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अमर का गला सूख गया था और लौड़ा फुल गया था। काली हिचकिचाते हुए bed के किनारे बैठ गई और अमर ने उसे खींच कर अपने नीचे दबाने की आस को बड़ी मुश्किल से काबू किया।
अमर घुटि हुई आवाज में, “तुम क्या कर रही हो?”
काली अपने अधनंगे बदन पर हाथ फेरते हुए, “आप ही ने यह कपड़े मुझे दिलाए थे! मैं आप के हुकुम से गद्दे पर सोने आई हूं।”
अमर ने अपने लौड़े पर अपनी चादर दबाकर, “बाहर सोफे के गद्दे पर तुम्हारे सोने का इंतजाम कर दिया है। तुम वहां सो जाओ!”
काली सोचते हुए, “तो वह जो TV पर आप कल रात देख रहे थे वह आप मेरे साथ नहीं करना चाहते? (अमर ने सर ना में हिलाकर झूठ कहा) क्या आप को साहूकार की तरह लड़के पसंद हैं?”
अमर चौंक कर, “नहीं!… देखो काली… तुम कुंवारी हो। तुम्हारी पहली… तुम किसी खास के साथ अपना पहला अनुभव… मतलब…”
काली की आंखों में आंसू भर आए। उसने अपना सर झुकाकर हां कहा।
काली, “मैं समझ गई। फुलवा दीदी की झिल्ली भी एक डॉक्टर ने 2 बार सील कर उसे तीन बार कुंवारी बनाकर बेचा था। आप भी मुझे बेचने के लिए लाए हो!”
काली उठने लगी तो अमर ने उसे पकड़ कर अपने पास बिठाया।
अमर, “काली, मैं कसम खाकर कहता हूं कि मैं तुम्हें नहीं बेचने वाला। लेकिन मैं अब दुबारा शादी नहीं करने वाला और तुम्हारा पहला अनुभव किसी ऐसे के साथ होना चाहिए जो तुम्हारे साथ अपनी पूरी जिंदगी गुजरे।”
काली, “क्या आप की बीवी के पास जाने से पहले आप लड़की से अंजान थे?”
अमर, “नहीं, कॉलेज में मेरी girlfriend थी।”
काली, “क्या वह लड़की कुंवारी थी?”
अमर सवालों की दिशा पहचानकर, “नहीं! पर इसका मतलब…”
काली, “तो अमीर लोगोंको पहली बार की अहमियत नहीं होती? या यह अहमियत सिर्फ मेरे लिए है?”
अमर गुस्से में, “आखिर चाहती क्या हो मुझसे?”
काली गहरी सांस लेकर, “मुझे यकीन दिलाइए की आप मुझे रण्डी बना कर बार बार नहीं बेचेंगे!”
अमर, “वही तो कर रहा हूं! ठीक है, बताओ क्या करने से तुम्हें विश्वास होगा?”
काली डरकर, “मेरी झिल्ली फाड़ दीजिए। मुझे बिकने लायक मत रखना! मैं आप की गुलाम हूं, मुझे अपना बनाइए!”
अमर की सब्र का बांध टूट रहा था। उसके अंदर का जानवर सामने की मादा पर झपटने के लिए गुर्रा रहा था।
अमर गहरी सांस लेकर, “काली, अगर मैं तुम्हारे साथ वह सब कर दूं तो तुम पेट से हो सकती हो। (दिमाग तेजी से दौड़ते हुए) कोई अपनी गुलाम से बच्चा नहीं चाहता और मैं दुबारा शादी नहीं करने वाला! इस लिए मैं तुम्हें नहीं ले सकता।”
काली चुपके से, “गांव में भी बच्चा गिराए जाने के बारे में मैंने सुना है। बच्चा ना होने के लिए दवा भी होती है।”
अमर डॉक्टर की तरह समझाते हुए, “बच्चा गिराना बेहद दर्दनाक और खतरनाक काम होता है। गोलियां आसन और सुरक्षित होती हैं पर उन्हें मासिक धर्म शुरू होने पर शुरू करना होता है। गोलियों को असर करने में एक महीने का वक्त लगता है। समझी?”
काली, “इसका मतलब, आप मेरी दूसरी मासिक धर्म के बाद मेरी झिल्ली फाड़ेंगे।”
अमर काली को टालते हुए, “उस से पहले तुम्हारे साथ करना मेरे लिए खतरनाक होगा।”
काली, “क्या औरत की झिल्ली फाड़े बगैर मर्द मजा ले सकते हैं? (अमर को हक्काबक्का देख कर) TV की औरतें मर्द के साथ कई तरीके से करते हुए दिखी।”
अमर जानता था कि जवान लड़की अगर इस सवाल का जवाब ढूंढने निकले तो जवाब देने के लिए मर्दों की कतारें लग जाएंगी।
अमर, “देखो, मर्द जब औरत के साथ वह काम करता है तो उसके गुप्त अंग में से एक रस निकलता है। इस रस से औरत को गर्भ रह जाता है और उसके निकलने पर मर्द को खुशी या संतोष का अनुभव होता है। जब औरत नहीं होती या औरत उस रस को अपने अंदर लेकर खतरा मोल नहीं लेना चाहती तब रस को अलग तरह से निकालकर मर्द संतोष का अनुभव कर सकता है।”
काली, “क्या आप मुझे दिखाएंगे की आप को बिना औरत के संतोष कैसे मिलता है?”
अमर हिचकिचाया तो काली, “आप को मेरा चेहरा पसंद नही तो आप TV लगा कर वह देख सकते हो। मुझे बुरा नहीं लगेगा।”
अमर, “काली, तुम जैसी हो, अच्छी हो! मैने ऐसे कभी…”
काली, “कॉलेज की लड़की के सामने कभी किया नहीं था? या बीवी के सामने?”
अमर, “किया था पर…”
काली, “मैं पराई हूं… आप जिसे बेचोगे उसे यह अनुभव मिलना चाहिए…”
अमर, “रुको!!… ठीक है!!… (अपनी अंडरवियर उतार कर) सिर्फ देखना! कुछ भी करना मना है!”
अमर के 7 इंच लंबे 3 इंच मोटे खंबे को छत की ओर इशारा करते हुए देख कर काली दंग रह गई थी।
काली, “मेरे छोटे भाई का इतना सा है, आप का ऐसे कैसे हो गया?”
अमर हंसकर, “जवानी के साथ इंसान के बदन में कुछ बदलाव होते हैं। तुम भी तो कुछ बदली होगी?”
काली ने अपने हाथ को बढ़ाकर एक उंगली से लौड़े के जड़ के नीचे की चिकनी त्वचा को छू लिया और अमर ने ऐसे आवाज निकली मानो उसे जल गया हो।
काली, “मेरे यहां पर काफी घने और घुंगराले बाल हैं। क्या मर्दों को नहीं होते?”
अमर, “मेरी कॉलेज गर्लफ्रेंड को उन से तकलीफ होती थी तो मैंने उन्हें साफ करना शुरू किया।”
काली सोचते हुए, “उन बालों से भला क्या तकलीफ होती है? आपका भी मासिक धर्म में खून निकलता है क्या?”
अमर, “नहीं!! चूसते हुए उसके नाक में गुदगुदी होती थी और कभी कभी मुंह में बाल आ जाते थे!”
काली की फैली आंखें और खुला मुंह बता रहा था की अमर ने यह बता कर बहुत बड़ी गलती कर दी थी।
अमर, “बहुत हुआ!… बाहर जाकर सो जाओ!!”
काली ने अपने सर को झुकाया और बाहर चली गई। अमर देर तक करवटें बदलता रहा पर नींद उस से कोसों दूर थी। आखिरकार थक कर आधे घंटे बाद अमर बाहर गया तो उसने देखा की काली नीचे जमीन पर बैठी अपने घुटनों को अपने सीने से लगाकर सिसक रही थी।
अमर ने काली के कंधे पर हाथ रखा तो वह चौंक कर देखने लगी। काली की आंखों से बहते आंसू देख अमर पिघल गया।
काली, “माफ करना मालिक! मैं आप को जगाना नहीं चाहती थी।”
अमर, “तुमने मुझे नहीं जगाया। बताओ, क्यों रो रही हो?”
काली, “मुझे अकेले में डर लगता है।”
अमर ने कुछ देर के लिए सोचा और फिर गहरी सांस लेकर मानो हिम्मत जुटाई। अमर ने कपड़ों के थैली में से एक गाउन निकाला और काली को कैसे पहनना है वह दिखाया।
अमर, “तुम मेरे साथ मेरे गद्दे पर सो सकती हो पर मुझे बिल्कुल छूना नही! समझी?”
काली ने गाउन पहन कर अपना सर हिलाकर हां कहा।
जब अमर पेशाब कर अपने गद्दे पर लौटा तो काली गद्दे के एक कोने में दूसरी तरफ मुंह कर लेटी हुई थी। अमर भी चुपचाप लेट गया।
दोनों को पता भी नहीं चला की कब नींद उन पर हावी हो गई।