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Erotica 10 लाख की चुत

andypndy

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पैसा और औरत बहुत बड़ी चीज होती है, दोस्ती मे पैसा, औरत आ जाये तो दोस्ती भी ख़राब कर देता है.

ऐसी ही पैसो और लालच से भरी कहानी, जहाँ कौन शिकार है और कौन शिकारी कुछ कहा नहीं जा सकता.






युसूफ मेरा बचपन का दोस्त था. बड़े होने के बाद हम पहले जितने नज़दीक नहीं रहे थे पर हम एक ही शहर में रहते थे इसलिए हमारा मिलना होता रहता था. युसुफ़ को आप एक आम आदमी कह सकते हैं. वो दिखने में आम आदमी जैसा है,



आम किस्म का बिजनेस करता है और औसत आर्थिक स्तर का है. लेकिन उसके मुताल्लिक एक बात आम आदमियों से अलग है और वो है उसकी बीवी वहीदा. देखने में वो उतनी ही खूबसूरत है जितनी किसी ज़माने में फिल्म एक्ट्रेस वहीदा रहमान हुआ करती थी. जब युसुफ़ से उसकी शादी हुई तो मैं हैरान रह गया कि इस युसूफ के बच्चे को ऐसी हूर कैसे मिल गई!



वहीदा को देखते ही मेरे दिल की धडकनें बेकाबू हो जाती थीं, मेरे मुंह में पानी आ जाता था और मेरे दिल में एक ही ख़याल आता था – किसी तरह ये मुझे मिल जाए! मेरा ही क्या, और सब मर्दों का भी यही हाल होता होगा.

एक बार उसके चेहरे पर नज़र पड़ जाए तो वहां से नज़र हटाना मुश्किल हो जाता था. उसके होंठ तो चुम्बन का मौन निमंत्रण देते प्रतीत होते थे. चेहरे से किसी तरह नज़र हट भी जाए तो उसके सीने पर जा कर अटक जाती थी.

उसके सुडौल, पुष्ट और उठे हुए स्तन मर्दों को दावत देते लगते कि आओ, हमें पकड़ो, हमें सहलाओ, हमें दबाओ और हमारा रस पीयो. अगर नज़र थोड़ी और नीचे जाती तो ताज्जुब होता कि इतनी पतली और नाज़ुक कमर सीने का बोझ कैसे उठाती होगी. मैं कभी उसके पीछे होता और उसे चलते हुए देखता तो उसके लरजते, थर्राते और एक-दूसरे से रगड़ते नितम्ब देख कर मैं तमाम तरह की नापाक कल्पनाओं में खो जाता!20210831-214316



कुल मिला कर कहा जा सकता है कि वहीदा जैसी हसीन औरत बनाने के पीछे ऊपर वाले के दो ही मकसद रहे होंगे – पहला, कमबख्त युसूफ की ख्वाबगाह को जन्नतगाह बनाना और दूसरा, बाकी सब मर्दों के ईमान का इम्तेहान लेना.



मुझे यह कहने में कोई हिचक नहीं है कि इस इम्तेहान में मैं फेल साबित हुआ था. मैं जब-जब वहीदा को देखता, मेरा लंड कपड़ों के अन्दर से उसे सलामी देने लगता था. अपने मनचले लंड को उसकी चूत की सैर करवाने के ख्वाब मैं सोते-जागते हर वक़्त देखा करता था.



युसूफ का दोस्त होने के कारण मुझे वहीदा से मिलने के मौके जब-तब मिल जाते थे. मैं अपनी मर्दाना शख्सियत से उसे इम्प्रेस करने की पूरी कोशिश करता था. अपनी तारीफ सुनना हर औरत की आम कमजोरी होती है.

वहीदा की इस कमजोरी का फायदा उठाने की कोशिश भी मैं हमेशा करता रहता था. पर इस सब के बावजूद मैं अपने मकसद में आगे नहीं बढ़ पाया और मेरी कामयाबी सिर्फ उसके जलवों से अपनी आंखें सेकने तक ही सीमित रही.



*********



एक दिन युसूफ मेरे ऑफिस में मेरे से मिलने आया. वो निहायत परेशान लग रहा था पर अपनी बात कहने में झिझक रहा था. मेरे बार-बार पूछने पर उसने बड़ी मुश्किल से मुझे बताया, “यार रणवीर , मैं बड़ी मुश्किल में पड़ गया हूं.

मुझे मदद की जरूरत है लेकिन ऐसे मामले में तुम्हारी मदद मांगने में मुझे शर्म आ रही है.”



“युसूफ, हम एक-दूसरे के सच्चे दोस्त हैं,” मैंने कहा. “अगर मुझे मदद की जरूरत होती तो मैं सबसे पहले तुम्हारे पास ही आता. तुमने ठीक किया कि तुम मेरे पास आये हो. अब मुझे बताओ कि समस्या क्या है.”



“मसला मेरे बिज़नेस से ताल्लुक रखता है,” युसूफ ने सर झुका कर कहा. “एक पार्टी के पास मेरे पैसे अटक गए हैं. वे दो-तीन हफ़्तों का वक़्त मांग रहे हैं. लेकिन उससे पहले मुझे अपने सप्लायर्स को दस लाख रुपये चुकाने हैं.

बैंक से मैं जितना लोन ले सकता हूं उतना पहले ही ले चुका हूं. अगर मैंने ये दस लाख रुपये फ़ौरन नहीं चुकाए तो मैं बड़ी मुश्किल में पड़ जाऊंगा.”



युसूफ की बात सुन कर मेरी आंखों के सामने वहीदा की तस्वीर घूमने लगी. मुझे अपने नाकाम मंसूबे पूरे करने का मौका नज़र आने लगा. दस लाख रुपये काफी बड़ी रकम थी, खास तौर से युसूफ के लिये.

मैं सोच रहा था कि अगर मैं युसुफ़ को यह रकम दे दूं और वो इसे वक़्त पर न लौटा पाए तो क्या मैं अपने मकसद में कामयाब हो सकता हूं! मैंने यह रिस्क लेने का फैसला किया और युसूफ से कहा, “इस मुसीबत के वक़्त तुम्हारी मदद करना मेरा फर्ज़ है पर दस लाख की रकम बहुत बड़ी है.”



“मैं जानता हूं,” युसूफ ने जवाब दिया. “इसीलिए मैं तुमसे कहने में झिझक रहा था. लेकिन बात सिर्फ एक महीने की है. अगर किसी तरह तुम इस रकम का इंतजाम कर दो तो मैं हर हालत में एक महीने में इसे लौटा दूंगा.”



मेरे शातिर दिमाग में तरह-तरह के नापाक खयाल आ रहे थे. मेरी आँखों के सामने घूम रही वहीदा की तस्वीर से कपड़े कम हो रहे थे. मैं उम्मीद कर रहा था कि युसूफ की कारोबारी मुश्किलें कम नहीं हों और वो वक़्त पर मेरा क़र्ज़ न उतार पाए.



उस सूरत में युसूफ क़र्ज़ अदा करने की मियाद बढाने की गुज़ारिश करेगा और मेरे वहीदा तक पहुँचने का रास्ता खुल सकता है. वैसे यह दूर की कौड़ी थी. मुमकिन था कि युसुफ वक़्त पर पैसों का इंतजाम कर ले. और इंतजाम न भी हो पाए तो लाजमी नहीं था कि वहीदा मेरी झोली में आ गिरे. पर उम्मीद पर दुनिया कायम है. फिर मैं उम्मीद क्यों छोड़ता!



मैंने युसूफ को कहा, “दस लाख रुपये देने में मुझे कोई दिक्क़त नहीं है पर तुम जानते हो कि बिजनेस में लेन-देन लगातार चलता रहता है. मुझे भी अपनी देनदारियां वक़्त पर पूरी करनी होंगी. इसलिए मैं एक महीने से ज्यादा के लिए क़र्ज़ नहीं दे पाऊंगा.”



यह सुन कर युसूफ खुश हो गया, “तुम उसकी चिंता मत करो. मैं एक महीने से पहले ही यह रकम लौटा दूंगा.”



“मुझे तुम पर पूरा यकीन है,” मैंने सावधानी से कहा. “लेकिन मेरे पास कोई ब्लैक मनी नहीं है. मुझे पूरा लेन-देन अपने खातों में दिखाना होगा.”



“हां, हां! क्यों नहीं? मुझे कोई एतराज़ नहीं है.” युसूफ ने कहा.



“ठीक है, तुम कल इसी वक़्त यहाँ आ जाना. तुम्हारा काम हो जाएगा.”



युसूफ खुश हो कर वापस गया. मैं भी खुश था क्योंकि अब मेरा काम होने की भी सम्भावना बन रही थी.



जब युसूफ अगले दिन आया तो वो कुछ चिंतित दिख रहा था, शायद यह सोच कर कि मैं रुपयों का इंतजाम न कर पाया होऊं! जब मैंने मुस्कुरा कर उसका स्वागत किया तो उसकी चिंता कुछ कम हुई. अब मुझे होशियारी से बात करनी थी.

मैंने थोड़ी ग़मगीन सूरत बना कर कहा, “युसूफ, रुपयों का इंतजाम तो हो गया है लेकिन ...”



युसूफ ने मुझे अटकते देखा तो पूछा, “लेकिन क्या? अगर कोई दिक्कत है मुझे साफ-साफ बता दो.”



“दिक्कत मुझे नहीं, मेरे ऑफिस के लोगों को है,” मैंने अपने शब्दों को तोलते हुए कहा. “मुझे तुम्हारे पर पूरा भरोसा है लेकिन मेरे ऑफिस वाले कहते हैं कि पूरी लिखा-पढ़ी के बाद ही रकम दी जाए.”



“तो इसमें गलत क्या है?” युसूफ ने फौरन से पेश्तर जवाब दिया. “इतनी बड़ी रकम कभी बिना लिखा-पढ़ी के दी जाती है! तुम्हारे ऑफिस वाले बिलकुल ठीक कह रहे हैं. तुम उनसे कह कर कागजात तैयार करवाओ.”



अब मैं उसे क्या बताता कि कागजात तो मैंने पहले से तैयार करवा रखे हैं और उनमे वक़्त पर क़र्ज़ अदा न होने की सूरत में कड़ी पेनल्टी की शर्त रखी गई है. खैर अपने आदमियों को एग्रीमेंट बनाने की हिदायत दे कर मैंने चाय के बहाने कुछ वक़्त निकाला.



कुछ देर बाद मेरा आदमी एग्रीमेंट ले कर आया. मुझे डर था कि उसे पढ़ कर युसूफ अपना इरादा न बदल दे. पर मुझे यह भी मालूम था कि उसे कहीं और से इतना बड़ा क़र्ज़ नहीं मिलने वाला था. बहरहाल उसने सरसरी तौर पर एग्रीमेंट पढ़ा और

बिना झिझक उस पर दस्तखत कर दिए. जब युसूफ ने चैक अपनी जेब में रखा तो मुझे अपनी योजना का पहला चरण पूरा होने की तसल्ली हुई.



**************



मेरे अगले एक-दो हफ्ते बड़ी बेचैनी से गुजरे. मैं लगातार युसूफ के बिजनेस की यहां-वहां से जानकारी जुटाता रहा. जैसे-जैसे मुझे खबर मिलती कि उसके पैसे अब भी अटके हुए हैं, मेरी ख़ुशी बढ़ जाती. आम तौर पर क़र्ज़ देने वाला उम्मीद रखता है

कि उसके पैसे वक़्त पर वापस आ जायें पर मैं उम्मीद कर रहा था कि यह क़र्ज़ वक़्त पर न लौटाया जाए. जब तीन हफ्ते गुजर गए और मुझे युसूफ की मुश्किलें कम होने की खबर नहीं मिली तो मेरे अरमानों के पंख लग गए.

अब मेरी कल्पना में वहीदा लगभग नग्न दिखने लगी थी. जब क़र्ज़ की मियाद पूरी होने में सिर्फ तीन दिन बचे थे तब युसूफ का फ़ोन आया. उसने मुझे शाम को डिनर की दावत दी तो मुझे आश्चर्य के साथ-साथ ख़ुशी भी हुई.



मेरी ख़ुफ़िया जानकारी के मुताबिक युसूफ अब तक पैसों का इंतजाम नहीं कर पाया था. मुझे यकीन था कि वो क़र्ज़ की मियाद बढाने की बात करेगा. मुझे इसका क्या और कैसे जवाब देना था यह मैंने सोच रखा था.

क्योंकि युसूफ ने मेरी बीवी को नहीं बुलाया था, मुझे लगा कि आज की रात मेरी किस्मत खुल सकती है! मैं रात के आठ बजे उसके घर पहुँच गया. मैं वहीदा के लिए एक कीमती गुलदस्ता ले गया था.



युसूफ ने गर्मजोशी से मेरा स्वागत किया और मुझे ड्राइंग रूम में बैठाया. कुछ मिनटों के बाद वहीदा मुझे सलाम करने आई. उसको देखते ही मुझे लगा कि आज का दिन कुछ अलग किस्म का है. उसकी चाल, उसकी मुस्कुराहट, उसका पहनावा ...

सब कुछ अलग और दिलनशीं लग रहा था. उसने एक बहुत चुस्त साटिन की कमीज़ पहन रखी थी. कमीज़ का गला काफी लो-कट था जिसमे से उसके एक-चौथाई मम्मे और उनके बीच की घाटी दिख रही थी.20211208-131731

उसके दिलफरेब मम्मे तो जैसे कमीज़ से बाहर निकलने को अकुला रहे थे. आमतौर पर मेरी नज़र उसके हसीन चेहरे पर अटक कर रह जाती थी पर आज मैं उसके सीने से नज़र नहीं हटा पा रहा था.



जब वहीदा ने थोड़ी जोर से "नमस्ते रणवीर साहब’ कहा तो मैं अपने खयालों की जन्नत से हकीकत की दुनिया में लौटा. उसने देख लिया था कि मेरी निगाहें कहाँ अटकी थी. पर वो नाराज़ दिखने की बजाय खुश दिख रही थी.

मैंने शर्मा कर उसके अभिवादन का जवाब दिया. जब वो बैठ गई तो मेरी नज़र उसके बाकी जिस्म पर गयी. वो एक नई नवेली दुल्हन की तरह खुशनुमा लग रही थी. अचानक मुझे गुलदस्ते की याद आई जो अभी तक मेरे हाथ में था.

मैंने उठ कर गुलदस्ता उसे दिया तो उसके हाथ मेरी उँगलियों से छू गये. उस छुअन से मेरे शरीर में एक हल्का सा करंट दौड़ गया. युसूफ कुछ बोल रहा था जिस पर मेरा बिलकुल ध्यान नहीं था क्योंकि मेरा पूरा ध्यान तो वहीदा की खूबसूरती पर केन्द्रित था. वो भी बीच-बीच में मुझे एक मनमोहक अदा से देख लेती थी.



कुछ देर बाद वहीदा ने कहा कि उसे किचन में काम है और वो उठ कर चली गई. युसूफ और मैं बातें करते रहे पर मेरा दिमाग कहीं और ही था. हां, बीच-बीच में मैं उम्मीद कर रहा था कि युसूफ क़र्ज़ की बात छेड़ेगा पर ऐसा कुछ नहीं हुआ.



मैंने भी सोचा कि जल्दबाजी से कोई फायदा नहीं होगा. मुझे इंतजार करना चाहिए. तभी वहीदा ने आ कर कहा कि खाना तैयार है. हम उठ कर डाइनिंग रूम में चले गए. वहीदा खाना परोसने के लिए झुकती तो मुझे लगता कि वो जानबूझ कर मुझे

अपने मम्मों की झलक दिखा रही है. maria-saree मैं उसके मम्मों पर नज़र डालने के साथ-साथ यह भी कोशिश कर रहा था कि युसूफ को कोई शक न हो. मुझे यह भी लग रहा था कि वो या तो मेरी लालची नज़रों से अनजान है या फिर जानबूझ कर अनजान

बन रहा है.



खाना परोसने के बाद वहीदा मेरे सामने की कुर्सी पर बैठ गई. मेज की चौड़ाई ज्यादा नहीं थी इसलिए मेरे घुटने एक-दो बार वहीदा के घुटनों से छू गये. उसने कोई विरोध जाहिर नहीं किया तो मेरी हिम्मत बढ़ गई.

मैं जानबूझ कर अपने घुटने उसके घुटनों से टकराने लगा. मुझे आशंका थी कि वो अपने घुटने पीछे खींच लेगी पर उसने ऐसा कुछ नहीं किया. हां, उसकी नज़रें शर्म से झुक गई थीं. मैं युसूफ की तरफ देखते हुए उससे बात करने लगा और साथ ही मैंने अपने घुटने से वहीदा के घुटने को एक-दो बार सहलाया. उसने भी जवाब में मेरे घुटने को अपने घुटने से सहला कर जैसे इशारा कर दिया कि उसे कोई एतराज़ नहीं था. वो बीच-बीच में हमारी बातचीत में भी भाग ले रही थी और दिखा रही थी जैसे सब कुछ सामान्य हो.

उसका व्यवहार मेरे शरीर में रोमांच पैदा कर रहा था. मेरी हिम्मत और बढ़ गई और मैंने उसकी समूची टांग को अपनी टांग से सहलाना शुरू कर दिया. अब मेरा ध्यान खाने से हट चुका था. मुझे कुछ पता नहीं था कि युसूफ क्या बोल रहा था. मेरा ध्यान सिर्फ उन तरंगों पर था जो मेरी टांगों से उठ कर ऊपर की तरफ जा रही थीं और जिनका सीधा असर मेरे लंड पर हो रहा था.



अचानक वहीदा की सुरीली आवाज ने मुझे जैसे नींद से जगाया. वो कह रही थी, “शायद रणवीर जी को खाना पसंद नहीं आया. ये तो कुछ खा ही नहीं रहे हैं!”



वहीदा ने ये बात युसूफ को कही थी पर मैंने फ़ौरन जवाब दिया, “यह कैसे हो सकता है कि तुम जो बनाओ वो किसी को पसंद न आये. तुम्हारे हाथों में तो जादू है. लेकिन मुश्किल ये है कि मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि मैं क्या खाऊं.”



जवाब के साथ-साथ वहीदा की तारीफ भी हो गई जो उसे जरूर अच्छी लगी होगी. मेज के नीचे मेरा पैर अब उसकी पिंडली की मालिश कर रहा था. उसकी सलवार ऊपर उठ चुकी थी. मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि मैं युसूफ की मौजूदगी में उसकी बीवी की नंगी टांग को अपने पैर से सहला रहा था और वो इससे बेखबर था. मुझे यह शक भी हो रहा था कि कहीं वो जानते हुए अनजान तो नहीं बन रहा था.



मैंने अपना पैर पीछे खींचा तो वहीदा के चेहरे पर निराशा का भाव आया. पर वो जल्दी ही संभल गई और सामान्य तरीके से बात करने लगी. मैंने भी अपना ध्यान बातचीत और खाने की तरफ मोड़ दिया. कुछ देर में डिनर ख़त्म हो गया.

हाथ धोने के बाद मैंने फिर वहीदा से खाने की तारीफ की. युसूफ ड्राइंग रूम की तरफ बढ़ चुका था. वहीदा ने धीरे से मुझे कहा, “आप बहुत दिलचस्प बातें करते हैं. मैं दिन में घर पर ही रहती हूँ. आप जब चाहें यहाँ आ सकते हैं.”



यह तो खुला निमंत्रण था. आज शाम वो नहीं हुआ जिसकी मुझे उम्मीद थी पर आगे के लिए रास्ता खुल चुका था. और मुझे नहीं लगा कि यह युसूफ की जानकारी के बिना हुआ होगा. मैं दिखने में बेशक युसूफ से बेहतर हूं पर इतना भी नहीं कि वहीदा जैसी दिलफ़रेब औरत मुझ पर फ़िदा हो जाए. यह कमाल तो उस क़र्ज़ का था जो वक़्त पर वापस आता नहीं लग रहा था. खैर, अगर वहीदा ब्याज देने के लिए तैयार है तो मैं इतना बेवक़ूफ़ नहीं हूँ कि यह सुनहरा मौका छोड़ दूं!

यह सोचते-सोचते मैं अपने घर पहुँच गया. मेरे दिल-ओ-दिमाग पर पूरी तरह वहीदा का नशा छाया हुआ था. मुझे अपनी बीवी रवीना में वहीदा का अक्स नज़र आ रहा था. सोने से पहले मैंने उनकी चूत को इतना कस कर रगड़ा कि वे भी हैरान रह गयीं.



अगली सुबह भी वहीदा का अक्स बार-बार मेरी नज़रों के सामने आ रहा था. मैं अपने दफ्तर पहुंचा तो मैं अपने काम पर कंसन्ट्रेट नहीं कर पाया. मुझे अपने कॉलेज के दिन याद आ गए.

जब मैं कॉलेज में नया-नया पहुंचा था तब मैं अपनी इंग्लिश की लेक्चरर पर इस कदर फ़िदा हो गया था कि मैं रात-दिन उनके सपने देखता रहता था. मुझे लगता था कि वे मुझे नहीं मिलीं तो मैं ट्रेन के आगे कूद कर अपनी जान दे दूंगा. सपनों में मैं न जाने कितनी बार उन्हें चोद चुका था. आज मेरी हालत फिर वैसी ही हो गई थी. उस लेक्चरर की जगह अब वहीदा ने ले ली थी. फर्क यह था कि वो लेक्चरर मेरी पहुँच से दूर थी जबकि वहीदा मुझे हासिल हो सकती थी. हो सकता था कि वो इस वक़्त मेरा इंतजार कर रही हो.

उसने साफ़ कहा था कि मैं कभी भी उससे मिलने जा सकता था. मैं यह तय नहीं कर पा रहा था कि मैं आज ही उससे मिलूँ या दो दिन और इंतजार करूं. मेरा दिमाग कह रहा था कि दो दिन बाद युसूफ को मेरी हर बात माननी पड़ेगी. वो मजबूर हो कर वहीदा को मेरे हवाले करेगा. लेकिन मेरा दिल कह रहा था कि वहीदा तो आज ही मेरी आगोश में आने के लिए तैयार है. फिर मैं उसके लिए दो दिन क्यों तरसूं!



मैंने अपने दिल की बात मानने का फैसला किया. हिम्मत कर के मैं युसूफ के घर की तरफ रवाना हो गया. मैंने कार को उसके घर से थोड़ी दूर छोड़ा और पैदल ही घर तक पहुंचा. घंटी बजाने के बाद मैं बेसब्री से वहीदा से रूबरू होने का इंतजार करने लगा. दरवाजा खुलने में देर हुई तो मेरे मन में शक ने घर कर लिया. मैं सोचने लगा कि मैंने यहाँ आ कर कोई गलती तो नहीं कर दी! दो मिनट के लम्बे इंतजार के बाद दरवाजा खुला. 20220201-175631 वहीदा मेरे सामने थी पर उसके चेहरे पर मुझे उलझन नज़र आ रही थी. मैंने थोड़ी शर्मिंदगी से कहा, “शायद मैं गलत वक़्त पर आ गया हूं. मैं चलता हूं.”



“नहीं, नहीं! ऐसी कोई बात नहीं है. आप अन्दर आइये.” उसने पीछे हट कर मुझे अन्दर आने का रास्ता दिया.



“लेकिन तुम कुछ उलझन में दिख रही हो,” मैंने अन्दर आते हुए कहा.



“नहीं, उलझन कैसी?” उसने कहा. “आप बैठिये. मैं फ़ोन पर बात कर रही थी कि दरवाजे की घंटी बज गई. मैं बात ख़त्म कर के अभी आती हूँ.”



अब मैंने इत्मीनान की सांस ली. मेरे आने से वहीदा की फ़ोन पर हो रही बात में खलल पड़ गया था इसलिए वो परेशान दिख रही थी और मैं कुछ का कुछ सोचने लगा था.



वहीदा दो मिनट में वापस आ गई. न जाने यह मेरा भ्रम था या हकीकत पर इस बार वो पहले से ज्यादा दिलकश लग रही थी. उसके व्यवहार में भी अब गर्मजोशी आ गई थी. उसने पूछा, “आप चाय लेंगे या कॉफ़ी ... या कुछ और?”



‘कुछ और’ सुन कर तो मेरा दिल बल्लियों उछलने लगा. मैं ‘कुछ और’ लेने के लिए ही तो आया था पर थोडा तकल्लुफ दिखाना भी लाजमी था. मैंने कहा, “तुम्हे तकलीफ करने की जरूरत नहीं है. मैं तो सिर्फ तुम से मिलने के लिए आया हूं क्योंकि कल तुम्हारे साथ ज्यादा बात नहीं हो सकी थी.”



वहीदा ने कहा, “इसमें तकलीफ की क्या बात है! मैं तो वैसे भी चाय पीने वाली थी. लेकिन आप कुछ और लेना चाहें तो ...”



फिर ‘कुछ और’ सुन कर तो मेरा मन उसे दबोचने पर आमादा हो गया. पर मैंने अपने आप पर काबू करते हुए कहा, “तुम्हारे हाथ की चाय पीने का मौका मैं कैसे छोड़ सकता हूँ!”



“मैं अभी आती हूं,” उसने कहा.



वहीदा किचन में चली गई तो मेरे दिल में नापाक खयाल आने लगे. मैं सोच रहा था कि जो हाथ चाय बना रहे हैं वो मेरे लंड के गिर्द होते तो कैसा होता! मेरे होंठ चाय के प्याले के बजाय वहीदा के होंठों पर हों तो कैसा रहेगा! और वो दुबारा ‘कुछ और’ की पेशकश करे तो क्या मैं उसे बता दूँ कि मेरे लिए ‘कुछ और’ का मतलब उसकी चूत है? फिर मैंने सोचा कि मैं कहीं खयाली पुलाव तो नहीं पका रहा हूं! ऐसा न हो कि मैं जो सोच रहा हूं वो हो ही नहीं और मुझे खाली हाथ लौटना पड़े.



कुछ मिनट बाद वहीदा चाय की ट्रे ले कर आई. ट्रे मेज पर रख कर उसने प्यालों में चाय डाली. जब वो मुझे प्याला देने के लिए आगे झुकी तब मुझे पता चला कि वो कपडे बदल चुकी थी.20231116-124459 उसकी कमीज़ के गले से न सिर्फ मुझे उसके खूबसूरत सुडोल स्तन दिख रहे थे बल्कि इस बार तो मुझे उसके निपल की भी झलक दिख रही थी. स्तन बिलकुल अर्ध-गोलाकार और दूधिया रंग के थे. इस रोमांचक दृश्य ने मेरे दिल की धड़कने बढ़ा दीं. मेरा मन कर रहा था कि मैं उसके दूध को कपड़ों की क़ैद से आजाद कर दूं.20220904-234452

इधर मेरा लंड भी कपड़ों से बाहर निकलने के लिए मचल रहा था. मेरी नज़रें पता नहीं कब तक उन खूबसूरत पहाड़ियों पर अटकी रहीं. एक सुरीली आवाज ने मुझे खयालों कि दुनिया से बाहर निकला, “रणवीर जी, चाय लीजिये ना!”



मैंने चौंक कर वहीदा के चेहरे की तरफ देखा. वो देख चुकी थी कि मेरी नज़रें कहाँ अटकी हुई थीं. जब हमारी नज़रें मिली तो उसके गाल शर्म से लाल हो गए. मैंने प्याला लेने के लिए हाथ बढाया तो कल की तरह हमारे हाथ टकराए और मेरा शरीर झनझना उठा. मैंने किसी तरह अपने जज्बात पर काबू पाया और प्याला ले लिया. वहीदा भी अपना प्याला ले कर मेरे पास बैठ गई. उसके जिस्म से उठती महक मुझे मदहोश कर रही थी. यह पहला मौका था जब मैं उसके साथ अकेला था.



मैं थोडा घबरा भी रहा था कि मैं उत्तेजनावश कुछ ऐसा न कर बैठूं जिससे वो नाराज़ हो जाए. मेरे हाथ पसीने से इस कदर गीले थे कि मुझे प्याला थामने में मुश्किल हो रही थी. मेरी धडकनों की आवाज तो वहीदा के कानों तक पहुँच रही होगी.



वहीदा ने शायद मेरी दिमागी हालत भांप ली थी. वह बोली, “आप कुछ बोल नहीं रहे हैं. शायद मेरे साथ बोर हो रहे हैं!”

मैंने अपने आप को संभाल कर कहा, “बोर और तुम्हारे साथ? मैं तो खुद को खुशकिस्मत समझ रहा हूँ कि मैं तुम्हारे जैसी खूबसूरत अप्सरा जैसी औरत के पास बैठा हूं.”



“झूठे मुझे तो लगता है कि आप हर औरत को यही कहते होंगे,” वहीदा ने शरारत से कहा.



“तो मैं तुम्हे चापलूस लगता हूं,” मैंने झूठी नाराज़गी दिखाते हुए कहा. “सच तो यह है कि तुम्हारे जैसी खूबसूरत और जहीन औरत मैंने आज तक नहीं देखी. और अब देख रहा हूं तो यह क़ुबूल करने में क्या हर्ज़ है!” मुझे फिर लग रहा था कि औरत को पटाने के लिए चापलूसी एक बेहद कारगर हथियार है और मुझे इसका भरपूर इस्तेमाल करना चाहिए.



‘अच्छा? तो बताइये कि मैं आपको कहा से खूबसूरत लगती हूँ?” वहीदा ने पूछा.



यह सवाल वाकई मुनासिब था. इसका जवाब देना आसान नहीं था पर औरत की तारीफ में कंजूसी करना भी मुनासिब नहीं है. इसलिए मैंने कहा, “जैसे तुमने अपने घर को संवार रखा है और जैसे तुम अपने आप को संवार कर रखती हो, यह तो कोई घरेलु ससंस्कारी औरत ही कर सकती है.”



“अच्छा जी, तो मैं आपको संवरी हुई दिख रही हूँ?” वहीदा के बातो से लग रहा था कि वो अपनी और तारीफ सुनने के मूड में थी.



“क्यों नहीं? तुम्हे युसूफ ने नहीं बताया कि तुम्हारा कपड़ो की चॉइस कितनी उम्दा है? उसे पहनने का तरीका कितना बेहतरीन है? तुम्हारे बाल और तुम्हारे नैन नक्श हमेशा संवरे रहते हैं! तुम्हे देख कर तो मुझे युसूफ से जलन हो जाती है!”

मैंने वहीदा की तारीफ करने के साथ-साथ युसूफ को भी लपेटे में ले लिया था. मुझे मालूम था कि शादी के इतने सालो बाद कोई पति अपनी बीवी की ऐसे तारीफ नहीं करता है.



वहीदा थोड़े रंज से बोली, “उनके पास कहाँ वक़्त है ये सब देखने का? वे तो हमेशा अपने बिज़नेस मे बिजी रहते हैं.”



इसका मतलब था कि मेरे कहने का असर हुआ था. वहीदा अपने पति के प्रति अपनी नाराज़गी को छुपा नहीं पाई थी. मुझे लगा कि मुझे अपने प्लान को जारी रखना चाहिये. साथ ही मुझे लगा कि वहीदा ने कारोबार का ज़िक्र कर के क़र्ज़ की तरफ भी इशारा कर दिया है.



“मुझे तो लगता है कि युसूफ न तो अपने कारोबार को ठीक तरह संभल पा रहा है और न अपनी बीवी को,” अब मैंने मुद्दे पर आने का फैसला कर लिया था. “और वो कारोबार में ऐसा व्यस्त भी नहीं है कि अपनी बीवी पर ध्यान न दे पाए.



उसकी जगह मैं होता तो ...” मैंने जानबूझ कर अपनी बात अधूरी छोड़ दी.



“आपको उनके कारोबार के बारे में क्या मालूम?” वहीदा ने थोड़ी हैरत दिखाते हुए पूछा.



अब मुझे शक हुआ कि युसूफ ने अपने बिज़नेस और अपने क़र्ज़ के बारे में वहीदा को बताया था या नहीं! मैं तो सोच रहा था कि मुझे उसका खुला निमंत्रण क़र्ज़ के कारण ही मिला था. यह भी मुमकिन था कि वो जानबूझ कर अनजान बन रही हो. अब मुझे क्या करना चाहिये?

मैंने तय किया कि कारण कुछ भी हो, मुझे आज मौका मिला है तो मुझे पीछे नहीं हटना चाहिए. वहीदा ने अपनी बात को आगे बढाया, “और उनकी जगह आप होते तो क्या करते?”



“पहली बात तो यह है कि मैंने अपने कारोबार के लिए जितने कर्मचारी रख रखे हैं, उनसे मैं पूरा काम करवाता हूँ. मैं उन्हें जरूरी हिदायतें दे देता हूं और फिर कारोबार संभालने की जिम्मेदारी उनकी होती है. इस तरह से मेरा काफी वक़्त बच जाता है.

वक़्त बचने के कारण ही मैं यहाँ आ पाया हूँ. और हां, अगर युसूफ की जगह मैं होता तो इस बचे हुए वक़्त का इस्तेमाल मैं अपनी बीवी की जवानी को निखारने मे करता.” अपनी बात ख़त्म होते ही मैंने वहीदा को अपनी बांह के घेरे में लिया और उसे अपनी तरफ खींच लिया.



