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Romance Three Idiot's

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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Three Idiot's
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The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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Prologue
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तीन ऐसे नमूनों की कहानी जिनका खुद इनके अलावा इस दुनिया में कोई भी अपना नहीं था। क़रीब पन्द्रह साल की उम्र में तीनों के माता पिता स्वर्ग सिधार गए थे। तब से ये तीनों दुनिया की ठोकरों के सहारे ही बड़े हुए। तीनों में से दो तो स्कूल का मुँह देख चुके थे मगर जगन पूरी तरह से अनपढ़ था। ये अलग बात है कि वो बाकी दोनों से उम्र में दो साल बड़ा था। जहां संपत पाँचवीं पास था तो वहीं मोहन पाँचवीं फेल। संपत को अपने पाँचवीं पास होने का बड़ा ही गर्व था और वो खुद को बाकी दोनों से होशियार और बुद्धिमान समझता था जबकि मोहन हमेशा उसके पांचवी पास होने की वजह से उससे चिढ़ता था और हमेशा उसकी होशियारी और बुद्धिमानी पर सवाल खड़ा करता रहता था। दोनों आपस में झगड़ भी पड़ते थे जिस पर जगन ही बीच बचाव करता था।

ऊपर वाले ने तीनों के सिर से माता पिता का साया तो छीना ही लेकिन सबसे बड़ी कमी ये भी कर दी थी कि तीनों का ही दिमाग़ दुनिया और दुनिया वालों के हिसाब से नहीं चलता था। कम से कम शुरुआत में तो ऐसा ही था मगर बढ़ती उम्र के साथ जब दुनिया की ठोकरों में आए तो दुनियादारी की थोड़ी बहुत समझ भी आई। ये अलग बात है कि ये समझ आम ब्यक्तियों के मुकाबले कम ही थी।

तीनों का आपस में चाहे जितना ही झगड़ा हो जाए लेकिन तीनों एक दूसरे के बिना रहते भी नहीं थे। तीनों की हरकतें और उनका बुद्धि से हीन शो कराने की वजह से कोई इनसे दोस्ती नहीं करता था। बड़ी विचित्र बात थी कि इतनी खामियों के बाद भी तीनों कभी कभी ऐसे काम भी कर गुज़रते थे जिसके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था। बड़े अज़ीब किस्म के थे तीनों, क्योंकि इनके अपने जीवन का कोई ख़ास उद्देश्य ही नहीं था। क्या सही है और क्या ग़लत इससे इन्हें कोई मतलब नहीं था। सब कुछ इनके मूड पर ही निर्भर करता था। जो मन में आता था कर ड़ालते थे, फिर चाहे भले ही उसके नतीजे इनके लिए हानिकारक ही क्यों न हों।

अपनी बीस साल की उम्र में ये तीनों क‌ई शहरों में अपने ठिकाने बदल चुके थे और हर जगह अपनी छाप छोड़ चुके थे। अपनी जीविका चलाने के लिए कहीं नौकरी करना इन्हें पसंद ही नहीं था इस लिए पेट भरने के लिए ज़्यादातर ये तीनों नंबर दो के काम करते थे। यूं तो कभी पुलिस के हाथों पकड़े नहीं गए लेकिन अगर किसी वजह से किसी के द्वारा पकड़े भी गए तो इन लोगों ने अपनी हरकतों से ऐसा ज़ाहिर किया जैसे ये दुनिया के कितने बड़े मासूम हैं और मज़े की बात ये है कि लोगों ने भोला और नादान समझ कर इन्हें छोड़ भी दिया।

कहते हैं ऊपर वाला सबको देखता है और हर इंसान के लिए कुछ न कुछ सोचे हुए होता है जिसके चलते इंसान अपने जीवन पथ पर आगे बढ़ता रहता है। बहरहाल ये कहानी इन तीनों नमूनों के इर्द गिर्द ही घूमती है। हर मुसीबत से बच निकलने वाले ये नमूने एक दिन एक ऐसी मुसीबत में फंस गए जहां से निकलना इनके लिए बेहद ही मुश्किल हो गया था और फिर इनके साथ क्या हुआ....ये कहानी में पता चलेगा।
 
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Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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:congrats:for another new story Shubham bhai.

