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अध्याय 3
खण्ड 3
वही दूसरी ओर गजेश्वर राज्य में आग के समान ये सूचना फेल गई। कि अब्दुल्ला राजा भानु और उसके वज़ीर नागेश्वर की हत्या करके फरार हो गया। अब लोगों में इसकी चर्चा होने लगीं की ज़रूर अब्दुल्ला की पत्नी और बेटी की हत्या में राजा का किसी प्रकार सम्बन्ध था इसलिये अब्दुल्ला ने ये कठोर कदम उठाया। वही जब युवराज इंद्र अपने धूर्त मंत्रियों के साथ वेश्यालय पहुंचे तो अपने पिता और वज़ीर की निर्मम हत्या देख कर, खुद पर काबू खो बैठे। पहले तो उसने वेश्यालय की सारी वेश्याओं को एक जगह एकत्रित करवा कर लकड़ी के खम्भों से बंधवा दिया। उसके पश्चात उनको जीवित ही अग्नि के सुपुर्द कर दिया। ये दृश्य देख कर केवल प्रजा जन ही नहीं बल्कि राजा के मंत्री भी दहशत में आ गए। सब को ये समझते देर ना लगी के राजकुमार अपने पिता के जैसा दुष्ट होने के साथ साथ सनकी भी है। ना जाने कब किस को दंडित कर दे।
उसके बाद इंद्र अपने सेनापति को बुलवा कर। उसको वसुंधरा पर आक्रमण करने की तैयारी को बोलता है। क्योंकि उसको विश्वास था कि उनके राज्य का भगोड़ा वसुंधरा में ही जा छुपा होगा।
मंत्रियों में से एक वृद्ध अनुभवी मंत्री आगे बढ़ कर बोला" यदि राजा की अनुमति हो तो ये सेवक कुछ कहना चाहता है।
इंद्र को कभी किसी ने राजा कह कर संबोधित नहीं किया था ये उसके जीवन में पहली बार था जो किसी ने उसको राजा कहा अब इसको सुन इंद्र के भीतर गर्व का गुबार फूटा जिसके प्रभाव में उसने वृद्ध को बोलने की अनुमति दे दी।
वृद्ध अपनी शालीनता और अनुभव के माध्यम से बड़े ही मीठे सुर में बोला " महाराज एक कुशल राजा अपने विरोधी को युद्ध से पहले एक चेतावनी जरूर देता है। ताकि बिना युद्ध के ही सामने वाला आत्मा समर्पण कर दे। इस से युद्ध में होने वाली हानि के बिना ही शत्रु को केवल अपने भय से ही पराजित किया जाता है। इंद्र को वृद्ध की बात में दम लगा और उसने वृद्ध को ही इस कार्य को करने के लिए कहा और साथ में ये भी बोला उनके पास विचार विमर्श करने के लिए तीन दिन का समय है। अन्यथा अपने विनाश के वो स्वयं ही कारण होंगे।
वृद्ध ने पहर भर में चेतावनी लिखवा कर वसुंधरा भिजवा दी जिसे पड़ कर राजा को भी ये मामला गंभीर लगा क्योंकि उनको नहीं पता के अब्दुल्ला ने राजा और वज़ीर की इतनी क्रूरता से हत्या क्यों कि। इसलिए उनकी नज़र में अब्दुला एक अपराधी था। वसुंधरा में अभी तक अब्दुल्ला नहीं पहुँचा था इसलिये राजा साहब अपने सलाहकारों से सलाह कर गजेश्वर राज्य के लिए संदेश भिजवाना चाह रहे थे। जिसमें वो राजा भानु की मृत्यु का दुख जाहिर करते और साथ में आश्वासन भी देते की अब्दुल्ला के मिलते ही वसुंधरा राज्य उसे गजेश्वर राज्य को सौंप देगा के तभी कुछ सैनिक दौड़ते हुए सभा में आये और युवराज नरसिम्हा के साथ घाटी घटना को राजा को बताया।
