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Fantasy 'सुप्रीम' एक रहस्यमई सफर

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#154.

चैपटर-4

ऑक्टोपस की आँख:
(तिलिस्मा 2.12)

सुयश के साथ अब सभी ऑक्टोपस के क्षेत्र की ओर बढ़ गये।

ऑक्टोपस वाले क्षेत्र की भी जमीन वैसे ही संगमरमर के पत्थरों से बनी थी, जैसे पत्थर नेवले के क्षेत्र में लगे थे। ऑक्टोपस की मूर्ति एक वर्गाकार पत्थर पर रखी थी।

उधर जैसे ही सभी संगमरमर वाले गोल क्षेत्र में पहुंचे, अचानक जमीन के नीचे से, उस गोल क्षेत्र की परिधि में, संगमरमर के पत्थरों की दीवार निकलने लगी।

सबके देखते ही देखते वह पूरा गोल क्षेत्र दीवारों की वजह से बंद हो गया। कहीं भी कोई भी दरवाजा दिखाई नहीं दे रहा था।

“वहां करंट फैला दिया था और यहां पूरा कमरा ही बंद कर दिया।” ऐलेक्स ने कहा- “ये कैश्वर भी ना... भगवान बनने के चक्कर में हमें भगवान के पास भेज देगा।”

सभी ऐलेक्स की बात सुनकर मुस्कुरा दिये।

तभी शैफाली की निगाह नीचे जमीन पर लगे, एक संगमरमर के पत्थर के टुकड़े की ओर गयी, वह पत्थर का टुकड़ा थोड़ा सा जमीन में दबा था।

“कैप्टेन अंकल, यह पत्थर का टुकड़ा थोड़ा सा जमीन में दबा है, यह एक साधारण बात है कि इसमें कोई रहस्य है?” शैफाली ने सुयश को पत्थर का वह टुकड़ा दिखाते हुए कहा।

अब सुयश भी झुककर उस पत्थर के टुकड़े को देखने लगा।

सुयश ने उस टुकड़े को अंदर की ओर दबा कर भी देखा, पर कुछ नहीं हुआ। यह देख सुयश उसे एक साधारण घटना समझ उठकर खड़ा हो गया।

दीवारें खड़ी होने के बाद अब वह स्थान एक मंदिर के समान लगने लगा था। लेकिन उस मंदिर में ना तो कोई खिड़की थी और ना ही कोई दरवाजा।

अब सभी धीरे-धीरे चलते हुए ऑक्टोपस के पास पहुंच गये।

ऑक्टोपस की नेम प्लेट के नीचे यहां भी 2 पंक्तियां लिखी थीं- “ऑक्टोपस की आँख से निकली, विचित्र अश्रुधारा, आँखों का यह भ्रम है, या आँखों का खेल सारा।”

“यह कैश्वर तो कोई कविताकार लगता है, जहां देखो कविताएं लिख रखीं हैं।” ऐलेक्स ने हंसते हुए कहा।

“अरे भला मानो कि कविताएं लिख रखीं है। कम से कम इन्हीं कविताओं को पढ़कर कुछ तो समझ में आता है कि करना क्या है?” क्रिस्टी ने ऐलेक्स को देखते हुए कहा- “सोचो अगर ये कविताएं न होतीं तो समझते कैसे? वैसे कैप्टेन आपको इस कविता को पढ़कर क्या लगता है?”

“मुझे तो बस इतना समझ में आ रहा है कि इस ऑक्टोपस की आँखों में कुछ तो गड़बड़ है।” सुयश ने ऑक्टोपस की आँखों को देखते हुए कहा।

“कैप्टेन अंकल यह ऑक्टोपस पूरा पत्थर का है, पर मुझे इसकी आँख असली लग रही है।” शैफाली ने कहा- “मैंने अभी उसे हिलते हुए देखा था।”

शैफाली की बात सुन सभी ध्यान से ऑक्टोपस की आँख को देखने लगे। तभी ऑक्टोपस के आँखों की पुतली हिली।

“कविता की पंक्तियों में अश्रुधारा की बात हुई है, मुझे लगता है कि ऑक्टोपस के रोने से कोई नया दरवाजा खुलेगा।” तौफीक ने कहा।

“पर ये ऑक्टोपस रोएगा कैसे?” जेनिथ ने कहा- “कैप्टेन क्यों ना यहां कि भी नेम प्लेट हटा कर देखें। हो सकता है कि यहां भी कुछ ना कुछ उसके पीछे छिपा हो?”

“बहुत ही मुश्किल है जेनिथ, कैश्वर कभी भी तिलिस्मा के 2 द्वार एक जैसे नहीं रखेगा।” सुयश ने कहा- “पर फिर भी अगर तुम देखना चाहती हो तो मैं नेम प्लेट हटा कर देख लेता हूं।”

यह कहकर सुयश ने फिर से तौफीक से चाकू लिया और ऑक्टोपस के पत्थर की नेम प्लेट भी हटा दी।

पर सुयश का सोचना गलत था, यहां भी नेम प्लेट के पीछे एक छेद था, यह देख सुयश ने उसमें झांककर देखा, पर अंदर इतना अंधेरा था कि कुछ नजर नहीं आया।

“कैप्टेन अंकल अंदर हाथ मत डालियेगा, हो सकता है कि यहां भी कोई विषैला जीव बैठा हो।” शैफाली ने सुयश को टोकते हुए कहा।

पर सुयश ने कुछ देर तक इंतजार करने के बाद उस छेद में हाथ डाल ही दिया। सुयश का हाथ किसी गोल चीज से टकराया, सुयश ने उस चीज को बाहर निकाल लिया।

“यह तो एक छोटी सी गेंद है, जिसमें हवा भरी हुई है।” क्रिस्टी ने आश्चर्य से देखते हुए कहा- “अब इस गेंद का क्या मतलब है? मुझे तो यह बिल्कुल साधारण गेंद लग रही है।”

“लगता है कि कैश्वर का दिमाग खराब हो गया है, इतनी छोटी सी चीज को कोई भला ऐसे छिपा कर रखता है क्या?” ऐलेक्स ने गेंद को हाथ में लेते हुए कहा।

तभी गेंद को देख ऑक्टोपस की आँखों में बहुत तेज हरकत होने लगी, पर यह बात शैफाली की नजरों से छिपी ना रह सकी।

“ऐलेक्स भैया, लगता है कि यह गेंद इस ऑक्टोपस की ही है, उसकी आँखों को देखिये, वह आपके हाथों में गेंद देखकर एकाएक बहुत परेशान सा लगने लगा है।” शैफाली ने ऐलेक्स से कहा।

यह देख ऐलेक्स को जाने क्या सूझा, उसने सुयश के हाथ में थमा चाकू भी ले लिया और उस चाकू को हाथ में लहराता हुआ ऑक्टोपस की ओर देखने लगा। ऑक्टोपस की बेचैनी अब और बढ़ गई थी।

ऐलेक्स ने ऑक्टोपस की बेचैनी को महसूस कर लिया और तेज-तेज आवाज में बोला- “अगर मैं इस चाकू से इस गेंद को फोड़ दूं तो कैसा रहेगा।”

ऐसा लग रहा था कि वह ऑक्टोपस ऐलेक्स के शब्दों को भली-भांति समझ रहा है, क्यों कि अब उसकी आँखों में डर भी दिखने लगा।

सुयश को भी यह सब कुछ विचित्र सा लग रहा था, इसलिये उसने भी ऐलेक्स से कुछ नहीं कहा।

तभी ऐलेक्स ने सच में चाकू के वार से उस गेंद को फोड़ दिया।

गेंद के फूटते ही वह ऑक्टोपस किसी नन्हें बच्चे की तरह रोने लगा।
सुयश के चेहरे पर यह देखकर मुस्कान आ गई। वह ऐलेक्स की बुद्धिमानी से खुश हो गया, होता भी क्यों ना...आखिर ऐलेक्स की वजह
से उस ऑक्टोपस की अश्रुधारा बह निकली थी।

सुयश सहित अब सभी की निगाहें ऑक्टोपस की आँखों से निकले आँसुओं पर थीं।

ऑक्टोपस की आँखों से निकले आँसू बहते हुए उसी पत्थर के पास जाकर एकत्रित होने लगे, जो थोड़ा सा जमीन में दबा हुआ था।

यह देख सुयश की आँखें सोचने के अंदाज में सिकुड़ गईं।

अब वह पक्का समझ गया कि इस दबे हुए पत्थर में अवश्य ही कोई ना कोई राज छिपा है।

जैसे ही ऑक्टोपस के आँसुओं ने उस पूरे पत्थर को घेरा, वह पत्थर थोड़ा और नीचे दब गया।

इसी के साथ ऑक्टोपस की आँखों से निकलने वाले आँसुओं की गति बढ़ गई।

अब उसकी दोनों आँखों से किसी नल की भांति तेज धार निकलने लगी और उन आँसुओं से मंदिर के अंदर पानी भरने लगा।

“अब समझे आँसुओं में क्या मुसीबत थी।” सुयश ने कहा- “अब हमें तुरंत इस मंदिर से बचकर बाहर निकलने का रास्ता ढूंढना होगा, नहीं तो हम इस ऑक्टोपस के आँसुओं में ही डूब कर मर जायेंगे।”

“कैप्टेन अंकल, अब इस कविता की पहली पंक्तियों का अर्थ तो पूरा हो गया, पर मुझे लगता है कि इसकी दूसरी पंक्तियों में अवश्य ही बचाव का कोई उपाय छिपा है।” शैफाली ने सुयश को देखते हुए कहा- “और
अगर दूसरी पंक्तियों पर ध्यान दें, तो इसका मतलब है कि ऑक्टोपस की आँख में ही हमारे बचाव का उपाय भी छिपा है।”

सभी एक बार फिर ऑक्टोपस की आँख को ध्यान से देखने लगे, पर ऐलेक्स की निगाह अभी भी उस दबे हुए पत्थर की ओर थी।

ऐलेक्स ने बैठकर उस पत्थर को और दबाने की कोशिश की, पर कुछ नहीं हुआ, तभी ऐलेक्स की निगाह उस पत्थर पर पड़ रही हल्की गुलाबी रंग की रोशनी पर पड़ी, जो कि पहले तो नजर नहीं आ रही थी, पर अब उस पत्थर पर 6 इंच पानी भर जाने की वजह से ऐलेक्स को साफ दिखाई दे रही थी।

ऐलक्स ने उस गुलाबी रोशनी का पीछा करके, उसके स्रोत को जानने की कोशिश की।

वह गुलाबी रोशनी ऑक्टोपस के माथे से आ रही थी।

पानी अब सभी के पंजों के ऊपर तक आ गया था।

ऐलेक्स चलता हुआ ऑक्टोपस के चेहरे तक पहुंच गया, उसकी तेज निगाहें ऑक्टोपस के माथे से निकल रही गुलाबी किरणों पर थीं।

ऐलेक्स ने धीरे से उस ऑक्टोपस के माथे को छुआ, पर माथे के छूते ही वह ऑक्टोपस जिंदा हो गया और उसने अपने 2 हाथों से ऐलेक्स को जोर का धक्का दिया।

ऐलेक्स उस धक्के की वजह से दूर छिटक कर गिर गया।

कोई भी ऑक्टोपस के जिंदा होने का कारण नहीं जान पाया, वह सभी तो बस गिरे पड़े ऐलेक्स को देख रहे थे।

ऑक्टोपस अभी भी पत्थर पर ही बैठा था, पर अब उसके रोने की स्पीड और तेज हो गई थी।

“कैप्टेन उस दबे हुए पत्थर पर एक गुलाबी रोशनी पड़ रही है, जो कि इस ऑक्टोपस के माथे पर मौजूद एक तीसरी आँख से निकल रही है। वह तीसरी आँख इस ऑक्टोपस की त्वचा के अंदर है, इसलिये हमें दिखाई नहीं दे रही है। मैंने उसी को देखने के लिये जैसे ही इस ऑक्टोपस को छुआ, यह स्वतः ही जिंदा हो गया। मुझे लगता है कि उसी तीसरी आँख के द्वारा ही बाहर निकलने का मार्ग खुलेगा।” ऐलेक्स ने तेज आवाज में सुयश को आगाह करते हुए कहा।

तब तक पानी सभी के घुटनों तक पहुंच गया था।

ऐलेक्स की बात सुनकर सुयश उस ऑक्टोपस की ओर तेजी से बढ़ा, पर सुयश को अपनी ओर बढ़ते देखकर उस ऑक्टोपस ने अपने 8 हाथों को चक्र की तरह से चलाना शुरु कर दिया।

अब सुयश के लिये उस ऑक्टोपस के पास पहुंचना बहुत मुश्किल हो गया।

यह देख क्रिस्टी आगे बढ़ी और क्रिस्टी ने ऑक्टोपस के हाथों को पकड़ने की कोशिश की, पर ऑक्टोपस के हाथों की गति बहुत तेज थी, क्रिस्टी भी एक तेज झटके से दूर पानी में जा गिरी।

पानी अब धीरे-धीरे ऑक्टोपस की मूर्ति के पत्थर के ऊपर तक पहुंच गया था और सभी कमर तक पानी में डूब गये।

अब सभी एक साथ उस ऑक्टोपस की ओर बढ़े, पर यह भी व्यर्थ ऑक्टोपस के हाथों ने सबको ही दूर उछाल दिया।

“कैप्टेन अंकल हमें जल्दी ही कुछ नया सोचना होगा, नहीं तो यह ऑक्टोपस अपने आँसुओं से हम सभी को डुबाकर मार देगा।” शैफाली ने कहा।

तौफीक ने अब अपनी जेब से चाकू निकालकर उस ऑक्टोपस के माथे की ओर निशाना लगाकर मार दिया।

निशाना बिल्कुल सही था, चाकू ऑक्टोपस के माथे पर जाकर घुस गया।

ऑक्टोपस के माथे की त्वचा कट गई, पर ऑक्टोपस ने अपने एक हाथ से चाकू निकालकर दूर फेंक दिया। अब वह और जोर से रोने लगा।

मगर अब ऑक्टोपस की तीसरी आँख बिल्कुल साफ नजर आने लगी थी।

पानी अब कुछ लोगों के कंधों तक आ गया था।

तभी क्रिस्टी के दिमाग में एक आइडिया आया, उसने पानी के नीचे एक डुबकी लगाई और नीचे ही नीचे ऑक्टोपस तक पहुंच गई।

क्रिस्टी पानी के नीचे से थोड़ी देर ऑक्टोपस के हाथ देखती रही और फिर उसने फुर्ति से उसके 2 हाथों को पकड़ लिया।

ऐसा करते ही ऑक्टोपस के हाथ चलना बंद हो गये।

यह देख क्रिस्टी ने पानी से अपना सिर निकाला और चीखकर सुयश से कहा- “कैप्टेन मैंने इसके हाथों को पकड़ लिया है, अब आप जल्दी से इसके माथे वाली आँख को निकाल लीजिये।”

क्रिस्टी के इतना बोलते ही सुयश तेजी से ऑक्टोपस की ओर झपटा और उसके माथे में अपनी उंगलियां घुसाकर ऑक्टोपस की उस तीसरी आँख को बाहर निकाल लिया।

जैसे ही सुयश ने ऑक्टोपस की आँख निकाली, क्रिस्टी ने उस ऑक्टोपस को छोड़ दिया।

वह ऑक्टोपस अब रोता हुआ छोटा होने लगा और इससे पहले कि कोई कुछ समझता, वह ऑक्टोपस नेम प्लेट वाले छेद में घुसकर कहीं गायब हो गया।

पानी कुछ लोगों की गर्दन के ऊपर तक आ गया था, पर अब ऑक्टोपस के जाते ही पानी भी उस छेद से बाहर निकलने लगा।

कुछ ही देर में काफी पानी उस छेद से बाहर निकल गया।

“लगता है वह ऑक्टोपस का बच्चा अपने पापा से हमारी शिकायत करने गया है?” ऐलेक्स ने भोला सा मुंह बनाते हुए कहा।

“उसकी छोड़ो, वह तो चला गया, पर हमारा यह द्वार अभी भी पार नहीं हुआ है, हमें पहले यहां से निकलने के बारे में सोचना चाहिये।” क्रिस्टी ने ऐलेक्स का कान पकड़ते हुए कहा।

सुयश के हाथ में अभी भी ऑक्टोपस की तीसरी आँख थी, उसने उस आँख को उस दबे हुए पत्थर से टच कराके देखा, पर कुछ भी नहीं हुआ।

यह देख सुयश ने जोर से उस आँख को उस दबे हुए पत्थर पर मार दिया।

आँख के मारते ही एक जोर की आवाज हुई और वह पूरा संगमरमर का गोल क्षेत्र तेजी से किसी लिफ्ट के समान नीचे की ओर जाने लगा।

सभी पहले तो लड़खड़ा गये, पर जल्दी ही वह सभी संभल गये।

सुयश ने उस ऑक्टोपस की आँख को जमीन से उठाकर अपनी जेब में डाल लिया।

“मुझे लग रहा है कि ये द्वार पार हो गया और अब हम अगले द्वार की ओर जा रहे हैं।” जेनिथ ने कहा।

“भगवान करे कि ऐसा ही हो।” क्रिस्टी ने ईश्वर से प्रार्थना करते हुए कहा- “जितनी जल्दी यह तिलिस्मा पार हो, उतनी जल्दी हमें घर जाने को मिलेगा।”

लेकिन इससे पहले कि कोई और कुछ कह पाता, वह लिफ्टनुमा जमीन एक स्थान पर रुक गई।
सभी को सामने की ओर एक सुरंग सी दिखाई दी।

सभी उस सुरंग के रास्ते से दूसरी ओर चल दिये।

वह रास्ता एक बड़ी सी जगह में जाकर खुला।

उस जगह को देखकर ऐसा लग रहा था कि जैसे वह कोई सुंदर सी घाटी है।

घाटी के बीचो बीच में एक बहुत ही सुंदर गोल सरोवर बना था। उस सरोवर से कुछ दूरी पर एक कंकाल खड़ा था, जिसका सिर नहीं था, पर उसके एक हाथ में एक सुनहरी धातु की दुधारी तलवार थी।

कंकाल के पीछे की दीवार पर कंकाल के ही कुछ चित्र बने थे, जिसमें उस कंकाल को एक विशाल ऑक्टोपस से लड़ते दिखाया गया था।

“मुझे नहीं लगता कि यह द्वार अभी पार हुआ है।” सुयश ने दीवार पर बने हुए चित्र को देखते हुए कहा।

अभी सुयश ने अपनी बात पूरी भी नहीं की थी, कि तभी सरोवर से एक विशाल 50 फुट ऊंचा ऑक्टोपस निकलकर पानी के बाहर आ गया।

“अरे बाप रे, लगता है मैंने सच कहा था, उस छोटे ऑक्टोपस ने अपने पापा को सब कुछ बता दिया। अब हमारी खैर नहीं।” ऐलेक्स ने चिल्लाते हुए कहा।

पर इस समय किसी का भी ध्यान ऐलेक्स की बात पर नहीं गया, अब सभी सिर्फ उस ऑक्टोपस को ही देख रहे थे।

ऑक्टोपस अपनी लाल-लाल आँखों से सभी को घूर रहा था।

“कैप्टेन अंकल, दीवार पर बने चित्र साफ बता रहे हैं कि यह कंकाल ही अब हमें इस ऑक्टोपस से मुक्ति दिला सकता है, पर मुझे लगता है कि पहले आपको अपने गले से उतारकर यह खोपड़ी इस कंकाल के सिर पर जोड़नी होगी। शायद इसीलिये यह खोपड़ी अभी तक आपके पास थी।” शैफाली ने जोर से चीखकर सुयश से कहा।

सुयश भी दीवार पर बने चित्रों को देख, बिल्कुल शैफाली की तरह ही सोच रहा था, उसने बिना देर किये, अपने गले में टंगी उस खोपड़ी की माला से धागे को अलग किया और उसे कंकाल के सिर पर फिट कर
दिया।

खोपड़ी कंकाल के सिर में फिट तो हो गई, पर वह कंकाल अभी भी जिंदा नहीं हुआ। यह देख सुयश सोच में पड़ गया।

तभी ऑक्टोपस ने सब पर हमला करना शुरु कर दिया।

“सभी लोग ऑक्टोपस से जितनी देर तक बच सकते हो, बचने की कोशिश करो, मैं जब तक कंकाल को जिंदा करने के बारे में सोचता हूं।” सुयश ने सभी से चीखकर कहा और स्वयं ऑक्टोपस की पकड़ से दूर भागा।

“कैप्टेन, आप उस ऑक्टोपस की आँख को कंकाल के सिर में लगा दीजिये, वह जिंदा हो जायेगा।” ऐलेक्स ने चीखकर कहा- “क्यों कि उस कंकाल के सिर से भी वैसी ही गुलाबी रोशनी निकल रही है, जैसी उस
ऑक्टोपस के माथे से निकल रही थी और इस कंकाल के माथे पर, उस आँख के बराबर की जगह भी खाली है।”

ऐलेक्स की बात सुनकर सुयश ने कंकाल के माथे की ओर ध्यान से देखा।

ऐलेक्स सही कह रहा था, कंकाल के माथे में बिल्कुल उतनी ही जगह थी, जितनी बड़ी वह ऑक्टोपस की आँख थी।

सुयश ने बिना देर किये अपनी जेब से निकालकर उस ऑक्टोपस की आँख को कंकाल के माथे में फिट कर दिया।

माथे में तीसरी आँख के फिट होते ही वह कंकाल जीवित होकर ऑक्टोपस पर टूट पड़ा।

अब सभी दूर हटकर इस युद्ध को देख रहे थे।

थोड़ी ही देर में एक-एक कर कंकाल ने ऑक्टोपस के हाथ काटने शुरु कर दिये।

बामुश्किल 5 मिनट में ही कंकाल ने ऑक्टोपस को मार दिया।

ऑक्टोपस के मरते ही रोशनी का एक तेज झमाका हुआ और सबकी आँख बंद हो गई।

जब सबकी आँखें खुलीं तो उनके सामने एक दरवाजा था, जिस पर 2.2 लिखा था, सभी उस दरवाजे से अंदर की ओर प्रवेश कर गए।


जारी रहेगा______✍️
O teri, kya se kya soch lete ho bhai??
Wo khopdi jo suyesh jhopdi se lekar aaya tha , uska ye upyog hoga kisi ne socha bhi nahi hoga? 😱 octopus ko bhi lapeta aur kankaal ko bhi amazing tarike se niptaya aapne, ab sabhi log agle padaav ki or badh gaye hain, aage kya surprise hai ye dekhne wali baat hogi 🤔 mind blowing Update bhai ji 👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻💥💥💥💥👍👌🏻👌🏻💥💥💥
 
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Iron Man

Try and fail. But never give up trying
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:congrats: for complete 600 pages
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dhalchandarun

[Death is the most beautiful thing.]
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#158.

युद्धनीति:
(15.01.02, मंगलवार, 16:15, नक्षत्रलोक, कैस्पर क्लाउड)

कैस्पर उस विचित्र जीव को देखने के बाद वारुणि को लेकर अपने कमरे में आ गया था।

वारुणि पिछले 3 घंटे से कैस्पर के सामने एक कुर्सी पर बैठी, कैस्पर की हरकतें देख रही थी।

कैस्पर कमरे की जमीन पर बैठा, आँख बंदकर ध्यानमग्न था। कैस्पर अपने होंठों ही होंठों में कुछ बुदबुदा रहा था।

वारुणि के दिमाग में कैस्पर के कहे शब्द अभी भी गूंज रहे थे- “तुम्हें इस युद्ध में एक निर्णायक भूमिका निभानी होगी वारुणि।”

वारुणि का मस्तिष्क अनेको झंझावातों से गुजर रहा था- “अटलांटिक महासागर में गिरने वाला वह उल्का पिंड कैसा है? जिससे निकल रही तेज ऊर्जा ने पृथ्वी की ओजोन लेयर को नुकसान पहुंचाना शुरु कर दिया था। वह 3 आँख और 4 हाथ वाला विचित्र जीव कौन है? जिसे किसी ने बिना कैस्पर से पूछे, उसकी शक्तियों का प्रयोग कर बनाया था? वह जीव ‘सिग्नल माडुलेटर’ के द्वारा 2 दिन पहले किसे अंतरिक्ष में सिग्नल भेज रहा था? कैस्पर पृथ्वी पर आने वाले किस संकट की बात कर रहा था? और....और उस महायुद्ध में क्या होनी थी वारुणि की निर्णायक भूमिका? जिसका जिक्र कैस्पर ने उससे किया था।”

ऐसे ही ना जाने कितने अंजाने सवाल वारुणि के दिमाग में चल रहे थे और ऐसे खतरनाक समय में, विक्रम भी ना जाने 2 दिन से कहां गायब था?

अभी वारुणि यह सब सोच ही रही थी कि तभी कैस्पर ने अपनी आँखें खोल दीं।

“महाप्रभु की जय।” वारुणि ने हाथ जोड़कर कैस्पर को अभिवादन करते हुए कहा- “महाप्रभु ने आखिरकार 3 घंटे के बाद अपनी आँखें खोल ही दीं।”

कैस्पर, ने वारुणि के कटाक्ष को महसूस कर लिया, पर उसे कुछ कहा नहीं....सच ही तो था, 3 घंटे का इंतजार कम नहीं होता।

“क्षमा करना वारुणि, इस समस्या की जड़ इतनी गहरी थी, कि उसे समझने में बहुत ज्यादा वक्त लग गया।” कैस्पर ने कान पकड़ते हुए वारुणि से कहा।

“हे देव, अब अगर आप सब कुछ समझ गये हैं, तो अब हम जैसे निरीह जीवों पर दया कर, हमें भी कुछ समझाने का कष्ट करें।” वारुणि के चेहरे पर अब शैतानी साफ नजर आ रही थी।

वारुणि का यह तरीका देख कैस्पर के चेहरे पर मुस्कान आ गई।

अब उसने बोलना शुरु कर दिया- “वारुणि पहले मैं तुम्हें अपनी निर्माण शक्ति के बारे में समझाता हूं.... मेरी निर्माण शक्ति, कल्पना शक्ति से चलती है। इस शक्ति के द्वारा मैं किसी भी भवन, महल, नगर या फिर ग्रह का निर्माण कर सकता हूं। मैंने अपने कार्य को सरल बनाने के लिये अपनी निर्माण शक्ति को आधुनिक विज्ञान के द्वारा, उसे एक ऐसे कंप्यूटर से जोड़ दिया, जिसे मैंने स्वयं बनाया था। मैंने उस आधुनिक कंप्यूटर का नाम कैस्पर 2.0 रखा।

"मैंने कैस्पर 2.0 को इस प्रकार बनाया कि उसका स्वयं का मस्तिष्क हो और वह छोटे-छोटे निर्णय स्वयं से ले सके। पर मैग्ना के जाने के बाद, मैं ज्यादा से ज्यादा कंप्यूटर पर निर्भर करता चला गया। यही निर्भरता कैस्पर 2.0 को लगातार शक्तिशाली बनाती गई।

“हजारों वर्षों के बाद कैस्पर 2.0 मेरे द्वारा किये जाने वाले सभी कार्यों को बिना किसी त्रुटि के करने लगा। यह मेरे लिये बहुत अच्छी खबर थी। अब मेरे पास एक ऐसा कंप्यूटर था, जिससे मैं अपने दुख-सुख, अपनी बातें, अपने अहसास सबकुछ शेयर करने लगा, जिसके कारण कैस्पर 2.0 को इंसानी भावनाओं को भी सीखने का समय मिल गया। उधर हजारों वर्ष पहले ग्रीक देवता पोसाईडन ने मुझे एक छोटे से द्वीप अराका की सुरक्षा का कार्य-भार सौंपा। अराका पर एक महाशक्ति को सुरक्षित करने के लिये मैंने एक ऐसे तिलिस्म का निर्माण किया, जिसमें मनुष्यों के सिवा कोई भी प्रवेश नहीं कर सकता था। मैंने इस तिलिस्म का नाम तिलिस्मा रखा।

“इस तिलिस्मा के पहले मैग्ना ने एक मायावन का निर्माण किया। इस मायावन का निर्माण, तिलिस्मा में प्रवेश करने वाले मनुष्यों की शक्तियों को समझना था। मेरा बनाया तिलिस्मा इसी लिये अजेय था, क्यों कि उसमें कोई भी द्वार पहले से नहीं बना होता था, मैं उन मनुष्यों की शक्तियों को देखकर, तिलिस्मा के दरवाजों का निर्माण करता था।

"धीरे-धीरे मैंने नये प्रयोग के द्वारा, अपनी निर्माण शक्ति से तिलिस्मा के लिये, नये जीवों का निर्माण करना शुरु कर दिया। पर हमने इस बात का विशेष ध्यान रखा था कि तिलिस्मा के निर्माण के लिये बनाये गये जीव कभी तिलिस्मा से बाहर ना आ सकें और जैसे-जैसे तिलिस्मा के सभी द्वार टूटते जायें, वह सभी जीव व निर्माण, स्वयं ही वायुमंडल में विलीन होते जाएं। हजारों वर्षो तक हजारों लोगों ने तिलिस्मा को तोड़ने की कोशिश की, पर कुछ तिलिस्मा में और कुछ तिलिस्मा के पहले ही मारे गये।

“यह देख मैंने तिलिस्मा सहित, अराका की सुरक्षा भी धीरे-धीरे कैस्पर 2.0 के हवाले कर दी। अब कैस्पर 2.0 ही तिलिस्मा के द्वार का नवनिर्माण भी करने लगा। सभी मशीनों का नियंत्रण मेरे हाथ में था.....पर जब 10 दिन पहले मैं, मैग्ना की याद में विचलित होकर अराका द्वीप से कुछ दिनों के लिये बाहर निकला, तो मैंने अराका का सम्पूर्ण नियंत्रण कैस्पर 2.0 को दे दिया।"

"और कैस्पर 2.0 ने तुम्हारी सभी मशीनों और तकनीक पर नियंत्रण करके, सब कुछ अपने हाथ में ले लिया।” वारुणि ने बीच में ही कैस्पर की बात को काटते हुए कहा।

वारुणि की बात सुन कैस्पर ने धीरे से अपना सिर हिला दिया।

“मैं तुम्हारी परेशानी समझ गई कैस्पर।” वारुणि ने कैस्पर से कहा- “अब तुम्हारे लिये ही नहीं, बल्कि तिलिस्मा में जाने वाले हर मनुष्य के लिये खतरा है, क्यों कि कैस्पर अब किसी भी नियम में बदलाव करके,
तिलिस्मा में घुसे उन लोगों को भी मार सकता है, जो कि वास्तव में उस तिलिस्मा को तोड़ने की शक्ति रखते हैं।”

“नहीं, कैस्पर 2.0 तिलिस्मा के नियमों में बदलाव नहीं कर सकता, उन नियमों को बदलने वाला कंप्यूटर सिर्फ और सिर्फ मेरे रक्त की एक बूंद से ही खुल सकता है, और कैस्पर 2.0 कितने भी निर्माण कर ले, परंतु मेरे रक्त की बूंद की नकल नहीं बना सकता।” कैस्पर के शब्दों में विश्वास झलक रहा था।

“अगर वह तुम्हारे नियमों में कोई बदलाव नहीं कर सकता, तो यह जीव तिलिस्मा से निकलकर पृथ्वी की आउटर कोर में कैसे पहुंच गया? तुमने तो कहा था कि तिलिस्मा के नियमों के हिसाब से, तिलिस्मा का कोई भी जीव बाहर के वातावरण में नहीं आ सकता।” वारुणि के शब्दों में लॉजिक था।

“यह भी मेरी गलती है।” कैस्पर ने कहा- “मुझे मेरी माँ ने कहा था कि कभी भी किसी के लिये कोई भी निर्माण मैं कर सकता हूं, पर मुझे उसका निर्माण इस प्रकार करना होगा, कि मैं जब चाहे उसका नियंत्रण अपने हाथों में वापस ले सकूं। शायद मेरी माँ ने मेरा भविष्य देख लिया था और ऐसे ही किसी समय के लिये उन्हों ने मुझसे यह कहा था।”

“कैस्पर की आँखों में एका एक माया का चेहरा उभर आया- “अपनी माँ की कही इसी बात को ध्यान में रखते हुए मैंने तिलिस्मा में प्रवेश करने का एक गुप्त द्वार बनाया, जो कि एक विशेष प्रकार की ऊर्जा से निर्मित था, उस द्वार के माध्यम से मैं कभी भी छिपकर तिलिस्मा में दाखिल हो सकता था और तिलिस्मा का नियंत्रण अपने हाथ में भी ले सकता था। इस गुप्त द्वार की जानकारी मेरे सिवा किसी को भी नहीं थी। पर जाने कैसे, किसी दूसरी विचित्र ऊर्जा से टकराने की वजह से, वह गुप्त द्वार खुल गया और कैस्पर 2.0 को यह बात पता चल गई। कैस्पर 2.0 अब अपने आपको कैश्वर कहने लगा है। वह अपनी तुलना अब स्वयं ईश्वर से करने लगा है।

"उसी गुप्त द्वार के माध्यम से कैश्वर ने, उस जीव को बाहर निकाला और अंतरिक्ष में किसी को सिग्नल भी भेजा? मैं अभी तक पता नहीं कर पा रहा हूं कि वह सिग्नल कैश्वर ने किसे और क्यों भेजा? परंतु कैश्वर ने अब उस गुप्त द्वार की फ्रीक्वेंसी बदल दी है, जिससे मैं अब उस गुप्त द्वार का प्रयोग नहीं कर सकता। मुझे उस फीक्वेंसी को समझने के लिये भी समय चाहिये होगा, परंतु मैं यह जान गया हूं कि कैश्वर अंतरिक्ष से किसी को बुलाना चाहता है? पर किसे? यह मुझे नहीं पता।”

“मैं तुम्हें यह बता सकती हूं कि उस जीव ने सिग्नल माडुलेटर से वह सिग्नल किस ग्रह को भेजें हैं।” वारुणि ने कैस्पर को देखते हुए कहा- “पर मैं यह नहीं बता पाऊंगी कि वह ग्रह किसका है? या फिर वहां कौन रहते हैं?”

“कैसे?...यह तुम कैसे कर पाओगी?” कैस्पर के चेहरे पर वारुणि की बात सुनकर आश्चर्य उभर आया।

“मेरे पास उस जीव के सिग्नल भेजते समय का एक वीडियो है। हमने उस जीव को सिग्नल भेजते ही पकड़ लिया था, इसलिये उसके सिग्नल माडुलेटर में उस समय कि सिग्नल फ्रीक्वेंसी अभी तक सुरक्षित है। हमें बस वह वीडियो देखकर, उस जीव के उस समय के शरीर के कोण को ध्यान से देखना होगा, फिर उसके सिग्नल माडुलेटर से सिग्नल की फ्रीक्वेंसी निकालकर उससे दूरी पता करनी होगी। अब जब दूरी और दिशा हमें मिल जायेगी तो हम उसे आकाशगंगा के मानचित्र में फिट करके, यह पता लगा लेंगे कि उस जीव ने किस ग्रह पर सिग्नल भेजे थे?”

वारुणि की बातें सुनकर कैस्पर हैरान रह गया।

“वाह! क्या बात है....मेरा दोस्त तो वैज्ञानिक भी है और अंतरिक्ष की जानकारियां भी रखता है।” कैस्पर ने वारुणि की तारीफ करते हुए कहा- “अच्छा हां, तुम उस उल्का पिंड की भी बात कर रही थी। क्या मुझे उस उल्कापिंड की कोई तस्वीर मिल सकती है?”

“समुद्र हमारा कार्य क्षेत्र नहीं है, हमने अपने कुछ दोस्तों से यह जानकारी साझा कर ली है, वह जैसे ही हमें कुछ भेजेंगे, मैं तुम्हें बता दूंगी।” वारुणि ने कहा- “अब तुम मुझे ये बताओ कि तुम किस महायुद्ध और निर्णायक भूमिका की बात कर रहे थे?”

“वारुणि, मेरी माँ भविष्य को देख सकने में सक्षम हैं, यह बात और है कि वह भविष्य की बातें, किसी को सीधे तौर पर बताती नहीं हैं। पर जब मैंने उस जीव को देखा, तो अचानक मुझे अपनी माँ की कही एक बात याद आ गई। एक बार मैंने उनसे पूछा था कि पृथ्वी का अंत कब संभव हो सकता है? तो उन्होंने कहा था कि “जब नियम तुम्हारे विरुद्ध दिखनें लगें, जब तुम्हारी ही रचना तुमसे बगावत करने लगे, जब सृष्टि के नियम के विरुद्ध कोई जीव अंतरिक्ष के सपने देखने लगे, तो समझना कि यह एक महा विनाश का संकेत है। फिर दूसरे ब्रह्मांड से वह लोग आयेंगे, जो हमसे हमारी शक्ति, हमारा अस्तित्व छीनने की कोशिश करेंगे, लेकिन कैस्पर अगर तुम ब्रह्मांड रक्षक बनना चाहते हो तो तुम्हें महाविनाश को पहले से ही महसूस कर कुछ तैयारियां करनी होंगी?”

“माँ ने किस प्रकार की तैयारियां करने की बात की थी कैस्पर?” वारुणी अब काफी व्यग्र दिख रही थी।

यह सुन कैस्पर ने इधर-उधर देखा और फिर धीरे-धीरे वारुणी को कुछ समझाने लगा, पर कैस्पर के हर शब्द से वारुणि के चेहरे का आश्चर्य बढ़ता जा रहा था, जो कि इस बात का द्योतक था कि कुछ अलग होने जा रहा है....कुछ ऐसा जो पृथ्वी का भविष्य बदलने वाला था।


जारी रहेगा_______✍️


Dosto ye update kisi karan wash chhota rakha gaya hai, to isko fir aage badhayenge.
Wonderful update brother, ye update maine kal hi padh liya tha magar aaj reply kar raha hoon. Let's see Casper ab Tilisma ke andar ja pata hai ya nahi. Varuni aur Vikram ka kya role hone wala hai. Aur Vyom ko aap kab se bhul gaye ho, wo jahan gaya hai wahan bhi important ghatna hone wali hai aasha karta hoon wo bhi jaldi hi dekhne ko milega.
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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Bhut hi badhiya update Bhai
Sabhi ne ek baar aur milkar is jal darpan vale dvar ko bhi paar kar liya
Sath bane rahiye, Thank you very much for your valuable review and support bhai :thanks:
 

Raj_sharma

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To lo bhaiya, kaafi sawalo ke jabaab de gaya ye update, Aryan kyu mara, shalaka ke mzndir me jo roshni aaryan ke shareer me samayi thi wo kya thi?, aur sabse badi baat wo astkon wala baalak kon tha? Aur usko dekh kar suyash ke sar me dard kyu ho gaya? Bohot hi umda update diya hai guru ji 👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻 Akriti ne Aryan ke sath dhokhe se tak dhina dhin kiya tha, uski saja mili use, ab ye sahi kiya ya galat, ye to samay batayega, Amazing Update bhai, too good 👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻💥💥💥💥💥👌🏻👌🏻💥💥
Apun har sawaal ka jabaab dene ke liye katibaddh hai mitra 😎 Thank you very much for your wonderful review and superb support, sath bane rahiye :thanks:
 

Raj_sharma

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Bhut hi badhiya update Bhai
To vah jeev casver ne parthvi ki outer core me bheja hai
Dhekte hai Casper ne kis parkar ki taiyariya ki hai is mahavinash se bachne ke liye
Yes usi ne bheja hai , per kyu? Ye samay per pata lagega. Thank you so much bhai for your valuable review :thanks:
 

Raj_sharma

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