बहुत ही शानदार और जानदार मदमस्त अपडेट है भाई मजा आ गयाबस के सफ़र के दौरान जो कुछ भी हुआ वह बेहद रोमांचित कर देने वाला था,,,सुगंधा के लिए भी और उसके बेटे के लिए आज मां बेटे दोनों एक अलग ही अनुभव से गुजरे वैसे तो घर के अंदर दोनों में काफी कुछ हो चुका था केवल शारीरिक संपर्क अभी तक नहीं हुआ था लेकिन बस के अंदर दोनों के बीच केवल दोनों के बदन के वस्त्रही बाधा रूप थे,,, वरना तो आज दोनों का मिलान होना बिल्कुल तय था दोनों ने एक दूसरे के अंगों को बेहद करीब से अनुभव किया था दोनों के अंगों की गर्मी दोनों ने बेहद करीब से महसूस किए थे यह एहसास दोनों के तन बदन में एक अजीब सी ऊर्जा का संचार कर रहा था।
अपने गंतव्य स्थान पर पहुंचकर दोनों के साथ-साथ बाकी के यात्री भी बस से नीचे उतर गए थे और अपने-अपने मंजिल की ओर आगे बढ़ गए थे,,, कई लोग अभी भी वही खड़े थे कुछ लोग खरीदी कर रहे थे कुछ लोग मिठाइयां खरीद रहे थे,,। तो कुछ लोग सब्जियां खरीद रहे थेअंकित की हालात पूरी तरह से खराब थी जिस तरह के हालात से वह गुजरा था वह उसे एक पल के लिए स्वर्ग का अनुभव कर रहा था वह पूरी तरह से मदहोश हो चुका था आज पहली बार उसनेअपने लंड को अपनी मां की गांड की दरार के पीछे बीच उसकी गुलाबी चाहिए के करीब दस्तक देता हुआ महसूस किया था यह उसके लिए बहुत बड़ी उपलब्धि थीलेकिन इस उपलब्धि के चलती उसके लंड का तनाव पूरी तरह से बरकरार था बस से नीचे उतरने के बाद भी उसका यह तनाव बना हुआ था।
अंकित बिल्कुल भी नहीं चाहता था कि किसी की भी नजर उसके पेट में बने तंबू पर पड़े या उसकी मां ही उसके पेंट में बने तंबू को देख ले भले ही बस के अंदर उसने इसका अच्छी तरह से अनुभव किया हो लेकिन इस समय वह ऐसा नहीं चाहता था इसलिएबस से नीचे उतरने के साथ ही वह घनी झाड़ियां के पास चला गया था और वहां पर जाकर पेशाब करने लगा था क्योंकि जानता था की पेशाब करने के बादउसके लंड का तनाव काफी हद तक सामान्य हो जाएगा और ऐसा ही हुआ जब उसके लंड का तनाव पूरी तरह से सामान्य हो गया तो वह पेंट की चेन बंद करके वापस उसी जगह पर आ गया जहां पर उसकी मां खड़ी थी और तिरछी नजर से अपने बेटे की तरफ देख ले रही थी उसके मन में भी बहुत कुछ चल रहा था एक तरह से उसके मन में दंद युद्ध चल रहा था।
आज उसने जो कुछ भी मैसेज की थी वह उसे उत्तेजना के साथ भी आसमान पर पहुंचा दिया था वाकई में इतनी उत्तेजना का अनुभव उसने कभी नहीं की थी आज पहली बार उसने अपने बेटे के मर्दाना अंग को अपनी गुलाबी छेद के बेहद करीबउसे पर दस्तक देता हुआ महसूस की थी और अपने बेटे के मर्दाना अंग पर मन ही मन गर्भ अनुभव कर रही थी क्योंकि चीजहालत में दोनों खड़े थे और ऐसी अवस्था में उसके बेटे का लंड बड़े आराम से उसकी गुलाबी चिन्ह तक पहुंच रहा था तो उसे पूरा यकीन था कि उसका बेटा अपने लंड से अगर मौका मिल जाए तो उसकी बुर के धागे खोल देगा जो बरसों से एकदम बंद हो चुके हैं,,,। सुगंधा के लिए अपने बेटे के साथ इस तरह का कल्पना करना अब पूरी तरह से आम बात हो चुकी थी,,,शुरू शुरू में जब सुगंधा का आकर्षण अपने बेटे की तरफ बढ़ने लगा था तब वह अपने मन में इस तरह की कल्पना करके आनंदित हो जाती थी लेकिन उसे पछतावा भी होता था एक गिलानी महसूस होती थी लेकिन अब यह ग्लानी धीरे-धीरे मदहोशी में बदलने लगी थी,,,इस तरह की कल्पना करके वह पूरी तरह से मत हो जाती थी और उसे एक अद्भुत आनंद की प्राप्ति होती थी,,,।
कुछ देर तक बड़े से पेड़ के नीचे खड़े होकर दोनोंइधर-उधर देख रहे थे जो यात्री बस में उनके साथ थे वह धीरे-धीरे बाजार से अपनी-अपनी दिशा की ओर बढ़ने लगे थे लेकिन अभी तक ऐसा लग रहा था की सुगंधा अपनी मदहोशी से उसे बेहतरीन पल की आगोश से निकल नहीं पा रही थी,,,, वह खड़ी होकर अपने चारों तरफ देख रही थी और कसमसा रही थी क्योंकि उसकी पैंटी पूरी तरह से मदन रस से भीग चुकी थी और उसे इस समय उसके गीलेपन से असहजता महसूस हो रही थी,,, या यूं कह लो की उसकी गुलाबी छेद की गली में पेशाब की तीव्रता महसूस हो रही थी लेकिन किसी तरह से अपने आप को संभाल कर वह बिना कुछ बोले एक मिठाई की दुकान की तरफ जाने लगी,,,।
अंकित भी कुछ बोल नहीं रहा था बस अपनी मां के पीछे-पीछे चलता बना और देखते ही देखते दोनों मिठाई की दुकान पर पहुंच गए,,, सुगंधा अपनी हालत पर इस समयथोड़ा सा महसूस कर रही थी और वह ऐसा नहीं चाहती थी कि उसके बेटे को जरा भी है सांसों की उसकी मां को उसकी हरकत खराब लगी है वरना उसका बेटा जो इतनी हिम्मत दिखा कर यहां तक पहुंचा है वह फिर से अपना दो कदम पीछे ले लेगा और वह ऐसा कभी नहीं चाहती थी इसलिए वह पूरी तरह से सहज बनना चाहती थी,,, वह अपने बेटे को इस बात का जरा भी एहसास नहीं दिलाना चाहती थी,, उसकी हरकत से उसे कैसा महसूस हो रहा है अच्छा लग रहा है या बुरा लग रहा है,,,, इसलिए वह बिल्कुल सहज और सामान्य बने रहने का नाटक करते हुए अपने बेटे से बोली,,,।
