#166.
चैपटर-9
सपनों का संसार: (तिलिस्मा 3.3)
सुयश के साथ सभी अगले द्वार में प्रवेश कर गये।
तिलिस्मा के इस द्वार में प्रवेश करते ही सभी को लगभग 100 फुट ऊंची एक किताब दिखाई दी। जिस पर बड़े-बड़े अक्षरों में ‘सपनों का संसार’ लिखा था।
उस किताब में एक दरवाजा भी लगा था। दरवाजे के अंदर कुछ सीढ़ियां बनीं थीं, जो कि ऊपर की ओर जा रहीं थीं। सभी उस दरवाजे में प्रवेश कर गये और सीढ़ियां चढ़कर ऊपर की ओर चल दिये।
लगभग 50 सीढ़ियां चढ़ने के बाद सभी को फिर से एक दरवाजा दिखाई दिया। सभी उस दरवाजे से अंदर प्रवेश कर गये।
अब वह सभी एक ऊंचे से प्लेटफार्म पर खड़े थे और ऊपर आसमान की ओर ऐसे सैकड़ों प्लेटफार्म दिखाई दे रहे थे।
हर प्लेटफार्म के चारो ओर कुछ सीढ़ियां और 2 दरवाजे बने थे। सारे प्लेटफार्म हवा में झूल रहे थे।
“यह सब क्या है? और हमें जाना कहां है?” ऐलेक्स ने सुयश को देखते हुए कहा।
“पता नहीं, पर मुझे लगता है कि हमें अपने सामने मौजूद दूसरे दरवाजे में घुसने पर ही पता चलेगा कि हमें जाना कहां है?” सुयश ने कहा।
यह सुनकर क्रिस्टी अपने सामने मौजूद दरवाजे में प्रवेश कर गई, अब क्रिस्टी उनसे काफी ऊंचाई पर बने दूसरे प्लेटफार्म पर दिखाई दी।
“कैप्टेन आप लोग भी ऊपर आ जाइये, मुझे लगता है कि हमें इन प्लेटफार्म के द्वारा ही ऊपर की ओर जाना है।” क्रिस्टी ने तेज आवाज में कहा।
क्रिस्टी की आवाज सुन सभी उस दरवाजे में प्रवेश कर गये।
इसी प्रकार कई बार अलग-अलग दरवाजों में प्रवेश करने के बाद, आखिरकार उनका दरवाजा एक बादल के ऊपर जाकर खुला।
जैसे ही सभी बादल के ऊपर खड़े हुए, वह दरवाजा और प्लेटफार्म दोनों ही गायब हो गये।
अब सभी ने अपने चारो ओर नजर डाली। इस समय वह सभी जिस बादल पर खड़े थे, वह लगभग 200 वर्ग फुट का था और बिल्कुल सफेद था।
उस बादल से 100 मीटर की दूरी पर एक बड़ा सा गोला सूर्य के समान चमक रहा था, उसकी रोशनी से ही पूरा क्षेत्र प्रकाशमान था।
“क्या वह कृत्रिम सूर्य है?” जेनिथ ने उस सूर्य के समान गोले की ओर देखते हुए कहा।
“लगता है कैश्वर ने यह द्वार कुछ अलग तरीके से बनाया है।” सुयश ने कहा- “वह सामने का गोला कृत्रिम सूर्य है, जो सूर्य के समान ही रोशनी दे रहा है। हम इस समय बादलों के ऊपर खड़े हैं। पर इन दोनों के अलावा यहां पर कुछ नजर नहीं आ रहा। ना तो बाहर निकलने का कोई दरवाजा दिख रहा है और ना ही यह समझ में आ रहा है कि यहां पर करना क्या है?”
तभी शैफाली की नजर आसमान की ओर गई। आसमान पर नजर पड़ते ही शैफाली आश्चर्य से भर उठी।
“कैप्टेन अंकल, जरा ऊपर आसमान की ओर देखिये, वहां पर बहुत कुछ विचित्र सा है?” शैफाली ने सुयश को आसमान की ओर इशारा करते हुए कहा। शैफाली की बात सुन सभी ने आसमान की ओर देखा।
अब सभी अपना सिर उठाये विस्मय से ऊपर की ओर देख रहे थे।
“यह आसमान में क्या चीजें बनी हैं?” ऐलेक्स ने बड़बड़ाते हुए कहा।
“मुझे लग रहा है कि हमारे सिर के ऊपर आसमान नहीं बल्कि जमीन है, आसमान पर तो हम लोग खड़े हैं, यानि कि यहां पर सब कुछ उल्टा-पुल्टा है।” क्रिस्टी ने कहा।
“सब लोग जरा ध्यान लगाकर देखो कि वहां ऊपर क्या-क्या चीजें है?” सुयश ने सभी से कहा।
“कैप्टेन मुझे वहां एक खेत दिखाई दे रहा है, जिस में एक किसान बीज बो रहा है।” तौफीक ने कहा।
“मुझे उस खेत के बाहर 5 मूर्तियां दिखाई दे रहीं हैं, शायद वह किसी देवी-देवता की मूर्तियां हैं, उन मूर्तियों पर कुछ लिखा भी है, पर यह भाषा मैं पढ़ना नहीं जानती।” जेनिथ ने कहा।
“वह मूर्तियां सूर्य, चंद्र, इंद्र, पवन और पृथ्वी की हैं।” सुयश ने मूर्तियों की ओर देखते हुए कहा- “और उस पर हिंदी भाषा में लिखा है।” यह कहकर सुयश ने सभी को उन देवी देवताओं के बारे में बता दिया।
“कैप्टेन खेत से कुछ दूरी पर एक बड़ा सा तालाब बना है, जिससे समुद्र जैसी लहरें उठ रहीं हैं।” ऐलेक्स ने कहा- और उसके सामने एक बड़ा सा कमरा बना है, जिस पर एक तीर ऊपर की ओर मुंह किये हुए लगा है। उस तीर के सामने एक बड़ी सी पवनचक्की जमीन पर गिरी पड़ी है।”
“यह तो कोई बहुत अजीब सी पहेली लग रही है....क्यों कि ना तो हम सूर्य के पास जा सकते हैं और ना ही ऊपर जमीन की ओर.....और इन बादलों में कुछ है नहीं?...फिर इस पहेली को हल कैसे करें?” क्रिस्टी ने कहा।
सभी बहुत देर तक सोचते रहे, परंतु किसी को कुछ समझ नहीं आया कि करना क्या है? तभी जेनिथ की निगाह सूर्य की ओर गई।
“कैप्टेन सूर्य अपना रंग बदल रहा है...अब वह सुनहरे से सफेद होता जा रहा है।” जेनिथ ने कहा।
जेनिथ की बात सुन सभी सूर्य की ओर देखने लगे। जेनिथ सही कह रही थी, सूर्य सच में एक किनारे से सफेद हो रहा था।
“मुझे लग रहा है कि सूर्य धीरे-धीरे चंद्रमा में परिवर्तित हो रहा है।” शैफाली ने कहा- “यानि दिन के समय यही सूर्य बन जाता है और रात को यही चंद्रमा बन जाता है।”
“मुझे लगता है कि हमें थोड़ी देर और इंतजार करना चाहिये, हो सकता है कि रात होने पर चंद्रमा हमें कोई मार्ग दिखाए?” तौफीक ने कहा।
तौफीक की बात सुन सभी आराम से वहीं सफेद बादल पर बैठ गये।
धीरे-धीरे सूर्य पूरी तरह से चंद्रमा में परिवर्तित हो गया, अब सभी ध्यान से चंद्रमा को देखने लगे।
“कैप्टेन चंद्रमा में एक द्वार बना है, मुझे लगता है कि हमें उसी द्वार से बाहर जाना है।” जेनिथ ने कहा।
“चलो एक परेशानी तो दूर हुई, कम से कम ये तो पता चला कि हमें जाना कहां है?” सुयश ने खुशी भरे शब्दों में कहा- “अब हमें बस चंद्रमा तक जाने का रास्ता ढूंढना है। क्यों कि इन बादलों से चंद्रमा के बीच सिर्फ हवा ही है।”
“मुझे लगता है कि हमें यहां से कूद कर जमीन तक जाना होगा, चंद्रमा का रास्ता अवश्य ही नीचे से होगा।” ऐलेक्स ने कहा।
“अरे बुद्धू, हम खुद ही नीचे हैं, कूदने से ऊपर कैसे चले जायेंगे?” क्रिस्टी ने ऐलेक्स से हंस कर कहा।
“तो फिर अगर कोई चीज इन बादलों से गिरे तो वह कहां जायेगी? हमसे भी नीचे....या फिर ऊपर जमीन की ओर?” ऐलेक्स की अभी भी समझ में नहीं आ रहा था।
“रुको अभी चेक कर लेते हैं।” यह कहकर क्रिस्टी ने अपनी जेब में रखा एक फल निकाला और उसे कुछ दूरी पर फेंक दिया।
वह फल नीचे जाने की जगह तेजी से ऊपर जमीन की ओर चला गया।
“अब समझे, जमीन और उसका गुरुत्वाकर्षण ऊपर की ओर ही है, हम लोग सिर्फ ऊंचाई पर खड़े हैं और हमें उल्टा दिख रहा है बस। ....और अगर तुमने यहां से कूदने की कोशिश की तो तुम्हारी हड्डियां भी टूट जायेंगी या फिर तुम मर भी सकते है, क्यों कि हमारी ऊंचाई बहुत ज्यादा है।” क्रिस्टी ने ऐलेक्स को समझाते हुए कहा।
सुयश ने कहा- “मुझे तो लगता है कि अवश्य ही अब इन बादलों में कुछ ना कुछ छिपा है...खाली हाथ तो हम लोग इस द्वार को पार नहीं कर पायेंगे।”
सुयश की बात सुन सभी उस सफेद बादल में हाथ डालकर, टटोल कर कुछ ढूंढने की कोशिश करने लगे।
तभी शैफाली का हाथ बादल में मौजूद किसी चीज से टकराया। शैफाली ने उस चीज को खींचकर निकाल लिया। वह एक 3 फुट का वर्गाकार शीशा था।
“पहले मेरे दिमाग में यह बात क्यों नहीं आयी।” सुयश ने शीशे को देख अपने सिर पर हाथ मारते हुए कहा- “और ढूंढो...हो सकता है कि कुछ और भी यहां पर हो ?”
तभी जेनिथ ने खुशी से कहा- “कैप्टेन, मुझे यह छड़ी मिली है।” सुयश ने जेनिथ के हाथ में थमी छड़ी को देखा। वह एक साधारण लकड़ी की छड़ी लग रही थी।
सभी फिर से बादलों से कुछ और पाने की चाह में उन बादलों का मंथन करने लगे। पर काफी देर ढूंढने के बाद भी बादलों से कुछ और ना मिला।
“यहां तो सिर्फ एक शीशा और छड़ी थी, इन दोनों के द्वारा भला हम चंद्रमा तक कैसे पहुंच सकते हैं?” क्रिस्टी ने कहा।
“इन दोनों के द्वारा हम चंद्रमा तक नहीं पहुंच सकते, पर इनका कुछ ना कुछ तो उपयोग है।” यह कहकर सुयश ने शीशे को चंद्रमा की रोशनी की ओर कर दिया, पर उसमें चंद्रमा की परछाईं दिखने के सिवा कुछ नहीं हुआ।
धीरे-धीरे कई घंटे और बीत गये। अब चंद्रमा फिर से सूर्य में परिवर्तित होने लगा।
सूर्य की पहली किरण सुयश के माथे से आकर टकराई, तभी सुयश के दिमाग में एक विचार कौंधा।
अब सुयश ने शैफाली से शीशा लेकर सूर्य की दिशा में कर दिया।
सूर्य की किरणें शीशे से टकरा कर परावर्तित होने लगीं। अब सुयश ने जमीन की ओर ध्यान से देखा।
खेत में बैठा किसान बीज बोने के बाद, बार-बार ऊपर बादलों की ओर देख रहा था। कभी-कभी वह अपने माथे पर आये पसीने को, अपने कंधे पर रखे कपड़े से पोंछ रहा था।
अब सुयश की निगाह इंद्र की मूर्ति पर पड़ी। इंद्र की मूर्ति देखने के बाद सुयश के चेहरे पर मुस्कान बिखर गई।
सुयश की मुस्कान देखकर सभी समझ गये कि सुयश को अवश्य कोई ना कोई उपाय मिल गया है?
