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Fantasy 'सुप्रीम' एक रहस्यमई सफर

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Ajju Landwalia

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#103.

चैपटर-14

हिमलोक:
(10 जनवरी 2002, गुरुवार, 10:25, ट्रांस अंटार्कटिक पर्वत अंटार्कटिका)

विल्मर इस समय बहुत परेशान था। कल से जेम्स कुछ पता नहीं चल रहा था। इस वजह से वह काफ़ी घबराया हुआ था।

“इस कमरे में कहीं भी कोई दरवाजा नहीं है, फिर जेम्स अचानक से कमरे से कहां चला गया? कहीं सच में ही तो देवी शलाका उसे नहीं पकड़ ले गयी?" विल्मर के दिमाग में अजीब-अजीब से ख्याल आ रहे थे।

अभी विल्मर यह सब सोच ही रहा था कि तभी उसे हवा में एक द्वार बनता दिखाई दिया जो कि इस बात का घोतक था कि शलाका आ रही है।

हवा के द्वार से शलाका ने कमरे में प्रवेश किया। इस समय उसने बहुत ही मॉर्डन सी काले रंग की त्वचा से सटी (skin-tight) पोशाक पहन रखी थी। इस पोशाक में अगर कोई उसे देखता तो मान ही नहीं सकता था कि यह कोई देवी है। हर समय की तरह त्रिशूल अब भी शलाका के हाथ में था।

शलाका ने एक नजर कमरे में बैठे विल्मर पर मारी और बोल उठी- “जेम्स कहां है?“

“म ...मुझे नहीं पता ....।" विल्मर ने डरते हुए कहा- “जेम्स कल से कहीं गायब है। मुझे लगा उसे आप कहीं ले गयी है?"

शलाका की आँखें सोचने वाली मुद्रा में सिकुड गयी। उसने एक नजर पूरे कमरे पर मारी।
अब उसकी नजरें दरवाजे वाले स्टीकर पर जाकर चिपक गयी।

“इसका मतलब जेम्स ने गुप्त द्वार का प्रयोग किया है।" शलाका मन ही मन बड़बड़ायी।

“आपने कुछ कहा क्या?" विल्मर ने शलाका को बड़बड़ाते देखकर पूछा।

“नहीं... मैंने कुछ नहीं कहा और मैं जेम्स को लेकर कहीं नहीं गयी?, वो स्वयं ही गुप्त द्वार का प्रयोग करके यहां से बाहर गया है।" शलाका ने विल्मर की ओर देखते हुए कहा- “मैं उसको लाने जा रही हूँ, तब तक तुम इसी कमरे में रहो और ध्यान रहे, यहां के किसी सामान से छेड़-छाड़ करने की कोशिश मत करना, वरना तुम भी गायब हो जाओगे।" विल्मर ने हां में सिर हिलाया।

शलाका अब चलकर उस स्टीकर वाले दरवाजे के पास पहुंची और स्टीकर पर मौजूद लाल बटन को दबा दिया। बटन हरे रंग का हो गया। विल्मर आँखें फाड़े उस दृश्य को देख रहा था।

शलाका उस गुप्त द्वार में प्रवेश कर गयी। कुछ आगे चलने पर उसे चारो ओर दरवाजे ही दरवाजे नजर आये। यह देख शलाका की नजर सभी दरवाज़ों पर फिरने लगी।

कुछ देर देखने के बाद उसकी नजर एक दरवाजे पर टिक गयी। शलाका धीरे से आगे बढ़ी और उस द्वार में प्रवेश कर गयी।


वह रास्ता एक बर्फ़ की गुफा में निकला था। शलाका उस गुफा से बाहर निकली। उसे अपने अगल-बगल चारो तरफ बर्फ़ के पहाड़ दिखाई दे रहे थे।

यह स्थान देखकर शलाका की पुरानी याद ताजा हो गयी। जब वो 5000 वर्ष पहले यहां वेदालय में पढ़ती थी।

शलाका के चेहरे पर एक भीनी सी मुस्कान बिखर गयी। शलाका ने अपने आसपास देखा, पर उसे जीवन के कोई भी लक्षण वहां दिखाई नहीं दिये।

“यहां इतना सन्नाटा क्यों है, 5000 वर्ष पहले तो यह जगह पूरी तरह से जीवन से परिपूर्ण थी। इतने वर्ष में तो इस जगह को और विकसित हो जाना चाहिये था, पर यह तो बिल्कुल वीरान दिखाई दे रही है। ऐसी वीरान जगह पर तो जेम्स को ढूंढ पाना मुश्किल होगा।.....मुझे रुद्राक्ष और शिवन्या की मदद लेनी होगी, वह हिमलोक के बारे में सबकुछ जानते हैं। उन्हें अवश्य पता होगा कि जेम्स कहां है?"

यह सोचकर शलाका ने अपने त्रिशूल को हवा में उछाला। हवा में उछालते ही त्रिशूल कहीं गायब हो गया। अब शलाका ने अपने दोनों हाथ की मुट्ठियां बंद कर, दोनो हाथ के अंगूठे को अपने मस्तिष्क के दोनो तरफ लगाया और अपने मन में ‘रुद्राक्ष और शिवन्या’ दोहराना शुरू कर दिया।

हवा में मानिसक तरंगे फैलना शुरू हो गयी।

कुछ ही देर में शलाका को 4 रेंडियर एक स्लेज गाड़ी को खींचते उधर आते दिखाई दिये।

स्लेज आकर शलाका के पास रूक गयी। शलाका के स्लेज में बैठते ही रेंडियर उसे लेकर एक अंजान दिशा की ओर चल दिये। रास्ते भर शलाका हिमालय में हुए अनेकों बदलाव को देखती जा रही थी।

लगभग 15 मिनट के बाद रेंडियर बर्फ़ से ढकी एक गुफा के पास पाहुंच गये। रेंडियर एक क्षण को रुके और फ़िर गुफा में प्रवेश कर गये। अब रेंडियर गुफा में दौड़ रहे थे।

गुफा में बीच-बीच में ऊपर की ओर सुराख बने थे, जहां से थोड़ी-थोड़ी बर्फ़ गिर कर गुफा में आ रही थी।

कुछ देर के बाद शलाका को गुफा के आगे एक विशालकाय गड्ढ़ा दिखाई दिया, जिसके चारो ओर, नीचे की तरफ जाता हुआ एक 10 फिट चौड़ा रास्ता बना था। गड्डे की गहराई का अंत नहीं दिख रहा था।

रेंडियर उसी रास्ते पर दौड़ते हुए नीचे की ओर जाने लगे।

वह रास्ता इतना खतरनाक था कि शायद कोई मानव उसे देखकर उसमें जाने की सोचता भी नहीं, पर शलाका तो कई बार इस रास्ते से आ-जा चुकी थी। इसिलये वह आराम से स्लेज में बैठी हुई थी।

गड्डे में थोड़ा नीचे जाने के बाद अब उजाला नजर आने लगा था, पर यह उजाला कहां से आ रहा था, यह नहीं पता चल रहा था।
लगभग 500 मीटर का सफर उस गड्डे में तय करने के बाद अब रेंडियर रुक गये।

शलाका को वहां दीवार में एक द्वार दिखाई दिया। शलाका ने उस द्वार को खोला और अब उसके सामने था- “हिमलोक”।

