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Sci-FI Rahashyo se bhara Brahmand (completed)

ashish_1982_in

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अध्याय 3

खण्ड 6

लोगों के लिए हम्जा केवल जीवित ही नहीं था बल्कि उस शापित जंगल से सुरक्षित जीवित निकला एक लोता दैवीय पुरुष बन गया था।

नरसिम्हा अपने भाई से बहुत देर तक लिपट कर रोता रहा। किन्तु हम्जा की उस पर कोई प्रतिक्रिया ना थी मानो जंगल ने उसके भीतर की भावनाओं को नष्ट कर दिया, उसके भीतर बहुत कुछ परिवर्तित हो चुका था। नरसिम्हा अलग होते ही अपने भाई से नाराजगी जताते हुए अनेकों प्रश्न करता है। मगर हम्जा किसी का भी उत्तर दिए बिना अपने घोड़े की तरफ वापिस मुड़ा और उस लटकती पोटली को खोल कर ले आया। जिसमें युवक को किसी शिशु के होने का भ्रम था और आश्चर्यजनक रूप से उसमें एक कोमल और सुंदर तीन माह का शिशु गहरी नींद में सोया हुआ था। जिसको किसी वस्तु की भांति अपने भाई को बड़ी कठोरता से पकड़ाते हुए हम्जा बोला " आज से मेरी संतान तुम्हारी हुई। मुझे आशा है इसका पालन पोषण तुम अच्छे से करोगे। और इस बात का कभी भी इसको पता नहीं चलने दोगे के मैं इस अभागे का सगा पिता हूँ।

इससे पहले नरसिम्हा कुछ पूछता हम्जा ने उसको अपने विश्राम करने की व्यवस्था करवाने का आदेश दिया, क्योंकि वो बेहद थक चुका था।

अब नरसिम्हा में भी कुछ और पूछने का साहस न रहा। उसको भी लगा हम्जा एक लंबी अवधि तक संकटों से घिरा रहा होगा इस समय उसका विश्राम करना आवश्यक है।

कुछ सेवकों द्वारा हम्जा को एक कक्ष में भेज दिया गया, उन पांचों डाकुओं को बंधी बना कर उस युवक के हाथों कैद खाने में डलवा दिया गया। जब उन पांचों डाकुओं ने देखा कि हम्जा चला गया, तो उस युवक को मानसिक प्रताड़ना देने लगे, वो चाहते थे क्रोध वश वो युवक कोई गलती करें और उनको बंधिग्रह से भागने का अवसर प्राप्त हो।

बन्द होते ही उनमें से एक डाकू युवक की तरफ देख कर बोला " वैसे मस्त माल थी कमिनी रात भर नींद नहीं आएगी उसकी याद में।

युवक अपनी आँखों में क्रोध अग्नि को भर उसको घूरता है।

तभी दूसरा डाकू बोला " वैसे मजा तो उसको भी खूब आया पर शर्म के मारे कुछ बोल ना पाई।

इन पापियों की नीचता सारे बंधन लांघ चूंकि थी। वो ये भी नहीं सोच रहे थे जिसके बारे में वो अपशब्द निकाल रहे है। वो अब इस लोक में जीवित भी नहीं है। इस अंतिम शब्द प्रहार ने युवक को उनका वध करने के लिए प्रेरित कर दिया। और वो अपनी तलवार खिंच कर जैसे ही उनके पास बड़ा।

युवक के साथ आए सिपाही ने युवक को रोक लिया। और बड़े ही विनम्र भाव से बोला " जाने दो मित्र इन दुष्टों में और हम में एक बड़ा अंतर है। सभ्यता और अनुशासन का और हमारे देश और इसके कानून के प्रति ही हमारी निष्ठा हमें सभ्य समाज का अटूट अंग बनाती है। ये नीच तुम्हें उकसा कर तुम्हारे जरिए भागने की योजना बना रहे है। क्योंकि ये आने वाले कल से भयभीत है। तुम अधिक से अधिक उनको अभी मार कर कुछ क्षणों की पीड़ा दोगे। किन्तु इन्हें अभी जीवित छोड़ कर आने वाले कल के भय से हर क्षण झटपटा कर कष्ट भोगने पर विवश कर दोगे।

सिपाही की बातें युवक को समझ आ गई और उसने भी उनको अभी अनदेखा कर दिया।

अगले दिन तक राजा हम्जा राणा के जीवित होने की सूचना दोनों राज्य में आग की भांति फेल गई। और महल के बाहर उनसे मिलने आये हर तबके के शुभ चिंतकों की भीड़ जमा हो गई। मगर हम्जा ने किसी से भी मिलने से साफ इनकार कर दिया।

वही नरसिम्हा ने उनके प्रजा जनों में अपने बड़े भाई का प्रेम देख कर उनका दिल रखने के लिये ये बोल कर उन्हें वापिस भेज दिया। की अभी बड़े भाई साहब का स्वास्थ्य ठीक नहीं है। राज वैध ने उनको कुछ दिन विश्राम करने का निवेदन किया है। आप सबसे मेरी विनती है। ईश्वर से अपने प्रिय राजा हम्जा के लिए प्राथना करें ताकि वो जल्द से जल्द स्वस्थ हो कर आपसे मिले।

इस बात को सुन लोगों को राजा से न मिलने का दुख तो हुआ। मगर साथ में उनके स्वस्थ को लेकर लोगों में चिंता भी हुई और लोग अपने अपने घर चले गए।

वही अपने कक्ष में लेटा हम्जा जब भी आँखों को बंद कर सोने की कोशिश करता है। तो उसके कानों में ख़ौफ़नाक चीखें और आँखों के सामने कुछ दर्दनाक दृश्य किसी चलचित्र की भांति आने शुरू हो जाते है। कभी किसी स्त्री का हम्जा पर खंजर से वार करना तो कभी उसी स्त्री की गोद से अपने साथ लाए बालक को छीनने का दृश्य उसके सामने बार बार आते रहते है। जिसके चलते हम्जा एक दर्द भरी चीख निकाल कर अपने दोनों कानों पर हाथ रख कर पागलों की तरह फुट-फुट कर रोता है।

जब कोई व्यक्ति अपने मनोभावों को छिपाने में निपुण हो और किसी हादसे से ऐसे व्यक्ति के मनोभाव भी अनियंत्रित हो जाए तो सोचिए वो हादसा कितना भयंकर भय भीत कर देने वाला होगा। जिसने पर्वत जैसे कठोर हृदय बन चुके हम्जा को भी बालकों की तरह फुट-फुट कर रोने पर विवश कर दिया।

थोड़ी ही देर में हम्जा खुद को संभाल कर पुर्न कठोर रूप धारण कर सैनिकों को बुलवा कर आदेश देता है। कि दोनों राज्यों में घोषणा करवाओ कल प्राप्त काल राम लीला मैदान में उन पांचों डाकुओं को उनके घीनोने अपराधों के लिए सब के सामने दंडित किया जाएगा और प्रत्येक घर से कम से कम एक सदस्य का होना अनिवार्य है। इसका विरोध करने वाले पर राजा द्वारा सख्त करवाई होगी।

हम्जा की बात सुन सैनिकों ने उनके आदेश अनुसार ही किया और अगली सुबह लोगों की भारी तादाद राम लीला मैदान में एकत्रित हुईं।

सभी ने सोचा था अधिक से अधिक उनको कुछ कोड़े लगा कर देश निकाला मिलेगा या आजीवन कारावास। और एक तरह से लोगों के लिए ये दंड उचित भी था। किंतु अन्य दिनों से विपरीत जो भयंकर दंड उन डाकुओं को मिला उसने सब की अंतरात्मा तक को भयभीत कर दिया। इतना भयानक दण्ड वो भी हम्जा के मुख से सुनना लोगों के लिये असम्भव सा था।

सबसे पहले उन सभी की चमड़ी नोकीले तेज धार चाकू से जगह- जगह से कटवाई जिसके चलते डाकुओं को अपार पीड़ा हुई। उनमें से कुछ तो कष्ट सहन न कर पाने के कारण अचेत तक हो गए मगर हम्जा ने उनको एक विशेष जड़ी बूटी सुंघा कर उनकी चेतना शक्ति फिर से लौटाई ताकि वो और भी कष्ट भोगे।

उसके बाद एक-एक कर उनको खोलते तेल में डाला गया। जब एक डाकू खोलते तेल में डाला जाता तो अगली बारी वाला डाकू ये देख कर भयंकर मानसिक पीड़ा से गुजरता और शारीरिक पीड़ा से कई गुना अधिक मानसिक पीड़ा होती है। जो वहाँ उपस्थित प्रत्येक नागरिक भोग रहा था। जब उनमें से कुछ नागरिक इस उत्पीड़न को देखने की क्षमता के ना होने के कारण वहाँ से जाने लगें तो हम्जा ने उन्हें कठोर चेतावनी देते हुए वही पर रुकने के लिए विवश कर दिया।

जिसकी कल्पना मात्र से मनुष्य का हृदय दहल जाता है। उसको अपने सामने होते हुए देखने के लिए हम्जा ने लोगों को विवश कर उनमें अत्यंत भय पैदा कर दिया।

और शायद यही हम्जा भी चाहता था लोगों में इतना भय भर देना की कोई कल्पना में भी अपराध ना करें।

इस अमानवीय दंड क्रिया को कर हम्जा अपने कक्ष में विश्राम कर रहा था तभी इस बात को सुन बड़े ही दुखी भाव के साथ नरसिम्हा कक्ष में प्रवेश करता है। और बोला " क्षमा करें भाई साहब लेकिन आपको कोई अधिकार नहीं की हमारे पूर्वजों द्वारा बनाए संविधान और नियम के विपरीत जा कर आप अपनी अमानवीय नीति अपनाए।

हम्जा तेश में आ कर बोला " मैं उन मानवीय नीतियों को नहीं मानता जिसके चलते अमानवीय अपराधियों का जन्म हो। धिक्कार है। ऐसी नीतियों पर जिसके कारण निर्दोषों की हत्या करने वाले राक्षस जीवित घूमते रहे।

नरसिम्हा भावुक होकर बोला " भाई साहब वो जीवन किस काम का जिसको सदैव भय के साये में जिया जाए। यदि निर्दोषों की रक्षा के लिए उनको मानसिक कष्ट देकर भय से बांधे रखना हो तो क्या उनका जीवन किसी ऐसे पशु के समान नहीं हो जाएगा जिसे पिंजरे में उसकी सुरक्षा के नाम पर कैद किया गया हो।

एक सच्चा राजा प्रजा जनों में अपना भय पैदा नहीं करता बल्कि अपने प्रति प्रेम आदर और सम्मान पैदा करता है। तभी वो प्रजा प्रिय सच्चा राजा बनता है।

ये अंतिम बातें हम्जा को उसके अतीत में ले गई। जहाँ उसके मस्तिष्क के किसी कोने में वो एक सुंदरी को ये शब्द बोलते सुनता है।

" एक सच्चा राजा प्रजा जनों में अपना भय पैदा नहीं करता बल्कि अपने प्रति प्रेम आदर और सम्मान पैदा करता है।

इस बात को याद कर अब हम्जा खुद को और अधिक ना सम्हाल पाया और जंगल से वापिस आने के बाद पहली बार वो अपने भाई से हाथ जोड़ कर क्षमा मांगता है।

नरसिम्हा को भी उसके भाई की आंखों से पछतावे के मोती छलकते दिखाई देते है। और वो भी भावुक हो कर अपने बड़े भाई के गले लग जाता है। हम्जा भी अबकी बार अपने मनोभावों को दबा ना पाया और अपने भाई से चिपक कर रोने लगा।

नरसिम्हा बोला " जब तक आप अपने ऊपर टूटे दुखों का वर्णन नहीं करेंगे तब तक ये आपको भीतर से खाता रहेगा। आप एक बार विश्वास तो करो। ताकि आपका भी मन हल्का हो।

और इन बातों को सुन हम्जा अपनी आप बीती बताना शुरू करता है।

तुम्हें याद होगा किस प्रकार हमारे बाल युग में पिता द्वारा उस जंगल में ना जानें के लिए हमें बार बार कठोर चेतावनी दी जाती थी। मगर उनकी हर चेतावनी हमारे भीतर उलटा प्रभाव डालती और हमारे भीतर जंगल को देखने की जिज्ञासा को और भी अधिक बड़ा जाती थी।

प्रति उत्तर में बाल युग की किसी स्मृति को याद कर नरसिम्हा एक शरारती हँसी हंस कर अपनी सहमति देता है।

आगे हम्जा बोला " किन्तु जंगल के भीतर जाने के बाद ही मुझे उसके भयानक अंधकार का पता चला, एक समय तो ऐसा भी आया कि मेरे भीतर अनंत निराशा ने घर कर लिया और मुझे लगने लगा मेरा पूरा जीवन इस जंगल में ही कट जाएगा।

नरसिम्हा हम्जा की बात काटते हुए बोला " मैंने आपको अपनी आँखों से मृत देखा था इस बात ने अभी तक मेरे मन में एक फ़ांस सी चुभो रखी है। अब जब बातें हो ही रही थी तो मुझसे ये बोले बिना ना रहा गया बाकी बीच में टोकने के लिये क्षमा चाहता हूँ।

नरसिम्हा के प्रश्न का उत्तर देते हुए हम्जा बोला" मैं ये तो नहीं जानता तुमने किस प्रकार मुझे मरते देखा परंतु उस जंगल में रह कर इतना तो जान चुका हूँ। कि जो भी तुमने देखा था वो एक छलावा था जो उस जंगल की नकारात्मक शक्तियों का एक मायाजाल था ताकि तुम भ्रमित हो कर मान लो कि मैं मर गया और फिर मेरा पीछा ना करो।

खेर जब मैं उस घुड़सवार का पीछा कर रहा था उस समय मैं जंगल में भूल वश नहीं बल्कि जानते बुझते घुसा था। मैंने उसका पीछा करते समय इतना तो समझ लिया था कि वो घुड़सवारी में निपुण है। साथ ही चतुर भी, जिसे बिना कोई योजना के पकड़ना असम्भव है। तो जब हम एक घुमाओ दार रास्ते पर आ गए। तो मैंने उस रास्ते से उतर झाड़ियों से हो कर उसको पकड़ने का निर्णय लिया ताकि उसको आसानी से पकड़ सकूँ मगर मेरी ये चालाकी मुझ पर ही भारी पड़ गई।

जल्दी बाजी में मैं दलदल में जा धंसा, अचानक गिरने से मेरे घोड़े ने एक जोरदार चीख निकाली जिसे उस घुड़सवार ने सुन लिया वो क्षण भर के लिए रुका फिर आगे बढ़ गया। मैं जानता था यदि जल्द ही कुछ ना किया गया तो मेरा मरना तय है। इसलिए चारों तरफ नज़रों को दौड़ा कर उस दलदल से बच निकलने का कोई उपाय सोचने लगा। तभी वो घुड़ सवार मुझे वापिस आता दिखा, पास आने पर मैंने उसके हाथों में एक मजबूत बैल देखी जिस देखते ही मैं समझ गया कि मुझे मुसीबत में देख वो मेरी सहायता के लिए बेल लेने ही गया था उसको पास से देखने पर मुझे ये भी समझ आ गया कि ये कोई पुरुष नहीं बल्कि महिला है। उसने बैल का एक सिरह एक मोटे वृक्ष से बांध दिया और उसका दूसरा सिरा मेरी और फेंक कर वहाँ से निकल गया। ताकि मैं उसको कोई हानि न पहुँचा सकूँ। इससे दो बात साफ हो गई थी। पहली वो एक । सद्भावना रखने वाली स्त्री थी दूसरी उसको मुझ पर रत्ती भर का भी विश्वास नहीं था नहीं तो वो मेरे प्राणों की रक्षा कर मुझसे मिलने के लिए अवश्य रुकती। उसके इस उपकार ने उससे मिलने की मेरी इच्छा शक्ति को और भी अधिक कर दिया और साथ में इस बात की भी ग्लानि होने लगी के वो मेरे ही भय के कारण इस जंगल में घुसी थी। यदि उसके साथ कुछ भी गलत हुआ तो उसका पाप मेरे सर है।

