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Romance श्राप [Completed]

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24, Update #25, Update #26, Update #27, Update #28, Update #29, Update #30, Update #31, Update #32, Update #33, Update #34, Update #35, Update #36, Update #37, Update #38, Update #39, Update #40, Update #41, Update #42, Update #43, Update #44, Update #45, Update #46, Update #47, Update #48, Update #49, Update #50, Update #51, Update #52.

Beautiful-Eyes
* इस चित्र का इस कहानी से कोई लेना देना नहीं है! एक AI सॉफ्टवेयर की मदद से यह चित्र बनाया है। सुन्दर लगा, इसलिए यहाँ लगा दिया!
 
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Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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जब तक मै इस फोरम पर एक्टिव रहूंगा या किसी कारणवश मै यहां से बैन न हुआ , तब तक आपके साथ मेरा साथ , मेरा दोस्ताना बना रहेगा।
( ये कई बार आपसे कह चुका हूं। कम से कम यह तो आपको समझना चाहिए था अमर भाई । )
आपके लेखनी पर मैने कभी कोई प्रश्न किया ही नही। लेकिन कहानी पर हो रहे घटनाक्रम पर प्रश्न तो किया ही जा सकता है। किसी किरदार के गुणों का विश्लेषण तो किया ही जा सकता है । यह अलग बात है कि मेरी सोच किरदार के कैरेक्टर पर सही न बैठे।
वैसे आप शायद भुल गए हैं कि मीना के लिए शुरुआत मे मैने क्या कहा था !
( मीना रूपी वृक्ष के जड़ पर मट्ठा डालता रहूंगा । अब यह आपको सिद्ध करना है कि मै ऐसा कुछ न करूं :D )
वैसे अब मुझे मीना की डेस्टिनी दिखने लगी है, बाकी लेखक जाने
 
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" This is It " ऐसे मोड़ पर कहानी को ला छोड़ा कि कुछ समझ नही आ रहा है कि यह सब हुआ क्या !
हर्ष की मौत - एक ऐसे युवक की मौत जो सिर्फ अठारह वर्ष का था , जिसने अपने भविष्य के लिए काफी सपने संजोए होंगे , जो सुहासिनी के साथ मरते दम तक जीना चाहता था , जिसने शायद सुहासिनी को बिन ब्याही मां के कगार पर ला खड़ा किया होगा , जिसके दिल मे देश प्रेम का जज्बा कुट कुट कर भरा हुआ था --यह क्या किया आपने अमर भाई !
इससे दुखद और कुछ नही हो सकता ।
राजा साहब और रानी साहिबा की मौत भी अत्यंत दुखद था लेकिन हर्ष की मौत ने हमारा सीना ज्यादा छलनी कर दिया।
क्या होगा सुहासिनी का ? वो अभी भी बहुत कम उम्र की है। कैसे अपने प्रियतम को भुला पाएगी ? अगर वो गर्भ धारण कर गई तो कैसे इस बेरहम समाज का सामना कर पायेगी ?
काश , हर्ष की मौत इंडिया - चाईना के युद्ध मे हुआ होता। कम से कम सुहासिनी इस बात का फख्र कर सकती थी कि उसका प्रियवर देश के लिए वीरगति को प्राप्त हुआ।
लेकिन हर्ष की मौत रणक्षेत्र मे नही बल्कि कार एक्सिडेंट से हुई है । यह एक्सिडेंट स्वभाविक था या कोई षडयंत्र , पता नही।
बहुत ही इमोशनल अपडेट दे दिया आपने अमर भाई। और एक इमोशनल ट्विस्ट भी।

आउटस्टैंडिंग अपडेट एंड जगमग जगमग भी।
 

park

Well-Known Member
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अपडेट #30


“कुमार,” सुहासिनी ने भावनाओं से आर्द्र हो चले सुर में कहा, “... आप जा रहे हैं!”

जब दो प्रेमी एक दूसरे की संगत के आदी हो जाते हैं, तो उनसे एक क्षण का बिछोह भी सहन नहीं होता। और यहाँ तो कुमार हर्ष, सुहासिनी को कई दिनों के लिए जाने की सूचना दे रहा था।

“आप तो ऐसे कह रही हैं जैसे हम सदा के लिए जा रहे हैं...” उसने सुहासिनी को अपने आलिंगन में भरते हुए कहा, “बस, कुछ दिनों की ही तो बात है!”

“हाँ, किन्तु आपका जाना आवश्यक ही क्यों है? ... और वो भी इतनी दूर!”

“इतनी दूर कहाँ? ... बस दिल्ली ही तो जा रहे हैं! ... हम तो वैसे भी अक्सर ही आते जाते रहते हैं।” हर्ष ने मुस्कुराते हुए सुहासिनी के आंसुओं को पोंछा, और समझाते हुए बोला, “... पिताजी महाराज और माँ बड़े ही आवश्यक कार्य के लिए प्रधानमंत्री जी से मिलने वाले हैं। ... पड़ोसी मुल्क़ चीन के इरादे सही नहीं लग रहे हैं, इसलिए देश को हमारी आवश्यकता है न...”

“आप युद्ध करने जा रहे हैं?”

“नहीं पगली! हम नहीं कर रहे हैं युद्ध... किन्तु युद्ध को सफल बनाने के लिए सहायता तो दे सकते हैं न सरकार को? ... तो बस, वही करने जाना है!”

“किन्तु...”

“फिर से किन्तु! ... राजकुमारी जी, हमको भी तो पिताजी और माँ के सामने अपनी दक्षता का प्रदर्शन करना है न! ... अन्यथा वो सोचेंगे कि कैसा नालायक है उनका छोटा बेटा! ... आप समझ रही हैं न?”

सुहासिनी ने समझते हुए सर हिलाया।

“पिताजी के पीछे बड़े भैया इस्टेट को सम्हालेंगे, और राज्य के अन्य राजनीतिक दलों को साथ लाने का प्रयास करेंगे! ... वो कोई कम काम है? अब ऐसे में हमको भी तो कुछ करना चाहिए न! ... तो हम उनके साथ देश की राजधानी में जा कर बड़े बड़े लोगों को साथ लाने का प्रयास करेंगे!”

हर्ष ने एक बड़ी डींग हाँकी, जिसको सुन कर सुहासिनी बड़ी प्रभावित भी हुई। सही है - युद्ध का संकट जब निकट हो, तो हर व्यक्ति - क्या राजा, क्या प्रजा - का कर्तव्य है कि यथासंभव वो उस संकट को परास्त करने का प्रयास करे। अपने प्रियतम पर उसको अभिमान हो आया। लेकिन फिर भी, उसको बिछड़ने की घबराहट हो रही थी।

“किन्तु फिर भी... आपके जाने का सोच कर ही हमारा दिल घबरा रहा है!”

“अरे, कैसी क्षत्राणी हैं आप, राजकुमारी जी? ... इतना बड़ा संकट आन पड़ा है देश पर... और आप हमसे कुछ दिनों का बिछोह भी नहीं बर्दाश्त कर पा रही हैं!”

“हम क्षत्राणी कहाँ...”

