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Adultery Shital ka samarpan

Bunty4g

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नमस्कार दोस्तों, मैं बंटी एक बार फिर से आपका स्वागत करता हूँ और पेश करता हूँ आपलोगों की मनपसंद कहानी "शीतल का समर्पण". इस कहानी को आप सबने बहुत पसंद किया है और इसी वजह से मैं फिर से इसे यहाँ आपलोगों के लिए प्रस्तुत कर रहा हूँ।

इस कहानी के सभी पात्र काल्पनिक है और उनका किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति से कोई सम्बन्ध नहीं है और अगर ऐसा कुछ होता है तो यह मात्र एक संयोग हो सकता है। इस कहानी का उद्देश्य सिर्फ लोगों का मनोरंजन करना है और किसी भी धर्म, जाती, भाषा, समुदाय का अपमान करना नहीं।

इस कहानी के कुछ दृश्य आपको विचलित कर सकते हैं, पाठकगण कृपया अपने विवेक से निर्णय लें। यह कहानी मात्र वयस्कों के लिए लिखी गयी है, इसलिए 18 वर्ष से अधिक की उम्र होने पर ही आप इस कहानी को पढ़ें।

आपके कमेंट और सुझाव सादर आमंत्रित हैं जिससे मुझे खुद को और कहानी को बेहतर बनाने में सहयोग मिले। आशा करता हूँ की यहाँ भी आप इसे पसंद करेंगे और मेरा उत्साहवर्धन करते रहेंगे। धन्यवाद
 
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Bunty4g

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ये कहानी है शीतल की। शीतल के समर्पण की। मात्र 23 साल की शीतल शर्मा अपनी कमसिन काया से किसी भी मर्द के जिस्म में उबाल ला सकती थी। शीतल बेहद खूबसूरत और मासूम चेहरे वाली लड़की थी जिसका कमसिन जिस्म कातिल अंदाज़ का था। 32-26-34 के फिगर के साथ किसी भी देखनेवाले को वो मदमस्त कर सकती थी। लेकिन इस मादक जिस्म के वाबजूद शीतल एक बेहद ही शरीफ लड़की थी और यकीन मानिये की उसका कभी किसी के साथ कोई चक्कर नहीं रहा।

बचपन से वो लड़कों को अपनी तरफ आकर्षित होता देखती आयी थी और बहुत ही सलीके से इसे इग्नोर भी करती आई थी। वो ऐसे माहौल में पली बढ़ी थी, जहाँ लोगों की मदद करना, शिष्टाचार से रहना सीखी थी। घमंड और बदतमीज़ी से कोसों दूर थी इस कहानी की हेरोइन शीतल शर्मा।

अमीर और बड़े घर में पली बढ़ी शीतल की अभी नयी नयी शादी हुई थी। अभी वो मात्र 23 साल की थी और अपने जवान जिस्म और मन में ढेरों अरमान लिए वो अपने पति के घर आई थी। उसका पति विकास एक बैंक में काम करता था। अभी शीतल की शादी के 3 महीने हुए थे और ये तीन महीने बड़े ही मज़े से गुजरे थे शीतल के।

पति के साथ मालदीव में एक शानदार हनीमून मनाकर लौटी थी शीतल। उसके मन में अपने होने वाले पति के लिए जो जो अरमान थे, वो सब पूरा करता था विकास। विकास हैंडसम था और साथ ही साथ अपनी बीवी का बहुत खयाल रखता था। वो भी शीतल जैसी पत्नी पाकर बहुत खुश था और दोनों एक दूसरे से प्यार करते हुए दिन बिता रहे थे। शीतल अपनी जिंदगी से पूरी तरह खुश थी और उसे अपने जीवन से कोई समस्या, कोई कमी नहीं थी।

विकास का ट्रांसफर अब एक दूसरे शहर में हो गया था। विकास नए शहर में जाकर ज्वाइन कर चुका था और जब तक वो वहाँ शिफ्ट नहीं करता, तब तक उसने अपनी अप्सरा जैसी बीवी को अपने घर में अपने मम्मी पापा के पास पहुँचा दिया था।

एक सप्ताह बीत चुका था लेकिन विकास को उस नए शहर में ढंग का घर नहीं मिल पा रहा था। विकास होटल में रहा था पुरे सप्ताह और उसकी नयी नवेली बीवी अपने ससुराल में। दोनों एक दूजे से दूर ऐसे दिन बिता रहे थे जैसे 5 दिन नहीं, सदियाँ बीत गयी हों। शुक्रवार की रात में जब दोनों का मिलन हुआ तो ऐसा लगा जैसे कितने जनम बाद दोनों मिले हों।

2 दिन रहने के बाद फिर से विकास अपने काम पे चला गया और फिर से दोनों विरह की आग में दिन गुजारने लगे। ये सप्ताह विकास ने किसी तरह गुजारा और एक घर रेंट पे ले लिया। विकास को कोई घर मिल ही नहीं रहा था जिसमे वो सपरिवार यहाँ रह सके।

विकास के बैंक के पियोन मक़सूद ने उसे एक घर बताया जिसे विकास ने आनन फानन में देखकर पसंद भी कर लिया रेंट पे लेने के लिए एडवांस भुगतान भी कर दिया। वो खुश था कि अब उसे और दूर नहीं रहना पड़ेगा अपनी बीवी से।


विकास ने जिस घर को रेंट पर लिया था वो एक मुसलमान का घर था। घर का मालिक वसीम खान 50 साल की उम्र का अधेड़ व्यक्ति था और वो अकेला रहता था। मक़सूद ने बताया था कि उसकी बीवी की एक दुर्घटना में मौत हो गयी थी और उसके बच्चे बाहर में रहते हैं। वसीम के बांकी रिश्तेदार गाँव में रहते हैं, बस वही यहाँ शहर में रहता है और मेन रोड में इसकी जूतों की एक अच्छी सी दुकान है।

वसीम का घर बहुत बड़ा था और उसने पूरा ग्राउंड फ्लोर विकास को किराया पर दे दिया था। बाहर एक बड़ा सा गेट था और उससे सटा हुआ ही एक छोटा सा गेट था। गेट के ऊपर पोर्टिको था जिसके नीचे गैरेज एरिया था। गेट से अंदर घुसते ही दाहिनी तरफ एक दरवाजा था जिसके अंदर 3 बेड रूम, बड़ा सा हॉल, बड़ा सा किचन सहित एक छोटा सा कमरा भी था जो विकास को किराए पर मिला था। पुरे घर में अच्छे क्वालिटी का मार्बल लगा हुआ था, हर कमरे में कबर्ड बना हुआ था और पूरा घर बहुत अच्छा बना हुआ था।

उस दरवाजे के बगल से ही एक सीढ़ी ऊपर छत पर जाती थी। छत पर पहुँचते ही बाएं तरफ एक छोटा सा कमरा बना हुआ था जो कबाड़ और पुरानी चीजों से भरा हुआ था। उसके बाद आधा छत खाली था और उसके बाद 1 बैडरूम, हॉल, किचन वाला घर बना हुआ था, जिसमे वसीम खान अकेला रहता था। पुरे छत पे चारो तरफ से 4' की बाउंडरी की हुई थी।

घर जितना बड़ा था, उस हिसाब से विकास को कम किराये पर ही वो मिला था। विकास शुक्रवार को रात में घर गया और रविवार को सारे सामानों और शीतल के साथ नए घर में शिफ्ट होने आ गया। शीतल को भी ये घर बहुत पसंद आया था। पिछला वाला घर जिसमे वो रही थी, वो थोड़ा छोटा था लेकिन ये घर शीतल की पसंद के अनुसार था।

नया जगह था, नए नए लोग थे तो शीतल को अजीब भी लग रहा था, लेकिन उसे ख़ुशी थी की वो अपने पति के साथ है। शीतल के मम्मी, पापा और बहन संजना भी यहाँ कुछ दिन के लिए आए और फिर उसके सास ससुर और ननद विनीता भी। सबको ये घर बहुत पसंद था।

शीतल बेहद हसीं थी और अमीर और खुले विचारों वाले घर के होने की वजह से उसके कपड़े भी आधुनिक डिजाईन के ही थे। शीतल शादी के पहले भी ज्यादातर कपड़े इंडियन एथनिक डिजाईन के ही पहनती थी और अब शादी के बाद भी वो ऐसा ही करती थी। लेकिन उन कपड़ों में थोड़ा खुलापन होता था और ये आम बात थी शीतल के लिए। और शीतल ऐसी थी की वो जो कुछ भी पहने, लोगों को अच्छी ही लगती थी।

नयी नयी शादी होने की वजह से उसका बदन भी थोड़ा खिल गया था और मेकअप और ज्वैलरी की वजह से वो और भी ज्यादा हसीन लगती थी। बड़ी बड़ी ऑंखें और उन आँखों में काजल, पहले से ही गुलाबी होठ और उन होठों पे बस लिप ग्लोज लगाने से होठ लाल हो जाते थे। माँग में सिन्दूर, पुरे हाथों में भरी भरी चूड़ियाँ, पैरों में पायल, बिछिया, अंगूठी। जब शीतल चलती थी तो पायल और चूड़ियों की आवाज़ घर में छन छन कर गूँजते रहते थे।

जब शीतल घर से बाहर निकलती थी तो सब उसे देखते रहते थे। औरतें ये सोचती थी की कितनी अच्छी है और मर्द ये सोचते थे की क्या मस्त माल है। शीतल को इन सब की आदत बचपन से ही थी और अगर वो किसी को खुद को देखते या घूरते देखती थी, तो उसे वो आसानी से इग्नोर कर देती थी।


2-3 महीने होते होते शीतल की खूबसूरती की चर्चा पुरे मोहल्ले में होने लगी थी। शीतल भीड़ में भी चमक जाती थी। लेकिन इन सबसे अंजान वो मज़े से अपनी ज़िंदगी जी रही थी। विकास भी इतनी खूबसूरत बीवी पाकर बहुत खुश था। हालाँकि उसने शीतल को बताया था कि जब तुम मार्केट जाती हो तो सब तुम्हे घूरते रहते हैं। कभी कभी तो शीतल हंसकर बात टाल जाती और कभी कभी बोलती की ये बचपन से देखती आ रही हूँ।

विकास को भी ये बात पता था कि खूबसूरत लड़कियों और औरतों को सब कैसे देखते हैं, और अगर शीतल जैसी नयी नवेली दुल्हन छोटे शहर में रोड पे निकले, तो लोग तो आँखें फाड़ कर देखेंगे ही। विकास ने शीतल को कभी किसी चीज़ के लिए मना नहीं किया और ना ही कभी ये बोला की कैसी ड्रेस पहनो या नहीं पहनो। उसे भी अच्छा लगता था कि सब उसकी बीवी की तारीफ करते हैं या उसकी बीवी की सुंदरता के सब दिवाने हैं।

वसीम रोज सुबह 9 बजे अपनी जूतों की दुकान पर चला जाता था और फिर दोपहर में 1 बजे आता था। 2 घंटे घर में आराम करने के बाद वो फिर 3 बजे अपने दुकान के लिए निकल जाता था। फिर रात में 8 बजे वो दूकान बढ़ाने के बाद वापस घर पे आता था और फिर सो जाता था। ये उसका रोज का नियम था। अपने सारे काम भी वो खुद करता था। खुद खाना बनाना, साफ सफाई करना, कपड़े धोने इत्यादि सारे काम वो खुद करता था और उसने अपने घर के लिए कोई नौकर नहीं रखा था। हाँ, दुकान पर 2 स्टाफ रखे हुए थे।


विकास भी सुबह 9 बजे तक नहा धो कर रेडी हो जाता था और अपनी प्यारी बीवी के हाथों का बना नाश्ता करके और लंच लेकर वो ऑफिस चला जाता था और फिर शाम में 6-7 बजे तक वापस आता था। दोनों की ज़िंदगी बड़े प्यार और मस्ती के साथ कट रही थी। जब उसके घर से सारे गेस्ट वापस चले गए तो दोनों फिर से एक सप्ताह के लिए एक हिल स्टेशन से घूम आये थे।

शीतल और विकास दोनों अभी अपनी शादी शुदा ज़िन्दगी की पूरी मस्ती उठाना चाहते थे, और दोनों में से कोई भी अभी बच्चा नहीं चाहता था। शीतल को उसके घरवालों और ससुरालवालों दोनों ने बोला था इसके लिए, लेकिन विकास नहीं चाहता था तो वो भी अपने पति की इच्छा में शामिल थी।

शादी के बाद जब पहली बार शीतल को मेन्सट्रूअल पीरियड हुआ, तभी दोनों ने ये डीसाइड कर लिया था कि पहला बच्चा 2 साल बाद प्लान करेंगे और विकास ने शीतल को 6 महीने तक गर्भधारण रोकने वाली दवाई ला कर खिला दिया था। अब जब शीतल की शादी के 6 महीने हो गए थे तो विकास ने फिर से वही गोली शीतल को खिला दिया था, जिससे अब शीतल फिर से 6 महीने के लिए गर्भवती नहीं होती।


दोनों फुल मस्ती कर रहे थे और शीतल अपनी शादीशुदा जिंदगी से बहुत खुश थी। जब उसकी शादी हो रही थी तो उसे लगा भी था कि इतने कम उम्र में उसकी शादी क्यों हो रही है, लेकिन अब उसे लग रहा था कि शादी करके उसके माँ बाप ने उसके साथ बहुत अच्छा किया था।
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शीतल रोज सवेरे जागती और नित्य क्रिया के बाद नहाकर फिर पूजा करती थी और फिर चाय बनाकर विकास को जगाती थी और फिर नाश्ता बनाने में लग जाती थी। विकास के जाने से पहले वो नाश्ता और लंच बना लेती थी और विकास को दे देती थी। उसके बाद उसके पास कुछ विशेष काम रह नहीं जाता था।

शीतल अपने कपड़े छत पर सूखने देती थी। आधा छत जो खाली था, उसपे कपड़े टाँगने के लिए रस्सी बंधी हुई थी और शीतल वहीँ पे अपने कपड़े सूखने के लिए फैलाती थी। वो विकास के जाने के बाद अपने कपड़े छत पे फैला देती थी और शाम में उन्हें नीचे अपने पास ले आती थी।

आज जब शीतल अपने कपड़े लेकर अपने रूम में आयी और उसे समेट कर उसकी जगह पर रखने लगी तो उसकी नज़र अपने पैंटी पर गयी। शीतल के पैंटी ब्रा भी महंगे और डिज़ाइनर थे। उसे अपनी पैंटी थोड़ी टाइट लगी। शीतल पैंटी को उलट पुलट कर देखने लगी, लेकिन उसे कुछ समझ नहीं आया। उसे लगा की हो सकता है कि सुबह में ठीक से साफ़ नहीं हुआ होगा।


अगले दिन भी यही हुआ। आज भी जब शीतल अपनी पैंटी को मोड़ कर रखने लगी तो उसे अपना पैंटी काफी कड़ा जैसा लग रहा था। शीतल आज सुबह पैंटी को अच्छे से साफ की थी और ये उसे याद था। वो पैंटी को गौर से देखने लगी और सामने वाला हिस्सा अंदर से जो उसकी चुत के सामने होता, वहाँ कुछ दाग जैसा था, और वही कड़ा था।

उसे समझ नहीं आया की ये क्या है। वो जो पैंटी अभी पहनी हुई थी, उसे देखि तो उसकी पैंटी सुखी हुई थी और ऐसा कुछ भी नहीं लगा हुआ था वहाँ। रात में वो विकास के साथ सेक्स भी नहीं की थी। वो आज भी इग्नोर कर दी और पैंटी को मोड़ कर रख ली।

अगले दिन नहाने के बाद वो पैंटी को अच्छे से देखि और उसे अच्छे से साफ की। आज भी जब वो कपड़े उठाने गयी तो सबसे पहले वो वहीँ छत पे ही अपनी पैंटी देखने लगी। वो अपनी पैंटी ब्रा को खुल्ले में नहीं सूखने देती थी, उसके ऊपर कोई और कपड़ा रख दिया करती थी। उसकी पैंटी का अंदरूनी हिस्सा आज भी कड़ा हो गया था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि ये हो क्या रहा है। उसे लगा की कहीं उसे कोई बीमारी तो नहीं है या कहीं वो जो डिटर्जेंट इस्तेमाल कर रही है, उसमे तो कोई समस्या नहीं है। लेकिन इसी डिटर्जेंट को तो वो बहुत दिनों से इस्तेमाल कर रही थी।

आज शीतल जो पैंटी ब्रा पहनी हुई थी, वो उसे विकास ने हनीमून पर खरीद दिया था। ये डिज़ाइनर पैंटी ब्रा था और पूरी तरह से ट्रांसपेरेंट था। शीतल इसे बस आज दूसरी बार पहन रही थी। अगले दिन जब शीतल कपड़े उठाने गयी तो आज भी वो छत पे ही सबसे पहले अपनी पैंटी को देखी। उसकी गुलाबी डिज़ाइनर पारदर्शी पैंटी का अंदरूनी हिस्सा भी टाइट था।

शीतल पैंटी को गौर से देखने लगी तो उसे कुछ दाग जैसा नज़र आया। पैंटी का जो हिस्सा चुत के सामने होता है, वहाँ कुछ ऐसा दाग था जैसे कोई लिक्विड बूंद बूंद करके वहाँ गिरा हो। ये पैंटी नयी थी और शीतल इसे सुबह में अच्छे से साफ की थी।

शीतल उस दाग को अच्छे से देखने लगी और फिर उसे छू कर देखने लगी की वो क्या हो सकता है। उसे कुछ समझ नहीं आया तो वो पैंटी को नाक के पास ले आयी और उसे सूँघने लगी। एक अजीब सी गंध शीतल के नाक में गयी, जो उसे बहुत अच्छा लगा था। वो फिर से उसे सूँघने जा रही थी तो फिर उसे ख्याल आया की वो छत पे है और अगर कोई उसे इस तरह अपनी पैंटी सूंघते देख रहा होगा तो वो क्या सोंचेगा। शीतल शर्मा शर्मा गयी और जल्दी से मुस्कुराते हुए सारे कपड़े उठायी और नीचे ले आयी।

नीचे आते ही शीतल सारे कपड़ों को बेड पर फेंकी और पैंटी उठाकर उसे देखने लगी और फिर से सूँघने लगी। वो गहरी साँस लेकर पैंटी सूँघ रही थी और उस खुशबू को अपने सीने में भर रही थी। उसे बहुत अच्छा लग रहा था। पैंटी का वो हिस्सा जहाँ दाग लगा हुआ था, शीतल के नाक से सटा हुआ था और शीतल उसे सूँघ रही थी और फिर भी उसका मन नहीं भर रहा था।

पैंटी शीतल के होठ में सट रहा था और खुद ब खुद शीतल की जबान बाहर निकल आयी और शीतल अपनी पैंटी के उस हिस्से को चाट कर देखने लगी। एक अजीब सा नशा चढ़ रहा था उसके ऊपर। जो पैंटी वो अभी पहनी हुई थी, वो भी गीली होने लगी थी। उसे समझ में नहीं आ रहा था की उसकी पैंटी से ऐसी खुशबू क्यों आ रही है, लेकिन ये खुशबू उसे मदहोश कर रही थी। शीतल के जेहन में वो खुशबू बस गयी थी।

आमतौर पर शीतल शाम के वक़्त कपड़े उठाने छत पे जाती थी, लेकिन अगले दिन वो थोड़ी जल्दी ही कपड़े लाने छत पे चली गयी। उसे देखना था कि आज भी उसकी पैंटी से वही खुशबू आ रही है क्या। आज भी वो सबसे पहले अपनी पैंटी के पास ही पहुँची और उसे उठायी।

शीतल के दिल की धड़कन तेज़ हो गयी। पैंटी पर चुत वाली जगह पर कुछ लिक्विड गिरा हुआ था जो अभी पूरी तरह सूखा नहीं था और इसलिए शीतल की पैंटी थोड़ी गीली ही थी। शीतल इधर उधर देखी और जब उसे कोई नहीं दिखा तो वो अपनी गीली पैंटी को नाक के पास लेकर सूँघि। वही खुशबू ..... कल से थोड़ी ज्यादा।

शीतल जल्दी से बाँकी कपड़ों को उठायी और जल्दी से नीचे जाने लगी। वो अभी सीढ़ियों पर ही पहुँची थी। यहाँ उसे कोई नहीं देख सकता था। वो अपनी पैंटी को सूँघने लगी। वो अपने कमरे में आयी और सारे कपड़ो को बेड पे फेंकी और फिर अच्छे से लाइट में पैंटी पे लगे दाग को देखने लगी। उसे समझ नही आ रहा था कि ये किस चीज़ का दाग उसकी पैंटी पर लग रहा है। लेकिन उसे वो खुशबू बहुत अच्छा लग रहा था। वो आज भी पैंटी को अपनी जीभ से सटा कर देखी तो उसे वो टेस्ट भी अजीब सा, लेकिन अच्छा लगा था।

शीतल न तो कभी अपने पति का लण्ड चूसी थी और न ही कभी विकास ने उसे ऐसा करने को कहा था। विकास ने भी शीतल की चुत को कभी भी चाटा चूसा नहीं था। शीतल अभी तक कभी भी ठीक से पोर्न भी नहीं देखी थी। 2-4 बार उसकी सहेलियों ने उसे छुप छुपा कर दिखाया था, लेकिन थोड़ा सा देखने के बाद वो मना कर देती थी और कहती थी की "छिह, ये क्या गन्दा गन्दा चीज़ देख रही हो तुमलोग।" एक बार विकास ने भी उसे दिखाया था तो शीतल विकास को भी डाँट दी थी की "ये सब देखने में तुम्हे शर्म नहीं आती की दूसरी लड़कियों को ये सब करता देख रहे हो। और ये लड़कियाँ कितनी गन्दी और बेशर्म हैं, इन्हें शर्म नहीं आती की इस तरह सबके सामने ये काम करवा रही हैं।"


शीतल को समझ नहीं आया की उसकी पैंटी पे सूखने के बाद कौन सा दाग लग जाता है और ये किस चीज़ की खुशबू है। वो सुबह नहाने से पहले भी अपनी पैंटी को सूंघकर देखी थी, लेकिन उस वक़्त उसे बहुत घिन्न आयी थी। शीतल इसी निष्कर्ष पर पहुँची थी की आसपास का कोई लड़का उसकी पैंटी पर कोई परफ्यूम की बूंदें गिरा जाता होगा।

शीतल ये सोच कर शर्मा भी गयी थी की कोई लड़का उसकी पैंटी ब्रा को देखता है, छूता है। उसे शर्म लग रहा था कि वो कैसी कैसी पैंटी ब्रा पहनती है, ये अगल बगल के किसी लड़के को पता होगी। लेकिन कौन होगा वो जो इस तरह करता है और इस तरह छत पे कौन आ सकता है। शीतल सोची की ये बात वो विकास को रात में बताएगी, लेकिन वो बता नहीं पाई।

वो खुशबू शीतल के दिमाग में रच बस गयी थी। अगले दिन शीतल थोड़ा और जल्दी कपड़े लेने छत पे आ गयी। उसकी पैंटी वहीँ थी और उसी कपड़े के नीचे थी, जहाँ वो सुबह में रख कर आई थी। लेकिन आज उसकी पैंटी और ज्यादा गीली थी और चुत के पास वाली जगह पर कोई गाढ़ा सफ़ेद द्रव लगा हुआ था, जिसे देखकर शीतल का दिमाग सन्न रह गया।

'ये तो वीर्य है !!!!' शीतल की शादी के 6 महीने हो गए थे और वो अब वीर्य को पहचानती थी। कन्फर्म होने के लिए वो अच्छे से पैंटी को देखी और उसका मन घृणा से और गुस्से से भर गया। वो इधर उधर देखने लगी जिससे उसे पता चल जाये की ये किसकी हरकत है और वो उसे इस गिरी हुई हरकत के लिए मज़ा चखाये। उसे बहुत गुस्सा आ रहा था कि कैसे कैसे पागल इंसान होते हैं।

उसका मन घृणा से भरा हुआ था कि किसी आदमी का वीर्य उसकी पैंटी पे लगा हुआ है और वो पैंटी वो हाथ से उठायी हुई है। वो विकास का वीर्य भी अपने बदन पे गिरने नहीं देती थी। जैसे ही विकास अपना लण्ड उसकी चुत से बाहर निकालता था, वो खुद भी साइड हो जाती थी और विकास को भी साइड कर देती थी, ताकि वीर्य टपक कर उसके बदन पे न गिर जाए और तुरंत ही अपनी पैंटी पहन लेती थी।

शीतल का मन हुआ की पैंटी को फेंक दे, लेकिन वो इस तरह खुलेआम पैंटी कहीं भी नहीं फेंक सकती थी। फिर अचानक उसके दिमाग में ये ख्याल आया की रोज तो उसकी पैंटी पे इस वीर्य का ही दाग लगता होगा, जिसे वो इस तरह सूँघती है और चाटती भी है। वो इस ख्याल से ही शर्मा गयी की वो किसी अनजान आदमी का वीर्य सूँघती है और चाटती भी है, और अभी जो पैंटी वो पहनी हुई है, उसका जो हिस्सा अभी उसकी चुत से सटा हुआ है, वहाँ भी उसी का वीर्य लगा हुआ है।

शीतल की पहनी हुई पैंटी गीली होने लगी। वो वहीँ छत पर ही पैंटी को सूँघि तो वही मदहोश कर देनेवाली खुशबू आ रही थी। और ज्यादा तेज़, और ज्यादा मादक। शीतल जल्दी से एक हाथ में बाँकी कपड़े उठायी और एक हाथ में पैंटी को ऐसे पकड़े हुए थी की वीर्य लगा हुआ हिस्सा ऊपर रहे और पोछा न जाये।

शीतल जैसे ही सीढ़ी पर पहुँची तो वो फिर से पैंटी पर लगे वीर्य को सूँघने लगी। आज उसे सबसे ज्यादा मज़ा आ रहा था। आज उसे पता था कि वो क्या सूँघ रही है। एक अनजान आदमी का वीर्य। उसकी चुत गीली हो रही थी। वो उस गाढ़े सफ़ेद ड्रा पर हल्का सा जीभ सटाई और फिर तुरंत हटा ली।

एक पल के लिए उसे बुरा लगा, लेकिन तुरंत उसे लगा की रोज़ तो चाटती ही हूँ। आज उसपे पूरा खुमार चढ़ रहा था। वो फिर से वीर्य को जीभ पे सटाई और अच्छे से उसका टेस्ट ली। उसकी चुत का गीलापन बढ़ गया।

शीतल रूम में आयी और बाँकी कपड़ों को फेंक कर अच्छे से पैंटी पे लगे वीर्य को देखने लगी और फिर सूँघने लगी। वो फिर से वीर्य पे जीभ सटाई और धीरे धीरे उसे चाटने लगी। वो किसी और आदमी का वीर्य चाट रही थी, जो वो अपने पति के साथ भी नहीं की थी। शीतल की चुत गीली होती जा रही थी। वो 2-3 बार अपने ड्रेस के ऊपर से ही अपनी चुत सहलाई। उसे इससे ज्यादा कुछ पता ही नहीं था।


रात में जब वो सोने आयी तो आज पहली बार वो पहल की और विकास से अपनी चुदाई करवाई। लेकिन आज पहली बार उसे लगा की जितना मज़ा आना चाहिए था, उतना मज़ा नहीं आया। उसे लगा की विकास को और अंदर तक लण्ड डालना चाहिए था। उसे लगा की विकास को और देर तक उसे चोदना चाहिए था। लेकिन वो कह न सकी। विकास करवट बदल कर सो गया और शीतल उसे पीछे से पकड़ कर उसके बदन से सटी हुई इस उम्मीद में सोने लगी की शायद विकास एक बार फिर से उसे चोदे। लेकिन उनलोगों में एक रात में दो बार चुदाई कभी नहीं हुई थी, तो आज भी नहीं हुई।

अगला दिन संडे था और विकास घर पे ही था और मकान मालिक वसीम चाचा कहीं बाहर गए हुए थे। आज जब शीतल अपने कपड़े लेकर आई तो उसकी पैंटी ऐसे ही थी। वो गौर से देखी, लेकिन उसे कुछ नहीं मिला। वो बाँकी दूसरे कपड़ों को देखने लगी की हो सकता है कि आज पैंटी की जगह ब्रा या किसी और कपड़े पर लगाया हो, लेकिन ऐसा नहीं था। शीतल को लगा की हो सकता है कि आज विकास घर पर है, इसलिए वो लड़का डर कर नहीं आया हो। शीतल खुश भी हुई लेकिन वो प्यासी ही रही उस मादक खुशबू के लिए।

शीतल का मूड ऑफ हो गया। विकास ने उससे पूछा भी की "क्या हुआ?" लेकिन शीतल कोई जवाब नहीं दी। शीतल की चुत में अंदर चींटियाँ चल रही थी। वो चाहती थी की विकास उसे आज दिन में ही चोद ले। लेकिन अपने संस्कार और शर्मों हया की वजह से वो रात में भी विकास को बोल नहीं पाई और विकास अपनी प्यासी बीवी को तड़पता हुआ छोड़ कर सो गया। वैसे भी वो लोग रोज सेक्स नहीं करते थे। विकास अगर चाहता भी था तो शीतल मना कर देती थी। और यही वजह है कि विकास आज कोई कोशिश ही नहीं किया था।

अब शीतल उस खुशबू के लिए पागल होने लगी थी। वो शाम का इंतज़ार कर रही थी की फिर से वीर्य को सूँघ पाए और उसे चाट पाए। वो जल्दी से छत पे जाना चाहती थी, ताकि ताज़ा वीर्य उसे मिले। लेकिन इसमें रिस्क था कि कहीं ऐसा न हो की वो लड़का उसकी पैंटी पे वीर्य गिरा ही ना पाए। और वैसे भी अभी छत पर वसीम चाचा थे।

वसीम के जाने के आधे घंटे तक शीतल बेचैनी से इधर उधर टहलती रही, ताकि उस लड़के को उसकी पैंटी पे वीर्य टपकाने का वक़्त मिल सके और फिर वो छत पे आ गयी। वो आते ही इधर उधर देखी की शायद कोई उसे दिख जाए, लेकिन उसे कोई नहीं दिखा। वो अपनी पैंटी उठायी।

उसके दिल की धड़कन तेज़ हो गयी। "उफ़्फ़" ताज़ा गरमा गरम वीर्य उसकी पैंटी पर चमक रहा था। वो वीर्य की खुशबू ली और उसकी चुत गीली हो गयी। वो बाँकी कपड़ों को उठायी और सीढ़ी पे आते ही वीर्य को सूँघने लगी और चाटने लगी। आज उसे वीर्य चाटने में कोई हिचकिचाहट नहीं हो रही थी।

वो नीचे आयी और अच्छे से वीर्य देखने और सूँघने लगी और फिर अच्छे से उसे चाटने लगी। अब उसे यकीन हो गया था कि वीर्य बहुत टेस्टी और मज़ेदार चीज़ है। वो उसे अच्छे से टेस्ट करना चाहती थी।

अगले दिन शीतल वसीम चाचा के जाते ही सीढ़ी का गेट आपस में सटा दी और गेट के नीचे से झांककर अपने कपड़े देखने लगी। उसे पूरा यकीन था कि अब वो लड़का आएगा और उसकी पैंटी पे वीर्य गिरायेगा। वो देखना चाहती थी की वो लड़का कौन है, और क्या क्या करता है उसकी पैंटी के साथ। कैसे वीर्य गिराता है। वो कभी लण्ड से वीर्य निकलते नहीं देखी थी। विकास हर बार उसकी चुत के अंदर ही वीर्य गिराता था।

आधे घंटे हो गए और जब कोई नहीं आया तो शीतल उदास हो गयी। उसका मन हुआ की कपड़े छत पे ही छोड़ देती हूँ। हो सकता है कि वो नहीं आया हो, बाद में आये। शीतल टहलती हुई छत पे आयी और बेमन से कपड़े उठाने लगी। जैसे ही वो पैंटी उठायी तो उसका कालेजा धक्क से रह गया।

उसकी पैंटी गीली थी और उसपर वीर्य लगा हुआ था। शीतल इधर उधर देखी, लेकिन उसे कोई नहीं दिखा। उसे यकीन नहीं हुआ की ऐसा कैसे हुआ। वसीम चाचा के जाने के तुरंत बाद वो सीढ़ी पे आकर छुप गयी थी और तब से लगातार अपने कपड़े पे नज़र बनाये हुए थी, लेकिन छत पर कोई नहीं आया था।

शीतल कपड़े नीचे ले आयी और फिर से पैंटी को सूँघने चाटने लगी। अब उससे बर्दाश्त नहीं हो रहा था। वो जानना चाहती थी की कौन ऐसा कर रहा है। उसकी चुत गीली हो गयी थी। रात में फिर से वो विकास के बदन से चिपक कर सोने लगी तो विकास उसके बदन को सहलाने लगा।

वो विकास का साथ देने लगी और आज फिर से उसकी चुदाई हुई, लेकिन आज भी शीतल को उसी तरह लगा की कुछ कमी रह गयी है। विकास का वीर्य तो उसकी चुत में गिर गया लेकिन उसकी चुत का रस निकला ही नहीं। शीतल चुदवाने के बाद भी उसी तरह प्यासी रही, जैसे दिन में थी।

अगले दिन आज फिर से शीतल वसीम चाचा के जाते ही सीढ़ियों पर आ गयी और गेट सटा कर अपने कपड़ों को देखने लगी। उसे लगा की हो सकता है कि कल उसने ठीक से ध्यान नहीं दिया हो। लेकिन आज भी कोई नहीं दिखा उसे। अभी 15 मिनट भी नहीं हुए थे की अब वो नहीं रुक पायी और छत पर आ गयी।

वो अपनी पैंटी के पास पहुँची तो उसके होश उड़ गए थे। उसकी पैंटी आज भी गीली थी और ताज़ा ताज़ा गरमा गरम वीर्य उसकी पैंटी पर चमक रहा था। शीतल शॉक्ड हो गयी थी। उसका दिमाग ठीक से काम नहीं कर रहा था। उसे भरोसा नहीं हो रहा था कि वो जो सोच रही है वो सच भी हो सकता है।

'क्या वसीम चाचा ऐसा करते हैं !!!!'
 

