सभी अपने अपने कमरे में सोने चले गए. शीतल की एक तरह से जीत हुई थी. जैसा उसने सोचा था दोपहर में, वो उसी तरह रंडियों की तरह की हरक़त की थी वसिम के सामने. पहले उसने ब्रा के ऊपर से अपनी चूची वसीम की पीठ पे रगड़ा था और फिर ब्रा उतार कर टॉप के ऊपर से वसीम के हाथों अपनी चुच्ची मसलवा ली थी. और फिर बाद में तो उसने अपनी चुचियों को नंगी करके वसीम के हाथों में पकड़वा दिया था और वसीम का हाथ पकड़ कर अपनी चुच्ची मसलवा ली थी. शीतल जैसी औरत इतना कुछ कर दी थी, ये बहुत बड़ी बात थी.
शीतल अभी भी सीधी लेटी हुई थी और उसने अपने टॉप को चुच्ची तक उठाया हुआ था और वो सोच रही थी की अब वसीम चाचा को ठीक लग रहा होगा और अब वो शायद मेरे से बात करने की हिम्मत कर पायें और मुझसे खुल कर बातें कर पायें. शीतल इमेजिन कर रही थी वसीम अभी भी उसकी पेट, नाभि और चुच्ची को सहला रहा है. ‘अब शर्माना घबराना बंद करिए वसीम चाचा. बंद करिए अब पैंटी ब्रा पे अपना वीर्य गिराना.’
वसीम अपने कमरे में पहुँचा और तुरंत ही पूरा नंगा हो गया. उसके लिए अब बर्दाश्त करना मुश्किल काम था. वो अभी भी अपनी हथेली में शीतल की नर्म गुदाज चुचियों को महसूस कर रहा था. उसकी आँखों के सामने शीतल की चुचियाँ नंगी होकर चमक रही थी. वो छोटा सा भूरे रंग का निप्पल, वो गोर मखमली छुअन, उफ़... वसीम का लंड पूरा तनकर अकड़ा हुआ था. वसीम बिस्तर पे लेट गया था, लेकिन उसका लंड तनकर छत की तरफ देख रहा था. वो उस दृश्य को फिर से याद करता हुआ अपने लंड को सहला रहा था और सोच रहा था ‘पूरी आग भर गयी है अब रंडी की चूत में. अब ये पूरी तरह तैयार है और अब इसे चोदना होगा, नहीं तो कहीं ऐसा न हो जाये की कहीं देर न हो जाये. बस एक दो दिन और तड़प तू मेरी रंडी, उसके बाद तू मेरी पाल्तु कुतिया बनकर मेरे इशारों पर नाचेगी.’
वसीम इमेजिन कर रहा था की किस तरह वो शीतल को पूरी नंगी कर कैसे कैसे चोदेगा और कैसे शीतल उसके मोटे लण्ड को अपनी कमसिन चुत में लगी. वसीम अपने लंड को सहलाता जा रहा था. वसीम का लंड वीर्य उगलने को तैयार था. उसका तो मन हुआ की जाकर शीतल के बदन पर जाकर वीर्य टपका आये, लेकिन वो अभी ऐसा कर नहीं सकता था। बाद में तो जहाँ उसका मन करेगा वहाँ वो वीर्य गिरायेगा। शीतल की चुत में, उसके मुँह में, उसके चेहरे पर, उसकी गांड में। लेकिन अभी तो उसे अपना वीर्य कहीं और गिराना होता और वो अपने वीर्य को बर्बाद नहीं करना चाहता था। वो उठा और कबर्ड खोल कर शीतल की एक साड़ी निकाल कर उसपे अपना वीर्य गिरा दिया और फिर उसी तरह उसे वापस कबर्ड में रख दिया. अब उसे कोई डर नहीं था. शीतल देख लेती तो समझ जाती की ये क्या है और अगर विकास देखता तो उसे कुछ समझ में ही नहीं आता और शीतल उसे समझने भी नहीं देती.
शीतल की साड़ी पे वीर्य गिराने के बाद वसीम ने अपने कपड़े पहन लिए और सो गया और तुरंत ही उसे नींद भी आ गयी. शीतल रोज़ की तरह सवेरे अपने वक़्त पर जग गयी और सबसे पहले चुपके से वसीम के कमरे में झांक आई जहाँ वसीम गहरी नींद में सो रहा था. वसीम को सोता देख शीतल उसे अच्छे से देखने लगी की ‘कितने सुकून से सो रहे हैं वसीम चाचा. मैं चाहती हूँ की आप हमेशा इसी सुकून में रहें. और इसके लिए मैं जो भी कर सकती हूँ, वो सब करुँगी. आप मेरे से कोई संकोच मत करिए। खुल कर बातें करिये। मैं आपके लिए सब कुछ करुँगी।’
शीतल अपना रोज़ का काम करने लगी. वो अभी भी अपने उसी कपड़े में थी और घर में झाड़ू पोछा लगा रही थी. अभी भी वो बिना ब्रा के ही थी और वसीम के कमरे में झाड़ू लगा रही थी. उसका मन हुआ की वसीम को जगा दे और उससे पूछे, उससे बातें करे, क्यों की अभी विकास के जागने में वक़्त था और अच्छा मौका था उसके लिए. लेकिन शीतल में अभी इतनी हिम्मत नहीं हुई थी. अभी तक जितनी भी निर्लज्जता या रंडीपना वो दिखाई थी, वो सब ऐसे हो रहा था जैसे गलती से या अनजाने में हो रहा है, लेकिन इस तरह वसीम को जगा देना और उससे कुछ बात करना, शीतल के बस में नहीं था. शीतल का तो मन हो रहा था की फिर से अपने टॉप को उठाये और वसीम के मुँह पर लटका कर निप्पल उसके मुँह में भर दे. अपनी चुचियों को वसीम के हाथ पे रख दे या उसके बदन पर रगड़ कर वसीम को जगाये. बोले की रात में तो ठीक से मसले नहीं, अभी मसल कर अपने दिल की भड़ास निकल लीजिये. इससे प्यारी सुबह और क्या हो सकती थी वसीम के लिए. लेकिन शीतल सिर्फ सोच में ही ऐसा कर पाई, हकीकत में नहीं. उसके मन में ये भी तो डर था की वसीम जो भी कर रहा है उससे छिपकर कर रहा है, और अगर वो इस तरह की कोई हरक़त करेगी तो कहीं ऐसा न हो जाये की वो मुझे ही चरित्रहीन या बदचलन स्त्री न समझ ले.
वसीम की नींद खुल गयी थी, लेकिन वो इसी तरह सोने की एक्टिंग करता हुआ पड़ा रहा और शीतल के बदन को और करीब से देखता रहा. अभी उसे शीतल के बदन का एक एक कटाव नज़र आ रहा था. ट्राउजर के अन्दर पैंटी की लाइन दिख रही थी. टॉप के अन्दर किनारे से बिना ब्रा की हिलती हुई चुच्ची की थिरकन दिख रही थी. उसका लंड टाइट हो रहा था और उसका भी मन हुआ की शीतल को अपने बदन पे खिंच ले और मसल दे उसके बदन को. लेकिन वसीम को नहीं पता था की विकास सोया हुआ है या जगा हुआ है. और वो किसी तरह का कोई जोखिम नहीं उठाना चाहता था. वैसे भी उसके पास वक़्त या मौके की कोई कमी नहीं थी.
थोड़ी देर तक वो यूँ ही लेटा रहा और शीतल झाड़ू पोछा लगा कर उसके कमरे से जा चुकी थी. वो ऐसे जगा जैसे अभी जग रहा हो और बाहर हॉल में आया तो उसे पूरा सन्नाटा लगा. उसने झांक कर देखा तो विकास गहरी नींद में सो रहा था और बाथरूम से पानी गिरने के आवाज़ आ रही थी. उसे समझ में आ गया की शीतल बाथरूम में नहा रही है. वो इधर उधर टहलने लगा और सोचने लगा की क्या किया जाए. विकास को सोता देख उसका मन ललच गया और शीतल को नहाता हुआ देखने का सोचने लगा, लेकिन उसे डर लग रहा था की अगर विकास ने उसे ऐसा करते हुए देख लिया तो. वो फिर से सो जाये या यहीं सोफे पे बैठा रहे, वो समझ नहीं पा रहा था.
अंत में उसके लिए खुद को रोकना मुश्किल हो गया. उसने विकास के बेडरूम का दरवाज़ा थोड़ा सा सटा दिया और बाथरूम के दरवाज़े पे बैठ कर की होल से अन्दर झाँकने लगा. अन्दर का नज़ारा तो वसीम के बदन में बिजली भर देने वाला था.
अन्दर उसकी होने वाली रंडी पूरी नंगी होकर अपने गीले बदन को मसल रही थी. उसका गोरा बदन पानी में भीग कर चमक रहा था. सुडौल चुचियाँ जवानी के नशे में झूम रही थी, जिन चुचियों को कल रात में वसीम ने मसला था. भले एक ही बार मसला था और वो भी शीतल ने ही मसलवाया था. चुच्ची के नीचे चिकना सपाट पेट, जिसे रात में अच्छे से सहलाया था वसीम ने. लेकिन असली मज़ा तो तब आएगा जब वो अपनी मर्ज़ी से अपनी रंडी के पेट को सहलाएगा, चूमेगा. पेट के नीचे चिकनी चूत चमक कर वसीम के लंड को बुला रही थी. एक भी बाल नहीं रखा था शीतल ने अपनी चूत पर, वसीम के लंड के लिए पूरा हाईवे खुला हुआ था. गोरी चिकनी जांघे, पतली चिकनी कमर, गदरायी हुई गांड, उफ्फ....
