Its a copy story from net , credit goes to original writer *********** keep reading keep supporting
Update-1
निर्मला ए,सी, की ठंडी हवा में अपने कमरे में अपने पति के साथ गहरी नींद में सोई हुई थी कि अचानक उसे ऐसा महसूस हुआ कि कोई उसे उसकी बांह पकड़ कर सीधे पीठ के बल कर दीया, और तभी ऊसे ऊसकी गाउन ऊपर की तरफ सरकती हुई महसूस होने लगी। एक पल तो ऊसे ऐसा लगा कि वह सपना देख रही है, क्योंकि वह बहुत ही गहरी नींद में सोई हुई थी वह चाहकर भी अपनी आंखों को खोल नहीं पा रही थी। गाउन पूरी तरह से उसके कमर तक चढ़ चुकी थी कमर से नीचे वह पूरी तरह से नंगी थी, केवल पेंटी ही ऊसके नंगेपन को छीपाए हुए थी की तभी एक झटके से उसकी पैंटी भी उसकी टांगों से होकर के बाहर निकल गई,, कमर से नीचे वह पूरी तरह से नंगी हो चुकी थी लेकिन कुछ भी उसके समझ में नहीं आ रहा था उसकी आंखें बंद थी। वह इतनी गहरी नींद में थी की आंखें खोलने भर की ताकत उसमें नहीं थी बस एक सपना सा ऊसे लग रहा था। तभी उसकी मोटी मोटी जांघो पर दो हथेलियां महसूस हुई जो कि उसकी जांघों को फैला रही थी, तबीयत पर था इसलिए उसे अपने ऊपर झुकती हुई महसूस हुई और वह कुछ समझ पाती इससे पहले ही उसे अपनी बुर पर कड़ेपन का अहसास हुआ, जैसे ही उसने आंख खोली उसके मुंह से दर्द भरी कराहने की आवाज निकल गई,,,,,
आहह,,,,,,,,
( उसके कराहने की आवाज के साथ ही उसकी बुर में पूरा लंड जड़ तक घुस गया,,,, )
आहहहहह,,,,,,, रुक जाइए प्लीज ऐसा मत करिए मुझे बहुत दर्द होता है,,,,,,, रहने दीजिए प्लीज मुझे बहुत दर्द हो रहा है,,,,,,,,,,,
आहहहहहहह,,,,,,,,, अाहहहहह,,,,,,, औहहहहह,,,, मा्ंआ,,,,,,,, ( निर्मला के दर्द कि उसकी पीड़ा की परवाह किए बिना ही वह उसकी बुर में बेरहमी से लंड पेलता हुआ बोला।)
शादी के 20 साल गुजर जाने के बाद भी तू चुदवाते समय ऐसे चिल्लाती है जैसे की पहली बार करवा रही हो। ( इतना कहते हुए वह फिर से जोर जोर से दो-चार धक्के और लगा दिया।)
आहहहहहहह,,,,,, आहहह,,,,,, आहहहहहहह,,,,,,
ओहहहहह,,,, म्मांआआ,,,,,,, तो यह भी कोई तरीका है कितना दर्द होता है मालूम है आपको,,,,,,
मेरा तो यही तरीका है तेरे कहने पर तुझे नहीं चोदुंगा जब मेरा मूड करेगा तभी तुझे चोद़ूंगा।
मैंने कब आपसे कभी कही कि मुझे यह सब करना है,,,,,, ( निर्मला आंखों में दर्द के आंसू छलकाते हुए रुंवासी होकर बोली।)
तो कुछ नहीं कहती यही तो तेरी गलती है,, तुझसे शादी करके मेरी जिंदगी खराब हो गई,, मुझे खुले बिचारो वाली बीबी चाहिए थी लेकिन मेरीे नसीब खराब थी कि मुझे तुम मिल गई।
( इतना कहते हुए जोर जोर से दो चार धक्के और लगाया ही था कि वह झड़ने लगा, वह अपना पानी निर्मला की बुर में उड़ेलने लगा और हाँफते हुए शोभा के ऊपर ही ढह गया। कुछ देर तक वह निर्मला के ऊपर ही लेटा रहा और फिर उठकर सीधे कमरे के बाहर चला गया,,, निर्मला अपनी किस्मत को कोसते हुए आंसू बहाते हुए लेटी रही,,,,, निर्मला अधूरी जिंदगी जी रही थी उसे वह दिन याद आ गया जब वह अशोक से शादी करके पहली बार इस घर में आई थी। लड़कियों के मन में शादी को लेकर जिस तरह के अरमान होते हैं, वही सब अरमान निर्मला के मन में भी था। वह भी अपने मन में सपना संजोए हुई थी कि उसका पति पढ़ा-लिखा और समझदार हो जो उस से बेहद प्यार करे, उस को सम्मान दे उसकी इज्जत करें उसकी जरूरतों का ख्याल रखें। जोकी निर्मला खुद ग्रेजुएट थी। समझदार चतुर और बेहद संस्कारी लड़की थी। संस्कार तो उसे विरासत में मिली थी क्योंकि उसके माता पिता दोनों सरकारी स्कूल में शिक्षक शिक्षिका के पद पर थे। उन्होंने निर्मला को भी अपनी ही तरह पढ़ा-लिखा कर ग्रेजुएट करके एकदम संस्कारी लड़की बनाए हुए थे। निर्मला भी अपने माता पिता के राहे कदम पर चलते हुए कभी भी समाज में ऐसा कोई काम नहीं कि जिसे उसके माता पिता की नजरें शर्म से नीचे झुक जाए। वह भी ससुराल में स्कूल में शिक्षिका की पदवी पर थी। देसी वह खुद ही दूसरे बच्चों को भी वैसा ही संस्कार दे दी थी और हमेशा शिक्षण को ही ज्यादा महत्व देती थी।
