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दोपहर 2:15 PM
सन्नाटा।
गर्मी कुछ ज़्यादा ही थी। छत का पंखा अपनी पुरानी सी आवाज़ में घूम रहा था। पर्दों के पीछे से आती धूप कमरे के एक कोने में जमा हो रही थी — और उसी धूप के बीच, मेरी बीवी गोपी पलंग पर लेटी थी।
उसने नहाकर अभी-अभी पूजा की थी। माथे पर छोटी सी बिंदी थी, और साड़ी हल्के से बदन पर लिपटी थी… लेकिन नींद की वजह से उसका पल्लू सरक कर नीचे गिर चुका था।
गोपी की सांसें शांत थीं… होंठ थोड़े खुले… और छाती बहुत ही धीमे-धीमे ऊपर नीचे हो रही थी।
वो गहरी नींद में थी।
लेकिन उसका बदन नींद में भी बोल रहा था।
असलम – 50 साल का, काला, मोटा, लेकिन मर्दानगी से भरा ड्राइवर – गेट पर खड़ा था।
उसे पता था कि आज घर पर मैं नहीं हूँ।
बच्चे स्कूल में हैं।
और गोपी… वो शायद अब सो रही होगी, जैसा रोज़ होता है।
उसने जूते उतारे।
धीरे-धीरे दरवाज़ा खोला।
गोपी के कमरे तक जाने में उसे बस पाँच कदम लगे… लेकिन हर कदम उसके लंड की गर्मी को और बढ़ा रहा था।
उसने हल्का सा दरवाज़ा खोला…
और वो नज़ारा देखा, जिसे शायद वो हफ़्तों से देखने की चाह में जी रहा था।
गोपी – पलंग पर लेटी, साड़ी की सिलवटें बिखरी हुई, एक पैर मुड़ा हुआ, और छाती से पल्लू नीचे गिरा हुआ।
उसकी ब्रा पुरानी थी… सफेद रंग की, लेकिन उस पर गीलेपन के हल्के निशान थे।
शायद गर्मी में पसीना, या फिर… कुछ और।
असलम की आंखें चमकने लगीं।
उसने अपनी पैंट में हाथ डाला… और धीरे-धीरे वो बाहर निकाला जिसे गोपी ने कभी देखा नहीं था…
8 इंच लंबा, मोटा, और नसों से भरा लंड।
उसने उसे धीरे-धीरे अपनी मुट्ठी में लिया… और गोपी की तरफ बढ़ा।
कमरे में सिर्फ दो आवाज़ें थीं —
पंखे की पुरानी झनझनाहट… और असलम की सांसें, जो अब बहुत तेज़ हो चुकी थीं।
उसने गोपी के पास एक स्टूल खींचा, और बैठ गया।
वो बस उसे देख रहा था… जैसे कोई भूखा इंसान पहली बार खाना देखता है।
उसकी आँखें गोपी की छाती पर अटकी हुई थीं — ब्रा की झालर के नीचे से दो गुलाबी निप्पल हल्के-हल्के उभर रहे थे, जो नींद में भी टाइट हो रहे थे।
असलम ने अपनी सांस को रोका… और फिर…
उसने अपने लंड को धीरे-धीरे हिलाना शुरू किया।
गोपी की करवट बदली।
उसका एक पैर अब थोड़ा ऊपर उठ गया था, जिससे उसकी जाँघ की सिलवटें थोड़ी खुल गईं। पेटीकोट नीचे खिसक चुका था।
उसका पेट हल्का पसीने से भीगा था, और नाभि के आसपास हल्का-हल्का कंपन हो रहा था।
असलम ने अपनी नज़रें वहीं गड़ा दीं।
उसने धीरे से अपनी दूसरी उंगली से उसके पल्लू को थोड़ा और नीचे सरकाया…
और अब उसकी ब्रा पूरी दिख रही थी।
गोपी की सांसें अब तेज़ थीं… लेकिन आँखें अभी भी बंद।
शायद वो सपने में कुछ देख रही थी…
शायद… वो किसी और के लंड को महसूस कर रही थी।
सन्नाटा।
गर्मी कुछ ज़्यादा ही थी। छत का पंखा अपनी पुरानी सी आवाज़ में घूम रहा था। पर्दों के पीछे से आती धूप कमरे के एक कोने में जमा हो रही थी — और उसी धूप के बीच, मेरी बीवी गोपी पलंग पर लेटी थी।
उसने नहाकर अभी-अभी पूजा की थी। माथे पर छोटी सी बिंदी थी, और साड़ी हल्के से बदन पर लिपटी थी… लेकिन नींद की वजह से उसका पल्लू सरक कर नीचे गिर चुका था।
गोपी की सांसें शांत थीं… होंठ थोड़े खुले… और छाती बहुत ही धीमे-धीमे ऊपर नीचे हो रही थी।
वो गहरी नींद में थी।
लेकिन उसका बदन नींद में भी बोल रहा था।

असलम – 50 साल का, काला, मोटा, लेकिन मर्दानगी से भरा ड्राइवर – गेट पर खड़ा था।
उसे पता था कि आज घर पर मैं नहीं हूँ।
बच्चे स्कूल में हैं।
और गोपी… वो शायद अब सो रही होगी, जैसा रोज़ होता है।
उसने जूते उतारे।
धीरे-धीरे दरवाज़ा खोला।
गोपी के कमरे तक जाने में उसे बस पाँच कदम लगे… लेकिन हर कदम उसके लंड की गर्मी को और बढ़ा रहा था।
उसने हल्का सा दरवाज़ा खोला…
और वो नज़ारा देखा, जिसे शायद वो हफ़्तों से देखने की चाह में जी रहा था।
गोपी – पलंग पर लेटी, साड़ी की सिलवटें बिखरी हुई, एक पैर मुड़ा हुआ, और छाती से पल्लू नीचे गिरा हुआ।
उसकी ब्रा पुरानी थी… सफेद रंग की, लेकिन उस पर गीलेपन के हल्के निशान थे।
शायद गर्मी में पसीना, या फिर… कुछ और।
असलम की आंखें चमकने लगीं।
उसने अपनी पैंट में हाथ डाला… और धीरे-धीरे वो बाहर निकाला जिसे गोपी ने कभी देखा नहीं था…
8 इंच लंबा, मोटा, और नसों से भरा लंड।
उसने उसे धीरे-धीरे अपनी मुट्ठी में लिया… और गोपी की तरफ बढ़ा।
कमरे में सिर्फ दो आवाज़ें थीं —
पंखे की पुरानी झनझनाहट… और असलम की सांसें, जो अब बहुत तेज़ हो चुकी थीं।
उसने गोपी के पास एक स्टूल खींचा, और बैठ गया।
वो बस उसे देख रहा था… जैसे कोई भूखा इंसान पहली बार खाना देखता है।
उसकी आँखें गोपी की छाती पर अटकी हुई थीं — ब्रा की झालर के नीचे से दो गुलाबी निप्पल हल्के-हल्के उभर रहे थे, जो नींद में भी टाइट हो रहे थे।
असलम ने अपनी सांस को रोका… और फिर…
उसने अपने लंड को धीरे-धीरे हिलाना शुरू किया।
गोपी की करवट बदली।
उसका एक पैर अब थोड़ा ऊपर उठ गया था, जिससे उसकी जाँघ की सिलवटें थोड़ी खुल गईं। पेटीकोट नीचे खिसक चुका था।
उसका पेट हल्का पसीने से भीगा था, और नाभि के आसपास हल्का-हल्का कंपन हो रहा था।
असलम ने अपनी नज़रें वहीं गड़ा दीं।
उसने धीरे से अपनी दूसरी उंगली से उसके पल्लू को थोड़ा और नीचे सरकाया…
और अब उसकी ब्रा पूरी दिख रही थी।
गोपी की सांसें अब तेज़ थीं… लेकिन आँखें अभी भी बंद।
शायद वो सपने में कुछ देख रही थी…
शायद… वो किसी और के लंड को महसूस कर रही थी।