Bunty4g

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शीतल आज बहुत परेशान रही। उसने आज वीर्य के साथ कुछ नहीं किया। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसकी पैंटी पे वीर्य उसका मकान मालिक वसीम चाचा गिरा रहा था। शीतल के दिमाग में पिछले 6 महीने के सारे दृश्य आँखों के सामने से गुजर रहा था और उसे एक भी वाकया ऐसा याद नहीं आया जब उसने वसीम को खुद को घूरते पाया हो या उसमे इंटरेस्ट लेते देखा जो। और बाँकी सारे लोग उससे बात करना चाहते थे, उसे घूरते थे, उसके बदन के उतार चढ़ाव को देखते थे, लेकिन वसीम चाचा ने कभी ऐसी कोई हरकत की हो, शीतल को ये याद नहीं था।

विकास के ऑफिस का पियोन मक़सूद उसे बुरी तरह घूरता था। शीतल उस दिन को याद कर रही थी जिस दिन शीतल पहली बार यहाँ आयी थी और उसका सामान शिफ्ट हो रहा था, तो मक़सूद को विकास ने यहीं बुला लिया था मदद करने के लिए। मक़सूद ऐसे उसके बदन को निहार रहा था कि शीतल का बदन हिल गया था और उसकी आँखों में शीतल खुद को नंगी महसूस कर रही थी। उसके बाद भी जब जब मक़सूद ने उसे देखा है, उसी तरह देखा है। लेकिन वसीम चाचा जैसा आदमी जिसने कभी उसे ठीक से नज़र उठा कर भी नहीं देखा, ऐसी कोई हरकत करेगा, ऐसा उसकी समझ से परे था। लेकिन अभी तक जो उसे समझ रहा था, उसमे से तो यही बात निकल कर आ रही थी।

शीतल अभी तक ये बात किसी को नहीं बताई थी। अपने विकास को भी नहीं। वसीम के जाने के बाद शीतल छत पर आयी और प्लान बनाने लगी की कैसे वसीम चाचा को ये ओछी हरकत करते रंगे हाथों पकड़ा जा सके। वो पूरा प्लान बना ली और नीचे अपने रूम में चली गयी।

शीतल दोपहर में छत पर जाकर सीढ़ी के बगल में बने स्टोर रूम में जाकर छुप गयी और देखने लगी की कैसे क्या होता है। 1 बजने वाले थे और वसीम के आने का वक़्त हो ही चला था। थोड़ी ही देर में बाहर का मेन गेट खुलने की आवाज़ हुई तो शीतल और सतर्क होकर बैठ गयी। उसे डर भी लग रहा था और अजीब सी फीलिंग हो रही थी।

अचानक से उसके दिमाग में ये आया की 'वसीम चाचा तो 2 घंटे तक यहीं रहेंगे और वो तो यहाँ से निकल भी नहीं पायेगी। और अगर वसीम चाचा मेरी पैंटी पे वीर्य नहीं गिराते होंगे और उन्होंने मुझे यहाँ छुपी हुई देख लिया तो फिर वो मेरे बारे में क्या सोचेंगे।' अब तो वो यहाँ से निकल भी नहीं सकती थी। वो सीढ़ियों पर वसीम के चलने की आहट सुन रही थी और हर कदम के साथ उसकी धड़कन तेज़ हो रही थी।

वसीम ऊपर आया और सीधा चलता हुआ अपने घर में चला गया। जाते वक़्त वो शीतल की ब्रा पैंटी को देखता गया जो शीतल आज अच्छे से फैला कर सूखने के लिए टांगी थी। शीतल की डर से अब हालत खराब हो रही थी और वो सोच रही थी की किसी तरह से यहाँ निकला जाये। लेकिन वसीम के घर का दरवाजा खुला था तो वो यहाँ से बाहर नहीं निकल सकती थी।

लगभग 10 मिनट बीत गए थे और शीतल पसीने से भीग गयी थी। थोड़ी देर बाद वसीम अपने रूम से बाहर आया। उसने अपने कपड़े बदल लिए थे और अभी लुंगी और गंजी में था। शीतल अपनी सांसों को रोक ली। वसीम शीतल की पैंटी के पास आया और उसे गौर से निहारने लगा। वो लुंगी के ऊपर से अपने लण्ड को सहला रहा था।

वसीम की लुंगी सामने से खुली थी और जब वो लण्ड सहला रहा था तो शीतल को उसकी नंगी जाँघ दिख रही थी। वसीम ने इधर उधर देखा और फिर पैंटी और ब्रा को रस्सी से उतारकर मुँह के पास लाकर सूँघने लगा। फिर वसीम चलता हुआ स्टोर रूम के सामने आ गया क्यों की यहाँ से उसे दूसरे छत से कोई नहीं देख पाता।

शीतल वसीम को अपनी तरफ आता देखी तो उसकी ऊपर की साँस ऊपर और नीचे की साँस नीचे अटक गयी। वसीम अब स्टोर रूम के दरवाजे के ठीक सामने खड़ा था और दरवाजे में बने सुराख़ से उसके पीछे शीतल छुप कर वसीम को देख रही थी।

वसीम ने अब लुंगी को किनारे कर दिया और लण्ड बाहर निकाल कर उसे सहलाने लगा। शीतल और वसीम के बीच में मात्र 4-5 फिट का फासला था। शीतल की नज़र वसीम के लण्ड पर पड़ी और अचानक से शीतल को अपनी चुत पर चींटियाँ रेंगती हुई महसूस हुई। उसका मुँह खुला का खुला रह गया। 'इतना ब....ड़ा!' लण्ड इतना बड़ा भी होता होगा, ऐसा उसने सोचा भी नहीं था। पहली बार वो विकास के अलावा किसी और लण्ड देख रही थी और भी इतने करीब से।

वसीम ने शीतल की पैंटी को अपने लण्ड पर लपेट लिया और लण्ड को पकड़ कर हाथ आगे पीछे करने लगा। वसीम के एक हाथ में शीतल की ब्रा थी जिसे वो सूँघ रहा था और ऐसे मसल रहा था जैसे उसकी चुच्ची मसल रहा हो। वो ब्रा के निप्पल वाली जगह को चूम रहा था और दाँत में ऐसे फसा रहा था जैसे शीतल के निप्पल को दाँत से काट रहा हो। पैंटी को अपने लण्ड पे लपेट कर वो मुठ मारे जा रहा था।


वसीम के लण्ड को देखकर और उसे अपने पैंटी ब्रा के साथ इस तरह करता देख कर शीतल की चुत भी गीली हो गयी थी और साथ ही साथ उसे वसीम पे गुस्सा भी आ रहा था कि कितना नीच है ये इंसान। क्या यही वो इंसान है जिसके बारे में वो कितना अच्छा सोंचती थी और जिसके लिए उसके मन में कितनी इज़्ज़त थी।

थोड़ी देर तक वसीम इसी तरह करता रहा और फिर उसने ब्रा को स्टोर रूम की दिवार से बाहर निकले छड़ पर टाँग दिया और पैंटी को लण्ड से अलग कर लिया। उसने एक हाथ में पैंटी को अच्छे से इस तरह फैला लिया की उसके अंदर का वो हिस्सा जो चुत से सटा रहता है, वो उसके सामने था और दूसरे हाथ से लण्ड को सहलाता रहा।

अब शीतल को लण्ड और अच्छे से दिख रहा था। लण्ड अभी अपने फुल साइज में था। शीतल गौर से लण्ड को देख रही थी। उसके लम्बाई मोटाई को मापने की कोशिश कर रही थी। विकास के लण्ड का दोगुना लम्बा और तीन गुना मोटा। शीतल को चुत में खुजली सी महसूस हुई और उसका हाथ अपने आप अपनी चुत पर चला गया।

वसीम का लण्ड अब वीर्य उगलने वाला था। उसने लण्ड को छोड़ दिया और पैंटी को लण्ड के सामने ले आया। लण्ड अभी पूरी तरह अकड़ कर खड़ा था और 2-3 सेकंड बाद उसने एक झटका मारा। वसीम ने लण्ड को फिर से हाथ से पकड़ लिया और लण्ड से एक मोटी सी सफ़ेद सी धार निकली और पैंटी पर चुत वाली जगह पे जमा हो गया।

शीतल आँख फाड़े वसीम के लण्ड को देख रही थी की किस तरह लण्ड से वीर्य गिरता है। लण्ड झटका मार रहा था और हर झटके के साथ ढेर सारा वीर्य शीतल की पैंटी पर जमा होता जा रहा था। शीतल की चुत अचानक से बहुत गीली हो गयी थी।

वसीम ने पैंटी को स्टोर रूम के छड़ पर ठीक से रखा और जल्दी से ब्रा उठाकर लण्ड के सामने ले आया। अब वो अपने बीर्य को ब्रा के एक कप में भर रहा था। थोड़ी देर तक झटके मारने के बाद जब लण्ड ने वीर्य गिराना बंद कर दिया तो वसीम ने ब्रा के दूसरे कप से अपने लण्ड को अच्छे से पोछ लिया।


वसीम ने अपने लुंगी को ठीक किया और फिर अपने वीर्य से भरी शीतल की पैंटी और ब्रा को उसी जगह पर जैसे टँगा था, उसी तरह टाँग दिया और अपने कमरे में चला गया। शीतल के चुत की खुजली काम नहीं हो रही थी। वो अपनी जगह पर ही थी लेकिन अब उसका हाथ कपड़ों के अंदर जाकर उसकी गीली चुत पर था। शीतल नाईट सूट वाले टॉप ट्राउजर में था और उसका हाथ ट्राउजर और पैंटी के अंदर चुत पे था। शीतल अपनी चुत को सहला रही थी और उसका मन कर रहा था कि ऊँगली को चुत में डाले, लेकिन वो स्टोर रूम में थी और वहाँ उतना जगह भी नहीं था और वो छिप कर बैठी हुई थी।

शीतल की आँखों के सामने वही दृश्य बार बार घूम रहा था जब वसीम उसकी पैंटी और ब्रा को अपने वीर्य से भर रहा था। शीतल का मन हुआ की अपनी पैंटी और ब्रा को उठा ले और उसे सूँघे, चाटे, लेकिन वो ऐसा कर नहीं सकती थी। वसीम ने अपने घर का दरवाजा बंद कर लिया और अच्छा मौका देखते ही शीतल चुपके से स्टोर रूम से निकली और नीचे अपने रूम में आ गयी।


उसकी साँसे तेज़ चल रही थी और आँखों के सामने वसीम का विकराल लण्ड घूम रहा था और उससे ढेर सारा वीर्य झटके मारता हुआ गिर रहा था। वीर्य उसकी पैंटी और ब्रा पे गिरा हुआ था, लेकिन वो उसे ला नहीं पा रही थी। उससे नीचे रहा नहीं जा रहा था और वो वसीम के जाने का इंतज़ार कर रही थी।

शीतल हॉल में सोफे पर बैठ गयी थी और ट्राउजर और पैंटी को नीचे करके अपनी टाँगों को फैला ली थी और चुत सहला रही थी। अब उसे अच्छा लग रहा था। उसकी चुत पूरी गीली थी। उसकी ऊँगली चुत के छेद पर थी और फिर ऊँगली सरकती हुई गीली चुत के अंदर जा पहुँची। शीतल को और मज़ा आया और वो चुत में ऊँगली अंदर बाहर करने लगी। वो ज़िन्दगी में पहली बार ऐसा कर रही थी और उसे बहुत मज़ा आ रहा था।

वो पैंटी और ट्राउजर को पूरा नीचे कर दी और दोनों पैरों को पूरा फैलाकर चुत को अच्छे से फैला ली और सोफे पे अच्छे से लेटकर चुत में ऊँगली अंदर बाहर करने लगी। उसे नहीं पता था कि ऐसा करने पर इतना मज़ा आता है। शीतल को अपनी चूचियाँ भारी और टाइट लगने लगी। वो अपने टॉप को और ब्रा को भी ऊपर कर ली और एक हाथ से अपनी चुच्ची मसलने लगी। उसे और मज़ा आने लगा। वो अपने ही निप्पल को मसल रही थी और चुचियों को हिला रही थी।

वो पागल हुई जा रही थी। ऐसी अगन उसके बदन में आजतक नहीं लगी थी। उत्तेजना में उसके मुँह से आह ऊह की आवाज़ निकल रही थी और वो जोर जोर से चुत में ऊँगली अंदर बाहर करती जा रही थी। उसकी कमर ऊपर उठी और उसके चुत ने पानी छोड़ दिया। शीतल को अपनी ऊँगली पे चारो तरफ से झरने की तरह पानी गिरता हुआ महसूस हुआ और उसकी साँसे धौकनी की तरह चलने लगी।

शीतल ऊँगली चुत से निकाल ली और सोफे पर निढाल होकर गिर पड़ी। उसकी चुत से काम रस बहकर सोफे पे रिसने लगा। उसे बहुत मज़ा आया था। इतना मज़ा तो आजकल उसे विकास से चुदवा कर भी नहीं आया था। वो इसी तरह आँखें बंद किये सोफे पे लेटी रही।
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थोड़ी देर बाद शीतल के अंदर के संस्कार और शरीफ औरत जागी। उसे बुरा लगने लगा की वो ये क्या कर रही है। वो ठीक से बैठ गयी और अपने कपड़े ठीक कर ली। वो खुद से शर्मा रही थी। आज पहली बार वो इस तरह कपड़े उतारकर अपनी चुत में ऊँगली की थी। 'मैं एक शादीशुदा औरत हूँ और किसी और के बारे में सोचना भी पाप है। ये क्या हो गया था मुझे जो मैं इस तरह करने लगी थी। छिह... कितना गन्दा काम की मैं।'

शीतल को वसीम पे गुस्सा आने लगा की कितना घटिया इंसान है वो जो अपने से आधे उम्र की औरत के साथ ऐसा घटिया हरक़त करता है। 'ऐसा सोंचते हुए और करते हुए उसे घिन्न नहीं आयी। उसे बुरा नहीं लगा की वो मेरे कपड़ों को गन्दा कर रहा है। क्या मिला वसीम चाचा को ऐसा करके। आज विकास के आते ही मैं उसे ये सारी बात बताऊँगी और हम यह घर छोड़कर किसी और जगह घर ले लेंगे। दिन भर अकेली रहती हूँ। जो आदमी ऐसा सोचता है मेरे बारे में, पता नहीं कब क्या कर दे। नाह, मैं अब यहाँ रहूँगी ही नहीं।'

शीतल गहरी सोच में थी। उसके मन में कई तरह की बातें आती जा रही थी। 'ये मर्द जात होती ही ऐसी है। जहाँ सुन्दर औरत दिखी नहीं की लार टपकने लग जाती है। विकास ही कम है क्या। उस दिन दुकान में उस लड़की की क्लीवेज दिख रही थी तो कैसे झांक झांक कर देख रहा था उसे। उसके बगल में इतनी सुंदर बीवी थी, फिर भी वो दूसरे लड़की की चुच्ची झांक रहा था, वसीम चाचा तो फिर भी वर्षों से अकेले रहते हैं। लेकिन इन्होंने कभी मुझे घूरा नहीं है! क्या पता छुप छुप कर देखते हों। मैं थोड़े ही उन्हें देखते रहती थी की मुझे देख रहे की नहीं।'

'वो तो उनका बस नहीं चलता। वरना इस तरह अकेले में मेरे कपड़ों के साथ ऐसी छिछोरी हरकत करते हैं, तो मेरे बारे में सोंच कर ही करते होंगे। वो मेरी पैंटी और ब्रा पर नहीं, मुझे चोद कर मेरे चुत पे वीर्य गिराते होंगे। उनका बस चले तो पता नहीं क्या क्या करे मेरे साथ और कैसे कैसे करे। उन्हें शर्म भी नहीं। उनकी बेटी की उम्र की हूँ मैं।'

शीतल अपनी सोच में मगन थी। 'तो क्या हुआ। बेटी की ही उम्र की तो मक़सूद की भी हूँ। लेकिन वो तो ऐसे देखता है मेरे बदन को जैसे नंगी खड़ी हूँ मैं उसके सामने। और सिर्फ मक़सूद ही क्या, कितने लोग हैं जो इस तरह देखते हैं मुझे। और सब मेरे बारे में तो यही सब सोचते होंगे और सबके मन में ख्वाहिश तो यही होगी की मुझे चोदे, मेरे बदन को मसले। वसीम चाचा को मैं देख ली, बाँकी सब को नहीं देखी, बस यही अंतर है।'

'आखिर वसीम चाचा तो इतने सालों से अकेले रह रहे हैं। कम से कम मुझे मक़सूद या किसी और की तरह घूरते तो नहीं, मेरे बदन को आँखों से नापते तो नहीं। कम से कम मैं तो इतने दिन में कभी उन्हें खुद को देखते नहीं देखी। मुझे तो सब घूरते हैं। रिक्शेवाला, फलवाला, दुकानदार सब। और मेरे जैसी औरत को बिना घूरे रहना भी तो बहुत बड़ा काम है।'

'मेरे लिए ये कपड़े सामान्य हैं, मैं ऐसे ही कपड़े बचपन से पहनती आयी हूँ। लेकिन उनके लिए तो ये कपड़े बहुत ही सेक्सी होंगे। लेकिन मैं अब बुरका पहनकर भी तो नहीं रहूँगी। और मन में अगर कोई बात हो तो फिर कपड़ा कोई भी हो, अरमान तो मचलेंगे ही। फिर तो मैं साड़ी या सलवार सूट में भी आग लगाती हुई दिखूंगी उन्हें। मैं उनके सामने जाऊँगी ही नहीं। और जितनी जल्दी हो सके यहाँ से घर बदल लूँगी।'

'जो इंसान इतने समय से बिना औरत के गुजारा कर रहा है, उसके सामने अचानक से मेरे जैसी कमसिन, हसीन और सेक्सी औरत आ जाये, तो उसके मन के सोये अरमान तो जागेंगे ही। वो तो सच में वसीम चाचा जैसा आदमी है जो मुझे देखता भी नहीं है और जो भी करता है छुप छुपा कर करता है। अगर इनकी जगह कोई मक़सूद जैसा कोई आदमी होता तो कब का मेरा रेप कर चुका होता। विकास तो मेरे से एक सप्ताह दूर रहकर ही पागल होने लगा था।'

'नहीं, अब उनके सामने भी नहीं जाऊँगी। क्या पता वो भी खुद को नहीं रोक पाए या कभी ऐसा हुआ की वो भी मेरा रेप कर ही न दें। दिन भर तो अकेली ही रहती हूँ मैं। अब ये घर तुरंत बदलना है और यहाँ से दूर हो जाना है। यही मेरे लिए भी ठीक है और वसीम चाचा के लिए भी।

वो अपनी सोच में ही डूबी रही और वसीम के जाने की आहट सुनकर वो अपने ख्यालों के भंवर से बाहर निकली। वसीम के जाते ही शीतल छत पर आ गयी और अपने कपड़े समेटने लगी। उसकी पैंटी और ब्रा दोनों अभी भी गीले ही थे। कपड़े उठाते वक़्त वो सोच रही थी की अब से पैंटी ब्रा को छत पर सूखने देगी ही नहीं।

शीतल सारे कपड़ों को रूम में रखी और पैंटी ब्रा को धोने बाथरूम में आ गयी। पैंटी पे सफ़ेद वीर्य अभी तक हल्का हल्का दिख रहा था। उसकी आँखों के सामने वो दृश्य घूम गया। वसीम का लण्ड उसकी आँखों में चमक गया। उसके कितने सामने था। वो ब्रा भी देखने लगी। उसका भी कप अभी तक गीला था। शीतल लण्ड से वीर्य को गिरता देख रही थी की कैसे इतने बड़े और मोटे लण्ड से इतना सारा वीर्य गिरा था। शीतल कभी वीर्य को ऐसे गिरता नहीं देखी थी। विकास उसकी चुत में ही वीर्य गिराता था, लेकिन उसे अंदाज़ा था कि विकास के लण्ड से इसका आधा वीर्य भी नहीं गिरता होगा।


शीतल की चुत गीली होने लगी। फिर से उसपे खुमार छाने लगा। वो पैंटी को नाक के पास ले आयी और उफ़्फ़.... वही अजीब सी मदहोश कर देने वाली खुशबू उसके नथुने से टकराई जिसे वो अपने सीने में भरती चली गयी। वो वीर्य पे जीभ सटाई तो उसका वही टेस्ट मिला उसे जिसकी वो दीवानी थी। शीतल अपने जीभ की नोक से पैंटी पे लगे वीर्य को छुई थी तो अचानक से उसे एहसास हुआ की वो वसीम के लण्ड के टोपे पे जीभ सटाई है। उसे अजीब सा लगने लगा और वो शर्मा गयी।


शीतल का हाथ फिर से ट्राउजर के ऊपर से अपनी चुत पर चला गया। उसे मज़ा नहीं आया तो वो हाथ को पैंटी के अंदर कर दी। उसके बदन में आग लग रही थी। वो वापस हॉल में आ गयी और पैंटी ब्रा को सोफा पर रख दी और फिर अपने ट्राउजर और पैंटी को पूरा उतारकर रख दी। अभी भी उसका मन नहीं भरा तो वो टॉप और ब्रा को भी उतार दी और पूरी नंगी हो गयी। उसका बदन फिर से आग में पूरी तरह से तप रहा था।

शीतल सोफा पर बैठ गयी और हाथ में पैंटी लेकर उसे चाटने लगी और इमेजिन कर रही थी की वसीम उसी तरह उसके सामने खड़ा है और उसके लण्ड को वो चाट रही है। उसने पैंटी को रख दिया और ब्रा को उठा ली और सूँघने चाटने लगी। उसे सुकून नहीं मिल रहा था और ऐसा लग रहा था जैसे चुत के अंदर कुछ रेंग रहा हो। वो वसीम के वीर्य लगे पैंटी को चुत पे रगड़ने लगी और ऊँगली को चुत में डालकर ऊँगली अंदर बाहर करने लगी। वो पागलों की तरह अपनी कमर उछालने लगी जैसे वो चुद रही हो और उसकी चुत में उसकी ऊँगली नहीं, वसीम का मोटा काला लण्ड हो।

शीतल ब्रा के कप को अपने मुँह पे रख ली और हाथ के सहारे अपने जिस्म को ऊपर उठायी कमर उठाकर चुदवाने जैसे ऊँगली अंदर बाहर करते हुए कमर ऊपर नीचे करने लगी। वो जोर जोर से चुत में उँगली अंदर बाहर कर रही थी और इमेजिन कर रही थी की वसीम उसे फुल स्पीड में चोद रहा है। शीतल की चुत ने पानी का फव्वारा छोड़ दिया और शीतल हाँफती हुई सोफे पे निढाल हो कर पड़ गयी। पहली बार से ज्यादा हाँफ रही थी शीतल और पहली बार से ज्यादा मज़ा भी आया था उसे।

शीतल फिर से सोफे पे ही पड़ी रही। उसकी आंखें बंद थी और चेहरे पे असीम सुख था। पूरा नंगा जिस्म पसीने से भीग गया था। हवा उसके जिस्म को ठंडक पहुँचा रही थी। शीतल इसी तरह लेटी रही और उसकी आँख लग गयी। वो इसी तरह नंगी ही सोफे पे ही सो गयी।


जब से शीतल बड़ी हुई थी, तब से ये पहली बार हुआ था कि वो इस तरह घर में नंगी हुई थी और नंगी सोई थी। यहाँ तक की शादी के बाद भी वो कपड़े पहनकर ही रूम से बाहर निकलती थी और बाथरूम या किचन में जाती थी। विकास बोलता भी था कि यहाँ कौन तुम्हे देख रहा है जो कपड़े पहनकर बाहर जा रही हो। ऐसे ही नंगी हो आओ बाथरूम से या नंगी ही सो जाओ, लेकिन शीतल शर्म की वजह से ऐसा कर नहीं पाती थी। चुदाई के बाद भी तुरंत ही वो अपने कपड़े पहन लेती थी, लेकिन आज वो आने मन से घर में नंगी हुई थी और एक के बाद एक और बार चुत में ऊँगली कर पानी निकाली थी और फिर नंगी ही सोई थी।

लगभग 5 बजे शीतल की नींद खुली तो उसे खुद पे शर्म भी आया और आश्चर्य भी हुआ की ये क्या हो गया है उसे आज। उसे अपनी हरकत पर बहुत बुरा भी लग रहा था और जो मज़ा उसे आया था, इससे उसे अच्छा भी लग रहा था। वो बाथरूम जाकर नहा ली और वसीम के वीर्य वाली पैंटी ब्रा को भी धो दी।
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शाम में जब विकास घर आया, तब तक शीतल वसीम के बारे में काफी कुछ सोच चुकी थी और उसे समझ में नहीं आ रहा था कि विकास को बताये की नहीं और अगर बताये तो कैसे बताये। रात को खाना खाते वक़्त शीतल विकास से वसीम के बारे में पूछी "क्या हुआ था वसीम चाचा की वाइफ को?" विकास को भी बहुत ज्यादा कुछ पता नहीं था। जो उसे मक़सूद ने बताया था, वही उसने शीतल को बता दिया "पता नहीं, बहुत पहले ही किसी रोड एक्सीडेंट में मर गयी थी शायद।"

शीतल फिर आगे पूछी "तो बच्चों का क्या हुआ? वो कहाँ हैं?" विकास बोला "उतना मुझे भी पता नहीं। बच्चे अब काफी बड़े हो गए हैं और बाहर ही रहते हैं कहीं। लेकिन वसीम चाचा यहीं रहते हैं, अकेले।" शीतल की उत्सुकता बढ़ती जा रही थी। पूछी "तो वसीम चाचा ने दूसरी शादी क्यों नहीं की। इनलोगों में तो 4 शादियाँ कर सकते हैं न। फिर भी इन्होंने दूसरी शादी क्यों नहीं की?" विकास हँसता हुआ बोला "मुझे क्या मालूम उन्होंने दूसरी शादी क्यों नहीं की। लेकिन बस इतना पता है कि इन्होंने उसी वक़्त कह दिया था कि दूसरी शादी कभी नहीं करूँगा।

शीतल के स्वभाव के अनुसार वसीम पे उसे दया आने लगी की कोई इंसान इतने साल अकेले कैसे गुजार सकता है। घर के सारे काम और जिस्म की बाँकी जरूरतें... कैसे कोई खुद को इतनी तकलीफ दे सकता है। और ऐसे में अगर मेरे जैसी कोई औरत अचानक से इतने सामने रहेगी तो भला उसकी तकलीफ तो और बढ़ ही जायेगी। इसके बाद भी अगर ये इतने सालों से खुद पे काबू किये हुए हैं तो ये तो बड़ी बात है। ये तो सरासर मेरी गलती है और मुझे ही जल्द से जल्द यहाँ से दूर हो जाना चाहिए।


शीतल विकास को कुछ नहीं बताई। उसके दिमाग में बहुत उथल पुथल मची हुई थी। कभी उसकी नज़रों में वसीम की कोई गलती नहीं दिखती थी तो कभी उसे लगता कि वसीम गिरा हुआ आदमी है और कभी लगता कि वसीम की ऐसी हरकत का कारण उसका यहाँ आना था। शीतल 1 बजे तक काफी उधेड़बुन में थी। अपने दिमाग में चल रहे जंग की वजह से वो पैंटी ब्रा छत पर सूखने तो दे दी थी, लेकिन अब क्या करे वो निर्णय नहीं ले पा रही थी।

कभी वो सोच रही थी की पैंटी ब्रा वापस ले आये और फिर कभी सोचती की 'मेरे पैंटी ब्रा को हाथ में लेने और उसपे अपना वीर्य गिराने से अगर वसीम चाचा को संतुष्टि मिलती है तो मैं इसमें खलल क्यों डालूँ। कहीं ऐसा न हो की जो ख़ुशी उन्हें इतने सालों बाद मिली है, वो चीज़ भी छिना जाने से वो अपसेट न हो जाये। अकेला इंसान के मन में बहुत सारी बातें चलती रहती है। इसलिए जो वो कर रहे हैं, उन्हें करने देती हूँ। मैं सोच लूँगी की मुझे पता ही नहीं है और मैं उनके सामने जाऊँगी ही नहीं। अगर मैं नहीं जानती होती तो मुझे क्या पता की कौन मेरे बारे में क्या सोचता है और मुझे सोच सोच कर क्या करता है। हो सकता है कि पहले भी मेरे पैंटी ब्रा के साथ कोई आदमी ये काम करता हो, लेकिन मुझे तो नहीं पता न।'


शीतल ये सब काफी देर से सोच रही थी। 'वो जो कर रहे हैं, उन्हें करने देने में ही उनकी भलाई है। और उन्हें थोड़े पता है कि मुझे पता है कि वो मेरे पैंटी ब्रा के साथ क्या करते हैं। पता नहीं कल क्या हो गया था मुझे। मैं तो पागल हो गयी थी। मुझे भी ये सब कुछ सोचना ही नहीं है। न तो मैं जानती हूँ की वसीम चाचा मेरे कपड़ों के साथ क्या करते हैं और न ही मैं अब इस बारे में कुछ सोचूंगी। जैसे पहले रहती थी, उसी तरह रहूँगी। इन सबसे बेखबर। जैसे पहले देर से कपड़े उठाकर लाती थी, उसी तरह अब फिर से भी जाऊँगी। तब तक वीर्य भी सुख जायेगी और मैं कोई मतलब नहीं रखूँगी।'

'म्म्म.... कितनी अच्छी खुशबू आती है लेकिन वीर्य की। और उनका लण्ड भी कितना बड़ा है। विकास का तो उसका आधा भी नहीं होगा। कल तो इतनी डरी हुई थी की ठीक से देख भी नहीं पाई थी। आज भी जाकर देख लूँ क्या। कितना सारा वीर्य निकलता है यार! पूरी पैंटी भीग गयी थी, ब्रा का एक कप भी भीग गया था। वो तो पैंटी ब्रा पे वीर्य गिराएंगे ही, चाहे मैं छिप कर देखूँ या नहीं। तो क्यों न ऐसा करूँ की उन्हें अपना मज़ा लेने दूँ और मैं छिप कर अपना मज़ा ले लेती हूँ। उन्हें वीर्य गिराकर मज़ा आएगा और मुझे वीर्य गिरता देखकर और उसे सूँघ चाट कर। आखिर वो मेरी पैंटी है यार। इतना तो हक़ बनता है मेरा।'


सोचते सोचते 1 बजने वाले थे। शीतल उठी और छत पर स्टोर रूम में छिपने चल दी। 'अगर वसीम चाचा ने देख लिया तो? तो क्या, बोल दूँगी की मैं तो देखने आयी थी की कौन मेरी पैंटी ब्रा के साथ ऐसा करता है। मुझे क्या पता था कि ये आप हैं।' ऐसा सोचते ही शीतल का डर कम हो गया और वो अपनी जगह पे जाकर छिप गयी। हालाँकि इसके बाद भी उसके दिल की धड़कन जोरों से धड़क रही थी।


तय वक़्त पर वसीम घर आया और अपने रूम में चला गया और फिर थोड़ी देर बाद लुंगी गंजी में बाहर निकला। शीतल की धड़कन तेज़ हो गयी। वसीम ने पैंटी ब्रा को रस्सी से उतार लिया और स्टोर रूम के सामने आकर खड़ा हो गया। वसीम लुंगी के अंदर कुछ नहीं पहना हुआ था। उसने लुंगी साइड किया और उसका लण्ड चमक उठा। शीतल आज और अच्छे से लण्ड को देख रही थी। वसीम का लण्ड उसकी नज़रों से मात्र एक डेढ़ मीटर दूर होगा और अगर दरवाज़ा नहीं होता और शीतल छुपी हुई नहीं होती तो हाथ बढ़ा कर लण्ड को छू सकती थी।

