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Fantasy 'सुप्रीम' एक रहस्यमई सफर

Iron Man

Try and fail. But never give up trying
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Shaandar Romanchak Update 👌
 

KEKIUS MAXIMUS

Supreme
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romanchak update. alex marne ki kagar par pahuch gaya tha par sahi waqt pe stheno ne aake uski jaan bacha li kyunki alex ko jaruri karya karna hai .
posaidon to harami nikla jisne medusa ka rape kiya .mandir me jo galat kaam hua medusa ke saath uski saja posaidon ko milne ki jagah medusa ko shrap ke roop me mili 😔..
shefali magna ka punarjanm hai aur vishaka ke paas magna ki yaade jisko triayam me jaake vaapas lana hai alex ko .stheno ki wajah se alex bhi ab shaktishali ho gaya hai .dekhte hai alex kaise magna ki yaade vapas lata hai ..
magna ke sharir ka antim sanskar kisne kiya 🤔..
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
Staff member
Sectional Moderator
Supreme
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Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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romanchak update. alex marne ki kagar par pahuch gaya tha par sahi waqt pe stheno ne aake uski jaan bacha li kyunki alex ko jaruri karya karna hai .
posaidon to harami nikla jisne medusa ka rape kiya .mandir me jo galat kaam hua medusa ke saath uski saja posaidon ko milne ki jagah medusa ko shrap ke roop me mili 😔..
shefali magna ka punarjanm hai aur vishaka ke paas magna ki yaade jisko triayam me jaake vaapas lana hai alex ko .stheno ki wajah se alex bhi ab shaktishali ho gaya hai .dekhte hai alex kaise magna ki yaade vapas lata hai ..
magna ke sharir ka antim sanskar kisne kiya 🤔.
Medusa ke sath sarasar galat hua, balki sabhi log ye jaante hai, sabse badi baat yahi hai, ki uske baad bhi shraap bhi usko hi mila:verysad: Agar apun udhar hota to posidian Ki watt laga deta😡 Alex ko aisi takat mili hai jo ab uski khud ki taqat badha degi, rahi baat megna ki smartiyaan lane ki, to mujhe viswas hai ki apna Alex kar dega☺️
Aapne poocha ki megna ka antim sanskaar kisne kiya ? To bas thoda dimaak per jor daalne ki jarurat hai :shhhh: Thank you very much for your amazing review and superb support bhai :hug:
 
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#129.

शलाका ने त्रिशूल को अपने मस्तक से लगा कर कुछ देर के लिये आँखें बंद कर लीं।

कुछ देर बाद शलाका ने अपनी आँखें खोलीं और कहा- “क्षमा करना क्रिस्टी, पर ऐलेक्स को मैं ढूंढ पाने में असमर्थ हूं, शायद वह पृथ्वी के किसी भी भाग में उपस्थित नहीं है।”

“क्या वो......मर चुका है?” क्रिस्टी ने डरते-डरते पूछा।

“नहीं...वो मरा नहीं है, पर शायद वह किसी ऐसे लोक में है, जो पृथ्वी की सतह से परे है। चिंता ना करो क्रिस्टी, ईश्वर ने चाहा तो वह जल्द ही तुमसे आकर मिलेगा।” शलाका ने क्रिस्टी को सांत्वना देते हुए कहा-
“तुम्हारी दूसरी इच्छा मैं पूरी किये देती हूं।”

कहकर शलाका ने पुनः अपना हाथ हवा में हिलाया। जिससे शैफाली को छोड़ वहां खड़े सभी लोगों के शरीर पर पहनी ड्रेस बदल गयी।

सभी की नयी ड्रेसेज, उनकी पसंद की थीं।

“तुम्हें कुछ नहीं चाहिये क्या आर्यन?” शलाका ने सुयश की आँखों में झांकते हुए प्यार से पूछा।

“मुझे तो सिर्फ सवालों के जवाब चाहिये बस।” सुयश ने कहा।

“पूछो...क्या पूछना चाहते हो?” शलाका ने कहा- “जहां तक सम्भव होगा, मैं तुम्हारे सवालों का जवाब दूंगी।”

“क्या मैं पिछले जन्म में आर्यन था?” सुयश ने पहला प्रश्न किया।

“हां, तुम्हारे पिछले जन्म का नाम आर्यन था।” शलाका ने जवाब दिया।

“तुमने कहा कि तुम 5000 वर्ष से मुझसे दूर थी। तो अगर मैं 5000 वर्ष पहले मर गया था तो इतने वर्षों के बाद मेरा जन्म क्यों हुआ?

“इसका उत्तर इसी लाल किताब ‘वेदान्त रहस्यम्’ में है, पर किसी कारण से मैं यह तुम्हें अभी नहीं बता सकती।“

“इस लाल किताब में!” सुयश के शब्दों में आश्चर्य भर गया- “इस लाल किताब से मेरा क्या रिश्ता है?”

“वेदान्त रहस्यम् मरने से पूर्व तुमने ही लिखी थी, मैं स्वयं इस किताब को इतने वर्षों से ढूंढ रही थी, मुझे भी इस किताब से कई सवालों के जवाब चाहिये।”

“वह दूसरी शलाका कौन थी?”

“अभी मुझे पक्का नहीं पता, पर वो शलाका शायद आकृति थी।” कहते-कहते शलाका के चेहरे पर गुस्से के निशान आ गये।

“वह यह वेदान्त रहस्यम् क्यों छीनना चाहती थी? और तौफीक इस लाल किताब से उसके पास कैसे पहुंच गया था?”

“वेदान्त रहस्यम् में वेदालय की शिक्षा समाप्त होने के बाद के कुछ रहस्य हैं। यह वेदान्त रहस्यम् पूरे ब्रह्मांड का द्वार है, इसके हर पृष्ठ पर व्यक्तियों और स्थानों के अनेकों चित्र अंकित हैं, किसी भी चित्र को छूकर उस व्यक्ति या स्थान के पास जाया जा सकता है। शायद आकृति भी इस किताब के माध्यम से किसी ऐसी जगह पर जाना चाहती है, जिसके बारे में उसे पता नहीं है।”

“तुम देवी हो, मैं, यानि आर्यन मर चुका है, फिर आकृति इतने वर्षों से जिंदा कैसे है?”

“शायद उसने अमृतपान कर रखा है, इसलिये वह अमर हो गयी है।”

“आकृति का चेहरा तुमसे कैसे मिल रहा है? क्या वह रुप बदलने की कला भी जानती है?”

“नहीं...मेरी जानकारी के हिसाब से आकृति रुप बदलने की कला नहीं जानती, पर जब मैं इतने वर्षों से शीतनिद्रा में थी, तो अवश्य ही आकृति ने कुछ और भी शक्तियां प्राप्त की होंगी, पर उसके बारे में अभी मुझे कुछ नहीं पता।”

“तुमने आज से पहले मुझसे सम्पर्क करने की कोशिश क्यों नहीं की?”

“जब देवालय से अपनी पढ़ाई समाप्त करने के बाद तुम गायब हो गये और कई वर्षों तक नहीं मिले, तो मैंने गुरु नीलाभ से तुम्हारे बारे में पूछा। उन्होंने बताया कि तुम्हारा वो जन्म पूरा हो चुका है, अब तुम 5000 वर्षों के बाद ही दूसरा जन्म लेकर मुझसे मिलोगे। इसलिये मैंने भी स्वयं को 5000 वर्षों के लिये शीतनिद्रा में डाल दिया था। मैं भी अभी कुछ दिन पहले ही शीतनिद्रा से जागी हूं।

“शीतनिद्रा से जागते ही मैंने अपनी शक्तियों से तुम्हें ढूंढा। तुम उस समय मेरे मंदिर में मेरी मूर्ति छूने जा रहे थे। देवताओं के आशीर्वाद से मेरी उस मूर्ति को छूने वाला हर इंसान मारा जाता है, जैसे ही तुम मेरी मूर्ति छूने चले मैंने अपनी कुछ शक्तियां तुम्हारे शरीर पर बने टैटू में डाल दीं, जिससे तुम मेरी मूर्ति छूने के बाद भी बच गये।

उन्हीं शक्तियों ने बाद में तुम्हें आदमखोर पेड़ और बर्फ के ड्रैगन से बचाया और जब आज मैंने तुम्हें इस किताब और दूसरी शलाका के साथ देखा तो मैं अपने आप को रोक नहीं पायी।

इस द्वीप के हर एक भाग पर इसके रचयिता का अधिकार है, जो सदैव देवताओं के सम्पर्क में रहता है। अगर उसने मुझे तुम्हें यह सब बताते देख लिया तो मैं भी मुसीबत में पड़ सकती हूं।”

“इस द्वीप का रचयिता कौन है?”

“यह बात मुझे नहीं पता क्यों कि यह बात मेरे जन्म से लगभग 14000 वर्ष पहले की है। अगर मैं शीतनिद्रा में नहीं होती तो शायद इस बात को अब तक जान चुकी होती।”

“मेरे इस टैटू के निशान को तो मैंने इस जन्म में बनवाया था, फिर इसकी आकृति तुम्हारे महल में कैसे दिख रही थी?”

“आर्यन ने एक बार वेदालय में एक प्रतियोगिता के बीच में सूर्यलेखा नाम की एक कन्या की जान बचाई थी और उसे अपनी बहन के रुप में स्वीकार किया था, उस समय तक आर्यन को नहीं पता था कि सूर्यलेखा भगवान सूर्य की पुत्री हैं।

"बाद में भगवान सूर्य ने तुम्हें यह आशीर्वाद दिया था कि तुम हर जन्म में सूर्यवंश में ही जन्म लोगे और हर जन्म में यह सूर्य की आकृति किसी ना किसी प्रकार से तुम्हें प्राप्त हो जायेगी। बाद में इसी सूर्य की आकृति से भगवान सूर्य तुम्हारी किसी ना किसी प्रकार से रक्षा करते रहेंगे।”

“ऐमू को अमरत्व कैसे प्राप्त हुआ?”

“ऐमू को जो हम लोग समझते हैं, वह वो नहीं है। उसमें कुछ राज छिपा है जो मैं तुम्हें समय आने पर बताऊंगी।”

“जब भी मैं तुम्हारी मूर्ति को छूता था, मुझे उसका स्पर्श तुम्हारे शरीर के समान लगता था। ऐसा कैसे होता था? और एक बार तो तुम्हारी मूर्ति छूने पर मुझे आर्यन की आवाज भी सुनाई दी थी। वह सब कैसे हो रहा था?”

“ये चीजें भी सबके सामने पूछोगे क्या?” शलाका ने अर्थपूर्ण ढंग से मुस्कुराते हुए कहा- “अरे मैं तुम्हें हमेशा से देख रही थी, अब ये मौका भी अपने हाथ से जाने देती क्या?”

“हम लोगों ने कुछ नहीं सुना, हम लोग तो पिज्जा खा रहे हैं। आप लोग अपनी बातों को जारी रखें।” शैफाली ने ही-ही करके हंसते हुए कहा और फिर से पिज्जा खाने में जुट गयी।

“तुम्हारे महल में मौजूद वह सिंहासन कैसा था? जिसकी वजह से मैं समय-यात्रा पर चला गया था।”

“वह सिंहासन हमारी शादी पर हमें यतिराज हनुका ने दिया था।”

“एक मिनट...तुमने कहा कि हमारी शादी पर...!” सुयश ने आश्चर्य से कहा- “क्या हमारी शादी हो चुकी थी?”

“जल्दी-जल्दी पिज्जा खाओ सब लोग, उधर एक पार्टी की तैयारी और हो गई है।” शैफाली ने सबको सुयश और शलाका की ओर इशारा करते हुए कहा।

वैसे तो सभी को दोनों के सभी शब्द सुनाई दे रहे थे, फिर भी शैफाली के इस तरह से कहने से सभी जोर से हंस दिये।

“वो...वो....मैं अभी बताना तो नहीं चाहती थी...पर गलती से मुंह से निकल गया। पर सच यही है कि हमारी शादी हो चुकी थी।” शलाका ने सिर झुका कर धीरे से शर्माते हुए कहा।

“हाय..हाय भाभी क्या शर्माती हैं।” क्रिस्टी ने भी चटकारा लेते हुए कहा- “भैया की तो निकल पड़ी। एक मेरा वाला है, पता नहीं कौन से पाताल में चला गया?”

सुयश ने घूरकर क्रिस्टी को देखा और फिर धीरे से हंस दिया।

“हां तो मैं बता रही थी कि वह सिंहासन हनुका ने दिया था और उस से समय यात्रा संभव है। हनुका ने वह सिंहासन इसी लिये दिया था कि हमें जब भी वेदालय की याद आये तो हम उस सिंहासन से वेदालय के समय में जाकर अपनी यादों को ताजा कर सकें।” शलाका ने कहा।

“वेदालय का निर्माण क्यों किया गया?”

“महागुरु नीलाभ ने इस ब्रह्मांड की रक्षा के लिये 6 जोड़ों का चुनाव किया। 10 वर्ष तक उन सभी जोड़ों को वेदों के द्वारा शिक्षा देकर महायोद्धा का रुप दिया गया। उन सभी महायोद्धाओं को अमृतपान करा के एक लोक दिया जाना था, जहां से उन्हें अनंतकाल तक पृथ्वी की रक्षा करनी थी। बाकी के 5 जोड़ों ने अमृतपान करके एक-एक लोक संभाल लिया, पर हमने ऐसा नहीं किया।”

“हमने क्यों ऐसा नहीं किया?”

“क्यों कि हमें आपस में शादी करनी थी और कोई भी महायोद्धा आपस में शादी नहीं कर सकता था इस लिये हमने सारी शक्तियों का त्याग कर दिया और शादी कर ली।”

“जब वेदालय में बाकी के 5 जोड़े थे, तो मैं, तुम और आकृति 3 लोग क्यों थे?”

“वेदालय में तुम और आकृति जोड़े में ही आये थे। मैं अकेली आयी थी।”

“तो महागुरु नीलाभ ने तुम्हें हमारे साथ क्यों रखा?”

“इसके बारे में मुझे भी पता नहीं है। यही तो वह एक परेशानी थी, जिसने हमें 5000 वर्ष तक मिलने का इंतजार कराया।” यह बात बताते समय शलाका की आवाज में दुख ही दुख भर गया।

“फिर शादी के बाद मेरी मृत्यु कैसे हुई?”

“तुम्हें कोई नहीं मार सकता था, तुमने स्वयं अपनी मृत्यु का वरण किया था।”

“मैं भला स्वयं को क्यों मारने लगा और वह भी तब जबकि तुमसे मेरी शादी भी हो चुकी थी।”

“इसी बात का राज तो मुझे भी जानना है और मुझे पूरी उम्मीद है कि इस रहस्य को तुमने ‘वेदान्त रहस्यम्’ में अवश्य लिखा होगा। इसीलिये मैं इस किताब का हजारों वर्षों से मिलने का इंतजार कर रही थी।”

“ऐसा क्या है इस किताब में....मैं भी इसे पढ़ना चाहता हूं।”

“अभी यह किताब मैं लेकर जाऊंगी ....क्यों कि जब तक तुम्हें, तुम्हारी पूरी स्मरण शक्ति ना मिल जाये, तब तक मैं तुम्हें यह किताब पढ़ने नहीं दे सकती।”

“क्यों? तुम आखिर ऐसा क्यों कर रही हो?”

“क्यों कि मैं तुम्हें दोबारा नहीं खोना चाहती और इस किताब में कुछ ना कुछ तो अवश्य ऐसा है, जो अभी तुम्हारे लिये सही नहीं है और वैसे भी इस मायावन में प्रवेश करने के बाद बिना तिलिस्म तोड़े कोई भी बाहर नहीं निकल सकता।”

“अब यह तिलिस्म क्या बला है? क्या आगे और भी मुसीबतें आने वाली हैं?”

“यह द्वीप अटलांटिस का अवशेष है, यह एक कृत्रिम द्वीप है, जिसकी रचना देवताओं ने करवाई थी। इस द्वीप को 4 भागों में विभक्त किया गया है। 2 भाग में सामरा और सीनोर राज्य बनाया गया, जहां इस
द्वीप के पुराने निवासी रहते हैं। तीसरे भाग में मायावन है, जिसमें आप लोग अभी हैं। द्वीप के चौथे भाग को एक खतरनाक तिलिस्म में परिवर्तित किया गया है, जिसे तिलिस्मा कहते हैं। उस तिलिस्मा में 28 द्वार हैं, हर द्वार में एक खतरा छिपा हुआ है। जो भी व्यक्ति इस मायावन में प्रवेश करेगा, वह बिना तिलिस्म तोड़े इस द्वीप से जा नहीं सकता।”

“हे भगवान....यानि की अभी असली मुसीबतें तो शुरु भी नहीं हुईं हैं।” जेनिथ ने अपना सिर पकड़ते हुए कहा- “और जब यह वन ही इतना खतरनाक है, तो वह तिलिस्मा कितना खतरनाक होगा?”

तौफीक और क्रिस्टी भी यह सुन पिज्जा खाना छोड़ शलाका का मुंह देखने लगे।

“आप तो इस द्वीप की देवी हैं। आप तो हमें यहां से निकाल सकती हैं।” क्रिस्टी ने कहा।

“नहीं निकाल सकती....इस द्वीप का पूरा नियंत्रण देवता पोसाइडन ने किसी व्यक्ति को दे रखा है। वह कहां रहता है? और कैसे तिलिस्म का निर्माण करता है? यह मुझे भी नहीं पता। यहां इस मायावन में तो मैं या फिर कोई दूसरी चमत्कारी शक्ति तुम्हारी मदद कर भी देगी, पर तिलिस्मा के अंदर तो कोई चमत्कारी शक्ति भी काम नहीं करती, वहां मैं तो क्या कोई भी तुम्हारी मदद नहीं कर पायेगा?”

“हे भगवान यानि की मरना निश्चित है।” क्रिस्टी ने दुखी स्वर में कहा।

“ऐसा नहीं है, मुझे पता है कि तुम लोग उस तिलिस्मा को अवश्य पार कर लोगे। तुम सभी में विलक्षण प्रतिभाएं हैं और आर्यन तुम्हारे साथ है। आर्यन ने तो देवताओं की धरती पर लगभग सारी प्रतियोगिताएं जीती हैं और तुम लोगों ने देखा कि पहले तुम लोग छोटी से छोटी चीज पर घबरा जाते थे, पर पिछले कुछ दिनों में तुमने स्पाइनोसोरस, टेरोसोर, रेत मानव और ड्रैगन जैसे विशाल जानवरों और मुसीबतों का हराया है, यह काम कोई साधारण इंसान नहीं कर सकता। इसलिये मुझे पूरी उम्मीद है कि तुम लोग तिलिस्मा को तोड़कर ही इस द्वीप से बाहर निकलोगे।”

शलाका के शब्दों ने सभी में उत्साह भर दिया।

“अच्छा अब मुझे जाने की आज्ञा दो।” शलाका ने सुयश को देख मुस्कुराते हुए कहा।

सुयश के पास अब कोई प्रश्न नहीं बचा था, इसलिये उसने धीरे से अपना सिर हिलाकर शलाका को आज्ञा दे दी।

“आप लोगों को कुछ करना हो तो हम लोग अपना चेहरा दूसरी ओर घुमा लें।” क्रिस्टी ने शलाका को छेड़ते हुए कहा।

क्रिस्टी की बात सुन शलाका के चेहरे पर एक भीनी सी मुस्कान बिखर गयी, उसने सुयश की आँखों में झांका और पास आकर सुयश के गले लग गयी-

“इस बार जिंदा वापस आना, मैं 5000 वर्ष के लिये और नहीं सो सकती।” यह कहकर शलाका ने धीरे से सुयश के गालों को चूमा और लाल किताब ले, अपने त्रिशूल को हवा में लहरा कर गायब हो गयी।

सुयश ना जाने कितनी देर तक वैसे ही खड़ा रहा, फिर धीरे-धीरे चलता हुआ बाकी सबके पास आकर पिज्जा खाने लगा, पर उसकी आँखों में एक अधूरी चाहत साफ नजर आ रही थी।

अब वह जीना चाहता था, अपने नहीं किसी और के लिये, जिसने उसके लिये अपना अमरत्व त्याग दिया था।

जिसने उसका 5000 वर्षों तक इंतजार किया था, जो हर पल उस पर नजर रख रही थी, उसकी सुरक्षा के लिये....उसकी नयी जिंदगी की कामना के लिये।”


जारी रहेगा_______✍️
Bhai kya review likhe iska? Dimaak ghoom gaya padh kar, kya kya soch kar likh lete ho? Ye tilisma kitna khatnak hoga? Agar ye mayavan hi itna khatranaak hai to🤯🤯
Bohot se sawalo ka jabab mil gaya.
Aur vedant rahasyam to apne aap me bohot se rahasya chupaye hue hai,
Awesome update guru, mind blowing 👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻❣️❣️❣️
 
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#130.

सुनहरी हिरनी:
(14 जनवरी 2002, सोमवार, 07:30, लैडन नदी के किनारे, पेलो पोनेसस प्रायद्वीप, ग्रीस)

लैडन नदी का शांत जल सूर्य की झिलमिलाती रोशनी में चमचमा रहा था।

जंगल में पक्षियों का कलरव कानों में मधुर रस घोल रहा था। हवाओं में काफी नमी थी।

आकृति उस नदी के किनारे एक पेड़ पर छिप कर बैठी थी।

ऐसा लग रहा था कि जैसे उसे किसी का इंतजार हो।

पेड़ की उस झुकी डाल से पानी में आकृति को अपना चेहरा नजर आ रहा था, जो कि इस समय भी शलाका से मिल रहा था।

“जाने कब छूटेगा इस चेहरे से पीछा मेरा? अब तो अपना चेहरा याद भी नहीं है मुझे....वो भी क्या दिन थे... जब आर्यन को सिर्फ मुझसे प्यार था, पर इस मनहूस शलाका ने उसे मुझसे छीन लिया।....पर अब बस अब नहीं चाहिये मुझे यह चेहरा ... अब मुझे कुछ भी करके आज उस सुनहरी हिरनी को पकड़ना ही होगा, अब वहीं मेरी आखिरी उम्मीद है। सुर्वया ने कहा था कि आज वह सुनहरी हिरनी मुझे यहां जरुर मिलेगी।”

यह सोच आकृति ने फिर से अपनी नजरें पेड़ से कुछ दूर बने रास्ते पर लगा दी।

धीरे-धीरे आकृति को पेड़ पर छिप कर बैठे 3 घंटे बीत गये।

इन 3 घंटों में नदी किनारे असंख्य जानवर आये और पानी पीकर चले गये, पर वह सुनहरी हिरनी नहीं आयी, जिसका कि आकृति को इंतजार था।

तभी आकृति को एक बड़ा सा शेर उधर आता दिखाई दिया।

उस भयानक शेर को देख आकृति ने तुरंत अपने हाथ में पहनी एक नीले रंग की अंगूठी का नग अंदर की ओर दबा दिया।

नग के दबाते ही आकृति अदृश्य हो गई, अब वह नजर नहीं आ रही थी।

शेर के चलने का तरीका बड़ा ही रहस्यमयी था, वह चारो ओर देखता धीरे-धीरे अपने कदम बढ़ा रहा था।

शेर चलते हुए लैडन नदी के किनारे पहुंचा और फिर अपना मुंह पानी में डालकर पानी पीने लगा।

पेट भरकर पानी पीने के बाद उस शेर ने अपना मुंह उठा कर एक जोर की दहाड़ मारी।

वह दहाड़ इतनी तेज थी कि एक बार तो आकृति पेड़ से गिरते-गिरते बची।

तभी बहुत जोर की धम-धम की आवाज सुनाई देने लगी।

ऐसा लग रहा था कि जैसे कोई बहुत बड़ा जानवर चलता हुआ उस दिशा में आ रहा था।

शेर चुपचाप खड़ा उस दिशा की ओर देखने लगा, जिधर से वह आवाज आ रही थी।

कुछ ही देर में आकृति को उस दिशा से एक सुनहरी हिरनी आती हुई दिखाई दी, जिसका आकार उस शेर से भी बड़ा था।

हिरनी की 12 सींघें सोने की बनी दिख रहीं थीं। हिरनी के पैर भी पीतल के बने नजर आ रहे थे और उसके पूरे शरीर से विचित्र सी सुनहरी रोशनी प्रस्फुटित हो रही थी।

“अरे बाप रे! यह हिरनी है या कोई विशाल सांड? क्या इसे ही पकड़ना है मुझे? पर इसे पकड़ना तो आसान नहीं होगा। यह इतनी खतरनाक है, शायद तभी ‘हरक्यूलिस’ को दिये 12 कार्यों में से एक कार्य इसे पकड़ना था।”

आकृति के दिमाग में उस सुनहरी हिरनी को देख अजीब-अजीब से ख्याल आने लगे।

वह सुनहरी हिरनी अपनी मदमस्त चाल से लैडन नदी के किनारे पहुंच गई।

उसे देख शेर ने नदी का रास्ता उसके लिये छोड़ दिया और अपना मुंह दूसरी ओर घुमाकर, इस तरह से चारो ओर देखने लगा, मानो उस सुनहरी हिरनी की वह रखवाली कर रहा हो।

सुनहरी हिरनी ने नदी में अपना पैर रखा और धीरे-धीरे पूरी की पूरी नदी में समा गई।

आकृति के हाथ में अब मकोटा का दिया नीलदंड नजर आने लगा था। वह पुनः अपनी अंगूठी के नग को दबा कर सदृश्य हो गयी।

आकृति ने अपने नीलदंड को हवा में लहराया।

उस नीलदंड से नीले रंग की रोशनी निकली और नदी किनारे खड़े शेर के मुंह पर पड़ी।

अब हवा में लहराती हुई आकृति शेर के सामने जा खड़ी हुई।

शेर ने आकृति को देखकर दहाड़ने की कोशिश की, पर उसके मुंह से आवाज ना निकली।

एक दो बार और कोशिश करने के बाद शायद शेर समझ गया कि वह दहाड़ नहीं पायेगा, इसलिये उसने अब आकृति को घूरकर देखा और हिंसक भाव से उसकी ओर बढ़ने लगा।

आकृति की एक नजर नदी पर भी थी, फिर भी उसने शेर को अनदेखा नहीं किया।

शेर लगातार आकृति की ओर बढ़ रहा था, पर अब आकृति के चेहरे पर मुस्कुराहट दिख रही थी।

आकृति ने अपने नीलदंड को हवा में गायब कर दिया और खाली हाथ ही मुस्कुराते हुए शेर का इंतजार करने लगी।

शेर ने पास पहुंचकर, आकृति की ओर एक लंबी छलांग लगाई।

आकृति पहले से ही सतर्क थी, उसने अपने शरीर को एक ओर झुकाते हुए, एक ही छलांग में शेर की पीठ पर सवार हो गई और अपनी पूरी ताकत से शेर का गला दबाने लगी।

पता नहीं आकृति के हाथों में कितनी शक्ति थी, कि शेर छटपटा कर अपना गला छुड़ाने की कोशिश करने लगा।

तभी आकृति ने एक झटके से शेर के सिर को पीछे की ओर मोड़ दिया।

असीम शक्ति थी आकृति के हाथों में, शेर की गर्दन टूटकर लटक गयी।

एक मिनट से भी कम समय में निहत्थी आकृति ने खूंखार शेर को निपटा दिया था।

अब उसने एक नजर लैडन नदी पर मारी। आकृति ने एक बार फिर से स्वयं को अदृश्य कर लिया और नदी की ओर चल दी।

वह सुनहरी हिरनी नदी में कहीं नजर नहीं आ रही थी। अतः आकृति भी पानी के अंदर प्रवेश कर गई।

तभी बाहर पड़ा मरा हुआ शेर अचानक से उठा और एक दिशा की ओर भाग गया।

आकृति ने पानी में डुबकी मारी और उस सुनहरी हिरनी को ढूंढती नदी की तली की ओर चल दी ।

ऊपर से पता नहीं चल रहा था, पर अंदर से नदी काफी गहरी थी।

कुछ ही देर में आकृति को नदी की तली में सुनहरी रोशनी सी दिखाई दी। बिना आवाज तैरती हुई आकृति उस सुनहरी रोशनी की ओर चल दी।
पर नदी की तली में जो नजारा दिखाई दिया, वह देख आकृति सिहर उठी।

नदी की तली में एक विशाल ड्रैगन सो रहा था और वह सुनहरी हिरनी, उस ड्रैगन के मुंह के पास कुछ कर रही थी।

जी हां यह वही ड्रैगन था जिसे शैफाली ने अपने सपने में मैग्ना की सवारी बनते देखा था।

पता नहीं ड्रैंगो बेहोश था या सो रहा था, आकृति को यह समझ नहीं आया।

तभी उस सुनहरी हिरनी को अपने पीछे किसी के होने का अहसास हुआ।

उसने पलटकर देखा, पर उसे कोई नजर नहीं आया। तभी उसे पानी की लहरों में थोड़ी सी हलचल होती दिखाई दी।

सुनहरी हिरनी को शक हो गया कि उस दिशा में कोई है? उसने अपनी सोने की सींघों को तेजी से पानी में गोल-गोल लहराया।

सींघों के लहराते ही पानी में एक गोल तरंग सी बन गई, जो उस दिशा की ओर झपटी, जिधर आकृति अदृश्य अवस्था में खड़ी थी।

आकृति को उस सुनहरी हिरनी से ऐसी कोई आशा नहीं थी, इसलिये वह इस वार से बच नहीं पाई।

आकृति उन जल तरंगों से टकरा गई और सदृश्य हो कर सुनहरी हिरनी को दिखाई देने लगी।

सुनहरी हिरनी की नजर जैसे ही आकृति पर पड़ी, वह अपनी सींघों को हिलाकर बिजली की तेजी से आकृति पर झपट पड़ी।

आकृति ने किसी तरह से अपना बचाव कर लिया।

पानी में लड़ने का आकृति को कोई अभ्यास नहीं था, इसलिये वह चाहती थी कि यह सुनहरी हिरनी जितनी जल्दी पानी से बाहर निकले।

अब आकृति के हाथ में नीलदंड नजर आने लगा।

उसने नीलदंड को गोल घुमा कर सुनहरी हिरनी पर ऊर्जा का हमला किया, पर हिरनी की स्पीड पानी में भी बहुत तेज थी। वह आसानी से उस ऊर्जा के वार से बच गई।

पर नीलदंड को देख सुनहरी हिरनी समझ गयी कि आकृति के अंदर चमत्कारी शक्तियां हैं, इसलिये उसने बचकर निकलना ही उचित समझा और नदी की सतह की ओर चल दी।

आकृति यही तो चाहती थी, उसने अपने नीलदंड से, बचकर भागती हिरनी पर एक जाल फेंका।

चूंकि सुनहरी हिरनी की नजर आकृति की ओर नहीं थी, इसलिये वह जाल से बच नहीं सकी और जाल में फंस कर छटपटाने लगी।

आकृति ने जाल को कसा और पानी से निकलकर बाहर आ गयी।

पर बाहर आते ही उसकी नजर नदी के बाहर खड़े शेर और देवी आर्टेमिस पर पड़ी।

आकृति ने आर्टेमिस को देखते ही पहचान लिया। वह एक ग्रीक देवी थी।

ओलंपस पर्वत के 12 देवी-देवताओं में से एक.....शिकार की देवी... जिससे बचना बहुत ही मुश्किल माना जाता था।

आकृति वहां आने से पहले ही आर्टेमिस के बारे में सब कुछ पढ़ चुकी थी।

उसे पता था कि सुनहरी हिरनी आर्टेमिस की बहुत प्रिय है, इसलिये वह आर्टेमिस की बिना जानकारी के सुनहरी हिरनी को यहां से ले जाना चाहती थी।

आर्टेमिस की तीखी निगाहें कभी आकृति पर तो कभी उसके जाल में फंसी सुनहरी हिरनी की ओर जा रही थी।

आकृति आर्टेमिस से युद्ध नहीं करना चाहती थी।

क्यों कि आर्टेमिस से युद्ध करने का मतलब सभी ग्रीक देवताओं को अपने विरुद्ध करना हो जाता। अतः आकृति ने भागने में ही अपनी भलाई समझी।

इससे पहले कि आर्टेमिस कुछ समझ पाती, आकृति के हाथ में नीलदंड चमका और रोशनी के एक झमाके के साथ आकृति सुनहरी हिरनी के साथ गायब हो गयी।

आर्टेमिस को आकृति से इस प्रकार की कोई उम्मीद नहीं थी, इसलिये वह सुनहरी हिरनी को नहीं बचा पायी।

पर आर्टेमिस की आँखों से अब अंगारे बरस रहे थे। वह सोच भी नहीं सकती थी कि कोई मनुष्य इस प्रकार उसकी सबसे प्रिय सुनहरी हिरनी को ले उड़ेगा।

अब वह गुस्से से अपने पैर पटकती, ओलंपस पर्वत की ओर चल दी।


जारी रहेगा_______✍️
Sunahri hirni ko chura liya aakriti ne?😱 ab wo shikar ke devi usko nahi chodegi :hehe: dekhte hai, aage kya hota hai? Hamesha ki tarah shandaar update bhai ji:bow:
 
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#131.

चैपटर-10: ज्वालामुखी

(14 जनवरी 2002, सोमवार, 10:25, मायावन, अराका द्वीप)

शलाका से मिलने के बाद सभी की रात बहुत अच्छी बीती थी।

उन्हें इस बात की कुछ देर के लिये चिंता जरुर हुई थी कि वह अभी भी घर नहीं जा सकते, परंतु शलाका के उत्साहपूर्ण शब्दों को सुनकर सभी में आशा की एक नयी किरण अवश्य जगी थी।

एक नयी सुबह हो चुकी थी, सभी नित्य कर्मों से निवृत हो कर पुनः आगे की ओर बढ़ चले।

कुछ दूरी पर उन्हें एक ऊंचा सा पहाड़ नजर आ रहा था और पहाड़ की चढ़ाई शुरु हो गयी थी।

पहाड़ के रास्ते में कोई भी पेड़ नहीं लगा था और ना ही कहीं कोई छांव दिखाई दे रही थी, पर सुबह का समय होने की वजह से मौसम थोड़ा सुहाना था।

“तुमने सही कहा था शैफाली, कि यहां पर आना हम लोगों की नियति थी, जहाज का रास्ता भटकना तो एक निमित्त मात्र था।” सुयश ने शैफाली को देखते हुए कहा।

“आपको तो यहां आकर खुश होना चाहिये कैप्टेन अंकल।” शैफाली ने मुस्कुराते हुए कहा- “अगर आप यहां नहीं आते, तो आपकी जिंदगी एक साधारण मनुष्य की भांति समाप्त हो जाती और आपको अपने इस दुनिया में आने का उद्देश्य भी नहीं पता चल पाता।”

“सही कहा शैफाली। अगर यहां आने के पहले मुझसे कोई पूर्वजन्म की बातें करता तो मैं उसे कोरी गप्प समझ कर टाल देता, परंतु यहां आने के बाद तो जैसे जिंदगी के मायने ही बदल गये।” सुयश की आवाज में एक ठहराव था।

“मुझे लगता है कैप्टेन कि अब जल्द ही शैफाली की जिंदगी का राज भी खुलने वाला है।” क्रिस्टी ने चलते-चलते कहा।

“ईऽऽऽऽऽऽ! मैं तो पूर्वजन्म में भी किसी से प्यार नहीं करती होंगी। ऐसा मेरा विश्वास है।” शैफाली ने अपना मुंह बनाते हुए कहा।

“मेरी जिंदगी तो जैसे हर जन्म में कोरा कागज ही थी।” इस बार तौफीक ने भी बातों में शामिल होते हुए कहा।

“ऐसा नहीं है तौफीक अंकल, अगर आप अभी तक हम लोगों के साथ जीवित हैं, तो तिलिस्मा में प्रवेश करने का कोई ना कोई उद्देश्य तो आपके पास भी होगा।” शैफाली ने उदास तौफीक का हाथ पकड़ते हुए
कहा।

“सिर्फ उद्देश्य होना ही जरुरी नहीं है, उद्देश्य का बेहतर होना भी जरुरी नहीं है।” जेनिथ के मुंह से जल्दबाजी में तौफीक के प्रति कटाक्ष निकल गया, जिसे तौफीक ने ध्यान से सुना, पर उस पर कोई रिएक्शन नहीं दिया।

“कैप्टेन अंकल!” शैफाली ने कहा- “अचानक से गर्मी कुछ बढ़ गयी लग रही है। प्यास भी बार-बार लग रही है।”

शैफाली की बात पर सभी ने अपनी सहमति जताई क्यों कि सभी हर थोड़ी देर बाद पानी पी रहे थे।

बर्फ के क्षेत्र से निकलने के बाद अचानक से गर्मी का बढ़ जाना किसी को भी समझ में नहीं आ रहा था।

तभी जमीन धीरे-धीरे थरथराने लगी।

“यह जमीन क्यों कांप रही है?” क्रिस्टी ने चारो ओर देखते हुए कहा- “कैप्टेन क्या भूकंप आ रहा है?”

तभी सुयश को पहाड़ की चोटी से धुंआ निकलता हुआ दिखाई दिया।

यह देख सुयश ने चीख कर कहा- “हम पर्वत की ओर नहीं बल्कि एक ज्वालामुखी की ओर बढ़ रहे हैं और वह फटने वाला है।”


सुयश के शब्द सुनकर सभी भयभीत हो गये क्यों कि दूर-दूर तक ज्वाला मुखी से बचने के लिये उनके पास ना तो कोई सुरक्षित स्थान था और ना ही ज्वालामुखी से बचने का कोई साधन।

जमीन की थरथराहट बढ़ती जा रही थी। जमीन के थरथराने की वजह से पहाड़ से कई बड़ी चट्टानें लुढ़ककर इनके अगल बगल से गुजरने लगीं।

“अब क्या करें कैप्टेन? क्या हम सब यहीं मारे जायेंगे?” क्रिस्टी ने घबराते हुए सुयश से कहा।

“नक्षत्रा ! क्या कोई हमारे बचाव का साधन है तुम्हारे पास?” जेनिथ ने नक्षत्रा से पूछा।

“तुम्हें पता है जेनिथ, कल बर्फ के ड्रैगन से बचने में पूरा समय जा चुका है और अभी 24 घंटे भी पूरे नहीं हुए हैं, इसलिये मैं ज्यादा कुछ नहीं कर सकता। हां अगर तुम्हारे ऊपर कोई पत्थर गिरा तो मैं तुम्हारी चोट को सही कर दूंगा, पर बाकी लोगों के लिये मैं वह भी नहीं कर सकता।”

नक्षत्रा की बात सुन जेनिथ का चेहरा उतर गया।

आसपास का तापमान अब बहुत ज्यादा बढ़ गया था।

तभी एक कान फाड़ देने वाला भयानक धमाका हुआ और ज्वालामुखी से हजारों टन लावा निकलकर आसमान में बिखर गया।

कुछ लावा के गोले इनके बिल्कुल बगल से निकले।

लावा की गर्मी अब सभी को साफ महसूस होने लगी थी।

तभी ज्वालामुखी का मैग्मा बहकर इन्हें अपनी ओर आता दिखाई दिया, मैग्मा के पास आने की स्पीड बहुत तेज थी।

किसी के पास अब भाग निकलने का भी समय नहीं बचा था। चारो ओर धुंआ और राख वातावरण में फैल गयी थी।

“सभी लोग मेरा हाथ पकड़ लें।” तभी शैफाली ने चीखकर कहा।

शैफाली की बात सुन सभी ने जल्दी से शैफाली का हाथ पकड़ लिया।

जैसे ही सभी ने शैफाली का हाथ थामा, शैफाली के चारो ओर एक पारदर्शी रबर का बुलबुला बन गया।

तभी मैग्मा आकर बुलबुले से छू गया, पर मैग्मा से बुलबुले पर कोई असर नहीं हुआ।

यह देखकर सभी ने राहत की साँस ली। वह बुलबुला उन्हें किसी कवच की तरह से सुरक्षित रखे हुआ था।

“बाल-बाल बचे।” क्रिस्टी ने अपने दिल की धड़कनों पर काबू पाते हुए कहा- “अगर शैफाली 1 सेकेण्ड की भी देरी कर देती, तो हमारा बचना नामुमकिन था।”

“पर शैफाली अब हम इससे निकलेंगे कैसे? क्यों कि लावा इतनी जल्दी तो ठंडा नहीं होता, फिर हम कब तक इस बुलबुले में बंद रहेंगे।” जेनिथ ने शैफाली से आगे का प्लान पूछा।

“अभी आगे के बारे में तो मुझे भी कुछ नहीं पता, मुझे तो अभी जो कुछ समझ में आया, वो मैने कर लिया। अब लावा थोड़ा ठंडा हो तो हम इससे निकलने की सोचें।” शैफाली ने कहा।

“ज्वालामुखी से निकले लावा की ऊपरी परत को ठंडा होने में कुछ ही घंटे लगते हैं, पर लावा की अंदर की परत को ठंडा होने में 3 महीने से भी ज्यादा का समय लगता है।” सुयश ने सबको समझाते हुए कहा-

“और हम इस समय ज्वालामुखी की ढलान पर खड़े हैं, जहां पर लावा रुक ही नहीं सकता, यहां पर तब तक नया लावा आता रहेगा, जब तक ज्वालामुखी से लावा निकल रहा है।

"हम ये भी नहीं कह सकते कि
ज्वालामुखी से लावा कितने समय तक निकलेगा। यह लावा कुछ महीने तक भी निकल सकता है। यानि की किसी भी तरह से अब हम इस जगह पर कई महीनें तक खड़े होने के लिये तैयार हो जाएं।”

“यानि हम लावा से मरें या ना मरें, भूख और प्यास से अवश्य मर जायेंगे?” तौफीक ने कहा।

“कैप्टेन अगर हम इस बुलबुले को लुढ़काकर यहां से दूर ले चलें तो?” जेनिथ ने सुझाव दिया- “ज्यादा से ज्यादा कुछ घंटों में हम इसे लुढ़काकर ज्वालामुखी की पहुंच से दूर जा सकते हैं।”

जेनिथ का विचार वाकई काबिले तारीफ था।

अभी ये लोग बुलबुले को लुढ़काने के बारे में सोच ही रहे थे, कि यह काम स्वयं ज्वालामुखी ने कर दिया।

हवा में उड़ता हुआ एक पत्थर का काला टुकड़ा आया और बुलबुले से टकरा गया।

जिसकी वजह से बुलबुला लुढकता हुआ ज्वाला मुखी से नीचे की ओर चल दिया।

कोई भी इसके लिये तैयार नहीं था, इसलिये सभी के सिर और शरीर आपस में टकरा गये।

फिर भी सभी खुश थे क्यों कि वह बिना मेहनत ज्वाला मुखी से दूर जा रहे थे।

कुछ ही देर में बुलबुले के घूमने के हिसाब से सभी ने अपने शरीर को एडजेस्ट कर लिया।

जेनिथ की तरकीब काम कर गयी थी। पर वह मुसीबत ही क्या जो इतनी आसानी से चली जाये।

लुढ़कता हुआ उनका बुलबुला एक बड़े से सूखे कुंए में जा गिरा और इससे पहले कि कोई कुंए से निकलने के बारे में सोच पाता, उस कुंए में उनके पीछे से लावा भरने लगा।

कुछ ही देर में लावा किसी सैंडविच की तरह से इनके बुलबुले के चारो ओर फैल गया। अब बुलबुला लुढ़कना तो छोड़ो, हिल भी नहीं सकता था।

यह देख सभी हक्का -बक्का रह गये।

“हां तो जेनिथ तुम क्या कह रही थी?” सुयश ने आशा के विपरीत मुस्कुराते हुए जेनिथ से पूछा- “इसको लुढ़का कर कहीं ले चलें... लो अब लुढ़का लो इसे।”

सुयश को मुस्कुराते देख पहले तो सभी आश्चर्यचकित हो गये फिर उन्हें लगा कि सच में दुखी होने से कौन सा हम इस मुसीबत से बच जायेंगे, इसलिये सभी के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गयी।

“मुझे तो ऐसा लगता है कैप्टेन, कि इस द्वीप का निर्माता हम पर लगातार नजर रखता है, इसलिये जैसे ही हम कोई उपाय सोचते हैं, वह हमारी सोच के विरुद्ध जाकर एक नयी मुसीबत खड़ी कर देता है।” जेनिथ ने कहा।

सभी ने सिर हिला कर अपनी सहमति जताई।

“अब क्या करें कैप्टेन? क्या सच में 3 महीने का इंतजार करना पड़ेगा यहां से निकलने के लिये?” क्रिस्टी ने कहा।

“नहीं...अब हमें बिल्कुल इंतजार नहीं करना पड़ेगा।” सुयश ने कहा- “यह शब्द मैंने ढलान पर खड़े होकर बोले थे, पर अब हम एक कुंए में हैं। अब अगर मैग्मा सूखा तो वह चट्टान में बदल जायेगा और फिर उस
चट्टान के अंदर हमारी जीते जी ही समाधि बन जायेगी।”

सुयश का यह विचार तो बिल्कुल डराने वाला था।

“यानि की हम यहां जितनी ज्यादा देर फंसे रहेंगे, उतना जिंदा रहने की संभावना खोते जायेंगे।” क्रिस्टी ने पूछा।

“जी हां, मैं बिल्कुल यही कहना चाहता हूं।”सुयश ने कहा- “अब चुपचाप सभी लोग बैठ जाओ और शांति से यहां से निकलने के बारे में सोचो।”

सभी को बैठे-बैठे आधा घंटा बीत गया, पर किसी के भी दिमाग में कोई प्लान नहीं आया।

“कैप्टेन ... देवी शलाका ने हमें कहा था कि जब तक आप हमारे साथ हो, हम नहीं हार सकते।” जेनिथ ने सुयश को याद दिलाते हुए कहा-

“सोचो...आप सुयश नहीं आर्यन बनकर सोचो...आप कोई ना कोई
उपाय अवश्य निकाल सकते हो? तिलिस्मा ने यूं ही नहीं आपको चुना है, कुछ तो है आपमें...जो हम सबसे अलग है।”

जेनिथ की बात सुनते ही सुयश को जोश आ गया और वह तेज-तेज बड़बड़ा ने लगा- “अगर मेरी जगह आर्यन होता तो वह क्या करता? ....हमारे पास भी कुछ नहीं है...इस कुंए में भी कुछ नहीं है?”

तभी सुयश की नजर बैठी हुई शैफाली पर पड़ी- “तुम बैठने के बाद तौफीक के बराबर कैसे दिख रही हो शैफाली?”

सभी सुयश की यह अजीब सी बात सुनकर शैफाली की ओर देखने लगे, जो कि सच में बैठकर तौफीक के बराबर दिख रही थी।

“अरे कैप्टेन अंकल....कुंए में नीचे की ओर कुछ है, मैं उस पर ही बैठी हुई हूं।” शैफाली ने हंसते हुए कहा।

“क्या है कुंए के नीचे?” सुयश ने हैरान होते हुए शैफाली को उस जगह से हटा दिया और टटोलकर उस चीज को देखने लगा, पर उसे समझ नहीं आया कि वह चीज क्या है?

“आप हटिये कैप्टेन अंकल, मैं छूकर आप से ज्यादा बेहतर तरीके से बता सकती हूं कि कुंए में नीचे क्या है?” यह कहकर शैफाली सुयश को हटाकर उस चीज को छूकर देखने लगी।

थोड़ी देर के बाद शैफाली ने कहा- “कैप्टेन अंकल, यह चीज कोई धातु की बनी लीवर जैसी लग रही है।”

“लीवर...।” सुयश बुदबुदाता हुआ कुंए की बनावट को ध्यान से देखने लगा और फिर खुशी से चिल्लाया- “मिल गया उपाय, बाहर निकलने का।”

सुयश के शब्द सुन सभी भौचक्के से खड़े सुयश को देखने लगे।

सुयश ने सभी को अपनी ओर देखते हुए पा कर कहा - “दरअसल हम जिसे कुंआ समझ रहे हैं, वह एक पुराने समय का फव्वारा है, जो जमीन के अंदर से इस कुंए जैसी जगह पर जोड़ा गया है। पुराने समय में ज्वालामुखी के पास रहने वाले जमीन के तापमान का नियंत्रण करने के लिये एक हाई प्रेशर वाला फव्वारा बनवाते थे। जिससे जब जमीन का तापमान बढ़ता था, तो वह फव्वारा चलाकर आस-पास की जमीन पर पानी का छिड़काव करते थे। ये वैसा ही एक फव्वारा है। अब अगर हम इस फव्वारे को किसी भी प्रकार से चला दें, तो यहां से पानी बहुत हाई प्रेशर के साथ बाहर आयेगा और इसी हाई प्रेशर से हम भी बुलबुले सहित बाहर निकल जायेंगे।”

“कैप्टेन...पर ये फव्वारा चलेगा कैसे?” क्रिस्टी ने पूछा।

“शैफाली ने जिस लीवर को छुआ, वह अवश्य ही इसी फव्वारे को चलाने वाला लीवर होगा और ऐसे लीवर हमेशा नीचे की ओर दबा कर चलाये जाते हैं।”

यह कहकर सुयश शैफाली की ओर घूमा- “शैफाली क्या तुम बता सकती हो कि तुम्हारा यह बुलबुला कितना प्रेशर झेल सकता है?”

“कैप्टेन यह एक चमत्कारी शक्ति से बना बुलबुला है, जो बुलबुला हजारों डिग्री का तापमान सह सकता है, मुझे नहीं लगता कि वह किसी भी शक्ति से टूट सकता है।” शैफाली के शब्दों में गजब का विश्वास दिख रहा था।

“फिर ठीक है...आप लोग जरा एक दूसरे को कसकर पकड़ लें, हम बस उड़ान भरने ही वाले हैं।” यह कहकर सुयश उस लीवर के ऊपर खड़ा हो गया और उछलकर जोर से लीवर पर कूदा।

परंतु वह लीवर टस से मस नहीं हुआ।

यह देख सुयश ने तौफीक को भी अपने पास बुलाया- “तुम्हें भी मेरे साथ इस लीवर पर कूदना होगा तौफीक...काफी समय से ना चलाये जाने की वजह से शायद लीवर जाम
हो गया होगा।”

तौफीक ने धीरे से सिर हिलाया।

अब सुयश ने गिनती गिनना शुरु कर दिया- “3....2.....1।”

सुयश के 1 बोलते ही सुयश और तौफीक दोनों पूरी ताकत से लीवर पर कूद पड़े।

दोनों की सम्मिलित शक्ति से लीवर एक बार में ही नीचे हो गया। 10 सेकेण्ड तक सभी ने इंतजार किया, परंतु कुछ नहीं हुआ।

जैसे-जैसे समय बीत रहा था, सबके चेहरे लटकते जा रहे थे क्यों कि यह तरीका शायद उन सबकी आखिरी उम्मीद थी।

तभी कुंए के नीचे से कुछ खट-पट की आवाज आनी शुरु हो गयी। सुयश सहित सभी के चेहरे पर मुस्कान आ गयी।

तभी बहुत ताकत से बुलबुले के नीचे से पानी की फुहार बुलबुले पर पड़ी, जिसकी वजह से बुलबुला कुंए से निकलकर आसमान में बहुत ऊंचे तक चला गया।

वहां से तो ज्वालामुखी भी नीचे लगने लगा था।

यह देख सभी ने जोर का जयकारा लगाया- “तो इसी बात पर बोलो कैप्टेन सुयश जिंदाबाद।”

सभी खुशी से चीख रहे थे। इतनी ऊंचाई से उन्हें पोसाइडन पर्वत भी दिखाई दे गया।

तभी बुलबुला अधिकतम ऊंचाई तक पहुंचकर हवा में धीरे-धीरे किसी पैराशूट की तरह नीचे आने लगा।

हवा में इस तरह नीचे आना भी अपने आप में किसी एडवेंचर से कम नहीं था। सभी के चेहरे खुशी से भरे हुए थे।

उनके चेहरों पर सुयश के लिये सम्मान के भाव नजर आ रहे थे।


जारी रहेगा
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Aasmaan se gire, khajoor me atke, laava se bache to kue me chale gaye, ab kue se nikle hai to aasmaan me gaye, ab dekhte hain kaha girte hain, mujhe nahi lagta ki bach niklenge itni aasaani se:D: kuch lo locha hai jo aapne chupaya hai.😁
Awesome update again guruver👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻❣️❣️❣️
 
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#132.

“कैप्टेन...आपको क्या लगता है कि मुसीबत अब खत्म हो गई?” जेनिथ के शब्द सुन सभी ने उधर देखा, जिधर जेनिथ देख रही थी।

उधर देखते ही उनकी साँसें फिर से अटक गयीं क्यों कि हवा में तैरता हुआ वह बुलबुला अब ज्वालामुखी के अंदर गिरने वाला था।

“आसमान से गिरे...खजूर में अटके तो सुना था, पर कुंए से निकले और ज्वालामुखी में लटके नहीं सुना था।” क्रिस्टी के शब्दों में फिर निराशा झलकने लगी।

बुलबुला अब सीधे ज्वालामुखी के अंदर, उसके लावे में जाकर गिरा था। जहां से निकलना अब शायद ही संभव हो पाता।

सभी की नजरें ज्वालामुखी के अंदर की ओर गई।

प्रेशर कम हो जाने की वजह से लावा अब ज्वालामुखी के ऊपर से होकर नहीं बह रहा था।

ज्वालामुखी के लावे की सतह अब काफी कम होकर ज्वालामुखी के अंदर ही सीमित हो गई थी।

लग रहा था कि जैसे द्वीप की तरह वह ज्वालामुखी भी कृत्रिम है। क्योंकि ज्वालामुखी के अंदर वह लावा, पत्थरों से बने एक विशाल बैल के मुख से निकल रहा था।

सभी एक बार फिर लावे के जाल में फंस गये थे। ऐसा लग रहा था कि जैसे लावा उन्हें छोड़ना नहीं चाहता था।

ज्वालामुखी की दीवारें भी सपाट थीं और अंदर कोई ऐसा स्थान नहीं था, जहां वह बुलबुले से निकलकर खड़े हो सकें।

“अब क्या करें कैप्टेन?...हम एक बार फिर फंस गये।” जेनिथ ने कहा।

तभी सुयश को ज्वालामुखी का सारा लावा, ज्वालामुखी के अंदर ही एक दिशा की ओर बहकर जाता दिखाई दिया।

“शायद उस तरफ से कोई रास्ता मिल जाये?” सुयश ने सभी को लावा के बहने वाली दिशा में इशारा करते हुए कहा।

“पर कैप्टेन...यह भी तो हो सकता है कि उधर से वह लावा वापस पृथ्वी की कोर में जा रहा हो?”

तौफीक ने कहा- “और अगर ऐसा हुआ तो हम पाताल में चले जायेंगे, जहां से हमारे निकलने के आसार बिल्कुल खत्म हो जायेंगे।”

“हमारे पास उस रास्ते के सिवा और कोई रास्ता भी नहीं है तौफीक।”

सुयश ने तौफीक को समझाते हुए कहा- “ये भी तो हो सकता है कि उधर से हमें बचकर निकलने का कोई रास्ता मिल जाये?”

तौफीक ने एक गहरी साँस भरी और सुयश के प्रस्ताव पर अपनी मुहर लगा दी।

अब सभी बुलबुले को धकेलकर उस दिशा में ले आये, जिधर से बहकर लावा पहाड़ों के अंदर कहीं जा रहा था।

बुलबुला अब लावे के साथ स्वतः ही तैरने लगा।

पहाड़ की ढलान लावे को गति दे रही थी। कुछ देर बाद वह लावा, आगे जा रहे एक लावे के झरने में गिरता दिखाई दिया।

लावा का झरना देखकर सभी और भयभीत हो गये।

तभी सुयश को झरने के पहले एक जगह पर कुछ खाली स्थान दिखाई दिया। जिसके ऊपर की ओर कुछ गुफा जैसे छेद दिखाई दे रहे थे।

वह स्थान थोड़ा ऊंचा होने के कारण लावा उस ओर नहीं जा रहा था।

“हमें अपने बुलबुले को उस खाली स्थान की ओर ले जाना होगा।” सुयश ने सभी को वह खाली स्थान दिखाते हुए कहा।

सभी अपने शरीर को मोड़ते हुए उस बुलबुले को खाली स्थान तक ले आये।

“यहां से आगे लावा का झरना है, जो कि पृथ्वी की कोर तक जाता हुआ हो सकता है, इसलिये हमें इस स्थान से ऊपर बने उन गुफाओं की ओर जाना होगा। शायद उससे हमें कहीं आगे निकलने का मार्ग दिखाई दे जाये। पर बुलबुले के अंदर रहकर हम उन गुफाओं तक नहीं जा सकते, इसलिये हमें अब बुलबुले से निकलना ही पड़ेगा।” सुयश ने सबको समझाते हुए कहा।

“पर कैप्टेन, हम लोग इस समय एक जीवित ज्वालामुखी के अंदर हैं, अगर यहां तापमान ज्यादा हुआ, तो बुलबुले से निकलते ही हम मारे जायेंगे।” जेनिथ ने कहा।

“तुम ठीक कह रही हो जेनिथ, पर मैं विश्वास के साथ कह सकता हूं कि ऐसा कुछ नहीं होगा। क्यों कि यह एक बनाया गया कृत्रिम ज्वालामुखी है। यह ज्वालामुखी की तरह व्यवहार कर सकता है, पर ज्वालामुखी जितना तापमान नहीं बना सकता। इसलिये मैं विश्वास के साथ कहता हूं कि हम बाहर सुरक्षित रहेंगे।”

यह कहकर सुयश ने शैफाली को बुलबुले को हटाने का आदेश दे दिया।

हर बार की तरह सुयश इस बार भी सही था। उस स्थान पर गर्मी ज्यादा थी, पर इतनी गर्मी नहीं थी कि वह सहन नहीं कर पायें।

सभी को गर्मी की वजह से पसीना आने लगा था, पर शैफाली के शरीर का तापमान अभी भी नार्मल था।

शायद उसकी ड्रेस में कुछ ऐसा था जो उसे तापमान का अहसास ही नहीं होने दे रहा था।

अभी सब उन गुफाओं तक पहुंचने के बारे में सोच ही रहे थे कि तभी शैफाली को कुछ दूरी पर कोई सुनहरी चमकती हुई चीज दिखाई दी।

शैफाली बिना किसी से बोले उस दिशा की ओर बढ़ गयी।

सभी शैफाली को उस दिशा में जाते देख, उसके पीछे-पीछे चल दिये।

वह चमक लावे की राख में दबी, किसी सोने की धातु वाली वस्तु से आ रही थी।

शैफाली ने आगे बढ़कर उस वस्तु पर से राख को साफ करना शुरु कर दिया।

शैफाली को ऐसा करते देख, सभी उस वस्तु को साफ करने लगे।

सभी के प्रयासों के बाद वह वस्तु अब साफ-साफ नजर आने लगी थी। वह एक विशाल ड्रैगन का सोने का सिर था।

सभी हतप्रभ से खड़े उस विशाल ड्रैगन के सिर को देखने लगे।

“यह ज्वालामुखी के अंदर सोने का बना सिर कहां से आया।” तौफीक ने कहा- “यह तो पुरातन कला का अद्भुत नमूना लग रहा है।”

“यह नमूना नहीं है।” पता नहीं क्या हुआ कि अचानक शैफाली बहुत ज्यादा गुस्से में दिखने लगी।

शैफाली का यह प्रचंड रुप देख सभी डर गये।

“क्या हुआ शैफाली?” सुयश ने शैफाली के सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा- “तुम ठीक तो होना?”

“हां कैप्टेन अंकल मैं ठीक हूं।” शैफाली ने नार्मल तरीके से कहा- “पता नहीं क्यों मुझे इस ड्रैगन के सिर को छूकर बहुत अपनापन महसूस हो रहा है।”

इस बार शैफाली के शब्द ने सबको डरा दिया। शैफाली अभी भी उस ड्रैगन के सिर को धीरे-धीरे सहला रही थी।

तभी भावनाओं में बहकर शैफाली की आँख से आँसू निकलने लगे।

वह आँसू उस ड्रैगन के सिर पर जा गिरे।

शैफाली के आँसुओं में जाने कौन सी शक्ति थी कि शैफाली के आँसू ड्रैगन के सिर पर पड़ते ही ड्रैगन के सिर से तेज रोशनी निकलकर शैफाली में समा गई और इसके बाद वह सोने का सिर धीरे-धीरे पिघलने लगा।

यह देख सुयश ने शैफाली को चेतावनी दी- “शैफाली तुम्हारे हाथ में मौजूद ड्रैगन का सिर पिघलने लगा है, अगर तुम उसे ज्यादा देर तक पकड़े रही तो तापमान की वजह से तुम्हारा हाथ भी पिघल सकता है। इसलिये उसे अपने हाथ से छोड़ दो।”

पर सुयश की चेतावनी का शैफाली पर कोई असर नहीं हुआ, वह उस ड्रैगन के सिर की आखिरी बूंद के पिघलने तक उसे पकड़े रही।

धीरे-धीरे ड्रैगन का पूरा सिर पिघलकर ज्वालामुखी के लावे में समा गया।

थोड़ी देर तक शैफाली वहां खड़ी रही, फिर सुयश के साथ उन गुफाओं के छेद की ओर चढ़ने लगी।

सभी समझ रहे थे कि शैफाली के दिमाग में कुछ उथल-पुथल चल रहा है, पर किसी की हिम्मत अभी उससे कुछ पूछने की नहीं हो रही थी।


राक्षसलोक:
(14 साल पहले.....14 जनवरी 1988, गुरुवार, 08:30, योग गुफा, हिमालय)

त्रिशाल को कलिका का इंतजार करते हुए योग गुफा में बैठे आज 8 दिन बीत गये थे। तभी किसी के पैरों की धमक से त्रिशाल का ध्यान भंग हुआ।

त्रिशाल ने आँख खोलकर देखा। सामने हनुका खड़ा त्रिशाल को निहार रहा था।

“यति राज को त्रिशाल का प्रणाम।” त्रिशाल ने हनुका को देखकर हाथ जोड़कर अभिवादन किया।

“सदैव प्रसन्न रहो।” हनुका ने अपने हाथों को खोलकर आशीर्वाद देते हुए कहा- “लग रहा है देवी कलिका, यहां पर अभी तक नहीं पहुंची।”

“पिछले 8 दिन से मैं उनकी यहां पर प्रतीक्षा कर रहा हूं, पता नहीं कैसे उन्हें आने में देर हो रही है?” त्रिशाल ने अपना रोष प्रकट करते हुए कहा।

तभी एक दिशा से कलिका की आवाज आयी- “अब आपकी प्रतीक्षा का समय समाप्त हुआ त्रिशाल, मैं आ गयी।”

कलिका को सकुशल आते देख त्रिशाल खुश हो गया।

“आपके चेहरे पर फैली मुस्कान बता रही है कि प्रकाश शक्ति आपको मिल गयी है।” त्रिशाल ने कलिका के चेहरे को देखते हुए कहा।

कलिका ने त्रिशाल की बात सुन धीरे से सिर हिलाया।

“तो फिर ‘राक्षसलोक’ चलने की तैयारी करें। अब ‘कालबाहु’ के अंत का समय निकट आ चुका है।” त्रिशाल ने जोर से हुंकार भरी।

हनुका ने दोनों को आशीर्वाद दिया और फिर आकाश मार्ग से उड़कर कहीं गायब हो गया।

त्रिशाल और कलिका अब राक्षसताल की ओर चल दिये थे।

राक्षसताल मानसरोवर झील के बगल में ही था। वह योग गुफा से ज्यादा दूरी पर नहीं था, इसलिये त्रिशाल और कलिका कुछ ही देर में राक्षसताल तक पहुंच गये।

राक्षसताल का आकार चंद्रमा के समान प्रतीत हो रहा था।

दोपहर का समय था, जिसके कारण पानी की स्वच्छता दूर से ही नजर आ रही थी।

त्रिशाल और कलिका धीरे से राक्षसताल के पानी में उतर गये। राक्षसताल का पानी, बिल्कुल खारा था।

कुछ ही देर में दोनों राक्षसताल की तली तक पहुंच गये।

राक्षसताल की तली के अंदर एक पर्वत श्रृंखला डूबी हुई थी।

तभी त्रिशाल को 2 पर्वतों के बीच एक पतला सा रास्ता दिखाई दिया, जिसके दूसरी ओर से कुछ चमक सी आती हुई प्रतीत हो रही थी।

त्रिशाल और कलिका उस पतले रास्ते पर चल पड़े। कुछ आगे उन्हें पानी के अंदर, पहाड़ में बनी एक गुफा नजर आयी।

गुफा किसी विशाल राक्षस के मुंह जैसी प्रतीत हो रही थी। वह चमक उसी गुफा के अंदर से आ रही थी।

वैसे तो वह गुफा राक्षस के मुंह की सिर्फ आकृति मात्र थी, पर उसकी पत्थर पर बनी बड़ी-बड़ी आँखें और विशाल दाँत किसी भी मनुष्य को डराने के लिये काफी थे।

“क्या इसी रास्ते से होकर हमें राक्षस लोक जाना है?” त्रिशाल ने कलिका से पूछा।

“लग तो ऐसा ही रहा है....पर जरा एक मिनट ठहरिये...पहले मुझे पूरी तरह से संतुष्ट हो जाने दीजिये।” कलिका ने कहा और ध्यान से उस गुफा को देखने लगी।

तभी गुफा को ध्यान से देख रही कलिका को राक्षस की आँख की पुतली कुछ हिलती नजर आयी।

यह देख कलिका चीखकर बोली- “रुक जाइये त्रिशाल, यह राक्षसलोक का मार्ग नहीं है, यह स्वयं कोई राक्षस है, जो विशाल गुफा का भेष धारण करके यहां पर बैठा है। मैं अभी इसका सच बाहर लाती हूं।”

यह कहकर कलिका ने अपने सीधे हाथ को उस राक्षस की आँख की ओर करके एक झटका दिया।

कलिका के हाथ को झटका देते ही, उसके हाथ से सफेद रंग की तेज रोशनी निकलकर उस राक्षस की आँख पर पड़ी।

वह सफेद रोशनी इतनी तेज थी, कि उस गुफा बने राक्षस ने घबरा कर अपनी आँखें बंद कर ली।

त्रिशाल को समझने के लिये इतना काफी था। वह जान गया कि यह सच का कोई राक्षस है।

“चलो राक्षसलोक पहुंचने से पहले अपनी शक्तियों के प्रदर्शन का इससे अच्छा अवसर नहीं मिलेगा।” त्रिशाल ने कहा- “तो दोनों में से कौन करेगा इस राक्षस का अंत?”

“आप ज्यादा उतावले नजर आ रहे हो, आप ही कर लो पहले प्रयोग। मैं जब तक इस चट्टान पर बैठकर आराम कर रही हूं।”

यह कहकर कलिका सच में आराम से एक चट्टान पर जा कर बैठ गयी।


जारी रहेगा_______✍️
1. Shefaaliko wo dregon apna sa kyu laga?
2. Kya hoga aage jab yelog us gufa me jayenge?
3. yati raj hanuka Trishal aur kalika ke sath kyu nahi gaye?
4. Kya wo itni aashani se us rakshas ko pakad sakenge?
Bohot se sawal uthte hai is update se gurudev, ek baar firse shandaar aur suspense se bhara Update diya hai aapne, just too good 👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻❣️❣️❣️❣️❣️
 

Napster

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चैपटर-11 स्मृति रहस्य:

(14 जनवरी 2002, सोमवार, 10:40, मायावन, अराका द्वीप)


विषाका ऐलेक्स को बेवकूफ बनाकर वहां से भाग गया था।

ऐलेक्स उस अंधेरे कमरे में पिछले 5 दिन से भूखा-प्यासा पड़ा था।

ऐलेक्स की हालत अब बहुत ज्यादा खराब हो गयी थी। वह उठकर ठीक से बैठने की भी हालत में नहीं बचा था, ऊपर से यह अंधेरा उसे और पागल बना रहा था।

ऐलेक्स को अब अपनी मृत्यु साफ नजर आ रही थी। वह अपने आप को इस नकारात्मकता से बचाने के लिये ज्यादा से ज्यादा समय क्रिस्टी के साथ बिताए अपने पलों को याद कर रहा था।

तभी ऐलेक्स को उस अंधेरे कमरे में किसी सरसराहट का अहसास हुआ। इस अहसास ने ऐलेक्स की दम तोड़ती साँसों को एक नयी उम्मीद की किरण दी।

ऐलेक्स अब थोड़ा चैतन्य नजर आने लगा। वह और ज्यादा ध्यान से उस आवाज को सुनने की कोशिश करने लगा।

तभी ऐलेक्स को अपने शरीर पर किसी के स्पर्श का अहसास हुआ, उसे लगा कि कोई उसके मुंह में कुछ डालने की कोशिश कर रहा है।

अगले ही पल ऐलेक्स को अपने मुंह में एक कड़वी दवाई सा अनुभव हुआ, जिसे अपने गले से उतारने के बाद ऐलेक्स अब कुछ बेहतर महसूस करने लगा था।

पर उसे समझ नहीं आ रहा था कि किसने उसे वह द्रव्य पिलाया? और वह द्रव्य क्या चीज थी?

द्रव्य पीने के कुछ देर के अंदर ही ऐलेक्स को अपने अंदर एक विचित्र शक्ति का अहसास होने लगा।

तभी उस कमरे में एकदम से तेज उजाला फैल गया।

इस तेज उजाले से एक पल के लिये ऐलेक्स की आँख बंद हो गई, पर जैसे ही उसने दोबारा से आँख खोली, वह भयभीत होकर कमरे के दूसरे किनारे पर पहुंच गया, क्यों कि उसके ठीक बगल में मेडूसा खड़ी थी।

ऐलेक्स ने यह देख डरकर अपनी आँखें बंद कर ली।

“घबराओ नहीं ऐलेक्स, मैं तुम्हारी दुश्मन नहीं हूं और तुम अपनी आँखें खोल सकते हो, तुम्हें मेरी आँखों में देखने पर कुछ नहीं होगा।” ऐलेक्स को मेडूसा की आवाज सुनाई दी।

ऐलेक्स मेडूसा के ऐसे शब्दों को सुन थोड़ा सा नार्मल हुआ और उसने डरते-डरते अपनी आँखें खोल दीं।

ऐलेक्स के ठीक सामने मेडूसा खड़ी उसे देख रही थी, पर ऐलेक्स को उसकी आँखों में देखने पर कुछ नहीं हुआ।

“तुम....तुम मेडूसा हो ना?” ऐलेक्स ने घबराए स्वर में पूछा।

“नहीं...मैं मेडूसा नहीं हूं, मेडूसा हजारों साल पहले ही मर चुकी है, मैं मेडूसा की बहन स्थेनो हूं। हम तीनों बहनों की शक्लें ऐथेना के श्राप से एक जैसी हो गयी थीं।” स्थेनो ने कहा।

“क्या तुम्हारी आँखों में भी देखने पर लोग पत्थर के हो जाते हैं?” ऐलेक्स ने पूछा।

“हां...हम तीनों बहनों को एक साथ ही ये श्राप मिला था, पर तुम परेशान मत हो, तुम पर अब ये शक्ति काम नहीं करेगी।” स्थेनो ने शांत शब्दों में कहा।

“क्यों...मुझ पर ये शक्ति क्यों काम नहीं करेगी?...मैं तो एक साधारण मानव हूं।” ऐलेक्स ने उत्सुकता से पूछा।

“क्यों कि मैंने तुम्हें ‘वशीन्द्रिय शक्ति’ का घोल पिलाया है। इस शक्ति को पीने वाला अपनी सभी इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर लेता है और वह अपनी इद्रियों को अपने मनचाहे तरीके से प्रयोग में ला सकता है।” स्थेनो ने कहा।

“मैं तुम्हारी कोई बात समझ नहीं पा रहा हूं। यह कैसा घोल था और इससे मेरे शरीर में क्या बदलाव आये हैं?” ऐलेक्स किसी घोल का नाम सुनकर डर गया, उसे लगा कि कहीं वह भी स्थेनो की तरह से ना बन जाये।

“साधारण मनुष्यों के हिसाब से हमारे शरीर में 5 इंद्रियां होती हैं- आँख, कान, नाक, जीभ और त्वचा। साधारण मनुष्य अपनी सभी इंद्रियों का 5 प्रतिशत ही प्रयोग में ला पाते हैं, परंतु मेरे पिलाये घोल से अब तुम
अपनी इंद्रियों को 90 प्रतिशत तक प्रयोग में ला सकते हो। मतलब अब अगर हम तुम्हारे नाक की बात करें तो तुम अपनी नाक के द्वारा, अब किसी भी वातावरण में आसानी से साँस ले सकते हो, फिर चाहे वह पानी हो, विष हो या फिर किसी भी प्रकार की गैस।

“यहां तक तुम बिना साँस लिये भी वर्षों तक जीवित रह सकते हो। अब अगर तुम्हारी त्वचा की बात करें तो त्वचा के माध्यम से कठोर से कठोर अस्त्र का प्रहार भी आसानी से झेल सकते हो। इसी प्रकार तुम्हारी बाकी की इंद्रियां भी देवताओं की तरह तुम्हारी अलग-अलग प्रकार से रक्षा कर सकती हैं।”

“तुम्हारा मतलब कि मैं अब सुपर हीरो बन गया हूं।” ऐलेक्स ने हंसकर कहा।

“तुम कुछ ऐसा ही समझ सकते हो।” स्थेनो ने भी मुस्कुराकर कहा।

“अच्छा अब ये बताओ कि तुम मेरा नाम कैसे जानती हो? और तुमने मुझे यह घोल क्यों पिलाया?” ऐलेक्स ने पूछा।

“जब ‘सुप्रीम’ इस क्षेत्र में आया, मैं तब से ही तुम सभी पर नजर रखे हुए थी। शैफाली को बार-बार आने वाले सपने मैंने ही दिखाए थे। मैंने ही सुप्रीम में सो रही शैफाली के पास अटलांटिस का सोने का सिक्का रखा था।

"शैफाली को बार-बार सुनाई देने वाली आवाजें भी मेरी ही थीं ।शैफाली ने तुम्हें अपना भाई कहा था, इसलिये ही मैं तुम्हें बचाने यहां तक आ गयी और मैंने तुम्हें वह घोल इसलिये पिलाया है क्यों कि तुम अभी कुछ विशेष कार्य से नागलोक जाने वाले हो।” स्थेनो ने कहा।

“नागलोक!...यह क्या है? और तुम मुझे वहां क्यों भेजना चाहती हो ? मुझे जरा सब कुछ साफ-साफ बताओ ...तुम्हारी बातें सुनकर मेरी बुद्धि चकरा रही है।” ऐलेक्स ने सिर पकड़ते हुए कहा।

“तो सुनो...मैं शुरु से सुनाती हूं.... आज से हजारों साल पहले समुद्र में एक विशाल हाइड्रा ड्रैगन का राज था। जिसका नाम फोर्किस था। फोर्किस समुद्र का सबसे विशाल और महाबली जीव था। उसी समय में आकाश में राज करने वाली एक ड्रैगन कन्या सीटो का विवाह फोर्किस के साथ हो गया। फोर्किस और सीटो ने बहुत से वंश की शुरुआत की। उन्हीं में से हम तीन गार्गन बहनें भी थीं। आज से हजारों वर्ष पहले हम तीनों बहनें इस पृथ्वी की सबसे सुंदर स्त्रियां हुआ करती थीं। हमारी सुंदरता से बहुत सी देवियां भी जलती थीं।

“मेडूसा हम तीनों बहनों में सबसे बड़ी थी। एक समय हमें विवाह करने पर अमरत्व की प्राप्ति हो रही थी, पर मेडूसा ने अमरत्व का त्याग कर, आजीवन कौमार्य धारण करने का व्रत लिया और कौमार्य की देवी एथेना की भक्ति में अपना पूरा जीवन बिताने का निर्णय लिया। आज से 19132 वर्ष पहले एथेना के मंदिर में पोसाईडन की निगाह मेरी बहन मेडूसा पर पड़ी, जिससे आसक्त होकर पोसाईडन ने बलस्वरुप, मेरी बहन मेडूसा के साथ, एथेना के मंदिर में बलात्कार किया।

“जब एथेना को पता चला, तो उसने पोसाईडन को कुछ कहने की जगह मेडूसा सहित मुझे और यूरेल को भी श्राप देकर नागकन्याओं में बदल दिया। उसी के श्राप स्वरुप हम तीनों की आँखों में ऐसी शक्ति आ गई कि हम जिसे भी देखतीं, वह पत्थर में परिवर्तित हो जाता। हम सिर्फ नागजाति के लोगों को ही पत्थर में परिवर्तित नहीं कर सकती हैं। मेडूसा इस श्राप से इतनी प्रभावित हुई कि वह सभी लोगों से दूर एक पर्वत पर स्थित जंगल में जाकर रहने लगी।

“उसने पूरी दुनिया का त्याग किया। पर एथेना को इतने से ही संतुष्टि नहीं मिली, उसने बाद में पर्सियस को भेजकर मेडूसा का सिर काटकर, उसे मरवा भी दिया। जिस समय मेडूसा का सिर कटा, वह गर्भवती थी। मेडूसा के सिर कटने के बाद जब उसका खून समुद्र में जाकर मिला तो उसके 2 पुत्र उत्पन्न हुए, जो कि पंखों वाला घोड़ा पेगासस और एक तलवार सहित उत्पन्न हुआ योद्धा क्राइसोर था। जब मेडूसा की मृत्यु का समाचार हमें मिला, तो हमारा भाई ‘लैडन’ बहुत गुस्सा हुआ।

“लैडन एक 100 सिर वाला विशाल सर्प था, जिसे देवी हेरा के उद्यान में सोने के सेब वाले पेड़ की रक्षा के लिये रखा गया था। लैडन का बीच वाला सिर सोने का था और इसी सिर में अमरत्व छिपा था, यानि लैडन के बीच वाले सिर को काटे बिना उसे मारा नहीं जा सकता था। लैडन ने गुस्सा कर पोसाईडन से बदला लेने का प्लान बनाया। उसने कहा कि जिस प्रकार पोसाईडन ने मेरी बहन के साथ किया, वैसा ही मैं उसकी पत्नि के साथ करुंगा।

“यह सोच लैडन ने पोसाईडन की पत्नि के बारे में पता किया। कुछ दिनों में लैडन को पोसाईडन की पत्नि क्लीटो के बारे में पता चला। लैडन ने अटलांटिस द्वीप पर जाकर एक सुंदर नौजवान का भेष बनाया और क्लीटो को आकर्षित करने की कोशिश करने लगा। इसी कोशिश में उसे पता चला कि क्लीटो स्वयं पोसाईडन से खुश नहीं है। लैडन ने क्लीटो को अपनी असलियत बता दी। क्लीटो ने लैडन को अपने महल में छिपा कर रख लिया।

“कुछ दिन बाद दोनों के सम्बन्धों से एक पुत्री का जन्म हुआ। जिसके 3 सिर थे। लैडन को पता था कि अगर पोसाईडन को पता चला तो वह उसकी पुत्री को मार देगा, इसलिये लैडन अपनी पुत्री को लेकर, अटलांटिस से भागकर यूरेल के पास आ गया। लैडन ने यूरेल को अपनी पुत्री को पालने की जिम्मेदारी सौंपी।

“यूरेल ने सबसे पहले उस बच्ची को स्वयं से बचाने के लिये, उसकी तीनों सिर की आँखों में नागवंश का द्रव्य डाल दिया, जिससे कि वह हम बहनों की आँखों में देखने पर पत्थर की ना बने। यूरेल जानती थी कि पोसाईडन से बचाकर उस पुत्री को पालना मुश्किल है, इसलिये उसने उस बच्ची को देवी माया को सौंप दिया। माया के पास पोसाईडन से बचने के अलावा बहुत सी चमत्कारिक शक्तियां थीं।

“माया ने उस बच्ची का नाम मैग्ना रखा और अपनी माया शक्ति से उस बच्ची के 2 सिर गायब कर दिये। मैग्ना में आधे सर्प और आधे ड्रैगन के गुण थे। माया ने मैग्ना को अपने पास रखकर 20 वर्षों तक अद्भुत भवनों और नगरों के निर्माण की कला सिखाई। परंतु माया ने कभी भी मैग्ना को उसके बीते हुए कल के बारे में नहीं बताया। माया के पास मैग्ना की ही तरह, किसी दूसरे का एक छोटा बालक और था, जिसका नाम कैस्पर था। मैग्ना और कैस्पर माया की छत्र छाया में बड़े होने लगे।

“जब दोनों बड़े हो गए, तो उन्होंने समुद्र के ऊपर एक सुंदर माया महल का निर्माण किया, जिससे प्रभावित होकर पोसाईडन ने उन्हें अपना महल बनाने का प्रस्ताव दिया। जब मैग्ना और कैस्पर ने माया से इसकी आज्ञा मांगी तो माया ने उनसे कहा कि वह कुछ भी बना सकते हैं, पर वहां छिपा कर कुछ ऐसी चीजें
अवश्य रखें, जिससे कि कभी भी उस स्थान का नियंत्रण उन दोनों के हाथों में आ सके। जब मैग्ना और कैस्पर पोसाईडन के पास पहुंचे, उसी समय पोसाईडन के सेवक नोफोआ द्वारा, पोसाईडन को क्लीटो के लैडन से सम्बन्ध का पता चल गया।

“उसने गुस्सा कर देवताओं को लैडन को मारने का आदेश दिया, जिसके फलस्वरुप शक्ति के देवता ‘हरक्यूलिस’ने लैडन को मारकर उसका सोने का सिर एक द्वीप पर फेंक दिया और कैस्पर व मैग्ना से एक कृत्रिम द्वीप का निर्माण करा कर क्लीटो को उसमें मौजूद एक तिलिस्म में कैद कर कर दिया। तुम जिस जंगल में खड़े हो, इसे मायावन कहते हैं और इसका निर्माण मैग्ना ने ही देवता पोसाईडन के आदेशानुसार, अपनी माँ की सिखाई गयी, कला द्वारा निर्मित किया था।

“मैग्ना ने वृक्ष शक्ति और जीव शक्ति से इस मायावन का निर्माण किया और कैस्पर ने विज्ञान का प्रयोग करते हुए, अपने समान एक शक्तिशाली रोबोट का निर्माण किया। उस रोबोट ने क्लीटो के आसपास के क्षेत्र में तिलिस्मा नामक एक अत्यंत विकसित मायाजाल का निर्माण किया। यह मायाजाल, मायावन में प्रवेश करने वाले हर इंसान की शक्तियों को देखकर द्वार का स्वयं निर्माण करता है। इसे हरा पाना किसी के भी वश में नहीं है।

"क्यों कि तिलिस्मा में किसी भी प्रकार की दैवीय शक्तियां काम नहीं करती हैं। उधर जब मैग्ना को यह पता चला कि क्लीटो ही उसकी माँ है और वह तिलिस्मा में कैद है, तो उसने पोसाईडन के विरुद्ध कार्य करने शुरु कर दिये। पर मैग्ना को पता था कि वह पोसाईडन से नहीं लड़ सकती।

"मैग्ना को पता चला कि नागलोक में रखे पंचशूल से पोसाईडन को हराया जा सकता है इसलिये वह बिना कैस्पर को बताये नागलोक से पंचशूल लाने के लिये चल दी। मैग्ना ने नागलोक से पंचशूल प्राप्त तो कर लिया, पर उसे उठाते ही उसका पूरा शरीर पंचशूल की ऊर्जा से झुलस गया।

“मैग्ना एक महाशक्ति थी, इसलिये वह तुरंत नहीं मरी। उसने मरने से पहले लैडन का सोने का सिर और पंचशूल को मायावन में कहीं छिपा दिया। मैग्ना को पता था कि वह मरने के बाद दूसरा जन्म लेगी, पर दूसरे जन्म में उसे कुछ याद नहीं रहता, इसलिये मैग्ना ने मुझे बुलाकर मायावन के कुछ गुप्त रहस्यों को बताया और अपनी स्मृतियों को एक छोटी सी बोतल में कैद कर मुझे सौंप दिया। इसके बाद मैग्ना ने अपने प्राण त्याग दिये।

“मुझे मैग्ना के जन्म लेने के बाद उसे धीरे-धीरे सबकुछ याद दिलाना था और जब वह 1...4 वर्ष की पूर्ण हो जाती, तो उसकी पूर्ण स्मृतियां उस बोतल से निकालकर उसे सौंप देनी थी। अब मैग्ना को दूसरा जीवन तभी मिलता, जब मैं उसके मृत शरीर को शुद्ध रुप से पंचतत्व के हवाले कर देती। मायावन में खड़ी होकर मैं अभी मैग्ना के शरीर को विधिपूर्वक पंचतत्व के हवाले करने का सोच ही रही थी कि तभी विषाका ने मुझ पर आक्रमण कर दिया। विषाका पंचशूल की रक्षा करने वाले दूसरे सर्प कराका का भाई था, जो कि पंचशूल की रक्षा में मैग्ना के हाथों बुरी तरह पराजित होकर अपना एक सिर भी खो बैठा था।

“उसी के फलस्वरुप विषाका मैग्ना का पता लगा कर यहां तक आया था। मेरा विषाका से बहुत देर तक युद्ध हुआ, परंतु विषाका मैग्ना का शरीर लेकर यहां से भाग गया। भागते समय विषाका की मणि यहां छूट गई। मुझे पता था कि नाग को अपनी मणि सबसे ज्यादा प्यारी होती है, इसलिये विषाका उसे लेने जरुर आयेगा। कुछ दिन बाद विषाका लौटा। मैंने उसे जादुई बीन से सुलाकर इस स्थान पर कैद कर दिया।

"विषाका की मणि और मैग्ना की स्मृतियों वाली बोतल, इसी स्थान पर रखी रही। मैंने इस स्थान पर एक तिलिस्मी रेखा खींचकर विषाका के कमरे के एक भाग में बंद कर दिया। बाद में मैंने विषाका से मैग्ना के मृत शरीर के बारे में जानने की बहुत कोशिश की, पर उसने मुझे कुछ नहीं बताया। अब मैं हर वर्ष एक बार यहां आती और बीन को उल्टा बजाकर विषाका को जगाकर उससे मैग्ना के मृत शरीर के बारे में पूछती और उसके ना बताने की स्थिति में उसे फिर से सुलाकर यहां से चली जाती।

"इस प्रकार हजारों वर्ष बीत गये, पर विधिवत अंत्येष्ठि ना होने के कारण मैग्ना का दोबारा जन्म ही नहीं हुआ। फिर अचानक 14 वर्ष पहले किसी ने मैग्ना का शरीर शायद विधिवत पंचतत्व के हवाले कर दिया और फिर मैग्ना ने दोबारा से शैफाली के रुप में जन्म लिया।*

"मैग्ना की आँख में नागवंश का द्रव्य डालने की वजह से शैफाली इस जन्म में बचपन से अंधी थी। परंतु जब वह मायावन में पहुंची, तो मैंने नयनतारा पेड़ के, फल के माध्यम से उसकी आँख पर बनी झिल्ली को हटा दिया, जिससे शैफाली को सबकुछ दिखाई देने लगा। ऐमू की तस्वीर का शैफाली की आँखों में बन जाना भी नागशक्ति का एक नमूना था।

"अब जब सबकुछ सही होने वाला था, उसी समय तुम्हारी गलती से विषाका आजाद हो गया और मैग्ना की स्मृतियों के साथ अपनी मणि भी ले भागा। अब अगर शैफाली को मैग्ना की स्मृतियां वापस नहीं की गईं, तो वह तिलिस्मा को पार नहीं कर पायेगी और तिलिस्मा में ही मारी जायेगी। इसलिये यह वशीन्द्रिय शक्ति का घोल माया ने मेरे हाथों तुम्हारे लिये भिजवाया था। चूंकि मैं स्वयं एक सर्पिनी हूं, इसलिये मैं नागलोक पर हमला नहीं कर सकती। माया चाहती हैं कि तुम नागलोक जाओ और वहां से समय रहते मैग्ना की स्मृतियां लेकर वापस आ जाओ।"

“पहले तो मैं अपने द्वारा अंजाने में हुई गलती के लिये क्षमा चाहता हूं। अब मैं अपनी गलती सुधारने के लिये नागलोक जाने को तो तैयार हूं, परंतु ना तो मुझे नागलोक के बारे में कुछ पता है? और ना ही मुझे ये पता
है कि विषाका ने मैग्ना की स्मृतियां कहां छिपा कर रखीं हैं?” ऐलेक्स ने उलझे-उलझे स्वर में कहा।

“वो सब तुम चिंता मत करो। मैं तुम्हें सबकुछ बता दूंगी। विषाका ने मैग्ना की स्मृतियां नागलोक से कुछ दूर बने एक स्थान ‘त्रिआयाम’ में छिपा कर रखा है। त्रिआयाम वह जगह है जहां नागलोक की सभी शक्तियां, तीन दरवाजों के अंदर छिपा कर रखी गयीं हैं। पहले द्वार पर तुम्हारा सामना एक नाग से, दूसरे द्वार में एक राक्षस से और तीसरे द्वार में एक दैवीय शक्ति से होगा। इन तीनों को हराने के बाद, तुम्हें मैग्ना की स्मृतियां मिल जायेंगी।” स्थेनो ने कहा।

“पर....पर इन शक्तियों को मैं हराऊंगा कैसे? यह तो सब की सब बहुत चमत्कारी शक्तियां लग रहीं हैं।” ऐलेक्स की आँखों में चिंता के भाव उभरे।

“मैंने जो शक्तियां अभी तुम्हारे शरीर में डाली हैं, वह हरक्यूलिस की शक्तियों से भी श्रेष्ठ हैं, अब बस तुम्हें उनका सही तरह से प्रयोग करना सीखना होगा। उस शक्ति के प्रयोग से तुम आसानी से मैग्ना की स्मृतियां वापस ला सकते हो।....तो क्या अब तुम तैयार हो नागलोक जाने के लिये?” स्थेनो ने कहा।

ऐलेक्स ने सिर हिलाकर अपनी स्वीकृति दी। अब उसके चेहरे पर एक गजब का विश्वास दिख रहा था।

उसकी सहमति देख स्थेनो ने ऐलेक्स के हाथ पर 2 छोटे फल रख दिये।

“इनमें से एक फल खाते ही तुम अपने आपको त्रिआयाम के सामने पाओगे...और जब तुम अपना कार्य समाप्त कर लो, तो दूसरा फल खा लेना। यह दूसरा फल तुम्हें वापस यहीं ले आयेगा। अब इसके आगे
सबकुछ तुम्हारे हाथ में है।” यह कहकर स्थेनो चुप हो गई।

ऐलेक्स ने उन दोनों फलों में से, एक फल को अपनी जेब के हवाले कर दिया और दूसरे फल को उसने अपने मुंह में डाल लिया।

अब ऐलेक्स को अपना शरीर कणों में बिखरता हुआ सा महसूस होने लगा, परंतु वह तैयार था उस कालजयी यात्रा के लिये जिसके बारे में उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था।


जारी रहेगा_______✍️
बहुत ही अद्भुत मनमोहक और एक रोमांचकारी धमाकेदार अपडेट हैं भाई मजा आ गया
स्थेनो के व्दारा ऐलेक्स को बताई बाते बडी ही रोचक हैं और उसका शब्दांकन के तो क्या ही कहने
ऐलेक्स को स्थेनो व्दारा दी गयी शक्ती उपयोग कर क्या मैग्ना यानी शेफाली की स्मृतियाॅं त्रिआयाम में विजय प्राप्त कर ला पायेगा
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
अगले रोमांचकारी धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 
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