“अच्छा... आप क्षत्राणी नहीं हैं?” हर्ष ने सुहासिनी से ठिठोली करते हुए कहा।

उसने ‘न’ में सर हिलाया।

“तो हमारा जो ‘अंश’ आपने लिया है... उसके बाद भी नहीं?”

हर्ष की बात सुन कर सुहासिनी के गाल लज्जा से लाल हो गए। पिछले कुछ दिनों से वो दोनों अभूतपूर्व तरीके से अंतरंग हो गए थे। ठीक वैसे ही, जैसे पति-पत्नी होते हैं! उनका निकुञ्ज ही उनका राजमहल, उनका शयन-कक्ष था। और प्रकृति ही उनके प्रेम की साक्षी! सूर्य के ताप ने उनके प्रेम की ऊष्मा को बढ़ाया था, चिड़ियों के कूजन ने उनकी केलि-क्रीड़ा में संगीत घोल दिया था। जब रोज़ इतनी निकटता मिले लगे, तो संभव है न कि इसी कारण से वो अपने प्रियतम से दूर होने का सोच कर ही हलकान हुई जा रही थी। वो हर्ष के सीने में सिमट गई।

“आप बहुत गंदे हैं!”

“बिल्कुल भी नहीं... आज तो हमने स्नान भी किया है!” हर्ष की ठिठोली जारी थी।

लेकिन सुहासिनी ने उसको अनसुना कर दिया, “आपने सोचा भी है, आपके पीछे हमारा क्या हाल होगा?”

“हाँ, सोचा है!” हर्ष ने मुस्कुराते हुए कहा।

“क्या सोचा है आपने?”

“... हमने भाभी माँ से बात करी है!”

“क्या!?”

“हाँ... हमने उनसे निवेदन किया है कि हमारे पीछे वो आपका ध्यान रखें! ... आप हमारी ही नहीं, हमारे परिवार की भी अमानत हैं!”

“... फ़िर?”

“भाभी माँ ने कहा कि ‘बेटा... तुम चिंता न करो... तुम हमारे पुत्र हो और सुहास हमारी पुत्री...’! ... समझ रही हैं न आप राजकुमारी जी?”

हर्ष की बात कुछ ऐसी अनोखी थी कि सुहासिनी के गाल पुनः लज्जा से लाल हो गए। लेकिन युवरानी जी द्वारा अपने लिए ‘पुत्री’ सम्बोधन जान कर उसके दिल अपार आनंद से भर गया। अगर युवरानी जी - ओह क्षमा करें - ‘भाभी माँ’ उसके साथ खड़ी हैं, तो फिर किस बात की चिंता! उसके मन की उद्विग्नता कम हुई।

“राजकुमार जी,” उसने कुछ देर के बाद बड़े शांत स्वर में कहा, “आप अपना ठीक से ध्यान रखिएगा...”

हर्ष ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“याद रखिएगा, कि कोई है जो आपके पीछे आपकी प्रतीक्षा कर रही है!”

“आप चिंता न करिए राजकुमारी जी... शत्रु देश शीघ्र ही पराजित होगा... हमको अपने देश के सैन्य बल पर पूरा भरोसा है... और फिर उसके बाद, हम विजयोत्सव मानते हुए आपके संग विवाह करेंगे!”

उस दृश्य की कल्पना कर के सुहासिनी के चेहरे पर मुस्कान आ गई।

हाँ, राजपरिवारों में ऐसा ही होता था। शत्रु राज्य को परास्त करने के बाद, अक्सर ही विजेता राज्य में विवाह समारोह होते थे। लेकिन वो एक राजनीतिक व्यवस्था थी। विजई राज्य के राजा या किसी राजकुमार के साथ, परास्त राज्य की किसी कन्या - राजकुमारी - का विवाह होता था। लेकिन यहाँ तो बात अलग है! उन दोनों का विवाह प्रेम-जन्य है!

कैसा सुन्दर समां बनेगा! वो हर्ष के साथ विवाह की कल्पना मात्र से रोमांचित हो गई।

“... आप,” वो थोड़ा झिझकते हुए बोली, “आज संध्या को हमारे साथ... भगवान एकलिंग के दर्शन करने चलेंगे?”

“राजकुमारी जी... आप पुनः भूल गईं... हम बस दो ही घण्टे में निकलने वाले हैं राजधानी की ओर...”

“ओह... क्षमा करिए कुमार...” सुहासिनी ने अपने अचानक से ही उमड़ आये आँसुओं को छुपाने की गरज़ से, फिर से स्वयं को हर्ष के सीने में छुपा लिया।



*


“युवरानीईई...”

बेला के चीखने की आवाज़ सुन कर प्रियम्बदा चौंकी - ऐसा आचरण तो उसने कभी भी बेला धाय को करते देखा नहीं, सुना नहीं। क्या हो गया ऐसा? वो अपने कक्ष में सोफ़े पर बैठी हुई आज का अखबार पढ़ रही थी, लेकिन बेला की चीख सुन कर वो उठने लगी।

“प्रियम्बदा बेटीईईई...” एक बार और बेला के चिल्लाने की आवाज़ आई।

इस बार उसकी आवाज़ में दर्द साफ़ झलक रहा था।

प्रियम्बदा तेज से चलती हुई महल के सेहन (आँगन) तक आई - बेला वहीं थी।

बेला हाथ में टेलीफोन थामे साफ़ तौर पर काँप रही थी। उसके चेहरे के भाव देख कर कोई भी कह सकता था कि उसको बहुत गहरा घक्का लगा था। कोई बहुत ही बुरी खबर सुन ली थी बेला ने। प्रियम्बदा को समझ आ गया कि कोई बहुत ही बुरी खबर है। बेला धाय ऐसी स्त्री नहीं हैं कि अपने ऊपर से नियंत्रण खो दें।

“धाय अम्मा, क्या हो गया?” प्रियम्बदा ने चिंतित होते हुए पूछा।

“... अनर्थ हो गया बेटी...” कहते कहते बेला की आँखों से आँसू निकलने लगे, “महा अनर्थ...”

“क्या हो गया अम्मा...”

“अनर्थ हो गया बेटी... महाराजाधिराज नहीं रहे...”

“क्या...!!??”

“महारानी भी...” बेला ने काँपते हुए कहना जारी रखा - अब तक उसकी साँसों में हिचकियाँ बँध गई थीं।

“अम्मा... क्या कह रही हैं आप...”

“महा अनर्थ बिटिया... महा अनर्थ...” बेला कहते कहते पछाड़ खा कर ज़मीन पर गिर गई, “... राजकुमार भी...”

वो अपना वाक्य पूरा न कर सकी और फ़फ़क फ़फ़क कर रोने लगी।



*


दुर्घटना का कोई भी उपलब्ध विवरण अपूर्ण था। हाँलाकि पुलिस ने अपनी तरफ़ से तफ़्तीश कर ली थी, लेकिन फिर भी संतोषजनक कोई भी विवरण नहीं मिल पाया था। महाराज, महारानी, और राजकुमार की असमय मृत्यु कोई दुर्घटना थी या फिर किसी शत्रु की साजिश, कह पाना कठिन हो रहा था। और तो और, उनका ड्राईवर भी चल बसा था। हाँ यह अवश्य पता था कि किसी ट्रक वाले ने उनको टक्कर मार दी थी। ट्रक वाला और उसका क्लीनर भी इस घटना में मारे गए! एक दुर्घटना - और इतने सारे शिकार!

अपने प्रिय राजपरिवार के इतने सदस्यों के यूँ अचानक चले जाने से महाराजपुर की जनता ही नहीं, बल्कि आस पास के लोग भी शोकाकुल हो गए थे। महाराज और राजकुमार का यूँ जाना - मतलब राज-तंत्र का एक तरह से अंत! हाँ - भारत के गणराज्य बनने से वैसे भी राज-तंत्र नहीं बचा हुआ था, लेकिन फिर भी, पुराने राजपरिवारों का अपना रसूख़ होता है। वो अवश्य ही राजा न हों, लेकिन प्रजा के मन में राजा अवश्य होते हैं।

ख़ास कर महाराज घनश्याम सिंह जैसे प्रजावत्सल राजा! रानी साहिबा भी बड़ी प्रिय थीं। और सबसे प्रिय था राजकुमार हर्षवर्द्धन! सभी जानते थे कि कैसे वो बिना किसी ढोंग के एक सामान्यजन जैसा रहता था। युवराज हरिश्चंद्र, युवराज अवश्य था, लेकिन सभी जानते थे कि वो राजनीति में कोई रूचि नहीं लेते थे। उनका दृष्टिकोण व्यापारिक हो गया था! एक तरह से वो अपने समय से बहुत आगे चल रहे थे - लेकिन उस समय कोई भी राजवाड़ा, व्यापार करने की नहीं सोचता था। मतलब, अब राजपरिवार का कोई भी सदस्य राजनीति में नहीं रहेगा। इस बात से भी महाराजपुर के लोग उदास थे, और व्यथित थे। अगर ये लोग जीवित होते, तो महाराजपुर का विकास तेजी से हो सकता था। बिना किसी रसूख़ वाले परिवार के, महाराजपुर अपनी अहमियत खो देता।

महाराजपुर में प्रजा ने स्वयं ही पूरे पंद्रह दिवसों का शोक घोषित कर लिया। हाँलाकि राजस्थान राज्य में महाराज, महारानी, और राजकुमार की असमय मृत्यु पर दो दिनों का राजकीय शोक घोषित किया गया था! ऐसा लग रहा था कि पूरा राज्य श्मशानघाट बन गया हो। इतनी भीड़ के मद्देनज़र, परम्परा के विपरीत, अंतिम संस्कार का आयोजन श्मशानघाट में न कर के राज्य के सबसे बड़े खुले मैदान में किया गया। वहाँ इतनी भारी भीड़ उपस्थित थी, लेकिन बच्चों के क्षणिक रुदन के अतिरिक्त घोर चुप्पी फैली हुई थी। केवल राजपुरोहित जी के मंत्रोच्चारण की ही आवाज़ आ रही थी।

जब युवराज ने बारी बारी से तीनों चिताओं को अग्नि दी, तब वहाँ शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति बचा हो, जिसके आँखों में आँसू न हों!

*
Nice and superb update....
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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क्या अनर्थ हो गया??

सबसे बुरा तो सुहासनि के साथ हुआ, जिसके प्रेम का साक्षी कोई भी नही, और ऐसे में कुदरत भी अजीब संयोग करती है।

देखते हैं avsji भाई ने क्या सोच है उसका।

सुहासिनी की दशा खराब तो हो गई है भाई।
देखते जाइए भाई - कुछ तो सोच ही रखा है इस कहानी में!

वैसे अब मुझे मीना की डेस्टिनी दिखने लगी है,

क्या है? थोड़ा हिंट दीजिये?

बाकी लेखक जाने

हा हा !
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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सुहासिनी की दशा खराब तो हो गई है भाई।
देखते जाइए भाई - कुछ तो सोच ही रखा है इस कहानी में!

क्या है? थोड़ा हिंट दीजिये?
बस 2 डेस्टिनी का मिलन करवाएंगे आप शायद।
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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जब तक मै इस फोरम पर एक्टिव रहूंगा या किसी कारणवश मै यहां से बैन न हुआ , तब तक आपके साथ मेरा साथ , मेरा दोस्ताना बना रहेगा।
( ये कई बार आपसे कह चुका हूं। कम से कम यह तो आपको समझना चाहिए था अमर भाई । )

अरे संजू भाई - वो बात नहीं थी। लेकिन 'मोहब्बत का सफ़र' में सुमन/सुनील वाला एपिसोड पढ़ कर कुछ पाठक ऐसे मखाये कि कहानी ही छोड़ दिए!
एक भाई ने पहले तो मुझे नैतिकता का लम्बा चौड़ा लेक्चर दिया, और फिर उसके बाद कहानी लिखी अपनी अम्मा चो** वाली।
अब बताइये! मैं भी दूध का जला हूँ न... लिहाज़ा, मट्ठा फूँक फूँक कर पी रहा हूँ :) हा हा!

आपके लेखनी पर मैने कभी कोई प्रश्न किया ही नही। लेकिन कहानी पर हो रहे घटनाक्रम पर प्रश्न तो किया ही जा सकता है। किसी किरदार के गुणों का विश्लेषण तो किया ही जा सकता है । यह अलग बात है कि मेरी सोच किरदार के कैरेक्टर पर सही न बैठे।

बिल्कुल भाई! बिल्कुल विश्लेषण करें। और आपकी बातें सही हैं।
आपकी बातों का उत्तर भी है मेरे पास - लेकिन वो सब लिखने से बिना वजह वाद-प्रतिवाद होने लगने की शंका है।
मैं केवल संवाद करना चाहता हूँ और लेखन :) तो उसी पर फ़ोकस कर लेता हूँ!

वैसे आप शायद भुल गए हैं कि मीना के लिए शुरुआत मे मैने क्या कहा था !
( मीना रूपी वृक्ष के जड़ पर मट्ठा डालता रहूंगा । अब यह आपको सिद्ध करना है कि मै ऐसा कुछ न करूं :D )

मेरे हिसाब से दिलचस्प कहानी होने वाली है ये।
लेकिन क्या पता - रायता फ़ैल भी सकता है! 😂

" This is It " ऐसे मोड़ पर कहानी को ला छोड़ा कि कुछ समझ नही आ रहा है कि यह सब हुआ क्या !
हर्ष की मौत - एक ऐसे युवक की मौत जो सिर्फ अठारह वर्ष का था , जिसने अपने भविष्य के लिए काफी सपने संजोए होंगे , जो सुहासिनी के साथ मरते दम तक जीना चाहता था , जिसने शायद सुहासिनी को बिन ब्याही मां के कगार पर ला खड़ा किया होगा , जिसके दिल मे देश प्रेम का जज्बा कुट कुट कर भरा हुआ था --यह क्या किया आपने अमर भाई !
इससे दुखद और कुछ नही हो सकता ।
राजा साहब और रानी साहिबा की मौत भी अत्यंत दुखद था लेकिन हर्ष की मौत ने हमारा सीना ज्यादा छलनी कर दिया।

हाँ - किसी युवा की असमय मृत्यु, कभी अच्छी नहीं लगती।

क्या होगा सुहासिनी का ? वो अभी भी बहुत कम उम्र की है। कैसे अपने प्रियतम को भुला पाएगी ? अगर वो गर्भ धारण कर गई तो कैसे इस बेरहम समाज का सामना कर पायेगी ?

