ak143
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Nice update#142.
चैपटर-14
सुनहरी ढाल: (15 जनवरी 2002, मंगलवार, 11:10, ट्रांस अंटार्कटिक माउन्टेन, अंटार्कटिका)
शलाका अपने कमरे में बैठी सुयश के बारे में सोच रही थी।उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था, कि इतने दिन बाद वह आर्यन से अच्छे से मिली।
उसकी यह खुशी दो तरफा थी।
एक तो वह अब जान गयी थी कि तिलिस्मा टूटने वाला है। यानि कि जिस तिलिस्मा के टूटने का, उसके पिछले 8 पूर्वज सपना देखते हुए गुजर गये, वह सपना अब उसकी आँखों में सामने पूरा होना था और दूसरी बात सुयश के साथ दोबारा से रहते हुए एक साधारण जिंदगी व्यतीत करना।
2 दिन से काम की अधिकता होने की वजह से वह सुयश की लिखी ‘वेदांत रहस्यम्’ को अभी नहीं पढ़ पायी थी, पर आज वह इस किताब को जरुर पढ़कर खत्म करना चाहती थी।
तभी उसे जेम्स और विल्मर का ख्याल आया। ज्यादा काम के चक्कर में, वह उन दोनेां को तो भूल ही गई थी।
शलाका ने पहले जेम्स और विल्मर से मिलना उचित समझा।
यह सोच उसने अपने त्रिशूल को हवा में लहराकर द्वार बनाया और जा पहुंची, जेम्स और विल्मर के कमरे में।
जेम्स और विल्मर बिस्तर पर बैठे आपस में कोई गेम खेल रहे थे। शलाका को देख वह खुश होकर उठकर खड़े हो गये।
विल्मर को अब अपनी आजादी का अहसास होने लगा था।
“कैसे हो तुम दोनों?” शलाका ने मुस्कुराते हुए पूछा।
“बाकी सब तो ठीक है, पर बहुत ज्यादा बोरियत हो रही है।” विल्मर ने कहा।
“अब मैं जाकर काफी हद तक फ्री हो गयी हूं, तो मैं अब चाहती हूं कि तुम दोनों बताओ कि तुम्हें अब क्या चाहिये?” शलाका ने गहरी साँस लेते हुए कहा।
विल्मर तो जैसे इसी शब्द का बेसब्री से इंतजार कर रहा था।
“क्या हम जो भी मागेंगे, आप उसे दोगी?” विल्मर ने लालच भरी निगाहों से पूछा।
“हां-हां दूंगी, पर बताओ तो सही कि तुम्हें क्या चाहिये?” शलाका ने विल्मर को किसी बच्चे की तरह मचलते देख कह दिया।
“मैं जब से यहां आया था मैंने 2 ही कीमती चीजें यहां देखीं थीं। एक आपका वह त्रिशूल और दूसरा वह सुनहरी ढाल, जिससे द्वार खोलकर हम इस दुनिया में आये थे। मुझे पता है कि त्रिशूल आपसे मांगना व्यर्थ है, वह आपकी शक्ति से ही चल सकता है। इसलिये मैं अपने लिये आपसे वह सुनहरी ढाल मांगता हूं।” विल्मर ने कहा।
शलाका यह सुनकर सोच में पड़ गयी।
“वैसे क्या तुम्हें ये पता भी है कि वह ढाल क्या है?” शलाका ने गम्भीरता से कहा।
“मुझे नहीं पता, पर मुझे ये पता है कि वह बहुत कीमती ढाल है।” विल्मर ने कहा।
“क्या तुम कुछ और नहीं मांग सकते?” शलाका ने उदास होते हुए पूछा।
“नहीं...मुझे तो वह ढाल ही चाहिये।” विल्मर ने किसी नन्हें बच्चे की तरह जिद करते हुए कहा।
“ठीक है, मैं तुम्हें वह ढाल दे दूंगी, लेकिन बदले में मुझे भी तुमसे कुछ चाहिये होगा।” शलाका ने छोटी सी शर्त रखते हुए कहा।
