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Incest मुझे प्यार करो,,,

rohnny4545

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बहुत ही गरमागरम कामुक और उत्तेजना से भरपूर कामोत्तेजक अपडेट है भाई मजा आ गया
अंकित और सुगंधा एक दुसरे के आकर्षण में मामा के घर पर चुदाई का खेल देख कर और नजदीक आ गये हैं आग दोनों ओर लगी हैं बस चिंगारी लगना बाकी हैं
वही सुषमा आंटी के घर पर खेली खाई सुमन ने तृप्ती के मन में जवानी की आग में तेल डालकर तृप्ती के बुर में आग लगा दी हैं
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
Thanks dear
 
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rohnny4545

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बहुत ही गरमागरम कामुक और उत्तेजना से भरपूर कामोत्तेजक अपडेट है भाई मजा आ गया
सुमन के घर एक नये आनंद की अनुभुती लेकर अपने घर आयी तृप्ती को अपने छत से कुछ दुरी पर बनी झाडीयों में एक जवान लडका और अधेड और के बीच की चुदाई देखने को मिली यह भी उसका पहला अनुभव था और उसने अपनी उत्तेजना को बाथरूम में जाकर शांत कर घर के काम में लग गयी
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
अगले रोमांचकारी धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
Dhanyawad d9st
 

rohnny4545

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बहुत ही गरमागरम कामुक और उत्तेजना से भरपूर कामोत्तेजक अपडेट है भाई मजा आ गया
खेली खाई सुमन ने तृप्ती को अपने रंग में रंगा ही दिया और उसके साथ लेस्बिअन करके उससे बुर चटाई करवाकर बुररस का स्वाद करा ही दिया
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
ThNks dear
 

rohnny4545

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एक ही दिन में मां बेटे के साथ-साथ बेटी को भी एक अलग ही अनुभव प्राप्त हुआ था जिससे तीनों की जिंदगी एक नई राह पकड़ ली थी अब उनकी मंजिल एक ही थी लेकिन मंजिल पर पहले कौन पहुंचता है यह देखना बाकी था,,, लेकिन इतना तो तय था कि मंजिल से ज्यादा सफर मजा देने वाला है,, बस में हुई मां बेटे के बीच घमासान घर्षण का एहसास दोनों के बदन में रह रहकर उत्तेजना की फुहार उठा रहा थाऔर सुमन के साथ जिस तरह का अनुभव तृप्ति ने प्राप्त की थी वह बेहद अद्भुत और अतुलनीय था लेकिन तृप्ति इस बात का अच्छी तरह से जानती थी कि उसकी संतुष्टि में अभी भी कमी थीक्योंकि उसे अभ्यास होने लगा था कि उसे एक मर्द की जरूरत है जो अपने मर्दाना अंग से उसके अंदरूनी अंग से मदन रस को बाहर निकाल दें,,,,, एक तरह से पूरा परिवार वासना की आग में झुलसने लगा था,,,।




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शाम को तृप्ति ने हीं खाना बनाई,, क्योंकि बस का सफर करके सुगंधा थक चुकी थी,, लेकिन बदन भले ही थक चुका था पर मन पूरी तरह से प्रफुल्लित था जिस तरह का अनुभव सुगंधा ने अपने भाई के घर और बस के अंदर प्राप्त की थी वह उसके जीवन का बेहद यादगार पल बन चुका था,,,वह कभी सोची भी नहीं थी कि अपने भाई के घर में खिड़की से वह अपने भैया और भाभी की चुदाई देखी थी,,,इस बात का एहसास सुगंधा को अच्छी तरह से हो रहा था कि बरसों के बाद अपनी आंखों के सामने चुदाई का दृश्य देखकर वह खुद बेहद गर्म हो चुकी थी उसे बिल्कुल भी एहसास नहीं था कि वह अपनी आंखों से अपने ही छोटे भाई को अपनी बीवी को चोदते हुए देख रही थी,,, जबकि यह बेहद शर्मनाक बात थी,,, और शायद यहसुगंधा के लिए शर्मनाक बात होती भी अगर वह पहले वाली सुगंधा होती,,।





