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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

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भाग:–181


एक–एक करके सब शांत हो गये। माहौल बिलकुल खामोश था। आर्यमणि ने इशारा किया और पलक बोलना शुरू की.... “यदि हम गुरियन प्लेनेट पर हारते है तो समझ लो हम पृथ्वी हार गये।”

भूमि:– हम नही भी थे तब भी ये एलियन पृथ्वी पर थे। हमारे हारने या जितने का कोई फर्क नही पड़ता। खुद को ब्रह्मांड के रखवाला बताने से अच्छा है कि लड़ाई की वजह और लड़ाई का मुख्य लक्ष्य क्या है वो बताओ?

पलक:– ये बताना मेरा काम नही, आर्य बतायेगा। मुझे ये बताना है कि उस ग्रह पर हमारा सामना किन हालातों से हो सकता है।

भूमि:– ठीक है वही बताओ। लेकिन प्वाइंट टू पॉइंट बताना, बिना कोई मिर्च मसाला डाले।

पलक:– “जिस समुदाय से हम लड़ने जा रहे वह ब्रह्मांड का बहुत पुराना समुदाय है। नायजो जहां भी होते है, वहां जंगलों की कोई कमी नही रहती। ये तो सभी जानते है कि नायजो के आंख से लेजर निकलता है और उन लेजर के साथ कोई भीषणकारी कण भी निकलते है, लेकिन ये कोई नही जानता की नायजो अपने पत्थरों के साथ उस से भी कहीं ज्यादा खतरनाक होते है। हमारे यहां के सिद्ध पुरुष जो काम मंत्रों से कर सकते हैं, नायजो वह सारे काम अपने पत्थरों से कर सकता है।”

“दूसरा इनका सबसे बड़ा हथियार बनेगा, इनके जंगलों के काल जीव। ये लोग अपने जंगल में ब्रह्मांड के कई खतरनाक काल जीव को रखते हैं, इनमे ड्रैगन सबसे खतरनाक है। एक व्यस्क ड्रैगन का आकार 20 मीटर से लेकर 50 मीटर तक हो सकता है। ड्रैगन के मुंह से मौत निकलती है। किसी के मुंह से भस्म करने वाला आग तो किसी के मुंह से जमा देने वाला बर्फ निकलता है। इसके अलावा बिजली, जहरीले गैस इत्यादि भी निकलते है। इनके पास जो ड्रैगन होते हैं वह बात भी कर सकते है और किसी कुशल सैनिक की तरह एक चेन कमांड में लड़ भी सकते हैं।”

“ड्रैगन के अलावा जो हमारा सामना होगा वह है दैत्य। दरअसल नायजो समुदाय इसे जंगल के रक्षक कहते है, किंतु ये रक्षक दिखने में बिलकुल दैत्य की तरह लगते है। हर दैत्य का आकार इंसान जैसा होता है, लेकिन उनका शरीर बना होता है आग से। उनका शरीर बना होता है पानी से। उनका शरीर बना होता है हवा से। उनका शरीर बना होता है कीचड़ से।”

“कहने का अर्थ है इन दैत्यों की शक्ति ही उनका शरीर होता है। जिस दैत्य की शक्ति आग होगी, उसका शरीर ही पूरा आग का बना होता है। ये दैत्य जमीन के बड़े से हिस्से को पलक झपकते ही आग का दरिया बना सकते हैं। कीचड़ का दरिया बना सकते है। जिस दैत्य की जो भी शक्ति हो, वह दैत्य पलक झपकते ही जमीन के बड़े से भू–भाग को उसने तब्दील कर सकते हैं और इन्हें मारेंगे कैसे इसकी जानकारी मेरे पास नही है।”

“इनके अलावा नायजो अपने पत्थर की मदद से गोल घेरा बनाते हैं। मौत का घेरा। इस घेरे में यदि फंस गये और निकलने का उपाय नहीं जानते है, फिर मौत निश्चित है। पर इस गोल घेरे को बहुत आसानी से तोड़ा जा सकता है। यह घेरे कभी दिखने वाले किरणों से बनते है तो कभी किरणे अदृश्य होती है।”

“हम उनकी जमीन पर होंगे तो यही मानकर चलते हैं की किरणे अदृश्य होंगी। ज्यादा कुछ नही करना है, बस एक छोटा सा रिफ्लेक्टर भी उन किरणों पर पड़ गया, तो उनका घेरा टूट जायेगा। अब मैंने रिफ्लेक्टर कहा तो कोई यह न समझे की आईना को रख देने से काम बन जायेगा। यह घेरे काफी खतरनाक किरणों के बने होते है, इसलिए कोई कठोर रिफ्लेक्टर चाहिए। उम्दा किस्म का हीरा एक बेहतर विकल्प है, यह न सिर्फ घेरे के किरणों को रिफ्लेक्ट करके घेरा तोड़ सकता है। बल्कि यदि किसी हाई प्रेशर झेलने वाले मेटल के ढाल के ऊपर यदि हीरे को किसी विधि आईने की तरह चिपका दिया जाये, तो हम उनकी नजरों की किरणों को रिफ्लेक्ट करवाकर, उन्ही पर हमला करवा सकते है। हां लेकिन हर नायजो के हाथ से बिजली, आंधी, तूफान और आग भी निकलता है। ये लोग तो हवा से तीर और भाले भी निकाल लेते है, उनको रिफ्लेक्ट नही किया जा सकता।”

“इन सबके अलावा जो सबसे दुख देने वाला है, वह है हाईबर मेटल। ऐसा मेटल जिसे किसी भी विधि भेद नहीं सकते। इसे तोड़ा नही जा सकता, काटा नही जा सकता। इन मेटल को मनचाहा आकर देने के लिये इनके पास खास मसीने है। एक बार हाईबर मेटल से कोई भी सांचा बना दिये फिर उसके ऊपर से ट्रेन गुजार दो या रोड रोलर चढ़ा दो, हाइबर मेटल को एक मिलीमीटर चिपका नही सकते। हाइवर मेटल के बाहरी दीवार पर भीषण आग लगा दो उसके अंदर कुछ भी असर नही होगा। युद्ध में ये लोग हाइबर मेटल के बने सूट का प्रयोग करते हैं जिनका हम कुछ नही बिगाड़ सकते। और हुर्रीयेंट प्लेनेट पर हायबर मेटल की प्रचुर मात्रा उपलब्ध है, जिसका प्रयोग सेना की टुकड़ी करती है।”

“ओह हां एक और बात तो रह ही गयी। ये लोग पेड़–पौधों को जलाकर जो धुवां करते है, उन धुवें के संपर्क में आने वाले इंसान के शरीर में कुछ भी बदलाव हो सकता है। वह मानसिक रोगी बन सकता है। अपनी आंसिक या पूरी यादाश्त खो सकता है। धुवां इनका वो हथियार है, जिस से ये लोग कुछ भी कर सकते हैं। और धुवां भी ऐसा जो दिखाई ही नही दे।”

“मेरे ओर से शायद मैने लगभग जानकारी साझा कर दी है। कुछ छूट गया होगा तो मैं याद आते ही बता दूंगी।”

ओजल:– विवरण तो काफी खतरनाक था। हमे कुशल सैन्य मदद की आवश्यकता होगी, जिन्हे नायजो की हर बारीकियां पता हो। बिना सैन्य मदद के हम जीत नही सकते...

महा:– करेनाराय मेरे कैदियों के प्रदेश से 5 करोड़ कैदियों को अपने प्लेनेट ले गया है। उनमें से 20 लाख मेरे कमांड वाले सबसे कुशल सैनिक है। बस उनके हथियार लेकर गुरियन प्लेनेट तक जाना होगा।

पलक:– जहां तक मुझे पता है, जल सैनिक थल पर हस्तछेप नही कर सकते। थल पर तो जलीय सैनिक किसी खरगोश की तरह होंगे, जिन्हे कोई भी मात दे दे...

महा:– हां ये बात तो सत्य है और मैने ही तुम्हे बताया था। पर मेरे कमांड में जलीय सैनिक स्थल पर भी उतने ही खतरनाक होंगे, जितने जल में रहते है।

आर्यमणि:– “उम्मीद है सभी अपने दुश्मनों से परिचित हो गये होंगे। एक बात सब ध्यान रखेंगे, ये नायजो वाले कभी भी अपने नए हथियार या तिलिस्म से चौंका सकते है, इसलिए हम सब किसी भी परिस्थिति के लिये तैयार रहेंगे। अब आते है भूमि दीदी के सवाल पर। तो हमारा गुरियन प्लेनेट जाने का मकसद तो सबको बता ही दिया था। सात्त्विक आश्रम पर लगातार साजिश करने वालों को ऐसा सबक सिखाना की वह दोबारा फिर कभी सात्त्विक आश्रम को याद करे तो पेसाब निकल आये।”

“पृथ्वी पर उनके द्वारा मचाए आतंक का पूरा जवाब देना, ताकि दोबारा फिर कभी पृथ्वी पर अपनी नजर नही डाले। अंत में रूही, अलबेली और इवान को हमसे दूर करने की साजिश रचने वाले मुख्य साजिशकर्ता माया, विवियन और उसके पिता मसेदश क्वॉस को उसके किये सजा देना। मुख्य साजिशकर्ता में निमेष और उसकी बहन हिमा भी वहां है, उन्हे भी उनके किये की सजा देना है। हां लेकिन उन सबको गुरियन प्लेनेट पर सजा नही देंगे। बल्कि सबको खींचकर पृथ्वी पर लाना है, और उन सबको यहां पृथ्वी पर सजा देंगे।”

भूमि:– मतलब लड़ाई 2 हिस्सों में होगी क्योंकि रूही को मारने वालों में वो मधुमक्खी की रानी भी तो है जो ओशुन का शरीर लिये घूम रही। वो जो तूने अभी एक नाम लिया था न मदरचोद स्क्वाड (मसेदश क्वॉस) उसका बेटा विवियन भी तो गुरियन प्लेनेट पर नही है।

आर्यमणि:– क्या है दीदी कैसी आपत्तिजनक भाषा का प्रयोग कर रही।

भूमि:– अरे... उसने नाम ही अब ऐसा मदरचोद रख लिया है तो मैं क्या करूं। तू आगे की बात कर बस...

आर्यमणि:– हां शायद एक के बाद एक युद्ध लड़ना पड़े। लेकिन अभी कुछ कह नही सकते की गुरियन प्लेनेट पर सभी साजिसकर्ता एक साथ मिलेंगे या 2 टुकड़ियों में विभाजित रहेंगे। सबके सामने पूरी बातें बता दी गयी है। जो भी हथियार चुनने है चुन लीजिए। कुछ नया और अलग तरह का हथियार दिमाग में है, तो उसे बताइए। कोशिश करेंगे उस हथियार को बना देने की। जितना वक्त चाहिए उतना वक्त लीजिए। पूरी तैयारी होने के बाद ही हम सब उड़ान भरेंगे।

सभा समाप्त हो रही थी। सब लोग छोटे–छोटे ग्रुप में बंटकर आपस में चर्चा कर रहे थे। पूरी चर्चा भूमि के घर पर ही हो रही थी। आर्यमणि घर के दूसरे हिस्से में चला आया। वह कुछ सोच ही रहा था कि वहां ऋषि शिवम और अपस्यु ठीक सामने आकर खड़े हो गये। आर्यमणि, अपस्यु को देख अपनी बाहें खोलते.... “अति व्यस्त मानस आज हमारे दर पर?”..

अपस्यु:– क्या बड़े जूते भींगो कर मार रहे। खैर अभी मेरे पास वक्त नहीं इन बातों का, कभी और चर्चा कर लेना। अभी मुझे दुनिया का सबसे बेस्ट न्यूरोलॉजिस्ट की जरूरत है, जो दिमाग का ऑपरेशन कर सके।

आर्यमणि:– किसे क्या हो गया?

अपस्यु:– जीविषा को तो जानते ही हो। उसका और उसके पति निश्चल के दिमाग का ऑपरेशन होना है। मेरे लोग ऑपरेशन कर तो रहे है लेकिन मुझे नही लगता की वो लोग सफलतापूर्वक दिमाग के उस हिस्से में घुस सकते हैं, जहां से किसी धुएं के जरिए आंशिक यादों को दिमाग से हटा दिया जाये। ओह हां दरअसल 2 नही 3 ऑपरेशन होने है। निश्चल की बहन सेरिन भी है।

आर्यमणि:– निश्चल वही अंतरिक्ष यात्री न जिसके साथ ओर्जा सफर कर रही थी।

अपस्यु:– हां वही है।

आर्यमणि:– अच्छे समय पर आये हो। मुझे कुछ दिनों के लिये एक अंतरिक्ष यान चाहिए, जिसमे 100–200 लोगों को लेकर यात्रा की जा सके।

अपस्यु:– कुछ मतलब कितने दिन...

आर्यमणि:– बहुत जल्द आऊंगा...

अपस्यु:– हां जल्दी ही आना क्योंकि मैं अगले 3–4 महीने व्यस्त रहूंगा। मठ और सात्विक गांव से बाहर न निकल सकूं। ऐसे में यहां का सारा काम तुम्हे ही देखना होगा।

आर्यमणि:– कहे तो मैं निशांत, ओजल और ओर्जा को यहीं छोड़ जाऊं?

अपस्यु:– बड़े जबतक तुम लौट नही आते, कुछ दिनों के लिये मैं डेविल ग्रुप को अंडरग्राउंड ही रखूंगा। वैसे भी ओर्जा का तुम्हारे साथ होना ज्यादा जरूरी है। उसे ध्यान लगाने में निपुण कर देना। रही बात अंतरिक्ष यान की तो वो हो जायेगा।

“गुरु अपस्यु आपके तो दर्शन होना ही दुर्लभ हो गये है।”... पीछे से पलक टोकती हुई कहने लगी...

अपस्यु:– पलक मैं मिलना तो चाहता था, पर पृथ्वी के रायते ऐसे है कि उसे ही समेट नही पा रहा। कई प्रकार के एलियन और पृथ्वी के सारे विलेन मिलकर अलाइंस बनाए हुये है। वो तो अच्छा हुआ बड़े जाग गया और रातों रात हमारे ऊपर से नायजो का सर दर्द घट गया।

आर्यमणि:– क्या नायजो वाले कुछ और लोगों से हाथ मिलाए हुये थे।

अपस्यु:– तुम चिंता न करो बड़े। जिन लोगों के साथ नायजो वाले काम कर रहे थे, वो सब पृथ्वी पर ही है। वैसे 2 समुदाय को उकसाकर तो तुम्ही ने एलायंस में लाया था.... एक नायजो और दूसरा वो वेमपायर। अपने राजकुमारी के खूनी की तलाश में सबके नाक में दम कर रखा है।

आर्यमणि:– लौटकर आने दे, फिर उन वेमपायर को अच्छा सबक सिखाऊंगा। फिलहाल ऑपरेशन के लिये चले।

अपस्यु:– ऋषि शिवम जी, क्या आप हमारी गैरहाजरी में यहां के लोगों की जरूरतों के समान की लिस्ट तैयार कर लेंगे क्या?

आर्यमणि:– छोटे तू पूरी मीटिंग सुन रहा था क्या?

अपस्यु:– नही आखरी का हिस्सा। अब चले क्या? इस वक्त ऑपरेशन थिएटर में कोई डॉक्टर नही है।

आर्यमणि:– रुक 2 मिनट... महा.. महा..

महा, बाहर आती.... “जी कहिए..”

आर्यमणि:– महा इस से मिलो, ये है गुरु अपस्यु। मेरा छोटा भाई..

महा:– देवर जी कैसे है?