“पर मेरे पास ऐसा क्या है, जिसकी आपको जरुरत है?” विल्मर के शब्द आश्चर्य से भर उठे।
“मुझे बदले में तुम्हारी यहां की पूरी स्मृतियां चाहिये।” शलाका ने गम्भीर स्वर में कहा- “देखो विल्मर, मैं तुम्हें यहां से जाने दूंगी तो कोई गारंटी नहीं है कि तुम यहां के बारे में किसी को नहीं बताओगे और अगर गलती से भी तुमने यहां के बारे में किसी को बता दिया तो भविष्य के मेरे सारे प्लान मुश्किल में पड़ जायेंगे।
"इसलिये मैं तुम्हें वह ढाल तो दे दूंगी, मगर उसके बदले तुम्हारी यहां की सारी स्मृतियां छीन लूंगी। यानि कि यहां से जाने के बाद, तुम्हें अपनी पूरी जिंदगी की हर बात याद होगी, सिवाय यहां की यादों के। यहां के और मेरे बारे में तुम्हें कुछ भी याद नहीं रह जायेगा। अगर तुम्हें यह मंजूर है तो बताओ।”
“मुझे मंजूर है।” विल्मर ने सोचने में एक पल भी नहीं लगाया।
“ठीक है।” यह कहकर अब शलाका जेम्स की ओर मुड़ गयी- “और तुम्हें क्या चाहिये जेम्स?”
“मैने अपनी पूरी जिंदगी में जितना कुछ नहीं देखा था, वह सब यहां आकर देख लिया।” जेम्स ने कहा- “इसलिये मैं आपसे मांगने की जगह कुछ पूछना चाहता हूं?”
जेम्स की बात सुन विल्मर और शलाका दोनों ही आश्चर्य से भर उठे।
“हां पूछो जेम्स! क्या पूछना चाहते हो?” शलाका ने जेम्स को आज्ञा देते हुए कहा।
“क्या मैं आपके साथ हमेशा-हमेशा के लिये यहां रह सकता हूं।” जेम्स के शब्द आशाओं के बिल्कुल विपरीत थे।
“तुम यहां मेरे पास क्यों रहना चाहते हो जेम्स? पहले तुम्हें मुझे इसका कारण बताना होगा।” शलाका ने कहा।
“मेरा बाहर की दुनिया में कोई नहीं है। मेरे माँ-बाप बचपन में ही एक दुर्घटना का शिकार हो गये थे। मैं जब छोटा था, तो सभी मुझे बहुत परेशान करते थे, तब मैं रात भर यही सोचता था कि काश मेरे पास भी कोई ऐसी शक्ति होती, जिसके द्वारा मैं उन लोगों को मार सकता। मैं हमेशा सुपर हीरो के सपने देखता रहता था, जिसमें एक सुपर हीरो पूरी दुनिया को बचाता था। पर जैसे-जैसे मैं बड़ा होने लगा, मुझे यह पता चल गया कि इस दुनिया में असल में कोई सुपर हीरो नहीं है, यहां तक कि भगवान के भी अस्तित्व पर मुझे शक होने लगा।
"लेकिन जब मैं यहां से हिमालय पहुंचा और मैने बर्फ के नीचे से शिव मंदिर को प्रकट होते देखा, तो मुझे विश्वास हो गया कि इस धरती पर ईश्वर है, बस वह स्वयं लोगों के सामने नहीं आता, वह अपनी शक्तियों को कुछ अच्छे लोगों को बांटकर उनसे हमारी धरती की रक्षा करवाता रहता है। मैंने वहां महा-शक्तिशाली हनुका को देखा, मैंने वहां अलौकिक शक्तियों वाले रुद्राक्ष और शिवन्या को देखा। तभी से मेरा मन आपके पास ही रहने को कर रहा है।
"आप मुझे जो भी काम देंगी, मैं बिना कुछ भी पूछे, आपका दिया काम पूरा करुंगा। मुझे मनुष्य के अंदर की शक्ति का अहसास हो गया है, अब मैं भला इन छोटे-मोटे हीरे-जवाहरातों को लेकर क्या करुंगा। इसलिये आप विल्मर को यहां से जाने दीजिये, पर मुझे अपनी सेवा में यहां रख लीजिये। वैसे भी आपको इतनी बड़ी पृथ्वी संभालने के लिये किसी इंसान की जरुरत तो होगी ही, फिर वो मैं क्यों नहीं हो सकता?” इतना कहकर जेम्स शांत हो गया।
“क्या तू सच में मेरे साथ अपनी दुनिया में नहीं जाना चाहता?” विल्मर ने कहा।
“मेरे लिये अब यही मेरी दुनिया है। तुम जाओ विल्मर... मुझे यहीं रहना है।” जेम्स ने कहा।
शलाका बहुत ध्यान से जेम्स की बातें सुन रही थी। जेम्स की बातों से शलाका को उसके भाव बहुत शुद्ध और निष्कपट लग रहे थे।
“मुझे तुम्हारे विचार सुनकर बहुत अच्छा लगा जेम्स। मैं तुम्हें अपने पास रखने को तैयार हूं, पर एक शर्त है, आगे से तुम मुझे शलाका कहकर बुलाओगे, देवी या देवी शलाका कहकर नहीं।” शलाका ने मुस्कुराकर कहा।
“जी देवी....उप्स...मेरा मतलब है जी शलाका।” जेम्स ने हड़बड़ा कर अपनी बात सुधारते हुए कहा।
“तो क्या अब तुम यहां से जाने को तैयार हो विल्मर?” शलाका ने पूछा।
“जी देवी।” यह कहकर विल्मर ने जेम्स को गले लगाते हुए कहा- “तुम्हारी बहुत याद आयेगी। तुम बहुत अच्छे इंसान हो।”
शलाका ने अब अपना हाथ ऊपर हवा में लहराया, उसके हाथ में अब वही सुनहरी ढाल दिखने लगी थी, जिसे जेम्स और विल्मर ने सबसे पहले देखा था।
शलाका ने वह ढाल विल्मर के हाथ में पकड़ायी और विल्मर के सिर से अपना त्रिशूल सटा दिया।
त्रिशूल से नीली रोशनी निकलकर विल्मर के दिमाग में समा गई।
कुछ देर बाद विल्मर का शरीर वहां से गायब हो गया। विल्मर को जब होश आया तो उसने स्वयं को अंटार्कटिका की बर्फ पर गिरा पड़ा पाया। सुनहरी ढाल उसके हाथ में थी।
“अरे मैं बर्फ पर क्यों गिरा पड़ा हूं और जेम्स कहां गया। हम तो इस जगह पर किसी सिग्नल का पीछा करते हुए आये थे।....और यह मेरे पास इतनी बहुमूल्य सुनहरी ढाल कहां से आयी?”
विल्मर को कुछ याद नहीं आ रहा था, इसलिये उसने ढाल को वहां पड़े अपने बड़े से बैग में डाला और अपने श्टेशन की ओर लौटने लगा।
दिव्यदृष्टि: (15 जनवरी 2002, मंगलवार, 13:40, सीनोर राज्य, अराका द्वीप)
रोजर को आकृति की कैद में बंद आज पूरे 10 दिन बीत गये थे।
आज तक आकृति उससे काम कराने के बाद सिर्फ एक बार मिलने आयी थी और वह भी सिर्फ 10 मिनट के लिये।
आकृति रोजर को ना तो कमरे से निकलने दे रही थी और ना ही यह बता रही थी कि उसने उसे क्यों बंद करके रखा है।
रोजर कमरे में बंद-बंद बिल्कुल पागलों के समान लगने लगा था, उसकी दाढ़ी और बाल भी काफी बढ़ गये थे।
रोजर को कभी-कभी बाहर वाले कमरे से कुछ आवाजें आती सुनाई देती थीं, लेकिन कमरे का दरवाजा बाहर से बंद होने की वजह से वह यह नहीं जान पाता था कि वह आवाजें किसकी हैं?
पिछले एक दिन से तो, उसे अपने कमरे के बगल वाले कमरे से, किसी के जोर-जोर से कुछ पटकने की अजीब सी आवाजें भी सुनाई दे रहीं थीं।
रोजर ने कई बार काँच के खाली गिलास को उल्टा करके, दीवार से लगा कर के उन आवाजों को सुनने की कोशिश की थी, पर ना जाने यहां कि दीवारें किस चीज से निर्मित थीं, कि रोजर को कभी साफ आवाज सुनाई ही नहीं देती थी।
आज भी रोजर अपने बिस्तर पर लेटा, आकृति को मन ही मन गालियां दे रहा था कि तभी एक खटके की आवाज से वह बिस्तर से उठकर बैठ गया।
वह आवाज दरवाजे की ओर से आयी थी। रोजर की निगाह दरवाजे पर जाकर टिक गयी।
तभी उसी एक धीमी आवाज के साथ अपने कमरे का दरवाजा खुलता हुआ दिखाई दिया।
यह देख रोजर भागकर दरवाजे के पास आ गया। दरवाजे के बाहर रोजर को एक स्त्री खड़ी दिखाई दी।
वह सनूरा थी, सीनोर राज्य की सेनापति और लुफासा की राजदार।
सनूरा ने मुंह पर उंगली रखकर रोजर को चुप रहने का इशारा किया। रोजर दबे पाँव कमरे से बाहर आ गया।
सनूरा ने रोजर को अपने पीछे आने का इशारा किया। रोजर सनूरा के पीछे-पीछे चल पड़ा।
रोजर सनूरा को पहचानता नहीं था, लेकिन इस समय उसे सनूरा किसी देवदूत जैसी प्रतीत हो रही थी, जो उसे इस नर्क रुपी कैद से आजाद करने आयी थी।
सनूरा रोजर के कमरे से निकलकर एक दूसरे कमरे में दाखिल हो गई।
“आकृति इस समय यहां नहीं है, इसलिये उसके आने के पहले चुपचाप मेरे साथ निकल चलो।” सनूरा ने धीमी आवाज में कहा।
“पर तुम हो कौन? कम से कम ये तो बता दो।” रोजर ने सनूरा से पूछा।
“मेरा नाम सनूरा है, मैं इस सीनोर राज्य की सेनापति हूं। मैंने तुम्हें कुछ दिन पहले यहां पर कैद देख लिया था, तबसे मैं आकृति के यहां से कहीं जाने का इंतजार कर रही थी। 2 दिन पहले भी वह कहीं गई थी, पर उस समय मुझे मौका नहीं मिला। अभी फिलहाल यहां से निकलो, बाकी की चीजें मैं तुम्हें किसी दूसरे सुरक्षित स्थान पर समझा दूंगी।”सनूरा ने फुसफुसा कर कहा।
“क्या तुम राजकुमार लुफासा के साथ रहती हो?” रोजर ने पूछा।
“तुम्हें राजकुमार लुफासा के बारे में कैसे पता?” सनूरा ने आश्चर्य से रोजर को देखते हुए कहा।
“मुझे भी इस द्वीप के बहुत से राज पता हैं।” रोजर ने धीमे स्वर में कहा।
“मुझे लुफासा ने ही तुम्हें यहां से निकालने के लिये भेजा है। अभी ज्यादा सवाल-जवाब करके समय मत खराब करो और तुरंत निकलो यहां से।” सनूरा ने रोजर को घूरते हुए कहा।
“मैं तुम्हारें साथ चलने को तैयार हूं, पर अगर एक मिनट का समय दो, तो मैं किसी और कैदी को भी यहां से छुड़ा लूं, जो कि मेरी ही तरह मेरे बगल वाले कमरे में बंद है।”
रोजर के शब्द सुन सनूरा आश्चर्य से भर उठी- “क्या यहां कोई और भी बंद है?”
“हां...मैंने अपने बगल वाले कमरे से उसकी आवाज सुनी है।” यह कहकर रोजर दबे पाँव सनूरा को लेकर एक दूसरे कमरे के दरवाजे के पास पहुंच गया।
उस कमरे का द्वार भी बाहर से बंद था। रोजर ने धीरे से उस कमरे का द्वार खोलकर अंदर की ओर झांका।
उसे कमरे में पलंग के पीछे किसी का साया हिलता हुआ दिखाई दिया।
“देखो, तुम जो भी हो...अगर इस कैद से निकलना चाहते हो, तो हमारे साथ यहां से चलो। अभी आकृति यहां नहीं है।” रोजर ने धीमी आवाज में कहा।
रोजर के यह बोलते ही सुनहरी पोशाक पहने एक खूबसूरत सी लड़की बेड के पीछे से निकलकर सामने आ गई।
उस लड़की के बाल भी सुनहरे थे। रोजर उस लड़की की खूबसूरती में ही खो गया। वह लगातार बस उस लड़की को ही देख रहा था।
“मेरा नाम मेलाइट है, आकृति ने मुझे यहां 2 दिन से बंद करके रखा है।” मेलाइट ने कहा।
“चलो अब जल्दी निकलो यहां से।” सनूरा ने रोजर को खींचते हुए कहा।
रोजर ने मेलाइट से बिना पूछे उसका हाथ थामा और उसे लेकर सनूरा के पीछे भागा।
रोजर के इस प्रकार देखने और हाथ पकड़ने से मेलाइट को थोड़ा अलग महसूस हुआ। आज तक उसके साथ ऐसा किसी ने भी नहीं किया था।
तीनों तेजी से मुख्य कमरे से निकलकर आकृति के कक्ष की ओर भागे, क्यों कि उधर से ही होकर गुफाओं का रास्ता हर ओर जाता था।
रोजर भी पहली बार इसी रास्ते से होकर आकृति के कक्ष में आया था। तीनों तेजी से आकृति के कक्ष में प्रवेश कर गये।
पर इससे पहले कि वह गुफाओं वाले रास्तें की ओर जा पाते, उन्हें एक और लड़की की आवाज सुनाई दी- “अगर सब लोग भाग ही रहे हो, तो मुझे भी लेते चलो।”
तीनों वह आवाज सुन आश्चर्य से रुक गये, पर उन्हें कोई आसपास दिखाई नहीं दिया।
“कौन हो तुम? और हमें दिखाई क्यों नहीं दे रही?” सनूरा ने कहा।
“मैं यहां हूं, कक्ष में मौजूद उस शीशे के अंदर।” वह रहस्यमयी आवाज फिर सुनाई दी।
सभी की नजर कक्ष में मौजूद एक आदमकद शीशे पर गई। वह आवाज उसी से आती प्रतीत हो रही थी।
“तुम शीशे में कैसे बंद हुई?” रोजर ने पूछा।
“मेरा नाम सुर्वया है, मुझे इस शीशे में आकृति ने ही बंद करके रखा है, अगर तुम लोग इस शीशे को तोड़ दोगे, तो मैं भी आजाद हो जाऊंगी।”
रोजर ने सुर्वया की बात सुन सनूरा की ओर देखा। सनूरा ने रोजर को आँखों से इशारा कर उसे शीशे को तोड़ने का आदेश दे दिया।
रोजर ने वहीं पास में दीवार पर टंगी, एक सुनहरी तलवार को उठाकर शीशे पर मार दिया।
‘छनाक’ की आवाज के साथ शीशा टूटकर बिखर गया।
उस शीशे के टूटते ही उसमें से एक धुंए की लकीर निकली, जो कि कुछ ही देर में एक सुंदर लड़की में परिवर्तित हो गई।
सनूरा के पास, अब किसी से उसके बारे में पूछने का भी समय नहीं बचा था। वह सभी को अपने पीछे आने का इशारा करते हुए, तेजी से गुफा की ओर बढ़ गयी।
जारी रहेगा______![]()