मैंने ठान ली उस घुड़सवार को सही और सुरक्षित इस जंगल से निकाले बिना मैं घर वापिस नहीं जाऊंगा।

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ashish_1982_in

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अध्याय 3

खंड 7

लगभग कोस भर की दूरी तय कर हम्जा को उस स्त्री का घोड़ा मिला, जो अब जीवित नहीं था उसकी मृत्यु बड़े ही निर्दयता से उसकी गर्दन मरोड़ कर की थी। जिसके लिए अपार बल की आवश्यकता थी। ये देख कर हम्जा को चिंता और भय ने घेर लिया। हम्जा को उस स्त्री की चिंता होने लगी। साथी उस का भय भी था जिसने घोड़े की गर्दन को मरोड़ा, क्योंकि जो घोड़े की गर्दन को मरोड़ सकता है। उतना अधिक बल रखने वाले को मारना हम्जा की क्षमता से बहार था।

हम्जा अजीब कशमकश में फंसा उस स्त्री को खोजने लगा, साथ ही कही से हमला ना हो इसके लिए भी सतर्कता बरत रहा था।

तभी उसकी नज़र एक विशाल वृक्ष पर पड़ी, जिसके आड़ में छुपती उस स्त्री की झलक हम्जा को दिखी, उसे देख कर हम्जा थोड़ा असावधान हो गया था। वो स्त्री की ओर बड़ा तभी उस स्त्री ने हम्जा पर धोके से एक नोकीले तेज खंजर द्वारा सीने पर वार कर दिया।

जब उस ने हम्जा को देखा तो वो घबरा गई उसको देख कर स्पष्ट था कि उसने हम्जा के होने की अपेक्षा नहीं कि थी।

पर अब वार हो चुका था स्त्री इस पर कोई प्रतिक्रिया देती उससे पहले कोई दैत्य आकार राक्षस उसके बालो को अपने हाथों से पकड़ कर खिंचने लगा। वो भीमकाय आकर का था जिसके सर पर दो सींग भी थे उसके जबड़ों से राल टपक रही थी। उसका पंजा स्त्री के सर से भी दुगना था।

स्त्री की दयनीय स्थिति ने हम्जा के भीतर कर्तव्य की असाधारण शक्ति का विकास कर दिया। वो अपनी पूरी ताकत के साथ खड़ा हुआ। और उस विशाल राक्षस पर अपनी तलवार से एक जोरदार प्रहार किया। मगर उस राक्षस की चमड़ी बड़ी विचित्र थी जैसे पत्थर हो इसलिये तलवार के प्रहार से उसको एक खरोंच तक नहीं आई, उलटा उस तलवार की धार खुदड़ी हो गई। राक्षस को हम्जा के वार से क्रोध आ गया। उसने स्त्री को छोड़ कर हम्जा की गर्दन एक हाथ से दबोच ली और फिर हम्जा को उसी हाथ से उठाने लगे। उस राक्षस की मजबूत पकड़ के कारण हम्जा से सांस नहीं ली जा रही थी हम्जा को कुछ सुझा नहीं तो उसने अपने सीने में लगे खंजर को निकाल कर एक और बार असफल प्रहार किया जो इस बार चमत्कारी रूप से सफल हुआ। हम्जा ने तेजी से उसके कानों में खंजर को घोंपा और निकाल लिया। जिससे उस राक्षस को पीड़ा होने लगी और उसने हम्जा को एक ओर फेंक दिया। हम्जा को लगा जरूर इस राक्षस की कमजोरी उसका सर है। और इसी को मान कर उसने पास के एक वृक्ष पर फुर्ती से चढ़ कर उस राक्षस पर एक छलांग लगाई और उसके सर को अपना लक्ष्य साधा तभी वो राक्षस हम्जा को देख कर वहाँ से हटा और हम्जा का लक्ष्य चूक गया और उस राक्षस के सर की जगह उसका सीना सामने आ गया।

मगर ये क्या हम्जा का खंजर इस बार उसके सीने में भी जा धसा और हम्जा खंजर की तेज धार और अपने वज़न के बल से उस खंजर को झटका दे कर नीचे खिंच कर ले आता है। जिसके कारण राक्षस के सीने से पेट तक एक बड़ा सा चीरा लग गया।

और उसका सारा रक्त हम्जा के ऊपर आ गिरा वो तो शुक्र था ईश्वर का की राक्षस के मरते ही वो हम्जा के ऊपर नहीं गिरा बल्कि उसके विपरीत गिरा जहाँ। अब तक हम्जा के घाव से भी काफी रक्त बह गया था। जिसके कारण बिना किसी चेतावनी के वो भी मूर्छित हो कर धरती पर गिर पड़ा।

जब हम्जा को होश आया तो वे खुद को झाड़ियों से बनी अस्थायी झोंपड़ी में पाता है। जिसको शायद उस स्त्री ने ही बनाया था उसके शरीर पर ऊपरी वस्त्र भी नहीं थे और चेहरे पर गिरा रक्त भी साफ किया जा चुका था उसके घाव पर कुछ जड़ी बूटियों को मकड़ी के जालो की सहायता से चिपकाया हुआ था। इन सब को देख कर हम्जा को समझते देर ना लगी कि ये सारी व्यवस्था उस कन्या द्वारा ही कि गई होगी।

थोड़ी देर बाद हम्जा को झोंपड़े के बाहर किसी की आहट सुनाई दी तो हम्जा वहाँ से बाहर आ कर देखता है। वो युवती भोजन की व्यवस्था कर रही थी।

अब तक जब भी हम्जा का उस युवती से सामना हुआ वो अजीब हालातों में था जिसके कारण वो युवती के सौंदर्य को ढंग से देख ही नहीं पाया, मगर अब वो एक नए रूप का अनुभव कर रहा था। उस स्त्री की सुंदरता सच में अत्यंत मनमोहक थी जिसके समक्ष संसार की कोई सुंदरी न टिक पति। हम्जा भी उसकी सुंदरता और उसके दया भाव का प्रेमी हो गया था। न जाने क्यों उस स्त्री के प्रति उसका मन एक प्रेमी की भांति चंचल होने लगा, उस सुंदरी को किसी के अपने पीछे खड़े होने का एहसास हुआ और झट से खड़ी हो कर अपनी तलवार एक कुशल योद्धा की तरह हम्जा की गर्दन पर ला रोकती है। और अगले ही क्षण हम्जा को देख कर तलवार पीछे कर लेती है। फिर बिना कुछ बोले अपने काम में दोबारा लग गई।

" मैं कितने समय से मूर्छित हूँ। हम्जा आदरपूर्वक पूछता है।

" दो दिनों से, युवती बेरुखी से बोली।

" यानी आप पिछले दो दिनों से मेरे लिए कष्ट उठा रही हो। भगवान ने आपको बाहरी और भीतरी दोनों प्रकार की सुंदरता प्रदान की है। मैं आपके उपकारों का आभारी हूं। वैसे मैं वसुंधरा राज्य का नरेश राजा हम्जा राणा हूँ और आपका परिचय।

इससे आगे हम्जा और कुछ बोल पाता उस से पहले वो कन्या क्रोधित हो कर फुर्ती से हम्जा की गर्दन पर अपना खंजर लगा कर तीखे स्वर में बोली " मैं गजेश्वर राज्य के महा नायक और तुम्हारे शत्रुघ्न स्वर्गवासी राजा भानु उदय की तुम्हारे कारण एक लोती बची संतान अम्बाला हूँ। माना मेरे पिता द्वारा कई पाप हुए लेकिन उससे अधिक बड़ा पाप मुझसे हुआ जो अपने पिता के शत्रु और अपने भाई के हत्यारे पर दया की, किन्तु अब मुझमें और अधिक धैर्य नहीं है। जो मैं तुम्हारी बकवास को सुन सकूँ। तो तुम्हारे लिए यही सही होगा कि आज और चुप बैठो नहीं तो सदैव के लिए चुप्पी साध लोगे, कल तक तुम खुद की देखभाल करने योग्य हो जाओगे उसके बाद मैं अपने रास्ते और तुम अपने रास्ते,

ये सब बोलते समय भले ही उसके मुख पर क्रोध था मगर उसकी आँखों मे एक अजीब सी चमक थी जो उसके मन का भेद किसी ओर ही रूप को दर्शा रही थी जो हम्जा से न छुप सका।

असल में अम्बाला के भीतर भी हम्जा के प्रति एक आकर्षण पैदा हो गया था जो अम्बाला को हम्जा से भी अधिक भय दे रहा था। वो डर रही थी कही उसको हम्जा से प्रेम न हो जाए, इसलिये खुद को बार बार इस बात को याद कराती की हम्जा कौन है। और सदियों से उन दोनों के परिवारों के संबंध क्या है।

इसी बीच हम्जा के मधुर शब्द उसके कानों पर पड़े जिससे उसका खुद पर से नियंत्रण जाने सा लगा। और वो इस अपेक्षा में हम्जा की गर्दन पर नोकीला खंजर रख कर उसको कठोर वचन सुनाती है। कि इसके बाद हम्जा शांत होकर बैठ जाएगा और वो आसानी से खुद पर नियंत्रण कर लेगी।

लेकिन इसके विपरीत हम्जा खुद के प्राणों का समर्पण अम्बाला के चरणों पर करता हुआ बोला " यदि तुम्हारे समक्ष मेरा मूल्य केवल तुम्हारे भाई के हत्यारे जितना है। जिसके प्राण हर तुम्हारे भीतर सुख पैदा होगा, तो इससे अधिक सौभाग्य की बात मेरे लिये और कोई नहीं हो सकती कि मेरे प्राण तुम्हारी प्रसन्नता के लिए तुम्हारे द्वारा निकाल लिए जाए।

हम्जा की बातों ने अब अम्बाला को पूरी तरह से खोल दिया और वो जान गई कि केवल वही नहीं हम्जा भी उससे उतना ही प्रेम करता है। वो हम्जा के गले लग गई। और ऐसा करने से वो खुद को ना रोक पाई। इसके बाद दो पवित्र प्रेमियों का मिलन हुआ। जिनका मिलना भाग्य ने पहले से रच रखा था जिनका मिलना प्रकृति का एक कल्याण मार्ग था। जिनके मिलने पर भविष्य के संसार की सुरक्षा का भार था।

उनका मिलन एक पवित्र मेल था जिसमें दो पावन आत्माओं का संगम हुआ।

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अध्याय 3

खंड 8

हम्जा अपनी आप बीती नरसिम्हा को सुना ही रहा था, तभी महल में भगदड़ सी मच गई। नरसिम्हा और हम्जा ने कक्ष से बाहर निकल कर देखा तो कोई भयानक सूरत का व्यक्ति अब्दुला की हत्या करके भाग रहा था। हम्जा ने जब ये दृश्य देखा तब तक वो व्यक्ति लगभग भाग निकला था हम्जा उस व्यक्ति को कुछ क्षणों के लिए गोर से देखता है। और वो कहाँ से जाने वाला है। उसका अनुमान लगाता है। फिर एक अलग ही रास्ते पर हम्जा भागने लगा शुरू में तो किसी की समझ में नहीं आ रहा था हम्जा कर क्या रहा है। लेकिन जब हम्जा उससे पहले उस अज्ञात हत्यारे की आने वाली जगह पर पहुँच कर उसको पकड़ लेता है। तो वहाँ मौजूद प्रत्येक सदस्य के लिये ये बड़ा ही अद्भुत और अविश्वसनीय नज़ारा बन गया। हम्जा उस व्यक्ति को पकड़ कर देखता है। उसकी आँखों की पलकें कटी हुई है। और उसके चेहरे पर कई छोटे छोटे घाव के निशान है। जो अब भर चुके थे।

ये वही सैनिक था जिस से जानकारी निकालने के बाद अब्दुला ने उसकी पलकें काट कर जंगल में बांध कर छोड़ दिया था और वो किसी प्रकार बच निकला हम्जा अब्दुल्ला की पूरी कहाँनी जानता था इसलिये उसने भी पहचान लिया ये कौन है। और हम्जा अपने दोनों हाथों से ही उस की खोपड़ी को पिचका देता है। जैसे कोई फल को पिचका कर तोड़ देता है।

हम्जा की ये ताकत मानव शक्ति से अधिक थी। जिसे देख कर विश्वास करना कठिन था पर अपनी आँखों से देख कर हर एक को समझ आ गया की जो हम्जा जंगल में घुसा था बाहर निकला हुआ हम्जा उससे कई गुना अधिक बलवान है।

सौभाग्य से उस के वार से अब्दुला मरा नहीं उसकी साँसे अभी भी चल रही थी। जिस पर तुरंत प्रतिक्रिया दिखाते हुए राज वैध को बुलवाया गया और उसके द्वारा अब्दुला की चिकित्सा होने लगी।

इसके बाद हम्जा स्नान करने गया। और वापिस आकर हम्जा और नरसिम्हा की एक बार फिर बैठक होती है।

हम्जा अपनी बात शुरू करने की जगह किसी बात की सोच में पड़ गया। जिस पर नरसिम्हा बोला " भाई आप किस विषय मे इतने अधिक चिंतित हो जो बस उसी के बारे में सोच रहे हो।

हम्जा " बिना भीतरी सहायता के वो हत्यारा महल में प्रवेश नहीं पा सकता था। जो एक गंभीर चिंता का विषय है।

नरसिम्हा " मुझे हमारे लोगों पर पूरा विश्वास है भाई, उसका महल में घुसना केवल एक संयोग और थोड़ी असावधानी का परिणाम था जिसके लिए मैंने महल की सुरक्षा भी बड़ा दी है। आप निश्चिंत रहे।

हम्जा " ईश्वर करें तुम्हारा अनुमान सही हो। मगर हमें सावधान रहना होगा।

नरसिम्हा " आप व्यर्थ में चिंता कर रहे है। अब यहाँ हमारा कोई शत्रु जीवित नहीं बचा।

अपने छोटे भाई की बात सुन कर हम्जा एक लम्बी सांस खिंच कर अपनी कहाँनी फिर से सुनाने लगा।

" उस रात हमारा मिलन केवल दो जिस्मों का मिलन नहीं था बल्कि दो आत्माओं का मिलन था जिसमें दो आत्माओं को पवित्रता प्राप्त होती है। उस रात जब हम सो रहे थे तो राजकुमारी अम्बाला एक भयानक स्वप्न देख कर जोर से चीखती हुई उठ बैठी। उनकी चीख ने मेरी नींद भी भंग कर दी। उस स्वप्न को देख कर राजकुमारी अम्बाला जोर जोर से हांफ रही थी। मेरे शांत करने पर उन्होंने मुझे अपनी निशानी के रूप में वो खंजर दिया जिस से उन्होंने मेरे ऊपर वार किया था और उस खंजर को वो खुद से अलग नहीं करती थी। मेरे पूछने पर उन्होंने बताया कि कोई उन्हें स्वप्न में मुझसे दूर ले जा रहा था। ये बोलते समय वो इतनी डर गई थी कि भावुक होकर रोने लगी और मुझसे वचन लिया कि अब से मैं उनको कभी भी नहीं छोडूंगा। उनको शांत करने के लिए मैंने भी वचन दिया और उनको सुला दिया।

सोने से पहले उन्होंने ये भी बताया कि उनकी माता उनके पिता द्वारा किए अत्याचारों के सदैव विरुद्ध रहती थी और अपने पति से बार-बार कहती " एक सच्चा राजा प्रजा जनों में अपना भय पैदा नहीं करता बल्कि अपने प्रति प्रेम आदर और सम्मान पैदा करता है। तभी वो प्रजा प्रिय सच्चा राजा बनता है।

इतना सुन नरसिम्हा बीच में बोल पड़ा " इसलिए आप को मेरे द्वारा कही इस बात ने इतना प्रभावित किया कि आप सब कुछ बताने लगे।