ये तीन दोस्तों के शायद बेवकूफी और उनके जरायम के पेशे मे उतरने की कहानी है।
तीनो के नाम पुराने जमाने के नाम जैसा लगा। देखते है ये पुराने नाम वाले थ्री इडियट्स नये जमाने के क्राइम से कैसे एडजस्टमेन्ट कर पाते है !


रोमांस प्रीफिक्स है स्टोरी का। यहां रीडर्स तो और भी ज्यादा कम मिलेंगे । फिर क्या करेंगे ? क्या तब भी इसे लिखना चाहेंगे या यह स्टोरी ठंडे बस्ते मे चली जाएगी ? :D
 

Ajju Landwalia

Well-Known Member
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Prologue
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तीन ऐसे नमूनों की कहानी जिनका खुद इनके अलावा इस दुनिया में कोई भी अपना नहीं था। क़रीब पन्द्रह साल की उम्र में तीनों के माता पिता स्वर्ग सिधार गए थे। तब से ये तीनों दुनिया की ठोकरों के सहारे ही बड़े हुए। तीनों में से दो तो स्कूल का मुँह देख चुके थे मगर जगन पूरी तरह से अनपढ़ था। ये अलग बात है कि वो बाकी दोनों से उम्र में दो साल बड़ा था। जहां संपत पाँचवीं पास था तो वहीं मोहन पाँचवीं फेल। संपत को अपने पाँचवीं पास होने का बड़ा ही गर्व था और वो खुद को बाकी दोनों से होशियार और बुद्धिमान समझता था जबकि मोहन हमेशा उसके पांचवी पास होने की वजह से उससे चिढ़ता था और हमेशा उसकी होशियारी और बुद्धिमानी पर सवाल खड़ा करता रहता था। दोनों आपस में झगड़ भी पड़ते थे जिस पर जगन ही बीच बचाव करता था।

ऊपर वाले ने तीनों के सिर से माता पिता का साया तो छीना ही लेकिन सबसे बड़ी कमी ये भी कर दी थी कि तीनों का ही दिमाग़ दुनिया और दुनिया वालों के हिसाब से नहीं चलता था। कम से कम शुरुआत में तो ऐसा ही था मगर बढ़ती उम्र के साथ जब दुनिया की ठोकरों में आए तो दुनियादारी की थोड़ी बहुत समझ भी आई। ये अलग बात है कि ये समझ आम ब्यक्तियों के मुकाबले कम ही थी।

तीनों का आपस में चाहे जितना ही झगड़ा हो जाए लेकिन तीनों एक दूसरे के बिना रहते भी नहीं थे। तीनों की हरकतें और उनका बुद्धि से हीन शो कराने की वजह से कोई इनसे दोस्ती नहीं करता था। बड़ी विचित्र बात थी कि इतनी खामियों के बाद भी तीनों कभी कभी ऐसे काम भी कर गुज़रते थे जिसके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था। बड़े अज़ीब किस्म के थे तीनों, क्योंकि इनके अपने जीवन का कोई ख़ास उद्देश्य ही नहीं था। क्या सही है और क्या ग़लत इससे इन्हें कोई मतलब नहीं था। सब कुछ इनके मूड पर ही निर्भर करता था। जो मन में आता था कर ड़ालते थे, फिर चाहे भले ही उसके नतीजे इनके लिए हानिकारक ही क्यों न हों।

अपनी बीस साल की उम्र में ये तीनों क‌ई शहरों में अपने ठिकाने बदल चुके थे और हर जगह अपनी छाप छोड़ चुके थे। अपनी जीविका चलाने के लिए कहीं नौकरी करना इन्हें पसंद ही नहीं था इस लिए पेट भरने के लिए ज़्यादातर ये तीनों नंबर दो के काम करते थे। यूं तो कभी पुलिस के हाथों पकड़े नहीं गए लेकिन अगर किसी वजह से किसी के द्वारा पकड़े भी गए तो इन लोगों ने अपनी हरकतों से ऐसा ज़ाहिर किया जैसे ये दुनिया के कितने बड़े मासूम हैं और मज़े की बात ये है कि लोगों ने भोला और नादान समझ कर इन्हें छोड़ भी दिया।


कहते हैं ऊपर वाला सबको देखता है और हर इंसान के लिए कुछ न कुछ सोचे हुए होता है जिसके चलते इंसान अपने जीवन पथ पर आगे बढ़ता रहता है। बहरहाल ये कहानी इन तीनों नमूनों के इर्द गिर्द ही घूमती है। हर मुसीबत से बच निकलने वाले ये नमूने एक दिन एक ऐसी मुसीबत में फंस गए जहां से निकलना इनके लिए बेहद ही मुश्किल हो गया था और फिर इनके साथ क्या हुआ....ये कहानी में पता चलेगा।

