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Horror Har Tarah ki horrible stories

Hero tera

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एक भयानक सच



मेरा नाम अंकुर हैं और मैं एक सॉफ्टवेयर कंपनी में काम करता हूँ। सुबह से ही मेरी थोड़ी तबीयत खराब चल रही है। और मेरे सर में भी बहुत दर्द हो रहा हैं पता नहीं क्यों इसलिए मैंने अपने बॉस से आज छुट्टी के लिए बोला पर उन्होंने कहा - पहले मुझे वो जावास्क्रिप्ट चाहिए जो मैंने तुम्हे बनाने के लिए दी थी मुझे वो स्क्रिप्ट आज ही चाहिए वो देने के बाद तुम घर जा सकते हो । - अब मेरा काम भी पूरा होने ही वाला था इसलिए मैंने कहा - ओके सर -

और इतना बोलकर मैं वापस अपने जगह पर आ गया। और लगातार काम करने की वजह से मेरा काम लगभग दोपहर के 2 बजे तक पूरा हो गया। उसके बाद मैंने अपनी कमर सीधी करने के लिए अपनी सीट पर अपना सर पिछे को करके दो मिनट के लिए आराम करने लगा। और जैसे ही मैं सीधा होकर अपनी आँखे खोली तो मेरे सर में जितना भी दर्द हो रहा था वो सब ठीक हो गया और मेरी तबीयत भी ठीक हो गई।

क्या पता यह सब मुझे इसलिए महसूस हो रहा होगा क्यूंकि मेरे पास काम बहुत था और उस काम टेंशन और भी ज्यादा इन सबकी वजह से मेरी पूरी तबीयत भी गराब हो रखी थी। चलो कोई नहीं बॉस से छुट्टी तो पहले से ली हुई हैं। और अब घर में जाकर पूरा दिन आराम करूंगा। यही सब सोचते हुए मैं अपने ऑफिस से बाहर निकला। और अपने घर जाने लगा मेरा घर ऑफिस से 500 मिटर की ही दुरी पर होगा इसलिए मैं रोज अपने घर पैदल ही आता जाता हूँ।

मैं अपने घर के लिए रोड क्रॉस ही कर रहा था। तभी मैंने एक ऐसी चीज देखी जिसे देखकर मेरी आँखे फटी की फटी रह गई। क्यूंकि मैंने देखा रोड के दूसरी ओर विक्की जा रहा था पर यह कैसे हो सकता हैं क्यूंकि विक्की तो लगभग एक साल पहले ही मार चूका था। मुझे कोई गलत फहमी भी नहीं हुई हैं क्यूंकि विक्की का चेहरा मैं बहुत अच्छे से जानता हूँ क्यूंकि विक्की मेरा दोस्त था। पर मैं यही सब सोच रहा था तभी विक्की मुझे देखे बिना आगे निकल गया।

उसके आगे जाते ही मैंने कहा चलो अच्छा ही हैं और उतने में वो बिल्डिंग भी आ गई जिसमे मैंने फ्लैट लए रखा था। और जैसे ही मैं बिल्डिंग के गेट के अंदर गया तो बिरजू ने मुझे कुछ कहा ही नहीं बिरजू इस बिल्डिंग का चौकीदार था और वो रोज आते जाते हर इंसान से कुछ ना कुछ बात जरूर करता हैं पर सायद बिरजू आज अपने ही किसी ख्याल में खोया हुआ हैं इसलिए वो आज कुछ बात नहीं कर रहा हैं खैर छोड़ो मैं पहले ही बहुत थका हुआ था इसलिए मैं अपने फ्लैट जाकर सिदा लेट गया।

पहले तो मुझे नीद नहीं आ रहा थी क्यूंकि मेरे दिमाग़ में बस विक्की की ही बात घूम रही थी और मैं बस यही सोच रहा था की कोई मरा हुआ इंसान कैसे दिख सकता हैं आज तक तो मेरे साथ कभी ऐसा नहीं हुआ यही सब सोचते हुए मेरी आँख पता नहीं कब लग लाई और जब मेरी आँख खुली तो मैंने अपनी घाटी में टाइम देखा तो शाम के 7 बज गए थे। और मेरा आज खाना बनाने का भी मन नहीं कर रहा था इसलिए मैं राहुल को फ़ोन करने के लिए अपना फ़ोन ढूंढ़ने लगा।

अच्छा मैंने अभी तक आपको राहुल के बारे में नहीं बताया ना। वो राहुल मेरा दोस्त हैं और राहुल और मैं साथ में ही इस फ्लैट में रहते हैं और मैं उसे बाहर से ही खाना लाने के लिए बोलना चाह रहा था पर मेरा फ़ोन नहीं मिल रहा था। तभी मुझे एकदम से याद आया की मैं अपना फ़ोन और लैपटॉप ऑफिस में ही भूल आया हूँ। और मैंने जो स्क्रिप्ट त्यार करी थी वो भी मैंने अपने बॉस को नहीं दी। इसलिए मैं तुरंत अपने ऑफिस के लिए निकल गया क्यूंकि मेरा फ़ोन और लैपटॉप वही रह गया था और साथ ही साथ मैंने अपने बॉस को वो स्क्रिप्ट भी नहीं दी इसलिए मैं भागता हुआ अपने बिल्डिंग से नीचे उतरा और सिदा अपने ऑफिस के लिए चल दिया।

मैं अभी थोड़ा ही आगे गया था की तभी मैंने देखा मेरे सामने से सिद्धू अंकल आ रहा हैं पर ये कैसे हो सकता हैं क्यूंकि सिद्धू अंकल तो लगभग दो महीने पहले ही मार चुके थे। मैं उनको देखकर बड़ा ही हैरान था और पता नहीं आज मेरे साथ ये क्या हो रहा हैं पहले विक्की और अब सिद्धू अंकल और दोनों को मरे हुए काफ़ी समय हो गया हैं आज मुझे सब मरे हुए लग क्यों दिख रहे हैं। यह क्या हो रहा हैं मेरे साथ यही सब सोचते हुए मैं अपने ऑफिस पहुंच गया। तभी मैंने देखा हमारे ऑफिस के बाहर एम्बुलेंस खड़ी हैं।

मैं यही सोच रहा था क्या हो गया यहाँ जो एम्बुलेंस आ रखी हैं कही मेरा बॉस तो नहीं निपट गया। मैं यही सब सोच रहा था तभी मुझे एक बहुत बड़ा झटका लगा और मुझे अपनी आँखो पर विश्वास नहीं हो रहा था क्यूंकि मैंने देखा एम्बुलेंस और किसी के लिए नहीं बल्कि वो एम्बुलेंस मेरे लिए ही आ रखी थी और वो मुझे लेकर हॉस्पिटल जा रही थी तभी मैंने वहाँ खड़े कुछ लोगो को बात करते सुना वो बोल रहे थे - सुबह सुबह तो ठीक था बैचारा पता नहीं क्या हुआ की इसकी अचानक ही मौत हो गई - मुझे अपने कानो पर विश्वास नहीं हो रहा था और मैं चिल्ला चिल्ला कर उन्हें बताने की कोशिश कर रहा था की मैं ठीक हूँ और तुम लोगो के सामने ही खड़ा हूँ पर मेरी बात कोई नहीं सुन रहा था। इसलिए मैं भी एम्बुलेंस के पिछे पिछे हॉस्पिटल चला गया। - और वहाँ जाकर पता चला की अंकुर की दिमाग़ की नस फटने से मौत हुई हैं।
 