चल कुछ थोड़ा खा लेते हैं उसके बाद तेरे मामा के लिए भी मिठाई खरीद लेंगे,,,।
तुम सही कह रही हो मम्मी मुझे भी भूख लग रही है ऐसा करो कि जलेबी और समोसा ले लो,,,।(लकड़ी के रखे हुए पट्टी पर धीरे से बैठते हुए अंकित बोला,,,, उसकी बात सुनकर सुगंधा मुस्कुराते हुए दुकानदार से थोड़ी जलेबी और समोसे देने के लिए बोलकर वह भी अपने बेटे के बगल में बैठ गई,,,,, उसके मन में अजीब सी कसमकस चल रही थी,,,उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि बस में जो कुछ भी हुआ उसे बारे में वह अपने बेटे से बात करें या ना करें उसकी मां इनकार भी कर रहा था और अपने बेटे से इस बारे में बात करने के लिए हामी भी भर रहा था,,, उसका मन एक तरफइनकार कर रहा था और दूसरी तरफ उसे समझा भी रहा था कि आगे बढ़ने का यही सही मौका है इस बारे में अगर वह अपने बेटे से बात करेगी तो दोनों के बीच की झिझक धीरे-धीरे खत्म हो जाएगी और दोनों अपनी मंजिल तक आराम से पहुंच पाएंगे।
सुगंधा को अपने मन की यह बात बड़ी अच्छी लग रही थी,,क्योंकि इस बात से वह भी सहमत थी वह जानते थे कि अपने बेटे से इस तरह की बातें करने से दोनों के बीच ज्यादा खुलापनमहसूस होने लगेगा और दोनों एक दूसरे की बातें आपस में आराम से कर सकते हैं और धीरे-धीरे आगे भी पढ़ सकते हैंक्योंकि बस के अंदर जो कुछ भी हुआ था वह सामान्य बिल्कुल भी नहीं था एक मर्द और एक औरत के लिए जिस्मानी ताल्लुकात के पहले का वह एक तरह का खेल ही था,,, जिससे आगे बढ़ा जा सकता थाअगर दोनों के बीच मां बेटे का संबंध ना होता तो शायद जिस तरह के हालात और मदहोशी दोनों के बदन में छाई हुई थी सुगंधाएक औरत होने के नाते मर्द का साथ पाने के लिए धीरे से अपनी साड़ी को कमर तक उठा देती और अपनी दोनों टांगों के बीच की गली को एकदम से खोल देती ताकि एक अनजान मर्द उसमें आराम से चहल कदमी कर सके,,,।
अंकित भी खामोश था वह भी कुछ नहीं बोल रहा थावैसे भी बोलने लायक उसके पास कोई शब्द नहीं था जैसा अनुभव उसे प्राप्त हुआ था वह बेहद अद्भुत और अतुल्य था जिसके बारे में उसने कभी कल्पना भी नहीं किया था बस का सफर उसके लिए पहला ही था और यह सफर उसके जीवन का यादगार सफर बन चुका था,,,।वह अपनी मां की तरफ नजर मिलाकर देखा भी नहीं पा रहा था वह बाजार में चारों तरफ नजर घूमाकर अपना समय व्यतीत कर रहा था,,, और वह दुकानदार गरमा गरम जलेबी और समोसे छान रहा था,,, थोड़ी ही देर में वह एक कागज मेंदो-दो समय से और थोड़ी-थोड़ी जलेबियां लेकर दोनों के पास आया और अपना हाथ आगे बढ़ाकर दोनों को थमाने लगा,,, सुगंधा और उसका बेटा दोनों हाथ आगे बढ़ाकर उसे दुकानदार के हाथ से समोसे और जलेबी ले लिए और खाने लगे,,,,,, समोसा और जलेबी दोनों काफी स्वादिष्ट थी,,, वैसे मां बेटे दोनों को जलेबी और समोसे कुछ ज्यादा ही पसंद थे।
जलेबी को हाथ में लेकर तोड़ते हुए उसमें से मीठे रस की चासनी नीचे टपक रही थी जिसे देखकर सुगंधा के चेहरे का रंग सुर्ख लाल हो गया क्योंकि उसे अच्छी तरह से महसूस हो रहा था कि जिस तरह से जलेबी से चांदनी टपक रही है इस तरह से उसकी बुर से उसका मदन रस भी टपक रहा था,,, उसकी बुर और जलेबी में कुछ ज्यादा फर्क नहीं था बस फर्क इतना था की जलेबी का रस वह खुद चाटने वाली थी लेकिन उसकी बुर से निकला मदन रस चाटने वाला अभी कोई नहीं था,,,। बस बार-बार उसका रस निकालने वाला उसके पास में ही बैठा था।जलेबी खाते हुए तिरछी नजर से सुगंध अपने बेटे की तरफ देख रही थी और मन ही मां अपने बेटे पर गुस्सा भी कर रही थी,, क्योंकि जिस तरह के हालात से उसे देखते हुए उसे राहुल याद आ रहा था,,,,, क्योंकि उसे अच्छी तरह से मालूम था कि उसके और उसकी मां के बीच शारीरिक संबंध है,,, क्योंकि वहखुद अपनी आंखों से दोनों की अठखेलियों को बाजार में देख चुकी थी।
सुगंधा खुद चाहती थी कि उसका बेटा भी राहुल की तरह हो जाए लेकिन अभी भी उसके मन में झिझक थी जो की धीरे-धीरेदूर हो रही थी लेकिन पूरी तरह से दूर होने में कितना समय लगेगा इस बारे में वह कुछ बात नहीं सकती थी लेकिन धीरे-धीरे उसकी तड़प पूरी तरह से बढ़ती जा रही थी,,, थोड़ी ही देर में दोनों समोसे और जलेबी खाकर पानी पी रहे थे और सुगंधा ने दुकानदार को जलेबी और समोसे पेक करने के लिए भी बोल दी थी,,, दुकानदार को पैसे देकर और उस समस्या और जलेबी या लेकर दोनों फिर से मुख्य सड़क पर आ चुके थे यह देखकर अंकित बोला,,,।
फिर से गाड़ी करना पड़ेगा क्या,,,?
