• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Fantasy Dark Matter (Completed)

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,047
115,801
354
:hello: Dosto... :wave:
आप सबकी अदालत में पेश है Dark Matter.....

Dark Matter एक छोटी किन्तु प्रेम संबंध पर आधारित कहानी है जिसे मैंने कुछ समय पहले लिखा था। ये मेरे मोबाइल के नोटपैड में अभी भी सुरक्षित थी। आज नज़र पड़ी तो सोचा आप सबके सामने इसे हाज़िर कर दिया जाए। आशा है कि आप सभी को ये छोटी सी कहानी पसंद आएगी। यूं तो इस कहानी को मैंने रोमन में लिखा था किन्तु यहां पर मैं इसे देवनागरी में पोस्ट कर रहा हूं। :love:


Dark Matter
━━━━━━━━━━━━


ei-WKP6-R85464.jpg
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,047
115,801
354
Dark Matter
━━━━━━━━━━━━


पूरे एक महीने बाद मिला था उससे। उसको देखते ही मेरी आँखें हैरत से फ़ैल ग‌ईं थी। कुछ पलों तक तो मुझे यकीन ही न हुआ था कि वो मेरे बचपन का दोस्त है और मेरा जिगरी यार है। हम दोनों साथ साथ खेले कूदे और साथ साथ ही बड़े हुए थे। स्कूल से कॉलेज तक हम साथ साथ ही रहे थे उसके बाद वो अपने काम में लग गया और मैं अपने काम में। हम दोनों की च्वाइस भले ही अलग थी लेकिन साथ कभी न छूटा था। हप्ते, पन्द्रह दिन में हमारी मुलाक़ात ज़रूर होती थी। असल में हम दोनों इतने गहरे दोस्त थे कि एक दूसरे से मिले बिना रह ही नहीं सकते थे लेकिन इस बार मैं अपने काम में ऐसा उलझ गया था कि पूरे एक महीने बाद ही उससे मिलना संभव हुआ था। मैं सोच भी नहीं सकता था कि इस बार जब मैं अपने दोस्त से मिलूंगा तो वो मुझे एक अलग ही रूप में नज़र आएगा। अच्छा खासा दिखने वाला नितिन मौजूदा वक़्त में दुबला सा दिख रहा था जबकि इसके पहले वो अच्छी खासी पर्सनालिटी का मालिक था।

"अबे ये क्या हालत बना ली है तूने?" उसके कमरे में आते ही मैंने सबसे पहले उससे यही पूछा था____"साला एक महीने में ऐसा क्या किया है तूने कि तेरा एकदम से कायाकल्प ही हो गया है? कहीं मुट्ठ वुट्ठ तो नहीं ज़्यादा मारने लगा है तू?"

मैंने तो बस मज़ाक में ही ऐसा बोला था उससे और वो मेरे इस मज़ाक पर मुस्कुराया भी था लेकिन फिर उसके चेहरे पर अज़ीब से भाव गर्दिश करते नज़र आने लगे थे। मैंने साफ़ महसूस किया था कि वो किसी बात से परेशान था। अब क्योंकि वो मेरा बचपन का जिगरी यार था इस लिए उसके परेशान होने पर मेरा परेशान हो जाना भी लाज़मी था। मैंने सीरियस हो कर जब उससे पूछा तो उसने बताया कि वो एक लड़की से प्यार करता है और उससे शादी भी करना चाहता है लेकिन वो लड़की उससे शादी नहीं करना चाहती। नितिन ने बताया कि वो पिछले एक महीने से उस लड़की से हर रोज़ मिलता है और दोनों के बीच प्यार की सारी हदें भी पार हो जाती हैं। ऐसा नहीं है कि वो लड़की उसे पसंद नहीं करती है लेकिन जाने क्यों वो शादी की बात पर मुकर जाती है? नितिन की परेशानी और दुःख की यही वजह थी।

"बड़ी अज़ीब बात है।" कुछ देर की ख़ामोशी के बाद मैंने कहा____"और उससे भी अज़ीब और हैरानी की बात ये है कि हमेशा कपड़े की तरह लड़कियां बदलने वाला मेरा दोस्त अचानक किसी लड़की के प्रेम में कैसे पड़ गया? ख़ैर मैं समझ सकता हूं कि एक दिन हर किसी का बुरा वक़्त भी आता है लेकिन ये तो बता कि_____कौन है वो???"

"मैं नहीं जानता।" नितिन ने बेबस भाव से जब ये कहा तो मैं एक बार फिर से हैरान रह गया। हर लड़की की जन्म कुंडली अपने पास रखने वाला नितिन उसी लड़की के बारे में नहीं जानता था जिसे वो प्रेम करता था।

"भोसड़ीके ये क्या बकवास है?" मैं जैसे उसके ऊपर चढ़ ही गया था____"क्या मेरे साथ कोई मज़ाक कर रहा है तू?"
"मैं मज़ाक नहीं कर रहा प्रशांत।" नितिन ने सीरियस हो कर कहा____"मैं सच में नहीं जानता कि वो कौन है? पिछले एक महीने से मैं उससे उसके बारे में हर रोज़ पूछता हूं लेकिन वो कुछ नहीं बताती है। मैंने खुद भी अपने तरीके से उसके बारे में पता करने की बहुत कोशिश की लेकिन कुछ पता नहीं कर पाया। हालाकि शुरुआत में तो मैं भी उसके साथ बस मज़े ही ले रहा था और सच कहूं तो वो मेरी लाइफ में आई हर लड़कियों से कहीं ज़्यादा लाजवाब है। उसकी खूबसूरती उसकी कातिल अदाएं और बिस्तर में मेरे साथ उसका सहयोग भौकाल से कम नहीं होता है। मुझे पता ही नहीं चला कि कब उसकी खूबियां मेरे दिलो दिमाग़ में घर कर ग‌ईं और मैं उसके इश्क़ में गिरफ़्तार हो गया। अभी एक हप्ते से मैं हर रोज़ उससे शादी करने के लिए मिन्नतें कर रहा हूं लेकिन वो साफ़ इंकार करती आ रही है। उसका बस यही कहना है कि जो चीज़ मुझे उससे बिना शादी किए मिल रही है उसके लिए उससे शादी करने की क्या ज़रूरत है? वो एक ऐसी आज़ाद चिड़िया है जो किसी तरह के बंधन में नहीं बंधना चाहती है।"

"सही तो कह रही है वो।" नितिन की बात बीच में ही काट कर मैं बोल पड़ा था____"और तेरे लिए भी तो ये अच्छी बात है वरना ज़्यादातर तो ऐसा होता है कि लड़कियां गले ही पड़ जाती हैं। तुझे वो ख़ुशी ख़ुशी सब कुछ दे रही है तो फिर तू उससे शादी क्यों करना चाहता है बे? मेरी बात मान उससे बस मज़े ले, ये शादी वादी और प्रेम व्रेम का चक्कर छोड़।"

"कमाल है।" नितिन के होठों पर फीकी सी मुस्कान उभर आई थी____"एक वक़्त था जब तू ये कहा करता था कि इस तरह लड़कियों के साथ मज़े करना छोड़ दे क्योंकि ये अच्छी बात नहीं है और आज तू ये कह रहा है कि मैं बस उसके साथ मज़े करूं? पहले यकीनन मैं बस मज़े ही करने को असली ज़िन्दगी समझता था लेकिन जब से उसके प्रेम में गिरफ़्तार हुआ हूं तब से मज़े करने वाली फीलिंग्स का मेरे अंदर से वजूद ही फिनिश हो गया है। अब तो बस एक ही ख़्वाईश है कि उससे शादी हो जाए और वो हमेशा के लिए सिर्फ मेरी हो जाए।"

मेरे सामने बैठा नितिन वो नितिन नहीं था जिसे मैं बचपन से जानता था बल्कि वो तो ऐसा नितिन बना हुआ नज़र आ रहा था जो एक ऐसी लड़की के प्रेम में पड़ कर बीमार सा हो गया था जिसके बारे में उसे खुद ही कुछ पता नहीं था।

"तो अब क्या करने का इरादा है?" कुछ देर उसकी तरफ देखते रहने के बाद मैंने गहरी सांस ले कर उससे पूछा____"मेरा मतलब है कि क्या अभी भी तू उस लड़की के बारे में ही सोचेगा या उस लड़की को बुरा ख़्वाब समझ कर भूल जाएगा और अपनी लाइफ़ में आगे बढ़ेगा?"

"मैं हार नहीं मान सकता प्रशांत।" नितिन ने कहीं खोए हुए अंदाज़ में कहा____"अब तक अपनी लाइफ़ में बहुत सी लड़कियों के साथ मज़े करते हुए ऐश किया है लेकिन अब नहीं। अब मुझे समझ आ गया है कि ये सब ठीक नहीं है बल्कि एक ऐसी लड़की के साथ जीवन के सफ़र की शुरुआत करना चाहिए जिसे आप प्यार करते हो और जिसके साथ होने से आपको ये लगे कि जीवन की असली ख़ुशी बस उसी से है। वो भले ही अपने बारे में मुझे कुछ न बताए लेकिन मैं उसे अपना बना के ही रहूंगा। उसे मेरे प्यार को एक्सेप्ट करना ही पड़ेगा प्रशांत।"

"तो क्या तू उसके साथ ज़ोर ज़बरदस्ती करेगा?" मैंने उसकी आँखों में झाँका____"तुझे समझना चाहिए कि ज़ोर ज़बरदस्ती से हासिल की हुई कोई भी चीज़ हमें ख़ुशी नहीं दे सकती।"

"नहीं, मैं उसके साथ कोई ज़ोर ज़बरदस्ती नहीं करूंगा भाई।" नितिन ने कहा____"बल्कि उसे अपने प्यार का एहसास कराउंगा। अपना सीना चीर कर उसे दिखाऊंगा कि उसके लिए मेरे दिल में कितनी मोहब्बत मौजूद है। उसे बताऊंगा कि मैं उसके बिना जी नहीं सकता। उससे कहूंगा कि अगर उसे किसी तरह के बंधन में बंधना मंजूर नहीं है तो मैं भी उसे बंधन में नहीं बांधूंगा। वो बस नाम के लिए मेरी बन जाए और मेरी ज़िन्दगी में हमेशा के लिए शामिल हो जाए।"

कहते कहते अचानक ही नितिन की आवाज़ भारी हो गई थी। उसका गला भर आया था और अगले ही पल उसकी आँखों से आंसू छलक पड़े थे। वो सिसकियां लेने लगा था। मैं उसे उस हाल में देख कर और उसकी बातें सुन कर चकित सा हो गया था मगर क्योंकि वो मेरा जिगरी दोस्त था इस लिए उसकी तक़लीफ से मुझे भी तक़लीफ हुई। मुझे एहसास हो चुका था कि वो उस लड़की की वजह से बहुत बदल गया है और एक महीने बाद जिस रूप में वो मुझे नज़र आया है उसकी वजह यकीनन उस लड़की के प्रति उसका पागलपन भरा वो प्रेम ही है।

नितिन की फैमिली में उसके माता पिता और एक बड़ी बहन थी। बहन की शादी हो चुकी थी और वो अपने ससुराल में थी। नितिन की इस बदली हुई तबियत का एहसास उसके माता पिता को भी था लेकिन वो ये नहीं जानते थे कि नितिन की बदली हुई तबियत की वजह क्या है। नितिन ने अपने माता पिता से उस लड़की के बारे में कुछ नहीं बताया था। असल में वो चाहता था कि पहले वो लड़की उससे शादी करने के लिए राजी हो जाए तब वो अपने माता पिता को भी उसके बारे में बताए लेकिन जब लड़की ही राजी नहीं थी तो वो भला कैसे कुछ बताता उन्हें? मैंने नितिन की हालत देख कर फैंसला किया कि मैं अपने जिगरी यार की हेल्प करुंगा। मैं उस लड़की के बारे में पता करूंगा और खुद भी उससे रिक्वेस्ट करूंगा कि वो मेरे दोस्त से शादी करे। नितिन और मैं भले ही हाई क्लास मटेरियल नहीं थे लेकिन इतने तो थे ही कि किसी लड़की की ज़रूरतों को पूरा कर सकें।

दूसरे दिन से ही मैं और नितिन उस लड़की के बारे में पता करने के काम पर लग ग‌ए। नितिन के अनुसार हर शाम वो लड़की शहर के एक जाने माने क्लब में मिलती थी। क्लब में वो उसके साथ कुछ देर रहता और फिर वो लड़की उसे अपने साथ घर ले जाती थी। नितिन के अनुसार वो लड़की अपने घर में अकेले ही रहती थी। उसका अपना कौन था या वो अपना गुज़र बसर किस तरह करती थी इस बारे में उसने नितिन को कभी कुछ नहीं बताया था। नितिन ने खुद भी कई बार उसके छोटे से घर में जा कर देखा था लेकिन वो उसे नहीं मिली थी। कहने का मतलब ये कि उस लड़की से मिलने का बस एक ही रास्ता था कि वो शाम को फिक्स टाइम पर उसी क्लब में जाए।

मैं ये जान कर हैरान था कि नितिन को उस लड़की के बारे में कुछ भी पता नहीं था। यहाँ तक कि वो उस लड़की का नाम तक नहीं जानता था। बड़ी हैरत की बात थी कि इसके बावजूद वो उस लड़की के इश्क़ में इस कदर डूब चुका था। कोई दूसरा उसकी ये बातें सुनता तो वो उसकी बातों पर ज़रा भी यकीन न करता, बल्कि उसे हद दर्जे का पागल ही कहता।

दूसरे दिन की शाम मैं नितिन के साथ उसी क्लब में पहुंचा जहां पर वो लड़की नितिन को मिलती थी। मैंने नितिन को समझा दिया था कि मैं उसके साथ नहीं बल्कि उसके आस पास ही रहूंगा और उस लड़की पर नज़र रखूंगा लेकिन उससे पहले वो मुझे इशारा कर के ये ज़रूर बता देगा कि वो लड़की कौन है।

शाम के नौ बज रहे थे। मैं और नितिन क्लब में पहुँच चुके थे। क्लब के बार काउंटर के पास नितिन हर रोज़ की तरह खड़ा हो गया था जबकि मैं उससे थोड़ा दूर इस तरह खड़ा हो गया था जैसे हम दोनों ही अजनबी हों। हालाकि हम दोनों एक दूसरे को आसानी से देख सकते थे। हम दोनों की ही धड़कनें बढ़ी हुईं थी। मेरे ज़हन में तो बार बार यही ख़याल उभर आते थे कि आख़िर ऐसी क्या वजह हो सकती है कि वो लड़की नितिन जैसे हैंडसम लड़के से शादी करने से इंकार करती है और इतना ही नहीं वो खुद इतनी रहस्यमयी क्यों है? आख़िर ऐसी क्या वजह हो सकती है कि वो अपने बारे में नितिन को कुछ नहीं बताती है?