वही हिमलोक जिसकी रचना वेदालय के समय में महागुरु नीलाभ ने की थी। वही हिमलोक जिस पर रुद्राक्ष और शिवन्या को शासन करने के लिये चुना गया था।

शलाका के सामने एक बर्फ़ से ढकी हुई दुनियां थी, जहां पर चारो ओर बर्फ़ की विशालकाय देवताओं की मूर्तियाँ स्थापित थी।

तभी शलाका को सामने खड़े रुद्राक्ष और शिवन्या दिखाई दिये। शलाका खुश होकर बारी-बारी दोनों के गले लग गयी।

“पूरे 5000 वर्ष बीत गये हैं तुमसे मिले।" शिवन्या ने शलाका को निहारते हुए कहा- “मुझे तो लगा था कि शायद अब तुम जीवित भी नहीं हो।"

“शायद अब तक जीवित नहीं बचती, पर किसी के इंतजार ने इतने वर्ष तक मुझे जीवित रखा।....अरे हां मैं दरअसल किसी दूसरे काम से यहां आयी हूँ.... मुझे एक जेम्स नाम के मनुष्य की तलाश है, जो गलती से हिमालय पर आ पहुंचा है।" शलाका ने बात को बदलते हुए कहा।

“एक विदेशी मनुष्य हमने पकड़ा तो है, जो कि हमारी सीमा में घूम रहा था। हो सकता है कि वही जेम्स हो?" रुद्राक्ष ने कहा।

“उसने नीले रंग की टी शर्ट और काली जींस पहनी हुई है।" शलाका ने जेम्स का हुलिया दोनों को बताया।

“हां फ़िर तो वही है ... जेम्स हमारे ही पास है .... हमें लगा कि वह गुरुत्व शक्ति चुराने आया है, इसिलये हमने उसे कैदखाने में डाल दिया।" शिवन्या ने कहा।

“गुरुत्व शक्ति!" शलाका ने आश्चर्य से कहा- “क्या कल गुरुत्व शक्ति प्रकट होने वाली है?"

“हां...तुम तो जानती हो कि गुरुत्व शक्ति हर साल एक विशेष नक्षत्र में सूर्योदय की पहली किरण के साथ बर्फ़ से निकलती है, जिसकी हम पूजा भी करते हैं और सूर्यास्त की आखरी किरण के साथ वापस बर्फ़ में समा जाती है।" शिवन्या ने शलाका को याद दिलाते हुए कहा।

“हां-हां .... मुझे सब याद है ... मैं कुछ भी नहीं भूली....ना गुरुत्व शक्ति और ना ही आर्यन को ................।" शलाका ने एक गहरी साँस भरते हुए कहा।

“चलो फ़िर हमारे महल चलो ... इतने दिन बाद आयी हो तो एक दिन तो रहना ही पड़ेगा हमारे साथ .... और वैसे भी कल तुम पूजा में भी भाग ले सकती हो।" रुद्राक्ष ने शलाका पर जोर डालते हुए कहा।
यह सुन शलाका थोड़ा सोच में पड़ गयी।

उसे सोच में पड़े देख शिवन्या भी बोल उठी- “अरे चलो ना यार... तुम्हारा जेम्स तो वैसे भी मिल गया है, अब तुम्हें परेशानी ही क्या है?"

“ठीक है चलती हूँ....।" कुछ सोचकर शलाका ने मस्कुराते हुए कहा- “अच्छा ये बता कि बाकी के लोग कैसे हैं?"

“बाकी सब तो ठीक हैं, परंतु धरा और मयूर थोड़े से परेशान हैं।" शिवन्या ने कहा- “दरअसल कुछ समय पहले उसकी धरा शक्ति का एक कण चोरी हो गया है, जिसे वो ढूंढ नहीं पा रहे हैं।"

ऐसा कैसे हो सकता है?“ शलाका ने आश्चर्य से पूछा- “पृथ्वी पर अगर कहीं भी वह धरा शक्ति का कण प्रयोग में लाया जाये तो वह धरा और मयूर को पता चल जायेगा, फ़िर वो उसे प्राप्त कर सकते हैं।"

“धरा शक्ति का प्रयोग अभी अमेरिका के एक शहर वाशिंगटन में कल ही 2 बार किया गया, जिससे उन्हें यह तो पता चल गया कि वह शक्ति इस समय अमेरिका में है, धरा और मयूर अमेरिका पहुंच भी चुके हैं। अब बस उन्हें इंतजार है उस शक्ति के अगली बार प्रयोग होने का। जैसे ही इस बार किसी ने उसका प्रयोग किया, वह पकड़ा जायेगा। .... पर छोड़ ना यार उनकी बातों को....वो दोनों आसानी से उस शक्ति को प्राप्त कर लेंगे। चल हम लोग चलते हैं, कल के उत्सव की तैयारियां करते हैं।"

शिवन्या यह कहकर शलाका को खींचकर महल की ओर चल दी।


चक्रवात
(10 जनवरी 2002, गुरुवार, 14:00, मायावन, अराका द्वीप)

रात में शैफाली और जेनिथ की वजह से सभी देर से सोये थे, इसिलये सभी के उठने में काफ़ी देर हो गया था।

चूंकि उस पार्क वाली जगह पर एक खूबसूरत सा तालाब भी था, जिसमें साफ पानी भरा था। इसिलये सभी ने उस जगह पर आधा दिन ज़्यादा रहने का विचार किया।

बारी-बारी सभी लेडीज और जेंट्स ने वहां पर खूब नहाया और अपने कपडों को साफ किया।
इतने दिनो बाद नहा कर सभी को बहुत ताज़ा महसूस हो रहा था।

अब सभी फ़िर से आगे की ओर बढ़ गये।

जेनिथ का दिमाग बुरी तरह से तौफीक पर खराब था। इसिलये वह तौफीक से ज़्यादा बात नहीं कर रही थी। तौफीक ने जेनिथ के इस बदलाव को महसूस कर लिया था, पर उसे इसका कारण नहीं पता चला।

अब केवल 8 लोग ही बचे थे, पर जोड़े पूरी तरह से टूट गये थे। क्रिस्टी से एलेक्स अलग हो गया था और जैक से जॉनी। जेनिथ और तौफीक का रिस्ता भी अब नहीं बचा था, इसिलये सभी अब थोड़ा कम बात कर रहे थे।

“अरे दोस्त दूसरों से बातें मत करो, पर मुझे तो इस तरह से बोर ना करो।" नक्षत्रा ने जेनिथ के मन में कहा- “कुछ तो बोलो?"

“हम तो सुबह से ढलकर, शाम हो गये,
इस कमबख्त इश्क से बदनाम हो गये।"

जेनिथ ने शायराना अंदाज में, नक्षत्रा को किवता सुनाई।

“वाह-वाह दोस्त क्या बात कही है?” नक्षत्रा ने कहा- “आप बहुत तेजी से उबर रहे हो अपने दुख से। ... बहुत खूब.... शानदार।"

“बहुत-बहुत धन्यवाद!" जेनिथ ने मन में कहा- “अब तुम भी कुछ सुनाओ नक्षत्रा?"

