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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

Prime
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I love Fantasy and Sci-fiction story.
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Nice updates👍🎉
भाग:–144


हालांकि 21 दिसंबर के शादी की खबर तो चित्रा को भी नही थी, किंतु जब अलबेली ने उसे यह खबर दी फिर तो वह फोन पर ही खुशी से झूमने लगी... उसके बाद तो फिर चित्रा ने भी आर्यमणि को उसका प्यारा वेडिंग गिफ्ट देने की ठान ली। यानी की किसी भी तरह से आर्यमणि के माता जया, पिता केशव कुलकर्णी, भूमि दीदी और कुछ अन्य लोगों के साथ 7 दिसंबर की सुबह कैलिफोर्निया पहुंचना। इस पूरे योजना में चित्रा ने निशांत की पूरी मदद ली, इस बात से अनभिज्ञ की निशांत को सब पहले से पता था।

भारत से सभी लोग न्यूयॉर्क पहुंचे चुके थे और न्यूयार्क से कैलिफोर्निया उनकी फ्लाइट सुबह 10 बजे पहुंचती। रूही और इवान तो नेरमिन के पैक के साथ 2 दिन पहले ही टर्की पहुंच चुके थे। अब केवल अलबेली बची थी जो आर्यमणि के उत्साह को झेल रही थी।

आर्यमणि सुबह के 4 बजे ही उठ गया और जाकर सीधा अलबेली को जगा दिया। यूं तो रोज सुबह 4 बजे ही वो जागती थी, लेकिन आज की सुबह अलबेली के लिए सरदर्द से कम नहीं थी। अलबेली रोज की तरह ही अपने ट्रेनिग एरिया में पहुंचकर अभ्यास शुरू कर चुकी थी। इसी बीच आर्यमणि अपने कमरे से बाहर आते.… "अरे तुम तैयार नहीं हुई, हमे एयरपोर्ट जाना है।"..

अलबेली अपना सर खुजाती… "एयरपोर्ट क्यों दादा"..

आर्यमणि:– भूल गई, आज 7 दिसंबर है, सब लोग पहुंच रहे होंगे.…

अलबेली अपने मोबाइल दिखाती.… “बॉस अनलोगों ने कुछ देर पहले न्यूयॉर्क से उड़ान भरी है। सुबह 10 बजे तक बर्कले पहुंचेंगे…

आर्यमणि:– हां अभी तो वक्त है.. एक काम करता हूं सो जाता हूं, वक्त जल्दी कट जायेगा... तुम भी ट्रेनिंग खत्म करके सो जाना...

आर्यमणि चला गया, अलबेली वहीं अपना रोज का अभ्यास करने लगी। सुबह 7 बजे के करीब वो अपना अभ्यास खत्म करके हाई स्कूल के लिए तैयार होने लगी। अलबेली स्कूल निकल ही रही थी कि पीछे से आर्यमणि उसे टोकते.… "स्कूल क्यों जा रही हो... सबको पिकअप करने नही चलोगी"…

अलबेली:– अब कुछ दिन बाद तो वैसे भी यहां के सभी लोग पीछे छूट जाएंगे... जबतक यहां हूं, कुछ यादें और समेट लूं... आप आ जाना मुझे लेने.. मैं वहीं से साथ चल दूंगी...

अलबेली निकल गयी लेकिन आर्यमणि का वक्त ही न कटे... किसी तरह 8.30 बजे और आर्यमणि भागा सीधा अलबेली के स्कूल.… उसके बाद तो बस अलबेली थी और आर्यमणि… कब पहुंचेंगे... कहां पहुंचे... पूछ पूछ कर अलबेली को पका डाला। आखिरकार सुबह के 10 बज ही गये और उनकी फ्लाइट भी लैंड कर चुकी थी।

एक ओर जहां आर्यमणि उत्साह में था, वहीं दूसरी ओर सभी मिलकर निशांत की बजा रहे थे। हुआ यूं की सुबह के 2.10 बजे ये लोग न्यूयॉर्क लैंड किए और सुबह के 3.20 की इनकी कनेक्टिंग फ्लाइट थी। पूरा परिवार कह रहा था की फ्लाइट छोड़ दो लगेज लेंगे पहले... लेकिन जनाब ने सबको दौड़ाते हुए कनेक्टिंग फ्लाइट पकड़वा दिया और समान न्यूयॉर्क एयरपोर्ट अथॉरिटी के भरोसे छोड़कर चले आये...

जब से कैलिफोर्निया लैंड हुये थे पूरा परिवार निशांत को गालियां दे रहा था और एयरपोर्ट अथॉरिटी को बुलाकर अपना सामान अगले फ्लाइट से कैलिफोर्निया भेजने कह रहे थे। इन लोगों ने उन्हे भी इतना परेशान किया की अंत में एयरपोर्ट प्रबंधन के मुख्य अधिकारी को आकार कहना पड़ा की उनका सामान पहले ही न्यूयॉर्क से रवाना हो चुका है, सुबह के 11.30 बजे वाली फ्लाइट से उनका सारा सामान पहुंच जायेगा...

अब हुआ ये की फ्लाइट तो इनकी 10 बजे लैंड कर गयी लेकिन ये लोग एयरपोर्ट के अंदर ही समान लेने के लिये रुक गये... अंदर ये लोग अपने समान के इंतजार में और बाहर आर्यमणि अनलोगो के इंतजार में... और ये इंतजार की घड़ी बढ़ते जा रही थी। एक–एक करके उस फ्लाइट के यात्री जा रहे थे और आर्यमणि बाहर उत्सुकता के साथ इंतजार में था..

आखिरकार सुबह के 11.35 बजे आर्यमणि के चेहरे पर चमक और आंखों में आंसू आ गये जब वो अपने परिवार के लोगों को बाहर आते देखा... वो बस सबको देखता ही रह गया... आर्यमणि को तो फिर भी सब पता था। लेकिन उधर...

जया बस इतनी लंबी जर्नी से परेशान थी। केशव, निशांत और चित्रा की बातों में आकर जया को यहां ले आया, इस वजह से जया, केशव को ही खड़ी खोटी सुना रही थी। वहीं भूमि अपने बच्चे के साथ थी और छोटा होने की वजह से वह काफी परेशान कर रहा था, जिसका गुस्सा wa चित्रा पर उतार रही थी, क्योंकि यहां आने के लिए उसे चित्रा ने ही राजी किया था। बाकी पीछे से चित्रा का लवर माधव और निशांत सबके समान ढो भी रहा था और इन सबकी कीड़कीड़ी का मजा भी ले रहे थे। हर कोई तेज कदमों के साथ बाहर आ रहा था। एयरपोर्ट के बाहर आने पर भी किसी की नजर आर्यमणि पर नही पड़ी।

बाकी सबलोग टैक्सी को बुलाने की सोच रहे थे, इतने में निशांत और चित्रा ने दौड़ लगा दी। पहले तो सब दोनो को पागल कहने लगे लेकिन जैसे ही नजर आर्यमणि पर गई, वो लोग भी भागे... आर्यमणि दोनो बांह फैलाए खड़ा था। चित्रा और निशांत इस कदर तेजी से आर्यमणि पर लपके की तीनो ही अनियंत्रित होकर गिर गये। गिर गये उसका कोई गम नही था, लेकिन मिलने की गर्मजोशी में कोई कमी नहीं आयी।

सड़क की धूल झाड़ते जैसे ही तीनो खड़े हुये, तीनो के ही कान निचोड़े जा रहे थे.… "जल्दी बताओ ये सब प्लान किसका था"…. जया ने सबसे पहले पूछा...

तभी एक जोरदार सिटी ने सबका ध्यान उस ओर आकर्षित किया.… "आप सभी आराम से घर चलकर दादा से मिल लेना... यहां तबियत से शायद खबर न ले पाओ…. क्योंकि घर पर किसी की बहु और पोता इंतजार कर रहा है, तो किसी की भाभी और भतीजा"…. अलबेली ने चल रहे माहोल से न सिर्फ सबका ध्यान खींचा बल्कि अपनी बातों से सबका दिमाग भी घुमा दी...

सभी लोग हल्ला–गुल्ला करते गाड़ी में सवार हो गये। आर्यमणि सफाई देने की कोशिश तो कर रहा था, लेकिन कोई उसकी सुने तब न.… सब को यही लग रहा था की आर्यमणि अपने बीवी और बच्चे से मिलवाने बुलाया है... सभी घर पहुंचते ही ऐसे घुसे मानो आर्यमणि की पत्नी और बच्चे से मिलने के लिए कितने व्याकुल हो... इधर आर्यमणि आराम से हॉल में बैठा... "अलबेली ये बीबी और बच्चा का क्या चक्कर है।"…

अलबेली:– इतने दिन बाद मिलने का ये रोना धोना मुझे पसंद नही, इसलिए इमोशनल सीन को मैंने सस्पेंस और ट्रेजेडी में बदल दिया...

इतने में सभी हल्ला गुल्ला करते हॉल में पहुंचे। घर का कोना–कोना छान मारा लेकिन कोई भी नही था। अब सभी आर्यमणि को घेरकर बैठ गये.…. "कहां छिपा रखा है अपनी बीवी और बच्चे को नालायक".. जया चिल्लाती हुई पूछने लगी…

भूमि:– मासी इतने दिन बाद मिल रहे हैं, आराम से..

जया:– तू चुपकर.... तेरा ही चमचा है न... पूछ इससे शादी और बच्चे से पहले एक बार भी हमे बताना जरूरी नही समझा..

माधव:– शादी का तो समझे लेकिन बच्चे के लिए भी गार्डियन से पूछना पड़ता है क्या?…

चित्रा उसे घूरकर देखी और चुप रहने का इशारा करने लगी।

भूमि:– आर्य, कुछ बोलता क्यों नही...

आर्यमणि:– मैं तो कव्वा के पकड़ में आने का इंतजार कर रहा हूं।..

सभी एक साथ... "महंझे"..

आर्यमणि:– मतलब किसी ने कह दिया कव्वा कान ले गया तो तुम सब कौवे के पीछे पड़े हो। बस मैं भी उसी कौवे के पकड़ में आने का इंतजार कर रहा हूं...

सभी लगभग एक साथ... "ओह मतलब तेरी शादी नही हुई है"…

आर्यमणि:– जी सही सुना शादी नही हुई है। इसलिए अब आप सब भी अपने मन के आशंका को विराम लगा दीजिए और जाकर पहले सफर के थकान को दूर कीजिए।

सभी लोग नहा धोकर फ्रेश होने चल दिये। आर्यमणि और अलबेली जब तक सभी लोगों के लिए खाने का इंतजाम कर दिया। सभी लोग फ्लाइट का खाना खाकर ऊब

चुके थे इसलिए घर के खाने को देखते ही उसपर टूट पड़े। शानदार भोजन और सफर की थकान ने सबको ऐसा मदहोश किया फिर तो बिस्तर की याद ही आयी।

सभी लोग सोने चल दिए सिवाय भूमि के। जो कमरे में तो गई लेकिन अपने बच्चे को सुलाकर वापस आर्यमणि के पास पहुंच गयी... "काफी अलग दिख रहे आर्या..."

आर्यमणि:– बहुत दिन के बाद देख रही हो ना दीदी इसलिए ऐसा लग रहा है.… वैसे बेबी कितना क्यूट है न... क्या नाम रखी हो?...

भूमि:– घर में सब अभी किट्टू पुकारते हैं। नामकरण होना बाकी है...

आर्यमणि:– क्या हुआ दीदी, तुम कुछ परेशान सी दिख रही हो…

भूमि:– कुछ नही सफर से आयी हूं इसलिए चेहरा थोड़ा खींचा हुआ लग रहा है...…

आर्यमणि:– सिर्फ चेहरा ही नही आप भी पूरी खींची हुई लग रही हो.…

भूमि, यूं तो बात को टालती रही लेकिन जिस कौतूहल ने भूमि को बेचैन कर रखा था उसे जाहिर होने से छिपा नहीं पायी। बहुत जिद करने के बाद अंत में भूमि कह दी.… "जबसे तू नागपुर से निकला है तबसे ऐसा लगा जैसे परिवार ही खत्म हो गया है। आई–बाबा का तो पता था, वो करप्ट लोग थे लेकिन जयदेव.. वो भी तेरे नागपुर छोड़ने के बाद से केवल 2 बार ही मुझसे मिला और दोनो ही बार हमारे बीच कोई बात नही हुई। परिवार के नाम पर केवल मैं, मेरा बच्चा, मौसा–मौसी और चंद गिनती के लोग है।"

"प्रहरी के अन्य साखा में क्या हो रहा है मुझे नही पता। उनलोगो ने नागपुर को जैसे किनारे कर दिया हो। यदि किसी बात का पता लगाने हम महाराष्ट्र के दूसरे प्रहरी इकाई जाते हैं, तो वहां हमे एक कमरे में बिठा दिया जाता है जहां हमसे एक अनजान चेहरा मिलता है। जितनी बार जाओ नया चेहरा ही दिखता है। किसी के बारे में पूछो तो बताते नही। किसी से मिलना चाहो तो मिलता नही। सोची थी नागपुर अलग करने के बाद प्रहरी समुदाय में क्या चल रहा है, वो आराम से पता लगाऊंगी लेकिन यहां तो खुद के परिवार का पता नही लगा पा रही। प्रहरी की छानबीन क्या खाक करूंगी। मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा"..

आर्यमणि:– जब कुछ समझ में नहीं आये तो सब वक्त पर छोड़ देना चाहिए। ऐसे मौन रहोगी तो कहां से काम चलेगा...

भूमि:– तू मेरी हालत नही समझ सकता आर्य। जिसका पति पास न हो और न ही पास आने की कोई उम्मीद उसके दिल का हाल तू नही समझ सकता...

आर्यमणि:– हां आपके दिल का हाल वाकई मैं नही समझ सकता लेकिन आपकी पीड़ा कम करने में मदद जरूर कर सकता हूं...

भूमि:– मतलब...

आर्यमणि:– मतलब जीजू को ढूंढ निकलूंगा और तुम तक पहुंचा दूंगा...

भूमि:– झूठी दिलासा मत दे। और शैतान तुझे हम सब को यहां बुलाने की क्यों जरूरत आन पड़ी? जनता भी है कितना बड़ा झोखिम उठाया है...

आर्यमणि:– कहीं कोई जोखिम नहीं है दीदी... रुको मैं तुम्हे कुछ दिखता हूं...

आर्यमणि अपनी बात कहकर वहां से उठा और अपने साथ अनंत कीर्ति की पुस्तक लेकर लौटा। अनंत कीर्ति की पुस्तक भूमि के गोद में रखते.… "खोलो इसे"..

भूमि आश्चर्य से आर्यमणि को देखती.… "क्या तुमने वाकई"…

आर्यमणि:– मेरी ओर सवालिया नजरों से देखना बंद करो और एक बार खोलो तो...

भूमि ने जैसे ही कवर को हाथ लगाकर पलटा वह पलट गई। भूमि के आश्चर्य की कोई सीमा नही थी। बड़े ही आश्चर्य से वो वापस से आर्यमणि को देखती... "ये कैसे कर दिया"…

आर्यमणि:– बस कर दिया... यहां प्रकृति की सेवा करते हुये मैने कई पेड़–पौधे को सूखने से बचाया। कई जानवरों का दर्द अपने अंदर समेट लिया। बस उन्ही कर्मो का नतीजा था कि एक दिन इस पुस्तक को पलटा और ये खुल गयी। इसके अंदर क्या लिख है वो तो अब तक पढ़ नही पाया, लेकिन जल्द ही उसका भी रास्ता निकाल लूंगा...

भूमि:– क्या कमाल की खबर दिया है तुमने... मैं सच में बेहद खुश हूं...

आर्यमणि:– अरे अभी तो केवल खुश हुई हो... जब जयदेव जीजू तुम्हारे साथ होंगे तब तुम और खुश हो जाओगी…

भूमि:– जो व्यक्ति किताब खोल सकता है वो मेरे पति के बारे में भी पता लगा ही लेगा।

आर्यमणि:– निश्चित तौर पर... अब तुम जाओ आराम कर लो... जबतक मैं कुछ सोचता हूं...

भूमि, आर्यमणि के गले लगकर उसके गालों को चूमती वहां से चली गयी। अलबेली वहीं बैठी सब सुन रही थी वो सवालिया नजरों से आर्यमणि को देखती... "भूमि दीदी से झूठ बोले और झूठा दिलासा तक दिये"..

आर्यमणि:– कभी कभी कुछ बातें सबको नही बताई जाती...

अलबेली:– लेकिन बॉस जयदेव जैसे लोगों के बारे में झूठ बोलना..

आर्यमणि:– तो क्या करता मैं। बता देता की जैसा तुम शुकेश और मीनाक्षी के बारे में सोच रही वैसा करप्शन की कोई कहानी नही बल्कि उस से भी बढ़कर है। जयदेव भी उन्ही लोगों से मिला है। मिला ही नही बल्कि वो तो तुम्हारे मम्मी पापा के जैसे ही एक समान है।

अलबेली:– हे भगवान... फिर तो भूमि दीदी का दर्द...

आर्यमणि:– कुछ बातों को हम चाहकर भी ठीक नहीं कर सकते। उन्हे वक्त पर छोड़ना ही बेहतर होता है। कई जिंदगियां तो पहले से उलझी थी बस जब ये उलझन सुलझेगी, तब वो लोग कितना दर्द बर्दास्त कर सकते हैं वो देखना है... चलो फिलहाल एक घमासान की तैयारी हम भी कर ले...

अलबेली:– कौन सा घमासान बॉस...

आर्यमणि:– रूही और मेरी शादी का घमासान...

अलबेली:– इसमें घमासान जैसा क्या है?

आर्यमणि:– अभी चील मारो... जब होगा तो खुद ही देख लेना.…

आर्यमणि क्या समझना चाह रहा था ये बात अलबेली को तो समझ में तब नही आयी, लेकिन शाम को जैसे ही सब जमा हुये और सबने जब सुना की आर्यमणि, रूही से शादी कर रहा है, ऐसा लगा बॉम्ब फूटा हो। सब चौंक कर एक ही बात कहने लगे.... "एक वुल्फ और इंसान की शादी"…

"ये पागलपन है।"… "हम इस शादी को तैयार नहीं"… "आर्य, तुझे हमेशा वुल्फ ही मिलती है।"…. "तु नही करेगा ये शादी"…. कौतूहल सा माहोल था और हर कोई इस शादी के खिलाफ... भूमि आवेश में आकर यहां तक कह गयी की वो लड़की तो सरदार खान के किले में लगभग नंगी ही घूमती थी। जिसने जब चाहा उसके साथ संबंध बना लिये, ऐसी लड़की से शादी?…

भूमि की तीखी बातें सुनकर आर्यमणि को ऐसा लगा जैसे दिल में किसी ने तपता हुआ सरिया घुसेड़ दिया हो। कटाक्ष भरे शब्द सुनकर आर्यमणि पूरे गुस्से में आ चुका था और अंत में खुद में फैसला करते वह उस स्वरूप में सबके सामने खड़ा हो गया, जिसे देख सबकी आंखें फैल गयी। वुल्फ साउंड की एक तेज दहाड़ के साथ ही आर्यमणि गरजा…. "लो देख लो, ये है आर्यमणि का असली रूप। और ये रूप आज का नही बल्कि जन्म के वक्त से है। मेरा नाम आर्यमणि है, और मैं एक प्योर अल्फा हूं।"….
 

Bhupinder Singh

Well-Known Member
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भाग:–144


हालांकि 21 दिसंबर के शादी की खबर तो चित्रा को भी नही थी, किंतु जब अलबेली ने उसे यह खबर दी फिर तो वह फोन पर ही खुशी से झूमने लगी... उसके बाद तो फिर चित्रा ने भी आर्यमणि को उसका प्यारा वेडिंग गिफ्ट देने की ठान ली। यानी की किसी भी तरह से आर्यमणि के माता जया, पिता केशव कुलकर्णी, भूमि दीदी और कुछ अन्य लोगों के साथ 7 दिसंबर की सुबह कैलिफोर्निया पहुंचना। इस पूरे योजना में चित्रा ने निशांत की पूरी मदद ली, इस बात से अनभिज्ञ की निशांत को सब पहले से पता था।

भारत से सभी लोग न्यूयॉर्क पहुंचे चुके थे और न्यूयार्क से कैलिफोर्निया उनकी फ्लाइट सुबह 10 बजे पहुंचती। रूही और इवान तो नेरमिन के पैक के साथ 2 दिन पहले ही टर्की पहुंच चुके थे। अब केवल अलबेली बची थी जो आर्यमणि के उत्साह को झेल रही थी।

आर्यमणि सुबह के 4 बजे ही उठ गया और जाकर सीधा अलबेली को जगा दिया। यूं तो रोज सुबह 4 बजे ही वो जागती थी, लेकिन आज की सुबह अलबेली के लिए सरदर्द से कम नहीं थी। अलबेली रोज की तरह ही अपने ट्रेनिग एरिया में पहुंचकर अभ्यास शुरू कर चुकी थी। इसी बीच आर्यमणि अपने कमरे से बाहर आते.… "अरे तुम तैयार नहीं हुई, हमे एयरपोर्ट जाना है।"..

अलबेली अपना सर खुजाती… "एयरपोर्ट क्यों दादा"..

आर्यमणि:– भूल गई, आज 7 दिसंबर है, सब लोग पहुंच रहे होंगे.…

अलबेली अपने मोबाइल दिखाती.… “बॉस अनलोगों ने कुछ देर पहले न्यूयॉर्क से उड़ान भरी है। सुबह 10 बजे तक बर्कले पहुंचेंगे…

आर्यमणि:– हां अभी तो वक्त है.. एक काम करता हूं सो जाता हूं, वक्त जल्दी कट जायेगा... तुम भी ट्रेनिंग खत्म करके सो जाना...

आर्यमणि चला गया, अलबेली वहीं अपना रोज का अभ्यास करने लगी। सुबह 7 बजे के करीब वो अपना अभ्यास खत्म करके हाई स्कूल के लिए तैयार होने लगी। अलबेली स्कूल निकल ही रही थी कि पीछे से आर्यमणि उसे टोकते.… "स्कूल क्यों जा रही हो... सबको पिकअप करने नही चलोगी"…

अलबेली:– अब कुछ दिन बाद तो वैसे भी यहां के सभी लोग पीछे छूट जाएंगे... जबतक यहां हूं, कुछ यादें और समेट लूं... आप आ जाना मुझे लेने.. मैं वहीं से साथ चल दूंगी...

अलबेली निकल गयी लेकिन आर्यमणि का वक्त ही न कटे... किसी तरह 8.30 बजे और आर्यमणि भागा सीधा अलबेली के स्कूल.… उसके बाद तो बस अलबेली थी और आर्यमणि… कब पहुंचेंगे... कहां पहुंचे... पूछ पूछ कर अलबेली को पका डाला। आखिरकार सुबह के 10 बज ही गये और उनकी फ्लाइट भी लैंड कर चुकी थी।

एक ओर जहां आर्यमणि उत्साह में था, वहीं दूसरी ओर सभी मिलकर निशांत की बजा रहे थे। हुआ यूं की सुबह के 2.10 बजे ये लोग न्यूयॉर्क लैंड किए और सुबह के 3.20 की इनकी कनेक्टिंग फ्लाइट थी। पूरा परिवार कह रहा था की फ्लाइट छोड़ दो लगेज लेंगे पहले... लेकिन जनाब ने सबको दौड़ाते हुए कनेक्टिंग फ्लाइट पकड़वा दिया और समान न्यूयॉर्क एयरपोर्ट अथॉरिटी के भरोसे छोड़कर चले आये...

जब से कैलिफोर्निया लैंड हुये थे पूरा परिवार निशांत को गालियां दे रहा था और एयरपोर्ट अथॉरिटी को बुलाकर अपना सामान अगले फ्लाइट से कैलिफोर्निया भेजने कह रहे थे। इन लोगों ने उन्हे भी इतना परेशान किया की अंत में एयरपोर्ट प्रबंधन के मुख्य अधिकारी को आकार कहना पड़ा की उनका सामान पहले ही न्यूयॉर्क से रवाना हो चुका है, सुबह के 11.30 बजे वाली फ्लाइट से उनका सारा सामान पहुंच जायेगा...

अब हुआ ये की फ्लाइट तो इनकी 10 बजे लैंड कर गयी लेकिन ये लोग एयरपोर्ट के अंदर ही समान लेने के लिये रुक गये... अंदर ये लोग अपने समान के इंतजार में और बाहर आर्यमणि अनलोगो के इंतजार में... और ये इंतजार की घड़ी बढ़ते जा रही थी। एक–एक करके उस फ्लाइट के यात्री जा रहे थे और आर्यमणि बाहर उत्सुकता के साथ इंतजार में था..

आखिरकार सुबह के 11.35 बजे आर्यमणि के चेहरे पर चमक और आंखों में आंसू आ गये जब वो अपने परिवार के लोगों को बाहर आते देखा... वो बस सबको देखता ही रह गया... आर्यमणि को तो फिर भी सब पता था। लेकिन उधर...