नहीं नहीं यहां से तेरे मामा का घर ज्यादा दूर नहीं है 10 मिनट का ही रास्ता है,,,। पैदल चलेंगे तो अभी पहुंच जाएंगे,,,, वैसे भी अब ज्यादा धूप नहीं है थोड़ी ही देर में शाम हो जाएगी,,,।
ठीक है लेकिन चलना कौन सी दिशा में है,,,?(जी मुख्य सड़क पर दोनों खड़े थे वहां से तीन तरफ रास्ता जाता था इसलिए अंकित पूछ रहा था उसके सवाल पर सुगंधा मुस्कुराते हुए बोली,,,)
यह सामने वाली कच्ची सड़क है ना यहां से जाना है,,,।
यह सामने वाली यह तो बहुत छोटी सड़क है यहां से तो वाहन भी नहीं जाता होगा,,,। और देखो तो दोनों तरफ कितने पेड़ लगे हैं कितना मस्त नजारा है,,।
तभी तो यहां से पैदल ही जाना है,,, यह थोड़ा गांव जैसा ही है,,,।
ओहहह गांव जैसा ही है तब गांव कितना खूबसूरत होगा,,, मम्मी हम लोग गांव क्यों नहीं जाते,,,!(अंकित अपनी मां से आश्चर्य जताते हुए बोला उसकी मां मुस्कुराते हुए जवाब देते हुए बोली)
जरूर चलेंगे,,,, लेकिन अभी समय है,,,। अब चल जल्दी,,,काफी देर से हम लोग यही खड़े हैं बाकी के सभी लोग जो साथ में बस से उतरे थे अपने-अपने घर पहुंच गए होंगे,,,।
सही कह रही हो सिर्फ बस खड़ी है बाकी के सभी लोग गायब है लेकिन क्या यही बस चल जाएगी,,।
हां यही बस चल जाएगी और हम लोगों को सही समय पर पहुंच जाना है वरना यह बस छुटी तो फिर से तेरे मामा के घर रुकना पड़ेगा।
(बस की तरफ देखते हुए दोनों मां बेटे के मन में बहुत कुछ चल रहा था इस वर्ष में एक अद्भुत एहसास दोनों के बदन में और दोनों के दिलों दिमाग पर एक अमिट छाप छोड़ दी थी जिसका एहसास दोनों को गिला करने के लिए काफी था,,, वैसे तोबस में भीड़भाड़ सुगंध को पसंद नहीं रहती थी लेकिन आज की बात ही कुछ और थी आज की भीड़ भाड़ उसे एक अद्भुत सुख प्रदान किया था,,, जिसका वर्णन वह अपने शब्दों में नहीं कर सकती थी,,,।
देखते ही देखते दोनों कच्ची सड़क पर साथ में चलने लगे थेकस्बा पूरा गांव जैसा होने की वजह से इस समय कोई भी नजर नहीं आ रहा था कच्ची सड़क पर केवल मां बेटे ही आगे आगे चल रहे थे,,, सुगंधा आगे चल रही थी औरउसे एक कदम पीछे अंकित चल रहा था वैसे भी अपनी मां के पीछे चलने में अंकित का अपना एक लालच छुपा हुआ होता था क्योंकि वह अपनी मां के पीछे चलते हुए वह अपनी मां की बनावट को अपनी आंखों से देखकर मस्त हो जाता था और इस समय वह कच्ची सड़क पर चल रही थी जिसकी वजह से कसी हुई साड़ी में है उसकी बड़ी-बड़ी गांड बेहद आकर्षक और उत्तेजक लग रही थी,, जिसे देखकर बड़ी मुश्किल से सहज हुआ उसका लंड एक बार फिर से टनटनाने लगा था,,,अंकित अपनी मां की बड़ी-बड़ी गांड देखकर अपनी मन में यही सोच रहा था कि वाकई में गजब की माल है,,,। और सुगंधा भी बार-बार तिरछी नजर से अपने बेटे की तरफ देख ले रही थी और उसे अच्छी तरह से एहसास हो रहा था कि इस समय उसके बेटे की नजर उसके कौन से अंग पर है,,, इसलिए वह अपनी गांड को कुछ ज्यादा ही मटका कर चल रही थी।
सुगंधा भी अच्छी तरह से जानती थी कि जब एक पक्ष कमजोर हो जाए तो दूसरे पक्ष को हमेशा हावी हो जाना चाहिए,,, हालात भी कुछ यही दर्शा रहे थे,,, वह जानती थी किसका बेटा आगे बढ़ने से थोड़ा कतरा रहा है,,, और ऐसे में उसे ही जिम्मेदारी उठानी होगी वह तो भीड़भाड़ की वजह से उसका बेटाथोड़ी हिम्मत दिखा कर अपनी हरकत को आगे बढ़ा दिया था वरना अगर बस में भीड़ भाड़ ना होती तो वह अपने मन से कभी भी आगे ना बढ़ता,,, सुगंधा को अच्छी तरह से याद आता कि भीड़भाड़ और कच्ची सड़क की ऊपर खबर सड़कों पर ऊंची नीची होती हुई बस के रफ्तार का फायदा उठाते हुएबार-बार उसका बेटा अपनी कमर को हिचकोले खिला रहा था आगे पीछे हिला रहा था मानो के जैसे वह किसी की चुदाई कर रहा हो अगर सबको सामान्य होता तो इतनी हिम्मत उसका बेटा कभी नहीं करता,,, और उसकी इसी हिम्मत को सुगंधा को आगे बढ़ाना था ताकि उसके मर्दाना अंग के उसका मन भी पूरी तरह से मर्दाना हो जाए।
यही सब सोचते हुए सुगंधा धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी,,, अपने मन में आगे की युक्तिके बारे में विचार कर रही थी कि आगे कैसे बढ़ता है ताकि उसका बेटा खुद ही उसके साथ शारीरिक संबंध बनाने के लिए मचल उठे तड़प उठे,,,,यह सब सोते हुए वह आगे पीछे काफी दूर तक देख भी ले रही थी कि कहीं कोई आ तो नहीं रहा है लेकिन जेठ की दुपहरी में किसी का नामोनिशान सड़क पर दिखाई नहीं दे रहा था,,, ऐसे भी मदन रस के बहाव के चलते उसे बड़े जोरों की पेशाब लगने लगी थी,,,और यही सही मौका भी लग रहा था उसे अपने बेटे को पूरी तरह से आकर्षित करने के लिए वैसे तो वह यह हथकंडा काफी बार आजमा चुकी थी लेकिन इसका यही फायदा होता था कि उसका बेटा उसके आकर्षण में पूरी तरह से बंधता चला जा रहा था लेकिन आगे नहीं बढ़ पा रहा था,,, बस देखता भर था,,,ना तो इससे आगे करने की कुछ सोचता था और ना ही उसके ईसारे को समझ पाता था।
लेकिन आज उसके धक्को याद करके सुगंधा समझ गई थी कि उसका बेटा भी चुदाई करने के लिए तड़प रहा हैवरना वह अपनी कमर आगे पीछे करके हिलता नहीं वह भी सुख भोगना चाहता है बस कोई झिझक उसे आगे बढ़ने से रोक रही है,,,, और उसकी यही झिझक को सुगंधा खत्म करना चाहती थी दूर करना चाहती थी,,,, इसलिए कुछ देर और आगे चलते हुएएक बड़े से पेड़ के नीचे एकदम से रुक गई और इधर-उधर देखने लगी उसके साथ में अंकित भी रुक गया था उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि उसकी मां यहां क्यो रुक गई है,,,, फिर उसे लगा कि शायदधूप की वजह से वह पेड़ की छांव के नीचे खड़ी हो गई है लेकिन फिर उसे एहसास हुआ कि पूरे सड़क भर पेड़ ही पेड़ हैं धूप तो है ही नहीं इसलिए वह अपने मन में उठ रहे शंका को दूर करने के लिए बोला।
क्या हुआ मम्मी खड़ी क्यों हो गई,,,?
अब कैसे बताऊं तुझे,,,,(अपनी कमर पर दोनों हाथ रखकर इधर-उधर देखते हुए सुगंधा बोली और चेहरे का थोड़ा सा तंग करते हुए वह अपनी युक्ति को कामयाब करना चाहती थी उसकी बात को सुनकर अंकित बोला)
क्यों क्या हो गया,,,?
अरे मुझे बड़े जोरों की पेशाब लगी हैऔर देखना है चारों तरफ झाड़ियां ही झाड़ियां हैं यहां पर तो सांप और बिच्छू का भी डर बना रहता है,,,।
क्या बात कर रही है मम्मी यहां पर सांप बिच्छू भी हैं,,,(सांप बिच्छू का नाम सुनकर एकदम से हैरान होते हुए बोल सांप बिच्छू का नाम सुनकर वह अपनी मां के मुंह से निकले हुए से पेशाब शब्द पर भी ध्यान नहीं दिया था वरना औरत के मुंह से यह सब दे सुनते ही मरते की दोनों टांगों के बीच की बत्ती जलने लगती है,,, इस बात पर उसकी मां भी गौर की थी इसलिए थोड़ा गुस्सा दिखाते हुए बोली)
अरे बुद्धु मुझे बड़े जोरों के पेशाब लगी और सोच रही हूं कहां करूं इन झाड़ियां में तो कहीं भी कुछ भी निकल सकता है,,,(सुगंधा इस तरह से अपनी कमर पर दोनों हाथ रखकर इधर-उधर देखते हुए बोली,,,, अपनी मां के चेहरे के हाव-भाव को देखकरअंकित को समझ में आने लगा था कि वाकई में उसकी मां को बड़ी जोरों की पेशाब लगी हुई है वह भी इधर-उधर जगह देखने लगा वैसे भी कच्ची सड़क पूरी तरह से खाली थी कोई भी दिखाई नहीं दे रहा था,,, आदमी तो छोड़ो जानवर का भी नामोनिशान दिखाई नहीं दे रहा था,,, और पेशाब वाली बात पर अब जाकर अंकित का ध्यान गया था और उसके बाद में उत्तेजना की लहर उठने लगी थी और वह भी जगह देखते हुए अपनी मां से बोला,,,,)
, एक काम करो मम्मी बड़े से पेड़ के पीछे चली जाओ वहां आराम से कर लोगी,,,(अंकित उंगली के इशारे से सामने के बड़े पेड़ की तरफ दिखाते हुए बोलाउसे मालूम था कि उसकी मां उसकी आंखों के सामने तो पेशाब करने बैठे कि नहीं इसलिए वह बोल रहा था कि पेड़ के पीछे चली जाओ और इस समय सुगंधा के मन में कुछ और चल रहा था वह पूरी तरह से अपने बेटे के सामने पेशाब करने के लिए बैठना चाहती थी ताकि उसकी बड़ी-बड़ी गोलाकार जवानी उसका बेटा अपनी आंखों से देख सके,,,,इस मौके को अपने हाथ से जाने नहीं देना चाहती थी इसलिए चारों तरफ नजर घूमाकर पूरी तसल्ली कर लेने के बाद वह उसे पेड़ की तरफ जाने लगी और बोली,,,)
मुझे डर लग रहा है पेड़ के पीछे तो मैं जाऊंगी नहीं जंगली झाड़ियां से वैसे भी मुझे यहां डर लगता है,,, मैं पेड़ के पास ही बैठ जाती हूं और हां तो देखते रहना कहीं कोई सांप बिच्छू ना निकल जाए,,,, नहीं तो बहुत परेशानी हो जाएगी,,,(ऐसा कहते हुए सुगंधा अपनी गांड मटकाते हुए बड़े से पेड़ के पास पहुंच गई,,,,अपनी मां की इस तरह की बातों को सुनकर अंकित का दिमाग काम करना बंद कर दिया था उसे तुरंत राहुल की कही गई बात याद आने लगी थी,,, राहुल ने उसे बताया था कि घर की औरतें इसी तरह से अपनी गांड दिखाकर घर के मर्दों को अपना दीवाना बनाती है और उनके साथ चुदवाती है,,, यह बात मन में आते ही अंकित के टांगों के बीच का हथियार खड़ा होने लगाऔर वह धीरे-धीरे कदम आगे बढ़कर बीच सड़क पर खड़ा हो गया जहां से उसकी मां एकदम साफ दिखाई दे रही थी,,,,।
जिस तरह से उसकी मां ने उसे देखने के लिए हिदायत दे रखी थी उसके चलतेअब उसे चोरी छुपे नहीं बल्कि खुली आंखों से अपनी मां की तरफ देखना था और वह भी पेशाब करते हुए यह एहसास उसके मन में मदहोशी का रस बोल रहा था वह पूरी तरह से मस्त हुआ जा रहा था वह उत्तेजित हुआ जा रहा था,,,, बस उसकी मां के पेशाब करने के लिए बैठने की जरूरत हैअभी भी उसकी मां बड़े से पेड़ के पास खड़ी थी वह पूरी तरह से तसल्ली कर लेना चाहती थी कि कहीं कोई आ तो नहीं रहा है,,,,, लेकिन पूरी तसल्ली कर लेने के बाद सुगंधा अपनी साड़ी को दोनों हाथों से पकड़ ली थी,,,,,और उसे धीरे-धीरे ऊपर उठा रही थी यह एक तरह की मादकता थी जो वह अपने बेटे की जवान नसों में घोलना चाहती थी,,,। और उसकी यह अदा धीरे-धीरे काम भी कर रही थी,,,।
अंकित का दील जोरों से धड़क रहा था,,,, उसके पेट में तंबू बनना शुरू हो चुका थाऔर उसकी मां बार-बार उसे हिदायत भी दे रही थी कि देखते रहना कहीं कोई जानवर आना जाए,,,, और ऐसा कहते हुए धीरे-धीरे अपनी साड़ी को अपनी मोटी मोटी जांघों तक उठा दी थी,,,,अपनी मां की गोरी चिकनी मोटी मोटी केले के तने के समान चिकनी जांघो को देखकर अंकित का मन फिसल रहा था,,,, इस तरह के कुदरत वातावरण के मनोरम दृश्य के साथ-साथ एक खूबसूरत जवान औरत की मादकता भी उसे देखने को मिल रही थी और उसे क्या चाहिए था,,, जिस तरह का एहसास अंकित को हो रहा था वही एहसास सुगंधा को भी हो रहा था सुगंधा की भी बुर पानी छोड़ रही थी,,, सुगंधा को इस बात का डर भी था कि कहीं कोई आ ना जाए,,, भले ही अब तक जेठ की दुपहरी में कोईनजर नहीं आया था लेकिन कोई भरोसा भी नहीं था क्योंकि पास में ही बस्ती शुरू होती थी इसलिए बिल्कुल भी देर ना करते हुए सुगंधा एकदम से अपनी साड़ी को कमर तक उठा दे औरउसके साड़ी उठते ही उसकी बड़ी-बड़ी मदहोश कर देने वाली गांड उसकी पेंटि में नजर आने लगी,,,।
अंकित की तो हालत खराब हो गई उसकी सांसे ऊपर नीचे होने लगी उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें वह अपनी नजर को दूसरी तरफ तो घूमा ही नहीं सकता था वैसे अगर उसकी मां नेउससे साफ शब्दों में ना बोली होती देखते रहने को तो वह शायद चोरी छिपे ईस नजारे को देखकर अपनी आंखों को सेंकता,,, लेकिन वह अपनी मां की बात को टाल नहीं सकता था इसलिए अपनी नजर को इधर-उधर ना करके वह सिर्फ अपनी मां को ही देख रहा था और एक बार फिर से उसकी मां अपने शब्दों को दोहराते हुए पीछे मुड़कर अपने बेटे की तरफ देखते हुए बोली,,,)