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Hero tera

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भूतों से हुई मुलाक़ात
रात के लगभग 10 बज रहे होंगे अधेरी रात और सुनसान मट्टी की कच्ची सड़क में राजीव अपनी साईकिल से अपने एक रिश्तेदार की शादी से होकर अपने घर को वापस जा रहा था। सर्दी का मौसम था इसलिए राजीव साईकिल धीरे धीरे चला रहा था क्यूंकि उस समय चल रही ठंडी हवा राजीव के चलते खून को जमा रही थी। रात का काला अंधेरा और खेतो के बिच से जाती हुई सुनसान सड़क कही ना कही राजीव को थोड़ा डराने का काम कर रही थी। वैसे तो राजीव कभी डरता तो नहीं था पर इस तरह का जो मोहोल था वो किसी भी इंसान को थोड़ा तो डरा ही देता।

राजीव मन ही मन बस यही सोच रहा था की कितनी जल्दी वो बस अपने घर पहुंच जाए। क्यूंकि सर्दी भी बहुत हो रही थी पर अभी उसका घर यहाँ से लगभग 6 किलोमीटर की दुरी पर होगा इसलिए राजीव भी बिना रुके बस अपनी साईकिल से चला जा रहा था। राजीव अभी 2 या 3 किलोमीटर ही आगे गया होगा तभी उसने देखा उसे थोड़ी ही दूर पर कुछ लोग एक खेत में बैठे आग ताप रहे थे। ठंड तो राजीव को भी बहुत लग रही थी इसलिए उसने सोचा कुछ देर यहाँ उन लोगो के साथ बैठ कर आग ताप लेता हूँ फिर उसके बाद आगे जाऊंगा।

यही सोचकर राजीव अपनी साईकिल से उतरा और पैदल ही अपनी साईकिल को उन लोगो तक ले गया और जैसे राजीव ने वहाँ अपनी साईकिल खड़ी करी तो उनमे से एक आदमी पिछे मुड़ा और राजीव से बोला - आओ भैया बैठो बैठो बहुत ठंड हैं थोड़ा आग ताप लो फिर जाना - उस आदमी की बात सुनकर राजीव ने कहा - हाँ भैया बहुत ठंड हैं - इतना बोलकर राजीव उन लोगो के बिच में बैठकर आग तापने लगता हैं। राजीव वही बैठकर उन लोगो से इधर उधर की बाते कर रहा था की तभी राजीव ने कुछ ऐसा देख लिया था जिसे देखकर राजीव के डर के मारे हाथ पैर कापने लगे और उसकी रगो में चलता खून मानो जम सा गया हो।

क्यूंकि उसने देखा की वो जीन लोगो के साथ बैठा था उन सबके पैर उल्टे थे। पर उन सबको देखकर ऐसा कुछ भी नहीं लग रहा था की वो इंसान नहीं हो और वो सब उसके साथ बिलकुल सही से बात कर रहे थे। पर अब राजीव ये देखकर बहुत डर चूका था इसलिए वो बस यहाँ से अब जल्दी से भाग जाना चाह रहा था पर वो एकदम से भी उठकर नहीं भाग सकता था क्यूंकि शायद उन्हे ऐसा लग रहा था की राजीव भी उनमे से एक हैं इसलिए वो राजीव को कुछ नहीं कह रहे थे या फिर उन्हे पता था और वो राजीव के साथ कुछ और ही करना चाह रहे थे। पर तभी राजीव के साथ जो हुआ उसे देखकर तो राजीव के होश ही उठ गए।

क्यूंकि तभी उनमे से एक आदमी ने अपनी जेब से कुछ निकला और कहा - चलो भाई थोड़ा तमाकू वामकू खा लेते हैं - इतना बोलकर वो आदमी सबके हाथो में कुछ देने लगा और जब उसने वो चीज राजीव के हाथो में दी तो इस बार राजीव की आँखे फटी की फटी रह गई। क्यूंकि उसने देखा वो कोई तमाकू नहीं बल्कि इंसानों की आँखे थी। और वो सब उन आँखो को तमाकू की तरह खा रहे थे राजीव ने तो उस समय उनसे वो आँखे लेली और जैसे वो लोग उन आँखो को खा रहे थे वैसे ही राजीव ने भी उन आँखो को खाने का नाटक करने लगा पर उसने उन आँखो को उन लोगो से चुपा कर उसने फेक दिया।
पर राजीव मन ही मन बस यही सोच रहा था की - कहाँ फस गया मैं अब कैसे जाओ यहाँ से - यही सब सोच रहा था वो और उन लोगो से बाते भी करें जा रहा था। तभी एक बार फिर उन लोगो में से एक आदमी ने अपने कपडे में से कुछ निकला जो उसने अपने कपडे में बांध कर रखा हुआ था। इस बार भी उसने वो चीज निकाली और कहा - चलो भाइयो थोड़े चने खा लो - इतना बोलकर वो आदमी फिर सबको बारी बारी वो चीज देने लगा जिसे वो चना बोल रहा था। और इस बार भी जब राजीव की बारी आई तो उसने ने देखा वो चीज कोई चना नहीं बल्कि इंसनों की उंगलियां थी जो छोटे छोटे हिस्सों में कटी हुई थी।

राजीव ने इस बार भी उस आदमी से वो कटी हुई उंगलियां लेली फिर उनको भी खाने का नाटक करने लगा। पर वो यहाँ से भाग जाने के बारे में भी बार बार सोच रहा था और वो यह भी सोच रहा थी की कही इन लोगो को पता चल गया की वो इनमे से नहीं बल्कि एक इंसान हैं तो यह लोग मेरे साथ क्या करेंगे। यही सब सोचते हुए राजीव वहाँ बैठे बैठे डरे जा रहा था पर उसने सोच लिया था की अब चाहे मर ही क्यों ना जाऊ पर अब यहाँ और नहीं बैटूंगा इसलिए राजीव वहाँ से उठा बोला - भाइयो मैं अभी थोड़ी देर में आया -

