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धन्यवाद भाई। यह सब ओरिजनली नहीं लिखा था।No words for this update itna sundar ki kuch kah nahi sakta
Great se bhi great sir ji
लेकिन कल लोगों के फीडबैक पढ़ कर भाँप गया कि ऐसे लिखने से पसंद आएगा।
कोशिश सफल रही ?
धन्यवाद भाई। यह सब ओरिजनली नहीं लिखा था।No words for this update itna sundar ki kuch kah nahi sakta
Great se bhi great sir ji
Bhai kon se Maa Baap aise hote hai haa pata hai inke characters apke Mom Dad se inspired hai par fir bhi..“अमाँ बरख़ुरदार, क्या खुद खाए ले रहे हो!” समीर जैसे ही पहला निवाला लेने को हुआ, उसके डैडी ने उसको टोंका, “इतने क्रान्तिकारी तरीके से बहू को ब्याह कर लाए हो, कम से कम अपने हाथ से पहला निवाला उसको खिलाओ! चलो चलो! शाबाश!”
“हाँ! लेकिन एक सेकंड! ज़रा खिलाते हुए तुम दोनों की एक फ़ोटो तो निकाल लूँ,” कह कर उसकी माँ लपक कर अपने पर्स से छोटा सा कैमरा निकाल लिया और उसको ‘ऑन’ कर के बोलीं, “हाँ, प्रोसीड!”
समीर ने पूरी का पहला निवाला मीनाक्षी के थोड़े से खुले मुँह में डाल दिया।
“बिटिया, इस घर में सब दबा के खाते हैं! खाने में संकोच मत करना!” ये उसके पिता जी की टिपण्णी थी। उनकी बात पर मीनाक्षी बिना मुस्कुराए नहीं रह सकी।
जब लेन-दारी होती है, तब देन-दारी भी होती है। मीनाक्षी ने भी पूरी का एक टुकड़ा कोफ़्ते में अच्छी तरह डुबा कर समीर की तरफ बढ़ा दिया। समीर ने बड़ा सा मुँह खोल कर निवाला तो ले ही लिया, साथ में उसके हाथ को भी काट लिया।
फोटो खींचते हुए उसकी माँ ने कहा, “देखा बेटा? सब दबा के खाते हैं! तुमने इतना बड़ा निवाला दिया, फिर भी तुम्हारे पति को तुम्हारा हाथ भी खाने को चाहिए!”
इस बात पर मीनाक्षी की मुस्कान और चौड़ी हो गई।
“तू रहने दे इसको खिलाने को! पता चला, इस लंच में ही तेरा हाथ खा गया! हा हा हा हा!”
जब मीनाक्षी ने सारे पकवान एक एक बार चख लिए, तो माँ ने पूछा, “गेस कर सकती हो कि तुम्हारे समीर ने क्या क्या बनाया है इसमें से?”
“जी, खीर?” मीनाक्षी से शर्माते, सकुचाते अंदाज़ा लगाया। उसने सोचा मीठा पकवान है। तो शायद यही हो।
“अरे! बिलकुल ठीक! ज़िद कर रहा था कि मम्मी, अपनी बीवी के लिए मीठा तो मैं ही बनाऊँगा!” माँ ने अपनी तरफ़ से बढ़िया मसाला लगा कर कहानी बना दी, “और ये पुलाव और रायता भी इसी ने तैयार किया है। तुम घबराना नहीं! मेरा बेटा जानता है खाना पकाना। तुमको सब अकेले करने की ज़रुरत नहीं है।”
मीनाक्षी हैरान थी। सचमुच हैरान!
‘हे प्रभु! ऐसे लड़के होते हैं क्या! ऐसे परिवार होते हैं क्या! बिल्ली के भाग्य से छींका टूटा! हे प्रभु, बस ऐसी ही दया बनाए रखना!’