बड़ी समस्या है।

काश , हर्ष की मौत इंडिया - चाईना के युद्ध मे हुआ होता। कम से कम सुहासिनी इस बात का फख्र कर सकती थी कि उसका प्रियवर देश के लिए वीरगति को प्राप्त हुआ।
लेकिन हर्ष की मौत रणक्षेत्र मे नही बल्कि कार एक्सिडेंट से हुई है । यह एक्सिडेंट स्वभाविक था या कोई षडयंत्र , पता नही।

हाँ - सस्ती मौत! बिना किसी बड़े काज के हेतु!

बहुत ही इमोशनल अपडेट दे दिया आपने अमर भाई। और एक इमोशनल ट्विस्ट भी।

आउटस्टैंडिंग अपडेट एंड जगमग जगमग भी।

धन्यवाद भाई :)
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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बस 2 डेस्टिनी का मिलन करवाएंगे आप शायद।

मीना अपने जय की तो हो के रहेगी!
आप या संजू भाई चाहे जितना मठ्ठा मक्खन डालें! 😂😂😂
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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Update #31


“माँ,” जय अपनी माँ के साथ इंटरनेशनल ट्रंक कॉल पर बात कर रहा था।

जो बातें अपनी माँ के साथ करने में उसको शर्म और झिझक महसूस हो रही थी, वही बातें चिल्ला चिल्ला कर करनी पड़ रही थीं, क्योंकि उस समय ट्रंक कॉल - ख़ास कर अंतर्राष्ट्रीय कॉल में आवाज़ धीमी आती थी और उनमें बोलने के बाद कुछ पलों का अंतराल भी होता था। ऐसे में जय की स्थिति बड़ी अजीब सी और हास्यास्पद सी हो गई थी... क्योंकि क्लेयर भी वहाँ उपस्थित थी।

“मेरे लाल को प्रेम हो गया है,” उधर से माँ की आवाज़ आई।

ज़ाहिर सी बात थी कि भाभी ने माँ को सब कुछ बता दिया था।

“बोल न... चुप क्यों है?”

“माँ... अब आपसे यह सब कैसे कहूँ!”

“अरे मेरा लाडला बेटा... अपनी माँ से लज्जा करेगा? ... अपने हाथों से तुझे से कर के बड़ा किया है! ... और वैसे भी किसी भी माँ के लिए यह तो सबसे ख़ुशी और सुख का समय होता है, कि उसका बेटा अपना घर बसा सके...”

“माँ...” बातूनी जय को समझ नहीं आया कि क्या ही कहे।

“अच्छा,” माँ ने ही उसको संयत करने के लिए बातचीत का सूत्र थमाया, “... नाम तो बता बच्ची का?”

जय जानता था कि माँ को मीना का नाम पता है, लेकिन वो शायद इसलिए पूछ रही हैं कि जय को झिझक न महसूस हो।

“मीनाक्षी...”

“अरे वाह! बड़ा सुन्दर नाम है... मीनाक्षी...” मीना का नाम लेते हुए, माँ न जाने किन विचारों में खो गईं, फिर बोलीं, “बड़े लम्बे समय से मदुरै जाने का मन था... लगता है कि तुम दोनों के साथ ही जाने का पुण्य मिलेगा!”

पहले तो जय को समझ नहीं आया कि माँ ने क्या कह दिया, लेकिन फिर जब उसको समझ आया तो वो आश्चर्यचकित रह गया।

“माँ?” जय आश्चर्य से बोला।

इस छोटे से, एक वाक्य से ही माँ ने उसको मीना से विवाह की अनुमति भी दे दी थी, और मीना को अपने संसार में स्वीकार भी कर लिया था। आश्चर्य की बात तो थी ही!

“अरे... इसमें इतना चौंक क्यों रहा है? ... मुझे अपने खून पर भरोसा है! ... मैंने तुझे अच्छे संस्कार दिए हैं... तुझे वो लड़की पसंद आई, मतलब, वो बड़ी अच्छी लड़की होगी। आदित्य और बहू भी तो बहुत पसंद करते हैं तेरी मीना को,” माँ कहते कहते हँसने लगीं, “... और तो और, ये दोनों हमारे छुटकू - अजय और अमर - वो दोनों भी उसको चाची चाची कह कर बुला रहे थे फ़ोन पर!”

“ओह माँ! थैंक यू थैंक यू!”

“पगला है तू... तुझे क्या लगा? तेरी पसंद मुझे नहीं पसंद आएगी? ... क्लेयर वाली गलती मैं नहीं दोहराऊँगी! बूढ़ी हो गई हूँ तो क्या - सीख तो रही ही हूँ अभी भी!”

“माँ... आई लव यू!”

“हाँ, दूर से ही मस्का लगता रह! कब आएगा यहाँ? आँखें तरह रही हैं मेरी! इस बार आना, तो बहू को भी साथ लिवा लाना!”

“माँ... हमने शादी नहीं की है अभी तक...”

“हम्म... उसके लिए हम हैं न!” माँ ने हँसते हुए कहा, “... एक काम करो, जल्दी से जल्दी मैरिज लाइसेंस ले लो। ... नहीं उससे पहले भी, यहाँ आने का टिकट ले लो... और आज ही बहू की कुछ तस्वीरें पोस्ट कर दो!”

“जी माँ... सब कुछ कर दूँगा!”

“यहाँ अकेले जी नहीं लगता!”

“आप भी न माँ! हम सबको यहाँ भेज कर, वहाँ अकेली रह गई हैं... आप भी आ जाईए न!”

“कैसे आ जाऊँ बेटे... हमारा सामाजिक सरोकार है यहाँ... कितने सारे लोग डिपेंडेंट हैं हम पर...”

“माँ... वही सब बहाने हैं... कोई बात नहीं! इस बार मीना और मैं आपको मनाने की कोशिश करेंगे!”

“हा हा... कहीं ऐसा न हो कि मुझको शिकागो बुलाने के चक्कर में तुम दोनों ही यहाँ दिल्ली आ जाओ!”

“उसमें क्या गलत है माँ? ... आपके पास रहने का तो हमेशा ही मन करता है मेरा...”

“तो आ जा यहीं! ... सब जने... बड़ी धूमधाम से तुम दोनों को ब्याह दूँगी! ... फिर शुरू होगी मेरी तीर्थयात्रा!”

“माँ... हा हा... आप भी न!”

“अच्छा सुन...”

“हाँ माँ, बोलिए न...”

“मीनाक्षी से भी बात करवा दे मेरी... देख नहीं सकती, तो क्या सुन भी नहीं सकती?”

