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Adultery Meri Masoom Wife Gopi

heenakhan250

New Member
3
18
4
दोपहर 2:15 PM
सन्नाटा।


गर्मी कुछ ज़्यादा ही थी। छत का पंखा अपनी पुरानी सी आवाज़ में घूम रहा था। पर्दों के पीछे से आती धूप कमरे के एक कोने में जमा हो रही थी — और उसी धूप के बीच, मेरी बीवी गोपी पलंग पर लेटी थी।


उसने नहाकर अभी-अभी पूजा की थी। माथे पर छोटी सी बिंदी थी, और साड़ी हल्के से बदन पर लिपटी थी… लेकिन नींद की वजह से उसका पल्लू सरक कर नीचे गिर चुका था।


गोपी की सांसें शांत थीं… होंठ थोड़े खुले… और छाती बहुत ही धीमे-धीमे ऊपर नीचे हो रही थी।


वो गहरी नींद में थी।
लेकिन उसका बदन नींद में भी बोल रहा था।
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असलम – 50 साल का, काला, मोटा, लेकिन मर्दानगी से भरा ड्राइवर – गेट पर खड़ा था।


उसे पता था कि आज घर पर मैं नहीं हूँ।


बच्चे स्कूल में हैं।


और गोपी… वो शायद अब सो रही होगी, जैसा रोज़ होता है।


उसने जूते उतारे।


धीरे-धीरे दरवाज़ा खोला।


गोपी के कमरे तक जाने में उसे बस पाँच कदम लगे… लेकिन हर कदम उसके लंड की गर्मी को और बढ़ा रहा था।


उसने हल्का सा दरवाज़ा खोला…


और वो नज़ारा देखा, जिसे शायद वो हफ़्तों से देखने की चाह में जी रहा था।




गोपी – पलंग पर लेटी, साड़ी की सिलवटें बिखरी हुई, एक पैर मुड़ा हुआ, और छाती से पल्लू नीचे गिरा हुआ।


उसकी ब्रा पुरानी थी… सफेद रंग की, लेकिन उस पर गीलेपन के हल्के निशान थे।


शायद गर्मी में पसीना, या फिर… कुछ और।


असलम की आंखें चमकने लगीं।


उसने अपनी पैंट में हाथ डाला… और धीरे-धीरे वो बाहर निकाला जिसे गोपी ने कभी देखा नहीं था…


8 इंच लंबा, मोटा, और नसों से भरा लंड।


उसने उसे धीरे-धीरे अपनी मुट्ठी में लिया… और गोपी की तरफ बढ़ा।




कमरे में सिर्फ दो आवाज़ें थीं —
पंखे की पुरानी झनझनाहट… और असलम की सांसें, जो अब बहुत तेज़ हो चुकी थीं।


उसने गोपी के पास एक स्टूल खींचा, और बैठ गया।


वो बस उसे देख रहा था… जैसे कोई भूखा इंसान पहली बार खाना देखता है।


उसकी आँखें गोपी की छाती पर अटकी हुई थीं — ब्रा की झालर के नीचे से दो गुलाबी निप्पल हल्के-हल्के उभर रहे थे, जो नींद में भी टाइट हो रहे थे।


असलम ने अपनी सांस को रोका… और फिर…


उसने अपने लंड को धीरे-धीरे हिलाना शुरू किया।




गोपी की करवट बदली।


उसका एक पैर अब थोड़ा ऊपर उठ गया था, जिससे उसकी जाँघ की सिलवटें थोड़ी खुल गईं। पेटीकोट नीचे खिसक चुका था।


उसका पेट हल्का पसीने से भीगा था, और नाभि के आसपास हल्का-हल्का कंपन हो रहा था।


असलम ने अपनी नज़रें वहीं गड़ा दीं।


उसने धीरे से अपनी दूसरी उंगली से उसके पल्लू को थोड़ा और नीचे सरकाया…


और अब उसकी ब्रा पूरी दिख रही थी।


गोपी की सांसें अब तेज़ थीं… लेकिन आँखें अभी भी बंद।


शायद वो सपने में कुछ देख रही थी…


शायद… वो किसी और के लंड को महसूस कर रही थी।
 

pjprivet1

New Member
18
24
19
दोपहर 2:15 PM
सन्नाटा।


गर्मी कुछ ज़्यादा ही थी। छत का पंखा अपनी पुरानी सी आवाज़ में घूम रहा था। पर्दों के पीछे से आती धूप कमरे के एक कोने में जमा हो रही थी — और उसी धूप के बीच, मेरी बीवी गोपी पलंग पर लेटी थी।


उसने नहाकर अभी-अभी पूजा की थी। माथे पर छोटी सी बिंदी थी, और साड़ी हल्के से बदन पर लिपटी थी… लेकिन नींद की वजह से उसका पल्लू सरक कर नीचे गिर चुका था।


गोपी की सांसें शांत थीं… होंठ थोड़े खुले… और छाती बहुत ही धीमे-धीमे ऊपर नीचे हो रही थी।


वो गहरी नींद में थी।
लेकिन उसका बदन नींद में भी बोल रहा था।
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असलम – 50 साल का, काला, मोटा, लेकिन मर्दानगी से भरा ड्राइवर – गेट पर खड़ा था।


उसे पता था कि आज घर पर मैं नहीं हूँ।


बच्चे स्कूल में हैं।


और गोपी… वो शायद अब सो रही होगी, जैसा रोज़ होता है।


उसने जूते उतारे।


धीरे-धीरे दरवाज़ा खोला।


गोपी के कमरे तक जाने में उसे बस पाँच कदम लगे… लेकिन हर कदम उसके लंड की गर्मी को और बढ़ा रहा था।


उसने हल्का सा दरवाज़ा खोला…


और वो नज़ारा देखा, जिसे शायद वो हफ़्तों से देखने की चाह में जी रहा था।





गोपी – पलंग पर लेटी, साड़ी की सिलवटें बिखरी हुई, एक पैर मुड़ा हुआ, और छाती से पल्लू नीचे गिरा हुआ।


उसकी ब्रा पुरानी थी… सफेद रंग की, लेकिन उस पर गीलेपन के हल्के निशान थे।


शायद गर्मी में पसीना, या फिर… कुछ और।


असलम की आंखें चमकने लगीं।


उसने अपनी पैंट में हाथ डाला… और धीरे-धीरे वो बाहर निकाला जिसे गोपी ने कभी देखा नहीं था…


8 इंच लंबा, मोटा, और नसों से भरा लंड।


उसने उसे धीरे-धीरे अपनी मुट्ठी में लिया… और गोपी की तरफ बढ़ा।





कमरे में सिर्फ दो आवाज़ें थीं —
पंखे की पुरानी झनझनाहट… और असलम की सांसें, जो अब बहुत तेज़ हो चुकी थीं।


उसने गोपी के पास एक स्टूल खींचा, और बैठ गया।


वो बस उसे देख रहा था… जैसे कोई भूखा इंसान पहली बार खाना देखता है।


उसकी आँखें गोपी की छाती पर अटकी हुई थीं — ब्रा की झालर के नीचे से दो गुलाबी निप्पल हल्के-हल्के उभर रहे थे, जो नींद में भी टाइट हो रहे थे।


असलम ने अपनी सांस को रोका… और फिर…


उसने अपने लंड को धीरे-धीरे हिलाना शुरू किया।





गोपी की करवट बदली।


उसका एक पैर अब थोड़ा ऊपर उठ गया था, जिससे उसकी जाँघ की सिलवटें थोड़ी खुल गईं। पेटीकोट नीचे खिसक चुका था।


उसका पेट हल्का पसीने से भीगा था, और नाभि के आसपास हल्का-हल्का कंपन हो रहा था।


असलम ने अपनी नज़रें वहीं गड़ा दीं।


उसने धीरे से अपनी दूसरी उंगली से उसके पल्लू को थोड़ा और नीचे सरकाया…


और अब उसकी ब्रा पूरी दिख रही थी।


गोपी की सांसें अब तेज़ थीं… लेकिन आँखें अभी भी बंद।


शायद वो सपने में कुछ देख रही थी…


शायद… वो किसी और के लंड को महसूस कर रही थी।
Bhut achi story hai

Pls isko complete jrur krna or update jldi jldi dena
 
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heenakhan250

New Member
3
18
4
असलम अब अपने लंड को ठीक गोपी की जांघों के पास ले आया।


उसने उसकी जाँघ पर अपने लंड की नोक को रखा…


और धीरे से उसे रगड़ दिया।


गोपी की जाँघ में एक झटका सा आया।
36795466_078_4606.jpg



उसका हाथ जो तकिए के पास था, अब थोड़ा खिंच कर कमर की तरफ आ गया।


उसने कोई शब्द नहीं कहा… लेकिन उसकी जाँघों में सिकुड़न थी।


उसके निप्पल अब ब्रा के कपड़े को चीर कर जैसे बाहर निकलना चाह रहे थे।


असलम की मुट्ठी अब और तेज़ चल रही थी…


उसके लंड की नोक से एक बूंद निकल कर गोपी की साड़ी पर गिर गई।




और मैं?


मैं ऑफिस में नहीं था…


मैं बगल के कमरे में ही बैठा था, लाइव फीड देख रहा था।


मोबाइल स्क्रीन पर मैं अपनी बीवी को देख रहा था…


और उस अधेड़, मर्दाना, मुस्लिम ड्राइवर को, जो बिना इजाज़त लिए मेरी बीवी के बदन पर कब्ज़ा जमा रहा था।


लेकिन… मैंने रोकने की कोशिश नहीं की।


क्यों?


क्योंकि मैं अब सिर्फ पति नहीं था… मैं अब एक दर्शक बन गया था।




अब असलम ने धीरे से गोपी की ब्रा के स्ट्रैप को पकड़ कर खींचा।


और उसका एक निप्पल — गुलाबी, सख़्त, और पूरा बाहर — हवा में खुल गया।


गोपी की आँखें अब भी बंद थीं… लेकिन उसके होंठ हिलने लगे थे।
30904209_072_90b7.jpg



"हूं… न… नहीं…", उसने नींद में बुदबुदाया…


लेकिन आवाज़ में डर नहीं था।
आवाज़ में तड़प थी।
गोपी की साँसें अब और गहरी हो रही थीं।


उसके निप्पल में हल्की सिहरन आ चुकी थी।
ब्रा का कप अब एक तरफ खिसक चुका था — और गुलाबी निप्पल पूरी तरह खुल चुका था।


असलम की उंगलियाँ अब धीरे-धीरे उसके पेट के ऊपर सरक रही थीं।


उसने अपनी हथेली से गोपी के पेट पर हल्का दबाव डाला… और उसकी चमड़ी ने उस स्पर्श को सीधा अपने भीतर खींच लिया।


गोपी का शरीर अब ठहर नहीं रहा था।
उसने एक गहरी सांस ली… और उसका हाथ अब खुद-ब-खुद अपनी कमर पर खिंच आया।


नींद अब पूरी नहीं थी।


वो जाग नहीं रही थी — पर अब सो भी नहीं रही थी।




असलम ने अब उसकी जाँघों के बीच हाथ रखा…
साड़ी की सिलवटें अलग कर दीं।


उसकी पतली, गोरी जाँघें अब सामने थीं — हल्की-हल्की कांपती हुई।


उसने नीचे झुक कर अपने मोटे, काले लंड की नोक को गोपी की जाँघ पर टिकाया…
और फिर धीरे-धीरे, गोल-गोल रगड़ना शुरू किया।


गोपी के होठों से एक धीमा "हूँ..." निकला।


उसका माथा थोड़ा सिकुड़ गया…
67487952_001_ab8a.jpg



और उसके होंठों पर एक अजीब-सी मुस्कान फिसल गई।
अब ब्रा का दूसरा कप भी नीचे हो चुका था।


गोपी की दोनों छातियाँ पूरी तरह बाहर थीं — दूध सी सफेद, कोमल, लेकिन अब तेज़ी से सांस लेती हुई।


असलम ने उसकी एक छाती पर अपने मोटे, खुरदरे हाथ रखे…


और उंगली से उसके निप्पल के चारों ओर गोलाई में मसाज करने लगा।


गोपी की जांघों में हल्की हरकत हुई।


उसने धीरे से करवट ली — लेकिन इस बार वो खुद असलम के हाथों के करीब गई।


अब वो सीधी उसकी तरफ लेटी थी — और उसकी खुली छाती, उसकी आधी जागी सांसें, उसके गीले होठ…
सब कह रहे थे कि कुछ तो टूटने वाला है।




असलम अब उसके बेहद करीब आ चुका था।
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उसके लंड की मोटाई अब गोपी की नाभि के पास महसूस हो रही थी।


गोपी की आँखें आधी खुलीं —
लेकिन वो असलम को नहीं देख रही थी।


वो कहीं और थी…
शायद किसी सपने में, किसी ऐसे मर्द के साथ…
जिसने उसकी छाती को पहली बार इस तरह मसलते हुए उसकी साड़ी के नीचे उतरने की इजाज़त ली हो — बिना कहे।
हूँ…," गोपी ने एक धीमी आवाज़ में कहा, "क..कौन…"


असलम ने कुछ नहीं कहा।
उसने सिर्फ अपनी उंगलियाँ उसके पेटीकोट की डोरी पर रखीं…
और धीरे से खींच ली।


पेटीकोट अब ढीला हो चुका था।


गोपी की आँखें अब पूरी खुलने वाली थीं।


लेकिन तभी…


असलम ने अपने मोटे लंड को गोपी की जाँघों के बीच रख दिया — और हल्के-हल्के उसे आगे-पीछे सरकाने लगा।


गोपी के बदन में कंपन दौड़ गई।


उसके होठों से तेज़ साँस निकली… उसकी कमर खुद-ब-खुद हल्की ऊपर उठ गई।


उसने खुद को जागने से रोका।


या शायद…
अब वो जागते हुए भी बनावटी सो रही थी।




असलम ने अपने होंठ उसके निप्पल पर रखे…

99808727_012_679f.jpg



और धीरे से उसे चूसा।


गोपी का मुँह खुला… और पहली बार उसकी सांस में एक दर्द भरी तृप्ति थी।


"ह्ह... हाँ…" बहुत हल्की सी आवाज़ निकली…
जैसे खुद को रोकना चाह रही हो…
लेकिन बदन ने हार मान ली थी।
 
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malikarman

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असलम अब अपने लंड को ठीक गोपी की जांघों के पास ले आया।


उसने उसकी जाँघ पर अपने लंड की नोक को रखा…


और धीरे से उसे रगड़ दिया।


गोपी की जाँघ में एक झटका सा आया।
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उसका हाथ जो तकिए के पास था, अब थोड़ा खिंच कर कमर की तरफ आ गया।


उसने कोई शब्द नहीं कहा… लेकिन उसकी जाँघों में सिकुड़न थी।


उसके निप्पल अब ब्रा के कपड़े को चीर कर जैसे बाहर निकलना चाह रहे थे।


असलम की मुट्ठी अब और तेज़ चल रही थी…


उसके लंड की नोक से एक बूंद निकल कर गोपी की साड़ी पर गिर गई।




और मैं?


मैं ऑफिस में नहीं था…


मैं बगल के कमरे में ही बैठा था, लाइव फीड देख रहा था।


मोबाइल स्क्रीन पर मैं अपनी बीवी को देख रहा था…


और उस अधेड़, मर्दाना, मुस्लिम ड्राइवर को, जो बिना इजाज़त लिए मेरी बीवी के बदन पर कब्ज़ा जमा रहा था।


लेकिन… मैंने रोकने की कोशिश नहीं की।


क्यों?


क्योंकि मैं अब सिर्फ पति नहीं था… मैं अब एक दर्शक बन गया था।




अब असलम ने धीरे से गोपी की ब्रा के स्ट्रैप को पकड़ कर खींचा।


और उसका एक निप्पल — गुलाबी, सख़्त, और पूरा बाहर — हवा में खुल गया।


गोपी की आँखें अब भी बंद थीं… लेकिन उसके होंठ हिलने लगे थे।
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"हूं… न… नहीं…", उसने नींद में बुदबुदाया…


लेकिन आवाज़ में डर नहीं था।
आवाज़ में तड़प थी।
गोपी की साँसें अब और गहरी हो रही थीं।


उसके निप्पल में हल्की सिहरन आ चुकी थी।
ब्रा का कप अब एक तरफ खिसक चुका था — और गुलाबी निप्पल पूरी तरह खुल चुका था।


असलम की उंगलियाँ अब धीरे-धीरे उसके पेट के ऊपर सरक रही थीं।


उसने अपनी हथेली से गोपी के पेट पर हल्का दबाव डाला… और उसकी चमड़ी ने उस स्पर्श को सीधा अपने भीतर खींच लिया।


गोपी का शरीर अब ठहर नहीं रहा था।
उसने एक गहरी सांस ली… और उसका हाथ अब खुद-ब-खुद अपनी कमर पर खिंच आया।


नींद अब पूरी नहीं थी।


वो जाग नहीं रही थी — पर अब सो भी नहीं रही थी।




असलम ने अब उसकी जाँघों के बीच हाथ रखा…
साड़ी की सिलवटें अलग कर दीं।


उसकी पतली, गोरी जाँघें अब सामने थीं — हल्की-हल्की कांपती हुई।


उसने नीचे झुक कर अपने मोटे, काले लंड की नोक को गोपी की जाँघ पर टिकाया…
और फिर धीरे-धीरे, गोल-गोल रगड़ना शुरू किया।


गोपी के होठों से एक धीमा "हूँ..." निकला।


उसका माथा थोड़ा सिकुड़ गया…
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और उसके होंठों पर एक अजीब-सी मुस्कान फिसल गई।
अब ब्रा का दूसरा कप भी नीचे हो चुका था।


गोपी की दोनों छातियाँ पूरी तरह बाहर थीं — दूध सी सफेद, कोमल, लेकिन अब तेज़ी से सांस लेती हुई।


असलम ने उसकी एक छाती पर अपने मोटे, खुरदरे हाथ रखे…


और उंगली से उसके निप्पल के चारों ओर गोलाई में मसाज करने लगा।


गोपी की जांघों में हल्की हरकत हुई।


उसने धीरे से करवट ली — लेकिन इस बार वो खुद असलम के हाथों के करीब गई।


अब वो सीधी उसकी तरफ लेटी थी — और उसकी खुली छाती, उसकी आधी जागी सांसें, उसके गीले होठ…
सब कह रहे थे कि कुछ तो टूटने वाला है।




असलम अब उसके बेहद करीब आ चुका था।
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उसके लंड की मोटाई अब गोपी की नाभि के पास महसूस हो रही थी।


गोपी की आँखें आधी खुलीं —
लेकिन वो असलम को नहीं देख रही थी।


वो कहीं और थी…
शायद किसी सपने में, किसी ऐसे मर्द के साथ…
जिसने उसकी छाती को पहली बार इस तरह मसलते हुए उसकी साड़ी के नीचे उतरने की इजाज़त ली हो — बिना कहे।
हूँ…," गोपी ने एक धीमी आवाज़ में कहा, "क..कौन…"


असलम ने कुछ नहीं कहा।
उसने सिर्फ अपनी उंगलियाँ उसके पेटीकोट की डोरी पर रखीं…
और धीरे से खींच ली।


पेटीकोट अब ढीला हो चुका था।


गोपी की आँखें अब पूरी खुलने वाली थीं।


लेकिन तभी…


असलम ने अपने मोटे लंड को गोपी की जाँघों के बीच रख दिया — और हल्के-हल्के उसे आगे-पीछे सरकाने लगा।


गोपी के बदन में कंपन दौड़ गई।


उसके होठों से तेज़ साँस निकली… उसकी कमर खुद-ब-खुद हल्की ऊपर उठ गई।


उसने खुद को जागने से रोका।


या शायद…
अब वो जागते हुए भी बनावटी सो रही थी।




असलम ने अपने होंठ उसके निप्पल पर रखे…

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और धीरे से उसे चूसा।


गोपी का मुँह खुला… और पहली बार उसकी सांस में एक दर्द भरी तृप्ति थी।


"ह्ह... हाँ…" बहुत हल्की सी आवाज़ निकली…
जैसे खुद को रोकना चाह रही हो…
लेकिन बदन ने हार मान ली थी।
Awesome update
 
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