शीतल शावर के निचे खड़ी थी और पानी उसकी चिकने जिस्म को छूता हुआ नीचे फिसल कर गिर रहा था. वसीम ने एक नज़र विकास के कमरे में डाला जहाँ विकास अभी भी गहरी नींद में सो रहा था. वसीम ने अपने लंड को बाहर निकाल लिया और सहलाने लगा, उसने कई बार शीतल के नाम पे अपने लंड को सहलाया था, वीर्य को उसके कपड़ों पर या कहीं और भी गिराया था, लेकिन तब वो शीतल के बदन को इमेजिन करता था, लेकिन अभी शीतल पूरी नंगी होकर उसकी नज़रों के सामने थी.
वसीम एक हाथ से लंड आगे पीछे कर रहा था और बाथरूम के की होल में अपनी ऑंखें सटाए शीतल के नंगे बदन को निहार रहा था.
अन्दर शीतल का जिस्म भी जल रहा था. वो नहाती हुई अपनी चुच्ची और चूत मसल रही थी. वो अभी भी वसीम के हाथों को अपनी चुच्ची पर महसूस कर रही थी और सोच रही थी की वसीम उसके चुच्ची को और अच्छे से मसलता, उसकी चूत को सहलाता, उसके निप्पल को चूसता तो कितना मज़ा आता.
वसीम को बहुत मज़ा आ रहा था की उसकी होने वाली रंडी अपनी चूत की गर्मी बर्दाश्त नहीं कर पा रही और ऊँगली करके अपनी प्यास कम कर रही है. लेकिन उसके मन में डर भी था की कहीं विकास जग गया तो गड़बड़ हो जाएगी. वो तेज़ी से अपने लंड पे हाथ चलाने लगा और अब उसका वीर्य गिरने वाला था. उसे समझ नहीं आया की वीर्य कहाँ गिराए. उसके पास अब इतना वक़्त नहीं था की कहीं और जाकर वीर्य गिरा पाता. उसके दिमाग में बस एक पल के लिए ख्याल आया की वीर्य बर्बाद नहीं होना चाहिए. शीतल को पता चलना चाहिए की वसीम ने उसे नहाता देखा है और उसके नाम का वीर्य बहाया है.
वसीम ने बाथरूम के दरवाज़े पे लगे मैट्रेस के बाद ज़मीन पर अपना वीर्य गिरा दिया. बहुत सारा वीर्य एक जगह जमा था और ऐसे तो नज़र नहीं आ रहा था, लेकिन गौर से देखने पर दिख जाना था की यहाँ पर कोई गाढ़ा सफ़ेद द्रव गिरा हुआ है.
वसीम अपने कमरे में आ गया और छिप कर बाहर देखने लगा. अन्दर शीतल भी अपनी चूत से पानी बहा चुकी थी और अब उसे भी हल्का लग रहा था. रात में वसीम के छूने के बाद से ही उसकी चुत गीली थी और वो तड़प रही थी। वो अपनी चूत सहला भी नहीं पायी थी, और इसके लिए वो रात भर तड़पती रही थी. उसका नहाना हो गया और वो कपड़े पहन कर बाहर आ गयी.
बाथरूम का दरवाज़ा खुला और वसीम को शीतल नज़र आई तो वो और सावधान होकर छिप कर शीतल को देखने लगा. शीतल किसी अप्सरा की तरह नज़र आ रही थी. नाभि के नीचे बंधी क्रीम कलर की साड़ी, स्लीवलेस ब्लाउज और उसके बीच में सिंगल लाइन में आँचल, जिससे शीतल का एक उभार झांक रहा था. तुरंत नहाने की ताजगी और गीले बाल उसके हुस्न को बेइन्तेहाँ बढ़ा रहे थे.
शीतल बाथरूम से निकल कर मैट्रेस पर अपने गिले पैर पोंछी और जैसे ही अगला पैर बढ़ाई की उसका पैर वसीम के गिराए वीर्य पर पड़ा. चिपचिप करते ही वो नीचे देखी तो उसे कोई सफ़ेद सा द्रव ज़मीन पर चमकता हुआ सा दिखा. उसकी धड़कन तेज़ हो गयी. अभी तुरंत वो पुरे घर को साफ़ करके पोछा लगा कर नहाने गयी थी तो ऐसा कोई सफ़ेद लिक्विड आने का एक ही कारण हो सकता था. ‘उफ्फ... तो क्या वसीम चाचा मुझे नहाता हुआ देख रहे थे?’ ये सोच कर शीतल शर्मा गयी की अन्दर वो कैसे नहा रही थी और क्या क्या कर रही थी, और ये सब वसीम देख रहा था.
शीतल अच्छे से देखने और कन्फर्म होने के लिए नीचे बैठकर देखने लगी. एक नज़र में वो कन्फर्म हो गयी की ये वही है. शीतल अपने दुसरे पैर को आगे बढ़ा कर बेडरूम में विकास को देखी और उसे सोता देखकर उस कमरे के दरवाज़े को और अच्छे से सटा दी. फिर उसने अपनी नज़र वसीम के कमरे में डाली, लेकिन वहाँ उसे कोई नहीं दिखा. वो समझ गयी की वसीम चाचा फिर से चुपके से अपने वीर्य को बहा कर सोने जा चुके होंगे.
शीतल नीचे बैठकर वीर्य को अच्छे से देखने लगी और सोचने लगी की ‘कल रात में तो वसीम चाचा ने खुद को रोक लिया था, इसलिए उनकी प्यास अब और भी बढ़ गयी होगी. उन्होंने मेरे पेट, चुच्ची को सहलाया तो, लेकिन अपनी भावनाओं को दबा कर रखने की वजह से उनकी परेशानी और बढ़ गयी होगी. कोई बात नहीं वसीम चाचा, मैं भी देखती हूँ की आप और कितना रोकते हैं खुद को, और कितना दबा पाते हैं अपनी भावनाओं को. कल रात तो आपने मेरी चुच्ची से अपना हाथ हटा लिया था, देखती हूँ की क्या क्या हटायेंगे और खुद को कितना तड़पाएंगे. मुझसे दूर भागेंगे और छिपकर वीर्य गिराएंगे, ये कौन सी बात हुई. अगर अभी भी आपका डर और शर्म मुझसे खत्म नहीं हुआ है तो अब होगा. अब आप देखिये की मेरा रंडीपना और कितना बढ़ता है और तब देखूंगी की आप खुद को कितना रोकते हैं और कैसे रोकते हैं. लेकिन एक बात तो तय है की आप बहुत महान इंसान है वसीम चाचा. इतने में तो कोई भी मर्द अब तक बिछ गया होता मेरे ऊपर. मैं तो गलती से भी सिर्फ मुस्कुरा देती थी तो लड़के पागल हो जाते थे, और आप तो इतना कुछ सह रहे हैं. अब मेरी भी जिद हो गयी है आपको खोलने की. आपको मेरे से बात करनी ही होगी, अपना दर्द मेरे साथ बाँटना ही होगा.’
शीतल ऊँगली से वीर्य उठाई और सूँघते हुए उसे मुँह में लेकर चाटने लगी. वो फिर से ऐसा की. वो इस तरह कर रही थी जैसे बच्चे की आइसक्रीम ज़मीन पर गिर गयी हो और वो उसे उठा कर चाट रहा हो, लेकिन आइसक्रीम ठीक से उठ नहीं पा रही हो ऊँगली से. शीतल से भी वीर्य ठीक से उठ नहीं रहा था तो वो झुक कर वीर्य को जीभ से चाटने लगी. उसकी चूत गीली हो रही थी. वो वसीम के कमरे के दरवाज़े की तरफ देखी और सोची की काश वसीम चाचा अभी अपने कमरे से बाहर आकर उसे देख लें और समझ जाएँ की मैं उनके साथ हूँ.
शीतल जब सारा वीर्य चाट कर खड़ी हुई तो उसकी नजर अपने मंगलसूत्र पर गयी. जब वो वीर्य को जीभ से चाट रही थी वसीम का वीर्य उसके मंगलसूत्र पर भी लगा गया था और अब वो उसके ब्लाउज को भी गीला कर चूका था. उसके सुहाग की निशानी पर किसी और मर्द का वीर्य लगा हुआ है, ये सोच कर ही उसकी चूत और ज्यादा गीली हो गयी. वो मंगलसूत्र पे लगे वीर्य को साफ़ नहीं की और ऐसे ही वीर्य लगा हुआ ही पहने रही. ‘पैंटी ब्रा बहुत पहन ली वसीम चाचा का वीर्य लगी हुई, अब मंगलसूत्र पहनती हूँ वीर्य लगा हुआ. आप का वीर्य तो पैंटी ब्रा से आगे बढ़कर मेरे मंगलसूत्र तक पहुँच गया वसीम चाचा, अब आप भी आगे बढिए, डरना, शर्माना बंद करिए.’
वसीम शीतल को अपने कमरे से परदे के पीछे से झांक कर देख रहा था और मंगलसूत्र पे लगे वीर्य को देखकर और शीतल उसे उसी तरह रहने दी, ये सोच कर वसीम को खुद पे बहुत गर्व हुआ की अब ये रंडी पूरी तरह उसकी है. अब उसके और शीतल के बीच में जो भी दूरी है, वसीम जब चाहे तब उस दूरी को खत्म कर सकता है और तब शीतल सिर्फ उसकी रंडी बनकर रहेगी. शीतल अपने कमरे में चली गयी और वसीम भी बिस्तर पर आकर लेट गया.