“जी माँ... करवाता हूँ... दो घण्टे में?”

“बहुत अच्छा... बहुत अच्छा!”


*


माँ से बात करनी है - यह सोच सोच कर मीनाक्षी के छक्के छूट रहे थे।

इतनी नर्वस वो शायद ही आज से पहले कभी हुई हो! अपने इंटरव्यू के समय भी नहीं। जय ने कई बार उसको हौसला दिलाया था कि माँ बहुत ही कोमल हृदय वाली हैं, लेकिन फिर भी! प्रत्येक माँ की अपने होने वाली बहू से बड़ी सारी अपेक्षाएँ होती ही हैं। इसलिए उसके मन में डर बैठा हुआ था कि कहीं उसके मुँह से कुछ ऐसा न निकल जाए, जिससे माँ की नज़र में उसकी वैल्यू घट जाए। कमरे में ठंडक भी नहीं थी, लेकिन उसके हाथ ठन्डे पड़ रहे थे।

जय ने देखा कि मीना आवश्यकता से कहीं अधिक नर्वस हो रही है - मतलब वो जितना उसको हौसला देने, समझाने की कोशिश कर रहा था, बात उतनी ही खराब हो रही थी।

तो उसने समझाना बुझाना छोड़ कर सीधा देश में कॉल लगाई। कॉल लगने में थोड़ा समय लगना था - लेकिन अंततः लग ही गया।

“माँ?”

“आ गई मेरी बहू?”

“जी माँ, लीजिए... बात कीजिए...” जय ने फ़ोन को मीना की तरफ़ बढ़ाते हुए कहा, “मीना, माँ!”

तेजी से धड़कते दिल और काँपते ठण्डे हाथ से मीना ने फ़ोन का रिसीवर पकड़ा, “हे हेलो...”

“मीनाक्षी बेटा...” माँ की मुँह से अपने लिए ‘बेटा’ शब्द सुन कर मीना की जान में जान आ गई।

“माँ... हाँ माँ... प्रणाम!”

“आयुष्मती भव... सौभाग्यवती भव... यशस्वी भव...”

माँ की ममता आशीर्वादों के रूप में मीनाक्षी के ऊपर बरसने लगी, तो वो अपने आँसुओं को रोक न सकी। भावनाओं का बाढ़ कुछ ऐसा उमड़ आया कि उसका गला रुँध गया और बोलती बंद हो गई। अचानक ही उसको चुप हुआ सुन कर दूसरी तरफ़ से माँ घबरा गईं,

“मीनाक्षी बेटे... मीना... क्या हुआ बेटा?”

आई ऍम सॉरी, माँ... थोड़ी देर के लिए गला भर आया था...”

“अरे! क्या हो गया?”

“कुछ नहीं माँ... इतने प्यार से आशीर्वाद मिले हुए कई साल हो गए...”

माँ जानती थीं कि मीना के परिवार में अब कोई नहीं हैं।

“मैं हूँ न बच्चे... और तुम अब अपनी हो...”

उधर से माँ कह रही थीं, और इधर से मीना मन ही मन ईश्वर से यही कामना कर रही थी कि, ‘कुछ भी हो प्रभु - बस, मुझे इस परिवार में आश्रय दे दीजिए...’

होने वाली सास और होने वाली पुत्रवधू के बीच कुछ देर तक बातचीत चली, फिर रोज़ रोज़ बातें करने का वायदा ले कर, उस दिन के लिए दोनों विदा हो गई।


*


राजपरिवार के शोक के कोई दो महीने बीत चुके थे।

देश पर युद्ध के बादल और भी गहरा गए थे। दो दिनों पहले ही थाग्ला चोटी पर हुई घटनाओं के बाद अब बात साफ़ हो गई थी। चीन के साथ युद्ध अब तय था। प्रधानमन्त्री जी ने प्रतिक्षण और जटिल होती जा रही दिक्कतों को सुधारने का प्रयास किया तो, लेकिन असफल रहे। एक सप्ताह बाद यह बात पक्के तौर पर समझ में आ गई कि चीन अब आक्रमण करने ही वाला है। सीमा पर चीनी सैन्य-बल का भारी जमावाड़ा हो गया था। हाँलाकि महाराज घनश्याम किसी भी तरह के युद्ध के खिलाफ थे - पाकिस्तान के साथ कबायली युद्ध में देश को जान माल का जो नुकसान हुआ था, वो उससे प्रभावित बिलकुल भी नहीं थे। लेकिन अगर युद्ध होना ही है, तो वो उसमें देश के साथ खड़े थे।

महाराज की ही तरह युवराज भी युद्ध के खिलाफ थे। लेकिन उनका दृष्टिकोण व्यापारिक था। एक तो पिताजी महाराज ने प्रधानमंत्री जी से मिल कर, अपनी सामर्थ्य से कहीं अधिक आर्थिक योगदान करने का वचन दे दिया था, और ऊपर से साफ़ था कि चीन का सैन्यबल हमने कहीं कमतर आंक लिया था। लिहाज़ा, अगर युद्ध एक महीना या उससे ऊपर चलेगा, तो देश की आर्थिक स्थिति बेहद खस्ताहाल हो जाने वाली थी।

अपने इस रवैये के कारण युवराज की अन्य राजपरिवारों से अनबन हो गई। लोग बचे हुए राजपरिवार पर कम्युनिस्ट होने का दोष लगाने लगे - जो उस समय एक गाली के समान ही था। राजपरिवार पर पहले से ही एक श्राप लगा हुआ था, और उनके रसूख पर अब जो भी कसर बची हुई थी, वो सब इस व्यर्थ के इलज़ाम ने पूरा कर दिया। जैसा कि सभी को संदेह था, महाराजपुर राजपरिवार का राज्य और देश की राजनीतिक पर बना हुआ दबदबा लगभग समाप्त ही हो गया। युवराज हरिश्चंद्र चिढ़, खीझ, अपने प्रिय माता पिता और भाई की मृत्यु के दुःख, अवसाद, और निराशा के मारे देश छोड़ने की भी सोचने लगे। लेकिन अभी की स्थिति में वो संभव नहीं था।

प्रियम्बदा भी देख रही थी कि कैसे उसका पति अवसाद के कारण दुःखी रहने लगा है। लेकिन परिस्थितियाँ कुछ ऐसी थीं, कि उन पर किसी का वश नहीं था। वो बस कोशिश कर के हरिश्चंद्र को दिलासा देती रहती कि सब ठीक हो जाएगा। लेकिन कुछ ठीक न हुआ। युद्ध छिड़ ही गया। पतिस्तान के साथ युद्ध जीत कर जो भी ग़लतफ़हमियाँ पाली हुई थीं, वो सब जाती रहीं। चीनी फ़ौज, देश की फ़ौज से चार गुणी थी। इसलिए नतीज़ा साफ़ था : एक महीना चले युद्ध के बाद चीन की विजय हुई। युद्ध के पहले, चीन ने जिन जिन हिस्सों को अपना घोषित किया हुआ था, वहाँ तक पहुँच कर एकतरफ़ा युद्ध-विराम लगा दिया।

