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Fantasy 'सुप्रीम' एक रहस्यमई सफर

Napster

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#139.

चैपटर-13
पुनर्जन्म रहस्य:
(14 जनवरी 2002, सोमवार, 18:30, मायावन, अराका द्वीप)

तौफीक ने एक स्थान पर आग जला दी थी। सुयश सहित बाकी सभी उसी आग के चारो ओर गोला बना कर बैठे थे।

“पिछले कुछ दिनों से हमने इस जंगल की प्रत्येक मुसीबत को सफलता पूर्वक पार किया है।” सुयश ने कहा- “अब देखते हैं कि यह तिलिस्मा क्या बला है?”

“मैं तो यही सोचकर परेशान हूं कैप्टेन, कि स्पाइनोसोरस, टेरोसोर, ड्रैगन, रेत मानव, ज्वालामुखी, झरना सब तो देख लिया, फिर भला तिलिस्मा में इससे बढ़कर क्या परेशानियां हो सकती हैं?” क्रिस्टी ने कहा।

तभी एक अंजानी आवाज ने सभी को आश्चर्य में डाल दिया- “यह बात मैं बताता हूं।”

सभी की दृष्टि आवाज की दिशा में घूम गई। उन्हें एक पेड़ की ओर से चलकर आता हुआ युगाका दिखाई दिया।

“पहले तो देर से आने के लिये क्षमा चाहता हूं दोस्तो.....दरअसल मेरी बहन की शादी फाइनल हो गयी थी, इसलिये मेरे ऊपर काम का बोझ कुछ ज्यादा ही पड़ गया था।” युगाका ने कहा।

“अरे वाह! तुमने तो पहले बताया नहीं था कि तुम्हारी कोई बहन भी है?” जेनिथ ने कहा।

“मेरी बहन से आप पहले ही मिल चुकी हो, याद करिये उस तालाब के पास की घटना, जब आप को रात में दूसरी क्रिस्टी दिखाई दी थी, अरे वही तो मेरी बहन थी।”

“अच्छा तो आप की बहन भी रुप बदल लेती है।” जेनिथ ने युगाका को घूरते हुए कहा।

“हां, हम दोनों भाई-बहनों को रुप बदलना आता है।” युगाका ने कहा - “मगर उस समय हमें आप लोगों के बारे में पता थोड़े ही था।”

जेनिथ का फिलहाल युगाका से अब दुश्मनी करने का कोई मन नहीं था, इसलिये वह चुप रही।

"वैसे आज तो हर तरफ से खुशियों की ही खबर आ रही है।” शैफाली ने टॉपिक को चेन्ज करने के उद्देश्य से कहा।

“और किसने दी खुशियों की खबर?” युगाका ने हैरानी से शैफाली को देखते हुए कहा।

“आपकी देवी शलाका ने।” शैफाली ने मुस्कुराते हुए कहा।

“देवी शलाका!” शलाका का नाम सुन युगाका आश्चर्य से भर उठा- “क्या तुम लोगों ने उन्हें देखा?”

“देखा भी...और रिश्ता भी जोड़ लिया।” क्रिस्टी ने हंसते हुए कहा।

“कैसा रिश्ता?” युगाका के लिये हर एक समाचार किसी भूकंप से कम नहीं था।

आखिरकार सुयश से आज्ञा लेकर शैफाली ने युगाका को आर्यन और वेदालय की पूरी कहानी सुना दी।

पूरी कहानी सुनकर युगाका खुशी से भर उठा।

“लगता है अब सब कुछ अच्छा होने वाला है। एक-एक कर रहस्य के सारे पर्दे खुल रहे हैं।” युगाका ने कहा।

“अरे दोस्त, सारे पर्दे खुल गये हों तो मेरा एक छोटा सा दोस्त जो तुम्हारी वजह से पता नहीं कहां गायब हो गया, अब उसे भी ढूंढ दो।” क्रिस्टी ने मुंह बिचकाते हुए कहा- “देवी शलाका भी उसे नहीं ढूंढ पायी, पता नहीं पृथ्वी के कौन से कोने में चला गया?”

जिस भी कोने में था, बस हर पल तुम्हें ही याद कर रहा था।”

यह आवाज शत-प्रतिशत ऐलेक्स की थी।

यह आवाज सुनते ही क्रिस्टी की आँखों से खुशी के मारे आँसू निकलने लगे।

“ऐलेक्स....क्या यह तुम ही हो?.. ..और तुम दिखाई क्यों नहीं दे रहे?” क्रिस्टी ने पागलों के समान चारो ओर देखते हुए कहा।

तभी सबके सामने ऐलेक्स प्रकट हो गया।

ऐलेक्स को सुरक्षित देख क्रिस्टी भागकर ऐलेक्स के गले लग गई।

वह अब जोर-जोर से ऐलेक्स का चेहरा चूमने लगी- “माफ कर दो ऐलेक्स...अब कभी भी नहीं लड़ूंगी तुमसे, पर अब तुम मुझे छोड़कर कहीं नहीं जाना।”

क्रिस्टी अपने भावों को बिल्कुल कंट्रोल नहीं कर पा रही थी।...... इसलिये सभी अपनी बारी आने का इंतजार कर रहे थे।

युगाका भी ऐलेक्स को देखकर खुश हो गया क्यों कि अब उसके सिर पर लगा एक दाग हट गया था।

कुछ देर तक इसी हालत में रहने के बाद क्रिस्टी थोड़ा नार्मल हुई और ऐलेक्स से अलग हो गई।

अब शैफाली जाकर ऐलेक्स के गले लग गयी- “अच्छा हुआ आप मिल गये।”

तभी ऐलेक्स की नजर सामने बैठे युगाका की ओर गई, वह युगाका को देख भड़क उठा- “यह इंसान यहां क्या कर रहा है? इसी की वजह से तो मैं मुसीबत में फंस गया था।”

इससे पहले कि ऐलेक्स युगाका पर कोई प्रहार कर पाता, सुयश ने बीच में ही उसे रोक लिया और ऐलेक्स को युगाका की सारी कहानी सुना दी। तब जाकर ऐलेक्स कहीं शांत हुआ।

ऐलेक्स ने भी अपनी पूरी कहानी शुरु से अंत तक सभी को सुना दी।

ऐलेक्स की पूरी कहानी सुन सभी हैरानी से एक-दूसरे का मुंह देख रहे थे। सबसे ज्यादा झटका शैफाली को लगा था।

“तो स्थेनो कहां है?” शैफाली ने ऐलेक्स से पूछा।

“वह अदृश्य रुप में यहीं पर हैं, पर वह प्रकट नहीं हो सकतीं, क्यों कि मेरे और शैफाली के सिवा अगर किसी ने उनकी आँखों में देख लिया, तो वह पत्थर का बन जायेगा।”

ऐलेक्स के बताने पर शैफाली चलकर स्थेनो के पास पहुंच गई और बोली- “मुझे समझ नहीं आ रहा कि मैं आपको क्या कहूं? पर मैं आपके गले लगना चाहती हूं।”

स्थेनो ने शैफाली को गले से लगाते हुए कहा- “अभी जिंदगी बहुत बड़ी है, हमारी बातें तो होतीं ही रहेंगी, पर पहले तुम्हारी स्मृतियों का वापस लाना बहुत जरुरी है।”

यह कहकर स्थेनो ने ऐलेक्स को बोतल खोलने का इशारा किया।

ऐलेक्स ने एक झटके से बोतल के मुंह पर लगा ढक्कन हटा दिया।

ढक्कन के हटाते ही आसमान में एक जोर की बिजली कड़की और बोतल का सारा धुंआ निकलकर शैफाली के सिर पर नाचने लगा।

अब वह धुंआ धीरे-धीरे शैफाली के दिमाग में प्रवेश करता जा रहा था और इसी के साथ शैफाली के चेहरे के भाव भी बदलते जा रहे थे।

शैफाली के चेहरे के भाव को देखकर साफ लग रहा था कि उसे इस समय एक पीड़ादायक अहसास से गुजरना पड़ रहा है।

कुछ देर में पूरा का पूरा धुंआ शैफाली के दिमाग में समा गया और शैफाली जमीन पर बेहोश होकर गिर पड़ी।

क्रिस्टी ने तुरंत शैफाली के मुंह पर पानी का छिड़काव किया तो शैफाली को होश आ गया।

उसने सबसे पहले एक बार पास में खड़े सभी लोगों को ध्यान से देखा और फिर मुस्कुरा दी। उसकी मुस्कुराहट इस बात का सबूत थी कि अब वह बिल्कुल ठीक है।

शैफाली की स्मृतियां आ जाने के बाद भी वह शैफाली के जैसे ही व्यवहार कर रही थी, और यही बात सभी को भा गयी थी।

कुछ देर तक बात करने के बाद स्थेनो वहां से चली गयी।

“शैफाली, आपका पंचशूल अब किसी और को प्राप्त हो गया है।” युगाका ने कहा।

“कोई बात नहीं, अब तो कुछ दिनों के बाद काला मोती मेरे पास होगा, फिर मुझे पंचशूल की कोई आवश्यकता नहीं रहेगी और हां कैप्टेन अंकल उस खरगोश की मदद के लिये धन्यवाद, क्यों कि उसने आपको वही ‘अटलांटिस की रिंग’ दी है, जिसे पहनकर मेरी माँ ने अटलांटिस का निर्माण किया था।

"इस अंगूठी की तलाश में हजारों लोगों ने अपनी जान गंवा दी, पर किसी को इस अंगूठी के बारे में पता नहीं चला। चूंकि यह अंगूठी कोई देवकन्या ही पहन सकती थी, इसलिये यह आपकी उंगली में फिट नहीं हो पा रही थी और...और वह ज्वालामुखी में मिला ड्रैगन का सोने का सिर मेरे पिता का था, जिसे मैंने ही मैग्ना के रुप में वहां छिपाया था।” शैफाली ने कहा।

“एक बात पूंछू शैफाली।” क्रिस्टी ने कहा- “अब अगर तुम्हें सबकुछ याद आ ही गया है, तो तुम कैस्पर से कह के बिना तिलिस्मा को तोड़े ही काला मोती क्यों नहीं प्राप्त कर लेती? एक झटके से सारी समस्या ही
खत्म हो जायेगी।”

“ऐसा अब सम्भव नहीं है, कैस्पर ने पूरे तिलिस्मा का कंट्रोल एक स्वयं की बनाई हुई मशीन को दे दिया है। अब कैस्पर तिलिस्मा के कंट्रोल रुम में बैठकर सबकुछ देख तो सकता है, पर मेरी कोई मदद नहीं कर सकता और मुझे लग रहा है कि वह इस समय, मुझसे 5000 किलोमीटर से भी ज्यादा दूर है, इसलिये उसे मेरे आने का पता भी नहीं चला है। अगर वह कहीं भी पास में होता, तो तिलिस्मा में प्रवेश करने से पहले मुझसे मिलने जरुर आता।” शैफाली ने कहा।

“अच्छा अब मुझे भी जाने की आज्ञा दीजिये, अब आप लोगों से तिलिस्मा के टूटने के बाद ही मुलाकात होगी।” युगाका ने कहा।

सुयश ने सिर हिलाकर युगाका को भी जाने का इशारा कर दिया।

सुयश का इशारा पाकर युगाका भी वहां से चला गया, पर अब युगाका को पूरा विश्वास हो गया था कि तिलिस्मा अब टूटने ही वाला है और यह सारी बातें वह जल्द से जल्द कलाट को बताना चाहता था।

युगाका के जाने के बाद सभी फिर से बातें करने लगे।

“अच्छा एक बात बताओ शैफाली।” सुयश ने शैफाली से कहा- “मायावन में घुसते समय उस नीले फल वाले वृक्ष ने तुम्हें वह सारे फल क्यों दे दि ये थे?”

