Sapne pure karna glat nahi hai buai par dono sath sath bhi ho dakte the..suraj khud sab kuch karne ko tyar tha..pyar takat hoti hai bhai kamjori nahiBhai gungun isme koi galti nhi hai vo bas apne sapne pura karna chahti thi usne suraj ko chodne ke bare socha nahi tha ye to Suraj ne hi uski bat ko galat way me le liya varna aaj dono sath hote
Update 3
सूरज अपने रूम में आ जाता है अपने गद्दे पर उल्टा लेटकर अपना व्हाट्सप्प चेक करता है और सोचता है कि अब वो गरिमा से बात करे या नहीं.. इसी असमंजस में वो इसका इंतजार करता है कि गरिमा आगे कुछ लिखें तो जवाब दे और बातो का सिलसिला चले.. वही दूर कहीं गरिमा भी अपने बेड पर उल्टी लेटी हुई यही सोच रही कि पहले सूरज का मैसेज आये तो वो कुछ लिखें और वापस बातें शुरू हो..
सूरज और गरिमा के बीच अब तक घर गली शहर और देश के कई मुद्दों ओर लम्बी लम्बी और गहरी बातें हो चुकी थी दोनों को एक दूसरे से बात करना अच्छा लगने लगा था.. एक दूसरे को देवर जी और भाभी कहकर ही बात करना शुरू हो गया था.. आज कि रात दोनों ने एकदूसरे के पहले massage का इंतजार किया मगर दोनों ने ही कोई पहल नहीं की और परिणाम ये हुआ कि आज रात दोनों ही देर तक इंतजार करते हुए सो गए...
सूरज जब सुमित्रा के पास, रसोई से ऊपर अपने कमरे में चला गया तो सुमित्रा ने गहरी साँसे लेकर अपने आपको को संभाला जैसे वो बहुत देर से अपने आप पर काबू कर रही थी.. मगर वो किस चीज को काबू कर रही थी ये तो वही जानती थी..
सुमित्रा ने जल्दी से सूरज की प्लेट साफ करके रख दी और फ्रीज से एक खीरा निकालके छुपाकर अपने साथ कमरे में ले आई.. जयप्रकाश घोड़े बेचकर सो रहा था.. सुमित्रा ने एक नज़र उसे देखा और उसे देखकर मुंह मोड़ती हुई लाइट बंद करके बेड के दूसरी तरफ आ बैठी.. खीरा तकिये के पीछे छिपा दिया और अपना फ़ोन उठाकर इंटरनेट पर चुदाई की हिंदी कहानिया पढ़ने लगी..
अपने मन पर किसका जोर चलता है अगर मन को कुछ करने में सुख मिलता है और उस सुख से किसी को तकलीफ ना हो तो फिर उस सुख को भोगने में केसा पाप? सुमित्रा और जयप्रकाश के बीच सालों से प्रेम सम्बन्ध केवल बातों तक सिमित रह गया था.. जयप्रकाश ने अपने आपको को बुढ़ा मान ही लिया था और उसी तरह जीता था और सुमित्रा भी ऐसा ही दिखावा करती मगर उसके अंदर अब भी कोमार्य की अग्नि प्रजवल्लित हो रही थी..
उम्र के 45वे साल में थी सुमित्रा.. देखने में सीधी साधी घरेलु संस्कारी भारतीय नारी.. शरीर उम्र के हिसाब से काफी सही था सुमित्रा लम्बी ना थी.. पांच फ़ीट तीन इंच की उचाई.. उजला सफ़ेद रंग.. काली कजरी कारी कारी आंखे.. तीखे नयन नक्श.. अब भी सुमित्रा जवानी से भरी हुई औरत थी जिसका खिला हुआ जोबन सवान की बोझार को लजा सकता था.. मगर जयप्रकाश के करण उसे भी बूढ़े हो जाने और उसी तरह जीने का दिखावा करना पड़ता..
सुमित्रा ने कभी जयप्रकाश से कोई शिकायत तो नहीं की थी मगर मन ही मन वो जयप्रकाश से चिढ़ती थी.. बड़े लम्बे समय से सुमित्रा इंटरनेट पर अश्लील कहानियाँ पढ़कर तो अश्लील वीडियो देखकर अपने आपको को शांत रखा था और अब भी वैसा ही करती थी.. उम्र के इस पड़ाव पर उसे अपनी हवस मिटाने के लिए कोई नहीं मिला था और वो किसी से सम्बन्ध बनाकर सके इतनी ताकत और हिम्मत उसमे थी भी नहीं.. सुमित्रा ने अपनी ऊँगली का सहारा लेकर ही खुदको संभाला हुआ था और आज भी वैसा ही करने को लेट गई थी..
सुमित्रा ने साड़ी जांघ तक उठा ली और अपने एक हाथ से अपनी योनि को सहलाती हुई दूसरे हाथ से फ़ोन को पकडे कोई कहानी पढ़ रही थी.. सुमित्रा ने हरतरह की कहानी पढ़ी थी जिसमे माँ बेटा भी शामिल थी और सुमित्रा की रूचि भी ऐसी ही कहानीयों में ज्यादा थी.. उसे पहले पहल ये सब गलत लगा पर बाद में उसने अपने आपको को समझा लिया और उसे ख़याली दायरा देकर इसका सुख लेने लगी..
सुमित्रा आज भी वैसी ही एक कहानी पढ़ रही थी.. विनोद का व्यवहार तो सीधा था अपने काम से काम और सीधी बात.. छोटी उम्र से ही वो मैचोर हो गया था और सुमित्रा को कभी विनोद के साथ वैसा अहसास हुआ ही नहीं जैसा वो कहानिया पढ़ कर महसूस करती थी.. लेकिन सूरज के साथ ऐसा नहीं था.. सूरज बचपन से बेफिक्र लापरवाह और शरारती लड़का रहा था और सुमित्रा ने उसे बड़े लाड प्यार से पाला और संभाला था.. जब कॉलेज के आखिरी साल के इम्तिहानो के बाद सूरज को गुनगुन छोड़कर चली गई थी और सूरज उदास और दुखी रहने लगा था, उसने नशा करना शुरू कर दिया था तब सुमित्रा ने ही सूरज को संभाला था.. शायद वही से सुमित्रा को सूरज के प्रति आकर्षण पैदा हुआ था.. उसने नशे में डूबे सूरज को तब बीना कपड़ो के कई बार देखा था और अपने हाथ से उसके कपड़े भी बदले थे.. बाद में सूरज ने जब अपने आपको को संभाला और वो ठीक हुआ तब तब से ही सुमित्रा अजीब कश्मकश में रहने लगी थी और अपने मन के उड़ते पतंगे पकड़ने लगी थी..
सुमित्रा जब फ़ोन में कोई माँ बेटे वाली कहानी पढ़ती तो अपने आपको और सूरज को सोचती.. उसे इस पर कई बार पछतावा और अफ़सोस हुआ पर कामुकता के आगे हार गई.. उसने पहले भी सूरज को सोचकर वो किया था जो कोई लड़की किसी पंसदीदा मर्द को सोचकर रातों में करती है..
आज भी वैसा ही कुछ हो रहा था सुमित्रा एक अश्लील कहानी जो की माँ बेटे के इर्द गिर्द बुनी गई थी पढ़ रही थी और अपने आपको सूरज के साथ महसूस करते हुए अपनी योनि को अपने हाथ से सहला रही थी.. थोड़ी देर बाद कहानी ख़त्म हो गई और सुमित्रा लम्बी लम्बी गहरी साँसों के साथ बेड से उठ गई और फ़ोन बेड पर ही पटक कर एक नज़र वापस जयप्रकाश को देखते हुए तकिये के नीचे से खीरा लेकर कमरे से लगते हुए बाथरूम में जा घुसी और दरवाजा अंदर से बंद करके अपनी शाड़ी कमर तक उठाकर चड्डी जांघ तक सरकाते हुए खीरा योनि के मुख्य द्वार पर रगढ़ते हुए अंदर घुसा लिया और आँख बंद करके सूरज को याद करके वो खीरा अपनी योनि में अंदर बाहर करने लगी..
सुमित्रा का मन मचल रहा था दिल को नई सी ताज़गी और दिमाग को ऊर्जा मिल रही थी सुमित्रा पसीने पसीने हो चुकी थी और 5-6 इंच लम्बा खीरा लगभग पूरा योनि में लेकर वो अकड़ते हुए झड़ गई और ढीली पड़ गई..
सुमित्रा ने खीरा योनि से निकालकर एक तरफ रख दिया और अपने आपको को ठीक करके वापस बेड पर आकर लेट गई.. खीरे को सुमित्रा ने बिना पानी डाले किसी कपड़े से मामूली साफ कर दिया था और खीरे को बाथरूम से बाहर लाकर बेड के पास एक पट्टी पर रख दिया था.. उसने सोचा कल वो इस खीरे को कचरे में फेंक देगी..
सुमित्रा का मन हल्का हो चूका था और वो सोने के लिए लेटगई थी.. उसने मन में किसी तरह का कोई गिल्ट या अफ़सोस नहीं था.. उसने अपने गिल्ट और अफ़सोस को पहले ही मार दिया था और पहले भी वो ऐसा कर चुकी थी..
सुमित्रा ने सूरज के प्रति अपने उस आकर्षण को सपनो का दायरा या ख्याली दायरा दे दिया था.. सुमित्रा अकेले में सूरज को सोचकर सब करती जो वो करना चाहती मगर सामने से हमेशा एक अच्छी माँ बनकर ही उसे बात करती और व्यवहार करती.. शायद ये सुमित्रा का काला सच भी था जो अँधेरे में छिपा हुआ था..
सुबह सुमित्रा अपने घरेलु कामो में लग गई थी और उस खीरे को उठाना भूल गई..
सुबह सुमित्रा रसोई में थी की सूरज सुमित्रा और जयप्रकाश के कमरे में आ गया और जयप्रकाश से सगाई की जगह और बाकी बातें करके उस खीरे को बातों ही बातों में उठा लिया और खाते हुए कमरे से बाहर रसोई में आ गया..
सूरज - चाय कब तक मिलेगी?
सुमित्रा बीना सूरज को देखे - क्या बात है आज सुबह सुबह नींद खुल गई तेरी..
सूरज - हाँ कल टाइम पर सो गया था नींद अच्छी आई..
सुमित्रा गैस ऑन करते हुए - पांच मिनट रुक में बनाती हूँ चाय.. ये कहते हुए सुमित्रा ने सूरज की तरफ देखा और सूरज को खीरा खाते हुए देखकर उसे कल रात वाले खीरे की याद आ गई और सुमित्रा ने झट से पूछा.. ये खीरा कहा से लिया?
सूरज लगभग सारा खीरा खा चूका था और आखिरी बाईट खा कर खीरे का आखिरी छोर का बचा हुआ हिस्सा डस्टबिन में फेंकते हुए कहा - आपके बेड के पास पट्टी पर से.. आप फ्रीज से दूसरा लेकर खा लेना.. इतना कहकर सूरज रसोई से हॉल की तरफ चला गया मगर सुमित्रा सूरज को ही देखती रही और फिर अपने बदन में होती कपकपी महसूस करने लगी..
गैस पर उसने चाय चढ़ा दी थी मगर अब चाय के साथ सुमित्रा खुद भी उबलने लगी थी.. उसे अहसास भी नहीं हुआ की अचानक से उसकी योनि से कामरस बहने लगा था..
सुमित्रा ने अपने आपको को सँभालते हुए समझाया और चाय छन्नी करके सूरज को देकर सीधा होने रूम में आ गई और बाथरूम में जाकर अपनेआप को कोसने लगी की क्यों उसमे वो खीरा सुबह नहीं उठाया और वो भूल गई.. मगर उसके साथ जैसे सुमित्रा ने सूरज को वो खीरा खाते हुए देखा था उससे उसे वापस हवस चढ़ने लगी थी और सुमित्रा ने एक बार फिर अपनी ऊँगली का सहारा लेते हुए अपने आपको को संभाला और शांत करके बाथरूम से बाहर आ गई फिर से सामान्य बर्ताव करने लगी..
आज इतवार था दिन का समय हो गया था.. जयप्रकाश की छूटी थी और अपने बाप की स्कूटी लेकर सूरज अंकुश के घर के बाहर आ गया था
सूरज अंकुश को फ़ोन किया और अंकुश का फ़ोन उसके बेड में एक तरफ बजने लगा.. जिसपर अंकुश ने कोई ध्यान नहीं दिया..
बेड पर दो लोग थे नीचे एक 27 साल की औरत टांग फैलाये लेटी हुई थी और उसके ऊपर अंकुश उस औरत की चुत में लंड घुसाये उसके ऊपर लेटा हुआ था.. दोनों के बीच चुम्बन चल रहा था जिसे युवती ने तोड़ते हुए कहा - फ़ोन उठा ना अक्कू.. देख किसका है..
नीतू (27)
अंकुश ने फ़ोन देखकर कहा - अरे हनी का है नीतू.. आज कहीं जाना है हमें..
नीतू - बात तो कर अक्कू..
अंकुश फ़ोन उठाते हुए - हेलो हनी..
सूरज - कब से फ़ोन कर रहा हूँ क्या कर रहा था यार..
अंकुश नीतू को देखकर - कुछ नहीं भाई..फ़ोन रूम में था और मैं नीतू के साथ लूडो खेल रहा था.. रुक आता हूँ नीचे..
सूरज - ठीक है.. (फ़ोन काटते हुए)
अंकुश नीतू से - मैं जा रहा हूँ.. तू दरवाजा बंद कर लेना अंदर से..
नीतू अंकुश के लंड से कंडोम निकालकर गाँठ लगाते हुए - कंडोम ख़त्म हो गए है वापस आते हुए लेते आना वरना फिर शिकायत करेगा..
अंकुश नीतू की गर्दन पकड़ कर एक हल्का चुम्बन करते हुए - वो सब छोड़.. कल कोर्ट की तारीख है वकील से बात हुई है बोल रही थी ल बयान होगा.. तू थोड़ा प्रैक्टिस कर लेना.. थोड़ा बहुत रोना धोना भी पड़ सकता है.. शाम से पहले मम्मी भी आ जायेगी..