“ये क्या कर रहे है आप , छोडिये मुझे.” वहीदा ने कहा. उसकी आवाज से अचरज तो झलक रहा था लेकिन गुस्सा या नाराज़गी नहीं. उसने अपने आप को छुड़ाने की कोशिश भी नहीं की. मुझे लगा कि उसका विरोध सिर्फ दिखाने के लिए है.

मैंने उसे मजबूती से अपने शरीर से सटा लिया. उसके गुदाज़ जिस्म का स्पर्श मुझे रोमांचित कर रहा था. उसके बदन से निकलने वाली खुशबू मुझे मदहोश कर रही थी. वहीदा ने रस्मी तरीके से कहा, “ये क्या कर रहे हैं आप?”



“मैं अपनी बीवी के हुस्न की पूजा कर रहा हूं,” मैंने चापलूसी से कहा.



“लेकिन यह क्या तरीका है” वाहिदा ने कहा. “और मैं आपकी नहीं, आपके दोस्त की बीवी हूँ.”



वाहिदा के शब्द जो भी हों, उसकी आवाज में कमजोरी आ गई थी. उसने मेरे से दूर होने की कोई कोशिश नहीं की थी और उसका बदन ढीला पड़ चुका था. मुझे लगा कि उसका विरोध अब नाम मात्र का रह गया है.



“मैं तो तुम्हे दिखा रहा हूँ की मैं तुम्हारा पति होता तो क्या करता,” मैंने उसे और पास खींच कर कहा. “इसके लिए मुझे कुछ देर के लिए तुम्हे अपनी बीवी समझना होगा. और आज मैं अपनी बीवी की ख़िदमत पैरो से नहीं अपने हाथों से करूंगा.”



मेरा एक हाथ वहीदा की कमर को दबोचे हुए थे और दूसरे हाथ से मैं उसके कंधे को सहला रहा था. पैरों की बात छेड़ कर मैंने उसे पिछली रात की याद दिला दी थी. और पिछली रात जो हुआ था वो तो उसके पति की मौजूदगी में हुआ था.



जब उसने अपने पति के होते हुए कोई विरोध नहीं किया तो उसका आज का विरोध तो बेमानी था. लेकिन वो इतनी जल्दी हथियार डालने को तैयार नहीं थी. उसने कहा, “रणवीर जी, कल जो हुआ वो सिर्फ मजाकिया छेड़छाड़ थी.”

"अच्छा तो इसे भी मज़ाक ही समझ लो ” मेरा हाथ वहीदा के कंधे से फिसल कर उसके नंगे बाजू पर आ चुका था.



“कल की बात अलग थी,” वहीदा ने जवाब दिया. “कल मेरे पति साथ में थे.”



“इसीलिए तो तुमने मुझे कहा था कि मैं कभी भी दिन में यहाँ आ सकता हूं,” मैंने सोचा कि अब शर्म-ओ-लिहाज छोड़ने का वक़्त आ गया है. “तुम्हे पता था कि दिन में तुम्हारे पति यहाँ नहीं होंगे. क्या तुम मुझ से अकेले में नहीं मिलना चाहती थीं?”



अब वहीदा के लिए जवाब देना मुश्किल था. फिर भी उसने कोशिश की, “हां, लेकिन मेरा मकसद ...”



मैंने उसकी बात काटते हुए कहा, “तुम्हारा और मेरा मकसद एक ही है. तुम्हारा पति तुम्हारी अहमियत समझे या न समझे पर मैं समझता हूं. तुम्हारा हुस्न तुम्हारा जिस्म प्यासा है, प्यार का भूखा है. तुमने मुझे अकेले में यहाँ आने के लिए कह कर बहुत हिम्मत की है. अब थोड़ी हिम्मत और करो. मुझे अपनी जवानी को रस पिने दो.



मुझे लगा कि मैंने बहुत सधे हुए शब्दों में अपनी बात कही थी. उसका असर भी देखने को मिला. वहीदा न तो कल रात जो हुआ उससे इंकार कर सकती थी और न ही इस बात से मुकर सकती थी कि उसने मुझे दिन में आने के लिए कहा था.



उसने धीमी आवाज में कहा, “रणवीर जी , आप सचमुच ऐसा समझते हैं? कहीं आप मुझे बना तो नहीं रहे हैं?”



मेरी नज़र उसकी गोलाइयो पर थी जो उसकी कमीज़ के महीन कपडे से झाँक रहे थे. वहीदा ने जब देखा कि मेरी नज़र कहाँ थी तो उसने शर्मा कर अपनी गर्दन झुका ली. मैं समझ गया कि उसने मेरे सामने समर्पण कर दिया है.

मैंने कहा, “मैं क्या समझता हूं यह मैं बोल कर नहीं बल्कि कर के दिखाऊंगा.”



मैंने वहीदा का एक हाथ अपने हाथ में लिया और उसे उठा कर अपने होंठ उस पर रख दिये. जैसे ही मेरे होंठों ने उसके हाथ को छुआ, वो सिहर उठी. उसका जिस्म मेरे जिस्म से सट गया. उसके स्तन मेरे सीने से लग गए. मैं उसके नर्म हाथ को चूमने लगा. मेरे होंठ धीरे धीरे उसके बांह और कंधे पर फिसलते हुए उसकी सुराहीदार गर्दन पर पहुँच गये. मेरी जीभ उसकी गर्दन पर फिसल रही थी तो मेरा हाथ उसकी कमर पर. eb66c418385f5c13be9b04a96aada5b7 मुझे अपनी खुशकिस्मती पर यकीन नहीं हो रहा था.

जिस वहीदा को हासिल करने के सपने मैं सालों से देख रहा था वो आज मेरे हाथों में कठपुतली बनी हुई थी. मेरे होंठ उसके गालों पर पहुँच गए. उसके नर्म और रेशमी गालों की लज्जत बर्दाश्त मे बाहर थे.

मेरे होंठ उसके एक गाल का जायजा ले कर उसके गले के रास्ते दुसरे गाल पर पहुँच गए. एक गाल से दूसरे गाल का सफ़र चलता रहा और साथ ही मेरा हाथ उसकी कमर से उसके सीने पर पहुँच गया.



जैसे ही मेरे हाथ उसके उठे हुए भारी मोटे स्तन पर पहुचे, उसका जिस्म तड़प उठा. उसकी आँखें बरबस मेरी आँखों से मिलीं. उसका चेहरा मेरे चेहरे के सामने था. मैने अपने होंठ उसके होंठों पर रख दिये. मैने अपने होंठों से उसके होंठ खोलते हुए उसका निचला होंठ अपने होंठों के बीच दबाया और उसका रस पीने लगा. अब वहीदा की शर्म जा चुकी थी. उसकी गर्म साँसें मेरे चेहरे से टकरा रही थीं. उसने अपना मुंह खोल कर अपने होंठ मेरे होंठों से चिपका दिए. जैसे ही मेरी जीभ उसके मुंह में पहुंची,

उसने उसका स्वागत अपनी जीभ से किया. जीभ से जीभ का मिलन जितना रोमांचकारी मेरे लिए था उतना ही वहीदा के लिए भी था. वो पूरे जोश से मेरी जीभ से अपनी जीभ लड़ा रही थी. मैं भी उसकी जीभ का रसपान करते हुए उसकी स्तनों को मसलने लगा।



मेरा हाथ वहीदा के स्तनों को छोड़ कर उसके मांसल गांड पर पहुँच गया. मैंने महसूस किया की वाहिदा की गांड मेरी कल्पना से कहीं ज्यादा बड़ी और कड़क थी, कुछ देर गांड को सहलाने और दबाने के बाद मेरा हाथ उसकी सलवार के नाड़े पर पहुंचा तो वो थोड़ा कसमसा कर बोली, “नहीं, रणवीर जी बस कीजिये”



मैं जैसे ओंधे मुंह ज़मीन पर गिरा. मंजिल मेरी पहुँच में आने के बाद वहीदा मुझे रोक रही थी. मैंने सवाल भरी निगाहों से उसकी तरफ देखा. उसने अपनी बात पूरी की, “दरवाजा बंद नहीं है!”



उसकी बात सुन कर मेरी नज़र दरवाजे पर गई. डोर क्लोजर से किवाड़ बंद तो हो गया था पर चिटकनी नहीं लगी हुई थी. मुझे अपनी बेवकूफी पर गुस्सा आया कि किवाड़ को धकेल कर कोई भी अन्दर आ सकता था.

मैं चिटकनी लगाने के लिए उठा पर वहीदा मेरे से पहले दरवाजे तक पहुँच गई. जैसे ही वो चिटकनी लगा कर पलटी, मैंने उसे अपनी बाँहों में भींच लिया. मैने उसे दरवाजे से सटा कर उसकी दोनों चूचियों पर अपने हाथ रख दिये. मेरे होंठ एक बार फिर उसके होंठों पर काबिज हो गए. साथ ही मैं उसकी दोनों चूचियों को मसलने लगा. वहीदा पूरी तरह मेरे काबू में थी और मैं जान गया था कि मेरी बरसों की मुराद पूरी होने वाली है. मैं कभी उसके स्तनों को कमीज़ के ऊपर से मसलता था तो कभी अपनी अंगुलियों से उसके निप्पल को मसल देता था. वहीदा चुपचाप आँखें मूंदे अपनी सुडोल स्तन मसलवा रही थी. WTJw6K8 उसका लरजता जिस्म और उसकी तेज़ होती सांसे उसकी उत्तेजना की गवाही दे रही थीं. उसकी जीभ फिर मेरी जीभ से टकरा रही थी.

अब अगली सीढ़ी चढ़ने का वक़्त आ गया था.

मैंने एक ही झटके मे वाहिदा के कुर्ते को आगे से पकड़ खिंच लिया छह्ह्ह्हरररर...... करता पूरा कुर्ता आगे से फटता चला गया.. कुर्ते का फटना था की वाहिदा ने मेरे होंठो को छोड़ दिया . उसने मुझे सवालिया नज़रों से देखा. उसकी नज़रों में शर्म भी थी.



मैं जानता था कि किसी भी औरत के लिए यह लम्हा बहुत मुश्किल होता है, मेरा मतलब है एक नए मर्द के सामने पहली बार अपने जिस्म को बेपर्दा करना. मैंने वहीदा को बहुत प्यार से कहा, “वहीदा, प्लीज़ मुझे इस हुस्न का लुत्फ़ लेने दो, मैंने इस लम्हे का सालों इंतजार किया है. तुम चाहो तो अपनी आँखें बंद कर लो.”



वहीदा ने मुझे निराश नहीं किया. उसने मौन स्वीकृति में अपनी आंखें बंद कर लीं. मैंने धीरे से उसके दुपट्टे को उसके जिस्म से अलग किया. मैंने उसके फटे हुए कुर्ते को उसके जिस्म से अलग कर दिया, जिसमे उसने अपने हाथ ऊपर उठा के मेरा भरपूर सहयोग दिया..

अब उसके सीने पर ब्रा के अलावा कुछ नहीं था. काले रंग के महीन कपडे की ब्रा उसके स्तनों की खूबसूरती छुपाने में नाकामयाब साबित हो रही थी. मैंने उसे पीछे घुमा कर उसकी ब्रा के हुक खोले.



जब मैंने ब्रा को उसके जिस्म से हटाया तो मैं उसकी नंगी सुडौल पीठ के हुस्न में खो गया. मैं हवस मे डूबा अपने हाथ उसकी पीठ पर फिराने लगा. वहीदा ने अपना जिस्म दरवाजे से सटा दिया.

मुझे लगा कि मैं उसके बाकी कपडे भी पीछे से उतारूं तो उसे कम झिझक होगी. मैंने अपने हाथ आगे ले जा कर उसकी सलवार का नाड़ा खोल दिया. इस बार उसने कोई एतराज़ नहीं किया. जब मैंने सलवार नीचे खिसकाई तो वहीदा ने अपने पैर उठा कर सलवार उतारने में मेरी मदद की.

मेरी नज़र उसकी कच्छी से झांकते मांसल कसी हुई गांड पर अटक गई. मैंने हौले-हौले उसकी कच्छी को नीचे खिसकाया. जैसे ही उसकी नंगी गांड कमरे की रौशनी से जगामगाई मेरे होश उड़ गए, गांड पर एक भी दाग़ नहीं, लगता था जैसे किसी ने दो आधे चाँद को आपस मे जोड़ दिया हो.

उस चाँद के बीच एक अँधेरी खाई मौजूद थी. मेरे सब्र का बांध टूट गया था, मै बेतहाशा उसकी गांड को चूमने लगा, चाटने लगा. कच्छी को उसके जिस्म से अलग कर के मैं उसकी नंगी मोटी चिकनी जांघो को सहलाने लगा. मेरी जीभ उसके लज़ीज़ सुन्दर गांड के एक-एक इंच का जायका ले रही थी. चूतड़ों को चाटते-चाटते मैंने अपने कपडे भी उतार दिये.



मैं खड़ा हो गया. वहीदा की पीठ मेरी तरफ थी. मैं पीछे से उसके नंगे जिस्म का दिलकश नज़ारा देख रहा था. उसे पता नहीं था कि उसकी तरह मैं भी मादरजात नंगा था. मैंने उससे चिपक कर अपने हाथ उसकी चून्चियों पर रख दिए.1630490927839

मेरा बेकाबू लंड उसकी गांड की बीच की खाई में धंस गया. शायद लंड के स्पर्श से उसे मेरे नंगेपन का एहसास हुआ. वह उत्तेजना से कांप उठी. मैं भी उसकी नंगी चून्चियों के स्पर्श से पागल सा हो गया था. मैंने अपना मुंह उसके गाल पर रख दिया और उसे मज़े से चूसने लगा. यह मन्ज़र मेरी कल्पना से भी ज्यादा दिलकश था – वहीदा का नंगा जिस्म मेरे सामने, उसकी नंगी चून्चियां मेरी मुट्ठियों में और मेरे होंठ उसके गले से होते उसके गालो पर घूम रहे थे. मेरा मुंह उसके गाल से उसके कान पर पहुँच गया और मैं अपनी जीभ से उसके कान को सहलाने लगा. साथ ही मेरा जिस्म अपने आप आगे-पीछे होने लगा. मेरा लंड उसकी जाँघों के अंदरूनी हिस्से से रगड़ने लगा. मेरी हरकतों से वहीदा की गर्मी बढ़ने लगी. उसकी सिसकारियां निकलने लगीं और उसकी गांड मेरे लंड पर धक्के मारने लगी.



वहीदा पर गर्मी चढ़ते देख कर मेरी हिम्मत बढ़ गई. अब तक मैंने उसकी चून्चियों का नंगापन सिर्फ अपने हाथों से महसूस किया था. अब मैं उनका नज़ारा पाने को बेक़रार हो गया. मैं उसकी चून्चियों को दबाते हुए बोला, “वहीदा, आज तक मैंने इन्हें सिर्फ सपनों में देखा है. आज तुम मुझे इनका दीदार हक़ीक़त में करवा दो तो मैं तुम्हारा यह एहसान कभी नहीं भूलूंगा.” यह कह कर मैंने उसे अपनी तरफ घुमा दिया.



वहीदा ने अपने सीने पर हाथ रखते हुए कहा, “ये क्या कर रहे हैं, रणवीर जी आप ?” शर्म से उसकी गर्दन झुक गई.



“प्लीज़ देखने दो, वहीदा.” मैंने उसके हाथ हटाते हुए कहा. वहीदा की हालत तो ऐसी थी जैसे वो शर्म से जमीन में गड़ जाना चाहती हो.



मैंने कहा, “इतना हसीन नज़ारा शायद फिर कभी मुझे देखने को नहीं मिलेगा. ... ओह! इतने प्यारे स्तन ! इन्हें देख कर तो मैं अपने होश खो बैठा हूँ!”



अब तारीफ का औरत पर असर न हो, यह तो नामुमकिन है. वहीदा भी अपने सुडोल स्तनों की तारीफ सुन कर यकीनन खुश हुई. वह शर्माते हुए बोली, “यह क्या कह रहे हैं आप! आपको तो झूठी तारीफ करने की आदत है.”



“झूठी तारीफ करने वाले और होंगे,” मैंने हैरत का दिखावा करते हुए कहा (मेरा इशारा युसूफ की तरफ था जो आम पतियों की तरह अपनी बीवी की चून्चियों की तारीफ अब शायद ही कभी करता होगा). मैंने आगे कहा, “तुम्हारी कसम, ऐसे हसीन भरे हुए टाइट स्तन मैंने आज तक नहीं देखे. अगर मेरी बात झूठ हो तो मै अभी अँधा हो जाऊ!”



यह सुनते ही वहीदा ने कहा, “अंधे हों आपके दुश्मन! मेरा मतलब कुछ और था.”



“तुम्हारा मतलब है कि युसूफ इनकी झूठी तारीफ करता है,” मैंने एक स्तन को हाथ में ले भींच कर कहा.



वहीदा ने शर्मा कर मेरे हाथ की तरफ देखा जो उसकी एक चूंची पर काबिज़ हो चुका था. उसने कहा, “उनके पास कहाँ वक़्त है इन्हें देखने के लिए!” उसकी आवाज में थोड़ी मायूसी थी पर वो मेरी बातें सुन कर थोड़ी खुश भी लग रही थी.



मैंने सोचा कि अब आगे बढ़ने का वक़्त आ गया है. मैं वहीदा को अपनी एक बांह के घेरे में ले कर दीवान की तरफ बढ़ा. उसने कोई एतराज़ नहीं किया. लगता था कि आगे जो होने वाला था उसके लिए वो दिमागी और जिस्मानी तौर पर तैयार हो चुकी थी.

मैंने उसे खिंच कर बिस्तर पर लिटाया और खुद भी उसके पास लेट गया. मैंने उसकी तरफ करवट ले कर उसे अपनी तरफ घुमाया. हमारे चेहरे एक-दूसरे के सामने थे. वो पहली बार मेरे जिस्म को पूरा नंगा देख रही थी. उसने शरमा कर अपना चेहरा

मेरी छाती में छुपा लिया. हमारे जिस्म एक-दूसरे से चिपक गए थे. मैंने उसके चेहरे को उठा कर अपने होंठ उसके होंठों पर रख दिए. जब चुम्बन का आगाज़ हुआ तो वहीदा पीछे नहीं रही. उसने शर्म त्याग कर चुम्बन में मेरा पूरा साथ दिया.couple-kiss-001-3



एक बार फिर जीभ से जीभ मिली और हम दोनों एक नशीले एहसास में खो गए. मुझे पहली बार पता चला कि होंठों से होंठों और जीभ से जीभ का मिलन इतना मज़ेदार हो सकता है. मज़ा शायद वहीदा को भी आ रहा था. तभी वो पूरी तन्मयता से मेरी जीभ से अपनी जीभ लड़ा रही थी.



मेरा हाथ फिर से वहीदा के जिस्म को टटोलने लगे, इस बार उसका हाथ भी निष्क्रिय नहीं था. वो भी मेरे जिस्म को टटोल रही थी और सहला रही थी. हमारा चुम्बन ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था. न मैं पीछे हटने को तैयार था और न वहीदा.

हमारी जीभ एक-दूसरे के मुंह के हर कोने को टटोल रही थी. कुछ देर बाद वहीदा ने सांस लेने के लिए अपने मुंह को मेरे मुंह से अलग किया तो मेरी नज़र उसके सीने पर गई. ओह, क्या नक्कशी थी! गोरे-गोरे, एकदम अर्ध-गोलाकार और गर्व से उठे हुए! साइज़ में किसी खरबूजे को फ़ैल कर दे उसके बावजूद घमड़ से तने हुए थे और वैसे ही रसीले भी! उनके मध्य में उत्तेजना से तने हुए निप्पल! मेरी नज़र उन पर अटक सी गई. और फिर मेरा मुंह अपने आप एक स्तन पर पहुँच गया. मेरी जीभ उस पर फिसलने लगी.17879770 उसका सफर मम्मे की बाहरी सीमा से शुरू होता था और निप्पल से थोडा पहले ख़त्म हो जाता था. एक मम्मे को नापने के बाद मेरा मुंह दूसरे मम्मे पर पहुँच गया, ये दौर बार बार चलता रहा.



शुरू में तो लगा कि वहीदा भी इस खेल का मज़ा ले रही थी पर फिर वो बेचैन दिखने लगी. उसने मेरे सिर को पकड़ कर अपना निप्पल मेरे मुंह में घुसा दिया. मैंने अपनी जीभ से निप्पल को सहलाना शुरू किया तो उसका शरीर रोमांच से लहराने लगा.

मैंने उसके दूसरे मम्मे को अपने हाथ में ले लिया और उसे मसलने और दबाने लगा. इस दोहरे हमले से वहीदा पगला सी गयी. उसका जिस्म बेकाबू हो कर मचलने लगा. उसकी गर्मी बढ़ती देख कर मैं भी जोश में आ गया.

मेरे मुंह और हाथ का दबाव बढ़ गया. मैं उसकी चूंची को चूसने के साथ-साथ उसके निप्पल को अपने दांतों के बीच दबाने लगा. मेरी मुट्ठी उसकी दूसरी चूंची पर भिंची हुई थी. दोनों चून्चियों का जी भर कर मज़ा लेने के बाद मैंने नीचे का रास्ता पकड़ लिया.

मेरा मुंह उसके सुडौल और सपाट पेट और उसके मध्य में स्थित नाभि की सैर करने लगा.



वहीदा अब बुरी तरह मचलने और फुदकने लगी थी. मेरा मुंह उसकी पुष्ट और दिलकश जाँघों पर पहुँच गया. मैं उसकी पूरी जाँघों पर अपनी जीभ फिराने लगा, पहले एक जांघ पर और फिर दूसरी पर. उसकी जाँघों के बीच स्थित मनमोहक हिस्सा मेरे मुंह को निमंत्रण देता प्रतीत हो रहा था मानो कह रहा हो कि आओ, मेरा भी स्वाद चखो. जाँघों के मध्य एक पतली सी दरार थी,20210802-235333 कोई तीन इंच लम्बी और बालरहित. मेरी जीभ जाँघों के मध्य पहुंची तो वहीदा ने उन्हें जोर से भींच लिया.

मैंने यत्न कर के उसकी जाँघों को चौड़ा किया और अपनी जीभ उसके तने हुए क्लाइटोरिस पर रख दी. जब मेरी जीभ ने उसे सहलाना और चुभलाना शुरू किया तो वहीदा का शरीर बेतहाशा फुदकने लगा.nude-licking-clit-gif-4just-about-to-have-the-orgasm-sex-gif-60494c8f23904 उसने मेरे सर को पकड़ कर जबरदस्ती ऊपर उठाया और

हाँफते हुए बोली, “ये क्या कर रहे हैं, रणवीर जी ? प्लीज़, ऐसा मत कीजिये.”



मैंने वहीदा को ताज्जुब से देखा. वो उठने की कोशिश कर रही थी. मैंने उसे कहा, “वहीदा, मेरी जान! मैं तो तुम्हे खुश करने की कोशिश कर रहा हूँ. मैंने सोचा था कि तुम्हे ये अच्छा लगेगा.”



“अच्छा तो लग रहा है,” वहीदा ने जवाब में कहा. “पर ऐसा भी कोई करता है!’



अब मुझे एहसास हुआ कि युसूफ शायद ऐसा नहीं करता होगा इसलिए वहीदा को यह अजीब लग रहा था. कुछ भी हो, उसने यह तो मान लिया था कि उसे यह अच्छा लग रहा था. मैंने सोचा कि मैं उसे चुदाई का पूरा मज़ा दे दूं तो यह चिड़िया लम्बे अरसे तक मेरे जाल में फंसी रह सकती है. मैंने उसे प्यार से कहा, “मैं तो ऐसा करता हूं और करूंगा. तुम बस आराम से लेट कर इसका लुत्फ़ उठाओ.”



मैंने वहीदा को फिर से लिटाया और इस बार मैंने उसकी चूत को अपने निशाने पर लिया. मैं उसकी रसीली चूत को अपनी जीभ से चाटने लगा. वहीदा ने अब अपने आप को पूरी तरह मेरे हवाले कर दिया था. एक कहावत है कि अगर बलात्कार अवश्यम्भावी है तो लेट कर उसका मज़ा लेना चाहिए. शायद वहीदा ने मान लिया था कि अगर चूत चाटने से रोक नहीं सकती तो लेट कर उसका मज़ा लेना चाहिए. मैं चाटने के साथ-साथ अपनी जीभ उसकी चूत के अन्दर बाहर करने लगा.

अपनी चूत में जीभ घुसते ही वहीदा बेतहाशा फुदकने लगी. गांड उठा उठा के वापस बिस्तर पर पटक देती,

लगता था कि अब वो खुल कर मज़ा ले रही थी. वो मेरे सर को अपनी चूत पर दबा कर अपनी कमर तेज़ी से ऊपर-नीचे करने लगी. अचानक उसके मुंह से एक चीख निकली और उसका बदन कांप उठा.

उसकी सिसकारियों और उसके शरीर के कम्पन से जाहिर था कि वो झड़ रही थी. मुझे ख़ुशी हुई कि मैं वहीदा को चोदने से पहले ही उसे ओर्गज्म पर पहुँचाने में कामयाब हो गया था. अब चिड़िया पर मेरे जाल की पकड़ मजबूत हो गई थी.



जब वहीदा अपने ओर्गज्म से उबरी तो उसने प्यार से मुझे देखा. उसके चेहरे पर शर्म की लाली थी पर शर्म से ज्यादा उस पर ख़ुशी नज़र आ रही थी. उसने मुझे ऊपर की तरफ खींचा. ऊपर बढ़ते हुए मैंने फिर उसके शरीर को चूमना और चाटना शुरू कर दिया,

पहले उसका पेडू, फिर नाभि और फिर चून्चियां. एक बार फिर उसकी एक चूंची मेरे मुंह में थी और दूसरी मेरी मुट्ठी में. वहीदा फिर मचल रही थी और तड़प रही थी. उसकी सांसें तेज़ हो गई थीं और चूंची के नीचे से मैं उसके दिल की धडकनों को महसूस कर रहा था. मैं अपना एक हाथ नीचे ले गया और उससे टटोल कर मैंने उसकी चूत को ढूँढा. चूत उत्तेजना से भीग चुकी थी. मैंने अपनी ऊँगली उसमें घुसा दी. ऊँगली अन्दर घुसते ही वहीदा सिसक उठी.

मैंने उसकी चूंची से अपना मुंह उठाया और उसके चेहरे का रुख किया. एक बार फिर मैं उसके गालों को चूसने और चाटने लगा. फिर मेरा मुंह उसके कान पर पहुंचा. मैं अपनी जीभ से उसके कान को अन्दर से गुदगुदाने करने लगा. गुदगुदी से वहीदा कुलबुलाने लगी.



मैंने फिर से अपना मुंह उसके होंठों से लगा दिया और अपनी जीभ उसके मुंह में घुसा दी. उसने भी खुल कर जवाब दिया और हमारी जीभें एक बार फिर आपस मे गूथ गईं. उनमे एक-दूसरी को पछाड़ने की होड़ लग गई. उधर मेरी ऊँगली अपने काम में जुटी हुई थी.

वहीदा का जिस्म बुरी तरह मचल रहा था.fingering-001-17 जाहिर था कि उसकी जांघों के बीच आग लग चुकी थी. मैं अभी उसे और तडपाना चाहता था मगर उसने बड़ी विनती से कहा, “बस रणबीर उंगली से नहीं! अब ऊपर आ जाइए.”



जब वहीदा ने मुझे अपने ऊपर आने की दावत दी तो मैं अपने आप को नहीं रोक पाया. आखिर इसी लम्हे का तो मैं बरसों से इंतजार कर रहा था. मेरा लंड भी अब उत्तेजना से बेकाबू हो चला था. मैंने वहीदा के ऊपर अपनी पोजीशन ली.

उसने भी अपनी टांगें चौड़ी कर दीं. मैं अपने लंड से उसकी चूत को ढूँढने लगा. अपने तमाम तजुर्बे के बावजूद मैं अपना निशाना ढूंढने में नाकामयाब रहा. वहीदा मेरी मुश्किल समझ गई. या शायद वो चुदने के लिए बेताब थी. उसने मेरे लंड को अपनी उंगलियों के बीच थाम कर उसे सही जगह पर रखा और मुझे एक मौन इशारा किया. मैंने अपने चूतडों को आगे धकेला तो चूत के होंठ एक दूसरे से जुदा होते चले गए. उनमे कहाँ हिम्मत थी एक ताकतवर लंड को रोकने की. सुपाड़ा चूत में प्रवेश पा गया.22597655

मैंने एक सधा हुआ धक्का लगाया तो एक चौथाई लंड चूत में दाखिल हो गया. वहीदा हल्के-हल्के कराहती मुझे और गहराई में उतरने की दावत दे रही थी. मैं लंड को थोड़ा बाहर खींचता और फिर उसे थोड़ा और अंदर ठेल देता. आहिस्ता आहिस्ता लंड अपना रास्ता बनाता गया. वहीदा भी पूरा सहयोग कर रही थी और जल्द ही उसकी चूत ने मेरे लंड को जड़ तक अपने अंदर जज्ब कर लिया. उसकी चूत मेरी बीवी से ज्यादा टाइट थी, लगता था जैसे लंड अंदर जा कर फस गया है, वाहिदा की चुद की दिवार ने मेरे लंड को जकड लिया था.

जैसे किसी पुलिस ने चोर को धर दबोच हो

मुझे लगता था की मर्दों को हर नई चूत लज्ज़तदार लगती है और जब चूत की मालकिन वहीदा जैसी हसीन औरत हो तो लज्जत का कहना ही क्या! मैंने उसकी तारीफ करने में कंजूसी नहीं की, “कसम से वहीदा, ऐसी मस्त चूत आज पहली बार मिली है!”



वहीदा ने शर्मा कर अपनी आँखें बंद कर लीं. मैं उसकी चूत की गिरफ्त का लुत्फ़ लेते हुए नीचे झुक कर उसके कानों, गले और कंधे को चूमने लगा. मेरा हाथ उसके मम्मे को सहला रहे थे और उसके निप्पल को मसल रहे थे.

मैं किसी तरह अपनी उत्तेजना पर काबू पाना चाहता था ताकि मैं जल्दी न झड़ जाऊं. जो नायाब मौका मुझे आज मिला था मैं उसे लम्बे से लम्बा खींचना चाहता था. मैने अपनी कोहनियों को वहीदा की बगलों के नीचे जमाया और अपने मस्ताये हुए लंड से

हलके-हलके धक्के देने लगा. वहीदा की आँखें बंद थीं पर वो खुश दिख रही थी. शायद वो भी चुदाई का लुत्फ़ ले रही थी. मैं भी उसे चोदने का पूरा मज़ा ले रहा था. जब मेरी उत्तेजना ज्यादा बढ़ जाती, मैं अपने धक्के रोक कर वहीदा के गालों और

होंठों को चूमने लगता. इससे उसका मज़ा बरकरार रहता और मैं अपनी उत्तेजना पर काबू पा लेता.

जब मैं वहीदा की चूत के कसाव का अभ्यस्त हो गया तो मैंने अपने धक्कों की ताक़त बढ़ा दी. मैं अब लंड को लगभग पूरा निकाल कर अन्दर पेल रहा था. ताक़त के साथ-साथ मेरे धक्कों की रफ़्तार भी बढ़ रही थी. वहीदा ने मुझे कस कर पकड़ लिया था और वो भी नीचे से धक्के लगा रही थी. जल्दी ही मेरे अंदर फुलझड़ियाँ सी छूटने लगीं. मेरे गले से आनंद की सिसकारियां निकल रही थीं, ‘आऽऽऽऽह…! ओऽऽऽऽह…! ऊऽऽऽऽह…!’



सिसकने वाला मैं अकेला नहीं था. मेरे साथ वहीदा भी सिसक रही थी. ... उसे मजा लेता देख मेरा हमला तेज़ हो गया - फचाक, धचाक, फचाक - मेरा लंड उसकी चूत को तहस-नहस करने पर आमादा था! वो चूत के अन्दर गहराई तक मार कर रहा था. ऐसा जबरदस्त हमला चूत कब तक झेलती! वहीदा का शरीर अकड़ा और एक लम्बी ‘आऽऽऽऽह!’ के साथ उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया. उसने मुझे अपनी बाहों में भींच लिया. उसका जिस्म बुरी तरह कांप रहा था.

मुझे लगा कि बिजलियाँ कड़क रही हैं और बरसात होने वाली है पर अपनी पूरी विल पॉवर लगा कर मैंने किसी तरह अपने आप को झड़ने से रोक लिया.

जब वहीदा का होश लौटा तो उसने मुझे बार-बार चूम कर मुझे मूक धन्यवाद दिया. मुझे गर्व महसूस हुआ कि मैं उसे इतना मजा दे पाया. इससे भी ज्यादा गर्व मुझे इस बात पर था कि मैं अभी तक नहीं झड़ा था.

वहीदा जरूर मेरी मर्दानगी की कायल हो गई होगी. मैं यही चाहता था. उसे और खुश करने के लिए मैंने कहा, “वहीदा, तुम्हारे हुस्न की तरह तुम्हारी चूत भी लाजवाब है. मुझे ख़ुशी है कि मैं उसकी थोड़ी सेवा कर पाया.”



मेरी बात सुन कर उसके चेहरे पर शर्म की लाली छा गई. उसने नज़रें झुका कर कहा, “लाजवाब तो आप हैं! मुझे अफ़सोस है कि मैं आपको मंजिल तक नहीं पहुंचा सकी. काश मैं भी आपकी खिदमत कर पाती.”

