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Incest कैसे कैसे परिवार

prkin

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मित्रों,

इन दोनों कहानियों के मिलाकर 23 लाख व्यूज़ पूरे हो गए हैं.

इस उपलक्ष में आज शाम कैसे कैसे परिवार का अगला अध्याय प्रकाशित होगा.

धन्यवाद.
 
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मित्रों,

इन दोनों कहानियों के मिलाकर 23 लाख व्यूज़ पूरे हो गए हैं.

इस उपलक्ष में आज शाम कैसे कैसे परिवार का अगला अध्याय प्रकाशित होगा.

धन्यवाद.
Wow...Congratulations bhai on a super achievement...you truly deserve the accolades. Look forward to the next milestone of your story. Onwards and upwards!!!
Look forward to the dhamaakedaar update later today and also your review of my story. intezaar rehta hain bhai...mujhe pata hain..aap bahut busy ho..lekin thoda time nikal lena pls :)
Thanks.

prkin
 

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Wow...Congratulations bhai on a super achievement...you truly deserve the accolades. Look forward to the next milestone of your story. Onwards and upwards!!!
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I have read the update. Will give my views.
 
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अध्याय ६९: जीवन के गाँव में शालिनी ६
अध्याय ६८ से आगे


अब तक:


आज रात से गैंगबैंग की शृंखला का भी आरम्भ होना था. गैंगबैंग प्राप्तकर्ता भाग्यशाली स्त्री कौन होगी, उसका नाम एक गुप्त पर्ची में निकालकर एक ओर रख दिया गया.

शालिनी जस्सी के साथ चुदाई का आनंद उठा चुकी थी. अब कँवल ही शेष था जिससे उसकी चुदाई होनी थी. ये उस मित्र मंडली की बात थी. उसके बाद असीम और कुमार भी थे जो सम्भवतः उसकी एक साथ चुदाई करने वाले थे. अब तक के घटे प्रकरण के अनुसार तो वो साथ ही चुदाई करते थे. गीता की दुहरी चुदाई का आनंद दोनों भाइयों ले लिया था और उसे चूत में दो लौंड़ों का सुख भी प्रदान कर दिया था. उधर जीवन की इच्छा के अनुसार बसंती जो सलोनी की माँ थी, और भाग्या की नानी, उसे बुलाया गया था. उसे ऐसे आयोजनों में किन्हीं विशेष प्रयोजन के ही लिए बुलाया जाता था.

एक लम्बे विश्राम के बाद अगले चरण का शुभारम्भ होने वाला था. इसमें गीता, शालिनी और बसंती का योगदान रहने वाला था. अन्य तीनों स्त्रियां ये सोचकर उत्सुक थीं कि आज रात्रि में किसका गैंगबैंग होना है.


अब आगे:


शालिनी जीवन के साथ बैठी हुई बसंती को जीवन के लंड को पूरे प्रेम से चूसते देख रही थी. उसे कोई ईर्ष्या नहीं थी कि जीवन के घर को नौकरानी की माँ उसके भावी पति के लंड को चूस रही थी.

“ये गैंगबैंग में क्या सब मिलकर एक ही स्त्री को चोदोगे?” शालिनी ने विस्मय से पूछा.

“हाँ, इसका यही अर्थ है. चिंता न करो, तुम्हें भी लौटने से पहले इसका आनंद दिलवाऊँगा। और लौटने के बाद तुम्हारा विशेष गैंगबैंग भी करेंगे.” जीवन ने बताया.

“विशेष गैंगबैंग?” शालिनी ने कौतुहल से पूछा.

“विशेष ही तो होगा. तुम्हारे दोनों बेटे, और तीनों पोते तुम्हारे पति के साथ जब तुम्हारी चुदाई करेंगे तो विशेष ही होगा न?”

“धत्त! बस यूँ ही.” शालिनी ने कहा, फिर बोली, “हाँ, सच में विशेष होगा. दो बेटे आपका और मेरा, तीन पोते आपके और मेरे. सच में मैंने तो ये कभी सोचा ही नहीं!”

“हाँ, और अगर बलवंत को मिला लोगी तो सोने पर सुहागा हो जाएगा. मैं जानता हूँ कि सुनीति इसके लिए तुरंत मान जाएगी. अदिति मानेगी?”

“पता नहीं. हो सकता है बाद में मान ले. अभी तो ऑपरेशन के बाद सामान्य चुदाई से ही संतुष्ट है.”

“ओह! ओके. तब तो उसे इसमें बिलकुल नहीं सम्मिलित होना चाहिए.” जीवन ने कहा और बसंती के सिर पर हाथ फेरा.

“अब तुम्हारे एक परीक्षण का समय है, शालिनी. ये अंतिम है. बसंती क्या तुम आगे जाओगी? मैं इन्हें लेकर आता हूँ.”

“जी बाबूजी.” बसंती की आँखों की चमक कई गुना बढ़ गई और उसने अपने होंठों पर जीभ फेरी और उठकर बाथरूम में चली गई.

“ये बाथरूम में क्या करने गई है?” शालिनी ने पूछा.

“चलो तुम्हें दिखता हूँ. सबकी अपनी अपनी रूचि होती है. बसंती की भी है, और मेरी भी. वैसे बसंती की इस रूचि को हम सभी पूरा करने में साथ देते हैं.”

शालिनी को न जाने पेट में कुछ हिलता हुआ लगा. उसे आभास होने लगा कि क्या हो सकता है. इन सबके साथ दो ही दिन में उसके आयाम इतने विस्तृत हो गए थे कि वो कुछ भी असम्भव नहीं मानती थी.

“तुम्हें भी इसमें अपना योगदान देना होगा, नहीं तो बेचारी दुखी हो जाएगी.” जीवन ने उसे बाथरूम की ओर ले जाते हुए बोला।

“ठीक है, जैसा आप चाहें.” शालिनी ने उत्तर दिया तो जीवन ने उसकी ओर देखकर प्रसन्नता दर्शाई.

“एक अंतिम विनती. जो भी देखो, उसे देखकर मुझसे घृणा मत करना. मैं तुम्हें अपने विषय मैं हर बात बता दे रहा हूँ, जिससे कि बाद में ये हमारे बीच में कलह का कारण न बनें. मैं सब त्याग दूँगा परन्तु तुम्हें दिखाना आवश्यक है. इसके बाद का निर्णय तुम्हारा होगा.” जीवन ने उसकी आँखों में झाँक कर बोला।

शालिनी ने स्वीकृति दी और दोनों बाथरूम में चले गए. अन्य सभी ये देखकर अपने स्थानों पर बैठे थे. कुछ समय के लिए उन्होंने अपने कार्य स्थगित कर दिया.

