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गुनगुन सूरज के हकलाने से खिलखिला कर हसने लगती है....
हनी... चल क्लास लगने वाली है.. आजा..
सूरज के दोस्त रमन (3rd हीरो) ने उसका हाथ पकड़कर गुनगुन के सामने से खींचता हुआ अपने साथ कॉलेज के बाहर बने प्याऊ के पास से कॉलेज के मुख्य भवन अंदर ले गया और रूम नंबर 42 में आ गया जहाँ लगभग 60-65 और स्टूडेंट्स थे.. स्कूल की तरह यहां भी सूरज और रमन सबसे पीछे वाली सीट पर आ गए और बेग नीचे रखकर सामने देखने लगे.. सभी चेहरे नए और खिले खिले थे सबके अंदर नई ऊर्जा और उत्साह था.
सूरज ने देखा की कुछ ही देर बाद गुनगुन भी क्लास में आ गई थी और आगे जगह ना होने के करण उसे पीछे बैठना पड़ा था.. सूरज और गुनगुन की नज़र एक बार फिर से टकराई और दोनों के होंठों पर हलकी सी मुस्कुराहट आ गई मानो दोनों एक दूसरे को फिर से मिलने की बधाई दे रहे थे..
क्लास दर क्लास ये सिलसिला जारी रहा और फिर जब सूरज बस स्टेण्ड पंहुचा तो वहां भी गुनगुन आ गई.. सूरज के मन में मोर नाच रहे थे जिसकी खबर सिर्फ उसे ही थी.. बस में चढ़ते ही सूरज को एक खाली सीट मिल गई थी जो उसकी किस्मत थी वगरना स्टूडेंट के आने से बस खचाखच भर चुकी थी..
गुनगुन सूरज के पीछे ही तो थी जो अब उसकी सीट के सामने खड़ी होकर बस के एक एंगल को पकडे कभी बाहर तो कभी भीतर अपने सामने सीट पर बैठे सूरज को देख रही थी..
सूरज ने उठते हुए गुनगुन को अपनी सीट पर बैठने का इशारा कर दिया था और गुनगुन मुस्कुराते हुए सूरज की सीट पर बैठ कर उसके बेग को भी अपने बेग के साथ अपनी गोद में रख लिया था.. दोनों में बोलकर बात भले ही नहीं हुई थी मगर नज़रो में इतनी बात हो चुकी थी कि दोनों एकदूसरे को पहले दिन ही समझने और जानने लगे थे..
दिन के बाद दिन फिर महीने और फिर साल बीत गए थे.. दोनों में समय के साथ प्यार पनपा.. और एकदूसरे ने इसका इज़हार भी कर दिया.. कच्ची उम्र कि मोहब्बत पक्के जख्म दे जाती है यही सूरज और गुनगुन कि मोहब्बत के साथ भी हुआ.. सूरज और गुनगुन की पहली मुलाक़ात जो कॉलेज के पहले दिन हुई थी वो अब आखिरी बनकर कॉलेज के आखिरी साल के आखिरी इम्तिहान के बाद होने वाली थी..
तुम समझ नहीं रहे सूरज.. मैं यहां नहीं रुक सकती.. मुझे अपने ख़्वाब पुरे करने है कुछ बनना है.. कब तक इस तरह मैं तुम्हारे साथ यहां वहा घूमती रहूंगी?
पर हम प्यार करते है ना गुनगुन? क्या हम एकदूसरे के बिना रह पाएंगे? क्या तुम मेरे बिना रह पाओगी? पिछले 4 साल हमने साथ बिताये है जीने मरने की कस्मे खाई है सब झूठ तो नहीं हो सकता गुनगुन.. तुम इतनी कठोर तो नहीं हो सकती कि वो सब भुलाकर मुझसे मुंह मुड़ जाओ.. मैं कैसे तुम्हारे बिना रह पाऊंगा?
सूरज तुम अपने प्यार की बेड़िया मेरे पैरों में ना बांधो.. मैं उड़ना चाहती हूँ..मुझे अगर तुम अपनी क़ैद में रखोगे तब भी मैं घुट घुट कर अपने देखे हुए सपनो को मरता देखकर जी नहीं पाउंगी.. मुझे इस बात का दुख है कि हम अब अलग हो रहे है मगर मैं वादा करती हूँ एक दिन जरुर तुम्हारे लिए लौटकर आउंगी..
नहीं गुनगुन.. मैं तुम्हारा इंतजार नहीं कर सकता.. तुम अगर कहोगी तो मैं कोई काम वाम कर लेता हूँ और हम शादी भी कर सकते है पर तुम मुझे यूँ बीच राह में बैठाकर कही जाने की जिद ना करो.. अगर तुम चली गई तो मैं फिर कभी नहीं तुम्हे मिलूंगा..
सूरज.. क्या तुम अपनी ख़ुशी के लिए मेरी ख़ुशीयों का गला घोंट दोगे? इतने स्वार्थी तो नहीं थे तुम..
नहीं गुनगुन.. मैं सिर्फ अपने आप को परखना चाहता हूँ.. देखना चाहता हूँ कि तुम्हारे बाद मैं अपनेआप को किस तरह संभाल पाऊंगा..
मैं वापस लौट आउंगी सूरज कुछ सालों की तो बात है.. आगे की पढ़ाई ख़त्म होते ही तुम्हारे पास चली आउंगी..
मुसाफिर पुराने रास्ते पर वापस नहीं लौटा करते गुनगुन.. वो पुराने रास्ते को भुला दिया करते है.. तुम भी अपने ख्वाब पुरे करना.. तुम्हारे पापा ने जो ख़्वाब तुम्हारे लिए देखे है उन्हें हासिल करना.. मैं कोशिश करूँगा तुम्हारे बाद खुश रहू और तुम्हे भूल जाऊ..
ऐसा मत कहो सूरज.. मैं किसी ना किसी तरीके से तुम्हारे नजदीक रहूंगी.. हम फ़ोन पर बात करेंगे.. तुम्हारे पास फ़ोन नहीं है ना.. लो तुम मेरा फ़ोन रख लो.. मैं इसी पर तुम्हे अपने हर दिन का हाल शाम की बहती हवा के साथ लिखा करुँगी..
नहीं.. मैं ये नहीं ले सकता.. तुम जाओ गुनगुन.. तुमने कहा था आज शाम को तुम शहर से जाने वाली हो.. जाओ.. अब मैं तुम्हे नहीं रोकता.. तुम्हे आकाश में उड़ना था बदलो को महसूस करना था बारिशो में भीगना था पंछियो की तरह चहचहाना था.. मैं नहीं डालता तुम्हारे पैरों में अपनी मोहब्बत की बेड़िया.. जाओ गुनगुन.. तुम्हारे ख्वाब तुम्हारा इंतजार कर रहे है..
सूरज.. मुझे गलत मत समझो..
नहीं गुनगुन.. अब और नहीं.. इससे पहले की तुम कमजोर पढ़कर मेरे सामने अपना फैसला बदलो और फिर उम्र भर मुझे अपनी किस्मत के लिए कोसो.. मैं अब यहाँ से चला जाना चाहता हूँ.. अगली बार अगर किस्मत ने मुझे तुमसे मिलवाया तो मैं दुआ करूँगा तब तक तुमने अपने सारे ख्वाब पुरे कर लिए होंगे.. अलबिदा गुनगुन.. अपना ख्याल रखना..
सूरज जब आखिरी मुलाक़ात के बाद गुनगुन को कॉलेज के गेट पर अकेला छोड़कर बस में चढ़ा तो गुनगुन की आँख से आंसू टप टप करके बह रहे थे.. गुनगुन किसी बेजान मूरत जैसी कॉलेज के गेट के बाहर खड़ी हुई आंसू बहाये जी रही थी सूरज जो पलटकर गया तो उसने एक बार भी मुड़कर गुनगुन को नहीं देखा मगर गुनगुन आंसू बहाते हुए सूरज को तब तक देखती रही जबतक वो आँखों से ओझल नहीं हो गया.. गुनगुन को उसकी सहेलियों ने आकर संभाला मगर तब तक गुनगुन के अंदर जो बांध छलक रहा था वो फट पड़ा था और गुनगुन अपनी सहेलियों से लिपटकर रो रही थी..
बस में चढ़कर सूरज एक तरफ खड़ा हो गया और अपने सारे मनोभाव अपने अंदर ही दबाकर खड़ा रहा.. सूरज आम दिनों की तरह ही घर आया और सामान्य बर्ताव करते हुए सुमित्रा और बाकी लोगों से मिला मगर शाम को उसके कदम ना जाने क्यों अपने आप मोहल्ले से बाहर एक शराबखाने की ओर मुड़ गए ओर सूरज शराब खाने जाकर एक शराब की बोतल खरीद कर दूकान के पीछे रखी पत्थर की पट्टी पर आ बैठा जहाँ उसने अंकुश (2nd हीरो) ओर बंसी काका को देखा जो सूरज के यहां आने पर ऐसे हैरान थे जैसे कोई असमान्य घटना देखकर सामान्य आदमी हो जाता है..
अंकुश और बंसी अच्छे से जानते थे की सूरज शराब नहीं पीता मगर आज उसे यहां देखकर वो हैरानी से उसके पास आकर उसके यहां आने की वजह पूछने लगे जिसपर सूरज के सब्र का बाँध टूट गया और वो बच्चों की जैसे अंकुश और बंसी के सामने रोने लगा..
अंकुश और बंसी के लाख पूछने के बाद भी सूरज ने उन्हें इसकी असली वजह तो नहीं बताइ मगर रोकर अपने दिल का दुख पीड़ा व्यथा को अपने आँखों से आंसू बनाकर कुछ पल की राहत जरुर हासिल कर ली थी..
वही दिन था जब सूरज ने शराब पीना शुरू किया था और आज तीन साल बाद भी वो अक्सर अपने दोस्त अंकुश और बंसी काका के साथ बैठके शराब पी लिया करता था.. गुनगुन को भुलाने के लिए उसने कई तरतीब सोची और उनपर अमल किया मगर कोई काम ना आ पाई मगर फिर एक दिन घर में धूल खाती किताब जिसे दिवाली की सफाई में सुमित्रा ने निकाल कर रद्दी वाले को देने के लिए रख दिया सूरज ने उसे उठा लिया और ऐसे ही उसके शुरूआती कुछ पन्ने पढ़ डाले.. उसके बाद सूरज को उस किताब में इतनी रूचि पैदा हुई की कुछ ही समय में सूरज ने सारी किताब पढ़ डाली और यही से सूरज को किताबें पढ़ने का शौख पैदा हुआ जिसमे वो अक्सर अपने जैसे नाकाम इश्क़ वालों से मिलता उनकी कहानी जीता.. महसूस करता और अपने आप होंसला देता.. कुछ समय में उसके मन से गुनगुन के यादो की परत धुंधली पड़ गई थी.. हसते खेलते नटखट मुहफट और बचकाने सूरज को गुनगुन के इश्क़ ने शांत और कम बोलने वाला सूरज बना दिया.. गुनगुन के जाने के डेढ़ साल बाद चिंकी ने सूरज के साथ घूमना फिरना शुरू कर दिया था और यही से सूरज और चिंकी का रिलेशन जो रमन के अलावा सभी की नज़रो में सूरज का एकलौता रिलेशनशिप था शुरू हुआ मगर 6 महीने बाद ही मुन्ना ने दोनों को अपने घर की छत पर रासलीला करते हुए पकड़ लिया और ये सब भी ख़त्म हो गया.. ऊपर से सूरज के बारे में उसके घर परिवार को सब पता चल गया था.. चिंकी की शादी हो गई और सूरज फिर से अकेला रह गया..
(फ़्लैशबैक end)
सुरज को नींद नहीं आ रही थी वो काफी देर तक यूँही लेटा रहा फिर खड़ा होकर घर की छत पर आ गया और छात पर बने एक्स्ट्रा कमरे की छत पर से एक खाचे जो छिपा हुआ था वहा से सूरज ने कुछ निकाला और फिर कमरे पीछे जाकर उस थैली को खोला और उसमें से लाइटर और सिगरेट पैकेट निकालकर कश लेते हुए गरिमा के बारे में सोचने लगा जो ना चाहते हुए शादी करने को तैयार है और अपने पीता की हर बात को पत्थर की लकीरें मान बैठी है.. उसी के साथ आज सूरज को गुनगुन की भी याद आ गई थी सूरज वापस गुनगुन के चेहरे को याद करने लगा था मगर अब पहले की तरह उसकी आँख में आंसू नहीं थे..
गरिमा ने जब किसी की आहट सुनी तो वो गद्दे से उठ गई और कमरे से बाहर झाँक कर देखा तो पाया की सूरज छत पर जा रहा था गरिमा ने फ़ोन में समय देखा तो रात के 2 बज रहे थे.. जिज्ञासावश गरिमा भी उसके पीछे ऊपर आ गई और सीढ़ियों से ही सूरज को छत पर बने कमरे के पीछे की तरफ सिगरेट पीते देखा तो वो बिना कुछ आवाज किये वापस नीचे कमरे में आ गई और उसी किताब जिसे वो पढ़ रही थी अब किनारे रखकर सोने लगी..
गरिमा के मन में कई बातें थी जिसे सुनने वाला कोई नहीं था.. पीता तो उसकी बात सुनने से पहले ही अपने फैसले उसपर थोप देते थे और माँ उर्मिला जमाने की होड़ में अंधी होकर बेटी के सुख दुख की चिंता किये बिना ही गरिमा के लिए नियम कायदे तय करती थी.. गरिमा की आँखों में आंसू थे मगर पोंछने वाला कोई ना था.. होंठों पर बातें थी मगर सुनने वाला कोई ना था..
सुबह की पहली किरण के साथ सूरज ने चाय का प्याला अपने हाथ में उठा लिया और नीचे जयप्रकाश लंखमीचंद और बाकी लोगों से दूर छत पर आ गया और छत की एक दिवार पर बैठकर चाय पिने लगा तभी गरिमा छत पर आते हुए बोली..
छत पर क्यों आ गए?
बस ऐसे ही..
तुम इतना चुपचुप क्यों रहते हो?
आप भी तो सबके सामने चुप रहती हो..
हाँ क्युकी मेरी सुनने वाला कोई नहीं.. पर तुम तो सबके चाहते हो.. तुम ऐसे उदासी लेकर क्यों रहते हो?
आपसे किसने कहा मैं उदास हूँ?
गरिमा मुस्कुराते हुए बोली - तुम्हारे चेहरे पर लिखा है.
सूरज - अच्छा तो आपको चेहरा पढ़ना भी आता है?
गरिमा - नहीं पर तुम्हारा पढ़ सकती हूँ.. चाँद से चेहरे पर काली घटाये तो यही बताती है.. कोई बात है जिसे मन में छुपाए बैठे हो? बता दो.. तुमने मुझसे कल सब पूछ लिया था अब अपने मन की बताओगे भी नहीं?
सूरज - बताने के लिए कुछ ख़ास नहीं है भाभी..
गरिमा मुस्कान लिए - अरे अभी तो तुम्हारे भईया के साथ मेरी सगाई तक नहीं हुई और तुम मुझे भाभी भी बोलने लगे.
सूरज - माफ़ करना गलती से निकल गया.
गरिमा - इसमें माफ़ करने वाली क्या बात है? अब जो बोलने वाले हो वही तो बोलोगे.. मैं तो बस हंसी कर रही थी तुम्हारे साथ.. देवर जी..
सूरज - आप भी ना.. कल तक तो कितनी गुमसुम और उदास थी अब अचानक से आपको मसखरी सूझने लगी..
गरिमा - हाँ पर कल तक मैंने अपने देवर जी से बात कहा की थी? मुझे लगता अब कोई है जो मेरे साथ बातें कर सकता है दोस्त बनकर मेरे साथ रह सकता है
सूरज - ये दोस्ती विनोद भईया के साथ रखना भाभी.. मैं अपने मन का करता हूँ..
गरिमा - तुम इतने साल से अपने भईया के साथ हो मगर अब तक उनके बारे में कुछ नहीं जान पाए..
सूरज - जानना क्या है?
गरिमा - यही की उनके लिए रिश्तो और भावनाओ का मोल ज्यादा नहीं है.. मैं उनके साथ वो सब नहीं कह सुन सकती जो तुम्हारे साथ बोल सकती हूँ सुन सकती हूँ.. तुम मन पढ़ सकते हो.. भावनाओ को समझ सकते हो मगर तुम्हारे भईया ऐसा कुछ नहीं कर सकते.. उनके लिए ये सब बचकानी बातें है..
सूरज - अगले सप्ताह सगाई है आपकी भईया के साथ और 6 महीने बाद शादी.. एक बार वापस सोच लीजिये.. कई बार हमें अपनी छोटी सी गलती के लिए उम्रभर पछताना पड़ता है..
गरिमा - तो बताओ ऐसी कोनसी गलती तुमसे हो गई थी कि तुम आधी रात को किसी कि याद छत के उस कोने में बैठकर आँख में आंसू लिए सिगरेट के कश भरते हो..
सूरज सकपकाते हुए - मैं.. मैं..
गरिमा - मैं किसी से नहीं कहूँगी देवर जी.. आप फ़िक्र मत करो.. अब तो हम देवर भाभी बनने वाले है.. आपके छोटे मोटे राज़ तो मैं भी छीपा कर रख सकती हूँ..
सूरज - भाभी.. वो मैं..
गरिमा - किसी को याद कर रहे थे? पर तुम्हे कौन छोड़ के जा सकता है? कहीं बेवफाई तो नहीं की थी तुमने?
सूरज - भाभी.. आप भी ना.. कुछ भी कहती हो.. ऐसा कुछ नहीं है.
गरिमा हसते हुए - एक बात बताओ क्या इसी तरह अकेले ही रहते हो घर में?
सूरज - क्यों?
गरिमा - अपना फोन दो जरा..
सूरज फ़ोन देते - लो..
गरिमा - ये फ़ोन है? लगता है शहर से पुराना तो तुम्हारा फ़ोन है.. चलता तो है ना.. हाँ.. गनीमत है चल तो रहा है.. लो.. जब अकेलेपन से बोर हो जाओ और मुझसे बात करने का मन करें तो massage करना.. हम दोनों ढ़ेर सारी बात करेंगे..
सूरज मुस्कुराते हुए - ठीक है भाभी..
विनोद आते हुए -अरे क्या बात हो रही दोनों में? हनी मम्मी कब से तुझे आवाज लगा रही है सुनाई नहीं दिया तुझे? चल नीचे.. और तुम्हे भी नीचे आ जाना चाहिए.. तुम्हारे पापा याद कर रहे थे तुम्हे..