देखते रहना अंकित मुझे बहुत डर लगता है,,,।(ऐसा कहते हुए वह अपने बेटे की हरकत को देख रही थी और उसकी कामुक हरकत उसकी आंखों में कैद हो चुकी थी वह जब पीछे मुड़कर देखी थी तब अंकित अपनी उतेजना पर काबू नहीं कर पा रहा था और पेंट में बने तंबू को अपने हाथों से दबा रहा था,,, उसके बेटे की यह हरकत देख कर सुगंधा को अपनी युक्ति कामयाब होती हुई नजर आने लगी थी क्योंकि उसकीबेलगाम जवानी का कर उसके बेटे पर बहुत ही बुरा प्रभाव डाल रहा था वह पूरी तरह से उसकी आकर्षण में डूबता चला जा रहा था,,, सुगंधा तुरंत अपनी नजर को फिर से आगे की तरफ कर दी थी क्योंकि वह जताना नहीं चाहती थी कि उसने अपने बेटे की हरकत को देख ली है,,,।
और फिर अपनी पेंटिं को नीचे सरकाने लगी,,,, जिसका बड़ी बेसब्री से अंकित को इंतजार था,,, सुगंधा को भीइस तरह की हरकत तो अपने बेटे के साथ बहुत बार कर चुकी थी उसकी आंखों के सामने कपड़े उतारना कपड़े पहनना अपनी नंगी गांड दिखाना यह सब तो घर में चलता रहता था लेकिन आजखुले में इस तरह से वह अपने बेटे को अपनी जवानी के दर्शन कर रही थी ताकि उसका काम बन सके,,,, पेंटी के नीचे उतरते ही सुगंधा की गोरी गोरी गांड एकदम जवानी से लाल हुई मदहोश कर देने वाली उभारधार गांड उसके बेटे की आंखों के सामने एकदम से उजागर हो गई जिसे देखते ही अंकित की आंखों में वासना के डोरे नजर आने लगे वह पूरी तरह से पागल होने लगा,,,और यह देखकर अपने मन में सोचने लगा कि काश बस के अंदर उसकी मां अपनी साड़ी ऊपर उठा दी होती तो उसका लंड उसकी बुर में घुस गया होता,,,।
पेंटी को जांघों तक नीचे सरकाते हीसुगंधा पेशाब करने के लिए नीचे बैठ गई उसे आज बिल्कुल भी सर में महसूस नहीं हो रही थी अपने बेटे की आंखों के सामने खोलेंगे पेशाब करने में वह तो चाहती थी कि उसका बेटा खुली आंखों से यह सब कुछ देखें और ऐसा हो भी रहा था अंकित सांप बिच्छूपर नजर रखने के बहाने अपनी मां की भरी हुई जवान दे रहा था उसकी बुर से निकलने वाली सिटी की मधुर आवाज उसके कानों में पडते ही वह पूरी तरह से बावला हुआ जा रहा था,,, उसकी सांसे गहरी चल रही थी पेंट में बना तंबू एकदम से अकड़ने लगा था,,,अपनी मां की हरकत को देखकर वह समझ गया था कि राहुल घर की औरतों के बारे में सच ही बोल रहा था,,,,। आग दोनों तरफ बराबर लगी हुई थी सुगंधा चुदवाना चाहती थी और उसका बेटा चोदना चाहता था,,,।
सुगंधा पेशाब करने के बादअपने दोनों हथेलियां को अपनी नंगी गांड पर रखकर उसे हल्के हल्के से सहला रही थी,,, एक तरह से अपने बेटे को पागल बना रही थी और फिर एक झटके से अपनी नजर पीछे की तरफ घूमकर अपने बेटे की तरफ देखने लगी और एकदम से मुस्कुरा दी यह मुस्कुराहट अंकित के लिए एक खुला आमंत्रण था एक ही सहारा था आगे बढ़ने का लेकिन अपनी मां की नंगी गांड और उसकी नजर से एकदम से अंकित झेंप सा गया था,,, और अपने तंबू पर से वह एकदम से अपना हाथ हटा दिया था,,, सुगंधा मन ही मन में मुस्कुरा रही थी और फिर धीरे से खड़ी होकर अपनी पेंटि को उपर चढकर अपनी साड़ी को एकदम से नीचे गिरा दी और एक खूबसूरत नाटक पर पर्दा पड़ गया,,,।
बाप रे अब जाकर आराम मिला है,,,(अपने कपड़ों को व्यवस्थित करते हुए अंकित की तरफ आते हुए वह बोली,,,,अंकित तो अपनी मां का खूबसूरत चेहरा देखा ही रह गया था इस समय उसके चेहरे पर भी उत्तेजना के भाव थे और अंकित बावला हुआ जा रहा था अंकित के पेट में तंबू बना हुआ थाएक नजर अपने बेटे के पेंट में बने तंबू पर डालकर,,, सुगंधा चलने लगीऔर अंकित पीछे-पीछे चलने लगा अपनी मां की मटकती गांड को देखकर अंकित अपने मन में ही बोला,,, साली चुदवाने के लिए कितना तड़प रही है और तड़पा रही है,,,, अंकित के पास बोलने के लिए शब्द नहीं थे लेकिन फिर भी वह बोला,,)
मम्मी तुम्हें सांप और बिच्छू से डर क्यों लगता है,,,?
यह बहुत लंबी कहानी है जब मैं गांव में थी तब मेरे साथ एक हादसा हो गया था तभी से मुझे डर लगता है,,,।
कैसा हादसा,,,!(अंकित आश्चर्य जताते हुए बोला,,,)
फिर कभी बताऊंगी,,,,, आराम से,,,,,।
(थोड़ी ही देर में बस्ती शुरू हो गई थी बस्ती के नाम पर थोड़ी-थोड़ी दूर पर इक्का दुक्का घर दिखाई दे रहे थे तभी सुगंधा उंगली के ईसारे से एक घर की तरफ इशारा करते हुए बोली,,,)
वह देख वह रहा तेरे मामा का घर,,,,।
वह मम्मी मामा ने तो बहुत अच्छा घर बना रखा है,,,।
तब क्या,,,,?
(घर ज्यादा बड़ा नहीं था तीन कमरों का घर था और छत वाला था,,, घर के पीछे बाथरूम बना हुआ था जहां पर स्नान और सोच किया जाता था,,,, सुगंधा और अंकित दोनों,,, घर पर पहुंच चुके थे,,, घर का दरवाजा खुला हुआ था सुगंधा,, बाहर खड़े होकर आवाज लगाती हुई बोली,,,)
अरे कोई है घर में,,,,।
(आवाज सुनते ही सुगंधा का भाई जल्दी-जल्दी आया वह घर में कोई काम कर रहा था और आते ही एकदम खुश होते हुए बोला,,,)
अरे दीदी तुम,,,, तुम कब आई,,,,।
अरे अभी-अभी आ रही हूं,,,,।
ना कोई खबर ना चिट्ठी,,,!