घड़ी ने जैसे ही नौ बजाए तो नितिन ने मेरी तरफ देखा। मैं समझ गया कि उस लड़की के आने का टाइम हो गया है इस लिए मैं सतर्क हो गया और इंतज़ार करने लगा कि नितिन किस लड़की की तरफ इशारा करता है। इतना तो मैं भी जानता था कि वो लड़की बाहर से ही आएगी क्योंकि अगर वो पहले से ही क्लब में होती तो नितिन मुझे पहले ही इशारा कर के बता देता। मेरी धड़कनें बढ़ चुकीं थी और साथ ही ये क्यूरियोसिटी भी बढ़ ग‌ई थी की ऐसी अज़ीब फितरत वाली लड़की आख़िर है कौन और किस तरह दिखती है?

मैं बार बार क्लब के मेन डोर की तरफ देख रहा था और फिर पलट कर नितिन की तरफ देख लेता था। नितिन की निगाहें पहले से ही मेन डोर की तरफ जमी हुईं थी। मैं समझ सकता था कि इस वक़्त उसके अंदर का हाल क्या होगा। अभी मैंने नितिन की तरफ पलट कर देखा ही था कि तभी नितिन ने इशारा किया तो मैं चौंका और झट से पलट कर क्लब के मेन डोर की तरफ देखा।

मेन डोर से जो लड़की क्लब के अंदर आती हुई नज़र आई उसे देखते ही मेरी नज़रें उस पर जैसे चिपक सी ग‌ईं। गहरे नीले चमकीले कपड़े पहने एक लड़की अपने हाथ में एक छोटा सा डार्क ब्लू कलर का मिनी पर्श लिए नमूदार हुई थी। बड़ी बड़ी कजरारी आंखें, सर के बालों को उसने सर के ऊपर ही जुड़ा बना कर बाँध रखा था लेकिन दोनों तरफ से बालों की दो लटें उसके दोनों रुखसार पर झूल रहीं थी जिसकी वजह से उसके सुन्दर चेहरे का लुक बेहद ही आकर्षक लग रहा था। गोरे और सुराहीदार गले पर एक चमकीला लेकिन पतला सा हार था जिसके निचले तरफ एक ब्लू कलर का डायमंड चमक रहा था। होठों पर कपड़े से मैच करती हुई डार्क ब्लू कलर की लिपिस्टिक, कानों में ब्लू कलर के ही ईयर रिंग्स जो उसके कंधे के जस्ट ऊपर तक झूल रहे थे। घुटने के बाद उसकी गोरी सफ्फाक टाँगें चमक रहीं थी और पैरों में डार्क ब्लू कलर के ही हाई हील सैंडल्स। मैं बुत बना उसकी तरफ देखता ही रह गया था। चौंका तब जब वो मेरे सामने से निकल गई और उसके जिस्म पर मौजूद किसी ख़ास क्वालिटी वाले परफ्यूम की खुशबू मेरी नाक में समा गई थी।

मैंने पलट कर देखा वो नितिन के पास जा कर खड़ी हो गई थी। नितिन मन्त्रमुग्ध सा उसी को देखे जा रहा था। मैं समझ गया कि ऐसी हूर की परी के लिए तो यकीनन कोई भी अपना दिल हार जाए। नितिन अगर उसके इश्क़ में बीमार पड़ गया था तो इसमें उसका कोई कसूर नहीं था और सच कहूं तो उस लड़की को देख कर मेरे दिल की भी घंटियां बजने लगीं थी। ख़ैर मैंने बड़ी मुश्किल से खुद को सम्हाला और सतर्कता से उस लड़की पर नज़र रखने वाले काम के लिए रेडी हो गया।

नितिन क्योंकि मुझसे थोड़ा दूर खड़ा था इस लिए मैं ये नहीं सुन पाया था कि उन दोनों के बीच क्या बातें हुईं थी लेकिन मैं उस वक़्त बुरी तरह चौंका था जब कुछ देर बाद नितिन के साथ वो लड़की सीधे मेरे पास ही आ कर खड़ी हो गई थी। मुझे समझ ही नहीं आया था कि वो एकदम से मेरे सामने क्यों आ कर खड़ी हो गई थी? क्या नितिन ने उसे मेरे बारे में बताया था या वो कोई ऐसी शख्सियत थी जो पलक झपकते ही किसी के भी अंदर का हाल जान लेती थी?

"हैल्लो।" उसने अपनी खनकती हुई आवाज़ में मुस्कुरा कर हेलो किया तो जैसे मैं सोते से जागा और एकदम से हड़बड़ा गया जिससे उसकी मुस्कान और भी गहरी हो गई।

"ह..हेल्लौ...हेल्लौ।" मैंने खुद को सम्हालते हुए उसे किसी तरह जवाब दिया, और फिर पूछा____"क्या आप मुझे जानती हैं?"
"जी बिल्कुल।" उसने मुस्कुरा कर कहा तो मुझे झटका सा लगा और दिल की धड़कनें थम गई सी प्रतीत हुईं। आँखों में आश्चर्य का सागर लिए मैंने उसके खूबसूरत चेहरे की तरफ देखा तो उसने आगे कहा____"आप नितिन के दोस्त हैं।"

सच तो ये था कि मैं उसकी बेबाकी पर अवाक सा हो गया था। कभी उसकी तरफ देखता तो कभी नितिन की तरफ। उधर नितिन उसके साथ यूं खड़ा था जैसे वो भूल गया था कि मुझे यहाँ पर किस सिलसिले में ले कर आया था।

"चलें??" उसने नितिन से कहा और फिर मेरी तरफ देखते हुए उसी मुस्कान में कहा____"आज आप दोनों के साथ बेहद मज़ा आएगा और यकीन कीजिए आपको भी ऐसा मज़ा आएगा जिसकी आपने कभी कल्पना भी नहीं की होगी।"

उस लड़की की ये बात सुन कर तो जैसे मेरे दिमाग़ का फ्यूज़ ही उड़ गया था। मैं सोच भी नहीं सकता था कि वो इतनी बेबाकी से मुझसे ऐसी बात कह देगी। काफी देर तक मुझे कुछ समझ न आया कि मैं उसे क्या जवाब दूं। उधर नितिन तो जैसे गूंगा हो गया था जो मेरे लिए सबसे ज़्यादा हैरत की बात थी।

मुझे ख़ामोश और मूर्खों की तरह खड़ा देख वो हल्के से हंसी और फिर मेरे चेहरे के सामने चुटकी बजा कर मेरा ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किया। जैसे ही मैंने उसकी तरफ देखा तो उसने अपनी लेफ्ट भौंह से चलने का इशारा किया और फिर नितिन के साथ क्लब के बाहर की तरफ चल पड़ी। इधर उसके चलते ही मैं भी जैसे उसके सम्मोहन में फंसा उसके पीछे पीछे चल पड़ा।

क्लब से बाहर आ कर हम तीनो ही नितिन की कार में बैठ ग‌ए। कार की ड्राइविंग शीट पर नितिन बैठ गया था जबकि वो लड़की उसके बगल वाली शीट पर और मैं पिछली शीट पर। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि ये सब क्या हो रहा था? हालाकि मेरा ज़हन सक्रिय था और मैं बहुत कुछ बोलना भी चाहता था लेकिन होठों से कोई लफ्ज़ नहीं निकल रहे थे। मैं यही सोच सोच कर हैरान था कि ये किस टाइप की लड़की है जो इतनी बेबाकी से इतना कुछ बोल सकती है?

क़रीब आधे घंटे बाद कार एक जगह रुकी तो मैं जैसे खयालों के किसी गहरे समन्दर से बाहर आया। कार से उतर कर जब मैंने इधर उधर देखा तो चौंक गया क्योंकि हम शहर के आउटर में थे जहां इक्का दुक्का मकान बने नज़र आ रहे थे। उन्हीं में से एक मकान उस लड़की का था। ऐसा नहीं था कि मैंने ये जगह पहले कभी देखी नहीं थी लेकिन ये जान कर थोड़ी हैरानी हो रही थी कि इतनी टिप टॉप नज़र आ रही लड़की का घर ऐसी जगह पर कैसे हो सकता है?

मैं, नितिन और उस लड़की के पीछे पीछे कुछ ही फांसले पर नज़र आ रहे मकान के मुख्य दरवाज़े पर पहुँच गया। शहर क्योंकि कुछ ही दूरी पर था इस लिए यहाँ भी स्ट्रीट लाइट्स की रौशनी थी। मैं नज़रें घुमा घुमा कर चारो तरफ देख ही रहा था कि लड़की की आवाज़ सुन कर पलटा। मुख्य दरवाज़ा खुल चुका था और उस लड़की के साथ नितिन भी अंदर दाखिल हो चुका था। लड़की की आवाज़ पर जब मैं पलटा तो उसने मुस्कुरा कर अंदर आने का इशारा किया जिससे मैं हड़बड़ा कर जल्दी से अंदर दाखिल हो गया।

अंदर आया तो ये देख कर मेरी आँखें फटी की फटी रह गईं कि मकान अंदर से बेहद ही सजा संवरा था और बहुत ही खूबसूरत नज़र आ रहा था। मैं सोच भी नहीं सकता था कि अंदर मकान की सिचुएशन ऐसी होगी। नितिन जा कर सोफे पर बैठ गया था जबकि वो लड़की सामने दीवार के पास रखे टेबल से सट कर खड़ी हो गई थी। कुछ देर बाद जब वो पलटी तो उसके हाथ में दो कांच के गिलास थे जिनमें शराब भरी हुई थी। दोनों गिलास लिए वो पलटी और मुस्कुराते हुए पहले उसने एक गिलास नितिन को पकड़ाया और फिर मेरी तरफ बढ़ी। मैं अब तक थोड़ा बहुत उसके सम्मोहन से और उसके क्रिया कलापों से सम्हल चुका था इस लिए एकदम से सतर्क हो गया।

"मैं शराब नहीं पीता।" उसने जब शराब का गिलास मेरी तरफ बढ़ाया तो मैंने सफ़ेद झूठ बोला था जिस पर उसकी मुस्कान गहरी हो गई थी। ऐसा लगा जैसे वो पलक झपकते ही समझ गई हो कि मैंने झूठ बोला है। कोई और वक़्त होता या कोई और सिचुएशन होती तो मैं इतने खूबसूरत साक़ी को इंकार न करता लेकिन इस वक़्त मैं किसी और ही मकसद से नितिन के साथ आया था।

"फिर तो मज़ा नहीं आएगा प्रशांत जी।" उसने मेरा नाम लेते हुए उसी गहरी मुस्कान में कहा तो मैं मन ही मन ये सोच कर चौंका कि उसे मेरा नाम कैसे पता है? साला जब से उसे देखा था तब से मुझे वो झटके पे झटके ही दिए जा रही थी। मैंने सोचा कि क्या क्लब में नितिन ने उसे मेरे बारे में बताया होगा? मैं अभी ये सोच ही रहा था कि उसने आगे कहा____"निटिन की फिक्र मत कीजिए, वो कुछ नहीं कहेगा।"

पता नहीं ऐसी क्या बात थी कि मैं दुबारा उसे इंकार ही नहीं कर सका था। ख़ैर उसके बाद तो मेरी कोशिश यही थी कि मैं कम से कम शराब पियूं और ज़्यादातर होश में ही रहूं ताकि मैं किसी तरह उस लड़की के बारे में जान सकूँ लेकिन मेरी सारी उम्मीदों पर उस वक़्त पानी फिर गया जब नितिन भी मुझे पीने के लिए ज़ोर देने लगा। उसके बाद तो वही सब होता चला गया जो नितिन हर रात उसके साथ करता था या ये कहें कि वो लड़की नितिन के साथ करती थी। हम दो मर्दों पर वो अकेली लड़की बहुत ज़्यादा भारी साबित हुई थी। एक घंटे बाद आलम ये था कि हम दोनों को ही दुनियां जहान की ख़बर न थी। रात नशे और बेहोशी के आलम में उस लड़की के उस घर में ही गुज़र ग‌ई। सुबह देर से मेरी आँख खुली तो देखा नितिन सोफे पर बैठा किसी गहरी सोच में डूबा हुआ था।

"किस सोच में डूबा हुआ है बे?" मैंने उसकी तरफ देखते हुए पूछा____"मेरा तो साला सर चकरा रहा है।"
"मैं तेरे जागने का ही इंतज़ार कर रहा था।" नितिन ने बुझे मन से कहा था____"चल घर चलते हैं।"

"घ..घर???" मैं एकदम से चौंका, चारो तरफ नज़र घुमाते हुए पूछा____"और वो लड़की कहां ग‌ई?"
"चली गई।" उसने बताया।
"चली गई??" मैं फिर चौंका___"कहां चली गई? रात में तो वो हमारे साथ ही थी?"