जया बस इतनी लंबी जर्नी से परेशान थी। केशव, निशांत और चित्रा की बातों में आकर जया को यहां ले आया, इस वजह से जया, केशव को ही खड़ी खोटी सुना रही थी। वहीं भूमि अपने बच्चे के साथ थी और छोटा होने की वजह से वह काफी परेशान कर रहा था, जिसका गुस्सा wa चित्रा पर उतार रही थी, क्योंकि यहां आने के लिए उसे चित्रा ने ही राजी किया था। बाकी पीछे से चित्रा का लवर माधव और निशांत सबके समान ढो भी रहा था और इन सबकी कीड़कीड़ी का मजा भी ले रहे थे। हर कोई तेज कदमों के साथ बाहर आ रहा था। एयरपोर्ट के बाहर आने पर भी किसी की नजर आर्यमणि पर नही पड़ी।

बाकी सबलोग टैक्सी को बुलाने की सोच रहे थे, इतने में निशांत और चित्रा ने दौड़ लगा दी। पहले तो सब दोनो को पागल कहने लगे लेकिन जैसे ही नजर आर्यमणि पर गई, वो लोग भी भागे... आर्यमणि दोनो बांह फैलाए खड़ा था। चित्रा और निशांत इस कदर तेजी से आर्यमणि पर लपके की तीनो ही अनियंत्रित होकर गिर गये। गिर गये उसका कोई गम नही था, लेकिन मिलने की गर्मजोशी में कोई कमी नहीं आयी।

सड़क की धूल झाड़ते जैसे ही तीनो खड़े हुये, तीनो के ही कान निचोड़े जा रहे थे.… "जल्दी बताओ ये सब प्लान किसका था"…. जया ने सबसे पहले पूछा...

तभी एक जोरदार सिटी ने सबका ध्यान उस ओर आकर्षित किया.… "आप सभी आराम से घर चलकर दादा से मिल लेना... यहां तबियत से शायद खबर न ले पाओ…. क्योंकि घर पर किसी की बहु और पोता इंतजार कर रहा है, तो किसी की भाभी और भतीजा"…. अलबेली ने चल रहे माहोल से न सिर्फ सबका ध्यान खींचा बल्कि अपनी बातों से सबका दिमाग भी घुमा दी...

सभी लोग हल्ला–गुल्ला करते गाड़ी में सवार हो गये। आर्यमणि सफाई देने की कोशिश तो कर रहा था, लेकिन कोई उसकी सुने तब न.… सब को यही लग रहा था की आर्यमणि अपने बीवी और बच्चे से मिलवाने बुलाया है... सभी घर पहुंचते ही ऐसे घुसे मानो आर्यमणि की पत्नी और बच्चे से मिलने के लिए कितने व्याकुल हो... इधर आर्यमणि आराम से हॉल में बैठा... "अलबेली ये बीबी और बच्चा का क्या चक्कर है।"…

अलबेली:– इतने दिन बाद मिलने का ये रोना धोना मुझे पसंद नही, इसलिए इमोशनल सीन को मैंने सस्पेंस और ट्रेजेडी में बदल दिया...

इतने में सभी हल्ला गुल्ला करते हॉल में पहुंचे। घर का कोना–कोना छान मारा लेकिन कोई भी नही था। अब सभी आर्यमणि को घेरकर बैठ गये.…. "कहां छिपा रखा है अपनी बीवी और बच्चे को नालायक".. जया चिल्लाती हुई पूछने लगी…

भूमि:– मासी इतने दिन बाद मिल रहे हैं, आराम से..

जया:– तू चुपकर.... तेरा ही चमचा है न... पूछ इससे शादी और बच्चे से पहले एक बार भी हमे बताना जरूरी नही समझा..

माधव:– शादी का तो समझे लेकिन बच्चे के लिए भी गार्डियन से पूछना पड़ता है क्या?…

चित्रा उसे घूरकर देखी और चुप रहने का इशारा करने लगी।

भूमि:– आर्य, कुछ बोलता क्यों नही...

आर्यमणि:– मैं तो कव्वा के पकड़ में आने का इंतजार कर रहा हूं।..

सभी एक साथ... "महंझे"..

आर्यमणि:– मतलब किसी ने कह दिया कव्वा कान ले गया तो तुम सब कौवे के पीछे पड़े हो। बस मैं भी उसी कौवे के पकड़ में आने का इंतजार कर रहा हूं...

सभी लगभग एक साथ... "ओह मतलब तेरी शादी नही हुई है"…

आर्यमणि:– जी सही सुना शादी नही हुई है। इसलिए अब आप सब भी अपने मन के आशंका को विराम लगा दीजिए और जाकर पहले सफर के थकान को दूर कीजिए।

सभी लोग नहा धोकर फ्रेश होने चल दिये। आर्यमणि और अलबेली जब तक सभी लोगों के लिए खाने का इंतजाम कर दिया। सभी लोग फ्लाइट का खाना खाकर ऊब

चुके थे इसलिए घर के खाने को देखते ही उसपर टूट पड़े। शानदार भोजन और सफर की थकान ने सबको ऐसा मदहोश किया फिर तो बिस्तर की याद ही आयी।

सभी लोग सोने चल दिए सिवाय भूमि के। जो कमरे में तो गई लेकिन अपने बच्चे को सुलाकर वापस आर्यमणि के पास पहुंच गयी... "काफी अलग दिख रहे आर्या..."

आर्यमणि:– बहुत दिन के बाद देख रही हो ना दीदी इसलिए ऐसा लग रहा है.… वैसे बेबी कितना क्यूट है न... क्या नाम रखी हो?...

भूमि:– घर में सब अभी किट्टू पुकारते हैं। नामकरण होना बाकी है...

आर्यमणि:– क्या हुआ दीदी, तुम कुछ परेशान सी दिख रही हो…

भूमि:– कुछ नही सफर से आयी हूं इसलिए चेहरा थोड़ा खींचा हुआ लग रहा है...…

आर्यमणि:– सिर्फ चेहरा ही नही आप भी पूरी खींची हुई लग रही हो.…

भूमि, यूं तो बात को टालती रही लेकिन जिस कौतूहल ने भूमि को बेचैन कर रखा था उसे जाहिर होने से छिपा नहीं पायी। बहुत जिद करने के बाद अंत में भूमि कह दी.… "जबसे तू नागपुर से निकला है तबसे ऐसा लगा जैसे परिवार ही खत्म हो गया है। आई–बाबा का तो पता था, वो करप्ट लोग थे लेकिन जयदेव.. वो भी तेरे नागपुर छोड़ने के बाद से केवल 2 बार ही मुझसे मिला और दोनो ही बार हमारे बीच कोई बात नही हुई। परिवार के नाम पर केवल मैं, मेरा बच्चा, मौसा–मौसी और चंद गिनती के लोग है।"

"प्रहरी के अन्य साखा में क्या हो रहा है मुझे नही पता। उनलोगो ने नागपुर को जैसे किनारे कर दिया हो। यदि किसी बात का पता लगाने हम महाराष्ट्र के दूसरे प्रहरी इकाई जाते हैं, तो वहां हमे एक कमरे में बिठा दिया जाता है जहां हमसे एक अनजान चेहरा मिलता है। जितनी बार जाओ नया चेहरा ही दिखता है। किसी के बारे में पूछो तो बताते नही। किसी से मिलना चाहो तो मिलता नही। सोची थी नागपुर अलग करने के बाद प्रहरी समुदाय में क्या चल रहा है, वो आराम से पता लगाऊंगी लेकिन यहां तो खुद के परिवार का पता नही लगा पा रही। प्रहरी की छानबीन क्या खाक करूंगी। मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा"..

आर्यमणि:– जब कुछ समझ में नहीं आये तो सब वक्त पर छोड़ देना चाहिए। ऐसे मौन रहोगी तो कहां से काम चलेगा...

भूमि:– तू मेरी हालत नही समझ सकता आर्य। जिसका पति पास न हो और न ही पास आने की कोई उम्मीद उसके दिल का हाल तू नही समझ सकता...

आर्यमणि:– हां आपके दिल का हाल वाकई मैं नही समझ सकता लेकिन आपकी पीड़ा कम करने में मदद जरूर कर सकता हूं...

भूमि:– मतलब...

आर्यमणि:– मतलब जीजू को ढूंढ निकलूंगा और तुम तक पहुंचा दूंगा...

भूमि:– झूठी दिलासा मत दे। और शैतान तुझे हम सब को यहां बुलाने की क्यों जरूरत आन पड़ी? जनता भी है कितना बड़ा झोखिम उठाया है...

आर्यमणि:– कहीं कोई जोखिम नहीं है दीदी... रुको मैं तुम्हे कुछ दिखता हूं...

आर्यमणि अपनी बात कहकर वहां से उठा और अपने साथ अनंत कीर्ति की पुस्तक लेकर लौटा। अनंत कीर्ति की पुस्तक भूमि के गोद में रखते.… "खोलो इसे"..

भूमि आश्चर्य से आर्यमणि को देखती.… "क्या तुमने वाकई"…

आर्यमणि:– मेरी ओर सवालिया नजरों से देखना बंद करो और एक बार खोलो तो...

भूमि ने जैसे ही कवर को हाथ लगाकर पलटा वह पलट गई। भूमि के आश्चर्य की कोई सीमा नही थी। बड़े ही आश्चर्य से वो वापस से आर्यमणि को देखती... "ये कैसे कर दिया"…

आर्यमणि:– बस कर दिया... यहां प्रकृति की सेवा करते हुये मैने कई पेड़–पौधे को सूखने से बचाया। कई जानवरों का दर्द अपने अंदर समेट लिया। बस उन्ही कर्मो का नतीजा था कि एक दिन इस पुस्तक को पलटा और ये खुल गयी। इसके अंदर क्या लिख है वो तो अब तक पढ़ नही पाया, लेकिन जल्द ही उसका भी रास्ता निकाल लूंगा...

भूमि:– क्या कमाल की खबर दिया है तुमने... मैं सच में बेहद खुश हूं...

आर्यमणि:– अरे अभी तो केवल खुश हुई हो... जब जयदेव जीजू तुम्हारे साथ होंगे तब तुम और खुश हो जाओगी…

भूमि:– जो व्यक्ति किताब खोल सकता है वो मेरे पति के बारे में भी पता लगा ही लेगा।

आर्यमणि:– निश्चित तौर पर... अब तुम जाओ आराम कर लो... जबतक मैं कुछ सोचता हूं...

भूमि, आर्यमणि के गले लगकर उसके गालों को चूमती वहां से चली गयी। अलबेली वहीं बैठी सब सुन रही थी वो सवालिया नजरों से आर्यमणि को देखती... "भूमि दीदी से झूठ बोले और झूठा दिलासा तक दिये"..

आर्यमणि:– कभी कभी कुछ बातें सबको नही बताई जाती...

अलबेली:– लेकिन बॉस जयदेव जैसे लोगों के बारे में झूठ बोलना..

आर्यमणि:– तो क्या करता मैं। बता देता की जैसा तुम शुकेश और मीनाक्षी के बारे में सोच रही वैसा करप्शन की कोई कहानी नही बल्कि उस से भी बढ़कर है। जयदेव भी उन्ही लोगों से मिला है। मिला ही नही बल्कि वो तो तुम्हारे मम्मी पापा के जैसे ही एक समान है।

अलबेली:– हे भगवान... फिर तो भूमि दीदी का दर्द...

आर्यमणि:– कुछ बातों को हम चाहकर भी ठीक नहीं कर सकते। उन्हे वक्त पर छोड़ना ही बेहतर होता है। कई जिंदगियां तो पहले से उलझी थी बस जब ये उलझन सुलझेगी, तब वो लोग कितना दर्द बर्दास्त कर सकते हैं वो देखना है... चलो फिलहाल एक घमासान की तैयारी हम भी कर ले...

अलबेली:– कौन सा घमासान बॉस...

आर्यमणि:– रूही और मेरी शादी का घमासान...

अलबेली:– इसमें घमासान जैसा क्या है?

आर्यमणि:– अभी चील मारो... जब होगा तो खुद ही देख लेना.…

आर्यमणि क्या समझना चाह रहा था ये बात अलबेली को तो समझ में तब नही आयी, लेकिन शाम को जैसे ही सब जमा हुये और सबने जब सुना की आर्यमणि, रूही से शादी कर रहा है, ऐसा लगा बॉम्ब फूटा हो। सब चौंक कर एक ही बात कहने लगे.... "एक वुल्फ और इंसान की शादी"…

"ये पागलपन है।"… "हम इस शादी को तैयार नहीं"… "आर्य, तुझे हमेशा वुल्फ ही मिलती है।"…. "तु नही करेगा ये शादी"…. कौतूहल सा माहोल था और हर कोई इस शादी के खिलाफ... भूमि आवेश में आकर यहां तक कह गयी की वो लड़की तो सरदार खान के किले में लगभग नंगी ही घूमती थी। जिसने जब चाहा उसके साथ संबंध बना लिये, ऐसी लड़की से शादी?…

भूमि की तीखी बातें सुनकर आर्यमणि को ऐसा लगा जैसे दिल में किसी ने तपता हुआ सरिया घुसेड़ दिया हो। कटाक्ष भरे शब्द सुनकर आर्यमणि पूरे गुस्से में आ चुका था और अंत में खुद में फैसला करते वह उस स्वरूप में सबके सामने खड़ा हो गया, जिसे देख सबकी आंखें फैल गयी। वुल्फ साउंड की एक तेज दहाड़ के साथ ही आर्यमणि गरजा…. "लो देख लो, ये है आर्यमणि का असली रूप। और ये रूप आज का नही बल्कि जन्म के वक्त से है। मेरा नाम आर्यमणि है, और मैं एक प्योर अल्फा हूं।"….
Nice update
 

Monty cool

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माफ करना नैन भाई सयाद मेरा कमैंट्स आप को पसंद ना आये उसके लिए पहले से सॉरी

भूमि जो इतनी छोड़ी होके बोल रहि है की रूही को खान की गलियों मे नंगा घुमाया गया था तो वो ये क्योँ भूल गई की इसके पीछे की वजह तो उसका बाप ही था उसका तो कुछ उखाड़ नहीं पाई और बात किसी और के कैरेक्टर पर कर रहि है और तो और पहले खुद के पति को तो देख लें इंसानी मास खाने वाला जानवर इससे अच्छा तो वो स्वामी था जो भले ही धूर्त था लेकिन था तो इंसान और तो और ये जाया भी भूल गई क्या सब की सुरुवात तो खुद उन लोगो से हुई है तो किस मुँह से रूही को गलत बोला जा रहा है😠😠😠😠😠😠

अब आते है स्टोरी पे जिस तरह से आप स्टोरी को घुमा रहे हो मुझे नहीं लगता की आर्य की शादी इतनी आसानी से हो जाएगी और तो और ये न्याजो भी अपनी हर इतनी आसानी से नहीं भूल ने वाले कुछ ना कुछ खुरापाती प्लान जरूर कर रहे होंगे🤨🤨🤨🤨🤨

अब लगता है की अलबेली और इवान की शादी मे भी कुछ झोल जरूर देखने को मिलेगा क्योंकि नार्मल तो ये दोनों भी नहीं 😜😜😜😜

और नैन भाई स्टोरी को जरा फ़ास्ट ट्रेक पे लाओ यार न्याजो को तो आप ने फिलहाल गायब ही कर दिया है
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
 

Devilrudra

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भाग:–138


वहां का पूरा माहोल ही जैसे इंटेंस हो चला हो। चारो ओर से हवाएं भी जैसे गंभीर ध्वनि निकाल रही थी। जो जिस अवस्था में थे वहीं जैसे जम गये थे और हमला करने को लगभग तैयार।

बॉम्ब की पिन जैसे खींच दी गयी हो और धमाका कभी भी हो सकता था। किंतु अक्सर ही ऐसी परिस्थिति में कोई न कोई समझदार तो आगे आता ही है। ठीक वही यहां भी हुआ। 2 टैक्सिडो पहने अधिकारी पहुंचे थे। एक ने तो हथकड़ी पहनाने कह दिया लेकिन दूसरी वो अर्ध–वृद्ध महिला जो पीछे खड़ी थी.... “रिलैक्स ब्वॉयज अपने हथियार नीचे करो। और तुम भी आर्यमणि, तुम भी अपना हथियार नीचे करो।”..

रूही:– हमारा नाम जानती हो मतलब पूरी रिसर्च करके आयी हो?

महिला:– हां पूरी रिसर्च की हूं। तुम सब कौन हो और क्या कर सकते हो, ये हम जानते है। कोई भी तुम में से किसी को हथकड़ी नही पहना रहा इसलिए अब तुम सब भी रिलैक्स हो जाओ।

नेरमिन:– तुम सब के मामले में दखलंदाजी के लिये माफ करना। तो क्या मैं और मेरी टीम यहां रुके या जायें?

महिला:– हां तुम जा सकती हो और आर्यमणि तुम अपने लोगों को लेकर मेरे साथ चलो...

आर्यमणि:– कहां जाना है?

महिला:– तुम्हारे सभी सवालों के जवाब मिल जायेंगे.... अभी फिलहाल बिना किसी सवाल के चलो...

आर्यमणि अल्फा पैक के ओर देखते..... “चलो फिर”

रूही:– चलने से पहले हमे जरा आपस में बात करनी है। तुमलोग जरा हमे जगह दोगे...

महिला:– हां क्यों नही... ब्वॉयज चार कदम पीछे।

रूही सबको लेकर छोटा सा घेरा बनाती... “हमारे अपने पंगे कम है क्या, जो इनके साथ जाएं?”

इवान:– हां दीदी सही कह रही है। जीजू मना कर दो इन एफबीआई वालों को...

अलबेली:– अरे ये शासन–प्रशासन के लोग है। इनका काम नही करोगे तो ये हमारा जीना हराम कर देंगे...

इवान:– जब मैं इन्हे चीड़ दूंगा, तब भी ये परेशान करेंगे क्या?

रूही:– शाबाश, अब कुछ–कुछ तू मर्दों जैसी बातें करने लगा है।

अलबेली:– किस ग्रह से आये हो दोनो। पागलों 6 अरब से ज्यादा की इंसानी आबादी है, कितने को चिड़ोगे।

इवान:– हम इतने लोगों को क्यों चिड़ने लगे। बस यहां कुछ लोगों को चीड़ देंगे। या जड़ों में लपेटकर यादाश्त मिटा देते हैं।

आर्यमणि:– 9 महीने खाली ही तो बैठे हैं। शादी दिसंबर में है और हमारा नया बना दुश्मन वेमपायर जो है, उनकी पकड़ अमेरिका के शासन–प्रशासन के भीतर है। हम भी देखते हैं कि एफबीआई वालों को हमसे क्या काम है। काम करने लायक हुआ तो कुछ दोस्त हम भी बना लेंगे। क्या कोई बुराई है?

रूही:– नही कोई बुराई तो नही है, लेकिन फ्री में कोई काम नही करेंगे।

आर्यमणि:– हां ठीक है वो बाद में देखते है। पहले पता तो चले की हमसे करवाना क्या चाहते हैं?

रूही:– ठीक है फिर चलो देखते है।

आर्यमणि ने इशारा किया और सभी हेलीकॉप्टर में लोड हो गये। हेलीकॉप्टर कैलिफोर्निया के एक मिलिट्री बेस पर लैंड हुई। वहां से अल्फा पैक को एक मीटिंग हॉल में बिठाया गया। आर्यमणि मन के संवादों में पहले ही समझा चुका था कि अपने हर सेंसेज प्रयोग करने सिवाय आंखें। और इस मीटिंग हॉल में एनिमल इंस्टिंक्ट वाली आंखों की ही जरूरत थी, क्योंकि वह मीटिंग हॉल लगभग अंधेरा था।

अल्फा पैक तकरीबन आधा घंटा उस मीटिंग हॉल में थे। जहां बिठाया गया था, वहीं बैठे रहे। मुंह से एक शब्द नही निकल रहे थे किंतु दिमाग के अंदर संवाद जारी था। कुछ लोग इन पर बाहर से नजर बनाए थे लेकिन वह भी अचंभित थे। चारो (आर्यमणि, रूही, अलबेली और इवान) किसी प्रोफेशनल की तरह पेश आ रहे थे।

आधे घंटे बाद उस मीटिंग हॉल की लाइट जली और उस हॉल में एक जाना पहचाना चेहरा दाखिल हुआ। आते ही अपना परिचय देते हुये कहने लगा.... “मैं कर्नल नयोबी हूं। मैंने ही तुम सबको यहां बुलाने की सिफारिश की थी।”

अल्फा पैक उसे हैरानी से देख रहा था। मुख से कुछ न निकला लेकिन मन के संवादों में.... “ये तो उस रात कैरोलिन के साथ था न। उनके प्रशिक्षित सेना का मुखिया।”

आर्यमणि:– शांत रहो और मुझे बात करने दो..

नयोबि:– क्या हुआ, इतने हैरान क्यों हो?

आर्यमणि:– कहीं बाहर चलकर बात करे...

नायोबी:– बाद में बहुत मौके मिलेंगे... अभी फिलहाल उस मामले को समझ ले, जिसकी वजह से तुम्हे यहां बुलवाया है।

आर्यमणि ने सहमति जताया, तभी मीटिंग हॉल के प्रोजेक्ट पर बर्फ में ढका एक पूरा भू–भाग दिखाया जाने लगा। उस बड़े से भू–भाग के बीच एक बड़े निर्माण का थ्रीडी इमेज चलने लगा। फिर निर्माण की बारीकियां समझाया गया। इमारत का जितना निर्माण ऊपर होना था, उस से कहीं ज्यादा पेंचीदा उसके नीचे का निर्माण था। 3 तल भू–तल निर्माण था।

पूरा निर्माण अच्छे से समझाने के बाद नयोबी.... “हम यह निर्माण कार्य अंटार्टिका महाद्वीप में करना चाह रहे थे। 6 बार कई लोग सर्वे के लिये वहां गये। कुछ लोग लौटकर आये और बहुत से लोग रहशमयी तरीके से गायब हो गये। किसी को कुछ पता नही की वहां क्या हुआ था? और न ही बर्फ पर किसी इंसान या जानवर के पाऊं के निशान पाये गये थे। तुम्हारा काम होगा उस रहश्मयी चीज का पता लगाना और निर्माण कार्य में किसी प्रकार की बाधा न आने देना।”...

आर्यमणि:– इतना बड़ा निर्माण करना वो भी अंटार्टिका जैसे महाद्वीप में, मुझे नही लगता की 10 वर्ष से पहले निर्माण कार्य पूर्ण होगा। मुझे माफ करो और अपने काम के लिये किसी और को ढूंढ लो।

नयोबि:– मैं यहां तुम्हारे सामने कोई प्रस्ताव नहीं रख रहा। मैने तुम्हे काम समझाया दिया है और तुम्हे ये करना होगा।

आर्यमणि:– पूरे निर्माण तक मैं वहां रहूं, सवाल ही पैदा नही होता। फिर यूएस के मिलिट्री एजेंसी का ऑर्डर हो या एफबीआई एजेंसी का....

आर्यमणि साफ मना कर चुका था। नयोबि आगे कुछ कहता उस से पहले ही एफबीआई की महिला अधिकारी मीटिंग हॉल में शिरकत करती.... “बात शुरू करने से पहले मैं अपना परिचय दे दूं। मेरा नाम जूलिया है और मैं एफबीआई की ज्वाइंट डायरेक्टर हूं। आर्यमणि तुम समझ सकते हो मामला कितना गंभीर है, जो एफबीआई के ज्वाइंट डायरेक्टर को ही सीधे ऑर्डर मिले है। हम अपना काम सही–गलत हर तरीके से करवाना जानते है। तुम्हे काम की जानकारी हो गयी है। पूरे निर्माण कार्य तक तुम मत रुको, बस मेरे काम की बात सुना दो।”

आर्यमणि:– मैं नवंबर के आखरी हफ्ते तक कैलिफोर्निया लौट आऊंगा। इस बीच मैं वहां के रहस्य को सुलझाकर मै लौट आऊंगा। यदि रहस्य नही सुलझा तो भी मैं नवंबर में लौटूंगा और अगले साल जनवरी से रहस्य को सुलझाने की कोशिश करूंगा। 2 बातें मैं साफ कर दूं, पहला ये की विषम परिस्थिति में मैं अपने और अपने लोगों की जान बचाऊंगा, तुम्हारे लोग मेरी जिम्मेदारी नही है। दूसरा यदि मै रहस्य सुलझाने में कामयाब रहा तो मुझे अपनी पसंद का एक क्रूज शिप चाहिए।

नयोबि:– एक क्रूज शिप??? उसका क्या करोगे?

आर्यमणि:– महासागर की सैर पर निकलूंगा...

ज्वाइंट डायरेक्टर जूलिया.... “क्या कहा तुमने, तुम्हे एक ऐसा क्रूज चाहिए जो महासागर की लंबी दूरी तय कर सके। कीमत भी जानते हो क्या होगी?”

आर्यमणि:– उस कीमत से तो कम ही होगी जिसमे कई बार लोग पूरे तैयारी के साथ अंटार्टिका जाते हो और कुछ लोग अपनी जान बचाकर वहां से भागते हो। एक बार का ही कितना नुकसान हुआ होगा। फिर तो ये नुकसान 6 बार हो चुका है। कीमत तो सही है।

ज्वाइंट डायरेक्टर:– “तुम सीधा हार्ड कैश कीमत बताओ”...

रूही:– 50 मिलियन यूएसडी। उस से एक पैसा कम नही...

आर्यमणि:– लेकिन रूही..

रूही:– अब तुम जरा चुप रहो। ये लोग तुमसे मोल–भाव कर सकते हैं, लेकिन मुझसे नही। 50 मिलियन फाइनल...

ज्वाइंट डायरेक्टर जूलिया:– होश में भी हो कितना मांग रही। इतने में तो प्राइवेट आर्मी आ जायेगी... इतना नही दे सकते...

आर्यमणि:– तो हमारी पसंद का एक क्रूज ही दे दो...

ज्वाइंट डायरेक्टर जूलिया:– अब कोई एक ही बात कर लो। मैं किसकी सुनु...

रूही:– आर्य अब तुम बीच में नही बोलोगे। 50 मिलियन यूएसडी फाइनल...

