" हलो!" करण ने अपने जेब से फोन निकालकर अपने कान से लगाते हुए कहा।
" कहां हो इस वक़्त?" उस तरफ से रुबीना कि आवाज़ आई।
" कॉलेज में। कोई बात है क्या?"
"हां" रुबीना ने चहकते हुए कहा "गेस करो"
" हट्ट! जो बात है सीधे बताइए न" करण ने चिढ़ कर कहा।
"अच्छा बाबा ठीक है , बताती हूं। दरअसल, मैं हैदराबाद आ रही हूं। तो सोचा की तुम्हे बता दूं।"
" सच" करण खुशी से उछल पड़ा। "कब आ रहीं हैं?"
" आज शाम चार बजे तक पहुंच जाऊंगी। तुम टाइम पे स्टेशन आ जाना। नहीं तो बात नहीं करूंगी।"
" अरे आप टेंशन मत लो। आप से पहले पहुंच जाऊंगा।" करन ने एक स्माइल पास की।
" ठीक है, अब जाओ तुम अपना काम करो" कह कर रुबीना ने फोन काट दिया।
करन सच में बहुत खुश था। आज पता नहीं कितने महीनों बाद वो रुबीना को देखेगा, उससे मिलेगा।
यहां आने के बाद वो सिर्फ शिवांगी से मिला था। उससे भी कुछ महीनों से बात चित बंद हो गई थी। दोनों के बीच काफी तनातनी क्रिएट हो गया था। दरसअल, करन को शिवांगी से प्यार हो गया था। और शायद यही रीजन था कि वो उसको लेकर काफी पजेसिव हो गया था। पर कुछ चीजें ऐसी होती है जिसको सुधारने की जितनी कोसिस की जाती है वो उतना ही ज्यादा उलझ जाता है। कुछ ऐसा ही चल रहा था अभी करन के लाइफ में। वो जितना सब के करीब जाना चाह रहा था, लोग उतने ही उससे दूर हो रहे थे। एक रुबीना ही थी जो अब तक उसके साथ थी। और शायद यही वजह थी जिसके कारण करन उससे मिलने को इतना बेताब हो उठा था। वक़्त तो ऐसे गुजर रहा था जैसे कि किसी ने उसे रोक लिया हो। हर एक पल उसे घंटो की भांति महसूस हो रहा था। उसने कॉलेज बंक करने का सोच वहां से अपने रूम की तरफ निकल गया। रूम पर पहुंचने के बाद जैसे ही बिस्तर पे पड़ा, ओवर थिंकिंग करते करते कब आंख लग गई पता ही नहीं चला। जब आंख खुली तो तीन बज चुके थे। स्टेशन पहुंचने में कम से कम उसे आधे घंटे लगने वाले थे। उसने जल्दी से अपने रूम को सही किया, फिर आइने के सामने खुद को संवारने लगा। आज उसको हर दिन से ज्यादा अच्छा दिखना था नहीं तो रुबीना का लेक्चर शुरू हो जाता। ये सोचते ही उसके चेहरे पे एक मुस्कान तैर गई। तैयार होने के बाद जल्दी से वह स्टेशन की तरफ भागा। स्टेशन पहुंचने के बाद उसे पता चला कि गाड़ी आलरेडी आ चुकी है पर शुक्र की बात थी कि अभी दो मिनट पहले ही आयी थी। उसने झट से फोन निकाला और रुबीना को कॉल लगाया। तभी उसके कंधे पर किसी ने हाथ रखा। जैसे ही वो मुड़ा, सामने रुबीना खड़ी थी।
हिजाब से चेहरा ढका हुआ था। सिर्फ आंखे दिख रही थी जो काफी थी करन को पहचानने के लिए।
रुबीना बिना कुछ कहे उसके गले से चिपक गई। करन इसके लिए तैयार नहीं था। ये पहली बार था जब रुबीना ने उसे गले से लगाया था। उसके जिस्म से उठती खुशबू बड़ी कमाल की लग रही थी। करण का हाथ जैसे ही रुबीना के पीठ से लगे रुबीना ने अपने बाहों को और कस लिया। तभी करन को ऐसा महसूस हुआ जैसे कि सारे लोग उन्हें ही देख रहे हो। उसने धीरे से रुबीना के कान में कहा" मैम सब देख रहे है।"
सुनते ही रुबीना को अपनी गलती का अहसास हुआ और वो उससे अलग हो गई। दरअसल, दोनों के उम्र में तो लगभग 8-10 साल का फर्क था पर रुबीना का शरीर उतना लगता नहीं था।वो अब भी 21-22 की ही लगती थी। जबकि करन का उम्र तो सिर्फ 19 ही था। इस कारण से लोगों को गलतफहमी हो रही थी। दोनों वहां से निकले तो करण ने पूछा" आप यहां आई क्यों है? कोई खास वजह"
" हां, है न। आज मेरी एक कजन का बर्थडे है। मैं आना तो नहीं चाहती थी पर उसने काफी फोर्स किया था पर जब मैं रेडी नहीं हुई तो गुस्सा हो गई। जिस कारण से मैंने उसे सरप्राइज देने को सोचा है।"
" क्या बात है। मुझे तो लगा कि हमसे मिलने आई हैं।" करन ने रोनी सी सूरत बनाकर कहा।
"छी! तुमसे कों मिलने आएगा।" और दोनों हसने लगे।
" तो अभी डायरेक्ट वहीं जाना है?" करन ने पूछा।
" हां, और तुम भी मेरे साथ चल रहे हो।"
" अरे मैं वहां क्या करूंगा?"