“वह सभी पेड़ मुझे पहचान गये थे।” शैफाली ने उत्तर दिया- “पेड़ों में बहुत सी ऐसी शक्तियां भी होती हैं, जिसे साधारण इंसान कभी जान ही नहीं पाता।”

“और वह मगरमच्छ मानव भी तुम्हें पहचान गया था क्या? जिसने जेनिथ पर आक्रमण किया था।” क्रिस्टी ने पूछा।

“जब मैंने जलोथा पुकारा, तब वह मुझे पहचान गया। मैंने ही उसे शक्तियां प्रदान कर वन के सुरक्षा के लिये झील में रखा था।” शैफाली ने कहा।

“और वह जमीन पर मिलने वाले पत्थर भविष्य कैसे बता लेते थे?” जेनिथ ने पूछा।

“मेरी माँ माया भविष्य देख लेती हैं, उन्होने ही मुझे वो सारे पत्थर दिये थे और कहा था कि इसे वन के किसी कोने में लगा देना, यह भविष्य में तुम लोगों का मार्गदर्शन करेगे।”

शैफाली ने माया को याद करते हुए कहा- “और मुझे अच्छा लगा कि वो आज भी मुझे देख रहीं हैं, तभी तो उन्होंने ऐलेक्स भैया को शक्तियां देकर मेरी स्मृति लाने नागलोक भेजा था।”

यह कहकर शैफाली ने हवा में अपनी माँ के नाम पर ‘फ्लांइग किस’ उछाल दिया।

“शक्तियों से याद आया। ऐलेक्स भैया क्या वह शक्तियां अभी भी आपके पास हैं?” शैफाली ने ऐलेक्स की ओर देखते हुए कहा।

“अभी तक तो हैं, पर जितना मैंने सुना, यह सभी शक्तियां तिलिस्मा में काम नहीं आने वालीं। वहां पर सिर्फ अपना दिमाग चलेगा।”

ऐलेक्स ने स्टाइल मारते हुए कहा- “और हां, मैं सबके मन की बातें भी सुन सकता हूं, इसलिये जरा ध्यान से मेरे बारे में सोचना।”

ऐलेक्स ने आखिरी के शब्द क्रिस्टी की ओर देखते हुए कहा।

“अच्छा तो बताओ कि मेरे मन में अभी क्या चल रहा है ऐलेक्स?” क्रिस्टी ने इठलाते हुए पूछा।

“तुम्हारे मन में चल रहा है कि..... कि....।” पर ऐलेक्स उन बातों को बोल नहीं पाया, क्यों कि क्रिस्टी उसे सबके सामने किस करने के बारे में सोच रही थी।

“क्या हुआ ऐलेक्स कि...कि....के बाद तुम्हारी ट्रेन पटरी से क्यों उतर गई?” क्रिस्टी ने पूरा मजा लेते हुए कहा।

ऐलेक्स ने क्रिस्टी को घूरकर देखा, पर कुछ कहा नहीं।

“चलो अब सभी लोग सो जाओ, रात काफी हो गई है।” सुयश ने सोने का ऐलान कर दिया।

सभी छोटे-छोटे ग्रुप बना कर आस-पास सो गये।

जो भी हो, आज का दिन वास्तव में खुशियों का दिन था, पर अगला दिन उनकी जिंदगी में क्या बदलाव करने वाला था? यह किसी को नहीं पता था? वह सभी तो बस आज को जी रहे थे।


जारी रहेगा_______✍️
बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत अप्रतिम मनमोहक अपडेट हैं भाई मजा आ गया
चलो काफी समय बाद सुयश और टीम के लिये खुशनुमा गुजरा बहुत सी बातें भी सामने आ गयी साथ ही साथ शेफाली ही उसकी स्मृती भी वापस मिल गयी
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत अप्रतिम मनमोहक अपडेट हैं भाई मजा आ गया
चलो काफी समय बाद सुयश और टीम के लिये खुशनुमा गुजरा बहुत सी बातें भी सामने आ गयी साथ ही साथ शेफाली ही उसकी स्मृती भी वापस मिल गयी
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
Thank you very much for your wonderful review and support bhai :dost: Shefali ki yaade wapas bhi aa gayi or in sabko kuch khusiyo ke pal bhi mil gaye, jo ki inke liye kaafi samay se gayab the☺️ sath bane rahiye , waise 2 aur updates post kar chuka hu, abhi aap peeche chal rahe ho:approve:
 

Napster

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#140.

अनोखा जीव: (15 जनवरी 2002, मंगलवार, 09:30, नक्षत्रलोक, कैस्पर क्लाउड)

कैस्पर, विक्रम ओर वारुणि के साथ नक्षत्रलोक आ गया था। नक्षत्रलोक में रहते हुए आज उसे 10 दिन बीत गये थे।

वह रोज सुबह उठता और फिर फ्रेश होकर बच्चों के स्कूल पहुंच जाता।
बच्चों को नयी चीजें सिखाना और उनके साथ समय व्यतीत करना, पूरा दिन कैसे बीत जाता थी, कैस्पर को पता ही नहीं चलता था।

लेकिन जो भी हो, कैस्पर को अपनी यह नयी जिंदगी बहुत अच्छी लग रही थी।

पिछले हजारों वर्षों से उसकी जिंदगी सिर्फ कंम्प्यूटर पर बैठकर नये निर्माण करने में ही गयी थी। कभी-कभी तो ऐसा हो जाता था, कि सैकड़ों वर्षों तक उसकी किसी से बात ही नहीं हो पाती थी।

नक्षत्रलोक पर बिताये गये पल मैग्ना के जाने के बाद उसकी जिंदगी के सबसे अच्छे पल थे।

आज भी कैस्पर नहा-धोकर स्कूल जाने के लिये तैयार हो रहा था।

आज उसे बच्चों को आकाशगंगा में मौजूद नेबुला के बारे में बताना था।

तभी उसके कमरे के दरवाजे पर वारुणि ने दस्तक दी। कैस्पर ने सिर उठाकर देखा, तब तक वारुणि कमरे के अंदर आ गयी। वारुणि को देख कैस्पर काफी खुश हो गया।

“क्या बात है! आज सुबह-सुबह तुमने दर्शन दे दिये।” कैस्पर ने वारुणि को देख मुस्कुराते हुए कहा- “वैसे आज तुम 2 दिन बाद मुझसे मिलने आयी हो। लगता है तुम ये भूल गई कि तुम्हारे घर एक मेहमान भी आया है।"

वारुणि ने अपने चेहरे पर फीकी मुस्कान बिखेरते हुए कहा- “नहीं भूली नहीं...पर हां, पिछले 2 दिनों से कुछ ज्यादा ही व्यस्त थी।..आज तुमसे कुछ जरुरी काम है, इसलिये मैं सुबह-सुबह ही यहां आ गई।”

कैस्पर, वारुणि के चेहरे को देख समझ गया कि कहीं तो कुछ गड़बड़ है।

“ये हमेशा खिली रहने वाली पंखुड़ी आज उदास क्यों है? कुछ परेशानी है क्या दोस्त?” कैस्पर ने वारुणि की आँखों में झांकते हुए कहा।

“पिछले 2 दिन से हम एक परेशानी को समझने की कोशिश कर रहे हैं, पर वो समझ ही नहीं आ रही।” वारुणि ने कहा- “मुझे लगता है पृथ्वी पर कोई भयानक खतरा मंडरा रहा है?”

“क्या मैं जान सकता हूं कि वह खतरा किस प्रकार का है?” कैस्पर ने वारुणि का हाथ अपने हाथों में लेते हुए कहा- “हो सकता है कि मैं उसे समझ जाऊं। क्यों कि मुझे मेरा दोस्त उदास बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा?”

“कैस्पर, मुझे लगता है कि तुम हमारी मदद कर सकते हो, पर मैं तुम्हें इतना खुश देखकर कुछ बताना नहीं चाहती थी। मैं नहीं चाहती थी कि तुम बच्चों को छोड़कर हमारी परेशानियों में उलझ जाओ।” वारुणि ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा।

“अरे कोई बात नहीं...बच्चों को एक नये विषय के बारे में बताना था, पर मैं यह उन्हें कल बता दूंगा। अब आज का दिन मैं अपने दोस्त के साथ बिताना चाहता हूं।” कैस्पर ने वारुणि को हंसाने की कोशिश करते
हुए कहा- “तो चलो मोटू, मुझे कहां ले चलना चाहती हो?”

“मोटू...मैं तुम्हें मोटू दिखाई देती हूं क्या? पूरे दिन में 6 घंटे एक्सरसाइज करती हूं, तब जाकर इतनी खूबसूरत फिगर पायी है।” वारुणि ने नाक सिकोड़ते हुए कहा।

“6 घंटेऽऽऽऽ!” कैस्पर ने आश्चर्य से कहा- “तभी मैं कहूं कि तुम मुझे समय क्यों नहीं दे पा रही?.....चलों अब जरा तुम्हारी परेशानियों से भी मुलाकात कर लें। हमारी शिकायतों का दौर तो चलता ही रहेगा।”

कैस्पर ने चाहे कुछ देर के लिये ही सही पर, वारुणि का मूड सही तो कर ही दिया।

वारुणि कैस्पर को लेकर नक्षत्रलोक की वेधशाला की ओर चल दी, जिसे नक्षत्रशाला कहा जाता था।

कुछ देर के बाद वारुणि और कैस्पर दोनों नक्षत्रशाला में खड़े थे।

नक्षत्रशाला एक विशाल ‘इनडोर स्टेडियम’ की भांति थी, जहां पर सैकड़ों लोग काम करते दिखाई दे रहे थे।

हर ओर बड़ी-बड़ी स्क्रीन और आधुनिक कंम्प्यूटर का जाल बिछा हुआ था। कुछ स्क्रीन पर पृथ्वी के अलग-अलग हिस्से दिख रहे थे, तो किसी पर ब्रह्मांड के अनोखे ग्रह और जीव।

कुछ जगहों पर हवा में ‘होलोग्राम इफेक्ट’ के द्वारा कुछ जीवों और निहारिकाओं पर शोध चल रहा था।
कैस्पर यह सब देखकर खुश हो गया।

“अरे वाह! अच्छा सेटअप बनाया है तुम लोगों ने...और काफी सारे लोग काम कर रहे हैं।” कैस्पर ने कहा।

वारुणि कैस्पर को लेकर एक बड़ी सी स्क्रीन के पास पहुंच गई, जिस पर पृथ्वी की ‘आउटर कोर’ दिख रही थी।

वारुणि को आते देख वहां का आपरेटर खड़ा होने लगा, पर वारुणि ने उसे इशारे से बैठने को कहा। वारुणि का इशारा पाकर वह आपरेटर बैठ गया।

“हमारी सबसे बड़ी समस्या ये है।” वारुणि ने कैस्पर को स्क्रीन की ओर दिखाते हुए कहा- “ये पृथ्वी की आउटर कोर है, जहां पर ओजोन लेयर पायी जाती है। ओजोन लेयर हमारी पृथ्वी की सूर्य की हानिकारक
विकिरणों और कॉस्मिक किरणों से रक्षा करती है। पर पिछले 2 दिन से इस स्थान की ओजोन लेयर में लगभग 1 लाख स्क्वायर किलोमीटर के क्षेत्रफल का एक छेद हो गया है, जिसकी वजह से सूर्य की हानिकारक किरणें अंटार्कटिका की बर्फ को तेजी से पिघला रही है।

"अगर अंटार्कटिका की पूरी बर्फ पिघल गयी, तो पृथ्वी का जलस्तर कम से कम 1500 मीटर तक ऊपर आ जायेगा और ऐसी स्थिति में पृथ्वी कुछ बड़े भूभाग को छोड़कर पूरी पृथ्वी जलमग्न हो जायेगी। यह स्थिति अटलांटिस पर हुए विनाश से भी ज्यादा भयानक होगी। मनुष्य पृथ्वी के उस बचे भूभाग के लिये आपस में युद्ध छेड़ देंगे, जिससे पूरी मानव जाति के खत्म हो जाने के आसार भी बन सकतें हैं।.....जब हमने कल से इस ओजोन लेयर के टूटने के कारण पर रिसर्च करना शुरु किया, तो हमें ये पता चला कि ये ओजोन लेयर स्वयं नहीं टूटी है, बल्कि अंतरिक्ष से आये एक उल्का पिंड की हानिकारक विकिरणों की वजह से टूटी है, तो हम और घबरा गये।

"हमने अब उस उल्का पिंड की जानकारी इकठ्ठी करनी शुरु कर दी, तो हमें एक और खतरनाक जानकारी मिली कि वह उल्कापिंड अटलांटिक महासागर में वाशिंगटन शहर से कुछ दूरी पर समुद्र में गिरा है और उस उल्का पिंड से कुछ तेज ऊर्जा निकल रही है। यह एक अलग तरह की ऊर्जा है, जिसके बारे में हमें कुछ नहीं पता। यह ऊर्जा समुद्र के आसपास के क्षेत्रों को विषैला बना रही है।....अब आते हैं अगली मुसीबत पर। और वह मुसीबत ये है....।”