वे किसी विस्फोट होने के लिए आशंकित थे. सबकी साँसे रुकी हुई थीं. जीवन और शालिनी जब बाथरूम में गए तो बसंती कमोड पर बैठी हुई थी और अपनी चूत रगड़ रही थी.

“बाबूजी, बहुत देर कर दी.”

जीवन उसके सामने बैठा और उसकी उँगलियों को खेलता देखता रहा. आज भी बसंती की चूत को देखकर उसके मुँह में पानी भर जाता था. बसंती और जीवन के बीच एक ऐसा संबंध था जिसके विषय में उनकी मित्र मंडली और परिवार को ही पता था. सलोनी को भी इसका आभास नहीं था.

“हाँ, बहुत दिन हो गए तेरा पानी पिए हुए. मैंने कितनी बार तुझे कहा है, अगर तू भूरा को पिलाने लगे तो इसमें इतना नशा है कि उसकी दारू स्वतः ही छूट जाएगी. पर तू मानती ही नहीं है.”

“बाबूजी, मुझे डर है कि वो कहीं मुझे छोड़ न दे.”

“नहीं छोड़ेगा. मेरी गारण्टी है.” ये कहते हुए उसने बसंती की उँगलियाँ हटाईं और अपना मुँह उसकी चूत पर लगा कर चाटने और चूसने लगा.

शालिनी ने देखा कि बसंती भी जीवन के बालों में उसी प्रकार से प्रेम से हाथ फिर रही थी जिस प्रकार जीवन ने उसके बालों में घुमाया था. ये एक आत्मीयता का परिचायक था. परन्तु शालिनी को किसी भी प्रकार की ईर्ष्या का अनुभव नहीं हुआ. वो इस प्रेमालाप को देख कर उत्तेजित हो रही थी.

“चाट लो बाबूजी, अपनी बसंती की चूत को चाटो। फिर मैं आपको पानी पिलाती हूँ. बहुत प्यासे होंगे न आप इतने दिनों से?”

जीवन ने मात्र सिर हिलाकर उसकी बात का समर्थन किया. बस दो तीन मिनट ही बीते होंगे कि बसंती बोली.

“बाबूजी, आपकी बसंती पानी पिलाने वाली है.”

शालिनी को आश्चर्य हुआ जब जीवन ने अपना मुँह उसकी चूत से हटाकर उसके सामने अपना मुँह खोल दिया. बसंती की चूत से एक धार निकली जो जीवन के मुँह में गिरने लगी. जीवन गटागट पीने लगा. शालिनी को अचानक समझ आया कि ये पानी साधारण पानी नहीं था बल्कि बसंती का मूत्र था जिसे जीवन अमृत के समान पिए जा रहा था. शालिनी को समझ नहीं पड़ा कि ये क्या हो रहा है. इतने शक्तिशाली व्यक्तित्व का स्वामी जीवन अपनी नौकरानी की माँ के मूत्र का सेवन इतनी रूचि से कर रहा था. उसे लगा था कि उसे घिन आएगी. परन्तु ऐसा भी नहीं हो रहा था, बल्कि उसकी चूत में एक लहर सी दौड़ी, जिसे वो समझ न पा रही थी. उसने हाथ लगाकर देखा तो उसकी चूत बहे जा रही थी. सम्भवतः उसे इसमें रोमांच का अनुभव हो रहा था.

बसंती ने जब जीवन को अपना मूत्र पीला दिया तो जीवन फिर से उसकी चूत चाटने लगा. बसंती ने शालिनी को देखा और मुस्कुराई. शालिनी ने भी मुस्कुराकर उसे देखा. मानो एक स्वीकृति हो गई.

“बाबूजी, दीदी को अच्छा लगा है. अब आप उठिये. मेरी भी प्यास बुझा दो अब.”

जीवन खड़ा हुआ तो उसका लौड़ा इतना कठोर था जितना शालिनी ने अब तक न देखा था. बसंती नीचे बैठी और जीवन के लंड को चूसने लगी.

“बसंती, मैं भी तुझे पानी पिलाने वाला हूँ. जीवन के मूत्र के लिए बसंती ने मुँह खोल लिया और इस बार जीवन ने उसके मुँह में मूत्रत्याग करना आरम्भ किया. पर अचानक बसंती ने मुँह बंद किया और अपना चेहरा सामने कर दिया. उसके चेहरे पर गिरता मूत्र उसके वक्ष पर गिरने लगा. जीवन के त्याग की समाप्ति पर बसंती ने उसका लंड चाटा और शालिनी से बोली.

“दीदी, आप भी पिलाओ न मुझे.”

शालिनी के शरीर में एक सिहरन सी दौड़ गई. वो आगे गई तो जीवन हट गया. बसंती ने शालिनी की चूत में जीभ डाली और शालिनी का संयम टूट गया और वो झड़ने लगी. जीवन ने उसके काँपते शरीर को संभाला और सहारा मिलते ही शालिनी की चूत से मूत्र की धार निकली जिसे बसंती पीने का प्रयास करने लगी. उसे इस बात की चितना न थी कि कितना मुँह में जा रहा है और कितना बाहर. वो तो अपने बाबूजी की भावी पत्नी के प्रेम को अपने में समाने से ही संतुष्ट थी.

जीवन ने शालिनी को छोड़ दिया और शालिनी ने अपना कार्य पूर्ण किया ही था कि उसे कमरे में से तालियॉं बजती सुनाई दीं और फिर बाथरूम में अन्य लोगों के आने का आभास हुआ.

“तो जीवन, तेरी बहू तो मान गई. अब बसंती भी खुश और तू भी.”

“हाँ मित्रों, एक चिंता दूर हो गई.” शालिनी जीवन के पास आ गई तो जीवन ने उसके होंठ चूमे. शालिनी को बसंती के मूत्र का स्वाद मिल गया. पर वो जीवन से लिपटी रही. अब अन्य सब बसंती को घेरकर उस पर मूत्र वर्षा कर रहे थे. उसके बाल, मम्मे कोई भी स्थान अछूता न रहा. बसंती आनंद से पीते हुए स्नान कर रही थी.