हम्जा " हाँ,

अब हम्जा आगे बोला

" उसके बाद मेरी आँख सीधा अगली सुबह खुली, वो सुबह मेरे जीवन की सबसे भयानक सुबह थी। मैंने अपने पास से राजकुमारी अम्बाला को गायब पाया, जिसके कारण मेरा मन विचलित हो उठा मैंने जल्दी से आस पास राजकुमारी अम्बाला को ढूंढना शुरू किया। मैं पागलों की भाँति इधर से उधर दौड़कर राजकुमारी अम्बाला को ढूंढता रहा। लेकिन वो न मिली। मैं भीतर से तड़प रहा था। जैसे बिना पानी की मछली, मुझे इतना तो विश्वास था कि अम्बाला मुझे खुद से छोड़ कर नहीं जा सकती, और न ही ये काम किसी जंगली मांसाहारी पशु का है। क्योंकि वहाँ पर किसी भी पशु के कोई चिन्ह नहीं थे। इसलिये ये तो स्पष्ट था उनका किसी ने अपहरण किया है। इसलिए उन्हें खोज कर निकाल लेने का निर्णय ले कर में वहाँ से आगे निकल पड़ा।

मैं समझता था उस जंगल में केवल अलौकिक शक्तियों, दानवों और कुछ वन जीव जंतुओं का वास है। मगर मेरी ये सोच उस समय गलत सिद्ध हुई जब अम्बाला की खोज में चलते-चलते मैं एक आदिवासियों के कबीले तक जा पहुंचा।

वो कबीला बड़ी अजीब भाषा बोलता था जो हमें नहीं आती। एक बार मुझे लगा हो सकता है। किसी कारण वश या धोखे से ये लोग अम्बाला को ले आये हो। तो मैं उनके कबीले में चुपके से घुसपैठ कर अम्बाला की खोज करने लगा। मगर दुर्भाग्य से अम्बाला मुझे वहाँ पर भी न मिली मैं बेहद निराश हो कर वहाँ से लौट ही रहा था कि तभी एक कबिलेवासी कि नज़र मुझ पर पड़ गई। और उसने शोर मचा दिया। जिसको सुन मेरे चारों और बंदरों की तरह वृक्षों पर उछल कूद करते हुए सैकड़ों आदिवासी जमा हो गए मेरे भागने का कोई मार्ग नहीं बचा। मैं चाहता तो उनमें से कइयों की हत्या या घायल कर वहाँ से भाग सकता था पर मेरे मन ने इस विचार को त्यागना ही सही समझा और मैंने खुद आत्मा समर्पण इस इरादे से कर दिया शायद वो मुझसे बात कर मेरी समस्या समझ जाए पर उन्होंने मेरे समर्पण के बाद देखते ही देखते बड़ी तेजी से मुझे एक लकड़ी के तख्ते से बांध दिया। और एक दूसरे को पकड़ाते हुए ले जाने लगे। जैसे कई चींटियों का झुंड अपने भोजन को एक दूसरे की सहायता से आगे धकेलता जाता है।

मैं उस समय अपनी आत्मसमर्पण वाली बात पर बहुत पछताया।

थोड़ी देर में वो मुझे इसी प्रकार सरकाते-सरकाते पास की एक पहाड़ी की चोटी पर ले गए। वैसे तो वो चोटी इतनी अधिक उची नहीं थी। पर वहाँ से सर के बल गिरने वाले कि मृत्यु निश्चिंत थी।

मैं उनसे बार बार बोल कर ये समझाने की कोशिश करता मैं वसुंधरा का राजा हूँ। पर उनको मानो इन सब से कोई फर्क ही नहीं पड़ता। और फिर वो लोग चोटी पर पहुंच कर अपने सीने पर बंदरो की तरह हाथ मार कर जोर जोर से चिल्लाने लगे। उन्हें देख कर लगता जैसे कोई अनुष्ठान की क्रिया हो।

थोड़ी देर में उनके कबीले का कोई वृद्ध व्यक्ति एक झोंपड़ी से बहार निकला और धीरे-धीरे मेरी ओर आने लगा।

कबीले के अन्य सदस्य झुक कर उसका आदर सत्कार कर रहे थे जिससे साफ था कि वो कबीले का सरदार है। मैं एक बार और चीखा इस उमीद से की शायद वो भाषा जनता हो पर मैं कुछ बोल पाता उससे पहले एक आदिवासी ने मेरा मुंह कपड़े से बंद कर दिया। अब वो वृद्ध मेरे पास आया और कुछ मन्त्र पड़ने लगा। फिर हमारी भाषा में जोर से चिल्ला कर बोला। है ईश्वर इस जन्म के इस पापी की आत्मा को स्वीकार कर अगले जन्म में स्वच्छ करके भेजना।

मुझे अपने जीवन के अंत का विश्वास हो गया था। कि तभी उस वृद्ध की नज़र मेरे ऊपर पड़ी और मुझे देख कर उसके चेहरे का रंग उड़ गया। उसने अपने लोगों से अपनी भाषा में क्रोधित हो कर कुछ बोला और फौरन मुझे नीचे उतरवाया मैं इन सब से बड़ा हैरान था, और ये सब क्या हो रहा है ये समझने की कोशिश कर रहा था। तभी जैसे ही में मुक्त हुआ वो वृद्ध बड़े ही प्रसन्नता के भाव दिखाता हुआ बोला " ओ मेरे प्रिय मित्र हम्जा ये तुम हो।

और मुझसे इतनी प्रसन्नता से गले मिला जैसे कोई वर्षों पश्चात अपने प्रियजनों से मिलता है।

उस समय तो मेरे आश्चर्य की कोई सीमा न रही। और मैंने उसी समय पूछ डाला क्या हम पहले कभी मिले है।

उसने बोला " नहीं…. पर मैं आपसे बचपन में मिला था।

मेरी समझ में कुछ नहीं आया और मेरे मन के भावों को देख कर वृद्ध समझ गया मैं दुविधा में हूं। इस पर वो बोला " आप ज़्यादा चिंतित ना हो आज रात चांद की पहली तारिक़ है। उस समय आपके सभी सवालों के जवाब आपको मिल जाएंगे तब तक आप हमारे अतिथि बनकर कुछ भोजन कर ले।

मैंने उस वृद्ध की बातों को मान लिया।

भोजन करते समय मैंने उनसे पूछा " आज जो मेरे साथ अनर्थ होते-होते बचा था वो सब क्या था।

वृद्ध बोला " जब भी हम कबीले में किसी को चोरी करते पाते है। तो अपने देवता को उसकी बली चढ़ाते है। ताकि अपने अगले जन्म में वो एक शुद्ध आत्मा के साथ जन्म ले।

इस को सुन मैं मन ही मन ईश्वर का धन्यवाद करने लगा कि उसने मुझे आज एक नया जीवन दान दिया है।

फिर मैंने उस से पूछा कि कबीले के अन्य सदस्यों के मुकाबले आप हमारी भाषा कैसे जानते है। तो उसने बताया कि उस कबीले के मुखिया को उसके पिता द्वारा कई भाषाओं का ज्ञान दिया जाता है। जब तक अगला मुखिया सभी भाषाओं को नहीं सीखता वो मुखिया नहीं बनता।

जल्द ही रात हुई और वो वृद्ध मुझे एक अन्य पहाड़ी की चोटी पर ले गया जो पहली पहाड़ी से 10 गुना अधिक उची थी और बोला " महाराज यदि आपको अपने जीवन की पहेलियों को सुलझाना है। तो इस पहाड़ी से आपको इसी समय कूदना होगा।

उसकी इस बात पर मैं चोंक गया और पहाड़ी से नीचे झांकने लगा तो कई मानव कंकाल मुझे नीचे पड़े दिखे।

मैं तुरंत पीछे हटा और बोला " क्या आप सठिया गए हो यहाँ से कूदने के बाद मैं कभी जीवित नहीं बचूंगा।

वृद्ध " विश्वास करें ऐसा कुछ नहीं होगा।

हम्जा " कैसे बोल सकते हो कुछ नहीं होगा। नीचे पड़ा वो मानव कंकालों का ढेर कैसा है।

वृद्ध " वो ढेर उन लोगों का है। जो अपने सवालों का जवाब चाहते थे।

हम्जा " यानी वो सब भी उसी कारण से मरे है जिस के लिए तुम चाहते हो मैं भी यहाँ से कूद जाऊँ।

वृद्ध " महाराज वो लोग अपनी मर्जी से यहाँ से कूदे थे। और वो चुने हुए नही थे उन्हें लगता था वो चुनें हुए है।

हम्जा " तो आपके हिसाब से मैं चुना हुआ हूँ।

वृद्ध " जी हाँ।

हम्जा " किसने कहा आपसे।

वृद्ध " आपने

हम्जा " मैंने...? मैंने कब कहा।

मेरी इस बात को सुन कर वृद्ध अपने हाथों में बंधा एक विशेष मोती मुझे दिखाने लगा। और जानते हो नरसिम्हा वो मोती कौन सा था ये वही मोती था जो हमारे यहाँ राज गद्दी पर बैठा व्यक्ति अपने अगले राज गद्दी के वारिस को देता आया है।

नरसिम्हा आश्चर्य से बोला " पर ये मोती तो पूरे संसार में केवल एक ही है। जो कि केवल हमारे वंश के उत्तराधिकारी के पास होता है।

हम्जा बोला " इसी प्रकार से मैं भी आश्चर्य मैं पड़ गया, और उसके मोती को एक हाथ में लेकर अपने मोती से मिलाने लगा तभी उस वृद्ध ने मुझे धक्का दे दिया।

यूँ अचानक गिरते समय मेरी पीठ धरती की ओर थी और मुंह आकाश की ओर जिसके कारण मैंने अपने जीवन का सबसे सुंदर और विचित्र दृश्य देखा,

मेरे गिरने की गति सामान्य से काफी धीमी थी और मैं आसमान में तेजी से होते परिवर्तन को देख पा रहा था जिसमें प्रति क्षण दिन और रात होती जाती सूर्य अपनी सामान्य दिशा के विपरीत जाता दिखता। आस पास के कुछ वर्ष पुराने वृक्षों को छोटा और फिर अंकुर में परिवर्तित होते देखा मेरे नीचे गिर कर मरे लोगों के कंकालों पर वापिस मांस चढ़ते और उनको गिरने की दिशा के विपरीत जा कर पहाड़ी की चोटी पर पहुँचते देखा। वो सारा दृश्य ऐसा था जैसे समय वापिस जा रहा हो।

और फिर मैं बड़े ही धीमी गति में धरती पर आ कर गिरा और मेरे गिरते ही सब कुछ सामान्य हो गया। पर अब वहाँ पर वो कंकाल नहीं थे जो मैंने देखे थे।

ना ही आस पास के वो वृक्ष थे जो कुछ दशक प्राचीन थे यहाँ तक कि वो वृद्ध भी अदृश्य हो गया था और इस समय दिन निकला हुआ था अब मेरे पास दो मोती हो गए थे।

*****
 

Hero tera

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अध्याय 3

खंड 9

उस जगह से उठ कर हम्जा आगे बढ़ा वो इस बात से अंजान था कि वो किस युग में आ पहुँचा है।

वो किसी प्रकार के चिन्ह की खोज में या किसी व्यक्ति के मिलने की आशा में मिलो पैदल चलता रहा अंत में संध्या के समय अचानक तेज बरसात शुरू हो गई। हम्जा खुद को सुखा रखने की कोशिश में एक गुफा में जा घूंसा, उस गुफा में जाने से पहले हम्जा को गुफा से मध्यम रोशनी दिखी थी। जिसका सीधा सा मतलब था कि उस गुफा में कोई मनुष्य है। जिसने वो रोशनी की हुई है।

मगर उस गुफा में घुस कर हम्जा ने पाया वो गुफा काफी विशाल है। और उसके शुरुवाती हिस्से में कुछ मशालें लटकी थी।

जिनमें से एक मशाल हम्जा ने उठा ली।

हम्जा ने देखा जहाँ तक मशाल की रोशनी जाती है। गुफा उससे भी कई गुना अधिक लंबी है। उसकी रोशनी की क्षमता के बाहर गुफा में गुप अंधेरा और ख़ौफ़नाक सन्नाटा था।

हम्जा गुफा में आगे बढ़ा तो उसको दीवारों पर अजीब ओ गरीब चित्रकारी दिखी जिसमें कोई दो मुंह वाला विशाल राक्षस है। जो गाँव के गाँव तबाह कर रहा था।

आगे चल कर उसने देखा कि चित्रकारी द्वारा दर्शाया गया था कि कुछ गाँव वाले उस राक्षस से समझौता कर लेते है। जिसके चलते वो हर सातवीं रात एक बच्चे की बलि देते दिखाए गए है। फिर ये सिलसिला एक परंपरा सा बन गया और कई दशकों से वहाँ के निवासी बच्चों की बली देते आ रहे है। ताकि उनके गांव सलामत रहे।

इस चित्रकारी को देखने में हम्जा इतना मगन था कि उसका ध्यान आगे पीछे बिल्कुल नहीं था तभी उसका पैर किसी चीज़ पर पड़ा जो टक की आवाज़ करके चटक गई। हम्जा ने उसको उठाया और देखा तो वो एक बाल मानव के हाथ की हड्डी थी। उसे देख कर हम्जा अपनी मशाल से धरती पर रोशनी करता है। तो उसको और भी ऐसे अवशेष मिले जो किसी बच्चे के थे। वो उसी दिशा में आगे बढ़ता चला जाता है। उन बाल कंकालों की संख्या भी बढ़ती जाती है। अंत में वो ऐसी जगह आ पहुँचा जहाँ पर वो दैत्य सो रहा था उसकी गर्म साँसे इतनी तेज थी कि हम्जा को दूर से ही महसूस हो रही थी। हम्जा वहाँ से निकलने में ही अपनी भलाई समझ कर मुड़ता है। तभी उसको किसी बालक की सिसकियों की आवाज़ आती है। हम्जा उस दिशा में अपनी मशाल करता है। तो एक नन्हा 5 वर्षीय बालक वहाँ डरा सहमा बैठा रो रहा था। जिसे देख कर किसी को भी उसकी हालत पे दया आ जाती उसके चेहरे से स्पष्ट था कि वो जनता है। उसको यहाँ क्यों छोड़ा गया है। और वो अत्यंत भय के बावजूद भी वहाँ से भाग नहीं रहा था जो इस बात को प्रमाणित करता है। कि उस बच्चे ने इस प्रकार मरना अपना भाग्य मान लिया था।

हम्जा के लिए उसको देख कर अनदेखा करना असंभव था। वो उन लोगों में से नहीं था जो खुद की मृत्यु के भय से किसी अबोध बालक की बली चढ़ाता, बल्कि वो उन साहसी वीरों में से था जो किसी अज्ञात अबोध बालक के लिए स्वयं का भी निःसंकोच बलिदान कर देते है। उसने एक गहरी सांस ली और उस बालक की ओर धीरे धीरे कदम बढ़ाए। अपनी ओर आते व्यक्ति को बालक ने बड़ी अचरज से देखा जैसे पूछ रहा हो क्या तुम इस दैत्य राज से भय नहीं खाते।

हम्जा बालक को इशारों में अपनी गोद में आराम से आने के लिए कह कर अपने हाथ खोलता है। जिसे देख कर बालक को लगा मानो कोई देवता उसको जीवन दान देने आए है। जो आशा उसके सगे माता पिता ने उसको नहीं दी वो आशा उसको हम्जा द्वारा दी जा रही थी। जीवित रहने की आशा।

बालक ने इस सुंदर अवसर को दोनों हाथों से पकड़ लिया और हम्जा की गोद में इस प्रकार कस कर जा बैठा की अब उसको कोई भी शक्ति इस महापुरुष से अलग नहीं कर सकती। हम्जा बालक को गोद में लेकर धीरे धीरे उस जगह से आगे बढ़ने लगा। और उसी बीच फिर से उसका पैर एक कंकाल पर जा पड़ा जिसके कारण उस शांत और भव्य गुफा में वो ध्वनि गूंज उठी और इसी के साथ उस दैत्य की आंखें भी खुल गई।

किसी हाथी के समान कद और चीते के समान सडोल शरीर रखने वाला वो दैत्य जिसके चार पशु की भांति पैर और मनुष्य कि भांति दो हाथ थे। उसके दो मुख थे एक बाज की आकृति का रूप था मगर विशाल दूसरा किसी भेड़िया का रूप दर्शा रहा था। दोनों ही मुंह अपने भोजन को जाता देख भयंकर गर्जन करने लगे जो शायद उसकी ओर से एक चेतावनी थी। हम्जा ने उस चेतावनी को अनदेखा कर दिया। और उस बालक को तेजी से ले कर भागा मगर अपने फुर्तीले शरीर की सहायता से वो दैत्य दो छलांगो में ही हम्जा के आगे आ कर खड़ा हो गया। और फिर से एक अंतिम चेतावनी के रूप में गर्जन करी। जिस पर हम्जा ने बच्चे को धीरे से नीचे उतारा। ये देख कर दैत्य को लगा शायद हम्जा उसकी बात समझ गया है। और वो थोड़ा सा रास्ता छोड़ कर खड़ा हो गया जैसे कह रहा हो केवल तुम्हें जाने की अनुमति है। इस बालक को नहीं। उसके द्वारा छोड़े रास्ते को देख कर हम्जा ने तेजी से अपनी तलवार निकाली और उस दैत्य के ऊपर वार करते समय चिल्ला कर बालक से बोला भागो...

