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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

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Bhupinder Singh

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भाग:–173


जबतक महा पानी गरम करती, मेटल टूथ की टुकड़ी दूध भी वहां पहुंचा चुकी थी। आर्यमणि के लिये चाय, जूनियर के लिये नाश्ता तैयार करने के बाद महा आर्यमणि के लिये बेड–टी लेकर चल दी। महा ने आर्यमणि को उठाकर चाय दी और फटाफट तैयार होने कह दी और खुद जूनियर को खिलाने लगी। नाश्ता इत्यादि करने के बाद खिलती धूप में महा, आर्यमणि के साथ सफर पर निकलने के लिये तैयार थी।

आर्यमणि:– नही पहले अनंत कीर्ति की पुस्तक को तो साथ ले लूं।

महा:– लेकिन वो किताब तो वो चुड़ैल की बच्ची परिग्रही माया ले गयी थी ना।

आर्यमणि:– वो जो ले गयी है उसे बर्बादी का सामान कहते है। अनंत कीर्ति से मिलती–जुलती किताब। उस किताब में भी अनंत जानकारी थी और उसे कोई भी पढ़ सकता था। लेकिन वह किताब जो भी पढ़ेगा उसकी पूरी जानकारी अनंत कीर्ति की पुस्तक में अपने आप छपेगी। इसका मतलब जानती हो...

महा:– इसका मतलब हमारे पास उसकी जानकारी होगा जो बहरूपिया किताब को पढ़ रहा होगा।

आर्यमणि:– इतना ही नहीं, एक बार जिसकी कहानी अनंत कीर्ति की पुस्तक में छप गयी फिर वो पृथ्वी के जिस भू–भाग में छिपा रहे, उस स्थान का पता हमे अनंत कीर्ति की पुस्तक बता देगी।

महा:– पतिदेव कहीं वो महासागर में छिपे हो तब?

आर्यमणि:– मैं अनंत कीर्ति की पुस्तक को पूरे महासागर की सैर करवा दी है। अनंत कीर्ति की किताब वहां का पता भी बता देगी...

महा:– पतिदेव मैं समझी नहीं... अनंत कीर्ति की पुस्तक को आप महासागर के तल में लेकर घूमे तो वो किताब वहां छिपे किसी इंसान का पता कैसे बता सकती है?

आर्यमणि:– लंबा विवरण है। मै संछिप्त में समझता हूं। ये पुस्तक जिस वातावरण और इंसान के संपर्क में आती है, उसका ऊपरी विवरण स्वयं लिख लेती है। यदि कोई खास घटना हो जो किताब की अनुपस्थिति में हुआ हो, उसे मैं लिख देता हूं। अब यदि किसी चिन्हित इंसान की खोज कर रहे हो तो ये किताब उन सभी जगह को दर्शा देगा जहां से वो इंसान गुजरा था।

महा:– लेकिन पतिदेव ऐसा भी तो संभव हो सकता है कि यह पुस्तक उस जगह को कभी देखा ही न हो जहां कोई भगोड़ा छिपा हो।

आर्यमणि:– हां संभव है। लेकिन यदि वो भगोड़ा अंतर्ध्यान होकर भी किसी एक स्थान से दूसरे स्थान तक गया हो तो भी किताब उस आखरी स्थान को बता देगी जिसे किताब ने देखा था, या किताब में उस जगह के बारे में वर्णित किया था। जैसे की किताब यदि पाताल लोक के दरवाजे तक पहुंची थी और कोई पाताल लोक में छिपा हो तो किताब उसकी आखरी जानकारी पाताल लोक का दरवाजा दिखाएगी।

महा:– बहुत खूब। ये किताब वाकई अलौकिक है और इसे बनाने वाले तो उस से भी ज्यादा अलौकिक रहे होंगे। ठीक है पतिदेव यहां से प्रस्थान करते हैं।

आर्यमणि:– चाहकीली के साथ हम मानसरोवर झील तक चलेंगे। उसे कैलाश मार्ग मठ का पता मालूम है।

आर्यमणि कॉटेज के बाहर गया और भूमिगत स्थान से अनंत कीर्ति की किताब निकालकर आगे की यात्रा के लिये तैयार था। आर्यमणि और महा, जूनियर के साथ महासागर किनारे तक आये। एक छोटी सी ध्वनि और चाहकीली पानी के सतह से सैकड़ों मीटर ऊपर निकलकर छलांग लगाते छप से पानी में गिरी... “चाचू, तो तैयार हो चलने के लिये।”..

आर्यमणि:– हां बिलकुल चाहकीली... आज से अपना वक्त शुरू होता है। जिसने जो दिया है उसे लौटाने का वक्त आ गया है।

चाहकीली:– तो फिर चलो...

चाहकीली के पंख में सभी लॉक हुये और मात्र कुछ ही घंटों में मानसरोवर झील में थे। आर्यमणि, चाहकीली को छोड़ कैलाश मार्ग मठ में चल दिया। आर्यमणि मठ से जब कुछ दूरी पर था तभी उसे पूरा क्षेत्र बंधा हुआ दिखा।

“महा यहां कोई भी नही। इस पूरे क्षेत्र को बांधकर सब कहीं गये है।”...

“फिर हम कहां जाये पतिदेव।”..