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लेकिन पहले वाली सुगंधाबहुत पहले से पीछे छूट चुकी थी अब सुगंधा के अंदर एक औरत ने जन्म ले लिया था जो अपनी इच्छाओं की पूर्ति करना चाहती थी अपनी मर्जी से जीना चाहती थी अपने सपनों को पूरा करना चाहती थी अपने अधूरे ख्वाब के लिए जीना चाहती थी,, इसलिए अपने भैया भाभी को संभोग मुद्रा में देखकर उसके मन में बिल्कुल भी ग्लानी नहीं थी,,,लेकिन उसके साथ-साथ उसे नजारे को उसके बेटे ने भी अपनी आंखों से देखा था ठीक उसके पीछे खड़े होकर,,, और इसी के बारे में सुगंधा कुर्सी पर बैठे-बैठे सो रही थीउसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था उसका दिमाग काम करना बंद कर दिया था क्योंकि वह अपने बेटे के बारे में निर्णय नहीं ले पा रही थी,,, उसे यहप्रश्न अंदर ही अंदर खाए जा रहा था कि वाकई में उसका बेटा बुद्धू है या बुद्धू बनने का सिर्फ नाटक कर रहा है,,,। क्योंकिरात को जो दृश्य उसने अपनी आंखों से देखी थी , उस दृश्य को उसका बेटा भी अपनी आंखों से ठीक उसके पीछे खड़े होकर देख रहा था लेकिन उस दृश्य के बारे में वह अजीब से सवाल कर रहा था,,,।




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सुगंधा उस समय तो परेशानी का कारण बताकर वहां से हट गई थी लेकिन उसे तो आगे बढ़ना थाउसे समझ में नहीं आ रहा था कि अगर इस उम्र में भी उसका बेटा सच में एकदम नादान है तो फिर वह कैसे आगे बढ़ पाएगीऔर अगर सिर्फ वह नाटक कर रहा है तो इस खेल में और भी ज्यादा मजा आने वाला है उसे ही पूरी बागड़ौर संभाल कर आगे बढ़ना होगा,,लेकिन फिर अपने ही सवाल का जवाब उसके मन में अपने आप ही उम्र रहा था कि अगर वह नादान बुद्धू होता तो बस के अंदर उसके बदन से सट जाने की वजह से उसका लंड खड़ा ना हो जाता,, औरत औरउसकी गांड में पूरी तरह से घुसने की कोशिश ना करता अगर वह सच में नादान होता तोइतना तो समझ सकता था कि क्या हो रहा है वह अपने आप को पूरी तरह से हटाने की कोशिश करता लेकिन ऐसा हुआ बिल्कुल भी नहीं कर रहा था ऐसा लग रहा था कि इस खेल में उसे भी बहुत मजा आ रहा है,,,,, यही सब सुगंधा अपने मन में सोच रही थी कि तभी तृप्ति ने आवाज लगाई,,।




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मम्मी खाना तैयार हो गया है जल्दी से हाथ मुंह धोकर आओ,,, मैं खाना लगा देती हुं,,,।

ठीक है लेकिन अंकित को जगा दे वह लगता है सो गया है अपने कमरे में,,,।

ठीक है मम्मी,,,।
(इतना कह कर कहा अपने भाई के कमरे में उसे बुलाने के लिए चली गई,,, कमरे में अपने बिस्तर पर बैठकर अंकित किताब के पन्नों को पलट रहा था उसे देख कर तृप्ति बोली,,,)

चल खाना तैयार हो गया है हाथ मुंह धोकर खा ले,,,।

ठीक है दीदी तुम चलो मैं आता हूं,,,

(इतना सुनकर न जाने क्या शरारत सोची तेरी थी एकदम से उसकी आंखों के सामने दरवाजे की तरफ मुंह करके झुक गई और बेवजह अपने पायल को ठीक करने लगी लेकिन ऐसा करने पर उसकी मदमस्त कर देने वाली गोलाई दार गांड उभर कर एकदम अंकित की आंखों के सामने आ गई अंकित की नजर अपने आप अपनी बहन की गांड पर चली गई,,,,, और पल भर में ही अपनी बहन को देखने का नजरिया उसका एकदम से बदल गया अपनी बहन की सुगठित नितंबों को देखकर उसके मन में उत्तेजना की चिंगारी फूटने लगी और वह नजर भर कर उसे देखने लगा।




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और तृप्तिबेवजह नाटक करते हुए अपनी पतली सी पायल को ठीक करने का नाटक कर रही थीवह देखना चाहती थी कि उसके भाई क्या करता है कहां देखता हैऔर यही देखने के लिए वह अपनी पायल को ठीक करते हुए पीछे नजर घुमा कर देखी तो उसका दिल धक से करके रह गया,,, उसकी सोच के अनुसार उसका भाई उसकी गांड की तरफ ही देख रहा था,,, यह देख कर उसकी मां उत्तेजना और प्रसन्नता से झूम उठा उसकी युक्ति काम कर गई थी और वह धीरे से उठते हुए बोली,,,।