“मुझे कौन सी जल्दी पड़ी है,” मैंने कहा. “हाँ, तुम्हे जल्दी हो तो और बात है.”

“जल्दी कैसी, मैं तो सिर्फ आपको खुश करना चाहती हूँ,” वहीदा ने कहा. “आप जो करना चाहें, कीजिये और मुझ से कुछ करवाना हो तो हुक्म दीजिये.”



मेरा मन तो कर रहा था कि मैं वहीदा को अपना लंड चूसने को कहूं पर इसमें जल्दी झड़ने का जोखिम था. बहरहाल मैं वहीदा में आये बदलाव से बहुत खुश था. अब वो पूरी तरह मेरे काबू में लग रही थी. मैंने उसके ऊपर से उतरते हुए कहा,

“क्या तुम घोड़ी बन सकती हो?”

वहीदा समझ गई कि मैं उसे पीछे से चोदना चाहता हूँ. वो फ़ौरन पलट कर घोड़ी बन गई. उसके मांसल और सुडौल चूतड़ मेरी आंखों के सामने नुमाया हो गये.20210809-151528 मेरी सहूलियत के लिए उसने अपनी टांगों को थोडा फैला दिया.

अब जो मंज़र मेरी नज़रों के सामने था वो बहुत ही दिलकश था. एक तरफ वहीदा की चुस्त गुलाबी गांड मेरे लंड को दावत दे रही थी तो दूसरी तरफ उसकी फड़कती हुई चूत कह रही थी कि आओ और मेरे अन्दर समा जाओ. लेकिन मुझे अपने बेकरार लंड को थोडा आराम देना था ताकि वो जल्दी निपट कर मुझे शर्मिंदा न कर दे.



मैंने आगे झुक कर अपना मुंह वहीदा के चूतड़ों के बीच रख दिया. kmजैसे ही मेरी जीभ का स्पर्श उसकी गांड से हुआ, वहीदा चिहुंक उठी. लेकिन वो मेरे मुंह से दूर होती उससे पहले ही मैंने उसकी जांघो को पकड़ लिया. मैं अपनी जीभ कभी उसके एक

गांड पर फिराता तो कभी दूसरे पर. बीच-बीच में मेरी जीभ उसकी गांड और चूत का जायजा भी ले लेती. वहीदा एक बार फिर मस्ती से सराबोर होने लगी. adultnode-0670d281aec50853799e77ea31508c68 उसका जिस्म मचलने लगा. मैंने अपनी एक उंगली उसकी चूत में घुसा दी और अपनी जीभ

उसकी गांड पर जमा दी. जब ऊँगली और जीभ का दोहरा हमला हुआ तो वहीदा चीख उठी, “बस रणवीर जी , अब आ जाइए!”



अब वहीदा को और तड़पाना गुनाह होता. इसलिए मैं एक बार फिर पोजीशन में आ गया, इस दफा उसके चूतड़ों के पीछे. उसकी गांड और चूत दोनों मेरी पहुँच में थीं. गांड के आकर्षण पर काबू पाना आसान न था पर मुझे पता था कि गांड मारने में जल्दबाजी मुझे उसकी चूत से भी महरूम कर सकती थी. इसलिए फ़िलहाल मैंने उसकी चूत को ही अपना निशाना बनाया. मैंने अपना लंड उनकी चूत के मुहाने पर रख कर उसे आगे धकेला. उसने अपनी चूत को ढीला छोड़ दिया था



इसलिए लंड चूत के अंदर धंसने लगा. चूत में काफी चिकनाई भी थी इसलिये मेरे लंड को उसके अंदर दाखिल होने में कोई मुश्किल पेश नहीं आई. मैंने उसकी कमर को पकड़ लिया और उनकी चूत में धक्के मारने लगा. मुझे अपना लंड उसके हसीन चूतड़ों के बीच चूत के अंदर-बाहर होता नज़र आ रहा था. यह एक बहुत ही दिलकश नज़ारा था!gifcandy-20 मैं उसकी चूत में बेतहाशा धक्के मार रहा था और वो अपनी कमर को पीछे धकेल कर मेरा पूरा साथ दे रही थीं. उसके मुंह से हवस भारी आहे निकल रही थीं, “आह! आsssह! ओह! ओsssह! उंह…! हाय उफ्फ्फ... आउच..... और... तेज़... आअह्ह्ह...!”

चार-पांच मिनट के ताबड़तोड़ धक्को के बाद मेरे लंड पर वहीदा की चूत का शिकंजा कसने लगा. मुझे अपने लंड पर एक लज्ज़त भरा दबाव महसूस होने लगा. मुझे लगा कि अब मेरा काम होने वाला है. एक तरफ मैं अपनी मंजिल पर पहुँचने के लिए बेसब्र हो रहा था पर दूसरी तरफ मेरा दिल कह रहा था कि मज़े का यह आलम अभी ख़त्म नहीं होना चाहिए. बहरहाल मैंने फैसला किया कि इतनी जल्दी निपटना मुनासिब नहीं है. मैंने किसी तरह अपने धक्कों को रोका. जब मैंने अपने लंड को चूत से बाहर खींचा तो वहीदा ने अपना चेहरा पीछे घुमाया. उसकी सवालिया निगाहें पूछ रही थीं कि मैंने लंड को चूत से जुदा क्यों कर दिया. मैंने उसे तस्सली देते हुए कहा, “मैं फिर तुम्हे सामने से चोदना चाहता हूं. अब सीधी लेट जाओ.”



मेरे शब्दों से वहीदा शर्मा गई, अब खुली चुदाई की बाते हो रही थी, पर उसे यह तसल्ली भी हुई कि चुदाई अभी ख़त्म नहीं हुई है. उसने तुरंत मिश्नरी पोजीशन ले ली. पीठ के बल लेट कर दोनों टांगे हवा मे एक दूसरे के विपरीत फैला दी,20220515-001415

मेरा मकसद पोजीशन बदलने के बहाने थोडा वक़्त हासिल करना था. मैं उसकी कमर पर बैठ गया. मैंने अपने दोनों हाथ उसकी चूचियों पर रख दिये और उन्हें मसलने लगा. वहीदा की गर्मी बढ़ने लगी और उसकी साँसें तेज हो गईं. मैं उसकी चून्चियों को मसलते हुए आगे झुक कर उसके होंठों को चूमने लगा. कभी-कभी मैं उसके निप्पल अपनी अंगुलियों के बीच पकड़ कर मसल देता था. वहीदा की आँखें बंद थी. उसकी जीभ मेरी जीभ से टकरा रही थी. कुछ देर उसकी जीभ के जायके का मज़ा लेने के बाद मैंने अपने मुंह को उसके मुंह से अलग किया और उसे उसके मम्मे पर रख दिया. मैं उसके एक मम्मे को चूसने लगा और दूसरे को अपने हाथ से मसलने लगा. एक बार फिर वहीदा की गर्मी शिखर पर पहुँच गई. उसका जिस्म बेकाबू हो कर मचलने लगा. उसकी साँसे उखडने लगीं. उसने अपनी आँखें खोल कर मुझे हवस भरी नज़र से देखा.



मैं अपनी उत्तेजना पर काबू पा चुका था इसलिए अब मैं भी चुदाई फिर से शुरू करने के लिए तैयार था. मैं वहीदा के कामुक और सुडोल जिस्म को पूरी तरह निचोड़ना चाहता था. मेरा लंड भी अब चूत की गिरफ्त का ख्वाहिशमंद था.

मैं उसके ऊपर लेट गया. उसने अपनी टांगें चौड़ी कर दीं. मेरा तना हुआ लंड उसकी चूत के मुहाने से टकराया. चूत का गीलापन उसकी हालत को बयां कर रहा था. वो पूरी तरह गर्म हो चुकी थी. वहीदा ने अपना हाथ नीचे किया और मेरे लंड को

पकड़ कर अपनी चूत से सटा दिया. मैंने अपने चूतड़ों को आगे धकेला तो मेरा लंड चूत को फैलाता हुआ उसके अंदर समाने लगा. वहीदा के मुंह से एक आह निकल गई. उसने मेरी कमर को अपने हाथों से थाम कर अपने चूतड़ों को थोड़ा ऊपर-नीचे

किया ताकि मेरा लंड ठीक से उसकी चूत में अपनी जगह बना ले. जब उसकी चूत ने लंड को पूरी तरह ज़ज्ब कर लिया तो उसने मेरे चेहरे को अपनी तरफ खींचा और मेरे होंठों से अपने होंठ मिला दिए. उसके होंठों का मज़ा लेने के साथ-साथ मैं अपने लंड के गिर्द उसकी चूत की खुशगवार गिरफ्त को महसूस कर रहा था. चूत इस बार पहले से ज्यादा टाइट लग रही थी, शायद उत्तेजना की वजह से.



वहीदा आहिस्ता-आहिस्ता अपने चूतड़ उठाने लगी. उसने मुझे आँखों से इशारा किया कि मैं भी धक्के मारूं. मैं उसकी ताल से ताल मिला कर हलके-हलके धक्के लगाने लगा. जब मेरा लंड आसानी से चूत के अंदर जाने लगा तो मैने अपने धक्कों की

ताक़त बढ़ा दी. वहीदा भी मेरे धक्कों का जवाब पुरजोर धक्कों से दे रही थी. वो कुछ देर तो चुपचाप चुदती रहीं लेकिन जब मेरे धक्के गहरे हो गए तो वो सिसकने लगी, ‘उंह…! आsss! ओsssह!’17788519

उस के मुँह से निकलने वाली सिसकारियों से मुझे लगा कि उसे इस काम में खासा मज़ा आ रहा था. मुझे यह जान कर सुकून मिला कि मैं वहीदा को अपने कब्जे में लेने के मकसद में कामयाब हो रहा था. साथ ही उसे चोदते हुए मैं एक मज़े के समंदर में गोते खा रहा था. वहीदा ने मेरी कमर को अपनी बांहों में कस रखा था. उसके चूतड़ों की हरकत तेज़ हो गई थी और उसकी चूत में और कसावट आ गयी थी. उसकी चूत की कसावट इशारा कर रही थी कि वो फिर से झड़ने की तरफ बढ़ रही थी.

मुझे खुशी थी कि मै पहली ही चुदाई में वहीदा पर अपनी मर्दानगी की छाप छोड़ने में कामयाब हो रहा था. मैं पूरा दम लगा कर उसकी चूत में धक्के मारने लगा. चूत अब बुरी तरह फड़क रही थी.

साथ में वहीदा का बदन कांप रहा था, थरथरा रहा था. अब मेरे लिये अपने आप को रोकना नामुमकिन हो गया था.



मैंने उत्तेजना मे अपने धक्कों की रफ़्तार बढ़ा दी. couple-sex-001-64 वहीदा शायद समझ गई कि मैं झड़ने के कगार पर हूँ. उसने अपनी चूत को मेरे लंड पर भींचना शुरू कर दिया. मेरी रग-रग में एक मदहोश कर देने वाली लज्ज़त का तूफान उठ रहा था.

मैं झड़ने की नीयत से उसकी चूत में जबरदस्त शॉट मारने लगा. जल्द ही मुझे अपने लंड के सुपाड़े पर एक मीठी गुदगुदी महसूस हुई और मैं अपना होश खो बैठा. मैं अंधाधुंध धक्के मारने लगा. वो भी अपने चूतड़ उछाल-उछाल कर मेरे धक्कों का जवाब दे रही थी. अचानक मेरे लंड पर उसकी चूत का शिकंजा कसा और मैं अपनी मंजिल पर जा पहुंचा. मेरे लंड ने उसकी चूत में पिचकारियाँ मारनी शुरू कर दीं. जैसे ही वहीदा की चूत में पानी की पहली बौछार पडी, उसका जिस्म अकड़ गया

और उसकी चूत भी पानी छोड़ने लगी. मुझ पर एक मस्ती का आलम छा गया, एक अजीब से सुकून मे मुझे घेरिया, वहीदा ने अपनी चूत को भींच-भींच कर मेरे लंड को पूरी तरह निचोड़ डाला.20231115-112908 खलास होने के बाद मैं बेदम हो कर उस पर गिरा तो उसने प्यार से मुझे अपनी बांहों में भींच लिया. ... थोड़ी देर बाद हमारे होश लौटे तो वहीदा ने मुझे बार-बार चूम कर मेरा शुक्रिया अदा किया. मुझे यकीन हो गया कि ये चिड़िया अब मेरे जाल से नहीं निकल सकेगी.



अगली शाम युसूफ मेरे घर आया. ताज्जुब की बात यह थी कि पहली बार वहीदा भी उसके साथ आई थी. उसे देख कर मेरा ख़ुश होना लाजमी था. मैंने गर्मजोशी से उनका स्वागत किया और उन्हें ड्राइंग रूम में बैठाया.

फ़ॉर्मेल्टी के तकाजे के मुताबिक मैंने अपनी बीवी को उनसे मिलने के लिए ड्राइंग रूम में बुलाया. कुछ देर हमारे बीच इधर-उधर की बातें होती रहीं. फिर मेरी बीवी ने उठते हुए कहा, “आप लोग बैठिये. मैं चाय का इंतजाम करती हूं.”

वहीदा ने उठ कर कहा, “मैं भी आपके साथ चलती हूँ. इस बहाने मैं आपका किचन भी देख लूंगी.”



इसमें किसी को क्या ऐतराज़ हो सकता था. मेरी बीवी ने कहा, “हां, आइये ना. हम कुछ देर और बातें कर लेंगे.”



मुझे लगा कि वहीदा मुझे और युसूफ को अकेला छोड़ना चाहती थी ताकि युसूफ मेरे से क़र्ज़ अदायगी की मियाद बढाने की बात कर सके. मैं भी इसी का इंतजार कर रहा था. मैं एक बार वहीदा को हासिल कर चुका था.

अब मुझे ऐसा इंतजाम करना था कि यह सिलसिला आगे भी चलता रहे. इसके लिए मुझे युसूफ पर अपनी पकड़ बनानी थी. जैसे ही हमारी बीवियां अन्दर गईं, युसूफ बोला, “मेरा खयाल है कि हमें क़र्ज़ वाला मामला निपटा देना चाहिए. अब मियाद ख़त्म होने को है.

मैंने जो एग्रीमेंट साइन किया था वो यहीं है या तुम्हारे ऑफिस में है?”

यह सुन कर मैं भौंचक्का रह गया. मुझे उम्मीद थी कि युसूफ मियाद बढाने की बात करेगा पर वो तो मियाद ख़त्म होने से पहले ही क़र्ज़ चुकाने की बात कर रहा है. मुझे अपने मंसूबे पर पानी फिरता नज़र आया.

मैंने बुझी हुई आवाज में कहा,“एग्रीमेंट तो यहीं है, मेरे स्टडी रूम में. लेकिन क़र्ज़ चुकाने की कोई जल्दी नहीं है. तुम्हे और वक़्त चाहिए तो ...?

“जो काम अभी हो सकता है उसमे देर क्यों करें?” युसूफ ने मेरी बात पूरी होने से पहले ही जवाब दिया. “चलो, तुम्हारे स्टडी रूम में चलते हैं.”

अपनी योजना को नाकामयाब होते देख कर मैं मायूस हो गया था. मैं बेमन से उसे स्टडी रूम में ले गया. मैंने अलमारी से एग्रीमेंट निकाला. वो एक लिफाफे में था. मैं उसे लिफ़ाफे से बाहर निकालता उससे पहले युसूफ बोला, “ओह, मैं तुम से एक बात पूछना भूल गया. तुमने अपने घर में सी.सी.टी.वी. कैमरे लगवा रखे हैं या नहीं?”

एक तो मैं वैसे ही परेशान था, ऊपर से यह सवाल मुझे बड़ा अजीब लगा. मैंने कहा, “सी.सी.टी.वी. कैमरे किसलिए?”

युसुफ ने जवाब दिया, “तुम तो जानते ही हो कि आजकल चोरी-चकारी कितनी आम हो गयी है. हम सिर्फ पुलिस के भरोसे बैठे रहें तो चोर कभी नहीं पकडे जायेंगे. हां, घर में सी.सी.टी.वी. कैमरे लगे हों तो पुलिस चोरों तक पहुँच सकती है.

मैंने तो अपने घर में कई जगह कैमरे लगवा रखे हैं.”

यह सुन कर मेरे कान खड़े हो गए. यह बात मेरे लिए परेशानी का सबब बन सकती थी. मैंने युसूफ की तरफ देखा. वो आगे बोला, “आज मैं सी.सी.टी.वी. की रिकॉर्डिंग देख रहा था. मैंने जो देखा वो यकीन करने के काबिल नहीं हैं.”

स्टडी रूम में मेरा कम्प्यूटर ऑन था. युसूफ ने उसमे एक पैन ड्राइव लगाई और अपना हाथ माउस पर रख दिया. कुछ ही पलों में स्क्रीन पर उसके ड्राइंग रूम के अन्दर का नज़ारा दिखा. ड्राइंग रूम के अन्दर वहीदा और मैं नज़र आ रहे थे.

मेरे होंठ वहीदा के होंठों पर थे और मेरा हाथ उसकी चूंची पर. यह देखते ही मेरे होश फाख्ता हो गए. युसूफ ने वीडियो को रोक कर मेरी तरफ देखा और कहा, “तुम तो यकीनन मेरे सच्चे दोस्त निकले. मेरी गैर-मौजूदगी में एक सच्चा दोस्त ही मेरी बीवी की इस तरह खिदमत कर सकता है!”



युसूफ की बात सुन कर मुझ पर घड़ों पानी पड़ गया. मेरी बोलती बंद हो गई. मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या कहूं. मैं तो सोच रहा था कि उसने क़र्ज़ की मियाद बढ़वाने के लिए वहीदा का इस्तेमाल किया था

(और मुझे उसका इस्तेमाल करने दिया था). लेकिन यहाँ तो मामला उल्टा था. वो तो आज ही क़र्ज़ चुकाने के लिए तैयार था, बिना मियाद बढवाए. इसका मतलब था कि जो भी हुआ वो उसकी जानकारी के बिना हुआ था.

लेकिन वहीदा ने ऐसा क्यों किया? उसने क्यों मुझे अकेले में घर बुलाया? वो क्यों मुझसे चुदने को राज़ी हो गई? मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था. ... लेकिन जब इंसान किसी मुसीबत में फंस जाता है तो सबसे पहले अपना बचाव करने की कोशिश करता है. मैंने किसी तरह थोड़ी हिम्मत बटोर कर कहा, “जो तुम सोच रहे हो वैसा कुछ नहीं है. मैंने अपनी तरफ से कुछ नहीं किया ... मेरा मतलब है कि ... वहीदा ने खुद अपने आप को मेरे हवाले कर दिया.”



“वाकई, तुम्हारे जैसे खूबसूरत शहज़ादे को देख कर भला कोई औरत अपने आप को रोक सकती है?” युसूफ ने व्यंग्य से कहा. “वहीदा ने जबरदस्ती तुम्हारा हाथ अपने सीने पर रख दिया होगा. उसने जबरदस्ती अपने होंठ तुम्हारे होंठों पर रख दिए होंगे. शायद तुम यह भी कहोगे कि उसने तुम्हारे साथ बलात्कार किया था! क्यों?”



युसूफ ने मुझे बिलकुल बेजुबान कर दिया था. मैं जानता था कि वहीदा ने जो किया और मुझे करने दिया, उसका मेरी शक्ल-सूरत से कोई वास्ता नहीं था. मेरे ख़याल में उसका वास्ता सिर्फ मेरे दिए हुए क़र्ज़ से था पर अब तो मेरा खयाल गलत साबित हो चुका था. मैं बहुत बड़ी मुसीबत में फंस गया था. मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं इस मुसीबत से कैसे पार पाऊं. फिर भी मैंने कोशिश की, “मेरा यकीन करो, मैं वहीदा का फायदा नहीं उठाना चाहता था. उसने खुद ही ...”



युसूफ ने मेरी बात काट कर कहा, “ठीक है, मेरे सच्चे दोस्त. हम ये रिकॉर्डिंग तुम्हारी प्यारी बेग़म को दिखा देते हैं और फैसला उन्ही पर छोड़ देते हैं. इसे देखने के बाद वो अपने आप को मेरे हवाले कर दें तो तुम्हे कोई एतराज़ नहीं होना चाहिए.

और मैं तो उनकी पेशकश को ठुकराने से रहा!”



उसके शब्द मेरे दिल में खंज़र की तरह उतरे. मैंने चीख कर कहा, “नहीं!!! तुम ऐसा नहीं ... मेरा मतलब है ...” मैं आगे नहीं बोल पाया. मेरे लिए यह कल्पना करना ही दर्दनाक था कि मेरी बीवी अपने आप को इस इंसान के हवाले कर देगी. ... लेकिन ये उन्होंने रिकॉर्डिंग देख ली तो वो क्या करेगी, यह खयाल भी बेहद खौफनाक था.



अब युसूफ भी खामोश था और मैं भी. मेरी नज़रें झुकी हुई थीं. मेरा दिमाग तो जैसे सुन्न हो गया था. मुझे किसी भी तरह युसूफ को यह रिकॉर्डिंग अपनी बीवी को दिखाने से रोकना था पर मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मैं उसे कैसे रोकूं!



आखिर युसूफ ने सन्नाटा तोड़ा. वो बोला, “एक रास्ता है. हम इस रिकॉर्डिंग और एग्रीमेंट की अदला-बदली कर सकते हैं. तुम रिकॉर्डिंग को मिटा देना और मैं एग्रीमेंट को फाड़ दूंगा. न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी.”



मैं बेइंतिहा खौफ और बेबसी के आलम में था. युसूफ के ऑफर में मुझे एक उम्मीद की किरण दिखी. उसकी बात मानने के अलावा मुझे और कोई रास्ता नहीं दिख रहा था. मैंने हथियार डालते हुए कहा, “इसकी कोई और कॉपी तो नहीं है?”



“एक कॉपी मेरे कम्प्यूटर में है,” युसूफ ने जवाब दिया. “लेकिन मैं घर पहुँचते ही उसे मिटा दूंगा. तुम्हे मेरे पर भरोसा करना होगा.”



युसूफ पर भरोसा करने के अलावा मेरे पास कोई चारा नहीं था. मैंने एग्रीमेंट उसे दे दिया. उसने उसे अपनी जेब में रखा और पैन ड्राइव मुझे दे दी.



हम चुपचाप ड्राइंग रूम में वापस लौटे. हमारी बीवियां वहां पहले से ही मौजूद थीं, चाय के साथ. अगले दस मिनट मेरे लिए बहुत बोझिल रहे. चाय के दौरान युसूफ, वहीदा और मेरी बीवी के बीच कुछ आम किस्म की बातें होती रहीं पर मैं न तो कुछ बोला और न ही उनकी कोई बात मेरे जेहन तक पहुंची. चाय ख़त्म होने के बाद जब युसूफ और वहीदा रवाना हुए, मैं स्टडी रूम में वापस आया. युसूफ और वहीदा स्टडी रूम की खिड़की के पास से गुजर रहे थे.

युसूफ कुछ बोलता हुआ जा रहा था. उसके कुछ अल्फ़ाज़ मेरे कान में पड़े, “... कैसे नहीं फंसता हमारे जाल में?”



यह सुन कर मैं दंग रह गया. तो यह उनका जाल था? मैं समझ रहा था कि जाल मेरा है और वहीदा उसमें फंस रही है! पर असली जाल युसूफ और वहीदा ने बिछाया था ... और मैं बेवक़ूफ़ की तरह उसमे फंस गया! वहीदा को एक बार चोदने की कीमत दस लाख रुपये होगी मैंने कभी सोचा ना था,

मै वही फर्श पर ढेर हुआ खुद को कोष रहा था.

मैंने वाहिदा का शिकार करना चाहा, लेकिन असल मे मै खुद शिकार था.

और वाहिदा शिकारी.



समाप्त
 

Ajju Landwalia

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दस लाख की चुत Picsart-24-05-16-15-15-18-571

पैसा और औरत बहुत बड़ी चीज होती है, दोस्ती मे पैसा, औरत आ जाये तो दोस्ती भी ख़राब कर देता है.

ऐसी ही पैसो और लालच से भरी कहानी, जहाँ कौन शिकार है और कौन शिकारी कुछ कहा नहीं जा सकता.






युसूफ मेरा बचपन का दोस्त था. बड़े होने के बाद हम पहले जितने नज़दीक नहीं रहे थे पर हम एक ही शहर में रहते थे इसलिए हमारा मिलना होता रहता था. युसुफ़ को आप एक आम आदमी कह सकते हैं. वो दिखने में आम आदमी जैसा है,



आम किस्म का बिजनेस करता है और औसत आर्थिक स्तर का है. लेकिन उसके मुताल्लिक एक बात आम आदमियों से अलग है और वो है उसकी बीवी वहीदा. देखने में वो उतनी ही खूबसूरत है जितनी किसी ज़माने में फिल्म एक्ट्रेस वहीदा रहमान हुआ करती थी. जब युसुफ़ से उसकी शादी हुई तो मैं हैरान रह गया कि इस युसूफ के बच्चे को ऐसी हूर कैसे मिल गई!



वहीदा को देखते ही मेरे दिल की धडकनें बेकाबू हो जाती थीं, मेरे मुंह में पानी आ जाता था और मेरे दिल में एक ही ख़याल आता था – किसी तरह ये मुझे मिल जाए! मेरा ही क्या, और सब मर्दों का भी यही हाल होता होगा.

एक बार उसके चेहरे पर नज़र पड़ जाए तो वहां से नज़र हटाना मुश्किल हो जाता था. उसके होंठ तो चुम्बन का मौन निमंत्रण देते प्रतीत होते थे. चेहरे से किसी तरह नज़र हट भी जाए तो उसके सीने पर जा कर अटक जाती थी.

उसके सुडौल, पुष्ट और उठे हुए स्तन मर्दों को दावत देते लगते कि आओ, हमें पकड़ो, हमें सहलाओ, हमें दबाओ और हमारा रस पीयो. अगर नज़र थोड़ी और नीचे जाती तो ताज्जुब होता कि इतनी पतली और नाज़ुक कमर सीने का बोझ कैसे उठाती होगी. मैं कभी उसके पीछे होता और उसे चलते हुए देखता तो उसके लरजते, थर्राते और एक-दूसरे से रगड़ते नितम्ब देख कर मैं तमाम तरह की नापाक कल्पनाओं में खो जाता!20210831-214316



कुल मिला कर कहा जा सकता है कि वहीदा जैसी हसीन औरत बनाने के पीछे ऊपर वाले के दो ही मकसद रहे होंगे – पहला, कमबख्त युसूफ की ख्वाबगाह को जन्नतगाह बनाना और दूसरा, बाकी सब मर्दों के ईमान का इम्तेहान लेना.



मुझे यह कहने में कोई हिचक नहीं है कि इस इम्तेहान में मैं फेल साबित हुआ था. मैं जब-जब वहीदा को देखता, मेरा लंड कपड़ों के अन्दर से उसे सलामी देने लगता था. अपने मनचले लंड को उसकी चूत की सैर करवाने के ख्वाब मैं सोते-जागते हर वक़्त देखा करता था.



युसूफ का दोस्त होने के कारण मुझे वहीदा से मिलने के मौके जब-तब मिल जाते थे. मैं अपनी मर्दाना शख्सियत से उसे इम्प्रेस करने की पूरी कोशिश करता था. अपनी तारीफ सुनना हर औरत की आम कमजोरी होती है.

वहीदा की इस कमजोरी का फायदा उठाने की कोशिश भी मैं हमेशा करता रहता था. पर इस सब के बावजूद मैं अपने मकसद में आगे नहीं बढ़ पाया और मेरी कामयाबी सिर्फ उसके जलवों से अपनी आंखें सेकने तक ही सीमित रही.



*********



एक दिन युसूफ मेरे ऑफिस में मेरे से मिलने आया. वो निहायत परेशान लग रहा था पर अपनी बात कहने में झिझक रहा था. मेरे बार-बार पूछने पर उसने बड़ी मुश्किल से मुझे बताया, “यार रणवीर , मैं बड़ी मुश्किल में पड़ गया हूं.

मुझे मदद की जरूरत है लेकिन ऐसे मामले में तुम्हारी मदद मांगने में मुझे शर्म आ रही है.”



“युसूफ, हम एक-दूसरे के सच्चे दोस्त हैं,” मैंने कहा. “अगर मुझे मदद की जरूरत होती तो मैं सबसे पहले तुम्हारे पास ही आता. तुमने ठीक किया कि तुम मेरे पास आये हो. अब मुझे बताओ कि समस्या क्या है.”



“मसला मेरे बिज़नेस से ताल्लुक रखता है,” युसूफ ने सर झुका कर कहा. “एक पार्टी के पास मेरे पैसे अटक गए हैं. वे दो-तीन हफ़्तों का वक़्त मांग रहे हैं. लेकिन उससे पहले मुझे अपने सप्लायर्स को दस लाख रुपये चुकाने हैं.

बैंक से मैं जितना लोन ले सकता हूं उतना पहले ही ले चुका हूं. अगर मैंने ये दस लाख रुपये फ़ौरन नहीं चुकाए तो मैं बड़ी मुश्किल में पड़ जाऊंगा.”



युसूफ की बात सुन कर मेरी आंखों के सामने वहीदा की तस्वीर घूमने लगी. मुझे अपने नाकाम मंसूबे पूरे करने का मौका नज़र आने लगा. दस लाख रुपये काफी बड़ी रकम थी, खास तौर से युसूफ के लिये.

मैं सोच रहा था कि अगर मैं युसुफ़ को यह रकम दे दूं और वो इसे वक़्त पर न लौटा पाए तो क्या मैं अपने मकसद में कामयाब हो सकता हूं! मैंने यह रिस्क लेने का फैसला किया और युसूफ से कहा, “इस मुसीबत के वक़्त तुम्हारी मदद करना मेरा फर्ज़ है पर दस लाख की रकम बहुत बड़ी है.”



“मैं जानता हूं,” युसूफ ने जवाब दिया. “इसीलिए मैं तुमसे कहने में झिझक रहा था. लेकिन बात सिर्फ एक महीने की है. अगर किसी तरह तुम इस रकम का इंतजाम कर दो तो मैं हर हालत में एक महीने में इसे लौटा दूंगा.”



मेरे शातिर दिमाग में तरह-तरह के नापाक खयाल आ रहे थे. मेरी आँखों के सामने घूम रही वहीदा की तस्वीर से कपड़े कम हो रहे थे. मैं उम्मीद कर रहा था कि युसूफ की कारोबारी मुश्किलें कम नहीं हों और वो वक़्त पर मेरा क़र्ज़ न उतार पाए.



उस सूरत में युसूफ क़र्ज़ अदा करने की मियाद बढाने की गुज़ारिश करेगा और मेरे वहीदा तक पहुँचने का रास्ता खुल सकता है. वैसे यह दूर की कौड़ी थी. मुमकिन था कि युसुफ वक़्त पर पैसों का इंतजाम कर ले. और इंतजाम न भी हो पाए तो लाजमी नहीं था कि वहीदा मेरी झोली में आ गिरे. पर उम्मीद पर दुनिया कायम है. फिर मैं उम्मीद क्यों छोड़ता!



मैंने युसूफ को कहा, “दस लाख रुपये देने में मुझे कोई दिक्क़त नहीं है पर तुम जानते हो कि बिजनेस में लेन-देन लगातार चलता रहता है. मुझे भी अपनी देनदारियां वक़्त पर पूरी करनी होंगी. इसलिए मैं एक महीने से ज्यादा के लिए क़र्ज़ नहीं दे पाऊंगा.”



यह सुन कर युसूफ खुश हो गया, “तुम उसकी चिंता मत करो. मैं एक महीने से पहले ही यह रकम लौटा दूंगा.”



“मुझे तुम पर पूरा यकीन है,” मैंने सावधानी से कहा. “लेकिन मेरे पास कोई ब्लैक मनी नहीं है. मुझे पूरा लेन-देन अपने खातों में दिखाना होगा.”



“हां, हां! क्यों नहीं? मुझे कोई एतराज़ नहीं है.” युसूफ ने कहा.



“ठीक है, तुम कल इसी वक़्त यहाँ आ जाना. तुम्हारा काम हो जाएगा.”



युसूफ खुश हो कर वापस गया. मैं भी खुश था क्योंकि अब मेरा काम होने की भी सम्भावना बन रही थी.



जब युसूफ अगले दिन आया तो वो कुछ चिंतित दिख रहा था, शायद यह सोच कर कि मैं रुपयों का इंतजाम न कर पाया होऊं! जब मैंने मुस्कुरा कर उसका स्वागत किया तो उसकी चिंता कुछ कम हुई. अब मुझे होशियारी से बात करनी थी.

मैंने थोड़ी ग़मगीन सूरत बना कर कहा, “युसूफ, रुपयों का इंतजाम तो हो गया है लेकिन ...”



युसूफ ने मुझे अटकते देखा तो पूछा, “लेकिन क्या? अगर कोई दिक्कत है मुझे साफ-साफ बता दो.”



“दिक्कत मुझे नहीं, मेरे ऑफिस के लोगों को है,” मैंने अपने शब्दों को तोलते हुए कहा. “मुझे तुम्हारे पर पूरा भरोसा है लेकिन मेरे ऑफिस वाले कहते हैं कि पूरी लिखा-पढ़ी के बाद ही रकम दी जाए.”



“तो इसमें गलत क्या है?” युसूफ ने फौरन से पेश्तर जवाब दिया. “इतनी बड़ी रकम कभी बिना लिखा-पढ़ी के दी जाती है! तुम्हारे ऑफिस वाले बिलकुल ठीक कह रहे हैं. तुम उनसे कह कर कागजात तैयार करवाओ.”



अब मैं उसे क्या बताता कि कागजात तो मैंने पहले से तैयार करवा रखे हैं और उनमे वक़्त पर क़र्ज़ अदा न होने की सूरत में कड़ी पेनल्टी की शर्त रखी गई है. खैर अपने आदमियों को एग्रीमेंट बनाने की हिदायत दे कर मैंने चाय के बहाने कुछ वक़्त निकाला.



कुछ देर बाद मेरा आदमी एग्रीमेंट ले कर आया. मुझे डर था कि उसे पढ़ कर युसूफ अपना इरादा न बदल दे. पर मुझे यह भी मालूम था कि उसे कहीं और से इतना बड़ा क़र्ज़ नहीं मिलने वाला था. बहरहाल उसने सरसरी तौर पर एग्रीमेंट पढ़ा और

बिना झिझक उस पर दस्तखत कर दिए. जब युसूफ ने चैक अपनी जेब में रखा तो मुझे अपनी योजना का पहला चरण पूरा होने की तसल्ली हुई.



**************



मेरे अगले एक-दो हफ्ते बड़ी बेचैनी से गुजरे. मैं लगातार युसूफ के बिजनेस की यहां-वहां से जानकारी जुटाता रहा. जैसे-जैसे मुझे खबर मिलती कि उसके पैसे अब भी अटके हुए हैं, मेरी ख़ुशी बढ़ जाती. आम तौर पर क़र्ज़ देने वाला उम्मीद रखता है

कि उसके पैसे वक़्त पर वापस आ जायें पर मैं उम्मीद कर रहा था कि यह क़र्ज़ वक़्त पर न लौटाया जाए. जब तीन हफ्ते गुजर गए और मुझे युसूफ की मुश्किलें कम होने की खबर नहीं मिली तो मेरे अरमानों के पंख लग गए.

अब मेरी कल्पना में वहीदा लगभग नग्न दिखने लगी थी. जब क़र्ज़ की मियाद पूरी होने में सिर्फ तीन दिन बचे थे तब युसूफ का फ़ोन आया. उसने मुझे शाम को डिनर की दावत दी तो मुझे आश्चर्य के साथ-साथ ख़ुशी भी हुई.



मेरी ख़ुफ़िया जानकारी के मुताबिक युसूफ अब तक पैसों का इंतजाम नहीं कर पाया था. मुझे यकीन था कि वो क़र्ज़ की मियाद बढाने की बात करेगा. मुझे इसका क्या और कैसे जवाब देना था यह मैंने सोच रखा था.

क्योंकि युसूफ ने मेरी बीवी को नहीं बुलाया था, मुझे लगा कि आज की रात मेरी किस्मत खुल सकती है! मैं रात के आठ बजे उसके घर पहुँच गया. मैं वहीदा के लिए एक कीमती गुलदस्ता ले गया था.



युसूफ ने गर्मजोशी से मेरा स्वागत किया और मुझे ड्राइंग रूम में बैठाया. कुछ मिनटों के बाद वहीदा मुझे सलाम करने आई. उसको देखते ही मुझे लगा कि आज का दिन कुछ अलग किस्म का है. उसकी चाल, उसकी मुस्कुराहट, उसका पहनावा ...

सब कुछ अलग और दिलनशीं लग रहा था. उसने एक बहुत चुस्त साटिन की कमीज़ पहन रखी थी. कमीज़ का गला काफी लो-कट था जिसमे से उसके एक-चौथाई मम्मे और उनके बीच की घाटी दिख रही थी.20211208-131731

उसके दिलफरेब मम्मे तो जैसे कमीज़ से बाहर निकलने को अकुला रहे थे. आमतौर पर मेरी नज़र उसके हसीन चेहरे पर अटक कर रह जाती थी पर आज मैं उसके सीने से नज़र नहीं हटा पा रहा था.



जब वहीदा ने थोड़ी जोर से "नमस्ते रणवीर साहब’ कहा तो मैं अपने खयालों की जन्नत से हकीकत की दुनिया में लौटा. उसने देख लिया था कि मेरी निगाहें कहाँ अटकी थी. पर वो नाराज़ दिखने की बजाय खुश दिख रही थी.

मैंने शर्मा कर उसके अभिवादन का जवाब दिया. जब वो बैठ गई तो मेरी नज़र उसके बाकी जिस्म पर गयी. वो एक नई नवेली दुल्हन की तरह खुशनुमा लग रही थी. अचानक मुझे गुलदस्ते की याद आई जो अभी तक मेरे हाथ में था.

मैंने उठ कर गुलदस्ता उसे दिया तो उसके हाथ मेरी उँगलियों से छू गये. उस छुअन से मेरे शरीर में एक हल्का सा करंट दौड़ गया. युसूफ कुछ बोल रहा था जिस पर मेरा बिलकुल ध्यान नहीं था क्योंकि मेरा पूरा ध्यान तो वहीदा की खूबसूरती पर केन्द्रित था. वो भी बीच-बीच में मुझे एक मनमोहक अदा से देख लेती थी.



कुछ देर बाद वहीदा ने कहा कि उसे किचन में काम है और वो उठ कर चली गई. युसूफ और मैं बातें करते रहे पर मेरा दिमाग कहीं और ही था. हां, बीच-बीच में मैं उम्मीद कर रहा था कि युसूफ क़र्ज़ की बात छेड़ेगा पर ऐसा कुछ नहीं हुआ.



मैंने भी सोचा कि जल्दबाजी से कोई फायदा नहीं होगा. मुझे इंतजार करना चाहिए. तभी वहीदा ने आ कर कहा कि खाना तैयार है. हम उठ कर डाइनिंग रूम में चले गए. वहीदा खाना परोसने के लिए झुकती तो मुझे लगता कि वो जानबूझ कर मुझे

अपने मम्मों की झलक दिखा रही है. maria-saree मैं उसके मम्मों पर नज़र डालने के साथ-साथ यह भी कोशिश कर रहा था कि युसूफ को कोई शक न हो. मुझे यह भी लग रहा था कि वो या तो मेरी लालची नज़रों से अनजान है या फिर जानबूझ कर अनजान

बन रहा है.



खाना परोसने के बाद वहीदा मेरे सामने की कुर्सी पर बैठ गई. मेज की चौड़ाई ज्यादा नहीं थी इसलिए मेरे घुटने एक-दो बार वहीदा के घुटनों से छू गये. उसने कोई विरोध जाहिर नहीं किया तो मेरी हिम्मत बढ़ गई.

मैं जानबूझ कर अपने घुटने उसके घुटनों से टकराने लगा. मुझे आशंका थी कि वो अपने घुटने पीछे खींच लेगी पर उसने ऐसा कुछ नहीं किया. हां, उसकी नज़रें शर्म से झुक गई थीं. मैं युसूफ की तरफ देखते हुए उससे बात करने लगा और साथ ही मैंने अपने घुटने से वहीदा के घुटने को एक-दो बार सहलाया. उसने भी जवाब में मेरे घुटने को अपने घुटने से सहला कर जैसे इशारा कर दिया कि उसे कोई एतराज़ नहीं था. वो बीच-बीच में हमारी बातचीत में भी भाग ले रही थी और दिखा रही थी जैसे सब कुछ सामान्य हो.

उसका व्यवहार मेरे शरीर में रोमांच पैदा कर रहा था. मेरी हिम्मत और बढ़ गई और मैंने उसकी समूची टांग को अपनी टांग से सहलाना शुरू कर दिया. अब मेरा ध्यान खाने से हट चुका था. मुझे कुछ पता नहीं था कि युसूफ क्या बोल रहा था. मेरा ध्यान सिर्फ उन तरंगों पर था जो मेरी टांगों से उठ कर ऊपर की तरफ जा रही थीं और जिनका सीधा असर मेरे लंड पर हो रहा था.



अचानक वहीदा की सुरीली आवाज ने मुझे जैसे नींद से जगाया. वो कह रही थी, “शायद रणवीर जी को खाना पसंद नहीं आया. ये तो कुछ खा ही नहीं रहे हैं!”



वहीदा ने ये बात युसूफ को कही थी पर मैंने फ़ौरन जवाब दिया, “यह कैसे हो सकता है कि तुम जो बनाओ वो किसी को पसंद न आये. तुम्हारे हाथों में तो जादू है. लेकिन मुश्किल ये है कि मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि मैं क्या खाऊं.”



जवाब के साथ-साथ वहीदा की तारीफ भी हो गई जो उसे जरूर अच्छी लगी होगी. मेज के नीचे मेरा पैर अब उसकी पिंडली की मालिश कर रहा था. उसकी सलवार ऊपर उठ चुकी थी. मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि मैं युसूफ की मौजूदगी में उसकी बीवी की नंगी टांग को अपने पैर से सहला रहा था और वो इससे बेखबर था. मुझे यह शक भी हो रहा था कि कहीं वो जानते हुए अनजान तो नहीं बन रहा था.



मैंने अपना पैर पीछे खींचा तो वहीदा के चेहरे पर निराशा का भाव आया. पर वो जल्दी ही संभल गई और सामान्य तरीके से बात करने लगी. मैंने भी अपना ध्यान बातचीत और खाने की तरफ मोड़ दिया. कुछ देर में डिनर ख़त्म हो गया.

हाथ धोने के बाद मैंने फिर वहीदा से खाने की तारीफ की. युसूफ ड्राइंग रूम की तरफ बढ़ चुका था. वहीदा ने धीरे से मुझे कहा, “आप बहुत दिलचस्प बातें करते हैं. मैं दिन में घर पर ही रहती हूँ. आप जब चाहें यहाँ आ सकते हैं.”



यह तो खुला निमंत्रण था. आज शाम वो नहीं हुआ जिसकी मुझे उम्मीद थी पर आगे के लिए रास्ता खुल चुका था. और मुझे नहीं लगा कि यह युसूफ की जानकारी के बिना हुआ होगा. मैं दिखने में बेशक युसूफ से बेहतर हूं पर इतना भी नहीं कि वहीदा जैसी दिलफ़रेब औरत मुझ पर फ़िदा हो जाए. यह कमाल तो उस क़र्ज़ का था जो वक़्त पर वापस आता नहीं लग रहा था. खैर, अगर वहीदा ब्याज देने के लिए तैयार है तो मैं इतना बेवक़ूफ़ नहीं हूँ कि यह सुनहरा मौका छोड़ दूं!

यह सोचते-सोचते मैं अपने घर पहुँच गया. मेरे दिल-ओ-दिमाग पर पूरी तरह वहीदा का नशा छाया हुआ था. मुझे अपनी बीवी रवीना में वहीदा का अक्स नज़र आ रहा था. सोने से पहले मैंने उनकी चूत को इतना कस कर रगड़ा कि वे भी हैरान रह गयीं.



अगली सुबह भी वहीदा का अक्स बार-बार मेरी नज़रों के सामने आ रहा था. मैं अपने दफ्तर पहुंचा तो मैं अपने काम पर कंसन्ट्रेट नहीं कर पाया. मुझे अपने कॉलेज के दिन याद आ गए.

जब मैं कॉलेज में नया-नया पहुंचा था तब मैं अपनी इंग्लिश की लेक्चरर पर इस कदर फ़िदा हो गया था कि मैं रात-दिन उनके सपने देखता रहता था. मुझे लगता था कि वे मुझे नहीं मिलीं तो मैं ट्रेन के आगे कूद कर अपनी जान दे दूंगा. सपनों में मैं न जाने कितनी बार उन्हें चोद चुका था. आज मेरी हालत फिर वैसी ही हो गई थी. उस लेक्चरर की जगह अब वहीदा ने ले ली थी. फर्क यह था कि वो लेक्चरर मेरी पहुँच से दूर थी जबकि वहीदा मुझे हासिल हो सकती थी. हो सकता था कि वो इस वक़्त मेरा इंतजार कर रही हो.

उसने साफ़ कहा था कि मैं कभी भी उससे मिलने जा सकता था. मैं यह तय नहीं कर पा रहा था कि मैं आज ही उससे मिलूँ या दो दिन और इंतजार करूं. मेरा दिमाग कह रहा था कि दो दिन बाद युसूफ को मेरी हर बात माननी पड़ेगी. वो मजबूर हो कर वहीदा को मेरे हवाले करेगा. लेकिन मेरा दिल कह रहा था कि वहीदा तो आज ही मेरी आगोश में आने के लिए तैयार है. फिर मैं उसके लिए दो दिन क्यों तरसूं!



मैंने अपने दिल की बात मानने का फैसला किया. हिम्मत कर के मैं युसूफ के घर की तरफ रवाना हो गया. मैंने कार को उसके घर से थोड़ी दूर छोड़ा और पैदल ही घर तक पहुंचा. घंटी बजाने के बाद मैं बेसब्री से वहीदा से रूबरू होने का इंतजार करने लगा. दरवाजा खुलने में देर हुई तो मेरे मन में शक ने घर कर लिया. मैं सोचने लगा कि मैंने यहाँ आ कर कोई गलती तो नहीं कर दी! दो मिनट के लम्बे इंतजार के बाद दरवाजा खुला. 20220201-175631 वहीदा मेरे सामने थी पर उसके चेहरे पर मुझे उलझन नज़र आ रही थी. मैंने थोड़ी शर्मिंदगी से कहा, “शायद मैं गलत वक़्त पर आ गया हूं. मैं चलता हूं.”



“नहीं, नहीं! ऐसी कोई बात नहीं है. आप अन्दर आइये.” उसने पीछे हट कर मुझे अन्दर आने का रास्ता दिया.



“लेकिन तुम कुछ उलझन में दिख रही हो,” मैंने अन्दर आते हुए कहा.



“नहीं, उलझन कैसी?” उसने कहा. “आप बैठिये. मैं फ़ोन पर बात कर रही थी कि दरवाजे की घंटी बज गई. मैं बात ख़त्म कर के अभी आती हूँ.”



अब मैंने इत्मीनान की सांस ली. मेरे आने से वहीदा की फ़ोन पर हो रही बात में खलल पड़ गया था इसलिए वो परेशान दिख रही थी और मैं कुछ का कुछ सोचने लगा था.



वहीदा दो मिनट में वापस आ गई. न जाने यह मेरा भ्रम था या हकीकत पर इस बार वो पहले से ज्यादा दिलकश लग रही थी. उसके व्यवहार में भी अब गर्मजोशी आ गई थी. उसने पूछा, “आप चाय लेंगे या कॉफ़ी ... या कुछ और?”



‘कुछ और’ सुन कर तो मेरा दिल बल्लियों उछलने लगा. मैं ‘कुछ और’ लेने के लिए ही तो आया था पर थोडा तकल्लुफ दिखाना भी लाजमी था. मैंने कहा, “तुम्हे तकलीफ करने की जरूरत नहीं है. मैं तो सिर्फ तुम से मिलने के लिए आया हूं क्योंकि कल तुम्हारे साथ ज्यादा बात नहीं हो सकी थी.”



वहीदा ने कहा, “इसमें तकलीफ की क्या बात है! मैं तो वैसे भी चाय पीने वाली थी. लेकिन आप कुछ और लेना चाहें तो ...”



फिर ‘कुछ और’ सुन कर तो मेरा मन उसे दबोचने पर आमादा हो गया. पर मैंने अपने आप पर काबू करते हुए कहा, “तुम्हारे हाथ की चाय पीने का मौका मैं कैसे छोड़ सकता हूँ!”



“मैं अभी आती हूं,” उसने कहा.



वहीदा किचन में चली गई तो मेरे दिल में नापाक खयाल आने लगे. मैं सोच रहा था कि जो हाथ चाय बना रहे हैं वो मेरे लंड के गिर्द होते तो कैसा होता! मेरे होंठ चाय के प्याले के बजाय वहीदा के होंठों पर हों तो कैसा रहेगा! और वो दुबारा ‘कुछ और’ की पेशकश करे तो क्या मैं उसे बता दूँ कि मेरे लिए ‘कुछ और’ का मतलब उसकी चूत है? फिर मैंने सोचा कि मैं कहीं खयाली पुलाव तो नहीं पका रहा हूं! ऐसा न हो कि मैं जो सोच रहा हूं वो हो ही नहीं और मुझे खाली हाथ लौटना पड़े.



कुछ मिनट बाद वहीदा चाय की ट्रे ले कर आई. ट्रे मेज पर रख कर उसने प्यालों में चाय डाली. जब वो मुझे प्याला देने के लिए आगे झुकी तब मुझे पता चला कि वो कपडे बदल चुकी थी.20231116-124459 उसकी कमीज़ के गले से न सिर्फ मुझे उसके खूबसूरत सुडोल स्तन दिख रहे थे बल्कि इस बार तो मुझे उसके निपल की भी झलक दिख रही थी. स्तन बिलकुल अर्ध-गोलाकार और दूधिया रंग के थे. इस रोमांचक दृश्य ने मेरे दिल की धड़कने बढ़ा दीं. मेरा मन कर रहा था कि मैं उसके दूध को कपड़ों की क़ैद से आजाद कर दूं.20220904-234452

इधर मेरा लंड भी कपड़ों से बाहर निकलने के लिए मचल रहा था. मेरी नज़रें पता नहीं कब तक उन खूबसूरत पहाड़ियों पर अटकी रहीं. एक सुरीली आवाज ने मुझे खयालों कि दुनिया से बाहर निकला, “रणवीर जी, चाय लीजिये ना!”



मैंने चौंक कर वहीदा के चेहरे की तरफ देखा. वो देख चुकी थी कि मेरी नज़रें कहाँ अटकी हुई थीं. जब हमारी नज़रें मिली तो उसके गाल शर्म से लाल हो गए. मैंने प्याला लेने के लिए हाथ बढाया तो कल की तरह हमारे हाथ टकराए और मेरा शरीर झनझना उठा. मैंने किसी तरह अपने जज्बात पर काबू पाया और प्याला ले लिया. वहीदा भी अपना प्याला ले कर मेरे पास बैठ गई. उसके जिस्म से उठती महक मुझे मदहोश कर रही थी. यह पहला मौका था जब मैं उसके साथ अकेला था.



मैं थोडा घबरा भी रहा था कि मैं उत्तेजनावश कुछ ऐसा न कर बैठूं जिससे वो नाराज़ हो जाए. मेरे हाथ पसीने से इस कदर गीले थे कि मुझे प्याला थामने में मुश्किल हो रही थी. मेरी धडकनों की आवाज तो वहीदा के कानों तक पहुँच रही होगी.



वहीदा ने शायद मेरी दिमागी हालत भांप ली थी. वह बोली, “आप कुछ बोल नहीं रहे हैं. शायद मेरे साथ बोर हो रहे हैं!”

मैंने अपने आप को संभाल कर कहा, “बोर और तुम्हारे साथ? मैं तो खुद को खुशकिस्मत समझ रहा हूँ कि मैं तुम्हारे जैसी खूबसूरत अप्सरा जैसी औरत के पास बैठा हूं.”



“झूठे मुझे तो लगता है कि आप हर औरत को यही कहते होंगे,” वहीदा ने शरारत से कहा.



“तो मैं तुम्हे चापलूस लगता हूं,” मैंने झूठी नाराज़गी दिखाते हुए कहा. “सच तो यह है कि तुम्हारे जैसी खूबसूरत और जहीन औरत मैंने आज तक नहीं देखी. और अब देख रहा हूं तो यह क़ुबूल करने में क्या हर्ज़ है!” मुझे फिर लग रहा था कि औरत को पटाने के लिए चापलूसी एक बेहद कारगर हथियार है और मुझे इसका भरपूर इस्तेमाल करना चाहिए.



‘अच्छा? तो बताइये कि मैं आपको कहा से खूबसूरत लगती हूँ?” वहीदा ने पूछा.



यह सवाल वाकई मुनासिब था. इसका जवाब देना आसान नहीं था पर औरत की तारीफ में कंजूसी करना भी मुनासिब नहीं है. इसलिए मैंने कहा, “जैसे तुमने अपने घर को संवार रखा है और जैसे तुम अपने आप को संवार कर रखती हो, यह तो कोई घरेलु ससंस्कारी औरत ही कर सकती है.”



“अच्छा जी, तो मैं आपको संवरी हुई दिख रही हूँ?” वहीदा के बातो से लग रहा था कि वो अपनी और तारीफ सुनने के मूड में थी.



“क्यों नहीं? तुम्हे युसूफ ने नहीं बताया कि तुम्हारा कपड़ो की चॉइस कितनी उम्दा है? उसे पहनने का तरीका कितना बेहतरीन है? तुम्हारे बाल और तुम्हारे नैन नक्श हमेशा संवरे रहते हैं! तुम्हे देख कर तो मुझे युसूफ से जलन हो जाती है!”

मैंने वहीदा की तारीफ करने के साथ-साथ युसूफ को भी लपेटे में ले लिया था. मुझे मालूम था कि शादी के इतने सालो बाद कोई पति अपनी बीवी की ऐसे तारीफ नहीं करता है.



वहीदा थोड़े रंज से बोली, “उनके पास कहाँ वक़्त है ये सब देखने का? वे तो हमेशा अपने बिज़नेस मे बिजी रहते हैं.”



इसका मतलब था कि मेरे कहने का असर हुआ था. वहीदा अपने पति के प्रति अपनी नाराज़गी को छुपा नहीं पाई थी. मुझे लगा कि मुझे अपने प्लान को जारी रखना चाहिये. साथ ही मुझे लगा कि वहीदा ने कारोबार का ज़िक्र कर के क़र्ज़ की तरफ भी इशारा कर दिया है.



“मुझे तो लगता है कि युसूफ न तो अपने कारोबार को ठीक तरह संभल पा रहा है और न अपनी बीवी को,” अब मैंने मुद्दे पर आने का फैसला कर लिया था. “और वो कारोबार में ऐसा व्यस्त भी नहीं है कि अपनी बीवी पर ध्यान न दे पाए.



उसकी जगह मैं होता तो ...” मैंने जानबूझ कर अपनी बात अधूरी छोड़ दी.



“आपको उनके कारोबार के बारे में क्या मालूम?” वहीदा ने थोड़ी हैरत दिखाते हुए पूछा.



अब मुझे शक हुआ कि युसूफ ने अपने बिज़नेस और अपने क़र्ज़ के बारे में वहीदा को बताया था या नहीं! मैं तो सोच रहा था कि मुझे उसका खुला निमंत्रण क़र्ज़ के कारण ही मिला था. यह भी मुमकिन था कि वो जानबूझ कर अनजान बन रही हो. अब मुझे क्या करना चाहिये?

मैंने तय किया कि कारण कुछ भी हो, मुझे आज मौका मिला है तो मुझे पीछे नहीं हटना चाहिए. वहीदा ने अपनी बात को आगे बढाया, “और उनकी जगह आप होते तो क्या करते?”



“पहली बात तो यह है कि मैंने अपने कारोबार के लिए जितने कर्मचारी रख रखे हैं, उनसे मैं पूरा काम करवाता हूँ. मैं उन्हें जरूरी हिदायतें दे देता हूं और फिर कारोबार संभालने की जिम्मेदारी उनकी होती है. इस तरह से मेरा काफी वक़्त बच जाता है.

वक़्त बचने के कारण ही मैं यहाँ आ पाया हूँ. और हां, अगर युसूफ की जगह मैं होता तो इस बचे हुए वक़्त का इस्तेमाल मैं अपनी बीवी की जवानी को निखारने मे करता.” अपनी बात ख़त्म होते ही मैंने वहीदा को अपनी बांह के घेरे में लिया और उसे अपनी तरफ खींच लिया.



“ये क्या कर रहे है आप , छोडिये मुझे.” वहीदा ने कहा. उसकी आवाज से अचरज तो झलक रहा था लेकिन गुस्सा या नाराज़गी नहीं. उसने अपने आप को छुड़ाने की कोशिश भी नहीं की. मुझे लगा कि उसका विरोध सिर्फ दिखाने के लिए है.

मैंने उसे मजबूती से अपने शरीर से सटा लिया. उसके गुदाज़ जिस्म का स्पर्श मुझे रोमांचित कर रहा था. उसके बदन से निकलने वाली खुशबू मुझे मदहोश कर रही थी. वहीदा ने रस्मी तरीके से कहा, “ये क्या कर रहे हैं आप?”



“मैं अपनी बीवी के हुस्न की पूजा कर रहा हूं,” मैंने चापलूसी से कहा.



“लेकिन यह क्या तरीका है” वाहिदा ने कहा. “और मैं आपकी नहीं, आपके दोस्त की बीवी हूँ.”



वाहिदा के शब्द जो भी हों, उसकी आवाज में कमजोरी आ गई थी. उसने मेरे से दूर होने की कोई कोशिश नहीं की थी और उसका बदन ढीला पड़ चुका था. मुझे लगा कि उसका विरोध अब नाम मात्र का रह गया है.



“मैं तो तुम्हे दिखा रहा हूँ की मैं तुम्हारा पति होता तो क्या करता,” मैंने उसे और पास खींच कर कहा. “इसके लिए मुझे कुछ देर के लिए तुम्हे अपनी बीवी समझना होगा. और आज मैं अपनी बीवी की ख़िदमत पैरो से नहीं अपने हाथों से करूंगा.”



मेरा एक हाथ वहीदा की कमर को दबोचे हुए थे और दूसरे हाथ से मैं उसके कंधे को सहला रहा था. पैरों की बात छेड़ कर मैंने उसे पिछली रात की याद दिला दी थी. और पिछली रात जो हुआ था वो तो उसके पति की मौजूदगी में हुआ था.



जब उसने अपने पति के होते हुए कोई विरोध नहीं किया तो उसका आज का विरोध तो बेमानी था. लेकिन वो इतनी जल्दी हथियार डालने को तैयार नहीं थी. उसने कहा, “रणवीर जी, कल जो हुआ वो सिर्फ मजाकिया छेड़छाड़ थी.”

"अच्छा तो इसे भी मज़ाक ही समझ लो ” मेरा हाथ वहीदा के कंधे से फिसल कर उसके नंगे बाजू पर आ चुका था.



“कल की बात अलग थी,” वहीदा ने जवाब दिया. “कल मेरे पति साथ में थे.”



“इसीलिए तो तुमने मुझे कहा था कि मैं कभी भी दिन में यहाँ आ सकता हूं,” मैंने सोचा कि अब शर्म-ओ-लिहाज छोड़ने का वक़्त आ गया है. “तुम्हे पता था कि दिन में तुम्हारे पति यहाँ नहीं होंगे. क्या तुम मुझ से अकेले में नहीं मिलना चाहती थीं?”



अब वहीदा के लिए जवाब देना मुश्किल था. फिर भी उसने कोशिश की, “हां, लेकिन मेरा मकसद ...”



मैंने उसकी बात काटते हुए कहा, “तुम्हारा और मेरा मकसद एक ही है. तुम्हारा पति तुम्हारी अहमियत समझे या न समझे पर मैं समझता हूं. तुम्हारा हुस्न तुम्हारा जिस्म प्यासा है, प्यार का भूखा है. तुमने मुझे अकेले में यहाँ आने के लिए कह कर बहुत हिम्मत की है. अब थोड़ी हिम्मत और करो. मुझे अपनी जवानी को रस पिने दो.



मुझे लगा कि मैंने बहुत सधे हुए शब्दों में अपनी बात कही थी. उसका असर भी देखने को मिला. वहीदा न तो कल रात जो हुआ उससे इंकार कर सकती थी और न ही इस बात से मुकर सकती थी कि उसने मुझे दिन में आने के लिए कहा था.



उसने धीमी आवाज में कहा, “रणवीर जी , आप सचमुच ऐसा समझते हैं? कहीं आप मुझे बना तो नहीं रहे हैं?”



मेरी नज़र उसकी गोलाइयो पर थी जो उसकी कमीज़ के महीन कपडे से झाँक रहे थे. वहीदा ने जब देखा कि मेरी नज़र कहाँ थी तो उसने शर्मा कर अपनी गर्दन झुका ली. मैं समझ गया कि उसने मेरे सामने समर्पण कर दिया है.

मैंने कहा, “मैं क्या समझता हूं यह मैं बोल कर नहीं बल्कि कर के दिखाऊंगा.”



मैंने वहीदा का एक हाथ अपने हाथ में लिया और उसे उठा कर अपने होंठ उस पर रख दिये. जैसे ही मेरे होंठों ने उसके हाथ को छुआ, वो सिहर उठी. उसका जिस्म मेरे जिस्म से सट गया. उसके स्तन मेरे सीने से लग गए. मैं उसके नर्म हाथ को चूमने लगा. मेरे होंठ धीरे धीरे उसके बांह और कंधे पर फिसलते हुए उसकी सुराहीदार गर्दन पर पहुँच गये. मेरी जीभ उसकी गर्दन पर फिसल रही थी तो मेरा हाथ उसकी कमर पर. eb66c418385f5c13be9b04a96aada5b7 मुझे अपनी खुशकिस्मती पर यकीन नहीं हो रहा था.

जिस वहीदा को हासिल करने के सपने मैं सालों से देख रहा था वो आज मेरे हाथों में कठपुतली बनी हुई थी. मेरे होंठ उसके गालों पर पहुँच गए. उसके नर्म और रेशमी गालों की लज्जत बर्दाश्त मे बाहर थे.

मेरे होंठ उसके एक गाल का जायजा ले कर उसके गले के रास्ते दुसरे गाल पर पहुँच गए. एक गाल से दूसरे गाल का सफ़र चलता रहा और साथ ही मेरा हाथ उसकी कमर से उसके सीने पर पहुँच गया.



जैसे ही मेरे हाथ उसके उठे हुए भारी मोटे स्तन पर पहुचे, उसका जिस्म तड़प उठा. उसकी आँखें बरबस मेरी आँखों से मिलीं. उसका चेहरा मेरे चेहरे के सामने था. मैने अपने होंठ उसके होंठों पर रख दिये. मैने अपने होंठों से उसके होंठ खोलते हुए उसका निचला होंठ अपने होंठों के बीच दबाया और उसका रस पीने लगा. अब वहीदा की शर्म जा चुकी थी. उसकी गर्म साँसें मेरे चेहरे से टकरा रही थीं. उसने अपना मुंह खोल कर अपने होंठ मेरे होंठों से चिपका दिए. जैसे ही मेरी जीभ उसके मुंह में पहुंची,

उसने उसका स्वागत अपनी जीभ से किया. जीभ से जीभ का मिलन जितना रोमांचकारी मेरे लिए था उतना ही वहीदा के लिए भी था. वो पूरे जोश से मेरी जीभ से अपनी जीभ लड़ा रही थी. मैं भी उसकी जीभ का रसपान करते हुए उसकी स्तनों को मसलने लगा।



मेरा हाथ वहीदा के स्तनों को छोड़ कर उसके मांसल गांड पर पहुँच गया. मैंने महसूस किया की वाहिदा की गांड मेरी कल्पना से कहीं ज्यादा बड़ी और कड़क थी, कुछ देर गांड को सहलाने और दबाने के बाद मेरा हाथ उसकी सलवार के नाड़े पर पहुंचा तो वो थोड़ा कसमसा कर बोली, “नहीं, रणवीर जी बस कीजिये”



मैं जैसे ओंधे मुंह ज़मीन पर गिरा. मंजिल मेरी पहुँच में आने के बाद वहीदा मुझे रोक रही थी. मैंने सवाल भरी निगाहों से उसकी तरफ देखा. उसने अपनी बात पूरी की, “दरवाजा बंद नहीं है!”



उसकी बात सुन कर मेरी नज़र दरवाजे पर गई. डोर क्लोजर से किवाड़ बंद तो हो गया था पर चिटकनी नहीं लगी हुई थी. मुझे अपनी बेवकूफी पर गुस्सा आया कि किवाड़ को धकेल कर कोई भी अन्दर आ सकता था.

मैं चिटकनी लगाने के लिए उठा पर वहीदा मेरे से पहले दरवाजे तक पहुँच गई. जैसे ही वो चिटकनी लगा कर पलटी, मैंने उसे अपनी बाँहों में भींच लिया. मैने उसे दरवाजे से सटा कर उसकी दोनों चूचियों पर अपने हाथ रख दिये. मेरे होंठ एक बार फिर उसके होंठों पर काबिज हो गए. साथ ही मैं उसकी दोनों चूचियों को मसलने लगा. वहीदा पूरी तरह मेरे काबू में थी और मैं जान गया था कि मेरी बरसों की मुराद पूरी होने वाली है. मैं कभी उसके स्तनों को कमीज़ के ऊपर से मसलता था तो कभी अपनी अंगुलियों से उसके निप्पल को मसल देता था. वहीदा चुपचाप आँखें मूंदे अपनी सुडोल स्तन मसलवा रही थी. WTJw6K8 उसका लरजता जिस्म और उसकी तेज़ होती सांसे उसकी उत्तेजना की गवाही दे रही थीं. उसकी जीभ फिर मेरी जीभ से टकरा रही थी.

अब अगली सीढ़ी चढ़ने का वक़्त आ गया था.

मैंने एक ही झटके मे वाहिदा के कुर्ते को आगे से पकड़ खिंच लिया छह्ह्ह्हरररर...... करता पूरा कुर्ता आगे से फटता चला गया.. कुर्ते का फटना था की वाहिदा ने मेरे होंठो को छोड़ दिया . उसने मुझे सवालिया नज़रों से देखा. उसकी नज़रों में शर्म भी थी.