“वहीं जहां सब गये है। अमेया भी वहीं मिलेगी। लगता है हम सही वक्त पर पहुंचे है। चाहकीली क्या तुम ठीक हमारे नीचे हो।”..

चाहकीली:– हां बिलकुल चाचू...

आर्यमणि:– ठीक है, तो फिर तैयार रहो। हिमालय के तल से होकर गुजरना है। उत्तरी हिमालय से हम पूर्वी हिमालय सफर करेंगे।

चाहकीली:– तो क्या अभी मैं जमीन फाड़कर ऊपर आऊं।

“बिलकुल नहीं” कहते हुये आर्यमणि ने अपना हाथ फैलाया और जड़ें उन्हे बर्फ के नीचे पानी तक लेकर पहुंच गयी। चाहकीली उन्हे देख आश्चर्य करती.... “ये कैसे किये चाचू। पहले तले से जड़ें ऊपर निकली और आपको लेकर नीचे चली आयी।”...

आर्यमणि:– बस कुछ करतब अब भी इन हाथों में बाकी है। अब चले क्या। और हां जहां कहूं बिलकुल धीमे हो जाओ, तो वहां धीमे हो जाना।

चाहकीली:– क्यों चाचू...

महा:– ओ बड़बोली, कुछ देख कर भी समझ लेना कितने सवाल पूछती है?

चाहकीली:– हां मैं बड़बोली... और खुद के जुबान पर तो ताला लगा रहता है ना। भूल मत मेरे साथ खेलकर ही बड़ी हुई थी।

महा:– चाहकीली चल अब, वरना मुझे भी तेरे बारे में वो पता है जिसे मैं चाहती नही की कोई जाने।

चाहकीली:– अब क्या बीती बातों को कुरेदना। मै चलती हूं ना। सभी लोग लॉक हो गये ना...

महा और आर्यमणि एक साथ... “हां हम लॉक हो गये है।”...

चाहकीली ने बढ़ाई रफ्तार और सबको लेकर उस क्षेत्र के आस–पास पहुंच गयी जो सात्त्विक आश्रम का गढ़ कहा जाता था। कंचनजंगा के पहाड़ियों के बीच अलौकिक गांव जिसे कभी उजाड़ दिया गया था किंतु तिनका–तिनका समेटकर एक बार फिर उस आशियाने को बसा दिया गया था।

सात्विक गांव की सीमा में पहुंचते ही आर्यमणि का तेज मंत्र उच्चारण शुरू हो चुका था। पानी के अंदर जड़ें चाहकीली को आगे के रास्ता बता रही थी। पहले जड़े आगे जाति फिर चाहकीली। धीरे–धीरे बढ़ते हुये तीनो गांव के सरोवर तक पहुंचे। भूतल के जल से जैसे–जैसे ये लोग सरोवर के सतह पर आ रहे थे, मंत्रो के मधुर उच्चारण साफ, और साफ ध्वनि में सुनाई दे रही थी। सरोवर के जल की सतह पर अचानक ही बड़ा विछोभ पैदा हुआ और वहां मौजूद सबकी आंखें बड़ी हो गयी।

जल की सतह पर चाहकीली का मात्र आंख और ऊपर का भाग ही सबको दिखा और इतने बड़े काल जीव की कल्पना कर सब सहम से गये। सब बड़े ध्यान से उसी जीव को देख रहे थे।

इसके पूर्व सात्विक आश्रम का पुर्रनिर्माण तब और भी ज्यादा तेज हो गया जब सात्विक गांव के खोये 2 अलौकिक धरोहर मिल चुके थे। सात्विक गांव का निर्माण के वक्त मूल आधारभूत पत्थरों में सबसे अलौकिक और सबसे उत्कृष्ट पत्थर, रक्षा पत्थर, आर्यमणि पाताल लोक से आचार्य जी के पास पहुंचा चुका था। शायद इस अलौकिक पत्थर की ही माया थी कि जैसे ही वह पत्थर आचार्य जी के पास पहुंची, ठीक उसके बाद हर किसी की वापसी होने लगी।

विशेष–स्त्री समुदाय, जिसे सात्विक आश्रम ने विलुप्त मान लिया था, उसका पूर्ण स्वरूप विष–जीविषा खुद ही सात्त्विक आश्रम को ढूंढती हुई पहुंची थी। जीविषा के पास गुरु वशुधर की आत्मा थी। गुरु वशुधर अपने वक्त के महान और ज्ञानी ऋषि थे, जिन्होंने कई कार्य संपन्न किये थे। हजार वर्ष पूर्व गुरु वशुधर कहीं गायब हो गये थे। जीविषा गुरु वशुधर के गायब होने के पीछे की कहानी और उनकी अतृप्त आत्मा को लेकर पहुंची थी, जिसे उसे मुक्त करवाना था। इस प्रकार से गांव को पूर्ण विकसित करने के सभी तत्व इकट्ठा हो चुके थे। बस कुछ अर्चने थी इसलिए अपस्यु ने कुछ वक्त के लिये योजन को टाल दिया था।

शायद यह एक प्रकार से अच्छा ही हुआ था क्योंकि आश्रम अपने एक गुरु के अनुपस्थिति में कैसे उस शक्ति खंड की स्थापना करवा सकता था। शायद उस शक्ति खंड ने ही यह पूरा चक्र रचा था, वरना आर्यमणि के वापस लौटने की उम्मीद ही सबने छोड़ दिया था। अचानक दिखे इतने विशालकाय जीव को सब बड़े ध्यान से देख रहे थे। तभी आचार्य जी और ऋषि शिवम् आगे आकर सबको मुस्कुराने कहे क्योंकि उन्हें आभाष हो चुका था कि कौन आया है.... “गुरुदेव आपने वापस लौटने का उत्तम वक्त चुना है। अब पानी से बाहर भी आ जाइए।”...

