अंदर गया था तेरा.. वो भी बड़ी मुश्किल से.. तू ऊपर चढ़कर धनाधन शॉट लगाए उसे सेक्स कहते है.. ये तो उंगली करने बराबर था.. "

बातें खतम ही नहीं हो रही थी.. आखिर में पीयूष ने जबरदाती वैशाली से हाथ छुड़ाया और अपने घर की ओर भाग गया.. वैशाली अभी भी टॉप-लेस थी.. सुबह के चार बज रहे थे.. वो बाथरूम जाकर आई और टीशर्ट पहन कर सो गई.. सुबह साढ़े सात बजे जब शीला ने उसे जगाया तब उसकी आँख खुली..

शीला ने फोन थमाते हुए वैशाली से कहा "ले, कविता का फोन है.. उसके मायके से.. कुछ बात करना चाहती है तुझसे.."

वैशाली सोच में पड़ गई.. कविता ने इतनी सुबह सुबह क्यों फोन किया होगा??

बात करते हुए वैशाली ने कहा "हैलो.. !!"

"हाई वैशाली.. गुड मॉर्निंग.. कैसी है तू?"

"मैं ठीक हूँ.. यार तू तो दो दिन का बोलकर वापिस लौटी ही नहीं.. पाँच दिन हो गए.. क्या बात है.. ससुराल लौटने का इरादा है भी या नहीं??" वैशाली ने कहा.. शीला फोन देकर किचन में चली गई..

कविता: "अरे यार.. मैं आई थी तो दो दिन के लिए.. फिर रोज कोई न कोई काम निकल आता है.. वरना इतने दिनों तक ससुराल से कौन दूर रह पाएगा.. !! अंडा और डंडा दोनों ससुराल में ही है.. अंडा तो चलो पापा के घर खाने मिल जाएगा.. पर बिना डंडे के मैं क्या करूँ??"

वैशाली: "वैसे आज कल की लड़कियों का मायके में कोई न कोई ए.टी.एम जरूर होता है.. जब भी मायके आती है तब आराम से इस्तेमाल कर लेती है.. वैसे तेरा भी कोई न कोई तो होगा न उधर.. जो तुझे डंडे की कमी न खलने दे.. हा हा हा हा हा हा.. !! वो सब छोड़ और जल्दी वापिस आने के बारे में सोच.. पीयूष तेरे बगैर मर रहा है यहाँ.. तुझे उसकी याद नहीं आती है क्या??"

कविता: "अरे यार.. सब कुछ याद आता है.. पर क्या करें.. मजबूरी का दूसरा नाम मास्टरबेशन.. हा हा हा हा.. !!"

वैशाली: "नई नई कहावतें बनाना छोड़ और ये बता की वापिस कब आ रही है.. !! मैं भी अकेली पड़ गई हूँ यार.. एक तेरी ही तो कंपनी थी.. और तू भी चली गई.. चल छोड़ वो सब.. ये बता, तेरी मम्मी की तबीयत कैसी है?"

कविता: "वैसे ठीक है.. थोड़ी सी कमजोरी है.. थोड़ा वक्त लगेगा.. शायद मुझे और रुकना पड़ें.. और मैं वहाँ आऊँ उससे पहले तो आप लोगों को यहाँ आना पड़ेगा.. गुरुवार को तो सगाई है.. पूरा दिन काम ही काम लगा रहता है.. तीन ही तो दिन बचे है.. वैसे आप लोग कब आने वाले हो?"

वैशाली: "सगाई वाले दिन ही आएंगे.. "

कविता: "ओके.. सुबह नौ बजे का मुहूरत है.. आप लोगों को जल्दी निकलना पड़ेगा.. उससे अच्छा तो ये होगा की आप सब बुधवार शाम को ही यहाँ आ जाएँ.. "

वैशाली: "अरे यार.. सब कुछ मुझे थोड़े ही तय करना है.. !! मम्मी पापा भी तो मानने चाहिए ना.. !! ले तू पापा से बात कर" कहते हुए वैशाली ने मदन को फोन थमा दिया.. फोन पर कविता ने बड़े प्यार से न्योता दिया और आग्रह किया इसलिए मदन बुधवार शाम तक आने के लिए राजी हो गया..

वैशाली को थोड़ी शॉपिंग करनी थी.. खुद के लिए नई ब्रा और पेन्टी खरीदनी थी.. उसने सोचा की ऑफिस के दौरान वो एक घंटा बीच में निकल जाएगी और खरीद लेगी.. उसने शीला को इशारे से बुलाया

वैशाली: "मम्मी.. पापा को कहिए ना की मुझे थोड़े पैसे चाहिए.. "

शीला: "अरे, तू खुद ही मांग लें"

वैशाली: "नहीं मम्मी.. मुझे पापा से पैसे मांगने में शर्म आती है.. अब जल्दी ही मैं अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती हूँ.. अच्छा नहीं लगता मांगना"

शीला: "अरे मदन.. जरा वैशाली को दो हजार रुपये देना"

मदन: "किस बात के लिए चाहिए भाई.. ??"

शीला: "तुम्हें जानकर क्या काम है?? होगी उसे जरूरत.. तुम बस पैसे देने से मतलब रखो.. "

मदन: "अरे.. बच्चों को पैसे देने से पहले पूछना भी तो जरूरी है की किस बात के लिए चाहिए.. !!"

शीला: "क्यों? तुम्हें वैशाली पर भरोसा नहीं है?"

वैशाली: "पापा ठीक कह रहे है मम्मी.. बात भरोसे की नहीं है.. पर जानना जरूरी है.. और हिसाब मांगना भी जरूरी है"

मदन: "देखा.. !! कितनी समझदार है मेरी बेटी.. !!"

शीला: "हे भगवान.. दो हजार रुपयों के लिए दो हजार बातें सुनाएगा ये आदमी.. ये ले बेटा.. " मदन के वॉलेट से पैसे निकालकर वैशाली को देते हुए कहा शीला ने

वैशाली: "थेंक यू पापा.. थेंक यू मम्मी.. " पर्स में पैसे रखकर वो नहाने चली गई..

तैयार होते ही.. पीयूष हाजिर हो गया.. और वैशाली उसके साथ ऑफिस चली गई

उन्हें जाते हुए देख शीला सोच रही थी.. कितनी अच्छी बनती है दोनों के बीच.. !!

सिर्फ चार दिनों में ही वैशाली और पीयूष की मित्रता और गाढ़ी हो चुकी थी.. पीयूष मौसम की यादों को वैशाली के सहारे भूलना चाहता था.. पर रोज घर में मौसम के नाम का जिक्र होता.. और भूलने के बजाए.. मौसम की यादें अधिक तीव्रता से परेशान करने लगती.. दो दिन बाद तो उसकी सगाई में जाना था..

पिछली रात की खिड़की-चुदाई के बाद.. वैशाली अपनी बातों में थोड़ी ज्यादा फ्री हो गई थी.. आजाद परिंदों की तरह बाइक पर जाते हुए दोनों एक दूसरे से ऐसे चिपके हुए थे जैसे दीवार पर छिपकली चिपकी हुई हो.. एक जगह बाइक की गति थोड़ी सी धीमी होने पर वैशाली ने पीयूष के कान में कहा

वैशाली: "हमें ऐसे डर डर कर ही मिलना होगा या फिर कभी शांति से करने का मौका भी मिलेगा?"

पीयूष: "यार.. मैं ठहरा शादी-शुदा आदमी.. इसलिए हमें डर डर कर ही करना होगा.. हाँ संयोग से कोई जबरदस्त चांस मिल जाएँ तो अलग बात है"

वैशाली: "पर ऐसे तो जरा भी मज़ा नहीं आता मुझे, पीयूष.. मुझे आराम से.. बिना किसी डर के करवाना है.. कुछ सेटिंग कर न यार.. ऐसे डर डर कर चोर की तरह सब कुछ करना.. ये भी कोई बात हुई!! सच कहूँ तो डरते डरते या जल्दबाजी में करने का कोई मतलब ही नहीं है.. इस क्रिया को तो आराम से ही करना चाहिए.. विशाल बेड पर.. नंगे होकर चुदाई करने में जो मज़ा है ना.. !! वो खिड़की पर लटककर करने में कैसे मिलेगा.. !!"

असंतोष का गेस जलते ही पीयूष के दिल की भांप, कुकर की सिटी की तरह ऊपर चढ़ी और बाहर निकलने लगी

ऑफिस करीब आते ही दोनों नॉर्मल लोगों की तरह बैठ गए.. गेट पर ही पिंटू मिल गया.. वो फोन पर लगा हुआ था.. जाहीर सी बात थी की वो कविता से ही बात कर रहा था.. पीयूष को देखते ही उसने फोन काट दिया और मुसकुराते हुए "गुड मॉर्निंग" कहा.. और अपनी कैबिन में घुस गया.. उसने फिर से कविता को फोन लगाया

पिंटू: "यार एकदम से पीयूष और वैशाली सामने मिल गए.. इसलिए फोन काटना पड़ा.. सॉरी.. अरे नहीं नहीं.. किसी ने हमारी बातें नहीं सुनी.. तू टेंशन मत ले यार.. "

वैशाली पिंटू की कैबिन का दरवाजा खोलने ही वाली थी की तब उसने आखिरी दो वाक्य सुन लिए.. वो सोचने लगी.. ऐसी तो क्या बात होगी जो पिंटू को इतना ध्यान रखना पड़ता है?? खैर, होगी कोई उसकी पर्सनल बात.. मुझे क्या.. !!

वैशाली ने कैबिन के बंद दरवाजे पर दस्तक दी.. और दरवाजा खोलकर अंदर झाँकते हुए बड़े ही प्यार से कहा "मे आई कम इन?"

पिंटू: "यू आर ऑलवेज वेलकम.. " अंदर से आवाज आई..

वैशाली ने हँसते हुए कैबिन में प्रवेश किया.. और पिंटू के सामने रखी कुर्सी पर बैठ गई.. पिंटू के टेबल पर फ़ाइलों का ढेर लगा था.. इसलिए उसने निःसंकोच वैशाली को बोल दिया

"सॉरी, आज मैं आपको कंपनी नहीं दे पाऊँगा.. आज वर्कलोड कुछ ज्यादा ही है"

वैशाली: "ओह.. नो प्रॉब्लेम पिंटू..वैसे काम का बोझ ज्यादा हो तो फोन पर कम बात किया करो और फटाफट काम पर लग जाओ.. मुझे भी मार्केट जाना है.. थोड़ा सा काम है.. मौसम को देने के लिए कोई गिफ्ट भी तो लेनी होगी.. !!"

पिंटू: "अरे हाँ यार.. ये तो मैं भूल ही गया.. मुझे भी न्योता मिला है.. प्लीज मेरा एक काम करोगी? आप जो भी गिफ्ट खरीदों.. उसमे मेरी भी हिस्सेदारी रखना.. इफ यू डॉन्ट माइंड.. !!"

वैशाली: "भला मैं क्यों माइंड करूंगी?? हाँ अगर आपने आपका हिस्सा नहीं दिया तो जरूर माइंड करूंगी.. हा हा हा.. वैसे.. कितना बजेट है आपका गिफ्ट के लिए?"

पिंटू: "एक हजार.. थोड़ा बहोत ऊपर नीचे होगा तो चलेगा.. "

वैशाली: "ठीक है.. इस बजेट में मुझे कुछ मिल जाएगा तो मैं फोन करूंगी.. अब मैं निकलती हूँ.. बाय"

पिंटू: "बाय.. एंड थेंकस"

वैशाली पिंटू की केबिन से निकल गई.. बाहर निकलकर उसने राजेश सर से इजाजत मांगी.. राजेश सर ने चपरासी को बुलाकर.. ऑफिस स्टाफ में से किसी का एक्टिवा दिलवा दिया वैशाली को.. जिसे लेकर वैशाली मार्केट की ओर निकल गई।

एक डेढ़ घंटा बीत गया पर वैशाली को अपनी पसंद की गिफ्ट ही नहीं मिल रही थी.. सस्ती वाली ठीक नहीं लग रही थी और जो पसंद आती वो बजेट के बाहर होती.. मुसीबत यह थी की वो घर से सिर्फ दो हजार लेकर ही निकली थी.. क्यों की मौसम की गिफ्ट के बारे में तो उसे ऑफिस आकर ही खयाल आया था..

आखिर उसे २२०० रुपये का एक पेंटिंग पसंद आ गया.. वैशाली ने तुरंत पिंटू को फोन किया.. पीयूष और पिंटू तब साथ ही बैठे थे..

पिंटू: "अरे कोई बात नहीं.. आपको पसंद है उतना ही काफी है..आप पैक करवा ही लीजिए"

वैशाली ने दुकानदार से थोड़ी सी नोक-झोंक के बाद आखिर २००० में सौदा तय किया.. गिफ्ट-पेक करवा कर वो ऑफिस आई.. और पीयूष की मौजूदगी में ही गिफ्ट पिंटू को दिखाई.. वैसे पेक हुई गिफ्ट पिंटू को नजर तो नहीं आने वाली थी.. पर फिर भी.. उसने मार्कर पेन से उस पर अपना और पिंटू दोनों का नाम लिखा.. पिंटू ने तुरंत वॉलेट खोलकर अपने हिस्से के एक हजार रुपये वैशाली को दे दीये..

शाम को पीयूष के साथ घर लौटते वक्त वैशाली ने एक लेडिज गारमेंट की शॉप के बाहर बाइक खड़ा रखने के लिए कहा.. बाहर डिस्प्ले में ब्रा और पेन्टीज लटक रही थी.. पीयूष समझ गया

वैशाली: "यार मुझे थोड़ी सी शॉपिंग करनी है.. फिर कल तो हमें जाने के लिए निकलना होगा.. दोपहर के बाद"

पीयूष: "यार ये बड़ा मस्त धंधा है.. कितने कस्टमरों के बॉल रोज नज़रों से नापने मिलेंगे"

वैशाली: "उससे अच्छा तू एक काम कर.. मर्दों के कच्छे बेचना शुरू कर दें.. देखने भी मिलेगा और कोई शौकीन कस्टमर हुआ तो छूने भी देगा.. बेवकूफ.. यहाँ रुकना जब तक मैं लौटूँ नहीं तब तक.. और यहाँ वहाँ नजरें मत मारना.. वरना बीच बाजार जूतों से पिटाई होगी"

पीयूष बाहर बाइक पर बैठा रहा.. थोड़ी देर में दुकानदार का हेल्पर बाहर आया और उसने कहा "साहब आप भी अंदर आइए और मैडम को मदद कीजिए.. क्या है की आप ऐसे बाहर बैठे रहेंगे तो और कस्टमर को आने में झिझक होगी.. हमारी सारी कस्टमर महिलायें ही होती है, इसलिए"

"ओह आई एम सॉरी.. आप सही कह रहे है.. " वैसे भी पीयूष अंदर जाना ही चाहता था.. बाइक पार्क करने के बाद वो अंदर आया और वैशाली के करीब ऐसे खड़ा हो गया जैसे उसका पति हो.. उसने हाथ इस तरह काउन्टर पर रख दिया था की उसकी कुहनी वैशाली के स्तनों की गोलाई को छु रही थी..