मैं जानता था कि किसी भी औरत के लिए यह लम्हा बहुत मुश्किल होता है, मेरा मतलब है एक नए मर्द के सामने पहली बार अपने जिस्म को बेपर्दा करना. मैंने वहीदा को बहुत प्यार से कहा, “वहीदा, प्लीज़ मुझे इस हुस्न का लुत्फ़ लेने दो, मैंने इस लम्हे का सालों इंतजार किया है. तुम चाहो तो अपनी आँखें बंद कर लो.”



वहीदा ने मुझे निराश नहीं किया. उसने मौन स्वीकृति में अपनी आंखें बंद कर लीं. मैंने धीरे से उसके दुपट्टे को उसके जिस्म से अलग किया. मैंने उसके फटे हुए कुर्ते को उसके जिस्म से अलग कर दिया, जिसमे उसने अपने हाथ ऊपर उठा के मेरा भरपूर सहयोग दिया..

अब उसके सीने पर ब्रा के अलावा कुछ नहीं था. काले रंग के महीन कपडे की ब्रा उसके स्तनों की खूबसूरती छुपाने में नाकामयाब साबित हो रही थी. मैंने उसे पीछे घुमा कर उसकी ब्रा के हुक खोले.



जब मैंने ब्रा को उसके जिस्म से हटाया तो मैं उसकी नंगी सुडौल पीठ के हुस्न में खो गया. मैं हवस मे डूबा अपने हाथ उसकी पीठ पर फिराने लगा. वहीदा ने अपना जिस्म दरवाजे से सटा दिया.

मुझे लगा कि मैं उसके बाकी कपडे भी पीछे से उतारूं तो उसे कम झिझक होगी. मैंने अपने हाथ आगे ले जा कर उसकी सलवार का नाड़ा खोल दिया. इस बार उसने कोई एतराज़ नहीं किया. जब मैंने सलवार नीचे खिसकाई तो वहीदा ने अपने पैर उठा कर सलवार उतारने में मेरी मदद की.

मेरी नज़र उसकी कच्छी से झांकते मांसल कसी हुई गांड पर अटक गई. मैंने हौले-हौले उसकी कच्छी को नीचे खिसकाया. जैसे ही उसकी नंगी गांड कमरे की रौशनी से जगामगाई मेरे होश उड़ गए, गांड पर एक भी दाग़ नहीं, लगता था जैसे किसी ने दो आधे चाँद को आपस मे जोड़ दिया हो.

उस चाँद के बीच एक अँधेरी खाई मौजूद थी. मेरे सब्र का बांध टूट गया था, मै बेतहाशा उसकी गांड को चूमने लगा, चाटने लगा. कच्छी को उसके जिस्म से अलग कर के मैं उसकी नंगी मोटी चिकनी जांघो को सहलाने लगा. मेरी जीभ उसके लज़ीज़ सुन्दर गांड के एक-एक इंच का जायका ले रही थी. चूतड़ों को चाटते-चाटते मैंने अपने कपडे भी उतार दिये.



मैं खड़ा हो गया. वहीदा की पीठ मेरी तरफ थी. मैं पीछे से उसके नंगे जिस्म का दिलकश नज़ारा देख रहा था. उसे पता नहीं था कि उसकी तरह मैं भी मादरजात नंगा था. मैंने उससे चिपक कर अपने हाथ उसकी चून्चियों पर रख दिए.1630490927839

मेरा बेकाबू लंड उसकी गांड की बीच की खाई में धंस गया. शायद लंड के स्पर्श से उसे मेरे नंगेपन का एहसास हुआ. वह उत्तेजना से कांप उठी. मैं भी उसकी नंगी चून्चियों के स्पर्श से पागल सा हो गया था. मैंने अपना मुंह उसके गाल पर रख दिया और उसे मज़े से चूसने लगा. यह मन्ज़र मेरी कल्पना से भी ज्यादा दिलकश था – वहीदा का नंगा जिस्म मेरे सामने, उसकी नंगी चून्चियां मेरी मुट्ठियों में और मेरे होंठ उसके गले से होते उसके गालो पर घूम रहे थे. मेरा मुंह उसके गाल से उसके कान पर पहुँच गया और मैं अपनी जीभ से उसके कान को सहलाने लगा. साथ ही मेरा जिस्म अपने आप आगे-पीछे होने लगा. मेरा लंड उसकी जाँघों के अंदरूनी हिस्से से रगड़ने लगा. मेरी हरकतों से वहीदा की गर्मी बढ़ने लगी. उसकी सिसकारियां निकलने लगीं और उसकी गांड मेरे लंड पर धक्के मारने लगी.



वहीदा पर गर्मी चढ़ते देख कर मेरी हिम्मत बढ़ गई. अब तक मैंने उसकी चून्चियों का नंगापन सिर्फ अपने हाथों से महसूस किया था. अब मैं उनका नज़ारा पाने को बेक़रार हो गया. मैं उसकी चून्चियों को दबाते हुए बोला, “वहीदा, आज तक मैंने इन्हें सिर्फ सपनों में देखा है. आज तुम मुझे इनका दीदार हक़ीक़त में करवा दो तो मैं तुम्हारा यह एहसान कभी नहीं भूलूंगा.” यह कह कर मैंने उसे अपनी तरफ घुमा दिया.



वहीदा ने अपने सीने पर हाथ रखते हुए कहा, “ये क्या कर रहे हैं, रणवीर जी आप ?” शर्म से उसकी गर्दन झुक गई.



“प्लीज़ देखने दो, वहीदा.” मैंने उसके हाथ हटाते हुए कहा. वहीदा की हालत तो ऐसी थी जैसे वो शर्म से जमीन में गड़ जाना चाहती हो.



मैंने कहा, “इतना हसीन नज़ारा शायद फिर कभी मुझे देखने को नहीं मिलेगा. ... ओह! इतने प्यारे स्तन ! इन्हें देख कर तो मैं अपने होश खो बैठा हूँ!”



अब तारीफ का औरत पर असर न हो, यह तो नामुमकिन है. वहीदा भी अपने सुडोल स्तनों की तारीफ सुन कर यकीनन खुश हुई. वह शर्माते हुए बोली, “यह क्या कह रहे हैं आप! आपको तो झूठी तारीफ करने की आदत है.”



“झूठी तारीफ करने वाले और होंगे,” मैंने हैरत का दिखावा करते हुए कहा (मेरा इशारा युसूफ की तरफ था जो आम पतियों की तरह अपनी बीवी की चून्चियों की तारीफ अब शायद ही कभी करता होगा). मैंने आगे कहा, “तुम्हारी कसम, ऐसे हसीन भरे हुए टाइट स्तन मैंने आज तक नहीं देखे. अगर मेरी बात झूठ हो तो मै अभी अँधा हो जाऊ!”



यह सुनते ही वहीदा ने कहा, “अंधे हों आपके दुश्मन! मेरा मतलब कुछ और था.”



“तुम्हारा मतलब है कि युसूफ इनकी झूठी तारीफ करता है,” मैंने एक स्तन को हाथ में ले भींच कर कहा.



वहीदा ने शर्मा कर मेरे हाथ की तरफ देखा जो उसकी एक चूंची पर काबिज़ हो चुका था. उसने कहा, “उनके पास कहाँ वक़्त है इन्हें देखने के लिए!” उसकी आवाज में थोड़ी मायूसी थी पर वो मेरी बातें सुन कर थोड़ी खुश भी लग रही थी.



मैंने सोचा कि अब आगे बढ़ने का वक़्त आ गया है. मैं वहीदा को अपनी एक बांह के घेरे में ले कर दीवान की तरफ बढ़ा. उसने कोई एतराज़ नहीं किया. लगता था कि आगे जो होने वाला था उसके लिए वो दिमागी और जिस्मानी तौर पर तैयार हो चुकी थी.

मैंने उसे खिंच कर बिस्तर पर लिटाया और खुद भी उसके पास लेट गया. मैंने उसकी तरफ करवट ले कर उसे अपनी तरफ घुमाया. हमारे चेहरे एक-दूसरे के सामने थे. वो पहली बार मेरे जिस्म को पूरा नंगा देख रही थी. उसने शरमा कर अपना चेहरा

मेरी छाती में छुपा लिया. हमारे जिस्म एक-दूसरे से चिपक गए थे. मैंने उसके चेहरे को उठा कर अपने होंठ उसके होंठों पर रख दिए. जब चुम्बन का आगाज़ हुआ तो वहीदा पीछे नहीं रही. उसने शर्म त्याग कर चुम्बन में मेरा पूरा साथ दिया.couple-kiss-001-3



एक बार फिर जीभ से जीभ मिली और हम दोनों एक नशीले एहसास में खो गए. मुझे पहली बार पता चला कि होंठों से होंठों और जीभ से जीभ का मिलन इतना मज़ेदार हो सकता है. मज़ा शायद वहीदा को भी आ रहा था. तभी वो पूरी तन्मयता से मेरी जीभ से अपनी जीभ लड़ा रही थी.



मेरा हाथ फिर से वहीदा के जिस्म को टटोलने लगे, इस बार उसका हाथ भी निष्क्रिय नहीं था. वो भी मेरे जिस्म को टटोल रही थी और सहला रही थी. हमारा चुम्बन ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था. न मैं पीछे हटने को तैयार था और न वहीदा.

हमारी जीभ एक-दूसरे के मुंह के हर कोने को टटोल रही थी. कुछ देर बाद वहीदा ने सांस लेने के लिए अपने मुंह को मेरे मुंह से अलग किया तो मेरी नज़र उसके सीने पर गई. ओह, क्या नक्कशी थी! गोरे-गोरे, एकदम अर्ध-गोलाकार और गर्व से उठे हुए! साइज़ में किसी खरबूजे को फ़ैल कर दे उसके बावजूद घमड़ से तने हुए थे और वैसे ही रसीले भी! उनके मध्य में उत्तेजना से तने हुए निप्पल! मेरी नज़र उन पर अटक सी गई. और फिर मेरा मुंह अपने आप एक स्तन पर पहुँच गया. मेरी जीभ उस पर फिसलने लगी.17879770 उसका सफर मम्मे की बाहरी सीमा से शुरू होता था और निप्पल से थोडा पहले ख़त्म हो जाता था. एक मम्मे को नापने के बाद मेरा मुंह दूसरे मम्मे पर पहुँच गया, ये दौर बार बार चलता रहा.



शुरू में तो लगा कि वहीदा भी इस खेल का मज़ा ले रही थी पर फिर वो बेचैन दिखने लगी. उसने मेरे सिर को पकड़ कर अपना निप्पल मेरे मुंह में घुसा दिया. मैंने अपनी जीभ से निप्पल को सहलाना शुरू किया तो उसका शरीर रोमांच से लहराने लगा.

मैंने उसके दूसरे मम्मे को अपने हाथ में ले लिया और उसे मसलने और दबाने लगा. इस दोहरे हमले से वहीदा पगला सी गयी. उसका जिस्म बेकाबू हो कर मचलने लगा. उसकी गर्मी बढ़ती देख कर मैं भी जोश में आ गया.

मेरे मुंह और हाथ का दबाव बढ़ गया. मैं उसकी चूंची को चूसने के साथ-साथ उसके निप्पल को अपने दांतों के बीच दबाने लगा. मेरी मुट्ठी उसकी दूसरी चूंची पर भिंची हुई थी. दोनों चून्चियों का जी भर कर मज़ा लेने के बाद मैंने नीचे का रास्ता पकड़ लिया.

मेरा मुंह उसके सुडौल और सपाट पेट और उसके मध्य में स्थित नाभि की सैर करने लगा.



वहीदा अब बुरी तरह मचलने और फुदकने लगी थी. मेरा मुंह उसकी पुष्ट और दिलकश जाँघों पर पहुँच गया. मैं उसकी पूरी जाँघों पर अपनी जीभ फिराने लगा, पहले एक जांघ पर और फिर दूसरी पर. उसकी जाँघों के बीच स्थित मनमोहक हिस्सा मेरे मुंह को निमंत्रण देता प्रतीत हो रहा था मानो कह रहा हो कि आओ, मेरा भी स्वाद चखो. जाँघों के मध्य एक पतली सी दरार थी,20210802-235333 कोई तीन इंच लम्बी और बालरहित. मेरी जीभ जाँघों के मध्य पहुंची तो वहीदा ने उन्हें जोर से भींच लिया.

मैंने यत्न कर के उसकी जाँघों को चौड़ा किया और अपनी जीभ उसके तने हुए क्लाइटोरिस पर रख दी. जब मेरी जीभ ने उसे सहलाना और चुभलाना शुरू किया तो वहीदा का शरीर बेतहाशा फुदकने लगा.nude-licking-clit-gif-4just-about-to-have-the-orgasm-sex-gif-60494c8f23904 उसने मेरे सर को पकड़ कर जबरदस्ती ऊपर उठाया और

हाँफते हुए बोली, “ये क्या कर रहे हैं, रणवीर जी ? प्लीज़, ऐसा मत कीजिये.”



मैंने वहीदा को ताज्जुब से देखा. वो उठने की कोशिश कर रही थी. मैंने उसे कहा, “वहीदा, मेरी जान! मैं तो तुम्हे खुश करने की कोशिश कर रहा हूँ. मैंने सोचा था कि तुम्हे ये अच्छा लगेगा.”



“अच्छा तो लग रहा है,” वहीदा ने जवाब में कहा. “पर ऐसा भी कोई करता है!’



अब मुझे एहसास हुआ कि युसूफ शायद ऐसा नहीं करता होगा इसलिए वहीदा को यह अजीब लग रहा था. कुछ भी हो, उसने यह तो मान लिया था कि उसे यह अच्छा लग रहा था. मैंने सोचा कि मैं उसे चुदाई का पूरा मज़ा दे दूं तो यह चिड़िया लम्बे अरसे तक मेरे जाल में फंसी रह सकती है. मैंने उसे प्यार से कहा, “मैं तो ऐसा करता हूं और करूंगा. तुम बस आराम से लेट कर इसका लुत्फ़ उठाओ.”



मैंने वहीदा को फिर से लिटाया और इस बार मैंने उसकी चूत को अपने निशाने पर लिया. मैं उसकी रसीली चूत को अपनी जीभ से चाटने लगा. वहीदा ने अब अपने आप को पूरी तरह मेरे हवाले कर दिया था. एक कहावत है कि अगर बलात्कार अवश्यम्भावी है तो लेट कर उसका मज़ा लेना चाहिए. शायद वहीदा ने मान लिया था कि अगर चूत चाटने से रोक नहीं सकती तो लेट कर उसका मज़ा लेना चाहिए. मैं चाटने के साथ-साथ अपनी जीभ उसकी चूत के अन्दर बाहर करने लगा.

अपनी चूत में जीभ घुसते ही वहीदा बेतहाशा फुदकने लगी. गांड उठा उठा के वापस बिस्तर पर पटक देती,

लगता था कि अब वो खुल कर मज़ा ले रही थी. वो मेरे सर को अपनी चूत पर दबा कर अपनी कमर तेज़ी से ऊपर-नीचे करने लगी. अचानक उसके मुंह से एक चीख निकली और उसका बदन कांप उठा.

उसकी सिसकारियों और उसके शरीर के कम्पन से जाहिर था कि वो झड़ रही थी. मुझे ख़ुशी हुई कि मैं वहीदा को चोदने से पहले ही उसे ओर्गज्म पर पहुँचाने में कामयाब हो गया था. अब चिड़िया पर मेरे जाल की पकड़ मजबूत हो गई थी.



जब वहीदा अपने ओर्गज्म से उबरी तो उसने प्यार से मुझे देखा. उसके चेहरे पर शर्म की लाली थी पर शर्म से ज्यादा उस पर ख़ुशी नज़र आ रही थी. उसने मुझे ऊपर की तरफ खींचा. ऊपर बढ़ते हुए मैंने फिर उसके शरीर को चूमना और चाटना शुरू कर दिया,

पहले उसका पेडू, फिर नाभि और फिर चून्चियां. एक बार फिर उसकी एक चूंची मेरे मुंह में थी और दूसरी मेरी मुट्ठी में. वहीदा फिर मचल रही थी और तड़प रही थी. उसकी सांसें तेज़ हो गई थीं और चूंची के नीचे से मैं उसके दिल की धडकनों को महसूस कर रहा था. मैं अपना एक हाथ नीचे ले गया और उससे टटोल कर मैंने उसकी चूत को ढूँढा. चूत उत्तेजना से भीग चुकी थी. मैंने अपनी ऊँगली उसमें घुसा दी. ऊँगली अन्दर घुसते ही वहीदा सिसक उठी.

मैंने उसकी चूंची से अपना मुंह उठाया और उसके चेहरे का रुख किया. एक बार फिर मैं उसके गालों को चूसने और चाटने लगा. फिर मेरा मुंह उसके कान पर पहुंचा. मैं अपनी जीभ से उसके कान को अन्दर से गुदगुदाने करने लगा. गुदगुदी से वहीदा कुलबुलाने लगी.



मैंने फिर से अपना मुंह उसके होंठों से लगा दिया और अपनी जीभ उसके मुंह में घुसा दी. उसने भी खुल कर जवाब दिया और हमारी जीभें एक बार फिर आपस मे गूथ गईं. उनमे एक-दूसरी को पछाड़ने की होड़ लग गई. उधर मेरी ऊँगली अपने काम में जुटी हुई थी.

वहीदा का जिस्म बुरी तरह मचल रहा था.fingering-001-17 जाहिर था कि उसकी जांघों के बीच आग लग चुकी थी. मैं अभी उसे और तडपाना चाहता था मगर उसने बड़ी विनती से कहा, “बस रणबीर उंगली से नहीं! अब ऊपर आ जाइए.”



जब वहीदा ने मुझे अपने ऊपर आने की दावत दी तो मैं अपने आप को नहीं रोक पाया. आखिर इसी लम्हे का तो मैं बरसों से इंतजार कर रहा था. मेरा लंड भी अब उत्तेजना से बेकाबू हो चला था. मैंने वहीदा के ऊपर अपनी पोजीशन ली.

उसने भी अपनी टांगें चौड़ी कर दीं. मैं अपने लंड से उसकी चूत को ढूँढने लगा. अपने तमाम तजुर्बे के बावजूद मैं अपना निशाना ढूंढने में नाकामयाब रहा. वहीदा मेरी मुश्किल समझ गई. या शायद वो चुदने के लिए बेताब थी. उसने मेरे लंड को अपनी उंगलियों के बीच थाम कर उसे सही जगह पर रखा और मुझे एक मौन इशारा किया. मैंने अपने चूतडों को आगे धकेला तो चूत के होंठ एक दूसरे से जुदा होते चले गए. उनमे कहाँ हिम्मत थी एक ताकतवर लंड को रोकने की. सुपाड़ा चूत में प्रवेश पा गया.22597655

मैंने एक सधा हुआ धक्का लगाया तो एक चौथाई लंड चूत में दाखिल हो गया. वहीदा हल्के-हल्के कराहती मुझे और गहराई में उतरने की दावत दे रही थी. मैं लंड को थोड़ा बाहर खींचता और फिर उसे थोड़ा और अंदर ठेल देता. आहिस्ता आहिस्ता लंड अपना रास्ता बनाता गया. वहीदा भी पूरा सहयोग कर रही थी और जल्द ही उसकी चूत ने मेरे लंड को जड़ तक अपने अंदर जज्ब कर लिया. उसकी चूत मेरी बीवी से ज्यादा टाइट थी, लगता था जैसे लंड अंदर जा कर फस गया है, वाहिदा की चुद की दिवार ने मेरे लंड को जकड लिया था.

जैसे किसी पुलिस ने चोर को धर दबोच हो

मुझे लगता था की मर्दों को हर नई चूत लज्ज़तदार लगती है और जब चूत की मालकिन वहीदा जैसी हसीन औरत हो तो लज्जत का कहना ही क्या! मैंने उसकी तारीफ करने में कंजूसी नहीं की, “कसम से वहीदा, ऐसी मस्त चूत आज पहली बार मिली है!”



वहीदा ने शर्मा कर अपनी आँखें बंद कर लीं. मैं उसकी चूत की गिरफ्त का लुत्फ़ लेते हुए नीचे झुक कर उसके कानों, गले और कंधे को चूमने लगा. मेरा हाथ उसके मम्मे को सहला रहे थे और उसके निप्पल को मसल रहे थे.

मैं किसी तरह अपनी उत्तेजना पर काबू पाना चाहता था ताकि मैं जल्दी न झड़ जाऊं. जो नायाब मौका मुझे आज मिला था मैं उसे लम्बे से लम्बा खींचना चाहता था. मैने अपनी कोहनियों को वहीदा की बगलों के नीचे जमाया और अपने मस्ताये हुए लंड से

हलके-हलके धक्के देने लगा. वहीदा की आँखें बंद थीं पर वो खुश दिख रही थी. शायद वो भी चुदाई का लुत्फ़ ले रही थी. मैं भी उसे चोदने का पूरा मज़ा ले रहा था. जब मेरी उत्तेजना ज्यादा बढ़ जाती, मैं अपने धक्के रोक कर वहीदा के गालों और

होंठों को चूमने लगता. इससे उसका मज़ा बरकरार रहता और मैं अपनी उत्तेजना पर काबू पा लेता.

जब मैं वहीदा की चूत के कसाव का अभ्यस्त हो गया तो मैंने अपने धक्कों की ताक़त बढ़ा दी. मैं अब लंड को लगभग पूरा निकाल कर अन्दर पेल रहा था. ताक़त के साथ-साथ मेरे धक्कों की रफ़्तार भी बढ़ रही थी. वहीदा ने मुझे कस कर पकड़ लिया था और वो भी नीचे से धक्के लगा रही थी. जल्दी ही मेरे अंदर फुलझड़ियाँ सी छूटने लगीं. मेरे गले से आनंद की सिसकारियां निकल रही थीं, ‘आऽऽऽऽह…! ओऽऽऽऽह…! ऊऽऽऽऽह…!’



सिसकने वाला मैं अकेला नहीं था. मेरे साथ वहीदा भी सिसक रही थी. ... उसे मजा लेता देख मेरा हमला तेज़ हो गया - फचाक, धचाक, फचाक - मेरा लंड उसकी चूत को तहस-नहस करने पर आमादा था! वो चूत के अन्दर गहराई तक मार कर रहा था. ऐसा जबरदस्त हमला चूत कब तक झेलती! वहीदा का शरीर अकड़ा और एक लम्बी ‘आऽऽऽऽह!’ के साथ उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया. उसने मुझे अपनी बाहों में भींच लिया. उसका जिस्म बुरी तरह कांप रहा था.

मुझे लगा कि बिजलियाँ कड़क रही हैं और बरसात होने वाली है पर अपनी पूरी विल पॉवर लगा कर मैंने किसी तरह अपने आप को झड़ने से रोक लिया.

जब वहीदा का होश लौटा तो उसने मुझे बार-बार चूम कर मुझे मूक धन्यवाद दिया. मुझे गर्व महसूस हुआ कि मैं उसे इतना मजा दे पाया. इससे भी ज्यादा गर्व मुझे इस बात पर था कि मैं अभी तक नहीं झड़ा था.

वहीदा जरूर मेरी मर्दानगी की कायल हो गई होगी. मैं यही चाहता था. उसे और खुश करने के लिए मैंने कहा, “वहीदा, तुम्हारे हुस्न की तरह तुम्हारी चूत भी लाजवाब है. मुझे ख़ुशी है कि मैं उसकी थोड़ी सेवा कर पाया.”



मेरी बात सुन कर उसके चेहरे पर शर्म की लाली छा गई. उसने नज़रें झुका कर कहा, “लाजवाब तो आप हैं! मुझे अफ़सोस है कि मैं आपको मंजिल तक नहीं पहुंचा सकी. काश मैं भी आपकी खिदमत कर पाती.”

“मुझे कौन सी जल्दी पड़ी है,” मैंने कहा. “हाँ, तुम्हे जल्दी हो तो और बात है.”

“जल्दी कैसी, मैं तो सिर्फ आपको खुश करना चाहती हूँ,” वहीदा ने कहा. “आप जो करना चाहें, कीजिये और मुझ से कुछ करवाना हो तो हुक्म दीजिये.”



मेरा मन तो कर रहा था कि मैं वहीदा को अपना लंड चूसने को कहूं पर इसमें जल्दी झड़ने का जोखिम था. बहरहाल मैं वहीदा में आये बदलाव से बहुत खुश था. अब वो पूरी तरह मेरे काबू में लग रही थी. मैंने उसके ऊपर से उतरते हुए कहा,

“क्या तुम घोड़ी बन सकती हो?”

वहीदा समझ गई कि मैं उसे पीछे से चोदना चाहता हूँ. वो फ़ौरन पलट कर घोड़ी बन गई. उसके मांसल और सुडौल चूतड़ मेरी आंखों के सामने नुमाया हो गये.20210809-151528 मेरी सहूलियत के लिए उसने अपनी टांगों को थोडा फैला दिया.

अब जो मंज़र मेरी नज़रों के सामने था वो बहुत ही दिलकश था. एक तरफ वहीदा की चुस्त गुलाबी गांड मेरे लंड को दावत दे रही थी तो दूसरी तरफ उसकी फड़कती हुई चूत कह रही थी कि आओ और मेरे अन्दर समा जाओ. लेकिन मुझे अपने बेकरार लंड को थोडा आराम देना था ताकि वो जल्दी निपट कर मुझे शर्मिंदा न कर दे.



मैंने आगे झुक कर अपना मुंह वहीदा के चूतड़ों के बीच रख दिया. kmजैसे ही मेरी जीभ का स्पर्श उसकी गांड से हुआ, वहीदा चिहुंक उठी. लेकिन वो मेरे मुंह से दूर होती उससे पहले ही मैंने उसकी जांघो को पकड़ लिया. मैं अपनी जीभ कभी उसके एक

गांड पर फिराता तो कभी दूसरे पर. बीच-बीच में मेरी जीभ उसकी गांड और चूत का जायजा भी ले लेती. वहीदा एक बार फिर मस्ती से सराबोर होने लगी. adultnode-0670d281aec50853799e77ea31508c68 उसका जिस्म मचलने लगा. मैंने अपनी एक उंगली उसकी चूत में घुसा दी और अपनी जीभ

उसकी गांड पर जमा दी. जब ऊँगली और जीभ का दोहरा हमला हुआ तो वहीदा चीख उठी, “बस रणवीर जी , अब आ जाइए!”



अब वहीदा को और तड़पाना गुनाह होता. इसलिए मैं एक बार फिर पोजीशन में आ गया, इस दफा उसके चूतड़ों के पीछे. उसकी गांड और चूत दोनों मेरी पहुँच में थीं. गांड के आकर्षण पर काबू पाना आसान न था पर मुझे पता था कि गांड मारने में जल्दबाजी मुझे उसकी चूत से भी महरूम कर सकती थी. इसलिए फ़िलहाल मैंने उसकी चूत को ही अपना निशाना बनाया. मैंने अपना लंड उनकी चूत के मुहाने पर रख कर उसे आगे धकेला. उसने अपनी चूत को ढीला छोड़ दिया था



इसलिए लंड चूत के अंदर धंसने लगा. चूत में काफी चिकनाई भी थी इसलिये मेरे लंड को उसके अंदर दाखिल होने में कोई मुश्किल पेश नहीं आई. मैंने उसकी कमर को पकड़ लिया और उनकी चूत में धक्के मारने लगा. मुझे अपना लंड उसके हसीन चूतड़ों के बीच चूत के अंदर-बाहर होता नज़र आ रहा था. यह एक बहुत ही दिलकश नज़ारा था!gifcandy-20 मैं उसकी चूत में बेतहाशा धक्के मार रहा था और वो अपनी कमर को पीछे धकेल कर मेरा पूरा साथ दे रही थीं. उसके मुंह से हवस भारी आहे निकल रही थीं, “आह! आsssह! ओह! ओsssह! उंह…! हाय उफ्फ्फ... आउच..... और... तेज़... आअह्ह्ह...!”

चार-पांच मिनट के ताबड़तोड़ धक्को के बाद मेरे लंड पर वहीदा की चूत का शिकंजा कसने लगा. मुझे अपने लंड पर एक लज्ज़त भरा दबाव महसूस होने लगा. मुझे लगा कि अब मेरा काम होने वाला है. एक तरफ मैं अपनी मंजिल पर पहुँचने के लिए बेसब्र हो रहा था पर दूसरी तरफ मेरा दिल कह रहा था कि मज़े का यह आलम अभी ख़त्म नहीं होना चाहिए. बहरहाल मैंने फैसला किया कि इतनी जल्दी निपटना मुनासिब नहीं है. मैंने किसी तरह अपने धक्कों को रोका. जब मैंने अपने लंड को चूत से बाहर खींचा तो वहीदा ने अपना चेहरा पीछे घुमाया. उसकी सवालिया निगाहें पूछ रही थीं कि मैंने लंड को चूत से जुदा क्यों कर दिया. मैंने उसे तस्सली देते हुए कहा, “मैं फिर तुम्हे सामने से चोदना चाहता हूं. अब सीधी लेट जाओ.”



मेरे शब्दों से वहीदा शर्मा गई, अब खुली चुदाई की बाते हो रही थी, पर उसे यह तसल्ली भी हुई कि चुदाई अभी ख़त्म नहीं हुई है. उसने तुरंत मिश्नरी पोजीशन ले ली. पीठ के बल लेट कर दोनों टांगे हवा मे एक दूसरे के विपरीत फैला दी,20220515-001415

मेरा मकसद पोजीशन बदलने के बहाने थोडा वक़्त हासिल करना था. मैं उसकी कमर पर बैठ गया. मैंने अपने दोनों हाथ उसकी चूचियों पर रख दिये और उन्हें मसलने लगा. वहीदा की गर्मी बढ़ने लगी और उसकी साँसें तेज हो गईं. मैं उसकी चून्चियों को मसलते हुए आगे झुक कर उसके होंठों को चूमने लगा. कभी-कभी मैं उसके निप्पल अपनी अंगुलियों के बीच पकड़ कर मसल देता था. वहीदा की आँखें बंद थी. उसकी जीभ मेरी जीभ से टकरा रही थी. कुछ देर उसकी जीभ के जायके का मज़ा लेने के बाद मैंने अपने मुंह को उसके मुंह से अलग किया और उसे उसके मम्मे पर रख दिया. मैं उसके एक मम्मे को चूसने लगा और दूसरे को अपने हाथ से मसलने लगा. एक बार फिर वहीदा की गर्मी शिखर पर पहुँच गई. उसका जिस्म बेकाबू हो कर मचलने लगा. उसकी साँसे उखडने लगीं. उसने अपनी आँखें खोल कर मुझे हवस भरी नज़र से देखा.



मैं अपनी उत्तेजना पर काबू पा चुका था इसलिए अब मैं भी चुदाई फिर से शुरू करने के लिए तैयार था. मैं वहीदा के कामुक और सुडोल जिस्म को पूरी तरह निचोड़ना चाहता था. मेरा लंड भी अब चूत की गिरफ्त का ख्वाहिशमंद था.

मैं उसके ऊपर लेट गया. उसने अपनी टांगें चौड़ी कर दीं. मेरा तना हुआ लंड उसकी चूत के मुहाने से टकराया. चूत का गीलापन उसकी हालत को बयां कर रहा था. वो पूरी तरह गर्म हो चुकी थी. वहीदा ने अपना हाथ नीचे किया और मेरे लंड को

पकड़ कर अपनी चूत से सटा दिया. मैंने अपने चूतड़ों को आगे धकेला तो मेरा लंड चूत को फैलाता हुआ उसके अंदर समाने लगा. वहीदा के मुंह से एक आह निकल गई. उसने मेरी कमर को अपने हाथों से थाम कर अपने चूतड़ों को थोड़ा ऊपर-नीचे

किया ताकि मेरा लंड ठीक से उसकी चूत में अपनी जगह बना ले. जब उसकी चूत ने लंड को पूरी तरह ज़ज्ब कर लिया तो उसने मेरे चेहरे को अपनी तरफ खींचा और मेरे होंठों से अपने होंठ मिला दिए. उसके होंठों का मज़ा लेने के साथ-साथ मैं अपने लंड के गिर्द उसकी चूत की खुशगवार गिरफ्त को महसूस कर रहा था. चूत इस बार पहले से ज्यादा टाइट लग रही थी, शायद उत्तेजना की वजह से.



वहीदा आहिस्ता-आहिस्ता अपने चूतड़ उठाने लगी. उसने मुझे आँखों से इशारा किया कि मैं भी धक्के मारूं. मैं उसकी ताल से ताल मिला कर हलके-हलके धक्के लगाने लगा. जब मेरा लंड आसानी से चूत के अंदर जाने लगा तो मैने अपने धक्कों की

ताक़त बढ़ा दी. वहीदा भी मेरे धक्कों का जवाब पुरजोर धक्कों से दे रही थी. वो कुछ देर तो चुपचाप चुदती रहीं लेकिन जब मेरे धक्के गहरे हो गए तो वो सिसकने लगी, ‘उंह…! आsss! ओsssह!’17788519

उस के मुँह से निकलने वाली सिसकारियों से मुझे लगा कि उसे इस काम में खासा मज़ा आ रहा था. मुझे यह जान कर सुकून मिला कि मैं वहीदा को अपने कब्जे में लेने के मकसद में कामयाब हो रहा था. साथ ही उसे चोदते हुए मैं एक मज़े के समंदर में गोते खा रहा था. वहीदा ने मेरी कमर को अपनी बांहों में कस रखा था. उसके चूतड़ों की हरकत तेज़ हो गई थी और उसकी चूत में और कसावट आ गयी थी. उसकी चूत की कसावट इशारा कर रही थी कि वो फिर से झड़ने की तरफ बढ़ रही थी.