गीता ने बसंती को सहारा देकर उठाया और स्नान करवाया। भले ही बसंती को कोई अंतर नहीं पड़ने वाला था परन्तु अन्य सभी उससे दूरी बना लेते जो शाम के कार्यक्रम में बाधा डालने के लिए पर्याप्त था. बसंती को स्नान करवाने के बाद गीता उसे कमरे में ले आई और जीवन के पास बैठा दिया. अब शाम का गैंगबैंग के पहले का अंतिम प्रकरण आरम्भ करने का समय हो चला था. असीम और कुमार अपने मोटे लम्बे लौड़े खड़े करके इसके लिए उत्सुक थे तो वहीँ कँवल भी शालिनी की चुदाई के लिए आतुर था. शालिनी और गीता दोनों की चूतें भीगी हुई थीं. जीवन बसंती के मम्मे दबा रहा था. तो पूनम, बबिता और निर्मला शांत होकर एक ओर बैठी ये सोच रही थीं कि उनमे से गैंगबैंग का केंद्र बनने वाली सौभाग्यशाली स्त्री कौन होगी. परन्तु इसमें कोई स्पर्धा नहीं थी. और यही इस मंडली की एकजुटता का सबसे बड़ा चुंबक था. वो ये भी जानती थीं कि गीता को अब जो अनुभव मिलने वाला है वो विलक्षण होगा, परन्तु उन्हें इसमें भी कोई ईर्ष्या न थी. अगर अपने ही नातियों से पहले गीता को ये अनुभव न मिले तो सम्भवतः अन्याय होगा.

कुमार और असीम ने बलवंत से आज्ञा माँगी जिसे देने में बलवंत ने संकोच नहीं किया. उसने गीता को चूमकर उसे अपने नातियों को सौंप दिया. गीता ने दोनों के हाथ पकड़े और इस कांड के कर्म स्थल उस सोफे की और चल पड़ी. जीवन ने बसंती के कान में कुछ कहा तो बसंती उनके पीछे चल पड़ी. शालिनी के लिए जीवन से पूछकर कँवल ने उसका हाथ लिया और पलंग को ओर ले गया. भले ही इस सुंदरी को भोगने में उसका क्रम अंतिम था, परन्तु वो इसका भरपूर आनंद लेना और देना चाहता था.

“दीदी, बाबूजी ने बताया आप क्या करने जा रही और कहा है कि मैं आपको उचित स्थिति में ले आऊँ. मैं घी लेकर आती हूँ तब तक आप इन दोनों हथियारों से खेलिए. मैं बस यूँ गई और यूँ आई.” बसंती ने गीता से कहा तो गीता ने जीवन की ओर देखते हुए धन्यवाद किया. जीवन ने अंगूठा उठाकर उसका मान रखा.

बसंती ने यही सम्बोधन शालिनी से भी किया. हालाँकि शालिनी को किसी प्रकार की चिकनाई की आवश्यकता नहीं थी परन्तु उसने मना नहीं किया. वो देखना चाहती थी कि बसंती किस प्रकार इस कार्य को करती है. बसंती लौटी तो उसने पहले शालिनी को ही घोड़ी बनने का आग्रह किया. उचित अवस्था में आने पर उसकी चूत में ऊँगली घुमाई और प्राकृतिक चिकनाहट को पिघले घी में डुबोने के बाद फिर से उँगलियों को चूत में डालकर घुमाया. तपते और पिघले घी के स्पर्श से उसकी चूत में नए स्पंदन हुए तो शालिनी की सिसकी निकल पड़ी. अपनी ऊँगली को घी से लेपकर बसंती ने शालिनी की चूत को अत्यधिक उत्तेजित कर दिया.

“दीदी, अभी जब भाईसाहब गाँड मारेंगे तब वहाँ भी लगाऊँगी।” ये कहते हुए उसने कँवल के लंड पर भी कुछ घी लगाया और गीता की गाँड को चिकनाईयुक्त करने हेतु उधर चली गई.

“अब तो कुछ और करने की आवश्यकता ही नहीं रही. बसंती ने सब काम स्वयं ही कर दिया.” कँवल ने हंसकर कहा और घोड़ी बनी शलिनी की चिकनी चूत में अपना लंड एक ही बार में अंदर तक गाढ़ दिया. शालिनी थोड़ी आगे की ओर झुक गई और गाँड उठाकर कँवल को आगे बढ़ने का संकेत दे दिया.

गीता ने बसंती को गले लगाकर स्वागत किया.

“दीदी, आप बहुत साहसी हो! मैं तो गाँड में दो दो लौड़े एक साथ लेने की कल्पना भी नहीं कर सकती” बसंती बोली।

कुमार: “छोटी नानी, आप कल्पना मत करो. आप को भी इसका सुख न दिया तो हम दोनों आपके नाती नहीं!”

“हाय दिया! दीदी, देखो कैसे निर्लज्ज हो गए हैं ये दोनों! ऐसी बातें कर रहे हैं!” बसंती ने कृत्रिम क्रोध दिखाते हुए कहा.

“अब इतनी भोली न बन, सच तो ये है कि ये सुनकर तेरी गाँड में भी खुजली होने लगी है. कहे तो भाईसाहब से बोलूँ मिटाने के लिए, नहीं तो रहने देते हैं.” गीता ने उसे छेड़ते हुए कहा.

बसंती: “अब दीदी, आप बोल रही हो तो बाबूजी से बोल ही दो.”

गीता ने जीवन की ओर देखा जो ये सुन रहा था और उसे संकेत किया जिसका जीवन ने स्वीकृति में उत्तर दिया.

“चल, बोल दिया तेरे बाबूजी को. अब जो करने आई है वो कर. नहीं तो घी जम जायेगा.”

गीता सोफे पर झुक गई और कुमार ने उसकी गाँड को फैला दिया. बसंती ने घी की कटोरी असीम को सौंपी और गीता की गाँड को ऊपर से चाटने लगी.

“अरे दुष्टा, ये क्या कर रही है!” गीता बोली, पर उसे भी इसमें आनंद मिल रहा था.

“दीदी, ऐसी मक्खन जैसी गाँड की जो ये दोनों क्या स्थिति करने वाले हैं उसके पहले भी एक बार स्वाद ले लूँ. बड़े दिन हुए आपकी गाँड को चाटे हुए.” बसंती ने कहा और फिर अपनी जीभ अंदर डालकर गीता की गाँड की गहराई का अनुमान लगाने लगी.

अपने मन को संतुष्ट करने के बाद ही उसने अपना मुँह वहाँ से निकाला और चटखारे लेकर घी की कटोरी से गीली हो चुकी गाँड को भरने लगी. घी कुछ जमने लगा था परन्तु गाँड की ऊष्मा ने उसे फिर से पिघला दिया. अपनी दो उँगलियों से गीता की गाँड में घी को अच्छे से मिलाकर उसने अपनी नातियों को देखा पर असीम ने अपना सिर हिलाकर अपने लौंड़ों पर घी लगाने से मना कर दिया.

“दीदी, ये दोनों निर्दयी लौंड़ों पर घी नहीं लगवा रहे हैं. लगता है आपकी गाँड की नसें खोलने का मन बनाये हैं. अगर कहो तो इन्हें रोक लूँ.”

“हट मुई! जा अपने बाबूजी से अपनी गाँड मरवा। मुझे मेरे नातियों के लौड़े गाँड में लेने दे.” फिर खड़ी हो गई और असीम से बोली, “जैसे तुम दोनों एक साथ सुनीति की गाँड मारते हो वैसे ही मारना, मुझे भी तो पता चले मेरी बेटी कैसा सुख भोगती है.”

“बिलकुल नानी. आपको वैसा ही सुख देंगे.” कुमार ने सोफे पर अपना स्थान लेते हुए बोला।

बसंती गीता का साहस देखकर विस्मित हो गई. उसने कुमार को अपने लौड़े को हाथ में लेकर छत की ओर कर दिया. बसंती के मुँह में उसे देखकर पानी आ गया, पर अब समय निकल गया था. गीता ने अपने बालों को झटका दिया जिससे कि वो बसंती के चेहरे को छू गए और फिर गाँड लहराते हुए कुमार के लंड को देखा.

“है न एकदम टनाटन? अपनी गाँड में लेते ही जैसे स्वर्ग दिखाई दे जाता है. और आज तो दोनों एक साथ गाँड मारने वाले हैं. सोचकर ही मैं झड़ी जा रही हूँ.” गीता ने मचलते हुए कहा.

“हाँ दीदी, मस्त लौड़े हैं दोनों बछड़ों के. मुझे तो इनसे चुदे महीनों हो गए. पर अब आप अपना काम करो. मुझे अपनी गाँड में भी कुछ मोटा, लम्बा और कड़क चाहिए है.”

बसंती ने गीता को कुमार के लौड़े पर अपनी गाँड रखते हुए बैठने में सहायता की. गीता का चेहरा कुमार की ओर था. गाँड में अपने नाती का लंड लेते ही गीता की चूत ने भरभराते हुए पानी छोड़ दिया. कुमार का लौड़ा उस पानी से भीग गया. कुमार ने पीछे सरकते हुए गीता को अपने ऊपर लिटा लिया और उसके पैरों को मोड़ दिया. गीता की गाँड आगे उभर गई. उसमें उपस्थित लंड अब और तंग हो गया. गीता को कुछ शंका होने लगी कि क्या सच में पहले से ही तंग गाँड एक और लंड ले पायेगी?

असीम ने अपनी नानी की गाँड को देखा तो उसका लौड़ा लहराने लगा. बसंती अविश्वास से असीम को देखते हुए बोली, “क्या सच में अपना लौड़ा भी आप दीदी की गाँड में डाल रहे हो. वहाँ तो लगता नहीं कि जा पायेगा.”

असीम मुस्कुराया, “छोटी नानी. अब आप चमत्कार देखना. गाँड कैसे फैलती है.”

असीम ने कुमार के लंड के साथ अपना लंड लगाया और धीमे से अंदर धकेलना आरम्भ किया. प्राथमिक प्रतिरोध के पश्चात उसका सुपाड़ा पक्क की हल्की ध्वनि के साथ अंदर प्रविष्ट हो गया. बसंती की आँखें फ़ैल गयीं तो गीता की आँखें और मुँह खुले रह गए.

“अम्मा!” गीता ने धीमे से बोला। असीम रुक गया. इसके आगे की यात्रा कठिन थी. इतने भेदन से भी उसका लंड एक सँकरी गली की तीव्र ऊष्मा का अनुभव कर रहा था.

“नानी, आप ठीक हो न?” असीम ने गीता से प्रेम से पूछा.

“उन्ह उन्ह! बहुत मोटे हैं तुम्हारे लौड़े. न जाने जा भी पाएंगे?” गीता ने शंका बताई.

“चिंता न कर गीता, तेरी बेटी बड़ी सरलता से ले लेती है इनके दोनों लौड़े. तू तो उसकी माँ है, ऐसे कैसे नहीं ले पायेगी.” जीवन ने पास आकर उसका उत्साह बढ़ाया.

‘पता नहीं, मुझे तो लग रहा है मेरी गाँड न फट जाये.” गीता बोली.

पूनम, बबिता, निर्मला और शालिनी भी अब निकट आ गयीं और बसंती के पास खड़ी होकर इस अद्भुत लीला को देखने लगीं. उनकी भी गाँड का यही परिणाम जो होना था. सबमें एक भय और उत्सुक्तता थी. असीम और कुमार के सामान्य भावों को देखकर उन्हें विश्वास हो चला कि ये कामलीला अवश्य आनंददायक होने की संभावना है. उनके नाती किसी भी रूप में उन्हें ऐसी दिशा में नहीं ले जायेंगे जहाँ उन्हें कष्ट तो हो पर आनंद कदापि न प्राप्त हो. यही विश्वास उन्हें आगे के लिए उद्द्यत कर रहा था.

कुछ समय असीम और कुमार यूँ ही शिथिल रहे जब तक कि गीता कुछ सामान्य नहीं हो गई. जहां कुमार का लौड़ा गाँड में स्थापित था, वहीँ असीम के लंड को अभी आगे बढ़कर उस गुप्त द्वार की अंतिम सीमा को छूना था. उसके पश्चात ही आगे की कोई गतिविधि की जा सकती थी. जीवन ने असीम की पीठ पर हाथ रखा तो असीम ने उसके संकेत को समझकर धीरे से लंड पर दबाव बनाया. शनैः शनैः उसका लंड आगे की जटिल यात्रा पर निकल पड़ा. गीता की गाँड फैलने का प्रयास करते हुए उसे समाहित करने में जुट गई. गीता को विलक्षण अनुभव हो रहा था, जिसमें उसे अपनी गाँड के हर रोम और फैलने का आभास प्राप्त हो रहा था.

बसंती ने कुछ और घी उढ़ेला और असीम का लंड और आगे चलता गया. एक लम्बे अंतराल के बाद असीम का लौड़ा भी गीता की गाँड में अपने भाई के लंड के समकक्ष स्थापित हो गया. सबसे दुर्गम पहला पड़ाव पार हो चुका था. अब गीता की गाँड कुछ विश्राम की आवश्यकता थी. गीता को जीवन में इतना भरा हुआ कभी अनुभव नहीं हुआ विशेषकर गाँड में. उसे जो शंका थी कि गाँड दोनों लौड़े नहीं झेल पायेगी निरर्थक सिद्ध हुई थी. परन्तु आनंद जैसा कोई अनुभव अभी नहीं मिला था.

उसके लिए अगले चरण का आरम्भ आवश्यक था, जिसका समय उसके नाती ही तय कर सकते थे.

जीवन ने अपना गला खँखारा और कहा, “मैं समझता हूँ कि तुम सबको देखने की प्रबल इच्छा है. पर हमें अब यहाँ इन तीनों को अपने सुख के लिए अकेला छोड़ देना चाहिए. बसंती, तुम घी की कटोरी भरकर असीम को दे दो. इसे आगे उसे ही उसका उपयोग करने का निर्णय लेना है. हम सब अब चलकर अपने स्थान से ही इस क्रीड़ा को देखेंगे.”

फिर शालिनी की ओर देखकर बोला, “तुम्हें अगली बारी की प्रतीक्षा करनी होगी, कँवल अब और रुकने के लिए उत्सुक नहीं है.”

शालिनी ने कँवल को देखा जो अपने लंड को हाथ में पकड़े उसकी ही ओर देख रहा था.

“आप सही कह रहे हैं. बसंती, इनका ध्यान रखना.” ये कहते हुए वो कंवल की ओर चल दी और बसंती घीकी कटोरी भरने के लिए. शालिनी ने कँवल का हाथ उसके लंड से हटाया और उसे चूसने लगी. बसंती अपना कार्य करने के बाद जीवन के साथ जा बैठी और उसके लंड को सहलाने लगी.

बसंती: “आपको क्या लगता है बहूरानी को अपना खेल बुरा तो नहीं लगा?”

जीवन: “लगता तो नहीं है. नहीं तो वो इसमें भाग न लेती. पर आगे क्या करेगी इसके विषय में मुझे कोई ज्ञान नहीं है.”

बसंती: “हमें रोकेंगी तो नहीं?”

जीवन सोचते हुए: “नहीं, अन्यथा अब तक बोल देती. हम दोनों की प्यास भिन्न है, और मुझे लगता है इस वातावरण में वो भी चुदाई के नए अनुभवों और आयामों से परिचित हो रही है. अब तक मैंने उसके व्यवहार में कोई वितृष्णा नहीं देखी है, बल्कि वो हर क्रीड़ा में उत्साह से भाग ले रही है.”

बसंती: “तो क्या वो भी आपका मूत्र पीने के लिए सहमत होंगी?”

जीवन शालिनी को देख रहा था और जिस आतुरता से वो कँवल के लंड को चूस रही थी उसे देखकर बोला, “कह नहीं सकता. क्यों न आज के गैंगबैंग के बाद एक प्रयास किया जाये? वैसे भी तू मेरे ही कमरे में सोने वाली है.”

बसंती हँसते हुए: “जैसे आप मुझे कभी सोने भी देते हो.”

जीवन भी हँसा: “क्या करेगी सो कर? पर आज तक जायेंगे, तो सोना ही होगा. वैसे भी शालिनी को विश्राम चाहिए होगा. उसे इतनी चुदाई का अभ्यास नहीं है.”

बसंती: “ठीक है, बाबूजी. पर अब क्या आप मेरी गाँड मारकर उसकी खुजली मिटा सकते हो. मुई बहुत कुलबुला रही है.”

जीवन ने अपना लंड दिखाया, “पहले इसे ठीक से खड़ा कर फिर तेरी गाँड की खुजली मिटाता हूँ.”

बसंती झट से नीचे बैठकर उसका लंड चूसने लगी और जीवन ने देखा कि शालिनी अब पलंग पर लेट चुकी थी और कँवल उसे चोदने के लिए अपने लौड़ा उसकी चूत पर रगड़ रहा था. जीवन के चेहरे पर संतुष्टि का भाव आया कि उसने सही चयन किया है और उसका लौड़ा फड़फड़ाने लगा.

कँवल अब शालिनी को चोदने लगा था, पर उनकी ओर किसी का ध्यान न था. सबकी ऑंखें गीता पर टिकी हुई थीं जो अपने नातियों के बीच में पीस रही थी. असीम और कुमार के शरीर की ताल से समझा जा सकता था कि वो अब गीता की गाँड में अपने लौड़े चलने में व्यस्त थे. परन्तु इस बार उनकी गति और ताल अधिक सधी हुई थी. चूत की अपेक्षा गाँड मारना अधिक कठिन होता है. चूत को प्रकृति ने प्राकृतिक लचीलापन प्रदान किया है, पर गाँड को उसकी अपेक्षा कम आँका है. असीम और कुमार इसका भरपूर ज्ञान रखते थे और गीता की गाँड को बहुत संयम के साथ मार रहे थे.

गीता उनके इस धीमे आक्रमण से धीरे धीरे आनंदित हो रही थी. उसके मन की शंका का समाधान हो चुका था. न केवल उसने अपने नातियों के दोनों लंड अपनी गाँड में लेने में सफलता पाई थी, बल्कि अब उसे आनंद की अनुभूति भी होने लगी थी.

“नानी गाँड थोड़ी ढीली करो, नहीं तो यूँ ही धीमे धीमे चुदाई होगी.” कुमार ने उसके मम्मों को निचोड़ते हुए कहा.

गीता: “बिटवा, अब मेरे बस में कुछ न है. जो करना है सो तुम दोनों ही करो. मेरी तो गाँड तुम दोनों ने पूरी बंद कर दी है. मैं कुछ न कर पाऊँगी.”

असीम और कुमार ने एक दूसरे को देखा और मुस्कुरा दिए. उनकी नानी उसी स्थिति में थी जहाँ वो उसे चाहते थे. असीम ने अपने नाना बलवंत को देखा जिसने उन्हें स्वीकृति दे दी. अब नानी की गाँड के तार खोलने के लिए दोनों भाइयों ने अपनी गति में बढ़ोत्तरी की. गीता की हल्की चीखों ने उसकी सिसकियों का स्थान ले लिया. दोनों भाई का समन्वय अद्भुत था. वो इस प्रकार से गाँड मारकर कई प्रोढ़ और मध्यम आयु की स्त्रियों को अनुग्रहित कर चुके थे. उन्हें कब किस गति और शक्ति का उपयोग करना है, इसके वो इतने अनुभवी थे कि उन्हें गीता पर उस ज्ञान का प्रयोग करने में कोई संशय नहीं था.

बढ़ती गति से गीता की चीखों की ध्वनि भी बढ़ती गई. अब उसे अपनी गाँड में जो अनुभव हो रहा था वो अभूतपूर्व था. उसकी गाँड भी अब उसका साथ दे रही थी और उसकी चूत भरपूर रस बहा रही थी. असीम ने फिर गीता की गाँड में घी डाला और अब उनके धक्के और तीव्र हो चले. घी की सहायता से चिकनी हुई गाँड दोनों लौडों का प्रतिरोध करने में असमर्थ थी. फक्क फक्क की ध्वनि के साथ दोनों लंड उसकी गाँड में आवागमन कर रहे थे. उसके आनंद की सीमा अब पार हो चुकी थी और वो स्वर्गलोक का विचरण कर रही थी.

कँवल अपनी पूरी शक्ति लगाकर शालिनी की चुदाई कर रहा था. न जाने क्यों उसे लग रहा था कि उसकी जीवन के साथ स्पर्धा है. ये उनकी मंडली के लिए नया था. शालिनी भी उसकी इस शक्तिशाली चुदाई का भरपूर आनंद उठा रही थी जिसका उसके कंठ से निकलती सिसकारियां साक्षी थीं. जीवन जब भी उसकी ओर देखता उसे एक आनंद का अनुभव होता. बसंती लौड़े को चाटकर अब गाँड मरवाने के लिए उत्सुक थी, पर जीवन की आज्ञा के लिए ठहरी हुई थी. जीवन भी अब उसकी इस इच्छा को समझ रहा था.

“अंदर चल पहले.” जीवन ने भरे कंठ से कहा तो बसंती का मन आल्हादित हो गया. उसके बाबूजी उसकी हर भावना को बिना कुछ कहे ही पढ़ लेते थे.

वो उठी और गाँड मटकाते हुए स्नानगृह में चली गई. जीवन उसकी इठलाती गाँड के देखते हुए उसके पीछे गया.

“ऊपर बैठ.” जीवन ने कहा तो बसंती वाश-बेसिन के मचान पर बैठ गई और अपने पैर फैला लिए.

“आओ बाबूजी, पी लो मेरा अमृत.” उसने जीवन से मादक स्वर में कहा.

जीवन ने उसकी चूत पर मुँह रखा और बसंती ने अपनी धार उसके मुँह में छोड़ दी. निवृत्त होते ही जीवन ने उसकी चूत को चाटा और उसे नीचे उतार दिया. बसंती बैठ गई और इस बार जीवन के लंड ने उसके मुँह में अपना मूत्र दान किया. प्यासी बसंती ने हर बूँद को पी लिया. जीवन ने उसे उठाया और दोनों एक दूसरे को चूमने लगे.

“तेरे जैसी मुझे कोई मिल नहीं सकती है, बसंती. अगर भूरा न होता तो मैं तुझे सदा अपने साथ ही रखता.”

“अब चल तो रही हूँ बाबूजी. जब तक चाहोगे तब तक रहूँगी आपके साथ. जब दीदी आएँगी फिर देखेंगे.”

“अब चल तेरी गाँड बहुत व्याकुल है लौड़े के लिए.”

“आपके लौड़े के लिए, बाबूजी. लौड़े तो और भी हैं यहाँ.”

“बातें बहुत बनाने लगी है तू.” जीवन ने उसकी बाँह पकड़ी और अपने स्थान पर जा बैठा.

बसंती उसकी ओर अपनी गाँड करते हुए घोड़ी बन गई और पीछे सरक गई. जीवन का विशाल तमतमाया लंड उसकी गाँड से टकराया तो वो रुक गई. जीवन ने घी लगाने के लिए कहा तो बसंती ने मना कर दिया.

“नहीं बाबूजी, ऐसे ही मारो। बहुत जल रही है आपके मुसल के लिए.” बसंती ने उत्तेजना से कहा.

जीवन ने सामने देखा। शालिनी की चूत को छोड़कर अब कँवल उसे घोड़ी बनाकर उसकी गाँड मार रहा था. उधर गीता की गाँड की दुहरी चुदाई चरम पर थी और कमरे में गीता की धीमी पड़ चुकी चीखें अभी भी गूँज रही थीं. उसे विश्वास था कि उसके पोते उसके मित्रों की पत्नियों को भी ये नया सुख देकर अनुग्रहित करेंगे. उसने अपने हाथों से बसंती की गाँड को खोला और दो उँगलियाँ डाल कर कुछ समय तक चलाईं। बसंती अब गाँड मटका रही थी. उसे मूसल चाहिए था, नहीं.

अपनी उँगलियाँ हटाते हुए जीवन ने अपने लौड़े को बसंती की फूलती पिचकती गाँड पर रखा और एक धक्का लगाया. जीवन का भारी लंड बसंती की गाँड को चीरते हुए प्रवेश कर गया. बसंती ने स्वयं को इस आक्रमण के लिए संभाला हुआ था. उसने इस बात का ध्यान नहीं रखा कि जीवन जैसे आततायी ने उसका मन पढ़ लिया था. बसंती की ह्रदयविदारक चीख ने सबके मन पल भर के लिए दहला दिया. एक बार उसे ओर देखकर सब सामान्य हो गए. उन्हें जीवन से गाँड मरवाने का मूल्य भलीभांति पता था. अगर बसंती बिना घी तेल लगाए जीवन से गाँड मरवाना चाहती थी तो ये उसकी त्रुटि थी.

बसंती, जिसे अब तक अपनी गाँड में जलन और खुजली का अनुभव हो रहा था, अब दोनों में अपार वृद्धि हो गई. जलन का स्तर ऐसा था कि उसे आभास हुआ कि उसने एक राक्षस को चुनौती दे दी थी. बसंती की चिंता किया बिना जीवन ने एक पैशाचिक मुस्कुराहट के साथ अपना लंड बाहर खींचा तो बसंती को लगा कि उसकी गाँड बाहर निकली जा रही थी. लंड जब मुंहाने तक आया तो इस बार जीवन ने और भी अधिक शक्ति के साथ धक्का लगाया. इस बार की चीख पिछली से अधिक तीव्र थी पर इस बार किसी ने उनकी ओर देखा भी नहीं. उन सबका ध्यान गीता की चीत्कारों पर था जिसकी गाँड में दो लौड़े थे. एक लंड खाने वाली स्त्री की ओर कौन ही देखना चाहता था.

गीता की आँखें पलट गयी थीं और उसके मुँह से जो ध्वनि निकल रही थी वो प्राकृतिक तो कदापि नहीं थी. असीम और कुमार अपनी पूरी शक्ति के साथ एक सधी लय में उसकी गाँड में अपने लंड अंदर बाहर कर रहे थे. गीता स्वर्ग और धरती के बीच त्रिशंकु भांति झूल रही थी. उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि वो इस प्रकार का अनंत सुख पायेगी. गाँड में दो लौड़े उसे ऐसा अनुभव दे रहे थे जो अपर्याय था. लौड़े अंदर घुसते तो वो स्वर्गलोक की ओर जाती और बाहर निकलते ही पृथ्वीलोक को लौटती. परन्तु इन दोनों में इतना क्षणिक अंतर था कि उसे कोई ज्ञान नहीं था कि वो कहाँ है.

असीम और कुमार अपनी सफलता पर गर्व कर रहे थे. उन्होंने अपनी प्रिय नानी को वही सुख दिया था जिसकी वो अधिकारी थी.

शालिनी की गाँड में कँवल का लौड़ा सटासट अंदर बाहर हो रहा था.

जीवन में अब से पहले उसने मात्र तीन पुरुषों से सम्भोग किया था. पर इन तीन दिनों में उसे अब तक पाँच पुरुष भोग चुके थे. और इसकी सँख्या कल तक सात पहुँचना निश्चित था. यही सोचते हुए शालिनी कँवल से अपनी गाँड मरवा रही थी. अब तक वो चुदाई में इतनी खुल चुकी थी कि उसे कोई लज्जा या झिझक नहीं थी. वैसे भी कमरे में गृहस्वामिनी को उसके नाती सबके सामने चोद रहे थे और उसके भावी पति अपने घर की नौकरानी की माँ की गाँड मार रहे थे. और आज रात्रि इस चुदाई के संस्करण के बाद पूनम, बबिता और निर्मला में से किसी एक को सभी सात पुरुष जब तक सम्भव हो एक साथ मिलकर चोदने वाले थे.

कँवल के लंड को अपनी गाँड में फूलते हुए अनुभव करते ही शालिनी समझ गई कि कँवल अपना रज उसकी गाँड में छोड़ने वाला है. उसे इस चुदाई में कोई विशेष आनंद नहीं मिला था, हालाँकि कँवल ने अत्यधिक परिश्रम किया था. शालिनी का मन कहीं और ही था और उसने कँवल को अपनी इच्छा पूरी करने के उद्देश्य से चोदने दिया था. उसके मन में अपने पुत्र और पोते के साथ चुदाई करने की इच्छा बलवती हो रही थी. उसके मन में ये भी उधेड़बुन चल रही थी कि क्या उसे जीवन उस रिसोर्ट में आमंत्रित करेगा जहाँ कँवल और बबिता के पुत्र उदय और सुशील और निर्मला की पुत्री सुरभि के परिवार के साथ सामूहिक व्यभिचार का कार्यक्रम है.

फिर बसंती और जीवन के बीच का विशेष संबंध भी उसे विचलित और रोमांचित कर रहा था. जीवन और बसंती एक दूसरे के मूत्र को जिस सहजता से पी रहे थे वो अत्यंत कामुक था. बसंती ने तो सबके मूत्र का सेवन किया था, शालिनी ने भी उसे अपना मूत्र पिलाया था. क्या जीवन उससे भी यही अपेक्षा रखेगा? क्या वो ऐसा करने में सक्षम होगी. कँवल की हुंकार ने उसका ध्यान तोडा और उसे अपनी गाँड में कँवल के रस की वृष्टि होने का आभास हुआ. कुछ ही पलों में उसकी गाँड से कँवल का लंड निकल गया और ठंडी पवन के वेग से शालिनी की गाँड स्वतः बंद हो गई.

और इसी के साथ आज की उसकी चुदाई का अंत हुआ. कँवल ने अपना लंड पकड़कर बसंती के सामने जा खड़ा हुआ. बसंती जो अब भी जीवन के आक्रमण से संतुलित नहीं हुई थी, उसके लंड को देखकर मुस्कुराई और अपना मुँह खोल लिया. कँवल ने उससे अपना लंड को साफ करवाया और जीवन के ही पास पड़े सोफे पर बैठ गया. बसंती की गाँड में परम वेग से चलते हुए जीवन के लंड को देखा. वो जीवन की शक्ति से परिचित था और उसका सम्मान भी करता था. एक पल के लिए उसके मन में ईर्ष्या के भाव आये फिर उसने उन दोनों की चुदाई को देखने लगा.

शालिनी अपने ही स्थान पर लेट गई और पिछले दिनों की घटनाओं के विषय में सोचने लगी. साथ ही भविष्य में उसकी नई जीवनशैली के विषय में भी उसका ध्यान जा रहा था. इन दिनों में उसने जिस प्रकार से बड़े प्राकृतिक ढँग से चुदाई का आनंद लिया था, अब इसके बिना रहना सम्भव नहीं था. उसने चारों ग्रामीण स्त्रियों के रास के रूप देखे तो सहज ही स्वयं को उन्नीस पाया था. क्या वो भी एक साथ चूत और गाँड मरवाने का साहस कर सकेगी? क्या एक साथ चूत या गाँड में दो लौड़े ले पायेगी? क्या उसका भी गैंगबैंग होगा? क्या उसे भी मूत्रक्रीड़ा में आनंद आएगा? ऐसे ही प्रश्नों से उसका मन चिंतित था. उसने आँख खोलकर जीवन को देखा जो बिना किसी चिंता के बसंती की गाँड को निर्ममता से मारे जा रहा था. उसने अपना भविष्य जीवन के निर्णय पर छोड़ दिया, और इन सारे प्रश्नों के उत्तर भी उसे मिल गए. जीवन का साथ मिलने पर वो सब करने का सामर्थ्य रखती है.

गीता की चुदाई अब समापन की ओर थी. दोनों भाई अब गति कभी कम तो कभी अधिक करते हुए गीता को आनंद की लहरों पर उछालें दिलवा रहे थे. गीता इस अनुभव से अत्यधिक आनंद पा रही थी. उसे अपने नातियों पर गर्व था कि वो उसे नए नए ढंग से चोद रहे थे. अगर बलवंत, जीवन और आशीष भी इस प्रकार की चुदाई कर पाएंगे तो उसे हर रात ऐसा ही सुख मिलने को संभावना थी.

लगभग यही भाव बसंती के मन में भी थे. अगर उसे हर दिन जीवन के लौड़े से चुदने का सौभाग्य मिले तो वो कभी गाँव लौटेगी ही नहीं. किसी प्रकार से भूरा को वहीँ बुला लेगी. जीवन अब इतनी अधिक गति से बसंती की गाँड मार रहा था कि उसके झड़ने का समय निकट आ गया था. बसंती के मूत्र पीने से उसमें अपार शांति आ जाती थी. पर आयु का अपना नियम होता है. और जीवन के लौड़े ने इसे सिद्ध करते हुए बसंती की गाँड सींच दी.

बसंती की गाँड की जलन अब मिट चुकी थी. उसने जीवन के लंड को बाहर निकलते हुए अनुभव किया. फिर उसकी गाँड को फैलते हुए और उँगलियों को अंदर घूमने का आभास हुआ तो वो मुस्कुरा उठी. उसके बाबूजी उसका कितना ध्यान रखते हैं, ये सोचकर उसने अपनी गर्दन घुमाई और अपना मुँह खोल दिया. जीवन ने उसकी गाँड से इकट्ठा किया रज उसके मुँह डाला तो बसंती ने उसे अपनी जीभ पर घुमाया और फिर चट कर गई. अब वो संतुष्ट थी. जीवन उसे प्रेम से देख रहा था.

“जा उधर शालिनी और गीता की गाँड से भी माल खा ले.”

“पहले आप का लौड़ा तो साफ कर दूँ, बाबूजी!” ये कहकर वो पलटी और जीवन के लंड को चाटने के बाद कुछ पल चूसकर उठ खड़ी हुई, “मेरी गाँड में से निकला आपका पानी सच में बहुत पौष्टिक ,बाबूजी.”

जीवन हंसने लगा और बसंती शालिनी के पास जाकर खड़ी हो गई.

“बहूरानी, बाबूजी ने कहा है आपकी गाँड साफ करने के लिए, तो थोड़ा फ़ैल जाओ.” बसंती ने उत्तर की प्रतीक्षा नहीं की और शालिनी के पैरों को ऊपर किया. शालिनी की गाँड से अब भी कुछ वीर्य बाहर निकल रहा था. बसंती ने उसे चाटकर उसकी गाँड में ऊँगली डाली और अंदर से कुछ और रस एकत्रित करके चाट लिया.

“कभी इसका भी स्वाद लेना बहूरानी. बहुत निराला स्वाद और सुगंध होती है. अब चलूँ, गीता दीदी को भी संभालना है.” ये कहकर वो गीता की ओर बढ़ गई. अन्य सभी स्त्रियां उसके इस स्वभाव से परिचित इसीलिए किसी ने कुछ न कहा.

बसंती ने गीता के सामने जाकर देखा तो गीता की आँखें पलटी हुई थीं और मुँह खुला था. बसंती को नटखटता सूझी. उसने अपनी उँगलियाँ जिनमें शालिनी की गाँड से निकाला हुआ कँवल का कुछ रज लगा हुआ था, गीता के मुँह में डाल दीं.

“लो चखो दीदी, कैसी मधुर मलाई है.”

गीता इस समय ब्रम्हांड के किस ग्रह पर थी उसे ज्ञात न था, उसने बसंती की ऊँगली को मुँह में लेकर चूस लिया. ऊँगली निकालकर बसंती ने धीमे से गीता के कान में बताया कि उसने क्या चाटा है. गीता की आँखें सीधी हो गईं.

“तुझे इसका मजा न चखाया तो मैं भी गीता नहीं.”

ये गीतकह तो गई पर उसकी चूत ने अंतिम बार रस की फुहार छोड़ी. और मानो असीम और कुमार भी उसकी ही प्रतीक्षा में रहे हों. एक एक करके दोनों ने अपना पानी गीता की गाँड में छोड़ दिया.

“दीदी, मजा तो मैं अब चखने ही जा रही हूँ. भरी होगी आपकी गाँड इन मोटे लौंड़ों के पानी से.” बसंती ने इठलाते हुए बोला।

“आ जाओ, छोटी नानी. आपका शेक नानी की गाँड में आपकी राह देख रहा है.”

“बड़े नटखट हो गए हो इतने दिनों में बिटवा. अपनी छोटी नानी को छेड़ रहे हो!”

“अरे छोटी नानी, अभी तो छेड़ा ही है. कल आपको चोद कर भी दिखा देंगे.”

“हाय हाय दीदी. सुन रही हो क्या बोल रहें हैं आपके नाती.”

गीता तो अब उत्तर देने की स्थिति में थी नहीं वो तो किसी प्रकार अब लेटना चाहती थी. बूढी हड्डियों ने चुदाई के समय तो सहन कर लिया, पर अब उसे विश्राम चाहिए था. कुमार और असीम ने ये समझा और पहले असीम ने अपना लंड बाहर निकाला. बसंती ने तुरंत गीता की गाँड पर मुँह लगाया और सड़प सड़प कर बाहर रिसते हुए रस को चाट गई.

“कुमार बेटा, अभी रुकियो.” कहते हुए उसने असीम के लंड पर धावा बोला और उसे चाटने के बाद कुमार से लंड निकालने के लिए कहा.

लंड निकलते ही रस भरभर करते बाहर बह निकला. अगर बसंती इसकी अपेक्षा न कर रही होती तो अवश्य चकित रह जाती. पर उसने जिस तीव्रता ने अपना मुँह गीता की गाँड पर लगाया उसे देखकर असीम अचम्भित हो गया. अपनी पूर्ण संतुष्टि के बाद ही उसने अपना मुँह हटाया और जीभ से जो कुछ शेष था उसे भी सोख लिया। फिर कुमार के नीचे पड़े लौड़े को चाटा और उठ गई. जीवन उसके पीछे आ खड़ा हुआ था.

“मन भर आया तेरा?”

“जी बाबूजी. अब शांति मिली.” ये कहते हुए वो जीवन के सीने से लिपट कर सुबकने लगी.

“चल, मन भारी मत कर. सब ठीक कर दूँगा। मुझ पर विश्वास कर.”

इसके बाद सबने निर्णय लिया कि कुछ समय अपने कमरों में विश्राम किया जाये ताकि रात के गैंगबैंग के लिए शक्ति का संचार हो सके.

“पर गीता, ये तो बता, कि कौन है वो भाग्यशाली जो आज की हीरोइन बनेगी?”

गीता ने जाकर वो पर्ची लाई और बसंती को थमा दी. “तू ही बता.”

बसंती ने पर्ची खोली और उत्सुक समूह को बताया.

“आज की हीरोइन का नाम है.....”


रात्रि अभी शेष थी.

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क्रमशः
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