अपस्यु:– भाभी अभी कई उलझनों में हूं, वरना आपको देख तो मुर्दों में जान आ जाये। आपकी तारीफ करते मैं साल गुजार दूं।

महा:– बड़े मजाकिया है।

आर्यमणि:– महा मैं चाहता हूं अपस्यु को भी महासागर से कोई खतरा न हो। यदि नियम बाधित न करे तो क्या तुम मेरे लिये इतना कर सकती हो?

महा, अपस्यु के नजदीक पहुंचकर उसके दोनो कानो के पीछे चिड़कर 2 कदम पीछे हटती... “लीजिए हो गया।”

फिर आर्यमणि, अपस्यु के नजदीक पहुंचा और अपना क्ला अपस्यु के गर्दन के पीछे लगाकर कुछ पल आंखे मूंद लिया..... “लो हो गया। चाहकीली अब तुम्हारी आवाज भी सुन सकती है। वहां के साइंस लैब में सेल बॉडी सब्सटेंस के कई जार तैयार है। पानी के किसी भी हिस्से से चाहकीली को आवाज लगा देना।”

अपस्यु:– तुम कमाल के हो बड़े। अब चले क्या?

महा:– कहां जा रहे है...

महा जबतक अपने सवाल पूरा करती उस से पहले ही आर्यमणि अंतर्ध्यान होकर निश्चल, जीविषा और सेरीन के पास पहुंच चुका था। आर्यमणि बारीकी से तीनो के दिमाग की पूरी जांच करने के बाद, अपस्यु से ब्रेन सर्जरी के एक्सपर्ट टीम को अंदर भेजने के लिये कहा। यूं तो अपस्यु चाहता था आर्यमणि ही ऑपरेट करे, लेकिन आर्यमणि साफ इंकार कर दिया। उसका कहना था सर्जरी वाले कामों में अनुभव की ज्यादा आवश्यकता पड़ती है। खासकर जब बात ब्रेन सर्जरी की हो रही हो।

वहां डॉक्टर आकाश अपनी टीम के साथ पहले से ही थे। कुछ वक्त का ब्रेक उन्होंने लिया था। डॉक्टर आकाश की पूरी टीम जैसे ही ऑपरेशन थिएटर में पहुंची, अपस्यु उनसे एक औपचारिक परिचय करवाकर, आर्यमणि के कहे अनुसार सर्जरी परफॉर्म करने कहा। डॉक्टर आकाश ने लेकिन पहले आर्यमणि से केस पर डिस्कस करना उचित समझा। आर्यमणि ने दिमाग के किस हिस्से में क्या परिवर्तन हुआ है और कहां से किस छोटी चीज को हटाना है वह पूरा का पूरा वर्णन कर दिया।

डॉक्टर आकाश जब आर्यमणि की बातों से पूर्ण रूप से सहमत हो गये, तब उन्होंने ठीक वैसा ही किया जैसा आर्यमणि ने बताया था। काम हो जाने के बाद आर्यमणि वहां से अंतर्ध्यान हो गया और सीधा भूमि के घर पहुंचा। वहां चारो ओर डिस्कशन का माहौल जारी था। तरह–तरह के हथियार के बारे में लोग ऋषि शिवम से डिस्कस कर रहे थे।

उनकी डिस्कशन लगभग पूरी हो चुकी थी। सबसे ज्यादा डिमांड तो भूमि के ओर से ही आया था। भूमि मतलब वहां सभी सामान्य से इंसानों की नेता। जो भूमि की डिमांड वही जया, केशव, चित्रा और माधव की भी डिमांड थी। पीछे से पलक ने भी कह दिया... “जब ऐसे खुराफाती हथियार बना ही रहे हो तो एक, दो एक्स्ट्रा बनवा लेना।”....

तैयारियां फिर तो जोड़ों पर होने लगी। आर्यमणि अंतर्ध्यान होकर एक बार फिर अंटार्टिका महादेश में था। आर्यमणि अंटार्टिका, बिग फूट के देश में बने अपने दोस्त पैट्रिक को याद किया और पैट्रिक ऊपर सतह पर पहुंच चुका था।

आर्यमणि को देखकर पैट्रिक खुश होते.... “आइए, आइए गुरुदेव... आज हमारी गली का रास्ता कैसे भुल गये।“..

आर्यमणि अपने पास रखे वर्ष 1820 की 2 वाइन की बॉटल पैट्रिक के पास रखते.... “मेरे नजर पर तुम्हारे 2 पुराने प्यार (2 वाइन बॉटल) चढ़ गये, वही ले आया हूं।”...

पैट्रिक दोनो बॉटल को अपने सीने से लगाते..... “आह, इसे देखकर तो ऐसा लगा जैसे स्वर्ग को सीने में समेट लिया हूं। इसके बदले में क्या सेवा करूं?”

 

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भाग:–182


आर्यमणि:– ज्यादा कुछ नही, मुझे मजबूत धातु के बने एक लाख ढाल चाहिए, जिसके सामने का भाग पर 1 सेंटीमीटर मोटा हीरे की परत चढ़ी हो।

पैट्रिक, अपने हाथ में रखे दोनो बॉटल वापस करते.... “तुम्हे पॉलिसी पता है। हम कोई भी पत्थर बाहर नही निकालते।”

आर्यमणि:– मुझे बस मजबूत रिफ्लेक्टर चाहिए जो खरनाक और घातक लेजर की किरणों को रिफ्लेक्ट करवा सके। मेरे पास और कोई विकल्प नहीं है।

पैट्रिक:– क्या वाकई में सीरियस हो?

आर्यमणि:– तुम्हे क्या लगा, मैं मजाक में मूड में इतनी दूर आया हूं?

पैट्रिक:– नही, ऑटोमेटिक राइफल के युग में कोई ढाल बनवाए तो मजाक ही लगेगा न। यदि लेजर राइफल को भी मात देना हो तो लेजर प्रूफ जैकेट बनवाएगा न की ढाल।

आर्यमणि:– और यदि किसी किरणों का ऐसा घेरा हो जिन्हे तोड़ न पाए, वहां तो रिफ्लेक्टर चाहिए न।

पैट्रिक:– आर्य ऐसे घेरा तो एक ही समुदाय बनाता है, जो पृथ्वी पर छिपकर रहता है। अंटार्टिका का कुछ हिस्सा उन्ही लोगों के पास है। हमारे सिपाही इसलिए तो हार जाते है, क्योंकि वो किरणों का ऐसा घेरा बनाते है, जिनमे जाने के बाद हमारे सभी सिपाही बेबस हो जाते है। उसके बाद उनका क्या होता है पता नही।

आर्यमणि कुछ सोचते हुये..... “मतलब वो इलाका मैं जीत लूं तो वहां का सारा पत्थर मेरा हुआ न?”

पैट्रिक:– “भेड़िया राजा मैं तुम्हारे अंदर पत्थरों की दीवानगी को मेहसूस कर सकता हूं। छोड़ दो इन पत्थरों की दीवानगी को। ये तुम्हे ले डूबेगा। फिर कोई ज्योतिष, कोई भी सिद्धि प्राप्त साधु तुम्हे बर्बाद होने से नही बचा पायेगा। ये पत्थर तुम्हारे ग्रहों की दिशा पल भर में बदलकर तुम्हारे सौभाग्य को दुर्भाग्य में बदल देंगे। तुमने अपने एमुलेट में पहले से ऐसे कई पत्थर लगा रखा है, जिन्हे धारण करने से तुम्हे कभी भी नुकसान उठाना पड़ सकता है। ऊपर से पत्थरों की इतनी लालच की तुम अपने पास पत्थरों का एक पूरा क्षेत्र रखना चाहते हो।”

“कोई नही, हां तुम वो क्षेत्र जीत लिये तो वह तुम्हारा क्षेत्र हुआ। जाओ जीत लो और जो करना है करो। लेकिन याद रखना किसी दिन जब ये पत्थर तुम पर नकारात्मक प्रभाव डालेंगे तब पत्थर धारण करने के लिये तुम्हारे पास गला नही बचा होगा। ”

आर्यमणि:– तुम कहना क्या चाह रहे हो दोस्त? मैने जो पत्थर धारण किया है वह गलत है?

पैट्रिक:– “हां गलत है। पत्थर को हम लोग एक जीवंत वस्तु मानते है, जो उसके धारण करने वाले किसी भी इंसान के आत्मा से जुड़ जाती है। यूं समझ लो की किसी निष्क्रिय जीवित वस्तु को खुद से जोड़कर उसमे जान डाल दिये हो। फिर तो पत्थर की अपनी भावना होती है। ये भावना उसके धारक के लिये कभी सकारात्मक तो कभी नकारात्मक हो सकती है। अब इसमें कोई ऐसी युक्ति नही जो यह तय कर पाये की पत्थर का हमेशा सकारात्मक प्रभाव ही दिखाए। ये मनमौजी होते है।”

“इनके प्रभाव 99% सकारात्मक ही रहता है। लेकिन मेरे दोस्त जब वो 1% का नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा ना तब तुम्हे ऐसे फेरे में डाल देगा की तुम घनचक्कर बने फिरोगे। हालत कुछ ऐसी होगी की सामने के दरवाजे से आसानी से निकल सकते हो। लेकिन फिर भी दिमाग में खुराफात आयेगा और तुम किसी दीवार को तोड़कर बाहर निकलने की इच्छा रखोगे।”

“जब तुम वो दीवार तोड़ने जाओगे तब पूरा घर ही गिर जायेगा। तुम जीवित रहोगे लेकिन घर के मलवे के नीचे कहीं दबे। वहां से किसी तरह बाहर भी निकल आये तो पता चलेगा की तुम्हारा वो घर अब बेगाना हो गया है। जिंदगी चलती रहेगी। वह पत्थर वापस से अपना सकारात्मक प्रभाव भी दिखाना शुरू करेगा लेकिन जो एक प्रतिशत वाला नकारात्मक प्रभाव पड़ा था न उसी में तुम्हारी जिंदगी पिसती रहेगी।”

आर्यमणि:– यदि ऐसी बात थी तो मुझे आचार्य जी या फिर जल साधना पर बैठे योगियों ने क्यों नही आगाह किया?

पैट्रिक:– “उनसे ट्रक का इंजन भी ठीक करवा लेते। कम्यूटर असेंबल भी करवा लेते। यार साधना में बैठे लोगों को पत्थर का ज्ञान कबसे होने लगा। वह तो बस पत्थर को देखकर उनके अंदर के गुण को भांप सकते हैं, लेकिन हम पहाड़ में रहने वाले लोगों की तरह उन्हे पत्थर का ज्ञान कहां से होगा।”

“अब खुद को ही देख लो। एमुलेट में कई तरह के पत्थर को साथ लेकर घूम रहे, बिना इस बात को जाने की कई प्रकार के पत्थर को तो साथ में भी नही रख सकते। तुम्हारे एमुलेट के एनर्जी स्टोन छोड़कर बाकी सभी पत्थर को निकालकर कहीं स्थापित कर दो। वह पत्थर अपने मूल प्रभाव से कम से कम 4 लोगों का भला तो करेगा ना।”

आर्यमणि, अपना एमुलेट निकालकर उसमे लगा सभी पत्थर पैट्रिक के हाथ में देते..... “लो ये सारे पत्थर मैने तुम्हे ही दिया। करते रहो भला। हां पर मुझे ये बताओ की मेरा एनर्जी स्टोन घातक क्यों नही?”

पैट्रिक:– क्योंकि इस पत्थर की उत्पत्ति पानी की गहराइयों में हुये बड़े टकराव के कारण हुई थी, इसलिए इसका संबंध ग्रहों की दिशा पर निर्भर नही करता वरन धारक के मानसिक मनोस्थिति पर निर्भर करता है। जैसा इसका धारक होगा वैसे ही इस पत्थर की भावना भी होगी।

आर्यमणि:– पैट्रिक तो क्या वजह थी कि पत्थर का जानकार, उन हिस्सों में जीत हासिल नही कर पाया, जहां पत्थरों के प्रयोग से ही उन्हें हराया जाता है?

आर्यमणि अंटार्टिका के उस हिस्से की चर्चा करते हुये ताना दिया जहां कोई दूसरा समुदाय या यूं कहे तो नायजो का कब्जा था।

पैट्रिक:– उन कमीनो (नायजो) के पास धुएं की एक बहुत असीम ताकत है। उसने हमारे जल को दूषित कर दिया था, जिसका नतीजा तो तुम देख ही चुके थे। 30 वर्षों से हम कितनी बड़ी आबादी को कोमा में झेल रहे थे। ऐसा नहीं है कि सिर्फ हम ही पत्थरों के जानकर है। मेरे ख्याल से हमारे दुश्मनों का ज्ञान भी काफी अतुलनीय है।

आर्यमणि:– अच्छा ये बताओ की पत्थरों का जब प्रयोग किया जाता होगा तो तुम उन पत्थरों से किया गया हर काम पता कर सकते हो?

पैट्रिक:– इसमें क्या सर्विलेंस सिस्टम लगा है जो सब कुछ बता दे। हां लेकिन पत्थर अपने पीछे निशान छोड़ते है तो उसके जरिए किसी भी पत्थर का आखरी प्रभाव का पता लगाया जा सकता है। आर्य अब सही बात बताओगे की तुम्हे इतनी सारी रिफ्लेक्टर ढाल क्यों चाहिए? आज तुम पत्थरों के विषय में इतनी गहराई से क्यों पूछ–ताछ कर रहे?

आर्यमणि:– सब बताऊंगा लेकिन पहले चलो वो क्षेत्र जीत आते है, जहां कुछ बेकार से लोग कब्जा जमाए बैठे है।

पैट्रिक:– पागल हो क्या? मुझे सेना को ले जाने के लिये अनुमति चाहिए होगी।

आर्यमणि:– और मैं ये कहूं की ये काम सिर्फ हम दोनो कर लेंगे तो...

पैट्रिक:– तो मैं तुम्हे पागल समझूंगा। अब सच बताओ भी आर्य...

आर्यमणि क्यों सुने। उसे तो उस क्षेत्र में कब्जा चाहिए था जहां पत्थर के इतने भंडार थे कि जितने चाहो उतने रिफ्लेक्टर ढाल बना लो। ऊपर से नायजो अब भी पृथ्वी पर थे, भला आर्यमणि ये कैसे बर्दास्त कर सकता था। वैसे तो पैट्रिक नही जाना चाहता था लेकिन आर्यमणि ने उसे जड़ों में पैक किया। जड़ों में पैक करने के बाद उस जड़ों के बड़े से गोलाकार गेंद को हवा में ऊपर उठाया और तेज चिल्लाते हुये कहने लगा... “तुम बस दिशा सोचो और हवा के सफर का आनंद लो।”

पैट्रिक:– आर्य किसी ने तुमसे आज तक कहा है कि तुम पूरे पागल हो।

जैसे ही पैट्रिक ने आर्यमणि को पागल कहा जड़ों की गेंद हवा में कई फिट ऊंचा गया और तेजी से नीचे आया। जमीन से जब एक इंच दूर था तभी वो जड़ों का गेंद एक बार फिर हवा में स्थिर हो गया। पैट्रिक अपना आंख मूंद चुका था। उसकी धड़कने तेज हो चली थी और मन के भीतर पूरा अंधेरा छा चुका था।

पैट्रिक अपनी आंख खोलकर जब खुद को सुरक्षित पाया तब बिना कुछ बोले उस दिशा को देखने लगा जहां उन्हें जाना था। वह गोला हवा में तेजी से आगे बढ़ा और उसके पीछे–पीछे आर्यमणि भी चला। सुबह से शाम ढल गयी और शाम से रात। रात के बाद भोर और फिर चढ़ते दिन के साथ वह गोला रुका। आर्यमणि ने जड़ों को खोल दिया और पैट्रिक नीचे बर्फ पर...

पैट्रिक:– दौड़ते हुये 2200 किलोमीटर का सफर तय कर गये। यही है सीमा इलाका। इसके 100 मीटर आगे जाते ही हम गोल घेरे में फसे होंगे।

आर्यमणि, मंद–मंद मुस्कुराते हुये अपने कदम आगे बढ़ा दिया। पैट्रिक को यकीन नही हो रहा था कि आर्यमणि जान का खतरा उठाने को तैयार है। आर्यमणि बड़े आराम से उस क्षेत्र में दाखिल हुआ। जैसे ही वह सीमा के उस पार पहुंचा, नायजो के गोल घेरे उसके पाऊं में थे।

आर्यमणि ने छोटा सा कमांड दिया और पाऊं के नीचे से जड़ें निकली और आर्यमणि को खींचकर नीचे पानी में ले गयी। गोल घेरे की किरणे पानी के कुछ नीचे तक असरदार तो थी लेकिन जैसे ही ऊपर से सतह पर पुनः एक बार बर्फ की हल्की परत जमी, पानी के नीचे गोल घेरे का असर खत्म हो गया।

आर्यमणि पानी के अंदर से ही उस क्षेत्र के मध्य हिस्से में पहुंचा जहां आंखों के सामने कई नायजो अपने काम में लगे थे। आर्यमणि बर्फ फाड़कर एकदम से उनके बीच खड़ा होते.... “क्यों बे नजायजो, जब मैंने पृथ्वी से तुम्हारे सभी सगे संबंधी को भागा दिया फिर तुम लोग कैसे अब तक यहां काम कर रहे।”..

एक नायजो:– तू पागल तो नहीं जो यहां चला आया। तू जानता भी है ये किसका क्षेत्र है?

आर्यमणि ने जैसे हवा को ही अपना हाथ बना लिया हो। बिना अपनी जगह से हिले नजरों का इशारा किया और एक कराड़ा तमाचा उस बोलने वाले के गाल पर पड़ा..... “किसी ने तमीज सिखाया की नही। पहले अपना परिचय दो। उसके बाद यहां की भिड़ में तुम्हारा क्या ओहदा है वो बताओ, फिर तब कहीं जाकर धमकी दो।”...

जैसे ही उस नाजयो को थप्पड़ पड़ा, उसके होश ठिकाने आ गये। वह नाजयो अपना परिचय देते.... “मेरा नाम मनडाले है। और यहां का कर्ता धर्ता मैं ही हूं। मै नही जानता की तुम कौन हो लेकिन जो भी हो गलत जगह पर खड़े हो।”..

आर्यमणि:– हां जगह तो पूरी गलत लग रही है लेकिन तुम सबके लिये। पृथ्वी से नायजो के दिन पूरे हुये, अब या तो तुम्हारे पास विमान हो तो गुरियन प्लेनेट भाग जाओ या फिर तुम्हारी आत्मा को तुम्हारे शरीर से जुदा कर देते हैं।

मनडाले:– इस इंसान को अभी मारो और सब काम पर लग जाओ...

जैसे ही मनडाले ने हुक्म दिया लेजर की किरणे चल पड़ी। आर्यमणि वायु विघ्न मंत्र का प्रयोग तो किया लेकिन मंत्र जैसे किसी काम के न रहे हो। लेजर की किरणे आर्यमणि से टकराई। वो तो आर्यमणि था जिसके शरीर का हर नब्ज हर टॉक्सिक को सोखने के लिये सक्षम था, वरना उसकी जगह कोई दूसरा होता तो जरूर जान चली गयी होती।

आर्यमणि ने हाथों से इशारे किये परंतु वहां कोई जड़ नही निकला। आर्यमणि किस जगह पहुंचा था और ये किस प्रकार के तिलस्मी नायजो थे, वह समझ से पड़े था। खैर आर्यमणि की अपनी शक्ति थी और उसी के साथ वह आगे बढ़ा। न कोई मंत्र ना कोई जड़ बस रौंगटे खड़े करने वाली दहाड़ थी और पंजों में पूरा टॉक्सिक बह रहा था।

आर्यमणि तेजी से बढ़ते हुये मनडाले के करीब पहुंचा और टॉक्सिक क्ला के एक तेज वार से उसका सर हवा में उछाल दिया। अपने मुखिया का कटा सर देख वहां के नायजो जैसे पागल हो चुके थे। वहां खड़ा हर नायजो चिल्लाने लगा और उस जगह के कोने–कोने से विंडिगो सुपरनैचुरल निकलने लगे।

देखते ही देखते उनकी तादाद बढ़ती ही जा रही। उनकी तादात इतनी थी कि पाऊं रखने तक का जगह न रहा। विंडीगो लागातार हमला कर रहे थे और जवाब में आर्यमणि भी उन पर हमला कर रहा था। एक साथ कई सारे विंडिगो आर्यमणि के शरीर पर कूदते और हाई–टॉक्सिक का झटका जैसे आर्यमणि के पूरे शरीर पर रेंग रहा हो। वह झटका खाकर विंडिगो पूरी तरह से शांत होकर जमीन पर बिछ जाते।

जितने मर रहे थे उस से ज्यादा बाहर निकल रहे थे। तभी आर्यमणि के कानो में आवाज गूंजी। आवाज जो इतनी जानी पहचानी थी कि वह आंख मूंदकर खुद की आत्मा को हवा की दिशा में विस्थापित कर दिया। आत्मा हवा की दिशा में विस्थापित तो हुई लेकिन जैसे–जैसे वह हवा के पीछे जा रही थी, पूरा मनहुसियत के नजारे दिखा रही थी। आत्मा आवाज की दिशा में काफी तेज चलती गयी और जब आवाज निकालने वाले के पास पहुंचा आर्यमणि एक बार फिर वियोग में था।

इधर आर्यमणि ने जैसे ही आंख मूंदा, उसका शरीर स्थिर हो गया। हाई टॉक्सिक पूरे बदन में फैलाने के कारण जो भी विंडिगो आर्यमणि के शरीर से टकराते उसका हृदय टॉक्सिक की चपेट में आने के कारण बंद हो जाता। हां लेकिन विंडिगो कूदने के साथ ही अपना पंजा चला देता और आर्यमणि के शरीर से उसका मांस तक निचोड़ लेता।

आर्यमणि जहां खड़ा था वहां चारो ओर विंडिगो की इतनी लाशों का ढेर बन गया की आर्यमणि का पूरा शरीर ही उस ढेर ने छिपने लगा था। विंडीगो ठीक से हमला न कर पाने की स्थिति में 2000 विंडिगो को केवल वहां से लाश हटाने के काम में लगाया गया और हर सेकंड आर्यमणि के ऊपर तकरीबन 500 क्ला बदन को नोच रहे थे।

महा कहीं दूर बैठी थी जब उसे आभाष हुआ की आर्यमणि की जान खतरे में है और उसके अगले ही पल महा अपने पति के नजदीक थी। हैरतअंगेज नजारा था। महा के ऊपर भी हमला होता उस से पहले ही महा अपने कलाई पर बंधे छोटे से धनुष को जैसे ही अपने हथेली में ली वह पूरा आकर में आ गया और बिना कोई वक्त गवाए महा ने धनुष को नमन कर उसके धागे को खींच दिया।

जैसे ही धागा को खींचा गया असंख्य तीर हवा में गोल–गोल चक्कर काटते हुये हर विंडिगो के सीने में घुसकर ह्रदय को चीड़ देते और वह मरकर नीचे गिर जाते। हां लेकिन जो आगे हुआ वह महा को भी अचरज में डाल गया। उस जगह में कौन सा और कैसा तिलिस्म था वह महा को भी नही पता। लेकिन विंडिगो की जितनी लाशें गिरी थी उसके दोगुना विंडिगो कोने–कोने से निकल रहे थे।

 