ऋषि शिवम सरोवर के निकट पहुंच कर कहने लगे। उनकी बात सुनकर आर्यमणि ने इशारा किया और चहकीली का भव्य शरीर धीरे–धीरे हवा में आने लगा। करीब 100 फिट हवा में ऊपर जाने के बाद जब शरीर थोड़ा और ऊपर आया तब वहां से आर्यमणि, महा को लेकर जमीन पर उतरा। आर्यमणि को देख अपस्यु दौड़ा चला आया। मजबूत भुजाओं से गले लगाते.... “बड़े एक सूचना तक नही। इतने भी क्या हम सब से मुंह मोड़ लिये थे।”...

आर्यमणि:– छोटे, योजन को बीच में नही छोड़ते। अभी कुछ दिनों तक यहां हूं। आराम से बात करते है।

अपस्यु:– हां सही कहे बड़े... बिना तुम्हारे शायद ये योजन अधूरा रह जाता।

कुछ औपचारिक बातों के बाद सभी योजन पर बैठ गये। लगातार 2 दिन तक मंत्र उच्चारण चलता रहा। हर पत्थर को केंद्र बिंदु से लाकर पूरे क्षेत्र में स्थापित किया गया। मंत्रो से पूरे जगह को बंधा गया। 2 दिनो तक कोई भी योजन से उठा ही नही। वहां बस योजन का हिस्सा नहीं थे, वो थी महा और अमेया।

महा जिस कुटिया में गयी वहीं अमेया भी थी। भला आर्यमणि के बच्चो की आंखें अलग कैसे हो सकती थी। सामान्य रूप से नीली आंखें और जब चमके तो लाल हो जाया करती थी। महा, व्याकुलता से अमेया को अपने सीने से लगाती.... “मेरी बच्ची कैसी है।”..

अमेया:– मैं आपकी बच्ची नही, अपनी मासी की बच्ची हूं। वो अभी यज्ञ में बैठी है।

महा:– अल्ले मेरी रानी बिटिया अपनी मां से इतनी नाराज। एक बात बताओ यहां सब यज्ञ में बैठे है तो तुम्हारा ख्याल कौन रखता है?

अमेया:– मैं इतनी बड़ी हो चुकी हूं कि खुद का ख्याल रख सकूं। ये बाबू कौन है?

महा:– ये तुम्हारा भाई है...

अमेया:– क्या सच में ये मेरा भाई है?

महा:– हां सच में ये तुम्हारा भाई है और मैं तुम्हारी मां।

अमेया:– फिर वो कौन है जो मुझसे काफी दूर चली गयी और फिर कभी लौटकर नहीं आयेगी। मासी कहती है वही मेरी मां थी।

महा, अमेया के मुंह से ये बात सुनकर पूरी तरह से स्तब्ध रह गयी। अमेया को खुद में समेटती.... “जो दूर गयी है, उन्होंने तुम्हे जन्म दिया है। और वो दूर किसी काम से गयी थी, जल्द ही लौटेंगी। जब तक वो लौट नही आती तब तक मैं तुम्हारी मां हूं। उन्होंने जाते वक्त तुम्हारे पिताजी से कहा था कि अमेया को मां का प्यार कभी खले नही, इसलिए जबतक मैं न लौटू अमेया को मां का प्यार मिलता रहे। सो मैं आ गयी।”..

अमेया:– क्या सच में मां। बिलकुल उसी तरह जैसे यशोदा मां थी।

महा:– हां मेरी राजकुमारी बिलकुल वैसा ही। मेरी राजकुमारी ने कुछ खाया की नही?

अमेया:– अभी मन नही है खाने का मां। बाद में खाऊंगी...

महा, फिर रुकी ही नही। महा ने हवा में ही संदेश देना शुरू कर दिया। मेटल टूथ का बड़ा सा समूह अपने रजत वर्ण (चांदी के रंग) वाले दांत फाड़े महा को सुन रहे थे। जैसे ही महा ने उन्हें काम पर लगाया, थोड़ी ही देर में विभिन्न प्रकार के फल उपलब्ध थे। साथ में दूध और अन्य खान सामग्री। महा जल्दी से दोनो बच्चो के लिये भोजन बनाई और फटाफट दोनो को एक साथ खिलाने लगी। महा के हाथ से निवाला खाकर अमेया काफी खुश हो गयी।

महा फिर खुद से दोनो बच्चो को अलग होने ही नही दी। अगले दो दिनों तक महा यज्ञ और बच्चो को देखती रही। 2 दिन बाद आखरी मंत्र के साथ योजन पूर्ण हुआ। जैसे ही योजन पूर्ण हुआ, ओजल और निशांत भागते हुये आर्यमणि के पास पहुंचे और तीनो बहते आंसुओं के साथ अपने मिलने की खुशी जाहिर करते रहे। बिना कुछ बोले बिना कुछ कहे न जाने कितने देर तक लगातार मौन रहे।

इस मौन मिलन में ओजल की बिलखती आवाज निकली.... “जीजू आपके रहते ये सब कैसे हो गया? कैसे हो गया जीजू?”