“पृथ्वी पर आकर हम भी इंसान हो गये,
तुझमें सिमटकर 2 रूह एक जान हो गये।"

जेनिथ ने भी जेनिथ के लिये एक किवता मार दी।

“बहुत ही खूबसूरत नक्षत्रा... मान गये तुम्हें.... तुम भी बहुत तेजी से सीख रहे हो पृथ्वी की भाषा।" जेनिथ ने खुश होते हुए नक्षत्रा से कहा।

भले ही तौफीक का राज जेनिथ को पता चल गया था, मगर नक्षत्रा की बातो ने जेनिथ को अब बिल्कुल संभाल लिया था। जेनिथ को जिंदगी का यह नया अंदाज बहुत पसंद आ रहा था।

तभी चलते हुए उनके रास्ते में एक फूलों की घाटी आ गई। बहुत ही खूबसूरत फूलों के पौधे चारो ओर लगे थे। चारो ओर खुशबू बिखरी हुई थी।

सभी को ये घाटी बहुत अच्छी लग रही थी। ब्रेंडन ने आगे चलते हुए एक गुलाबी रंग के फूल को तोड़कर अपने हाथो में ले लिया। उस फूल की खुशबू भी बहुत अच्छी थी।

तभी कहीं से एक भौंरा उड़ता हुआ आया और ब्रेंडन के आसपास मंडराने लगा। उसके पंखों की तेज़ ‘भन्न-भन्न’ की आवाज बहुत अजीब सी लग रही थी।

यह देख ब्रेंडन ने अपनी जगह बदल कर उस भौंरे से बचने की कोशिश की, पर भौंरा भी ब्रेंडन के पीछे-पीछे दूसरी जगह पर पहुंच गया।

ब्रेंडन ने फ़िर जगह बदल ली, पर शायद वह भौंरा भी जिद्दी था, वह ब्रेंडन के पीछे ही पड़ गया। ब्रेंडन जिधर जा रहा था, भौंरा उधर आ जा रहा था।

“ब्रेंडन अंकल शायद वह भौंरा आपके नहीं बल्कि आपके हाथ में मौजूद फूल के पीछे पड़ा है।" शैफाली ने ब्रेंडन से कहा- “आप उस फूल को फेंक दिजिये।"

ब्रेंडन को शैफाली का लॉजिक सही लगा, इसिलये उसने अपने हाथ में पकड़े गुलाबी फूल को वहीं जमीन पर फेंक दिया।

पर फूल का गुलाबी रंग और महक अभी भी ब्रेंडन के हाथों पर लगी थी। इसिलये भौंरा फूल को फेंकने के बाद भी ब्रेंडन के पीछे लगा रहा।

अब ब्रेंडन को उस भौंरे की आवाज थोड़ा इरिटेटिग लगने लगी। वह बार-बार भौंरे को अपने हाथ से भगाने की कोशिश कर रहा था।

पर उस भौंरे ने भी शायद ब्रेंडन को परेशान करने की कसम खा रखी थी, वह अभी भी ब्रेंडन के पीछे लगा था।

इस बार ब्रेंडन ने भौंरे को भगाने की कोशिश नहीं की और उसे थोड़ा और अपने पास आने दिया। जैसे ही वह भौंरा इस बार ब्रेंडन के पास आया, ब्रेंडन ने निशाना साधकर अपने हाथ का वार उस भौंरे के ऊपर कर दिया।

इस बार निशाना बिल्कुल ठीक था। ब्रेंडन का हाथ तेजी से भौंरे को लगा और वह वहीं एक धूल वाली जगह पर घायल होकर गिर गया।

भौंरे के भनभनाने की आवाज अब और तेज हो गयी थी। अब वह जमीन पर गिरकर जोर से तड़पते हुए धूल में लोट रहा था।

भौंरे के जमीन में तड़पने की वजह से जमीन पर कुछ गोल-गोल सी लकीरें बनने लगी।

अब थोड़ी-थोड़ी सी धूल भी जमीन से उठने लगी। कुछ ही देर में भौंरे वाली जगह पर छोटा सा धूल का गुबार बन गया। सभी की नजर उस भौंरे की ओर थी। सभी को भौंरे को देखकर किसी नये खतरे का अहसास हो गया था।

धीरे-धीरे भौंरे का छटपटाना बंद हो गया, पर आश्चर्यजनक तरीके से धूल का गुबार अभी भी कम नहीं हुआ था।

“ये धूल का गुबार क्यों कम नहीं हो रहा?" क्रिस्टी ने कहा- “क्या यह भौंरा भी किसी प्रकार के चमत्कार का हिस्सा है?"




जारी रहेगा_______✍️

Bahut hi shandar update he Raj_sharma Bhai,

Shalaka ko aakhirkar james mil hi gaya............

Apne purane dosto se milkar shalaka bahut hi kuch he aur Gurutav shakti ki puja me shamil hone ke liye maan bhi gayi he.........

Keep rocking Bhai
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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Bahut hi shandar update he Raj_sharma Bhai,

Shalaka ko aakhirkar james mil hi gaya............

Apne purane dosto se milkar shalaka bahut hi kuch he aur Gurutav shakti ki puja me shamil hone ke liye maan bhi gayi he.........

Keep rocking Bhai
Bilkul bhai, 5000 saal kam nahi hote, itne dino ke baad to mili hai wo unse, saath bane rahiye,
Thank you very much for your valuable review and support bhai :thanx:
 

Raj_sharma

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Luckyloda

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#103.

चैपटर-14

हिमलोक:
(10 जनवरी 2002, गुरुवार, 10:25, ट्रांस अंटार्कटिक पर्वत अंटार्कटिका)

विल्मर इस समय बहुत परेशान था। कल से जेम्स कुछ पता नहीं चल रहा था। इस वजह से वह काफ़ी घबराया हुआ था।

“इस कमरे में कहीं भी कोई दरवाजा नहीं है, फिर जेम्स अचानक से कमरे से कहां चला गया? कहीं सच में ही तो देवी शलाका उसे नहीं पकड़ ले गयी?" विल्मर के दिमाग में अजीब-अजीब से ख्याल आ रहे थे।

अभी विल्मर यह सब सोच ही रहा था कि तभी उसे हवा में एक द्वार बनता दिखाई दिया जो कि इस बात का घोतक था कि शलाका आ रही है।

हवा के द्वार से शलाका ने कमरे में प्रवेश किया। इस समय उसने बहुत ही मॉर्डन सी काले रंग की त्वचा से सटी (skin-tight) पोशाक पहन रखी थी। इस पोशाक में अगर कोई उसे देखता तो मान ही नहीं सकता था कि यह कोई देवी है। हर समय की तरह त्रिशूल अब भी शलाका के हाथ में था।

शलाका ने एक नजर कमरे में बैठे विल्मर पर मारी और बोल उठी- “जेम्स कहां है?“

“म ...मुझे नहीं पता ....।" विल्मर ने डरते हुए कहा- “जेम्स कल से कहीं गायब है। मुझे लगा उसे आप कहीं ले गयी है?"