अशोक से शादी करने के बाद उसे लगने लगा था कि उसके सारे सपने पूरे हो गए हैं। और ठीक वैसा ही था अशोक भी उससे बेहद प्यार करता था उसकी जरूरतों का ख्याल रखता था उसको इज्जत देता था। निर्मला भी बेहद खुश थी वह अपने पति को बेहद प्यार करती थी। शादी के 1 साल बीतते ही निर्मला गर्भवती हो गई,, और उसने एक सुंदर से बच्चे को जन्म दि, जिससे दोनों की खुशी दुगनी हो गई। बच्चे के जन्म के बाद धीरे-धीरे अशोक अपने बिजनेस को बढ़ाने में लग गया। वह अपनी पत्नी निर्मला पर कम ध्यान देने लगा अधिकतर समय वह घर से बाहर ही रहने लगा लेकिन इसे भी निर्मला को कोई एतराज नहीं था वह अपने पति अशोक से बेहद खुश थी लेकिन धीरे-धीरे अशोक के रवैया में बदलाव आने लगा,,,,,, शादी के तीन साल बाद ही अशोक का व्यवहार निर्मला की तरफ बेहद रूखा हो गया। धीरे-धीरे वहां उसकी इज्जत करना बंद कर दिया और उसे बार-बार बेइज्जत कर देता था। निर्मला बार-बार अशोक को समझाने की कोशिश करती रहती कि आखिरकार वह ऐसा क्यों कर रहा है उसका स्वभाव इतना ज्यादा चिड़चिड़ा होने लगा। लेकिन अशोक को समझाना निर्मला के लिए बेकार सीधा धीरे धीरे निर्मला को भी समझ में आ गया कि आखिरकार अशोक का व्यवहार उसके साथ इस तरह से क्यों बदल गया।
अशोक जिस तरह से बिस्तर में एक औरत के साथ प्यार करना चाहता था उस तरह से खुलकर निर्मला कभी भी अशोक के साथ बिस्तर पर पेश ना हो सकी।
फिर भी एक जिम्मेदार पत्नी होने के नाते वह अपनी कमी को दूर करने की पूरी कोशिश करते हुए वह बिस्तर पर अशोक के साथ प्यार करने की पूरी कोशिश की लेकिन वह नाकाम रही,,,, लाख चाहने के बाद भी वह बिस्तर में दूसरी औरतों की तरह खुलकर अपने पति से प्यार न कर सकी क्योंकि ऐसा करने में उसके संस्कार उसकीे शर्म बाधा बन जाती थी। धीरे धीरे करके आज शादी के 20 साल गुजर जाने के बाद भी हालात वही के वही थे जबकि वह दोनों की दूरियां और ज्यादा बढ़ने लगी थी निर्मला तो हमेशा इसी प्रयास में लगी रहती थी कि वह अपने पति को पूरी तरह से संतुष्ट करके उसे खुश कर सके, लेकिन हर बार उसे नाकामी ही प्राप्त होती थी। अब हाल यह हो गया था कि दोनों का रिश्ता बस बिस्तर पर 5 मिनट के लिए ही होता था वह भी जब कभी अशोक का मन होता था तभी वह अपनी प्यास बुझाने के लिए इसी तरह से निर्मला के ऊपर चढ़कर उसको दर्द देता हुआ, बेदर्दी बनकर हवस मिटा लेता था। निर्मला इसी तरह से रोती बिलखती अपनी किस्मत को कोसते हुए अशोक का हर दर्द सह रही थी।
आधुनिक युग में जीते हुए भी वहां अपने रीति-रिवाज अपनी मर्यादा अपनी शर्मो-हया को कभी भी त्याग नहीं कर पाई थी। निर्मला के पास मौज शोख का हर सामान सुविधा मौजूद था, पैसे की कोई कमी नहीं थी। बस कमी थी तो प्यार की जिसके लिए वह 20 साल से तरस रही थी।
निर्मला को बिस्तर पर लेटे लेटे ही 7 बज गए । उसे ईस बात का एहसास तब हुआ जब 7:00 का अलार्म बजने लगा। वह झट से बिस्तर पर से उठते हुए अपने गांऊन को नीचे की तरफ सरकाई, तभी उसकी नजर नीचे फर्श पड़ी ऊसकी पैंटी पर पड़ी जिसे वह उठाकर अपनी गोरी गोरी टांगों में डालकर धीरे धीरे ऊपर की तरफ उठा कर कमर में अटका ली, । वह धीरे धीरे चलते हुए दरवाजे के पास आई और दरवाजा खोलकर कमरे से बाहर निकल गई। ऊसे पता था कि अशोक अभी जोगिंग के लिए गया होगा, अशोक को ऑफिस 10:00 बजे जाना होता था इसलिए नाश्ता तैयार करने की कोई जल्दबाजी नहीं थी । वह नहाने के लिए बाथरूम में चली गई । वैसे तो उसके रूम में ही अटैच बाथरूम था लेकिन वह उसका उपयोग बहुत ही कम ही करती थी। बाथरुम में घुसकर वह जल्दी जल्दी ब्रश करने लगी ब्रेस्ट करने के बाद वहां आईने के सामने खड़ी होकर अपने कपड़े उतारने को हुई ही थी कि वह अपने चेहरे को आईने में देखने लगी,, चेहरा क्या था ऐसा लगता था मानो कोई गुलाब का फूल खिल गया हो,,,, एकदम गोल चेहरा, बड़ी- बड़ी कजरारी आंखें, गहरी आंखों में इतना नशा कि ऊनमें डूबने को जी करें। ठीक है मैंने नाक और होंठ ईतने लाल लाल के लिपस्टिक लगाएं बिना ही ऐसा लगता है कि मानो लिपिस्टिक लगाई हो। रेशमी बालों की बिखरी हुई लटे हमेशा उसके गोरे गालों से अठखेलियां करती थी। बला की खूबसूरत लेकिन फिर भी उसके चेहरे पर संतुष्टि का आभाव था, प्यार की कमी थी जो कि उसके पति से बिल्कुल भी नहीं मिल पा रही थी। जिसके लिए वह बरसों से तरस रही थी। उसके मन में एक अजीब सी उदासी छाई थी । वह भी अब अपनी जिंदगी से खुशी की उम्मीद को छोड़ चुकी थी। वह शॉवर के नीचे आई और अपने गाऊन को दोनों हाथों से ऊपर की तरफ ऊठाते हुए अपनी बाहों से होते हुए बाहर निकाल दी, गाऊन निकालते ही उसका गोरा बदन और भी ज्यादा दमकने लगा जिस की चमक से पूरा बाथरूम रोशन हो गया। लंबे कद काठी की निर्मला बिना कपड़ों के और भी ज्यादा खूबसूरत लग रही थी।
उसके बदन पर केवल गुलाबी रंग की पैंटी और गुलाबी रंग की ब्रा थी। बदन के पोर पोर से ऐसा लग रहा था कि मानो मदन रस टपक रहा हो। गुलाबी रंग की कसी हुई ब्रा मे दूध से भरी हुई बड़ी बड़ी चूचियां बड़ी ही मादक लग रही थी, चुचियों का आकार एकदम गोल गोल ऐसा लग रहा था कि जैसे रस से भरा हुआ खरबूजा हो। कसी हुई ब्रा के अंदर कैद चूचियां आधे से भी ज्यादा बाहर नजर आ रही थी। और चुचियों के बीच की गहरी लंबी लकीर किसी भी मर्द को गर्म आहें भरने के लिए मजबूर कर दे। गुदाज बदन का हर एक अंग अलग आभा और कटाव लिए हुए था। बलखाती कमर पूरे बदन को एक अजीब ओर मादक तरीके से ठहराव दिए हुए था। पूरे बदन पर अत्यधिक चर्बी का कहीं भी नामोनिशान नहीं था पूरा शरीर सुगठित तरीके से ऐसा लग रहा था मानो कि भगवान ने अपने हाथों से बनाया हो। गुदाज बांहैं, जिनमें समाने के लिए हर एक मर्द तरसता रहता था। गुदाज बदन जिसे पाने का सपना हर एक मर्द अपने दिल के कोने में बसाए रखता था। मांसल जांघें ईतनी चिकनी की ऊंगली रखते ही उंगली फिसल जाए।
गोरा रंग तो इतना जैसे कि भगवान ने सुंदरता के सारे बीज को एक साथ पत्थर पर पीसकर उसका सारा रस निर्मला के बदन में डाल दिया हो । और कहीं भी हल्के से हाथ रख देने पर भी वहां का रंग एकदम लाल लाल हो जाता था। एक तरह से निर्मला को खूबसूरती की मिसाल भी कह सकते थे।
निर्मला शॉवर को चालू किए बिना ही उसके नीचे खड़ी होकर के अपने बदन को ऊपर से नीचे तक निहारने लगी। उसे खुद ही कुछ समझ में नहीं आ रहा था। इस तरह की अपनी किस्मत पर उसे बहुत ही ज्यादा क्रोध आता था। वह मन ही मन सोचती थी कि इतनी खूबसूरत होने के बावजूद उसका हर एक अंग इतना खूबसूरत होने के बावजूद भी वह अपने पति को अपनी तरफ कभी भी आकर्षित नहीं कर पाई। भगवान ने उसे खूबसूरती देने में कहीं कोई भी कसर बाकी नहीं रखा था । लेकिन शायद भगवान को भी इसकी खूबसूरती से जलन होने लगी और उसने उसकी किस्मत में पति से विमुख होना और प्यार के लिए तरसना लिख दिया।
निर्मला अपनी किस्मत और अपने जीवन से जरा सी भी खुश नहीं थी। वह मन में उदासी लिए अपने दोनों हाथ को पीछे ले जाकर के नरम नरम अंगुलियों के सहारे ब्रा के हुक को खोलने लगी । और अगले ही पल उसने ब्रा का हुक खोल कर अपनी ब्रा को एक एक करके अपनी बाहों से बाहर निकाल दि। जैसे ही निर्मला के बदन से ब्रा अलग हुई वैसे ही उसकी नंगी नंगी चूचियां एक बड़े ही मादक तरीके की गोलाई लिए हुए तनकर खड़ी हो गई। इस उम्र में भी निर्मला की बड़ी बड़ी चूचियां लटकने की वजाय तन कर खड़ी थी, जिसका कसाव ओर गोलाई देख कर लड़कियां भी आश्चर्य से दांतों तले उंगलियां दबा ले। निर्मला खुद ही दोनों चुचीयों को अपनी हथेली में भर कर हल्के से दबाई जोकी ऊसकी बड़ी बड़ी चूचियां उसकी हथेली में सिर्फ आधी ही आ रही थी। कुछ सेकंड तक वह अपनी हथेलियों को चूचियों पर रखी रही उसके बाद हटा ली। उसके बदन पर अब सिर्फ पेंटी ही रह गई थी जिसके दोनों की नारियों पर निर्मला की अंगुलियां ऊलझी हुई थी, और वह धीरे धीरे अपनी पैंटी को नीचे की तरफ सरकाने लगी,,,,, निर्मला तो औपचारिक रुप से ही अपनी पेंटिं को नीचे सरका रही थी लेकिन बाथरूम का नजारा बड़ा हि मादक और कामुक था। अगले ही पल निर्मला ने घुटनों के नीचे तक अपनी पेंटी को सरका दी, उसके बाद पैरों का सहारा लेकर के पेंटी को अपनी चिकनी लंबी टांगों से बाहर निकालकर संपूर्ण रुप से एकदम नंगी हो गई। इस समय बाथरुम की चारदीवारी के अंदर वह पूरी तरह से नंगी थी उसके बदन पर कपड़े का एक रेशा तक नहीं था। बाथरूम के अंदर नग्नावस्था मैं वह स्वर्ग से उतरी हुई कोई अप्सरा लग रही थी। जांघों के बीच पेंटी के अंदर छीपाए हुए बेशकीमती खजाने को वह आजाद कर दी थी, निर्मला ने अपनी बेशकीमती रसीली बुर को एकदम जतन से रखी हुई थी तभी तो इसे उम्र में भी उसकी बुर की गुलाबी पंखुड़ियां बाहर को नहीं निकली थी, बुर पर मात्र एक हल्की सी लकीर ही नजर आती थी जो कि ईस उम्र में नजर आना नामुमकिन था, निर्मला की बुर पर बस एक पतली सी गहरी लकीर ही नजर आती थी और उसके इर्द-गिर्द बाल के रेशे का नाम भी नहीं था वह पूरी तरह से अपनी बुर को हमेशा चिकनी ही रखती थी क्योंकि बुर पर बाल अशोक को बिल्कुल भी पसंद नहीं था ।निर्मला के नितंबों की तारीफ जितनी की जाए उतनी कम थी। नितंबों का उभार कुछ ज्यादा ही था । देखने वाले की नजर जब भी निर्मला की मदमस्त उभरी हुई गांड पर पड़ती थी तो वह देखता ही रह जाता था और मन में ना जाने उस के नितंबों को लेकर के कितने रंगीन सपने देख डालता था।
नितंबों पर अभी भी जवानी के दिनों वाला ही कसाव बरकरार था। गांड के दोनों फांखों के बीच की गहरी लकीर,,,,, ऊफ्फ्फ्फ,,,,,,,, किसी के भी लंड का पानी निकालने में पूरी तरह से सक्षम थी। इतना समझ लो कि निर्मला पूरी तरह से खूबसूरती से भरी हुई कयामत थी ।
उसने शॉवर चालू कर दि और सावर के नीचे खड़ी होकर नहाना शुरू कर दी । वह आहिस्ते आहिस्ते खुशबूदार साबुन को अपने पूरे बदन पर रगड़ रगड़ कर लगाई,,,,, वह साबुन लगाए जा रही थी और उसके बदन पर पानी का फव्वारा गिरता जा रहा था। थोड़ी देर में वह नहा चुकी थी और अपने नंगे बदन पर से पानी की बूंदों को साफ करके अपने बदन पर टॉवल लपेट ली।
अपने नंगे बदन पर टावल लपेटने के बाद वह बाथरुम से निकल कर सीधे अपने कमरे में चली गई। कमरे में जाते ही उसने अलमारी खोली जिसमें उसकी मैं ही महंगी रंग-बिरंगी साड़ियां भरी हुई थी। उसमें से उसने अपने मनपसंद की साड़ी निकाल कर के उसके मैचिंग का ब्लाउज पेटीकोट और उसी रंग की ब्रा पेंटी भी निकाल ली।
उसके बाद वह आईने के सामने खड़ी होकर के अपने बदन पर लपेटे हुए टॉवल को भी निकालकर बिस्तर पर फेंक दी और एक बार फिर से उसकी नंगे पन की खूबसूरती से पूरा कमरा जगमगा उठा। सबसे पहले वहं ब्रा उठा करके उसे पहनने लगी और अपनी बड़ी बड़ी चूचीयो को फिर से अपनी ब्रा में छुपा ली, फिर ऊसने पेंटी पहनकर अपने बेश कीमती खजाने को भी छीपा ली। धीरे धीरे करके उसने अपने बदन पर सारे वस्त्र धारण कर ली। इस वक्त अगर कोई निर्मला को देख ले तो उसके मुंह से वाह वाह निकल जाए। जितनी खूबसूरत और निरवस्र होने के बाद नजर आती है उससे भी कहीं ज्यादा खूबसूरत कपड़े पहनने के बाद दीखती थी।
अपने पसंदीदा गुलाबी रंग की साड़ी में वह बला की खूबसूरत लगती थी। लंबे काले घने रेशमी बाल भीगे होने की वजह से उसका ब्लाउज भीग गया था जिसकी वजह से उसके अंदर की गुलाबी रंग की ब्रा नजर आ रही थी। जो कि बड़ा ही मनमोहक लग रहा था। निर्मला कमर के नीचे साड़ी को कुछ हद तक टाइट ही लपेटती थी जिससे कि उसके कमर के नीचे का गांड का घेराव कुछ ज्यादा ही उभरा हुआ नजर आता था । ईस तरह से साड़ी पहनने की वजह से उसके अंगों का उभार और कटाव साड़ी के ऊपर भी उभर कर सामने आता था। जिसे देख कर हर मर्द ललचा जाता था ।निर्मला आपने के लिए बालों को सुखाकर उसे सवारने लगी।
थोड़ी ही देर में निर्मला पूरी तरह से तैयार हो चुकी थी वह तैयार होने के बाद बेहद खूबसूरत लग रही थी मगर ऐसे में दूसरा कोई भी इंसान देख ले तो उसके मन में निर्मला को पाने की लालसा जाग जाए। निर्मला खुद भी यही सोचती थी, लेकिन उसे यह नहीं समझ में आ रहा था कि उसके पति अशोक को आखिर क्या चाहिए था।
निर्मला तैयार होने के बाद जैसे ही कमरे का दरवाजा खोलने को हुई की घर में बने मंदिर में से घंटी की आवाज आने लगी।
Update-1
निर्मला ए,सी, की ठंडी हवा में अपने कमरे में अपने पति के साथ गहरी नींद में सोई हुई थी कि अचानक उसे ऐसा महसूस हुआ कि कोई उसे उसकी बांह पकड़ कर सीधे पीठ के बल कर दीया, और तभी ऊसे ऊसकी गाउन ऊपर की तरफ सरकती हुई महसूस होने लगी। एक पल तो ऊसे ऐसा लगा कि वह सपना देख रही है, क्योंकि वह बहुत ही गहरी नींद में सोई हुई थी वह चाहकर भी अपनी आंखों को खोल नहीं पा रही थी। गाउन पूरी तरह से उसके कमर तक चढ़ चुकी थी कमर से नीचे वह पूरी तरह से नंगी थी, केवल पेंटी ही ऊसके नंगेपन को छीपाए हुए थी की तभी एक झटके से उसकी पैंटी भी उसकी टांगों से होकर के बाहर निकल गई,, कमर से नीचे वह पूरी तरह से नंगी हो चुकी थी लेकिन कुछ भी उसके समझ में नहीं आ रहा था उसकी आंखें बंद थी। वह इतनी गहरी नींद में थी की आंखें खोलने भर की ताकत उसमें नहीं थी बस एक सपना सा ऊसे लग रहा था। तभी उसकी मोटी मोटी जांघो पर दो हथेलियां महसूस हुई जो कि उसकी जांघों को फैला रही थी, तबीयत पर था इसलिए उसे अपने ऊपर झुकती हुई महसूस हुई और वह कुछ समझ पाती इससे पहले ही उसे अपनी बुर पर कड़ेपन का अहसास हुआ, जैसे ही उसने आंख खोली उसके मुंह से दर्द भरी कराहने की आवाज निकल गई,,,,,
आहह,,,,,,,,
( उसके कराहने की आवाज के साथ ही उसकी बुर में पूरा लंड जड़ तक घुस गया,,,, )
आहहहहह,,,,,,, रुक जाइए प्लीज ऐसा मत करिए मुझे बहुत दर्द होता है,,,,,,, रहने दीजिए प्लीज मुझे बहुत दर्द हो रहा है,,,,,,,,,,,
आहहहहहहह,,,,,,,,, अाहहहहह,,,,,,, औहहहहह,,,, मा्ंआ,,,,,,,, ( निर्मला के दर्द कि उसकी पीड़ा की परवाह किए बिना ही वह उसकी बुर में बेरहमी से लंड पेलता हुआ बोला।)
शादी के 20 साल गुजर जाने के बाद भी तू चुदवाते समय ऐसे चिल्लाती है जैसे की पहली बार करवा रही हो। ( इतना कहते हुए वह फिर से जोर जोर से दो-चार धक्के और लगा दिया।)
आहहहहहहह,,,,,, आहहह,,,,,, आहहहहहहह,,,,,,
ओहहहहह,,,, म्मांआआ,,,,,,, तो यह भी कोई तरीका है कितना दर्द होता है मालूम है आपको,,,,,,
मेरा तो यही तरीका है तेरे कहने पर तुझे नहीं चोदुंगा जब मेरा मूड करेगा तभी तुझे चोद़ूंगा।
मैंने कब आपसे कभी कही कि मुझे यह सब करना है,,,,,, ( निर्मला आंखों में दर्द के आंसू छलकाते हुए रुंवासी होकर बोली।)
तो कुछ नहीं कहती यही तो तेरी गलती है,, तुझसे शादी करके मेरी जिंदगी खराब हो गई,, मुझे खुले बिचारो वाली बीबी चाहिए थी लेकिन मेरीे नसीब खराब थी कि मुझे तुम मिल गई।
( इतना कहते हुए जोर जोर से दो चार धक्के और लगाया ही था कि वह झड़ने लगा, वह अपना पानी निर्मला की बुर में उड़ेलने लगा और हाँफते हुए शोभा के ऊपर ही ढह गया। कुछ देर तक वह निर्मला के ऊपर ही लेटा रहा और फिर उठकर सीधे कमरे के बाहर चला गया,,, निर्मला अपनी किस्मत को कोसते हुए आंसू बहाते हुए लेटी रही,,,,, निर्मला अधूरी जिंदगी जी रही थी उसे वह दिन याद आ गया जब वह अशोक से शादी करके पहली बार इस घर में आई थी। लड़कियों के मन में शादी को लेकर जिस तरह के अरमान होते हैं, वही सब अरमान निर्मला के मन में भी था। वह भी अपने मन में सपना संजोए हुई थी कि उसका पति पढ़ा-लिखा और समझदार हो जो उस से बेहद प्यार करे, उस को सम्मान दे उसकी इज्जत करें उसकी जरूरतों का ख्याल रखें। जोकी निर्मला खुद ग्रेजुएट थी। समझदार चतुर और बेहद संस्कारी लड़की थी। संस्कार तो उसे विरासत में मिली थी क्योंकि उसके माता पिता दोनों सरकारी स्कूल में शिक्षक शिक्षिका के पद पर थे। उन्होंने निर्मला को भी अपनी ही तरह पढ़ा-लिखा कर ग्रेजुएट करके एकदम संस्कारी लड़की बनाए हुए थे। निर्मला भी अपने माता पिता के राहे कदम पर चलते हुए कभी भी समाज में ऐसा कोई काम नहीं कि जिसे उसके माता पिता की नजरें शर्म से नीचे झुक जाए। वह भी ससुराल में स्कूल में शिक्षिका की पदवी पर थी। देसी वह खुद ही दूसरे बच्चों को भी वैसा ही संस्कार दे दी थी और हमेशा शिक्षण को ही ज्यादा महत्व देती थी।