मुझे खुशी थी कि मै पहली ही चुदाई में वहीदा पर अपनी मर्दानगी की छाप छोड़ने में कामयाब हो रहा था. मैं पूरा दम लगा कर उसकी चूत में धक्के मारने लगा. चूत अब बुरी तरह फड़क रही थी.

साथ में वहीदा का बदन कांप रहा था, थरथरा रहा था. अब मेरे लिये अपने आप को रोकना नामुमकिन हो गया था.



मैंने उत्तेजना मे अपने धक्कों की रफ़्तार बढ़ा दी. couple-sex-001-64 वहीदा शायद समझ गई कि मैं झड़ने के कगार पर हूँ. उसने अपनी चूत को मेरे लंड पर भींचना शुरू कर दिया. मेरी रग-रग में एक मदहोश कर देने वाली लज्ज़त का तूफान उठ रहा था.

मैं झड़ने की नीयत से उसकी चूत में जबरदस्त शॉट मारने लगा. जल्द ही मुझे अपने लंड के सुपाड़े पर एक मीठी गुदगुदी महसूस हुई और मैं अपना होश खो बैठा. मैं अंधाधुंध धक्के मारने लगा. वो भी अपने चूतड़ उछाल-उछाल कर मेरे धक्कों का जवाब दे रही थी. अचानक मेरे लंड पर उसकी चूत का शिकंजा कसा और मैं अपनी मंजिल पर जा पहुंचा. मेरे लंड ने उसकी चूत में पिचकारियाँ मारनी शुरू कर दीं. जैसे ही वहीदा की चूत में पानी की पहली बौछार पडी, उसका जिस्म अकड़ गया

और उसकी चूत भी पानी छोड़ने लगी. मुझ पर एक मस्ती का आलम छा गया, एक अजीब से सुकून मे मुझे घेरिया, वहीदा ने अपनी चूत को भींच-भींच कर मेरे लंड को पूरी तरह निचोड़ डाला.20231115-112908 खलास होने के बाद मैं बेदम हो कर उस पर गिरा तो उसने प्यार से मुझे अपनी बांहों में भींच लिया. ... थोड़ी देर बाद हमारे होश लौटे तो वहीदा ने मुझे बार-बार चूम कर मेरा शुक्रिया अदा किया. मुझे यकीन हो गया कि ये चिड़िया अब मेरे जाल से नहीं निकल सकेगी.



अगली शाम युसूफ मेरे घर आया. ताज्जुब की बात यह थी कि पहली बार वहीदा भी उसके साथ आई थी. उसे देख कर मेरा ख़ुश होना लाजमी था. मैंने गर्मजोशी से उनका स्वागत किया और उन्हें ड्राइंग रूम में बैठाया.

फ़ॉर्मेल्टी के तकाजे के मुताबिक मैंने अपनी बीवी को उनसे मिलने के लिए ड्राइंग रूम में बुलाया. कुछ देर हमारे बीच इधर-उधर की बातें होती रहीं. फिर मेरी बीवी ने उठते हुए कहा, “आप लोग बैठिये. मैं चाय का इंतजाम करती हूं.”

वहीदा ने उठ कर कहा, “मैं भी आपके साथ चलती हूँ. इस बहाने मैं आपका किचन भी देख लूंगी.”



इसमें किसी को क्या ऐतराज़ हो सकता था. मेरी बीवी ने कहा, “हां, आइये ना. हम कुछ देर और बातें कर लेंगे.”



मुझे लगा कि वहीदा मुझे और युसूफ को अकेला छोड़ना चाहती थी ताकि युसूफ मेरे से क़र्ज़ अदायगी की मियाद बढाने की बात कर सके. मैं भी इसी का इंतजार कर रहा था. मैं एक बार वहीदा को हासिल कर चुका था.

अब मुझे ऐसा इंतजाम करना था कि यह सिलसिला आगे भी चलता रहे. इसके लिए मुझे युसूफ पर अपनी पकड़ बनानी थी. जैसे ही हमारी बीवियां अन्दर गईं, युसूफ बोला, “मेरा खयाल है कि हमें क़र्ज़ वाला मामला निपटा देना चाहिए. अब मियाद ख़त्म होने को है.

मैंने जो एग्रीमेंट साइन किया था वो यहीं है या तुम्हारे ऑफिस में है?”

यह सुन कर मैं भौंचक्का रह गया. मुझे उम्मीद थी कि युसूफ मियाद बढाने की बात करेगा पर वो तो मियाद ख़त्म होने से पहले ही क़र्ज़ चुकाने की बात कर रहा है. मुझे अपने मंसूबे पर पानी फिरता नज़र आया.

मैंने बुझी हुई आवाज में कहा,“एग्रीमेंट तो यहीं है, मेरे स्टडी रूम में. लेकिन क़र्ज़ चुकाने की कोई जल्दी नहीं है. तुम्हे और वक़्त चाहिए तो ...?

“जो काम अभी हो सकता है उसमे देर क्यों करें?” युसूफ ने मेरी बात पूरी होने से पहले ही जवाब दिया. “चलो, तुम्हारे स्टडी रूम में चलते हैं.”

अपनी योजना को नाकामयाब होते देख कर मैं मायूस हो गया था. मैं बेमन से उसे स्टडी रूम में ले गया. मैंने अलमारी से एग्रीमेंट निकाला. वो एक लिफाफे में था. मैं उसे लिफ़ाफे से बाहर निकालता उससे पहले युसूफ बोला, “ओह, मैं तुम से एक बात पूछना भूल गया. तुमने अपने घर में सी.सी.टी.वी. कैमरे लगवा रखे हैं या नहीं?”

एक तो मैं वैसे ही परेशान था, ऊपर से यह सवाल मुझे बड़ा अजीब लगा. मैंने कहा, “सी.सी.टी.वी. कैमरे किसलिए?”

युसुफ ने जवाब दिया, “तुम तो जानते ही हो कि आजकल चोरी-चकारी कितनी आम हो गयी है. हम सिर्फ पुलिस के भरोसे बैठे रहें तो चोर कभी नहीं पकडे जायेंगे. हां, घर में सी.सी.टी.वी. कैमरे लगे हों तो पुलिस चोरों तक पहुँच सकती है.

मैंने तो अपने घर में कई जगह कैमरे लगवा रखे हैं.”

यह सुन कर मेरे कान खड़े हो गए. यह बात मेरे लिए परेशानी का सबब बन सकती थी. मैंने युसूफ की तरफ देखा. वो आगे बोला, “आज मैं सी.सी.टी.वी. की रिकॉर्डिंग देख रहा था. मैंने जो देखा वो यकीन करने के काबिल नहीं हैं.”

स्टडी रूम में मेरा कम्प्यूटर ऑन था. युसूफ ने उसमे एक पैन ड्राइव लगाई और अपना हाथ माउस पर रख दिया. कुछ ही पलों में स्क्रीन पर उसके ड्राइंग रूम के अन्दर का नज़ारा दिखा. ड्राइंग रूम के अन्दर वहीदा और मैं नज़र आ रहे थे.

मेरे होंठ वहीदा के होंठों पर थे और मेरा हाथ उसकी चूंची पर. यह देखते ही मेरे होश फाख्ता हो गए. युसूफ ने वीडियो को रोक कर मेरी तरफ देखा और कहा, “तुम तो यकीनन मेरे सच्चे दोस्त निकले. मेरी गैर-मौजूदगी में एक सच्चा दोस्त ही मेरी बीवी की इस तरह खिदमत कर सकता है!”



युसूफ की बात सुन कर मुझ पर घड़ों पानी पड़ गया. मेरी बोलती बंद हो गई. मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या कहूं. मैं तो सोच रहा था कि उसने क़र्ज़ की मियाद बढ़वाने के लिए वहीदा का इस्तेमाल किया था

(और मुझे उसका इस्तेमाल करने दिया था). लेकिन यहाँ तो मामला उल्टा था. वो तो आज ही क़र्ज़ चुकाने के लिए तैयार था, बिना मियाद बढवाए. इसका मतलब था कि जो भी हुआ वो उसकी जानकारी के बिना हुआ था.

लेकिन वहीदा ने ऐसा क्यों किया? उसने क्यों मुझे अकेले में घर बुलाया? वो क्यों मुझसे चुदने को राज़ी हो गई? मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था. ... लेकिन जब इंसान किसी मुसीबत में फंस जाता है तो सबसे पहले अपना बचाव करने की कोशिश करता है. मैंने किसी तरह थोड़ी हिम्मत बटोर कर कहा, “जो तुम सोच रहे हो वैसा कुछ नहीं है. मैंने अपनी तरफ से कुछ नहीं किया ... मेरा मतलब है कि ... वहीदा ने खुद अपने आप को मेरे हवाले कर दिया.”



“वाकई, तुम्हारे जैसे खूबसूरत शहज़ादे को देख कर भला कोई औरत अपने आप को रोक सकती है?” युसूफ ने व्यंग्य से कहा. “वहीदा ने जबरदस्ती तुम्हारा हाथ अपने सीने पर रख दिया होगा. उसने जबरदस्ती अपने होंठ तुम्हारे होंठों पर रख दिए होंगे. शायद तुम यह भी कहोगे कि उसने तुम्हारे साथ बलात्कार किया था! क्यों?”



युसूफ ने मुझे बिलकुल बेजुबान कर दिया था. मैं जानता था कि वहीदा ने जो किया और मुझे करने दिया, उसका मेरी शक्ल-सूरत से कोई वास्ता नहीं था. मेरे ख़याल में उसका वास्ता सिर्फ मेरे दिए हुए क़र्ज़ से था पर अब तो मेरा खयाल गलत साबित हो चुका था. मैं बहुत बड़ी मुसीबत में फंस गया था. मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं इस मुसीबत से कैसे पार पाऊं. फिर भी मैंने कोशिश की, “मेरा यकीन करो, मैं वहीदा का फायदा नहीं उठाना चाहता था. उसने खुद ही ...”



युसूफ ने मेरी बात काट कर कहा, “ठीक है, मेरे सच्चे दोस्त. हम ये रिकॉर्डिंग तुम्हारी प्यारी बेग़म को दिखा देते हैं और फैसला उन्ही पर छोड़ देते हैं. इसे देखने के बाद वो अपने आप को मेरे हवाले कर दें तो तुम्हे कोई एतराज़ नहीं होना चाहिए.

और मैं तो उनकी पेशकश को ठुकराने से रहा!”



उसके शब्द मेरे दिल में खंज़र की तरह उतरे. मैंने चीख कर कहा, “नहीं!!! तुम ऐसा नहीं ... मेरा मतलब है ...” मैं आगे नहीं बोल पाया. मेरे लिए यह कल्पना करना ही दर्दनाक था कि मेरी बीवी अपने आप को इस इंसान के हवाले कर देगी. ... लेकिन ये उन्होंने रिकॉर्डिंग देख ली तो वो क्या करेगी, यह खयाल भी बेहद खौफनाक था.



अब युसूफ भी खामोश था और मैं भी. मेरी नज़रें झुकी हुई थीं. मेरा दिमाग तो जैसे सुन्न हो गया था. मुझे किसी भी तरह युसूफ को यह रिकॉर्डिंग अपनी बीवी को दिखाने से रोकना था पर मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मैं उसे कैसे रोकूं!



आखिर युसूफ ने सन्नाटा तोड़ा. वो बोला, “एक रास्ता है. हम इस रिकॉर्डिंग और एग्रीमेंट की अदला-बदली कर सकते हैं. तुम रिकॉर्डिंग को मिटा देना और मैं एग्रीमेंट को फाड़ दूंगा. न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी.”



मैं बेइंतिहा खौफ और बेबसी के आलम में था. युसूफ के ऑफर में मुझे एक उम्मीद की किरण दिखी. उसकी बात मानने के अलावा मुझे और कोई रास्ता नहीं दिख रहा था. मैंने हथियार डालते हुए कहा, “इसकी कोई और कॉपी तो नहीं है?”



“एक कॉपी मेरे कम्प्यूटर में है,” युसूफ ने जवाब दिया. “लेकिन मैं घर पहुँचते ही उसे मिटा दूंगा. तुम्हे मेरे पर भरोसा करना होगा.”



युसूफ पर भरोसा करने के अलावा मेरे पास कोई चारा नहीं था. मैंने एग्रीमेंट उसे दे दिया. उसने उसे अपनी जेब में रखा और पैन ड्राइव मुझे दे दी.



हम चुपचाप ड्राइंग रूम में वापस लौटे. हमारी बीवियां वहां पहले से ही मौजूद थीं, चाय के साथ. अगले दस मिनट मेरे लिए बहुत बोझिल रहे. चाय के दौरान युसूफ, वहीदा और मेरी बीवी के बीच कुछ आम किस्म की बातें होती रहीं पर मैं न तो कुछ बोला और न ही उनकी कोई बात मेरे जेहन तक पहुंची. चाय ख़त्म होने के बाद जब युसूफ और वहीदा रवाना हुए, मैं स्टडी रूम में वापस आया. युसूफ और वहीदा स्टडी रूम की खिड़की के पास से गुजर रहे थे.

युसूफ कुछ बोलता हुआ जा रहा था. उसके कुछ अल्फ़ाज़ मेरे कान में पड़े, “... कैसे नहीं फंसता हमारे जाल में?”



यह सुन कर मैं दंग रह गया. तो यह उनका जाल था? मैं समझ रहा था कि जाल मेरा है और वहीदा उसमें फंस रही है! पर असली जाल युसूफ और वहीदा ने बिछाया था ... और मैं बेवक़ूफ़ की तरह उसमे फंस गया! वहीदा को एक बार चोदने की कीमत दस लाख रुपये होगी मैंने कभी सोचा ना था,

मै वही फर्श पर ढेर हुआ खुद को कोष रहा था.

मैंने वाहिदा का शिकार करना चाहा, लेकिन असल मे मै खुद शिकार था.

और वाहिदा शिकारी.



समाप्त

Bahut hi shandar story thi andypndy Bhai,

Yaha to shikari khud hi shkar ho gaya............

Gazab Bhai
 

andypndy

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दोस्तों हाजिर हूँ एक और शॉर्ट story के साथ
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जंगल की रात

ये कहानी मेरी है, मैं नीतू सिंह,
मेरी उम्र अभी मात्र 26 साल ही है. और जिस्म से मादकता टपकती है.
पिछले साल ही मेरी शादी हुई थी, शादी के बाद मेरा ट्रांसफर दूसरी जगह हो गया था।, पेशे से मैं डॉक्टर हूँ, नौकरी मेडिकल ऑफिसर की है.
अच्छे खासे संपन्न परिवार से ताल्लुख रखती हूँ, सुन्दर, सुडोल जिस्म की मालकिन हूँ, ऐसा मेरे पति कहते है,.
उन्हें तो मेरे बड़े स्तन और बाहर को निकली कसमसती गांड हि पसंद है.
कॉलेज के ज़माने से ही मेरे पति सूरज ने मुझे जम के पेला, खुब रगड़ के चोदा नतीजा मेरा जिस्म पूरी तरह से खील उठा.
मैं प्रेग्नेंट भी ही गई थी लेकिन हमें बच्चा नहीं चाहिए था अभी.
तो ट्रांसफर के साथ मैं और सूरज असम के एक रूलर इलाके मे आ गए, साथ ही मेरी प्यारी सहेली रचना का भी ट्रांसफर उसी जगह हो गया था जो हमारे लिए बहुत खुशी की बात थी। सूरज ने नई जगह पर एक नर्सरी खोल ली। जो उसकी महनत से अच्छी चल पड़ी.च
रचना यही असम की रहने वाली थी, उसके लिए तो एक तरह से घर लौटने जैसा थी था, सोने पे सुहागा ये की उसकी शादी वहीं पास के एक फॉरेस्ट ऑफिसर अरुण से हो गई।
अरुण बहुत ही हंसमुख और रंगीन मिजाज आदमी थे। उसकी पोस्टिंग हमारे अस्पताल से 80 किलोमीटर दूर एक जंगल में थी। शुरू शुरू में तो हर दूसरे दिन भाग आता था। कुछ दिनों बाद हफ्ते में दो दिन के लिए आने लगा। हम चारों आपस में काफ़ी खुले हुए थे।
सूरज और अरुण की खूब दोस्ती हो गई थी, साथ मे दारू भी पीते थे, हम लोग भी ओपन माइंडेड थे,
अक्सर आपस में रंगीले चुटकुले और द्विअर्थी संवाद करते रहते थे। जिसे सिर्फ मज़ाक मे ही लिया जाता था.
उसकी नज़र शुरू से ही मुझ पर थी। मगर ना तो मैंने उसे कभी लिफ्ट दिया ना ही उसे ज्यादा आगे बढ़ने का मौका मिला। होली के समय जरूर मौका देख कर रंग लगाने के बहाने मुझसे लिपट गया था, और मेरे कुर्ते में हाथ डाल कर मेरी छतियों को कस कर मसल दिया था। उसकी इस हरकत पर किसी की नजर नहीं पड़ी थी इसलिए मैंने भी चुप रहना बेहतर समझा।
वरना बेवज़ह हम सहेलियों में दरार पैदा हो जाती, उस हादसे के बाद से मैं उस से कतराने लगी थी। मगर वो मेरे पास आने के लिए मौका खोजता रहता था। रचना को शादी के साल भर बाद ही मायके जाना पड़ गया क्योंकि वो प्रेग्नेंट थी।
अब अरुण कम ही आता था. आता भी तो उसी दिन वापस लौट जाता। अचानक एक दिन दोपहर को पहुंच गया। साथ में एक और उसका साथी था जिसका नाम उसने मुकुल बताया। उनका कोई आदमी पेड़ से गिर गया था। रीढ़ की हड्डी में चोट थी. रास्ता ख़राब था इसलिए उसे लेकर नहीं आये।



मुझे साथ ले जाने के लिए ये दोनों आये थे। मैंने झटपट अस्पताल में सूचित किया और सूरज को फ़ोन कर बता दिया , ज्यादा सोचने का वक़्त नहीं था मेडिकल के जरुरी सामान बेग मे डाल लिए और तुरंत निकल लिए फिर भी निकलते निकलते दो बज गये थे.
80 किलोमीटर का सफर कवर करते-करते हमें ढाई घंटे लग गए। हम तीनो ही सूमो में आगे की सीट पर बैठे थे.
मैं दोनों के बीच में मैं फंसी हुई थी। रस्ता बहुत उबर खाबर था । हिचकोले लग रहे थे. हम एक दूसरे से भिड़ रहे थे. मौका देख कर अरुण बीच बीच में मेरे एक स्तन को कोहनी से दबा देता।
झटके लगने से मेरे स्तन ब्लाउज के ऊपर से उछल उछल कर बाहर आने को मरे जा रहे थे,Gifs-for-Tumblr-1833 मेरे 38 साइज के स्तन अक्सर ब्लाउज मे समाते ही नहीं थे.
अरुण मौके का फायदा उठा कभी जंघों पर हाथ रख देता था, तो कभी कोहनी बिल्कुल मेरे स्तनो मे सटा देता.मुझे अब अहसास हो गया था कि मैंने सामने बैठ कर गलती की थी।
हम शाम तक वहां पहुंच गए। मेरीज को चेकअप करने में शाम को छह बज गए। यहां शाम कुछ जल्दी हो जाती थी, नवंबर का महीना था मौसम बहुत ठंडा था, ठंडी ठंडी हवा जिस्म को लुभा रही थी,
अब धीरे-धीरे बादल भी घिरने लगे थे, मुझे थोड़ा डर सा लग रहा था, मैं जल्दी अपना काम निपटा कर रात तक घर लौट जाना चाहती थी।
चलो अरुण लगता है बारिश होने वाली है, जल्दी मुझे घर छोड़ दो.

“इतनी जल्दी क्या है? आज रात यहीं रुक जाओ मेरे झोपड़े में।” अरुण ने कहा मगर मेरे तेवर देख चुप हो गया.
“चलो मुझे घर छोड़ आओ।”मैंने थोड़ी कड़क आवाज़ मे कहा.

“चल रे मुकुल, मैडम को घर छोड़ आये।” अरुण ने मारे मुए मन से कहा.

हम वापस सूमो में वैसे ही बैठ गए और रिटर्न जर्नी शुरू हो गई ठंडी हवा से जिस्म के रोये खड़े हो रहे थे, वातावरण मे एक अजीब सी मादकता थी, अंधेरा पूरी तरह घिर आया था.
हालांकि मैंने पीछे बैठने की कोशिश की थी, परन्तु अरुण ने रोक दिया।
“कहां पीछे बैठ रही हो. आगे साथ मे बैठो, बातें करते हुए रास्ता गुजर जाएगा।”
“लेकिन तुम अपनी हरकतों पर काबू रखो वरना मैं रचना से बोल दूंगी।” मेरा खीज के अरुण को चेतावनी दे दी.
“क्या उस हिटलर को मत बताना नहीं तो वो मेरी अच्छी खासी रैगिंग ले लेगी।”

उसकी बात सुन मुझे हसीं आ गई, जैसे खूब डरता हो अपनी पत्नी से, बिल्ली जैसे मिम्याके बोला,
माहौल थोड़ा सहज हो गया था, मैं उसकी चिकनी चुपड़ी बातों से फंस गई।
अभी गाड़ी थोड़ा आगे चली ही थी की अचानक मूसलाधार बारिश शुरू हो गई।car-driving-in-rain-55b35annc27ob3nl
जंगल के अँधेरे रास्तो में ऐसी बरसात में गाड़ी चलाना भी एक मुश्किल काम था। अचानक गाड़ी जंगल के बीच में झटके खाकर रुक गई।dedrick-koh-ezgif-com-gif-maker
अरुण टॉर्च लेकर नीचे उतरा। गाड़ी चेक किया मगर कोई ख़राबी पकड़ में नहीं आई। कुछ देर बाद वापस आ गया। वो पूरी तरह भीग चुका था।
“कुछ नहीं हो सकता" अरुण ने हताश मन से कहा
"चलो नीचे उतर कर मेरे साथ धक्का लगाओ, हो सकता है कि चल जाये।”
“मगर….बरसात…”मैं बहार देख कर कुछ हिचकिचाई।
"नहीं तो जब तक बरसात ना रुके तब तक इंतज़ार करो"उसने कहा"
मैंने पहले ही कहाँ था यहाँ की बरसात का कोई भरोसा नहीं, कई कई दिन तक लगातार चलती रहती है ? इसलिए तुमहे रात को वहीं रुकने को कहा था।”
मैं अरुण की बात सुन घबरा गई,मन शांकओ से घिरने लगा, इस बरसाती रात मे यही फसा रहना बेवकूफी ही थी.
मरती क्या ना करती मैं नीचे उतर गई. अब बरसात की परवाह करने का समय नहीं था, मैं और मुकुल दोनों नीचे उतर गए, और अरुण ने ड्राइविंग सीट संभाल ली, हम दोनों काफी देर तक धक्के मारते रहे मगर गाड़ी नहीं चली। रात के आठ बज रहे थे.
मैं पूरी तरह गीली हो गई थी. साड़ी और ब्लाउज पूरी तरह जिस्म से चिपक गए थे, थक हार कर मैं पीछे की सीट पर बैठ गई। अरुण ने अंदर की लाइट ऑन कर दी .
मैंने रूआंसी नज़रों से अरुण की तरफ देखा। अरुण बैक मिरर से मेरे जिस्म को ही घूर रहा था।
अरुण की नजरों का पीछा करते ही मैंने पाया की सफेद ब्लाउज और ब्रा बरसात में भीग कर पारदर्शी हो गई थी। निपल साफ साफ नजर आ रहे थे. मैंने जल्दी से अपनी साड़ी को भीगे हुए स्तन पर डाल दिया, निप्पल ठण्ड और घबराहट से कड़क हो चुके थे किसी कील की तरह साड़ी और ब्लाउज मे भी नहीं छुप पा रहे थे,
मैं सकपका गई थी, लेकिन शायद अरुण मेरी मनोस्थिति भाम्प गया था, इसलिए उसने जीप की लाइट बंद कर दी।
रात अँधेरे में दो गैर मर्दों का साथ मेरे दिल को डुबाने के लिए काफ़ी था, मेरा दिल धाड़ धाड़ कर बज रहा था, कुछ देर बाद बरसात बंद हो गई मगर ठंडी हवा चलने लगी।
बहार कभी कभी जानवरो की आवाज सुनायी दे रही थी, मैं ठण्ड और डर से कांप रही थी.
तभी अरुण और मुकुल गाड़ी से निकल गये. उन्होंने अपने कपड़े उतार लिए और निचोड़ कर सूखने रख दिए। उन्हें कपडे उतरता देख मैं शर्म से लाल हुए जा रही थी, लेकिन मुझमे हिम्मत नहीं थी की अपने गीले कपड़ो से पीछा छुड़ा लू, "मर्दो के लिए कहीं भी कपडे खोल देना कितना आसान होता है ना "
मैं अपनी ही सोच मे मग्न थी की अरुण मेरे पास आया “देखो नीतू घुप अँधेरा है।” तुम अपने गीले वस्त्र उतार दो, वरना ठंड लग जाएगी।'' अरुण ने बड़ी ही सहजता से कहाँ.
!कुछ है पहन ने को?” मैने पूछा “मैं शर्म से मरी जा रही थी,
“नहीं! हमारे पास भी कोई ठीक ठाक कपडे नहीं है, लुंगी वगैरह ही पड़ी है उसे ही लपेट के काम चलाएंगे, पहले से थोड़ा मालूम था कि हमें रात जंगल में गुजारनी पड़ेगी” अरुण ने कहा

"वैसे देखना कहीं भालू ना आ जाये, सुना है बहुत ठरकी जानवर होते हैं।सुंदर सेक्सी महिलाओं को देख कर उनपर टूट पड़ते हैं, हाहाहाहाहा...
“मेरी तो यहाँ जान जा रही है और तुम्हें मज़ाक सूझ रहा है। कोई कम्बल होगा?”मैंने पूछा।
“पिकनिक पे आये है क्या?।” अरुण मजाक कर रहा था.
“सर, एक पुरानी फटी हुई चादर है। अगर हमसे काम चल जाए..” मुकुल ने पीछे ज़े आवाज़ दी .
“दिखा नीतू को।” अरुण ने कहा.

मुकुल ने पीछे से एक फटी पुरानी चादर निकाली और मुझे दी। गाड़ी का दरवाजा बंद करते ही लाइट बंद हो गई।
दो मर्दों के सामने वस्त्र उतारने के ख्याल से ही मैं शर्म के मारे मरी जा रही थी, ऊपर से ये ठंडी हवा मेरे जिस्म के रोये खड़े कर देने के लिए काफ़ी थे, ठंड के मारे दांत बज रहे थे। ऐसा लग रहा था कि मैं बर्फ की सिल्लीयो से घिरी हुई हूं।
दोनों जीप के बहत ही खड़े हो गए, और मैं अंदर बंद जीप मे भीगे कपडे निकालने का उपक्रम करने लगी.
ये सब कुछ बहुत अजीब था, लेकिन अब कोई दूसरा तरीका भी नहीं था.
मैने झिझकते हुए अपनी साड़ी उतार दी।, मेरे जसम पर भीगा हुआ ब्लाउज और पेटीकोट ही बचे थे, मैंने नजरें इधर उधर आगे की और दौडाई घुप अंधेरा था, हिम्मत कर मैंने एक-एक कर ब्लाउज के सारे बटन खोल दिये, सकूँचाते हुए गीले ब्लाउज को जिस्म से उतार दिया। अँधेरे का फायदा उठाते हुए मैं यर सब कुछ जल्दी से जल्दी कर लेना चाहती थी,
मैंने अपना पेटीकोट भी तुरंत उतार दिया।गीले कपडे जिस्म से अलग होने से बहुत राहत मिली, सिर्फ ब्रा और पैंटी ही मेरे जिस्म की रक्षा कर रहे थे,
मैंने तुरंत ही ब्रा को भी मैंने बदन से अलग कर दिया।Gifs-for-Tumblr-1447 और उस चद्दर से तुरंत अपने जिस्म को लपेट लिया।
गाड़ी का दरवाजा खोल कर मैंने उन्हें निचोड़ कर सुखने का सोचा मगर दरवाजा खुलते ही बत्ती जल गई। मेरे बदन पर केवल एक चिथड़े हुई चादर बेतरतीब तरीके से लिपटी हुई थी। अधा बदन साफ़ नज़र आ रहा था। अँधेरे मे मैं खुद को अच्छे से नहीं ढँक पाई थी, सुडोल स्तन पिली रौशनी मे जगमगा रहे थे.images-2

मैंने देखा अरुण भोचक्का सा एकटक मेरी छती को घूर रहा है। मैंने झट चादर को ठीक किया। चादर कई जगह से फटी हुई थी इसलिए एक स्तन ढकती तो दूसरा बाहर निकल आता, मुझे जल्द ही अहसास हो गया की ये चद्दर कुछ ज्यादा ही छोटी है या फिर सिर्फ चद्दर का टुकड़ा ही गई,
दोनों मेरे निवस्त्र योवन को निहार रहे थे। images-1 मैंने दरवाजा बंद कर दिया. बत्ती बंद हो गई. एक झुरझुरी सी पुरे जिस्म मे दौड़ गई, जिसका केंद्र मेरे गीले पेट पर स्थित नाभि थी.
“अरुण प्लीज़ मेरे कपड़ो को सुखने केलिए डाल दो ।” मैने मरी हुई आवाज़ मे कहाँ, मुझमे उस फटी पुरानी चद्दर को पहन आगे जाने की हिम्मत नहीं थी.
अरुण ने मेरे हाथों से कपड़े ले लिए। मेरे बदन पर अब केवल गीली पैंटी थी, जिसे मैं अलग नहीं करना चाहती थी। क्यूंकि इस वक़्त जैसी थी मेरी इज़्ज़त का सहारा मेरी पैंटी ही थी,
ठण्ड अब भी लग रही थी मगर क्या किया जा सकता था। कुछ देर बाद दोनों भी ठंड से बचने के लिए गाड़ी में आ गए। दोनो के बदन पर भी बस एक एक पैंटी थी। उनके नंगे जिस्मो पर ना चाहते हुए भी मेरी नजर जा टिकी.
“यार, मुकुल ठंड से तो रात भर में बर्फ़ की तरह जम जायेंगे.। कैबिनेट में रम की एक बोतल रखी है उसको निकालो।” अरुण ने कहा.
मुकुल ने कैबिनेट से एक बोतल निकाली। लाइट जला कर डैश बोर्ड के अंदर कुछ ढूंढने लगा। “सर, ग्लास नहीं है।” उसने कहा.
“अबे ऐसी भयानक ठण्ड मे गिलास का क्या काम मुँह से लगा और सीधा ही घूंट भर।” अरुण ने बोतल लेकर मुंह से लगाया और दो घूंट लेकर मुकुल की तरफ बढ़ाया।

मुकुल ने भी एक घूंट लिया। “नीतू तू भी दो घूंट लेले सारी सर्दी निकल जायेगी।” अरुण ने कहा.
“नहीं.. ना... ना... मैं दारू नहीं पीती ” मैंने मना कर दिया। मगर कुछ ही देर में मुझे अपने फैसले पर गुस्सा आने लगा। वैसे भी दो आदमखोरों के बीच में मैं इस तरह का कोई जोखिम नहीं लेना चाहती थी कि मेरा अपने ऊपर से कंट्रोल हट जाए। मगर ठंड ने मेरी मति मार दी। मैं उन दोनों को पीते हुए देख रही थी। उन्हें फिर मुझसे पूछा.
इस बार मेरे ना में दम नहीं था. मैं हाँ और ना के बीच कहीं फंस गई थी.
अरुण ने बोतल मुझे पकड़ा दी। “अरे ले यार कोई पाप नहीं लगेगा। एक डॉक्टर के मुंह से इस तरह की दकियानूसी बातें सही नहीं लगतीं।” अरुण ने कहा.
मैने काँपते हाथों से बोतल ले लिया। और मुंह से लगाकर एक घूंट लिया। ऐसा लगा मानों तेजाब मेरे मुंह और गले को जलाता हुआ पेट मे जा रहा है।
वेक.... वेक....खो... खो....ई, मुझे तुरंत ही उबकाई आ गई, मैंने बड़ी मुश्किल से मुंह पर हाथ रख कर अपने आप को रोका।
“लो एक और घूंट लो।” अरुण ने कहा.
“नहीं, कितनी गंदी चीज़ है तुम लोग पीते कैसे हो।” मैने कहा.
मगर कुछ देर बाद मैंने हाथ बढ़ा कर बोतल ले ली और एक और घूंट लिया। इस बार उतनी बुरी नहीं लगी.
“बस और नहीं।” मैंने बोतल वापस कर दिया। मेरी इन हरकतों के करण चादर मेरे एक स्तन से हट चूका था, मुझे इसका कोई अहसास नहीं था, मेरा सर घूम रहा था. अपने आप को बहुत हल्का फुल्का महसूस कर रही थी। अपने ऊपर से नियंत्रण ख़त्म होने लगा। जिस्म भी गरम हो चला था, अब ठण्ड नहीं लग रही थी.
अरुण सामने का दरवाजा खोल कर बाहर निकला और पीछे की सीट पर आ गया। मैं अनजाने भय से सिमटते हुए सरक गई मगर वो मेरे पास ही सरक गया और लगभग मेरे जिस्म से आ चिपका.
“इसससस....देखो अरुण ये सब सही नहीं है।” मैं मना जरूर कर रही थी लेकिन अरुण के जिस्म मे एक अजीब सी गर्माहट थी जो मुझे साफ महसूस हो रही थी.
“मैं तो सिर्फ़ तुम्हारे काँपते हुए बदन को गर्मी देने की कोशिश कर रहा हूँ।”
“नहीं मुझे नहीं चाहिए।”मैंने अरुण को धक्का देती रह गई मगर उसने मुझे अपनी बाहों में समा लिया।
उसके गरम होंठ मेरे होंठो से चिपक गए।kool-imagesgallery-kissgif5 धीरे-धीरे मैं कामजोर पड़ती जा रही थी। मैंने उसे धकेल के दूर करने की कोशिश की मगर अरुण मेरे बदन से और जोर से चिपक जा रहा था.
तभी उसने एक झटके में मेरे बदन से चादर को अलग कर दिया।
“मुकुल ये चादर संभाल” अरुण ने चादर आगे की सीट पर फेक दी जिसे मुकुल ने संभाल लिया। मेरे बदन पर अब सिर्फ एक पैंटी के अलावा कुछ भी नहीं था। मैंने अपने हाथो को क्रॉस कर अपने बड़े सुडोल स्तनों को ढकने की नाकामयाब कौशिश की.
कोशिश सफल ना होने पर मैंने मुकुल को ढकेलते हुए कहा”छोड़ो मुझे वरना मैं शोर मचाउंगी”
“मचाओ शोर।” जितना चाहे गला फाड़ के चिल्लाओ यहां दूर दूर तक सिर्फ पेड़ और जानवरों के अलावा तुम्हारी आवाज़ सुनने वाला कोई नहीं है।”
तभी आगे बैठे मुकुल ने जीप की लाइट जला दी और हमारी रासलीला देखने लगा, अरुण के हाथ मेरे बदन को टटोल रहे थे, इसससससस..... उफ्फ्फ... अरुण के गर्म हाथ मेरे जिस्म को राहत पंहुचा रहे थे, उसका नंगा जिस्म मेरे नंगे जिस्म से रगड़ खाने लगा था,
मैंने काफी बचने की कोशिश की, अपनी सहेली की दुहाई भी दी, मगर दोनों पूरे राक्षस बन चुके थे। मेरा विरोध भी धीरे-धीरे मंद पड़ता जा रहा था। अरुण ने मेरे दोनों स्तनों को अपनी हथेलीयों मे भींच लिया, उन्हें रगड़ने लगा,
उसकी रगड़ से जैसे कोई चिंगारी मेरे जिस्म मे कोंध रही थी, ये चिंगारी मेरे पेट से होती जांघो के बीच कहीं समा जा रही थी, अभी ये काफ़ी नहीं था की अरुण मे मेरे उभरे तीर के समान कड़क निपल्स अपने मुँह में ले कर चूसने लगा.
अरुण ने एक हाथ नीचे लेजाते हुए अपनी पैंटी भी उतार दी और मेरे हाथ को पकड़ कर अपने तपते लिंग पर रख दिया।
मुझे अरुण का गर्म और मजबूत लंड पकड़ते ही तेज़ झटका सा लगा, पुरे जिस्म मे एक लावा सा बहने लगा,
मैने तुरंत ही हाथ हटाने की कोशिश की परन्तु अरुण ने मेरे हाथ को अपने लंड मजबूती से पकड़ रखा था। शराब अपना असर दिखाने लगी. मेरा बदन भी गरम होने लगा। कुछ देर बाद मैंने अपने को ढीला छोड़ दिया।
अरुण के हाथ मेरे सुडोल स्तनों को मसलने लगे। उसके होंठ मेरे होंठो से चिपके हुए थे और जीभ मेरे मुंह के अंदर घूम रही थी।
मुकुल जब से अरुण और मेरी हरकते देख रहा था, उसे अब सब्र नहीं रखा गया और दूसरी तरफ का दरवाजा खोल कर मेरे दूसरी तरफ आ गया। उसने पहली सीट के लीवर को खोल कर चौड़ा कर दिया।
पीछे की सीट खुल कर एक आरामदेह बिस्तर के रूप मे बदल गई, हालांकि जगह कम थी मगर इस काम के लिए काफी थी।
दोनों एक साथ मेरे बदन पर टूट पड़े। मैं उनके बीच किसी मछली को तरह फसी कसमसा रही थी। दोनों ने मेरे एक-एक स्तन को थाम लिया,इस्स्स्स..... मुझे ये छुवन अच्छी लगने लगी थी, दोनों मेरे स्तनों को मसल रहे थे, चूस रहे थे, निप्पल को दांतो से काट रहे थे ,
उत्तेजना से मेरा भी बुरा हाल था, दूसरा हाथ बड़ा कर मैंने मुकुल का लंड भी पकड़ के मुट्ठी मे भींच लिया 20240511-213750 ,
दोनों के लंड मे सहला रही थी, अपनी हथेली से घिस रही थी, मेरी पैंटी पहले से ही गीली थी ऊपर से चुत से निकलते पानी ने और भी गिला कर दिया जैसे कोई रस टपक रहा हो,
तभी दोनों ने मेरी पैंटी को मेरे बदन से नोच कर अलग कर दिया। दो जोड़ी उंगलियां मेरी चुत मे जा धसी.... उउउफ्फ्फ्फ़.... आअह्ह्ह.....आउच.... मेरे मुँह से वासना भरी आवाजें निकल रही थी।20160127194236uid
अरुण ने मुझे गुड़िया की तरह उठा कर मेरी जाँघे फौलाद कर अपने ऊपर बैठा लिया, मेरा नंगा भीगा जिस्म अरुण के गर्म जिस्म से जा चिपका,।मेरे बड़े-बड़े सुडोल नुकिले स्तन उसके सीने से लग के पिसे जा रहे थे। अरुण लगातार मेरे होठों को चूम रहा था।
मुकुल के होंठ मेरी पीठ पर फ़िसल रहे। अपनी जीभ निकाल कर मेरी गर्दन से लेकर मेरे नितंबों तक ऐसा फिर रहा था मानो बदन पर कोई हल्के से पंख फेर रहा हो। मेरे पुरे जिस्म को किसी पागल कुत्ते की तरह चाट चाट के सूखा रहा था.
बदन में झुरझुरी सी दौर रही थी, मैं डोनो की हरकतों से पागल हुई जा रही थी..रही सही झिझक भी ख़तम हो गई थी
ना चाहते हुए भी मैं अपनी चुत को अरुण के लंड पर मसलने लगी। अरुण का लंड मेरी चुत के पानी से पूरी तरह भीग गया था, मैं किसी रंडी की तरह अरुण के लंड को अपनी चुत से घिस रही थी, gifcandy-black-and-white-89 676-1000 ऐसी स्थिति में मुझे कोई देख लेता तो पक्का सस्ती रंडी ही समझता, मेरी गरिमा, मेरी प्रतिष्ठा, मेरी शिक्षा सब इस वासना के सामने छोटी पड़ गई थी।

मेरी आँखों में मेरे प्यार, मेरा हमदम, मेरे पति के चेहरे पर दोनों के चेहरे नज़र आ रहे थे। शराब ने मुझे अपने वश में ले लिया था। सब कुछ घूम रहा था. महसूस हो रहा था कि जो हो रहा है वो अच्छा नहीं है लेकिन मैं किसी को मना करने की स्थिति में नहीं थी, दोनों के हाथ मेरी छतियों को जोर-जोर से मसलने लगे। अरुण ने मेरे होठों को चूस चूस कर सुजा दिया था। फ़िर उन्हें छोड़ कर मेरे निपल्स पर टूट पड़े।

अपने दोनों हाथों से मेरे एक-एक स्तन को निचोड़ रहा था और निपल्स को मुंह में डाल कर चूस रहा था। ऐसा लग रहा था मानो बरसों के भूखे के सामने कोई दूध की बोतल आ गई हो। दांतों के निशान पूरे स्तन पर नजर आ रहे थे।tumblr-m7u0cn3p1b1rugs9ro1-500
मुकुल इस वक्त मेरी गर्दन पर और मेरी गांड पर दाँत गड़ा रहा था। मैं मस्त हुई जा रही थी, दो तरफ़ा हमला मेरे जीवन का पहला अनुभव था, इतना मजा आता है मुझे अहसास नहीं था, फिर मुकुल ने भी अपना अंडरवियर उतार कर मेरे सर को पकड़ा और मेरे पास बैठ कर अपने लिंग पर झुकाने लगा। मैं उसका इरादा समझ कर कुछ देर तक मुंह को इधर उधर घुमाती रही।
मगर उसके आगे मेरी ना चली. वो मेरे खुबसूरत होठों पर अपना काला लंड फेरने लगा। मुकुल के लंड के टोपे की मोटाई देख कर मैं सिहर उठी, उसके लंड से चिपचिपा पदार्थ निकल कर मेरे होठों पर लग रहा था। तभी अरुण ने मुझे जांघो से उतर कोहनी और घुटनों के बाल पर चौपाया बना दिया और मेरी चुत को छेड़ने लगा। चुत की फांकें अलग-अलग उंगलियां अंदर बाहर करने लगीं। मैं बस एक खिलौना बन कर रह गई थी, जैसा वो कर रहे थे उनका साथ दे रही थी, असीम सुख के सागर मे गोते लगा रही थी.
मुकुल मेरे सर को अपने लंड पर दबा रहा था। मुझे मुंह नहीं खोलता देख कर मेरे निपल्स को बुरी तरह मसल दिया। मैं जैसे ही चीखने के लिए मुंह खोली उसका मोटा लंड जीभ को रास्ते से हटाते हुए गले तक जाकर फंस गया.
मेरा दम घुट रहा था. मैंने सर को बाहर खींचने के लिए जोर लगाया तो उसने अपने हाथ को कुछ ढीला कर दिया। लंड आधा ही बाहर निकला होगा उसने दोबारा मेरे सर को दबा दिया। खो.... खो....वेक .. वेक... मुकुल मेरे मुँह को चुत की तरह चोद रहा था।gifcandy-face-fucking-28
उधर अरुण मेरी योनि में अपनी जीभ अंदर बाहर कर रहा था। मैं कामोंउत्तेजना से चीखना चाहती थी मगर गले में मुकुल का लंड पच पच कर अंदर बाहर हो रहा था, मुँह से थूक निकल कर जीप के फर्श पर गिर रहा था, वेक... वेक.... गु... गु.... आअह्ह्ह.... इसससस....
मैं दो तरफ़ा हमले और बर्दाश्त ना कर सकी और अरुण के मुँह मे ही मेरी चुत ने पानी छोड़ दिया, अरुण पूरी लगन से मेरी चुत को चाटे जा रहा था, काफी देर तक चूसने के बाद अरुण उठा। उसके मुँह में, नाक पर मेरा कामरस लगा हुआ था।
मैं उसकी हालात देख तड़प उठी, अब किसी भी कीमत पट मुझे लंड चाहिए था, मैंने अरुण की और देखा शायद वो इशारा समझ गया
उसने अपने लंड को मेरी चुत की दोनों फांको कर बीच सटा दिया। फिर बहुत धीरे धीरे उसे अंदर धकेलने लगा।
किसी लोहे की रोड जैसे अपने मोटे ताजे लंड को पूरी तरह मेरी चुत मे घुसा दिया। मेरी चुत पहले से ही गीली थी और लंड लेने के लिए तैयार थू, शायद इसलिए मैं इतने मोटे लंड को आसानी से झेल गई.31037
अरुण ने लंड पीछे खिंच वापस अंदर ठूस दिया, मेरा पूरा जिस्म सिहर उठा.
अब आलम ये था की दो मर्द मेरे छेदो को अपने लंड से भरे हुए थे,
दोनों के लिंग दोनों तरफ से अंदर बाहर हो रहे थे, आअह्ह्ह..... वेक... वेक्क.... पच.. पच.... की अवज़ो के साथ पूरी जीप ह रही थी,। मेरे स्तन पके आम की तरह झूल रहे थे,
मैंने सर नीचे झुका कर ददेखा मेरे स्तनों पर जगह जगह लाल निशान पड़ गए थे, । कुछ देर बाद मुझे लगने लगा कि अब मुकुल डिस्चार्ज होने वाला है। ये देख कर मैंने लंड को अपने मुँह से निकल ने का सोचा। मगर मुकुल ने शायद मेरे मन की बात पढ़ ली। उसने मेरे सर को पूरी ताकत से अपने लंड पर दबा दिया। मूसल जैसा लंड मेरे गले के अंदर तक घुस गया।
मुकुल का लंड तेज़ झटके खाने लगा और ढेर सारा गरम गरम वीर्य उसके लंड से निकल कर मेरे गले से होता हुआ मेरे पेट में समाने लगा। मेरी आंखें दर्द से उबली पड़ी थी। दम घुट रहा था.cum-deep-in-her-throat-001 काफ़ी सारा वीर्य पिलाने के बाद मुकुल ने अपने लंड को मेरे मुँह से निकला।
उसका लंड अब भी झटके खा रहा था। और बूंद बूंद वीर्य अब भी टपक रहा था, पूरा लंड वीर्य और मेरे थूक से साना हुआ था,। मेरे होठों से उसके लिंग तक वीर्य एक रेशम की डोर की तरह चिपका हुआ था। खो... खो.... खो.... मैं जोर जोर से सांसें ले रही थी
अरुण पीछे से जोर जोर से धक्के दे रहा था। और मैं हर धक्के के साथ मुकुल के ढीले पड़े लिंग से भिड़ रही थी।
“ऊउइइइइ मां ऊऊहह हम्म्म्प्प, आअह्ह्हम.... उफ्फ्फ्फ़... जैसी उत्तेजित आवाजें निकालने लगी। मेरी चुत ने एक बार फिर ढेर सारा रस छोड़ दिया। मगर उसके रफ़्तार में कोई कमी नहीं आयी थी। External-Link-gifs-by-moaningtillmorning मेरा जिस्म जवाब दे रहा था, मेरी बांहे मुझे और थामे ना रख सकी। और मैंने अपना सर मुकुल की गोद में रख दिया। काफी देर तक धक्के मारने के बाद अरुण के लंड ने अपनी धार से मेर चुत को लबालब भर दिया।24560316

हम तीनो गहरी गहरी सांसें ले रहे थे. खेल तो अभी शुरू ही हुआ था। दोनों ने कुछ देर आराम करने के बाद अपनी जगह बदल ली। अरुण ने अपना लंड मेरे मुँह मे डाल दिया तो मुकुल ने मेरी चुत मे लंड डाल धक्के मारने लगा,
मेरी धुआँधार चुदाई फिर से शुरू हो गई थी, और मैं भी उनका भरपूर साथ दे रही थी, दोनों ने करीब आधे घंटे तक मेरी इसी तरह से जगह बदल कर चुदाई की। मैं तो दोनो का स्टैमिना देख कर हैरान थी। कुछ ही देर मे दोनों ने दोबारा मेरे बदन पर वीर्य की वर्षा की।

हैंफ़्फ़्फ़... हमफ़्फ़्फ़.... मैं उनके सीने से चिपकी सांसे ले रही थी। “अब तो छोड़ दो... अब तो तुम दोनों ने अपने मन की मुराद पूरी कर ली। मुझे अब आराम करने दो।” मैने कहा.
मगर दोनों में से कोई भी मेरी मिन्नतें सुनने के मूड में नहीं लग रहा था, कुछ देर तक मेरे बदन से खेलने के बाद दोनों के लिंग में फिर दम आने लगा।
अरुण सीट पर लेट गया और मुझे ऊपर आने का इशारा किया। मैं कुछ कहती है इससे पहले मुकुल ने मुझे उठाकर उसके लिंग पर बैठा दिया। मैंने भी अपनी चुत को अरुण के खड़े लंड पर टिका दिया, हवस के खेल मे मैं भी कहाँ पीछे थी, अरुण ने अपने लंड को पकड़ मेरी चुत के मुहने पर सेट कर दिया,
मैं धीरे धीरे उसके लंड पर बैठ गई। पूरा लंड अंदर लेने के बाद मैं उसके लंड पर उठने बैठने लगी। तभी दोनों के बीच आँखों ही आँखों में कोई इशारा हुआ। अरुण ने मुझे खींच कर अपने नंगे बदन से चिपका लिया। अरुण मेरे मेरी गांड को फेला कर मेरे पिछले छेद पर उंगली से सहलाने लगा। फिर उंगली को कुछ अंदर तक घुसा दिया।
आउच.... नहीं.... उउफ्फ्फ... नहीं अरुण मैं चिहंक उठी. मैं उसका इरादा समझ कर सर को इंकार में हिलाने लगी तो अरुण ने मेरे होंठो को अपने होंठो में दबा लिया।
मुकुल ने अपनी उंगली निकाल कर मेरे चुत से निकलर हुए रस को अपने लंड और मेरी गांड के छेद पर लगा दिया। मैं इन दोनों बालिश्त आदमियों के बीच बिल्कुल असहाय महसूस कर रही थी।

दोनों मेरे जिस्म को जैसी मर्जी वैसे मसल रहे थे। मुकुल ने अपना लंड मेरे गुदा द्वार पर टिका दिया।
“नहीं प्लीज़ वहाँ नहीं” मैंने लगभाग रोते हुए कहा “मैं तुम दोनो को सारी रात मेरे बदन से खेलने दूंगी मगर मुझे इस तरह मत चोदो मैं मर जाऊँगी” मगर मुकुल अपने काम में जुट रहा। मैंने अपने हाथ को अरुण की छाती पर मार उठने की कोशिश की लेकिन अरुण ने अपने बालिश्त बांहों मे मुझे जकड़े रखा,
मुकुल ने अपने लंड मेरे नितंबों को फेला कर एक जोरदार धक्का मारा। “उउउउउइइइइ माआआ मर गई” मेरी चीख़ पूरे जंगल में गूंज गई। मगर दोनों हंस रहे थे.
"थोड़ा सब्र करो सब ठीक हो जाएगा। सारा दर्द ख़त्म हो जाएगा।” मुकुल ने मुझे समझाने की कोशिश की। मेरी आँखों से पानी बह निकला. मैं दर्द से से रोने लगी. मुकुल ने फिर भी लंड बाहर ना निकाला जबकि धीरे धीरे मुझे सहलाने लगा, मुझे ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने मेरी गांड मे लोहे की गरम रोड डाल दी हो, दर्द से शरीर फटा जा रहा था,
नीचे से अरुण मेरे स्तनो को मसल रहा था, निप्पल को सहला रहा था, अजीब सी दर्दभारी उत्तेजना का अनुभव ही रहा था मुझे, अरुण ने अपने लंड को मेरी चुत मे धीरे धीरे सहलाना शुरू किया, कुछ ही देर बाद मैं शांत हो गई, हालांकि दर्द अभी भी था लेकिन वो कुछ मीठा मीठा सा था,
अब मुकुल ने धीरे-धीरे अपने पुरे लंड को अंदर कर दिया। मैंने और सूरज ने शादी के बाद से ही खूब चोदा था मगर उसकी नियत कभी मेरे गांड पर ख़राब नहीं हुई।

मगर इन दोनों ने तो मुझे कहीं का नहीं छोड़ा। पूरा लंड अंदर कर के मुकुल मेरे ऊपर लेट गया। मैं दोनो के बीच सैंडविच की टिक्की की तरह फसी हुई थी।
एक तगड़ा लंड आगे से और एक लंड पीछे से मेरे जिस्म में धसा हुआ था। दोनों लंड अंदर कुछ ही दूरी पर हलचल मचा रहे थे। दोनों ने अपने-अपने बदन को हरकत दे दी। मैं दोनों के बीच पिस रही थी। मैं भी अब आनंद की चरमसिमा पर थी, दोनों के धक्के ना जाने कितनी देर टक चलते रहे, दोनों के मुसल मोटे लंड मेरी चुत और गांड की खाल उधेड़ते रहेbbc-001-1 और एक साथ दोनो डिस्चार्ज हों गए.

मैं भी खुद को संभल ना सकी दोनों के गर्म वीर्य का अहसास पाते ही मेरी चुत से भी पानी छलक उठा। मेरा पूरा बदन गीला हो गया। मेरे मुँह, चुत, गांड तीनो छेदों से वीर्य टपक रहा था। तीनो के “आआआआअह्हह्हहूऊओह्हह्ह.. ” से जंगल गूँज रहा था।
तीनो कर जिस्म पसीने से भीगे चमक रहे थे,
ताबड़तोड़ दरद भरी चुदाई के बाद अब भूक भी लगने लगी थी,। मुकुल ने जीप के पीछे से एक डिब्बे से कुछ सैंडविच निकाले जो शायद अपने लिए रखे थे।
हम तीनो ने उसी हालत में आपस में मिल बांट कर खाया।
भूक शांत हुई तो जिस्म की भूख हिलोरे मारने लगी, फ़िर से सम्भोग चालू हुआ तो घण्टों चलता रहा दोनों ने मुझे रात भर बुरी तरह झंझोर दिया। कभी चुत मे, कभी गांड मे तो कभी मुंह में हर जगह जी भर कर मालिश की। मेरे पूरे बदन पर वीर्य का मानो लेप चढ़ा हुआ था। images-11 सम्भोग करते-करते हम निधाल हो कर वहीं पड़ गए। कभी किसी की आंख खुलती तो मुझे कुछ देर तक चोद के ही वापस सोता.
पता ही नहीं चला कब भोर हो गई। अचानक मेरी आंख खुली तो देखा बाहर लालिमा फेल हो रही है। मैं दोनों की गोद मे बिल्कुल नंगी सूखे वीर्य की पापड़ी से ढकी पड़ी थी,
मुझे अपनी हालत पर शर्म आने लगी। मैंने शीशे पर नजर डाली तो अपनी हालत देख कर रो पड़ी। होंठ सूज गए थे, चेहरे पर वीर्य सुख के सफ़ेद पापड़ी की शक्ल ले चूका था,images-5
मैं खुद को ऐसे और ना देख सकी, एक झटके से उठी और बाहर निकल कर अपने कपडे पहने। मुझे अपने आप से घिन आ रही थी। सड़क के पास ही थोड़ा पानी जमा हुआ था। जिस से अपना चेहरा धो कर अपने आप को व्यवस्थित किया।

वो दोनों भी उठ चुके थे, अरुण मेरे बदन से लिपट कर मेरे होठों को चूम लिया। मैंने उसे ढकेल कर अपने से अलग किया। “मुझे मेरे घर वापस छोड़ दो।” मैने गुस्से से कहा.
अरुण सामने की सीट पर बैठ कर जीप को स्टार्ट किया। जीप एक ही झटके में स्टार्ट हो गई। मैं समझ गई कि ये सब इन दोनों की मिली भगत थी। मुझे चोदने के लिए ही सुनसान मे गाडी ख़राब कर दी थी, घंटे भर बाद हम घर पहुंचें। रास्ते में भी दोनों मेरे स्तनों से खेलते रहे, जैसे मैं उनकी मिल्कीयत हूँ,
हम जब तक घर पहुंचे सूरज अपने काम पर निकल चुका था जो मेरे लिए बहुत ही अच्छा रहा वरना उसको मेरी हालत देख कर साफ पता चल जाता कि रात भर मैंने क्या क्या गुल खिलाये हैं।
अरुण मुकुल अपने रास्ते चले गए थे, मैं बाथरूम मे सावर के नीचे खड़ी खुद को कोष रही sath आखिर गलती मेरी भी थी.
मैं बहक गई थी.

समाप्त
 
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दोस्तों हाजिर हूँ एक और शॉर्ट story के साथ
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जंगल की रात

ये कहानी मेरी है, मैं नीतू सिंह,
मेरी उम्र अभी मात्र 26 साल ही है. और जिस्म से मादकता टपकती है.
पिछले साल ही मेरी शादी हुई थी, शादी के बाद मेरा ट्रांसफर दूसरी जगह हो गया था।, पेशे से मैं डॉक्टर हूँ, नौकरी मेडिकल ऑफिसर की है.
अच्छे खासे संपन्न परिवार से ताल्लुख रखती हूँ, सुन्दर, सुडोल जिस्म की मालकिन हूँ, ऐसा मेरे पति कहते है,.
उन्हें तो मेरे बड़े स्तन और बाहर को निकली कसमसती गांड हि पसंद है.
कॉलेज के ज़माने से ही मेरे पति सूरज ने मुझे जम के पेला, खुब रगड़ के चोदा नतीजा मेरा जिस्म पूरी तरह से खील उठा.
मैं प्रेग्नेंट भी ही गई थी लेकिन हमें बच्चा नहीं चाहिए था अभी.
तो ट्रांसफर के साथ मैं और सूरज असम के एक रूलर इलाके मे आ गए, साथ ही मेरी प्यारी सहेली रचना का भी ट्रांसफर उसी जगह हो गया था जो हमारे लिए बहुत खुशी की बात थी। सूरज ने नई जगह पर एक नर्सरी खोल ली। जो उसकी महनत से अच्छी चल पड़ी.च
रचना यही असम की रहने वाली थी, उसके लिए तो एक तरह से घर लौटने जैसा थी था, सोने पे सुहागा ये की उसकी शादी वहीं पास के एक फॉरेस्ट ऑफिसर अरुण से हो गई।
अरुण बहुत ही हंसमुख और रंगीन मिजाज आदमी थे। उसकी पोस्टिंग हमारे अस्पताल से 80 किलोमीटर दूर एक जंगल में थी। शुरू शुरू में तो हर दूसरे दिन भाग आता था। कुछ दिनों बाद हफ्ते में दो दिन के लिए आने लगा। हम चारों आपस में काफ़ी खुले हुए थे।
सूरज और अरुण की खूब दोस्ती हो गई थी, साथ मे दारू भी पीते थे, हम लोग भी ओपन माइंडेड थे,
अक्सर आपस में रंगीले चुटकुले और द्विअर्थी संवाद करते रहते थे। जिसे सिर्फ मज़ाक मे ही लिया जाता था.
उसकी नज़र शुरू से ही मुझ पर थी। मगर ना तो मैंने उसे कभी लिफ्ट दिया ना ही उसे ज्यादा आगे बढ़ने का मौका मिला। होली के समय जरूर मौका देख कर रंग लगाने के बहाने मुझसे लिपट गया था, और मेरे कुर्ते में हाथ डाल कर मेरी छतियों को कस कर मसल दिया था। उसकी इस हरकत पर किसी की नजर नहीं पड़ी थी इसलिए मैंने भी चुप रहना बेहतर समझा।

वरना बेवज़ह हम सहेलियों में दरार पैदा हो जाती, उस हादसे के बाद से मैं उस से कतराने लगी थी। मगर वो मेरे पास आने के लिए मौका खोजता रहता था। रचना को शादी के साल भर बाद ही मायके जाना पड़ गया क्योंकि वो प्रेग्नेंट थी।
अब अरुण कम ही आता था. आता भी तो उसी दिन वापस लौट जाता। अचानक एक दिन दोपहर को पहुंच गया। साथ में एक और उसका साथी था जिसका नाम उसने मुकुल बताया। उनका कोई आदमी पेड़ से गिर गया था। रीढ़ की हड्डी में चोट थी. रास्ता ख़राब था इसलिए उसे लेकर नहीं आये।



मुझे साथ ले जाने के लिए ये दोनों आये थे। मैंने झटपट अस्पताल में सूचित किया और सूरज को फ़ोन कर बता दिया , ज्यादा सोचने का वक़्त नहीं था मेडिकल के जरुरी सामान बेग मे डाल लिए और तुरंत निकल लिए फिर भी निकलते निकलते दो बज गये थे.
80 किलोमीटर का सफर कवर करते-करते हमें ढाई घंटे लग गए। हम तीनो ही सूमो में आगे की सीट पर बैठे थे.
मैं दोनों के बीच में मैं फंसी हुई थी। रस्ता बहुत उबर खाबर था । हिचकोले लग रहे थे. हम एक दूसरे से भिड़ रहे थे. मौका देख कर अरुण बीच बीच में मेरे एक स्तन को कोहनी से दबा देता।
झटके लगने से मेरे स्तन ब्लाउज के ऊपर से उछल उछल कर बाहर आने को मरे जा रहे थे,Gifs-for-Tumblr-1833 मेरे 38 साइज के स्तन अक्सर ब्लाउज मे समाते ही नहीं थे.

अरुण मौके का फायदा उठा कभी जंघों पर हाथ रख देता था, तो कभी कोहनी बिल्कुल मेरे स्तनो मे सटा देता.मुझे अब अहसास हो गया था कि मैंने सामने बैठ कर गलती की थी।
हम शाम तक वहां पहुंच गए। मेरीज को चेकअप करने में शाम को छह बज गए। यहां शाम कुछ जल्दी हो जाती थी, नवंबर का महीना था मौसम बहुत ठंडा था, ठंडी ठंडी हवा जिस्म को लुभा रही थी,
अब धीरे-धीरे बादल भी घिरने लगे थे, मुझे थोड़ा डर सा लग रहा था, मैं जल्दी अपना काम निपटा कर रात तक घर लौट जाना चाहती थी।
चलो अरुण लगता है बारिश होने वाली है, जल्दी मुझे घर छोड़ दो.

“इतनी जल्दी क्या है? आज रात यहीं रुक जाओ मेरे झोपड़े में।” अरुण ने कहा मगर मेरे तेवर देख चुप हो गया.
“चलो मुझे घर छोड़ आओ।”मैंने थोड़ी कड़क आवाज़ मे कहा.

“चल रे मुकुल, मैडम को घर छोड़ आये।” अरुण ने मारे मुए मन से कहा.

हम वापस सूमो में वैसे ही बैठ गए और रिटर्न जर्नी शुरू हो गई ठंडी हवा से जिस्म के रोये खड़े हो रहे थे, वातावरण मे एक अजीब सी मादकता थी, अंधेरा पूरी तरह घिर आया था.
हालांकि मैंने पीछे बैठने की कोशिश की थी, परन्तु अरुण ने रोक दिया।
“कहां पीछे बैठ रही हो. आगे साथ मे बैठो, बातें करते हुए रास्ता गुजर जाएगा।”
“लेकिन तुम अपनी हरकतों पर काबू रखो वरना मैं रचना से बोल दूंगी।” मेरा खीज के अरुण को चेतावनी दे दी.
“क्या उस हिटलर को मत बताना नहीं तो वो मेरी अच्छी खासी रैगिंग ले लेगी।”


उसकी बात सुन मुझे हसीं आ गई, जैसे खूब डरता हो अपनी पत्नी से, बिल्ली जैसे मिम्याके बोला,
माहौल थोड़ा सहज हो गया था, मैं उसकी चिकनी चुपड़ी बातों से फंस गई।
अभी गाड़ी थोड़ा आगे चली ही थी की अचानक मूसलाधार बारिश शुरू हो गई।car-driving-in-rain-55b35annc27ob3nl
जंगल के अँधेरे रास्तो में ऐसी बरसात में गाड़ी चलाना भी एक मुश्किल काम था। अचानक गाड़ी जंगल के बीच में झटके खाकर रुक गई।dedrick-koh-ezgif-com-gif-maker

अरुण टॉर्च लेकर नीचे उतरा। गाड़ी चेक किया मगर कोई ख़राबी पकड़ में नहीं आई। कुछ देर बाद वापस आ गया। वो पूरी तरह भीग चुका था।
“कुछ नहीं हो सकता" अरुण ने हताश मन से कहा
"चलो नीचे उतर कर मेरे साथ धक्का लगाओ, हो सकता है कि चल जाये।”
“मगर….बरसात…”मैं बहार देख कर कुछ हिचकिचाई।
"नहीं तो जब तक बरसात ना रुके तब तक इंतज़ार करो"उसने कहा"
मैंने पहले ही कहाँ था यहाँ की बरसात का कोई भरोसा नहीं, कई कई दिन तक लगातार चलती रहती है ? इसलिए तुमहे रात को वहीं रुकने को कहा था।”
मैं अरुण की बात सुन घबरा गई,मन शांकओ से घिरने लगा, इस बरसाती रात मे यही फसा रहना बेवकूफी ही थी.
मरती क्या ना करती मैं नीचे उतर गई. अब बरसात की परवाह करने का समय नहीं था, मैं और मुकुल दोनों नीचे उतर गए, और अरुण ने ड्राइविंग सीट संभाल ली, हम दोनों काफी देर तक धक्के मारते रहे मगर गाड़ी नहीं चली। रात के आठ बज रहे थे.
मैं पूरी तरह गीली हो गई थी. साड़ी और ब्लाउज पूरी तरह जिस्म से चिपक गए थे, थक हार कर मैं पीछे की सीट पर बैठ गई। अरुण ने अंदर की लाइट ऑन कर दी .