शलाका की आँखें सोचने वाली मुद्रा में सिकुड गयी। उसने एक नजर पूरे कमरे पर मारी।
अब उसकी नजरें दरवाजे वाले स्टीकर पर जाकर चिपक गयी।

“इसका मतलब जेम्स ने गुप्त द्वार का प्रयोग किया है।" शलाका मन ही मन बड़बड़ायी।

“आपने कुछ कहा क्या?" विल्मर ने शलाका को बड़बड़ाते देखकर पूछा।

“नहीं... मैंने कुछ नहीं कहा और मैं जेम्स को लेकर कहीं नहीं गयी?, वो स्वयं ही गुप्त द्वार का प्रयोग करके यहां से बाहर गया है।" शलाका ने विल्मर की ओर देखते हुए कहा- “मैं उसको लाने जा रही हूँ, तब तक तुम इसी कमरे में रहो और ध्यान रहे, यहां के किसी सामान से छेड़-छाड़ करने की कोशिश मत करना, वरना तुम भी गायब हो जाओगे।" विल्मर ने हां में सिर हिलाया।

शलाका अब चलकर उस स्टीकर वाले दरवाजे के पास पहुंची और स्टीकर पर मौजूद लाल बटन को दबा दिया। बटन हरे रंग का हो गया। विल्मर आँखें फाड़े उस दृश्य को देख रहा था।

शलाका उस गुप्त द्वार में प्रवेश कर गयी। कुछ आगे चलने पर उसे चारो ओर दरवाजे ही दरवाजे नजर आये। यह देख शलाका की नजर सभी दरवाज़ों पर फिरने लगी।

कुछ देर देखने के बाद उसकी नजर एक दरवाजे पर टिक गयी। शलाका धीरे से आगे बढ़ी और उस द्वार में प्रवेश कर गयी।


वह रास्ता एक बर्फ़ की गुफा में निकला था। शलाका उस गुफा से बाहर निकली। उसे अपने अगल-बगल चारो तरफ बर्फ़ के पहाड़ दिखाई दे रहे थे।

यह स्थान देखकर शलाका की पुरानी याद ताजा हो गयी। जब वो 5000 वर्ष पहले यहां वेदालय में पढ़ती थी।

शलाका के चेहरे पर एक भीनी सी मुस्कान बिखर गयी। शलाका ने अपने आसपास देखा, पर उसे जीवन के कोई भी लक्षण वहां दिखाई नहीं दिये।

“यहां इतना सन्नाटा क्यों है, 5000 वर्ष पहले तो यह जगह पूरी तरह से जीवन से परिपूर्ण थी। इतने वर्ष में तो इस जगह को और विकसित हो जाना चाहिये था, पर यह तो बिल्कुल वीरान दिखाई दे रही है। ऐसी वीरान जगह पर तो जेम्स को ढूंढ पाना मुश्किल होगा।.....मुझे रुद्राक्ष और शिवन्या की मदद लेनी होगी, वह हिमलोक के बारे में सबकुछ जानते हैं। उन्हें अवश्य पता होगा कि जेम्स कहां है?"

यह सोचकर शलाका ने अपने त्रिशूल को हवा में उछाला। हवा में उछालते ही त्रिशूल कहीं गायब हो गया। अब शलाका ने अपने दोनों हाथ की मुट्ठियां बंद कर, दोनो हाथ के अंगूठे को अपने मस्तिष्क के दोनो तरफ लगाया और अपने मन में ‘रुद्राक्ष और शिवन्या’ दोहराना शुरू कर दिया।

हवा में मानिसक तरंगे फैलना शुरू हो गयी।

कुछ ही देर में शलाका को 4 रेंडियर एक स्लेज गाड़ी को खींचते उधर आते दिखाई दिये।

स्लेज आकर शलाका के पास रूक गयी। शलाका के स्लेज में बैठते ही रेंडियर उसे लेकर एक अंजान दिशा की ओर चल दिये। रास्ते भर शलाका हिमालय में हुए अनेकों बदलाव को देखती जा रही थी।

लगभग 15 मिनट के बाद रेंडियर बर्फ़ से ढकी एक गुफा के पास पाहुंच गये। रेंडियर एक क्षण को रुके और फ़िर गुफा में प्रवेश कर गये। अब रेंडियर गुफा में दौड़ रहे थे।

गुफा में बीच-बीच में ऊपर की ओर सुराख बने थे, जहां से थोड़ी-थोड़ी बर्फ़ गिर कर गुफा में आ रही थी।

कुछ देर के बाद शलाका को गुफा के आगे एक विशालकाय गड्ढ़ा दिखाई दिया, जिसके चारो ओर, नीचे की तरफ जाता हुआ एक 10 फिट चौड़ा रास्ता बना था। गड्डे की गहराई का अंत नहीं दिख रहा था।

रेंडियर उसी रास्ते पर दौड़ते हुए नीचे की ओर जाने लगे।

वह रास्ता इतना खतरनाक था कि शायद कोई मानव उसे देखकर उसमें जाने की सोचता भी नहीं, पर शलाका तो कई बार इस रास्ते से आ-जा चुकी थी। इसिलये वह आराम से स्लेज में बैठी हुई थी।

गड्डे में थोड़ा नीचे जाने के बाद अब उजाला नजर आने लगा था, पर यह उजाला कहां से आ रहा था, यह नहीं पता चल रहा था।
लगभग 500 मीटर का सफर उस गड्डे में तय करने के बाद अब रेंडियर रुक गये।

शलाका को वहां दीवार में एक द्वार दिखाई दिया। शलाका ने उस द्वार को खोला और अब उसके सामने था- “हिमलोक”।

वही हिमलोक जिसकी रचना वेदालय के समय में महागुरु नीलाभ ने की थी। वही हिमलोक जिस पर रुद्राक्ष और शिवन्या को शासन करने के लिये चुना गया था।

शलाका के सामने एक बर्फ़ से ढकी हुई दुनियां थी, जहां पर चारो ओर बर्फ़ की विशालकाय देवताओं की मूर्तियाँ स्थापित थी।

तभी शलाका को सामने खड़े रुद्राक्ष और शिवन्या दिखाई दिये। शलाका खुश होकर बारी-बारी दोनों के गले लग गयी।

“पूरे 5000 वर्ष बीत गये हैं तुमसे मिले।" शिवन्या ने शलाका को निहारते हुए कहा- “मुझे तो लगा था कि शायद अब तुम जीवित भी नहीं हो।"

“शायद अब तक जीवित नहीं बचती, पर किसी के इंतजार ने इतने वर्ष तक मुझे जीवित रखा।....अरे हां मैं दरअसल किसी दूसरे काम से यहां आयी हूँ.... मुझे एक जेम्स नाम के मनुष्य की तलाश है, जो गलती से हिमालय पर आ पहुंचा है।" शलाका ने बात को बदलते हुए कहा।

“एक विदेशी मनुष्य हमने पकड़ा तो है, जो कि हमारी सीमा में घूम रहा था। हो सकता है कि वही जेम्स हो?" रुद्राक्ष ने कहा।

“उसने नीले रंग की टी शर्ट और काली जींस पहनी हुई है।" शलाका ने जेम्स का हुलिया दोनों को बताया।

“हां फ़िर तो वही है ... जेम्स हमारे ही पास है .... हमें लगा कि वह गुरुत्व शक्ति चुराने आया है, इसिलये हमने उसे कैदखाने में डाल दिया।" शिवन्या ने कहा।

“गुरुत्व शक्ति!" शलाका ने आश्चर्य से कहा- “क्या कल गुरुत्व शक्ति प्रकट होने वाली है?"