शीतल अपने कमरे में आकर चेहरे पर क्रीम, आँखों में काजल और होठों पर लिप ग्लोज लगायी. उसने सिन्दूर की डिब्बी को हाथ में लिया और उसमे से सिन्दूर निकाल कर अपनी मांग में भरने जा रही थी की उसे कुछ ख्याल आया. वो अपने मंगलसूत्र में लगे वीर्य को अपनी ऊँगली में सटाई और उसे अपनी मांग में भर ली. आह..... ऐसा करते ही अचानक से उसकी चूत में एक करंट सा दौड़ा और उसे बहुत मज़ा आया. मंगलसूत्र पे लगे सारे वीर्य को वो अपने मांग में भर ली और फिर उसके बाद मांग में सिन्दूर भर ली. सिन्दूर मांग में लगे वीर्य से चिपक गया और शीतल के सुहाग की दूसरी निशानी में भी वसीम का वीर्य लग चूका था. शीतल की चूत का गीलापन अब और ज्यादा बढ़ गया था. वो अपने माथे पर कुमकुम लगायी. ये सब उसका रोज़ का नियम था, लेकिन वसीम के वीर्य ने उसके नियम को आज मजेदार बना दिया था.
शीतल आईने में खुद को निहार रही थी. ‘लीजिये वसीम चाचा, अब तो मेरा मंगलसूत्र और मांग में भी आपका वीर्य लग गया. अब एक तरह से आप भी मेरे पति हुए. अब तो मेरे पुरे जिस्म पर आपका भी हक है और अब तो मैं चाहकर भी आपको मना नहीं कर सकती. अब तो मुझसे शर्माना छोड़ दीजिये और खुल कर बिंदास होकर अपनी जिंदगी जीइए.’ शीतल अब आईने में खुद को ही देखकर शर्मा रही थी की ‘वो अब वसीम चाचा... नहीं नहीं.... वसीम खान भी नहीं... क्या बोलूं.... मकानमालिक जी... ये तो बहुत बड़ा लगेगा.... नहीं... मालिक जी की भी पत्नी हूँ.'
शीतल शर्माते मुस्कुराते अपने कमरे से बाहर आ गयी और किचन में चली गयी. रोज़ वो नहाने के बाद पूजा करती थी, लेकिन आज वो पूजा करने की हालत में नहीं थी. वो पहले वसीम के कमरे में गयी की विकास को बाद में जगाएगी. अभी जैसा वो सोच रही थी की वो अब वसीम की भी पत्नी है, उसे वसीम के कमरे में जाने में शर्म आ रही थी. वसीम सच में नींद में आ गया था. शीतल उसे शर्माते और मुस्कुराते देख रही थी. ‘अभी मुझे नंगी नहाते देखे और वीर्य गिराए तब तो बहुत मज़ा आ रहा होगा जनाब को, लेकिन अभी सोने की एक्टिंग कर रहे हैं.’ फिर से उसका मन हुआ की वसीम के साथ कुछ करे, अब तो उसकी हिम्मत भी थोड़ी सी बढ़ गयी थी, लेकिन फिर उसे लगा की ‘ये सही वक़्त नहीं है. विकास घर में है और ये अगर कुछ बोले तो मैं कुछ बोल नहीं पाऊँगी. दोपहर का वक़्त अपना है आज.’
शीतल अपनी भावनाओं को सम्हाली और आवाज़ लगायी “वसिम चाचा... उठिए.... गुड मोर्निंग... चाय... लीजिये... उठिए.....” शीतल की रसभरी आवाज़ जैसे ही वसीम के कानो में गयी की उसकी नींद खुल गयी. उसे बहुत मज़ा आया. बहुत सालों के बाद किसी ने उसे इस तरह जगाया था. उसने धीरे से आँखों को खोला तो सामने शीतल का मुस्कुराता हुआ चेहरा था. हल्के से मेकअप के बाद शीतल का हुस्न और निखर गया था. वो शीतल को देखता ही रहा गया और वसीम को इस तरह खुद को देखता देख पहले से ही शर्मा रही शीतल और शर्मा गयी और नज़रें नीची कर ली. वसीम भी अपनी नज़रों को नीची कर उठ कर बैठ गया.
शीतल अब अपने कमरे में गयी और विकास को भी जगाई. शीतल के दोनों शौहर जग कर बाहर हॉल में आ गए और सोफे पर बैठ गए. शीतल दोनों को चाय लाकर दी. वसीम “शुक्रिया” कहता हुआ शीतल के हाथों से चाय ले लिया, लेकिन चाय लेते वक़्त उसका हाथ थोड़ा सा हिला तो शीतल तुरंत टोंट मारी “सम्हाल कर वसीम चाचा.... जमीन पर मत गिराइए....” वसीम हड़बड़ा गया क्यों की विकास उसके बगल में ही बैठा हुआ था और सिर्फ वो समझ रहा था की शीतल के कहने का क्या मतलब है. वो सर झुकाए चाय पीता रहा.
नाश्ता करके वसीम और विकास अपने अपने काम पर चले गए और शीतल सोचने ली की क्या क्या किया जाये. अब वो और देर नहीं करना चाहती थी. उसने सोच लिया था की आज दोपहर में उसे वसीम से बात कर ही लेनी है क्यों की कल सन्डे है और कल विकास घर में रहेगा तो फिर कोई बात नहीं हो पायेगी. अब शीतल की हिम्मत पूरी तरह बढ़ गयी थी. वो दोपहर का इंतज़ार करने लगी. दोपहर तक वो इस बारे में ही सोचती रही की किस हालात में उसे कैसे रिएक्शन देना है. एक चीज़ जो वो चाहती थी की किसी भी हालत में वसीम को शर्मिंदगी महसूस नहीं होनी चाहिए और कुछ ऐसा गड़बड़ न हो जाये की वसीम कुछ गलत न सोच बैठे या खुद के साथ कुछ गलत न कर ले.
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वसीम घर आया तो आज भी शीतल के घर का दरवाज़ा अन्दर से बंद था, लेकिन आज वसीम को बुरा नहीं लगा था, क्यों की उसे 100 फीसदी यकीन था की आज शीतल ऊपर जरूर आएगी. वसीम भी आज दिन भर में काफी कुछ सोच चूका था की उसे अब अपने पासे कैसे फेकने हैं. उसे शीतल सिर्फ एक बार या कुछ समय के लिए नहीं चाहिए थी, जिंदगी भर के लिए चाहिए थी, तन और मन दोनों से चाहिए थी. वो अपने कमरे में चला गया और थोड़ी देर बाद कपड़े बदलकर लुंगी गंजी में बाहर आ गया.
शीतल के दिल की धड़कन फिर से काफी तेज़ थी. उसे सामने जाकर वसीम से वो सब बात करना था, जो वो विकास से भी नहीं करती थी. लेकिन उसे ऐसा करना ही था, और आज ही करना था. समय का अंदाज़ा लगाकर वो धीरे से अपने घर से बाहर निकली और छत पर आ गयी. वसीम भी शीतल की पैंटी को हाथ में लिया ही था की शीतल वहाँ पहुँच गयी. “ये क्या कर रहे आप वसीम चाचा?” वसीम ने ऐसी एक्टिंग की जैसे वो हडबडा गया हो. “कुछ... कुछ नहीं.... ये बस नीचे गिर गया था तो इसे उठा रहा था.”
शीतल को अपनी गलती का एहसास हो गया की वो वसीम को शर्मिंदगी का एहसास करा दी. उसे इस तरह नहीं बोलना चाहिए था. शीतल तुरंत अपनी गलती सुधारने की कोशिश की और मुस्कुराती हुई वसीम की तरफ बढती हुई बहुत ही प्यार से बोली “मुझे पता है की आप रोज़ मेरी पैंटी ब्रा के साथ क्या करते हैं. मुझे पता है की आपने आज सुबह में बाथरूम के गेट के पास क्या किया था.” शीतल बोल तो रही थी लेकिन उसकी साँसे और धड़कन पूरी तेज़ थी. बहुत हिम्मत जुटा कर वो आयी थी छत पर. बहुत बड़े फैसले पर अमल करने वाली थी वो.
वसीम नज़रें नीची किये चुपचाप गुनाहगार की तरह खड़ा था. उसे इन सब भाषणों का अंदाजा था और वो ये सब सुनने के लिए तैयार था. अभी तो उसे अपने चाल को और आगे बढ़ाना था, तभी तो शीतल उसकी रखैल बनने के लिए खुद को समर्पित करती.
शीतल वसीम के करीब आती हुई अपनी आवाज़ में और मिठास घोलती हुई समझाने के से अंदाज़ में बोली “मुझे पता है वसीम चाचा की आप बहुत अरसे से आराम से अकेले अपनी जिंदगी गुजार रहे थे, और मैं यहाँ आकर आपकी सोयी तमन्नाओं को जगा दी हूँ. मुझे आपके बारे में कुछ पता नहीं था, इसलिए जैसे मैं हमेशा रहती आई थी, वैसे ही रहती रही. मुझे पता है की हर मर्द के जिस्म की अपनी जरूरतें होती हैं, लेकिन भला मैं क्या करती. मेरी इसमें क्या गलती है की मैं खुबसूरत है. मैं बचपन से ऐसे ही कपड़े पहनती आई हूँ. लेकिन अब जब से मुझे आपके बारे में पता चला और मुझे आपकी हालत का अंदाज़ा हुआ तो मैं आपके सामने आने से खुद को बचाती रही.”
वसीम चुप ही था. शीतल फिर आगे बोलना शुरू की “फिर मैंने सोचा की इस तरह दूर रहकर मैं आपकी कोई मदद नहीं कर सकती. एक ही जगह रहकर दूर रहना संभव ही नहीं है। दूर रहने का एक मात्र उपाय यह है की हम इस घर से चले जाएँ, और इसके लिए मैं विकास से बात भी की, लेकिन उसे ये सब पता नहीं है तो उसने मना कर दिया की इतना अच्छा घर क्यों छोड़े और इतनी जल्दी दूसरा अच्छा घर मिलेगा भी नहीं. अब ये तो संभव है नहीं की यहाँ रहते हुए आपसे दूर रह पाऊँ. कपड़े मुझे छत पर ही सूखने देने होंगे, किसी न किसी तरह आपकी नज़र मुझपे पड़ती ही, मेरी आवाज़ आपको सुनाई देगी ही. तब मुझे सिर्फ एक उपाय समझ आया की किसी भी तरह आपसे छुपने से आपकी मदद नहीं होगी बल्कि आपकी परेशानी को मैं और बढ़ाऊँगी ही. इसलिए मुझे आपके सामने आना होगा और खुल कर आना होगा.”
शीतल सांस लेने के लिए रुकी और फिर बोलना शुरू की. “मैं कई बार सोची की आपको बोलूँ, आपसे बातें करूँ, लेकिन आप मेरी तरफ देखते भी नहीं हैं. मैं आपको कितना हिंट दी, कितनी तरह से कोशिश की आप मुझे देखें, मेरे से बातें करें, मुझसे आप खुल कर बात कर सकते हैं, लेकिन आपने तो मेरे सामने नज़र भी नहीं उठाया. भले ही आप अकेले में मेरे बारे में बहुत कुछ सोचते और करते हैं.”
अब वसीम के बोलने की बारी थी. उसने ऐसे बोलना शुरू किया जैसे बरसों से भरा गुबार बाहर आ रहा हो. “तो क्या करूँ मैं, बोलिए? सालों से अपनी वीरान जिंदगी को अपनी तन्हाई के साथ गुजार रहा था. सब कुछ ठीक चल रहा था की अचानक सुखी धरती पर तुम बारिश की बौछार बनकर यहाँ आ जाती हो. तुम्हारे जैसी औरत एक ऐसे मर्द के सामने आ जाती है जो सालों से अकेला अपनी जिंदगी जी रहा हो, तो उसके दिल पे क्या बीतेगी ये सोचो. मेरी हालत के बारे में सोचो की तुम्हारे जैसी औरत मेरे नज़रों के सामने खिलखिला रही है और मैं उस खिलखिलाहट को ठीक से देख भी नहीं सकता. तुम किसी और की पत्नी हो. मेरे से उम्र में आधी हो. अगर किसी ने मुझे तुम्हे देखते हुए भी देख लिया तो मुझे ठरकी, पागल, बदचलन, आवारा, और पता नहीं क्या क्या कहेगा. और तुम्हे देख कर करता भी क्या. तुम दूध से भी गोरी, मैं पूरा साँवला. तुम्हारे से दुगुने उम्र का. तुम्हारी छरहरी काया तो मुर्दों में जान डाल दे और मैं मोटा, तोंद वाला इन्सान. तुम अपनी जवानी में हो और मैं बुढ़ापे में जाता हुआ एक हारा हुआ इंसान. और इन सबसे बढ़कर तुम किसी और की अमानत हो. तुम्हारे बारे में मैं चाह कर भी सोच नहीं सकता. मेरा और तुम्हारा कोई मेल नहीं है. तो मुझे यही समझ आया की मुझे तुमसे दूर ही रहना होगा. मैंने बहुत कोशिश की, लेकिन इसके बाद भी मैं खुद को रोक नहीं पाया तो और अकेले में ऐसी हरक़त करने लगा. मुझे माफ़ कर दो. आगे से ऐसा कुछ नहीं होगा. चाहे कुछ भी हो जाये, चाहे मुझे कहीं और जाना पड़ जाए, चाहे मुझे खुद को खत्म ही कर लेना पड़े, लेकिन आगे से मैं तुम्हे शिकायत का कोई मौका नहीं दूँगा.”
अपनी बात ख़त्म करने के बाद वसीम अपने कमरे की तरफ चल पड़ा जैसे वो अपनी बात पर हर हाल में कायम रहेगा, चाहे उसे खुद को खत्म क्यों न कर लेना पड़े. वसीम इंतज़ार कर रहा था की शीतल उसे पीछे से पकड़ लेगी. शीतल वसीम को पीछे से पकड़ी तो नहीं, लेकिन उसके सामने आकर खड़ी जरूर हो गयी. बोली “तो आपने मुझे कभी बात क्यों नहीं की. मुझसे बातें करते, हंसी मजाक करते तो शायद आप राहत महसूस करते. मैंने तो कितनी बार कोशिश की. मुझे आपके दर्द का अंदाज़ा है. तभी तो जब आपने बात नहीं की तो मैं ही आ गयी बेशर्म बनकर. वसीम चाचा, मैं आपकी मदद करना चाहती हूँ. आप मुझे लेकर पेरशान मत होइए.”
वसीम शीतल के बगल से होता हुआ अपने कमरे की तरफ आता हुआ बोला “और चिंगारी को हवा दूँ. देखता भी नहीं हूँ, तब तो इतना मुश्किल है खुद को सम्हालना, अगर बात करता या हंसी मजाक करता तो फिर तो खुद को नहीं ही सम्हाल पाता. और किस रिश्ते से तुमसे हंसी मजाक करता. तुम मेरे से आधे उम्र की हो. तुम्हे ही नहीं लगता की ये बुढा इंसान बददिमाग है, ठरकी है. तुम्ही मेरे बारे में कितना गलत सोचती और क्या पता किसी से मेरी शिकायत ही कर देती। मुझे ही डाँट कर कुछ बोल देती। और फिर क्या पता की अगर किसी तरह हँसी मज़ाक, बात होता तो मैं ही तुम्हे कभी पकड़ ही लेता.
शीतल भी वसीम के पीछे पीछे उसके कमरे के अन्दर आ गयी. आज वो रुकना नहीं चाहती थी. आज वो बात को अधूरी नहीं छोड़ना चाहती थी. बहुत हिम्मत जुटाकर वो यहाँ आई थी और उसने फैसला ले लिया था की अब वसीम को तड़पने के लिए नहीं छोड़ देगी. वो फिर से वसीम के सामने आकर बोली “तो पकड़ लेते. मैं तो आपको कितने हिंट दी. कितने इशारे किये. पकड़ लेते. पकड़ लीजिये. उतार लीजिये अपने दिल के अरमान, लेकिन इस तरह खुद को तकलीफ मत दीजिये. इस तरह खुद को परेशान मत रखिये.” बोलती हुई शीतल वसीम को अपने गले से लगा ली और खुद को उसके बदन से चिपकाने लगी. फिर से शीतल की नर्म मुलायम चुचियाँ वसीम के सीने से दब रही थी. “वसीम चाचा, मैं आपको इस तरह तड़पता नहीं देख सकती.” शीतल अपना सर वसीम के सीने पर रख दी.
वसीम का मन हुआ की वो भी शीतल को कस के अपनी बाँहों में दबा ले और खेलने लगे उसके मखमली जिस्म से, लेकिन खेल अभी कम्पलीट नहीं हुआ था. वसीम के लंड में खून का बहाव बढ़ गया था, लेकिन उसने खुद पे काबू रखा हुआ था. वसीम खुद को शीतल की पकड़ से छुड़ाता हुआ पीछे हटा और बोला “नहीं... ये मत करो. मैं ऐसा नहीं कर सकता. मैं किसी का घर बर्बाद नहीं कर सकता. मैं विकास को धोखा नहीं दे सकता की उसकी गैरहाजिरी में मैं उसकी बीवी के साथ जिस्मानी सम्बन्ध बनाऊँ. नहीं शीतल, मुझसे ये गुनाह मत करवाओ.” वसीम के मन में डर भी बैठ गया की कहीं उसका दाँव उल्टा न चल जाये और शीतल के भी संस्कार न जाग जाएँ की वो भी विकास को धोखा दे कर गलती कर रही है. अगर ऐसा होता तो वसीम को फिर से मेहनत करनी पड़ती और उसका भी प्लान उसके दिमाग में तैयार था.
लेकिन शीतल पूरी तरह सोच कर आई थी. वो भी आगे बढ़ी और फिर से वसीम के सीने से चिपक गयी. “कोई पाप नहीं है कर रहे हैं आप वसीम चाचा. मैं अपनी मर्ज़ी से आपके पास आई हूँ. मेरी वजह से आपकी ये हालत हुई है तो मेरा ये फ़र्ज़ बनता है की मैं आपकी मदद करूँ. मुझे अपना फ़र्ज़ पूरा करने दीजिये वसीम चाचा.” वसीम अभी भी पीछे हटना चाहता था, लेकिन इस बार शीतल की पकड़ थोड़ी मज़बूत थी और वसीम उतना ज्यादा जोर लगा नहीं पाया इस बार. बहुत मुश्किल से उसने अपने हाथ को शीतल के बदन पर जाने से रोका और बस खड़ा रह पाया.
शीतल अब पागल हो रही थी. उसे वसीम से ये उम्मीद नहीं थी. उसने सोचा था की वो वसीम को खुद को पेश कर देगी तो वो मना नहीं कर पायेगा और फिर धीरे धीरे उससे बात कर उसकी भावनाओं को हल्का करेगी. अपने जिस्म को पूरी तरह समर्पित कर देना तो उसका आखिरी हथियार होता, लेकिन वसीम पर अभी तक तो किसी चीज़ का असर नहीं हुआ था. लेकिन आज शीतल फैसला कर के आई थी की वो कुछ भी करेगी लेकिन वसीम को अब और नहीं तड़पने देगी. उसने फिर से सोच लिया की कुछ भी करना पड़े तो वो करेगी. कुछ भी, मतलब... कुछ भी.
“मुझे देखिये वसीम चाचा, मुझसे बातें करिए, जैसी चाहें, वैसी बातें करिए, जो भी सोचते हैं, वो बोलिए, अपने आपको रोकिये मत. आप जो भी चाहते हैं, वो करिए. अपनी भड़ास निकालिए. तभी आप हल्का कर पाएंगे खुद को.” शीतल वसीम की पीठ को हौले हौले सहला रही थी. अब वसीम के लिए खुद को रोकना और मुश्किल हो रहा था. शीतल जैसी अप्सरा उसे अपनी बाँहों में जकड़ कर कुछ भी करने के लिए खुद को पेश कर दे रही थी. बहुत मुश्किल से वसीम खुद को रोके हुए था. एक तरह से उसने अपने हाथों को पकड़ कर रखा हुआ था की कहीं वो शीतल के बदन पे फिसलने न लगे.
वसीम को किसी तरह का हरक़त करते न देख शीतल अपनी पकड़ को थोड़ा ढीली की और अपने आँचल को खींच कर नीचे गिराते हुए बोली “आप मेरे बदन को देखना चाहते हैं न, तो देखिये. जिस तरह मुझे जो भी बोलना चाहते हैं, बोलिए. मुझसे आपका तड़पना नहीं देखा जाता वसीम चाचा.” अब वसीम को लगा की अब रुके रहने का मतलब नहीं है और अब उसे अपना अगला चाल चलना है. उसने भी शीतल को अपनी बाँहों में जकड़ लिया और शीतल की पीठ को सहलाने लगा. वसीम ने शीतल के चेहरे को ऊपर उठाया और उसके रसीले होठों पर अपने होठ रख दिया और चूसने लगा. शीतल अपने जिस्म को ढीला छोड़ दी. वसीम पागलों की तरह उसके जिस्म को सहला रहा था और पूरी ताकत से उसके होठों को चूस रहा था. नदी का बांध टूट रहा था. उसका लंड तनकर लुंगी से बाहर झाँकने वाला था. शीतल अपनी विजयी मुस्कान के साथ वसीम का साथ दे रही थी. आखिरकार वसीम उसके जिस्म के साथ खेल रहा था, उसे चुम रहा था।
वसीम शीतल के मुँह में अपना जीभ घुमा रहा था और शीतल के जीभ को चूस रहा था. शीतल की पीठ, गांड को सहला रहा था, मसल रहा था. शीतल का बदन पिघलता जा रहा था. वसीम उसके बदन से खेल रहा था. और जिस तरह वो उसके बदन को मसल रहा था, जैसे होठ और जीभ चूस रहा था, शीतल का बदन अपने होश खो रहा था। वो अपनी जीत महसूस कर रही थी. जो वो चाहती थी, वो हो रहा था. वो भी वसीम का उत्साह बढ़ाने के लिए उसके बदन को सहला रही थी. अब तो शीतल ही खुद को नहीं रोक पाने की स्थिति में थी.
वसीम शीतल के जिस्म को अपने जिस्म से रगड़ रहा था. उसने शीतल के होठों को छोड़ा और उसके गर्दन पर चूमता हुआ बोला “हाँ शीतल, मैं तुम्हे देखना चाहता हूँ, तुम्हे छूना चाहता हूँ, चूमना चाहता हूँ, मसलना चाहता हूँ, खेलना चाहता हूँ तुम्हारे बदन से.” वसीम का हाथ शीतल की गांड को सहला रहा था अपने कमर को शीतल की कमर से पूरी तरह सटा कर रगड़ रहा था. इस तरह अपने बदन को शीतल के बदन से रगड़ने से उसका लुंगी खुल गया और नीचे गिर गया. वसीम अब नीचे से नंगा था और शीतल उसकी बाहों में थी.
शीतल वसीम के लुंगी को खुलकर नीचे सरकता हुआ महसूस की और अगले ही पल उसे अंदाजा हो गया की वसीम उसकी बाँहों में नंगा है. शीतल की चूत का गीलापन बढ़ने लगा. जिस लंड को वो बहुत करीब से देखी है, वो लंड उसके साड़ी में रगड़ खा रहा है. शीतल का हाथ वसीम की पीठ से नीचे सरक कर उसकी नंगी गांड के ऊपर था और वसीम को अपनी बाहों में नंगी पा शीतल शर्म से लबरेज हो गयी।
शीतल अपने हाथ को सामने लायी ताकि वसीम के उस लण्ड को अपने हाथों में ले सके, जिसके लिए वो बहुत तड़पी है, लेकिन वो ऐसा कर नहीं सकी। उसे शर्म आ रही थी वसीम के लण्ड को छूने में। शीतल की साड़ी भी ढीली हो रही थी। वो अपनी साड़ी की गांठ को खोल दी. पल भर में ही साड़ी भी लुंगी की तरह सरसरा कर नीचे गिर गयी. शीतल और देरी नहीं की और पेटीकोट की गांठ को भी खोल दी. पेटीकोट भी साड़ी और लुंगी के पास पहुँच गयी.
23 साल की शीतल नीचे में सिर्फ पैंटी पहनी हुई 50 साल के नंगे वसीम की बाँहों में थी. “तो खेलिए न, मैं तो कितनी बार इशारा की कि आप खेलिए मेरे बदन से. आप जो करना चाहते हैं सब कर सकते हैं मेरे साथ, बस तड़पिये मत.” शीतल को ब्लाउज और ब्रा से अपना जिस्म बंधा हुआ लग रहा था। वो चुच्ची को भी आज़ाद करना चाह रही थी ताकि वसीम उसे अच्छे से मसल सके, वो वसीम के बदन को अपने बदन से अच्छे से रगड़ता हुआ महसूस कर सके। वो अपने ब्लाउज का हुक खोलने लगी. वैसे भी वो पहले ही काफी नंगी हो चुकी थी। वो खुद से अपने कपड़े इसलिए उतार रही थी ताकि वसीम को शर्मिंदगी का सामना न करना पड़े. वसीम को ये न लगे की उसने कुछ गलत किया. वसीम खुद नंगा है तो उसे कहीं खुद पे शर्म न आने लगे.
शीतल ब्लाउज के सारे हुक खोल दी और अब उसकी चुच्ची ब्रा के अन्दर कैद दिख रही थी. वसीम शीतल की पैंटी के अन्दर हाथ डालकर उसकी गांड सहला रहा था और फिर से उसके होठ चूस रहा था. वसीम का लंड शीतल की नंगी जांघों, कमर से रगड़ खा रहा और उसमे लगा प्री-कम शीतल के जिस्म को गीला कर रहा था. शीतल वसीम का लंड हाथ में लेना चाहती थी, उसे सहलाना चाहती थी, देखना चाहती थी की क्या सच में उसका लंड इतना लम्बा और मोटा है, लेकिन वो ऐसा कर नहीं पा रही थी. उसे अभी भी शर्म आ रही थी.
वसीम ने शीतल के ब्रा को ऊपर उठा दिया और उसकी चुच्ची नंगी होकर बाहर छलक आई. एक बार फिर से वसीम के हाथों में शीतल की नंगी चुच्ची थी, लेकिन इस बार वो उसे अपने हिसाब से मसल रहा था, पुरे ताकत से. शीतल दर्द बर्दाश्त करने के लिए अपने बदन को ऐंठी और वसीम का लंड पकड़ ली. शीतल के बदन में करंट दौड़ गया. उसकी चूत का गीलापन बाहर आकर उसकी पैंटी को भिगोने लगा था. “उफ्फ्फ... ये तो बहुत ही ज्यादा बड़ा और मोटा है. देखने में जितना लगता था, उससे भी ज्यादा बड़ा. ये किसी की चूत में कैसे जा पायेगा!
”
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शीतल के हाथ में जाते ही लंड और तन गया था. वसीम ने खड़े खड़े ही शीतल को गोद में उठा लिया और बिस्तर पे गिरा दिया. शीतल का रोम रोम सिहर उठा. ‘क्या मैं चुदने वाली हूँ!’ वो बिस्तर पर सीधी लेटी हुई थी. सिर्फ उसकी चूत ही अब ढकी हुई थी, वो भी उसे ढकने वाली पैंटी पहले ही गीली हुई पड़ी थी. वसीम नीचे से तो नंगा था ही, उसने अपनी गंजी को भी उतार दिया और पूरा नंगा हो गया.
वसीम अपनी योजना के हिसाब से बहक रहा था। उसने सोच रखा था कि थोड़ा सा कुछ करके वो खुद को रोक लगा और शीतल को एहसास दिलाएगा की वो सच में बहुत शरीफ है और ये शीतल के जिस्म का जलवा है कि वो थोड़ा सा बहक गया और फिर वो खुद को सजा देगा। लेकिन जिस तरह शीतल उसकी बाँहों में नंगी हो गयी, वो लालच में आ गया था और उसके रसीले जिस्म के आगे खुद को रोक नहीं पा रहा था। उसका दिमाग उसे रुकने को कह रहा था, लेकिन जिस्म रुकने के मूड में नहीं था। शीतल जैसी हूर उसके सामने अधनंगी लेटी हुई थी।
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वसीम शीतल के ऊपर लेट गया और उसके चुच्ची को चुसता हुआ उसके गोरे चिकने बदन को सहला रहा था. उसने शीतल के ब्रा के हुक को खोल दिया और ब्लाउज ब्रा को उसके जिस्म से अलग कर दिया. अब शीतल सिर्फ एक पैंटी में नंगे वसीम के साथ बिस्तर पर थी और वसीम उसके कमसिन जिस्म को सहला रहा था. शीतल की हालत ख़राब हो रही थी. अभी तक वो जो भी सोची हो, उसकी चूत जो भी सोच कर या कर के गीली हुई है, लेकिन अभी वो सच में चुदने वाली थी. उसके पति के अलावा किसी और मर्द का लंड उसके चूत में घुसने वाला था. शीतल डर, परेशानी, वासना, रोमांच सब तरह के ख्यालों में ऊपर नीचे हो रही थी. लेकिन अब किसी भी तरह वो इस चीज़ को रोक नहीं सकती थी.
वसीम उठ कर बैठ गया और शीतल के चमकते जिस्म को देख रहा था। उसका हाथ अब शीतल की पैंटी पर था और शीतल अपनी ऑंखें बंद कर ली. कोई मर्द उसके नंगेपन का गवाह बनने वाला था.
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वसीम अब खुद पर थोड़ा नियंत्रण पाने लगा था, लेकिन शीतल को नंगी करने से खुद को नहीं रोक पा रहा था। उसने धीरे से पैंटी को नीचे खींचा तो शीतल चुपचाप अपनी कमर उठा दी और वसीम ने पैंटी को चुत से नीचे खींच दिया। शीतल की ऑंखें अभी भी बंद थी और सांसे पूरी तेज़. वो नंगी हो रही थी. एक 50 साल के नंगे आदमी के सामने. जो उसका पति नहीं था. लेकिन उसका वीर्य वो अपनी चूत, चुच्ची, और आज तो अपने मंगलसूत्र और मांग में भी लगा चुकी थी.
वसीम ने शीतल की पैंटी को चुत से नीचे किया था तो एक कमसिन कुँवारी और बेहद हसीन औरत की चुत उसकी नज़रों के सामने था. उसने पैंटी को जाँघ पर ही रोक दिया और चुत को देखने लगा. वसीम जाँघों को सहलाने लगा और चुत को सहलाया. उफ़्फ़... खुद को बहुत नसीब वाला समझ रहा था वो की ऊपरवाले ने शीतल को उसके घर में रहने के लिए भेजा और शीतल जैसे हसीना उसके ख़ुशी के लिए ये सब कर रही है.
चुत पर वसीम का हाथ लगते ही शीतल का जिस्म हिलोरें मार रहा था। वसीम ने पैंटी को पूरा नीचे खींच दिया और पैर से बाहर निकाल कर फेंक दिया। औरत की पैंटी उतारकर फेंक देने में जो मर्दानगी का एहसास होता है, वो ऐसा करने वाले जानते हैं। अब शीतल पूरी नंगी थी। शीतल की आंखें अभी भी बंद थी। उसके दोनों जाँघ आपस में सट कर अपने नंगेपन को ढकने को कोशिश करना चाह रहे थे, लेकिन वो खुद को रोक कर रखी। उसका चमकता हुआ पूरा जिस्म वसीम की नज़रों के सामने था, उसी के लिए था।
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वसीम गौर से उसके बदन को निहार रहा था। वसीम ने हाथ आगे बढ़ाया और शीतल की चुत को अपने अंगूठे से मसला। उफ़्फ़.... रसीली चुत का रस टपक कर उसके अंगूठे को गीला करने लगा। उसने शीतल के दोनों पैरों को फैला दिया और उसके बीच में बैठ गया। शीतल के चुत के लब खुल गए। अब उसका सारा जिस्म वसीम की नज़रों के सामने बेपर्दा था। शर्म से शीतल की हालत खराब हो रही थी। लेकिन अब वो वसीम को रोक नहीं सकती थी। वो खुद अपने कपड़े उतारी थी, खुद वसीम के पास आई थी और खुद उसे अपने जिस्म को इस्तेमाल करने के लिए बोली थी। वसीम ने चुत को अपने हाथ में पकड़ा और जोर से मसलता हुआ शीतल पर झुक गया और उसके पेट, नाभि को चूमने लगा। वसीम ने दोनों हाथों से शीतल के चुत को फैला दिया और झुक कर उस रसीली चुत को चूसने लगा।
शीतल का बदन ऐंठने लगा था। ये सब पहली बार हो रहा था उसके साथ। पहली बार कोई उसके चुत में मुँह लगाकर चूस रहा था। वसीम का जीभ शीतल की चुत के छेद को सहला रहा था, अंदर घुसने की कोशिश कर रहा था। शीतल का जिस्म मचल रहा था। उसकी चुत तड़प रही थी। शीतल के मुँह से सिसकारी निकल रही थी। वसीम भी इस मज़ेदार चुत का पूरा मज़ा ले रहा था। वो खुद को रोकना चाह रहा था, लेकिन मजबूर था। वो पूरी चुत को अपने मुँह में भर ले रहा था। "मम्मम... क्या रसीली चुत है मम्मम.... क्या मज़ेदार खुशबू है आह.... रण्डी....."
शीतल के चुत की गर्मी और बढ़ गयी थी और वो अपने दोनों पैरों को और फैला दी थी ताकि वसीम चुत को और अंदर तक चूस सके, पुरे चुत को मुँह में भर सके। अब उससे बर्दाश्त नहीं हो रहा था। वसीम ने जान बूझकर उसे रण्डी बोला था, ताकि जब वो नार्मल भी रहे तो रण्डी शब्द सुनकर उसे अटपटा नहीं लगे। अपने लिये रण्डी सुनकर शीतल की चुत में दौड़ता करंट और बढ़ गया था। वो वसीम के सर को अपनी चुत पर दबाने लगी। वसीम चुत के ऊपर का दाना मुँह में भरकर आइसक्रीम की तरह चूस रहा था और अपनी बीच वाली ऊँगली चुत में अंदर बाहर कर रहा था।
शीतल का बदन पूरा लरज उठा। वो दोनों पैर मोड़ कर फैला ली थी और वसीम के सर को जोर से अपने चुत पर दबा रही थी। वसीम को अपनी ऊँगली पर चारो तरफ से पानी की बौछार महसूस हुई। "आह...." करती हुई शीतल बिस्तर पर निढाल हो गयी। उसकी चुत ने रस टपका दिया था। वो तेज़ तेज़ साँस ले रही थी। इतना मज़ा उसे आज तक नहीं आया था। जब से वसीम उसकी जिंदगी में आया था, शीतल की ज़िंदगी का मज़ा धीरे धीरे बढ़ता जा रहा था।
वसीम उस कमसिन चुत से बहते हुए रस को चूसने लगा और शीतल दूसरी दुनिया की सैर करती रही। उसे लग रहा था कि उसके पति को तो ये सब आता ही नहीं। उफ़... कितना मज़ेदार है चुत का चूसा जाना। खुद से ऊँगली करके पानी निकलने में आजकल उसे बहुत मज़ा आ रहा था, और अभी तो वसीम ने उसकी चुत में ऊँगली करते हुए चूसते हुए उसका रस निकाला था तो अभी का मज़ा तो बेमिसाल था।
चुत का सारा रस पी जाने के बाद वसीम शीतल को देखने लगा। शीतल की ऑंखें बंद थी। वो आँख खोलकर वसीम को खुद को देखता हुई देखी तो शर्मा गयी और मुस्कुराती हुई नज़र दूसरी तरफ कर ली। अब वसीम अभी रुक नहीं सकता था। अभी शीतल संतुष्ट थी और अभी वसीम अपनी चाल नहीं चल सकता था। उसे अब इस खेल को थोड़ा आगे और बढ़ाना ही पड़ता। उसे अफ़सोस हो रहा था कि उसने एक मिनट पहले क्यों नहीं खुद को रोक लिया जब शीतल पूरी गर्म थी। उसने कुछ सेकंड का लालच किया था और उसके छोड़ने से पहले शीतल की चुत ढेर सारा रस छोड़ दी थी।
शीतल उठ कर बैठ गयी और शरमाते हुए वसीम को बोली "ऐसे क्या देख रहे हैं" और हाथ लगाकर उसे सामने से हटाई। वसीम ने उसे पकड़ लिया और उसे लिए हुए बिस्तर पर गिर गया। अब शीतल की बारी थी। वो वसीम के ऊपर लेटी हुई थी और वसीम के बदन को सहलाने चूमने लगी थी। उसे इस खेल में मज़ा आ रहा था। शीतल का हाथ वसीम के लण्ड के पास पहुँचा तो उसे फिर से हिचकिचाहट हुई, लेकिन वो तुरन्त ही लण्ड को हाथ में पकड़ ली। लण्ड अभी पूरा टाइट नहीं था तो ढीला भी नहीं था। वो लण्ड को सहलाने लगी और अपनी चुच्ची को वसीम के बदन में रगड़ रही थी। वसीम के लण्ड में हरकत होने लगी थी।
शीतल भी लण्ड पकड़े हुए वसीम के दोनों पैरों के बीच में आ गयी। अब वसीम का लण्ड उसके हाथ में था और नज़रों के सामने था। शीतल अच्छे से वसीम के लण्ड को देख रही थी। 'कितना काला, लम्बा और मोटा है ये। विकास का लण्ड तो इसके सामने बच्चा है।' शीतल हाथ को ऊपर नीचे करके लण्ड सहला रही थी और हर स्ट्रोक के साथ लण्ड टाइट होता जा रहा था। वसीम के लण्ड का सुपाड़ा और फ़ैल गया था और चमक रहा था।
शीतल धीरे धीरे लण्ड सहला रही थी और सोच रही थी की 'ये लण्ड उसकी चुत में नहीं जा पायेगा। जब विकास के लण्ड डालने पर उसका जिस्म दर्द से भर जाता है तो ये मूसल लण्ड तो उसकी जान ही निकाल देगा।' लेकिन वो इस लण्ड को अब अपनी चुत में लेने के लिए तैयार थी। बिना चुदे वसीम की इच्छा शांत नहीं होने वाली थी और अब जब की वो इतना कुछ होने दे चुकी है तो अब अपने जिस्म को पूरी तरह वसीम को ले लेने देगी। पूरा कर लेने देगी वसीम की वासना को।
वसीम शांत सा लेटा हुआ था। उसे बहुत मज़ा आ रहा था। आना ही था। अभी अभी उसने शीतल के चुत का रस निकाला था और अब शीतल उसके लण्ड के साथ खेल रही थी। लेकिन अब अपनी योजना को आगे बढ़ाने का वक़्त आ गया था। लेकिन वो थोड़ा सा और मज़ा लेने के लालच से खुद को रोक नहीं पाया था। शीतल अपने मुँह को लण्ड के करीब लायी तो वही खुशबू उसके नथुनों से टकराई जिसने उसे दीवाना बनाया था। वो अपनी नाक को और करीब लायी। मम्मम.... शीतल का मुँह अब वसीम के लण्ड के बहुत पास था।
शीतल इससे पहले भी कई बार इस खुशबू को अपने सीने में उतार चुकी थी। लेकिन आज की खुशबू सबसे मजेदार थी। शीतल के मुँह में पानी आ गया कि इसी से निकलने वाले वीर्य को वो कैसे सूँघती और चाटती थी। शीतल अपने जीभ को आगे बढ़ाई और लण्ड के सुपाड़े के गीलेपन को छुई। अजीब सा लगा उसे। बहुत मज़ेदार लेकिन बहुत अजीब सा एहसास। वो लण्ड को मुँह में सटा रही थी। वो फिर से जीभ को सुपाड़े पे सटाई और इस बार उसपर लगे प्री-कम को ज्यादा अच्छे से चाटी। मम्मम.... आज तक तो शीतल जो चाटी थी, वो तो बस सैंपल था, असली खजाना तो आज उसके हाथ में था। वो फिर से मुँह आगे बढ़ाई और इस बार पुरे सुपाड़े के टॉप को अपने होठों से चूसती हुई चूमी।
उसका भी लालच बढ़ता जा रहा था और वसीम का भी। शीतल के मन में एक बार आया भी की ये क्या कर रही है वो, लेकिन फिर अगले ही पल वो खुद को समझा ली की वसीम ने भी तो उसकी चुत को कैसे अंदर तक चूसा है और लण्ड से निकले वीर्य को तो वो पहले भी कई बार चूस चुकी है। वसीम को शीतल को देखकर बहुत मज़ा आ रहा था कि कैसे शीतल धीरे धीरे लण्ड को मुँह में ले रही है। अब शीतल इस बार अपने मुँह को थोड़ा सा और ज्यादा खोली और पूरे सुपाड़े को मुँह में लेते हुए आइसक्रीम की तरह चूसती हुई मुँह ऊपर की। उसे और ज्यादा मज़ा आ रहा था। शीतल को लगा की किस तरह सुपाड़े से उसका पूरा मुँह भर जा रहा है और चुत में जाने और यह लण्ड कितना मज़ा देगा ये सोच कर शीतल की चुत पे चींटियाँ दौड़ने लगी थी। अब वो पूरी तरह वसीम के लिए तैयार थी। लेकिन वसीम को शीतल को ऐसे नहीं चाहिए थी। पूरी तरह से चाहिए थी।
शीतल फिर से मुँह खोली और फिर से सुपाड़े को चूसी। इस बार वो अपना मुँह और बड़ा खोली थी और पुरे सुपाड़े को अपने मुँह में भरकर चूसती हुई मुँह ऊपर की थी। लण्ड अब पूरा टाइट हो गया था। शीतल की चुत भी पूरी गीली हो गयी थी। शीतल इस बार और बड़ा मुँह खोली और लण्ड का और हिस्सा उसके मुँह में था। वो आइसक्रीम की तरह लण्ड चूस रही थी जैसे कोई बच्चा चूसता है। वसीम को एहसास हो रहा था कि ये पहला लण्ड है जो शीतल के मुँह में गया है। उसे और मज़ा आ रहा था लेकिन अब उसे रुकना ही था। नहीं तो फिर वो शीतल को आज ही चोद देगा जो वो नहीं चाहता था।
वसीम ने शीतल को खुद से अलग किया और बिस्तर पर से उतरकर खड़ा हो गया। शीतल आश्चर्य से भरकर वसीम को देखने लगी। उसे लगा की वो कुछ गलती कर दी या पता नहीं क्या हो गया। शीतल लण्ड चूसते हुए चुदाई के सपने देख रही थी जहाँ से वसीम ने उसे अचानक से रोक दिया। वसीम ने लुंगी लपेट लिया और गंजी पहनता हुआ बोला "शीतल, तुम जाओ यहाँ से। ये सब गलत है और मैं ये नहीं कर सकता। अपने कपड़े पहनो और चली जाओ यहाँ से। प्लीज़।"
शीतल अचंभित थी। उसे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि अचानक से ये हुआ क्या है। कितने अच्छे से वो लण्ड को धीरे धीरे अपने मुँह में भरती जा रही थी। कितना मज़ा आ रहा था उसे। उस खुशबू, उस स्वाद का स्रोत उसके मुँह में था, जिसकी वो दीवानी थी। शीतल कुछ पल तो ऐसे ही वसीम को देखती रही, लेकिन जब उसने वसीम को वापस से कपड़े पहनते देखा तो बोली "क्या हुआ वसीम चाचा? मुझसे कोई गलती हो गयी क्या?"
शीतल इतनी मासूमियत से पूछी थी की वसीम के पास बोलने के लिए कुछ नहीं था। शीतल फिर बोली "पहली बार इस तरह मुँह में ली हूँ, मुझे पता नहीं था कि क्या करना है। कुछ गलत हो गया तो बता दीजिए। आप जिस तरह से बोलेंगे वैसे ही करुँगी। आइये।" वसीम अभी नज़रें नीचे किये हुए खड़ा था, अब दूसरी तरफ घूम गया और बोला "तुमने कोई गलती नहीं की है। लेकिन मैं ये गलत काम नहीं कर सकता। तुम किसी और की अमानत हो। बीवी हो किसी और की, और मैं दूसरे की बीवी के साथ छुपकर ये काम नहीं कर सकता। अभी तक जितना हो गया, उसके लिए मुझे माफ़ कर दो। अब आगे से कुछ भी नहीं होगा। तुम चली जाओ यहाँ से।"
शीतल चिड़चिड़ा गयी। फिर से वसीम अपने उसी राग में वापस पहुँच गया था। वो तो गैर मर्द से चुदवाने तक के लिए तैयार हो गयी थी और वसीम था कि पता नहीं किस मिट्टी का था कि नंगी शीतल जब उसका लण्ड चूस रही थी तब उससे अलग हो जा रहा था। शीतल का बदन पूरी तरह गर्म था, उसकी चुत पूरी गीली थी और वसीम जब चाहता तब उसकी इस गीली चुत में अपना लण्ड डाल सकता था।
शीतल को बहुत गुस्सा आ रहा था। अगर इस तरह कभी विकास करता तो पता नहीं शीतल उसके साथ क्या करती। लेकिन वसीम पर वो अपना गुस्सा नहीं दिखा सकती थी। वसीम तो सही ही कर रहा था, भले शीतल को अभी वो गलत लग रहा था।
शीतल उसी तरह बिस्तर से उतरी वसीम की तरफ बढ़ने लगी, लेकिन वसीम ने उसे हाथ के इशारे से रोक दिया। वो शीतल की तरफ देख भी नहीं रहा था। शीतल नंगी ही थी और उसे बहुत बुरा सा लग रहा था, लेकिन उसकी नज़र में ये वसीम की महानता थी की इतना कुछ होने के बाद भी वो अब इससे आगे नहीं बढ़ना चाहता और जो कुछ भी हुआ उसे अनचाहा भूल समझ कर खत्म करना चाहता है।
शीतल बोली “आप कुछ गलत नहीं कर रहे वासिम चाचा. मैं खुद आई हूँ आपके पास. आपके बदन में सटी, मैं खुद अपने कपड़े उतारी हूँ. आपने कुछ भी गलत नहीं किया है. मैं किसी और की बीवी हूँ तो क्या हुआ, आपने तो कुछ नहीं किया मेरे साथ. जो भी कर रही हूँ वो मैं कर रही हूँ.” शीतल बोल तो दी थी और सारी गलती खुद पे ले ली थी. लेकिन बोलने के बाद उसे एहसास हो रहा था की इस तरह मैं बता रही हूँ की मैं चरित्रहीन और गिरी हुई औरत हूँ. लेकिन वो सोच कर आई थी की कुछ भी हो जाये, वसीम को उसकी नज़रों में गिरने नहीं देना है, उसे शर्मिंदा नहीं होने देना है. तो फिर अब तो खुद को ही ख़राब बोलना ही था.
वैसे ये ऐसा जवाब था की वसीम को अब चुप हो जाना था और शीतल के बदन की प्यास को बुझा देना था. लेकिन वसीम को साधारण इंसान वाली चाल नहीं चल रहा था. शीतल तो उसके सामने नंगी खड़ी थी और उससे चुदवाने के लिए तड़प रही थी. लेकिन उसे शीतल को अभी नहीं चोदना था. इस तरह नहीं चोदना था. अभी चोद देने का मतलब था की फिर छिपछिपा कर चुदाई का खेल चल पड़ता, जो वसीम नहीं चाहता था. वसीम शीतल को अपनी रखैल, अपनी पालतू कुतिया बनाना चाहता था, और इसके लिए जरूरी था की शीतल के जिस्म की प्यास अधूरी रहे.
“तुम कुछ भी कहो लेकिन ये बात तुम भी जानती हो की ये गुनाह है. तुम अपने पति से छिप कर किसी गैर मर्द के सामने नंगी हो, तो ये गुनाह ही है. मैं किसी और की पत्नी के साथ जिस्मानी ताल्लुकात बना रहा हूँ, तो ये गुनाह ही है. इसलिए मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो और जाओ. अपने कपड़े पहन लो और जाओ शीतल, मुझे माफ कर देना जो कुछ भी मैंने तुम्हारे साथ किया, और हो सके तो इस वाकये को भूल जाना. ये मेरी गलती थी की तुम्हारे पैंटी ब्रा को सामने देखकर मैं फिसल गया था और मुझे लगा की इसमें कोई नुकसान नहीं है, मुझे कोई देख नहीं रहा, किसी को कभी पता नहीं चलेगा और इसलिए तुम्हे इमेजिन करके मैंने उसपे अपना वीर्य भी गिरा दिया. और फिर एक बार के बाद मैं कभी भी खुद को रोक नहीं पाया. ये सच है की इस तरह मुझे हल्का लगता था, लेकिन मुझे खुद को ऐसा करने से भी रोकना चाहिए था. इसी की वजह से बात इतनी आगे बढ़ गयी. खैर, जो हो चूका है, उसपे तो मेरा कोई जोर नहीं, लेकिन मैं तुम्हे इतना यकीन जरूर दिलाता हूँ की आगे से ऐसा कुछ भी नहीं होगा.”
