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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

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Pawan yogi

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nain11ster

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भाग:–180


छोटे से शहर के बड़े से जंगल और पहाड़ों के बीच बड़ा हुआ आर्यमणि के जीवन का सफर उसे ब्रह्मांड की सैर पर ले जाएगा यह तो कभी आर्यमणि ने भी नही सोचा होगा। एक सच तो यह भी है कि आर्यमणि गंगटोक से निकलने के बाद बंजारों की जिंदगी व्यतीत कर रहा था, जिसका कोई एक ठिकाना नहीं और पूरा जहां ही उसका घर हो जैसे।

अपने सफर के दौरान उसने कई सारे हैरतंगेज नजारे देखे। चौकाने वाले जीव–जंतुओं तथा प्राणियों से मिला। वास्तविकता तो यह भी थी कि आर्यमणि खुद भी किसी हैरतंगेज अजूबा से कम नही था। जिंदगी के सफर में कई सारे बाधाए आयी। बाधाए जब भी आयी अपने साथ नया रोमांच और नई चुनौतियां लायी। किंतु इन सबके बीच जो नही होना चाहिए था वह घटना घट चुकी थी। आर्यमणि के प्राण जिस पूरे पैक में बसता था, उसे ही मौत की आगोश में सुला दिया गया।

आर्यमणि के अल्फा पैक को कोई भी ऐरा–गैरा मारकर तो नही गया था। अलबत्ता ताकतवर से ताकतवर दुश्मन में इतनी क्षमता कहां थी जो अकेले अल्फा पैक का शिकार कर ले। अल्फा पैक के शिकार के लिये तो अलग–अलग समुदाय के कई सारे धूर्त और ताकतवर एक साथ योजनाबद्ध तरीके से साथ आये और अल्फा पैक का शिकर किया था। आर्यमणि भी लगभग मर ही चुका था लेकिन एक विशालकाय समुद्री जीव चाहकीली ने उसकी जान बचा ली। अब चाहकिली ने उसकी जान बचाई या फिर उसके ग्रहों की दशा ही ऐसी थी कि मौत को भी सामने से कह दे.... “रुक जा भाई, तू मेरे प्राण लेने फिर कभी और आ जाना।”..

इसमें कोई संशय नहीं की आर्यमणि किस्मत का धनी था किंतु उस सुबह शायद अल्फा पैक के बाकी सदस्य की किस्मत उतनी अच्छी नहीं थी तभी तो आर्यमणि को तन्हा छोड़ सभी मृत्यु की आगोश में लेट गये। जिन्होंने ने भी आर्यमणि से उसके पैक को छीना था, उन्होंने आर्यमणि के अंदर गहरी छाप छोड़ गया था। अब वक्त आर्यमणि का था और वह भी अपने लोगों के साथ बैठकर हर किसी को सजा देने की पूरी तैयारी कर रहा था।

“यदि मैं महासागर के अंदर इतना समय न बीताता तो यह नतीजा नही होता। तांत्रिक आध्यात इतने इत्मीनान से मेरे सुरक्षा मंत्र को तोड़ न रहा होता। वह अपनी मालकिन के इशारे पर हमारे लिये जाल न बुन रहा होता। आज मेरी रूही मेरे पास होती। अलबेली और इवान मेरे पास होते। जरूर मेरे ही किसी बुरे कर्मों का फल उन तीनो ने भुगता है।”

ऋषि शिवम्:– गुरु आर्यमणि आप ऐसे हताश न हो। कभी–कभी हम रचायता के खेल के आगे बेबस हो जातें है। खुद को हौसला दीजिए क्योंकि हमारा कोई भी दुश्मन कमजोर नही। न तो अध्यात और उसके तांत्रिक की फौज कमजोर है। न ही विपरीत दुनिया में फसी अकेली महाजनिका कमजोर है, जिसके पास अब अल्फा पैक के तीन अलौकिक सदस्य है, जिसमे ना जाने किसकी आत्म बसी हो। न ही वो नयजो कमजोर है, जो 4 ग्रहों की फौज लिये हमारे इंतजार में है। इसलिए अपनी भावनाओं को आज ही पूरा बाहर निकाल दीजिए क्योंकि आगे अपने किसी भी दुश्मन को रत्ती भर भी मौका नही देना है।

आर्यमणि अपने आंख साफ करते..... “मेरे मन में सवाल आया कैसे? कैसे महाजनिका परदे के पीछे से खेल रच सकती है? वो यदि हमारी दुनिया में लौटती तो अनंत कीर्ति पुस्तक पर दस्तक जरूर होती। महाजनिका विपरीत दुनिया मे ही है, परंतु वहां से मूल दुनिया में किसी भी विधि से किसी से संपर्क नही किया जा सकता था, जबतक की दोनो दुनिया के बीच कोई छोटी सी संपर्क प्रणाली न स्थापित हो।”

“फिर दिमाग में ओशुन का ख्याल आया, जो विपरीत दुनिया से आयी मधुमक्खी रानी की होस्ट बनी थी। मुझे समझ में आ गया की छोटे से रास्ते के जरिए विपरीत दुनिया और मूल दुनिया के बीच संपर्क किया जा रहा है। उन्ही छोटे रास्ते से महाजनिका ने अपना खंजर भी इस दुनिया में भेजा होगा। वो छोटा रास्ता जब तक खुला है, रानी मधुमक्खी न सिर्फ महाजनिका और आध्यात के बीच संपर्क करवाती रहेगी, बल्कि वह मधुमक्खी विपरीत दुनिया अपनी पूरी फौज भी ला रही होगी।”

ऋषि शिवम:– महाजनिका से जब युद्ध हुआ था तब वो काफी कमजोर थी। लेकिन फिर भी उसके मार्गदर्शन में अध्यात मानो पागलों की तरह हम पर कहर बरसा रहा था। आध्यात को हमने पकड़ा भी, लेकिन अकेला वो 22 संन्यासियों को चकमा दे गया। गुरु अपस्यु और आचार्य जी तक को छल गया। दोनों का संपर्क प्रणाली तोड़ना होगा, वरना पिछले 4 सालों में महाजनिका ने विपरीत दुनिया से कैसी काली शक्तियों को हासिल करी होगी और कितना कुछ आध्यात को सीखा चुकी होगी, उसका आकलन तो आध्यात से जब सामना होगा तभी पता चलेगा। लेकिन यदि संपर्क बना रहा तो युद्ध के दौरान महाजनिका सही दाव बताती रहेगी और हमारे लिये मुश्किलें बढ़ जाएगी।

आर्यमणि:– आप बिलकुल सही निष्कर्ष पर पहुंचे हैं। लेकिन अभी उनके बीच का संपर्क तोड़कर नायजो के ग्रह जाने पर आध्यात समझ जायेगा की उसका खेल हमारे समझ में आ चुका हुई। उसे काफी समय मिल जायेगा। वह दिमाग वाला है। हमसे पहले भी हार चुका है इसलिए वो युद्ध लड़ने के बदले खुद को छिपाकर महाजानिका को विपरीत दुनिया से मूल दुनिया में लाने के बाद ही हमसे भिड़ने आयेगा। और विश्वास मानिए तांत्रिक महासभा और महाजनिका जब साथ होंगे तब हम उन्हे नही हरा पाएंगे। इसलिए अभी आध्यात को उसके हाल पर छोड़ते हैं। पहले उन नजयजों से निपटकर वापस आते है।

ऋषि शिवम्:– गुरुदेव क्या आप इतने आश्वस्त हो गये कि पहले से युद्ध का नतीजा निकाल रहे।

आर्यमणि:– हां ये भी सही कहा आपने... पहले मैं नायजो के चकव्यूह से सुरक्षित बाहर तो आ जाऊं। यदि नही लौटा तो अपस्यु, तांत्रिक का काम तमाम कर देगा। इसमें उसकी मदद विशेष–स्त्री जीविषा कर देगी।

ऋषि शिवम्:– गुरुदेव पृथ्वी से पूर्ण प्रशिक्षित सेना लेकर चलिए। हमारे पास निश्चल की विमान है। महा जैसी सेना नायक है। ओर्जा जैसी शक्ति का साथ है। कुशल रणनीति से हम नायजो की विशाल सेना से तो क्या, किसी से भी युद्ध में जीत सकते है।

आर्यमणि:– और ब्रह्म ज्ञान वाले ऋषि कहां रहेंगे?

संन्यासी शिवम्:– सात्विक गांव की जिम्मेदारी मुझ पर है। मै अपने उत्तरदायित्व से मुंह नही मोड़ सकता। बहुत से शिष्यों को प्रशिक्षित करना है। 38 नवजात को शुद्ध ज्ञान के ओर प्रेरित करना है। उन मासूमों की जिम्मेदारी भी मुझ पर ही है।

आर्यमणि:– शिवम सर, आपके बिना तो अल्फा पैक अधूरा है।

ऋषि शिवम्:– गुरु आर्य मेरे ऊपर पूरे गांव का उत्तरदायित्व है। क्या मैं वो जिम्मेदारी को भुलकर यात्रा पर निकल जाऊं?

आर्यमणि:– नही आपका गांव में होना ज्यादा जरूरी है। बाकी कभी जरूरत लगी तो बुलावा भेज देंगे।

ऋषि शिवम:– मैं चाहूंगा ऐसी नौबत न आये। अब मैं आपसे एक छोटी सी विनती करता हूं। आप जल साधना के योगियों की टोली के गुरुदेव को कुछ दिन गांव में आकर हमें मार्गदर्शन करने कहिए। बहुत से ज्ञान विलुप्त हो चुके है, जिन्हे हम वापस से संजो ले।

आर्यमणि:– बिलकुल शिवम सर.. कल तक योगी वशुकीनाथ जी गांव पहुंच जायेंगे।

आर्यमणि की हामी सुन ऋषि शिवम प्रसन्न हो गये। आर्यमणि से गले मिलकर वह क्रूज से अंतर्ध्यान हो गये और वहां आर्यमणि अकेला रह गया। आर्यमणि ने क्रूज को ऑटो पायलट मोड पर डालकर वहां से अंतर्ध्यान होकर सीधा योगियों के क्षेत्र पहुंचा। वहां के गुरु वशुकीनाथ जी से पूरी बात बताकर सात्त्विक गांव चलने के लिये राजी कर लिया।

योगी वाशुकीनाथ उसी क्षण सात्विक गांव के लिये अंतर्ध्यान हो गये और आर्यमणि वापस क्रूज पर चला आया। क्रूज पर आने के बाद आर्यमणि एक बार फिर अल्फा पैक पर ध्यान केंद्रित किया, और अपने दिमाग के हर ज्ञान को शुरू से पलटने लगा। उधर महा, पलक के साथ मिलकर अगले 2 दिनो तक पृथ्वी पर रह रहे हर एलियन को गुरियन प्लेनेट भेजने का प्रबंध कर चुकी थी।

कई स्थानों पर बड़े–बड़े अदृश्य वाहन पहुंचते रहे और अलग–अलग जगहों से सबको निकालकर ले जा रहे थे। तकरीबन 40 हजार बड़े–बड़े विमान पृथ्वी पर पहुंचे और सबको 3 दिनो में गुरियन प्लेनेट पर पहुंचा चुके थे। अगले 2 दिनो में समुद्र के कैदियों को ले जाया गया, जिनकी संख्या तकरीबन 5 करोड़ थी। इन सभी कैदियों के लिये गुरियन प्लेनेट के चार बहुत बड़े शहर को ही खाली करवा दिया गया था।

करेनाराय के बड़े से शानदार और आलीशान महल में महफिल लगी हुई थी। माया, निमेषदर्थ, हिमा, करेनाराय, गुरियन प्लेनेट का असली राजा बॉयनॉय, विषपर प्लेनेट का असली मुखिया मसेदश क्वॉस, सेनापति बिरजोली और पृथ्वी नायजो के मुख्य चेहरे पाठक, देसाई और भारद्वाज परिवार के लोग मुख्य आकर्षण के केंद्र में थे।

बड़ी सी महफिल में सबसे पहले सेनापति बिरजोली ने ही बोलना शुरू किया..... “क्या हम पृथ्वी हार गये क्या शासक?”