अरे तेरे घर आने के लिए मुझे खबर देना पड़ेगा,,,।
अरे ऐसी कोई बात नहीं दीदी बस अचानक आ गई इसलिए कह रहा हूं,,,। अंकित तू तो एकदम बड़ा हो गया रे एकदम जवान हो गया है,,,(सुगंधा का भाई अपने भांजे की तरफ देखते हुए बोला तोसुगंधा अपने मन में ही बोली यह तो बड़ा हो गया है लेकिन इसका हथियार भी ज्यादा बड़ा हो गया है,,, और वह अंकित की तरह देखते हुए बोली,,,)
अंकित पैर छुओ मामा के,,,,।
(अंकित एकदम से आगे बढ़ा और अपने मामा के पैर छूने लगा,,,, अभी यह सब चल ही रहा था कि पीछे से एकदम से खुश होते हुए एक खूबसूरत औरत आई वह भी घर में कोई काम कर रही थी और आते ही सुगंधा के पैर छुते हुए बोली,,,)
प्रणाम दीदी,,,, आओ अंदर आओ,,,,
अंकित यह तुम्हारी मामी है पैर छुओ इनके,,,,
(इतना सुनकर अंकित मुस्कुराते हुए आगे बड़ा और अपनी मामी के भी पैर छूने लगा,,,,,, यह देखकर वह तुरंत उसकी बांह पकड़ कर उसे अपने सीने से लगा ली,,,, अंकित अपनी मामी की हरकत पर खुश हो गया था क्योंकि उसके ऐसा करने से उसकी छाती एकदम से उसके सीने से रगड़ खाने लगी थी,,,,,।
थोड़ी देर बाद चाय नाश्ता कर लेने के बाद चारों बैठकर बातें कर रहे थे इधर-उधर की बातें करते हुए सुगंधा बोली,,,।
तुम दोनों के शादी के ईतने वर्ष बीत गई लेकिन अभी तक कोई अच्छी खबर नहीं मिली,,,।
(इस बात को सुनकर अंकित की मामी उदास होते हुए बोली)
क्या करूं दीदी इतनी दवा दवाई तो कर रहे हैं लेकिन कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा है कहां नहीं दिखाएं हर जगह दिखाकर थक हार गए हैं,,,, लेकिन कोई परिणाम नहीं मिल रहा है इसलिए अभी इच्छा भी नहीं करती।
धैर्य रखो सब कुछ ठीक हो जाएगा सब कुछ समय से ही होता है एक न एक दिन जरूर तुम्हारी गोद हरि हो जाएगी,,,।
(दोनों की बात को सुनकर अंकित समझ गया था कि उसके मामा मामी के कोई संतान नहीं है,,, अंकित एक नजर अपनी मामी पर डालकर देख ले रहा था ,,, उसकी मम्मी पूरी तरह से जवानी से भरी हुई थी पतला छरहरा बदन,,, बेहद आकर्षक किया थी उसकी मम्मी की और उसकी चुचियों का स्पर्श तो वह अपनी छाती पर महसूस भी कर चुका था,,,, सुगंधा के इस बात पर माहौल थोड़ा गमगीन हो गया था इसलिए माहौल को बदलते हुए सुगंधा बोली,,,)
अपनी जानकारी में अंकित पहली बार तुम दोनों से मिल रहा है क्यों अंकित सच कह रही हूं ना,,,।
बिल्कुल सही मैं तो पहली बार अपने मामा मामी को देख रहा हूं और पहली बार इधर आया भी हूं,,,।
हां सही कह रहे हो अंकित दीदी तुम्हें पहली बार यहां ला रही है,,,।
अब क्या करूं तू तो जानता ही है तेरे जीजा जी के देहांत के बाद से कैसे दिन गुजारी हूं मैं ही जानती हूं,,, अगर टीचर की नौकरी ना होती तो शायद बहुत बुरा हो चुका होता,,,, परीक्षा खत्म हो चुकी थी मेरी भी छुट्टी पड़ चुकी थी इसलिए सोची चलो मामा मामी से ही मिला दुं,,,।
यह तो ठीक किया दीदी लेकिन तृप्ति को क्यों नहीं लाई,,,,(अंकित की मामी एकदम से बोल पड़ी)
क्या करूं उसकी पढ़ाई ही कुछ ऐसी है,,, लेकर तो आना चाहती थी लेकिन उसका लेक्चर उसे आने नहीं दिया,,,,।
तो दीदी शहर में उसे किसके सहारे छोड़ कर आई हो,,,।
पड़ोस में,,, उनके सहारे छोड़कर आई हूं उनकी तृप्ति की उम्र की बेटी है,,, और उन्होंने ही कहा था कि तुम निश्चिंत होकर जो वह संभाल लेगी एक ही दिन की तो बात हैइसलिए तुम्हें कपड़े भी लेकर नहीं आई हूं कल सुबह चली जाऊंगी,,,।
यह क्या दीदी इतने साल बाद आई भी तो सिर्फ एक दिन के लिए,,,।(अंकित की मामी बोली,,)
अरे अब तो आना जाना लगा रहेगा बच्चे भी बड़े हो गए हैं,,,,।
(रात को अंकित की मामी खीर पुरी और सब्जी बनाई,,, जिसे खाने के बाद सोने की तैयारी होने लगी गर्मी का दिन था इसलिए सुगंधा बोली,,,)
हम दोनों का बिस्तर छत पर लगा देना तुम दोनों भी छत पर सोते हो कि नहीं,,,।
नहीं दीदी हम लोग तो कमरे में ही सोते हैं,,,।
गर्मी बहुत है इसलिए हम दोनों का बिस्तर छत पर ही लगा देना हम दोनों को छत पर ही सही रहेगा क्यों अंकित सही है ना,,,।
हां मम्मी यहां पर गर्मी कुछ ज्यादा ही है कमरे में सो नहीं पाएंगे,,,।
चलो ठीक है दीदी तो मैं आप दोनों का बिस्तर छत पर लगा देती हुं,,,,,,,।
(इतना कहकर अंकित की मामी छत पर बिस्तर लगाने लगी और कुछ देर वह लोग बैठकर बातें करते रहे काफी समय बीत जाने के बाद नींद आने लगी तो सुगंधा खुद अंकित की मामी से बोली,,,)
अब मुझे नींद आ रही है तुम दोनों भी जाकर सो जाओ,,,,(इस दौरान बस के सफर के कारण थककर अंकित सो चुका था,,, उसकी तरफ देखते हुए सुगंधा अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोली,,,) पहली बार बस का सफर किया है इसलिए थक कर सो गया,,,।
ठीक है दीदी अब हम दोनों भी चलते हैं किसी चीज की जरूरत हो तो बता देना,,,।
नहीं अब किसी चीज की जरूरत नहीं है तुम दोनों जाओ आराम करो,,,,।
(थोड़ी ही देर में सुगंधा को भी नींद आ गई,,, लेकिन तकरीबन एक घंटा बीता होगातो उसकी नींद एकदम से खुल गई उसे बड़े जोरों की प्यास लगी थी और बातों ही बातों में उसने पानी रखने के लिए बोलना भूल गई थीइसलिए वह धीरे से हटकर बैठ गई उसकी चूड़ियों की खनक की आवाज सुनकर अंकित की भी नींद खुल गई थी लेकिन वह अपनी आंखों को बंद किए हुए था,,,, वह सोच रहा था कि उसकी मां शायद नींद नहीं आ रही है इसलिए उठकर बैठ गई है कुछ देर बैठने के बादवह धीरे से उठकर खड़ी हुई और छत से चारों तरफ देखने लगी चारों तरफ अंधेरा ही अंधेरा छाया हुआ था केवल इसका दुख का घर में नाइट बल्ब जल रहा था बाकी कुत्तों के भौंकने की आवाज आ रही थी सुगंधा चलते हुए छठ के कोने की तरफ गई वह शायद पानी केनिकलने का रास्ता देख रही थी और उसे वहीं पर छोटी सी पाइप लगी हुई नजर आई और वह छत से खड़ी होकर दूसरी तरफ देखने लगी तो वह पाइप घर के पीछे खेतों की तरफगई हुई थी जिसमें से पानी नीचे गिरकर खेतों की तरफ चला जाता था।