जब लोगों ने युवराज के साथ घटी इस दुखद घटना को सुना तो सभी भगवान से युवराज की सलामती की प्राथना करते है। अब राजा बड़े युवराज और कुछ सैनिकों के साथ उस स्थान के लिये निकलता है। तभी उन्हें किले के बाहर से कुछ शोर सुनाई देता है। बाहर आ कर राजा देखता है। युवराज नरसिम्हा को कोई व्यक्ति सहारा दे कर ला रहा था। घायल नरसिम्हा के पास पहुँच राजा को पता चलता है कि उसके बेटे को नया जीवन दान देने वाला व्यक्ति कोई और नहीं बल्कि अब्दुल्ला है।
असल में अब्दुल्ला गजेश्वर राज्य से भागने के बाद उन पर्वतों में जा छुपता है। और एक दिन से भी अधिक वहाँ पर वसुंधरा राज्य में प्रवेश करने के लिए भटकता रहता है। और जब वो पर्वतों की आधी से अधिक ऊंचाई पार कर लेता है। तो उसको कुछ लोगों की चीख पुकार सुनाई देती है। उस आवाज़ आती दिशा की ओर देखने पर वो अपने से थोड़ी उपर एक व्यक्ति को लटका पाता है। पर्वतों की विचित्र संरचना के कारण ना तो सैनिकों को अब्दुल्ला दिखता है। और ना ही अब्दुल्ला को सैनिक नजर आते है। बस उसको नरसिम्हा ही दिखता है। सौभाग्य से जब नरसिम्हा का हाथ दरारों से फिसला तो अब्दुल्ला ने अंतिम क्षण उसको पकड़ लिया,
इन सब को जान राजा दुविधा में पड़ जाता है। क्योंकि थोड़ी देर पहले जिसके बारे में उनके विचार गलत थे अब वैसे नहीं रहे और इस पर उनको ये भी विश्वास हो जाता है। ये कोई दुष्ट नहीं हो सकता। इसके बाद राजा अब्दुल्ला से उसका सारा वृतांत सुनते है। जिसे सुन उनको भी अब्दुल्ला के प्रति दया आती है। और वो अब्दुल्ला को गजेश्वर राज्य से आये पैगाम को दिखा कर बोलता है। " हमने अपने जीवन में कभी अन्याय का साथ नहीं दिया और आज भी नहीं देंगे फिर उस संदेश को फाड़ कर फेंक देता है।
ये देख कर अब्दुल्ला चिंतित होकर बोला" महाराज मुझ अकेले प्राणी के लिए आप इतना जोखिम न ले और वैसे भी मेरे जीवन में अब कोई मूल नहीं रहा इसलिए क्या फर्क पड़ता है। आप मुझे राजा इंद्र के पास भेज दे।
मगर राजा ऐसा करने से मना करता हुआ बोला " सवाल किसी एक व्यक्ति या एक राज्य का नहीं है। अब सवाल सत्य और असत्य का है। न्याय और अन्याय का है। उस दुष्ट के हाथों तुम्हारी मृत्यु का मतलब है। अन्याय के हाथों न्याय की हत्या और वसुंधरा राज्य कभी भी अन्याय का साथ देकर जीवित रहना स्वीकार नहीं करेगा, बल्कि इस राज्य का प्रत्येक व्यक्ति न्याय और सत्य का साथ देकर वीरगति प्राप्त कर लेना सर्वोच्चता समझेगा।
राजा की बातों ने सभासदों के भीतर देशप्रेम और सत्य की ज्वाला भड़का दी। और हर एक व्यक्ति जो उस सभा में उपस्थित था राजा की जय जय कार करने लगा। सिवाए एक को छोड़कर जो शायद इस निर्णय से सहमत नहीं था वो राजा का एक युवा मंत्री था किंतु साहस की आपूर्ति होने के कारण वो अपने विचार व्यक्त ना कर पाया। और मन ही मन कुढ़ता रहा।
वही तीन दिन तक इंद्र को वसुंधरा की ओर से जब कोई उत्तर नहीं आया तो उसने वसुंधरा पर आक्रमण करने का आदेश दिया। और जंगल के भीतर से जाने का निर्णय लिया, जिसे सुन कर कुछ अधिकारियों को बड़ा अचम्भा हुआ। वो बोलने लगे " क्या राजा इन्द्र को उस भयानक जंगल की सत्यता का ज्ञान नहीं है।
" क्या राजा इन्द्र उसकी अलौकिकता से अज्ञात है।
" क्या आप उस जंगल के भीतर के रहस्यमय किस्सों को नहीं जानते।
