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Thriller "विश्वरूप"

Kala Nag

Mr. X
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Kala Nag

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युद्ध में सबकी लक्ष जीत होगी
पर युद्ध में हिस्सा लेने की अपनी वजह होगी
दुश्मन कभी ख़ुश फहमी ना पाल ले
उससे टकराने की किसकी हिम्मत ना होगी
हर कोई अपने कर्म से बंधा है
फिरभी हर कोई भरम में अंधा है
जो नियति है वह हो कर ही रहेगी
नीयत ही उसकी नियति तय करेगी



कल आएगा 👉दसवां अपडेट
 
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Kala Nag

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ओ गोरे गोरे बांके छोरे कभी मेरे गली आया करो
 
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Kala Nag

Mr. X
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:congrats: for new story....

New story ke liye apko subhkamnaye

Congrats brother for new story....
Story bdiya hogi yhi aasha hai ..

Many many heartiest congratulations on new thread....
Please can you write this story in Hinglish coz my Hindi is not good

a big congratulations mere bhai..ab tak aap hamare prashanshak the,ab hum aapke rahenge..

shuruat ki jadh gehri dikhayi hai aapne,aage ke safar ko jaanane ke liye bohot utsuk hun mai...

ek baaf phirse,badhayi ho...
ओ गोरे गोरे ओ बांके छोरे कभी मेरे गली आया करो
 
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Jaguaar

Prime
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👉नौवां अपडेट
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कैन्टीन में आते ही नंदिनी ने देखा, एक टेबल पर उसकी छटी गैंग के सभी दोस्त उसीका इंतजार कर रहे हैं l नंदिनी सबको हाथ हिला कर हाइ करती है l बदले में सभी हाथ हिला कर उसको जवाब देते हैं l
नंदिनी गोलू से - गोलू...
गोलू - जी दीदी...
जल्दी से तीन बाई छह ला...
गोलू - जी ठीक है...
टेबल पर बैठते ही नंदिनी - क्या हो रहा है... दोस्तों...
बनानी - इंतजार हो रही थी जिनकी....
वह आए यहाँ..

दे दिए ऑर्डर तीन बाई छह वाली चाय की......
लेने के लिए गरमा गरम चाय की चुस्की......
तबसुम- वाह.... वाह.... क्या बात है इरशाद इरशाद...
सब हंस देते हैं और एक-दूसरे को हाइ फाई करते हैं इतने में गोलू चाय लाकर टेबल पर रख देता है l सब क्लास की इधर उधर बातेँ करते हुए चाय खतम करते हैं l तब दीप्ति काउन्टर पर जा कर पैसे भर देती है और वापस टेबल पर आ जाती है l
बनानी कहती है - अरे क्लास बंक करने का इरादा है क्या...
इतिश्री - वैसे आईडीया बुरा नहीं है....
दीप्ति - तो अभी हम क्यूँ बैठे हुए हैं...
नंदिनी - नहीं क्लास का टाइम हो गया है.... चलो चलते हैं...
तबसुम - हाँ चलो... चलते हैं (सब उठने को होते हैं )
दीप्ति - (नंदिनी की हाथ को पकड़ कर) एक मिनिट.... तुम सब जाओ... नंदिनी से मेरा एक काम है... बस पांच मिनिट बाद हम तुम लोगों को जॉइन करेंगे....
भाश्वती - ऐ क्या चक्कर है तुम दोनों में...... कहीं तुम लोग लेसबो तो नहीं हो...
दीप्ति - क्या बोली कमीनी...
सब हंसने लगते हैं l
नंदिनी - अरे अरे.. ठीक है... अच्छा तुम लोग चलो... वैसे दीप्ति आज जान लेवा दिख रही है.... उसको अकेले में मुझसे क्या काम है... मुझे जान लेने तो दो....
इतिश्री - हाँ भई... इन लोगों को अकेले में काम है... हमारे सामने न हो पाएगा....
सब हंसने लगते हैं l दीप्ति अपना मुहँ बना लेती है l बनानी यह देख कर कहती है - चील दीप्ति चील.... अरे यार मज़ाक ही तो कर रहे हैं सब.... ओके फ्रेंडस... लेटस गो... दे विल जॉइन अस लेटर...
बनानी सबको ले कर चली जाती है l सबके जाते ही नंदिनी दीप्ति से
नंदिनी - हाँ तो मिस. दीप्ति मयी गिरी... कहिए हमसे क्या काम है... जो(धीमी आवाज़ में) सबके आगे नहीं कह सकीं....
दीप्ति - छी... तु भी....
नंदिनी - (हंसते हुए) हा हा हा... चील यार... अब बोल....
दीप्ति - अच्छा नंदिनी.... तूने गौर किया... अगले हफ्ते गुरुवार को बनानी की बर्थडे है....
नंदिनी - क्या... सच में... पर... तुझे कैसे मालूम हुआ...
दीप्ति - अरे यार (नंदिनी के गले में लटकी उसकी आइडी कार्ड दिखा कर) इससे.... हम सबके गले में ऐसी तख्ती लटकी हुई है... मेरी नजर उसके DOB पर पड़ गई.... इसलिए मैंने तुझे यहाँ पर रोक लीआ....
नंदिनी - अरे हाँ....(अपनी आइडी कार्ड को देखते हुए) हमारे आइडी कार्ड में डेट ऑफ बर्थ साफ लिखा है... और देख दो महीने बाद मेरा भी बर्थ डे है.... पर बनानी के बर्थ डे पर तेरा क्या कोई प्लान है...
दीप्ति - प्लान तो ग़ज़ब का है.... अगर तु साथ दे तो....
नंदिनी - ओ.... कोई सरप्राइज है क्या...
दीप्ति - बिल्कुल....
नंदिनी - ह्म्म्म्म तेरे खुराफाती दिमाग़ मे जरूर कुछ पक रही है...
चल उगल भी दे अभी...
दीप्ति - देख कल सन डे है.... क्यूँ ना हम सब सिवाय बनानी के.. डिऑन मॉल चले... वहाँ पर सब अपनी-अपनी कंट्रिब्युशन जोड़ कर उसके लिए गिफ्ट तैयार करें.... और गुरुवार को केमिकल लैब में प्रैक्टिकल के दौरान उसे गिफ्ट दे कर उसकी बर्थ डे सेलिब्रिट करें....
नंदिनी - वाव क्या आइडिया है... पर यार... एक प्रॉब्लम है...
दीप्ति - क्या....
नंदिनी - देख मेरी घर से.... मेरी एंट्री और एक्जिट फ़िक्स है.... सॉरी यार... तु मुझसे कुछ पैसे लेले... और किसी और को लेकर.... बनानी के लिए गिफ्ट पैक करा ले....

दीप्ति का मुहँ उतर जाता है, वह नंदिनी को देखती है, नंदिनी भी थोड़ी उदास दिखने लगी l दीप्ति और नंदिनी अब उठ कर क्लास की और निकालते हैं l फ़िर अचानक दीप्ति एक चुटकी बजाती है और चहक कर कहती है - आईडीआ...
नंदिनी उसे इशारे से पूछती है क्या हुआ
दीप्ति - अररे यार... अगर हम मॉल नहीं जा सकते तो ना सही... पर मॉल तो यहाँ आ सकती है ना....
नंदिनी - क्या मतलब..
दीप्ति - अरे यार... अपनी मोबाइल में.... क्यूँ ना हम ऑन लाइन शौपिंग से गिफ्ट मंगाये....
नंदिनी - पर वह गिफ्ट हमे कब मिलेगा और हम उसे कब देंगे....
दीप्ति - ऑए मैडम.... यह भुवनेश्वर है.... यहाँ आज ऑर्डर डालो... तो कल मिल जाता है...
नंदिनी भी खुश होते हुए
नंदिनी - अच्छा.... वाव... तब तो मजा ही आ जाएगा....
दीप्ति - तो एक काम करते हैं.... हम बुधवार को ऑर्डर करेंगे और हमे गुरुवार को मिल जायेगा... और हम बनानी को सरप्राइज करते हुए लैब में ही उसकी बर्थ डे सेलिब्रिट करेंगे....
नंदिनी - या.... आ.... हा.. आ
दीप्ति - है ना मज़ेदार प्लान....
नंदिनी - यार मजा आ गया... जानती है... मैं न पहली बार... किसी की बर्थडे मनाने वाली हूँ.... थैंक्स यार....
दीप्ति - ऐ... दोस्ती में नो थैंक्स...
नंदिनी - नो सॉरी....
दोनों हंसते हैं
दीप्ति - अच्छा सुन... मैं अपनी गैंग में सबको इंफॉर्म कर तैयार कर देती हूँ.... पर गिफ्ट तु मंगाना...
नंदिनी - क्यूँ... इसमें कोई प्रॉब्लम है क्या..
दीप्ति - अरे तेरे नाम से पार्सल आएगा तो प्रिन्सिपल भी चुप रहेगा... अगर हमारे किसी के नाम पर आया तो... क्लास लेना शुरू कर देगा......
नंदिनी - चल ठीक है... अच्छा एक बात बता... क्या ऑनलाइन में केक भी ऑर्डर किया जा सकता है...
दीप्ति - हाँ... अगर तेरा... यह आईडीआ है.. तो बुधवार को ही ऑर्डर कर देते हैं... गिफ्ट पार्सल और केक दोनों एक साथ पहुंचेंगे.... हम उसे बर्थ-डे सरप्राइज देंगे...
नंदिनी - वाव... दीप्ति वाव... तेरा ज़वाब नहीं... उम्म आह्
नंदिनी दीप्ति को चूम लेती है l
दीप्ति - अरे क्या कर रही है.... अभी अभी हमारी छटी गैंग वालों ने जो ताने मारे हैं... उसे कहीं सब सच ना मान लें
फिर दोनों जोर जोर से हंसते हुए अपनी क्लास की ओर चले जाते हैं

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कॉलिंग बेल की आवाज़ सुन कर प्रतिभा दरवाज़ा खोलती है तो देखती सामने वैदेही खड़ी है l
प्रतिभा - अरे वाह आज सुरज कहीं पश्चिम से तो नहीं निकला..... जरा हट तो मैं थोड़ा बाहर जाकर देख लूँ...
वैदेही - क्या मासी.... मैं इतने दिनों बाद आपसे मिलने आई... और आप हैं कि मुझसे... ठिठोली कर रहे हैं....
प्रतिभा - अरे चल चल... इतने सालों से मैं तुझे घर बुला रही थी... कभी आई है भला.... आज अचानक ऐसे टपकेगी.. तो मैं क्या सोचूंगी बोल...
वैदेही - अच्छा सॉरी...
प्रतिभा - ठीक है... ठीक है.. चल आ जा...
वैदेही - नहीं... पहले आप जरा... एक लोटा पानी लेकर आओ...
प्रतिभा उसे चकित हो कर रहती है
वैदेही - अरे मासी.. मुझे अपने पैर धोने हैं... और पैर बिना धोए... मैं भीतर नहीं जा सकती....
प्रतिभा - अरे इसकी कोई ज़रूरत नहीं है... चल आ जा...(वैदेही ऐसे ही खड़ी रहती है) अरे क्या हुआ...
वैदेही - नहीं मासी.... हम कभी बिना पैर धोए... घर के भीतर नहीं जाते हैं... प्लीज...
हमारे गांव के हर घर के बाहर एक कुंड होता है... जिससे हम पानी निकाल कर पैर धो कर ही किसीके घर में जाते हैं...
प्रतिभा - पर सहर मैं तो ऐसा नहीं होता है ना...
वैदेही - फिरभी...
प्रतिभा - अच्छा अच्छा रुक... कब से हम बहस कर रहे हैं.. वह भी बेवजह... मैं पानी लेकर आई रुक....
प्रतिभा अंदर जाकर बाल्टी भर पानी और एक मग लाकर वैदेही को देती है l वैदेही अपने दोनों पैरों को धो कर अंदर आने को होती है के उसे प्रतिभा रोक देती है l
प्रतिभा - रुक...(अब वैदेही उसे देखती है) यह ले टवेल... अपने पैरों को पोंछ कर आ...(वैदेही हंस कर टवेल लेकर पैर पोंछ कर अंदर आ जाती है)
दोनों ड्रॉइंग रूम में आकर बैठ जाते हैं l
प्रतिभा - पहली बार आई है... तुझे खिलाउंगी और फिर जाने दूंगी समझी... (वैदेही अपना सिर हिलाकर हामी देती है) अच्छा यह बता तु आज यहाँ कैसे...

वैदेही - वह सुपरिटेंडेंट साब जी के काम से आई थी... जैल गई तो पता चला कि.... वह रिटायर्मेंट ले रहे हैं.. तो मुझे मजबूरन यहाँ आना पड़ा...
प्रतिभा - हा हा हा.. देखा तुझे सेनापति जी ने आख़िर घर पर खिंच ले ही आए.... कितनी बार बुलाने पर भी नहीं आई थी.... याद है.... आख़िर सेनापति जी अपनी जिद पुरी कर ही लिए... हा हा हा...
वैदेही मुस्करा देती है और पूछती है - वैसे मासी... सुपरिटेंडेंट सर रिटायर्मेंट क्यूँ ले रहे हैं...
प्रतिभा - अरे उन पर तेरे भाई का जादू चल गया है.... अब डेढ़ महीने बाद प्रताप छूट जाएगा तो जैल में उनका मन नहीं लगेगा.... इसलिए वह VRS ले लिए...
वैदेही - ओ.. वैसे कहाँ हैं... दिखाई नहीं दे रहे हैं...
प्रतिभा - अरे अब कुछ..... ऑफिसीयल काम बाकी रह गया है... उसे निपटाने के लिए कहीं गए हुए हैं....
वैदेही सुन कर मुस्करा देती है और खामोश हो जाती है l
उसे खामोश देख कर प्रतिभा - क्या हुआ क्या सोचने लगी है...
वैदेही - सोच नहीं रही हूँ... बल्कि भगवान को धन्यवाद अर्पण कर रही हूँ....
प्रतिभा - भला वह क्यूँ....
वैदेही - विशु... जनम के बाद माँ की ममता से वंचित रहा.... फिर कुछ सालों बाद वह अपनी पिता के साये से वंचित हो गया.... मगर फिर भी भगवान ने भरी जवानी में उसे आपके रूप में माँ बाप लौटा दिए... इसलिए...
वह आपका सगा नहीं है... फ़िर भी कितना प्यार करते हैं.... उससे...
प्रतिभा - वह तेरा भी सगा नहीं है... फ़िर भी तु उसके लिए मरने मारने के लिए तैयार रहती है... पर एक बात बता... प्रताप मुझे माँ कहता है... तु उसकी दीदी है... तु मुझे माँ नहीं बुलाती...
वैदेही - हाँ वह मेरा सगा नहीं है... पर हम गांव से हैं... और गांव में बंधन घर में या चारदीवारी में सिमट कर नहीं रह जाता है.... मौसा, मौसी, भैया, दीदी, बहना, मामा मामी जैसे संबंध यूँ ही जुबानी नहीं होती निभाई भी जाते हैं.... क्यूंकि वह उस गांव की मिट्टी से जुड़े हुए होते हैं..... और आप हमारे गांव से भी तो नहीं हैं.... रही मेरी बात तो माँ बुलाना किसी की बेटी बनना मेरे लिए एक अभिशाप है... इसलिए नहीं बुलाती... पर विशुने मेरे लिए जो भी किया है... अगर भगवान मुझे मौका दे... तो भगवान से प्रार्थना करूंगी की वह मुझे विशु की बेटी बना कर दुनिया में भेजे... ताकि मैं उसकी कर्ज उतार सकूँ....
प्रतिभा वैदेही के चेहरे को एक टक देखे जा रही है l

वैदेही - एक ही तो मर्द था पुरे यश पुर में.... जब पहली बार मुझे क्षेत्रपाल के आदमियों ने मुझे उठाने आए थे.... तो मुझे बचाने के लिए भीड़ गया था उन दरिंदों से.... सिर्फ़ बारह साल का था तब वह.... एक आदमी का हाथ कुल्हाड़ी से काट दिया था... ऐसा था मेरा विशु.... (वैदेही अपनी आँखों में आंसू पोछते हुए) अच्छा... अब आप बताओ मासी... उस रिपोर्टर का कुछ पता चला...
प्रतिभा - हाँ... सेनापति जी कह रहे थे... उस रिपोर्टर और उसके परिवार को राजगड़ उठा लिया गया था.... शायद अब वे लोग जिवित ना हों...
वैदेही - ओह यह तो बुरा हुआ...
प्रतिभा - और हाँ... तु अब उस ऑफिस को मत जाना... वहाँ पर रिपोर्टर प्रवीण के बारे में कुछ अफवाहें उड़ाए गए हैं... ताकि उनके शिकार को फांस सके... समझी....
वैदेही कुछ देर ख़ामोश रहने के बाद - अच्छा मासी विशु में मुझे बचपन से ही छोटा भाई ही दिखता था... पर उसके अंदर आपने अपने बेटे को कैसे पाया...
प्रतिभा - तेरी कहानी अधुरी है.... पहले वह तो बता दे.....
वैदेही - ज़रूर बताऊंगी मासी... आज जब ज़िक्र छेड़ ही दिया है... तो अपनी बीती जरूर बताऊंगी... मगर पहले आप अपनी बताइए ना...
इतना सुन कर प्रतिभा अपनी जगह से उठ जाती है और एक गहरी सांस लेती है l फ़िर मुड़ कर वैदेही को देखती है और कहना शुरू करती है.....

