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Romance Ek Duje ke Vaaste..

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kas1709

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Update 54



एकांश नींद में हल्के से हिला ही था कि उसे अचानक लगा जैसे कोई बहुत ही नरम सा हाथ उसके बालों को सहला रहा है.. उस स्पर्श को महसूस करते ही उसके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान आ गई… उसे पता था, ये किसका हाथ था...

अक्षिता का...

धीरे से उसने अपनी आँखें खोलीं… लेकिन कमरे में कोई नहीं था, सच्चाई से सामना होते ही एकांश का चेहरा उतर गया था, ये पहली बार नहीं था जब उसे ऐसा महसूस हुआ था जैसे अक्षिता उसके पास हो… बिल्कुल पास...

वो तकिए में खुद को और अंदर तक समेटता चला गया, जैसे उसमें छुप जाना चाहता हो.. उसने चादर को अपने पास खींचा… और जैसे ही उसने उसे सूंघा, उसकी आँखें नम हो गईं, अब भी उसकी चादर में वही खुशबू थी… वही महक… जो उसे एकदम अक्षिता के पास ले जाती थी... एक पल को उसे सच में लगा जैसे वो यहीं, उसी बिस्तर पर, उसके साथ है

वो उठकर बैठ गया और उसकी नजर सामने बनी दीवार पर गई, जिस पर अक्षिता का बनाया हुआ फोटो कोलाज था

अब ये उसकी रोज़ की आदत बन गई थी, वो सुबह उठते ही सबसे पहले उसकी मुस्कुराती हुई तस्वीर को देखता, वहा मौजूद हर तस्वीर जैसे कोई किस्सा सुना रही थी.. और फिर उसकी नज़र उस एक फोटो पर अटक गई जो अस्पताल में ऐड्मिट होने से ठीक पहले ली गई थी

वो उसके कंधे पर झुकी हुई थी… और एकांश उसका माथा चूम रहा था.. ये फोटो अक्षिता की मम्मी ने चुपचाप खींच ली थी और तब शायद किसी ने सोचा भी नहीं था, कि ये उनकी आख़िरी तस्वीर बन जाएगी…

उसकी आँख से एक आंसू बह निकला… और तभी उसे फिर से वही एहसास हुआ जैसे किसी ने प्यार से उसके कंधे पर हाथ रखा हो

उसने पलटकर देखा… और वो वहीं थी... उसकी आंखों में झाँकती हुई

वो कुछ नहीं बोला… बस उसने आंखों से बहते उन आंसुओं को पोंछ दिया, और फिर उसके माथे पर एक हल्का सा किस रख दिया, जैसे वो हमेशा करता था

उसने अक्षिता की अपने पास की मौजूदगी को पूरी तरह महसूस किया… और आंखें बंद कर ली.. लेकिन जब उसने दोबारा आंखें खोलीं तब वो वहाँ नहीं थी... पर एकांश जानता था… वो यहीं कहीं है.. उसे अब भी हर पल उसकी मौजूदगी का एहसास होता था और यही बात उसे सबसे ज़्यादा सुकून देती थी...

क्योंकि अक्षिता ने उससे वादा किया था कि वो कभी उसे अकेला नहीं छोड़ेगी.. और वो अब भी अपने वादे पर कायम थी...

जब एकांश ने ये बात अक्षिता के मम्मी-पापा को बताई वो बस मुस्कुराये लेकिन कोई कुछ बोला नहीं पर एकांश उनकी आँखों मे देख उनके मन की बात को समझ रहा था, उन्हे लग रहा था की वो ये सब बस अपनी कल्पनाओ मे महसूस कर रहा है

लेकिन एकांश को इससे फर्क नहीं पड़ता था.. उसे कोई चिंता नाही थी की लोग क्या सोचते है, उसे पागल कहते है या उसकी बात को वहम बताते है, उसके लिए तो बस एक ही बात मायने रखती थी, अक्षिता उसके साथ थी और यही बात उसे अब भी होश में रखे हुए थी..

उसे पूरा यकीन था कि वो वापस आएगी.. क्योंकि वो जानती है… एकांश उसके बिना नहीं रह सकता.. और कम से कम उसी की ख़ातिर… उसके प्यार की खातिर… वो ज़रूर लौटेगी..

एकांश जल्दी से तैयार हुआ और बाहर आ गया,

डाइनिंग टेबल पर अक्षिता के मम्मी-पापा बैठे हुए थे एकदम चुपचाप, उदास… और शायद भूखे भी, पर खाने का मन ही कहाँ था किसी का?

"Good morning!" एकांश की आवाज़ जैसे कमरे की उदासी को थोड़ी देर के लिए रोक गई, वो मुस्कराते हुए कुर्सी खींचकर बैठ गया और शांति से नाश्ता करने लगा, आज उसके बर्ताव मे कुछ तो अलग था

अक्षिता के मम्मी-पापा उसे यू देख हैरान रह गए...

वो बस उसे देखे जा रहे थे, सोच रहे थे की कल तक जो लड़का टूटा हुआ था, बिखरा हुआ था… आज इतनी शांति से नाश्ता कर रहा है?

ऐसा क्या हुआ है? कौन सी बात है जिसने उसके अंदर का दर्द कुछ हल्का कर दिया?

वो इसी सोच में थे कि उन्होंने उसकी आवाज़ सुनी

"मैं निकल रहा हूँ," एकांश ने कहा और उठने लगा

"एकांश बेटा…" अक्षिता की मम्मी ने उसे आवाज़ दी

"तुम्हें क्या हुआ है?" उन्होंने धीरे से पूछा

"मुझे? कुछ भी तो नहीं, सब ठीक है" एकांश ने हल्का सा मुसकुराते हुए कहा

"पिछले पूरे महीने तुम इतने डिप्रेस थे कि हमें डर लगने लगा था कि हम तुम्हें भी खो देंगे… लेकिन पिछले एक हफ्ते से तुममें कुछ बदला-बदला सा है... खुश लग रहे हो, क्या हुआ है बेटा?" अक्षिता के पापा ने पूछा

एकांश ने बस हल्की सी मुस्कान दी लेकिन कुछ नहीं बोला

"एकांश… प्लीज़ बेटा, हमें तुम्हारी फिक्र है," अक्षिता की मम्मी ने कहा

"मम्मी आप चिंता न कीजिए… मैं खुश दिख रहा हूँ क्योंकि मैं वाकई खुश हूँ" एकांश ने मुस्कुराते हुए कहा और एक पल रुका और फिर धीरे से बोला

"और इसका कारण ये है… कि मैं उसकी presence को महसूस करता हूँ, वो मेरे साथ है… और यही मेरी खुशी की वजह है" ये कहकर वो कमरे से बाहर चला गया और पीछे छोड़ गया वो चिंतित निगाहे जो उसकी मुस्कराहट तो देख पा रही थीं… पर उस मुस्कराहट के पीछे का भरोसा अभी भी पूरी तरह समझ नहीं पा रही थीं..

--

एकांश ने धीरे से दरवाज़ा खोला… और चुपचाप कमरे में झाँका.. अंदर वही चेहरा था… जो उसके लिए सुकून का दूसरा नाम बन चुका था... वो मुस्कुराया और धीरे-धीरे उस बिस्तर की तरफ़ बढ़ा जहाँ वो लड़की शांत, गहरी नींद में लेटी हुई थी… जैसे किसी दूसरी दुनिया में हो..

उसने अपने हाथ से उसके गाल को बड़े प्यार से छुआ… और फिर उसके माथे पर हल्का सा किस किया... उसके बालों की तरफ़ देखा, खासकर उस जगह, जहाँ सर्जरी हुई थी... पट्टी अभी भी बंधी थी… और उसे देखकर उसके चेहरे पर एक तकलीफ़-सी आई… सोचकर कि उसे कितना दर्द झेलना पड़ा होगा

लेकिन उसी वक़्त उसकी नज़र उस छोटे से हिस्से पर पड़ी जहाँ बाल दोबारा उगने लगे थे…

एकांश हल्के से मुस्कुराया

ये छोटा सा बदलाव उसके लिए एक बड़ी राहत जैसा था, जैसे कोई चुपचाप कह रहा हो कि “वो ठीक हो रही है…”

वो उसके पास बैठ गया, और उसने उसका हाथ अपने हाथों में लिया, उसके हाथ को अपने होंठों से छूते हुए एकांश ने धीमे से फुसफुसाते हुए कहा

"Please जाग जाओ अक्षु… मैं यहीं हूँ… तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूँ"

और फिर एक पल ठहरकर उसने धीरे से कहा..

"अक्षु, तुम्हारे मम्मी-पापा परेशान हैं, सब लोग बस तुम्हारे उठने का इंतज़ार कर रहे हैं… प्लीज़, अपनी आंखें खोलो ना…"

बोलते हुए एकांश की आंखें नम हो गईं थी… कुछ आंसू चुपचाप उसके हाथ पर गिर पड़े

उसने साइड टेबल की तरफ़ देखा, वहां उनकी एक प्यारी सी फोटो रखी थी, वही तस्वीर जिसे वो सबसे ज़्यादा पसंद करता था…

वो मुस्कुराया जैसे उस फोटो में भी उसने अपनी अक्षिता की शरारत देख ली हो

"अक्षु, मेरी तरफ देखो ना…"

एकांश की आवाज बहुत धीमी थी मानो बस वो ये सिर्फ अक्षिता से कहना चाहता हो

"मैं रो नहीं रहा हूँ… और न ही उदास हूँ... मैं खुश हूँ… या कम से कम खुश रहने की कोशिश कर रहा हूँ, जैसे तुमसे वादा किया था, मैं अपना वादा निभा रहा हूँ… अब तुम्हारी बारी है अक्षु, तुमने मुझसे वादा किया था कि तुम मेरे पास वापस आओगी… है ना?"

ये कहते हुए उसने अपना माथा उसके हाथ पर रख दिया… उसकी हथेली की गर्माहट को अपने चेहरे पर महसूस करने लगा जैसे वही अब उसकी सबसे बड़ी उम्मीद हो...

उसी वक्त दरवाज़े पर खड़े थे डॉ. अवस्थी, वो चुपचाप उस इंसान को देख रहे थे… जो पूरे दिल से सिर्फ़ अपने प्यार के जागने की दुआ कर रहा था

उन्होंने अपने करियर में ऐसे कई रिश्ते देखे थे, लोगों को अपने अपनों के लिए रोते देखा था… पर ऐसा निस्वार्थ, ऐसा बेपनाह प्यार शायद ही उन्होंने कभी देखा हो

उन्होंने अब तक किसी लड़के को अपनी प्रेमिका से इतना गहराई से प्यार करते नहीं देखा था,

आजकल तो प्यार एक ट्रेंड बन गया है बस एक कैप्शन भर का, एक इंस्टाग्राम स्टोरी भर का, युवाओं के लिए प्यार अक्सर बस आकर्षण होता है… डेटिंग ऐप्स पर शुरू होता है, और अगर 'वर्क नही किया' तो दूसरा ढूंढ लिया जाता है.. रिश्ते की असली गहराई से ज़्यादा उन्हें उस रिश्ते का दिखावा ज़रूरी लगता है

डॉ. अवस्थी एकांश को देख रहे थे और सोच रहे थे कि जब तक वो एकांश ने नहीं मिले थे वो समझ ही नहीं पाए थे कि सच्चा प्यार होता क्या है....

एकांश रघुवंशी, एक अमीर, बिज़ी, घमंडी कहे जाने वाला बिज़नेसमैन… जिसने उन्हें वो सिखाया जो कोई किताब या मेडिकल केस नहीं सिखा सका... कि प्यार वाकई क्या होता है... हाँ, वो खुद भी अपनी पत्नी से प्यार करते थे… लेकिन वो कुछ और था जो उन्होंने एकांश और अक्षिता के बीच देखा था, वो कुछ अलग ही था… कुछ और ही लेवल का

पिछले दो महीने में जो उन्होंने अपनी आंखों के सामने देखा वो सिर्फ़ एक रिश्ते की कहानी नहीं थी… वो प्यार की परिभाषा थी... एक अमर प्यार की कहानी

चाहे वो दोनों ज़िंदा रहें या ना रहें… लेकिन उनका रिश्ता हमेशा जिंदा रहेगा.. क्योंकि प्रेम वक्त से परे होता है... जो ना हालातों में बंधता है, ना सालों में गिनता है... ज़िंदगी में हम बहुत लोगों से प्यार करते हैं… पर responsibilities, बदलते हालात या फिर वक्त का असर… धीरे-धीरे वो रिश्ते फीके पड़ जाते हैं...

लेकिन एकांश और अक्षिता का प्यार…

वो कुछ और ही था कुछ ऐसा जिसे वक़्त भी नहीं हरा सकता... ये सिर्फ एक रिश्ता नहीं, एक एहसास था और वो हमेशा रहेगा

अक्षिता का केस भी बाकियों से बिल्कुल अलग था... आमतौर पर जिस ट्यूमर को वक्त रहते फटना चाहिए था, उसने बहुत समय ले लिया था और जब फटा, तब तक बहुत देर हो चुकी थी... डॉक्टर्स ने उसे बचाने की पूरी कोशिश की… डॉ. हेनरी फिशर तक ने अपनी हर expertise झोंक दी थी, और जो सबसे critical चीज़ वो कर सकते थे वो था उसके अंदरूनी रक्तस्राव को कंट्रोल करना, ब्लीडिंग तो संभाल लि गई, लेकिन ब्रेन पर जो असर हुआ था, वो रोका नहीं जा सका...

अक्षिता के दिमाग़ का एक हिस्सा डैमेज हो गया… और इसी वजह से वो कोमा में चली गई

अब डॉक्टर्स के पास कोई जवाब नहीं था… ना इस सवाल का कि वो कब जागेगी, ना ही इस बात का कि वो कभी जागेगी भी या नहीं..

उसी वक्त, डॉ. अवस्थी की नज़र एकांश पर पड़ी जो अब भी उसी सादगी से उसके सामने बैठा बात कर रहा था, जैसे वो सब सुन रही हो

डॉ. अवस्थी हल्के से मुस्कराए.. उन्हें एक बात और पता थी, जो उन्होंने अब तक किसी से शेयर नहीं की थी

उन्हें याद था, पिछले महीने की एक रात जब एकांश उनके हाथों को पकड़कर ज़ोर-ज़ोर से रो रहा था उस वक़्त उन्होंने मॉनिटर पर अक्षिता की धड़कनों में हलचल देखी थी…

हर बार जब एकांश वहां होता था तो कुछ न कुछ बदलता था... उसके दिल की बीट्स में हरकत होती थी… जैसे उसके अंदर कुछ जाग रहा हो...

डॉक्टर को धीरे-धीरे ये यकीन होने लगा था कि वो सब सुन सकती है, महसूस कर सकती है… बस अभी रिस्पॉन्ड नहीं कर पा रही

उन्होंने अब तक ये बात एकांश से नहीं कही थी… क्योंकि एक तो वो खुद डॉ. फिशर से इसे कन्फर्म करना चाहते थे,

और दूसरा ये कि वो नहीं चाहते थे कि एकांश की उम्मीदें कहीं फिर से टूट जाएं क्योंकि ये अब एक ज़िंदगी का मामला नहीं रह गया था… ये दो ज़िंदगियों की लड़ाई थी, ये साफ था कि अगर अक्षिता को कुछ हो गया, तो एकांश भी ज़िंदा नहीं बचेगा, कम से कम अंदर से तो बिल्कुल नहीं...

