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अध्याय 1: स्कूल की घंटियाँ और पहली लड़ाई
सेंट जोसेफ सीनियर सेकेंडरी स्कूल, शहर के सबसे पुराने और प्रतिष्ठित स्कूलों में से एक था। बड़ा सा गेट, हरे-भरे मैदान, लंबी-लंबी इमारतें और उसमें भागते-दौड़ते बच्चे — हर कोना कुछ कहता था।
मई का महीना था। गर्मी अपने चरम पर, लेकिन बच्चों की शरारतें कभी मौसम नहीं देखतीं।
क्लास 10-B का सेक्शन सबसे ज्यादा मशहूर था — शरारतों के लिए भी, और होशियारी के लिए भी।
बेंच की तीसरी कतार में बैठा था अर्जुन सिंह — शांत, गंभीर और थोड़ा रुखा। चश्मा आंखों पर, हाथ में किताब, और कान में ईयरफोन्स (जिन्हें क्लास में छुपाकर लगाना भी उसे आता था)।
उसे स्कूल की मस्ती कम, पढ़ाई और डिसिप्लिन ज्यादा भाते थे। दोस्त बहुत नहीं थे, लेकिन जो थे — वो जानते थे कि अर्जुन भरोसेमंद है।
उसी क्लास की दूसरी कतार में बैठी थी — अन्वी शर्मा। पूरी क्लास की जान। मास्टर जी के तंज भी हँसी में उड़ा देने वाली, और फ्रेंड्स के लिए जान दे देने वाली।
हर दिन की तरह आज भी अर्जुन अपनी किताब में डूबा था, जब…
धप्प!!
अन्वी ने पीछे से आकर उसकी किताब बंद कर दी।
“तेरा क्या है यार, अर्जुन! हर दिन वही किताबें, वही चेहरे… कभी मुस्कुरा भी लिया कर,” अन्वी बोली।
अर्जुन ने बिना ऊपर देखे जवाब दिया, “तुम्हारे जैसे लोगों से दूर रहना ही मुस्कुराने का असली तरीका है।”
“ओह! फिर तो तुझे हँसी का इलाज मिल गया होगा क्लास में आते ही,” अन्वी बोली, उसकी बातों में न मज़ाक था, न गुस्सा — बस एक आदत सी।
“तुम्हारा तो काम ही है चुप बैठे लोगों को परेशान करना,” अर्जुन ने झल्लाते हुए कहा।
“और तेरा काम है परेशान होने के बहाने ढूँढना,” अन्वी मुस्कुरा दी।
सिया, अर्जुन की छोटी बहन, जो इसी क्लास में थी और अन्वी की बेस्ट फ्रेंड भी, बीच में कूद पड़ी — “प्लीज़ तुम दोनों हर दिन क्लास शुरू होने से पहले लड़ाई करोगे क्या?”
“ये शुरू करती है,” अर्जुन बोला।
“मैं तो सिर्फ बात करती हूँ, इसे बात करना भी बर्दाश्त नहीं,” अन्वी ने मुंह फुला लिया।
सिया मुस्कुरा दी। उसे इन दोनों की लड़ाई अब रोज़ की आदत सी लगने लगी थी। वो जानती थी कि लड़ाई के पीछे जो केयर और connection है, वो दोनों मानें या न मानें, दिखता ज़रूर है।
ब्रेक टाइम, कैंटीन में तीनों की वही टेबल — जहाँ लड़ाई भी होती, हँसी भी, और प्लानिंग भी।
“यार अगली बार फेयरवेल प्रोग्राम है,” अन्वी ने बोला, “मैं सिया के साथ डांस कर रही हूँ, तू नहीं आएगा अर्जुन?”
“नहीं,” छोटा सा जवाब आया।
“तू हर चीज़ में ‘ना’ क्यों बोलता है?”
“हर चीज़ में ‘हाँ’ बोलना तुम्हारी आदत होगी,” अर्जुन बोला।
“पता है अर्जुन,” अन्वी ने अचानक संजीदा होते हुए कहा, “एक दिन जब मैं तुझे बहुत मिस करूँगी, तो शायद तेरी किताबें मेरी बात मान जाएँगी… तू नहीं।”
अर्जुन पहली बार कुछ पल के लिए चुप रह गया।
दिन बीतते गए।
हर दिन की लड़ाई, हर दिन की हँसी। लेकिन अब वो तकरारों में भी कुछ अनकहा जुड़ाव आ गया था। अन्वी के मज़ाक अब अर्जुन को चिढ़ाते नहीं, खामोश मुस्कान दे जाते। अर्जुन के ताने अब अन्वी को गुस्सा नहीं दिलाते, बल्कि उसे हँसी आ जाती।
कक्षा 12 का आख़िरी दिन।
पूरा स्कूल भावुक। आज सबके चेहरे पर उदासी थी। अन्वी थोड़ी चुप थी उस दिन, और अर्जुन — हमेशा की तरह अपनी फाइलों में उलझा।
अन्वी चुपचाप उसके पास आई।
“कल से तुम्हें कोई डिस्टर्ब नहीं करेगा अर्जुन,” उसने कहा।
अर्जुन ने धीरे से जवाब दिया, “किसी की आदत लग जाना… शायद सबसे बड़ी परेशानी है।”
ये शब्द सुनकर अन्वी की आँखें थोड़ी नम हो गईं। लेकिन वो हमेशा की तरह मुस्कुराई, “बाय अर्जुन… I hope तुम कभी मुस्कुराना सीखो…”
वो पल — जैसे कुछ अधूरा छूट गया था।
और फिर… वो दो राहें जुदा हो गईं।
अन्वी कॉलेज में चली गई, अर्जुन NDA की तैयारी में लग गया।
सिया अब भी दोनों से बात करती थी — लेकिन अब वो बातचीत भी धीरे-धीरे कम होती चली गई।
सेंट जोसेफ सीनियर सेकेंडरी स्कूल, शहर के सबसे पुराने और प्रतिष्ठित स्कूलों में से एक था। बड़ा सा गेट, हरे-भरे मैदान, लंबी-लंबी इमारतें और उसमें भागते-दौड़ते बच्चे — हर कोना कुछ कहता था।
मई का महीना था। गर्मी अपने चरम पर, लेकिन बच्चों की शरारतें कभी मौसम नहीं देखतीं।
क्लास 10-B का सेक्शन सबसे ज्यादा मशहूर था — शरारतों के लिए भी, और होशियारी के लिए भी।
बेंच की तीसरी कतार में बैठा था अर्जुन सिंह — शांत, गंभीर और थोड़ा रुखा। चश्मा आंखों पर, हाथ में किताब, और कान में ईयरफोन्स (जिन्हें क्लास में छुपाकर लगाना भी उसे आता था)।
उसे स्कूल की मस्ती कम, पढ़ाई और डिसिप्लिन ज्यादा भाते थे। दोस्त बहुत नहीं थे, लेकिन जो थे — वो जानते थे कि अर्जुन भरोसेमंद है।
उसी क्लास की दूसरी कतार में बैठी थी — अन्वी शर्मा। पूरी क्लास की जान। मास्टर जी के तंज भी हँसी में उड़ा देने वाली, और फ्रेंड्स के लिए जान दे देने वाली।
हर दिन की तरह आज भी अर्जुन अपनी किताब में डूबा था, जब…
धप्प!!