इतना बोलकर राजीव ने अपनी साईकिल निकाली और वहाँ से जाने लगा। पर शायद उन लोगो को उस समय पता चल गया की राजीव एक इंसान हैं तभी उनमे से एक आदमी राजीव के आगे आकर खड़ा हो गया। पर इस बार वो आदमी देखने में बड़ा भयानक सा हो गया था अब वो आदमी ही नहीं बल्कि वहाँ बैठे सभी लोग बड़े भयानक से हो गए थे। अब उन सबके चेहरों से खून निकल रहा था और वो सब उसकी ओर चले आ रहे थे और वो जैसे जैसे राजीव के जितने पास आ रहे थे वैसे वैसे राजीव की दिल की धड़कन तेज होती जा रही थी।

पर राजीव वहाँ से भाग भी नहीं सकता था क्यूंकि उन सबने राजीव को चारो ओर से घेर लिया था। तभी उनमे से एक आदमी राजीव के एकदम पास गया यह वही आदमी था जो थोड़ी देर पहले सबको कुछ ना कुछ खाने को दे रहा था। इस बार वो आदमी राजीव के पास गया वो राजीव के गले को जैसे ही उसने पकड़ा वो सब तुरंत पता नहीं कहाँ गायब हो गए और वो आदमी भी पता नहीं कहाँ गायब हो गया जो अभी राजीव का गला पकड़ने जा रहा था।
वो सब जैसे ही गायब हुए राजीव वहाँ से तुरंत भाग कर अपने घर चला गया। और जब उसने अगले दिन सारी बात अपने घर में सबको बताया तो उसके पिता ने उसको बताया की तुम्हे वहाँ बैठे बैठे ही सुबह के चार बज गए थे और सुबह चार बजे के बाद भूतों का समय खत्म हो जाता हैं इसलिए तुम उस दिन बच पाए थे।
 

Hero tera

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इंसाफ | Darawni bhutiya kahani
रात का समय था और राजेश की ट्रेन थोड़ी लेट हो गई थी लेकिन किसी तरह हॉस्टल पहुंच ही गया। सामान रखकर राजेश थोड़ा सुकता यही होगा कि हॉस्टल में बहुत हलचल सी मच गई सभी जूनियर कह रहे थे कि सीनियर ने बुलाया है। ऊपर छत पर डरे सहमे सभी जूनियर छत पर पहुंचे तो उन्होंने छत पर देखा दो सीनियर विनीत और आशीष एक कोने में बैठ कर सभी का इंतजार कर रहे थे। न्यू फर्स्ट ईयर स्टूडेंट का और उनके चमचे इधर उधर आसपास उन दोनों को घेर कर खड़े थे।

फिर उसके बाद एक के बाद एक सबका इंट्रोडक्शन हुआ। और थोड़ी मामूली सी मस्ती हो रही थी कि कौन गाना गाएगा कौन डांस करेगा। तभी अचानक आशीष की नजर राजेश पर पड़ी फिर दोनों के दोनों सीनियर उठे और राजेश के कंधे पर हाथ रख कर आशीष ने कहा - अच्छा तो तुम हो नया आइटम चलो कपड़े उतार कर नाचो बेटा - राजेश ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि इतने अच्छे और बड़े कॉलेज में ऐसी गंदी रैगिंग भी हो सकती है। राजेश भी जिद्दी था राजेश ने कहा चाहे कुछ भी हो जाए लेकिन मैं नाचूंगा तो नहीं और किसी ने अगर जोर जबरदस्ती करी तो फिर मैं कंप्लेन भी कर दूंगा। राजेश में इतनी हिम्मत देखकर बाकी जूनियर में भी अब हिम्मत आने लगी थी।

लेकिन आशीष और विनीत दोनों बड़े दबंग किस्म के थे तो फिर ऐसी बगावत उनको रास नहीं आई आशीष गुस्से में दांत पीसते हुए बोला - सुनो बेटा इतनी जो क्रांति दिखा रहे हो ना कुछ ही समय की गर्मी है 4 साल इस कॉलेज में रहोगे तो बेटा हम से बच कर कहां जाओगे इसलिए जो बोला जाए और जितना बोला जाए उतना ही करना है वरना 4 साल की जिंदगी नरक बना दूंगा तुम सबकी -आशीष की बात सुनकर राजेश को छोड़कर बाकी सब की हालत खराब हो गई थी।

राजेश डरने वालो में से तो नहीं था राजेश ने कहा हार तो मैं मानूंगा नहीं गुस्से में राजेश छत की रेलिंग तक गया और थोड़ा रोते हुए बोला - तुम जैसे सीनियर के वजह से हम जूनियर कॉलेज में आने से तो क्या कॉलेज के नाम से ही डर जाते हैं पर आज के बाद ऐसा कभी नहीं होगा - और इतना बोलते ही राजेश छत से नीचे कूद गया राजेश की ऐसी खतरनाक चीख गूंजी कि पूरे हॉस्टल में आवाज आई और नीचे हड्डियां तक टूटने की आवाज सुनाई दी सबको लेकिन डरे घबराए सभी लड़कों ने जब नीचे झांका तो। वहाँ राजेश की लाश तो होनी चाहिए थी लेकिन वहाँ राजेश की लाश नहीं थी।
आशीष और विनीत दोनों ने सभी जूनियर को एक लाइन में खड़ा किया और चिल्लाते हुए कहा - यहां जो अभी हुआ है ना वह यहीं पर खत्म हो गया है इसके बारे में अगर किसी को भी पता चला ना या किसी ने किसी को बताने की कोशिश भी करीना तो बेटा अगली बारी तुम्हारी होगी चलो निकलो अब यहां से भागो जल्दी - अगले दिन सुबह रात की सारी बातें भुला कर आशीष और विनीत जब क्लास में ही बैठे थे तब जानी पहचानी एक आवाज - आई मे आई कम इन टीचर - आशीष और विनीत ने सर उठा कर देखा तो राजेश खड़ा था और टीचर कह रही थी - स्टूडेंट यह राजेश है बहुत होशियार और समझदार लड़का है हमारे कॉलेज में यह पहली बार हुआ है कि कोई स्टूडेंट सीधा थर्ड ईयर में आ रहा है -

टीचर ने एक-एक करके जब राजेश को सबसे मिलवाया तब आशीष और विनीत के सामने आए तो राजेश ने कहा - टीचर इनको तो मैं बहुत अच्छे से जानता हूं कल ही मिला था इन दोनों से उस समय और हमारी बात भी बहुत देर तक हुई। और भाई लोगों क्या हाल हैं आप दोनों के - राजेश के इतना कहते ही आशीष और विनीत के तो होश ही उड़ गए थे। और जब क्लास खत्म हुई तो आशीष और विनीत ने देखा राजेश अब क्लास में नहीं है उसके बाद दोनों ने पूरा कॉलेज छान मारा लेकिन राजेश कहीं नहीं मिला। लेकिन आशीष ने विनीत से कहा - चलो एक बार हॉस्टल में राजेश के रूम में जाकर देख लेते हैं -