उसने मुस्कुराते हुए अपनी बड़ी बड़ी आँखें उठा कर समीर को प्रेम से देखा।
पहली बार उसके मन में लाचारी के भाव नहीं थे। पहली बार उसके मन में दुःख के भाव नहीं थे। पहली बार उसके मन में हीनता के भाव नहीं थे। पहली बार उसके मन में अज्ञात को ले कर भय के भाव नहीं थे। पहली बार उसके मन में समीर के लिए आभार का भाव था। पहली बार उसके मन में समीर के लिए प्रशंसा का भाव था। पहली बार उसके मन में समीर के लिए गर्व का भाव था। पहली बार उसके मन में समीर के लिए प्रेम का भाव था।
Beer ke mazze lijiye...ye kya tha dost Patni pati ko bete ke saath beer ke mazze lene ko bol rahi hai wo bhi nayi bahu ke saamne... No words yaha maa ne dekh liya agar beer pite to ghar se nikal fenke mujhe...जब भोजन हो गया, तब माँ ने उससे पूछा, “बेटा, तुमने इतना भारी भरकम कपड़े क्यों पहने हुए हैं? मुझको गलत मत समझ - प्यारी तो तू खूब है ही, और प्यारी तो खूब लग भी रही है। लेकिन अब ये तेरा घर है। यहाँ तुझे पूरी स्वतंत्रता है। तुझे जो पहनना है पहन, जैसे रहना है रह। हमारी परवाह न करना। हमको तो गुड़िया चाहिए थी, वो मिल गई।”
“जी मम्मी।”
“क्या पहनती है तू अक्सर?”
“जी शलवार सूट!”
“लाई है साथ में?”
उसने ‘न’ में सर हिलाया।
“अरे! तो फिर?”
“जी, बस साड़ियां ही हैं! ‘वहाँ’ कह रहे थे कि बहुएँ साड़ी में ही अच्छी लगती हैं।” वहाँ की बात सोच कर मीनाक्षी के मन में फिर से टीस उठ गई।
“बेटा, समझ सकती हूँ! लेकिन तुम ‘वहाँ’ नहीं, ‘यहाँ’ हो अब! हमारे यहाँ साड़ी पहन कर, सर ढक कर रहने की ज़रुरत नहीं। और सब काम खुद करने की जरूरत नहीं। तुमको शलवार सूट में सहूलियत होती है, तुम वही पहनो।”
‘एक और ख़ुशी की बात! हे प्रभु, यह सब कोई सपना तो नहीं है?’ मीनाक्षी को मन ही मन बहुत खुशी हुई।
“देख, अभी करीब तीन बज रहे हैं। चल, तुझे शॉपिंग करवा लाती हूँ। यहाँ घर में बैठे बैठे क्या करोगी?’
“पर माँ!”
“अरे, पर वर कुछ नहीं! ऐसे आप धापी में आना पड़ा। न तेरे लिए कुछ ला पाए, न कुछ दे पाए। अभी रिसेप्शन में तेरे मायके से सभी आएँगे, तो उनके लिए भी गिफ्ट्स ले लेंगे! और मैं भी जरा अपने लिए कुछ… समझा कर यार!” माँ ने फुसफुसाते हुए, जैसे वो मीनाक्षी से कोई सीक्रेट प्लान शेयर कर रही हों, वैसे कहा।
इस बार मीनाक्षी से रोका नहीं गया, और उसके गले से हल्की सी हँसी छूट गई।
“हाँ! ऐसे ही हँसती खेलती रह! तू बहू है हमारी… नहीं, बहू नहीं, बेटी है। तेरे मन का ख्याल रखना हमारा फ़र्ज़ है। आज हम तेरा ख्याल रखेंगे, तुझे समझेंगे, तो कल को शायद तू भी हमें समझ कर हमारा ख्याल रखेगी। रिश्ते ऐसे ही तो बनते हैं!”
“माँ” कह कर मीनाक्षी उनसे लिपट गई, “मैंने कुछ बहुत अच्छा किया है पिछले जनम में, तो आप मुझे मिल गईं!”