“हां...तुम तो जानती हो कि गुरुत्व शक्ति हर साल एक विशेष नक्षत्र में सूर्योदय की पहली किरण के साथ बर्फ़ से निकलती है, जिसकी हम पूजा भी करते हैं और सूर्यास्त की आखरी किरण के साथ वापस बर्फ़ में समा जाती है।" शिवन्या ने शलाका को याद दिलाते हुए कहा।

“हां-हां .... मुझे सब याद है ... मैं कुछ भी नहीं भूली....ना गुरुत्व शक्ति और ना ही आर्यन को ................।" शलाका ने एक गहरी साँस भरते हुए कहा।

“चलो फ़िर हमारे महल चलो ... इतने दिन बाद आयी हो तो एक दिन तो रहना ही पड़ेगा हमारे साथ .... और वैसे भी कल तुम पूजा में भी भाग ले सकती हो।" रुद्राक्ष ने शलाका पर जोर डालते हुए कहा।
यह सुन शलाका थोड़ा सोच में पड़ गयी।

उसे सोच में पड़े देख शिवन्या भी बोल उठी- “अरे चलो ना यार... तुम्हारा जेम्स तो वैसे भी मिल गया है, अब तुम्हें परेशानी ही क्या है?"

“ठीक है चलती हूँ....।" कुछ सोचकर शलाका ने मस्कुराते हुए कहा- “अच्छा ये बता कि बाकी के लोग कैसे हैं?"

“बाकी सब तो ठीक हैं, परंतु धरा और मयूर थोड़े से परेशान हैं।" शिवन्या ने कहा- “दरअसल कुछ समय पहले उसकी धरा शक्ति का एक कण चोरी हो गया है, जिसे वो ढूंढ नहीं पा रहे हैं।"

ऐसा कैसे हो सकता है?“ शलाका ने आश्चर्य से पूछा- “पृथ्वी पर अगर कहीं भी वह धरा शक्ति का कण प्रयोग में लाया जाये तो वह धरा और मयूर को पता चल जायेगा, फ़िर वो उसे प्राप्त कर सकते हैं।"

“धरा शक्ति का प्रयोग अभी अमेरिका के एक शहर वाशिंगटन में कल ही 2 बार किया गया, जिससे उन्हें यह तो पता चल गया कि वह शक्ति इस समय अमेरिका में है, धरा और मयूर अमेरिका पहुंच भी चुके हैं। अब बस उन्हें इंतजार है उस शक्ति के अगली बार प्रयोग होने का। जैसे ही इस बार किसी ने उसका प्रयोग किया, वह पकड़ा जायेगा। .... पर छोड़ ना यार उनकी बातों को....वो दोनों आसानी से उस शक्ति को प्राप्त कर लेंगे। चल हम लोग चलते हैं, कल के उत्सव की तैयारियां करते हैं।"

शिवन्या यह कहकर शलाका को खींचकर महल की ओर चल दी।


चक्रवात
(10 जनवरी 2002, गुरुवार, 14:00, मायावन, अराका द्वीप)

रात में शैफाली और जेनिथ की वजह से सभी देर से सोये थे, इसिलये सभी के उठने में काफ़ी देर हो गया था।

चूंकि उस पार्क वाली जगह पर एक खूबसूरत सा तालाब भी था, जिसमें साफ पानी भरा था। इसिलये सभी ने उस जगह पर आधा दिन ज़्यादा रहने का विचार किया।

बारी-बारी सभी लेडीज और जेंट्स ने वहां पर खूब नहाया और अपने कपडों को साफ किया।
इतने दिनो बाद नहा कर सभी को बहुत ताज़ा महसूस हो रहा था।

अब सभी फ़िर से आगे की ओर बढ़ गये।

जेनिथ का दिमाग बुरी तरह से तौफीक पर खराब था। इसिलये वह तौफीक से ज़्यादा बात नहीं कर रही थी। तौफीक ने जेनिथ के इस बदलाव को महसूस कर लिया था, पर उसे इसका कारण नहीं पता चला।

अब केवल 8 लोग ही बचे थे, पर जोड़े पूरी तरह से टूट गये थे। क्रिस्टी से एलेक्स अलग हो गया था और जैक से जॉनी। जेनिथ और तौफीक का रिस्ता भी अब नहीं बचा था, इसिलये सभी अब थोड़ा कम बात कर रहे थे।

“अरे दोस्त दूसरों से बातें मत करो, पर मुझे तो इस तरह से बोर ना करो।" नक्षत्रा ने जेनिथ के मन में कहा- “कुछ तो बोलो?"

“हम तो सुबह से ढलकर, शाम हो गये,
इस कमबख्त इश्क से बदनाम हो गये।"

जेनिथ ने शायराना अंदाज में, नक्षत्रा को किवता सुनाई।

“वाह-वाह दोस्त क्या बात कही है?” नक्षत्रा ने कहा- “आप बहुत तेजी से उबर रहे हो अपने दुख से। ... बहुत खूब.... शानदार।"

“बहुत-बहुत धन्यवाद!" जेनिथ ने मन में कहा- “अब तुम भी कुछ सुनाओ नक्षत्रा?"

“पृथ्वी पर आकर हम भी इंसान हो गये,
तुझमें सिमटकर 2 रूह एक जान हो गये।"

जेनिथ ने भी जेनिथ के लिये एक किवता मार दी।

“बहुत ही खूबसूरत नक्षत्रा... मान गये तुम्हें.... तुम भी बहुत तेजी से सीख रहे हो पृथ्वी की भाषा।" जेनिथ ने खुश होते हुए नक्षत्रा से कहा।

भले ही तौफीक का राज जेनिथ को पता चल गया था, मगर नक्षत्रा की बातो ने जेनिथ को अब बिल्कुल संभाल लिया था। जेनिथ को जिंदगी का यह नया अंदाज बहुत पसंद आ रहा था।

तभी चलते हुए उनके रास्ते में एक फूलों की घाटी आ गई। बहुत ही खूबसूरत फूलों के पौधे चारो ओर लगे थे। चारो ओर खुशबू बिखरी हुई थी।

सभी को ये घाटी बहुत अच्छी लग रही थी। ब्रेंडन ने आगे चलते हुए एक गुलाबी रंग के फूल को तोड़कर अपने हाथो में ले लिया। उस फूल की खुशबू भी बहुत अच्छी थी।

तभी कहीं से एक भौंरा उड़ता हुआ आया और ब्रेंडन के आसपास मंडराने लगा। उसके पंखों की तेज़ ‘भन्न-भन्न’ की आवाज बहुत अजीब सी लग रही थी।

यह देख ब्रेंडन ने अपनी जगह बदल कर उस भौंरे से बचने की कोशिश की, पर भौंरा भी ब्रेंडन के पीछे-पीछे दूसरी जगह पर पहुंच गया।

ब्रेंडन ने फ़िर जगह बदल ली, पर शायद वह भौंरा भी जिद्दी था, वह ब्रेंडन के पीछे ही पड़ गया। ब्रेंडन जिधर जा रहा था, भौंरा उधर आ जा रहा था।

“ब्रेंडन अंकल शायद वह भौंरा आपके नहीं बल्कि आपके हाथ में मौजूद फूल के पीछे पड़ा है।" शैफाली ने ब्रेंडन से कहा- “आप उस फूल को फेंक दिजिये।"

ब्रेंडन को शैफाली का लॉजिक सही लगा, इसिलये उसने अपने हाथ में पकड़े गुलाबी फूल को वहीं जमीन पर फेंक दिया।

पर फूल का गुलाबी रंग और महक अभी भी ब्रेंडन के हाथों पर लगी थी। इसिलये भौंरा फूल को फेंकने के बाद भी ब्रेंडन के पीछे लगा रहा।