“कुछ समझ में आया तुम लोगों को?” सुयश ने सभी से पूछा। सभी ने ना में सिर हिला दिया।
यह देख सुयश ने बोलना शुरु कर दिया- “मुझे भी अभी सबकुछ तो समझ में नहीं आया है, पर उस किसान को देखकर यह साफ पता चल रहा है कि उसे बीज बोने के बाद बारिश का इंतजार है और वह बारिश हमें करानी पड़ेगी।”
“यह कैसे संभव है कैप्टेन? हम भला बारिश कैसे करा सकते हैं?” तौफीक ने सुयश का मुंह देखते हुए आश्चर्य से पूछा।
“संभव है....मगर पहले मुझे ये बताओ कि धरती पर बारिश होती कैसे है?” सुयश ने उल्टा तौफीक से ही सवाल कर दिया।
“समुद्र का पानी, सूर्य की गर्मी से वाष्पीकृत होकर, बादलों का रुप ले लेता है और बादल जब आपस में टकराते हैं या फिर उनमें पानी की मात्रा ज्यादा हो जाती है, तो वह बूंदों के रुप में धरती की प्यास बुझाते हैं।” तौफीक ने कहा।
“अब जरा जमीन की ओर देखो। सूर्य की रोशनी उस तालाब के ऊपर नहीं पड़ रही है, इसीलिये किसान के खेत पर बारिश नहीं हो रही है।” सुयश ने तालाब की ओर इशारा करते हुए कहा।
“पर हम सूर्य की रोशनी को तालाब की ओर कैसे मोड़ पायेंगे?” क्रिस्टी के चेहरे पर उलझन के भाव नजर आये।
“इस शीशे की मदद से।” सुयश ने कहा- “इसकी मदद से हम सूर्य के प्रकाश को परावर्तित कर उस तालाब पर डाल सकते हैं।”
“पर यह प्रक्रिया तो बहुत लंबी चलती है। क्या हमें शीशा इतनी देर तक पकड़े रखना पड़ेगा?” ऐलेक्स ने पूछा।
“पता नहीं कितना समय लगेगा, पर इसके सिवा दूसरा कोई रास्ता भी नहीं है?” यह कहकर सुयश ने शीशे को इस प्रकार पकड़ लिया, कि अब सूर्य की रोशनी उससे परावर्तित होकर तालाब पर जाकर पड़ने लगी।
लगभग 2 घंटे की अपार सफलता के बाद, तालाब का पानी वाष्पीकृत होकर बादलों का रुप लेने लगा।
यह देख सभी में नयी ऊर्जा का संचार हो गया। अब सभी बारी-बारी शीशे को पकड़ रहे थे।
अब उनके सफेद बादल का रंग धीरे-धीरे काला होने लगा।
लगभग आधे दिन के बाद उनके बादलों का रंग पूर्ण काला हो गया। अब उस बादल के बीच बिजली भी कड़क रही थी, पर आश्चर्यजनक तरीके से वह बिजली इनमें से किसी को भी कोई नुकसान नहीं पहुंचा रही थी।
बादलों की गड़गड़ाहट और बिजली की चमक देख किसान खुशी से नाचने लगा।
पर बादलों को बरसाना कैसे था? यह किसी को नहीं पता था?