इतना कहकर वारुणि ने सामने की स्क्रीन का दृश्य बदल दिया।

अब स्क्रीन पर एक विचित्र सा जीव दिखाई देने लगा, जो कि एक मशीन पर बेहोश पड़ था।

वह विचित्र जीव लगभग 8 फुट लंबा था, उसकी 3 आँखें थीं और 4 हाथ थे। उसकी पीठ पर कछुए के समान एक कवच लगा हुआ था। उसके पैर और हाथ के पंजे किसी स्पाइना सोरस की तरह बड़े थे।

उसकी बलिष्ठ भुजाओ को देखकर साफ पता चल रहा था, कि उसमें असीम ताकत होगी।

“यह क्या है?” कैस्पर ने ध्यान से उस जीव को देखते हुए पूछा।

“हमें भी नहीं पता। कल जब हम ओजोन लेयर को चेक करने के लिये पृथ्वी की आउटर कोर में गये, तो यह विचित्र जीव हमें वहां दिखाई दिया। यह विचित्र जीव बिना पंख और मास्क के वहां उड़ रहा था, इसके हाथ में एक शक्तिशाली ‘सिग्नल माडुलेटर’ मशीन थी। (सिग्नल माडुलेटर मशीन एक ऐसी मशीन होती है, जिसके द्वारा हम अंतरिक्ष में दूसरी आकाशगंगाओं में सिग्नल भेजते हैं।)

"हम इस जीव को पकड़कर अपनी लैब में ले आये, पर इससे हमें यह नहीं पता चल पाया कि यह कौन है?
किस ग्रह का है? और यह अंतरिक्ष में किसे सिग्नल भेज रहा था? हमने इसकी जैविक संरचना का अध्ययन किया तो पता चला कि यह कई जीवों से मिलाकर बनाया गया कोई म्यूटेंट जीव है, पर इसे किसने बनाया? और क्यों बनाया? यह नहीं पता चल पाया। मैं चाहती हूं कि तुम एक बार इस जीव को देखो, हो सकता है तुम्हें इससे इसके बारे में कुछ पता चल जाये? और हमारी मदद हो जाये।”

“बाप रे! पिछले 2 दिन में तुम इतनी सारी मुसीबतें अपने सिर पर लेकर घूम रही थी, मुझे तो पता ही नहीं था।” कैस्पर ने कहा- “चलो दोस्त, अब जरा उस विचित्र जीव से भी मिल लें।”

कैस्पर के ये कहने पर वारुणि मुस्कुराई और कैस्पर को लेकर एक दिशा की ओर चल दी।

कुछ देर में वारुणि कैस्पर को लेकर एक दूसरी लैब में पहुंच गई। जहां पर कुछ नौजवान वैज्ञानिक, जीवों की संरचना पर अध्ययन कर रहे थे।

वारुणि कैस्पर को लेकर एक ऐसे केबिन में पहुंच गई, जिसका तापमान बहुत ही कम था। वहीं पर वह जीव स्टील की बेड़ियों में जकड़ा एक मशीन के सामने लेटा हुआ था।

कैस्पर थोड़ी देर तक उस जीव को देखता रहा, फिर आगे बढ़कर कैस्पर ने अपना दाहिना हाथ उस जीव के माथे पर रख दिया और अपनी आँखें बंद कर लीं।

कैस्पर के हाथ से लाल रंग की कुछ रोशनी निकलकर उस जीव के माथे में समा गई।

अब कैस्पर उस जीव के मस्तिष्क से जुड़ गया था।

कैस्पर अपने हाथों को धीरे-धीरे, उस जीव के दिमाग पर फेर रहा था। वारुणि ध्यान से कैस्पर की उस गतिविधि को देख रही थी।

अचानक कैस्पर के चेहरे के भाव तेजी से परिवर्तित होने लगे, शायद कैस्पर कुछ ऐसा देख रहा था, जो कि उसके लिये असहनीय था।

कैस्पर के चेहरे पर अब पसीनें की बूंदें नजर आने लगीं थीं।

अचानक कैस्पर ने अपनी आँखें खोलकर, अपना हाथ उस जीव के सिर से हटा लिया।

कैस्पर के चेहरे पर हवाइयां उड़ रहीं थी। ऐसा लग रहा था कि वह बहुत ही उलझन में है।

“क्या हुआ कैस्पर? तुमने क्या देखा? तुम इतना परेशान क्यों हो?” वारुणि ने एक साथ बहुत सारे सवाल कैस्पर से कर दिये।

“इस जीव की जैविक संरचना बता रही है कि यह जीव...यह जीव मेरी शक्तियों के द्वारा ही बनाया गया है।” कैस्पर के शब्द किसी बम की तरह वारुणि के कानों में फटे।

“यह तुम क्या कह रहे हो कैस्पर? अगर इस जीव को तुमने ही बनाया, तो तुम इसे देखते ही क्यों नहीं पहचान पाये? और तुमने ऐसे खतरनाक जीव की रचना क्यों की?” वारुणि के शब्दों में दुनिया भर का आश्चर्य समाया था।

“तुमने ध्यान से नहीं सुना वारुणि ....मैंने कहा कि यह जीव मेरी ही शक्तियों के द्वारा बनाया गया है, मैंने यह नहीं कहा कि इस जीव को मैंने ही बनाया है। अब मुझे यह पता करना है कि किसने बिना मेरी जानकारी के मेरी शक्तियों का प्रयोग किया है?...लेकिन एक बात को समझो वारुणि, पृथ्वी एक बहुत बड़े संकट से गुजरने वाली है। अगर हमने उस संकट से पहले उसकी तैयारी नहीं की, तो हममें से कोई नहीं बचेगा और पृथ्वी का अस्तित्व भी समाप्त हो जायेगा।” कैस्पर के शब्द डरावने थे।

“तुम क्या कह रहे हो कैस्पर? मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा? क्या...क्या पृथ्वी पर एलियन हमला करने वाले हैं? और कौन है जो तुम्हारी बिना जानकारी के तुम्हारी ही शक्तियों का इस्तेमाल कर रहा है? मुझे कुछ तो बताओ कैस्पर?” वारुणि का दिमाग अब पूरी तरह से उलझ गया था।

“सबकुछ बताता हूं वारुणि...मेरे साथ मेरे कमरे में चलो...मैं तुम्हें सबकुछ बताता हूं...और इतना परेशान मत हो क्यों कि तुम्हें इस युद्ध में निर्णायक भूमिका निभानी है।”

यह कहकर कैस्पर वारुणि को लेकर अपने कमरे की ओर चल दिया।

पर रास्ते में भी वारुणि कैस्पर का ही चेहरा देख रही थी और सोच रही थी अपनी निर्णायक भूमिका और उस युद्ध के बारे में, जिसे महसूस कर कैस्पर जैसा महायोद्धा भी विचलित हो गया था।


जारी
रहेगा_______✍️
फिर से एक अप्रतिम रोमांचक और धमाकेदार अपडेट हैं भाई मजा आ गया
ये कैस्पर की शक्तियों का दुरुपयोग करके किसने ये भयंकर जीव बनाया और पृथ्वी पर कौनसा संकट आने वाला हैं और उससे निपटने के लिये वारुणि की कौनसी और किस तरहा की भुमिका रहेगी
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
 

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ये प
#141.

जलकवच:
(15 जनवरी 2002, मंगलवार, 10:30, मायावन, अराका द्वीप)

सुबह सभी थोड़ा देर से उठे थे। रात को सभी को नींद भी बहुत अच्छी आयी थी।

क्रिस्टी तो देर रात काफी देर तक ऐलेक्स से बात ही करती रही थी, शायद वह बीच के दिनों की पूरी कसर निकाल रही थी।

सभी खा-पीकर तैयार हो गये थे। सुयश का इशारा पाते ही सभी आगे की ओर बढ़ गये।

सामने एक छोटा सा पहाड़ था, जिसे पार करने में इन लोगों को ज्यादा समय नहीं लगा।

अब इन्हें पोसाईडन पर्वत बिल्कुल सामने दिख रहा था, पर पोसाईडन पर्वत और इन लोगों के बीच एक 30 फुट चौड़ी नहर का फासला था।

“कैप्टेन अंकल, इस नहर पर कहीं भी पुल बना नहीं दिख रहा, हम लोग उधर जायेंगे कैसे?” शैफाली ने सुयश से पूछा- “क्या पानी के अंदर उतरना सही रहेगा?”

“हमारा आज तक का इस जंगल का अनुभव बताता है, कि हर पानी में कोई ना कोई परेशानी मौजूद थी, तो पहले हम पानी में उतरने के बारे में नहीं सोचते। हम इस नहर के किनारे-किनारे आगे की ओर बढ़ेंगे।

"हो सकता है कि आगे कहीं इस नहर पर पुल बना हो? क्यों कि जो लोग पोसाईडन पर्वत के उस तरफ रह रहें होगे, वह भी किसी ना किसी प्रकार से उस पार तो जाते ही होंगे। और सबसे बड़ी बात कि जरा पोसाईडन की मूर्ति को ध्यान से देखो, वो हमारे ठीक सामने नहीं है, तो हो सकता है कि मूर्ति के ठीक सामने कोई ना कोई पुल हो?”

सुयश की बात सभी को सही लगी, इसलिये वह नहर के किनारे-किनारे आगे बढ़ने लगे।

लगभग आधा घंटा चलने के बाद उन्हें नहर के ऊपर रखे लकड़ी के 2 मोटे लट्ठे दिखाई दिये।

“लो मिल गया रास्ता।” क्रिस्टी ने उन लट्ठों की ओर देखते हुए कहा- “और कैप्टेन ने सही कहा था, यह रास्ता बिल्कुल पोसाईडन की मूर्ति के सामने है।”

तभी तौफीक की नजर नहर के दूसरी ओर बनी एक सुनहरी झोपड़ी पर पड़ी।

“कैप्टेन नहर के उस पार वह सुनहरी झोपड़ी कैसी है?” तौफीक ने सुयश को झोपड़ी की ओर इशारा करते हुए कहा।

सभी आश्चर्य से उस विचित्र झोपड़ी को देखने लगे।

“कुछ कह नहीं सकते? हो सकता है कि उसमें कैस्पर ही रहता हो और वहीं से तिलिस्मा का नियंत्रण करता हो?” सुयश ने कहा।

“हैलो...मेरा कैस्पर झोपड़ी में नहीं रहता।” शैफाली ने चिढ़ते हुए कहा।

“अरे वाह! मेरा कैस्पर....।” क्रिस्टी ने हंसकर शैफाली का मजाक उड़ाया- “लगता है अब शैफाली पूरी मैग्ना बनने वाली है?”

शैफाली ने नाक सिकोड़कर क्रिस्टी को चिढ़ाया और सुयश की ओर देखने लगी।

“हमें पहले उस पार चलना चाहिये। उस पार पहुंचने के बाद ही पता चलेगा, कि उस झोपड़ी का क्या रहस्य है?”

“अब तो हममें से कई लोगों के पास शक्तियां हैं, इस नहर को तो हम आसानी से पार कर लेंगे।” ऐलेक्स ने कहा।

“अच्छा जी! तो चलो पहले तुम ही पार करके दिखाओ, जरा हम भी तो देखें, तुम्हारी वशीन्द्रिय शक्तियां किस प्रकार काम करती हैं?” क्रिस्टी ने ऐलेक्स का मजाक उड़ाते हुए कहा।

वैसे क्रिस्टी को अपने अनुभव के आधार पर पता था, कि इस नहर में भी कोई मायाजाल छिपा होगा।

ऐलेक्स ने क्रिस्टी के चैलेंज को स्वीकार कर लिया और एक लकड़ी के लट्ठे पर अपना बांया पैर रखा।

ऐलेक्स के लट्ठे पर पैर रखते ही, लट्ठे का दूसरा सिरा हवा में उठना शुरु हो गया।

यह देख ऐलेक्स ने अपना पैर लट्ठे से हटा लिया। ऐलेक्स के पैर हटाते लट्ठा अपने यथा स्थान आ गया।

यह देख क्रिस्टी ने मुस्कुराते हुए बच्चों की तरह तुतला कर ऐलेक्स का मजाक उड़ाया- “क्या हुआ छोते बच्चे...तुम्हारी छक्तियां काम नहीं कल लहीं क्या?”

