- 4,034
- 22,438
- 159
मीनाक्षी जी के सौंदर्य का वर्णन करने मे लेखक जी ने थोड़ा कंजूसी दीखाई है कुछ जगह
Abhi - अंग्रेजी में नई कहानी चल रही हैNayi story kab tak start karenge
खाने के बाद दोनों समधी लोग समीर के पिता जी के यहाँ चले गए। आदेश यहीं रह गया। दोस्त और दीदी के साथ समय बिताने के लिए। तीनों ने कुछ देर तक गप्पें लड़ाईं, लेकिन फिर मीनाक्षी उनींदी हो कर चली गई,
“मैं सोने जा रही हूँ। जब आप दोनों की बातें ख़तम हो जाएँ, तो आ जाइएगा। आदेश, तेरे सोने का इंतजाम बगल वाले कमरे में हैं। किसी चीज़ की ज़रुरत हो तो बता देना। ठीक है?” जाते जाते वो कहती गई।
“जी दीदी”
आदेश और समीर देर रात तक दोनों बियर की चुस्कियाँ लेते हुए बतियाते रहे।
“भाई, और सुना..” जब आदेश को लगा कि दीदी दो गई होगी, तब उसने समीर से पूछा।
“सब बढ़िया है यार!”
“हाँ! बढ़िया तो लग रहा है। दीदी तो बहुत बढ़िया लग रही है।”
“अरे यार! तेरी बहन को क्या मैं कोई दुःख दूँगा?”
“बिलकुल भी नहीं! ऐसा मैंने कब कहा? यह तो मैं सोच भी नहीं सकता हूँ! अगर मुझे ऐसा कोई भी अंदेशा होता, तो क्या अपनी दीदी की शादी तुमसे कहने को कहता? मैं तो तुम्हारे बारे में पूछ रहा था… कि कहीं दीदी तुमको तंग तो नहीं करती।”
उत्तर में समीर मुस्कुराया।
“हम्म.. लगता है कि नहीं करती। मुझको तो बहुत परेशान करती थी, बाबा! अच्छा खैर... एक बात तो बता... तूने यार कुछ... सेक्स वेक्स किया या नहीं?” आदेश ने दबी आवाज़ में समीर से पूछा।
“अबे तू क्या पूछ रहा है? कुछ प्राइवेसी तो रहने दे!”
“अरे..! तू मेरा भाई है!”
“हाँ.. और मेरी बीवी तेरी बहन है.. वो भी बड़ी!”
“ये तो और भी अच्छी बात है! और इसीलिए तो पूछ रहा हूँ। तू मेरा भाई है.. दोस्त नहीं! इसलिए दीदी के साथ साथ मुझे तेरी ख़ुशी की भी फ़िक्र है!”
“हा हा”
“सच बता यार... तुम दोनों ने अभी तक कुछ किया या नहीं?”
“नहीं यार.. अभी तक... नहीं। इतना आसान नहीं है यह सब!”
“देख भाई.. तूने उससे शादी करी है। तो...”
आदेश की बात को बीच में ही काटते हुए समीर बोला, “हाँ.. हाँ हमने शादी करी है। लेकिन टाइम चाहिए इन सब बातों के लिए! देखो न, किन हालात में हमारी शादी हुई थी!”
“हम्म। समझता हूँ भाई। सब समझता हूँ। बस पूछ लिया!”
“यार, मैं उसको जानना समझना चाहता हूँ। मैं पहले उसका दोस्त बन जाऊँ, मेरे लिए ये ज़रूरी है। सेक्स तो होता रहेगा।”
“तुझे वो पसंद तो आती है न?”
“न पसंद आती तो शादी करता?”
“नहीं नहीं, मेरा मतलब वैसा पसंद आने से नहीं है। दीदी तुझे सेक्सी तो लगती है?”
“ओह गॉड! मैंने कैसे खुद को रोका हुआ है, मैं ही जानता हूँ!”
“बस भाई तसल्ली हो गई मुझे!” फिर कुछ देर रुक कर, “सोच यार, इंजीनियरिंग के टाइम में हम लोग कैसे सेक्स की बातें कर लेते थे। कितने हल्केपन से... जैसे, कुछ होता ही नहीं! जैसे वो सिर्फ मसाला हो। याद है तुमको? मैं तुझे कहता रहता था, कि मेरा छोटा है.... तो तेरी बीवी की मैं पहले ड्रिलिंग कर दूँगा, मेरे बाद तू बोरिंग कर लियो। लेकिन अब देखो - मेरी अपनी ही दीदी तुमसे ब्याही है। अब लगता है कि ऐसी छिछोरी बातें नहीं करनी चाहिए! नहीं करनी चाहिए थीं।”
समीर मुस्कुराया, “अरे यार, तू भी क्या सोचने में लग गया! इतना मत सोच। वो हमारे लड़कपन के दिन थे। उन दिनों की बातें सोच कर इतना इमोशनल नहीं बनना चाहिए।”
“थैंक यू यार! तू सच्चा दोस्त है! भाई है मेरा! भाई से बढ़कर! आई लव यू!”
“लव यू टू!” समीर मुस्कुराते हुए बोला।
“भाई देख... एक रिक्वेस्ट है। थोड़ा आराम से करना, जब भी करना। तेरा लण्ड बड़ा सा है, और दीदी..... वो भले ही उम्र में बड़ी हैं, लेकिन हैं तो कुँआरी ही न!”
“अबे यार!”
“अबे यार नहीं! समझा कर! और हाँ, अब जल्दी कर लेना। बहुत वेट मत करना। आखिर पति पत्नी हो!”