इन सब को सुन इन्द्र भड़क उठा और बोला " ये सारी बातें हमारे शत्रु द्वारा फैलाया एक मायावी भ्रम है। ताकि हम भय से उस जंगल के भीतर ना जाए। मुझे आप लोग ये बताओ यहाँ उपस्थित किसी भी व्यक्ति ने उस जंगल के भयंकर भ्रमों को स्वयं वास्तविकता में देखा है। इस प्रश्न ने सब के मुंह पर ताला लगा दिया। और बात भी सही थी सदियों से लोगों ने केवल इसके बारे में सुना था मगर भय के कारण किसी में भी सत्य का पता लगाने के लिए उस जंगल में जाने का कभी साहस ही नहीं हुआ।
राजा इन्द्र की बातों को सुन वही वृद्ध जिसने चेतावनी पत्र भिजवाने की सलाह दी थी आगे बढ़ कर राजा इन्द्र से कुछ कहने की अनुमति मांगता है। राजा द्वारा अनुमति प्राप्त होते ही वो वृद्ध बोला " महाराज निःसंदेह आप जैसा युद्ध नीति में पारंगत राजा मैंने आज तक नहीं देखा, आपकी योजना तो सटीक है। किंतु हमारे यहाँ लोगों में अंधविश्वास की कमी नहीं।
यदि हम सीधे सम्पूर्ण सेना समेत जंगल में चले जाते है। तो सैनिकों के भीतर का अंधविश्वास उनके भीतर ही रहेगा, जिसके कारण किसी अन्य कारण वश घटी घटना भी सैनिकों को अलौकिक लगेगी। और इससे हमें काफी हानि हो सकती है। इन सब परिस्थितियों से निपटने के लिए मेरे पास एक उपाय है।
वृद्ध महापुरुष के भाषण ने राजा इन्द्र को सत्य का अनुभव करा दिया। और अब राजा ने उस से उपाय पूछा तो वृद्ध बोला " महाराज कल जब हम अपनी सम्पूर्ण सेना के साथ उस जंगल की सीमा पर पहुँचेंगे तो वहाँ पर हम 1000 सैनिकों की एक टुकड़ी को पहले जंगल के भीतर भेजेंगे ताकि वो सबसे सरल और सुरक्षित मार्ग का पता लगा कर वापिस आए।
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खण्ड 3
वही दूसरी ओर गजेश्वर राज्य में आग के समान ये सूचना फेल गई। कि अब्दुल्ला राजा भानु और उसके वज़ीर नागेश्वर की हत्या करके फरार हो गया। अब लोगों में इसकी चर्चा होने लगीं की ज़रूर अब्दुल्ला की पत्नी और बेटी की हत्या में राजा का किसी प्रकार सम्बन्ध था इसलिये अब्दुल्ला ने ये कठोर कदम उठाया। वही जब युवराज इंद्र अपने धूर्त मंत्रियों के साथ वेश्यालय पहुंचे तो अपने पिता और वज़ीर की निर्मम हत्या देख कर, खुद पर काबू खो बैठे। पहले तो उसने वेश्यालय की सारी वेश्याओं को एक जगह एकत्रित करवा कर लकड़ी के खम्भों से बंधवा दिया। उसके पश्चात उनको जीवित ही अग्नि के सुपुर्द कर दिया। ये दृश्य देख कर केवल प्रजा जन ही नहीं बल्कि राजा के मंत्री भी दहशत में आ गए। सब को ये समझते देर ना लगी के राजकुमार अपने पिता के जैसा दुष्ट होने के साथ साथ सनकी भी है। ना जाने कब किस को दंडित कर दे।
उसके बाद इंद्र अपने सेनापति को बुलवा कर। उसको वसुंधरा पर आक्रमण करने की तैयारी को बोलता है। क्योंकि उसको विश्वास था कि उनके राज्य का भगोड़ा वसुंधरा में ही जा छुपा होगा।
मंत्रियों में से एक वृद्ध अनुभवी मंत्री आगे बढ़ कर बोला" यदि राजा की अनुमति हो तो ये सेवक कुछ कहना चाहता है।
इंद्र को कभी किसी ने राजा कह कर संबोधित नहीं किया था ये उसके जीवन में पहली बार था जो किसी ने उसको राजा कहा अब इसको सुन इंद्र के भीतर गर्व का गुबार फूटा जिसके प्रभाव में उसने वृद्ध को बोलने की अनुमति दे दी।
वृद्ध अपनी शालीनता और अनुभव के माध्यम से बड़े ही मीठे सुर में बोला " महाराज एक कुशल राजा अपने विरोधी को युद्ध से पहले एक चेतावनी जरूर देता है। ताकि बिना युद्ध के ही सामने वाला आत्मा समर्पण कर दे। इस से युद्ध में होने वाली हानि के बिना ही शत्रु को केवल अपने भय से ही पराजित किया जाता है। इंद्र को वृद्ध की बात में दम लगा और उसने वृद्ध को ही इस कार्य को करने के लिए कहा और साथ में ये भी बोला उनके पास विचार विमर्श करने के लिए तीन दिन का समय है। अन्यथा अपने विनाश के वो स्वयं ही कारण होंगे।
वृद्ध ने पहर भर में चेतावनी लिखवा कर वसुंधरा भिजवा दी जिसे पड़ कर राजा को भी ये मामला गंभीर लगा क्योंकि उनको नहीं पता के अब्दुल्ला ने राजा और वज़ीर की इतनी क्रूरता से हत्या क्यों कि। इसलिए उनकी नज़र में अब्दुला एक अपराधी था। वसुंधरा में अभी तक अब्दुल्ला नहीं पहुँचा था इसलिये राजा साहब अपने सलाहकारों से सलाह कर गजेश्वर राज्य के लिए संदेश भिजवाना चाह रहे थे। जिसमें वो राजा भानु की मृत्यु का दुख जाहिर करते और साथ में आश्वासन भी देते की अब्दुल्ला के मिलते ही वसुंधरा राज्य उसे गजेश्वर राज्य को सौंप देगा के तभी कुछ सैनिक दौड़ते हुए सभा में आये और युवराज नरसिम्हा के साथ घाटी घटना को राजा को बताया।
जब लोगों ने युवराज के साथ घटी इस दुखद घटना को सुना तो सभी भगवान से युवराज की सलामती की प्राथना करते है। अब राजा बड़े युवराज और कुछ सैनिकों के साथ उस स्थान के लिये निकलता है। तभी उन्हें किले के बाहर से कुछ शोर सुनाई देता है। बाहर आ कर राजा देखता है। युवराज नरसिम्हा को कोई व्यक्ति सहारा दे कर ला रहा था। घायल नरसिम्हा के पास पहुँच राजा को पता चलता है कि उसके बेटे को नया जीवन दान देने वाला व्यक्ति कोई और नहीं बल्कि अब्दुल्ला है।
असल में अब्दुल्ला गजेश्वर राज्य से भागने के बाद उन पर्वतों में जा छुपता है। और एक दिन से भी अधिक वहाँ पर वसुंधरा राज्य में प्रवेश करने के लिए भटकता रहता है। और जब वो पर्वतों की आधी से अधिक ऊंचाई पार कर लेता है। तो उसको कुछ लोगों की चीख पुकार सुनाई देती है। उस आवाज़ आती दिशा की ओर देखने पर वो अपने से थोड़ी उपर एक व्यक्ति को लटका पाता है। पर्वतों की विचित्र संरचना के कारण ना तो सैनिकों को अब्दुल्ला दिखता है। और ना ही अब्दुल्ला को सैनिक नजर आते है। बस उसको नरसिम्हा ही दिखता है। सौभाग्य से जब नरसिम्हा का हाथ दरारों से फिसला तो अब्दुल्ला ने अंतिम क्षण उसको पकड़ लिया,
इन सब को जान राजा दुविधा में पड़ जाता है। क्योंकि थोड़ी देर पहले जिसके बारे में उनके विचार गलत थे अब वैसे नहीं रहे और इस पर उनको ये भी विश्वास हो जाता है। ये कोई दुष्ट नहीं हो सकता। इसके बाद राजा अब्दुल्ला से उसका सारा वृतांत सुनते है। जिसे सुन उनको भी अब्दुल्ला के प्रति दया आती है। और वो अब्दुल्ला को गजेश्वर राज्य से आये पैगाम को दिखा कर बोलता है। " हमने अपने जीवन में कभी अन्याय का साथ नहीं दिया और आज भी नहीं देंगे फिर उस संदेश को फाड़ कर फेंक देता है।
