भाग:–163
"लेकिन आर्य"…. रूही ने इतना ही कहा, और अगले ही पल आर्यमणि की तेज दहाड़ उन फिजाओं में गूंज गयी। यह आर्यमणि की गुस्से से भरी प्रतिक्रिया थी जिसके जवाब में रूही बस अपना सिर नीचे कर उसकी बात मान ली। आर्यमणि तेज दहाड़ने के साथ ही दर्द और वियोग वाली आवाज के ओर चल दिया।
इसके पूर्व पूरी कहानी तब जाकर फंस गई जब विजयदर्थ ने अपनी पहली संतान निमेषदर्थ को आर्यमणि के बारे में पता लगाने कहा। जैसे–जैसे वह आर्यमणि को जानता गया, आर्यमणि की शक्तियों के ओर आकर्षित होता गया। हालांकि यह इतनी भी बड़ी वजह नही थी कि निमेषदर्थ, आर्यमणि के दुश्मनों से हाथ मिला ले।
लेकिन फिर उसे गर्भ में पल रही आर्यमणि की बेटी अमेया के बारे में पता चला। जैसा की अंदाजा लगाया जा रहा था अमेया अपने माता–पिता के गुण वाली अलौकिक बालिका होगी, जिसे सौभाग्य प्राप्त होगा। अर्थात यह बालिका जिस किसी के पक्ष में होगी, जीत उसके कदमों में। फिर क्या था, महासागर का राजा बनने का सपना एक बार फिर जोड़ पकड़ लिया। जो सिंहासन महाती के हाथों में जाती दिख रही थी, उसे अपने ओर करने की मुहिम ने निमेषदर्थ को यह कदम उठाने के लिये मजबूर कर गया।
निमेषदर्थ और नायजो समुदाय की माया तो पहले ही सभी योजना बना चुके थे। उन्हे बस सही मौके पर सही दाव खेलना था। हां लेकिन निमेषदर्थ की वास्तविक मनसा जो माया को नही पता थी, वो थी अमेया... प्राथमिकता की सूची में आर्यमणि तो दूसरे स्थान पर था, किंतु अमेया प्रथम निशाना थी। हालांकि निमेषदर्थ अपने बाज से अमेया का अपहरण तो करवा चुका होता, लेकिन बीच में आर्यमणि और उसका पूरा पैक था, जिसे मारे बिना यह कार्य संभव नही था और निमेषदर्थ अकेले अल्फा पैक को मार नही सकता था।
अमेया के जन्म दिन पर ही निमेषदर्थ और माया के बीच समझौता हो चुका था। समझौते के बाद निमेषदर्थ अपनी काली नजर कॉटेज के आस–पास गड़ाए था। 7 दिन इंतजार के बाद निमेषदर्थ अमेया की एक झलक पाया। उसी सातवें दिन जलीय मानव प्रजाति ने अमेया को गोद में भी लिया था। उसी भीड़ का हिस्सा निमेषदर्थ भी था। वह जब आमेया को गोद में लिया ऐसा सुकून में था कि जैसे वह शून्य काल में पूरे राहत से लेटा हो।
निमेषदर्थ सबकी नजरों से बचाकर, अमेया के गले मे लटके 2–3 पत्थरों के बीच एक सम्मोहन पत्थर डाल दिया। निमेषदर्थ इसी सम्मोहन के सहारे ही बाज के झुंड से अमेया को शांतिपूर्वक अगवा कर सकता था। पूरा जाल बिछाया जा चुका था, बस सही मौके का इंतजार था। हालांकि महासागर के अंदर यात्रा के दौरान आर्यमणि, निमेषदर्थ को अच्छे से समझ चुका था और नए दुश्मन से भिड़ने के बदले उसने जगह ही छोड़ने का मन बना लिया था। टापू से बस एक दिन में पूरा काम समेटकर निकलने की पूरी तैयारी भी हो चुकी थी परंतु किस्मत....
निमेषदर्थ को पहला मौका तब मिल गया, जब अलबेली और इवान, आर्यमणि से अलग होकर महासागर घूमने निकले। वहीं दोनो (अलबेली और इवान) की मुलाकात निमेषदर्थ से हो गयी। पौराणिक वस्तु और महासागर के योगियों को दिखाने के बहाने, निमेषदर्थ, अलबेली और इवान को योगियों की ऐसी भूमि पर लेकर गया, जहां उसके शरीर की रक्षा कर रहा सुरक्षा मंत्र खुद व खुद निरस्त हो गया। दोबारा अलबेली और इवान के शरीर को बांधने के लिये आर्यमणि था नही, जिसका नतीजा यह हुआ की दोनो निमेषदर्थ के सम्मोहन में थे।
निमेषदर्थ का पहला दाव पूरे निशाने पर लगा। अलबेली और इवान पूर्णतः सम्मोहन में थे। अब बस उनके जरिए पूरे अल्फा पैक को लपेटना था। सुबह जैसे ही आर्यमणि ने वुल्फ कॉलिंग साउंड से अलबेली और इवान को आवाज लगाया, निमेषदर्थ और माया की योजना शुरू हो गयी। पहाड़ियों के ऊपर किसी को रोक के रखने के लिए बड़े–बड़े मौत के घेरे बनाए जा चुके थे।
घेरा केवल माया और विवियन जैसे नायजो ने ही नही बनाया, अपितु मधुमक्खी की रानी चिची ने भी अपना योगदान दिया। पहले ही अल्फा पैक के पास उन किरणों के घेरे से निकलने का कोई तोड़ नही था, ऊपर से चीचि का सहयोगी घेरा। मौत के बड़े–बड़े घेरे तैयार थे। आर्यमणि की आवाज सुनते ही आगे की योजना शुरू हो गयी। पहले से सम्मोहित अलबेली और इवान, निमेषदर्थ के मात्र एक इशारे से खुद ही मौत के घेरे में आ गये। अलबेली और इवान को मौत के एक अदृश्य घेरे के अंदर फसाकर यातनाएं दी जाने लगी। जैसे ही आर्यमणि और रूही के कानो में इनके वियोग की आवाज पहुंची, रूही अमेया के पास गयी और आर्यमणि दौड़ते हुए आवाज की ओर...
रक्षा मंत्र का उच्चारण करते आर्यमणि पूरी रफ्तार के साथ आगे बढ़ा। पहाड़ियों के दक्षिण भाग से आवाज आ रही थी। पहले के मुकाबले अभी ये जगह काफी बदली हुई नजर आ रही थी। शायद नभीमन पूरे भू–भाग को सतह पर ला चुका था। पहाड़ के दक्षिणी हिस्से से आर्यमणि बिलकुल अनजान था, किंतु वो हवा को परख रहा था। हवा में फैली गंध को महसूस कर रहा था।
इसी बीच एक बार मानो आर्यमणि की धड़कन थम गयी हो, उसके प्राण शरीर से निकल गया हो। ऐसा लगा जैसे ब्लड पैक का कोई वुल्फ मृत्यु के करीब पहुंच चुका हो। प्राण निकलने जैसा महसूस कर ही रहा था कि इतने में वियोग में तड़पती अलबेली की चिंखे कानो में सुनाई देने लगी। आर्यमणि भागकर वहां पहुंचा, और आंखों के आगे का नजारा देखकर मानो पागल हो गया हो। इवान का शरीर 2 हिस्सों में चीड़ दिया गया था। रक्त भूमि पर फैला हुआ था। वहीं कुछ दूर खड़ी अलबेली बस रो रही थी, किंतु हिल भी नहीं पा रही थी।
आर्यमणि तेज वुल्फ साउंड निकालते चारो ओर देखने लगा। इतने में उसके कान में रूही की दूर से आती आवाज सुनाई दी.… "मेरी बच्ची.… आर्य... वो बाज... वो बाज.. अपनी बच्ची को ले जा रहा"…
एक ओर इवान की लाश, और पास में बेबस अलबेली। दूर–दूर तक दुश्मन नजर नहीं आ रहा था। दिमाग कुछ काम करता उस से पहले ही रूही की आवाज कान में थी और नजर जब आकाश में गई तब एक बाज अमेया को हवा में उड़ाकर लिये जा रहा था। आर्यमणि होश हवास खोये, उस बाज के पीछे दौड़ लगा दिया। दूर से रूही की चिल्लाती आवाज भी आ रही थी, वह भी बाज के पीछे दौड़ लगा रही थी।
बाज कई फिट हवा में था और अचानक ही उसने अमेया को नीचे छोड़ दिया। ऊंचाई से अपनी बच्ची को नीचे गिड़ते देख रूही चक्कड़ खा कर गिर गयी। वहीं आर्यमणि के नजरों के सामने अमेया गिरी। आर्यमणि से तकरीबन 500 फिट की दूरी रही होगी और अपनी बच्ची को बचाने के लिए आर्यमणि ने एक छलांग में पूरे 500 फिट की दूरी तय करके ठीक अमेया के नीचे अपने दोनो पंजे फैलाए था.…
ऊप्स… अमेया नीचे तो गिड़ी किंतु जमीन पर आने से पहले ही वो किसी दूसरे बाज के चंगुल में फसी थी। वो बाज काफी तेजी से अमेया को ले उड़ा। आर्यमणि भी उसके पीछे जाने को तैयार, लेकिन अफसोस वह मौत के घेरे में फंस चुका था। ये किस तरह का जाल था और इस जाल से कैसे बचे आर्यमणि को कुछ पता नही, ऊपर से दिमाग ने तो जैसे काम करना बंद कर दिया था...
अलबेली, आर्यमणि से कुछ दूरी पर फंसी हुई थी। हां लेकिन वियोग के वक्त जब सम्मोहन टूटा, तब सबसे पहले उसने हाथ में लगे बैंड को रब करने लगी, जिसका ट्रांसमिशन सिग्नल अपस्यु और उसकी पूरी टीम के पास पहुंच रहा था। उनके पास भी जैसे ही यह ट्रांसमिशन सिग्नल पहुंचा, वो लोग भी निकल चुके थे, लेकिन शायद नियति लिखी जा चुकी थी.…
आर्यमणि हील नही पा रहा था और खुद की बेबसी पर वो क्ला अपने गालों में ही घुसाकड़ उसे नोच रहा था। इसी बीच राहत तब हुई जब बाज, अमेया को लेकर वापस आर्यमणि के ओर चला आ रहा था। इधर सामने से बाज आ रहा था तो पीछे से रूही दौड़ती हुई आ रही थी। अलबेली और आर्यमणि दोनो चिल्लाते हुये उसे आगे नहीं आने कह रहे थे, लेकिन एक मां को सुध कहां थी। वो तो खतरे में फंसी अपनी बच्ची को देख रही थी। और अंत में नतीजा वही हुआ जो अलबेली और आर्यमणि का था। रूही भी एक घेरे में कैद हो चुकी थी।
आर्यमणि, रूही, अलबेली तीनो ही 15 फिट की दूरी पर थे और लगभग अलबेली से उतने ही दूरी पर इवान का पार्थिव शरीर 2 हिस्सों में बंटा था। रूही की नजर जब इवान के मासूम चेहरे पर गई, उसकी हलख से चींख निकली। माहौल समझ से पड़े था। दिमाग को जैसे सुन्न कर दिया गया हो। सामने अपने परिवार में से किसी एक की लाश और सर पर नवजात बच्ची खतरे में।
तभी सामने से एक जाना पहचाना चेहरा निमेषदर्थ और उसके साथ एक अनजान लड़की, नयजो समुदाय की माया, चली आ रही थी। उसे देखकर ही आर्यमणि का गुस्सा फूट पड़ा.… "विनायक की कसम आज तेरे गर्दन को अपने पंजों से चिड़कर तुझे मरूंगा"…
आर्यमणि चिंखते हुए कहा और अगले ही पल माया अपने पीठ से वही दिव्य खंजर निकाली जो रीछ स्त्री महाजानिका के पास थी। ऐसा खंजर जो किसी मंत्र के घेरे से बंधे, सुरक्षित इंसान को मंत्र समेत चीड़ सकती थी। माया खंजर निकालकर अलबेली का गला एक ही वार में धर से अलग करती.… "लो तुम्हारे एक आदमी (इवान) को मारने के लिये तुम निमेष का गला चिड़ते, इसलिए मैंने तुम्हारे एक साथी के साथ वही कर दिया"..
आर्यमणि पूरा हक्का–बक्का... जुबान ने जैसे साथ छोड़ दिया हो। पूरे बदन से जैसे जान ही निकल चुकी थी। रूही ने जब ये मंजर देखा, ऐसा लगा जैसे सिर घूम गया हो। वह चीखना और चिल्लाना चाह रही थी लेकिन वियोग ने जैसे उसकी आवाज को हलख में ही कैद कर लिया हो... पूरे दर्द और कर्राहट भरे शब्दों में किसी तरह आवाज निकला.… "अलबेलीईईईईईईई"..
जैसे ही रूही की सिसकी भरी आवाज में अलबेली निकला, उसके अगले ही पल खंजर सिर के बीच से घुसा और रूही को 2 टुकड़े में विभाजित करता बाहर आया... उस खंजर ने रूही के तड़प को अंत दे दिया किंतु आर्यमणि बौखलाहट से पागल हो चुका था। आर्यमणि की दहाड़ भयावाह थी। उसके गुस्से और वियोग की चीख मिलो सुनी जा सकती थी। आर्यमणि चींखते–चिल्लाते अपनी जगह से बाहर निकलने के लिये पागल हुआ जा रहा था लेकिन बाहर आना तो दूर की बात है, हील भी नही पा रहा था.… पूरी कोशिश करके देख लिया और अंत में बेबस होकर.… "मुझे भी मार ही दो, अब तक जिंदा क्यों रखे हो"…
निमेषदर्थ की गोद में अमेया थी, जिसे पुचकारते हुये वह आर्यमणि को देखा.… "बड़ी प्यारी है ये... वैसे तुम्हे भी जिंदा रखने का कोई इरादा नहीं.. लेकिन उस से पहले एक काम कर लूं... माया जरा आर्यमणि का खून मुझे इस डिब्बे में दो। फिर ये शिकार भी तुम्हारा"..
माया:– बड़े शौक से राजकुमार...
माया अपनी बात कहती आगे बढ़ी और खंजर की नोक को सीधा आर्यमणि के हृदय में उतारकर अपने कलाई को थोड़ा नीचे कर दी। रक्त की धार खंजर पर फैलती हुई नीचे कलाईयों तक आने लगी। निमेषदर्थ एक जार लगाकर सारा खून एकत्रित करने लगा... जार जब भर गया... "माया मेरा काम हो गया, इसे मार दो"…
माया:– और ये आर्यमणि की वारिश… बच्ची अलौकिक है, कल को हमसे बदला लेने आयी तो...
निमेषदर्थ:– इस घटना का कोई सबूत होगा तब न ये बदला लेगी। उल्टा आज से मैं इसका बाप हूं और ये मेरे दुश्मनों से बदला लेगी...
माया, खंजर को हवा में ऊपर करती.… "फिर तो आश्रम के इस गुरु को मारकर एक बार फिर आश्रम की कहानी को उसी गर्त में भेज देते है, जहां इसके पूर्व गुरु निशि को हमने भिजवाया था। आगे के 10–15 साल बाद कोई इस जैसा पैदा होगा, और तब एक बार और हम मजेदार खेल खेलेंगे... तुम भी दर्द से मुक्ति पाओ आर्यमणि"… अपनी बात खत्म करती माया ने खंजर को झटके से मारा... और खंजर सीधा आर्यमणि के सर के बीचों बीच।
भयानक तूफान सा उठा था। एक ही पल में पूरी जगह जलनिमग्न हो गयी। जिस पहाड़ पर यह भीषण हत्याकांड चल रही थी, वह पहाड़ बीच से ढह गयी। ऐसा लग रहा था, दो पहाड़ के बीच गहरी खाई सी बन गयी हो। निमेषदर्थ, चिचि और माया तीनो ही महासागर में उठे सुनामी जैसे तूफान में कहां गायब हुये पता ही नही चला। निमेषदर्थ के हाथ से अमेया कहां छूटी उसे पता भी नही चला। तूफान जब शांत हुआ तब उसी के साथ पूरा माहौल भी शांत था और अल्फा पैक के मिटने के सबूत भी पूरी तरह से गायब।
बहुत ही शानदार लाजवाब अपडेट भाई
अल्फा पेक भावनाओं से जुड़ा हुआ है उसी भावना का इस्तेमाल करके अल्फा पेक को मिटा दिया नैन भाई
जों ताकत थीं वहीं कमजोरी बन गई नैन भाई
महाजनिका का चाकू माया के पास कैसे आया नैन भाई
यह कोई ऐसी चीज नहीं हैं जो दुसरो को इस्तेमाल के लिए उधार दी जा सकें
क्या सच में अल्फा पेक ऐसे ही मिट गया बिना लड़ाई झगड़ा कियें
जैसे कि वो कुछ भी नहीं था नैन भाई
क्या छुपा रहें हों नैन भाई
यह खुन का क्या करने वाला है निमेषदर्थ