नीतू - मैं सब कर लुंगी तू पहले होंठो को साफ कर ले.. लिपस्टिक लगी हुई है.. किसी को पता चल गया की हम दोनों भाई बहन इस छत के नीचे ये सब करते है तो कोहराम मच जाएगा..
अंकुश जाते हुए - 2 साल से पता चला किसीको? तू फालतू टेंशन मत ले.. दरवाजा बंद कर ले अंदर से..
नीतू मुस्कुराते हुए - कंडोम लाना मत भूलना वरना रात को सलवार का नाड़ा नहीं खोलने दूंगी..
अंकुश - ठीक है..
अंकुश सूरज के पीछे स्कूटी पर बैठते हुए - चल भाई.. ले चल तेरे साले की दूकान पर..
सूरज स्कूटी चलाते हुए - भोस्डिके सो रहा था क्या.. कितना टाइम लगाता है..
अंकुश - छोड़ ना चल.. पहले गार्डन चल सफाई हो भी रही है या नहीं.. देख लेते है..
सूरज - ठीक है..
सूरज और अंकुश गार्डन में आते है देखते है की वहा रमन खड़ा है और कुछ लोग गार्डन की साफ सफाई और बाकी काम मे लगे हुए है..
क्या बात है.. तू तो दिल पे ले गया मेरी बात.. खुद आया है..
हाँ भाई मुझे भी देखना है एक बार क्या क्या और हो सकता है.. केसा है अंकुश?
बढ़िया भाई.. तुम्हारे क्या हाल है?
एकदम मस्त.. रमन ने अंकुश से कहा..
अंकुश - जगह तो बहुत बड़ी है सगाई क्या शादी भी हो सकती है यहां.. ये रूम्स में लाइट वाइट है या नहीं?
रमन - अभी नहीं.. इलेक्ट्रीशियन देख रहा है कल तक वो भी हो जाएगा..
अंकुश - सही है..
सूरज - ठीक है रमन.. मैं हलवाई से मिलने जा रहा हूँ..
अंकुश - हलवाई कहा साला है हनी का..
रमन हसते हुए - वो मुन्ना? बड़ा बेशर्म है साले.. उसकी बहन को छत पर पेलते हुए पकड़ा गया और अब भी मुंह उठा के उसके भाई के सामने जा रहा है..
सूरज - मैं कहा पेलता था.. वही पेलती थी मुझे.. जबरदस्ती कर रही थी उस दिन भी.. अगर मुझे जाने दिया होता तो कोई बात नहीं थी..
रमन - वैसे जान छिड़कती है तेरे ऊपर.. लोगों को चुना लगा लगा के तेरी ऐश करवाई थी उसने..
अंकुश - सही कह रहा है भाई..
सूरज - छोडो यार.. क्या फालतू की बात करने लगे.. चल अक्कू मिलते है मुन्ना मिठाई वाले से.. ठीक है रमन.. कल मिलता हूँ..
रमन हसते हुए - भाई.. कहीं पिट विट ना जाना..
अंकुश भी हसते हुए - साला कभी जीजा को पिट सकता है क्या भाई?
सूरज स्कूटी चलाते हुए अंकुश से - चूतिये गांड टिका के बैठ जा..
सूरज अंकुश के साथ मुन्ना की दूकान पर आ जाता है..
अंकुश - भाई दूकान कैसे बंद कर रखी है तेरे साले ने?
सूरज - पता नहीं.. लगता है कल आना पड़ेगा..
अंकुश - कल क्यों? चल घर चल मुन्ना के..
सूरज - नहीं अक्कू.. चिंकी आई हुई है घर.. देख लेगी तो फेविकोल की तरह चिपक जायेगी..
अंकुश - क्यों टेंशन ले रहा है भाई.. शादी हो गई उसकी.. अब शायद बदल गई हो.. चल ना.. कल वापस कोई आएगा?
सूरज - ठीक है.. चल..
अंकुश और सूरज एक घर के दरवाजे पर बेल बजाते हुए खड़े हो गए और अंदर से एक औरत आकर दरवाजा खोलकर दोनों को देखकर बोली..
नेहा - ओ हो.. क्या बात है? आज घर तक चले आये..
अंकुश - क्यों भाभी.. हम आपसे मिलने नहीं आ सकते..
नेहा - क्यों नहीं आ सकते.. और अच्छे मोके पर आये हो.. अंदर आओ..
नेहा दोनों को दरवाजे से अंदर आने को कहती है और आँगन में पड़ी कुर्सीयों पर बैठा देती है..
सूरज - अच्छा मौका है मतलब?
नेहा सामने कुर्सी पर बैठती हुई - अरे वो मुन्ना मम्मी जी को लेकर मामा जी के यहां गए है तो तुम्हे कोई ताने मारने वाला है नहीं यहां.. दूकान भी इसलिए बंद है.. बताओ क्या बना कर लाउ? चाय या कॉफ़ी?
अंकुश - इतनी गर्मी कहा चाय कॉफ़ी भाभी.. रहने दो ये सब.. एक काम है मुन्ना भईया से.. वो कब तक आएंगे?
नेहा - वो तो कल आएंगे.. मुझे बताओ क्या काम था मुन्ना से तुम्हे?
सूरज - भाभी वो विनोद भईया की सगाई है 5 दिन बाद.. खाने का आर्डर देना था.. अब मुन्ना भईया के होते हुए किसी और कैसे दे सकते है..
नेहा - सही कहा देवर जी.. हमारे अलावा तुम किसी और के पास जाते तो मैं कभी ना बात करती आपसे.. एक मिनट बैठो में अंदर से कॉपी पेन ले आती हूँ..
अंकुश - भाई भाभी चाहती तो है हम दोनों को.. सही लाइन देती है..
सूरज - लाइन नहीं देती भोस्डिके.. इतने आर्डर दिलवाते है तो थोड़ा मीठा बनकर बात करती है और कुछ नहीं है..
अंकुश - अच्छा? मैं फालतू ही खुश हो रहा था..
नेहा दो गिलास निम्बू पानी लाकर सामने रखते हुए - लो देवर पीओ.. और अब बताओ क्या क्या बनवाना है..
सूरज निम्बू पानी पीते हुए - भाभी सगाई का प्रोग्राम है 250-300 लोग के हिसाब से आप ही देख लो.. क्या सही रहेगा..
नेहा - ठीक है.. आज कल ये सब चलता है सगाई के प्रोग्राम में.. यही रख देती हूँ.. और तुम बताओ..
अंकुश - दिखाओ भाभी मैं देखता हूँ..
भाभी... भाभी.. कौन आना है.. ऊपर से किसी की आवाज आती है तो नेहा सूरज को देखकर मुस्कुराते हुए कहती है - नीचे आ कर देख ले..
सूरज कुर्सी से खड़ा होता हुआ - क्या भाभी आप भी.. आपको तो सब जानती हो फिर भी.. कहीं छीपाने की जगह है.. सूरज इधर उधर देखते हुए एक तरफ छुपके खड़ा हो जाता है..
चिंकी नीचे आते हुए - अंकुश.. तू यहां क्या कर रहा है?
नेहा - सगाई के लिए आर्डर देने आया था..
चिंकी - सगाई कर रहा है तू?
अंकुश - मेरी नहीं.. हनी के भाई विनोद भईया की सगाई का आर्डर है.. मुझे तो हनी लेकर आया था..
चिंकी चेहरे पर चमक लाते हुए - कहा है वो कुत्ता?
अंकुश इशारे से बताकर - पता नहीं तेरे आने से पहले तो इधर ही था..
चिंकी सूरज से - बाहर आजा चुपचाप.. वरना मार खायेगा..
नेहा हसते हुए - आराम से चिंकी.. बेचारा पहले ही तेरे नाम से घबरा जाता है..
चिंकी सूरज का हाथ पकड़ कर अपने साथ ले जाते हुए - भाभी अंकुश से कर लो जो बात करनी है.. मुझे हनी से अकेले में कुछ बात करनी है..
नेहा मुस्कुराते हुए - जल्दी करना.. अच्छा अंकुश.. और कुछ कम ज्यादा करना है तो बता इसमें..
अंकुश - अरे भाभी सब परफेक्ट किया है आपने.. सब ठीक है.. मैं निकलता हूँ
नेहा - रुक मैं सामान की लिस्ट बनाके दे देती हूँ.. तू लेते जाना..
नीचे अंकुश नेहा से सामान की लिस्ट लेकर चला गया था उसे पता था चिंकी सूरज के साथ क्या करेगी और उसने कितना समय लगेगा.. अंकुश बिलाल की दूकान पर आ गया था आज दूकान पर कस्टमर बैठे थे और ये देखकर अंकुश खुश होता हुआ बिलाल से दो बात करके एक तरफ बैठकर अपनी बहन नीतू से फ़ोन पर लग गया था वही मुन्ना हलवाई के घर नीचे नेहा अपने दोनों बच्चों के साथ एक रूम में टीवी देख रही थी तो ऊपर चात वाले कमरे में चिंकी ने सूरज की हालत ख़राब कर रखी थी..
time ki kami se update chhota hai... Please like and comments
agla update next sunday tak aayega
Update 2
(फ़्लैशबैक start)
सूरज - मैं... मैं.. मैं सूरज...
गुनगुन सूरज के हकलाने से खिलखिला कर हसने लगती है....
हनी... चल क्लास लगने वाली है.. आजा..
सूरज के दोस्त रमन (3rd हीरो) ने उसका हाथ पकड़कर गुनगुन के सामने से खींचता हुआ अपने साथ कॉलेज के बाहर बने प्याऊ के पास से कॉलेज के मुख्य भवन अंदर ले गया और रूम नंबर 42 में आ गया जहाँ लगभग 60-65 और स्टूडेंट्स थे.. स्कूल की तरह यहां भी सूरज और रमन सबसे पीछे वाली सीट पर आ गए और बेग नीचे रखकर सामने देखने लगे.. सभी चेहरे नए और खिले खिले थे सबके अंदर नई ऊर्जा और उत्साह था.
सूरज ने देखा की कुछ ही देर बाद गुनगुन भी क्लास में आ गई थी और आगे जगह ना होने के करण उसे पीछे बैठना पड़ा था.. सूरज और गुनगुन की नज़र एक बार फिर से टकराई और दोनों के होंठों पर हलकी सी मुस्कुराहट आ गई मानो दोनों एक दूसरे को फिर से मिलने की बधाई दे रहे थे..
क्लास दर क्लास ये सिलसिला जारी रहा और फिर जब सूरज बस स्टेण्ड पंहुचा तो वहां भी गुनगुन आ गई.. सूरज के मन में मोर नाच रहे थे जिसकी खबर सिर्फ उसे ही थी.. बस में चढ़ते ही सूरज को एक खाली सीट मिल गई थी जो उसकी किस्मत थी वगरना स्टूडेंट के आने से बस खचाखच भर चुकी थी..
गुनगुन सूरज के पीछे ही तो थी जो अब उसकी सीट के सामने खड़ी होकर बस के एक एंगल को पकडे कभी बाहर तो कभी भीतर अपने सामने सीट पर बैठे सूरज को देख रही थी..
सूरज ने उठते हुए गुनगुन को अपनी सीट पर बैठने का इशारा कर दिया था और गुनगुन मुस्कुराते हुए सूरज की सीट पर बैठ कर उसके बेग को भी अपने बेग के साथ अपनी गोद में रख लिया था.. दोनों में बोलकर बात भले ही नहीं हुई थी मगर नज़रो में इतनी बात हो चुकी थी कि दोनों एकदूसरे को पहले दिन ही समझने और जानने लगे थे..
दिन के बाद दिन फिर महीने और फिर साल बीत गए थे.. दोनों में समय के साथ प्यार पनपा.. और एकदूसरे ने इसका इज़हार भी कर दिया.. कच्ची उम्र कि मोहब्बत पक्के जख्म दे जाती है यही सूरज और गुनगुन कि मोहब्बत के साथ भी हुआ.. सूरज और गुनगुन की पहली मुलाक़ात जो कॉलेज के पहले दिन हुई थी वो अब आखिरी बनकर कॉलेज के आखिरी साल के आखिरी इम्तिहान के बाद होने वाली थी..
तुम समझ नहीं रहे सूरज.. मैं यहां नहीं रुक सकती.. मुझे अपने ख़्वाब पुरे करने है कुछ बनना है.. कब तक इस तरह मैं तुम्हारे साथ यहां वहा घूमती रहूंगी?
पर हम प्यार करते है ना गुनगुन? क्या हम एकदूसरे के बिना रह पाएंगे? क्या तुम मेरे बिना रह पाओगी? पिछले 4 साल हमने साथ बिताये है जीने मरने की कस्मे खाई है सब झूठ तो नहीं हो सकता गुनगुन.. तुम इतनी कठोर तो नहीं हो सकती कि वो सब भुलाकर मुझसे मुंह मुड़ जाओ.. मैं कैसे तुम्हारे बिना रह पाऊंगा?
सूरज तुम अपने प्यार की बेड़िया मेरे पैरों में ना बांधो.. मैं उड़ना चाहती हूँ..मुझे अगर तुम अपनी क़ैद में रखोगे तब भी मैं घुट घुट कर अपने देखे हुए सपनो को मरता देखकर जी नहीं पाउंगी.. मुझे इस बात का दुख है कि हम अब अलग हो रहे है मगर मैं वादा करती हूँ एक दिन जरुर तुम्हारे लिए लौटकर आउंगी..
नहीं गुनगुन.. मैं तुम्हारा इंतजार नहीं कर सकता.. तुम अगर कहोगी तो मैं कोई काम वाम कर लेता हूँ और हम शादी भी कर सकते है पर तुम मुझे यूँ बीच राह में बैठाकर कही जाने की जिद ना करो.. अगर तुम चली गई तो मैं फिर कभी नहीं तुम्हे मिलूंगा..
सूरज.. क्या तुम अपनी ख़ुशी के लिए मेरी ख़ुशीयों का गला घोंट दोगे? इतने स्वार्थी तो नहीं थे तुम..
नहीं गुनगुन.. मैं सिर्फ अपने आप को परखना चाहता हूँ.. देखना चाहता हूँ कि तुम्हारे बाद मैं अपनेआप को किस तरह संभाल पाऊंगा..