शासक मसेदश क्वॉस:– क्या वाकई तुम्हे ऐसा लगता है। मुझे तो नही लगता। किसी को कुछ कहना है क्या?

निमेषदर्थ:– एक आर्यमणि के जिंदा होने की खबर क्या मिली, तुम्हारा पूरा समुदाय मूतते हुये पृथ्वी छोड़ दिया। फिर भी इतनी अकड़ राजा...

शासक मसेदश क्वॉस:– राजकुमार तुम कुछ ज्यादा नही बोल रहे। एक पूरे ग्रह के कर्ता–धर्ता के सामने तुम क्या बोल रहे तुम्हे समझ में भी आ रहा है?

हिमा:– हां मेरा भाई सोच समझ कर ही बोल रहा है। तुम लोगों के साथ देने के चक्कर में आज हम किसी दर के नही रहे। थाली में पड़ोसकर शिकार दिया था, फिर भी उसे मार नही पाये।

सेनापति बिरजोली:– यदि पिछली गलती निकालते रहे, तब आगे का कैसे सोचेंगे। मानता हूं वह आर्यमणि पृथ्वी पर हमसे कुछ ज्यादा ही भारी निकला। मै ये भी मानता हूं कि उस इकलौते भेड़िए का खौफ ऐसा था कि उसके जिंदा होने की खबर से ही हमारा पूरा समुदाय पृथ्वी छोड़कर भाग आया। लेकिन आने वाले वक्त ने हमें एक मौका दिया है। वह भेड़िया, उस दगाबाज पलक के साथ गुरियन प्लेनेट आ रहा है।

निमेषदर्थ:– यहां उसे मार तो पाओगे न? या ये प्लेनेट भी छोड़कर भाग जाओगे?

गुरियन प्लेनेट का असली राजा बॉयनॉय..... “तुम अपने कैदियों को सम्मोहित कर लो, मैं तुम्हे बदले में जीत दे दूंगा।”

निमेशदर्थ:– कुछ लोगों को मारने के लिये तुम्हे 5 करोड़ की फौज चाहिए?

बॉयनॉय:– फौज तो हमे चाहिए लेकिन उस भेड़िए को मारने के लिये नही, बल्कि एक वीरान प्लेनेट “हिस्सक” पर नायजो की नई हाइब्रिड आबादी बसाने के लिये 5 करोड़ की फौज चाहिए।

निमेष:– 5 करोड़ लड़के तो ऐसे मांग रहे, जैसे 5 करोड़ लड़की उस प्लेनेट पर सुखी बैठी है।

बॉयनॉय:– 5 नही 15 करोड़ लड़कियां सुख रही है। हमे 5 साल में वहां 45 करोड़ हाइब्रिड चाहिए।

निमेशदर्थ:– यदि मैने उन 5 करोड़ कैदियों को सम्मोहित नही किया और तुम्हारी वो लड़कियां कुछ दिन संभोग नही करेगी, तो क्या तुम अपनी जमीन पर आर्यमणि को नही हरा पाओगे?

मसेदश क्वॉस:– हां कह सकते हो। क्योंकि हम अपना जारी काम रोक नही सकते। उस भेड़िए के आने का कार्यक्रम कुछ दिन पहले बना था, जबकि हम हाइब्रिड बसाने के काम को कई वर्षों से अंजाम दे रहे थे। तुम्हारे कैद में कई ग्रह के लोग थे, वरना हमारे 10 करोड़ सैनिक कई ग्रह पर फैल जाते और वहां से 5 से 10 करोड़ पुरुषों को पकड़ लाते।

अब या तो तुम हमारा काम कर दो तो हम अपने सैनिक यहां लगा दे। या फिर हम अपने सैनिकों को आबादी बसाने वाले मुहिम पर लगाकर, आर्यमणि के खिलाफ आम नायजो को हथियार पकड़ाकर लड़ाई के मैदान में उतार दे। फिर नतीजा जो हो उस से अभी हमें कोई सरोकार नहीं। बाद में जब हमारे सैनिक लौटेंगे तब हम पृथ्वी पर हमला कर उस भेड़िया समेत पूरी पृथ्वी को ही वीरान कर देंगे।

निमेषदर्थ:– इसे कहते है ना दृढ़ संकल्प। तो ठीक है, उन 5 करोड़ कैदियों को जहां ले जाना है ले जाओ, बदले में आर्यमणि की लाश गिड़ा देना।

सेनापति बिरजोली:– क्या उस लड़ाई का हिस्सा तुम नही होना चाहते?

निमेषदर्थ:– मैं तो उस लड़ाई का हिस्सा बन जाता लेकिन माया के पीछे जिसका दिमाग था, विवियन वो क्यों नही इस लड़ाई का हिस्सा बन रहा है? वह तो पृथ्वी से लौटा भी नही...

शासक मसेदश क्वॉस और विवियन का पिता..... “मेरा बेटा यदि पृथ्वी पर रुका है तब वह जरूर अपने समुदाय के लिये कुछ अच्छा करने की योजना से ही रुका होगा। वरना इस वक्त वो हमारी महफिल में होता। ये मैं क्या बोल गया? तुम्हे कैसे पता की माया बस मुखौटा थी, असली खेल विवियन खेल रहा था?

निमेषदर्थ:– क्या बात है पूरा भांडा फोड़ने के बाद आखिर में राज खुलने की चिंता हुई। घबराओ मत तुम्हे देखने के बाद ही सारी कहानी समझ में आ गयी थी। तुम्हारी और विवियन की शक्ल जो इतनी मिलती है।

उस महफिल में सबसे बेगाना करेनाराय ही था। यूं तो बेचारे को गुरियन प्लेनेट के असली राजा बॉयनॉय के बाद दूसरा स्थान मिला था परंतु यहां उसकी कोई औकाद ही नही थी। उसके मन में बस एक ही बात घूम रही थी.... “वक्त–वक्त की बात है।”

पहले आर्यमणि को मारने की विस्तृत चर्चा। फिर कुछ इधर–उधर की चर्चा। फिर जाम से जाम टकराए और अंत में नाच गाने के साथ पूरी महफिल झूमी। सबके अपने–अपने प्लान थे। गुरियन प्लेनेट पर नायजो के बड़े–बड़े नायक अपनी योजना बना रहे थे। वहीं अल्फा अल्फा पैक भी युद्ध के लिये कमर कस रही थी।

नायजो से उसी की धरती पर लोहा लेने की पूरी तैयारी चल रही थी। पलक, 2 दिनो तक महा के साथ महासागर की गहराइयों में काम करने के बाद वापस नागपुर लौट आयी थी। कुछ नए और कुछ पुराने लोगों के साथ अल्फा पैक, और पलक की कोर टीम, नागपुर स्थित भूमि के घर इकट्ठा हुये थे।

आर्यमणि:– “हम बस चंद लोग है और हमारा सामना 4 ग्रहों के एक जुट ताकत से होने वाला है। एक आखरी जंग उन नायजो के साथ जो अनैतिक तरीकों से ग्रहों पर कब्जा करते है। एक आखरी लड़ाई उस दुश्मनों से जिसने मेरी रूही, अलबेली और इवान को मुझसे दूर कर दिया। एक आखरी लड़ाई अपने सात्त्विक आश्रम के वर्चस्व स्थापित करने की, जिसे ये नायजो वाले तबाह करते आ रहे थे।”

“वैसे एक बात मैं अभी बता दूं कि मैं जितनी बार इनसे भिड़ा हूं, हर बार इनके पास कुछ न कुछ नया तिलिस्म जरूर रहा है। ऊपर से हम पृथ्वी से कई लाख किलोमीटर दूर उनकी जमीन पर होंगे, जहां हमें कोई मदद नहीं मिलने वाली है। आगे बढ़ने से पहले हम पलक को सुनेगे की हमे वहां और किन–किन चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।”

इधर आर्यमणि अपनी बात समाप्त किया और उधर एक कराड़ा थप्पड़ उसके गाल पर पड़ा.... “तूने सोचा भी कैसे की इस बार मुझे छोड़कर भाग जायेगा। मुझे भी दूसरे ग्रह पर घूमने जाना है।”... भूमि, आर्यमणि को एक थप्पड़ लगाती उस सभा में ग्रैंड एंट्री मारी।

अभी एक थप्पड़ की गूंज समाप्त नहीं हुई थी कि तभी आर्यमणि की मां जया भी उसे एक थप्पड़ चिपकाती.... “इसी दिन के लिये बेटे को जन्म दी थी कि वह अकेला घूमने भाग जाये और सालों तक अपनी शक्ल न दिखाए। मुझे भी तीर्थ पर लेकर चल।”..

आर्यमणि:– मां वहां कौन सा तीर्थ होगा...

जैसे ही आर्यमणि चुप हुआ उसके पापा केशव एक थप्पड़ लगाते.... “तीर्थ नही होगा तो वहां तीर्थ स्थल बना। ईश्वर तो हर जगह मौजूद है।”

आर्यमणि:– अभी दरवाजे से एक–एक करके सभी आ गये ना, या और भी कोई बचा है?

पहले चित्रा, फिर माधव भी वहां आ धमके और चित्रा ने भी आते हुये एक चिपका ही दिया।

आर्यमणि:– आप सभी हमारे साथ चल रहे हैं। अब जरा शांति से बैठ जाइये। पलक तुम शुरू हो जाओ...

चित्रा:– हां बोलने का पहला मौका तो पुराने प्यार को ही मिलेगा न...

महा, बिलकुल चौंकती हुई.... “पुराना प्यार???”..

भूमि:– लो पूरी दुनिया को पता है पर इस बेचारी को पता ही नही...

महा, आर्यमणि को सवालिया नजरों से घूरती.... “क्यों जी पूरे दुनिया को पता है, सिर्फ मुझे ही नही पता?”

केशव:– मैं तो निशांत के गर्लफ्रेंड को देख रहा। पूरे जोरदार गर्लफ्रेंड ढूंढा है।

पलक:– गर्लफ्रेंड के किस्से तो आर्य के होने चाहिए न। और ये चित्रा जो मेरे बारे में मुंह फाड़ रही है, अपनी भी तो बता। पहले तो तुम्ही दोनो गर्लफ्रेंड–ब्वॉयफ्रेंड के रिलेशन में थे।

पूरा परिवार ही एक साथ.... “क्या?”..