देश में भी, जिस किसी प्रभावशाली व्यक्ति पर कम्युनिस्ट होने का संदेह हुआ, उनको या तो कारगर में दाल दिया गया, या फिर नज़रबंद कर दिया गया, या फिर अन्य प्रतिबन्ध लगा दिए गए। राजपरिवार इस मामले में भाग्यशाली निकला। उस पर केवल छोटे मोटे प्रतिबन्ध ही लगे। लेकिन उनकी जो भी गरिमा थी, और जो भी सामाजिक प्रतिष्ठा थी, वो तार तार हो गई! युवराज - जो अब केवल नाम के युवराज रह गए थे - का मन इस बात से और भी खट्टा हो चला। पाश्चात्य देश, इस युद्ध में भारत की स्थिति के प्रति अधिक सहानुभूति रखते थे। हरिश्चंद्र का मन हुआ कि वो अमेरिका, कनाडा, या फिर ब्रिटेन चले जाएँगे और वहीं रहेंगे। लेकिन प्रियम्बदा ने उनको समझा बुझा कर किसी तरह से मना लिया।


*
 

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Update #32


शिकागो शहर जिस राज्य में है, उसका नाम है इलिनॉय। यहाँ पर शादी-ब्याह का तरीका थोड़ा अलग है। यहाँ पर विवाहित जोड़ों को मैरिज लाइसेंस चाहिए ही चाहिए, नहीं तो कानूनी तौर पर दिक्कत होने की सम्भावना रहती है।

परिवार की सहमति से एक सोमवार मीना, जय, आदित्य, क्लेयर, अजय और अमर - सभी काउंटी क्लर्क के ऑफिस पहुँच गए। मीना की तरफ से जेसन और उसके ऑफिस के कोई छः सहकर्मी उपस्थित थे, और ईआईटी के भी उतने ही लोग - जो मित्रों की श्रेणी में थे - उपस्थित थे। सभी अच्छे कपड़े पहन कर उपस्थित थे। सभी आवश्यक कागज़ात जमा कर के मीना और जय मैरिज लाइसेंस मिलने का इंतज़ार कर रहे थे।

“आदि,” क्लेयर ने अपने पति से कहा।

“हाँ? क्या बात है जानेमन?”

“हनी, हम इतने सारे लोग यहाँ आ गए हैं... और मजिस्ट्रेट का ऑफ़िस भी यहीं है... तो...”

“तो...?” आदित्य समझ तो गया कि क्लेयर क्या कह रही है।

“तो... हम लोगों ने अच्छे कपड़े भी पहन रखे हैं... तो क्यों न इन दोनों से वेडिंग वावज़ भी पढ़वा लिए जाएँ!”

“अरे!”

“इसमें इतना क्या चौंकना? ... घर (भारत देश) चल कर ढंग की शादी कर लेंगे। कम से कम इनकी मैरिज यहीं रजिस्टर हो जाएगी! बाद में बहुत सारा झँझट कम हो जाएगा!” क्लेयर ने समझाते हुए कहा, “... क्या कहते हो जय? मीना?”

“भाभी...” जय ने अपने अंदाज़ में कहा, “नेकी और पूछ पूछ!”

“मुझे मालूम था कि ये लड़का तुरंत मान जाएगा... मीना? आर यू ओके विद दिस?” क्लेयर खिलखिला कर हँसते हुए बोली।

मैरिज लाइसेंस केवल दो महीने के लिए ही मान्य होता है, और उसके बाहर जाने पर पुनः लेना पड़ता है। बिना उसके शादी नहीं होती। अन्यथा जिस देश या राज्य में शादी कर रहे हैं, वहाँ से लाइसेंस या सर्टिफिकेट लेने पड़ते हैं। उस समय देश में शादी का सर्टिफिकेट देने की समुचित व्यवस्था नहीं थी, और इधर उधर के चक्कर लगाने में केवल परेशानियाँ ही होती थीं।

मीना को क्यों इस बात से इंकार होता? वो तो कब से जय से शादी करने के लिए मरी जा रही थी। वो जय की हो जाए, तो बस, उसका जीवन सफल हो जाए - वो इसी मन्त्र पर काम कर रही थी।

उसने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

क्लेयर ने चौड़ी सी मुस्कान दी, फिर अपने पति से कहा, “हनी, प्लीज़ डू द नीडफुल!”

“लेकिन अंगूठी वगैरह...” आदित्य ने कहा।

आई एन्टिसिपेटेड इट आल...” क्लेयर ने विजई मुस्कान के साथ कहा, “ये देखो!”

कह कर उसने अपने पर्स से दो डिब्बियाँ निकालीं।

“पिछले कुछ दिनों से मैं यही सब करने में बिज़ी हूँ... आप लोगों को यह सब करने के लिए टाइम ही कहाँ है!”

“ओह मेरी जान, यू आर द बेस्ट!” कह कर आदित्य ने क्लेयर के मुँह को चूम लिया।

“हाँ भाभी... यू आर द बेस्टेस्ट...” कह कर जय ने भी क्लेयर के दोनों गालों को चूम लिया और फिर उसके पैरों को छू कर उसके गले लग गया।

“हा हा... तुम कुछ नहीं कहोगी मीना?” क्लेयर ने मीना को छेड़ते हुए कहा।

आई डोंट नो क्लेयर... आई ऍम स्पीचलेस!” मीना ने बड़ी संजीदगी से कहा, “यू आर सच अ डार्लिंग... आई विश आई हैड अ मदर... ऑर ऐन एल्डर सिस्टर लाइक यू...”

“आSSSS... कम हीयर यू...” कह कर क्लेयर ने मीना को भी अपने आलिंगन में भर लिया।

फिर आदित्य को देख कर, “आप गए नहीं अभी तक?”

“जाता हूँ भाग्यवान... जाता हूँ...” कह कर आदित्य मजिस्ट्रेट ऑफ़िस की तरफ़ चल दिया।


*


गौरीशंकर जी बड़े बोझिल क़दमों से राजमहल के अहाते में खड़े हो कर युवरानी प्रियम्बदा की प्रतीक्षा कर रहे थे। ऐसा लगता था कि न जाने कितना समय बीत गया। पिछली बार वो यहाँ आए थे, तो कैसी अद्भुत सी चहल पहल थी महल में! ... लेकिन आज! भाँय भाँय करता हुआ सन्नाटा पसरा हुआ था चहुँओर! वैसा ही सन्नाटा उनके हृदय में भी पसरा हुआ था। महाराज महारानी और राजकुमार हर्ष की मृत्यु का जितना सदमा उनको पहुँचा था, वो शब्दों में कह नहीं सकते थे। जो उनके दिल पर बीत रही थी, उसको झेलने के लिए वो मानसिक रूप से तैयार ही नहीं थे!