ज्वाइंट डायरेक्टर जूलिया:– इतना नही दे पाऊंगी। मैं बजट बहुत ज्यादा खिंचूंगी तो भी 50000 डॉलर से ज्यादा नही दे सकती...

रूही:– क्या??? मेंहतना सीधा 1% कर दी... स्त्री हो मोल भाव अच्छे से आता है। लेकिन मैं भी नागपुर की बस्तियों में पली हूं, अपना हक छोड़ने वाली नही। 50 मिलियन से एक पैसा कम नही।

मोल भाव चलता रहा। जूलिया यहां तक कह चुकी थी कि यदि ज्यादा पैसे मांगते रहे तो अंटार्टिका में ही अटका देंगे और पैसे तो भूल ही जाओ। एक लंबे से डिस्कशन के बाद 1 मिलियन यूएसडी में रूही ने फाइनल कर लिया। फाइनल करने के बाद आर्य को देखती हुई कहने लगी.... “4–5 करोड़ में तुम्हारा जहाज बन जायेगा। अब मुंह मत लटकाओ, मैने कुछ पैसे ज्यादा ही मांगे है।”...

आर्यमणि अपने दोनो हाथ जोड़ते.... “हां तुम सर्वज्ञाता हो।”...

जूलिया:– क्या हुआ, खुश नही हुये क्या? कीमत कम लग रही है क्या?

आर्यमणि:– कहां एक क्रूज की बात चल रही थी और कहां तुमने एक मिलियन में निपटा दिया।

जूलिया:– तुम्हे क्या लगता है, क्या तुम बात करते तो अलग नतीजा निकलता। हां लेकिन यदि तुमने प्रोजेक्ट शुरू करवा दिया तब तुम्हारे क्रूज का जो भी बिल होगा उसका 50% भुगतान की जिम्मेदारी मैं निजी तौर पर देख लूंगी। लेकिन इसके लिये पहले तुम्हे...

आर्यमणि:– हां बिलकुल... बिना किसी बाधा के निर्माण कार्य शुरू हो जाये। तो कब निकलना है...

जूलिया:– जितनी देर में तुम सब अपनी पैकिंग करके यहां पहुंचोगे, रवाना होने में उतनी ही देर है। बिना वक्त गवाये पैकिंग करके लौटो। और हां अपने साथ आर्म्स एंड एम्यूनेशन मत लाना। उसकी हमारे पास कोई कमी नही।

आर्यमणि:– हमे बहुत ज्यादा जरूरत पड़ती भी नही। घर तक किसी को छोड़ने बोलोगी या पैकिंग करने पैदल ही जाना होगा।

जूलिया:– इतना वक्त नहीं है, तुम हेलीकॉप्टर से जाओ...

लगभग एक घंटे में अल्फा पैक अपने समान के साथ वापस आ चुके थे। बड़ा सा विमान उनकी प्रतीक्षा में रनवे पर ही खड़ा था। लगभग 500 लोगों को लेकर वह विमान उड़ गया। उसके पीछे 2 बड़े–बड़े कार्गो विमान भी उड़े। यूनाइटेड स्टेट से उड़ान भरकर चिली देश में कुछ देर का हाल्ट लिया और वहां से अंटार्टिका के लिये उड़ान भर चुके थे।

अंटार्टिका वर्क स्टेशन पर तीनो विमान लैंड हुये। यहां से लगभग 400 मिल की दूरी पर वह जगह थी जहां निर्माण कार्य संपन्न होना था। एक छोटे से औपचारिक मीटिंग के बाद कर्नल नयोबी अपने 18 लोग की टीम और अल्फा पैक के साथ उस जगह के लिये रवाना हो गये। जरूरत के पर्याप्त सामान और 2 मालवाहक हेलीकॉप्टर में सभी लोग सवार होकर उस स्थान तक पहुंचे।

मध्य में एक बड़ा सा टेंट लगाकर पाल चढ़ाया गया। यहां सबका मीटिंग हॉल, खाने की जगह जो कह लीजिए। उसी के चारो ओर, 10 छोटे–छोटे टेंट लगाये गये थे। कुछ देर विश्राम करने के बाद फिर आगे की रणनीतियों पर चर्चा होती। बाकी सब तो गये विश्राम करने लेकिन अल्फा पैक जो पिछले कुछ दिन से कई सवालों के साथ सफर कर रहे थे, वह सीधा नयोबी के टेंट में घुसे।

नयोबि:– हां मुझे उम्मीद थी की वक्त मिलते ही पहले तुम लोग मेरे पास ही आओगे।

आर्यमणि:– हमे तुम्हारे बेमपायर काउंसिल और करार के बारे में पता है। तो क्या मैं ये मान लूं की तुम इतनी दूर केवल अपना बदला लेने आये हो?

नयोबि:– देखो बदला मुझे नही चाहिए लेकिन मेरे समुदाय के लोग जब तुम्हारे बारे में पता लगा लेंगे, तब मजबूरी में मैं भी उनके साथ खड़ा रहूंगा। फिलहाल कोई बदला नही। मै शुद्ध रूप से यहां यूएस गवर्नमेंट का काम करने आया हूं।

आर्यमणि:– मैं समझा नही... तुम्हारे समुदाय के लोग मेरे बारे में क्यों पता लगाएंगे...

नयोबि:– हमारे समुदाय को पता है कि राजकुमारी कैरोलिन की जान किसी अज्ञात ग्रुप ने लिया, जिसकी पहचान हम कर नही सके। मैं और मेरे साथ आये सभी 48 लड़ाका ने यही कहा था।

आर्यमणि:– इतनी मेहरबानी की वजह...

नयोबि:– मैने तुम्हारे बारे में पता किया। गलती हमारी थी, जो पूरा मामला पता लगाये बिना किसी को भी दोषी समझ लिये। इसका खामियाजा भी उठाना पड़ा। हां लेकिन अब मामला फसा हुआ है। हमारे समुदाय (वेमपायर) को इस से फर्क नही पड़ता की कैरोलिन की जान किन हालातों में गयी। उन्हे तो बस बदला चाहिए, जिसे मैं और मेरे लोगों ने कुछ देर के लिये रोक दिया है। बाकी आगे का नही कह सकता...

आर्यमणि:– आगे फिर वही होगा, खून–खराबा। खैर धन्यवाद दोस्त।

आर्यमणि अपनी बात समाप्त कर वहां से जाने लगा। तभी नयोबि रोकते.... “सुनो आर्यमणि”..

आर्यमणि:– हां...

नयोबि:– हमारे तकनीक और प्रशिक्षित लड़ाके को तुमने हरा कैसे दिया? वो भी 5 वेयरवोल्फ हम 50 पर भरी पड़ गये?

आर्यमणि:– कुछ चीजें बताकर नही समझाया जा सकता। उसके लिये खुद की बुद्धि और सामने वाले को परखना पड़ता है।

एक सवाल जो अल्फा पैक के मन में घर कर बैठा था, उसका जवाब तो मिल चुका था। अब जिस काम के लिये यहां आये थे, उसे जल्द से जल्द समाप्त कर अंटार्टिका के बाहर निकलना था। एक महीने तक आर्यमणि और अल्फा पैक इसी काम पर लगे रहे। अंटार्टिका के विषम जलवायु में मात्र बर्फीले जगह को झेलने वाले जानवर जैसे की सील, पेंगुइन इत्यादि ही मिलते, वो भी तटिया क्षेत्र में मिला करते थे। जिस जगह निर्माण कार्य होना था वहां से तो तट दूर–दूर तक नही था। जिस जगह अल्फा पैक ठहरे थे, वहां उनके अलावा वेमपायर को छोड़कर किसी अन्य जीवों का कहीं कोई संकेत नहीं था।

जांच परताल करते हुये लगभग महीने दिन के ऊपर बीत चुके थे। मार्च गया अप्रैल भी जाने वाला था, लेकिन जिस खतरे की बात कही गयी थी वह इतने दिनो में कहीं नही दिखा। नयोबि ऊबकर एक छोटा सा मीटिंग बुलाते... “लगता है हमें या तो गलत जानकारी मिली थी या फिर हमारा सामना जिन दुश्मनों से है वह काफी शातिर है।”

आर्यमणि:– क्या बात है... इतने दिन बाद दिमाग की बत्ती जली है। वैसे यदि ये मान ले की दुश्मन बहुत शातिर है, तो तुम्हारे इस समीक्षा की वजह.....

नयोबि:– शातिर इसलिए क्योंकी जिन 6 बार हमला हुआ था, यहां पूरा क्रू पूरे समान के साथ पहुंचे थे। निर्माण कार्य जिस दिन शुरू किये, उसी रात बहुत से लोग समान सहित गायब हो गये।

आर्यमणि:– हम्मम।।। मतलब मेरा अंदेशा सही है...

नयोबि:– क्या ... वही जो मै सोच रहा, हमारे दुश्मन शातिर है?

आर्यमणि:– नही... पहली बात वो हमारे दुश्मन नही, बल्कि हम उनकी जमीन पर जबरदस्ती कब्जा करने आये है, इसलिए हम दुश्मन हुये।

नयोबि:– जो भी कहना चाह रहे हो खुलकर कहो...

आर्यमणि:– महीने दिन से ऊपर हम यहां किसी टूरिस्ट की तरह है, इस बात से यहां के मूल निवासी को कोई परेशानी नही। वहीं जैसे ही उन्हें आभाष होगा कि हम उनकी जमीन पर जबरदस्ती कब्जा कर रहे। कुछ निर्माण करना चाह रहे है। ऐसी परिस्थिति में वो लोग हरकत में आ जायेंगे।

नयोबि:– तुमने अभी लोग कहा। तो क्या वो इंसान की कोई प्रजाति है, जो यहां के जलवायु को एडॉप्ट कर चुके हैं?

आर्यमणि:– नही... शायद ये जलवायु ही उनके लिये बनाया गया था। हां लेकिन आगे कुछ भी उनके बारे में कहने से पहले उनसे एक मुलाकात करना तो बनता है।

नयोबि:– वो जो छिपकर शिकार करते हैं, उनसे मिलने की चाहत... कहीं मौत से मिलना तो नही चाह रहे आर्यमणि...

आर्यमणि:– क्यों तुम 18 प्रशिक्षित वेमपायर होकर डर रहे। जबकि तुम्हारे शरीर मे ही पता न इन–बिल्ट कितने फीचर्स हो।

नयोबि:– वीरता और पागलपन में अंतर होता है। दुश्मन जिन्हे हम जानते नही वह हमेशा चौंका जाते है। हाल में ही हम ये भुगत चुके है।

आर्यमणि:– इस मामले में अपनी तो किस्मत ही खराब रही है नयोबि। हर बार मामला उलझने के बाद ही हमें दुश्मन की ताकत का पता चलता है। भले ही पहले से हम कितना भी होमवर्क करने की कोशिश क्यों न करे, साला दुश्मन का पूरा पता लगा ही नहीं पाते। इसलिए बिना जाने ही सही आज उनसे मुलाकात तो करनी ही होगी।

नयोबि:– चलो फिर हम भी तुम्हारे पीछे ही लटक जाते है। लेकिन उनसे मुलाकात करने के लिये तुम क्या करने वाले हो...

आर्यमणि:– बस देखते जाओ....

आर्यमणि का इशारा हुआ। पूरा अल्फा पैक एक साथ टेंट के बाहर आया। आर्यमणि ने रूही, अलबेली और इवान को कुछ समझाया। तीनो एक साथ मुस्कुराते.... “ये कुछ ढंग का काम हुआ, वरना पिछले कई दिनों से बस छानबीन वाला फालतू काम कर रहे थे।”..

आर्यमणि:– तो फिर जाओ छा जाओ...

तीनो ने मिलकर एक बड़े इलाके को अपने क्ला से मार्क कर दिया। उनके चार छोड़ पर चार वुल्फ। आर्यमणि का इशारा होते ही सभी ने अपने एम्यूलेट को पकड़कर मंत्र पढ़ा और मंत्र पढ़ने के बाद पूरे जोड़ का पंच बर्फ के ऊपर दे मारा। ऐसा आवाज आया जैसे कई किलो आरडीएक्स एक साथ ब्लास्ट हो गया हो।

अंटार्टिका के सतह पर लगभग एक से डेढ़ किलोमीटर की मोटी बर्फ की परत होती है। चारो के एमुलेट में एनर्जी स्टोन लगे थे। इनका चलाया मुक्का जादुई रूप से काम किया और जिस जगह इनका मुक्का पड़ा वहां ढांचा ही ढह गया था। आर्यमणि के कोने पर तो और भी ज्यादा असर देखने मिला। चुकी उसके पास तो 25 एनर्जी स्टोन एक क्रम में जुड़ा था। आर्यमणि सब बात को ध्यान में रखकर मात्र नपा–तुला मुक्का मारा था, किंतु वहां की बर्फ जैसे फटकर चकनाचूर हो गयी हो और बड़ा सा गड्ढा दिखने लगा था।

नयोबि जब तक बाहर आता तब तक तो ये लोग पंच चला चुके थे। किसी ने देखा ही नहीं की वहां पंच चला या बॉम्ब फटा। हां जैसा इंपैक्ट था उसे देखकर वेमपायर को यही लगा की चारो ने चार पॉइंट पर ब्लास्ट किया था। नयोबि अपने टीम के साथ गुस्से में बाहर आते..... “तुम्हे पता भी है, अंटार्टिका में पर्यावरण को हानि नहीं पहुंचा सकते। फिर यहां ब्लास्ट क्यों किये।”...

रूही:– जाकर अंदर छिप जाओ बच्चे क्योंकि यहां असली एक्शन शुरू होने वाला है।

नयोबि:– यहां चल क्या रहा है आर्यमणि? मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि तुम और तुम्हारे लोग बहुत कुछ जानते हुये भी हमसे जानकारी छिपा रहे हो।

आर्यमणि:– अपने हथियार नीचे डाल दो नयोबि वरना तुम अपने और अपने लोगों के मौत के जिम्मेदार स्वयं होगे..

नयोबि:– ये कैसा जलजला और तूफान आया है?

बातों के दौरान ही वहां की सतह पर भूकंप जैसे झटके महसूस होने लगे थे। बर्फीली हवाएं इतनी तेज बह रही थी कि कुछ भी देख पाना मुश्किल था। अल्फा पैक शायद खतरे को भांप चुकी थी, लेकिन नयोबि और उसके लोगों को जरा भी अंदाजा नहीं था कि उनका सामना किनसे है।

बर्फीली हवाओं को चिड़कर जब वे प्रत्यक्ष रूप से सामने आये, हर किसी का कलेजा बूफर के समान तेज–तेज धम–धम करने लगा। फिर चाहे वह आर्यमणि खुद भी क्यों न हो जिसे अंदेशा था कि उसका सामना किनसे होने वाला है, लेकिन फिर भी उन्हें सामने देखकर धड़कने बढ़ी जरूर थी।
Superb👍👍👍
 

Devilrudra

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भाग:–139


बर्फीली हवाओं को चिड़कर जब वे प्रत्यक्ष रूप से सामने आये, हर किसी का कलेजा बूफर के समान तेज–तेज धम–धम करने लगा। फिर चाहे वह आर्यमणि खुद भी क्यों न हो जिसे अंदेशा था कि उसका सामना किनसे होने वाला है, लेकिन फिर भी उन्हें सामने देखकर धड़कने बढ़ी जरूर थी।

15 फिट ऊंचा 4 फिट चौड़ा विशालकाय शरीर। हाथों में जब 1 फिट चौड़ा और 5 फिट लंबा तलवार लिये दौड़ते हुये सामने आया, ऐसा लगा विशाल मौत सबकी ओर दौड़ रही थी। ये हिम–मानव की प्रजाति थी, जिन्हे हिमालय के सुदूर क्षेत्र से लेकर बिग–फूट के नाम से अमेरिका में भी देखे जाने के दावे किये जाते थे, किंतु आज तक कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं मिला था।

आर्यमणि और पूरा अल्फा पैक तुरंत ही अपने घुटनों पर आकर सर झुका लिये। उनके ओर दौड़ रहा हिम–मानव तलवार लहराता हुआ करीब पहुंचा और अपने सम्मान में झुके निहत्थे लोगों को देखकर रुक गया। आर्यमणि के ही देखा–देखी नयोबि और उसके लोग भी घुटनों पर आकर सर झुका लिये।

हां लेकिन कुछ लोग इतने डरे हुये थे कि चिल्लाते हुये भागे और भागने के क्रम में अंधाधुन फायरिंग भी करते हुये भागे। हिम–मानव को गुस्सा आ गया और वो एक छलांग लगाकर उनके सामने। डर ने ऐसा घेरा की वो वेमपायर यह तक भूल गये की वो क्या कर सकते थे। बेबस और असहाय की तरह सामने खड़े मृत्यु को देख रहे थे।

आर्यमणि को जब एहसास हुआ की कुछ लोगों की जान खतरे में है। फिर बिना वक्त गवाए आर्यमणि अपना सर ऊपर किया और सामने खड़े हिम–मानव के आंखों से आंखें मिला, तेज दहाड़ लगाया। दहाड़ इतनी तेज और लंबी थी कि जिसने भी सुना स्थूल पड़ गया। आर्यमणि के दहाड़ निकलने भर की देरी थी, फिर तो पूरा अल्फा पैक ही दहाड़ निकाल रहा था।

अल्फा पैक की दहाड़ सुनकर हिम–मानव घूरती नजरों से अल्फा पैक को देखे। मुख से निकला... “ऐसा क्या?” और अगले ही पल चारो ओर से एक सुर में ऐसा भयानक चिल्लाने की आवाज आयी, कि आर्यमणि तक हैरान। जब तक कुछ समझ में आता हर कोई मेहसूस कर रहा था कि वह किसी गड्ढे में गिर रहा है। सबकी आंखें बंद हो गयी। और जब आंखें खुली तब आंखों के आगे अद्भुत दृश्य था। ऐसा लग रहा था नीचे गिरने के कारण मृत्यु हो गयी और जब आंख खुली तो स्वप्न नगरी में थे।

चारो ओर चकाचक बड़ी–बड़ी हीरे समान चमचमाती इमारतें। शहर भी ऐसा बना था मानो फुरसत से बैठकर प्लान करके बनाया गया हो। ना कोई इमारत सड़क पर इंच भर भी आगे और न ही कोई इमारत दूसरे इमारत से एक भी इंच छोटा या बड़ा। जितनी आधुनिकता उतनी ही हरियाली थी। पेड़ भी इस कदर श्रेणी क्रम में लगे थे कि देखने वाले हैरान हो जाये।

सड़क इतनी चौड़ी थी कि एक किनारे से चार एरोप्लेन एक साथ उड़ान भर सकते थे। वहीं बीच का हिस्सा जो डिवाइडर का काम करता था वह किसी एक किनारे के मुकाबले 2 गुना बड़ा था, जिसमें खाने वाली फसलें, जैसे धान, गेंहू, मक्का, बाजरा इत्यादि की खेती की जा रही थी।

खुद की हालत पर जब गौर किये तब पता चला की सभी लोगों को बहुत ही ऊंचे टावर की छत पर रखा गया था। ये टावर भी कमाल की इंजीनियरिंग का बेहद खूबसूरत नजारा था। 15 फिट मोटे टावर की लंबाई लगभग 1200 फिट थी, जिसके ऊपरी सिरे पर 500 मीटर की रेडियस का खुला छत था। उस छत पर आर्यमणि, नयोबि और उनके साथी ही नही बल्कि 200 से 300 और भी लोग थे। बस फर्क सिर्फ इतना था कि ये लोग बौने थे, और वो लोग 15 फिट के हैकल शरीर वाले।

आर्यमणि:– ये हम आसमान से गिड़कर किस प्रकार के खजूर पर लटक गये।

रूही:– मुझे नही पता। हम जहां कहीं भी है, है ये कमाल की जगह। कोई विशेष टिप्पणी, कर्नल नयोबि।

नयोबि:– क्या तुम इन जैसे प्रजाति से पहले भी मिल चुके हो?

आर्यमणि:– नही बस मुझे अंदाजा हो गया था कि बर्फ की सतह के नीचे जीवन बसता है। ऐसे जलवायु में कौन रह सकते हैं, उसका भी अंदाजा था। जिसे अमेरिका में बिग–फूट और भारत में हिम–मानव कहते है, वही समुदाय। मैं भी पहली बार ही मिल रहा हूं।

“ज्यादा मच–मच नही करने का बौनो। वरना अदालत के फैसले से पहले कहीं हम न फैसला कर ले।”.... वहां मौजूद हिम–मानव की भिड़ से एक हिम–मानव बोला..

आर्यमणि:– अदालत... मतलब...

हिम–मानव:– अबे घोंचू अदालत मतलब अदालत जहां अपराधियों को सजा सुनाई जाती है।

रूही:– अपराधी??? तो क्या हम किसी प्रकार की जेल में है...

हिम–मानव:– हां ये टावर ट्रायल एरिया है। तुम सब रोलफेल देश की राजधानी पीक सिटी में हो। अब ज्यादा सवाल–जवाब नही वरना अपना मगज गरम हो जायेगा।

रूही:– वैसे यहां तुम लोगों का नाम भी है या एक दूसरे को पुकारने का कोई अलग तरीका है?

हिम–मानव:– ए सटकेली, बिना नाम के कैसे किसी को पुकारेंगे... हम सबका नाम है। मेरा नाम हिम–भोसला–गज्जक–जूनियर–8 है।

रूही:– इतना बड़े नाम से बुलाते हैं तुम्हे... हिम–भोसला–गज्जक–जूनियर–8..

भोसला:– अरे नही रे, पूरा नाम था वो। बुलाते तो भोसला के नाम से ही है। हिम का मतलब है हमारे पूर्वज हिमालय की नगरी से थे। गज्जक अपने पूज्य पिताजी का नाम है और अपन उनकी आठवें नंबर की संतान है इसलिए जूनियर–8.. लो मामू लोग की टोली भी आ गयी, चलो अपन चलता है। जेल में मुलाकात होगी...

पुलिस की 8–10 उड़न तस्तरी वैन टावर के ऊपर लग गया। जिस किसी कैदी को उठाना होता, उसके ऊपर ट्रैप वेब किरणे पड़ती और वह खींचकर सीधा पुलिस की उड़न तस्तरी वैन में। अल्फा पैक और नयोबि की टीम को छोड़कर बाकी सबको उठा ले गये।

नयोबि:– बहुत खतरनाक लोग है आर्यमणि। और इनकी सभ्यता काफी विकसित मालूम पड़ती है।

आर्यमणि:– अब पता चला गायब लोग कहां गये।

नयोबि:– हां खुद को लापता करवाकर पता लगा ही लिया। ये बताओ इनकी अदालत में क्या फैसला ले सकते है?

आर्यमणि:– ठीक वैसा ही फैसला लेंगे जैसे यूएसए की जमीन पर किसी दूसरे देश के निवासी जबरदस्ती जमीन पर कब्जा करते पकड़े गये हो।

नयोबि:– यूएसए के नागरिक जबरदस्ती कब्जा करते पाये जाये, तो उसे नही छोड़ते। विदेशी तो बहुत दूर की बात कर दिये। घुसपैठियों के लिये तो कानून और दोगुना शख्त हो जाता है।

आर्यमणि:– बस फिर हमारा भी यहां वही हाल होना है। अल्फा पैक यहां से निकलने का कोई रास्ता समझ में आ रहा है?

रूही:– ऊपर आसमान नही है। वुल्फ आई से देखो तो पता चलेगा की सर के ऊपर किसी प्रकार के किरणों का घेरा है, जो आसमान जैसा दिखता है। यहां के प्रत्येक घर हीरे की भांति चमकते पत्थर से बने हैं, इसलिए दिन जैसा माहौल लग रहा है। इनका पूरा देश सतह से 10 किलोमीटर नीचे बसा हुआ होगा।

अलबेली:– कमाल की टेक्नोलॉजी है। किसी एक पॉइंट से ये लोग सूर्य की रौशनी को इकट्ठा करते होंगे और वहीं से पूरे देश में सूर्य की रौशनी फैला रहे है। जितने भी चमकते पत्थर है, उनका तापमान ग्रीन हाउस के तापमान को मैच कर रहा है।

इवान:– यदि हमें यहां से बाहर निकलना है तो इन हिम–मानव के साथ कुछ बेहतर टेक्नोलॉजी का सौदा करना होगा। वरना हमे यहां से कभी बाहर नही जाने देंगे...

नयोबि:– हां लेकिन बड़ा सवाल ये है कि 6 महादेश में बसने वाले देश सतह पर है। उनकी छिपी हुई दुनिया नहीं। हमने तो इनकी छिपी दुनिया देख लिया, कुछ भी कर लो ये हमे यहां से नही जाने देंगे। ये ठीक बिलकुल वैसा ही है जैसे किसी ने मिलिट्री के सीक्रेट वेपन को देख लिया हो। अब वह इंसान अच्छा हो या बुरा, फर्क नही पड़ता। समझ ही सकते हो उसके साथ क्या होगा।

रूही:– हां बस थोड़ा सा अंतर है। हम अल्फा पैक है। बस अपना मुंह बंद रखना और तमाशा देखो।

काफी लंबी बातें हुई। हिम–मानव की छिपी नगरी आंखों के सामने थी और उनकी विकसित सभ्यता को सब देख रहे थे। अलग तरह के टावर में इतनी देर तक कैद रहे की अब तो इन सबकी बातें भी समाप्त हो चुकी थी। भले ही ये लोग वेयरवोल्फ या वेमपायर थे, लेकिन सबको भूख तो लगती ही थी।

अल्फा पैक भूखे रहने के सिवा कुछ कर नही सकते थे, जबकि नयोबि और उसके 18 पंटर एक गोल घेरा बना लिये। भिड़ से किसी 2 वेमपायर ने खून के 2 पाउच निकाल लिये और सभी मिल बांटकर उसे पी गये। खून की गंध जैसे ही अल्फा पैक के नाक तक पहुंची, अजीब सा घृणित मुंह बनाकर वेमपायर के झुंड को देखने लगे।

नयोबि जैसे ही मुड़ा.... “अरे तुम्हे तो भूल ही गये। तुम्हे भी थोड़ा खून चखना है क्या? भूख और प्यार मिट जायेगी।”

आर्यमणि:– नही तुम ही पियो.. हम ठीक है।

नयोबि:– क्या हुआ, इतना शर्मा क्यों रहे? हमें तो लगा की खून की खुशबू सूंघकर जानवर को बेकाबू होते देखेंगे...