डॉक्टर चुपचाप आगे बढ़े और एकांश के पास जाकर उसके कंधे पर हाथ रखा... एकांश ने ऊपर देखा और हल्की सी मुस्कान दी

"डॉक्टर, देखा आपने? उसके बाल वापस उग रहे हैं!" वो एक बच्चे की तरह खुश होकर बोला

डॉक्टर भी उसकी मुस्कान देखकर मुस्कराए… और बोले,

"मैं तुम्हें एक और चीज़ बताना चाहता हूँ… जिससे तुम्हारी खुशी और बढ़ेगी"

एकांश सीधा खड़ा हो गया उसके चेहरे पर एक चमक आ गई थी

"क्या?" उसने उम्मीद भरी नज़रों से पूछा

डॉक्टर ने मॉनिटर की ओर इशारा किया, "इधर देखो"

"अब उसका हाथ पकड़ो" डॉक्टर ने कहा

एकांश ने उसका हाथ धीरे से थामा… और फिर प्यार से चूम लिया

मॉनिटर पर अचानक कुछ हरकत दिखी और एकांश कुछ पल के लिए एकदम स्तब्ध रह गया

उसने मॉनिटर की तरफ देखा… फिर अक्षिता की तरफ… फिर फिर से मॉनिटर की तरफ

डॉक्टर ने उसके पास आकर मुस्कराते हुए कहा,

"हाँ, वो तुम्हें feel कर सकती है, वो सुन सकती है कि तुम क्या कह रहे हो… और जब तुम उसे छूते हो, तो वो उसे महसूस भी करती है"

एकांश की आंखों से आंसू बहने लगे थे लेकिन उसके होंठों पर एक सच्ची सी मुस्कान थी

"ये एक बहुत पॉज़िटिव साइन है और मैंने इस बारे में डॉ. फिशर से भी बात की है, और उन्होंने कहा कि तुम्हें उससे बात करते रहना चाहिए… उसे महसूस कराते रहो कि तुम वहीं हो...

शायद इससे वो जवाब देने लगे… और धीरे-धीरे… जाग भी जाए"

एकांश ने अपनी आंखें पोंछी और सिर हिलाकर हाँ कहा, अब तो जैसे अब उसके अंदर कोई नई जान आ गई हो... अब उसे सबसे पहले ये बात अपने दोस्तों और पेरेंट्स को बतानी थी

उसने फ़ोन निकाला, जल्दी-जल्दी नंबर डायल किए… और सबको इस नन्हीं सी उम्मीद के बारे में बताया... सुनते ही सबकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा हालाँकि उनकी चिंता एकांश को लेकर अब भी थी… लेकिन पहली बार, वो चिंता एक उम्मीद में बदलती दिख रही थी....



क्रमश:
Nice update....
 
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dhparikh

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एकांश नींद में हल्के से हिला ही था कि उसे अचानक लगा जैसे कोई बहुत ही नरम सा हाथ उसके बालों को सहला रहा है.. उस स्पर्श को महसूस करते ही उसके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान आ गई… उसे पता था, ये किसका हाथ था...

अक्षिता का...

धीरे से उसने अपनी आँखें खोलीं… लेकिन कमरे में कोई नहीं था, सच्चाई से सामना होते ही एकांश का चेहरा उतर गया था, ये पहली बार नहीं था जब उसे ऐसा महसूस हुआ था जैसे अक्षिता उसके पास हो… बिल्कुल पास...

वो तकिए में खुद को और अंदर तक समेटता चला गया, जैसे उसमें छुप जाना चाहता हो.. उसने चादर को अपने पास खींचा… और जैसे ही उसने उसे सूंघा, उसकी आँखें नम हो गईं, अब भी उसकी चादर में वही खुशबू थी… वही महक… जो उसे एकदम अक्षिता के पास ले जाती थी... एक पल को उसे सच में लगा जैसे वो यहीं, उसी बिस्तर पर, उसके साथ है

वो उठकर बैठ गया और उसकी नजर सामने बनी दीवार पर गई, जिस पर अक्षिता का बनाया हुआ फोटो कोलाज था

अब ये उसकी रोज़ की आदत बन गई थी, वो सुबह उठते ही सबसे पहले उसकी मुस्कुराती हुई तस्वीर को देखता, वहा मौजूद हर तस्वीर जैसे कोई किस्सा सुना रही थी.. और फिर उसकी नज़र उस एक फोटो पर अटक गई जो अस्पताल में ऐड्मिट होने से ठीक पहले ली गई थी

वो उसके कंधे पर झुकी हुई थी… और एकांश उसका माथा चूम रहा था.. ये फोटो अक्षिता की मम्मी ने चुपचाप खींच ली थी और तब शायद किसी ने सोचा भी नहीं था, कि ये उनकी आख़िरी तस्वीर बन जाएगी…

उसकी आँख से एक आंसू बह निकला… और तभी उसे फिर से वही एहसास हुआ जैसे किसी ने प्यार से उसके कंधे पर हाथ रखा हो

उसने पलटकर देखा… और वो वहीं थी... उसकी आंखों में झाँकती हुई

वो कुछ नहीं बोला… बस उसने आंखों से बहते उन आंसुओं को पोंछ दिया, और फिर उसके माथे पर एक हल्का सा किस रख दिया, जैसे वो हमेशा करता था

उसने अक्षिता की अपने पास की मौजूदगी को पूरी तरह महसूस किया… और आंखें बंद कर ली.. लेकिन जब उसने दोबारा आंखें खोलीं तब वो वहाँ नहीं थी... पर एकांश जानता था… वो यहीं कहीं है.. उसे अब भी हर पल उसकी मौजूदगी का एहसास होता था और यही बात उसे सबसे ज़्यादा सुकून देती थी...

क्योंकि अक्षिता ने उससे वादा किया था कि वो कभी उसे अकेला नहीं छोड़ेगी.. और वो अब भी अपने वादे पर कायम थी...

जब एकांश ने ये बात अक्षिता के मम्मी-पापा को बताई वो बस मुस्कुराये लेकिन कोई कुछ बोला नहीं पर एकांश उनकी आँखों मे देख उनके मन की बात को समझ रहा था, उन्हे लग रहा था की वो ये सब बस अपनी कल्पनाओ मे महसूस कर रहा है

लेकिन एकांश को इससे फर्क नहीं पड़ता था.. उसे कोई चिंता नाही थी की लोग क्या सोचते है, उसे पागल कहते है या उसकी बात को वहम बताते है, उसके लिए तो बस एक ही बात मायने रखती थी, अक्षिता उसके साथ थी और यही बात उसे अब भी होश में रखे हुए थी..

उसे पूरा यकीन था कि वो वापस आएगी.. क्योंकि वो जानती है… एकांश उसके बिना नहीं रह सकता.. और कम से कम उसी की ख़ातिर… उसके प्यार की खातिर… वो ज़रूर लौटेगी..

एकांश जल्दी से तैयार हुआ और बाहर आ गया,

डाइनिंग टेबल पर अक्षिता के मम्मी-पापा बैठे हुए थे एकदम चुपचाप, उदास… और शायद भूखे भी, पर खाने का मन ही कहाँ था किसी का?

"Good morning!" एकांश की आवाज़ जैसे कमरे की उदासी को थोड़ी देर के लिए रोक गई, वो मुस्कराते हुए कुर्सी खींचकर बैठ गया और शांति से नाश्ता करने लगा, आज उसके बर्ताव मे कुछ तो अलग था

अक्षिता के मम्मी-पापा उसे यू देख हैरान रह गए...

वो बस उसे देखे जा रहे थे, सोच रहे थे की कल तक जो लड़का टूटा हुआ था, बिखरा हुआ था… आज इतनी शांति से नाश्ता कर रहा है?

ऐसा क्या हुआ है? कौन सी बात है जिसने उसके अंदर का दर्द कुछ हल्का कर दिया?

वो इसी सोच में थे कि उन्होंने उसकी आवाज़ सुनी

"मैं निकल रहा हूँ," एकांश ने कहा और उठने लगा

"एकांश बेटा…" अक्षिता की मम्मी ने उसे आवाज़ दी

"तुम्हें क्या हुआ है?" उन्होंने धीरे से पूछा

"मुझे? कुछ भी तो नहीं, सब ठीक है" एकांश ने हल्का सा मुसकुराते हुए कहा

"पिछले पूरे महीने तुम इतने डिप्रेस थे कि हमें डर लगने लगा था कि हम तुम्हें भी खो देंगे… लेकिन पिछले एक हफ्ते से तुममें कुछ बदला-बदला सा है... खुश लग रहे हो, क्या हुआ है बेटा?" अक्षिता के पापा ने पूछा

एकांश ने बस हल्की सी मुस्कान दी लेकिन कुछ नहीं बोला

"एकांश… प्लीज़ बेटा, हमें तुम्हारी फिक्र है," अक्षिता की मम्मी ने कहा

"मम्मी आप चिंता न कीजिए… मैं खुश दिख रहा हूँ क्योंकि मैं वाकई खुश हूँ" एकांश ने मुस्कुराते हुए कहा और एक पल रुका और फिर धीरे से बोला

"और इसका कारण ये है… कि मैं उसकी presence को महसूस करता हूँ, वो मेरे साथ है… और यही मेरी खुशी की वजह है" ये कहकर वो कमरे से बाहर चला गया और पीछे छोड़ गया वो चिंतित निगाहे जो उसकी मुस्कराहट तो देख पा रही थीं… पर उस मुस्कराहट के पीछे का भरोसा अभी भी पूरी तरह समझ नहीं पा रही थीं..

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एकांश ने धीरे से दरवाज़ा खोला… और चुपचाप कमरे में झाँका.. अंदर वही चेहरा था… जो उसके लिए सुकून का दूसरा नाम बन चुका था... वो मुस्कुराया और धीरे-धीरे उस बिस्तर की तरफ़ बढ़ा जहाँ वो लड़की शांत, गहरी नींद में लेटी हुई थी… जैसे किसी दूसरी दुनिया में हो..

उसने अपने हाथ से उसके गाल को बड़े प्यार से छुआ… और फिर उसके माथे पर हल्का सा किस किया... उसके बालों की तरफ़ देखा, खासकर उस जगह, जहाँ सर्जरी हुई थी... पट्टी अभी भी बंधी थी… और उसे देखकर उसके चेहरे पर एक तकलीफ़-सी आई… सोचकर कि उसे कितना दर्द झेलना पड़ा होगा

लेकिन उसी वक़्त उसकी नज़र उस छोटे से हिस्से पर पड़ी जहाँ बाल दोबारा उगने लगे थे…

एकांश हल्के से मुस्कुराया

ये छोटा सा बदलाव उसके लिए एक बड़ी राहत जैसा था, जैसे कोई चुपचाप कह रहा हो कि “वो ठीक हो रही है…”

वो उसके पास बैठ गया, और उसने उसका हाथ अपने हाथों में लिया, उसके हाथ को अपने होंठों से छूते हुए एकांश ने धीमे से फुसफुसाते हुए कहा

"Please जाग जाओ अक्षु… मैं यहीं हूँ… तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूँ"

और फिर एक पल ठहरकर उसने धीरे से कहा..

"अक्षु, तुम्हारे मम्मी-पापा परेशान हैं, सब लोग बस तुम्हारे उठने का इंतज़ार कर रहे हैं… प्लीज़, अपनी आंखें खोलो ना…"

बोलते हुए एकांश की आंखें नम हो गईं थी… कुछ आंसू चुपचाप उसके हाथ पर गिर पड़े

उसने साइड टेबल की तरफ़ देखा, वहां उनकी एक प्यारी सी फोटो रखी थी, वही तस्वीर जिसे वो सबसे ज़्यादा पसंद करता था…

वो मुस्कुराया जैसे उस फोटो में भी उसने अपनी अक्षिता की शरारत देख ली हो

"अक्षु, मेरी तरफ देखो ना…"

एकांश की आवाज बहुत धीमी थी मानो बस वो ये सिर्फ अक्षिता से कहना चाहता हो

"मैं रो नहीं रहा हूँ… और न ही उदास हूँ... मैं खुश हूँ… या कम से कम खुश रहने की कोशिश कर रहा हूँ, जैसे तुमसे वादा किया था, मैं अपना वादा निभा रहा हूँ… अब तुम्हारी बारी है अक्षु, तुमने मुझसे वादा किया था कि तुम मेरे पास वापस आओगी… है ना?"

ये कहते हुए उसने अपना माथा उसके हाथ पर रख दिया… उसकी हथेली की गर्माहट को अपने चेहरे पर महसूस करने लगा जैसे वही अब उसकी सबसे बड़ी उम्मीद हो...

उसी वक्त दरवाज़े पर खड़े थे डॉ. अवस्थी, वो चुपचाप उस इंसान को देख रहे थे… जो पूरे दिल से सिर्फ़ अपने प्यार के जागने की दुआ कर रहा था

उन्होंने अपने करियर में ऐसे कई रिश्ते देखे थे, लोगों को अपने अपनों के लिए रोते देखा था… पर ऐसा निस्वार्थ, ऐसा बेपनाह प्यार शायद ही उन्होंने कभी देखा हो

उन्होंने अब तक किसी लड़के को अपनी प्रेमिका से इतना गहराई से प्यार करते नहीं देखा था,

आजकल तो प्यार एक ट्रेंड बन गया है बस एक कैप्शन भर का, एक इंस्टाग्राम स्टोरी भर का, युवाओं के लिए प्यार अक्सर बस आकर्षण होता है… डेटिंग ऐप्स पर शुरू होता है, और अगर 'वर्क नही किया' तो दूसरा ढूंढ लिया जाता है.. रिश्ते की असली गहराई से ज़्यादा उन्हें उस रिश्ते का दिखावा ज़रूरी लगता है

डॉ. अवस्थी एकांश को देख रहे थे और सोच रहे थे कि जब तक वो एकांश ने नहीं मिले थे वो समझ ही नहीं पाए थे कि सच्चा प्यार होता क्या है....

एकांश रघुवंशी, एक अमीर, बिज़ी, घमंडी कहे जाने वाला बिज़नेसमैन… जिसने उन्हें वो सिखाया जो कोई किताब या मेडिकल केस नहीं सिखा सका... कि प्यार वाकई क्या होता है... हाँ, वो खुद भी अपनी पत्नी से प्यार करते थे… लेकिन वो कुछ और था जो उन्होंने एकांश और अक्षिता के बीच देखा था, वो कुछ अलग ही था… कुछ और ही लेवल का

पिछले दो महीने में जो उन्होंने अपनी आंखों के सामने देखा वो सिर्फ़ एक रिश्ते की कहानी नहीं थी… वो प्यार की परिभाषा थी... एक अमर प्यार की कहानी

चाहे वो दोनों ज़िंदा रहें या ना रहें… लेकिन उनका रिश्ता हमेशा जिंदा रहेगा.. क्योंकि प्रेम वक्त से परे होता है... जो ना हालातों में बंधता है, ना सालों में गिनता है... ज़िंदगी में हम बहुत लोगों से प्यार करते हैं… पर responsibilities, बदलते हालात या फिर वक्त का असर… धीरे-धीरे वो रिश्ते फीके पड़ जाते हैं...

लेकिन एकांश और अक्षिता का प्यार…

वो कुछ और ही था कुछ ऐसा जिसे वक़्त भी नहीं हरा सकता... ये सिर्फ एक रिश्ता नहीं, एक एहसास था और वो हमेशा रहेगा

अक्षिता का केस भी बाकियों से बिल्कुल अलग था... आमतौर पर जिस ट्यूमर को वक्त रहते फटना चाहिए था, उसने बहुत समय ले लिया था और जब फटा, तब तक बहुत देर हो चुकी थी... डॉक्टर्स ने उसे बचाने की पूरी कोशिश की… डॉ. हेनरी फिशर तक ने अपनी हर expertise झोंक दी थी, और जो सबसे critical चीज़ वो कर सकते थे वो था उसके अंदरूनी रक्तस्राव को कंट्रोल करना, ब्लीडिंग तो संभाल लि गई, लेकिन ब्रेन पर जो असर हुआ था, वो रोका नहीं जा सका...

अक्षिता के दिमाग़ का एक हिस्सा डैमेज हो गया… और इसी वजह से वो कोमा में चली गई

अब डॉक्टर्स के पास कोई जवाब नहीं था… ना इस सवाल का कि वो कब जागेगी, ना ही इस बात का कि वो कभी जागेगी भी या नहीं..

उसी वक्त, डॉ. अवस्थी की नज़र एकांश पर पड़ी जो अब भी उसी सादगी से उसके सामने बैठा बात कर रहा था, जैसे वो सब सुन रही हो

डॉ. अवस्थी हल्के से मुस्कराए.. उन्हें एक बात और पता थी, जो उन्होंने अब तक किसी से शेयर नहीं की थी

उन्हें याद था, पिछले महीने की एक रात जब एकांश उनके हाथों को पकड़कर ज़ोर-ज़ोर से रो रहा था उस वक़्त उन्होंने मॉनिटर पर अक्षिता की धड़कनों में हलचल देखी थी…

हर बार जब एकांश वहां होता था तो कुछ न कुछ बदलता था... उसके दिल की बीट्स में हरकत होती थी… जैसे उसके अंदर कुछ जाग रहा हो...