अलग अलग डिजाइन और रंगों वाली.. पुरुषों के मन को लुभाने वाली ब्रा और पेन्टीज की ढेरों वराइइटी थी..

एक लड़के ने नेट वाली ब्रा दिखाते हुए कहा "मैडम, ये आप पर अच्छी जँचेगी.. दिखने में भी अच्छी है और आप के साइज़ की भी है.. आप चाहें तो इसे ट्राय कर सकते है.. चैन्जिंग रूम वहाँ है" इशारे से कोने में बने छोटे कैबिन को दिखाते हुए उसने कहा

पीयूष मन ही मन सोच रहा था.. साले चूतिये.. तुझे कैसे पता की वैशाली को ये ब्रा बहोत जँचेगी??.. जैसे पीयूष के विचारों को समझ गया हो वैसे वो लड़का वहाँ से हट गया और उसकी जगह सेल्सगर्ल आ गई..

वैशाली चार ब्रा लेकर ट्रायल रूम में गई.. और पीयूष शोकेस में लटक रही.. एक से बढ़कर एक ब्रांड की ब्रा और पेंटियों को देखता रहा.. प्लास्टिक के उत्तेजक पुतलों पर चढ़ाई हुई ब्रा और पेन्टी.. पुतले के उभार इतने उत्तेजक थे की देखकर ही कोई भी मर्द लार टपकाने लगे.. अचानक पीयूष को विचार आया.. मौसम के लिए भी एक ब्रा खरीद लेता हूँ.. उसे गिफ्ट देने के लिए.. अब ये काम वैशाली के लौटने से पहले कर लेना जरूरी था

उसने जल्दी जल्दी वहाँ खड़ी सेल्सगर्ल से कहा "मैडम, आप से एक रीक्वेस्ट है"

सेल्सगर्ल ने कातिल मुस्कान देते हुए कहा "हाँ हाँ कहिए सर.. !!"

पीयूष: "मुझे अपनी गर्लफ्रेंड के लिए ब्रा खरीदनी है मगर.. !!"

सेल्सगर्ल: "शरमाइए मत सर.. मैं समझ गई.. आपकी वाइफ के आने से पहले आप खरीद लेना चाहते है.. हैं ना.. !! कोई बात नहीं.. आप सिर्फ आपकी गर्लफ्रेंड की साइज़ बताइए.. मैं अभी पेक कर देती हूँ"

"साइज़?? साइज़ का तो पता नहीं.. !!" पीयूष का दिमाग चकरा गया

"सर सिर्फ अंदाजे से बता दीजिए.. उसके अलावा तो और कोई ऑप्शन नहीं है.. " नखरीले अंदाज में मुसकुराते हुए उस लड़की ने कहा

अब पीयूष उलझ गया.. वो फ़ोटो में लगी मोडेलों को देखकर.. मौसम के बराबर चूचियों वाली तस्वीर ढूँढने लगा.. ताकि साइज़ का पता चलें.. पर दिक्कत ये थी की आजकल की सारी ब्रांडस.. बड़ी बड़ी चूचियों वाली ही मॉडेल्स पसंद करते है.. उसमे से एक की भी चूचियाँ मौसम के साइज़ की नहीं थी.. यहाँ वहाँ नजर मार रहे पीयूष की आँखें तब चमक गई.. जब उस सेल्सगर्ल ने अपना दुपट्टा ठीक करने के लिए थोड़ा सा हटाया.. और पीयूष को मौसम की साइज़ की बराबरी का कुछ दिख गया.. उस सेल्सगर्ल के संतरें देखकर पीयूष ने अंदाजा लगा लिया था.. बिल्कुल मौसम जीतने ही थे.. साइज़ और सख्ती दोनों में.. शायद उन्नीस बीस का फर्क होगा पर उतना तो चलता है.. अब दिक्कत यह थी की उस लड़की को कैसे पूछें की उसकी साइज़ क्या है?? कहीं उसने हंगामा कर दिया तो?? दुकान वाला मारते मारते घर तक छोड़ने आएगा

"हम्ममम.. " गहरी सोच का नाटक करने लगा पीयूष

"सर जल्दी बताइए.. अगर मैडम आ गई तो आपकी इच्छा अधूरी रह जाएगी" उस लड़की ने फिर से अपना दुपट्टा ठीक करते हुए पीयूष को ललचाया

वैशाली अब कभी भी बाहर आ सकती थी.. एक एक पल किंमती था..

पीयूष काउन्टर पर झुककर उस सेल्सगर्ल के थोड़े करीब आया और चुपके से बोला "मैडम, प्लीज डॉन्ट माइंड.. मेरी गर्लफ्रेंड की कदकाठी आप के बराबर ही है.. !!"

चालक सेल्सगर्ल तुरंत बोली: "समझ गई सर.. मेरी साइज़ की दो ब्रा पैक कर देती हूँ"

"वैसे कितने की होगी एक ब्रा की कीमत?" पीयूष ने पूछा

"सर बारह सौ पचास की एक" सेल्सगर्ल ने बताया..

"फिर एक काम कीजिए.. सिर्फ एक ही पीस पैक करना" पीयूष ने कहा.. उसे ताज्जुब हो रहा था.. भेनचोद.. इत्ती सी ब्रा के इतने सारे पैसे?? वैसे मौसम के अनमोल स्तनों के सामने पैसा का कोई मोल नहीं था.. वैशाली के आने से पहले पीयूष ने पेमेंट कर दिया और ब्रा का पैकेट अपनी जेब में रख दिया..

तभी वैशाली ट्रायल रूम से बाहर आई.. उसने दो ब्रा पसंद की थी.. किंमत के बारे में उस सेल्सगर्ल से तोल-मोल के बाद आखिर उसने सात सौ रुपये में दोनों ब्रा खरीद ले.. ये देखकर ही पीयूष ने अपना माथा पीट लिया.. मर्द युद्ध लड़ने में काबिल जरूर हो सकते है.. लेकिन शॉपिंग के क्षेत्र में महिलाओं की बराबरी कभी नहीं कर सकते.. उनके बस की ही नहीं होती.. मर्द जब भी कुछ खरीदने जाता है तो यह तय होता है की वो उल्लू बनकर ही लौटेगा.. फिर वो साड़ी खरीदने जाए या तरकारी..

"थेंक यू.. " कहकर वैशाली पीयूष का हाथ पकड़कर दुकान के बाहर चली गई.. अचानक उसे कुछ याद आया और वो पीछे मुड़ी..

सेल्सगर्ल: "जी मैडम बताइए.. !!"

वैशाली उसके करीब गई और कुछ बात की.. फिर पीयूष की ओर मुड़कर बोली "जरा आठ सौ रुपये देना तो मुझे.. !!"

पीयूष को आश्चर्य हुआ.. अभी भी मौसम की ब्रा के लिए १२५० का चुना लग चुका था.. अब और आठ सौ?? भेनचोद इससे अच्छा तो वो मूठ मार लेता..

"हाँ हाँ.. ये ले" कहते हुए उसने वैशाली को पैसे दीये..

अब दोनों बाहर निकले और बाइक पर बैठकर निकल गए..

वैशाली: "बाहर बैठे बैठे कितनी लड़कियों के बबले नाप लिए? सच सच बता"

पीयूष: "अरे यार किसी के नहीं देखें.. आँख बंदकर बैठा था.. वैसे तूने वो आठ सौ रुपये का क्या लिया लास्ट में?"

वैशाली: "कविता के लिए भी एक ब्रा खरीद ली.. उसे पसंद आएगी"

पीयूष: "यार फालतू में खर्चा कर दिया.. उसके पास बहोत सारी ब्रा है"

वैशाली: "अब तो खरीद भी ली.. एक काम कर.. तू पहन लेना.. हा हा हा हा.. !!"

पीयूष: "एक बात कहूँ वैशाली.. !! तेरे बबले तो बिना ब्रा के ही अच्छे लगते है मुझे.. फिजूल में इन मस्त कबूतरों के ब्रा के अंदर कैद कर लेती है तू.. "

वैशाली: "अपनी होशियार अपने पास ही रख.. बिना ब्रा के बाहर निकलूँगी तो तेरे जैसे लफंगे नज़रों से ही चूस लेंगे मेरे बॉल"

पीयूष: "लड़के देखते है तो तुम्हें भी तो मज़ा आता है ना.. !! कोई तेरे बबले देखे तो कितना गर्व महसूस होता होगा.. !! अगर कोई ना देखें तब तो तुम लोग दुपट्टा ठीक करने के बहाने दिखा दिखा कर ललचाती हो.. !!"

वैशाली: "ऐसा कुछ नहीं होता.. कोई एक-दो लड़कियां ऐसा करती होगी.. तू सब को एक तराजू में मत तोल"

पीयूष: "अब तू ही सोच.. अभी तू बिना ब्रा पहने मेरे पीछे चिपक कर बैठी होती.. तो मुझे और तेरे बबलों दोनों की कितना मज़ा आता.. !!"

वैशाली: "हाँ.. और लोग भी देख देखकर मजे लेंगे उसका क्या?? ब्रा पहनी हो तब भी ऐसे घूर घूर कर देखते है सब.. जवान तो जवान.. साले ठरकी बूढ़े भी देखते रहते है.. "

दोनों बातें करते करते घर पहुँच गए.. वैशाली अपने घर गई और पीयूष अपने घर..

दूसरे दिन मौसम के घर जाने के लिए सब साथ निकलने वाले थे.. खाना खाने के बाद वैशाली, मदन और शीला बाहर झूले पर बैठे थे.. अनुमौसी और पीयूष भी साथ बैठे थे.. पीयूष ने पिंटू को फोन किया और बताया की वो भी साथ ही चलें..

वैशाली घर के अंदर गई और वहीं से पीयूष की आवाज लगाई.. "पीयूष, जरा मुझे मदद करना.. ये अटैची मुझसे खुल नहीं रही.. "

जैसे ही पीयूष घर के अंदर गया.. वैशाली ने उसे बाहों में जकड़ लिया और पागलों की तरह चूमती रही..

पीयूष: "अरे अरे अरे.. क्या कर रही है?? पागल हो गई है क्या?"

पीयूष के लंड पर हाथ फेरते हुए वैशाली ने कहा "हाँ पीयूष.. पागल हो गई हूँ.. अब कल से ये सब बंद हो जाएगा.. इसलिए एक आखिरी बार सेलिब्रेशन करना चाहती हूँ.. ये तेरा लंड कविता रोज डलवाती होगी.. साली किस्मत वाली है.. मुझे रोज मिलता तो कितना अच्छा होता.. !!"

वैशाली के स्पर्श का जादू पीयूष के लंड पर हावी हो रहा था.. पेंट के अंदर ९० डिग्री का कोण बनाकर खड़ा हो गया था.. ऐसी सूरत में भला पीयूष वैशाली के स्तनों को कैसे भूल जाता.. वैशाली का टीशर्ट ऊपर कर उसने दोनों उरोजों को चूस लिया.. और वैशाली ने पीयूष का लंड मुठ्ठी में पकड़कर मसल दिया.. यह सारी क्रिया मुश्किल से दो मिनट तक चली होगी.. पीयूष ने अपने होंठ साफ कर लिए और लंड को ठीक से अन्डरवेर के अंदर दबा दिया.. वैशाली ने भी अपनी ब्रा और टीशर्ट ठीक कर लिए.. पीयूष बाहर चला गया.. वैशाली की इच्छा धरी की धरी रह गई.. कविता के आने से पहले आखिरी बार चुदना चाहती थी वो.. पर क्या करती.. !!

पीयूष बाहर आकर कुर्सी पर झूले के सामने बैठ गया

पीयूष: "मदन भैया.. मैं अपने दोस्त की गाड़ी लेने जा रहा हूँ.. आप चलोगे?"

मदन: "नहीं यार.. मैं आज थोड़ा थका हुआ हूँ.. "

पीयूष: "अरे ज्यादा टाइम नहीं लगेगा.. यहाँ सब्जी मार्केट के पीछे ही जाना है.. आधे घंटे में तो लौट आएंगे.. मुझे भी कंपनी मिल जाएगी.. अकेले जाने में बोर हो जाऊंगा"

शीला: "एक मिनट पीयूष.. तू मार्केट के पीछे जाने वाला है?"

पीयूष: "हाँ भाभी"

शीला: "मदन, हम दोनों साथ चलते है.. कल कविता के घर जा रहे है तो मैंने सोचा.. मौसम इतने दिनों से बीमार थी तो उसके लिए कुछ फ्रूट्स ले चलें.. सामने ही रसिक का घर है.. आज सुबह ही वो कह रहा था की उसकी बीवी रूखी ने रबड़ी बनाई है.. भैया को पसंद हो तो शाम को ले जाना.. चल तुझे मैं आज रूखी की रबड़ी खिलाती हूँ.. " कहते हुए शीला ने मदन के पैर का अंगूठा अपने पैरों से दबा दिया.. शीला ने इशारों इशारों में मदन को ललचाया..

मदन ने शीला के कान में धीरे से कहा.. " क्या सच में रूखी की रबड़ी चखने मिलेगी?? तो मैं चलूँ.." शीला घूरती हुई उसके सामने देखने लगी और मदन हंस पड़ा

"ठीक है मैडम, आपका हुक्म सर-आँखों पर.. वैशाली को भी साथ ले चलते है" मदन ने कहा

शीला: "फिर हम चार लोग हो जाएंगे.. दो ऑटो करनी पड़ेगी.. "

वैशाली: "नहीं मम्मी.. आप लोग हो आइए.. मैं यहीं बैठी हूँ.. मौसी से बातें करूंगी.. हम सब चले जाएंगे तो वो अकेली पड़ जाएगी.. !!"

शीला: "ठीक है बेटा.. तू अनु मौसी से बातें कर.. हम एकाध घंटे में लौट आएंगे.. "

पीयूष, मदन और शीला चलते चलते गली के नाके तक आए और ऑटो से पीयूष के दोस्त के घर पहुँच गए.. वापिस आते वक्त रसिक के घर के पास रुक गए.. पुरानी शैली से बना हुआ मकान था रसिक का.. पर सजावट अच्छी थी.. मदन और शीला को देखकर रसिक खुश हो गया.. रसिक के माँ-बाप ने भी बड़े प्यार से उनका स्वागत किया

रसिक: "अरे भाभी, आपने फोन कर दिया होता तो अच्छा होता.. अभी तो रबड़ी बन रही है.. थोड़ी देर लगेगी.. आप बैठिए.. फिर गरम गरम रबड़ी खाने में मज़ा आएगा.. " रसिक की बातें सुनते हुए मदन की आँखें रूखी को तलाश रही थी

मदन को यहाँ वहाँ कुछ ढूंढते हुए देखकर शीला समझ गई..