पायल ढीली हो गई है डर लगता है कि कहीं गिर ना जाए,,,।
(उसकी बातें सुनकरअंकित कुछ बोल नहीं पाया क्योंकि बोलने के लिए उसके पास कोई शब्द नहीं थे क्योंकि वह तो अपनी बहन के नितंबों को देखकर उत्तेजना से मंत्र मुग्ध हो गया था,,, और वह कोई जवाब सुनना भी नहीं चाहती थी इसलिए बिना जवाब का इंतजार किए वह वहां से चलती बनी,,,, उसके जाने के बाद थोड़ी देर तक अंकित अपने कमरे में बैठा रहा और अपनी बहन के बारे में सोचता रहा फिर धीरे से अपनी बिस्तर पर से नीचे उतरा और हाथ मुंह धोकर खाने बैठ गया,,।



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बातों ही बातों में सुगंधा तृप्ति से बोली,,,।

कोई दिक्कत तो नहीं हुई ना,,,।

नहीं मम्मी कोई दिक्कत नहीं हुई,,।

रात को सोई कहां थी,,,?

सुमन के घर पर वैसे तो मैं वहां सोना नहीं चाहती थी लेकिन आंटी बहुत जिद करने लगी तो मुझे जाना पड़ा,,,।

चलो अच्छा है कि तुम वहां जाकर सो गई,,,।खाना खाई थी,,,।

हां खाई थी सुबह तो बना हुआ ही था,रात को सुषमा आंटी खुद बुला कर ले गई थी खाना खिलाने के लिए वैसे सुषमा आंटी बहुत अच्छी है,,,।




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(तृप्ति के मुंह से सुषमा आंटी बहुत अच्छी है सुनकर अंकित की आंखों के सामने सुषमा आंटी का नंगा बदन दिखाई देने लगा,,, बिल्कुल वही मुद्रा में जी मुद्रा में अंकित ने सुषमा आंटी को देखा था यह खांसी अपनी चूचियों को छुपाते हुए और दूसरी हाथ की हथेली से अपनी बुर को छुपाते हुए,,, इस दृश्य के बारे में सोचकर अंकित मन ही मन में मुस्कुराने लगा और तृप्ति की बात सुनकर सुगंधा बोली,,,)

अच्छी तो है इतने अच्छे से एक दिन के लिए तुम्हारी जिम्मेदारी जो उठा ली,,,, लेकिन तृप्ति अगर तुम भी चलती तो मजा आ जाता,,,। लेकिन तुम्हारी पढ़ाई,,,(इतना कहकर सुगंधा निवाला मुंह में डालकर खाने लगी और अपने मन में ही सोचने लगी कि अच्छा हुआ कि नहीं चली अगर चली होती तो शायद बस के सफर का आनंद वह पूरी तरह से नहीं उठा पाती,,,पर अपनी मां की बात सुनकर अंकित भी अपने मन में यही सोच रहा था कि अगर सच में उसकी दीदी भी साथ में गई होती तो शायद इतना अच्छा अनुभव और एहसास उसे कभी प्राप्त नहीं होता,,,,,फिर भी अपनी मां की बात रखने के लिए अपनी मां के सुर में सुर मिलाते हुए अंकित बोला,,,)




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सच में दीदी तुम होती तो और मजा आता मामा मामी के घर बहुत मजा आया क्यों मम्मी सच कह रहा हूं ना,,,,।

हां बहुत मजा आया दो-तीन दिन और रुकना चाहिए था लेकिन ना तो कपड़े लेकर गए थे और नहीं पहले से बोल कर गए थे,,,।

(अंकित अपने मन में सोचने लगा कि अगर सच में दो-तीन दिन और रुकने का मौका मिलता तो शायद मामा के घर पर ही अपनी मां की चुदाई करने का मौका मिल जाता,,,,क्योंकि वह समझ गया था कि उसकी मां बहुत प्यासी है तभी तो अपने भाई को संभोग मुद्रा में देख रही थी,,, अगर इस समय वह कोई हरकत करता तो शायद उसकी मां बिल्कुल भी विरोध नहीं करती क्योंकि वह खुद खिड़की से झांक कर अंदर का दृश्य देखकर एकदम गरम हो गई थी,,,। अपनी मां की बात सुनकर वह बोला,,,)




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अगली बार चलेंगे तो चार-पांच दिनों के लिए चलेंगे और दीदी को साथ में लेकर चलेंगे वहां कितना अच्छा लगता है कितनी अच्छी हवा चलती है एकदम ठंडक रहती है चारों तरफ खेत ही खेत,,,।

सच कह रहा है अंकित तूऔर छत पर सोने में कितना अच्छा लग रहा था एकदम ठंडी हवा बह रही थी,,,।

हां मम्मी एक झटके में नींद आ गई थी,,,,।
(इतना कहकर अंकित अपने मन में सोचने लगा कि एक झटके में उसकी मां ने पूरी नींद उड़ा दी थी उसकी आंखों के सामने ही छत पर कोने में बैठकर अपनी साड़ी कमर तक उठाकर अपनी बड़ी-बड़ी गांड दिखाते हुए पेशाब कर रही थी उसकी मां को नहीं मालूम था कि अंकित अपनी आंखों से सब कुछ देख चुका है,,, उस नजारे के बारे में याद करके तो इस समय भी उसका लंड खड़ा होने लगा था,, दोनों की बातों को सुनकर तृप्ति भी खाना खाते हुए बोली,,,)




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sometimes poem

तुम दोनों अगर इतनी तारीफ कर रहे हो तो सच में अगली बार में भी चलूंगी क्योंकि मुझे भी गांव पसंद है,,,।

अरे तृप्ति वह तो तेरे मामा का घर है,,,,जो दादा से अलग रहते हैं लेकिन अगर तू अपने दादा के घर जाएगी तो तेरा इधर आने का मन ही नहीं करेगा,,,।

ऐसा क्यों मम्मी,,,?

अरे पूछो गांव की अाबो हवा है ही ऐसी,,, चारों तरफ लहराते हुए खेत हरियाली छोटे-छोटे तालाब बड़ी-बड़ी नदियां हर तरह के फल का बगीचा बड़े-बड़े पेड़ ऊंची नीची कच्ची सड़क और गांव मेंघास फूस की बनी झोपड़ी सच में बहुत मजा आ जाता है नहाने के लिए हेड पंप या कु्ए पर जाना पड़ता है उन सबका अपना अलग ही मजा है,,,।

क्या बात करती हो मम्मी क्या गांव में सच में यह सब होता है,,,(अंकित एकदम आश्चर्य जताते हुए बोला)

तो क्या गांव में बहुत मजा आता है,,,।



तब तो मम्मी हम लोगों को गांव चलना चाहिए,,,।(तृप्ति उत्सुकता दिखाते हुई बोली)


चलना तो चाहिए लेकिन बिना काम के चलने में पैसे बहुत खर्च हो जाते हैं,।





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तो क्या हुआ मम्मी एक बार हम लोगों को गांव घूमाना तो चाहिए तुम्हें,,,।

अच्छा कोई बात नहीं समय आएगा तो हम सब चलेंगे गांव,,,,।

(इतना कह कर फिर से तीनों खाना खाने लग गए थोड़ी देर में खाना खा लेने के बाद,,, तृप्ति और सुगंधा दोनों बर्तन साफ करने लगे तृप्ति तो अपनी मां को रोक रही थी बर्तन साफ करने से लेकिन वह मानी नहीं और साथ में बैठ गई,,,बर्तन साफ करने के बाद तीनों कुछ देर तक टीवी देखते रहे और फिर अपने अपने कमरे में चले गए लेकिन तीनों की आंखों में नींद बिल्कुल भी नहीं थी जिसका कारण था कि तीनों की आंखों में वासना की चमक पूरी तरह से अपना असर दिखा रही थी,,, बस में हुए घमासान घर्षण को याद करके अंकित अपने सारे कपड़े उतार कर नंगा हो गया था अपने हाथ से अपने लंड को हिला कर अपने आप को शांत करने की कोशिश कर रहा था,,,।




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सुगंधा अपनी साड़ी को कमर तक उठाकर अपनी पैंटी को अपने हाथों से निकाल कर अपनी गरमा गरम बुर को अपनी हथेली से जोर-जोर से रगड़ रही थी मसला रही थीऔर यह क्रिया करते हुए अपने आप को खुश रही थी क्योंकि उसे अब लग रहा था कि उसके पास वही अच्छा मौका था जब खिड़की से देखते हुए उसके बेटे ने भी वही दृश्य को देखा था जिसे देखकर वह गर्म हो रही थीइस समय वह अपने बेटे को सब कुछ सही-सही बता देती तो शायद छत के ऊपर दोनों के बीच शारीरिक संबंध स्थापित हो जाता,,।