डॉक्टर को धीरे-धीरे ये यकीन होने लगा था कि वो सब सुन सकती है, महसूस कर सकती है… बस अभी रिस्पॉन्ड नहीं कर पा रही

उन्होंने अब तक ये बात एकांश से नहीं कही थी… क्योंकि एक तो वो खुद डॉ. फिशर से इसे कन्फर्म करना चाहते थे,

और दूसरा ये कि वो नहीं चाहते थे कि एकांश की उम्मीदें कहीं फिर से टूट जाएं क्योंकि ये अब एक ज़िंदगी का मामला नहीं रह गया था… ये दो ज़िंदगियों की लड़ाई थी, ये साफ था कि अगर अक्षिता को कुछ हो गया, तो एकांश भी ज़िंदा नहीं बचेगा, कम से कम अंदर से तो बिल्कुल नहीं...

डॉक्टर चुपचाप आगे बढ़े और एकांश के पास जाकर उसके कंधे पर हाथ रखा... एकांश ने ऊपर देखा और हल्की सी मुस्कान दी

"डॉक्टर, देखा आपने? उसके बाल वापस उग रहे हैं!" वो एक बच्चे की तरह खुश होकर बोला

डॉक्टर भी उसकी मुस्कान देखकर मुस्कराए… और बोले,

"मैं तुम्हें एक और चीज़ बताना चाहता हूँ… जिससे तुम्हारी खुशी और बढ़ेगी"

एकांश सीधा खड़ा हो गया उसके चेहरे पर एक चमक आ गई थी

"क्या?" उसने उम्मीद भरी नज़रों से पूछा

डॉक्टर ने मॉनिटर की ओर इशारा किया, "इधर देखो"

"अब उसका हाथ पकड़ो" डॉक्टर ने कहा

एकांश ने उसका हाथ धीरे से थामा… और फिर प्यार से चूम लिया

मॉनिटर पर अचानक कुछ हरकत दिखी और एकांश कुछ पल के लिए एकदम स्तब्ध रह गया

उसने मॉनिटर की तरफ देखा… फिर अक्षिता की तरफ… फिर फिर से मॉनिटर की तरफ

डॉक्टर ने उसके पास आकर मुस्कराते हुए कहा,

"हाँ, वो तुम्हें feel कर सकती है, वो सुन सकती है कि तुम क्या कह रहे हो… और जब तुम उसे छूते हो, तो वो उसे महसूस भी करती है"

एकांश की आंखों से आंसू बहने लगे थे लेकिन उसके होंठों पर एक सच्ची सी मुस्कान थी

"ये एक बहुत पॉज़िटिव साइन है और मैंने इस बारे में डॉ. फिशर से भी बात की है, और उन्होंने कहा कि तुम्हें उससे बात करते रहना चाहिए… उसे महसूस कराते रहो कि तुम वहीं हो...

शायद इससे वो जवाब देने लगे… और धीरे-धीरे… जाग भी जाए"

एकांश ने अपनी आंखें पोंछी और सिर हिलाकर हाँ कहा, अब तो जैसे अब उसके अंदर कोई नई जान आ गई हो... अब उसे सबसे पहले ये बात अपने दोस्तों और पेरेंट्स को बतानी थी

उसने फ़ोन निकाला, जल्दी-जल्दी नंबर डायल किए… और सबको इस नन्हीं सी उम्मीद के बारे में बताया... सुनते ही सबकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा हालाँकि उनकी चिंता एकांश को लेकर अब भी थी… लेकिन पहली बार, वो चिंता एक उम्मीद में बदलती दिख रही थी....



क्रमश:
Nice update....
 
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so so so sorry asifa ji, main busy ho gaya tha iske liye koi reason nahi dunga, kaam aa jate hai job karta hu main sath hi forum par bhi bahut kuch ho raha tha, cricket contest humne organize karaya fir story contest, hell lot of things were happening par aapka gussa jo hai wo jayaz hai uske liye mere paas koi excuse nahi hai, bas maafi mang sakta hu, abhi bhi 53rd update post karne ke baad family me medical emergency thi to again can't help it. main forum par hi nahi aa raha tha. but ab finally sab sorted hai. ab koi wada nahi karunga ke aaj ayega kal ayega bas jitna jald se jald hoga update post kar dunga. mujhe bhi ab ise jaldi complete karta hai, kafi lambi chal gayi hai kahani. usually main itna waqt nahi leta hu but kayi baar chize hamare hath me nahi hoti hai.
hope aap samjhengi, baki ek update abhi post kar raha hu kripaya padh kar bataiyega.
Hmm, theek hai! Sun kar thoda tasalli hui ki aapne meri baat ko samjha. 😌
Sach kahoon toh, jab March se seedha June mein update aaya, aur phir se "daily" waada, toh bohot gussa aaya tha. 😡 Ek kahani se jab dil jud jaata hai na, toh uske updates ka intezaar karna mushkil ho jaata hai.
Lekin, jab aapne bataya ki family mein medical emergency thi, toh dil thoda naram ho gaya. ❤️‍🩹 Chalo, uske liye maaf kiya. Aisi situations mein koi bhi kuch nahi kar sakta. Aur haan, main samajhti hoon ki job ke saath forum par itna kuch manage karna mushkil hota hai.
Mujhe yeh sunkar bhi achha laga ki aap khud bhi chahte hain ki kahani ab jaldi complete ho. Aur yeh bahut accha decision hai ki ab aap koi pakka waada nahi karenge. Jab bhi update aayega, hum padh lenge. Kam se kam yeh umeed toh nahi hogi ki kal aa hi jayega aur phir intezaar hi karna padega.
Chalo theek hai, aapne jo naya update post kiya hai, main use zaroor padhungi. Aur haan, ab is kahani ko jaldi se jaldi khatam kar do, taki hum sab iske anjaam ko jaan sakein. Main toh bechain hoon Aksita aur Ekansh ki kahani ka ant janne ke liye.
All the best! 👋
 
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Update 54



एकांश नींद में हल्के से हिला ही था कि उसे अचानक लगा जैसे कोई बहुत ही नरम सा हाथ उसके बालों को सहला रहा है.. उस स्पर्श को महसूस करते ही उसके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान आ गई… उसे पता था, ये किसका हाथ था...

अक्षिता का...

धीरे से उसने अपनी आँखें खोलीं… लेकिन कमरे में कोई नहीं था, सच्चाई से सामना होते ही एकांश का चेहरा उतर गया था, ये पहली बार नहीं था जब उसे ऐसा महसूस हुआ था जैसे अक्षिता उसके पास हो… बिल्कुल पास...

वो तकिए में खुद को और अंदर तक समेटता चला गया, जैसे उसमें छुप जाना चाहता हो.. उसने चादर को अपने पास खींचा… और जैसे ही उसने उसे सूंघा, उसकी आँखें नम हो गईं, अब भी उसकी चादर में वही खुशबू थी… वही महक… जो उसे एकदम अक्षिता के पास ले जाती थी... एक पल को उसे सच में लगा जैसे वो यहीं, उसी बिस्तर पर, उसके साथ है

वो उठकर बैठ गया और उसकी नजर सामने बनी दीवार पर गई, जिस पर अक्षिता का बनाया हुआ फोटो कोलाज था

अब ये उसकी रोज़ की आदत बन गई थी, वो सुबह उठते ही सबसे पहले उसकी मुस्कुराती हुई तस्वीर को देखता, वहा मौजूद हर तस्वीर जैसे कोई किस्सा सुना रही थी.. और फिर उसकी नज़र उस एक फोटो पर अटक गई जो अस्पताल में ऐड्मिट होने से ठीक पहले ली गई थी

वो उसके कंधे पर झुकी हुई थी… और एकांश उसका माथा चूम रहा था.. ये फोटो अक्षिता की मम्मी ने चुपचाप खींच ली थी और तब शायद किसी ने सोचा भी नहीं था, कि ये उनकी आख़िरी तस्वीर बन जाएगी…

उसकी आँख से एक आंसू बह निकला… और तभी उसे फिर से वही एहसास हुआ जैसे किसी ने प्यार से उसके कंधे पर हाथ रखा हो

उसने पलटकर देखा… और वो वहीं थी... उसकी आंखों में झाँकती हुई

वो कुछ नहीं बोला… बस उसने आंखों से बहते उन आंसुओं को पोंछ दिया, और फिर उसके माथे पर एक हल्का सा किस रख दिया, जैसे वो हमेशा करता था

उसने अक्षिता की अपने पास की मौजूदगी को पूरी तरह महसूस किया… और आंखें बंद कर ली.. लेकिन जब उसने दोबारा आंखें खोलीं तब वो वहाँ नहीं थी... पर एकांश जानता था… वो यहीं कहीं है.. उसे अब भी हर पल उसकी मौजूदगी का एहसास होता था और यही बात उसे सबसे ज़्यादा सुकून देती थी...

क्योंकि अक्षिता ने उससे वादा किया था कि वो कभी उसे अकेला नहीं छोड़ेगी.. और वो अब भी अपने वादे पर कायम थी...

जब एकांश ने ये बात अक्षिता के मम्मी-पापा को बताई वो बस मुस्कुराये लेकिन कोई कुछ बोला नहीं पर एकांश उनकी आँखों मे देख उनके मन की बात को समझ रहा था, उन्हे लग रहा था की वो ये सब बस अपनी कल्पनाओ मे महसूस कर रहा है

लेकिन एकांश को इससे फर्क नहीं पड़ता था.. उसे कोई चिंता नाही थी की लोग क्या सोचते है, उसे पागल कहते है या उसकी बात को वहम बताते है, उसके लिए तो बस एक ही बात मायने रखती थी, अक्षिता उसके साथ थी और यही बात उसे अब भी होश में रखे हुए थी..

उसे पूरा यकीन था कि वो वापस आएगी.. क्योंकि वो जानती है… एकांश उसके बिना नहीं रह सकता.. और कम से कम उसी की ख़ातिर… उसके प्यार की खातिर… वो ज़रूर लौटेगी..

एकांश जल्दी से तैयार हुआ और बाहर आ गया,

डाइनिंग टेबल पर अक्षिता के मम्मी-पापा बैठे हुए थे एकदम चुपचाप, उदास… और शायद भूखे भी, पर खाने का मन ही कहाँ था किसी का?

"Good morning!" एकांश की आवाज़ जैसे कमरे की उदासी को थोड़ी देर के लिए रोक गई, वो मुस्कराते हुए कुर्सी खींचकर बैठ गया और शांति से नाश्ता करने लगा, आज उसके बर्ताव मे कुछ तो अलग था

अक्षिता के मम्मी-पापा उसे यू देख हैरान रह गए...

वो बस उसे देखे जा रहे थे, सोच रहे थे की कल तक जो लड़का टूटा हुआ था, बिखरा हुआ था… आज इतनी शांति से नाश्ता कर रहा है?

ऐसा क्या हुआ है? कौन सी बात है जिसने उसके अंदर का दर्द कुछ हल्का कर दिया?

वो इसी सोच में थे कि उन्होंने उसकी आवाज़ सुनी

"मैं निकल रहा हूँ," एकांश ने कहा और उठने लगा

"एकांश बेटा…" अक्षिता की मम्मी ने उसे आवाज़ दी

"तुम्हें क्या हुआ है?" उन्होंने धीरे से पूछा

"मुझे? कुछ भी तो नहीं, सब ठीक है" एकांश ने हल्का सा मुसकुराते हुए कहा

"पिछले पूरे महीने तुम इतने डिप्रेस थे कि हमें डर लगने लगा था कि हम तुम्हें भी खो देंगे… लेकिन पिछले एक हफ्ते से तुममें कुछ बदला-बदला सा है... खुश लग रहे हो, क्या हुआ है बेटा?" अक्षिता के पापा ने पूछा

एकांश ने बस हल्की सी मुस्कान दी लेकिन कुछ नहीं बोला

"एकांश… प्लीज़ बेटा, हमें तुम्हारी फिक्र है," अक्षिता की मम्मी ने कहा

"मम्मी आप चिंता न कीजिए… मैं खुश दिख रहा हूँ क्योंकि मैं वाकई खुश हूँ" एकांश ने मुस्कुराते हुए कहा और एक पल रुका और फिर धीरे से बोला

"और इसका कारण ये है… कि मैं उसकी presence को महसूस करता हूँ, वो मेरे साथ है… और यही मेरी खुशी की वजह है" ये कहकर वो कमरे से बाहर चला गया और पीछे छोड़ गया वो चिंतित निगाहे जो उसकी मुस्कराहट तो देख पा रही थीं… पर उस मुस्कराहट के पीछे का भरोसा अभी भी पूरी तरह समझ नहीं पा रही थीं..

--

एकांश ने धीरे से दरवाज़ा खोला… और चुपचाप कमरे में झाँका.. अंदर वही चेहरा था… जो उसके लिए सुकून का दूसरा नाम बन चुका था... वो मुस्कुराया और धीरे-धीरे उस बिस्तर की तरफ़ बढ़ा जहाँ वो लड़की शांत, गहरी नींद में लेटी हुई थी… जैसे किसी दूसरी दुनिया में हो..

उसने अपने हाथ से उसके गाल को बड़े प्यार से छुआ… और फिर उसके माथे पर हल्का सा किस किया... उसके बालों की तरफ़ देखा, खासकर उस जगह, जहाँ सर्जरी हुई थी... पट्टी अभी भी बंधी थी… और उसे देखकर उसके चेहरे पर एक तकलीफ़-सी आई… सोचकर कि उसे कितना दर्द झेलना पड़ा होगा

लेकिन उसी वक़्त उसकी नज़र उस छोटे से हिस्से पर पड़ी जहाँ बाल दोबारा उगने लगे थे…

एकांश हल्के से मुस्कुराया

ये छोटा सा बदलाव उसके लिए एक बड़ी राहत जैसा था, जैसे कोई चुपचाप कह रहा हो कि “वो ठीक हो रही है…”

वो उसके पास बैठ गया, और उसने उसका हाथ अपने हाथों में लिया, उसके हाथ को अपने होंठों से छूते हुए एकांश ने धीमे से फुसफुसाते हुए कहा

"Please जाग जाओ अक्षु… मैं यहीं हूँ… तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूँ"

और फिर एक पल ठहरकर उसने धीरे से कहा..

"अक्षु, तुम्हारे मम्मी-पापा परेशान हैं, सब लोग बस तुम्हारे उठने का इंतज़ार कर रहे हैं… प्लीज़, अपनी आंखें खोलो ना…"

बोलते हुए एकांश की आंखें नम हो गईं थी… कुछ आंसू चुपचाप उसके हाथ पर गिर पड़े

उसने साइड टेबल की तरफ़ देखा, वहां उनकी एक प्यारी सी फोटो रखी थी, वही तस्वीर जिसे वो सबसे ज़्यादा पसंद करता था…

वो मुस्कुराया जैसे उस फोटो में भी उसने अपनी अक्षिता की शरारत देख ली हो

"अक्षु, मेरी तरफ देखो ना…"

एकांश की आवाज बहुत धीमी थी मानो बस वो ये सिर्फ अक्षिता से कहना चाहता हो

"मैं रो नहीं रहा हूँ… और न ही उदास हूँ... मैं खुश हूँ… या कम से कम खुश रहने की कोशिश कर रहा हूँ, जैसे तुमसे वादा किया था, मैं अपना वादा निभा रहा हूँ… अब तुम्हारी बारी है अक्षु, तुमने मुझसे वादा किया था कि तुम मेरे पास वापस आओगी… है ना?"

ये कहते हुए उसने अपना माथा उसके हाथ पर रख दिया… उसकी हथेली की गर्माहट को अपने चेहरे पर महसूस करने लगा जैसे वही अब उसकी सबसे बड़ी उम्मीद हो...

उसी वक्त दरवाज़े पर खड़े थे डॉ. अवस्थी, वो चुपचाप उस इंसान को देख रहे थे… जो पूरे दिल से सिर्फ़ अपने प्यार के जागने की दुआ कर रहा था

उन्होंने अपने करियर में ऐसे कई रिश्ते देखे थे, लोगों को अपने अपनों के लिए रोते देखा था… पर ऐसा निस्वार्थ, ऐसा बेपनाह प्यार शायद ही उन्होंने कभी देखा हो

उन्होंने अब तक किसी लड़के को अपनी प्रेमिका से इतना गहराई से प्यार करते नहीं देखा था,

आजकल तो प्यार एक ट्रेंड बन गया है बस एक कैप्शन भर का, एक इंस्टाग्राम स्टोरी भर का, युवाओं के लिए प्यार अक्सर बस आकर्षण होता है… डेटिंग ऐप्स पर शुरू होता है, और अगर 'वर्क नही किया' तो दूसरा ढूंढ लिया जाता है.. रिश्ते की असली गहराई से ज़्यादा उन्हें उस रिश्ते का दिखावा ज़रूरी लगता है

डॉ. अवस्थी एकांश को देख रहे थे और सोच रहे थे कि जब तक वो एकांश ने नहीं मिले थे वो समझ ही नहीं पाए थे कि सच्चा प्यार होता क्या है....

एकांश रघुवंशी, एक अमीर, बिज़ी, घमंडी कहे जाने वाला बिज़नेसमैन… जिसने उन्हें वो सिखाया जो कोई किताब या मेडिकल केस नहीं सिखा सका... कि प्यार वाकई क्या होता है... हाँ, वो खुद भी अपनी पत्नी से प्यार करते थे… लेकिन वो कुछ और था जो उन्होंने एकांश और अक्षिता के बीच देखा था, वो कुछ अलग ही था… कुछ और ही लेवल का

पिछले दो महीने में जो उन्होंने अपनी आंखों के सामने देखा वो सिर्फ़ एक रिश्ते की कहानी नहीं थी… वो प्यार की परिभाषा थी... एक अमर प्यार की कहानी

चाहे वो दोनों ज़िंदा रहें या ना रहें… लेकिन उनका रिश्ता हमेशा जिंदा रहेगा.. क्योंकि प्रेम वक्त से परे होता है... जो ना हालातों में बंधता है, ना सालों में गिनता है... ज़िंदगी में हम बहुत लोगों से प्यार करते हैं… पर responsibilities, बदलते हालात या फिर वक्त का असर… धीरे-धीरे वो रिश्ते फीके पड़ जाते हैं...

लेकिन एकांश और अक्षिता का प्यार…

वो कुछ और ही था कुछ ऐसा जिसे वक़्त भी नहीं हरा सकता... ये सिर्फ एक रिश्ता नहीं, एक एहसास था और वो हमेशा रहेगा

अक्षिता का केस भी बाकियों से बिल्कुल अलग था... आमतौर पर जिस ट्यूमर को वक्त रहते फटना चाहिए था, उसने बहुत समय ले लिया था और जब फटा, तब तक बहुत देर हो चुकी थी... डॉक्टर्स ने उसे बचाने की पूरी कोशिश की… डॉ. हेनरी फिशर तक ने अपनी हर expertise झोंक दी थी, और जो सबसे critical चीज़ वो कर सकते थे वो था उसके अंदरूनी रक्तस्राव को कंट्रोल करना, ब्लीडिंग तो संभाल लि गई, लेकिन ब्रेन पर जो असर हुआ था, वो रोका नहीं जा सका...

अक्षिता के दिमाग़ का एक हिस्सा डैमेज हो गया… और इसी वजह से वो कोमा में चली गई

अब डॉक्टर्स के पास कोई जवाब नहीं था… ना इस सवाल का कि वो कब जागेगी, ना ही इस बात का कि वो कभी जागेगी भी या नहीं..

उसी वक्त, डॉ. अवस्थी की नज़र एकांश पर पड़ी जो अब भी उसी सादगी से उसके सामने बैठा बात कर रहा था, जैसे वो सब सुन रही हो

डॉ. अवस्थी हल्के से मुस्कराए.. उन्हें एक बात और पता थी, जो उन्होंने अब तक किसी से शेयर नहीं की थी

उन्हें याद था, पिछले महीने की एक रात जब एकांश उनके हाथों को पकड़कर ज़ोर-ज़ोर से रो रहा था उस वक़्त उन्होंने मॉनिटर पर अक्षिता की धड़कनों में हलचल देखी थी…

हर बार जब एकांश वहां होता था तो कुछ न कुछ बदलता था... उसके दिल की बीट्स में हरकत होती थी… जैसे उसके अंदर कुछ जाग रहा हो...

डॉक्टर को धीरे-धीरे ये यकीन होने लगा था कि वो सब सुन सकती है, महसूस कर सकती है… बस अभी रिस्पॉन्ड नहीं कर पा रही

उन्होंने अब तक ये बात एकांश से नहीं कही थी… क्योंकि एक तो वो खुद डॉ. फिशर से इसे कन्फर्म करना चाहते थे,

और दूसरा ये कि वो नहीं चाहते थे कि एकांश की उम्मीदें कहीं फिर से टूट जाएं क्योंकि ये अब एक ज़िंदगी का मामला नहीं रह गया था… ये दो ज़िंदगियों की लड़ाई थी, ये साफ था कि अगर अक्षिता को कुछ हो गया, तो एकांश भी ज़िंदा नहीं बचेगा, कम से कम अंदर से तो बिल्कुल नहीं...

डॉक्टर चुपचाप आगे बढ़े और एकांश के पास जाकर उसके कंधे पर हाथ रखा... एकांश ने ऊपर देखा और हल्की सी मुस्कान दी

"डॉक्टर, देखा आपने? उसके बाल वापस उग रहे हैं!" वो एक बच्चे की तरह खुश होकर बोला

डॉक्टर भी उसकी मुस्कान देखकर मुस्कराए… और बोले,

"मैं तुम्हें एक और चीज़ बताना चाहता हूँ… जिससे तुम्हारी खुशी और बढ़ेगी"

एकांश सीधा खड़ा हो गया उसके चेहरे पर एक चमक आ गई थी

"क्या?" उसने उम्मीद भरी नज़रों से पूछा

डॉक्टर ने मॉनिटर की ओर इशारा किया, "इधर देखो"

"अब उसका हाथ पकड़ो" डॉक्टर ने कहा

एकांश ने उसका हाथ धीरे से थामा… और फिर प्यार से चूम लिया

मॉनिटर पर अचानक कुछ हरकत दिखी और एकांश कुछ पल के लिए एकदम स्तब्ध रह गया

उसने मॉनिटर की तरफ देखा… फिर अक्षिता की तरफ… फिर फिर से मॉनिटर की तरफ

डॉक्टर ने उसके पास आकर मुस्कराते हुए कहा,

"हाँ, वो तुम्हें feel कर सकती है, वो सुन सकती है कि तुम क्या कह रहे हो… और जब तुम उसे छूते हो, तो वो उसे महसूस भी करती है"

एकांश की आंखों से आंसू बहने लगे थे लेकिन उसके होंठों पर एक सच्ची सी मुस्कान थी

"ये एक बहुत पॉज़िटिव साइन है और मैंने इस बारे में डॉ. फिशर से भी बात की है, और उन्होंने कहा कि तुम्हें उससे बात करते रहना चाहिए… उसे महसूस कराते रहो कि तुम वहीं हो...

शायद इससे वो जवाब देने लगे… और धीरे-धीरे… जाग भी जाए"

एकांश ने अपनी आंखें पोंछी और सिर हिलाकर हाँ कहा, अब तो जैसे अब उसके अंदर कोई नई जान आ गई हो... अब उसे सबसे पहले ये बात अपने दोस्तों और पेरेंट्स को बतानी थी

उसने फ़ोन निकाला, जल्दी-जल्दी नंबर डायल किए… और सबको इस नन्हीं सी उम्मीद के बारे में बताया... सुनते ही सबकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा हालाँकि उनकी चिंता एकांश को लेकर अब भी थी… लेकिन पहली बार, वो चिंता एक उम्मीद में बदलती दिख रही थी....



क्रमश:
एक उम्मीद की किरण! ✨
यार, ये अपडेट पढ़कर ना, सच में, मेरे रोंगटे खड़े हो गए! 🤩 पिछले अपडेट में एकांश का दर्द देखकर दिल बैठ गया था, पर इस बार... वाह! क्या कमाल का इमोशनल राइड था ये!

शुरुआत में जब एकांश को लगा कि अक्षिता उसके बालों को सहला रही है, और वो अकेला नहीं है, तब तो यार, मैं खुद पिघल गई. 🥺 उसका ये मानना कि अक्षिता उसके साथ है, और ये एहसास ही उसे सुकून दे रहा है, ये दिखाता है कि उसका प्यार कितना सच्चा और गहरा है. लोग भले ही उसे पागल समझें, लेकिन उसके लिए यही उसकी दुनिया है. "वो जानती है... एकांश उसके बिना नहीं रह सकता... और कम से कम उसी की ख़ातिर... उसके प्यार की खातिर... वो ज़रूर लौटेगी.." ये लाइन सुनकर तो दिल ने कहा, प्लीज़ यार, अक्षिता को वापस आ जाना चाहिए!

अक्षिता के मम्मी-पापा की बेचैनी और एकांश की अचानक बदलती हुई शांति देखकर मुझे भी हैरानी हुई. जब एकांश ने कहा, "मैं खुश दिख रहा हूँ क्योंकि मैं वाकई खुश हूँ... और इसका कारण ये है... कि मैं उसकी presence को महसूस करता हूँ, वो मेरे साथ है...", ये सुनकर एक पल को लगा कि काश सबको ऐसा प्यार मिले. उसकी मुस्कान के पीछे का भरोसा वाकई उनके लिए समझना मुश्किल था, पर हम रीडर्स तो समझ रहे थे कि उसके लिए अक्षिता का साथ कितना मायने रखता है.

डॉ. अवस्थी का पॉइंट ऑफ व्यू तो यार, माइंड-ब्लोइंग था! 🤯 उनका ये सोचना कि आजकल के प्यार सिर्फ दिखावा हैं, और फिर एकांश के प्यार को देखकर उनका नजरिया बदलना... ये बहुत ही गहरा था. जब उन्होंने कहा कि "उन्होंने अब तक किसी लड़के को अपनी प्रेमिका से इतना गहराई से प्यार करते नहीं देखा था," तो मेरे भी आँखों में पानी आ गया. 😭 उनका ऑब्ज़र्वेशन कि अक्षिता हर बार एकांश के पास होने पर रिस्पॉन्ड करती है, ये तो एक बड़ी उम्मीद की किरण थी!

और आखिर में, जब डॉ. अवस्थी ने एकांश को बताया कि अक्षिता उसे महसूस कर सकती है, सुन सकती है, और उससे बात करते रहने से उसके जागने के चांसेज़ हैं... ओह माय गॉड! 🤩 मेरा दिल तो खुशी से झूम उठा! एकांश की आँखों में आंसू और होठों पर मुस्कान, ये सब पढ़कर मैं भी रोने लगी, पर ये खुशी के आंसू थे. ये सबसे बड़ा ट्विस्ट था, और अब लग रहा है कि शायद अक्षिता वापस आ जाए!

ओवरऑल, ये अपडेट सुपर-डुपर हिट था! इसमें इमोशंस, सस्पेंस और सबसे बढ़कर, उम्मीद थी. लेखक ने जिस तरह से एकांश की भावनाओं को, परिवार की चिंताओं को और डॉ. अवस्थी के विचारों को बुना है, वो कमाल का है. अब तो बस इंतज़ार है कि अक्षिता कब अपनी आँखें खोलती है और एकांश से मिलती है.
लेखक से एक छोटी सी गुज़ारिश:
देखिये, पिछले अपडेट में जो शिकायत थी, वो तो ठीक है, पर इस अपडेट के बाद तो मेरा दिल एकदम खुश है! 🥰 अब प्लीज, इस कहानी को ऐसे ही आगे बढ़ाते रहिए और जल्दी से अक्षिता को होश में ले आइए. अब इंतज़ार करना मुश्किल है! 🙏
 

Tri2010

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एकांश नींद में हल्के से हिला ही था कि उसे अचानक लगा जैसे कोई बहुत ही नरम सा हाथ उसके बालों को सहला रहा है.. उस स्पर्श को महसूस करते ही उसके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान आ गई… उसे पता था, ये किसका हाथ था...

अक्षिता का...

धीरे से उसने अपनी आँखें खोलीं… लेकिन कमरे में कोई नहीं था, सच्चाई से सामना होते ही एकांश का चेहरा उतर गया था, ये पहली बार नहीं था जब उसे ऐसा महसूस हुआ था जैसे अक्षिता उसके पास हो… बिल्कुल पास...

वो तकिए में खुद को और अंदर तक समेटता चला गया, जैसे उसमें छुप जाना चाहता हो.. उसने चादर को अपने पास खींचा… और जैसे ही उसने उसे सूंघा, उसकी आँखें नम हो गईं, अब भी उसकी चादर में वही खुशबू थी… वही महक… जो उसे एकदम अक्षिता के पास ले जाती थी... एक पल को उसे सच में लगा जैसे वो यहीं, उसी बिस्तर पर, उसके साथ है

वो उठकर बैठ गया और उसकी नजर सामने बनी दीवार पर गई, जिस पर अक्षिता का बनाया हुआ फोटो कोलाज था

अब ये उसकी रोज़ की आदत बन गई थी, वो सुबह उठते ही सबसे पहले उसकी मुस्कुराती हुई तस्वीर को देखता, वहा मौजूद हर तस्वीर जैसे कोई किस्सा सुना रही थी.. और फिर उसकी नज़र उस एक फोटो पर अटक गई जो अस्पताल में ऐड्मिट होने से ठीक पहले ली गई थी

वो उसके कंधे पर झुकी हुई थी… और एकांश उसका माथा चूम रहा था.. ये फोटो अक्षिता की मम्मी ने चुपचाप खींच ली थी और तब शायद किसी ने सोचा भी नहीं था, कि ये उनकी आख़िरी तस्वीर बन जाएगी…

उसकी आँख से एक आंसू बह निकला… और तभी उसे फिर से वही एहसास हुआ जैसे किसी ने प्यार से उसके कंधे पर हाथ रखा हो

उसने पलटकर देखा… और वो वहीं थी... उसकी आंखों में झाँकती हुई

वो कुछ नहीं बोला… बस उसने आंखों से बहते उन आंसुओं को पोंछ दिया, और फिर उसके माथे पर एक हल्का सा किस रख दिया, जैसे वो हमेशा करता था

उसने अक्षिता की अपने पास की मौजूदगी को पूरी तरह महसूस किया… और आंखें बंद कर ली.. लेकिन जब उसने दोबारा आंखें खोलीं तब वो वहाँ नहीं थी... पर एकांश जानता था… वो यहीं कहीं है.. उसे अब भी हर पल उसकी मौजूदगी का एहसास होता था और यही बात उसे सबसे ज़्यादा सुकून देती थी...

क्योंकि अक्षिता ने उससे वादा किया था कि वो कभी उसे अकेला नहीं छोड़ेगी.. और वो अब भी अपने वादे पर कायम थी...

जब एकांश ने ये बात अक्षिता के मम्मी-पापा को बताई वो बस मुस्कुराये लेकिन कोई कुछ बोला नहीं पर एकांश उनकी आँखों मे देख उनके मन की बात को समझ रहा था, उन्हे लग रहा था की वो ये सब बस अपनी कल्पनाओ मे महसूस कर रहा है

लेकिन एकांश को इससे फर्क नहीं पड़ता था.. उसे कोई चिंता नाही थी की लोग क्या सोचते है, उसे पागल कहते है या उसकी बात को वहम बताते है, उसके लिए तो बस एक ही बात मायने रखती थी, अक्षिता उसके साथ थी और यही बात उसे अब भी होश में रखे हुए थी..

उसे पूरा यकीन था कि वो वापस आएगी.. क्योंकि वो जानती है… एकांश उसके बिना नहीं रह सकता.. और कम से कम उसी की ख़ातिर… उसके प्यार की खातिर… वो ज़रूर लौटेगी..

एकांश जल्दी से तैयार हुआ और बाहर आ गया,

डाइनिंग टेबल पर अक्षिता के मम्मी-पापा बैठे हुए थे एकदम चुपचाप, उदास… और शायद भूखे भी, पर खाने का मन ही कहाँ था किसी का?