नयोबि अपनी बात कहकर हंसने लगा। नयोबि के साथ–साथ उसके सभी वेमपायर साथी भी हंसने लगे। आर्यमणि अल्फा पैक को नजरों से ही समझा गया... “बिलकुल शांत और एक भी शब्द जवाब मत देना।”

अल्फा पैक बेज्जती बर्दास्त कर अपनी जगह बैठ गये। आज तो पहले दिन का भूख था। धीरे–धीरे कई और दिन बीते। उस टावर पर बिना भोजन–पानी के 30 दिन बीत चुके थे। अल्फा पैक पिछले 30 दिनो से बिना अन्न और जल का एक भी कतरा लिये, भूखे प्यासे बैठे थे। शरीर बिलकुल सुख गया था। आंखों की पुतलियां धंस गयी थी। नयोबि और उसके लोग हर दिन 4 बार तो उनका मजाक उड़ाते ही।

३१वें दिन वेमपायर के पास का खून भी समाप्त हो चुका था। किसी तरह एक दिन तो भूखे–प्यास से काट लिये, लेकिन ३२वें दिन हर वेमपायर भूख से पागल हो उठे थे। नयोबि किसी तरह उन्हे नियंत्रित कर तो रहा था लेकिन सच्चाई यही थी कि अपने लोगों की तरह वह भी अल्फा पैक को भोजन के रूप में देख रहा था।

जैसे–जैसे ३२वा दिन चढ़ता गया, सभी वेमपायर भूख और प्यास से पागल हो उठे। आखिरकार रात में वही हुआ जो भूखे जानवर अपने शिकार के साथ करते थे, भोजन के लिये हमला। अल्फा पैक पर हमला हो चुका था। आर्यमणि ने अभी केवल बचाव के संकेत दिये थे इसलिए उनपर हमला कर रहे वेमपायर को केवल खुद से दूर रख रहे थे।

रूही:– आर्य ये लोग ऐसे मानने वाले नही। क्या कहते हो...

आर्यमणि तेज दहाड़ के साथ अपने मुक्के का एक जोरदार प्रहार करते... “सबको अधमरा कर दो।”...

अल्फा पैक तेज दहाड़ के साथ शेप शिफ्ट कर चुके थे। वेमपायर अपने शरीर में कई तरह के बदलाव तो कर चुके थे, लेकिन भूख और प्यास में उनका वास्तविक प्रकृति ही उभरकर बाहर आ रहा था। वेमपायर ने जो भी कृत्रिम प्रारूप को अपने अंदर समा रखा था, वह सब भूल चुके थे। केवल वेयरवोल्फ की तरह शेप नही शिफ्ट किये थे बाकी क्ला और फेंग उनके भी निकल आये थे।

वेमपायर भूख प्यास से बिलबिलाते हुये अपने शिकार को झपटने आगे बढ़ते और अल्फा पैक का पावर पंच खाकर दूर कर्राह रहे होते। फिर अल्फा पैक ने कोई रहम नहीं दिखाया। जो भी उनके नजदीक पहुंचते उन्हे इतना तेज जोरदार मुक्का लगता की अंग भंग हो जाता। हां लेकिन भूख प्यास ने सबको अंधा नही किया था। नयोबि अपने कुछ साथियों के साथ एक फॉर्मेशन बनाया और अपने शरीर के आर्मर को ऑन कर दिया।

ठीक उस रात की तरह आज भी वेमपायर का शरीर किसी मैटेलिक शरीर के समान दिख रहा था, जो भट्टी से निकले धातु की समान लाल था। नयोबि का इशारा हुआ और सभी वेमपायर के हाथ से दूधिया रौशनी निकलने लगी। आर्यमणि तो इस रौशनी पर पहले ही प्रयोग कर चुका था। अल्फा पैक भी जानती थी कि इनसे कैसे निपटा जाये। लिहाजा सभी वुल्फ ने अपने पंजे आगे कर लिये और उस रौशनी को हवा का कोई टॉक्सिक मानते हुये खुद में ही समाने लगे।

देखते ही देखते वेमपायर की वो कृत्रिम रौशनी अल्फा पैक को बांधने के बदले खुद उसी के अंदर समाने लगी। काफी देर तक यह तमाशा चलता रहा। अंत में जब वेमपायर ने अपने हथियार को लगातार विफल होते हुये देखा, तब एक बार फिर अपना आपा खो बैठे। भूखे वेमपायर कतार तोड़कर अपने शिकार पर सीधा हमला करने निकल गये।

3–4 वेमपायर हवा में छलांग लगा चुके थे। ठीक उसी वक्त अलबेली और इवान भी हवा में के छलांग लगाकर वेमपायर से ऊंचा गये और हवा में ही इतने तेज और जोरदार लात से प्रहार किया की सभी वेमपायर फुटबॉल की तरह उछलकर काफी दूर जाकर गिड़े। इधर आर्यमणि और रूही के बीच नजरों का संपर्क हुआ। रूही, आर्यमणि के इशारों की भाषा को समझती आर्यमणि के साथ तेज दौड़ लगा दी। दोनो ही इतना तेज दौरे की सामने खड़े वेमपायर को उनके कंधे का तेज धक्का लगा और सभी वेमपायर एक साथ हवा में थे।

19 घायल वेमपायर दर्द से कर्राह रहे थे। अल्फा पैक रात भर उन्हे कर्राहते छोड़ अपनी नींद में मस्त हो गये। सुबह उठकर सभी बेहोश घायलों का उपचार किया और वापस से अपनी जगह बैठ गये। उपचार के बाद भी वेमपायर बेहोश पड़े रहे। दिन चढ़ते–चढ़ते भूख से बिलबिला कर सभी वेमपायर उठे और पिछले दिन की मार को भूलकर एक बार फिर अल्फा पैक को मारने के लिये दौड़े। होना क्या था... अल्फा पैक का मुक्का और लात बरसा। मेटलिक कवच के पीछे छिपे शरीर को भी इन लोगों ने अपने लात और घुसे के प्रहार से घायल कर दिया।

लगभग 10 दिनो तक यही खेल चलता रहा। हर दिन वेमपायर पहले से ज्यादा आक्रमक होते और अल्फा पैक के पास उनके लिये हर दिन एक जैसा उपचार होता। हां वो अलग बात थी कि एक महीने तक अल्फा पैक यातनाएं झेलने के बाद, हर रात जब अंधेरा घना होता तब नीचे शहर में लगे बहुत सारे पेड़–पौधों की जड़ें अल्फा पैक से कनेक्ट हो जाती और पूरे दिन का वो पोषण एक वक्त में ही समेट लिया करते थे।

डेढ़ महीने अजीब से कैद में बीते होंगे, जहां रोज शाम को अल्फा पैक वेमपायर को घायल कर दिया करते थे और सुबह उन्हे हील करते थे। चूंकि वेमपायर पूरी तरह से खून के पोषण पर जीते थे, इसलिए अल्फा पैक उनकी भूख तो नही मिटा पाते थे किंतु उनके अक्रमता को जरूर मिटा देते थे।
👍👍👍
 

Devilrudra

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भाग:–140


डेढ़ महीने बाद पुलिस की एक बड़ी सी उड़न तस्तरी वैन के लेजर वेब किरणों में सभी कैद थे। सभी लोग पोर्ट होकर सीधा वैन की सलाखों के पीछे गये। सलाखों के ऊपर एक बड़ा सा बोर्ड भी टंगा था.... “सलाखों से 1 फिट की दूरी बनाए रखे।”...

वेमपायर पिछले 15 दिनो से भूखे थे इसलिए इतनी हिम्मत बची नही थी कि उठ भी पाते। अल्फा पैक को वैसे भी कहीं भागना नहीं था इसलिए चुपचाप उनके साथ चले जा रहे थे। वैन कई जगहों से होते हुये उन्हे कहीं ले जाकर सीधा ड्राप कर दिया। एक बार फिर सब के सब नीचे गिड़ रहे थे। आंख जब खुली तब सभी लोग किसी अंडरग्राउंड जेल में थे। सर के ऊपर लगभग 800 मीटर की ऊंचाई पर छत था, जो खुलता और बंद होता था।

जैसे ही वो लोग जेल में गिरे लेजर किरणों के वेब में जकर लिये गये और उन्हे ले जाकर कॉफिन से कुछ ही बड़े सेल में पटक दिया गया। हर सेल में एक छोटा बेड, बेड के ऊपर कुछ किताबे, दीवार पर छोटा सा टीवी और कोने में एक छोटा सा कमोड था। जैसे ही आर्यमणि अपने सेल में पहुंचा टीवी पर एक बड़ा सा चेहरा आने लगा.... “मेरा नाम डीवी–कोको–मारुयान–जूनियर–1 है। तुम मुझे कोको कह सकते हो। मैं इस जेल का वार्डन हूं और तुम सब यहां मेरी देख–रेख में हो। 3–3 घंटे की शिफ्ट में तुम लोग माइनिंग करोगे। 1 घंटे का आध्यात्मिक सेशन होगा। 4 घंटे तुम लोग वॉकिंग एरिया में अपने रिस्क पर घूम सकते हो और बाकी के वक्त तुम अपने सेल में रहोगे।”..

आर्यमणि:– मेरे कुछ सवाल है।

जैसे ही आर्यमणि बोला उसके अगले ही पल पूरे सेल के अंदर से घुसे निकले और धमाधाम आर्यमणि को पीट दिया। टीवी पर फिर एक बार वार्डन कोको की आवाज गूंजी.... “और हां यहां तुम्हे चुप रहना का पूरा अधिकार है। जेल के किसी भी अधिकारी से किसी भी प्रकार की बात करने की कोशिश को नियम का उलंघन माना जायेगा और ऐसी सूरत में सजा के तौर पर आपको 8–8 घंटे की शिफ्ट में माइनिंग करनी होगी। पहली बार था इसलिए तुम्हे छोड़ रहा हूं बौने।”

स्क्रीन की आकाशवाणी बंद हो गयी और आर्यमणि खुद से ही बात करते..... “किस मनहूश घड़ी में मैने इनसे मिलने का सोचा।”.... कुछ ही पल में बीते उन एक महीने की कहानी याद आ गयी जब अल्फा पैक अंटार्टिका निर्माण क्षेत्र में पहुंचा था। कुछ दिन की जांच पड़ताल के बाद आर्यमणि ने यही नतीजा निकाला कि... “जमीन के नीचे कोई छिपी दुनिया है और वहां हो सकता है एक विलुप्त प्रजाति, जिसे देखने के दावे आधुनिक वक्त में भी होते रहे है किंतु किसी के पास कोई प्रमाण नहीं।”

पूरा अल्फा पैक ही फिर हिम–मानव और उसकी छिपी दुनिया को देखने के लिये इच्छुक हो गया। कुछ दिन और समय बिताकर कुछ और तथ्य बटोरे गये। पता यह चला की जितने भी टीम अब तक गायब हुई थी, वह निर्माण करने के लिये कुछ न कुछ खुदाई जरूर किये थे। जब तक वहां निर्माण कार्य की शुरवात नही हुई किसी भी प्रकार का हमला नही हुआ था।

तकरीबन महीना दिन तक सारे तथ्यों को ध्यान में रखकर अल्फा पैक ने अंततः हिम–मानवों से मिलने की योजना बना लिया। योजना के अंतर्गत ही चारो ने बर्फ की मोटी सतह पर विस्फोट किया था। हां लेकिन पूर्वानुमान सबका ही पूरी तरह गलत हो गया। अल्फा पैक को लगता था कि हिम–मानव खोह और कंदराओं में छिपकर रहने वाले समुदाय है जो किसी भी सूरत में अपने अस्तित्व को जाहिर नही होने देते।

बाकी सारे तथ्यों का आकलन तो लगभग सही था सिवाय एक के... “हिम–मानव खोह और कंदराओं में रहने वाले लोग है जो आधुनिक सभ्यता से कोसों दूर है।”...हालांकि जब पहली मुलाकात हुई थी और हाथों में ये बड़े–बड़े तलवार लेकर हिम–मानव को हमला करते देखे, फिर कुछ वक्त के लिये आर्यमणि को अपनी थ्योरी पर यकीन हुआ। किंतु यह यकीन ज्यादा देर नहीं टीका। कुछ ही वक्त में पता चल गया की हिम–मानव का समुदाय कितना विकसित है।

पहले तो अजीब से कैद में लगभग डेढ़ महीने बिताये, जहां शायद अल्फा पैक और वेमपायर को परखा गया था। आर्यमणि ने यह भी सह लिया। उसे यकीन था कि जब वह कानूनी प्रक्रिया के लिये अदालत पहुंचेगा तब हिम–मानव समुदाय गंभीरता से उसकी बात सुनेगा। किंतु सारे अरमान मिट्टी में मिल गये क्योंकि बिना किसी सुनवाई के ही सजा हो गयी।

जेल के पहले दिन किसी से कोई काम नही करवाया गया। शाम के 5 बजे सबके सेल खुल गये और हॉल में 4 घंटे घूमने की खुली छूट भी मिली। जिस फ्लोर पर आर्यमणि और बाकियों का सेल था, वहां सभी बौने ही थे। मतलब इंसान थे। अंडाकार बने फ्लोर पर मिलों दूर जहां तक नजर जाये केवल और केवल इंसान ही थे। सभी अपने सेल से एक बार बाहर आये, नीचे हॉल को देखा और वापस अपने सेल में चले गये।

आर्यमणि के ठीक बाजू वाला जो इंसान था, वह उन्ही में से एक था जो पिछले साल अंटार्टिका सर्वे के लिये आया और रहश्मयि तरीके से गायब हो गया था। आर्यमणि अपने दिमाग पर थोड़ा जोड़ डालते.... “ओय सुनो पेड्रो रफ्ता।”.. आर्यमणि 3–4 बार चिल्लाया, कोई सुनवाई नही। आश्चर्य तो यह भी था कि जितने इंसान बाहर निकले थे वो सब एक बार नीचे हॉल को देखने के बाद वापस अपने सेल में घुस चुके थे। सिवाय अल्फा पैक और वेमपायर के, जो पूरा मामला समझना चाह रहे थे। आर्यमणि के आगे जितने भी सेल थी, वहां अल्फा पैक और वेमपायर को रखा गया था।

रूही, आर्यमणि की आवाज सुनकर उसके ओर आयी लेकिन आर्यमणि आंखों के इशारे से उसे चुपचाप हॉल में जाने कहा और खुद उस पेड्रो रफ्ता के सेल के सामने खड़ा हो गया। आर्यमणि जैसे ही खड़ा हुआ बिजली के वेब ने आर्यमणि को जकड़ लिया और सेल के किनारे से कई सारे मुक्के निकालकर आर्यमणि पर धमाधम हमला कर दिया। आर्यमणि मुक्के खाते.... “हेल्लो पेड्रो मैं आर्यमणि हूं। वहीं निर्माण करने आया था जहां से तुम गायब हुये थे।”...

पेड्रो, आर्यमणि को इशारों में समझाया की वह कुछ बोल नहीं सकता। आर्यमणि उसकी मजबूरी समझते.... “देखो मैं नही जानता की तुम किस मजबूरी से नीचे हॉल में नही जा रहे। लेकिन विश्वास मानो, यदि हॉल में अपनी मर्जी से घूमना रिस्क है तो आज ये रिस्क दूसरे उठाएंगे। यदि इस जेल से बाहर निकलना चाहते हो तो नीचे हॉल तक चलो।”...

आर्यमणि को लगातार मुक्के पड़ते रहे। वह फिर भी पेड्रो से बात करता रहा। अपना प्रस्ताव रखने के बाद आर्यमणि कुछ देर और वहां खड़ा होकर मुक्का खाता रहा, लेकिन पेड्रो बाहर आने की हिम्मत नही जुटा पाया। अंत में आर्यमणि उस से एक बार नजर मिलाया और जैसे ही वहां से आगे बढ़ने लगा, पेड्रो भी अपने सेल से निकला और चुपचाप आर्यमणि के आगे बढ़ गया।

दोनो जब सीढ़ियों पर थे तब पेड्रो अपना मुंह खोला.... “संभवतः तुम लोग आज ही इस जेल में आये होगे और नीचे तुम्हारे साथी होंगे।”...

पेड्रो हॉल के उस हिस्से को दिखा रहा था जहां हिम–मानव की भिड़ लगी हुई थी और उस भिड़ के बीच न तो अल्फा पैक और न ही बेमपायर कहीं नजर आ रहे थे। आर्यमणि उस ओर देखते..... “पुराने कैदी, हम नए कैदियों की रैगिंग ले रहे है क्या?”..

पेड्रो:– हां खतरनाक तरीके की रैगिंग जो तब तक झेलनी होगी जब तक हम यहां की जेल में है। यहां से निकलने के बाद किसी बिग–फूट (हिम–मानव का अमेरिकन नाम) के घर पर जिल्लत भरी नौकरी करनी होगी।

आर्यमणि:– अच्छा तुम अदालत गये थे क्या?

पेड्रो:– नही... एक बड़े से टावर पर 4 दिन भूखे–प्यासे रखने के बाद सीधा इस जेल में पटक दिया। यहां महीने दिन की सजा काटने के बाद कोर्ट का ऑर्डर डाकिया लेकर आया था, जिसमे मुझे 5 साल की कैद मिली और उसके बाद सीधा एक पते पर जाना होगा जिसके घर में मुझे नौकर का काम मिला है। वहां साफ लिखा था जेल से निकलने के बाद हम पूरे देश में आजादी से रह सकते हैं, बस अपने जैसे बौने इंसान पैदा नही कर सकते।

आर्यमणि:– हम्मम... और नीचे हॉल की क्या कहानी है?

पेड्रो:– जब तक मुंह बंद रखोगे तब तक बेज्जत करते रहेंगे। यदि कहीं मुंह खुल गया तो बेज्जत करने के साथ–साथ मारते भी है। इनका मारना तब तक नही रुकता जब तक मरने की नौबत नही आ जाती।

दोनो बात करते हुये हॉल के विभिन्न हिस्सों से गुजर रहे थे। जहां से भी गुजरे हिम–मानव उन्हे घूर रहे थे। आर्यमणि भिड़ के बीच से रास्ता बनाते पेड्रो के साथ कुर्सी पर बैठा। बैठने के बाद पेड्रो से एक मिनट की इजाजत लेते..... “रूही इतनी भीड़ क्यों है।”...

“ये लो इन बौनों का मुखिया आ गया। तेरी ये छमिया रूही सबसे पहले स्ट्रिप डांस करेगी। उसके बाद जितनी भी लड़कियां हैं वो एक–एक करके सामने आयेगी। तू इन सबके कपड़े बटोरेगा।”.... भिड़ से एक हिम–मानव बोला और बाकी सब हंसने लगे।

आर्यमणि:– अल्फा पैक मुझे पेड्रो के साथ इत्मीनान से बात करनी है, आसपास की भिड़ खाली करो....

“ए चुतिये तू क्या बोला?”.... कोई हिम–मानव बोला। इधर उसकी आवाज बंद हुई उधर इवान ने हिम मानव के पाऊं पर ऐसा लात जमाया की उसके हाथी समान मोटे पाऊं के हड्डियां टूटने की आवाज सबको सुनाई दी। दर्द बिलबिलाते जैसे ही वह नीचे बैठा, अलबेली अपने दोनो पंजे से उसके थुलथुला पेट के मांस को जकड़ ली और पूरी ताकत से अपने सर के ऊपर उठाकर दूर फेकती.... “मेरे बॉस ने कहा तुम चूतियो को दूर फेकना है।”

“मारो... मारो... मारो... मारो इन बौनों को।”..... भिड़ चिल्लाई... अल्फा पैक दहाड़े और फिर जो ही लात और घुसे की बारिश हुई। साइज में इतने बड़े थे की रूही, अलबेली और इवान उनके लात–हाथ के नीचे से निकलकर लात और घुसे बरसा रहे थे। जहां कहीं भी उनका लात और घुसा पड़ता अंग भंग हो जाता। दर्द से बिलबिलाने की आवाज चारो ओर से आने लगी।

उनका दर्द से बिलबिलाना सुनकर दूसरे फ्लोर के सारे इंसानी कैदी अपने सेल से बाहर आ गये और वहां का नजारा देखकर तेजी से हॉल के ओर दौड़ लगा दिये। हॉल के चारो ओर सिटियां बजने लगी। लोगों की हूटिंग होने लगी। वैसे यहां हिम–मानव कैदियों की कमी नही थी लेकिन अल्फा पैक अपने चैरिटी में कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे।

आर्यमणि अपने पास निर्जीव समान बैठे सभी वेमपायर को देखते...... “नयोबि तुम्हे और तुम्हारी टीम को क्या हो गया?”...

नयोबि:– हम किस मुंह से माफी मांगे। तुम हम पर भरी थे। तुम सब भी भूखे थे। मांस फाड़कर उन्हे कच्चा चबा जाना तुम्हारा नेचर है। बावजूद इसके हमें जिंदा छोड़ दिये।

आर्यमणि:– सुनो नयोबि, पहली बात तो ये की अल्फा पैक वेजिटेरियन है। दूसरी बात हम तुम्हारे खून की प्यास को समझ सकते थे। अल्फा पैक जानती थी कि तुम जो खून पी रहे उसे तुम अपने लैब में कृत्रिम तरीके से बनाते हो। न की किसी इंसान या जानवर का खून पीते हो। इसलिए चिल मारो और जाकर अल्फा पैक की मदद करो यार। तोड़ो सालों को, और तोड़ने में कोई रहम मत करना... तब तक मैं अपने मेहमान पेड्रो से कुछ बात कर लूं। हां पेड्रो आगे कोई जानकारी...

पेड्रो:– बस इतना ही की ये लोग हमें किसी भी सूरत में अपनी दुनिया से बाहर नही जाने देंगे।

आर्यमणि:– ऐसे कैसे यहां से जाने नही देंगे, वो तुम मुझ पर छोड़ दो। तुम तो बस यहां की जानकारी साझा करो...

पेड्रो:– “हम लोग जहां है वह हीरो की खान है। यहां पर नायब किस्म के हीरे पाये जाते है, जिनका इस्तमाल ये लोग बड़े–बड़े बिल्डिंग बनाने में करते हैं। यूं समझ लो पूरे अंटार्टिका महाद्वीप ही इनका पूरा देश है। इनके पूरे देश में केवल गोमेद नदी के तट से लगे हिस्से से सूरज की रौशनी आती है, और वही रौशनी फिर इन हीरे के जरिए पूरे देश में फैलता है। यूं समझ लो की इन लोगों के पास सूर्य ऊर्जा को फैलाने का कृत्रिम टेक्नोलॉजी है।”

“पूरे देश को 5 हिस्से में बांट दिया गया है। मध्य हिस्सा को पीक राज्य कहते है। क्षेत्रफल में सबसे बड़ा और रोलफेल देश की राजधानी।मध्य भाग के अलावा चार और भाग है, जो ईस्ट, वेस्ट, नॉर्थ और साउथ में बटे है। ईस्ट राज्य को वॉल ईस्ट राज्य पुकारते है। वेस्ट राज्य को डुडम राज्य, नॉर्थ को हिमगिरि और साउथ को ब्रुजानो। यहां कुल 78 करोड़ बिग–फूट आबादी बसती है। यहां एक लाख इंसानी आबादी भी है, लेकिन वो सब अंटार्टिका में रिसर्च करने आये टीम के बंधक है, जिन्हे फिर कभी अपने प्रांत का मुंह देखना नसीब नही होगा।”

“बात यदि बिग–फूट की करे तो बस ये लोग इंसानों के मुकाबले बड़े साइज के है बाकी है ये भी इंसान ही और तकनीक रूप से काफी उन्नत। वैसे बाहुबल और सुरक्षा के लिहाज से भी रोलफेल देश काफी उन्नत है। क्राइम यहां काफी कम है इसलिए पूरे देश में मात्र 26 जेल है, जिसमे सबसे बड़ा जेल यही है। मेरे पास जितनी जानकारी थी वह मैने साझा कर दिया।”

आर्यमणि उसे हैरानी से देखते.... “भाई तू भी मेरी तरह टावर से सीधा जेल आ गया फिर इतनी जानकारी कहां से जुटा लिया।”..

पेड्रो:– मैं सीआईए का एक इन्वेस्टिगेटिंग ऑफिसर हूं। मेरी एजेंसी मुझे जानकारी जुटाने के ही पैसे देती है। दरसल साल में 60 दिन बिग–फूट कैदी जेल से बाहर जाते है। उन 60 दिनो में बहुत से पुराने इंसानी कैदीयों से मुलाकात हुई। उनमें से कुछ तो तीसरी या चौथी बार सजा काट रहे थे... बस उन्ही लोगों से सारी जानकारी जुटाई है...

आर्यमणि:– कमाल ही कर दिया। अब जरा बैठ जाओ, और खेल का आनंद लो...