"अरे! अभी कुछ देर पहले ग‌ई है वो।" नितिन ने कहा____"मुझसे बोली कोई काम है उसे लेकिन मुझे पक्का यकीन है कि वो मुझसे जान छुड़ा कर यहाँ से निकल गई है।"

"तू क्या कह रहा है मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा।" मैंने उलझ गए अंदाज़ से पूछा____"भला वो तुझसे जान छुड़ा कर क्यों जाएगी?"

"वो इस लिए कि हर रोज़ की तरह कहीं मैं आज फिर से न उससे शादी की बात करने लगूं।" नितिन ने कहा____"पिछले दस दिन से यही हो रहा है। मैं जब भी उससे शादी की बात करता हूं तभी वो मुझसे वही बंधन में न बंधने वाली बातें कहने लगती है। आज उसने सोचा होगा कि इससे पहले मैं उससे शादी की बात करूँ वो बहाना बना कर निकल जाए यहाँ से।"

नितिन की बातें सुन कर मुझे समझ में न आया कि अब मैं उससे क्या कहूँ? कुछ सोचते हुए मैं उठा और उस घर में इधर उधर देखने लगा। नितिन मेरी ये हरकत देख कर बोला____"कुछ नहीं मिलेगा तुझे। मैं कई बार इस घर की तलाशी ले चुका हूं लेकिन उससे ताल्लुक रखती कोई चीज़ नहीं मिली मुझे।"

"ऐसा कैसे हो सकता है?" मैं बहुत ज़्यादा उलझ गया था____"आख़िर उसके बारे में किसी को तो कुछ पता होगा।"

"उसके बारे में किसी को कुछ भी पता नहीं है।" नितिन ने कहा____"मैं कई बार तहक़ीकात कर चुका हूं लेकिन कोई फ़ायदा नहीं हुआ। क्लब में ही पहली बार वो मुझे मिली थी, इस लिए पहले मैंने यही सोचा था कि शायद क्लब में कोई उसे जानता हो लेकिन ऐसा नहीं था। सबका यही कहना था कि ऐसी किसी लड़की को वो नहीं जानते और ना ही कभी ऐसी लड़की को देखा है उन लोगों ने। कहने का मतलब ये कि किसी को भी उसके बारे में कुछ भी पता नहीं है।"

"तो क्या वो हर शाम एकदम आसमान से टपक पड़ती है?" मैंने कहा____"या ज़मीन फाड़ कर निकल आती है वो? ख़ैर तूने कभी उसका पीछा नहीं किया?"
"क‌ई बार किया है।" नितिन ने गहरी सांस ली____"लेकिन इससे भी कोई फ़ायदा नहीं हुआ। जाने कैसे वो हर बार मेरी नज़रों से गायब हो जाती है। लाख खोजने पर भी नज़र नहीं आती।"

"फिर तो लौड़े लग गए बेटा।" मैं एकदम से बोल पड़ा____"अबे भोसड़ी के कहीं वो कोई भूत वूत या कोई चुड़ैल तो नहीं है?"
"ये क्या बक रहा है तू?" नितिन की आँखें फ़ैल ग‌ईं____"तुझे वो चुड़ैल नज़र आई थी? साले मेरे साथ तू भी तो उसके साथ रात में मज़े ले रहा था?"

"मज़े से याद आया।" अचानक से मेरे दिमाग़ की बत्ती जल उठी तो बोला____"साले, तू तो उससे प्यार करता है और उससे शादी भी करना चाहता है न तो फिर तूने मुझे उसके साथ मज़े क्यों लेने दिया? रोका क्यों नहीं मुझे, बल्कि तू तो उस वक़्त मेरे लिए एक पहेली सा बन गया था? समझ में ही नहीं आ रहा था कि तू उसके सामने कुछ बोल क्यों नहीं रहा?"

"सिर्फ उसकी ख़ुशी के लिए भाई।" नितिन ने फीकी मुस्कान के साथ कहा____"वो कहती है कि वो किसी तरह के बंधन में नहीं बंधना चाहती इस लिए मैं उसे किसी भी चीज़ के लिए नहीं रोकता। इस मामले में अपने दिल पर पत्थर रख लेता हूं मैं। वो जो चाहती है वही करता हूं। सिर्फ इस लिए कि शायद एक दिन उसे मुझ पर तरस आ जाए और वो मुझसे शादी करने के लिए राजी हो जाए।"

"तू सच में उसके प्रेम में पागल हो गया है भाई।" मैंने उसके बुझे हुए चेहरे की तरफ देखते हुए कहा____"इतना कुछ होने के बाद भी तू उसी से शादी करने का ख़्वाईशमंद है। ये बड़ी ही अज़ीब बात है। ख़ैर अब क्या? मेरा मतलब है कि अब तू ही बता कि उसके बारे में कैसे पता किया जाए? वैसे मैं तो यही कहूंगा भाई कि तू उसका चक्कर छोड़ दे। सिंपल सी बात है कि जो लड़की अपने बारे में तुझे कुछ बताती ही नहीं है बल्कि एक मिस्ट्री ही बन कर रहना चाहती है ऐसी लड़की को पाने की तुझे हसरत ही नहीं रखनी चाहिए। ये तो हद दर्जे की मूर्खता है।"

"तुझे क्या लगता है कि मैं ये सब नहीं सोचता?" नितिन ने अज़ीब अंदाज़ में कहा____"हर रोज़ और हर पल अपने आपको समझाता हूं भाई लेकिन दिल है कि साला मानता ही नहीं। उससे जुदा होने की बात सोचता हूं तो दिल में बड़े जोरों का दर्द होने लगता है। सुना तो मैंने भी बहुत था कि प्यार मोहब्बत बड़ी अज़ीब बला होती है और उसी से होती है जो नसीब में नहीं होते लेकिन अब इसका क्या करूँ कि सब कुछ समझते हुए भी अपने दिल के हाथों मजबूर हो कर मैं हर कीमत पर उसी को अपना बनाना चाहता हूं। मैं सच कहता हूं भाई अगर वो हमेशा के लिए मेरी न हुई तो मैं जी नहीं पाऊंगा।"

नितिन की बातें मेरे सर के ऊपर से जा रहीं थी। हालाकि मुझे उसकी हालत का एहसास था लेकिन मेरी समझ में अब ये नहीं आ रहा था कि मैं कैसे इस असंभव काम को संभव बनाऊं? ज़रूरी ये नहीं था कि वो लड़की कौन थी और उसका अपना कौन था बल्कि ज़रूरी ये था कि उसे भी नितिन के प्रेम का एहसास हो और वो उसके प्रेम को एक्सेप्ट करे लेकिन जिस तरह का उस लड़की का कैरेक्टर नज़र आया था उससे ऐसा होना दूर दूर तक नज़र नहीं आ रहा था।

[][][][][][]

"अबे मरना है क्या????" रास्ते में अचानक ही एक आदमी कार के आगे आ गया तो नितिन ज़ोर से ब्रेक पैडल को दबा कर चीख पड़ा था। असल में ग़लती हम दोनों की ही थी। हम दोनों का ज़हन उस लड़की के बारे में ही सोचने में लगा हुआ था और इस चक्कर में ये हादसा हो गया था।

कार रोक कर हम दोनों फ़ौरन ही कार से उतर कर सामने की तरफ आए थे। एक अज़ीब सा आदमी कार से थोड़ी ही दूरी पर गिरा पड़ा था। हालाकि कार उससे टकराई नहीं थी लेकिन अचानक से जब कार उसके सामने आ गई और ब्रेक की तेज़ आवाज़ हुई तो शायद दहशत की वजह से वो सड़क पर जा गिरा था। मैंने आगे बढ़ कर उसे उठाया।

"देख के नहीं चल सकते थे?" मैंने उस अज़ीब से आदमी से कहा____"अभी कार के नीचे आ कर मर ही जाना था तुम्हें।"
"हें हें हें मैं तो बच गया।" वो आदमी अज़ीब तरह से अपनी बत्तीसी निकाल कर हँसा____"लेकिन तुम दोनों नहीं बचोगे। हें हें हें तुम दोनों बहुत जल्द मरोगे।"

"ये क्या बकवास कर रहे हो तुम?" नितिन गुस्से में बोल पड़ा था उससे जिस पर उसने नितिन को सर से ले कर पाँव तक अज़ीब अंदाज़ से घूरा और फिर वैसे ही मुझे भी घूरा।

"हें हें हें पहले ये मरेगा।" हम दोनों को घूरने के बाद उसने पहले नितिन की तरफ ऊँगली की और फिर मेरी तरफ पलट कर कहा_____"हें हें हें फिर तू मरेगा। वो नहीं छोड़ेगी, मार डालेगी हें हें हें।"

बड़ा अज़ीब सा आदमी था वो। जिस्म पर फटे पुराने कपड़े। बड़े बड़े उलझे हुए बाल और बड़ी बड़ी दाढ़ी मूंछें। शक्ल से ही डरावना लग रहा था। उसकी बातें सुन कर पहले तो हम दोनों ने यही सोचा कि वो पागल है और ऐसे ही बोल दिया होगा लेकिन फिर एकदम से जैसे मेरे ज़हन में झनाका सा हुआ और बिजली की तरह ख़याल उभरा____'क्या वो सच में पागल है? कहीं वो सच तो नहीं बोल रहा? वो नहीं छोड़ेगी, मार डालेगी...आख़िर किसकी बात कर रहा है ये?'

"ओ बाबा रुको ज़रा।" मैं एकदम से उस पागल आदमी की तरफ लपका____"तुम किसकी बात कर रहे थे? कौन नहीं छोड़ेगी हमें और कौन मार डालेगी?"

"अबे तू भी क्या इस पागल की बात पर आ गया।" पीछे से नितिन की आवाज़ आई तो मैंने पलट कर कहा____"तू चुप रह थोड़ी देर।" कहने के साथ ही मैंने उस पागल आदमी की तरफ देखा____"बताओ बाबा आख़िर किसकी बात कर रहे थे तुम?"

"हें हें हें वो नहीं छोड़ेगी।" मेरे पूछने पर वो फिर से अज़ीब ढंग से हँसा____"भाग जा यहाँ से, हें हें हें ए तू भी भाग जा।"
"प्लीज़ बाबा बताओ न।" मैंने उस आदमी से जैसे मिन्नत की। मेरा दिल एकाएक बुरी तरह घबरा उठा था____"आख़िर तुम किसकी बात कर रहे हो? कौन मार डालेगी हमें?"

"दस दिन बाद।" वो आदमी कुछ सोचते हुए बोला____"हां हाँ दस दिन बाद। अमावस को हें हें हें अमावस की रात तू मरेगा और तेरा ये दोस्त भी मरेगा हें हें हें जल्दी भाग जा यहाँ से।"

सच तो ये था कि उस आदमी की इन बातों से गांड फट गई थी मेरी। हालाकि नितिन के चेहरे से ऐसा लग रहा था जैसे वो उस आदमी को अभी दो थप्पड़ लगा देगा। शायद वो सच में उसे पागल समझता था जबकि मेरे अंदर से बार बार एक आवाज़ आ रही थी कि वो पागल आदमी बकवास नहीं कर रहा है। मैंने उस आदमी की बड़ी मिन्नतें की। वो बार बार अज़ीब ढंग से हंसता और भाग जा यहाँ से बोलता जिस पर नितिन का चेहरा और भी गुस्से से लाल हुआ जा रहा था।

"प्लीज़ बताओ न बाबा कौन है वो?" मैंने उस पागल आदमी के सामने अपने दोनों हाथ जोड़ लिए____"और क्यों मार डालेगी हमें? आख़िर तुम ऐसा क्यों कह रहे हो?"
"चल मेरे साथ।" उस आदमी ने इस बार थोड़े अलग अंदाज़ में कहा।

मैं उस आदमी के साथ जाने को तैयार हो गया लेकिन नितिन अब मुझ पर ही गुस्सा करने लगा था। उसका कहना था कि मैं एक पागल की बातों में आ कर उसके साथ क्यों जा रहा हूं? मैंने नितिन को बड़ी मुश्किल से समझाया और उस आदमी के साथ चलने के लिए राजी किया। कार को सड़क पर ही छोड़ दिया हमने। मैं और नितिन उस आदमी के पीछे पीछे चल पड़े थे।

क़रीब दस मिनट बाद हम दोनों उसके साथ चलते हुए एक जगह पर जा कर रुके। लेफ्ट साइड थोड़ी ऊंचाई पर एक लकड़ी का झोपड़ा सा बना हुआ था। उस आदमी ने हमें उस झोपड़े के बाहर ही रुकने को कहा और खुद लकड़ी का टूटा सा दरवाज़ा खोल कर अंदर चला गया।

"मैंने तेरे जैसा मूर्ख और फट्टू नहीं देखा।" नितिन ने धीमी आवाज़ में लेकिन नाराज़गी से कहा____"साला एक पागल आदमी की बात सुन कर इतना डर गया कि उसके पीछे पीछे यहाँ तक आ गया और मुझे भी ले आया।"

"तेरे सर पर न उस लड़की के इश्क़ का भूत सवार है भोसड़ी के।" मैंने इस बार उसे डांटते हुए कहा____"इस लिए तू कुछ और सोच ही नहीं रहा लेकिन मैं तेरी तरह किसी के इश्क़ में बावला नहीं हूं समझा? अब तू मेरी एक बात सुन, वो लड़की जिसके इश्क़ में तू बावला है न वो मुझे ठीक नहीं लग रही है। कुछ तो गड़बड़ ज़रूर है वरना दुनिया में भला कौन सा ऐसा इंसान है जिसके बारे में कोई कुछ बता ही न सके?"