ऐलेक्स ने घूरकर क्रिस्टी को देखा और फिर प्यार से क्रिस्टी की चोटी खींच ली।

इस बार ऐलेक्स ने दूसरे लट्ठे पर अपना पैर रखा। उस लट्ठे पर भी वही क्रिया हुई, जो कि पहले लट्ठे पर हुई थी।

“लगता है ये भी किसी प्रकार का मायाजाल है?” जेनिथ ने कहा।

“छोता बाबू औल कोछिछ कलेगा?” क्रिस्टी ने फिर ऐलेक्स को चिढ़ाया।

ऐलेक्स ने इस बार क्रिस्टी पर ध्यान नहीं दिया। इस बार ऐलेक्स ने अपनी त्वचा को लचीला आकार दिया और दौड़कर नहर के पास आकर दूसरी ओर कूदने की कोशिश की।

पर इस कोशिश में ऐलेक्स का शरीर किसी अदृश्य दीवार से टकराया और वह जमीन पर गिर पड़ा। उसे बहुत तेज चोट लगी थी।

अगर वशीन्द्रिय शक्ति ने समय पर ऐलेक्स का शरीर वज्र का नहीं बनाया होता, तो ऐलेक्स की कुछ हड्डियां तो जरुर टूट जानीं थीं।

“लगता है छोता बाबू...तूत-फूत गया।” क्रिस्टी अभी भी ऐलेक्स से मजा ले रही थी।

“ठीक है मैं हार गया...मेरी शक्ति भी काम नहीं कर रही। चलो अब तुम ही पार करके दिखा दो इसे। अगर तुमने इसे पार कर दिया तो तुम जो मांगोगी, मैं तुम्हें दूंगा।” ऐलेक्स ने क्रिस्टी को चैलेंज देते हुए कहा।

“ठीक है...पर अपना वादा भूलना नहीं ऐलेक्स।” क्रिस्टी यह कहकर उस लट्ठे के पास आ गयी।

उसने एक बार लट्ठे को हिलाकर उसकी मजबूती का जायजा लिया और फिर उछलकर क्रिस्टी ने अपना बांया पैर एक लट्ठे पर रखा।

क्रिस्टी के पैर रखते ही हर बार की तरह, उस लट्ठे का दूसरा सिरा तेजी से हवा में उठा। तभी क्रस्टी फिर हवा में उछली और इस बार उसने अपना दाहिना पैर दूसरे लट्ठे पर रखकर, अपना पहला पैर पहले लट्ठे से हटा लिया।


क्रिस्टी का पैर पहले लट्ठे से हटते ही पहला लट्ठा अपनी पुरानी स्थिति में आ गया। लेकिन तब तक दूसरा लट्ठा हवा में उठने लगा।

क्रिस्टी एक बार फिर उछली। अब उसने अपना बांया पैर फिर से पहले लट्ठे पर रख, दूसरे लट्ठे से पैर हटा लिया।

इस तरह से क्रिस्टी हर बार अपना एक पैर एक लट्ठे पर रखती और जैसे ही वह उठता उछलकर दूसरा पैर दूसरे लट्ठे पर रख देती। क्रिस्टी ऐसे ही उछल-उछल कर आगे बढ़ती जा रही थी।

ऐलेक्स आँखें फाड़े उस ‘जिमनास्टिक गर्ल’ को देख रहा था।
कुछ ही पलों में क्रिस्टी ने आसानी से उस नहर को पार कर लिया।

अब वह दूसरी ओर पहुंचकर ऐलेक्स को देखकर चिल्ला कर बोली- “अपना वादा याद रखना छोता बाबू।”

क्रिस्टी का यह अभूतपूर्व प्रदर्शन देख सभी ताली बजाने लगे। इन तालियों में एक ताली ऐलेक्स की भी थी।

अब ऐलेक्स के चेहरे पर मुस्कुराहट भी थी और क्रिस्टी के लिये प्यार भी था।

“आज क्रिस्टी ने यह साबित कर दिया कि शक्तियां होने से कुछ नहीं होता, दिमाग और शारीरिक शक्तियां ही बहुत हैं तिलिस्मा को तोड़ने के लिये।” सुयश ने क्रिस्टी की तारीफ करते हुए कहा।

“वो तो ठीक है कैप्टेन अंकल।” शैफाली ने कहा- “पर अब हम लोग कैसे उस पार जायेंगे? अब ये सोचना है।”

“देखो क्रिस्टी की तरह फूर्ति हममें से किसी के भी पास नहीं है, इसलिये हमें कोई दूसरा तरीका सोचना पड़ेगा।” सुयश ने कहा- “यहां ना तो आसपास कोई बाँस का पेड़ है और ना ही किसी प्रकार की रस्सी।
इसलिये हम कूदकर और हवा में झूलकर नहीं जा सकते। अब अगर क्रिस्टी दूसरी ओर से लकड़ी के लट्ठे को किसी चीज से दबाकर रखे और उसे उस ओर से उठने ना दे, तो शायद काम बन सकता है।”

सुयश की बात सुन क्रिस्टी ने अपने चारो ओर नजरें दौड़ाईं, पर उसे लट्ठे पर रखने के लिये कुछ ना मिला। यह देख क्रिस्टी ने उस लट्ठे को अपने हाथों से दबा कर देखा।

क्रिस्टी को लट्ठे को दबाते देख सुयश ने फिर एक बार अपना पैर लट्ठे पर रखकर देखा, पर क्रिस्टी की शक्ति, लट्ठे के आगे कुछ नहीं थी।

लट्ठा क्रिस्टी सहित हवा में ऊपर की ओर उठा। यह देख क्रिस्टी ने लट्ठे से अपना हाथ हटा लिया।

“कैप्टेन... इसे किसी भी चीज से दबाकर नहीं रखा जा सकता, यह बहुत ज्यादा शक्ति लगा कर ऊपर उठ रहा है।“ क्रिस्टी ने कहा।

“कैप्टेन... क्यों ना अब हम पानी के रास्ते ही उधर जाने के बारे में सोचें?” तौफीक ने सुयश को सुझाव देते हुए कहा।

तौफीक का आइडिया सुयश को सही लगा, उसने हां में सिर हिलाकर अपनी स्वीकृति दे दी।

अब तौफीक एक कम ढलान वाली जगह से उतरकर पानी की ओर बढ़ गया।

तौफीक ने एक बार सबको देखा और फिर अपना बांया पैर पानी में डाल दिया।

तौफीक के पैर डालते ही पानी तौफीक के शरीर से 3 फुट दूर हो गया।

“अरे, यह पानी तो अपने आप मेरे शरीर से दूर जा रहा है। इस तरह तो आसानी से यह नहर पार हो जायेगी” यह कह तौफीक ने अपना दूसरा कदम भी आगे बढ़ा दिया।

पानी अभी भी तौफीक के शरीर से 3 फुट की दूरी पर था। तौफीक ने यह देख उत्साह से 2 और कदम आगे बढ़ दिये।

पर जैसे ही तौफीक की दूरी किनारे से 3 फुट से ज्यादा हुई, पानी ने किनारे की ओर को फिर कवर कर लिया। अब तौफीक से पानी एक 3 फुट के दायरे में दूर था।

तभी चलता हुआ तौफीक रुक गया। अब उसके इस 3 फुट के दायरे में, पानी ऊपर की ओर उठने लगा और इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता, तौफीक एक 3 फुट के जलकवच में बंद हो गया।

वह जलकवच पारदर्शी था, उसके पार की आवाजें भी तौफीक को सुनाई दे रहीं थीं, पर तौफीक अपनी तमाम कोशिशों के बाद भी उस जलकवच से बाहर नहीं आ पा रहा था।

“तौफीक!” क्रिस्टी ने चीखकर कहा- “क्या तुम उस जलकवच के अंदर साँस ले पा रहे हो?”

क्रिस्टी की बात सुन तौफीक ने अपने दाहिने हाथ के अंगूठे को ऊपर उठाकर हां में इशारा किया।

“यह मायाजाल तो कुछ ज्यादा ही खतरनाक दिख रहा है।” सुयश ने तौफीक की ओर देखते हुए कहा- “अब ये भी पता चल गया कि हम पानी और हवा के माध्यम से आगे नहीं जा सकते। हमें इस लकड़ी के लट्ठे से ही होकर आगे जाना पड़ेगा।

“कैप्टेन!” जेनिथ ने कहा- “अभी तक हम लोगों ने इस लट्ठे पर अपना एक पैर रखा था, अगर हम एक ही लट्ठे पर अपने दोनों पैर रखें, तो क्या होगा?”

“यह भी करके देख लेते हैं।” सुयश ने कहा और उछलकर एक लट्ठे
पर अपने दोनों पैर रख दिये।

इस बार लट्ठे के दोनों किनारे तेजी से हवा में उठे और इससे पहले कि सुयश कुछ समझता, वह आसमान में ऊपर की ओर जाने लगे।

यह देख सुयश उस लट्ठे से पानी में कूद गया। सुयश तौफीक से 5 फुट की दूरी पर पानी में गिरा।

चूंकि नहर ज्यादा गहरी नहीं थी, इसलिये सुयश का पूरा शरीर दर्द से लहरा उठा, ईश्वर की दया से उसे कोई फ्रैक्चर नहीं हुआ।

सुयश के 5 फुट दूर गिरते ही तौफीक और सुयश दोनों एक ही जलकवच में आ गये, पर यह जलकवच अब 11 फुट बड़ा हो गया था।

यह देख जैसे ही तौफीक, सुयश की ओर बढ़ा, जलकवच का आकार, उन दोनों के पास आते ही छोटा होने लगा।

यह देख सुयश सोच में पड़ गया और उसने तौफीक से दोबारा दूर जाने को कहा।

तौफीक के देर जाते ही फिर जलकवच का दायरा बड़ा हो गया।

उधर जेनिथ उस नहर को पार ना कर पाते देख क्रिस्टी से बोल उठी-
“क्रिस्टी हम इस नहर को पार नहीं कर पा रहे हैं, इसलिये तुम भी अब इसी ओर आ जाओ, हम सब एक साथ बैठकर कुछ सोचते हैं।”

क्रिस्टी को जेनिथ की बात सही लगी, इसलिये वह वापसी के लिये दोबारा से उस लट्ठे की ओर चल दी।

पर जैसे ही क्रिस्टी उन लट्ठों के पास पहुंची, दोनों लट्ठों के बीच एक सुराख हो गया और उसमें से एक गाढ़े भूरे रंग का चिकना द्रव निकलकर पूरे लट्ठे पर फैल गया।

यानि अब क्रिस्टी भी वापस नहीं आ सकती थी। अगर वह इन लट्ठों से होकर वापस आने की कोशिश करती, तो इस बार वह भी फिसलकर नहर में गिर जाती।

यह देख शैफाली ढलान से उतरकर नहर के पानी के पास आ गयी। उसने अपनी शक्ति से अपना बुलबुले वाला कवच बनाया और पानी में उतरकर सुयश की ओर बढ़ गयी।

शैफाली को पूरा विश्वास था कि उसके बुलबुले पर नहर के जलकवच का कोई प्रभाव नहीं होगा, पर उसका सोचना गलत था।

जैसे ही उसकी दूरी नहर के किनारे से 3 फुट हुई, उसके बुलबुले को भी जलकवच ने पूरा घेर लिया।

अब शैफाली भी आगे नहीं बढ़ पा रही थी। यह देख शैफाली ने अपना बुलबुला गायब कर दिया।

अब इस किनारे पर सिर्फ जेनिथ और ऐलेक्स बचे थे। यह देख जेनिथ ने नक्षत्रा को पुकारा- “नक्षत्रा, क्या तुम्हारे पास इस जलकवच से बचने का कोई उपाय है?”

“मैं सिर्फ समय रोक सकता हूं, जिससे नहर का पानी का बहाव तो रुक जायेगा, परंतु मैं विश्वास के साथ नहीं कह सकता कि मैं जलकवच को बनने से रोक पाऊंगा।” नक्षत्रा ने कहा।

यह सुन जेनिथ ने कुछ सोचा और फिर बोल उठी- “कोई बात नहीं ...हम एक कोशिश तो करके देख ही सकते हैं...हो सकता है नहर के जल का प्रवाह रुकने से वह कवच बने ही नहीं?”

जेनिथ ने यह सोचकर ऐलेक्स को वहीं रुकने को कहा और स्वयं नहर के पानी की ओर बढ़ चली।
जेनिथ ने पानी के पास पहुंचते ही नक्षत्रा से कहकर समय को रुकवा दिया और स्वयं पानी में उतर गई।

जेनिथ के ऐसा करते ही पानी का प्रवाह तो रुक गया, पर जैसे ही उसने पानी में कदम रखा, पानी उससे भी 3 फुट दूर हटा।

जेनिथ इसके बाद भी आगे बढ़ती गई और कुछ ही पलों में वह भी जलकवच में फंस गई थी।

जलकवच पर समय का कोई प्रभाव नहीं पड़ा था।

अब सिर्फ ऐलेक्स और क्रिस्टी ही पानी से बाहर थे। जेनिथ ने स्वयं को भी फंसते देख समय को रिलीज कर दिया।

शैफाली बहुत देर से सभी की गतिविधियां देख रही थी, उसका दिमाग बहुत तेजी से चल रहा था।
अचानक उसके दिमाग में एक विचार आया और वह अपने मन में ही कोई कैलकुलेशन करने लगी।

कैलकुलेशन के सॉल्यूशन पर पहुंचते ही उसके चेहरे पर मुस्कान बिखर गई।

“सब लोग मेरी बात ध्यान से सुनो, मैंने इस नहर से बचने का एक उपाय निकाल लिया है।” शैफाली ने तेज आवाज में कहा।

शैफाली की आवाज सुन सभी ध्यान से शैफाली की ओर देखने लगे।

“जिंदगी में कभी-कभी हम किसी पहेली को बहुत बड़ा मान लेते हैं, और उसका जवाब ढूंढने के लिये बहुत ज्यादा दिमाग का इस्तेमाल करते हैं, जबकि उस पहेली का जवाब बहुत ही साधारण होता है। अब सब लोग जरा इस नहर को देखिये, इसमें जो भी प्रवेश करता है, नहर का पानी उससे 3 फुट दूर चला जाता है, पर जैसे ही उसकी दूरी किनारे से 3 फुट से ज्यादा हो जाती है, तो पानी एक जलकवच बना कर उसे अपने घेरे में ले लेता है। यानि अगर हम पानी को किनारे से दूर होने ही ना दें, तो हम आसानी से इस नहर को पार कर सकते हैं और ऐसा तभी हो सकता है, जब सभी लोग एक दूसरे का हाथ पकड़ लें और आखिरी इंसान की दूरी किनारे से बस 2 फुट की ही हो, तो हम सभी को जलकवच नहीं घेर पायेगा।

"इस हिसाब से देखें तो हम कुल 6 लोग हैं, यानि की अगर हम अपने एक दूसरे के हाथ पकड़ें तो 2 लोगों के बीच 6 फुट की दूरी हो जायेगी। और किनारे की दूरियां मिला कर कुल दूरी 34 फुट की हो जायेगी।
इस तरह से हम यह नहर आसानी से पार कर लेंगे। “

शैफाली का प्लान बहुत अच्छा था। तुरंत सबने उसके हिसाब से काम करना शुरु कर दिया।

ऐलेक्स सबसे पहले नहर में उतरा और किनारे से 2 फुट की दूरी रखकर जेनिथ की ओर अपने पैर बढ़ाये। जैसे ही वह जेनिथ के पास पहुंचा, जेनिथ का जलकवच गायब हो गया।

अब जेनिथ ने हाथ आगे बढ़ाकर शैफाली का हाथ थाम लिया। अब शैफाली का भी जलकवच गायब हो गया। इसी प्रकार शैफाली ने सुयश का और सुयश ने तौफीक का हाथ थाम लिया।

अब तौफीक का हाथ नहर के दूसरी ओर से मात्र 4 फुट दूर ही बचा था, पर क्रिस्टी ने दूसरी ओर से पानी में उतरकर वह दूरी भी खत्म कर दी।

अब सभी ने एकता की शक्ति दिखाकर एक मानव पुल का निर्माण कर दिया था।

अब क्रिस्टी सबसे पहले नहर से निकली और फिर एक दूसरे का हाथ थामें सभी नहर के दूसरी ओर पहुंच गये।

नहर पार करने के बाद सभी ने राहत की साँस ली।

“इस जलकवच के तिलिस्म ने हमें यह समझा दिया कि महाशक्तियां भी जहां पर फेल हो जातीं हैं, उस समय मानव मस्तिष्क के द्वारा ही जीता जा सकता है।” सुयश ने कहा- “और यह अभ्यास ये भी बताता है कि बिना एक दूसरे का साथ दिये हम तिलिस्मा नहीं पार कर पायेंगे।”

यह कहकर सुयश ने अपना हाथ फैलाकर अपनी मुठ्ठी को आगे बढ़ाया, जिस पर एक-एक करके सभी अपना हाथ रखते चले गये।

एकता की शक्ति ने आज सभी को बचा लिया था।

अब सभी की नजर उस सुनहरी झोपड़ी की ओर थी, जो कि शायद इस मायावन का आखिरी द्वार था, इसके बाद तिलिस्मा शुरु होना था।

सभी झोपड़ी की ओर बढ़ गये।


जारी रहेगा_______✍️
ये पोसायडन पर्वत के पास वाले नहर को पार करना काफी मुश्किल था लेकीन शेफाली की सुजबुझ और एकता की शक्ति ने असंभव को भी संभव बना दिया और सभी लोक नहर पार कर गये
अब ये सामने सुनहरी झोपडी का क्या रहस्य हैं
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
अगले रोमांचकारी धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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फिर से एक अप्रतिम रोमांचक और धमाकेदार अपडेट हैं भाई मजा आ गया
ये कैस्पर की शक्तियों का दुरुपयोग करके किसने ये भयंकर जीव बनाया और पृथ्वी पर कौनसा संकट आने वाला हैं और उससे निपटने के लिये वारुणि की कौनसी और किस तरहा की भुमिका रहेगी
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
कैस्पर की शक्तियां केवल उसका रोबोट यूज कर सकता है मित्र :approve: रही बात पृथ्वीलोक पर आने वाले खतरे की, तो वो तो समय ही बतायेगा।:declare: आपके अमूल्य योगदान के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद मित्र :hug:
 

Raj_sharma

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ये प
ये पोसायडन पर्वत के पास वाले नहर को पार करना काफी मुश्किल था लेकीन शेफाली की सुजबुझ और एकता की शक्ति ने असंभव को भी संभव बना दिया और सभी लोक नहर पार कर गये
अब ये सामने सुनहरी झोपडी का क्या रहस्य हैं
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
अगले रोमांचकारी धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
सुनहरी झोंपड़ी तिलिस्म में घुसने का एक महत्वपूर्ण रास्ता है दोस्त :shhhh:, बाकी अगले अपडेट में पता चल जाएगा।
आपके अमूल्य रिव्यू के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद भाई :hug:
 

Raj_sharma

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चैपटर-14

सुनहरी ढाल:
(15 जनवरी 2002, मंगलवार, 11:10, ट्रांस अंटार्कटिक माउन्टेन, अंटार्कटिका)

शलाका अपने कमरे में बैठी सुयश के बारे में सोच रही थी।उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था, कि इतने दिन बाद वह आर्यन से अच्छे से मिली।

उसकी यह खुशी दो तरफा थी।

एक तो वह अब जान गयी थी कि तिलिस्मा टूटने वाला है। यानि कि जिस तिलिस्मा के टूटने का, उसके पिछले 8 पूर्वज सपना देखते हुए गुजर गये, वह सपना अब उसकी आँखों में सामने पूरा होना था और दूसरी बात सुयश के साथ दोबारा से रहते हुए एक साधारण जिंदगी व्यतीत करना।

2 दिन से काम की अधिकता होने की वजह से वह सुयश की लिखी ‘वेदांत रहस्यम्’ को अभी नहीं पढ़ पायी थी, पर आज वह इस किताब को जरुर पढ़कर खत्म करना चाहती थी।

तभी उसे जेम्स और विल्मर का ख्याल आया। ज्यादा काम के चक्कर में, वह उन दोनेां को तो भूल ही गई थी।

शलाका ने पहले जेम्स और विल्मर से मिलना उचित समझा।

यह सोच उसने अपने त्रिशूल को हवा में लहराकर द्वार बनाया और जा पहुंची, जेम्स और विल्मर के कमरे में।

जेम्स और विल्मर बिस्तर पर बैठे आपस में कोई गेम खेल रहे थे। शलाका को देख वह खुश होकर उठकर खड़े हो गये।

विल्मर को अब अपनी आजादी का अहसास होने लगा था।

“कैसे हो तुम दोनों?” शलाका ने मुस्कुराते हुए पूछा।

“बाकी सब तो ठीक है, पर बहुत ज्यादा बोरियत हो रही है।” विल्मर ने कहा।

“अब मैं जाकर काफी हद तक फ्री हो गयी हूं, तो मैं अब चाहती हूं कि तुम दोनों बताओ कि तुम्हें अब क्या चाहिये?” शलाका ने गहरी साँस लेते हुए कहा।

विल्मर तो जैसे इसी शब्द का बेसब्री से इंतजार कर रहा था।

“क्या हम जो भी मागेंगे, आप उसे दोगी?” विल्मर ने लालच भरी निगाहों से पूछा।

“हां-हां दूंगी, पर बताओ तो सही कि तुम्हें क्या चाहिये?” शलाका ने विल्मर को किसी बच्चे की तरह मचलते देख कह दिया।

“मैं जब से यहां आया था मैंने 2 ही कीमती चीजें यहां देखीं थीं। एक आपका वह त्रिशूल और दूसरा वह सुनहरी ढाल, जिससे द्वार खोलकर हम इस दुनिया में आये थे। मुझे पता है कि त्रिशूल आपसे मांगना व्यर्थ है, वह आपकी शक्ति से ही चल सकता है। इसलिये मैं अपने लिये आपसे वह सुनहरी ढाल मांगता हूं।” विल्मर ने कहा।

शलाका यह सुनकर सोच में पड़ गयी।

“वैसे क्या तुम्हें ये पता भी है कि वह ढाल क्या है?” शलाका ने गम्भीरता से कहा।

“मुझे नहीं पता, पर मुझे ये पता है कि वह बहुत कीमती ढाल है।” विल्मर ने कहा।

“क्या तुम कुछ और नहीं मांग सकते?” शलाका ने उदास होते हुए पूछा।

“नहीं...मुझे तो वह ढाल ही चाहिये।” विल्मर ने किसी नन्हें बच्चे की तरह जिद करते हुए कहा।

“ठीक है, मैं तुम्हें वह ढाल दे दूंगी, लेकिन बदले में मुझे भी तुमसे कुछ चाहिये होगा।” शलाका ने छोटी सी शर्त रखते हुए कहा।

“पर मेरे पास ऐसा क्या है, जिसकी आपको जरुरत है?” विल्मर के शब्द आश्चर्य से भर उठे।

“मुझे बदले में तुम्हारी यहां की पूरी स्मृतियां चाहिये।” शलाका ने गम्भीर स्वर में कहा- “देखो विल्मर, मैं तुम्हें यहां से जाने दूंगी तो कोई गारंटी नहीं है कि तुम यहां के बारे में किसी को नहीं बताओगे और अगर गलती से भी तुमने यहां के बारे में किसी को बता दिया तो भविष्य के मेरे सारे प्लान मुश्किल में पड़ जायेंगे।

"इसलिये मैं तुम्हें वह ढाल तो दे दूंगी, मगर उसके बदले तुम्हारी यहां की सारी स्मृतियां छीन लूंगी। यानि कि यहां से जाने के बाद, तुम्हें अपनी पूरी जिंदगी की हर बात याद होगी, सिवाय यहां की यादों के। यहां के और मेरे बारे में तुम्हें कुछ भी याद नहीं रह जायेगा। अगर तुम्हें यह मंजूर है तो बताओ।”

“मुझे मंजूर है।” विल्मर ने सोचने में एक पल भी नहीं लगाया।

“ठीक है।” यह कहकर अब शलाका जेम्स की ओर मुड़ गयी- “और तुम्हें क्या चाहिये जेम्स?”

“मैने अपनी पूरी जिंदगी में जितना कुछ नहीं देखा था, वह सब यहां आकर देख लिया।” जेम्स ने कहा- “इसलिये मैं आपसे मांगने की जगह कुछ पूछना चाहता हूं?”