आर्यमणि पेड्रो को छोड़ा और रण में कूदा। अल्फा पैक पहले से ही कइयों की चीख निकाल चुके थे। लेकिन वो कई हिम–मानव इकट्ठा भिड़ के मुकाबले चंद ही थे। आर्यमणि अपनी तेज दहाड़ से सबका ध्यान अपनी ओर खींचा और उसके बाद तो बड़े–बड़े साइज के वजनी मानव ताश के पत्तों की तरह पहले हवा में उड़े और फिर नीचे जमीन पर बिछ गये।

आर्यमणि उनके मुकाबले साइज में इतना छोटा था की मात्र उनके कमर तक आ रहा था। लेकिन दौड़ते हुये रास्ते में आने वाले हर हिम–मानव को अपने कंधे से इतना तेज धक्का मरता की वह हवा में ऊपर उड़ जाते और कर्राहते हुये नीचे लैंड करते। अगले चार घंटे तक यही खेल चलता रहा। और जब हॉल में घूमने का समय समाप्त हुआ तब लगभग 40 हजार हिम–मानव घायल कर्राह रहे थे। वहां की हालत किसी उजड़े स्थान से कम न था।

जैसे ही समय समाप्त होने की घोषणा हुई। सभी कैदी अपने–अपने सेल में चले गये। सिवाय घायल हिम–मानव और अल्फा पैक के। आर्यमणि अपने पैक को एक नजर देखते..... “जड़ों के बीच से सबको हील करो ताकि इनकी ये फालतू लेजर वाली बेब हमें कहीं भी पोर्ट न कर सके।”

आर्यमणि का हुक्म और अगले ही पल पूरे अल्फा पैक जड़ों में ढंके थे। लगभग 4 किलोमीटर लंबा जेल का वह पूरा हिस्सा था जिसमे चारो ओर जड़ें फैल गयी और फैलने के बाद हर घायल को जकड़ लिया। जैसे–जैसे घायल हील होते जा रहे थे उनके ऊपर से जड़ें हटती जा रही थी। वो लोग जैसे ही खड़े होते सीधा भागकर अपने सेल में पहुंचते।

लगभग एक घंटे तक सबको हील करने के बाद अल्फा पैक भी अपने सेल में थे। अगले दिन सुबह के ठीक 6 बजे सबके सेल खुल गये। एक बार फिर तकनीकी गुणवत्ता का परिचय देते हुये सभी कैदियों को लाइट द्वारा पोर्ट करके सीधा माइनिंग एरिया में भेज दिया गया।

प्रचुर मात्रा में धातु और खनिज के भंडार थे। किंतु वहां न तो किसी भी प्रकार के खनिज और न ही धातु की खुदाई करनी थी। बल्कि माइनिंग एरिया के किसी एक पॉइंट पर पटक दिया गया था। वहां से करीब 8 किलोमीटर का रास्ता तय करने के बाद जहां पहुंचे वहां का नजारा देखकर आंखें चौंधिया गयी। बड़े–बड़े क्रिस्टलनुमा पहाड़ खड़े थे। उन पहाड़ों को ही तोड़कर जमा करना था। अल्फा पैक बड़ी ही तेजी के साथ खुदाई कर रहे थे। चारो अन्य मजदूरों के मुकाबले 10 गुणा ज्यादा तेज गति से काम कर रहे थे।

काम करते हुये 3 घंटे पूरे हो गये लेकिन ये चारो अभी और काम करना चाह रहे थे इसलिए वापस गये ही नही। शिफ्ट जब बदल रही थी इसी बीच सबसे नजरें चुराकर आर्यमणि खुदाई के दौरान चुराये हुये अलग तरह के दिख रहे क्रिस्टल के बड़े टुकड़े को अपने पास से निकाला और पलक जिस हिसाब से सिखाई थी, बिलकुल उसी हिसाब से 2 जोड़ी पत्थर तराशकर सबके एमुलेट में डाल दिया।

रूही:– ये किस प्रकार का पत्थर है, आर्य।

आर्यमणि:– मुझे नही पता की यह किस प्रकार का पत्थर है, लेकिन जिस प्रकार का भी है, है यह दुर्लभ पत्थर। सबके एमुलेट में 2 जोड़ी पत्थर डाल दिया हूं। चलो देखा जाये इन पत्थरों के प्रयोग से क्या नया देखने मिलता है?

आर्यमणि ने जैसे ही शक्ति परीक्षण के लिये कहा अल्फा पैक के सभी सदस्य तैयार हो गये। हर कोई अपने एम्यूलेट को हाथ लगाकर मंत्र पढ़ा और फोकस केवल नये पत्थर ही थे।मंत्र पढ़ने के बाद हर किसी ने सभी विधि कोशिश कर लिया लेकिन कोई भी जान न सके की उन पत्थरों में ऐसा क्या खास था। किसी भी प्रकार की नई चीज उभरकर सामने नही आयी।

खैर वक्त कम था इसलिए बचे हुये लगभग 150 तराशे पत्थर को सबने अपने–अपने एम्यूलेट में छिपाया और काम पर लग गये। अल्फा पैक अपना दूसरा शिफ्ट भी शुरू कर चुके थे। बिना रुके लगातार काम करते रहे और 6 घंटे की ड्यूटी बजाने के बाद लगभग 1 बजे अपने सेल में थे।

रोज की तरह ही शाम को 5 बजे सबके सेल खुले। आज भी कल जैसा ही नजारा था। सभी इंसान बाहर आये एक बार हॉल के देखा और वापस अपने सेल मे। केवल वह सीआईए ऑफिसर पेड्रो ही था जो अल्फा पैक और वेमपायर के साथ नीचे हॉल तक जाने की हम्मत जुटा सका। आज जितने भी हिम–मानव थे इनसे दूरियां बनाकर ही चल रहे थे।
Shaandaar 👍👍👍
 

Devilrudra

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भाग:–141


आर्यमणि अपने बड़े से ग्रुप के साथ बैठा। हर कोई बस इधर–उधर की बातें ही कर रहा था। तभी हिम–मानव का एक छोटा सा समूह आर्यमणि के नजदीक पहुंचा। उसका मुखिया आगे आते.... “मेरेको पहचाने की नही।”

आर्यमणि:– भोसला तुम, वहां छत पर तो हमे बोलने से मना किये था।

भोसला वही अपराधी था जो हिम–मानव के देश रोलफेल पर सबसे पहले मिला था। भोसला, आर्यमणि के ओर हाथ बढ़ाते.... “अपन तो बस ऐसे ही बोल दिया, दिल पर नही लेने का।”

रूही:– यहां आने का कारण बताओ भोसला....

भोसला:– दबंग लोगों के पास आने का क्या कारण होता है। उनकी गैंग में सामिल होना।

आर्यमणि:– तुम्हे सामिल करने से मेरा क्या फायदा होगा?

भोसला:– हम मिलकर यहां की सत्ता को हिला देंगे। तुम्हे अपने देश लौटना है और मुझे अपने लोगों के लिये सतह तक जाने की आजादी चाहिए। दोनो की मांगे एक ही तरह की है, तो क्यों न साथ मिलकर काम किया जाये।

आर्यमणि:– देखो दोस्त ऊपर सतह पर नही जाने देने का निर्णय यहां के सत्ता और प्रशासन का निजी मामला है और मैं कानून का उलंघन नही कर सकता। और न ही मैं यहां अपने ताकत के दम पर किसी को झुकाने आया हूं। हमे बस इस जगह से बाहर जाना है।

भोसला:– बाहर जाने के लिये सतह पर जाना होगा न। इसमें मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूं।

आर्यमणि:– तुम्हारा धन्यवाद। मैं यहां के अदालत में अपील करूंगा और मुझे विश्वास है कि वहां मुझे गंभीरता से सुना जायेगा। अब तो यहां से कानूनी तरीके से ही बाहर जायेंगे।

भोसला यथा संभव आर्यमणि को मानने की कोशिश करता रहा लेकिन आर्यमणि अपने विचारों का पक्का था, वह नही माना। भोसला अंत में खाली हाथ ही वहां से लौटा। भोसला के जाने के बाद एक बार फिर आर्यमणि अपने ग्रुप के साथ बात–चित में लग गया। कुछ समय और बीता होगा की सबने जैसे मेहसूस किया की वह जगह पूरी तरह से शांत हो गयी हो। ऐसा हो भी क्यों न उस जेल का वार्डन कोको अपने कुछ लोगों के साथ वॉकिंग एरिया में पहुंच चुका था। कोको के वहां पहुंचते ही बिलकुल सन्नाटा पसर गया हो जैसे। हिम–मानव की आवाज बिलकुल बंद और मिलो तक फैले उस वॉकिंग एरिया में जितने भी अपराधी थे, सब सीधा अपने सेल में चले गये।

आर्यमणि:– अचानक यहां इतनी शांति क्यों पसर गयी?

रूही, कोको के ओर उंगली करती.... “जेल के वार्डन को देखकर सब अपना मुंह बंद करके भाग गये।

कर्नल नयोबि:– पहला जेल है जहां चांद मुट्ठी भर सिपाही को देखकर लाखों अपराधी अपना मुंह बंद करके भाग गये। इतना दबदबा...

“अभी तुमने हमारा दबदबा देखा ही कहां है खून पीने वाले कीड़े। तुम मेरी जेल में बोल रहे हो, उसमे भी केवल मेरी मर्जी है।”... रूबाब और गुरूर के साथ कोको अपनी बात कहता उन तक पहुंचा। पहुंचने के साथ ही आर्यमणि को घूरते.... “सुनो रूप बदल इंसान, कल तुमने यहां जो कुछ भी किया वह हमारे समझ से पड़े था। मुझे बताओ कैसे तुम लोग जड़ों के बीच छिप गये और हमारे समुदाय के लोगों को भी जड़ों में कैद करके ना जाने उनके साथ क्या किये?”

आर्यमणि:– क्यों तुम्हारे कैदियों ने कुछ बताया नही की उनके साथ पहले क्या हुआ और जड़ों की कैद से जब रिहा हुये तब क्या सोच रहे थे।

जेल का वार्डन कोको..... “यदि किसी एक कैदी को उधारहण माने जैसे कि कुरुधा। कुरूधा को सबसे पहले मार पड़ी थी। उसके पाऊं पर मानो किसी हथौड़े को पटका गया था। मल्टीपल फ्रैक्चर ठीक होने में कम से कम 6 महीने का वक्त लगता। उसके पाऊं तोड़ने तक भी तुम्हारे साथी नही रुके। तकरीबन 4 क्विंटल के हिम–मानव को तुम्हारी वो बौनी लड़की ने दोनो हाथ से उठाया और किसी बॉल की तरह एक किलोमीटर दूर फेंक दी। नतीजा स्पाइनल कॉलम की हड्डियां इधर–उधर हो गयी। 8 पसलियां गयी। पसलियों को ठीक होने में कम से कम 3 महीने का वक्त लगता और स्पाइन की हड्डियां बनती भी या नहीं, वो तो डॉक्टर ही बता सकता था। जब कुरुधा जड़ों की कैद से निकला तब वह पूर्ण रूप से स्वस्थ होकर निकला था। बस मुझे यही तो जानना है, ये हुआ कैसे?”

आर्यमणि:– मेरे लोगों को इस अजीब से देश रोलफेल से बाहर निकालो, फिर मैं तुम्हे बता दूंगा।

कोको:– रोलफेल से बाहर निकालना मेरे हाथ में नही। लेकिन इस जेल से बाहर निकालकर तुम्हारी मुलाकात उनसे करवा सकता हूं, जो तुम्हे इस देश से बाहर निकाल सकते हैं।

आर्यमणि:– बदले में तुम्हे क्या चाहिए कोको।

कोको:– बस मुझे इन जड़ों की कहानी समझा दो।

आर्यमणि:– हम पेड़, पौधे, जमीन, हवा इत्यादि अपने पंजों से हील कर सकते हैं। इस से प्रभावित होकर प्रकृति ने हमें एक खास शक्ति प्रदान की है। हम किसी भी जगह से जड़ों को बाहर ला सकते हैं और उनसे अपने मनचाहा काम निकलवा सकते हैं। जैसे की किसी को जड़ों में बांध देना। जड़ों के द्वारा एक साथ कई लोगों को हील कर देना वगैरह वगैरह।

कोको:– अदभुत शक्ति... ठीक है तुम और तुम्हारे लोग मेरे पीछे आओ। मैं तुम सबको यहां से बाहर निकालता हूं।

आर्यमणि उस वार्डन कोको के पीछे चल दिया। कुछ दूर चलने के बाद वार्डन ने एक दरवाजा का सिक्योरिटी लॉक खोला। अंदर से कई सारे सिंगल सीटर गाडियां निकली जैसा की गोल्फ फील्ड में अक्सर देखने मिलता है। आर्यमणि का पूरा ग्रुप उस गाड़ी पर सवार होकर कोको के पीछे चल दिया। कोको की गाड़ी लगभग 5 किलोमीटर दूर तक चली। उसके आगे एक बड़ा सा दरवाजा था। कोको के लोग तुरंत ही उस दरवाजे को खोले। दरवाजा खुलते ही जेल का दूसरा हिस्सा दिखने लगा।

जेल का दूसरा हिस्सा भी अंडरग्राउंड ही था किंतु यहां से कैदियों का मैनेजमेंट होता था। तकरीबन 6000 गार्ड और लाखों गैजेट चारो ओर फैले थे। कोको की गाड़ी इन सब इलाकों से गुजरते हुये फिर किसी दरवाजे पर रुकी। कोको के लोगों ने उस दरवाजे को खोला और वो लोग कोको से अलग होकर अपने काम पर लग गये। कोको दरवाजे के अंदर हाथ दिखाते... “ये मेरा घर, ऑफिस जो कह लो। यहीं मैं तुम्हे उनसे मिलवाऊंगा जो तुम्हे इस देश से बाहर निकाल सकते है।”

रूही, आर्यमणि को देखकर मन के अंदर संवाद करती... “इसके इमोशंस भी इंसान की तरह ही है, जिसका झूठ हम सब मेहसूस कर रहे। फिर इतनी दूर आने का मतलब?”...

आर्यमणि:– वार्डन ही जेल से निकलने का एकमात्र जरिया है। मैं आराम से इस फरेबी की योजना समझता हूं, तुम लोग चौकन्ने रहना और हर बारीकियों पर गौर करना। भूलना मत हम हीरों और नायब पत्थरों के देश में है। हो सकता है इस वार्डन के बल के पीछे खास किस्म के पत्थर का योगदान हो, तभी तो लाखों अपराधी चुप चाप अपने सेल में चले गये।

रूही:– हम्मम ठीक है जान तुम भी चौकन्ने रहना। साला ये पूरी पृथ्वी ही झूठों और फरेबियों से भरी पड़ी है।

कोको:– किस सोच में पड़ गये अंदर नही आओगे क्या?

कोको ने हाथों का इशारा किया और सभी लोग अंदर दाखिल हुये। जैसे ही सभी अंदर दाखिल हुये मात्र 4 लोग बचे। पीछे से वेमपायर और उसकी टीम अंदर घुसते के साथ कहां गयी किसी को पता ही नही चला। बिलकुल नजरों के आगे से जिस प्रकार संन्यासी शिवम गायब हो जाते थे, ठीक उसी प्रकार वेमपायर की टीम के साथ हुआ।

आर्यमणि, आश्चर्य से जेल के वार्डन कोको को देखने लगा। हैरानी की बात तब हो गयी जब अल्फा पैक से ज्यादा हैरान तो वार्डन कोको था। अल्फा पैक को समझते देर न लगी की गायब तो सबको किया गया था, परंतु किसी कारणवश अल्फा पैक गायब नही हुये।

“यहां अभी हुआ क्या? कैसे उन 19 लोगों को आपने जादू से गायब कर दिया?”..... आर्यमणि बिना अपने हाव–भाव बदले पूछा...

अल्फा पैक भी घोर आश्चर्य के बीच.... “कमाल, वाह–वाह क्या कलाबाजी है, वूहु, वाउ” जैसे शब्दों का प्रयोग करके कोको का हौसला अफजाई करने लगे। कोको भी अपनी हैरानी को अपने बेवकूफाना मुश्कुराहटों के पीछे छिपाकर.... “अरे कभी–कभी हम ऐसे ट्रिक कर लेते हैं।”...

आर्यमणि:– बहुत प्यारा जादू। चलो अब मेरे साथियों को जादू से वापस लेकर आओ।

कोको:– मैं, वो ... अभी एक मिनट दो... अम्म्म्म... एक काम करो.... तुम लोग अब वापस जाओ, बाद में वो लोग भी पहुंच जायेंगे।”

कोको अपनी हिचकिचाहटों के बीच लगातार अल्फा पैक को भी पोर्ट करने की कोशिश कर रहा था लेकिन वो लोग पोर्ट हो नही रहे थे। हां जब भी कोको पोर्ट का कमांड देता, अल्फा पैक का एम्यूलेट चमकने लगता। सभी अपने कपड़ों के पीछे छिपे एम्यूलेट के बदलाव को मेहसूस कर सकते थे।

आर्यमणि:– क्या हुआ कोको, इतनी हिचकिचाहट के साथ पसीने क्यों आ रहे है?

इस से पहले की कोको कुछ जवाब देता। 19 नीले रंग की रौशनी की लकीरें कोको के सीने से कनेक्ट होकर उसके सामने लगी। कोको अपने दोनो बांह फैलाकर उस रौशनी को अपने भीतर स्वागत करने लगा। अलबेली यह पागलपन देखकर.... “दादा (आर्यमणि) यहां चल क्या रहा है?”...

आर्यमणि:– मुझे भी उतना ही पता है जितना तुम्हे अलबेली। अब रौशनी का खेल खत्म हो तब न इस गधे से कुछ पूछूं।

इवान:– जीजू 19 वेमपायर को गायब किया था और 19 रौशनी की लकीरें भी है।

आर्यमणि:– हां यार... कहीं ये पागल, नयोबि और उसकी टीम को निगल तो नही रहा।

इवान:– हो सकता है। जीजू नयोबि मरा फिर तो कैरोलिन के साथ–साथ बेमपायर नयोबि का बदला लेने भी पहुंच जायेंगे। इस बार तो सबको पता होगा की नयोबि किसके साथ था।

रूही:– सब शांत हो जाओ। रौशनी की लकीरें समाप्त हो रही है।

लगभग एक मिनट तक रौशनी कोको के अंदर समाती रही। जैसे ही कोको पूरी रौशनी समेटा, उसकी आंखें नीली हो चुकी थी। हाथों के पंजे से क्ला निकल आये और मुंह फाड़ा तो अंदर नुकीले दांत। कोको का शरीर भी मेटलिक दिख रहा था जो जलते हुये मेटल समान बिलकुल लाल था। तेज गरज के साथ कोको अल्फा पैक को घूरते.... “कास तुम चारो की शक्तियां भी मैं अपने अंदर समा सकता। लेकिन कोई न, तुम्हारी शक्तियां मेरी न हुई तो न सही, तुम्हारे पास भी नही रहने दूंगा। तुम सबको मरना होगा।”...

आर्यमणि:– बैठकर बात कर लेते है यार। ये मरने और मारने की बातें क्यों। साथ मिलकर काम करेंगे...

कोको:– मैं अकेला ही काम करता हूं। मुझे किसी निर्बल की जरूरत नहीं...

कहते हुये कोको ने अपना बड़ा सा पंजा आर्यमणि पर चला दिया। एक तो कोको का साइज डबल ऊपर से उसके चौड़े पंजे। आर्यमणि, कोको के हमले से बचने के लिये काफी तेज झुका और गुलाटी मारकर दूर गया। कोको अपना लंबा वजनी शरीर के साथ अब काफी ज्यादा तेज भी हो चुका था। इतना तेज की वह अपने एक हाथ के तेज पंजे से एक बार में रूही और अलबेली को घायल कर चुका था। बचने की तो दोनो ने पूरी कोशिश की किंतु बच ना पायी।

बड़े–बड़े नाखून शरीर के जिस हिस्से में लगे वहां 4 इंच गहरा गड्ढा हो गया और उसके बीच का मांस क्ला के अंदर घुसा था। रूही और अलबेली की दर्द भरी चीख निकल गयी। दोनो को घायल देख इवान पागलों की तरह दहाड़ते हुये छलांग लगा चुका था। इवान अपना पंजा खोल कोको के चेहरे को निशाना बनाया वहीं कोको का पंजा इवान का गर्दन देख रहा था। इस से पहले की दोनो एक दूसरे पर हमला करते बीच से आर्यमणि छलांग लगाया और इवान को अपने बाजुओं में समेटकर कोको से काफी दूर किया।

इवान खड़ा होकर तेज दहाड़ा। उसकी दहाड़ के जवाब में आर्यमणि भी दहाड़ा। इवान अपनी जगह बिलकुल शांत था लेकिन तभी कोको का पूरा पंजा आर्यमणि के पीठ को 5 लाइन में फाड़ चुका था। आर्यमणि के मुंह से बस चीख नही निकली लेकिन दर्द के कारण आंखों के दोनो किनारे पानी भर गया था।

दूसरा हमला हो, उस से पहले ही आर्यमणि ने इवान को दूर धकेला और तेजी से सामने मुड़कर खड़ा हो गया। कोको भी एक हमला के बाद दूसरा हमला कर दिया। कोको ना जाने कितने हिम–मानव की शक्तियों को बटोर चुका था। अब तो उसमे वेमपायर की शक्तियां भी थी। लिहाजा उसका हमला काफी ताकतवर था।

किंतु पैक के घायल होने की वजह से आर्यमणि के खून का हर कतरा उबाल मार रहा था। आर्यमणि पर गुस्सा पूरा हावी हो चुका था। अपने ओर बढ़े डेढ़ फिट लंबा और आधा फिट चौड़ा पंजे पर अपना पंजा चला दिया। दोनो के पंजे ठीक वैसे ही टकराये जैसे दो लोग आपस में तली देते हो। लेकिन ये ताली पूरी ताकत से बजाया गया था।

जैसे ही दोनो के पंजे टकराए थप की इतनी गहरी ध्वनि निकली की उस बिल्डिंग की दीवारों में क्रैक आ गया। दोनो की हथेली झूल गयी और कलाई की हड्डी चूड़–चूड़ हो चुकी थी। आर्यमणि दर्द बर्दास्त करते अपने दूसरे हाथ के पंजे से कलाई को थमा और बिना वक्त गवाए खुद को हील किया। वहीं कोको दर्द से बेहाल अपना कलाई पकड़ा था, पर वह खुद को हील नही कर सकता था।

कोको अपने ही दर्द में था और आर्यमणि हील होने के साथ ही बिना कोई रहम दिखाये तेज दौड़कर उछला और पूर्ण एनर्जी पंच चला चुका था। कोको भी अपने ऊपर हमला होते देख चुका था। वह भी दूसरे हाथ से तेज मुक्का चलाया। सीन कुछ ऐसा था कि 15 फिट के आदमी के सामने 6 फिट का आर्यमणि हवा में ठीक सामने था। ऐसा लगा जैसे कोई बच्चा उछलकर अपने छोटे से हाथ से कोको के ऊपर हमला कर रहा हो।

कोको भी अपना पंच को ठीक आर्यमणि के मुक्के के ऊपर चलाया था। दोनो के मुक्के आपस में टकराये। आर्यमणि का मुक्का इतना छोटा था कि वह कोको के मुक्के के थी बीच में पड़ा। दोनो के टकराने से एक बार फिर विस्फोट जैसी आवाज हुई। और क्या परिणाम निकल कर आया था।

जैसे रेत के बने मुक्के पर किसी ने पूरी ताकत के साथ हथौड़ा चला दिया हो। आर्यमणि का मुक्का कोको के हाथ को पूरा फाड़ते हुये आगे बढ़ा। हाथ का मांस, लोथरे के समान लटक गये। बीच की पूरी हड्डी पाउडर समान कण में बदलकर हवा में बिखर गयी। पंजा इतना तेज था की हाथ को फाड़ते हुये सीधा बायें कंधे पर लगा और ऐसा नतीजा हुआ जैसे किचर के मोटे ढेर पर किसी ने 10 मंजिल ऊपर से एक ईंट गिरा दिया हो।

जैसे ही आर्यमणि का मुक्का कोको के कंधे से टकराया वहां का पूरा हिस्सा ही फुहार बनकर हवा में मिल गया। कोको के ऊपरी शरीर के बाएं हिस्से का पूरा परखच्चा उड़ा डाला। एनर्जी पंच इतना खरनाक था कि कोको के मौत की चीख निकलने से पहले ही उसकी मौत आ चुकी थी। सर तो धर पर ही था, लेकिन कमर तक के बाएं हिस्सा गायब होने की वजह से गर्दन बाएं ओर के हिस्से में ऐसे घुसी थी कि धर पर सर नजर ही नहीं आ रहा था।
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Devilrudra

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भाग:–142


जैसे ही आर्यमणि का मुक्का कोको के कंधे से टकराया वहां का पूरा हिस्सा ही फुहार बनकर हवा में मिल गया। कोको के ऊपरी शरीर के बाएं हिस्से का पूरा परखच्चा उड़ा डाला। एनर्जी पंच इतना खरनाक था कि कोको के मौत की चीख निकलने से पहले ही उसकी मौत आ चुकी थी। सर तो धर पर ही था, लेकिन कमर तक के बाएं हिस्सा गायब होने की वजह से गर्दन बाएं ओर के हिस्से में ऐसे घुसी थी कि धर पर सर नजर ही नहीं आ रहा था।

आर्यमणि अपने हाथों पर लगे खून को साफ करते..... “तुम सब ठीक तो हो ना?”

रूही:– हां हम सब हील हो चुके है। तुम्हारी पीठ का क्या हाल है?