मगर सब व्यर्थ गया दैत्य की फुर्ती इतनी अधिक थी की उसने पहले अपने मुंह से हम्जा को धकेला फिर उस बालक पर अपनी धार दार चोंच से वार कर उसको दीवार पर दे मारा बालक के सुंदर मुख पर उस की चोंच से एक गहरा घाव पड़ गया और दीवार पर सर टकराने के कारण वो बालक मूर्छित हो कर गिर पड़ा।

दैत्य द्वारा दो बार की चेतावनी को अनसुना करता देख दैत्य को अब हम्जा पर क्रोध आ गया और अब वो हम्जा को भी जीवित नही छोड़ना चाहता था।

हम्जा ने भी देखा कि उस जंगल के राक्षस की ही भाँति तलवार का वार इस दैत्य पर भी व्यर्थ सिद्ध हुआ तो हम्जा ने वो खंजर निकाला जिसे उसकी प्रिय ने दिया था और जिससे वो पहले भी एक राक्षस का वध कर चुका था। उस खंजर के तिलिस्म पर पूरा विश्वास कर हम्जा एक और बार पूरी शक्ति से वार करता है।

पर ये क्या इस बार इस खंजर का भी वार तलवार की भांति निष्क्रिय रहा। और इस बार जब दैत्य ने पलट वार किया तो हम्जा के हाथों से वो खंजर भी छूट कर दूर जा गिरा और हम्जा ये देख कर उस खंजर को उठाने भागा पर पीछे से दैत्य ने हम्जा पर एक और वार कर उसको दूसरी दिशा में धकेल दिया।

हम्जा इस बात से परेशान हैरान की खंजर का तिलिस्म काम क्यों नहीं किया। कि तभी उसको सब कुछ समझ आ गया। कि असली तिलिस्म खंजर में नहीं उसके रक्त में है। जो राक्षसों और दैत्यों के लिए किसी तेजाब समान है।

तभी उस समय जब खंजर पर उसका रक्त था वो भी तिलिस्मी हो गया था और जब उसने खंजर को धो कर साफ किया तो उसका तिलिस्मी रक्त उस से साफ हो गया।

इस बात को जांचने के लिए हम्जा अपने सीधे हाथ की उंगली पर इतनी जोर से काटता है। कि उसमें से रक्त बहने लगा। तभी वो दैत्य हम्जा को पीछे से पकड़ अपने हाथों से उठा कर अपने मुंह के पास खाने के लिए लाता है। हम्जा अपने रक्त को दोनों हाथों में मल दोनों हाथों को उसकी आँखों में घुसा देता है। अब उसकी चार में से दो आंखें फुट गई। केवल आँखें फूटी ही नहीं हम्जा का रक्त उसके शरीर में पहुँच कर उसको अपार पीड़ा देने लगा। वो हम्जा को एक ओर फेंक जोर जोर से दहाड़ने लगा तभी हम्जा दौड़ कर पास पड़ी तलवार को उठा कर उस पर अपना रक्त लगा देता है। फिर पास के एक पत्थर पर चढ़ कर उस दैत्य की पीठ पर बैठ गया। अब हम्जा दैत्य की दोनों गर्दनों को अपने तलवार में फंसा कर एक हाथ से तलवार का मुट्ठा पकड़ कर दूसरे हाथ से तलवार का दूसरा सिरा पकड़ कर किसी दरांती की तरह तलवा का उपयोग कर एक ही वार में उस दैत्य के दोनों सर धड़ से अलग कर देता है।

इस दैत्य युद्ध में हम्जा को भी छोटी मोटी चोट आई पर वो उस बालक को उठा कर कैसे तैसे एक तालाब के पास ले आया। गुफा से निकलने से पहले हम्जा उस दैत्य के कुछ दाँत तोड़ लेता है। अब तक रात का अंधकार चारों ओर छा चुका था।

हम्जा जब बालक के मुंह पर पानी छिड़क कर उसको जगाता है। तो भय से खड़ा हो कर वो बालक इधर उधर ऐसे देखता है। जैसे उस दैत्य का भय यहाँ भी उसका पीछा ना छोड़ता हो। इस को देख कर हम्जा अपने पास से उस दैत्य के जबड़ों से उखड़े दांत उस बालक को दिखाता है। जिसे देख कर बालक समझ गया कि इस महापुरुष ने दैत्य का वध कर दिया और ऐसा कर हम्जा ने केवल उस बालक की ही नहीं उसके जैसे भविष्य में दैत्य की खुराक बनने वाले अन्य कई बालकों के प्राणों की भी रक्षा की है।

जब हम्जा उसका मुंह तालाब के पानी से साफ करता है। तो उसके मुंह पर दैत्य द्वारा दिया घाव देख, हम्जा को ये समझते देर ना लगी कि ये बालक वही वृद्ध है। जो भविष्य में उसको मिला था। हम्जा हल्की सी मुस्कान दिखा कर उस बालक को भेंट में दो मोतियों में से एक दे देता है। इस प्रकार उसके पास अब केवल एक ही मोती बचा था।

बालक ये सोच कर हम्जा को अपने कबीले ले जाता है। की जब उसके कबीले वालो को पता चलेगा कि इस महापुरुष ने दैत्य का वध किया है। तो इसका आदर सत्कार होगा।

मगर जब वो दोनों बालक के कबीले पहुँचे तो वहाँ के लोगों में हाहाकार मच गया। उनको लगा कि ये परदेसी बालक को दैत्य की गुफा से उठा लाया, और अब दैत्य किसी भी क्षण इन पर क्रोध में भरा हमला कर देगा। मगर वो बालक अपनी भाषा में कबीले के लोगों को कुछ बोलता है। जिससे उनके बीच एक सन्नाटा सा पसर गया, फिर बालक हम्जा को संकेत कर के उससे दैत्य के दाँत मांगता है। उस दैत्य के दांतों को देख कर सब लोग अचरज में पड़ गए फिर उस बालक का पिता जो कबीले का मुखिया भी था साधारण भाषा में हम्जा से बोला " क्या ये सत्य है परदेसी की तुमने उस दैत्य का वध कर दिया।

हम्जा " जी ये सत्य है।

मुखिया " असंभव।

हम्जा " आप चाहे तो उस गुफा में जा कर पुष्टि कर सकते है। उसके दोनों सर अब भी धड़ से अलग धरती पर पड़े हुए है।

इसको सुन कर मुखिया कुछ लोगों को उस गुफा में जाने का आदेश देता है। पर वे लोग अब भी दैत्य के प्रकोप से भयभीत थे। और किसी अजनबी की बातों को मान कर कोई बेवकूफी नहीं करना चाहते थे। पर मुखिया के लताड़ने पर वो लोग विवशता से मुंह लटका कर चले जाते है। जाने वाले लोगों के भीतर जाते समय उस परदेसी यानी हम्जा के लिए अत्यंत क्रोध था क्योंकि उनको विश्वास था कि दैत्य को कोई नहीं मार सकता वो अमर है। और आज इसके कारण उन सब को क्रोधित दैत्य का सामना करना पड़ेगा।

मगर जब वो लोटे तो उनके भीतर हम्जा के लिए अपार प्रेम सम्मान आदर और प्रसन्नता के भाव भर चूके थे। और वो आते ही खुशी से हम्जा को अपने कंधों पर उठा कर उसकी जय जय कार करने लग गए जिसे देख कर मुखिया के साथ साथ अन्य कबीले के लोगों को भी विश्वास हो गया उस दैत्य की मृत्यु का,

उस दिन पूरी रात्रि केवल उत्सव ही मनाया गया। और उस उत्सव का सारा श्रेय केवल हम्जा को समर्पित था। हम्जा के कारण वो कबीला ऐसे श्राप से मुक्त हो चुका था जिसका कष्ट वो सदियों से भोग रहे थे। वाकई इस प्रकार का असम्भव कार्य करने वाला व्यक्ति इन लोगों के बीच किसी देवता से कम नहीं हो सकता।

अगले दिन सुबह जब हम्जा सो कर उठा तो उसको पता चला कि आज चाँद की पहली तारिक़ है।

वो समझ गया कि उसके यहाँ से जाने का समय आ गया है। मगर जिस उद्देश्य से वो यहाँ आया था उसके बारे में वो कुछ भी ना जान सका उसको समझ नहीं आ रहा था कि वो किस प्रकार अपने प्रियतमा का पता लगाएं एकाएक उसके मन में विचार आया, हो सकता है। जब वो वापिस पहुँचे उसको अम्बाला बिना किसी खोज बिन के मिल जाये, बस इसी आशा में वो रात होने की प्रतीक्षा करता है। उसके बाद जब रात का वही समय आया, तो वो उस बालक को अपने साथ उसी पहाड़ी पर ले गया, और बोला " दोस्त मैं इतना तो जान चुका हूँ। तुम्हें मेरी भाषा भले ही बोलनी न आती हो पर समझ अच्छे से लेते हो।

मेरी एक बात याद रखना। एक दिन एक युवक तुम्हारे पास आएगा। जिसको तुम्हें चाँद की पहली तारिक़ को यहाँ लाना है। और किसी भी तरह इस पहाड़ी से कूदने के लिए विश्वास दिलाना है। वो ऐसा करने में आना कानी करेगा मगर उसका यहाँ से कूदना बेहद ज़रूरी होगा, मेरी बातों को अच्छे से समझ गए ना।

वो बालक हम्जा की बातों के प्रति उत्तर में हाँ में अपना सर हिला कर अपनी सहमती जताता है।

बस इतना देखना था। कि बिना किसी चेतावनी के हम्जा उस पहाड़ी से छलांग लगा देता है। देखते ही देखते बालक के सामने हम्जा जमीन पर न गिर के अदृश्य हो गया।

वही हम्जा फिर से एक नया अनुभव करता है। इस बार का अनुभव भी बड़ा विचित्र पर अलग था।

हम्जा को अब सूर्य सही दिशा में अत्यंत गतिमान हो कर बार बार डूबता और उगता हुआ दिखाई देने लगा। पर साथ में आस पास की चीज़ों में भी अजीब परिवर्तन का अजीब अनुभव भी हम्जा ने किया।

जब हम्जा धरती पर गिरा तो इस बार वो जंगल में नहीं। बल्कि वसुंधरा राज्य और जंगल की सीमा पर आ गिरा।

*****
 

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करने वालों रब तुम्हे दुनिया की हर खुशी
दे और जो नहीं करते उनको भी!!!
 
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दोस्तोंशुक्रिया जो आपने मेरी मदद की अगर आप आज मेरा
साथ नहीं देते तो मैं यहाँ नहीं होता मेरी सफलता का
राज आप हो मैं आपका अहसान चूका नहीं सकता!!!
 
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अध्याय 3

खंड 8

हम्जा अपनी आप बीती नरसिम्हा को सुना ही रहा था, तभी महल में भगदड़ सी मच गई। नरसिम्हा और हम्जा ने कक्ष से बाहर निकल कर देखा तो कोई भयानक सूरत का व्यक्ति अब्दुला की हत्या करके भाग रहा था। हम्जा ने जब ये दृश्य देखा तब तक वो व्यक्ति लगभग भाग निकला था हम्जा उस व्यक्ति को कुछ क्षणों के लिए गोर से देखता है। और वो कहाँ से जाने वाला है। उसका अनुमान लगाता है। फिर एक अलग ही रास्ते पर हम्जा भागने लगा शुरू में तो किसी की समझ में नहीं आ रहा था हम्जा कर क्या रहा है। लेकिन जब हम्जा उससे पहले उस अज्ञात हत्यारे की आने वाली जगह पर पहुँच कर उसको पकड़ लेता है। तो वहाँ मौजूद प्रत्येक सदस्य के लिये ये बड़ा ही अद्भुत और अविश्वसनीय नज़ारा बन गया। हम्जा उस व्यक्ति को पकड़ कर देखता है। उसकी आँखों की पलकें कटी हुई है। और उसके चेहरे पर कई छोटे छोटे घाव के निशान है। जो अब भर चुके थे।

ये वही सैनिक था जिस से जानकारी निकालने के बाद अब्दुला ने उसकी पलकें काट कर जंगल में बांध कर छोड़ दिया था और वो किसी प्रकार बच निकला हम्जा अब्दुल्ला की पूरी कहाँनी जानता था इसलिये उसने भी पहचान लिया ये कौन है। और हम्जा अपने दोनों हाथों से ही उस की खोपड़ी को पिचका देता है। जैसे कोई फल को पिचका कर तोड़ देता है।

हम्जा की ये ताकत मानव शक्ति से अधिक थी। जिसे देख कर विश्वास करना कठिन था पर अपनी आँखों से देख कर हर एक को समझ आ गया की जो हम्जा जंगल में घुसा था बाहर निकला हुआ हम्जा उससे कई गुना अधिक बलवान है।

सौभाग्य से उस के वार से अब्दुला मरा नहीं उसकी साँसे अभी भी चल रही थी। जिस पर तुरंत प्रतिक्रिया दिखाते हुए राज वैध को बुलवाया गया और उसके द्वारा अब्दुला की चिकित्सा होने लगी।

इसके बाद हम्जा स्नान करने गया। और वापिस आकर हम्जा और नरसिम्हा की एक बार फिर बैठक होती है।

हम्जा अपनी बात शुरू करने की जगह किसी बात की सोच में पड़ गया। जिस पर नरसिम्हा बोला " भाई आप किस विषय मे इतने अधिक चिंतित हो जो बस उसी के बारे में सोच रहे हो।

हम्जा " बिना भीतरी सहायता के वो हत्यारा महल में प्रवेश नहीं पा सकता था। जो एक गंभीर चिंता का विषय है।

नरसिम्हा " मुझे हमारे लोगों पर पूरा विश्वास है भाई, उसका महल में घुसना केवल एक संयोग और थोड़ी असावधानी का परिणाम था जिसके लिए मैंने महल की सुरक्षा भी बड़ा दी है। आप निश्चिंत रहे।

हम्जा " ईश्वर करें तुम्हारा अनुमान सही हो। मगर हमें सावधान रहना होगा।

नरसिम्हा " आप व्यर्थ में चिंता कर रहे है। अब यहाँ हमारा कोई शत्रु जीवित नहीं बचा।

अपने छोटे भाई की बात सुन कर हम्जा एक लम्बी सांस खिंच कर अपनी कहाँनी फिर से सुनाने लगा।

" उस रात हमारा मिलन केवल दो जिस्मों का मिलन नहीं था बल्कि दो आत्माओं का मिलन था जिसमें दो आत्माओं को पवित्रता प्राप्त होती है। उस रात जब हम सो रहे थे तो राजकुमारी अम्बाला एक भयानक स्वप्न देख कर जोर से चीखती हुई उठ बैठी। उनकी चीख ने मेरी नींद भी भंग कर दी। उस स्वप्न को देख कर राजकुमारी अम्बाला जोर जोर से हांफ रही थी। मेरे शांत करने पर उन्होंने मुझे अपनी निशानी के रूप में वो खंजर दिया जिस से उन्होंने मेरे ऊपर वार किया था और उस खंजर को वो खुद से अलग नहीं करती थी। मेरे पूछने पर उन्होंने बताया कि कोई उन्हें स्वप्न में मुझसे दूर ले जा रहा था। ये बोलते समय वो इतनी डर गई थी कि भावुक होकर रोने लगी और मुझसे वचन लिया कि अब से मैं उनको कभी भी नहीं छोडूंगा। उनको शांत करने के लिए मैंने भी वचन दिया और उनको सुला दिया।