अन्वी ने पीछे से आकर उसकी किताब बंद कर दी।
“तेरा क्या है यार, अर्जुन! हर दिन वही किताबें, वही चेहरे… कभी मुस्कुरा भी लिया कर,” अन्वी बोली।
अर्जुन ने बिना ऊपर देखे जवाब दिया, “तुम्हारे जैसे लोगों से दूर रहना ही मुस्कुराने का असली तरीका है।”
“ओह! फिर तो तुझे हँसी का इलाज मिल गया होगा क्लास में आते ही,” अन्वी बोली, उसकी बातों में न मज़ाक था, न गुस्सा — बस एक आदत सी।
“तुम्हारा तो काम ही है चुप बैठे लोगों को परेशान करना,” अर्जुन ने झल्लाते हुए कहा।
“और तेरा काम है परेशान होने के बहाने ढूँढना,” अन्वी मुस्कुरा दी।
सिया, अर्जुन की छोटी बहन, जो इसी क्लास में थी और अन्वी की बेस्ट फ्रेंड भी, बीच में कूद पड़ी — “प्लीज़ तुम दोनों हर दिन क्लास शुरू होने से पहले लड़ाई करोगे क्या?”
“ये शुरू करती है,” अर्जुन बोला।
“मैं तो सिर्फ बात करती हूँ, इसे बात करना भी बर्दाश्त नहीं,” अन्वी ने मुंह फुला लिया।
सिया मुस्कुरा दी। उसे इन दोनों की लड़ाई अब रोज़ की आदत सी लगने लगी थी। वो जानती थी कि लड़ाई के पीछे जो केयर और connection है, वो दोनों मानें या न मानें, दिखता ज़रूर है।
ब्रेक टाइम, कैंटीन में तीनों की वही टेबल — जहाँ लड़ाई भी होती, हँसी भी, और प्लानिंग भी।
“यार अगली बार फेयरवेल प्रोग्राम है,” अन्वी ने बोला, “मैं सिया के साथ डांस कर रही हूँ, तू नहीं आएगा अर्जुन?”
“नहीं,” छोटा सा जवाब आया।
“तू हर चीज़ में ‘ना’ क्यों बोलता है?”
“हर चीज़ में ‘हाँ’ बोलना तुम्हारी आदत होगी,” अर्जुन बोला।
“पता है अर्जुन,” अन्वी ने अचानक संजीदा होते हुए कहा, “एक दिन जब मैं तुझे बहुत मिस करूँगी, तो शायद तेरी किताबें मेरी बात मान जाएँगी… तू नहीं।”
अर्जुन पहली बार कुछ पल के लिए चुप रह गया।
दिन बीतते गए।
हर दिन की लड़ाई, हर दिन की हँसी। लेकिन अब वो तकरारों में भी कुछ अनकहा जुड़ाव आ गया था। अन्वी के मज़ाक अब अर्जुन को चिढ़ाते नहीं, खामोश मुस्कान दे जाते। अर्जुन के ताने अब अन्वी को गुस्सा नहीं दिलाते, बल्कि उसे हँसी आ जाती।
कक्षा 12 का आख़िरी दिन।
पूरा स्कूल भावुक। आज सबके चेहरे पर उदासी थी। अन्वी थोड़ी चुप थी उस दिन, और अर्जुन — हमेशा की तरह अपनी फाइलों में उलझा।
अन्वी चुपचाप उसके पास आई।
“कल से तुम्हें कोई डिस्टर्ब नहीं करेगा अर्जुन,” उसने कहा।
अर्जुन ने धीरे से जवाब दिया, “किसी की आदत लग जाना… शायद सबसे बड़ी परेशानी है।”
ये शब्द सुनकर अन्वी की आँखें थोड़ी नम हो गईं। लेकिन वो हमेशा की तरह मुस्कुराई, “बाय अर्जुन… I hope तुम कभी मुस्कुराना सीखो…”
वो पल — जैसे कुछ अधूरा छूट गया था।
और फिर… वो दो राहें जुदा हो गईं।
अन्वी कॉलेज में चली गई, अर्जुन NDA की तैयारी में लग गया।
सिया अब भी दोनों से बात करती थी — लेकिन अब वो बातचीत भी धीरे-धीरे कम होती चली गई।
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