आर्यमणि:– शायद हील हो चुका हूं। दर्द नही अब। चलो चलकर नयोबि और उसकी टीम को ढूंढे। मर भी गये हो तो उनकी लाश को ऊपर सतह तक लेकर जाना जरूरी है।

अभी इनकी इतनी ही बातें हुई थी कि कोको के उस ऑफिस का दरवाजा खुल चुका था। किसी ऑफिसर की ड्रेस में भोसला सबसे आगे खड़ा था और उसके पीछे 100 हिम–मानव सेना की टुकड़ी। आर्यमणि और रूही दोनो भोसला को देखने लगे..... “ऐसे हैरानी से नही देखने का। मैं हूं कमांडर इन चीफ भोसला और जाने–अनजाने में तुमने मेरी मदद कर दी है।”...

आर्यमणि:– हां सो तो मैं इस जेलर और तुम्हारे पोस्ट को देखकर समझ चुका हूं कि तुम किसके पीछे थे। वैसे ये जेलर इतना खतरनाक था कि सेना के इतने बड़े अधिकारी को आना पड़ा?

भोसला:– “अरे मत पूछिए आर्यमणि सर, इसने अब तक मेरे 1200 जवानों को ऐसा निर्बल करके अपने इस फैक्टरी से बाहर भेजा की वो फिर कभी बाप बनने लायक नही रहे। पहुंच तो सीधा सेंट्रल मिनिस्ट्री तक की थी। इसका चाचा काउंसिल मिनिस्टर, हमारे हर मूवमेंट की खबर इसे पहले से होती। यहां सबूत के नाम पर ढेला तक नही मिलता। इसने इतने इन्वेस्टिगेशन ऑफिसर को नपुंसक बनाकर भेजा की गुस्से में इसे मरवाने के लिये साजिश तक रच डाले।”

“लेकिन पता नही इस कोको ने कितनी शक्ति अर्जित कर रखी थी, कोई इसे छू भी नहीं पाया। ऊपर से अंडर कवर ऑपरेशन में आज तक इसके गुनाहों का कोई भी सबूत नही मिला क्योंकि जब भी कोई टीम इसके ऑफिस में घुसने के बाद सबूत जुटने की कोशिश किये वो फिर अपने अंदर के खोये शक्ति को वापस जुटा नही पाये। खैर अब तुम लोग बाहर आ जाओ, हम जरा इसके खिलाफ सबूत जुटा ले, वरना तुम पर एक सरकारी अधिकारी को मारने का मुकदमा चलेगा।

आर्यमणि:– और मेरे लोग (नयोबि और उसकी टीम) जिसे इसने कहीं गायब कर दिया है?

भोसला:– चिंता मत करो वह सुरक्षित है। उन्हे भी ढूंढकर बाहर लता हूं। मोनेसर, आर्यमणि और उसके साथियों का भव्य स्वागत करो।

एक मुलाजिम को खातिरदारी में लगाकर भोसला कोको के किले में घुस गया। तकरीबन 4 घंटे बाद वह नयोबि और उसके टीम के साथ बाहर आया। नयोबि अपने पैड़ो पर ही आ रहा था लेकिन उसकी हालत लूटी–पीटी हुई थी। आते ही आर्यमणि के ऊपर लद गया.... “दोस्त जैसे गन्ने से उसका सारा रस चूस लेते हैं वैसे ही शरीर से सब कुछ चूस लिया।”...

आर्यमणि हंसते हुये.... “कोई नही दोस्त अल्केमिस्ट जिंदाबाद। अपने शरीर को फिर से मोडिफाई करवा लेना।”...

नयोबि:– जेल प्रशासन ने हमारे लिये खून का इंतजाम किया था। किसी से बोलकर 20–30 लीटर खून का इंतजाम करवा दो, वरना भूख से कहीं जान न निकल जाये।

आर्यमणि:– भोसला सर कोई उपाय है?

भोसला:– हमारी जेल में हर किसी के खाने का इंतजाम रहता है। मानेसर इन्हे लेकर जाओ और इनके प्रिय भोजन का इंतजाम करो। आर्यमणि तुम मेरे साथ आओ।

आर्यमणि, भोसला के साथ वापस से कोको के किले में घुसा। भोसला उसे तहखाने में ले जाकर वहां का नजारा दिखाया। पूरे तहखाने में सिशे के मोटे ट्यूब लगे थे, जिसमे किसी प्रकार का द्रव्य भरा था। हर ट्यूब के नीचे धातु का मोटा गोलाकार चेंबर लगा हुआ था। सभी ट्यूब के नीचे का चेंबर वायर द्वारा एक दूसरे से कनेक्ट था और उसका सबसे आखरी सिरा किसी सर्किट बोर्ड से जुड़ा हुआ था। उस सर्किट बोर्ड के चारो ओर कई सारे पत्थर कनेक्ट थे।

आर्यमणि, वहां का नजारा देखते.... “ये कौन सी जगह है।”...

भोसला:– ये है कोको के खिलाफ सबूत। जितने भी मोटे ट्यूब देख रहे हो। लोग पोर्ट होकर इन्ही ट्यूब में घुसते और उनकी शक्ति बाहर निकलकर कोको के पास। कमाल की इंजीनियरिंग और कमाल का सर्किट बोर्ड है। मुझे एक बात बताओ, तुम्हे भी तो कोको ने पोर्ट किया होगा, फिर तुम क्यों नही पोर्ट हुये?

आर्यमणि:– मेरे आचार्य जी ने कहा था मेरा जन्म बहुत ही खास नक्षत्र में हुआ था। मैं किस्मत लेकर पैदा हुआ हूं। पहले नही मानता था, लेकिन धीरे–धीरे उनकी बात पर यकीन हो गया।

इतना कहने के बाद आर्यमणि अपने एम्यूलेट से एक मोती समान पत्थर निकालकर दिखाते.... “ये पत्थर तुम्हारे यहां के क्रिस्टल से मिला था। इसी की वजह से पोर्ट करने वाली किरणों का असर हम पर नही हुआ था।”

भोसला:– ये तो निष्प्रभावित पत्थर है। इसका प्रयोग हम अपने खेतों में करते है। सूर्य ऊर्जा को फैलाने के क्रम में हीरों के अंदर से कुछ खतरनाक किरणे निकलती है। उन किरणों का असर इंसानी शरीर पर नही होता किंतु पेड़–पौधे और फसल खराब हो जाते है। निष्प्रभावित पत्थर ऐसे सभी जहरीली किरणों का असर समाप्त कर देता है। बहुत ही गुणकारी पत्थर है। इस पत्थर को दोस्त और दुश्मनों की पहचान है। दोस्त को प्रभावित रहने देता है लेकिन दुश्मनों को एक हद तक निष्क्रिय कर देता है।

आर्यमणि:– एक हद तक, मतलब कितनी हद?

भोसला:– 10000⁰ तापमान को निष्क्रिय कर देगा लेकिन उसके ऊपर एक भी डिग्री तापमान बढ़ा तो निष्प्रभावित पत्थर काम नही करेगा। 50000 बुलेट एक साथ हमला करे तो उसका असर नही होने देगा, लेकिन संख्या एक भी ज्यादा हुई तो पत्थर काम नही करेगा। 2 चीजों में हमने हद टेस्ट किया था सो बता दिया। अब चलो वो पत्थर हमे दे दो। पत्थर के मामले में हमारी एक ही पॉलिसी है, कोई समझौता नही। चलो जितने भी पत्थर अपने पास रखे हो सब दे दो।

आर्यमणि:– जितने भी पत्थर से क्या मतलब है तुम्हारा....

भोसला अपने हाथ में एक छोटा सा डिवाइस के 3–4 बटन को दबाने के बाद स्क्रीन आर्यमणि के ओर घुमा दिया... स्क्रीन के ऊपर 80 लिखा आ रहा था। भोसले वो नंबर दिखाते.... “तुम्हारे पास कुल 80 पत्थर है। सब निकालो।”...

आर्यमणि:– ओ भाई 40 तुम्हारे यहां के पत्थर है, 40 मैं पहले से लेकर आया था।

भोसला:– हां ये मुझे अच्छे से पता है। तुम्हारे साथ 3 और लोग है जो अपने गोल से उस एम्यूलेट में पत्थर रखे है। लेकिन यहां जो भी पत्थर आया वो हमारा है। अपने देश की पॉलिसी साफ है।

आर्यमणि:– ठीक है तुम हम सबका एम्यूलेट ले लेना। अब जरा काम की बातें हो जाये।

भोसला:– हां मुझे वो काम की बात पता है। तुम्हे यहां नही रहना। देखो दोस्त हम मजबूर है और किसी को भी अपने देश से बाहर नही जाने दे सकते। इस जगह को देखने के बाद कहीं और जाने देना हमारी पॉलिसी ही नही।

आर्यमणि:– इसका मतलब यहां के लोगों से हमे लंबी लड़ाई लड़नी होगी।

भोसला:– ऐसा करने की सोचना भी मत। मैं अपने रिस्क और गैरेंटी पर तुम्हे जाने दूंगा लेकिन एक छोटी सी शर्त है।

आर्यमणि:– क्या?

भोसला:– आज से 30 वर्ष पूर्व किसी वैज्ञानिक ने गोमेत नदी किनारे कुछ ऐसा एक्सपेरिमेंट किया था जिस वजह से उस इलाके की पूरी आबादी ऐसे बीमारी के चपेट में आ गयी कि वो आज तक बिस्तर से उठे ही नही। मशीनों की मदद से हम 6 करोड़ लोगों को लाइफ सपोर्ट तो दिये है, लेकिन इसका बोझ हमारे आम जनता को उठाना पड़ रहा है। उसी घटना के बाद से हमने अपनी पॉलिसी बदल ली। पहले सतह पर साइंस एक्सपेरिमेंट के लिये बने निर्माण से हमे कोई लेना देना नही था, लेकिन उस घटना के बाद समझ ही सकते हो पॉलिसी में क्या बदलाव हुआ होगा।

आर्यमणि:– 6 करोड़ लोगों को पिछले 30 साल से लाइफ सपोर्ट दिये हो। यहां के प्रतिनिधियों के जज्बे को सलाम। अल्फा पैक सबको हील करने का वादा करती है। उसके बाद तो हमें जाने दोगे न।

भोसला:– न सिर्फ तुम्हे बल्कि यदि हमारी दुनिया के बारे में जो–जो इंसान चर्चा नही करेगा, तुम्हारे भरोसे मैं उन्हे भी जाने दूंगा। यही नहीं, तुम जिस जगह चाहो उस जगह को चुन लो, वहां तुम्हारे साइंस लैब के निर्माण में किसी भी प्रकार की बाधा नहीं आने देंगे। यहां तक की ढांचा यदि गड़बड़ हुआ तो बिना तुम्हारे इंजीनियर की नजरों में आये उस ढांचे तक को सुधार देंगे। बस तुम उन सभी लोगों को पहले की तरह सामान्य कर दो। जिस प्रकार से सबको मारने के एक साथ

आर्यमणि:– ठीक है मैं पूरी कोशिश करूंगा। लेकिन तुम भी अपने बात को याद रखना।

भोसला:– याद रखने की जरूरत नहीं है दोस्त। हमारी बातें ऑन रिकॉर्ड है, एक कॉपी जबतक तुम्हे न मिले अपना काम शुरू मत करना।

आर्यमणि, भोसला से मीटिंग समाप्त करके बाहर आया। उसने पूरी कहानी अल्फा पैक से साझा किया। वेमपायर को छोड़कर अल्फा पैक भोसला के साथ उड़ान भर चुकी थी। गोमेत नदी किनारे के बसा शहर जब आर्यमणि पहुंचा, तब आर्यमणि वहां का नजारा देख एक बार फिर रोलफेल के शासन को सलाम करने लगा। पूरे शहर को ही हॉस्पिटल में तब्दील कर दिया था। 6 करोड़ बीमार लोगों के लिये वहां 10 लाख डॉक्टर नियुक्त किये गये थे। पूरे देश में कहीं भी क्रिटिकल केस होता था तब नागरिकों को मजबूरी में इन्ही इलाकों के ओर रुख करना पड़ता था। सारे स्पेशलिस्ट और अच्छे डॉक्टरों को तो यहीं रखा गया था।

अल्फा पैक वहां पहुंचते ही सबसे पहले चार लोगों को हील किया। अपने शरीर के अंदर पहुंचे टॉक्सिक और वायरस को पचाने की क्षमता को कैलकुलेट किये। जिन चारो को अल्फा पैक ने पहले हील किया उन्हे उठकर खड़े होते देख, भोसला और डॉक्टर की टीम तो खुशी से नाचने लगे।

अल्फा पैक को भी बहुत ज्यादा मुश्किल काम नहीं लगा। वहां मौजूद हर किसी के शरीर में किसी प्रकार का एक्सपेरिमेंटल वायरस था, जिसे हील करने में अल्फा पैक को कोई परेशानी नही थी। फिर तो पूरा का पूरा हॉस्पिटल जड़ों में ढाका होता और अल्फा पैक आबादी के आबादी हील करते रहते। देखते ही देखते हर दिन 8 से 10 लाख लोग हील होकर खड़े होते और उन्हे देश के विभिन्न हिस्सों में भेज दिया जाता।

लगभग 5 महीनो तक सभी 6 करोड़ लोग हील होकर अपने–अपने परिवार अथवा रिश्तेदार के पास पहुंच चुके थे। भोसला तो फूले न समा रहा था। धन्यवाद कह–कह कर वह थका नही। अंत में जैसा की उसने वादा किया था, आर्यमणि जिसे चाहे अपने भरोसे पर ले जा सकता था। आर्यमणि ने उन 1600 लोगों को चुन लिया जो 6 बार निर्माण के लिये पहुंचे और गायब हो चुके थे। साथ में वेमपायर की टीम भी।

सुरक्षा के लिहाज से भोसला ने पूछा की क्या ये इंसान कभी किसी से हमारे दुनिया के बारे में चर्चा नही करेंगे। उसके इस सवाल पर आर्यमणि मुस्कुराया और सभी 1600 लोगों को जड़ में कैद करने के बाद उनकी कुछ वक्त की यादों को मिटाकर सबको सुलाते.... “इनमे से किसी को याद ही नहीं रहेगा की वो यहां आये भी थे। लो हो गया न पूर्ण भरोसा।”...

भोसला वेमपायर के ओर इशारा करते..... “और इनका क्या?”...

आर्यमणि:– इंसानी दुनिया में हमारी तरह ये लोग भी अपने समुदाय के अस्तित्व को छिपाकर रखते हैं, इसलिए ये किसी से कुछ नही बता सकते।

भोसला आर्यमणि के गले लगते.... “मुझे पता नही की तुम सबके पास पत्थर कहां से मिला होगा, लेकिन मिला सही लोगों को। निष्प्रभावित पत्थर मेरे ओर से छोटा सा भेंट है। इसे संभालकर इस्तमाल करना और गलत हाथों में नही आने देना। चलो तुम सबको सतह तक छोड़ आऊं।”

एक बार फिर आर्यमणि उसी छत पर था जहां वह पहली बार फसा था। भोसला ने ऑर्डर दिया और देखते ही देखते वह छत कई किलोमीटर ऊपर तक जाने लगा। सर के ऊपर दिख रहा आसमान धीरे–धीरे हटने लगा था। दरअसल वह आसमान न होकर एक प्रकार का सुरक्षा घेरा था। उसके हटते ही ऊपर धातु की मजबूत चादर दिखने लगी। जैसे ही लिफ्ट ऊपर तक पहुंची वह चादर खुल गया और लिफ्ट उन सबको लेकर सतह तक पहुंच चुकी थी।

3 बार मे वह लिफ्ट सबको ऊपर पहुंचा चुकी थी। 6 बार में जितने भी समान खोये थे वो सब सतह पर आ चुका था। नयोबि, भोसला के लोगों की मदद से तुरंत ही चारो ओर टेंट लगवाया और सभी 1600 इंसानों को गरम टेंट में डाला। भोसला एक आखरी बार अल्फा पैक से मिलकर भूमिगत हो गया और आर्यमणि निर्माण कार्य के जगह के देखने लगा।

नयोबि:– तुम्हारे साथ काम करके अच्छा अनुभव रहा। अब मैं ज्वाइंट डायरेक्टर जूलिया को खबर कर दूं ताकि काम आगे बढ़ सके।

आर्यमणि:– ओ भाई मार्च में निकला था अभी अक्टूबर समाप्त होने को आ गया है। हमे कैलिफोर्निया भिजवाने का भी बंदोबस्त करो।

नयोबि:– हां जूलिया से ही संपर्क कर रहा हूं। वो यहां आ जाये फिर उसके बाद जूलिया और तुम जानो।

नयोबि के पंटर काम पर लग गये। जूलिया 4 दिन बाद वहां पहुंची। सभी लापता लोगों को सुरक्षित देख वह बयान नही कर पायी की वो कितनी खुश है। जूलिया को इतनी बड़ी सफलता की उम्मीद नहीं थी जो आर्यमणि उसकी झोली में डाल चुका था। जूलिया ने पूरी रिपोर्ट वाशिंगटन डीसी तक पहुंचा दी। वॉशिंगटन डीसी से ऑफिशियल प्रेस रिलीज हुआ जहां जूलिया और उसके टीम की जमकर तारीफ हुई। हां लेकिन इस तारीफ में कहीं भी अल्फा पैक नही था।

जूलिया खुद आर्यमणि को कैलिफोर्निया तक छोड़ने पहुंची। जूलिया विदा लेने से पहले अल्फा पैक को एफबीआई एसोसिएट्स का दर्जा दिया। यही नहीं उन लोगों को एफबीआई की आईडी भी दी। जूलिया जाते वक्त इतना ही कही..... “जब भी किसी गैर–कानूनी लोग को मारना हो तो उसे कानूनी तरीके से मरना और पूरा सबूत की फाइल मुझे मेल कर देना, बाकी मैं संभाल लूंगी।” जूलिया अपनी बात कहकर रवाना हो गयी और अल्फा पैक एक बार फिर अपने कॉटेज की साफ सफाई में लग गये।
Amazing👍👍👍
 

Devilrudra

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भाग:–142


जैसे ही आर्यमणि का मुक्का कोको के कंधे से टकराया वहां का पूरा हिस्सा ही फुहार बनकर हवा में मिल गया। कोको के ऊपरी शरीर के बाएं हिस्से का पूरा परखच्चा उड़ा डाला। एनर्जी पंच इतना खरनाक था कि कोको के मौत की चीख निकलने से पहले ही उसकी मौत आ चुकी थी। सर तो धर पर ही था, लेकिन कमर तक के बाएं हिस्सा गायब होने की वजह से गर्दन बाएं ओर के हिस्से में ऐसे घुसी थी कि धर पर सर नजर ही नहीं आ रहा था।

आर्यमणि अपने हाथों पर लगे खून को साफ करते..... “तुम सब ठीक तो हो ना?”

रूही:– हां हम सब हील हो चुके है। तुम्हारी पीठ का क्या हाल है?

आर्यमणि:– शायद हील हो चुका हूं। दर्द नही अब। चलो चलकर नयोबि और उसकी टीम को ढूंढे। मर भी गये हो तो उनकी लाश को ऊपर सतह तक लेकर जाना जरूरी है।

अभी इनकी इतनी ही बातें हुई थी कि कोको के उस ऑफिस का दरवाजा खुल चुका था। किसी ऑफिसर की ड्रेस में भोसला सबसे आगे खड़ा था और उसके पीछे 100 हिम–मानव सेना की टुकड़ी। आर्यमणि और रूही दोनो भोसला को देखने लगे..... “ऐसे हैरानी से नही देखने का। मैं हूं कमांडर इन चीफ भोसला और जाने–अनजाने में तुमने मेरी मदद कर दी है।”...

आर्यमणि:– हां सो तो मैं इस जेलर और तुम्हारे पोस्ट को देखकर समझ चुका हूं कि तुम किसके पीछे थे। वैसे ये जेलर इतना खतरनाक था कि सेना के इतने बड़े अधिकारी को आना पड़ा?

भोसला:– “अरे मत पूछिए आर्यमणि सर, इसने अब तक मेरे 1200 जवानों को ऐसा निर्बल करके अपने इस फैक्टरी से बाहर भेजा की वो फिर कभी बाप बनने लायक नही रहे। पहुंच तो सीधा सेंट्रल मिनिस्ट्री तक की थी। इसका चाचा काउंसिल मिनिस्टर, हमारे हर मूवमेंट की खबर इसे पहले से होती। यहां सबूत के नाम पर ढेला तक नही मिलता। इसने इतने इन्वेस्टिगेशन ऑफिसर को नपुंसक बनाकर भेजा की गुस्से में इसे मरवाने के लिये साजिश तक रच डाले।”

“लेकिन पता नही इस कोको ने कितनी शक्ति अर्जित कर रखी थी, कोई इसे छू भी नहीं पाया। ऊपर से अंडर कवर ऑपरेशन में आज तक इसके गुनाहों का कोई भी सबूत नही मिला क्योंकि जब भी कोई टीम इसके ऑफिस में घुसने के बाद सबूत जुटने की कोशिश किये वो फिर अपने अंदर के खोये शक्ति को वापस जुटा नही पाये। खैर अब तुम लोग बाहर आ जाओ, हम जरा इसके खिलाफ सबूत जुटा ले, वरना तुम पर एक सरकारी अधिकारी को मारने का मुकदमा चलेगा।

आर्यमणि:– और मेरे लोग (नयोबि और उसकी टीम) जिसे इसने कहीं गायब कर दिया है?

भोसला:– चिंता मत करो वह सुरक्षित है। उन्हे भी ढूंढकर बाहर लता हूं। मोनेसर, आर्यमणि और उसके साथियों का भव्य स्वागत करो।

एक मुलाजिम को खातिरदारी में लगाकर भोसला कोको के किले में घुस गया। तकरीबन 4 घंटे बाद वह नयोबि और उसके टीम के साथ बाहर आया। नयोबि अपने पैड़ो पर ही आ रहा था लेकिन उसकी हालत लूटी–पीटी हुई थी। आते ही आर्यमणि के ऊपर लद गया.... “दोस्त जैसे गन्ने से उसका सारा रस चूस लेते हैं वैसे ही शरीर से सब कुछ चूस लिया।”...

आर्यमणि हंसते हुये.... “कोई नही दोस्त अल्केमिस्ट जिंदाबाद। अपने शरीर को फिर से मोडिफाई करवा लेना।”...

नयोबि:– जेल प्रशासन ने हमारे लिये खून का इंतजाम किया था। किसी से बोलकर 20–30 लीटर खून का इंतजाम करवा दो, वरना भूख से कहीं जान न निकल जाये।

आर्यमणि:– भोसला सर कोई उपाय है?

भोसला:– हमारी जेल में हर किसी के खाने का इंतजाम रहता है। मानेसर इन्हे लेकर जाओ और इनके प्रिय भोजन का इंतजाम करो। आर्यमणि तुम मेरे साथ आओ।

आर्यमणि, भोसला के साथ वापस से कोको के किले में घुसा। भोसला उसे तहखाने में ले जाकर वहां का नजारा दिखाया। पूरे तहखाने में सिशे के मोटे ट्यूब लगे थे, जिसमे किसी प्रकार का द्रव्य भरा था। हर ट्यूब के नीचे धातु का मोटा गोलाकार चेंबर लगा हुआ था। सभी ट्यूब के नीचे का चेंबर वायर द्वारा एक दूसरे से कनेक्ट था और उसका सबसे आखरी सिरा किसी सर्किट बोर्ड से जुड़ा हुआ था। उस सर्किट बोर्ड के चारो ओर कई सारे पत्थर कनेक्ट थे।

आर्यमणि, वहां का नजारा देखते.... “ये कौन सी जगह है।”...

भोसला:– ये है कोको के खिलाफ सबूत। जितने भी मोटे ट्यूब देख रहे हो। लोग पोर्ट होकर इन्ही ट्यूब में घुसते और उनकी शक्ति बाहर निकलकर कोको के पास। कमाल की इंजीनियरिंग और कमाल का सर्किट बोर्ड है। मुझे एक बात बताओ, तुम्हे भी तो कोको ने पोर्ट किया होगा, फिर तुम क्यों नही पोर्ट हुये?

आर्यमणि:– मेरे आचार्य जी ने कहा था मेरा जन्म बहुत ही खास नक्षत्र में हुआ था। मैं किस्मत लेकर पैदा हुआ हूं। पहले नही मानता था, लेकिन धीरे–धीरे उनकी बात पर यकीन हो गया।

इतना कहने के बाद आर्यमणि अपने एम्यूलेट से एक मोती समान पत्थर निकालकर दिखाते.... “ये पत्थर तुम्हारे यहां के क्रिस्टल से मिला था। इसी की वजह से पोर्ट करने वाली किरणों का असर हम पर नही हुआ था।”

भोसला:– ये तो निष्प्रभावित पत्थर है। इसका प्रयोग हम अपने खेतों में करते है। सूर्य ऊर्जा को फैलाने के क्रम में हीरों के अंदर से कुछ खतरनाक किरणे निकलती है। उन किरणों का असर इंसानी शरीर पर नही होता किंतु पेड़–पौधे और फसल खराब हो जाते है। निष्प्रभावित पत्थर ऐसे सभी जहरीली किरणों का असर समाप्त कर देता है। बहुत ही गुणकारी पत्थर है। इस पत्थर को दोस्त और दुश्मनों की पहचान है। दोस्त को प्रभावित रहने देता है लेकिन दुश्मनों को एक हद तक निष्क्रिय कर देता है।

आर्यमणि:– एक हद तक, मतलब कितनी हद?

