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कहानी अच्छी है या नहीं


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insotter

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आप सभी तारीख नोट कर लीजिए 05 sep 2025 से पहले ही अपडेट दे पाऊंगा उसके बाद 05 Oct 2025 तक मैं अपडेट नहीं दे पाऊंगा किसी व्यक्तिगत समय के अनुसार (लगता है अब तो ग्रहण भी लग गया मेरा फ़ोन का डिस्प्ले गया) उसके बाद आपसे मुलाकात होगी तब तक आप लोग अन्य कहानी के मजे लेना। बीच बीच में आऊंगा बस कमेंट देखने की अपडेट की कितनी प्रतीक्षा है आप लोगों में।
 
Last edited:

insotter

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अध्याय 6
सोचने वाली रात

रात होते ही सभी एक दूसरे को रात के खाने के लिए बोलने लगे, एक एक करके रात के खाने के लिए जिसको जैसे समय मिल रहा था आते जा रहे थे,

सबसे पहले घर की बड़ी बहू चंचल और लेखा ने खाना अपने सास और ससुर, चंचल के पति पंकज, कमल, अनिमेष और रिंकी को दिए, दोनों बहुए खाना बड़े मन से परोस रही थी जिसको जितना चाहिए उतना सभी तो देने लगी और खाते समय,

पंकज -“बाबू जी खेत के काम में कोई परेशानी तो नहीं हो रही ना आपको”

रमेश चंद-“अरे नहीं बेटा अभी तो फसल तैयार भी होने वाले है और इस समय क्या दिक्कत होगी भला”

पंकज -“आप को कोई मदद चाहिए हो तो बताइयेगा”

शामली देवी -“बेटा मैं क्या कह रही थी अभी घर पर सब ठीक है और मौसम भी सही है तो क्यों ना सभी लोग कही घूम आए”

पीताम्बर -“सही कह रही हो माँ फसल कटने शुरू हो उससे पहले घूम आना चाहिए”

पंकज -“जैसा आप लोगो को ठीक लगे पर मुझे कंपनी से छुट्टी शायद ना मिले तो आप लोग चले जाना”

रमेश चंद-“अभी पहले खाना खाओ कल शाम को सोच लेना ये सब”

और अपनी बड़ी बहू चंचल को देखने लगे जो अपने ससुर को देख मुस्कुरा रही थी और इशारे से पूछी जैसे कुछ चाहिए क्या, और उसके ससुर ने ना में अपना सर हिलाया

जहाँ अभी ससुर और बहू नजरे मिला रहे थे वही लेखा पर भी दो लोगो की नजर थी एक कमल और दूसरा उसका ख़ुद का बेटा अनिमेष और लेखा की नजर दोनों में रह रह के जा रही थी, पर कमल और अनिमेष को पता नहीं था उनकी नजरों को कोई पढ़ रही थी

वो रिंकी थी जो खाने के साथ साथ अपने दोनों भाइयो की नजरो को अच्छे से परख रही थी जिसे देख वो अचंभित थी की कैसे कमल अपनी चाची और अनिमेष अपनी माँ को बार बार देख देख मुस्कुरा रहे थे और वहाँ से लेखा भी उनको देख मुस्कुरा रही थीं रिंकी को सक हुआ, कुछ अजीब है आज इनके बीच क्या ये सब पहले भी हुआ करता था इन्ही सब खयालों में खोए रिंकी खाना खाने लगी,

इनके खाने के बाद बाकी बचे लोग भी एक एक करके सभी ने खाना खाया और अपने अपने रूम में चले गए।

लगभग रात के १० बजे देखते है किनके रूम में क्या हो रहा है एक जरूरी बात आजकल कमल और अनिमेष कमल के ही कमरे में सो रहे है और रमल अनिमेष के कमरे में नवीन के साथ ऊपर वाले मंजिल में,

पहले कमरे में जहा रमेश जी अपने पत्नी शामली देवी से कहते है- “क्या हुआ तुम्हें आजकल यहां मन नहीं लग रहा जो घूमने जाने का मन बना रही”

जिसके जवाब देते हुए उसकी पत्नी ने कहा- “कहा से मन लगेगा कुछ लोगो को आजकल खेत से फुरसत जो नहीं मिल रही” रमेश जी को खेत का नाम सुनते ही अचानक आज दोपहर हुए अपने बहू के साथ की घटना याद आ गई जिससे उसके लंड में हल्का हलचल हुआ,

रमेश जी ने कहा- “हा तो तुम ही खेत आ जाती वहा बहुत जगह है मन लगाने को”

और ये बोलते ही हसने लगा, जिसके कहने का मतलब उसकी पत्नी अच्छे से समझ रही थी,

“मन तो घर में भी लग सकता है पर कहा लगायेंगे हम तो पुराने लगने लगे ना” शामली देवी ने रमेश जी पे तंज कसते हुए कहा और बिस्तर में लेटे दूसरे तरफ़ मुड़ गई,

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जिसे देख रमेश जी उनके पास आते हुए कहने लगे- “अब तुमने कहा है तो लो अभी यही मन लगा देते है”

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ये कहते हुए अपने हल्की खड़े लंड को जो पजामे में थी अपनी पत्नी के पीछे जाके साड़ी में बंद गांड से लगाते हुए अपने हाथों को कमर से होते हुए पेट पे ले जाके घूमाने लगे, और उसके कान के नजदीक आके कहने लगे- “रही बात पुराने की वो तो मुझे अच्छे से पता है की आज भी तुम कितनी दम रखती को किसी की हालत पस्त करने में"
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वही बगल के कमरे में बात कुछ आगे बढ़ चुकी थी चंचल अपने पति से चुद रही थी। वो पूरी तरह से बिस्तर पर नंगी थी और उसके पति का लंड जल्दी जल्दी उसकी चूत में अंदर बाहर आ जा रहा था। उसके पति तो बिलकुल चूत के पुजारी है। बिना चूत मारे उनका काम ही नही चलता है। इसलिए आज जैसे ही चंचल अपने सारे काम निपटा के बिस्तर में आई तो पंकज उस पर टूट पड़े थे और उसको बजाने लगा।

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चंचल- “आआआअह्हह्हह…… ईईईईईईई…. ओह्ह्ह्हह्ह…. अई. अई..अई…..अई..मम्मी….” की आवाज निकालने लगी क्यूंकि वो चुद रही थी और बहुत अधिक उत्तेजना में आ गई थी। चंचल ने अपने दोनों हाथो से अपने पति पंकज को पकड़ लिया था उसके नाखूनों की नक्काशी पंकज की पीठ में दिखने लगी थी,

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पंकज चंचल के नंगे चिकने, कामुक और बेहद सेक्सी बदन पर लेटा हुआ साथ ही उसके चूची को भी चूस रहा था और दूसरे हाथ से चूची को दबाते हुए चंचल की चूत को जल्दी जल्दी ठोंक रहा था चंचल को बड़ा मजा आ रहा था,

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आज दोपहर जब से वो खेत से वापस आई थी उसकी चूत गीली ही थी उसके ससुर जी की बातों से कहीं ना कहीं उसकी चूत का ये हाल हुआ था,

हर दिन की तरह आज भी उसकी चूत को उसका लंड उसे मिल रहा था और उसकी आँखे चुदाई के नशे से बंद हुई जा रही थी। उसके पति का लौड़ा उसकी चूत में जल्दी जल्दी किसी ट्रेन की तरह सरक रहा था और चंचल की चूत बजा रहा था।

कुछ देर बाद पंकज और जल्दी जल्दी पेलने लगा

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चंचल- “……मम्मी…मम्मी…..सी सी सी सी.. हा हा हा …..ऊऊऊ ….ऊँ. .ऊँ…ऊँ…उनहूँ उनहूँ..” की कामुक आवाजें निकालने लगी। पति का ८” लंड उसकी चूत को बहुत जल्दी जल्दी चोद रहा था और उसके गुलाबी भोसड़े को फाड़ रहा था। चंचल को बहुत मजा आ रहा था।

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पंकज के अचानक से तेज तेज झटके से चंचल की रसीली चूत में पानी भर के आने लगे और चंचल हवस की आग में ठंडी होने लगी। चंचल ने अपनी चिकनी टांगों को पंकज की कमर में गोल गोल लपेट दिया और उसको कसकर पकड़ अपने सीने से चिपका लिया था। पंकज अपनी पत्नी चंचल की चूत को कमर मटका मटकाकर बजा रहे थे और उसकी चूत को अपने मोटे लौड़े से फाड़ रहे थे।

हवस की माँग में चंचल ज़्यादा देर सह ना सही और उसकी चूत ने आत्मसमर्पण कर दिया उसने अपने पैरों और हाथों को तब तक बाँधे रखा जब तक उसकी चूत ने पानी का एक एक कतरा बहा ना दिया और पंकज के लंड को निचोड़ ना दिया।

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अनिमेष -“भाई अब बता भी दे क्या दिखाने वाला था मुझे”

कमल -“यार वही तो देख रहा हूँ पता नहीं कहा रख दिया मैंने”

अनिमेष -“आप बताओ तो सही है क्या! पता चले तो मैं भी खोजता हूँ”

कमल डर के साथ सोच में खोया हुआ “आख़िर गया तो गया कहा, कहीं किसी के हाथ लग गया फिर तो मेरी खैर नहीं” फिर अनिमेष से कहता है -“यार अनी वो एक किताब थी जिसमें कुछ नंगी तस्वीरें थी जिसे मैं कॉलेज से ख़ास तुझे दिखाने के लिए अपने दोस्तों से माँग के लाया था पता नहीं कहाँ रख दिया मैंने”

अनिमेष -“भाई क्या बात कर रहा है वैसी किताब तू यहाँ लेके आया था और अब कहीं रख के भूल गया वाह मेरे भाई साहब, अगर घर के किसी भी सदस्य ने वो गलती से भी देख लिया ना तो हम दोनों की खैर नहीं है”

कमल -“तू बकचोदी बंद कर और मेरे साथ खोज थोड़ा”

दोनों भाई मिलके उस किताब को बहुत ढूँढे पर उनके कहीं नहीं मिली, मिलेगी भी कहा से क्यों की उस किताब को रिंकी ने चुपके से ले लिया था। दोनों भाई थक हार के बिस्तर पर लेट जाते है और आगे का सोच के डरने लगते है तभी कमल के मोबाइल में कुछ मेसेज आता है जो कॉलेज ग्रुप का था जिसमे किसी लड़के ने एक अश्लील वीडियो भेजा था और कमल खोल के देखता है जिसे अनिमेष ने भी देख लिया,

अनिमेष -“तेरे ही मजे है साले मेरे दोस्त कुछ नहीं भेजते”

और दोनों मिलके वो वीडियो देखने लगते है जिसमे एक कम उम्र का लड़का एक अधिक उम्र की गदराई हुई बड़ी सी चूची और गांड वाली औरत को पीछे से चोद रहा होता है जिसको देख कर दोनों भाई के मन में ख्याल आने लगते है,

अनिमेष मन में- “इस औरत का शरीर तो बिल्कुल माँ के समान लग रही है बिल्कुल वैसी ही गोरी गोरी बड़ी और मोटी गांड”

कमल मन में- “यार इसकी गांड तो बिल्कुल रेखा चाची के जैसे ही है बिल्कुल आज ही की तरह”

और दोनों भाई इशारों में कुछ बोल कर एक साथ अपने पेंट और चड्डी को अपने टाँगों से सरका देते है ताकि आराम से वो दोनों वीडियो देखते हुए अपने लंड मुठिया सके,
कमल - “आह अनी देख रहा क्या गांड है इसकी, बिल्कुल....” और चुप हो जाता है

अनिमेष -“हाँ आह देख रहा भाई गोल गोल बड़ी गांड, आपको किसी के जैसे दिख रही क्या जो बिल्कुल बोलके चुप हो गए”

