Nice update....Update 54
एकांश नींद में हल्के से हिला ही था कि उसे अचानक लगा जैसे कोई बहुत ही नरम सा हाथ उसके बालों को सहला रहा है.. उस स्पर्श को महसूस करते ही उसके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान आ गई… उसे पता था, ये किसका हाथ था...
अक्षिता का...
धीरे से उसने अपनी आँखें खोलीं… लेकिन कमरे में कोई नहीं था, सच्चाई से सामना होते ही एकांश का चेहरा उतर गया था, ये पहली बार नहीं था जब उसे ऐसा महसूस हुआ था जैसे अक्षिता उसके पास हो… बिल्कुल पास...
वो तकिए में खुद को और अंदर तक समेटता चला गया, जैसे उसमें छुप जाना चाहता हो.. उसने चादर को अपने पास खींचा… और जैसे ही उसने उसे सूंघा, उसकी आँखें नम हो गईं, अब भी उसकी चादर में वही खुशबू थी… वही महक… जो उसे एकदम अक्षिता के पास ले जाती थी... एक पल को उसे सच में लगा जैसे वो यहीं, उसी बिस्तर पर, उसके साथ है
वो उठकर बैठ गया और उसकी नजर सामने बनी दीवार पर गई, जिस पर अक्षिता का बनाया हुआ फोटो कोलाज था
अब ये उसकी रोज़ की आदत बन गई थी, वो सुबह उठते ही सबसे पहले उसकी मुस्कुराती हुई तस्वीर को देखता, वहा मौजूद हर तस्वीर जैसे कोई किस्सा सुना रही थी.. और फिर उसकी नज़र उस एक फोटो पर अटक गई जो अस्पताल में ऐड्मिट होने से ठीक पहले ली गई थी
वो उसके कंधे पर झुकी हुई थी… और एकांश उसका माथा चूम रहा था.. ये फोटो अक्षिता की मम्मी ने चुपचाप खींच ली थी और तब शायद किसी ने सोचा भी नहीं था, कि ये उनकी आख़िरी तस्वीर बन जाएगी…
उसकी आँख से एक आंसू बह निकला… और तभी उसे फिर से वही एहसास हुआ जैसे किसी ने प्यार से उसके कंधे पर हाथ रखा हो
उसने पलटकर देखा… और वो वहीं थी... उसकी आंखों में झाँकती हुई
वो कुछ नहीं बोला… बस उसने आंखों से बहते उन आंसुओं को पोंछ दिया, और फिर उसके माथे पर एक हल्का सा किस रख दिया, जैसे वो हमेशा करता था
उसने अक्षिता की अपने पास की मौजूदगी को पूरी तरह महसूस किया… और आंखें बंद कर ली.. लेकिन जब उसने दोबारा आंखें खोलीं तब वो वहाँ नहीं थी... पर एकांश जानता था… वो यहीं कहीं है.. उसे अब भी हर पल उसकी मौजूदगी का एहसास होता था और यही बात उसे सबसे ज़्यादा सुकून देती थी...
क्योंकि अक्षिता ने उससे वादा किया था कि वो कभी उसे अकेला नहीं छोड़ेगी.. और वो अब भी अपने वादे पर कायम थी...
जब एकांश ने ये बात अक्षिता के मम्मी-पापा को बताई वो बस मुस्कुराये लेकिन कोई कुछ बोला नहीं पर एकांश उनकी आँखों मे देख उनके मन की बात को समझ रहा था, उन्हे लग रहा था की वो ये सब बस अपनी कल्पनाओ मे महसूस कर रहा है
लेकिन एकांश को इससे फर्क नहीं पड़ता था.. उसे कोई चिंता नाही थी की लोग क्या सोचते है, उसे पागल कहते है या उसकी बात को वहम बताते है, उसके लिए तो बस एक ही बात मायने रखती थी, अक्षिता उसके साथ थी और यही बात उसे अब भी होश में रखे हुए थी..
उसे पूरा यकीन था कि वो वापस आएगी.. क्योंकि वो जानती है… एकांश उसके बिना नहीं रह सकता.. और कम से कम उसी की ख़ातिर… उसके प्यार की खातिर… वो ज़रूर लौटेगी..
एकांश जल्दी से तैयार हुआ और बाहर आ गया,
डाइनिंग टेबल पर अक्षिता के मम्मी-पापा बैठे हुए थे एकदम चुपचाप, उदास… और शायद भूखे भी, पर खाने का मन ही कहाँ था किसी का?
"Good morning!" एकांश की आवाज़ जैसे कमरे की उदासी को थोड़ी देर के लिए रोक गई, वो मुस्कराते हुए कुर्सी खींचकर बैठ गया और शांति से नाश्ता करने लगा, आज उसके बर्ताव मे कुछ तो अलग था
अक्षिता के मम्मी-पापा उसे यू देख हैरान रह गए...
वो बस उसे देखे जा रहे थे, सोच रहे थे की कल तक जो लड़का टूटा हुआ था, बिखरा हुआ था… आज इतनी शांति से नाश्ता कर रहा है?
ऐसा क्या हुआ है? कौन सी बात है जिसने उसके अंदर का दर्द कुछ हल्का कर दिया?
वो इसी सोच में थे कि उन्होंने उसकी आवाज़ सुनी
"मैं निकल रहा हूँ," एकांश ने कहा और उठने लगा
"एकांश बेटा…" अक्षिता की मम्मी ने उसे आवाज़ दी
"तुम्हें क्या हुआ है?" उन्होंने धीरे से पूछा
"मुझे? कुछ भी तो नहीं, सब ठीक है" एकांश ने हल्का सा मुसकुराते हुए कहा
"पिछले पूरे महीने तुम इतने डिप्रेस थे कि हमें डर लगने लगा था कि हम तुम्हें भी खो देंगे… लेकिन पिछले एक हफ्ते से तुममें कुछ बदला-बदला सा है... खुश लग रहे हो, क्या हुआ है बेटा?" अक्षिता के पापा ने पूछा
एकांश ने बस हल्की सी मुस्कान दी लेकिन कुछ नहीं बोला
"एकांश… प्लीज़ बेटा, हमें तुम्हारी फिक्र है," अक्षिता की मम्मी ने कहा
"मम्मी आप चिंता न कीजिए… मैं खुश दिख रहा हूँ क्योंकि मैं वाकई खुश हूँ" एकांश ने मुस्कुराते हुए कहा और एक पल रुका और फिर धीरे से बोला
"और इसका कारण ये है… कि मैं उसकी presence को महसूस करता हूँ, वो मेरे साथ है… और यही मेरी खुशी की वजह है" ये कहकर वो कमरे से बाहर चला गया और पीछे छोड़ गया वो चिंतित निगाहे जो उसकी मुस्कराहट तो देख पा रही थीं… पर उस मुस्कराहट के पीछे का भरोसा अभी भी पूरी तरह समझ नहीं पा रही थीं..
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एकांश ने धीरे से दरवाज़ा खोला… और चुपचाप कमरे में झाँका.. अंदर वही चेहरा था… जो उसके लिए सुकून का दूसरा नाम बन चुका था... वो मुस्कुराया और धीरे-धीरे उस बिस्तर की तरफ़ बढ़ा जहाँ वो लड़की शांत, गहरी नींद में लेटी हुई थी… जैसे किसी दूसरी दुनिया में हो..
उसने अपने हाथ से उसके गाल को बड़े प्यार से छुआ… और फिर उसके माथे पर हल्का सा किस किया... उसके बालों की तरफ़ देखा, खासकर उस जगह, जहाँ सर्जरी हुई थी... पट्टी अभी भी बंधी थी… और उसे देखकर उसके चेहरे पर एक तकलीफ़-सी आई… सोचकर कि उसे कितना दर्द झेलना पड़ा होगा
लेकिन उसी वक़्त उसकी नज़र उस छोटे से हिस्से पर पड़ी जहाँ बाल दोबारा उगने लगे थे…
एकांश हल्के से मुस्कुराया
ये छोटा सा बदलाव उसके लिए एक बड़ी राहत जैसा था, जैसे कोई चुपचाप कह रहा हो कि “वो ठीक हो रही है…”
वो उसके पास बैठ गया, और उसने उसका हाथ अपने हाथों में लिया, उसके हाथ को अपने होंठों से छूते हुए एकांश ने धीमे से फुसफुसाते हुए कहा
"Please जाग जाओ अक्षु… मैं यहीं हूँ… तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूँ"
और फिर एक पल ठहरकर उसने धीरे से कहा..
"अक्षु, तुम्हारे मम्मी-पापा परेशान हैं, सब लोग बस तुम्हारे उठने का इंतज़ार कर रहे हैं… प्लीज़, अपनी आंखें खोलो ना…"
बोलते हुए एकांश की आंखें नम हो गईं थी… कुछ आंसू चुपचाप उसके हाथ पर गिर पड़े
उसने साइड टेबल की तरफ़ देखा, वहां उनकी एक प्यारी सी फोटो रखी थी, वही तस्वीर जिसे वो सबसे ज़्यादा पसंद करता था…
वो मुस्कुराया जैसे उस फोटो में भी उसने अपनी अक्षिता की शरारत देख ली हो
"अक्षु, मेरी तरफ देखो ना…"
एकांश की आवाज बहुत धीमी थी मानो बस वो ये सिर्फ अक्षिता से कहना चाहता हो
"मैं रो नहीं रहा हूँ… और न ही उदास हूँ... मैं खुश हूँ… या कम से कम खुश रहने की कोशिश कर रहा हूँ, जैसे तुमसे वादा किया था, मैं अपना वादा निभा रहा हूँ… अब तुम्हारी बारी है अक्षु, तुमने मुझसे वादा किया था कि तुम मेरे पास वापस आओगी… है ना?"
ये कहते हुए उसने अपना माथा उसके हाथ पर रख दिया… उसकी हथेली की गर्माहट को अपने चेहरे पर महसूस करने लगा जैसे वही अब उसकी सबसे बड़ी उम्मीद हो...
उसी वक्त दरवाज़े पर खड़े थे डॉ. अवस्थी, वो चुपचाप उस इंसान को देख रहे थे… जो पूरे दिल से सिर्फ़ अपने प्यार के जागने की दुआ कर रहा था
उन्होंने अपने करियर में ऐसे कई रिश्ते देखे थे, लोगों को अपने अपनों के लिए रोते देखा था… पर ऐसा निस्वार्थ, ऐसा बेपनाह प्यार शायद ही उन्होंने कभी देखा हो
उन्होंने अब तक किसी लड़के को अपनी प्रेमिका से इतना गहराई से प्यार करते नहीं देखा था,
आजकल तो प्यार एक ट्रेंड बन गया है बस एक कैप्शन भर का, एक इंस्टाग्राम स्टोरी भर का, युवाओं के लिए प्यार अक्सर बस आकर्षण होता है… डेटिंग ऐप्स पर शुरू होता है, और अगर 'वर्क नही किया' तो दूसरा ढूंढ लिया जाता है.. रिश्ते की असली गहराई से ज़्यादा उन्हें उस रिश्ते का दिखावा ज़रूरी लगता है
डॉ. अवस्थी एकांश को देख रहे थे और सोच रहे थे कि जब तक वो एकांश ने नहीं मिले थे वो समझ ही नहीं पाए थे कि सच्चा प्यार होता क्या है....
एकांश रघुवंशी, एक अमीर, बिज़ी, घमंडी कहे जाने वाला बिज़नेसमैन… जिसने उन्हें वो सिखाया जो कोई किताब या मेडिकल केस नहीं सिखा सका... कि प्यार वाकई क्या होता है... हाँ, वो खुद भी अपनी पत्नी से प्यार करते थे… लेकिन वो कुछ और था जो उन्होंने एकांश और अक्षिता के बीच देखा था, वो कुछ अलग ही था… कुछ और ही लेवल का
पिछले दो महीने में जो उन्होंने अपनी आंखों के सामने देखा वो सिर्फ़ एक रिश्ते की कहानी नहीं थी… वो प्यार की परिभाषा थी... एक अमर प्यार की कहानी
चाहे वो दोनों ज़िंदा रहें या ना रहें… लेकिन उनका रिश्ता हमेशा जिंदा रहेगा.. क्योंकि प्रेम वक्त से परे होता है... जो ना हालातों में बंधता है, ना सालों में गिनता है... ज़िंदगी में हम बहुत लोगों से प्यार करते हैं… पर responsibilities, बदलते हालात या फिर वक्त का असर… धीरे-धीरे वो रिश्ते फीके पड़ जाते हैं...
लेकिन एकांश और अक्षिता का प्यार…
वो कुछ और ही था कुछ ऐसा जिसे वक़्त भी नहीं हरा सकता... ये सिर्फ एक रिश्ता नहीं, एक एहसास था और वो हमेशा रहेगा
अक्षिता का केस भी बाकियों से बिल्कुल अलग था... आमतौर पर जिस ट्यूमर को वक्त रहते फटना चाहिए था, उसने बहुत समय ले लिया था और जब फटा, तब तक बहुत देर हो चुकी थी... डॉक्टर्स ने उसे बचाने की पूरी कोशिश की… डॉ. हेनरी फिशर तक ने अपनी हर expertise झोंक दी थी, और जो सबसे critical चीज़ वो कर सकते थे वो था उसके अंदरूनी रक्तस्राव को कंट्रोल करना, ब्लीडिंग तो संभाल लि गई, लेकिन ब्रेन पर जो असर हुआ था, वो रोका नहीं जा सका...
अक्षिता के दिमाग़ का एक हिस्सा डैमेज हो गया… और इसी वजह से वो कोमा में चली गई
अब डॉक्टर्स के पास कोई जवाब नहीं था… ना इस सवाल का कि वो कब जागेगी, ना ही इस बात का कि वो कभी जागेगी भी या नहीं..
उसी वक्त, डॉ. अवस्थी की नज़र एकांश पर पड़ी जो अब भी उसी सादगी से उसके सामने बैठा बात कर रहा था, जैसे वो सब सुन रही हो
डॉ. अवस्थी हल्के से मुस्कराए.. उन्हें एक बात और पता थी, जो उन्होंने अब तक किसी से शेयर नहीं की थी
उन्हें याद था, पिछले महीने की एक रात जब एकांश उनके हाथों को पकड़कर ज़ोर-ज़ोर से रो रहा था उस वक़्त उन्होंने मॉनिटर पर अक्षिता की धड़कनों में हलचल देखी थी…
हर बार जब एकांश वहां होता था तो कुछ न कुछ बदलता था... उसके दिल की बीट्स में हरकत होती थी… जैसे उसके अंदर कुछ जाग रहा हो...
डॉक्टर को धीरे-धीरे ये यकीन होने लगा था कि वो सब सुन सकती है, महसूस कर सकती है… बस अभी रिस्पॉन्ड नहीं कर पा रही
उन्होंने अब तक ये बात एकांश से नहीं कही थी… क्योंकि एक तो वो खुद डॉ. फिशर से इसे कन्फर्म करना चाहते थे,
और दूसरा ये कि वो नहीं चाहते थे कि एकांश की उम्मीदें कहीं फिर से टूट जाएं क्योंकि ये अब एक ज़िंदगी का मामला नहीं रह गया था… ये दो ज़िंदगियों की लड़ाई थी, ये साफ था कि अगर अक्षिता को कुछ हो गया, तो एकांश भी ज़िंदा नहीं बचेगा, कम से कम अंदर से तो बिल्कुल नहीं...
डॉक्टर चुपचाप आगे बढ़े और एकांश के पास जाकर उसके कंधे पर हाथ रखा... एकांश ने ऊपर देखा और हल्की सी मुस्कान दी
"डॉक्टर, देखा आपने? उसके बाल वापस उग रहे हैं!" वो एक बच्चे की तरह खुश होकर बोला
डॉक्टर भी उसकी मुस्कान देखकर मुस्कराए… और बोले,
"मैं तुम्हें एक और चीज़ बताना चाहता हूँ… जिससे तुम्हारी खुशी और बढ़ेगी"
एकांश सीधा खड़ा हो गया उसके चेहरे पर एक चमक आ गई थी
"क्या?" उसने उम्मीद भरी नज़रों से पूछा
डॉक्टर ने मॉनिटर की ओर इशारा किया, "इधर देखो"
"अब उसका हाथ पकड़ो" डॉक्टर ने कहा
एकांश ने उसका हाथ धीरे से थामा… और फिर प्यार से चूम लिया
मॉनिटर पर अचानक कुछ हरकत दिखी और एकांश कुछ पल के लिए एकदम स्तब्ध रह गया
उसने मॉनिटर की तरफ देखा… फिर अक्षिता की तरफ… फिर फिर से मॉनिटर की तरफ
डॉक्टर ने उसके पास आकर मुस्कराते हुए कहा,
"हाँ, वो तुम्हें feel कर सकती है, वो सुन सकती है कि तुम क्या कह रहे हो… और जब तुम उसे छूते हो, तो वो उसे महसूस भी करती है"
एकांश की आंखों से आंसू बहने लगे थे लेकिन उसके होंठों पर एक सच्ची सी मुस्कान थी
"ये एक बहुत पॉज़िटिव साइन है और मैंने इस बारे में डॉ. फिशर से भी बात की है, और उन्होंने कहा कि तुम्हें उससे बात करते रहना चाहिए… उसे महसूस कराते रहो कि तुम वहीं हो...
शायद इससे वो जवाब देने लगे… और धीरे-धीरे… जाग भी जाए"
एकांश ने अपनी आंखें पोंछी और सिर हिलाकर हाँ कहा, अब तो जैसे अब उसके अंदर कोई नई जान आ गई हो... अब उसे सबसे पहले ये बात अपने दोस्तों और पेरेंट्स को बतानी थी
उसने फ़ोन निकाला, जल्दी-जल्दी नंबर डायल किए… और सबको इस नन्हीं सी उम्मीद के बारे में बताया... सुनते ही सबकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा हालाँकि उनकी चिंता एकांश को लेकर अब भी थी… लेकिन पहली बार, वो चिंता एक उम्मीद में बदलती दिख रही थी....
क्रमश: