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मैं निधि हूँ. मैं 27 वर्षीय बहुत खूबसूरत स्त्री हूँ और मेरे जिस्म का माप 36/24/38 है।
मेरा शरीर बहुत गोरा है, चेहरा गोरा और अंडाकार है, कद पांच फुट छह इंच है, होंठ खूबसूरत गुलाब की पंखुड़ियों जैसे हैं,
बल खाती पतली कमर के बीच नाभि की गहराई है,
हिरणी जैसी नशीली आँखें भूरे रंग की हैं।
मेरी वक्ष पर उठी हुई गोल और सख्त चूचियाँ हैं जिन पर गहरे भूरे रंग के चूचुक हैं,
पेट सपाट है, नितम्ब थोड़े भारी हैं,
टांगें लंबी और जांघें सुडौल हैं तथा नितम्बों तक पहुँचते हुए काले काले बाल हैं।
मैं एक मध्यम वर्ग के परिवार की विधवा बहू हूँ जिसके मायके और ससुराल में एक को छोड़ कर कोई भी व्यक्ति जीवित नहीं है ! वह जीवित व्यक्ति है मेरे स्वर्गवासी पति के बड़े भाई का बेटा दीपक जिसे मैं दीप कह कर ही पुकारती हूँ।
दीप 20 वर्ष का एक हृष्ट-पुष्ट नौजवान है जिसने बचपन से ही व्यायाम और खेल-कूद के कारण एक स्वस्थ शरीर पाया है। दीप का कद 5’11” है, सीना चौड़ा, छह पैक बॉडी, लंबी और मजबूत टाँगें, लंबी और ताकतवर बाजूएँ, साफ़ रंग, काले बाल, गोल चेहरा, चौड़ा माथा, काली आँखे, लंबी नाक !
उसे देख कर तो कोई भी लड़की उसकी ओर आकर्षित हो जाती है। दीप आजकल पानीपत के पास इंजिनीयरिंग कालेज में चौथे सेमस्टर (यानि दूसरे वर्ष) में पढ़ता है, बहुत ही सीधा साधा लड़का है जिसमें मुझे कोई अवगुण दिखाई नहीं देते, हर समय मदद के लिए तैयार रहता है, घर, कालेज और जिम के इलावा वह कहीं भी नहीं जाता है और ना ही उसका कोई व्यभिचारी दोस्त है।
मेरे जीवनचक्र का मोड़ लगभग आठ साल पहले जून माह की घटना से शुरू हुआ, जब हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा के पास एक बस दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी !
वह बस एक पांच सौ फुट गहरी खाई में गिर गई थी और उस बस में सवार 40 सवारियों में से 18 सवारियों की मृत्यु हो गई थी और 20 सवारियों को चोटें लगी थी। जब दुर्घटना हुई तब मैं और मेरे पति, उनके बड़े भाई तथा उनकी पत्नी और उनका पुत्र दीप भी इसी बस में सवार थे !
इस दुर्घटना में मरने वाली 18 सवारियों में घटना स्थल पर मृत होने वालों में मेरे पति, उनके बड़े भाई तथा उनकी पत्नी भी थे ! क्योंकि दीप और मुझे को कुछ चोटें आईं थी इसलिए हमें एक दिन के लिए हस्पताल में इलाज के लिए भरती रखा और दूसरे दी छुट्टी दे दी। हमने पुलिस से मृत शरीरों के मिलने के बाद कुछ दूर के रिश्तेदारों के साथ मिल कर दीप के माता, पिता और चाचा का अंतिम संस्कार किया और अपने घर पानीपत में रहने लगे !
इस घटना के समय मैं बीस वर्ष की थी और छह माह पहले ही मेरी शादी दीप के चाचा के साथ हुई थी। उस समय दीप लगभग तेरह वर्ष का था और अष्टम कक्षा में पढ़ता था। दीप की पढ़ाई और घर के खर्चे के लिए हमने पानीपत वाले घर के नीचे का हिस्सा किराये पर दे दिया और ऊपर की मंजिल पर बनी एक ही कमरे वाली बरसाती में रहने लगे। कई रिश्तेदारों और आस पास के लोगों ने मुझे फिर से विवाह करने के लिए कहा, लेकिन मैंने दीप की ज़िम्मेदारी के कारण उनके अनुरोध को अस्वीकार कर दिया और दीप के साथ पानीपत में ही रहने लगी।
इस दुर्घटना की वजह मैं टूट तो गई थी लेकिन दीप की हालत देख कर मैंने अपना दुःख भुला दिया और उसकी देख रेख और पढ़ाई में लग गई !
दीप स्कूल में पढ़ने लगा और मैं घर को संभालती तथा आस पास के बच्चों कि ट्यूशनें लेकर अपने गुज़र बसर के लिए कुछ कमा लेती। नीचे के मकान के किराये और मेरी ट्यूशनों की आमदनी से हमारा गुज़ारा बहुत ही आराम से चल जाता था। शुरू में दीप अपने माता, पिता और चाचा को खोने के बाद कुछ सहमा सहमा सा रहता था और कई बार रात को डर कर उठ जाता था और रोने लगता था क्योंकि हमारे पास एक ही कमरा था इसलिए उसे सांत्वना देने के लिए मैं उसे अपने पास ही सुलाती थी।
सुबह दीप स्कूल चला जाता था तब मैं घर का काम समाप्त करती और स्कूल में शाम की पारी में पढ़ने वाले पांच विद्यार्थियों की ट्यूशन लेती। शाम को जब दीप स्कूल से घर आ जाता था तो मैं उसे खिला पिला कर उसे शाम के समय पढ़ने वाले चार विद्यार्थियों के साथ ही पढ़ा देती थी।
इसके बाद अधिकतर हम दोनों थोड़ी देर टीवी देखते, फिर खाना खाते और दस बजे तक सो जाते थे !
दीप मेरे साथ एक ही बिस्तर में मेरे से लिपट कर ही सोता था !
इसी दिनचर्या में सात वर्ष व्यतीत हो गए और दीप ने इंजिनीयरिंग कालेज में दाखिला ले लिया था। कमरा छोटा होने के कारण हम अधिक सामान नहीं रख कर हमने सिर्फ एक डबल बैड और दो कुर्सियाँ ही रखी हुई थी और दोनों उसी डबल बैड पर सोते थे।
दीप 19 वर्ष का हो चुका था लेकिन घर पर वह अभी भी बारह वर्ष के बच्चे की तरह व्यवहार करता था, जब भी घर होता था वह उछल कूद करता ही रहता था और जब देखो तब वह मेरे से चिपट जाता !
जब वह ** वर्ष का था, मैं तब से देख रही थी कि अक्सर सुबह उठने के समय उसका लिंग खड़ा हुआ होता था !
कभी कभी तो रात में जब वह मेरे साथ चिपट के सो रहा होता था तब भी मैंने उसके सख्त और खड़े लिंग की चुभन भी महसूस करती थी। दिन के समय में भी वह जब कभी मुझे चिपकता तब भी मैंने अपनी जाँघों से उसके लिंग का स्पर्श महसूस करती थी,
लेकिन मैंने इस बात को तो हमेशा नज़रंदाज़ कर दिया करती थी।
लेकिन दो सप्ताह पहले जब मैं सुबह छह बजे उठी तो दीप सो रहा था तब मैंने उसका पजामा आगे से गीला पाया।
जब मैंने पास जाकर ध्यान से देखा तब आशंका हुई कि शायद उसे स्वप्नदोष के कारण वीर्य स्खलन हो गया था !
मैंने दीप को जगाया और उसे गीले पजामे के बारे में पूछा तो वह भौंचक्का सा पजामे को देखने लगा और मायूस सा चेहरा बनाते हुए कहा कि उसे इसके बारे में कुछ भी पता नहीं !
मैंने दीप का पजामा उतरवा कर उस लगे गीलेपन का परीक्षण किया तो पाया वह उसका वीर्यरस ही था
और मेरा स्वप्नदोष के कारण वीर्य स्खलन का अनुमान सही निकला। जांघिये में वीर्यरस से लथपथ चिपका हुआ दीप के लिंग को देख कर मैंने उसे कपड़े बदलने को कहा।
उस दिन पांच वर्ष के बाद मुझे दीप के लिंग की झलक देखने को मिली, जो लम्बाई में छह इंच से बढ़ कर आठ इंच और मोटाई में एक इंच से बढ़ कर ढाई इंच का हो गया था। जब दीप ** वर्ष का था तब छुट्टी के दिन उसे नहलाते समय मैंने उसके लौड़े को अक्सर देखा और छुआ भी था, लेकिन उस दिन मैं ऐसा कुछ करने की हिम्मत नहीं जुटा सकी।
क्योंकि इतने प्यारे और आकर्षक लौड़े को देख कर मैं गर्म हो गई थी इसलिए दीप को कपड़े बदल कर वापिस आने पर मैं बाथरूम में घुस गई और ना चाहते हुए भी कोने में मैले कपड़ों की टोकरी में से दीप के गील पजामे और जांघिये को निकाल कर उसमें लगे वीर्य को सूंघा और जीभ से चाट कर चखा !
उस वीर्य की सुगंध और स्वाद मेरे पति के वीर्य जैसा नमकीन-मीठा था जिसके कारण मुझे अपने मृत पति की बहुत याद आई और मेरी आँखों में से आँसू भी निकलने लगे। मैंने उन कपड़ों में लगे वीर्य को पहले तो अपनी योनि पर रगड़ा
और फिर उसमें दो उँगलियाँ डाल कर हस्तमैथुन करके अपनी चूत में लगी अग्नि और खुजली को मिटाया।
दीप के वीर्य में लथपथ लौड़े का चित्र मेरी आँखों के सामने बार बार आने लगा और इसलिए मैं घर के काम में ध्यान भी नहीं दे पा रही थी। मुझे उस लौड़े को देखने और छूने की लालसा परेशान करने लगी तथा उस शानदार, खूबसूरत, सख्त और कड़क लौड़े को अपनी चूत में डलवा कर पिछले सात वर्ष की तन्हाई दूर करने की प्रबल इच्छा सताने लगी थी।
मैंने किसी तरह अपने आप पर काबू किया और अपने को घर के काम में व्यस्त रखा तथा दीप को कालेज भेज दिया !
दीप के जाने के बाद मैंने अपने सारे कपड़े उतार कर उस लौड़े को याद कर के बहुत देर अपनी चूत में उंगली मारती रही !
जब कई बार मेरा पानी छूट गया तब जा कर मैं थकान से निढाल हो कर लेट गई
और दीप का लौड़े से अपनी चूत की प्यास कैसे बुझाऊँ, इसकी रूपरेखा ही बनाती रही !
शाम को दीप के घर आने और कुछ खाने पीने के बाद पर मैंने बड़े प्यार उससे फिर पूछा कि उसका पजामा गीला कैसे हुआ, तो वह मेरी कसम खा कर कहने लगा कि उसको इस बारे में कुछ भी नहीं पता।
मेरे यह पूछने पर कि क्या उसके साथ पहले भी कभी ऐसा हुआ था तो उसने बताया कि दो हफ्ते पह्ले भी आधी रात को ऐसा हुआ था क्योंकि उसकी नींद खुल गई थी इसलिए उसने कपड़े बदल लिए थे लेकिन शर्म के कारण उसने मुझे कुछ भी नहीं बताया था।
रात को जब हम सोने की तैयारी कर रहे थे तब मुझे दीप के लौड़े को एक बार फिर से देखने की लालसा जागी तथा मैं उसे छूना भी चाहती थी, इसलिए मैंने उसे अपने पास बिठा कर समझाया कि इस तरह बार बार पजामा गीला होना ठीक नहीं होता इसलिए मुझे इसके कारण की जाँच करनी पड़ेगी !
इस जांच के लिए जब मैंने उसे कपड़े उतारने को कहा तो वह कुछ झिझका और शर्म के कारण आनाकानी करने लगा। तब मैंने उसे समझाया कि मैं तो उसे कई बार नंगा देख चुकी हूँ इसलिए उसे शर्माने की ज़रूरत नहीं है।
फिर मेरे दबाव में आकर वो पजामा और जांघिया उतार कर नंगा हो गया, तब मैंने उसके लौड़े को हाथ में लेकर सभी ओर से बड़े ध्यान से देखा ! मेरे ऐसे उलटने पलटने के कारण दीप का लौड़ा सख्त होना शुरू हो गया और देखते ही देखते खड़ा हो गया !
मैंने लौड़े के ऊपर का मांस पीछे करके सुपाड़े को बाहर निकाला तो उसके अंदर मैल की सफ़ेद परत देखी।
क्योंकि दीप बड़े ध्यान से मुझे ऐसा करते हुए देख रहा था इसलिए मैंने उसे समझाया कि रोज सुबह-रात को सुपाड़े को बाहर निकाल कर इस सफ़ेद परत को साफ़ करना चाहिए, नहीं तो कोई संक्रमण हो सकता है !
लौड़े में लगी हुई सफ़ेद परत को कैसे साफ़ करना चाहिए इसके लिए मैंने उसे बाथरूम में लेजा कर उसके लौड़े को पानी से अच्छी तरह से मसल कर धोया,
फिर मैंने उसे कपडे पहनने को कहा और उसे चेताया कि वह इस बात का ज़िक्र किसी से भी ना करे क्योंकि मुझे उसके पजामा गीला होने का कारण समझ नहीं आया इसलिए मैं परिवार के डॉक्टर से पूछ कर ही उपचार बता पाऊँगी।
इसके बाद मैं बाथरूम से बाहर आकर जिस हाथ से मैंने दीप के लौड़े को मसला था उसे बहुत देर तक चूमती और चाटती रही !
मेरी चूत में बहुत खुजली होने लगी थी और मैं दीप के लौड़े को अपनी चूत में लेने के लिए व्याकुल हो उठी थी !
लेकिन ना तो मैं पहल करना चाहती थी और ना ही मैं चुदने के लिए कोई उतावलापन दिखाना चाहती थी इसलिए अपना मन मसोस कर बाथरूम में जाकर मैंने अपनी चूत में उंगली की और अपनी आग और खुजली को शांत कर के बिस्तर में आकर सो गई।
अगले दिन शाम को कालेज से आने के बाद दीप ने, पजामा गीले होने के बारे में डाक्टर ने क्या कारण बताया, जानने की कोशिश की। तब मैंने उसे बताया कि कोई चिंताजनक बात नहीं है और सारा काम समाप्त कर के हम दोनों आराम से बैठ कर इस विषय पर बात करेंगे।
रात दस बजे जब हम सोने के समय जब दीप ने उस विषय के बारे में फिर पूछा तो मेरे मन में एक बार फिर उसके लौड़े को देखने और छूने की लालसा जाग उठी !
मैंने उसे बताया कि डॉक्टर के अनुसार इसे स्वप्नदोष कहते हैं और यह बिमारी नहीं है ! फिर मैंने उसे कहा कि अगर वह विस्तार से जानना चाहता है तो वह अपने कपड़े उतार दे ताकि मैं इसके बारे में उसे अच्छी तरह समझा सकूँ !
मेरे इतना कहने पर दीप अपना पजामा और जांघिया उतार कर मेरे सामने खड़ा हो गया ! मैंने उसके लौड़े को एक हाथ में पकड़ कर ऊपर किया और दूसरे हाथ से उसके अंडकोष को पकड़ा तथा अहिस्ता आहिस्ता दोनों को सहलाने लगी !
मेरे सहलाने से उसका लौड़ा खड़ा हो गया और उसके टट्टे ऊपर को चढ़ गए !
तब मैंने उसे अंडकोष को दिखाते हुए बताया कि इसके अंदर लगातार वीर्य बनता रहता है और जब यह अंडकोष भर जाता है तथा उसमें और वीर्य-रस नहीं समा सकता तब पहले वाला रस बाहर निकल जाता है और नए रस के लिए जगह बन जाती है ! इस प्राकृतिक क्रिया को स्वप्नदोष ही कहते हैं और यह हर पुरुष के साथ होता है !
क्योंकि मैं उसके लौड़े को छोड़ना नहीं चाहती थी इसलिए मैंने उसे मसलते हुए दीप को स्वप्नदोष के उपचार के बारे में बताने लगी।
इसके बाद मैं उसके लौड़े को पकड़ कर आगे पीछे हिला हिला कर उसकी मुठ मारने लगी और उसे बताती रही कि ऐसा करने से वह उतेजित हो जाएगा और उसके अंदर का वीर्य बाहर आ जाएगा !
तब दीप ने पूछा- इससे क्या होगा, जो नया रस बनेगा उसके निकलने से भी तो पजामा गीला हो सकता है !
तब मैंने उसे बताया कि अगर एक बार रस निकाल दो तब नए रस के लिए अगले एक सप्ताह तक के लिए जगह बन जाती है और फिर ना तो वह बाहर निकलेगा ना ही उसका पजामा गीला होगा ! यही स्वप्नदोष का उपचार है।
मेरा शरीर बहुत गोरा है, चेहरा गोरा और अंडाकार है, कद पांच फुट छह इंच है, होंठ खूबसूरत गुलाब की पंखुड़ियों जैसे हैं,
बल खाती पतली कमर के बीच नाभि की गहराई है,
हिरणी जैसी नशीली आँखें भूरे रंग की हैं।
मेरी वक्ष पर उठी हुई गोल और सख्त चूचियाँ हैं जिन पर गहरे भूरे रंग के चूचुक हैं,
पेट सपाट है, नितम्ब थोड़े भारी हैं,
टांगें लंबी और जांघें सुडौल हैं तथा नितम्बों तक पहुँचते हुए काले काले बाल हैं।
मैं एक मध्यम वर्ग के परिवार की विधवा बहू हूँ जिसके मायके और ससुराल में एक को छोड़ कर कोई भी व्यक्ति जीवित नहीं है ! वह जीवित व्यक्ति है मेरे स्वर्गवासी पति के बड़े भाई का बेटा दीपक जिसे मैं दीप कह कर ही पुकारती हूँ।
दीप 20 वर्ष का एक हृष्ट-पुष्ट नौजवान है जिसने बचपन से ही व्यायाम और खेल-कूद के कारण एक स्वस्थ शरीर पाया है। दीप का कद 5’11” है, सीना चौड़ा, छह पैक बॉडी, लंबी और मजबूत टाँगें, लंबी और ताकतवर बाजूएँ, साफ़ रंग, काले बाल, गोल चेहरा, चौड़ा माथा, काली आँखे, लंबी नाक !
उसे देख कर तो कोई भी लड़की उसकी ओर आकर्षित हो जाती है। दीप आजकल पानीपत के पास इंजिनीयरिंग कालेज में चौथे सेमस्टर (यानि दूसरे वर्ष) में पढ़ता है, बहुत ही सीधा साधा लड़का है जिसमें मुझे कोई अवगुण दिखाई नहीं देते, हर समय मदद के लिए तैयार रहता है, घर, कालेज और जिम के इलावा वह कहीं भी नहीं जाता है और ना ही उसका कोई व्यभिचारी दोस्त है।
मेरे जीवनचक्र का मोड़ लगभग आठ साल पहले जून माह की घटना से शुरू हुआ, जब हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा के पास एक बस दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी !
वह बस एक पांच सौ फुट गहरी खाई में गिर गई थी और उस बस में सवार 40 सवारियों में से 18 सवारियों की मृत्यु हो गई थी और 20 सवारियों को चोटें लगी थी। जब दुर्घटना हुई तब मैं और मेरे पति, उनके बड़े भाई तथा उनकी पत्नी और उनका पुत्र दीप भी इसी बस में सवार थे !
इस दुर्घटना में मरने वाली 18 सवारियों में घटना स्थल पर मृत होने वालों में मेरे पति, उनके बड़े भाई तथा उनकी पत्नी भी थे ! क्योंकि दीप और मुझे को कुछ चोटें आईं थी इसलिए हमें एक दिन के लिए हस्पताल में इलाज के लिए भरती रखा और दूसरे दी छुट्टी दे दी। हमने पुलिस से मृत शरीरों के मिलने के बाद कुछ दूर के रिश्तेदारों के साथ मिल कर दीप के माता, पिता और चाचा का अंतिम संस्कार किया और अपने घर पानीपत में रहने लगे !
इस घटना के समय मैं बीस वर्ष की थी और छह माह पहले ही मेरी शादी दीप के चाचा के साथ हुई थी। उस समय दीप लगभग तेरह वर्ष का था और अष्टम कक्षा में पढ़ता था। दीप की पढ़ाई और घर के खर्चे के लिए हमने पानीपत वाले घर के नीचे का हिस्सा किराये पर दे दिया और ऊपर की मंजिल पर बनी एक ही कमरे वाली बरसाती में रहने लगे। कई रिश्तेदारों और आस पास के लोगों ने मुझे फिर से विवाह करने के लिए कहा, लेकिन मैंने दीप की ज़िम्मेदारी के कारण उनके अनुरोध को अस्वीकार कर दिया और दीप के साथ पानीपत में ही रहने लगी।
इस दुर्घटना की वजह मैं टूट तो गई थी लेकिन दीप की हालत देख कर मैंने अपना दुःख भुला दिया और उसकी देख रेख और पढ़ाई में लग गई !
दीप स्कूल में पढ़ने लगा और मैं घर को संभालती तथा आस पास के बच्चों कि ट्यूशनें लेकर अपने गुज़र बसर के लिए कुछ कमा लेती। नीचे के मकान के किराये और मेरी ट्यूशनों की आमदनी से हमारा गुज़ारा बहुत ही आराम से चल जाता था। शुरू में दीप अपने माता, पिता और चाचा को खोने के बाद कुछ सहमा सहमा सा रहता था और कई बार रात को डर कर उठ जाता था और रोने लगता था क्योंकि हमारे पास एक ही कमरा था इसलिए उसे सांत्वना देने के लिए मैं उसे अपने पास ही सुलाती थी।
सुबह दीप स्कूल चला जाता था तब मैं घर का काम समाप्त करती और स्कूल में शाम की पारी में पढ़ने वाले पांच विद्यार्थियों की ट्यूशन लेती। शाम को जब दीप स्कूल से घर आ जाता था तो मैं उसे खिला पिला कर उसे शाम के समय पढ़ने वाले चार विद्यार्थियों के साथ ही पढ़ा देती थी।
इसके बाद अधिकतर हम दोनों थोड़ी देर टीवी देखते, फिर खाना खाते और दस बजे तक सो जाते थे !
दीप मेरे साथ एक ही बिस्तर में मेरे से लिपट कर ही सोता था !
इसी दिनचर्या में सात वर्ष व्यतीत हो गए और दीप ने इंजिनीयरिंग कालेज में दाखिला ले लिया था। कमरा छोटा होने के कारण हम अधिक सामान नहीं रख कर हमने सिर्फ एक डबल बैड और दो कुर्सियाँ ही रखी हुई थी और दोनों उसी डबल बैड पर सोते थे।
दीप 19 वर्ष का हो चुका था लेकिन घर पर वह अभी भी बारह वर्ष के बच्चे की तरह व्यवहार करता था, जब भी घर होता था वह उछल कूद करता ही रहता था और जब देखो तब वह मेरे से चिपट जाता !
जब वह ** वर्ष का था, मैं तब से देख रही थी कि अक्सर सुबह उठने के समय उसका लिंग खड़ा हुआ होता था !
कभी कभी तो रात में जब वह मेरे साथ चिपट के सो रहा होता था तब भी मैंने उसके सख्त और खड़े लिंग की चुभन भी महसूस करती थी। दिन के समय में भी वह जब कभी मुझे चिपकता तब भी मैंने अपनी जाँघों से उसके लिंग का स्पर्श महसूस करती थी,
लेकिन मैंने इस बात को तो हमेशा नज़रंदाज़ कर दिया करती थी।
लेकिन दो सप्ताह पहले जब मैं सुबह छह बजे उठी तो दीप सो रहा था तब मैंने उसका पजामा आगे से गीला पाया।
जब मैंने पास जाकर ध्यान से देखा तब आशंका हुई कि शायद उसे स्वप्नदोष के कारण वीर्य स्खलन हो गया था !
मैंने दीप को जगाया और उसे गीले पजामे के बारे में पूछा तो वह भौंचक्का सा पजामे को देखने लगा और मायूस सा चेहरा बनाते हुए कहा कि उसे इसके बारे में कुछ भी पता नहीं !
मैंने दीप का पजामा उतरवा कर उस लगे गीलेपन का परीक्षण किया तो पाया वह उसका वीर्यरस ही था
और मेरा स्वप्नदोष के कारण वीर्य स्खलन का अनुमान सही निकला। जांघिये में वीर्यरस से लथपथ चिपका हुआ दीप के लिंग को देख कर मैंने उसे कपड़े बदलने को कहा।
उस दिन पांच वर्ष के बाद मुझे दीप के लिंग की झलक देखने को मिली, जो लम्बाई में छह इंच से बढ़ कर आठ इंच और मोटाई में एक इंच से बढ़ कर ढाई इंच का हो गया था। जब दीप ** वर्ष का था तब छुट्टी के दिन उसे नहलाते समय मैंने उसके लौड़े को अक्सर देखा और छुआ भी था, लेकिन उस दिन मैं ऐसा कुछ करने की हिम्मत नहीं जुटा सकी।
क्योंकि इतने प्यारे और आकर्षक लौड़े को देख कर मैं गर्म हो गई थी इसलिए दीप को कपड़े बदल कर वापिस आने पर मैं बाथरूम में घुस गई और ना चाहते हुए भी कोने में मैले कपड़ों की टोकरी में से दीप के गील पजामे और जांघिये को निकाल कर उसमें लगे वीर्य को सूंघा और जीभ से चाट कर चखा !
उस वीर्य की सुगंध और स्वाद मेरे पति के वीर्य जैसा नमकीन-मीठा था जिसके कारण मुझे अपने मृत पति की बहुत याद आई और मेरी आँखों में से आँसू भी निकलने लगे। मैंने उन कपड़ों में लगे वीर्य को पहले तो अपनी योनि पर रगड़ा
और फिर उसमें दो उँगलियाँ डाल कर हस्तमैथुन करके अपनी चूत में लगी अग्नि और खुजली को मिटाया।
दीप के वीर्य में लथपथ लौड़े का चित्र मेरी आँखों के सामने बार बार आने लगा और इसलिए मैं घर के काम में ध्यान भी नहीं दे पा रही थी। मुझे उस लौड़े को देखने और छूने की लालसा परेशान करने लगी तथा उस शानदार, खूबसूरत, सख्त और कड़क लौड़े को अपनी चूत में डलवा कर पिछले सात वर्ष की तन्हाई दूर करने की प्रबल इच्छा सताने लगी थी।
मैंने किसी तरह अपने आप पर काबू किया और अपने को घर के काम में व्यस्त रखा तथा दीप को कालेज भेज दिया !
दीप के जाने के बाद मैंने अपने सारे कपड़े उतार कर उस लौड़े को याद कर के बहुत देर अपनी चूत में उंगली मारती रही !
जब कई बार मेरा पानी छूट गया तब जा कर मैं थकान से निढाल हो कर लेट गई
और दीप का लौड़े से अपनी चूत की प्यास कैसे बुझाऊँ, इसकी रूपरेखा ही बनाती रही !
शाम को दीप के घर आने और कुछ खाने पीने के बाद पर मैंने बड़े प्यार उससे फिर पूछा कि उसका पजामा गीला कैसे हुआ, तो वह मेरी कसम खा कर कहने लगा कि उसको इस बारे में कुछ भी नहीं पता।
मेरे यह पूछने पर कि क्या उसके साथ पहले भी कभी ऐसा हुआ था तो उसने बताया कि दो हफ्ते पह्ले भी आधी रात को ऐसा हुआ था क्योंकि उसकी नींद खुल गई थी इसलिए उसने कपड़े बदल लिए थे लेकिन शर्म के कारण उसने मुझे कुछ भी नहीं बताया था।
रात को जब हम सोने की तैयारी कर रहे थे तब मुझे दीप के लौड़े को एक बार फिर से देखने की लालसा जागी तथा मैं उसे छूना भी चाहती थी, इसलिए मैंने उसे अपने पास बिठा कर समझाया कि इस तरह बार बार पजामा गीला होना ठीक नहीं होता इसलिए मुझे इसके कारण की जाँच करनी पड़ेगी !
इस जांच के लिए जब मैंने उसे कपड़े उतारने को कहा तो वह कुछ झिझका और शर्म के कारण आनाकानी करने लगा। तब मैंने उसे समझाया कि मैं तो उसे कई बार नंगा देख चुकी हूँ इसलिए उसे शर्माने की ज़रूरत नहीं है।
फिर मेरे दबाव में आकर वो पजामा और जांघिया उतार कर नंगा हो गया, तब मैंने उसके लौड़े को हाथ में लेकर सभी ओर से बड़े ध्यान से देखा ! मेरे ऐसे उलटने पलटने के कारण दीप का लौड़ा सख्त होना शुरू हो गया और देखते ही देखते खड़ा हो गया !
मैंने लौड़े के ऊपर का मांस पीछे करके सुपाड़े को बाहर निकाला तो उसके अंदर मैल की सफ़ेद परत देखी।
क्योंकि दीप बड़े ध्यान से मुझे ऐसा करते हुए देख रहा था इसलिए मैंने उसे समझाया कि रोज सुबह-रात को सुपाड़े को बाहर निकाल कर इस सफ़ेद परत को साफ़ करना चाहिए, नहीं तो कोई संक्रमण हो सकता है !
लौड़े में लगी हुई सफ़ेद परत को कैसे साफ़ करना चाहिए इसके लिए मैंने उसे बाथरूम में लेजा कर उसके लौड़े को पानी से अच्छी तरह से मसल कर धोया,
फिर मैंने उसे कपडे पहनने को कहा और उसे चेताया कि वह इस बात का ज़िक्र किसी से भी ना करे क्योंकि मुझे उसके पजामा गीला होने का कारण समझ नहीं आया इसलिए मैं परिवार के डॉक्टर से पूछ कर ही उपचार बता पाऊँगी।
इसके बाद मैं बाथरूम से बाहर आकर जिस हाथ से मैंने दीप के लौड़े को मसला था उसे बहुत देर तक चूमती और चाटती रही !
मेरी चूत में बहुत खुजली होने लगी थी और मैं दीप के लौड़े को अपनी चूत में लेने के लिए व्याकुल हो उठी थी !
लेकिन ना तो मैं पहल करना चाहती थी और ना ही मैं चुदने के लिए कोई उतावलापन दिखाना चाहती थी इसलिए अपना मन मसोस कर बाथरूम में जाकर मैंने अपनी चूत में उंगली की और अपनी आग और खुजली को शांत कर के बिस्तर में आकर सो गई।
अगले दिन शाम को कालेज से आने के बाद दीप ने, पजामा गीले होने के बारे में डाक्टर ने क्या कारण बताया, जानने की कोशिश की। तब मैंने उसे बताया कि कोई चिंताजनक बात नहीं है और सारा काम समाप्त कर के हम दोनों आराम से बैठ कर इस विषय पर बात करेंगे।
रात दस बजे जब हम सोने के समय जब दीप ने उस विषय के बारे में फिर पूछा तो मेरे मन में एक बार फिर उसके लौड़े को देखने और छूने की लालसा जाग उठी !
मैंने उसे बताया कि डॉक्टर के अनुसार इसे स्वप्नदोष कहते हैं और यह बिमारी नहीं है ! फिर मैंने उसे कहा कि अगर वह विस्तार से जानना चाहता है तो वह अपने कपड़े उतार दे ताकि मैं इसके बारे में उसे अच्छी तरह समझा सकूँ !
मेरे इतना कहने पर दीप अपना पजामा और जांघिया उतार कर मेरे सामने खड़ा हो गया ! मैंने उसके लौड़े को एक हाथ में पकड़ कर ऊपर किया और दूसरे हाथ से उसके अंडकोष को पकड़ा तथा अहिस्ता आहिस्ता दोनों को सहलाने लगी !
मेरे सहलाने से उसका लौड़ा खड़ा हो गया और उसके टट्टे ऊपर को चढ़ गए !
तब मैंने उसे अंडकोष को दिखाते हुए बताया कि इसके अंदर लगातार वीर्य बनता रहता है और जब यह अंडकोष भर जाता है तथा उसमें और वीर्य-रस नहीं समा सकता तब पहले वाला रस बाहर निकल जाता है और नए रस के लिए जगह बन जाती है ! इस प्राकृतिक क्रिया को स्वप्नदोष ही कहते हैं और यह हर पुरुष के साथ होता है !
क्योंकि मैं उसके लौड़े को छोड़ना नहीं चाहती थी इसलिए मैंने उसे मसलते हुए दीप को स्वप्नदोष के उपचार के बारे में बताने लगी।
इसके बाद मैं उसके लौड़े को पकड़ कर आगे पीछे हिला हिला कर उसकी मुठ मारने लगी और उसे बताती रही कि ऐसा करने से वह उतेजित हो जाएगा और उसके अंदर का वीर्य बाहर आ जाएगा !
तब दीप ने पूछा- इससे क्या होगा, जो नया रस बनेगा उसके निकलने से भी तो पजामा गीला हो सकता है !
तब मैंने उसे बताया कि अगर एक बार रस निकाल दो तब नए रस के लिए अगले एक सप्ताह तक के लिए जगह बन जाती है और फिर ना तो वह बाहर निकलेगा ना ही उसका पजामा गीला होगा ! यही स्वप्नदोष का उपचार है।
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