माधव, रोनी सी सूरत बनाते.... “क्या मेरी बीवी का टांका आर्य से भिड़ा था और मुझे बताई तक नही।”

आर्यमणि:– मैं सोने जा रहा हूं। तुम लोगों की हंसी ठिठोली बंद हो जाये तो बता देना।

पलक:– या तो सब ध्यान से सुन लो या फिर रूही से मिलने के लिये तैयार हो जाओ।

भूमि:– रूही की याद तो आती है पर अभी मेरा बच्चा छोटा है इसलिए मैं नही मिलना चाहती।

एक–एक करके सब शांत हो गये। माहौल बिलकुल खामोश था। आर्यमणि ने इशारा किया और पलक बोलना शुरू की.... “यदि हम गुरियन प्लेनेट पर हारते है तो समझ लो हम पृथ्वी हार गये।”

 

krish1152

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भाग:–180


छोटे से शहर के बड़े से जंगल और पहाड़ों के बीच बड़ा हुआ आर्यमणि के जीवन का सफर उसे ब्रह्मांड की सैर पर ले जाएगा यह तो कभी आर्यमणि ने भी नही सोचा होगा। एक सच तो यह भी है कि आर्यमणि गंगटोक से निकलने के बाद बंजारों की जिंदगी व्यतीत कर रहा था, जिसका कोई एक ठिकाना नहीं और पूरा जहां ही उसका घर हो जैसे।

अपने सफर के दौरान उसने कई सारे हैरतंगेज नजारे देखे। चौकाने वाले जीव–जंतुओं तथा प्राणियों से मिला। वास्तविकता तो यह भी थी कि आर्यमणि खुद भी किसी हैरतंगेज अजूबा से कम नही था। जिंदगी के सफर में कई सारे बाधाए आयी। बाधाए जब भी आयी अपने साथ नया रोमांच और नई चुनौतियां लायी। किंतु इन सबके बीच जो नही होना चाहिए था वह घटना घट चुकी थी। आर्यमणि के प्राण जिस पूरे पैक में बसता था, उसे ही मौत की आगोश में सुला दिया गया।

आर्यमणि के अल्फा पैक को कोई भी ऐरा–गैरा मारकर तो नही गया था। अलबत्ता ताकतवर से ताकतवर दुश्मन में इतनी क्षमता कहां थी जो अकेले अल्फा पैक का शिकार कर ले। अल्फा पैक के शिकार के लिये तो अलग–अलग समुदाय के कई सारे धूर्त और ताकतवर एक साथ योजनाबद्ध तरीके से साथ आये और अल्फा पैक का शिकर किया था। आर्यमणि भी लगभग मर ही चुका था लेकिन एक विशालकाय समुद्री जीव चाहकीली ने उसकी जान बचा ली। अब चाहकिली ने उसकी जान बचाई या फिर उसके ग्रहों की दशा ही ऐसी थी कि मौत को भी सामने से कह दे.... “रुक जा भाई, तू मेरे प्राण लेने फिर कभी और आ जाना।”..

इसमें कोई संशय नहीं की आर्यमणि किस्मत का धनी था किंतु उस सुबह शायद अल्फा पैक के बाकी सदस्य की किस्मत उतनी अच्छी नहीं थी तभी तो आर्यमणि को तन्हा छोड़ सभी मृत्यु की आगोश में लेट गये। जिन्होंने ने भी आर्यमणि से उसके पैक को छीना था, उन्होंने आर्यमणि के अंदर गहरी छाप छोड़ गया था। अब वक्त आर्यमणि का था और वह भी अपने लोगों के साथ बैठकर हर किसी को सजा देने की पूरी तैयारी कर रहा था।

“यदि मैं महासागर के अंदर इतना समय न बीताता तो यह नतीजा नही होता। तांत्रिक आध्यात इतने इत्मीनान से मेरे सुरक्षा मंत्र को तोड़ न रहा होता। वह अपनी मालकिन के इशारे पर हमारे लिये जाल न बुन रहा होता। आज मेरी रूही मेरे पास होती। अलबेली और इवान मेरे पास होते। जरूर मेरे ही किसी बुरे कर्मों का फल उन तीनो ने भुगता है।”

ऋषि शिवम्:– गुरु आर्यमणि आप ऐसे हताश न हो। कभी–कभी हम रचायता के खेल के आगे बेबस हो जातें है। खुद को हौसला दीजिए क्योंकि हमारा कोई भी दुश्मन कमजोर नही। न तो अध्यात और उसके तांत्रिक की फौज कमजोर है। न ही विपरीत दुनिया में फसी अकेली महाजनिका कमजोर है, जिसके पास अब अल्फा पैक के तीन अलौकिक सदस्य है, जिसमे ना जाने किसकी आत्म बसी हो। न ही वो नयजो कमजोर है, जो 4 ग्रहों की फौज लिये हमारे इंतजार में है। इसलिए अपनी भावनाओं को आज ही पूरा बाहर निकाल दीजिए क्योंकि आगे अपने किसी भी दुश्मन को रत्ती भर भी मौका नही देना है।

आर्यमणि अपने आंख साफ करते..... “मेरे मन में सवाल आया कैसे? कैसे महाजनिका परदे के पीछे से खेल रच सकती है? वो यदि हमारी दुनिया में लौटती तो अनंत कीर्ति पुस्तक पर दस्तक जरूर होती। महाजनिका विपरीत दुनिया मे ही है, परंतु वहां से मूल दुनिया में किसी भी विधि से किसी से संपर्क नही किया जा सकता था, जबतक की दोनो दुनिया के बीच कोई छोटी सी संपर्क प्रणाली न स्थापित हो।”

“फिर दिमाग में ओशुन का ख्याल आया, जो विपरीत दुनिया से आयी मधुमक्खी रानी की होस्ट बनी थी। मुझे समझ में आ गया की छोटे से रास्ते के जरिए विपरीत दुनिया और मूल दुनिया के बीच संपर्क किया जा रहा है। उन्ही छोटे रास्ते से महाजनिका ने अपना खंजर भी इस दुनिया में भेजा होगा। वो छोटा रास्ता जब तक खुला है, रानी मधुमक्खी न सिर्फ महाजनिका और आध्यात के बीच संपर्क करवाती रहेगी, बल्कि वह मधुमक्खी विपरीत दुनिया अपनी पूरी फौज भी ला रही होगी।”

ऋषि शिवम:– महाजनिका से जब युद्ध हुआ था तब वो काफी कमजोर थी। लेकिन फिर भी उसके मार्गदर्शन में अध्यात मानो पागलों की तरह हम पर कहर बरसा रहा था। आध्यात को हमने पकड़ा भी, लेकिन अकेला वो 22 संन्यासियों को चकमा दे गया। गुरु अपस्यु और आचार्य जी तक को छल गया। दोनों का संपर्क प्रणाली तोड़ना होगा, वरना पिछले 4 सालों में महाजनिका ने विपरीत दुनिया से कैसी काली शक्तियों को हासिल करी होगी और कितना कुछ आध्यात को सीखा चुकी होगी, उसका आकलन तो आध्यात से जब सामना होगा तभी पता चलेगा। लेकिन यदि संपर्क बना रहा तो युद्ध के दौरान महाजनिका सही दाव बताती रहेगी और हमारे लिये मुश्किलें बढ़ जाएगी।

आर्यमणि:– आप बिलकुल सही निष्कर्ष पर पहुंचे हैं। लेकिन अभी उनके बीच का संपर्क तोड़कर नायजो के ग्रह जाने पर आध्यात समझ जायेगा की उसका खेल हमारे समझ में आ चुका हुई। उसे काफी समय मिल जायेगा। वह दिमाग वाला है। हमसे पहले भी हार चुका है इसलिए वो युद्ध लड़ने के बदले खुद को छिपाकर महाजानिका को विपरीत दुनिया से मूल दुनिया में लाने के बाद ही हमसे भिड़ने आयेगा। और विश्वास मानिए तांत्रिक महासभा और महाजनिका जब साथ होंगे तब हम उन्हे नही हरा पाएंगे। इसलिए अभी आध्यात को उसके हाल पर छोड़ते हैं। पहले उन नजयजों से निपटकर वापस आते है।

ऋषि शिवम्:– गुरुदेव क्या आप इतने आश्वस्त हो गये कि पहले से युद्ध का नतीजा निकाल रहे।

आर्यमणि:– हां ये भी सही कहा आपने... पहले मैं नायजो के चकव्यूह से सुरक्षित बाहर तो आ जाऊं। यदि नही लौटा तो अपस्यु, तांत्रिक का काम तमाम कर देगा। इसमें उसकी मदद विशेष–स्त्री जीविषा कर देगी।

ऋषि शिवम्:– गुरुदेव पृथ्वी से पूर्ण प्रशिक्षित सेना लेकर चलिए। हमारे पास निश्चल की विमान है। महा जैसी सेना नायक है। ओर्जा जैसी शक्ति का साथ है। कुशल रणनीति से हम नायजो की विशाल सेना से तो क्या, किसी से भी युद्ध में जीत सकते है।

आर्यमणि:– और ब्रह्म ज्ञान वाले ऋषि कहां रहेंगे?

संन्यासी शिवम्:– सात्विक गांव की जिम्मेदारी मुझ पर है। मै अपने उत्तरदायित्व से मुंह नही मोड़ सकता। बहुत से शिष्यों को प्रशिक्षित करना है। 38 नवजात को शुद्ध ज्ञान के ओर प्रेरित करना है। उन मासूमों की जिम्मेदारी भी मुझ पर ही है।

आर्यमणि:– शिवम सर, आपके बिना तो अल्फा पैक अधूरा है।

ऋषि शिवम्:– गुरु आर्य मेरे ऊपर पूरे गांव का उत्तरदायित्व है। क्या मैं वो जिम्मेदारी को भुलकर यात्रा पर निकल जाऊं?

आर्यमणि:– नही आपका गांव में होना ज्यादा जरूरी है। बाकी कभी जरूरत लगी तो बुलावा भेज देंगे।

ऋषि शिवम:– मैं चाहूंगा ऐसी नौबत न आये। अब मैं आपसे एक छोटी सी विनती करता हूं। आप जल साधना के योगियों की टोली के गुरुदेव को कुछ दिन गांव में आकर हमें मार्गदर्शन करने कहिए। बहुत से ज्ञान विलुप्त हो चुके है, जिन्हे हम वापस से संजो ले।

आर्यमणि:– बिलकुल शिवम सर.. कल तक योगी वशुकीनाथ जी गांव पहुंच जायेंगे।

आर्यमणि की हामी सुन ऋषि शिवम प्रसन्न हो गये। आर्यमणि से गले मिलकर वह क्रूज से अंतर्ध्यान हो गये और वहां आर्यमणि अकेला रह गया। आर्यमणि ने क्रूज को ऑटो पायलट मोड पर डालकर वहां से अंतर्ध्यान होकर सीधा योगियों के क्षेत्र पहुंचा। वहां के गुरु वशुकीनाथ जी से पूरी बात बताकर सात्त्विक गांव चलने के लिये राजी कर लिया।

योगी वाशुकीनाथ उसी क्षण सात्विक गांव के लिये अंतर्ध्यान हो गये और आर्यमणि वापस क्रूज पर चला आया। क्रूज पर आने के बाद आर्यमणि एक बार फिर अल्फा पैक पर ध्यान केंद्रित किया, और अपने दिमाग के हर ज्ञान को शुरू से पलटने लगा। उधर महा, पलक के साथ मिलकर अगले 2 दिनो तक पृथ्वी पर रह रहे हर एलियन को गुरियन प्लेनेट भेजने का प्रबंध कर चुकी थी।

कई स्थानों पर बड़े–बड़े अदृश्य वाहन पहुंचते रहे और अलग–अलग जगहों से सबको निकालकर ले जा रहे थे। तकरीबन 40 हजार बड़े–बड़े विमान पृथ्वी पर पहुंचे और सबको 3 दिनो में गुरियन प्लेनेट पर पहुंचा चुके थे। अगले 2 दिनो में समुद्र के कैदियों को ले जाया गया, जिनकी संख्या तकरीबन 5 करोड़ थी। इन सभी कैदियों के लिये गुरियन प्लेनेट के चार बहुत बड़े शहर को ही खाली करवा दिया गया था।

करेनाराय के बड़े से शानदार और आलीशान महल में महफिल लगी हुई थी। माया, निमेषदर्थ, हिमा, करेनाराय, गुरियन प्लेनेट का असली राजा बॉयनॉय, विषपर प्लेनेट का असली मुखिया मसेदश क्वॉस, सेनापति बिरजोली और पृथ्वी नायजो के मुख्य चेहरे पाठक, देसाई और भारद्वाज परिवार के लोग मुख्य आकर्षण के केंद्र में थे।

बड़ी सी महफिल में सबसे पहले सेनापति बिरजोली ने ही बोलना शुरू किया..... “क्या हम पृथ्वी हार गये क्या शासक?”