युवा होती बेटी की वेदना वो कैसे देख सकते थे? जैसी मुर्दनी सुहासिनी के चेहरे पर छाई रहने लगी थी, उसको देख कर उनको भयंकर पीड़ा होती। लेकिन वो बिटिया को समझाएँ भी तो कैसे? क्या कह कर उसको दिलासा दें? सारी बातें बेमानी हैं जब प्रियतम का साथ ही यूँ टूट जाए! कैसी रौनक रहने लगी थी सुहासिनी के चेहरे पर राजकुमार से मिलने के बाद... लेकिन अब! ठीक से जवान भी नहीं हुई थी उनकी पुत्री, और उस पर ये असमय वैधव्य!

हाँ, वैधव्य! बिना ब्याह का वैधव्य! चेहरा उजाड़ हो गया था सुहासिनी का! उन्होंने अपनी बिटिया का यह नाम इसलिए रखा था, क्योंकि जब वो इस संसार में आई थी, तब वो रो नहीं रही थी, बल्कि मुस्कुरा रही थी... किलकारियाँ भर रही थी! सुहासिनी! उसको देख कर ही उनके दिन भर की थकावट यूँ गायब हो जाती! अब वही लड़की ऐसी दिखती थी कि जैसे उसने अपने जीवन में एक बार भी प्रसन्नता न देखी हो!

इस बात को भी वो जैसे तैसे सम्हाल लेते। किन्तु एक भीषण समस्या आन पड़ी थी। उसका कोई समाधान नहीं सूझ रहा था उनको।

“काका,” प्रियम्बदा ने अहाते में आते हुए, गौरीशंकर जी को हाथ जोड़ कर प्रणाम किया, “प्रणाम!”

उन्होंने युवरानी को देखा - हाँ, अवश्य ही राजपरिवार का रसूख़ कम हो गया था, लेकिन गौरीशंकर जी की आँखों में अभी भी पानी था। जिस परिवार से उनको ऐसा सम्मान मिलता आया था, उस परिवार के लिए उनके मन केवल प्रेम और आदर ही था।

प्रियम्बदा को देख कर उनका दिल भर आया - अपनी सुहासिनी की ही तरह युवरानी की वेशभूषा भी साधारण और फ़ीकी हो गई थी। पूरे राज्य में सर्वविदित था कि बहू नहीं, बेटी आई है राजपरिवार में! युवरानी जी का व्यक्तित्व वैसा ही था। तो आश्चर्य नहीं कि पिता की मृत्यु के बाद वो शोकाकुल रहतीं। पिछली बार प्रियम्बदा ने राजसी नीले रंग की खंडुआ रेशम की रंग-बिरंगी साड़ी पहनी हुई थी। लेकिन आज उसने हल्के नीले रंग की कपास मिली हुई रेशमी साड़ी पहनी हुई थीं। उनके चेहरे का नूर भी जैसे चला गया था।

“खम्मा घणी, युवरानी साहिबा…”

“काका,” प्रियम्बदा ने जबरन मुस्कुराते हुए कहा, “हम तो बेटी हैं आपकी...”

“युवरानी बेटी...” बहुत सम्हालने के बाद भी उनकी आँखों से आँसू छलक गए, और वो फ़फ़क फ़फ़क कर रोने लगे, “कैसा घोर अनर्थ हो गया... कैसा अत्याचार...!”

प्रियम्बदा ने गहरी साँस भरी - उसकी साँस कांपती हुई आई। मन ही मन वो भी रो ही रही थी।

“भाग्य पर किसका वश है काका...” उसने आकाश की तरफ़ देखते हुए कहा, “आईये... अंदर आईये न!”

“क्षमा करें बेटी... किन्तु भिक्षुक को इतना आदर न दीजिए...”

“काका, ये आपने क्या कह दिया!”

“सच ही कहा बेटी...” गौरीशंकर जी हिचक गए, “आप दाता हैं और हम भिक्षुक! यही सत्य है। आज भी हम आपसे कुछ माँगने ही आए हैं!”

“क्या हो गया काका! क्या मांगने आये हैं?”

“अपनी समस्या का निदान!”

“काका!”

“... एक घोर विपदा आन पड़ी है युवरानी बेटी...”

“विपदा? क्या हुआ काका?” प्रियम्बदा चिंतित हो गई, “... सुहास तो ठीक है!”

उन्होंने ‘न’ में सर हिलाया।

“क्या हुआ?” प्रियम्बदा ने चिंतित स्वर में पूछा।

“किस मुँह से यह सब कहने की धृष्टता करूँ बेटी...” वो हिचकिचाए, “सुहासिनी... सुहासिनी... गर्भ... से... है...”

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Update #33


मजिस्ट्रेट ऑफ़िस में जा कर जब आदित्य ने उसको सारी बात सुनाई, तब वो भी हँसने लगा। सोमवार होने के कारण वैसे भी आज कोई विवाह का समारोह नहीं था, और समय ही समय था। इसलिए उसने आदित्य को कहा कि एक घंटे में वो जय और मीना की शादी करवा सकता है। लेकिन उसने बताया कि उसको कोई भारतीय रीति नहीं आती, इसलिए वो केवल पाश्चात्य तरीके से ही शादी करवा पाएगा। कानूनन यह शादी मान्य होगी - और उसमें कोई समस्या नहीं होगी।

आदित्य को इस बात से कोई समस्या नहीं थी! भगवान तो सभी एक ही हैं। वैसे भी, भारत जा कर धूम-धाम से, रीति के हिसाब से दोनों का ब्याह होना ही था। इसलिए यह कोई बड़ी बात नहीं थी। वो भागा भागा मीना, जय, और क्लेयर को यह खुशखबरी सुनाने लगा।

मैरिज लाइसेंस मिलते ही सभी लोग मजिस्ट्रेट के ऑफिस में पहुँच गए। ऑफिस बहुत बड़ा नहीं था, लेकिन इतना बड़ा अवश्य था कि एक दर्ज़न लोग बेहद आराम से वहाँ उपस्थित हो सकें।

मजिस्ट्रेट ने शुरू किया,

डिअर फ्रेंड्स, व्ही आर गैदर्ड हियर, इन द प्रेसेंस ऑफ़ गॉड टू विटनेस एंड ब्लेस दिस यूनियन, एस मीनाक्षी एंड धनञ्जय - जय ज्वाइन टुगेदर इन होली मॅट्रिमनी!"

[अब आगे का मैं अधिकतर हिंदी में अनुवाद कर के लिखूँगा, नहीं तो दो दो बार लिखना पड़ेगा]

"शादी एक पवित्र बंधन है, जिसको हल्के में, और बिना अपने स्नेही स्वजनों से सलाह मशविरा किए नहीं करना चाहिए... बल्कि सोच समझ कर, और पूरी श्रद्धा के साथ करना चाहिए... स्त्री पुरुष एक दूसरे के पूरक हैं, और मिल कर सृष्टि का सृजन करते हैं। यही ईश्वर द्वारा परिवार की परिकल्पना है।”

इतना उपदेश दे कर मजिस्ट्रेट मुस्कुराया।

जय और मीना उत्साह में चमक रहे थे। क्या करने यहाँ आये थे, और क्या करने लगे थे! दिन ने कैसा रोचक और आश्चर्यजनक मोड़ ले लिया था। दोनों ने ही मन ही मन क्लेयर को धन्यवाद किया।

“अगर किसी को ऐसा लगता है कि जय और मीना को शादी के बंधन में नहीं बंधना चाहिए, तो वो सामने आए, अपनी बात कहे, और अपने दिल का बोझ हल्का कर दे!”