शीला: "रूखी कहीं दिखाई नहीं दे रही?"

रसिक: "वो अंदर के कमरे में है.. लल्ला को दूध पीला रही है.. चार दिन बाद आज ठीक से दूध पी रहा है मेरा बेटा.. जुकाम और बुखार की वजह से पिछले कई दिनों से ठीक से दूध नहीं पी पा रहा था..चार दिनों से माँ और बेटा दोनों परेशान हो गए थे "

ये सुनते ही मदन की दिल की धड़कन थम सी गई.. ओह्ह हो.. चार दिन से बच्चे ने दूध नहीं पिया था.. और माँ परेशान हो रही थी.. बेटा पी नहीं पा रहा था इसलिए परेशान थी या छातियों में दूध भर जाने की वजह से.. !! यार.. दो दिन पहले यहाँ आया होता तो अच्छा होता

RUKHI5

तभी रूखी बाहर आई.. आह्ह.. रूखी का रूप देखकर.. मदन और पीयूष के साथ साथ शीला भी देखती रह गई..

रूखी ने शीला की आवाज सुनी इसलीये उसने सोचा की सिर्फ वही अकेली आई होगी.. इसलिए बिना चुनरी के वो बाहर आ गई.. बाहर आने के बाद उसने मदन और पीयूष को देखा.. रूखी ने चुनरी ओढ़ रखी होती तो भी वो उसके विशाल स्तन प्रदेश को ढंकने के लिए काफी नहीं थी.. और वो अभी अभी दूध पिलाकर खड़ी हुई थी.. इसलिए ब्लाउस के नीचे के दो हुक भी खुले हुए थे.. और स्तनों की गोलाई का निचला हिस्सा.. ब्लाउस के नीचे से नजर भी आ रहा था.. ब्लाउस की कटोरी के बीच का निप्पल वाला हिस्सा.. दूध टपकने से गीला हो रखा था.. देखते ही मदन के दिल-ओ-दिमाग में हाहाकार मच गया.. बहोत मुश्किल से उसने अपने आप पर कंट्रोल रखा

रूखी: "आइए आइए साहब.. आइए पीयूष भैया.. कैसे हो भाभी?? आप सब ने तो आज इस गरीब की कुटिया पावन कर दी"

रूखी के बड़े बड़े खरबूजों जैसे उभारों को ललचाई नज़रों से देखते हुए मदन ने कहा "अरे किसने कहा की आप गरीब है.. !!"

शीला ने मदन के पैर पर हल्के से लात मारकर उसे कंट्रोल में रहने की हिदायत देते हुए बात बदल दी "अरे रूखी.. क्या अमीर क्या गरीब.. हम सब एक जैसे ही तो है.. आप लोग दूध देते हो तभी तो हम चाय पी पाते है.. " शीला ने दांत भींचते हुए मदन की ओर गुस्से से देखते हुए उसे इशारों से कहा की अपनी नज़रों से रूखी के बबला चूसना बंद कर.. उसका पति तुझे देख रहा है.. !!

शीला: "हमारे घर तो कभी रबड़ी नहीं बनती.. इसलिए तुम्हारे घर आना पड़ा.. अब बताओ गरीब हम हुए या आप?? अब बाकी बातें छोडोन और साहब को रबड़ी चखाओ.. तेरी रबड़ी खाने के लिए ही उन्हें साथ लेकर आई हूँ.. " हर एक शब्द से रूखी और मदन को झटके लग रहे थे.. इन सारी बातों से पीयूष अनजान था.. उसकी नजर तो शीला भाभी के अद्भुत सौन्दर्य पर ही टिकी हुई थी.. आखिरी बार उस सिनेमा हॉल में भाभी के भरपूर स्तनों का आनंद नसीब हुआ था.. काश एक रात के लिए भाभी अकेले मिल जाए.. मैं और भाभी.. एक कमरे में बंद.. आहाहाहा..

शीला: "मदन, तू यहीं बैठ इन सब के साथ.. मैं और पीयूष सामने मार्केट से कुछ फ्रूट्स लेकर आते है.. तब तक तू रबड़ी का मज़ा लें और रसिक भैया से बातें कर.. तब तक हम लौट आएंगे.. " शीला ने जैसे पीयूष के मनोभावों को पढ़ लिया था..

रूखी: "हाँ हाँ भाभी.. आप हो आइए.. तब तक मैं साहब को रबड़ी खिलाती हूँ"

शीला और पीयूष दोनों बाहर निकले.. रोड की दूसरी तरफ काफी रेहड़ियाँ खड़ी थी फ्रूट्स की.. पर बीच में डिवाइडर पर रैलिंग लगी हुई थी.. इसलिए आगे जाकर यू-टर्न लेकर जाना पड़े ऐसी स्थिति थी..

शीला: "पीयूष, तू गाड़ी निकाल.. हम उस तरफ जाकर आते है"

पीयूष तुरंत गाड़ी लेकर आया.. और शीला बैठ गई.. ट्राफिक कुछ ज्यादा नहीं था.. और काफी अंधेरा था.. कुछ जगह स्ट्रीट-लाइट बंद थी इसलिए वहाँ काफी अंधेरा लग रहा था.. उस अंधेरी जगह से जब गाड़ी गुजर रही थी तब शीला ने पीयूष का हाथ गियर से हटाते हुए अपने दायें स्तन पर रख दिया और अपना हाथ उसके लंड पर.. और बोली "ये गियर तो ठीक से काम कर रहा है ना.. !!"

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पीयूष एक पल के लिए सकपका गया और शीला की तरफ देखता ही रहा

शीला: "उस दिन मूवी देखकर लौटें और तू चाबी देने आया था.. उसके बाद तो तू जैसे खो ही गया.. पहले तो रोज छत से मेरे बबलों को तांकता रहता था.. अब तो वो भी बंद कर दिया"

पीयूष बेचारा हतप्रभ हो गया.. शीला भाभी के इस आक्रामक हमले को देखकर.. सिर्फ पाँच मिनट जितना ही वक्त था दोनों के पास.. उसमे भी शीला भाभी ने पंचवर्षीय योजना जितना निवेश कर दिया.. लंड पर भाभी का हाथ फिरते ही उनके स्तनों पर पीयूष की पकड़ दोगुनी हो गई..

"भाभी, आप को तो रोज सपने में चोदता हूँ.. आपका खयाल आते ही मेरा उस्ताद टाइट हो जाता है.. आप तो जीती-जागती वायग्रा की गोली हो.. पर पहले आप अकेली थी.. अब तो मदन भैया और वैशाली दोनों है.. इसलिए मैं क्या करूँ?? मन तो बहोत करता है मेरा.. !!"

शीला: "अरे पागल.. मौका ढूँढना पड़ता है.. वो ऐसे तेरी गोद में पके हुए फल की तरह नहीं आ टपकेगा.. देख.. मैंने कैसे अभी मौका बना लिया.. !! मदन को रूखी की छाती से लटकाकर.. !! हा हा हा हा.. !!"

"भाभी.. ब्लाउस से एक तो बाहर निकालो... तो थोड़ा चूस लूँ.. अब तो रहा नहीं जाता" स्तनों को मजबूती से मसलते हुए पीयूष ने कहा

"आह्ह.. ये ले.. जल्दी करना.. कोई देख न ले.. " शीला ने अपनी एक कटोरी से स्तन को बाहर खींच निकाला.. पीयूष ने तुरंत गाड़ी को साइड में रोक लिया.. अंधेरे में हजार वॉल्ट के बल्ब की तरह शीला की चुची जगमगाने लगी.. पीयूष ने झुककर शीला की निप्पल को मुंह में लेकर चूसना शुरू कर दिया.. चटकारे लेते हुए.. और कहा "भाभी.. इसे खुला ही छोड़ दो.. जब तक हम वापिस न लौटें.. तब तक मैं इसे देखते रहना चाहता हूँ.. कितना मस्त है यार.. !!"

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शीला: "आह्ह पीयूष.. मदन के आने के बाद अपने बीच सब कुछ बंद हो गया.. मुझे भी सारी पुरानी बातें बड़ी याद आती है.. तू कुछ सेटिंग कर तो हम दोनों बाहर कहीं मिलें.. !!"

पीयूष: "वो तो बहोत मुश्किल है भाभी.. पर फिर भी मैं कुछ कोशिश करता हूँ"

शीला का एक स्तन बाहर ही लटक रहा था जिसे उसने अपने पल्लू से ढँक दिया था..इस तरह की साइड से पीयूष उसे देख सकें.. पीयूष अब बड़े ही आराम से और धीमी गति से गाड़ी चला रहा था.. थोड़े थोड़े अंतराल पर वो भाभी के इस अर्ध-आवृत गोलाई को नजर भर कर देख लेता और खुद ही अपने लंड को भी मसल लेता..

लंबा राउन्ड लगाकर उसने यू-टर्न लिया और कार के सेब वाले की रेहड़ी के पास रोक दी.. शीला ने अपनी खुली हुई चुची को ब्लाउस के अंदर डाल दिया.. ब्लाउस के हुक बंद किए और उतरकर दो किलो सेब खरीदें.. वो वापिस गाड़ी में बैठ गई.. जिस लंबे रास्ते आए थे उसी रास्ते पर पीयूष ने गाड़ी को फिर से मोड लिया.. और उस दौरान.. शीला ने जिद करके पीयूष का लंड बाहर निकलवाया और ड्राइव करते पीयूष का लंड झुककर चूस भी लिया.. रसिक का घर नजदीक आते ही शीला ठीक से बैठ गई.. गाड़ी पार्क करते ही पीयूष ने पहले तो अपना लंड पेंट के अंदर डालकर चैन बंद कर ली और फिर हॉर्न बजाकर मदन को बाहर बुलाया..

मदन बाहर आता उससे पहले शीला आगे की सीट से उठकर पीछे बैठ गई.. ताकि मदन को किसी भी तरह का कोई शक होने की गुंजाइश न रहे

मदन बाहर आया और पीयूष के बगल की सीट पर बैठते हुए बोला "वाह.. मज़ा आ गया.. कितने सालों के बाद रबड़ी का स्वाद मिला.. वहाँ अमेरिका में भी पेक-टीन में रबड़ी मिलती थी.. पर स्वाद बिल्कुल भी नहीं.. आज तो दिल खुश हो गया मेरा शीला.. "

शीला: "टीन की रबड़ी क्यों खाता था तू?? वो मेरी बनाकर नहीं खिलाती थी तुझे रबड़ी??"

पीयूष: "ये मेरी कौन है मदन भैया??" स्वाभाविक होकर पूछे सवाल के बाद अचानक पीयूष को उस रात मदन के लैपटॉप में देखे हुए वीडियोज़ याद आ गये..

मदन: "अरे कोई नहीं है यार.. ये तेरी भाभी फालतू में मुझ पर शक करती है.. दरअसल जहां मैं पेइंग गेस्ट बनकर रहता था उसकी मालकिन थी वो.. हम दोनों अच्छे दोस्त थे.. इसलिए शीला मुझे ताने मारती रहती है.. "

शीला: "हाँ पीयूष.. मदन और मेरी के बीच तो रबड़ी खिलाने वाले संबंध नहीं थे.. वैसे मेरा ये मानना है की एक जवान पुरुष और औरत कभी सिर्फ दोस्त नहीं हो सकते.. वो या तो प्रेमी हो सकते है या अपरिचित.. जवान जोड़ों के बीच अगर कोई सामाजिक संबंध न हो तो सिर्फ एक ही संबंध होने की संभावना होती है.. !!"

मदन: "यार तू पागलों जैसी बात मत कर.. अब पहले जैसा नहीं है.. मर्द और औरत सिर्फ दोस्त भी तो हो सकते है.. अरे विदेश में तो कपल्स बिना शादी किए मैत्री-समझौता कर साथ में खुशी खुशी रहते भी है और सेट ना हो तो अलग भी बड़े आराम से हो जाते है.. "

शीला: "तो तुझे क्या लगता है.. उस दौरान दोनों के बीच शारीरिक संबंध नहीं बनते होंगे??"

शीला: "अरे भाभी.. मैत्री-समझौते में तो सब कुछ होता है.. सेक्स भी"

शीला: "अच्छा.. !! मतलब दोस्ती यारी में सेक्स की इजाजत भी होती है.. !! दो लोग अपनी सहमति से सेक्स करें उसे आप लोग मैत्री का नाम देते हो.. तो फिर उसमें और शादी में क्या अंतर?"

मदन: "तू समझ ही नहीं रही.. अब तुझे कैसे समझाऊँ.. !!"

शीला: "कुछ समझना नहीं है मुझे.. सब समझ आता है मुझे.. मैंने भी ये बाल धूप में सफेद नहीं किए है.. "

पति पत्नी की इस नोंक-झोंक को सुनते हुए पीयूष गाड़ी चला रहा था.. वैसे शीला की बात से वो सहमत था.. दुनिया को उल्लू बनाने के लिए स्त्री और पुरुष उनके गुलछर्रों को मित्रता का नाम दे देते है.. !!

मज़ाक-मस्ती और हल्की-फुलकी बातें करते हुए तीनों घर पहुँच गए..


उस रात.. खरीदी हुई ब्रा ट्राय करते वक्त वैशाली ने पीयूष को बहोत याद किया.. काफी सारे हॉट मेसेज भेजें चैट पर.. सुबह जल्दी उठना था इसलिए दोनों ने एक दूसरे को गुड नाइट विश किया और सो गए..
क्या अद्भुत लिखते हैं वखारिया भाईएक महीने बाद कल साईट पर आया। कल से लगातार सारे अपडेट पढ़ डाले। ऐसे ऐसे प्लॉट कहाँ से लाते है भाई। आप विशेष लेखक है। इतनी सुंदर कहानी के लिए आभार।
 

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इस तरफ अनुमौसी ने रसिक को सारी बात कर दी थी.. बता दिया था की अब वो अगले रविवार को जाएंगे क्योंकी इस रविवार को कविता अपने मायके जाने वाली है.. आज अनुमौसी ने शीला के घर सोने का सेटिंग कर दिया.. सिर्फ औपचारिकता के लिए उसने चिमनलाल को साथ चलने के लिए कहा.. पर उन्होंने मना कर दिया.. जब बेटिंग करनी ही न हो तब पिच पर जाकर क्या फायदा.. !!

मौसी को उससे कोई फरक नहीं पड़ा.. वो तो उल्टा खुश हो गई.. अब आराम से वो रसिक के साथ अपनी मर्जी से जो चाहे कर सकती थी.. वैसे अगर चिमनलाल साथ आए होते तो भी उसे दिक्कत नहीं थी.. वो जानती थी की चिमनलाल की नींद इतनी गहरी थी की अगर वो उनके बगल में लेट कर रसिक से चुदवा लेती तो भी उन्हें पता नहीं चलता..


रसिक के लिए सुबह जल्दी उठना था इसलिए मौसी निश्चिंत होकर सो गई..

दूसरी सुबह रसिक ने मौसी को, कविता के साथ सेटिंग हो जाने की आशा से, ज्यादा मजे से रौंदा.. और कुछ नई हकतें कर उन्हें हवस से पागल कर दिया.. रसिक जैसे जैसे अनुमौसी के भूखे शरीर को नए नए तरीकों से चोदता गया.. वैसे वैसे अनुमौसी रसिक को पाने के लिए ज्यादा रिस्क लेने के लिए ओर भी तत्पर हो रही थी.. मौसी को रसिक के साथ संभोग से जो आनंद मिल रहा था, जीवन का एक ऐसा नया अनुभव था.. जो आज तक उन्हें कभी नसीब नहीं हुआ था.. उसमें भी रसिक जिस तरह की कामुक बातें करते हुए उन्हें चोदता.. आहाहाहाहा.. उन्हें तो मज़ा ही आ जाता..!!

मौसी को धक्के लगाते हुए रसिक ने कहा "मौसी, मेरा तो मन कर रहा है की एक पूरा दिन आपकी टांगों के बीच ही बिताऊँ.. ये सारे झांटें साफ करके आपकी चूत की एकदम चिकनी चमेली बना दूँ.. और फिर चाटता रहूँ" ऐसी ऐसी बातें कर वो मौसी का मन लुभाता


चिमनलाल ने कभी ऐसा कुछ भी मौसी के साथ नहीं किया था.. करने की तो बात दूर.. कभी ऐसा कहा भी नहीं था.. चालीस सालों में मौसी ने कभी चिमनलाल को गाली देते हुए नहीं सुना था.. जब की रसिक तो खुलेआम भेनचोद-मादरचोद जैसे शब्द बोलता रहता.. उनकी उत्तेजना को बढ़ाने में रसिक की गालियां चाट-मसाले का काम करती.. रसिक ने उन्हें ऐसे अलग अलग तरीकों से मज़ा दिया था जो वो कभी भूलने नहीं वाली थी.. पसंद आ गया था रसिक उन्हें.. उसका मजबूत मोटा लंड.. उसका कसरती शरीर.. और उसकी चाटने की कला.. मौसी तो जैसे उसकी कायल हो चुकी थी

कहते है ना.. दिल लगा गधी से तो परी क्या चीज है.. !!

मौसी ने तय कर लिया था.. अब वो रसिक को किसी भी चीज के लिए मना नहीं करेगी..

कोई कुछ भी कहें.. सेक्स हमेशा से मानवजात के लिए रोमांच, उत्तेजना, आनंद और जीवन-मरण का विषय रहा है.. अच्छे से अच्छे लॉग.. कितने भी संस्कारी और खानदानी क्यों न हो.. इसके असर से बच नहीं पाए है.. ये स्प्रिंग तो ऐसी है जिसे जितना दबाओ उतना ही ज्यादा उछलती है.. सब से उत्तम रास्ता है की सेक्स को संतुलित मात्रा में भोगकर संतोष करना चाहिए.. "युक्तआहार विहारस्य" मतलब सब कुछ कंट्रोल में होना चाहिए.. और मर्यादा में.. सेक्स की भावनाओ को जितना साहजीकता से स्वीकार कर ले उतना वो काम परेशान करती है..

रसिक अपनी लीला करके मौसी को तृप्त करने के बाद.. दूध देकर चला गया उसके बाद मौसी को पता चला की कविता और पीयूष का प्रोग्राम तो केन्सल हो चुका है.. वो अपना सर पकड़कर बैठ गई.. इसका मतलब तो ये हुआ की अब कविता अगले रविवार को जाएगी.. !! फिर तो हमें प्रोग्राम इसी शनि-रवि को सेट करना होगा.. पर मैंने तो इस हफ्ते के लिए रसिक को पहले से मना कर रखा है.. अब क्या करूँ? रसिक को फोन करूँ?

मौसी ने रसिक को फोन लगाया और रसिक को प्रोग्राम चेंज करने के लिए कहा.. पर रसिक ने बताया की मौसी ने इस रविवार के लिए मना किया इसलिए उसने शहर से बाहर जाने का तय किया था.. अब तो इस शनि-रवि को उसका आना मुमकिन नहीं था.. !! मौसी निराश हो गई.. लाख मनाने पर भी रसिक नहीं माना.. रसिक ने कहा की वो सिर्फ आज का दिन शहर में था.. अगर शीला भाभी के घर कुछ सेट हो सके तो करें.. बाकी वो कल सुबह से बाहर निकल जाने वाला था..

मौसी का दिमाग काम नहीं कर रहा था.. इतनी अच्छी योजना पर पानी फिर गया था.. रसिक को बाद में फोन करने की बात कहकर वो शीला के घर से अपने घर चली गई.. जब वो घर के अंदर आई तब कविता किचन में खाना बना रही थी.. मौसी बाहर बरामदे में झूले पर बैठ गई.. वो झूला झूल रही थी तभी रसिक का फोन आया.. बाहर तेज धूप थी इसलिए स्क्रीन पर रसिक का नाम उन्हें दिखाई नहीं दिया.. उन्होंने सीधा फोन उठा लिया.. रसिक की आवाज सुनते ही उन्हों ने उसे होल्ड करने को कहा.. और उससे बात करने के लिए छत पर चली गई

किचन से कविता अपनी सास की सारी हरकतें देख रही थी.. अचानक ऐसा क्या हुआ जो वो झूले से उठकर छत पर चली गई? वो भी इस वक्त? जरूर रसिक का फोन होगा.. अब वो दोनों क्या खिचड़ी पका रहे है ये जानना बेहद आवश्यक था कविता के लिए.. क्यों की वो लॉग जो भी प्लान कर रहे थे वो उसके बारे में ही तो था

मौसी सीढ़ियाँ चढ़ते चढ़ते सोच रही थी.. चिमनलाल दुकान के काम से बाहर थे और कल आने वाले थे.. पीयूष भी सुबह बताकर गया था की आज उसे देर होगी ऑफिस में.. मौसी के मन मे खयाल आया की क्यों न यहीं घर पर ही प्लान को अंजाम दिया जाए.. !! उनके घर पर कोई नहीं होगा कविता के अलावा और शीला का घर भी खाली था.. आदिपुर जाकर जो करना था वो तो अब यहीं हो सकता था..

इस बारे में वो रसिक के साथ चर्चा करने लगी.. सीढ़ियों पर छुपकर खड़ी कविता अपनी सास की बातें सुनने का प्रयत्न कर रही थी.. ठीक से सुनाई नहीं दे रहा था पर इतना तो समझ गई की दोनों ने नए सिरे से कुछ योजना बनाई थी.. आखिर में उसने अनुमौसी को आइसक्रीम के बारे में बात करते हुए सुना.. कविता भी सोच में पड़ गई.. की वो किस बारे में बात कर रही थी और आइसक्रीम का जिक्र क्यों किया?? कहीं मम्मी जी ने मुझे फँसाने का प्लान तो नहीं बनाया?? इस वक्त तो शीला भाभी उसकी मदद के लिए नहीं थी.. और पीयूष भी आज देर रात तक या फिर कल सुबह तक नहीं आने वाला था.. कविता अब अकेली पड़ गई थी..

जैसे जैसे शाम ढलती गई.. कविता की घबराहट बढ़ती गई.. शाम का खाना भी उसने ठीक से नहीं खाया.. मौसी ने भी तबीयत का बहाना बनाकर ज्यादा नहीं खाया.. रात के आठ बजे थे और सास-बहु दोनों टीवी पर सीरीअल देख रही थी.. दोनों में से किसी का भी ध्यान टीवी में नहीं था..

घड़ी में नौ बजते ही.. मौसी अचानक उठी.. और घर के बाहर चली गई.. थोड़ी देर बाद जब वो वापिस लौटी तब उनके हाथ में आइसक्रीम के दो कप थे..

"मैंने कहा था ना तुझे की तबीयत ठीक नहीं है मेरी.. सुबह से ऐसीडीटी हो गई है.. छाती में जल रहा था मुझे.. तो बगल वाली दुकान से आइसक्रीम ले आई.. ले बेटा.. एक आइसक्रीम तू खा ले.. " कहते हुए मौसी ने एक कप कविता को थमाकर दूसरे कप से आइसक्रीम खाना शुरू कर दिया

आइसक्रीम को देखते ही कविता चौकन्नी हो गई.. कहीं ये दोनों मुझे आइसक्रीम में कुछ मिलाकर तो नहीं दे रहे? हे भगवान, अब.. !! मुझे बेहोश करके मेरे साथ कोई गंदी हरकत करने का तो नहीं सोचा होगा ना.. !! कविता पढ़ी लिखी और चालाक थी.. वो आइसक्रीम का कप लेकर किचन में गई.. और बर्तन माँजते हुए आइसक्रीम के कप को सिंक में खाली कर दिया.. बाहर आकर उसने ऐसा ही जताया की बर्तन माँजते माँजते उसने आइसक्रीम खा लिया था..

ये सुनते ही मौसी के चेहरे पर चमक आ गई.. सब कुछ उनके और रसिक के प्लान के मुताबिक चल रहा था.. उन्हों ने एक दो बार कविता को पूछा भी.. "बेटा, तुझे अगर नींद आ रही हो तो सो जा.. !!" अब कविता को यकीन हो गया.. मम्मी जी बार बार उसे सो जाने के लिए क्यों कह रही थी.. उसे विचार आया.. की झूठ मूठ सो जाती हूँ.. फिर देखती हूँ की क्या होता है!!

कविता बेडरूम में सोने के लिए गई तो मौसी भी उसके पीछे पीछे चली आई.. "मुझे भी नींद आ रही है.. आज तू अकेली है तो मैं भी तेरे साथ सो जाती हूँ.. " उन्हें मना करने का कविता के पास कोई कारण नहीं था..

सास और बहु एक ही बिस्तर पर लेटे हुए बातें करने लगे..

मौसी: "कविता बेटा.. अब पीयूष और तेरे बीच कोई तकलीफ तो नहीं है ना.. !! सब ठीक चल रहा है?"

कविता: "हाँ मम्मी जी.. सब ठीक चल रहा है.. वो तो हमारे बीच थोड़ी गलतफहमी थी जो दूर हो गई.. अब कोई प्रॉब्लेम नहीं है"

अनुमौसी: "चलो अच्छा हुआ.. अब तो यही आशा है की जल्दी से तेरी गोद भर जाएँ.. और हमें खेलने के लिए एक खिलौना मिल जाएँ.. बूढ़े माँ बाप को और क्या चाहिए.. !!"

सुनकर कविता शरमा गई.. मम्मी जी की बात तो सही थी पर अभी इस बारे में उसने या पीयूष ने सोचा नहीं था..

थोड़ी देर तक यहाँ वहाँ की बातें कर कविता ऐसे अभिनय करने लगी जैसे वो सो रही हो.. उसने अनुमौसी की बातों का जवाब देना ही बंद कर दिया ताकि उन्हें यकीन हो जाए की वो गहरी नींद सो गई थी..

कविता को सोता हुआ देख मौसी का चेहरा आनंद से खिल उठा.. तसल्ली करने के लिए उसने दो-तीन बार कविता को कुछ पूछा पर कविता ने जवाब नहीं दिया.. एक बार उसे कंधे से हिलाकर भी देखा पर कविता ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.. वो सोने का नाटक करती रही

मौसी बिस्तर से उठी और चुपके से दरवाजा खोलकर बाहर निकली.. वो घर के बाहर बरामदे में जाकर फोन पर बात करने लगी.. उनके पीछे पीछे कविता भी गई और चुपके से उनकी बातें सुनने लगी..

"हाँ.. सब हो चुका है प्लान के मुताबिक.. मैंने दरवाजा खुला ही छोड़ रखा है.. अब तू आजा.. !! आइसक्रीम खाते ही वो सो गई.. तू आकर अपना काम कर ले और जल्दी निकल जाना.. वैसे कविता कब तक बेहोश रहेगी??" सुनकर कांप उठी कविता.. !! अब क्या होगा?? उसका दिल किया की घर से भाग जाएँ.. !! पर इतनी रात को वो जाए तो जाए कहाँ.. अब रसिक के हाथों से उसे कोई बचाने वाला नहीं था..

कविता चुपचाप बेड पर आकर सो गई.. और मौसी के आने से पहले खर्राटे मरने लगी.. मौसी ने आकर कविता को एक बार फिर जगाने की कोशिश की.. पर अब वो कहाँ जागने वाली थी?? उसने तो अपना अभिनय जारी रखा

कविता को बेहोश देखकर मौसी के चेहरे पर कामुक मुस्कान आ गई.. मौसी ने अपनी साड़ी उतार दी.. कविता ने हल्के से आँख खोलकर उन्हें देखा.. लटका हुआ बेढंग पेट.. और घाघरे के अंदर लटक रहे बूढ़े कूल्हें.. ब्लाउस और घाघरे में तो कविता ने मौसी को काफी बार देखा था.. पर जैसे ही मौसी ने अपने ब्लाउस के सारे हुक खोल दीये.. उनके बिना ब्रा के निराधार स्तन लटकने लगे.. देखकर कविता शरमा गई.. कविता सोच रही थी की मम्मी जी घाघरा ना उतारें तो अच्छा वरना मैं सच में बेहोश हो जाऊँगी..!!

अचानक घर का दरवाजा बंद होने की आवाज आई.. कविता के दिल की धड़कनें तेज हो गई.. उसने अपनी आँखें बंद कर ली.. पर आँख बंद कर लेने से वास्तविकता से वो कहाँ बचने वाली थी?? रसिक कमरे मे आया और मौसी के साथ बात करने लगा

"सब कुछ ठीक ठाक है ना मौसी? कहीं कोई गड़बड़ तो नहीं है ना??"

"हाँ हाँ सब ठीक है.. तू खुद चेक कर ले.. बेहोश पड़ी हुई है.. "

रसिक ने कविता की ओर देखा और उसके कोमल गोरे गालों को सहलाने लगा.. रसिक के स्पर्श से कविता सहम गई.. खुरदरी उंगलियों की रगड़ उसे बेहद घिनौनी लग रही थी..