"मुझे कुछ नहीं सुनना। खाना खा कर तुम वापस आ जाना। तब तक मुझे भी टाइम मिल जाएगा तुम्हरे साथ टाइम स्पेंट करने का।"
"अरे पर..."
" चुपचाप चलो, नहीं तो हमसे बुरा कोई नहीं होगा" रुबीना ने उसके हाथों को पकड़ते हुए कहा।
करन बिना कुछ बोले उसके साथ चल दिया। दोनों गाड़ी से बाहर निकले और एक तरफ चल दिया। रुबीना आगे चल रही थी और करण बाकी चीजो को निहारता हुआ उसके पीछे। मौसम थोड़ा खराब लग रहा था। शायद बारिश आने वाली थी। दोनों तेज़ी चले जा रहे थे। एक घर के सामने पहुंचकर रुबीना ने कहा " यही है"
" काफी अच्छा घर है" करन ने मुस्करा कर कहा।
ज्यादा बड़ा घर नहीं था। पर शानदार था। सड़क से थोड़ा दूर था और चारो तरफ छोटा सा बगीचा जैसा था। करन चारो ओर नज़र दौड़ाएं जा रहा था।
रुबीना ने घर का बेल बजाया और दोनों वेट करने लगे।
" अंदर आ जाओ डार्लिंग" किसी औरत ने दरवाजा खोला और पलट के अंदर की जाने लगी। उसने देखा तक नहीं की सामने कौन है। पर करन और रुबीना शोक्ड थे सामने का नजारा देख कर। जिस औरत ने दरवाजा खोला था वो लगभग 40-45 की होगी। वो पूरी नंगी थी। उसके बड़े से गान्ड देखते ही करन का लन्ड खड़ा हो गया। रुबीना जहां खड़ी थी वहीं खड़ी रह गई। तभी अंदर से आवाज आई "अम्मी, जल्दी आओ यार। देखो आलिजा मेरा लन्ड नहीं चूस रही है"
" तुम दोनों भाई बहन भी न, मेरे बिना ढंग से चुदाई भी नहीं कर सकते। तुम अंदर आओ बेटा, तुम्हारा लन्ड लिए बिना मेरे गान्ड की खुजली मिटती ही नहीं।"
" खाला?" रुबीना ने अपना मुंह खोला। इतना बोल कर वो चुप हो गई। उसकी आवाज सुनते ही उसकी खाला की गांड़ फट गई, और उसने झट्ट से पलट कर देखा। जिस कारण से करन को उसकी चूची और चूत दिख गया। काफी बड़ी चूचियां थी, शायद 36 की होंगी, और चूत भी काफी फुला हुआ था। करण को ऐसा महसूस हो रहा था जैसे कि उसका लन्ड फट जाएगा। काफी दर्द होने लगा था। रुबीना के खाला से कुछ बोला नहीं जा रहा था, बस उसने अपने चूत को अपने हाथो से ढक लिया था
" सॉरी बेटा, वो... " उनसे कुछ कहे नहीं बन रहा था।
" भाईजान आ गए अम्मी?" कहते हुए एक लड़का और एक लड़की सामने आए। लड़की लगभग 26 साल की होगी और लड़का 22 का लगभग।
रुबीना पर नजर पड़ते ही दोनों की बोलती बन्द हो गई। बस लड़की के मुंह से एक ही आवाज निकली" दि! आप तो नहीं आने वाली थी न।"
रुबीना ने करण का हाथ पकड़ा और झटके से वहां से निकल गई। उसकी आंखो में आंसू थे जो वो करण से छुपाने की कोशिश कर रही थी।