“साले, अब तू पिटेगा।”
“हा हा.... अरे साला ही तो हूँ मैं तेरा!”
“हा हा.... अरे मेरी बात बहुत हो गई। तू बता, तुझे कोई लड़की मिली अभी तक या अभी तक ऐसे ही है?”
........
इंजीनियरिंग वाले कमीने दोस्त।Aadesh rukka hi hoga aisi baatein karne ko usko samjhao ki ab wo bas dost nahi Jija ji bhi hai...
Joking
mast update tha
Aapki lekhini ki kya hi taarif kkaru...itna accha likhte ho ki sabd hi nahi hai....maine story padh li thi puri jab main banned tha ussi waqt as a guest sab kuch padha tha kitab likhne ke liye baat karna...yaa wo dost ke ghar jaane ke liye pucha tab sammer se daant khana sab kuch....par aane ke baad rebu nahi diya... ab de deta hu...वो दोनों ही कोई दो तीन मिनट तक बिना कुछ बोले इसी तरह पड़े रहे। यह भावनाओं का ज्वार था, जो अपने शिखर पर पहुँच कर अब शिथिल पड़ रहा था। सम्भोग की यह आखिरी अभिव्यक्ति है - जिन क्षणों में दो शरीर जुड़ गए हों, उनके रसायन मिल गए हों, और दो आत्माएँ जुड़ गयी हों, उन क्षणों में कुछ कहने सुनने को क्या रह जाता है? यह एक अनूठा अनुभव है, जिसका आस्वादन बस चुप चाप रह कर किया जा सकता है।
मीनाक्षी ने महसूस किया कि समीर का लिंग बड़ी तेजी से आकार में घट रहा था। और कुछ देर में वो फिसल कर उसकी योनि से खुद ब खुद बाहर आ गया। फिर भी समीर ने मीनाक्षी को अपने आलिंगन में ही पकड़े रहा। मीनाक्षी को लगा कि उसकी योनि से कुछ गर्म सा द्रव बह कर बाहर आने लगा। मीनाक्षी के लिए यह बिलकुल अशुद्ध भावना थी। बिस्तर तो उसने अपनी याद में कभी गीला नहीं किया था, और तीस की उम्र में वो यह काम शुरू नहीं करने वाली थी। उसने अपनी योनि को हाथ से ढँका और बिस्तर से उठने लगी। वो जैसे ही उठने को हुई, समीर ने उसे रोक दिया।
“अरे यार! थोड़ा रुको!”
“जाने दीजिए प्लीज! इसमें से कुछ निकल रहा है!”
“किसमें से क्या निकल रहा है?” समीर ने उसको छेड़ा।
“इसमें से!” मीनाक्षी थोड़ा अधीर होते हुए, आँखों से नीचे की ओर इशारा करते हुए बोली।
“इसको क्या कहते हैं?”
“जाने दीजिए न!”
“नहीं - पहले बताइए!”
“देखिए - बिस्तर गीला हो जाएगा!”
“छीः छीः! इतनी बड़ी लड़की हो कर बिस्तर गीला करती हो! हा हा!”
“धत्त!”
“अरे बोलो न! मुझसे क्या शर्माना?”
“क्या बोलूँ?”
“इसको क्या कहते हैं?”
“ओह्हो! आप भी न! बस एक ही रट लगा कर बैठ गए!”
“तुम भी ज़िद्दी हो!”
“हम्म - इसको वजाइना बोलते हैं! अब खुश? चलिए छोड़िए, अब जाने दीजिए!”
“आओ - साथ साथ ही चलते हैं!” समीर ने शरारती अंदाज़ कहा।
“नहीं! अभी जाने दीजिए मुझे! मैं इसको धो लूँ!”
मीनाक्षी ने विनती करते हुए कहा और बाथरूम की ओर जाने लगी। बिना एक भी कपड़े के बाथरूम जाने में उसको संकोच भी हो रहा था, और शर्म भी आ रही थी। शरीर पर कुछ ओढ़ने के लिए नहीं था, इसलिए मीनाक्षी अपनी योनि पर हाथ लगाए हुए, वैसी ही नग्न अवस्था में ही लगभग दौड़ कर बाथरूम में चली गई। उसको यह नहीं मालूम था कि उसके ऐसा करने से समीर को उसके उछलते कूदते स्तनों का मजेदार दर्शन हुआ। बाथरूम में जा कर मीनाक्षी ने अपनी योनि का हाल देखा। उसकी योनि-पुष्प की पंखुड़ियाँ बढे हुए रक्त प्रवाह, और प्रथम सम्भोग के घर्षण के कारण सूजी हुई लग रही थीं। योनि की झिर्री खुल गई थी। उसी खुले हुए मुँह से उसके और समीर के काम रस का सम्मिश्रण बह रहा था।
‘ओ गॉड! कैसी हालत करी है इसकी बदमाश ने! छुन्नू है कि मूसल!’ सोच कर मीनाक्षी हल्का सा मुस्कुराई और प्रत्यक्ष में दबी हुई आवाज़ में खुद से कहा, “कॉन्ग्रैचुलेशन्स मिसेज़ मीनाक्षी सिंह!”
अरे सब चंगा! इसमें सॉरी वोरी क्या!Aapki lekhini ki kya hi taarif kkaru...itna accha likhte ho ki sabd hi nahi hai....maine story padh li thi puri jab main banned tha ussi waqt as a guest sab kuch padha tha kitab likhne ke liye baat karna...yaa wo dost ke ghar jaane ke liye pucha tab sammer se daant khana sab kuch....par aane ke baad rebu nahi diya... ab de deta hu...
i