मैं वापस लौट आउंगी सूरज कुछ सालों की तो बात है.. आगे की पढ़ाई ख़त्म होते ही तुम्हारे पास चली आउंगी..
मुसाफिर पुराने रास्ते पर वापस नहीं लौटा करते गुनगुन.. वो पुराने रास्ते को भुला दिया करते है.. तुम भी अपने ख्वाब पुरे करना.. तुम्हारे पापा ने जो ख़्वाब तुम्हारे लिए देखे है उन्हें हासिल करना.. मैं कोशिश करूँगा तुम्हारे बाद खुश रहू और तुम्हे भूल जाऊ..
ऐसा मत कहो सूरज.. मैं किसी ना किसी तरीके से तुम्हारे नजदीक रहूंगी.. हम फ़ोन पर बात करेंगे.. तुम्हारे पास फ़ोन नहीं है ना.. लो तुम मेरा फ़ोन रख लो.. मैं इसी पर तुम्हे अपने हर दिन का हाल शाम की बहती हवा के साथ लिखा करुँगी..
नहीं.. मैं ये नहीं ले सकता.. तुम जाओ गुनगुन.. तुमने कहा था आज शाम को तुम शहर से जाने वाली हो.. जाओ.. अब मैं तुम्हे नहीं रोकता.. तुम्हे आकाश में उड़ना था बदलो को महसूस करना था बारिशो में भीगना था पंछियो की तरह चहचहाना था.. मैं नहीं डालता तुम्हारे पैरों में अपनी मोहब्बत की बेड़िया.. जाओ गुनगुन.. तुम्हारे ख्वाब तुम्हारा इंतजार कर रहे है..
सूरज.. मुझे गलत मत समझो..
नहीं गुनगुन.. अब और नहीं.. इससे पहले की तुम कमजोर पढ़कर मेरे सामने अपना फैसला बदलो और फिर उम्र भर मुझे अपनी किस्मत के लिए कोसो.. मैं अब यहाँ से चला जाना चाहता हूँ.. अगली बार अगर किस्मत ने मुझे तुमसे मिलवाया तो मैं दुआ करूँगा तब तक तुमने अपने सारे ख्वाब पुरे कर लिए होंगे.. अलबिदा गुनगुन.. अपना ख्याल रखना..
सूरज जब आखिरी मुलाक़ात के बाद गुनगुन को कॉलेज के गेट पर अकेला छोड़कर बस में चढ़ा तो गुनगुन की आँख से आंसू टप टप करके बह रहे थे.. गुनगुन किसी बेजान मूरत जैसी कॉलेज के गेट के बाहर खड़ी हुई आंसू बहाये जी रही थी सूरज जो पलटकर गया तो उसने एक बार भी मुड़कर गुनगुन को नहीं देखा मगर गुनगुन आंसू बहाते हुए सूरज को तब तक देखती रही जबतक वो आँखों से ओझल नहीं हो गया.. गुनगुन को उसकी सहेलियों ने आकर संभाला मगर तब तक गुनगुन के अंदर जो बांध छलक रहा था वो फट पड़ा था और गुनगुन अपनी सहेलियों से लिपटकर रो रही थी..
बस में चढ़कर सूरज एक तरफ खड़ा हो गया और अपने सारे मनोभाव अपने अंदर ही दबाकर खड़ा रहा.. सूरज आम दिनों की तरह ही घर आया और सामान्य बर्ताव करते हुए सुमित्रा और बाकी लोगों से मिला मगर शाम को उसके कदम ना जाने क्यों अपने आप मोहल्ले से बाहर एक शराबखाने की ओर मुड़ गए ओर सूरज शराब खाने जाकर एक शराब की बोतल खरीद कर दूकान के पीछे रखी पत्थर की पट्टी पर आ बैठा जहाँ उसने अंकुश (2nd हीरो) ओर बंसी काका को देखा जो सूरज के यहां आने पर ऐसे हैरान थे जैसे कोई असमान्य घटना देखकर सामान्य आदमी हो जाता है..
अंकुश और बंसी अच्छे से जानते थे की सूरज शराब नहीं पीता मगर आज उसे यहां देखकर वो हैरानी से उसके पास आकर उसके यहां आने की वजह पूछने लगे जिसपर सूरज के सब्र का बाँध टूट गया और वो बच्चों की जैसे अंकुश और बंसी के सामने रोने लगा..
अंकुश और बंसी के लाख पूछने के बाद भी सूरज ने उन्हें इसकी असली वजह तो नहीं बताइ मगर रोकर अपने दिल का दुख पीड़ा व्यथा को अपने आँखों से आंसू बनाकर कुछ पल की राहत जरुर हासिल कर ली थी..
वही दिन था जब सूरज ने शराब पीना शुरू किया था और आज तीन साल बाद भी वो अक्सर अपने दोस्त अंकुश और बंसी काका के साथ बैठके शराब पी लिया करता था.. गुनगुन को भुलाने के लिए उसने कई तरतीब सोची और उनपर अमल किया मगर कोई काम ना आ पाई मगर फिर एक दिन घर में धूल खाती किताब जिसे दिवाली की सफाई में सुमित्रा ने निकाल कर रद्दी वाले को देने के लिए रख दिया सूरज ने उसे उठा लिया और ऐसे ही उसके शुरूआती कुछ पन्ने पढ़ डाले.. उसके बाद सूरज को उस किताब में इतनी रूचि पैदा हुई की कुछ ही समय में सूरज ने सारी किताब पढ़ डाली और यही से सूरज को किताबें पढ़ने का शौख पैदा हुआ जिसमे वो अक्सर अपने जैसे नाकाम इश्क़ वालों से मिलता उनकी कहानी जीता.. महसूस करता और अपने आप होंसला देता.. कुछ समय में उसके मन से गुनगुन के यादो की परत धुंधली पड़ गई थी.. हसते खेलते नटखट मुहफट और बचकाने सूरज को गुनगुन के इश्क़ ने शांत और कम बोलने वाला सूरज बना दिया.. गुनगुन के जाने के डेढ़ साल बाद चिंकी ने सूरज के साथ घूमना फिरना शुरू कर दिया था और यही से सूरज और चिंकी का रिलेशन जो रमन के अलावा सभी की नज़रो में सूरज का एकलौता रिलेशनशिप था शुरू हुआ मगर 6 महीने बाद ही मुन्ना ने दोनों को अपने घर की छत पर रासलीला करते हुए पकड़ लिया और ये सब भी ख़त्म हो गया.. ऊपर से सूरज के बारे में उसके घर परिवार को सब पता चल गया था.. चिंकी की शादी हो गई और सूरज फिर से अकेला रह गया..
(फ़्लैशबैक end)
सुरज को नींद नहीं आ रही थी वो काफी देर तक यूँही लेटा रहा फिर खड़ा होकर घर की छत पर आ गया और छात पर बने एक्स्ट्रा कमरे की छत पर से एक खाचे जो छिपा हुआ था वहा से सूरज ने कुछ निकाला और फिर कमरे पीछे जाकर उस थैली को खोला और उसमें से लाइटर और सिगरेट पैकेट निकालकर कश लेते हुए गरिमा के बारे में सोचने लगा जो ना चाहते हुए शादी करने को तैयार है और अपने पीता की हर बात को पत्थर की लकीरें मान बैठी है.. उसी के साथ आज सूरज को गुनगुन की भी याद आ गई थी सूरज वापस गुनगुन के चेहरे को याद करने लगा था मगर अब पहले की तरह उसकी आँख में आंसू नहीं थे..
गरिमा ने जब किसी की आहट सुनी तो वो गद्दे से उठ गई और कमरे से बाहर झाँक कर देखा तो पाया की सूरज छत पर जा रहा था गरिमा ने फ़ोन में समय देखा तो रात के 2 बज रहे थे.. जिज्ञासावश गरिमा भी उसके पीछे ऊपर आ गई और सीढ़ियों से ही सूरज को छत पर बने कमरे के पीछे की तरफ सिगरेट पीते देखा तो वो बिना कुछ आवाज किये वापस नीचे कमरे में आ गई और उसी किताब जिसे वो पढ़ रही थी अब किनारे रखकर सोने लगी..
गरिमा के मन में कई बातें थी जिसे सुनने वाला कोई नहीं था.. पीता तो उसकी बात सुनने से पहले ही अपने फैसले उसपर थोप देते थे और माँ उर्मिला जमाने की होड़ में अंधी होकर बेटी के सुख दुख की चिंता किये बिना ही गरिमा के लिए नियम कायदे तय करती थी.. गरिमा की आँखों में आंसू थे मगर पोंछने वाला कोई ना था.. होंठों पर बातें थी मगर सुनने वाला कोई ना था..
सुबह की पहली किरण के साथ सूरज ने चाय का प्याला अपने हाथ में उठा लिया और नीचे जयप्रकाश लंखमीचंद और बाकी लोगों से दूर छत पर आ गया और छत की एक दिवार पर बैठकर चाय पिने लगा तभी गरिमा छत पर आते हुए बोली..
छत पर क्यों आ गए?
बस ऐसे ही..
तुम इतना चुपचुप क्यों रहते हो?
आप भी तो सबके सामने चुप रहती हो..
हाँ क्युकी मेरी सुनने वाला कोई नहीं.. पर तुम तो सबके चाहते हो.. तुम ऐसे उदासी लेकर क्यों रहते हो?
आपसे किसने कहा मैं उदास हूँ?
गरिमा मुस्कुराते हुए बोली - तुम्हारे चेहरे पर लिखा है.
सूरज - अच्छा तो आपको चेहरा पढ़ना भी आता है?
गरिमा - नहीं पर तुम्हारा पढ़ सकती हूँ.. चाँद से चेहरे पर काली घटाये तो यही बताती है.. कोई बात है जिसे मन में छुपाए बैठे हो? बता दो.. तुमने मुझसे कल सब पूछ लिया था अब अपने मन की बताओगे भी नहीं?
सूरज - बताने के लिए कुछ ख़ास नहीं है भाभी..
गरिमा मुस्कान लिए - अरे अभी तो तुम्हारे भईया के साथ मेरी सगाई तक नहीं हुई और तुम मुझे भाभी भी बोलने लगे.
सूरज - माफ़ करना गलती से निकल गया.
गरिमा - इसमें माफ़ करने वाली क्या बात है? अब जो बोलने वाले हो वही तो बोलोगे.. मैं तो बस हंसी कर रही थी तुम्हारे साथ.. देवर जी..
सूरज - आप भी ना.. कल तक तो कितनी गुमसुम और उदास थी अब अचानक से आपको मसखरी सूझने लगी..
गरिमा - हाँ पर कल तक मैंने अपने देवर जी से बात कहा की थी? मुझे लगता अब कोई है जो मेरे साथ बातें कर सकता है दोस्त बनकर मेरे साथ रह सकता है
सूरज - ये दोस्ती विनोद भईया के साथ रखना भाभी.. मैं अपने मन का करता हूँ..
गरिमा - तुम इतने साल से अपने भईया के साथ हो मगर अब तक उनके बारे में कुछ नहीं जान पाए..
सूरज - जानना क्या है?
गरिमा - यही की उनके लिए रिश्तो और भावनाओ का मोल ज्यादा नहीं है.. मैं उनके साथ वो सब नहीं कह सुन सकती जो तुम्हारे साथ बोल सकती हूँ सुन सकती हूँ.. तुम मन पढ़ सकते हो.. भावनाओ को समझ सकते हो मगर तुम्हारे भईया ऐसा कुछ नहीं कर सकते.. उनके लिए ये सब बचकानी बातें है..
सूरज - अगले सप्ताह सगाई है आपकी भईया के साथ और 6 महीने बाद शादी.. एक बार वापस सोच लीजिये.. कई बार हमें अपनी छोटी सी गलती के लिए उम्रभर पछताना पड़ता है..
गरिमा - तो बताओ ऐसी कोनसी गलती तुमसे हो गई थी कि तुम आधी रात को किसी कि याद छत के उस कोने में बैठकर आँख में आंसू लिए सिगरेट के कश भरते हो..
सूरज सकपकाते हुए - मैं.. मैं..
गरिमा - मैं किसी से नहीं कहूँगी देवर जी.. आप फ़िक्र मत करो.. अब तो हम देवर भाभी बनने वाले है.. आपके छोटे मोटे राज़ तो मैं भी छीपा कर रख सकती हूँ..
सूरज - भाभी.. वो मैं..
गरिमा - किसी को याद कर रहे थे? पर तुम्हे कौन छोड़ के जा सकता है? कहीं बेवफाई तो नहीं की थी तुमने?
सूरज - भाभी.. आप भी ना.. कुछ भी कहती हो.. ऐसा कुछ नहीं है.
गरिमा हसते हुए - एक बात बताओ क्या इसी तरह अकेले ही रहते हो घर में?
सूरज - क्यों?
गरिमा - अपना फोन दो जरा..
सूरज फ़ोन देते - लो..
गरिमा - ये फ़ोन है? लगता है शहर से पुराना तो तुम्हारा फ़ोन है.. चलता तो है ना.. हाँ.. गनीमत है चल तो रहा है.. लो.. जब अकेलेपन से बोर हो जाओ और मुझसे बात करने का मन करें तो massage करना.. हम दोनों ढ़ेर सारी बात करेंगे..
सूरज मुस्कुराते हुए - ठीक है भाभी..
विनोद आते हुए -अरे क्या बात हो रही दोनों में? हनी मम्मी कब से तुझे आवाज लगा रही है सुनाई नहीं दिया तुझे? चल नीचे.. और तुम्हे भी नीचे आ जाना चाहिए.. तुम्हारे पापा याद कर रहे थे तुम्हे..
जी.. कहते हुए गरिमा नीचे चली गई और उसके पीछे पीछे सूरज भी चला गया..
लख्मीचंद - अच्छा तो भाईसाहब अब इज़ाज़त दीजिये.. अगले हफ्ते सगाई कि तैयारी करनी है.. बहुत काम पड़ा है.. हम समय से आपके द्वारे उपस्थित हो जायेगें..
जयप्रकाश - जी भाईसाब... तैयारिया तो हमें भी करनी होगी.. पंडित जी ने मुहूर्त भी इतना जल्दी का सुझाया है कि क्या कहा जाए?