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और तृप्ति सुमन को याद करके अपने सारे कपड़े उतार कर नंगी होकर अपनी चूची को एक हाथ से पकड़ कर दबाते हुए दूसरे हाथ की हथेली से अपनी गरमा गरम बुर को रगड़ रही थी और अपने भाई के लंड के बारे में सोच रही थी,,वह अपनी मन में सोच रही थी कि अगर उंगली से उसे इतना आनंद मिला है तो अगर उसके भाई का मोटा तगड़ा लंड उसकी बुर में जाकर अंदर बाहर करेगा तो कितना मजा आएगा यही सब सोचते हुए वह भी अपनी जवानी की गर्मी को शांत करने में लगी हुई थी,,,।

तकरीबन10 12 दिन का समय गुजर चुका था लेकिन इन दिनों में सुगंधा अपने बेटे से उस दृश्य के बारे में चर्चा नहीं कर पाई थी और ना ही बस के सफर के दौरान जो कुछ भी हुआ था उसे बारे में कोई बात कर पाई थी,,,और मन तो दुखी उसका इस बात से ताकि इस बारे में उसके बेटे ने भी उससे कुछ भी नहीं पूछा था क्योंकि सुगंधा को लग रहा था कि बातचीत आगे बढ़ाने का यही अच्छा मुद्दा है,,, लेकिन फिर भी थी तो वह एक मा ही अगर मन की जगह एक औरत होती तो शायद वह कब से आगे बढ़ गई होती और वह औरत उसके अंदर बार-बार जन्म भी ले रहा था लेकिन वह अपने आप को आगे नहीं बढ़ा पा रही थी,,, इस बात का मलाल उसे अच्छी तरह से हो रहा था,,,।



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एक दिन सुगंधाअपने बेटे अंकित और अपनी बेटी प्रीति के साथ बाजार सामान खरीदने गई थी,,, लेकिनएक दिन जब वह बाजार सब्जी लेने गई थी अपने बेटे के साथ तब फुटपाथ पर कुछ लड़के उसके खूबसूरत बदन उसकी जवानी पर फब्तियां कस रहे थे,,और उन लड़कों के कहने का मतलब बिल्कुल साफ था कि वह लड़के उसे चोदना चाहते थे उसकी बड़ी-बड़ी गांड देखकर उत्तेजित में जा रहे थे उसकी बड़ी-बड़ी चूची उनके बीच आकर्षण का केंद्र था और वह लोग खुलकर उसके साथ-साथ अपनी मां बहन के बारे में भी गंदी बातें कर रहे थे,,, उसे दिन से लेकर आज तक सुगंधा जब भी बाजार सब्जी लेने जाती थी तब फुटपाथ पर खड़े आवारा लड़कों से दूरी बनाकर ही चलती थी,,, बहुत दिनों बाद सुगंधा अपने बेटे के साथ-साथ अपनी बेटी को भी लेकर आई थी क्योंकि अक्सर कोचिंग के सिलसिले से त्रप्ति घर पर मौजूद नहीं होती थी,, और ऐसे में सुगंधा को अंकित के साथ ही बाजार जाना पड़ता था,,,।



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सुगंधा घर का सामान और सब्जियां खरीद चुकी थी और अंकित और तृप्ति को समोसा चाट के साथ-साथ पानी पुरी भी खिला रही थी और खुद भी खा रही थी,,,और उन दोनों के साथ नाश्ता करने के बाद वह बाजार के मुख्य सड़क पर आ गई थी जहां से उन लोगों को वापस घर की तरफ आना था,,, लेकिन सुगंधा ने देखी की तृप्ति बार-बार बाजार की तरफ ही देख रही थी इसलिए वह तृप्ति से बोली,,,।।

क्या हुआ बार-बार वहां क्या देख रही है,,।

मुझे और पानी पुरी खाना है,,,।

अभी तो तुम खाई ना,,,।

तो क्या हो गया मन थोड़ी ना भरा है मेरा मन और कर रहा है खाने को,,,।




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हे भगवान कैसी लड़की है इसका पेट ही नहीं करता अभी घर पर जाएगी तो कहेगी कि भूख नहीं लगा है,,, और इसके हिस्से का खाना बेकार हो जाएगा,,,,(ऐसा कहते हुए बटुआ में से 10 का नोट निकालते हुए वह तृप्ति की तरफ आगे बढ़ाते हुए बोली,,,)


ले जाकर खा ले और जल्दी से खाना,,,(उसे रुपया थमाने के बाद वह अंकित की तरफ देखने लगी और बोली,,) तुझे भी और खाना है,,,.