आर्यमणि, ओजल को खुद से अलग कर उसके आंसू पोंछते.... “आज तक मैं खुद से ये सवाल पूछ रहा हूं। मैने पूरे अल्फा पैक को तबाह कर दिया। शायद इस बोझ के साथ मुझे पूरा जीवन बिताना हो।”

आचार्य जी:– आर्यमणि किसी के बलिदानों को यदि बोझ समझेंगे तब उनकी आत्मा रोएगी। क्या रूही के जगह आप होते और मरणोपरांत यह आभाष होता कि चलो रूही बच गयी तो क्या आपको खुशी न होती? जैसा आप अभी कर रहे वैसे रूही कर रही होती तो क्या रूही की आत्मा रोती नही?

आर्यमणि:– आप शायद सही कह रहे है आचार्य जी। मेरे पैक की खुशी ही मेरी खुशी है। अल्फा पैक के अभी 4 सदस्य जीवित हैं और अल्फा पैक उसी मजबूती से सभी बाधाओं का सामना करेगा। जो साथी बिछड़ गये उन्हे हम हंसकर याद करेंगे...

निशांत:– नही अल्फा पैक केवल चार लोगों (आर्यमणि, निशांत, ओजल और ऋषि शिवम) का नही रहा। मैने एक सदस्य को जोड़ लिया है।

निशांत ने इशारे में दिखाया। आर्यमणि उसे देखते... “ये तो अंतरिक्ष यात्री ओर्जा है। ओर्जा तो पहले से अपने ग्रुप के साथ पृथ्वी आयी थी।”...

अपस्यु:– बड़ा पेंचीदा मामला है बड़े, आराम से तुम्हे समझाना होगा। फिलहाल इतना ही समझो की इसका साथी एक अंतरिक्ष यात्री था, जिसके साथ ओर्जा कुछ दिनों तक सफर कर रही थी। वैसे ओर्जा को तो मेरे पैक में होना चाहिए था, मतलब डेविल ग्रुप में। लेकिन पता न कैसे निशांत ने इसे पटा लिया।

आर्यमणि:– क्या तुम्हारा दिल्ली का काम मुसीबतों से भरा था और अब तक दोषियों को सजा नही दे पाये?

अपस्यु:– वो काम तो कबका समाप्त हो गया है। लेकिन अभी जिस परेशानी से जूझ रहे है वो कुछ और ही है। हमारी टीम थोड़ी कमजोर दिख रही थी। सोचा ओर्जा का साथ मिलेगा तो वो निशांत के साथ हो गयी।

महा, उस सभा के बीच में पहुंचती.... “पतिदेव पहले अमेया से मिलो तब तक मैं इन लोगों से अपना परिचय कर लूं।”...

ओजल, आश्चर्य से अपना मुंह फाड़े... “पतिदेव... जीजू आपने दूसरी शादी कर ली।”...

जीजू इस सवाल का जवाब तो देते लेकिन उपस्थित हो तब न। आर्यमणि, अमेया को लेकर अंतर्ध्यान हो चुका था। दोनो एक रेस्टोरेंट में थे और वहां आर्यमणि ने चॉकलेट केक ऑर्डर कर दिया। अमेया जितनी हैरान थी उतनी खुश भी। वहीं आर्यमणि, अमेया को देख उसके आंसू रुक ही नही रहे थे।
Nice update
 
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Mast update bhai heart touching
 
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subodh Jain

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भाग:-173


जबतक महा पानी गरम करती है, धातु टूथ की जोन भी पहुंचती है। आर्यमणि के लिए चाय, जूनियर के लिए नाश्ता तैयार करने के बाद महा आर्यमणि के लिए बेड–टी लेकर चल दी। महा ने आर्यमणि को उठाना सिखाया और फटाफट तैयार होने कहा और अपने जूनियर को मांगी। नाश्ता आदि करने के बाद खिलती धूप में महा, आर्यमणि के साथ यात्रा पर जाने के लिए तैयार थी।

आर्यमणि:- नहीं पहले अनंत कीर्ति की पुस्तक को तो साथ ले लूं।

महा:– लेकिन वो किताब तो वो चुड़ैल की बच्ची परिग्रही माया ले गई थी ना।

आर्यमणि:– वो जो ले गया है उसे बर्बादी का सामान कहते हैं। अनंत कीर्ति से मिलती है–जुलती पुस्तक। उस किताब में भी अनंत जानकारी थी और उसे कोई भी पढ़ नहीं सकता था। लेकिन वह किताब जो भी पढ़ेगा उसकी पूरी जानकारी अनंत कीर्ति की किताब में आप छपेगी। इसका मतलब हो सकता है...

महा:– इसका मतलब हमारे पास उसकी जानकारी होगी जो बहरूपिया किताब को पढ़ रहा होगा।

आर्यमणि:– इतना ही नहीं, एक बार जिसकी कहानी कीर्ति की किताब में छपी होगी फिर वो पृथ्वी के जिस भू–भाग में छिपे रहेंगे, उस स्थान का पता हमें अनंत कीर्ति की किताब बताएगा।

महा:– पतिदेव कहीं वो महासागर में बह जाएं तब?