"Good morning!" एकांश की आवाज़ जैसे कमरे की उदासी को थोड़ी देर के लिए रोक गई, वो मुस्कराते हुए कुर्सी खींचकर बैठ गया और शांति से नाश्ता करने लगा, आज उसके बर्ताव मे कुछ तो अलग था

अक्षिता के मम्मी-पापा उसे यू देख हैरान रह गए...

वो बस उसे देखे जा रहे थे, सोच रहे थे की कल तक जो लड़का टूटा हुआ था, बिखरा हुआ था… आज इतनी शांति से नाश्ता कर रहा है?

ऐसा क्या हुआ है? कौन सी बात है जिसने उसके अंदर का दर्द कुछ हल्का कर दिया?

वो इसी सोच में थे कि उन्होंने उसकी आवाज़ सुनी

"मैं निकल रहा हूँ," एकांश ने कहा और उठने लगा

"एकांश बेटा…" अक्षिता की मम्मी ने उसे आवाज़ दी

"तुम्हें क्या हुआ है?" उन्होंने धीरे से पूछा

"मुझे? कुछ भी तो नहीं, सब ठीक है" एकांश ने हल्का सा मुसकुराते हुए कहा

"पिछले पूरे महीने तुम इतने डिप्रेस थे कि हमें डर लगने लगा था कि हम तुम्हें भी खो देंगे… लेकिन पिछले एक हफ्ते से तुममें कुछ बदला-बदला सा है... खुश लग रहे हो, क्या हुआ है बेटा?" अक्षिता के पापा ने पूछा

एकांश ने बस हल्की सी मुस्कान दी लेकिन कुछ नहीं बोला

"एकांश… प्लीज़ बेटा, हमें तुम्हारी फिक्र है," अक्षिता की मम्मी ने कहा

"मम्मी आप चिंता न कीजिए… मैं खुश दिख रहा हूँ क्योंकि मैं वाकई खुश हूँ" एकांश ने मुस्कुराते हुए कहा और एक पल रुका और फिर धीरे से बोला

"और इसका कारण ये है… कि मैं उसकी presence को महसूस करता हूँ, वो मेरे साथ है… और यही मेरी खुशी की वजह है" ये कहकर वो कमरे से बाहर चला गया और पीछे छोड़ गया वो चिंतित निगाहे जो उसकी मुस्कराहट तो देख पा रही थीं… पर उस मुस्कराहट के पीछे का भरोसा अभी भी पूरी तरह समझ नहीं पा रही थीं..

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एकांश ने धीरे से दरवाज़ा खोला… और चुपचाप कमरे में झाँका.. अंदर वही चेहरा था… जो उसके लिए सुकून का दूसरा नाम बन चुका था... वो मुस्कुराया और धीरे-धीरे उस बिस्तर की तरफ़ बढ़ा जहाँ वो लड़की शांत, गहरी नींद में लेटी हुई थी… जैसे किसी दूसरी दुनिया में हो..

उसने अपने हाथ से उसके गाल को बड़े प्यार से छुआ… और फिर उसके माथे पर हल्का सा किस किया... उसके बालों की तरफ़ देखा, खासकर उस जगह, जहाँ सर्जरी हुई थी... पट्टी अभी भी बंधी थी… और उसे देखकर उसके चेहरे पर एक तकलीफ़-सी आई… सोचकर कि उसे कितना दर्द झेलना पड़ा होगा

लेकिन उसी वक़्त उसकी नज़र उस छोटे से हिस्से पर पड़ी जहाँ बाल दोबारा उगने लगे थे…

एकांश हल्के से मुस्कुराया

ये छोटा सा बदलाव उसके लिए एक बड़ी राहत जैसा था, जैसे कोई चुपचाप कह रहा हो कि “वो ठीक हो रही है…”

वो उसके पास बैठ गया, और उसने उसका हाथ अपने हाथों में लिया, उसके हाथ को अपने होंठों से छूते हुए एकांश ने धीमे से फुसफुसाते हुए कहा

"Please जाग जाओ अक्षु… मैं यहीं हूँ… तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूँ"

और फिर एक पल ठहरकर उसने धीरे से कहा..

"अक्षु, तुम्हारे मम्मी-पापा परेशान हैं, सब लोग बस तुम्हारे उठने का इंतज़ार कर रहे हैं… प्लीज़, अपनी आंखें खोलो ना…"

बोलते हुए एकांश की आंखें नम हो गईं थी… कुछ आंसू चुपचाप उसके हाथ पर गिर पड़े

उसने साइड टेबल की तरफ़ देखा, वहां उनकी एक प्यारी सी फोटो रखी थी, वही तस्वीर जिसे वो सबसे ज़्यादा पसंद करता था…

वो मुस्कुराया जैसे उस फोटो में भी उसने अपनी अक्षिता की शरारत देख ली हो

"अक्षु, मेरी तरफ देखो ना…"

एकांश की आवाज बहुत धीमी थी मानो बस वो ये सिर्फ अक्षिता से कहना चाहता हो

"मैं रो नहीं रहा हूँ… और न ही उदास हूँ... मैं खुश हूँ… या कम से कम खुश रहने की कोशिश कर रहा हूँ, जैसे तुमसे वादा किया था, मैं अपना वादा निभा रहा हूँ… अब तुम्हारी बारी है अक्षु, तुमने मुझसे वादा किया था कि तुम मेरे पास वापस आओगी… है ना?"

ये कहते हुए उसने अपना माथा उसके हाथ पर रख दिया… उसकी हथेली की गर्माहट को अपने चेहरे पर महसूस करने लगा जैसे वही अब उसकी सबसे बड़ी उम्मीद हो...

उसी वक्त दरवाज़े पर खड़े थे डॉ. अवस्थी, वो चुपचाप उस इंसान को देख रहे थे… जो पूरे दिल से सिर्फ़ अपने प्यार के जागने की दुआ कर रहा था

उन्होंने अपने करियर में ऐसे कई रिश्ते देखे थे, लोगों को अपने अपनों के लिए रोते देखा था… पर ऐसा निस्वार्थ, ऐसा बेपनाह प्यार शायद ही उन्होंने कभी देखा हो

उन्होंने अब तक किसी लड़के को अपनी प्रेमिका से इतना गहराई से प्यार करते नहीं देखा था,

आजकल तो प्यार एक ट्रेंड बन गया है बस एक कैप्शन भर का, एक इंस्टाग्राम स्टोरी भर का, युवाओं के लिए प्यार अक्सर बस आकर्षण होता है… डेटिंग ऐप्स पर शुरू होता है, और अगर 'वर्क नही किया' तो दूसरा ढूंढ लिया जाता है.. रिश्ते की असली गहराई से ज़्यादा उन्हें उस रिश्ते का दिखावा ज़रूरी लगता है

डॉ. अवस्थी एकांश को देख रहे थे और सोच रहे थे कि जब तक वो एकांश ने नहीं मिले थे वो समझ ही नहीं पाए थे कि सच्चा प्यार होता क्या है....

एकांश रघुवंशी, एक अमीर, बिज़ी, घमंडी कहे जाने वाला बिज़नेसमैन… जिसने उन्हें वो सिखाया जो कोई किताब या मेडिकल केस नहीं सिखा सका... कि प्यार वाकई क्या होता है... हाँ, वो खुद भी अपनी पत्नी से प्यार करते थे… लेकिन वो कुछ और था जो उन्होंने एकांश और अक्षिता के बीच देखा था, वो कुछ अलग ही था… कुछ और ही लेवल का

पिछले दो महीने में जो उन्होंने अपनी आंखों के सामने देखा वो सिर्फ़ एक रिश्ते की कहानी नहीं थी… वो प्यार की परिभाषा थी... एक अमर प्यार की कहानी

चाहे वो दोनों ज़िंदा रहें या ना रहें… लेकिन उनका रिश्ता हमेशा जिंदा रहेगा.. क्योंकि प्रेम वक्त से परे होता है... जो ना हालातों में बंधता है, ना सालों में गिनता है... ज़िंदगी में हम बहुत लोगों से प्यार करते हैं… पर responsibilities, बदलते हालात या फिर वक्त का असर… धीरे-धीरे वो रिश्ते फीके पड़ जाते हैं...

लेकिन एकांश और अक्षिता का प्यार…

वो कुछ और ही था कुछ ऐसा जिसे वक़्त भी नहीं हरा सकता... ये सिर्फ एक रिश्ता नहीं, एक एहसास था और वो हमेशा रहेगा

अक्षिता का केस भी बाकियों से बिल्कुल अलग था... आमतौर पर जिस ट्यूमर को वक्त रहते फटना चाहिए था, उसने बहुत समय ले लिया था और जब फटा, तब तक बहुत देर हो चुकी थी... डॉक्टर्स ने उसे बचाने की पूरी कोशिश की… डॉ. हेनरी फिशर तक ने अपनी हर expertise झोंक दी थी, और जो सबसे critical चीज़ वो कर सकते थे वो था उसके अंदरूनी रक्तस्राव को कंट्रोल करना, ब्लीडिंग तो संभाल लि गई, लेकिन ब्रेन पर जो असर हुआ था, वो रोका नहीं जा सका...

अक्षिता के दिमाग़ का एक हिस्सा डैमेज हो गया… और इसी वजह से वो कोमा में चली गई

अब डॉक्टर्स के पास कोई जवाब नहीं था… ना इस सवाल का कि वो कब जागेगी, ना ही इस बात का कि वो कभी जागेगी भी या नहीं..

उसी वक्त, डॉ. अवस्थी की नज़र एकांश पर पड़ी जो अब भी उसी सादगी से उसके सामने बैठा बात कर रहा था, जैसे वो सब सुन रही हो

डॉ. अवस्थी हल्के से मुस्कराए.. उन्हें एक बात और पता थी, जो उन्होंने अब तक किसी से शेयर नहीं की थी

उन्हें याद था, पिछले महीने की एक रात जब एकांश उनके हाथों को पकड़कर ज़ोर-ज़ोर से रो रहा था उस वक़्त उन्होंने मॉनिटर पर अक्षिता की धड़कनों में हलचल देखी थी…

हर बार जब एकांश वहां होता था तो कुछ न कुछ बदलता था... उसके दिल की बीट्स में हरकत होती थी… जैसे उसके अंदर कुछ जाग रहा हो...

डॉक्टर को धीरे-धीरे ये यकीन होने लगा था कि वो सब सुन सकती है, महसूस कर सकती है… बस अभी रिस्पॉन्ड नहीं कर पा रही

उन्होंने अब तक ये बात एकांश से नहीं कही थी… क्योंकि एक तो वो खुद डॉ. फिशर से इसे कन्फर्म करना चाहते थे,

और दूसरा ये कि वो नहीं चाहते थे कि एकांश की उम्मीदें कहीं फिर से टूट जाएं क्योंकि ये अब एक ज़िंदगी का मामला नहीं रह गया था… ये दो ज़िंदगियों की लड़ाई थी, ये साफ था कि अगर अक्षिता को कुछ हो गया, तो एकांश भी ज़िंदा नहीं बचेगा, कम से कम अंदर से तो बिल्कुल नहीं...

डॉक्टर चुपचाप आगे बढ़े और एकांश के पास जाकर उसके कंधे पर हाथ रखा... एकांश ने ऊपर देखा और हल्की सी मुस्कान दी

"डॉक्टर, देखा आपने? उसके बाल वापस उग रहे हैं!" वो एक बच्चे की तरह खुश होकर बोला

डॉक्टर भी उसकी मुस्कान देखकर मुस्कराए… और बोले,

"मैं तुम्हें एक और चीज़ बताना चाहता हूँ… जिससे तुम्हारी खुशी और बढ़ेगी"

एकांश सीधा खड़ा हो गया उसके चेहरे पर एक चमक आ गई थी

"क्या?" उसने उम्मीद भरी नज़रों से पूछा

डॉक्टर ने मॉनिटर की ओर इशारा किया, "इधर देखो"

"अब उसका हाथ पकड़ो" डॉक्टर ने कहा

एकांश ने उसका हाथ धीरे से थामा… और फिर प्यार से चूम लिया

मॉनिटर पर अचानक कुछ हरकत दिखी और एकांश कुछ पल के लिए एकदम स्तब्ध रह गया

उसने मॉनिटर की तरफ देखा… फिर अक्षिता की तरफ… फिर फिर से मॉनिटर की तरफ

डॉक्टर ने उसके पास आकर मुस्कराते हुए कहा,

"हाँ, वो तुम्हें feel कर सकती है, वो सुन सकती है कि तुम क्या कह रहे हो… और जब तुम उसे छूते हो, तो वो उसे महसूस भी करती है"

एकांश की आंखों से आंसू बहने लगे थे लेकिन उसके होंठों पर एक सच्ची सी मुस्कान थी

"ये एक बहुत पॉज़िटिव साइन है और मैंने इस बारे में डॉ. फिशर से भी बात की है, और उन्होंने कहा कि तुम्हें उससे बात करते रहना चाहिए… उसे महसूस कराते रहो कि तुम वहीं हो...

शायद इससे वो जवाब देने लगे… और धीरे-धीरे… जाग भी जाए"

एकांश ने अपनी आंखें पोंछी और सिर हिलाकर हाँ कहा, अब तो जैसे अब उसके अंदर कोई नई जान आ गई हो... अब उसे सबसे पहले ये बात अपने दोस्तों और पेरेंट्स को बतानी थी

उसने फ़ोन निकाला, जल्दी-जल्दी नंबर डायल किए… और सबको इस नन्हीं सी उम्मीद के बारे में बताया... सुनते ही सबकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा हालाँकि उनकी चिंता एकांश को लेकर अब भी थी… लेकिन पहली बार, वो चिंता एक उम्मीद में बदलती दिख रही थी....



क्रमश:
Nice update and awesome story
 
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Ambhu

"जीवन का अमृत स्रोत"
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Update 3



अगले दिन एकांश ऑफिस आया और सीधा अपने केबिन की ओर बढ़ गया, उसका केबिन नीचे वाले फ्लोर पर जहा बाकी सब लोग काम कर रहे थे वहा शिफ्ट कर दिया गया था, उसके फ्लोर पर और उसके केबिन मे काम चल रहा था और जब तक वो पूरा हो एकांश को यही से काम करना था

केबिन मे पहुचते ही एकांश ने फाइलस् की रैक पर नजर डाली तो उसने देखा के सभी फाइलस् उसके बताए मुताबिक सही तरीके से लगी हुई थी जिसे देख उसके चेहरे पे मुस्कान आ गई साथ ही ये खयाल भी आया के उसके जाने के बाद भी अक्षिता को ये सब सही करने मे कम से कम 2 घंटे लगे होंगे,

एकांश अपनी जगह से उठा और अपने केबिन मे लगी कांच की खिड़की से बाहर देखने लगा, एकांश वही से अपने सभी स्टाफ को काम करते देख सकता था और सबको देखते हुए एकांश की नजरे जाकर ठहरी अक्षिता पर जो अपना काम कर रही थी और साथ ही स्वरा की बताई कीसी बात पर हस भी रही थी और उसे ऐसे हसते हुए एकांश से देखा नहीं जा रहा था, एकांश ने वापिस अपने आप को काम मे उलझा लिया,

काम मे वक्त कैसे बीता एकांश को पता ही नहीं चला और अपना काम निपटा कर वो लंच करने जाने ही वाला था के एकांश के केबिन के दरवाजे पर नॉक हुआ

“कम इन”

“सर, आप को केबिन मे कौनसा कलर करवाना है वो पूछना था, ये रहा केटलॉग” पूजा ने केबिन मे आते हुए कहा

“केटलॉग रहने दो कलर मुझे पता है, ग्रे कलर” एकांश ने कहा वही पूजा वो आगे कुछ कहेगा इसका इंतजार करने लगी और पूजा अब भी वही खड़ी है ये देख एकांश ने पूछा

“क्या हुआ? और कोई काम है?”