सोने से पहले उन्होंने ये भी बताया कि उनकी माता उनके पिता द्वारा किए अत्याचारों के सदैव विरुद्ध रहती थी और अपने पति से बार-बार कहती " एक सच्चा राजा प्रजा जनों में अपना भय पैदा नहीं करता बल्कि अपने प्रति प्रेम आदर और सम्मान पैदा करता है। तभी वो प्रजा प्रिय सच्चा राजा बनता है।

इतना सुन नरसिम्हा बीच में बोल पड़ा " इसलिए आप को मेरे द्वारा कही इस बात ने इतना प्रभावित किया कि आप सब कुछ बताने लगे।

हम्जा " हाँ,

अब हम्जा आगे बोला

" उसके बाद मेरी आँख सीधा अगली सुबह खुली, वो सुबह मेरे जीवन की सबसे भयानक सुबह थी। मैंने अपने पास से राजकुमारी अम्बाला को गायब पाया, जिसके कारण मेरा मन विचलित हो उठा मैंने जल्दी से आस पास राजकुमारी अम्बाला को ढूंढना शुरू किया। मैं पागलों की भाँति इधर से उधर दौड़कर राजकुमारी अम्बाला को ढूंढता रहा। लेकिन वो न मिली। मैं भीतर से तड़प रहा था। जैसे बिना पानी की मछली, मुझे इतना तो विश्वास था कि अम्बाला मुझे खुद से छोड़ कर नहीं जा सकती, और न ही ये काम किसी जंगली मांसाहारी पशु का है। क्योंकि वहाँ पर किसी भी पशु के कोई चिन्ह नहीं थे। इसलिये ये तो स्पष्ट था उनका किसी ने अपहरण किया है। इसलिए उन्हें खोज कर निकाल लेने का निर्णय ले कर में वहाँ से आगे निकल पड़ा।

मैं समझता था उस जंगल में केवल अलौकिक शक्तियों, दानवों और कुछ वन जीव जंतुओं का वास है। मगर मेरी ये सोच उस समय गलत सिद्ध हुई जब अम्बाला की खोज में चलते-चलते मैं एक आदिवासियों के कबीले तक जा पहुंचा।

वो कबीला बड़ी अजीब भाषा बोलता था जो हमें नहीं आती। एक बार मुझे लगा हो सकता है। किसी कारण वश या धोखे से ये लोग अम्बाला को ले आये हो। तो मैं उनके कबीले में चुपके से घुसपैठ कर अम्बाला की खोज करने लगा। मगर दुर्भाग्य से अम्बाला मुझे वहाँ पर भी न मिली मैं बेहद निराश हो कर वहाँ से लौट ही रहा था कि तभी एक कबिलेवासी कि नज़र मुझ पर पड़ गई। और उसने शोर मचा दिया। जिसको सुन मेरे चारों और बंदरों की तरह वृक्षों पर उछल कूद करते हुए सैकड़ों आदिवासी जमा हो गए मेरे भागने का कोई मार्ग नहीं बचा। मैं चाहता तो उनमें से कइयों की हत्या या घायल कर वहाँ से भाग सकता था पर मेरे मन ने इस विचार को त्यागना ही सही समझा और मैंने खुद आत्मा समर्पण इस इरादे से कर दिया शायद वो मुझसे बात कर मेरी समस्या समझ जाए पर उन्होंने मेरे समर्पण के बाद देखते ही देखते बड़ी तेजी से मुझे एक लकड़ी के तख्ते से बांध दिया। और एक दूसरे को पकड़ाते हुए ले जाने लगे। जैसे कई चींटियों का झुंड अपने भोजन को एक दूसरे की सहायता से आगे धकेलता जाता है।

मैं उस समय अपनी आत्मसमर्पण वाली बात पर बहुत पछताया।

थोड़ी देर में वो मुझे इसी प्रकार सरकाते-सरकाते पास की एक पहाड़ी की चोटी पर ले गए। वैसे तो वो चोटी इतनी अधिक उची नहीं थी। पर वहाँ से सर के बल गिरने वाले कि मृत्यु निश्चिंत थी।

मैं उनसे बार बार बोल कर ये समझाने की कोशिश करता मैं वसुंधरा का राजा हूँ। पर उनको मानो इन सब से कोई फर्क ही नहीं पड़ता। और फिर वो लोग चोटी पर पहुंच कर अपने सीने पर बंदरो की तरह हाथ मार कर जोर जोर से चिल्लाने लगे। उन्हें देख कर लगता जैसे कोई अनुष्ठान की क्रिया हो।

थोड़ी देर में उनके कबीले का कोई वृद्ध व्यक्ति एक झोंपड़ी से बहार निकला और धीरे-धीरे मेरी ओर आने लगा।

कबीले के अन्य सदस्य झुक कर उसका आदर सत्कार कर रहे थे जिससे साफ था कि वो कबीले का सरदार है। मैं एक बार और चीखा इस उमीद से की शायद वो भाषा जनता हो पर मैं कुछ बोल पाता उससे पहले एक आदिवासी ने मेरा मुंह कपड़े से बंद कर दिया। अब वो वृद्ध मेरे पास आया और कुछ मन्त्र पड़ने लगा। फिर हमारी भाषा में जोर से चिल्ला कर बोला। है ईश्वर इस जन्म के इस पापी की आत्मा को स्वीकार कर अगले जन्म में स्वच्छ करके भेजना।

मुझे अपने जीवन के अंत का विश्वास हो गया था। कि तभी उस वृद्ध की नज़र मेरे ऊपर पड़ी और मुझे देख कर उसके चेहरे का रंग उड़ गया। उसने अपने लोगों से अपनी भाषा में क्रोधित हो कर कुछ बोला और फौरन मुझे नीचे उतरवाया मैं इन सब से बड़ा हैरान था, और ये सब क्या हो रहा है ये समझने की कोशिश कर रहा था। तभी जैसे ही में मुक्त हुआ वो वृद्ध बड़े ही प्रसन्नता के भाव दिखाता हुआ बोला " ओ मेरे प्रिय मित्र हम्जा ये तुम हो।

और मुझसे इतनी प्रसन्नता से गले मिला जैसे कोई वर्षों पश्चात अपने प्रियजनों से मिलता है।

उस समय तो मेरे आश्चर्य की कोई सीमा न रही। और मैंने उसी समय पूछ डाला क्या हम पहले कभी मिले है।

उसने बोला " नहीं…. पर मैं आपसे बचपन में मिला था।

मेरी समझ में कुछ नहीं आया और मेरे मन के भावों को देख कर वृद्ध समझ गया मैं दुविधा में हूं। इस पर वो बोला " आप ज़्यादा चिंतित ना हो आज रात चांद की पहली तारिक़ है। उस समय आपके सभी सवालों के जवाब आपको मिल जाएंगे तब तक आप हमारे अतिथि बनकर कुछ भोजन कर ले।

मैंने उस वृद्ध की बातों को मान लिया।

भोजन करते समय मैंने उनसे पूछा " आज जो मेरे साथ अनर्थ होते-होते बचा था वो सब क्या था।

वृद्ध बोला " जब भी हम कबीले में किसी को चोरी करते पाते है। तो अपने देवता को उसकी बली चढ़ाते है। ताकि अपने अगले जन्म में वो एक शुद्ध आत्मा के साथ जन्म ले।

इस को सुन मैं मन ही मन ईश्वर का धन्यवाद करने लगा कि उसने मुझे आज एक नया जीवन दान दिया है।

फिर मैंने उस से पूछा कि कबीले के अन्य सदस्यों के मुकाबले आप हमारी भाषा कैसे जानते है। तो उसने बताया कि उस कबीले के मुखिया को उसके पिता द्वारा कई भाषाओं का ज्ञान दिया जाता है। जब तक अगला मुखिया सभी भाषाओं को नहीं सीखता वो मुखिया नहीं बनता।

जल्द ही रात हुई और वो वृद्ध मुझे एक अन्य पहाड़ी की चोटी पर ले गया जो पहली पहाड़ी से 10 गुना अधिक उची थी और बोला " महाराज यदि आपको अपने जीवन की पहेलियों को सुलझाना है। तो इस पहाड़ी से आपको इसी समय कूदना होगा।

उसकी इस बात पर मैं चोंक गया और पहाड़ी से नीचे झांकने लगा तो कई मानव कंकाल मुझे नीचे पड़े दिखे।

मैं तुरंत पीछे हटा और बोला " क्या आप सठिया गए हो यहाँ से कूदने के बाद मैं कभी जीवित नहीं बचूंगा।

वृद्ध " विश्वास करें ऐसा कुछ नहीं होगा।

हम्जा " कैसे बोल सकते हो कुछ नहीं होगा। नीचे पड़ा वो मानव कंकालों का ढेर कैसा है।

वृद्ध " वो ढेर उन लोगों का है। जो अपने सवालों का जवाब चाहते थे।

हम्जा " यानी वो सब भी उसी कारण से मरे है जिस के लिए तुम चाहते हो मैं भी यहाँ से कूद जाऊँ।

वृद्ध " महाराज वो लोग अपनी मर्जी से यहाँ से कूदे थे। और वो चुने हुए नही थे उन्हें लगता था वो चुनें हुए है।

हम्जा " तो आपके हिसाब से मैं चुना हुआ हूँ।

वृद्ध " जी हाँ।

हम्जा " किसने कहा आपसे।

वृद्ध " आपने

हम्जा " मैंने...? मैंने कब कहा।

मेरी इस बात को सुन कर वृद्ध अपने हाथों में बंधा एक विशेष मोती मुझे दिखाने लगा। और जानते हो नरसिम्हा वो मोती कौन सा था ये वही मोती था जो हमारे यहाँ राज गद्दी पर बैठा व्यक्ति अपने अगले राज गद्दी के वारिस को देता आया है।

नरसिम्हा आश्चर्य से बोला " पर ये मोती तो पूरे संसार में केवल एक ही है। जो कि केवल हमारे वंश के उत्तराधिकारी के पास होता है।

हम्जा बोला " इसी प्रकार से मैं भी आश्चर्य मैं पड़ गया, और उसके मोती को एक हाथ में लेकर अपने मोती से मिलाने लगा तभी उस वृद्ध ने मुझे धक्का दे दिया।

यूँ अचानक गिरते समय मेरी पीठ धरती की ओर थी और मुंह आकाश की ओर जिसके कारण मैंने अपने जीवन का सबसे सुंदर और विचित्र दृश्य देखा,

मेरे गिरने की गति सामान्य से काफी धीमी थी और मैं आसमान में तेजी से होते परिवर्तन को देख पा रहा था जिसमें प्रति क्षण दिन और रात होती जाती सूर्य अपनी सामान्य दिशा के विपरीत जाता दिखता। आस पास के कुछ वर्ष पुराने वृक्षों को छोटा और फिर अंकुर में परिवर्तित होते देखा मेरे नीचे गिर कर मरे लोगों के कंकालों पर वापिस मांस चढ़ते और उनको गिरने की दिशा के विपरीत जा कर पहाड़ी की चोटी पर पहुँचते देखा। वो सारा दृश्य ऐसा था जैसे समय वापिस जा रहा हो।

और फिर मैं बड़े ही धीमी गति में धरती पर आ कर गिरा और मेरे गिरते ही सब कुछ सामान्य हो गया। पर अब वहाँ पर वो कंकाल नहीं थे जो मैंने देखे थे।

ना ही आस पास के वो वृक्ष थे जो कुछ दशक प्राचीन थे यहाँ तक कि वो वृद्ध भी अदृश्य हो गया था और इस समय दिन निकला हुआ था अब मेरे पास दो मोती हो गए थे।

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अध्याय 3

खंड 9

उस जगह से उठ कर हम्जा आगे बढ़ा वो इस बात से अंजान था कि वो किस युग में आ पहुँचा है।

वो किसी प्रकार के चिन्ह की खोज में या किसी व्यक्ति के मिलने की आशा में मिलो पैदल चलता रहा अंत में संध्या के समय अचानक तेज बरसात शुरू हो गई। हम्जा खुद को सुखा रखने की कोशिश में एक गुफा में जा घूंसा, उस गुफा में जाने से पहले हम्जा को गुफा से मध्यम रोशनी दिखी थी। जिसका सीधा सा मतलब था कि उस गुफा में कोई मनुष्य है। जिसने वो रोशनी की हुई है।

मगर उस गुफा में घुस कर हम्जा ने पाया वो गुफा काफी विशाल है। और उसके शुरुवाती हिस्से में कुछ मशालें लटकी थी।

जिनमें से एक मशाल हम्जा ने उठा ली।

हम्जा ने देखा जहाँ तक मशाल की रोशनी जाती है। गुफा उससे भी कई गुना अधिक लंबी है। उसकी रोशनी की क्षमता के बाहर गुफा में गुप अंधेरा और ख़ौफ़नाक सन्नाटा था।

हम्जा गुफा में आगे बढ़ा तो उसको दीवारों पर अजीब ओ गरीब चित्रकारी दिखी जिसमें कोई दो मुंह वाला विशाल राक्षस है। जो गाँव के गाँव तबाह कर रहा था।

आगे चल कर उसने देखा कि चित्रकारी द्वारा दर्शाया गया था कि कुछ गाँव वाले उस राक्षस से समझौता कर लेते है। जिसके चलते वो हर सातवीं रात एक बच्चे की बलि देते दिखाए गए है। फिर ये सिलसिला एक परंपरा सा बन गया और कई दशकों से वहाँ के निवासी बच्चों की बली देते आ रहे है। ताकि उनके गांव सलामत रहे।

इस चित्रकारी को देखने में हम्जा इतना मगन था कि उसका ध्यान आगे पीछे बिल्कुल नहीं था तभी उसका पैर किसी चीज़ पर पड़ा जो टक की आवाज़ करके चटक गई। हम्जा ने उसको उठाया और देखा तो वो एक बाल मानव के हाथ की हड्डी थी। उसे देख कर हम्जा अपनी मशाल से धरती पर रोशनी करता है। तो उसको और भी ऐसे अवशेष मिले जो किसी बच्चे के थे। वो उसी दिशा में आगे बढ़ता चला जाता है। उन बाल कंकालों की संख्या भी बढ़ती जाती है। अंत में वो ऐसी जगह आ पहुँचा जहाँ पर वो दैत्य सो रहा था उसकी गर्म साँसे इतनी तेज थी कि हम्जा को दूर से ही महसूस हो रही थी। हम्जा वहाँ से निकलने में ही अपनी भलाई समझ कर मुड़ता है। तभी उसको किसी बालक की सिसकियों की आवाज़ आती है। हम्जा उस दिशा में अपनी मशाल करता है। तो एक नन्हा 5 वर्षीय बालक वहाँ डरा सहमा बैठा रो रहा था। जिसे देख कर किसी को भी उसकी हालत पे दया आ जाती उसके चेहरे से स्पष्ट था कि वो जनता है। उसको यहाँ क्यों छोड़ा गया है। और वो अत्यंत भय के बावजूद भी वहाँ से भाग नहीं रहा था जो इस बात को प्रमाणित करता है। कि उस बच्चे ने इस प्रकार मरना अपना भाग्य मान लिया था।

हम्जा के लिए उसको देख कर अनदेखा करना असंभव था। वो उन लोगों में से नहीं था जो खुद की मृत्यु के भय से किसी अबोध बालक की बली चढ़ाता, बल्कि वो उन साहसी वीरों में से था जो किसी अज्ञात अबोध बालक के लिए स्वयं का भी निःसंकोच बलिदान कर देते है। उसने एक गहरी सांस ली और उस बालक की ओर धीरे धीरे कदम बढ़ाए। अपनी ओर आते व्यक्ति को बालक ने बड़ी अचरज से देखा जैसे पूछ रहा हो क्या तुम इस दैत्य राज से भय नहीं खाते।

हम्जा बालक को इशारों में अपनी गोद में आराम से आने के लिए कह कर अपने हाथ खोलता है। जिसे देख कर बालक को लगा मानो कोई देवता उसको जीवन दान देने आए है। जो आशा उसके सगे माता पिता ने उसको नहीं दी वो आशा उसको हम्जा द्वारा दी जा रही थी। जीवित रहने की आशा।

बालक ने इस सुंदर अवसर को दोनों हाथों से पकड़ लिया और हम्जा की गोद में इस प्रकार कस कर जा बैठा की अब उसको कोई भी शक्ति इस महापुरुष से अलग नहीं कर सकती। हम्जा बालक को गोद में लेकर धीरे धीरे उस जगह से आगे बढ़ने लगा। और उसी बीच फिर से उसका पैर एक कंकाल पर जा पड़ा जिसके कारण उस शांत और भव्य गुफा में वो ध्वनि गूंज उठी और इसी के साथ उस दैत्य की आंखें भी खुल गई।

किसी हाथी के समान कद और चीते के समान सडोल शरीर रखने वाला वो दैत्य जिसके चार पशु की भांति पैर और मनुष्य कि भांति दो हाथ थे। उसके दो मुख थे एक बाज की आकृति का रूप था मगर विशाल दूसरा किसी भेड़िया का रूप दर्शा रहा था। दोनों ही मुंह अपने भोजन को जाता देख भयंकर गर्जन करने लगे जो शायद उसकी ओर से एक चेतावनी थी। हम्जा ने उस चेतावनी को अनदेखा कर दिया। और उस बालक को तेजी से ले कर भागा मगर अपने फुर्तीले शरीर की सहायता से वो दैत्य दो छलांगो में ही हम्जा के आगे आ कर खड़ा हो गया। और फिर से एक अंतिम चेतावनी के रूप में गर्जन करी। जिस पर हम्जा ने बच्चे को धीरे से नीचे उतारा। ये देख कर दैत्य को लगा शायद हम्जा उसकी बात समझ गया है। और वो थोड़ा सा रास्ता छोड़ कर खड़ा हो गया जैसे कह रहा हो केवल तुम्हें जाने की अनुमति है। इस बालक को नहीं। उसके द्वारा छोड़े रास्ते को देख कर हम्जा ने तेजी से अपनी तलवार निकाली और उस दैत्य के ऊपर वार करते समय चिल्ला कर बालक से बोला भागो...