शीतल के हिसाब से वसीम का लण्ड बहुत ज्यादा लम्बा, काला और बहुत ही मोटा था और उसका सामने का हिस्सा पूरा चमकता हुआ दिख रहा था। वसीम फुल स्पीड में शीतल के नाम का मूठ मार रहा था और उसके ठीक सामने बैठी शीतल वीर्य के बाहर आने का इंतज़ार कर रही थी। उसे डर भी लग रहा था और मज़ा भी आ रहा था।

वसीम के लण्ड ने पिचकारी की तरह तेज़ धार के साथ सफ़ेद गाढ़ा वीर्य छोड़ दिया जिसे वसीम ने शीतल के ब्रा के दोनों कपों में भर दिया और फिर तुरंत ही पैंटी को लण्ड पे दबा कर उसे भिगोने लगा।

जब उसका लण्ड शांत हो गया तो उसने फिर से शीतल की पैंटी ब्रा को उसके जगह पे टाँग दिया और अपने कमरे में आता हुआ दरवाज़ा बंद कर लिया।

शीतल की चुत गीली हो गयी थी। उसका मन कर रहा था कि फिर से कल की तरह नंगी होकर इस वीर्य को चाटे, सूँघे। अब उसके लिए यहाँ एक लम्हा भी गुजारना मुश्किल हो रहा था। वसीम के रूम का दरवाज़ा बंद हो गया था तो शीतल धीरे से निकली और नीचे आने लगी। फिर वो सोचने लगी की 'वसीम चाचा तो अंदर चले गए और अब 3 बजे बाहर निकलेंगे। आज मैं उतनी देर तो पैंटी ब्रा छत पे नहीं रहने दूँगी। थोड़ी देर बाद ही उसे उठाकर नीचे ले आऊँगी।'

वो अभी अपने घर के गेट तक भी नहीं पहुँची थी की फिर वो सोची 'जब वसीम चाचा के जाने से पहले ही कपड़ों को नीचे ले आना है तो आधे घंटे बाद लाऊँ या अभी लाऊँ, क्या अंतर पड़ता है। आज मैं जल्दी कपड़े लेने आ गयी, इसमें कोई बड़ी बात तो नहीं।'

शीतल साधारण चाल चलती हुई छत पे आयी और ऐसे अपने कपड़े उठाने लगी जैसे उसे ये सब कुछ पता ही नहीं हो। अपनी पैंटी ब्रा को उठाते वक़्त ही उसकी नज़र ताज़ा वीर्य पर पड़ी और उसकी चुत पूरी गीली हो गयी। वो सारे कपड़े समेट तुरंत नीचे चल दी।

शीतल दौड़ती हुई नीचे आयी और बाँकी सारे कपड़े को टेबल पर फेंकी और वसीम के वीर्य से भीगी अपनी पैंटी ब्रा देखने लगी। पैंटी अलग अलग जगह से भीगा हुआ था लेकिन ब्रा के दोनों कप वीर्य से चिप चिप कर रहे थे। शीतल ब्रा को सूँघि। उसकी चुत तो पहले ही से गीली थी, अब और गीली हो गयी। शीतल तुरंत अपने सारे कपड़े उतार दी और पूरी नंगी हो गयी।

वो ब्रा को सूँघ रही थी और कप में लगे ताज़ा वीर्य में जीभ सटा कर उसका टेस्ट की। 'मम्मम.... वसीम चाचा.... कितना टेस्टी वीर्य है।' शीतल उस पैंटी को पहन ली। 'ये वीर्य मेरी चुत के लिए निकला होगा। इसे अपनी चुत से सटा तो लूँ। वसीम चाचा पैंटी पर वीर्य थोड़े गिराते हैं, वो तो मुझे चोद कर मेरी चुत में वीर्य गिराते हैं।' शीतल ब्रा को भी अपनी चुच्ची पे रख ली और पहन ली। वो पीछे हुक तो नहीं लगायी थी, लेकिन चुच्ची को कप में भर जरूर ली थी।

शीतल को बहुत मज़ा आ रहा था वीर्य लगे पैंटी ब्रा को पहनकर। वो हॉल में और रूम में इधर उधर टहलने लगी और खुद को आईने में देखी। वो आईने के सामने ब्रा को चुच्ची से अलग की तो उसकी चुच्ची वसीम के वीर्य से चमक रही थी। शीतल ब्रा को चेहरे पे रख ली और वीर्य को सूँघते हुए चाटने लगी। शीतल वापस हॉल में आ गयी और पैंटी उतारकर चुत में ऊँगली करने लगी।


शीतल फिर से पागलों की तरह कर रही थी। वो चुच्ची मसल रही थी, चुत में जोर जोर से ऊँगली कर रही थी। उसका मन नहीं भर रहा था। वो तड़प रही थी। फिर उसके चुत ने पानी का फव्वारा छोड़ दिया। जोर जोर से साँस लेती हुई शीतल सोफे पे निढाल हो पड़ी।
 

Bunty4g

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थोड़ी देर बाद जब शीतल रिलैक्स हुई तो आज फिर से उसे आप पर गुस्सा आ रहा था, लेकिन उसका आज का गुस्सा कल से कम था। इन 24 घंटों में उसके दिमाग में बहुत कुछ चला था और वो खुद को समझा चुकी थी की वसीम बहुत अच्छा आदमी है और शीतल अपनी चुत में ऊँगली कर और वसीम उसके कपड़े पर वीर्य गिरा कर कोई गलती या पाप नहीं कर रहे।

दौड़ कर नीचे आने और जल्दी से पैंटी ब्रा पे लगे वीर्य को सूँघने चाटने के चक्कर में शीतल अपने घर का दरवाजा बंद करना भूल गयी थी। शीतल सोफे से उठी और नहाने जाने लगी तो उसकी नज़र दरवाज़े पर गयी। वो शॉक्ड हो गयी क्यों की वो अभी तक पूरी नंगी ही थी।

'हे भगवान ! मैं पागल हो गयी हूँ क्या ! ऐसे गेट खोलकर नंगी घूम रही हूँ और क्या क्या कर रही हूँ। कहीं किसी ने देखा तक नहीं।' शीतल दौड़ कर दरवाज़ा बंद कर दी। थोड़ी देर बाद वो रिलैक्स हुई। 'अभी कौन देखता। मेन गेट बंद ही है और वसीम चाचा तो अपने कमरे में होंगे और 3 बजे नीचे आएंगे। शीतल निश्चिन्त हो गयी और नहाने चल दी। चुत से पानी बहाने के बाद वो खुद को गन्दा गन्दा महसूस करने लगती थी और नहाने के बाद उसे फ्रेश लगता था।


रात में फिर शीतल विकास के साथ वसीम के बारे में ही बात कर रही थी। वो वसीम के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानना चाह रही थी। बोली "वसीम चाचा इतने साल से अकेले रहे कैसे। मुझे तो आश्चर्य लगता है। मतलब सोचो की खाना बनाना, बर्तन धोना, कपड़े साफ़ करना, घर साफ़ करना, फिर दूकान भी जाना। कभी तबियत खराब होती होगी तो कितनी परेशानी होती होगी" विकास बस शीतल की बात को सुन रहा था। बोला "हम्म... होती तो होगी ही। लेकिन ये तो अब वही जाने की कैसे अकेले रह रहे हैं इतने साल से।"

शीतल बोली "और इन सबके अलावा और चीज़ भी तो है। तुम मेरे से एक सप्ताह दूर रहे थे तो पागल बन गए थे। सोचो वसीम चाचा कितने साल से अकेले हैं।" विकास मुस्कुराता हुआ बोला "जिसके पास तुम्हारे जैसी मस्त बीवी हो, वो तो एक सप्ताह में पागल होगा ही।" फिर वो थोड़ा रोमांटिक होता हुआ बोला "मैं बहुत खुशनसीब हूँ की तुम्हारी जैसी खूबसूरत और अच्छी बीवी मेरी ज़िन्दगी में आयी।

अब हँसने की बारी शीतल की थी। बोली "इतनी भी तो खूबसूरत नहीं हूँ।" विकास ने शीतल को पीछे से पकड़ लिया और बोला "तुम माल हो। मस्त माल। सब तुम्हे हसरत भरी निगाहों से देखते हैं। खुद मेरा लण्ड कितनी बार टाइट हो जाता है तुम्हारे गोरे चिकने बदन को देखकर। जब तुम्हारे रसगुल्ले को हिलता देखता हूँ तो होश खो बैठता हूँ। तुमसे दूर होकर तो मैं पागल ही हो जाऊंगा।" ऐसी तारीफ सुनकर शीतल भी खुश हो गयी और इमोशनल भी।

बोली "वही तो सोच रही हूँ की वसीम चाचा कैसे इतने साल से अकेले रह रहे होंगे। उन्होंने तो पूरी तरह खुद को अकेला कर लिया है। न तो किसी से ज्यादा बात करते हैं, न कहीं आते जाते हैं। न ही कोई उनके यहाँ आते जाते हैं।" विकास ऊब गया था। बोला "अब ये तो वही जाने। हम लोगों को इससे क्या। जब तक यहाँ हैं, तब तक है, फिर कहीं और चले जायेंगे। बस।"


लेकिन शीतल की सोच ऐसी नहीं थी। उसे वसीम चाचा से हमदर्दी हो गयी थी। बोली "कल रात में हम वसीम चाचा को खाने पर बुला लेते हैं। जो इंसान इतने सालों से अकेला ज़िन्दगी गुजार रहा है, उसे हम एक वक़्त डिनर तो करा ही सकते हैं। शायद हमसे थोड़ी देर बातें करके उन्हें कुछ अच्छा लगे।" विकास को इसमें कोई बुराई नहीं लगी। बोला "ठीक है, जैसी मैडम की इच्छा।" शीतल खुश हो गयी। बोली "तुम कल सुबह ही उन्हें बोल देना।"

अपने पड़ोसियों, दोस्तों और रिश्तेदारों से मिलते जुलते रहना, अच्छे से रिश्ते निभाना दोनों पति पत्नी को पसंद था और दोनों के परिवारों की यही आदत थी। लेकिन जब से शीतल यहाँ आयी थी तो अपने आप में और अपने गेस्ट में ही व्यस्त रही थी। कभी वो विकास के साथ बाहर घूमने चली गयी थी तो कभी उसके ससुराल वाले और मायके वाले यहाँ आ गए थे। इसलिए शीतल को ज्यादा मौका ही नहीं मिला था यहाँ लोगों से ज्यादा घुलने मिलने का।

विकास ने शीतल को अपनी बाँहों में भर लिया और बोला "क्या बात है, आजकल वसीम चाचा का ज्यादा ही ख्याल रखा जा रहा है।" विकास ने शरारती मुस्कान के साथ शीतल को छेड़ने के लिए इस बात को कहा था, लेकिन शीतल शर्मा गयी और अंदर से डर भी गयी। बोली "क्या तुम भी कुछ भी बोल देते हो। कहाँ वो 50-55 साल का आदमी और कहाँ मैं।"

विकास ने शीतल की नाइटी को ढीला कर दिया और उसे अपने बदन से चिपका लिया। शीतल भी कोई विरोध नहीं की। वो भी मूड में थी। दोनों रोज सेक्स नहीं करते थे। कभी कभी तो सप्ताह और 15 दिन भी हो जाता था। विकास उसे चूमता हुआ उसका बदन सहलाने लगा। शीतल खुद को नंगी होने दी और विकास के नंगे होने का इंतज़ार करने लगी। थोड़ी ही देर में दोनों पुरे नंगे थे और शीतल गौर से विकास का लण्ड देख रही थी।
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वसीम का लण्ड शीतल की नज़रों के सामने घूम गया। विकास का लण्ड उसका आधा भी नहीं था और पतला भी था। शीतल को लगा की ये तो किसी बच्चे का लण्ड है वसीम के लण्ड के सामने। शीतल विकास के लण्ड को हाथ में पकड़ ली और सहलाने लगी। वो लण्ड के चमड़े को आगे पीछे कर रही थी और फिर चमड़े को सुपाड़े से नीचे कर दी। अचानक ऐसे करने पे उसे दर्द हुआ और उसने शीतल को मना कर दिया।

शीतल उठ कर अच्छे से बैठ गयी और लण्ड को दोनों हाथों में लेकर सहलाने लगी। शीतल के इस रूप को देखकर विकास आश्चर्यचकित था। अब तक शीतल सेक्स में विकास को या तो करने दे देती थी और कभी कभार उसका साथ देती थी, लेकिन आज तो वो खुद लीड कर रही थी। अभी 2 दिन पहले भी शीतल पहल की थी, लेकिन आज तो वो हद ही कर रही थी।

विकास का लण्ड पूरा टाइट हो गया था। उसने शीतल को सीधा लिटा दिया और उसके ऊपर आ गया। शीतल विकास के लण्ड को चूमना चाहती थी, उसके वीर्य की खुशबू लेना चाहती थी। लेकिन विकास शीतल के पैरों के बीच में आ गया और लण्ड को चुत के अंदर डाल कर धक्के लगा था। लण्ड के अंदर जाते ही और चुत के दिवार से रगड़ खाते ही शीतल भी गर्मा गयी और पैरों को अच्छे से फैला कर विकास को अपने अंदर सामने लगी।

विकास अचानक लण्ड को चुत में दबा कर शीतल के ऊपर लेट गया और हाँफने लगा। पहले तो शीतल को कुछ समझ ही नहीं आया और फिर उसे चुत के अंदर लण्ड का झटका और वीर्य की गर्मी महसूस हुई। शीतल शॉक्ड हो गयी। अभी तो वो शुरू भी नहीं हो पाई थी। अभी तो चुदाई शुरू ही हुआ था और विकास ने हार मान लिया। विकास इतनी जल्दी भी ख़त्म नहीं होता था, पता नहीं आज उसे क्या हुआ था कि 8-10 धक्के लगाते ही वो झड़ गया था।

थोड़ी देर बाद विकास शीतल के ऊपर से उतर गया और बगल में होकर सो गया। शीतल को नींद नहीं आयी और वो अपनी प्यासी चुत लिए रात भर करवट बदलती रही।

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दिन में शीतल फिर से दोपहर का वेट कर रही थी। अब उसके मन में कोई द्वन्द नहीं चल रहा था। उसने खुद को समझा लिया थी की वसीम चाचा अच्छे आदमी हैं और इतने वर्षों से अकेले रह रहे हैं। मैंने उनके सोये अरमान जगा दिए हैं। उनका मन करता होगा की मेरे साथ वक़्त बिताने का, मेरे बदन को छूने का, लेकिन वो खुद को सम्हाले हुए हैं। मेरी तरफ देखते भी नहीं की पता नहीं मैं क्या सोचूँ और इसलिए छिप कर मेरे पैंटी ब्रा पे वीर्य गिराते हैं।

उन्हें इसी से ख़ुशी मिलती है तो भला मैं क्यों उसमे खलल डालूँ। वो भिगोते रहे मेरे पैंटी ब्रा को अपने वीर्य से, इसमें मेरा कोई नुकसान तो नहीं है, और मुझे भी तो अच्छा लगता है उनका वीर्य सूँघकर। उन्हें पता तो है नहीं की मैं उन्हें रोज अपना लण्ड हिलाते देखती हूँ और फिर उनके वीर्य को सूँघती चाटती हूँ। वो अपना मज़ा करते रहें और मैं अपना मज़ा लेती रहूँगी।


एक बजने में जब कुछ देर बाँकी था तो वो जाकर अपने जगह पे छिप गयी। शीतल आज अपनी ट्रांसपेरेंट डिज़ाइनर पैंटी ब्रा को सूखने के लिए दी थी और अच्छे से फैला कर उसे टाँगी थी। वसीम को जब मज़ा मिल ही रहा था तो अच्छे से मिलता। पैंटी ब्रा इस तरह टाँगी गयी थी की किसी की भी नज़र उसपे चली जाती। वसीम जब अपने रूम में जा रहा था तो शीतल की सेक्सी पैंटी ब्रा को देखता जा रहा था।


रोज की तरह वसिम लुंगी गंजी में रूम से निकला और शीतल की पैंटी ब्रा को उठा कर स्टोर रूम के सामने खड़ा हो गया। आज न तो शीतल की सांसें तेज़ चल रही थी और ना ही धड़कन। शीतल अब पूरी तरह से मज़बूत थी। वसीम ने अपने लुंगी को किनारे किया और लण्ड को सामने कर उसे हिलाने लगा।

थोड़ी ही देर बाद उसने लुंगी को नीचे गिरा दिया और नीचे से नंगा हो गया। छत के इस हिस्से से उसे कोई नहीं देख सकता था। उसका मोटा लण्ड उसके हाथ में एक मोटे डंडे की तरह चमक रहा था और वसीम उसे पकड़ कर आगे पीछे करता हुआ शीतल के नाम की मुठ मार रहा था। और शीतल उससे कुछ ही कदम दूर बैठ कर उसे ऐसा करता देख रही थी।

लुंगी नीचे गिरते ही अब शीतल के दिल की धड़कन तेज़ हो गयी। अब वसीम का लण्ड पूरी तरह उसके सामने चमक रहा था। वो और अच्छे से उस मोटे लण्ड को देख रही थी। थोड़ी देर तक वसीम उसके पैंटी ब्रा को चूमता मसलता रहा और लण्ड को हाथ में पकड़ कर आगे पीछे करता रहा। फिर उसने पैंटी को लण्ड के सामने कर के फैला दिया और वसीम का लण्ड झटके मरता हुआ वीर्य फेकने लगा।

शीतल को साफ साफ वीर्य निकलता हुआ दिख रहा था। पूरा लण्ड अच्छे से उसकी नज़रों के सामने था। आज उसने वीर्य सिर्फ पैंटी पे गिराया और ब्रा के कप से अपने लण्ड को पोछ लिया। शीतल की पैंटी पूरी भर गयी थी वसीम के वीर्य से। वसीम ने लुंगी पहन लिया और पैंटी ब्रा को उसकी जगह पर टाँग कर अपने घर में आ गया और गेट बंद कर लिया।


अब वसीम के अंदर गए 2 मिनट भी नहीं हुए थे, लेकिन शीतल के लिए इंतज़ार करना मुश्किल हो रहा था। शीतल धीरे से स्टोर रूम से बाहर निकली और अपने कपड़े समेटने लगी। अभी उसकी चुत गीली थी और उसका बदन काँप रहा था। उसकी पैंटी पे वसीम का वीर्य अभी भी उसी तरह लगा हुआ था। शीतल जल्दी से नीचे आयी और गेट बंद करते हुए वो बाँकी सारे कपड़ों को टेबल पे फेंक कर उस वीर्य से भरी पैंटी को अपने चेहरे पे रख ली। पैंटी पे लगा वीर्य उसके चेहरे को भिगोने लगा और उसकी मदहोश कर देने वाली खुशबू उसके सीने में भरती चली गयी।

शीतल तुरंत अपने सारे कपड़े उतार फेंकी और पूरी नंगी होकर अपनी चुत में ऊँगली अंदर बाहर करने लगी। वो वीर्य चाट रही थी। वो पागलों की तरह अपने बदन को हिला रही थी। वो ऊँगली को और अंदर लेना चाह रही रही लेकिन ऊँगली अब और अंदर नहीं जा सकता था। वो छटपटा रही थी। कभी इधर से ऊँगली डालने की कोशिश कर रही थी तो कभी उधर से। कभी चुत को सोफे पे रगड़ रही थी तो कभी टेबल पे। फिर उसकी चुत से जब काम रस निकला तब उसे राहत मिला।

शीतल फिर से नंगी ही सोफे पे सो रही और जागने के बाद भी शाम तक नंगी ही घर के काम करती रही। नंगे रहने पे उसे अच्छा लग रहा था। वसीम के वीर्य ने उसके अंदर के काम ज्वाला को भड़का दिया था। जो शीतल कभी नंगी नहीं रहती थी, वो अब हमेशा नंगी ही रहना चाहती थी। विकास के आने से पहले वो नहा कर फ्रेश हो गयी और विकास का इंतज़ार करने लगी। वो शाम के दावत का इंतज़ार कर रही थी।

विकास के आने के बाद पता चला की विकास ने वसीम को आमंत्रित ही नहीं किया था। शीतल उससे झगड़ा करने लगी और डाँटने लगी। विकास ने तुरंत ही वसीम को कॉल किया और उसे अपने यहाँ आज रात के खाने पे बुला लिया। वसीम को भला इसमें क्या आपत्ति हो सकती थी। वो आसानी से तैयार हो गया।


विकास खाना बनाने में अपनी खूबसूरत पत्नी की मदद करने लगा। दोनों बातें कर रहे थे की वसीम चाचा इतने लंबे वक़्त से अकेले रह रहे हैं और खुद सारा काम कर रहे हैं तो हम काम से कम सप्ताह में एक बार तो उन्हें अपने यहाँ लंच या डिनर पर आमंत्रित कर ही सकते हैं।

शीतल वसीम पे दया दिखाते हुए उसे अपने यहाँ बुलाई थी। वसीम को बहुत कम मौका मिलता होगा उसे देखने का। दिन भर वो रहता नहीं था और जब रहता भी था तो उस वक़्त शीतल अपने घर के अंदर रहती थी। शीतल को लगा की 'वो मेरे से मिलेगा, मेरे से बातें करेगा तो उसके अंदर जो कुंठा दबी हुई है, हो सकता है कि वो बाहर निकले और फिर उसे अच्छा लगे। वो चाहते होंगे की मेरे से बात करें, मेरे करीब आएं लेकिन डर शर्म झिझक की वजह से ऐसा कर नहीं पाते होंगे। वो अंदर ही अंदर खुद को दबाये हुए हैं, घुट रहे हैं। उनके अंदर की घुटन को निकालने की जरूरत है।'

वसीम के आने का वक़्त हो चला था तो वो तैयार होने चली गयी। शाम से वो बहुत सोच चुकी थी की वो क्या पहने और आखिर में यही सोची की उसे साड़ी ही पहनना चाहिए। शीतल जो साड़ी चुनी थी वो एक डिज़ाइनर साड़ी थी। शीतल साड़ी को नाभि से 4" नीचे से पहनी थी और उसकी चिकनी पेट और कमर वसीम पे बिजली गिराने के लिए तैयार थे। स्लीवलेस ब्लाउज से उसकी क्लीवेज बाहर झाँक रही थी। पीठ पर बस एक पट्टी थी और उसकी गोरी चिकनी पीठ चमक रही थी। शीतल तैयार हो गयी और वो बेहद ही हसीन लग रही थी। साड़ी का आँचल ट्रांसपेरेंट था जिसके अंदर से उसकी चिकनी पेट और ब्लाउज के उभार झलक रहे थे।

ऐसा नहीं था कि शीतल आज कुछ नया कर रही थी। उसकी ज्यादातर साड़ियां ऐसी ही थी। यही तो परेशानी थी उसकी। उसके लिए ये साधारण सी बात थी, लोग उसे देखते ही थे। वो इतनी खूबसूरत है तो भला इसमें वो क्या कर सकती है। वो कभी भी उनकी परवाह नहीं की जो उसे ललचाई नज़रों से देखते थे। लेकिन वसीम उसे देखता नहीं है। खुद की इच्छा को दबा लेता है और अंदर ही अंदर घुट रहा है। और यही वजह है कि उसे वसीम से हमदर्दी हो गयी थी। वो उसकी मदद करना चाहती थी। वो चाहती थी की वसीम उसे देखे, उससे बातें करे। अपने दुःख दर्द को उससे साझा करे।

शीतल हमेशा ऐसे ही कपड़े पहनती थी, फिर भी विकास ने उसे छेड़ते हुए कहा "आज तो वसीम चाचा पे तुम बिजलियाँ गिराने वाली हो।" शीतल शर्मा कर मुस्कुरा दी और बोली "धत...क्या तुम भी।" वैसे उसका इरादा यही था।

वसीम खान 52 साल का हो चूका था और उसकी बीवी को मरे 20 साल हो चूका था। वो बहुत शरीफ और शांत आदमी था। मोहल्ले में और शहर में उसकी इज़्ज़त थी। बाज़ार में उसके जूतों की काफी पुरानी दुकान थी। वसीम एक शरीफ आदमी था और कोई आदमी ऐसा नहीं था जो उसपे ऊँगली उठा सके। बच्चों के बड़े हो जाने के बाद पिछले काफी समय से वो अपनी जिंदगी अकेले ही गुजार रहा था।

जब उसने विकास को अपना घर पे किराये पे दिया था तो उसे नहीं पता था कि उसकी शांत ज़िन्दगी में अब हलचल मचने वाली है। वसीम भले ही अकेला रहता था लेकिन औरत नाम की बला की कभी उसे जरूरत महसूस नही हुई। हाँ अपने दोस्तों मक़सूद और फ़िरोज़ के साथ कभी कभी वो रंडियों के पास जाता था, लेकिन वो भी तभी जब वो लोग ज़िद करते थे और वो भी छः महीने साल भर पे।

शीतल को उसने पहली बार उसी दिन देखा था जिस दिन वो पहली बार यहाँ आयी थी और घर का सामान शिफ्ट कर रही थी। शीतल नीचे ज़मीन पे बैठी हुई कोई पैकेट खोल रही थी। शीतल थी तो लेग्गिंग्स कुर्ती में, लेकिन नीचे बैठे होने की वजह से वसीम को उसके सीने के उभार बाहर झांकते दिखे थे। उसका कसा हुआ बदन और नयी दुल्हन का श्रीगार देख कर वसीम के मन में हलचल मच गयी थी। माँग में चमकता हुआ सिन्दूर, माथे पे बिंदी, सीने के उभारों पर लटकता हुआ मंगलसूत्र और हाथों की चूड़ियों ने वसीम के मन के तालाब में कंकर मार दिया था और शांत जल में लहरें खेलने लगी थी।

उस दिन शाम में मक़सूद जब उसके दूकान पर आया था तो शीतल के बारे में बहुत देर तक बोलता रहा था। "क्या माल है मेरे बॉस की, कितना मस्त बदन है साली का, क्या मस्त चूचियाँ हैं, क्या मस्त गांड है। खूब दबा कर चोदता होगा विकास सर। उसपर से अभी नयी नयी शादी हुई है तब तो रात रात भर चुदाई ही चलती होगी।" वसीम बस सुनता रहा था। उसके बाद शीतल जब भी उसे दिखी थी तो उसके दिल में कुछ हुआ था। शीतल उसके बदन में हलचल मचा जाती थी। कभी साड़ी में तो कभी शॉर्ट्स में तो कभी कुर्ती में तो कभी वन पीस में।

वसीम शीतल को अच्छे से देखना चाहता था, उसके करीब आना चाहता था, लेकिन फिर उसे अपने और शीतल विकास के उम्र का ख्याल आया। वसीम ने अपने आपको सम्हालना शुरू किया लेकिन ये नशा जिसपे चढ़ जाए वो कैसे खुद को सम्हाल सकता है। एक दिन जब वसीम दुकान जाने के लिए सीढ़ियों से उतर रहा था तो शीतल अपने घर से बाहर निकली। अचानक से इस तरह शीतल को देख कर वसीम के दिल की धड़कन रुक गयी थी। शीतल ट्राउजर और टॉप पहने हुए बाहर निकली और सब्जी वाले से सब्जी ले रही थी।

वसीम शीतल के बगल से होता हुआ रोड पर आ गया और उसकी नज़र शीतल के बदन पर पड़ी। आज वो बहुत करीब से शीतल के बदन के कटाव को देख रहा था। अचानक से वसीम की नज़र शीतल की चुचियों पर गयी। टाइट टॉप के ऊपर से शीतल का बायां निप्पल का उभार दिख रहा था। वसीम की साँस रुक गयी और नज़र वहीँ अटक गयी। अगले ही पल उसे ध्यान आया की वो रोड पर है तो वो अपने रास्ते आगे बढ़ गया।

आज दिन भर वसीम शीतल के बारे में ही सोचता रहा। अच्छी बातें भी और बुरी बातें भी। 'इस तरह निप्पल दिखाते हुए रोड पे है, कपड़े पहनने का सलीका नहीं है, इतनी भी अकल नहीं की अब वो कुँवारी लड़की नहीं है, शादी शुदा औरत है। इस तरह तो रंडियाँ भी नहीं करती यहाँ। पता नहीं कैसी औरत है। पहले भी किसी से चक्कर रहा होगा। ऐसी औरतों का ही ऐसा काम है।' दोपहर में जब वो वापस आया तब भी शीतल और उसके निप्पल के उभार उसके दिमाग में घूम रहे थे।

ऊपर छत पे आते ही उसकी नज़र शीतल के कपड़ों पर गयी और जब उसने कपड़े बदल लिए तो बाहर आकर वो अच्छे से शीतल के कपड़ों को देखने लगा। उसे शीतल की पैंटी ब्रा दिखी तो उसका लण्ड टाइट होने लगा। यही पैंटी उसकी चुत पे रगड़ाती होगी, इसी ब्रा में वो मुलायम चुच्ची और निप्पल रखे जाते होंगे। वो पैंटी ब्रा को अपने लण्ड पर लगा कर रगड़ने लगा और फिर थोड़ा किनारे होकर स्टोर रूम के गेट के सामने होकर अच्छे से पैंटी ब्रा देखने लगा और लण्ड पे रगड़ने लगा।

वो इमेजिन कर रहा था कि शीतल की चुच्ची को मसल रहा है और उसे चोद रहा है। जब उसके लण्ड से वीर्य निकलने वाला था तो उसने पैंटी पर वीर्य को गिरा दिया और फिर उसे वापस से उसी जगह पर रख दिया जहाँ से उसे उठाया था। वसीम को बहुत मज़ा आया था और फिर रोज वो इस काम को करने लगा था। उस दिन के बाद से वसीम शीतल के बारे में बहुत कुछ सोचने लगा था और दिन प्रतिदिन शीतल के बारे में उसकी भूख बढ़ती जा रही थी लेकिन इसके साथ ही वो खुद पे और काबू रखता जा रहा था।

आज जब विकास के उसे अपने यहाँ खाने पे बुलाया था तो उसे जाने में कोई बुराई नज़र नहीं आयी थी। बस उसने खुद को याद दिला लिया था कि शीतल के सामने उसे खुद पर नियंत्रण रखना है। वो अपने वक़्त पे घर आ गया और फ्रेश होने लगा। उसने सफ़ेद कुर्ता पायजामा पहन लिया था और फिर विकास के घर पर आ गया। शीतल बेसब्री से उसका इंतज़ार कर रही थी और गेट पर नॉक होते ही वो दौड़कर गेट खोली। विकास टीवी देख रहा था और जितनी देर में वो उठता, तब तक शीतल गेट खोल चुकी थी।

गेट खुलते ही जैसे वसीम पर बिजली गिर पड़ी। वसीम ने शीतल को जब भी देखा था तो दूर से देखा था। इतने करीब से शीतल को देखने का पहला मौका था उसका। और वो भी तब जब शीतल पूरी तरह से सजी संवरी हुई थी। वसीम का बदन सिहर उठा।

शीतल बिजली गिराते हुए दरवाजे के बीच में खड़ी थी। ट्रांसपेरेंट साड़ी के अंदर से झाँकता हुआ गोरा चिकना कमसिन बदन। मांग में सिन्दूर, माथे पे लाल बिंदी, आँखों में काजल, होठों पर मैरून लिपस्टिक, कानो में लटकती हुई बालियां, गले में एक चेन क्लीवेज तक और मंगलसूत्र ब्लाउज के ऊपर से होते हुए पेट तक, कसे हुए ब्लाउज के ऊपर से झाँकती हुई चूचियाँ, गोरा चिकना पेट नाभि के नीचे तक, दोनों हाथ साड़ी से मैच करती हुई चूड़ियों से भरी हुई, पैरों में पायल, साक्षात अप्सरा लग रही थी शीतल शर्मा। वसीम उसे देखता ही रह गया। उसे इस तरह की उम्मीद नहीं थी।


जब शीतल मुस्कुराती हुई खनकती आवाज़ में "आइये न चाचा जी" बोलती हुई दरवाजे के आगे से हटी, तब वसीम झटके से होश में आया। वसीम "आं...हाँ.... बोलता हुआ अंदर आया। अंदर जाती हुई शीतल विकास को आवाज़ लगायी "उठिये न, देखिये वसीम चाचा आये हैं। कब से टीवी ही देख रहे हैं।" वसीम शीतल की गोरी चमकती हुई पीठ और कमर में हो रही थिरकन को देखकर सम्मोहित सा हो गया था। विकास तब तक वसीम का स्वागत करने के लिए उठ चुका था। बोला "आइये अंकल, बैठिये। कैसे हैं? वसीम अब सम्हल चूका था। "सब बढ़िया, आप सुनाइए।" बोलता हुआ सोफे पर बैठ गया।

विकास और वसीम बातें करने लगे थे। शीतल तुरंत ही किचन से एक ट्रे में पानी और कोल्डड्रिंक गिलास में लेकर आ गयी और मुस्कुराते हुए दोनों को सर्व की। शीतल के झुकते ही उसकी चूचियाँ ब्लाउज से बाहर छलकने को मचल जाती थी। शीतल वापस किचन में चल दी। बहुत मुश्किल से वसीम खुद को शीतल के ब्लाउज में झाँकने से और किचन में वापस जाते वक़्त उसकी कमर और गांड देखने से रोक पाया।

शीतल भी एक ग्लास में कोल्डड्रिंक लेकर उनलोगों के पास आ गयी और एक सोफा पर बैठकर उनके बातचीत का हिस्सा बनने की कोशिश करने लगी। उसका मकसद बस यही था कि वो वसीम की नज़रों के सामने रहे ताकि वसीम उसे अच्छे से देख पाए। लेकिन वसीम शीतल की तरफ एक बार भी नहीं देख रहा था और न ही उससे बात कर रहा था।

थोड़ी देर बाद शीतल खाना लगा दी। शीतल जान बूझकर वसीम को खाना सर्व करने में ज्यादा वक़्त लगा रही थी, लेकिन वसीम उसकी तरफ देख ही नहीं रहा था। शीतल ऐसे ही बहुत खूबसूरत थी और आज ये साड़ी और मेकअप के साथ तो वो क़यामत ढा रही थी। वसीम पे क्या असर पड़ रहा था ये तो वसीम जाने, लेकिन अपनी बीवी को देखकर विकास का लण्ड जरूर करवट ले रहा था।

विकास और वसीम में कई तरह की बातें होती रही और धीरे धीरे बात वसीम के ज़िन्दगी पे आ गयी और वसीम ने बताया ने की उसने अपनी बेगम के इंतेक़ाल के बाद दूसरा निकाह क्यों नहीं किया। एक तो वो अपनी बीवी से बहुत प्यार करता था और उसके बाद 2 और लड़कियों के करीब आया लेकिन उसमे भी उसे धोखा ही मिला तो फिर तभी उसने फैसला कर लिया की अब कभी दूसरा निकाह करेगा ही नहीं। विकास के ये पूछने पर की "इतना लंबा वक़्त हो गया तो कभी जिस्मानी जरूरत महसूस नहीं हुई।" वसीम बस मुस्कुरा कर रह गया।

खाना खाने के थोड़ी देर बाद वसीम ऊपर अपने घर चला गया। शीतल खाना खाने बैठी तो विकास बोल पड़ा "आज तो वसीम चाचा पे क़यामत ढा रही थी।" शीतल हँस पड़ी। बोली "क्या तुम भी, फिर शुरू हो गए।" शीतल थोड़ी देर रुकी और फिर बोली " इतना सजना तो बेकार हो गया न, वसीम चाचा ने तो देखा ही नहीं मुझे।" शीतल इस तरह बोली थी की विकास भी साथ में हँस पड़ा।

विकास उसे वसीम के साथ हुई अपनी बातचीत के बारे में बताया तो शीतल बोली "कितने शरीफ और नेक इंसान हैं वसीम चाचा। इतने दिनों में मैं पहला इंसान ऐसा देखी हूँ जो मुझे घूरते नहीं और देखने का मौका मिलने पर भी देखते नहीं। वो भी तब जब वो इतने सालों से अकेले अपनी जिंदगी गुजार रहे हैं। नहीं तो मैंने हर किसी को छिपा कर या दिखा कर आँखों से अपने बदन को नापते देखा है। मुझे पता है मर्द लोग कैसे होते हैं, औरत का जिस्म देखने का कोई मौका नहीं छोड़ते।"

विकास चुप रहा। शीतल सही कह रही थी। वो खुद ऐसा था। औरत को देखने का मर्दों का नजरिया ही दूसरा होता है। थोड़ी देर बाद विकास बोला "तो तुम वसीम चाचा को दिखाने के लिए ही इतना सजी थी।" उसने ये बात मज़ाक में कहा था क्यों की उसे पता था कि शीतल इसी तरह मेकअप करती है। शीतल भी मज़ाक में ही जवाब दी "तो, तुम्हे क्या लग रहा था कि तुम्हारे लिए की हूँ। वो आज पहली बार हमारे घर आये तो उनके लिए ही तैयार हुई न। लेकिन हाय रे मेरी किस्मत, इतना मेहनत की लेकिन उन्होंने मुझे देखा तक नहीं।" फिर से दोनों साथ में हँसने लगे।


शीतल रूम में आ गयी थी और अपनी साड़ी और ज्वैलरी उतारने लगी। उसे बहुत गुस्सा आ रहा था कि उसकी इतनी मेहनत बेकार गयी। कितने जतन से वो सजी थी ताकि वसीम उसे अच्छे से और नज़दीक से देख पाए और उसे अच्छा लगे। वो उससे बात करे, हँसी मज़ाक करे और अच्छा महसूस कर पाए, लेकिन बात करना तो दूर, उसने देखा तक नहीं ठीक से। 'इतना भी क्या शरीफ बनना और इतना भी क्या खुद पे नियंत्रण रखना की सामने हो तो देखना भी नहीं और बाद में पैंटी ब्रा को हाथ में लेकर उसे चोदने का सोचते हुए बीर्य निकलना और फिर उसी पैंटी ब्रा को वीर्य से गीला कर देना। जब इतना ही है तो फिर बाथरूम में वीर्य गिराइए, मेरी पैंटी ब्रा को क्यों भिगोते हैं।'


शीतल नाईट सूट पहन ली और बिस्तर पर आ गयी। विकास का लण्ड तो पहले से ही टाइट था, उसने शीतल के बदन पे हाथ लगाया तो शीतल उसे मना कर दी। 'मुझे नहीं चुदवाना इस बच्चे टाइप के लण्ड से। 2 मिनट होगा नहीं की वीर्य टपका कर खुद तो सो जायेगा और फिर मैं रात भर तड़पती रहूँगी। एक तो वो वसीम चाचा हैं जिनके पास इतना बड़ा मोटा मूसल टाइप का लण्ड है और उसका वीर्य वो मेरे पैंटी ब्रा पे बहा देते हैं ये सोचकर की मुझे चोद रहे हैं, लेकिन सामने मिलने पर देखते तक नहीं। दोनों का काम मुझे तड़पाना है। वो अकेले में तड़पेंगे और ये चैन की नींद सोयेगा। इसलिए तुम भी तड़पो पतिदेव, तुम दोनों तड़पो। तुम्हे चुत हासिल है पर मैं दूँगी नहीं और वसीम चाचा ने तो खुद सोच रखा है कि उन्हें तड़पना है। शीतल बहुत कुछ सोचती हुई सो गयी।
 
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वसीम रूम में घुसते ही नंगा हो गया और अपने टाइट लण्ड को सहलाने लगा। नीचे शीतल जैसी गर्म माल उसके लिए तैयार होकर बैठी थी लेकिन वो उसे ठीक से देख भी नहीं पाया। उसे खुद पे गुस्सा भी आ रहा था और उसे शीतल की हरकतें भी याद आ रही थी। वो शीतल के कातिल बदन को याद करता हुआ लण्ड सहलाने लगा और फिर वीर्य निकलने के बाद ही वो सो पाया।

वो शीतल को पाना चाहता था, उसके नंगे बदन से खेलना चाहता था, उसकी गोल और नर्म मुलायम चुचियों को जोर जोर से मसलना चाहता था, उसकी चुत में अपना वीर्य भरना चाहता था। लेकिन उसे डर लगता था अपनी बदनामी से, समाज से। शीतल उससे आधे उम्र की थी और शादी शुदा औरत थी, किसी और का हक़ था उसपे। अपने मन में वो शीतल के बारे में बहुत कुछ सोचता रहा। अगर वो सही समझ रहा था तो वो शीतल को पा सकता था और जहाँ तक रिस्क नहीं था वहाँ तक तो चेक किया ही जा सकता था।


अगले दिन दोपहर होते ही शीतल वसीम के लण्ड का दर्शन करने के लिए अपनी जगह पर पहुँच गयी। अब शीतल को बिल्कुल डर नहीं लगता था और वो ऐसे स्टोर रूम में बैठ गयी थी जैसे ये कोई सामान्य सी साधारण सी बात हो। वो अपने मन में सोच ली थी की 'अगर वसीम ने मुझे देख भी लिया तो परेशानी की कोई बात नहीं है। वो छुप कर मेरे पैंटी ब्रा पे वीर्य गिरा रहा है, मैं तो ये पता लगाने छत पे छुपी हूँ की आखिर वो कौन है जो रोज रोज मेरी पैंटी ब्रा को गीला कर देता है।'

उसके मन में हालाँकि एक डर ये जरूर था कि 'अगर वसीम ने उसे छुपे हुए देख लिया या अगर कहीं उसे पता चल गया कि मैं छुप कर उसे ऐसा करते देखी हूँ तो कहीं वो शर्मिंदगी का शिकार न हो जाए और कुछ नुकसान न कर ले अपना। लेकिन अगर ऐसा हुआ तो मैं खुद बाहर आ जाऊँगी और उसे समझाऊँगी की वो कुछ गलत नहीं कर रहा है और किस वजह से ऐसा कर रहा है। तब हो सकता है कि वो मेरे से अच्छे से खुल कर बात कर पाए और रिलैक्स हो पाए।' शीतल बहुत कुछ सोचती रही लेकिन अपनी जगह पे बैठी रही।

वसीम ऊपर आया और अपने रूम में चला गया और फिर रोज की तरह अपने कपड़े बदल कर अपने काम में लग गया। आज भी उसने लुंगी को नीचे गिरा दिया और शीतल को चोदता हुआ इमेजिन करके मूठ मारने लगा। शीतल आज भी अच्छे से उसके लण्ड को देख रही थी और अपने मन मस्तिष्क में उसे उतार रही थी। इतना मोटा लम्बा और टाइट लण्ड को इतने सामने से नंगा देखकर उसकी चुत तो गीली होनी ही थी, लेकिन आज उसे ज्यादा गीलापन महसूस हो रहा था। उसका मन हो रहा था कि वो लण्ड को पकड़ कर देखती की कैसा लगता है, कितना बड़ा है, कितना टाइट है। लेकिन नज़रों के इतने सामने होने के बाद भी वो ऐसा कर नहीं सकती थी।

वसीम के लण्ड ने वीर्य छोड़ दिया और फिर से वसीम ने पैंटी ब्रा को गीला कर दिया और फिर उसे वापस अपनी जगह पर टाँग कर अपने घर में चला गया और दरवाजा बंद कर लिया। 2 मिनट भी नहीं हुए थे की शीतल स्टोर रूम से बाहर आ गयी और आज सिर्फ अपनी पैंटी ब्रा को लेकर नीचे आ गयी। अपने बाँकी कपड़े वो छत पर ही रहने दी। सीढ़ियों पे आते ही शीतल पैंटी और उसपे लगे वीर्य को देखने लगी और फिर उसे अपने होठों से लगाते हुए सूँघने लगी और उसका स्वाद चखने लगी।

उसे वसीम पे बहुत गुस्सा आ रहा था। 'ये क्या पागलपन है यार। सामने होती हूँ तो बात करना तो दूर, देखता भी नहीं है और यहाँ रोज पैंटी ब्रा के साथ खेलकर उसे वीर्य से भिगो देता है। इतना ही मन में आग है मुझे लेकर तो मेरे से बात करो, देखो मुझे, छेड़ो मुझे, पटाओ मुझे। शायद आराम मिले, शायद अच्छा लगे मेरे करीब आकर। लेकिन ये क्या बात हुई की खुद को दबा कर रखना है और अकेले में मेरे बारे में पता नहीं क्या क्या सोचते रहना है। अपने मन में तो क्या क्या नहीं कर चुका होगा मेरे साथ। पता नहीं कितनी तरह से चोद चूका होगा। लेकिन फिर इतना शरीफ बनकर क्यों रहना। और अगर शरीफ बनकर ही रहना है तो फिर मेरे पैंटी ब्रा को भी क्यों गीला करना।'


शीतल नीचे आ गयी और वो भी रोज की तरह पूरी नंगी हो गयी और चुत सहलाने लगी। वीर्य की खुशबू से उसकी चुत का गीलापन बढ़ गया और वो वीर्य को सूँघते चाटते हुए चुत में ऊँगली करने लगी और फिर चुत से पानी निकालने के बाद भी नंगी ही पड़ी रही। अब उसे नंगी रहने में ही अच्छा लगता था।

3 बजे जब वसीम वापस दुकान जाने के लिए अपने घर से निकला तो उसकी नज़र शीतल के कपड़ों पे गयी जहाँ आज बाँकी सारे कपड़े तो थे, बस उसकी पैंटी ब्रा नहीं थी। कल और पर्सों भी उसके दुकान जाने से पहले ही शीतल अपने कपड़े नीचे ले जा चुकी थी। लेकिन आज वो सिर्फ पैंटी ब्रा ले गयी थी, तो इसका मतलब था कि शायद उसे पता चल गया है। वसीम एक अनजाने डर से भर गया लेकिन वो निश्चिन्त था।

'शीतल ये बात विकास को बता सकती है लेकिन विकास कभी भी मेरे से ये पूछने नहीं आएगा। और अगर आएगा भी तो मैं मुकर जाऊँगा और उसपे मेरा वीर्य है ये साबित करने के लिए उसे DNA टेस्ट करवाना होगा। DNA टेस्ट करवाना इतना भी आसान और मामूली काम नहीं है। अब बस ये देखना है कि इसका रिएक्शन क्या पड़ा है शीतल पे। मेरे ख्याल से तो अच्छा ही असर पड़ा है, उसका असर तो कल रात दिख ही रहा था। जैसा मैं समझ रहा हूँ उस हिसाब से तो पासे सही पड़ रहे हैं।' अपने मन में बहुत कुछ सोचता हुआ वसीम सीढ़ियों से नीचे आया और शीतल के गेट पे नॉक किया।

अपने जवानी के दिनों में वसीम ने बहुत सारी लड़कियों को पटाया था और उनके साथ जिस्मानी संबंध भी बनाया था। उसका निकाह भी लव मैरिज था और शादी के बाद भी उसने 2 लड़कियों को पटा कर चोदा था। लेकिन उसके बाद उसने ये सब छोड़ दिया था। अपनी बीवी की मौत के बाद भी 2 औरतों के करीब आया था वो, लेकिन फिर उसने ये सब छोड़ दिया था। और अब कई सालों बाद शीतल ने उसके सोये अरमानो को जगा दिया था।

वसीम अपने समय में इस कला में माहिर था कि लड़कियों और औरतों को पटाते कैसे हैं। लेकिन यहाँ वो बहुत दिन बाद इस खेल को खेल रहा था और अब बीच में जनरेशन गैप था। और अब अगर कुछ गड़बड़ हुआ तो बहुत बेइज़्ज़ती हो जानी थी, इसलिए वो बहुत सोच विचार कर फूंक फूंक कर कदम आगे बढ़ा रहा था। अक्सर उसके मन में ये आता रहता था कि ये सही नहीं होगा, लेकिन वो इससे ज्यादा खुद पे काबू नहीं कर सकता था।

शीतल नंगी ही थी और आराम से लेटी हुई टीवी देख रही थी। दरवाजे पे नॉक होते ही वो हड़बड़ा गयी। 'अभी कौन हो सकता है?' वो अपने कपड़े ढूंढने लगी। वो जल्दी से अपनी पैंटी पहन ली लेकिन ब्रा पहनने में लेट हो रहा था। दरवाजे पे फिर से नॉक हुआ तो शीतल पूछी "कौन है?" उधर से वसीम की आवाज़ आयी "मैं हूँ। वसीम।"

शीतल का दिल जोरों से धड़क गया। 'ये यहाँ क्यों आये हैं अभी। कहीं मुझे देख तो नहीं लिए। शायद सिर्फ पैंटी ब्रा ले कर आई तो शक तो नहीं हो गया कि मुझे पता है। अब पता है तो पता है।' ब्रा का हुक नहीं लग रहा था तो शीतल ब्रा रख दी और "आ रही हूँ।" बोलती हुई अपनी एक नाईट गाउन उठा कर पहनने लगी। 'पता नहीं क्या बोलेंगे।'


शीतल हड़बड़ाती हुई गेट खोली। "आइये न वसीम चाचा। अंदर आइये।" वसीम के एक नज़र शीतल को देखा और बोला "नहीं, बस दुकान जा रहा हूँ। रात में आने में थोड़ी देर हो जायेगी। बस यही बोलने आया था। आपलोग गेट बंद कर लीजियेगा और जब मैं आऊँगा तो बस जरा उस वक़्त गेट खोल दीजियेगा।" ये सब सुनकर शीतल सामान्य हो चुकी थी। बोली "ठीक है। कितने बजे तक आएँगे आप?"

वसीम अब शीतल को नहीं देख रहा था। वो बहुत ही विनम्रता से बोला "मैं 10:30 -11:00 तक आ जाऊँगा। आपलोगों को ज्यादा परेशानी तो नहीं होगी न। मैं आकर कॉल कर दूँगा।" शीतल अपनी कातिल मुस्कान फेंकती हुई बोली "अरे नहीं नहीं... इसमें परेशानी वाली कौन सी बात है। उस वक़्त तक तो हम जगे ही रहते हैं।" वसीम "ठीक है" बोलकर जाने लगा तो शीतल को लगा की 'मौका अच्छा है। वैसे भले कभी देखते नहीं या बात नहीं करते, लेकिन अभी तो बात हो रही है न। और कल विकास था तो हो सकता है कि मन हो फिर भी कुछ बोल नहीं पा रहे हों। अभी तो मैं अकेली हूँ न।'

शीतल भूल गयी थी की वो बिना ब्रा के है। बोली "आइये न, चाय बनाती हूँ।" वसीम "न न चलता हूँ अभी।" बोलता हुआ बाहर निकल गया। शीतल को बुरा भी लगा की उसके बुलाने के बाद भी वसीम अंदर नहीं आया। 'पता नहीं मेरे से इतना भागते क्यों हैं। 2 मिनट बैठ कर बात कर लेते तो क्या हो जाता। सामने रहने पर देखना भी नहीं और अकेले में पता नहीं क्या क्या सोचना। वाह!'

बाहर आते ही वसीम संतुष्ट था। शीतल का रिएक्शन कुछ भी गलत नहीं था। या तो उसे पता ही नहीं चला था और अगर पता चला था तो फिर उसे बुरा नहीं लगा था। शीतल को देखकर वसीम का लण्ड टाइट हो गया था। उसकी पारखी निगाहों ने एक नज़र में ही ये ताड़ लिया था कि शीतल अंदर बिना ब्रा के थी। चुच्ची की गोलाई नाईट गाउन से सटी हुई थी और शीतल के बदन के हरकत करने पे वाइबरेट कर रही थी।

वसीम सोचता हुआ दुकान जा रहा था कि 'शीतल सिर्फ पैंटी ब्रा ही छत से क्यों लायी थी और अभी बिना ब्रा के क्यों थी? कहीं वो नंगी तो नहीं थी अपने घर में और जब मैंने आवाज़ दिया तो बस नाइटी पहन कर आ गयी। नाइटी के अंदर पैंटी भी नहीं पहनी थी क्या? और अगर सच में ऐसा है तो मतलब मेरी जान की चुत गर्म हो गयी है। तब तो मज़ा आ जायेगा। लेकिन मुझे थोड़ा सब्र से और अच्छे से आगे बढ़ना होगा।' वसीम बहुत कुछ सोचता हुआ दुकान बढ़ चला। उसके दिमाग में हर वक़्त शीतल ही समायी थी और उसकी नज़रों में शीतल का जिस्म।
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आज रात में भी शीतल विकास से वसीम के बारे में ही बात कर रही थी। बोली "वसीम चाचा आज देरी से आएंगे। गेट बंद कर लेने बोले हैं और जब वो आएंगे तो कॉल कर लेंगे, तब गेट खोलना होगा।" विकास बोला "ठीक है। कितने बजे तक आएंगे। शीतल बोली "10:30-11:00 तक बोलकर गए हैं।" विकास "हम्म ठीक है। खोल देना तुम्ही। तुम तो जगी ही रहोगी उस वक़्त तक।" बोलकर बिस्तर पर लेट गया। शीतल कुछ नहीं बोली।

विकास पूछा "कब बोले थे तुम्हे?" शीतल बोली "दोपहर में जब दुकान जा रहे थे तब।" विकास मुस्कुराता हुआ शीतल को छेड़ता हुआ बोला "तुम्हे कल देखकर मन नहीं भरा होगा, इसलिए फिर से देखने का मन किया होगा इसलिए आये होंगे। क्या पहनी हुई थी तुम?" शीतल ऊपर से तो छिड़ती हुई बोली लेकिन अंदर ही अंदर खुश होती हुई बोली "नंगी थी। तुम्हे तो और कुछ सूझता ही नहीं। वो देखते भी नहीं मेरी तरफ। वो बहुत शरीफ और अच्छे आदमी हैं। मैं बोली भी की अंदर आइये, चाय पीजिये लेकिन नहीं रुके। बस बोले और बाहर से ही तुरंत चले गए।" विकास कुछ नहीं बोला।

विकास उसी तरह मुस्कुराता हुआ बोला "तुम्हे दिखाकर थोड़े ही देखते होंगे। तुम्हारे जैसी हूर को बिना देखे कोई रह ही नहीं सकता है। उनकी तो बात छोड़ो, मैं तुम्हारा पति हूँ, फिर भी मेरा मन ललच जाता है।" शीतल बोली "वही तो मैं भी सोचती हूँ। मुझे सब देखते हैं, सब। लेकिन उनकी नज़र कभी नहीं उठती मेरे पर।" विकास बोला "उन्हें शर्म आती होगी की अगर तुमने देखते हुए देख लिया तो क्या सोचोगी की इतना उम्रदराज होकर तुम्हे देख रहा है। इसलिए तुम्हे छिप कर चोर नज़रों से देखते होंगे। हम मर्द लोग ऐसे ही होते हैं।"

शीतल को विकास की बात में दम नज़र आया। 'सही बात है। उन्हें उम्र के फासले की वजह से शर्म आती है। हैं भी तो मेरे से दुगुने उम्र के। इसलिए वो मेरे से दूर रहते हैं कि मैं क्या सोचूंगी, मेरे पति क्या सोचेंगे। इसलिए चाह कर भी मेरे से बात नहीं कर पाते और अंदर ही अंदर घुटते रहते होंगे। मुझे ही कुछ करना होगा।'

सोचती हुई वो विकास को बोली "तुम तो हो ही कमीने। मुझे पता है तुम किस किस को और कैसे कैसे छिप कर देखते हो। मुझे तो उनके बारे में सोच सोच कर दया आती है। इतने सालों से अकेले रह रहे हैं। किसी से बात नहीं करते हैं। कोई आता जाता भी नहीं है। अंदर ही अंदर घुट रहे होंगे वो। हम ही पहले हैं जिसे घर किराये पर दिए हैं। नहीं तो इतने बड़े घर में अकेले रहना।" विकास बस "हम्म" कर के रह गया। शीतल आगे बोली "इंसान को बात करना चाहिए। बात करने से किसी को बोलने से मन हल्का होता है। तुमसे भी बात नहीं करते।" विकास सोने लगा था।

शीतल चुप हो गयी और अभी की तैयारी करने लगी। वो सोच ली की 'अब उसे ही आगे बढ़ना होगा और कुछ करना होगा।' दोपहर में तो वो हड़बड़ी में थी लेकिन अभी उसके पास पूरा टाइम था। विकास अब सुबह ही जागने वाला था। शीतल का मन हुआ की 'सच में नंगी ही जाकर गेट खोल देती हूँ, फिर देखती हूँ की बूढ़े मियाँ देखते हैं कि नहीं।' शीतल शरारती मुस्कान हँस दी।

वो अभी वही नाईट गाउन पहनी हुई थी। विकास के सो जाने के बाद वो उठी और ब्रा उतार दी। फिर वो नाईट गाउन के सामने के हिस्से को थोड़ा नीचे की तरफ खिंच ली और कॉलर को थोड़ा फैला दी। अब उसकी दोनों गोलाई गहराई के साथ बाहर झांक रही थी। शीतल मन ही मन सोची 'अब तो देखेंगे न।' शीतल चेहरे को साफ कर ली और क्रीम और डिओड्रेन्ट लगा ली। अब वो वसीम के लिए दरवाजा खोलने के लिए तैयार थी।

शीतल को नींद नहीं आ रही थी। वो मन ही मन सोच रही थी क्या बात करेगी और गेट खोलते वक़्त क्या करेगी। लेकिन शीतल की इतनी हिम्मत नहीं हुई की वो वसीम से कोई भी बात कर पाए। वो अपने नाइटी को ठीक कर ली और ब्रा पहनने लगी। उसे लगा की अगर मैं ऐसे गयी तो कहीं वही मुझे गलत टाइप की ना समझ ले। फिर शीतल को ख्याल आया की मैं तो सज संवर कर बैठी हूँ तो उन्हें लगेगा कि मैं जग कर उनका इंतज़ार कर रही थी। लेकिन अगर मैं नींद में रहूँगी तब तो इस तरह जा सकती हूँ।

वो फिर से ब्रा उतार दी और नाइटी को सामने से नीचे कर ली। अब चलने पर उसकी चूचियाँ आराम से गोल गोल घूम रही थी और क्लीवेज खुले होने से चुच्ची में हो रही थिरकन साफ साफ दिख रही थी। शीतल अपने बाल बिखरा दी और उनींदी जैसा चेहरा बना ली। 11 बज गए थे और वसीम का कॉल अब तक नहीं आया था। शीतल बाहर हॉल में बैठी हुई बहुत कुछ सोच रही थी और उसकी चुत गीली हो रही थी। वो अपनी पैंटी भी उतार दी।

शीतल 2-3 बार बाहर झांक कर आ गयी थी, लेकिन वसीम नहीं आये थे। शीतल का मन हुआ की 'मैं ही कॉल करके पूछ लेती हूँ' लेकिन फिर उसे ये ठीक नहीं लगा और उसने ये इरादा त्याग दिया। थोड़ी देर बाद विकास के मोबाइल की घंटी बजी। शीतल दौड़कर फ़ोन उठायी तो वसीम चाचा लिखा हुआ था। शीतल अपनी सांसो को सम्हाली और और ऐसे "हेल्लो" बोली जैसे बहुत नींद में हो। उधर से वसीम की आवाज़ आयी "बाहर आ गया हूँ, दरवाजा खोल दीजिये।" शीतल उसी तरह से "हम्म... आती हूँ।" बोली और फ़ोन कट कर दी।

शीतल खुद को आईने ने देखी और नाइटी एडजस्ट कर ली। शीतल बाहर आई और लाइट ऑन कर दी। शीतल नाइटी को फिर से नीचे कर ली और देख ली की उसकी क्लीवेज अच्छे से दिख रही है। शीतल ऐसे मेन गेट खोलने लगी जैसे बहुत नींद से जागकर आयी हो। शीतल दरवाजा खोल दी और गहरी नींद में होने जैसी एक्टिंग करते हुए सर झुकाए खड़ी रही।

गेट खुलते ही वसीम की आँखों के सामने शीतल की गोरी चूचियाँ चमक रही थी। उसका लण्ड तो फ़ोन ओर शीतल की आवाज़ सुनकर ही टाइट हो गया था कि वो दरवाजा खोलने आ रही थी। उसे तुरंत समझ आ गया कि शीतल अभी भी बिना ब्रा के है। उसका मन किया कि हाथ आगे बढ़ाये और ईन रसगुल्लों को जोर से मसल कर निचोड़ दे और चूस ले। जितना उसने सोच विचार किया था उस हिसाब से शीतल थोड़ा मोड़ा नाटक के अलावा उसे मना नहीं करेगी और अपनी चुचियों से उसे खेलने देगी। लेकिन वसीम ऐसा करना नहीं चाहता था।


वसीम ने खुद पे काबू किया और बोला "सॉरी, मेरी वजह से आपलोगों को परेशानी उठानी पड़ी।" शीतल उलटे कदम ही पीछे होती हुई बोली ताकि वसीम अच्छे से उसकी चुच्ची की थिरकन को देख सके। 'कल विकास के सामने इन्हें बुरा लग रहा होगा लेकिन अभी मैं अकेली हूँ और उनकी तरफ देख भी नहीं रही।' बोली "इसमें परेशानी की क्या बात है।"

वसीम ने गेट लॉक कर दिया और ऊपर जाने लगा। शीतल को फिर से बुरा लगने लगा की वसीम तो जा रहा है। वो तुरंत बोली "खाना खाकर आये हैं या अभी बनाएंगे। आइये यहीं खा लीजिये, हैं बनाकर रखी हूँ।" वसीम ने फिर से बस एक झलक शीतल को देखा और फिर दूसरी तरफ देखता हुआ बोला "नहीं, शुक्रिया। मैं खाकर आया हूँ। सो जाइये आप। मैंने आपको परेशान कर दिया।" बोलता हुआ वसीम सीढ़ियों पर चल दिया और शीतल खड़ी रह गयी।


उसे यकीन नहीं हुआ की वसीम ऐसा आदमी है। उसे लगा था कि इस तरह के कपड़े और अकेलापन पाकर वो शीतल से बात करेगा और फिर शीतल उसे समझ पायेगी। उसे गुस्सा भी आ रहा था कि वो इस तरह सिर्फ नाइटी पहनकर उसके लिए खड़ी है, उसे दिखाने के लिए अपनी पैंटी ब्रा भी उतार दी है और वो उसे ऐसे ही खड़ी छोड़कर चला गया। शीतल को विकास की याद आयी की 'उम्र के फासले की वजह से वो शर्मा जाता होगा और तुम्हे नहीं देखता होगा, नहीं तो उसका मन भी करता होगा तुमसे मस्ती करने का।'

शीतल का गुस्सा और बढ़ गया। उसका मन किया कि अभी वसीम पे बरस पड़े। उसे खींच कर रोक ले और उससे पूछे की अगर अभी नज़र उठा कर देख भी नहीं सकते, बात भी नहीं कर सकते हैं तो फिर दिन में क्या करते हैं। दिन में क्यों मेरे कपड़े के साथ अपनी वासना शांत करते हैं। लेकिन गुस्से में भी शीतल इतनी हिम्मत नहीं कर पाई। वो 2-3 सीढ़ी चढ़ी भी, लेकिन इतने में ही उसकी हिम्मत जवाब दे गयी। एक औरत कैसे किसी मर्द को जाकर ये कह सकती थी।

शीतल का गुस्सा शांत हो गया और वो अंदर आकर अपने घर का दरवाजा बंद कर ली। वो सोचने लगी 'वो तो वही कर रहे हैं जो एक शरीफ इंसान को करना चाहिए। मैं क्यों रंडियों की तरह कर रही हूँ। वो अकेले में कुछ भी करें, मुझे तो परेशान नहीं कर रहे। कितने अच्छे हैं कि मन में मेरे बारे में कुछ भी सोचे लेकिन अकेले में मौका मिलने के बाद भी मेरे से बात तक करना नहीं चाहते। ये कितना मुश्किल काम होगा की जिसके साथ आप बहुत कुछ करने के लिए तड़प रहे हैं, वो अकेले सामने हो फिर भी आप उससे बात भी न करें, उसे देखे भी नहीं। मुझे चुदवाने का मन होता है लेकिन अगर विकास उस रात नहीं चोदता तो कितनी तड़प जाती हूँ की शर्म से उसे बोल भी नहीं पाती। आप बहुत महान इंसान हो वसीम चाचा, देवता हो। लेकिन अब मैं आपको घुट घुट कर मरने नहीं दूँगी।' शीतल सोच ली की वो कल दिन में इस बारे में वसीम से बात करेगी। उसे समझाएगी और उससे खुल कर बात करेगी।

शीतल अपनी पैंटी पहन ली और अपने बिस्तर पर आ गयी। वो वसीम के बारे में सोचती हुई सो गयी। नींद में आते ही उसकी नाइटी इधर उधर हो गयी और वो विकास से सट गयी थी। शीतल नींद में थी और उसे लग रहा था कि वसीम उसके बगल में सोया हुआ था। वो विकास को पकड़ ली थी तो विकास का हाथ भी नींद में ही शीतल के बदन पे रेंगने लगा था। नाइटी के अंदर कोई और कपड़ा था नहीं तो तुरंत ही विकास का हाथ शीतल की चुत और चुच्ची पे पहुँच गया था। शीतल को लग रहा था की वसीम उसके बदन को सहला रहा है तो वो विकास का पूरा साथ दे रही थी।

विकास ने नाइटी को ऊपर कर दिया और अपने ट्राउजर और चड्डी को नीचे करकर शीतल के ऊपर आ गया। शीतल की चुत गीली थी और तुरंत ही विकास ने अपना लण्ड शीतल की चुत के अंदर डाल दिया और धक्के लगाने लगा। शीतल "आह" करती हुई अपने दोनों पैरों को पूरा फैला दी और लण्ड और अंदर लेने के लिए कमर उछालने लगी। उसे लगा की वसीम ने उसकी चुत में लण्ड डाल दिया है और चोद रहा है। वो "आम्म्मह... उह..." करती हुई पूरी मस्ती में वसीम का लण्ड और अंदर जाने का इंतज़ार कर रही थी।

विकास शीतल के ऊपर लेटा हुआ था और उसके चेहरे होठ को चूम रहा था। शीतल पूरी मस्ती में थी और उसे लग रहा था कि अभी वसीम ने और धक्का मारेगा और उसका लण्ड और अंदर उसकी चुत में घुसेगा। वो विकास के होठ को अच्छे से चूमते हुए उसके पीठ कमर को सहला रही थी और लण्ड और अंदर आने का इंतज़ार करती हुई मस्ती में चुदवा रही थी। विकास भी और गर्म हो गया था और 8-10 धक्कों के बाद उसने वीर्य गिरा दिया। जैसे ही शीतल को चुत में वीर्य का एहसास हुआ उसकी आंखें खुल गयी और अपने ऊपर विकास को देखते ही अचानक से उसका मूड खराब हो गया। उसे बहुत गुस्सा आया और वो तुरंत विकास को अपने ऊपर से उतार दी। उसका मन हुआ की विकास को डाँटने का, चीखने चिल्लाने का। लेकिन वो मन मसोस कर रह गयी और उठ कर बाथरूम चली गयी।

शीतल नाइटी उतार दी और नंगी हो गयी। पेशाब करने के बाद वो अपनी चुत सहलाने लगी। वो सोचने लगी की 'कितना अच्छा लग रहा था अभी जब तक उसकी आंखें बंद थी। वसीम चाचा मेरे बदन को सहला रहे थे, मेरी चुच्ची को चूस रहे थे, मसल रहे थे, मेरी चुत को सहला रहे थे। आह काश की अभी वसीम चाचा ही होते मेरे ऊपर, विकास नहीं होता। वसीम चाचा ही मुझे चोद रहे होते। आह उनका मोटा लण्ड कितना अंदर तक घुसता मेरी चुत में। आह वसीम चाचा, आपने पकड़ क्यों नहीं लिया गेट पे मुझे।
उतार देते मेरी नाइटी को और देखते मेरे नंगे जिस्म को। देखते की आपके लिए मैं अंदर से नंगी थी। देखते उस जगह को जहाँ मैं पैंटी ब्रा पहनती हूँ। छूते उस जगह को। चूमते मसलते। जो वीर्य आप मेरे पैंटी ब्रा पे गिराते हैं, वो उस जगह पे गिराते जहाँ मैं उन्हें पहनती हूँ। पैंटी को लण्ड पे रगड़ते हैं आप, चुत पे लण्ड को रगड़ लेते। आह.... वसीम चाचा चोद लेते मुझे। डाल देते अपना मोटा मूसल लण्ड मेरी चुत में और तब वीर्य गिराते वहाँ। आह... मम्मम.... वसीम चाचा.... आह.....।'

शीतल की चुत पानी छोड़ दी और वो हाँफने लगी। वो अच्छे से चुत को पोछ ली और नाइटी को बाथरूम में ही छोड़ दी। अब उसे अच्छा लग रहा था। शीतल नंगी ही बाथरूम से बाहर निकली और किचन में जाकर पानी पियी। विकास गहरी नींद सो रहा था। उसे देखते ही शीतल का मूड खराब हो गया और वो दूसरे रूम में सोने जाने लगी, लेकिन फिर उसे लगा की ऐसा करना ठीक नहीं रहेगा। वो वहीँ पे लेट गयी और सोने लगी। आज पहली बार शीतल रात में विकास के घर में होते हुए नंगी सो रही थी। लेकिन नींद उसकी आँखों से गायब था।

शीतल सोचने लगी 'ये क्या कर रही थी मैं। कैसा सपना था ये की मैं मेरा पति मुझे चोद रहा था लेकिन मैं सपना देख रही थी की मैं वसीम चाचा से चुदवा रही हूँ। क्या मैं सच में वसीम चाचा से चुदवाना चाहती हूँ।' शीतल सोच में पड़ गयी। 'क्या सच में ऐसा है? हाँ, तभी तो मैं ऐसे गयी थी दरवाजा खोलने। अगर वसीम चाचा मुझे पकड़ लेते या कुछ करते तो क्या मैं उन्हें रोक पाती? बिल्कुल नहीं। मैं उनसे चुदवाना चाहती हूँ तभी तो उनके वीर्य की खुशबू मुझे पागल बना देती है।'

शीतल बैचैन होने लगी। 'जो आदमी मेरे पैंटी ब्रा पे वीर्य गिराता है तो वो मुझे चोदने का सोचकर ही ऐसा करता होगा, कोई भजन गाकर तो ऐसा नहीं ही करता होगा। वो भी मुझे चोदना ही चाहते हैं। मुझे चोदकर ही वो शांत हो पाएंगे। मेरी चुत में वीर्य गिराने के बाद ही उनके मन को सुकून मिलेगा। ये सालों का अकेलापन पैंटी में वीर्य गिराने और बातें करने से दूर नहीं होगा। जब तक वो मुझे अपनी बाहों में भरकर अच्छे से मन भर कर चोद नहीं लेंगे, तब तक उनका अकेलापन, उनकी घुटन दूर नहीं होगी।'

शीतल बहुत बड़ा फैसला ले रही थी। 'मुझे उनसे चुदवाना ही होगा। कल मुझे उनसे खुल कर बात करनी होगी और मेरा जिस्म हाज़िर है उनकी मदद के लिए। मैंने उनके सोये अरमान जगाए हैं, मेरी वजह से वो आदमी तड़प रहा है तो ये मेरी जिम्मेदारी है कि मैं उन्हें इससे बाहर निकालूँ। मेरे बदन को देखकर उनकी ऐसी हालत हुई है तो मेरे बदन को पाकर वो सुकून पाएंगे। मैं अपना बदन उन्हें सौंप दूँगी। उन्हें मुझे चोदना है तो मैं चुदवाऊँगी वसीम चाचा से। उन्हें अपनी बेटी की उम्र की औरत को चोदकर सुकून मिलेगा तो मैं भी अपने बाप के उम्र के आदमी से चुदवाने के लिए तैयार हूँ।'

शीतल अपने फैसले को मजबूत कर रही थी की फिर से उसके दिमाग में ख्याल आया 'मैं रण्डी बन गयी हूँ क्या जो दूसरे मर्द से चुदवाने की बात सोच रही हूँ। ऐसा सोच कर भी मैं पाप कर रही हूँ। ये अपने पति को धोखा देना है। वसीम के बड़े लण्ड के लालच में मैं विकास को धोखा देने के बारे में सोच रही हूँ। विकास मेरा पति है, कितना प्यार करता है मेरे से।'

फिर से शीतल के मन में वही शैतानी ख्याल आया 'इसमें धोखा देने जैसी कोई बात नहीं है। मैं बस वसीम की मदद करना चाहती हूँ क्यों की वो इस हालत में मेरी वजह से आया है। इतने सालों से वो अकेला है और अब मेरी वजह से तड़प रहा है। ये मेरा फ़र्ज़ है कि मैं उसकी मदद करूँ। और मैं उससे चुदवाने तो नहीं जा रही, मैं बोली की अगर मुझे अपना जिस्म देकर भी उसकी मदद करनी पड़ी तो मैं करुँगी। और अगर वो मुझे एक बार चोद ही लेगा तो क्या हो जायेगा, कौन सा मैं रोज चुदवाऊँगी उससे। एक बार चुदवा कर वो ठीक हो जायेंगे तो इसमें विकास को धोखा देने वाली कोई बात नहीं है।'
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शीतल सोचती सोचती नींद के आगोश में जा चुकी थी। सुबह जब उसकी नींद खुली तो वो नंगी ही सोई हुई थी। विकास सोया हुआ ही था। शीतल रोज सवेरे जागती थी और फ्रेश होकर नहा कर पूजा करके चाय बनाती थी और फिर विकास को जगाती थी। शीतल नंगी ही बेड से उठी और फ्रेश होकर नहाने चल दी। आज पहली ही बार वो अपने घर में ऐसे नंगी सोई थी और अब अभी ऐसे नंगी घूम रही थी। नहाने के बाद वो साड़ी पहन ली और फिर चाय बनाकर विकास को जगाई और किचन के काम में काग गयी। ये उसका रोज का नियम था, लेकिन शीतल का ध्यान दोपहर पे था कि वो कैसे वसीम से बात करेगी। वो खुद को तैयार कर रही थी की आज वसीम से खुल कर बात कर ही लेगी।

विकास ऑफिस चला गया और शीतल 1 बजने का इंतज़ार करने लगी। उसके मन में बहुत उथल पुथल मची हुई थी। आज वो स्टोर रूम में नही गयी थी। उसका प्लान था कि जब वसीम उसकी पैंटी ब्रा को हाथ में लेकर उसपर वीर्य गिराने की तैयारी कर रहा होगा, उस वक़्त वो ऊपर जायेगी और वसीम से खुल कर सारी बात करेगी। जैसे जैसे वक़्त करीब आता जा रहा था, उसके दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी। शीतल के मन में बहुत कुछ चल रहा था।

'ठीक उसी वक़्त जाऊँगी तो कहीं वो शर्मिंदा न हो जायें की मैंने उन्हें रंगे हाथों पकड़ लिया है। नहीं नहीं... इस तरह तो वो और गिल्टी महसूस करेंगे और की उनकी चोरी पकड़ी गयी। ये तो मैं अच्छा करने के चक्कर में कहीं कुछ बुरा न कर दूँ। मुझे उन्हें समझाना होगा की आपने जो किया उसमे कुछ गलत नहीं है और आप तो महान इंसान हैं कि आपने खुद को नियंत्रित कर रखा है। नहीं तो जिस औरत के बारे में आपके मन में बुरे ख्याल आये और वो दिन भर अकेली मिले तो लोग पता नहीं क्या क्या करते। आप तो अकेले रहने पर भी मेरी तरफ नहीं देखते, मेरे से बात भी नहीं करते। आपको घबराने की जरूरत नहीं है, आपके मन में जो भी है, आप मुझे बताइए, मुझसे बातें करिए।'

'चाहे कुछ भी हो जाये, मैं उन्हें शर्मिंदा नहीं होने दूँगी। मैं उन्हें समझाऊँगी। उन्हें बताऊँगी की वो गलत नहीं किये हैं कुछ। लेकिन फिर अगर वो कुछ किये तो? अगर उन्होंने मुझे चोदने की बात की तो?' अब शीतल चुप थी। इसके आगे उसे कोई जवाब नहीं मिल रहा था। लेकिन इतना तय था कि इस डर से वो वसीम को उसके हाल पर नहीं छोड़ने वाली थी। उसका वसीम से बात करने का निर्णय अंतिम था।

1 बजते ही शीतल को दरवाजा खुलने की आहट हुई और उसका दिल और तेज़ी से धड़कने लगा। अंदर आते ही शीतल के घर का दरवाजा देखते ही वसीम को लग गया कि आज शीतल ऊपर छत पर नहीं गयी है। शीतल के घर का दरवाजा आज अंदर से बंद था जबकि पहले सिर्फ सटा हुआ रहता था। और दूसरी बात ये थी कि वसीम के अंदर जाते ही शीतल अपने कपड़े को नीचे ले आती थी। वसीम को थोड़ा बुरा लगा। उसे लगा था कि खेल अब उसकी पकड़ में है, लेकिन अभी उसे लग रहा था कि कहीं कुछ गलती हुई है। उसे लगा की कहीं मैं ओवरएक्टिंग तो नहीं कर गया।


वसीम ऊपर आ गया। पैंटी ब्रा अपनी जगह पे उसके इंतज़ार में टँगा पड़ा था। वो रूम में चला गया और कपड़े बदल कर थोड़ी देर इंतज़ार करने लगा की शायद शीतल ऊपर स्टोर रूम में आ जाये। थोड़ी देर बाद वो अपने कमरे से बाहर निकला और शीतल की पैंटी को लेकर उसे अपने लण्ड पे लपेटकर मुठ मारने लगा। लेकिन आज वसीम को मज़ा नहीं आ रहा था। आज उसके लण्ड में वो अकड़ नहीं थी।

वो सोचने लगा की उसने कल ज्यादा ही ओवर रियेक्ट कर दिया। 'रात में शीतल को पता था कि मैं आने वाला हूँ, उसका पति सो गया था और वो अकेली मेरे लिए दरवाजा खोलने आयी थी, फिर भी वो बिना ब्रा पहने क्लीवेज दिखती हुई नाइटी पहनकर आयी थी, फिर भी मैं उसकी तरफ बिल्कुल नहीं देखा था। वो बात करने की भी कोशिश की थी, लेकिन मैंने वो भी नहीं किया। कहीं उसे ये तो नहीं लग गया कि मुझे उसमे कोई इंटरेस्ट नहीं है और वो अब मेरे से दूर तो नहीं रहने वाली। नहीं यार, इस माल को तो मैं बिना चोदे नही छोड़ सकता। मुझे कुछ और करना होगा। इतने सालों बाद किसी को चोदने का मन किया है और माल भी रेडी है तो इसे अब ऐसे आधे में तो नहीं छोड़ सकता।'

वसीम मुठ मारने लगा और फिर अपने वीर्य को शीतल की पैंटी पर गिरा कर अच्छे से टाँग दिया और अंदर अपने कमरे में चला गया। आज उसका मन नहीं था, लेकिन ये उसके प्लान का मुख्य हिस्सा था। इसी वजह से तो शीतल उसके सामने बिना ब्रा के आने लगी थी। अगर वो रात में थोड़ा आगे बढ़ता तो शीतल रात में ही उसके नीचे बिछी होती। उसे अब और देर नहीं करनी थी। उसे कुछ करना था, इससे पहले की ज्यादा देर हो जाये।


इधर शीतल अंदाज़ा लगा रही थी की कब वसीम क्या कर रहा होगा। वो अपने घर से बाहर निकलने को तैयार हुई की अभी वसीम स्टोर रूम के सामने खड़े होकर उसकी पैंटी पे अपना वीर्य गिराने की तैयारी में होगा, लेकिन शीतल के कदम ही आगे नहीं बढे। उसकी इतनी हिम्मत ही नहीं हुई। कल रात ही की तरह अभी भी उसके कदम थम गए थे। कल रात और अभी में बस इतना अंतर आया था कि रात में शीतल एक सीढ़ी भी नहीं चढ़ पायी थी लेकिन अभी शीतल पहले 2 सीढ़ी और फिर दुबारा हिम्मत करने पर 4 सीढ़ी तक चढ़ गयी थी।

शीतल अपने मन में कुछ भी सोचे, किसी भी तरह का सपना देखे, लेकिन इस तरह किसी मर्द के सामने जाने की उसकी हिम्मत नहीं थी जो मर्द उसकी पैंटी पे अपना लण्ड रगड़ रहा हो और वीर्य गिरा रहा हो। शीतल वापस अपने घर के अंदर आ गयी थी। उसका मन था वसीम के पास जाने का, उससे बातें करने का, लेकिन उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी। उसे बुरा भी लगने लगा की वो आज वसीम से बात नहीं कर पायी। वो देर नहीं करना चाहती थी।

थोड़ी देर बाद शीतल फिर से हिम्मत की और दरवाज़ा खोलते ही धड़धड़ाते हुए सीधे छत पर पहुँच गयी। लेकिन तब तक देर हो चुकी थी और वसीम अंदर जा चूका था। शीतल अपने पैंटी ब्रा को देखी। वसीम उनके साथ अपना काम कर चुका था। वसीम के छत पे नहीं होने से शीतल की हिम्मत थोड़ी और बढ़ गयी थी। शीतल पैंटी ब्रा को उठा ली और वहीँ पे उसे सूँघने लगी की अगर वसीम बाहर देख रहा हो तो उसे शीतल के मन की बात समझ में आ जाये। शीतल पैंटी पे लगे वसीम के वीर्य को चाटने लगी। उसपे खुमार चढ़ने लगा।


अब शीतल की हिम्मत और शर्म जवाब दे गयी। वो नीचे आ गयी। शीतल अपनी पहनी हुई पैंटी को उतार दी और वसीम के वीर्य लगे पैंटी को पहन ली। वसीम का वीर्य उसकी चुत पे फ़ैल गया। शीतल पैंटी के ऊपर से अपनी चुत सहलाने लगी। शीतल को बहुत मज़ा आ रहा था कि उसकी चुत वसीम के वीर्य से गीली है, और उसे बुरा भी लग रहा था कि वसीम से उसकी मुलाकात नहीं हो पाई। शीतल अपने घर का दरवाज़ा अच्छे से बंद कर ली और सारे कपड़े उतार कर पूरी नंगी हो गयी। वो पैंटी और चुत पे लगे वीर्य को चाट ली और चुत में ऊँगली करती हुई सोचने लगी।



'आह वसीम..... आप इतने शरीफ क्यों हैं। क्यों नहीं मुझे देखते, क्यों नहीं मुझसे बातें करते। आपको क्या लगता है मैं गुस्सा करुँगी। बिल्कुल नहीं करुँगी। मैं तो आपकी मदद करना चाहती हूँ। उफ़्फ़... आपको लगता होगा की मेरे जैसी पढ़ी लिखी शरीफ घर की औरत आप जैसे इतने बड़े उम्र के इंसान से क्यों बात करेगी, क्यों दोस्ती करेगी। ऐसा नहीं है वसीम चाचा। मैं चाहती हूँ की आपसे बातें करूँ। मैं तो कितनी कोशिश करती हूँ लेकिन आपही पता नहीं क्यों मेरे से भागते हैं। अब आप ऐसे नहीं मानेंगे। अब मैं आपको मना कर ही रहूँगी। आप मुझे शरीफ समझते हैं, इसलिए बात नहीं करते न। तो अब मैं रंडियों की तरह व्यवहार करुँगी आपके सामने। तब तो आप मानेंगे न। जैसे रात में की थी, उससे भी ज्यादा। अगर आप नहीं माने तो अपने कपड़े भी उतार दूँगी। अपनी चुत भी फैला दूँगी आपके सामने। आपके सामने अपनी चूचियाँ मसलूंगी। आह..... वसीम....।'


शीतल की चुत ने पानी छोड़ दिया और वो निढाल होकर सोफे पे ही पड़ी रही। उसकी चुत से कामरस बहकर सोफे पे टपकता रहा। शीतल की चुत की आग तो शांत हो गयी थी, लेकिन उसे राहत नहीं मिला था। उसकी वसीम से बात नहीं हो पाई थी। उसे और हिम्मत चाहिए थी वसीम से बात करने की। वो अब कल की तैयारी करने लगी थी।

शीतल के छत पे आने की आहट सुनकर वसीम अपनी खिड़की से झाँककर बाहर देखने लगा था और शीतल को अपनी पैंटी ब्रा सूँघते चाटते देखकर उसे राहत हुई थी की चिड़ियां उसकी जाल में ही है। लेकिन उसने सोच लिया की अब जल्दी ही आगे बढ़ जाना चाहिए। अब उसके और शीतल के बीच में बस लाज का ही पर्दा बचा हुआ था, जिसे जल्दी निकाल देना जरूरी था। शीतल एक तरह से चुत फैलाये तैयार थी तो वसीम लण्ड खड़ा किये हुए। बस अब दोनों को मिल जाना था और एक दूसरे में समा जाना था।


थोड़ी देर बाद शीतल उठी और उसी पैंटी को पहन ली जिसमे वसीम का वीर्य लगा हुआ था। रात में शीतल खाना बना रही थी और विकास हॉल में बैठा हुआ टीवी देख रहा था, जब उसके घर पे नॉक हुआ। दोनों आश्चर्यचकित रह गए की अभी उनके घर कौन आया। उनके यहाँ बहुत कम लोग आते थे और जो भी आते थे, उनके बारे में इनलोगों को पहले से पता होता था।



विकास ने दरवाज़ा खोला तो सामने वसीम खड़ा था। दरवाज़ा खुलते ही वसीम बोला "देखिये न पता नहीं मेरे घर की चाबी आज कहाँ गिर गयी है। मिल ही नहीं रही।" विकास हँसने लगा और बोला की "अरे वसीम चाचा, तो इसमें इतना घबराने वाली कौन सी बात है। आपही का घर है ये। हम सिर्फ किराया देते हैं यहाँ का। आइये अंदर आइये, सुबह देखेंगे कि चाभी का क्या करना है।" वसीम बोला "नहीं... कोई हथौड़ी या कुछ और ऐसा चीज़ है जिससे ताला तोड़ा जा सके?"

वसीम की आवाज़ सुनकर शीतल भी गेट पे आ गयी थी। विकास बोला "ताला क्यों तोड़ियेगा। आज यहीं रहिये हमारे यहाँ, सुबह चाभी वाले को बुलवा कर दूसरा चाबी बनवा लीजिएगा। वैसे भी वो ताला हमसे टूटेगा तो नहीं।" वसीम कुछ बोलता उससे पहले ही शीतल बोली "और नहीं तो क्या, आज यहीं रहिये।" उसके मन में तो लड्डू फुट रहा था कि वसीम आज की रात उसके घर में बिताने वाला है। उसे बहुत अच्छा मौका मिला था वसीम के करीब जाने का। वसीम "शुक्रिया" बोलता हुआ अंदर आ गया और सोफे पे बैठ गया।
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शीतल नाईट सूट वाले टॉप और ट्रोउजर में थी। वो किचन में चली गयी और वसीम के लिए पानी रख कर चली गयी और उसके लिए भी खाना बनाने लगी। वसीम अभी भी शीतल को देख नहीं रहा था। वसीम विकास से बातें कर रहा था और शीतल बीच बीच में बाहर हॉल में उनलोगों के पास कभी चाय देने तो कभी कप उठाने जा रही थी, लेकिन वसीम की नज़र उसके ऊपर उठ ही नहीं रही थी। शीतल अभी भी वही पैंटी पहनी हुई थी जिसपे दोपहर में वसीम ने वीर्य गिराया था। वसीम को सामने देखकर उसकी चुत और गीली हो गयी की यही आदमी उसके सामने बैठा है जिसका वीर्य उसकी चुत पर लगा है। उसे लगा की वसीम ने उसे चोद कर उसकी चुत में ये वीर्य भरा है और वही उसकी पैंटी में लगा हुआ है। शीतल अपना दोपहर में लिया हुआ प्रण याद कर ली।

शीतल अपने मन में क्या क्या सोच रही थी और वसीम था कि उसकी तरफ देख भी नहीं रहा था। शीतल अपने टॉप का ऊपर का एक बटन खोल दी और बाहर आकर पूछने लगी की "खाना लगा दूँ क्या?" अब शीतल की क्लीवेज की झलक दिख रही थी। विकास "हाँ" बोला तो शीतल खाना परोसने लगी। वो सोफे के पास लगे सेंटर टेबल पर ही थाली ले आयी। शीतल वसीम के सामने खड़ी होकर खाना टेबल पे रख रही थी और जब वो झुकी तो वसीम की नज़रों के सामने दो पके गुदाज रसभरे आम लटक गए थे। वसीम की नज़र उन आमों पे पड़ ही गयी और एक झटके में उसका लण्ड अकड़ गया। उसका मन हुआ की अभी दोनों हाथ बढ़ाये और उन झूलती हुई चुचियों को मसल दे, निचोड़ दे उन्हें। उसने बड़ी मुश्किल से खुद पे काबू किया। अगर अभी वो शीतल के साथ अकेला होता तो अब तक शीतल की चूचियां नंगी होकर उसके हाथों में खेल रही होती, लेकिन अभी उसका पति सामने बैठा हुआ था। उसने अपनी नज़रों को हटा लिया।

शीतल वापस से किचन में चली गयी और वसीम और विकास दोनों खाना खाने लगे। थोड़ी देर बाद शीतल फिर और पूरी और खीर लेकर आई और वसीम को देने लगी तो वो मना करता हुआ बोला की "बस बस हो गया, अब मत दीजिये।" शीतल बहुत प्यार से वसीम को बोली "लीजिये न, ले क्यों नहीं रहे हैं आप, शर्मा क्यों रहे हैं, खाना अच्छा नहीं लगा क्या मेरे हाथ का।" शीतल को बहुत मज़ा आ रहा था कि वो वसीम को बोल रही थी की वो शर्माए नहीं और ले ले जो जो लेना है उसे। वो वसीम के मना करने के बाद भी उसकी थाली में और पूरी और खीर दे दी।

शीतल थाली में पूरी रख रही थी और वसीम मना कर रहा था, फिर भी शीतल थाली में पूरी रख रही थी और ऐसा करने पर शीतल का बदन हिल राग था और शीतल के हिलने से उसकी चूचियाँ भी हिल रही थी और वसीम की नज़रों में आ ही रही थी। शीतल वसीम के सामने झुकी हुई थी और वसीम की नज़रों में टॉप के अंदर हो रही हलचल दूसरी तरफ देखने पर भी आ ही रही थी। शीतल अपने पति के सामने उसे रिझा रही थी, उकसा रही थी, इससे ज्यादा और क्या कर सकती थी वो।


खाना खाने के बाद वसीम वाश बेशीन में हाथ धो रहा था और शीतल थाली ग्लास उठा कर किचन में जा रही थी। जहाँ पर बेशीन था वहाँ वसीम के खड़े होने के बाद कम ही जगह बचा हुआ था जिसे पार करके वो किचन में जाती। शीतल के पास अच्छा मौका था क्यों की उसके दोनों हाथों में थाली गिलास था और विकास अपने रूम में अपना फ़ोन उठाने गया हुआ था। शीतल वसीम के बगल से गुजरी और उसकी पीठ पर अपने चुच्ची को रगड़ती हुई पार हुई। शीतल चाहती तो बिना वसीम में टच किये हुए भी जा सकती थी, लेकिन वो जानबूझकर अपनी चूचियाँ वसीम की पीठ पे दबाते हुए रगड़ाते हुए पार हुई।

वसीम के लिए ये पहला मौका था जब शीतल का बदन उसके बदन से स्पर्श हुआ। एक झटके में उसका लण्ड उठ कर शीतल की गर्म जवानी को सलाम करने लगा। वसीम ने उस तरह का कोई रिएक्शन नहीं दिया लेकिन अपनी पीठ पर उन नर्म गुब्बारों का स्पर्श वो अभी तक महसूस कर रहा था। उसे बहुत अच्छा लगा और उसे लगा की रात में यहाँ रुकने का उसका फैसला बहुत सही था।

शीतल किचन में जाने से पहले पलट कर मुस्कुराती हुई वसीम को देखी, ताकि वसीम उसका इरादा समझ सके, लेकिन वो अभी भी शीतल की तरफ नहीं देख रहा था और उसका रिएक्शन ऐसा था जैसे कुछ हुआ ही न हो। पहले तो शीतल को गुस्सा आया, लेकिन फिर उसे लगा की हो सकता है कि इस टाइट ब्रा की वजह से उन्हें अच्छे से पता नहीं चला हो। वो हाथ आए आज के मौके को छोड़ना नहीं चाहती थी। वसीम फिर उसके इतने करीब नहीं रहने वाला था। वो चाहती थी की वसीम आज की रात उसके मन की बात समझ जाए और उससे खुल कर बात करे।

शीतल अपने बेड रूम में गयी और टॉप उतार कर ब्रा उतार दी और उसे आलमीरा में रख दी और फिर से टॉप पहन कर बाहर आ गयी। अभी उसने ऊपर का बटन बंद रखा था। शीतल बहुत बड़ा रिस्क ली थी, लेकिन उसे यकीन था कि 'उसका पति विकास इतना मीन माइंडेड नहीं है और अगर वो ब्रा उतारने का कारण पूछेगा भी तो मैं उसे समझा सकती हूँ। लेकिन वसीम को ये तो यकीन दिलाना ही पड़ेगा की मेरा पूरा जिस्म उसके लिए हाज़िर है। सिर्फ मेरी ब्रा पैंटी ही नहीं, मैं अपने पुरे बदन पे उनका वीर्य गिरवाने के लिए तैयार हूँ और उन्हें तड़पने और परेशान होने की जरूरत नहीं है।'


विकास फ़ोन पर बात करते हुए हाथ धो रहा था और वसीम सोफे पे जाकर बैठ गया था। उसने रिएक्शन भले ही कुछ न दिया हो, लेकिन उसके पैजामा में उसका लण्ड अभी भी तना हुआ था। वो निश्चिन्त था अब। वो अपने घर की चाभी को दुकान में ही जान बूझकर छोड़ कर आया था ताकि शीतल के मन की हालत समझ सके। दोपहर में उसे लगा था कि कहीं वो कुछ गलती तो नहीं कर रहा है, कहीं ज्यादा देर तो नहीं कर रहा आगे बढ़ने में, लेकिन यहाँ अभी शीतल को देखकर जैसे वो उसके सामने झुक रही थी, जैसे उसके बदन से अपने बदन को रगड़ी और अब जब वो अपनी ब्रा उतारकर उसके सामने आयी है, वो निश्चिन्त हो गया कि उसकी चिड़ियाँ दाना चुग कर तैयार है और वो जब चाहे इसे हलाल करके खा सकता है। उसे समझ में आ गया कि उसे कुछ करने की जरूरत ही नहीं है अब, शीतल तो खुद बिछ जाने के लिए तैयार थी।

अगर पहले की बात होती जब वसीम जवान था तो वो इतना इंतज़ार नहीं करता और अब तक शीतल को चोद चूका होता, लेकिन अब वसीम शीतल के साथ बड़े खेल की तैयारी कर रहा था। वो शीतल को एक बार नहीं कई बार, बहुत बार चोदना चाहता था। वो शीतल को इस अवस्था में लाना चाहता था कि वो वसीम को छोड़ कर फिर कभी न जाए, उसकी हर बात माने, उससे बस एक बार नहीं, जब भी वो चाहे, जहाँ वो चाहे, वहाँ चुदवाए उससे। इसके लिए बड़े धैर्य की जरूरत थी और वसीम खुद को सम्हाले हुए था। एक मर्द के लिए तो फेसबुक पे किसी हसीन लड़की का फ्रेंड रिक्वेस्ट ठुकराना मुश्किल काम होता है, और यहाँ तो वसीम सामने परोसा हुआ गर्म माल ठुकरा रहा था।

शीतल अब अपनी ब्रा उतारकर एक 50 साल के आदमी के लिए घूम रही थी। वो बस यही सोच रही थी की अब उसे फिर से ऐसा मौका कैसे मिले, जिससे वो फिर से अपनी चुच्ची वसीम के बदन पे रगड़ सके, और उसे अपनी जवानी का मखमली एहसास करवा सके। ताकि वो समझ सके की शीतल की हालत क्या है और वो उसके साथ कुछ भी कर सकता है।

विकास वसीम के साथ ही सोफे पे बात कर रहा था और शीतल किचन की सफाई कर रही थी। विकास ने शीतल से पानी माँगा तो वो पानी लेकर बाहर गयी। वो तो चाहती ही थी की वो बार बार वसीम के सामने जाए, उसके सामने ही रहे, उससे बातें करती रहे। ये तो उसकी मजबूरी थी की वो किचन में थी। टॉप थोड़ा मोटे कपड़े का था नहीं तो अब तक शीतल के निप्पल बाहर झलकने लगते। लेकिन फिर भी चुचियों की थिरकन तो वसीम को साफ साफ नज़र आ ही रहा था।

पानी पीकर विकास बाथरूम चला गया। शीतल विकास को बाथरूम जाते देखी तो फिर से टॉप के ऊपर का एक बटन खोल दी और खाली ग्लास उठाने आयी तो झुकी हुई ही वसीम से पूछी की "आप भी लेंगे पानी?" शीतल को लगा की अभी विकास नहीं है तो वसीम उसकी चुच्ची को देखेगा तो उसकी हिम्मत बढ़ेगी मेरे से बात करने की। वसीम भी यहाँ खुद को रोक नहीं पाया और एक सेकंड के लिए उसकी नज़र टॉप के अंदर गहराइयों को नापने लगी। अंदर ब्रा नहीं थी और शीतल पूरी झुकी हुई थी तो वसीम को पूरी चुच्ची और अंदर नाभि तक दिख गया था। उसने तुरंत नज़र हटा लिया और हाँ में सर हिलाया।

शीतल वापस किचन में चली गयी और जब तुरंत वापस लौटी तो उसके एक हाथ में पानी भरा शीशे का ग्लास और दूसरे हाथ में पानी भरा शीशे का जग था। वसीम के करीब आकर वो ऐसे लड़खड़ाई की "आह...." करती हुई वसीम की तरफ दोनों हाथ फैलाये गिरने लगी। वसीम ने उसे सम्हालने के लिए हाथ बढ़ाया और वसीम का हाथ शीतल की चुच्ची पर दब गया। शीतल और वसीम दोनों का रोम रोम सिहर गया।

वसीम का पूरा हाथ शीतल की चुच्ची की गोलाई को दबा गया था और शीतल अभी भी दोनों हाथ फैलाये वसीम के बदन के ऊपर अटकी हुई थी और वसीम का हाथ उसकी चुच्ची पर ही था। भले ही उसकी चुच्ची दब गयी हो, लेकिन वो अपने हाथ से पानी नहीं गिरने दी थी। शीतल उसी तरह दोनों हाथ फैलाये जग ग्लास पकड़े वसीम के ऊपर ही थी क्यों की वो खुद उठ नहीं सकती थी और वो उसी तरह रहना भी चाहती थी। वो तो चाह रही थी की वसीम उसके टॉप को उठाकर उसकी चुच्ची को नंगी कर दे और फिर मसले उसे, खूब मसले।

वसीम ने अपना हाथ शीतल की चुच्ची से हटाया और कन्धा पकड़कर उसे खड़ा किया। शीतल "सॉरी.... सॉरी..... थैंक यू........" कहती हुई खड़ी हुई और पानी को टेबल पर रखी। हालाँकि शीतल का प्लान कामयाब रहा था और वो अपनी बिना ब्रा की चुच्ची को वसीम के हाथों मसलवाने में कामयाब हो गयी थी, लेकिन उसे शर्म आ गयी क्यों की वसीम का हाथ काफी देर तक उसकी चुच्ची पे रहा था। वो टेबल पे पानी रखी और अपनी टॉप को ठीक करती हुई वापस किचन में आ गयी। विकास भी बाथरूम से बाहर आ गया था। उसे पता भी नहीं था कि इतनी देर में उसकी बीवी अपनी चुच्ची मसलवा चुकी थी।

दोनों को बहुत मज़ा आया था। शीतल अभी भी अपनी चुच्ची पर वसीम का सख्त हाथ का दबाब महसूस कर रही थी और वसीम अपने हाथों पर शीतल की नर्म मुलायम मखमली चुच्ची का। शीतल की चुत गीली हो गयी थी और वसीम का लण्ड टाइट हो गया था। अभी जब शीतल उसकी पीठ पे अपनी चुच्ची रगड़ी थी तो उसे जितना मज़ा आया था, उससे ज्यादा मज़ा उसे अभी आया था। शीतल को भी बहुत मज़ा आया था, उस वक़्त से ज्यादा, लेकिन वो और मज़ा लेना चाहती थी। और मसलवाना चाहती थी अपनी चुच्ची। उसे फिर से कोई मौका ढूँढना था। उसका तो मन कर रहा था कि वो आज की रात वसीम के साथ अलग कमरे में बिताए, लेकिन वसीम अभी तक उसी तरह था जैसे पहले रहता था।

तभी लाइट चली गयी। अंदर सबको गर्मी लगने लगी तो विकास ही बोला की "छत पर चलते हैं।" शीतल तो खुश हो गयी और थोड़ी देर बाद सभी छत पर टहल रहे थे। छत पर पूरा अँधेरा था लेकिन वसीम और शीतल को पता था कि यहीं वसीम शीतल की पैंटी ब्रा को अपने लण्ड पर रगड़ता है और उसपे अपना वीर्य गिराता है, और वही वीर्य लगा हुआ पैंटी अभी शीतल की चुत से सटा हुआ है।

शीतल इस अँधेरे का फायदा उठाना चाहती थी, लेकिन उसे कोई मौका नहीं मिल रहा था। वो वसीम के आसपास चक्कर लगा रही थी ताकि फिर से अपनी चुच्ची वसीम के बदन में रगड़ सके। लेकिन अपने पति की मौजूदगी में वो कुछ कर नहीं पा रही थी। वैसे भी वो उतनी बेशर्म अभी नहीं बन पाई थी और न ही उतनी बहादुर। दोनों बार जो भी हुआ था वो ऐसे हुआ था जैसे गलती से हो गया और विकास दोनों बार वहाँ मौजूद नहीं था, लेकिन अभी विकास के सामने वसीम के साथ कुछ कर पाना बहुत दिलेरी जा काम था शीतल के लिए।।

विकास अपने मोबाइल में कुछ देख रहा था और टहलता हुआ वसीम से बात कर रहा था। तभी विकास ने कोई वीडियो प्ले किया और वसीम को दिखाने लगा। शीतल को मौका मिल गया। वो वसीम की तरफ आकर वीडियो देखने लगी और वसीम के बदन से चिपक गयी। फिर से उसकी गोल मुलायम चूचियाँ वसीम के बदन से दब रही थी। शीतल को बड़ा सुकून मिल रहा था। अभी उसे लग रहा था कि उसका ब्रा खोलना सफल हो गया।

वो वीडियो देखती हुई ही अपनी चुच्ची को वसीम के बाजू पे रगड़ रही थी जैसे वो जान बुझकर ऐसा नहीं कर रही हो और वीडियो देखने के चक्कर में अनजाने में ये हो रहा हो, लेकिन बिना ब्रा की चुच्ची अच्छे से वसीम के बाजू से दब रही थी। सबकी नज़र मोबाइल पे थी और बाँकी पूरा अँधेरा था तो किसी को और कुछ दिखना नहीं था। वसीम को भी बहुत अच्छा लग रहा था लेकिन विकास के सामने वो ऐसा कुछ भी नहीं होने देना चाहता था, लेकिन उसके पास भी हटने का जगह नहीं था और वो भी अनजान बनकर बस मज़ा ले रहा था।


कुछ ही देर में वीडियो खत्म हो गया और शीतल का खेल भी ख़त्म। सब अलग हो गए और बिजली आ गयी तो सब नीचे आ गए। रात के 11 बज चुके थे। शीतल और विकास अपने कमरे में और वसीम चाचा बगल वाले कमरे में सोने चले गए, लेकिन नींद किसी को नहीं आ रही थी। शीतल अपनी चुच्ची पे वसीम का हाथ महसूस कर रही थी और चाह रही थी की वसीम अच्छे से आकर उसकी चुच्ची को नंगी कर मसल डाले।

उसे वसीम पे गुस्सा आ रहा था कि इतना हिंट देने के बाद भी वो अभी तक मुझे देख नहीं रहा। 'अरे जब इतने बैचैन हो, परेशान हो तो कुछ करो। इतना हिंट दी, इतनी कोशिश कर रही हूँ, फिर भी कोई असर नहीं होता जनाब वे। अब क्या करूँ? सीधा सीधी जाकर बोल दूँ की चोद लो मुझे। ये वीर्य जो गिराते हो, इसे मेरी पैंटी पर नहीं, मेरी चुत में डालो। लगता है अब यही सुनकर मानेंगे वसीम चाचा। कोई बात नहीं, मना कर तो रहूँगी मैं वसीम चाचा, अब आपको और तड़पने तो नहीं दूँगी।'

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शीतल वसीम के ख्यालों में खोयी थी की विकास उसकी तरफ करवट बदला और उसके पेट पे हाथ रखकर सहलाता हुआ अपना हाथ ऊपर उसकी चुच्ची पर ले आया और हल्के हाथों से दबाता हुआ बोला "ब्रा क्यों खोल दी हो?" शीतल थोड़ा घबरा गयी लेकिन तुरंत बात को सम्हालती हुई बोली "बहुत गर्मी लग रही थी और पेट भी टाइट लग रहा था, तो खोल दी। तब थोड़ा रिलैक्स हुई।

विकास शीतल की टॉप को ऊपर कर दिया और चुचियों को बाहर निकाल कर सहलाने लगा। शीतल विकास का हाथ रोकती हुई टॉप को नीचे करके चुचियों को ढक ली और मना करती हुई बोली की "आज तबियत ठीक नहीं लग रही।" विकास करवट बदल कर सोने लगा। शीतल अभी अभी वसीम से चुच्ची को मसलवाई थी और वो नहीं चाहती थी की वसीम के घर में रहते विकास उसके बदन में आग लगाए और फिर उसके तन बदन को जलता हुआ छोड़कर सो जाए। हाँ... अगर वसीम उसकी चुचियों को मसलना चाहे तो फिर कोई परेशानी नहीं थी उसे।

वसीम को भी नींद नहीं आ रही थी। मज़ा आ गया था उसे। बहुत सालों बाद उसने किसी औरत को पटाने के बारे में सोचा था और वो औरत उम्र में उससे आधी से भी कम थी, दूसरे मजहब की थी और बेहद हसीन थी, लेकिन फिर भी वसीम कामयाब हो गया था। आज तक उसने बस शीतल के बारे में सोचा था, उसके जिस्म को इमेजिन किया था, लेकिन आज पहली बार वो उसके साथ इतनी देर रहा था और उसे बहुत कुछ दिख भी गया था और बहुत कुछ का एहसास छू कर भी पा चुका था। शीतल की चुच्ची की पूरी गोलाई वो टॉप के अंदर देख चुका था और तीन बार वो गुदाज चूचियाँ उसके बदन को छुई थी। अब बस ज्यादा देरी की बात नहीं थी जब वो शीतल को पूरी नंगी करके रण्डी की तरह उसके कमसिन बदन का मज़ा लेगा।

वसीम का लण्ड टाइट था और वो अपने लण्ड को सहला रहा था और उधर शीतल की चुत भी गीली थी। दोनों मिल जाना चाहते थे और एक दूसरे में खो जाना चाहते थे, लेकिन समय वक़्त हालात से मजबूर थे। शीतल पूरी तरह बैचैन थी लेकिन वो कुछ कर नहीं पा रही थी। उसे पता था कि आज की रात बहुत अच्छा मौका है वसीम को ये बताने का की वो उसके बदन से खेल सकता है। लेकिन वो क्या करे उसे समझ में नहीं आ रहा था। उसका तो मन कर रहा था कि वसीम के कमरे में उसके बिस्तर पर चली जाए और नंगी होकर उसके बदन से लिपट जाये और बोले की डाल दीजिए अपना वीर्य मेरी चुत में, लेकिन ऐसा होना मुमकिन नहीं था।


आधा घंटा हो चूका था सबके अपने बिस्तर पर आये हुए और विकास गहरी नींद में सो चूका था। शीतल का पेट थोड़ा टाइट लग भी रहा था तो वो विकास को जगाई की उसके पेट में बहुत तेज़ दर्द हो रहा है। वो कराहने लगी और थोड़ी ही देर बाद वो दर्द से चिल्ला रही थी। विकास को समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे। घर में कोई ऐसी दवाई भी नहीं थी और रात काफी हो चुकी थी। शीतल अब तक दर्द से छटपटाने लगी थी और विकास घबरा गया था। वो इधर उधर दवाई ढूंढ रहा था, किचन से शीतल के लिए पानी लाया, लेकिन उसका दिमाग काम नहीं कर रहा था।

वसीम तो जगा हुआ था ही, रूम से ऐसे बाहर निकला जैसे शोर सुनकर उसकी नींद खुली है। विकास परेशान और बदहवास हालत में उसे सबकुछ बताया की कोई दवाई भी नहीं है घर पर, हॉस्पिटल ले जाना होगा शीतल को। वसीम कमरे के अंदर आया तो शीतल दर्द से छटपटा रही थी और तड़प रही थी। वसीम भी परेशान हो गया कि क्या हो गया है शीतल को। विकास घबराया हुआ सा शीतल से बोला की "तुम उठो, मैं गाड़ी बाहर निकालता हूँ।" वसीम बोला की "मुझे देखने दीजिये की क्या हो रहा है। पेट में ऐसे अचानक से दर्द क्यों हो रहा है।"

उसने शीतल को सीधा लेटने के लिए कहा और पेट को नाभी के पास दबा कर देखा। शीतल सीधी लेटी हुई थी और उसकी हर साँस के साथ उसकी चूचियाँ ऊपर नीचे हो रही थी और वहीँ बगल में बैठा वसीम उसके पेट को छू रहा था। उसे तो लगा की पेट दर्द बिल्कुल सही समय पर उठा है। वसीम पेट को दबा दबा कर देखने लगा, लेकिन वो ठीक से अंदाज़ा नहीं लगा पा रहा था। उसका गला सुख रहा था कि वो शीतल के बदन को छू रहा था। उसे डर भी लग रहा था और अजीब भी लग रहा था, लेकिन उसे टॉप के ऊपर से ठीक से समझ में नहीं आ रहा था तो उसने शीतल को टॉप को ऊपर करने कहा। वो अगर पूरा टॉप उतार देने भी कहता तो शीतल तुरंत उतार देती, वो झट से टॉप को पेट से ऊपर कर दी।

शीतल की गोरी चिकनी पेट अब वसीम की नज़रों के सामने चमक रहा था। शीतल अभी मात्र 23 साल की थी तो उसके टमी एरिया में अभी चर्बी जमा नहीं हुई थी, इसलिए उसका पेट पूरा सपाट था। शीतल का ट्रोउजर नाभी से नीचे ही था तो बड़ा ही सेक्सी सा सीन था वसीम के सामने। वसीम ने अपना हाथ बढ़ाया और शीतल के पेट को सहलाता हुआ दबाने लगा। उफ़्फ़... इतना चिकना, इतना मुलायम....।


उसका लण्ड तो पहले से टाइट था, उसमे खून का दबाब और बढ़ गया था। उसने चारो तरफ से शीतल के पेट को सहला कर और दबा कर देखा। शीतल का पूरा नेवल एरिया वसीम के लिए उपलब्ध था। वो विकास के सामने उसकी बीवी के पेट को आराम से सहला रहा था। विकास को एक पल के लिए अजीब लगा था क्यों की उसे पता था कि शीतल टॉप के अंदर बिना ब्रा के है, लेकिन फिर उसे लगा की वसीम अभी डॉक्टर है और शीतल का इतना जिस्म तो साड़ी में दिखता ही है।

शीतल को बहुत अच्छा लग रहा था। उसे ख़ुशी थी की आज वो वसीम से बहुत कुछ करवा चुकी है। उसकी चुत भी गीली हो रही थी। उसका मन हो रहा था कि वसीम पेट को सहलाता हुआ अपना हाथ टॉप के अंदर ले आए जहाँ उसकी चुच्ची बिना ब्रा के टाइट होकर है या फिर ट्राउजर के नीचे ले जाये जहाँ उसकी चुत गीली होकर वसीम के लण्ड का इंतज़ार कर रही है । उसका पूरा बदन वसीम के सामने हाज़िर था। शीतल दर्द से छटपटा रही थी और वो वसीम का हाथ पकड़ ली थी जैसे उसके दबाने से उसे और दर्द हो रहा हो और वो उसे रोक रही हो। अब वसीम का हाथ शीतल की चिकनी पेट पे था और शीतल का हाथ उसके हाथ पर।


वसीम पेट को दबा रहा था और पूछ रहा था कि "कहाँ दर्द है?" शीतल वसीम का हाथ पकड़ी हुई ही थी और बता रही थी। विकास परेशान और बदहवास सा खड़ा था और वसीम से पूछा "क्या हुआ है इसे।" वसीम बोला "कुछ खास नहीं, बस गैस बन गया है पेट में।" फिर वसीम कुछ सोचने का एक्टिंग किया और विकास को बोला की "थोड़ा पानी गर्म कर लीजिए और ग्लास में गुनगुना पानी और एक बोतल में थोड़ा गर्म करके ले आइये।" विकास तुरंत किचन की तरफ भागा। अब कमरे में बस वही दोनों थे। शीतल और वसीम। एक दूसरे के जिस्म के प्यासे।

विकास के जाते ही शीतल तेज़ दर्द की एक्टिंग करते हुए अपने आप को करवट कर ली और वसीम का हाथ ऊपर खींच ली और उफ़्फ़... वसीम के हाथों में फिर से शीतल की मुलायम चुच्ची थी। वसीम का हाथ शीतल की चुच्ची से दब रहा था। शीतल का टॉप भी इसके साथ थोड़ा ऊपर हो गया था और उसकी चुच्ची की गोलाई नीचे से बाहर झाँक रही थी। वसीम हड़बड़ा गया। उसे शीतल से इस बोल्डनेस की उम्मीद नहीं थी। वो तुरंत अपना हाथ खींचने लगा की कहीं अगर विकास ने देख लिया तो पूरा खेल पूरा प्लान चौपट हो जाएगा। लेकिन शीतल अभी पुरे मूड में थी और उसकी पकड़ मजबूत थी। वो फिर से दर्द से कराहते हुए सीधी हुई और वसीम का हाथ जितना नीचे आया था, उससे ज्यादा ऊपर खींच ली।

अब शीतल को टॉप थोड़ा और ऊपर हो गया। शीतल की एक चुच्ची पूरी गोलाई में वसीम की हथेली के नीचे थी और वसीम का अंगूठा और हथेली का कुछ भाग नीचे से नंगी चुच्ची को छू रहा था और शीतल अपने हाथ को वसीम के हाथ पर दबाते हुए अपनी चुच्ची मसलवा रही थी। अब वसीम खुद को रोक नहीं पाया। उसकी उँगलियाँ उस छुअन को महसूस कर रही थी जो बहुत ही मज़ेदार था। वसीम ने अपना हाथ ढीला छोड़ दिया और शीतल दर्द से कराहते हुए वसीम का हाथ अपने चुच्ची पे रगड़ते हुए फिर से वसीम के हाथ को ऊपर की। अब शीतल का टॉप पूरा ऊपर हो गया था और वसीम के हाथों में शीतल की नंगी चुच्ची थी। उफ़्फ़.... न चाहते हुए वसीम ने उसे जोर से दबा दिया और फिर हाथ हटाने लगा, लेकिन न तो शीतल हटाने दी और न ही उसके हाथ ने उतना जोर लगाया।

उसने दरवाज़ा की तरफ देखा की कहीं विकास आ तो नहीं रहा और फिर शीतल की तरफ देखा। इतनी ही देर में शीतल फिर से आह करती हुई अपने टॉप को ऊपर खींच ली थी और अब उसकी दोनों चूचियाँ बाहर थी। उसके मन में कोई डर कोई शर्म नहीं था। वसीम के हाथों ने सब कुछ खत्म कर दिया था।

शीतल अभी भी दर्द की एक्टिंग करते हुए अपनी दोनों चुचियों को बाहर निकाले हुए वसीम का हाथ अपने दोनों हाथों से पकड़े हुए लेटी हुई थी। वसीम ने शीतल की चुच्ची को देखा। उफ़फ.... क़यामत। पूरी गोल, टाइट, बीच में कथई निप्पल और निप्पल भी उभरे हुए और टाइट। ऐसा ही एक पीस उसकी हथेली में था और वसीम के हाथों को एहसास हो रहा था कि शीतल कितनी मुलायम है। वसीम का तो खुद मन कर रहा था कि इसे मसल दे, मुँह में भरकर चूस ले, लेकिन वो किसी तरह खुद को सम्हाले हुए था। लेकिन शीतल उसे सम्हलने नहीं देना चाहती थी।

वो फिर से वसीम का हाथ ऊपर लायी और एक चुच्ची को मसलती हुई अब दूसरी चुच्ची पे रख दी। उसकी प्यास और बढ़ गयी थी। वसीम का हाथ ढीला था और चुच्ची को रगड़ता हुआ फिर से उसके हाथों में पूरी गोलाई थी। शीतल अपने बदन को ऐंठते हुए बोली "आह, दबाइए न।" वसीम भी अब खुद को रोक नहीं पाया और उन नर्म मुलायम गुदाज चुच्ची को जोर जोर से मसलने लगा।

3-4 बार मसलने के बाद उसे होश आया की वो गलत कर रहा है। कहीं अगर विकास ने देख लिया तो हंगामा न हो जाये और हाथ आयी हुई चिड़ियाँ कहीं उसके पंजे से निकल न जाये। ये रिस्क वो नहीं ले सकता था। उसे इंतज़ार करना मंजूर था, लेकिन हड़बड़ी के चक्कर में अपना काम ख़राब नहीं करना चाहता था। उसे इतना तो समझ आ गया था कि उसे ज्यादा कुछ नहीं करना था अब और उसकी चिड़ियाँ हर तरह से उसका साथ देने के लिए तैयार थी अब। 'जब वो अपने पति के घर में होते हुए वो इतना कुछ कर और करवा सकती है तो अकेले में तो पता नहीं क्या क्या करेगी मेरे लिए। बस शीतल की इस प्यास को उसे बनाये रखना था। फिर तो मैं हर तरह से इस रण्डी का मज़ा लूँगा।'

वो अपना हाथ हटाकर वो खड़ा हो गया और कमरे से बाहर आकर विकास के पास आ गया। शीतल झल्ला गयी। 'अब इससे ज्यादा मैं क्या करती। अपनी चुच्ची नंगी कर दी, उसका हाथ पकड़ कर अपने चुच्ची पर रखी, उसे बोली दबाने, अब और क्या करे। वो गुसा कर टॉप को नीचे कर ली और आँख बंद करके लेट गयी की जिसके लिए कर रही हूँ वो तो दूर भाग रहा है। इतना ज्यादा सीधा शरीफ भी मत बनो यार। छिह... मैं कितनी गन्दी हरकत कर रही थी और वो शराफत का पुतला बने हुए हैं।'

वसीम विकास के पास आकर उससे एक चम्मच में हल्दी और नमक निकलवाया और फिर गुनगुने पानी के साथ शीतल को पिलाने भेज दिया। बाँकी पानी गर्म हो रहा था। थोड़ी देर बाद वो कमरे में गया तब तक विकास शीतल को हल्दी नमक खिला चूका था और पानी पिला चूका था। विकास वापस से किचन में चला गया लेकिन वसीम अब दरवाज़े पर खड़ा था। शीतल आँख बंद किये सीधी लेटी रही।

थोड़ी ही देर बाद विकास बोतल में पानी भरकर ले आया और वसीम को दिया। वसीम उसे बताया कि "बोतल को पेट पे रखकर ऊपर से नीचे रोल करो।" विकास हड़बड़ाया हुआ था, तो बोला "मुझे ये सब नहीं आता है, आपही करिए न, आपको पता है।" वसीम ऐसा करना नहीं चाहता था क्यों की उसे डर था कि कहीं शीतल फिर से कोई शरारत न कर दे, लेकिन वो मना भी नहीं कर सकता था। शीतल अपने कलाई को अपने आँख पे रखे हुए सीधी सोई हुई थी।

वसीम फिर से बिस्तर पे शीतल के बगल में बैठ गया और टॉप को पूरा नीचे कर दिया। उसने बोतल को पेट पे रखा और ऊपर से नीचे रोल करने लगा। वो पूरा ख्याल रख रहा था कि वो शीतल को कहीं से छू न जाये। थोड़ी देर में विकास पूछा तो शीतल बतायी की अब उसका पेट का दर्द कम हो गया है। वसीम ने बोतल को किनारे रख दिया और बोला की "अब कम हो जायेगा। सो जाइये।" और वो कमरे से बाहर आ गया। विकास बोला "थैंक यू वसीम चाचा। मैं तो पूरा घबरा गया था। वो तो अच्छा था कि आप यहीं थे, नहीं तो मैं तो पता नहीं क्या कर पाता।" वसीम मुस्कुरा दिया।
 

Bunty4g

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सभी अपने अपने कमरे में सोने चले गए. शीतल की एक तरह से जीत हुई थी. जैसा उसने सोचा था दोपहर में, वो उसी तरह रंडियों की तरह की हरक़त की थी वसिम के सामने. पहले उसने ब्रा के ऊपर से अपनी चूची वसीम की पीठ पे रगड़ा था और फिर ब्रा उतार कर टॉप के ऊपर से वसीम के हाथों अपनी चुच्ची मसलवा ली थी. और फिर बाद में तो उसने अपनी चुचियों को नंगी करके वसीम के हाथों में पकड़वा दिया था और वसीम का हाथ पकड़ कर अपनी चुच्ची मसलवा ली थी. शीतल जैसी औरत इतना कुछ कर दी थी, ये बहुत बड़ी बात थी.

शीतल अभी भी सीधी लेटी हुई थी और उसने अपने टॉप को चुच्ची तक उठाया हुआ था और वो सोच रही थी की अब वसीम चाचा को ठीक लग रहा होगा और अब वो शायद मेरे से बात करने की हिम्मत कर पायें और मुझसे खुल कर बातें कर पायें. शीतल इमेजिन कर रही थी वसीम अभी भी उसकी पेट, नाभि और चुच्ची को सहला रहा है. ‘अब शर्माना घबराना बंद करिए वसीम चाचा. बंद करिए अब पैंटी ब्रा पे अपना वीर्य गिराना.’

वसीम अपने कमरे में पहुँचा और तुरंत ही पूरा नंगा हो गया. उसके लिए अब बर्दाश्त करना मुश्किल काम था. वो अभी भी अपनी हथेली में शीतल की नर्म गुदाज चुचियों को महसूस कर रहा था. उसकी आँखों के सामने शीतल की चुचियाँ नंगी होकर चमक रही थी. वो छोटा सा भूरे रंग का निप्पल, वो गोर मखमली छुअन, उफ़... वसीम का लंड पूरा तनकर अकड़ा हुआ था. वसीम बिस्तर पे लेट गया था, लेकिन उसका लंड तनकर छत की तरफ देख रहा था. वो उस दृश्य को फिर से याद करता हुआ अपने लंड को सहला रहा था और सोच रहा था ‘पूरी आग भर गयी है अब रंडी की चूत में. अब ये पूरी तरह तैयार है और अब इसे चोदना होगा, नहीं तो कहीं ऐसा न हो जाये की कहीं देर न हो जाये. बस एक दो दिन और तड़प तू मेरी रंडी, उसके बाद तू मेरी पाल्तु कुतिया बनकर मेरे इशारों पर नाचेगी.’

वसीम इमेजिन कर रहा था की किस तरह वो शीतल को पूरी नंगी कर कैसे कैसे चोदेगा और कैसे शीतल उसके मोटे लण्ड को अपनी कमसिन चुत में लगी. वसीम अपने लंड को सहलाता जा रहा था. वसीम का लंड वीर्य उगलने को तैयार था. उसका तो मन हुआ की जाकर शीतल के बदन पर जाकर वीर्य टपका आये, लेकिन वो अभी ऐसा कर नहीं सकता था। बाद में तो जहाँ उसका मन करेगा वहाँ वो वीर्य गिरायेगा। शीतल की चुत में, उसके मुँह में, उसके चेहरे पर, उसकी गांड में। लेकिन अभी तो उसे अपना वीर्य कहीं और गिराना होता और वो अपने वीर्य को बर्बाद नहीं करना चाहता था। वो उठा और कबर्ड खोल कर शीतल की एक साड़ी निकाल कर उसपे अपना वीर्य गिरा दिया और फिर उसी तरह उसे वापस कबर्ड में रख दिया. अब उसे कोई डर नहीं था. शीतल देख लेती तो समझ जाती की ये क्या है और अगर विकास देखता तो उसे कुछ समझ में ही नहीं आता और शीतल उसे समझने भी नहीं देती.

शीतल की साड़ी पे वीर्य गिराने के बाद वसीम ने अपने कपड़े पहन लिए और सो गया और तुरंत ही उसे नींद भी आ गयी. शीतल रोज़ की तरह सवेरे अपने वक़्त पर जग गयी और सबसे पहले चुपके से वसीम के कमरे में झांक आई जहाँ वसीम गहरी नींद में सो रहा था. वसीम को सोता देख शीतल उसे अच्छे से देखने लगी की ‘कितने सुकून से सो रहे हैं वसीम चाचा. मैं चाहती हूँ की आप हमेशा इसी सुकून में रहें. और इसके लिए मैं जो भी कर सकती हूँ, वो सब करुँगी. आप मेरे से कोई संकोच मत करिए। खुल कर बातें करिये। मैं आपके लिए सब कुछ करुँगी।’

शीतल अपना रोज़ का काम करने लगी. वो अभी भी अपने उसी कपड़े में थी और घर में झाड़ू पोछा लगा रही थी. अभी भी वो बिना ब्रा के ही थी और वसीम के कमरे में झाड़ू लगा रही थी. उसका मन हुआ की वसीम को जगा दे और उससे पूछे, उससे बातें करे, क्यों की अभी विकास के जागने में वक़्त था और अच्छा मौका था उसके लिए. लेकिन शीतल में अभी इतनी हिम्मत नहीं हुई थी. अभी तक जितनी भी निर्लज्जता या रंडीपना वो दिखाई थी, वो सब ऐसे हो रहा था जैसे गलती से या अनजाने में हो रहा है, लेकिन इस तरह वसीम को जगा देना और उससे कुछ बात करना, शीतल के बस में नहीं था. शीतल का तो मन हो रहा था की फिर से अपने टॉप को उठाये और वसीम के मुँह पर लटका कर निप्पल उसके मुँह में भर दे. अपनी चुचियों को वसीम के हाथ पे रख दे या उसके बदन पर रगड़ कर वसीम को जगाये. बोले की रात में तो ठीक से मसले नहीं, अभी मसल कर अपने दिल की भड़ास निकल लीजिये. इससे प्यारी सुबह और क्या हो सकती थी वसीम के लिए. लेकिन शीतल सिर्फ सोच में ही ऐसा कर पाई, हकीकत में नहीं. उसके मन में ये भी तो डर था की वसीम जो भी कर रहा है उससे छिपकर कर रहा है, और अगर वो इस तरह की कोई हरक़त करेगी तो कहीं ऐसा न हो जाये की वो मुझे ही चरित्रहीन या बदचलन स्त्री न समझ ले.

वसीम की नींद खुल गयी थी, लेकिन वो इसी तरह सोने की एक्टिंग करता हुआ पड़ा रहा और शीतल के बदन को और करीब से देखता रहा. अभी उसे शीतल के बदन का एक एक कटाव नज़र आ रहा था. ट्राउजर के अन्दर पैंटी की लाइन दिख रही थी. टॉप के अन्दर किनारे से बिना ब्रा की हिलती हुई चुच्ची की थिरकन दिख रही थी. उसका लंड टाइट हो रहा था और उसका भी मन हुआ की शीतल को अपने बदन पे खिंच ले और मसल दे उसके बदन को. लेकिन वसीम को नहीं पता था की विकास सोया हुआ है या जगा हुआ है. और वो किसी तरह का कोई जोखिम नहीं उठाना चाहता था. वैसे भी उसके पास वक़्त या मौके की कोई कमी नहीं थी.

थोड़ी देर तक वो यूँ ही लेटा रहा और शीतल झाड़ू पोछा लगा कर उसके कमरे से जा चुकी थी. वो ऐसे जगा जैसे अभी जग रहा हो और बाहर हॉल में आया तो उसे पूरा सन्नाटा लगा. उसने झांक कर देखा तो विकास गहरी नींद में सो रहा था और बाथरूम से पानी गिरने के आवाज़ आ रही थी. उसे समझ में आ गया की शीतल बाथरूम में नहा रही है. वो इधर उधर टहलने लगा और सोचने लगा की क्या किया जाए. विकास को सोता देख उसका मन ललच गया और शीतल को नहाता हुआ देखने का सोचने लगा, लेकिन उसे डर लग रहा था की अगर विकास ने उसे ऐसा करते हुए देख लिया तो. वो फिर से सो जाये या यहीं सोफे पे बैठा रहे, वो समझ नहीं पा रहा था.

अंत में उसके लिए खुद को रोकना मुश्किल हो गया. उसने विकास के बेडरूम का दरवाज़ा थोड़ा सा सटा दिया और बाथरूम के दरवाज़े पे बैठ कर की होल से अन्दर झाँकने लगा. अन्दर का नज़ारा तो वसीम के बदन में बिजली भर देने वाला था.
अन्दर उसकी होने वाली रंडी पूरी नंगी होकर अपने गीले बदन को मसल रही थी. उसका गोरा बदन पानी में भीग कर चमक रहा था. सुडौल चुचियाँ जवानी के नशे में झूम रही थी, जिन चुचियों को कल रात में वसीम ने मसला था. भले एक ही बार मसला था और वो भी शीतल ने ही मसलवाया था. चुच्ची के नीचे चिकना सपाट पेट, जिसे रात में अच्छे से सहलाया था वसीम ने. लेकिन असली मज़ा तो तब आएगा जब वो अपनी मर्ज़ी से अपनी रंडी के पेट को सहलाएगा, चूमेगा. पेट के नीचे चिकनी चूत चमक कर वसीम के लंड को बुला रही थी. एक भी बाल नहीं रखा था शीतल ने अपनी चूत पर, वसीम के लंड के लिए पूरा हाईवे खुला हुआ था. गोरी चिकनी जांघे, पतली चिकनी कमर, गदरायी हुई गांड, उफ्फ....

शीतल शावर के निचे खड़ी थी और पानी उसकी चिकने जिस्म को छूता हुआ नीचे फिसल कर गिर रहा था. वसीम ने एक नज़र विकास के कमरे में डाला जहाँ विकास अभी भी गहरी नींद में सो रहा था. वसीम ने अपने लंड को बाहर निकाल लिया और सहलाने लगा, उसने कई बार शीतल के नाम पे अपने लंड को सहलाया था, वीर्य को उसके कपड़ों पर या कहीं और भी गिराया था, लेकिन तब वो शीतल के बदन को इमेजिन करता था, लेकिन अभी शीतल पूरी नंगी होकर उसकी नज़रों के सामने थी.

वसीम एक हाथ से लंड आगे पीछे कर रहा था और बाथरूम के की होल में अपनी ऑंखें सटाए शीतल के नंगे बदन को निहार रहा था.
अन्दर शीतल का जिस्म भी जल रहा था. वो नहाती हुई अपनी चुच्ची और चूत मसल रही थी. वो अभी भी वसीम के हाथों को अपनी चुच्ची पर महसूस कर रही थी और सोच रही थी की वसीम उसके चुच्ची को और अच्छे से मसलता, उसकी चूत को सहलाता, उसके निप्पल को चूसता तो कितना मज़ा आता.

वसीम को बहुत मज़ा आ रहा था की उसकी होने वाली रंडी अपनी चूत की गर्मी बर्दाश्त नहीं कर पा रही और ऊँगली करके अपनी प्यास कम कर रही है. लेकिन उसके मन में डर भी था की कहीं विकास जग गया तो गड़बड़ हो जाएगी. वो तेज़ी से अपने लंड पे हाथ चलाने लगा और अब उसका वीर्य गिरने वाला था. उसे समझ नहीं आया की वीर्य कहाँ गिराए. उसके पास अब इतना वक़्त नहीं था की कहीं और जाकर वीर्य गिरा पाता. उसके दिमाग में बस एक पल के लिए ख्याल आया की वीर्य बर्बाद नहीं होना चाहिए. शीतल को पता चलना चाहिए की वसीम ने उसे नहाता देखा है और उसके नाम का वीर्य बहाया है.

वसीम ने बाथरूम के दरवाज़े पे लगे मैट्रेस के बाद ज़मीन पर अपना वीर्य गिरा दिया. बहुत सारा वीर्य एक जगह जमा था और ऐसे तो नज़र नहीं आ रहा था, लेकिन गौर से देखने पर दिख जाना था की यहाँ पर कोई गाढ़ा सफ़ेद द्रव गिरा हुआ है.

वसीम अपने कमरे में आ गया और छिप कर बाहर देखने लगा. अन्दर शीतल भी अपनी चूत से पानी बहा चुकी थी और अब उसे भी हल्का लग रहा था. रात में वसीम के छूने के बाद से ही उसकी चुत गीली थी और वो तड़प रही थी। वो अपनी चूत सहला भी नहीं पायी थी, और इसके लिए वो रात भर तड़पती रही थी. उसका नहाना हो गया और वो कपड़े पहन कर बाहर आ गयी.

बाथरूम का दरवाज़ा खुला और वसीम को शीतल नज़र आई तो वो और सावधान होकर छिप कर शीतल को देखने लगा. शीतल किसी अप्सरा की तरह नज़र आ रही थी. नाभि के नीचे बंधी क्रीम कलर की साड़ी, स्लीवलेस ब्लाउज और उसके बीच में सिंगल लाइन में आँचल, जिससे शीतल का एक उभार झांक रहा था. तुरंत नहाने की ताजगी और गीले बाल उसके हुस्न को बेइन्तेहाँ बढ़ा रहे थे.

शीतल बाथरूम से निकल कर मैट्रेस पर अपने गिले पैर पोंछी और जैसे ही अगला पैर बढ़ाई की उसका पैर वसीम के गिराए वीर्य पर पड़ा. चिपचिप करते ही वो नीचे देखी तो उसे कोई सफ़ेद सा द्रव ज़मीन पर चमकता हुआ सा दिखा. उसकी धड़कन तेज़ हो गयी. अभी तुरंत वो पुरे घर को साफ़ करके पोछा लगा कर नहाने गयी थी तो ऐसा कोई सफ़ेद लिक्विड आने का एक ही कारण हो सकता था. ‘उफ्फ... तो क्या वसीम चाचा मुझे नहाता हुआ देख रहे थे?’ ये सोच कर शीतल शर्मा गयी की अन्दर वो कैसे नहा रही थी और क्या क्या कर रही थी, और ये सब वसीम देख रहा था.

शीतल अच्छे से देखने और कन्फर्म होने के लिए नीचे बैठकर देखने लगी. एक नज़र में वो कन्फर्म हो गयी की ये वही है. शीतल अपने दुसरे पैर को आगे बढ़ा कर बेडरूम में विकास को देखी और उसे सोता देखकर उस कमरे के दरवाज़े को और अच्छे से सटा दी. फिर उसने अपनी नज़र वसीम के कमरे में डाली, लेकिन वहाँ उसे कोई नहीं दिखा. वो समझ गयी की वसीम चाचा फिर से चुपके से अपने वीर्य को बहा कर सोने जा चुके होंगे.

शीतल नीचे बैठकर वीर्य को अच्छे से देखने लगी और सोचने लगी की ‘कल रात में तो वसीम चाचा ने खुद को रोक लिया था, इसलिए उनकी प्यास अब और भी बढ़ गयी होगी. उन्होंने मेरे पेट, चुच्ची को सहलाया तो, लेकिन अपनी भावनाओं को दबा कर रखने की वजह से उनकी परेशानी और बढ़ गयी होगी. कोई बात नहीं वसीम चाचा, मैं भी देखती हूँ की आप और कितना रोकते हैं खुद को, और कितना दबा पाते हैं अपनी भावनाओं को. कल रात तो आपने मेरी चुच्ची से अपना हाथ हटा लिया था, देखती हूँ की क्या क्या हटायेंगे और खुद को कितना तड़पाएंगे. मुझसे दूर भागेंगे और छिपकर वीर्य गिराएंगे, ये कौन सी बात हुई. अगर अभी भी आपका डर और शर्म मुझसे खत्म नहीं हुआ है तो अब होगा. अब आप देखिये की मेरा रंडीपना और कितना बढ़ता है और तब देखूंगी की आप खुद को कितना रोकते हैं और कैसे रोकते हैं. लेकिन एक बात तो तय है की आप बहुत महान इंसान है वसीम चाचा. इतने में तो कोई भी मर्द अब तक बिछ गया होता मेरे ऊपर. मैं तो गलती से भी सिर्फ मुस्कुरा देती थी तो लड़के पागल हो जाते थे, और आप तो इतना कुछ सह रहे हैं. अब मेरी भी जिद हो गयी है आपको खोलने की. आपको मेरे से बात करनी ही होगी, अपना दर्द मेरे साथ बाँटना ही होगा.’

शीतल ऊँगली से वीर्य उठाई और सूँघते हुए उसे मुँह में लेकर चाटने लगी. वो फिर से ऐसा की. वो इस तरह कर रही थी जैसे बच्चे की आइसक्रीम ज़मीन पर गिर गयी हो और वो उसे उठा कर चाट रहा हो, लेकिन आइसक्रीम ठीक से उठ नहीं पा रही हो ऊँगली से. शीतल से भी वीर्य ठीक से उठ नहीं रहा था तो वो झुक कर वीर्य को जीभ से चाटने लगी. उसकी चूत गीली हो रही थी. वो वसीम के कमरे के दरवाज़े की तरफ देखी और सोची की काश वसीम चाचा अभी अपने कमरे से बाहर आकर उसे देख लें और समझ जाएँ की मैं उनके साथ हूँ.

शीतल जब सारा वीर्य चाट कर खड़ी हुई तो उसकी नजर अपने मंगलसूत्र पर गयी. जब वो वीर्य को जीभ से चाट रही थी वसीम का वीर्य उसके मंगलसूत्र पर भी लगा गया था और अब वो उसके ब्लाउज को भी गीला कर चूका था. उसके सुहाग की निशानी पर किसी और मर्द का वीर्य लगा हुआ है, ये सोच कर ही उसकी चूत और ज्यादा गीली हो गयी. वो मंगलसूत्र पे लगे वीर्य को साफ़ नहीं की और ऐसे ही वीर्य लगा हुआ ही पहने रही. ‘पैंटी ब्रा बहुत पहन ली वसीम चाचा का वीर्य लगी हुई, अब मंगलसूत्र पहनती हूँ वीर्य लगा हुआ. आप का वीर्य तो पैंटी ब्रा से आगे बढ़कर मेरे मंगलसूत्र तक पहुँच गया वसीम चाचा, अब आप भी आगे बढिए, डरना, शर्माना बंद करिए.’

वसीम शीतल को अपने कमरे से परदे के पीछे से झांक कर देख रहा था और मंगलसूत्र पे लगे वीर्य को देखकर और शीतल उसे उसी तरह रहने दी, ये सोच कर वसीम को खुद पे बहुत गर्व हुआ की अब ये रंडी पूरी तरह उसकी है. अब उसके और शीतल के बीच में जो भी दूरी है, वसीम जब चाहे तब उस दूरी को खत्म कर सकता है और तब शीतल सिर्फ उसकी रंडी बनकर रहेगी. शीतल अपने कमरे में चली गयी और वसीम भी बिस्तर पर आकर लेट गया.

शीतल अपने कमरे में आकर चेहरे पर क्रीम, आँखों में काजल और होठों पर लिप ग्लोज लगायी. उसने सिन्दूर की डिब्बी को हाथ में लिया और उसमे से सिन्दूर निकाल कर अपनी मांग में भरने जा रही थी की उसे कुछ ख्याल आया. वो अपने मंगलसूत्र में लगे वीर्य को अपनी ऊँगली में सटाई और उसे अपनी मांग में भर ली. आह..... ऐसा करते ही अचानक से उसकी चूत में एक करंट सा दौड़ा और उसे बहुत मज़ा आया. मंगलसूत्र पे लगे सारे वीर्य को वो अपने मांग में भर ली और फिर उसके बाद मांग में सिन्दूर भर ली. सिन्दूर मांग में लगे वीर्य से चिपक गया और शीतल के सुहाग की दूसरी निशानी में भी वसीम का वीर्य लग चूका था. शीतल की चूत का गीलापन अब और ज्यादा बढ़ गया था. वो अपने माथे पर कुमकुम लगायी. ये सब उसका रोज़ का नियम था, लेकिन वसीम के वीर्य ने उसके नियम को आज मजेदार बना दिया था.

शीतल आईने में खुद को निहार रही थी. ‘लीजिये वसीम चाचा, अब तो मेरा मंगलसूत्र और मांग में भी आपका वीर्य लग गया. अब एक तरह से आप भी मेरे पति हुए. अब तो मेरे पुरे जिस्म पर आपका भी हक है और अब तो मैं चाहकर भी आपको मना नहीं कर सकती. अब तो मुझसे शर्माना छोड़ दीजिये और खुल कर बिंदास होकर अपनी जिंदगी जीइए.’ शीतल अब आईने में खुद को ही देखकर शर्मा रही थी की ‘वो अब वसीम चाचा... नहीं नहीं.... वसीम खान भी नहीं... क्या बोलूं.... मकानमालिक जी... ये तो बहुत बड़ा लगेगा.... नहीं... मालिक जी की भी पत्नी हूँ.'

शीतल शर्माते मुस्कुराते अपने कमरे से बाहर आ गयी और किचन में चली गयी. रोज़ वो नहाने के बाद पूजा करती थी, लेकिन आज वो पूजा करने की हालत में नहीं थी. वो पहले वसीम के कमरे में गयी की विकास को बाद में जगाएगी. अभी जैसा वो सोच रही थी की वो अब वसीम की भी पत्नी है, उसे वसीम के कमरे में जाने में शर्म आ रही थी. वसीम सच में नींद में आ गया था. शीतल उसे शर्माते और मुस्कुराते देख रही थी. ‘अभी मुझे नंगी नहाते देखे और वीर्य गिराए तब तो बहुत मज़ा आ रहा होगा जनाब को, लेकिन अभी सोने की एक्टिंग कर रहे हैं.’ फिर से उसका मन हुआ की वसीम के साथ कुछ करे, अब तो उसकी हिम्मत भी थोड़ी सी बढ़ गयी थी, लेकिन फिर उसे लगा की ‘ये सही वक़्त नहीं है. विकास घर में है और ये अगर कुछ बोले तो मैं कुछ बोल नहीं पाऊँगी. दोपहर का वक़्त अपना है आज.’

शीतल अपनी भावनाओं को सम्हाली और आवाज़ लगायी “वसिम चाचा... उठिए.... गुड मोर्निंग... चाय... लीजिये... उठिए.....” शीतल की रसभरी आवाज़ जैसे ही वसीम के कानो में गयी की उसकी नींद खुल गयी. उसे बहुत मज़ा आया. बहुत सालों के बाद किसी ने उसे इस तरह जगाया था. उसने धीरे से आँखों को खोला तो सामने शीतल का मुस्कुराता हुआ चेहरा था. हल्के से मेकअप के बाद शीतल का हुस्न और निखर गया था. वो शीतल को देखता ही रहा गया और वसीम को इस तरह खुद को देखता देख पहले से ही शर्मा रही शीतल और शर्मा गयी और नज़रें नीची कर ली. वसीम भी अपनी नज़रों को नीची कर उठ कर बैठ गया.

शीतल अब अपने कमरे में गयी और विकास को भी जगाई. शीतल के दोनों शौहर जग कर बाहर हॉल में आ गए और सोफे पर बैठ गए. शीतल दोनों को चाय लाकर दी. वसीम “शुक्रिया” कहता हुआ शीतल के हाथों से चाय ले लिया, लेकिन चाय लेते वक़्त उसका हाथ थोड़ा सा हिला तो शीतल तुरंत टोंट मारी “सम्हाल कर वसीम चाचा.... जमीन पर मत गिराइए....” वसीम हड़बड़ा गया क्यों की विकास उसके बगल में ही बैठा हुआ था और सिर्फ वो समझ रहा था की शीतल के कहने का क्या मतलब है. वो सर झुकाए चाय पीता रहा.

नाश्ता करके वसीम और विकास अपने अपने काम पर चले गए और शीतल सोचने ली की क्या क्या किया जाये. अब वो और देर नहीं करना चाहती थी. उसने सोच लिया था की आज दोपहर में उसे वसीम से बात कर ही लेनी है क्यों की कल सन्डे है और कल विकास घर में रहेगा तो फिर कोई बात नहीं हो पायेगी. अब शीतल की हिम्मत पूरी तरह बढ़ गयी थी. वो दोपहर का इंतज़ार करने लगी. दोपहर तक वो इस बारे में ही सोचती रही की किस हालात में उसे कैसे रिएक्शन देना है. एक चीज़ जो वो चाहती थी की किसी भी हालत में वसीम को शर्मिंदगी महसूस नहीं होनी चाहिए और कुछ ऐसा गड़बड़ न हो जाये की वसीम कुछ गलत न सोच बैठे या खुद के साथ कुछ गलत न कर ले.
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वसीम घर आया तो आज भी शीतल के घर का दरवाज़ा अन्दर से बंद था, लेकिन आज वसीम को बुरा नहीं लगा था, क्यों की उसे 100 फीसदी यकीन था की आज शीतल ऊपर जरूर आएगी. वसीम भी आज दिन भर में काफी कुछ सोच चूका था की उसे अब अपने पासे कैसे फेकने हैं. उसे शीतल सिर्फ एक बार या कुछ समय के लिए नहीं चाहिए थी, जिंदगी भर के लिए चाहिए थी, तन और मन दोनों से चाहिए थी. वो अपने कमरे में चला गया और थोड़ी देर बाद कपड़े बदलकर लुंगी गंजी में बाहर आ गया.

शीतल के दिल की धड़कन फिर से काफी तेज़ थी. उसे सामने जाकर वसीम से वो सब बात करना था, जो वो विकास से भी नहीं करती थी. लेकिन उसे ऐसा करना ही था, और आज ही करना था. समय का अंदाज़ा लगाकर वो धीरे से अपने घर से बाहर निकली और छत पर आ गयी. वसीम भी शीतल की पैंटी को हाथ में लिया ही था की शीतल वहाँ पहुँच गयी. “ये क्या कर रहे आप वसीम चाचा?” वसीम ने ऐसी एक्टिंग की जैसे वो हडबडा गया हो. “कुछ... कुछ नहीं.... ये बस नीचे गिर गया था तो इसे उठा रहा था.”

शीतल को अपनी गलती का एहसास हो गया की वो वसीम को शर्मिंदगी का एहसास करा दी. उसे इस तरह नहीं बोलना चाहिए था. शीतल तुरंत अपनी गलती सुधारने की कोशिश की और मुस्कुराती हुई वसीम की तरफ बढती हुई बहुत ही प्यार से बोली “मुझे पता है की आप रोज़ मेरी पैंटी ब्रा के साथ क्या करते हैं. मुझे पता है की आपने आज सुबह में बाथरूम के गेट के पास क्या किया था.” शीतल बोल तो रही थी लेकिन उसकी साँसे और धड़कन पूरी तेज़ थी. बहुत हिम्मत जुटा कर वो आयी थी छत पर. बहुत बड़े फैसले पर अमल करने वाली थी वो.

वसीम नज़रें नीची किये चुपचाप गुनाहगार की तरह खड़ा था. उसे इन सब भाषणों का अंदाजा था और वो ये सब सुनने के लिए तैयार था. अभी तो उसे अपने चाल को और आगे बढ़ाना था, तभी तो शीतल उसकी रखैल बनने के लिए खुद को समर्पित करती.

शीतल वसीम के करीब आती हुई अपनी आवाज़ में और मिठास घोलती हुई समझाने के से अंदाज़ में बोली “मुझे पता है वसीम चाचा की आप बहुत अरसे से आराम से अकेले अपनी जिंदगी गुजार रहे थे, और मैं यहाँ आकर आपकी सोयी तमन्नाओं को जगा दी हूँ. मुझे आपके बारे में कुछ पता नहीं था, इसलिए जैसे मैं हमेशा रहती आई थी, वैसे ही रहती रही. मुझे पता है की हर मर्द के जिस्म की अपनी जरूरतें होती हैं, लेकिन भला मैं क्या करती. मेरी इसमें क्या गलती है की मैं खुबसूरत है. मैं बचपन से ऐसे ही कपड़े पहनती आई हूँ. लेकिन अब जब से मुझे आपके बारे में पता चला और मुझे आपकी हालत का अंदाज़ा हुआ तो मैं आपके सामने आने से खुद को बचाती रही.”

वसीम चुप ही था. शीतल फिर आगे बोलना शुरू की “फिर मैंने सोचा की इस तरह दूर रहकर मैं आपकी कोई मदद नहीं कर सकती. एक ही जगह रहकर दूर रहना संभव ही नहीं है। दूर रहने का एक मात्र उपाय यह है की हम इस घर से चले जाएँ, और इसके लिए मैं विकास से बात भी की, लेकिन उसे ये सब पता नहीं है तो उसने मना कर दिया की इतना अच्छा घर क्यों छोड़े और इतनी जल्दी दूसरा अच्छा घर मिलेगा भी नहीं. अब ये तो संभव है नहीं की यहाँ रहते हुए आपसे दूर रह पाऊँ. कपड़े मुझे छत पर ही सूखने देने होंगे, किसी न किसी तरह आपकी नज़र मुझपे पड़ती ही, मेरी आवाज़ आपको सुनाई देगी ही. तब मुझे सिर्फ एक उपाय समझ आया की किसी भी तरह आपसे छुपने से आपकी मदद नहीं होगी बल्कि आपकी परेशानी को मैं और बढ़ाऊँगी ही. इसलिए मुझे आपके सामने आना होगा और खुल कर आना होगा.”

शीतल सांस लेने के लिए रुकी और फिर बोलना शुरू की. “मैं कई बार सोची की आपको बोलूँ, आपसे बातें करूँ, लेकिन आप मेरी तरफ देखते भी नहीं हैं. मैं आपको कितना हिंट दी, कितनी तरह से कोशिश की आप मुझे देखें, मेरे से बातें करें, मुझसे आप खुल कर बात कर सकते हैं, लेकिन आपने तो मेरे सामने नज़र भी नहीं उठाया. भले ही आप अकेले में मेरे बारे में बहुत कुछ सोचते और करते हैं.”

अब वसीम के बोलने की बारी थी. उसने ऐसे बोलना शुरू किया जैसे बरसों से भरा गुबार बाहर आ रहा हो. “तो क्या करूँ मैं, बोलिए? सालों से अपनी वीरान जिंदगी को अपनी तन्हाई के साथ गुजार रहा था. सब कुछ ठीक चल रहा था की अचानक सुखी धरती पर तुम बारिश की बौछार बनकर यहाँ आ जाती हो. तुम्हारे जैसी औरत एक ऐसे मर्द के सामने आ जाती है जो सालों से अकेला अपनी जिंदगी जी रहा हो, तो उसके दिल पे क्या बीतेगी ये सोचो. मेरी हालत के बारे में सोचो की तुम्हारे जैसी औरत मेरे नज़रों के सामने खिलखिला रही है और मैं उस खिलखिलाहट को ठीक से देख भी नहीं सकता. तुम किसी और की पत्नी हो. मेरे से उम्र में आधी हो. अगर किसी ने मुझे तुम्हे देखते हुए भी देख लिया तो मुझे ठरकी, पागल, बदचलन, आवारा, और पता नहीं क्या क्या कहेगा. और तुम्हे देख कर करता भी क्या. तुम दूध से भी गोरी, मैं पूरा साँवला. तुम्हारे से दुगुने उम्र का. तुम्हारी छरहरी काया तो मुर्दों में जान डाल दे और मैं मोटा, तोंद वाला इन्सान. तुम अपनी जवानी में हो और मैं बुढ़ापे में जाता हुआ एक हारा हुआ इंसान. और इन सबसे बढ़कर तुम किसी और की अमानत हो. तुम्हारे बारे में मैं चाह कर भी सोच नहीं सकता. मेरा और तुम्हारा कोई मेल नहीं है. तो मुझे यही समझ आया की मुझे तुमसे दूर ही रहना होगा. मैंने बहुत कोशिश की, लेकिन इसके बाद भी मैं खुद को रोक नहीं पाया तो और अकेले में ऐसी हरक़त करने लगा. मुझे माफ़ कर दो. आगे से ऐसा कुछ नहीं होगा. चाहे कुछ भी हो जाये, चाहे मुझे कहीं और जाना पड़ जाए, चाहे मुझे खुद को खत्म ही कर लेना पड़े, लेकिन आगे से मैं तुम्हे शिकायत का कोई मौका नहीं दूँगा.”

अपनी बात ख़त्म करने के बाद वसीम अपने कमरे की तरफ चल पड़ा जैसे वो अपनी बात पर हर हाल में कायम रहेगा, चाहे उसे खुद को खत्म क्यों न कर लेना पड़े. वसीम इंतज़ार कर रहा था की शीतल उसे पीछे से पकड़ लेगी. शीतल वसीम को पीछे से पकड़ी तो नहीं, लेकिन उसके सामने आकर खड़ी जरूर हो गयी. बोली “तो आपने मुझे कभी बात क्यों नहीं की. मुझसे बातें करते, हंसी मजाक करते तो शायद आप राहत महसूस करते. मैंने तो कितनी बार कोशिश की. मुझे आपके दर्द का अंदाज़ा है. तभी तो जब आपने बात नहीं की तो मैं ही आ गयी बेशर्म बनकर. वसीम चाचा, मैं आपकी मदद करना चाहती हूँ. आप मुझे लेकर पेरशान मत होइए.”

वसीम शीतल के बगल से होता हुआ अपने कमरे की तरफ आता हुआ बोला “और चिंगारी को हवा दूँ. देखता भी नहीं हूँ, तब तो इतना मुश्किल है खुद को सम्हालना, अगर बात करता या हंसी मजाक करता तो फिर तो खुद को नहीं ही सम्हाल पाता. और किस रिश्ते से तुमसे हंसी मजाक करता. तुम मेरे से आधे उम्र की हो. तुम्हे ही नहीं लगता की ये बुढा इंसान बददिमाग है, ठरकी है. तुम्ही मेरे बारे में कितना गलत सोचती और क्या पता किसी से मेरी शिकायत ही कर देती। मुझे ही डाँट कर कुछ बोल देती। और फिर क्या पता की अगर किसी तरह हँसी मज़ाक, बात होता तो मैं ही तुम्हे कभी पकड़ ही लेता.

शीतल भी वसीम के पीछे पीछे उसके कमरे के अन्दर आ गयी. आज वो रुकना नहीं चाहती थी. आज वो बात को अधूरी नहीं छोड़ना चाहती थी. बहुत हिम्मत जुटाकर वो यहाँ आई थी और उसने फैसला ले लिया था की अब वसीम को तड़पने के लिए नहीं छोड़ देगी. वो फिर से वसीम के सामने आकर बोली “तो पकड़ लेते. मैं तो आपको कितने हिंट दी. कितने इशारे किये. पकड़ लेते. पकड़ लीजिये. उतार लीजिये अपने दिल के अरमान, लेकिन इस तरह खुद को तकलीफ मत दीजिये. इस तरह खुद को परेशान मत रखिये.” बोलती हुई शीतल वसीम को अपने गले से लगा ली और खुद को उसके बदन से चिपकाने लगी. फिर से शीतल की नर्म मुलायम चुचियाँ वसीम के सीने से दब रही थी. “वसीम चाचा, मैं आपको इस तरह तड़पता नहीं देख सकती.” शीतल अपना सर वसीम के सीने पर रख दी.

वसीम का मन हुआ की वो भी शीतल को कस के अपनी बाँहों में दबा ले और खेलने लगे उसके मखमली जिस्म से, लेकिन खेल अभी कम्पलीट नहीं हुआ था. वसीम के लंड में खून का बहाव बढ़ गया था, लेकिन उसने खुद पे काबू रखा हुआ था. वसीम खुद को शीतल की पकड़ से छुड़ाता हुआ पीछे हटा और बोला “नहीं... ये मत करो. मैं ऐसा नहीं कर सकता. मैं किसी का घर बर्बाद नहीं कर सकता. मैं विकास को धोखा नहीं दे सकता की उसकी गैरहाजिरी में मैं उसकी बीवी के साथ जिस्मानी सम्बन्ध बनाऊँ. नहीं शीतल, मुझसे ये गुनाह मत करवाओ.” वसीम के मन में डर भी बैठ गया की कहीं उसका दाँव उल्टा न चल जाये और शीतल के भी संस्कार न जाग जाएँ की वो भी विकास को धोखा दे कर गलती कर रही है. अगर ऐसा होता तो वसीम को फिर से मेहनत करनी पड़ती और उसका भी प्लान उसके दिमाग में तैयार था.

लेकिन शीतल पूरी तरह सोच कर आई थी. वो भी आगे बढ़ी और फिर से वसीम के सीने से चिपक गयी. “कोई पाप नहीं है कर रहे हैं आप वसीम चाचा. मैं अपनी मर्ज़ी से आपके पास आई हूँ. मेरी वजह से आपकी ये हालत हुई है तो मेरा ये फ़र्ज़ बनता है की मैं आपकी मदद करूँ. मुझे अपना फ़र्ज़ पूरा करने दीजिये वसीम चाचा.” वसीम अभी भी पीछे हटना चाहता था, लेकिन इस बार शीतल की पकड़ थोड़ी मज़बूत थी और वसीम उतना ज्यादा जोर लगा नहीं पाया इस बार. बहुत मुश्किल से उसने अपने हाथ को शीतल के बदन पर जाने से रोका और बस खड़ा रह पाया.

शीतल अब पागल हो रही थी. उसे वसीम से ये उम्मीद नहीं थी. उसने सोचा था की वो वसीम को खुद को पेश कर देगी तो वो मना नहीं कर पायेगा और फिर धीरे धीरे उससे बात कर उसकी भावनाओं को हल्का करेगी. अपने जिस्म को पूरी तरह समर्पित कर देना तो उसका आखिरी हथियार होता, लेकिन वसीम पर अभी तक तो किसी चीज़ का असर नहीं हुआ था. लेकिन आज शीतल फैसला कर के आई थी की वो कुछ भी करेगी लेकिन वसीम को अब और नहीं तड़पने देगी. उसने फिर से सोच लिया की कुछ भी करना पड़े तो वो करेगी. कुछ भी, मतलब... कुछ भी.

“मुझे देखिये वसीम चाचा, मुझसे बातें करिए, जैसी चाहें, वैसी बातें करिए, जो भी सोचते हैं, वो बोलिए, अपने आपको रोकिये मत. आप जो भी चाहते हैं, वो करिए. अपनी भड़ास निकालिए. तभी आप हल्का कर पाएंगे खुद को.” शीतल वसीम की पीठ को हौले हौले सहला रही थी. अब वसीम के लिए खुद को रोकना और मुश्किल हो रहा था. शीतल जैसी अप्सरा उसे अपनी बाँहों में जकड़ कर कुछ भी करने के लिए खुद को पेश कर दे रही थी. बहुत मुश्किल से वसीम खुद को रोके हुए था. एक तरह से उसने अपने हाथों को पकड़ कर रखा हुआ था की कहीं वो शीतल के बदन पे फिसलने न लगे.

वसीम को किसी तरह का हरक़त करते न देख शीतल अपनी पकड़ को थोड़ा ढीली की और अपने आँचल को खींच कर नीचे गिराते हुए बोली “आप मेरे बदन को देखना चाहते हैं न, तो देखिये. जिस तरह मुझे जो भी बोलना चाहते हैं, बोलिए. मुझसे आपका तड़पना नहीं देखा जाता वसीम चाचा.” अब वसीम को लगा की अब रुके रहने का मतलब नहीं है और अब उसे अपना अगला चाल चलना है. उसने भी शीतल को अपनी बाँहों में जकड़ लिया और शीतल की पीठ को सहलाने लगा. वसीम ने शीतल के चेहरे को ऊपर उठाया और उसके रसीले होठों पर अपने होठ रख दिया और चूसने लगा. शीतल अपने जिस्म को ढीला छोड़ दी. वसीम पागलों की तरह उसके जिस्म को सहला रहा था और पूरी ताकत से उसके होठों को चूस रहा था. नदी का बांध टूट रहा था. उसका लंड तनकर लुंगी से बाहर झाँकने वाला था. शीतल अपनी विजयी मुस्कान के साथ वसीम का साथ दे रही थी. आखिरकार वसीम उसके जिस्म के साथ खेल रहा था, उसे चुम रहा था।

वसीम शीतल के मुँह में अपना जीभ घुमा रहा था और शीतल के जीभ को चूस रहा था. शीतल की पीठ, गांड को सहला रहा था, मसल रहा था. शीतल का बदन पिघलता जा रहा था. वसीम उसके बदन से खेल रहा था. और जिस तरह वो उसके बदन को मसल रहा था, जैसे होठ और जीभ चूस रहा था, शीतल का बदन अपने होश खो रहा था। वो अपनी जीत महसूस कर रही थी. जो वो चाहती थी, वो हो रहा था. वो भी वसीम का उत्साह बढ़ाने के लिए उसके बदन को सहला रही थी. अब तो शीतल ही खुद को नहीं रोक पाने की स्थिति में थी.

वसीम शीतल के जिस्म को अपने जिस्म से रगड़ रहा था. उसने शीतल के होठों को छोड़ा और उसके गर्दन पर चूमता हुआ बोला “हाँ शीतल, मैं तुम्हे देखना चाहता हूँ, तुम्हे छूना चाहता हूँ, चूमना चाहता हूँ, मसलना चाहता हूँ, खेलना चाहता हूँ तुम्हारे बदन से.” वसीम का हाथ शीतल की गांड को सहला रहा था अपने कमर को शीतल की कमर से पूरी तरह सटा कर रगड़ रहा था. इस तरह अपने बदन को शीतल के बदन से रगड़ने से उसका लुंगी खुल गया और नीचे गिर गया. वसीम अब नीचे से नंगा था और शीतल उसकी बाहों में थी.

शीतल वसीम के लुंगी को खुलकर नीचे सरकता हुआ महसूस की और अगले ही पल उसे अंदाजा हो गया की वसीम उसकी बाँहों में नंगा है. शीतल की चूत का गीलापन बढ़ने लगा. जिस लंड को वो बहुत करीब से देखी है, वो लंड उसके साड़ी में रगड़ खा रहा है. शीतल का हाथ वसीम की पीठ से नीचे सरक कर उसकी नंगी गांड के ऊपर था और वसीम को अपनी बाहों में नंगी पा शीतल शर्म से लबरेज हो गयी।

शीतल अपने हाथ को सामने लायी ताकि वसीम के उस लण्ड को अपने हाथों में ले सके, जिसके लिए वो बहुत तड़पी है, लेकिन वो ऐसा कर नहीं सकी। उसे शर्म आ रही थी वसीम के लण्ड को छूने में। शीतल की साड़ी भी ढीली हो रही थी। वो अपनी साड़ी की गांठ को खोल दी. पल भर में ही साड़ी भी लुंगी की तरह सरसरा कर नीचे गिर गयी. शीतल और देरी नहीं की और पेटीकोट की गांठ को भी खोल दी. पेटीकोट भी साड़ी और लुंगी के पास पहुँच गयी.

23 साल की शीतल नीचे में सिर्फ पैंटी पहनी हुई 50 साल के नंगे वसीम की बाँहों में थी. “तो खेलिए न, मैं तो कितनी बार इशारा की कि आप खेलिए मेरे बदन से. आप जो करना चाहते हैं सब कर सकते हैं मेरे साथ, बस तड़पिये मत.” शीतल को ब्लाउज और ब्रा से अपना जिस्म बंधा हुआ लग रहा था। वो चुच्ची को भी आज़ाद करना चाह रही थी ताकि वसीम उसे अच्छे से मसल सके, वो वसीम के बदन को अपने बदन से अच्छे से रगड़ता हुआ महसूस कर सके। वो अपने ब्लाउज का हुक खोलने लगी. वैसे भी वो पहले ही काफी नंगी हो चुकी थी। वो खुद से अपने कपड़े इसलिए उतार रही थी ताकि वसीम को शर्मिंदगी का सामना न करना पड़े. वसीम को ये न लगे की उसने कुछ गलत किया. वसीम खुद नंगा है तो उसे कहीं खुद पे शर्म न आने लगे.