यह सब अंकित अपनी आंखों से देख रहा था उसकी भी नींद उड़ चुकी थी वह देख रहा था कि उसकी मां कर क्या रही है,,, लेकिन तभीउसकी मां धीरे से अपनी साड़ी पर उठने लगी और देखते ही देखते वह वहीं पर बैठकर पेशाब करने लगी,,, अंकित की आंखों के सामने एक बार फिर से उसकी मां की गदराई गांड दिखाई दे रही थीऔर उसकी गुलाबी बुर से सिटी की आवाज निकल रही थी जो पूरे वातावरण को अपनी मादकता में लपेटे हुए था,,,, यह नजारा देखकर एकदम से अंकित के पेंट में तंबू सा बन गया,,, और वह पीठ के बल लेटा हुआ था,,,इस स्थिति में उसकी मां की नजर उसके तंबू पर पड़ सकती थी लेकिन इस समय न जाने की वह अपने तंबू को छुपाने की बिल्कुल भी कोशिश नहीं कर रहा था और उसी तरह से लेते हुए ही अपनी मां की रसभरी जवानी का रसपान अपनी आंखों से कर रहा था,,,,थोड़ी देर में सिटी की आवाज आना बंद हो गई तो अंकित समझ गया कि उसकी मां पेशाब कर चुकी है और फिर उसकी मां उठकर खड़ी होगी और पानी डालकर वापस उसी जगह पर आ गई जहां पर अंकित सो रहा था अंकित पर नजर पडते ही,, सुगंधा की आंखों की चमक बढने लगी,,, क्योंकि उसकी नजर उसके बेटे के तंबू पर चली गई थी,,,।
सुगंधा ईस नजारे को देखकर उत्तेजित होने लगी,,, और अपने मन में सोचने लगी की यही तंबू बस के अंदर उसकी गांड में घुसने के लिए बेताब हुआ जा रहा था,,,, यह सोचते हुए वह धीरे से झुकी और अपना हाथ आगे बढ़कर अपने बेटे के पेंट में बने तंबू का स्पर्श करने लगी,,,उसे ऐसा ही लग रहा था कि उसका बेटा गहरी नींद में सो रहा है वह नहीं जानते थे कि उसके बेटे की नींद खुल चुकी है और वह सब कुछ अपनी आंखों से देख रहा था लेकिन इस समय वह अपनी आंखों को बंद करके गहरी नींद में होने का नाटक कर रहा था वह देखना चाहता था कि उसकी मां क्या करती है,,,,हालांकि उसकी सांसों की गति ऊपर नीचे हो रही थी और वह बड़ी मुश्किल से अपनी उत्तेजना पर काबू किए हुए था,,,,।
सुगंधा अपने बेटे की नींद में होने का फायदा उठाते हुएउसके पेट में बना तंबू को छू रही थी स्पर्श कर रही थी जब ईस तरह की हरकत करने पर भी अंकित के बदन में कोई हरकत नहीं हुई तो उसकी हिम्मत बढ़ने लगी और वह एकदम उत्तेजित अवस्था में एक झटके से अपने बेटे के पेंट में बनी तंबू को अपनी मुट्ठी में दबोच ली उसकी ईस हरकत सेअंकित एकदम से मदहोश हो गया उसकी आंख खुलने वाली थी उसकी बदन में हलचल होने वाली थी लेकिन न जाने कैसे वह अपनी उत्तेजना पर एकदम से लगाम लगा दिया था लेकिन अपनी मां की ईस हरकत पर उसका बदन हल्के से कसमसाया जरूर था,,, और अंकित के इस तरह से कसमसाने से सुगंधा एकदम से अपना हाथ पीछे खींच ली,,,, पेंट के ऊपर से ही अपने बेटे के लंड की मोटाई को महसूस करके वह पूरी तरह से उत्तेजित हो चुकी थी,,,। लेकिन ज्यादा छेड़छाड़करना उसे उचित नहीं लगा क्योंकि वह उसका घर नहीं बल्कि उसके भाई का घर था,,,।
उसे बड़े जोरों की प्यास लगी हुई थी इसलिए हुआ धीरे से सीढ़ियां उतरने लगी और धीरे-धीरे सीढ़ियां उतर कर रसोई घर की तरफ जाने लगी,,,दूसरी तरफ अंकित की हालात पूरी तरह से खराब हो चुकी थी जब उसे एहसास हुआ कि उसकी मां सीढ़ियां उतरकर नीचे जा चुकी है तो वह उठकर बैठ गया था गहरी गहरी सांस लेने लगा था,,,पल भर में ही उसे अद्भुत आनंद की प्राप्ति हुई थी क्योंकि उसकी मां उसके लंड को पहले ही पेट के ऊपर से लेकिन अपनी हथेली में दबोच ली थी यह एहसास उसे पूरी तरह से उत्तेजना से गदगद कर दिया था,,,, कुछ देर तक वह बैठकर अपनी मां के बारे में ही सोचता रहा इतना तो वह समझ गया था कि उसकी मां चुदवाना चाहती है और वह खुद उसे छोड़ना चाहता है लेकिन कैसे आगे बढ़ा जाए बस यही समझ में नहीं आ रहा था,,,तभी अंकित को एहसास हुआ कि उसकी मां काफी देर से नीचे गई है और अभी तक आई नहीं उसे कुछ समझ में नहीं आया कि उसकी मां आखिरकार कर क्या रही है इसलिए वह धीरे से वह भी सीढ़ियों से नीचे उतरने लगा,,,,।
चारों तरफ अंधेरा थावह कुछ देर खड़ा होकर इधर-उधर देखता रहा लेकिन उसकी मां कहीं नजर नहीं आ रही थी,,, फिर उसे ऐसा लगा कि शायद उसकी मां घर के पीछे टॉयलेट उसे करने के लिए गई हो इसलिए बहुत दिशा में चलने लगा लेकिन तभी उसे एहसास हुआ की खिड़की पर कोई खड़ा है,,,,वह कुछ देर के लिए तो एकदम से घबरा गया क्योंकि अंधेरा था इसलिए उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था,,, और वह डर के मारे आवाज भी नहीं लगा पा रहा था,,,,खिड़की से हल्की-हल्की रोशनी बाहर की तरफ आ रही थी कुछ देर ध्यान से देखने के बाद उसे एहसास समझने लगा की खिड़की पर तो उसकी मां ही खड़ी है लेकिन वह खिड़की में से अंदर क्या देख रही है यह उसके लिए कुतुहल विषय था,, उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था,,,,इसलिए वह बिना आवाज के धीरे-धीरे कदम आगे बढ़ते हुए अपनी मां की करीब ठीक उसके पीछे पहुंच गया जहां पर उसकी मां खड़ी थी,,, वह कुछ खिड़की से अंदर की तरफ देख रही थी।
अंकित भी बिना आवाज की खिड़की के अंदर देखने की कोशिश करने लगाउसकी मां खिड़की के अंदर देखने में इतनी तल्लीन हो चुकी थी कि उसे अहसास तक नहीं हुआ कि उसके ठीक पीछे उसका बेटा खड़ा है,,,, और जब उसने खिड़की के अंदर नजर टिकाकर कमरे के दृश्य को देखने की कोशिश किया तो अंदर का नजारा देखकर उसके होश एकदम से उड़ गए,,, कमरे के अंदर उसके मामा मामी की चुदाई कर रहे थे,,,, अंकित के तो एकदम से होश उड़ गए थेइस यकीन नहीं हो रहा था कि उसकी मां अपने ही भाई और भाभी की चुदाई को तल्लीन होकर देख रही थी,,,,लेकिन तभी अंकित को एहसास हुआ कि उसकी मां भी तो यही चाहती है इसी के लिए तो तड़प रही है वर्षों से,,,।
अंकित भी दूरी बनाकर अंदर की तेरे से को देखने लगा उसे साफ दिखाई दे रहा था कि उसकी मम्मी उसकी मां के लंड पर चढ़ी हुई थी,,, अंदरनाइट लैंप चल रहा था जिसकी रोशनी में ध्यान से देखने पर सब कुछ साथ दिखाई दे रहा थाउसकी मामी की गांड इस अवस्था में कुछ ज्यादा ही बड़ी लग रही थी और वह अपने पति के लंड के ऊपर जोर-जोर से कुद रही थी,,,,इस दृश्य का असर मां बेटे दोनों पर बेहद कहना पड़ रहा था सुगंधा को तुम बिल्कुल भी आप आज तक नहीं था कि ठीक उसके पीछे खड़ा होकर उसका बेटा भी वही देख रहा है जो वह खुद देख रही थी,,, अंकित और उसकी मां एकदम साफ तौर पर देख रहे थे कि उसके भाई का लंड बड़े आराम से बुर के अंदर बाहर हो रहा था और पूरा कमान अंकित की मामी ने संभाली हुई थी,,,। कमरे के अंदर की सिसकारी की आवाज खिड़की से दोनों के कानों में पड़ रही थी,,, और उस सिसकारी की आवाज को सुनकर सुगंधा की हालत खराब हो रही थी और वह साड़ी को कमर तक उठाकर पेंटी में अपना हाथ डालकर अपनी बुर को मसल रही थी,,,।