जी.. कहते हुए गरिमा नीचे चली गई और उसके पीछे पीछे सूरज भी चला गया..
लख्मीचंद - अच्छा तो भाईसाहब अब इज़ाज़त दीजिये.. अगले हफ्ते सगाई कि तैयारी करनी है.. बहुत काम पड़ा है.. हम समय से आपके द्वारे उपस्थित हो जायेगें..
जयप्रकाश - जी भाईसाब... तैयारिया तो हमें भी करनी होगी.. पंडित जी ने मुहूर्त भी इतना जल्दी का सुझाया है कि क्या कहा जाए?
उर्मिला - बहन जी.. बहुत बहुत आभार आपका आपने हमारी बिटिया को पहली नज़र में ही पसंद कर लिया और अपने घर की बहु बनाने की हामी भर दी.. मैं भरोसा दिलाती हूँ हमारी गरिमा आपके घर का पूरा मान सम्मान कायम रखेगी..
सुमित्रा - जानती हूँ बहन जी.. आपकी बिटिया के बारे में नरपत भाईसाब ने जो जो बताया था गरिमा उससे कहीं बढ़कर है.. मैं अब जल्दी से अपने विनोद के साथ आपकी गरिमा का ब्याह होते देखना चाहती हूँ..
लख्मीचंद - भाईसाब अगर आपकी कोई बात है या कुछ और आप मुझे बता सकते है..
जयप्रकाश - अरे आप क्यों बार बार ये बोलकर मुझे शर्मिंदा कर रहे है.. मैंने आपसे साफ साफ कह दिया है कि हमें आपकी बिटिया के अलावा और कुछ नहीं चाहिए.. हम तो दहेज़ के सख्त खिलाफ है..
नरपत - अब तो आप लोग अगले सप्ताह विनोद और गरिमा की सगाई की तैयारी कीजिये... अब समय से निकलते है वरना ट्रैन ना छूट जाए.. सूरज गाडी भी ले आया.. चलिए..
गरिमा जाते हुए सूरज को एक नज़र देखकर मुस्कुरा पड़ी थी बदले में सूरज के होंठों पर भी मुस्कान आ गई.. विनोद भी स्टेशन तक साथ गया मगर गरिमा के साथ उसकी आगे कोई बात ना हो पाई.. विनोद लख्मीचंद के साथ ही बैठा हुआ यहां वहा की बात कर रहा था.. स्टेशन पर लख्मीचंद उर्मिला नरपत और गरिमा को ट्रैन में बिठाने के बाद वो सीधे ऑफिस निकल गया था..
आज ऑफिस नहीं जायेगे?
नहीं.. मैडम को पता चला कि लड़की वाले बेटे को देखने आये हुए है तो उन्होंने आज घर पर रहने को ही कहा है..
पर वो तो चले गए..
तो ये बात मैडम को कहा पता है सुमित्रा? आज घर पर ही आराम करने का मन है..
सही है.. कम से कम थोड़ी तो समझ है..
मैं तो पहले से ही बहुत समझदार हूँ..
तुमको नहीं तुम्हारी उस अफसर मैडम को कह रही हूँ..
सुमित्रा ने बेड पर तौलिया लपेटकर बैठे जयप्रकाश से ये कहा और कमरे से बाहर आकर सीधा कल के सुखाये कपड़े उतारने छत पर चली गई..
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वाह भाई बिल्ले.. 3-4 दिनों में ही दूकान चमका दी तूने तो.. अंकुश (2nd हीरो) ने बिलाल की दूकान में कदम रखते हुए कहा जहाँ रंग रोगन हो चूका था और दूकान पुराने जमाने के ताबूत से निकलकर नए जमाने के लिबास से सज गई थी.. दूकान के सीढ़ियों की मरम्मत के साथ बाहर लटक रहे लाइट के वायर को व्यवस्थित करके स्विच बोर्ड भी बदल दिए गए थे..
बिलाल ने अंकुश की बात सुनकर कहा - हाँ अक्कू.. सब काम तो हो चूका है बस अब आइना और कुर्सी खरीदना बाकी है.. वैसे पिछले 3-4 दिनों से हनी कहा है? ना दिखाई दिया ना बात की..
अंकुश - बात मेरी भी नहीं हुई.. उस दिन विनोद भईया को लड़किवाले देखने आये थे उसके बाद से मैं भी नहीं मिला यार..
बिलाल - रुक मैं फ़ोन करता हूँ.. जरा पूछे तो आज कल है कहाँ?
हेलो..
हेलो.. हनी?
हाँ बिल्ले..
अरे आज कल है कहाँ भाई? ना फ़ोन ना मुलाक़ात.. कोई गलती हो गई क्या हमसे?अक्कू से भी बात नहीं की तूने?
कहाँ है तू?
मैं और कहाँ होऊंगा? दूकान पर.. आइना और कुर्सी खरीदना था तो सोचा तुझसे बात कर लु.. अक्कू भी यही है..
हाँ.. यार कुछ बिजी हो गया था तुम रोको मैं 10 मिनट आता हूँ वहा..
पिछले तीन चार दिनों से सूरज गरिमा के साथ व्हाट्सप्प पर बातचीत में ऐसा उलझा की उसे अपने दोस्तों और परिवार के लोगो से बात करने और मिलने का समय ही नहीं मिला.. गरिमा को भी सूरज के रूप में अच्छा दोस्त मिल गया था और अब दोनों एक दूसरे को देवर भाभी कहकर ही बुलाने और बात करने लगे थे.. दोनों की बातों में एक दूसरे की पसंद नापसंद जानना और मिलती हुई रूचि की चीज़ो घंटो लम्बी बातें करना शामिल था.. विनोद तो गरिमा से बात करना जरुरी ना समझता था उसे औरत बस घर में काम करने और पति को खुश रखने की वस्तु मात्र ही लगती थी.. कभी कभार विनोद गरिमा औपचारिक बात किया करता उससे ज्यादा उसने कभी गरिमा से कुछ नहीं कहा ना पूछने की जहमत की.. विनोद काम में तनलिन था मगर गरिमा और सूरज के बीच सुबह शाम बातें हो रही थी.. दोनों एक दूसरे के सुबह उठने पर चाय पिने से लेकर रात को खाना खाने तक की बातें पूछने और बताने लगे थे.. दोनों के मन मिलने लगे थे और दोनों को ख़ुशी की थी कोई है जो उनके मन का हाल समझ सकता है और उससे वो सब बात कह सकते है..
बिलाल का फ़ोन आने पर सूरज फ़ोन बंद करके अपने कमरे से निकल कर नीचे आ गया जहाँ उसने देखा कि सुमित्रा जयप्रकाश और विनोद साथ में बैठे किसी गहरे मंथन में घूम थे और आपस में कुछ कह रहे थे..
नहीं पापा.. मेरे ऑफिस के सभी लोगों को पता चल गया है और उन्होंने खुद आने कहा कहा है.. 20-25 लोग तो ऑफिस से ही हो जाएंगे.. फिर स्कूल कॉलेज और मोहल्ले के यार दोस्त अलग से.. कम से कम 35-40 लोग मेरे ही हो जाएंगे.. इतने सारे रिश्तेदार भी बुला लिए आपने.. आपके ऑफिस से भी लोग आएंगे.. माँ ने भी आस पड़ोस में सबको बता दिया है अब उन्हें भी नहीं बुलाया जाएगा तो सब मुंह फुला के बैठ जाएंगे.. इतने सारे लोगो कि व्यवस्था घर और गली में तो नहीं हो सकती.. एक गली पीछे जो बिट्टू के पास वाला खाली प्लाट है वहा इंतजाम किया जा सकता है.. बस लाइट और टैंट का बंदोबस्त करना पड़ेगा.. 15-20 हज़ारका खर्चा आएगा.. हलवाई से भी मैंने बात कर ली है.. 150-200 अपनी तरफ के और लख्मीचंद बता रहे थे 50 उनकी तरफ से.. 250 आदमियों का खाना भी हो जाएगा..
सूरज विनोद के बातें सुनकर फ्रीज़ से पानी कि बोतल निकाल कर हॉल में सोफे कि तरफ आता हुआ विनोद कि बात काटते हुए कहा - 200 गज के प्लाट में 250 आदमियों कि व्यवस्था कैसे होगी भईया? और अब वो प्लाट बिक चूका है नया मालिक वहा फंक्शन करने की इज़ाज़त दे या ना दे.. किसे पता? और किस हलवाई से बात की है आपने? उस कांतिलाल से ना जिसने मधुर भईया की शादी में खाना बिगाड़ दिया था.. कितनी थू थू हुई थी उनकी..
जयप्रकाश - तो तू ही बता कुछ.. पहले तो बाहर घूमता था अब सिर्फ कमरे में ही पड़ा रहता है.. कोई उपाय हो तो बता.. क्या कोई गार्डन बुक कर ले?
सूरज - सगाई की जगह और खाने की जिम्मेदारी मेरी.. बाकी आपको देख लो.
विनोद - 5 दिन बाद सगाई है.
सूरज - कल इतवार है दोनों काम निपट जाएंगे.. आपको बेफिक्र रहो..
विनोद जयप्रकाश को देखकर सूरज से - ठीक है फिर.. मैं अभी कुछ पैसे ट्रांसफर कर रहा हूँ आगे जो कम पड़े वो बता देना..
जयप्रकाश - हनी.. सोच कर करना जो करना है..
सूरज अपने पीता की बात सुनकर घर से निकल जाता है और बिलाल की दूकान पर पहुंच जाता है..
क्या बात है ईद के चाँद.. कहा था पिछले कुछ दिनों से?
कहीं नहीं यार बस कुछ तबियत हलकी थी.. और सुनाओ.. दूकान तो नई जैसी कर दी बिल्ले तूने.
सब तुम दोनों की महरबानी से ही तो हो रहा है भाई..
हनी.. आइना और कुर्सी लानी बाकी है फिर बिल्ले की दूकान भी नये सलून जैसी हो जायेगी..
हाँ वो तो है.. तो बिल्ले कहा से ला रहा है बाकी सामान?
एक जानकार है हनी.. किसी दूकान का पता दिया है.. कह रहा था अच्छा सामान देता है.. बस वही जाना था.. एक बार देख आते केसा सामान है?
नज़मा चाय लेकर - चाय.. भाईजान..
सूरज चाय लेते हुए - तो चले जाओ ना तुम दोनों.. अगर सही लगे तो साथ ही ले आना..
बिलाल - और तू नहीं चलेगा?
सूरज - मुझे कहीं और जाना है आज..
अंकुश चाय पीते हुए - बेटा देख रहा हूँ पिछले कुछ दिनों से तेवर बदले बदले लगते है तेरे.. क्या बात है?
सूरज - कुछ भी नहीं.. 5 दिन बाद सगाई है भईया की.. थोड़ा बहुत काम है इसलिए किसी से मिलने जाना है.
नज़मा - सगाई भी तय हो गई.. अभी लड़की वाले देखने ही आये थे..
सूरज - अब जब सब राज़ी थे तो पंडित ने इतना जल्दी का मुहूर्त सुझाया की क्या कहा जाए.. वैसे लोकेशन अभी फाइनल नहीं है सगाई कहा होगी.. जैसे ही होती है मैं दोनों को व्हाट्सप्प कर दूंगा.
नज़मा अंदर जाते हुए - अच्छा..
अंकुश हसते हुए - तू नहीं बुलायेगा तब भी हम चले आएंगे.. डोंट वार्री.
बिलाल - हनी जा भी रहा है.. थोड़ी देर बैठ ना..
सूरज - अभी नहीं बिल्ले.. किसी दोस्त से बात की है उससे मिलने जाना है तू अक्कू के साथ बाकी सामान ले आ.. कल इतवार है दूकान पर भीड़ रहेंगी..
बिलाल - क्या भीड़ भाई.. इतवार हो या कोई दिन गिनती के 2-4 ही तो आते है कल क्या बदल जाएगा.
अंकुश - क्यों मनहूस बात करता है बिल्ले कल देखना लोगो की लाइन लग जायेगी दूकान पर.. चल चलते है उस दूकान पर..
अंकुश और बिलाल दूकान का बाकी सामान लाने चले जाते है और सूरज अपने कॉलेज दोस्त रमन के पास चला आता है..
रमन (3rd हीरो) - कहा चला गया था भाई सीधा तो रास्ता बताया था तुझे..
सूरज - मुझे लगा आगे से कोने वाली दूकान होगी..
चल कोई ना छोड़.. बता क्या लेगा?
कुछ नहीं चाय पीके आया हूँ..
तो फिर कॉफ़ी पिले..
नहीं रहने दे यार..
अरे क्यों रहने दे.. साले इतने महीनों के बाद तो मिलने आया है.. फ़ोन करो तो कोई जवाब नहीं.. किस हाल में ये भी नहीं पता.. कॉलेज के बाद तो ऐसे गायब हुआ जैसे गधे के सर से सींग..
कुछ नहीं यार.. बस यूँ समझा ले कहीं मन ही नहीं लगा..
तो मन को लगा भाई ऐसे क्या जीना? धरमु... दो कॉफ़ी बोल..
रमन ने अपने यहां काम करने वाले एक आदमी से कहा..
और सुना सूरज.. आज कैसे याद कर लिया तूने?
विनोद भईया की शादी तय हुई है.. 5 दिन बाद सगाई होनी है..
अरे वाह ये तो बहुत अच्छी बात है.. साथ में तू भी शादी करवा ले भाई सुखी रहेगा..
पहले अपनी करवा ले..
रमन हसते हुए - भाई अब लगा ना पहले वाला सूरज.. कब से मनहूसियत लेते बैठा था चेहरे पर.. हाँ बोल क्या कह रहा था..
सूरज - भईया कि सगाई है पांच दिन बाद.. जगह चाहिए सगाई के लिए..
रमन - इतनी सी बात.. बता कहाँ चाहिए.. इतने सारे गार्डन है अपने.. अभी शादी का सीजन भी नहीं है खाली ही पड़े है सब.. बता कोनसा चाहिए?
सूरज - घर के आस पास देख ले कोई.. ज्यादा बड़ा प्रोग्राम नहीं है..
रमन - तेरे घर के पास है तो सही.. पर बंद पड़ा है.. सफाई करानी पड़ेगी..
सूरज - बंद क्यों पड़ा है? बुकिंग नहीं मिल रही क्या?
रमन - अरे नहीं बे.. वो जगह पापा और चाचा साझे में खरीदी थी और शादी ब्याह के लिए वहा गार्डन बनवाया था मगर बाद में विवाद हो गया.. कचहरी में मुकदमा चला तो अदालत ने पैसे देकर जमीन लेने को कहा.. चाचा के पास इतने पैसे नहीं थे तो वो जमीन खरीद नहीं सकते थे इसलिए हमने चाचा को जो उनका हक़ बनता था उसके मुताबित पैसे देकरजमीन लेली.. अभी 3 महीने पहले ही उसका सौदा हुआ है.. 8 साल से बंद पड़ा है.. मैं धरमु को कह दूंगा वो सफाई करवा देगा कल वहा की और लाइट, हॉल और रूम्स वगैरह भी देख लेगा.. लक्मी पैराडाइस नाम है.. मेरी दादी के नाम रखा था पापा और चाचा ने..
धरमु कॉफी रख देता है और चला जाता है..
सूरज - चलो अच्छा है..पैसे क्या लेगा?
रमन कॉफी पीते हुए - तुझसे पैसे लूंगा क्या भाई.. बस एक बार मेरा मुंह में ले लेना..
सूरज - भोस्डिके मेरे पास भी लंड है.. भूल गया तो याद दिलाऊ?
रमन हसते हुए - मज़ाक़ कर रहा था भाई.. अब तुझसे भी पैसे लूंगा क्या.. वैसे भी खाली पड़ा है..
सूरज - बहनचोद.. कॉलेज में चाय नहीं पीलाई तूने और आज इतनी मेहरबानी?
रमन - समय समय की बात है बेटा.. तब मेरा बाप फूटी कोड़ी तक नहीं देता था.. आज मैं बाप का पूरा धंधा संभाल रहा हूँ.. रईस हो गया है तेरा भाई.. रोज़ गाड़ी बदलता हूँ..
सूरज हसते हुए - चलानी आती है या ड्राइवर रखा है उसके लिए..
रमन - तेरा भाई उड़ा सकता है गाडी अब.. वैसे एक गुडमॉर्निंग न्यूज़ देनी है तुझे..
सूरज - क्या?
रमन - तेरी मेहबूबा को देखा था मैंने दो हफ्ते पहले.. ट्रैफिक में था.. बात नहीं हो पाई..
सूरज - माँ चुदाए.. मुझे बात नहीं करनी उसकी.. चल निकलता हूँ..
रमन - क्या हो गया भाई.. नाम लेते ही जाने की बात कर दी.. इतना गुस्सा? छोड़ यार.. जो हुआ सो हुआ.. उसे अपना भविष्य बनाना था.. लाइफ में कुछ करना था.. 3 साल हो गए हो गए उस बात को..
सूरज खड़ा होते हुए - कल सफाई करवा देना याद से उस जगह की.. मैं तुझे कार्ड व्हाट्सप्प कर दूंगा.
रमन - अच्छा सुन.. भाई.
सूरज - बोल..
रमन - मैं अगर गुनगुन से मिला और उसने तेरे बारे में पूछा तो मैं क्या जवाब दू?
सूरज - कहना मैं मर गया..
रमन अपना फ़ोन देखकर - ये चुड़ैल पीछा नहीं छोड़ेगी..
सूरज - कौन है?
रमन - कोई नहीं यार.. बस ये मान ले एक बला है मेरे सर पर.. बाप मर गया पर अपनी रखैल छोड़ गया मेरा खून पिने के लिए..
सूरज हसते हुए - रंगीन तो था तेरा बाप.. चल निकलता हूँ..
सूरज को रमन के पास से वापस बिलाल की दूकान पर आते आते शाम के 7 बज चुके थे.. उसने देखा की दूकान में बड़ा सा नया आइना और एक आरामदायक कुर्सी लग चुकी थी..
बोल क्या कहता है? है ना मस्त?
अंकुश ने सूरज से कहा तो सूरज कुर्सी पर बैठते हुए कहा - परमानन्द... अच्छा सुन तेरे पास लैपटॉप है ना..
अंकुश - क्या करेगा?
सूरज - जगह फाइनल हो गई सगाई का कार्ड बना देता हूँ सबको व्हाट्सप्प कर दूंगा..
