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फागुन के दिन चार भाग ४१ पृष्ठ ४३५
फेलू दा
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क्या बात है. टारगेट तो बहोत शातिर है. DB ने जो कॉल ट्रेस करने वाली वान काम पर लगाई है. वह तो अब तक उसे भी चकमा दे ही रहा है. लास्ट दो घंटे के आलावा पिछले पंद्रह दीनो से कोई कॉल नहीं. हो सकता है की यह नम्बर भी बंद हो जाए.फागुन के दिन चार भाग ४०
सुलझायी पहेली रीत ने
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रीत ने मेरी पिटाई का काम टेम्पोरेरी तौर पे स्थगित करते हुए ये रहस्योद्घाटन किया की वो क्यों बेवकूफ है।
“ये देखिये गंगाजी…” वो बोली।
नक़्शे में नदी हम लोगों को भी दिख रही थी।
“तो फोन वाला आदमी अगर नाव पे हो तो इन सारी जगहों पे जो टाइम दिखाया गया है वो पहुँच सकता है हमें जगह देखकर लग रहा था लेकिन लोकेशन तो 100 मीटर के आसपास ही होगी…”रीत कुछ सोचते हुए बोली
“हाँ एकदम…” और फिर मैंने एक सवाल डी॰बी॰ से किया- “क्या आप लोगों ने फोन चेक करने वाली वैन तो नहीं चला रखी हैं…” मैंने पूछा।
“हाँ करीब 10 दिन से जब से दंगे की अफवाहें आनी शुरू हुई हैं, लेकिन तुम्हें कैसे पता चला? तीन गाड़ियां हैं, और 24 घंटे चल रही हैं…” डी॰बी॰ बोले।
“उनकी रेंज नदी तक है…” मैंने दूसरा सवाल पूछा।
“हाँ और नहीं। घाट और घाट के पास तक का इलाका कवर होगा लेकिन कोई नदी के बीच में या रामनगर साइड में होगा तो नहीं…” वो बोले।
“बस तो ये साफ है। कोई जरूरी नहीं है की उस आदमी को पता हो इन वान्स के बारे में। लेकिन वो कोई प्रोफेशनल है जो पूरी प्रीकाशन ले रहा है और इन फोन की लोकेशन के बारे में और ओनरशिप के बारे में ज्यादा पता नहीं चल पायेगा वो भी मैंने पता कर लिया है।इन दो घंटो के अलावा। इन नम्बरों का पन्द्रह दिनों में और कोई इश्तेमाल नहीं किया गया। ये सिम बहुत पुराने हैं और प्री पेड़ हैं, आशंका है किसी डेड आदमी के ये सिम होंगे और दो घंटो के अलावा सिवाय आज जब होस्टेज वाले टाइम, एक काल आई थी। उनकी लोकेशन भी नहीं पता चल रही है…”
मैंने पूरी इन्फोर्मेशन उनसे शेयर की।
अब डीबी चिंता में डूबे थे और उनकी निगाह रीत पे टिकी थी, शायद उम्मीद की एक किरण यहीं से आये
निगाहें तो मेरी भी रीत पे टिकी थी, उसके गोरे चिकने गाल, एकदम मक्खन जैसे, जिनका रस रंग लगाने के बहाने मेरे हाथों ने खुल के लुटा था, और जिस तरह रीत झुक के बैठी थी, उसके दोनों गोरे गोरे कपोत, टाइट कुर्ती से एकदम खुल के झाँक रहे थे, और उन बगुलों के पंखों पे जो मेरे हाथों ने लाल, नीले कर बैंगनी रंग की कॉकटेल लगाई थी, और उसी बहाने जम के मसला था, साफ़ साफ़ दिख रहे थे, ाकाहिर गुड्डी उसे दी कहती थी तो रिश्ता तो साली का ही हुआ, भले बड़ी साली हो,
और मेरी पापी निगाहें रीत ने पहचान ली, मुस्करायी और कस के टेबल के नीचे मेरे पैरों पर उसका पद प्रहार हुआ जबरदस्त
हल्की सी मेरी चीख निकली, पर डीबी ने इग्नोर कर दिया, उनकी निगाहें अभी भी रीत पर थीं।
डी बी परेशान है और रीत को भी मस्ती सुझ रही है. कही डी बी को कोई गलतफेमी ना हो जाए.मैं हूँ ना…”-- रीत
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डी॰बी॰ अब पूरी तरह चिंतित लग रहे थे।
फिर उन्होंने रुक रुक कर बोलना शुरू किया-
“तीन बातें हैं। पहली, तुम्हारे इन टेलीफोन नंबरों के अलावा, अगर कोई कनेक्शन मिल सकता था तो वो चुम्मन का था। लेकिन वो एस॰टी॰एफ॰ वालों के कब्जे मैं है। शायद ही वो चुम्मन से सीधे मिला हो। कट आउट इश्तेमाल किया होगा। या फिर फोन के जरिये…”
रीत ने मुझसे कान में पूछा- “कट आउट क्या? कोई बिजली का…”
“अरे नहीं यार। कोई बिचौलिया…” मैंने फुसफुसा के समझाया।
डी॰बी॰ बोल रहे थे- “दूसरी बात टाइम बहुत कम है तीन दिन बाद होली है। तीन दिन के अन्दर पता करना, न्यूट्रलाइज करना और सबसे बड़ी ये है की किसपे भरोसा करूँ किस पे नहीं…”
“मैं हूँ ना…” रीत हिम्मत से बोली।
डी॰बी॰ के चेहरे पे एक हल्की सी मुश्कान दौड़ गई- “वो तो है। बट। कुछ तो करना पड़ेगा ना…” वो बोले।
“एकदम…” रीत बोली।
लेकिन मैं बीच में कूदा-
“मेरी बात तो पूरी होने दो। इन दो नंबरों के और भी डिटेल पता चले हैं। पिछले 10 दिनों में इसी समय यानी 8-10 के बीच, इन्हीं लोकेशंस से। कोयम्बटूर, हैदराबाद, मुम्बई, वड़ोदरा और भटकल। लेकिन ज्यादातर फोन मुंबई वड़ोदरा और हैदराबाद के लिए हैं। जिन नंबरों को ये फोन किये गए थे वो टैग कर लिए गए हैं और उनकी लोकेशन और प्रोफाइल भी घंटे दो घंटे में मिल जायेगी…” मैंने बोला।
इसी बीच मेरे फोन पे तीन-चार मेसेज आ गए थे।
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