अपनी मर्जी से किसी भी पुरुष के साथ.. फिर चाहे वो उसका पति ना भी हो.. औरत निःसंकोच पैर चौड़े कर सकती है.. पर उसकी मर्जी के खिलाफ अगर कोई उसे छु भी ले तो वो बर्दाश्त नहीं करती..

"आह्ह मौसी.. कितनी नाजुक और कोमल है आपकी बहु रानी.. !! गोरी गोरी.. अब तो अगर ये होश में आ भी गई तो भी मैं इसे नहीं छोड़ूँगा.. कितने दिनों से इसे देखकर तड़प रहा हूँ"

रसिक के लंड की हालत देखकर मौसी समझ गई की कविता के कमसिन जवान बदन का जादू उस पर छाने लगा था.. वरना मौसी को नंगा देखने के बावजूद भी इतना कडा कभी नहीं हुआ था रसिक का..

"जल्दबाजी मत करना रसिक.. कुछ ऊपर नीचे हो गया तो तेरे हाथ कुछ नहीं लगेगा..और मेरी भी इज्जत की धज्जियां उड़ जाएगी "

"अरे मौसी.. ऐसे छातियाँ खोलकर रात को दस बजे अपने बेटे की जोरू को.. मुझ जैसे गंवार के लिए तैयार रखे हुए हो.. और इज्जत की बात कर रही हो??" कहते हुए रसिक ने हँसते हँसते अनुमौसी को सुना दी..

अपना लंड खोलकर मौसी को थमाते हुए रसिक बोला "ये लीजिए मौसी.. जितना दिल करे खेल लीजिए आज तो.. तब तक मैं आपकी बहु को आराम से.. अपने तरीके से देख लूँ"



रसिक ने झुककर कविता के गालों को चूम लिया.. कविता का दिल धक धक कर रहा था..

रसिक का लंड मुठ्ठी में दबाकर आगे पीछे हिलाते हुए वासना में अंध सास ने अपनी जवान बहु को इस कसाई के हाथों बलि चढ़ा दिया था..



कविता मन ही मन प्रार्थना कर रही थी की ये समय जल्दी से जल्दी बीत जाए.. पर समय तो अपनी गति से ही चलने वाला था..

करवट लेकर सोई कविता को रसिक ने पकड़कर सीधा कर दिया.. सब से पहले तो उसने ड्रेस के ऊपर से ही कविता के बबलों को पकड़कर मसल दिया.. रसिक के विकराल हाथों तले कविता की चूचियाँ ऐसे दबी जैसे हाथी के पैरों तले गुलाब के फूल दब गए हो.. और स्तन होते भी बड़े नाजुक है..



कविता के सुंदर स्तनों का स्पर्श होते ही रसिक का लंड डंडे जैसा सख्त हो गया..

"हाय.. कितना कडक हो गया है तेरा आज तो.. डाल दे मेरे अंदर.. तो थोड़ा सा नरम हो जाएँ.. वरना ये तेरी नसें फट जाएगी" पर रसिक को आज अनुमौसी में कोई दिलचस्पी नहीं थी.. जब इंग्लिश शराब सामने पड़ी हो तब भला देसी ठर्रा कौन पिएगा?? एकटक वो कविता की छातियों को साँसों के साथ ऊपर नीचे होते हुए देखता रहा.. कभी वो अपनी पूरी हथेली से स्तनों को नापता.. तो कभी उसकी गोलाइयों पर हाथ फेरता.. रसिक जैसे कविता के जिस्म के जादू में खो सा गया था..

आँखें बंद कर पड़ी हुई कविता प्रार्थना कर रही थी की कोई मुझे बचा लो.. !!

अनुमौसी को तो रसिक का लंड मिल गया.. इसलिए उनका सारा ध्यान उससे खेलने में ही था.. उन्हें कोई परवाह नहीं थी की रसिक कविता के साथ क्या कर रहा था.. कभी वो अपनी निप्पलों से लंड को रगड़ती.. कभी चमड़ी को पीछे धकेलकर उसके टमाटर जैसे सुपाड़े को चूम लेती.. तो कभी उसके अंडकोशों को सहलाती.. जैसे जैसे वो लंड के साथ खेलती गई.. वैसे वैसे उत्तेजना के कारण उनकी सांसें और भारी होती गई..

रसिक ने कविता की छाती से दुपट्टा हटा दिया.. "आहहाहाहाहा.. " उसका दिल बाग बाग हो गया.. रोज सुबह.. जिन स्तनों को नाइट ड्रेस के पीछे छुपा हुआ देखकर आहें भरता था.. आज वही स्तन उसके सामने थे.. नजदीक से तो और सुंदर लग रहे थे.. वो जल्दबाजी करना नहीं चाहता था.. आराम से इन सुंदर स्तनों का लुत्फ उठाना चाहता था..

कविता सोच रही थी की अगर मैं होश में होती तो मजाल थी रसिक की जो मेरे सामने आँख उठाकर भी देखता.. !! ये तो मेरे घर के बुजुर्ग ने ही मेरी इज्जत नीलाम कर दी.. अपनी सास को मन ही मन कोसने लगी वो.. घर को लगा दी आग.. घर के ही चिरागों ने.. !!

ड्रेस का पहला हुक खुलते ही कविता रोने जैसी हो गई.. मौसी ने लाइट भी चालू रखी थी.. क्यों की रसिक ने ऐसा करने को कहा था.. वैसे मौसी तो लाइट को बंद करना चाहती थी पर रसिक तो उजाले में ही कविता के स्तनों के जलवे देखना चाहता था.. हमेशा देहाती बबलों से ही खेलता रहा रसिक.. आज शहरी मॉडर्न स्तनों को खोलकर देखने वाला था..

कविता ने बिल्कुल हल्की सी आँख खोल रखी थी.. उसे सिर्फ दो साये नजर आए.. मौसी घुटनों के बल बैठी हुई थी और रसिक का लंड निगल चुकी थी.. उसे रसिक का लंड देखना था पर वो तो अभी उसकी सास के मुंह के अंदर था.. !! बड़े ही मजे से अनुमौसी रसिक का लंड चूस रही थी.. कविता की तरफ अब रसिक की पीठ थी.. जो पसीने से तर हो चुकी थी.. कविता सोच रही थी की ज्यादा गर्मी तो थी नहीं तो फिर रसिक को इतना पसीना क्यों आ रहा था??

"रसिक, तू सारे कपड़े उतार दे.. तुझे नंगा देखना चाहती हूँ" रसिक का लंड मुंह से निकालकर मौसी ने कहा

"आप भी अपना घाघरा उतार दीजिए मौसी.. दोनों नंगे हो जाते है.. " रसिक ने फटाफट अपने कपड़े उतार फेंके.. दोनों जांघों के बीच झूल रहे उस शानदार लंड को और उसके तगड़े सुपाड़े को देखकर मौसी की सिसकियाँ निकलने लगी.. "कितना बड़ा है रे तेरा!! रूखी भी पागल है.. इतना मस्त लोडा छोड़कर दूसरों के लेने जाती है.. !!"

"मौसी, मैं कविता को भी नंगी देखना चाहता हूँ.. कुछ कीजिए ना.. " मौसी को आगोश में दबाते हुए उसका लंड भोसड़े पर रगड़ते हुए रसिक ने कहा.. उसके स्पर्श से मौसी की वासना चौगुनी हो गई.. रसिक की पीठ पर हाथ फेरते हुए.. उसके कंधों पर लगे पसीने को चाटकर.. अपने भोसड़े के द्वार पर दस्तक देते गरम लंड को घिसते हुए.. कुछ कहा नहीं.. वो सोच रही थी.. बेहोशी की इस हालत में कविता को नंगी कैसे कर दूँ?? अगर उसे होश आ गया तो?? शायद दवाई के असर के कारण वो होश में न भी आए.. पर अपने बेटे की पत्नी को अपनी नजरों के सामने नंगा होते देखूँ?? कविता ने मेरे सामने कभी अपनी छाती से पल्लू भी नहीं हटने दिया.. खैर.. अभी तो वो बेहोश है.. उसे कहाँ पता चलेगा की मैं ही उसके साथ ये सब कर रही हूँ.. !! आज बढ़िया मौका मिला है.. रसिक को हमेशा के लिए अपना बनाने का.. रसिक को बेहोश कविता के साथ जो मर्जी कर लेने देती हूँ.. इतना साहस करते हुए यहाँ तक आ ही गए है.. तो ये भी हो जाने देती हूँ.. किसी को कहाँ कुछ पता चलने वाला है.. !!

मौसी ने रसिक को इस तरह खड़ा कर दिया की उसका लंड बिल्कुल कविता के मुंह के सामने आ गया.. बस एक फुट का अंतर होगा.. हल्की सी आँख खोलकर ये सब चुपके से देख रही कविता की आँख थोड़ी सी ज्यादा खुल गई.. और रसिक के खूंखार लंड को एकदम निकट से देख सकी.. ये एक ऐसा नजारा था जो कविता देखना तो नहीं चाहती थी.. पर एक बार रसिक के तगड़े लंड को देखकर नजरें हटाना मुश्किल था.. इतना विकराल और मोटा लंड था.. पीयूष का लंड तो उसके आगे बाँसुरी बराबर था.. कविता सोच रही थी की ऐसा लंड जब अंदर जाएगा तो क्या हाल होता होगा.. !! अनुमौसी ने पकड़कर रसिक के लंड को नीचे की तरफ दबाया तो वो वापिस स्प्रिंग की तरह उछलकर ऊपर आ गया.. देखते ही कविता के जिस्म में एक मीठी से सुरसुरी चलने लगी..

मौसी ने फिर से रसिक के सुपाड़े को चूम लिया.. "ओह रसिक.. बड़ा जालिम है तेरा ये मूसल.. आह्ह" कहते हुए वो पूरे लंड को चाटने लगी.. रसिक का लंड अब मौसी की लार से सन चुका था.. गीला होकर वो काले नाग जैसा दिख रहा था.. पूरा दिन भजन गाती रहती अपनी सास को.. इस देहाती गंवार का लंड बेशर्मी से चाटते हुए देखकर कविता को कुछ कुछ होने लगा.. अपनी सासुमाँ का नया स्वरूप देखने मिला उसे.. बेशर्म और विकृत.. !!

कविता को पसीने छूटने लगे.. सासुमाँ की लार से सना हुआ रसिक का लंड.. ट्यूबलाइट की रोशनी में चमक रहा था.. कविता की कलाई से भी मोटा लंड जब अनुमौसी ने मुंह में लिया तब ये देखकर कविता की चूत पसीज गई.. पेन्टी का जो हिस्सा उसकी चूत की लकीर से चिपका हुआ था.. वो चिपचिपा और गीला हो गया.. उत्तेजना किसी की ग़ुलाम नहीं होती..

एक के बाद एक कविता के ड्रेस के हुक खोलने कलगा रसिक.. उस दौरान मौसी पागलों की तरह रसिक के सोंटे को चूस रही थी.. ड्रेस खुलते ही अंदर से सफेद जाली वाली ब्रा.. और बीचोंबीच नजर आती गुलाबी निप्पल.. देखते ही रसिक के लंड ने मौसी के मुंह में वीर्य की पिचकारी छोड़ दी.. मौसी को ताज्जुब हुआ.. खाँसते हुए उन्हों ने लंड मुंह से बाहर निकाला.. मौसी को खाँसता हुआ सुनकर कविता समझ गई की क्या हो गया था.. !!


मुंह में पिचकारी मारने की पुरुषों की आदत से कविता को सख्त नफरत थी.. जब कभी पीयूष ने ऐसा किया तब कविता उसे धमका देती.. ब्लू फिल्मों में देखकर जब पीयूष वहीं हरकत कविता के साथ करने की जिद करता तब वो साफ मना कर देती और कहती "तेरा लंड अगर इस ब्लू फिल्म के अंग्रेज की तरह गोरा-गुलाबी होता तो शायद मैं मान भी जाती.. ऐसे काले लंड को चूस लेती हूँ..वही बहोत है.. "

अनुमौसी का भोसड़ा भूख से तड़प रहा था.. और रसिक की पिचकारी निकल गई.. पर अभी उस पर गुस्सा करने का वक्त नहीं था.. मुंह फेरकर उन्होंने पास पड़े कविता के दुपट्टे से रसिक का वीर्य पोंछ दिया और अपनी भोस खुजाते हुए रसिक के लोड़े को प्यार करने लगी.. अभी तक स्खलन के नशे से रसिक का लंड उभरा नहीं था.. रह रहकर डिस्चार्ज के झटके खा रहा था..

मौसी इतनी गरम हो चुकी थी की उनका ध्यान केवल रसिक के लोड़े को फिर से जागृत करने में लग गया था.. रसिक कविता के बदन में ऐसा खो चुका था के आसपास के वातावरण को भूलकर.. सफेद रंग की ब्रा के ऊपर से कविता के अमरूद जैसे स्तनों को अपने खुरदरे हाथों से मसल रहा था.. उसके स्तनों की साइज़ और सख्ती देखकर रसिक सांड की तरह गुर्राने लगा.. अभी डिस्चार्ज होने के बावजूद वो उत्तेजित हो गया..

थोड़ी सी आँख खोलकर कविता, सासुमाँ और रसिक की कामुक हरकतों को देख रही थी.. इसका पता न मौसी को था और न ही रसिक को.. मौसी का सारा ध्यान रसिक के लंड पर था और रसिक का सारा ध्यान कविता की चूचियों पर.. रसिक अब कविता की चिकनी कमर.. हंस जैसी गर्दन और गोरे चमकीले गालों पर चूम रहा था.. कविता की नाभि में बार बार अपनी जीभ घुसेड़ रहा था.. इन चुंबनों से और पूरे बदन पर स्पर्श से कविता उत्तेजित हो रही थी.. चूत से तरल पदार्थ की धाराएं निकल रही थी.. रसिक के आगे पीछे हिलने के कारण.. एक दो बार उसका लंड कविता का स्पर्श कर गया और उस स्पर्श ने उसे झकझोर कर रख दिया..

"मुझे बाथरूम जाना है.. मैं अभी आई.. ध्यान रखना रसिक.. कहीं इसे होश न आ जाए" कहते हुए मौसी कविता के बेडरूम में बने अटैच टॉइलेट में घुस गई.. रसिक ने अब कविता की कमर उचककर उसकी सलवार उतार दी.. पेन्टी के ऊपर से स्पष्ट दिख रही चूत की लकीर को हल्के से छूने लगा.. यह पल रसिक के लिए अविस्मरणीय थी.. नाजुक सुंदर कविता.. पतली कमर और सख्त रसीले स्तनों वाली.. जिसे देखना भी रसिक के लिए भाग्य की बात थी.. पर आज तो वो उसकी चूत तक पहुँच गया था.. इस निजी अवयव पर रसिक हाथ फेरकर रगड़ता रहा..

बिना झांट की टाइट गोरी सुंदर चूत को देखकर रसिक को मौसी के झांटेंदार भोसड़े पर हंसी आ गई.. मौसी भी जवान रही होगी तब उनकी भी चूत ऐसी ही चिकनी होगी.. पर अब ये ऐसी क्यों हो गई?? आकर भी बदल गई.. चौड़ाई भी बढ़ गई.. और स्वच्छता के नाम पर शून्य.. अपने पति को जिस हिसाब से वो कोसती है.. लगता नहीं था की उन्होंने मौसी के भोसड़े का ये हाल किया होगा.. या हो सकता है की मुझ से पहले.. मौसी का खेत कोई ओर जोत चुका हो.. !! क्या पता.. !!

कविता की पेन्टी को एक तरफ करते हुए वो चूत के दर्शन कर धन्य हो गया.. कविता की हालत खराब हो रही थी.. वह उत्तेजित थी और कुछ कर भी नहीं पा रही थी.. उसकी चूत से खेल रहे रसिक का लंड उसे साफ नजर आ रहा था.. उसका कद और मोटाई देखकर उसे हैरत हो रही थी..


तभी अनुमौसी बाथरूम से निकले.. रसिक उनकी बहु के नंगे शरीर से जिस तरह खिलवाड़ कर रहा था वो उन्हों ने एक नजर देखा.. उनके चेहरे पर हवस का खुमार छा चुका था..क्यों की अब तक वो संतुष्ट नहीं हो पाई थी.. कविता की चूत पर हाथ सहला रहे रसिक का हाथ हटाकर उन्होंने अपनी भोस पर रख दिया.. रसिक ने तुरंत तीन उँगलियाँ उनकी गुफा में डाल दी.. रसिक की खुरदरी उंगलियों का घर्षण महसूस होते हुए मौसी के मुंह से "आह्ह" निकल गई.. रसिक के उंगलियों में.. चिमनलाल के लंड से सौ गुना ज्यादा मज़ा आ रहा था.. मौसी के ढीले भोसड़े को अपनी उंगलियों से पूरा भर दिया रसिक ने.. अब मौसी खुद ही कमर हिलाते हुए रसिक की उंगलियों को चोदने लगी..

रसिक के लंड को डिस्चार्ज हुए बीस मिनट का समय हो चुका था.. और अब वो नए सिरे से उत्तेजित होकर झूम रहा था.. इस बार तो वो पहले से ज्यादा कडक हो गया था.. और अब तो उसे जल्दी झड़ने का डर भी नहीं था क्योंकि थोड़ी देर पहले ही डिस्चार्ज हुआ था.. कविता के नंगे जिस्म का आनंद वो बड़े आराम से लेना चाहता था.. उसकी पेन्टी को घुटनों तक सरकाकर वो एकटक उसके संगेमरमरी बदन को देख रहा था.. गोरी चिकनी मस्त जांघें.. और बीच में गुलाबी चूत.. रसिक सोच रहा था की क्या सारी शहरी लड़कियां अंदर से ऐसी ही गोरी और नाजुक होगी?? क्या उनके स्तन भी कविता की तरह सख्त और टाइट होंगे?

उसकी जांघों को सहलाते हुए रसिक के लंड ने झटका खाया.. कविता अधखुली आँख से एकटक रसिक के लोड़े को देख रही थी.. वो उत्तेजित होने के बावजूद कुछ कर नहीं सकती थी.. उसमे भी जब रसिक के भूखे होंठों का कविता की चूत की लकीर से मिलन हुआ तब कविता ने बड़ी मुसीबत से अपने शरीर को स्थिर रखा.. ऐसा महसूस हो रहा था जैसे एक साथ हजारों चींटियाँ उसकी चूत में रेंगने लगी हो.. वो बेहद उत्तेजित हो गई..

पर ऐसा भी नहीं था की रसिक के चाटने से उसे मज़ा आ रहा था.. रसिक के करीब होने से भी उसे घिन आ रही थी.. पर वो क्या करती? एक तरफ उसका तंदूरस्त लंड झूल रहा था जो किसी भी स्त्री को ललचा दे.. खास कर उसका कद और मोटाई.. उस लंड को देखकर उसे डर तो लग ही रहा था पर अपनी सास का उसके प्रति आकर्षण देखकर उसे यकीन हो गया था की एक मादा को जो कुछ भी चाहिए.. वो सब कुछ था उस लंड में..

रसिक का हाथ कविता के कूल्हों तक पहुँच गया.. मजबूती से रसिक ने नीचे से कूल्हों को पकड़कर कविता की कमर को ऊपर की तरफ उठा लिया.. ऊपर उठते ही कविता की चूत फैल गई.. और अंदर का लाल गुलाबी हिस्सा दिखाई देने लगा.. रसिक ने झुककर अपना चेहरे से चूत का स्पर्श किया.. कामरस से लथबथ कविता की चूत ऐसे रस रही थी जैसे पके हुए आम को काटने पर रस टपकता है.. गुलाबी बिना झांटों वाली चूत.. एकदम टाइट.. गोरी और चिकनी.. ऊपर नजर आ रहा गुलाबी सा दाना.. और बीच में लसलसित लकीर.. देखकर ही रसिक अपने आप को रोक न पाया और उसने हल्के से चूत को काट लिया.. दर्द के कारण कविता सहम गई पर बेचारी कोई प्रतिक्रिया न दे पाई.. रसिक कविता की चूत की फाँकें चाटता रहा और कविता पानी बहाती रही..

देखते ही देखते कविता झड़ गई.. उसकी चूत खाली हो गई.. शरीर अकड़ कर ढीला हो गया..

मौसी को अपनी उंगलियों से ही स्खलित कर दिया रसिक ने.. वो जानता था की एक बार तो उसका लंड स्खलित हो चुका था.. दूसरी बार अगर वो मौसी को ठंडा करने में झड़ गया तो तीसरी बार तुरंत लंड खड़ा होना मुश्किल था.. और उतना समय भी नहीं था.. इस बार की उत्तेजना उसने कविता को चोदने के लिए आरक्षित रखी हुई थी.. उसकी उंगलियों ने मौसी का पानी निकाल दिया था इसलिए मौसी शांत थी..


अब रसिक कविता की जांघें फैलाकर बीच में बैठ गया.. उसकी इस हरकत से कविता इतनी डर गई की पूछो मत.. ऊपर से जब मौसी ने कहा "थोड़ा तेल लगा दे.. ऐसे सूखा तो अंदर नहीं जाएगा" तब कविता को यकीन हो गया की उसे अब कोई नहीं बचा सकता.. कविता विरोध करना चाहती तो भी रसिक अब ऐसे पड़ाव पर पहुँच चुका था की उसे चोदे बगैर छोड़ता नहीं ये कविता को भी पता था.. कविता जैसी फूल से लड़की.. रसिक के सांड जैसे शरीर से रौंदे जाने वाली थी..

अपनी चूत पर गरम अंगारे जैसा स्पर्श महसूस होते ही कविता समझ गई की रसिक का सुपाड़ा उसकी छोटी सी चूत पर दस्तक दे रहा था.. चूत के वर्टिकल होंठों को टाइट करते हुए कविता अपनी बर्बादी के लिए तैयार हो रही थी तभी..

तभी.. किसी ने दरवाजा खटखटाया.. रात के साढ़े ग्यारह बजे कौन होगा?? मौसी और रसिक दोनों ही डर गए.. रसिक भी कविता की जांघों के बीच से खड़ा हो गया.. उसका खतरनाक लंड चूत के सामने से हटा लिया.. कविता को ऐसा लगा.. मानों किसी देवदूत ने आकर उसकी इज्जत बचा ली हो..
बहुत ही कामुक गरमागरम और उत्तेजना से भरपूर अपडेट है अनु मौसी वासना के वशीभूत होकर उसने आइसक्रीम में नींद की दवाई मिलाकर कविता को खिला दी है लेकिन कविता को इसका पता चल जाता है इसलिए वह आइसक्रीम नहीं खाती है वासना में अंधी होकर उसने कविता को रसिक को परोस दिया है लेकिन किसी ने आकर कविता की इज्जत बचा ली है
 

Sanju@

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अपनी चूत पर गरम अंगारे जैसा स्पर्श महसूस होते ही कविता समझ गई की रसिक का सुपाड़ा उसकी छोटी सी चूत पर दस्तक दे रहा था.. चूत के वर्टिकल होंठों को टाइट करते हुए कविता अपनी बर्बादी के लिए तैयार हो रही थी तभी..

तभी.. किसी ने दरवाजा खटखटाया.. रात के साढ़े ग्यारह बजे कौन होगा?? मौसी और रसिक दोनों ही डर गए.. रसिक भी कविता की जांघों के बीच से खड़ा हो गया.. उसका खतरनाक लंड चूत के सामने से हटा लिया.. कविता को ऐसा लगा.. मानों किसी देवदूत ने आकर उसकी इज्जत बचा ली हो..

छलांग मारकर रसिक ने अपने कपड़े उठाए और जल्दी जल्दी पहन लिए.. एक पल पहले उसका थिरक रहा लंड अभी एकदम नरम हो गया था.. अनुमौसी और रसिक दोनों ही सकते में थे.. कविता के दिल को थोड़ा सा चैन मिला पर अभी भी उसे पक्का यकीन नहीं था की वो बच गई थी या नहीं..

"कौन होगा मौसी?" रसिक ने घबराते हुए कहा.. थरथर कांप रही मौसी के गले से आवाज ही नहीं निकली

"क्या पता.. रसिक!! अब इसका क्या करें? इसे कपड़े कैसे पहनाएंगे इतनी जल्दी? मैं मना कर रही थी इसे पूरा नंगा मत कर.. तुझे बड़ा शौक था इसे नंगी करने का.. !!"

"अरे मौसी.. अभी ये सब बातों का वक्त नहीं है.. पहले ये सोचो को कविता को छुपाएंगे कैसे?" रसिक के ये कहते ही मौसी ने एक चादर डाल दी कविता के नंगे जिस्म पर

कविता को अब चैन मिला था.. अधखुली आँखों से वो घबराए हुए रसिक और सासुमाँ को देखकर खुश हो रही थी.. मौसी की उत्तेजना और रसिक के लंड की सख्ती.. कब की गायब हो चुकी थी.. डर और सेक्स एक साथ होना असंभव सा है.. इस वक्त कौन होगा दरवाजे पर? पीयूष तो सुबह के तीन बजे से पहले नहीं आने वाला था और चिमनलाल को आने में और एक दिन का वक्त था.. कहीं कोई चोर या लुटेरा तो नहीं होगा.. !! पर चोर थोड़े ही दरवाजा खटखटाकर आएगा??

"मौसी, आप दरवाजा खोलिए.. फिर जो भी हो देख लेंगे" रसिक बहोत डरा हुआ था.. उसे डरा हुआ देखकर मौसी की भी फट गई..

"रसिक, तू खटिया की नीचे छुप जा.. यहाँ कोई नहीं आएगा.. " फटाफट कपड़े पहनकर उन्हों ने दरवाजा खोला

दरवाजे खुलते ही उसने देखा.. सामने शीला, मदन और वैशाली खड़े थे.. वैशाली तो मौसी को देखते ही उनके गले लग गई और रोने लगी.. उत्तेजना से अचानक उदासी के भाव धारण करना मौसी के लिए थोड़ा सा कठिन था.. पूरा माहोल ही बदल चुका था.. अंदर बिस्तर पर चादर ओढ़े लेटी कविता को.. शीला भाभी और वैशाली की आवाज सुनकर इतनी खुशी हो रही थी.. शीला भाभी ने आज मेरी लाज बचा ली.. वो चाहकर भी उठ न पाई क्योंकि उसके बिस्तर के नीचे ही रसिक छुपा हुआ था

तीनों मौसी के घर अंदर आकर सोफ़े पर बैठ गए.. मौसी जबरदस्त टेंशन में थी.. अब ये लोग कब उठेंगे क्या पता? इनके जाने से पहले रसिक को भी बाहर निकालना मुमकिन नहीं था.. उससे पहले कहीं उसे होश आ गया और अपने आप को नंगा देख लिया तो??? वो जरूर चिल्लाएगी.. मदन को पता चल गया तो? शीला को तो चलो वो समझा देगी.. पर मदन और वैशाली को क्या बताती??

रो रही वैशाली को देखकर मौसी को भी बहोत दुख हुआ.. पर वो फिलहाल अपना दुख व्यक्त करने की स्थिति में न थी.. उनका सम्पूर्ण ध्यान कविता के बेडरूम पर ही था.. शीला ने संक्षिप्त में कलकत्ता में घटी घटनाओं के बारे में बताया.. और फिर खड़े होते हुए बोली

"ठीक है मौसी.. चलते है.. फिर आराम से बात करेंगे.. ये तो चाबी लेनी थी इसलिए आपको जगाया.. हम भी थके हुए है.. घर जाकर सो जाएंगे.. फिर कल मिलकर आराम से बात करेंगे.. !!"

मौसी ने औपचारिकता दर्शाते हुए कहा "अरे शीला.. तुम लोग बैठो.. मैं चाय बनाती हूँ.. "

"कविता कहाँ है, मौसी?" वैशाली की आँखें अपनी सहेली को ढूंढ रही थी

घबराते हुए मौसी ने कहा "उसकी तबीयत ठीक नहीं है.. इसलिए आज जल्दी सो गई.. अपने कमरे में सो रही है.. " बात चल रही थी तभी कांच टूटने की आवाज आई.. सब के कान खड़े हो गए..

"लगता है बाहर से आवाज आई" मौसी ने सबका ध्यान भटकाने के इरादे से कहा

अनुमौसी, मदन और शीला के साथ बातों में व्यस्त थी तब वैशाली कब उठकर कविता के कमरे के तरफ चली गई.. मौसी को पता भी नहीं चला.. वैशाली को कविता के बेडरूम से बाहर निकलते हुए देख मौसी को डर के कारण चक्कर आने लगी.. मर गए.. !! वैशाली ने देख लिया सब.. अब क्या होगा?? मौसी बेचैन हो रही थी.. वैशाली से नजरें नहीं मिला पा रही थी.. पर वैशाली ने कुछ कहा नहीं..

शीला, मदन और वैशाली चले गए और दरवाजा लॉक करते हुए मौसी कविता के बेडरूम की ओर भागी.. उनके आश्चर्य के बीच देखा.. कविता आँखें मलते हुए अपने बालों में क्लिप लगा रही थी.. और सुस्ती भारी आवाज में बोली "क्या हुआ मम्मी जी, आप अब तक जाग रहे हो? कोई आया था क्या हमारे घर? मैंने आवाज सुनी इसलिए जाग गई.. पता नहीं आज इतनी नींद क्यों आ रही है मुझे.. मम्मी जी, आपको भी आइसक्रीम खाने के बाद ऐसा कुछ महसूस हुआ था क्या?"