“मैंने भी!” कह कर उन्होंने उसको लिपटा लिया और उसके सर पर प्रेम से हाथ फेरने लगीं।
“चल, अब ये लहँगा चेंज कर ले, और कोई हल्की साड़ी पहन ले। यहाँ पैदल चल कर शॉपिंग करने में बहुत मज़ा आता है।”
जब दोनों बाहर जाने को तैयार हो गईं तो समीर के डैडी ने कहा, “अरे! किधर को चली सवारी?”
“अट्ठारह! ज़रूरी शॉपिंग करनी है। आप लोग बियर के मज़े लीजिए। और आज के डिनर, और परसों के रिसेप्शन के इंतजाम की जिम्मेदारी आपकी।”
“यस मैडम!” कह कर डैडी ने सल्यूट मारा।
ऐसी कोई अनहोनी भी नहीं! ऊपर छत पर बैठ कर आदेश अपने दोस्तों के साथ बियर पी रहा था।Beer ke mazze lijiye...ye kya tha dost Patni pati ko bete ke saath beer ke mazze lene ko bol rahi hai wo bhi nayi bahu ke saamne... No words yaha maa ne dekh liya agar beer pite to ghar se nikal fenke mujhe...
Great update bhaiरास्ते में उन्होंने मीनाक्षी को अपनी शादी, समीर के जनम और बचपन की कहानियाँ सुनाईं। उन्होंने मीनाक्षी को यह भी बताया कि रहते वो पास में ही हैं, लेकिन समीर अपने तरीके से रह पाए, इसलिए वो अलग रहते हैं। इसी चलते उसको ज़िम्मेदारी और स्वाभिमान का इतना भाव है। और सबसे अच्छी बात यह है कि अब मीनाक्षी भी उसके साथ रहेगी। उनका मानना था कि शादी होने के साथ, लड़का लड़की साथ में, अकेले रहने चाहिए। बिना किसी भी तरफ के परिवार के किसी भी तरह के प्रभाव के! तब एक दूसरे के लिए समझ, आदर और पारस्परिक अंतर्ज्ञान - यानि इंटिमेसी आती है, जो सफ़ल और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए बहुत ज़रूरी है। फिर उन्होंने उसको बताया कि समीर के डैडी एक सरकारी कंपनी में उच्च पद पर आसीन हैं, और उनको भी, समीर के ही जैसे कंपनी की ही तरफ से मकान मिला हुआ है। वो स्वयं भी एक बैंक में मैनेजर हैं।
दुकानों पर जा कर उन्होंने मीनाक्षी के लिए रोज़मर्रा के, और खास अवसरों के लिए शलवार कुर्ते खरीदे। फिर मॉल में जा कर ज़िद कर के उसके लिए जीन्स, टी-शर्ट्स, और शॉर्ट्स और ख़ास नाइटियाँ भी ख़रीदीं। फिर अधोवस्त्रों की एक स्पेशिलिटी स्टोर में जा कर ब्राइडल लॉन्जेरे के दो सेट भी ज़बरदस्ती खरीदवाए। मीनाक्षी शर्म के मारे खुद कुछ नहीं पसंद कर रही थी, इसलिए उन्होंने खुद ही उसके लिए सेलेक्ट कर लिया। उन्होंने कहा की नई नई शादी में सेक्सी दिखना बहुत ज़रूरी है।
यह खरीददारी करने के बाद उन्होंने मीनाक्षी को आज रात की डिनर पार्टी के लिए खरीदे गए ख़ास शलवार कुर्ते को पहनने को कहा। मीनाक्षी के न-नुकुर करने पर उन्होंने समझाया कि वो दोनों वापस घर नहीं जा रहे हैं। यहीं ख़रीद फ़रोख़्त करने के बाद वो बगल रैडिसन ब्लू में डिनर करने वाले हैं परिवार के साथ, और फिर वहाँ से वो और डैडी अपने घर चले जाएँगे। उनके आज ही चले जाने की बात सुन कर मीनाक्षी थोड़ा उदास हो गई, लेकिन उसने माँ से वायदा लिया कि हर रोज़, कम से कम डिनर के लिए वो इधर आते रहेंगे। सबसे अंत में एक पारंपरिक दुकान में जा कर उन्होंने समधियों के लिए कपड़े लत्ते खरीदे। माँ ने खुद के लिए कुछ भी नहीं लिया। कहने लगीं कि अगर वो यह बहाना न करतीं, तो मीनाक्षी न आती। जो शायद सही भी था।
इतनी ख़रीददारी करने में अच्छा खासा समय लग गया। रात के कोई साढ़े आठ बजे वो दोनों रैडिसन ब्लू पहुँचे। वहाँ जा कर देखा तो बाप बेटे काजू के साथ एक राऊण्ड पहले ही मार चुके थे, और दूसरा शुरू कर रहे थे।
“बेटी,” माँ ने सफाई दी, “अगर शराब पीने को बुराई मानती हो, तो बस यही बुराई है समीर में। और कोई नहीं।”
“नहीं माँ! बस पी कर लुढ़क न जाते हों,” मीनाक्षी ने मुस्कुराते हुए समीर को छेड़ा।
“हा हा हा हा!” डैडी ठहाके मार कर हँसने लगे, “जवाब दो बरखुरदार! कितनी बार लुढ़के?”