सुयश की निगाह अब जेनिथ के हाथ में पकड़ी छड़ी की ओर गई। सुयश ने वह छड़ी जेनिथ के हाथ से ले ली।
सुयश ने बादल पर जैसे ही वह छड़ी मारी, बादल से जोर की आवाज करती बिजली निकली और जमीन पर स्थित उस घर के ऊपर बने तीर में समा गई।
सुयश ने 2-3 बार ऐसे ही किया। अब बादल से तेज मूसलाधार बारिश शुरु हो गई और धरा की प्यास बुझाने, पृथ्वी की ओर जाने लगी।
बहुत ही विचित्र नजारा था। बादलों से निकली हर बूंद ऊपर की ओर जा रही थी।
तभी सूर्य के सतरंगी प्रकाश से आसमान में एक बड़ा इंद्रधनुष बन गया। सभी को पता था कि यह सब कुछ असली नहीं है, फिर भी वह सभी मंत्रमुग्ध से प्रकृति के इस सुंदर दृश्य को निहार रहे थे।
बूंदों ने अब किसान के खेत पर बरसना शुरु कर दिया। बूंदों के पड़ते ही अचानक किसान का बोया हुआ बीज अंकुरित हो गया।
कुछ ही देर में वह अंकुरित बीज एक लता का रुप ले उस बादल की ओर बढ़ने लगा।
सभी आश्चर्य से उस पृथ्वी के पौधे को बढ़ता हुआ देख रहे थे। 10 मिनट में ही उस लता धारी वृक्ष ने, बादलों से पृथ्वी तक एक विचित्र पुल का निर्माण कर दिया।
तभी वह शीशा और छड़ी गायब हो गये।
“यही है वह रास्ता, जिससे होकर हमें पृथ्वी तक पहुंचना है।” सुयश ने धीरे से पेड़ की लताओं को पकड़ा और सरककर नीचे जाने लगा।
सुयश को ऐसा करते देख, सभी उसी प्रकार से सुयश के पीछे आसमान से उतरने लगे। कुछ ही देर बाद सभी जमीन पर थे।
“अब जाकर कुछ बेहतर महसूस हुआ।” ऐलेक्स ने लंबी साँस छोड़ते हुए कहा- “ऊपर से उल्टा देखते-देखते दिमाग चकरा गया था।
सुयश ने अब खेत के चारो ओर देखा। सभी के बादलों से उतरते ही वह पेड़ और किसान दोनों ही गायब हो गये थे।
सुयश सभी को लेकर खेत से बाहर आ गया। बाहर अब 2 ही मूर्तियां दिख रहीं थीं।
“कैप्टेन, यह 3 मूर्तियां कहां गायब हो गईं?” क्रिस्टी ने कहा।
“जिन मूर्तिंयों का कार्य खत्म हो गया, वह मूर्तियां स्वतः गायब हो गयीं। जैसे सूर्य की मूर्ति का कार्य सूर्य के प्रकाश को परावर्तित करने तक था। इंद्र की मूर्ति का कार्य बिजली और बारिश तक ही सीमित था और पृथ्वी की मूर्ति का कार्य पेड़ को बड़ा होने तक था।” सुयश ने सभी को समझाते हुए कहा।
“इसका मतलब अब चंद्र और पवन का काम बचा है।” जेनिथ ने कहा।
“बिल्कुल ठीक कहा जेनिथ...और इन्हीं 2 मूर्तियों के कार्य के द्वारा ही हम तिलिस्मा के इस द्वार को पार कर पायेंगे।” सुयश ने जेनिथ को देखते हुए कहा- ‘चलो सबसे पहले उस जमीन पर पड़ी पवनचक्की को
देखते हैं। जरुर उसी से हमें चंद्रमा तक जाने का रास्ता मिलेगा।”
सभी को सुयश की बात सही लगी, इसलिये वह तालाब के किनारे स्थित उस मैदान तक जा पहुंचे, जहां पर जमीन पर वह पवनचक्की पड़ी थी।
पवनचक्की का आकार काफी बड़ा था। उस पवनचक्की के बीच में एक गोल प्लेटफार्म बना था। उस प्लेटफार्म पर चढ़ने के लिये सीढियां बनीं थीं।