आर्यमणि:– मैं अनंत कीर्ति की पुस्तक को संपूर्ण महासागर की ऋचा करवा दी है। अनंत कीर्ति पत्रिका के पास का पता भी बताता है...

महा:– पतिदेव मैं समझी नहीं... अनंत कीर्ति की किताब को आप महासागर के नीचे लेकर घूमे तो वो किताब से किसी व्यक्ति का पता कैसे बता सकता है?

आर्यमणि:– विवरण विवरण है। मैं संछिप्त में पहुंच रहा हूं। ये किताब किस माहौल और इंसान के संपर्क में आती है, उसका ऊपरी विवरण स्वयं लिखता है। यदि कोई विशेष घटना हो जो पुस्तक की अनुपस्थिति में हुई हो, तो मैं उसे लिख रहा हूं। अब यदि कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति की खोज करेगा तो ये पुस्तक उन सभी जगहों को प्रतिबिंबित करेगी जहां से वो व्यक्ति गुजरा था।

महा:– लेकिन पतिदेव ऐसा भी हो सकता है कि यह किताब उस जगह को कभी देखा ही नहीं हो जहां कोई भगोड़ा छिपा हो।

आर्यमणि:– हां संभव है। लेकिन यदि वो भगोड़ा अंतर्ध्यान भी किसी एक स्थान से दूसरे स्थान तक गया हो तो भी पुस्तक उस अंतिम स्थान को बताता है कि उसने किस पुस्तक को देखा था, या पुस्तक में उस स्थान के बारे में बताया था। जैसे कि किताब अगर किसी पाताल लोक के दरवाजे तक पहुँचती है और कोई पाताल लोक में छिप जाता है तो किताब उसकी अंतिम जानकारी पाताल लोक का दरवाज़ा दिखाती है।

महा:– बहुत खूब। ये किताब प्रत्यक्ष अलौकिक है और बनाने वाले हैं तो उससे भी ज्यादा अलौकिक होंगे। ठीक है पतिदेव यहां से प्रस्थान करते हैं।

आर्यमणि:– चाहकीली के साथ हम मानसरोवर झील तक चलेंगे। उसे कैलाश मार्ग मठ आसानी से पता चलता है।

आर्यमणि कॉटेज के बाहर और स्थान से अनंत कीर्ति की किताब निकाल कर आगे की यात्रा के लिए तैयार किया गया था। आर्यमणि और महा, जूनियर के साथ समुद्र किनारे तक आएं। एक छोटी सी ध्वनि और चाहीली पानी की सतह से सैकड़ों मीटर ऊपर निकलकर दावा करते हैं दावा से पानी में चित्र... "चाचू, तो तैयार हो चलने के लिए."..

आर्यमणि:– हां बिल्कुल चाहली... आज से अपना समय शुरू होता है। जिसने उसे दिया है वह देर से सोता है।

चाहीली:– तो फिर आइए...

चाहकीली के पंखों में सभी लॉक जींस और केवल कुछ ही घंटों में मानसरोवर झील में थे। आर्यमणि, चाहली को कैलाश मार्ग मठ में चल दिया। आर्यमणि मठ से जब कुछ दूरी पर था तभी उसे पूरा क्षेत्र बंधा हुआ दिखा।

“महा यहां कोई भी नहीं। इस पूरे क्षेत्र को बांधकर सब कहीं हो गया है।”...

"फिर हम कहाँ कहें पतिदेव।"..

"वहीं जहां सब कुछ गया है। अमेया भी वहीं मिलेगा। लगता है कि हमें सही नींद आती है। चाहकीली क्या तुम ठीक हमारे नीचे हो।”..

चाहीली:– हां बिल्कुल चाचू...

आर्यमणि:– ठीक है, तो फिर तैयार करें। हिमालय के तल से खुल है। उत्तरी हिमालय से पूर्वी हिमालय यात्रा करेंगे।

चाहकीली:– तो क्या मैं अभी जमीन पर चढ़कर ऊपर आऊं।

"बिल्कुल नहीं" कहते हुए आर्यमणि ने अपना हाथ फैलाया और बर्फ के नीचे पानी तक जड़ें फैलाईं। चाहकीली लड़के देख कर आश्चर्य करते हैं.... “ये कैसे जल्दी चाचू। पहले पृष्ठभूमि से ऊपर निकली और आपको लेकर नीचे खींची गई।”...

आर्यमणि:– बस कुछ करतब अब भी इन हाथों में बाकी है। अब क्या। और हां जहां कहूं बिल्कुल ठीक हो जाओ, तो वहां जैसा हो गया।

चाहकीली:– चाचू क्यों...

महा:– ओ बड़बोली, कुछ देख कर भी समझ लेना कितना प्रश्न पूछना है?

चाहकीली:– हां मैंबो बड़ली... और खुद के जुबान पर तो ताला लगा रहता है ना। भूल मत मेरे साथ खेलकर ही बड़ी हुई थी।

महा:– चाहकीली चल अब, नहीं तो मुझे भी तेरे बारे में वोट पता है जिसे मैं नहीं चाहता कि कोई जाने।

चाहकीली:– अब क्या बीती बातों को कुरेदना। मैं चलती हूं ना। सभी लोग लॉक हो गए ना...

