रात जैसे तैसे करके गुजर गई आज की रात ऐसा कुछ भी नहीं हुआ जिस से मां बेटे दोनों बेहद करीब आ सके,,,,, सुबह के 5:00 बज रहे थे,, सुगंधा की नींद जल्दी खुल चुकी थी वह धीरे से अपने बिस्तर पर से नीचे उतरी और अपने कमरे के बाहर आ गई बाथरूम जाने के बाद वह हाथ मुंह धोकर फ्रेश हो गई,, आज उसे अपने बेटे के कहीं अनुसार पैदल चलना था थोड़ा दौडना था ताकि उसका बदन और भी ज्यादा आकर्षक बन सके,, अंकित के कमरे पर जाकर दरवाजे पर दस्तक देने लगी,,, थोड़ी ही देर में दस्तक की आवाज सुनकर अंकित की भी नींद खुल गई लेकिन नींद में होने की वजह से ऐसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था इसलिए वह बोला।
कौन ,,,,,
अरे मैं हूं,,,,, भूल गया आज दौड़ने चलना है,,,,।
(इतना सुनते ही अंकित की नींद एकदम से उड़ गई वह बिस्तर पर से उठकर खड़ा हो गया और जल्दी से दरवाजा खुला तो देखा दरवाजे पर उसकी मां खड़ी थी जो की एकदम तरोताजा दिखाई दे रही थी यह देखकर वह बोला,,,)
तुम तो बहुत खूबसूरत लग रही हो,,,,,, रुको मैं भी तैयार हो जाता हूं,,,,(इतना कहकर वह तुरंत बाथरूम में चला गया वह जानबूझकर अपनी मां की खूबसूरती की तारीफ किया था क्योंकि वह इतना तो समझ गया था कि वह औरत क्या सुनना चाहती हैं क्या सुनना पसंद करती है,,,, सुगंधा भी हैरान थी अपने बेटे के मुंह से अपनी खूबसूरती की तारीफ सुनकर लेकिन अपने बेटे के मुझे अपनी खूबसूरती की तारीफ सुनकर वह फुले नहीं समा रही थी,,, और वैसे भी सुबह-सुबह वह अपनी साड़ी को कमर में खोंस ली थी और अपने रेशमी बालों की गुच्चो का जुड़ा बना ली थी और इसकी लत उसके गोरे गाल पर लहरा रही थी वाकई में इस समय सुगंधा कुछ ज्यादा ही खूबसूरत दिखाई दे रही थी,,,, थोड़ी देर में हाथ मुंह धो कर अंकित भी फ्रेश हो गया और फिर दोनों घर से बाहर निकल गए लेकिन घर में कोई न होने की वजह से सुगंधा घर में ताला लगा दी थी ताकि कोई चोर चोरी ना कर सके।
सुबह का समय होने की वजह से बहुत ही शीतल हवा बह रही थी जो गर्मी के महीने में बदन को शीतलता प्रदान कर रही थी,, पर वैसे भी सुबह का समय कुछ ज्यादा ही खूबसूरत दिखाई देता है अभी सूरज निकला नहीं था इसलिए चारों तरफ अंधेरा ही था लेकिन सड़क पर की स्ट्रीट लाइट जल रही थी और ईक्का दुक्का लोग जॉगिंग करते हुए नजर आ रहे थे,,, जिनमें औरतें भी थी लड़कियां भी थी,,, सुगंधा औरतों के मोटे बदन को देखकर समझ गया था कि इन लोगों को जोगिंग करने की जरूरत क्यों पड़ती होगी लेकिन पतली और तो लड़कियों को देखकर भी इतना तो समझ में आ रहा था कि यह लोग अपने स्वास्थ्य के प्रति कितने जागरूक है,,,, मोटी औरतों को देखकर सुगंधा के मन में भी ढेर सारे सवाल उठ रहे थे,,, उनमें से अपने मन में उठ रहे एक सवाल को अपने बेटे के सामने ही प्रस्तुत करते हुए बोली,,,,।
बाप रे और से सच में अपने शरीर का बिल्कुल भी ख्याल नहीं रखते देखो तो सही कितनी मोटी है ठीक से चला भी नहीं जा रहा है,,,।(जल्दी-जल्दी अपने कदम को आगे बढ़ते हुए सुगंधा बोली,,)
सब तुम्हारी तरह जागरूक थोड़ी होते हैं मुझे लगता है कि वह औरत तुमसे कम उम्र की होगी लेकिन उसके शरीर के हिसाब से वह कितनी बड़ी लग रही है अगर वह भी तुम्हारी तरह जागरूक होती तो वह भी आज तुम्हारी तरह दिखती,,,, एक तरफ वह औरतें हैं जो अपने शरीर का ख्याल नहीं रखती और एकदम मोटी हो गई है और एक तरफ तुम हो जो कसा हुआ बदन होने के बावजूद भी ऐसा महसूस कर रही हो कि मेरा पेट बाहर निकल रहा है,,,(अंकित अपनी मां के पेट की तरफ देखते हुए बोला जो कि एकदम चिकना और सपाट नजर आ रहा था बस हल्का सा बाहर निकला हुआ था और उसकी नाभि एकदम साफ दिखाई दे रही थी अपने बेटे की बात सुनकर वह भी अपने पेट की तरफ देखने लगे उसे भी एहसास हो रहा था कि उसकी गहरी ना अभी एकदम साफ दिखाई दे रही थी लेकिन फिर भी वह इस समय अपनी नाभि को अपने बेटे की नजर से बिल्कुल भी छुपाने की कोशिश नहीं की और उसकी बात सुनकर बोली,,)
अरे सच में मेरा पेट बाहर निकला हुआ है पहले ऐसा नहीं था,,,(जल्दी-जल्दी तेज कदम आगे बढ़ाते हुए वह बोली,,,,)
लेकिन मम्मी तुम्हें ऐसा क्यों लग रहा है कि तुम्हारा पेट बाहर निकल गया है मुझे तो ऐसा बिल्कुल भी नहीं लग रहा है,,,।
अरे तुझे क्या मालूम तु क्या देखता रहता है क्या,,,?
तो क्या मैं तुम्हें देखा नहीं हूं क्या,,, तुम्हें भी अच्छी तरह से याद होगा कि मैं तुम्हें देखता हूं कि नहीं,,,(अंकित दो अर्थ वाली बात कर रहा था उसकी मां भी अपने बेटे की बात को अच्छी तरह से समझ रही थी वह भी अच्छी तरह से जानती थी कि उसका बेटा उसे बहुत बार दे नग्न अवस्था पूर्ण नग्न अवस्था और तो और उसे पेशाब करते हुए भी देख चुका है लेकिन फिर भी जानबूझकर वह ऐसा बोल रही थी,,, अपने बेटे की बात का मतलब अच्छी तरह से समझते हुए सुगंधा बोली,,,)
अरे जानती हूं तो बहुत बार देख चुका है लेकिन फिर भी मेरा शरीर है मुझे तो समझ में आता होगा ना कि मेरा शरीर बढ़ा है कि नहीं बढ़ा,,,,
चलो कोई बात नहीं अगर ऐसा है तो सही हो जाएगा और तुम और भी ज्यादा खूबसूरत दिखाई देने लगोगे अपनी उम्र से 10 साल कम,,,।
सच में,,,
तो क्या अभी भी तुम अपनी उम्र से 10 साल कमी लगती हो कोई कह नहीं सकता कि तुम्हारे दो दो जवान बच्चे हैं,,,।
अच्छा तो यहबात है,,,(सुगंधा मुस्कुराते हुए बोली उसे अपने बेटे की बातें बड़ी अच्छी लग रही थी दोनों बात करते-करते तकरीबन आधा किलोमीटर की दूरी तय कर चुके थे,,,, रास्ते में जॉगिंग करते हुए बहुत लोग दिखाई दे रहे थे ज्यादातर औरतें और औरतों का शरीर को ज्यादा ही मोटा उनकी बड़ी-बड़ी गांड की तरफ देख कर सुगंधा अपने मन में सोचती कि अगर वाकई में वह भी अपने शरीर का ख्याल ना रखती तो शायद उसका भी यही हाल हो जाता,,, अभी वह अपने मन में यही सोच रही थी कि तभी एक औरत की तरफ देखते हुए अंकित बोला,,,)
मम्मी मैं तो सोच करेंगे घबरा जाता हूं कि अगर तुम भी उस औरत की तरह हो जाती तो कैसा होता तुम्हारी खूबसूरती तो एकदम बेकार हो जाती।
(अंकित की बात सुनकर सुगंधा भी सूरज की तरफ देखने लगी और मुस्कुराते हुए बोली,,,)
ज्यादा से ज्यादा क्या हो जाता सिर्फ खूबसूरती चली जाती ना,,,।
किसी बात से कर रही हो मम्मी उसका पिछवाड़ा देखी हो,,,,(अंकित जानबूझकर इस तरह के शब्दों का प्रयोग कर रहा था और उसकी मां भी उसके मुंह से पिछवाड़ा शब्द सुनकर गनगना गई थी,,, क्योंकि उसे भी एहसास होने लगा था कि अंकित भी औरतों की गांड की तरफ देखता है,,, चलते फिर कुछ देर की खामोशी के बाद अपने शब्दों को पूरा करते हुए अंकित बोला,,,) कितना भारी भरकम है और तुम्हारा,,,,(इतना कह कर वह एकदम से खामोश हो गया,,,, ऐसा हुआ जानबूझकर किया था वह देखना चाहता था कि उसकी मां क्या कहती है लेकिन उसकी बातें सुनकर सुगंधा मन ही मन खुश हो रही थी क्योंकि वह उसऔरत के साथ-साथ उसकी भी गांड के बारे में बात कर रहा था लेकिन खुलकर बोल नहीं पाया था इसलिए उसकी अधूरी बात को सुगंधा पूरी करवाने हेतु बोली।)
तुम्हारा,,, मतलब कि मेरा,,,मेरा कैसा है,,,,।
(अंकित अच्छी तरह से समझ गया था कि अब धीरे-धीरे आगे बढ़ना है अपनी मंजिल को प्राप्त करना है अगर वह इसी तरह से शर्माता रहा तो महिना गुजर जाएगा और त्रप्ति भी वापस आ जाएगी सब कुछ नहीं हो पाएगा इसलिए वह थोड़ा हिम्मत उठाकर बोला,,,)
तुम्हारी तो बहुत खूबसूरत है उसका उठाव उसका उभार एकदम लाजवाब,, है,,,,।(सड़क पर लगी स्ट्रीट लाइट के नीचे खड़े होते हुए अंकित बोला क्योंकि वह दोनों चलते-चलते काफी दूर तक आ चुके थे तकरीबन 1 किलोमीटर की दूरी दोनों ने तय कर लिया था और यह कुछ ज्यादा ही था पहले दिन के लिए,,,, सुगंधा भी वहीं पर रुक गई थी अपने बेटे की बात सुनकर उसके बदन में उत्तेजना की लहर उठने लगी थी क्योंकि वह वाकई में खुले तौर पर ना सही लेकिन उचित शब्दों का प्रयोग करके उसकी गांड की तारीफ कर रहा था,,, सुगंधा मुस्कुरा रही थी और अंकित की तरफ देखते हुए बोली,,,)
अच्छा तुझे औरत के पिछवाड़े के उठाव और उभार के बारे में ज्यादा मालूम पडने लगा है।
नहीं है सब कुछ भी नहीं है लेकिन औरतों का पिछवाड़ा उसे औरत की तरह तो बिल्कुल भी नहीं होना चाहिए क्योंकि कितना भद्दा लगता है,,,।
तो किसकी तरह होना चाहिए,,,,(सुगंधा एकदम मुस्कुराते हुए बोली,,, अंकित अपनी मां के खाने के मतलब को अच्छी तरह से समझ रहा था उसे अच्छी तरह से एहसास हो रहा था कि उसकी मां क्या सुनना चाहती है इसलिए वह भी हिम्मत जुटा कर बोला,,,)
तुम्हारी तरह,,,, सच कहता हूं औरतों का पिछवाड़ा तुम्हारी तरह होना चाहिए ,,,, एकदम आकर्षक और खूबसूरत,,,( तिरछी नजर से अपनी मां की गांड की तरफ देखते हुए बोला सुगंधा भी अपने बेटे के मुंह से अपनी गांड की तारीफ सुनकर भाभी नजर पीछे करके अपने नितंबों के उभार को देखकर मुस्कुराने लगी,,,,, और फिर वह एकदम सहज होते हुए बोली,,,)
अब क्या करना है आगे बढ़ना है या पीछे जाना है,,,,।
अभी सुबह होने में थोड़ा समय है थोड़ा आगे ही चलना चाहिए लेकिन दौड़ते हुए दौड़ तो लोगी ना साड़ी में,,,,।
वैसे कभी दौड़ी तो नहीं लेकिन कोशिश करूंगी,,,।
ठीक है ज्यादा जोर से नहीं भागना है आराम से ऐसा लगना चाहिए कि भाग रही है लेकिन चलने जैसा ही होना चाहिए वरना कहीं गिर गई तो लेने के देने पड़ जाएंगे,,,।
ओहहह मेरी बहुत फिक्र है,,,।
होगी क्यों नहीं,,, इतनी खूबसूरत मम्मी जो है,,,, और जिसके पास इतनी खूबसूरत मम्मी होगी बेटे को तो ख्याल रखना ही होगा,,,।
(अंकित बड़ी चतुराई से बहुत कुछ भूल गया था और उसकी मां भी उसकी बात को अच्छी तरह से समझ रही थी इसलिए तो उसकी बात सुनकर उसके बदन में हलचल सी होने लगी थी,,, क्योंकि एक औरत की ख्वाहिश यही होती है कि उसे भी कोई बेइंतहा चाहने वाला हो उसकी फिक्र करने वाला हो,, उसे ढेर सारा प्यार करने वाला है और अब सुगंधा को लगने लगा था कि उसकी आंखों के सामने जो मर्द खड़ा है वही एक दिन उसे बहुत प्यार देगा,,,, अभी भी अंधेरा छाया हुआ था सड़क की स्ट्रीट लाइट का भी उपयोग प्रकाश के लिए हो रहा था,,, सुगंधा को पहली बार ऐसा लग रहा था कि वाकई में लोग अपने स्वास्थ्य के लिए इतने जागरुक है,,,, मां बेटे दोनों तैयार हो चुके थे आगे बढ़ने के लिए,,,, और फिर अंकित धीरे से अपना कदम आगे बढ़ाया और धीरे-धीरे दौड़ने लगा उसके साथ उसकी मां भी दौड़ने लगी इस तरह से दौड़ने का सुगंधा के लिए पहला मौका था खास करके शादी के बाद क्योंकि ऐसी कोई जरूरत ही नहीं पड़ी थी कि उसे दौड़ना पड़े,,,,।
इस तरह से दौड़ते हुए उसे अपने जवानी के दिन याद आ जाए जब वह कॉलेज में जाया करती थी ऐसे ही एक दिन कॉलेज जाने में उसे देर हो गई थी बस छूट गई थी और वह एक हाथ में बैग लिए हुए दौड़ते दौड़ते ही कॉलेज की तरफ जा रही थी,,, और इस तरह से उसे दौड़ते हुए देखकर रास्ते में कई लोग कई कई तरह की बातें बना रहे थे उनमें से कुछ उसका हौसला बढ़ा रहे थे तो कुछ गंदी फब्तियां भी शामिल थे जिसे सुनकर उसे समय तो उसके कान खड़े हो गए थे उसने कभी सोचा नहीं था कि उसके बारे में लोग इस तरह की भी बातें करेंगे आज भी उसे अच्छी तरह से याद है जब वह दौड़ते हुए जा रही थी तो,,, उसे देखकर खास करके दौड़ते समय उसकी गांड के घेराव को देखकर जो की दौड़ते समय उनमें ज्यादा थिरकन हो रही थी,,, उसे देखकर एक लड़का बोला था,,, वाह क्या गांड है कसम से एक रात के लिए मिल जाए तो दोनों टांगें फैला कर इसकी गांड मार लुं,,, यह शब्द जैसे ही उसके कानों में पड़े थे वह एकदम से स्तब्ध रह गई थी पल भर के लिए तो उसके मन में आया कि वापस लौटकर उस लड़के के गाल पर दो-तीन थप्पड़ लगा दे लेकिन इतनी हिम्मत उसमें नहीं थी,,,, जैसे तैसे करके सुगंधा उस लड़के की बात को सहन कर गई थी लेकिन जैसे ही अपने कॉलेज के गेट पर पहुंची थी तो गेट पर खड़ा जमादार जो कि अधेड़ उम्र का था,,, वह भी उस पर गंदी फब्ति कसते हुए बोला ।
वाह क्या गांड है साली की,,, अगर मिल जाए तो इसकी बुर नहीं बल्कि गांड मारने में ही मजा आएगा,,,,, यह शब्द जैसे ही उसके कान में पड़े थे उसके तो होश उड़ गए थे,,, क्योंकि वह चौकीदार उसके बाप की उम्र का था और वह कभी सपने में नहीं सोचे थे कि इस उम्र के आदमी भी लड़कियों को देखकर लार टपकाते होंगे,,,, उसकी बात सुनकर सुगंधा दौड़ते हुए ही पीछे नजर घुमा कर देखी थी और उसे चौकीदार की नजरों को जब वह अपनी गांड के इर्द-गिर्द घूमता हुआ महसूस की तो वह मारे शर्म के पानी पानी हो गई थी,,, उसके मन में हुआ कि उसे चौकीदार की शिकायत प्रिंसिपल को कर दे लेकिन फिर वह अपने मन में सोचने लगी की प्रिंसिपल को जाकर वह बोलेगी क्या किन शब्दों में शिकायत करेगी क्योंकि इस तरह के असली शब्दों का प्रयोग कभी अपने जुबान पर नहीं की थी,,, और फिर काफी सोच समझने के बाद वह कुछ बोली नहीं और अपनी क्लास रूम में चली गई।
वह दिन था और उसके बाद आज का दिन है जब वह दौड़ रही थी वैसे तो जवानी के दिनों में उसके बाद में कुछ ज्यादा ही फुर्ती थी और बदन भी छरहरा था इसलिए भागने में बिल्कुल भी दिक्कत नहीं आती थी लेकिन अब समय बदल चुका था उम्र के हिसाब से अब वह ज्यादा तेज नहीं तोड़ सकती थी लेकिन फिर भी काम चलाने के लिए वह धीरे-धीरे दौड़ लगा रही थी,,,, दौड़ लगाते हुए अंकित अपनी मां को ही देख रहा था वह तिरछी नजर से अपनी मां के ब्लाउज की तरफ देख रहा था क्योंकि भागने की वजह से उसके घर पहुंचे जैसी चूचियां उछल रही थी और अंकित को साफ एहसास हो रहा था कि उसकी मां ब्लाउज के अंदर ब्रा नहीं पहनी थी,, इसलिए उसके दोनों कबूतर एकदम बेकाबू हो चुके थे ब्लाउज की कैद से बाहर निकलने के लिए,,, अपनी मां की वह चलती हुई चूचियों को देखकर अंकित अपने मन में सोच रहा था कि नानी की चूचियों की तरह उसे अपनी मां की भी चूचियों को दबाने का मौका मिल जाता तो कितना मजा आता,,,। ऐसा सोचता हुआ वह मस्त हुआ जा रहा था,,, सुगंधा भी जब तिरछी नजर से अपने बेटे की तरफ देखी तो उसकी नजर को अपनी चूचियों के ईर्द गिर्द ही पाई तो वह एकदम से गनगना गई,,,।
वह अंदर ही अंदर एकदम खुश होने लगी थी क्योंकि उसे इस बात का एहसास हो रहा था कि दौड़ने की वजह से उसकी बड़ी-बड़ी चूचियां ब्लाउज में उछल रही थी,,, और उसे अभी मालूम था कि यह सब उसके ब्रा ना पहनने की वजह से हो रहा था,,,, अपने बेटे की नजर के बारे में जानने के बावजूद भी वह अपनी चूचियों के उछाल को बिल्कुल भी रोकने की कोशिश नहीं कर रही थी बल्कि वह उसी लय में आगे बढ़ रही थी,,, और अपने मन में सोच रही थी कि काश उसके ब्लाउज के सारे बटन टूट जाए और उसकी चूची एकदम से आजाद हो जाए एकदम नंगी हो जाए और उसका बेटा उसे अपने दोनों हाथों से थाम कर उसे ब्लाउज में वापस भरने की कोशिश करें और उसे जोर-जोर से दबाकर मजा ले,,,।
लेकिन यह सिर्फ उसकी सोच थी उसकी बड़ी-बड़ी चूचियों का भारत के ब्लाउज के छोटे-छोटे बटन पर टिका हुआ था जो की मजबूती से एक दूसरे से हाथ मिलाकर बड़ी-बड़ी चूचियों के भार से ब्लाउज के बांध को टूटने से बचा रहे थे,,,, यह तो चुचियों का हाल था लगे हाथ अंकित अपनी मां के भारी भरकम गांड के भूगोल के बारे में भी समझ लेना चाहता था उसे अच्छी तरह से देख लेना चाहता था इसलिए अपनी मां से बात करते हुए बोला,,,।
कैसा लग रहा है मम्मी,,,?
आज तो बहुत अच्छा लग रहा है ऐसा लग रहा है कि मेरे जवानी के दिन लौट आए हो,,,।
जवानी के दिन गए ही कब थे मम्मी तो वापस आने का सवाल ही नहीं उठता,,, तुम पर तो जवानी पूरी तरह से छाई हुई है या युं कह लो की जवानी तुम पर पूरी तरह से मेहरबान है,,,,।
(अपने बेटे की आवाज सुनकर सुगंधा मन ही मन प्रसन्न हो रही थी,,, और उसे अपने बेटे की बातों में एक मर्दाना अंदाज चालक रहा था जो एक मर्द एक औरत के साथ बातें करते हुए शब्दों का प्रयोग करता है,,, अंकित की बातों से सुगंधा बहुत खुश थी और मुस्कुराते हुए बोली,,,)
क्या बात है आज तो तो फिल्मी हीरो की तरह मेरी तारीफ पर तारीफ कर रहा है।
क्योंकि तुम तारीफ के लायक हो अभी तक मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी तुम्हारी खूबसूरती की तारीफ करने के लिए लेकिन बहुत हिम्मत उठाकर तुम्हारी खूबसूरती की तारीफ कर रहा हूं और यह बात तुम्हें भी अच्छी तरह से मालूम होगा कि वाकई में तुम कितनी खूबसूरत हो,,,,(अंकित अपनी मां की चूचियों की तरफ देखते हैं बोला और जब-जब सुगंध अपने बेटे की नजर को अपनी चूचियों के इर्द-गिर्द घूमती हुई पाती थी तब तब उसके बदन में सुरसुराहट सी होने लगती थी।,,, सुगंधा अपनी बेटी की बात सुनकर खुश हो रही थी लेकिन कुछ बोल नहीं पा रही क्योंकि उसके पास बोलने के लिए कोई शब्द नहीं है लेकिन उनकी धीरे से अपनी मां से एक कदम पीछे हो गया था क्योंकि वह अपनी मां का पिछवाड़ा देखना चाहता था उसकी भारी भरकम गांड को दौड़ते समय कैसी दिखाई देती है यह देखना चाहता था। और शायद इसका एहसास सुगंधा को भी हो गया था,,, इसलिए वह बिल्कुल भी कोशिश नहीं कर रही थी अपने बेटे के साथ दौड़ने की,,, वह इस तरह से अपने बेटे से कदम आगे ही थी,,
अंकित को अब सब कुछ स्ट्रीट लाइट की रोशनी में एकदम साफ दिखाई दे रहा था,,, अंकित की मां की गांड दौड़ते समय कुछ ज्यादा ही उछल रही थी ऐसा लग रहा था कि जैसे वह खुद अंकित को इशारा कर रही हो कि लपक कर दोनों हाथों से उसे थाम ले,,,, कसी हुई साड़ी में सुगंधा की गांड कहर ढा रही थी,,, अंकित दौड़ते हुए अपनी मां की गांड को देखकर मत हो जा रहा था वाकई में उसकी मां की गांड उसने अब तक जितनी भी औरतों को देखा था उनमें से सबसे ज्यादा खूबसूरत गांड उसकी मां की ही थी,,,। अंकित तो देखता ही रह गया था सुगंधा को भी अच्छी तरह से मालूम था कि उसका बेटा क्या देख रहा होगा इसलिए वह चलते हुए तिरछी नजर से अपने बेटे की तरफ देखी तो एकदम से खुश हो गई क्योंकि जैसा वह सोच रही थी वैसा ही हो रहा था उसका बेटा उसकी गांड को ही देख रहा था,,,, तभी उसे एहसास हुआ की उसके पास से एक आदमी दौड़ता हुआ निकला जो कि उसकी तरफ ही देख रहा था,,,, और फिर तो ऐसे कई लोगों को उसने देखी जो उसे ही देख रहे थे,,, इस बात का एहसास अंकित को भी हो रहा था और वह अपनी मां की खूबसूरती से गर्व महसूस कर रहा था,,,। लेकिन इस बात का एहसास हुआ अपनी मां को करना चाहता है इसलिए वह फिर से अपनी मां के साथ दौड़ने लगा और दौड़ते हुए अपनी मां से बोला,,,,।
देख रही हो मम्मी आते जाते सभी लोग की नजर तुम पर ही है,।
नहीं तो मुझे तो नहीं लग रहा है,,,(सुगंधा जानबूझकर अनजान बनने का नाटक करते हुए बोली और तभी अंकित सामने से आ रहे हैं एक आदमी की तरफ इशारा करते हुए बोला)
वह देखो सड़क की दूसरी तरफ से जो आदमी आ रहा है तुमको ही देख रहा है,,,,।
(सुगंधा धीरे-धीरे दौड़ते हो उसे आदमी की तरह देखने लगी और वाकई में वह आदमी उसे ही देख रहा था और तभी एक आदमी फिर से उसके बगल से आगे निकल गया और उसे देखकर कर अंकित बोला)
देख रही हो यह भी तुम्हें देखता हुआ निकल गया,,,,, जो आगे से आ रहे हो तुम्हारी छाती की तरफ देख रहा है और जो पीछे से आ रहा है और तुम्हारे पिछवाड़े की तरफ देख रहा है,,,(अंकित पूरी तरह से सोच समझकर मौके की नजाकत को देखते हुए ही इस तरह की बात कहा था इस तरह के शब्दों का प्रयोग किया था वह जानता था कि इस समय उसकी मां भी मस्त हो रही है इसलिए वह कुछ बोलेगी नहीं,,,, और ऐसा ही हुआ अंकित की बातों से उसकी मां पूरी तरह से मस्त हुए जा रही थी और अंकित की बातों में पूरी तरह से सच्चाई थी इस बात का एहसास सुगंधा को भी था अच्छी तरह से जानती थी मर्दों की फितरत को आगे से आते समय वह चुचई की तरफ देखते हैं और पीछे से गांड की तरफ,,,,।
दौड़ते दौड़ते दोनों काफी दूर तक आ चुके थे और अब धीरे-धीरे उजाला भी हो रहा था,,,, इसलिए सुगंधा एक जगह पर रुक गई और गहरी गहरी सांस लेने लगी उसकी सांसों की गति उसकी चूचियों में हलचल मचा रही थी और उसकी यह हलचल अंकित की नजरों से छुपी नहीं थी,,,। गहरी सांस लेते हुए सुगंधा अपने बेटे से बोली,,,।
काफी दूर आ गए हैं पहले दिन के लिए यह तो बहुत ज्यादा ही हो गया है बातों ही बातों में कहां से कहां पहुंच गए पता ही नहीं चला,,,।
सच कह रही हो मम्मी तुम्हारे साथ दौडने में मुझे भी बहुत मजा आया,,,।
मजा तो आया लेकिन साड़ी में दौड़ने में दिक्कत होती है खुलकर दौड़ नहीं सकते,,,।
तो तुम भी उसे औरत की तरह,,,(सामने सड़क से जा रही है एक औरत की तरफ इशारा करते भेजो ढीला पाजामा और कुर्ता पहने हुए थी) कपड़े पहन कर दौड़ा करो आराम रहेगा और अच्छा भी लगेगा,,,।
तू सच कह रहा है लेकिन इस तरह से कपड़े पहन कर घर से निकलने में बड़ा अजीब लगेगा आस पड़ोस के लोग देखेंगे तो क्या बोलेंगे,,,।
अरे इसमें क्या बोलेंगे बहुत से लोग पहनते हैं अच्छी नहीं जॉगिंग करते समय कितनी औरतें पहनी हुई थी क्योंकि इसमें आराम रहता है,,,।
बात तो तु सही कह रहा है,,, चल देखेंगे अब घर चलते हैं,,,,।
(इतना कहकर दोनों बातें करते हुए कब घर पहुंच गए पता ही नहीं चला)