भाग 2 चालु .........
दृश्य में बदलाव अगला दिन
आज का दिन श्रृष्टि के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि उसे आज साक्षात्कार (इंटरव्यू) देने जाना था। ऐसा नहीं की श्रृष्टि आज पहली बार साक्षात्कार देने जा रहीं थीं। बीते दो वर्षो में श्रृष्टि ने कई बार साक्षात्कार दिया। कभी नौकरी मिला कभी नहीं, जहां मिला वहां के आला अधिकारियों के रवैया के चलते कुछ दिन बाद नौकरी छोड़ दिया या फिर नौकरी छोडनी पड़ी। नौकरी करना जरूरी था साथ ही आत्मसम्मान भी जरूरी था। आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाकर नौकरी करना श्रृष्टि को कभी गवारा नहीं था। शायद यहीं एक वजह रहा होगा जिस कारण श्रृष्टि को नौकरी मिलने के बाद भी नौकरी छोड़कर दर दर की ठोकरें खाने पर मजबुर कर दिया होगा।
अच्छे से तैयार होकर एक बार अपने प्रमाण पत्रों को खंगाला, कहीं कोई एकाद रह तो नहीं गया। रह गया हों तो उसे रख ले, सभी प्रमाण पत्रों को खंगालकर संतुष्ट होते ही दोनों हाथ जोड़े अपने इष्ट देव को याद करते हुए बोलीं…हे प्रभु तू ही आसरा तू ही सहारा बस इतनी कृपा कर देना आज फिर से मुझे खाली हाथ न लौटना पड़े।
इष्ट देव को अर्जी लगाकर श्रृष्टि रूम से बाहर आई, उस वक्त श्रृष्टि की माताश्री कीचन में थी। तो आवाज देते हुए श्रृष्टि बोलीं... मां मैं जा रहीं हूं।
"रूक जा श्रृष्टि बेटा" इतना बोलकर माताश्री एक हाथ कि मुट्ठी शक्ति से भींचे हुए दुसरे हाथ में एक कटोरी, जिसमे कुछ जल रहा था। शायद कपूर की टिकिया होगा। होठों पर मुस्कान लिए श्रृष्टि के पास पहुंच गई फ़िर कटोरी वाले हाथ को सामने रखकर दूसरे हाथ को श्रृष्टि के सिर के ऊपर से घूमने लग गई। साथ ही कुछ बुदबुदा रहीं थी। ये देखकर श्रृष्टि मंद मंद मुस्कुराते हुए बोलीं... मां ये क्या कर रहीं हों?
माताश्री क्या बोलती उनका मुंह तो पहले से ही व्यस्त था। इसलिए बिना कुछ बोले अपना काम करती रहीं। जब पूर्ण हों गया तो अपने मुट्ठी में मौजुद चीजों को कटोरी में झोंक दिया फ़िर बोलीं... मैं अपने बेटी के ऊपर मंडरा रहीं सभी बलाओं को उतार रहीं थीं। जिससे की मेरी बेटी को आज खाली हाथ न लौटना पड़े।
खो खो खो ख़ासते हुए श्रृष्टि बोलीं...मां आपको यहीं सब करना था तो पहले ही बता देती। मैं थोडा जल्दी तैयार हों जाती। आपके कारण मुझे देर हों रहीं है एक तो यहां से सवारी भी देर से मिलती हैं।
माताश्री कटोरी को किनारे में रखकर कीचन की ओर जाते हुए बोलीं... श्रृष्टि बेटा याद रखना बिना संघर्ष के शौहरत नहीं मिलता, संघर्ष जितना ज्यादा होगा शौहरत की इमारत उनता ही ऊंचा होगा।
"मां, अब आप कीचन में क्यों जा रहीं हो मुझे देर हों रहीं हैं" माताश्री को कीचन की ओर जाते हुए देखकर श्रृष्टि बोलीं मगर माताश्री बिना कोई जवाब दिए कीचन में घुस गई फिर एक कटोरी साथ में लेकर श्रृष्टि के पास पहुंची ओर "बेटा मुंह खोल" बोली, श्रृष्टि के मुंह खोलते ही एक चम्मच भरकर दही खिलाया फिर शुभकनाएं देकर बेटी को जानें दिया।
कुछ मिनटों का फासला तय करके श्रृष्टि उस जगह पहुंच गई जहां से उसे सवारी करके अपने गंतव्य को जाना था। कुछ वक्त प्रतीक्षा करने के बाद एक ऑटो वाला आया। जिसे रोककर श्रृष्टि बोलीं... भैया तिवारी कंसट्रक्शन ग्रुप चलोगे।
"माफ करना बहन जी उस रूट का मेरे पास परमिट नहीं हैं।" इतना बोलकर ऑटो वाला चलता बना और बेचारगी सा मुंह बनाए ओटो वाले को जाता हुआ श्रृष्टि देखती रहीं। इंतेजार, इंतेजार बस इंतेजार करती रहीं मगर कोई ओर ऑटो वाला आते हुए नहीं दिखा। एक एक पल करके, वक्त बीतता जा रह था और बीतता हुआ एक एक पल श्रृष्टि के लिए बहुत भारी पड़ रहा था। क्योंकि उसे साधन कोई मिल नहीं रहीं थी ऊपर से वक्त भी कम बचा था। जो उसकी हताशा को बीतते पल के साथ बढ़ा रही थीं।
जारी रहेगा... आगे क्या हुआ क्या ये इंटरव्यू भी गया ???
जान ने के लिए बस जुड़े रहिये अगला भाग में ............