उसके बाद दोनों हॉस्टल में जाते हैं तो देखते हैं। राजेश के कमरे का दरवाजा अंदर से बंद था और आसपास भी कोई नहीं था। अंदर क्या हो रहा है यह देखने के लिए आशीष और विनीत दोनों ने अपने कान दरवाजे से चिपका लिए। और सुनने की कोशिश करते रहे पहले तो फोन पर किसी के बात करने की आवाज आती रही नॉर्मल सी लेकिन थोड़ी देर में अंदर से आने वाली आवाज सब पूरी तरह से बंद हो गई और तभी किसी ने जैसे अंदर से दोनों के कानों में पुश फसाते हुए कहां - कान हटाओ मेरे दरवाजे से तुम दोनों और यहां से भाग जाओ वरना अच्छा नहीं होगा तुम्हारे साथ -

आशीष और विनीत वैसे तो पूरे कॉलेज के लिए सिरदर्द थे लेकिन अब यह सुनकर दोनों के होश उड़ गए थे। क्योंकि दोनों यही सोच रहे थे अगर राजेश अंदर है तो उसको कैसे पता कि हम दोनों कान लगा कर सुन रहे हैं। क्योंकि दरवाजे में तो ना ही कोई छेद था और ना कोई और तरीका जिससे यह पता चल पाता कि बाहर कोई है या फिर बाहर कुछ भी है। दोनों यही सोच रहे थे तभी उनको कल रात की बात याद आई यही सोचकर आशीष और विनीत ने अपने कमरे की तरफ दौड़ लगाई। और कमरे में पहुंचते ही सीधा दरवाजा बंद किया दोनों ने उसके बाद तब दोनों को थोड़ा राहत सी आई। कमरे में ही दोनों की सारी शाम बीती पर अब रात का समय आ गया था।

आशीष और विनीत दोनों डिनर के लिए डिनर हॉल में गए दोनों ने डिनर करा लेकिन उनको कहीं पर वहां राजेश नहीं दिखा। तब दोनों चुपचाप अपने कमरे में आए और थोड़ी पढ़ाई करी फिर दोनों लेट गए। ऐसा अक्सर होता नहीं था क्यूंकि दोनों हॉस्टल के सबसे दबंग किस्म के स्टूडेंट थे। इसलिए रात को कभी इतनी जल्दी सोते तो नहीं थी लेकिन आज तुरंत लेट गए दोनों को लेटे हुए लगभग 10 ही मिनट हुए होंगे तभी आशीष जिसके कमरे के बगल में ही बाथरूम का दरवाजा था। उसने करवट बदली तो उसकी आंखों के सामने ही बाथरूम की लाइट का स्विच ऑन हुआ और लाइट जली आशीष को नींद में लगा कि विनित गया होगा।
और तभी उसकी स्विच पर जमी हुई आंखें चौड़ी हो गई जब उसने देखा कि बाथरूम का स्विच अपने आप ऑफ हो गया। आशीष घबराया जरूर लेकिन वह उठकर बाथरूम की लाइट जो ऑन ऑफ ऑन ऑफ हो रही थी उसको रोकने के लिए उसने स्विच पर हाथ रखा ही था। तभी आशीष को साफ समझ में आया कि उसके हाथ के ऊपर किसी और का हाथ भी है और धीमे धीमे उस हाथ का दबाव बढ़ता जा रहा था। इसकी वजह से देखते ही देखते वह स्विच चटकने लगा था और देखते ही देखते छोटा सा वह स्विच बोर्ड टूटा और आशीष का हाथ सीधा जाकर नंगी तारों पर लगा।

फिर बिजली के झटके से चीखता हुआ आशीष वही पर चिपक गया। आशीष को बिजली के झटके से इतना खतरनाक करंट लगा कि आशीष तुरंत वही बुरी तरह से झुलस गया। और आशीष को फिर तुरंत जल्दी जल्दी से हॉस्पिटल ले जाया गया। कोविड-19 की दूसरी लहर चल रही थी इस वजह से कोई हॉस्पिटल वाले अपने यहां ऐसे किसी भी पेशेंट को एंट्री भी नहीं दे रहे थे। इसलिए आशीष को शहर के सबसे बड़े हॉस्पिटल में लाया गया।

उस समय आशीष की सांसे भी बहुत धीमी आ रही थी किसी तरह से आशीष को वेंटिलेटर पर रखा गया ऊपर वाले की कृपा या आशीष की किस्मत मानो थोड़ी अच्छी थी। क्योंकि उस समय वेंटिलेटर ऑक्सीजन सिलेंडर मिलना बहुत बड़ी बात थी इस समय आशीष बहुत बुरी हालत में था और अगले 48 घंटे आशीष को डॉक्टरों की निगरानी में ही रहना था। आशीष अपने बिस्तर पर लेटे हुए ऑक्सीजन मास्क पहने हुए आधी बेहोशी में ही था शायद जब उसकी बेहोशी में ही उसको कुछ सुनाई दिया

- ध्यान से सुनो आशीष अगर मेरे बारे में मुंह खोलने की सोची भी तो जान से मार दूंगा - आशीष किसी बिल्ली से डरे कबूतर की तरह पलंग पर पड़े पड़े परेशान हुआ जा रहा था। वैसे ही वह अधमरा था ऊपर से और ज्यादा दिमागी परेशानी से हैरान था। और फिर अगले दिन शाम को क्लास खत्म करके आशीष को देखने के लिए विनीत आया और आशीष के पास बैठा तो आशीष ने अपना ऑक्सीजन मार्क्स हटाकर विनीत को कुछ बताना चाह रहा था आशीष ने हक लाते हुए बोलना शुरू ही किया ही पर मुंह से तो एक भी शब्द नहीं निकले और बोलने की कोशिश करते करते खतरे से बाहर हो चुके आशीष ने वहीं पर आखिरी हिचकी ली और तुरंत आशीष की जान चली गई।

विनीत का सबसे अच्छा दोस्त उसके सुख दुख का साथी उसके हॉस्टल कॉलेज का एक मात्र साथी अब उसके ही सामने मर चुका था। अब कुछ समय बाद हॉस्पिटल में आशीष के मां-बाप और परिजन पहुंच चुके थे विनीत के सामने ही आशीष के मां बाप आशीष की लाश लेकर चले गए। उन पर तो मानो दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था एक मात्र सहारा था अपने मां बाप का आशीष। और विनीत भी कुछ कम दुखी नहीं था विनीत निराश होकर झुके हुए कंधे लेकर वापस हॉस्टल पहुंचा। और अपने कमरे की तरफ जाने के लिए विनीत एक एक सीढ़ी चढ़ते हुए बस यही सोच रहा था कि अचानक क्या से क्या हो गया।
विनीत ने अपनी जेब से चाबी निकालकर कमरे का दरवाजा खोला और लाइट जलाई तो उसकी चीखें निकल गई मानो उसकी सांसे अब थम गई हो लेकिन विनीत जोर जोर से चीखता चिल्लाता हुआ हॉस्टल के पूरे कोरिडोर में भागने लगा क्योंकि उसने अंदर देखा था की कमरे में आशीष की जली हुई जगह जगह से झुलसी पिघली चमड़ी बिल्कुल जली बुझी सी लाश बड़ी भयानक स्थिति में पड़ी हुई थी। किसी तरह विनीत को संभाल कर सब लड़के विनीत को उसके कमरे की तरफ लेकर आए। और सब ने देखा कमरा तो पूरी तरह से खाली ही था