मैंने रूआंसी नज़रों से अरुण की तरफ देखा। अरुण बैक मिरर से मेरे जिस्म को ही घूर रहा था।
अरुण की नजरों का पीछा करते ही मैंने पाया की सफेद ब्लाउज और ब्रा बरसात में भीग कर पारदर्शी हो गई थी। निपल साफ साफ नजर आ रहे थे. मैंने जल्दी से अपनी साड़ी को भीगे हुए स्तन पर डाल दिया, निप्पल ठण्ड और घबराहट से कड़क हो चुके थे किसी कील की तरह साड़ी और ब्लाउज मे भी नहीं छुप पा रहे थे,
मैं सकपका गई थी, लेकिन शायद अरुण मेरी मनोस्थिति भाम्प गया था, इसलिए उसने जीप की लाइट बंद कर दी।

रात अँधेरे में दो गैर मर्दों का साथ मेरे दिल को डुबाने के लिए काफ़ी था, मेरा दिल धाड़ धाड़ कर बज रहा था, कुछ देर बाद बरसात बंद हो गई मगर ठंडी हवा चलने लगी।
बहार कभी कभी जानवरो की आवाज सुनायी दे रही थी, मैं ठण्ड और डर से कांप रही थी.
तभी अरुण और मुकुल गाड़ी से निकल गये. उन्होंने अपने कपड़े उतार लिए और निचोड़ कर सूखने रख दिए। उन्हें कपडे उतरता देख मैं शर्म से लाल हुए जा रही थी, लेकिन मुझमे हिम्मत नहीं थी की अपने गीले कपड़ो से पीछा छुड़ा लू, "मर्दो के लिए कहीं भी कपडे खोल देना कितना आसान होता है ना "
मैं अपनी ही सोच मे मग्न थी की अरुण मेरे पास आया “देखो नीतू घुप अँधेरा है।” तुम अपने गीले वस्त्र उतार दो, वरना ठंड लग जाएगी।'' अरुण ने बड़ी ही सहजता से कहाँ.
!कुछ है पहन ने को?” मैने पूछा “मैं शर्म से मरी जा रही थी,
“नहीं! हमारे पास भी कोई ठीक ठाक कपडे नहीं है, लुंगी वगैरह ही पड़ी है उसे ही लपेट के काम चलाएंगे, पहले से थोड़ा मालूम था कि हमें रात जंगल में गुजारनी पड़ेगी” अरुण ने कहा

"वैसे देखना कहीं भालू ना आ जाये, सुना है बहुत ठरकी जानवर होते हैं।सुंदर सेक्सी महिलाओं को देख कर उनपर टूट पड़ते हैं, हाहाहाहाहा...
“मेरी तो यहाँ जान जा रही है और तुम्हें मज़ाक सूझ रहा है। कोई कम्बल होगा?”मैंने पूछा।

“पिकनिक पे आये है क्या?।” अरुण मजाक कर रहा था.
“सर, एक पुरानी फटी हुई चादर है। अगर हमसे काम चल जाए..” मुकुल ने पीछे ज़े आवाज़ दी .
“दिखा नीतू को।” अरुण ने कहा.

मुकुल ने पीछे से एक फटी पुरानी चादर निकाली और मुझे दी। गाड़ी का दरवाजा बंद करते ही लाइट बंद हो गई।
दो मर्दों के सामने वस्त्र उतारने के ख्याल से ही मैं शर्म के मारे मरी जा रही थी, ऊपर से ये ठंडी हवा मेरे जिस्म के रोये खड़े कर देने के लिए काफ़ी थे, ठंड के मारे दांत बज रहे थे। ऐसा लग रहा था कि मैं बर्फ की सिल्लीयो से घिरी हुई हूं।
दोनों जीप के बहत ही खड़े हो गए, और मैं अंदर बंद जीप मे भीगे कपडे निकालने का उपक्रम करने लगी.
ये सब कुछ बहुत अजीब था, लेकिन अब कोई दूसरा तरीका भी नहीं था.
मैने झिझकते हुए अपनी साड़ी उतार दी।, मेरे जसम पर भीगा हुआ ब्लाउज और पेटीकोट ही बचे थे, मैंने नजरें इधर उधर आगे की और दौडाई घुप अंधेरा था, हिम्मत कर मैंने एक-एक कर ब्लाउज के सारे बटन खोल दिये, सकूँचाते हुए गीले ब्लाउज को जिस्म से उतार दिया। अँधेरे का फायदा उठाते हुए मैं यर सब कुछ जल्दी से जल्दी कर लेना चाहती थी,

मैंने अपना पेटीकोट भी तुरंत उतार दिया।गीले कपडे जिस्म से अलग होने से बहुत राहत मिली, सिर्फ ब्रा और पैंटी ही मेरे जिस्म की रक्षा कर रहे थे,
मैंने तुरंत ही ब्रा को भी मैंने बदन से अलग कर दिया।Gifs-for-Tumblr-1447 और उस चद्दर से तुरंत अपने जिस्म को लपेट लिया।

गाड़ी का दरवाजा खोल कर मैंने उन्हें निचोड़ कर सुखने का सोचा मगर दरवाजा खुलते ही बत्ती जल गई। मेरे बदन पर केवल एक चिथड़े हुई चादर बेतरतीब तरीके से लिपटी हुई थी। अधा बदन साफ़ नज़र आ रहा था। अँधेरे मे मैं खुद को अच्छे से नहीं ढँक पाई थी, सुडोल स्तन पिली रौशनी मे जगमगा रहे थे.images-2

मैंने देखा अरुण भोचक्का सा एकटक मेरी छती को घूर रहा है। मैंने झट चादर को ठीक किया। चादर कई जगह से फटी हुई थी इसलिए एक स्तन ढकती तो दूसरा बाहर निकल आता, मुझे जल्द ही अहसास हो गया की ये चद्दर कुछ ज्यादा ही छोटी है या फिर सिर्फ चद्दर का टुकड़ा ही गई,
दोनों मेरे निवस्त्र योवन को निहार रहे थे। images-1 मैंने दरवाजा बंद कर दिया. बत्ती बंद हो गई. एक झुरझुरी सी पुरे जिस्म मे दौड़ गई, जिसका केंद्र मेरे गीले पेट पर स्थित नाभि थी.
“अरुण प्लीज़ मेरे कपड़ो को सुखने केलिए डाल दो ।” मैने मरी हुई आवाज़ मे कहाँ, मुझमे उस फटी पुरानी चद्दर को पहन आगे जाने की हिम्मत नहीं थी.
अरुण ने मेरे हाथों से कपड़े ले लिए। मेरे बदन पर अब केवल गीली पैंटी थी, जिसे मैं अलग नहीं करना चाहती थी। क्यूंकि इस वक़्त जैसी थी मेरी इज़्ज़त का सहारा मेरी पैंटी ही थी,
ठण्ड अब भी लग रही थी मगर क्या किया जा सकता था। कुछ देर बाद दोनों भी ठंड से बचने के लिए गाड़ी में आ गए। दोनो के बदन पर भी बस एक एक पैंटी थी। उनके नंगे जिस्मो पर ना चाहते हुए भी मेरी नजर जा टिकी.
“यार, मुकुल ठंड से तो रात भर में बर्फ़ की तरह जम जायेंगे.। कैबिनेट में रम की एक बोतल रखी है उसको निकालो।” अरुण ने कहा.
मुकुल ने कैबिनेट से एक बोतल निकाली। लाइट जला कर डैश बोर्ड के अंदर कुछ ढूंढने लगा। “सर, ग्लास नहीं है।” उसने कहा.
“अबे ऐसी भयानक ठण्ड मे गिलास का क्या काम मुँह से लगा और सीधा ही घूंट भर।” अरुण ने बोतल लेकर मुंह से लगाया और दो घूंट लेकर मुकुल की तरफ बढ़ाया।

मुकुल ने भी एक घूंट लिया। “नीतू तू भी दो घूंट लेले सारी सर्दी निकल जायेगी।” अरुण ने कहा.

“नहीं.. ना... ना... मैं दारू नहीं पीती ” मैंने मना कर दिया। मगर कुछ ही देर में मुझे अपने फैसले पर गुस्सा आने लगा। वैसे भी दो आदमखोरों के बीच में मैं इस तरह का कोई जोखिम नहीं लेना चाहती थी कि मेरा अपने ऊपर से कंट्रोल हट जाए। मगर ठंड ने मेरी मति मार दी। मैं उन दोनों को पीते हुए देख रही थी। उन्हें फिर मुझसे पूछा.
इस बार मेरे ना में दम नहीं था. मैं हाँ और ना के बीच कहीं फंस गई थी.
अरुण ने बोतल मुझे पकड़ा दी। “अरे ले यार कोई पाप नहीं लगेगा। एक डॉक्टर के मुंह से इस तरह की दकियानूसी बातें सही नहीं लगतीं।” अरुण ने कहा.

मैने काँपते हाथों से बोतल ले लिया। और मुंह से लगाकर एक घूंट लिया। ऐसा लगा मानों तेजाब मेरे मुंह और गले को जलाता हुआ पेट मे जा रहा है।
वेक.... वेक....खो... खो....ई, मुझे तुरंत ही उबकाई आ गई, मैंने बड़ी मुश्किल से मुंह पर हाथ रख कर अपने आप को रोका।
“लो एक और घूंट लो।” अरुण ने कहा.
“नहीं, कितनी गंदी चीज़ है तुम लोग पीते कैसे हो।” मैने कहा.
मगर कुछ देर बाद मैंने हाथ बढ़ा कर बोतल ले ली और एक और घूंट लिया। इस बार उतनी बुरी नहीं लगी.

“बस और नहीं।” मैंने बोतल वापस कर दिया। मेरी इन हरकतों के करण चादर मेरे एक स्तन से हट चूका था, मुझे इसका कोई अहसास नहीं था, मेरा सर घूम रहा था. अपने आप को बहुत हल्का फुल्का महसूस कर रही थी। अपने ऊपर से नियंत्रण ख़त्म होने लगा। जिस्म भी गरम हो चला था, अब ठण्ड नहीं लग रही थी.
अरुण सामने का दरवाजा खोल कर बाहर निकला और पीछे की सीट पर आ गया। मैं अनजाने भय से सिमटते हुए सरक गई मगर वो मेरे पास ही सरक गया और लगभग मेरे जिस्म से आ चिपका.
“इसससस....देखो अरुण ये सब सही नहीं है।” मैं मना जरूर कर रही थी लेकिन अरुण के जिस्म मे एक अजीब सी गर्माहट थी जो मुझे साफ महसूस हो रही थी.
“मैं तो सिर्फ़ तुम्हारे काँपते हुए बदन को गर्मी देने की कोशिश कर रहा हूँ।”
“नहीं मुझे नहीं चाहिए।”मैंने अरुण को धक्का देती रह गई मगर उसने मुझे अपनी बाहों में समा लिया।
उसके गरम होंठ मेरे होंठो से चिपक गए।kool-imagesgallery-kissgif5 धीरे-धीरे मैं कामजोर पड़ती जा रही थी। मैंने उसे धकेल के दूर करने की कोशिश की मगर अरुण मेरे बदन से और जोर से चिपक जा रहा था.
तभी उसने एक झटके में मेरे बदन से चादर को अलग कर दिया।
“मुकुल ये चादर संभाल” अरुण ने चादर आगे की सीट पर फेक दी जिसे मुकुल ने संभाल लिया। मेरे बदन पर अब सिर्फ एक पैंटी के अलावा कुछ भी नहीं था। मैंने अपने हाथो को क्रॉस कर अपने बड़े सुडोल स्तनों को ढकने की नाकामयाब कौशिश की.
कोशिश सफल ना होने पर मैंने मुकुल को ढकेलते हुए कहा”छोड़ो मुझे वरना मैं शोर मचाउंगी”

“मचाओ शोर।” जितना चाहे गला फाड़ के चिल्लाओ यहां दूर दूर तक सिर्फ पेड़ और जानवरों के अलावा तुम्हारी आवाज़ सुनने वाला कोई नहीं है।”
तभी आगे बैठे मुकुल ने जीप की लाइट जला दी और हमारी रासलीला देखने लगा, अरुण के हाथ मेरे बदन को टटोल रहे थे, इसससससस..... उफ्फ्फ... अरुण के गर्म हाथ मेरे जिस्म को राहत पंहुचा रहे थे, उसका नंगा जिस्म मेरे नंगे जिस्म से रगड़ खाने लगा था,
मैंने काफी बचने की कोशिश की, अपनी सहेली की दुहाई भी दी, मगर दोनों पूरे राक्षस बन चुके थे। मेरा विरोध भी धीरे-धीरे मंद पड़ता जा रहा था। अरुण ने मेरे दोनों स्तनों को अपनी हथेलीयों मे भींच लिया, उन्हें रगड़ने लगा,
उसकी रगड़ से जैसे कोई चिंगारी मेरे जिस्म मे कोंध रही थी, ये चिंगारी मेरे पेट से होती जांघो के बीच कहीं समा जा रही थी, अभी ये काफ़ी नहीं था की अरुण मे मेरे उभरे तीर के समान कड़क निपल्स अपने मुँह में ले कर चूसने लगा.

अरुण ने एक हाथ नीचे लेजाते हुए अपनी पैंटी भी उतार दी और मेरे हाथ को पकड़ कर अपने तपते लिंग पर रख दिया।
मुझे अरुण का गर्म और मजबूत लंड पकड़ते ही तेज़ झटका सा लगा, पुरे जिस्म मे एक लावा सा बहने लगा,
मैने तुरंत ही हाथ हटाने की कोशिश की परन्तु अरुण ने मेरे हाथ को अपने लंड मजबूती से पकड़ रखा था। शराब अपना असर दिखाने लगी. मेरा बदन भी गरम होने लगा। कुछ देर बाद मैंने अपने को ढीला छोड़ दिया।
अरुण के हाथ मेरे सुडोल स्तनों को मसलने लगे। उसके होंठ मेरे होंठो से चिपके हुए थे और जीभ मेरे मुंह के अंदर घूम रही थी।
मुकुल जब से अरुण और मेरी हरकते देख रहा था, उसे अब सब्र नहीं रखा गया और दूसरी तरफ का दरवाजा खोल कर मेरे दूसरी तरफ आ गया। उसने पहली सीट के लीवर को खोल कर चौड़ा कर दिया।
पीछे की सीट खुल कर एक आरामदेह बिस्तर के रूप मे बदल गई, हालांकि जगह कम थी मगर इस काम के लिए काफी थी।

दोनों एक साथ मेरे बदन पर टूट पड़े। मैं उनके बीच किसी मछली को तरह फसी कसमसा रही थी। दोनों ने मेरे एक-एक स्तन को थाम लिया,इस्स्स्स..... मुझे ये छुवन अच्छी लगने लगी थी, दोनों मेरे स्तनों को मसल रहे थे, चूस रहे थे, निप्पल को दांतो से काट रहे थे ,
उत्तेजना से मेरा भी बुरा हाल था, दूसरा हाथ बड़ा कर मैंने मुकुल का लंड भी पकड़ के मुट्ठी मे भींच लिया 20240511-213750 ,
दोनों के लंड मे सहला रही थी, अपनी हथेली से घिस रही थी, मेरी पैंटी पहले से ही गीली थी ऊपर से चुत से निकलते पानी ने और भी गिला कर दिया जैसे कोई रस टपक रहा हो,
तभी दोनों ने मेरी पैंटी को मेरे बदन से नोच कर अलग कर दिया। दो जोड़ी उंगलियां मेरी चुत मे जा धसी.... उउउफ्फ्फ्फ़.... आअह्ह्ह.....आउच.... मेरे मुँह से वासना भरी आवाजें निकल रही थी।20160127194236uid

अरुण ने मुझे गुड़िया की तरह उठा कर मेरी जाँघे फौलाद कर अपने ऊपर बैठा लिया, मेरा नंगा भीगा जिस्म अरुण के गर्म जिस्म से जा चिपका,।मेरे बड़े-बड़े सुडोल नुकिले स्तन उसके सीने से लग के पिसे जा रहे थे। अरुण लगातार मेरे होठों को चूम रहा था।
मुकुल के होंठ मेरी पीठ पर फ़िसल रहे। अपनी जीभ निकाल कर मेरी गर्दन से लेकर मेरे नितंबों तक ऐसा फिर रहा था मानो बदन पर कोई हल्के से पंख फेर रहा हो। मेरे पुरे जिस्म को किसी पागल कुत्ते की तरह चाट चाट के सूखा रहा था.
बदन में झुरझुरी सी दौर रही थी, मैं डोनो की हरकतों से पागल हुई जा रही थी..रही सही झिझक भी ख़तम हो गई थी
ना चाहते हुए भी मैं अपनी चुत को अरुण के लंड पर मसलने लगी। अरुण का लंड मेरी चुत के पानी से पूरी तरह भीग गया था, मैं किसी रंडी की तरह अरुण के लंड को अपनी चुत से घिस रही थी, gifcandy-black-and-white-89 676-1000 ऐसी स्थिति में मुझे कोई देख लेता तो पक्का सस्ती रंडी ही समझता, मेरी गरिमा, मेरी प्रतिष्ठा, मेरी शिक्षा सब इस वासना के सामने छोटी पड़ गई थी।

मेरी आँखों में मेरे प्यार, मेरा हमदम, मेरे पति के चेहरे पर दोनों के चेहरे नज़र आ रहे थे। शराब ने मुझे अपने वश में ले लिया था। सब कुछ घूम रहा था. महसूस हो रहा था कि जो हो रहा है वो अच्छा नहीं है लेकिन मैं किसी को मना करने की स्थिति में नहीं थी, दोनों के हाथ मेरी छतियों को जोर-जोर से मसलने लगे। अरुण ने मेरे होठों को चूस चूस कर सुजा दिया था। फ़िर उन्हें छोड़ कर मेरे निपल्स पर टूट पड़े।

अपने दोनों हाथों से मेरे एक-एक स्तन को निचोड़ रहा था और निपल्स को मुंह में डाल कर चूस रहा था। ऐसा लग रहा था मानो बरसों के भूखे के सामने कोई दूध की बोतल आ गई हो। दांतों के निशान पूरे स्तन पर नजर आ रहे थे।tumblr-m7u0cn3p1b1rugs9ro1-500

मुकुल इस वक्त मेरी गर्दन पर और मेरी गांड पर दाँत गड़ा रहा था। मैं मस्त हुई जा रही थी, दो तरफ़ा हमला मेरे जीवन का पहला अनुभव था, इतना मजा आता है मुझे अहसास नहीं था, फिर मुकुल ने भी अपना अंडरवियर उतार कर मेरे सर को पकड़ा और मेरे पास बैठ कर अपने लिंग पर झुकाने लगा। मैं उसका इरादा समझ कर कुछ देर तक मुंह को इधर उधर घुमाती रही।
मगर उसके आगे मेरी ना चली. वो मेरे खुबसूरत होठों पर अपना काला लंड फेरने लगा। मुकुल के लंड के टोपे की मोटाई देख कर मैं सिहर उठी, उसके लंड से चिपचिपा पदार्थ निकल कर मेरे होठों पर लग रहा था। तभी अरुण ने मुझे जांघो से उतर कोहनी और घुटनों के बाल पर चौपाया बना दिया और मेरी चुत को छेड़ने लगा। चुत की फांकें अलग-अलग उंगलियां अंदर बाहर करने लगीं। मैं बस एक खिलौना बन कर रह गई थी, जैसा वो कर रहे थे उनका साथ दे रही थी, असीम सुख के सागर मे गोते लगा रही थी.

मुकुल मेरे सर को अपने लंड पर दबा रहा था। मुझे मुंह नहीं खोलता देख कर मेरे निपल्स को बुरी तरह मसल दिया। मैं जैसे ही चीखने के लिए मुंह खोली उसका मोटा लंड जीभ को रास्ते से हटाते हुए गले तक जाकर फंस गया.
मेरा दम घुट रहा था. मैंने सर को बाहर खींचने के लिए जोर लगाया तो उसने अपने हाथ को कुछ ढीला कर दिया। लंड आधा ही बाहर निकला होगा उसने दोबारा मेरे सर को दबा दिया। खो.... खो....वेक .. वेक... मुकुल मेरे मुँह को चुत की तरह चोद रहा था।gifcandy-face-fucking-28

उधर अरुण मेरी योनि में अपनी जीभ अंदर बाहर कर रहा था। मैं कामोंउत्तेजना से चीखना चाहती थी मगर गले में मुकुल का लंड पच पच कर अंदर बाहर हो रहा था, मुँह से थूक निकल कर जीप के फर्श पर गिर रहा था, वेक... वेक.... गु... गु.... आअह्ह्ह.... इसससस....
मैं दो तरफ़ा हमले और बर्दाश्त ना कर सकी और अरुण के मुँह मे ही मेरी चुत ने पानी छोड़ दिया, अरुण पूरी लगन से मेरी चुत को चाटे जा रहा था, काफी देर तक चूसने के बाद अरुण उठा। उसके मुँह में, नाक पर मेरा कामरस लगा हुआ था।
मैं उसकी हालात देख तड़प उठी, अब किसी भी कीमत पट मुझे लंड चाहिए था, मैंने अरुण की और देखा शायद वो इशारा समझ गया
उसने अपने लंड को मेरी चुत की दोनों फांको कर बीच सटा दिया। फिर बहुत धीरे धीरे उसे अंदर धकेलने लगा।
किसी लोहे की रोड जैसे अपने मोटे ताजे लंड को पूरी तरह मेरी चुत मे घुसा दिया। मेरी चुत पहले से ही गीली थी और लंड लेने के लिए तैयार थू, शायद इसलिए मैं इतने मोटे लंड को आसानी से झेल गई.31037
अरुण ने लंड पीछे खिंच वापस अंदर ठूस दिया, मेरा पूरा जिस्म सिहर उठा.
अब आलम ये था की दो मर्द मेरे छेदो को अपने लंड से भरे हुए थे,

दोनों के लिंग दोनों तरफ से अंदर बाहर हो रहे थे, आअह्ह्ह..... वेक... वेक्क.... पच.. पच.... की अवज़ो के साथ पूरी जीप ह रही थी,। मेरे स्तन पके आम की तरह झूल रहे थे,
मैंने सर नीचे झुका कर ददेखा मेरे स्तनों पर जगह जगह लाल निशान पड़ गए थे, । कुछ देर बाद मुझे लगने लगा कि अब मुकुल डिस्चार्ज होने वाला है। ये देख कर मैंने लंड को अपने मुँह से निकल ने का सोचा। मगर मुकुल ने शायद मेरे मन की बात पढ़ ली। उसने मेरे सर को पूरी ताकत से अपने लंड पर दबा दिया। मूसल जैसा लंड मेरे गले के अंदर तक घुस गया।
मुकुल का लंड तेज़ झटके खाने लगा और ढेर सारा गरम गरम वीर्य उसके लंड से निकल कर मेरे गले से होता हुआ मेरे पेट में समाने लगा। मेरी आंखें दर्द से उबली पड़ी थी। दम घुट रहा था.cum-deep-in-her-throat-001 काफ़ी सारा वीर्य पिलाने के बाद मुकुल ने अपने लंड को मेरे मुँह से निकला।
उसका लंड अब भी झटके खा रहा था। और बूंद बूंद वीर्य अब भी टपक रहा था, पूरा लंड वीर्य और मेरे थूक से साना हुआ था,। मेरे होठों से उसके लिंग तक वीर्य एक रेशम की डोर की तरह चिपका हुआ था। खो... खो.... खो.... मैं जोर जोर से सांसें ले रही थी
अरुण पीछे से जोर जोर से धक्के दे रहा था। और मैं हर धक्के के साथ मुकुल के ढीले पड़े लिंग से भिड़ रही थी।

“ऊउइइइइ मां ऊऊहह हम्म्म्प्प, आअह्ह्हम.... उफ्फ्फ्फ़... जैसी उत्तेजित आवाजें निकालने लगी। मेरी चुत ने एक बार फिर ढेर सारा रस छोड़ दिया। मगर उसके रफ़्तार में कोई कमी नहीं आयी थी। External-Link-gifs-by-moaningtillmorning मेरा जिस्म जवाब दे रहा था, मेरी बांहे मुझे और थामे ना रख सकी। और मैंने अपना सर मुकुल की गोद में रख दिया। काफी देर तक धक्के मारने के बाद अरुण के लंड ने अपनी धार से मेर चुत को लबालब भर दिया।24560316

हम तीनो गहरी गहरी सांसें ले रहे थे. खेल तो अभी शुरू ही हुआ था। दोनों ने कुछ देर आराम करने के बाद अपनी जगह बदल ली। अरुण ने अपना लंड मेरे मुँह मे डाल दिया तो मुकुल ने मेरी चुत मे लंड डाल धक्के मारने लगा,
मेरी धुआँधार चुदाई फिर से शुरू हो गई थी, और मैं भी उनका भरपूर साथ दे रही थी, दोनों ने करीब आधे घंटे तक मेरी इसी तरह से जगह बदल कर चुदाई की। मैं तो दोनो का स्टैमिना देख कर हैरान थी। कुछ ही देर मे दोनों ने दोबारा मेरे बदन पर वीर्य की वर्षा की।

हैंफ़्फ़्फ़... हमफ़्फ़्फ़.... मैं उनके सीने से चिपकी सांसे ले रही थी। “अब तो छोड़ दो... अब तो तुम दोनों ने अपने मन की मुराद पूरी कर ली। मुझे अब आराम करने दो।” मैने कहा.
मगर दोनों में से कोई भी मेरी मिन्नतें सुनने के मूड में नहीं लग रहा था, कुछ देर तक मेरे बदन से खेलने के बाद दोनों के लिंग में फिर दम आने लगा।
अरुण सीट पर लेट गया और मुझे ऊपर आने का इशारा किया। मैं कुछ कहती है इससे पहले मुकुल ने मुझे उठाकर उसके लिंग पर बैठा दिया। मैंने भी अपनी चुत को अरुण के खड़े लंड पर टिका दिया, हवस के खेल मे मैं भी कहाँ पीछे थी, अरुण ने अपने लंड को पकड़ मेरी चुत के मुहने पर सेट कर दिया,
मैं धीरे धीरे उसके लंड पर बैठ गई। पूरा लंड अंदर लेने के बाद मैं उसके लंड पर उठने बैठने लगी। तभी दोनों के बीच आँखों ही आँखों में कोई इशारा हुआ। अरुण ने मुझे खींच कर अपने नंगे बदन से चिपका लिया। अरुण मेरे मेरी गांड को फेला कर मेरे पिछले छेद पर उंगली से सहलाने लगा। फिर उंगली को कुछ अंदर तक घुसा दिया।
आउच.... नहीं.... उउफ्फ्फ... नहीं अरुण मैं चिहंक उठी. मैं उसका इरादा समझ कर सर को इंकार में हिलाने लगी तो अरुण ने मेरे होंठो को अपने होंठो में दबा लिया।
मुकुल ने अपनी उंगली निकाल कर मेरे चुत से निकलर हुए रस को अपने लंड और मेरी गांड के छेद पर लगा दिया। मैं इन दोनों बालिश्त आदमियों के बीच बिल्कुल असहाय महसूस कर रही थी।

दोनों मेरे जिस्म को जैसी मर्जी वैसे मसल रहे थे। मुकुल ने अपना लंड मेरे गुदा द्वार पर टिका दिया।

“नहीं प्लीज़ वहाँ नहीं” मैंने लगभाग रोते हुए कहा “मैं तुम दोनो को सारी रात मेरे बदन से खेलने दूंगी मगर मुझे इस तरह मत चोदो मैं मर जाऊँगी” मगर मुकुल अपने काम में जुट रहा। मैंने अपने हाथ को अरुण की छाती पर मार उठने की कोशिश की लेकिन अरुण ने अपने बालिश्त बांहों मे मुझे जकड़े रखा,
मुकुल ने अपने लंड मेरे नितंबों को फेला कर एक जोरदार धक्का मारा। “उउउउउइइइइ माआआ मर गई” मेरी चीख़ पूरे जंगल में गूंज गई। मगर दोनों हंस रहे थे.
"थोड़ा सब्र करो सब ठीक हो जाएगा। सारा दर्द ख़त्म हो जाएगा।” मुकुल ने मुझे समझाने की कोशिश की। मेरी आँखों से पानी बह निकला. मैं दर्द से से रोने लगी. मुकुल ने फिर भी लंड बाहर ना निकाला जबकि धीरे धीरे मुझे सहलाने लगा, मुझे ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने मेरी गांड मे लोहे की गरम रोड डाल दी हो, दर्द से शरीर फटा जा रहा था,
नीचे से अरुण मेरे स्तनो को मसल रहा था, निप्पल को सहला रहा था, अजीब सी दर्दभारी उत्तेजना का अनुभव ही रहा था मुझे, अरुण ने अपने लंड को मेरी चुत मे धीरे धीरे सहलाना शुरू किया, कुछ ही देर बाद मैं शांत हो गई, हालांकि दर्द अभी भी था लेकिन वो कुछ मीठा मीठा सा था,
अब मुकुल ने धीरे-धीरे अपने पुरे लंड को अंदर कर दिया। मैंने और सूरज ने शादी के बाद से ही खूब चोदा था मगर उसकी नियत कभी मेरे गांड पर ख़राब नहीं हुई।

मगर इन दोनों ने तो मुझे कहीं का नहीं छोड़ा। पूरा लंड अंदर कर के मुकुल मेरे ऊपर लेट गया। मैं दोनो के बीच सैंडविच की टिक्की की तरह फसी हुई थी।
एक तगड़ा लंड आगे से और एक लंड पीछे से मेरे जिस्म में धसा हुआ था। दोनों लंड अंदर कुछ ही दूरी पर हलचल मचा रहे थे। दोनों ने अपने-अपने बदन को हरकत दे दी। मैं दोनों के बीच पिस रही थी। मैं भी अब आनंद की चरमसिमा पर थी, दोनों के धक्के ना जाने कितनी देर टक चलते रहे, दोनों के मुसल मोटे लंड मेरी चुत और गांड की खाल उधेड़ते रहेbbc-001-1 और एक साथ दोनो डिस्चार्ज हों गए.

मैं भी खुद को संभल ना सकी दोनों के गर्म वीर्य का अहसास पाते ही मेरी चुत से भी पानी छलक उठा। मेरा पूरा बदन गीला हो गया। मेरे मुँह, चुत, गांड तीनो छेदों से वीर्य टपक रहा था। तीनो के “आआआआअह्हह्हहूऊओह्हह्ह.. ” से जंगल गूँज रहा था।
तीनो कर जिस्म पसीने से भीगे चमक रहे थे,
ताबड़तोड़ दरद भरी चुदाई के बाद अब भूक भी लगने लगी थी,। मुकुल ने जीप के पीछे से एक डिब्बे से कुछ सैंडविच निकाले जो शायद अपने लिए रखे थे।
हम तीनो ने उसी हालत में आपस में मिल बांट कर खाया।

भूक शांत हुई तो जिस्म की भूख हिलोरे मारने लगी, फ़िर से सम्भोग चालू हुआ तो घण्टों चलता रहा दोनों ने मुझे रात भर बुरी तरह झंझोर दिया। कभी चुत मे, कभी गांड मे तो कभी मुंह में हर जगह जी भर कर मालिश की। मेरे पूरे बदन पर वीर्य का मानो लेप चढ़ा हुआ था। images-11 सम्भोग करते-करते हम निधाल हो कर वहीं पड़ गए। कभी किसी की आंख खुलती तो मुझे कुछ देर तक चोद के ही वापस सोता.
पता ही नहीं चला कब भोर हो गई। अचानक मेरी आंख खुली तो देखा बाहर लालिमा फेल हो रही है। मैं दोनों की गोद मे बिल्कुल नंगी सूखे वीर्य की पापड़ी से ढकी पड़ी थी,

मुझे अपनी हालत पर शर्म आने लगी। मैंने शीशे पर नजर डाली तो अपनी हालत देख कर रो पड़ी। होंठ सूज गए थे, चेहरे पर वीर्य सुख के सफ़ेद पापड़ी की शक्ल ले चूका था,images-5
मैं खुद को ऐसे और ना देख सकी, एक झटके से उठी और बाहर निकल कर अपने कपडे पहने। मुझे अपने आप से घिन आ रही थी। सड़क के पास ही थोड़ा पानी जमा हुआ था। जिस से अपना चेहरा धो कर अपने आप को व्यवस्थित किया।

वो दोनों भी उठ चुके थे, अरुण मेरे बदन से लिपट कर मेरे होठों को चूम लिया। मैंने उसे ढकेल कर अपने से अलग किया। “मुझे मेरे घर वापस छोड़ दो।” मैने गुस्से से कहा.
अरुण सामने की सीट पर बैठ कर जीप को स्टार्ट किया। जीप एक ही झटके में स्टार्ट हो गई। मैं समझ गई कि ये सब इन दोनों की मिली भगत थी। मुझे चोदने के लिए ही सुनसान मे गाडी ख़राब कर दी थी, घंटे भर बाद हम घर पहुंचें। रास्ते में भी दोनों मेरे स्तनों से खेलते रहे, जैसे मैं उनकी मिल्कीयत हूँ,
हम जब तक घर पहुंचे सूरज अपने काम पर निकल चुका था जो मेरे लिए बहुत ही अच्छा रहा वरना उसको मेरी हालत देख कर साफ पता चल जाता कि रात भर मैंने क्या क्या गुल खिलाये हैं।
अरुण मुकुल अपने रास्ते चले गए थे, मैं बाथरूम मे सावर के नीचे खड़ी खुद को कोष रही sath आखिर गलती मेरी भी थी.
मैं बहक गई थी.

समाप्त

Achchi story likhi andy bhai..lekin alag thread mein daalte...

Koi nahi aise hi likhte rehna...
 
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