Raj_sharma भाई जी -- आपकी भाभी (मेरी पत्नी अंजलि) की तरफ़ से चिट्ठी --
“राज भैया, मैं अधिकतर printed books पढ़ती हूँ। screen पर पढ़ना बहुत अटपटा लगता है क्योंकि दिन भर काम के कारण screen देखनी ही पड़ती है। इसी चक्कर में मेरा kindle भी बेकार पड़ा हुआ है। कोई तीन साल पहले तक इस website पर मेरा आना अधिक होता था, लेकिन फिर बहुत कम होता गया। अमर की कहानियाँ मुझे सबसे अच्छी लगती हैं। उनकी contest वाली हर कहानी मुझे बेहद पसंद है (मैंने ही शुरू किया था contest के लिए लिखना; पिछली वेबसाइट पर “आज रहब...” मैंने ही लिखी थी)।
वो किसी किसी कहानी को पढ़ कर सुनाते हैं, तो लगता है कि उसको पढ़ना चाहिए। काला नाग भैया की विश्वरूप और आपकी सुप्रीम वैसी ही कहानियाँ हैं। आपने review करने के लिए कहा, तो लिख रही हूँ। बहुत अच्छी कहानी है - thriller novel है ये। कुछ कहानियों को पढ़ कर लगता है कि उनको books print करवाना चाहिए। लेकिन वो सब आसान नहीं होता न। हिंदी शायद कम लोग ही पढ़ते हैं।
49 - 50 में आपने जो दृश्य दिखाए हैं, वो पढ़ कर “बर्निंग ट्रेन” फ़िल्म का सीन याद आ गया। वैसा ही मार्मिक। मुश्किल काम है कि शब्दों को पढ़ने से भावनाएँ महसूस होने लगें। कुछ पात्रों को पढ़ कर खीझ भी होती है। सुयश सही कप्तान नहीं है। workplace में ऐसे बहुत से inept managers बहुत बार देखे हैं। अपनी position के कारण वो सभी पर धौंस जमाते रहते हैं, लेकिन होते किसी काम के नहीं।
51 - 52 में सुप्रीम डूब गया है। लेकिन कहानी का नाम अभी भी “सुप्रीम” ही है। तो ऐसा लगता है कि कहानी के अंत में ये जहाज़ वापस restore हो जाएगा। सुखान्त की भी आशा है। लेकिन अंत तो शायद अभी बहुत दूर है।
आप लिखें - serious हो कर लिखें। यहीं नहीं, बाहर भी! print करवाने की कोशिश भी करें। हमेशा तो नहीं, लेकिन कभी कभी मैं भी review लिख दूँगी। thank you.”