शीतल ब्लाउज के सारे हुक खोल दी और अब उसकी चुच्ची ब्रा के अन्दर कैद दिख रही थी. वसीम शीतल की पैंटी के अन्दर हाथ डालकर उसकी गांड सहला रहा था और फिर से उसके होठ चूस रहा था. वसीम का लंड शीतल की नंगी जांघों, कमर से रगड़ खा रहा और उसमे लगा प्री-कम शीतल के जिस्म को गीला कर रहा था. शीतल वसीम का लंड हाथ में लेना चाहती थी, उसे सहलाना चाहती थी, देखना चाहती थी की क्या सच में उसका लंड इतना लम्बा और मोटा है, लेकिन वो ऐसा कर नहीं पा रही थी. उसे अभी भी शर्म आ रही थी.


वसीम ने शीतल के ब्रा को ऊपर उठा दिया और उसकी चुच्ची नंगी होकर बाहर छलक आई. एक बार फिर से वसीम के हाथों में शीतल की नंगी चुच्ची थी, लेकिन इस बार वो उसे अपने हिसाब से मसल रहा था, पुरे ताकत से. शीतल दर्द बर्दाश्त करने के लिए अपने बदन को ऐंठी और वसीम का लंड पकड़ ली. शीतल के बदन में करंट दौड़ गया. उसकी चूत का गीलापन बाहर आकर उसकी पैंटी को भिगोने लगा था. “उफ्फ्फ... ये तो बहुत ही ज्यादा बड़ा और मोटा है. देखने में जितना लगता था, उससे भी ज्यादा बड़ा. ये किसी की चूत में कैसे जा पायेगा!

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शीतल के हाथ में जाते ही लंड और तन गया था. वसीम ने खड़े खड़े ही शीतल को गोद में उठा लिया और बिस्तर पे गिरा दिया. शीतल का रोम रोम सिहर उठा. ‘क्या मैं चुदने वाली हूँ!’ वो बिस्तर पर सीधी लेटी हुई थी. सिर्फ उसकी चूत ही अब ढकी हुई थी, वो भी उसे ढकने वाली पैंटी पहले ही गीली हुई पड़ी थी. वसीम नीचे से तो नंगा था ही, उसने अपनी गंजी को भी उतार दिया और पूरा नंगा हो गया.

वसीम अपनी योजना के हिसाब से बहक रहा था। उसने सोच रखा था कि थोड़ा सा कुछ करके वो खुद को रोक लगा और शीतल को एहसास दिलाएगा की वो सच में बहुत शरीफ है और ये शीतल के जिस्म का जलवा है कि वो थोड़ा सा बहक गया और फिर वो खुद को सजा देगा। लेकिन जिस तरह शीतल उसकी बाँहों में नंगी हो गयी, वो लालच में आ गया था और उसके रसीले जिस्म के आगे खुद को रोक नहीं पा रहा था। उसका दिमाग उसे रुकने को कह रहा था, लेकिन जिस्म रुकने के मूड में नहीं था। शीतल जैसी हूर उसके सामने अधनंगी लेटी हुई थी।


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वसीम शीतल के ऊपर लेट गया और उसके चुच्ची को चुसता हुआ उसके गोरे चिकने बदन को सहला रहा था. उसने शीतल के ब्रा के हुक को खोल दिया और ब्लाउज ब्रा को उसके जिस्म से अलग कर दिया. अब शीतल सिर्फ एक पैंटी में नंगे वसीम के साथ बिस्तर पर थी और वसीम उसके कमसिन जिस्म को सहला रहा था. शीतल की हालत ख़राब हो रही थी. अभी तक वो जो भी सोची हो, उसकी चूत जो भी सोच कर या कर के गीली हुई है, लेकिन अभी वो सच में चुदने वाली थी. उसके पति के अलावा किसी और मर्द का लंड उसके चूत में घुसने वाला था. शीतल डर, परेशानी, वासना, रोमांच सब तरह के ख्यालों में ऊपर नीचे हो रही थी. लेकिन अब किसी भी तरह वो इस चीज़ को रोक नहीं सकती थी.

वसीम उठ कर बैठ गया और शीतल के चमकते जिस्म को देख रहा था। उसका हाथ अब शीतल की पैंटी पर था और शीतल अपनी ऑंखें बंद कर ली. कोई मर्द उसके नंगेपन का गवाह बनने वाला था.
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वसीम अब खुद पर थोड़ा नियंत्रण पाने लगा था, लेकिन शीतल को नंगी करने से खुद को नहीं रोक पा रहा था। उसने धीरे से पैंटी को नीचे खींचा तो शीतल चुपचाप अपनी कमर उठा दी और वसीम ने पैंटी को चुत से नीचे खींच दिया। शीतल की ऑंखें अभी भी बंद थी और सांसे पूरी तेज़. वो नंगी हो रही थी. एक 50 साल के नंगे आदमी के सामने. जो उसका पति नहीं था. लेकिन उसका वीर्य वो अपनी चूत, चुच्ची, और आज तो अपने मंगलसूत्र और मांग में भी लगा चुकी थी.

वसीम ने शीतल की पैंटी को चुत से नीचे किया था तो एक कमसिन कुँवारी और बेहद हसीन औरत की चुत उसकी नज़रों के सामने था. उसने पैंटी को जाँघ पर ही रोक दिया और चुत को देखने लगा. वसीम जाँघों को सहलाने लगा और चुत को सहलाया. उफ़्फ़... खुद को बहुत नसीब वाला समझ रहा था वो की ऊपरवाले ने शीतल को उसके घर में रहने के लिए भेजा और शीतल जैसे हसीना उसके ख़ुशी के लिए ये सब कर रही है.

चुत पर वसीम का हाथ लगते ही शीतल का जिस्म हिलोरें मार रहा था। वसीम ने पैंटी को पूरा नीचे खींच दिया और पैर से बाहर निकाल कर फेंक दिया। औरत की पैंटी उतारकर फेंक देने में जो मर्दानगी का एहसास होता है, वो ऐसा करने वाले जानते हैं। अब शीतल पूरी नंगी थी। शीतल की आंखें अभी भी बंद थी। उसके दोनों जाँघ आपस में सट कर अपने नंगेपन को ढकने को कोशिश करना चाह रहे थे, लेकिन वो खुद को रोक कर रखी। उसका चमकता हुआ पूरा जिस्म वसीम की नज़रों के सामने था, उसी के लिए था।
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वसीम गौर से उसके बदन को निहार रहा था। वसीम ने हाथ आगे बढ़ाया और शीतल की चुत को अपने अंगूठे से मसला। उफ़्फ़.... रसीली चुत का रस टपक कर उसके अंगूठे को गीला करने लगा। उसने शीतल के दोनों पैरों को फैला दिया और उसके बीच में बैठ गया। शीतल के चुत के लब खुल गए। अब उसका सारा जिस्म वसीम की नज़रों के सामने बेपर्दा था। शर्म से शीतल की हालत खराब हो रही थी। लेकिन अब वो वसीम को रोक नहीं सकती थी। वो खुद अपने कपड़े उतारी थी, खुद वसीम के पास आई थी और खुद उसे अपने जिस्म को इस्तेमाल करने के लिए बोली थी। वसीम ने चुत को अपने हाथ में पकड़ा और जोर से मसलता हुआ शीतल पर झुक गया और उसके पेट, नाभि को चूमने लगा। वसीम ने दोनों हाथों से शीतल के चुत को फैला दिया और झुक कर उस रसीली चुत को चूसने लगा।

शीतल का बदन ऐंठने लगा था। ये सब पहली बार हो रहा था उसके साथ। पहली बार कोई उसके चुत में मुँह लगाकर चूस रहा था। वसीम का जीभ शीतल की चुत के छेद को सहला रहा था, अंदर घुसने की कोशिश कर रहा था। शीतल का जिस्म मचल रहा था। उसकी चुत तड़प रही थी। शीतल के मुँह से सिसकारी निकल रही थी। वसीम भी इस मज़ेदार चुत का पूरा मज़ा ले रहा था। वो खुद को रोकना चाह रहा था, लेकिन मजबूर था। वो पूरी चुत को अपने मुँह में भर ले रहा था। "मम्मम... क्या रसीली चुत है मम्मम.... क्या मज़ेदार खुशबू है आह.... रण्डी....."

शीतल के चुत की गर्मी और बढ़ गयी थी और वो अपने दोनों पैरों को और फैला दी थी ताकि वसीम चुत को और अंदर तक चूस सके, पुरे चुत को मुँह में भर सके। अब उससे बर्दाश्त नहीं हो रहा था। वसीम ने जान बूझकर उसे रण्डी बोला था, ताकि जब वो नार्मल भी रहे तो रण्डी शब्द सुनकर उसे अटपटा नहीं लगे। अपने लिये रण्डी सुनकर शीतल की चुत में दौड़ता करंट और बढ़ गया था। वो वसीम के सर को अपनी चुत पर दबाने लगी। वसीम चुत के ऊपर का दाना मुँह में भरकर आइसक्रीम की तरह चूस रहा था और अपनी बीच वाली ऊँगली चुत में अंदर बाहर कर रहा था।

शीतल का बदन पूरा लरज उठा। वो दोनों पैर मोड़ कर फैला ली थी और वसीम के सर को जोर से अपने चुत पर दबा रही थी। वसीम को अपनी ऊँगली पर चारो तरफ से पानी की बौछार महसूस हुई। "आह...." करती हुई शीतल बिस्तर पर निढाल हो गयी। उसकी चुत ने रस टपका दिया था। वो तेज़ तेज़ साँस ले रही थी। इतना मज़ा उसे आज तक नहीं आया था। जब से वसीम उसकी जिंदगी में आया था, शीतल की ज़िंदगी का मज़ा धीरे धीरे बढ़ता जा रहा था।

वसीम उस कमसिन चुत से बहते हुए रस को चूसने लगा और शीतल दूसरी दुनिया की सैर करती रही। उसे लग रहा था कि उसके पति को तो ये सब आता ही नहीं। उफ़... कितना मज़ेदार है चुत का चूसा जाना। खुद से ऊँगली करके पानी निकलने में आजकल उसे बहुत मज़ा आ रहा था, और अभी तो वसीम ने उसकी चुत में ऊँगली करते हुए चूसते हुए उसका रस निकाला था तो अभी का मज़ा तो बेमिसाल था।

चुत का सारा रस पी जाने के बाद वसीम शीतल को देखने लगा। शीतल की ऑंखें बंद थी। वो आँख खोलकर वसीम को खुद को देखता हुई देखी तो शर्मा गयी और मुस्कुराती हुई नज़र दूसरी तरफ कर ली। अब वसीम अभी रुक नहीं सकता था। अभी शीतल संतुष्ट थी और अभी वसीम अपनी चाल नहीं चल सकता था। उसे अब इस खेल को थोड़ा आगे और बढ़ाना ही पड़ता। उसे अफ़सोस हो रहा था कि उसने एक मिनट पहले क्यों नहीं खुद को रोक लिया जब शीतल पूरी गर्म थी। उसने कुछ सेकंड का लालच किया था और उसके छोड़ने से पहले शीतल की चुत ढेर सारा रस छोड़ दी थी।

शीतल उठ कर बैठ गयी और शरमाते हुए वसीम को बोली "ऐसे क्या देख रहे हैं" और हाथ लगाकर उसे सामने से हटाई। वसीम ने उसे पकड़ लिया और उसे लिए हुए बिस्तर पर गिर गया। अब शीतल की बारी थी। वो वसीम के ऊपर लेटी हुई थी और वसीम के बदन को सहलाने चूमने लगी थी। उसे इस खेल में मज़ा आ रहा था। शीतल का हाथ वसीम के लण्ड के पास पहुँचा तो उसे फिर से हिचकिचाहट हुई, लेकिन वो तुरन्त ही लण्ड को हाथ में पकड़ ली। लण्ड अभी पूरा टाइट नहीं था तो ढीला भी नहीं था। वो लण्ड को सहलाने लगी और अपनी चुच्ची को वसीम के बदन में रगड़ रही थी। वसीम के लण्ड में हरकत होने लगी थी।

शीतल भी लण्ड पकड़े हुए वसीम के दोनों पैरों के बीच में आ गयी। अब वसीम का लण्ड उसके हाथ में था और नज़रों के सामने था। शीतल अच्छे से वसीम के लण्ड को देख रही थी। 'कितना काला, लम्बा और मोटा है ये। विकास का लण्ड तो इसके सामने बच्चा है।' शीतल हाथ को ऊपर नीचे करके लण्ड सहला रही थी और हर स्ट्रोक के साथ लण्ड टाइट होता जा रहा था। वसीम के लण्ड का सुपाड़ा और फ़ैल गया था और चमक रहा था।

शीतल धीरे धीरे लण्ड सहला रही थी और सोच रही थी की 'ये लण्ड उसकी चुत में नहीं जा पायेगा। जब विकास के लण्ड डालने पर उसका जिस्म दर्द से भर जाता है तो ये मूसल लण्ड तो उसकी जान ही निकाल देगा।' लेकिन वो इस लण्ड को अब अपनी चुत में लेने के लिए तैयार थी। बिना चुदे वसीम की इच्छा शांत नहीं होने वाली थी और अब जब की वो इतना कुछ होने दे चुकी है तो अब अपने जिस्म को पूरी तरह वसीम को ले लेने देगी। पूरा कर लेने देगी वसीम की वासना को।

वसीम शांत सा लेटा हुआ था। उसे बहुत मज़ा आ रहा था। आना ही था। अभी अभी उसने शीतल के चुत का रस निकाला था और अब शीतल उसके लण्ड के साथ खेल रही थी। लेकिन अब अपनी योजना को आगे बढ़ाने का वक़्त आ गया था। लेकिन वो थोड़ा सा और मज़ा लेने के लालच से खुद को रोक नहीं पाया था। शीतल अपने मुँह को लण्ड के करीब लायी तो वही खुशबू उसके नथुनों से टकराई जिसने उसे दीवाना बनाया था। वो अपनी नाक को और करीब लायी। मम्मम.... शीतल का मुँह अब वसीम के लण्ड के बहुत पास था।

शीतल इससे पहले भी कई बार इस खुशबू को अपने सीने में उतार चुकी थी। लेकिन आज की खुशबू सबसे मजेदार थी। शीतल के मुँह में पानी आ गया कि इसी से निकलने वाले वीर्य को वो कैसे सूँघती और चाटती थी। शीतल अपने जीभ को आगे बढ़ाई और लण्ड के सुपाड़े के गीलेपन को छुई। अजीब सा लगा उसे। बहुत मज़ेदार लेकिन बहुत अजीब सा एहसास। वो लण्ड को मुँह में सटा रही थी। वो फिर से जीभ को सुपाड़े पे सटाई और इस बार उसपर लगे प्री-कम को ज्यादा अच्छे से चाटी। मम्मम.... आज तक तो शीतल जो चाटी थी, वो तो बस सैंपल था, असली खजाना तो आज उसके हाथ में था। वो फिर से मुँह आगे बढ़ाई और इस बार पुरे सुपाड़े के टॉप को अपने होठों से चूसती हुई चूमी।

उसका भी लालच बढ़ता जा रहा था और वसीम का भी। शीतल के मन में एक बार आया भी की ये क्या कर रही है वो, लेकिन फिर अगले ही पल वो खुद को समझा ली की वसीम ने भी तो उसकी चुत को कैसे अंदर तक चूसा है और लण्ड से निकले वीर्य को तो वो पहले भी कई बार चूस चुकी है। वसीम को शीतल को देखकर बहुत मज़ा आ रहा था कि कैसे शीतल धीरे धीरे लण्ड को मुँह में ले रही है। अब शीतल इस बार अपने मुँह को थोड़ा सा और ज्यादा खोली और पूरे सुपाड़े को मुँह में लेते हुए आइसक्रीम की तरह चूसती हुई मुँह ऊपर की। उसे और ज्यादा मज़ा आ रहा था। शीतल को लगा की किस तरह सुपाड़े से उसका पूरा मुँह भर जा रहा है और चुत में जाने और यह लण्ड कितना मज़ा देगा ये सोच कर शीतल की चुत पे चींटियाँ दौड़ने लगी थी। अब वो पूरी तरह वसीम के लिए तैयार थी। लेकिन वसीम को शीतल को ऐसे नहीं चाहिए थी। पूरी तरह से चाहिए थी।

शीतल फिर से मुँह खोली और फिर से सुपाड़े को चूसी। इस बार वो अपना मुँह और बड़ा खोली थी और पुरे सुपाड़े को अपने मुँह में भरकर चूसती हुई मुँह ऊपर की थी। लण्ड अब पूरा टाइट हो गया था। शीतल की चुत भी पूरी गीली हो गयी थी। शीतल इस बार और बड़ा मुँह खोली और लण्ड का और हिस्सा उसके मुँह में था। वो आइसक्रीम की तरह लण्ड चूस रही थी जैसे कोई बच्चा चूसता है। वसीम को एहसास हो रहा था कि ये पहला लण्ड है जो शीतल के मुँह में गया है। उसे और मज़ा आ रहा था लेकिन अब उसे रुकना ही था। नहीं तो फिर वो शीतल को आज ही चोद देगा जो वो नहीं चाहता था।

वसीम ने शीतल को खुद से अलग किया और बिस्तर पर से उतरकर खड़ा हो गया। शीतल आश्चर्य से भरकर वसीम को देखने लगी। उसे लगा की वो कुछ गलती कर दी या पता नहीं क्या हो गया। शीतल लण्ड चूसते हुए चुदाई के सपने देख रही थी जहाँ से वसीम ने उसे अचानक से रोक दिया। वसीम ने लुंगी लपेट लिया और गंजी पहनता हुआ बोला "शीतल, तुम जाओ यहाँ से। ये सब गलत है और मैं ये नहीं कर सकता। अपने कपड़े पहनो और चली जाओ यहाँ से। प्लीज़।"

शीतल अचंभित थी। उसे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि अचानक से ये हुआ क्या है। कितने अच्छे से वो लण्ड को धीरे धीरे अपने मुँह में भरती जा रही थी। कितना मज़ा आ रहा था उसे। उस खुशबू, उस स्वाद का स्रोत उसके मुँह में था, जिसकी वो दीवानी थी। शीतल कुछ पल तो ऐसे ही वसीम को देखती रही, लेकिन जब उसने वसीम को वापस से कपड़े पहनते देखा तो बोली "क्या हुआ वसीम चाचा? मुझसे कोई गलती हो गयी क्या?"


शीतल इतनी मासूमियत से पूछी थी की वसीम के पास बोलने के लिए कुछ नहीं था। शीतल फिर बोली "पहली बार इस तरह मुँह में ली हूँ, मुझे पता नहीं था कि क्या करना है। कुछ गलत हो गया तो बता दीजिए। आप जिस तरह से बोलेंगे वैसे ही करुँगी। आइये।" वसीम अभी नज़रें नीचे किये हुए खड़ा था, अब दूसरी तरफ घूम गया और बोला "तुमने कोई गलती नहीं की है। लेकिन मैं ये गलत काम नहीं कर सकता। तुम किसी और की अमानत हो। बीवी हो किसी और की, और मैं दूसरे की बीवी के साथ छुपकर ये काम नहीं कर सकता। अभी तक जितना हो गया, उसके लिए मुझे माफ़ कर दो। अब आगे से कुछ भी नहीं होगा। तुम चली जाओ यहाँ से।"

शीतल चिड़चिड़ा गयी। फिर से वसीम अपने उसी राग में वापस पहुँच गया था। वो तो गैर मर्द से चुदवाने तक के लिए तैयार हो गयी थी और वसीम था कि पता नहीं किस मिट्टी का था कि नंगी शीतल जब उसका लण्ड चूस रही थी तब उससे अलग हो जा रहा था। शीतल का बदन पूरी तरह गर्म था, उसकी चुत पूरी गीली थी और वसीम जब चाहता तब उसकी इस गीली चुत में अपना लण्ड डाल सकता था।

शीतल को बहुत गुस्सा आ रहा था। अगर इस तरह कभी विकास करता तो पता नहीं शीतल उसके साथ क्या करती। लेकिन वसीम पर वो अपना गुस्सा नहीं दिखा सकती थी। वसीम तो सही ही कर रहा था, भले शीतल को अभी वो गलत लग रहा था।

शीतल उसी तरह बिस्तर से उतरी वसीम की तरफ बढ़ने लगी, लेकिन वसीम ने उसे हाथ के इशारे से रोक दिया। वो शीतल की तरफ देख भी नहीं रहा था। शीतल नंगी ही थी और उसे बहुत बुरा सा लग रहा था, लेकिन उसकी नज़र में ये वसीम की महानता थी की इतना कुछ होने के बाद भी वो अब इससे आगे नहीं बढ़ना चाहता और जो कुछ भी हुआ उसे अनचाहा भूल समझ कर खत्म करना चाहता है।

शीतल बोली “आप कुछ गलत नहीं कर रहे वासिम चाचा. मैं खुद आई हूँ आपके पास. आपके बदन में सटी, मैं खुद अपने कपड़े उतारी हूँ. आपने कुछ भी गलत नहीं किया है. मैं किसी और की बीवी हूँ तो क्या हुआ, आपने तो कुछ नहीं किया मेरे साथ. जो भी कर रही हूँ वो मैं कर रही हूँ.” शीतल बोल तो दी थी और सारी गलती खुद पे ले ली थी. लेकिन बोलने के बाद उसे एहसास हो रहा था की इस तरह मैं बता रही हूँ की मैं चरित्रहीन और गिरी हुई औरत हूँ. लेकिन वो सोच कर आई थी की कुछ भी हो जाये, वसीम को उसकी नज़रों में गिरने नहीं देना है, उसे शर्मिंदा नहीं होने देना है. तो फिर अब तो खुद को ही ख़राब बोलना ही था.

वैसे ये ऐसा जवाब था की वसीम को अब चुप हो जाना था और शीतल के बदन की प्यास को बुझा देना था. लेकिन वसीम को साधारण इंसान वाली चाल नहीं चल रहा था. शीतल तो उसके सामने नंगी खड़ी थी और उससे चुदवाने के लिए तड़प रही थी. लेकिन उसे शीतल को अभी नहीं चोदना था. इस तरह नहीं चोदना था. अभी चोद देने का मतलब था की फिर छिपछिपा कर चुदाई का खेल चल पड़ता, जो वसीम नहीं चाहता था. वसीम शीतल को अपनी रखैल, अपनी पालतू कुतिया बनाना चाहता था, और इसके लिए जरूरी था की शीतल के जिस्म की प्यास अधूरी रहे.

“तुम कुछ भी कहो लेकिन ये बात तुम भी जानती हो की ये गुनाह है. तुम अपने पति से छिप कर किसी गैर मर्द के सामने नंगी हो, तो ये गुनाह ही है. मैं किसी और की पत्नी के साथ जिस्मानी ताल्लुकात बना रहा हूँ, तो ये गुनाह ही है. इसलिए मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो और जाओ. अपने कपड़े पहन लो और जाओ शीतल, मुझे माफ कर देना जो कुछ भी मैंने तुम्हारे साथ किया, और हो सके तो इस वाकये को भूल जाना. ये मेरी गलती थी की तुम्हारे पैंटी ब्रा को सामने देखकर मैं फिसल गया था और मुझे लगा की इसमें कोई नुकसान नहीं है, मुझे कोई देख नहीं रहा, किसी को कभी पता नहीं चलेगा और इसलिए तुम्हे इमेजिन करके मैंने उसपे अपना वीर्य भी गिरा दिया. और फिर एक बार के बाद मैं कभी भी खुद को रोक नहीं पाया. ये सच है की इस तरह मुझे हल्का लगता था, लेकिन मुझे खुद को ऐसा करने से भी रोकना चाहिए था. इसी की वजह से बात इतनी आगे बढ़ गयी. खैर, जो हो चूका है, उसपे तो मेरा कोई जोर नहीं, लेकिन मैं तुम्हे इतना यकीन जरूर दिलाता हूँ की आगे से ऐसा कुछ भी नहीं होगा.”

शीतल को समझ नहीं आ रहा था की क्या बोले. वो वसीम के कमरे में नंगी चुदवाने के लिए खड़ी थी, लेकिन वसीम उसे जाने को कह रहा था. शीतल बोली “किसी जवान औरत को इस हाल में लाकर उसे प्यासी छोड़ देना भी गुनाह है वसीम चाचा.” वसीम बोला “मुझसे गलती हुई. मुझे माफ़ कर दो. इस गुनाह की माफ़ी मिल सकती है, लेकिन इस गुनाह को नहीं करने के लिए जो गुनाह होगा, उसकी माफ़ी कहीं नहीं होगी, कोई उसे माफ़ नहीं करेगा.”

शीतल का कोई हथियार वसीम पर काम नहीं कर रहा था. अब इससे ज्यादा वो क्या कर सकती थी. वो समझ रही थी की वसीम के नज़र में ये गलत है, ये पाप है. उसने खुद पर किसी तरह काबू कर लिया है, लेकिन अब वो और तड़पेगा. इतना कुछ कर लेने के बाद वो मुझे बिना चोदे यहाँ से भेज देगा लेकिन फिर पागल हो जायेगा. शीतल फिर कुछ बोलने जा रही थी वसीम ने उसे रोक दिया. शीतल जैसी सुंदरी पुरे समर्पण के साथ नंगी खड़ी थी, लेकिन वसीम उसके समर्पण को ठुकरा रहा था. शीतल की नज़रों में वसीम की महानता बढती ही जा रही थी.

शीतल अपनी साड़ी उठाती हुई बोली “ठीक है, आप यही चाहते हैं तो मैं चली जाती हूँ. लेकिन सिर्फ मेरे अभी यहाँ से चले जाने से काम नहीं बनेगा. मुझे आपकी जिंदगी से ही दूर जाना होगा. इस घर से दूर जाना होगा. हमलोग आज ही इस घर को खाली करके चले जायेंगे. भले ही हमें रोड पर रहना पड़े, लेकिन मैं यहाँ से चली जाउंगी. तभी शायद आपकी परेशानी कम होगी.” शीतल अपने कपड़े उठाती जा रही थी और बोलती जा रही थी. फिर वो वसीम के सामने खड़ी हुई और बोली “लेकिन मैं फिर कहती हूँ की इसमें आपकी या मेरी कोई गलती नहीं है.”

वसीम कुछ नहीं बोला. वो इया तरह खड़ा था जैसे अपने फैसले पर अडिग हो. शीतल अपने सारे कपड़ों को फिर से बिस्तर पर फेंक दी और बोली “जाने से पहले एक चीज़ मांग सकती हूँ आपसे?” वसीम ने हाँ में सर हिलाया तो शीतल बोली “आपने मेरे साथ इतना कुछ किया, तो कम से कम अपना वीर्य तो मेरे सामने निकाल लीजिये. नहीं तो मुझे लगेगा की मेरा मेरा कुछ आपके पास बाँकी रह गया.” अब वसीम के पास बोलने के लिए कुछ नहीं था. शीतल को अचानक अपनी इस बात से लगा की गेंद उसके पाले में आ सकती है.

वसीम कुछ नहीं बोला. वो सोच नहीं पा रहा था की हाँ या ना क्या बोले. शीतल उसकी तरफ आगे बढ़ी तो वसीम ने इशारे से उसे रोक दिया. शीतल फिर से जिद को मजबूत करते हुए बोली “जब तक आप अपना वीर्य नहीं निकाल लेते, तब तक न तो मैं अपने कपड़े पहनूँगी और न ही यहाँ से जाऊँगी.” बोलती हुई शीतल बिस्तर पर बैठ गयी. वसीम भी समझ गया की यहाँ वो शीतल को रोक नहीं सकता और इसमें कुछ खास नुकसान भी नहीं था उसके प्लान को.

वसीम ने लुंगी किनारे किया और लंड को सहलाने लगा. अभी लंड में कोई जान नहीं था और वो मुर्दे की तरह लटका हुआ था. शीतल खड़ी हो गयी और बोली “प्लीज़ मुझे करने दीजिये. आपने कई बार मेरे नाम से मेरे पैंटी और ब्रा पर अपना वीर्य गिराया है, तो क्या मेरा हक नहीं की एक बार मैं भी उस वीर्य को बाहर निकालूँ. वसीम कुछ बोलता उससे पहले ही शीतल “प्लीज़ मुझे मना मत करिए.” बोलती हुई शीतल वसीम के करीब आ गयी और उसकी लुंगी को खोल कर नीचे गिरा दी और लंड को हाथ में लेकर सहलाने लगी.

शीतल का हाथ लगते ही मुर्दे में जान आ गयी और लंड करवट बदल कर टाइट होने लगा. शीतल के पास ये आखिरी मौका था की शायद वसीम खुद पर से अपना नियंत्रण खो दे, उसके जज्बात उबलने लगे और वो शीतल के जिस्म में डूब जाए. शीतल वसीम के जिस्म में अपना जिस्म रगड़ती हुई नीचे बैठ गयी और लंड को सहलाती हुई चूसने लगी. शीतल अपनी चुच्ची वसीम के जाँघ पर रगड़ रही थी. वो लंड को पूरी तन्मयता के साथ चूस रही थी. जितना मज़ा वो वसीम को देने की कोशिश कर रही थी, वसीम को उससे ज्यादा मज़ा आ रहा था. एक कम उम्र की बेहद ख़ूबसूरत, नयी नयी शादीशुदा औरत उसके लंड को अपने मुँह में पूरा भरकर चूस रही थी.
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वसीम का मन हुआ की शीतल को बिस्तर पर ले जाकर चोद ही दे, लेकिन बड़ी मुश्किल से वो खुद को सम्हाल रहा था. उसके लंड ने वीर्य गिराने की तैयारी कर ली और वसीम ने भी वीर्य गिरा देने का सोच लिया. वसीम का वीर्य सीधा शीतल के मुँह और चेहरे पर गिरता, लेकिन वसीम ने शीतल को इस सुख से वंचित रखना चाहता था. उसने शीतल को खुद से अलग किया और थोड़ा किनारे होकर ज़मीन पर वीर्य गिरा दिया. शीतल वीर्य की तरफ हाथ बढ़ाई की वीर्य उसके मुँह में नहीं तो कम से कम हाथ पर तो गिरे, लेकिन वसीम ने उसे रोक दिया और वीर्य को ज़मीन पर गिरा दिया. वो तेज़ साँस ले रहा था.

शीतल नीचे ही बैठी हुई थी. वो घुटने के बल चलती हुई वीर्य तक पहुँची और उसमे अपने मंगलसूत्र को अच्छे से भिगोने लगी. वसीम हाँफता हुआ बिस्तर पर जा बैठा था और अपनी रंडी की हरक़तों को देख रहा था. जब शीतल का मंगलसूत्र दोनों तरफ से अच्छे से वीर्य में लिपट गया तो वो वीर्य को अंगूठे से उठाई और अपनी मांग में लगाने लगी. वो कई बार ऐसा की जिससे उसकी मांग भीग गयी थी. अपने मांग में वीर्य भरते हुए वो वसीम को देख रही थी जैसे आँखों से कह रही हो की ‘देखिये, आपकी रंडी बनने से आप मुझे रोक नहीं सकते.’ फिर वो अपनी बिंदी पर भी वीर्य लगा ली.

शीतल वसीम की तरफ देखते हुए गर्व से बोली “देख लीजिये वसीम चाचा, ये सब मेरी सुहागन होने की निशानियाँ हैं जो अब आपके वीर्य से सनी हुई है. मेरी मांग में आपका वीर्य भरा हुआ है, मैं आपके वीर्य में डूबी हुई मंगलसूत्र पहनी हूँ. सुबह जब आपने बाथरूम के सामने अपना वीर्य गिराया था, तब गलती से मेरा मंगलसूत्र उसमे लग गया था, लेकिन अभी मैं जान बुझकर ऐसा की हूँ. अब आप भी मेरे पति हैं. अब आप मुझे जो भी समझिये, लेकिन अब मैं आपको नहीं छोड़ सकती. अब मैं आपको तड़पने नहीं दूँगी.”

वसीम कुछ नहीं बोल रहा था. हर तरह से तो उसी की जीत हो रही थी. शीतल खड़ी हो गयी और साड़ी को दुपट्टे की तरह अपने शरीर पर किसी तरह लपेटी और बाँकी कपड़े अपने हाथ में लेकर उसी तरह बाहर निकल गयी और भागती हुई सीढियों से नीचे उतर कर अपने घर में आ गयी. शीतल की जो भी हालत हुई हो, लेकिन वसीम की जान निकल गयी. अगर कोई भी शीतल को इस तरह उसके कमरे से निकलता देख लेता तो पुरे मोहल्ले में वर्षों की बनायीं हुई उसकी इज्ज़त पल भर में उतर जाती.

शीतल दरवाज़ा खुल्ला ही रहने दी और सारे कपड़ों को कुर्सी पे फेंक दी और साड़ी को अपने बदन से अलग कर कुर्सी पर रख दी और नंगी हो गयी. वो सोफे पर ही निढाल बैठ रही. अभी भी उसे उम्मीद थी की वसीम आएगा और उसके जिस्म से लिपट जायेगा।
 

mgaya

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Earlier pic links are broken...please fix those.. also...superb pics wherever they are visible... expecting to see more pics going forward
 
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