"नहीं बेटा.. मैं तो कब से जाग रही हूँ.. मुझे तो ऐसा कुछ नहीं हुआ.. तू शायद पूरे दिन काम करके थक गई होगी इसलिए नींद आ रही होगी.. कोई बात नहीं.. वैशाली, शीला और मदन आए थे.. वो कलकत्ता से वापिस आ गए.. घर की चाबी लेने आए थे.. " मौसी की नजर बार बार कविता के दुपट्टे पर जा रही थी.. जिस पर वीर्य के धब्बे लगे हुए थे.. उन्हों ने ही रसिक का वीर्य दुपट्टे से पोंछा था..

"आप सो जाइए मम्मी जी.. मैं बाथरूम जाकर आती हूँ" कविता बाथरूम में घुसी और मौसी ने मुड़कर बेड के नीचे देखा.. पर रसिक वहाँ नहीं था.. गया कहाँ वो कमीना?? कहीं बाथरूम में तो नहीं छुपा होगा? बाप रे.. तब तो कविता को जरूर पता चल जाएगा.. !!

तभी कविता बाथरूम से निकलते हुए बोली "अरे मम्मी जी.. बाथरूम की खिड़की का कांच किसने तोड़ा?? लगता है बिल्ली ने तोड़ा होगा.. कांच के टुकड़े पड़े है बाथरूम में.. " सुनकर मौसी के दिल को चैन मिला.. जरूर रसिक कांच तोड़कर भाग गया होगा..

"बेटा कांच टूटना तो अच्छा शगुन माना जाता है.. तू चिंता मत कर और आराम से सो जा.. " कहते हुए मौसी अपने कमरे में चली गई और अंदर से दरवाजा बंद कर लिया.. कविता का ओर सामना करने की उनमें हिम्मत नहीं थी..रह रहकर एक ही सवाल उन्हें परेशान कर रहा था की कविता को कपड़े किसने पहनाये ?? क्या वैशाली ने पहनाए होंगे? वैशाली ने कमरे में कविता को नंगी पड़ी देखकर क्या सोचा होगा? या फिर शायद रसिक ने जाने से पहले कपड़े पहना दीये हो? रसिक को कांच तोड़ते हुए या फिर भागते हुए कविता ने देख तो नहीं लिया होगा?

ढेर सारे सवाल थे और जवाब एक भी नहीं था.. मौसी अपना सर पकड़कर सो गई..

इस तरफ कविता शीला भाभी के लिए मन से आभार प्रकाट कर रही थी.. सोच रही थी की आज तो उनके कारण इज्जत बच गई.. वरना आज तो रसिक का गधे जैसा लंड उसकी कोमल चूत के परखच्चे उड़ा ही देता.. कविता को उतना तो पता था की रसिक ने अपना सुपाड़ा चूत के अंदर डाल दिया था जब दरवाजे पर दस्तक सुनाई दी थी.. वो याद आते ही वह अपनी चूत पर हाथ फेरकर मुआयना करने लगी.. कहीं कोई नुकसान तो नहीं हुआ था.. !! हाथ फेरकर उसने तसल्ली कर ली.. सब कुछ ठीक था.. शरीर को तो नुकसान नहीं हुआ था.. पर उसका मन घायल हो चुका था उसका क्या?? अपनी चूत को सहलाते हुए वो सो गई.. और दूसरे दिन काफी देर से जागी.. जब वो उठी तब घड़ी में आठ बज रहे थे.. रोज ६ बजे जागने वाली कविता को आज उठने में देर हो गई.. शायद आसक्रीम में मिलाई दवा का असर था..

उठकर फटाफट किचन में गई.. मम्मी जी के लिए चाय बनानी थी.. पर किचन में जाते ही उसे पता चला की उसकी सास तो कब की चाय बना चुकी थी.. वो तुरंत बाथरूम में गई.. ब्रश किया और नहा कर फटाफट कपड़े पहने.. जल्दबाजी में आज वो ब्रा पहनना भूल गई थी.. उसने बाथरूम के कोने में देखा.. टूटे हुए कांच के टुकड़े मम्मी जी ने साइड में कर रखे थे.. और कांच के ढेर के बीच एक काला धागा था.. वही धागा उसने रसिक की कलाई पर अनगिनत बार देखा था..

कविता के मन में कल रात की घटनाएं फिर से ताज़ा हो गई.. चुपचाप वो कांच के ढेर को इकठ्ठा कर डस्टबिन में डालने गई तब एक कांच का टुकड़ा उसकी उंगली में घुस गया.. और खून टपकने लगा.. दर्द के मारे वो कराहने लगी.. खून टपकती उंगली को लेकर वो किचन में आई.. और घाव पर हल्दी लगाकर पट्टी बांध दी.. मन ही मन मम्मी जी को कोसते हुए कविता गुस्से से घर के काम में उलझ गई.. पीयूष का मेसेज था.. वो अब शाम को वापिस आने वाला था.. अनुमौसी कहीं बाहर गई हुई थी..

घर के काम निपटाकर वो दस बजे शीला भाभी के घर गई.. कविता को देखते ही वैशाली उसके गले लग गई और खूब रोई.. शीला भाभी ने भी उसे रोने दिया.. रोने से मन हल्का हो जाता है..

"मदन भैया कहीं नजर नहीं आ रहे??" कविता ने मदन को न देखकर शीला से पूछा

शीला: "मदन पुलिस स्टेशन गया है.. इंस्पेक्टर तपन से मिलने.. अब संजय से छुटकारा पाने के लिए कुछ तो कार्यवाही करनी पड़ेगी ना.. साले उस हरामजादे ने मेरी बेटी की ज़िंदगी तबाह कर दी.. पहली बार मुझे पुलिस स्टेशन की चौखट पर पैर रखने पड़े.. और कितना कुछ सहना पड़ा.. सब उस कमीने के कारण.. उस नालायक को तो अब मदन और इन्स्पेक्टर तपन ही सीधा करेंगे.. !!"

वैशाली: "कीड़े पड़ेंगे कीड़े.. उस हरामी को.. मैं तो वापिस जाने के लिए तैयार ही नहीं थी.. मुझे पता था की मैं वहाँ एक पल भी जी नहीं पाऊँगी.. इतना अच्छे से जानती हूँ मई उस नालायक को.. मुझे परेशान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी उसने.. तू मानेगी नहीं कविता.. वो आदमी इतना हलकट है.. सारा दिन उसे अलग अलग औरतों के साथ बिस्तर पर पड़े रहने के अलावा और कुछ नहीं सूझता.. जब देखों तब सेक्स ही सेक्स.. चवन्नी की कमाई नहीं और पूरा दिन बस बिस्तर पर काटना होता है उसे.. अब तू ही बता.. ऐसे आदमी के साथ कैसे जीवन गुजारें?? उसकी जेब से प्रेमिकाओं की तस्वीरें तो अक्सर हाथ लगती.. बेग में जब देखों तब ढेर सारे कोंडम के पैकेट लेकर घूमता रहता है.. और कुछ पूछूँ तो उल्टा मुझ पर ही गुस्सा करता था.. बिजनेस ट्रिप के लिए शहर से बाहर जा रहा हूँ.. ये कहकर शहर की ही किसी होटल में किसी रांड को लेकर पड़ा रहता था.. और मैं घर पर उसका इंतज़ार करते हुए उसके बूढ़े माँ बाप की सेवा करती थी.. ये सब मम्मी को बताती तो उन्हें दुख होता.. कभी न कभी संजय सुधर जाएगा इस आशा में अब तक जीती रही.. पर ऐसा कब तक चलता.. !!" वैशाली की व्यथा आंसुओं के संग बह रही थी.. नॉन-स्टॉप.. !!

कविता: "एकदम सही बात है तेरी वैशाली.. ऐसी लोगों को तो जैल में ही बंद कर देना चाहिए.. वो मदन भैया के इंस्पेक्टर दोस्त है ना.. बराबर ट्रीटमेंट देंगे संजय को.. तू चिंता मत कर.. अब तू हम सब के बीच है.. एकदम सलामत.. जो भी हुआ.. बुरा सपना समझकर भूल जा.. और एक नई ज़िंदगी की शुरुआत कर.. !!"

वैशाली को कविता की बात सुनकर बहोत अच्छा लगा.. तभी मदन घर आ पहुंचा.. कविता से हाय-हैलो कहकर वो अपने कमरे मे चला गया.. कविता को भी ये महसूस हुआ की वो सब अपनी निजी बातें करना चाहते होंगे.. इसलिए निकल जाना ही बेहतर होगा.. वो उठकर घर चली आई.. दोपहर का खाना खाकर सास और बहु अपने अपने कमरे में आराम करने लगे..

शाम को दोनों जाग गए और बरामदे में बैठे हुए थे.. मौसी झूला झूल रही थी और कविता बैठे बैठे सब्जियां काट रही थी.. तभी कविता पर उसकी मम्मी का फोन आया.. और उन्होंने बताया की मौसम बहोत बीमार हो गई थी.. और अस्पताल में थी.. इसलिए रमिला बहन चाहती थी की कविता थोड़े दिनों के लिए वहाँ आ जाए तो घर के काम में.. और शादी की तैयार में उनकी मदद कर सकें.. सारी बातें मौसी की उपस्थिति में हुई थी इसलिए उन्हें बताने की कोई जरूरत नहीं थी.. कविता ने कहा की वो दोनों आज आने ही वाले थे पर पीयूष को ऑफिस में अर्जन्ट काम आ जाने के कारण नहीं आ पाए.. और ये भी कहा की शाम को पीयूष के आते ही.. उससे चर्चा करने के बाद तय करेंगे..

मम्मी का फोन काटते ही कविता ने मौसम को फोन लगाया.. मौसम ने भी कहा की उसकी तबीयत अब ठीक थी.. और वो जल्दबाजी न करें.. आराम से आए..

कविता की जान अब अपने मायके में अटक चुकी थी.. उसे मौसम की चिंता सताने लगी.. शाम को पीयूष घर आया.. खाना खाया.. फिर कविता ने उसे सारी बात बताई.. लेकिन पीयूष को मौसम ने पहले ही मना कर रखा था इसलिए वो जाना नहीं चाहता था.. उसने ऑफिस के काम का बहाना बनाते हुए कविता से कहा "तू सुबह ६ बजे की बस में निकल जाना.. "

कविता ने तुरंत अपनी पेकिंग शुरू कर दी.. रात को बेडरूम के दरवाजे बंद होते ही.. पीयूष ने आज जबरदस्त चुदाई की कविता के साथ.. वैसे कविता सेक्स के लिए उतनी उत्सुक नहीं लगी उसे.. वरना रोज तो वो भूखे भेड़िये की तरह पीयूष पर टूट पड़ती.. पर जैसे पीयूष के हाथ उसके जिस्म पर फिरने लगे.. उसे रसिक के स्पर्श की याद आ जाती और वो सहम जाती.. पीयूष ने सोचा की शायद कविता उसके मायके की चिंता के कारण ठीक से सहयोग नहीं कर पा रही है.. इसलिए उसने कुछ पूछा नहीं.. कविता इस टेंशन में थी की कहीं पीयूष की कल की घटना के बारे में कुछ पता न चल जाए.. वैसे रसिक ने कुछ किया तो नहीं था.. पर उसकी छाती पर और चूत पर काटने के निशान थे.. कहीं पीयूष ने देख लिए तो??

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जब पीयूष धक्के लगाकर.. उसकी चूत में वीर्य छोड़कर शांत होकर बगल में लेट गया.. तब जाकर कविता के मन को शांति मिली..

सुबह पाँच बजे कविता जाग गई.. और तैयार होकर उसने पीयूष को जगाया.. पीयूष उसे बस-अड्डे पर छोड़ आया.. कविता को तुरंत बस मिल गई.. सीट पर बैठकर.. टिकट को पर्स में रखकर उसने अपना मोबाइल निकाला और एक नंबर डायल किया.. डायल करते हुए कविता के चेहरे की मुस्कान देखने लायक थी.. ये नंबर ऐसा था जो उसने मोबाइल पर सेव नहीं किया था.. जरूरत भी नहीं थी.. उसके दिल में छपा हुआ था ये नंबर..

उसने पिंटू को फोन लगाया

सुबह साढ़े छह बजे कविता का नाम स्क्रीन पर देखकर पिंटू चोंक गया.. इतनी सुबह कविता ने क्यों फोन किया होगा? कहीं पीयूष से फिर से कोई झगड़ा तो नहीं हुआ??

"हैलो.. "

"गुड मॉर्निंग मेरी जान" कविता के मुंह से ये शब्द सुनकर पिंटू के चेहरे पर मुस्कान आ गई..

"क्या बात है कविता.. !! आज सुबह सुबह मुझे फोन करने का टाइम मिल गया तुझे? तेरे शोहर के लिए टिफिन तैयार नहीं करना क्या?"

"मुझे बोलने भी देगा या तू ही बकता रहेगा??" कविता इतनी जोर से बोली की सारे पेसेन्जर उसकी तरफ देखने लगे.. कविता शरमा गई..

"तू कहाँ है? इस शहर में या हमारे शहर में?" कविता ने पूछा.. पिंटू और कविता एक शहर में रहते थे.. कविता की शादी इस शहर में हुई और पिंटू की नौकरी भी इस शहर में थी..

"मैं हमारे शहर अपने घर पर ही हूँ.. बता.. कुछ प्रॉब्लेम हुई है क्या?"

"प्रॉब्लेम तो कुछ नहीं है.. मौसम की तबीयत ठीक नहीं है.. मम्मी को हेल्प करने में घर आ रही हूँ.. तू वहीं हो तो हम मिलेंगे.. मुझे तेरे साथ ढेर सारी बातें करनी है.. मैं लगभग बारह बजे बस स्टेशन पहुँच जाऊँगी.. हम दोनों दो-तीन घंटे साथ रहेंगे.. उसके बाद मैं घर जाऊँगी.. मम्मी को बोल दूँगी की बस रास्ते में खराब हो गई थी इसलिए देर हो गई.. वो मान जाएगी.. तू जगह का बंदोबस्त कर.. बहोत दिन हो गए यार.. !!"

"क्या बात है कविता.. मैं भी तुझे बहोत मिस करता हूँ.. आजा जल्दी.. बस के शहर में घुसते ही तू मुझे कॉल कर देना.. मैं तुझे लेने आ जाऊंगा.. "

"ओके जानु.. मैं तुझे पहुंचकर कॉल करती हूँ.. आई लव यू"

"आई लव यू टू, कविता"

पिंटू रोमांचित हो गया.. काफी दिनों के बाद कविता से अकेले मी मिलने का मौका मिलने वाला था.. पिंटू बस पहुँचने के दो घंटे पहले ही बस-अड्डे के बाहर बैठ गया.. बार बार घड़ी में देख रहा था.. कब कविता आए और कब उसे लेकर जाऊँ .. तभी कविता का कॉल आया

"बस अब पाँच मिनट में पहुँच जाएगी.. तू कहाँ है?"