अब ब्रेंडन को उस भौंरे की आवाज थोड़ा इरिटेटिग लगने लगी। वह बार-बार भौंरे को अपने हाथ से भगाने की कोशिश कर रहा था।

पर उस भौंरे ने भी शायद ब्रेंडन को परेशान करने की कसम खा रखी थी, वह अभी भी ब्रेंडन के पीछे लगा था।

इस बार ब्रेंडन ने भौंरे को भगाने की कोशिश नहीं की और उसे थोड़ा और अपने पास आने दिया। जैसे ही वह भौंरा इस बार ब्रेंडन के पास आया, ब्रेंडन ने निशाना साधकर अपने हाथ का वार उस भौंरे के ऊपर कर दिया।

इस बार निशाना बिल्कुल ठीक था। ब्रेंडन का हाथ तेजी से भौंरे को लगा और वह वहीं एक धूल वाली जगह पर घायल होकर गिर गया।

भौंरे के भनभनाने की आवाज अब और तेज हो गयी थी। अब वह जमीन पर गिरकर जोर से तड़पते हुए धूल में लोट रहा था।

भौंरे के जमीन में तड़पने की वजह से जमीन पर कुछ गोल-गोल सी लकीरें बनने लगी।

अब थोड़ी-थोड़ी सी धूल भी जमीन से उठने लगी। कुछ ही देर में भौंरे वाली जगह पर छोटा सा धूल का गुबार बन गया। सभी की नजर उस भौंरे की ओर थी। सभी को भौंरे को देखकर किसी नये खतरे का अहसास हो गया था।

धीरे-धीरे भौंरे का छटपटाना बंद हो गया, पर आश्चर्यजनक तरीके से धूल का गुबार अभी भी कम नहीं हुआ था।

“ये धूल का गुबार क्यों कम नहीं हो रहा?" क्रिस्टी ने कहा- “क्या यह भौंरा भी किसी प्रकार के चमत्कार का हिस्सा है?"




जारी रहेगा_______✍️
बहुत ही सुंदर updates... और तोड़ लो फूल.... जब मालूम है कि लगे हुए हैं फिर भी छेड़ा खानी चालु हैं...


अब भोरे को bhugto
 

dhalchandarun

[Death is the most beautiful thing.]
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#103.

चैपटर-14

हिमलोक:
(10 जनवरी 2002, गुरुवार, 10:25, ट्रांस अंटार्कटिक पर्वत अंटार्कटिका)

विल्मर इस समय बहुत परेशान था। कल से जेम्स कुछ पता नहीं चल रहा था। इस वजह से वह काफ़ी घबराया हुआ था।

“इस कमरे में कहीं भी कोई दरवाजा नहीं है, फिर जेम्स अचानक से कमरे से कहां चला गया? कहीं सच में ही तो देवी शलाका उसे नहीं पकड़ ले गयी?" विल्मर के दिमाग में अजीब-अजीब से ख्याल आ रहे थे।

अभी विल्मर यह सब सोच ही रहा था कि तभी उसे हवा में एक द्वार बनता दिखाई दिया जो कि इस बात का घोतक था कि शलाका आ रही है।

हवा के द्वार से शलाका ने कमरे में प्रवेश किया। इस समय उसने बहुत ही मॉर्डन सी काले रंग की त्वचा से सटी (skin-tight) पोशाक पहन रखी थी। इस पोशाक में अगर कोई उसे देखता तो मान ही नहीं सकता था कि यह कोई देवी है। हर समय की तरह त्रिशूल अब भी शलाका के हाथ में था।

शलाका ने एक नजर कमरे में बैठे विल्मर पर मारी और बोल उठी- “जेम्स कहां है?“

“म ...मुझे नहीं पता ....।" विल्मर ने डरते हुए कहा- “जेम्स कल से कहीं गायब है। मुझे लगा उसे आप कहीं ले गयी है?"

शलाका की आँखें सोचने वाली मुद्रा में सिकुड गयी। उसने एक नजर पूरे कमरे पर मारी।
अब उसकी नजरें दरवाजे वाले स्टीकर पर जाकर चिपक गयी।

“इसका मतलब जेम्स ने गुप्त द्वार का प्रयोग किया है।" शलाका मन ही मन बड़बड़ायी।

“आपने कुछ कहा क्या?" विल्मर ने शलाका को बड़बड़ाते देखकर पूछा।

“नहीं... मैंने कुछ नहीं कहा और मैं जेम्स को लेकर कहीं नहीं गयी?, वो स्वयं ही गुप्त द्वार का प्रयोग करके यहां से बाहर गया है।" शलाका ने विल्मर की ओर देखते हुए कहा- “मैं उसको लाने जा रही हूँ, तब तक तुम इसी कमरे में रहो और ध्यान रहे, यहां के किसी सामान से छेड़-छाड़ करने की कोशिश मत करना, वरना तुम भी गायब हो जाओगे।" विल्मर ने हां में सिर हिलाया।

शलाका अब चलकर उस स्टीकर वाले दरवाजे के पास पहुंची और स्टीकर पर मौजूद लाल बटन को दबा दिया। बटन हरे रंग का हो गया। विल्मर आँखें फाड़े उस दृश्य को देख रहा था।

शलाका उस गुप्त द्वार में प्रवेश कर गयी। कुछ आगे चलने पर उसे चारो ओर दरवाजे ही दरवाजे नजर आये। यह देख शलाका की नजर सभी दरवाज़ों पर फिरने लगी।

कुछ देर देखने के बाद उसकी नजर एक दरवाजे पर टिक गयी। शलाका धीरे से आगे बढ़ी और उस द्वार में प्रवेश कर गयी।


वह रास्ता एक बर्फ़ की गुफा में निकला था। शलाका उस गुफा से बाहर निकली। उसे अपने अगल-बगल चारो तरफ बर्फ़ के पहाड़ दिखाई दे रहे थे।

यह स्थान देखकर शलाका की पुरानी याद ताजा हो गयी। जब वो 5000 वर्ष पहले यहां वेदालय में पढ़ती थी।

शलाका के चेहरे पर एक भीनी सी मुस्कान बिखर गयी। शलाका ने अपने आसपास देखा, पर उसे जीवन के कोई भी लक्षण वहां दिखाई नहीं दिये।

“यहां इतना सन्नाटा क्यों है, 5000 वर्ष पहले तो यह जगह पूरी तरह से जीवन से परिपूर्ण थी। इतने वर्ष में तो इस जगह को और विकसित हो जाना चाहिये था, पर यह तो बिल्कुल वीरान दिखाई दे रही है। ऐसी वीरान जगह पर तो जेम्स को ढूंढ पाना मुश्किल होगा।.....मुझे रुद्राक्ष और शिवन्या की मदद लेनी होगी, वह हिमलोक के बारे में सबकुछ जानते हैं। उन्हें अवश्य पता होगा कि जेम्स कहां है?"

यह सोचकर शलाका ने अपने त्रिशूल को हवा में उछाला। हवा में उछालते ही त्रिशूल कहीं गायब हो गया। अब शलाका ने अपने दोनों हाथ की मुट्ठियां बंद कर, दोनो हाथ के अंगूठे को अपने मस्तिष्क के दोनो तरफ लगाया और अपने मन में ‘रुद्राक्ष और शिवन्या’ दोहराना शुरू कर दिया।

हवा में मानिसक तरंगे फैलना शुरू हो गयी।

कुछ ही देर में शलाका को 4 रेंडियर एक स्लेज गाड़ी को खींचते उधर आते दिखाई दिये।

स्लेज आकर शलाका के पास रूक गयी। शलाका के स्लेज में बैठते ही रेंडियर उसे लेकर एक अंजान दिशा की ओर चल दिये। रास्ते भर शलाका हिमालय में हुए अनेकों बदलाव को देखती जा रही थी।

लगभग 15 मिनट के बाद रेंडियर बर्फ़ से ढकी एक गुफा के पास पाहुंच गये। रेंडियर एक क्षण को रुके और फ़िर गुफा में प्रवेश कर गये। अब रेंडियर गुफा में दौड़ रहे थे।

गुफा में बीच-बीच में ऊपर की ओर सुराख बने थे, जहां से थोड़ी-थोड़ी बर्फ़ गिर कर गुफा में आ रही थी।

कुछ देर के बाद शलाका को गुफा के आगे एक विशालकाय गड्ढ़ा दिखाई दिया, जिसके चारो ओर, नीचे की तरफ जाता हुआ एक 10 फिट चौड़ा रास्ता बना था। गड्डे की गहराई का अंत नहीं दिख रहा था।

रेंडियर उसी रास्ते पर दौड़ते हुए नीचे की ओर जाने लगे।

वह रास्ता इतना खतरनाक था कि शायद कोई मानव उसे देखकर उसमें जाने की सोचता भी नहीं, पर शलाका तो कई बार इस रास्ते से आ-जा चुकी थी। इसिलये वह आराम से स्लेज में बैठी हुई थी।

गड्डे में थोड़ा नीचे जाने के बाद अब उजाला नजर आने लगा था, पर यह उजाला कहां से आ रहा था, यह नहीं पता चल रहा था।
लगभग 500 मीटर का सफर उस गड्डे में तय करने के बाद अब रेंडियर रुक गये।

शलाका को वहां दीवार में एक द्वार दिखाई दिया। शलाका ने उस द्वार को खोला और अब उसके सामने था- “हिमलोक”।

वही हिमलोक जिसकी रचना वेदालय के समय में महागुरु नीलाभ ने की थी। वही हिमलोक जिस पर रुद्राक्ष और शिवन्या को शासन करने के लिये चुना गया था।

शलाका के सामने एक बर्फ़ से ढकी हुई दुनियां थी, जहां पर चारो ओर बर्फ़ की विशालकाय देवताओं की मूर्तियाँ स्थापित थी।

तभी शलाका को सामने खड़े रुद्राक्ष और शिवन्या दिखाई दिये। शलाका खुश होकर बारी-बारी दोनों के गले लग गयी।

“पूरे 5000 वर्ष बीत गये हैं तुमसे मिले।" शिवन्या ने शलाका को निहारते हुए कहा- “मुझे तो लगा था कि शायद अब तुम जीवित भी नहीं हो।"

“शायद अब तक जीवित नहीं बचती, पर किसी के इंतजार ने इतने वर्ष तक मुझे जीवित रखा।....अरे हां मैं दरअसल किसी दूसरे काम से यहां आयी हूँ.... मुझे एक जेम्स नाम के मनुष्य की तलाश है, जो गलती से हिमालय पर आ पहुंचा है।" शलाका ने बात को बदलते हुए कहा।

“एक विदेशी मनुष्य हमने पकड़ा तो है, जो कि हमारी सीमा में घूम रहा था। हो सकता है कि वही जेम्स हो?" रुद्राक्ष ने कहा।

“उसने नीले रंग की टी शर्ट और काली जींस पहनी हुई है।" शलाका ने जेम्स का हुलिया दोनों को बताया।

“हां फ़िर तो वही है ... जेम्स हमारे ही पास है .... हमें लगा कि वह गुरुत्व शक्ति चुराने आया है, इसिलये हमने उसे कैदखाने में डाल दिया।" शिवन्या ने कहा।

“गुरुत्व शक्ति!" शलाका ने आश्चर्य से कहा- “क्या कल गुरुत्व शक्ति प्रकट होने वाली है?"

“हां...तुम तो जानती हो कि गुरुत्व शक्ति हर साल एक विशेष नक्षत्र में सूर्योदय की पहली किरण के साथ बर्फ़ से निकलती है, जिसकी हम पूजा भी करते हैं और सूर्यास्त की आखरी किरण के साथ वापस बर्फ़ में समा जाती है।" शिवन्या ने शलाका को याद दिलाते हुए कहा।

“हां-हां .... मुझे सब याद है ... मैं कुछ भी नहीं भूली....ना गुरुत्व शक्ति और ना ही आर्यन को ................।" शलाका ने एक गहरी साँस भरते हुए कहा।

“चलो फ़िर हमारे महल चलो ... इतने दिन बाद आयी हो तो एक दिन तो रहना ही पड़ेगा हमारे साथ .... और वैसे भी कल तुम पूजा में भी भाग ले सकती हो।" रुद्राक्ष ने शलाका पर जोर डालते हुए कहा।
यह सुन शलाका थोड़ा सोच में पड़ गयी।

उसे सोच में पड़े देख शिवन्या भी बोल उठी- “अरे चलो ना यार... तुम्हारा जेम्स तो वैसे भी मिल गया है, अब तुम्हें परेशानी ही क्या है?"

“ठीक है चलती हूँ....।" कुछ सोचकर शलाका ने मस्कुराते हुए कहा- “अच्छा ये बता कि बाकी के लोग कैसे हैं?"

“बाकी सब तो ठीक हैं, परंतु धरा और मयूर थोड़े से परेशान हैं।" शिवन्या ने कहा- “दरअसल कुछ समय पहले उसकी धरा शक्ति का एक कण चोरी हो गया है, जिसे वो ढूंढ नहीं पा रहे हैं।"

ऐसा कैसे हो सकता है?“ शलाका ने आश्चर्य से पूछा- “पृथ्वी पर अगर कहीं भी वह धरा शक्ति का कण प्रयोग में लाया जाये तो वह धरा और मयूर को पता चल जायेगा, फ़िर वो उसे प्राप्त कर सकते हैं।"

“धरा शक्ति का प्रयोग अभी अमेरिका के एक शहर वाशिंगटन में कल ही 2 बार किया गया, जिससे उन्हें यह तो पता चल गया कि वह शक्ति इस समय अमेरिका में है, धरा और मयूर अमेरिका पहुंच भी चुके हैं। अब बस उन्हें इंतजार है उस शक्ति के अगली बार प्रयोग होने का। जैसे ही इस बार किसी ने उसका प्रयोग किया, वह पकड़ा जायेगा। .... पर छोड़ ना यार उनकी बातों को....वो दोनों आसानी से उस शक्ति को प्राप्त कर लेंगे। चल हम लोग चलते हैं, कल के उत्सव की तैयारियां करते हैं।"

शिवन्या यह कहकर शलाका को खींचकर महल की ओर चल दी।


चक्रवात
(10 जनवरी 2002, गुरुवार, 14:00, मायावन, अराका द्वीप)

रात में शैफाली और जेनिथ की वजह से सभी देर से सोये थे, इसिलये सभी के उठने में काफ़ी देर हो गया था।

चूंकि उस पार्क वाली जगह पर एक खूबसूरत सा तालाब भी था, जिसमें साफ पानी भरा था। इसिलये सभी ने उस जगह पर आधा दिन ज़्यादा रहने का विचार किया।

बारी-बारी सभी लेडीज और जेंट्स ने वहां पर खूब नहाया और अपने कपडों को साफ किया।
इतने दिनो बाद नहा कर सभी को बहुत ताज़ा महसूस हो रहा था।

अब सभी फ़िर से आगे की ओर बढ़ गये।

जेनिथ का दिमाग बुरी तरह से तौफीक पर खराब था। इसिलये वह तौफीक से ज़्यादा बात नहीं कर रही थी। तौफीक ने जेनिथ के इस बदलाव को महसूस कर लिया था, पर उसे इसका कारण नहीं पता चला।

अब केवल 8 लोग ही बचे थे, पर जोड़े पूरी तरह से टूट गये थे। क्रिस्टी से एलेक्स अलग हो गया था और जैक से जॉनी। जेनिथ और तौफीक का रिस्ता भी अब नहीं बचा था, इसिलये सभी अब थोड़ा कम बात कर रहे थे।

“अरे दोस्त दूसरों से बातें मत करो, पर मुझे तो इस तरह से बोर ना करो।" नक्षत्रा ने जेनिथ के मन में कहा- “कुछ तो बोलो?"

“हम तो सुबह से ढलकर, शाम हो गये,
इस कमबख्त इश्क से बदनाम हो गये।"

जेनिथ ने शायराना अंदाज में, नक्षत्रा को किवता सुनाई।

“वाह-वाह दोस्त क्या बात कही है?” नक्षत्रा ने कहा- “आप बहुत तेजी से उबर रहे हो अपने दुख से। ... बहुत खूब.... शानदार।"

“बहुत-बहुत धन्यवाद!" जेनिथ ने मन में कहा- “अब तुम भी कुछ सुनाओ नक्षत्रा?"

“पृथ्वी पर आकर हम भी इंसान हो गये,
तुझमें सिमटकर 2 रूह एक जान हो गये।"

जेनिथ ने भी जेनिथ के लिये एक किवता मार दी।

“बहुत ही खूबसूरत नक्षत्रा... मान गये तुम्हें.... तुम भी बहुत तेजी से सीख रहे हो पृथ्वी की भाषा।" जेनिथ ने खुश होते हुए नक्षत्रा से कहा।

भले ही तौफीक का राज जेनिथ को पता चल गया था, मगर नक्षत्रा की बातो ने जेनिथ को अब बिल्कुल संभाल लिया था। जेनिथ को जिंदगी का यह नया अंदाज बहुत पसंद आ रहा था।

तभी चलते हुए उनके रास्ते में एक फूलों की घाटी आ गई। बहुत ही खूबसूरत फूलों के पौधे चारो ओर लगे थे। चारो ओर खुशबू बिखरी हुई थी।

सभी को ये घाटी बहुत अच्छी लग रही थी। ब्रेंडन ने आगे चलते हुए एक गुलाबी रंग के फूल को तोड़कर अपने हाथो में ले लिया। उस फूल की खुशबू भी बहुत अच्छी थी।

तभी कहीं से एक भौंरा उड़ता हुआ आया और ब्रेंडन के आसपास मंडराने लगा। उसके पंखों की तेज़ ‘भन्न-भन्न’ की आवाज बहुत अजीब सी लग रही थी।

यह देख ब्रेंडन ने अपनी जगह बदल कर उस भौंरे से बचने की कोशिश की, पर भौंरा भी ब्रेंडन के पीछे-पीछे दूसरी जगह पर पहुंच गया।

ब्रेंडन ने फ़िर जगह बदल ली, पर शायद वह भौंरा भी जिद्दी था, वह ब्रेंडन के पीछे ही पड़ गया। ब्रेंडन जिधर जा रहा था, भौंरा उधर आ जा रहा था।

“ब्रेंडन अंकल शायद वह भौंरा आपके नहीं बल्कि आपके हाथ में मौजूद फूल के पीछे पड़ा है।" शैफाली ने ब्रेंडन से कहा- “आप उस फूल को फेंक दिजिये।"

ब्रेंडन को शैफाली का लॉजिक सही लगा, इसिलये उसने अपने हाथ में पकड़े गुलाबी फूल को वहीं जमीन पर फेंक दिया।

पर फूल का गुलाबी रंग और महक अभी भी ब्रेंडन के हाथों पर लगी थी। इसिलये भौंरा फूल को फेंकने के बाद भी ब्रेंडन के पीछे लगा रहा।

अब ब्रेंडन को उस भौंरे की आवाज थोड़ा इरिटेटिग लगने लगी। वह बार-बार भौंरे को अपने हाथ से भगाने की कोशिश कर रहा था।

पर उस भौंरे ने भी शायद ब्रेंडन को परेशान करने की कसम खा रखी थी, वह अभी भी ब्रेंडन के पीछे लगा था।

इस बार ब्रेंडन ने भौंरे को भगाने की कोशिश नहीं की और उसे थोड़ा और अपने पास आने दिया। जैसे ही वह भौंरा इस बार ब्रेंडन के पास आया, ब्रेंडन ने निशाना साधकर अपने हाथ का वार उस भौंरे के ऊपर कर दिया।

इस बार निशाना बिल्कुल ठीक था। ब्रेंडन का हाथ तेजी से भौंरे को लगा और वह वहीं एक धूल वाली जगह पर घायल होकर गिर गया।

भौंरे के भनभनाने की आवाज अब और तेज हो गयी थी। अब वह जमीन पर गिरकर जोर से तड़पते हुए धूल में लोट रहा था।

भौंरे के जमीन में तड़पने की वजह से जमीन पर कुछ गोल-गोल सी लकीरें बनने लगी।

अब थोड़ी-थोड़ी सी धूल भी जमीन से उठने लगी। कुछ ही देर में भौंरे वाली जगह पर छोटा सा धूल का गुबार बन गया। सभी की नजर उस भौंरे की ओर थी। सभी को भौंरे को देखकर किसी नये खतरे का अहसास हो गया था।

धीरे-धीरे भौंरे का छटपटाना बंद हो गया, पर आश्चर्यजनक तरीके से धूल का गुबार अभी भी कम नहीं हुआ था।

“ये धूल का गुबार क्यों कम नहीं हो रहा?" क्रिस्टी ने कहा- “क्या यह भौंरा भी किसी प्रकार के चमत्कार का हिस्सा है?"




जारी रहेगा_______✍️
Interesting!!!

Salaka ke dost ne usse kyun kaha ki tum abhi tak zinda ho???

Yadi Salaka ke dost jeevit hain phir Salaka ka bhi zinda hona koi ascharya wali baat nahi hai.

Lekin, lekin, lekin baat itni simple nahi ho sakti hai yadi Aryan ka punarjanm hua hai toh past mein koi tragedy definitely hua hoga.


Let's see Shefali, Suyash aur uski team ke paas kya nayi challenge aane
wali hai.
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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बहुत ही सुंदर updates... और तोड़ लो फूल.... जब मालूम है कि लगे हुए हैं फिर भी छेड़ा खानी चालु हैं...


अब भोरे को bhugto
Bilkul bhavra un sabki watt lagayega, agley update me ek aur kam hone wala hai :shhhh:
Thanks for your valuable review bhai :thankyou:
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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