कमल हाथो से लंड को मसलते हुए -“लग तो रहा यार पर कह नहीं सकता बस उसे याद करके हिला सकता हूँ”

अनिमेष थोड़ा ज़ोर से अपने लंड पे जोर लगाते हुए -“अब बोल भी दो भाई इतने दिन से तो सब बता रहे फिर आज क्यों नहीं कह रहे”

कमल -“तू नहीं समझेगा अनी रहने दे फिर कभी बताऊंगा बस ये समझ ले इस औरत की गांड किसी आसपास रहने वाली के जैसी है”

अनिमेष मन में सोचता है कहीं ये भी वही तो नहीं सोच रहा जो मैं सोच रहा, मैं तो अपनी माँ के बारे में सोच रहा कहीं ये भी घर के किसी औरत के बारे में तो नहीं सोच रहा,

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ये ख्याल आते ही एक तेज फ़व्वारा उसके लंड से निकल पड़ा और शांत होके बिस्तर में पस्त पड़ गया,

वही कमल भी अपनी चाची रेखा की गांड के बारे में सोच के अपने हाथो तो लंड पे तेजी से चलाने लगा, उसने देखा अनिमेष ने धार छोड़ दिया पर वो अभी भी हिलाये जा रहा रहा था उसे उसकी चाची नंगी नजर आने लगी थी,

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उसकी कल्पनाओं का सीमा बढ़ रहा था, रेखा के साथ साथ उसे नेहा भी नंगी नजर आने लगी थी, दोनों के जिस्मों से खेलने की बात सोच कर ही उसके लण्ङ में अकड़न बढ़ती जा रही थी,
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लेखा अपने सारे काम से निवृत्त होकर अपने कमरे में बिस्तर ठीक कर रही थी जहा पीताम्बर उससे कहता है-“क्या हुआ लेखा दुकान से वापस आया हूँ, तब से देख रहा हूँ तू कुछ सोच में डूबी हो, कुछ हुआ है क्या”

लेखा हड़बड़ाते हुए-“नहीं तो मैं कहाँ कुछ सोच रही हूँ, आपको ऐसा क्यों लग रहा है”

पीताम्बर-“दो बार मैंने कुछ पूछा तुमने जवाब नहीं दिया”

लेखा-“क्या पूछे फिर से पूछ लो”

पीताम्बर-“यही की तुम दोपहर में दुकान से जल्दी जल्दी क्यों निकल आई, मैं तुम्हें रुकने के लिए बोलता, तुम उससे पहले ही निकल पड़ी और तुमने खाने का डब्बा भी छोड़ आई”

लेखा अचानक हुए ऐसे सवाल का जवाब देने के लिए बिल्कुल तैयार थी-“हा वो दीदी ने आज कुछ काम बताया था वो करना भूल गई थीं उसे ही पूरा करने के लिए वहाँ से जल्दी निकल आई”

पीताम्बर-“फिर हुआ काम” कहते हुए अपने कपड़े बदलने लगा

लेखा-“हा सब हो गया” कहकर वह भी अपनी साड़ी निकालने लगी, साड़ी निकालने के बाद नाइटी पहनने बाथरूम में चली गई,

वहाँ पहुँचते ही उसने अपनी ब्रा और चड्डी को निकालने लगी फिर उसे अपने और अनिमेष की बाते याद आने लगी थीं और ख्याल आने लगे की “क्या अनी ने आज सब कुछ शुरू से देखा होगा या आख़िर में आया होगा, वो तो आज मुझे पूरी नंगी देख अपना लंड भी हिला रहा था, कितना बड़ा लग रहा था उसका लंड, थोड़ा बड़ा था उसके पापा से और मोटा भी”

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और अपने हाथों को ना जाने क्यों बड़े बड़े चुचियों पे ले जाने लगती है, “आह अनी तूने तो आज फिर से मेरे ये चूची देख लिया बेटा” “हे भगवान मैं ये क्यो सोच रही और मेरे हाथ क्यों अपने आप चुचियो पे चल रहे” फिर धीरे से हाथ को चूत की तरफ़ ले जाने लगती है “नहीं ये सही नहीं है वो मेरा बेटा है” और फिर पैर हाथ को पानी से धोके कपड़े से पोछने के बाद अपनी नाइटी पहन कर बाथरूम बाहर से बाहर आ जाती है,

जहाँ अपने पति को बिस्तर में लेटे देख बल्ब को बुझा देती है और उसके बगल में जाके लेट जाती है, वो छत की तरफ़ देख अपने पति से कहती है-“सो गए क्या”

पीताम्बर-“थकान से नींद आ रही है तुम्हें नींद नहीं आ रही क्या”

लेखा-“कुछ नहीं आप सो जाइये मुझे थोड़े देर में आ जाएगी”

लेखा फिर से आज दिनभर की घटना को याद करने लग जाती है की कैसे आज उसने अपने पति के अलावा दो और अलग लंड देखे जो उसके पति से थोड़े बड़े और मोटे थे, दोपहर में अनी का लंड और शाम को कमल का, जवान लंड को याद करके लेखा की चूत फिर से पानीयने लगी थी,

उसे कुछ करने की इच्छा हो रही थी पर ये सोच के की वो उनके अपने परिवार के है और उनके लिए ग़लत सोचना सही नहीं है ख़ासकर जब वो दोनों घर के बेटे हो।

लेखा डर भी रही थी अपने बेटे के लिए उसका इस तरह किसी की चुदाई देखने का मतलब था की अब वो ये सब में दिलचस्पी लेने लगेगा और अब वो किसी की चुदाई के लिए उसे अपनी तरफ़ करने लगेगा, ये उम्र ही ऐसी है जोश पूरा अपने चरम पर होता है और जहाँ हवस की बात आती है इंसान कुछ भी कर जाता है, कहीं वो किसी के साथ ग़लत ना कर दे,

लेखा मन में -“क्या मुझे उससे इस बारे में बात करनी चाहिए, क्या ये सही रहेगा” बहुत सोच विचार कर अपनी दिमाग़ में कुछ सोचने के बाद-“हा बिल्कुल वो मेरा बेटा है और मैं नहीं चाहती वो किसी ग़लत दिशा में जाए, मुझे किसी दिन समय निकाल के उससे बात करनी ही होगी” इन्हीं सब ख्यालों में खोई लेखा भी अपने पति से चिपक के साथ में सो जाती है,
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ऊपर कमरे में तीनो बहने खाने के बाद थोड़ी पढ़ाई करी और सोने से पहले गप्पे मार रही थी की तभी,

पूजा -“पिंकी आज पानी का बॉटल नहीं भरी क्या”

पिंकी -“माफ करना दी मैं अभी लेके आती हूँ”

रिंकी कुछ सोच के -“तू रुक मैं लेके आती हूँ” और पानी के दोनों बॉटल लेके बाहर आ जाती है,

जहाँ उसे उसके छोटे चाचा के कमरे में आ रही आवाज़ सुनाई देती है जिससे उसे पता चल जाता है लगभग रोज़ की तरह आज भी उनके बीच कुछ बातों को लेके बहस हो रही थी और मन में सोचती हुई आगे बड़ती है आज चाचू फिर पीके आए है पता नहीं कब सब ठीक होगा,

रसोई में पहुँच कर फ्रिज खोल के देखती है पर वहाँ तो आज सभी ने पानी ले लिया था और कहती है -“ ओहो क्या मुसीबत है मतलब अब नीचे जाना ही पड़ेगा” और अचानक मन में एक ख्याल आता है क्यों ना कमल और अनिमेष को देखा जाए रात १०:३० में क्या कर रहे है और तेजी से नीचे जाने लगती है,

जहाँ बरामदे का लाइट बंद हो चुका था हल्की रोशनी वाली बल्ब जल चुकी थी रसोई में पानी की बॉटल को रख देती है,
और चुपके से कमल के कमरे के बाहर पहुँच कर जहाँ अभी भी उसके कमरे की लाइट जल रही थी आवाज सुनना चाह रही थी पर उसे आवाज से कुछ ख़ास समझ नही आया और उसकी दोनों भाई को देखने की ललक बड़ रही थी,

वो किसी तरह खिड़की को खिसका के अंदर का नजारा देखना चाह रही थी और उसको सफलता भी मिल गई पर रिंकी को क्या पता ये वही समय था जब उसकी आँखो के सामने वो नजारा दिखा की अनिमेष ने लंड से अपना पानी निकाला और बिस्तर में ही बगल में पस्त पड़ गया, पर कमल अभी भी हिलाए जा रहा था,

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रिंकी सामने का नजारा देख के हक्की बक्की हुई और मन में कुछ सोचने लगी कि "क्या उसने सही किया यहाँ आके"

वो लगातार बस कमल को लंड हिलाते देख रही थी उसके ८” के लंड पर अपने भाई के हाथो को हिलते देख उसके शरीर में एक अजीब सी एठन सी उठ रही थी जिसे सिर्फ वही अहसास कर सकती थी,

वो डर भी रही थी जिसकी वजह से बार बार बरामदे में भी देख रही थी कि कही कोई उसे ऐसा करते देख न ले,

रिंकी की चूत में हलचल मचनी शुरू हो चुकी थी, हालांकि रिंकी ने कई लंड यहाँ वहाँ देखे थे पर ये पहली बार था जब आज रिंकी ने अपने ही परिवार के किसी सदस्य को इस तरह देखा था,

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वो ना चाहते हुए अपने एक हाथ से चूचे को अनुप्रेषित करने लग गई और धीरे से दूसरे हाथ को लेगिस के ऊपर से ही चूत को सहलाने लगी,

अब रिंकी को अपने भाई की आवाज भी थोड़ी सुनाई दे रही थी, “ओह क्या गांड है यार बिल्कुल आज जैसे मैने देखा था वैसी ही, मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मैं ही गांड मार रहा हूँ काश इस लड़के की जगह मैं होता"

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रिंकी उसकी बातों को सुन बड़ी अचंभित थी कि आज कमल ने किसकी खुली गांड देख ली, क्या वो घर की ही बात कर रहा या बाहर किसी और की,

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यहाँ रिंकी सोच ही रही थी की वहाँ कमल ने अपने लंड से पानी निकाल दिया, जिसके बाद वो भी पस्त पड़ गया और ऐसे बेड में लेता रहा,

अब रिंकी धीरे से वहाँ से निकल रसोई से पानी लेके अपने कमरे की तरफ़ चल पड़ी जहाँ पहुँचते ही पूजा ने उससे कहा-“कहा रह गई थी इतने देर मैं तुझे ऊपर भी देखी पर तू कहीं नहीं मिली”

रिंकी-“दी ऊपर वाले फ्रिज में पानी नहीं था तो नीचे लेने चली गई थी”

फिर तीनो बहने सोने की तैयारी में लग जाते है, पर रिंकी की नींद तो गायब थी वो सोच रही थी अभी जो उसने देखना क्या उसे पूजा दी और पिंकी को बताना चाहिए, क्या मुझे सच में बताना चाहिए की आज मैंने कमल भैया को मुठ मारते देखा और बहुत सी बातों को मन में सोचते हुए वो भी कब नींद की आगोश में चली गई उसे ख़ुद पता नहीं चला,

मित्रों आज के लिए इतना ही जैसा कि आपने देखा रात होते ही सभी कही का कही, किसी न किसी के ख्यालों में खोने लगे थे,

अब कल का नया दिन सभी को कहा लेके जाएगा कौन आगे बढ़ेगा कौन पीछे हटेगा ये सब देखना दिलचस्प होगा।

मिलते है अगले अध्याय में तब तक के लिए धन्यवाद 🙏
 

insotter

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Bhai mai dawe ke saath kah Sakta Hu agr ye story' complete hoti hai to pakka ye forum ki Best story' mese ak hogi... written ne bahut mehnat kiya hai thank u Bhai aisi achhi story' Dene ke liye..ummid karta hu next update jaldi milegaa
Sapna ya hakikat
Sangharsh AK gaon ki larki .
Ye dono story' bahut Kamal ki Hai mai padha Hai inko
Awesome writing skills hi c cc sii
💦💦💦💦💦
🌶️🌶️🌶️🌶️
✅✅✅
Wowww mast MILF hain ghar ki.
WAH WAH GOOD STORY KEEP IT UP
Dost kahani aapki h, aapki marji h but kya kahani me Hero Ek nhi ho sakta.
Hero ek ho to phadne me maja aata hai aur kahani kha chal rhi h, kiske sath kya chal raha h yaad rahta h.
Yha abhi sb kuch mix veg(mix) jaisa ho raha.
Kisi bhi ek Ladke ko hero bana do kahani super duper hit ho jaygi .
Female character bahot h aapki kahani me , Hero sabko pata kar seduce karke aage bhade.
Baaki aapki marji h.
Waiting For Next Update
Nice update
Waiting for next update
So beautiful story
रक्षाबंधन के उपलक्ष्य में आज मैने अगला अध्याय दे दिया है आप लोगों की मदद से मित्रों,
कृपया पड़ कर अपनी राय जरूर दें।
धन्यवाद 🙏
 

Mass

Well-Known Member
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अध्याय 6
सोचने वाली रात

रात होते ही सभी एक दूसरे को रात के खाने के लिए बोलने लगे, एक एक करके रात के खाने के लिए जिसको जैसे समय मिल रहा था आते जा रहे थे,

सबसे पहले घर की बड़ी बहू चंचल और लेखा ने खाना अपने सास और ससुर, चंचल के पति पंकज, कमल, अनिमेष और रिंकी को दिए, दोनों बहुए खाना बड़े मन से परोस रही थी जिसको जितना चाहिए उतना सभी तो देने लगी और खाते समय,

पंकज -“बाबू जी खेत के काम में कोई परेशानी तो नहीं हो रही ना आपको”

रमेश चंद-“अरे नहीं बेटा अभी तो फसल तैयार भी होने वाले है और इस समय क्या दिक्कत होगी भला”

पंकज -“आप को कोई मदद चाहिए हो तो बताइयेगा”

शामली देवी -“बेटा मैं क्या कह रही थी अभी घर पर सब ठीक है और मौसम भी सही है तो क्यों ना सभी लोग कही घूम आए”

पीताम्बर -“सही कह रही हो माँ फसल कटने शुरू हो उससे पहले घूम आना चाहिए”

पंकज -“जैसा आप लोगो को ठीक लगे पर मुझे कंपनी से छुट्टी शायद ना मिले तो आप लोग चले जाना”

रमेश चंद-“अभी पहले खाना खाओ कल शाम को सोच लेना ये सब”

और अपनी बड़ी बहू चंचल को देखने लगे जो अपने ससुर को देख मुस्कुरा रही थी और इशारे से पूछी जैसे कुछ चाहिए क्या, और उसके ससुर ने ना में अपना सर हिलाया

जहाँ अभी ससुर और बहू नजरे मिला रहे थे वही लेखा पर भी दो लोगो की नजर थी एक कमल और दूसरा उसका ख़ुद का बेटा अनिमेष और लेखा की नजर दोनों में रह रह के जा रही थी, पर कमल और अनिमेष को पता नहीं था उनकी नजरों को कोई पढ़ रही थी

वो रिंकी थी जो खाने के साथ साथ अपने दोनों भाइयो की नजरो को अच्छे से परख रही थी जिसे देख वो अचंभित थी की कैसे कमल अपनी चाची और अनिमेष अपनी माँ को बार बार देख देख मुस्कुरा रहे थे और वहाँ से लेखा भी उनको देख मुस्कुरा रही थीं रिंकी को सक हुआ, कुछ अजीब है आज इनके बीच क्या ये सब पहले भी हुआ करता था इन्ही सब खयालों में खोए रिंकी खाना खाने लगी,

इनके खाने के बाद बाकी बचे लोग भी एक एक करके सभी ने खाना खाया और अपने अपने रूम में चले गए।

लगभग रात के १० बजे देखते है किनके रूम में क्या हो रहा है एक जरूरी बात आजकल कमल और अनिमेष कमल के ही कमरे में सो रहे है और रमल अनिमेष के कमरे में नवीन के साथ ऊपर वाले मंजिल में,

पहले कमरे में जहा रमेश जी अपने पत्नी शामली देवी से कहते है- “क्या हुआ तुम्हें आजकल यहां मन नहीं लग रहा जो घूमने जाने का मन बना रही”

जिसके जवाब देते हुए उसकी पत्नी ने कहा- “कहा से मन लगेगा कुछ लोगो को आजकल खेत से फुरसत जो नहीं मिल रही” रमेश जी को खेत का नाम सुनते ही अचानक आज दोपहर हुए अपने बहू के साथ की घटना याद आ गई जिससे उसके लंड में हल्का हलचल हुआ,

रमेश जी ने कहा- “हा तो तुम ही खेत आ जाती वहा बहुत जगह है मन लगाने को”

और ये बोलते ही हसने लगा, जिसके कहने का मतलब उसकी पत्नी अच्छे से समझ रही थी,

“मन तो घर में भी लग सकता है पर कहा लगायेंगे हम तो पुराने लगने लगे ना” शामली देवी ने रमेश जी पे तंज कसते हुए कहा और बिस्तर में लेटे दूसरे तरफ़ मुड़ गई,

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जिसे देख रमेश जी उनके पास आते हुए कहने लगे- “अब तुमने कहा है तो लो अभी यही मन लगा देते है”

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ये कहते हुए अपने हल्की खड़े लंड को जो पजामे में थी अपनी पत्नी के पीछे जाके साड़ी में बंद गांड से लगाते हुए अपने हाथों को कमर से होते हुए पेट पे ले जाके घूमाने लगे, और उसके कान के नजदीक आके कहने लगे- “रही बात पुराने की वो तो मुझे अच्छे से पता है की आज भी तुम कितनी दम रखती को किसी की हालत पस्त करने में"
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वही बगल के कमरे में बात कुछ आगे बढ़ चुकी थी चंचल अपने पति से चुद रही थी। वो पूरी तरह से बिस्तर पर नंगी थी और उसके पति का लंड जल्दी जल्दी उसकी चूत में अंदर बाहर आ जा रहा था। उसके पति तो बिलकुल चूत के पुजारी है। बिना चूत मारे उनका काम ही नही चलता है। इसलिए आज जैसे ही चंचल अपने सारे काम निपटा के बिस्तर में आई तो पंकज उस पर टूट पड़े थे और उसको बजाने लगा।

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चंचल- “आआआअह्हह्हह…… ईईईईईईई…. ओह्ह्ह्हह्ह…. अई. अई..अई…..अई..मम्मी….” की आवाज निकालने लगी क्यूंकि वो चुद रही थी और बहुत अधिक उत्तेजना में आ गई थी। चंचल ने अपने दोनों हाथो से अपने पति पंकज को पकड़ लिया था उसके नाखूनों की नक्काशी पंकज की पीठ में दिखने लगी थी,

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पंकज चंचल के नंगे चिकने, कामुक और बेहद सेक्सी बदन पर लेटा हुआ साथ ही उसके चूची को भी चूस रहा था और दूसरे हाथ से चूची को दबाते हुए चंचल की चूत को जल्दी जल्दी ठोंक रहा था चंचल को बड़ा मजा आ रहा था,

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आज दोपहर जब से वो खेत से वापस आई थी उसकी चूत गीली ही थी उसके ससुर जी की बातों से कहीं ना कहीं उसकी चूत का ये हाल हुआ था,

हर दिन की तरह आज भी उसकी चूत को उसका लंड उसे मिल रहा था और उसकी आँखे चुदाई के नशे से बंद हुई जा रही थी। उसके पति का लौड़ा उसकी चूत में जल्दी जल्दी किसी ट्रेन की तरह सरक रहा था और चंचल की चूत बजा रहा था।

कुछ देर बाद पंकज और जल्दी जल्दी पेलने लगा

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चंचल- “……मम्मी…मम्मी…..सी सी सी सी.. हा हा हा …..ऊऊऊ ….ऊँ. .ऊँ…ऊँ…उनहूँ उनहूँ..” की कामुक आवाजें निकालने लगी। पति का ८” लंड उसकी चूत को बहुत जल्दी जल्दी चोद रहा था और उसके गुलाबी भोसड़े को फाड़ रहा था। चंचल को बहुत मजा आ रहा था।

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पंकज के अचानक से तेज तेज झटके से चंचल की रसीली चूत में पानी भर के आने लगे और चंचल हवस की आग में ठंडी होने लगी। चंचल ने अपनी चिकनी टांगों को पंकज की कमर में गोल गोल लपेट दिया और उसको कसकर पकड़ अपने सीने से चिपका लिया था। पंकज अपनी पत्नी चंचल की चूत को कमर मटका मटकाकर बजा रहे थे और उसकी चूत को अपने मोटे लौड़े से फाड़ रहे थे।

हवस की माँग में चंचल ज़्यादा देर सह ना सही और उसकी चूत ने आत्मसमर्पण कर दिया उसने अपने पैरों और हाथों को तब तक बाँधे रखा जब तक उसकी चूत ने पानी का एक एक कतरा बहा ना दिया और पंकज के लंड को निचोड़ ना दिया।

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अनिमेष -“भाई अब बता भी दे क्या दिखाने वाला था मुझे”

कमल -“यार वही तो देख रहा हूँ पता नहीं कहा रख दिया मैंने”

अनिमेष -“आप बताओ तो सही है क्या! पता चले तो मैं भी खोजता हूँ”

कमल डर के साथ सोच में खोया हुआ “आख़िर गया तो गया कहा, कहीं किसी के हाथ लग गया फिर तो मेरी खैर नहीं” फिर अनिमेष से कहता है -“यार अनी वो एक किताब थी जिसमें कुछ नंगी तस्वीरें थी जिसे मैं कॉलेज से ख़ास तुझे दिखाने के लिए अपने दोस्तों से माँग के लाया था पता नहीं कहाँ रख दिया मैंने”

अनिमेष -“भाई क्या बात कर रहा है वैसी किताब तू यहाँ लेके आया था और अब कहीं रख के भूल गया वाह मेरे भाई साहब, अगर घर के किसी भी सदस्य ने वो गलती से भी देख लिया ना तो हम दोनों की खैर नहीं है”

कमल -“तू बकचोदी बंद कर और मेरे साथ खोज थोड़ा”

दोनों भाई मिलके उस किताब को बहुत ढूँढे पर उनके कहीं नहीं मिली, मिलेगी भी कहा से क्यों की उस किताब को रिंकी ने चुपके से ले लिया था। दोनों भाई थक हार के बिस्तर पर लेट जाते है और आगे का सोच के डरने लगते है तभी कमल के मोबाइल में कुछ मेसेज आता है जो कॉलेज ग्रुप का था जिसमे किसी लड़के ने एक अश्लील वीडियो भेजा था और कमल खोल के देखता है जिसे अनिमेष ने भी देख लिया,

अनिमेष -“तेरे ही मजे है साले मेरे दोस्त कुछ नहीं भेजते”

और दोनों मिलके वो वीडियो देखने लगते है जिसमे एक कम उम्र का लड़का एक अधिक उम्र की गदराई हुई बड़ी सी चूची और गांड वाली औरत को पीछे से चोद रहा होता है जिसको देख कर दोनों भाई के मन में ख्याल आने लगते है,

अनिमेष मन में- “इस औरत का शरीर तो बिल्कुल माँ के समान लग रही है बिल्कुल वैसी ही गोरी गोरी बड़ी और मोटी गांड”

कमल मन में- “यार इसकी गांड तो बिल्कुल रेखा चाची के जैसे ही है बिल्कुल आज ही की तरह”

और दोनों भाई इशारों में कुछ बोल कर एक साथ अपने पेंट और चड्डी को अपने टाँगों से सरका देते है ताकि आराम से वो दोनों वीडियो देखते हुए अपने लंड मुठिया सके,

कमल - “आह अनी देख रहा क्या गांड है इसकी, बिल्कुल....” और चुप हो जाता है

अनिमेष -“हाँ आह देख रहा भाई गोल गोल बड़ी गांड, आपको किसी के जैसे दिख रही क्या जो बिल्कुल बोलके चुप हो गए”

कमल हाथो से लंड को मसलते हुए -“लग तो रहा यार पर कह नहीं सकता बस उसे याद करके हिला सकता हूँ”

अनिमेष थोड़ा ज़ोर से अपने लंड पे जोर लगाते हुए -“अब बोल भी दो भाई इतने दिन से तो सब बता रहे फिर आज क्यों नहीं कह रहे”

कमल -“तू नहीं समझेगा अनी रहने दे फिर कभी बताऊंगा बस ये समझ ले इस औरत की गांड किसी आसपास रहने वाली के जैसी है”

अनिमेष मन में सोचता है कहीं ये भी वही तो नहीं सोच रहा जो मैं सोच रहा, मैं तो अपनी माँ के बारे में सोच रहा कहीं ये भी घर के किसी औरत के बारे में तो नहीं सोच रहा,

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ये ख्याल आते ही एक तेज फ़व्वारा उसके लंड से निकल पड़ा और शांत होके बिस्तर में पस्त पड़ गया,

वही कमल भी अपनी चाची रेखा की गांड के बारे में सोच के अपने हाथो तो लंड पे तेजी से चलाने लगा, उसने देखा अनिमेष ने धार छोड़ दिया पर वो अभी भी हिलाये जा रहा रहा था उसे उसकी चाची नंगी नजर आने लगी थी,

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उसकी कल्पनाओं का सीमा बढ़ रहा था, रेखा के साथ साथ उसे नेहा भी नंगी नजर आने लगी थी, दोनों के जिस्मों से खेलने की बात सोच कर ही उसके लण्ङ में अकड़न बढ़ती जा रही थी,
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लेखा अपने सारे काम से निवृत्त होकर अपने कमरे में बिस्तर ठीक कर रही थी जहा पीताम्बर उससे कहता है-“क्या हुआ लेखा दुकान से वापस आया हूँ, तब से देख रहा हूँ तू कुछ सोच में डूबी हो, कुछ हुआ है क्या”

लेखा हड़बड़ाते हुए-“नहीं तो मैं कहाँ कुछ सोच रही हूँ, आपको ऐसा क्यों लग रहा है”

पीताम्बर-“दो बार मैंने कुछ पूछा तुमने जवाब नहीं दिया”

लेखा-“क्या पूछे फिर से पूछ लो”

पीताम्बर-“यही की तुम दोपहर में दुकान से जल्दी जल्दी क्यों निकल आई, मैं तुम्हें रुकने के लिए बोलता, तुम उससे पहले ही निकल पड़ी और तुमने खाने का डब्बा भी छोड़ आई”

लेखा अचानक हुए ऐसे सवाल का जवाब देने के लिए बिल्कुल तैयार थी-“हा वो दीदी ने आज कुछ काम बताया था वो करना भूल गई थीं उसे ही पूरा करने के लिए वहाँ से जल्दी निकल आई”

पीताम्बर-“फिर हुआ काम” कहते हुए अपने कपड़े बदलने लगा

लेखा-“हा सब हो गया” कहकर वह भी अपनी साड़ी निकालने लगी, साड़ी निकालने के बाद नाइटी पहनने बाथरूम में चली गई,

वहाँ पहुँचते ही उसने अपनी ब्रा और चड्डी को निकालने लगी फिर उसे अपने और अनिमेष की बाते याद आने लगी थीं और ख्याल आने लगे की “क्या अनी ने आज सब कुछ शुरू से देखा होगा या आख़िर में आया होगा, वो तो आज मुझे पूरी नंगी देख अपना लंड भी हिला रहा था, कितना बड़ा लग रहा था उसका लंड, थोड़ा बड़ा था उसके पापा से और मोटा भी”

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और अपने हाथों को ना जाने क्यों बड़े बड़े चुचियों पे ले जाने लगती है, “आह अनी तूने तो आज फिर से मेरे ये चूची देख लिया बेटा” “हे भगवान मैं ये क्यो सोच रही और मेरे हाथ क्यों अपने आप चुचियो पे चल रहे” फिर धीरे से हाथ को चूत की तरफ़ ले जाने लगती है “नहीं ये सही नहीं है वो मेरा बेटा है” और फिर पैर हाथ को पानी से धोके कपड़े से पोछने के बाद अपनी नाइटी पहन कर बाथरूम बाहर से बाहर आ जाती है,

जहाँ अपने पति को बिस्तर में लेटे देख बल्ब को बुझा देती है और उसके बगल में जाके लेट जाती है, वो छत की तरफ़ देख अपने पति से कहती है-“सो गए क्या”

पीताम्बर-“थकान से नींद आ रही है तुम्हें नींद नहीं आ रही क्या”

लेखा-“कुछ नहीं आप सो जाइये मुझे थोड़े देर में आ जाएगी”

लेखा फिर से आज दिनभर की घटना को याद करने लग जाती है की कैसे आज उसने अपने पति के अलावा दो और अलग लंड देखे जो उसके पति से थोड़े बड़े और मोटे थे, दोपहर में अनी का लंड और शाम को कमल का, जवान लंड को याद करके लेखा की चूत फिर से पानीयने लगी थी,

उसे कुछ करने की इच्छा हो रही थी पर ये सोच के की वो उनके अपने परिवार के है और उनके लिए ग़लत सोचना सही नहीं है ख़ासकर जब वो दोनों घर के बेटे हो।

लेखा डर भी रही थी अपने बेटे के लिए उसका इस तरह किसी की चुदाई देखने का मतलब था की अब वो ये सब में दिलचस्पी लेने लगेगा और अब वो किसी की चुदाई के लिए उसे अपनी तरफ़ करने लगेगा, ये उम्र ही ऐसी है जोश पूरा अपने चरम पर होता है और जहाँ हवस की बात आती है इंसान कुछ भी कर जाता है, कहीं वो किसी के साथ ग़लत ना कर दे,

लेखा मन में -“क्या मुझे उससे इस बारे में बात करनी चाहिए, क्या ये सही रहेगा” बहुत सोच विचार कर अपनी दिमाग़ में कुछ सोचने के बाद-“हा बिल्कुल वो मेरा बेटा है और मैं नहीं चाहती वो किसी ग़लत दिशा में जाए, मुझे किसी दिन समय निकाल के उससे बात करनी ही होगी” इन्हीं सब ख्यालों में खोई लेखा भी अपने पति से चिपक के साथ में सो जाती है,
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ऊपर कमरे में तीनो बहने खाने के बाद थोड़ी पढ़ाई करी और सोने से पहले गप्पे मार रही थी की तभी,

पूजा -“पिंकी आज पानी का बॉटल नहीं भरी क्या”

पिंकी -“माफ करना दी मैं अभी लेके आती हूँ”

रिंकी कुछ सोच के -“तू रुक मैं लेके आती हूँ” और पानी के दोनों बॉटल लेके बाहर आ जाती है,

जहाँ उसे उसके छोटे चाचा के कमरे में आ रही आवाज़ सुनाई देती है जिससे उसे पता चल जाता है लगभग रोज़ की तरह आज भी उनके बीच कुछ बातों को लेके बहस हो रही थी और मन में सोचती हुई आगे बड़ती है आज चाचू फिर पीके आए है पता नहीं कब सब ठीक होगा,

रसोई में पहुँच कर फ्रिज खोल के देखती है पर वहाँ तो आज सभी ने पानी ले लिया था और कहती है -“ ओहो क्या मुसीबत है मतलब अब नीचे जाना ही पड़ेगा” और अचानक मन में एक ख्याल आता है क्यों ना कमल और अनिमेष को देखा जाए रात १०:३० में क्या कर रहे है और तेजी से नीचे जाने लगती है,

जहाँ बरामदे का लाइट बंद हो चुका था हल्की रोशनी वाली बल्ब जल चुकी थी रसोई में पानी की बॉटल को रख देती है,
और चुपके से कमल के कमरे के बाहर पहुँच कर जहाँ अभी भी उसके कमरे की लाइट जल रही थी आवाज सुनना चाह रही थी पर उसे आवाज से कुछ ख़ास समझ नही आया और उसकी दोनों भाई को देखने की ललक बड़ रही थी,

वो किसी तरह खिड़की को खिसका के अंदर का नजारा देखना चाह रही थी और उसको सफलता भी मिल गई पर रिंकी को क्या पता ये वही समय था जब उसकी आँखो के सामने वो नजारा दिखा की अनिमेष ने लंड से अपना पानी निकाला और बिस्तर में ही बगल में पस्त पड़ गया, पर कमल अभी भी हिलाए जा रहा था,

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रिंकी सामने का नजारा देख के हक्की बक्की हुई और मन में कुछ सोचने लगी कि "क्या उसने सही किया यहाँ आके"

वो लगातार बस कमल को लंड हिलाते देख रही थी उसके ८” के लंड पर अपने भाई के हाथो को हिलते देख उसके शरीर में एक अजीब सी एठन सी उठ रही थी जिसे सिर्फ वही अहसास कर सकती थी,

वो डर भी रही थी जिसकी वजह से बार बार बरामदे में भी देख रही थी कि कही कोई उसे ऐसा करते देख न ले,

रिंकी की चूत में हलचल मचनी शुरू हो चुकी थी, हालांकि रिंकी ने कई लंड यहाँ वहाँ देखे थे पर ये पहली बार था जब आज रिंकी ने अपने ही परिवार के किसी सदस्य को इस तरह देखा था,

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वो ना चाहते हुए अपने एक हाथ से चूचे को अनुप्रेषित करने लग गई और धीरे से दूसरे हाथ को लेगिस के ऊपर से ही चूत को सहलाने लगी,

अब रिंकी को अपने भाई की आवाज भी थोड़ी सुनाई दे रही थी, “ओह क्या गांड है यार बिल्कुल आज जैसे मैने देखा था वैसी ही, मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मैं ही गांड मार रहा हूँ काश इस लड़के की जगह मैं होता"

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रिंकी उसकी बातों को सुन बड़ी अचंभित थी कि आज कमल ने किसकी खुली गांड देख ली, क्या वो घर की ही बात कर रहा या बाहर किसी और की,

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यहाँ रिंकी सोच ही रही थी की वहाँ कमल ने अपने लंड से पानी निकाल दिया, जिसके बाद वो भी पस्त पड़ गया और ऐसे बेड में लेता रहा,

अब रिंकी धीरे से वहाँ से निकल रसोई से पानी लेके अपने कमरे की तरफ़ चल पड़ी जहाँ पहुँचते ही पूजा ने उससे कहा-“कहा रह गई थी इतने देर मैं तुझे ऊपर भी देखी पर तू कहीं नहीं मिली”

रिंकी-“दी ऊपर वाले फ्रिज में पानी नहीं था तो नीचे लेने चली गई थी”

फिर तीनो बहने सोने की तैयारी में लग जाते है, पर रिंकी की नींद तो गायब थी वो सोच रही थी अभी जो उसने देखना क्या उसे पूजा दी और पिंकी को बताना चाहिए, क्या मुझे सच में बताना चाहिए की आज मैंने कमल भैया को मुठ मारते देखा और बहुत सी बातों को मन में सोचते हुए वो भी कब नींद की आगोश में चली गई उसे ख़ुद पता नहीं चला,

मित्रों आज के लिए इतना ही जैसा कि आपने देखा रात होते ही सभी कही का कही, किसी न किसी के ख्यालों में खोने लगे थे,

अब कल का नया दिन सभी को कहा लेके जाएगा कौन आगे बढ़ेगा कौन पीछे हटेगा ये सब देखना दिलचस्प होगा।

मिलते है अगले अध्याय में तब तक के लिए धन्यवाद 🙏
Wonderful update bhai..good one...pics are also good...lage raho!!!
Look forward to your next update...जब भी आपको टाइम मिले !!
वैसे मैंने भी अपने स्टोरी पे पग ४५ पे अपडेट दिया है. Look forward to your comments.

insotter
 

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Thank you so much 🙏
Now I'm free and I'll check ur story.
 
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rajeev13

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अध्याय 6
सोचने वाली रात

रात होते ही सभी एक दूसरे को रात के खाने के लिए बोलने लगे, एक एक करके रात के खाने के लिए जिसको जैसे समय मिल रहा था आते जा रहे थे,

सबसे पहले घर की बड़ी बहू चंचल और लेखा ने खाना अपने सास और ससुर, चंचल के पति पंकज, कमल, अनिमेष और रिंकी को दिए, दोनों बहुए खाना बड़े मन से परोस रही थी जिसको जितना चाहिए उतना सभी तो देने लगी और खाते समय,

पंकज -“बाबू जी खेत के काम में कोई परेशानी तो नहीं हो रही ना आपको”

रमेश चंद-“अरे नहीं बेटा अभी तो फसल तैयार भी होने वाले है और इस समय क्या दिक्कत होगी भला”

पंकज -“आप को कोई मदद चाहिए हो तो बताइयेगा”

शामली देवी -“बेटा मैं क्या कह रही थी अभी घर पर सब ठीक है और मौसम भी सही है तो क्यों ना सभी लोग कही घूम आए”

पीताम्बर -“सही कह रही हो माँ फसल कटने शुरू हो उससे पहले घूम आना चाहिए”

पंकज -“जैसा आप लोगो को ठीक लगे पर मुझे कंपनी से छुट्टी शायद ना मिले तो आप लोग चले जाना”

रमेश चंद-“अभी पहले खाना खाओ कल शाम को सोच लेना ये सब”

और अपनी बड़ी बहू चंचल को देखने लगे जो अपने ससुर को देख मुस्कुरा रही थी और इशारे से पूछी जैसे कुछ चाहिए क्या, और उसके ससुर ने ना में अपना सर हिलाया

जहाँ अभी ससुर और बहू नजरे मिला रहे थे वही लेखा पर भी दो लोगो की नजर थी एक कमल और दूसरा उसका ख़ुद का बेटा अनिमेष और लेखा की नजर दोनों में रह रह के जा रही थी, पर कमल और अनिमेष को पता नहीं था उनकी नजरों को कोई पढ़ रही थी

वो रिंकी थी जो खाने के साथ साथ अपने दोनों भाइयो की नजरो को अच्छे से परख रही थी जिसे देख वो अचंभित थी की कैसे कमल अपनी चाची और अनिमेष अपनी माँ को बार बार देख देख मुस्कुरा रहे थे और वहाँ से लेखा भी उनको देख मुस्कुरा रही थीं रिंकी को सक हुआ, कुछ अजीब है आज इनके बीच क्या ये सब पहले भी हुआ करता था इन्ही सब खयालों में खोए रिंकी खाना खाने लगी,

इनके खाने के बाद बाकी बचे लोग भी एक एक करके सभी ने खाना खाया और अपने अपने रूम में चले गए।

लगभग रात के १० बजे देखते है किनके रूम में क्या हो रहा है एक जरूरी बात आजकल कमल और अनिमेष कमल के ही कमरे में सो रहे है और रमल अनिमेष के कमरे में नवीन के साथ ऊपर वाले मंजिल में,

पहले कमरे में जहा रमेश जी अपने पत्नी शामली देवी से कहते है- “क्या हुआ तुम्हें आजकल यहां मन नहीं लग रहा जो घूमने जाने का मन बना रही”

जिसके जवाब देते हुए उसकी पत्नी ने कहा- “कहा से मन लगेगा कुछ लोगो को आजकल खेत से फुरसत जो नहीं मिल रही” रमेश जी को खेत का नाम सुनते ही अचानक आज दोपहर हुए अपने बहू के साथ की घटना याद आ गई जिससे उसके लंड में हल्का हलचल हुआ,

रमेश जी ने कहा- “हा तो तुम ही खेत आ जाती वहा बहुत जगह है मन लगाने को”

और ये बोलते ही हसने लगा, जिसके कहने का मतलब उसकी पत्नी अच्छे से समझ रही थी,

“मन तो घर में भी लग सकता है पर कहा लगायेंगे हम तो पुराने लगने लगे ना” शामली देवी ने रमेश जी पे तंज कसते हुए कहा और बिस्तर में लेटे दूसरे तरफ़ मुड़ गई,

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जिसे देख रमेश जी उनके पास आते हुए कहने लगे- “अब तुमने कहा है तो लो अभी यही मन लगा देते है”

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ये कहते हुए अपने हल्की खड़े लंड को जो पजामे में थी अपनी पत्नी के पीछे जाके साड़ी में बंद गांड से लगाते हुए अपने हाथों को कमर से होते हुए पेट पे ले जाके घूमाने लगे, और उसके कान के नजदीक आके कहने लगे- “रही बात पुराने की वो तो मुझे अच्छे से पता है की आज भी तुम कितनी दम रखती को किसी की हालत पस्त करने में"
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वही बगल के कमरे में बात कुछ आगे बढ़ चुकी थी चंचल अपने पति से चुद रही थी। वो पूरी तरह से बिस्तर पर नंगी थी और उसके पति का लंड जल्दी जल्दी उसकी चूत में अंदर बाहर आ जा रहा था। उसके पति तो बिलकुल चूत के पुजारी है। बिना चूत मारे उनका काम ही नही चलता है। इसलिए आज जैसे ही चंचल अपने सारे काम निपटा के बिस्तर में आई तो पंकज उस पर टूट पड़े थे और उसको बजाने लगा।

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चंचल- “आआआअह्हह्हह…… ईईईईईईई…. ओह्ह्ह्हह्ह…. अई. अई..अई…..अई..मम्मी….” की आवाज निकालने लगी क्यूंकि वो चुद रही थी और बहुत अधिक उत्तेजना में आ गई थी। चंचल ने अपने दोनों हाथो से अपने पति पंकज को पकड़ लिया था उसके नाखूनों की नक्काशी पंकज की पीठ में दिखने लगी थी,

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पंकज चंचल के नंगे चिकने, कामुक और बेहद सेक्सी बदन पर लेटा हुआ साथ ही उसके चूची को भी चूस रहा था और दूसरे हाथ से चूची को दबाते हुए चंचल की चूत को जल्दी जल्दी ठोंक रहा था चंचल को बड़ा मजा आ रहा था,

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आज दोपहर जब से वो खेत से वापस आई थी उसकी चूत गीली ही थी उसके ससुर जी की बातों से कहीं ना कहीं उसकी चूत का ये हाल हुआ था,

हर दिन की तरह आज भी उसकी चूत को उसका लंड उसे मिल रहा था और उसकी आँखे चुदाई के नशे से बंद हुई जा रही थी। उसके पति का लौड़ा उसकी चूत में जल्दी जल्दी किसी ट्रेन की तरह सरक रहा था और चंचल की चूत बजा रहा था।

कुछ देर बाद पंकज और जल्दी जल्दी पेलने लगा

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चंचल- “……मम्मी…मम्मी…..सी सी सी सी.. हा हा हा …..ऊऊऊ ….ऊँ. .ऊँ…ऊँ…उनहूँ उनहूँ..” की कामुक आवाजें निकालने लगी। पति का ८” लंड उसकी चूत को बहुत जल्दी जल्दी चोद रहा था और उसके गुलाबी भोसड़े को फाड़ रहा था। चंचल को बहुत मजा आ रहा था।

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पंकज के अचानक से तेज तेज झटके से चंचल की रसीली चूत में पानी भर के आने लगे और चंचल हवस की आग में ठंडी होने लगी। चंचल ने अपनी चिकनी टांगों को पंकज की कमर में गोल गोल लपेट दिया और उसको कसकर पकड़ अपने सीने से चिपका लिया था। पंकज अपनी पत्नी चंचल की चूत को कमर मटका मटकाकर बजा रहे थे और उसकी चूत को अपने मोटे लौड़े से फाड़ रहे थे।

हवस की माँग में चंचल ज़्यादा देर सह ना सही और उसकी चूत ने आत्मसमर्पण कर दिया उसने अपने पैरों और हाथों को तब तक बाँधे रखा जब तक उसकी चूत ने पानी का एक एक कतरा बहा ना दिया और पंकज के लंड को निचोड़ ना दिया।

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अनिमेष -“भाई अब बता भी दे क्या दिखाने वाला था मुझे”

कमल -“यार वही तो देख रहा हूँ पता नहीं कहा रख दिया मैंने”

अनिमेष -“आप बताओ तो सही है क्या! पता चले तो मैं भी खोजता हूँ”

कमल डर के साथ सोच में खोया हुआ “आख़िर गया तो गया कहा, कहीं किसी के हाथ लग गया फिर तो मेरी खैर नहीं” फिर अनिमेष से कहता है -“यार अनी वो एक किताब थी जिसमें कुछ नंगी तस्वीरें थी जिसे मैं कॉलेज से ख़ास तुझे दिखाने के लिए अपने दोस्तों से माँग के लाया था पता नहीं कहाँ रख दिया मैंने”

अनिमेष -“भाई क्या बात कर रहा है वैसी किताब तू यहाँ लेके आया था और अब कहीं रख के भूल गया वाह मेरे भाई साहब, अगर घर के किसी भी सदस्य ने वो गलती से भी देख लिया ना तो हम दोनों की खैर नहीं है”

कमल -“तू बकचोदी बंद कर और मेरे साथ खोज थोड़ा”

दोनों भाई मिलके उस किताब को बहुत ढूँढे पर उनके कहीं नहीं मिली, मिलेगी भी कहा से क्यों की उस किताब को रिंकी ने चुपके से ले लिया था। दोनों भाई थक हार के बिस्तर पर लेट जाते है और आगे का सोच के डरने लगते है तभी कमल के मोबाइल में कुछ मेसेज आता है जो कॉलेज ग्रुप का था जिसमे किसी लड़के ने एक अश्लील वीडियो भेजा था और कमल खोल के देखता है जिसे अनिमेष ने भी देख लिया,

अनिमेष -“तेरे ही मजे है साले मेरे दोस्त कुछ नहीं भेजते”

और दोनों मिलके वो वीडियो देखने लगते है जिसमे एक कम उम्र का लड़का एक अधिक उम्र की गदराई हुई बड़ी सी चूची और गांड वाली औरत को पीछे से चोद रहा होता है जिसको देख कर दोनों भाई के मन में ख्याल आने लगते है,

अनिमेष मन में- “इस औरत का शरीर तो बिल्कुल माँ के समान लग रही है बिल्कुल वैसी ही गोरी गोरी बड़ी और मोटी गांड”

कमल मन में- “यार इसकी गांड तो बिल्कुल रेखा चाची के जैसे ही है बिल्कुल आज ही की तरह”

और दोनों भाई इशारों में कुछ बोल कर एक साथ अपने पेंट और चड्डी को अपने टाँगों से सरका देते है ताकि आराम से वो दोनों वीडियो देखते हुए अपने लंड मुठिया सके,

कमल - “आह अनी देख रहा क्या गांड है इसकी, बिल्कुल....” और चुप हो जाता है

अनिमेष -“हाँ आह देख रहा भाई गोल गोल बड़ी गांड, आपको किसी के जैसे दिख रही क्या जो बिल्कुल बोलके चुप हो गए”

कमल हाथो से लंड को मसलते हुए -“लग तो रहा यार पर कह नहीं सकता बस उसे याद करके हिला सकता हूँ”

अनिमेष थोड़ा ज़ोर से अपने लंड पे जोर लगाते हुए -“अब बोल भी दो भाई इतने दिन से तो सब बता रहे फिर आज क्यों नहीं कह रहे”

कमल -“तू नहीं समझेगा अनी रहने दे फिर कभी बताऊंगा बस ये समझ ले इस औरत की गांड किसी आसपास रहने वाली के जैसी है”

अनिमेष मन में सोचता है कहीं ये भी वही तो नहीं सोच रहा जो मैं सोच रहा, मैं तो अपनी माँ के बारे में सोच रहा कहीं ये भी घर के किसी औरत के बारे में तो नहीं सोच रहा,

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वही कमल भी अपनी चाची रेखा की गांड के बारे में सोच के अपने हाथो तो लंड पे तेजी से चलाने लगा, उसने देखा अनिमेष ने धार छोड़ दिया पर वो अभी भी हिलाये जा रहा रहा था उसे उसकी चाची नंगी नजर आने लगी थी,

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उसकी कल्पनाओं का सीमा बढ़ रहा था, रेखा के साथ साथ उसे नेहा भी नंगी नजर आने लगी थी, दोनों के जिस्मों से खेलने की बात सोच कर ही उसके लण्ङ में अकड़न बढ़ती जा रही थी,
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लेखा अपने सारे काम से निवृत्त होकर अपने कमरे में बिस्तर ठीक कर रही थी जहा पीताम्बर उससे कहता है-“क्या हुआ लेखा दुकान से वापस आया हूँ, तब से देख रहा हूँ तू कुछ सोच में डूबी हो, कुछ हुआ है क्या”

लेखा हड़बड़ाते हुए-“नहीं तो मैं कहाँ कुछ सोच रही हूँ, आपको ऐसा क्यों लग रहा है”

पीताम्बर-“दो बार मैंने कुछ पूछा तुमने जवाब नहीं दिया”

लेखा-“क्या पूछे फिर से पूछ लो”

पीताम्बर-“यही की तुम दोपहर में दुकान से जल्दी जल्दी क्यों निकल आई, मैं तुम्हें रुकने के लिए बोलता, तुम उससे पहले ही निकल पड़ी और तुमने खाने का डब्बा भी छोड़ आई”

लेखा अचानक हुए ऐसे सवाल का जवाब देने के लिए बिल्कुल तैयार थी-“हा वो दीदी ने आज कुछ काम बताया था वो करना भूल गई थीं उसे ही पूरा करने के लिए वहाँ से जल्दी निकल आई”

पीताम्बर-“फिर हुआ काम” कहते हुए अपने कपड़े बदलने लगा

लेखा-“हा सब हो गया” कहकर वह भी अपनी साड़ी निकालने लगी, साड़ी निकालने के बाद नाइटी पहनने बाथरूम में चली गई,

वहाँ पहुँचते ही उसने अपनी ब्रा और चड्डी को निकालने लगी फिर उसे अपने और अनिमेष की बाते याद आने लगी थीं और ख्याल आने लगे की “क्या अनी ने आज सब कुछ शुरू से देखा होगा या आख़िर में आया होगा, वो तो आज मुझे पूरी नंगी देख अपना लंड भी हिला रहा था, कितना बड़ा लग रहा था उसका लंड, थोड़ा बड़ा था उसके पापा से और मोटा भी”

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और अपने हाथों को ना जाने क्यों बड़े बड़े चुचियों पे ले जाने लगती है, “आह अनी तूने तो आज फिर से मेरे ये चूची देख लिया बेटा” “हे भगवान मैं ये क्यो सोच रही और मेरे हाथ क्यों अपने आप चुचियो पे चल रहे” फिर धीरे से हाथ को चूत की तरफ़ ले जाने लगती है “नहीं ये सही नहीं है वो मेरा बेटा है” और फिर पैर हाथ को पानी से धोके कपड़े से पोछने के बाद अपनी नाइटी पहन कर बाथरूम बाहर से बाहर आ जाती है,

जहाँ अपने पति को बिस्तर में लेटे देख बल्ब को बुझा देती है और उसके बगल में जाके लेट जाती है, वो छत की तरफ़ देख अपने पति से कहती है-“सो गए क्या”

पीताम्बर-“थकान से नींद आ रही है तुम्हें नींद नहीं आ रही क्या”

लेखा-“कुछ नहीं आप सो जाइये मुझे थोड़े देर में आ जाएगी”

लेखा फिर से आज दिनभर की घटना को याद करने लग जाती है की कैसे आज उसने अपने पति के अलावा दो और अलग लंड देखे जो उसके पति से थोड़े बड़े और मोटे थे, दोपहर में अनी का लंड और शाम को कमल का, जवान लंड को याद करके लेखा की चूत फिर से पानीयने लगी थी,

उसे कुछ करने की इच्छा हो रही थी पर ये सोच के की वो उनके अपने परिवार के है और उनके लिए ग़लत सोचना सही नहीं है ख़ासकर जब वो दोनों घर के बेटे हो।

लेखा डर भी रही थी अपने बेटे के लिए उसका इस तरह किसी की चुदाई देखने का मतलब था की अब वो ये सब में दिलचस्पी लेने लगेगा और अब वो किसी की चुदाई के लिए उसे अपनी तरफ़ करने लगेगा, ये उम्र ही ऐसी है जोश पूरा अपने चरम पर होता है और जहाँ हवस की बात आती है इंसान कुछ भी कर जाता है, कहीं वो किसी के साथ ग़लत ना कर दे,

लेखा मन में -“क्या मुझे उससे इस बारे में बात करनी चाहिए, क्या ये सही रहेगा” बहुत सोच विचार कर अपनी दिमाग़ में कुछ सोचने के बाद-“हा बिल्कुल वो मेरा बेटा है और मैं नहीं चाहती वो किसी ग़लत दिशा में जाए, मुझे किसी दिन समय निकाल के उससे बात करनी ही होगी” इन्हीं सब ख्यालों में खोई लेखा भी अपने पति से चिपक के साथ में सो जाती है,
.
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ऊपर कमरे में तीनो बहने खाने के बाद थोड़ी पढ़ाई करी और सोने से पहले गप्पे मार रही थी की तभी,

पूजा -“पिंकी आज पानी का बॉटल नहीं भरी क्या”

पिंकी -“माफ करना दी मैं अभी लेके आती हूँ”

रिंकी कुछ सोच के -“तू रुक मैं लेके आती हूँ” और पानी के दोनों बॉटल लेके बाहर आ जाती है,

जहाँ उसे उसके छोटे चाचा के कमरे में आ रही आवाज़ सुनाई देती है जिससे उसे पता चल जाता है लगभग रोज़ की तरह आज भी उनके बीच कुछ बातों को लेके बहस हो रही थी और मन में सोचती हुई आगे बड़ती है आज चाचू फिर पीके आए है पता नहीं कब सब ठीक होगा,

रसोई में पहुँच कर फ्रिज खोल के देखती है पर वहाँ तो आज सभी ने पानी ले लिया था और कहती है -“ ओहो क्या मुसीबत है मतलब अब नीचे जाना ही पड़ेगा” और अचानक मन में एक ख्याल आता है क्यों ना कमल और अनिमेष को देखा जाए रात १०:३० में क्या कर रहे है और तेजी से नीचे जाने लगती है,

जहाँ बरामदे का लाइट बंद हो चुका था हल्की रोशनी वाली बल्ब जल चुकी थी रसोई में पानी की बॉटल को रख देती है,
और चुपके से कमल के कमरे के बाहर पहुँच कर जहाँ अभी भी उसके कमरे की लाइट जल रही थी आवाज सुनना चाह रही थी पर उसे आवाज से कुछ ख़ास समझ नही आया और उसकी दोनों भाई को देखने की ललक बड़ रही थी,

वो किसी तरह खिड़की को खिसका के अंदर का नजारा देखना चाह रही थी और उसको सफलता भी मिल गई पर रिंकी को क्या पता ये वही समय था जब उसकी आँखो के सामने वो नजारा दिखा की अनिमेष ने लंड से अपना पानी निकाला और बिस्तर में ही बगल में पस्त पड़ गया, पर कमल अभी भी हिलाए जा रहा था,

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रिंकी सामने का नजारा देख के हक्की बक्की हुई और मन में कुछ सोचने लगी कि "क्या उसने सही किया यहाँ आके"

वो लगातार बस कमल को लंड हिलाते देख रही थी उसके ८” के लंड पर अपने भाई के हाथो को हिलते देख उसके शरीर में एक अजीब सी एठन सी उठ रही थी जिसे सिर्फ वही अहसास कर सकती थी,

वो डर भी रही थी जिसकी वजह से बार बार बरामदे में भी देख रही थी कि कही कोई उसे ऐसा करते देख न ले,

रिंकी की चूत में हलचल मचनी शुरू हो चुकी थी, हालांकि रिंकी ने कई लंड यहाँ वहाँ देखे थे पर ये पहली बार था जब आज रिंकी ने अपने ही परिवार के किसी सदस्य को इस तरह देखा था,

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वो ना चाहते हुए अपने एक हाथ से चूचे को अनुप्रेषित करने लग गई और धीरे से दूसरे हाथ को लेगिस के ऊपर से ही चूत को सहलाने लगी,

अब रिंकी को अपने भाई की आवाज भी थोड़ी सुनाई दे रही थी, “ओह क्या गांड है यार बिल्कुल आज जैसे मैने देखा था वैसी ही, मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मैं ही गांड मार रहा हूँ काश इस लड़के की जगह मैं होता"

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रिंकी उसकी बातों को सुन बड़ी अचंभित थी कि आज कमल ने किसकी खुली गांड देख ली, क्या वो घर की ही बात कर रहा या बाहर किसी और की,

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यहाँ रिंकी सोच ही रही थी की वहाँ कमल ने अपने लंड से पानी निकाल दिया, जिसके बाद वो भी पस्त पड़ गया और ऐसे बेड में लेता रहा,

अब रिंकी धीरे से वहाँ से निकल रसोई से पानी लेके अपने कमरे की तरफ़ चल पड़ी जहाँ पहुँचते ही पूजा ने उससे कहा-“कहा रह गई थी इतने देर मैं तुझे ऊपर भी देखी पर तू कहीं नहीं मिली”

रिंकी-“दी ऊपर वाले फ्रिज में पानी नहीं था तो नीचे लेने चली गई थी”

फिर तीनो बहने सोने की तैयारी में लग जाते है, पर रिंकी की नींद तो गायब थी वो सोच रही थी अभी जो उसने देखना क्या उसे पूजा दी और पिंकी को बताना चाहिए, क्या मुझे सच में बताना चाहिए की आज मैंने कमल भैया को मुठ मारते देखा और बहुत सी बातों को मन में सोचते हुए वो भी कब नींद की आगोश में चली गई उसे ख़ुद पता नहीं चला,

मित्रों आज के लिए इतना ही जैसा कि आपने देखा रात होते ही सभी कही का कही, किसी न किसी के ख्यालों में खोने लगे थे,

अब कल का नया दिन सभी को कहा लेके जाएगा कौन आगे बढ़ेगा कौन पीछे हटेगा ये सब देखना दिलचस्प होगा।

मिलते है अगले अध्याय में तब तक के लिए धन्यवाद 🙏
बहुत ही शानदार अपडेट था मित्र,
माँ और बहन दोनों काम अग्नि में जल रही है !

अगली कड़ी की प्रतीक्षा रहेगी...
 

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बहुत ही शानदार अपडेट था मित्र,
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अगली कड़ी की प्रतीक्षा रहेगी...
Thank you so much 🙏 rajeev13
 

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अध्याय 6
सोचने वाली रात

रात होते ही सभी एक दूसरे को रात के खाने के लिए बोलने लगे, एक एक करके रात के खाने के लिए जिसको जैसे समय मिल रहा था आते जा रहे थे,

सबसे पहले घर की बड़ी बहू चंचल और लेखा ने खाना अपने सास और ससुर, चंचल के पति पंकज, कमल, अनिमेष और रिंकी को दिए, दोनों बहुए खाना बड़े मन से परोस रही थी जिसको जितना चाहिए उतना सभी तो देने लगी और खाते समय,

पंकज -“बाबू जी खेत के काम में कोई परेशानी तो नहीं हो रही ना आपको”

रमेश चंद-“अरे नहीं बेटा अभी तो फसल तैयार भी होने वाले है और इस समय क्या दिक्कत होगी भला”

पंकज -“आप को कोई मदद चाहिए हो तो बताइयेगा”

शामली देवी -“बेटा मैं क्या कह रही थी अभी घर पर सब ठीक है और मौसम भी सही है तो क्यों ना सभी लोग कही घूम आए”

पीताम्बर -“सही कह रही हो माँ फसल कटने शुरू हो उससे पहले घूम आना चाहिए”

पंकज -“जैसा आप लोगो को ठीक लगे पर मुझे कंपनी से छुट्टी शायद ना मिले तो आप लोग चले जाना”

रमेश चंद-“अभी पहले खाना खाओ कल शाम को सोच लेना ये सब”

और अपनी बड़ी बहू चंचल को देखने लगे जो अपने ससुर को देख मुस्कुरा रही थी और इशारे से पूछी जैसे कुछ चाहिए क्या, और उसके ससुर ने ना में अपना सर हिलाया

जहाँ अभी ससुर और बहू नजरे मिला रहे थे वही लेखा पर भी दो लोगो की नजर थी एक कमल और दूसरा उसका ख़ुद का बेटा अनिमेष और लेखा की नजर दोनों में रह रह के जा रही थी, पर कमल और अनिमेष को पता नहीं था उनकी नजरों को कोई पढ़ रही थी

वो रिंकी थी जो खाने के साथ साथ अपने दोनों भाइयो की नजरो को अच्छे से परख रही थी जिसे देख वो अचंभित थी की कैसे कमल अपनी चाची और अनिमेष अपनी माँ को बार बार देख देख मुस्कुरा रहे थे और वहाँ से लेखा भी उनको देख मुस्कुरा रही थीं रिंकी को सक हुआ, कुछ अजीब है आज इनके बीच क्या ये सब पहले भी हुआ करता था इन्ही सब खयालों में खोए रिंकी खाना खाने लगी,

इनके खाने के बाद बाकी बचे लोग भी एक एक करके सभी ने खाना खाया और अपने अपने रूम में चले गए।

लगभग रात के १० बजे देखते है किनके रूम में क्या हो रहा है एक जरूरी बात आजकल कमल और अनिमेष कमल के ही कमरे में सो रहे है और रमल अनिमेष के कमरे में नवीन के साथ ऊपर वाले मंजिल में,

पहले कमरे में जहा रमेश जी अपने पत्नी शामली देवी से कहते है- “क्या हुआ तुम्हें आजकल यहां मन नहीं लग रहा जो घूमने जाने का मन बना रही”

जिसके जवाब देते हुए उसकी पत्नी ने कहा- “कहा से मन लगेगा कुछ लोगो को आजकल खेत से फुरसत जो नहीं मिल रही” रमेश जी को खेत का नाम सुनते ही अचानक आज दोपहर हुए अपने बहू के साथ की घटना याद आ गई जिससे उसके लंड में हल्का हलचल हुआ,

रमेश जी ने कहा- “हा तो तुम ही खेत आ जाती वहा बहुत जगह है मन लगाने को”

और ये बोलते ही हसने लगा, जिसके कहने का मतलब उसकी पत्नी अच्छे से समझ रही थी,

“मन तो घर में भी लग सकता है पर कहा लगायेंगे हम तो पुराने लगने लगे ना” शामली देवी ने रमेश जी पे तंज कसते हुए कहा और बिस्तर में लेटे दूसरे तरफ़ मुड़ गई,

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जिसे देख रमेश जी उनके पास आते हुए कहने लगे- “अब तुमने कहा है तो लो अभी यही मन लगा देते है”

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ये कहते हुए अपने हल्की खड़े लंड को जो पजामे में थी अपनी पत्नी के पीछे जाके साड़ी में बंद गांड से लगाते हुए अपने हाथों को कमर से होते हुए पेट पे ले जाके घूमाने लगे, और उसके कान के नजदीक आके कहने लगे- “रही बात पुराने की वो तो मुझे अच्छे से पता है की आज भी तुम कितनी दम रखती को किसी की हालत पस्त करने में"
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वही बगल के कमरे में बात कुछ आगे बढ़ चुकी थी चंचल अपने पति से चुद रही थी। वो पूरी तरह से बिस्तर पर नंगी थी और उसके पति का लंड जल्दी जल्दी उसकी चूत में अंदर बाहर आ जा रहा था। उसके पति तो बिलकुल चूत के पुजारी है। बिना चूत मारे उनका काम ही नही चलता है। इसलिए आज जैसे ही चंचल अपने सारे काम निपटा के बिस्तर में आई तो पंकज उस पर टूट पड़े थे और उसको बजाने लगा।

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चंचल- “आआआअह्हह्हह…… ईईईईईईई…. ओह्ह्ह्हह्ह…. अई. अई..अई…..अई..मम्मी….” की आवाज निकालने लगी क्यूंकि वो चुद रही थी और बहुत अधिक उत्तेजना में आ गई थी। चंचल ने अपने दोनों हाथो से अपने पति पंकज को पकड़ लिया था उसके नाखूनों की नक्काशी पंकज की पीठ में दिखने लगी थी,

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पंकज चंचल के नंगे चिकने, कामुक और बेहद सेक्सी बदन पर लेटा हुआ साथ ही उसके चूची को भी चूस रहा था और दूसरे हाथ से चूची को दबाते हुए चंचल की चूत को जल्दी जल्दी ठोंक रहा था चंचल को बड़ा मजा आ रहा था,

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आज दोपहर जब से वो खेत से वापस आई थी उसकी चूत गीली ही थी उसके ससुर जी की बातों से कहीं ना कहीं उसकी चूत का ये हाल हुआ था,

हर दिन की तरह आज भी उसकी चूत को उसका लंड उसे मिल रहा था और उसकी आँखे चुदाई के नशे से बंद हुई जा रही थी। उसके पति का लौड़ा उसकी चूत में जल्दी जल्दी किसी ट्रेन की तरह सरक रहा था और चंचल की चूत बजा रहा था।

कुछ देर बाद पंकज और जल्दी जल्दी पेलने लगा

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चंचल- “……मम्मी…मम्मी…..सी सी सी सी.. हा हा हा …..ऊऊऊ ….ऊँ. .ऊँ…ऊँ…उनहूँ उनहूँ..” की कामुक आवाजें निकालने लगी। पति का ८” लंड उसकी चूत को बहुत जल्दी जल्दी चोद रहा था और उसके गुलाबी भोसड़े को फाड़ रहा था। चंचल को बहुत मजा आ रहा था।

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पंकज के अचानक से तेज तेज झटके से चंचल की रसीली चूत में पानी भर के आने लगे और चंचल हवस की आग में ठंडी होने लगी। चंचल ने अपनी चिकनी टांगों को पंकज की कमर में गोल गोल लपेट दिया और उसको कसकर पकड़ अपने सीने से चिपका लिया था। पंकज अपनी पत्नी चंचल की चूत को कमर मटका मटकाकर बजा रहे थे और उसकी चूत को अपने मोटे लौड़े से फाड़ रहे थे।

हवस की माँग में चंचल ज़्यादा देर सह ना सही और उसकी चूत ने आत्मसमर्पण कर दिया उसने अपने पैरों और हाथों को तब तक बाँधे रखा जब तक उसकी चूत ने पानी का एक एक कतरा बहा ना दिया और पंकज के लंड को निचोड़ ना दिया।

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अनिमेष -“भाई अब बता भी दे क्या दिखाने वाला था मुझे”

कमल -“यार वही तो देख रहा हूँ पता नहीं कहा रख दिया मैंने”

अनिमेष -“आप बताओ तो सही है क्या! पता चले तो मैं भी खोजता हूँ”

कमल डर के साथ सोच में खोया हुआ “आख़िर गया तो गया कहा, कहीं किसी के हाथ लग गया फिर तो मेरी खैर नहीं” फिर अनिमेष से कहता है -“यार अनी वो एक किताब थी जिसमें कुछ नंगी तस्वीरें थी जिसे मैं कॉलेज से ख़ास तुझे दिखाने के लिए अपने दोस्तों से माँग के लाया था पता नहीं कहाँ रख दिया मैंने”

अनिमेष -“भाई क्या बात कर रहा है वैसी किताब तू यहाँ लेके आया था और अब कहीं रख के भूल गया वाह मेरे भाई साहब, अगर घर के किसी भी सदस्य ने वो गलती से भी देख लिया ना तो हम दोनों की खैर नहीं है”

कमल -“तू बकचोदी बंद कर और मेरे साथ खोज थोड़ा”

दोनों भाई मिलके उस किताब को बहुत ढूँढे पर उनके कहीं नहीं मिली, मिलेगी भी कहा से क्यों की उस किताब को रिंकी ने चुपके से ले लिया था। दोनों भाई थक हार के बिस्तर पर लेट जाते है और आगे का सोच के डरने लगते है तभी कमल के मोबाइल में कुछ मेसेज आता है जो कॉलेज ग्रुप का था जिसमे किसी लड़के ने एक अश्लील वीडियो भेजा था और कमल खोल के देखता है जिसे अनिमेष ने भी देख लिया,

अनिमेष -“तेरे ही मजे है साले मेरे दोस्त कुछ नहीं भेजते”

और दोनों मिलके वो वीडियो देखने लगते है जिसमे एक कम उम्र का लड़का एक अधिक उम्र की गदराई हुई बड़ी सी चूची और गांड वाली औरत को पीछे से चोद रहा होता है जिसको देख कर दोनों भाई के मन में ख्याल आने लगते है,

अनिमेष मन में- “इस औरत का शरीर तो बिल्कुल माँ के समान लग रही है बिल्कुल वैसी ही गोरी गोरी बड़ी और मोटी गांड”

कमल मन में- “यार इसकी गांड तो बिल्कुल रेखा चाची के जैसे ही है बिल्कुल आज ही की तरह”

और दोनों भाई इशारों में कुछ बोल कर एक साथ अपने पेंट और चड्डी को अपने टाँगों से सरका देते है ताकि आराम से वो दोनों वीडियो देखते हुए अपने लंड मुठिया सके,

कमल - “आह अनी देख रहा क्या गांड है इसकी, बिल्कुल....” और चुप हो जाता है

अनिमेष -“हाँ आह देख रहा भाई गोल गोल बड़ी गांड, आपको किसी के जैसे दिख रही क्या जो बिल्कुल बोलके चुप हो गए”

कमल हाथो से लंड को मसलते हुए -“लग तो रहा यार पर कह नहीं सकता बस उसे याद करके हिला सकता हूँ”

अनिमेष थोड़ा ज़ोर से अपने लंड पे जोर लगाते हुए -“अब बोल भी दो भाई इतने दिन से तो सब बता रहे फिर आज क्यों नहीं कह रहे”

कमल -“तू नहीं समझेगा अनी रहने दे फिर कभी बताऊंगा बस ये समझ ले इस औरत की गांड किसी आसपास रहने वाली के जैसी है”

अनिमेष मन में सोचता है कहीं ये भी वही तो नहीं सोच रहा जो मैं सोच रहा, मैं तो अपनी माँ के बारे में सोच रहा कहीं ये भी घर के किसी औरत के बारे में तो नहीं सोच रहा,

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ये ख्याल आते ही एक तेज फ़व्वारा उसके लंड से निकल पड़ा और शांत होके बिस्तर में पस्त पड़ गया,

वही कमल भी अपनी चाची रेखा की गांड के बारे में सोच के अपने हाथो तो लंड पे तेजी से चलाने लगा, उसने देखा अनिमेष ने धार छोड़ दिया पर वो अभी भी हिलाये जा रहा रहा था उसे उसकी चाची नंगी नजर आने लगी थी,

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उसकी कल्पनाओं का सीमा बढ़ रहा था, रेखा के साथ साथ उसे नेहा भी नंगी नजर आने लगी थी, दोनों के जिस्मों से खेलने की बात सोच कर ही उसके लण्ङ में अकड़न बढ़ती जा रही थी,
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लेखा अपने सारे काम से निवृत्त होकर अपने कमरे में बिस्तर ठीक कर रही थी जहा पीताम्बर उससे कहता है-“क्या हुआ लेखा दुकान से वापस आया हूँ, तब से देख रहा हूँ तू कुछ सोच में डूबी हो, कुछ हुआ है क्या”

लेखा हड़बड़ाते हुए-“नहीं तो मैं कहाँ कुछ सोच रही हूँ, आपको ऐसा क्यों लग रहा है”

पीताम्बर-“दो बार मैंने कुछ पूछा तुमने जवाब नहीं दिया”

लेखा-“क्या पूछे फिर से पूछ लो”

पीताम्बर-“यही की तुम दोपहर में दुकान से जल्दी जल्दी क्यों निकल आई, मैं तुम्हें रुकने के लिए बोलता, तुम उससे पहले ही निकल पड़ी और तुमने खाने का डब्बा भी छोड़ आई”

लेखा अचानक हुए ऐसे सवाल का जवाब देने के लिए बिल्कुल तैयार थी-“हा वो दीदी ने आज कुछ काम बताया था वो करना भूल गई थीं उसे ही पूरा करने के लिए वहाँ से जल्दी निकल आई”

पीताम्बर-“फिर हुआ काम” कहते हुए अपने कपड़े बदलने लगा

लेखा-“हा सब हो गया” कहकर वह भी अपनी साड़ी निकालने लगी, साड़ी निकालने के बाद नाइटी पहनने बाथरूम में चली गई,

वहाँ पहुँचते ही उसने अपनी ब्रा और चड्डी को निकालने लगी फिर उसे अपने और अनिमेष की बाते याद आने लगी थीं और ख्याल आने लगे की “क्या अनी ने आज सब कुछ शुरू से देखा होगा या आख़िर में आया होगा, वो तो आज मुझे पूरी नंगी देख अपना लंड भी हिला रहा था, कितना बड़ा लग रहा था उसका लंड, थोड़ा बड़ा था उसके पापा से और मोटा भी”

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और अपने हाथों को ना जाने क्यों बड़े बड़े चुचियों पे ले जाने लगती है, “आह अनी तूने तो आज फिर से मेरे ये चूची देख लिया बेटा” “हे भगवान मैं ये क्यो सोच रही और मेरे हाथ क्यों अपने आप चुचियो पे चल रहे” फिर धीरे से हाथ को चूत की तरफ़ ले जाने लगती है “नहीं ये सही नहीं है वो मेरा बेटा है” और फिर पैर हाथ को पानी से धोके कपड़े से पोछने के बाद अपनी नाइटी पहन कर बाथरूम बाहर से बाहर आ जाती है,

जहाँ अपने पति को बिस्तर में लेटे देख बल्ब को बुझा देती है और उसके बगल में जाके लेट जाती है, वो छत की तरफ़ देख अपने पति से कहती है-“सो गए क्या”

पीताम्बर-“थकान से नींद आ रही है तुम्हें नींद नहीं आ रही क्या”

लेखा-“कुछ नहीं आप सो जाइये मुझे थोड़े देर में आ जाएगी”

लेखा फिर से आज दिनभर की घटना को याद करने लग जाती है की कैसे आज उसने अपने पति के अलावा दो और अलग लंड देखे जो उसके पति से थोड़े बड़े और मोटे थे, दोपहर में अनी का लंड और शाम को कमल का, जवान लंड को याद करके लेखा की चूत फिर से पानीयने लगी थी,

उसे कुछ करने की इच्छा हो रही थी पर ये सोच के की वो उनके अपने परिवार के है और उनके लिए ग़लत सोचना सही नहीं है ख़ासकर जब वो दोनों घर के बेटे हो।

लेखा डर भी रही थी अपने बेटे के लिए उसका इस तरह किसी की चुदाई देखने का मतलब था की अब वो ये सब में दिलचस्पी लेने लगेगा और अब वो किसी की चुदाई के लिए उसे अपनी तरफ़ करने लगेगा, ये उम्र ही ऐसी है जोश पूरा अपने चरम पर होता है और जहाँ हवस की बात आती है इंसान कुछ भी कर जाता है, कहीं वो किसी के साथ ग़लत ना कर दे,

लेखा मन में -“क्या मुझे उससे इस बारे में बात करनी चाहिए, क्या ये सही रहेगा” बहुत सोच विचार कर अपनी दिमाग़ में कुछ सोचने के बाद-“हा बिल्कुल वो मेरा बेटा है और मैं नहीं चाहती वो किसी ग़लत दिशा में जाए, मुझे किसी दिन समय निकाल के उससे बात करनी ही होगी” इन्हीं सब ख्यालों में खोई लेखा भी अपने पति से चिपक के साथ में सो जाती है,
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ऊपर कमरे में तीनो बहने खाने के बाद थोड़ी पढ़ाई करी और सोने से पहले गप्पे मार रही थी की तभी,

पूजा -“पिंकी आज पानी का बॉटल नहीं भरी क्या”

पिंकी -“माफ करना दी मैं अभी लेके आती हूँ”

रिंकी कुछ सोच के -“तू रुक मैं लेके आती हूँ” और पानी के दोनों बॉटल लेके बाहर आ जाती है,

जहाँ उसे उसके छोटे चाचा के कमरे में आ रही आवाज़ सुनाई देती है जिससे उसे पता चल जाता है लगभग रोज़ की तरह आज भी उनके बीच कुछ बातों को लेके बहस हो रही थी और मन में सोचती हुई आगे बड़ती है आज चाचू फिर पीके आए है पता नहीं कब सब ठीक होगा,

रसोई में पहुँच कर फ्रिज खोल के देखती है पर वहाँ तो आज सभी ने पानी ले लिया था और कहती है -“ ओहो क्या मुसीबत है मतलब अब नीचे जाना ही पड़ेगा” और अचानक मन में एक ख्याल आता है क्यों ना कमल और अनिमेष को देखा जाए रात १०:३० में क्या कर रहे है और तेजी से नीचे जाने लगती है,

जहाँ बरामदे का लाइट बंद हो चुका था हल्की रोशनी वाली बल्ब जल चुकी थी रसोई में पानी की बॉटल को रख देती है,
और चुपके से कमल के कमरे के बाहर पहुँच कर जहाँ अभी भी उसके कमरे की लाइट जल रही थी आवाज सुनना चाह रही थी पर उसे आवाज से कुछ ख़ास समझ नही आया और उसकी दोनों भाई को देखने की ललक बड़ रही थी,

वो किसी तरह खिड़की को खिसका के अंदर का नजारा देखना चाह रही थी और उसको सफलता भी मिल गई पर रिंकी को क्या पता ये वही समय था जब उसकी आँखो के सामने वो नजारा दिखा की अनिमेष ने लंड से अपना पानी निकाला और बिस्तर में ही बगल में पस्त पड़ गया, पर कमल अभी भी हिलाए जा रहा था,

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रिंकी सामने का नजारा देख के हक्की बक्की हुई और मन में कुछ सोचने लगी कि "क्या उसने सही किया यहाँ आके"

वो लगातार बस कमल को लंड हिलाते देख रही थी उसके ८” के लंड पर अपने भाई के हाथो को हिलते देख उसके शरीर में एक अजीब सी एठन सी उठ रही थी जिसे सिर्फ वही अहसास कर सकती थी,

वो डर भी रही थी जिसकी वजह से बार बार बरामदे में भी देख रही थी कि कही कोई उसे ऐसा करते देख न ले,

रिंकी की चूत में हलचल मचनी शुरू हो चुकी थी, हालांकि रिंकी ने कई लंड यहाँ वहाँ देखे थे पर ये पहली बार था जब आज रिंकी ने अपने ही परिवार के किसी सदस्य को इस तरह देखा था,

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वो ना चाहते हुए अपने एक हाथ से चूचे को अनुप्रेषित करने लग गई और धीरे से दूसरे हाथ को लेगिस के ऊपर से ही चूत को सहलाने लगी,

अब रिंकी को अपने भाई की आवाज भी थोड़ी सुनाई दे रही थी, “ओह क्या गांड है यार बिल्कुल आज जैसे मैने देखा था वैसी ही, मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मैं ही गांड मार रहा हूँ काश इस लड़के की जगह मैं होता"

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रिंकी उसकी बातों को सुन बड़ी अचंभित थी कि आज कमल ने किसकी खुली गांड देख ली, क्या वो घर की ही बात कर रहा या बाहर किसी और की,

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यहाँ रिंकी सोच ही रही थी की वहाँ कमल ने अपने लंड से पानी निकाल दिया, जिसके बाद वो भी पस्त पड़ गया और ऐसे बेड में लेता रहा,

अब रिंकी धीरे से वहाँ से निकल रसोई से पानी लेके अपने कमरे की तरफ़ चल पड़ी जहाँ पहुँचते ही पूजा ने उससे कहा-“कहा रह गई थी इतने देर मैं तुझे ऊपर भी देखी पर तू कहीं नहीं मिली”

रिंकी-“दी ऊपर वाले फ्रिज में पानी नहीं था तो नीचे लेने चली गई थी”

फिर तीनो बहने सोने की तैयारी में लग जाते है, पर रिंकी की नींद तो गायब थी वो सोच रही थी अभी जो उसने देखना क्या उसे पूजा दी और पिंकी को बताना चाहिए, क्या मुझे सच में बताना चाहिए की आज मैंने कमल भैया को मुठ मारते देखा और बहुत सी बातों को मन में सोचते हुए वो भी कब नींद की आगोश में चली गई उसे ख़ुद पता नहीं चला,

मित्रों आज के लिए इतना ही जैसा कि आपने देखा रात होते ही सभी कही का कही, किसी न किसी के ख्यालों में खोने लगे थे,

अब कल का नया दिन सभी को कहा लेके जाएगा कौन आगे बढ़ेगा कौन पीछे हटेगा ये सब देखना दिलचस्प होगा।

मिलते है अगले अध्याय में तब तक के लिए धन्यवाद 🙏
बहुत ही गजब का शानदार और जानदार मदमस्त अपडेट है भाई मजा आ गया
यहा साला माँ,बेटे और बहने भी चुदने के लिये बेकरार हो रही हैं बस दोनों ओर से इशारा होना बाकी हैं
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
अगले रोमांचकारी धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 

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बहुत ही गजब का शानदार और जानदार मदमस्त अपडेट है भाई मजा आ गया
यहा साला माँ,बेटे और बहने भी चुदने के लिये बेकरार हो रही हैं बस दोनों ओर से इशारा होना बाकी हैं
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
अगले रोमांचकारी धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
Bahut bahut dhanyawad Napster
 
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