"मतलब अब तू इस पागल बुड्ढे की बात सुन कर उस लड़की को कुछ और ही समझने लगा है?" नितिन ने मुझे घूरते हुए कहा____"और चाहता है कि मैं भी यही समझूं?"

"तुझे जो समझना है समझ।" मैंने कहा____"लेकिन मैं अब ये देखना चाहता हूं कि सच क्या है?"
"ये है सच।" नितिन ने गुस्से में अपने लंड की तरफ इशारा किया और दूसरी तरफ मुँह फेर कर खड़ा हो गया। मुझे समझ न आया कि वो इतना चिढ़ क्यों रहा था?

हम दोनों दरवाज़े से थोड़ी ही दूर खड़े थे। क़रीब दस मिनट बाद वो पागल आदमी बाहर आया। उसके हाथ में कुछ था। मेरी नज़रें उसके उस हाथ पर ही चिपक ग‌ईं थी।

"ये ले।" उस आदमी ने मेरी तरफ काले धागे में फंसा हुआ एक ताबीज़ बढ़ाया जिसे मैंने ले लिया। उसके बाद उसने नितिन की तरफ भी वैसा ही एक ताबीज़ बढ़ाया और कहा_____"तू भी ले।"

"मुझे नहीं चाहिए।" नितिन ने उखड़े हुए भाव से कहा____"मैं इन फालतू चीज़ों पर यकीन नहीं करता।"
"करेगा और करना ही पड़ेगा तुझे।" पागल दिखने वाला वो बुद्ढा नितिन को शख़्त भाव से घूरते हुए बोला____"अगर यकीन नहीं करता तो आज शाम को यकीन हो जाएगा। रख ले इसे, ये तुझे खा नहीं जाएगा।"

"कैसे??" मैं एकदम से बोल पड़ा था____"कैसे बाबा और ये सब आख़िर चक्कर क्या है? प्लीज़ मुझे साफ़ साफ़ बताइए न। क्या वैसा ही कुछ है जिसका मुझे शक हो रहा है?"

"हां तू समझ गया है।" उस बुड्ढे बाबा ने कहा____"अब इसे भी समझा दे। इससे बोल कि ये इस ताबीज़ को पहन ले।"

"पर बाबा ये तो बताइए।" मैंने धड़कते दिल के साथ पूछा____"कौन है वो?"
"क्या करेगा जान कर?" बाबा ने अज़ीब लहजे में कहा____"जिन्दा रहना चाहता है तो इस सबसे दूर हो जा और हां....इस ताबीज़ को अपने गले से मत उतारना। चल अब जा यहाँ से।"

निटिन का बस चलता तो वो उस पागल बुड्ढे को पेल ही देता लेकिन मैंने उसे कंट्रोल में रखा हुआ था। असल में वो इन सब चीज़ों को नहीं मानता था। यही वजह थी कि वो उस बुड्ढे पर गुस्सा हो रहा था। लौटते समय वो बाबा की दी हुई उस ताबीज़ को भी फेंके दे रहा था लेकिन मैंने ज़बरदस्ती उस ताबीज़ को उसके गले में पहना दिया था और अपनी क़सम दे दी थी कि अगर उसने मेरा कहा नहीं माना तो आज के बाद हमारी दोस्ती खत्म।

घर पहुंचने पर मैंने नितिन को इस सबके बारे में बहुत समझाया था और वो बहुत हद तक समझ भी गया था लेकिन जैसे ही शाम हुई वो क्लब जाने के लिए तैयार हो गया। मैंने उसे रोका लेकिन वो न माना। उसने ऐसी बात कह दी कि मैं भी इंकार न कर सका। उस लड़की के प्रति उसकी बेपनाह चाहत तो थी ही जो उसे उससे मिलने जाने पर मजबूर कर रही थी लेकिन उसने कहा कि अब वो भी देखना चाहता है कि सच क्या है। अगर उस पागल बुड्ढे की बातों में ज़रा भी सच्चाई है तो वो उस लड़की से एक बार मिल कर इस बात को ज़रूर परखेगा।

मैं और नितिन क्लब पहुंचे। नितिन का तो पता नहीं लेकिन मैं अंदर से थोड़ा घबराया हुआ था। नितिन के अनुसार वो लड़की हर शाम अपने फिक्स टाइम पर ही क्लब में आती थी। ज़ाहिर है वो नितिन से मिलने ही आती थी लेकिन टाइम ओवर हो जाने के बाद भी जब वो न आई तो नितिन परेशान हो गया। मैं तो ये सोचने पर मजबूर हो गया था कि क्या उस पागल बुड्ढे का कहना सच था? हालाकि उस लड़की के न आने की कई वजहें हो सकती थी लेकिन मौजूदा वक़्त में मेरे ज़हन में बस यही एक ख़याल आया था। हम दोनों तब तक उस क्लब में रहे जब तक की क्लब के बंद होने का टाइम नहीं हो गया लेकिन वो लड़की नहीं आई। मेरे लिए तो ये अच्छा ही हुआ था लेकिन नितिन बेहद मायूस और दुखी सा नज़र आने लगा था।

अगले एक हप्ते तक हम दोनों उस क्लब में जाते रहे लेकिन वो लड़की नहीं आई। इस एक हप्ते में नितिन की हालत कुछ ज़्यादा ही ख़राब हो गई थी। उसके माता पिता भी उसके लिए चिंतित हो गए थे। मैं समझ सकता था कि नितिन की इस हालत की वजह उस लड़की से उसका बेपनाह प्रेम है लेकिन इस बारे में कोई कुछ नहीं कर सकता था। हम दोनों उस लड़की के घर भी कई बार जा चुके थे लेकिन वो वहां भी नहीं थी। पता नहीं कहां गायब हो गई थी वो? उसके बारे में जानने के लिए मैं एक दो बार उस पागल बाबा के पास भी गया लेकिन वो मुझे मिला ही नहीं। वैसे एक तरह से ये अच्छा ही हुआ था क्योंकि इससे कम से कम मेरी और मेरे दोस्त की जान को कोई ख़तरा तो नहीं होने वाला था। मैं जानता था कि वक़्त के साथ मेरा दोस्त उस लड़की को भूलने की कोशिश करेगा और एक दिन वो ठीक भी हो जाएगा। यही सब सोच कर मैं भी अपने काम के सिलसिले में निकल गया था।

मुझे गए हुए दो दिन ही हुए थे कि मुझे एक ऐसी ख़बर मिली जिसने मेरे होश उड़ा दिए थे। ऐसा लगा था जैसे सारा आसमान मेरे सर पर आ गिरा था। मैं जिस हालत में था उसी हालत में नितिन से मिलने के लिए दौड़ पड़ा था। शाम को जब मैं नितिन के घर पहुंचा तो देखा उसके घर में कोहराम मचा हुआ था। नितिन के माता पिता दहाड़ें मार मार कर नितिन के लिए रो रहे थे। मुझे देखते ही नितिन की माँ मुझसे लिपट कर बुरी तरह रोने लगी थी।

मैं किसी गहरे सदमे में था। मुझे यकीन ही नहीं हो रहा था कि मेरे बचपन का दोस्त इस तरह मुझे छोड़ कर चला जाएगा। बड़ी मुश्किल से मैं इस सबसे उबरा। पुलिस को नितिन की लाश शहर से बाहर एक ऐसी जगह पर मिली थी जहां पर कोई आता जाता नहीं था। पुलिस के अनुसार नितिन की शायद गला दबा कर हत्या की गई थी लेकिन मुझे पूरा यकीन था कि इसके पीछे उस लड़की का ही हाथ था। मेरे ज़हन में बार बार उस पागल बाबा की बातें गूँज उठती थीं। पोस्टमॉर्टेम रिपोर्ट जब आई तो उससे पता चला था कि नितिन की मौत दम घुटने से हुई थी लेकिन हैरानी की बात ये थी कि उसके जिस्म में खून की एक बूँद भी नहीं थी और ना ही उसके जिस्म पर किसी दूसरे ब्यक्ति के कोई फिंगर प्रिंट्स जैसे सबूत मिले थे। डॉक्टर और पुलिस खुद इन सब बातों से हैरान थे।

पुलिस ने लम्बे समय तक तहक़ीकात की लेकिन वो क़ातिल को खोज नहीं पाई थी। मैं अपने दोस्त की इस अकस्मात् हुई मौत से बहुत ही ज़्यादा टूट गया था। हम दोनों का बचपन का साथ था। ख़ैर एक दिन मैं उसके घर जा कर उसके कमरे की तलाशी ले रहा था। उसके माता पिता भी नहीं थे। आलमारी में मुझे एक डायरी दिखी और डायरी के ऊपर रखा हुआ वो ताबीज़ जो उस पागल बाबा ने दिया था। ताबीज़ देख कर मैं सकते में आ गया था। मुझे पूरा यकीन हो गया कि मेरे दोस्त की हत्या किसने और किस तरह की है। डायरी खोल कर देखा तो उसमें नितिन ने अपनी दिनचर्या लिख रखी थी। उसकी डायरी में सिर्फ उस लड़की का ही ज़िक्र था। एक एक कर के मैं पेज़ पलटते गया और आख़िर के पेज़ पर आ कर मैं रुका। उसमें लिखा था_____

18 अक्टूबर 1990

आज पूरे बारह दिन हो गए हैं उसे देखे हुए। उसके बिना एक एक पल जीना मुश्किल होता जा रहा है। समझ में नहीं आता कि कहां ढूँढू उसे और किस तरह उसे अपना बनाऊं?
मुझे एहसास हो चुका है कि जिस दिन से मैंने उस पागल बुड्ढे के इस ताबीज़ को पहना है उसी दिन से मुझे उसकी मोहिनी सूरत को देखना नसीब नहीं हुआ है। मुझे उसकी बहुत याद आती है। दिल करता है कि पलक झपकते ही उसके पास पहुँच जाऊं। मुझे लगने लगा है कि इस ताबीज़ की वजह से ही वो मुझसे नाराज़ हो गई है इस लिए मैंने इस ताबीज़ को अपने गले से निकाल दिया है। मैं हर उस चीज़ को खुद से दूर कर दूंगा जो चीज़ मेरे और उसके बीच रास्ता रोकने आएगी। आज शाम को मैं फिर से क्लब जाऊंगा और मुझे यकीन है कि आज वो मुझसे मिलने क्लब में ज़रूर आएगी। जब वो मुझे मिलेगी तो मैं उससे कहूंगा कि अब मैं उसकी जुदाई बर्दास्त नहीं कर सकता इस लिए या तो वो हमेशा के लिए मेरी हो जाए या फिर वो मुझे हमेशा के लिए अपना बना ले।

नितिन ने इसके आगे डायरी में कुछ नहीं लिखा था लेकिन इसके बावजूद ये समझा जा सकता था कि उसके साथ क्या हुआ होगा। नितिन के माता पिता को मैंने शार्ट में सब कुछ बता दिया था जिसे सुन कर वो बेहद ही दुखी हो गए थे और ऊपर वाले से जाने क्या क्या कहते हुए रो रहे थे। अपने बूढ़े माता पिता का बस वही तो एक सहारा और आख़िरी उम्मीद था लेकिन इस सबके बाद जैसे हर जगह सन्नाटा सा छा गया था।

मेरे दोस्त की हत्या की तहक़ीकात पुलिस कर रही थी लेकिन मैं अच्छी तरह जानता था कि इससे कोई फ़र्क पड़ने वाला नहीं था। मेरा दोस्त जो चाहता था वो उसे मिल गया था। ख़ैर, जीवन में कोई किसी का नसीब नहीं बदल सकता और ना ही किसी के सुख दुःख ले सकता है। अपनी ख़ुशी और अपना ग़म इंसान खुद ही झेलता है लेकिन मैंने सोच लिया था कि मैं उनका बेटा नितिन बनूंगा और उनका सहारा बनूंगा। शायद इससे उनके दिल का दर्द थोड़ा सा ही सही मगर कम हो और ऊपर कहीं मौजूद मेरा दोस्त भी अपने अंदर अपराध बोझ जैसी भावना से बच कर सुकून को प्राप्त करे।