अंकुश - अरे उसमे क्या बड़ी बात है तू जगह और बाकी चीज़े लिख दे मैं खुद बनाके तुझे सेंड कर दूंगा.. वैसे जगह कोनसी तय की..
सूरज - ये स्कूल के पीछे वाला गार्डन.. जो बंद पड़ा है..
अंकुश - उस पर तो केस चल रहा था ना.. सुना है दोनों भाई है..
सूरज - फैसला हो गया.. कॉलेज का एक दोस्त है उसके बाप के हक़ में है सब.. कल परसो में सफाई और बाकी चीज़े करवा देगा.. एक पंखा भी ले आते तुम.. ये चलता कम शोर ज्यादा करता है..
बिलाल - कल वो भी आ जाएगा हनी.. जितना सोचा था उसे कम में ही काम हो गया..
सूरज - तो फिर पंखे की जगह कूलर ही ले लेना भाई.. अभी मार्च में ये हाल है मई जून में ना जाने क्या होगा?
अंकुश - निश्चिन्त रह भाई.. कल प्लास्टिक के परदे भी लग जाएंगे.. और कूलर भी आ जाएगा.. आखिर अपनी बैठक है ये.. कोई कमी थोड़ी रहने देंगे..
सूरज - अच्छा चलता हूँ.. कल मिलते है.. अक्कू याद से सेंड कर देना तू कार्ड..
अंकुश - अरे हनी.. कल शाम वो बंसी काका के साथ बैठना है याद है ना..
सूरज - हाँ याद है.. पर पहले अपने मुन्ना से मिलके आएंगे..
अंकुश - क्यों?
सूरज जाते हुए - भाई सगाई में हलवाई भी तो बुक करना है..
अंकुश हसते हुए - असली जीजा के घर फंक्शन है हलवाई का काम साला ही तो करेगा..
बिलाल - भाई जैसी हरकते है ना तुम्हारी.. कभी भी पिट सकते हो तुम मुन्ना से..
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सूरज और गरिमा व्हाट्सप्प पर बातें कर रहे थे जिनमे दोनों ही मशगूल थे आज के दिन का सारा हाल दोनों ने एकदूसरे को कह सुनाया था.. सूरज गरिमा से बात कर ही रहा था कि नीचे से सुमित्रा उसके नाम कि आवाजे लगाते हुए छत पर आ गई..
खाना नहीं खाना तुझे? कब से छत पर बैठा है..
आ रहा हूँ माँ.. आप खाना डाल दो ना..
और ये बू कैसी है? तू फिर से नशा तो नहीं करने लगा ना हनी? देख बड़ी मुश्किल से तू वापस सुधरा है इन सब चीज़ो से दूर रह..
मैं कोई नशा नहीं कर रहा माँ.. मालती आंटी के हस्बैंड छत पर आते थे अभी अभी सिगरेट पीके गए है नीचे.. उसी की बू आ रही होगी आपको.. अब लगती हुई छत है तो स्मेल आ रही होगी.. आप जाओ में आता हूँ नीचे..
सुमित्रा सूरज के गाल को अपने हाथ से सहलाती हुई अपनी प्यारी भरी आँखों से उसे एक नज़र देखकर जाते हुए कहती है - जल्दी आ.. खाना ठंडा हो जाएगा..
सुमित्रा के नीचे जाने के बाद सूरज व्हाट्सप्प पर गरिमा से खाना खाने की इज़ाज़त लेता है और नीचे आ जाता है..
सबने खाना खा लिया एक तू ही बचा है.. ले.. खा ले..
सूरज खाने कि प्लेट लेकर वही रसोई की स्लेब पर बैठकर खाते हुए - माँ.. पापा से कहना जगह देख ली है सगाई की..
सुमित्रा बर्तन धोते हुए - अच्छा.. कहाँ?
यही.. स्कूल के पीछे जो बंद बड़ी हुई जगह है वही.. कल सफाई हो जायेगी उसकी.. अच्छी जगह है.. बहुत बड़ी भी है.. और ये लो.. कार्ड भी बनवा दिया है.. भईया और पापा जिसे भी सगाई में बुलाना चाहते है उनको व्हाट्सप्प कर देगे..
सुमित्रा सूरज के फ़ोन में सगाई का कार्ड देखकर खुश होते हुए बोली - अरे.. क्या बात है मेरा हनी तो बहुत जिम्मेदार हो गया.. इसे तू मेरे फ़ोन में भेज में सबको भेज दूंगी..
भेज रहा हूँ.. कल हलवाई का भी फाइनल हो जाएगा.. और कुछ करना हो वो भी बता देना.. हो जाएगा..
सुमित्रा मुस्कुराते हुए - ठीक है.. अच्छा एक बात बता.. मालती आंटी के जो हस्बैंड है वो अपनी छत पर आके सिगरेट पीते है क्या?
सूरज हड़बड़ाते हुए - मतलब?
सुमित्रा मुस्कुराते हूर - नहीं वो बस ऐसे ही पूछा.. सिगरेट पीकर अपनी छत पर फेंक देते है ना.. कल सुबह मालती से बात करनी पड़ेगी..
सूरज - इतनी सी बात कर लिए क्या बात करनी है.. छोडो ना.. फिज़ूल क्यों मुंह लगना उनके..
सुमित्रा मुस्कुराते हुए - नहीं नहीं बात तो करनी पड़ेगी.. ये अच्छी बात थोड़ी है..
सूरज खाना खा कर प्लेट वश बेसिन में रखते हुए - अरे माँ छोडो ना... इतनी सी बात का क्यों बतंगड़ बना रही हो.. मुझे नींद आ रही है मैं सोने जा रहा हूँ..
सुमित्रा जाते हुए सूरज का हाथ पकड़ लेटी है और उसकी आँखों में देखते हुए मुस्कुरा कर कहती है - चुपचुप के सिगरेट पीता है ना तू?
सूरज - नहीं माँ.. मैंने बताया ना वो मालती आंटी के हस्बैंड थे..
सुमित्रा - मालती आंटी अपने हस्बैंड के साथ शिमला गई है घूमने.. मुझे उल्लू समझा है तूने? देख हनी.. तू कहीं फिर से वो सब मत करने लग जाना.. बड़ी मुश्किल से तू सही हुआ है.. कहीं फिर से शराब और उन सब नशे में डूब गया तो सबकुछ खराब हो जाएगा..
सूरज - मैंने वो सब कुछ छोड़ दिया है माँ.. बस कभी कभी छत पर सिगरेट पीता हूँ.. आपसे झूठ बोला उसके लिए सॉरी..
सुमित्रा - सच कह रहा है ना तू?
सूरज - आपकी कसम.. बस कभी कभी शराब भी हो जाती है.. पर कभी कभी..
सुमित्रा सूरज को अपने गले से लगा लेती है और कहती है - हनी.. मैं तेरी माँ हूँ.. बेटा मुझसे कुछ मत छिपाया कर.. तू जानता है मैं तेरी बातें किसी और से नहीं करती.. फिर भी तू छिपकर ये सब करता है.. वादा कर तू अब से मुझसे सब सच सच कहेगा..
सूरज - अच्छा वादा.. अब छोडो मुझे.. वरना आपके गले लगे लगे ही सो जाऊँगा..
सुमित्रा सूरज के दोनों गाल चूमते हुए - सुना है आज वो चिंकी ससुराल से वापस आई है.. उसे दूर रहना.. उस कलमुही की हमेशा तेरे ऊपर नियत ख़राब रहती है..
सूरज मुस्कुराते हुए - अब माँ इतना हैंडसम बेटा पैदा किया है आपने.. लड़किया आगे पीछे ना घूमे तो क्या फ़ायदा..
सुमित्रा सूरज को अपनी बाहों से आजाद करती हुई - चल बदमाश कहीं का.. सो जा जाकर..
Please give your suggestion Aur like bhi kr do aage likhne ki motivation milti hai likes dekhkar
Congratulations for starting a new story
Bhut hi jabardast updates diye hai bhai
To kahani me 3 heros hai
Suraj ka flashback bhi ekdum mast tha
Ab agle update ka intezar rahega
सुबह की दोपहर हो गई है मगर साहबजादे अभी तक ओंधे मुंह सो रहे है..
हनी... ओ हनी.. अरे अब उठ भी जा.. देख आज तुम्हारे भईया को देखने वाले आ रहे है.. उठ हनी... उठ जा ना बेटा..
सोने दो ना माँ..
कितना आलसी और निकम्मा है तू.. अब उठ भी जा हनी.. विनोद को देखने वाले आ रहे है कितना काम पड़ा है घर में.. जल्दी से उठ बाजार से सामान भी लाना है..
भईया से कह दो ना वो ले आएंगे..
हाँ.. ऑफिस भी वो जाए और घर का काम भी वही करें.. अरे जरा तो शर्म कर.. विनोद ऑफिस गया है उसे आने में शाम हो जायेगी.. तू जल्दी से ये सामान ले आ..
पापा से कह दो ना माँ.. क्यों सुबह सुबह परेशान कर रही हो.. रात को नींद नहीं आई..
देख हनी.. चुपचाप उठ जा वरना बहुत मार खायेगा मेरे हाथ से.. दिन ब दिन लापरवाह और कामचोर होता जा रहा है.. उठ..
सूरज (23) जिसे घर में उसके सुन्दर और मोहक चेहरे और स्वाभाव के कारण हनी निकनेम मिला था, आँख मलता हुआ कमरे में जमीन पर पड़े 3x6 के एक गद्दे से उठता है और अपनी माँ सुमित्रा से सामान की लिस्ट लेकर कहता है..
माँ.. इतना सारा सामान.. मैं अकेला कैसे लाऊंगा?
वो सब मुझे नहीं पता.. ले ये तेरे पापा का एटीएम कार्ड है.. अब जा और 3 बजे तक वापस आ जाना मुझे रसोई भी तैयार करनी है शाम से पहले..
पापा की स्कूटी यही है ना.. चाबी दे दो..
नहीं.. तेरे पापा बुआ जी से मिलने गए है स्कूटी लेकर.. तेरी बुआ को भी लाएंगे..
बुआ को क्यों ला रहे है?
अरे.. विनोद के लड़की देखना है कहीं कोई ऐसी वैसी आ गई तो? घर का सत्यानाश ना कर दे.. आजकल वैसे भी जमाना खराब है.. जब तक लड़की का चाल चरित्र और चेहरा अच्छे से जांच परख ना ले तब तक कैसे किसीसे रिश्ता बना सकते है..
किस्मत का लिखा कोन पढ़ पाया है माँ.. लड़की जैसी नसीब में होगी वैसी ही मिलेगी..
अच्छा अच्छा.. साधू महाराज जी.. अपना प्रवचन बंद करो और जल्दी से सामान लेने जाओ..
जा तो रहा हूँ अब कपड़े भी ना पहनू?
तो ऐसे मरियल की जैसे क्यों पहन रहा है एक टीशर्ट और लोवर ही तो पहनना होता है तुझे.. आज तक कोई ढंग के कपड़े ख़रीदे है तूने? जब देखो पज़ामा टीशर्ट ही पहन के रखता है.. शादी ब्याह में किसीके मांग के पहनता है.. शर्म नहीं आती तुझे?
नहीं आती.. मुझे जो कांफर्ट लगता है वही पहनता हूँ..
हाँ.. सही है.. पड़ोस की मालती जी कह रही थी जब देखो काली या नीली टीशर्ट में ही देखता है कुछ और क्यों नहीं पहनता? मैं क्या बोलू उसे? जब कुछ होगा तभी पहनेगा ना.. दो टीशर्ट और दो लोवर के अलावा कपड़े ही कहा है तेरे पास? जब कपड़े लेने को बोलो तो मना कर देता है..
माँ.. पहले उस मालती आंटी से आप पूछते ना कि वो अपने पति को छोड़कर मुझे को देखती है?
अरे उसकी नज़र पड़ जाती होगी तभी कह रही थी वरना तुझे क्यों देखने लगी वो.. भरा पूरा परिवार है उसका.. दो दो जवान बेटियों की माँ है..
हम्म.. तभी इशारे से छत पर बुलाती है मुझे और परसो मेरी तरफ नंबर फेंके थे उसने..
क्या?
क्या नहीं.. हाँ.. आपकी मालती जी नियत खराब है मेरे ऊपर.. कब से इशारे कर रही मुझे.. वो तो मैं ध्यान नहीं देता.. बूढ़ी घोड़ी लाल लगाम.. बुढ़ापे में जवानी चढ़ी है उनको.. परसो मेरे ऊपर नंबर फेंके और कल किसी से मेरे नंबर लेकर व्हाट्सप्प पर हेलो भेज दिया..
हाय.. तूने पहले क्यों नहीं बताया? मैं अभी खबर लेती हूँ उस मालती की..
रहने दो.. खामखा बखेड़ा होगा.. उनके जैसी बेशर्म पुरे मोहल्ले में कौन है.. उलटे आपके ऊपर ही उल्टा सीधा तंज कसने लगेगी.. मैंने ब्लॉक कर दिया उनको..
अब कुछ बोले या इशारा करें तो बताना.. अब नहीं बकशुँगी उस मालती को..
हटो.. जाने दो..
जल्दी आना और सामान देख के रखना.. कुछ छूटना नहीं चाहिए..
हाँ हाँ ठीक है..
उदयपुर के एक आम मोहल्ले के दो मंज़िला मकान के एक छोटे से कमरे से निकलकर सूरज घर के आँगन से होते हुए घर के बाहर आ जाता है और अपने दोस्त अंकुश को फ़ोन करता है..
कहाँ है भाई?
कहीं नहीं घर पर ही था यार..
बिलाल के पास मिल.. बाइक लेके आना..
क्या हुआ.. कहा जाएगा?
कहीं नहीं कुछ सामान लेकर आना है..
आता हूँ यार थोड़ा टाइम लगेगा..
क्यों गांड मरवा रहा है?
भाई गाडी बुक कर रहा था यार.. मम्मी और नीतू को कहीं जाना है.. ओला उबर साला कोई टाइम पर नहीं आता..
अच्छा ठीक है ज्यादा लेट मत करना..
सूरज अपने घर से चलकर 4 गली आगे एक पुरानी सी दिखाने वाली हज़ाम की दूकान जिसे देखकर लगता था की ये बिसो साल पुरानी दूकान है.. उसके अंदर आकर एक कुर्सी पर बैठ जाता है..
क्या हाल है बिल्ले (बिलाल)?
बस बढ़िया हनी.. तेरा क्या हाल है सुना है किसी लड़की से पिटता पिटता बचा था इतवार को..
तुझे किसने रो दिया ये सब? अक्कू (अंकुश) ने बताया होगा?
बिलाल सूरज के कांधे पर अपने दोनों हाथ रखकर सूरज के कांधे दबाते हुए - नहीं भाई.. सद्दू ने देखा था जब वो लड़की तेरे ऊपर चिल्ला रही थी.. बोल रहा था बहुत देर तक लताड़ा तुझे..
किस्मत खराब थी यार और कुछ नहीं.. बस में गलती से धक्का लग गया और उस लड़की के ऊपर गिर गया.. फिर क्या था? भले घर की लड़की लग रही थी लगी खरी खोटी सुनाने.. अक्कू तो हसते हुए पीछे खड़ा मज़े ले रहा था और वो लड़की मुझे बुरा भला कह रही थी.. गनीमत है सिर्फ बोलकर चुप हो गई..
सही किया हनी.. आज कल किसका क्या पता? कौन छोटी सी बात पर कोर्ट कचहरी ले जाए.. फिर पुलिस और वकीलों के चक्कर में पिसकर मेहनत की कमाई पानी की तरह बहानी पड़े..
अह्ह्ह.. यार बिल्ले जादू है तेरे हाथों में.. अच्छा किया तूने स्कूल छोड़कर तेरे अब्बा के साथ काम सिख लिया.. पढ़कर वैसे भी तेरा क्या भला हो जाता..
छोड़ा नहीं निकाला गया था और वो भी तेरे और अक्कू के कारण.. दसवीं बोर्ड में पढ़ाई की जगह ब्लू फ़िल्म की डीवीडी देखते थे लाकर मेरे घर पे.. क्या जरुरत थी स्कूल में वो डीवीडी ले जाने की?
यार मुझे क्या पता था उस दिन उस टोपर चश्मिश का टिफिन बॉक्स चोरी हो जाएगा और मुमताज़ मैडम सबके बेग चेक करेंगी.. मैंने तो डीवीडी अक्कू के बेग में छिपाई थी उसने तेरे बेग में छीपा दी तो इसमें मेरा क्या कसूर?
भाई उस दिन का याद करके हंसी और रोना दोनों आते है.. जब मेरे बेग से डीवीडी मिली तो मुमताज़ मैडम मुझे स्टाफ रूम ले गई और नीलेश जी सर के साथ कंप्यूटर में वो डीवीडी चला कर चेक करने लगी..
सूरज हसते हुए - डीवीडी चलते ही मुमताज़ मैडम को तो मज़े आ गए होंगे..
नहीं भाई.. मज़े तो नीलेश जी सर को आये थे साले ने जो बेल्ट निकालकर मुझे मारा आज भी याद है.. ऊपर अब्बू को बुलाकर स्कूल से निकलवा दिया.. घर पर अब्बू ने मारा वो अलग..
भाई तेरा बदला भी तो लिया था हमने.. नीलेश जी सर की नई बाइक जलाकर.. आज भी वो सोचता होगा किसने जलाई होगी?
बिलाल दूकान के बाहर एक चायवाले को देखकर - चाय पियेगा?
नहीं भाई.. इसकी चाय पिने से मुंह का स्वाद और बिगड़ जाएगा.. साला चाय बनाता है या जहर.. पता ही नहीं चलता..
बिलाल हसते हुए उस चायवाले से - नहीं चाहिए..
हनी.. हनी... दूकान के बाहर आकर अंकुश सूरज को आवाज लगाता हुआ..
अक्कू अंदर आजा.. बिलाल ने अंकुश को देखकर कहा..
अंकुश - हनी क्यों बेचारे से फ्री सर्विस लेता रहता है.. एक तो दूकान भी इसकी बहुत मंदी चलती है..
सूरज - दूकान कम चलती है तो क्या मैंने कोई टोना टोटका किया है? और बहनचोद ऐसी दूकान देखकर आएगा कौन? कितनी बार बोला है थोड़ा कलर पेंट करवा, आइना वगेरा नया ले एक नई चेयर ले.. जो दीखता वही बिकता है.. नुक्कड़ पर उस कालू नाइ को देख उसके सलून में सातो दिन कैसे भीड़ लगी रहती है.. साले ने दो लोगों को और काम पर रखा है.. काम तो बिलाल से कम ही आता होगा फिर भी कितनी चलती है.. सब दिखावे का नतीजा है..
अंकुश - भाई पैसे होंगे तब करेगा ना ये सब.. कलर पेंट के भी हो जाए तो आईने और चेयर के कितने पैसे लगते है पता है.. अब चल क्या सामान लाना था तुझे वो लाते है..
बिलाल - रुको भाई.. नज़मा को चाय के लिए बोला है पीके जाना.. वैसे भी दिनभर अकेला बोर हो जाता हूँ तुम लोगों के आने से कुछ अच्छा महसूस होता है..
सूरज - अच्छा सुन.. विनोद का एक दोस्त है दीपक.. ब्याज पर पैसे देता है तेरी थोड़ी मदद हम करते है थोड़ा उससे पैसे लेकर दूकान की हालत सुधार.. कब तक ऐसे ही चलता रहेगा?
अंकुश - हाँ बिल्ले.. हनी सही कह रहा है.. तू यार बचपन से हमारे साथ है.. इतना हम कर सकते है..
बिलाल - नहीं नहीं.. कर्ज़े से खुदा बचाय.. भाई कर्ज़े के नीचे दबकर तो अब्बू अल्लाह को प्यारे हो गए.. जो कुछ था बिक गया.. अब ये छोटा सा मकान और दूकान बचि है इसे नहीं खोना चाहता है.. ये सब भी चला गया तो नज़मा को कहा रखूँगा..
अंकुश - अबे कोनसा लाखों का कर्ज़ा ले रहा है.. मुश्किल से 40-50 हज़ार का खर्चा है आधे हम करते है आधे उधार लेले.. दूकान चली तो दो महीने में सब चुकती हो जाएगा..
सूरज - तेरे पास कितने है?
अंकुश - 10-15 पड़े है मैं डालता हूँ..
सूरज - इतने ही मेरे पास पड़े होंगे.. बाकी उधार लेने पड़ेंगे..
बिलाल - रहने दो यार..
सूरज - अरे तूने बहुत फ्री सर्विस दी भाई.. हम अभी तुझे ट्रांसफर कर रहे है तू कल से दूकान को सुधरवा.. बाकी कल मै दीपक से ला दूंगा..
बिलाल - ब्याज?
सूरज - जो भी होगा देख लेंगे.. 20 के 25 लेलेगा.. और क्या..
नज़मा (25)
नज़मा अंदर से ट्रे में चाय लाती हुई - चाय..
सूरज चाय लेते हुए - कैसी हो भाभी?
नज़मा मुस्कुराते हुए - अच्छी हूँ भाईजान.. आप कैसे हो..
अंकुश - इतवार को लड़की से मार खाते खाते बचा है..
नज़मा हैरानी हुए - ऐसा क्यों?
अंकुश चाय पीते हुए - भाभी अब लड़की के ऊपर गिरेगा तो पीटना तो बनता है.. ये कोई जयपुर दिल्ली मुंबई जैसा बड़ा शहर थोड़ी थी है जो सॉरी बोलकर निकल जाएगा..
नज़मा हसते हुए - ऐसे तो नहीं है भाईजान.. जरुर गलती से गिरे होंगे..
सूरज चाय पीते हुए - सुन लिया? भाभी इतवार से जो भी मिलता सबको यही कहानी सुना रहा है.. अपना भूल गया कैसे उस चालबाज़ लड़की के चक्कर में फंसा था.. वो मैंने बचा लिया था.. वरना घर से जुलुस निकलता इसका..
बिलाल (25) - छोडो यार तुम भी कहा क्या बात लेकर बैठ गए..
नज़मा - चाय कैसी बनी है?
सूरज कप रखते हुए - हमेशा की तरह.. लाजवाब..
अंकुश (24) - हाँ भाभी.. बहुत अच्छी चाय बनी है.. भाई चल अब.. सामान ले आते है..
नज़मा - केसा सामान?
सूरज - भाभी.. आज शाम विनोद को देखने लड़की वाले आ रहे है.. उसके लिए कुछ सामान लाना है..
बिलाल - अच्छी बात है ये तो.. अब तू भी काम धंधा करने लग जा.. कॉलेज से निकले 3 साल हो गये..
नज़मा - हाँ भाईजान.. आप ऐसे बेकार अच्छे नहीं लगते.. कुछ तो काम करो.. फिर एक चाँद सी लड़की देखकर निकाह कर लेना...
अंकुश - मैं तो कब से कह रहा हूँ भाभी.. मेरे साथ आजा पर सुनने को तैयार नहीं.. अरे अच्छी सेलेरी है आराम का काम है और क्या चाहिए? मगर नवाब को घर बैठ सब मिल रहा है.. काम क्यों करेंगे?
सूरज - जब मन होगा तब कर लूंगा भाभी अभी मन नहीं है..
नज़मा - तो क्या मन है अभी?
सूरज - अभी? हम्म्म... सोचा नहीं कुछ..
नज़मा - सोच लो..
अंकुश - ये और सोचे? रहने दो भाभी... अच्छा चल अब..
बिलाल - अक्कू तेरा हेलमेट...
Thanks बिल्ले...
अबे हेलमेट क्यों लाया है? सामान ही तो लेने जाना है.. चल बंसी काका के पास चल पहले..
ठीक है..
बंसी (56)- अरे क्या बात है आज बड़े दिनों बाद दर्शन लाभ देने आये हो.. छोटू चाय बोल दो..
अंकुश - रहने दो.. चाय पीके आये है बंसी काका..
बंसी - तो बताओ.. आज ये जय और वीरू की जोड़ी मेरे पास किस काम से आई है?
सूरज - अब किराने की दूकान पर किराने का सामान ही लेने आएंगे ना काका.. ये लिस्ट है सारा सामान निकाल कर रख दो.. हम तब तक कुछ और लेकर आ जाते है..
बंसी - छोटू ले ये भईया का सामान निकाल दे.. और कहो.. क्या कर रहे हो आज कल? दिखाई नहीं देते.. कभी शाम ढले घर भी आया करो.. बहुत दिन हुये बैठक जमाये..
अंकुश - काका ऐसा है.. पिछली बार हेमलता काकी के हाथों से बाल बाल बचे थे हम दोनों.. अभी भी काकी दूर से हम दोनों को देखकर ऐसे घूरती है जैसे लाल कपड़े को सांड.. जब काकी बाहर जाए तब फ़ोन करना.. आराम से बैठक लागकर बेफिक्री से जाम उठायेंगे..
बंसी - इस इतवार को तुम्हारी काकी जगराते में जायेगी तब आना तुम लोग.. आराम से शराब पिएंगे..
सूरज - काका आप सामान रखवाओ हम आते है बाकी का सामान लेकर..
बंसी - अरे तू क्यों वापस आएगा.. छोटू समान हो गया?
छोटू - हाँ.. सेठ जी निकाल दिया..
बंसी - देख अंदर से एक बड़ा सा थैला ले और भईया का सामान उनके घरपर रख कर आ..
सूरज कार्ड देते हुए - लो काका पैसे काट लो..
बंसी - अरे कोनसी जल्दी है बाद में दे जाना..
सूरज - काट लो काका.. बाद का फिर बाद ही हो जायेगी..
बंसी सामान देखकर बोरी में रखता हुआ हिसाब लगाकर - ले हनी.. हो गया.. छोटू सामान रखवा आ भईया के घर..
अंकुश - ठीक है काका चलते है..
बंसी - सुनो.. मेरे साले ने महंगी बोतल भिजवाई है शहर से.. अभी तक नहीं खोली मैंने.. इतवार को आ जाना घर मिलकर रंग जमाएंगे..
अंकुश - वो सब ठीक है काका.. काकी का ध्यान रखना.. पकडे गए तो बहुत मारेगी आपके साथ हमें भी..
बंसी - वो सब तुम मुझपर छोड़ दो.. याद से आ जाना.. मैं फ़ोन कर दूंगा..
सूरज - हलवाई के ले चल..
अंकुश - कोनसे?
सूरज - मुन्ना मिठाई वाला..
अंकुश हसते हुए - जो लगता है तेरा साला..
सूरज - सुना है सरकारी बाबू बन गया जिससे शादी हुई थी उसकी बहन की..
अंकुश - हाँ.. 6 महीने पहले ही जॉब लगी है..
सूरज - अच्छा है.. कितनी अलग थी यार..
अंकुश - लालची भी थी पर सबको लूट कर तेरे साथ सिनेमा देखती थी.. चाहती तो थी तुझे?
सूरज हसते हुए - मेरे साथ साथ आधे मोहल्ले को भी चाहती थी.. भूल गया?
अंकुश - अरे उन सबसे पैसे लुटकर तो तुझे मोज़ करवाई थी उसने भूल गया?
सूरज - वैसे तेज़ बड़ी थी.. किसी को भी नहीं छोड़ा उसने..
अंकुश - ले आ गए तेरे साले की दूकान पर..
मुन्ना - हाँ क्या चाहिए?
अंकुश - अरे ग्राहक है भईया.. इतना क्यों अकड़ के बोल रहे हो..
मुन्ना - क्या चाहिए बोलो वरना जाओ यहां से..
सूरज - अरे मुन्ना भईया हम दोनों से क्यों नाराज़ हो आप? हमने क्या बिगाड़ा है आपका..
मुन्ना (35) - देखो तुम दोनों को क्या चाहिए वो बोलो.. मेरे पास फालतू टाइम नहीं है.. और मैं कोई बात नहीं करना चाहता तुम दोनों से..
सूरज - अरे नेहा भाभी.. देखो ना मुन्ना भईया कैसे हम दोनों पर बिगड़ रहे है.. हम तो कुछ लेने ही आये है और कोनसा रोज़ रोज़ आते है.. आज विनोद भईया को देखने वाले आये है तो मैंने सोचा पुरे बाजार में सबसे अच्छी मिठाई तो हमारे मुन्ना भईया की दूकान पर बनती है तो ले आते है पर ये तो कितनी रुखाई से बात करते है हमारे साथ..
नेहा (33)
नेहा काउंटर पर आते हुए - इतने भोले बनने की जरुरत नहीं है.. बताओ क्या लेना है तुम्हे?
अंकुश - भाभी ये लिस्ट है मिठाई और बाकी चीज़ो की..
नेहा मुन्ना से - लो जी.. ये सब दे दो.. और मनसुख से कहकर गर्म समोसे निकलवाना..
मुन्ना जाकर मिठाई और सामान पैक करने लगता है और इधर नेहा मुन्ना को काम बिजी देखकर हनी से कहती है - सिर्फ तुम्हारे भाई को देखने वाले आ रहे है? तुम्हे देखने वाले नहीं आ रहे?
सूरज - अब मुझ बेरोज़गार को कौन देखने आएगा भाभी.. अक्कू की जैसे कामधंधा करता तो मेरी भी सगाई हो गई होती..
नेहा - तो करते क्यों नहीं हो? अच्छा लगता है ऐसे आवारा की तरह घूमना फिरना? पहले तो मेरी ननद चिंकी तेरे खर्चे उठा लेती थी अब कौन उठाएगा? कोई और पटाई या नहीं?
चिंकी (26)
अंकुश - भाभी लड़की पटाना इसके बस में कहा? वो तो चिंकी ने ही इसे पटाया था.. वरना आज तक कोई नहीं पटती इससे..
सूरज - भाभी... अक्कू झूठ बोल रहा है...
नेहा पीछे मुन्ना को देखकर - जानती हूँ.. लड़की से बात करना तो आता नहीं इसे.. चिंकी की सहेली प्रिया बता रही थी उसने हनी को लव लेटर दिया था अनु की शादी में.. इसने टिश्यू समझकर हाथ पोंछ के फेंक दिया..
अंकुश हसते हुए - क्या सच में भाभी..
मुन्ना आते हुए - तुम्हारे हो गए 2250..
सूरज कार्ड देते हुए - लो भईया काट लो..
नेहा कार्ड लेकर मुन्ना से - अरे ये क्या तुमने सबकी बाज़ारी रेट लगा दी.. सुमित्रा चाची मिलेंगी तो बहुत नाराज़ होगी..
मुन्ना बिगड़ते हुए - तुम बड़ी तरफदारी करती हो इनकी.. ये कोनसे घर के है? बाज़ारी रेट नहीं लगाऊ तो क्या लगाऊ?
नेहा - घर वाली रेट लगाओ.. बेचारे कितने सीधे साधे मासूम से है.. तुम इन्हे कितना कुछ कहते हो पर पलटकर जवाब तक नहीं देते.. तुम्हे भईया कहते है मुझे भाभी.. मैं देवर ही मानती हूँ इन दोनों को.. अगर बाज़ारी दर पर इन्हे भी सामान देने लगी तो क्या सोचेंगे?
मुन्ना - देखो मुझे ये पाठ मत पढ़ाओ तुम.. इन दोनों को अच्छे से जानता हूँ मैं.. और ये हनी... ये तो उस दिन मेरे हाथों से बच गया वरना..
नेहा - वरना क्या? तुम्हारी बहन तो आधे मोहल्ले के साथ घूमी थी इस बेचारे का क्या दोष? इसे तो उसी ने अपने साथ साथ दुनिया दिखाई है.. तीन साल छोटा भी तो है तुम्हारी बहन से.. वही इसे लेकर अपने साथ घूमती थी.. बहन को समझा नहीं पाए बेचारे लड़के पर बिगड़ते हो.. लो हनी 1780 हुए..
मुन्ना - अब तुम इन बाहर वालों के सामने मुझसे लड़ाई झगड़ा करोगी?
सूरज - भईया ऐसा कहकर दिल मत तोड़ो.. हम दोनों आपके छोटे भाई जैसे है..
मुन्ना - बहनचोदो... ये सामान उठाओ और निकलो यहां से.. फालतू रिश्ते नाते मत बनाओ..
अंकुश सामान लेकर - चल हनी..
सूरज - ठीक है.. चलता हूँ भाभी..
नेहा प्यार से - आहिस्ता जाना.. देवर जी..
मुन्ना - इतनी चिंता है तो तू भी चली जा उनके साथ.. बात तो ऐसे करती है जैसे सच मुच के देवर हो.. या तेरा भी दिल आ गया उस छिले हुए अंडे पर..
नेहा - अरे भूसा भरा है क्या दिमाग मैं? या फिर वापस सडक पर समोसे बेचना का मन है.. महीने में जो एक-दो बड़े शादी ब्याह के ऑर्डर मिलते है वो सब उन दोनों के कहने पर ही आते है जिससे ये दुकान चल रही है.. वरना दूकान का किराया भी नहीं निकले.. और ऊपर से अनाप सनाप ना जाने क्या क्या कह जाते हो तुम उस लड़के को.. अरे जवान है नादानी हो जाती है... तुम्हारी बहन कम थी क्या? बात करते हो.. अब छोडो इन बातों को.. दूकान सम्भालो.. मैं ऊपर देखकर आती हूँ गुलाब जामुन तैयार हुए या नहीं..
मुन्ना अपना सा मुंह लेकर - ये तो यही बैठकर फ़ोन करके पूछ लो.. मैं बच्चों को स्कूल से ले आता हूँ..
नेहा - ठीक है..
हलवाई की दूकान से निकलकर अंकुश सूरज को लिए उसके घर आ पंहुचा और उसे घर उतार कर अपने घर चला गया..
तुझे कहा था जल्दी आ जाना.. कहा रह गया था तू? और मोहल्ले में बाकी हलवाई मर गए थे जो उस मुन्ना की दूकान पर से मिठाईया लेकर आया है.. शर्म वर्म कुछ है या बेच खाई है तूने? उस कलमुही के चक्कर में कितना कुछ सुनना पड़ा था याद है या भुल गया?
विनोद (28) - छोडो ना माँ.. बेचारे को सांस तो लेने दो.. आते ही डांटना शुरू कर दिया आपने.. हनी तू ये सामान मुझे दे मैं रसोई में रख देता हूँ, तू ये मेरी बाइक की चाबी ले और जाकर अनुराधा बुआ को ले आ..
अनुराधा (54)
पर पापा गए थे ना अनुराधा बुआ को लेने तो?
उनको ऑफिस से बुलावा आ गया था तो जाना पड़ा शाम से पहले आ जाएंगे.. तू जा और जाकर बुआ को ले आ.. नहीं तो वो बहुत नाराज़ होगी.. और मुझे चार बातें सुनाएगी..
माँ जब से नया अफसर आया है तब से पापा को कुछ ज्यादा बुलावा नहीं आता ऑफिस से? वक़्त बेवक़्त हाजिर होने का हुक्म सुना देता है?
आया नहीं हनी आई है.. सुना बहुत खड़ूस अफसर है.. पापा बता रहे थे टाइम टू टाइम रहती है बिलकुल.. और सभीको पाबंद किया हुआ है.. चार महीने में सारी पुरानी फाइल्स जो दस दस पंद्रह पंद्रह साल से अटकी पड़ी थी सबको निकाल दिया है.. ऑफिस में कुछ लोगों ने तो अपने ताबदले की अर्जी डाल दी है कुछ लोगों ने अपने पकडे जाने के दर से सारे गलत काम सुधार लिए है..
सूरज हसते हुए - अच्छा? लगता है कोई हमारी स्कूल प्रिंसपल जेसी होगी.. Discipline is discipline..
नहीं.. पापा बोल रहे थे अभी हाल ही में उसका सिलेक्शन हुआ है 22-23 साल उम्र है.. तेरी तरह..
लो.. यहां 23 साल की लड़की अफसर बनकर नोकरी कर रही है और एक ये है 23 साल की उम्र में दोपहर तक सोयेगा और पूरा दिन खाली फोकट आवारागर्दी करता फिरेगा.. एक छोटी सी नोकरी भी नहीं कर सकता.. वरना लगे हाथ तेरे साथ इसका भी कहीं रिश्ता देखकर एक ख़र्चे में दोनों को निपटा देते..
सूरज चाबी लेकर अपने बड़े भाई विनोद की बाइक स्टार्ट करके घर से आधे घंटे दूर शहर की एक दूसरे मोहल्ले में आ जाता है और एक घर के आगे बाइक लगाकर बाहर दरवाजे पर घंटी बजाता है..
अंदर से 29 साल की औरत सलवार कमीज पहने दरवाजे पर आती है दरवाजा खोलकर सूरज को देखते हुए कहती है..
रचना (29)
औरत मुस्कुराते हुए - देवर जी.. जब दरवाजा खुला है तो घंटी क्यों बजाते हो? सीधा अंदर क्यों नहीं चले आते?
अंदर से कोई आवाज लगाते हुए - कौन है रचना?
रचना - देवर जी है सासु माँ.. सीधे अंदर आने में शर्म आती है इनको..
सूरज - भाभी बुआ को लेके जाना था..
रचना सूरज का हाथ पकड़ कर अंदर खींचते हुए - अरे अंदर तो आओ देवर जी.. भाभी खा थोड़ी जायेगी तुम्हे.. तुम तो मुझसे ऐसे डरते हो जैसे शेरनी से खरगोश.. मैंने कुछ किया थोड़ी है..
अनुराधा - अरे क्यों छेड़ती रहती है तू इसे? बेचारा कितना सहम जाता है तेरे सामने..
सूरज - बुआ चले?
रचना - देवर जी सिर्फ अपनी बुआ को लेकर जाओगे? अपनी भाभी से पूछोगे भी नहीं चलने के लिए? इतने मतलबी मत बनो..
सूरज - मैंने कब मना किया है.. आप भी चलो.. पर बाइक पर तीन लोग बैठ नहीं पाएंगे.. मैं कैब बुक कर देता हूँ..
अनुराधा - अरे रहने दे हनी.. रचना बस पूछ रही है.. तू चल..
रचना सूरज का हाथ पकड़कर गाल सहलाते हुए - सासुमा.. देवर जी की बात चलाइये ना मेरी छोटी बहन से.. बेचारे कब तक किसी की छत पर जाकर बैठेंगे..
सूरज और अनुराधा दोनों समझ गये थे की रचना उस दिन की बात कर रही है जब एक साल पहले सूरज चिंकी के घर पर उसके घर की छत पर चिंकी से मिलने गया था और उसके बड़े भाई मुन्ना ने उसे चिंकी के साथ पकड़ लिया था.. तभी से रचना सूरज को बात बात मे छेड़ती और उसके करीब आ कर अपनी छोटी बहन रमना से उसके रिश्ते की बात कहकर उसे तंग करती थी.. आज भी रचना कुछ वैसा ही कर रही थी..
अनुराधा - अरे बारबार वही बात करके क्यों बेचारे को शर्मिंदा करती है तू.. मेरा फूल सा हनी आ गया उस कलमुही के बहकावे में.. अब छोड़ वो बात..
रचना - देवर जी.. मेरी सासु माँ को वापस भी छोड़कर जाना..
अनुराधा - रचना.. मुन्ने को संभाल अंदर जाकर.. रात तक मैं वापस आ जाउंगी.. चल हनी..
सूरज - बुआ ठीक से बैठना..
सूरज बाईक स्टार्ट करके शहर की पुरानी गलियों से होता हुआ वापस अपने घर की तरफ आ जाता है..
अनुराधा घर के अंदर आते हुए - सुमित्रा अभीतक रसोई का काम भी नहीं निपटा तुमसे? 6 बजने वाले है.. जयप्रकाश भी ऑफिस से वापस नहीं आया अब तक?
विनोद - बुआ बात हुई है बस आने ही वाले है..
सुमित्रा - दीदी बस निपट गया छोटे मोटे काम बाकी है.. आप बैठो मैं चाय बना देती हूँ आपके लिए..
अनुराधा हॉल में रखे सोफे पर बैठते हुए - नहीं.. चाय सबके साथ पी लुंगी.. बस एक गिलास पानी दे दे..
विनोद - मैं लाता हूँ बुआ..
सुमित्रा - दीदी.. लो आ गए वो भी..
जयप्रकाश (52) अनुराधा के पैर छूते हुए - कैसी हो दीदी..
अनुराधा - मैं ठीक हूँ जीतू.. तू कमजोर नज़र आने लगा है..
जयप्रकाश अनुराधा के पास बैठते हुए - दीदी आपको तो हमेशा मैं कमजोर ही नज़र आता हूँ..
अनुराधा - अच्छा लड़की वाले कहा रह गए?
जयप्रकाश - दीदी स्टेशन पर पहुंच गए है.. नरपत उन्हें लेकर आ रहा है.. आधा घंटा लग जाएगा..
अनुराधा - ठीक है.. ये हनी कहा गुम हो जाता है पलक झपकते ही..
विनोद - ऊपर कमरे में होगा बुआ.. कोई और काम ना कह दे इसलिए चुपचाप अपने कमरे में चला गया होगा..
अनुराधा - क्या होगा इस लड़के का? कहा था इतना लाड प्यार से मत रखो.. पर जीतू ना तूने मेरी बात मानी ना सुमित्रा ने... अब देखो.. ना पढ़ाई में अच्छा है ना किसी और चीज में.. बस मुंह लटका के आलसी की तरह घर में पड़ा रहता है या इधर उधर घूमता फिरता है.
जयप्रकाश - दीदी.. अब क्या करें.. किसी की सुनता कहा है वो.. बस अपने ही मन की करता है.. विनोद की सगाई होते ही सूरज को विनोद सूरज को उसके ऑफिस में लगवा देगा.. उसने बात की है अपने ऑफिस में..
अनुराधा - बस अब यही देखना बाकी था.. अरे उसपर थोड़ा ध्यान दिया होता तो वो भी विनोद और नीलेश की तरह कहीं ना कहीं अच्छी नोकरी करता..
जयप्रकाश - छोडो ना दीदी.. पढ़ाई में कमजोर है तो क्या हुआ.. बहुत बुद्धि है उसमे.. कुछ ना कुछ कर लेगा..
अनुराधा - सुमित्रा..
सुमित्रा रसोई से आती हुई - हाँ दीदी..
अनुराधा - रसोई का काम हो गया या मैं मदद करू?
सुमित्रा - ख़त्म है दीदी..
अनुराधा - ख़त्म है तो हॉल में थोड़ा झाड़ू लगा दे और जीतू तू ये सोफे थोड़े और पीछे सरका दे.. ज्यादा लोग है बैठने आसानी होगी..
जयप्रकाश - ठीक है दीदी.. मैं साइफ सरका देता हूँ और एक्स्ट्रा चेयर भी रख देता हूँ..
विनोद - क्या हुआ बंधु? कैसे कमरे में बंद हो गए ऊपर आकर?
सूरज - कुछ नहीं भईया.. वो बस ऐसे ही..
विनोद - मेहमान आने वाले है.. नीचे रहेगा तो अच्छा होगा.. यहां इस कमरे में पड़े रहना है तो अलग बात है..
सूरज - मैं आता हूँ..
विनोद एक बेग देते हुए - तेरे लिए है.. तू तो पज़ामे टीशर्ट के अलावा कुछ ख़रीदेगा नहीं.. इसमें से कुछ पहन लेना.. अच्छा लगेगा..
सूरज - ठीक है भईया..
विनोद नीचे आ जाता है और अपने पीता जयप्रकाश और बुआ अनुराधा के साथ हॉल में बैठ जाता है..
घर के बाहर एक कार आकर रूकती है और उसमे से दो पचास साल के करीब के आदमी नीचे उतरते है फिर एक उसी उम्र के करीब की महिला उतरती है और आखिर में एक लड़की जिसकी उम्र करीब 25-26 साल थी.. कार वाला चारो लोगों को छोड़कर चला जाता है..
गरिमा (26)
जयप्रकाश - लगता है दीदी वो लोग आ गए..
एक आदमी अंदर आते हुए - कैसे हो जीतू?
जयप्रकाश - मैं अच्छा हूँ नरपत.. तुम बताओ..
नरपत - मैं भी ठीक.. इनसे मिलो ये लखीमचंद जी है ये उनकी धर्मपत्नी उर्मिला और ये है गरिमा बिटिया.. लखीमचंद जी.. ये है जयप्रकाश जी.. ये उनकी माँ सामान बड़ी बहन अनुराधा और ये लड़का विनोद.. जीतू भाभी कहाँ है?
जयप्रकाश - हाँ.. सुमित्रा.. सुमित्रा?
सुमित्रा रसोई से आती हुई - जी नमस्ते..
नरपत - जी ये है लड़के की माँ सुमित्रा भाभी..
जयप्रकाश - जी आइये बैठिये..
सुमित्रा - मैं चाय लेकर आती हूँ..
लखीमचंद (54) - जी इतने ही लोग है आपके परिवार में.. नरपत जी बता रहे थे एक छोटा लड़का और है..
जयप्रकाश - हाँ वो ऊपर अपने कमरे में होगा.. नया खून है कहा हमारे साथ यहां बैठकर बात करेगा..
सूरज नहाने के बाद विनोद के दिए कपड़े निकाल कर एक डार्क ब्लू जीन्स और महीन सूती धागे से बनी बैंगनी प्लेन शर्ट पहनते हुए अपने बाल बनाकर नीचे आ जाता है..
जयप्रकाश - लो आ गया.. ये है हनी.. विनोद का छोटा भाई..
उर्मिला - अरे.. ये तो बहुत प्यारा है.. आपका बड़ा लड़का चाँद का टुकड़ा है तो छोटा लड़का पूरा चाँद..
उर्मिला (46)
अनुराधा - सुमित्रा चाय नहीं आई?
सूरज - मैं लाता हूँ..
सूरज रसोई में जाकर - क्या हुआ माँ?
सुमित्रा - कुछ नहीं.. दीदी को भी एक पल का सब्र नहीं है.. चाय बनने में समय लगता है या नहीं? जब देखो कुछ ना कुछ कहती रहती है.
सूरज प्यार से - पहले ही बनाकर रखनी थी ना आपको.. बोलते ही गर्म करके दे देती.. लो उबाल आ गया अब डाल दोनों मैं ले जाता हूँ.
सुमित्रा मुस्कुराते हुए - नहीं तू रहने दे हनी.. तू ये नाश्ता लेकर जा और टेबल पर रख दे मैं चाय लाती हूँ.
सूरज - लाओ दो..
सूरज नाश्ता लाकर सोफे के बीच टेबल पर रख देता है और सुमित्रा चाय लाकर सबको देती हुई जयप्रकाश के पास बैठ जाती है..
नरपत माध्यस्था करते हुए दोनों पक्षो को एक दूसरे के बारे में बातें बताते है और उनकी जिज्ञासाओ को शांत करते है.
कुछ देर बाद गरिमा और विनोद को अकेले बातचीत करने के लिए छत पर भेजा जाता है.
गरिमा - जी आप भी GN नेशनल कंपनी मे काम करते है?
विनोद - कोई और भी करता है?
हाँ मेरी एक दोस्त है वो भी यही काम करती है.
अच्छा.. तुमने काम करने की नहीं सोची?
नहीं.. पापा बोले लड़किया काम नहीं करती बल्कि घर संभालती है.. BA के बाद घर पर रहती हूँ.
सही कहते है तुम्हारे पापा.. और हमारे खानदान में लड़कियों से काम नहीं करवाया जाता.. तुम्हे काम करने की इच्छा है तो पहले ही बता देना.
नहीं.. मैं पूछ रही थी.. आपके क्या हॉबी है?
कोई हॉबी नहीं है.. सुबह से शाम तक ऑफिस फिर घर.. सुबह वापस ऑफिस.. बस..
जी.. आप शराब पीते है?
हाँ... मगर मम्मी पापा से छुपकर.. तुम्हे ऐतराज़ हो बता देना.. कोई जबरदस्ती नहीं है.. वैसे तुम्हारा कोई बॉयफ्रेंड वगैरह तो नहीं है ना?
जी??
बॉयफ्रेंड.. आज कल तो ये आम बात है.. मुझे पुरानी कहानियाँ पसंद नहीं.. जो है वो है.. बिना मर्ज़ी के में शादी नहीं करना चाहता..
नहीं.. कोई नहीं.. आपकी गर्लफ्रेंड?
थी.. बहुत सी थी मगर अभी कोई नहीं..
शादी के बाद?
शादी के बाद क्या? बीवी तो परमानेंट रहती है ना.. बाकी तो आती जाती रहती है.. मगर तुम फ़िक्र मतकरो.. मैं ऐसा कुछ नहीं करूंगा कि तुम्हे तकलीफ हो.. मेरे साथ शादी के बाद तुम यहां अच्छे से ही रहोगी.. तुम्हे किसी बात का कस्ट नहीं होगा.. और कुछ पूछना है तुम्हे?
नहीं.. आपको?
नहीं.. नरपत अंकल से सब पूछ लिया था.. तुम्हे घर का सारा काम आता है और उतना बहुत है मेरे लिए.. आखिरी उससे ज्यादा मुझे और चाहिए भी क्या?
लो आ गए दोनों बात करके.. आओ बेटा.. बैठो.. कहो क्या विचार है?
अनुराधा - बोल विनोद? पसंद है?
विनोद - जी बुआ..
अनुराधा लखीमचंद से - आप पूछ लो अपनी बिटिया से.
लखीमचंद - इसमें पूछना क्या है बहन जी.. नरपत जी ने सब तो बताया है आपके बारे में.. और ना करने का सवाल ही कहाँ उठता है.. लड़का पढ़ा लिखा नोकरीपेशा है घर परिवार वाला खानदानी है और क्या चाहिए? हमारी तरफ से हाँ है..
सूरज हॉल में एक तरफ खड़ा हुआ सब कुछ होते हुए अपनी आँखों से देख रहा था और चाय का स्वाद लेते हुए रसोई में काम कर रही अपनी माँ सुमित्रा से कह रहा था
अब आपको काम नहीं करना पड़ेगा.. काम करने वाली जो आने वाली है..
पीता लखीमचंद की बोली बात गरिमा के लिए जैसे पत्थर की लकीर.. जो बोल दिया सो बोल दिया.. अब कौन उसे बदले और बदलने की कोशिश करें.. गरिमा की हाँ ना का क्या महत्त्व? उसे तो अपने पीता की बात माननी थी..
गरिमा आँखों में अजीब उदासी और सुनापन भरे सोफे के किनारे पर बैठी अपनी ही सोच में गुम थी विनोद उसे बुरा नहीं लगा था मगर विनोद ऐसा भी नहीं था की गरिमा को भा जाए.. गरिमा एक नटखट चंचल और थोड़ा बहुत शैतान लड़का चाहती थी जो उस जैसी सीधी साधी मासूम सी दिखने वाली लड़की को हंसाए और प्यार से अपनी शरारतों से खुश रख सके मगर नियति को जो मंज़ूर था वो गरिमा के नसीब में लिखा जा रहा था.. उसके नसीब ने विनोद आने वाला था.. दोनों तरफ से बात पक्की हो चुकी थी और अब सगाई की तारीख के लिए पंडित को भी बुलवा लिया गया था जो आकर झट से सगाई की तारीख तय कर गया था.. सब इतना जल्दी हुई की गरिमा को ये सब ऐसे लग रहा था जैसे कोई सपना हो.. सगाई के लिए अगले दो हफ्ते बाद आठवीं तारीख सुझाई गई थी और शादी के लिए 6 महीने बाद की..
खाने के लिए सब बैठ चुके थे और जाने अनजाने में रसोई के बाहर खड़े सूरज ने गरिमा के चेहरे को देखते हुए उसकी आँखों में छिपी उदासी और मज़बूरी को पढ़ लिया था.. ऐसी ही उदासी और मज़बूरी कुछ साल पहले उसकी आँखों में भी तो थी..
उसके मन का हाल जो वो किसी से कह देना चाहता था मगर कह ना सका था.. ना ही जिसे उसके दिल का हाल और आँखों की उदासी पढ़ लेनी चाहिए थी उसने उसे पढ़ा था.
सूरज को महसूस हो रहा था कि जो हो रहा है उसमे गरिमा कि मर्ज़ी मौखिक हो मगर अंदर से वो विनोद को नहीं स्वीकार कर पाएगी.. शायद उसकी पसंद विनोद नहीं बन पायेगा..
खैर.. जब सब हो ही चूका है और सगाई की तारीख भी निकल चुकी है तब इन बातों का क्या फ़ायदा? और वो कर ही क्या सकता है इसमें? अगर गरिमा को ये रिश्ता नहीं पसंद तो वो खुद कह दे.. या फिर किसी से इसका इज़हार करे.. मन की मन में रखने से क्या होगा?
क्या देख रहा है हनी? आजा खाना खा ले.. अनुराधा ने मुस्कुराते हुए कहा तो हनी ने जवाब दिया - बुआ भूक नहीं है आप खा लो..
ठीक है तू कहीं चला ना जाना.. खाने के बाद मुझे घर छोड़ आना..
भाभी आज यही क्यों नहीं सो जाती?
नहीं सुमित्रा.. रचना बच्चे के साथ अकेली होगी..
नीलेश भी आजकल देर से आता है जाना तो पड़ेगा..
जयप्रकाश - लीजिये भाईसाहब शुरू कीजिये..
सब मिलकर खाना खाने लगे और खाने के बाद वापस सोफे पर बैठ कर हसते मुस्कुराते हुए आगे की योजनाओं और मनोकामनाओ से एक दूसरे को अवगत करवाने लगे.. मगर सूरज अभी भी गरिमा को ही देखे जा रहा था जिसके प्रकाशमान चेहरे पर अमावस्या का अंधकार आँखों से झलकता था जिसे देखने के लिए और महसूस करने के लिए दिल में विराह की वेदना रखना जरुरी है.. सूरज ये सब देख सकता था महसूस कर सकता था..
सुमित्रा ने ऊपर कमरे में लख्मीचंद और उर्मिला का बिस्तर लगा दिया और आगे वाले सूरज के कमरे में गरिमा का..
विनोद और जयप्रकाश नीचे ही सोने वाले थे और अगल वाले कमरे में सुमित्रा..
सूरज का कोई ठोर ठिकाना ना था.. शायद उसे हॉल में उस सोफे पर ही सोना पड़ता जिसपर अभी गरिमा अपना उदासी भरा चेहरा लिए बैठी है..
सूरज अनुराधा को उसके घर छोड़ने चला गया था और रात के साढ़े 9 बजते बजते वो अनुराधा को उसके घर छोड़ देता है जहाँ अनुराधा के बेटे नीलेश की पत्नी एक बार फिर सूरज को अपने हास्यरस की गठरी में बाँध लेने के प्रयास करती हुई कहती है..
ओ हो.. क्या बात है देवर जी.. काले और नीले के अलावा भी कुछ पहनते हो.. वैसे जीन्स शर्ट में हीरो लगते हो.. अब बात कर ही लेनी चाहिए सासुमा.. देवर जी के लिए मेरी छोटी बहन की..
बुआ समझाओ ना भाभी को..
रचना छोड़ दे उसे.. ले ये खाना रसोई मे रख दे.. और निलेश से बात हुई?
आज भी दस बजे के लिए बोला है सासु माँ.. देवर जी कुछ लोगे?
नहीं मैं चलता हूँ..
हम्म.. जाओगे ही.. नई भाभी जो आने वाली है पुरानी से अब क्या मतलब रखने लगे?
ऐसा नहीं है भाभी..
जैसा है मुझे पता है देवर जी.. आखिर अपने अपने ही होते है..
अरे रचना क्यों तू भी बार बार उसे छेड़ने लगती है.. बेचारा पहले ही तेरे डर से यहां आने में शर्माता है.. तू घर जा हनी.. तेरी भाभी तो बस मसखरी करना ही जानती है..
हनी वहा से वापस अपने घर के लिए निकल पड़ता है मगर रास्ते में बिलाल की दूकान पर उसे अंकुश नज़र आता है और वो भी दूकान के सामने बाइक खड़ी करके अंदर आ जाता है..
बिलाल किसी की शेविंग बना रहा था और अंकुश पीछे कुसी पर बैठा अपनी माशूका से बात कर रहा था..
ये कब से यहां बैठा है?
तुझे घर छोड़ने के बाद सीधा यही आया था और तभी से फ़ोन पर लगा हुआ है?
सूरज अंकुश का फ़ोन छीनता हुआ - दिन रात की कुछ खबर है मेरे रांझे? तेरी माँ का फ़ोन आया था पूछ रही थी तेरे बारे में..
अंकुश झट से फ़ोन वापस लेता हुआ - बात कर ली मैंने जा रहा हूँ घर.. तू यहां क्या कर रहा है?
बस देखने चला आया..
तो कुछ ले ही आता खाने को.. इतना सब घर लेके गया था कुछ तो बचा होगा?
मुझे ख्वाब थोड़ी आया था तू यहां भूखा बैठा होगा..
चल कोई ना.. तेरे भाई के दोस्त से बात की तूने पैसो की?
नहीं.. भईया से पैसो का बोला उसे लगा मुझे पैसे चाहिए.. बिना कुछ कहे की मेरे आकउंट में पैसे डाल दिए.. अब उधार लेने की जरुरत नहीं पड़ेगी.. बिल्ले कल से दूकान का काम शुरू कर दे..
बिलाल - भाई तुम्हारे जैसे यार हो तो फिर क्या ग़म है..
अच्छा अब घर जा.. मैं भी जाता हूँ.. चल ठीक है बिल्ले.. मिलते है..
बिलाल - ठीक है भाइयो..
नज़मा - कब तक दूकान खुली रखेंगे? खाना नहीं खाना आज?
नहीं बस बंद ही कर रहा था.. हनी आ गया था.. चलो..
क्या कह रहे थे भाईजान?
कह रहा था दूकान की मरम्मत करवा लेनी चाहिए और नई कुर्सी और आइना भी ले लेना चाहिए..
पर उसके लिए पैसे कहा है? मुश्किल से दिन में दो तीन लोग आते है दूकान पर..
हाँ पर इस बार उसी ने पैसे भी दिए इसके लिए और अक्कू ने भी.. किस्मत अच्छी है दोनों से मेरी दोस्ती है.. बहुत साथ दिया है दोनों ने मेरा..
पर अगर पैसे वापस नहीं दे पाए तो?
अरे कुछ तो अच्छा बोल नज़मा तू भी ना.. अम्मी सो गई?
हाँ... दवा खाके सोई है.. आप मुंह हाथ धोलो मैं खाना लगाती हूँ..
खाना खाकर अगले दिन दूकान की मरम्मत करवाने और दूकान को नया कर देने के ख़्वाब देखता हुआ बिलाल नज़मा के बगल में खुली आँखों से सोने की कोशिश कररहा था.. उसकी आँखों में बेहतर भविष्य के कई सुनहरे ख्वाब तेर रहे थे..
सूरज घर पंहुचा तो सुमित्रा ने उसे खाने के लिए कहा मगर आज सूरज भूक ना थी उसने फ्रीज़ से एक पानी की बोतल निकाल ली और ऊपर जाने लगा..
अरे हनी कहा जा रहा है?
ऊपर.. अपने कमरे में..
वहा तेरी होने वाली भाभी सोने वाली है आज तू वही सोफे पर सोजा..
ठीक पर मुझे कमरे से कुछ लाना है..
ले आ.. और भूक लगे तो खाना गर्म करके खा लेना..
ठीक है...
सूरज ऊपर जाकर अपने कमरे के दरवाजे पर दस्तक देता है..
अंदर आ जाइये.. एक मीठी सी मधुर आवाज सूरज के कानो में पड़ी तो वो दरवाजा धकेलते हुए अंदर आ गया जहाँ उसने देखा की गरिमा उसके गद्दे पर बैठी हुई उसकी जमा की हुई किताबो में से एक किताब पढ़ रही है.. सूरज बिना कुछ कहे अपनी किताबो में से एक एक किताब उठाकर वापस जाने लगता है की गरिमा बोल पडती है..
सूरज..
सूरज मुड़कर सवालिया आँखों से गरिमा को देखता है गरिमा कहती है...
यही नाम है ना तुम्हारा? ये सब किताबें तुम्हारी है? तुम्हे किताबें पढ़ना अच्छा लगता है?
जी.. सूरज ने दबी हुई आवाज में कहा और पलट गया तभी गरिमा ने वापस कहा - अभी कोनसी किताब पढ़ रहे हो..
सूरज पलटकर एक नज़र गरिमा को देखता है और फिर नज़र झुका कर कहता है - पुराना उपन्यास है..
गरिमा हलकी सी मुस्कान अपने चेहरे पर सजाते हुए - कोनसा?
सूरज - अधूरी ख्वाहिश..
गरिमा - ये तो कामना वैद्य का लिखा हुआ है ना? बहुत ही दुखद अंत है कहानी का.. और क्या पसंद है तुम्हे?
सूरज - मुझे? मुझे तो सब पसंद है.. पर मेरी पसंद नापसंद आप क्यों पूछ रही हो? और आपको देखकर लगता नहीं कि आप इस रिश्ते से खुश है..
गरिमा - तुम ये कैसे कह सकते हो? नीचे तुम्हारी निगाह मेरे ऊपर ही थी.. नीचे तुम मुझे ही देखे जा रहे थे.. है ना?
सूरज - हाँ पर आपकी आँखों से लग रहा था आप उदास हो.. इसलिए..
गरिमा मुस्कुराते हुए - बड़े जादूगर हो तुम तो.. आँखों से मन का हाल पढ़ लेते हो.. लगता है किताबो ने बहुत कुछ सिखाया है तुम्हे या फिर किसीने बहुत दिल दुखाया है..
सूरज - आप मना क्यों नहीं कर देती इस ताल्लुक से..
गरिमा गद्दे से उठते हुए - मेरे बस में क्या है? तुम्हारे भईया अच्छे है सच्चे है.. शायद मैं उनके लायक़ नहीं..
सूरज - मज़बूरी में बना रिश्ता किसीको सुखी नहीं रख सकता.. आपके एक फैसले से दो जिंदगी तबाह हो सकती है.. एक बार फिर से आप सोच लीजिये..
गरिमा सूरज कि तरफ कदम बढ़ाते हुए - मेरा फैसला? मेरे हाथ ये फैसला था ही कब सूरज? मैं तो एक कटपुतली हूँ जिसकी डोर पीता से पति के हाथ में दी जा रही है.. मेरी मर्ज़ी से फर्क नहीं पड़ता.. तुम मुझे पानी ला सकते हो?
सूरज - जी.. मैं अभी ला देता हूँ..
सूरज नीचे फ्रीज़ से पानी की बोतल निकालकर वापस गरिमा के पास आ जाता है और पानी की बोतल देते हुए कहता है - पानी.. इसे वहां सिरहाने रख लीजिये.. बाहर बालकनी की तरफ बाथरूम है.. और चादर उस अलमारी में..
गरिमा धीमी आवाज में - सूरज..
सूरज - जी..
गरिमा - कुछ नहीं..
सूरज नीचे सोफे पर आकर लेट जाता है और जो बात उसके और गरिमा के बीच हुई उसे सोचने लगता है कि पीता कि इच्छा से गरिमा बेमन से अपनी जिंदगी का इतना बड़ा फैसला कर रही है और ना चाहते हुए भी विनोद से शादी कर रही है.. विनोद में कोई कमी तो ना थी मगर वो औरत का मन नहीं पढ़ सकता था उसके सुख दुख और अन्य भावो से वो अनजान था.. वो एक प्रैक्टिकल आदमी था जो भावनात्मक होना कमजोरी मानता था.. हालांकि विनोद ने अपनी सारी जिम्मेदारी अच्छे से निभाई थी फिर उसे लगता था कि जीवन में भावना से घिर जाना कमजोरी है..
सूरज जो किताब ऊपर अपने कमरे से ले आया था उसे पढ़ने में उसका आज जरा भी मन नहीं था उसने किताब सोफे के आगे टेबल पर रख दी और गरिमा के बारे में सोचने लगा...
फूल सी कोमल काया और चन्द्रमा के सामान उजले मुख की स्वामिनी गरिमा जिसने सूरज को देखकर सटीक अंदाजा लगा लिया था की उसका दिल किसीने दुखाया है सूरज इसी सोच में था कि क्या किताबें किसी के मन पढ़ने की कला को भी सीखलाती है?
ये सचते हुए उसे अपने पुराने दिनों कि याद आने लगी.. कॉलेज का पहला ही तो दिन था जब उसने एक लड़की को अपने दोनों कान पकडे सीनियर के सामने खड़े देखा था.. जो उस लड़की से कभी गाना सुन रहे थे कभी कान पकड़ कर नीचे बैठने तो कभी ऊपर खड़े होने को कह रहे थे..
अरे तू.. हाँ तू.. इधर आ.
एक कॉलेज की सीनियर स्टूडेंट ने सूरज की तरफ इशारा करते हुए उसे करीब आने कहा और फिर सूरज को भी लड़की के साथ खड़ा कर दिया.
सूरज ने भी उस लड़की की तरह अपने दोनों कान पकड़ लिए और सीनियर के कहे अनुसार ही सब करने लगा..
8-10 सीनियर मंडली जमा कर नये नये कॉलेज आये स्टूडेंट से मन मुताबिक काम करवाते हुए मज़े ले रहे थे
बस बस आज के लिए बहुत है.. चलो अब चलते है..
सूरज ने जब अपने बदल में खड़ी लड़की को देखा तो वो देखता ही रह गया था.. एक बड़ा सा चश्मा लगाए ये लड़की भी सूरज को ही देख रही थी और उसीने सूरज का बाजू पकड़ कर उसे ख्याल के आकाश से धरती पर लाते हुए कहा - सब चले गए..
सूरज - हम्म.. तुम.
लड़की - मैं गुनगुन.. तुम?
गुनगुन (23)
सूरज - मैं... मैं.. मैं सूरज...........
गुनगुन सूरज के हकलाने से खिलखिला कर हसने लगती है....
Next update jaldi aayega..
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गुनगुन सूरज के हकलाने से खिलखिला कर हसने लगती है....
हनी... चल क्लास लगने वाली है.. आजा..
सूरज के दोस्त रमन (3rd हीरो) ने उसका हाथ पकड़कर गुनगुन के सामने से खींचता हुआ अपने साथ कॉलेज के बाहर बने प्याऊ के पास से कॉलेज के मुख्य भवन अंदर ले गया और रूम नंबर 42 में आ गया जहाँ लगभग 60-65 और स्टूडेंट्स थे.. स्कूल की तरह यहां भी सूरज और रमन सबसे पीछे वाली सीट पर आ गए और बेग नीचे रखकर सामने देखने लगे.. सभी चेहरे नए और खिले खिले थे सबके अंदर नई ऊर्जा और उत्साह था.
सूरज ने देखा की कुछ ही देर बाद गुनगुन भी क्लास में आ गई थी और आगे जगह ना होने के करण उसे पीछे बैठना पड़ा था.. सूरज और गुनगुन की नज़र एक बार फिर से टकराई और दोनों के होंठों पर हलकी सी मुस्कुराहट आ गई मानो दोनों एक दूसरे को फिर से मिलने की बधाई दे रहे थे..
क्लास दर क्लास ये सिलसिला जारी रहा और फिर जब सूरज बस स्टेण्ड पंहुचा तो वहां भी गुनगुन आ गई.. सूरज के मन में मोर नाच रहे थे जिसकी खबर सिर्फ उसे ही थी.. बस में चढ़ते ही सूरज को एक खाली सीट मिल गई थी जो उसकी किस्मत थी वगरना स्टूडेंट के आने से बस खचाखच भर चुकी थी..
गुनगुन सूरज के पीछे ही तो थी जो अब उसकी सीट के सामने खड़ी होकर बस के एक एंगल को पकडे कभी बाहर तो कभी भीतर अपने सामने सीट पर बैठे सूरज को देख रही थी..
सूरज ने उठते हुए गुनगुन को अपनी सीट पर बैठने का इशारा कर दिया था और गुनगुन मुस्कुराते हुए सूरज की सीट पर बैठ कर उसके बेग को भी अपने बेग के साथ अपनी गोद में रख लिया था.. दोनों में बोलकर बात भले ही नहीं हुई थी मगर नज़रो में इतनी बात हो चुकी थी कि दोनों एकदूसरे को पहले दिन ही समझने और जानने लगे थे..
दिन के बाद दिन फिर महीने और फिर साल बीत गए थे.. दोनों में समय के साथ प्यार पनपा.. और एकदूसरे ने इसका इज़हार भी कर दिया.. कच्ची उम्र कि मोहब्बत पक्के जख्म दे जाती है यही सूरज और गुनगुन कि मोहब्बत के साथ भी हुआ.. सूरज और गुनगुन की पहली मुलाक़ात जो कॉलेज के पहले दिन हुई थी वो अब आखिरी बनकर कॉलेज के आखिरी साल के आखिरी इम्तिहान के बाद होने वाली थी..
तुम समझ नहीं रहे सूरज.. मैं यहां नहीं रुक सकती.. मुझे अपने ख़्वाब पुरे करने है कुछ बनना है.. कब तक इस तरह मैं तुम्हारे साथ यहां वहा घूमती रहूंगी?
पर हम प्यार करते है ना गुनगुन? क्या हम एकदूसरे के बिना रह पाएंगे? क्या तुम मेरे बिना रह पाओगी? पिछले 4 साल हमने साथ बिताये है जीने मरने की कस्मे खाई है सब झूठ तो नहीं हो सकता गुनगुन.. तुम इतनी कठोर तो नहीं हो सकती कि वो सब भुलाकर मुझसे मुंह मुड़ जाओ.. मैं कैसे तुम्हारे बिना रह पाऊंगा?
सूरज तुम अपने प्यार की बेड़िया मेरे पैरों में ना बांधो.. मैं उड़ना चाहती हूँ..मुझे अगर तुम अपनी क़ैद में रखोगे तब भी मैं घुट घुट कर अपने देखे हुए सपनो को मरता देखकर जी नहीं पाउंगी.. मुझे इस बात का दुख है कि हम अब अलग हो रहे है मगर मैं वादा करती हूँ एक दिन जरुर तुम्हारे लिए लौटकर आउंगी..
नहीं गुनगुन.. मैं तुम्हारा इंतजार नहीं कर सकता.. तुम अगर कहोगी तो मैं कोई काम वाम कर लेता हूँ और हम शादी भी कर सकते है पर तुम मुझे यूँ बीच राह में बैठाकर कही जाने की जिद ना करो.. अगर तुम चली गई तो मैं फिर कभी नहीं तुम्हे मिलूंगा..
सूरज.. क्या तुम अपनी ख़ुशी के लिए मेरी ख़ुशीयों का गला घोंट दोगे? इतने स्वार्थी तो नहीं थे तुम..
नहीं गुनगुन.. मैं सिर्फ अपने आप को परखना चाहता हूँ.. देखना चाहता हूँ कि तुम्हारे बाद मैं अपनेआप को किस तरह संभाल पाऊंगा..
मैं वापस लौट आउंगी सूरज कुछ सालों की तो बात है.. आगे की पढ़ाई ख़त्म होते ही तुम्हारे पास चली आउंगी..
मुसाफिर पुराने रास्ते पर वापस नहीं लौटा करते गुनगुन.. वो पुराने रास्ते को भुला दिया करते है.. तुम भी अपने ख्वाब पुरे करना.. तुम्हारे पापा ने जो ख़्वाब तुम्हारे लिए देखे है उन्हें हासिल करना.. मैं कोशिश करूँगा तुम्हारे बाद खुश रहू और तुम्हे भूल जाऊ..
ऐसा मत कहो सूरज.. मैं किसी ना किसी तरीके से तुम्हारे नजदीक रहूंगी.. हम फ़ोन पर बात करेंगे.. तुम्हारे पास फ़ोन नहीं है ना.. लो तुम मेरा फ़ोन रख लो.. मैं इसी पर तुम्हे अपने हर दिन का हाल शाम की बहती हवा के साथ लिखा करुँगी..
नहीं.. मैं ये नहीं ले सकता.. तुम जाओ गुनगुन.. तुमने कहा था आज शाम को तुम शहर से जाने वाली हो.. जाओ.. अब मैं तुम्हे नहीं रोकता.. तुम्हे आकाश में उड़ना था बदलो को महसूस करना था बारिशो में भीगना था पंछियो की तरह चहचहाना था.. मैं नहीं डालता तुम्हारे पैरों में अपनी मोहब्बत की बेड़िया.. जाओ गुनगुन.. तुम्हारे ख्वाब तुम्हारा इंतजार कर रहे है..
सूरज.. मुझे गलत मत समझो..
नहीं गुनगुन.. अब और नहीं.. इससे पहले की तुम कमजोर पढ़कर मेरे सामने अपना फैसला बदलो और फिर उम्र भर मुझे अपनी किस्मत के लिए कोसो.. मैं अब यहाँ से चला जाना चाहता हूँ.. अगली बार अगर किस्मत ने मुझे तुमसे मिलवाया तो मैं दुआ करूँगा तब तक तुमने अपने सारे ख्वाब पुरे कर लिए होंगे.. अलबिदा गुनगुन.. अपना ख्याल रखना..