"मैं तो कब से यहीं हूँ बस स्टेशन पर.. तेरा इंतज़ार कर रहा हूँ"

कविता जैसे ही बस से उतरी.. पिंटू ने उसका बेग हाथ से ले लिया.. दोनों बाइक की तरफ पहुंचे.. और कविता उसके पीछे बैठ गई.. उसे शादी से पहले के दिन याद आ गए.. तब भी वो पिंटू की बाइक की पीछे ऐसे ही घूमती थी.. फूल स्पीड में चल रही बाइक पर अपने स्तनों को पिंटू की पीठ पर दबाकर कविता खुद भी मजे ले रही थी और पिंटू को भी दे रही थी..

"इतनी चुप क्यों है तू? डर लग रहा है क्या? पीयूष से ज्यादा तेज चला रहा हूँ बाइक इसलिए?"

कविता: "पिंटू, आज मुझे किसी चीज का कोई डर नहीं है.. मन कर रहा है की बस पूरी ज़िंदगी यूं ही तेरे पीछे बैठी रहूँ"

पिंटू का बाइक अम्बर सिनेमा हॉल के बाहर पार्क करने के बाद पिंटू ने फटाफट टिकट ले ली.. मूवी शुरू हो चुका था.. दिन का समय था और फ्लॉप मूवी थी इसलिए अंदर आठ-दस लोग ही थे.. ज्यादातर कपल्स ही थे जो एकांत के लिए आए हुए थे..

कविता का हाथ पकड़कर अंधेरे में पिंटू उसे कॉर्नर सीट की तरफ ले गया.. और जो काम करने आए थे उसमे व्यस्त हो गए..

पिंटू ने कविता का हाथ अपने हाथ में लिया और उसे चूम लिया.. ये वही हथेली थी जिस पर कविता ने अनगिनत बार अपना नाम लिखका था.. कविता की ये आदत थी.. वे दोनों जब भी मिलते तब वो पिंटू की हथेली पर अपना नाम लिख देती.. अपना अधिकार भाव जताने के लिए.. पिंटू तो जैसे कविता की हथेली को पाकर तृप्त हो गया हो वैसे उसे पकड़कर काफी देर तक बैठा ही रहा..

आखिर कविता ने खुद उसका हाथ अपने मुलायम स्तनों से दबा दिया.. स्तनों का स्पर्श होते ही पिंटू के अंदर का पुरुष जाग उठा.. और उसने थोड़ा और दबाव बनाकर स्तनों को दबा दिया.. दो दिन पहले ही रसिक के काटने से कविता को स्तनों में थोड़ा दर्द हो रहा था.. पर फिर भी वह कुछ न बोली.. वो दर्द सहने को तैयार थी पर अपने प्रेमी को रोकना नहीं चाहती थी..

पिंटू ने अब दोनों हाथों से उसके स्तनों को जोर से दबाया.. दर्द के कारण कविता कराह उठी.. पिंटू ने तुरंत हाथ खींच लिए.. पर कविता ने उसके हाथ पकड़कर फिर से अपने स्तनों पर लगा दीये

कविता: "तू मेरी फिक्र मत कर.. इनका तो काम ही है दबना.. तेरे हाथों से दबना तो इनका सौभाग्य है.. मन से तो मैं अपना शरीर तेरे नाम कर चुकी हूँ पिंटू.. समाज भले ही मुझे पीयूष की पत्नी के रूप में जानता हो.. पर मेरा दिल तो तुझे ही अपना स्वामी मान चुका है.. तू घबरा मत.. जैसे मन करे दबा दे.. मसलकर रख दे इन्हें.. तेरा अधिकार है इन दोनों पर.. "

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उस रात की घटना ने कविता को धक्का पहुंचाया था.. जब वो दो कौड़ी का दूधवाला उसकी मर्जी दे खिलाफ मेरे जिस्म को रौंद गया.. तू मैं भला मेरे मनपसंद पिंटू को क्यों रोकूँ? वो तो मेरा अपना है.. कमबख्त मेरी सास ने.. अपनी हवस बुझाने के चक्कर में.. मेरे शरीर को अपवित्र कर दिया

जैसे जैसे कविता उस रात की घटना के बारे में सोचती गई.. उसका क्रोध और बढ़ता गया.. और वो पिंटू के हाथों को अपने स्तनों पर और मजबूती से दबाती गई.. दर्द इतना होने लगा की उसकी आँखों से आँसू निकल गए.. जो पिंटू को अंधेरे में नजर नहीं आए..

पिंटू आसानी से स्तनों को मज़ा ले सकें इसलिए कविता ने दो हुक खोलकर अपना एक स्तन बाहर खींच निकाला.. ए.सी. की ठंडक स्तन पर महसूस होते ही कविता को इतना अच्छा लगा की उसने जरूरत न होते हुए भी तीसरा हुक खोल दिया और दूसरा स्तन भी बाहर निकाल दिया.. साड़ी के पल्लू से स्तनों को ढँककर पिंटू का हाथ पल्लू के अंदर डाल दिया..

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जैसे जैसे पिंटू का हाथ उसके नग्न मांस के गोलों पर घूमने लगा.. कविता को बहोत मज़ा आने लगा.. पिंटू का स्पर्श उसे पागल बना रहा था.. पिंटू का लंड भी उसकी पतलून में उछलने लगा था.. कविता ने अधिकारपूर्वक पेंट के ऊपर से उसका लंड पकड़ लिया.. और पिंटू के कंधे पर सिर रख दिया.. लंड को पकड़ते ही कविता ने पिंटू के कान में कहा

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"यार किसी गेस्टहाउस का बंदोबस्त किया होता तो इसे आराम से अंदर ले पाती.. कितना सख्त हो गया है.. !! सिर्फ पकड़कर मैं क्या करूँ?" कविता की इस बात का कोई जवाब नहीं था पिंटू के पास.. वो मुसकुराता रहा और हॉल के अंधेरे में.. कविता के स्तनों को दबाता रहा..

कविता ने धीरे से पिंटू के पेंट की चैन खोल दी.. अन्डरवेर के ऊपर से भी उसे पिंटू के लंड की गर्मी और सख्ती का एहसास हो रहा था.. वस्त्र की एक परत कम होने से कविता और पीयूष दोनों की उत्तेजना बढ़ती गई.. एक दूसरे को नग्न कर भोगने की इच्छा तीव्रता से सताने लगी..

पीयूष के कंधे से सर हटाकर कविता ने उसके होंठों को चूम लिया.. पिंटू के गुलाबी होंठ कविता को बहोत पसंद थे.. कविता के स्तनों को मसलते हुए अपने होंठ उसे सौंपकर पिंटू आराम से मजे ले रहा था.. कविता कभी उसके होंठों को चूमती.. कभी चाटती और कभी मस्ती से काट भी लेती थी.. कविता का हाथ अब पिंटू की अन्डरवेर के अंदर घुस गया और मुठ्ठी में उस सुंदर लिंग को पकड़ लिया.. बेशक उनकी हरकतें ऐसी थी की आसपास के लोगों को पता चल जाए.. पर बाकी सारे कपल्स भी ऐसी ही मस्ती में लीन थे..

पिंटू का लंड हिलाते हुए कविता को अनायास ही रसिक के लंड की याद आ गई.. बाप रे.. कितना खतरनाक था रसिक का लंड..!! ऊपर चढ़कर पूरा डाल दिया होता तो मर ही जाती मैं.. अंदर उछल रहे लंड को अपनी कोमल हथेली से महसूस करते हुए कविता की चूत से कामरस बहने लगा.. सिनेमा हॉल के अंधेरे में कई कपल्स उत्तेजक हरकतें कर रहे थे.. कई लोगों की सिसकियाँ भी सुनाई पड़ रही थी.. कविता और पीयूष के आगे बैठा हुआ कपल तो सारी सीमाएं लांघ चुका था.. उस पुरुष की गोद में सर रखकर जिस तरह वो औरत ऊपर नीचे कर रही थी उससे साफ प्रतीत हो रहा था की वो लंड चूस रही थी..

ये देखते ही कविता ने पिंटू की और देखकर एक शरारती मुस्कान दी.. दोनों की नजरें चार हुई.. इशारों इशारों में पिंटू ने पेशकश कर दी और कविता ने स्वीकार भी कर लिया.. उसने अपने खुले हुए बाल रबरबैंड से बांध दीये.. और पिंटू की गोद में सर डालकर बैठ गई.. एक ही पल में लंड बाहर निकालकर कविता लोलिपोप की तरह चूसने लगी..

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पिंटू को आश्चर्य हुआ.. जब जब वो और कविता मिलते तब वो कितने मिन्नतें करता तब जाकर कविता उसका मुंह में लेती.. आज एक ही इशारे में मान गई.. कविता की इस हरकत से पिंटू बेहद उत्तेजित हो गया.. कविता अपने प्रेमी को महत्तम सुख देने के इरादे से पागलों की तरह लंड चूसने लगी.. गजब का करंट लग रहा था पिंटू को.. कविता के चूसने से.. थोड़ी ही देर मे वो कमर उठाकर.. कविता के सर को दोनों हाथों से पकड़ कर.. उसके मुंह में धक्के लगाने लगा.. और उसी के साथ ही उसके लंड ने कविता के मुख में उत्तेजना की बारिश कर दी.. कविता का मुंह पूरा वीर्य से भर गया..

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वैसे कविता को ये बिल्कुल ही पसंद नहीं था.. पर वो पिंटू को जरा भी नाराज करना नहीं चाहती थी.. उसे उलटी आ रही थी पर फिर भी उसने अपने आप को संभालें रखा.. और तब तक चूसती रही जब तक पिंटू शांत न हो गया..

संभालकर पिंटू का लंड मुंह से बाहर निकालकर कविता ने सारा वीर्य सीट के नीचे थूक दिया.. और रुमाल से अपना मुंह साफ कर दिया.. अब कविता अपनी सीट पर बैठ गई.. पिंटू ने अपना लंड अंदर रख दिया.. अब दूसरी मंजिल के लिए दोनों तैयार हुए.. और वो था कविता का ऑर्गजम..

कविता के गालों पर चूमते हुए उसने उसके घाघरे के अंदर हाथ डाल दिया.. उसकी चिकनी जांघों से होते हुए पिंटू की उँगलियाँ कविता की चूत तक जा पहुंची.. पिंटू आराम से अपनी उंगलियों का योनि प्रवेश कर सके इसलिए कविता ने अपना घाघरा ऊपर तक उठा दिया.. अब पिंटू का हाथ बड़ी आसानी से अंदर पहुँच रहा था.. साड़ी का पल्लू हटाकर अपने दोनों उरोजों को बाहर खुला छोड़ दिया कविता ने.. पिंटू कविता के गाल, गर्दन और होंठों पर पागलों की तरह चूमने लगा.. उसका एक हाथ कविता के स्तनों को मसल रहा था जबकी दूसरे हाथ की दो उँगलियाँ कविता की चूत में अंदर बाहर हो रही थी.. कविता के तो मजे मजे हो गए थे.. पिंटू का साथ उसे इतना पसंद था की उसने अपना पूरा बदन सीट पर ढीला छोड़कर उसे समर्पित कर दीया था..

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अत्यंत आवेश में आकर पिंटू ने फिंगरिंग की गति बढ़ा दी.. तेजी से उंगलियों को अंदर बाहर करते हुए कविता की भूख को शांत कर दिया.. कविता की चूत अपना अमृत रस सीट पर टपका रही थी..

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उसी अवस्था में थोड़ी देर तक कविता पड़ी रही.. ना ही उसने खुले स्तनों को ढंका और ना ही अपना घाघरा नीचे किया.. वैसे ही बैठे बैठे उसने पिंटू की चूत रस लगी उंगलियों को चूसना शुरु कर दिया..

अब जुदाई करीब थी.. दोनों जान गए थे की अब बिछड़ने का वक्त आ चुका था.. बार बार पिंटू की हथेली को चूम रही कविता के आँसू पिंटू के हाथ पर टपक रहे थे..

"उदास क्यों हो रही है? इतना मज़ा करने के बाद रो रही है तू?" पिंटू ने कहा.. जिसका कविता ने कोई उत्तर नहीं दिया.. वो तो बस पिंटू की हथेली को अपने होंठों से दबाकर बस चूमती रही.. काफी देर तक उसने हाथ पकड़े रखा

"अब चलें कविता.. ?? डेढ़ घंटा तो बीत चुका है.. अब तुम्हें घर चले जाना चाहिए वरना तेरी मम्मी चिंता करेगी" कविता बस पिंटू को देखती रही.. कितनी फिक्र है इस लड़के को मेरी..

अपने आंसुओं को पोंछ कर कविता सीट से खड़ी हो गई.. खड़े होने के बाद उसे याद आया.. दोनों स्तन तो अभी भी बाहर खुले लटक रहे थे.. !! उन्हें ब्लाउस में डालना तो भूल ही गई.. वो तुरंत बैठ गई और स्तनों को दोनों कटोरियों में बंद कर दिया.. सामने बैठे कापल ने कविता के स्तनों को देख लिया था.. पर वो दोनों खुद ही अधनंगी अवस्था में बैठे हुए थे.. कविता ने देखा.. कपल में जो युवती थी उसने अपने बॉयफ्रेंड का लंड हाथ में पकड़ रखा था.. उसके सामने देखकर कविता मुस्कुराई..


पिंटू और कविता खड़े हो गए और बाहर निकल गए.. कविता को ऑटो में बिठाकर पिंटू भी उदास मन से अपना बाइक लेकर निकल गया..
बहुत ही कामुक गरमागरम अपडेट है दोनों लवबर्ड्स अकेले मिलकर कुछ वक्त गुजार लिया साथ ही दोनों ने एक दूसरे के साथ मस्ती करके एक दूसरे को शांत कर लिया
 

vakharia

Supreme
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Bahut hi shandar update he vakharia Bhai,

Sheela aur vaishali aakhirkar vapis aa hi gaye..............is parivar par bahut hi buri beeti hogi calcutta me.........

Kavita aur Pintu cinema hall wala sex scene bahut hi badhiya tha....................

Ek baat to saaf he kavita shadi ke baad bhi piyush ko apna nahi payi he................

Uske man me aaj bhi pintu hi uska premi aur pati he............

Keep posting Bhai
Thanks a lot Ajju Landwalia bhai ♥️
Looking forward to your comments on the latest update...
 
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