मगर सब व्यर्थ गया दैत्य की फुर्ती इतनी अधिक थी की उसने पहले अपने मुंह से हम्जा को धकेला फिर उस बालक पर अपनी धार दार चोंच से वार कर उसको दीवार पर दे मारा बालक के सुंदर मुख पर उस की चोंच से एक गहरा घाव पड़ गया और दीवार पर सर टकराने के कारण वो बालक मूर्छित हो कर गिर पड़ा।

दैत्य द्वारा दो बार की चेतावनी को अनसुना करता देख दैत्य को अब हम्जा पर क्रोध आ गया और अब वो हम्जा को भी जीवित नही छोड़ना चाहता था।

हम्जा ने भी देखा कि उस जंगल के राक्षस की ही भाँति तलवार का वार इस दैत्य पर भी व्यर्थ सिद्ध हुआ तो हम्जा ने वो खंजर निकाला जिसे उसकी प्रिय ने दिया था और जिससे वो पहले भी एक राक्षस का वध कर चुका था। उस खंजर के तिलिस्म पर पूरा विश्वास कर हम्जा एक और बार पूरी शक्ति से वार करता है।

पर ये क्या इस बार इस खंजर का भी वार तलवार की भांति निष्क्रिय रहा। और इस बार जब दैत्य ने पलट वार किया तो हम्जा के हाथों से वो खंजर भी छूट कर दूर जा गिरा और हम्जा ये देख कर उस खंजर को उठाने भागा पर पीछे से दैत्य ने हम्जा पर एक और वार कर उसको दूसरी दिशा में धकेल दिया।

हम्जा इस बात से परेशान हैरान की खंजर का तिलिस्म काम क्यों नहीं किया। कि तभी उसको सब कुछ समझ आ गया। कि असली तिलिस्म खंजर में नहीं उसके रक्त में है। जो राक्षसों और दैत्यों के लिए किसी तेजाब समान है।

तभी उस समय जब खंजर पर उसका रक्त था वो भी तिलिस्मी हो गया था और जब उसने खंजर को धो कर साफ किया तो उसका तिलिस्मी रक्त उस से साफ हो गया।

इस बात को जांचने के लिए हम्जा अपने सीधे हाथ की उंगली पर इतनी जोर से काटता है। कि उसमें से रक्त बहने लगा। तभी वो दैत्य हम्जा को पीछे से पकड़ अपने हाथों से उठा कर अपने मुंह के पास खाने के लिए लाता है। हम्जा अपने रक्त को दोनों हाथों में मल दोनों हाथों को उसकी आँखों में घुसा देता है। अब उसकी चार में से दो आंखें फुट गई। केवल आँखें फूटी ही नहीं हम्जा का रक्त उसके शरीर में पहुँच कर उसको अपार पीड़ा देने लगा। वो हम्जा को एक ओर फेंक जोर जोर से दहाड़ने लगा तभी हम्जा दौड़ कर पास पड़ी तलवार को उठा कर उस पर अपना रक्त लगा देता है। फिर पास के एक पत्थर पर चढ़ कर उस दैत्य की पीठ पर बैठ गया। अब हम्जा दैत्य की दोनों गर्दनों को अपने तलवार में फंसा कर एक हाथ से तलवार का मुट्ठा पकड़ कर दूसरे हाथ से तलवार का दूसरा सिरा पकड़ कर किसी दरांती की तरह तलवा का उपयोग कर एक ही वार में उस दैत्य के दोनों सर धड़ से अलग कर देता है।

इस दैत्य युद्ध में हम्जा को भी छोटी मोटी चोट आई पर वो उस बालक को उठा कर कैसे तैसे एक तालाब के पास ले आया। गुफा से निकलने से पहले हम्जा उस दैत्य के कुछ दाँत तोड़ लेता है। अब तक रात का अंधकार चारों ओर छा चुका था।

हम्जा जब बालक के मुंह पर पानी छिड़क कर उसको जगाता है। तो भय से खड़ा हो कर वो बालक इधर उधर ऐसे देखता है। जैसे उस दैत्य का भय यहाँ भी उसका पीछा ना छोड़ता हो। इस को देख कर हम्जा अपने पास से उस दैत्य के जबड़ों से उखड़े दांत उस बालक को दिखाता है। जिसे देख कर बालक समझ गया कि इस महापुरुष ने दैत्य का वध कर दिया और ऐसा कर हम्जा ने केवल उस बालक की ही नहीं उसके जैसे भविष्य में दैत्य की खुराक बनने वाले अन्य कई बालकों के प्राणों की भी रक्षा की है।

जब हम्जा उसका मुंह तालाब के पानी से साफ करता है। तो उसके मुंह पर दैत्य द्वारा दिया घाव देख, हम्जा को ये समझते देर ना लगी कि ये बालक वही वृद्ध है। जो भविष्य में उसको मिला था। हम्जा हल्की सी मुस्कान दिखा कर उस बालक को भेंट में दो मोतियों में से एक दे देता है। इस प्रकार उसके पास अब केवल एक ही मोती बचा था।

बालक ये सोच कर हम्जा को अपने कबीले ले जाता है। की जब उसके कबीले वालो को पता चलेगा कि इस महापुरुष ने दैत्य का वध किया है। तो इसका आदर सत्कार होगा।

मगर जब वो दोनों बालक के कबीले पहुँचे तो वहाँ के लोगों में हाहाकार मच गया। उनको लगा कि ये परदेसी बालक को दैत्य की गुफा से उठा लाया, और अब दैत्य किसी भी क्षण इन पर क्रोध में भरा हमला कर देगा। मगर वो बालक अपनी भाषा में कबीले के लोगों को कुछ बोलता है। जिससे उनके बीच एक सन्नाटा सा पसर गया, फिर बालक हम्जा को संकेत कर के उससे दैत्य के दाँत मांगता है। उस दैत्य के दांतों को देख कर सब लोग अचरज में पड़ गए फिर उस बालक का पिता जो कबीले का मुखिया भी था साधारण भाषा में हम्जा से बोला " क्या ये सत्य है परदेसी की तुमने उस दैत्य का वध कर दिया।

हम्जा " जी ये सत्य है।

मुखिया " असंभव।

हम्जा " आप चाहे तो उस गुफा में जा कर पुष्टि कर सकते है। उसके दोनों सर अब भी धड़ से अलग धरती पर पड़े हुए है।

इसको सुन कर मुखिया कुछ लोगों को उस गुफा में जाने का आदेश देता है। पर वे लोग अब भी दैत्य के प्रकोप से भयभीत थे। और किसी अजनबी की बातों को मान कर कोई बेवकूफी नहीं करना चाहते थे। पर मुखिया के लताड़ने पर वो लोग विवशता से मुंह लटका कर चले जाते है। जाने वाले लोगों के भीतर जाते समय उस परदेसी यानी हम्जा के लिए अत्यंत क्रोध था क्योंकि उनको विश्वास था कि दैत्य को कोई नहीं मार सकता वो अमर है। और आज इसके कारण उन सब को क्रोधित दैत्य का सामना करना पड़ेगा।

मगर जब वो लोटे तो उनके भीतर हम्जा के लिए अपार प्रेम सम्मान आदर और प्रसन्नता के भाव भर चूके थे। और वो आते ही खुशी से हम्जा को अपने कंधों पर उठा कर उसकी जय जय कार करने लग गए जिसे देख कर मुखिया के साथ साथ अन्य कबीले के लोगों को भी विश्वास हो गया उस दैत्य की मृत्यु का,

उस दिन पूरी रात्रि केवल उत्सव ही मनाया गया। और उस उत्सव का सारा श्रेय केवल हम्जा को समर्पित था। हम्जा के कारण वो कबीला ऐसे श्राप से मुक्त हो चुका था जिसका कष्ट वो सदियों से भोग रहे थे। वाकई इस प्रकार का असम्भव कार्य करने वाला व्यक्ति इन लोगों के बीच किसी देवता से कम नहीं हो सकता।

अगले दिन सुबह जब हम्जा सो कर उठा तो उसको पता चला कि आज चाँद की पहली तारिक़ है।

वो समझ गया कि उसके यहाँ से जाने का समय आ गया है। मगर जिस उद्देश्य से वो यहाँ आया था उसके बारे में वो कुछ भी ना जान सका उसको समझ नहीं आ रहा था कि वो किस प्रकार अपने प्रियतमा का पता लगाएं एकाएक उसके मन में विचार आया, हो सकता है। जब वो वापिस पहुँचे उसको अम्बाला बिना किसी खोज बिन के मिल जाये, बस इसी आशा में वो रात होने की प्रतीक्षा करता है। उसके बाद जब रात का वही समय आया, तो वो उस बालक को अपने साथ उसी पहाड़ी पर ले गया, और बोला " दोस्त मैं इतना तो जान चुका हूँ। तुम्हें मेरी भाषा भले ही बोलनी न आती हो पर समझ अच्छे से लेते हो।

मेरी एक बात याद रखना। एक दिन एक युवक तुम्हारे पास आएगा। जिसको तुम्हें चाँद की पहली तारिक़ को यहाँ लाना है। और किसी भी तरह इस पहाड़ी से कूदने के लिए विश्वास दिलाना है। वो ऐसा करने में आना कानी करेगा मगर उसका यहाँ से कूदना बेहद ज़रूरी होगा, मेरी बातों को अच्छे से समझ गए ना।

वो बालक हम्जा की बातों के प्रति उत्तर में हाँ में अपना सर हिला कर अपनी सहमती जताता है।

बस इतना देखना था। कि बिना किसी चेतावनी के हम्जा उस पहाड़ी से छलांग लगा देता है। देखते ही देखते बालक के सामने हम्जा जमीन पर न गिर के अदृश्य हो गया।

वही हम्जा फिर से एक नया अनुभव करता है। इस बार का अनुभव भी बड़ा विचित्र पर अलग था।

हम्जा को अब सूर्य सही दिशा में अत्यंत गतिमान हो कर बार बार डूबता और उगता हुआ दिखाई देने लगा। पर साथ में आस पास की चीज़ों में भी अजीब परिवर्तन का अजीब अनुभव भी हम्जा ने किया।

जब हम्जा धरती पर गिरा तो इस बार वो जंगल में नहीं। बल्कि वसुंधरा राज्य और जंगल की सीमा पर आ गिरा।

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अध्याय 3

खंड 10

ये देख कर वो और भी अचरज में पड़ गया। क्योंकि उसको बिना अम्बाला के घर नहीं आना था। वो वापिस जंगल की ओर भागा पर जंगल में प्रवेश करते ही वो खुद को उसी जगह पाता है। जहाँ वो थोड़ी देर पहले गिरा था। ऐसा वो कई बार करता है। लेकिन असफल ही होता।

थक हार कर वो अपने किले की ओर जाता है। जंगल से किले तक उसने कुछ अजीब दृश्यों को देखा जैसे कुछ ऐसी इमारतें जो उसने खंडर हाल में छोड़ी थी अब एक दम नई हो गई थी।

कुछ लोग जिनको हम्जा ने अंतिम बार वृद्ध अवस्था में देखा था। मगर अब वो चमत्कारी रूप से युवा दिखाई देते थे। यहाँ तक कि हम्जा उनको रोक कर उनसे बात करना चाहता है। तो वो हम्जा की बातों को नहीं सुनते और अनदेखा कर वहाँ से निकल जाते है।

अपनी उलझनों के साथ जब हम्जा अपने महल पहुँचा तो वहाँ का नज़ारा देख कर उसको सब समझ आ गया। कि असल में हो क्या रहा है।

हम्जा अभी भी अपने वर्तमान समय में नहीं पहुँचा था, बल्कि ऐसे समय में पहुँचा था जिस समय में उसका जन्म हुआ था, वो भी खास अपने जन्म वाले दिन, जिसका अनुमान उसको महल की कुछ बातों से ले गया था। साथ में लोग उसको अनदेखा नहीं कर रहे थे बल्कि वो इस बार अदृश्य हो कर समय में पीछे आया था, जिसके कारण वो किसी को भी दिखाई नहीं दे रहा था।

इन सब का तो केवल एक ही अर्थ निकलता था, की ये वाली समय यात्रा में हम्जा को केवल कुछ जानकारी ही प्राप्त करनी है। और किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करना। बल्कि वो चाह कर भी ऐसा नहीं कर सकता, वो किसी भी बदलाव को करने में असमर्थ था।

अदृश्य होने के कारण वो बिना रोक टोक महल में प्रवेश कर लेता है। उसके बाद वो देखता है। उसके पिता अत्यंत चिंतित खड़े हम्जा के जन्म की प्रतीक्षा कर रहे है।

यहाँ हम्जा के पिता की अपने मंत्री से कुछ बातें वो सुनता है। जिसका आज से पहले हम्जा को कोई ज्ञान ना था।

राजा " महा मंत्री हमें भय है। कही इस बार भी हमारी संतान मृत पैदा ना हो।

महामंत्री " महाराज मुझे पूरा विश्वास है। इस बार ऐसा नहीं होगा,

राजा " पिछले तीन वर्षों में रानी ने तीन पुत्रों को जन्म दिया और दुर्भाग्य से तीनों ही संतान मृत पैदा हुई। इस बार भी अगर ऐसा हुआ तो मैं ये पीड़ा सहन नहीं कर पाऊंगा।

हम्जा अपने पिता की इन बातों को सुनते समय उनको भावुक देख कर खुद भी भावुक हो गया था। और मन ही मन बोल रहा था, पिता जी आज आपको निश्चिंत एक जीवित बालक होगा। जिसका नाम माँ हम्जा रखेंगी,

लेकिन ये क्या कक्ष से दाई निकल कर आई। और बोली " क्षमा कीजिये गा महाराज आपको इस बार भी मृत संतान हुई है।

इस बात ने मानो राजा का कलेजा चिर दिया हो। उनको ऐसी पीड़ा होने लगी जिसका भार उठाना उनके लिए असहनीय था। वही इन सब को सुन और देख हम्जा राजा से भी अधिक आश्चर्य में पड़ गया, और हो भी क्यों न यदि आपको अचानक पता चले कि आपके जन्म लेते ही आप परलोक सिधार गए थे तो आपको कैसा लगेगा।

अभी ये सूचना राजा को मिले हुए कुछ क्षण ही बीते थे कि एक सैनिक दौड़ता हुआ आया और बोला " महाराज बिना अनुमति आने के लिए क्षमा चाहता हूँ लेकिन बाहर एक स्वामी जी आये है। वो बेहद जोर डाल कर कह रहे है। आप के लिए एक महत्वपूर्ण सूचना है।

राजा इस समय अपने दुख में डूबा हुआ था उसको इस समय संसार की किसी भी बात से लगाव नहीं था इसलिए वो मोन रहा और राजा को मोन देख कर महामंत्री ने ही उसको आदेश दे दिया " स्वामी जी को बोल दो अभी उचित समय नहीं है। बाद में आए।

इस बात को सुन कर वो सैनिक अचम्भित हो कर बोला " महाराज मेरे आने से पहले उन्होंने कहा था महामंत्री तुम्हारी बात सुन कर स्वामी जी को वापिस जाने के लिए बोलेंगे, जो महा मंत्री ने बोला भी, उसके बाद मुझे क्या बोलना है, उन स्वामी जी ने मुझे बताया और..........