अशोक से शादी करने के बाद उसे लगने लगा था कि उसके सारे सपने पूरे हो गए हैं। और ठीक वैसा ही था अशोक भी उससे बेहद प्यार करता था उसकी जरूरतों का ख्याल रखता था उसको इज्जत देता था। निर्मला भी बेहद खुश थी वह अपने पति को बेहद प्यार करती थी। शादी के 1 साल बीतते ही निर्मला गर्भवती हो गई,, और उसने एक सुंदर से बच्चे को जन्म दि, जिससे दोनों की खुशी दुगनी हो गई। बच्चे के जन्म के बाद धीरे-धीरे अशोक अपने बिजनेस को बढ़ाने में लग गया। वह अपनी पत्नी निर्मला पर कम ध्यान देने लगा अधिकतर समय वह घर से बाहर ही रहने लगा लेकिन इसे भी निर्मला को कोई एतराज नहीं था वह अपने पति अशोक से बेहद खुश थी लेकिन धीरे-धीरे अशोक के रवैया में बदलाव आने लगा,,,,,, शादी के तीन साल बाद ही अशोक का व्यवहार निर्मला की तरफ बेहद रूखा हो गया। धीरे-धीरे वहां उसकी इज्जत करना बंद कर दिया और उसे बार-बार बेइज्जत कर देता था। निर्मला बार-बार अशोक को समझाने की कोशिश करती रहती कि आखिरकार वह ऐसा क्यों कर रहा है उसका स्वभाव इतना ज्यादा चिड़चिड़ा होने लगा। लेकिन अशोक को समझाना निर्मला के लिए बेकार सीधा धीरे धीरे निर्मला को भी समझ में आ गया कि आखिरकार अशोक का व्यवहार उसके साथ इस तरह से क्यों बदल गया।
अशोक जिस तरह से बिस्तर में एक औरत के साथ प्यार करना चाहता था उस तरह से खुलकर निर्मला कभी भी अशोक के साथ बिस्तर पर पेश ना हो सकी।
फिर भी एक जिम्मेदार पत्नी होने के नाते वह अपनी कमी को दूर करने की पूरी कोशिश करते हुए वह बिस्तर पर अशोक के साथ प्यार करने की पूरी कोशिश की लेकिन वह नाकाम रही,,,, लाख चाहने के बाद भी वह बिस्तर में दूसरी औरतों की तरह खुलकर अपने पति से प्यार न कर सकी क्योंकि ऐसा करने में उसके संस्कार उसकीे शर्म बाधा बन जाती थी। धीरे धीरे करके आज शादी के 20 साल गुजर जाने के बाद भी हालात वही के वही थे जबकि वह दोनों की दूरियां और ज्यादा बढ़ने लगी थी निर्मला तो हमेशा इसी प्रयास में लगी रहती थी कि वह अपने पति को पूरी तरह से संतुष्ट करके उसे खुश कर सके, लेकिन हर बार उसे नाकामी ही प्राप्त होती थी। अब हाल यह हो गया था कि दोनों का रिश्ता बस बिस्तर पर 5 मिनट के लिए ही होता था वह भी जब कभी अशोक का मन होता था तभी वह अपनी प्यास बुझाने के लिए इसी तरह से निर्मला के ऊपर चढ़कर उसको दर्द देता हुआ, बेदर्दी बनकर हवस मिटा लेता था। निर्मला इसी तरह से रोती बिलखती अपनी किस्मत को कोसते हुए अशोक का हर दर्द सह रही थी।
आधुनिक युग में जीते हुए भी वहां अपने रीति-रिवाज अपनी मर्यादा अपनी शर्मो-हया को कभी भी त्याग नहीं कर पाई थी। निर्मला के पास मौज शोख का हर सामान सुविधा मौजूद था, पैसे की कोई कमी नहीं थी। बस कमी थी तो प्यार की जिसके लिए वह 20 साल से तरस रही थी।
निर्मला को बिस्तर पर लेटे लेटे ही 7 बज गए । उसे ईस बात का एहसास तब हुआ जब 7:00 का अलार्म बजने लगा। वह झट से बिस्तर पर से उठते हुए अपने गांऊन को नीचे की तरफ सरकाई, तभी उसकी नजर नीचे फर्श पड़ी ऊसकी पैंटी पर पड़ी जिसे वह उठाकर अपनी गोरी गोरी टांगों में डालकर धीरे धीरे ऊपर की तरफ उठा कर कमर में अटका ली, । वह धीरे धीरे चलते हुए दरवाजे के पास आई और दरवाजा खोलकर कमरे से बाहर निकल गई। ऊसे पता था कि अशोक अभी जोगिंग के लिए गया होगा, अशोक को ऑफिस 10:00 बजे जाना होता था इसलिए नाश्ता तैयार करने की कोई जल्दबाजी नहीं थी । वह नहाने के लिए बाथरूम में चली गई । वैसे तो उसके रूम में ही अटैच बाथरूम था लेकिन वह उसका उपयोग बहुत ही कम ही करती थी। बाथरुम में घुसकर वह जल्दी जल्दी ब्रश करने लगी ब्रेस्ट करने के बाद वहां आईने के सामने खड़ी होकर अपने कपड़े उतारने को हुई ही थी कि वह अपने चेहरे को आईने में देखने लगी,, चेहरा क्या था ऐसा लगता था मानो कोई गुलाब का फूल खिल गया हो,,,, एकदम गोल चेहरा, बड़ी- बड़ी कजरारी आंखें, गहरी आंखों में इतना नशा कि ऊनमें डूबने को जी करें। ठीक है मैंने नाक और होंठ ईतने लाल लाल के लिपस्टिक लगाएं बिना ही ऐसा लगता है कि मानो लिपिस्टिक लगाई हो। रेशमी बालों की बिखरी