प्रतिभा -हम तब कटक में रहा करते थे... मैं और सेनापति जी एक ही कॉलेज में पढ़ते थे... वह मेरे सीनियर थे... और मेरे पड़ोसी भी थे... मेरे पिता हाइकोर्ट में टाइप राइटर थे... और उनके पिता पुलिस में वायर लैस ऑफिसर थे...चूंकि हम पड़ोसी थे... तो जान पहचान थी ही और दोस्ती भी थी.... ऐसी हमारी अपनी जिंदगी चल रही थी... की एक दिन सेनापति जी के पिताजी का अचानक देहांत हो गया... तब उनकी माता जी ने कंपेंसेटरी ग्राउंड में नौकरी स्वीकार कर लिया था... क्यूँकी उनका लक्ष था कि उनका बेटा ज्यादा पढ़े और उनके पिता से भी बड़ी नौकरी करे l सेनापति जी अपनी माँ का मान रखा और ग्रेजुएशन के बाद पुलिस इंटरव्यू में सिलेक्ट हुए और ट्रेनिंग के अंगुल चले गए l एक दिन उनके माँ जी को बुखार चढ़ गया था और उस वक़्त वह ट्रेनिंग में थे तब चूंकि हम पड़ोसी थे तो उनको मैंने हस्पताल ले जाकर थोड़ी देखभाल किया और उनके ट्रेनिंग खत्म होने तक मैं अपने माता पिता के साथ साथ उनकी माँ जी का भी देखभाल करती थी.... एक दिन उनकी ट्रेनिंग खतम हुई और कोरापुट में पोस्टिंग हुई... कहाँ कटक और कहाँ कोरापुट.... माँ जी को चिंता सताने लगी थी... तब माँ जी ने सीधा हमारे घर आ कर मेरी और सेनापति जी की शादी की बात छेड़ दी.... इससे हम दोनों चौंक गए... हम अच्छे दोस्त तो थे पर शादी.... सेनापति जी को पता था मेरी अपनी कुछ इच्छायें थी... मैं खुद कुछ करना चाहती थी... मेरी इस भावनाओं को वह समझते थे इसलिए उन्होंने शादी का विरोध किया... पर माँ जी नहीं मानी... तो एक शर्त पर शादी हुई... उस वक़्त चूँकि मेरी ग्रेजुएशन खतम हो चुकी थी... तो उन्हों ने मुझे कोरापुट ले जाने के वजाए कटक में ही माजी के पास छोड़ देने की बात की .... पर सच्चाई यह थी के मुझे वह समय दे रहे थे... ताकि मैं कुछ कर सकूँ.... उनके सारे शर्त माजी और मेरे माता पिता मान गए.... फ़िर हमारी शादी हो गई...
शादी के बाद वह कोरापुट चले गए और मैं कटक में अपनी माता पिता के साथ साथ माँ जी का भी देखभाल करती रही और लॉ करती रही....
मैं डिग्री के बाद बार लाइसेन्स हासिल किया ही था कि हाईकोर्ट में पब्लिक प्रोसिक्यूटर के पोस्ट के लिए आवेदन निकला था... मैंने इंटरव्यू दिया तो PP की जॉब भी मिल गई....

जिंदगी अब खूबसूरत थी और मनचाहा भी थी.. क्यूंकि मुझे अब कटक से कहीं नहीं जाना था इसलिए उनकी स्पाउस सर्विस ग्राउण्ड में कटक के आसपास ही पोस्टिंग और ट्रांसफ़र होती रही.. ऐसे में मैं पेट से हुई... तब कटक मेडिकल कॉलेज में मेरे पिताजी के एक मित्र रेडियोलॉजीस्ट हुआ करते थे उन्होंने एक दिन चेक करके बताया कि मेरे पेट में जुड़वा बच्चे हैं... वह भी लड़के.... हमारे घर में खुशियां दुगनी हो गई थी... हमने तब निश्चय किया कि हम अपने बेटों का नाम अपने नाम से लेकर रखें.... यह बात हमने हमारे अपने बुजुर्गों को बताई.... तो उन्होंने ही एक का नाम प्रत्युष और एक का नाम प्रताप रखा... और एक दिन ऐसा भी आया जब हमरे घर में दो नन्हें नन्हें मेहमान आए.... अब हमारे जीवन में खुशियाँ पंख लगा कर उड़ रही थी... एक तरफ जीवन में नए मेहमान से घर में शोर हो रहा था और एक तरफ हमारे बुजुर्ग हमे एक एक कर छोड़ गए.... ऐसे में एक दिन उनके पारादीप ट्रांसफ़र की खबर मिली... मैंने भी बच्चों को लेकर कुछ दिन छुट्टी लेकर उनके साथ पारादीप चली गई .... नए क्वार्टर में उनकी सहूलियत का जायजा ले कर मुझे कटक वापस चले जाना था....... पर भाग्य को कुछ और ही मंजुर था.... ओड़िशा में पहली बार सुपर साइक्लोन आया... जिसका सेंटर पारादीप था... सेनापति जी को सरकारी फरमान था इसलिए मुझे घर पर छोड़ कर आसपास के लोगों को बचा कर सुरक्षित जगह पर पहुंचाने के लिए रेस्क्यू ऑपरेशन में चले गए... पर साइक्लोन हमारे जिंदगी में भी तूफ़ान ला खड़ा कर दिया था.... वह जब रेस्क्यू ऑपरेशन खतम कर पहुंचे... तब उन्होंने देखा कि क्वार्टर गिर चुका था... अपने स्टाफ के सहायता से मुझे और बच्चों को बचा कर हस्पताल ले गए.... पर उस परिस्थिति में कोई भी हस्पताल खाली नहीं था.... बिजली नहीं थी... पानी नहीं नहीं थी, दवा तक नहीं थी.... आस पास ऐसा लगता था जैसे सूखा पड़ा हुआ था...... उस वक़्त खाने पीने की बड़ी समस्या थी... हर तरफ हाहाकार था.... मुझमें दूध की समस्या निकली... ऐसे में हमारा प्रताप चल बसा बड़ी मुश्किल से प्रत्युष ही जिंदा रहा... पंद्रह दिन बाद सब धीरे धीरे जिंदगी नॉर्मल हो गई तो हम वापस कटक आ गए.... फ़िर हमारा सारा प्यार हमने प्रत्युष पर लुटा कर आगे बढ़ते रहे....
फिर हमारे जीवन में तुम्हारा विशु आया.... अदालती कार्यवाही से लेकर विशु के सजा तक तुम सब जानती हो....
फिर एक के बाद एक ना जाने जिंदगी में क्या से क्या अनहोनी होने लगी.... हमारे प्रत्युष हमे छोड़ चला गया.... मैं प्रत्युष की कानूनी लड़ाई हार चुकी थी..... इसलिए मैंने PP की जॉब से इस्तीफा दे दिया... हम पति पत्नी ही रह गए थे... और जिंदगी से ऊबने लगे थे कि तब सेनापति जी के ऊपर जैल में जानलेवा हमला हुआ था.... पर तेरे विशु ने उन पर खरोंच भी आने नहीं दी थी... पर खुद थोड़ा ज़ख्मी हो गया था.... मैं वैसे भी टुट चुकी थी... अगर सेनापति जी को कुछ हो गया होता तो मैं खत्म ही हो गई होती.... पर एकाम्रेश्वर लिंगराज जी को कुछ और ही मंजूर था.... सेनापति जी को बचाने के लिए धन्यबाद देने मैं हस्पताल मैं पहुंची तो देखा एक बिस्तर पर विशु ज़ख्मी हालत में लेता हुआ है..... मैं उसे पहचानने की कोशिश करने लगी.... उसे पहचानते ही मैं शर्म से अपने भीतर गड़ने लगी... यह तो वही है जिसे मैंने ही सजा दिलवाई थी... और इसने मेरे सुहाग की रक्षा की.... मैं अपने आप को कोश रही थी कि उस वक़्त विश्वा आँखे खोल कर मुझे देखने लगा...
मैं उसकी आँखों में देखने लगी तो पता नहीं मेरे सीने में कुछ हूक सी उठी..... वह मुझे हैरानी से टकटकी नजर से देख रहा था.... मेरी रो रो कर बुरा हाल था.... चेहरा काला पड़ गया था और हालत बिखरी हुई थी.... मैंने उसे पुछा क्या नाम है तुम्हारा.... उसने कहा विश्व प्रताप......

पर मुझे सिर्फ प्रताप ही सुनाई दिआ.... मैं खुद को रोक नहीं पाई और उसके चेहरे को अपने दोनों हाथों से लेकर उसके माथे को चूम लिया... उसे चूमते ही पता नहीं क्या हुआ मुझे मैं उसे अपने सीने से लगा कर रोने लगी... मेरे मुहँ से सिर्फ यही निकला - प्रताप मेरे बच्चे... अब मैं तुझे नहीं जाने दूंगी... मेरे बच्चे....
तब पास खड़े सेनापति जी मुझे झिंझोडते हुए - प्रतिभा होश में आओ....
पर मैं तो होश में आना ही नहीं चाहती थी..
तापस-माफ़ करना विश्वा... बेटे के ग़म में बदहवास हो गई है...
विश्वा - जी कोई बात नहीं...
मैं - नहीं नहीं यह मेरा प्रताप है... मुझे बर्षों बाद मिला है.... मुझे माफ़ कर देना मेरे बच्चे.... मैं... मैं तेरी केस रिओपन करवाउंगी.... असली मुज़रिम को सलाखों के पीछे डालूंगी... जिसने मेरे बेटे को इस हाल पहुंचाया है... उन्हें अब सबक सिखाउंगी...
विश्वा - नहीं माँ जी नहीं...
मैं - क्यूँ...
विश्वा - आप अगर इस केस में कोई भी हल चल पैदा करोगी... तो आपके जान पर बन आएगी...
मैं - तो क्या हुआ... मैं अपने बच्चे के लिए किसी भी हद तक गुजर जाऊँगी...
विश्वा - अगर आप मेरे लिए सच में कुछ करना चाहती हैं तो...
मैं - हाँ बोल...
विश्वा - मैंने ग्रेजुएशन कर लिया है... क्या मैं लॉ कर कर सकता हूं...
मैं - तू लॉ करना चाहता है....

विश्वा - हाँ
मैं - तो ठीक है इसमे मैं तेरी पूरी मदत करूंगी...

पर मेरी एक शर्त है..
विश्वा - क्या...
मैं - तु मुझे माजी नहीं, माँ कहेगा...
विश्वा - जी ठीक है...
बस उसके बाद वह मेरा बेटा बन गया.... मैं जानती हूं उसने लॉ पढ़ने की बात इसलिए छेड़ा था ताकि मैं भावनाओं में बह ना जाऊँ...... उसकी मदत करते हुए मैं कहीं क्षेत्रपाल के नजर में ना आ जाऊँ...
फिर भी मुझे प्रताप मिल चुका था... यही मेरे लिए बहुत था....
ऐसे में उनके वार्तालाप में दखल करते हुए कॉलिंग बेल बजने लगा l दोनों अपने अपने ख़यालों से बाहर निकले l
प्रतिभा - ओह लगता है.... सेनापति जी आ गए.... (कह कर प्रतिभा दरवाजा खोलने चली गई)
वैदेही के आँखों में जो आँसू आकर ठहर गए थे, वैदेही उन्हें साफ करने लगी l
तापस - आरे वैदेही.... तुम यहाँ... व्हाट ए सरप्राइज...
वैदेही - (हाथ जोड़ कर प्रणाम करते हुए) जी.... आपने जो काम कहा था.... वह पूरा कर लाई हूँ...
इतना कह कर अपनी थैली से कुछ कागजात निकालती है और तापस की ओर बढ़ा देती है l तापस उन कागजात को जांचने लगता है l सारे कागजात जांच लेने के बाद तापस का चेहरे पर मुस्कान आ जाती है, वह वैदेही को देख कर कहता है- वाह वैदेही वाह.... तुमने तो कमाल ही कर दिआ.... शाबास....
प्रतिभा - किस बात की शाबासी दी जा रही है....
तापस - यह मौसा और भतीजी के बीच की हाइ लेवल की बातेँ हैं.... तुम नहीं समझोगी......
प्रतिभा - हो गया...
तापस - अजी कहाँ... अभी तो शुरू हुआ है....
प्रतिभा - क्या कहा आपने....
तापस - अरे जान मेरी इतनी हिम्मत कहाँ के मैं तुम्हें छेड़ सकूँ..... यह तुम्हारे लाडले के लिए हैं... ताकि उसकी लड़ाई में उसके हाथ मजबूत हथियार हो....
प्रतिभा - मतलब तुम मौसा भतीजी मेरे पीठ के पीछे आपस में खिचड़ी पका कर.... इतना कांड कर रहे हो...
तापस - अरे भाग्यवान जरा जुबान सही करो.... कोई बाहर वाला सुनेगा तो क्या सोचेगा....
प्रतिभा - तुम, प्रताप और यह वैदेही मिले हुए हो.... मुझसे छुप छुपा कर पता नहीं क्या क्या कर रहे हो.... सबसे पहले तो मैं प्रताप की कान खींचुंगी....
लेकिन उससे पहले यह क्या है मुझे बताओ.... नहीं तो आज खाना भूल जाओ....

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शुभ्रा को महसुस हुआ घर में नंदिनी आई है l वह सोचने लगती है "कमाल है आज माहौल इतना शांत क्यूँ है l रोज आती थी तो चहकते हुए आती थी और एक का सौ कहानी बना कर सुनाती थी l पर आज गंगा उल्टी क्यूँ बह रही है l लगता है कुछ गड़बड़ हुई है l पर क्या हुआ होगा l जा कर देखना होगा"
शुभ्रा अपने कमरे से निकल कर नंदिनी के कमरे की ओर जाती है l कमरे का दरवाजा आधा खुला हुआ है l शुभ्रा अंदर झाँकती है l नंदिनी अपने बिस्तर के किनारे बैठी हुई है और अपने दोनों हाथों से मुहँ को ढक कर अपनी कोहनी को घुटनों पर टेक् लगा कर बैठी हुई है l
शुभ्रा - रूप....
नंदिनी अपना चेहरे से हाथ हटाती है l शुभ्रा देखती है, नंदिनी की आँखे लाल हो गई हैं और उसके आँखे भीगी हुई भी हैं l शुभ्रा नंदिनी के पास पहुंचती है और उसके पास बैठ जाती है l
शुभ्रा - रूप... क्या हुआ आज... तेरी हालत ऐसी क्यूँ है....
नंदिनी हंसती है l शुभ्रा को उसकी हंसी फीकी व खोखली लगती है, नंदिनी के हंसी के पीछे एक दर्द महसुस होता है शुभ्रा को l
शुभ्रा - देख रूप... तेरी ऐसी हालत देख कर मुझे बहुत डर लग रहा है... क्या हुआ है रूप.... प्लीज.. बता दे.. मुझे
नंदिनी - भाभी.... यह दिल बहुत ही लालची है.... (हंसते हुए) अभी अभी कितनी खुशियाँ मिलने लगी थी.... पर इस दिल को यह अब कम लगने लगा है... जब लालच बढ़ने लगा... और खुशियाँ मांगने लगा तब... मतलब... आज पहली बार मुझे एहसास हो गया.... मेरी यह जो आजादी भी एक सीमा में बंधे हुए हैं....
शुभ्रा - यह क्या कह रही है रुप....
नंदिनी - हाँ... भाभी... हाँ... थोड़ी आजादी क्या मिली.... मैं अपना पंख फैलाने लगी.... तभी मुझे मालुम हुआ कि मैं एक छोटे पिंजरे से निकल कर एक बड़े से पिंजरे में आयी हूँ.... जिसने मुझे यह एहसास दिला दिया के मैं उड़ तो सकती हूं.... पर आसमान छू नहीं सकती
शुभ्रा - यह... यह कैसी बहकी बहकी बातेँ कर रही है तु.....
नंदिनी - जानती हो भाभी... आज से ठीक चार दिन बाद... बनानी की जनम दिन है... दीप्ति ने उसके लिए एक सरप्राइज प्लान किया.... हम सबको बहुत पसंद भी आया... पर सबने किसी मॉल में जा कर बनानी के लिए गिफ्ट खरीदने की प्लान बनाया.... पर उनके प्लान पर पानी फिर गया... जब उनको मालुम हुआ... मैं कहीं नहीं जा सकती.... सिवाय घर और कॉलेज के.. हर जगह मेरे लिए वर्जित है...
शुभ्रा अपना हाथ नंदिनी के कंधे पर रखती है l नंदिनी फ़िर से एक फीकी हंसी हंसती है l
नंदिनी - फ़िर दीप्ति ने ऑनलाइन शॉपिंग से गिफ्ट खरीदने की आइडिया दी.... सबने मेरे ख़ातिर... ऑनलाइन गिफ्ट खरीदकर बनानी को सरप्राइज देने के लिए राजी हो गए....
शुभ्रा - अगर अब सब ठीक हो गया तो.... तुझे तो खुश होना चाहिए ना...
नंदिनी - भाभी... मैंने अपने सभी दोस्तों से वादा किया था.... उनकी खुशी मेरी खुशी और उनके ग़म मेरे ग़म... इस दोस्ती में मेरा कुछ नहीं होगा... पर... आज मेरे वजह से उनकी वह खुशी अधूरी रही....
शुभ्रा - तो क्या हुआ रूप..उन्होंने तेरे लिए उनका प्लान बदल दिया.... जरा सोच तु उनके लिए कितनी खास है....
नंदिनी - खास.... हम खास क्यूँ हैं भाभी.... क्यूँ....
हम आम क्यूँ नहीं... हैं
हम जिस घर में रहते हैं... भाभी उसमें बहुत बड़ा सा मार्वल तख्ती पे लिखा है... "The Hell".... और यह सच है.... शायद इसलिए हम आम नहीं हो सकते.... क्यूंकि वह आम लोग जहां रहते हैं.... वह जरूर स्वर्ग होगा.....
शुभ्रा - रूप... आज तुझे हो क्या गया है....
नंदिनी - कुछ नहीं हुआ है भाभी.... आज पहली बार... मेरे दोस्त आज जब बाहर घूमने झूमने की बात कर रहे थे... मुझे उनकी हर बात बहुत दुख दे रहा था.... उनकी वह खुशियां मुझे चुभ रही थी.... उनकी वह हंसी, खुशी से पता नहीं क्यूं आज मुझे जलन महसूस हुई....
(एक गहरी सांस ले कर)
भाभी मैं भी खुद को इस सहर के भीड़ में खो देना चाहती हूँ.... और उसी भीड़ में से खुद को ढूंढना चाहती हूँ.... पर मैं जानती हूं यह मुमकिन नहीं है....
भाभी कितना अच्छा होता अगर हम कभी बड़े ही नहीं होते.....
बचपन की वह बेवकुफीयाँ... कितनी मासूम होती थीं... आज जवानी में मासूम ख्वाहिशें भी बेवकुफी लग रही है...
शुभ्रा - रूप.... रूप.... रूप... (अपने दोनों हाथों से झिंझोड कर)
नंदिनी चुप हो जाती है l
शुभ्रा - देख तेरी इस हालत के लिए कहीं ना कहीं मैं भी जिम्मेदार हूँ.... मैंने चाची माँ से वादा किया था.... तेरी आज़ादी, तेरी खुशी की... पर शायद मैं ही तुझे ठीक से समझ नहीं पाई....
नंदिनी - नहीं भाभी आपकी कोई कसूर नहीं है... आप भी कहाँ बाहर जा पा रही हो....
शुभ्रा - (एक गहरी सांस लेते हुए) रूप इतने दिनों में... तुझे मालुम तो हो गया होगा... के तेरे भैया और मैं इस घर में अजनबीयों की तरह रह रहे हैं....
(नंदिनी कोई प्रतिक्रिया नहीं देती) पर तेरे भाई ने मुझे कभी कैद में नहीं रखा.... मैं जब भी उनसे कुछ मांगा... उन्होंने कभी मना नहीं किया... हाँ उन्होंने हमेशा एक शर्त रखा.... मैं उनसे कभी फोन पर बात ना करूँ.... सीधे सामने से बात करूँ....
नंदिनी - क्या....
शुभ्रा - हाँ पर मैं कभी बाहर नहीं निकलती हूँ... जानती है क्यूँ......? क्यूँकी इसी सहर में जन्मी, पली, बढ़ी... मैं बाहर इसलिए नहीं निकालती क्यों कि मुझे डर रहता है.. कहीं कोई मुझे पहचान ना ले.... मैं नहीं चाहती हूँ... कोई पहचान का मेरे सामने आए... क्यूंकि मेरे जीवन के किताब के कुछ पन्ने बहुत ही काले हैं... जिसके वजह से मैं खुद को इस घर में कैद कर रखा है...?
पर अब ऐसा नहीं होगा.... इस बार तेरे भैया जब आयेंगे... मैं उनसे इजाज़त ले लुंगी के तु बाहर जा पाएगी....
नंदिनी - कोई नहीं भाभी... कोई नहीं.... मैं जानती हूं.... आप ने कहा है... तो आप ज़रूर कर ही लोगी.... पर इतनी जल्दी मैं अपने दोस्तों के साथ साथ खुलना नहीं चाहती हूँ....
शुभ्रा - क्या मतलब....
नंदिनी - अरे भाभी... दोस्ती पक्की हुई है.... गहरी नहीं.... जिस दिन गहरी हो जाएगी... तब उनके साथ जाने के लिए... मैं खुद हिम्मत करूंगी....
शुभ्रा - तो अब तक...
नंदिनी - भाभी मैं खुद को किसी आम से तुलना कर रही थी....
पर घूमने तो मैं आपके साथ ही शुरू करूंगी....
नंदिनी शुभ्रा को बिठाती है और अपना सिर उसके गोद में रख देती है l
शुभ्रा उसके सर को सहलाते हुए - अच्छा रूप...
नंदिनी - हूँ..
शुभ्रा - तेरे बचपन की बेवक़ूफ़ीयाँ भले ही मासूमियत से भरा हो.... पर पूरी तो नहीं होती थी ना.... उस महल में....
नंदिनी - नहीं भाभी.... कोई था जो मेरी खुशी के लिए... वह बेवकुफी भरी मांग को पूरी करने की कोशिश करता था....
शुभ्रा - अच्छा... ऐसा कौन था...
नंदिनी - पता नहीं... मुझे उसका नाम मालुम नहीं है...
शुभ्रा - कैसे... कितने दिन था तुम्हारे साथ या पास....
नंदिनी - मालुम नहीं... शायद सात या आठ साल...
शुभ्रा - अरे बाप रे... और.. तु उसका नाम भी नहीं जानती... या याद नहीं...
नंदिनी - ऐसी बात नहीं भाभी.... मेरी माँ की देहांत के बाद... मैं अकेली हो गई थी... सिर्फ चाची माँ से चिपकी रहती थी.... यहाँ जिस तरह तुम हो उसी तरह महल में चाची माँ होती थी...
एक दिन छोटे राजा मतलब चाचा जी एक लड़के को लेकर मेरे पास आए.... जिसके सिर पर पट्टी बंधी हुई थी.... उसे मेरी पढ़ाई के लिए महल में लाया गया था....
मैंने जब उसका नाम पूछा तो वह कहते कहते चुप हो गया था.... फिर उसने मुझे कहा कि वह अनाम है..... जो उसे पढ़ाने आया है... (हंसते हुए, आगे चल कर पता चला, अनाम का मतलब कोई नाम नहीं हैं) उसने मुझसे झूट बोला था.... पर फ़िर भी... भाभी... उस महल में... मैं सबसे डरती थी.... कहीं कोई मुझ पर गुस्सा ना हो जाए.... पर वह था जिससे मेरे गुस्से, और दुख का परवाह था.... मैं रोती थी तो वह मुझे हँसता था....