ये देख कर अब्दुल्ला चिंतित होकर बोला" महाराज मुझ अकेले प्राणी के लिए आप इतना जोखिम न ले और वैसे भी मेरे जीवन में अब कोई मूल नहीं रहा इसलिए क्या फर्क पड़ता है। आप मुझे राजा इंद्र के पास भेज दे।
मगर राजा ऐसा करने से मना करता हुआ बोला " सवाल किसी एक व्यक्ति या एक राज्य का नहीं है। अब सवाल सत्य और असत्य का है। न्याय और अन्याय का है। उस दुष्ट के हाथों तुम्हारी मृत्यु का मतलब है। अन्याय के हाथों न्याय की हत्या और वसुंधरा राज्य कभी भी अन्याय का साथ देकर जीवित रहना स्वीकार नहीं करेगा, बल्कि इस राज्य का प्रत्येक व्यक्ति न्याय और सत्य का साथ देकर वीरगति प्राप्त कर लेना सर्वोच्चता समझेगा।
राजा की बातों ने सभासदों के भीतर देशप्रेम और सत्य की ज्वाला भड़का दी। और हर एक व्यक्ति जो उस सभा में उपस्थित था राजा की जय जय कार करने लगा। सिवाए एक को छोड़कर जो शायद इस निर्णय से सहमत नहीं था वो राजा का एक युवा मंत्री था किंतु साहस की आपूर्ति होने के कारण वो अपने विचार व्यक्त ना कर पाया। और मन ही मन कुढ़ता रहा।
वही तीन दिन तक इंद्र को वसुंधरा की ओर से जब कोई उत्तर नहीं आया तो उसने वसुंधरा पर आक्रमण करने का आदेश दिया। और जंगल के भीतर से जाने का निर्णय लिया, जिसे सुन कर कुछ अधिकारियों को बड़ा अचम्भा हुआ। वो बोलने लगे " क्या राजा इन्द्र को उस भयानक जंगल की सत्यता का ज्ञान नहीं है।
" क्या राजा इन्द्र उसकी अलौकिकता से अज्ञात है।
" क्या आप उस जंगल के भीतर के रहस्यमय किस्सों को नहीं जानते।
इन सब को सुन इन्द्र भड़क उठा और बोला " ये सारी बातें हमारे शत्रु द्वारा फैलाया एक मायावी भ्रम है। ताकि हम भय से उस जंगल के भीतर ना जाए। मुझे आप लोग ये बताओ यहाँ उपस्थित किसी भी व्यक्ति ने उस जंगल के भयंकर भ्रमों को स्वयं वास्तविकता में देखा है। इस प्रश्न ने सब के मुंह पर ताला लगा दिया। और बात भी सही थी सदियों से लोगों ने केवल इसके बारे में सुना था मगर भय के कारण किसी में भी सत्य का पता लगाने के लिए उस जंगल में जाने का कभी साहस ही नहीं हुआ।
राजा इन्द्र की बातों को सुन वही वृद्ध जिसने चेतावनी पत्र भिजवाने की सलाह दी थी आगे बढ़ कर राजा इन्द्र से कुछ कहने की अनुमति मांगता है। राजा द्वारा अनुमति प्राप्त होते ही वो वृद्ध बोला " महाराज निःसंदेह आप जैसा युद्ध नीति में पारंगत राजा मैंने आज तक नहीं देखा, आपकी योजना तो सटीक है। किंतु हमारे यहाँ लोगों में अंधविश्वास की कमी नहीं।
यदि हम सीधे सम्पूर्ण सेना समेत जंगल में चले जाते है। तो सैनिकों के भीतर का अंधविश्वास उनके भीतर ही रहेगा, जिसके कारण किसी अन्य कारण वश घटी घटना भी सैनिकों को अलौकिक लगेगी। और इससे हमें काफी हानि हो सकती है। इन सब परिस्थितियों से निपटने के लिए मेरे पास एक उपाय है।
वृद्ध महापुरुष के भाषण ने राजा इन्द्र को सत्य का अनुभव करा दिया। और अब राजा ने उस से उपाय पूछा तो वृद्ध बोला " महाराज कल जब हम अपनी सम्पूर्ण सेना के साथ उस जंगल की सीमा पर पहुँचेंगे तो वहाँ पर हम 1000 सैनिकों की एक टुकड़ी को पहले जंगल के भीतर भेजेंगे ताकि वो सबसे सरल और सुरक्षित मार्ग का पता लगा कर वापिस आए।
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