इस बात पर सभी मुस्कुराये। भला किसको उनके बंधन पर ऐतराज़ होता? सभी तो दोस्त ही थे।

“जय और मीना... हम यहाँ ईश्वर की, अपने परिवारों की, और अपने मित्रों की उपस्थिति में मौजूद हैं... अगर तुम दोनों में से किसी को ऐसा कोई भी कारण लगता है कि तुमको ये शादी नहीं करनी चाहिए, तो बोलो...”

दोनों ने कुछ नहीं कहा और बस मुस्कुराते रहे।

“बहुत बढ़िया...” मैजिस्ट्रेट ने कहा, “हू प्रेजेंट्स मीनाक्षी टू बी मैरीड टू जय?”

दो पल सभी चुप रहे।

क्लेयर ने आदित्य को कोहनी मारी,

वो चौंक के बोला, “आई डू...”

पाश्चात्य व्यवस्था में भी लड़की का पिता ही कन्यादान करता है। लेकिन मीना का तो और कोई था ही नहीं।

आदित्य ने कहा और मीना को जय के सामने खड़ा कर के, स्वयं उसके पीछे खड़ा हो गया।

मजिस्ट्रेट ने दोनों को उसकी तरफ़ देखता हुआ देख कर कहा,

प्लीज फेस ईच अदर एंड ज्वाइन हैंड्स (कृपया एक दूसरे का हाथ थाम कर एक दूसरे की तरफ़ देखें),”

जय और मीना ने निर्देशानुसार वही किया।

“जय, आप अपने मन में, पूरी शुद्ध रूप से सोच कर मेरी बात दोहराएँ,”

जय ने समझते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया,

“मैं, ‘धनञ्जय जय सिंह’...” जय ने दोहराया, “भगवान को हाज़िर नाज़िर जान कर... ‘मीनाक्षी दहिमा’ को... अपनी धर्मपत्नी स्वीकार करता हूँ... और आज इस दिन, इस क्षण से... अपने पूरे जीवन भर... हर भले - बुरे, ऊँच - नीच, लाभ - हानि, सम्पन्नता - विपन्नता, रोग - निरोग में... पूरे दिल से उनका साथ निभाऊँगा... जब तक मृत्यु हम दोनों को अलग न कर दे... यह मेरी अखंड प्रतिज्ञा है!”

जय ने हर प्रतिज्ञा दोहराई।

फिर वो मीना से बोला, “मीना, अब आप अपने मन में, पूरी शुद्ध रूप से सोच कर मेरी बात दोहराएँ,”

मीना ने भी ‘हाँ’ में सर हिलाया,

“मैं, ‘मीनाक्षी दहिमा’...” मीना ने दोहराया, “भगवान को हाज़िर नाज़िर जान कर... ‘धनञ्जय सिंह’ को... अपना पति स्वीकार करती हूँ... और आज इस दिन, इस क्षण से... अपने पूरे जीवन भर... हर भले - बुरे, ऊँच - नीच, लाभ - हानि, सम्पन्नता - विपन्नता, रोग - निरोग में... पूरे दिल से उनका साथ निभाऊँगी... जब तक मृत्यु हम दोनों को अलग न कर दे... यह मेरी अखंड प्रतिज्ञा है!”

अपनी प्रतिज्ञा करते करते मीना की आँखों में आँसू आ गए। लेकिन वो उनको पोंछ नहीं सकती थी - दोनों ने एक दूसरे का हाथ जो थामा हुआ था।

मजिस्ट्रेट ने ये देखा तो मुस्कुराया।

“रिंग्स?” उसने आदित्य की तरफ़ देखा।

क्लेयर ने दोनों डिब्बियाँ तुरंत निकाल कर दिखाईं, “हियर...”

मजिस्ट्रेट ने कहना शुरू किया, “हे प्रभु, इन अँगूठियों में अपनी कृपा, अपना आशीर्वाद दीजिए, और जय और मीना के विवाह को अपना आशीष दीजिए... आपकी अनंत प्रज्ञा, आपकी अनंत कृपा इन बच्चों पर जीवन पर्यन्त बनी रहे। आमेन!”

प्लीज़ एक्सचेंज द रिंग्स वन बाई वन...” उसने निर्देश दिया।

पहले जय की बारी थी, “मीना, आई गिव यू दिस रिंग एस अ सिम्बल ऑफ़ माय लव एंड डिवोशन... विद आल दैट आई हैव, एंड आल दैट आई ऍम, आई प्रॉमिस टू हॉनर एंड चेरिश यू, इन माय गॉड्स नेम!”

फिर जय ने मीना को अँगूठी पहनाई।

अब मीना की बारी थी, “जय, आई गिव यू दिस रिंग एस अ सिम्बल ऑफ़ माय लव एंड डिवोशन... विद आल दैट आई हैव, एंड आल दैट आई ऍम, आई प्रॉमिस टू हॉनर एंड चेरिश यू, इन माय गॉड्स नेम!”

फिर मीना ने जय को अँगूठी पहनाई।

इस पर उपस्थित सभी लोग तालियाँ बजाने लगे।

मजिस्ट्रेट मुस्कुराया, और हँसते हुए बोला, “वेट वेट! लेट मी फर्स्ट प्रोनाउन्स देम...”

उसकी बात पर सभी हँसने लगे।

“जय... मीना... बिफोर आई प्रोनाउन्स यू, एक दूसरे को खूब प्यार करना - ठीक वैसे ही जैसे आपके परमेश्वर आपसे करते हैं। विवाह बहुत पवित्र वस्तु है... यह जीवन भर न टूटने वाला वायदा है जो आप एक दूसरे को कर रहे हैं... दोनों के बीच हमेशा प्रेम, आदर, धैर्य, विश्वास, और दयाभाव बनाए रखें। ईश्वर में भरोसा रखें। ... हर कठिन समय में वो आपको राह दिखलाएँगे! ... आप दोनों ऐसा करेंगे तो आप दोनों का जीवन खुशियों से भर जाएगा!”

यह सुन कर जय और मीना ने एक दूसरे का हाथ मज़बूती से थाम लिया।

मजिस्ट्रेट ने मुस्कुराते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया, फिर बोला,

बाय द पॉवर वेस्टेड इन मी बाय द ब्यूटीफुल स्टेट ऑफ़ इलिनॉय, इन द प्रेसेंस ऑफ़ गॉड एंड द विटनेस ऑफ़ फैमिली एंड फ्रेंड्स, इट इस माय ग्रेट प्रिविलेज टू प्रोनाउन्स यू हस्बैंड एंड वाइफ!

इस बात पर फिर से तालियाँ बजने लगीं।

यू मे किस द ब्राइड!”

इतना सुनते ही दोनों एक दूसरे के आलिंगन में समां गए, और दोनों के होंठ, एक प्रेममय चुम्बन में लिप्त हो गए।

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