महा और आर्यमणि एक साथ... "हां हम लॉक हो गए हैं।"...

चाहकीली ने अनुमानित अनुमान और दीदी लेकर उस क्षेत्र के आस-पास पहुंच गए जो सात्त्विक आश्रम का गढ़ कहा जाता था। कंचनजंगा के जलीय जीवों के बीच अलौकिक गांव जिसे कभी उजाड़ दिया गया था, सिक्किम तिनका-तिनका समेटकर एक बार फिर उस एशियाने को बसा दिया गया था।

सात्विक गांव की सीमा में ही आर्यमणि का तेज मंत्र उच्चारण शुरू हो गया था। पानी की जड़ों के अंदर चाहकीली को आगे के रास्ते बता रही थी। पहले जड़े आगे की जाति फिर चाहकीली। धीरे-धीरे बढ़ते हुए तीन गांवों के सरोवर तक पहुंच गए। भूतल के जल से जैसे–जैसे ये लोग सरोवर की सतह पर आ रहे थे, मंत्रो के मधुर उच्चारण, और स्पष्ट ध्वनि में स्पष्ट सुनाई दे रही थी। सरोवर के जल की सतह पर अचानक एक बड़ा विछोभ पैदा हुआ और वहां मौजूद सभी की निगाहें चौंधिया गईं।

जल की सतह पर चाहकीली का सीधा आंख और ऊपर का हिस्सा ही फिल्में दिखाते हैं और इतने बड़े काल के जीव की कल्पना कर सभी साथ जा चुके हैं। सब बड़े ध्यान से उसी जीव को देख रहे थे।

इसके पूर्व सात्विक आश्रम का पुर्निर्माण तब निर्माण और भी अधिक तेज हो गया जब सात्विक गांव के खोये 2 अलौकिक खड़िया मिल थे। सात्विक गांव का निर्माण के वक्त के मूल आधार मार्गों में सबसे अलौकिक और सबसे उत्कृष्ट पत्थर, रक्षा पत्थर, आर्यमणि पाताल लोगों से गुप्त जी के पास पहुंच गया था। शायद इस अलौकिक पत्थर की ही माया थी कि जैसे ही वह पत्थर जी के पास पहुंचे, ठीक उसके बाद हर किसी की वापसी होने लगी।

विशेष–स्त्री समुदाय, जिसके सात्विक आश्रमों ने विलुप्त मान लिया था, उसका पूर्ण स्वरूप विष–जीविषा स्वयं ही सात्त्विक आश्रमों को ढूंढ़ता हुआ था। जीविषा के पास गुरु वशुधर की आत्मा थी। गुरु वशुधर अपने समय के महान और ज्ञानी ऋषि थे, जो कई कार्यों को प्राप्त हुए थे। हजार साल पूर्व गुरु वशीकरण कहीं खो गए थे। जीविषा गुरु वशुधर के लापता होने के पीछे की कहानी और उनकी अतृप्त आत्मा को लेकर पहुंचती थी, जिसे वह मुक्त करवाना था। इस प्रकार से गाँव को पूर्ण रूप से विकसित करने के लिए सभी तत्व जुड़ गए थे। बस कुछ अने था इसलिए अपस्यु ने कुछ देर के लिए योजन को टाल दिया था।

शायद यह एक प्रकार से अच्छा ही हुआ था क्योंकि अजीबोगरीब अपने एक गुरु की अनुपस्थिति में उस शक्ति खंड की स्थापना करवा सकता था। शायद उस शक्ति खंड ने ही यह पूरा चक्र रचा था, अन्यथा आर्यमणि के वापस लौटने की आशा ही सबने छोड़ दी थी। अचानक इतने विचित्र जीव को सब बड़े ध्यान से देख रहे थे। तभी अंश जी और ऋषि शिवम् आगे आकर आए मुस्कुराएँ क्योंकि उन्हें आभाष हो गया था कि कौन आया है.... “गुरुदेव आप वापस लौटे का अच्छा समय चुना है। अब पानी से बाहर भी आ जाएं।”...

ऋषि शिवम सरोवर के निकट पहुंचकर कहने लगे। उनकी बात सुनकर आर्यमणि ने इशारा किया और चहकीली का भव्य शरीर धीरे-धीरे हवा में आने लगा। करीब 100 फीट हवा में ऊपर जाने के बाद जब शरीर थोड़ा और ऊपर आया तब वहां से आर्यमणि, महा को लेकर जमीन पर उतरा। आर्यमणि को देख अपस्यु दौड़ चला आया। मजबूत बंधों से ईमेल आईडी.... "विशाल एक सूचना तक नहीं। इतने भी क्या हम सब से मुंह मोड़ रहे थे।”...