शुभ्रा - अच्छा तो फिर तेरी जिंदगी से... वह दूर कैसे चला गया...
नंदिनी - वह जब मैं बारह साल की हुई... तब मुझे रजोदर्शन(Menarche) हुआ...
तो महल में उसका प्रवेश वर्जित हो गया...
इस बात को आठ साल हो चुके हैं...
शुभ्रा - ओह तो बचपन में ही राजकुमारी जी की नखरे कोई उठाता था....
नंदिनी - हाँ... भाभी... एक वही था... जिस पर मैं रूठ सकती थी... गुस्सा हो सकती थी... और पूरे महल में एक वही था जो मुझे मनाता था....रोने नहीं देता था...
शुभ्रा - तो क्या हुआ, आज जवानी में तुझे मनाने के लिए छह छह हैं....
नंदिनी - छह कौन...
शुभ्रा - वह तेरे कॉलेज के पांच पकाउ और छटी मैं....
दोनों मिलकर हंस देते हैं
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Kala Nag

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बहुत बहुत शुक्रिया आपके हौसला अफजाई के लिए
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कैन्टीन में आते ही नंदिनी ने देखा, एक टेबल पर उसकी छटी गैंग के सभी दोस्त उसीका इंतजार कर रहे हैं l नंदिनी सबको हाथ हिला कर हाइ करती है l बदले में सभी हाथ हिला कर उसको जवाब देते हैं l
नंदिनी गोलू से - गोलू...
गोलू - जी दीदी...
जल्दी से तीन बाई छह ला...
गोलू - जी ठीक है...
टेबल पर बैठते ही नंदिनी - क्या हो रहा है... दोस्तों...
बनानी - इंतजार हो रही थी जिनकी....
वह आए यहाँ..

दे दिए ऑर्डर तीन बाई छह वाली चाय की......
लेने के लिए गरमा गरम चाय की चुस्की......
तबसुम- वाह.... वाह.... क्या बात है इरशाद इरशाद...
सब हंस देते हैं और एक-दूसरे को हाइ फाई करते हैं इतने में गोलू चाय लाकर टेबल पर रख देता है l सब क्लास की इधर उधर बातेँ करते हुए चाय खतम करते हैं l तब दीप्ति काउन्टर पर जा कर पैसे भर देती है और वापस टेबल पर आ जाती है l
बनानी कहती है - अरे क्लास बंक करने का इरादा है क्या...
इतिश्री - वैसे आईडीया बुरा नहीं है....
दीप्ति - तो अभी हम क्यूँ बैठे हुए हैं...
नंदिनी - नहीं क्लास का टाइम हो गया है.... चलो चलते हैं...
तबसुम - हाँ चलो... चलते हैं (सब उठने को होते हैं )
दीप्ति - (नंदिनी की हाथ को पकड़ कर) एक मिनिट.... तुम सब जाओ... नंदिनी से मेरा एक काम है... बस पांच मिनिट बाद हम तुम लोगों को जॉइन करेंगे....
भाश्वती - ऐ क्या चक्कर है तुम दोनों में...... कहीं तुम लोग लेसबो तो नहीं हो...
दीप्ति - क्या बोली कमीनी...
सब हंसने लगते हैं l
नंदिनी - अरे अरे.. ठीक है... अच्छा तुम लोग चलो... वैसे दीप्ति आज जान लेवा दिख रही है.... उसको अकेले में मुझसे क्या काम है... मुझे जान लेने तो दो....
इतिश्री - हाँ भई... इन लोगों को अकेले में काम है... हमारे सामने न हो पाएगा....
सब हंसने लगते हैं l दीप्ति अपना मुहँ बना लेती है l बनानी यह देख कर कहती है - चील दीप्ति चील.... अरे यार मज़ाक ही तो कर रहे हैं सब.... ओके फ्रेंडस... लेटस गो... दे विल जॉइन अस लेटर...
बनानी सबको ले कर चली जाती है l सबके जाते ही नंदिनी दीप्ति से
नंदिनी - हाँ तो मिस. दीप्ति मयी गिरी... कहिए हमसे क्या काम है... जो(धीमी आवाज़ में) सबके आगे नहीं कह सकीं....
दीप्ति - छी... तु भी....
नंदिनी - (हंसते हुए) हा हा हा... चील यार... अब बोल....
दीप्ति - अच्छा नंदिनी.... तूने गौर किया... अगले हफ्ते गुरुवार को बनानी की बर्थडे है....
नंदिनी - क्या... सच में... पर... तुझे कैसे मालूम हुआ...
दीप्ति - अरे यार (नंदिनी के गले में लटकी उसकी आइडी कार्ड दिखा कर) इससे.... हम सबके गले में ऐसी तख्ती लटकी हुई है... मेरी नजर उसके DOB पर पड़ गई.... इसलिए मैंने तुझे यहाँ पर रोक लीआ....
नंदिनी - अरे हाँ....(अपनी आइडी कार्ड को देखते हुए) हमारे आइडी कार्ड में डेट ऑफ बर्थ साफ लिखा है... और देख दो महीने बाद मेरा भी बर्थ डे है.... पर बनानी के बर्थ डे पर तेरा क्या कोई प्लान है...
दीप्ति - प्लान तो ग़ज़ब का है.... अगर तु साथ दे तो....
नंदिनी - ओ.... कोई सरप्राइज है क्या...
दीप्ति - बिल्कुल....
नंदिनी - ह्म्म्म्म तेरे खुराफाती दिमाग़ मे जरूर कुछ पक रही है...
चल उगल भी दे अभी...
दीप्ति - देख कल सन डे है.... क्यूँ ना हम सब सिवाय बनानी के.. डिऑन मॉल चले... वहाँ पर सब अपनी-अपनी कंट्रिब्युशन जोड़ कर उसके लिए गिफ्ट तैयार करें.... और गुरुवार को केमिकल लैब में प्रैक्टिकल के दौरान उसे गिफ्ट दे कर उसकी बर्थ डे सेलिब्रिट करें....
नंदिनी - वाव क्या आइडिया है... पर यार... एक प्रॉब्लम है...
दीप्ति - क्या....
नंदिनी - देख मेरी घर से.... मेरी एंट्री और एक्जिट फ़िक्स है.... सॉरी यार... तु मुझसे कुछ पैसे लेले... और किसी और को लेकर.... बनानी के लिए गिफ्ट पैक करा ले....

दीप्ति का मुहँ उतर जाता है, वह नंदिनी को देखती है, नंदिनी भी थोड़ी उदास दिखने लगी l दीप्ति और नंदिनी अब उठ कर क्लास की और निकालते हैं l फ़िर अचानक दीप्ति एक चुटकी बजाती है और चहक कर कहती है - आईडीआ...
नंदिनी उसे इशारे से पूछती है क्या हुआ
दीप्ति - अररे यार... अगर हम मॉल नहीं जा सकते तो ना सही... पर मॉल तो यहाँ आ सकती है ना....
नंदिनी - क्या मतलब..
दीप्ति - अरे यार... अपनी मोबाइल में.... क्यूँ ना हम ऑन लाइन शौपिंग से गिफ्ट मंगाये....
नंदिनी - पर वह गिफ्ट हमे कब मिलेगा और हम उसे कब देंगे....
दीप्ति - ऑए मैडम.... यह भुवनेश्वर है.... यहाँ आज ऑर्डर डालो... तो कल मिल जाता है...
नंदिनी भी खुश होते हुए
नंदिनी - अच्छा.... वाव... तब तो मजा ही आ जाएगा....
दीप्ति - तो एक काम करते हैं.... हम बुधवार को ऑर्डर करेंगे और हमे गुरुवार को मिल जायेगा... और हम बनानी को सरप्राइज करते हुए लैब में ही उसकी बर्थ डे सेलिब्रिट करेंगे....
नंदिनी - या.... आ.... हा.. आ
दीप्ति - है ना मज़ेदार प्लान....
नंदिनी - यार मजा आ गया... जानती है... मैं न पहली बार... किसी की बर्थडे मनाने वाली हूँ.... थैंक्स यार....
दीप्ति - ऐ... दोस्ती में नो थैंक्स...
नंदिनी - नो सॉरी....
दोनों हंसते हैं
दीप्ति - अच्छा सुन... मैं अपनी गैंग में सबको इंफॉर्म कर तैयार कर देती हूँ.... पर गिफ्ट तु मंगाना...
नंदिनी - क्यूँ... इसमें कोई प्रॉब्लम है क्या..
दीप्ति - अरे तेरे नाम से पार्सल आएगा तो प्रिन्सिपल भी चुप रहेगा... अगर हमारे किसी के नाम पर आया तो... क्लास लेना शुरू कर देगा......
नंदिनी - चल ठीक है... अच्छा एक बात बता... क्या ऑनलाइन में केक भी ऑर्डर किया जा सकता है...
दीप्ति - हाँ... अगर तेरा... यह आईडीआ है.. तो बुधवार को ही ऑर्डर कर देते हैं... गिफ्ट पार्सल और केक दोनों एक साथ पहुंचेंगे.... हम उसे बर्थ-डे सरप्राइज देंगे...
नंदिनी - वाव... दीप्ति वाव... तेरा ज़वाब नहीं... उम्म आह्
नंदिनी दीप्ति को चूम लेती है l
दीप्ति - अरे क्या कर रही है.... अभी अभी हमारी छटी गैंग वालों ने जो ताने मारे हैं... उसे कहीं सब सच ना मान लें
फिर दोनों जोर जोर से हंसते हुए अपनी क्लास की ओर चले जाते हैं

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कॉलिंग बेल की आवाज़ सुन कर प्रतिभा दरवाज़ा खोलती है तो देखती सामने वैदेही खड़ी है l
प्रतिभा - अरे वाह आज सुरज कहीं पश्चिम से तो नहीं निकला..... जरा हट तो मैं थोड़ा बाहर जाकर देख लूँ...
वैदेही - क्या मासी.... मैं इतने दिनों बाद आपसे मिलने आई... और आप हैं कि मुझसे... ठिठोली कर रहे हैं....
प्रतिभा - अरे चल चल... इतने सालों से मैं तुझे घर बुला रही थी... कभी आई है भला.... आज अचानक ऐसे टपकेगी.. तो मैं क्या सोचूंगी बोल...
वैदेही - अच्छा सॉरी...
प्रतिभा - ठीक है... ठीक है.. चल आ जा...
वैदेही - नहीं... पहले आप जरा... एक लोटा पानी लेकर आओ...
प्रतिभा उसे चकित हो कर रहती है
वैदेही - अरे मासी.. मुझे अपने पैर धोने हैं... और पैर बिना धोए... मैं भीतर नहीं जा सकती....
प्रतिभा - अरे इसकी कोई ज़रूरत नहीं है... चल आ जा...(वैदेही ऐसे ही खड़ी रहती है) अरे क्या हुआ...
वैदेही - नहीं मासी.... हम कभी बिना पैर धोए... घर के भीतर नहीं जाते हैं... प्लीज...
हमारे गांव के हर घर के बाहर एक कुंड होता है... जिससे हम पानी निकाल कर पैर धो कर ही किसीके घर में जाते हैं...
प्रतिभा - पर सहर मैं तो ऐसा नहीं होता है ना...
वैदेही - फिरभी...
प्रतिभा - अच्छा अच्छा रुक... कब से हम बहस कर रहे हैं.. वह भी बेवजह... मैं पानी लेकर आई रुक....
प्रतिभा अंदर जाकर बाल्टी भर पानी और एक मग लाकर वैदेही को देती है l वैदेही अपने दोनों पैरों को धो कर अंदर आने को होती है के उसे प्रतिभा रोक देती है l
प्रतिभा - रुक...(अब वैदेही उसे देखती है) यह ले टवेल... अपने पैरों को पोंछ कर आ...(वैदेही हंस कर टवेल लेकर पैर पोंछ कर अंदर आ जाती है)
दोनों ड्रॉइंग रूम में आकर बैठ जाते हैं l
प्रतिभा - पहली बार आई है... तुझे खिलाउंगी और फिर जाने दूंगी समझी... (वैदेही अपना सिर हिलाकर हामी देती है) अच्छा यह बता तु आज यहाँ कैसे...

वैदेही - वह सुपरिटेंडेंट साब जी के काम से आई थी... जैल गई तो पता चला कि.... वह रिटायर्मेंट ले रहे हैं.. तो मुझे मजबूरन यहाँ आना पड़ा...
प्रतिभा - हा हा हा.. देखा तुझे सेनापति जी ने आख़िर घर पर खिंच ले ही आए.... कितनी बार बुलाने पर भी नहीं आई थी.... याद है.... आख़िर सेनापति जी अपनी जिद पुरी कर ही लिए... हा हा हा...
वैदेही मुस्करा देती है और पूछती है - वैसे मासी... सुपरिटेंडेंट सर रिटायर्मेंट क्यूँ ले रहे हैं...
प्रतिभा - अरे उन पर तेरे भाई का जादू चल गया है.... अब डेढ़ महीने बाद प्रताप छूट जाएगा तो जैल में उनका मन नहीं लगेगा.... इसलिए वह VRS ले लिए...
वैदेही - ओ.. वैसे कहाँ हैं... दिखाई नहीं दे रहे हैं...
प्रतिभा - अरे अब कुछ..... ऑफिसीयल काम बाकी रह गया है... उसे निपटाने के लिए कहीं गए हुए हैं....
वैदेही सुन कर मुस्करा देती है और खामोश हो जाती है l
उसे खामोश देख कर प्रतिभा - क्या हुआ क्या सोचने लगी है...
वैदेही - सोच नहीं रही हूँ... बल्कि भगवान को धन्यवाद अर्पण कर रही हूँ....
प्रतिभा - भला वह क्यूँ....
वैदेही - विशु... जनम के बाद माँ की ममता से वंचित रहा.... फिर कुछ सालों बाद वह अपनी पिता के साये से वंचित हो गया.... मगर फिर भी भगवान ने भरी जवानी में उसे आपके रूप में माँ बाप लौटा दिए... इसलिए...
वह आपका सगा नहीं है... फ़िर भी कितना प्यार करते हैं.... उससे...
प्रतिभा - वह तेरा भी सगा नहीं है... फ़िर भी तु उसके लिए मरने मारने के लिए तैयार रहती है... पर एक बात बता... प्रताप मुझे माँ कहता है... तु उसकी दीदी है... तु मुझे माँ नहीं बुलाती...
वैदेही - हाँ वह मेरा सगा नहीं है... पर हम गांव से हैं... और गांव में बंधन घर में या चारदीवारी में सिमट कर नहीं रह जाता है.... मौसा, मौसी, भैया, दीदी, बहना, मामा मामी जैसे संबंध यूँ ही जुबानी नहीं होती निभाई भी जाते हैं.... क्यूंकि वह उस गांव की मिट्टी से जुड़े हुए होते हैं..... और आप हमारे गांव से भी तो नहीं हैं.... रही मेरी बात तो माँ बुलाना किसी की बेटी बनना मेरे लिए एक अभिशाप है... इसलिए नहीं बुलाती... पर विशुने मेरे लिए जो भी किया है... अगर भगवान मुझे मौका दे... तो भगवान से प्रार्थना करूंगी की वह मुझे विशु की बेटी बना कर दुनिया में भेजे... ताकि मैं उसकी कर्ज उतार सकूँ....
प्रतिभा वैदेही के चेहरे को एक टक देखे जा रही है l

वैदेही - एक ही तो मर्द था पुरे यश पुर में.... जब पहली बार मुझे क्षेत्रपाल के आदमियों ने मुझे उठाने आए थे.... तो मुझे बचाने के लिए भीड़ गया था उन दरिंदों से.... सिर्फ़ बारह साल का था तब वह.... एक आदमी का हाथ कुल्हाड़ी से काट दिया था... ऐसा था मेरा विशु.... (वैदेही अपनी आँखों में आंसू पोछते हुए) अच्छा... अब आप बताओ मासी... उस रिपोर्टर का कुछ पता चला...
प्रतिभा - हाँ... सेनापति जी कह रहे थे... उस रिपोर्टर और उसके परिवार को राजगड़ उठा लिया गया था.... शायद अब वे लोग जिवित ना हों...
वैदेही - ओह यह तो बुरा हुआ...
प्रतिभा - और हाँ... तु अब उस ऑफिस को मत जाना... वहाँ पर रिपोर्टर प्रवीण के बारे में कुछ अफवाहें उड़ाए गए हैं... ताकि उनके शिकार को फांस सके... समझी....
वैदेही कुछ देर ख़ामोश रहने के बाद - अच्छा मासी विशु में मुझे बचपन से ही छोटा भाई ही दिखता था... पर उसके अंदर आपने अपने बेटे को कैसे पाया...
प्रतिभा - तेरी कहानी अधुरी है.... पहले वह तो बता दे.....
वैदेही - ज़रूर बताऊंगी मासी... आज जब ज़िक्र छेड़ ही दिया है... तो अपनी बीती जरूर बताऊंगी... मगर पहले आप अपनी बताइए ना...
इतना सुन कर प्रतिभा अपनी जगह से उठ जाती है और एक गहरी सांस लेती है l फ़िर मुड़ कर वैदेही को देखती है और कहना शुरू करती है.....

प्रतिभा -हम तब कटक में रहा करते थे... मैं और सेनापति जी एक ही कॉलेज में पढ़ते थे... वह मेरे सीनियर थे... और मेरे पड़ोसी भी थे... मेरे पिता हाइकोर्ट में टाइप राइटर थे... और उनके पिता पुलिस में वायर लैस ऑफिसर थे...चूंकि हम पड़ोसी थे... तो जान पहचान थी ही और दोस्ती भी थी.... ऐसी हमारी अपनी जिंदगी चल रही थी... की एक दिन सेनापति जी के पिताजी का अचानक देहांत हो गया... तब उनकी माता जी ने कंपेंसेटरी ग्राउंड में नौकरी स्वीकार कर लिया था... क्यूँकी उनका लक्ष था कि उनका बेटा ज्यादा पढ़े और उनके पिता से भी बड़ी नौकरी करे l सेनापति जी अपनी माँ का मान रखा और ग्रेजुएशन के बाद पुलिस इंटरव्यू में सिलेक्ट हुए और ट्रेनिंग के अंगुल चले गए l एक दिन उनके माँ जी को बुखार चढ़ गया था और उस वक़्त वह ट्रेनिंग में थे तब चूंकि हम पड़ोसी थे तो उनको मैंने हस्पताल ले जाकर थोड़ी देखभाल किया और उनके ट्रेनिंग खत्म होने तक मैं अपने माता पिता के साथ साथ उनकी माँ जी का भी देखभाल करती थी.... एक दिन उनकी ट्रेनिंग खतम हुई और कोरापुट में पोस्टिंग हुई... कहाँ कटक और कहाँ कोरापुट.... माँ जी को चिंता सताने लगी थी... तब माँ जी ने सीधा हमारे घर आ कर मेरी और सेनापति जी की शादी की बात छेड़ दी.... इससे हम दोनों चौंक गए... हम अच्छे दोस्त तो थे पर शादी.... सेनापति जी को पता था मेरी अपनी कुछ इच्छायें थी... मैं खुद कुछ करना चाहती थी... मेरी इस भावनाओं को वह समझते थे इसलिए उन्होंने शादी का विरोध किया... पर माँ जी नहीं मानी... तो एक शर्त पर शादी हुई... उस वक़्त चूँकि मेरी ग्रेजुएशन खतम हो चुकी थी... तो उन्हों ने मुझे कोरापुट ले जाने के वजाए कटक में ही माजी के पास छोड़ देने की बात की .... पर सच्चाई यह थी के मुझे वह समय दे रहे थे... ताकि मैं कुछ कर सकूँ.... उनके सारे शर्त माजी और मेरे माता पिता मान गए.... फ़िर हमारी शादी हो गई...
शादी के बाद वह कोरापुट चले गए और मैं कटक में अपनी माता पिता के साथ साथ माँ जी का भी देखभाल करती रही और लॉ करती रही....
मैं डिग्री के बाद बार लाइसेन्स हासिल किया ही था कि हाईकोर्ट में पब्लिक प्रोसिक्यूटर के पोस्ट के लिए आवेदन निकला था... मैंने इंटरव्यू दिया तो PP की जॉब भी मिल गई....

जिंदगी अब खूबसूरत थी और मनचाहा भी थी.. क्यूंकि मुझे अब कटक से कहीं नहीं जाना था इसलिए उनकी स्पाउस सर्विस ग्राउण्ड में कटक के आसपास ही पोस्टिंग और ट्रांसफ़र होती रही.. ऐसे में मैं पेट से हुई... तब कटक मेडिकल कॉलेज में मेरे पिताजी के एक मित्र रेडियोलॉजीस्ट हुआ करते थे उन्होंने एक दिन चेक करके बताया कि मेरे पेट में जुड़वा बच्चे हैं... वह भी लड़के.... हमारे घर में खुशियां दुगनी हो गई थी... हमने तब निश्चय किया कि हम अपने बेटों का नाम अपने नाम से लेकर रखें.... यह बात हमने हमारे अपने बुजुर्गों को बताई.... तो उन्होंने ही एक का नाम प्रत्युष और एक का नाम प्रताप रखा... और एक दिन ऐसा भी आया जब हमरे घर में दो नन्हें नन्हें मेहमान आए.... अब हमारे जीवन में खुशियाँ पंख लगा कर उड़ रही थी... एक तरफ जीवन में नए मेहमान से घर में शोर हो रहा था और एक तरफ हमारे बुजुर्ग हमे एक एक कर छोड़ गए.... ऐसे में एक दिन उनके पारादीप ट्रांसफ़र की खबर मिली... मैंने भी बच्चों को लेकर कुछ दिन छुट्टी लेकर उनके साथ पारादीप चली गई .... नए क्वार्टर में उनकी सहूलियत का जायजा ले कर मुझे कटक वापस चले जाना था....... पर भाग्य को कुछ और ही मंजुर था.... ओड़िशा में पहली बार सुपर साइक्लोन आया... जिसका सेंटर पारादीप था... सेनापति जी को सरकारी फरमान था इसलिए मुझे घर पर छोड़ कर आसपास के लोगों को बचा कर सुरक्षित जगह पर पहुंचाने के लिए रेस्क्यू ऑपरेशन में चले गए... पर साइक्लोन हमारे जिंदगी में भी तूफ़ान ला खड़ा कर दिया था.... वह जब रेस्क्यू ऑपरेशन खतम कर पहुंचे... तब उन्होंने देखा कि क्वार्टर गिर चुका था... अपने स्टाफ के सहायता से मुझे और बच्चों को बचा कर हस्पताल ले गए.... पर उस परिस्थिति में कोई भी हस्पताल खाली नहीं था.... बिजली नहीं थी... पानी नहीं नहीं थी, दवा तक नहीं थी.... आस पास ऐसा लगता था जैसे सूखा पड़ा हुआ था...... उस वक़्त खाने पीने की बड़ी समस्या थी... हर तरफ हाहाकार था.... मुझमें दूध की समस्या निकली... ऐसे में हमारा प्रताप चल बसा बड़ी मुश्किल से प्रत्युष ही जिंदा रहा... पंद्रह दिन बाद सब धीरे धीरे जिंदगी नॉर्मल हो गई तो हम वापस कटक आ गए.... फ़िर हमारा सारा प्यार हमने प्रत्युष पर लुटा कर आगे बढ़ते रहे....
फिर हमारे जीवन में तुम्हारा विशु आया.... अदालती कार्यवाही से लेकर विशु के सजा तक तुम सब जानती हो....
फिर एक के बाद एक ना जाने जिंदगी में क्या से क्या अनहोनी होने लगी.... हमारे प्रत्युष हमे छोड़ चला गया.... मैं प्रत्युष की कानूनी लड़ाई हार चुकी थी..... इसलिए मैंने PP की जॉब से इस्तीफा दे दिया... हम पति पत्नी ही रह गए थे... और जिंदगी से ऊबने लगे थे कि तब सेनापति जी के ऊपर जैल में जानलेवा हमला हुआ था.... पर तेरे विशु ने उन पर खरोंच भी आने नहीं दी थी... पर खुद थोड़ा ज़ख्मी हो गया था.... मैं वैसे भी टुट चुकी थी... अगर सेनापति जी को कुछ हो गया होता तो मैं खत्म ही हो गई होती.... पर एकाम्रेश्वर लिंगराज जी को कुछ और ही मंजूर था.... सेनापति जी को बचाने के लिए धन्यबाद देने मैं हस्पताल मैं पहुंची तो देखा एक बिस्तर पर विशु ज़ख्मी हालत में लेता हुआ है..... मैं उसे पहचानने की कोशिश करने लगी.... उसे पहचानते ही मैं शर्म से अपने भीतर गड़ने लगी... यह तो वही है जिसे मैंने ही सजा दिलवाई थी... और इसने मेरे सुहाग की रक्षा की.... मैं अपने आप को कोश रही थी कि उस वक़्त विश्वा आँखे खोल कर मुझे देखने लगा...
मैं उसकी आँखों में देखने लगी तो पता नहीं मेरे सीने में कुछ हूक सी उठी..... वह मुझे हैरानी से टकटकी नजर से देख रहा था.... मेरी रो रो कर बुरा हाल था.... चेहरा काला पड़ गया था और हालत बिखरी हुई थी.... मैंने उसे पुछा क्या नाम है तुम्हारा.... उसने कहा विश्व प्रताप......

पर मुझे सिर्फ प्रताप ही सुनाई दिआ.... मैं खुद को रोक नहीं पाई और उसके चेहरे को अपने दोनों हाथों से लेकर उसके माथे को चूम लिया... उसे चूमते ही पता नहीं क्या हुआ मुझे मैं उसे अपने सीने से लगा कर रोने लगी... मेरे मुहँ से सिर्फ यही निकला - प्रताप मेरे बच्चे... अब मैं तुझे नहीं जाने दूंगी... मेरे बच्चे....
तब पास खड़े सेनापति जी मुझे झिंझोडते हुए - प्रतिभा होश में आओ....
पर मैं तो होश में आना ही नहीं चाहती थी..
तापस-माफ़ करना विश्वा... बेटे के ग़म में बदहवास हो गई है...
विश्वा - जी कोई बात नहीं...
मैं - नहीं नहीं यह मेरा प्रताप है... मुझे बर्षों बाद मिला है.... मुझे माफ़ कर देना मेरे बच्चे.... मैं... मैं तेरी केस रिओपन करवाउंगी.... असली मुज़रिम को सलाखों के पीछे डालूंगी... जिसने मेरे बेटे को इस हाल पहुंचाया है... उन्हें अब सबक सिखाउंगी...
विश्वा - नहीं माँ जी नहीं...
मैं - क्यूँ...
विश्वा - आप अगर इस केस में कोई भी हल चल पैदा करोगी... तो आपके जान पर बन आएगी...
मैं - तो क्या हुआ... मैं अपने बच्चे के लिए किसी भी हद तक गुजर जाऊँगी...
विश्वा - अगर आप मेरे लिए सच में कुछ करना चाहती हैं तो...
मैं - हाँ बोल...
विश्वा - मैंने ग्रेजुएशन कर लिया है... क्या मैं लॉ कर कर सकता हूं...
मैं - तू लॉ करना चाहता है....

विश्वा - हाँ
मैं - तो ठीक है इसमे मैं तेरी पूरी मदत करूंगी...

पर मेरी एक शर्त है..
विश्वा - क्या...
मैं - तु मुझे माजी नहीं, माँ कहेगा...
विश्वा - जी ठीक है...
बस उसके बाद वह मेरा बेटा बन गया.... मैं जानती हूं उसने लॉ पढ़ने की बात इसलिए छेड़ा था ताकि मैं भावनाओं में बह ना जाऊँ...... उसकी मदत करते हुए मैं कहीं क्षेत्रपाल के नजर में ना आ जाऊँ...
फिर भी मुझे प्रताप मिल चुका था... यही मेरे लिए बहुत था....
ऐसे में उनके वार्तालाप में दखल करते हुए कॉलिंग बेल बजने लगा l दोनों अपने अपने ख़यालों से बाहर निकले l
प्रतिभा - ओह लगता है.... सेनापति जी आ गए.... (कह कर प्रतिभा दरवाजा खोलने चली गई)
वैदेही के आँखों में जो आँसू आकर ठहर गए थे, वैदेही उन्हें साफ करने लगी l
तापस - आरे वैदेही.... तुम यहाँ... व्हाट ए सरप्राइज...
वैदेही - (हाथ जोड़ कर प्रणाम करते हुए) जी.... आपने जो काम कहा था.... वह पूरा कर लाई हूँ...
इतना कह कर अपनी थैली से कुछ कागजात निकालती है और तापस की ओर बढ़ा देती है l तापस उन कागजात को जांचने लगता है l सारे कागजात जांच लेने के बाद तापस का चेहरे पर मुस्कान आ जाती है, वह वैदेही को देख कर कहता है- वाह वैदेही वाह.... तुमने तो कमाल ही कर दिआ.... शाबास....
प्रतिभा - किस बात की शाबासी दी जा रही है....
तापस - यह मौसा और भतीजी के बीच की हाइ लेवल की बातेँ हैं.... तुम नहीं समझोगी......
प्रतिभा - हो गया...
तापस - अजी कहाँ... अभी तो शुरू हुआ है....
प्रतिभा - क्या कहा आपने....
तापस - अरे जान मेरी इतनी हिम्मत कहाँ के मैं तुम्हें छेड़ सकूँ..... यह तुम्हारे लाडले के लिए हैं... ताकि उसकी लड़ाई में उसके हाथ मजबूत हथियार हो....
प्रतिभा - मतलब तुम मौसा भतीजी मेरे पीठ के पीछे आपस में खिचड़ी पका कर.... इतना कांड कर रहे हो...
तापस - अरे भाग्यवान जरा जुबान सही करो.... कोई बाहर वाला सुनेगा तो क्या सोचेगा....
प्रतिभा - तुम, प्रताप और यह वैदेही मिले हुए हो.... मुझसे छुप छुपा कर पता नहीं क्या क्या कर रहे हो.... सबसे पहले तो मैं प्रताप की कान खींचुंगी....
लेकिन उससे पहले यह क्या है मुझे बताओ.... नहीं तो आज खाना भूल जाओ....

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शुभ्रा को महसुस हुआ घर में नंदिनी आई है l वह सोचने लगती है "कमाल है आज माहौल इतना शांत क्यूँ है l रोज आती थी तो चहकते हुए आती थी और एक का सौ कहानी बना कर सुनाती थी l पर आज गंगा उल्टी क्यूँ बह रही है l लगता है कुछ गड़बड़ हुई है l पर क्या हुआ होगा l जा कर देखना होगा"
शुभ्रा अपने कमरे से निकल कर नंदिनी के कमरे की ओर जाती है l कमरे का दरवाजा आधा खुला हुआ है l शुभ्रा अंदर झाँकती है l नंदिनी अपने बिस्तर के किनारे बैठी हुई है और अपने दोनों हाथों से मुहँ को ढक कर अपनी कोहनी को घुटनों पर टेक् लगा कर बैठी हुई है l
शुभ्रा - रूप....
नंदिनी अपना चेहरे से हाथ हटाती है l शुभ्रा देखती है, नंदिनी की आँखे लाल हो गई हैं और उसके आँखे भीगी हुई भी हैं l शुभ्रा नंदिनी के पास पहुंचती है और उसके पास बैठ जाती है l
शुभ्रा - रूप... क्या हुआ आज... तेरी हालत ऐसी क्यूँ है....
नंदिनी हंसती है l शुभ्रा को उसकी हंसी फीकी व खोखली लगती है, नंदिनी के हंसी के पीछे एक दर्द महसुस होता है शुभ्रा को l
शुभ्रा - देख रूप... तेरी ऐसी हालत देख कर मुझे बहुत डर लग रहा है... क्या हुआ है रूप.... प्लीज.. बता दे.. मुझे
नंदिनी - भाभी.... यह दिल बहुत ही लालची है.... (हंसते हुए) अभी अभी कितनी खुशियाँ मिलने लगी थी.... पर इस दिल को यह अब कम लगने लगा है... जब लालच बढ़ने लगा... और खुशियाँ मांगने लगा तब... मतलब... आज पहली बार मुझे एहसास हो गया.... मेरी यह जो आजादी भी एक सीमा में बंधे हुए हैं....
शुभ्रा - यह क्या कह रही है रुप....
नंदिनी - हाँ... भाभी... हाँ... थोड़ी आजादी क्या मिली.... मैं अपना पंख फैलाने लगी.... तभी मुझे मालुम हुआ कि मैं एक छोटे पिंजरे से निकल कर एक बड़े से पिंजरे में आयी हूँ.... जिसने मुझे यह एहसास दिला दिया के मैं उड़ तो सकती हूं.... पर आसमान छू नहीं सकती
शुभ्रा - यह... यह कैसी बहकी बहकी बातेँ कर रही है तु.....
नंदिनी - जानती हो भाभी... आज से ठीक चार दिन बाद... बनानी की जनम दिन है... दीप्ति ने उसके लिए एक सरप्राइज प्लान किया.... हम सबको बहुत पसंद भी आया... पर सबने किसी मॉल में जा कर बनानी के लिए गिफ्ट खरीदने की प्लान बनाया.... पर उनके प्लान पर पानी फिर गया... जब उनको मालुम हुआ... मैं कहीं नहीं जा सकती.... सिवाय घर और कॉलेज के.. हर जगह मेरे लिए वर्जित है...
शुभ्रा अपना हाथ नंदिनी के कंधे पर रखती है l नंदिनी फ़िर से एक फीकी हंसी हंसती है l
नंदिनी - फ़िर दीप्ति ने ऑनलाइन शॉपिंग से गिफ्ट खरीदने की आइडिया दी.... सबने मेरे ख़ातिर... ऑनलाइन गिफ्ट खरीदकर बनानी को सरप्राइज देने के लिए राजी हो गए....
शुभ्रा - अगर अब सब ठीक हो गया तो.... तुझे तो खुश होना चाहिए ना...
नंदिनी - भाभी... मैंने अपने सभी दोस्तों से वादा किया था.... उनकी खुशी मेरी खुशी और उनके ग़म मेरे ग़म... इस दोस्ती में मेरा कुछ नहीं होगा... पर... आज मेरे वजह से उनकी वह खुशी अधूरी रही....
शुभ्रा - तो क्या हुआ रूप..उन्होंने तेरे लिए उनका प्लान बदल दिया.... जरा सोच तु उनके लिए कितनी खास है....
नंदिनी - खास.... हम खास क्यूँ हैं भाभी.... क्यूँ....
हम आम क्यूँ नहीं... हैं
हम जिस घर में रहते हैं... भाभी उसमें बहुत बड़ा सा मार्वल तख्ती पे लिखा है... "The Hell".... और यह सच है.... शायद इसलिए हम आम नहीं हो सकते.... क्यूंकि वह आम लोग जहां रहते हैं.... वह जरूर स्वर्ग होगा.....
शुभ्रा - रूप... आज तुझे हो क्या गया है....
नंदिनी - कुछ नहीं हुआ है भाभी.... आज पहली बार... मेरे दोस्त आज जब बाहर घूमने झूमने की बात कर रहे थे... मुझे उनकी हर बात बहुत दुख दे रहा था.... उनकी वह खुशियां मुझे चुभ रही थी.... उनकी वह हंसी, खुशी से पता नहीं क्यूं आज मुझे जलन महसूस हुई....
(एक गहरी सांस ले कर)
भाभी मैं भी खुद को इस सहर के भीड़ में खो देना चाहती हूँ.... और उसी भीड़ में से खुद को ढूंढना चाहती हूँ.... पर मैं जानती हूं यह मुमकिन नहीं है....
भाभी कितना अच्छा होता अगर हम कभी बड़े ही नहीं होते.....
बचपन की वह बेवकुफीयाँ... कितनी मासूम होती थीं... आज जवानी में मासूम ख्वाहिशें भी बेवकुफी लग रही है...
शुभ्रा - रूप.... रूप.... रूप... (अपने दोनों हाथों से झिंझोड कर)
नंदिनी चुप हो जाती है l
शुभ्रा - देख तेरी इस हालत के लिए कहीं ना कहीं मैं भी जिम्मेदार हूँ.... मैंने चाची माँ से वादा किया था.... तेरी आज़ादी, तेरी खुशी की... पर शायद मैं ही तुझे ठीक से समझ नहीं पाई....
नंदिनी - नहीं भाभी आपकी कोई कसूर नहीं है... आप भी कहाँ बाहर जा पा रही हो....
शुभ्रा - (एक गहरी सांस लेते हुए) रूप इतने दिनों में... तुझे मालुम तो हो गया होगा... के तेरे भैया और मैं इस घर में अजनबीयों की तरह रह रहे हैं....
(नंदिनी कोई प्रतिक्रिया नहीं देती) पर तेरे भाई ने मुझे कभी कैद में नहीं रखा.... मैं जब भी उनसे कुछ मांगा... उन्होंने कभी मना नहीं किया... हाँ उन्होंने हमेशा एक शर्त रखा.... मैं उनसे कभी फोन पर बात ना करूँ.... सीधे सामने से बात करूँ....
नंदिनी - क्या....
शुभ्रा - हाँ पर मैं कभी बाहर नहीं निकलती हूँ... जानती है क्यूँ......? क्यूँकी इसी सहर में जन्मी, पली, बढ़ी... मैं बाहर इसलिए नहीं निकालती क्यों कि मुझे डर रहता है.. कहीं कोई मुझे पहचान ना ले.... मैं नहीं चाहती हूँ... कोई पहचान का मेरे सामने आए... क्यूंकि मेरे जीवन के किताब के कुछ पन्ने बहुत ही काले हैं... जिसके वजह से मैं खुद को इस घर में कैद कर रखा है...?
पर अब ऐसा नहीं होगा.... इस बार तेरे भैया जब आयेंगे... मैं उनसे इजाज़त ले लुंगी के तु बाहर जा पाएगी....
नंदिनी - कोई नहीं भाभी... कोई नहीं.... मैं जानती हूं.... आप ने कहा है... तो आप ज़रूर कर ही लोगी.... पर इतनी जल्दी मैं अपने दोस्तों के साथ साथ खुलना नहीं चाहती हूँ....
शुभ्रा - क्या मतलब....
नंदिनी - अरे भाभी... दोस्ती पक्की हुई है.... गहरी नहीं.... जिस दिन गहरी हो जाएगी... तब उनके साथ जाने के लिए... मैं खुद हिम्मत करूंगी....
शुभ्रा - तो अब तक...
नंदिनी - भाभी मैं खुद को किसी आम से तुलना कर रही थी....
पर घूमने तो मैं आपके साथ ही शुरू करूंगी....
नंदिनी शुभ्रा को बिठाती है और अपना सिर उसके गोद में रख देती है l
शुभ्रा उसके सर को सहलाते हुए - अच्छा रूप...
नंदिनी - हूँ..
शुभ्रा - तेरे बचपन की बेवक़ूफ़ीयाँ भले ही मासूमियत से भरा हो.... पर पूरी तो नहीं होती थी ना.... उस महल में....
नंदिनी - नहीं भाभी.... कोई था जो मेरी खुशी के लिए... वह बेवकुफी भरी मांग को पूरी करने की कोशिश करता था....
शुभ्रा - अच्छा... ऐसा कौन था...
नंदिनी - पता नहीं... मुझे उसका नाम मालुम नहीं है...
शुभ्रा - कैसे... कितने दिन था तुम्हारे साथ या पास....
नंदिनी - मालुम नहीं... शायद सात या आठ साल...
शुभ्रा - अरे बाप रे... और.. तु उसका नाम भी नहीं जानती... या याद नहीं...
नंदिनी - ऐसी बात नहीं भाभी.... मेरी माँ की देहांत के बाद... मैं अकेली हो गई थी... सिर्फ चाची माँ से चिपकी रहती थी.... यहाँ जिस तरह तुम हो उसी तरह महल में चाची माँ होती थी...
एक दिन छोटे राजा मतलब चाचा जी एक लड़के को लेकर मेरे पास आए.... जिसके सिर पर पट्टी बंधी हुई थी.... उसे मेरी पढ़ाई के लिए महल में लाया गया था....
मैंने जब उसका नाम पूछा तो वह कहते कहते चुप हो गया था.... फिर उसने मुझे कहा कि वह अनाम है..... जो उसे पढ़ाने आया है... (हंसते हुए, आगे चल कर पता चला, अनाम का मतलब कोई नाम नहीं हैं) उसने मुझसे झूट बोला था.... पर फ़िर भी... भाभी... उस महल में... मैं सबसे डरती थी.... कहीं कोई मुझ पर गुस्सा ना हो जाए.... पर वह था जिससे मेरे गुस्से, और दुख का परवाह था.... मैं रोती थी तो वह मुझे हँसता था....

शुभ्रा - अच्छा तो फिर तेरी जिंदगी से... वह दूर कैसे चला गया...
नंदिनी - वह जब मैं बारह साल की हुई... तब मुझे रजोदर्शन(Menarche) हुआ...
तो महल में उसका प्रवेश वर्जित हो गया...
इस बात को आठ साल हो चुके हैं...
शुभ्रा - ओह तो बचपन में ही राजकुमारी जी की नखरे कोई उठाता था....
नंदिनी - हाँ... भाभी... एक वही था... जिस पर मैं रूठ सकती थी... गुस्सा हो सकती थी... और पूरे महल में एक वही था जो मुझे मनाता था....रोने नहीं देता था...
शुभ्रा - तो क्या हुआ, आज जवानी में तुझे मनाने के लिए छह छह हैं....
नंदिनी - छह कौन...
शुभ्रा - वह तेरे कॉलेज के पांच पकाउ और छटी मैं....
दोनों मिलकर हंस देते हैं
Fantastic update bro..keep writing
 

Kala Nag

Mr. X
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👉दसवां अपडेट
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वीर म्युनिसिपल ऑफिस के अंदर आता है और पिनाक सिंह के चैम्बर की तरफ बढ़ता है l बाहर ऑफिस के एक मुलाजिम उसे देखते ही सलाम ठोकता है l
एक आदमी - यहाँ कैसे आना हुआ राजकुमार जी....
वीर - अपने ही रियासत में... किसीकी इजाज़त लेने की जरूरत है क्या...
आदमी - नहीं नहीं.... ऐसे ही पुछ लिया.... वैसे बहुत दिनों बाद आप यहाँ आये हैं....
वीर - राज कुमार हैं.... अपनी प्रजा के हालत का जायजा लेने आये हैं...
वैसे मेयर जी अपने चेंबर ही हैं ना.......
आदमी - जी नहीं राजकुमार जी..... अभी पार्टी मुख्यालय से अध्यक्ष जी का बुलावा आया था.... इसलिए वह वहाँ गए हैं....
वीर - अच्छा..... कब तक लौट सकते हैं...
आदमी - यह मैं कैसे बता सकता हूँ.... हाँ आप चाहें तो उनके चेंबर में उनका इंतजार कर सकते हैं....
वीर - हाँ... यही ठीक रहेगा....
इतना कह कर वीर पिनाक सिंह के चेंबर में घुस जाता है l अंदर ऐसी चालू कर पिनाक सिंह के चेयर पर बैठ जाता है l थोड़ी देर बाद वही आदमी एक कुल ड्रिंक का बॉटल लेकर आता है और टेबल पर रख देता है l
वीर - और स्वाइं क्या चल रहा है...
स्वाइं - सब आपकी कृपा है....
वीर - (कुल ड्रिंक पीते हुए) ह्म्म्म्म अच्छा... मेयर साहब कुछ काम रह गया है.. क्या... जो मुझसे हो...
स्वाइं- पता नहीं... एक औरत अभी थोड़ी देर पहले अपनी पोती को लेकर आयी है.... मेयर साहब के पास....
वीर - (उसकी आंखों में एक चमक आ जाती है) क्यूँ... किस लिए....
स्वाइं- वो... कल... मेयर साहब... एक साइट पर गए थे.... वहीँ एक औरत से मिले... उसके दुख देख कर.... उसे और उसकी पोती को आज बुलाया था.... शायद कहीं नौकरी पे लगा दें...
वीर - अरे.... मेयर साहब के पास... कहाँ नौकरी है... नौकरी तो हमारे पास है..... जाओ अगर नौकरी की ही बात है.... तो मैं भी उस लड़की को एंनगेज कर सकता हूँ....
स्वाइं - यह तो और भी अच्छी बात है.... मैं अभी उन दादी पोती को आपके पास भेजता हूँ....
इतना कह कर स्वाइं वहाँ से निकल जाता है l वीर अपना कुल ड्रिंक खतम करने में मसरूफ हो जाता है l थोड़ी देर बाद स्वाइं दो औरतों के साथ रूम में आता है l वीर देखता है एक अधेड़ औरत जो थोड़ी बीमार लग रही है और उसके साथ एक लड़की साँवली सी, पर तीखे नैन नक्स के साथ दुबली पर जहां भरी होनी चाहिए वहीं पर भरी हुई है l
उस लड़की को देखकर वीर मन ही मन बोला - परफेक्ट.... क्या बॉडी है और क्या बम्पर है... ह्म्म्म्म परफेक्ट...
वह बुढ़ी औरत और वह लड़की दोनों वीर को नमस्कार करते हैं l
वीर - जी नमस्ते... आइए.. बैठिए...
औरत - जी नहीं राजकुमार जी.... आप के सामने हम खड़े जो कर बात कर पा रहे हैं... यही हमारी अहोभाग्य है....
वीर - आरे.... आप कौनसे ज़माने की बात कर रहे हैं....
औरत - नहीं राज कुमार जी... हम छोटे लोग हैं.... हमे आप अपने जुते तक ही रहने दीजिए...
वीर - ठीक है.... कहिए आपको कैसी मदत चाहिए....
औरत हाथ जोड़ कर अपनी पोती की ओर इशारा करते हुए - राजकुमार जी यह मेरी पोती है... बचपन से अनाथ है बिचारी.... अब मैं भी कब तक इसके साथ रह पाउंगी नहीं जानती.... इसे कहीं नौकरी पर रख दीजिए.... ताकि आगे चलते उसकी शादी हो जाए.... तो मैं आराम से पूरी जा कर मर सकूंगी...
वीर - (उस लड़की से) कहाँ तक पढ़ी हो....
लड़की - जी जी वो म मैट्रिक तक....
वीर - ह्म्म्म्म आगे क्यों नहीं पढ़ी....
औरत - कैसे पढ़ती... पढ़ाई में बहुत कमजोर है.... मैट्रिक भी तीन बार में पास हुई है....
वीर - अच्छा.... ह्म्म्म्म... वैसे क्या नाम बताया तुमने....
लड़की - जी अभी तक बताया नहीं मैंने....
वीर - अच्छा... अरे.. हाँ... मैंने पूछा कहाँ है....ह्म्म्म्म बोलो फ़िर...
लड़की-जी क्या....
वीर - अरे.... तुम्हारा नाम...

लड़की-जी मेरा नाम अनु है..
वीर - बड़ा प्यारा नाम है.... मेरा मतलब है... बहुत ही सुंदर नाम है... वैसे दादी जी सिर्फ मैट्रिक पास कर लेने से... वह भी तीन बार में..... क्या लगता है... नौकरी मिल जाएगी...
औरत - अब क्या बताऊँ... राज कुमार जी... बाप इलेक्ट्रिसियन था एक दिन बिजली की खंबे पर ही चल बसा और इसकी माँ अपने पति के दुख में चल बसी...
इस अभागिन को मेरे पल्लू से बांध गए... लड़की मंद बुद्धि है..... छोटी सी उम्र में माँ बाप देहांत के बाद मेरे लाड-प्यार से सांसारिक ज्ञान से भी दूर रही.... अब मुझे कब बुलावा आ जाए.... अगर यह किसी किनारे लग जाए... तो मैं समझूँगी चन्द्रभागा नहा ली मैंने....
वीर - तो व्याह क्यूँ नहीं करा दिया...
औरत - व्याह ही तो कराना है.. राजकुमार जी.... फूटी कौड़ी नहीं है... अगर नौकरी लग गई तो शायद... नौकरी को देख कर कोई व्याह करले.... आप तो जानते हैं... जवान लड़की अगर घर में रहेगी.... तो उस पर आसपास की भी बुरी नजर लग सकती है... इसलिए... अब आप से ही आस है....
वीर - ठीक है अनु.... समझो तुम्हें नौकरी मिल गई..... कल ठीक साढ़े दस बजे ESS ऑफिस में आ कर मुझसे मिलो.... तुम्हें... नौकरी मिल जाएगी....

