Update 2
करण काफी परेशान सा इधर-उधर भटकता फिर रहा था। काफी वक़्त से वो रोहित को ढूंढता फिर रहा था, पर पता नहीं रोहित कहां गुम हो गया था। स्कूल की छुट्टी हो चुकी थी। बोर्ड्स का काफी टेंशन था करण के सर पे पर रोहित था कि फालतू के कामो में अपने साथ साथ करण का भी टाइम खराब रहता था। दोनों काफी अच्छे दोस्त थे, ऐसा नहीं था कि बचपन से साथ हो। दोनों की दोस्ती लगभग कुछ महीने पहले ही हुई थी, पर मजाल हो की कोई कह दे की दोनो बचपन के दोस्त नहीं है। रोहित एक ओपन लड़का था। हर लडकी के साथ फ्लर्ट करना उसकी आदतों में सुमार था, जबकि करण उससे बिल्कुल उल्टा था। एक सिम्पल सा लड़का, जो शर्मिला था। उसकी दोस्ती बहुत कम लोगों से होती थी पर जिससे भी होती, दमदार होती। इंट्रोवर्ट लोगों की ये बात बड़ी शानदार होती है।
" अरे यार! तू यहां बैठा है?" रोहित को रुबीना मैम के साथ बैठा देख कर करण उनके पास चला गया।
" क्यूं , मेरे साथ बैठने में कोई हर्ज है क्या?" रोहित के कुछ कहने के पहले ही मैम ने कहा।
" अरे नहीं मैम ऐसा कुछ नहीं है।" थोड़ा अजीब सा लगा करण को। " बोर्ड्स हैं न इसलिए घर जल्दी जाना पड़ता है।" खुद में ही उलझते हुए करण ने कहा।
मैम ने कुछ नहीं कहा बस मुस्कुराती रही।
" मैंने मैम को बहन बना लिया है।"
" सच में?" करण ने आश्चर्य से पूछा।
" बिल्कुल। आपको कोई आप्पती तो नहीं" रुबीना ने तंज़ कसा।
" नहीं...नहीं ये तो अच्छी बात है।"
सारे लोग एक साथ मुस्कुरा पड़े। रुबीना ने अपना सामान पैक किया और रोहित से बोली " चलो, हो गया मेरा काम।"
" आप हमारे साथ चल रही हैं?" करण ने पूछा
"हां जी बिल्कुल"
" ओह! चलिए"
बाइक एक और सवार तीन। करण को रोहित पे आज काफी गुस्सा आ रहा था। आखिर क्या जरूरत थी मैम को साथ लाने की, वैसे भी टीचर कि दोस्ती अच्छी नहीं होती। यही सब सोचते हुए वो लोग बाइक के पास पहुंचे।
" करण! तू मैम को बाइक से लेकर चला जा। मैं बस से आता हूं।"
" क्या?" करण को कुछ समझ नहीं आया। रोहित जो बस के नाम से चिढ़ता था, वो बस से जाएगा।
" समझा कर भाई, आज अंशु के घर पे कोई नहीं है। आज घर लेट आऊंगा।" उसने धीरे से कहा। अंशु उसकी चौथी सेटिंग थी। " और हां, बाइक घर पे पहुंचा दियो।" कहते हुए रोहित वहां से चला गया।
करण ने बाइक स्टार्ट किया, रुबीना उसके पीछे बैठ गई और अपना एक हाथ करण के कंधे पर रख दिया।बाइक चल पड़ी।
" एक बात पूछूं?" रुबीना ने अपना सर आगे लाते हुए कहा।
" जी"
" लगभग दो हफ्ते से ज्यादा हो गया मुझे यहां आए, और मेरे अब्सर्वेशन के मुताबिक तुम सबसे अलग रहते हो क्लास में। हर वक़्त खुद में ही गुम सुम। कोई बात है क्या?"
" नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है । बस मुझे अच्छा लगता है, अकेले रहना और वैसे भी रोहित है न किसी और कि क्या जरूरत?"
" हम्म!" रुबीना ने इस बात को ज्यादा बढ़ाना अच्छा नहीं समझा। दोनों के बीच में काफी बातें होती रहीं और वक़्त गुजरता गया। बातों ही बातों में कब रुबीना का घर आ गया पता ही नहीं चला।
वो बाइक से उतरकर आगे बढ़ी ही थी कि करण की आवाज ने रोक लिया।
" एक बात पूछनी थी, आपसे?"
"पूछो"
"क्या मैं आपको दीदी पुकार सकता हूं?"
"बिल्कुल" रुबीना ने एक मुस्कान दिया " पर स्कूल में नहीं"
"ठीक है" करण ने खुशी से कहा।
" और हां ये लो मेरा नंबर जब भी मन करे कॉन्टेक्ट कर लेना"
" स्योर"
" ओके! बाय"
"बाय"
करण आज काफी खुश था। उसकी लाइफ में एक नए मेंबर कि एंट्री जो हुई थी।