जेम्स की बात सुन विल्मर और शलाका दोनों ही आश्चर्य से भर उठे।

“हां पूछो जेम्स! क्या पूछना चाहते हो?” शलाका ने जेम्स को आज्ञा देते हुए कहा।

“क्या मैं आपके साथ हमेशा-हमेशा के लिये यहां रह सकता हूं।” जेम्स के शब्द आशाओं के बिल्कुल विपरीत थे।

“तुम यहां मेरे पास क्यों रहना चाहते हो जेम्स? पहले तुम्हें मुझे इसका कारण बताना होगा।” शलाका ने कहा।

“मेरा बाहर की दुनिया में कोई नहीं है। मेरे माँ-बाप बचपन में ही एक दुर्घटना का शिकार हो गये थे। मैं जब छोटा था, तो सभी मुझे बहुत परेशान करते थे, तब मैं रात भर यही सोचता था कि काश मेरे पास भी कोई ऐसी शक्ति होती, जिसके द्वारा मैं उन लोगों को मार सकता। मैं हमेशा सुपर हीरो के सपने देखता रहता था, जिसमें एक सुपर हीरो पूरी दुनिया को बचाता था। पर जैसे-जैसे मैं बड़ा होने लगा, मुझे यह पता चल गया कि इस दुनिया में असल में कोई सुपर हीरो नहीं है, यहां तक कि भगवान के भी अस्तित्व पर मुझे शक होने लगा।

"लेकिन जब मैं यहां से हिमालय पहुंचा और मैने बर्फ के नीचे से शिव मंदिर को प्रकट होते देखा, तो मुझे विश्वास हो गया कि इस धरती पर ईश्वर है, बस वह स्वयं लोगों के सामने नहीं आता, वह अपनी शक्तियों को कुछ अच्छे लोगों को बांटकर उनसे हमारी धरती की रक्षा करवाता रहता है। मैंने वहां महा-शक्तिशाली हनुका को देखा, मैंने वहां अलौकिक शक्तियों वाले रुद्राक्ष और शिवन्या को देखा। तभी से मेरा मन आपके पास ही रहने को कर रहा है।

"आप मुझे जो भी काम देंगी, मैं बिना कुछ भी पूछे, आपका दिया काम पूरा करुंगा। मुझे मनुष्य के अंदर की शक्ति का अहसास हो गया है, अब मैं भला इन छोटे-मोटे हीरे-जवाहरातों को लेकर क्या करुंगा। इसलिये आप विल्मर को यहां से जाने दीजिये, पर मुझे अपनी सेवा में यहां रख लीजिये। वैसे भी आपको इतनी बड़ी पृथ्वी संभालने के लिये किसी इंसान की जरुरत तो होगी ही, फिर वो मैं क्यों नहीं हो सकता?” इतना कहकर जेम्स शांत हो गया।

“क्या तू सच में मेरे साथ अपनी दुनिया में नहीं जाना चाहता?” विल्मर ने कहा।

“मेरे लिये अब यही मेरी दुनिया है। तुम जाओ विल्मर... मुझे यहीं रहना है।” जेम्स ने कहा।

शलाका बहुत ध्यान से जेम्स की बातें सुन रही थी। जेम्स की बातों से शलाका को उसके भाव बहुत शुद्ध और निष्कपट लग रहे थे।

“मुझे तुम्हारे विचार सुनकर बहुत अच्छा लगा जेम्स। मैं तुम्हें अपने पास रखने को तैयार हूं, पर एक शर्त है, आगे से तुम मुझे शलाका कहकर बुलाओगे, देवी या देवी शलाका कहकर नहीं।” शलाका ने मुस्कुराकर कहा।

“जी देवी....उप्स...मेरा मतलब है जी शलाका।” जेम्स ने हड़बड़ा कर अपनी बात सुधारते हुए कहा।

“तो क्या अब तुम यहां से जाने को तैयार हो विल्मर?” शलाका ने पूछा।

“जी देवी।” यह कहकर विल्मर ने जेम्स को गले लगाते हुए कहा- “तुम्हारी बहुत याद आयेगी। तुम बहुत अच्छे इंसान हो।”

शलाका ने अब अपना हाथ ऊपर हवा में लहराया, उसके हाथ में अब वही सुनहरी ढाल दिखने लगी थी, जिसे जेम्स और विल्मर ने सबसे पहले देखा था।

शलाका ने वह ढाल विल्मर के हाथ में पकड़ायी और विल्मर के सिर से अपना त्रिशूल सटा दिया।

त्रिशूल से नीली रोशनी निकलकर विल्मर के दिमाग में समा गई।

कुछ देर बाद विल्मर का शरीर वहां से गायब हो गया। विल्मर को जब होश आया तो उसने स्वयं को अंटार्कटिका की बर्फ पर गिरा पड़ा पाया। सुनहरी ढाल उसके हाथ में थी।

“अरे मैं बर्फ पर क्यों गिरा पड़ा हूं और जेम्स कहां गया। हम तो इस जगह पर किसी सिग्नल का पीछा करते हुए आये थे।....और यह मेरे पास इतनी बहुमूल्य सुनहरी ढाल कहां से आयी?”

विल्मर को कुछ याद नहीं आ रहा था, इसलिये उसने ढाल को वहां पड़े अपने बड़े से बैग में डाला और अपने श्टेशन की ओर लौटने लगा।

दिव्यदृष्टि:
(15 जनवरी 2002, मंगलवार, 13:40, सीनोर राज्य, अराका द्वीप)

रोजर को आकृति की कैद में बंद आज पूरे 10 दिन बीत गये थे।

आज तक आकृति उससे काम कराने के बाद सिर्फ एक बार मिलने आयी थी और वह भी सिर्फ 10 मिनट के लिये।

आकृति रोजर को ना तो कमरे से निकलने दे रही थी और ना ही यह बता रही थी कि उसने उसे क्यों बंद करके रखा है।

रोजर कमरे में बंद-बंद बिल्कुल पागलों के समान लगने लगा था, उसकी दाढ़ी और बाल भी काफी बढ़ गये थे।

रोजर को कभी-कभी बाहर वाले कमरे से कुछ आवाजें आती सुनाई देती थीं, लेकिन कमरे का दरवाजा बाहर से बंद होने की वजह से वह यह नहीं जान पाता था कि वह आवाजें किसकी हैं?

पिछले एक दिन से तो, उसे अपने कमरे के बगल वाले कमरे से, किसी के जोर-जोर से कुछ पटकने की अजीब सी आवाजें भी सुनाई दे रहीं थीं।

रोजर ने कई बार काँच के खाली गिलास को उल्टा करके, दीवार से लगा कर के उन आवाजों को सुनने की कोशिश की थी, पर ना जाने यहां कि दीवारें किस चीज से निर्मित थीं, कि रोजर को कभी साफ आवाज सुनाई ही नहीं देती थी।

आज भी रोजर अपने बिस्तर पर लेटा, आकृति को मन ही मन गालियां दे रहा था कि तभी एक खटके की आवाज से वह बिस्तर से उठकर बैठ गया।

वह आवाज दरवाजे की ओर से आयी थी। रोजर की निगाह दरवाजे पर जाकर टिक गयी।

तभी उसी एक धीमी आवाज के साथ अपने कमरे का दरवाजा खुलता हुआ दिखाई दिया।

यह देख रोजर भागकर दरवाजे के पास आ गया। दरवाजे के बाहर रोजर को एक स्त्री खड़ी दिखाई दी।
वह सनूरा थी, सीनोर राज्य की सेनापति और लुफासा की राजदार।

सनूरा ने मुंह पर उंगली रखकर रोजर को चुप रहने का इशारा किया। रोजर दबे पाँव कमरे से बाहर आ गया।

सनूरा ने रोजर को अपने पीछे आने का इशारा किया। रोजर सनूरा के पीछे-पीछे चल पड़ा।

रोजर सनूरा को पहचानता नहीं था, लेकिन इस समय उसे सनूरा किसी देवदूत जैसी प्रतीत हो रही थी, जो उसे इस नर्क रुपी कैद से आजाद करने आयी थी।

सनूरा रोजर के कमरे से निकलकर एक दूसरे कमरे में दाखिल हो गई।

“आकृति इस समय यहां नहीं है, इसलिये उसके आने के पहले चुपचाप मेरे साथ निकल चलो।” सनूरा ने धीमी आवाज में कहा।

“पर तुम हो कौन? कम से कम ये तो बता दो।” रोजर ने सनूरा से पूछा।

“मेरा नाम सनूरा है, मैं इस सीनोर राज्य की सेनापति हूं। मैंने तुम्हें कुछ दिन पहले यहां पर कैद देख लिया था, तबसे मैं आकृति के यहां से कहीं जाने का इंतजार कर रही थी। 2 दिन पहले भी वह कहीं गई थी, पर उस समय मुझे मौका नहीं मिला। अभी फिलहाल यहां से निकलो, बाकी की चीजें मैं तुम्हें किसी दूसरे सुरक्षित स्थान पर समझा दूंगी।”सनूरा ने फुसफुसा कर कहा।

“क्या तुम राजकुमार लुफासा के साथ रहती हो?” रोजर ने पूछा।

“तुम्हें राजकुमार लुफासा के बारे में कैसे पता?” सनूरा ने आश्चर्य से रोजर को देखते हुए कहा।

“मुझे भी इस द्वीप के बहुत से राज पता हैं।” रोजर ने धीमे स्वर में कहा।

“मुझे लुफासा ने ही तुम्हें यहां से निकालने के लिये भेजा है। अभी ज्यादा सवाल-जवाब करके समय मत खराब करो और तुरंत निकलो यहां से।” सनूरा ने रोजर को घूरते हुए कहा।

“मैं तुम्हारें साथ चलने को तैयार हूं, पर अगर एक मिनट का समय दो, तो मैं किसी और कैदी को भी यहां से छुड़ा लूं, जो कि मेरी ही तरह मेरे बगल वाले कमरे में बंद है।”

रोजर के शब्द सुन सनूरा आश्चर्य से भर उठी- “क्या यहां कोई और भी बंद है?”

“हां...मैंने अपने बगल वाले कमरे से उसकी आवाज सुनी है।” यह कहकर रोजर दबे पाँव सनूरा को लेकर एक दूसरे कमरे के दरवाजे के पास पहुंच गया।

उस कमरे का द्वार भी बाहर से बंद था। रोजर ने धीरे से उस कमरे का द्वार खोलकर अंदर की ओर झांका।

उसे कमरे में पलंग के पीछे किसी का साया हिलता हुआ दिखाई दिया।

“देखो, तुम जो भी हो...अगर इस कैद से निकलना चाहते हो, तो हमारे साथ यहां से चलो। अभी आकृति यहां नहीं है।” रोजर ने धीमी आवाज में कहा।

रोजर के यह बोलते ही सुनहरी पोशाक पहने एक खूबसूरत सी लड़की बेड के पीछे से निकलकर सामने आ गई।

उस लड़की के बाल भी सुनहरे थे। रोजर उस लड़की की खूबसूरती में ही खो गया। वह लगातार बस उस लड़की को ही देख रहा था।

“मेरा नाम मेलाइट है, आकृति ने मुझे यहां 2 दिन से बंद करके रखा है।” मेलाइट ने कहा।

“चलो अब जल्दी निकलो यहां से।” सनूरा ने रोजर को खींचते हुए कहा।

रोजर ने मेलाइट से बिना पूछे उसका हाथ थामा और उसे लेकर सनूरा के पीछे भागा।

रोजर के इस प्रकार देखने और हाथ पकड़ने से मेलाइट को थोड़ा अलग महसूस हुआ। आज तक उसके साथ ऐसा किसी ने भी नहीं किया था।

तीनों तेजी से मुख्य कमरे से निकलकर आकृति के कक्ष की ओर भागे, क्यों कि उधर से ही होकर गुफाओं का रास्ता हर ओर जाता था।

रोजर भी पहली बार इसी रास्ते से होकर आकृति के कक्ष में आया था। तीनों तेजी से आकृति के कक्ष में प्रवेश कर गये।

पर इससे पहले कि वह गुफाओं वाले रास्तें की ओर जा पाते, उन्हें एक और लड़की की आवाज सुनाई दी- “अगर सब लोग भाग ही रहे हो, तो मुझे भी लेते चलो।”

तीनों वह आवाज सुन आश्चर्य से रुक गये, पर उन्हें कोई आसपास दिखाई नहीं दिया।

“कौन हो तुम? और हमें दिखाई क्यों नहीं दे रही?” सनूरा ने कहा।

“मैं यहां हूं, कक्ष में मौजूद उस शीशे के अंदर।” वह रहस्यमयी आवाज फिर सुनाई दी।

सभी की नजर कक्ष में मौजूद एक आदमकद शीशे पर गई। वह आवाज उसी से आती प्रतीत हो रही थी।