इतना बोल कर वो सैनिक रुक गया, अब राजा का भी ध्यान उस स्वामी की ओर गया और वो आगे की बात जानने के लिए बोले " और.. और क्या..?

इस पर सैनिक डरते हुए बोला " महाराज यदि मेरे मुंह से कुछ अनुचित निकले तो मुझे क्षमा कीजिएगा, स्वामी जी ने बताया आज आपको एक पुत्र की प्राप्ति होगी, जिसको मृत समझा जाएगा किन्तु वो मृत नहीं होगा।

हाँ यदि जल्द ही उस नए-नए जन्मे शिशु का उपचार न किया गया तो वो अवश्य मर जायेगा,

जिस प्रकार एक रेगिस्तान में भटकते प्यासे को पानी मिल जाने पर नया जीवन सा मिल जाता है। ठीक उसी प्रकार से अब राजा को भी एक नया जीवन दान मिलता नज़र आने लगा। राजा की जान में जान आ गई और राजा ने बड़े ही आदरपूर्वक स्वामी जी को लाने का आदेश दे दिया।

कुछ देर में स्वामी जी एक संदूक के साथ महल में प्रवेश करते है। जिन्हें देख कर राजा स्वामी के चरणों में जा गिरे और बड़े करुणामय स्वर में बोले " हे महात्मा कृपा मेरे जीवन को सफल करो मैं जीवन भर आपका क्षणी रहूंगा।

वो स्वामी राजा के नवजात जन्मे मृत शिशु को उसके सामने लाने का आदेश देता है। जिसे सुन कर शीघ्र ही आदेश का पालन किया गया।

स्वामी एक ओर उस बालक को ओर दूसरी ओर उस संदूक को रख कर। कुछ मंत्रों का जाप करना आरंभ करता है। अंत में उस संदूक से कुछ निकाल कर उस नव जात शिशु के मुंह में डाल देता है। इस क्रिया के समाप्त होते ही बालक चमत्कारी रूप से जीवित हो उठा। बालक की किलकारियां गुंज उठी जिसे सुन निर्बल पड़ी माता के भीतर भी जैसे प्राण आ गए हो और वो दौड़ती हुई अपने बच्चे को छाती से लगाने आ गई। इस को देख कर हम्जा को समझ आ गया कि वो कैसे जीवित है।

इसके बाद राजा स्वामी को बहुत सी धन राशि भेंट स्वरूप देते है। मगर वो कुछ नहीं लेता और वहां से चला जाता है। जिसको देख कर केवल राजा ही नहीं अब हम्जा भी उसको एक महापुरुष मानने लगा।

फिर हम्जा काफी देर तक अपने माता पिता को खुद पर प्रेम और स्नेह लुटाता देख इस दृश्य से आनंदित होता है। ऐसे आनंदमय दृश्यों को देखने का सौभाग्य कुछ दुर्लभ व्यक्तियों को ही प्राप्त होता है। इस लिए हम्जा इस के प्रत्येक क्षण का रस पान करने का इच्छुक था। मगर ऐसा ना हो सका तभी अचानक सब कुछ उसकी आँखों से ओझल हो गया।

वो खुद को फिर उस जगह पर पाता है। जहाँ वो थोड़े समय पहले आया था। वो फिर से दौड़ कर महल के अंदर गया। और महल में उसको फिर से वो सब होता दिखा जो कुछ देर पहले होता है। वही अपने पिता और महामंत्री की बातें होते देखना, दाई द्वारा उसको मृत घोषित करना और अंत में स्वामी जी का आगमन।

ये सब देख उसको ये तो समझ आ गया कि किसी कारण वश ही ये सब हो रहा है। और इन सब में ही कोई भेद छुपा है। अबकी बार वो महल में ना रुक कर उस स्वामी का पीछा करने लगा।

कुछ दूरी पर चल कर हम्जा देखता है। वो स्वामी उसी शापित जंगलों में से हो कर कही जा रहा था। इसे देख कर हम्जा भी उसके पीछे जंगल में प्रवेश कर गया जिसमें इस बार उसको किसी प्रकार की कठिनाई नहीं हुई, रास्ते में वो स्वामी अपने वस्त्र उतार कर एक नए रूप में परिवर्तित होने लगा जिसे देख कर साफ था वो कोई मनुष्य नहीं है। जब वो पूरी तरह से अपने असली रूप में आ गया तो हम्जा ने देखा कि उसका शरीर मांस का नहीं बल्कि जलते अंगारों से बना था। जो दहकती अग्नि समान लग रहा था वो अब भी चले जा रहा था और हम्जा उसका पीछा करता रहा। थोड़ी दूर चल कर वो रुक गया। तो वहाँ से आगे जा कर हम्जा ने देखा कि उसकी ही तरह दो लोग और वहाँ पहले से उपस्थित है। जिनमें से एक महिला और दूसरा पुरुष था।

इन सब की चाल ढाल इनका रूप इनका आकर और इनकी प्राकृतिक बनावट देख कर हम्जा समझ गया कि ये जीन परजाति के जीव है। इनके बारे में वो बचपन से किस्से कहानियों में अपनी माता गुल नाज़ से सुनता आया है।

हम्जा एक कोने में खड़ा हो कर देखता है। कि पहले वाला जिन उन दोनों जीनों के आगे झुक कर बोलता है। कार्य सम्पूर्ण हुआ स्वामी अब ये भेद मेरे बली दान से यही दफन कर दीजिए।

ऐसा बोल वो पहले वाला जीन अपनी गर्दन आगे कर देता है। और वो दोनों जीनों में से एक उसका सर धड़ से अलग कर उसको मार देते है।

हम्जा के लिए ये रहस्य सुलझने की जगह और भी अधिक उलझ गया था। वो कुछ समझ नहीं पा रहा था। की एक बार फिर वो उसी समय और स्थान पर पहुँच गया जहाँ वो लगातार दो बार आ चुका था।

अबकी बार वो महल में ना जाकर उस तरफ दौड़ता है। जहाँ वे तीनों जीन बातें कर रहे थे।

वहाँ पहुँच कर हम्जा अब जो देखता है। उसको जीनों का सारा रहस्य समझ आ जाता है। असल में वो महिला और पुरुष का जीनी जोड़ा और कोई नहीं जीनों के राजा रानी थे।

उनकी संतान एक ऐसी अवस्था में पैदा हुई जिसकी आत्मा तो जीवित थी पर शरीर निर्जीव अब उनको किसी भी हाल में अपनी संतान को जीवित रखना था तो उसके लिए उनके पास केवल एक ही उपाय था, जिसके लिए वो अंधकार की मदद द्वारा ऐसे मनुष्य की संतान जो एक विशेष नक्षत्रों में मृत पैदा हो उसका पता लगा कर अपने संतान की आत्मा का वास उसके शरीर के भीतर कर के उसको पुर्न जीवन प्रदान करें।

इस प्रकार उनकी संतान एक मानव शरीर में जीवित रह सकती थी। इस प्रकार से उनकी क्रिया द्वारा उनकी संतान को बचा लिया गया। और वो संतान खुद हम्जा था।

यदि हम अंधकार की सहायता लेते है। तो हमें अंधकार के साथ एक सौदा करना होता है। जिसका ज्ञान केवल अंधकार को और उस सौदा करने वाले को होगा। और इसी प्रकार से एक सौदा जीनों के राजा ने भी अंधकार के साथ किया था। जिसका मूल्य क्या है। ये किसी को नहीं पता।

हम्जा इन सब को अपनी आंखों से देखने के बाद भी इस बात पर विश्वास नहीं कर पा रहा था कि वो आधा जीन और आधा मनुष्य है। तभी उसके दिमाग में एक तेज चुभती आवाज़ हुई, जिससे उसको भयंकर कष्ट होने लगा साथ ही कुछ दृश्य उसके दिमाग में चलने लगे। और जब तक वो दृश्य उसको दिखाई देते रहे उसकी आँखों का रंग सफेद हुआ रहा।


उन दृश्यों में हम्जा सबसे पहले गजेश्वर राज्य को देखता है। फिर राजा भानु को जो संतान प्राप्ति के लिये जगह जगह जा कर प्राथना करते है। किंतु सब व्यर्थ जाता है।

उसके बाद उनके पास एक शैतान का पुजारी आता है। जो उनको अंधकार से मदद लेने को कहता है।

फिर हम्जा देखता है। राजा भानु अंधकार से संतान प्राप्ति के लिए एक सौदा करता है। उसके बाद वो इन्द्र और अम्बाला का जन्म देखता है। उसके बाद उस महायुद्ध की समाप्ति के बाद अम्बाला का उस पर हमला करना और अंत में हम्जा खुद को और अम्बाला को साथ देखता है। उसके बाद हम्जा को केवल अंधकार ही दिखाई देता है, और हम्जा अत्यंत पीड़ा के कारण मूर्छित हो कर गिर जाता है। उसकी आँखों से रक्त बहने लगा और वो मूर्छित ही रहा।

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अध्याय 3

खण्ड 11

जब मुझे होश आया तो मैंने खुद को जंगल में ही पाया।

मैं समझ चुका था कि मेरा सामना जंगल की नकारात्मक शक्तियों से है जो अंधकार के पुजारी है। उनका उद्देश्य मेरे और अम्बाला द्वारा जन्मी संतान की बलि चढ़ा कर अंधकार को मुक्त करना था। ताकि इस धरती पर अंधकार और पाप का साम्राज्य स्थापित हो,

अब मुझे किसी भी हाल में इस अनर्थ को होने से रोकना था। अपनी वास्तविकता जानने के पश्चात मुझे अपने भीतर कई प्रकार के परिवर्तन महसूस होने लगें। मुझे ये भी समझ आ गया कि किस दिशा की ओर मुझे जाना है। मानो जैसे उस जंगल का एक नक्शा मेरे मस्तिष्क में बैठ गया हो। वहाँ रहते समय मुझे समय का कोई अनुमान नहीं था। पर ये तो पक्का था कि जंगल के बाहर की दुनिया में यदि 1 दिन गुजरता तो जंगल के भीतर 5 दिन गुजर जाते। इसीलिए तुम्हारे लिए मेरे जंगल के भीतर गुजारे कुछ माह मेरे लिए जंगल के भीतर 1 वर्ष से भी अधिक थे।

मेरे साथ आगे क्या हुआ ये बताने से पहले में तुम्हें कुछ ऐसे विचित्र प्राणियों के बारे में विस्तार से बता दूं। जो अंधकार के पुजारी थे।

सबसे पहले में तुम्हें वीमा असुरों के बारे में बताता हूँ। इनका आकर दो हाथियों जितना विशाल होता है। और इनकी भुजाओं में 10 हाथियों जितना बल। इनकी केवल एक आंख होती है। इनकी निष्ठा को कोई नहीं तोड़ सकता। इनमें धरती की अन्य प्रजातियों समान नर नारी का हिसाब नहीं होता।

इसको सुन कर नरसिम्हा बड़े ही हैरत से पूछने लगा " तो इनकी वंश शैली कैसे बढ़ती है। इनकी नई पीढ़ियाँ आती भी है या नहीं।

हम्जा " इनकी भी सामान्य प्रजातियों की भांति नई पीढ़ी पैदा भी होती है। और इनका वंश भी आगे बढ़ता है। बस इनकी परजाति के विकास का तरीका बिल्कुल अनूठा होता है। जब कोई वीमा असुर वयस्क हो जाता है। तो वो मल की जगह एक विशेष प्रकार का अंडा देता है। और एक वीमा असुर अपने सम्पूर्ण जीवन में केवल एक बार ही ऐसा कर पाता है। जब उसके अड्डे का वीमा असुर भी वयस्क होकर अपना अंडा देता है। तो पहले वाला वीमा असुर वृद्ध होकर मर जाता है। इस प्रकार से उनकी संख्या सीमित होती है। ना अधिक ना कम,

जहाँ तक मुझे पता है। इस संसार में केवल पांच वीमा सुर है। इनके भीतर इन सभी गुणों पर एक दोष भी है। ये अत्यंत मंद बुद्धि होते, इनकी शारीरिक बनावट लगभग मानव समान होती है। जिसमें एक बड़ा अंतर उनके घुटनों में होता है। मनुष्यों की तरह उनके पैरो में दो घुटने नहीं बल्कि चार घुटने होते है, जिसके कारण उनके लिए दौड़ना लगभग आ सम्भव होता है। मगर छलांग लगाना बड़ा ही सरल, उनके गुणों और अवगुणों को देखते हुए। उनका उपयोग केवल बल के लिए यानी सैनिकों के रूप में करते है।

दूसरे आते है। चंचल कसरू

" इनका जन्म एक खास और दुर्लभ परजाति के पौधों द्वारा होता है, अपने जन्म से लेकर अपने पूरे शरीर के विकसित होने तक इनका जुड़ाव उन पौधों से नहीं टूटता, ठीक उसी तरह से जैसे मनुष्य की कोख में विकसित होता शिशु एक बार इनके सभी अंग विकसित हो जाने पर वो पौधा अपने आप इन्हें खुद से अलग कर देता है। इनका कद हमारे एक हाथ के पंजों जितना छोटा होता है। और दिखने में ये काफी आकर्षित होते है। लेकिन इनके कद और भोली सूरत पर मत जाना क्योंकि इनका दिमाग

बेहद शातिर होता है। और इनके दाँत इतने पेने होते है। के पत्थर को भी अपने दांतों से कुतर कर फेंक दें।

और अंतिम में संगा " ये सबसे खतरनाक और सबसे निर्दयी होते है। इनका का निर्माण अंधकार के अंश और कुछ शैतानी आत्माओं के मिश्रण से होता है। ये किसी काले धुआं जैसे होते है। इनकी खुराक किसी भी प्राणी की आत्मा होती है। जिसको वो बड़ी कठोरता से अपने शिकार को तड़पा तड़पा कर खाते है।

अब आगे सुनो जिस दिशा की ओर मैं चलता जा रहा था। उस दिशा में आगे चल कर मुझे दूर से ही एक विशाल महल दिखने लगा, उसको देख कर मेरे भीतर अम्बाला से मिलने की चाह दुगनी हो गई, मेरे दिल की धड़कन तेज़ हो गई। मगर मैंने किसी प्रकार खुद को सम्भाला क्योंकि ये समय शांत बुद्धि से काम लेने का था ना कि उत्तेजित हो कर भावनाओं में बह जाने का।

मैं सावधानी से आगे बढ़ा और महल को अच्छे से देखा महल के आस पास चार वीमा सुर पहरा दे रहे थे। और उनके आस पास से बीच बीच में एक संगा चक्कर लगाता दिखता। उस महल को कई पेड़ो ने घेर रखा था कुछ पेड़ो की शाखाएं महल की दीवारों को लांघ चुकी थी।

इस दृश्यों को देख कर मुझे एक युक्ति सूझती है। जिसके लिए मुझे उन कबीले वालो की आवश्यकता थी। मैं उस ओर से उठा और सीधा कबीले वालो के पास पहुँच गया।

कबीले पहुँच कर मुझे ये दुखद सूचना मिली कि अब उनका वो वृद्ध मुखिया जीवित नहीं रहा। जिस पर में निराश हो गया। लेकिन प्रभु की कृपा से उस कबीले का नया सरदार मेरे साथ चलने के लिये तय्यार हो गया, मगर बदले में उसको वही मोती चाहिए था जो अपने अंतिम समय में वृद्ध ने मुझे दिया था।

असल में उनका मानना था कि वो मोती अमरता प्रदान करता है। क्योंकि इतने लम्बे समय तक कोई भी मनुष्य जीवित नहीं रह सकता जितने लंबे समय तक वो वृद्ध जीवित था और ऐसा केवल मोती के कारण ही सम्भव हो पाया था तभी तो मोती के जाते ही वृद्ध परलोक सिधार गया, अन्यथा वो और भी अधिक जीवित रहता। मगर

मेरा मानना था मोती का जाना और वृद्ध का उसी समय मरना केवल एक संयोग था। लेकिन इस समय उनको सही बात समझना अपने पैर पर खुद कुल्हाड़ी मारने के जैसा होता, इस लिए मैंने उनके भ्रम को नहीं तोड़ा और मोती के बदले में उसकी सहायता का सौदा कर लिया।

जल्द ही हम सब मेरे बताए रास्ते पर चल कर उस महल पहुँच गए।

............