***समाप्त***
 

Xabhi

"Injoy Everything In Limits"
10,210
42,633
174
Dark Matter
━━━━━━━━━━━━


पूरे एक महीने बाद मिला था उससे। उसको देखते ही मेरी आँखें हैरत से फ़ैल ग‌ईं थी। कुछ पलों तक तो मुझे यकीन ही न हुआ था कि वो मेरे बचपन का दोस्त है और मेरा जिगरी यार है। हम दोनों साथ साथ खेले कूदे और साथ साथ ही बड़े हुए थे। स्कूल से कॉलेज तक हम साथ साथ ही रहे थे उसके बाद वो अपने काम में लग गया और मैं अपने काम में। हम दोनों की च्वाइस भले ही अलग थी लेकिन साथ कभी न छूटा था। हप्ते, पन्द्रह दिन में हमारी मुलाक़ात ज़रूर होती थी। असल में हम दोनों इतने गहरे दोस्त थे कि एक दूसरे से मिले बिना रह ही नहीं सकते थे लेकिन इस बार मैं अपने काम में ऐसा उलझ गया था कि पूरे एक महीने बाद ही उससे मिलना संभव हुआ था। मैं सोच भी नहीं सकता था कि इस बार जब मैं अपने दोस्त से मिलूंगा तो वो मुझे एक अलग ही रूप में नज़र आएगा। अच्छा खासा दिखने वाला नितिन मौजूदा वक़्त में दुबला सा दिख रहा था जबकि इसके पहले वो अच्छी खासी पर्सनालिटी का मालिक था।

"अबे ये क्या हालत बना ली है तूने?" उसके कमरे में आते ही मैंने सबसे पहले उससे यही पूछा था____"साला एक महीने में ऐसा क्या किया है तूने कि तेरा एकदम से कायाकल्प ही हो गया है? कहीं मुट्ठ वुट्ठ तो नहीं ज़्यादा मारने लगा है तू?"

मैंने तो बस मज़ाक में ही ऐसा बोला था उससे और वो मेरे इस मज़ाक पर मुस्कुराया भी था लेकिन फिर उसके चेहरे पर अज़ीब से भाव गर्दिश करते नज़र आने लगे थे। मैंने साफ़ महसूस किया था कि वो किसी बात से परेशान था। अब क्योंकि वो मेरा बचपन का जिगरी यार था इस लिए उसके परेशान होने पर मेरा परेशान हो जाना भी लाज़मी था। मैंने सीरियस हो कर जब उससे पूछा तो उसने बताया कि वो एक लड़की से प्यार करता है और उससे शादी भी करना चाहता है लेकिन वो लड़की उससे शादी नहीं करना चाहती। नितिन ने बताया कि वो पिछले एक महीने से उस लड़की से हर रोज़ मिलता है और दोनों के बीच प्यार की सारी हदें भी पार हो जाती हैं। ऐसा नहीं है कि वो लड़की उसे पसंद नहीं करती है लेकिन जाने क्यों वो शादी की बात पर मुकर जाती है? नितिन की परेशानी और दुःख की यही वजह थी।

"बड़ी अज़ीब बात है।" कुछ देर की ख़ामोशी के बाद मैंने कहा____"और उससे भी अज़ीब और हैरानी की बात ये है कि हमेशा कपड़े की तरह लड़कियां बदलने वाला मेरा दोस्त अचानक किसी लड़की के प्रेम में कैसे पड़ गया? ख़ैर मैं समझ सकता हूं कि एक दिन हर किसी का बुरा वक़्त भी आता है लेकिन ये तो बता कि_____कौन है वो???"

"मैं नहीं जानता।" नितिन ने बेबस भाव से जब ये कहा तो मैं एक बार फिर से हैरान रह गया। हर लड़की की जन्म कुंडली अपने पास रखने वाला नितिन उसी लड़की के बारे में नहीं जानता था जिसे वो प्रेम करता था।

"भोसड़ीके ये क्या बकवास है?" मैं जैसे उसके ऊपर चढ़ ही गया था____"क्या मेरे साथ कोई मज़ाक कर रहा है तू?"
"मैं मज़ाक नहीं कर रहा प्रशांत।" नितिन ने सीरियस हो कर कहा____"मैं सच में नहीं जानता कि वो कौन है? पिछले एक महीने से मैं उससे उसके बारे में हर रोज़ पूछता हूं लेकिन वो कुछ नहीं बताती है। मैंने खुद भी अपने तरीके से उसके बारे में पता करने की बहुत कोशिश की लेकिन कुछ पता नहीं कर पाया। हालाकि शुरुआत में तो मैं भी उसके साथ बस मज़े ही ले रहा था और सच कहूं तो वो मेरी लाइफ में आई हर लड़कियों से कहीं ज़्यादा लाजवाब है। उसकी खूबसूरती उसकी कातिल अदाएं और बिस्तर में मेरे साथ उसका सहयोग भौकाल से कम नहीं होता है। मुझे पता ही नहीं चला कि कब उसकी खूबियां मेरे दिलो दिमाग़ में घर कर ग‌ईं और मैं उसके इश्क़ में गिरफ़्तार हो गया। अभी एक हप्ते से मैं हर रोज़ उससे शादी करने के लिए मिन्नतें कर रहा हूं लेकिन वो साफ़ इंकार करती आ रही है। उसका बस यही कहना है कि जो चीज़ मुझे उससे बिना शादी किए मिल रही है उसके लिए उससे शादी करने की क्या ज़रूरत है? वो एक ऐसी आज़ाद चिड़िया है जो किसी तरह के बंधन में नहीं बंधना चाहती है।"

"सही तो कह रही है वो।" नितिन की बात बीच में ही काट कर मैं बोल पड़ा था____"और तेरे लिए भी तो ये अच्छी बात है वरना ज़्यादातर तो ऐसा होता है कि लड़कियां गले ही पड़ जाती हैं। तुझे वो ख़ुशी ख़ुशी सब कुछ दे रही है तो फिर तू उससे शादी क्यों करना चाहता है बे? मेरी बात मान उससे बस मज़े ले, ये शादी वादी और प्रेम व्रेम का चक्कर छोड़।"

"कमाल है।" नितिन के होठों पर फीकी सी मुस्कान उभर आई थी____"एक वक़्त था जब तू ये कहा करता था कि इस तरह लड़कियों के साथ मज़े करना छोड़ दे क्योंकि ये अच्छी बात नहीं है और आज तू ये कह रहा है कि मैं बस उसके साथ मज़े करूं? पहले यकीनन मैं बस मज़े ही करने को असली ज़िन्दगी समझता था लेकिन जब से उसके प्रेम में गिरफ़्तार हुआ हूं तब से मज़े करने वाली फीलिंग्स का मेरे अंदर से वजूद ही फिनिश हो गया है। अब तो बस एक ही ख़्वाईश है कि उससे शादी हो जाए और वो हमेशा के लिए सिर्फ मेरी हो जाए।"

मेरे सामने बैठा नितिन वो नितिन नहीं था जिसे मैं बचपन से जानता था बल्कि वो तो ऐसा नितिन बना हुआ नज़र आ रहा था जो एक ऐसी लड़की के प्रेम में पड़ कर बीमार सा हो गया था जिसके बारे में उसे खुद ही कुछ पता नहीं था।

"तो अब क्या करने का इरादा है?" कुछ देर उसकी तरफ देखते रहने के बाद मैंने गहरी सांस ले कर उससे पूछा____"मेरा मतलब है कि क्या अभी भी तू उस लड़की के बारे में ही सोचेगा या उस लड़की को बुरा ख़्वाब समझ कर भूल जाएगा और अपनी लाइफ़ में आगे बढ़ेगा?"

"मैं हार नहीं मान सकता प्रशांत।" नितिन ने कहीं खोए हुए अंदाज़ में कहा____"अब तक अपनी लाइफ़ में बहुत सी लड़कियों के साथ मज़े करते हुए ऐश किया है लेकिन अब नहीं। अब मुझे समझ आ गया है कि ये सब ठीक नहीं है बल्कि एक ऐसी लड़की के साथ जीवन के सफ़र की शुरुआत करना चाहिए जिसे आप प्यार करते हो और जिसके साथ होने से आपको ये लगे कि जीवन की असली ख़ुशी बस उसी से है। वो भले ही अपने बारे में मुझे कुछ न बताए लेकिन मैं उसे अपना बना के ही रहूंगा। उसे मेरे प्यार को एक्सेप्ट करना ही पड़ेगा प्रशांत।"

"तो क्या तू उसके साथ ज़ोर ज़बरदस्ती करेगा?" मैंने उसकी आँखों में झाँका____"तुझे समझना चाहिए कि ज़ोर ज़बरदस्ती से हासिल की हुई कोई भी चीज़ हमें ख़ुशी नहीं दे सकती।"

"नहीं, मैं उसके साथ कोई ज़ोर ज़बरदस्ती नहीं करूंगा भाई।" नितिन ने कहा____"बल्कि उसे अपने प्यार का एहसास कराउंगा। अपना सीना चीर कर उसे दिखाऊंगा कि उसके लिए मेरे दिल में कितनी मोहब्बत मौजूद है। उसे बताऊंगा कि मैं उसके बिना जी नहीं सकता। उससे कहूंगा कि अगर उसे किसी तरह के बंधन में बंधना मंजूर नहीं है तो मैं भी उसे बंधन में नहीं बांधूंगा। वो बस नाम के लिए मेरी बन जाए और मेरी ज़िन्दगी में हमेशा के लिए शामिल हो जाए।"

कहते कहते अचानक ही नितिन की आवाज़ भारी हो गई थी। उसका गला भर आया था और अगले ही पल उसकी आँखों से आंसू छलक पड़े थे। वो सिसकियां लेने लगा था। मैं उसे उस हाल में देख कर और उसकी बातें सुन कर चकित सा हो गया था मगर क्योंकि वो मेरा जिगरी दोस्त था इस लिए उसकी तक़लीफ से मुझे भी तक़लीफ हुई। मुझे एहसास हो चुका था कि वो उस लड़की की वजह से बहुत बदल गया है और एक महीने बाद जिस रूप में वो मुझे नज़र आया है उसकी वजह यकीनन उस लड़की के प्रति उसका पागलपन भरा वो प्रेम ही है।

नितिन की फैमिली में उसके माता पिता और एक बड़ी बहन थी। बहन की शादी हो चुकी थी और वो अपने ससुराल में थी। नितिन की इस बदली हुई तबियत का एहसास उसके माता पिता को भी था लेकिन वो ये नहीं जानते थे कि नितिन की बदली हुई तबियत की वजह क्या है। नितिन ने अपने माता पिता से उस लड़की के बारे में कुछ नहीं बताया था। असल में वो चाहता था कि पहले वो लड़की उससे शादी करने के लिए राजी हो जाए तब वो अपने माता पिता को भी उसके बारे में बताए लेकिन जब लड़की ही राजी नहीं थी तो वो भला कैसे कुछ बताता उन्हें? मैंने नितिन की हालत देख कर फैंसला किया कि मैं अपने जिगरी यार की हेल्प करुंगा। मैं उस लड़की के बारे में पता करूंगा और खुद भी उससे रिक्वेस्ट करूंगा कि वो मेरे दोस्त से शादी करे। नितिन और मैं भले ही हाई क्लास मटेरियल नहीं थे लेकिन इतने तो थे ही कि किसी लड़की की ज़रूरतों को पूरा कर सकें।

दूसरे दिन से ही मैं और नितिन उस लड़की के बारे में पता करने के काम पर लग ग‌ए। नितिन के अनुसार हर शाम वो लड़की शहर के एक जाने माने क्लब में मिलती थी। क्लब में वो उसके साथ कुछ देर रहता और फिर वो लड़की उसे अपने साथ घर ले जाती थी। नितिन के अनुसार वो लड़की अपने घर में अकेले ही रहती थी। उसका अपना कौन था या वो अपना गुज़र बसर किस तरह करती थी इस बारे में उसने नितिन को कभी कुछ नहीं बताया था। नितिन ने खुद भी कई बार उसके छोटे से घर में जा कर देखा था लेकिन वो उसे नहीं मिली थी। कहने का मतलब ये कि उस लड़की से मिलने का बस एक ही रास्ता था कि वो शाम को फिक्स टाइम पर उसी क्लब में जाए।

मैं ये जान कर हैरान था कि नितिन को उस लड़की के बारे में कुछ भी पता नहीं था। यहाँ तक कि वो उस लड़की का नाम तक नहीं जानता था। बड़ी हैरत की बात थी कि इसके बावजूद वो उस लड़की के इश्क़ में इस कदर डूब चुका था। कोई दूसरा उसकी ये बातें सुनता तो वो उसकी बातों पर ज़रा भी यकीन न करता, बल्कि उसे हद दर्जे का पागल ही कहता।

दूसरे दिन की शाम मैं नितिन के साथ उसी क्लब में पहुंचा जहां पर वो लड़की नितिन को मिलती थी। मैंने नितिन को समझा दिया था कि मैं उसके साथ नहीं बल्कि उसके आस पास ही रहूंगा और उस लड़की पर नज़र रखूंगा लेकिन उससे पहले वो मुझे इशारा कर के ये ज़रूर बता देगा कि वो लड़की कौन है।

शाम के नौ बज रहे थे। मैं और नितिन क्लब में पहुँच चुके थे। क्लब के बार काउंटर के पास नितिन हर रोज़ की तरह खड़ा हो गया था जबकि मैं उससे थोड़ा दूर इस तरह खड़ा हो गया था जैसे हम दोनों ही अजनबी हों। हालाकि हम दोनों एक दूसरे को आसानी से देख सकते थे। हम दोनों की ही धड़कनें बढ़ी हुईं थी। मेरे ज़हन में तो बार बार यही ख़याल उभर आते थे कि आख़िर ऐसी क्या वजह हो सकती है कि वो लड़की नितिन जैसे हैंडसम लड़के से शादी करने से इंकार करती है और इतना ही नहीं वो खुद इतनी रहस्यमयी क्यों है? आख़िर ऐसी क्या वजह हो सकती है कि वो अपने बारे में नितिन को कुछ नहीं बताती है?

घड़ी ने जैसे ही नौ बजाए तो नितिन ने मेरी तरफ देखा। मैं समझ गया कि उस लड़की के आने का टाइम हो गया है इस लिए मैं सतर्क हो गया और इंतज़ार करने लगा कि नितिन किस लड़की की तरफ इशारा करता है। इतना तो मैं भी जानता था कि वो लड़की बाहर से ही आएगी क्योंकि अगर वो पहले से ही क्लब में होती तो नितिन मुझे पहले ही इशारा कर के बता देता। मेरी धड़कनें बढ़ चुकीं थी और साथ ही ये क्यूरियोसिटी भी बढ़ ग‌ई थी की ऐसी अज़ीब फितरत वाली लड़की आख़िर है कौन और किस तरह दिखती है?

मैं बार बार क्लब के मेन डोर की तरफ देख रहा था और फिर पलट कर नितिन की तरफ देख लेता था। नितिन की निगाहें पहले से ही मेन डोर की तरफ जमी हुईं थी। मैं समझ सकता था कि इस वक़्त उसके अंदर का हाल क्या होगा। अभी मैंने नितिन की तरफ पलट कर देखा ही था कि तभी नितिन ने इशारा किया तो मैं चौंका और झट से पलट कर क्लब के मेन डोर की तरफ देखा।

मेन डोर से जो लड़की क्लब के अंदर आती हुई नज़र आई उसे देखते ही मेरी नज़रें उस पर जैसे चिपक सी ग‌ईं। गहरे नीले चमकीले कपड़े पहने एक लड़की अपने हाथ में एक छोटा सा डार्क ब्लू कलर का मिनी पर्श लिए नमूदार हुई थी। बड़ी बड़ी कजरारी आंखें, सर के बालों को उसने सर के ऊपर ही जुड़ा बना कर बाँध रखा था लेकिन दोनों तरफ से बालों की दो लटें उसके दोनों रुखसार पर झूल रहीं थी जिसकी वजह से उसके सुन्दर चेहरे का लुक बेहद ही आकर्षक लग रहा था। गोरे और सुराहीदार गले पर एक चमकीला लेकिन पतला सा हार था जिसके निचले तरफ एक ब्लू कलर का डायमंड चमक रहा था। होठों पर कपड़े से मैच करती हुई डार्क ब्लू कलर की लिपिस्टिक, कानों में ब्लू कलर के ही ईयर रिंग्स जो उसके कंधे के जस्ट ऊपर तक झूल रहे थे। घुटने के बाद उसकी गोरी सफ्फाक टाँगें चमक रहीं थी और पैरों में डार्क ब्लू कलर के ही हाई हील सैंडल्स। मैं बुत बना उसकी तरफ देखता ही रह गया था। चौंका तब जब वो मेरे सामने से निकल गई और उसके जिस्म पर मौजूद किसी ख़ास क्वालिटी वाले परफ्यूम की खुशबू मेरी नाक में समा गई थी।

मैंने पलट कर देखा वो नितिन के पास जा कर खड़ी हो गई थी। नितिन मन्त्रमुग्ध सा उसी को देखे जा रहा था। मैं समझ गया कि ऐसी हूर की परी के लिए तो यकीनन कोई भी अपना दिल हार जाए। नितिन अगर उसके इश्क़ में बीमार पड़ गया था तो इसमें उसका कोई कसूर नहीं था और सच कहूं तो उस लड़की को देख कर मेरे दिल की भी घंटियां बजने लगीं थी। ख़ैर मैंने बड़ी मुश्किल से खुद को सम्हाला और सतर्कता से उस लड़की पर नज़र रखने वाले काम के लिए रेडी हो गया।

नितिन क्योंकि मुझसे थोड़ा दूर खड़ा था इस लिए मैं ये नहीं सुन पाया था कि उन दोनों के बीच क्या बातें हुईं थी लेकिन मैं उस वक़्त बुरी तरह चौंका था जब कुछ देर बाद नितिन के साथ वो लड़की सीधे मेरे पास ही आ कर खड़ी हो गई थी। मुझे समझ ही नहीं आया था कि वो एकदम से मेरे सामने क्यों आ कर खड़ी हो गई थी? क्या नितिन ने उसे मेरे बारे में बताया था या वो कोई ऐसी शख्सियत थी जो पलक झपकते ही किसी के भी अंदर का हाल जान लेती थी?

"हैल्लो।" उसने अपनी खनकती हुई आवाज़ में मुस्कुरा कर हेलो किया तो जैसे मैं सोते से जागा और एकदम से हड़बड़ा गया जिससे उसकी मुस्कान और भी गहरी हो गई।

"ह..हेल्लौ...हेल्लौ।" मैंने खुद को सम्हालते हुए उसे किसी तरह जवाब दिया, और फिर पूछा____"क्या आप मुझे जानती हैं?"
"जी बिल्कुल।" उसने मुस्कुरा कर कहा तो मुझे झटका सा लगा और दिल की धड़कनें थम गई सी प्रतीत हुईं। आँखों में आश्चर्य का सागर लिए मैंने उसके खूबसूरत चेहरे की तरफ देखा तो उसने आगे कहा____"आप नितिन के दोस्त हैं।"

सच तो ये था कि मैं उसकी बेबाकी पर अवाक सा हो गया था। कभी उसकी तरफ देखता तो कभी नितिन की तरफ। उधर नितिन उसके साथ यूं खड़ा था जैसे वो भूल गया था कि मुझे यहाँ पर किस सिलसिले में ले कर आया था।

"चलें??" उसने नितिन से कहा और फिर मेरी तरफ देखते हुए उसी मुस्कान में कहा____"आज आप दोनों के साथ बेहद मज़ा आएगा और यकीन कीजिए आपको भी ऐसा मज़ा आएगा जिसकी आपने कभी कल्पना भी नहीं की होगी।"

उस लड़की की ये बात सुन कर तो जैसे मेरे दिमाग़ का फ्यूज़ ही उड़ गया था। मैं सोच भी नहीं सकता था कि वो इतनी बेबाकी से मुझसे ऐसी बात कह देगी। काफी देर तक मुझे कुछ समझ न आया कि मैं उसे क्या जवाब दूं। उधर नितिन तो जैसे गूंगा हो गया था जो मेरे लिए सबसे ज़्यादा हैरत की बात थी।

मुझे ख़ामोश और मूर्खों की तरह खड़ा देख वो हल्के से हंसी और फिर मेरे चेहरे के सामने चुटकी बजा कर मेरा ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किया। जैसे ही मैंने उसकी तरफ देखा तो उसने अपनी लेफ्ट भौंह से चलने का इशारा किया और फिर नितिन के साथ क्लब के बाहर की तरफ चल पड़ी। इधर उसके चलते ही मैं भी जैसे उसके सम्मोहन में फंसा उसके पीछे पीछे चल पड़ा।

क्लब से बाहर आ कर हम तीनो ही नितिन की कार में बैठ ग‌ए। कार की ड्राइविंग शीट पर नितिन बैठ गया था जबकि वो लड़की उसके बगल वाली शीट पर और मैं पिछली शीट पर। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि ये सब क्या हो रहा था? हालाकि मेरा ज़हन सक्रिय था और मैं बहुत कुछ बोलना भी चाहता था लेकिन होठों से कोई लफ्ज़ नहीं निकल रहे थे। मैं यही सोच सोच कर हैरान था कि ये किस टाइप की लड़की है जो इतनी बेबाकी से इतना कुछ बोल सकती है?

क़रीब आधे घंटे बाद कार एक जगह रुकी तो मैं जैसे खयालों के किसी गहरे समन्दर से बाहर आया। कार से उतर कर जब मैंने इधर उधर देखा तो चौंक गया क्योंकि हम शहर के आउटर में थे जहां इक्का दुक्का मकान बने नज़र आ रहे थे। उन्हीं में से एक मकान उस लड़की का था। ऐसा नहीं था कि मैंने ये जगह पहले कभी देखी नहीं थी लेकिन ये जान कर थोड़ी हैरानी हो रही थी कि इतनी टिप टॉप नज़र आ रही लड़की का घर ऐसी जगह पर कैसे हो सकता है?

मैं, नितिन और उस लड़की के पीछे पीछे कुछ ही फांसले पर नज़र आ रहे मकान के मुख्य दरवाज़े पर पहुँच गया। शहर क्योंकि कुछ ही दूरी पर था इस लिए यहाँ भी स्ट्रीट लाइट्स की रौशनी थी। मैं नज़रें घुमा घुमा कर चारो तरफ देख ही रहा था कि लड़की की आवाज़ सुन कर पलटा। मुख्य दरवाज़ा खुल चुका था और उस लड़की के साथ नितिन भी अंदर दाखिल हो चुका था। लड़की की आवाज़ पर जब मैं पलटा तो उसने मुस्कुरा कर अंदर आने का इशारा किया जिससे मैं हड़बड़ा कर जल्दी से अंदर दाखिल हो गया।

अंदर आया तो ये देख कर मेरी आँखें फटी की फटी रह गईं कि मकान अंदर से बेहद ही सजा संवरा था और बहुत ही खूबसूरत नज़र आ रहा था। मैं सोच भी नहीं सकता था कि अंदर मकान की सिचुएशन ऐसी होगी। नितिन जा कर सोफे पर बैठ गया था जबकि वो लड़की सामने दीवार के पास रखे टेबल से सट कर खड़ी हो गई थी। कुछ देर बाद जब वो पलटी तो उसके हाथ में दो कांच के गिलास थे जिनमें शराब भरी हुई थी। दोनों गिलास लिए वो पलटी और मुस्कुराते हुए पहले उसने एक गिलास नितिन को पकड़ाया और फिर मेरी तरफ बढ़ी। मैं अब तक थोड़ा बहुत उसके सम्मोहन से और उसके क्रिया कलापों से सम्हल चुका था इस लिए एकदम से सतर्क हो गया।

"मैं शराब नहीं पीता।" उसने जब शराब का गिलास मेरी तरफ बढ़ाया तो मैंने सफ़ेद झूठ बोला था जिस पर उसकी मुस्कान गहरी हो गई थी। ऐसा लगा जैसे वो पलक झपकते ही समझ गई हो कि मैंने झूठ बोला है। कोई और वक़्त होता या कोई और सिचुएशन होती तो मैं इतने खूबसूरत साक़ी को इंकार न करता लेकिन इस वक़्त मैं किसी और ही मकसद से नितिन के साथ आया था।

"फिर तो मज़ा नहीं आएगा प्रशांत जी।" उसने मेरा नाम लेते हुए उसी गहरी मुस्कान में कहा तो मैं मन ही मन ये सोच कर चौंका कि उसे मेरा नाम कैसे पता है? साला जब से उसे देखा था तब से मुझे वो झटके पे झटके ही दिए जा रही थी। मैंने सोचा कि क्या क्लब में नितिन ने उसे मेरे बारे में बताया होगा? मैं अभी ये सोच ही रहा था कि उसने आगे कहा____"निटिन की फिक्र मत कीजिए, वो कुछ नहीं कहेगा।"

पता नहीं ऐसी क्या बात थी कि मैं दुबारा उसे इंकार ही नहीं कर सका था। ख़ैर उसके बाद तो मेरी कोशिश यही थी कि मैं कम से कम शराब पियूं और ज़्यादातर होश में ही रहूं ताकि मैं किसी तरह उस लड़की के बारे में जान सकूँ लेकिन मेरी सारी उम्मीदों पर उस वक़्त पानी फिर गया जब नितिन भी मुझे पीने के लिए ज़ोर देने लगा। उसके बाद तो वही सब होता चला गया जो नितिन हर रात उसके साथ करता था या ये कहें कि वो लड़की नितिन के साथ करती थी। हम दो मर्दों पर वो अकेली लड़की बहुत ज़्यादा भारी साबित हुई थी। एक घंटे बाद आलम ये था कि हम दोनों को ही दुनियां जहान की ख़बर न थी। रात नशे और बेहोशी के आलम में उस लड़की के उस घर में ही गुज़र ग‌ई। सुबह देर से मेरी आँख खुली तो देखा नितिन सोफे पर बैठा किसी गहरी सोच में डूबा हुआ था।

"किस सोच में डूबा हुआ है बे?" मैंने उसकी तरफ देखते हुए पूछा____"मेरा तो साला सर चकरा रहा है।"
"मैं तेरे जागने का ही इंतज़ार कर रहा था।" नितिन ने बुझे मन से कहा था____"चल घर चलते हैं।"

"घ..घर???" मैं एकदम से चौंका, चारो तरफ नज़र घुमाते हुए पूछा____"और वो लड़की कहां ग‌ई?"
"चली गई।" उसने बताया।
"चली गई??" मैं फिर चौंका___"कहां चली गई? रात में तो वो हमारे साथ ही थी?"

"अरे! अभी कुछ देर पहले ग‌ई है वो।" नितिन ने कहा____"मुझसे बोली कोई काम है उसे लेकिन मुझे पक्का यकीन है कि वो मुझसे जान छुड़ा कर यहाँ से निकल गई है।"

"तू क्या कह रहा है मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा।" मैंने उलझ गए अंदाज़ से पूछा____"भला वो तुझसे जान छुड़ा कर क्यों जाएगी?"

"वो इस लिए कि हर रोज़ की तरह कहीं मैं आज फिर से न उससे शादी की बात करने लगूं।" नितिन ने कहा____"पिछले दस दिन से यही हो रहा है। मैं जब भी उससे शादी की बात करता हूं तभी वो मुझसे वही बंधन में न बंधने वाली बातें कहने लगती है। आज उसने सोचा होगा कि इससे पहले मैं उससे शादी की बात करूँ वो बहाना बना कर निकल जाए यहाँ से।"

नितिन की बातें सुन कर मुझे समझ में न आया कि अब मैं उससे क्या कहूँ? कुछ सोचते हुए मैं उठा और उस घर में इधर उधर देखने लगा। नितिन मेरी ये हरकत देख कर बोला____"कुछ नहीं मिलेगा तुझे। मैं कई बार इस घर की तलाशी ले चुका हूं लेकिन उससे ताल्लुक रखती कोई चीज़ नहीं मिली मुझे।"

"ऐसा कैसे हो सकता है?" मैं बहुत ज़्यादा उलझ गया था____"आख़िर उसके बारे में किसी को तो कुछ पता होगा।"

"उसके बारे में किसी को कुछ भी पता नहीं है।" नितिन ने कहा____"मैं कई बार तहक़ीकात कर चुका हूं लेकिन कोई फ़ायदा नहीं हुआ। क्लब में ही पहली बार वो मुझे मिली थी, इस लिए पहले मैंने यही सोचा था कि शायद क्लब में कोई उसे जानता हो लेकिन ऐसा नहीं था। सबका यही कहना था कि ऐसी किसी लड़की को वो नहीं जानते और ना ही कभी ऐसी लड़की को देखा है उन लोगों ने। कहने का मतलब ये कि किसी को भी उसके बारे में कुछ भी पता नहीं है।"

"तो क्या वो हर शाम एकदम आसमान से टपक पड़ती है?" मैंने कहा____"या ज़मीन फाड़ कर निकल आती है वो? ख़ैर तूने कभी उसका पीछा नहीं किया?"
"क‌ई बार किया है।" नितिन ने गहरी सांस ली____"लेकिन इससे भी कोई फ़ायदा नहीं हुआ। जाने कैसे वो हर बार मेरी नज़रों से गायब हो जाती है। लाख खोजने पर भी नज़र नहीं आती।"

"फिर तो लौड़े लग गए बेटा।" मैं एकदम से बोल पड़ा____"अबे भोसड़ी के कहीं वो कोई भूत वूत या कोई चुड़ैल तो नहीं है?"
"ये क्या बक रहा है तू?" नितिन की आँखें फ़ैल ग‌ईं____"तुझे वो चुड़ैल नज़र आई थी? साले मेरे साथ तू भी तो उसके साथ रात में मज़े ले रहा था?"

"मज़े से याद आया।" अचानक से मेरे दिमाग़ की बत्ती जल उठी तो बोला____"साले, तू तो उससे प्यार करता है और उससे शादी भी करना चाहता है न तो फिर तूने मुझे उसके साथ मज़े क्यों लेने दिया? रोका क्यों नहीं मुझे, बल्कि तू तो उस वक़्त मेरे लिए एक पहेली सा बन गया था? समझ में ही नहीं आ रहा था कि तू उसके सामने कुछ बोल क्यों नहीं रहा?"

"सिर्फ उसकी ख़ुशी के लिए भाई।" नितिन ने फीकी मुस्कान के साथ कहा____"वो कहती है कि वो किसी तरह के बंधन में नहीं बंधना चाहती इस लिए मैं उसे किसी भी चीज़ के लिए नहीं रोकता। इस मामले में अपने दिल पर पत्थर रख लेता हूं मैं। वो जो चाहती है वही करता हूं। सिर्फ इस लिए कि शायद एक दिन उसे मुझ पर तरस आ जाए और वो मुझसे शादी करने के लिए राजी हो जाए।"

"तू सच में उसके प्रेम में पागल हो गया है भाई।" मैंने उसके बुझे हुए चेहरे की तरफ देखते हुए कहा____"इतना कुछ होने के बाद भी तू उसी से शादी करने का ख़्वाईशमंद है। ये बड़ी ही अज़ीब बात है। ख़ैर अब क्या? मेरा मतलब है कि अब तू ही बता कि उसके बारे में कैसे पता किया जाए? वैसे मैं तो यही कहूंगा भाई कि तू उसका चक्कर छोड़ दे। सिंपल सी बात है कि जो लड़की अपने बारे में तुझे कुछ बताती ही नहीं है बल्कि एक मिस्ट्री ही बन कर रहना चाहती है ऐसी लड़की को पाने की तुझे हसरत ही नहीं रखनी चाहिए। ये तो हद दर्जे की मूर्खता है।"

"तुझे क्या लगता है कि मैं ये सब नहीं सोचता?" नितिन ने अज़ीब अंदाज़ में कहा____"हर रोज़ और हर पल अपने आपको समझाता हूं भाई लेकिन दिल है कि साला मानता ही नहीं। उससे जुदा होने की बात सोचता हूं तो दिल में बड़े जोरों का दर्द होने लगता है। सुना तो मैंने भी बहुत था कि प्यार मोहब्बत बड़ी अज़ीब बला होती है और उसी से होती है जो नसीब में नहीं होते लेकिन अब इसका क्या करूँ कि सब कुछ समझते हुए भी अपने दिल के हाथों मजबूर हो कर मैं हर कीमत पर उसी को अपना बनाना चाहता हूं। मैं सच कहता हूं भाई अगर वो हमेशा के लिए मेरी न हुई तो मैं जी नहीं पाऊंगा।"

नितिन की बातें मेरे सर के ऊपर से जा रहीं थी। हालाकि मुझे उसकी हालत का एहसास था लेकिन मेरी समझ में अब ये नहीं आ रहा था कि मैं कैसे इस असंभव काम को संभव बनाऊं? ज़रूरी ये नहीं था कि वो लड़की कौन थी और उसका अपना कौन था बल्कि ज़रूरी ये था कि उसे भी नितिन के प्रेम का एहसास हो और वो उसके प्रेम को एक्सेप्ट करे लेकिन जिस तरह का उस लड़की का कैरेक्टर नज़र आया था उससे ऐसा होना दूर दूर तक नज़र नहीं आ रहा था।

[][][][][][]

"अबे मरना है क्या????" रास्ते में अचानक ही एक आदमी कार के आगे आ गया तो नितिन ज़ोर से ब्रेक पैडल को दबा कर चीख पड़ा था। असल में ग़लती हम दोनों की ही थी। हम दोनों का ज़हन उस लड़की के बारे में ही सोचने में लगा हुआ था और इस चक्कर में ये हादसा हो गया था।

कार रोक कर हम दोनों फ़ौरन ही कार से उतर कर सामने की तरफ आए थे। एक अज़ीब सा आदमी कार से थोड़ी ही दूरी पर गिरा पड़ा था। हालाकि कार उससे टकराई नहीं थी लेकिन अचानक से जब कार उसके सामने आ गई और ब्रेक की तेज़ आवाज़ हुई तो शायद दहशत की वजह से वो सड़क पर जा गिरा था। मैंने आगे बढ़ कर उसे उठाया।

"देख के नहीं चल सकते थे?" मैंने उस अज़ीब से आदमी से कहा____"अभी कार के नीचे आ कर मर ही जाना था तुम्हें।"
"हें हें हें मैं तो बच गया।" वो आदमी अज़ीब तरह से अपनी बत्तीसी निकाल कर हँसा____"लेकिन तुम दोनों नहीं बचोगे। हें हें हें तुम दोनों बहुत जल्द मरोगे।"

"ये क्या बकवास कर रहे हो तुम?" नितिन गुस्से में बोल पड़ा था उससे जिस पर उसने नितिन को सर से ले कर पाँव तक अज़ीब अंदाज़ से घूरा और फिर वैसे ही मुझे भी घूरा।

"हें हें हें पहले ये मरेगा।" हम दोनों को घूरने के बाद उसने पहले नितिन की तरफ ऊँगली की और फिर मेरी तरफ पलट कर कहा_____"हें हें हें फिर तू मरेगा। वो नहीं छोड़ेगी, मार डालेगी हें हें हें।"

बड़ा अज़ीब सा आदमी था वो। जिस्म पर फटे पुराने कपड़े। बड़े बड़े उलझे हुए बाल और बड़ी बड़ी दाढ़ी मूंछें। शक्ल से ही डरावना लग रहा था। उसकी बातें सुन कर पहले तो हम दोनों ने यही सोचा कि वो पागल है और ऐसे ही बोल दिया होगा लेकिन फिर एकदम से जैसे मेरे ज़हन में झनाका सा हुआ और बिजली की तरह ख़याल उभरा____'क्या वो सच में पागल है? कहीं वो सच तो नहीं बोल रहा? वो नहीं छोड़ेगी, मार डालेगी...आख़िर किसकी बात कर रहा है ये?'

"ओ बाबा रुको ज़रा।" मैं एकदम से उस पागल आदमी की तरफ लपका____"तुम किसकी बात कर रहे थे? कौन नहीं छोड़ेगी हमें और कौन मार डालेगी?"

"अबे तू भी क्या इस पागल की बात पर आ गया।" पीछे से नितिन की आवाज़ आई तो मैंने पलट कर कहा____"तू चुप रह थोड़ी देर।" कहने के साथ ही मैंने उस पागल आदमी की तरफ देखा____"बताओ बाबा आख़िर किसकी बात कर रहे थे तुम?"

"हें हें हें वो नहीं छोड़ेगी।" मेरे पूछने पर वो फिर से अज़ीब ढंग से हँसा____"भाग जा यहाँ से, हें हें हें ए तू भी भाग जा।"
"प्लीज़ बाबा बताओ न।" मैंने उस आदमी से जैसे मिन्नत की। मेरा दिल एकाएक बुरी तरह घबरा उठा था____"आख़िर तुम किसकी बात कर रहे हो? कौन मार डालेगी हमें?"

"दस दिन बाद।" वो आदमी कुछ सोचते हुए बोला____"हां हाँ दस दिन बाद। अमावस को हें हें हें अमावस की रात तू मरेगा और तेरा ये दोस्त भी मरेगा हें हें हें जल्दी भाग जा यहाँ से।"

सच तो ये था कि उस आदमी की इन बातों से गांड फट गई थी मेरी। हालाकि नितिन के चेहरे से ऐसा लग रहा था जैसे वो उस आदमी को अभी दो थप्पड़ लगा देगा। शायद वो सच में उसे पागल समझता था जबकि मेरे अंदर से बार बार एक आवाज़ आ रही थी कि वो पागल आदमी बकवास नहीं कर रहा है। मैंने उस आदमी की बड़ी मिन्नतें की। वो बार बार अज़ीब ढंग से हंसता और भाग जा यहाँ से बोलता जिस पर नितिन का चेहरा और भी गुस्से से लाल हुआ जा रहा था।

"प्लीज़ बताओ न बाबा कौन है वो?" मैंने उस पागल आदमी के सामने अपने दोनों हाथ जोड़ लिए____"और क्यों मार डालेगी हमें? आख़िर तुम ऐसा क्यों कह रहे हो?"
"चल मेरे साथ।" उस आदमी ने इस बार थोड़े अलग अंदाज़ में कहा।

मैं उस आदमी के साथ जाने को तैयार हो गया लेकिन नितिन अब मुझ पर ही गुस्सा करने लगा था। उसका कहना था कि मैं एक पागल की बातों में आ कर उसके साथ क्यों जा रहा हूं? मैंने नितिन को बड़ी मुश्किल से समझाया और उस आदमी के साथ चलने के लिए राजी किया। कार को सड़क पर ही छोड़ दिया हमने। मैं और नितिन उस आदमी के पीछे पीछे चल पड़े थे।

क़रीब दस मिनट बाद हम दोनों उसके साथ चलते हुए एक जगह पर जा कर रुके। लेफ्ट साइड थोड़ी ऊंचाई पर एक लकड़ी का झोपड़ा सा बना हुआ था। उस आदमी ने हमें उस झोपड़े के बाहर ही रुकने को कहा और खुद लकड़ी का टूटा सा दरवाज़ा खोल कर अंदर चला गया।

"मैंने तेरे जैसा मूर्ख और फट्टू नहीं देखा।" नितिन ने धीमी आवाज़ में लेकिन नाराज़गी से कहा____"साला एक पागल आदमी की बात सुन कर इतना डर गया कि उसके पीछे पीछे यहाँ तक आ गया और मुझे भी ले आया।"

"तेरे सर पर न उस लड़की के इश्क़ का भूत सवार है भोसड़ी के।" मैंने इस बार उसे डांटते हुए कहा____"इस लिए तू कुछ और सोच ही नहीं रहा लेकिन मैं तेरी तरह किसी के इश्क़ में बावला नहीं हूं समझा? अब तू मेरी एक बात सुन, वो लड़की जिसके इश्क़ में तू बावला है न वो मुझे ठीक नहीं लग रही है। कुछ तो गड़बड़ ज़रूर है वरना दुनिया में भला कौन सा ऐसा इंसान है जिसके बारे में कोई कुछ बता ही न सके?"

"मतलब अब तू इस पागल बुड्ढे की बात सुन कर उस लड़की को कुछ और ही समझने लगा है?" नितिन ने मुझे घूरते हुए कहा____"और चाहता है कि मैं भी यही समझूं?"

"तुझे जो समझना है समझ।" मैंने कहा____"लेकिन मैं अब ये देखना चाहता हूं कि सच क्या है?"
"ये है सच।" नितिन ने गुस्से में अपने लंड की तरफ इशारा किया और दूसरी तरफ मुँह फेर कर खड़ा हो गया। मुझे समझ न आया कि वो इतना चिढ़ क्यों रहा था?

हम दोनों दरवाज़े से थोड़ी ही दूर खड़े थे। क़रीब दस मिनट बाद वो पागल आदमी बाहर आया। उसके हाथ में कुछ था। मेरी नज़रें उसके उस हाथ पर ही चिपक ग‌ईं थी।

"ये ले।" उस आदमी ने मेरी तरफ काले धागे में फंसा हुआ एक ताबीज़ बढ़ाया जिसे मैंने ले लिया। उसके बाद उसने नितिन की तरफ भी वैसा ही एक ताबीज़ बढ़ाया और कहा_____"तू भी ले।"

"मुझे नहीं चाहिए।" नितिन ने उखड़े हुए भाव से कहा____"मैं इन फालतू चीज़ों पर यकीन नहीं करता।"
"करेगा और करना ही पड़ेगा तुझे।" पागल दिखने वाला वो बुद्ढा नितिन को शख़्त भाव से घूरते हुए बोला____"अगर यकीन नहीं करता तो आज शाम को यकीन हो जाएगा। रख ले इसे, ये तुझे खा नहीं जाएगा।"

"कैसे??" मैं एकदम से बोल पड़ा था____"कैसे बाबा और ये सब आख़िर चक्कर क्या है? प्लीज़ मुझे साफ़ साफ़ बताइए न। क्या वैसा ही कुछ है जिसका मुझे शक हो रहा है?"

"हां तू समझ गया है।" उस बुड्ढे बाबा ने कहा____"अब इसे भी समझा दे। इससे बोल कि ये इस ताबीज़ को पहन ले।"

"पर बाबा ये तो बताइए।" मैंने धड़कते दिल के साथ पूछा____"कौन है वो?"
"क्या करेगा जान कर?" बाबा ने अज़ीब लहजे में कहा____"जिन्दा रहना चाहता है तो इस सबसे दूर हो जा और हां....इस ताबीज़ को अपने गले से मत उतारना। चल अब जा यहाँ से।"

निटिन का बस चलता तो वो उस पागल बुड्ढे को पेल ही देता लेकिन मैंने उसे कंट्रोल में रखा हुआ था। असल में वो इन सब चीज़ों को नहीं मानता था। यही वजह थी कि वो उस बुड्ढे पर गुस्सा हो रहा था। लौटते समय वो बाबा की दी हुई उस ताबीज़ को भी फेंके दे रहा था लेकिन मैंने ज़बरदस्ती उस ताबीज़ को उसके गले में पहना दिया था और अपनी क़सम दे दी थी कि अगर उसने मेरा कहा नहीं माना तो आज के बाद हमारी दोस्ती खत्म।

घर पहुंचने पर मैंने नितिन को इस सबके बारे में बहुत समझाया था और वो बहुत हद तक समझ भी गया था लेकिन जैसे ही शाम हुई वो क्लब जाने के लिए तैयार हो गया। मैंने उसे रोका लेकिन वो न माना। उसने ऐसी बात कह दी कि मैं भी इंकार न कर सका। उस लड़की के प्रति उसकी बेपनाह चाहत तो थी ही जो उसे उससे मिलने जाने पर मजबूर कर रही थी लेकिन उसने कहा कि अब वो भी देखना चाहता है कि सच क्या है। अगर उस पागल बुड्ढे की बातों में ज़रा भी सच्चाई है तो वो उस लड़की से एक बार मिल कर इस बात को ज़रूर परखेगा।

मैं और नितिन क्लब पहुंचे। नितिन का तो पता नहीं लेकिन मैं अंदर से थोड़ा घबराया हुआ था। नितिन के अनुसार वो लड़की हर शाम अपने फिक्स टाइम पर ही क्लब में आती थी। ज़ाहिर है वो नितिन से मिलने ही आती थी लेकिन टाइम ओवर हो जाने के बाद भी जब वो न आई तो नितिन परेशान हो गया। मैं तो ये सोचने पर मजबूर हो गया था कि क्या उस पागल बुड्ढे का कहना सच था? हालाकि उस लड़की के न आने की कई वजहें हो सकती थी लेकिन मौजूदा वक़्त में मेरे ज़हन में बस यही एक ख़याल आया था। हम दोनों तब तक उस क्लब में रहे जब तक की क्लब के बंद होने का टाइम नहीं हो गया लेकिन वो लड़की नहीं आई। मेरे लिए तो ये अच्छा ही हुआ था लेकिन नितिन बेहद मायूस और दुखी सा नज़र आने लगा था।

अगले एक हप्ते तक हम दोनों उस क्लब में जाते रहे लेकिन वो लड़की नहीं आई। इस एक हप्ते में नितिन की हालत कुछ ज़्यादा ही ख़राब हो गई थी। उसके माता पिता भी उसके लिए चिंतित हो गए थे। मैं समझ सकता था कि नितिन की इस हालत की वजह उस लड़की से उसका बेपनाह प्रेम है लेकिन इस बारे में कोई कुछ नहीं कर सकता था। हम दोनों उस लड़की के घर भी कई बार जा चुके थे लेकिन वो वहां भी नहीं थी। पता नहीं कहां गायब हो गई थी वो? उसके बारे में जानने के लिए मैं एक दो बार उस पागल बाबा के पास भी गया लेकिन वो मुझे मिला ही नहीं। वैसे एक तरह से ये अच्छा ही हुआ था क्योंकि इससे कम से कम मेरी और मेरे दोस्त की जान को कोई ख़तरा तो नहीं होने वाला था। मैं जानता था कि वक़्त के साथ मेरा दोस्त उस लड़की को भूलने की कोशिश करेगा और एक दिन वो ठीक भी हो जाएगा। यही सब सोच कर मैं भी अपने काम के सिलसिले में निकल गया था।

मुझे गए हुए दो दिन ही हुए थे कि मुझे एक ऐसी ख़बर मिली जिसने मेरे होश उड़ा दिए थे। ऐसा लगा था जैसे सारा आसमान मेरे सर पर आ गिरा था। मैं जिस हालत में था उसी हालत में नितिन से मिलने के लिए दौड़ पड़ा था। शाम को जब मैं नितिन के घर पहुंचा तो देखा उसके घर में कोहराम मचा हुआ था। नितिन के माता पिता दहाड़ें मार मार कर नितिन के लिए रो रहे थे। मुझे देखते ही नितिन की माँ मुझसे लिपट कर बुरी तरह रोने लगी थी।

मैं किसी गहरे सदमे में था। मुझे यकीन ही नहीं हो रहा था कि मेरे बचपन का दोस्त इस तरह मुझे छोड़ कर चला जाएगा। बड़ी मुश्किल से मैं इस सबसे उबरा। पुलिस को नितिन की लाश शहर से बाहर एक ऐसी जगह पर मिली थी जहां पर कोई आता जाता नहीं था। पुलिस के अनुसार नितिन की शायद गला दबा कर हत्या की गई थी लेकिन मुझे पूरा यकीन था कि इसके पीछे उस लड़की का ही हाथ था। मेरे ज़हन में बार बार उस पागल बाबा की बातें गूँज उठती थीं। पोस्टमॉर्टेम रिपोर्ट जब आई तो उससे पता चला था कि नितिन की मौत दम घुटने से हुई थी लेकिन हैरानी की बात ये थी कि उसके जिस्म में खून की एक बूँद भी नहीं थी और ना ही उसके जिस्म पर किसी दूसरे ब्यक्ति के कोई फिंगर प्रिंट्स जैसे सबूत मिले थे। डॉक्टर और पुलिस खुद इन सब बातों से हैरान थे।

पुलिस ने लम्बे समय तक तहक़ीकात की लेकिन वो क़ातिल को खोज नहीं पाई थी। मैं अपने दोस्त की इस अकस्मात् हुई मौत से बहुत ही ज़्यादा टूट गया था। हम दोनों का बचपन का साथ था। ख़ैर एक दिन मैं उसके घर जा कर उसके कमरे की तलाशी ले रहा था। उसके माता पिता भी नहीं थे। आलमारी में मुझे एक डायरी दिखी और डायरी के ऊपर रखा हुआ वो ताबीज़ जो उस पागल बाबा ने दिया था। ताबीज़ देख कर मैं सकते में आ गया था। मुझे पूरा यकीन हो गया कि मेरे दोस्त की हत्या किसने और किस तरह की है। डायरी खोल कर देखा तो उसमें नितिन ने अपनी दिनचर्या लिख रखी थी। उसकी डायरी में सिर्फ उस लड़की का ही ज़िक्र था। एक एक कर के मैं पेज़ पलटते गया और आख़िर के पेज़ पर आ कर मैं रुका। उसमें लिखा था_____

18 अक्टूबर 1990

आज पूरे बारह दिन हो गए हैं उसे देखे हुए। उसके बिना एक एक पल जीना मुश्किल होता जा रहा है। समझ में नहीं आता कि कहां ढूँढू उसे और किस तरह उसे अपना बनाऊं?
मुझे एहसास हो चुका है कि जिस दिन से मैंने उस पागल बुड्ढे के इस ताबीज़ को पहना है उसी दिन से मुझे उसकी मोहिनी सूरत को देखना नसीब नहीं हुआ है। मुझे उसकी बहुत याद आती है। दिल करता है कि पलक झपकते ही उसके पास पहुँच जाऊं। मुझे लगने लगा है कि इस ताबीज़ की वजह से ही वो मुझसे नाराज़ हो गई है इस लिए मैंने इस ताबीज़ को अपने गले से निकाल दिया है। मैं हर उस चीज़ को खुद से दूर कर दूंगा जो चीज़ मेरे और उसके बीच रास्ता रोकने आएगी। आज शाम को मैं फिर से क्लब जाऊंगा और मुझे यकीन है कि आज वो मुझसे मिलने क्लब में ज़रूर आएगी। जब वो मुझे मिलेगी तो मैं उससे कहूंगा कि अब मैं उसकी जुदाई बर्दास्त नहीं कर सकता इस लिए या तो वो हमेशा के लिए मेरी हो जाए या फिर वो मुझे हमेशा के लिए अपना बना ले।

नितिन ने इसके आगे डायरी में कुछ नहीं लिखा था लेकिन इसके बावजूद ये समझा जा सकता था कि उसके साथ क्या हुआ होगा। नितिन के माता पिता को मैंने शार्ट में सब कुछ बता दिया था जिसे सुन कर वो बेहद ही दुखी हो गए थे और ऊपर वाले से जाने क्या क्या कहते हुए रो रहे थे। अपने बूढ़े माता पिता का बस वही तो एक सहारा और आख़िरी उम्मीद था लेकिन इस सबके बाद जैसे हर जगह सन्नाटा सा छा गया था।

मेरे दोस्त की हत्या की तहक़ीकात पुलिस कर रही थी लेकिन मैं अच्छी तरह जानता था कि इससे कोई फ़र्क पड़ने वाला नहीं था। मेरा दोस्त जो चाहता था वो उसे मिल गया था। ख़ैर, जीवन में कोई किसी का नसीब नहीं बदल सकता और ना ही किसी के सुख दुःख ले सकता है। अपनी ख़ुशी और अपना ग़म इंसान खुद ही झेलता है लेकिन मैंने सोच लिया था कि मैं उनका बेटा नितिन बनूंगा और उनका सहारा बनूंगा। शायद इससे उनके दिल का दर्द थोड़ा सा ही सही मगर कम हो और ऊपर कहीं मौजूद मेरा दोस्त भी अपने अंदर अपराध बोझ जैसी भावना से बच कर सुकून को प्राप्त करे।


***समाप्त***
Mind blowing superb story bhai sandar jabarjast
 
Top