“तुम शीशे में कैसे बंद हुई?” रोजर ने पूछा।

“मेरा नाम सुर्वया है, मुझे इस शीशे में आकृति ने ही बंद करके रखा है, अगर तुम लोग इस शीशे को तोड़ दोगे, तो मैं भी आजाद हो जाऊंगी।”

रोजर ने सुर्वया की बात सुन सनूरा की ओर देखा। सनूरा ने रोजर को आँखों से इशारा कर उसे शीशे को तोड़ने का आदेश दे दिया।

रोजर ने वहीं पास में दीवार पर टंगी, एक सुनहरी तलवार को उठाकर शीशे पर मार दिया।
‘छनाक’ की आवाज के साथ शीशा टूटकर बिखर गया।

उस शीशे के टूटते ही उसमें से एक धुंए की लकीर निकली, जो कि कुछ ही देर में एक सुंदर लड़की में परिवर्तित हो गई।

सनूरा के पास, अब किसी से उसके बारे में पूछने का भी समय नहीं बचा था। वह सभी को अपने पीछे आने का इशारा करते हुए, तेजी से गुफा की ओर बढ़ गयी।



जारी रहेगा______✍️
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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इतनी देर एक्सरसाइज करने से शरीर को केवल नुकसान ही पहुँचता है।
अच्छे फ़िगर की शुरुवात रसोई से होती है। अच्छा खाएँ, कम खाएँ, और भरपूर पोषण लें।
व्यायाम करने से शरीर में बल और स्टैमिना आता है। 😌



जिन पाठकों को न पता हो, उनके लिए --

निहारिका मतलब nebula होता है। ये लड़कियों की नाम वाली निहारिका से अलग है (उसका अर्थ होता है ओस).
खगोलशास्त्र में निहारिका शब्द का प्रयोग तारों के समूह या फिर आकाशगंगा के लिए होता है।



जाहिर सी बात है, ये कोई कृत्रिम जीव है।



लगता है कैस्पर का रोबोट किसी ने हैक कर लिया है और अब वो कैस्पर के लिए नहीं, दूसरे के लिए काम कर रहा है।
शायद तमराज जैगन के चेले मकोटा ने?

अगर ऐसा है तो सुयश एंड पार्टी के लिए तिलिस्मा का पार पाना बहुत ही कठिन होने वाला है।
और सच में, इस कहानी में खलनायकों की मृत्यु के अतिरिक्त अब किसी अन्य की मृत्यु देखने / सुनने का मन नहीं है।

Shandar update bro

Nice update....

Shaandar Update

Shandaar update and nice story

Bahut hi badhiya update diya hai Raj_sharma bhai....
Nice and beautiful update....

nice update

Bhut hi badhiya update Bhai
Sabhi ne ekta dikhakar is pull ko par kar liya or is samsya ko par kar aage bad gaye
Dhekte hai ab us sunhari jhopdi me kya milta hai

Nice update❤👌

Very nice update❤👌

lovely update. shefali ki baato se pyar ki jhalak dekhne ko mili casper ke liye .christi ka alex ko chidhana bhi majedar tha .
sab ne apne shakti istemal karke dekh li par nahar paar nahi kar paaye par aakhir me shefali ki buddhi ke badaulat ek dusre ka saath diya aur paar kar gaye .suyash ne sahi kaha ki ekta me shakti hai .

Nice update....
Gaurav1969
Bahut hi gazab ki update he Raj_sharma Bhai,

Ekta ke bal par aakhirkar suyash and party ne is nahar ko paar kar liya..........

Christy ne Alex se shart jit kar ye sabit kar diya ki har jagah shaktiya kaam nahi aati he...........

Keep rocking Bro
SANJU ( V. R. )
Wow 😲 just wow*
Amazing update brother, ek baar phir se Shefali ne prove kiya hai ki kyun wo iss story ki sabse best character mein se ek hai.
No doubt yadi sath rahoge toh sankat ka samna achhe se kar paoge aur yahan bhi wahi ho raha hai.

iske liye aapko pay karna padega ..tab jaake ye adds rukegi.

Lets review Start
Shaffali ne Fir Dimag Chalaya Aur Ek aur Musibat ko Par Kar liya , Iss Problem ko Par kar Ju ek Sikh Diye Ki aage Kar Inhe Tilism Ko Todhna Hai To aise Hi mil kar Todh Sakte .

Then Ye Jhopi shayad Ye Udhne wali Jhopdi hi Hogi Dekhe Kya Rahashya milega Isme .

Then cristi aur Alex Ka Masti Bhara Andaz fir Dil Ko Bhagaya , mast comedy situation Create Ki .

Mein To wapis Tauffik Aur Jenith ki Doriya Kam Kaise Hogi Ye Dekhna chahata Hu .Malum To padh gaya Ki ye Dono ek Dusre ke Liye Bane.

Overall bhai shandaar Update Thaa

Waiting for more .

Gajab update
kamdev99008
ये प
ये पोसायडन पर्वत के पास वाले नहर को पार करना काफी मुश्किल था लेकीन शेफाली की सुजबुझ और एकता की शक्ति ने असंभव को भी संभव बना दिया और सभी लोक नहर पार कर गये
अब ये सामने सुनहरी झोपडी का क्या रहस्य हैं
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
अगले रोमांचकारी धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा

Update posted friends :declare:
 

dhparikh

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सुनहरी ढाल:
(15 जनवरी 2002, मंगलवार, 11:10, ट्रांस अंटार्कटिक माउन्टेन, अंटार्कटिका)

शलाका अपने कमरे में बैठी सुयश के बारे में सोच रही थी।उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था, कि इतने दिन बाद वह आर्यन से अच्छे से मिली।

उसकी यह खुशी दो तरफा थी।

एक तो वह अब जान गयी थी कि तिलिस्मा टूटने वाला है। यानि कि जिस तिलिस्मा के टूटने का, उसके पिछले 8 पूर्वज सपना देखते हुए गुजर गये, वह सपना अब उसकी आँखों में सामने पूरा होना था और दूसरी बात सुयश के साथ दोबारा से रहते हुए एक साधारण जिंदगी व्यतीत करना।

2 दिन से काम की अधिकता होने की वजह से वह सुयश की लिखी ‘वेदांत रहस्यम्’ को अभी नहीं पढ़ पायी थी, पर आज वह इस किताब को जरुर पढ़कर खत्म करना चाहती थी।

तभी उसे जेम्स और विल्मर का ख्याल आया। ज्यादा काम के चक्कर में, वह उन दोनेां को तो भूल ही गई थी।

शलाका ने पहले जेम्स और विल्मर से मिलना उचित समझा।

यह सोच उसने अपने त्रिशूल को हवा में लहराकर द्वार बनाया और जा पहुंची, जेम्स और विल्मर के कमरे में।

जेम्स और विल्मर बिस्तर पर बैठे आपस में कोई गेम खेल रहे थे। शलाका को देख वह खुश होकर उठकर खड़े हो गये।

विल्मर को अब अपनी आजादी का अहसास होने लगा था।

“कैसे हो तुम दोनों?” शलाका ने मुस्कुराते हुए पूछा।

“बाकी सब तो ठीक है, पर बहुत ज्यादा बोरियत हो रही है।” विल्मर ने कहा।

“अब मैं जाकर काफी हद तक फ्री हो गयी हूं, तो मैं अब चाहती हूं कि तुम दोनों बताओ कि तुम्हें अब क्या चाहिये?” शलाका ने गहरी साँस लेते हुए कहा।

विल्मर तो जैसे इसी शब्द का बेसब्री से इंतजार कर रहा था।

“क्या हम जो भी मागेंगे, आप उसे दोगी?” विल्मर ने लालच भरी निगाहों से पूछा।

“हां-हां दूंगी, पर बताओ तो सही कि तुम्हें क्या चाहिये?” शलाका ने विल्मर को किसी बच्चे की तरह मचलते देख कह दिया।

“मैं जब से यहां आया था मैंने 2 ही कीमती चीजें यहां देखीं थीं। एक आपका वह त्रिशूल और दूसरा वह सुनहरी ढाल, जिससे द्वार खोलकर हम इस दुनिया में आये थे। मुझे पता है कि त्रिशूल आपसे मांगना व्यर्थ है, वह आपकी शक्ति से ही चल सकता है। इसलिये मैं अपने लिये आपसे वह सुनहरी ढाल मांगता हूं।” विल्मर ने कहा।

शलाका यह सुनकर सोच में पड़ गयी।

“वैसे क्या तुम्हें ये पता भी है कि वह ढाल क्या है?” शलाका ने गम्भीरता से कहा।

“मुझे नहीं पता, पर मुझे ये पता है कि वह बहुत कीमती ढाल है।” विल्मर ने कहा।

“क्या तुम कुछ और नहीं मांग सकते?” शलाका ने उदास होते हुए पूछा।

“नहीं...मुझे तो वह ढाल ही चाहिये।” विल्मर ने किसी नन्हें बच्चे की तरह जिद करते हुए कहा।

“ठीक है, मैं तुम्हें वह ढाल दे दूंगी, लेकिन बदले में मुझे भी तुमसे कुछ चाहिये होगा।” शलाका ने छोटी सी शर्त रखते हुए कहा।

“पर मेरे पास ऐसा क्या है, जिसकी आपको जरुरत है?” विल्मर के शब्द आश्चर्य से भर उठे।

“मुझे बदले में तुम्हारी यहां की पूरी स्मृतियां चाहिये।” शलाका ने गम्भीर स्वर में कहा- “देखो विल्मर, मैं तुम्हें यहां से जाने दूंगी तो कोई गारंटी नहीं है कि तुम यहां के बारे में किसी को नहीं बताओगे और अगर गलती से भी तुमने यहां के बारे में किसी को बता दिया तो भविष्य के मेरे सारे प्लान मुश्किल में पड़ जायेंगे।

"इसलिये मैं तुम्हें वह ढाल तो दे दूंगी, मगर उसके बदले तुम्हारी यहां की सारी स्मृतियां छीन लूंगी। यानि कि यहां से जाने के बाद, तुम्हें अपनी पूरी जिंदगी की हर बात याद होगी, सिवाय यहां की यादों के। यहां के और मेरे बारे में तुम्हें कुछ भी याद नहीं रह जायेगा। अगर तुम्हें यह मंजूर है तो बताओ।”

“मुझे मंजूर है।” विल्मर ने सोचने में एक पल भी नहीं लगाया।

“ठीक है।” यह कहकर अब शलाका जेम्स की ओर मुड़ गयी- “और तुम्हें क्या चाहिये जेम्स?”

“मैने अपनी पूरी जिंदगी में जितना कुछ नहीं देखा था, वह सब यहां आकर देख लिया।” जेम्स ने कहा- “इसलिये मैं आपसे मांगने की जगह कुछ पूछना चाहता हूं?”