महल के पास पहुँच कर हम्जा ने कबीले के नए मुखिया को अपनी योजना सुनाई योजना अनुसार पहले कुछ आदिवासी बड़ी चालाकी और फुर्ती से असुरों के पास की छोटी छोटी जगहों पर पहुँच कर छुप गए फिर कुछ आदिवासी उन असुरों के सामने की ओर आकर उनको चिढ़ाने लगे और पत्थरों से मारने लगे ये देख कर दो असुर उन आदिवासियों पर झपटे पर आदिवासियों की फुर्ती का मुकाबला वो असुर ना कर पाए, और उनके पीछे लग गए, आदि वासी भी अपने पीछे भागते असुरों का पूरा ध्यान रखते की कही अपनी धीमी गति के कारण वो अधिक पीछे ना छूट जाए।

वही महल के पास बचे दो असुरों को छुपे हुए आदिवासियों ने तंग करना शुरू कर दिया जिससे वो दोनों असुर झुंझला गए। छुपे होने के कारण असुर उनको देख नहीं पा रहे थे। वही वो आदि वासी कुछ ऐसे थे कि देखने में वो बिल्कुल एक समान लग रहे थे उनको हम्जा ने विशेष कर चुना था। उन आदिवासियों में से एक तेजी से निकलता हुआ आया और एक असुर के पैर पर कोई तेज धार दार हत्यार से वार कर दूसरी जगह में घुस गया। उस आदि वासी की इस हरकत से असुर को थोड़ा कष्ट तो हुआ पर अधिक पीड़ा नहीं हुई और जिस तरफ वो आदिवासी भागा उस तरफ देखने लगे। अभी दोनों में से कोई असुर अपनी प्रतिक्रिया दिखाता उससे पहले किसी ओर जगह से उसी के जैसा आदि वासी निकला और तेजी से दोनों असुरों के पैर पर वार करता हुआ। आगे चला गया, इसको देख कर दोनों असुर खिसिया कर उसको पकड़ने के लिए मुड़े की किसी तीसरी जगह से एक और आदिवासी निकल कर उनके पैरो में घाव कर देता है। ऐसे करते करते उनके पैरो पर कई घाव हो जाते है। आदिवासी दिखने में एक जैसे थे तो उन असुरों को वो एक ही व्यक्ति लग रहा था जो जादुई रूप से अपनी जगह बदल-बदल कर उन पर वार कर रहा था। और उनकी पकड़ में नहीं आ रहा, इन सब से असुरों को भय हुआ तो वो वहाँ से भागे पर कुछ ही दूरी पर पहुँच धरती को हिला देने वाले वजन के साथ गिर पड़े, और मूर्छित हो गए असल में उन हत्यारों में एक विशेष प्रकार की जड़ी बूटी का रस लगा हुआ था जो जीव जंतुओं को मूर्छित करने के काम आता है। लेकिन समस्या ये थी कि असुरों को मूर्छित करने के लिए उसका कितना उपयोग काफी होगा इसका अनुमान किसी को नहीं था तो इसलिए आदिवासियों द्वारा उनको तबतक मारा गया जब तक वो मूर्छित नहीं हो गए।

वही दूसरी ओर अपने पीछे भगाते असुरों को आदि वासियों ने पहले से खोदे एक विशाल गड्ढे में धोके से गिरा दिया। असुर उस गड्ढे से छलांग लगा कर निकल ना पाए उसके लिए उन आदिवासियों ने नोकीले भालों से बना एक ऐसा जाल उस गड्ढे के ऊपर लगा दिया कि उनके छलांग लगाते ही वो नोकीले भाले असुरों के सर में घुस जाए और उनकी ऊँचाई भी असुरों के कद से अधिक थी ताकि उनका हाथ भी उस जाल तक ना पहुँचे।

अब हम्जा और आदिवासियों का महल में प्रवेश करने का रास्ता साफ था। बस हम्जा को उस भयंकर संगा का भय था जिसे उसने तब देखा था जब वो अकेला आया था। और इस समय वो कही नज़र नहीं आ रहा था।

पर हम्जा एक चीज़ के बारे में नहीं जानता था कि वो भी इस महल में उसको मिल सकती है। कसरू...

जब आदिवासियों का दल हम्जा के साथ महल में प्रवेश कर लेता है। तो सैकड़ों कसरू उन पर जगह-जगह से हमला कर देते है। कुछ ही देर में महल के जमीन पर रक्त ही रक्त दिखाई देने लगा कसरुओ ने वहाँ भयंकर उत्पाद मचा दिया, वो किसी आदि वासी का हाथ खा गए तो किसी का पूरा पैर चबा गए, इस दृश्यों को देख आदिवासी भी भय भीत हो गए और उन छोटे दरिंदों के आगे घुटने टेकने ही वाले थे के हम्जा ने असामान्य बल दिखा कर उनको आश्चर्य में डाल दिया साथ ही उन्हें लड़ने का नया साहस भी दिया, उन असुरों का रंग हरा होता है। ये बात सब को पता थी पर उनको मारते समय पहली बार उनको दिखा की इनका रक्त भी पतला और हरा होता है। जैसे किसी पौधे को निचोड़ कर देखने में निकलता है। फिर क्या अब वो आदिवासियों के सामने भयंकर कसरू नहीं थे बल्कि केवल जंगली पौधे के समान हो गए थे।

सभी कसरुओ का अंत करते करते कई आदिवासी घायल हो गए और कई परलोक सिधार गए। बचे कुछ आदिवासी,

तो उनको हम्जा ने घायल ओ की सहायता के लिए वही रोक दिया और खुद अकेला आगे बढ़ने लगा।

धीरे धीरे हम्जा आगे बढ़ता हुआ उस महल के आँगन में आ पहुँचा। जहाँ पर उसने देखा कि उस महल में एक नहीं सैकड़ों संगा मौजूद है। जो सारे के सारे उस आँगन में एकत्रित थे। वो सभी किसी रस्म के प्रारम्भ होने की प्रतीक्षा कर रहे थे।

वही एक कोने में उसको अम्बाला भी नज़र आई और उसको भी एक संगा ने जकड़ रखा था। और अम्बाला असहाय दुखी भाव से निरन्तर आँसू बहाए एक ही दिशा में देखे जा रही थी। उस ओर जब हम्जा ने देखा तो वहाँ का दृश्य देख कर उसकी रूह कांप उठी उसका कलेजा तड़प गया। उस ओर एक व्यक्ति आकाश की ओर देखता हुआ एक खंजर ले कर खड़ा था जिसके निशाने पर हम्जा का नन्हा सा बच्चा था और ये व्यक्ति और कोई नहीं वही था जिसने राजा भानु और उनकी पत्नी को अंधकार की सहायता लेने की सलाह दी थी। इस दृश्य को देखने भर से हम्जा के भीतर क्रोध की अग्नि इतनी अधिक भड़क उठी की उसकी नसों का रक्त अँधेरे में जुगनू के समान चमकने लगा। अचानक हम्जा ने पाया कि गोर से देखने पर उसको सभी संगाओ में एक काला हृदय भी दिखाई देने लगा हम्जा को समझ में आ गया कि अब उसको करना क्या है। पर तभी वो अंधकार का पुजारी जिस क्षण की प्रतीक्षा कर रहा था वो हो गया और वो खंजर को ऊपर उठाता हुआ बच्चे को मारने वाला था कि हम्जा अपने दोनों हथेलियों पर गहरा जख्म करके चीखता हुआ उसकी ओर बढ़ने लगा। हम्जा की आवाज़ ने उस तांत्रिक का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लिया, जिस पर तांत्रिक हम्जा को पागलों की तरह अपनी ओर आता और बीच में आने वाले प्रत्येक संगा के हृदय को अपने हाथों से निकाल कर उनको भस्म करता हुआ दिखा, हम्जा इतनी तेजी से उन संगाओ के हृदय को बाहर निकाल कर उनको मार रहा था कि देख कर लगता बस अब पहुँचा और अब पहुँचा, इस बात को भाँप कर तांत्रिक तेजी से उस बच्चे पर दोबारा वार कर देता है। और इस बार वो अपने हाथ नहीं रोकता उसका वार खाली नहीं जाता, लेकिन उसका वार बच्चे को ना लग कर अम्बाला के पीठ में लगा क्योंकि अपने सन्तान की रक्षा के लिए अम्बाला बिना डरे खुद आगे बढ़ कर अपने प्राण त्याग देती है। ठीक वैसे ही जैसे संसार की हर माता करती है। अपनी जान से भी अधिक बढ़कर एक माता के लिए संतान के सिवा और हो भी क्या सकता है। हम्जा के लिए इस दृश्य ने मानो समय को रोक सा दिया,

वो अपनी संतान से बेशक प्यार करता है। पर उतना ही प्रेम अम्बाला के लिए भी उसके भीतर था। न जाने कैसे-कैसे सपने देखे थे हम्जा ने अम्बाला के साथ भविष्य के,

वो सब क्षण भर में चकनाचूर हो गए। अब हम्जा दुगनी ताकत और तेजी से अपने बच्चे के लिए आगे बढ़ता है। और उस तांत्रिक के बच्चे पर फिर से वार करने से पहले उन सभी संगाओ को मार कर तांत्रिक तक पहुँच जाता है। तांत्रिक पर हम्जा द्वारा किया हुआ एक हाथ का वार इतना भयंकर था कि वो बुरी तरह घायल हो कर दूर जा गिरा,

हम्जा अम्बाला को जल्दी से अपनी बाँहों में भरता हुआ उसको जगाने की भरपूर कोशिश करता है। उसको पगलों की तरह चूमता है। रोते हुए बोलता है। मैं तुम्हें लेने आ गया हूँ अब सब ठीक हो जाएगा। मगर अम्बाला कुछ नहीं बोलती, वो कुछ बोलने योग्य ही नहीं बची थी। उसकी आंखें पथरा गई थी उसका शरीर निर्जीव पड़ा था।

अब तक कबीले का मुखिया भी यहाँ हम्जा को देखने आ पहुंचा था, मगर हम्जा का अम्बाला के प्रति प्रेम देख कर उसकी भी आंखें नम हो गई। हम्जा को इतना अधिक टूटा हुआ दुःखी देख कर मुखिया उसको समझाने के उद्देश्य से उसको अम्बाला मर चुकी है। ये बोलता है। पर उसकी बात सुनने की जगह हम्जा उलटा उसको ही क्रोध वश धक्का देकर घायल कर देता है। तभी वो शिशु रोने लगा,

जिसकी आवाज़ ने हम्जा को थोड़ा शांत किया। हम्जा अपने बच्चे को उठा कर ले जाने लगा तभी वो तांत्रिक घायल अवस्था में ही जोर से बोला " तुम इस बालक को जंगल से बहार नहीं ले जा सकते यदि ऐसा किया तो तुम्हारी आत्मा सदैव के लिये अंधकार की हो जायेगी,

हम्जा उस तांत्रिक की बात पर उसे कुछ ना बोल कर मुखिया की ओर देखता है। जैसे उस तांत्रिक का वध करने का आदेश दे रहा हो। और उसके संकेत को मुखिया बखूबी समझ कर उस तांत्रिक का सर धड़ से एक ही वार में अलग कर देता है।

इतना बोल हम्जा चुप हो गया और उसकी चुप्पी के साथ ही पूरा महल शांत हो कर सोच में डूब गया। किसी के पास बोलने के या कुछ पूछने के लिए शब्द नहीं थे। अगर कुछ था तो वहाँ उपस्थित लोगों की आंखों में आंसू।

उनकी इस खामोशी को तोड़ने के लिए एक सैनिक दौड़ता हुआ वहाँ आ पहुँचा और बेहद घबरा कर बोला " महाराज वो.. वो...वहाँ..

इतना सुन कर हम्जा नरसिम्हा से बेहद भावुक हो कर बोलता है।

" नरसिम्हा मेरा समय आ गया है और मेरा जाना जरूरी है। बस मेरी तुमसे हाथ जोड़ कर विनती है। अपने भतीजे को अपनी सगी संतान कि तरह पालना।

नरसिम्हा परेशान हो कर बोला " पर कहा...?

हम्जा " इस का जल्द ही तुम्हें पता चल जाएगा पहले मुझे अंतिम बार अपने पुत्र के दर्शन करा दो।

ये बोल कर दोनों जन उस कक्ष में गए जहाँ हम्जा का बेटा सो रहा था हम्जा उसको हसरत भरी निगाहों से ऐसे निहारता है। जैसे कह रहा हो काश हम कुछ और समय साथ बिता पाते मेरे बेटे। कुछ देर इसी तरह देखने के बाद हम्जा तेजी से नरसिम्हा को अपने साथ महल के बहार ले आता है। उससे अंतिम बार गले लग कर रोते हुए बोलता है। मुझे डर लग रहा है भाई लेकिन मुझे वचन दो कुछ भी हो जाये तुम मेरे पुत्र का साथ नहीं छोड़ोगे।

नरसिम्हा " नहीं छोडूंगा।

इतने में तीन लोग काले कपड़े पहने महल के द्वार की ओर आते दिखाई पड़ते है। नरसिम्हा देखता है। जो जो सिपाही उनको महल में प्रवेश करने से रोकता है। वो लोग केवल उसको घूरते है। और देखते ही देखते वो सैनिक पत्थर के हो जाते है। निर्जीव मूर्ति के भांति,

इस दृश्य को देख कर नरसिम्हा के भीतर जो खोफ पैदा होता है। वो नरसिम्हा के चेहरे पर साफ देखा जा सकता था। इस भय को देख हम्जा नरसिम्हा से बोला " यदि मैं इनके साथ न गया तो ये दोनों राज्यों को देखते ही देखते शमशान में परिवर्तित कर देंगे और इन्हें रोकना मेरी क्षमता से बहार है। इसलिये मुझे जाना होगा।

इससे पहले नरसिम्हा कुछ पूछे हम्जा तेजी से उन तीन लोगों के पास पहुँचता है। जिसपर उनमें से एक हम्जा की गर्दन को अपने मजबूत हाथों से पकड़ कर एक जोर का झटका देता है और हम्जा का शरीर वही गिर जाता है। मगर उसकी आत्मा को अब भी उन अज्ञात लोगों ने अपने हाथों में पकड़ रखा था। जिसको घसीट कर वो वापिस जंगल की ओर ले जा रहे थे। नरसिम्हा ये सब साफ साफ अपनी आंखों से होते हुए देख पा रहा था। पर वो कुछ ना कर सका, हम्जा का शरीर वहीं पड़ा राख में परिवर्तित हो गया।

हम्जा जनता था। उसको आज का दिन देखना है। इसलिए वो अपने बेटे को सुरक्षित करने और अपने लोगों को अपनी कहाँनी सुनाने आया था। जो कि वो पूरा कर चुका था।

समाप्त
 
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