सभी सीढ़ियां चढ़कर उस प्लेटफार्म के ऊपर आ गये। प्लेटफार्म के ऊपर एक बड़ा सा लीवर लगा था।
प्लेटफार्म का ऊपरी हिस्सा जालीदार था, जो कि एक मजबूत धातु से बना लग रहा था। उस जालीदार हिस्से के नीचे नीले रंग का कोई द्रव भरा हुआ था।
“वह द्रव किस प्रकार का हो सकता है?” तौफीक ने कहा - “वह ऐसी जगह पर रखा है जो कि पूरी तरह से बंद है इसलिये हम सिर्फ उसे देख ही सकते हैं।”
“मैं उस द्रव को सूंघ भी सकता हूं।” ऐलेक्स ने अपनी नाक पर जोर देते हुए कहा- “वह किसी प्रकार का ‘कास्टिक’ है, जिससे साबुन बनाया जाता है।”
“साबुन???” जेनिथ ने आश्चर्य से कहा- “साबुन का यहां क्या काम हो सकता है?”
“कोई भी काम हो...पर अब यह तो श्योर हो गया है कि यही पवनचक्की हमें चंद्रमा तक पहुंचायेगी क्यों कि एक तो यह बिल्कुल सूर्य के नीचे है और दूसरा अभी पवनदेव का काम बचा हुआ है....अब बस ये देखना है कि इस पवनचक्की को शुरु कैसे करना है?” सुयश ने कहा- “चलो चलकर उस कमरे को भी देख लें, हो सकता है कि पवनचक्की का नियंत्रण उसी कमरे में ही हो?”
सभी पवनचक्की के पास बने, उस कमरे के अंदर आ गये। कमरे में एक बहुत बड़ी सी मशीन रखी थी, जिसमें कुछ लाल रंग की लाइट जल रहीं थीं।
सुयश ने ध्यान से पूरी मशीन को देखा और फिर बोल उठा- “पवनचक्की इस मशीन से ही चलेगी। इस कमरे की छत पर जो तीर लगा है, असल में वह तड़ित-चालक (लाइटनिंग अरेस्टर) है, जिसका प्रयोग नये भवनों के निर्माण में किया जाता है।
"तड़ित चालक भवनों के ऊपर गिरने वाली आसमानी बिजली को, जमीन के अंदर भेज कर भवनों की सुरक्षा करता है। पर इस कमरे पर लगे, तड़ित-चालक पर जब बिजली गिरी तो उसने सारी बिजली को इस मशीन में सुरक्षित कर लिया था। अब उसी बिजली के द्वारा पवन-चक्की को हम चला सकते हैं और वह पवनचक्की हमें किसी ना किसी प्रकार से चंद्रमा पर भेज देगी।”
“इसका मतलब इसे शुरु करने के बाद हमें पवनचक्की पर मौजद उस प्लेटफार्म पर जाकर खड़े होना होगा और वहां मौजूद लीवर को दबाते ही, पवनचक्की हमें चंद्रमा पर भेज देगी।” क्रिस्टी ने कहा।
“बिल्कुल ठीक कहा क्रिस्टी...जरुर ऐसा ही होगा।” जेनिथ ने भी क्रिस्टी की हां में हां मिलाते हुए कहा।
“तो फिर देर किस बात की, चलिये मशीन को शुरु करके एक बार देख तो लें।” ऐलेक्स ने कहा।
सुयश ने सिर हिलाया और मशीन से कुछ दूरी पर लगे, एक ऑन बटन को दबा दिया, पर ऑन बटन के दबाने के बाद भी मशीन शुरु नहीं हुई।
अब सुयश फिर ध्यान से उस मशीन के मैकेनिज्म को समझने की कोशिश करने लगा।
“यह मशीन ऐसे स्टार्ट नहीं होगी।” नक्षत्रा ने जेनिथ को समझाते हुए कहा- “इस मशीन का कोई भी कनेक्शन ऑन बटन के साथ नहीं है, इसका मतलब मशीन के ऑन बटन को स्टार्ट करने के लिये कोई और तरीका है....जेनिथ जरा एक बार कमरे में पूरा घूमो...मैं देखना चाहता हूं कि यहां और क्या-क्या है?”