आर्यमणि:– छोटे, योजन को बीच में नहीं चिन्हित करते। अभी कुछ दिनों तक यहां हूं। आराम से बात करते हैं।

अपस्यु:– हां सही कहें बड़े... बिना आपके शायद ये योजना अधूरी रह गई।

कुछ अधिकृत बातों के बाद सभी संस्थाएं आपस में बैठ गईं। लगातार 2 दिन तक मंत्र उच्चारण होता रहता है। हर स्टोन को सेंटर पॉइंट से लाकर पूरे क्षेत्र की स्थापना की गई। मंत्रो से हर जगह को बांध दिया गया। 2 दिन तक किसी भी योजन से नहीं उठा सकते। आपके पास योजन का हिस्सा नहीं था, वो था महा और अमेया।

महा जिस कुटिया में वहीं अमेया भी था। अच्छा आर्यमणि के बच्चे की आंखें अलग कैसे हो सकती थीं। सामान्य रूप से आंखें और जब चमक जाती हैं तो लाल हो जाती थी। महा, व्याकुलता से अमेया को अपनी छाती से लगता है.... “मेरी बच्ची वैसी है.”..

अमेया:– मैं तुम्हारी बच्ची नहीं, अपनी मासी की बच्ची हूं। वो अभी यज्ञ में बैठी है।

महा:– एले मेरी क्वीन बिटिया अपनी मां से इतनी नाराज। एक बात यहां बताती है कि सब यज्ञ में बैठे हैं तो सावधानी कौन रखता है?

अमेया:– मैं अपने ख्यालों को लेकर इतनी बड़ी बाधा हूँ। ये बाबू कौन है?

महा:– ये घन भाई है...

अमेया:– क्या सच में ये मेरा भाई है?

महा:– हां सच में ये तेरा भाई है और मैं तेरी मां हूं।

अमेया:– फिर वो कौन है जो मुझसे काफी दूर हो जाएगा और फिर कभी वापस नहीं आएगा। मासी कहती है वही मेरी मां थी।

महा, अमेया के मुंह से ये बात सुनकर पूरी तरह से स्तब्ध रह गई। अमेया को अपने आप में समेटे हुए.... “जो दूर है, उन्होंने तुम्हारा जन्म दिया है। और वो दूर किसी काम से गई थी, जल्द ही लौटा दूंगा। जब तक वो वापस नहीं आता तब तक मैं तुम्हारी मां हूं। उन्होंने ललक पकड़ ली थी कि अमेया को मां का प्यार कभी खले नहीं, इसलिए जब तक मैं न लौटू अमेया को मां का प्यार मिलता हूं। तो मैं आ गया।”..

अमेया:– क्या सच में मां। बिल्कुल उसी तरह जैसे यशोदा मां थी।

महा:– हां मेरी राजकुमारी बिल्कुल वैसी ही है। मेरी राजकुमारी ने कुछ खाया नहीं?

अमेया:– अभी मन भोजन का मां नहीं है। बाद में खाऊंगी...

महा, फिर रुकी ही नहीं। महा ने हवा में ही संदेश देना शुरू कर दिया। टू मेटलथ का बड़ा सा समूह अपने रजत वर्ण (चांदी के रंग) वाले डांटे महा को सुन रहे थे। जैसे ही महा ने उन्हें काम पर लगाया, थोड़े ही देर में विभिन्न प्रकार के फल उपलब्ध थे। दूध और अन्य खान सामग्री के साथ। महा जल्दी से दोनो बच्चो के लिए खाना बनाया और फटाफट दोनो को एक साथ चाहा। महा के हाथ से निवाला खाकर अमेया काफी खुश हो गए।

महा फिर खुद से दोनो बच्चों को अलग होना ही नहीं दिया। अगले दो दिनों तक महा यज्ञ और बच्चों को उठाते रहे। 2 दिन बाद अंतिम मंत्र के साथ योजन पूर्ण हुआ। जैसे ही योजन पूर्ण हुआ, ओजल और निशांत भागते विधायक आर्यमणि के पास पहुंचे और तीनो बहते आंसुओं के साथ अपने मिलने की खुशी जाहिर करते रहे। बिना कुछ बिना कुछ कहे न जाने कितने देर तक लगातार मौन रहे।

इस मौन मिलन में ओजल की बिलखती आवाज निकली.... “जीजू आपके रहो ये सब कैसे हो गए? जीजू कैसे हो गया?”

आर्यमणि, ओजल को खुद से अलग कर उसके आंसू पोछे.... “आज तक मैं खुद से ये पूछ रहा हूं। सभी अल्फा पैक को जारी कर दिया जाएगा। शायद इस बदहाली के साथ मैं पूरा जीवन जी सकूं।”

अंश जी:- आर्यमणि किसी के बलिदानों को यदि बोझ समझेंगे तब उनकी आत्मा रोएगी। आप रूही के स्थान पर क्या होते हैं और मरणोपरांत यह आभाष होता है कि इससे रूही बची तो क्या आपको खुशी न होगी? जैसा कि आप अभी कर रहे वैसे रूही कर रही होती तो क्या रूही की आत्मा रोती नहीं?

आर्यमणि:– आप शायद सही कह रहे हैं अंश जी। मेरे पैक की खुशी ही मेरी खुशी है। अल्फा पैक के अभी भी 4 सदस्य जीवित हैं और अल्फा पैक उसी से सभी बाधाओं का सामना करेगा। जो साथी बिछड़ गए हैं हम हंसकर याद करेंगे...