सब लड़कों ने कहा कि यह विनीत का कोई वहम है क्योंकि विनीत,आशीष के बहुत ज्यादा करीब था लेकिन विनीत को पूरा विश्वास था कि उसने सचमुच वह लाश देखी थी इसमें कोई शक ही नहीं था। इसलिए विनीत ने अपने कमरे में रुकने से साफ साफ मना कर दिया। तो उसके एक दोस्त ने आखिरकार दोस्ती निभाते हुए कहा - चलो विनीत तुम मेरे कमरे में रात बिता लो - विनीत भी तुरंत उसके साथ चला गया। और जाते ही अपने दोस्त के कमरे में सो गया लेकिन उसको भयानक सपने एक के बाद एक उसको परेशान करने लगे कभी राजेश का छत से कूद ना तो कभी आशीष की वह आखरी हिचकी तो कभी आशीष की जली भूनी झुलसी हुई लाश का उसे रोते-रोते बातें करना।

आखिरकार विनीत नींद में भयानक सपने देखता हुआ बड़ी जोर से चिल्लाया तो उसने देखा कि मैं अपने ही कमरे में हूं और बगल में आशीष का पलंग बिल्कुल खाली पड़ा है। विनीत बुरी तरह से घबराते हुए डर से कांप रहा था और आशीष का पलंग खाली था। विनीत उसी खाली पलंग की तरफ लगातार देख रहा था और डर रहा था। लेकिन उसकी दिल की धड़कन तेज हो गई जब बाथरूम का स्विच ऑन हुआ और तोलिए से मुंह पोचता हुआ आशीष बाहर निकला जैसे कुछ हुआ ही नहीं था। विनीत को समझते देर नहीं लगी कि उसने बहुत खतरनाक और बहुत बुरा सपना देखा था।

आशीष हाथ में तोलिया लपेट ते हुए पलंग पर बैठा और पास में टेबल पर पानी का गिलास रखा हुआ उठाकर उसने थोड़ा पानी पिया फिर विनीत की ओर देखा और कहा - अबे ओए क्या देख रहा है अबे तबीयत ठीक भी है तेरी क्या हो गया तेरे को - विनीत ने एक राहत की सुकून भरी सांस ली और अपना देखा हुआ वह भयानक बुरा सपना उसने आशीष को पूरा बताया आशीष ने सुना और बहुत जोर जोर से हंसने लगा। और फिर हंसी हंसी में ही एक बहुत खतरनाक डरावनी आवाज में आशीष बोला आज की बाद ऐसे सपने तुझे कभी नहीं आएंगे। इतना कहकर आशीष ने अपने हाथों पर से तोलिया हटाया तो विनीत के सामने आशीष का जला भुजा बिल्कुल सूकड़ा हुआ हड्डी जैसा हाथ आया।

उसका हाथ ऐसा लग रहा था झुलसा हुआ बिल्कुल हड्डी चिपक कर बाहर निकली हुई भयानक बेहद डरावना और खतरनाक लग रहा था। आशीष का हाथ देखकर अब विनीत की धड़कन ढोल की तरह जोर-जोर धड़कने लगी और थोड़े ही समय में ऐसा लग रहा था। कि दिल के आस पास जैसे कोई सांप हो जो धीरे धीरे विनीत की धड़कनों को कस रहा है और धड़कने मानो रुक ही रही हो। अब विनीत की आंखें देखते ही देखते पत्थरा गई अब विनीत की आंखों के सामने छाया हुआ अंधेरा उसकी बेहोशी का नहीं बल्किंग उसकी मौत का था। विनीत तब कभी ना जाग पाने वाली गहरी नींद में सो गया था।

अब पूरे हॉस्टल में अब हाहाकार सा मच गया था विनीत की मौत के बाद अब राजेश के बारे में पता कर आ गया। तो वहां से मिली खबर ने सबको चौका दिया क्योंकि राजेश के पिता जी का कहना था राजेश का सपना था। लखनऊ के उस कॉलेज में एडमिशन लेना और पढ़ना पर राजेश तो कभी हॉस्टल पहुंचा ही नहीं क्योंकि लॉक डाउन की वजह से सभी ट्रेनें रद्द हो गई थी। राजेश घर से निकल तो गया था लेकिन पटना में फंसा हुआ था। पटना रेलवे स्टेशन पर और बहुत से यात्री भी फंसे हुए थे राजेश की तरह। करोना के कारण लॉकडाउन था इस वजह से कोई भी बस ट्रेन या यातायात का कोई भी साधन नहीं था।

वहीं फंसे हुए यात्री में से कुछ लड़के वहां क्रिकेट खेल रहे थे। राजेश कई दिनों से घर से बाहर था स्टेशन पर फंसा हुआ था। इस वजह से उसकी तबीयत शायद थोड़ी खराब रही होगी। इसलिए राजेश को बार बार खांसी हो रही थी। खांसी जुखाम के कारण राजेश स्टेशन के बेंच पर ही बैठा हुआ हम लोगों से फोन में बातें कर रहा था। हमारा फोन चल ही रहा था फोन कटा भी नहीं था। तभी उसी समय जो लड़के क्रिकेट खेल रहे थे उन्होंने कहा इसको करोना है। राजेश ने उन्हें समझाते हुए कहा ऐसा कुछ भी नहीं है लेकिन वह लड़के कहां मानने वाले थे।
उन सब ने मिलकर राजेश को जब तक पीटते रहे बैट बल्ले लाठी-डंडों से जब तक राजेश मारते रहे और मार-मार कर उन सभी ने राजेश को बिल्कुल अधमरा कर दिया। और किसी ने पुलिस को ना बुलाया और ना ही पुलिस मौका ए वारदात पर पहुंची उन लड़कों ने राजेश को अधमरे हालत में प्लेटफार्म की तीसरी मंजिल से नीचे फेंक दिया। राजेश की चिख पूरे प्लेटफार्म पर बड़ी तीज गूंजी और नीचे लोगों ने हड्डियां तक टूटने की आवाज सुनी। उसके बाद पुलिस को राजेश की लाश मिली। कहते हैं राजेश ने हॉस्टल के विनीत और आशीष को मरने से पहले स्टेशन में जो लड़के मिले थे। उनका भी यही हश्र कर दिया था राजेश ने अपनी मौत की 1 वर्ष के अंदर ही उन सभी हत्यारों से अपना बदला ले लिया था।
 

Hero tera

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Vampire ( डरावनी कहानी )