जेम्स की बात सुन विल्मर और शलाका दोनों ही आश्चर्य से भर उठे।

“हां पूछो जेम्स! क्या पूछना चाहते हो?” शलाका ने जेम्स को आज्ञा देते हुए कहा।

“क्या मैं आपके साथ हमेशा-हमेशा के लिये यहां रह सकता हूं।” जेम्स के शब्द आशाओं के बिल्कुल विपरीत थे।

“तुम यहां मेरे पास क्यों रहना चाहते हो जेम्स? पहले तुम्हें मुझे इसका कारण बताना होगा।” शलाका ने कहा।

“मेरा बाहर की दुनिया में कोई नहीं है। मेरे माँ-बाप बचपन में ही एक दुर्घटना का शिकार हो गये थे। मैं जब छोटा था, तो सभी मुझे बहुत परेशान करते थे, तब मैं रात भर यही सोचता था कि काश मेरे पास भी कोई ऐसी शक्ति होती, जिसके द्वारा मैं उन लोगों को मार सकता। मैं हमेशा सुपर हीरो के सपने देखता रहता था, जिसमें एक सुपर हीरो पूरी दुनिया को बचाता था। पर जैसे-जैसे मैं बड़ा होने लगा, मुझे यह पता चल गया कि इस दुनिया में असल में कोई सुपर हीरो नहीं है, यहां तक कि भगवान के भी अस्तित्व पर मुझे शक होने लगा।

"लेकिन जब मैं यहां से हिमालय पहुंचा और मैने बर्फ के नीचे से शिव मंदिर को प्रकट होते देखा, तो मुझे विश्वास हो गया कि इस धरती पर ईश्वर है, बस वह स्वयं लोगों के सामने नहीं आता, वह अपनी शक्तियों को कुछ अच्छे लोगों को बांटकर उनसे हमारी धरती की रक्षा करवाता रहता है। मैंने वहां महा-शक्तिशाली हनुका को देखा, मैंने वहां अलौकिक शक्तियों वाले रुद्राक्ष और शिवन्या को देखा। तभी से मेरा मन आपके पास ही रहने को कर रहा है।

"आप मुझे जो भी काम देंगी, मैं बिना कुछ भी पूछे, आपका दिया काम पूरा करुंगा। मुझे मनुष्य के अंदर की शक्ति का अहसास हो गया है, अब मैं भला इन छोटे-मोटे हीरे-जवाहरातों को लेकर क्या करुंगा। इसलिये आप विल्मर को यहां से जाने दीजिये, पर मुझे अपनी सेवा में यहां रख लीजिये। वैसे भी आपको इतनी बड़ी पृथ्वी संभालने के लिये किसी इंसान की जरुरत तो होगी ही, फिर वो मैं क्यों नहीं हो सकता?” इतना कहकर जेम्स शांत हो गया।

“क्या तू सच में मेरे साथ अपनी दुनिया में नहीं जाना चाहता?” विल्मर ने कहा।

“मेरे लिये अब यही मेरी दुनिया है। तुम जाओ विल्मर... मुझे यहीं रहना है।” जेम्स ने कहा।

शलाका बहुत ध्यान से जेम्स की बातें सुन रही थी। जेम्स की बातों से शलाका को उसके भाव बहुत शुद्ध और निष्कपट लग रहे थे।

“मुझे तुम्हारे विचार सुनकर बहुत अच्छा लगा जेम्स। मैं तुम्हें अपने पास रखने को तैयार हूं, पर एक शर्त है, आगे से तुम मुझे शलाका कहकर बुलाओगे, देवी या देवी शलाका कहकर नहीं।” शलाका ने मुस्कुराकर कहा।

“जी देवी....उप्स...मेरा मतलब है जी शलाका।” जेम्स ने हड़बड़ा कर अपनी बात सुधारते हुए कहा।

“तो क्या अब तुम यहां से जाने को तैयार हो विल्मर?” शलाका ने पूछा।

“जी देवी।” यह कहकर विल्मर ने जेम्स को गले लगाते हुए कहा- “तुम्हारी बहुत याद आयेगी। तुम बहुत अच्छे इंसान हो।”

शलाका ने अब अपना हाथ ऊपर हवा में लहराया, उसके हाथ में अब वही सुनहरी ढाल दिखने लगी थी, जिसे जेम्स और विल्मर ने सबसे पहले देखा था।

शलाका ने वह ढाल विल्मर के हाथ में पकड़ायी और विल्मर के सिर से अपना त्रिशूल सटा दिया।

त्रिशूल से नीली रोशनी निकलकर विल्मर के दिमाग में समा गई।

कुछ देर बाद विल्मर का शरीर वहां से गायब हो गया। विल्मर को जब होश आया तो उसने स्वयं को अंटार्कटिका की बर्फ पर गिरा पड़ा पाया। सुनहरी ढाल उसके हाथ में थी।

“अरे मैं बर्फ पर क्यों गिरा पड़ा हूं और जेम्स कहां गया। हम तो इस जगह पर किसी सिग्नल का पीछा करते हुए आये थे।....और यह मेरे पास इतनी बहुमूल्य सुनहरी ढाल कहां से आयी?”

विल्मर को कुछ याद नहीं आ रहा था, इसलिये उसने ढाल को वहां पड़े अपने बड़े से बैग में डाला और अपने श्टेशन की ओर लौटने लगा।

दिव्यदृष्टि:
(15 जनवरी 2002, मंगलवार, 13:40, सीनोर राज्य, अराका द्वीप)

रोजर को आकृति की कैद में बंद आज पूरे 10 दिन बीत गये थे।

आज तक आकृति उससे काम कराने के बाद सिर्फ एक बार मिलने आयी थी और वह भी सिर्फ 10 मिनट के लिये।

आकृति रोजर को ना तो कमरे से निकलने दे रही थी और ना ही यह बता रही थी कि उसने उसे क्यों बंद करके रखा है।

रोजर कमरे में बंद-बंद बिल्कुल पागलों के समान लगने लगा था, उसकी दाढ़ी और बाल भी काफी बढ़ गये थे।

रोजर को कभी-कभी बाहर वाले कमरे से कुछ आवाजें आती सुनाई देती थीं, लेकिन कमरे का दरवाजा बाहर से बंद होने की वजह से वह यह नहीं जान पाता था कि वह आवाजें किसकी हैं?

पिछले एक दिन से तो, उसे अपने कमरे के बगल वाले कमरे से, किसी के जोर-जोर से कुछ पटकने की अजीब सी आवाजें भी सुनाई दे रहीं थीं।

रोजर ने कई बार काँच के खाली गिलास को उल्टा करके, दीवार से लगा कर के उन आवाजों को सुनने की कोशिश की थी, पर ना जाने यहां कि दीवारें किस चीज से निर्मित थीं, कि रोजर को कभी साफ आवाज सुनाई ही नहीं देती थी।

आज भी रोजर अपने बिस्तर पर लेटा, आकृति को मन ही मन गालियां दे रहा था कि तभी एक खटके की आवाज से वह बिस्तर से उठकर बैठ गया।

वह आवाज दरवाजे की ओर से आयी थी। रोजर की निगाह दरवाजे पर जाकर टिक गयी।

तभी उसी एक धीमी आवाज के साथ अपने कमरे का दरवाजा खुलता हुआ दिखाई दिया।

यह देख रोजर भागकर दरवाजे के पास आ गया। दरवाजे के बाहर रोजर को एक स्त्री खड़ी दिखाई दी।
वह सनूरा थी, सीनोर राज्य की सेनापति और लुफासा की राजदार।

सनूरा ने मुंह पर उंगली रखकर रोजर को चुप रहने का इशारा किया। रोजर दबे पाँव कमरे से बाहर आ गया।

सनूरा ने रोजर को अपने पीछे आने का इशारा किया। रोजर सनूरा के पीछे-पीछे चल पड़ा।

रोजर सनूरा को पहचानता नहीं था, लेकिन इस समय उसे सनूरा किसी देवदूत जैसी प्रतीत हो रही थी, जो उसे इस नर्क रुपी कैद से आजाद करने आयी थी।

सनूरा रोजर के कमरे से निकलकर एक दूसरे कमरे में दाखिल हो गई।

“आकृति इस समय यहां नहीं है, इसलिये उसके आने के पहले चुपचाप मेरे साथ निकल चलो।” सनूरा ने धीमी आवाज में कहा।

“पर तुम हो कौन? कम से कम ये तो बता दो।” रोजर ने सनूरा से पूछा।

“मेरा नाम सनूरा है, मैं इस सीनोर राज्य की सेनापति हूं। मैंने तुम्हें कुछ दिन पहले यहां पर कैद देख लिया था, तबसे मैं आकृति के यहां से कहीं जाने का इंतजार कर रही थी। 2 दिन पहले भी वह कहीं गई थी, पर उस समय मुझे मौका नहीं मिला। अभी फिलहाल यहां से निकलो, बाकी की चीजें मैं तुम्हें किसी दूसरे सुरक्षित स्थान पर समझा दूंगी।”सनूरा ने फुसफुसा कर कहा।

“क्या तुम राजकुमार लुफासा के साथ रहती हो?” रोजर ने पूछा।

“तुम्हें राजकुमार लुफासा के बारे में कैसे पता?” सनूरा ने आश्चर्य से रोजर को देखते हुए कहा।

“मुझे भी इस द्वीप के बहुत से राज पता हैं।” रोजर ने धीमे स्वर में कहा।

“मुझे लुफासा ने ही तुम्हें यहां से निकालने के लिये भेजा है। अभी ज्यादा सवाल-जवाब करके समय मत खराब करो और तुरंत निकलो यहां से।” सनूरा ने रोजर को घूरते हुए कहा।

“मैं तुम्हारें साथ चलने को तैयार हूं, पर अगर एक मिनट का समय दो, तो मैं किसी और कैदी को भी यहां से छुड़ा लूं, जो कि मेरी ही तरह मेरे बगल वाले कमरे में बंद है।”

रोजर के शब्द सुन सनूरा आश्चर्य से भर उठी- “क्या यहां कोई और भी बंद है?”

“हां...मैंने अपने बगल वाले कमरे से उसकी आवाज सुनी है।” यह कहकर रोजर दबे पाँव सनूरा को लेकर एक दूसरे कमरे के दरवाजे के पास पहुंच गया।

उस कमरे का द्वार भी बाहर से बंद था। रोजर ने धीरे से उस कमरे का द्वार खोलकर अंदर की ओर झांका।

उसे कमरे में पलंग के पीछे किसी का साया हिलता हुआ दिखाई दिया।

“देखो, तुम जो भी हो...अगर इस कैद से निकलना चाहते हो, तो हमारे साथ यहां से चलो। अभी आकृति यहां नहीं है।” रोजर ने धीमी आवाज में कहा।

रोजर के यह बोलते ही सुनहरी पोशाक पहने एक खूबसूरत सी लड़की बेड के पीछे से निकलकर सामने आ गई।

उस लड़की के बाल भी सुनहरे थे। रोजर उस लड़की की खूबसूरती में ही खो गया। वह लगातार बस उस लड़की को ही देख रहा था।

“मेरा नाम मेलाइट है, आकृति ने मुझे यहां 2 दिन से बंद करके रखा है।” मेलाइट ने कहा।

“चलो अब जल्दी निकलो यहां से।” सनूरा ने रोजर को खींचते हुए कहा।

रोजर ने मेलाइट से बिना पूछे उसका हाथ थामा और उसे लेकर सनूरा के पीछे भागा।

रोजर के इस प्रकार देखने और हाथ पकड़ने से मेलाइट को थोड़ा अलग महसूस हुआ। आज तक उसके साथ ऐसा किसी ने भी नहीं किया था।

तीनों तेजी से मुख्य कमरे से निकलकर आकृति के कक्ष की ओर भागे, क्यों कि उधर से ही होकर गुफाओं का रास्ता हर ओर जाता था।

रोजर भी पहली बार इसी रास्ते से होकर आकृति के कक्ष में आया था। तीनों तेजी से आकृति के कक्ष में प्रवेश कर गये।

पर इससे पहले कि वह गुफाओं वाले रास्तें की ओर जा पाते, उन्हें एक और लड़की की आवाज सुनाई दी- “अगर सब लोग भाग ही रहे हो, तो मुझे भी लेते चलो।”

तीनों वह आवाज सुन आश्चर्य से रुक गये, पर उन्हें कोई आसपास दिखाई नहीं दिया।

“कौन हो तुम? और हमें दिखाई क्यों नहीं दे रही?” सनूरा ने कहा।

“मैं यहां हूं, कक्ष में मौजूद उस शीशे के अंदर।” वह रहस्यमयी आवाज फिर सुनाई दी।

सभी की नजर कक्ष में मौजूद एक आदमकद शीशे पर गई। वह आवाज उसी से आती प्रतीत हो रही थी।

“तुम शीशे में कैसे बंद हुई?” रोजर ने पूछा।

“मेरा नाम सुर्वया है, मुझे इस शीशे में आकृति ने ही बंद करके रखा है, अगर तुम लोग इस शीशे को तोड़ दोगे, तो मैं भी आजाद हो जाऊंगी।”

रोजर ने सुर्वया की बात सुन सनूरा की ओर देखा। सनूरा ने रोजर को आँखों से इशारा कर उसे शीशे को तोड़ने का आदेश दे दिया।

रोजर ने वहीं पास में दीवार पर टंगी, एक सुनहरी तलवार को उठाकर शीशे पर मार दिया।
‘छनाक’ की आवाज के साथ शीशा टूटकर बिखर गया।

उस शीशे के टूटते ही उसमें से एक धुंए की लकीर निकली, जो कि कुछ ही देर में एक सुंदर लड़की में परिवर्तित हो गई।

सनूरा के पास, अब किसी से उसके बारे में पूछने का भी समय नहीं बचा था। वह सभी को अपने पीछे आने का इशारा करते हुए, तेजी से गुफा की ओर बढ़ गयी।



जारी रहेगा______✍️
Nice update....
 
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