औरत - जुग जुग जियो राजकुमार.... आपको यह बुढ़िया आशीर्वाद ही दे सकती है....
वीर - बस बस यही काफी है.... अच्छा अब आप जाइए....
अनु और उसकी दादी वीर को नमस्कार कर बाहर निकल जाते हैं l
स्वाइं - वाह राजकुमार जी वाह... आपने तो उनके दुख दूर कर दिए..
वीर - अरे नौकरी जैसी छोटी छोटी बातों के लिए मेयर साहब को मेरे पास भेजना चाहिए.... ना कि खुद इस बात में सर खपाना चाहिए....
अच्छा जाओ यार कुछ गरमा गरम भेजो....
स्वाइं- जी राजकुमार जी...
स्वाइं बाहर चला जाता है l वीर अनु के ख़यालों में खो जाता है, अपने पैंट के भीतर करवट ले रहा लंड को मसलने लगा और बुदबुदाने लगता है - क्या गरम माल थी.... उफ... कौन कहता है रंग ही सब कुछ है.... साँवली सलोनी... वह भी हर जगह से दूसरी कसी हुई..... ओ... ह.. मैंने कितना सम्भाला खुदको... पता नहीं कुछ और देर रहती तो उठा कर यहीं पटक कर चोद देता....
तभी दरवाजा खुलता है l वीर देखता है अनु अंदर झाँक रही है l
वीर - क्या हुआ अनु....
अनु - जी मैं अंदर आऊं...
वीर - हाँ आओ...
अनु आकर वीर के पास आती है और झट से उसके पैर पकड लेती है l
वीर - अरे.. अरे... यह क्या कर रही हो....
अनु - आप नहीं जानते राजकुमार जी...(वीर के पैर पकड़े हुए और अपनी नजर झुकाए हुए) अपने मेरे और दादी के लिए क्या किया है... किस तरह आपका धन्यबाद अर्पण करूँ...
वीर - अररे... नजरें झुका कर क्यूँ बात कर रहे हो....
अनु- दादी ने कहा कि.... आप... अन्नदाता हैं... आपसे कभी नजरे नहीँ मिलाना चाहिए...
वीर के पैर पकड़े हुए अनु विनम्रता से और झुक गई तो वीर की नजर अनु के कुर्ते क्लीवेज से झाँकती हुई चुचों पर ठहर गई l वीर की आंखों में चमक आ गई,
बड़ी मुश्किल से वीर खुदको सम्भाला और अनु के चुचों को घूरते हुए अपने गले से थूक निगल कर कहा - अनु मुझसे तुम्हारा दुध.. ख.. (गले का खराश ठीक करते हुए) दुख देखा नहीं जा रहा है...
अनु वैसे ही वीर के पैर पकड़े हुए और नजरें झुका कर - दादी ठीक कह रही थी... आप बड़े लोग बड़े दिल वाले हैं... आज से आप हमारे मालिक हैं.....
वीर - (जुबान लड़खड़ाने लगी, मुहँ में लार भरने लगा) तुम्हारे भी तो कम नहीं है.... दुख.... कैसे उठाती हो इतने बड़े बड़े दुख.... अब बिल्कुल चिंता मत करो... मैं अपने दोनों हाथों से उठाऊंगा... तुम्हारे दुख...
अनु - जी मालिक.. जी..
वीर - अनु अब तुम जाओ....और थोड़ी देर अगर तुम रुकी तो तुम्हारे दुखों को देख कर रो दूँगा...
जाओ अनु जाओ और कल ESS ऑफिस पहुंच जाना... अपने वक्त पर...
अनु - जी मालिक....
अनु उठती है और अपना सर झुकाए बाहर निकलने को होती है l
वीर - सुनो अनु...
अनु - जी मालिक....
वीर अनु के नर्म मुलायम हाथों को पकड़ता है और उसके हाथों में कुछ पैसे रख देता है l
वीर - यह लो... यह शगुन है... तुम्हारे नए जीवन की.... कल याद कर के आ जाना...
अनु ने अपना सर हिला कर बाहर निकल गई, उसके जाते ही वीर जल्दी से वश रूम में घुस जाता है और अपना पैंट निकाल कर मूठ मारने लगता है l रिलेक्स होने के बाद अपना हाथ साफ करता है l उसे बाहर कुछ चिल्लाने की आवाज आती है l वीर वश रूम से बाहर आता है तो पिनाक सिंह को स्वाइं पर चिल्लाते देखता है l
वीर - क्या हुआ छोटे राजा जी...
पिनाक - तुम मेरे फटे में क्यूँ टांग अड़ाने लगे....

पिनाक - स्वाइं तुम बाहर जाओ... (स्वाइं बाहर निकल जाता है, पिनाक वीर के तरफ मुड़ कर) बाथरूम जा कर हल्के हो लिए....
वीर - हाँ....

पिनाक - तुम कबसे लोगों को नौकरी बांटने लगे....
वीर - सेक्योरिटी सर्विस मेरे हिस्से में आता है... और लड़की के पास क्वालिफीकेशन भी नहीं है... इसलिए मैंने उसे फिमेल ग्रुप में शामिल करने का फैसला किया है...
पिनाक - अच्छा.... और वह वहाँ पर क्या करेगी....
वीर - आज कल मेरा स्ट्रेस लेवल बहुत बढ़ रहा है... डॉक्टर ने मुझे स्माइली बॉल दबाते रहने को कहा है...
पिनाक - अच्छा तो जनाब को BP की शिकायत है...
वीर - हाँ... डॉक्टर ने यह भी कहा है.. चाहे रोज बॉल मिले ना मिले... पर रोज दबाते रहना चाहिए... इसलिए वह लड़की परफेक्ट है...
पिनाक - यू...(गुस्से से टेबल पर रखे फाइल को नीचे फेंक देता है)
तभी टेबल पर रखी फोन बजने लगती है l पिनाक गुस्से से फोन को स्पीकर पर डालता है और चिल्ला के पूछता है - हैलो....
पिनाक की यह हालत देख कर वीर मन ही मन मुस्कराने लगता है l फोन के दूसरे तरफ कोई जवाब नहीं आते देख फिर से चिल्लाता है - हैलो कौन है..
फोन - चिल्ला क्यूँ रहा है बे.. किसीने तेरी मार कर पैसे नहीं दी है क्या....
पिनाक - कौन है बे हरामी... किसकी मौत आयी है.. जो हमसे ऐसी बात कर रहा है...
फोन - मैं तेरी मौत बोल रहा हूँ...
पिनाक - (झल्ला कर) कौन है कुत्ते...
फोन - मैं तेरा कर्मा....
पिनाक - अबे पागल तु जानता भी है... तु किससे बात कर रहा है...
फोन - पिनाक सिंह क्षेत्रपाल... मेयर भुवनेश्वर से बात कर रहा हूँ... जिसके दुकान पर बहुत जल्द लात मारने वाला हूँ....
पिनाक - तु सच में पागल हो गया है.... क्षेत्रपाल हूँ मैं क्षेत्रपाल... यह जान कर भी तुने फोन पर बकवास कर मेरा वक्त बर्बाद करने की जुर्म में.... तुझे तेरे खानदान समेत नर्क भेज दिआ जाएगा.. ...
फोन - हा हा हा... कितना अच्छा जोक मारा... पास होता तो तुझे टीप देता... हा हा हा.. अच्छा... चल...तेरे बकचोदी के जुर्म में अगले हफ्ते तुझ पर जानलेवा हमला होगा....
पिनाक - क्या...
फोन - तैयार रहना बे हरामी...
फोन कट जाता है l वीर जो अब तक चुपचाप सुन रहा था, अब कुछ सोचने पर मजबूर हो गया l
पिनाक - प्रांक कॉल था...

वीर - (अपना सर ना में हिलाते हुए) मुझे नहीं लगता.... जरूर कोई नया दुश्मन है... पता लगाना होगा.....

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किचन में प्रतिभा बर्तन साफ कर रही है l पास खड़ी वैदेही घूर कर देख रही है l
प्रतिभा - तू चाहे कैसे भी देख... बर्तन में तुझे मांजने नहीं देने वाली...
वैदेही - पर क्यूँ मासी....
प्रतिभा - आज तु मेहमान... बनने का लुफ्त उठा ले.... आगे से जब आयेगी... मेजबान बन जाना.... पर आज नहीं...
वैदेही - वाह इसे कहते हैं चालाकी.... मुझे गिल्टी फिल् करवा कर... फिर से आने का फरमान जारी कर दिया....
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... अब समझी.... तेरा पाला किसी वकील से पड़ा है...
दोनों हंसने लगते हैं l
प्रतिभा - अच्छा... मेरा काम खतम हो गया....
चल बैठक में बैठते हैं... और तुझसे तेरी कहानी सुनते हैं....
वैदेही - रुकिए मासी...
प्रतिभा - अब क्या हुआ...
वैदेही - मासी... मेरे ज़ख्म बहुत गहरे हैं... आज अगर इस बंद चारदीवारी में खुरचती हूँ... तो दिलसे, आंखों से खुन की फब्बारें निकलेगी.... कहीं बाहर चलते हैं... मैं आपको वहीँ सब बताने की कोशिश करूंगी....

प्रतिभा उसे देखती है l वैदेही के चेहरे पर आ रहे भावों को देख कर उसे कहती है - अच्छा चल.... कहीं बाहर चलते हैं.... मैं सेनापति जी को बोल देती हूँ... फिर बाहर निकलते हैं...

प्रतिभा किचन से बाहर निकल कर बेडरुम से कपड़े बदल कर तुरंत आ जाती है और तापस को आवाज देती है - सेनापति जी....
तापस - जी... जी कहिए... क्या खिदमत करें आपकी...
प्रतिभा - हो गया...
तापस - अभी कहाँ...
प्रतिभा - ओह ओ... कुछ तो शर्म करो... भतीजी के सामने कुछ भी...
तापस - अरे वैदेही को मालूम है कि मैं उसकी मासी से बात कर रहा हूँ... क्यूँ वैदेही...
प्रतिभा - सेना... पति... जी..
तापस - अच्छा आप कहिए... क्या.... हुआ
प्रतिभा - हम दोनों बाहर जा रहे हैं.... आते आते थोड़ी देर हो जाएगी...
तापस-उम्र की इस मोड़ पर... तुम मुझे अकेले में किसके सहारे छोड़े जा रहे हो...
प्रतिभा कुछ नहीं कहती l नथुने फूला कर तापस को घूरने लगती है l तापस किसी भीगी बिल्ली के जैसे अपने कमरे में घुस जाता है l
कुछ देर से पति पत्नी की नोक झोंक देख कर बड़ी देर से अपनी हंसी रोके रखी थी वैदेही l तापस के कमरे में घुसते ही जोर जोर से अपना पेट पकड़ कर हंसने लगती है l
प्रतिभा - ठीक है ठीक है ज्यादा दांत मत दिखा... चल बाहर चलते हैं.....

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रॉकी अपने सभी दोस्तों को बारी बारी से फोन लगाता है और सबको कंफेरेंसिंग में लेता है l
रॉकी - मित्रों,मेरे चड्डी बड्डी लवड़ो, खुशामदीन...
भूल ना जाना... आज तुम सबको मीटिंग में है आना... आज हमारी मीटिंग है...
राजु - अच्छा... इसका मतलब... एक हफ्ता हो गया...
आशीष - यह दिन भी कितने तेजी से गुजर रहे हैं....
रॉकी - ऑए... तेजी से मतलब.... अबे हम सबने एक मिशन शुरू की है... उसे अंजाम तक पहुंचाने का काम बाकी है.... और तुम कमीनों ने वादा जो किया है... मुझे और नंदिनी को मिलाने की...
सभी दोस्त - अच्छा अच्छा... आज विकेंड है... और सब वहीँ मिलेंगे मॉकटेल पार्टी में...
सुशील - अबे रॉकी... तु.. मॉकटेल पर ही क्यु रुक गया है... कॉकटेल तक कब पहुंचेगा...
रॉकी - ना भाई ना... मुझे सिर्फ नंदिनी के नशे में झूमना है... किसी और नशे में नहीं....
रवि - वाव रॉकी वाव... इसलिए तो हम चड्डी बड्डी हैं.... और अपना टेढ़े मेढ़े येड़े ग्रुप का मोटो है....
वन फॉर ऑल.. ऑल फॉर वन है
सभी - यी.... ये... (चिल्लाने लगते हैं)

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गाड़ी आकर दया नदी के पास रुकती है l प्रतिभा और वैदेही दोनों गाड़ी से उतर कर नदी के किनारे पर एक पेड़ के नीचे वाले एक घाट के पत्थरों पर आ कर बैठते हैं l
प्रतिभा - वैदेही देख इस नदी को.... इस नदी का नाम पुरे इतिहास में प्रसिद्ध है... दया नदी....
वैदेही इसी नदी के किनारे इतिहास का वह प्रसिध्द कलिंग युद्ध हुआ था.... जब अशोक ने कौरबकी के लिए पुरे कलिंग को लहू-लुहान कर दिया था...... यह नदी उस युद्ध में मरने वाले और घायल होने वालों के रक्त से लाल हो गया था.... जिसे देख कर चंडा अशोक, धर्माशोक में परिवर्तित हो गया था......
तूने कहा था कि तेरे सोये ज़ख्मों से जो खुन की फव्वारे निकलेंगे उसे उस घर की चारदीवारी समेट नहीं पाएगी.....
पर यह दया नदी है.... यह तेरे दुख सुन कर तेरे लहू को निगल लेगी.... देखना....
प्रतिभा यह सब बिना वैदेही को देख कर कहती चली गई l अपनी बात खतम करने के बाद वैदेही को देखने लगी l वैदेही जो अब तक एक मूक गुड़िया की तरह सुन रही थी, प्रतिभा से अपना नजर हटा कर दया नदी को देखने लगी l
(वैदेही अपना अतीत कुछ फ्लैश बैक में और कुछ वर्तमान में रहकर कहेगी)
वैदेही - मासी क्या बताऊँ, कहाँ से बताऊँ.... जब से होश सम्भाला मैंने खुद को एक महल में पाया... मेरी माँ मेरे पास कभी कभी ही आ पाती थी... मेरे पास मेरी देखभाल के लिए एक औरत हमेशा रहती थी.... मैं उसे गौरी काकी कहा करती थी.....
पर मैंने कभी अपने पिता को नहीं देखा.... ना मेरे कोई दोस्त थे ना ही कोई भाई बहन और ना ही कोई और रिश्तेदार....
सिर्फ़ दो ही औरत जिनके पास मेरी पूरी दुनिया थी.... एक मेरी माँ और एक गौरी काकी....
एक दिन गौरी काकी ने आकर मुझसे कहा कि मेरा या तो कोई बहन या भाई आनेवाले हैं...
मैं खुश हो गई.... अब मेरी माँ मेरे साथ रहने जो लगी थी... मैं देख रही थी माँ का पेट बढ़ रहा था.... मुझे बस इतना मालुम था... मेरा भाई या बहन कोई तो इस पेट में हैं.... जिसके बाहर आते ही मुझे उसका खयाल रखना होगा.... जैसे काकी मेरी रखती है.... मैं काकी के बनाए हुए कपड़ों के गुड्डे गुड्डीयों को अपना भाई बहन बना कर रोज खेला करती थी....
एक दिन माँ का दर्द उठा.... तब कुछ औरतें आयीं और माँ को कहीं ले गईं....
अगले दिन काकी रोती हुई मेरे पास आई और बिना कुछ बताए मुझे अपने साथ ले गई l मैं बचपन से महल के एक हिस्से में पल बढ़ आयी थी.... पर काकी जिस हिस्से में ले कर आई थी वहाँ पर मैं पहली बार आई थी.... काकी मुझे एक कमरे में ले गई... मैंने वहाँ पर देखा मेरी माँ का रो रो कर बहुत बुरा हाल हो गया था.... उसके आँखों में आंसू सुख चुके थे... उस कमरे में कुछ टूटे हुए कांच गिरे हुए थे......
मैंने माँ को पुकारा... माँ ने मेरी तरफ देखा.... अपनी बाहें फैला कर मुझे अपने पास बुलाया.... मैं भाग कर माँ के गले लग गई.... माँ मुझे गले से लगा कर बहुत देर तक रोती रही.... फिर अचानक मुझे चूमने लगी.... चूमते चूमते मेरे माथे पर एक लंबा चुंबन जड़ा.... फ़िर पता नहीं क्या हुआ माँ ने एक कांच का टुकड़ा उठाया और मेरे दाहिने हाथ में गड़ा दिया.... (वैदेही ने अपने दाहिने हाथ पर एक कटा हुआ पुराना निसान प्रतिभा को दिखाया) मेरे हाथ में कांच का टुकड़ा घुसा हुआ था.... मैं जोर जोर से चिल्ला कर रो रही थी.... यह ज़ख्म देते हुए मेरी माँ ने मुझसे कहा - देख वैदेही मैंने तुझे यह ज़ख़्म इसलिए दिआ ताकि तु यह बात याद रखे.... अगर भूल भी जाएगी तो यह ज़ख़्म तुझे मेरी यह बात याद दिलाती रहेगी....
इतना कह कर मेरी माँ ने अपनी साड़ी से एक टुकड़ा फाड़ कर मेरी हाथ में पट्टी बांध दी.... फिर मेरे चेहरे को अपने दोनों हाथों से लेकर कहा - मेरी बच्ची... मैं मजबूर हूँ... इसके सिवा कोई और चारा नहीं था.... उन्होंने तेरे भाई को मार डाला.... (इतना सुनते ही मेरा रोना बंद हो गया, मुझे ऐसा लगा जैसे किसीने मेरे कानों में जलता हुआ कोयला डाल दिया, माँ फिर कहने लगी) बेटी तुझे यह काकी यहाँ से दूर छोड़ देगी.... फिर तु कहीं भी चले जाना.... मगर मुझे वचन दे.... की तु कभी भी... इस रंग महल को लौट कर नहीं आएगी.... वचन दे... (माँ ने हाथ बढ़ाया पर मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था, मैंने बस अपना हाथ माँ के हाथ में रख दिया, फिर माँ ने रोते हुए मुझे अपने सीने से लगाया और कहा) बेटी मुझे माफ कर देना... मैं तेरे भाई को ना बचा पाई... अगर तु यहीं रहेगी तो मैं तुझे भी ना बचा पाऊँगी..... इसलिए तुझे काकी बाहर तक छोड़ देगी.... फिर तु पीछे बिना मुड़े यहाँ से चली जा.... फिर कभी मत आना... तुझे कसम है.... अपनी माँ की... तु कभी वापस मत आना....
फिर माँ ने एक पोटली मेरे हाथ में दी और काकी के साथ भेज दिया.... काकी ने मुझे अंधेरे में कुछ दूर ले जाकर मुझे छोड़ दिया....
काकी - जा वैदेही जा.... यहाँ सिर्फ़ राक्षस रहते हैं.... अपनी माँ की बात याद रखना.... कुछ भी हो जाए वापस मत आना....
इतना कह कर काकी भी वापस चली गई लेकिन मैं सिर्फ पांच साल की लड़की, अपनी ज़ख्मी हाथ में पोटली लिए बिना पीछे मुड़े चली जा रही थी.... पता नहीं कितनी देर चलती रही... मुझे कमज़ोरी मेहसूस होने लगी फ़िर मैं एक घर के आँगन के बाहर सो गई... फ़िर जब नींद टूटी तो मैंने खुद को एक बिस्तर पर पाया... मेरे सर पर कोई अपने हाथ से सहला रहा था... मैंने अपने हाथ को देखा माँ की कपड़े के पट्टी के जगह एक सफेद पट्टी बंधी हुई थी.... अपनी आँखे ऊपर कर देखा तो मेरे सिरहाने एक देवी बैठी हुई थी... मेरे मुहँ से निकल गया माँ...
वह देवी इतना सुनते ही आवाज दी अजी सुनते हो... लड़की को होश आ गया... मुझे अभी भी कमज़ोरी महसूस हो रही थी... तभी एक आदमी अपने हाथ में एक दुध की ग्लास लाकर उस देवी को दिए... उस देवी ने मुझे उठा कर बिठाया और ग्लास देते हुए कहा - इसे पी ले बेटी यह हल्दी व लौंग वाला दुध है... सुबह तक तेरी कमजोरी भाग जाएगी.... मैंने वह दुध पी कर सो गई....