उर्मिला - बहन जी.. बहुत बहुत आभार आपका आपने हमारी बिटिया को पहली नज़र में ही पसंद कर लिया और अपने घर की बहु बनाने की हामी भर दी.. मैं भरोसा दिलाती हूँ हमारी गरिमा आपके घर का पूरा मान सम्मान कायम रखेगी..
सुमित्रा - जानती हूँ बहन जी.. आपकी बिटिया के बारे में नरपत भाईसाब ने जो जो बताया था गरिमा उससे कहीं बढ़कर है.. मैं अब जल्दी से अपने विनोद के साथ आपकी गरिमा का ब्याह होते देखना चाहती हूँ..
लख्मीचंद - भाईसाब अगर आपकी कोई बात है या कुछ और आप मुझे बता सकते है..
जयप्रकाश - अरे आप क्यों बार बार ये बोलकर मुझे शर्मिंदा कर रहे है.. मैंने आपसे साफ साफ कह दिया है कि हमें आपकी बिटिया के अलावा और कुछ नहीं चाहिए.. हम तो दहेज़ के सख्त खिलाफ है..
नरपत - अब तो आप लोग अगले सप्ताह विनोद और गरिमा की सगाई की तैयारी कीजिये... अब समय से निकलते है वरना ट्रैन ना छूट जाए.. सूरज गाडी भी ले आया.. चलिए..
गरिमा जाते हुए सूरज को एक नज़र देखकर मुस्कुरा पड़ी थी बदले में सूरज के होंठों पर भी मुस्कान आ गई.. विनोद भी स्टेशन तक साथ गया मगर गरिमा के साथ उसकी आगे कोई बात ना हो पाई.. विनोद लख्मीचंद के साथ ही बैठा हुआ यहां वहा की बात कर रहा था.. स्टेशन पर लख्मीचंद उर्मिला नरपत और गरिमा को ट्रैन में बिठाने के बाद वो सीधे ऑफिस निकल गया था..
आज ऑफिस नहीं जायेगे?
नहीं.. मैडम को पता चला कि लड़की वाले बेटे को देखने आये हुए है तो उन्होंने आज घर पर रहने को ही कहा है..
पर वो तो चले गए..
तो ये बात मैडम को कहा पता है सुमित्रा? आज घर पर ही आराम करने का मन है..
सही है.. कम से कम थोड़ी तो समझ है..
मैं तो पहले से ही बहुत समझदार हूँ..
तुमको नहीं तुम्हारी उस अफसर मैडम को कह रही हूँ..
सुमित्रा ने बेड पर तौलिया लपेटकर बैठे जयप्रकाश से ये कहा और कमरे से बाहर आकर सीधा कल के सुखाये कपड़े उतारने छत पर चली गई..
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वाह भाई बिल्ले.. 3-4 दिनों में ही दूकान चमका दी तूने तो.. अंकुश (2nd हीरो) ने बिलाल की दूकान में कदम रखते हुए कहा जहाँ रंग रोगन हो चूका था और दूकान पुराने जमाने के ताबूत से निकलकर नए जमाने के लिबास से सज गई थी.. दूकान के सीढ़ियों की मरम्मत के साथ बाहर लटक रहे लाइट के वायर को व्यवस्थित करके स्विच बोर्ड भी बदल दिए गए थे..
बिलाल ने अंकुश की बात सुनकर कहा - हाँ अक्कू.. सब काम तो हो चूका है बस अब आइना और कुर्सी खरीदना बाकी है.. वैसे पिछले 3-4 दिनों से हनी कहा है? ना दिखाई दिया ना बात की..
अंकुश - बात मेरी भी नहीं हुई.. उस दिन विनोद भईया को लड़किवाले देखने आये थे उसके बाद से मैं भी नहीं मिला यार..
बिलाल - रुक मैं फ़ोन करता हूँ.. जरा पूछे तो आज कल है कहाँ?
हेलो..
हेलो.. हनी?
हाँ बिल्ले..
अरे आज कल है कहाँ भाई? ना फ़ोन ना मुलाक़ात.. कोई गलती हो गई क्या हमसे?अक्कू से भी बात नहीं की तूने?
कहाँ है तू?
मैं और कहाँ होऊंगा? दूकान पर.. आइना और कुर्सी खरीदना था तो सोचा तुझसे बात कर लु.. अक्कू भी यही है..
हाँ.. यार कुछ बिजी हो गया था तुम रोको मैं 10 मिनट आता हूँ वहा..
पिछले तीन चार दिनों से सूरज गरिमा के साथ व्हाट्सप्प पर बातचीत में ऐसा उलझा की उसे अपने दोस्तों और परिवार के लोगो से बात करने और मिलने का समय ही नहीं मिला.. गरिमा को भी सूरज के रूप में अच्छा दोस्त मिल गया था और अब दोनों एक दूसरे को देवर भाभी कहकर ही बुलाने और बात करने लगे थे.. दोनों की बातों में एक दूसरे की पसंद नापसंद जानना और मिलती हुई रूचि की चीज़ो घंटो लम्बी बातें करना शामिल था.. विनोद तो गरिमा से बात करना जरुरी ना समझता था उसे औरत बस घर में काम करने और पति को खुश रखने की वस्तु मात्र ही लगती थी.. कभी कभार विनोद गरिमा औपचारिक बात किया करता उससे ज्यादा उसने कभी गरिमा से कुछ नहीं कहा ना पूछने की जहमत की.. विनोद काम में तनलिन था मगर गरिमा और सूरज के बीच सुबह शाम बातें हो रही थी.. दोनों एक दूसरे के सुबह उठने पर चाय पिने से लेकर रात को खाना खाने तक की बातें पूछने और बताने लगे थे.. दोनों के मन मिलने लगे थे और दोनों को ख़ुशी की थी कोई है जो उनके मन का हाल समझ सकता है और उससे वो सब बात कह सकते है..
बिलाल का फ़ोन आने पर सूरज फ़ोन बंद करके अपने कमरे से निकल कर नीचे आ गया जहाँ उसने देखा कि सुमित्रा जयप्रकाश और विनोद साथ में बैठे किसी गहरे मंथन में घूम थे और आपस में कुछ कह रहे थे..
नहीं पापा.. मेरे ऑफिस के सभी लोगों को पता चल गया है और उन्होंने खुद आने कहा कहा है.. 20-25 लोग तो ऑफिस से ही हो जाएंगे.. फिर स्कूल कॉलेज और मोहल्ले के यार दोस्त अलग से.. कम से कम 35-40 लोग मेरे ही हो जाएंगे.. इतने सारे रिश्तेदार भी बुला लिए आपने.. आपके ऑफिस से भी लोग आएंगे.. माँ ने भी आस पड़ोस में सबको बता दिया है अब उन्हें भी नहीं बुलाया जाएगा तो सब मुंह फुला के बैठ जाएंगे.. इतने सारे लोगो कि व्यवस्था घर और गली में तो नहीं हो सकती.. एक गली पीछे जो बिट्टू के पास वाला खाली प्लाट है वहा इंतजाम किया जा सकता है.. बस लाइट और टैंट का बंदोबस्त करना पड़ेगा.. 15-20 हज़ारका खर्चा आएगा.. हलवाई से भी मैंने बात कर ली है.. 150-200 अपनी तरफ के और लख्मीचंद बता रहे थे 50 उनकी तरफ से.. 250 आदमियों का खाना भी हो जाएगा..
सूरज विनोद के बातें सुनकर फ्रीज़ से पानी कि बोतल निकाल कर हॉल में सोफे कि तरफ आता हुआ विनोद कि बात काटते हुए कहा - 200 गज के प्लाट में 250 आदमियों कि व्यवस्था कैसे होगी भईया? और अब वो प्लाट बिक चूका है नया मालिक वहा फंक्शन करने की इज़ाज़त दे या ना दे.. किसे पता? और किस हलवाई से बात की है आपने? उस कांतिलाल से ना जिसने मधुर भईया की शादी में खाना बिगाड़ दिया था.. कितनी थू थू हुई थी उनकी..
जयप्रकाश - तो तू ही बता कुछ.. पहले तो बाहर घूमता था अब सिर्फ कमरे में ही पड़ा रहता है.. कोई उपाय हो तो बता.. क्या कोई गार्डन बुक कर ले?
सूरज - सगाई की जगह और खाने की जिम्मेदारी मेरी.. बाकी आपको देख लो.
विनोद - 5 दिन बाद सगाई है.
सूरज - कल इतवार है दोनों काम निपट जाएंगे.. आपको बेफिक्र रहो..
विनोद जयप्रकाश को देखकर सूरज से - ठीक है फिर.. मैं अभी कुछ पैसे ट्रांसफर कर रहा हूँ आगे जो कम पड़े वो बता देना..
जयप्रकाश - हनी.. सोच कर करना जो करना है..
सूरज अपने पीता की बात सुनकर घर से निकल जाता है और बिलाल की दूकान पर पहुंच जाता है..
क्या बात है ईद के चाँद.. कहा था पिछले कुछ दिनों से?
कहीं नहीं यार बस कुछ तबियत हलकी थी.. और सुनाओ.. दूकान तो नई जैसी कर दी बिल्ले तूने.
सब तुम दोनों की महरबानी से ही तो हो रहा है भाई..
हनी.. आइना और कुर्सी लानी बाकी है फिर बिल्ले की दूकान भी नये सलून जैसी हो जायेगी..
हाँ वो तो है.. तो बिल्ले कहा से ला रहा है बाकी सामान?
एक जानकार है हनी.. किसी दूकान का पता दिया है.. कह रहा था अच्छा सामान देता है.. बस वही जाना था.. एक बार देख आते केसा सामान है?
नज़मा चाय लेकर - चाय.. भाईजान..
सूरज चाय लेते हुए - तो चले जाओ ना तुम दोनों.. अगर सही लगे तो साथ ही ले आना..
बिलाल - और तू नहीं चलेगा?
सूरज - मुझे कहीं और जाना है आज..
अंकुश चाय पीते हुए - बेटा देख रहा हूँ पिछले कुछ दिनों से तेवर बदले बदले लगते है तेरे.. क्या बात है?
सूरज - कुछ भी नहीं.. 5 दिन बाद सगाई है भईया की.. थोड़ा बहुत काम है इसलिए किसी से मिलने जाना है.
नज़मा - सगाई भी तय हो गई.. अभी लड़की वाले देखने ही आये थे..
सूरज - अब जब सब राज़ी थे तो पंडित ने इतना जल्दी का मुहूर्त सुझाया की क्या कहा जाए.. वैसे लोकेशन अभी फाइनल नहीं है सगाई कहा होगी.. जैसे ही होती है मैं दोनों को व्हाट्सप्प कर दूंगा.
नज़मा अंदर जाते हुए - अच्छा..
अंकुश हसते हुए - तू नहीं बुलायेगा तब भी हम चले आएंगे.. डोंट वार्री.
बिलाल - हनी जा भी रहा है.. थोड़ी देर बैठ ना..
सूरज - अभी नहीं बिल्ले.. किसी दोस्त से बात की है उससे मिलने जाना है तू अक्कू के साथ बाकी सामान ले आ.. कल इतवार है दूकान पर भीड़ रहेंगी..
बिलाल - क्या भीड़ भाई.. इतवार हो या कोई दिन गिनती के 2-4 ही तो आते है कल क्या बदल जाएगा.
अंकुश - क्यों मनहूस बात करता है बिल्ले कल देखना लोगो की लाइन लग जायेगी दूकान पर.. चल चलते है उस दूकान पर..
अंकुश और बिलाल दूकान का बाकी सामान लाने चले जाते है और सूरज अपने कॉलेज दोस्त रमन के पास चला आता है..
रमन (3rd हीरो) - कहा चला गया था भाई सीधा तो रास्ता बताया था तुझे..
सूरज - मुझे लगा आगे से कोने वाली दूकान होगी..
चल कोई ना छोड़.. बता क्या लेगा?
कुछ नहीं चाय पीके आया हूँ..
तो फिर कॉफ़ी पिले..
नहीं रहने दे यार..
अरे क्यों रहने दे.. साले इतने महीनों के बाद तो मिलने आया है.. फ़ोन करो तो कोई जवाब नहीं.. किस हाल में ये भी नहीं पता.. कॉलेज के बाद तो ऐसे गायब हुआ जैसे गधे के सर से सींग..
कुछ नहीं यार.. बस यूँ समझा ले कहीं मन ही नहीं लगा..
तो मन को लगा भाई ऐसे क्या जीना? धरमु... दो कॉफ़ी बोल..
रमन ने अपने यहां काम करने वाले एक आदमी से कहा..
और सुना सूरज.. आज कैसे याद कर लिया तूने?
विनोद भईया की शादी तय हुई है.. 5 दिन बाद सगाई होनी है..
अरे वाह ये तो बहुत अच्छी बात है.. साथ में तू भी शादी करवा ले भाई सुखी रहेगा..
पहले अपनी करवा ले..
रमन हसते हुए - भाई अब लगा ना पहले वाला सूरज.. कब से मनहूसियत लेते बैठा था चेहरे पर.. हाँ बोल क्या कह रहा था..
सूरज - भईया कि सगाई है पांच दिन बाद.. जगह चाहिए सगाई के लिए..
रमन - इतनी सी बात.. बता कहाँ चाहिए.. इतने सारे गार्डन है अपने.. अभी शादी का सीजन भी नहीं है खाली ही पड़े है सब.. बता कोनसा चाहिए?
सूरज - घर के आस पास देख ले कोई.. ज्यादा बड़ा प्रोग्राम नहीं है..
रमन - तेरे घर के पास है तो सही.. पर बंद पड़ा है.. सफाई करानी पड़ेगी..
सूरज - बंद क्यों पड़ा है? बुकिंग नहीं मिल रही क्या?
रमन - अरे नहीं बे.. वो जगह पापा और चाचा साझे में खरीदी थी और शादी ब्याह के लिए वहा गार्डन बनवाया था मगर बाद में विवाद हो गया.. कचहरी में मुकदमा चला तो अदालत ने पैसे देकर जमीन लेने को कहा.. चाचा के पास इतने पैसे नहीं थे तो वो जमीन खरीद नहीं सकते थे इसलिए हमने चाचा को जो उनका हक़ बनता था उसके मुताबित पैसे देकरजमीन लेली.. अभी 3 महीने पहले ही उसका सौदा हुआ है.. 8 साल से बंद पड़ा है.. मैं धरमु को कह दूंगा वो सफाई करवा देगा कल वहा की और लाइट, हॉल और रूम्स वगैरह भी देख लेगा.. लक्मी पैराडाइस नाम है.. मेरी दादी के नाम रखा था पापा और चाचा ने..
धरमु कॉफी रख देता है और चला जाता है..
सूरज - चलो अच्छा है..पैसे क्या लेगा?
रमन कॉफी पीते हुए - तुझसे पैसे लूंगा क्या भाई.. बस एक बार मेरा मुंह में ले लेना..
सूरज - भोस्डिके मेरे पास भी लंड है.. भूल गया तो याद दिलाऊ?
रमन हसते हुए - मज़ाक़ कर रहा था भाई.. अब तुझसे भी पैसे लूंगा क्या.. वैसे भी खाली पड़ा है..
सूरज - बहनचोद.. कॉलेज में चाय नहीं पीलाई तूने और आज इतनी मेहरबानी?
रमन - समय समय की बात है बेटा.. तब मेरा बाप फूटी कोड़ी तक नहीं देता था.. आज मैं बाप का पूरा धंधा संभाल रहा हूँ.. रईस हो गया है तेरा भाई.. रोज़ गाड़ी बदलता हूँ..
सूरज हसते हुए - चलानी आती है या ड्राइवर रखा है उसके लिए..
रमन - तेरा भाई उड़ा सकता है गाडी अब.. वैसे एक गुडमॉर्निंग न्यूज़ देनी है तुझे..
सूरज - क्या?
रमन - तेरी मेहबूबा को देखा था मैंने दो हफ्ते पहले.. ट्रैफिक में था.. बात नहीं हो पाई..
सूरज - माँ चुदाए.. मुझे बात नहीं करनी उसकी.. चल निकलता हूँ..
रमन - क्या हो गया भाई.. नाम लेते ही जाने की बात कर दी.. इतना गुस्सा? छोड़ यार.. जो हुआ सो हुआ.. उसे अपना भविष्य बनाना था.. लाइफ में कुछ करना था.. 3 साल हो गए हो गए उस बात को..
सूरज खड़ा होते हुए - कल सफाई करवा देना याद से उस जगह की.. मैं तुझे कार्ड व्हाट्सप्प कर दूंगा.
रमन - अच्छा सुन.. भाई.
सूरज - बोल..
रमन - मैं अगर गुनगुन से मिला और उसने तेरे बारे में पूछा तो मैं क्या जवाब दू?
सूरज - कहना मैं मर गया..
रमन अपना फ़ोन देखकर - ये चुड़ैल पीछा नहीं छोड़ेगी..
सूरज - कौन है?
रमन - कोई नहीं यार.. बस ये मान ले एक बला है मेरे सर पर.. बाप मर गया पर अपनी रखैल छोड़ गया मेरा खून पिने के लिए..
सूरज हसते हुए - रंगीन तो था तेरा बाप.. चल निकलता हूँ..
सूरज को रमन के पास से वापस बिलाल की दूकान पर आते आते शाम के 7 बज चुके थे.. उसने देखा की दूकान में बड़ा सा नया आइना और एक आरामदायक कुर्सी लग चुकी थी..
बोल क्या कहता है? है ना मस्त?
अंकुश ने सूरज से कहा तो सूरज कुर्सी पर बैठते हुए कहा - परमानन्द... अच्छा सुन तेरे पास लैपटॉप है ना..
अंकुश - क्या करेगा?
सूरज - जगह फाइनल हो गई सगाई का कार्ड बना देता हूँ सबको व्हाट्सप्प कर दूंगा..
अंकुश - अरे उसमे क्या बड़ी बात है तू जगह और बाकी चीज़े लिख दे मैं खुद बनाके तुझे सेंड कर दूंगा.. वैसे जगह कोनसी तय की..
सूरज - ये स्कूल के पीछे वाला गार्डन.. जो बंद पड़ा है..
अंकुश - उस पर तो केस चल रहा था ना.. सुना है दोनों भाई है..
सूरज - फैसला हो गया.. कॉलेज का एक दोस्त है उसके बाप के हक़ में है सब.. कल परसो में सफाई और बाकी चीज़े करवा देगा.. एक पंखा भी ले आते तुम.. ये चलता कम शोर ज्यादा करता है..
बिलाल - कल वो भी आ जाएगा हनी.. जितना सोचा था उसे कम में ही काम हो गया..
सूरज - तो फिर पंखे की जगह कूलर ही ले लेना भाई.. अभी मार्च में ये हाल है मई जून में ना जाने क्या होगा?
अंकुश - निश्चिन्त रह भाई.. कल प्लास्टिक के परदे भी लग जाएंगे.. और कूलर भी आ जाएगा.. आखिर अपनी बैठक है ये.. कोई कमी थोड़ी रहने देंगे..
सूरज - अच्छा चलता हूँ.. कल मिलते है.. अक्कू याद से सेंड कर देना तू कार्ड..
अंकुश - अरे हनी.. कल शाम वो बंसी काका के साथ बैठना है याद है ना..
सूरज - हाँ याद है.. पर पहले अपने मुन्ना से मिलके आएंगे..
अंकुश - क्यों?
सूरज जाते हुए - भाई सगाई में हलवाई भी तो बुक करना है..
अंकुश हसते हुए - असली जीजा के घर फंक्शन है हलवाई का काम साला ही तो करेगा..
बिलाल - भाई जैसी हरकते है ना तुम्हारी.. कभी भी पिट सकते हो तुम मुन्ना से..
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सूरज और गरिमा व्हाट्सप्प पर बातें कर रहे थे जिनमे दोनों ही मशगूल थे आज के दिन का सारा हाल दोनों ने एकदूसरे को कह सुनाया था.. सूरज गरिमा से बात कर ही रहा था कि नीचे से सुमित्रा उसके नाम कि आवाजे लगाते हुए छत पर आ गई..
खाना नहीं खाना तुझे? कब से छत पर बैठा है..
आ रहा हूँ माँ.. आप खाना डाल दो ना..
और ये बू कैसी है? तू फिर से नशा तो नहीं करने लगा ना हनी? देख बड़ी मुश्किल से तू वापस सुधरा है इन सब चीज़ो से दूर रह..
मैं कोई नशा नहीं कर रहा माँ.. मालती आंटी के हस्बैंड छत पर आते थे अभी अभी सिगरेट पीके गए है नीचे.. उसी की बू आ रही होगी आपको.. अब लगती हुई छत है तो स्मेल आ रही होगी.. आप जाओ में आता हूँ नीचे..
सुमित्रा सूरज के गाल को अपने हाथ से सहलाती हुई अपनी प्यारी भरी आँखों से उसे एक नज़र देखकर जाते हुए कहती है - जल्दी आ.. खाना ठंडा हो जाएगा..
सुमित्रा के नीचे जाने के बाद सूरज व्हाट्सप्प पर गरिमा से खाना खाने की इज़ाज़त लेता है और नीचे आ जाता है..
सबने खाना खा लिया एक तू ही बचा है.. ले.. खा ले..
सूरज खाने कि प्लेट लेकर वही रसोई की स्लेब पर बैठकर खाते हुए - माँ.. पापा से कहना जगह देख ली है सगाई की..
सुमित्रा बर्तन धोते हुए - अच्छा.. कहाँ?
यही.. स्कूल के पीछे जो बंद बड़ी हुई जगह है वही.. कल सफाई हो जायेगी उसकी.. अच्छी जगह है.. बहुत बड़ी भी है.. और ये लो.. कार्ड भी बनवा दिया है.. भईया और पापा जिसे भी सगाई में बुलाना चाहते है उनको व्हाट्सप्प कर देगे..
सुमित्रा सूरज के फ़ोन में सगाई का कार्ड देखकर खुश होते हुए बोली - अरे.. क्या बात है मेरा हनी तो बहुत जिम्मेदार हो गया.. इसे तू मेरे फ़ोन में भेज में सबको भेज दूंगी..
भेज रहा हूँ.. कल हलवाई का भी फाइनल हो जाएगा.. और कुछ करना हो वो भी बता देना.. हो जाएगा..
सुमित्रा मुस्कुराते हुए - ठीक है.. अच्छा एक बात बता.. मालती आंटी के जो हस्बैंड है वो अपनी छत पर आके सिगरेट पीते है क्या?
सूरज हड़बड़ाते हुए - मतलब?
सुमित्रा मुस्कुराते हूर - नहीं वो बस ऐसे ही पूछा.. सिगरेट पीकर अपनी छत पर फेंक देते है ना.. कल सुबह मालती से बात करनी पड़ेगी..
सूरज - इतनी सी बात कर लिए क्या बात करनी है.. छोडो ना.. फिज़ूल क्यों मुंह लगना उनके..
सुमित्रा मुस्कुराते हुए - नहीं नहीं बात तो करनी पड़ेगी.. ये अच्छी बात थोड़ी है..
सूरज खाना खा कर प्लेट वश बेसिन में रखते हुए - अरे माँ छोडो ना... इतनी सी बात का क्यों बतंगड़ बना रही हो.. मुझे नींद आ रही है मैं सोने जा रहा हूँ..
सुमित्रा जाते हुए सूरज का हाथ पकड़ लेटी है और उसकी आँखों में देखते हुए मुस्कुरा कर कहती है - चुपचुप के सिगरेट पीता है ना तू?
सूरज - नहीं माँ.. मैंने बताया ना वो मालती आंटी के हस्बैंड थे..
सुमित्रा - मालती आंटी अपने हस्बैंड के साथ शिमला गई है घूमने.. मुझे उल्लू समझा है तूने? देख हनी.. तू कहीं फिर से वो सब मत करने लग जाना.. बड़ी मुश्किल से तू सही हुआ है.. कहीं फिर से शराब और उन सब नशे में डूब गया तो सबकुछ खराब हो जाएगा..
सूरज - मैंने वो सब कुछ छोड़ दिया है माँ.. बस कभी कभी छत पर सिगरेट पीता हूँ.. आपसे झूठ बोला उसके लिए सॉरी..
सुमित्रा - सच कह रहा है ना तू?
सूरज - आपकी कसम.. बस कभी कभी शराब भी हो जाती है.. पर कभी कभी..
सुमित्रा सूरज को अपने गले से लगा लेती है और कहती है - हनी.. मैं तेरी माँ हूँ.. बेटा मुझसे कुछ मत छिपाया कर.. तू जानता है मैं तेरी बातें किसी और से नहीं करती.. फिर भी तू छिपकर ये सब करता है.. वादा कर तू अब से मुझसे सब सच सच कहेगा..
सूरज - अच्छा वादा.. अब छोडो मुझे.. वरना आपके गले लगे लगे ही सो जाऊँगा..
सुमित्रा सूरज के दोनों गाल चूमते हुए - सुना है आज वो चिंकी ससुराल से वापस आई है.. उसे दूर रहना.. उस कलमुही की हमेशा तेरे ऊपर नियत ख़राब रहती है..
सूरज मुस्कुराते हुए - अब माँ इतना हैंडसम बेटा पैदा किया है आपने.. लड़किया आगे पीछे ना घूमे तो क्या फ़ायदा..
सुमित्रा सूरज को अपनी बाहों से आजाद करती हुई - चल बदमाश कहीं का.. सो जा जाकर..
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Nice updateUpdate 3
सूरज अपने रूम में आ जाता है अपने गद्दे पर उल्टा लेटकर अपना व्हाट्सप्प चेक करता है और सोचता है कि अब वो गरिमा से बात करे या नहीं.. इसी असमंजस में वो इसका इंतजार करता है कि गरिमा आगे कुछ लिखें तो जवाब दे और बातो का सिलसिला चले.. वही दूर कहीं गरिमा भी अपने बेड पर उल्टी लेटी हुई यही सोच रही कि पहले सूरज का मैसेज आये तो वो कुछ लिखें और वापस बातें शुरू हो..
सूरज और गरिमा के बीच अब तक घर गली शहर और देश के कई मुद्दों ओर लम्बी लम्बी और गहरी बातें हो चुकी थी दोनों को एक दूसरे से बात करना अच्छा लगने लगा था.. एक दूसरे को देवर जी और भाभी कहकर ही बात करना शुरू हो गया था.. आज कि रात दोनों ने एकदूसरे के पहले massage का इंतजार किया मगर दोनों ने ही कोई पहल नहीं की और परिणाम ये हुआ कि आज रात दोनों ही देर तक इंतजार करते हुए सो गए...
सूरज जब सुमित्रा के पास, रसोई से ऊपर अपने कमरे में चला गया तो सुमित्रा ने गहरी साँसे लेकर अपने आपको को संभाला जैसे वो बहुत देर से अपने आप पर काबू कर रही थी.. मगर वो किस चीज को काबू कर रही थी ये तो वही जानती थी..
सुमित्रा ने जल्दी से सूरज की प्लेट साफ करके रख दी और फ्रीज से एक खीरा निकालके छुपाकर अपने साथ कमरे में ले आई.. जयप्रकाश घोड़े बेचकर सो रहा था.. सुमित्रा ने एक नज़र उसे देखा और उसे देखकर मुंह मोड़ती हुई लाइट बंद करके बेड के दूसरी तरफ आ बैठी.. खीरा तकिये के पीछे छिपा दिया और अपना फ़ोन उठाकर इंटरनेट पर चुदाई की हिंदी कहानिया पढ़ने लगी..
अपने मन पर किसका जोर चलता है अगर मन को कुछ करने में सुख मिलता है और उस सुख से किसी को तकलीफ ना हो तो फिर उस सुख को भोगने में केसा पाप? सुमित्रा और जयप्रकाश के बीच सालों से प्रेम सम्बन्ध केवल बातों तक सिमित रह गया था.. जयप्रकाश ने अपने आपको को बुढ़ा मान ही लिया था और उसी तरह जीता था और सुमित्रा भी ऐसा ही दिखावा करती मगर उसके अंदर अब भी कोमार्य की अग्नि प्रजवल्लित हो रही थी..
उम्र के 45वे साल में थी सुमित्रा.. देखने में सीधी साधी घरेलु संस्कारी भारतीय नारी.. शरीर उम्र के हिसाब से काफी सही था सुमित्रा लम्बी ना थी.. पांच फ़ीट तीन इंच की उचाई.. उजला सफ़ेद रंग.. काली कजरी कारी कारी आंखे.. तीखे नयन नक्श.. अब भी सुमित्रा जवानी से भरी हुई औरत थी जिसका खिला हुआ जोबन सवान की बोझार को लजा सकता था.. मगर जयप्रकाश के करण उसे भी बूढ़े हो जाने और उसी तरह जीने का दिखावा करना पड़ता..
सुमित्रा ने कभी जयप्रकाश से कोई शिकायत तो नहीं की थी मगर मन ही मन वो जयप्रकाश से चिढ़ती थी.. बड़े लम्बे समय से सुमित्रा इंटरनेट पर अश्लील कहानियाँ पढ़कर तो अश्लील वीडियो देखकर अपने आपको को शांत रखा था और अब भी वैसा ही करती थी.. उम्र के इस पड़ाव पर उसे अपनी हवस मिटाने के लिए कोई नहीं मिला था और वो किसी से सम्बन्ध बनाकर सके इतनी ताकत और हिम्मत उसमे थी भी नहीं.. सुमित्रा ने अपनी ऊँगली का सहारा लेकर ही खुदको संभाला हुआ था और आज भी वैसा ही करने को लेट गई थी..
सुमित्रा ने साड़ी जांघ तक उठा ली और अपने एक हाथ से अपनी योनि को सहलाती हुई दूसरे हाथ से फ़ोन को पकडे कोई कहानी पढ़ रही थी.. सुमित्रा ने हरतरह की कहानी पढ़ी थी जिसमे माँ बेटा भी शामिल थी और सुमित्रा की रूचि भी ऐसी ही कहानीयों में ज्यादा थी.. उसे पहले पहल ये सब गलत लगा पर बाद में उसने अपने आपको को समझा लिया और उसे ख़याली दायरा देकर इसका सुख लेने लगी..
सुमित्रा आज भी वैसी ही एक कहानी पढ़ रही थी.. विनोद का व्यवहार तो सीधा था अपने काम से काम और सीधी बात.. छोटी उम्र से ही वो मैचोर हो गया था और सुमित्रा को कभी विनोद के साथ वैसा अहसास हुआ ही नहीं जैसा वो कहानिया पढ़ कर महसूस करती थी.. लेकिन सूरज के साथ ऐसा नहीं था.. सूरज बचपन से बेफिक्र लापरवाह और शरारती लड़का रहा था और सुमित्रा ने उसे बड़े लाड प्यार से पाला और संभाला था.. जब कॉलेज के आखिरी साल के इम्तिहानो के बाद सूरज को गुनगुन छोड़कर चली गई थी और सूरज उदास और दुखी रहने लगा था, उसने नशा करना शुरू कर दिया था तब सुमित्रा ने ही सूरज को संभाला था.. शायद वही से सुमित्रा को सूरज के प्रति आकर्षण पैदा हुआ था.. उसने नशे में डूबे सूरज को तब बीना कपड़ो के कई बार देखा था और अपने हाथ से उसके कपड़े भी बदले थे.. बाद में सूरज ने जब अपने आपको को संभाला और वो ठीक हुआ तब तब से ही सुमित्रा अजीब कश्मकश में रहने लगी थी और अपने मन के उड़ते पतंगे पकड़ने लगी थी..
सुमित्रा जब फ़ोन में कोई माँ बेटे वाली कहानी पढ़ती तो अपने आपको और सूरज को सोचती.. उसे इस पर कई बार पछतावा और अफ़सोस हुआ पर कामुकता के आगे हार गई.. उसने पहले भी सूरज को सोचकर वो किया था जो कोई लड़की किसी पंसदीदा मर्द को सोचकर रातों में करती है..
आज भी वैसा ही कुछ हो रहा था सुमित्रा एक अश्लील कहानी जो की माँ बेटे के इर्द गिर्द बुनी गई थी पढ़ रही थी और अपने आपको सूरज के साथ महसूस करते हुए अपनी योनि को अपने हाथ से सहला रही थी.. थोड़ी देर बाद कहानी ख़त्म हो गई और सुमित्रा लम्बी लम्बी गहरी साँसों के साथ बेड से उठ गई और फ़ोन बेड पर ही पटक कर एक नज़र वापस जयप्रकाश को देखते हुए तकिये के नीचे से खीरा लेकर कमरे से लगते हुए बाथरूम में जा घुसी और दरवाजा अंदर से बंद करके अपनी शाड़ी कमर तक उठाकर चड्डी जांघ तक सरकाते हुए खीरा योनि के मुख्य द्वार पर रगढ़ते हुए अंदर घुसा लिया और आँख बंद करके सूरज को याद करके वो खीरा अपनी योनि में अंदर बाहर करने लगी..
सुमित्रा का मन मचल रहा था दिल को नई सी ताज़गी और दिमाग को ऊर्जा मिल रही थी सुमित्रा पसीने पसीने हो चुकी थी और 5-6 इंच लम्बा खीरा लगभग पूरा योनि में लेकर वो अकड़ते हुए झड़ गई और ढीली पड़ गई..
सुमित्रा ने खीरा योनि से निकालकर एक तरफ रख दिया और अपने आपको को ठीक करके वापस बेड पर आकर लेट गई.. खीरे को सुमित्रा ने बिना पानी डाले किसी कपड़े से मामूली साफ कर दिया था और खीरे को बाथरूम से बाहर लाकर बेड के पास एक पट्टी पर रख दिया था.. उसने सोचा कल वो इस खीरे को कचरे में फेंक देगी..
सुमित्रा का मन हल्का हो चूका था और वो सोने के लिए लेटगई थी.. उसने मन में किसी तरह का कोई गिल्ट या अफ़सोस नहीं था.. उसने अपने गिल्ट और अफ़सोस को पहले ही मार दिया था और पहले भी वो ऐसा कर चुकी थी..
सुमित्रा ने सूरज के प्रति अपने उस आकर्षण को सपनो का दायरा या ख्याली दायरा दे दिया था.. सुमित्रा अकेले में सूरज को सोचकर सब करती जो वो करना चाहती मगर सामने से हमेशा एक अच्छी माँ बनकर ही उसे बात करती और व्यवहार करती.. शायद ये सुमित्रा का काला सच भी था जो अँधेरे में छिपा हुआ था..
सुबह सुमित्रा अपने घरेलु कामो में लग गई थी और उस खीरे को उठाना भूल गई..
सुबह सुमित्रा रसोई में थी की सूरज सुमित्रा और जयप्रकाश के कमरे में आ गया और जयप्रकाश से सगाई की जगह और बाकी बातें करके उस खीरे को बातों ही बातों में उठा लिया और खाते हुए कमरे से बाहर रसोई में आ गया..
सूरज - चाय कब तक मिलेगी?
सुमित्रा बीना सूरज को देखे - क्या बात है आज सुबह सुबह नींद खुल गई तेरी..
सूरज - हाँ कल टाइम पर सो गया था नींद अच्छी आई..
सुमित्रा गैस ऑन करते हुए - पांच मिनट रुक में बनाती हूँ चाय.. ये कहते हुए सुमित्रा ने सूरज की तरफ देखा और सूरज को खीरा खाते हुए देखकर उसे कल रात वाले खीरे की याद आ गई और सुमित्रा ने झट से पूछा.. ये खीरा कहा से लिया?
सूरज लगभग सारा खीरा खा चूका था और आखिरी बाईट खा कर खीरे का आखिरी छोर का बचा हुआ हिस्सा डस्टबिन में फेंकते हुए कहा - आपके बेड के पास पट्टी पर से.. आप फ्रीज से दूसरा लेकर खा लेना.. इतना कहकर सूरज रसोई से हॉल की तरफ चला गया मगर सुमित्रा सूरज को ही देखती रही और फिर अपने बदन में होती कपकपी महसूस करने लगी..
गैस पर उसने चाय चढ़ा दी थी मगर अब चाय के साथ सुमित्रा खुद भी उबलने लगी थी.. उसे अहसास भी नहीं हुआ की अचानक से उसकी योनि से कामरस बहने लगा था..
सुमित्रा ने अपने आपको को सँभालते हुए समझाया और चाय छन्नी करके सूरज को देकर सीधा होने रूम में आ गई और बाथरूम में जाकर अपनेआप को कोसने लगी की क्यों उसमे वो खीरा सुबह नहीं उठाया और वो भूल गई.. मगर उसके साथ जैसे सुमित्रा ने सूरज को वो खीरा खाते हुए देखा था उससे उसे वापस हवस चढ़ने लगी थी और सुमित्रा ने एक बार फिर अपनी ऊँगली का सहारा लेते हुए अपने आपको को संभाला और शांत करके बाथरूम से बाहर आ गई फिर से सामान्य बर्ताव करने लगी..
आज इतवार था दिन का समय हो गया था.. जयप्रकाश की छूटी थी और अपने बाप की स्कूटी लेकर सूरज अंकुश के घर के बाहर आ गया था
सूरज अंकुश को फ़ोन किया और अंकुश का फ़ोन उसके बेड में एक तरफ बजने लगा.. जिसपर अंकुश ने कोई ध्यान नहीं दिया..
बेड पर दो लोग थे नीचे एक 27 साल की औरत टांग फैलाये लेटी हुई थी और उसके ऊपर अंकुश उस औरत की चुत में लंड घुसाये उसके ऊपर लेटा हुआ था.. दोनों के बीच चुम्बन चल रहा था जिसे युवती ने तोड़ते हुए कहा - फ़ोन उठा ना अक्कू.. देख किसका है..
नीतू (27)
अंकुश ने फ़ोन देखकर कहा - अरे हनी का है नीतू.. आज कहीं जाना है हमें..
नीतू - बात तो कर अक्कू..
अंकुश फ़ोन उठाते हुए - हेलो हनी..
सूरज - कब से फ़ोन कर रहा हूँ क्या कर रहा था यार..
अंकुश नीतू को देखकर - कुछ नहीं भाई..फ़ोन रूम में था और मैं नीतू के साथ लूडो खेल रहा था.. रुक आता हूँ नीचे..
सूरज - ठीक है.. (फ़ोन काटते हुए)
अंकुश नीतू से - मैं जा रहा हूँ.. तू दरवाजा बंद कर लेना अंदर से..
नीतू अंकुश के लंड से कंडोम निकालकर गाँठ लगाते हुए - कंडोम ख़त्म हो गए है वापस आते हुए लेते आना वरना फिर शिकायत करेगा..
अंकुश नीतू की गर्दन पकड़ कर एक हल्का चुम्बन करते हुए - वो सब छोड़.. कल कोर्ट की तारीख है वकील से बात हुई है बोल रही थी ल बयान होगा.. तू थोड़ा प्रैक्टिस कर लेना.. थोड़ा बहुत रोना धोना भी पड़ सकता है.. शाम से पहले मम्मी भी आ जायेगी..
नीतू - मैं सब कर लुंगी तू पहले होंठो को साफ कर ले.. लिपस्टिक लगी हुई है.. किसी को पता चल गया की हम दोनों भाई बहन इस छत के नीचे ये सब करते है तो कोहराम मच जाएगा..
अंकुश जाते हुए - 2 साल से पता चला किसीको? तू फालतू टेंशन मत ले.. दरवाजा बंद कर ले अंदर से..
नीतू मुस्कुराते हुए - कंडोम लाना मत भूलना वरना रात को सलवार का नाड़ा नहीं खोलने दूंगी..
अंकुश - ठीक है..
अंकुश सूरज के पीछे स्कूटी पर बैठते हुए - चल भाई.. ले चल तेरे साले की दूकान पर..
सूरज स्कूटी चलाते हुए - भोस्डिके सो रहा था क्या.. कितना टाइम लगाता है..
अंकुश - छोड़ ना चल.. पहले गार्डन चल सफाई हो भी रही है या नहीं.. देख लेते है..
सूरज - ठीक है..
सूरज और अंकुश गार्डन में आते है देखते है की वहा रमन खड़ा है और कुछ लोग गार्डन की साफ सफाई और बाकी काम मे लगे हुए है..
क्या बात है.. तू तो दिल पे ले गया मेरी बात.. खुद आया है..
हाँ भाई मुझे भी देखना है एक बार क्या क्या और हो सकता है.. केसा है अंकुश?
बढ़िया भाई.. तुम्हारे क्या हाल है?
एकदम मस्त.. रमन ने अंकुश से कहा..
अंकुश - जगह तो बहुत बड़ी है सगाई क्या शादी भी हो सकती है यहां.. ये रूम्स में लाइट वाइट है या नहीं?
रमन - अभी नहीं.. इलेक्ट्रीशियन देख रहा है कल तक वो भी हो जाएगा..
अंकुश - सही है..
सूरज - ठीक है रमन.. मैं हलवाई से मिलने जा रहा हूँ..
अंकुश - हलवाई कहा साला है हनी का..
रमन हसते हुए - वो मुन्ना? बड़ा बेशर्म है साले.. उसकी बहन को छत पर पेलते हुए पकड़ा गया और अब भी मुंह उठा के उसके भाई के सामने जा रहा है..
सूरज - मैं कहा पेलता था.. वही पेलती थी मुझे.. जबरदस्ती कर रही थी उस दिन भी.. अगर मुझे जाने दिया होता तो कोई बात नहीं थी..
रमन - वैसे जान छिड़कती है तेरे ऊपर.. लोगों को चुना लगा लगा के तेरी ऐश करवाई थी उसने..
अंकुश - सही कह रहा है भाई..
सूरज - छोडो यार.. क्या फालतू की बात करने लगे.. चल अक्कू मिलते है मुन्ना मिठाई वाले से.. ठीक है रमन.. कल मिलता हूँ..
रमन हसते हुए - भाई.. कहीं पिट विट ना जाना..
अंकुश भी हसते हुए - साला कभी जीजा को पिट सकता है क्या भाई?
सूरज स्कूटी चलाते हुए अंकुश से - चूतिये गांड टिका के बैठ जा..
सूरज अंकुश के साथ मुन्ना की दूकान पर आ जाता है..
अंकुश - भाई दूकान कैसे बंद कर रखी है तेरे साले ने?
सूरज - पता नहीं.. लगता है कल आना पड़ेगा..
अंकुश - कल क्यों? चल घर चल मुन्ना के..
सूरज - नहीं अक्कू.. चिंकी आई हुई है घर.. देख लेगी तो फेविकोल की तरह चिपक जायेगी..
अंकुश - क्यों टेंशन ले रहा है भाई.. शादी हो गई उसकी.. अब शायद बदल गई हो.. चल ना.. कल वापस कोई आएगा?
सूरज - ठीक है.. चल..
अंकुश और सूरज एक घर के दरवाजे पर बेल बजाते हुए खड़े हो गए और अंदर से एक औरत आकर दरवाजा खोलकर दोनों को देखकर बोली..
नेहा - ओ हो.. क्या बात है? आज घर तक चले आये..
अंकुश - क्यों भाभी.. हम आपसे मिलने नहीं आ सकते..
नेहा - क्यों नहीं आ सकते.. और अच्छे मोके पर आये हो.. अंदर आओ..
नेहा दोनों को दरवाजे से अंदर आने को कहती है और आँगन में पड़ी कुर्सीयों पर बैठा देती है..
सूरज - अच्छा मौका है मतलब?
नेहा सामने कुर्सी पर बैठती हुई - अरे वो मुन्ना मम्मी जी को लेकर मामा जी के यहां गए है तो तुम्हे कोई ताने मारने वाला है नहीं यहां.. दूकान भी इसलिए बंद है.. बताओ क्या बना कर लाउ? चाय या कॉफ़ी?
अंकुश - इतनी गर्मी कहा चाय कॉफ़ी भाभी.. रहने दो ये सब.. एक काम है मुन्ना भईया से.. वो कब तक आएंगे?
नेहा - वो तो कल आएंगे.. मुझे बताओ क्या काम था मुन्ना से तुम्हे?
सूरज - भाभी वो विनोद भईया की सगाई है 5 दिन बाद.. खाने का आर्डर देना था.. अब मुन्ना भईया के होते हुए किसी और कैसे दे सकते है..
नेहा - सही कहा देवर जी.. हमारे अलावा तुम किसी और के पास जाते तो मैं कभी ना बात करती आपसे.. एक मिनट बैठो में अंदर से कॉपी पेन ले आती हूँ..
अंकुश - भाई भाभी चाहती तो है हम दोनों को.. सही लाइन देती है..
सूरज - लाइन नहीं देती भोस्डिके.. इतने आर्डर दिलवाते है तो थोड़ा मीठा बनकर बात करती है और कुछ नहीं है..
अंकुश - अच्छा? मैं फालतू ही खुश हो रहा था..
नेहा दो गिलास निम्बू पानी लाकर सामने रखते हुए - लो देवर पीओ.. और अब बताओ क्या क्या बनवाना है..
सूरज निम्बू पानी पीते हुए - भाभी सगाई का प्रोग्राम है 250-300 लोग के हिसाब से आप ही देख लो.. क्या सही रहेगा..
नेहा - ठीक है.. आज कल ये सब चलता है सगाई के प्रोग्राम में.. यही रख देती हूँ.. और तुम बताओ..
अंकुश - दिखाओ भाभी मैं देखता हूँ..
भाभी... भाभी.. कौन आना है.. ऊपर से किसी की आवाज आती है तो नेहा सूरज को देखकर मुस्कुराते हुए कहती है - नीचे आ कर देख ले..
सूरज कुर्सी से खड़ा होता हुआ - क्या भाभी आप भी.. आपको तो सब जानती हो फिर भी.. कहीं छीपाने की जगह है.. सूरज इधर उधर देखते हुए एक तरफ छुपके खड़ा हो जाता है..
चिंकी नीचे आते हुए - अंकुश.. तू यहां क्या कर रहा है?
नेहा - सगाई के लिए आर्डर देने आया था..
चिंकी - सगाई कर रहा है तू?
अंकुश - मेरी नहीं.. हनी के भाई विनोद भईया की सगाई का आर्डर है.. मुझे तो हनी लेकर आया था..
चिंकी चेहरे पर चमक लाते हुए - कहा है वो कुत्ता?
अंकुश इशारे से बताकर - पता नहीं तेरे आने से पहले तो इधर ही था..
चिंकी सूरज से - बाहर आजा चुपचाप.. वरना मार खायेगा..
नेहा हसते हुए - आराम से चिंकी.. बेचारा पहले ही तेरे नाम से घबरा जाता है..
चिंकी सूरज का हाथ पकड़ कर अपने साथ ले जाते हुए - भाभी अंकुश से कर लो जो बात करनी है.. मुझे हनी से अकेले में कुछ बात करनी है..
नेहा मुस्कुराते हुए - जल्दी करना.. अच्छा अंकुश.. और कुछ कम ज्यादा करना है तो बता इसमें..
अंकुश - अरे भाभी सब परफेक्ट किया है आपने.. सब ठीक है.. मैं निकलता हूँ
नेहा - रुक मैं सामान की लिस्ट बनाके दे देती हूँ.. तू लेते जाना..
नीचे अंकुश नेहा से सामान की लिस्ट लेकर चला गया था उसे पता था चिंकी सूरज के साथ क्या करेगी और उसने कितना समय लगेगा.. अंकुश बिलाल की दूकान पर आ गया था आज दूकान पर कस्टमर बैठे थे और ये देखकर अंकुश खुश होता हुआ बिलाल से दो बात करके एक तरफ बैठकर अपनी बहन नीतू से फ़ोन पर लग गया था वही मुन्ना हलवाई के घर नीचे नेहा अपने दोनों बच्चों के साथ एक रूम में टीवी देख रही थी तो ऊपर चात वाले कमरे में चिंकी ने सूरज की हालत ख़राब कर रखी थी..
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agla update next sunday tak aayega
Update 3
सूरज अपने रूम में आ जाता है अपने गद्दे पर उल्टा लेटकर अपना व्हाट्सप्प चेक करता है और सोचता है कि अब वो गरिमा से बात करे या नहीं.. इसी असमंजस में वो इसका इंतजार करता है कि गरिमा आगे कुछ लिखें तो जवाब दे और बातो का सिलसिला चले.. वही दूर कहीं गरिमा भी अपने बेड पर उल्टी लेटी हुई यही सोच रही कि पहले सूरज का मैसेज आये तो वो कुछ लिखें और वापस बातें शुरू हो..
सूरज और गरिमा के बीच अब तक घर गली शहर और देश के कई मुद्दों ओर लम्बी लम्बी और गहरी बातें हो चुकी थी दोनों को एक दूसरे से बात करना अच्छा लगने लगा था.. एक दूसरे को देवर जी और भाभी कहकर ही बात करना शुरू हो गया था.. आज कि रात दोनों ने एकदूसरे के पहले massage का इंतजार किया मगर दोनों ने ही कोई पहल नहीं की और परिणाम ये हुआ कि आज रात दोनों ही देर तक इंतजार करते हुए सो गए...
सूरज जब सुमित्रा के पास, रसोई से ऊपर अपने कमरे में चला गया तो सुमित्रा ने गहरी साँसे लेकर अपने आपको को संभाला जैसे वो बहुत देर से अपने आप पर काबू कर रही थी.. मगर वो किस चीज को काबू कर रही थी ये तो वही जानती थी..
सुमित्रा ने जल्दी से सूरज की प्लेट साफ करके रख दी और फ्रीज से एक खीरा निकालके छुपाकर अपने साथ कमरे में ले आई.. जयप्रकाश घोड़े बेचकर सो रहा था.. सुमित्रा ने एक नज़र उसे देखा और उसे देखकर मुंह मोड़ती हुई लाइट बंद करके बेड के दूसरी तरफ आ बैठी.. खीरा तकिये के पीछे छिपा दिया और अपना फ़ोन उठाकर इंटरनेट पर चुदाई की हिंदी कहानिया पढ़ने लगी..
अपने मन पर किसका जोर चलता है अगर मन को कुछ करने में सुख मिलता है और उस सुख से किसी को तकलीफ ना हो तो फिर उस सुख को भोगने में केसा पाप? सुमित्रा और जयप्रकाश के बीच सालों से प्रेम सम्बन्ध केवल बातों तक सिमित रह गया था.. जयप्रकाश ने अपने आपको को बुढ़ा मान ही लिया था और उसी तरह जीता था और सुमित्रा भी ऐसा ही दिखावा करती मगर उसके अंदर अब भी कोमार्य की अग्नि प्रजवल्लित हो रही थी..
उम्र के 45वे साल में थी सुमित्रा.. देखने में सीधी साधी घरेलु संस्कारी भारतीय नारी.. शरीर उम्र के हिसाब से काफी सही था सुमित्रा लम्बी ना थी.. पांच फ़ीट तीन इंच की उचाई.. उजला सफ़ेद रंग.. काली कजरी कारी कारी आंखे.. तीखे नयन नक्श.. अब भी सुमित्रा जवानी से भरी हुई औरत थी जिसका खिला हुआ जोबन सवान की बोझार को लजा सकता था.. मगर जयप्रकाश के करण उसे भी बूढ़े हो जाने और उसी तरह जीने का दिखावा करना पड़ता..
सुमित्रा ने कभी जयप्रकाश से कोई शिकायत तो नहीं की थी मगर मन ही मन वो जयप्रकाश से चिढ़ती थी.. बड़े लम्बे समय से सुमित्रा इंटरनेट पर अश्लील कहानियाँ पढ़कर तो अश्लील वीडियो देखकर अपने आपको को शांत रखा था और अब भी वैसा ही करती थी.. उम्र के इस पड़ाव पर उसे अपनी हवस मिटाने के लिए कोई नहीं मिला था और वो किसी से सम्बन्ध बनाकर सके इतनी ताकत और हिम्मत उसमे थी भी नहीं.. सुमित्रा ने अपनी ऊँगली का सहारा लेकर ही खुदको संभाला हुआ था और आज भी वैसा ही करने को लेट गई थी..
सुमित्रा ने साड़ी जांघ तक उठा ली और अपने एक हाथ से अपनी योनि को सहलाती हुई दूसरे हाथ से फ़ोन को पकडे कोई कहानी पढ़ रही थी.. सुमित्रा ने हरतरह की कहानी पढ़ी थी जिसमे माँ बेटा भी शामिल थी और सुमित्रा की रूचि भी ऐसी ही कहानीयों में ज्यादा थी.. उसे पहले पहल ये सब गलत लगा पर बाद में उसने अपने आपको को समझा लिया और उसे ख़याली दायरा देकर इसका सुख लेने लगी..
सुमित्रा आज भी वैसी ही एक कहानी पढ़ रही थी.. विनोद का व्यवहार तो सीधा था अपने काम से काम और सीधी बात.. छोटी उम्र से ही वो मैचोर हो गया था और सुमित्रा को कभी विनोद के साथ वैसा अहसास हुआ ही नहीं जैसा वो कहानिया पढ़ कर महसूस करती थी.. लेकिन सूरज के साथ ऐसा नहीं था.. सूरज बचपन से बेफिक्र लापरवाह और शरारती लड़का रहा था और सुमित्रा ने उसे बड़े लाड प्यार से पाला और संभाला था.. जब कॉलेज के आखिरी साल के इम्तिहानो के बाद सूरज को गुनगुन छोड़कर चली गई थी और सूरज उदास और दुखी रहने लगा था, उसने नशा करना शुरू कर दिया था तब सुमित्रा ने ही सूरज को संभाला था.. शायद वही से सुमित्रा को सूरज के प्रति आकर्षण पैदा हुआ था.. उसने नशे में डूबे सूरज को तब बीना कपड़ो के कई बार देखा था और अपने हाथ से उसके कपड़े भी बदले थे.. बाद में सूरज ने जब अपने आपको को संभाला और वो ठीक हुआ तब तब से ही सुमित्रा अजीब कश्मकश में रहने लगी थी और अपने मन के उड़ते पतंगे पकड़ने लगी थी..
सुमित्रा जब फ़ोन में कोई माँ बेटे वाली कहानी पढ़ती तो अपने आपको और सूरज को सोचती.. उसे इस पर कई बार पछतावा और अफ़सोस हुआ पर कामुकता के आगे हार गई.. उसने पहले भी सूरज को सोचकर वो किया था जो कोई लड़की किसी पंसदीदा मर्द को सोचकर रातों में करती है..
आज भी वैसा ही कुछ हो रहा था सुमित्रा एक अश्लील कहानी जो की माँ बेटे के इर्द गिर्द बुनी गई थी पढ़ रही थी और अपने आपको सूरज के साथ महसूस करते हुए अपनी योनि को अपने हाथ से सहला रही थी.. थोड़ी देर बाद कहानी ख़त्म हो गई और सुमित्रा लम्बी लम्बी गहरी साँसों के साथ बेड से उठ गई और फ़ोन बेड पर ही पटक कर एक नज़र वापस जयप्रकाश को देखते हुए तकिये के नीचे से खीरा लेकर कमरे से लगते हुए बाथरूम में जा घुसी और दरवाजा अंदर से बंद करके अपनी शाड़ी कमर तक उठाकर चड्डी जांघ तक सरकाते हुए खीरा योनि के मुख्य द्वार पर रगढ़ते हुए अंदर घुसा लिया और आँख बंद करके सूरज को याद करके वो खीरा अपनी योनि में अंदर बाहर करने लगी..
सुमित्रा का मन मचल रहा था दिल को नई सी ताज़गी और दिमाग को ऊर्जा मिल रही थी सुमित्रा पसीने पसीने हो चुकी थी और 5-6 इंच लम्बा खीरा लगभग पूरा योनि में लेकर वो अकड़ते हुए झड़ गई और ढीली पड़ गई..
सुमित्रा ने खीरा योनि से निकालकर एक तरफ रख दिया और अपने आपको को ठीक करके वापस बेड पर आकर लेट गई.. खीरे को सुमित्रा ने बिना पानी डाले किसी कपड़े से मामूली साफ कर दिया था और खीरे को बाथरूम से बाहर लाकर बेड के पास एक पट्टी पर रख दिया था.. उसने सोचा कल वो इस खीरे को कचरे में फेंक देगी..
सुमित्रा का मन हल्का हो चूका था और वो सोने के लिए लेटगई थी.. उसने मन में किसी तरह का कोई गिल्ट या अफ़सोस नहीं था.. उसने अपने गिल्ट और अफ़सोस को पहले ही मार दिया था और पहले भी वो ऐसा कर चुकी थी..
सुमित्रा ने सूरज के प्रति अपने उस आकर्षण को सपनो का दायरा या ख्याली दायरा दे दिया था.. सुमित्रा अकेले में सूरज को सोचकर सब करती जो वो करना चाहती मगर सामने से हमेशा एक अच्छी माँ बनकर ही उसे बात करती और व्यवहार करती.. शायद ये सुमित्रा का काला सच भी था जो अँधेरे में छिपा हुआ था..
सुबह सुमित्रा अपने घरेलु कामो में लग गई थी और उस खीरे को उठाना भूल गई..
सुबह सुमित्रा रसोई में थी की सूरज सुमित्रा और जयप्रकाश के कमरे में आ गया और जयप्रकाश से सगाई की जगह और बाकी बातें करके उस खीरे को बातों ही बातों में उठा लिया और खाते हुए कमरे से बाहर रसोई में आ गया..
सूरज - चाय कब तक मिलेगी?
सुमित्रा बीना सूरज को देखे - क्या बात है आज सुबह सुबह नींद खुल गई तेरी..
सूरज - हाँ कल टाइम पर सो गया था नींद अच्छी आई..
सुमित्रा गैस ऑन करते हुए - पांच मिनट रुक में बनाती हूँ चाय.. ये कहते हुए सुमित्रा ने सूरज की तरफ देखा और सूरज को खीरा खाते हुए देखकर उसे कल रात वाले खीरे की याद आ गई और सुमित्रा ने झट से पूछा.. ये खीरा कहा से लिया?
सूरज लगभग सारा खीरा खा चूका था और आखिरी बाईट खा कर खीरे का आखिरी छोर का बचा हुआ हिस्सा डस्टबिन में फेंकते हुए कहा - आपके बेड के पास पट्टी पर से.. आप फ्रीज से दूसरा लेकर खा लेना.. इतना कहकर सूरज रसोई से हॉल की तरफ चला गया मगर सुमित्रा सूरज को ही देखती रही और फिर अपने बदन में होती कपकपी महसूस करने लगी..
गैस पर उसने चाय चढ़ा दी थी मगर अब चाय के साथ सुमित्रा खुद भी उबलने लगी थी.. उसे अहसास भी नहीं हुआ की अचानक से उसकी योनि से कामरस बहने लगा था..
सुमित्रा ने अपने आपको को सँभालते हुए समझाया और चाय छन्नी करके सूरज को देकर सीधा होने रूम में आ गई और बाथरूम में जाकर अपनेआप को कोसने लगी की क्यों उसमे वो खीरा सुबह नहीं उठाया और वो भूल गई.. मगर उसके साथ जैसे सुमित्रा ने सूरज को वो खीरा खाते हुए देखा था उससे उसे वापस हवस चढ़ने लगी थी और सुमित्रा ने एक बार फिर अपनी ऊँगली का सहारा लेते हुए अपने आपको को संभाला और शांत करके बाथरूम से बाहर आ गई फिर से सामान्य बर्ताव करने लगी..
आज इतवार था दिन का समय हो गया था.. जयप्रकाश की छूटी थी और अपने बाप की स्कूटी लेकर सूरज अंकुश के घर के बाहर आ गया था
सूरज अंकुश को फ़ोन किया और अंकुश का फ़ोन उसके बेड में एक तरफ बजने लगा.. जिसपर अंकुश ने कोई ध्यान नहीं दिया..
बेड पर दो लोग थे नीचे एक 27 साल की औरत टांग फैलाये लेटी हुई थी और उसके ऊपर अंकुश उस औरत की चुत में लंड घुसाये उसके ऊपर लेटा हुआ था.. दोनों के बीच चुम्बन चल रहा था जिसे युवती ने तोड़ते हुए कहा - फ़ोन उठा ना अक्कू.. देख किसका है..
नीतू (27)
अंकुश ने फ़ोन देखकर कहा - अरे हनी का है नीतू.. आज कहीं जाना है हमें..
नीतू - बात तो कर अक्कू..
अंकुश फ़ोन उठाते हुए - हेलो हनी..
सूरज - कब से फ़ोन कर रहा हूँ क्या कर रहा था यार..
अंकुश नीतू को देखकर - कुछ नहीं भाई..फ़ोन रूम में था और मैं नीतू के साथ लूडो खेल रहा था.. रुक आता हूँ नीचे..
सूरज - ठीक है.. (फ़ोन काटते हुए)
अंकुश नीतू से - मैं जा रहा हूँ.. तू दरवाजा बंद कर लेना अंदर से..
नीतू अंकुश के लंड से कंडोम निकालकर गाँठ लगाते हुए - कंडोम ख़त्म हो गए है वापस आते हुए लेते आना वरना फिर शिकायत करेगा..
अंकुश नीतू की गर्दन पकड़ कर एक हल्का चुम्बन करते हुए - वो सब छोड़.. कल कोर्ट की तारीख है वकील से बात हुई है बोल रही थी ल बयान होगा.. तू थोड़ा प्रैक्टिस कर लेना.. थोड़ा बहुत रोना धोना भी पड़ सकता है.. शाम से पहले मम्मी भी आ जायेगी..
नीतू - मैं सब कर लुंगी तू पहले होंठो को साफ कर ले.. लिपस्टिक लगी हुई है.. किसी को पता चल गया की हम दोनों भाई बहन इस छत के नीचे ये सब करते है तो कोहराम मच जाएगा..
अंकुश जाते हुए - 2 साल से पता चला किसीको? तू फालतू टेंशन मत ले.. दरवाजा बंद कर ले अंदर से..
नीतू मुस्कुराते हुए - कंडोम लाना मत भूलना वरना रात को सलवार का नाड़ा नहीं खोलने दूंगी..
अंकुश - ठीक है..
अंकुश सूरज के पीछे स्कूटी पर बैठते हुए - चल भाई.. ले चल तेरे साले की दूकान पर..
सूरज स्कूटी चलाते हुए - भोस्डिके सो रहा था क्या.. कितना टाइम लगाता है..
अंकुश - छोड़ ना चल.. पहले गार्डन चल सफाई हो भी रही है या नहीं.. देख लेते है..
सूरज - ठीक है..
सूरज और अंकुश गार्डन में आते है देखते है की वहा रमन खड़ा है और कुछ लोग गार्डन की साफ सफाई और बाकी काम मे लगे हुए है..
क्या बात है.. तू तो दिल पे ले गया मेरी बात.. खुद आया है..
हाँ भाई मुझे भी देखना है एक बार क्या क्या और हो सकता है.. केसा है अंकुश?
बढ़िया भाई.. तुम्हारे क्या हाल है?
एकदम मस्त.. रमन ने अंकुश से कहा..
अंकुश - जगह तो बहुत बड़ी है सगाई क्या शादी भी हो सकती है यहां.. ये रूम्स में लाइट वाइट है या नहीं?
रमन - अभी नहीं.. इलेक्ट्रीशियन देख रहा है कल तक वो भी हो जाएगा..
अंकुश - सही है..
सूरज - ठीक है रमन.. मैं हलवाई से मिलने जा रहा हूँ..
अंकुश - हलवाई कहा साला है हनी का..
रमन हसते हुए - वो मुन्ना? बड़ा बेशर्म है साले.. उसकी बहन को छत पर पेलते हुए पकड़ा गया और अब भी मुंह उठा के उसके भाई के सामने जा रहा है..
सूरज - मैं कहा पेलता था.. वही पेलती थी मुझे.. जबरदस्ती कर रही थी उस दिन भी.. अगर मुझे जाने दिया होता तो कोई बात नहीं थी..
रमन - वैसे जान छिड़कती है तेरे ऊपर.. लोगों को चुना लगा लगा के तेरी ऐश करवाई थी उसने..
अंकुश - सही कह रहा है भाई..
सूरज - छोडो यार.. क्या फालतू की बात करने लगे.. चल अक्कू मिलते है मुन्ना मिठाई वाले से.. ठीक है रमन.. कल मिलता हूँ..
रमन हसते हुए - भाई.. कहीं पिट विट ना जाना..
अंकुश भी हसते हुए - साला कभी जीजा को पिट सकता है क्या भाई?
सूरज स्कूटी चलाते हुए अंकुश से - चूतिये गांड टिका के बैठ जा..
सूरज अंकुश के साथ मुन्ना की दूकान पर आ जाता है..
अंकुश - भाई दूकान कैसे बंद कर रखी है तेरे साले ने?
सूरज - पता नहीं.. लगता है कल आना पड़ेगा..
अंकुश - कल क्यों? चल घर चल मुन्ना के..
सूरज - नहीं अक्कू.. चिंकी आई हुई है घर.. देख लेगी तो फेविकोल की तरह चिपक जायेगी..
अंकुश - क्यों टेंशन ले रहा है भाई.. शादी हो गई उसकी.. अब शायद बदल गई हो.. चल ना.. कल वापस कोई आएगा?
सूरज - ठीक है.. चल..
अंकुश और सूरज एक घर के दरवाजे पर बेल बजाते हुए खड़े हो गए और अंदर से एक औरत आकर दरवाजा खोलकर दोनों को देखकर बोली..
नेहा - ओ हो.. क्या बात है? आज घर तक चले आये..
अंकुश - क्यों भाभी.. हम आपसे मिलने नहीं आ सकते..
नेहा - क्यों नहीं आ सकते.. और अच्छे मोके पर आये हो.. अंदर आओ..
नेहा दोनों को दरवाजे से अंदर आने को कहती है और आँगन में पड़ी कुर्सीयों पर बैठा देती है..
सूरज - अच्छा मौका है मतलब?
नेहा सामने कुर्सी पर बैठती हुई - अरे वो मुन्ना मम्मी जी को लेकर मामा जी के यहां गए है तो तुम्हे कोई ताने मारने वाला है नहीं यहां.. दूकान भी इसलिए बंद है.. बताओ क्या बना कर लाउ? चाय या कॉफ़ी?
अंकुश - इतनी गर्मी कहा चाय कॉफ़ी भाभी.. रहने दो ये सब.. एक काम है मुन्ना भईया से.. वो कब तक आएंगे?
नेहा - वो तो कल आएंगे.. मुझे बताओ क्या काम था मुन्ना से तुम्हे?
सूरज - भाभी वो विनोद भईया की सगाई है 5 दिन बाद.. खाने का आर्डर देना था.. अब मुन्ना भईया के होते हुए किसी और कैसे दे सकते है..
नेहा - सही कहा देवर जी.. हमारे अलावा तुम किसी और के पास जाते तो मैं कभी ना बात करती आपसे.. एक मिनट बैठो में अंदर से कॉपी पेन ले आती हूँ..
अंकुश - भाई भाभी चाहती तो है हम दोनों को.. सही लाइन देती है..
सूरज - लाइन नहीं देती भोस्डिके.. इतने आर्डर दिलवाते है तो थोड़ा मीठा बनकर बात करती है और कुछ नहीं है..
अंकुश - अच्छा? मैं फालतू ही खुश हो रहा था..
नेहा दो गिलास निम्बू पानी लाकर सामने रखते हुए - लो देवर पीओ.. और अब बताओ क्या क्या बनवाना है..
सूरज निम्बू पानी पीते हुए - भाभी सगाई का प्रोग्राम है 250-300 लोग के हिसाब से आप ही देख लो.. क्या सही रहेगा..
नेहा - ठीक है.. आज कल ये सब चलता है सगाई के प्रोग्राम में.. यही रख देती हूँ.. और तुम बताओ..
अंकुश - दिखाओ भाभी मैं देखता हूँ..
भाभी... भाभी.. कौन आना है.. ऊपर से किसी की आवाज आती है तो नेहा सूरज को देखकर मुस्कुराते हुए कहती है - नीचे आ कर देख ले..
सूरज कुर्सी से खड़ा होता हुआ - क्या भाभी आप भी.. आपको तो सब जानती हो फिर भी.. कहीं छीपाने की जगह है.. सूरज इधर उधर देखते हुए एक तरफ छुपके खड़ा हो जाता है..
चिंकी नीचे आते हुए - अंकुश.. तू यहां क्या कर रहा है?
नेहा - सगाई के लिए आर्डर देने आया था..
चिंकी - सगाई कर रहा है तू?
अंकुश - मेरी नहीं.. हनी के भाई विनोद भईया की सगाई का आर्डर है.. मुझे तो हनी लेकर आया था..
चिंकी चेहरे पर चमक लाते हुए - कहा है वो कुत्ता?
अंकुश इशारे से बताकर - पता नहीं तेरे आने से पहले तो इधर ही था..
चिंकी सूरज से - बाहर आजा चुपचाप.. वरना मार खायेगा..
नेहा हसते हुए - आराम से चिंकी.. बेचारा पहले ही तेरे नाम से घबरा जाता है..
चिंकी सूरज का हाथ पकड़ कर अपने साथ ले जाते हुए - भाभी अंकुश से कर लो जो बात करनी है.. मुझे हनी से अकेले में कुछ बात करनी है..
नेहा मुस्कुराते हुए - जल्दी करना.. अच्छा अंकुश.. और कुछ कम ज्यादा करना है तो बता इसमें..
अंकुश - अरे भाभी सब परफेक्ट किया है आपने.. सब ठीक है.. मैं निकलता हूँ
नेहा - रुक मैं सामान की लिस्ट बनाके दे देती हूँ.. तू लेते जाना..
नीचे अंकुश नेहा से सामान की लिस्ट लेकर चला गया था उसे पता था चिंकी सूरज के साथ क्या करेगी और उसने कितना समय लगेगा.. अंकुश बिलाल की दूकान पर आ गया था आज दूकान पर कस्टमर बैठे थे और ये देखकर अंकुश खुश होता हुआ बिलाल से दो बात करके एक तरफ बैठकर अपनी बहन नीतू से फ़ोन पर लग गया था वही मुन्ना हलवाई के घर नीचे नेहा अपने दोनों बच्चों के साथ एक रूम में टीवी देख रही थी तो ऊपर चात वाले कमरे में चिंकी ने सूरज की हालत ख़राब कर रखी थी..
time ki kami se update chhota hai... Please like and comments
agla update next sunday tak aayega