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भाग:–180


छोटे से शहर के बड़े से जंगल और पहाड़ों के बीच बड़ा हुआ आर्यमणि के जीवन का सफर उसे ब्रह्मांड की सैर पर ले जाएगा यह तो कभी आर्यमणि ने भी नही सोचा होगा। एक सच तो यह भी है कि आर्यमणि गंगटोक से निकलने के बाद बंजारों की जिंदगी व्यतीत कर रहा था, जिसका कोई एक ठिकाना नहीं और पूरा जहां ही उसका घर हो जैसे।

अपने सफर के दौरान उसने कई सारे हैरतंगेज नजारे देखे। चौकाने वाले जीव–जंतुओं तथा प्राणियों से मिला। वास्तविकता तो यह भी थी कि आर्यमणि खुद भी किसी हैरतंगेज अजूबा से कम नही था। जिंदगी के सफर में कई सारे बाधाए आयी। बाधाए जब भी आयी अपने साथ नया रोमांच और नई चुनौतियां लायी। किंतु इन सबके बीच जो नही होना चाहिए था वह घटना घट चुकी थी। आर्यमणि के प्राण जिस पूरे पैक में बसता था, उसे ही मौत की आगोश में सुला दिया गया।

आर्यमणि के अल्फा पैक को कोई भी ऐरा–गैरा मारकर तो नही गया था। अलबत्ता ताकतवर से ताकतवर दुश्मन में इतनी क्षमता कहां थी जो अकेले अल्फा पैक का शिकार कर ले। अल्फा पैक के शिकार के लिये तो अलग–अलग समुदाय के कई सारे धूर्त और ताकतवर एक साथ योजनाबद्ध तरीके से साथ आये और अल्फा पैक का शिकर किया था। आर्यमणि भी लगभग मर ही चुका था लेकिन एक विशालकाय समुद्री जीव चाहकीली ने उसकी जान बचा ली। अब चाहकिली ने उसकी जान बचाई या फिर उसके ग्रहों की दशा ही ऐसी थी कि मौत को भी सामने से कह दे.... “रुक जा भाई, तू मेरे प्राण लेने फिर कभी और आ जाना।”..

इसमें कोई संशय नहीं की आर्यमणि किस्मत का धनी था किंतु उस सुबह शायद अल्फा पैक के बाकी सदस्य की किस्मत उतनी अच्छी नहीं थी तभी तो आर्यमणि को तन्हा छोड़ सभी मृत्यु की आगोश में लेट गये। जिन्होंने ने भी आर्यमणि से उसके पैक को छीना था, उन्होंने आर्यमणि के अंदर गहरी छाप छोड़ गया था। अब वक्त आर्यमणि का था और वह भी अपने लोगों के साथ बैठकर हर किसी को सजा देने की पूरी तैयारी कर रहा था।

“यदि मैं महासागर के अंदर इतना समय न बीताता तो यह नतीजा नही होता। तांत्रिक आध्यात इतने इत्मीनान से मेरे सुरक्षा मंत्र को तोड़ न रहा होता। वह अपनी मालकिन के इशारे पर हमारे लिये जाल न बुन रहा होता। आज मेरी रूही मेरे पास होती। अलबेली और इवान मेरे पास होते। जरूर मेरे ही किसी बुरे कर्मों का फल उन तीनो ने भुगता है।”

ऋषि शिवम्:– गुरु आर्यमणि आप ऐसे हताश न हो। कभी–कभी हम रचायता के खेल के आगे बेबस हो जातें है। खुद को हौसला दीजिए क्योंकि हमारा कोई भी दुश्मन कमजोर नही। न तो अध्यात और उसके तांत्रिक की फौज कमजोर है। न ही विपरीत दुनिया में फसी अकेली महाजनिका कमजोर है, जिसके पास अब अल्फा पैक के तीन अलौकिक सदस्य है, जिसमे ना जाने किसकी आत्म बसी हो। न ही वो नयजो कमजोर है, जो 4 ग्रहों की फौज लिये हमारे इंतजार में है। इसलिए अपनी भावनाओं को आज ही पूरा बाहर निकाल दीजिए क्योंकि आगे अपने किसी भी दुश्मन को रत्ती भर भी मौका नही देना है।

आर्यमणि अपने आंख साफ करते..... “मेरे मन में सवाल आया कैसे? कैसे महाजनिका परदे के पीछे से खेल रच सकती है? वो यदि हमारी दुनिया में लौटती तो अनंत कीर्ति पुस्तक पर दस्तक जरूर होती। महाजनिका विपरीत दुनिया मे ही है, परंतु वहां से मूल दुनिया में किसी भी विधि से किसी से संपर्क नही किया जा सकता था, जबतक की दोनो दुनिया के बीच कोई छोटी सी संपर्क प्रणाली न स्थापित हो।”

“फिर दिमाग में ओशुन का ख्याल आया, जो विपरीत दुनिया से आयी मधुमक्खी रानी की होस्ट बनी थी। मुझे समझ में आ गया की छोटे से रास्ते के जरिए विपरीत दुनिया और मूल दुनिया के बीच संपर्क किया जा रहा है। उन्ही छोटे रास्ते से महाजनिका ने अपना खंजर भी इस दुनिया में भेजा होगा। वो छोटा रास्ता जब तक खुला है, रानी मधुमक्खी न सिर्फ महाजनिका और आध्यात के बीच संपर्क करवाती रहेगी, बल्कि वह मधुमक्खी विपरीत दुनिया अपनी पूरी फौज भी ला रही होगी।”

ऋषि शिवम:– महाजनिका से जब युद्ध हुआ था तब वो काफी कमजोर थी। लेकिन फिर भी उसके मार्गदर्शन में अध्यात मानो पागलों की तरह हम पर कहर बरसा रहा था। आध्यात को हमने पकड़ा भी, लेकिन अकेला वो 22 संन्यासियों को चकमा दे गया। गुरु अपस्यु और आचार्य जी तक को छल गया। दोनों का संपर्क प्रणाली तोड़ना होगा, वरना पिछले 4 सालों में महाजनिका ने विपरीत दुनिया से कैसी काली शक्तियों को हासिल करी होगी और कितना कुछ आध्यात को सीखा चुकी होगी, उसका आकलन तो आध्यात से जब सामना होगा तभी पता चलेगा। लेकिन यदि संपर्क बना रहा तो युद्ध के दौरान महाजनिका सही दाव बताती रहेगी और हमारे लिये मुश्किलें बढ़ जाएगी।

आर्यमणि:– आप बिलकुल सही निष्कर्ष पर पहुंचे हैं। लेकिन अभी उनके बीच का संपर्क तोड़कर नायजो के ग्रह जाने पर आध्यात समझ जायेगा की उसका खेल हमारे समझ में आ चुका हुई। उसे काफी समय मिल जायेगा। वह दिमाग वाला है। हमसे पहले भी हार चुका है इसलिए वो युद्ध लड़ने के बदले खुद को छिपाकर महाजानिका को विपरीत दुनिया से मूल दुनिया में लाने के बाद ही हमसे भिड़ने आयेगा। और विश्वास मानिए तांत्रिक महासभा और महाजनिका जब साथ होंगे तब हम उन्हे नही हरा पाएंगे। इसलिए अभी आध्यात को उसके हाल पर छोड़ते हैं। पहले उन नजयजों से निपटकर वापस आते है।

ऋषि शिवम्:– गुरुदेव क्या आप इतने आश्वस्त हो गये कि पहले से युद्ध का नतीजा निकाल रहे।

आर्यमणि:– हां ये भी सही कहा आपने... पहले मैं नायजो के चकव्यूह से सुरक्षित बाहर तो आ जाऊं। यदि नही लौटा तो अपस्यु, तांत्रिक का काम तमाम कर देगा। इसमें उसकी मदद विशेष–स्त्री जीविषा कर देगी।

ऋषि शिवम्:– गुरुदेव पृथ्वी से पूर्ण प्रशिक्षित सेना लेकर चलिए। हमारे पास निश्चल की विमान है। महा जैसी सेना नायक है। ओर्जा जैसी शक्ति का साथ है। कुशल रणनीति से हम नायजो की विशाल सेना से तो क्या, किसी से भी युद्ध में जीत सकते है।

आर्यमणि:– और ब्रह्म ज्ञान वाले ऋषि कहां रहेंगे?

संन्यासी शिवम्:– सात्विक गांव की जिम्मेदारी मुझ पर है। मै अपने उत्तरदायित्व से मुंह नही मोड़ सकता। बहुत से शिष्यों को प्रशिक्षित करना है। 38 नवजात को शुद्ध ज्ञान के ओर प्रेरित करना है। उन मासूमों की जिम्मेदारी भी मुझ पर ही है।

आर्यमणि:– शिवम सर, आपके बिना तो अल्फा पैक अधूरा है।

ऋषि शिवम्:– गुरु आर्य मेरे ऊपर पूरे गांव का उत्तरदायित्व है। क्या मैं वो जिम्मेदारी को भुलकर यात्रा पर निकल जाऊं?

आर्यमणि:– नही आपका गांव में होना ज्यादा जरूरी है। बाकी कभी जरूरत लगी तो बुलावा भेज देंगे।

ऋषि शिवम:– मैं चाहूंगा ऐसी नौबत न आये। अब मैं आपसे एक छोटी सी विनती करता हूं। आप जल साधना के योगियों की टोली के गुरुदेव को कुछ दिन गांव में आकर हमें मार्गदर्शन करने कहिए। बहुत से ज्ञान विलुप्त हो चुके है, जिन्हे हम वापस से संजो ले।

आर्यमणि:– बिलकुल शिवम सर.. कल तक योगी वशुकीनाथ जी गांव पहुंच जायेंगे।

आर्यमणि की हामी सुन ऋषि शिवम प्रसन्न हो गये। आर्यमणि से गले मिलकर वह क्रूज से अंतर्ध्यान हो गये और वहां आर्यमणि अकेला रह गया। आर्यमणि ने क्रूज को ऑटो पायलट मोड पर डालकर वहां से अंतर्ध्यान होकर सीधा योगियों के क्षेत्र पहुंचा। वहां के गुरु वशुकीनाथ जी से पूरी बात बताकर सात्त्विक गांव चलने के लिये राजी कर लिया।

योगी वाशुकीनाथ उसी क्षण सात्विक गांव के लिये अंतर्ध्यान हो गये और आर्यमणि वापस क्रूज पर चला आया। क्रूज पर आने के बाद आर्यमणि एक बार फिर अल्फा पैक पर ध्यान केंद्रित किया, और अपने दिमाग के हर ज्ञान को शुरू से पलटने लगा। उधर महा, पलक के साथ मिलकर अगले 2 दिनो तक पृथ्वी पर रह रहे हर एलियन को गुरियन प्लेनेट भेजने का प्रबंध कर चुकी थी।

कई स्थानों पर बड़े–बड़े अदृश्य वाहन पहुंचते रहे और अलग–अलग जगहों से सबको निकालकर ले जा रहे थे। तकरीबन 40 हजार बड़े–बड़े विमान पृथ्वी पर पहुंचे और सबको 3 दिनो में गुरियन प्लेनेट पर पहुंचा चुके थे। अगले 2 दिनो में समुद्र के कैदियों को ले जाया गया, जिनकी संख्या तकरीबन 5 करोड़ थी। इन सभी कैदियों के लिये गुरियन प्लेनेट के चार बहुत बड़े शहर को ही खाली करवा दिया गया था।

करेनाराय के बड़े से शानदार और आलीशान महल में महफिल लगी हुई थी। माया, निमेषदर्थ, हिमा, करेनाराय, गुरियन प्लेनेट का असली राजा बॉयनॉय, विषपर प्लेनेट का असली मुखिया मसेदश क्वॉस, सेनापति बिरजोली और पृथ्वी नायजो के मुख्य चेहरे पाठक, देसाई और भारद्वाज परिवार के लोग मुख्य आकर्षण के केंद्र में थे।

बड़ी सी महफिल में सबसे पहले सेनापति बिरजोली ने ही बोलना शुरू किया..... “क्या हम पृथ्वी हार गये क्या शासक?”

शासक मसेदश क्वॉस:– क्या वाकई तुम्हे ऐसा लगता है। मुझे तो नही लगता। किसी को कुछ कहना है क्या?

निमेषदर्थ:– एक आर्यमणि के जिंदा होने की खबर क्या मिली, तुम्हारा पूरा समुदाय मूतते हुये पृथ्वी छोड़ दिया। फिर भी इतनी अकड़ राजा...

शासक मसेदश क्वॉस:– राजकुमार तुम कुछ ज्यादा नही बोल रहे। एक पूरे ग्रह के कर्ता–धर्ता के सामने तुम क्या बोल रहे तुम्हे समझ में भी आ रहा है?

हिमा:– हां मेरा भाई सोच समझ कर ही बोल रहा है। तुम लोगों के साथ देने के चक्कर में आज हम किसी दर के नही रहे। थाली में पड़ोसकर शिकार दिया था, फिर भी उसे मार नही पाये।

सेनापति बिरजोली:– यदि पिछली गलती निकालते रहे, तब आगे का कैसे सोचेंगे। मानता हूं वह आर्यमणि पृथ्वी पर हमसे कुछ ज्यादा ही भारी निकला। मै ये भी मानता हूं कि उस इकलौते भेड़िए का खौफ ऐसा था कि उसके जिंदा होने की खबर से ही हमारा पूरा समुदाय पृथ्वी छोड़कर भाग आया। लेकिन आने वाले वक्त ने हमें एक मौका दिया है। वह भेड़िया, उस दगाबाज पलक के साथ गुरियन प्लेनेट आ रहा है।

निमेषदर्थ:– यहां उसे मार तो पाओगे न? या ये प्लेनेट भी छोड़कर भाग जाओगे?

गुरियन प्लेनेट का असली राजा बॉयनॉय..... “तुम अपने कैदियों को सम्मोहित कर लो, मैं तुम्हे बदले में जीत दे दूंगा।”

निमेशदर्थ:– कुछ लोगों को मारने के लिये तुम्हे 5 करोड़ की फौज चाहिए?

बॉयनॉय:– फौज तो हमे चाहिए लेकिन उस भेड़िए को मारने के लिये नही, बल्कि एक वीरान प्लेनेट “हिस्सक” पर नायजो की नई हाइब्रिड आबादी बसाने के लिये 5 करोड़ की फौज चाहिए।

निमेष:– 5 करोड़ लड़के तो ऐसे मांग रहे, जैसे 5 करोड़ लड़की उस प्लेनेट पर सुखी बैठी है।

बॉयनॉय:– 5 नही 15 करोड़ लड़कियां सुख रही है। हमे 5 साल में वहां 45 करोड़ हाइब्रिड चाहिए।

निमेशदर्थ:– यदि मैने उन 5 करोड़ कैदियों को सम्मोहित नही किया और तुम्हारी वो लड़कियां कुछ दिन संभोग नही करेगी, तो क्या तुम अपनी जमीन पर आर्यमणि को नही हरा पाओगे?

मसेदश क्वॉस:– हां कह सकते हो। क्योंकि हम अपना जारी काम रोक नही सकते। उस भेड़िए के आने का कार्यक्रम कुछ दिन पहले बना था, जबकि हम हाइब्रिड बसाने के काम को कई वर्षों से अंजाम दे रहे थे। तुम्हारे कैद में कई ग्रह के लोग थे, वरना हमारे 10 करोड़ सैनिक कई ग्रह पर फैल जाते और वहां से 5 से 10 करोड़ पुरुषों को पकड़ लाते।

अब या तो तुम हमारा काम कर दो तो हम अपने सैनिक यहां लगा दे। या फिर हम अपने सैनिकों को आबादी बसाने वाले मुहिम पर लगाकर, आर्यमणि के खिलाफ आम नायजो को हथियार पकड़ाकर लड़ाई के मैदान में उतार दे। फिर नतीजा जो हो उस से अभी हमें कोई सरोकार नहीं। बाद में जब हमारे सैनिक लौटेंगे तब हम पृथ्वी पर हमला कर उस भेड़िया समेत पूरी पृथ्वी को ही वीरान कर देंगे।

निमेषदर्थ:– इसे कहते है ना दृढ़ संकल्प। तो ठीक है, उन 5 करोड़ कैदियों को जहां ले जाना है ले जाओ, बदले में आर्यमणि की लाश गिड़ा देना।

सेनापति बिरजोली:– क्या उस लड़ाई का हिस्सा तुम नही होना चाहते?

निमेषदर्थ:– मैं तो उस लड़ाई का हिस्सा बन जाता लेकिन माया के पीछे जिसका दिमाग था, विवियन वो क्यों नही इस लड़ाई का हिस्सा बन रहा है? वह तो पृथ्वी से लौटा भी नही...

शासक मसेदश क्वॉस और विवियन का पिता..... “मेरा बेटा यदि पृथ्वी पर रुका है तब वह जरूर अपने समुदाय के लिये कुछ अच्छा करने की योजना से ही रुका होगा। वरना इस वक्त वो हमारी महफिल में होता। ये मैं क्या बोल गया? तुम्हे कैसे पता की माया बस मुखौटा थी, असली खेल विवियन खेल रहा था?

निमेषदर्थ:– क्या बात है पूरा भांडा फोड़ने के बाद आखिर में राज खुलने की चिंता हुई। घबराओ मत तुम्हे देखने के बाद ही सारी कहानी समझ में आ गयी थी। तुम्हारी और विवियन की शक्ल जो इतनी मिलती है।

उस महफिल में सबसे बेगाना करेनाराय ही था। यूं तो बेचारे को गुरियन प्लेनेट के असली राजा बॉयनॉय के बाद दूसरा स्थान मिला था परंतु यहां उसकी कोई औकाद ही नही थी। उसके मन में बस एक ही बात घूम रही थी.... “वक्त–वक्त की बात है।”

पहले आर्यमणि को मारने की विस्तृत चर्चा। फिर कुछ इधर–उधर की चर्चा। फिर जाम से जाम टकराए और अंत में नाच गाने के साथ पूरी महफिल झूमी। सबके अपने–अपने प्लान थे। गुरियन प्लेनेट पर नायजो के बड़े–बड़े नायक अपनी योजना बना रहे थे। वहीं अल्फा अल्फा पैक भी युद्ध के लिये कमर कस रही थी।

नायजो से उसी की धरती पर लोहा लेने की पूरी तैयारी चल रही थी। पलक, 2 दिनो तक महा के साथ महासागर की गहराइयों में काम करने के बाद वापस नागपुर लौट आयी थी। कुछ नए और कुछ पुराने लोगों के साथ अल्फा पैक, और पलक की कोर टीम, नागपुर स्थित भूमि के घर इकट्ठा हुये थे।

आर्यमणि:– “हम बस चंद लोग है और हमारा सामना 4 ग्रहों के एक जुट ताकत से होने वाला है। एक आखरी जंग उन नायजो के साथ जो अनैतिक तरीकों से ग्रहों पर कब्जा करते है। एक आखरी लड़ाई उस दुश्मनों से जिसने मेरी रूही, अलबेली और इवान को मुझसे दूर कर दिया। एक आखरी लड़ाई अपने सात्त्विक आश्रम के वर्चस्व स्थापित करने की, जिसे ये नायजो वाले तबाह करते आ रहे थे।”

“वैसे एक बात मैं अभी बता दूं कि मैं जितनी बार इनसे भिड़ा हूं, हर बार इनके पास कुछ न कुछ नया तिलिस्म जरूर रहा है। ऊपर से हम पृथ्वी से कई लाख किलोमीटर दूर उनकी जमीन पर होंगे, जहां हमें कोई मदद नहीं मिलने वाली है। आगे बढ़ने से पहले हम पलक को सुनेगे की हमे वहां और किन–किन चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।”

इधर आर्यमणि अपनी बात समाप्त किया और उधर एक कराड़ा थप्पड़ उसके गाल पर पड़ा.... “तूने सोचा भी कैसे की इस बार मुझे छोड़कर भाग जायेगा। मुझे भी दूसरे ग्रह पर घूमने जाना है।”... भूमि, आर्यमणि को एक थप्पड़ लगाती उस सभा में ग्रैंड एंट्री मारी।

अभी एक थप्पड़ की गूंज समाप्त नहीं हुई थी कि तभी आर्यमणि की मां जया भी उसे एक थप्पड़ चिपकाती.... “इसी दिन के लिये बेटे को जन्म दी थी कि वह अकेला घूमने भाग जाये और सालों तक अपनी शक्ल न दिखाए। मुझे भी तीर्थ पर लेकर चल।”..

आर्यमणि:– मां वहां कौन सा तीर्थ होगा...

जैसे ही आर्यमणि चुप हुआ उसके पापा केशव एक थप्पड़ लगाते.... “तीर्थ नही होगा तो वहां तीर्थ स्थल बना। ईश्वर तो हर जगह मौजूद है।”

आर्यमणि:– अभी दरवाजे से एक–एक करके सभी आ गये ना, या और भी कोई बचा है?

पहले चित्रा, फिर माधव भी वहां आ धमके और चित्रा ने भी आते हुये एक चिपका ही दिया।

आर्यमणि:– आप सभी हमारे साथ चल रहे हैं। अब जरा शांति से बैठ जाइये। पलक तुम शुरू हो जाओ...

चित्रा:– हां बोलने का पहला मौका तो पुराने प्यार को ही मिलेगा न...

महा, बिलकुल चौंकती हुई.... “पुराना प्यार???”..

भूमि:– लो पूरी दुनिया को पता है पर इस बेचारी को पता ही नही...

महा, आर्यमणि को सवालिया नजरों से घूरती.... “क्यों जी पूरे दुनिया को पता है, सिर्फ मुझे ही नही पता?”

केशव:– मैं तो निशांत के गर्लफ्रेंड को देख रहा। पूरे जोरदार गर्लफ्रेंड ढूंढा है।

पलक:– गर्लफ्रेंड के किस्से तो आर्य के होने चाहिए न। और ये चित्रा जो मेरे बारे में मुंह फाड़ रही है, अपनी भी तो बता। पहले तो तुम्ही दोनो गर्लफ्रेंड–ब्वॉयफ्रेंड के रिलेशन में थे।

पूरा परिवार ही एक साथ.... “क्या?”..

माधव, रोनी सी सूरत बनाते.... “क्या मेरी बीवी का टांका आर्य से भिड़ा था और मुझे बताई तक नही।”

आर्यमणि:– मैं सोने जा रहा हूं। तुम लोगों की हंसी ठिठोली बंद हो जाये तो बता देना।

पलक:– या तो सब ध्यान से सुन लो या फिर रूही से मिलने के लिये तैयार हो जाओ।

भूमि:– रूही की याद तो आती है पर अभी मेरा बच्चा छोटा है इसलिए मैं नही मिलना चाहती।

एक–एक करके सब शांत हो गये। माहौल बिलकुल खामोश था। आर्यमणि ने इशारा किया और पलक बोलना शुरू की.... “यदि हम गुरियन प्लेनेट पर हारते है तो समझ लो हम पृथ्वी हार गये।”
Nice update
 
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111ramjain

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Nice update bro
 
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king cobra

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Dhire dhire lay banega.. kal १ update diya tha... Aaj २ dunga aur kal se 3–4 update contune Friday Tak aur kuch Jo Bach jayega use finally Saturday ko end kar dunga.... Ye hai complete schedule
Aapne kaha tha ki ab tukdon me update dene se maja na aayega ek sath sab update doge ishiliye soncha aur update aayegen baki hamko koi problem na hai ek ek update do tab bhi chalega bas gayab na hona
 
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king cobra

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Ye to dhuandhar ladai hui rahi Arya inna powerfull bankar aaya tha sab fuss hui raha bechari maha bhi fans gayi.jab yahan ye haal hai wahan kya hoga
 
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