नहीं नहीं मेरा तो हो गया मैं नहीं खाऊंगा,,,।

ठीक है तू ही जा जल्दी से आना,,,,




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ठीक है अभी जल्दी से आती हुं उसने बराबर तीखा नहीं डाला था इसलिए मजा नहीं आया,,,(इतना कहकर तृप्तिजल्दी-जल्दी उसे ठेले वाले के पास जाने लगी और मां बेटे दोनों वही बड़े से पेड़ के पास फुटपाथ के किनारे खड़े होकर जहां पर एक 5 फीट की दीवार भी जाती थी और आगे से थोड़ी टूटी हुई थी,,,यह वह जगह नहीं थी जहां पर पहले सुगंध जानबूझकर पेशाब करते हुए अपनी गांड अपनी बेटी को दिखा रही थी यह जगह उससे पहले ही थी बाजार की शुरुआत में,,, यहां पर भी लोगों का आना-जाना अच्छा खासा बना रहता था क्योंकि यहीं से बाजार भी शुरुआत भी होती थी,,,।

कुछ देर खड़े रहने के बाद सुगंधा को वाकई में पेशाब लगने लगी,,, वह इधर-उधर देखने लगी वह जानती थी कि यह उचित जगह नहीं थी पेशाब करने कीक्योंकि यहां पर लोगों का आना-जाना काफी था इसलिए वह अपने आप को रोक रह गई थी अपने आप पर काबू किए हुए थी,,,लेकिन फिर भी रह कर उसके पेशाब की तीव्रता बढ़ती जा रही थी उससे अब काबू नहीं हो रहा था उसे ऐसा लग रहा था कि अगर वह कुछ देर तक ऐसे ही खड़ी रही तो अपने आप ही उसकी पेशाब छूट जाएगी,,, इन सबसे अनजान अंकित अपनी ही धुन में खड़ा होकर इधर-उधर देख रहा था,,, सुगंधा को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें,,,पहले तो ऐसे हालात में वहां किसी भी तरह से किसी न किसी बहाने से अपनी नंगी गांड को अपने बेटे को दिखाने की कोशिश करती थी लेकिन इस समय का हालात कुछ और था यहां पर ऐसा कुछ भी नहीं था कि जानबूझकर अपने बेटे को अपना खूबसूरत अंग दिखाएं क्योंकि ऐसे में दूसरे के भी देखे जाने की अाशंका बढ़ जाती थी। इसलिए वह इस समय दीवार की दूसरी तरफ जाकर पेशाब करने से कतरा रही थी वह तृप्ति का इंतजार कर रही थी कि जल्दी से वह आए तो घर की तरफ जाए,,,,इसलिए वह बार-बार इस दिशा में देख रही थी लेकिन दूर-दूर तक तृप्ति का कोई ठिकाना नहीं था,,,।



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लेकिन पेशाब की तीव्रता अब असहनीय होने लगी उसे लगने लगा कि अब छोड़ जाएगा इसलिए वह जल्दी से थैले को अंकित के हाथों में पकडाते हुए बोली,,,,।

अंकित तु थैला पकड़,, मैं अभी आती हूं,,,,।

(अंकित थैला पकड़ने से पहले ही बोला,)

लेकिन तुम कहां जा रही हो मम्मी,,,,?

ज्यादा सवाल मत पूछ मैं अभी आती हूं ले जल्दी से पकड़ ले,,,।
(इतना कहने के साथ ही वह थैले को अंकित के हाथ में पकड़ा दिया और अंकित भी बिना कुछ आगे पुछे थैले को हाथ में ले लिया,,, और देखने लगा कि उसकी मां क्या करती है,,,, सुगंधा को तो बड़े जोरों की पेशाब लगी हुई इसलिए वह अपने आप को बिल्कुल भी रोक सकने की स्थिति में नहीं थी इसलिए वह तुरंत फुटपाथ से लगी दीवार जो थोड़ी सी टुटी हुई थी उसमें से प्रवेश करके दूसरी तरफ जाने लगी, यह देखकर अंकित भी समझ गया कि उसकी मां कहां जा रही है इसलिए कुछ बोला नहीं वैसे तो ऐसी स्थिति में उसका बहुत मन करता था अपनी मां को पेशाब करते हुए देखने के लिए लेकिन यहां पर ऐसा करना मुनासिब नहीं था क्योंकि यह जगह लोगों के आने जाने के लिए थी और बिल्कुल भी सुनसान नहीं था इसलिए अगर ऐसी स्थिति में वह देखने की कोशिश करता है तो किसी के भी नजर में आ जाएगा,, और ऐसे में शर्मनाक स्थिति पैदा हो सकती है इसलिए वह अपने आप को अपनी मां को पेशाब करते हुए देखने से रोकने लगा,,,



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सुगंधा जल्दबाजी दिखाते हुए पीछे की तरफ पहुंच चुकी थी और इधर-उधर देख भी नहीं वह अपनी साड़ी को दोनों हाथों से पकड़ कर एकदम से कमर तक उठाकर वहीं पर पेशाब करने के लिए बैठ गई थी,,, जैसे ही उसके गुलाबी छेद में से पेशाब का फवारा फुटा उसे राहत महसूस होने लगी और उसे इस बात का एहसास भी होने लगा था कि अगर वह जरा सी देरी लगती तो शायद साड़ी में ही उसका पेशाब छूट जाता तब शर्मनाक स्थिति पैदा हो जाती,,,,, पेशाब की तीव्रता इतनी थी कि बैठने के बावजूद भी तकरीबन डेढ़ मीटर तक उसकी बुर से पेशाब की धार निकल कर जा रही थी,, बाहर दीवार के पीछे खड़े अंकित का मन बहुत मचल रहा था लेकिन वह किसी तरह से अपने आप को रोके हुए था और बाजार की तरफ देख रहा था जहां पर तृप्ति पानीपुरी खाने के लिए गई थी,,,, जहां पर वह खड़ा था वहां लगातार लोगों का आना-जाना बना हुआ था इसलिए वह छुपकर भी उस नजारे को देख नहीं सकता था,,,।







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धीरे-धीरे सुगंधा के पेशाब की तीव्रता कम होने लगी लेकिन फिर भी उसे ऐसा लग रहा था कि जैसे उसके पास में ही कुछ पानी जैसा गिर रहा है वह एकदम हैरान हो गई थी इधर-उधर देखने लगी उसे कहीं कुछ दिखाई नहीं दे रहा था लेकिन तभी उसे ऐसा लगा कि पेड़ के पास से ही वह आवाज आ रही है और वह बड़े गौर से देखी तो एकदम से हैरान हो गई उसकी सांस एकदम से अटक गई,,, अपनी स्थिति पर उसे शर्म महसूस होने लगी उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें अभी भी उसकी बुर से पेशाब की धार निकल रही थी भले ही कमजोर पड़ गई थी लेकिन धार बराबर निकल रही थी लेकिन जो उसकी आंखों के सामने पेड़ के पास था वह उसे एकदम शर्मिंदगी का एहसास करने के लिए काफी था,,, अगर उसकी जगह कोई और औरत होती तो शायद उसकी भी यही स्थिति होती,,,।







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बड़ी गौर से देखने के बाद चित्र स्पष्ट हो गया था पेड़ के पीछे कोई आदमी खड़ा था जो अपना लंड बाहर निकाल कर पेशाब कर रहा था,,, इस नजारे को देखकर सुगंधा एकदम से ठीठक गई,,, उसकी तो पेशाब एकदम से रुक गई थी वह कुछ पल के लिए उस नजारे को देखते ही रह गई,,, सामान्य अवस्था में वह पेशाब नहीं कर रहा था इतना तो तय था क्योंकि उसका लंड पूरी तरह से उत्तेजित था एकदम खड़ा था वह उत्तेजित अवस्था में पेशाब कर रहा था,,,, सुगंधा को क्या करना है उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था वह तो बस एक टक उसकी तरफ देखती ही जा रही थी,, पहली बार किसी गैर मर्द को अपनी इतनी करीब खड़ा होकर पेशाब करते हुए देख रही थी,, इससे पहले केवल उसके पास खड़े होकर उसका बेटा ही पेशाब किया था क्योंकि ऐसा वह चाहती थी वरना उसके बेटे की भी हिम्मत नहीं थी कि उसके पास में खड़ा होकर पेशाब कर सकें,,,।




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सुगंधा का मन विचलित हुआ जा रहा था क्योंकि वह आदमी अपनी लंड को अपनी मुट्ठी में पकड़ कर उसे आगे पीछे करके हिलाते हुए पेशाब कर रहा था, यह नजारा देखकर वह इतना तो समझ ही गई थी कि सामान्य रूप से वह पेशाब नहीं कर रहा था बल्कि इसकी कोई खास वजह थी उसके अंदर गंदी भावना पैदा हो रही थी और जल्द ही उसे इस बात का पता भी चल गया क्योंकि जिस तरह से सुगंधा उसकी तरफ देख रही थी उसे आदमी को लगने लगा कि वह भी रुचि रख रही है इसलिए वहां अपने लंड को हिलाते हुए ही बोला,,,।







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मैडम तुम्हारी गांड बहुत मस्त है तुम्हारी नंगी गांड देखकर करी मेरा लंड खड़ा हो गया है,,,, अगर तुम्हें एतराज ना हो तो यही झुका कर तुम्हारी ले लुं,,,,।
(उसे अनजान आदमी की इस तरह की गंदी बातें सुनकर तो ऐसा लग रहा था की सुगंधा के कानों में हथौड़े बरस रहे हो सुगंध को उम्मीद नहीं थी कि कोई आदमी इस तरह से उसे बदतमीजी करेगा इस तरह से उससे गंदी फरमाइश करेगा,,, उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें वैसे इस समय आप गलती उसकी भी थी उसे आदमी को देखकर भी वहां तुरंत उठकर खड़ी होकर सामान्य स्थिति में नहीं हो पा रही थी अब अभी वह उसे ही देखते हुए इस तरह से बैठी हुई थी साड़ी कमर तक उठे उसकी नंगी गांड एकदम साफ दिखाई दे रही थी और यही वजह थी कि वह अनजान आदमी पूरी तरह से मदहोश और उत्तेजित हो गया था और मदहोशी में इस तरह की फरमाइश कर रहा था,,,,,, सुगंधा को वह सहज होते हुए ना देखकर उसकी हिम्मत बढ़ने लगी और उसकी दोनों टांगों के बीच देखते हुए वह अपने लंड को हिलाते हुए बोला,,,)




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क्यों मैडम कैसा लगा मेरा लंड बोलो तो अभी तुम्हारी बुर में डाल दुं,,,,,(ऐसा कहते हुए वह एकदम से पेड़ के पीछे से बाहर आ गया और यह देखकर सुगंधा एकदम से घबरा गई,,, और वह अपने कदम को आगे बढ़ा रहा था यह देखकर तो उसकी हालत और खराब होने लगी वह तुरंत उठकर खड़ी हो गई तो अपनी साड़ी को व्यवस्थित कर दी वह उसे कुछ बोल नहीं पाई बस गुस्से में इतना ही बोली,,,)

बदतमीज कहीं का अपनी मां बहन के पास चले जा,,।
(और इतना कहकर वह तुरंत टूटी हुई दीवार से फिर से फुटपाथ पर आ गई,,,,,, अपनी मम्मी को देख कर अंकित बोला)

कितनी देर लगादी मम्मी,,,,।




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चल कोई बात नहीं,,,, तृप्ति आई कि नहीं,,,,!(तिरछी नजर से दीवार के पीछे की तरफ देखते हुए गोरी वह आदमी अभी भी वहीं खड़ा होकर मुस्कुराता हुआ अपने लंड को हिला रहा था वह अपने मन में बोली कितना बेशर्म है,,,, हरामजादा अपनी मां की बात सुनकर अंकित बोला)

वह देखो आ रही है दीदी,,,, वह भी बहुत समय लगा दी,,,,।

(इसके बाद रास्ते पर सुगंधा उसे आदमी के बारे में सोचती रही कि कैसा बदतमीज और बेशर्म इंसान है,,, सीधे-सीधे उसे चोदने की बात करने लगा,,, फिर अपने मन में सोचने लगी की इसमें उसकी ही गलती है वह ज्यादा देर तक उसे आदमी के सामने भी बैठकर पेशाब करती रही ऐसे में उसकी नंगी गांड और टांगों के बीच की गाली देकर उसकी हिम्मत बढ़ गई थी अगर सच में उसकी जगह कोई और होता तो वह उठकर खड़ी हो जाती है और अपने कपड़े को ठीक कर लेती उसका देर तक बैठे रहना ही उसे आदमी की हिम्मत को बढ़ा रहा था और उसकी हिम्मत इतनी बढ़ गई कि सीधे-सीधे उसे अपने मन की फरमाइश करने लगा,,,।







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इस बात को सोचते हुए वह अपने बेटे के बारे में सोचने लगी कि उस आदमी और उसके बेटे में कितना फर्क है तू जरा सी देर हो जाने पर सीधा मुद्दे की बात पर आ गया था और उसका बेटा उसकी आंखों के सामने जानबूझकर अंग प्रदर्शन करने के साथ-साथ ऐसी तमाम हरकत करने के बावजूद भी उसका बेटा अभी तक उसके इशारे को पूरी तरह से समझ नहीं पाया था और अपने मन की बात को कह नहीं पाया था,,, यही सब सोचते हुए सुगंधा घर पहुंच गई थी।
 
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