शासक मसेदश क्वॉस:– क्या वाकई तुम्हे ऐसा लगता है। मुझे तो नही लगता। किसी को कुछ कहना है क्या?

निमेषदर्थ:– एक आर्यमणि के जिंदा होने की खबर क्या मिली, तुम्हारा पूरा समुदाय मूतते हुये पृथ्वी छोड़ दिया। फिर भी इतनी अकड़ राजा...

शासक मसेदश क्वॉस:– राजकुमार तुम कुछ ज्यादा नही बोल रहे। एक पूरे ग्रह के कर्ता–धर्ता के सामने तुम क्या बोल रहे तुम्हे समझ में भी आ रहा है?

हिमा:– हां मेरा भाई सोच समझ कर ही बोल रहा है। तुम लोगों के साथ देने के चक्कर में आज हम किसी दर के नही रहे। थाली में पड़ोसकर शिकार दिया था, फिर भी उसे मार नही पाये।

सेनापति बिरजोली:– यदि पिछली गलती निकालते रहे, तब आगे का कैसे सोचेंगे। मानता हूं वह आर्यमणि पृथ्वी पर हमसे कुछ ज्यादा ही भारी निकला। मै ये भी मानता हूं कि उस इकलौते भेड़िए का खौफ ऐसा था कि उसके जिंदा होने की खबर से ही हमारा पूरा समुदाय पृथ्वी छोड़कर भाग आया। लेकिन आने वाले वक्त ने हमें एक मौका दिया है। वह भेड़िया, उस दगाबाज पलक के साथ गुरियन प्लेनेट आ रहा है।

निमेषदर्थ:– यहां उसे मार तो पाओगे न? या ये प्लेनेट भी छोड़कर भाग जाओगे?

गुरियन प्लेनेट का असली राजा बॉयनॉय..... “तुम अपने कैदियों को सम्मोहित कर लो, मैं तुम्हे बदले में जीत दे दूंगा।”

निमेशदर्थ:– कुछ लोगों को मारने के लिये तुम्हे 5 करोड़ की फौज चाहिए?

बॉयनॉय:– फौज तो हमे चाहिए लेकिन उस भेड़िए को मारने के लिये नही, बल्कि एक वीरान प्लेनेट “हिस्सक” पर नायजो की नई हाइब्रिड आबादी बसाने के लिये 5 करोड़ की फौज चाहिए।

निमेष:– 5 करोड़ लड़के तो ऐसे मांग रहे, जैसे 5 करोड़ लड़की उस प्लेनेट पर सुखी बैठी है।

बॉयनॉय:– 5 नही 15 करोड़ लड़कियां सुख रही है। हमे 5 साल में वहां 45 करोड़ हाइब्रिड चाहिए।

निमेशदर्थ:– यदि मैने उन 5 करोड़ कैदियों को सम्मोहित नही किया और तुम्हारी वो लड़कियां कुछ दिन संभोग नही करेगी, तो क्या तुम अपनी जमीन पर आर्यमणि को नही हरा पाओगे?

मसेदश क्वॉस:– हां कह सकते हो। क्योंकि हम अपना जारी काम रोक नही सकते। उस भेड़िए के आने का कार्यक्रम कुछ दिन पहले बना था, जबकि हम हाइब्रिड बसाने के काम को कई वर्षों से अंजाम दे रहे थे। तुम्हारे कैद में कई ग्रह के लोग थे, वरना हमारे 10 करोड़ सैनिक कई ग्रह पर फैल जाते और वहां से 5 से 10 करोड़ पुरुषों को पकड़ लाते।

अब या तो तुम हमारा काम कर दो तो हम अपने सैनिक यहां लगा दे। या फिर हम अपने सैनिकों को आबादी बसाने वाले मुहिम पर लगाकर, आर्यमणि के खिलाफ आम नायजो को हथियार पकड़ाकर लड़ाई के मैदान में उतार दे। फिर नतीजा जो हो उस से अभी हमें कोई सरोकार नहीं। बाद में जब हमारे सैनिक लौटेंगे तब हम पृथ्वी पर हमला कर उस भेड़िया समेत पूरी पृथ्वी को ही वीरान कर देंगे।

निमेषदर्थ:– इसे कहते है ना दृढ़ संकल्प। तो ठीक है, उन 5 करोड़ कैदियों को जहां ले जाना है ले जाओ, बदले में आर्यमणि की लाश गिड़ा देना।

सेनापति बिरजोली:– क्या उस लड़ाई का हिस्सा तुम नही होना चाहते?

निमेषदर्थ:– मैं तो उस लड़ाई का हिस्सा बन जाता लेकिन माया के पीछे जिसका दिमाग था, विवियन वो क्यों नही इस लड़ाई का हिस्सा बन रहा है? वह तो पृथ्वी से लौटा भी नही...

शासक मसेदश क्वॉस और विवियन का पिता..... “मेरा बेटा यदि पृथ्वी पर रुका है तब वह जरूर अपने समुदाय के लिये कुछ अच्छा करने की योजना से ही रुका होगा। वरना इस वक्त वो हमारी महफिल में होता। ये मैं क्या बोल गया? तुम्हे कैसे पता की माया बस मुखौटा थी, असली खेल विवियन खेल रहा था?

निमेषदर्थ:– क्या बात है पूरा भांडा फोड़ने के बाद आखिर में राज खुलने की चिंता हुई। घबराओ मत तुम्हे देखने के बाद ही सारी कहानी समझ में आ गयी थी। तुम्हारी और विवियन की शक्ल जो इतनी मिलती है।

उस महफिल में सबसे बेगाना करेनाराय ही था। यूं तो बेचारे को गुरियन प्लेनेट के असली राजा बॉयनॉय के बाद दूसरा स्थान मिला था परंतु यहां उसकी कोई औकाद ही नही थी। उसके मन में बस एक ही बात घूम रही थी.... “वक्त–वक्त की बात है।”

पहले आर्यमणि को मारने की विस्तृत चर्चा। फिर कुछ इधर–उधर की चर्चा। फिर जाम से जाम टकराए और अंत में नाच गाने के साथ पूरी महफिल झूमी। सबके अपने–अपने प्लान थे। गुरियन प्लेनेट पर नायजो के बड़े–बड़े नायक अपनी योजना बना रहे थे। वहीं अल्फा अल्फा पैक भी युद्ध के लिये कमर कस रही थी।

नायजो से उसी की धरती पर लोहा लेने की पूरी तैयारी चल रही थी। पलक, 2 दिनो तक महा के साथ महासागर की गहराइयों में काम करने के बाद वापस नागपुर लौट आयी थी। कुछ नए और कुछ पुराने लोगों के साथ अल्फा पैक, और पलक की कोर टीम, नागपुर स्थित भूमि के घर इकट्ठा हुये थे।

आर्यमणि:– “हम बस चंद लोग है और हमारा सामना 4 ग्रहों के एक जुट ताकत से होने वाला है। एक आखरी जंग उन नायजो के साथ जो अनैतिक तरीकों से ग्रहों पर कब्जा करते है। एक आखरी लड़ाई उस दुश्मनों से जिसने मेरी रूही, अलबेली और इवान को मुझसे दूर कर दिया। एक आखरी लड़ाई अपने सात्त्विक आश्रम के वर्चस्व स्थापित करने की, जिसे ये नायजो वाले तबाह करते आ रहे थे।”

“वैसे एक बात मैं अभी बता दूं कि मैं जितनी बार इनसे भिड़ा हूं, हर बार इनके पास कुछ न कुछ नया तिलिस्म जरूर रहा है। ऊपर से हम पृथ्वी से कई लाख किलोमीटर दूर उनकी जमीन पर होंगे, जहां हमें कोई मदद नहीं मिलने वाली है। आगे बढ़ने से पहले हम पलक को सुनेगे की हमे वहां और किन–किन चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।”

इधर आर्यमणि अपनी बात समाप्त किया और उधर एक कराड़ा थप्पड़ उसके गाल पर पड़ा.... “तूने सोचा भी कैसे की इस बार मुझे छोड़कर भाग जायेगा। मुझे भी दूसरे ग्रह पर घूमने जाना है।”... भूमि, आर्यमणि को एक थप्पड़ लगाती उस सभा में ग्रैंड एंट्री मारी।

अभी एक थप्पड़ की गूंज समाप्त नहीं हुई थी कि तभी आर्यमणि की मां जया भी उसे एक थप्पड़ चिपकाती.... “इसी दिन के लिये बेटे को जन्म दी थी कि वह अकेला घूमने भाग जाये और सालों तक अपनी शक्ल न दिखाए। मुझे भी तीर्थ पर लेकर चल।”..

आर्यमणि:– मां वहां कौन सा तीर्थ होगा...

जैसे ही आर्यमणि चुप हुआ उसके पापा केशव एक थप्पड़ लगाते.... “तीर्थ नही होगा तो वहां तीर्थ स्थल बना। ईश्वर तो हर जगह मौजूद है।”

आर्यमणि:– अभी दरवाजे से एक–एक करके सभी आ गये ना, या और भी कोई बचा है?

पहले चित्रा, फिर माधव भी वहां आ धमके और चित्रा ने भी आते हुये एक चिपका ही दिया।

आर्यमणि:– आप सभी हमारे साथ चल रहे हैं। अब जरा शांति से बैठ जाइये। पलक तुम शुरू हो जाओ...

चित्रा:– हां बोलने का पहला मौका तो पुराने प्यार को ही मिलेगा न...

महा, बिलकुल चौंकती हुई.... “पुराना प्यार???”..

भूमि:– लो पूरी दुनिया को पता है पर इस बेचारी को पता ही नही...

महा, आर्यमणि को सवालिया नजरों से घूरती.... “क्यों जी पूरे दुनिया को पता है, सिर्फ मुझे ही नही पता?”

केशव:– मैं तो निशांत के गर्लफ्रेंड को देख रहा। पूरे जोरदार गर्लफ्रेंड ढूंढा है।

पलक:– गर्लफ्रेंड के किस्से तो आर्य के होने चाहिए न। और ये चित्रा जो मेरे बारे में मुंह फाड़ रही है, अपनी भी तो बता। पहले तो तुम्ही दोनो गर्लफ्रेंड–ब्वॉयफ्रेंड के रिलेशन में थे।

पूरा परिवार ही एक साथ.... “क्या?”..