“अब नहीं लुढ़कूंगा! पक्का वायदा!” समीर ने कान पकड़ते हुए कहा।
डिनर शानदार था। समीर और उसके पिता जी ने शर्ट, जीन्स और ब्लेज़र पहना हुआ था। दोनों ही बहुत स्मार्ट और हैंडसम दिख रहे थे। मीनाक्षी ने अपनी सास को कनखियों से देखा तो उनको अपने पति को प्रेम से देखता हुआ पाया। शादी के इतने वर्षों बाद भी ऐसी प्रगाढ़ता, ऐसा प्रेम देख कर वो मुस्कुरा उठी। उसके मन में वैसे ही रहने की तमन्ना हो आई। वेटर को बुला कर चारों की एक साथ कई सारी तस्वीरें खिचाई गईं। डिनर समाप्त होने पर समीर के माँ बाप दोनों वापस अपने घर को चल दिए, जिससे नव-विवाहितों को थोड़ी प्राइवेसी मिल सके। जाते समय मीनाक्षी ने उन दोनों के पैर छुए।
“सीख कुछ,” उसके पिता जी ने कहा, “बहू से कुछ सीख!”
“डैडी! आप भी न, मेरी फजीहत करते रहते हैं!” समीर ने उनके और माँ के पैर छूते हुए कहा, “वो तो बीवी के सामने इम्प्रैशन झाड़ने के लिए कर रहा हूँ, लेकिन रोज़ रोज़ नहीं करूँगा!”
“पता है! बेटी, तुमको भी इतनी फॉर्मेलिटी करने की ज़रुरत नहीं। हमारा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है। हमेशा। अच्छा, शुभ रात्रि!”
जब तक मीनाक्षी और समीर घर वापस आए, रात के साढ़े दस बज गए थे।
Kuch kuch lag raha tha pahli raat ko kuch nahi hoga waisa hi hua...घर आकर मीनाक्षी ने देखा कि पूरा घर अच्छी तरह से व्यवस्थित हो गया था। दहेज़ का बेड अब उनके बेडरूम में था, और वहां का बेड दूसरे, छोटे बेडरूम में। अलमारी भी वहीँ व्यवस्थित कर दी गई थी, और उसके सूटकेस को एक ओर जमा दिया गया था। समीर ने आज खरीदा हुआ सामान नई अलमारी में ला कर रख दिया, और फ्रेश होने बाथरूम चला गया। वो क्या करे, उसे कुछ समझ नहीं आया। इसलिए वो नए बिस्तर पर आ कर बैठ गई।
मीनाक्षी बिस्तर पर बैठी हुई अपने आसन्न भविष्य के बारे में सोच रही थी। वो थोड़ा भयभीत भी थी - समीर को लेकर उसके मन में उठने वाले विचार वैसे तो सकारात्मक थे, लेकिन उसके व्यवहार को लेकर वो पूरी तरह से अनिश्चित थी। न जाने क्या करेगा वो! एक पूर्ण अपरिचित आदमी से शादी! यह सोच कर उसको वापस सिहरन होने लगी।
‘क्या करूँ मैं!’ यह एक ऐसा प्रश्न था, जिसका उत्तर उसके पास नहीं था। शायद किसी के पास भी नहीं था। कुछ समय आप ऐसी परिस्थितियों में पड़ जाते हैं, जिनका कोई हल आपके पास नहीं होता। मीनाक्षी के लिए यह वैसी ही परिस्थिति थी। उसके दिमाग में एक बात बार बार कौंध रही थी,
‘इतना तो तय था कि समीर इस विवाह को पूर्ण करना चाहेगा। सुहागरात और किसलिए कहते हैं इस रात को? सुहाग की रात! हुंह! जैसे बीवी की कोई रात ही नहीं! खैर, सामाजिक बातों के बारे में क्या टिप्पणी करी जाए। अभी तो मेरी हालत ओखली में पड़े अनाज जैसी है, जिस पर मूसल पड़ने ही वाला है। क्या मैं उसको आज कुछ भी करने से मना कर दूँ? बोल दूँ कि सर में दर्द है? लेकिन, अगर वो नाराज़ हो गया तो? सुना है कि लड़के अपनी शादी की पहली रात में खुद को रोक नहीं पाते। ओह्ह भगवान मैं क्या करूँ? शादी की शुरुआत खट्टे मन से तो नहीं कर सकते न!’
मीनाक्षी इन्ही सब उधेड़बुन में हुई थी, कि कमरे का दरवाज़ा खुला। इसके साथ ही मीनाक्षी का कलेजा मुँह में आ गया। उसकी साँसें तेज हो गयीं। समीर के क़दमों की आहट से मीनाक्षी के रोंगटे खड़े हो गए। मीनाक्षी ने अपनी नज़रें नीचे झुका लीं और शांत और संयत होने का दिखावा करने लगी। मीनाक्षी कनखियों से देख रही थी - समीर दरवाज़े के समीप आ कर रुक गया था। फिर भी उसकी हिम्मत नहीं पड़ी कि समीर की तरफ देखे।
“मीनाक्षी? सुनिए?” समीर की आवाज़ बहुत ही संयत थी। मीनाक्षी ने अभी भी उसकी तरफ नहीं देखा। वो जैसे बिस्तर में ही गड़ी जा रही थी।
“मैं बगल वाले कमरे में सोने जा रहा हूँ।”
समीर कुछ देर तक मीनाक्षी की किसी भी प्रतिक्रिया का इंतज़ार करता रहा।
‘अगर तुम्हारा पति तुम्हारे साथ न सोना चाहे, तो तुम पत्नी के कर्तव्य निभाने में फेल हो गई समझो।’ माँ की कही यह बात मीनाक्षी के जेहन में गूँज उठी। फिर भी उसने ऊपर नहीं देखा; बस चुपचाप बिस्तर में गड़ी बैठी रही।
“आप पूछेंगी नहीं कि क्यों?” समीर ने कहा।
इस बार उसकी आवाज़ में थोड़ा सा चुलबुलापन था। थोड़ी सी अधीरता थी। शायद वो मीनाक्षी को प्रसन्न चित्त करना चाहता था। इसका मीनाक्षी पर सकारात्मक प्रभाव हुआ। उसने समीर को देखा - तीन चार सेकंड। बस। उसके बाद फिर से गर्दन नीचे!