“सर बस सिर्फ ग्रे कलर?” पूजा ने पूछा लेकिन बदले मे एकांश ने बस उसे घूर के देखा और इसीके साथ पूजा को उसका जवाब मिल गया था वो बगैर कुछ बोले झट से वहा से चली गई

पूजा के जाने के बाद अपना काम निपटा कर जब एकांश लंच के लिए बाहर आया तो उसने देखा के अक्षिता रोहन के साथ हसते हुए कैफै से बाहर आ रही थी, अक्षिता ने रोहन से कुछ कहा जिसे सुन वो उसके पीछे भागने लगा था, अक्षिता को ऐसे रोहन के साथ बेफिक्र बर्ताव करता एकांश से देखा नही जा रहा था, भले ही वो उससे नफरत करने लगा था लेकिन दिल के कीसी कोने मे दबा वो प्रेम अक्षिता को रोहन के साथ नही देख पा रहा था और और एकांश गुस्से मे उबलने लगा था, तभी उसके दिमाग मे एक आइडीया आया, उसे समझ आ गया था के अब उसे क्या करना है, वो वापिस अपने केबिन मे गया और एक कॉल लगाया

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लंच के बाद सभी लोग अपनी अपनी जगह बैठ कर अपने अपने काम मे लगे हुए थे तभी पूरा महोल एकदम से शांत हो गया, सबसे सामने देखा तो पाया के उनका बॉस वहा अपनी जेब मे हाथ डाले वहा खड़ा था

“हैलो एव्रीवन, आपके लिए एक अनाउन्स्मेन्ट है, प्लीज सभी लोग यहा आ जाइए” एचआर डिपार्ट्मन्ट के हेड मिस्टर शेखर ने कहा और वहा मौजूद सभी लोग उनके सामने जाकर खड़े हो गए वही अक्षिता इस सब मे थोड़ा पीछे ही रही भीड़ मे छिपी हुई एकदम पीछे, एकांश ने एक नजर सबको देखा और फिर शेखर को आगे बढ़ने कहा

“आप सभी को यहा इसिलौए बुलाया है क्युकी सर को एक पर्सनल अससिस्टेंट चाहिए और आप ही मे से कीसी एक को इस पोजीशन के चुना जाएगा”

ये बात सुनते ही वहा मौजूद लड़कियों के मन मे तो मानो लड्डू फूटने लगे थे और वो एकांश के साथ काम करने के सपने देखने लगी थी वही अक्षिता को घबराहट होने लगी थी

अक्षिता ने एकांश को देखा तो उसने पाया के वो उसे ही देख रहा था, एकांश की नजरे केवल अक्षिता पर थी, अक्षिता ने अपने आप को स्वरा के पीछे छिपा लिया था और बस यही दुआ कर रही थी के वो उसे न चुने

एकांश के हाथ मे कुछ पेपर्स थे जिनमे सभी की डिटेल्स थी एकांश ने एक नजर उन पेपर्स पर डाली और उसमे से एक पेपर निकाल कर शेखर को दिया, शेखर ने उस सेलेक्टेड प्रोफाइल को देखा और बाकी लोगों को देखते बोला

“मिस अक्षिता पांडे” शेखर ने भीड़ मे अक्षिता को ढूंढते हुए कहा वही अक्षिता ने जैसे ही अपना नाम सुन वो वही जम गई थी, अक्षिता अच्छी तरह जानती थी के एकांश ये सब जान बुझ के कर रहा था

सभी लोगों ने हट कर अक्षिता के लिए रास्ता बनाया लेकिन वो अपनी जगह से नहीं हिली

“अक्षिता” स्वरा ने थोड़ा जोर से कहा और उसे आगे आने को कहा, अक्षिता ने अपनी आंखे बंद कर रखी थी, उसने जैसे ही अपनी आंखे खोली तो पाया के सब उसे ही देख रहे थे, कुछ की नजरों मे जलन थी कुछ मे गुस्सा और कुछ लोग उसके लिए खुश थे जैसे पूजा, स्वरा रोहन और खुद शेखर....



“आगे आओ अक्षिता” शेखर ने अक्षिता को आगे आने कहा

“सर मैं इस पज़िशन के लिए क्वालफाइड भी नहीं हु” अक्षिता ने उनलोगों की ओर बढ़ते हुए शेखर से कहा लेकिन शेखर के कुछ बोलने से पहले एकांश बोल पड़ा

“मैं यहा का बॉस हु, मैंने तुम्हें सिलेक्ट किया है कोई दिक्कत हो तो टॉक टु मी” एकांश ने कहा और बदले मे अक्षिता ने बस गर्दन हिला दी

“सर मैं आपकी सेक्रेटरी की पोजीशन के लिए क्वालफाइड नहीं हु” अक्षिता नर्वसली एकांश को देखते हुए कहा

“कौन लायक है कौन नहीं ये मैं डिसाइड करूंगा मिस पांडे”

“लेकिन...“

“मिस पांडे, मेरे सवालों का बस हा या ना मे जावब देना” एकांश ने सीरीअस होकर कहा

“जी सर”

“आप इस कंपनी के बारे मे जानती है?”

“यस सर”

“आपको ये पता है के किसका यहा क्या काम है?”

“यस सर”

“क्या आपको पता है सभी फाइलस् कहा रखी है और किस फाइल मे क्या है?”

“जी सर”

“क्या आपको पता है मीटिंग्स कैसे अरेंज की जाती है उनका स्केजूल कैसे बनाया जता है?”

“यस सर”

“क्या आपको पता है कंपनी के सभी प्राइवेट और कान्फडेन्चल डॉक्युमेंट्स और फाइलस् कहा रखी है?”

“यस सर”

“अब आखरी सवाल क्या आपको अपने सूपिरीअर के, अपने बॉस के ऑर्डर फॉलो करने आते है?” एकांश ने पूछा

“यस सर”

एक ओर यह ये सेशन चल रहा था वही सारा स्टाफ अपनी आँखों के सामने ये केबीसी का खेल देख रहा था, कीसी ने भी एकांश को इतना बोलते नहीं सुना था और काइयों को तो ये भी समझ नहीं आ रहा था के अक्षिता मना क्यू कर रही थी..

“देखो तुमने अभी खुद ही अपने सभी डाउट का जवाब दे दिया है” एकांश के मुस्कुराते हुए कहा वही अक्षिता वहा थोड़ी कन्फ्यूज़ खड़ी रही

“जो कोई भी मेरा सेक्रेटरी बनेगा उसे ये सब बाते पता होनी चाहिए और तुम्हें ये सब पता है, सो यू आर क्वालफाइड फॉर दिस पोज़िशन” एकांश ने सपाट चेहरे से कहा

“लेकिन सर...” पर अक्षिता अपनी बात पूरी करती उससे पहले ही

“कोई लेकिन नहीं, आइ वॉन्ट यू तो वर्क आस माइ पीए फर्म टूमारो” एकांश ने फरमान सुन दिया था और वो अपने केबिन मे चला गया

सारा स्टाफ अब भी वही खड़ा ये सब देख रहा था, ये उनका देखा सबसे आसान इंटरव्यू था लेकिन एकांश के सामने खड़ा रहना सबके लिए उतना ही मुश्किल था

शेखर और रोहन खुश थे के अक्षिता का प्रमोशन हो गया था और स्वरा तो खुशी मे पागल हो रही थी वही अक्षिता शॉक मे थी

“ये अभी अभी क्या हुआ” अक्षिता ने रोहन और स्वरा को देखते हुए कहा

“तुम्हारा प्रमोशन हो गया है” रोहन और स्वरा ने खुश होते हुए कहा लेकिन अक्षिता जानती थी के ये उतनी खुश होने वाली बात नहीं थी..

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“कम इन” एकांश अपने केबिन मे काम कर रहा था और जैसे ही उसने दरवाजे पर नॉक सुन उसने उस शक्स को अंदर आने कहा

“सर...” अक्षिता ने कहा और एकांश ने उसे देखा

“क्या हुआ”

“सर, मुझे ये प्रमोशन नहीं चाहिए, प्लीज ये कीसी ऐसे को दीजिए को इसके काबिल हो” अक्षिता ने दरवाजे के पास खड़े होकर नजरे झुकाए कहा वो काफी नर्वस थी और एकांश से आंखे नहीं मिला पा रही थी

“तुम्हें लगता है के मैं तुम्हारी बात सुनूँगा या तुम्हारे पास कोई चॉइस है” एकांश ने रूखे स्वर मे कहा

“सर...” लेकिन एकांश ने उसे बीच मे ही रोक दिया

“क्यू?” एकांश ने अपनी जगह से उठते हुए पूछा

“मुझे.. मुझे नहीं लगता मैं ये कर पाऊँगी।“

“क्यू?” एकांश ने अपना सवाल दोहराया और एक एक कदम अक्षिता की ओर बढ़ाने लगा

“क्युकी मुझे ये काम नहीं करना है” अक्षिता ने पीछे सरकते हुए कहा और अब वो दरवाजे के एकदम करीब थी

“क्यू?” एकांश भी अब अक्षिता के पास पहुच चुका था

अक्षिता और एकांश की नजरे मिली, अक्षिता ने उसकी आँखों मे देखा, ये वही आंखे थी जिनमे कभी उसके लिए बेशुमार प्यार था लेकिन अब वहा उसके लिए केवल गुस्सा था

“बताओ तुम्हें ये काम क्यू नहीं चाहिए?” एकांश अक्षिता के और करीब आया

अक्षिता के शब्द उसके गले मे अटक गए थे, एकांश के इतने करीब होने से उससे बोलते नहीं बन रहा था, अक्षिता ने वहा से निकालना चाहा लेकिन एकांश के अपने दोनों हाथ उसके इर्द गिर्द दरवाजे पर रख कर उसे वहा अटका लिया था

“स... सर”

“हम्म...”

एकांश अक्षिता की आँखों मे खोने से अपने आप को रोक नहीं पाया, कुछ पल वो दोनों वैसे ही शांत खड़े रहे, एक दूसरे की आँखों मे खोए और फिर अक्षिता ने अपना चेहरा दूसरी ओर घुमा लिया जिसने एकांश को भी होश मे ला दिया

“तुम प्रमोशन इसीलिए नहीं चाहती क्युकी तुम डरती हो” एकांश ने उसी पोज़िशन मे कहा

“डर? कैसा डर?” अक्षिता ने डरते हुए पूछा

“तुम डरती हो मुझसे, मेरे साथ काम करने से, तुम डरती को के कही.....”

लेकिन एकांश बात पूरी करता उससे पहले ही अक्षिता बोल पड़ी

“मैं नहीं डरती।“

“तो ये सब क्यू?”

“मुझे लगा के कोई मुझसे बेहतर इस पोज़िशन को डिसर्व करता है बस इसीलिए”

“ठीक है फिर कल से अपना नया रोल संभालने तयार रहना” एकांश ने अक्षिता से दूर हटते हुए कहा और उसके हटते ही अक्षिता ने राहत की सास ली और अपनी बढ़ी हुई धड़कनों को काबू करने लगी

अक्षिता कुछ बोलना चाहती थी लेकिन सही शब्दों का चयन नहीं कर पा रही थी

“और कोई डाउट है क्या?” एकांश ने जब उसको कुछ पल वही खड़ा देखा तो उसकी ओर बढ़ने लगा और अक्षिता “नहीं” कहकर जल्दी से उसके केबीन से बाहर आ गई और दीवार से सटकर अपनी साँसों को काबू करने लगी

‘यह क्या हो रहा है मेरे साथ? मैंने उसे दूर क्यू नहीं हटाया? मुझे ऐसे कंट्रोल नहीं खोना चाहिए था, नहीं ये मैं नहीं होने दे सकती, मुझे उससे जितना हो सके दूर रहना होगा’ अक्षिता ने मन ही मन सोचा और वापिस अपनी डेस्क पर जाकर अपना काम करने लगी

अभी अक्षिता अपनी डेस्क पर काम कर ही रही थी के पीछे से उसे कीसी ने पोंक किया, मूड कर देखा तो पाया के स्वरा और रोहन अपनी बड़ी सी स्माइल लिए उसे देख रहे थे, उनके लिए थे आज उनकी दोस्त का प्रमोशन हुआ था और अब वो अक्षिता से पार्टी मांग रहे थे और अक्षिता भी उनके साथ खुश थी....



क्रमशः

यह कहानी का अंश बहुत ही रोचक और भावनात्मक रूप से गहरा है। पात्रों के बीच के रिश्ते और उनकी मनोदशा को बहुत अच्छे ढंग से प्रस्तुत किया है। खासकर एकांश और अक्षिता के बीच के तनाव और उनके मनोवैज्ञानिक संघर्ष ने कहानी को जीवंत बना दिया है।

कुल मिलाकर, यह अंश पाठकों की रुचि बनाए रखने में सफल है और आगे की कहानी पढ़ने के लिए उत्सुक करता है।
 

Tiger 786

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Update 54



एकांश नींद में हल्के से हिला ही था कि उसे अचानक लगा जैसे कोई बहुत ही नरम सा हाथ उसके बालों को सहला रहा है.. उस स्पर्श को महसूस करते ही उसके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान आ गई… उसे पता था, ये किसका हाथ था...

अक्षिता का...

धीरे से उसने अपनी आँखें खोलीं… लेकिन कमरे में कोई नहीं था, सच्चाई से सामना होते ही एकांश का चेहरा उतर गया था, ये पहली बार नहीं था जब उसे ऐसा महसूस हुआ था जैसे अक्षिता उसके पास हो… बिल्कुल पास...

वो तकिए में खुद को और अंदर तक समेटता चला गया, जैसे उसमें छुप जाना चाहता हो.. उसने चादर को अपने पास खींचा… और जैसे ही उसने उसे सूंघा, उसकी आँखें नम हो गईं, अब भी उसकी चादर में वही खुशबू थी… वही महक… जो उसे एकदम अक्षिता के पास ले जाती थी... एक पल को उसे सच में लगा जैसे वो यहीं, उसी बिस्तर पर, उसके साथ है

वो उठकर बैठ गया और उसकी नजर सामने बनी दीवार पर गई, जिस पर अक्षिता का बनाया हुआ फोटो कोलाज था

अब ये उसकी रोज़ की आदत बन गई थी, वो सुबह उठते ही सबसे पहले उसकी मुस्कुराती हुई तस्वीर को देखता, वहा मौजूद हर तस्वीर जैसे कोई किस्सा सुना रही थी.. और फिर उसकी नज़र उस एक फोटो पर अटक गई जो अस्पताल में ऐड्मिट होने से ठीक पहले ली गई थी

वो उसके कंधे पर झुकी हुई थी… और एकांश उसका माथा चूम रहा था.. ये फोटो अक्षिता की मम्मी ने चुपचाप खींच ली थी और तब शायद किसी ने सोचा भी नहीं था, कि ये उनकी आख़िरी तस्वीर बन जाएगी…

उसकी आँख से एक आंसू बह निकला… और तभी उसे फिर से वही एहसास हुआ जैसे किसी ने प्यार से उसके कंधे पर हाथ रखा हो

उसने पलटकर देखा… और वो वहीं थी... उसकी आंखों में झाँकती हुई

वो कुछ नहीं बोला… बस उसने आंखों से बहते उन आंसुओं को पोंछ दिया, और फिर उसके माथे पर एक हल्का सा किस रख दिया, जैसे वो हमेशा करता था

उसने अक्षिता की अपने पास की मौजूदगी को पूरी तरह महसूस किया… और आंखें बंद कर ली.. लेकिन जब उसने दोबारा आंखें खोलीं तब वो वहाँ नहीं थी... पर एकांश जानता था… वो यहीं कहीं है.. उसे अब भी हर पल उसकी मौजूदगी का एहसास होता था और यही बात उसे सबसे ज़्यादा सुकून देती थी...

क्योंकि अक्षिता ने उससे वादा किया था कि वो कभी उसे अकेला नहीं छोड़ेगी.. और वो अब भी अपने वादे पर कायम थी...

जब एकांश ने ये बात अक्षिता के मम्मी-पापा को बताई वो बस मुस्कुराये लेकिन कोई कुछ बोला नहीं पर एकांश उनकी आँखों मे देख उनके मन की बात को समझ रहा था, उन्हे लग रहा था की वो ये सब बस अपनी कल्पनाओ मे महसूस कर रहा है

लेकिन एकांश को इससे फर्क नहीं पड़ता था.. उसे कोई चिंता नाही थी की लोग क्या सोचते है, उसे पागल कहते है या उसकी बात को वहम बताते है, उसके लिए तो बस एक ही बात मायने रखती थी, अक्षिता उसके साथ थी और यही बात उसे अब भी होश में रखे हुए थी..