नक्षत्रा के ऐसा कहने पर जेनिथ कमरे में चारो ओर घूमने लगी।
तभी एक छोटी सी मशीन को देख नक्षत्रा ने जेनिथ को रुकने का इशारा किया- “यह मशीन टरबाइन की तरह लग रही है, और यही छोटी मशीन, एक तार के माध्यम से ऑन बटन के साथ जुड़ी है...तुम एक काम करो सुयश को यह सारी चीजें बता दो, मैं जानता हूं कि वह समझ जायेगा कि उसे आगे क्या करना है?”
जेनिथ ने नक्षत्रा की सारी बातें सुयश को समझा दीं।
“ओ.के. टरबाइन को चलाने के लिये हमें किसी सोर्स की जरुरत होती है, फिर चाहे वह हवा हो या फिर पानी.....पानी....बिल्कुल सही, ये टरबाइन तालाब की लहरों से स्टार्ट किया जा सकता है और देखो इसका तार भी बहुत लंबा है।”
सुयश अब तौफीक और ऐलेक्स की मदद से उस भारी टरबाइन को लेकर तालाब के किनारे आ गया।
तालाब के किनारे टरबाइन को रखने का एक प्लेटफार्म भी बना था, पर इस समय तालाब का पानी बिल्कुल शांत था।
यह देख सुयश का चेहरा मुर्झा सा गया।
“क्या हुआ कैप्टेन? आप उदास क्यों हो गये?” ऐलेक्स ने कहा- “आपने तो कहा था कि तालाब के पानी से यह टरबाइन चलायी जा सकती है?”
“जब हम ऊपर बादलों पर थे, तो तालाब का पानी किसी समुद्र की लहर की भांति काम कर रहा था, पर अभी यह बिल्कुल शांत है और टरबाइन को चलाने के लिये हमें लहरों की जरुरत पड़ेगी।” सुयश ने कहा।
“कैप्टेन अंकल, आप परेशान मत होइये, मैं जानती हूं कि तालाब का पानी अभी शांत क्यों है?” शैफाली ने कहा।
शैफाली के शब्द सुन सुयश आश्चर्य से शैफाली की ओर देखने लगा।
“कैप्टेन अंकल समुद्र की लहरों के लिये चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण ही जिम्मेदार माना जाता है और आप देख रहे हैं कि अभी दिन है और आसमान में सूर्य निकला हुआ है। मुझे लगता है कि जैसे ही शाम होगी और आसमान में चंद्रमा निकलेगा, तालाब का पानी फिर से लहरों में परिवर्तित हो जायेगा और वैसे भी हम दिन में आसमान में जाकर करेंगे भी तो क्या? यहां से निकलने का द्वार तो चंद्रमा में मौजूद है। इसलिये आप बस थोड़ा सा इंतजार कर लीजिये बस...।” शैफाली ने कहा।
शैफाली के शब्दों से एक पल में सुयश सब कुछ समझ गया।
“अच्छा तो इसी के साथ पवन और चंद्रमा की मूर्तियों का कार्य भी पूर्ण हो जायेगा।” सुयश ने खुश होते हुए कहा।
सभी अब चुपचाप वहीं बैठकर चंद्रमा के आने का इंतजार करने लगे।
जैसे ही सूर्य पूरी तरह से सफेद हुआ, शैफाली के कहे अनुसार तालाब का पानी लहरों में परिवर्तित होकर हिलोरें मारने लगा।
तालाब की लहरें अब टरबाइन पर गिरने लगीं, जिससे टरबाइन के अंदर मौजूद ब्लेड ने घूमना शुरु कर दिया।
सुयश टरबाइन पर पानी गिरता देख, भागकर कमरे में पहुंचा और उस मशीन का ऑन बटन दबा दिया।
एक घरघराहट के साथ मशीन ऑन हो गई। यह देख सुयश सभी को साथ लेकर पवनचक्की के ऊपर मौजूद जालीदार प्लेटफार्म पर पहुंच गया।
सुयश ने एक बार सभी को देखा और फिर वहां मौजूद उस लीवर को नीचे की ओर कर दिया।
एक गड़गड़ाहट के साथ विशालकाय पवनचक्की घूमना शुरु हो गई।
जहां सभी एक ओर इक्साइटेड भी थे, वहीं पर सावधान भी थे।
पवनचक्की ने जैसे ही गति पकड़ी, प्लेटफार्म के नीचे मौजूद नीले रंग का कास्टिक तेजी से जाली के ऊपर की ओर आया और जाली पर एक
विशालकाय बुलबुला बन गया।
सभी उस बुलबुले के अंदर बंद हो गये और इसी के साथ वह बुलबुला पवनचक्की की तेज हवाओं से ऊपर आसमान की ओर जाने लगा।
ऐलेक्स को छोड़ सभी को एकाएक शैफाली का बुलबुला और ज्वालामुखी वाला सीन याद आ गया।
“अब समझ में आया कि वहां नीचे कास्टिक क्यों रखा था।” सुयश ने मुस्कुराते हुए कहा।
“अपने ऐलेक्स की नाक तो बिल्कुल कुत्ते जैसी हो गई।” क्रिस्टी ने ऐलेक्स का मजाक उड़ाते हुए कहा।
“और तुम्हारी आँखें भी तो....।” कहते-कहते ऐलेक्स रुक गया।
“हां-हां बोलो-बोलो मेरी आँखें भी तो....किसी जानवर से मिलती ही होंगी।” क्रिस्टी ने मुंह बनाते हुए कहा।
“हां तुम्हारी आँखें बिल्कुल जलपरी के जैसी हैं, जी चाहता है कि इसमें डूब जाऊं।” अचानक से ऐलेक्स ने सुर ही बदल दिया।
क्रिस्टी को ऐलेक्स से इस तरह के जवाब की उम्मीद नहीं थी, इसलिये वह शर्मा सी गई।
“और तुम्हारा चेहरा इस चंद्रमा से भी ज्यादा खूबसूरत है।” ऐलेक्स क्रिस्टी को शर्माते देख किसी शायर की तरह क्रिस्टी की तारीफ करने लगा।
“चांद पर थोड़ा गुरूर हम भी कर लें,
पर मेरी नजरें पहले महबूब से तो हटें..!!
सभी क्रिस्टी और ऐलेक्स की इन मीठी बातों का आनन्द उठा रहे थे।
उधर वह बुलबुला धीरे-धीरे हवा में तैरता हुआ चंद्रमा तक जा पहुंचा।
सभी के चंद्रमा पर उतरते ही वह बुलबुला हवा में फट गया।
बुलबुले के फटते ही सभी चंद्रमा पर उतर गये और चंद्रमा के द्वार में प्रवेश कर गये।
जारी रहेगा_____
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