अब आगे
विनोद ने बिना कुछ बोले परम को थोडा बाजू हटा के उसकी चूत से लंड निकालवा दिया और सुंदरी को पीछे से दोनों स्तनों को पकड़ लिया और बिस्तर पर लेटा दिया। सुंदरी की दोनो टैंगो को फैला कर विनोद ने जीभ को क्लिट पर लगाया। विनोद को एक अजीब सी गंध और स्वाद लगा। उसने जोर-जोर से जीभ को चूत के चीरा पर रगड़ना शुरू किया और सुंदरी अपना चुतर उछालने लगी। विनोद की जीभ चूत पर चलते चलते चूत के छेड़ को पार कर के अंदर घुस गया और उसने पूरी जीभ चूत के अंदर पेल कर जीभ को चूत में घुमाने लगा। सुंदरी को बहुत मजा आ रहा था।
“अहह.. बेटेईईई… मजाआआ.. आ रहा है… आह..” सुंदरी मचल रही थी और खुद ही अपने हाथों से स्तनों को मसलने लगी। परम अपना तनतना हुआ लंड लेकर आगे बढ़ा और सुंदरी के होठों से लंड को लगा कर उसकी छातिया दबाने लगा। सुंदरी ने परम के लंड को अलग हटा दिया और कहा "तुम अभी बैठ कर मजा लो, बेटे अब उसने पैसा दिया है तो उसका हक पहले बनता है।" मैत्री और फनलव द्वारा अनुवादित रचना।
“विनोद जब तुम्हारा लंड टाइट हो जायेगा तो बोलना।”
विनोद ने दोनों हाथो से सुंदरी के टांगो को बिल्कुल दूर फैला दिया था और अपना पूरा मुँह सुदरी की मस्त चूत में घुसाने की कोशिश कर रहा था। उसका नाक तो अंदर चला ही गया था। विनोद को अब धीरे-धीरे चूत का स्वाद बहुत अच्छा लगने लगा।
विनोद सुंदरी की स्वादिष्ट चूत को चाटने और चूसने में बहुत तल्लीन था। ऐसा लग रहा था कि विनोद अपना पूरा सिर बुर में घुसा देगा लेकिन नाक और जीभ के अलावा और कुछ चूत के नीचे नहीं जा सका। सुंदरी को भी बहुत मजा आ रहा था, इस से पहले उसका बेटा परम और सेठजी ने सुंदरी का चूत चाटा था लेकिन जो मजा अभी आ रहा था वैसा मजा पहले कभी नहीं आया था। क्यों की विनोद उसकी चूत चाट रहा था की खोद रहा था! वह जितना अन्दर जा सकता था पहुच गया था। एक तरीके से उसकी सही चुदाई हो रही थी जहा लंड लटक रहा था और जिब उसकी चूत को खोद रही थी।मैत्री और फनलव द्वारा अनुवादित रचना।
सुंदरी खूब मजा ले कर मजा ले रही थी और कमर हिला-हिला कर विनोद को बता रही थी कि उस से खूब मजा आ रहा है। सुंदरी जोरो से 'आहह...' उह्ह्ह…कर रही थी, साथ ही कमर उछल-उछल कर विनोद के चूत चटाई का मजा मार रही थी, और विनोद को उकसा रही थी। सुंदरी को इतना मजा आया कि उसने दोनों हाथों से अपनी जांघों को चूम लिया। अब सुंदरी को अपनी चूत दिख रही थी। विनोद कभी क्लिट को चूस रहा था तो कभी पूरी जीभ को अंदर डाल कर घुमा रहा था। साथ ही चूत के अंदर उंगली भी घुसा कर सुदरी के तन और मन दोनों को चूत खुदाई के द्वारा खुद ही मजा लेने लगा और सुदरी को भी स्वर्ग दिखाने की कोशिश करने लगा।
विनोद का लंड टाइट होने लगा था लेकिन विनोद की चुदाई के बारे में भूलकर चूत खाने में लगा हुआ था। पहली बार विनोद इस तरह चूत का मज़ा ले रहा था। इधर परम का लंड पूरा टाइट था, वो अपनी माँ के पास आया और उसकी बोबले को मसलने लगा साथ ही अपना टाइट लंड को सुंदरी के बदन पर रगड़ने लगा। कभी लंड को सुंदरी की जाँघों से रगड़ता था तो कभी मस्त बोबले को ही लंड से दबा रहा था।
सुंदरी पूरी मस्त हो गई थी और वो भी लंड को चूसना चाह रही थी। अब सुदरी का मुह भी किसी लंड से चुदवाने को तड़प रहा था, उसका मुह खुला था की दोनों लंड से कोई एक भी उसे भर दे, “विनोद अपना लंड मेरे मुँह में डालो।” उसने जोर से कहा लेकिन विनोद अपनी स्थिति बदलना नहीं चाहता था। चूत को चोदा और चाटता रहा। सुंदरी ने दो-तीन बार तड़प कर लंड को मुँह में डालने के लिए कहा, लेकिन विनोद ने नहीं सुना। सुंदरी ने तड़प कर बेटे परम का लंड पकड़ा और मुँह में गपाक लिया और खूब जोर-जोर से चबाने और चूसने लगी।
विनोद का लंड पूरा टाइट हो चुका था। फिर भी उसने चूत का स्वाद लेना बंद नहीं किया। तभी परम ने जोर से कहा “साला चूत चाटते-चाटते तेरा पानी फिर निकल जाएगा और चोद नहीं पाएगा। फिर मुज से फ़रियाद ना करना और पैसे वापस ना माँगना। मैंने सुदरी को चोदने के लिए दे दिया अब तू उसकी चूत चाटे या उसका भोसड़ा बनाये सब तेरी मर्जी है।” मैत्री और फनलव द्वारा अनुवादित रचना।
सुंदरी ने भी परम की बात में हामी भरते हुए कहा: “बेटा विनोद, परम ठीक ही तो कहता है, मैंने मेरा माल दिखा दिया अब पैसे वसूलना तुम्हारा काम है बेटे, चोदो या चाटो! मेरे ख्याल से नंगे माल को चाट के चोदना ही बेहतर रहता है।”
इतना सुनना था कि विनोद ने सुंदरी की कमर को नीचे की ओर दबाया और कमर को जोरो से पकड़ कर लंड चूत में घुसेड़ दिया।
“अहह… धीरे” सुंदरी ने परम के लंड को मुँह से निकाला हुआ कहा।
विनोद ने परम को धक्का मार कर अलग किया और सुंदरी की चुची को दबाते हुए उसे चूमने लगा। सुंदरी को अपनी चूत का स्वाद मिला और वो भी विनोद को टांगो से जकड़ कर कमर उछाल कर विनोद के लंड के धक्के को चूत के गहराईया भरने लगी। सुंदरी को इतना मजा परम के साथ चुदाई में नहीं आया था ना ही सेठ की चुदाई में। सुंदरी ने चोदते हुए फैसला किया कि परम और सेठ का लंड तो खायेगी ही लेकिन विनोद से भी नियमित रूप से चुदवायेगी। विनोद खूब दम लगाकर चोद रहा था और सुंदरी भी पूरा साथ दे रही थी।
“आहहह… राजा… बहुत मजा…आआ… रहा है… मेरे माल (चूत) को चोदते रहो।
इस आह्वाहन से विनोद ने खुश होकर और जोर से धक्का मारा।
“आअहह………, धीरे….चूत फट जायेगी…” वह जानती थी की ऐसे टाइम कैसे बोला जाता है।
परम बिलकुल सट कर, खड़ा होकर अपनी माँ की चुदाई देख रहा था और साथ-साथ सुंदरी की चुचियो को मसल-मसल कर जवानी का मजा भी ले रहा था। चुदाई थमने का नाम नहीं ले रही थी, दोनों खूब जोश में एक दूसरे को बाहों में जकड़ कर चुदाई कर रहे थे।
चुदाई करते-करते सुंदरी थक गई और उसका पानी निकल गया। तुरत बाद विनोद ने भी चूत के अंदर ही पानी निकाल कर चूत को ठंडा कर दिया। सुंदरी ने विनोद के जांघों को अपनी जांघों से जकड़ रखा था और कुछ देर तक चुम्मा चाटी करने के बाद दोनों अलग हो गए।
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