उसे पूरा यकीन था कि वो वापस आएगी.. क्योंकि वो जानती है… एकांश उसके बिना नहीं रह सकता.. और कम से कम उसी की ख़ातिर… उसके प्यार की खातिर… वो ज़रूर लौटेगी..

एकांश जल्दी से तैयार हुआ और बाहर आ गया,

डाइनिंग टेबल पर अक्षिता के मम्मी-पापा बैठे हुए थे एकदम चुपचाप, उदास… और शायद भूखे भी, पर खाने का मन ही कहाँ था किसी का?

"Good morning!" एकांश की आवाज़ जैसे कमरे की उदासी को थोड़ी देर के लिए रोक गई, वो मुस्कराते हुए कुर्सी खींचकर बैठ गया और शांति से नाश्ता करने लगा, आज उसके बर्ताव मे कुछ तो अलग था

अक्षिता के मम्मी-पापा उसे यू देख हैरान रह गए...

वो बस उसे देखे जा रहे थे, सोच रहे थे की कल तक जो लड़का टूटा हुआ था, बिखरा हुआ था… आज इतनी शांति से नाश्ता कर रहा है?

ऐसा क्या हुआ है? कौन सी बात है जिसने उसके अंदर का दर्द कुछ हल्का कर दिया?

वो इसी सोच में थे कि उन्होंने उसकी आवाज़ सुनी

"मैं निकल रहा हूँ," एकांश ने कहा और उठने लगा

"एकांश बेटा…" अक्षिता की मम्मी ने उसे आवाज़ दी

"तुम्हें क्या हुआ है?" उन्होंने धीरे से पूछा

"मुझे? कुछ भी तो नहीं, सब ठीक है" एकांश ने हल्का सा मुसकुराते हुए कहा

"पिछले पूरे महीने तुम इतने डिप्रेस थे कि हमें डर लगने लगा था कि हम तुम्हें भी खो देंगे… लेकिन पिछले एक हफ्ते से तुममें कुछ बदला-बदला सा है... खुश लग रहे हो, क्या हुआ है बेटा?" अक्षिता के पापा ने पूछा

एकांश ने बस हल्की सी मुस्कान दी लेकिन कुछ नहीं बोला

"एकांश… प्लीज़ बेटा, हमें तुम्हारी फिक्र है," अक्षिता की मम्मी ने कहा

"मम्मी आप चिंता न कीजिए… मैं खुश दिख रहा हूँ क्योंकि मैं वाकई खुश हूँ" एकांश ने मुस्कुराते हुए कहा और एक पल रुका और फिर धीरे से बोला

"और इसका कारण ये है… कि मैं उसकी presence को महसूस करता हूँ, वो मेरे साथ है… और यही मेरी खुशी की वजह है" ये कहकर वो कमरे से बाहर चला गया और पीछे छोड़ गया वो चिंतित निगाहे जो उसकी मुस्कराहट तो देख पा रही थीं… पर उस मुस्कराहट के पीछे का भरोसा अभी भी पूरी तरह समझ नहीं पा रही थीं..

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एकांश ने धीरे से दरवाज़ा खोला… और चुपचाप कमरे में झाँका.. अंदर वही चेहरा था… जो उसके लिए सुकून का दूसरा नाम बन चुका था... वो मुस्कुराया और धीरे-धीरे उस बिस्तर की तरफ़ बढ़ा जहाँ वो लड़की शांत, गहरी नींद में लेटी हुई थी… जैसे किसी दूसरी दुनिया में हो..

उसने अपने हाथ से उसके गाल को बड़े प्यार से छुआ… और फिर उसके माथे पर हल्का सा किस किया... उसके बालों की तरफ़ देखा, खासकर उस जगह, जहाँ सर्जरी हुई थी... पट्टी अभी भी बंधी थी… और उसे देखकर उसके चेहरे पर एक तकलीफ़-सी आई… सोचकर कि उसे कितना दर्द झेलना पड़ा होगा

लेकिन उसी वक़्त उसकी नज़र उस छोटे से हिस्से पर पड़ी जहाँ बाल दोबारा उगने लगे थे…

एकांश हल्के से मुस्कुराया

ये छोटा सा बदलाव उसके लिए एक बड़ी राहत जैसा था, जैसे कोई चुपचाप कह रहा हो कि “वो ठीक हो रही है…”

वो उसके पास बैठ गया, और उसने उसका हाथ अपने हाथों में लिया, उसके हाथ को अपने होंठों से छूते हुए एकांश ने धीमे से फुसफुसाते हुए कहा

"Please जाग जाओ अक्षु… मैं यहीं हूँ… तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूँ"

और फिर एक पल ठहरकर उसने धीरे से कहा..

"अक्षु, तुम्हारे मम्मी-पापा परेशान हैं, सब लोग बस तुम्हारे उठने का इंतज़ार कर रहे हैं… प्लीज़, अपनी आंखें खोलो ना…"

बोलते हुए एकांश की आंखें नम हो गईं थी… कुछ आंसू चुपचाप उसके हाथ पर गिर पड़े

उसने साइड टेबल की तरफ़ देखा, वहां उनकी एक प्यारी सी फोटो रखी थी, वही तस्वीर जिसे वो सबसे ज़्यादा पसंद करता था…

वो मुस्कुराया जैसे उस फोटो में भी उसने अपनी अक्षिता की शरारत देख ली हो

"अक्षु, मेरी तरफ देखो ना…"

एकांश की आवाज बहुत धीमी थी मानो बस वो ये सिर्फ अक्षिता से कहना चाहता हो

"मैं रो नहीं रहा हूँ… और न ही उदास हूँ... मैं खुश हूँ… या कम से कम खुश रहने की कोशिश कर रहा हूँ, जैसे तुमसे वादा किया था, मैं अपना वादा निभा रहा हूँ… अब तुम्हारी बारी है अक्षु, तुमने मुझसे वादा किया था कि तुम मेरे पास वापस आओगी… है ना?"

ये कहते हुए उसने अपना माथा उसके हाथ पर रख दिया… उसकी हथेली की गर्माहट को अपने चेहरे पर महसूस करने लगा जैसे वही अब उसकी सबसे बड़ी उम्मीद हो...

उसी वक्त दरवाज़े पर खड़े थे डॉ. अवस्थी, वो चुपचाप उस इंसान को देख रहे थे… जो पूरे दिल से सिर्फ़ अपने प्यार के जागने की दुआ कर रहा था

उन्होंने अपने करियर में ऐसे कई रिश्ते देखे थे, लोगों को अपने अपनों के लिए रोते देखा था… पर ऐसा निस्वार्थ, ऐसा बेपनाह प्यार शायद ही उन्होंने कभी देखा हो

उन्होंने अब तक किसी लड़के को अपनी प्रेमिका से इतना गहराई से प्यार करते नहीं देखा था,

आजकल तो प्यार एक ट्रेंड बन गया है बस एक कैप्शन भर का, एक इंस्टाग्राम स्टोरी भर का, युवाओं के लिए प्यार अक्सर बस आकर्षण होता है… डेटिंग ऐप्स पर शुरू होता है, और अगर 'वर्क नही किया' तो दूसरा ढूंढ लिया जाता है.. रिश्ते की असली गहराई से ज़्यादा उन्हें उस रिश्ते का दिखावा ज़रूरी लगता है

डॉ. अवस्थी एकांश को देख रहे थे और सोच रहे थे कि जब तक वो एकांश ने नहीं मिले थे वो समझ ही नहीं पाए थे कि सच्चा प्यार होता क्या है....

एकांश रघुवंशी, एक अमीर, बिज़ी, घमंडी कहे जाने वाला बिज़नेसमैन… जिसने उन्हें वो सिखाया जो कोई किताब या मेडिकल केस नहीं सिखा सका... कि प्यार वाकई क्या होता है... हाँ, वो खुद भी अपनी पत्नी से प्यार करते थे… लेकिन वो कुछ और था जो उन्होंने एकांश और अक्षिता के बीच देखा था, वो कुछ अलग ही था… कुछ और ही लेवल का

पिछले दो महीने में जो उन्होंने अपनी आंखों के सामने देखा वो सिर्फ़ एक रिश्ते की कहानी नहीं थी… वो प्यार की परिभाषा थी... एक अमर प्यार की कहानी

चाहे वो दोनों ज़िंदा रहें या ना रहें… लेकिन उनका रिश्ता हमेशा जिंदा रहेगा.. क्योंकि प्रेम वक्त से परे होता है... जो ना हालातों में बंधता है, ना सालों में गिनता है... ज़िंदगी में हम बहुत लोगों से प्यार करते हैं… पर responsibilities, बदलते हालात या फिर वक्त का असर… धीरे-धीरे वो रिश्ते फीके पड़ जाते हैं...

लेकिन एकांश और अक्षिता का प्यार…

वो कुछ और ही था कुछ ऐसा जिसे वक़्त भी नहीं हरा सकता... ये सिर्फ एक रिश्ता नहीं, एक एहसास था और वो हमेशा रहेगा

अक्षिता का केस भी बाकियों से बिल्कुल अलग था... आमतौर पर जिस ट्यूमर को वक्त रहते फटना चाहिए था, उसने बहुत समय ले लिया था और जब फटा, तब तक बहुत देर हो चुकी थी... डॉक्टर्स ने उसे बचाने की पूरी कोशिश की… डॉ. हेनरी फिशर तक ने अपनी हर expertise झोंक दी थी, और जो सबसे critical चीज़ वो कर सकते थे वो था उसके अंदरूनी रक्तस्राव को कंट्रोल करना, ब्लीडिंग तो संभाल लि गई, लेकिन ब्रेन पर जो असर हुआ था, वो रोका नहीं जा सका...

अक्षिता के दिमाग़ का एक हिस्सा डैमेज हो गया… और इसी वजह से वो कोमा में चली गई

अब डॉक्टर्स के पास कोई जवाब नहीं था… ना इस सवाल का कि वो कब जागेगी, ना ही इस बात का कि वो कभी जागेगी भी या नहीं..

उसी वक्त, डॉ. अवस्थी की नज़र एकांश पर पड़ी जो अब भी उसी सादगी से उसके सामने बैठा बात कर रहा था, जैसे वो सब सुन रही हो

डॉ. अवस्थी हल्के से मुस्कराए.. उन्हें एक बात और पता थी, जो उन्होंने अब तक किसी से शेयर नहीं की थी

उन्हें याद था, पिछले महीने की एक रात जब एकांश उनके हाथों को पकड़कर ज़ोर-ज़ोर से रो रहा था उस वक़्त उन्होंने मॉनिटर पर अक्षिता की धड़कनों में हलचल देखी थी…

हर बार जब एकांश वहां होता था तो कुछ न कुछ बदलता था... उसके दिल की बीट्स में हरकत होती थी… जैसे उसके अंदर कुछ जाग रहा हो...

डॉक्टर को धीरे-धीरे ये यकीन होने लगा था कि वो सब सुन सकती है, महसूस कर सकती है… बस अभी रिस्पॉन्ड नहीं कर पा रही

उन्होंने अब तक ये बात एकांश से नहीं कही थी… क्योंकि एक तो वो खुद डॉ. फिशर से इसे कन्फर्म करना चाहते थे,

और दूसरा ये कि वो नहीं चाहते थे कि एकांश की उम्मीदें कहीं फिर से टूट जाएं क्योंकि ये अब एक ज़िंदगी का मामला नहीं रह गया था… ये दो ज़िंदगियों की लड़ाई थी, ये साफ था कि अगर अक्षिता को कुछ हो गया, तो एकांश भी ज़िंदा नहीं बचेगा, कम से कम अंदर से तो बिल्कुल नहीं...

डॉक्टर चुपचाप आगे बढ़े और एकांश के पास जाकर उसके कंधे पर हाथ रखा... एकांश ने ऊपर देखा और हल्की सी मुस्कान दी

"डॉक्टर, देखा आपने? उसके बाल वापस उग रहे हैं!" वो एक बच्चे की तरह खुश होकर बोला

डॉक्टर भी उसकी मुस्कान देखकर मुस्कराए… और बोले,

"मैं तुम्हें एक और चीज़ बताना चाहता हूँ… जिससे तुम्हारी खुशी और बढ़ेगी"

एकांश सीधा खड़ा हो गया उसके चेहरे पर एक चमक आ गई थी

"क्या?" उसने उम्मीद भरी नज़रों से पूछा

डॉक्टर ने मॉनिटर की ओर इशारा किया, "इधर देखो"

"अब उसका हाथ पकड़ो" डॉक्टर ने कहा

एकांश ने उसका हाथ धीरे से थामा… और फिर प्यार से चूम लिया

मॉनिटर पर अचानक कुछ हरकत दिखी और एकांश कुछ पल के लिए एकदम स्तब्ध रह गया

उसने मॉनिटर की तरफ देखा… फिर अक्षिता की तरफ… फिर फिर से मॉनिटर की तरफ

डॉक्टर ने उसके पास आकर मुस्कराते हुए कहा,

"हाँ, वो तुम्हें feel कर सकती है, वो सुन सकती है कि तुम क्या कह रहे हो… और जब तुम उसे छूते हो, तो वो उसे महसूस भी करती है"

एकांश की आंखों से आंसू बहने लगे थे लेकिन उसके होंठों पर एक सच्ची सी मुस्कान थी

"ये एक बहुत पॉज़िटिव साइन है और मैंने इस बारे में डॉ. फिशर से भी बात की है, और उन्होंने कहा कि तुम्हें उससे बात करते रहना चाहिए… उसे महसूस कराते रहो कि तुम वहीं हो...

शायद इससे वो जवाब देने लगे… और धीरे-धीरे… जाग भी जाए"

एकांश ने अपनी आंखें पोंछी और सिर हिलाकर हाँ कहा, अब तो जैसे अब उसके अंदर कोई नई जान आ गई हो... अब उसे सबसे पहले ये बात अपने दोस्तों और पेरेंट्स को बतानी थी

उसने फ़ोन निकाला, जल्दी-जल्दी नंबर डायल किए… और सबको इस नन्हीं सी उम्मीद के बारे में बताया... सुनते ही सबकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा हालाँकि उनकी चिंता एकांश को लेकर अब भी थी… लेकिन पहली बार, वो चिंता एक उम्मीद में बदलती दिख रही थी....



क्रमश:
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एकांश नींद में हल्के से हिला ही था कि उसे अचानक लगा जैसे कोई बहुत ही नरम सा हाथ उसके बालों को सहला रहा है.. उस स्पर्श को महसूस करते ही उसके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान आ गई… उसे पता था, ये किसका हाथ था...

अक्षिता का...

धीरे से उसने अपनी आँखें खोलीं… लेकिन कमरे में कोई नहीं था, सच्चाई से सामना होते ही एकांश का चेहरा उतर गया था, ये पहली बार नहीं था जब उसे ऐसा महसूस हुआ था जैसे अक्षिता उसके पास हो… बिल्कुल पास...

वो तकिए में खुद को और अंदर तक समेटता चला गया, जैसे उसमें छुप जाना चाहता हो.. उसने चादर को अपने पास खींचा… और जैसे ही उसने उसे सूंघा, उसकी आँखें नम हो गईं, अब भी उसकी चादर में वही खुशबू थी… वही महक… जो उसे एकदम अक्षिता के पास ले जाती थी... एक पल को उसे सच में लगा जैसे वो यहीं, उसी बिस्तर पर, उसके साथ है

वो उठकर बैठ गया और उसकी नजर सामने बनी दीवार पर गई, जिस पर अक्षिता का बनाया हुआ फोटो कोलाज था

अब ये उसकी रोज़ की आदत बन गई थी, वो सुबह उठते ही सबसे पहले उसकी मुस्कुराती हुई तस्वीर को देखता, वहा मौजूद हर तस्वीर जैसे कोई किस्सा सुना रही थी.. और फिर उसकी नज़र उस एक फोटो पर अटक गई जो अस्पताल में ऐड्मिट होने से ठीक पहले ली गई थी

वो उसके कंधे पर झुकी हुई थी… और एकांश उसका माथा चूम रहा था.. ये फोटो अक्षिता की मम्मी ने चुपचाप खींच ली थी और तब शायद किसी ने सोचा भी नहीं था, कि ये उनकी आख़िरी तस्वीर बन जाएगी…

उसकी आँख से एक आंसू बह निकला… और तभी उसे फिर से वही एहसास हुआ जैसे किसी ने प्यार से उसके कंधे पर हाथ रखा हो

उसने पलटकर देखा… और वो वहीं थी... उसकी आंखों में झाँकती हुई

वो कुछ नहीं बोला… बस उसने आंखों से बहते उन आंसुओं को पोंछ दिया, और फिर उसके माथे पर एक हल्का सा किस रख दिया, जैसे वो हमेशा करता था

उसने अक्षिता की अपने पास की मौजूदगी को पूरी तरह महसूस किया… और आंखें बंद कर ली.. लेकिन जब उसने दोबारा आंखें खोलीं तब वो वहाँ नहीं थी... पर एकांश जानता था… वो यहीं कहीं है.. उसे अब भी हर पल उसकी मौजूदगी का एहसास होता था और यही बात उसे सबसे ज़्यादा सुकून देती थी...

क्योंकि अक्षिता ने उससे वादा किया था कि वो कभी उसे अकेला नहीं छोड़ेगी.. और वो अब भी अपने वादे पर कायम थी...

जब एकांश ने ये बात अक्षिता के मम्मी-पापा को बताई वो बस मुस्कुराये लेकिन कोई कुछ बोला नहीं पर एकांश उनकी आँखों मे देख उनके मन की बात को समझ रहा था, उन्हे लग रहा था की वो ये सब बस अपनी कल्पनाओ मे महसूस कर रहा है

लेकिन एकांश को इससे फर्क नहीं पड़ता था.. उसे कोई चिंता नाही थी की लोग क्या सोचते है, उसे पागल कहते है या उसकी बात को वहम बताते है, उसके लिए तो बस एक ही बात मायने रखती थी, अक्षिता उसके साथ थी और यही बात उसे अब भी होश में रखे हुए थी..

उसे पूरा यकीन था कि वो वापस आएगी.. क्योंकि वो जानती है… एकांश उसके बिना नहीं रह सकता.. और कम से कम उसी की ख़ातिर… उसके प्यार की खातिर… वो ज़रूर लौटेगी..

एकांश जल्दी से तैयार हुआ और बाहर आ गया,

डाइनिंग टेबल पर अक्षिता के मम्मी-पापा बैठे हुए थे एकदम चुपचाप, उदास… और शायद भूखे भी, पर खाने का मन ही कहाँ था किसी का?

"Good morning!" एकांश की आवाज़ जैसे कमरे की उदासी को थोड़ी देर के लिए रोक गई, वो मुस्कराते हुए कुर्सी खींचकर बैठ गया और शांति से नाश्ता करने लगा, आज उसके बर्ताव मे कुछ तो अलग था

अक्षिता के मम्मी-पापा उसे यू देख हैरान रह गए...

वो बस उसे देखे जा रहे थे, सोच रहे थे की कल तक जो लड़का टूटा हुआ था, बिखरा हुआ था… आज इतनी शांति से नाश्ता कर रहा है?

ऐसा क्या हुआ है? कौन सी बात है जिसने उसके अंदर का दर्द कुछ हल्का कर दिया?

वो इसी सोच में थे कि उन्होंने उसकी आवाज़ सुनी

"मैं निकल रहा हूँ," एकांश ने कहा और उठने लगा

"एकांश बेटा…" अक्षिता की मम्मी ने उसे आवाज़ दी

"तुम्हें क्या हुआ है?" उन्होंने धीरे से पूछा

"मुझे? कुछ भी तो नहीं, सब ठीक है" एकांश ने हल्का सा मुसकुराते हुए कहा

"पिछले पूरे महीने तुम इतने डिप्रेस थे कि हमें डर लगने लगा था कि हम तुम्हें भी खो देंगे… लेकिन पिछले एक हफ्ते से तुममें कुछ बदला-बदला सा है... खुश लग रहे हो, क्या हुआ है बेटा?" अक्षिता के पापा ने पूछा

एकांश ने बस हल्की सी मुस्कान दी लेकिन कुछ नहीं बोला

"एकांश… प्लीज़ बेटा, हमें तुम्हारी फिक्र है," अक्षिता की मम्मी ने कहा

"मम्मी आप चिंता न कीजिए… मैं खुश दिख रहा हूँ क्योंकि मैं वाकई खुश हूँ" एकांश ने मुस्कुराते हुए कहा और एक पल रुका और फिर धीरे से बोला

"और इसका कारण ये है… कि मैं उसकी presence को महसूस करता हूँ, वो मेरे साथ है… और यही मेरी खुशी की वजह है" ये कहकर वो कमरे से बाहर चला गया और पीछे छोड़ गया वो चिंतित निगाहे जो उसकी मुस्कराहट तो देख पा रही थीं… पर उस मुस्कराहट के पीछे का भरोसा अभी भी पूरी तरह समझ नहीं पा रही थीं..

--

एकांश ने धीरे से दरवाज़ा खोला… और चुपचाप कमरे में झाँका.. अंदर वही चेहरा था… जो उसके लिए सुकून का दूसरा नाम बन चुका था... वो मुस्कुराया और धीरे-धीरे उस बिस्तर की तरफ़ बढ़ा जहाँ वो लड़की शांत, गहरी नींद में लेटी हुई थी… जैसे किसी दूसरी दुनिया में हो..

उसने अपने हाथ से उसके गाल को बड़े प्यार से छुआ… और फिर उसके माथे पर हल्का सा किस किया... उसके बालों की तरफ़ देखा, खासकर उस जगह, जहाँ सर्जरी हुई थी... पट्टी अभी भी बंधी थी… और उसे देखकर उसके चेहरे पर एक तकलीफ़-सी आई… सोचकर कि उसे कितना दर्द झेलना पड़ा होगा

लेकिन उसी वक़्त उसकी नज़र उस छोटे से हिस्से पर पड़ी जहाँ बाल दोबारा उगने लगे थे…

एकांश हल्के से मुस्कुराया

ये छोटा सा बदलाव उसके लिए एक बड़ी राहत जैसा था, जैसे कोई चुपचाप कह रहा हो कि “वो ठीक हो रही है…”

वो उसके पास बैठ गया, और उसने उसका हाथ अपने हाथों में लिया, उसके हाथ को अपने होंठों से छूते हुए एकांश ने धीमे से फुसफुसाते हुए कहा

"Please जाग जाओ अक्षु… मैं यहीं हूँ… तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूँ"

और फिर एक पल ठहरकर उसने धीरे से कहा..

"अक्षु, तुम्हारे मम्मी-पापा परेशान हैं, सब लोग बस तुम्हारे उठने का इंतज़ार कर रहे हैं… प्लीज़, अपनी आंखें खोलो ना…"

बोलते हुए एकांश की आंखें नम हो गईं थी… कुछ आंसू चुपचाप उसके हाथ पर गिर पड़े

उसने साइड टेबल की तरफ़ देखा, वहां उनकी एक प्यारी सी फोटो रखी थी, वही तस्वीर जिसे वो सबसे ज़्यादा पसंद करता था…

वो मुस्कुराया जैसे उस फोटो में भी उसने अपनी अक्षिता की शरारत देख ली हो

"अक्षु, मेरी तरफ देखो ना…"

एकांश की आवाज बहुत धीमी थी मानो बस वो ये सिर्फ अक्षिता से कहना चाहता हो

"मैं रो नहीं रहा हूँ… और न ही उदास हूँ... मैं खुश हूँ… या कम से कम खुश रहने की कोशिश कर रहा हूँ, जैसे तुमसे वादा किया था, मैं अपना वादा निभा रहा हूँ… अब तुम्हारी बारी है अक्षु, तुमने मुझसे वादा किया था कि तुम मेरे पास वापस आओगी… है ना?"

ये कहते हुए उसने अपना माथा उसके हाथ पर रख दिया… उसकी हथेली की गर्माहट को अपने चेहरे पर महसूस करने लगा जैसे वही अब उसकी सबसे बड़ी उम्मीद हो...

उसी वक्त दरवाज़े पर खड़े थे डॉ. अवस्थी, वो चुपचाप उस इंसान को देख रहे थे… जो पूरे दिल से सिर्फ़ अपने प्यार के जागने की दुआ कर रहा था

उन्होंने अपने करियर में ऐसे कई रिश्ते देखे थे, लोगों को अपने अपनों के लिए रोते देखा था… पर ऐसा निस्वार्थ, ऐसा बेपनाह प्यार शायद ही उन्होंने कभी देखा हो

उन्होंने अब तक किसी लड़के को अपनी प्रेमिका से इतना गहराई से प्यार करते नहीं देखा था,

आजकल तो प्यार एक ट्रेंड बन गया है बस एक कैप्शन भर का, एक इंस्टाग्राम स्टोरी भर का, युवाओं के लिए प्यार अक्सर बस आकर्षण होता है… डेटिंग ऐप्स पर शुरू होता है, और अगर 'वर्क नही किया' तो दूसरा ढूंढ लिया जाता है.. रिश्ते की असली गहराई से ज़्यादा उन्हें उस रिश्ते का दिखावा ज़रूरी लगता है

डॉ. अवस्थी एकांश को देख रहे थे और सोच रहे थे कि जब तक वो एकांश ने नहीं मिले थे वो समझ ही नहीं पाए थे कि सच्चा प्यार होता क्या है....

एकांश रघुवंशी, एक अमीर, बिज़ी, घमंडी कहे जाने वाला बिज़नेसमैन… जिसने उन्हें वो सिखाया जो कोई किताब या मेडिकल केस नहीं सिखा सका... कि प्यार वाकई क्या होता है... हाँ, वो खुद भी अपनी पत्नी से प्यार करते थे… लेकिन वो कुछ और था जो उन्होंने एकांश और अक्षिता के बीच देखा था, वो कुछ अलग ही था… कुछ और ही लेवल का

पिछले दो महीने में जो उन्होंने अपनी आंखों के सामने देखा वो सिर्फ़ एक रिश्ते की कहानी नहीं थी… वो प्यार की परिभाषा थी... एक अमर प्यार की कहानी

चाहे वो दोनों ज़िंदा रहें या ना रहें… लेकिन उनका रिश्ता हमेशा जिंदा रहेगा.. क्योंकि प्रेम वक्त से परे होता है... जो ना हालातों में बंधता है, ना सालों में गिनता है... ज़िंदगी में हम बहुत लोगों से प्यार करते हैं… पर responsibilities, बदलते हालात या फिर वक्त का असर… धीरे-धीरे वो रिश्ते फीके पड़ जाते हैं...

लेकिन एकांश और अक्षिता का प्यार…

वो कुछ और ही था कुछ ऐसा जिसे वक़्त भी नहीं हरा सकता... ये सिर्फ एक रिश्ता नहीं, एक एहसास था और वो हमेशा रहेगा

अक्षिता का केस भी बाकियों से बिल्कुल अलग था... आमतौर पर जिस ट्यूमर को वक्त रहते फटना चाहिए था, उसने बहुत समय ले लिया था और जब फटा, तब तक बहुत देर हो चुकी थी... डॉक्टर्स ने उसे बचाने की पूरी कोशिश की… डॉ. हेनरी फिशर तक ने अपनी हर expertise झोंक दी थी, और जो सबसे critical चीज़ वो कर सकते थे वो था उसके अंदरूनी रक्तस्राव को कंट्रोल करना, ब्लीडिंग तो संभाल लि गई, लेकिन ब्रेन पर जो असर हुआ था, वो रोका नहीं जा सका...

अक्षिता के दिमाग़ का एक हिस्सा डैमेज हो गया… और इसी वजह से वो कोमा में चली गई

अब डॉक्टर्स के पास कोई जवाब नहीं था… ना इस सवाल का कि वो कब जागेगी, ना ही इस बात का कि वो कभी जागेगी भी या नहीं..

उसी वक्त, डॉ. अवस्थी की नज़र एकांश पर पड़ी जो अब भी उसी सादगी से उसके सामने बैठा बात कर रहा था, जैसे वो सब सुन रही हो

डॉ. अवस्थी हल्के से मुस्कराए.. उन्हें एक बात और पता थी, जो उन्होंने अब तक किसी से शेयर नहीं की थी

उन्हें याद था, पिछले महीने की एक रात जब एकांश उनके हाथों को पकड़कर ज़ोर-ज़ोर से रो रहा था उस वक़्त उन्होंने मॉनिटर पर अक्षिता की धड़कनों में हलचल देखी थी…

हर बार जब एकांश वहां होता था तो कुछ न कुछ बदलता था... उसके दिल की बीट्स में हरकत होती थी… जैसे उसके अंदर कुछ जाग रहा हो...

डॉक्टर को धीरे-धीरे ये यकीन होने लगा था कि वो सब सुन सकती है, महसूस कर सकती है… बस अभी रिस्पॉन्ड नहीं कर पा रही

उन्होंने अब तक ये बात एकांश से नहीं कही थी… क्योंकि एक तो वो खुद डॉ. फिशर से इसे कन्फर्म करना चाहते थे,

और दूसरा ये कि वो नहीं चाहते थे कि एकांश की उम्मीदें कहीं फिर से टूट जाएं क्योंकि ये अब एक ज़िंदगी का मामला नहीं रह गया था… ये दो ज़िंदगियों की लड़ाई थी, ये साफ था कि अगर अक्षिता को कुछ हो गया, तो एकांश भी ज़िंदा नहीं बचेगा, कम से कम अंदर से तो बिल्कुल नहीं...

डॉक्टर चुपचाप आगे बढ़े और एकांश के पास जाकर उसके कंधे पर हाथ रखा... एकांश ने ऊपर देखा और हल्की सी मुस्कान दी

"डॉक्टर, देखा आपने? उसके बाल वापस उग रहे हैं!" वो एक बच्चे की तरह खुश होकर बोला

डॉक्टर भी उसकी मुस्कान देखकर मुस्कराए… और बोले,

"मैं तुम्हें एक और चीज़ बताना चाहता हूँ… जिससे तुम्हारी खुशी और बढ़ेगी"

एकांश सीधा खड़ा हो गया उसके चेहरे पर एक चमक आ गई थी

"क्या?" उसने उम्मीद भरी नज़रों से पूछा

डॉक्टर ने मॉनिटर की ओर इशारा किया, "इधर देखो"

"अब उसका हाथ पकड़ो" डॉक्टर ने कहा

एकांश ने उसका हाथ धीरे से थामा… और फिर प्यार से चूम लिया

मॉनिटर पर अचानक कुछ हरकत दिखी और एकांश कुछ पल के लिए एकदम स्तब्ध रह गया

उसने मॉनिटर की तरफ देखा… फिर अक्षिता की तरफ… फिर फिर से मॉनिटर की तरफ

डॉक्टर ने उसके पास आकर मुस्कराते हुए कहा,

"हाँ, वो तुम्हें feel कर सकती है, वो सुन सकती है कि तुम क्या कह रहे हो… और जब तुम उसे छूते हो, तो वो उसे महसूस भी करती है"

एकांश की आंखों से आंसू बहने लगे थे लेकिन उसके होंठों पर एक सच्ची सी मुस्कान थी

"ये एक बहुत पॉज़िटिव साइन है और मैंने इस बारे में डॉ. फिशर से भी बात की है, और उन्होंने कहा कि तुम्हें उससे बात करते रहना चाहिए… उसे महसूस कराते रहो कि तुम वहीं हो...

शायद इससे वो जवाब देने लगे… और धीरे-धीरे… जाग भी जाए"

एकांश ने अपनी आंखें पोंछी और सिर हिलाकर हाँ कहा, अब तो जैसे अब उसके अंदर कोई नई जान आ गई हो... अब उसे सबसे पहले ये बात अपने दोस्तों और पेरेंट्स को बतानी थी

उसने फ़ोन निकाला, जल्दी-जल्दी नंबर डायल किए… और सबको इस नन्हीं सी उम्मीद के बारे में बताया... सुनते ही सबकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा हालाँकि उनकी चिंता एकांश को लेकर अब भी थी… लेकिन पहली बार, वो चिंता एक उम्मीद में बदलती दिख रही थी....



क्रमश:
Nice and superb update....
 
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