हुई लटे हमेशा उसके गोरे गालों से अठखेलियां करती थी। बला की खूबसूरत लेकिन फिर भी उसके चेहरे पर संतुष्टि का आभाव था, प्यार की कमी थी जो कि उसके पति से बिल्कुल भी नहीं मिल पा रही थी। जिसके लिए वह बरसों से तरस रही थी। उसके मन में एक अजीब सी उदासी छाई थी । वह भी अब अपनी जिंदगी से खुशी की उम्मीद को छोड़ चुकी थी। वह शॉवर के नीचे आई और अपने गाऊन को दोनों हाथों से ऊपर की तरफ ऊठाते हुए अपनी बाहों से होते हुए बाहर निकाल दी, गाऊन निकालते ही उसका गोरा बदन और भी ज्यादा दमकने लगा जिस की चमक से पूरा बाथरूम रोशन हो गया। लंबे कद काठी की निर्मला बिना कपड़ों के और भी ज्यादा खूबसूरत लग रही थी।
उसके बदन पर केवल गुलाबी रंग की पैंटी और गुलाबी रंग की ब्रा थी। बदन के पोर पोर से ऐसा लग रहा था कि मानो मदन रस टपक रहा हो। गुलाबी रंग की कसी हुई ब्रा मे दूध से भरी हुई बड़ी बड़ी चूचियां बड़ी ही मादक लग रही थी, चुचियों का आकार एकदम गोल गोल ऐसा लग रहा था कि जैसे रस से भरा हुआ खरबूजा हो। कसी हुई ब्रा के अंदर कैद चूचियां आधे से भी ज्यादा बाहर नजर आ रही थी। और चुचियों के बीच की गहरी लंबी लकीर किसी भी मर्द को गर्म आहें भरने के लिए मजबूर कर दे। गुदाज बदन का हर एक अंग अलग आभा और कटाव लिए हुए था। बलखाती कमर पूरे बदन को एक अजीब ओर मादक तरीके से ठहराव दिए हुए था। पूरे बदन पर अत्यधिक चर्बी का कहीं भी नामोनिशान नहीं था पूरा शरीर सुगठित तरीके से ऐसा लग रहा था मानो कि भगवान ने अपने हाथों से बनाया हो। गुदाज बांहैं, जिनमें समाने के लिए हर एक मर्द तरसता रहता था। गुदाज बदन जिसे पाने का सपना हर एक मर्द अपने दिल के कोने में बसाए रखता था। मांसल जांघें ईतनी चिकनी की ऊंगली रखते ही उंगली फिसल जाए।
गोरा रंग तो इतना जैसे कि भगवान ने सुंदरता के सारे बीज को एक साथ पत्थर पर पीसकर उसका सारा रस निर्मला के बदन में डाल दिया हो । और कहीं भी हल्के से हाथ रख देने पर भी वहां का रंग एकदम लाल लाल हो जाता था। एक तरह से निर्मला को खूबसूरती की मिसाल भी कह सकते थे।
निर्मला शॉवर को चालू किए बिना ही उसके नीचे खड़ी होकर के अपने बदन को ऊपर से नीचे तक निहारने लगी। उसे खुद ही कुछ समझ में नहीं आ रहा था। इस तरह की अपनी किस्मत पर उसे बहुत ही ज्यादा क्रोध आता था। वह मन ही मन सोचती थी कि इतनी खूबसूरत होने के बावजूद उसका हर एक अंग इतना खूबसूरत होने के बावजूद भी वह अपने पति को अपनी तरफ कभी भी आकर्षित नहीं कर पाई। भगवान ने उसे खूबसूरती देने में कहीं कोई भी कसर बाकी नहीं रखा था । लेकिन शायद भगवान को भी इसकी खूबसूरती से जलन होने लगी और उसने उसकी किस्मत में पति से विमुख होना और प्यार के लिए तरसना लिख दिया।
निर्मला अपनी किस्मत और अपने जीवन से जरा सी भी खुश नहीं थी। वह मन में उदासी लिए अपने दोनों हाथ को पीछे ले जाकर के नरम नरम अंगुलियों के सहारे ब्रा के हुक को खोलने लगी । और अगले ही पल उसने ब्रा का हुक खोल कर अपनी ब्रा को एक एक करके अपनी बाहों से बाहर निकाल दि। जैसे ही निर्मला के बदन से ब्रा अलग हुई वैसे ही उसकी नंगी नंगी चूचियां एक बड़े ही मादक तरीके की गोलाई लिए हुए तनकर खड़ी हो गई। इस उम्र में भी निर्मला की बड़ी बड़ी चूचियां लटकने की वजाय तन कर खड़ी थी, जिसका कसाव ओर गोलाई देख कर लड़कियां भी आश्चर्य से दांतों तले उंगलियां दबा ले। निर्मला खुद ही दोनों चुचीयों को अपनी हथेली में भर कर हल्के से दबाई जोकी ऊसकी बड़ी बड़ी चूचियां उसकी हथेली में सिर्फ आधी ही आ रही थी। कुछ सेकंड तक वह अपनी हथेलियों को चूचियों पर रखी रही उसके बाद हटा ली। उसके बदन पर अब सिर्फ पेंटी ही रह गई थी जिसके दोनों की नारियों पर निर्मला की अंगुलियां ऊलझी हुई थी, और वह धीरे धीरे अपनी पैंटी को नीचे की तरफ सरकाने लगी,,,,, निर्मला तो औपचारिक रुप से ही अपनी पेंटिं को नीचे सरका रही थी लेकिन बाथरूम का नजारा बड़ा हि मादक और कामुक था। अगले ही पल निर्मला ने घुटनों के नीचे तक अपनी पेंटी को सरका दी, उसके बाद पैरों का सहारा लेकर के पेंटी को अपनी चिकनी लंबी टांगों से बाहर निकालकर संपूर्ण रुप से एकदम नंगी हो गई। इस समय बाथरुम की चारदीवारी के अंदर वह पूरी तरह से नंगी थी उसके बदन पर कपड़े का एक रेशा तक नहीं था। बाथरूम के अंदर नग्नावस्था मैं वह स्वर्ग से उतरी हुई कोई अप्सरा लग रही थी। जांघों के बीच पेंटी के अंदर छीपाए हुए बेशकीमती खजाने को वह आजाद कर दी थी, निर्मला ने अपनी बेशकीमती रसीली बुर को एकदम जतन से रखी हुई थी तभी तो इसे उम्र में भी उसकी बुर की गुलाबी पंखुड़ियां बाहर को नहीं निकली थी, बुर पर मात्र एक हल्की सी लकीर ही नजर आती थी जो कि ईस उम्र में नजर आना नामुमकिन था, निर्मला की बुर पर बस एक पतली सी गहरी लकीर ही नजर आती थी और उसके इर्द-गिर्द बाल के रेशे का नाम भी नहीं था वह पूरी तरह से अपनी बुर को हमेशा चिकनी ही रखती थी क्योंकि बुर पर बाल अशोक को बिल्कुल भी पसंद नहीं था ।निर्मला के नितंबों की तारीफ जितनी की जाए उतनी कम थी। नितंबों का उभार कुछ ज्यादा ही था । देखने वाले की नजर जब भी निर्मला की मदमस्त उभरी हुई गांड पर पड़ती थी तो वह देखता ही रह जाता था और मन में ना जाने उस के नितंबों को लेकर के कितने रंगीन सपने देख डालता था।
नितंबों पर अभी भी जवानी के दिनों वाला ही कसाव बरकरार था। गांड के दोनों फांखों के बीच की गहरी लकीर,,,,, ऊफ्फ्फ्फ,,,,,,,, किसी के भी लंड का पानी निकालने में पूरी तरह से सक्षम थी। इतना समझ लो कि निर्मला पूरी तरह से खूबसूरती से भरी हुई कयामत थी ।
उसने शॉवर चालू कर दि और सावर के नीचे खड़ी होकर नहाना शुरू कर दी । वह आहिस्ते आहिस्ते खुशबूदार साबुन को अपने पूरे बदन पर रगड़ रगड़ कर लगाई,,,,, वह साबुन लगाए जा रही थी और उसके बदन पर पानी का फव्वारा गिरता जा रहा था। थोड़ी देर में वह नहा चुकी थी और अपने नंगे बदन पर से पानी की बूंदों को साफ करके अपने बदन पर टॉवल लपेट ली।
अपने नंगे बदन पर टावल लपेटने के बाद वह बाथरुम से निकल कर सीधे अपने कमरे में चली गई। कमरे में जाते ही उसने अलमारी खोली जिसमें उसकी मैं ही महंगी रंग-बिरंगी साड़ियां भरी हुई थी। उसमें से उसने अपने मनपसंद की साड़ी निकाल कर के उसके मैचिंग का ब्लाउज पेटीकोट और उसी रंग की ब्रा पेंटी भी निकाल ली।
उसके बाद वह आईने के सामने खड़ी होकर के अपने बदन पर लपेटे हुए टॉवल को भी निकालकर बिस्तर पर फेंक दी और एक बार फिर से उसकी नंगे पन की खूबसूरती से पूरा कमरा जगमगा उठा। सबसे पहले वहं ब्रा उठा करके उसे पहनने लगी और अपनी बड़ी बड़ी चूचीयो को फिर से अपनी ब्रा में छुपा ली, फिर ऊसने पेंटी पहनकर अपने बेश कीमती खजाने को भी छीपा ली। धीरे धीरे करके उसने अपने बदन पर सारे वस्त्र धारण कर ली। इस वक्त अगर कोई निर्मला को देख ले तो उसके मुंह से वाह वाह निकल जाए। जितनी खूबसूरत और निरवस्र होने के बाद नजर आती है उससे भी कहीं ज्यादा खूबसूरत कपड़े पहनने के बाद दीखती थी।
अपने पसंदीदा गुलाबी रंग की साड़ी में वह बला की खूबसूरत लगती थी। लंबे काले घने रेशमी बाल भीगे होने की वजह से उसका ब्लाउज भीग गया था जिसकी वजह से उसके अंदर की गुलाबी रंग की ब्रा नजर आ रही थी। जो कि बड़ा ही मनमोहक लग रहा था। निर्मला कमर के नीचे साड़ी को कुछ हद तक टाइट ही लपेटती थी जिससे कि उसके कमर के नीचे का गांड का घेराव कुछ ज्यादा ही उभरा हुआ नजर आता था । ईस तरह से साड़ी पहनने की वजह से उसके अंगों का उभार और कटाव साड़ी के ऊपर भी उभर कर सामने आता था। जिसे देख कर हर मर्द ललचा जाता था ।निर्मला आपने के लिए बालों को सुखाकर उसे सवारने लगी।
थोड़ी ही देर में निर्मला पूरी तरह से तैयार हो चुकी थी वह तैयार होने के बाद बेहद खूबसूरत लग रही थी मगर ऐसे में दूसरा कोई भी इंसान देख ले तो उसके मन में निर्मला को पाने की लालसा जाग जाए। निर्मला खुद भी यही सोचती थी, लेकिन उसे यह नहीं समझ में आ रहा था कि उसके पति अशोक को आखिर क्या चाहिए था।
निर्मला तैयार होने के बाद जैसे ही कमरे का दरवाजा खोलने को हुई की घर में बने मंदिर में से घंटी की आवाज आने लगी।