“आप मेरी पत्नी हैं। माई बेटर हाफ!” उसने कहा, “कोई प्रॉस्टिट्यूट नहीं।”
मीनाक्षी को समझ नहीं आया कि समीर क्या कह रहा है। उसका दिमाग पहले ही इतनी सारी अप्रत्याशित घटनाओं के जल्दी जल्दी घट जाने से भ्रमित था। ऊपर से सुहागरात का डर! उसको समीर की बात समझ नहीं आई, और इसलिए उसने खामोश रहना ही मुनासिब समझा। मीनाक्षी की मुश्किल समीर ने ही सुलझा दी।
“मीनाक्षी, हम एक दूसरे को जानते तक नहीं हैं। अब ऐसे में अगर हम बाकी शादी-शुदा लोगों के जैसे बिहेव करेंगे तो हमारा क्या नाता रहेगा? उसके (क्लाइंट और प्रॉस्टिट्यूट के नाते के) अलावा? लेकिन यह सब हमेशा ऐसे नहीं रहेगा - एक दिन हम भी साथ में होंगे, और वो सब कुछ करेंगे जो शादी-शुदा जोड़े करते हैं। लेकिन उस दिन मैं अपनी पत्नी से प्यार करूँगा - सेक्स नहीं - प्यार! और उस दिन आप अपने पति से प्यार करेंगी!” अपनी बात का प्रभाव देखने के लिए समीर थोड़ा रुका, फिर आगे बोला, “एक अजनबी से सेक्स… न बाबा, मुझसे नहीं हो पाएगा!”
इतना कह कर समीर वापस जाने के लिए मुड़ गया। फिर एक क्षण के लिए ठिठका। अपने मज़ाकिया लहज़े में वो फिर बोला, “बाई दी वे, मैं कोई गे नहीं हूँ! सोचा कि क्लैरिफाई कर दूँ!”
और जाते जाते बोला, “और मुझे ख़र्राटे भी आते हैं!”
इतने तनाव और भय से त्रस्त होने के बाद भी मीनाक्षी को इस बात पर हंसी आ गई। समीर के चेहरे पर एक संतुष्ट मुस्कराहट थी; उसने एक दो क्षण मीनाक्षी की तरफ देखा, और फिर दूसरे कमरे में चला गया। मीनाक्षी बिस्तर पर लेट गई - उसने न तो अपने कपड़े बदले, न ज़ेवर उतारे और न ही अपना मेक-अप ही साफ़ किया। जब उसने अपना सर तकिए पर रखा तो उसकी आँखों से आँसू आ गए।
अक्सर लोगों को हैरानी होती है कि औरतें जब खुश होती हैं, तो भी कैसे रोने लगती हैं? लोगों से मेरा मतलब है आदमी लोग। सच में आदमियों को औरतों का ऐसा व्यवहार नहीं आया; लेकिन औरतों को समझ में आता है। जब औरतें अपने अंदर कुछ ऐसा महसूस करती हैं, जिसको अपने अंदर बाँध कर नहीं रख सकती हैं, तो ऐसा हो सकता है। उसी तर्ज पर, अगर ख़ुशी बहुत अधिक हो जाए, तो बहुत सी महिलाओं के लिए आँसू बहाना ज्यादा बलवती अभिव्यक्ति हो जाती है।
Kuch kuch lag raha tha pahli raat ko kuch nahi hoga waisa hi hua...
Wo jo tark diya hai Sameer ne prostitute wala kammal ka tha
Great update
Bahno ka to pata nahi par iss bhai ko mast laga updare aur update late kyun diya aaj 10 baar check kar chuka tha mein ye thread....waise main bhi abhi late hi deta huतो भाईयों और बहनों, कैसा लगा आज का अपडेट?
काफी कुछ नया लिखना पड़ा। उम्मीद है अच्छा लगा होगा।
अपने फीडबैक लिख दीजिए। प्लीज़ ?
Naa bhai koii nahi rakhegaऐसी कोई अनहोनी भी नहीं! ऊपर छत पर बैठ कर आदेश अपने दोस्तों के साथ बियर पी रहा था।
तो मीनाक्षी जानती है कि समीर पीता है।
और ऐसे माँ बाप के साथ आपको क्या लगता है, समीर कोई पर्दा रखेगा?
एक दो बहनें आती हैं।Bahno ka to pata nahi par iss bhai ko mast laga updare aur update late kyun diya aaj 10 baar check kar chuka tha mein ye thread....waise main bhi abhi late hi deta hu
Overall kammal ke updates the sab kuch tha inme...
Keep writing