Congratulations The_InnoCent Shubham Bhai

Ek nayi story ek naye plot ke sath............bahut hi majedar hone wali he ye story

Keep posting Bhai
 

parkas

Well-Known Member
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Prologue
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तीन ऐसे नमूनों की कहानी जिनका खुद इनके अलावा इस दुनिया में कोई भी अपना नहीं था। क़रीब पन्द्रह साल की उम्र में तीनों के माता पिता स्वर्ग सिधार गए थे। तब से ये तीनों दुनिया की ठोकरों के सहारे ही बड़े हुए। तीनों में से दो तो स्कूल का मुँह देख चुके थे मगर जगन पूरी तरह से अनपढ़ था। ये अलग बात है कि वो बाकी दोनों से उम्र में दो साल बड़ा था। जहां संपत पाँचवीं पास था तो वहीं मोहन पाँचवीं फेल। संपत को अपने पाँचवीं पास होने का बड़ा ही गर्व था और वो खुद को बाकी दोनों से होशियार और बुद्धिमान समझता था जबकि मोहन हमेशा उसके पांचवी पास होने की वजह से उससे चिढ़ता था और हमेशा उसकी होशियारी और बुद्धिमानी पर सवाल खड़ा करता रहता था। दोनों आपस में झगड़ भी पड़ते थे जिस पर जगन ही बीच बचाव करता था।

ऊपर वाले ने तीनों के सिर से माता पिता का साया तो छीना ही लेकिन सबसे बड़ी कमी ये भी कर दी थी कि तीनों का ही दिमाग़ दुनिया और दुनिया वालों के हिसाब से नहीं चलता था। कम से कम शुरुआत में तो ऐसा ही था मगर बढ़ती उम्र के साथ जब दुनिया की ठोकरों में आए तो दुनियादारी की थोड़ी बहुत समझ भी आई। ये अलग बात है कि ये समझ आम ब्यक्तियों के मुकाबले कम ही थी।

तीनों का आपस में चाहे जितना ही झगड़ा हो जाए लेकिन तीनों एक दूसरे के बिना रहते भी नहीं थे। तीनों की हरकतें और उनका बुद्धि से हीन शो कराने की वजह से कोई इनसे दोस्ती नहीं करता था। बड़ी विचित्र बात थी कि इतनी खामियों के बाद भी तीनों कभी कभी ऐसे काम भी कर गुज़रते थे जिसके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था। बड़े अज़ीब किस्म के थे तीनों, क्योंकि इनके अपने जीवन का कोई ख़ास उद्देश्य ही नहीं था। क्या सही है और क्या ग़लत इससे इन्हें कोई मतलब नहीं था। सब कुछ इनके मूड पर ही निर्भर करता था। जो मन में आता था कर ड़ालते थे, फिर चाहे भले ही उसके नतीजे इनके लिए हानिकारक ही क्यों न हों।

अपनी बीस साल की उम्र में ये तीनों क‌ई शहरों में अपने ठिकाने बदल चुके थे और हर जगह अपनी छाप छोड़ चुके थे। अपनी जीविका चलाने के लिए कहीं नौकरी करना इन्हें पसंद ही नहीं था इस लिए पेट भरने के लिए ज़्यादातर ये तीनों नंबर दो के काम करते थे। यूं तो कभी पुलिस के हाथों पकड़े नहीं गए लेकिन अगर किसी वजह से किसी के द्वारा पकड़े भी गए तो इन लोगों ने अपनी हरकतों से ऐसा ज़ाहिर किया जैसे ये दुनिया के कितने बड़े मासूम हैं और मज़े की बात ये है कि लोगों ने भोला और नादान समझ कर इन्हें छोड़ भी दिया।


कहते हैं ऊपर वाला सबको देखता है और हर इंसान के लिए कुछ न कुछ सोचे हुए होता है जिसके चलते इंसान अपने जीवन पथ पर आगे बढ़ता रहता है। बहरहाल ये कहानी इन तीनों नमूनों के इर्द गिर्द ही घूमती है। हर मुसीबत से बच निकलने वाले ये नमूने एक दिन एक ऐसी मुसीबत में फंस गए जहां से निकलना इनके लिए बेहद ही मुश्किल हो गया था और फिर इनके साथ क्या हुआ....ये कहानी में पता चलेगा।
Nice and beautiful starting of the story....
 

King rider00155

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Prologue
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तीन ऐसे नमूनों की कहानी जिनका खुद इनके अलावा इस दुनिया में कोई भी अपना नहीं था। क़रीब पन्द्रह साल की उम्र में तीनों के माता पिता स्वर्ग सिधार गए थे। तब से ये तीनों दुनिया की ठोकरों के सहारे ही बड़े हुए। तीनों में से दो तो स्कूल का मुँह देख चुके थे मगर जगन पूरी तरह से अनपढ़ था। ये अलग बात है कि वो बाकी दोनों से उम्र में दो साल बड़ा था। जहां संपत पाँचवीं पास था तो वहीं मोहन पाँचवीं फेल। संपत को अपने पाँचवीं पास होने का बड़ा ही गर्व था और वो खुद को बाकी दोनों से होशियार और बुद्धिमान समझता था जबकि मोहन हमेशा उसके पांचवी पास होने की वजह से उससे चिढ़ता था और हमेशा उसकी होशियारी और बुद्धिमानी पर सवाल खड़ा करता रहता था। दोनों आपस में झगड़ भी पड़ते थे जिस पर जगन ही बीच बचाव करता था।

ऊपर वाले ने तीनों के सिर से माता पिता का साया तो छीना ही लेकिन सबसे बड़ी कमी ये भी कर दी थी कि तीनों का ही दिमाग़ दुनिया और दुनिया वालों के हिसाब से नहीं चलता था। कम से कम शुरुआत में तो ऐसा ही था मगर बढ़ती उम्र के साथ जब दुनिया की ठोकरों में आए तो दुनियादारी की थोड़ी बहुत समझ भी आई। ये अलग बात है कि ये समझ आम ब्यक्तियों के मुकाबले कम ही थी।

तीनों का आपस में चाहे जितना ही झगड़ा हो जाए लेकिन तीनों एक दूसरे के बिना रहते भी नहीं थे। तीनों की हरकतें और उनका बुद्धि से हीन शो कराने की वजह से कोई इनसे दोस्ती नहीं करता था। बड़ी विचित्र बात थी कि इतनी खामियों के बाद भी तीनों कभी कभी ऐसे काम भी कर गुज़रते थे जिसके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था। बड़े अज़ीब किस्म के थे तीनों, क्योंकि इनके अपने जीवन का कोई ख़ास उद्देश्य ही नहीं था। क्या सही है और क्या ग़लत इससे इन्हें कोई मतलब नहीं था। सब कुछ इनके मूड पर ही निर्भर करता था। जो मन में आता था कर ड़ालते थे, फिर चाहे भले ही उसके नतीजे इनके लिए हानिकारक ही क्यों न हों।

अपनी बीस साल की उम्र में ये तीनों क‌ई शहरों में अपने ठिकाने बदल चुके थे और हर जगह अपनी छाप छोड़ चुके थे। अपनी जीविका चलाने के लिए कहीं नौकरी करना इन्हें पसंद ही नहीं था इस लिए पेट भरने के लिए ज़्यादातर ये तीनों नंबर दो के काम करते थे। यूं तो कभी पुलिस के हाथों पकड़े नहीं गए लेकिन अगर किसी वजह से किसी के द्वारा पकड़े भी गए तो इन लोगों ने अपनी हरकतों से ऐसा ज़ाहिर किया जैसे ये दुनिया के कितने बड़े मासूम हैं और मज़े की बात ये है कि लोगों ने भोला और नादान समझ कर इन्हें छोड़ भी दिया।


कहते हैं ऊपर वाला सबको देखता है और हर इंसान के लिए कुछ न कुछ सोचे हुए होता है जिसके चलते इंसान अपने जीवन पथ पर आगे बढ़ता रहता है। बहरहाल ये कहानी इन तीनों नमूनों के इर्द गिर्द ही घूमती है। हर मुसीबत से बच निकलने वाले ये नमूने एक दिन एक ऐसी मुसीबत में फंस गए जहां से निकलना इनके लिए बेहद ही मुश्किल हो गया था और फिर इनके साथ क्या हुआ....ये कहानी में पता चलेगा।
 
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