शीतल को समझ नहीं आ रहा था की क्या बोले. वो वसीम के कमरे में नंगी चुदवाने के लिए खड़ी थी, लेकिन वसीम उसे जाने को कह रहा था. शीतल बोली “किसी जवान औरत को इस हाल में लाकर उसे प्यासी छोड़ देना भी गुनाह है वसीम चाचा.” वसीम बोला “मुझसे गलती हुई. मुझे माफ़ कर दो. इस गुनाह की माफ़ी मिल सकती है, लेकिन इस गुनाह को नहीं करने के लिए जो गुनाह होगा, उसकी माफ़ी कहीं नहीं होगी, कोई उसे माफ़ नहीं करेगा.”
शीतल का कोई हथियार वसीम पर काम नहीं कर रहा था. अब इससे ज्यादा वो क्या कर सकती थी. वो समझ रही थी की वसीम के नज़र में ये गलत है, ये पाप है. उसने खुद पर किसी तरह काबू कर लिया है, लेकिन अब वो और तड़पेगा. इतना कुछ कर लेने के बाद वो मुझे बिना चोदे यहाँ से भेज देगा लेकिन फिर पागल हो जायेगा. शीतल फिर कुछ बोलने जा रही थी वसीम ने उसे रोक दिया. शीतल जैसी सुंदरी पुरे समर्पण के साथ नंगी खड़ी थी, लेकिन वसीम उसके समर्पण को ठुकरा रहा था. शीतल की नज़रों में वसीम की महानता बढती ही जा रही थी.
शीतल अपनी साड़ी उठाती हुई बोली “ठीक है, आप यही चाहते हैं तो मैं चली जाती हूँ. लेकिन सिर्फ मेरे अभी यहाँ से चले जाने से काम नहीं बनेगा. मुझे आपकी जिंदगी से ही दूर जाना होगा. इस घर से दूर जाना होगा. हमलोग आज ही इस घर को खाली करके चले जायेंगे. भले ही हमें रोड पर रहना पड़े, लेकिन मैं यहाँ से चली जाउंगी. तभी शायद आपकी परेशानी कम होगी.” शीतल अपने कपड़े उठाती जा रही थी और बोलती जा रही थी. फिर वो वसीम के सामने खड़ी हुई और बोली “लेकिन मैं फिर कहती हूँ की इसमें आपकी या मेरी कोई गलती नहीं है.”
वसीम कुछ नहीं बोला. वो इया तरह खड़ा था जैसे अपने फैसले पर अडिग हो. शीतल अपने सारे कपड़ों को फिर से बिस्तर पर फेंक दी और बोली “जाने से पहले एक चीज़ मांग सकती हूँ आपसे?” वसीम ने हाँ में सर हिलाया तो शीतल बोली “आपने मेरे साथ इतना कुछ किया, तो कम से कम अपना वीर्य तो मेरे सामने निकाल लीजिये. नहीं तो मुझे लगेगा की मेरा मेरा कुछ आपके पास बाँकी रह गया.” अब वसीम के पास बोलने के लिए कुछ नहीं था. शीतल को अचानक अपनी इस बात से लगा की गेंद उसके पाले में आ सकती है.
वसीम कुछ नहीं बोला. वो सोच नहीं पा रहा था की हाँ या ना क्या बोले. शीतल उसकी तरफ आगे बढ़ी तो वसीम ने इशारे से उसे रोक दिया. शीतल फिर से जिद को मजबूत करते हुए बोली “जब तक आप अपना वीर्य नहीं निकाल लेते, तब तक न तो मैं अपने कपड़े पहनूँगी और न ही यहाँ से जाऊँगी.” बोलती हुई शीतल बिस्तर पर बैठ गयी. वसीम भी समझ गया की यहाँ वो शीतल को रोक नहीं सकता और इसमें कुछ खास नुकसान भी नहीं था उसके प्लान को.
वसीम ने लुंगी किनारे किया और लंड को सहलाने लगा. अभी लंड में कोई जान नहीं था और वो मुर्दे की तरह लटका हुआ था. शीतल खड़ी हो गयी और बोली “प्लीज़ मुझे करने दीजिये. आपने कई बार मेरे नाम से मेरे पैंटी और ब्रा पर अपना वीर्य गिराया है, तो क्या मेरा हक नहीं की एक बार मैं भी उस वीर्य को बाहर निकालूँ. वसीम कुछ बोलता उससे पहले ही शीतल “प्लीज़ मुझे मना मत करिए.” बोलती हुई शीतल वसीम के करीब आ गयी और उसकी लुंगी को खोल कर नीचे गिरा दी और लंड को हाथ में लेकर सहलाने लगी.
शीतल का हाथ लगते ही मुर्दे में जान आ गयी और लंड करवट बदल कर टाइट होने लगा. शीतल के पास ये आखिरी मौका था की शायद वसीम खुद पर से अपना नियंत्रण खो दे, उसके जज्बात उबलने लगे और वो शीतल के जिस्म में डूब जाए. शीतल वसीम के जिस्म में अपना जिस्म रगड़ती हुई नीचे बैठ गयी और लंड को सहलाती हुई चूसने लगी. शीतल अपनी चुच्ची वसीम के जाँघ पर रगड़ रही थी. वो लंड को पूरी तन्मयता के साथ चूस रही थी. जितना मज़ा वो वसीम को देने की कोशिश कर रही थी, वसीम को उससे ज्यादा मज़ा आ रहा था. एक कम उम्र की बेहद ख़ूबसूरत, नयी नयी शादीशुदा औरत उसके लंड को अपने मुँह में पूरा भरकर चूस रही थी.
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वसीम का मन हुआ की शीतल को बिस्तर पर ले जाकर चोद ही दे, लेकिन बड़ी मुश्किल से वो खुद को सम्हाल रहा था. उसके लंड ने वीर्य गिराने की तैयारी कर ली और वसीम ने भी वीर्य गिरा देने का सोच लिया. वसीम का वीर्य सीधा शीतल के मुँह और चेहरे पर गिरता, लेकिन वसीम ने शीतल को इस सुख से वंचित रखना चाहता था. उसने शीतल को खुद से अलग किया और थोड़ा किनारे होकर ज़मीन पर वीर्य गिरा दिया. शीतल वीर्य की तरफ हाथ बढ़ाई की वीर्य उसके मुँह में नहीं तो कम से कम हाथ पर तो गिरे, लेकिन वसीम ने उसे रोक दिया और वीर्य को ज़मीन पर गिरा दिया. वो तेज़ साँस ले रहा था.
शीतल नीचे ही बैठी हुई थी. वो घुटने के बल चलती हुई वीर्य तक पहुँची और उसमे अपने मंगलसूत्र को अच्छे से भिगोने लगी. वसीम हाँफता हुआ बिस्तर पर जा बैठा था और अपनी रंडी की हरक़तों को देख रहा था. जब शीतल का मंगलसूत्र दोनों तरफ से अच्छे से वीर्य में लिपट गया तो वो वीर्य को अंगूठे से उठाई और अपनी मांग में लगाने लगी. वो कई बार ऐसा की जिससे उसकी मांग भीग गयी थी. अपने मांग में वीर्य भरते हुए वो वसीम को देख रही थी जैसे आँखों से कह रही हो की ‘देखिये, आपकी रंडी बनने से आप मुझे रोक नहीं सकते.’ फिर वो अपनी बिंदी पर भी वीर्य लगा ली.
शीतल वसीम की तरफ देखते हुए गर्व से बोली “देख लीजिये वसीम चाचा, ये सब मेरी सुहागन होने की निशानियाँ हैं जो अब आपके वीर्य से सनी हुई है. मेरी मांग में आपका वीर्य भरा हुआ है, मैं आपके वीर्य में डूबी हुई मंगलसूत्र पहनी हूँ. सुबह जब आपने बाथरूम के सामने अपना वीर्य गिराया था, तब गलती से मेरा मंगलसूत्र उसमे लग गया था, लेकिन अभी मैं जान बुझकर ऐसा की हूँ. अब आप भी मेरे पति हैं. अब आप मुझे जो भी समझिये, लेकिन अब मैं आपको नहीं छोड़ सकती. अब मैं आपको तड़पने नहीं दूँगी.”
वसीम कुछ नहीं बोल रहा था. हर तरह से तो उसी की जीत हो रही थी. शीतल खड़ी हो गयी और साड़ी को दुपट्टे की तरह अपने शरीर पर किसी तरह लपेटी और बाँकी कपड़े अपने हाथ में लेकर उसी तरह बाहर निकल गयी और भागती हुई सीढियों से नीचे उतर कर अपने घर में आ गयी. शीतल की जो भी हालत हुई हो, लेकिन वसीम की जान निकल गयी. अगर कोई भी शीतल को इस तरह उसके कमरे से निकलता देख लेता तो पुरे मोहल्ले में वर्षों की बनायीं हुई उसकी इज्ज़त पल भर में उतर जाती.
शीतल दरवाज़ा खुल्ला ही रहने दी और सारे कपड़ों को कुर्सी पे फेंक दी और साड़ी को अपने बदन से अलग कर कुर्सी पर रख दी और नंगी हो गयी. वो सोफे पर ही निढाल बैठ रही. अभी भी उसे उम्मीद थी की वसीम आएगा और उसके जिस्म से लिपट जायेगा।