सुबह जब जगी तो उसी देवी को फिर अपने सिरहाने पाया...
उस देवी ने मुझ से मेरी हालत के बारे में पूछा.... और मेरे साथ जो बिता था मैंने सब बता दिआ.... सब सुनते ही उस देवी ने आवाज़ दी - सुनिए.... फिर वही आदमी आया, उसे देखते ही देवी ने कहा - यह वैदेही है और आज से यह हमारी बेटी है....
वैदेही आज से मैं तेरी माँ और ये तेरे बाबा हैं....

मुझे सपना जैसा लग रहा था l जैसे कोई कहानी की तरह जो मुझे कभी सुलाने के लिए काकी सुनाया करती थी.....

क्यूंकि मैं बेशक महल के किसी अनजान कोने में जन्मी, पली थी पर सिर्फ माँ और काकी को छोड़ किसीको ना जानती थी ना ही किसीसे माँ मिलने देती थी.... पर यहाँ तो रिश्तों का अंबार था... घर के भीतर मेरे नए माँ और बाबुजी.... बाहर...
मौसा, मौसी, भैया, भाभी, मामा, मामी, चाचा, चाची, नाना, नानी ना रिश्ते कम थे ना लोग.... जो भी दिखते थे हर कोई किसी ना किसी रिश्ते में बंध जाता था...
सच कहूँ तो मेरा परिवार (अपने दोनों हाथों को फैला कर) इतना बड़ा हो गया था....
एक दिन बाबुजी मुझे स्कुल ले गए... मेरा एडमिशन कराने.... मेरा नाम लिखवाया "वैदेही महापात्र"
पिता का नाम - रघुनाथ महापात्र
माता का नाम - सरला महापात्र
मैं स्कुल में दोस्त बनाये... अब मेरे दोस्त सिर्फ अपने गली मोहल्ले में ही नहीं थे.... स्कुल में भी थे....
एक दिन जब स्कुल से लौटी तो माँ को बिस्तर पर पाया... पड़ोस की मौसी पास माँ से कुछ गपशप कर रही थी...
मैंने माँ से पूछा - माँ आपको क्या हुआ...
माँ ने हंस कर मुझे पास बिठाया और पूछा - अच्छा बोल तुझे भाई चाहिए या बहन...
मुझे भाई का ग़म था इसलिए तपाक से बोला - मुझे भाई चाहिए...
माँ और मौसी दोनों हंस पड़े...
मौसी - अगर बहन हुई तो...
मैं - तो भी चलेगा... लेकिन बेटी तो मैं हूँ... तो माँ और बाबा को बेटा चाहिए कि नहीं...
माँ ने बड़े प्यार से मेरे सर पर हाथ फिराया और कहा - भाई हो या बहन... भगवान हमे जो भी देगा... तु उसे बहुत प्यार करना... ह्म्म्म्म
मैंने हाँ में सर हिलाया... जब शाम को बाबुजी आए मैंने उनसे उछल कर कहा जानते हो बाबा मेरी बहन या भाई आने वाले हैं...
बाबा - अच्छा हमे तो मालुम ही नहीं है.... क्या आप हमे अपने भाई से खेलने दोगे....
मैं - हाँ हाँ क्यूँ नहीं...
माँ और बाबुजी दोनों हंस पड़े....
रात को जब हम सो रहे थे,मैं नींद में नहीं थी पर आँखे मूँदे सोई हुई थी और माँ मेरे सर पर हाथ फ़ेर रही थी तब माँ ने बाबुजी से कहा - देखा वैदेही के कदम कितने शुभ हैं.... आते ही हमे माँ बाप की खुशियाँ देती... और आज इतने सालों बाद मैं सच में माँ बन रही हूँ....
बाबा - हाँ सरला.... लक्ष्मी है लक्ष्मी हमारी वैदेही....
ऐसे बातेँ करते हुए सब सो गए पर मुझे माँ और बाबा के व ह बाते गुदगुदा रहे थे....
पर दुखों को तो जैसे मेरी हर छोटी छोटी खुशी से बैर था....
फिर मेरे जीवन में दुख का आना बाकी था
 

Kala Nag

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Fantastic update bro..keep writing
ଧନ୍ୟବାଦ ସୌରଭ ଭାଇ
 
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👉दसवां अपडेट
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वीर म्युनिसिपल ऑफिस के अंदर आता है और पिनाक सिंह के चैम्बर की तरफ बढ़ता है l बाहर ऑफिस के एक मुलाजिम उसे देखते ही सलाम ठोकता है l
एक आदमी - यहाँ कैसे आना हुआ राजकुमार जी....
वीर - अपने ही रियासत में... किसीकी इजाज़त लेने की जरूरत है क्या...
आदमी - नहीं नहीं.... ऐसे ही पुछ लिया.... वैसे बहुत दिनों बाद आप यहाँ आये हैं....
वीर - राज कुमार हैं.... अपनी प्रजा के हालत का जायजा लेने आये हैं...
वैसे मेयर जी अपने चेंबर ही हैं ना.......
आदमी - जी नहीं राजकुमार जी..... अभी पार्टी मुख्यालय से अध्यक्ष जी का बुलावा आया था.... इसलिए वह वहाँ गए हैं....
वीर - अच्छा..... कब तक लौट सकते हैं...
आदमी - यह मैं कैसे बता सकता हूँ.... हाँ आप चाहें तो उनके चेंबर में उनका इंतजार कर सकते हैं....
वीर - हाँ... यही ठीक रहेगा....
इतना कह कर वीर पिनाक सिंह के चेंबर में घुस जाता है l अंदर ऐसी चालू कर पिनाक सिंह के चेयर पर बैठ जाता है l थोड़ी देर बाद वही आदमी एक कुल ड्रिंक का बॉटल लेकर आता है और टेबल पर रख देता है l
वीर - और स्वाइं क्या चल रहा है...
स्वाइं - सब आपकी कृपा है....
वीर - (कुल ड्रिंक पीते हुए) ह्म्म्म्म अच्छा... मेयर साहब कुछ काम रह गया है.. क्या... जो मुझसे हो...
स्वाइं- पता नहीं... एक औरत अभी थोड़ी देर पहले अपनी पोती को लेकर आयी है.... मेयर साहब के पास....
वीर - (उसकी आंखों में एक चमक आ जाती है) क्यूँ... किस लिए....
स्वाइं- वो... कल... मेयर साहब... एक साइट पर गए थे.... वहीँ एक औरत से मिले... उसके दुख देख कर.... उसे और उसकी पोती को आज बुलाया था.... शायद कहीं नौकरी पे लगा दें...
वीर - अरे.... मेयर साहब के पास... कहाँ नौकरी है... नौकरी तो हमारे पास है..... जाओ अगर नौकरी की ही बात है.... तो मैं भी उस लड़की को एंनगेज कर सकता हूँ....
स्वाइं - यह तो और भी अच्छी बात है.... मैं अभी उन दादी पोती को आपके पास भेजता हूँ....
इतना कह कर स्वाइं वहाँ से निकल जाता है l वीर अपना कुल ड्रिंक खतम करने में मसरूफ हो जाता है l थोड़ी देर बाद स्वाइं दो औरतों के साथ रूम में आता है l वीर देखता है एक अधेड़ औरत जो थोड़ी बीमार लग रही है और उसके साथ एक लड़की साँवली सी, पर तीखे नैन नक्स के साथ दुबली पर जहां भरी होनी चाहिए वहीं पर भरी हुई है l
उस लड़की को देखकर वीर मन ही मन बोला - परफेक्ट.... क्या बॉडी है और क्या बम्पर है... ह्म्म्म्म परफेक्ट...
वह बुढ़ी औरत और वह लड़की दोनों वीर को नमस्कार करते हैं l
वीर - जी नमस्ते... आइए.. बैठिए...
औरत - जी नहीं राजकुमार जी.... आप के सामने हम खड़े जो कर बात कर पा रहे हैं... यही हमारी अहोभाग्य है....
वीर - आरे.... आप कौनसे ज़माने की बात कर रहे हैं....
औरत - नहीं राज कुमार जी... हम छोटे लोग हैं.... हमे आप अपने जुते तक ही रहने दीजिए...
वीर - ठीक है.... कहिए आपको कैसी मदत चाहिए....
औरत हाथ जोड़ कर अपनी पोती की ओर इशारा करते हुए - राजकुमार जी यह मेरी पोती है... बचपन से अनाथ है बिचारी.... अब मैं भी कब तक इसके साथ रह पाउंगी नहीं जानती.... इसे कहीं नौकरी पर रख दीजिए.... ताकि आगे चलते उसकी शादी हो जाए.... तो मैं आराम से पूरी जा कर मर सकूंगी...
वीर - (उस लड़की से) कहाँ तक पढ़ी हो....
लड़की - जी जी वो म मैट्रिक तक....
वीर - ह्म्म्म्म आगे क्यों नहीं पढ़ी....
औरत - कैसे पढ़ती... पढ़ाई में बहुत कमजोर है.... मैट्रिक भी तीन बार में पास हुई है....
वीर - अच्छा.... ह्म्म्म्म... वैसे क्या नाम बताया तुमने....
लड़की - जी अभी तक बताया नहीं मैंने....
वीर - अच्छा... अरे.. हाँ... मैंने पूछा कहाँ है....ह्म्म्म्म बोलो फ़िर...
लड़की-जी क्या....
वीर - अरे.... तुम्हारा नाम...

लड़की-जी मेरा नाम अनु है..
वीर - बड़ा प्यारा नाम है.... मेरा मतलब है... बहुत ही सुंदर नाम है... वैसे दादी जी सिर्फ मैट्रिक पास कर लेने से... वह भी तीन बार में..... क्या लगता है... नौकरी मिल जाएगी...
औरत - अब क्या बताऊँ... राज कुमार जी... बाप इलेक्ट्रिसियन था एक दिन बिजली की खंबे पर ही चल बसा और इसकी माँ अपने पति के दुख में चल बसी...
इस अभागिन को मेरे पल्लू से बांध गए... लड़की मंद बुद्धि है..... छोटी सी उम्र में माँ बाप देहांत के बाद मेरे लाड-प्यार से सांसारिक ज्ञान से भी दूर रही.... अब मुझे कब बुलावा आ जाए.... अगर यह किसी किनारे लग जाए... तो मैं समझूँगी चन्द्रभागा नहा ली मैंने....
वीर - तो व्याह क्यूँ नहीं करा दिया...
औरत - व्याह ही तो कराना है.. राजकुमार जी.... फूटी कौड़ी नहीं है... अगर नौकरी लग गई तो शायद... नौकरी को देख कर कोई व्याह करले.... आप तो जानते हैं... जवान लड़की अगर घर में रहेगी.... तो उस पर आसपास की भी बुरी नजर लग सकती है... इसलिए... अब आप से ही आस है....
वीर - ठीक है अनु.... समझो तुम्हें नौकरी मिल गई..... कल ठीक साढ़े दस बजे ESS ऑफिस में आ कर मुझसे मिलो.... तुम्हें... नौकरी मिल जाएगी....

औरत - जुग जुग जियो राजकुमार.... आपको यह बुढ़िया आशीर्वाद ही दे सकती है....
वीर - बस बस यही काफी है.... अच्छा अब आप जाइए....
अनु और उसकी दादी वीर को नमस्कार कर बाहर निकल जाते हैं l
स्वाइं - वाह राजकुमार जी वाह... आपने तो उनके दुख दूर कर दिए..
वीर - अरे नौकरी जैसी छोटी छोटी बातों के लिए मेयर साहब को मेरे पास भेजना चाहिए.... ना कि खुद इस बात में सर खपाना चाहिए....
अच्छा जाओ यार कुछ गरमा गरम भेजो....
स्वाइं- जी राजकुमार जी...
स्वाइं बाहर चला जाता है l वीर अनु के ख़यालों में खो जाता है, अपने पैंट के भीतर करवट ले रहा लंड को मसलने लगा और बुदबुदाने लगता है - क्या गरम माल थी.... उफ... कौन कहता है रंग ही सब कुछ है.... साँवली सलोनी... वह भी हर जगह से दूसरी कसी हुई..... ओ... ह.. मैंने कितना सम्भाला खुदको... पता नहीं कुछ और देर रहती तो उठा कर यहीं पटक कर चोद देता....
तभी दरवाजा खुलता है l वीर देखता है अनु अंदर झाँक रही है l
वीर - क्या हुआ अनु....
अनु - जी मैं अंदर आऊं...
वीर - हाँ आओ...
अनु आकर वीर के पास आती है और झट से उसके पैर पकड लेती है l
वीर - अरे.. अरे... यह क्या कर रही हो....
अनु - आप नहीं जानते राजकुमार जी...(वीर के पैर पकड़े हुए और अपनी नजर झुकाए हुए) अपने मेरे और दादी के लिए क्या किया है... किस तरह आपका धन्यबाद अर्पण करूँ...
वीर - अररे... नजरें झुका कर क्यूँ बात कर रहे हो....
अनु- दादी ने कहा कि.... आप... अन्नदाता हैं... आपसे कभी नजरे नहीँ मिलाना चाहिए...
वीर के पैर पकड़े हुए अनु विनम्रता से और झुक गई तो वीर की नजर अनु के कुर्ते क्लीवेज से झाँकती हुई चुचों पर ठहर गई l वीर की आंखों में चमक आ गई,
बड़ी मुश्किल से वीर खुदको सम्भाला और अनु के चुचों को घूरते हुए अपने गले से थूक निगल कर कहा - अनु मुझसे तुम्हारा दुध.. ख.. (गले का खराश ठीक करते हुए) दुख देखा नहीं जा रहा है...
अनु वैसे ही वीर के पैर पकड़े हुए और नजरें झुका कर - दादी ठीक कह रही थी... आप बड़े लोग बड़े दिल वाले हैं... आज से आप हमारे मालिक हैं.....
वीर - (जुबान लड़खड़ाने लगी, मुहँ में लार भरने लगा) तुम्हारे भी तो कम नहीं है.... दुख.... कैसे उठाती हो इतने बड़े बड़े दुख.... अब बिल्कुल चिंता मत करो... मैं अपने दोनों हाथों से उठाऊंगा... तुम्हारे दुख...
अनु - जी मालिक.. जी..
वीर - अनु अब तुम जाओ....और थोड़ी देर अगर तुम रुकी तो तुम्हारे दुखों को देख कर रो दूँगा...
जाओ अनु जाओ और कल ESS ऑफिस पहुंच जाना... अपने वक्त पर...
अनु - जी मालिक....
अनु उठती है और अपना सर झुकाए बाहर निकलने को होती है l
वीर - सुनो अनु...
अनु - जी मालिक....
वीर अनु के नर्म मुलायम हाथों को पकड़ता है और उसके हाथों में कुछ पैसे रख देता है l
वीर - यह लो... यह शगुन है... तुम्हारे नए जीवन की.... कल याद कर के आ जाना...
अनु ने अपना सर हिला कर बाहर निकल गई, उसके जाते ही वीर जल्दी से वश रूम में घुस जाता है और अपना पैंट निकाल कर मूठ मारने लगता है l रिलेक्स होने के बाद अपना हाथ साफ करता है l उसे बाहर कुछ चिल्लाने की आवाज आती है l वीर वश रूम से बाहर आता है तो पिनाक सिंह को स्वाइं पर चिल्लाते देखता है l
वीर - क्या हुआ छोटे राजा जी...
पिनाक - तुम मेरे फटे में क्यूँ टांग अड़ाने लगे....

पिनाक - स्वाइं तुम बाहर जाओ... (स्वाइं बाहर निकल जाता है, पिनाक वीर के तरफ मुड़ कर) बाथरूम जा कर हल्के हो लिए....
वीर - हाँ....

पिनाक - तुम कबसे लोगों को नौकरी बांटने लगे....
वीर - सेक्योरिटी सर्विस मेरे हिस्से में आता है... और लड़की के पास क्वालिफीकेशन भी नहीं है... इसलिए मैंने उसे फिमेल ग्रुप में शामिल करने का फैसला किया है...
पिनाक - अच्छा.... और वह वहाँ पर क्या करेगी....
वीर - आज कल मेरा स्ट्रेस लेवल बहुत बढ़ रहा है... डॉक्टर ने मुझे स्माइली बॉल दबाते रहने को कहा है...
पिनाक - अच्छा तो जनाब को BP की शिकायत है...
वीर - हाँ... डॉक्टर ने यह भी कहा है.. चाहे रोज बॉल मिले ना मिले... पर रोज दबाते रहना चाहिए... इसलिए वह लड़की परफेक्ट है...
पिनाक - यू...(गुस्से से टेबल पर रखे फाइल को नीचे फेंक देता है)
तभी टेबल पर रखी फोन बजने लगती है l पिनाक गुस्से से फोन को स्पीकर पर डालता है और चिल्ला के पूछता है - हैलो....
पिनाक की यह हालत देख कर वीर मन ही मन मुस्कराने लगता है l फोन के दूसरे तरफ कोई जवाब नहीं आते देख फिर से चिल्लाता है - हैलो कौन है..
फोन - चिल्ला क्यूँ रहा है बे.. किसीने तेरी मार कर पैसे नहीं दी है क्या....
पिनाक - कौन है बे हरामी... किसकी मौत आयी है.. जो हमसे ऐसी बात कर रहा है...
फोन - मैं तेरी मौत बोल रहा हूँ...
पिनाक - (झल्ला कर) कौन है कुत्ते...
फोन - मैं तेरा कर्मा....
पिनाक - अबे पागल तु जानता भी है... तु किससे बात कर रहा है...
फोन - पिनाक सिंह क्षेत्रपाल... मेयर भुवनेश्वर से बात कर रहा हूँ... जिसके दुकान पर बहुत जल्द लात मारने वाला हूँ....
पिनाक - तु सच में पागल हो गया है.... क्षेत्रपाल हूँ मैं क्षेत्रपाल... यह जान कर भी तुने फोन पर बकवास कर मेरा वक्त बर्बाद करने की जुर्म में.... तुझे तेरे खानदान समेत नर्क भेज दिआ जाएगा.. ...
फोन - हा हा हा... कितना अच्छा जोक मारा... पास होता तो तुझे टीप देता... हा हा हा.. अच्छा... चल...तेरे बकचोदी के जुर्म में अगले हफ्ते तुझ पर जानलेवा हमला होगा....
पिनाक - क्या...
फोन - तैयार रहना बे हरामी...
फोन कट जाता है l वीर जो अब तक चुपचाप सुन रहा था, अब कुछ सोचने पर मजबूर हो गया l
पिनाक - प्रांक कॉल था...

वीर - (अपना सर ना में हिलाते हुए) मुझे नहीं लगता.... जरूर कोई नया दुश्मन है... पता लगाना होगा.....

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किचन में प्रतिभा बर्तन साफ कर रही है l पास खड़ी वैदेही घूर कर देख रही है l
प्रतिभा - तू चाहे कैसे भी देख... बर्तन में तुझे मांजने नहीं देने वाली...
वैदेही - पर क्यूँ मासी....
प्रतिभा - आज तु मेहमान... बनने का लुफ्त उठा ले.... आगे से जब आयेगी... मेजबान बन जाना.... पर आज नहीं...
वैदेही - वाह इसे कहते हैं चालाकी.... मुझे गिल्टी फिल् करवा कर... फिर से आने का फरमान जारी कर दिया....
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... अब समझी.... तेरा पाला किसी वकील से पड़ा है...
दोनों हंसने लगते हैं l
प्रतिभा - अच्छा... मेरा काम खतम हो गया....
चल बैठक में बैठते हैं... और तुझसे तेरी कहानी सुनते हैं....
वैदेही - रुकिए मासी...
प्रतिभा - अब क्या हुआ...
वैदेही - मासी... मेरे ज़ख्म बहुत गहरे हैं... आज अगर इस बंद चारदीवारी में खुरचती हूँ... तो दिलसे, आंखों से खुन की फब्बारें निकलेगी.... कहीं बाहर चलते हैं... मैं आपको वहीँ सब बताने की कोशिश करूंगी....

प्रतिभा उसे देखती है l वैदेही के चेहरे पर आ रहे भावों को देख कर उसे कहती है - अच्छा चल.... कहीं बाहर चलते हैं.... मैं सेनापति जी को बोल देती हूँ... फिर बाहर निकलते हैं...

प्रतिभा किचन से बाहर निकल कर बेडरुम से कपड़े बदल कर तुरंत आ जाती है और तापस को आवाज देती है - सेनापति जी....
तापस - जी... जी कहिए... क्या खिदमत करें आपकी...
प्रतिभा - हो गया...
तापस - अभी कहाँ...
प्रतिभा - ओह ओ... कुछ तो शर्म करो... भतीजी के सामने कुछ भी...
तापस - अरे वैदेही को मालूम है कि मैं उसकी मासी से बात कर रहा हूँ... क्यूँ वैदेही...
प्रतिभा - सेना... पति... जी..
तापस - अच्छा आप कहिए... क्या.... हुआ
प्रतिभा - हम दोनों बाहर जा रहे हैं.... आते आते थोड़ी देर हो जाएगी...
तापस-उम्र की इस मोड़ पर... तुम मुझे अकेले में किसके सहारे छोड़े जा रहे हो...
प्रतिभा कुछ नहीं कहती l नथुने फूला कर तापस को घूरने लगती है l तापस किसी भीगी बिल्ली के जैसे अपने कमरे में घुस जाता है l
कुछ देर से पति पत्नी की नोक झोंक देख कर बड़ी देर से अपनी हंसी रोके रखी थी वैदेही l तापस के कमरे में घुसते ही जोर जोर से अपना पेट पकड़ कर हंसने लगती है l
प्रतिभा - ठीक है ठीक है ज्यादा दांत मत दिखा... चल बाहर चलते हैं.....

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रॉकी अपने सभी दोस्तों को बारी बारी से फोन लगाता है और सबको कंफेरेंसिंग में लेता है l
रॉकी - मित्रों,मेरे चड्डी बड्डी लवड़ो, खुशामदीन...
भूल ना जाना... आज तुम सबको मीटिंग में है आना... आज हमारी मीटिंग है...
राजु - अच्छा... इसका मतलब... एक हफ्ता हो गया...
आशीष - यह दिन भी कितने तेजी से गुजर रहे हैं....
रॉकी - ऑए... तेजी से मतलब.... अबे हम सबने एक मिशन शुरू की है... उसे अंजाम तक पहुंचाने का काम बाकी है.... और तुम कमीनों ने वादा जो किया है... मुझे और नंदिनी को मिलाने की...
सभी दोस्त - अच्छा अच्छा... आज विकेंड है... और सब वहीँ मिलेंगे मॉकटेल पार्टी में...
सुशील - अबे रॉकी... तु.. मॉकटेल पर ही क्यु रुक गया है... कॉकटेल तक कब पहुंचेगा...
रॉकी - ना भाई ना... मुझे सिर्फ नंदिनी के नशे में झूमना है... किसी और नशे में नहीं....
रवि - वाव रॉकी वाव... इसलिए तो हम चड्डी बड्डी हैं.... और अपना टेढ़े मेढ़े येड़े ग्रुप का मोटो है....
वन फॉर ऑल.. ऑल फॉर वन है
सभी - यी.... ये... (चिल्लाने लगते हैं)

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गाड़ी आकर दया नदी के पास रुकती है l प्रतिभा और वैदेही दोनों गाड़ी से उतर कर नदी के किनारे पर एक पेड़ के नीचे वाले एक घाट के पत्थरों पर आ कर बैठते हैं l
प्रतिभा - वैदेही देख इस नदी को.... इस नदी का नाम पुरे इतिहास में प्रसिद्ध है... दया नदी....
वैदेही इसी नदी के किनारे इतिहास का वह प्रसिध्द कलिंग युद्ध हुआ था.... जब अशोक ने कौरबकी के लिए पुरे कलिंग को लहू-लुहान कर दिया था...... यह नदी उस युद्ध में मरने वाले और घायल होने वालों के रक्त से लाल हो गया था.... जिसे देख कर चंडा अशोक, धर्माशोक में परिवर्तित हो गया था......
तूने कहा था कि तेरे सोये ज़ख्मों से जो खुन की फव्वारे निकलेंगे उसे उस घर की चारदीवारी समेट नहीं पाएगी.....
पर यह दया नदी है.... यह तेरे दुख सुन कर तेरे लहू को निगल लेगी.... देखना....
प्रतिभा यह सब बिना वैदेही को देख कर कहती चली गई l अपनी बात खतम करने के बाद वैदेही को देखने लगी l वैदेही जो अब तक एक मूक गुड़िया की तरह सुन रही थी, प्रतिभा से अपना नजर हटा कर दया नदी को देखने लगी l
(वैदेही अपना अतीत कुछ फ्लैश बैक में और कुछ वर्तमान में रहकर कहेगी)
वैदेही - मासी क्या बताऊँ, कहाँ से बताऊँ.... जब से होश सम्भाला मैंने खुद को एक महल में पाया... मेरी माँ मेरे पास कभी कभी ही आ पाती थी... मेरे पास मेरी देखभाल के लिए एक औरत हमेशा रहती थी.... मैं उसे गौरी काकी कहा करती थी.....
पर मैंने कभी अपने पिता को नहीं देखा.... ना मेरे कोई दोस्त थे ना ही कोई भाई बहन और ना ही कोई और रिश्तेदार....
सिर्फ़ दो ही औरत जिनके पास मेरी पूरी दुनिया थी.... एक मेरी माँ और एक गौरी काकी....
एक दिन गौरी काकी ने आकर मुझसे कहा कि मेरा या तो कोई बहन या भाई आनेवाले हैं...
मैं खुश हो गई.... अब मेरी माँ मेरे साथ रहने जो लगी थी... मैं देख रही थी माँ का पेट बढ़ रहा था.... मुझे बस इतना मालुम था... मेरा भाई या बहन कोई तो इस पेट में हैं.... जिसके बाहर आते ही मुझे उसका खयाल रखना होगा.... जैसे काकी मेरी रखती है.... मैं काकी के बनाए हुए कपड़ों के गुड्डे गुड्डीयों को अपना भाई बहन बना कर रोज खेला करती थी....
एक दिन माँ का दर्द उठा.... तब कुछ औरतें आयीं और माँ को कहीं ले गईं....
अगले दिन काकी रोती हुई मेरे पास आई और बिना कुछ बताए मुझे अपने साथ ले गई l मैं बचपन से महल के एक हिस्से में पल बढ़ आयी थी.... पर काकी जिस हिस्से में ले कर आई थी वहाँ पर मैं पहली बार आई थी.... काकी मुझे एक कमरे में ले गई... मैंने वहाँ पर देखा मेरी माँ का रो रो कर बहुत बुरा हाल हो गया था.... उसके आँखों में आंसू सुख चुके थे... उस कमरे में कुछ टूटे हुए कांच गिरे हुए थे......
मैंने माँ को पुकारा... माँ ने मेरी तरफ देखा.... अपनी बाहें फैला कर मुझे अपने पास बुलाया.... मैं भाग कर माँ के गले लग गई.... माँ मुझे गले से लगा कर बहुत देर तक रोती रही.... फिर अचानक मुझे चूमने लगी.... चूमते चूमते मेरे माथे पर एक लंबा चुंबन जड़ा.... फ़िर पता नहीं क्या हुआ माँ ने एक कांच का टुकड़ा उठाया और मेरे दाहिने हाथ में गड़ा दिया.... (वैदेही ने अपने दाहिने हाथ पर एक कटा हुआ पुराना निसान प्रतिभा को दिखाया) मेरे हाथ में कांच का टुकड़ा घुसा हुआ था.... मैं जोर जोर से चिल्ला कर रो रही थी.... यह ज़ख्म देते हुए मेरी माँ ने मुझसे कहा - देख वैदेही मैंने तुझे यह ज़ख़्म इसलिए दिआ ताकि तु यह बात याद रखे.... अगर भूल भी जाएगी तो यह ज़ख़्म तुझे मेरी यह बात याद दिलाती रहेगी....
इतना कह कर मेरी माँ ने अपनी साड़ी से एक टुकड़ा फाड़ कर मेरी हाथ में पट्टी बांध दी.... फिर मेरे चेहरे को अपने दोनों हाथों से लेकर कहा - मेरी बच्ची... मैं मजबूर हूँ... इसके सिवा कोई और चारा नहीं था.... उन्होंने तेरे भाई को मार डाला.... (इतना सुनते ही मेरा रोना बंद हो गया, मुझे ऐसा लगा जैसे किसीने मेरे कानों में जलता हुआ कोयला डाल दिया, माँ फिर कहने लगी) बेटी तुझे यह काकी यहाँ से दूर छोड़ देगी.... फिर तु कहीं भी चले जाना.... मगर मुझे वचन दे.... की तु कभी भी... इस रंग महल को लौट कर नहीं आएगी.... वचन दे... (माँ ने हाथ बढ़ाया पर मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था, मैंने बस अपना हाथ माँ के हाथ में रख दिया, फिर माँ ने रोते हुए मुझे अपने सीने से लगाया और कहा) बेटी मुझे माफ कर देना... मैं तेरे भाई को ना बचा पाई... अगर तु यहीं रहेगी तो मैं तुझे भी ना बचा पाऊँगी..... इसलिए तुझे काकी बाहर तक छोड़ देगी.... फिर तु पीछे बिना मुड़े यहाँ से चली जा.... फिर कभी मत आना... तुझे कसम है.... अपनी माँ की... तु कभी वापस मत आना....
फिर माँ ने एक पोटली मेरे हाथ में दी और काकी के साथ भेज दिया.... काकी ने मुझे अंधेरे में कुछ दूर ले जाकर मुझे छोड़ दिया....
काकी - जा वैदेही जा.... यहाँ सिर्फ़ राक्षस रहते हैं.... अपनी माँ की बात याद रखना.... कुछ भी हो जाए वापस मत आना....
इतना कह कर काकी भी वापस चली गई लेकिन मैं सिर्फ पांच साल की लड़की, अपनी ज़ख्मी हाथ में पोटली लिए बिना पीछे मुड़े चली जा रही थी.... पता नहीं कितनी देर चलती रही... मुझे कमज़ोरी मेहसूस होने लगी फ़िर मैं एक घर के आँगन के बाहर सो गई... फ़िर जब नींद टूटी तो मैंने खुद को एक बिस्तर पर पाया... मेरे सर पर कोई अपने हाथ से सहला रहा था... मैंने अपने हाथ को देखा माँ की कपड़े के पट्टी के जगह एक सफेद पट्टी बंधी हुई थी.... अपनी आँखे ऊपर कर देखा तो मेरे सिरहाने एक देवी बैठी हुई थी... मेरे मुहँ से निकल गया माँ...
वह देवी इतना सुनते ही आवाज दी अजी सुनते हो... लड़की को होश आ गया... मुझे अभी भी कमज़ोरी महसूस हो रही थी... तभी एक आदमी अपने हाथ में एक दुध की ग्लास लाकर उस देवी को दिए... उस देवी ने मुझे उठा कर बिठाया और ग्लास देते हुए कहा - इसे पी ले बेटी यह हल्दी व लौंग वाला दुध है... सुबह तक तेरी कमजोरी भाग जाएगी.... मैंने वह दुध पी कर सो गई....

सुबह जब जगी तो उसी देवी को फिर अपने सिरहाने पाया...
उस देवी ने मुझ से मेरी हालत के बारे में पूछा.... और मेरे साथ जो बिता था मैंने सब बता दिआ.... सब सुनते ही उस देवी ने आवाज़ दी - सुनिए.... फिर वही आदमी आया, उसे देखते ही देवी ने कहा - यह वैदेही है और आज से यह हमारी बेटी है....
वैदेही आज से मैं तेरी माँ और ये तेरे बाबा हैं....

मुझे सपना जैसा लग रहा था l जैसे कोई कहानी की तरह जो मुझे कभी सुलाने के लिए काकी सुनाया करती थी.....

क्यूंकि मैं बेशक महल के किसी अनजान कोने में जन्मी, पली थी पर सिर्फ माँ और काकी को छोड़ किसीको ना जानती थी ना ही किसीसे माँ मिलने देती थी.... पर यहाँ तो रिश्तों का अंबार था... घर के भीतर मेरे नए माँ और बाबुजी.... बाहर...
मौसा, मौसी, भैया, भाभी, मामा, मामी, चाचा, चाची, नाना, नानी ना रिश्ते कम थे ना लोग.... जो भी दिखते थे हर कोई किसी ना किसी रिश्ते में बंध जाता था...
सच कहूँ तो मेरा परिवार (अपने दोनों हाथों को फैला कर) इतना बड़ा हो गया था....
एक दिन बाबुजी मुझे स्कुल ले गए... मेरा एडमिशन कराने.... मेरा नाम लिखवाया "वैदेही महापात्र"
पिता का नाम - रघुनाथ महापात्र
माता का नाम - सरला महापात्र
मैं स्कुल में दोस्त बनाये... अब मेरे दोस्त सिर्फ अपने गली मोहल्ले में ही नहीं थे.... स्कुल में भी थे....
एक दिन जब स्कुल से लौटी तो माँ को बिस्तर पर पाया... पड़ोस की मौसी पास माँ से कुछ गपशप कर रही थी...
मैंने माँ से पूछा - माँ आपको क्या हुआ...
माँ ने हंस कर मुझे पास बिठाया और पूछा - अच्छा बोल तुझे भाई चाहिए या बहन...
मुझे भाई का ग़म था इसलिए तपाक से बोला - मुझे भाई चाहिए...
माँ और मौसी दोनों हंस पड़े...
मौसी - अगर बहन हुई तो...
मैं - तो भी चलेगा... लेकिन बेटी तो मैं हूँ... तो माँ और बाबा को बेटा चाहिए कि नहीं...
माँ ने बड़े प्यार से मेरे सर पर हाथ फिराया और कहा - भाई हो या बहन... भगवान हमे जो भी देगा... तु उसे बहुत प्यार करना... ह्म्म्म्म
मैंने हाँ में सर हिलाया... जब शाम को बाबुजी आए मैंने उनसे उछल कर कहा जानते हो बाबा मेरी बहन या भाई आने वाले हैं...
बाबा - अच्छा हमे तो मालुम ही नहीं है.... क्या आप हमे अपने भाई से खेलने दोगे....
मैं - हाँ हाँ क्यूँ नहीं...
माँ और बाबुजी दोनों हंस पड़े....
रात को जब हम सो रहे थे,मैं नींद में नहीं थी पर आँखे मूँदे सोई हुई थी और माँ मेरे सर पर हाथ फ़ेर रही थी तब माँ ने बाबुजी से कहा - देखा वैदेही के कदम कितने शुभ हैं.... आते ही हमे माँ बाप की खुशियाँ देती... और आज इतने सालों बाद मैं सच में माँ बन रही हूँ....
बाबा - हाँ सरला.... लक्ष्मी है लक्ष्मी हमारी वैदेही....
ऐसे बातेँ करते हुए सब सो गए पर मुझे माँ और बाबा के व ह बाते गुदगुदा रहे थे....
पर दुखों को तो जैसे मेरी हर छोटी छोटी खुशी से बैर था....
फिर मेरे जीवन में दुख का आना बाकी था
Fantastic update...pinak ki to what lag ne wali he..rocky to nandini k liye pagal hota jaa raha..baidehi bahut dukh sahi he apne jivan kal me ...Ab badla ka time he...khetrapal se
 
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Fantastic update...pinak ki to what lag ne wali he..rocky to nandini k liye pagal hota jaa raha..baidehi bahut dukh sahi he apne jivan kal me ...Ab badla ka time he...khetrapal se
धन्यबाद मित्र
आपके कमेंट्स मेरे लिए अति महत्वपूर्ण है
साथ बने रहिए
 
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