माधव, रोनी सी सूरत बनाते.... “क्या मेरी बीवी का टांका आर्य से भिड़ा था और मुझे बताई तक नही।”

आर्यमणि:– मैं सोने जा रहा हूं। तुम लोगों की हंसी ठिठोली बंद हो जाये तो बता देना।

पलक:– या तो सब ध्यान से सुन लो या फिर रूही से मिलने के लिये तैयार हो जाओ।

भूमि:– रूही की याद तो आती है पर अभी मेरा बच्चा छोटा है इसलिए मैं नही मिलना चाहती।

एक–एक करके सब शांत हो गये। माहौल बिलकुल खामोश था। आर्यमणि ने इशारा किया और पलक बोलना शुरू की.... “यदि हम गुरियन प्लेनेट पर हारते है तो समझ लो हम पृथ्वी हार गये।”
 

king cobra

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Final update ki shurwat ho gayi hai. Janta hun ek hi update hai... Ye aap log itninan se padhiye... Mai rukukne wala nahi... Update ab chhapte rahenge...
barish karte rahiye update ki
 
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Devilrudra

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भाग:–180


छोटे से शहर के बड़े से जंगल और पहाड़ों के बीच बड़ा हुआ आर्यमणि के जीवन का सफर उसे ब्रह्मांड की सैर पर ले जाएगा यह तो कभी आर्यमणि ने भी नही सोचा होगा। एक सच तो यह भी है कि आर्यमणि गंगटोक से निकलने के बाद बंजारों की जिंदगी व्यतीत कर रहा था, जिसका कोई एक ठिकाना नहीं और पूरा जहां ही उसका घर हो जैसे।

अपने सफर के दौरान उसने कई सारे हैरतंगेज नजारे देखे। चौकाने वाले जीव–जंतुओं तथा प्राणियों से मिला। वास्तविकता तो यह भी थी कि आर्यमणि खुद भी किसी हैरतंगेज अजूबा से कम नही था। जिंदगी के सफर में कई सारे बाधाए आयी। बाधाए जब भी आयी अपने साथ नया रोमांच और नई चुनौतियां लायी। किंतु इन सबके बीच जो नही होना चाहिए था वह घटना घट चुकी थी। आर्यमणि के प्राण जिस पूरे पैक में बसता था, उसे ही मौत की आगोश में सुला दिया गया।

आर्यमणि के अल्फा पैक को कोई भी ऐरा–गैरा मारकर तो नही गया था। अलबत्ता ताकतवर से ताकतवर दुश्मन में इतनी क्षमता कहां थी जो अकेले अल्फा पैक का शिकार कर ले। अल्फा पैक के शिकार के लिये तो अलग–अलग समुदाय के कई सारे धूर्त और ताकतवर एक साथ योजनाबद्ध तरीके से साथ आये और अल्फा पैक का शिकर किया था। आर्यमणि भी लगभग मर ही चुका था लेकिन एक विशालकाय समुद्री जीव चाहकीली ने उसकी जान बचा ली। अब चाहकिली ने उसकी जान बचाई या फिर उसके ग्रहों की दशा ही ऐसी थी कि मौत को भी सामने से कह दे.... “रुक जा भाई, तू मेरे प्राण लेने फिर कभी और आ जाना।”..

इसमें कोई संशय नहीं की आर्यमणि किस्मत का धनी था किंतु उस सुबह शायद अल्फा पैक के बाकी सदस्य की किस्मत उतनी अच्छी नहीं थी तभी तो आर्यमणि को तन्हा छोड़ सभी मृत्यु की आगोश में लेट गये। जिन्होंने ने भी आर्यमणि से उसके पैक को छीना था, उन्होंने आर्यमणि के अंदर गहरी छाप छोड़ गया था। अब वक्त आर्यमणि का था और वह भी अपने लोगों के साथ बैठकर हर किसी को सजा देने की पूरी तैयारी कर रहा था।

“यदि मैं महासागर के अंदर इतना समय न बीताता तो यह नतीजा नही होता। तांत्रिक आध्यात इतने इत्मीनान से मेरे सुरक्षा मंत्र को तोड़ न रहा होता। वह अपनी मालकिन के इशारे पर हमारे लिये जाल न बुन रहा होता। आज मेरी रूही मेरे पास होती। अलबेली और इवान मेरे पास होते। जरूर मेरे ही किसी बुरे कर्मों का फल उन तीनो ने भुगता है।”

ऋषि शिवम्:– गुरु आर्यमणि आप ऐसे हताश न हो। कभी–कभी हम रचायता के खेल के आगे बेबस हो जातें है। खुद को हौसला दीजिए क्योंकि हमारा कोई भी दुश्मन कमजोर नही। न तो अध्यात और उसके तांत्रिक की फौज कमजोर है। न ही विपरीत दुनिया में फसी अकेली महाजनिका कमजोर है, जिसके पास अब अल्फा पैक के तीन अलौकिक सदस्य है, जिसमे ना जाने किसकी आत्म बसी हो। न ही वो नयजो कमजोर है, जो 4 ग्रहों की फौज लिये हमारे इंतजार में है। इसलिए अपनी भावनाओं को आज ही पूरा बाहर निकाल दीजिए क्योंकि आगे अपने किसी भी दुश्मन को रत्ती भर भी मौका नही देना है।

आर्यमणि अपने आंख साफ करते..... “मेरे मन में सवाल आया कैसे? कैसे महाजनिका परदे के पीछे से खेल रच सकती है? वो यदि हमारी दुनिया में लौटती तो अनंत कीर्ति पुस्तक पर दस्तक जरूर होती। महाजनिका विपरीत दुनिया मे ही है, परंतु वहां से मूल दुनिया में किसी भी विधि से किसी से संपर्क नही किया जा सकता था, जबतक की दोनो दुनिया के बीच कोई छोटी सी संपर्क प्रणाली न स्थापित हो।”

“फिर दिमाग में ओशुन का ख्याल आया, जो विपरीत दुनिया से आयी मधुमक्खी रानी की होस्ट बनी थी। मुझे समझ में आ गया की छोटे से रास्ते के जरिए विपरीत दुनिया और मूल दुनिया के बीच संपर्क किया जा रहा है। उन्ही छोटे रास्ते से महाजनिका ने अपना खंजर भी इस दुनिया में भेजा होगा। वो छोटा रास्ता जब तक खुला है, रानी मधुमक्खी न सिर्फ महाजनिका और आध्यात के बीच संपर्क करवाती रहेगी, बल्कि वह मधुमक्खी विपरीत दुनिया अपनी पूरी फौज भी ला रही होगी।”

ऋषि शिवम:– महाजनिका से जब युद्ध हुआ था तब वो काफी कमजोर थी। लेकिन फिर भी उसके मार्गदर्शन में अध्यात मानो पागलों की तरह हम पर कहर बरसा रहा था। आध्यात को हमने पकड़ा भी, लेकिन अकेला वो 22 संन्यासियों को चकमा दे गया। गुरु अपस्यु और आचार्य जी तक को छल गया। दोनों का संपर्क प्रणाली तोड़ना होगा, वरना पिछले 4 सालों में महाजनिका ने विपरीत दुनिया से कैसी काली शक्तियों को हासिल करी होगी और कितना कुछ आध्यात को सीखा चुकी होगी, उसका आकलन तो आध्यात से जब सामना होगा तभी पता चलेगा। लेकिन यदि संपर्क बना रहा तो युद्ध के दौरान महाजनिका सही दाव बताती रहेगी और हमारे लिये मुश्किलें बढ़ जाएगी।

आर्यमणि:– आप बिलकुल सही निष्कर्ष पर पहुंचे हैं। लेकिन अभी उनके बीच का संपर्क तोड़कर नायजो के ग्रह जाने पर आध्यात समझ जायेगा की उसका खेल हमारे समझ में आ चुका हुई। उसे काफी समय मिल जायेगा। वह दिमाग वाला है। हमसे पहले भी हार चुका है इसलिए वो युद्ध लड़ने के बदले खुद को छिपाकर महाजानिका को विपरीत दुनिया से मूल दुनिया में लाने के बाद ही हमसे भिड़ने आयेगा। और विश्वास मानिए तांत्रिक महासभा और महाजनिका जब साथ होंगे तब हम उन्हे नही हरा पाएंगे। इसलिए अभी आध्यात को उसके हाल पर छोड़ते हैं। पहले उन नजयजों से निपटकर वापस आते है।

ऋषि शिवम्:– गुरुदेव क्या आप इतने आश्वस्त हो गये कि पहले से युद्ध का नतीजा निकाल रहे।

आर्यमणि:– हां ये भी सही कहा आपने... पहले मैं नायजो के चकव्यूह से सुरक्षित बाहर तो आ जाऊं। यदि नही लौटा तो अपस्यु, तांत्रिक का काम तमाम कर देगा। इसमें उसकी मदद विशेष–स्त्री जीविषा कर देगी।

ऋषि शिवम्:– गुरुदेव पृथ्वी से पूर्ण प्रशिक्षित सेना लेकर चलिए। हमारे पास निश्चल की विमान है। महा जैसी सेना नायक है। ओर्जा जैसी शक्ति का साथ है। कुशल रणनीति से हम नायजो की विशाल सेना से तो क्या, किसी से भी युद्ध में जीत सकते है।

आर्यमणि:– और ब्रह्म ज्ञान वाले ऋषि कहां रहेंगे?

संन्यासी शिवम्:– सात्विक गांव की जिम्मेदारी मुझ पर है। मै अपने उत्तरदायित्व से मुंह नही मोड़ सकता। बहुत से शिष्यों को प्रशिक्षित करना है। 38 नवजात को शुद्ध ज्ञान के ओर प्रेरित करना है। उन मासूमों की जिम्मेदारी भी मुझ पर ही है।

आर्यमणि:– शिवम सर, आपके बिना तो अल्फा पैक अधूरा है।

ऋषि शिवम्:– गुरु आर्य मेरे ऊपर पूरे गांव का उत्तरदायित्व है। क्या मैं वो जिम्मेदारी को भुलकर यात्रा पर निकल जाऊं?

आर्यमणि:– नही आपका गांव में होना ज्यादा जरूरी है। बाकी कभी जरूरत लगी तो बुलावा भेज देंगे।

ऋषि शिवम:– मैं चाहूंगा ऐसी नौबत न आये। अब मैं आपसे एक छोटी सी विनती करता हूं। आप जल साधना के योगियों की टोली के गुरुदेव को कुछ दिन गांव में आकर हमें मार्गदर्शन करने कहिए। बहुत से ज्ञान विलुप्त हो चुके है, जिन्हे हम वापस से संजो ले।

आर्यमणि:– बिलकुल शिवम सर.. कल तक योगी वशुकीनाथ जी गांव पहुंच जायेंगे।

आर्यमणि की हामी सुन ऋषि शिवम प्रसन्न हो गये। आर्यमणि से गले मिलकर वह क्रूज से अंतर्ध्यान हो गये और वहां आर्यमणि अकेला रह गया। आर्यमणि ने क्रूज को ऑटो पायलट मोड पर डालकर वहां से अंतर्ध्यान होकर सीधा योगियों के क्षेत्र पहुंचा। वहां के गुरु वशुकीनाथ जी से पूरी बात बताकर सात्त्विक गांव चलने के लिये राजी कर लिया।

योगी वाशुकीनाथ उसी क्षण सात्विक गांव के लिये अंतर्ध्यान हो गये और आर्यमणि वापस क्रूज पर चला आया। क्रूज पर आने के बाद आर्यमणि एक बार फिर अल्फा पैक पर ध्यान केंद्रित किया, और अपने दिमाग के हर ज्ञान को शुरू से पलटने लगा। उधर महा, पलक के साथ मिलकर अगले 2 दिनो तक पृथ्वी पर रह रहे हर एलियन को गुरियन प्लेनेट भेजने का प्रबंध कर चुकी थी।

कई स्थानों पर बड़े–बड़े अदृश्य वाहन पहुंचते रहे और अलग–अलग जगहों से सबको निकालकर ले जा रहे थे। तकरीबन 40 हजार बड़े–बड़े विमान पृथ्वी पर पहुंचे और सबको 3 दिनो में गुरियन प्लेनेट पर पहुंचा चुके थे। अगले 2 दिनो में समुद्र के कैदियों को ले जाया गया, जिनकी संख्या तकरीबन 5 करोड़ थी। इन सभी कैदियों के लिये गुरियन प्लेनेट के चार बहुत बड़े शहर को ही खाली करवा दिया गया था।

करेनाराय के बड़े से शानदार और आलीशान महल में महफिल लगी हुई थी। माया, निमेषदर्थ, हिमा, करेनाराय, गुरियन प्लेनेट का असली राजा बॉयनॉय, विषपर प्लेनेट का असली मुखिया मसेदश क्वॉस, सेनापति बिरजोली और पृथ्वी नायजो के मुख्य चेहरे पाठक, देसाई और भारद्वाज परिवार के लोग मुख्य आकर्षण के केंद्र में थे।

बड़ी सी महफिल में सबसे पहले सेनापति बिरजोली ने ही बोलना शुरू किया..... “क्या हम पृथ्वी हार गये क्या शासक?”

शासक मसेदश क्वॉस:– क्या वाकई तुम्हे ऐसा लगता है। मुझे तो नही लगता। किसी को कुछ कहना है क्या?

निमेषदर्थ:– एक आर्यमणि के जिंदा होने की खबर क्या मिली, तुम्हारा पूरा समुदाय मूतते हुये पृथ्वी छोड़ दिया। फिर भी इतनी अकड़ राजा...

शासक मसेदश क्वॉस:– राजकुमार तुम कुछ ज्यादा नही बोल रहे। एक पूरे ग्रह के कर्ता–धर्ता के सामने तुम क्या बोल रहे तुम्हे समझ में भी आ रहा है?

हिमा:– हां मेरा भाई सोच समझ कर ही बोल रहा है। तुम लोगों के साथ देने के चक्कर में आज हम किसी दर के नही रहे। थाली में पड़ोसकर शिकार दिया था, फिर भी उसे मार नही पाये।

सेनापति बिरजोली:– यदि पिछली गलती निकालते रहे, तब आगे का कैसे सोचेंगे। मानता हूं वह आर्यमणि पृथ्वी पर हमसे कुछ ज्यादा ही भारी निकला। मै ये भी मानता हूं कि उस इकलौते भेड़िए का खौफ ऐसा था कि उसके जिंदा होने की खबर से ही हमारा पूरा समुदाय पृथ्वी छोड़कर भाग आया। लेकिन आने वाले वक्त ने हमें एक मौका दिया है। वह भेड़िया, उस दगाबाज पलक के साथ गुरियन प्लेनेट आ रहा है।

निमेषदर्थ:– यहां उसे मार तो पाओगे न? या ये प्लेनेट भी छोड़कर भाग जाओगे?

गुरियन प्लेनेट का असली राजा बॉयनॉय..... “तुम अपने कैदियों को सम्मोहित कर लो, मैं तुम्हे बदले में जीत दे दूंगा।”

निमेशदर्थ:– कुछ लोगों को मारने के लिये तुम्हे 5 करोड़ की फौज चाहिए?

बॉयनॉय:– फौज तो हमे चाहिए लेकिन उस भेड़िए को मारने के लिये नही, बल्कि एक वीरान प्लेनेट “हिस्सक” पर नायजो की नई हाइब्रिड आबादी बसाने के लिये 5 करोड़ की फौज चाहिए।

निमेष:– 5 करोड़ लड़के तो ऐसे मांग रहे, जैसे 5 करोड़ लड़की उस प्लेनेट पर सुखी बैठी है।

बॉयनॉय:– 5 नही 15 करोड़ लड़कियां सुख रही है। हमे 5 साल में वहां 45 करोड़ हाइब्रिड चाहिए।

निमेशदर्थ:– यदि मैने उन 5 करोड़ कैदियों को सम्मोहित नही किया और तुम्हारी वो लड़कियां कुछ दिन संभोग नही करेगी, तो क्या तुम अपनी जमीन पर आर्यमणि को नही हरा पाओगे?

मसेदश क्वॉस:– हां कह सकते हो। क्योंकि हम अपना जारी काम रोक नही सकते। उस भेड़िए के आने का कार्यक्रम कुछ दिन पहले बना था, जबकि हम हाइब्रिड बसाने के काम को कई वर्षों से अंजाम दे रहे थे। तुम्हारे कैद में कई ग्रह के लोग थे, वरना हमारे 10 करोड़ सैनिक कई ग्रह पर फैल जाते और वहां से 5 से 10 करोड़ पुरुषों को पकड़ लाते।

अब या तो तुम हमारा काम कर दो तो हम अपने सैनिक यहां लगा दे। या फिर हम अपने सैनिकों को आबादी बसाने वाले मुहिम पर लगाकर, आर्यमणि के खिलाफ आम नायजो को हथियार पकड़ाकर लड़ाई के मैदान में उतार दे। फिर नतीजा जो हो उस से अभी हमें कोई सरोकार नहीं। बाद में जब हमारे सैनिक लौटेंगे तब हम पृथ्वी पर हमला कर उस भेड़िया समेत पूरी पृथ्वी को ही वीरान कर देंगे।

निमेषदर्थ:– इसे कहते है ना दृढ़ संकल्प। तो ठीक है, उन 5 करोड़ कैदियों को जहां ले जाना है ले जाओ, बदले में आर्यमणि की लाश गिड़ा देना।

सेनापति बिरजोली:– क्या उस लड़ाई का हिस्सा तुम नही होना चाहते?

निमेषदर्थ:– मैं तो उस लड़ाई का हिस्सा बन जाता लेकिन माया के पीछे जिसका दिमाग था, विवियन वो क्यों नही इस लड़ाई का हिस्सा बन रहा है? वह तो पृथ्वी से लौटा भी नही...

शासक मसेदश क्वॉस और विवियन का पिता..... “मेरा बेटा यदि पृथ्वी पर रुका है तब वह जरूर अपने समुदाय के लिये कुछ अच्छा करने की योजना से ही रुका होगा। वरना इस वक्त वो हमारी महफिल में होता। ये मैं क्या बोल गया? तुम्हे कैसे पता की माया बस मुखौटा थी, असली खेल विवियन खेल रहा था?

निमेषदर्थ:– क्या बात है पूरा भांडा फोड़ने के बाद आखिर में राज खुलने की चिंता हुई। घबराओ मत तुम्हे देखने के बाद ही सारी कहानी समझ में आ गयी थी। तुम्हारी और विवियन की शक्ल जो इतनी मिलती है।

उस महफिल में सबसे बेगाना करेनाराय ही था। यूं तो बेचारे को गुरियन प्लेनेट के असली राजा बॉयनॉय के बाद दूसरा स्थान मिला था परंतु यहां उसकी कोई औकाद ही नही थी। उसके मन में बस एक ही बात घूम रही थी.... “वक्त–वक्त की बात है।”

पहले आर्यमणि को मारने की विस्तृत चर्चा। फिर कुछ इधर–उधर की चर्चा। फिर जाम से जाम टकराए और अंत में नाच गाने के साथ पूरी महफिल झूमी। सबके अपने–अपने प्लान थे। गुरियन प्लेनेट पर नायजो के बड़े–बड़े नायक अपनी योजना बना रहे थे। वहीं अल्फा अल्फा पैक भी युद्ध के लिये कमर कस रही थी।

नायजो से उसी की धरती पर लोहा लेने की पूरी तैयारी चल रही थी। पलक, 2 दिनो तक महा के साथ महासागर की गहराइयों में काम करने के बाद वापस नागपुर लौट आयी थी। कुछ नए और कुछ पुराने लोगों के साथ अल्फा पैक, और पलक की कोर टीम, नागपुर स्थित भूमि के घर इकट्ठा हुये थे।

आर्यमणि:– “हम बस चंद लोग है और हमारा सामना 4 ग्रहों के एक जुट ताकत से होने वाला है। एक आखरी जंग उन नायजो के साथ जो अनैतिक तरीकों से ग्रहों पर कब्जा करते है। एक आखरी लड़ाई उस दुश्मनों से जिसने मेरी रूही, अलबेली और इवान को मुझसे दूर कर दिया। एक आखरी लड़ाई अपने सात्त्विक आश्रम के वर्चस्व स्थापित करने की, जिसे ये नायजो वाले तबाह करते आ रहे थे।”

“वैसे एक बात मैं अभी बता दूं कि मैं जितनी बार इनसे भिड़ा हूं, हर बार इनके पास कुछ न कुछ नया तिलिस्म जरूर रहा है। ऊपर से हम पृथ्वी से कई लाख किलोमीटर दूर उनकी जमीन पर होंगे, जहां हमें कोई मदद नहीं मिलने वाली है। आगे बढ़ने से पहले हम पलक को सुनेगे की हमे वहां और किन–किन चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।”

इधर आर्यमणि अपनी बात समाप्त किया और उधर एक कराड़ा थप्पड़ उसके गाल पर पड़ा.... “तूने सोचा भी कैसे की इस बार मुझे छोड़कर भाग जायेगा। मुझे भी दूसरे ग्रह पर घूमने जाना है।”... भूमि, आर्यमणि को एक थप्पड़ लगाती उस सभा में ग्रैंड एंट्री मारी।

अभी एक थप्पड़ की गूंज समाप्त नहीं हुई थी कि तभी आर्यमणि की मां जया भी उसे एक थप्पड़ चिपकाती.... “इसी दिन के लिये बेटे को जन्म दी थी कि वह अकेला घूमने भाग जाये और सालों तक अपनी शक्ल न दिखाए। मुझे भी तीर्थ पर लेकर चल।”..

आर्यमणि:– मां वहां कौन सा तीर्थ होगा...

जैसे ही आर्यमणि चुप हुआ उसके पापा केशव एक थप्पड़ लगाते.... “तीर्थ नही होगा तो वहां तीर्थ स्थल बना। ईश्वर तो हर जगह मौजूद है।”

आर्यमणि:– अभी दरवाजे से एक–एक करके सभी आ गये ना, या और भी कोई बचा है?

पहले चित्रा, फिर माधव भी वहां आ धमके और चित्रा ने भी आते हुये एक चिपका ही दिया।

आर्यमणि:– आप सभी हमारे साथ चल रहे हैं। अब जरा शांति से बैठ जाइये। पलक तुम शुरू हो जाओ...

चित्रा:– हां बोलने का पहला मौका तो पुराने प्यार को ही मिलेगा न...

महा, बिलकुल चौंकती हुई.... “पुराना प्यार???”..

भूमि:– लो पूरी दुनिया को पता है पर इस बेचारी को पता ही नही...

महा, आर्यमणि को सवालिया नजरों से घूरती.... “क्यों जी पूरे दुनिया को पता है, सिर्फ मुझे ही नही पता?”

केशव:– मैं तो निशांत के गर्लफ्रेंड को देख रहा। पूरे जोरदार गर्लफ्रेंड ढूंढा है।

पलक:– गर्लफ्रेंड के किस्से तो आर्य के होने चाहिए न। और ये चित्रा जो मेरे बारे में मुंह फाड़ रही है, अपनी भी तो बता। पहले तो तुम्ही दोनो गर्लफ्रेंड–ब्वॉयफ्रेंड के रिलेशन में थे।

पूरा परिवार ही एक साथ.... “क्या?”..

माधव, रोनी सी सूरत बनाते.... “क्या मेरी बीवी का टांका आर्य से भिड़ा था और मुझे बताई तक नही।”

आर्यमणि:– मैं सोने जा रहा हूं। तुम लोगों की हंसी ठिठोली बंद हो जाये तो बता देना।

पलक:– या तो सब ध्यान से सुन लो या फिर रूही से मिलने के लिये तैयार हो जाओ।

भूमि:– रूही की याद तो आती है पर अभी मेरा बच्चा छोटा है इसलिए मैं नही मिलना चाहती।

एक–एक करके सब शांत हो गये। माहौल बिलकुल खामोश था। आर्यमणि ने इशारा किया और पलक बोलना शुरू की.... “यदि हम गुरियन प्लेनेट पर हारते है तो समझ लो हम पृथ्वी हार गये।”
Shaandaar waapsi 👍👍👍
 
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monty1203

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भाग:–180


छोटे से शहर के बड़े से जंगल और पहाड़ों के बीच बड़ा हुआ आर्यमणि के जीवन का सफर उसे ब्रह्मांड की सैर पर ले जाएगा यह तो कभी आर्यमणि ने भी नही सोचा होगा। एक सच तो यह भी है कि आर्यमणि गंगटोक से निकलने के बाद बंजारों की जिंदगी व्यतीत कर रहा था, जिसका कोई एक ठिकाना नहीं और पूरा जहां ही उसका घर हो जैसे।

अपने सफर के दौरान उसने कई सारे हैरतंगेज नजारे देखे। चौकाने वाले जीव–जंतुओं तथा प्राणियों से मिला। वास्तविकता तो यह भी थी कि आर्यमणि खुद भी किसी हैरतंगेज अजूबा से कम नही था। जिंदगी के सफर में कई सारे बाधाए आयी। बाधाए जब भी आयी अपने साथ नया रोमांच और नई चुनौतियां लायी। किंतु इन सबके बीच जो नही होना चाहिए था वह घटना घट चुकी थी। आर्यमणि के प्राण जिस पूरे पैक में बसता था, उसे ही मौत की आगोश में सुला दिया गया।

आर्यमणि के अल्फा पैक को कोई भी ऐरा–गैरा मारकर तो नही गया था। अलबत्ता ताकतवर से ताकतवर दुश्मन में इतनी क्षमता कहां थी जो अकेले अल्फा पैक का शिकार कर ले। अल्फा पैक के शिकार के लिये तो अलग–अलग समुदाय के कई सारे धूर्त और ताकतवर एक साथ योजनाबद्ध तरीके से साथ आये और अल्फा पैक का शिकर किया था। आर्यमणि भी लगभग मर ही चुका था लेकिन एक विशालकाय समुद्री जीव चाहकीली ने उसकी जान बचा ली। अब चाहकिली ने उसकी जान बचाई या फिर उसके ग्रहों की दशा ही ऐसी थी कि मौत को भी सामने से कह दे.... “रुक जा भाई, तू मेरे प्राण लेने फिर कभी और आ जाना।”..

इसमें कोई संशय नहीं की आर्यमणि किस्मत का धनी था किंतु उस सुबह शायद अल्फा पैक के बाकी सदस्य की किस्मत उतनी अच्छी नहीं थी तभी तो आर्यमणि को तन्हा छोड़ सभी मृत्यु की आगोश में लेट गये। जिन्होंने ने भी आर्यमणि से उसके पैक को छीना था, उन्होंने आर्यमणि के अंदर गहरी छाप छोड़ गया था। अब वक्त आर्यमणि का था और वह भी अपने लोगों के साथ बैठकर हर किसी को सजा देने की पूरी तैयारी कर रहा था।

“यदि मैं महासागर के अंदर इतना समय न बीताता तो यह नतीजा नही होता। तांत्रिक आध्यात इतने इत्मीनान से मेरे सुरक्षा मंत्र को तोड़ न रहा होता। वह अपनी मालकिन के इशारे पर हमारे लिये जाल न बुन रहा होता। आज मेरी रूही मेरे पास होती। अलबेली और इवान मेरे पास होते। जरूर मेरे ही किसी बुरे कर्मों का फल उन तीनो ने भुगता है।”

ऋषि शिवम्:– गुरु आर्यमणि आप ऐसे हताश न हो। कभी–कभी हम रचायता के खेल के आगे बेबस हो जातें है। खुद को हौसला दीजिए क्योंकि हमारा कोई भी दुश्मन कमजोर नही। न तो अध्यात और उसके तांत्रिक की फौज कमजोर है। न ही विपरीत दुनिया में फसी अकेली महाजनिका कमजोर है, जिसके पास अब अल्फा पैक के तीन अलौकिक सदस्य है, जिसमे ना जाने किसकी आत्म बसी हो। न ही वो नयजो कमजोर है, जो 4 ग्रहों की फौज लिये हमारे इंतजार में है। इसलिए अपनी भावनाओं को आज ही पूरा बाहर निकाल दीजिए क्योंकि आगे अपने किसी भी दुश्मन को रत्ती भर भी मौका नही देना है।

आर्यमणि अपने आंख साफ करते..... “मेरे मन में सवाल आया कैसे? कैसे महाजनिका परदे के पीछे से खेल रच सकती है? वो यदि हमारी दुनिया में लौटती तो अनंत कीर्ति पुस्तक पर दस्तक जरूर होती। महाजनिका विपरीत दुनिया मे ही है, परंतु वहां से मूल दुनिया में किसी भी विधि से किसी से संपर्क नही किया जा सकता था, जबतक की दोनो दुनिया के बीच कोई छोटी सी संपर्क प्रणाली न स्थापित हो।”

“फिर दिमाग में ओशुन का ख्याल आया, जो विपरीत दुनिया से आयी मधुमक्खी रानी की होस्ट बनी थी। मुझे समझ में आ गया की छोटे से रास्ते के जरिए विपरीत दुनिया और मूल दुनिया के बीच संपर्क किया जा रहा है। उन्ही छोटे रास्ते से महाजनिका ने अपना खंजर भी इस दुनिया में भेजा होगा। वो छोटा रास्ता जब तक खुला है, रानी मधुमक्खी न सिर्फ महाजनिका और आध्यात के बीच संपर्क करवाती रहेगी, बल्कि वह मधुमक्खी विपरीत दुनिया अपनी पूरी फौज भी ला रही होगी।”

ऋषि शिवम:– महाजनिका से जब युद्ध हुआ था तब वो काफी कमजोर थी। लेकिन फिर भी उसके मार्गदर्शन में अध्यात मानो पागलों की तरह हम पर कहर बरसा रहा था। आध्यात को हमने पकड़ा भी, लेकिन अकेला वो 22 संन्यासियों को चकमा दे गया। गुरु अपस्यु और आचार्य जी तक को छल गया। दोनों का संपर्क प्रणाली तोड़ना होगा, वरना पिछले 4 सालों में महाजनिका ने विपरीत दुनिया से कैसी काली शक्तियों को हासिल करी होगी और कितना कुछ आध्यात को सीखा चुकी होगी, उसका आकलन तो आध्यात से जब सामना होगा तभी पता चलेगा। लेकिन यदि संपर्क बना रहा तो युद्ध के दौरान महाजनिका सही दाव बताती रहेगी और हमारे लिये मुश्किलें बढ़ जाएगी।

आर्यमणि:– आप बिलकुल सही निष्कर्ष पर पहुंचे हैं। लेकिन अभी उनके बीच का संपर्क तोड़कर नायजो के ग्रह जाने पर आध्यात समझ जायेगा की उसका खेल हमारे समझ में आ चुका हुई। उसे काफी समय मिल जायेगा। वह दिमाग वाला है। हमसे पहले भी हार चुका है इसलिए वो युद्ध लड़ने के बदले खुद को छिपाकर महाजानिका को विपरीत दुनिया से मूल दुनिया में लाने के बाद ही हमसे भिड़ने आयेगा। और विश्वास मानिए तांत्रिक महासभा और महाजनिका जब साथ होंगे तब हम उन्हे नही हरा पाएंगे। इसलिए अभी आध्यात को उसके हाल पर छोड़ते हैं। पहले उन नजयजों से निपटकर वापस आते है।

ऋषि शिवम्:– गुरुदेव क्या आप इतने आश्वस्त हो गये कि पहले से युद्ध का नतीजा निकाल रहे।

आर्यमणि:– हां ये भी सही कहा आपने... पहले मैं नायजो के चकव्यूह से सुरक्षित बाहर तो आ जाऊं। यदि नही लौटा तो अपस्यु, तांत्रिक का काम तमाम कर देगा। इसमें उसकी मदद विशेष–स्त्री जीविषा कर देगी।

ऋषि शिवम्:– गुरुदेव पृथ्वी से पूर्ण प्रशिक्षित सेना लेकर चलिए। हमारे पास निश्चल की विमान है। महा जैसी सेना नायक है। ओर्जा जैसी शक्ति का साथ है। कुशल रणनीति से हम नायजो की विशाल सेना से तो क्या, किसी से भी युद्ध में जीत सकते है।

आर्यमणि:– और ब्रह्म ज्ञान वाले ऋषि कहां रहेंगे?

संन्यासी शिवम्:– सात्विक गांव की जिम्मेदारी मुझ पर है। मै अपने उत्तरदायित्व से मुंह नही मोड़ सकता। बहुत से शिष्यों को प्रशिक्षित करना है। 38 नवजात को शुद्ध ज्ञान के ओर प्रेरित करना है। उन मासूमों की जिम्मेदारी भी मुझ पर ही है।

आर्यमणि:– शिवम सर, आपके बिना तो अल्फा पैक अधूरा है।

ऋषि शिवम्:– गुरु आर्य मेरे ऊपर पूरे गांव का उत्तरदायित्व है। क्या मैं वो जिम्मेदारी को भुलकर यात्रा पर निकल जाऊं?

आर्यमणि:– नही आपका गांव में होना ज्यादा जरूरी है। बाकी कभी जरूरत लगी तो बुलावा भेज देंगे।

ऋषि शिवम:– मैं चाहूंगा ऐसी नौबत न आये। अब मैं आपसे एक छोटी सी विनती करता हूं। आप जल साधना के योगियों की टोली के गुरुदेव को कुछ दिन गांव में आकर हमें मार्गदर्शन करने कहिए। बहुत से ज्ञान विलुप्त हो चुके है, जिन्हे हम वापस से संजो ले।

आर्यमणि:– बिलकुल शिवम सर.. कल तक योगी वशुकीनाथ जी गांव पहुंच जायेंगे।

आर्यमणि की हामी सुन ऋषि शिवम प्रसन्न हो गये। आर्यमणि से गले मिलकर वह क्रूज से अंतर्ध्यान हो गये और वहां आर्यमणि अकेला रह गया। आर्यमणि ने क्रूज को ऑटो पायलट मोड पर डालकर वहां से अंतर्ध्यान होकर सीधा योगियों के क्षेत्र पहुंचा। वहां के गुरु वशुकीनाथ जी से पूरी बात बताकर सात्त्विक गांव चलने के लिये राजी कर लिया।

योगी वाशुकीनाथ उसी क्षण सात्विक गांव के लिये अंतर्ध्यान हो गये और आर्यमणि वापस क्रूज पर चला आया। क्रूज पर आने के बाद आर्यमणि एक बार फिर अल्फा पैक पर ध्यान केंद्रित किया, और अपने दिमाग के हर ज्ञान को शुरू से पलटने लगा। उधर महा, पलक के साथ मिलकर अगले 2 दिनो तक पृथ्वी पर रह रहे हर एलियन को गुरियन प्लेनेट भेजने का प्रबंध कर चुकी थी।

कई स्थानों पर बड़े–बड़े अदृश्य वाहन पहुंचते रहे और अलग–अलग जगहों से सबको निकालकर ले जा रहे थे। तकरीबन 40 हजार बड़े–बड़े विमान पृथ्वी पर पहुंचे और सबको 3 दिनो में गुरियन प्लेनेट पर पहुंचा चुके थे। अगले 2 दिनो में समुद्र के कैदियों को ले जाया गया, जिनकी संख्या तकरीबन 5 करोड़ थी। इन सभी कैदियों के लिये गुरियन प्लेनेट के चार बहुत बड़े शहर को ही खाली करवा दिया गया था।

करेनाराय के बड़े से शानदार और आलीशान महल में महफिल लगी हुई थी। माया, निमेषदर्थ, हिमा, करेनाराय, गुरियन प्लेनेट का असली राजा बॉयनॉय, विषपर प्लेनेट का असली मुखिया मसेदश क्वॉस, सेनापति बिरजोली और पृथ्वी नायजो के मुख्य चेहरे पाठक, देसाई और भारद्वाज परिवार के लोग मुख्य आकर्षण के केंद्र में थे।

बड़ी सी महफिल में सबसे पहले सेनापति बिरजोली ने ही बोलना शुरू किया..... “क्या हम पृथ्वी हार गये क्या शासक?”