भोसला:– 10000⁰ तापमान को निष्क्रिय कर देगा लेकिन उसके ऊपर एक भी डिग्री तापमान बढ़ा तो निष्प्रभावित पत्थर काम नही करेगा। 50000 बुलेट एक साथ हमला करे तो उसका असर नही होने देगा, लेकिन संख्या एक भी ज्यादा हुई तो पत्थर काम नही करेगा। 2 चीजों में हमने हद टेस्ट किया था सो बता दिया। अब चलो वो पत्थर हमे दे दो। पत्थर के मामले में हमारी एक ही पॉलिसी है, कोई समझौता नही। चलो जितने भी पत्थर अपने पास रखे हो सब दे दो।

आर्यमणि:– जितने भी पत्थर से क्या मतलब है तुम्हारा....

भोसला अपने हाथ में एक छोटा सा डिवाइस के 3–4 बटन को दबाने के बाद स्क्रीन आर्यमणि के ओर घुमा दिया... स्क्रीन के ऊपर 80 लिखा आ रहा था। भोसले वो नंबर दिखाते.... “तुम्हारे पास कुल 80 पत्थर है। सब निकालो।”...

आर्यमणि:– ओ भाई 40 तुम्हारे यहां के पत्थर है, 40 मैं पहले से लेकर आया था।

भोसला:– हां ये मुझे अच्छे से पता है। तुम्हारे साथ 3 और लोग है जो अपने गोल से उस एम्यूलेट में पत्थर रखे है। लेकिन यहां जो भी पत्थर आया वो हमारा है। अपने देश की पॉलिसी साफ है।

आर्यमणि:– ठीक है तुम हम सबका एम्यूलेट ले लेना। अब जरा काम की बातें हो जाये।

भोसला:– हां मुझे वो काम की बात पता है। तुम्हे यहां नही रहना। देखो दोस्त हम मजबूर है और किसी को भी अपने देश से बाहर नही जाने दे सकते। इस जगह को देखने के बाद कहीं और जाने देना हमारी पॉलिसी ही नही।

आर्यमणि:– इसका मतलब यहां के लोगों से हमे लंबी लड़ाई लड़नी होगी।

भोसला:– ऐसा करने की सोचना भी मत। मैं अपने रिस्क और गैरेंटी पर तुम्हे जाने दूंगा लेकिन एक छोटी सी शर्त है।

आर्यमणि:– क्या?

भोसला:– आज से 30 वर्ष पूर्व किसी वैज्ञानिक ने गोमेत नदी किनारे कुछ ऐसा एक्सपेरिमेंट किया था जिस वजह से उस इलाके की पूरी आबादी ऐसे बीमारी के चपेट में आ गयी कि वो आज तक बिस्तर से उठे ही नही। मशीनों की मदद से हम 6 करोड़ लोगों को लाइफ सपोर्ट तो दिये है, लेकिन इसका बोझ हमारे आम जनता को उठाना पड़ रहा है। उसी घटना के बाद से हमने अपनी पॉलिसी बदल ली। पहले सतह पर साइंस एक्सपेरिमेंट के लिये बने निर्माण से हमे कोई लेना देना नही था, लेकिन उस घटना के बाद समझ ही सकते हो पॉलिसी में क्या बदलाव हुआ होगा।

आर्यमणि:– 6 करोड़ लोगों को पिछले 30 साल से लाइफ सपोर्ट दिये हो। यहां के प्रतिनिधियों के जज्बे को सलाम। अल्फा पैक सबको हील करने का वादा करती है। उसके बाद तो हमें जाने दोगे न।

भोसला:– न सिर्फ तुम्हे बल्कि यदि हमारी दुनिया के बारे में जो–जो इंसान चर्चा नही करेगा, तुम्हारे भरोसे मैं उन्हे भी जाने दूंगा। यही नहीं, तुम जिस जगह चाहो उस जगह को चुन लो, वहां तुम्हारे साइंस लैब के निर्माण में किसी भी प्रकार की बाधा नहीं आने देंगे। यहां तक की ढांचा यदि गड़बड़ हुआ तो बिना तुम्हारे इंजीनियर की नजरों में आये उस ढांचे तक को सुधार देंगे। बस तुम उन सभी लोगों को पहले की तरह सामान्य कर दो। जिस प्रकार से सबको मारने के एक साथ

आर्यमणि:– ठीक है मैं पूरी कोशिश करूंगा। लेकिन तुम भी अपने बात को याद रखना।

भोसला:– याद रखने की जरूरत नहीं है दोस्त। हमारी बातें ऑन रिकॉर्ड है, एक कॉपी जबतक तुम्हे न मिले अपना काम शुरू मत करना।

आर्यमणि, भोसला से मीटिंग समाप्त करके बाहर आया। उसने पूरी कहानी अल्फा पैक से साझा किया। वेमपायर को छोड़कर अल्फा पैक भोसला के साथ उड़ान भर चुकी थी। गोमेत नदी किनारे के बसा शहर जब आर्यमणि पहुंचा, तब आर्यमणि वहां का नजारा देख एक बार फिर रोलफेल के शासन को सलाम करने लगा। पूरे शहर को ही हॉस्पिटल में तब्दील कर दिया था। 6 करोड़ बीमार लोगों के लिये वहां 10 लाख डॉक्टर नियुक्त किये गये थे। पूरे देश में कहीं भी क्रिटिकल केस होता था तब नागरिकों को मजबूरी में इन्ही इलाकों के ओर रुख करना पड़ता था। सारे स्पेशलिस्ट और अच्छे डॉक्टरों को तो यहीं रखा गया था।

अल्फा पैक वहां पहुंचते ही सबसे पहले चार लोगों को हील किया। अपने शरीर के अंदर पहुंचे टॉक्सिक और वायरस को पचाने की क्षमता को कैलकुलेट किये। जिन चारो को अल्फा पैक ने पहले हील किया उन्हे उठकर खड़े होते देख, भोसला और डॉक्टर की टीम तो खुशी से नाचने लगे।

अल्फा पैक को भी बहुत ज्यादा मुश्किल काम नहीं लगा। वहां मौजूद हर किसी के शरीर में किसी प्रकार का एक्सपेरिमेंटल वायरस था, जिसे हील करने में अल्फा पैक को कोई परेशानी नही थी। फिर तो पूरा का पूरा हॉस्पिटल जड़ों में ढाका होता और अल्फा पैक आबादी के आबादी हील करते रहते। देखते ही देखते हर दिन 8 से 10 लाख लोग हील होकर खड़े होते और उन्हे देश के विभिन्न हिस्सों में भेज दिया जाता।

लगभग 5 महीनो तक सभी 6 करोड़ लोग हील होकर अपने–अपने परिवार अथवा रिश्तेदार के पास पहुंच चुके थे। भोसला तो फूले न समा रहा था। धन्यवाद कह–कह कर वह थका नही। अंत में जैसा की उसने वादा किया था, आर्यमणि जिसे चाहे अपने भरोसे पर ले जा सकता था। आर्यमणि ने उन 1600 लोगों को चुन लिया जो 6 बार निर्माण के लिये पहुंचे और गायब हो चुके थे। साथ में वेमपायर की टीम भी।

सुरक्षा के लिहाज से भोसला ने पूछा की क्या ये इंसान कभी किसी से हमारे दुनिया के बारे में चर्चा नही करेंगे। उसके इस सवाल पर आर्यमणि मुस्कुराया और सभी 1600 लोगों को जड़ में कैद करने के बाद उनकी कुछ वक्त की यादों को मिटाकर सबको सुलाते.... “इनमे से किसी को याद ही नहीं रहेगा की वो यहां आये भी थे। लो हो गया न पूर्ण भरोसा।”...

भोसला वेमपायर के ओर इशारा करते..... “और इनका क्या?”...

आर्यमणि:– इंसानी दुनिया में हमारी तरह ये लोग भी अपने समुदाय के अस्तित्व को छिपाकर रखते हैं, इसलिए ये किसी से कुछ नही बता सकते।

भोसला आर्यमणि के गले लगते.... “मुझे पता नही की तुम सबके पास पत्थर कहां से मिला होगा, लेकिन मिला सही लोगों को। निष्प्रभावित पत्थर मेरे ओर से छोटा सा भेंट है। इसे संभालकर इस्तमाल करना और गलत हाथों में नही आने देना। चलो तुम सबको सतह तक छोड़ आऊं।”

एक बार फिर आर्यमणि उसी छत पर था जहां वह पहली बार फसा था। भोसला ने ऑर्डर दिया और देखते ही देखते वह छत कई किलोमीटर ऊपर तक जाने लगा। सर के ऊपर दिख रहा आसमान धीरे–धीरे हटने लगा था। दरअसल वह आसमान न होकर एक प्रकार का सुरक्षा घेरा था। उसके हटते ही ऊपर धातु की मजबूत चादर दिखने लगी। जैसे ही लिफ्ट ऊपर तक पहुंची वह चादर खुल गया और लिफ्ट उन सबको लेकर सतह तक पहुंच चुकी थी।

3 बार मे वह लिफ्ट सबको ऊपर पहुंचा चुकी थी। 6 बार में जितने भी समान खोये थे वो सब सतह पर आ चुका था। नयोबि, भोसला के लोगों की मदद से तुरंत ही चारो ओर टेंट लगवाया और सभी 1600 इंसानों को गरम टेंट में डाला। भोसला एक आखरी बार अल्फा पैक से मिलकर भूमिगत हो गया और आर्यमणि निर्माण कार्य के जगह के देखने लगा।

नयोबि:– तुम्हारे साथ काम करके अच्छा अनुभव रहा। अब मैं ज्वाइंट डायरेक्टर जूलिया को खबर कर दूं ताकि काम आगे बढ़ सके।

आर्यमणि:– ओ भाई मार्च में निकला था अभी अक्टूबर समाप्त होने को आ गया है। हमे कैलिफोर्निया भिजवाने का भी बंदोबस्त करो।

नयोबि:– हां जूलिया से ही संपर्क कर रहा हूं। वो यहां आ जाये फिर उसके बाद जूलिया और तुम जानो।

नयोबि के पंटर काम पर लग गये। जूलिया 4 दिन बाद वहां पहुंची। सभी लापता लोगों को सुरक्षित देख वह बयान नही कर पायी की वो कितनी खुश है। जूलिया को इतनी बड़ी सफलता की उम्मीद नहीं थी जो आर्यमणि उसकी झोली में डाल चुका था। जूलिया ने पूरी रिपोर्ट वाशिंगटन डीसी तक पहुंचा दी। वॉशिंगटन डीसी से ऑफिशियल प्रेस रिलीज हुआ जहां जूलिया और उसके टीम की जमकर तारीफ हुई। हां लेकिन इस तारीफ में कहीं भी अल्फा पैक नही था।

जूलिया खुद आर्यमणि को कैलिफोर्निया तक छोड़ने पहुंची। जूलिया विदा लेने से पहले अल्फा पैक को एफबीआई एसोसिएट्स का दर्जा दिया। यही नहीं उन लोगों को एफबीआई की आईडी भी दी। जूलिया जाते वक्त इतना ही कही..... “जब भी किसी गैर–कानूनी लोग को मारना हो तो उसे कानूनी तरीके से मरना और पूरा सबूत की फाइल मुझे मेल कर देना, बाकी मैं संभाल लूंगी।” जूलिया अपनी बात कहकर रवाना हो गयी और अल्फा पैक एक बार फिर अपने कॉटेज की साफ सफाई में लग गये।
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भाग:–143


बहुत दिन बाद लौटे थे। एक बार फिर कॉटेज की साफ सफाई शुरू की गयी। लगभग 2 घंटे की सफाई और उसके बाद धूल से पूरे तर बतर हो चुके थे।

रूही:– आर्य तुम किचन का समान ले आओ जबतक मैं फ्रेश हो जाती हूं।

आर्यमणि, सहमति जताकर निकला। आर्यमणि जैसे ही बाहर निकला रूही टॉवल लेकर बाथरूम में। लेकिन बाथरूम का दरवाजा बंद करती उस से पहले ही आर्यमणि बाथरूम के अंदर था।

रूही, आर्यमणि को आंखें दिखाती... “आर्य जाओ।”..

आर्यमणि, रूही के कंधे पर हल्की–हल्की मालिश करते.... “मैं भी जवां, तू भी जवां डर है फिर किस बात की?”...

रूही इस हल्की मालिश पर पिघलती हुई, मदहोश सी आवाज में.... “नही, नही अभी नही अभी करो इंतजार।”...

आर्यमणि, रूही के गले पर प्यार से चुम्बन लेते, अपने दोनो हाथ रूही के सुडोल वक्ष पर रखते.... “नहीं नहीं कभी नहीं मैं हु बेक़रार।”

रूही, आर्यमणि से खुद को छुड़ाकर, आर्यमणि को बाहर के ओर धक्का देती.... “बड़े वो हो तुम पिया, जिद क्यों नहीं छोड़ते।”...

आर्यमणि, के ओर मुड़ा और अपने क्ला से उसके टॉप को फाड़कर होंठ से होंठ जकड़ते.... “नहीं नहीं कभी नहीं मैं हु बेक़रार।”

रूही लगभग पूरी पिघलती, आर्यमणि को भींचती, लचरती सी आवाज में आखरी शब्द कही.... “थोड़ा इंतजार।”...

लेकिन अब इंतजार कहां। शरीर से वस्त्र का हर टुकड़ा निकल चुका था और दोनो कई महीनो बाद अपने मिलन की पुरजोर गर्मी निकाल रहे थे। जो हाल यहां था उस से मिलता जुलता हालत इवान और अलबेली का भी था। कई महीनो की प्यास वो दोनो ऊपर बुझा रहे थे।

फिर तो निढल होकर जो ही चारो सोए, सीधा रात में ही जागे। अगले कुछ दिन जैसे छुट्टी में बीते हो। अलबेली और इवान तो फिर भी स्कूल चले जाते थे, लेकिन रूही और आर्यमणि, उनकी तो दिन भर प्यार भरी बातें जारी थी। नवंबर बिता दिसंबर आनेवाला था। और नवंबर के आखरी हफ्ता समाप्त होने के साथ ही फेहरीन अपने कुछ लोगों के साथ आर्यमणि के कॉटेज पहुंच चुकी थी।

आज ओशुन अपने इकलौती साली होने का फायदा उठाकर आर्यमणि से खूब चिपक रही थी, जबकि रूही बार–बार ओशुन को दूर कर रही थी। अंत में यही तय हुआ की 5 दिसंबर को रूही और इवान दोनो फेहरीन के साथ उनके पैतृक देश तुर्की के लिये रवाना हो जायेंगे। आर्यमणि ने भी हामी भर दिया और शादी की तैयारियों के लिये एक लाख डॉलर की राशि थमा दिया। यूं तो फेहरीन वह राशि नही ले रही थी, परंतु रूही की शादी में उसे किसी बात का मलाल न रहे, उसकी तैयारियों के लिये छोटी सी भेंट के रूप में वह राशि थमा ही दिया।

शाम का वक्त था। आर्यमणि और रूही जंगल के बीच घास पर लेटे ऊपर आसमान को देख रहे थे। रूही, आर्यमणि के ओर चेहरा करती... “जान शादी के नाम पर मुझे इतनी दूर क्यों भेज रहे। यहीं सिंपल सी शादी कर लेते है, न।”

आर्यमणि, रूही के गाल पर प्यार से हाथ फेरते.… "हम सबका एक परिवार है रूही। शादी परिवार के बीच हो फिर उसके क्या कहने। वैसे भी मैं यदि अपने परिवार को बताए बिना शादी कर लूं, फिर तो उम्र भर भटकना होगा"...

रूही, आर्यमणि की बात सुनकर ठीक उसके सामने खड़ी हो गयी। थोड़ी बुझी से थी। वह आर्यमणि से मुंह मोड़कर दूसरी ओर देखने लगी। आर्यमणि भी ठीक उसके सामने खड़े होते... “ए सोना, मेरी हंसी, मेरी जिंदगी... अब ये मायूसी क्यों?”

रूही आर्यमणि के गले लगती…. "कुछ वर्ष पूर्व केवल मरने की ख्वाइश थी। अब तो जीने की चाहत और भी बढ़ गई है।…

रूही, आर्यमणि के गले लगकर अपनी चाहतें बयान करने लगी। तभी अचानक आर्यमणि को कुछ महसूस हुआ और रूही को खुद से अलग करते, सवालिया नजरों से देखने लगा।

रूही, आर्यमणि की सवालिया नजरों को भांप गई और अपनी नजरे नीचे झुकाती.... "माफ करना मैं तुम्हे बताना चाहती थी, लेकिन हिम्मत नही जुटा पाई"…

आर्यमणि बिलकुल बोझिल सा हो गया। अपने घुटनो पर आकर वह रूही के पेट पर हाथ फेरते.… "तुम मुझे बताने की हिम्मत नही जुटा पा रही थी। फिर क्या सोच रखा था तुमने"…

रूही:– इतना कुछ सोची नही थी। बस मुझे ये बच्चा चाहिए था।

आर्यमणि कुछ पल रूही के पेट पर हाथ फेरता रहा। उसकी आंखे डबडबा गई। वह खड़ा हुआ और रूही के होंठ से अपने होंठ को लगाकर एक प्यारा सा स्पर्श करते.… "ये पल मेरे लिए अदभुत है। हमारा बच्चा इस संसार में आनेवाला है रूही।"…

आर्यमणि का चेहरा उसकी खुशी बयां कर रहा था। रूही अपने बाहें फैलाकर आर्यमणि के गले लग गई। दोनो ही अंदर से काफी खुश थे। गले लगकर जैसे एक दूसरे में खो गये हो। काफी देर तक एक दूसरे के गले लगे रहे। फिर दोनो वहीं पास के एक पेड़ के नीचे बैठ गये। आर्यमणि का सर रूही के गोद में था और रूही प्यार से आर्यमणि के सर पर हाथ फेर रही थी.…

"आर्या…. आर्य"…. रूही प्यार से आर्य के सर पर हाथ फेरती उसे पुकारने लगी...

"हां रूही"…

"आर्य, मुझे ये सब कुछ सपने जैसा लग रहा है। अपना परिवार, प्यारा पति और हम दोनो के बीच और भी प्यार बढ़ाने, हमारा आने वाला बच्चा... जिंदगी से और क्या चाहिए आर्य"…

"हां और क्या चाहिए जिंदगी से। हम तुम और हमारा बड़ा सा परिवार। एक सामान्य सी जिंदगी। लेकिन….."

"लेकिन क्या आर्य.…"

"हम्म्म… कुछ नही बस दिमाग में ऐसे ही कुछ ख्याल आ गया"

"कैसा ख्याल मेरी जान। क्या अब अपनी होने वाली बीवी से भी नही कहोगे"….

"नही बस पूर्व में हुई गलतियां याद आ रही है। काश हमे उन एलियन की कहानी पता न होती। काश इतना रायता फैलाकर हम जी न रहे होते। पहले डर नही लगता था, लेकिन अभी शायद मैं डरा हूं।"

रूही प्यार से आर्यमणि के चेहरे पर हाथ फेरती... "यदि तुम पंगे नही करते तो शायद आज मेरी जगह कोई और होती। क्योंकि तुम्हारे इन्ही पंगों ने मुझे उस घटिया से जगह से निकाला, वरना मैं तो अब भी नागपुर में सरदार खान की गली में होती"…

"हां सही कही। वैसे भी वो एलियन हमारा पीछा नहीं छोड़ने वाले.… इसलिए अब मैं कुछ और ही सोच रहा हूं।"

"क्या सोच रहे हो आर्या"

"शादी के बाद हम प्रशांत महासागर में हजारों मिलों का सफर तय करके एक वीरान से टापू पर चले जायेंगे। मैं पूरी दुनिया से कटकर साधना में लीन हो जाऊंगा"…

"क्या हम डर कर भाग रहे?"

"नही रूही। हम डरकर भाग नही रहे, बल्कि एक बड़ी लड़ाई से पहले उसकी पूरी तैयारी कर रहे।"

"और क्या होगा जब इवान और अलबेली हमारे साथ सफर पर आने से इंकार कर दे।"….

"कहां जाने से कौन इंकार कर रहा है?"…. इनके खोए से आलम को इवान भंग करते, पूछने लगा और वो भी आर्यमणि की तरह ही रूही के गोद में सर रखकर सो गया। पीछे से अलबेली भी वहां पहुंची और वो भी बाकियों के साथ सामिल हो गई।

वहां का माहोल और एक भरा पूरा परिवार को नजरों के सामने यूं प्यार से गोद में लेटे देखकर रूही की आंखें भर आयी। भावनात्मक क्षण थे। दोनो टीन ने मिलकर रूही के आंसू पोछे और तबतक करतब दिखाते रहे जबतक उसकी हंसी नही निकल आयी। कहीं जाने की बात एक बार फिर से इवान पूछने लगा।

बातों का फिर एक लंबा दौड़ चला, जहां पहले तो हर कोई रूही की प्रेगनेंसी के बारे में सुनकर खुशी से झूम गये और बाद में रूही को ऐसा छेड़े की मारे शर्म के बेचारी अपना सर ऊपर नही उठा पायी। तभी आर्यमणि ने सबके बीच अपनी मनसा जाहिर कर दिया। आर्यमणि के वीरान टापू पर जाने के बारे मे थोड़ी सी चर्चा हुई और अंत में सभी प्रशांत महासागर जाने को तैयार हो गये। वहां मौजूद हर कोई बस एक ही बात महसूस कर रहा था, "ईश्वर जब खुशियां देना शुरू किया, फिर दामन पूरे खुशियों से भर दिया।"…

खुशियों से भरी एक अद्भुत शाम बिताने के बाद अल्फा पैक वापस अपने कॉटेज लौट आये।सबकुछ पहले से तय हो चुका था। रूही और इवान नेरमिन के साथ टर्की निकलते वहीं आर्यमणि अपने सभी रिश्तेदारों के साथ रूही को टर्की में मिलता। दिन अपने लय से गुजर रही थी। खुशियां जैसे हर दिन बढ़ती ही जा रही थी।

चला था कारवां नागपुर से। अब देखना था ये सफर कहां जाकार थमता है। फिलहाल तो अल्फा पैक की ओजल अपने आगे का सफर सात्त्विक आश्रम वालों के साथ तय करने निकल चुकी थी, वहीं बचे अल्फा पैक अपना सफर प्रशांत महासागर में तय करने के लिए उसकी तैयारियों में जुट गया.…

आर्यमणि का पूरा कुनवा शिप बनाने वाली एक कंपनी के पास पहुंची। कंपनी के मार्केटिंग हेड ने उन्हे अपने चेंबर में बिठाया और उनकी जरूरतें पूछने लगे.… आर्यमणि अपने लोगों के ओर देखते.… "तो फैमिली मेंबर, क्या–क्या जरूरतें है वो सब बताते जाओ"….

अलबेली, हाथ ऊपर करती हुई, "पहले मैं, पहले मैं" करने लगी... सभी लोग हाथ के इशारे से उसे शुरू होने कह दिये। उसे शुरू होने क्या कहे। टॉयलेट पेपर पर एक किलोमीटर जितना रिक्वायरमेंट लिख कर ले आई थी, जिसे देखकर सभी की आंखें फैल गई...

इधर अलबेली चहकती हुई जैसे ही शुरू होने लगी, ठीक उसी वक्त मार्केटिंग हेड उन्हे रोकते.… "सर पहले मैं ही कुछ पूछ लूं तो ज्यादा अच्छा है।"

आर्यमणि:– हां पूछो...

मार्केटिंग हेड:– सर कितने लोगों का क्रू सफर पर जायेगा"..

आर्यमणि:– 4

मार्केटिंग हेड:– सर क्या आप फिशिंग के लिए बोट लेने आये हैं।

आर्यमणि:– नही, हमे प्रशांत महासागर एक्सप्लोर करना है। हजार मिल का सफर तय करेंगे...

मार्केटिंग हेड:– क्या आप पागल है... 2 इंजीनियर, 2 टेक्नीशियन, 2 सेलर, 1 कैप्टन, 5 वर्किंग स्टाफ, 2 कुक… इतने तो केवल स्टाफ लगेंगे। इसके अलावा सिक्योरिटी के लिए कम से कम 5 गार्ड... 4 लोग में कैसे महासागर एक्सप्लोर करेंगे...

आर्यमणि:– मतलब तुम्हारा बनाया शिप इतना खराब होता है की हमे बीच समुद्र में 4 लोग केवल उसे ठीक करने वाले चाहिए। चलो यहां से...

मार्केटिंग हेड अपने कस्टमर को भागते देख उसे पकड़ते हुए... "हमारे बनाए शिप में अगले 10 साल तक कोई प्राब्लम नही होगी। लेकिन मरीन डिपार्टमेंट इतने क्रू के बिना आपको सफर पर निकलने की इजाजत नहीं देगा"..

आर्यमणि:– वो हमारा सिरदर्द है... तुम्हे कुछ और पूछना है... या फिर हम रिक्वायरमेंट बताएं।

मार्केटिंग हेड:– प्रशांत महासागर एक्सप्लोर करना है और कम लोगों की टीम रहेगी... तो सर ये बताइए आपका बजट क्या है...

आर्यमणि:– तुम समझ गये ना की उतना सफर तय करने के लिए हमे कितनी बड़ी क्रूज शिप चाहिए... तो अब कम से कम कीमत वाली शिप बताओ...

मार्केटिंग हेड:– 400 से 450 मीटर लंबी आपको एक क्रूज शिप देंगे, जिसमे बेसिक फैसिलिटी होगी और कीमत 300 मिलियन यूएसडी तक जायेगी...

आर्यमणि:– और उसके हमे अपने हिसाब के कुछ चीजें चाहिए तो…

मार्केटिंग हेड:– सर बेसिक फैसिलिटी में, वाटर फिल्टर, डबल स्टोरी शिप, ऑलमोस्ट 2 हॉल, 4 स्वीट, 10 कमरे, मिनिजेट पार्किंग, मिनी बोट, लाइफ सपोर्टिंग मेटेरियल, वाटर प्यूरीफायर, जिम, सेपरेट नेविगेटिंग एरिया... इसके अलावा आपको और क्या चाहिए..

अलबेली:– हमे शूटिंग प्रैक्टिस भी करनी है और साथ में फाइट ट्रेनिंग भी... तो वो एरिया भी चाहिए...

आर्यमणि:– फ्यूल एफिशिएंसी इतनी हो की 20000 किलोमीटर तक भी अपना फ्यूल खत्म न हो... स्टोरेज रूम कितना बड़ा होगा वो नही बताए, जिसमे कई बैरल फ्यूल स्टोर करने के साथ–साथ हम बचे एरिया में फूड बेवरेज लोड कर सके...

रूही:– मेडिकल सेक्शन और किचन कहां है...

मार्केटिंग हेड:– ये सब बेसिक फैसिलिटी में आती है। हां लेकिन मेडिकल सेक्शन केवल होगा, इक्विपमेंट आप देंगे। आपकी जरूरत के हिसाब से मैं एक बेसिक लेवल के ऊपर डबल स्टोरी क्रूज बनाता हूं... बेसिक लेवल पर बड़ा सा स्टोरेज, ट्रेनिंग और जिम एरिया हो जायेगा। बाकी सब बेसिक फैसिलिटी ऊपर होगी.…

आर्यमणि:– अब पैसे बता कितने लगेंगे...

मार्केटिंग हेड:– सर एक बेसिक लेवल एक्स्ट्रा बनाना होगा तो अब टोटल प्राइस 325 मिलियन यूएसडी...

अमाउंट सुनकर ही चक्कर आने लगे... चारो आपस में गुपचुप करते... "भाड़ में गया खुद का क्रूज... किसी किराए के शिप में देख लेंगे"… चारो आपस में संगोष्ठी करने के बाद खड़े हो गये... "चलते हैं मार्केटिंग हेड वाले भाई... हमारा इतना बजट नही है।"…

मार्केटिंग हेड:– सर आप 4 लोग ही है ना... हम थोड़ा सा साइज एडजस्ट करके बजट देख लेंगे... आप अपना बजट तो बताइए….

रूही, बड़ी अदा से इठलाती हुई कहने लगी.… "ज्यादा से ज्यादा 10 मिलियन का बजट है।"..

मार्केटिंग हेड:– सर बोट के प्राइस में आप क्रूज खरीदने चले आए.… आइए मैं आपको बोट सेक्शन में लिए चलता हूं।…

आर्यमणि:– रहने दो भाई... ये क्रूज देखने के बाद बोट पसंद नही आयेगी... हम रेंट पर शिप ले लेंगे...

मार्केटिंग हेड:– सर हमारे यहां रेंट फैसिलिटी भी है... आप हमारे रेंट सेक्शन में चलिए... केवल ड्रॉप करके क्रूज को वापस आना हो तो, 2000 यूएसडी एक किलोमीटर के हिसाब से रेंट लगेगा। और एक नाइट का 10000 यूएसडी अलग से चार्ज देना होगा...

आर्यमणि:– नाइट चार्ज 10000 अलग से क्यू…

मार्केटिंग हेड:– एक रात ओवरटाइम करने के लिये क्रू का ये रेट है। उसके बाद अगली सुबह वो फिर से ऑफिशियल ड्यूटी पर होते हैं।

आर्यमणि:– देखिए हमे कई हजार किलोमीटर तय करने है... इसलिए 1000 यूएसडी एक किलोमीटर पर लगाए और नाइट चार्ज 2000…

मोल भाव का दौर चला, अंत में 1500 यूएसडी एक किलोमीटर और 4000 यूएसडी नाइट चार्ज फिक्स हो गया। 5000 यूएसडी एडवांस जमा करना पड़ा जो वापस नही होता और जिस दिन निकलते उस दिन तय जगह के हिसाब से पूरा पेमेंट...

प्रशांत महासागर में उतरने की तो पूरी प्लानिंग हो गयी थी। अब बस जो एक जरूरी बात थी वो ये की एक डॉक्टर को तैयार किया जाये, जो वहां रूही की देख–भाल के लिये मुस्तैद रहे। 2–3 दिन भटकना पड़ा लेकिन कैलिफोर्निया में एक भारतीय मूल के डॉक्टर से इनकी मुलाकात हो गयी। जूनियर डॉक्टर नाम कृष्णन मूर्ति...

बेचारा मूर्ति किस्मत का मारा... जब से हॉस्पिटल ज्वाइन किया था, अब तक एक ढंग का केस नही दिया। कुल मिलाकर वार्ड बॉय बना रखा था, जो केवल टांके और इंजेक्शन के लगाने के लिये था। मूर्ति की कमजोरी का फायदा आर्यमणि ने उठाया और सालाना 1 मिलियन यूएसडी पर हायर किया। मूर्ति बड़ी जिज्ञासावश आर्यमणि से पूछा.… "सर हमे काम कहां शुरू करना है।"…

आर्यमणि भी उतने ही शातिराना अंदाज में कह गया... "सुदूर इलाके में गरीबों की सेवा करनी है और तुम मुख्य डॉक्टर रहोगे... सारे इक्विपमेंट की लिस्ट दे दो.."

डॉक्टर मूर्ति और सभी लोगों के जाने की तारीख तय हो गई... 25 दिसंबर की शाम लॉस एंजेलिस से उन्हे रवाना होना था... डॉक्टर मूर्ति तो फूले न समाए। बेचारे के आंखों में खुशी के आंसू थे... मुख्य डॉक्टर जो लोगों की सेवा करने जायेगा और नाम कमा कर आयेगा... बेचारा मूर्ति...

कैलिफोर्निया में तो जैसे उत्सव सा हो रहा था। और हो भी क्यों न... 16 दिसंबर को जिस परिवार और दोस्तों से टर्की में मिलना था, उसे किसी तरह झांसा देकर 7 दिसंबर को ही कैलिफोर्निया बुला लिया गया था। वैसे आर्यमणि तो अपने दोस्त और परिवार को सीधा टर्की बुलाता लेकिन अलबेली ने अपना चक्कर चलाया और चित्रा सारा मामला सेट करती सबको 7 दिसंबर तक कैलिफोर्निया चलने के लिये राजी चुकी थी। इस पूरे वाक्ये में एक बात रोचक रही, घर के सभी लोग कैलिफोर्निया आ तो रहे थे पर किसी को पता नही था कि आर्यमणि की शादी तय हो चुकी है।
👍👍👍
 

Devilrudra

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भाग:–144


हालांकि 21 दिसंबर के शादी की खबर तो चित्रा को भी नही थी, किंतु जब अलबेली ने उसे यह खबर दी फिर तो वह फोन पर ही खुशी से झूमने लगी... उसके बाद तो फिर चित्रा ने भी आर्यमणि को उसका प्यारा वेडिंग गिफ्ट देने की ठान ली। यानी की किसी भी तरह से आर्यमणि के माता जया, पिता केशव कुलकर्णी, भूमि दीदी और कुछ अन्य लोगों के साथ 7 दिसंबर की सुबह कैलिफोर्निया पहुंचना। इस पूरे योजना में चित्रा ने निशांत की पूरी मदद ली, इस बात से अनभिज्ञ की निशांत को सब पहले से पता था।

भारत से सभी लोग न्यूयॉर्क पहुंचे चुके थे और न्यूयार्क से कैलिफोर्निया उनकी फ्लाइट सुबह 10 बजे पहुंचती। रूही और इवान तो नेरमिन के पैक के साथ 2 दिन पहले ही टर्की पहुंच चुके थे। अब केवल अलबेली बची थी जो आर्यमणि के उत्साह को झेल रही थी।

आर्यमणि सुबह के 4 बजे ही उठ गया और जाकर सीधा अलबेली को जगा दिया। यूं तो रोज सुबह 4 बजे ही वो जागती थी, लेकिन आज की सुबह अलबेली के लिए सरदर्द से कम नहीं थी। अलबेली रोज की तरह ही अपने ट्रेनिग एरिया में पहुंचकर अभ्यास शुरू कर चुकी थी। इसी बीच आर्यमणि अपने कमरे से बाहर आते.… "अरे तुम तैयार नहीं हुई, हमे एयरपोर्ट जाना है।"..

अलबेली अपना सर खुजाती… "एयरपोर्ट क्यों दादा"..

आर्यमणि:– भूल गई, आज 7 दिसंबर है, सब लोग पहुंच रहे होंगे.…

अलबेली अपने मोबाइल दिखाती.… “बॉस अनलोगों ने कुछ देर पहले न्यूयॉर्क से उड़ान भरी है। सुबह 10 बजे तक बर्कले पहुंचेंगे…

आर्यमणि:– हां अभी तो वक्त है.. एक काम करता हूं सो जाता हूं, वक्त जल्दी कट जायेगा... तुम भी ट्रेनिंग खत्म करके सो जाना...

आर्यमणि चला गया, अलबेली वहीं अपना रोज का अभ्यास करने लगी। सुबह 7 बजे के करीब वो अपना अभ्यास खत्म करके हाई स्कूल के लिए तैयार होने लगी। अलबेली स्कूल निकल ही रही थी कि पीछे से आर्यमणि उसे टोकते.… "स्कूल क्यों जा रही हो... सबको पिकअप करने नही चलोगी"…

अलबेली:– अब कुछ दिन बाद तो वैसे भी यहां के सभी लोग पीछे छूट जाएंगे... जबतक यहां हूं, कुछ यादें और समेट लूं... आप आ जाना मुझे लेने.. मैं वहीं से साथ चल दूंगी...

अलबेली निकल गयी लेकिन आर्यमणि का वक्त ही न कटे... किसी तरह 8.30 बजे और आर्यमणि भागा सीधा अलबेली के स्कूल.… उसके बाद तो बस अलबेली थी और आर्यमणि… कब पहुंचेंगे... कहां पहुंचे... पूछ पूछ कर अलबेली को पका डाला। आखिरकार सुबह के 10 बज ही गये और उनकी फ्लाइट भी लैंड कर चुकी थी।

एक ओर जहां आर्यमणि उत्साह में था, वहीं दूसरी ओर सभी मिलकर निशांत की बजा रहे थे। हुआ यूं की सुबह के 2.10 बजे ये लोग न्यूयॉर्क लैंड किए और सुबह के 3.20 की इनकी कनेक्टिंग फ्लाइट थी। पूरा परिवार कह रहा था की फ्लाइट छोड़ दो लगेज लेंगे पहले... लेकिन जनाब ने सबको दौड़ाते हुए कनेक्टिंग फ्लाइट पकड़वा दिया और समान न्यूयॉर्क एयरपोर्ट अथॉरिटी के भरोसे छोड़कर चले आये...

जब से कैलिफोर्निया लैंड हुये थे पूरा परिवार निशांत को गालियां दे रहा था और एयरपोर्ट अथॉरिटी को बुलाकर अपना सामान अगले फ्लाइट से कैलिफोर्निया भेजने कह रहे थे। इन लोगों ने उन्हे भी इतना परेशान किया की अंत में एयरपोर्ट प्रबंधन के मुख्य अधिकारी को आकार कहना पड़ा की उनका सामान पहले ही न्यूयॉर्क से रवाना हो चुका है, सुबह के 11.30 बजे वाली फ्लाइट से उनका सारा सामान पहुंच जायेगा...

अब हुआ ये की फ्लाइट तो इनकी 10 बजे लैंड कर गयी लेकिन ये लोग एयरपोर्ट के अंदर ही समान लेने के लिये रुक गये... अंदर ये लोग अपने समान के इंतजार में और बाहर आर्यमणि अनलोगो के इंतजार में... और ये इंतजार की घड़ी बढ़ते जा रही थी। एक–एक करके उस फ्लाइट के यात्री जा रहे थे और आर्यमणि बाहर उत्सुकता के साथ इंतजार में था..

आखिरकार सुबह के 11.35 बजे आर्यमणि के चेहरे पर चमक और आंखों में आंसू आ गये जब वो अपने परिवार के लोगों को बाहर आते देखा... वो बस सबको देखता ही रह गया... आर्यमणि को तो फिर भी सब पता था। लेकिन उधर...

जया बस इतनी लंबी जर्नी से परेशान थी। केशव, निशांत और चित्रा की बातों में आकर जया को यहां ले आया, इस वजह से जया, केशव को ही खड़ी खोटी सुना रही थी। वहीं भूमि अपने बच्चे के साथ थी और छोटा होने की वजह से वह काफी परेशान कर रहा था, जिसका गुस्सा wa चित्रा पर उतार रही थी, क्योंकि यहां आने के लिए उसे चित्रा ने ही राजी किया था। बाकी पीछे से चित्रा का लवर माधव और निशांत सबके समान ढो भी रहा था और इन सबकी कीड़कीड़ी का मजा भी ले रहे थे। हर कोई तेज कदमों के साथ बाहर आ रहा था। एयरपोर्ट के बाहर आने पर भी किसी की नजर आर्यमणि पर नही पड़ी।

बाकी सबलोग टैक्सी को बुलाने की सोच रहे थे, इतने में निशांत और चित्रा ने दौड़ लगा दी। पहले तो सब दोनो को पागल कहने लगे लेकिन जैसे ही नजर आर्यमणि पर गई, वो लोग भी भागे... आर्यमणि दोनो बांह फैलाए खड़ा था। चित्रा और निशांत इस कदर तेजी से आर्यमणि पर लपके की तीनो ही अनियंत्रित होकर गिर गये। गिर गये उसका कोई गम नही था, लेकिन मिलने की गर्मजोशी में कोई कमी नहीं आयी।

सड़क की धूल झाड़ते जैसे ही तीनो खड़े हुये, तीनो के ही कान निचोड़े जा रहे थे.… "जल्दी बताओ ये सब प्लान किसका था"…. जया ने सबसे पहले पूछा...

तभी एक जोरदार सिटी ने सबका ध्यान उस ओर आकर्षित किया.… "आप सभी आराम से घर चलकर दादा से मिल लेना... यहां तबियत से शायद खबर न ले पाओ…. क्योंकि घर पर किसी की बहु और पोता इंतजार कर रहा है, तो किसी की भाभी और भतीजा"…. अलबेली ने चल रहे माहोल से न सिर्फ सबका ध्यान खींचा बल्कि अपनी बातों से सबका दिमाग भी घुमा दी...

सभी लोग हल्ला–गुल्ला करते गाड़ी में सवार हो गये। आर्यमणि सफाई देने की कोशिश तो कर रहा था, लेकिन कोई उसकी सुने तब न.… सब को यही लग रहा था की आर्यमणि अपने बीवी और बच्चे से मिलवाने बुलाया है... सभी घर पहुंचते ही ऐसे घुसे मानो आर्यमणि की पत्नी और बच्चे से मिलने के लिए कितने व्याकुल हो... इधर आर्यमणि आराम से हॉल में बैठा... "अलबेली ये बीबी और बच्चा का क्या चक्कर है।"…

अलबेली:– इतने दिन बाद मिलने का ये रोना धोना मुझे पसंद नही, इसलिए इमोशनल सीन को मैंने सस्पेंस और ट्रेजेडी में बदल दिया...

इतने में सभी हल्ला गुल्ला करते हॉल में पहुंचे। घर का कोना–कोना छान मारा लेकिन कोई भी नही था। अब सभी आर्यमणि को घेरकर बैठ गये.…. "कहां छिपा रखा है अपनी बीवी और बच्चे को नालायक".. जया चिल्लाती हुई पूछने लगी…

भूमि:– मासी इतने दिन बाद मिल रहे हैं, आराम से..

जया:– तू चुपकर.... तेरा ही चमचा है न... पूछ इससे शादी और बच्चे से पहले एक बार भी हमे बताना जरूरी नही समझा..

माधव:– शादी का तो समझे लेकिन बच्चे के लिए भी गार्डियन से पूछना पड़ता है क्या?…

चित्रा उसे घूरकर देखी और चुप रहने का इशारा करने लगी।

भूमि:– आर्य, कुछ बोलता क्यों नही...

आर्यमणि:– मैं तो कव्वा के पकड़ में आने का इंतजार कर रहा हूं।..

सभी एक साथ... "महंझे"..

आर्यमणि:– मतलब किसी ने कह दिया कव्वा कान ले गया तो तुम सब कौवे के पीछे पड़े हो। बस मैं भी उसी कौवे के पकड़ में आने का इंतजार कर रहा हूं...

सभी लगभग एक साथ... "ओह मतलब तेरी शादी नही हुई है"…

आर्यमणि:– जी सही सुना शादी नही हुई है। इसलिए अब आप सब भी अपने मन के आशंका को विराम लगा दीजिए और जाकर पहले सफर के थकान को दूर कीजिए।

सभी लोग नहा धोकर फ्रेश होने चल दिये। आर्यमणि और अलबेली जब तक सभी लोगों के लिए खाने का इंतजाम कर दिया। सभी लोग फ्लाइट का खाना खाकर ऊब

चुके थे इसलिए घर के खाने को देखते ही उसपर टूट पड़े। शानदार भोजन और सफर की थकान ने सबको ऐसा मदहोश किया फिर तो बिस्तर की याद ही आयी।

सभी लोग सोने चल दिए सिवाय भूमि के। जो कमरे में तो गई लेकिन अपने बच्चे को सुलाकर वापस आर्यमणि के पास पहुंच गयी... "काफी अलग दिख रहे आर्या..."

आर्यमणि:– बहुत दिन के बाद देख रही हो ना दीदी इसलिए ऐसा लग रहा है.… वैसे बेबी कितना क्यूट है न... क्या नाम रखी हो?...

भूमि:– घर में सब अभी किट्टू पुकारते हैं। नामकरण होना बाकी है...

आर्यमणि:– क्या हुआ दीदी, तुम कुछ परेशान सी दिख रही हो…

भूमि:– कुछ नही सफर से आयी हूं इसलिए चेहरा थोड़ा खींचा हुआ लग रहा है...…

आर्यमणि:– सिर्फ चेहरा ही नही आप भी पूरी खींची हुई लग रही हो.…

भूमि, यूं तो बात को टालती रही लेकिन जिस कौतूहल ने भूमि को बेचैन कर रखा था उसे जाहिर होने से छिपा नहीं पायी। बहुत जिद करने के बाद अंत में भूमि कह दी.… "जबसे तू नागपुर से निकला है तबसे ऐसा लगा जैसे परिवार ही खत्म हो गया है। आई–बाबा का तो पता था, वो करप्ट लोग थे लेकिन जयदेव.. वो भी तेरे नागपुर छोड़ने के बाद से केवल 2 बार ही मुझसे मिला और दोनो ही बार हमारे बीच कोई बात नही हुई। परिवार के नाम पर केवल मैं, मेरा बच्चा, मौसा–मौसी और चंद गिनती के लोग है।"

"प्रहरी के अन्य साखा में क्या हो रहा है मुझे नही पता। उनलोगो ने नागपुर को जैसे किनारे कर दिया हो। यदि किसी बात का पता लगाने हम महाराष्ट्र के दूसरे प्रहरी इकाई जाते हैं, तो वहां हमे एक कमरे में बिठा दिया जाता है जहां हमसे एक अनजान चेहरा मिलता है। जितनी बार जाओ नया चेहरा ही दिखता है। किसी के बारे में पूछो तो बताते नही। किसी से मिलना चाहो तो मिलता नही। सोची थी नागपुर अलग करने के बाद प्रहरी समुदाय में क्या चल रहा है, वो आराम से पता लगाऊंगी लेकिन यहां तो खुद के परिवार का पता नही लगा पा रही। प्रहरी की छानबीन क्या खाक करूंगी। मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा"..

आर्यमणि:– जब कुछ समझ में नहीं आये तो सब वक्त पर छोड़ देना चाहिए। ऐसे मौन रहोगी तो कहां से काम चलेगा...

भूमि:– तू मेरी हालत नही समझ सकता आर्य। जिसका पति पास न हो और न ही पास आने की कोई उम्मीद उसके दिल का हाल तू नही समझ सकता...

आर्यमणि:– हां आपके दिल का हाल वाकई मैं नही समझ सकता लेकिन आपकी पीड़ा कम करने में मदद जरूर कर सकता हूं...

भूमि:– मतलब...

आर्यमणि:– मतलब जीजू को ढूंढ निकलूंगा और तुम तक पहुंचा दूंगा...

भूमि:– झूठी दिलासा मत दे। और शैतान तुझे हम सब को यहां बुलाने की क्यों जरूरत आन पड़ी? जनता भी है कितना बड़ा झोखिम उठाया है...

आर्यमणि:– कहीं कोई जोखिम नहीं है दीदी... रुको मैं तुम्हे कुछ दिखता हूं...

आर्यमणि अपनी बात कहकर वहां से उठा और अपने साथ अनंत कीर्ति की पुस्तक लेकर लौटा। अनंत कीर्ति की पुस्तक भूमि के गोद में रखते.… "खोलो इसे"..

भूमि आश्चर्य से आर्यमणि को देखती.… "क्या तुमने वाकई"…

आर्यमणि:– मेरी ओर सवालिया नजरों से देखना बंद करो और एक बार खोलो तो...

भूमि ने जैसे ही कवर को हाथ लगाकर पलटा वह पलट गई। भूमि के आश्चर्य की कोई सीमा नही थी। बड़े ही आश्चर्य से वो वापस से आर्यमणि को देखती... "ये कैसे कर दिया"…

आर्यमणि:– बस कर दिया... यहां प्रकृति की सेवा करते हुये मैने कई पेड़–पौधे को सूखने से बचाया। कई जानवरों का दर्द अपने अंदर समेट लिया। बस उन्ही कर्मो का नतीजा था कि एक दिन इस पुस्तक को पलटा और ये खुल गयी। इसके अंदर क्या लिख है वो तो अब तक पढ़ नही पाया, लेकिन जल्द ही उसका भी रास्ता निकाल लूंगा...

भूमि:– क्या कमाल की खबर दिया है तुमने... मैं सच में बेहद खुश हूं...

आर्यमणि:– अरे अभी तो केवल खुश हुई हो... जब जयदेव जीजू तुम्हारे साथ होंगे तब तुम और खुश हो जाओगी…

भूमि:– जो व्यक्ति किताब खोल सकता है वो मेरे पति के बारे में भी पता लगा ही लेगा।

आर्यमणि:– निश्चित तौर पर... अब तुम जाओ आराम कर लो... जबतक मैं कुछ सोचता हूं...

भूमि, आर्यमणि के गले लगकर उसके गालों को चूमती वहां से चली गयी। अलबेली वहीं बैठी सब सुन रही थी वो सवालिया नजरों से आर्यमणि को देखती... "भूमि दीदी से झूठ बोले और झूठा दिलासा तक दिये"..

आर्यमणि:– कभी कभी कुछ बातें सबको नही बताई जाती...

अलबेली:– लेकिन बॉस जयदेव जैसे लोगों के बारे में झूठ बोलना..

आर्यमणि:– तो क्या करता मैं। बता देता की जैसा तुम शुकेश और मीनाक्षी के बारे में सोच रही वैसा करप्शन की कोई कहानी नही बल्कि उस से भी बढ़कर है। जयदेव भी उन्ही लोगों से मिला है। मिला ही नही बल्कि वो तो तुम्हारे मम्मी पापा के जैसे ही एक समान है।

अलबेली:– हे भगवान... फिर तो भूमि दीदी का दर्द...

आर्यमणि:– कुछ बातों को हम चाहकर भी ठीक नहीं कर सकते। उन्हे वक्त पर छोड़ना ही बेहतर होता है। कई जिंदगियां तो पहले से उलझी थी बस जब ये उलझन सुलझेगी, तब वो लोग कितना दर्द बर्दास्त कर सकते हैं वो देखना है... चलो फिलहाल एक घमासान की तैयारी हम भी कर ले...

अलबेली:– कौन सा घमासान बॉस...

आर्यमणि:– रूही और मेरी शादी का घमासान...

अलबेली:– इसमें घमासान जैसा क्या है?

आर्यमणि:– अभी चील मारो... जब होगा तो खुद ही देख लेना.…

आर्यमणि क्या समझना चाह रहा था ये बात अलबेली को तो समझ में तब नही आयी, लेकिन शाम को जैसे ही सब जमा हुये और सबने जब सुना की आर्यमणि, रूही से शादी कर रहा है, ऐसा लगा बॉम्ब फूटा हो। सब चौंक कर एक ही बात कहने लगे.... "एक वुल्फ और इंसान की शादी"…

"ये पागलपन है।"… "हम इस शादी को तैयार नहीं"… "आर्य, तुझे हमेशा वुल्फ ही मिलती है।"…. "तु नही करेगा ये शादी"…. कौतूहल सा माहोल था और हर कोई इस शादी के खिलाफ... भूमि आवेश में आकर यहां तक कह गयी की वो लड़की तो सरदार खान के किले में लगभग नंगी ही घूमती थी। जिसने जब चाहा उसके साथ संबंध बना लिये, ऐसी लड़की से शादी?…

भूमि की तीखी बातें सुनकर आर्यमणि को ऐसा लगा जैसे दिल में किसी ने तपता हुआ सरिया घुसेड़ दिया हो। कटाक्ष भरे शब्द सुनकर आर्यमणि पूरे गुस्से में आ चुका था और अंत में खुद में फैसला करते वह उस स्वरूप में सबके सामने खड़ा हो गया, जिसे देख सबकी आंखें फैल गयी। वुल्फ साउंड की एक तेज दहाड़ के साथ ही आर्यमणि गरजा…. "लो देख लो, ये है आर्यमणि का असली रूप। और ये रूप आज का नही बल्कि जन्म के वक्त से है। मेरा नाम आर्यमणि है, और मैं एक प्योर अल्फा हूं।"….
Nice👍👍👍
 
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