निशांत:– नहीं अल्फा पैक केवल चार लोग (आर्यमणि, निशांत, ओजल और शिव ऋषिम) का नहीं हो रहा है। कई सदस्यों को जोड़ा गया है।

निशांत ने इशारे में दिखाया। आर्यमणि उसे देखते... “ये तो अंतरिक्ष यात्री ओर्जा है। ओर्जा तो पहले से अपने ग्रुप के साथ पृथ्वी आयी थी।”...

अपस्यु:– बड़ा पेंचीदा मामला है बड़े, आराम से तुम्हे समझाना होगा। फिलहाल इतना ही समझो की इसका साथी एक अंतरिक्ष यात्री था, जिसके साथ ओर्जा कुछ दिनों तक सफर कर रही थी। वैसे ओर्जा को तो मेरे पैक में होना चाहिए था, मतलब डेविल ग्रुप में। लेकिन पता न कैसे निशांत ने इसे पटा लिया।

आर्यमणि:– क्या तुम्हारा दिल्ली का काम मुसीबतों से भरा था और अब तक दोषियों को सजा नही दे पाये?

अपस्यु:– वो काम तो कबका समाप्त हो गया है। लेकिन अभी जिस परेशानी से जूझ रहे है वो कुछ और ही है। हमारी टीम थोड़ी कमजोर दिख रही थी। सोचा ओर्जा का साथ मिलेगा तो वो निशांत के साथ हो गयी।

महा, उस सभा के बीच में पहुंचती.... “पतिदेव पहले अमेया से मिलो तब तक मैं इन लोगों से अपना परिचय कर लूं।”...

ओजल, आश्चर्य से अपना मुंह छोड़े... “पतिदेव… जीजू आपने दूसरी शादी कर ली।”...

जीजू इस सवाल का जवाब तो देते हैं लेकिन हाजिर हो तब न। आर्यमणि, अमेया को लेकर अंतर्ध्यान हो चुका था। दोनों एक रेस्टोरेंट में थे और वहां आर्यमणि ने चॉकलेट के केक ऑर्डर कर दिए। अमेया जितना आश्चर्यजनक था उतना ही खुश भी। वहीं आर्यमणि, अमेया को देख उसके आंसू रुके ही नहीं थे।
 
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subodh Jain

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Chalo kuchh to shuruvat hui
Vese update mast tha
Par ye dil mange mor
Ab to update bada diya karo bhai
Pahle to roj 2-2 update dete the
Ab sirf ek wo bhi ittu sa
Bahut na inshafi hai
 

Froog

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Par ruhi Evan aur albeli to mar gaye the na :?:...
मरा तो आर्या मणि भी था
देर से थ्रेड पर आने का कारण बिहार में राम नवमी के दिन हुए दंगों के कारण कुछ क्षेत्रों में नेट पर पाबंदी लगा दी थी पाबंदी क्षेत्र से आज बाहर आया हूँ
 
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Rahul

Kingkong
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waiting waiting waiting nainu bhai ji waiting waiting waiting waiting waiting waiting waiting waiting waiting waiting waiting
 

nain11ster

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superb update sab log sath hui gaye waise chahkili ma meko ab albeli dikh rahi hai aisa lagta hai ki aap bhi uske fan hain bhai :D: chalo ab maro sasuron ko
Haan Haan bilkul... Main apne dusre kirdaron ka bhi fan hota hun, tabhi to dusron kirdaron ko bhi tavajjo deta hun... Pyar se... Chalte Hain sasuron ke maarne par....
 

nain11ster

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O Bhai Nishant ki kya Jodi dhundhi Hai... Orja
Urja Jo Shayad coma Mein ja chuki thi Jab Nishchal aur Sherin Ko Goli Lagi Thi use Samay apni Shakti ka Had Se Jyada use karne ke Karan.. Jiska Ilaaj Chhote Guru Apasyu ne kiya Apne sath aasram la kar .

Jo Yagya abhi sampann Hua Hai usmein Arya Ki upsthiti Kya ekmatra Sanyog hai ya FIR Kuchh aur?

Arya ka apni Beti Amaya se itne Salon bad Milana Ek marmik Drishya hai Jisko sirf mahsus Kiya Ja sakta hai... AMaya ne apne Pita ko pahchana kaise??? MAY BE KOI PHOTO !!

Ek Sawal kya Arya ki gati mein aur Nishchal ki gati mein kisi bhi Prakar ka comparison hai???
Haan ye wahi situation tha.... Jab Orja us kahani se achanak hi gayab hui thi.... Tab wo is kheme me aa gayi thi. Ameya ne apne pita ko pahchana kaise to simple tha Ameya nahi bhi pahchani hogi to bhi arya use pahchan gaya.... Gayab ho gaya apni beti ko lekar... So ab to poori jaan pahchan ho jayegi....

The Great Nischal ki gati gayab hone wali hai.... Jabki Aryamani kafi tej daudta hai... So dono ke gati me koi comparision nahi... Undoubtedly Nischal kisi se bhi kahin jyada tej hai.... Vigo apni gati ke liye hi jane jate the... Vigo classified ho ya nischal ki tarah un classified sabhi Vigo ki raftaar ek jaisi hoti hai.... Tabhi to unhe pakadne ke liye dusre grah washi gati–parivartak yantr banaye huye the....

Kaisa ye ishq hai ajab sa risk hai... Ke pahle part me ye gati parivartak ka istamal hua hai ..
 
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