शासक मसेदश क्वॉस:– क्या वाकई तुम्हे ऐसा लगता है। मुझे तो नही लगता। किसी को कुछ कहना है क्या?

निमेषदर्थ:– एक आर्यमणि के जिंदा होने की खबर क्या मिली, तुम्हारा पूरा समुदाय मूतते हुये पृथ्वी छोड़ दिया। फिर भी इतनी अकड़ राजा...

शासक मसेदश क्वॉस:– राजकुमार तुम कुछ ज्यादा नही बोल रहे। एक पूरे ग्रह के कर्ता–धर्ता के सामने तुम क्या बोल रहे तुम्हे समझ में भी आ रहा है?

हिमा:– हां मेरा भाई सोच समझ कर ही बोल रहा है। तुम लोगों के साथ देने के चक्कर में आज हम किसी दर के नही रहे। थाली में पड़ोसकर शिकार दिया था, फिर भी उसे मार नही पाये।

सेनापति बिरजोली:– यदि पिछली गलती निकालते रहे, तब आगे का कैसे सोचेंगे। मानता हूं वह आर्यमणि पृथ्वी पर हमसे कुछ ज्यादा ही भारी निकला। मै ये भी मानता हूं कि उस इकलौते भेड़िए का खौफ ऐसा था कि उसके जिंदा होने की खबर से ही हमारा पूरा समुदाय पृथ्वी छोड़कर भाग आया। लेकिन आने वाले वक्त ने हमें एक मौका दिया है। वह भेड़िया, उस दगाबाज पलक के साथ गुरियन प्लेनेट आ रहा है।

निमेषदर्थ:– यहां उसे मार तो पाओगे न? या ये प्लेनेट भी छोड़कर भाग जाओगे?

गुरियन प्लेनेट का असली राजा बॉयनॉय..... “तुम अपने कैदियों को सम्मोहित कर लो, मैं तुम्हे बदले में जीत दे दूंगा।”

निमेशदर्थ:– कुछ लोगों को मारने के लिये तुम्हे 5 करोड़ की फौज चाहिए?

बॉयनॉय:– फौज तो हमे चाहिए लेकिन उस भेड़िए को मारने के लिये नही, बल्कि एक वीरान प्लेनेट “हिस्सक” पर नायजो की नई हाइब्रिड आबादी बसाने के लिये 5 करोड़ की फौज चाहिए।

निमेष:– 5 करोड़ लड़के तो ऐसे मांग रहे, जैसे 5 करोड़ लड़की उस प्लेनेट पर सुखी बैठी है।

बॉयनॉय:– 5 नही 15 करोड़ लड़कियां सुख रही है। हमे 5 साल में वहां 45 करोड़ हाइब्रिड चाहिए।

निमेशदर्थ:– यदि मैने उन 5 करोड़ कैदियों को सम्मोहित नही किया और तुम्हारी वो लड़कियां कुछ दिन संभोग नही करेगी, तो क्या तुम अपनी जमीन पर आर्यमणि को नही हरा पाओगे?

मसेदश क्वॉस:– हां कह सकते हो। क्योंकि हम अपना जारी काम रोक नही सकते। उस भेड़िए के आने का कार्यक्रम कुछ दिन पहले बना था, जबकि हम हाइब्रिड बसाने के काम को कई वर्षों से अंजाम दे रहे थे। तुम्हारे कैद में कई ग्रह के लोग थे, वरना हमारे 10 करोड़ सैनिक कई ग्रह पर फैल जाते और वहां से 5 से 10 करोड़ पुरुषों को पकड़ लाते।

अब या तो तुम हमारा काम कर दो तो हम अपने सैनिक यहां लगा दे। या फिर हम अपने सैनिकों को आबादी बसाने वाले मुहिम पर लगाकर, आर्यमणि के खिलाफ आम नायजो को हथियार पकड़ाकर लड़ाई के मैदान में उतार दे। फिर नतीजा जो हो उस से अभी हमें कोई सरोकार नहीं। बाद में जब हमारे सैनिक लौटेंगे तब हम पृथ्वी पर हमला कर उस भेड़िया समेत पूरी पृथ्वी को ही वीरान कर देंगे।

निमेषदर्थ:– इसे कहते है ना दृढ़ संकल्प। तो ठीक है, उन 5 करोड़ कैदियों को जहां ले जाना है ले जाओ, बदले में आर्यमणि की लाश गिड़ा देना।

सेनापति बिरजोली:– क्या उस लड़ाई का हिस्सा तुम नही होना चाहते?

निमेषदर्थ:– मैं तो उस लड़ाई का हिस्सा बन जाता लेकिन माया के पीछे जिसका दिमाग था, विवियन वो क्यों नही इस लड़ाई का हिस्सा बन रहा है? वह तो पृथ्वी से लौटा भी नही...

शासक मसेदश क्वॉस और विवियन का पिता..... “मेरा बेटा यदि पृथ्वी पर रुका है तब वह जरूर अपने समुदाय के लिये कुछ अच्छा करने की योजना से ही रुका होगा। वरना इस वक्त वो हमारी महफिल में होता। ये मैं क्या बोल गया? तुम्हे कैसे पता की माया बस मुखौटा थी, असली खेल विवियन खेल रहा था?

निमेषदर्थ:– क्या बात है पूरा भांडा फोड़ने के बाद आखिर में राज खुलने की चिंता हुई। घबराओ मत तुम्हे देखने के बाद ही सारी कहानी समझ में आ गयी थी। तुम्हारी और विवियन की शक्ल जो इतनी मिलती है।

उस महफिल में सबसे बेगाना करेनाराय ही था। यूं तो बेचारे को गुरियन प्लेनेट के असली राजा बॉयनॉय के बाद दूसरा स्थान मिला था परंतु यहां उसकी कोई औकाद ही नही थी। उसके मन में बस एक ही बात घूम रही थी.... “वक्त–वक्त की बात है।”

पहले आर्यमणि को मारने की विस्तृत चर्चा। फिर कुछ इधर–उधर की चर्चा। फिर जाम से जाम टकराए और अंत में नाच गाने के साथ पूरी महफिल झूमी। सबके अपने–अपने प्लान थे। गुरियन प्लेनेट पर नायजो के बड़े–बड़े नायक अपनी योजना बना रहे थे। वहीं अल्फा अल्फा पैक भी युद्ध के लिये कमर कस रही थी।

नायजो से उसी की धरती पर लोहा लेने की पूरी तैयारी चल रही थी। पलक, 2 दिनो तक महा के साथ महासागर की गहराइयों में काम करने के बाद वापस नागपुर लौट आयी थी। कुछ नए और कुछ पुराने लोगों के साथ अल्फा पैक, और पलक की कोर टीम, नागपुर स्थित भूमि के घर इकट्ठा हुये थे।

आर्यमणि:– “हम बस चंद लोग है और हमारा सामना 4 ग्रहों के एक जुट ताकत से होने वाला है। एक आखरी जंग उन नायजो के साथ जो अनैतिक तरीकों से ग्रहों पर कब्जा करते है। एक आखरी लड़ाई उस दुश्मनों से जिसने मेरी रूही, अलबेली और इवान को मुझसे दूर कर दिया। एक आखरी लड़ाई अपने सात्त्विक आश्रम के वर्चस्व स्थापित करने की, जिसे ये नायजो वाले तबाह करते आ रहे थे।”

“वैसे एक बात मैं अभी बता दूं कि मैं जितनी बार इनसे भिड़ा हूं, हर बार इनके पास कुछ न कुछ नया तिलिस्म जरूर रहा है। ऊपर से हम पृथ्वी से कई लाख किलोमीटर दूर उनकी जमीन पर होंगे, जहां हमें कोई मदद नहीं मिलने वाली है। आगे बढ़ने से पहले हम पलक को सुनेगे की हमे वहां और किन–किन चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।”

इधर आर्यमणि अपनी बात समाप्त किया और उधर एक कराड़ा थप्पड़ उसके गाल पर पड़ा.... “तूने सोचा भी कैसे की इस बार मुझे छोड़कर भाग जायेगा। मुझे भी दूसरे ग्रह पर घूमने जाना है।”... भूमि, आर्यमणि को एक थप्पड़ लगाती उस सभा में ग्रैंड एंट्री मारी।

अभी एक थप्पड़ की गूंज समाप्त नहीं हुई थी कि तभी आर्यमणि की मां जया भी उसे एक थप्पड़ चिपकाती.... “इसी दिन के लिये बेटे को जन्म दी थी कि वह अकेला घूमने भाग जाये और सालों तक अपनी शक्ल न दिखाए। मुझे भी तीर्थ पर लेकर चल।”..

आर्यमणि:– मां वहां कौन सा तीर्थ होगा...

जैसे ही आर्यमणि चुप हुआ उसके पापा केशव एक थप्पड़ लगाते.... “तीर्थ नही होगा तो वहां तीर्थ स्थल बना। ईश्वर तो हर जगह मौजूद है।”

आर्यमणि:– अभी दरवाजे से एक–एक करके सभी आ गये ना, या और भी कोई बचा है?

पहले चित्रा, फिर माधव भी वहां आ धमके और चित्रा ने भी आते हुये एक चिपका ही दिया।

आर्यमणि:– आप सभी हमारे साथ चल रहे हैं। अब जरा शांति से बैठ जाइये। पलक तुम शुरू हो जाओ...

चित्रा:– हां बोलने का पहला मौका तो पुराने प्यार को ही मिलेगा न...

महा, बिलकुल चौंकती हुई.... “पुराना प्यार???”..

भूमि:– लो पूरी दुनिया को पता है पर इस बेचारी को पता ही नही...

महा, आर्यमणि को सवालिया नजरों से घूरती.... “क्यों जी पूरे दुनिया को पता है, सिर्फ मुझे ही नही पता?”

केशव:– मैं तो निशांत के गर्लफ्रेंड को देख रहा। पूरे जोरदार गर्लफ्रेंड ढूंढा है।

पलक:– गर्लफ्रेंड के किस्से तो आर्य के होने चाहिए न। और ये चित्रा जो मेरे बारे में मुंह फाड़ रही है, अपनी भी तो बता। पहले तो तुम्ही दोनो गर्लफ्रेंड–ब्वॉयफ्रेंड के रिलेशन में थे।

पूरा परिवार ही एक साथ.... “क्या?”..

माधव, रोनी सी सूरत बनाते.... “क्या मेरी बीवी का टांका आर्य से भिड़ा था और मुझे बताई तक नही।”

आर्यमणि:– मैं सोने जा रहा हूं। तुम लोगों की हंसी ठिठोली बंद हो जाये तो बता देना।

पलक:– या तो सब ध्यान से सुन लो या फिर रूही से मिलने के लिये तैयार हो जाओ।

भूमि:– रूही की याद तो आती है पर अभी मेरा बच्चा छोटा है इसलिए मैं नही मिलना चाहती।

एक–एक करके सब शांत हो गये। माहौल बिलकुल खामोश था। आर्यमणि ने इशारा किया और पलक बोलना शुरू की.... “यदि हम गुरियन प्लेनेट पर हारते है तो समझ लो हम पृथ्वी हार गये।”
नैन भाई अपडेट तो बहुत शानदार है लेकिन लगा था की आप की वापसी अपडेट की सुनामी के साथ होंगी जहाँ तीन चार अपडेट तो एक साथ होंगे हीं लेकिन आप ने तो सिर्फ एक अपडेट दिया चलो कोई नहीं बस अब इसी तरह लय बनाये रखना 🙏🙏🙏🙏🙏🙏
 
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111ramjain

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Nice update bro
 
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king cobra

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Aur update kaha hain :?:
 
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