3 दिन से लगातार जमकर बारिश हो रही थी और नदी में बजरी भी भरपूर मात्रा में बहकर आई हुई थी। नदी के आसपास के इलाके में रहने वाले लोग यहीं से बजरी निकालकर बेचते और अपनी रोजी-रोटी चलाते थे। आज अरविंद और रमेश जब से बारिश खत्म हुई तब से बजरी निकाल रहे थे। बारिश शाम 3:00 बजे के बाद बंद ही हो गई थी नदी में बजरी भी बहुत बह कर आ रखी थी वैसे तो बहुत लोग बजरी निकाल रहे थे और निकाल कर जमा कर रहे थे अपने अपने जगह पर लेकिन रात 8:00 बजे तक सब लोग अपने अपने घर चले गए थे।

लेकिन रमेश और अरविंद दोनों दोस्त थे और दोनों ने कहा आज बजरी बहुत ज्यादा है इसलिए सही पैसे बन जाएंगे निकालते निकालते लगभग 11:00 या 11:30 बज रहे होंगे तभी अरविंद ने रमेश को कहा - रमेश पानी से बाहर आ जाओ थोड़ा बीड़ी पीते हैं गर्माहट आ जाएगी तब फिर निकालना शुरू करेंगे - फिर रमेश ने जवाब देते हुए कहा - हाँ सही है - इतना कहकर वो भी पानी से बाहर ही आ गया। अब अरविंद ने बीड़ी जलाई और रमेश और अरविंद दोनों बीड़ी पी रहे थे और इधर उधर की बातें कर रहे थे।

तभी अरविंद ने कहा - रमेश इस बार तो मजा आ जाएगा हमने इतनी देर में लगभग 2 गाड़ी बजरी निकाल ली है और हम आज रात तक निकालेंगे लगभग 3 गाड़ी तो हो ही जाएगी - फिर रमेश ने कहा - सही बात है इस बार बारिश भी बहुत अच्छी हुई हैं - फिर बीड़ी खत्म करके दोनों फिर अपनी अपनी जगह पर जाकर पानी में उतर गए बजरी निकालने के लिए। तब लगभग आधा घंटा बीत गया होगा तभी रमेश को नदी में आगे किसी के बड़ी तेज से कूदने की आवाज आई है और ऐसा लगा जैसे कोई चिल्ला रहा हो - बचाओ बचाओ - रमेश तुरंत पानी से बाहर निकला और उसने अरविंद को भी बाहर बुलाया अरविंद के बाहर आते ही रमेश ने कहा - तुमने कुछ सुना-

अरविंद रमेश दोनों यही बात कर रहे थे की ऐसा लग रहा है कोई नदी में कोई गिर गया है या फिर किसी ने फेंक दिया है। तभी अरविंद और रमेश भागते हुए उस तरफ गए जहाँ से आवाज आई थी। उस समय पानी भी बड़ी तेज चल रहा था इसलिए और कुछ सुनाई भी नहीं दे रहा था। बस पानी की आवाज ही आ रही थी लेकिन फिर भी दोनों ने टॉर्च जलाकर देखने की बहुत कोशिश करी पर ऐसा कुछ नजर नहीं आया फिर दोनों वापस अपनी जगह पर आ गए। पर दोनों अभी यही सोच रहे थे की आवाज तो दोनों को आई थी और साफ-साफ सुनाई भी दी थी।

बजरी निकालने के लिए सब लोगों ने डैम बना रखे थे इस वजह से कोई पानी में बह भी नहीं सकता था। तो फिर किसकी आवाज थी वो और अगर कोई पानी में गिरा तो कहां है फिर। यही सब सोचकर दोनों फिर बजरी निकालने लगे लेकिन 10 मिनट बाद दोनों फिर बाहर निकल आए रमेश ने कहा - अरविंद मुझे अब बहुत डर लग रहा है मुझे घबराहट हो रही है बहुत अरे तुमने कुछ सुना - अब की बार अरविंद ने कहा - इस बार तो कुछ नहीं सुना क्यों इस बार क्या हुआ - फिर रमेश ने कहा - जंगल से किसी के रोने की आवाज आ रही थी मुझे तो ऐसा लग रहा था कोई दर्द से तड़प तड़प कर चिल्ला रहा है और बहुत तेज तेज रो रहा है - पर अरविंद को ऐसा कुछ सुनाई नहीं दिया था।

रमेश ने घड़ी देखी टाइम लगभग 12:30 बज चुके थे। अरविंद ने रमेश को समझाते हुए कहा - ऐसा कुछ भी नहीं है तुमको कोई वैहम हुआ होगा - पर रमेश को पूरा विश्वास था उसे कोई वैहम नहीं हुआ था। रमेश ने अपने कानों से साफ-साफ सुना था इसलिए रमेश ने कहा - अब घर चलते हैं बजरी जितनी निकल गई ठीक है बाकी कल सुबह निकालेंगे रमेश की बात आधे में काटते हुए अरविंद ने कहा - चलो ठीक है पहले अपना बजरी निकालने वाले औजार लेकर चलते हैं - घर का रास्ता नदी पार करके जंगल से होकर जाता है अक्सर दिन में तो कोई दिक्कत होती नहीं है। सब लोग सामान्य रूप से आते जाते रहते हैं लेकिन रात को लोग यहां से आने से घबराते हैं। और इधर जाने से जितना हो सके उतना बचते हैं पर घर जाने का और कोई दूसरा रास्ता भी नहीं था। दोनों अब जंगल के अंदर तक पहुंच गए थे।
तभी अरविंद कहता है - वह देखो क्या है - इस बार अरविंद भी डर गया अरविंद जो अब तक कह रहा था ऐसा कुछ नहीं है यह सब तुम्हारा वैहम है। लेकिन अब अरविंद की भी हालत खराब होने लगी क्योंकि दोनों ने देखा जंगल के हर तरफ हड्डियों के कंकाल ही नजर आ रहे हैं। दोनों सोच रहे थे कि ऐसा कैसे हो सकता है क्योंकि दिन में जब हम आए थे तो ऐसा कुछ नहीं था। न पर अचानक ऐसा क्या हुआ। तब रमेश, अरविंद से कहता हैं - अरविंद जल्दी चलो वापस चलते हैं नदी में ही बैठ जाएंगे जंगल से होकर नहीं जाना।

लेकिन अरविंद ने कहा - अब वापस जाना ठीक नहीं है हमें आगे ही जाना है ज्यादा बड़ा तो है नहीं जंगल चलो चलते हैं। - थोड़ा आगे ही गए थे तभी ऐसी आवाज आ रही थी जैसे कोई बहुत तेज गुर्रा रहा हो। और थोड़ी देर में ही वो गुराने की आवाज बहुत तेज हो चुकी थी। लेकिन आगे जो हुआ यह अरविंद और रमेश ने अपनी पूरी जिंदगी में कभी नहीं देखा था। अरविंद और रमेश आवाज सुनकर बहुत तेजी से भागने लगे। लेकिन ऐसा लग रहा था जैसे जंगल खत्म नहीं हो रहा हो। भागते हुए ही अरविंद ने घड़ी में टाइम देखा तो 1:00 बज गए थे।

लेकिन अभी भी वह जंगल में ही थे अब दोनों के होश उड़ रहे थे क्योंकि मात्र 12 मिनट का रास्ता होता है जंगल से बाहर निकलने का। लेकिन आधा घंटा बीत चुका था और अभी रमेश और अरविंद जंगल में ही थे। उन दोनों को समझ नहीं आ रहा था जंगल में किस दिशा में जाना है ऊपर से अंधेरा बहुत था। और इस घने जंगल में भयानक भयानक किस्म की आवाज आ रही थी। तभी रमेश ने चारों तरफ टोर्च मारी और जब आगे की तरफ देखा तो दोनों बहुत घबरा गए। क्योंकि दोनों ने देखा एक बहुत लंबा और बड़ा भयानक आदमी सामने खड़ा था। और उसकी गर्दन आगे को झुकी हुई थी पर वह इतना पतला था जैसे उसने सालों से कुछ नहीं खाया हो।

उस आदमी को देख कर अरविंदो रमेश दोनों जहां थे वहीं रुक गए। अरविंद ने रमेश को कहा - शायद यह कोई बड़ा जानवर है - लेकिन रमेश समझ चुका था यह वही है जिसके बारे में मोहल्ले के लोग बात करते हैं। तभी अचानक से वह जानवर जैसी चीज दोनों की तरफ बढ़ी। उसको अपनी ओर बढ़ते देख दोनों तेजी से भागने लगे। रमेश और अरविंद जंगल के पीछे की तरफ भागने लगे रमेश को पता था। कि अगर यह वैसी कोई भी चीज है तो आग से जरूर डरेगी तभी रमेशने अरविंद को कहा - अरविंद माचिस निकालो - लेकिन अरविंद ने कहा - माचिस तो नदी पर ही छूट गई -

रमेश ने अपनी टॉर्च की लाइट उस भयानक दी दिखने वाली चीज पर मारी लेकिन उसका कोई फर्क नहीं पड़ रहा था। और वह बहुत तेजी से दोनों की ओर भागा चला आ रहा था अरविंद और रमेश पूरी रफ्तार से पीछे की तरफ भाग रहे थे। तभी दोनों नदी के पास पहुंच गए और दोनों नदी में कूद गए और नदी तैर कर दूसरी तरफ को जाने लगे। लेकिन नदी के दूसरी तरफ भी वही जानवर या फिर आप उसे कोई शैतान भी कह सकते हो वह जो कुछ भी था। वह दूसरी तरफ से उन दोनों की तरफ आ रहा था।

दोनों ने अब सोच लिया मरना तो तय है वो दोनों हिम्मत हार चुके थे। तब लेकिन किस्मत को शायद कुछ और ही मंजूर था शायद रमेश और अरविंद पर उस दिन भगवान की कृपा रही होगी। तभी दोनों नदी के अब इस तरफ आने लगे जहाँ वह बजरी निकाल रहे थे। और दोनों तुरंत नदी से बाहर निकल कर अपनी माचिस उठा लेते हैं और पास में सुखी झाड़ी बहुत थी उनमें आग लगा देते हैं। झाड़ी बहुत सुखी थी इसलिए आग तुरंत लग जाती है और आग की लपटें बहुत तेज तेज उठने लगती हैं।

लेकिन रमेश और अरविंद अभी भी बहुत डरे हुए थे रमेश ने अरविंद से कह - अरविंद यह शायद वही शैतान है जिसको लोग रूप बदलने वाला शैतान कहते हैं और बहुत लोग तो यह भी कहते हैं यह एक श्रापित आत्मा है लेकिन लोगों का ऐसा कहना भी था कि यह शैतान अगर किसी के खून की एक बूंद की भी महक ले ले तो वह उसे जिंदा नहीं छोड़ता। - अरविंद और रमेश यही सब इधर उधर की बातें आपस में कर रहे थे। तभी ऐसा लगा कि पीछे से कोई चलता हुआ उनके के पास आ रहा है।

रमेश और अरविंद पहले से ही बहुत ज्यादा घबराए हुए थे दोनों एक दूसरे से चिपक कर खड़े हो जाते हैं। और रमेश ने रोते हुए कहा - अरविंद भाई अब हमारा मरना तो बिल्कुल तय है - अरविंद जो खुद भी बहुत ज्यादा डरा हुआ था उसने कहा - ऐसा मत कहो अभी भगवान है वह हमको बचाएंगे - अरविंद ने रमेश के हाथ से टॉर्च ली और कहा - अब रुकना नहीं है। - उसके बाद दोनों पूरी जान लगा कर दौड़ने लगते हैं उसी जंगल के रास्ते से होते हुए अपने घर जाने को पूरा दम लगा कर भाग रहे थे। वह दोनों लेकिन उनमें से किसी की भी यह हिम्मत नहीं हो पा रही थी कि कोई भी पीछे मुड़कर एक बार भी देखें बस वह भाग रहे थे।
तभी अरविंद ने सामने देखा एक झोपड़ी दिख रही है अरविंद ने कहा - रमेश शायद हम जंगल से बाहर निकल गए- दोनों भागते हुए उस झोपड़ी के पास खड़े हो गए। वहां पर एक सफेद धोती पहने हुए बूढ़ा आदमी बैठा हुआ था। रमेश और अरविंद वही के रहने वाले थे लेकिन इन्होंने कभी यहां ऐसी झोपड़ी देखी नहीं थी। और इस आदमी को भी नहीं पहचानते थे। लेकिन फिर भी वह दोनों उस बूढ़े के पास जाकर बैठ गए। उन्होंने उस बूढ़े से कहा - चाचा आगे मोहल्ला कितनी दूर है - उस बूढ़े आदमी ने कहा - तुम मोहल्ले में तो हो यहीं से तो मोहल्ला शुरू होता है सबसे पहला घर मेरा ही है - लेकिन दोनों कुछ समझ नहीं आ रहा था।

क्योंकि ना उन्होंने कभी इस आदमी देखा था और मोहल्ले में कभी ऐसी झोपड़ी भी नहीं देखी थी। इसकी बातें भी थोड़ी अजीब सी लग रही थी इसलिए दोनों उठ कर वहां से जाने लगे। अब पहले से ही भागते हुए वह थक चुके थे। इसलिए थोड़ा आराम से जा रहे थे रमेश ने कहा - अरविंद आज हम बहुत बड़ी मुसीबत में फंस गए हैं लगता है क्योंकि इस जंगल से हम रोज आते जाते हैं आज इस जंगल में हम अभी तक भटक रहे हैं सिर्फ 10 मिनट का रास्ता और हम बाहर नहीं निकल पाए अभी तक अब मुझे नहीं लगता कि हम बचकर जा पाएंगे यहां से -

रमेश की ऐसी बेतुकी बातें सुनकर अरविंद ने कहा - अब तू चुप हो जा तेरी वजह से ही हम इतनी देर तक नदी में रुके तूने ही कहा था कि आज ज्यादा बजरी है निकाल लेते हैं लालच के चक्कर में आज हमारा यह हाल है - दोनों एक दूसरे से बात ही बात में थोड़ा झगड़ रहे थे लेकिन वहाँ रुके नहीं थे। जंगल की आगे की तरफ लगातार चल रहे थे। तभी अरविंद की टॉर्च की रोशनी किसी चीज पर पड़ी थोड़ा ध्यान से देख तो वही बूढ़ा आदमी अब उन दोनों के ठीक सामने पर खड़ा हुआ मिला।अरविंद और रमेश अब क्या करे दोनों को कुछ समझ नहीं आ रहा था।

तभी वो दोनों फिर पीछे की तरफ भागने लगे। दोनों थोड़ा ही पीछे भागे होंगे कि उन्होंने देखा वही पतला हड्डी जैसा जिसे जानवर या शैतान कह रहे थे। वह उनके पास खड़ा हुआ है। अरविंदो रमेश चीखने और चिल्लाने लगे और कहने लगे - हमने क्या करा है हमें क्यों मार रहे हो। - लेकिन उस जानवर जैसे आदमी को उनकी कुछ भी बात समझ नहीं आ रही थी।

वह पता नहीं क्या कह रहा था तभी पीछे से उस बूढ़े आदमी ने अरविंद को पकड़ लिया और घसीटते हुए ले जाने लगा पर अरविंद उस बूढ़े से अपने आप को छुड़ा नहीं पा रहा था और थोड़ी ही देर में अरविंद की आवाज मानो पूरे जंगल में गूंज रही हो बचाओ बचाओ छोड़ दो मुझे और वह जो बूढ़ा आदमी था अब वह बिल्कुल भयानक रूप में आ गया था। रमेश ने देखा जो अरविंद को ले जा रहा है घसीटता हुआ वह बूढ़ा अब पूरा बदल कर उस आदमी की तरह हो गया था जो उसके सामने खड़ा हुआ हैं।

पतला और एकदम हड्डी सा और देखते ही देखते उसने रमेश को पकड़ा और पीछे से जकड़ कर उसे भी घसीटते हुए थोड़ी दूर ले गया फिर उस शैतान ने रमेश को तड़पा-तड़पा कर मार दिया। उसने रमेश के शरीर से एक एक बूंद खून चूस लिया था। और अगले दिन लोगों को रमेश और अरविंद की लाश बहुत बुरी हालत में उसी जंगल में मिली। कहते हैं कि उस जंगल में आज भी रोज रात को वह शैतान घूमता है जो एक साथ कई रूप बना लेता है। अगर उसे लोगों के खून की एक बूंद की महक से भी पकड़ कर उनको मार देता है। यह वहाँ कई वर्षों से चला आ रहा हैं उस जंगल के बारे में अरविंद और रमेश को भी इस मोहल्ले के बड़े लोगों से कई बार पता चला था।
 
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Damon_Salvatore

I am vengeance
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Hello everyone.

We are Happy to present to you The annual story contest of XForum


"The Ultimate Story Contest" (USC).


"Chance to win cash prize up to Rs 8000"
Jaisa ki aap sabko maloom hai abhi pichhle hafte hi humne USC ki announcement ki hai or abhi kuch time pehle Rules and Queries thread bhi open kiya hai or Chit Chat thread toh pehle se hi Hindi section mein khula hai.

Well iske baare mein thoda aapko bata dun ye ek short story contest hai jisme aap kisi bhi prefix ki short story post kar sakte ho, jo minimum 700 words and maximum 7000 words ke bich honi chahiye (Story ke words count karne ke liye is tool ka use kare — Characters Tool) . Isliye main aapko invitation deta hun ki aap is contest mein apne khayaalon ko shabdon kaa roop dekar isme apni stories daalein jisko poora XForum dekhega, Ye ek bahot accha kadam hoga aapke or aapki stories ke liye kyunki USC ki stories ko poore XForum ke readers read karte hain.. Aap XForum ke sarvashreshth lekhakon mein se ek hain. aur aapki kahani bhi bahut acchi chal rahi hai. Isliye hum aapse USC ke liye ek chhoti kahani likhne ka anurodh karte hain. hum jaante hain ki aapke paas samay ki kami hai lekin iske bawajood hum ye bhi jaante hain ki aapke liye kuch bhi asambhav nahi hai.

Aur jo readers likhna nahi chahte woh bhi is contest mein participate kar sakte hain "Best Readers Award" ke liye. Aapko bas karna ye hoga ki contest mein posted stories ko read karke unke upar apne views dene honge.

Winning Writer's ko well deserved Cash Awards milenge, uske alawa aapko apna thread apne section mein sticky karne ka mouka bhi milega taaki aapka thread top par rahe uss dauraan. Isliye aapsab ke liye ye ek behtareen mouka hai XForum ke sabhi readers ke upar apni chhaap chhodne ka or apni reach badhaane kaa.. Ye aap sabhi ke liye ek bahut hi sunehra avsar hai apni kalpanao ko shabdon ka raasta dikha ke yahan pesh karne ka. Isliye aage badhe aur apni kalpanao ko shabdon mein likhkar duniya ko dikha de.

Entry thread 15th February ko open ho chuka matlab aap apni story daalna shuru kar sakte hain or woh thread 5th March 2024 tak open rahega is dauraan aap apni story post kar sakte hain. Isliye aap abhi se apni Kahaani likhna shuru kardein toh aapke liye better rahega.

Aur haan! Kahani ko sirf ek hi post mein post kiya jaana chahiye. Kyunki ye ek short story contest hai jiska matlab hai ki hum kewal chhoti kahaniyon ki ummeed kar rahe hain. Isliye apni kahani ko kayi post / bhaagon mein post karne ki anumati nahi hai. Agar koi bhi issue ho toh aap kisi bhi staff member ko Message kar sakte hain.



Story se related koi doubt hai to iske liye is thread ka use kare — Chit Chat Thread

Kisi bhi story par apna review post karne ke liye is thread ka use kare — Review Thread

Rules check karne ke liye is thread ko dekho — Rules & Queries Thread

Apni story post karne ke liye is thread ka use kare — Entry Thread

Prizes
Position Benifits
Winner 4000 Rupees + Award + 5000 Likes + 30 days sticky Thread (Stories)
1st Runner-Up 1500 Rupees + Award + 3500 Likes + 15 day Sticky thread (Stories)
2nd Runner-UP 1000 Rupees + 2000 Likes + 7 Days Sticky Thread (Stories)
3rd Runner-UP 750 Rupees + 1000 Likes
Best Supporting Reader 750 Rupees + Award + 1000 Likes
Members reporting CnP Stories with Valid Proof 200 Likes for each report



Regards :- XForum Staff
 
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