सूरज जब आखिरी मुलाक़ात के बाद गुनगुन को कॉलेज के गेट पर अकेला छोड़कर बस में चढ़ा तो गुनगुन की आँख से आंसू टप टप करके बह रहे थे.. गुनगुन किसी बेजान मूरत जैसी कॉलेज के गेट के बाहर खड़ी हुई आंसू बहाये जी रही थी सूरज जो पलटकर गया तो उसने एक बार भी मुड़कर गुनगुन को नहीं देखा मगर गुनगुन आंसू बहाते हुए सूरज को तब तक देखती रही जबतक वो आँखों से ओझल नहीं हो गया.. गुनगुन को उसकी सहेलियों ने आकर संभाला मगर तब तक गुनगुन के अंदर जो बांध छलक रहा था वो फट पड़ा था और गुनगुन अपनी सहेलियों से लिपटकर रो रही थी..
बस में चढ़कर सूरज एक तरफ खड़ा हो गया और अपने सारे मनोभाव अपने अंदर ही दबाकर खड़ा रहा.. सूरज आम दिनों की तरह ही घर आया और सामान्य बर्ताव करते हुए सुमित्रा और बाकी लोगों से मिला मगर शाम को उसके कदम ना जाने क्यों अपने आप मोहल्ले से बाहर एक शराबखाने की ओर मुड़ गए ओर सूरज शराब खाने जाकर एक शराब की बोतल खरीद कर दूकान के पीछे रखी पत्थर की पट्टी पर आ बैठा जहाँ उसने अंकुश (2nd हीरो) ओर बंसी काका को देखा जो सूरज के यहां आने पर ऐसे हैरान थे जैसे कोई असमान्य घटना देखकर सामान्य आदमी हो जाता है..
अंकुश और बंसी अच्छे से जानते थे की सूरज शराब नहीं पीता मगर आज उसे यहां देखकर वो हैरानी से उसके पास आकर उसके यहां आने की वजह पूछने लगे जिसपर सूरज के सब्र का बाँध टूट गया और वो बच्चों की जैसे अंकुश और बंसी के सामने रोने लगा..
अंकुश और बंसी के लाख पूछने के बाद भी सूरज ने उन्हें इसकी असली वजह तो नहीं बताइ मगर रोकर अपने दिल का दुख पीड़ा व्यथा को अपने आँखों से आंसू बनाकर कुछ पल की राहत जरुर हासिल कर ली थी..
वही दिन था जब सूरज ने शराब पीना शुरू किया था और आज तीन साल बाद भी वो अक्सर अपने दोस्त अंकुश और बंसी काका के साथ बैठके शराब पी लिया करता था.. गुनगुन को भुलाने के लिए उसने कई तरतीब सोची और उनपर अमल किया मगर कोई काम ना आ पाई मगर फिर एक दिन घर में धूल खाती किताब जिसे दिवाली की सफाई में सुमित्रा ने निकाल कर रद्दी वाले को देने के लिए रख दिया सूरज ने उसे उठा लिया और ऐसे ही उसके शुरूआती कुछ पन्ने पढ़ डाले.. उसके बाद सूरज को उस किताब में इतनी रूचि पैदा हुई की कुछ ही समय में सूरज ने सारी किताब पढ़ डाली और यही से सूरज को किताबें पढ़ने का शौख पैदा हुआ जिसमे वो अक्सर अपने जैसे नाकाम इश्क़ वालों से मिलता उनकी कहानी जीता.. महसूस करता और अपने आप होंसला देता.. कुछ समय में उसके मन से गुनगुन के यादो की परत धुंधली पड़ गई थी.. हसते खेलते नटखट मुहफट और बचकाने सूरज को गुनगुन के इश्क़ ने शांत और कम बोलने वाला सूरज बना दिया.. गुनगुन के जाने के डेढ़ साल बाद चिंकी ने सूरज के साथ घूमना फिरना शुरू कर दिया था और यही से सूरज और चिंकी का रिलेशन जो रमन के अलावा सभी की नज़रो में सूरज का एकलौता रिलेशनशिप था शुरू हुआ मगर 6 महीने बाद ही मुन्ना ने दोनों को अपने घर की छत पर रासलीला करते हुए पकड़ लिया और ये सब भी ख़त्म हो गया.. ऊपर से सूरज के बारे में उसके घर परिवार को सब पता चल गया था.. चिंकी की शादी हो गई और सूरज फिर से अकेला रह गया..
(फ़्लैशबैक end)
सुरज को नींद नहीं आ रही थी वो काफी देर तक यूँही लेटा रहा फिर खड़ा होकर घर की छत पर आ गया और छात पर बने एक्स्ट्रा कमरे की छत पर से एक खाचे जो छिपा हुआ था वहा से सूरज ने कुछ निकाला और फिर कमरे पीछे जाकर उस थैली को खोला और उसमें से लाइटर और सिगरेट पैकेट निकालकर कश लेते हुए गरिमा के बारे में सोचने लगा जो ना चाहते हुए शादी करने को तैयार है और अपने पीता की हर बात को पत्थर की लकीरें मान बैठी है.. उसी के साथ आज सूरज को गुनगुन की भी याद आ गई थी सूरज वापस गुनगुन के चेहरे को याद करने लगा था मगर अब पहले की तरह उसकी आँख में आंसू नहीं थे..
गरिमा ने जब किसी की आहट सुनी तो वो गद्दे से उठ गई और कमरे से बाहर झाँक कर देखा तो पाया की सूरज छत पर जा रहा था गरिमा ने फ़ोन में समय देखा तो रात के 2 बज रहे थे.. जिज्ञासावश गरिमा भी उसके पीछे ऊपर आ गई और सीढ़ियों से ही सूरज को छत पर बने कमरे के पीछे की तरफ सिगरेट पीते देखा तो वो बिना कुछ आवाज किये वापस नीचे कमरे में आ गई और उसी किताब जिसे वो पढ़ रही थी अब किनारे रखकर सोने लगी..
गरिमा के मन में कई बातें थी जिसे सुनने वाला कोई नहीं था.. पीता तो उसकी बात सुनने से पहले ही अपने फैसले उसपर थोप देते थे और माँ उर्मिला जमाने की होड़ में अंधी होकर बेटी के सुख दुख की चिंता किये बिना ही गरिमा के लिए नियम कायदे तय करती थी.. गरिमा की आँखों में आंसू थे मगर पोंछने वाला कोई ना था.. होंठों पर बातें थी मगर सुनने वाला कोई ना था..
सुबह की पहली किरण के साथ सूरज ने चाय का प्याला अपने हाथ में उठा लिया और नीचे जयप्रकाश लंखमीचंद और बाकी लोगों से दूर छत पर आ गया और छत की एक दिवार पर बैठकर चाय पिने लगा तभी गरिमा छत पर आते हुए बोली..
छत पर क्यों आ गए?
बस ऐसे ही..
तुम इतना चुपचुप क्यों रहते हो?
आप भी तो सबके सामने चुप रहती हो..
हाँ क्युकी मेरी सुनने वाला कोई नहीं.. पर तुम तो सबके चाहते हो.. तुम ऐसे उदासी लेकर क्यों रहते हो?
आपसे किसने कहा मैं उदास हूँ?
गरिमा मुस्कुराते हुए बोली - तुम्हारे चेहरे पर लिखा है.
सूरज - अच्छा तो आपको चेहरा पढ़ना भी आता है?
गरिमा - नहीं पर तुम्हारा पढ़ सकती हूँ.. चाँद से चेहरे पर काली घटाये तो यही बताती है.. कोई बात है जिसे मन में छुपाए बैठे हो? बता दो.. तुमने मुझसे कल सब पूछ लिया था अब अपने मन की बताओगे भी नहीं?
सूरज - बताने के लिए कुछ ख़ास नहीं है भाभी..
गरिमा मुस्कान लिए - अरे अभी तो तुम्हारे भईया के साथ मेरी सगाई तक नहीं हुई और तुम मुझे भाभी भी बोलने लगे.
सूरज - माफ़ करना गलती से निकल गया.
गरिमा - इसमें माफ़ करने वाली क्या बात है? अब जो बोलने वाले हो वही तो बोलोगे.. मैं तो बस हंसी कर रही थी तुम्हारे साथ.. देवर जी..
सूरज - आप भी ना.. कल तक तो कितनी गुमसुम और उदास थी अब अचानक से आपको मसखरी सूझने लगी..
गरिमा - हाँ पर कल तक मैंने अपने देवर जी से बात कहा की थी? मुझे लगता अब कोई है जो मेरे साथ बातें कर सकता है दोस्त बनकर मेरे साथ रह सकता है
सूरज - ये दोस्ती विनोद भईया के साथ रखना भाभी.. मैं अपने मन का करता हूँ..
गरिमा - तुम इतने साल से अपने भईया के साथ हो मगर अब तक उनके बारे में कुछ नहीं जान पाए..
सूरज - जानना क्या है?
गरिमा - यही की उनके लिए रिश्तो और भावनाओ का मोल ज्यादा नहीं है.. मैं उनके साथ वो सब नहीं कह सुन सकती जो तुम्हारे साथ बोल सकती हूँ सुन सकती हूँ.. तुम मन पढ़ सकते हो.. भावनाओ को समझ सकते हो मगर तुम्हारे भईया ऐसा कुछ नहीं कर सकते.. उनके लिए ये सब बचकानी बातें है..
सूरज - अगले सप्ताह सगाई है आपकी भईया के साथ और 6 महीने बाद शादी.. एक बार वापस सोच लीजिये.. कई बार हमें अपनी छोटी सी गलती के लिए उम्रभर पछताना पड़ता है..
गरिमा - तो बताओ ऐसी कोनसी गलती तुमसे हो गई थी कि तुम आधी रात को किसी कि याद छत के उस कोने में बैठकर आँख में आंसू लिए सिगरेट के कश भरते हो..
सूरज सकपकाते हुए - मैं.. मैं..
गरिमा - मैं किसी से नहीं कहूँगी देवर जी.. आप फ़िक्र मत करो.. अब तो हम देवर भाभी बनने वाले है.. आपके छोटे मोटे राज़ तो मैं भी छीपा कर रख सकती हूँ..
सूरज - भाभी.. वो मैं..
गरिमा - किसी को याद कर रहे थे? पर तुम्हे कौन छोड़ के जा सकता है? कहीं बेवफाई तो नहीं की थी तुमने?
सूरज - भाभी.. आप भी ना.. कुछ भी कहती हो.. ऐसा कुछ नहीं है.
गरिमा हसते हुए - एक बात बताओ क्या इसी तरह अकेले ही रहते हो घर में?
सूरज - क्यों?
गरिमा - अपना फोन दो जरा..
सूरज फ़ोन देते - लो..
गरिमा - ये फ़ोन है? लगता है शहर से पुराना तो तुम्हारा फ़ोन है.. चलता तो है ना.. हाँ.. गनीमत है चल तो रहा है.. लो.. जब अकेलेपन से बोर हो जाओ और मुझसे बात करने का मन करें तो massage करना.. हम दोनों ढ़ेर सारी बात करेंगे..
सूरज मुस्कुराते हुए - ठीक है भाभी..
विनोद आते हुए -अरे क्या बात हो रही दोनों में? हनी मम्मी कब से तुझे आवाज लगा रही है सुनाई नहीं दिया तुझे? चल नीचे.. और तुम्हे भी नीचे आ जाना चाहिए.. तुम्हारे पापा याद कर रहे थे तुम्हे..
जी.. कहते हुए गरिमा नीचे चली गई और उसके पीछे पीछे सूरज भी चला गया..
लख्मीचंद - अच्छा तो भाईसाहब अब इज़ाज़त दीजिये.. अगले हफ्ते सगाई कि तैयारी करनी है.. बहुत काम पड़ा है.. हम समय से आपके द्वारे उपस्थित हो जायेगें..
जयप्रकाश - जी भाईसाब... तैयारिया तो हमें भी करनी होगी.. पंडित जी ने मुहूर्त भी इतना जल्दी का सुझाया है कि क्या कहा जाए?
उर्मिला - बहन जी.. बहुत बहुत आभार आपका आपने हमारी बिटिया को पहली नज़र में ही पसंद कर लिया और अपने घर की बहु बनाने की हामी भर दी.. मैं भरोसा दिलाती हूँ हमारी गरिमा आपके घर का पूरा मान सम्मान कायम रखेगी..
सुमित्रा - जानती हूँ बहन जी.. आपकी बिटिया के बारे में नरपत भाईसाब ने जो जो बताया था गरिमा उससे कहीं बढ़कर है.. मैं अब जल्दी से अपने विनोद के साथ आपकी गरिमा का ब्याह होते देखना चाहती हूँ..
लख्मीचंद - भाईसाब अगर आपकी कोई बात है या कुछ और आप मुझे बता सकते है..
जयप्रकाश - अरे आप क्यों बार बार ये बोलकर मुझे शर्मिंदा कर रहे है.. मैंने आपसे साफ साफ कह दिया है कि हमें आपकी बिटिया के अलावा और कुछ नहीं चाहिए.. हम तो दहेज़ के सख्त खिलाफ है..
नरपत - अब तो आप लोग अगले सप्ताह विनोद और गरिमा की सगाई की तैयारी कीजिये... अब समय से निकलते है वरना ट्रैन ना छूट जाए.. सूरज गाडी भी ले आया.. चलिए..
गरिमा जाते हुए सूरज को एक नज़र देखकर मुस्कुरा पड़ी थी बदले में सूरज के होंठों पर भी मुस्कान आ गई.. विनोद भी स्टेशन तक साथ गया मगर गरिमा के साथ उसकी आगे कोई बात ना हो पाई.. विनोद लख्मीचंद के साथ ही बैठा हुआ यहां वहा की बात कर रहा था.. स्टेशन पर लख्मीचंद उर्मिला नरपत और गरिमा को ट्रैन में बिठाने के बाद वो सीधे ऑफिस निकल गया था..
आज ऑफिस नहीं जायेगे?
नहीं.. मैडम को पता चला कि लड़की वाले बेटे को देखने आये हुए है तो उन्होंने आज घर पर रहने को ही कहा है..
पर वो तो चले गए..
तो ये बात मैडम को कहा पता है सुमित्रा? आज घर पर ही आराम करने का मन है..
सही है.. कम से कम थोड़ी तो समझ है..
मैं तो पहले से ही बहुत समझदार हूँ..
तुमको नहीं तुम्हारी उस अफसर मैडम को कह रही हूँ..
सुमित्रा ने बेड पर तौलिया लपेटकर बैठे जयप्रकाश से ये कहा और कमरे से बाहर आकर सीधा कल के सुखाये कपड़े उतारने छत पर चली गई..
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वाह भाई बिल्ले.. 3-4 दिनों में ही दूकान चमका दी तूने तो.. अंकुश (2nd हीरो) ने बिलाल की दूकान में कदम रखते हुए कहा जहाँ रंग रोगन हो चूका था और दूकान पुराने जमाने के ताबूत से निकलकर नए जमाने के लिबास से सज गई थी.. दूकान के सीढ़ियों की मरम्मत के साथ बाहर लटक रहे लाइट के वायर को व्यवस्थित करके स्विच बोर्ड भी बदल दिए गए थे..
बिलाल ने अंकुश की बात सुनकर कहा - हाँ अक्कू.. सब काम तो हो चूका है बस अब आइना और कुर्सी खरीदना बाकी है.. वैसे पिछले 3-4 दिनों से हनी कहा है? ना दिखाई दिया ना बात की..
अंकुश - बात मेरी भी नहीं हुई.. उस दिन विनोद भईया को लड़किवाले देखने आये थे उसके बाद से मैं भी नहीं मिला यार..
बिलाल - रुक मैं फ़ोन करता हूँ.. जरा पूछे तो आज कल है कहाँ?
हेलो..
हेलो.. हनी?
हाँ बिल्ले..
अरे आज कल है कहाँ भाई? ना फ़ोन ना मुलाक़ात.. कोई गलती हो गई क्या हमसे?अक्कू से भी बात नहीं की तूने?
कहाँ है तू?
मैं और कहाँ होऊंगा? दूकान पर.. आइना और कुर्सी खरीदना था तो सोचा तुझसे बात कर लु.. अक्कू भी यही है..
हाँ.. यार कुछ बिजी हो गया था तुम रोको मैं 10 मिनट आता हूँ वहा..
पिछले तीन चार दिनों से सूरज गरिमा के साथ व्हाट्सप्प पर बातचीत में ऐसा उलझा की उसे अपने दोस्तों और परिवार के लोगो से बात करने और मिलने का समय ही नहीं मिला.. गरिमा को भी सूरज के रूप में अच्छा दोस्त मिल गया था और अब दोनों एक दूसरे को देवर भाभी कहकर ही बुलाने और बात करने लगे थे.. दोनों की बातों में एक दूसरे की पसंद नापसंद जानना और मिलती हुई रूचि की चीज़ो घंटो लम्बी बातें करना शामिल था.. विनोद तो गरिमा से बात करना जरुरी ना समझता था उसे औरत बस घर में काम करने और पति को खुश रखने की वस्तु मात्र ही लगती थी.. कभी कभार विनोद गरिमा औपचारिक बात किया करता उससे ज्यादा उसने कभी गरिमा से कुछ नहीं कहा ना पूछने की जहमत की.. विनोद काम में तनलिन था मगर गरिमा और सूरज के बीच सुबह शाम बातें हो रही थी.. दोनों एक दूसरे के सुबह उठने पर चाय पिने से लेकर रात को खाना खाने तक की बातें पूछने और बताने लगे थे.. दोनों के मन मिलने लगे थे और दोनों को ख़ुशी की थी कोई है जो उनके मन का हाल समझ सकता है और उससे वो सब बात कह सकते है..
बिलाल का फ़ोन आने पर सूरज फ़ोन बंद करके अपने कमरे से निकल कर नीचे आ गया जहाँ उसने देखा कि सुमित्रा जयप्रकाश और विनोद साथ में बैठे किसी गहरे मंथन में घूम थे और आपस में कुछ कह रहे थे..
नहीं पापा.. मेरे ऑफिस के सभी लोगों को पता चल गया है और उन्होंने खुद आने कहा कहा है.. 20-25 लोग तो ऑफिस से ही हो जाएंगे.. फिर स्कूल कॉलेज और मोहल्ले के यार दोस्त अलग से.. कम से कम 35-40 लोग मेरे ही हो जाएंगे.. इतने सारे रिश्तेदार भी बुला लिए आपने.. आपके ऑफिस से भी लोग आएंगे.. माँ ने भी आस पड़ोस में सबको बता दिया है अब उन्हें भी नहीं बुलाया जाएगा तो सब मुंह फुला के बैठ जाएंगे.. इतने सारे लोगो कि व्यवस्था घर और गली में तो नहीं हो सकती.. एक गली पीछे जो बिट्टू के पास वाला खाली प्लाट है वहा इंतजाम किया जा सकता है.. बस लाइट और टैंट का बंदोबस्त करना पड़ेगा.. 15-20 हज़ारका खर्चा आएगा.. हलवाई से भी मैंने बात कर ली है.. 150-200 अपनी तरफ के और लख्मीचंद बता रहे थे 50 उनकी तरफ से.. 250 आदमियों का खाना भी हो जाएगा..
सूरज विनोद के बातें सुनकर फ्रीज़ से पानी कि बोतल निकाल कर हॉल में सोफे कि तरफ आता हुआ विनोद कि बात काटते हुए कहा - 200 गज के प्लाट में 250 आदमियों कि व्यवस्था कैसे होगी भईया? और अब वो प्लाट बिक चूका है नया मालिक वहा फंक्शन करने की इज़ाज़त दे या ना दे.. किसे पता? और किस हलवाई से बात की है आपने? उस कांतिलाल से ना जिसने मधुर भईया की शादी में खाना बिगाड़ दिया था.. कितनी थू थू हुई थी उनकी..
जयप्रकाश - तो तू ही बता कुछ.. पहले तो बाहर घूमता था अब सिर्फ कमरे में ही पड़ा रहता है.. कोई उपाय हो तो बता.. क्या कोई गार्डन बुक कर ले?
सूरज - सगाई की जगह और खाने की जिम्मेदारी मेरी.. बाकी आपको देख लो.
विनोद - 5 दिन बाद सगाई है.
सूरज - कल इतवार है दोनों काम निपट जाएंगे.. आपको बेफिक्र रहो..
विनोद जयप्रकाश को देखकर सूरज से - ठीक है फिर.. मैं अभी कुछ पैसे ट्रांसफर कर रहा हूँ आगे जो कम पड़े वो बता देना..
जयप्रकाश - हनी.. सोच कर करना जो करना है..
सूरज अपने पीता की बात सुनकर घर से निकल जाता है और बिलाल की दूकान पर पहुंच जाता है..
क्या बात है ईद के चाँद.. कहा था पिछले कुछ दिनों से?
कहीं नहीं यार बस कुछ तबियत हलकी थी.. और सुनाओ.. दूकान तो नई जैसी कर दी बिल्ले तूने.
सब तुम दोनों की महरबानी से ही तो हो रहा है भाई..
हनी.. आइना और कुर्सी लानी बाकी है फिर बिल्ले की दूकान भी नये सलून जैसी हो जायेगी..
हाँ वो तो है.. तो बिल्ले कहा से ला रहा है बाकी सामान?
एक जानकार है हनी.. किसी दूकान का पता दिया है.. कह रहा था अच्छा सामान देता है.. बस वही जाना था.. एक बार देख आते केसा सामान है?
नज़मा चाय लेकर - चाय.. भाईजान..
सूरज चाय लेते हुए - तो चले जाओ ना तुम दोनों.. अगर सही लगे तो साथ ही ले आना..
बिलाल - और तू नहीं चलेगा?
सूरज - मुझे कहीं और जाना है आज..
अंकुश चाय पीते हुए - बेटा देख रहा हूँ पिछले कुछ दिनों से तेवर बदले बदले लगते है तेरे.. क्या बात है?
सूरज - कुछ भी नहीं.. 5 दिन बाद सगाई है भईया की.. थोड़ा बहुत काम है इसलिए किसी से मिलने जाना है.
नज़मा - सगाई भी तय हो गई.. अभी लड़की वाले देखने ही आये थे..
सूरज - अब जब सब राज़ी थे तो पंडित ने इतना जल्दी का मुहूर्त सुझाया की क्या कहा जाए.. वैसे लोकेशन अभी फाइनल नहीं है सगाई कहा होगी.. जैसे ही होती है मैं दोनों को व्हाट्सप्प कर दूंगा.
नज़मा अंदर जाते हुए - अच्छा..
अंकुश हसते हुए - तू नहीं बुलायेगा तब भी हम चले आएंगे.. डोंट वार्री.
बिलाल - हनी जा भी रहा है.. थोड़ी देर बैठ ना..
सूरज - अभी नहीं बिल्ले.. किसी दोस्त से बात की है उससे मिलने जाना है तू अक्कू के साथ बाकी सामान ले आ.. कल इतवार है दूकान पर भीड़ रहेंगी..
बिलाल - क्या भीड़ भाई.. इतवार हो या कोई दिन गिनती के 2-4 ही तो आते है कल क्या बदल जाएगा.
अंकुश - क्यों मनहूस बात करता है बिल्ले कल देखना लोगो की लाइन लग जायेगी दूकान पर.. चल चलते है उस दूकान पर..
अंकुश और बिलाल दूकान का बाकी सामान लाने चले जाते है और सूरज अपने कॉलेज दोस्त रमन के पास चला आता है..
रमन (3rd हीरो) - कहा चला गया था भाई सीधा तो रास्ता बताया था तुझे..
सूरज - मुझे लगा आगे से कोने वाली दूकान होगी..
चल कोई ना छोड़.. बता क्या लेगा?
कुछ नहीं चाय पीके आया हूँ..
तो फिर कॉफ़ी पिले..
नहीं रहने दे यार..
अरे क्यों रहने दे.. साले इतने महीनों के बाद तो मिलने आया है.. फ़ोन करो तो कोई जवाब नहीं.. किस हाल में ये भी नहीं पता.. कॉलेज के बाद तो ऐसे गायब हुआ जैसे गधे के सर से सींग..
कुछ नहीं यार.. बस यूँ समझा ले कहीं मन ही नहीं लगा..
तो मन को लगा भाई ऐसे क्या जीना? धरमु... दो कॉफ़ी बोल..
रमन ने अपने यहां काम करने वाले एक आदमी से कहा..
और सुना सूरज.. आज कैसे याद कर लिया तूने?
विनोद भईया की शादी तय हुई है.. 5 दिन बाद सगाई होनी है..
अरे वाह ये तो बहुत अच्छी बात है.. साथ में तू भी शादी करवा ले भाई सुखी रहेगा..
पहले अपनी करवा ले..
रमन हसते हुए - भाई अब लगा ना पहले वाला सूरज.. कब से मनहूसियत लेते बैठा था चेहरे पर.. हाँ बोल क्या कह रहा था..
सूरज - भईया कि सगाई है पांच दिन बाद.. जगह चाहिए सगाई के लिए..
रमन - इतनी सी बात.. बता कहाँ चाहिए.. इतने सारे गार्डन है अपने.. अभी शादी का सीजन भी नहीं है खाली ही पड़े है सब.. बता कोनसा चाहिए?
सूरज - घर के आस पास देख ले कोई.. ज्यादा बड़ा प्रोग्राम नहीं है..
रमन - तेरे घर के पास है तो सही.. पर बंद पड़ा है.. सफाई करानी पड़ेगी..
सूरज - बंद क्यों पड़ा है? बुकिंग नहीं मिल रही क्या?
रमन - अरे नहीं बे.. वो जगह पापा और चाचा साझे में खरीदी थी और शादी ब्याह के लिए वहा गार्डन बनवाया था मगर बाद में विवाद हो गया.. कचहरी में मुकदमा चला तो अदालत ने पैसे देकर जमीन लेने को कहा.. चाचा के पास इतने पैसे नहीं थे तो वो जमीन खरीद नहीं सकते थे इसलिए हमने चाचा को जो उनका हक़ बनता था उसके मुताबित पैसे देकरजमीन लेली.. अभी 3 महीने पहले ही उसका सौदा हुआ है.. 8 साल से बंद पड़ा है.. मैं धरमु को कह दूंगा वो सफाई करवा देगा कल वहा की और लाइट, हॉल और रूम्स वगैरह भी देख लेगा.. लक्मी पैराडाइस नाम है.. मेरी दादी के नाम रखा था पापा और चाचा ने..
धरमु कॉफी रख देता है और चला जाता है..
सूरज - चलो अच्छा है..पैसे क्या लेगा?
रमन कॉफी पीते हुए - तुझसे पैसे लूंगा क्या भाई.. बस एक बार मेरा मुंह में ले लेना..
सूरज - भोस्डिके मेरे पास भी लंड है.. भूल गया तो याद दिलाऊ?
रमन हसते हुए - मज़ाक़ कर रहा था भाई.. अब तुझसे भी पैसे लूंगा क्या.. वैसे भी खाली पड़ा है..
सूरज - बहनचोद.. कॉलेज में चाय नहीं पीलाई तूने और आज इतनी मेहरबानी?
रमन - समय समय की बात है बेटा.. तब मेरा बाप फूटी कोड़ी तक नहीं देता था.. आज मैं बाप का पूरा धंधा संभाल रहा हूँ.. रईस हो गया है तेरा भाई.. रोज़ गाड़ी बदलता हूँ..
सूरज हसते हुए - चलानी आती है या ड्राइवर रखा है उसके लिए..
रमन - तेरा भाई उड़ा सकता है गाडी अब.. वैसे एक गुडमॉर्निंग न्यूज़ देनी है तुझे..
सूरज - क्या?
रमन - तेरी मेहबूबा को देखा था मैंने दो हफ्ते पहले.. ट्रैफिक में था.. बात नहीं हो पाई..
सूरज - माँ चुदाए.. मुझे बात नहीं करनी उसकी.. चल निकलता हूँ..
रमन - क्या हो गया भाई.. नाम लेते ही जाने की बात कर दी.. इतना गुस्सा? छोड़ यार.. जो हुआ सो हुआ.. उसे अपना भविष्य बनाना था.. लाइफ में कुछ करना था.. 3 साल हो गए हो गए उस बात को..
सूरज खड़ा होते हुए - कल सफाई करवा देना याद से उस जगह की.. मैं तुझे कार्ड व्हाट्सप्प कर दूंगा.
रमन - अच्छा सुन.. भाई.
सूरज - बोल..
रमन - मैं अगर गुनगुन से मिला और उसने तेरे बारे में पूछा तो मैं क्या जवाब दू?
सूरज - कहना मैं मर गया..
रमन अपना फ़ोन देखकर - ये चुड़ैल पीछा नहीं छोड़ेगी..
सूरज - कौन है?
रमन - कोई नहीं यार.. बस ये मान ले एक बला है मेरे सर पर.. बाप मर गया पर अपनी रखैल छोड़ गया मेरा खून पिने के लिए..
सूरज हसते हुए - रंगीन तो था तेरा बाप.. चल निकलता हूँ..
सूरज को रमन के पास से वापस बिलाल की दूकान पर आते आते शाम के 7 बज चुके थे.. उसने देखा की दूकान में बड़ा सा नया आइना और एक आरामदायक कुर्सी लग चुकी थी..
बोल क्या कहता है? है ना मस्त?
अंकुश ने सूरज से कहा तो सूरज कुर्सी पर बैठते हुए कहा - परमानन्द... अच्छा सुन तेरे पास लैपटॉप है ना..
अंकुश - क्या करेगा?
सूरज - जगह फाइनल हो गई सगाई का कार्ड बना देता हूँ सबको व्हाट्सप्प कर दूंगा..
अंकुश - अरे उसमे क्या बड़ी बात है तू जगह और बाकी चीज़े लिख दे मैं खुद बनाके तुझे सेंड कर दूंगा.. वैसे जगह कोनसी तय की..
सूरज - ये स्कूल के पीछे वाला गार्डन.. जो बंद पड़ा है..
अंकुश - उस पर तो केस चल रहा था ना.. सुना है दोनों भाई है..
सूरज - फैसला हो गया.. कॉलेज का एक दोस्त है उसके बाप के हक़ में है सब.. कल परसो में सफाई और बाकी चीज़े करवा देगा.. एक पंखा भी ले आते तुम.. ये चलता कम शोर ज्यादा करता है..
बिलाल - कल वो भी आ जाएगा हनी.. जितना सोचा था उसे कम में ही काम हो गया..
सूरज - तो फिर पंखे की जगह कूलर ही ले लेना भाई.. अभी मार्च में ये हाल है मई जून में ना जाने क्या होगा?
अंकुश - निश्चिन्त रह भाई.. कल प्लास्टिक के परदे भी लग जाएंगे.. और कूलर भी आ जाएगा.. आखिर अपनी बैठक है ये.. कोई कमी थोड़ी रहने देंगे..
सूरज - अच्छा चलता हूँ.. कल मिलते है.. अक्कू याद से सेंड कर देना तू कार्ड..
अंकुश - अरे हनी.. कल शाम वो बंसी काका के साथ बैठना है याद है ना..
सूरज - हाँ याद है.. पर पहले अपने मुन्ना से मिलके आएंगे..
अंकुश - क्यों?
सूरज जाते हुए - भाई सगाई में हलवाई भी तो बुक करना है..
अंकुश हसते हुए - असली जीजा के घर फंक्शन है हलवाई का काम साला ही तो करेगा..
बिलाल - भाई जैसी हरकते है ना तुम्हारी.. कभी भी पिट सकते हो तुम मुन्ना से..
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सूरज और गरिमा व्हाट्सप्प पर बातें कर रहे थे जिनमे दोनों ही मशगूल थे आज के दिन का सारा हाल दोनों ने एकदूसरे को कह सुनाया था.. सूरज गरिमा से बात कर ही रहा था कि नीचे से सुमित्रा उसके नाम कि आवाजे लगाते हुए छत पर आ गई..
खाना नहीं खाना तुझे? कब से छत पर बैठा है..
आ रहा हूँ माँ.. आप खाना डाल दो ना..
और ये बू कैसी है? तू फिर से नशा तो नहीं करने लगा ना हनी? देख बड़ी मुश्किल से तू वापस सुधरा है इन सब चीज़ो से दूर रह..
मैं कोई नशा नहीं कर रहा माँ.. मालती आंटी के हस्बैंड छत पर आते थे अभी अभी सिगरेट पीके गए है नीचे.. उसी की बू आ रही होगी आपको.. अब लगती हुई छत है तो स्मेल आ रही होगी.. आप जाओ में आता हूँ नीचे..
सुमित्रा सूरज के गाल को अपने हाथ से सहलाती हुई अपनी प्यारी भरी आँखों से उसे एक नज़र देखकर जाते हुए कहती है - जल्दी आ.. खाना ठंडा हो जाएगा..
सुमित्रा के नीचे जाने के बाद सूरज व्हाट्सप्प पर गरिमा से खाना खाने की इज़ाज़त लेता है और नीचे आ जाता है..
सबने खाना खा लिया एक तू ही बचा है.. ले.. खा ले..
सूरज खाने कि प्लेट लेकर वही रसोई की स्लेब पर बैठकर खाते हुए - माँ.. पापा से कहना जगह देख ली है सगाई की..
सुमित्रा बर्तन धोते हुए - अच्छा.. कहाँ?
यही.. स्कूल के पीछे जो बंद बड़ी हुई जगह है वही.. कल सफाई हो जायेगी उसकी.. अच्छी जगह है.. बहुत बड़ी भी है.. और ये लो.. कार्ड भी बनवा दिया है.. भईया और पापा जिसे भी सगाई में बुलाना चाहते है उनको व्हाट्सप्प कर देगे..
सुमित्रा सूरज के फ़ोन में सगाई का कार्ड देखकर खुश होते हुए बोली - अरे.. क्या बात है मेरा हनी तो बहुत जिम्मेदार हो गया.. इसे तू मेरे फ़ोन में भेज में सबको भेज दूंगी..
भेज रहा हूँ.. कल हलवाई का भी फाइनल हो जाएगा.. और कुछ करना हो वो भी बता देना.. हो जाएगा..
सुमित्रा मुस्कुराते हुए - ठीक है.. अच्छा एक बात बता.. मालती आंटी के जो हस्बैंड है वो अपनी छत पर आके सिगरेट पीते है क्या?
सूरज हड़बड़ाते हुए - मतलब?
सुमित्रा मुस्कुराते हूर - नहीं वो बस ऐसे ही पूछा.. सिगरेट पीकर अपनी छत पर फेंक देते है ना.. कल सुबह मालती से बात करनी पड़ेगी..
सूरज - इतनी सी बात कर लिए क्या बात करनी है.. छोडो ना.. फिज़ूल क्यों मुंह लगना उनके..
सुमित्रा मुस्कुराते हुए - नहीं नहीं बात तो करनी पड़ेगी.. ये अच्छी बात थोड़ी है..
सूरज खाना खा कर प्लेट वश बेसिन में रखते हुए - अरे माँ छोडो ना... इतनी सी बात का क्यों बतंगड़ बना रही हो.. मुझे नींद आ रही है मैं सोने जा रहा हूँ..
सुमित्रा जाते हुए सूरज का हाथ पकड़ लेटी है और उसकी आँखों में देखते हुए मुस्कुरा कर कहती है - चुपचुप के सिगरेट पीता है ना तू?
सूरज - नहीं माँ.. मैंने बताया ना वो मालती आंटी के हस्बैंड थे..
सुमित्रा - मालती आंटी अपने हस्बैंड के साथ शिमला गई है घूमने.. मुझे उल्लू समझा है तूने? देख हनी.. तू कहीं फिर से वो सब मत करने लग जाना.. बड़ी मुश्किल से तू सही हुआ है.. कहीं फिर से शराब और उन सब नशे में डूब गया तो सबकुछ खराब हो जाएगा..
सूरज - मैंने वो सब कुछ छोड़ दिया है माँ.. बस कभी कभी छत पर सिगरेट पीता हूँ.. आपसे झूठ बोला उसके लिए सॉरी..
सुमित्रा - सच कह रहा है ना तू?
सूरज - आपकी कसम.. बस कभी कभी शराब भी हो जाती है.. पर कभी कभी..
सुमित्रा सूरज को अपने गले से लगा लेती है और कहती है - हनी.. मैं तेरी माँ हूँ.. बेटा मुझसे कुछ मत छिपाया कर.. तू जानता है मैं तेरी बातें किसी और से नहीं करती.. फिर भी तू छिपकर ये सब करता है.. वादा कर तू अब से मुझसे सब सच सच कहेगा..
सूरज - अच्छा वादा.. अब छोडो मुझे.. वरना आपके गले लगे लगे ही सो जाऊँगा..
सुमित्रा सूरज के दोनों गाल चूमते हुए - सुना है आज वो चिंकी ससुराल से वापस आई है.. उसे दूर रहना.. उस कलमुही की हमेशा तेरे ऊपर नियत ख़राब रहती है..
सूरज मुस्कुराते हुए - अब माँ इतना हैंडसम बेटा पैदा किया है आपने.. लड़किया आगे पीछे ना घूमे तो क्या फ़ायदा..
सुमित्रा सूरज को अपनी बाहों से आजाद करती हुई - चल बदमाश कहीं का.. सो जा जाकर..
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