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Non-Erotic दूध का कर्ज।

Valkoss

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यह कहानी है है एक औरत की जिसका नाम अनामिका है। उमर २८ साल। दूध सा गोरा रंग। बहुत ही खूबसूरत। वो वैसे छत्तीसगढ़ के बिलवासा गांव में रहती हैं। वहा वो सरकारी बैंक में काम करती है। वैसे वो दिल्ली शहर की रहनेवाली थी लेकिन समय ने उसे इस आदिवासी गांव में ला खड़ा किया।

बैंक में वो सिर्फ ४ घंटे का काम करती लेकिन जब भी करती पूरे ध्यान से करती। गांव बहुत ही पीछड़ा और गरीबी से बना था। सरकारी नौकरी होने के कारण अनामिका को बहुत अच्छी और बड़ी रकम की salary थी। यह जगह इतनी पिछड़ा है की जो काम करेगा उसे ज्यादा पैसा मिलेगा। लेकिन बदले में बिजली की सुविधा नहीं और न किसी बड़े घर की। अनामिका अकेले ही बैंक का काम करती और उसके साथ दो गांव उरतें काम करती। पूरा गांव कच्चे घर का बना। सिर्फ २० परिवार ही रहते है।

साल 1976

दोपहर का वक्त था। करीब 1 बजे बैंक का काम पूरा करके वो वहां से निकल जाती। नवंबर का महीना था। ठंडी का मौसम था। दोपहर को हल्का सा धूप था। अनामिका जंगल के रास्ते से अकेले कहीं जा रही थी। पीले रंग की साड़ी और पीले रंग का sleveless ब्लाउस वो काफी सुंदर लग रही थी। चलते चलते वो एक खंडर घर में पहुंची। दरवाजा चंपा नाम की 50 साल की औरत ने खोला।

"कैसी है उनकी तबियत ?" अनामिका ने पूछा।


"अब वो ठीक है। लेकिन आज आपने आने मैं देर क्यों की ?" चंपा ने पूछा।

"आज काम थोड़ा ज्यादा था। चलो मैं भी चलूं।"

अनामिका उस खंडर घर में घुसी। घर टूटा फूटा और अंधेरे से भरा था। वहा उसने एक कमरे का दरवाजा खोला। सामने 82 साल का काला बुड्ढा लेता हुआ था।

कौन है यह बुड्ढा और इससे मिलने अनामिका क्यों आई। इस कहानी को जानने के लिए हम 1 साल पीछे जाना होगा।

अनामिका एक बड़े पुलिस ऑफिसर की बीवी थी। पति का नाम अमन था। अमन दिल्ली का बड़ा पुलिस ऑफिसर था और पैसेवाला भी। लेकिन एक भ्रष्टाचार से भरा हुआ गंदा आदमी। अमर पुलिस इंस्पेक्टर था और दो नंबर का काम करता। एक दिन की बात है। अमर को एक hit and run का कैस मिला। उस कैसे में एक बुजुर्ग बाबा और छोटे बच्चे को एक राइस बाप की बिगड़ी औलाद ने कुचल दिया था। उस कैसे को अमन ने पैसा लेकर रफा दफा कर दिया। दूसरा कैसे लगा जिसमे एक में बिल्डिंग गिरने से 10 बुड्ढे की मौत हुई। वो बिल्डिंग एक सरकारी वृद्धाश्रम था। उसे भी पैसे के जोर में अमन ने रफा दफा कर दिया।

लोगो के आंसू और जज्बात से उसका कोई लेना देना न था। अनामिका के पेट में अमन का बच्चा था। एक दिन वो हॉस्पिटल जा रही थी कि तभी एक बाबा जो सिद्धि तंत्र का ज्ञानी था वो सड़क से गुजर रहा था। चलते चलते वो गिर पड़ा और एक ट्रक सामने से आई। अनामिका ने बिना जान की परवाह किए उसे बचाया। उस सिद्धि ज्ञानी बाबा का नाम सरजू दास था। बाबा अनामिका की बहादुरी से प्रसन्न हुआ और उसे आशीर्वाद दिया।

इसके कुछ दिन बाद अचानक अनामिका को पता चला की उसकी तानिया खराब हो रही है। वो बार बार बीमार पड़ने लगी और इसी में उसे दुखद समाचार मिला। उसके पेट में पल रहा बच्चा मर गया। दुखो का पहाड़ उसपे टूटा। कुछ दिन बात अमन की मौत किसी हादसे में हुई।

अनामिका को कुछ समझ में न आया। वो जैसे अकेले पड़ गई। एक दिन उसे सरजू दास मिला। अनामिका ने उसके पैर छुए और अपनी तकलीफ के बारे में बताया।

"देखो बेटी यह सब मेरे श्राप का नतीजा है। में तुमसे इसीलिए मिलने आया हूं।"

यह सुनकर अनामिका घुसे से पूछी "कैसा श्राप ? आपने एक मासूम से बच्चे को मार डाला ? उसने आपका क्या बिगाड़ा ?"

"बिगाड़ा उन 10 बुगुर्गो ने भी कुछ नहीं था फिर क्यों तेरे पति ने उसे न्याय नहीं दिलाया। उसके परिवार पर क्या बीती है पता है तुझे ? इसके अलावा कई निर्दोष लोगो को तेरे पति ने मारा उन में से एक आदमी के पिता का दर्द मुझसे देखा न गया और इसीलिए मैंने तेरे पति से मिलने गया। उसने फिर मेरा अपमान किया और सभी को मौत पर हसने लगा। में इसीलिए उससे श्राप दिया।"

अनामिका को यह बात सुनकर खुद पर घुसा आया। और वो माफी मांगने लगी।

"देख बेटी तेरे पति के अलावा उसके सभी रिश्तेदार को भी मरने का श्राप दिया है। हर महीने एक एक करके सभी मारे जाएंगे।"

"नही नही ऐसा न करिए आप। मेरे रिश्तेदारों का क्या दोष है ? मेरे ससुराल के लोग बहुत ही शरीफ है। मेरे सास ससुर सब कितने शरीफ है। कुछ करिए ना आप।"

"एक उपाय है। अगर तू कर सकती है तो।"

"क्या करना होगा मुझे ?"

"मुश्किल है। यह सब करना तेरे लिए।"

"आप बोलिए न क्या करना होगा मुझे ?"

"जिस आदमी को तेरे पति ने मारा उसका एक बुड्ढा बेसहारा भाई है। तुझे उसकी सेवा करनी होगी। और साथ ही साथ जो बेसहारा बुड्ढा आदमी तुझे वहां मिले उसकी सेवा करनी होगी तुझे। में तुझे एक आशीर्वाद भी देता हूं। जब जरूरत पड़े तू तेरी आंख बंद करके मेरे दिए हुए मंत्र को पढ़ना। तेरी मदद पूरी हो जाएगी। लेकिन ध्यान रहे इस मंत्र का एक ही बार उपयोग होगा। और तो और अगर वो बुड्ढा आदमी मर गया तो तुझे इस श्राप से कोई नहीं बचा पाएगा।"

"बाबा एक सवाल है। आपने इस मंत्र का आर्शीवाद क्यों दिया मुझे ?"

"क्योंकि तूने एक बार मेरी जान बचाई इसीलिए।"

"फिर भी मुझे ही क्यों यह सब करना क्यों है ?"

"तू ही है जो अपने पति के पाप के बारे में जानती है लेकिन कभी किसी की मदद न की। इसीलिए तुझे ही करना होगा। सोच ले तेरी चुप्पी ने कइयों की जान ली और अब तेरे रिश्तेदारों की बारी।

इसके बाद अनामिका दिल्ली से ट्रांसफर लेकर झारखंड पहुंची और वहां अपने काम में लगी। वहां us बुड्ढे आदमी से मिली जिसका नाम मेवा है उसकी तबीयत बहुत खराब थी। हड्डी शरीर से गलने लगी। अनामिका ने उसकी सेवा की लेकिन कोई फर्क न पड़ा। डॉक्टर ने कहा की अगर खाना न पहुंचा तो हफ्ते के अंदर कर सकते है। खाना जैसे दूध या कुछ भी। दूध पूरा पौष्टिक हो। लेकिन इस गांव में असंभव हैं।"

अनामिका को कुछ समझ न आया और उसने मंत्र पढ़ लिया जो बाबा से दिया था। मंत्र पढ़ते ही अनामिका के स्तन में पीड़ा हुई। दर्द बढ़ने लगा। स्तन में दूध भर गया। अनामिका समझ ली कि यही बाबा के मंत्र का आशीर्वाद है। बस इसी के बाद अनामिका मेवा को अपने स्तन का दूध पिलाने लगी। शुरुआत में मेवा ने माना किया लेकिन जिंदा रहने के लिए उपयोग किया। इस बात को एक महीना हुआ। अनामिका उस बुड्ढे की सेवा करती और अपना पश्चाताप भी पूरा करती।





Dosto kaisi laagi kahani please jaroor bataiye. Yeh ek serious kahani hai. Aage bhi update aayega.
 
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Valkoss

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अब आते से असल कहानी मैं।


अनामिका जब कमरे पहुंची तो सामने ८२ साल का बुड्ढा था। वही बुड्ढा मेवा था। मेवा ने जब अनामिका को देखा तो मुस्कुराते हुए बोला "आ गई तुम ? इतने देर बाद ?"

अनामिका अपने ब्लाउज का हुक खोलते हुए bra में बुड्ढे के बगल लेटी। बूढ़े की तरफ करवट बदली और उसे अपने बाहों में भरते हुए बोला "अब आराम से अपना पेट भरो। वैसे भी काफी भूख लगी होगी ना ?"

"हां बहुत भूख लगी है।" मेवा स्तनपान करने लगा।

अनामिका नींद में सो गई और मेवा दूध पीकर सीधा लेट गया। कुछ देर बाद उड़ी तो अनामिका ने साड़ी ठीक किया और मेवा के बगल सो गई। देखते देखते शाम के 5 बजे और अंधेरा होने लगा। ठंडी का मौसम था। चंपा ने दरवाजा खोला और अनामिका को उठाकर बोली "चलिए चाय पी लेते है।"

अनामिका अंगड़ाई लेते हुए बाहर आई और ठंडी का लुफ्त उठाते हुए बाहर गरम चाय के साथ चंपा से बात कर रही थी।

"तो अनामिका तुम खाना अपने घर खाओगी या यहां पर ?"

"अरे हां बातो बातो में भूल गई। आज रात मैं यहां रहूंगी। और कल से २ दिन की छुट्टी है।"

"ठीक है तो फिर आप कहां सोएंगी ?"

"में मेवा के साथ सोनेवाली हूं। रात को दूध भी पी लेगा।"

"काफी थकी हुई लग रही है आप।" चंपा ने कहा।

"हां। चलो चंपा मैं थोड़ी देर मेवा के साथ वक्त बिता लूं। अकेले अंधेरे में लेटे होंगे।"

"ठीक है मैं लालटेन लेकर आती हूं।"

अनामिका साड़ी के पल्लू को अलग किया। ब्लाउस पेटीकोट में वो भरी ठंडी में मेवा के साथ रजाई में घुसी। मेवा को पीछे से जकड़ते हुए अनामिका बोली "उठो भी। बहुत सो लिए। चलो उठो।"

"हम्म्म सोने दो ना। तुम बोल तो ऐसे रही हो जैसे आज रात यहां रूकनेवाली हो।"

"उठो न। दिल्ली में पूरे दो दिन यहां रहनेवाली हूं।"

यह सुनकर मेवा खुश हुआ और तुरंत अनामिका की तरफ पलट गया और बोला "फिर तो अच्छा हुआ। वैसे भी ऊब जाता हूं अकेले रहकर।"

"हां हां। लेकिन सुनो मेवा आज पता नही मुझे सोने का मन कर रहा है।"

"चंपा कहा है। अरे सुन चंपा इधर आ।"

वैसे आपको बता दूं चंपा मेवा की बेटी है। चंपा लालटेन लेकर कमरे में आई और पूछी "क्या हुआ बाबूजी ?"

"चंपा तुम आज जल्दी सो जाओ। अब मैं भी सोनेवाला हूं।"

अनामिका बोली "हां लेकिन पहले दूध पी लो। आओ मेरे पास।"

अनामिका ने मेवा को बाहों में भर लिया और दूध पिलाने लगी। अनामिका की आंखे बंद और चेहरे पे मुस्कान थी। एक बुड्ढे बेसहारा और अपना बहुत कुछ खो देनेवाले बुड्ढे आदमी की सेवा करने में उसे आनंद आ रहा था। फिर आंखे खोलते हुए खुद के सीने से चिपक हुए स्तनपान कर रहे बुड्ढे के सिर पर हाथ से घूमते हुए बोली खुद से बोली " इतनी राहत कभी न मिली मुझे।"

मेवा दूध पीने के बाद बोला "क्या मैं तुम्हारे स्तन के साथ खेलूं ?"

अनामिका बोली "ये कोई पूछनेवाली बात है ? मेरे राजा बच्चे खेलो। लेकिन इससे पहले तुम्हारे पैर दबा दूं।"

अनामिका मेवा का पैर दबाने लगी। उसकी नंगे स्तन को देखते हुए मेवा बोला "इस दूध ने ही मुझे जिंदा रखा है। अनामिका क्या तुम्हे बूरा नहीं लगता कि एक बदसूरत बुड्ढा रोज तुम्हारे स्तन को चूसता है और बजाने बहकाव में आकर तुम्हारे स्तन से खेलता है ?" मेवा ने उदास होकर पूछा।

अनामिका ना मैं सिर हिलाया और पैर दबाने लगी। मेवा ने फिर आगे कहा "जवाब दो ना अनामिका।"

कुछ देर तक चुप रहने के बाद जब अनामिका ने पैर दबाया उसके बाद मेवा के बगल लेटकर कहा "किस बात का मुझे बुरा लगेगा ? मेरा दूध मेरी मर्जी जिसे पिलाऊं। मुझे अच्छा लगता है जब तुम दूध पीते हो और इसके मिठास की तारीफ करते हो और रोज कहते हो अनामिका आज पेट भर गया। फिर रही बात खेलने को मेरे स्तन के साथ तो क्या बुराई है इसमें। तुम्हे इसके साथ खेलता देख तुम्हे क्या पता किस्त अच्छा लगता है।"

"क्या तुम सच बोल रही हों ?"

अनामिका ने मेवा से कहा "मेरे सीने पे हाथ रखो।"

मेवा सीने पे हाथ रखा।

अनामिका पूछी "कुछ महसूस हुआ ?"

"हां।" मेवा ने कहा।

"अब जरा मेरे सीने पे सिर रखकर अंदर को धड़कन को सुनो।"

मेवा ने का चेहरा अनामिका के स्तनों के बीचों बीच पड़ा।

अनामिका पूछी "कैसी आवाज आ रही है ?"

"बहुत मधुर आवाज आ रही है।"

"तो समझा लो मेवा इसका मतलब में तुम्हे अपना दूध पिलाकर और तुम्हारी सेवा करके बहुत खुश हूं।"

मेवा रोने लगा। रोते हुए बोला "तुम महान हो अनामिका।"

अनामिका ने आंसू पोंछे हुए कहा "अब रोना बंद करो वरना चली जाऊंगी।"

"नही नही कहीं मत जाना।" मेवा उठकर बैठ गया।

अनामिका पूछी "एक स्तन का दूध बाकी है। पियोगे ?"

"हां लेकिन एक तुम मुझे अपनी गोदी में सुलोगी और मुझे दूध पीने देगी।"

अनामिका उठकर बैठी और मेवा को गोदी में सुलाकर बोली "पियो मेरे बच्चे जी भरके दूध पियो।"

"लेकिन दूध पीने के बाद आज इसके साथ (स्तन के साथ)खेलूंगा।"

"हां हां खेलना। पर चलो अब जल्दी से मेरे प्यारे बच्चे दूध पियो।"
 

Valkoss

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रात भर दोनो ने बड़ी अच्छी नींद ली। अनामिका और मेवा के बीच एक अच्छा और निस्वार्थ रिश्ता बन चुका था। मेवा की तबियत अच्छी होने लगी तो इस बात से चंपा खुश रहती।

सुबह को अनामिका की आंखे खुली तो देखा कि मेवा किसी बच्चे को तरह उसके शरीर से लिपटकर सो रहा था। अनामिका हल्के पाओ बिस्तर से उठी और खुद को ठीक किया। कुछ देर बाद चंपा आई और पूछा "अगर आपको सोना है तो मेरे कमरे में आ जाइए।पूरी रात नींद नहीं आई होगी आपको।"

"नही चंपा ऐसा बिलकुल भी नहीं। आज बहुत अच्छे से सोई। एक काम करो चंपा जल्दी से मेरे लिए दूसरी साड़ी लाओ मेरे नहाने का वक्त हो रहा है। और हां मैं मेवा को उठा देती हूं। आज हम दोनो नदी में नहाएंगे।"

"अगर आप कहें तो अंदर नहाने का इंतजाम करूं। बाहर ठंडी बहुत है।"

"ठीक है तो कमरे के अंदर आंगन में मैं नहा लूंगी। मैं और मेवा साथ में नहाएंगे।"

चंपा हल्के से मजाकिया अंदाज में बोली "पहले आपके आलसी मेवा उठे तो सही।"

"हां हां उठा दूंगी। आज मेरे साथ नहाने के नाम पर उठ जाएगा।"

अनामिका बिस्तर पर पड़े मेवा को उठाया। दोनो साथ में नहाने गए। अनामिका ने ब्लाउज पेटीकोट पहना हुआ था और मेवा सिर्फ चोटी चढ़ी में था। मेवा को नहलाने का काम शुरू हुआ। अनामिका गरम पानी से नहलाने लागी। अच्छे से नहलाने के बाद खुद भी नहाई। दोनो ठीक से तैयार हुए। फिर अनामिका ने नाश्ता किया और आज वैसे भी पूरा दिन खाली जानेवाला है। मेवा नहा धोकर अपने कमरे में लेता था। अनामिका का भी टाइम हो गया दूध पिलाने का।

"अनामिका भूख लगी है। जल्दी करो।" मेवा ने कहा।

"आ रही हूं। मेरे राजा को भूख लगी है।" अनामिका ने मेवा को गोदी में सुलाया और अपना ब्लाउज का हुक खोलकर ब्रा को नीचे करके दूध पिलाना शुरू किया।

कमरे का दरवाजा खुला था और चंपा दवाई देने आई। चंपा को इशारे में अनामिका ने बुलाया। चंपा आई और अनामिका ने उसे कान में कहा "आज मैं और मेवा जंगल वाली झोपड़ी में रहेंगे। वहां आज रात भी रहेंगे। हमारी रजाई वहां तक पहुंचाओ।"

मेवा दूध पीते हुए बोला "सुन चंपा मैं और अनामिका कल भी पूरे दिन रहेंगे।"

अनामिका हल्के से मुस्कुराई और इशारे में चंपा को जाने को कहा।

"क्या बात है बुड्ढे मेवा आजकल मेरे बिना रह नहीं पाते।"

"अगर तू नही होगी तो दूध कौन पिलाएगा। वहा दो दिन रहेंगे और मजे से छुट्टी बिताएंगे।"

"हम्म दो दिन मजा बहुत आएगा।"

अगले घंटे अनामिका और मेवा जंगल में गए। वहां मेवा का झोपड़ी था जो नदी से बिलकुल सटा हुआ था। पानी बहुत साफ और अच्छा था। अनामिका और मेवा दो दिन वहां रहेंगे और थोड़ा अकेले में वक्त बिताएंगे। दोपहर के एक बजे थे। अनामिका नदी के पास पड़े खटिया पर लेटकर कुछ पढ़ रही थी। मेवा को तो जैसे ठंडी में भी मजा आ रहा था। वो अनामिका की खूबसूरती को निहार रहा था। वो गया और अपने कपड़े उतारकर नदी में नहाने लगा।

"मेवा क्या कर रहे हो ? ठंडी के मौसम में नहा रहे हो ? सर्दी हो गई तो ?"

"कुछ नही होगा अनामिका। मुझे नहाने दो।" मेवा काफी देर तक नहाया और फिर वहां से मछली लेकर आया। अनामिका को मछली बहुत पसंद है। मछली देख अनामिका को भूख लगी और मछली बनाकर खाने लागी।

दोनो साथ में बैठकर थोड़ी बाते करने लगे। जंगल सुनसान और काफी घना था।

"अनामिका मछली कैसी बनी ?"

"बहुत अच्छी बनी। काफी दिनों बाद खाने को मजा आया।"

"तुम अगले हफ्ते आओ मुर्गी तैयार रहेगी।"

अनामिका मुस्कुराते हुए बोली "नही नही। ज्यादा खाऊंगी तो वजन बढ़ जाएगा।" यह कहकर वो अपने जगह से उठकर थोड़े देर घने चली गई।

जंगल के सुनसान रास्ते में वो ठंडी हवा ले रही थी। वो किसी का इंतजार कर रही थी। थोड़ी देर बाद देखा तो पेड़ के पास काले कपड़े में एक बुड्ढा आदमी था। वो बुड्ढा आदमी और कोई नही बल्कि बाबा ही था। अनामिका गई और बाबा के पैर छूई।

"जीती रहो।" बाबा ने आशीर्वाद देते हुए कहा।

"बताइए बाबा यहां क्यों आना हुआ ? कोई समाचार ?"

"हां अनामिका। अब वक्त आ गया है एक और बुड्ढे मरीज की सेवा करने का।"

अनामिका हाथ जोड़ते हुए आज्ञा का पालन करते हुए पूछी "वो कब मिलेगा ?"

"बहुत जल्द। वो एक कुबड़ा है। उसकी उमर 70 साल है। अपने समय स्कूल में साफ सफाई करता था। दिल्ली का ही था। लेकिन इसकी तरह कई लोगो के पेंशन को हजम कर गई सरकार। उन में से तुम्हारा पति भी हिस्सा खाता था। अब वक्त आ गया है उसकी सेवा करने का और तो और जरूरत पड़ी तो सेवा से भी अधिक उसके लिए करना पड़े तो करो।"

"जी बाबा। लेकिन वो रहता कहा है ?"

"इसी गांव मैं। जल्द ही अब तुम उससे मिलेगी। मौत उसके करीब है। अब उसे जिंदगी देने का काम तुम्हारा।"

फिर अचानक से बाबा गायब हो गया। अनामिका तैयार हो गई उस कुबड़े के लिए। अब जल्द से जल्द सारे पाप धोकर वो सुकून से रहना चाहती है। अनामिका वापिस झोपड़ी के पास पहुंची। दूर से मेवा को देखा तो चेहरे पे मुस्कान आई। अंदर झोपड़ी में घुसकर मेवा को अंदर बुलाया। मेवा को थोड़ी सी सर्दी हो रही थी। आखिर इतनी ठंडी में नदी में नहाया था। रात हो चुकी थी। झोपड़ी में अनामिका ने थोड़ी आग लगाई ताकि गर्मी बढ़े। दरवाजा अंदर से बंद कर दिया। खटिया पे लेते अनामिका मेवा को देख रही थी। मेवा उस वक्त आग ले रहा था। अनामिका अपने साड़ी को उतारकर ब्लाउज पेटीकोट में आ गई। खुद को गरम रजाई में डालते हुए मेवा को बुलाते हुए कहा "मेवा आ जाओ। दूध पीने का टाइम हो गया।"

मेवा तुरंत लपककर रजाई में घुसा और मुस्कुराते हुए बोला "इसका ही तो इंतजार था।" फिर अचानक से खासने लगा।

"हम्मम कहा था ना। बाहर नहाने की जरूरत नहीं। हो गई न सर्दी।"

मेवा अनामिका के ब्लाउस का बटन खोलते हुए कहा "अब मुझे डाटा मत करो। जल्दी से मुझे मीठा दूध पीने दो।"

अनामिका मेवा को बाहों में भरते हुए दूध पिलाते हुए कहा "पागल में तुम्हारी तबियत का खयाल रख रही हूं। मेरा मेवा बीमार पड़ गया तो ?"

"जब तक तुम हो तब तक मैं बीमार नहीं पडूंगा।"

"वैसे भी तुम्हारी जिम्मेदारी जो मैने ली है।" अनामिका मेवा के शरीर को छूते हुए बोली "अच्छे से लेट जाओ। वरना ठंडी लगेगी।"

मेवा आगे बोला "सच कहूं अनामिका आज मुझे ठीक से नींद नहीं आएगी। तुम साड़ी के बिना सो जाओ ताकि तुम्हारे स्तन के साथ खेलकर थोड़ा नींद लूं और अगर भूख लगी तो दूध भी पी सकूं। आज सो जाओ ना बिना साड़ी के।" मेवा मिन्नत करने लगा।

"हां ठीक है बिना साड़ी के सो जाऊंगी। तुम्हे जो करना है करो। लेकिन हां आज रात रजाई से उतरना मत।"

"हम दोनो छोटे से बिस्तर पर है करवट बदलने से नींद तो खराब नही होगी ना तुम्हारी ?"

"मेरे राजा तुम्हे जैसे नींद आए वैसे करो। मुझे परेशानी नहीं होगी। मेरे एक राजा तुम ही तो हो।"

"पता है तुम्हारे दूध पीने से मेरा पेट भरता है और स्तन के साथ खेलने में बहुत मजा आता है।"

"अच्छा मेरे राजा। मुझे भी अच्छा लगता है। जैसे कोई बच्चा मेरे साथ खेल रहा हो।"

"लेकिन मैं बच्चा नहीं हूं।"

"अच्छा ? क्या हो तुम ?"

"तुम्हारा राजा। अब चलो मुझे दूध पीने दो।"

अनामिका बड़े प्यार से मेवा के सिर को हाथो से निहार रही थी। अपने गोरे गोरे बदन पर मेवा का कोयल जिस्म और बुड्ढा शरीर देख हंसने लगी। खुद से बातें करते हुए कहने लगी "इस पुण्य काम में कितना अच्छा लग रहा है। मेवा के साथ कोई रिश्ता न था मेरा लेकिन आज एक रिश्ता बन चुका है। देखो कैसे बच्चे की तरह दूध पीता है और मेरे स्तन के साथ खेलता है। जब मुझे मेवा प्यार से कहता है भूख लगी है दूध पिलाओ मुझे जैसे अच्छा लगता है। इसे दूध पिलाते पिलाते वक्त का पता ही नही चलता। मेवा है तो यह खूबसूरत लम्हा भी है। अब बस अगले आदमी की सेवा करने का वक्त आनेवाला है। कौन है यह कुबड़ा और बुड्ढा आदमी ? अब तो मेवा के साथ उस बुड्ढे के साथ भी वक्त बिताना है।"

रात अपने सन्नाटे के साथ और गहरा हुआ। लालटेन की रोशनी में झोपड़ी के अंदर सो रही अनामिका के बदन में साड़ी न था। वो पेटीकोट में ही थी। बगल में लेटा मेवा की आंखों में नींद नही। अनामिका के मासूम चेहरे को देख रजाई में घुसा और उसके मुलायल स्तन को चूमा। उस स्तन के साथ खेलता और अपनी उंगली से navel पे हाथ घूमता। भीनी भीनी खुशबू से महक रहे अनामिका के बदन को मेवा सूंघ रहा था। अनामिका की भी नींद थोड़ी सी बिगड़ी। हल्के से आंखे खोल मेवा की तरफ देखा तो मुस्कुरा दी। मेवा अनामिका के बदन से खेल रहा था।

"मेरे राजा क्या हुआ नींद नही आ रही ?" अनामिका ने मेवा को बाहों में भर लिया।

"नही बिलकुल भी नहीं। स्तन से खेल रहा हूं।"

"हम्म खेलो लेकिन हां जरा लालटेन बुझा दूं।"

"नही नही अनामिका बिलकुल नहीं।"

"क्यों ?"

"अगर बंद कर दिया तो आपका सुंदर सा चेहरा कैसे देखूंगा और आपके स्तन से कैसे खेलूंगा ? कैसे आपके मखमली सा बदन देखूंगा ? नही मुझे इसे देखना है। ये देखना है कि को औरत दिल से सुंदर है उसका बदन भी वैसा ही सुंदर है। अनामिका आज मुझे अच्छे से देखने दो।"

दोनो चुप चाप कुछ देर तक एक दूसरे को देखने लगे। अनामिका अंदर ही अंदर खुद से बात करते हुए बोली "मेवा के दिल में मेरे लिए कितनी अच्छी बातें है और एक मैं उसके लिए इतना नही कर सकती ? इस सेवा में मेरे लिए अलग सा अनुभव छुपा है।"

वहीं दूसरी तरफ मेवा मन ही मन खुद से कहने लगा "क्यों न देखूं इस खुबसूरत अप्सरा को। ये यहां मेरे लिए ही तो आई है। अब तो बस बाकी की सारी जिंदगी ऐसे ही इसके साथ बिताऊंगा।"

अनामिका ने दोनो हाथ मेवा के गर्दन पर फैलाए और खुद के ऊपर उसे लेटा दिया। मेवा का पूरा बदन अनामिका के ऊपर आ गया। अनामिका एक बड़ी सी मुस्कान के साथ बोली "देखो मेवा। तुम जो चाहो में वो करूंगी। लेकिन कभी भी मुझसे घबराना मत। तुम्हारे लिए हमेशा में हूं। मेरे लिए तुम किसी अनमोल इंसान से कम नहीं। तुम्हे हमेशा अपनी आंखो के सामने देखना चाहती हूं।"

मेवा हल्के से अनामिका के गाल को चूमते हुए कहा "जब तक मेवा है तब तक अनामिका।"

"तो फिर जरा मेरी दिल की धड़कन सुनो।"

मेवा अपने काम को अनामिका के सीने पे रखा और सुनने लगा।

"धड़कन के रही है कि तुम मेरे सबसे प्रिय इंसान हो। मेरे मेवा तुम्हारी सेवा ही मेरा धर्म है।" अनामिका ने कहा।


दोनो एक दूसरे की बाहों में सो गए।
 

Valkoss

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छुट्टियां खत्म हुई और काम का वक्त शुरू। अनामिका और मेवा ने एक साथ अच्छे वक्त बिताए। सुबह सुबह तैयार होकर मेवा को दूध पिलाकर ठीक 9 बजे अनामिका चली गई बैंक में काम करने। वैसे बैंक में अनामिका को 4 घंटे ही काम करना होता है बाकी के दिन वो फ्री रहती है। बैंक में सिर्फ बैठना और बाकी का काम दो औरतें कर लेती। यूं कहे तो अनामिका को अच्छी खासी salary में सिर्फ बैठने का काम करना है और हिसाब किताब की जांच ही करनी है।

वैसे आज का दिन बहुत जरूरी दिन था। आज अनामिका के जिंदगी में एक और शक्ष आएगा। जब अनामिका काम कर रही थी कि एक पत्र उसकी ऑफिस में आ पहुंचा। पत्र में लिखा था

"अनामिका मैं हूं बाबा। आज दोपहर काम पूरा होते ही जंगल से बाहर एक पुराने किल्ले में मुझे मिलो। याद रहे जल्दी पहुंचो।"

इस पत्र को पढ़कर अनामिका ने जरा सी भी देरी नहीं की और बैंक का काम खत्म होते ही अकेले निकल पड़ी जंगल के रास्ते एक किल्ले की तरफ। वो किल्ला करीब 150 साल पुराना है। कोई वहां सालो से नहीं आया। इतना वीरान की शायद ही कोई आए जाए। उस किल्ले में पिछले 45 सालो से कोई है आया। अनामिका की इस बात की परवाह नहीं थी। वो जानती थी कि बाबा के छत्र छाया में वो सुरक्षित रहेगी। किल्ला बहुत ही बड़ा था। यूं कहो तो 900 बीघा का बना किल्ला। उस किल्ले के अंदर तक अभी जाना था।

अनामिका किल्ले के छत में जा पहुंची। वहां एक बड़ा सा खंडर कमरा था। उस अंधेरे में वो चली गई। अंधेरे में बाबा अकेले खड़े थे।

"प्रणाम बाबा। कैसे है आप ?" अनामिका ने बाबा का पैर छुआ।"

बाबा मुस्कुराके बोले "जीती रहो। अनामिका तुमने सच में मेवा की बहुत सेवा की। बहुत जल्द तुम्हे इसका वरदान मिलेगा।"

"अब यही मेरी जिंदगी है बाबा। बताइए किसलिए बुलाया ?"

"मेरे साथ आओ अंदर। तुमसे अकेले में बात करनी है।" बाबा अनामिका को अंदर ले गया। अब इस किल्ले में बाबा ही रहता हैं। बाबा अनामिका को अपने कमरे ले गया। अनामिका ने देखा तो कमरा बहुत ही पुराना था। वहा वो खटिया पे बैठी।

बाबा अनामिका से कहा "अब वक्त आ गया है एक और बेसहारा की सेवा करने का। देखो अनामिका वो एक कुबड़ा है। बुड्ढा है। कई सालो पहले उसका एक छोटा सा परिवार था। लेकिन एक दंगे में उसने अपना पोता खो दिया। वो पोता उसके सगे भाई का था। उस कुबडे ने कभी भी मान सम्मान की जिंदगी नही जी। अब से वो तुम्हारी जिम्मेदारी।"

"बाबा मैं उसका खयाल रखूंगी। बताइए कहा है वो।"

"बुलाता हूं। लेकिन याद रहे। तुम्हे उसके साथ अब रहना होगा। उसका खयाल रखना होगा। बदले में वो तुम्हारा खयाल रखेगा। उसका कोई घर नहीं न कोई रिश्तेदार। अब तुम्हे उसे अपने घर रखना होगा।"


बाबा ने आवाज दिया। अनामिका अपने जगह से उठ खड़ी हुई। उसने देखा की एक काले रंग का कुबड़ा जिसका चेहरा थोड़ा थोड़ा सा जला हुआ था। करीब 15% चेहरा जला था। उमर 75 साल की और नाम मणि था। उसे देख अनामिका दंग रह गई। अनामिका को नहाने मणि के चेहरे में घबराहट दिख रही थीं। अनामिका को उसपर तरस आ गया। अब अनामिका को इसकी भी सेवा करनी है।

"जाओ अनामिका। अब हम अगले हफ्ते मिलेंगे इसी जगह पर। अगले हफ्ते मेरा यज्ञ शुरू हो रहा है। तुम पूजा खतम होने के बाद आओगी मुझसे प्रसाद लेने। "

"जी बाबा।" अनामिका बाबा के पैर छूकर मणि के साथ चल दी। पूरे रास्ते मणि कुछ न बोला बस सिर झुकाए आगे चला। अनामिका ने सोचा की अब उसके पश्चाताप के रास्ते में अनेक अच्छे काम होंगे। अब उसका लक्ष्य था अपने मन को शांति। सेवा करके उसके मन को शांति मिलती। मणि को लेकर अपने घर पहुंची। उसे घर में रखकर जल्दी से मेवा के घर गई और उसे दूध पिलाया। दूध पिलाकर कुछ देर उसके साथ रही और रात को वापिस आई।

घर आकर देखा को मणि बाहर बैठा था। अनामिका आकर बोली "आप अभी भी बाहर ही है ? घर के अंदर क्यों नहीं गए ?"

मणि कुछ न बोला बस चुप चाप सुन रहा था। अनामिका बोली "देखिए अब से आप यहां मेरे साथ रहेंगे। अगर साथ में रहना है तो एक दूसरे से बात चीत करनी पड़ेगी। ऐसे अजनबी को तरह पेश आयेंगे तो कैसे चलेगा ? चलिए अंदर। आपके लिए खाना बना देती हूं।

अनामिका अंदर रसोई में गई और खाना बनाने लागी। मणि शरम के मारे अंदर आया। अनामिका जिस तरह से मणि से बात कर रही थी ऐसे अच्छी तरह से किसी ने नहीं किया। मणि को लोगो ने धूतकर और गृणा की नजर से देखा। अनामिका बड़े इज्जत से पेश आ रही थी।

अनामिका खाना बनाकर मणि को खिलाया। मणि जैसे पहली बार खाना देखा हो वैसे खा रहा था। काफी दिनों बाद खाना मिला। वो जल्दी जल्दी खा लिया। अनामिका को जैसे तरस आ गया उस पर। मणि को खाना खिलाकर उसे कमरे में ले गई। वैसे अनामिका का तीन कमरे का घर था। घर करीब 70 साल पुराना था। घर के आगे एक बड़ा सा बगीचा था और पीछे जंगल। वैसे देखा जाए तो गांव जंगल के ईद गिर्द ही था।

मणि को उसके कमरे में सुलाकर अनामिका बगीचे में घूम रही थी। ठंडी का महीना और चारो तरफ कोहरा ही कोहरा था। अनामिका हल्के से ठंडी को महसूस कर रही थी। अनामिका घर की तरफ चली की पीछे से बगीचे का दरवाजा खुला। सामने देखा तो मेवा आया। अनामिका हंसने लगी। मेवा पास आते ही बोला "अनामिका में आ गाय ।"

"इधर क्यों आए हो ? मेरी याद आ रही थी क्या ?"

मेवा अनामिका से गले लगते हुए कहा "हां। चलो अब मुझे सोना है। चलो न।" मेवा हाथ पकड़े अंदर ले गया अनामिका के कमरे में।

अनामिका साड़ी उतारते हुए बोली "इतनी रात को आ गौर अकेले पागल बुड्ढे।"

"मेवा बिस्तर पे लेट गया और ऊपर का कपड़ा उतारकर रजाई में घुसा। अनामिका ने ऊपर के सारे कपड़े उतारकर रजाई में घुसी।

"मुझे दूध पीना है।" मेवा स्तन को जोर जोर से चूसने लगा।

"इतनी रात को आए अकेले। पागल हो तुम।"

मेवा दूध पीने लगा। रही बात अनामिका की तो पूरे दिन को थकान के बाद मेवा को अपने पास देख अच्छा लगा और वो सो गई। मेवा का दूध से पेट तो भरा लेकिन मन नही। इसीलिए वो अनामिका के पेट नाभि और स्तन के साथ खेलते खेलते सो गया।

अगले दिन सुबह ६ बजे मेवा उठा और कपड़ा पहनकर घर चला गया। अनामिका सुबह ७ बजे उठी। मेवा को बाजू में न पाकर वो समझ गई को मेवा अपने घर चला गया। फिर वो उठी और नहाने चली गई। करीब ८ बजे वो तैयार हुई। अभी भी बैंक जाने में २ घंटा बाकी था। जल्दी से नाश्ता बनाने रसोईघर चली गई। रसोईघर की खिड़की से देखा तो बगीचे की हालत बहुत खराब थी। एकदम उजड़ा और पेड़ तो बिलकुल भी नहीं। बातो बातो में सोचती कि अगर उसे पेड़ पौधे लगाना आता तो बगीचे को खूब अच्छे से सजाती।

अनामिका नाश्ता बनाकर गई मणि के कमरे। मणि उधर नही था। बाहर अनामिका देखी तो वो अकेला बैठा बगीचे के जमीन को घूर रहा था। अनामिका ने उसे नाश्ते के लिए बुलाया। दोनो ने साथ में नाश्ता किया। मणि की अगर बात करे तो उसके सामने अनामिका का गोरा बदन और sleveless साड़ी उसे मोहित नही कर पा रहा था। वोनीचेh चुपचाप नीचे नजर करके बैठा था।

"सुनो मणि मैं बैंक जा रही हू । आज शाम ४ बजे वापिस आऊंगी। तब तक अपना खयाल रखना।"

मणि हां में सिर हिलाया। अनामिका के जाने के बाद वो वापिस बगीचे में आया और बंजर बगीचे को कुछ देर तक देखता रहा। आखिर मणि से रहा नही गया। फोरन आस पास की जगह को देखने लगा। वहां उसे फावड़ा कुल्हाड़ी और पाइप मिला। तुरंत पाइप को नल से लगाया और पानी की बौछार बगीचा के चारो तरफ करने लगा। मणि बगीचे के काम में लग गया। वहीं बैंक में कुछ न काम होने की वजह से आज अनामिका 11 बजे ही बैंक से छुट्टी ले ली। अनामिका खुशी खुशी से मेवा के घर गई।

अनामिका को देख चंपा मुस्कुराई और बोली "आज आप जल्दी आ जाए।"

अनामिका चंपा का गाल खींचते हुए बोली "हां चंपा।" चंपा को रुपए देते हुए कहा "जा बाहर घूमकर आ।"

"वह अनामिका आज बड़ी खुश हो।"

"हां। कहां है मेरा मेवा ?"

"अंदर सो रहा है।"

"ठीक है तुम जाओ।"

हल्के से दबा पाव के सहारे अनामिका मेवा के कमरे गई। उसे suprise देने। अपनी साड़ी उतारी और सिर्फ पेटीकोट में थी। ऊपर से वो निर्वस्त्र थी। मेवा रजाई में सो रहा था। हल्के से रजाई तो ऊपर कर मेवा के बगल लेट गई। मेवा के गाल को हल्के से चूमते हुए उठाया। मेवा पीछे मुंडा तो अनामिका को पाया। खुशी से मेवा ने उसके स्तन को हाथ में लिया और गाल चूमते हुए बोला "मेरी अनामिका तुम यहां ?"

"हां मेरे राजा। आज जल्दी छुट्टी ले ली। तो बताओ मुझे देखकर कैसा लगा ?"

मेवा अनामिका के गले को चूमता हुआ बोला "बहुत खुश हूं मैं। मेरी अनामिका" फिर अनामिका के स्तन को हाथो से मसलने लगा।

"देख रही हूं को आज कल बड़े उतावले और बदमाश होते जा रहे हो।" अनामिका ने छेड़ते हुए कहा।

"चलो अब बदमाश ही सही लेकिन रजाई में तुम्हारे साथ चिपककर लेते रहने में मजा आ रहा है।"


"दूध पियोगे?"

"अभी नही। दूध पीने वैसे भी रात को आऊंगा। अभी कुछ और करना है।"

"क्या ?"

"आज तुम्हारे पेट और स्तन से खेलूंगा। बहुत खेलूंगा।"

"खेलो खेलो लेकिन हां मुझे शाम को वापिस जाना है।"

"हां चली जाना लेकिन रात को में आऊंगा फिर दूध पियूंगा।"

"हां हां पी लेना। रात को घर की चाबी बाहर चटाई पे रख दूंगी। चुपचाप मेरे कमरे में आ जाना।"

"लेकिन हां अभी की तरह पहले से रात को कपड़े उतारे रखना वरना उतारने में मेहना लगेगी।"

"क्या ?बदमाश बुड्ढे।" अनामिका शर्मा गई। मेवा अनामिका के स्तन को बहुत गहराई से चूम रहा था। थोड़ी थोड़ी देर में गले को चूमता तो नीचे सरककर नाभि को चूमता और चिकने पेट को चाटकर अनामिका को गुदगुदाता।

"मेवा तुम अपना खेल जारी रखो। मैं चली सोने।" अनामिका अंगड़ाई ली। इसमें उसका बगल (armpit) दिखाई दिया जो बहुत ही मुलायम और साफ था। उसे देख मेवा ने दोनो हाथ अनामिका के ऊपर किया और बगल को चाटने लगा। अनामिका को बहुत हंसी आई और सो गई। करीब 1 घंटे तक की भरके अनामिका के ऊपरी बदन से खेला। फिर स्तन पे मुंह लगाकर दूध पीने लगा।" दूध पीते पीते अनामिका के बदन पर लेटकर सो गया।
 
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देखते देखते एक हफ्ता हो गया। मेवा अब रात को नहीं आता। उसकी वजह से बढ़ती ठंडी का मौसम। बढ़ती ठंडी को वजह से सरकार ने 15 दिन की छुट्टी जाहिर कर दी। छुट्टी की खबर सुनकर अनामिका बहसूत खुश हुईं। 25 नवंबर 1976 की सुबह सुबह मेवा को दूध पिलाकर सुबह 9 बजे कोहरा के बीच वो किल्ले को तरफ चल दी। ठंडी बहुत ज्यादा थी। ठंडी में धूप का कोई अता पता नहीं। किल्ले का दरवाजा खुला और वो अंदर गई। काम से कम 6 मिनट लगता है किल्ले के अंदर जाने में इतना बड़ा जो है। वहां अनामिका ने देखा तो बाबा साधना में लीन थे। अनामिका की आहट सुनकर वह अपनी आंखे खोल दिए। हल्की सी मुस्कान के साथ बाबा ने अनामिका को आने का इशारा किया। अनामिका ने बाबा के पैर छुए।

"जीती रहो प्रिये। चलो अंदर चली कक्ष में वहां दोनो बात करेंगे।"

दोनो कक्ष में पहुंचे। बाबा ने अनामिका को प्रसाद दिया जो यज्ञ का था। अनामिका ने उस प्रशाद को अपने थैली में डाला।

"बताओ अनामिका क्यों आई यहां?"

"बाबा मैं थोड़े से संकट में हूं।"

"जानता हूं कैसी संकट में हो। यही न कि एक हफ्ता हो गया लेकिन मणि से तुम्हारी कोई बातचीत नहीं हुई।"

"हां बाबा।

"देखो अनामिका ये साधना आसान नहीं। तुम मेवा की सेवा तो अच्छे से कर रही हो लेकिन तुम घर से जाती हो सुबह और वापिस आती हो शाम को। इस बीच पूरे दिन का क्या ? मणि को वक्त दो। उसके साथ वक्त बिताओ। थोड़ा ज्यादा जुड़ने की कोशिश करो। तो कुछ होगा।"

"ऐसा क्या करूं बाबा ?"

"उसके पास जाओ। बात करो। उसके बगीचे के प्रति काम में मदद करो। मदद जैसे कि वो काम करे तो उससे बात करो।"

"कोशिश की लेकिन हुआ नही।"

"मणि की एक समस्या है जो तुमने नही देखा। उसे दिन में कई बार पुरानी यादों का दौरा चढ़ता है जिसकी वजह से वो खुद को बेसहारा मान बैठा। तुम आज से हर वक्त उसके साथ रहो। रही बात मेवा कि तो उसके साथ हर रात बिताओ। देखो मणि को हरहाल में अपना बनाना होगा। तुम्हारी सेवा सिर्फ उसे खाना खिलाना या फिर इज्जत देना नही बल्कि अपना सब कुछ न्योछावर करना होगा। जरूरत पड़ने पर उसकी जरूरतों को पूरा करो। मुझे पता है अनामिका तुम कर लोगी।"

"मुझे राह दिखाने के लिए धन्यवाद। बाबा आपको और कुछ चाहिए ?"

"नही। लेकिन हां वक्त आने पर तुम्हारी जिंदगी में एक और आएगा जिसकी सेवा करनी होगी तुम्हे।"

"कौन है वो ?"

"वक्त है उसे आने में। लेकिन अनामिका इस सेवा साधना का क्या फल है ये तुम्हे पता नही। जब पता चलेगा तब तुम खुद पे गर्व करोगी।"

"फिर अब हम कब मिलेंगे?"

"जब तुम्हारी मर्जी। मैं अब यह ही रहूंगा। बस अब से मेवा मणि तुम्हारा सब कुछ है। न्योछावर करदो अपने आपको उनके लिए। खुद का सब कुछ लुटा दो। करदो हवाले अपने आपको। तुमसे जो वो मांगे वो दे दो।"

अनामिका अब अपना लक्ष्य समझ गई। अब नई शुरुआत करेगी वो। अब मणि को खुद से जोड़ेगी। हर वक्त उसकी परछाई बनेगी। घर वापिस आई तो देखा मणि अकेले बगीचे में बैठा था। ठंड ज्यादा थी। अनामिका अंदर गई और शॉल लेकर मणि को ओढ़ाया। मणि को जैसे गर्माहट का अनुभव हुआ। वो अनामिका को पहली बार मुस्कान के साथ देखा।

"क्या बात है ? तुम्हे हंसना भी आता है ?" अनामिका ने खुश होते हुए कहा।
"मेमसाब ऐसा नहीं है लेकिन आपका आदर सत्कार देखकर थोड़ा दंग रह गया था। किसी ने ऐसी इज्जत तो नही दी।"

"देखो मणि मुझे मेमसाब नही अनामिका के नाम से बुलाओ। तुम नौकर नही हो मेरे।"

मणि के आंखो में आंसू आ गया और वो अनामिका को बोला "इतना इज्जत देने के बाद आपसे क्या कहूं। अब तो को भी हो मैं आपकी सेवा करूंगा। आपके अच्छे व्यवहार ने मुझे आपका दास बना दिया।"

"नही मणि दास जैसे शब्द न कहो। क्या मैं तुम्हारे बराबर की नहीं हो सकती ? देखो मणि अगर साथ रहना है तो एक दूसरे को वक्त देना होगा। तुम बस मेरे साथ रहो और देखना बहुत सारे दुख तकलीफ से तुम्हे मै निकालूंगी।"

"वैसे अनामिका तुम्हे पता है मुझे बगीचे हरे भरे अच्छे लगते है। तो क्या अब मैं काम करूं बगीचा में ?"

"हां लेकिन मैं भी तुम्हारे साथ रहूंगी।"

"अब तो हर वक्त साथ रहना है तो रहना है। चलो मेरे साथ। तुम सिर्फ बैठकर बाते करो। मैं काम कर लूंगा।"

अनामिका की खुशी का कोई ठिकाना न रहा। मणि को अब अपने पास पाकर वो खुश थीं। अब उसे सिर्फ मणि के साथ ही वक्त बिताने का मन था। रही बात मेवा की तो रात को उसके साथ वक्त बिताएगी। फिर अनामिका मणि के साथ बगीचे में गई। मणि इतनी ठंडी में पाइप से पानी निकालकर पोधो को सींच रहा था। अनामिका बड़े अदब से बैठे उसके काम को देख रही थी।

मणि बोला "पता है अनामिका बहुत जल्द इसमें फूल उगेंगे और फिर पेड़ पौधे लगाऊंगा। गर्मी के मौसम तक बगीचा खूबसूरत लगने लगेगा।"

"हां मणि तुम मेहना बहुत कर रहे हो इसके लिए।"

"यह तो हम दोनो के लिए।" मणि ने कहा।

"अरे वाह ये मेरे लिए भी है ?"

"हां।"

फिर दोनो ने साथ में अच्छा दिन बिताया। फिर शाम के 7 बज गाएं दोनो ने कहना खाया और अपने कमरे चले गए। कमरे में घुसते ही अनामिका ने लालटेन चालू किया। अपने ऊपर के सारे कपड़े उतारकर बिलकुल ऊपर से नग्न अवस्था में अनामिका रजाई के अंदर आ गई। रात के घने अंधेरे और हवा को आवाजों से खिड़की पूरी कोहरा से ढका हुआ था। अनामिका अंगड़ाई लिए लेती हुई थी। उसे किसी के कदमों को आहट सुनाई दी। मुस्कुराते हुए दरवाजे को तरफ देखी। अंधेरे में खड़ा मेवा पूछा "मेरी अनामिका अंदर आऊं?"

"हां राजा आ जाओ।"

मेवा अंदर आया और दरवाजा अंदर से बंद कर दिया। रजाई को हल्के से ऊपर किया तो देखा अनामिका के ऊपरी शरीर में एक कपड़े भी न थे। खुश होते हुए मेवा पूछा "मेरा इंतजार कर रही थी ?"

"हां लेकिन तुम हो की देर से आए। लगता है मुझसे मिलना अब अच्छा नही लगता ?" अनामिका ने बाहें फैलाकर मेवा को अपनी और बुलाया।

मेवा अनामिका की बाहों में घुसा और हल्के से होंठ को चूमते हुए बोला "मेरे लिए और मेरे कहने पर तुम मेरा इंतजार कर रही थी। मेरी अनामिका।" फिर से मेवा ने अनामिका के होठ चूमा।

"यह कैसी चुम्मी दी। बहुत बदमाश हो रहे हो तुम।"

"मेरी अनामिका के साथ मैं जो करूं। मेरी हो तुम।"

"हां मेवा मैं तुम्हारी हूं। जो करना चाहते हो करो।"

"दूध पीने से पहले मुझे तुम्हारे साथ खेलना है।"

"क्या खेलना है ?" अनामिका ने पूछा।

"देखो अभी तो मुझे तुम्हारे पेट के साथ खेलना है। फिर तुम उल्टा लेटोगी। फिर में पीठ के साथ खेलूंगा। अपनी जुबान के साथ।"

अनामिका मुस्कुरा दी। मेवा खून खेला स्तन के साथ फिर अनामिका को उल्टा लेटाया। उसकी नंगी पीठ को जुबान से चाटा। फिर पूरी तरह से ऊपर लेट गया। अनामिका के गांड़ में उसका लिंग चुभने लगा। मेवा पीछे उसके बाल को एक किनारे रखकर गले को चाटने लगा। कुछ देर तक अनामिका की आंखे बंद थी और वो उस मधुर एहसास में थे। फिर मेवा उसे सीधा लेटाया और दूध पीने लगा। अनामिका को नींद आई और उसे अपनी बाहों में सुलाया। मेवा कभी सोती हुई अनामिका के होठ चूमता तो फिर स्तन को चूमता। मेवा बेतहाशा अब चूमने लगा। कुछ देर बाद वो भी निढाल होकर सो गया। सुबह होते ही अनामिका का दूध फिर से पिया और दबे पांव घर से बाहर चला गया। अनामिका कुछ देर ऐसे ही सोती रही।

कुछ देर बाद अनामिका तैयार हुई और नीचे उतरी। हॉल में देखा तो मणि नहीं था। बगीचे में भी नही था। सोचा शायद अपने कमरे में होगा इसीलिए अनामिका कमरे की तरफ गई। कमरे के बाहर उसे अजीब सा आवाज आया। आवाज जैसे किसी के हाफने की। अनामिका ने दरवाजे को हल्के से खोला तो देखा बिस्तर पर पड़ा मणि कांप रहा था। शायद उसे पुराने जख्म का दौरा पड़ा। अनामिका तुरंत उसके पास गई और शांत रहने को कहा। मणि फिर भी कांप रहा था। उसे सपने में अपने परिवार का वो बुरा वक्त दिख रहा था। डर और दुख का साया उसे घेर लिया। कांपते जिस्म से पसीना बह रहा था। अनामिका ने बिना सोचे मणि को खुद से सीने से लगाया और शांत रहने को कहा। अनामिका ने मणि को गले लगा लिया। तब जाकर मणि को जान में थोड़ी जान आई। उसे अभी भी होश नही था इसीलिए वो अनामिका को कसके गले लगा लिया। अनामिका का संतुलन बिगड़ा और वो बिस्तर पे बैठी थी अब गिरके लेट गई। मणि पूरी तरह से अनामिका के ऊपर लेट गया। अनामिका ने हल्के से मणि के चेहरे को सीने से लगाया और कहा "शांत हो जाओ मणि। मैं हूं ना। तुम्हे कुछ नही होगा।"

मणि को आंखे खुली तो देखा कि वो अनामिका के ऊपर लेटा है और अनामिका उसे सहानुभूति दे रही थी। मणि की ऊंचाई वैसे अनामिका के कंधे से थोड़ा और नीचे था। मणि को अनामिका की सहानुभूति अच्छी लगी। कुछ देर दोनो ऐसे ही रहे। फिर मणि बिस्तर से उठा। मणि के साथ अनामिका भी उठी। अनामिका ने अपने साड़ी का पल्लू ठीक किया। दोनो कुछ बोले नहीं और उठकर बाहर चले गए। मणि बाहर बगीचे में चला गया। अनामिका सुबह के कोहरे में खो गई और वो फिर से किल्ले की तरफ रुख की। अनामिका के दिमाग में कई सवाल उठा। क्या उसने जो मणि के साथ किया क्या वो सही सेवा थी ? क्या मणि के साथ जो किया उससे मिली अपार आनंद के लिए ही वो तरस रही थी ? मणि को खुद से लगाकर वो क्यों इतना खुश महसूस कर रही थी ?

इन सवालों को खुद के दिमाग में समेटकर वो आगे बढ़ी और कुछ देर बाद किल्ला में पहुंची। उस वक्त किल्ला के बगीचे में बाबा पक्षियों को दाना दे रहे थे। अनामिका को सामने देख मुस्कुराए और अंदर आने का इशारा किया। दोनो कमरे में पहुंचे। बाबा ने देखा की अनामिका इतनी ठंडी में sleveless साड़ी में थी और शरीर में न कोई गरम कपड़ा था। अनामिका अंदर आई। बाबा गरम शाल अनामिका को ओढ़ाते हुए ठीक उसके बगल बैठे।

"क्या हुआ अनामिका ? यहां कैसे ?"

अनामिका ने बाबा को आज सुबह मणि के साथ हुए घटना के बारे में बताया। घटना के बारे में सुनकर बाबा बोले "तो तुम्हे उसका साथ देना होगा। वो अकेला है। हो सकता है उसे किसी साथी की जरूरत हो। तुम खुबसूरत हो, जवान हो, तुम्हारे चुने से उसे अच्छा लगा। ऐसा एहसास वो इस जन्म में नहीं कर पाएगा। उसका कुबड़ा और काल शरीर किसी को पसंद नही। कोई उसे अपने आस पास भी नहीं आने देता। लेकिन तुम उसे अपने आप से जोड़कर उसके अंदर की भावना को जगाया। मेरी मानो तो अगर वो तुमसे कुछ करने की आशा करे तो पूरा करो। उसे किसी औरत का साथ अब चाहिए। अब उसके साथ तुम्हे शारीरिक संबंध बना पड़े तो बना लो। इसी में तुम्हारी सेवा है। लेकिन एक बात बता दू। अगर उसकी सेवा में तुम सफल हुई तो तुम्हारे सास ससुर को जिंदगी के कष्ट दूर हो जाएंगे।"

"ठीक है बाबा मैं तैयार हूं। मणि के लिए मुझे अगर उसके साथ शारीरिक संबंध बनाना पड़े तो बनाऊंगी। बस मुझे आशीर्वाद दीजिए की मणि की सेवा में मैं सफल हो जाऊं।"

"अनामिका मैं सदेव तुम्हारे साथ हूं और रहूंगा। जब भी कोई धर्म संकट हो तो मेरे पास चली आना। अब मैं तुम्हे छोड़कर कही नही जाऊंगा।"

अनामिका मुस्कुराते हुए पैर छूकर बोली "आपसे यही उम्मीद थी। बस हर कदम मेरा साथ दे।"

"तो वादा रहा मेरा। आज से ये किल्ला मेरा घर। अब जब भी तुम आना चाहो आ जाना। तुम्हारा और मेरा रिश्ता सदेव बना रहेगा।"

अनामिका पूरी तसल्ली से वहा से घर की तरफ चली गई। वापिस आई तो देखा मणि काम कर रहा था। अनामिका उसे परेशान नहीं करने देना चाहती थी। वो चली गई अपने कमरे। खुद को शीशे के सामने निहारने लगी। खुद की सुंदरता को देख रही थी। उसने अपने कपड़े बदले। लाल रंग का sleevless ब्लाउस और नीले रंग की साड़ी। उन नए साड़ी के साथ अनामिका बाहर घर के पीछे एक मेज़ पर बैठी। अनामिका कुछ देर तक बेटी रही। लेकिन फिर उसे अपने दोनो मुलायम कंधो पे दो हाथ का स्पर्श महसूस हुआ।

अनामिका समझ गई को यह हाथ मणि का है। मणि ने अगले पल अनामिका के दोनो स्तन पे हाथ रखा और मसलने लगा। अनामिका जैसे मदहोश सा महसूस करने लागी क्योंकि इतने सालो से किसी ने इस तरह उसे नहीं छुआ।

मणि अनामिका के कान के पास बोला "मुझे तुम्हारी जरूरत है।"

"मैं तुम्हारे लिए ही हूं।" अनामिका ने आंखे बंद करके कहा।

मणि अनामिका के साड़ी का पल्लू गिरा दिया और कहा "चलो अनामिका मेरी जरूरत को पूरा करो।"

अनामिका मणि को लेकर मणि के कमरे गई। मणि जैसे बहुत खुश था। पीछे से अनामिका को बाहों में भर लिया। उसकी ऊंचाई अनामिका से बहुत कम थी। वो अनामिका के कंधे से थोड़ा नीचा था। कुबड़ा शरीर होने की वजह से।

"पता है अनामिका यहां क्यों लाया हूं तुम्हे ?"

"अपने जरूरत को पूरा करने। तो मणि कर लो अपनी जरूरत पूरी। आज के लिए ही नहीं बल्कि कई दिनों के लिए।"

"अनामिका सोच लो। एक कदरूपे कुबड़ा बुड्ढा हूं। क्या सच में तुम मेरी ये इच्छा पूरी करना चाहती हो ?"

"हां मणि।"

"मेवा की तरह मेरा भी ऐसा खयाल रखोगी ?" मणि ने पूछा।

"तुम्हे मेवा के बारे में कैसे पता ?"

"बाबा ने कहा था। मेवा भी मुझे जानता है।"

"देखो मणि तुम जो चाहो वो करो। तुम्हे प्यार की जरूरत है। उसे मैं पूरा करूंगी।"

"सच ?"

"हां मणि।"

मणि अनामिका के पल्लू को उतार दिया और बिस्तर पे धक्का देकर लिटा दिया। अनामिका की आंखों में आंखे डाल मणि ने अपना धोती और कुर्ता उतार दिया। उसका कुबड़ा देह देखकर अनामिका को उसपे तरस आया आखिर ईश्वर कैसे उसके साथ ऐसी नाइंसाफी कर सकता है। मणि को अब इस दर्द से निकलेगी वो बस यही सोच रही थी अनामिका।

अनामिका को तरफ आगे बढ़ा मणि। उसके नाभि पे अपना सख्त होठ डाला और चूमने लगा। अनामिका की आंखे बंद हुई और बिजली का एक झटका उसके बदन में दौड़ गया। अब अनामिका के कपड़े उतारने लगा मणि। अनामिका को पूरी तरह से नग्न अवस्था में रख दिया मणि ने। मणि ने अनामिका के होठ को चूसना शुरू किया। अनामिका को हल्की सी बदबू महसूस हो रही थी। अनामिका ने उसे नजरंदाज कर मणि का चुम्बन में साथ दिया। मणि अनामिका के स्तन को हाथो में दबाने लगा।

"अनामिका ये प्यार सिर्फ एक दिन से नहीं पूरा होगा।"

"कौन कहता है कि तुम एक बार करो। जब तक तुम चाहो मेरे जिस्म से प्यार कर सकते हो। मेरा काम है तुम्हारी इच्छा पूरी करना। तुम्हे हर रोज प्यार दे सकती हूं। एक जीवनसाथी की तरह। इस दुनिया से हम अलग है और अब तुम्हे संतुष्ट करना मेरा काम है।

"में तुमसे प्यार करता हूं अनामिका और करता रहूंगा।" कहते ही अपने मुंह को योनि में डाल दिया। मणि ने पूरी जुबान अनामिका के साफ सुथरे गोरे योनि में डाला। जुबान योनि में पड़ते ही अनामिका में जैसे जोर का बिजली का झटका लगा। मणि ने उसके दोनो पैर को फैलाया और अपने कंधो पे दोनो पैर रखकर अच्छे से योनि का स्वाद ले रहा था। इस स्वाद में मणि की गति बढ़ने लगी। दोनो हाथो से पैर को फैलाकर चाट रहा था। फिर योनि पर थूक दिया। थूक को योनि के बाहर फैलाकर चाटने लगा। फिर दोनो हाथो से स्तन को दबा रहा था। अनामिका उत्तेजना में मणि के सिर को योनि में दबा दिया।

मणि का कुबड़ा शरीर देखकर अनामिका को कुछ महसूस नहीं हो रहा था। अनामिका उत्तेजना की आग में जलने लगी। आखिर उसके योनि से काम रस टपका। मणि रुका नहीं और अपना लिंग उसकी योनोन्मे डालकर हल्का सा धक्का मारने लगा। हल्के दर्द से अनामिका की चीख निकली। मणि ने एक झटके में फिर जोर से लिंग को पूरी तरह से अंदर डाल दिया। अनामिका को आनंद का अनुभव होने लगा। धक्का मारते हुए मणि अनामिका की आंखों में आंखे डालकर देख रहा था।

"आआआआह्हह अनामिका आज मुझे जिंदगी की सबसे बड़ी खुशी मिली। तुम्हे पाकर आज मुझे कितना अच्छा लग रहा है यह तुम जानती नही। आखिर मुझे वो खूबसूरत औरत मिल ही गई जिसपे में अपना प्यार न्योछावर कर सकूं।"

"मणि तुम जब चाहे तब जिस्मानी सुख ले सकते हो। क्या अब तुम मानते हो कि मैंने तुम्हारी सेवा की ? क्या तुम मानते हो कि तुम किसी के इज्जत के काबिल हो।l ?"

"हां अनामिका। मुझे आज जिंदगी का सही मतलब मिला। मे तुमसे बहुत प्यार करता हूं अनामिका।"

बहुत देर तक मणि धक्का मारता रहा और आखिर में अपना लिंग निकलकर अनामिका के चेहरे पर जड़ गया। अनामिका ने अपना चेहरा साफ किया। दोनो एक प्रेमी जोड़े की तरह एक दूसरे की आंखों में देख रहे थे।

"क्या तुम्हे ऐसा नहीं लग रहा की विधि के विधाता ने हमे एक दूसरे की कमी पूरी करने के लिए बनाया है ?"

"हां मणि आज तुम्हारे साथ संभोग करके ऐसा लग रहा है कि हमारी जुदाई एक सच्चे मोहोब्बत का अंत होगा। इसीलिए अब तुम्हे खुद से जुदा नहीं होने दूंगी।"

"तो फिर सब लो अनामिका मेरा फैसला। अब चाहे कुछ भी हो हमे कोई अलग नहीं कर सकता। क्या तुम अपने घर परिवार को मेरे लिए छोड़ सकती हो ?"

"नही। लेकिन इतना तय है की तुम्हे खुद से अलग नहीं होने दूंगी। अब मुझपर तुम्हारा हक है। ये भी सच है कि मेरी सांसे तुम्हारे लिए है। अब जब भी तुम चाहो मुझे पा सकते हो। मणि ये अनामिका तुम्हारी है और अब प्यार का जाम तुम्हे पिलाती रहूंगी।"

दोनो एक दूसरे की बाहों में नंगे सो गए। रात हुई और मेवा दबे पांव अनामिका के कमरे में आया। कमरे में अनामिका नही थी। फिर मेवा दूसरे कमरे में देखा उसमे भी अनामिका नही थी। आखिर में वो नीचे के कमरे यानी मेवा के कमरे में गया। वहा जब अनामिका और मेवा को नग्न अवस्था बिस्तर पर लेटे हुए देखा तो दंग रह गया। अनामिका मणि को बाहों में लिए गहरी नींद में सो रही थी। मेवा को पता चल गया की मणि और अनामिका ने एक दूसरे के साथ शारीरिक संबंध बना लिया। ये सब देखकर मेवा के चेहरे पर मुस्कान आई। वो बहुत खुश हुआ मणि के लिए। बिना दोनो के पता लगे वो अपने घर की तरफ चला गया। मणि को खुशी का ठिकाना न था। अपने दोस्त मणि और अनामिका को सेवा को सफल होते देख वो तुरंत किल्ले की तरफ चला गया। रात के भयानक अंधेरे में आगे बढ़ता गया। किल्ले के दरवाजे के बाहर आग से जली मशाल लिया और अंदर की तरफ गया। अंदर बाबा यज्ञ कर रहा था। मशाल की आग को देख वो खड़ा हुआ और मेवा की तरफ देखकर मुस्कुराया।

"प्रणाम सरकार।"

"बोलो मेवा क्या खबर लाए हो ?"

"अनामिका अपने सेवा के दूसरे चरण पर सफल हुई। मणि और उसे एक दूसरे के साथ हुए प्रेम प्रकरण को देखकर आ रहा हूं।"

बाबा खुश होकर बोला "वाह अब अनामिका ऐसी दुनिया की तरफ जा रही हैं जहां लोगो का दर्द और तकलीफ उसी के जरिए कम होगा। अनामिका को नहीं पता कि उसके इस पवित्र काम से उसके घरवालों को कितना लाभ होगा। जानते हो मेवा कल की सुबह जब उसके सास ससुर उठेंगे तब उनकी चिंता और दर्द हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा। उनके घर धन की ऐसी वर्षा होगी जिससे उनका बुढ़ापा और परिवार सुखी रहेगा।"

"सच में बाबा। आप अनामिका के जरिए बहुत लोगो को जिंदगी को सुखी कर रहे है।"

"लेकिन इस सुख की कुछ कीमत है।"

"क्या ?"

"कल सुबह अनामिका के घरवाले और ससुरलवाले धन की प्राप्ति तो करेंगे लेकिन बदले में एक चिट्ठी उन्हें मिलेगी जिसमे ये लिखा होगा की अनामिका कभी वापिस नही आयेगी। वो एक सेवा तप के लिए हमेशा के लिए इस दुनिया से विदा ले चुकी है। अब अनामिका कभी भी वापिस अपने घर नही जा पाएगी।"

मेवा रोने लगा और बोला "अनामिका की जय हो। उसने सेवा का मार्ग चुना। अपने परिवार को तक छोड़कर आ गई।"

बाबा की आंखों में आंसू आ गया और वो बोला "लेकिन अब ये हमारी जिम्मेदारी है की अनामिका को हम संभाले। उसे किसी प्रेम की कमी न हो। अनामिका हम सब की जिम्मेदारी है।"

"अब आगे किसकी सेवा करनी होगी उसे ?"

"चलो मेरे साथ।"

बाबा मेवा को लेकर एक तायखाने में गया। वहां तायखने के अंधेरे में एक बुड्ढा इंसान था। वो पूरी तरह से पागल था और उसके चेहरा दाढ़ी से भरा हुआ था। उसकी उमर 95 साल की थी। बाबा ने कड़ी तपस्या से उसे जिंदा रखा था। उस बुड्ढे का नाम हल्दी था। हल्दी को देख मेवा उसके पास गया। हल्दी बहुत ही पागल था। मेवा को देख डर गया। मेवा ने उसे संभाला और शांत किया। हल्दी बाबा को देख दौड़ा और पैर छूकर बैठ गया।

मेवा पूछा बाबा से "क्या अनामिका ये कर पाएगी ?"

बाबा बोला "अब ये अनामिका की अगली सेवा है।"
 

Valkoss

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साल दिसंबर 1942

यह वो समय था जब भारत अंग्रेजो के राज में था। छत्तीसगढ़ के हनुमंत गांव में एक बुड्ढा आदमी रहता था जिसका नाम हल्दी था। हल्दी की उमर उस वक्त 62 साल की थी। हल्दी एक बहुत अच्छा शिकारी था। जंगल में अक्सर शिकार करता और अंग्रेजो को बेचता। इन सब में उसे कुछ खास पैसे नही मिलता। घर भी नही चलता। उसी गांव में एक बड़ा बिल्डर आया जिसका नाम सुरेश कुमार था। सुरेश कुमार अंग्रेजो का खास बिल्डर था। उसे काम दिया गया था गांव को खाली करके एक होटल बनाना।

सुरेश कुमार का बड़ा भाई अंग्रेज पुलिस का कमिश्नर था। दोनो बही बहुत ही क्रूर और खराब इंसान थे। दोनो भाईयो ने बहुत सारे पैसे कमाए। लोगो को लूटा और जमीन हड़पी। बदन भाई सुशील कुमार क्रूर के साथ लुटेरा भी था।। बहुत से गांव के लोगो को कर्ज देकर लूटता। उस पर कई औरतों की इज्जत लूटने का इल्जाम भी था। अब सुरेश का काम था गांव खाली करवाना। दोनो भाईयो ने गांव पर अत्याचार किया। आधे लोग जमीन खो दिए।

सुरेश की एक पत्नी थी जिसका नाम दिव्या था। दिव्या की उमर 23 साल की थी। बेहद खूबसूरत और आकर्षण से भरपूर। वो बहुत दयालु थी। सुरेश और उसका संबंध अच्छा नही था। सुरेश उसपर कई दफा घुसा करता। उसे मारता भी। कभी कभी ज्यादा मार देता। है रोज जिल्लत की जिंदगी देता। कई औरतों के साथ अवैध संबंध भी था। दिव्या का कभी कभी मन करता की उसे मार डाले। एक दिन की बात है दोनो में लड़ाई हुई। गुस्से में आकर दिव्या गांव से बाहर एक जंगल में गई। वहां उसके सामने एक शेर आया। शेर को सामने देख वो घभराई। शेर उसपे हमला करने जाए कि हल्दी ने दूर से उसपर कुल्हाड़ी का वार किया। शेर के जबड़े पर कुल्हाड़ी धस गया। शेर तुरंत हल्दी की तरफ दौड़ा। हल्दी ने दूसरे कुल्हाड़ी से उसपर वार किया। फिर बड़े से चाकू हाथ में लिए पीठ के गहराई में घुसाकर मार दिया।

हल्दी की बहादुरी देख दिव्या दंग रह गई साथ ही साथ अति प्रसन्न हुई। हल्दी ने जब दिव्या को देखा तो देखता रह गया। दूध सा गोरा रंग और जवानी की जलती ज्वाला। हल्दी को एक बुड्ढा और निम्न स्तर का आदमी था उसे पहली बार में दिव्या पसंद आ गई। हल्दी बहादुर तो था ही लेकिन सटीक से बात करनेवाला आदमी भी।

हल्दी दिव्या के करीब आया और बोला "तुम हो बला की खूबसूरत लेकिन इतनी रात इस जंगल में क्या कर रही हो ?"

दिव्या को अपने पति के हुई लड़ाई के बारे में याद आ गया और मुंह चढ़ाकर बोली "पता नही।"

बीड़ी का कश लेकर हल्दी पूछा " तू तो उस दरिंदा आदमी सुरेश की औरत है न ?"

दिव्या बोली "किसे दरिंदा बोला तू ? पता भी है कौन है वो ? पलक झपकते ही तुम्हारे खानदान को खत्म कर देगा "

गुस्से से तिलमिलाया हल्दी कुल्हाड़ी को हवा में लहराते हुए बोला "उसके खानदान को मैं अकेला खत्म कर दूंगा। उस दरिंदे ने मेरे परिवार को बीच चौराहे में मार डाला था। बहुत अत्याचार किया है उसने हम गांव वालो पर।"

"किया तो है लेकिन बदला कैसे लोगे ?"

हल्दी थोड़ा सा चकराया और पूछा "यह तुम क्या कह रही हो ? उसे मारना आसान नहीं।"

दिव्या हंसते हुए बोली "अभी तो कह रहे थे की खानदान खत्म कर दोगे उसका और अब जल्दी पलट भी गए ?"

"अरे बात वो नही है। वो तो मैने गुस्से में बोला था। उसके खानदान को मरना मुश्किल है।"

"लेकिन नामुमकिन नहीं।"

हल्दी का दिमाग चकराया और बोला "मतलब ?"

दिव्या ने अपने पति की दरिंदगी हल्दी को बताई। हल्दी से वादा किया कि वो उसकी मदद करेगी।

जाते जाते दिव्या ने एक बात साफ साफ कह दिया "अगर तुम उस दरिंदे को मारने में असफल होते हो तो मेरी इसमें गलती नही। मैं तुम्हे पहचानने से साफ साफ इंकार कर दूंगी।"

"और अगर सफल हुआ तो ?"

"तो को मांगोगे वो दूंगी।"

"तो सुन लो। अगर मैं कमियाब हुआ तो तुम्हे मेरे पास आना होगा। खुद को मेरे हवाले कर देना।"

दिव्या सोची की ये बुड्ढा क्या ही कर लेगा। कुछ उखाड़ नही पाएगा सुरेश का। वो भी बोल पड़ी "ठीक है। जिस दिन ये हुआ समझो उसी दिन तुम मुझे उठाकर ले जाना फिर को करना चाहो कर लेना।"

करीब दो महीना बीता और आखिर वो दिन आ ही गया जब एक दिन सुरेश शिकार करने गया। सुरेश को जंगल में देख हल्दी ने उसके चार आदमियों को छुपकर मार डाला और फिर कुल्हाड़ी से सुरेश के शरीर के ४० टुकड़े किए। खून से लतपत हल्दी हवेली में जा पहुंचा। हवेली में दिव्या ने जब हल्दी को खून से लतपत देखा और हाथ में कुल्हाड़ी देखा तो समझ गई कि हल्दी नेनापना काम पूरा कर दिया।

हल्दी बिना कुछ बोले दिव्या को उठा लिया और हवेली से बाहर ले गया। बिना रुके हवेली से दूर जंगल में अपने झोपड़ी में ले गया। उसके बाद दिव्या के जिस्म से अपने शारीरिक भूख को मिटाने का काम शुरू किया। बियाबान जंगल में दिव्या बिना कपड़े के गोरे बदन के साथ हल्दी के झोपड़ी में उसके साथ सेक्स कर रही थी। वो अब हल्दी से प्रभावित हो गई। एक बुड्ढा बदसूरत आदमी उसके जिस्म से खेल रहा था। दोनो ने पूरी रात एक दूसरे के जिस्म की भूख को मिटाया। दिव्या ने ऐसा सेक्स कभी नही किया था।

दोनो भयंकर सेक्स के बाद एक दूसरे की बाहों में थे। दोनो को आंखे एक दूसरे से मिली। हल्दी बोला "वाह दिव्या आज तो तुम्हे इस झोपड़ी में लाकर तुम्हारे साथ रात बिताने में मजा आ गया। लेकिन साथ ही साथ ऐसा लग रहा है की शेर के मुंह में खून लग गया। एक बार नही ऐसी १०० राते तेरे साथ बिताने का मन हो रहा है।"

"मैंने कहा था ना की उस जल्लाद को मार दोगे तो मेरा जिस्म तुम्हारा। तो अब अपने इस शर्त में जीते हुए इनाम का को उपयोग करना है करो। अब से तुम इसके मालिक।"

हल्दी दिव्या के स्तन को हाथो से मसलते हुए कहा "तो चल दिव्या। अब यहां से दूर चले। दुनिया से दूर। भाग चल। क्योंकि अब मुझे बाकी की सारी उमर तेरे साथ बिताना है।"

हल्दी उसी रातों रात दिव्या को शहर से दूर ले गया। वो उसे बिलवाड़ा गांव के किल्ले में ले गया। दोनो ने उसे अपना घर बना लिया। हल्दी दिव्या को इस किल्ले के मंदिर में ले गया और शादी कर ली। ठीक ९ महीने बाद दिव्या ने हल्दी के बच्चें को जन्म दिया। ऐसे ही दुनियां से छुपकर दोनो ने एक दूसरे की जरूरत पूरी की। ६ साल में दिव्या ने हल्दी के ४ बच्चो को जन्म दिया। सब कुछ अच्छा चल रहा था लेकिन इनकी खुशी को सुशील कुमार की नजर लागी। शुशील कुमार ने दोनो को ढूंढ निकाला उसके बाद शुशील ने भयानक मौत का खेल खेला। हल्दी और दिव्या के चार बच्चों को मार डाला और दिव्या को भी। ये सब देख हल्दी पागल हो गया। हल्दी ने सुशील को मौत के घाट उतार दिया। उसके बाद उसके आदमियों को मार डाला। किल्ले की दीवारें चीख पुकार से गूंज गई। इसके बाद हल्दी का मानसिक संतुला को गया।

उसे आगे चलकर बाबा ने पनाह दी। दिव्या जो हल्दी की पत्नी थी वो इस जन्म ने अनामिका बनी। अब वक्त आ गया था अनामिका को हल्दी से मिलवाने का।

वास्तविक समय।


सुबह सुबह अनामिका को किल्ला में बुलाया गया। बाबा ने उसे अगले सेवा का काम बताया। एक तायखाने में पड़ा 95 साल का बुड्ढा बदन पे कोई कपड़ा नहीं और पागलों की तरह दीवाल नोच रहा था। उस बुड्ढे को देख अनामिका अंदर से डर गई।

"ये कौन है बाबा ?"

बाबा ने अनामिका को पिछले जन्म की कहानी को दोहराया। यह सुनकर अनामिका अंदर से दुखी हुई और हल्दी के प्रत्ये सहानुभूति होने लगी उसे।

"तो क्या फैसला किया तुमने अनामिका ?"

"अब मैं अपने तीसरे सेवा कार्य को अंजाम दूंगी। पिछले जन्म न सही। इस जन्म में उसे प्यार मैं दूंगी। लेकिन करना क्या होगा मुझे ?"

"अब जो तुम्हे करना होगा उसके लिए तुम्हे अपने मन को मजबूत करना होगा। अब तुम हल्दी के साथ रहोगी। उसे जिंदगी का प्यार दोगी।"

"लेकिन मणि का क्या ? मेवा का क्या ?"

"दोनो को भी अपने साथ लेकर चलना होगा। मणि और मेवा दोनो मेरे परिवार का हिस्सा है और तुम भी।"

"मतलब ?"

"मतलब ये है इस सेवा की जिंदगी में तुम अपना पिछला जीवन को छोड़ चुकी हो। अब मैं मणि मेवा तुम हल्दी एक परिवार है।"

"क्या मेरा वो बीता हुआ परिवार सुखी है ?"

बाबा मुस्कुराकर बोले "अब से कभी उन्हें पैसों की कमी नही होगी। इतना धन मिलेगा की वो अब कभी मेहनत नहीं करेंगे। अब सारी ज़िंदगी ऐशो आराम में ही गुजरेगी।"

ये सुनकर अनामिका खुश हुई और बोली "अब मैं खुशी खुशी इस दुनिया में रहूंगी। अब से यही मेरा परिवार।"

"अनामिका अब से तुम हमारे साथ इस किल्ले में रहोगी हमेशाबके लिए।"

इतने में मेवा और मणि आए और बोले "हां अनामिका अब से हम सब साथ रहेंगे।"

बाबा बोले "मणि और मेवा अनामिका का सारा सामान कमरे में रख दो। मणि और अनामिका एक ही कमरे में रहेंगे। मेवा जाओ बाकी का काम पूरा करो। अनामिका कुछ देर के लिए मेरे साथ अकेले मेरे कमरे चलो।"

बाबा और अनामिका दोनो कमरे में आए।

"बाबा बताइए अब क्या करना होगा ?" अनामिका ने पूछा।

"अनामिका क्या तुम रूपा को जानती हो ?"

अनामिका चौक गई और बोली "रूपा मेरी दोस्त है। वो मुझसे दो साल छोटी है। क्या हुआ ? सब ठीक तो है न ?"

"बिलकुल नहीं। उसके घरवालों ने उसे छोड़ दिया। उसके पति ने उसके साथ रिश्ता तोड़ दिया और किसी और से शादी कर लिया।"

"ये तो बहुत बुरा हुआ।" अनामिका दुखी मन से बोली।

"अनामिका बहुत जल्द अब वो इस किल्ले में आएगी और हमारे swa कार्य को आगे बढ़ाएगी। बहुत जल्द वो भी हमारे साथ रहेगी।"

"बाबा एक सवाल पूछूं ?"

"पूछो।"

"आप ये सब क्यों कर रहे है ? इस सेवा कार्य से आपको क्या लाभ होगा ?"

"शांति मिलेगी। मुझे शक्ति मिलेगी। और तो और इसमें तुम मेरी मदद करेगी।"

"मैं सब कुछ करने को तैयार हूं।"

"पता है अनामिका ? तुमने जिस दिन मुझे मौत से बचाया था तब से मुझे विश्वास हो गया की तुम कितनी अच्छी हो। तब से मैंने ठान लिया था की तुम्हे अपने साथ रखूंगा। बस अनामिका तुम ऐसे ही साथ रहो। तुम्हारे सिवा मेरा अब कोई नही।" अनामिका के दोनो कंधो को हाथ में थामते हुए बाबा ने कहा "जब तक मैं जिंदा हूं तब तक मेरा साथ देना और छोड़कर मत जाना।"

अनामिका ने कहा "अब आप ही मेरा संसार हो। अब आप देखिए इस किल्ले में सिर्फ खुशियां ही खुशियां होंगी।"

बाबा ने अनामिका को गले से लगा लिया। दोनो एक दूसरे से लिपटे रहे। बाबा आगे बोले "अब जाओ मणि तुम्हारा इंतजार कर रहा है।"

अनामिका बाबा को प्रणाम करके बाहर गई। अपने कमरे में आई तो देखा मणि बिना किसी कपड़े के बिस्तर पर लेटा था। अनामिका मणि को देखकर मुस्कुराई। मणि ने अनामिका को बिस्तर पर आने का इशारा किया। साड़ी के पल्लू को बदन से हटाकर अनामिका बिस्तर पर आई मणि तुरंत अनामिका के होठ को चूमते हुए पूछा "कैसा लगा हमारा नया घर ?"

अनामिका अपने ब्लाउज को उतारते हुए बोली "बहुत अच्छा लग रहा है।"

"बाबा के कहने पर हम दोनो एक ही कमरे में रहेंगे। जैसे पति पत्नी।" मणि ने अनामिका का ब्रा उतारकर उसे फिर से चूमने लगा।

"माणि क्या अब बगीचे का काम इधर करोगे ?"

"हां और तुम हम सब की खयाल रखोगी।"

मणि खुद को और अनामिका को निर्वस्त्र कर दिया। मणि और अनामिका एक दूसरे की बाहों में रात गुजारने लगे। दोनो प्रेमी ने खूब एक दूसरे को प्यार किया। अनामिका अगली सुबह ४ बजे उठी। कमरे से बाहर छत पर से पूरे गांव को देख रही थी। अनामिका को ठंडी हवा की खुशबू अच्छी लगी। अनामिका फिर गई मेवा के कमरे और उसे दूध पिलाया। दोस्तो बहुत जल्द अनामिका इस दास्तान आगे बढ़ेगी और कई मोड़ भी आयेगा इस सेवा के सफर में।
 
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सुबह के दस बजे थे और अनामिका खाना बना रही थी। रसोई बहुत ही बड़ा था। सभी के लिए खाना बना रही अनामिका सब्जी काट रही थी। रसोईघर में मेवा आ पहुंचा। अनामिका को एक आदर्श गृहिणी को रारह देख उसका मन प्रफुल्लित हुआ। मेवा पीछे से अनामिका से लिपट गया। अनामिका ने देखा की पीछे मेवा है तो हल्की सी मुस्कान लिए बोली "मेवा बाकी सब अभी कहां है ?"

मेवा बोला "मणि बगीचे का काम कर रहा है तो बाबा साफ सफाई कर रहे है अपने कमरे की। "

"लगता है तुम्हे अभी कुछ काम नहीं।"

"मुझे तो इस वक्त एक ही काम दिख रहा है और वो है मेरी अनामिका के साथ रहने का।" मेवा अनामिका के sleveless में दिख रहे चीन कंधे को चूमते हुए बोला।

"मेवा तुम तो सबसे चंचल हो।"

"अनामिका मैं कह रहा था की खाने के बाद दोपहर को मेरे साथ चलो। किल्ले के एक सुंदर जगह तुम्हे ले जाऊंगा।"

"अच्छा कौन सी जगह है वो ?"

"ए तो तुम्हे जल्द ही पता चल जाएगा। हम दोनो दोपहर को एक दूसरे के साथ खूब वक्त बिताएंगे। मेरी अनामिका।" मेवा अनामिका के चेहरे को अपनी तरफ किया और चूम लिया।

"हां मेरे मेवा अब जल्दी से खाना बना लूं फिर हम दोनो पूरी दोपहर साथ में रहेंगे।" अनामिका ने मेवा के होठ को हल्के से चूमते हुए कहा।

दोपहर के एक बजे थे। अनामिका को लेकर मेवा किल्ले के भीतर एक जगह ले गया। उस जगह को देख अनामिका की आंखे चार हो गई। वो जगह एक तालाब था। सालो से इस तालाब के पानी को बाबा ने शुद्ध रखा था। मेवा अनामिका को बाहों में भरते हुए कहा "अब चलो अनामिका थोड़ा साथ में वक्त गुजारे और थोड़ा सा प्यार भी कर ले।"

मेवा ने अनामिका के कंधे पे हाथ रखते हुए कहा "कैसी लगी यह जगह।"

"यह तो सच में स्वर्ग से कम नहीं।"

मेवा अपने कपड़े उतारकर तलब में घुसा। वहां से अनामिका को आने का इशारा किया। अनामिका ने अपने साड़ी को उतारा और अंगवस्त्र ब्रा और पेटीकोट में तालाब के अंदर आई। मेवा बस अनामिका के बदन को देखता रह गया। इतना गोरा जिस्म के जैसे रोज दूध से नहाती हो। मेवा अनामिका के गले लगा और अनामिका ने मेवा को अपनी बाहों में भर लिया।

"मेरी अनामिका कितनी सुंदर है। अगर बुरा न मानो तो एक चीज मांगू ?"

"बोलो मेवा।"

"आज मेरा जहां दिल करे वहां तुम्हे चूम सकता हूं ?"

"ये कोई पूछने वाली बात है ? मेरे मेवा का जहां मन करे और जो मन करे वो करे।"

मेवा अनामिका के होठ पे होठ रखकर चूमने लगा। दोनो ने बहुत देर तक एक दूसरे के होठ को चूमा। मेवा ने अनामिका का ब्रा उतारकर बाहर फेक दिया और फिर पेटीकोट को भी फेक दिया। अनामिका के बदन पर एक भी कपड़ा न रहा। मेवा फिर अनामिका ने होठ को चूमने लगा। अपनी जुबान को अनामिका के जुबान से मिलाया। एक हाथ नीचे ले जाकर अनामिका के नितंब को दबाया और दूसरे हाथ से योनि की सेवा की। दोनो ठंडे पानी में मस्त थे।

"मुझे ऐसा लग रहा है की अब मेरा मेवा बदमाश होता जा रहा है।" अनामिका ने हल्के से मजाक में कहा।

"ऐसा क्यों ?"

"अभी जो तुम मेरे साथ कर रहे हो ऐसा पहले तो नही किया। अब बहुत बदमाशी कर रहे हो।"

"तुम हो ही इतनी खूबसूरत। तुम्हे यहां लाने का कारण यही था। आज तो सब कुछ करूंगा। इसके बाद मैं भी मणि की तरह तुम्हारा प्यार हो जाऊंगा। फिर उसी की तरह खुलकर तुमसे प्यार करूंगा और शरीर का आनंद लूंगा। उसके बाद जैसे तुम मणि को प्यार करती हो वैसे मुझे भी करोगी। सिर्फ दूध नहीं तुमपे मेरा भी हक होगा।"

अनामिका ने मेवा को रोका और कहा "ये क्या कह रहे हो तुम ? ये सही नही।"

"इसमें क्या गलत है ?"

अनामिका मेवा से अलग हुई और बाहर निकल गई तालाब से। मेवा को कुछ समझ में नहीं आया और वो अनामिका के पीछे पीछे चलने लगा।

"क्या हुआ अनामिका मैने कुछ गलत कहा ?"

अनामिका गुस्से से बोली "अभी जो तुमने कहा मुझे अच्छा नही लगा।"

"क्या ?"

"तुम्हारा कहना यह है कि मैं सिर्फ मणि को ही अपना प्यार देती हूं ? तुम्हे नही ?"

"मेरा वो मतलब नहीं था।"

"तो फिर क्या था ?"

"देखो अनामिका आज तक हमने सिर्फ एक दूसरे से दिल का रिश्ता बनाया। मैंने सिर्फ तुम्हारे दूध की मिठास चखी। जिस्म और मोहोब्नत की नही। कभी कभी मेरा भी मन करता है कि तुम्हे एक प्रेमी की तरह प्यार करूं। लेकिन डरता इसीलिए हूं कि तुम इसे गलत न समझो। तुम्हारे कपड़े उतारकर तुम्हे चूमना नहीं है सारी जिंदगी। तुम्हारे जिस्म से खुद की जिस्म की गर्मी से प्यार की जिंदगी जीना चाहता हूं। मुझे भी तुम्हारे साथ एक प्रेमी की जिंदगी गुजारनी है।"

"मणि के पहले कौन था मेरा ? तुम। मैंने अपने शर्म को पीछे छोड़कर तुम्हारे लिए नग्न अवस्था में तुम्हे दूध पिलाया। किस वजह से मैं इस गांव में खुश थी ? तुम। कौन था वो जिसने मुझे नई जिंदगी दी ? तुम। जब तुम नही होते तो मुझे वो दिन सूना लगता। हर रात एक आदत होती तुम्हारी। कभी खुद से लिपटने से रोका तुमको ? जब तुम मुझे कहते की तुम मुझसे प्यार करते हो तो मैंने भी तुमसे प्यार की बात की। तुम्हे में अपना मानती हूं। एक बार मुझसे कह देते में सब कुछ तुम पर लूटा देती। तुमने सोच भी कैसे लिया कि में तुमसे रिश्ता तोड़ दूंगी। मेवा अगर यही तुम सोच रहे हो तो मैं जा रही हूं।" इतना कहकर अनामिका जाने लगी।

मेवा ने तुरंत अनामिका का हाथ पकड़ा और अपनी और खींचा। उसके नाजुक होठ को चूमने लगा। अनामिका जैसे शांत होने लगी। मेवा ने अनामिका का हाथ पकड़ा और बगल एक बड़े से कोठरी में ले गया। वहां एक बिस्तर पे अनामिका के नंगे बदन को लिटाया।

"अनामिका मैं तुमसे जान से भी ज्यादा प्यार करता हूं।"

अनामिका कुछ न बोली बस शर्म से भरी आंखों से मेवा को मुस्कुराते हुए देखी।

मेवा आगे बढ़ा और अनामिका के पैर को चूमने लगा।

"इसी को पाने का सपना देख रहा था। उम्म्म इसे जी भरके प्यार करूंगा।"

"मेवा तुम हो तो बदमाश। मेरे बदन से खेलने में तुमने कोई कसर नहीं छोड़ी थी।"

"लेकिन आज एक प्रेमी बन चुका हूं तुम्हारा सच कहा न ?"

"प्रेमी ? वो तो तब पता चलेगा जब मेरा मेवा मेरे बदन को तहस नहस करेगा।"

अपने काले शरीर को अनामिका के दूध सा बदन के ऊपर टिका दिया। दोनो हाथो से अनामिका के स्तन को दबा रहा था। जुबान बाहर निकलकर अनामिका के चेहरे को चाटने लगा फिर गला और दोनो स्तन को बारी बारी से चूम रहा था। अनामिका के बदन में बिजली दौड़ने लगी। वो मदहोशी सा महसूस करने लागी। मेवा अनामिका के योनि का सेवन करने लगा। योनि पर मेवा की जुबान पड़ते ही अनामिका छटपटाने लगी और सिसकारी भरने लगी।

"मेवा कितना तड़पाओगे मुझे। अब जल्दी से मेरी जवानी को अपने शरीर के साथ निचोड़ दो।"

मेवा अपने बड़े लिंग को अनामिका के योनि में डालते हुए कहा "अब अनामिका तुम मेरी हो। अब से जब मेरा जी चाहेगा तब तुम्हे अपने पास बुलाऊंगा और संभोग करूंगा। तुम जानती नही कितना बेताबी है इस जिस्म में। हर रोज तुम्हारे जिस्म से प्यार की प्यास बुझाऊं यही मेरा काम है।"

मेवा लगातार धक्का देता रहा और आखिर में अनामिका के ऊपर झड़ गया। दोनो थके हुए सो गए। शाम की अंधकार में आखिर दोनो की नींद खुली। अनामिका मेवा की आंखों में देख बोली "बना दिया न इस भोली भाली जवान औरत को अपने प्यार का गुलाम।"

"अब इसी जवान औरत का रस चखूंगा।"

"हां लेकिनन चले वरना बाबा यहां आ जायेंगे।"

दोनो अपने कपड़े पहन आगे बढ़े। रात के अंधेरे में अनामिका रसोई घर गई और सबके लिए खाना बनाया। सभी ने खाना खाया। मणि अनामिका को लेकर कमरे में गया और फिर दोनो ने काफी वक्त तो संभोग किया। रात के २ बजे अनामिका बाहर निकली कमरे से तो सामने बाबा को पाया।

"बाबा इतनी रात आप यहां ? आपको नींद नही आ रही ?"

"नही अनामिका वो बस काल कोठरी गया था हल्दी से मिलने।"

"क्या मेरे पीछे जन्म वाला आदमी ?"

"हां इसी के बारे में बात करनी थी।"

"बताइए ना बाबा क्या कहना चाहते है आप ?"

"वक्त आ गया है अनामिका कि तुम उसकी दिव्या बनो। अब उसकी सेवा करने का वक्त आ गया।"

"कब से सेवा करनी है ?"

"कुछ ही दिनों में। लेकिन इसके लिए तुम्हे मेरे साथ कुछ दिनों के लिए हनुमंत गांव में चलना होगा जहां हल्दी और दिव्या के जिंदगी की शुरुआत हुई। तुम्हे दिव्या के बारे में जानना होगा। अब जल्दी से समान बांधो और मेरे साथ चलो। हम अब एक हफ्ते के लिए वहां रहेंगे।"

"मेवा और मणि का क्या ?"

"उनकी चिंता न करो। वो सब इस बारे में जानते है।"

"तो फिर चलिए मैं आई।"

फिर रात के अंधेरे में अनामिका और बाबा चल दिए एक सुनसान और अनजान रास्ते में। वहां एक घोड़ा गाड़ी दिखा जिसे चला रहा था ९० साल का बुड्ढा। वो बुड्ढा असल में दिव्या का नौकर था जिसे दिव्या रमा काका कहकर बुलाती थी। रमा काका अनामिका को देखता रह गया। अनामिका की खूबसूरती में जैसे एक वक्त के लिए खो गया।

"इनसे मिलो अनामिका ये है रमा। दिव्या के हवेली के नौकर और उसी हवेली का खयाल रखते है। अब इन्ही के साथ हम दोनो चलेंगे।"

अनामिका ने अपने नरम हाथ रमा काका के हाथो में दिया। उसी के सहारे टांगे पे चढ़ी। फिर बाबा अनामिका और रमा तीनो टांगे में बैठ अंधेरे में गायब हो गए।

सुबह ७ बजे करीब ६० किलोमीटर का रास्ता तय करके तीनों एक खंडर सी हवेली में घुसे। उस हवेली में कोई रौनक न था। जैसे भूतो का बसेरा हो। धूल मिट्टी और कंकड़ से भरा था। करीब २० कमरे है इस हवेली में। लेकिन रमा ने सालो से इस संभाला। रमा काका लगातार अनामिका की खूबसूरती को देख रहा था। वैसे आपको बता दूं कि पिछले जन्म की कहानी अभी पूरी तरह से नहीं बताई गई।


दरअसल दिव्या का शारीरिक संबंध सिर्फ हल्दी नही बल्कि उसे बुड्ढे भाई रमा काका के साथ भी था। रमा काका हल्दी का भाई था। वो भी हल्दी दिव्या के साथ भागना चाहता था लेकिन हल्दी ने उसे मना किया। वो रमा को हवेली में रहने को कहा ताकि सुरेश पर नजर रख सके। बदले में रमा बीच बीच में दोनो से मिलता। एक दिन रमा ने दिव्या से अपनी दिल की बात बताई। वो दिव्या को पसंद करता था। दिव्या को हमेशा से उसने सहारा दिया। इसी का मान रखकर दिव्या ने रमा काका से रिश्ता बना लिया। हल्दी ने भी अपनी रजामंदी दी। रमा काका से दिव्या को एक बच्चा भी हुआ।

इतने सालो बाद अनामिका को देख रमा काका अपनी नजर को रोक न पाया। रमा के आंखों में जैसे अनामिका बस गई। बाबा सब जानते थे और रमा का साथ देने के लिए हवेली से बाहर एक झोपड़ी में रहने का फैसला किया। पूरे हवेली में अनामिका और रमा एक दूसरे के साथ रहे इसीलिए ये सब किया।

अनामिका को रमा काका ले गए दिव्या के कमरे जिसे बहुत अच्छे से साफ किया गया। था। अनामिका के लिए सारे अच्छी साड़ी को व्यवस्था को रमा ने। अनामिका ने थोड़ी देर आराम किया और नहा धोकर दिव्या के कपड़े को पहना। लाल sleveless ब्लाउस और सफेद रंग की साड़ी में वो नीचे के कमरे पहुंची जहां रमा काका था।

"काका मैं पूछ रही थी को रसोईघर कहां है ?"

अनामिका को दिव्या के साड़ी में देख रमा चौक गया। स्वर्ग से आई हुई सुंदरी लग रही थी। वो बस टुकुर टुकुर देखता रहा। फिर अनामिका ने चुटकी बजाते हुए फिर से पूछा "रसोईघर कहां है ? आप सुन तो रहे है न ?"

अपने सपने भरी दुनिया से बाहर आ गया रमा और हड़बड़ाते हुए कहा "यहां से बाए तरफ।"

अनामिका चली गई। रमा पीछे पीछे चलते हुए पूछा "वहां किस लिए जा रही है आप ?"

"सोने ले लिए जा रही हूं। क्या आप भी ना। कैसा सवाल पूछ रहे है। खाना बनाने जा रही हूं।"

"गलत कर रही है आप।" रमा ने कहा।

"मतलब ?"

"आप यहां दिव्या को जानने आई है ताकि आप दिव्या बनके मेरे भाई का इलाज करो। दिव्या यहां कभी काम नहीं करती थी।"

अनामिका रमा की बात सुनकर चौकी और पूछी "क्या कहां आपने ? मेरा भाई ? मतलब हल्दी आपका भाई है ?"

"हां हल्दी मेरा बड़ा भाई है।"

"तो और क्या बता सकते है आप"

"सब कुछ बताऊंगा। अगले सात दिन में सब कुछ बताऊंगा। आप अब आराम करिए।"

"ठीक है काका।" अनामिका बोली।

"काका नही रमा सिर्फ रमा कहकर बुलाओ।"

"ठीक है रमा।" अनामिका मुस्कुराते हुए बोली।

अनामिका थोड़ी देर के लिए बाबा की झोपड़ी में गई। बाबा उस वक्त ध्यान मुद्रा में थे। अनामिका के आते ही उनकी आंखे खुल गई। अनामिका ने पैर छुआ।

"खूब आगे बढ़ो। अनामिका आओ बैठो।"

अनामिका सामने पड़ी चार पाई पे बैठी।

बाबा पूछे "तो बताओ अनामिका कैसा लगा ये खंडर हवेली ?"

"हवेली तो ठीक लेकिन दिव्या के कमरे को खूब अच्छे से सजाया हुआ है। लेकिन बाबा एक सवाल पूछना है आपसे।"

"पूछो ।"

"पता नही बाबा रमा मुझे क्यों इतना घूरता है। मुझसे ऐसे बात करते है जैसे दिव्या के साथ उनका घनिष्ट सम्बन्ध था।"

बाबा ने अनामिका को झोपड़ी का दरवाजा बंद करने को कहा। अनामिका ने दरवाजा अंदर से बंद कर दिया और बाबा के बगल बैठी।

बाबा हल्के से मुस्कुराते हुए बोले "सब समझ में आ जायेगा। तुम बस वक्त का इंतजार करो।"

"बाबा नजाने क्यों इस हवेली में मुझे शांति महसूस हो रही है जैसे किल्ले में होती थी। आपको यहां कैसा लग रहा है ?"

"जहां तुम खुश वहां मैं।"

अनामिका हल्के से मुस्कुराते हुए बोली "आपका जवाब बहुत उलझा उल्जा सा रहता है।"

बाबा अनामिका का हाथ थामते हुए बोले "शायद तुम न मानो लेकिन मेरा और तुम्हारा रिश्ता बहुत गहरा है। तुम्हारी फिक्र हमेशा रहती है मुझे।"

अनामिका बाबा का हाथ थामते हुए बोली "बाबा आप है तो मैं हूं। मुझे आपके खुशी और शांति के सिवा कुछ नहीं चाहिए।"

बाबा अनामिका को बाहों में भरते हुए बोले "यही बात तो मुझे तुम्हारी अच्छी लगती है। तुम जिसे अपना मान लो उसकी हो जाती हो।"

अनामिका बोली "लेकिन बाबा दुनिया में जहां आप वहां मैं। मैं सबको आपके लिए छोड़ सकती हूं। मेवा मणि या कोई भी।"

बाबा अनामिका के चेहरे को सीने से लगाते हुए बोले "नही अनामिका मैं मणि, मेवा, हल्दी तुम्हे कहीं नहीं छोड़कर जाएंगे। अब हमारे साथ ही तुम्हे जिंदगी गुजारनी है।"

अनामिका हल्की सी मुस्कान लिए बोली "आज जैसे शांति और सुख की अलग सी ताजगी महसूस हो रही है। आपके लिपटकर ऐसा लगा जैसे मैं स्वर्ग में हूं।"

बाबा हल्के से अनामिका के के गाल को चूमते हुए बोले "में तो स्वर्ग में ही हूं।"

अनामिका ने अपने साड़ी के पल्लू को उतार और खटिया पर ले गई। बाबा को बुलाते हुए कहा "कुछ देर मुझे आपके पास रहना है।"

"अनामिका मुझे संभोग नही करना तुम्हारे साथ। ये वक्त नहीं है।"

अनामिका उठकर बैठ गई और पूछी "तो कब आएगा वो वक्त।"

"ये कहना मुश्किल है। लेकिन तुम्हे प्यार की कमी नही होगी आगे जाके। अनामिका शायद वक्त बहुत लग जाए।"

"मुझे इंतजार रहेगा।"
 
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