उसे पर उत्तेजना का दोहरा असर पड़ा था कुछ देर पहले ही वह पेंट के ऊपर से अपने बेटे के लंड को पकड़ कर आई थी और पानी पीने के लिए रसोई घर की तरफ जा ही रही थी की खिड़की खुली होने से अंदर की रोशनी में अचानक उसकी नजर चली गई थी और अंदर की तेरे को देखकर वह अपने आप को वही रोक दी थी और अंदर के गरमा गरम दृश्य को देखकर वह खुद गर्म होती चली जा रही थी। अंकित के पेट में तंबू बन चुकावह पूरी तरह से मदहोश हुआ जा रहा था इतना तो उसे पता चल गया था कि उसकी मां एकदम चुदवाने के लिए तड़प रही है ऐसे में अगर वह खुद कुछ भी करना चाहे तो शायद उसकी मां इनकार नहीं कर पाएगी,,,,और उसे इस बात का भी एहसास हो रहा था कि उसकी मां अपनी साड़ी को कमर तक उठा दी थी और अपने हथेली को अपनी पेंटि में डालकर अपनी बुर को मसल रही थी,,,, यह एहसास होते ही अंकित से सब्र करना मुश्किल हुआ जा रहा था,,,।
और वह हिम्मत दिखाते हुएएकदम से अपनी मां के बदन से उसके पिछवाड़े से चपक सा गया,,,, उसके पेट में बना था हमको एकदम से उसकी गांड में घुसने के लिए तैयार हो गया,,,, जैसे ही सुगंधा को एहसास हुआ कि उसके पीछे कोई एकदम से उससे सट गया है,,,, तो वह एकदम से कुछ बोलना चाहि वह घबरा गई थी,,,, लेकिन मौके की नजाकत को समझते हुए सुगंधा कुछ बोल पाती से पहले ही अंकित चला कि दिखाता हुआ एकदम से अपने होठों को उसके कान के करीब ले गया और धीरे से बोला,,,,।
अंदर क्या हो रहा है मम्मी तुम यह क्या देख रही हो,,, यह मामी क्या कर रही है,,,,(अंकित जानबूझकर एकदम से अनजान बनता हुआ एकदम भोलेपन से बोल रहा थाजैसे कि उसे कुछ पता ही ना हो लेकिन वह जिस तरह से एकदम से अपनी मां के पिछवाड़े से सटा हुआ था उसका लंड उसकी बुर में जाने के लिए मचल रहा था इस बात का भी एहसास सुगंधा को अच्छी तरह से हो रहा था लेकिन जब उसे पता चला कि उसके पीछे दूसरा कोई नहीं उसका लड़का है तो उसकी जान में जान आई,,,,लेकिन अपने बेटे का सवाल का जवाब हुआ है कैसे देता उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था,,,,अंकित एकदम मदहोश हो चुका था और वह अपने होठों को एकदम अपनी मां के गर्दन पर रख दिया था और गहरी गहरी सांस ले रहा थावह अपनी मां के लाल-लाल होठों का चुंबन करना चाहता था लेकिन उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी इसलिए केवल अपने होंठों को वह अपनी मां के गर्दन पर रख दिया था लेकिन इतने से ही सुगंधा की बुर भल भला कर झडने लगी,,,,क्योंकि वह दोनों तरफ से मदहोश हो रही थी पीछे से उसका बेटा अपने लंड की रगड़ उसकी गांड पर बढ़ा रहा था और खुद उसकी उंगली की बुर के अंदर बाहर हो रही थी,,।
झड़ते हुए वह गहरी गहरी सांस ले रही थी लेकिन उसे इस बात का डर भी था की कहानी उन दोनों को उसका भाई और उसकी भाभी देख ना ले अगर ऐसा हो गया तो गजब हो जाएगा इसलिए वह ज्यादा कुछ बोली नहीं बस धीरे से बोली,,,।
कुछ नहीं हो रहा है चल इधर,,,,(और इतना कहकर धीरे-धीरे फिर से सीढीओ की तरफ जाने लगी अब अंकित का भी वहां खड़ा रहना उचित नहीं था,,,इसलिए वह भी दबे पांव अपनी मां के पीछे-पीछे चल दिया और थोड़ी देर में दोनों छत पर आकर बैठ गए,,,, अंकित उसी मासूमियत भरे स्वर में बोला,,,।)
मामा मामी क्या कर रहे थे मम्मी,,,, दोनों में झगड़ा तो नहीं हो रहा था,,,।
( अंकित की बात को सुगंधा समझ नहीं पा रही थीवह फैसला नहीं कर पा रही थी कि वाकई में उसका बेटा मासूम और नादान है या सिर्फ मासूम बनने का ढोंग कर रहा है,,,,वह फैसला नहीं कर पा रही थी और अपने बेटे को क्या जवाब दे उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था,,,,, फिर उसे लगने लगा कि वाकई में उसका बेटा अभीमासूम ही है तभी यह सब नहीं समझ पा रहे हैं वरना उसका इशारा पाकर उसकी जगह कोई और होता है तो अब तक तो उसकी चुदाई कर दिया होता,,,, इसलिए वह कुछ सोच समझ कर बोली)
दोनों काफी परेशान है बच्चे को लेकर शादी कितने साल हो गए हैं लेकिन फिर भी अभी दोनों को संतान नहीं है इसलिए दोनों परेशान थे और संतान के लिए कोशिश कर रहे थे,,,, और अब तु ज्यादा सोच मत सो जा ज्यादा देर हो गई है,,,,(इतना कहकर वह खुद बिस्तर पर लैटने लगी,,,,, अंकित की धीरे से पास में सो गयावैसे तो यही मौका था दोनों को आगे बढ़ने का लेकिन न जाने क्यों दोनों आगे बढ़ने से इस समय कतरा रहे थे और कब दोनों की आंख लग गई पता ही नहीं चला सुबह जल्दी से उठकर नहा धोकर नाश्ता करके दोनों तैयार हो चुके थे,,,,वैसे तो दोनों दूसरे कपड़े नहीं लगे थे लेकिन वही कपड़े उतार कर टावल लपेटकर बारी-बारी से दोनों नहा लिए थे,,,।
बाजार तक छोड़ने के लिए सुगंधा का भाई आया था,,, बस में दोनों को बैठने के लिए जगह मिल गई थी क्योंकि अभी भीड़ नहीं थी और जगह मिल जाने की वजह से मां बेटे दोनों के चेहरे पर उदासी सी नजर आ रहे थे उन दोनों को बस में बैठ कर उनका भाई चला गया था और थोड़ी देर में बस भर गई थी ,,,, बस के बहार जाने पर थोड़ी ही देर में बस का ड्राइवर बस चालू करके बस को आगे बढ़ाने लगा,,,,,,,,। दोनों के चेहरे परप्रसन्नता और उदासी दोनों के भाव नजर आ रहे थे क्योंकि एक ही रात में एक ही दिन के सफर में वह दोनों ने बहुत कुछ पाया था और बहुत कुछ पाने का अवसर गंवा दिया था।
एक तरफ मां बेटे के लिए है सफर बेहद यादगार था तो दूसरी तरफ तृप्ति के भी जीवन में एक ही रात में पूरी तरह से बदलाव आ गया था,,,।
अंकित और सुगंधा के बीच जल्दी ही चुदाई का खेल शुरु होने वाला हैं
वैसे एक रात में तृप्ती ने क्या गुल खिलायें हैं
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
अगले रोमांचकारी धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा