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Erotica फागुन के दिन चार

komaalrani

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फागुन के दिन चार भाग ४१ पृष्ठ ४३५

फेलू दा

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फागुन के दिन चार भाग ४१

फेलू दा

5,46,441

डी॰बी॰ ने कहा हम लोगों के पास दो वर्केबल जानकारी है। एक तो नाव से एक खास टाइम पे बात करने वाला आदमी और दूसरा।

मैंने बात पूरी की चुम्मन।

“हाँ उन्होंने बात आगे बढ़ाई, मैं कोशिश करूँगा की चुम्मन को वापस ले आऊं, एस टी ऍफ़ के चंगुल से, लेकिन जिस तरह की सावधानी वो जेड बरत रहा है, मुझे नहीं लगता चुम्मन को ज्यादा क्कुह मालूम होगा, फिर भी,...."और कुछ रुक के सोच के वो बोले,

"लेकिन तब तक जेड के बारे में पता करना पड़ेगा घाट वालों से…”

“वो आप रहने दीजिये। मेरा मतलब मैं जानती हूँ एक सज्जन को। उन्हें बनारस के सारे घाटों के बारे में वहां काम करने वालों के बारे में मालूम है हम लोग उनसे कान्टैक्ट कर सकते हैं। नाम है फेलू दा, पहले कलकत्ता में रहते थे लेकिन उनके एक मित्र थे मानिक दा। उनके गुजरने के बाद से बनारस आ गए हैं और सन्देश भी बहुत अच्छा खिलाते हैं खास तौर से गुड का…” रीत बोली- “मैं आपको उनके पास ले चलती हूँ…”

बिल डी॰बी॰ ने पहले ही पे कर दिया था। हम लोग उतर कर रीत के साथ चल दिए।
हम लोग दुकान के पीछे के रास्ते से निकले और गली-गली 5 मिनट में ही गली के मोड़ पे एक बड़े से मकान के सामने पहुँच गए।

रास्ते में सिर्फ दो-तीन बातें ही हुई।



डी॰बी॰ ने रीत से पूछा- “हे उनका सरनेम मित्तर तो नहीं है…”

रीत बोली- “पता नहीं शायद। पर हम लोग उन्हें फेलू दा ही कहते हैं। हाँ इतना जरूर मालूम है की पहले वो कोलकाता में रहते थे। रजनी सेन रोड कोई है वहां…”



डी॰बी॰ ने मुझसे पूछा- “तुमने सिम का डाटा अपने को मेल किया और तुम्हारी सारी मेल आई॰डी॰ हैक हो गई हैं तो सिम का डाटा भी उनको मिल गया होगा…”

“नहीं वो मेरे इन बाक्स में नहीं है, एक सिक्योर्ड क्लाउड सर्वर है। वहां एक बाक्स में है, जिसको मैं रैंडम जेनेरेटेड पास वर्ड से ही एक्सेस कर सकता हूँ…”



मैने उनको भरोसा दिलाया और मेरे हैक किये हुए मेसेज की लिस्ट भी दिखाई जिसमें वो नहीं था।

गली के मोड़ पे एक बड़ा सा घर, बाहर दरवाजे के दोनों और दो घुड़सवारों की पेंटिंग बनी हुई थी। हम लोगों ने नाक किया तो एक आदमी ने आकर दरवाजा खोला।



रीत को वो तुरंत पहचान गया और हम लोगों को ड्राइंग रूम में बैठा दिया।

चारों और अलमारी किताबों से भरी और ज्यादातर या तो जासूसी या रिफरेन्स बुक्स फर्श पे एक पुरानी सी कालीन और फर्नीचर के नाम पे पुर्राने लकड़ी वाले सोफे, एक दीवान मसनद लगा हुआ और एक नक्काशी की हुई टेबल। उसपर एक चारमिनार का आधा भरा पैकेट रखा था। कोने में एक म्यूजिक सिस्टम भी था जो बाकी चीजों के मामले से ज्यादा माडर्न था।

फेलू दा अभी तैयार हो रहे थे। ये उनके एवेनिंग वाक का टाइम था।

मैंने रीत के कान में बोला। यार वो आयें ना आयें संदेश तो आ जाय।
 
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प्रदोष सी मित्तर


लेकिन वही आये।

दरवाजा खुला और लगभग 6 फूट के विशाल व्यक्तित्व वाले। बंगाली भद्र लोक, गौर वर्ण, बाल थोड़े खिचड़ी पहले तो वो रीत को देखकर थोड़ा मुश्कुराए फिर जब उन्होंने डी॰बी॰ को देखा तो ठहर गए और एक पल ध्यान से देखते रहे। फिर बड़ी जोर से हँसे और बोले- “अरे धुरंधर तुम यहाँ कहा। तुम्हारे पिता जी ने कभी बताया नहीं की तुम यहाँ आ गये हो…”

डी॰बी॰ उनका पैर छूने के लिए झुके तो फेलू दा ने उन्हें पकड़कर गले से लगा लिया।

बचा सिर्फ मैं। तो रीत ने मेरा परिचय करा दिया और उन्होंने भी फारमली अपना पूरा नाम बताया। प्रदोष सी मित्तर।



पता ये चला की डी॰बी॰ के पिता जी और फेलू दा दोनों की बरसों पुरानी दोस्ती थी। दोनों ही लोगों को डिटेक्टिव नावेल्स पढ़ने के साथ कलेक्ट करने का शौक भी था। फेलू दा कभी किसी केस के सिलसिले में मुंबई आये थे, शायद बाम्बे के डकैत या कुछ और। तभी उन दोनों का परिचय हुआ जो जल्द ही गाढ़ी दोस्ती में बदल गया। दोनों साथ फ्लोर फाउंटेन के सामने पुरानी किताब की दुकानों से लेकर, कोलाबा की ओल्ड एंड न्यु (जो अब बंद हो गई है), मुँहमद अली रोड, कालबा देवी में एडवर्ड थियेटर के पास। और जब बांद्र ईस्ट में लोटस बुक शाप खुली तो उन दोनों के मजे आ गये। डेशेल हिमैट, एलेर्री क्वीन, सिमेनन, और न जाने।

मुझे लगा की डी॰बी॰ से उनके ये सस्मरण कब बंद होंगे। और ज्यादा इम्पोर्टेंट बात थी की संदेश भी अभी नहीं आया था और मुझे यहाँ से निपट के गुड्डी के साथ जाना भी है।

लेकिन संदेश आ गए,



और पूरे प्लेट भर के रीत ने मेरी प्लेट में डाल दिया और बोली भी, " लालची, भुक्खड़ "

नोलेन गुडेर सन्देश,

मजा आ गया, और वैरायटी भी कितनी थी। कलकाता में भी ऐसे संदेश मुश्किल से मिलते हैं।

मैंने खाना शुरू किया और बाकी लोगों ने बात। और बात ऐसी की खतम न हो, डीबी और फेलू दा की जासूसी किताबों से बात टूटी तो चेस पर मुड़ गयी और जब चेस की बात शुरू हुयी तो रीत भी चालू हो गयी, और रीत की बात तो ख़तम होने का जल्दी सवाल नहीं,



और मुझे लगा की ये लोग कब मुद्दे पे आएंगे, रीत को तो यहीं रहना था मुझे तो गुड्डी के साथ, और गुड्डी वो हड़कायेगी,

तब तक फेलू दा की आवाज सुनाई पड़ी- “तुम्हें कहीं जाना है। कोई तुम्हारा इंतजार कर रहा है…” वो मुझसे मुखातिब थे।



“नहीं। हाँ। जी। क्यों? आपको कैसे पता…” मैंने हैरानी से पूछा।



उन्होंने बड़ी जोर से अट्टहास किया। ऐसी हँसी अब सुनने में दुर्लभ थी।



और बोले- “एलिमेंटरी माय डियर। पहली बात तुम बार-बार घड़ी की ओर देख रहे हो। जबकि बाकी ये दोनों नहीं देख रहे हैं। दूसरी बात, जब मैं धुरंधर के साथ बात कर रहा था तो तुम रीत को उकसा रहे थे बीच में बोलने के लिए और सबसे बढ़कर अभी भी तुम्हारी प्लेट में दो सन्देश बचे हैं…”

और उन्होंने फिर अट्टहास किया। और अगला सवाल पूछा- “ये चाकू कहाँ लगा…”

बिना मेरे जवाब का इन्तजार किये बगैर उन्होंने पूछ दिया- “फेंक कर मारा था ना और तुम किसी को बचा रहे थे न…”

मैं फिर मन्त्र मुग्ध रह गया। वो बिना इन्तजार किये बोले,

“ इट इज सिम्पल पावर आफ डिडक्शन एंड आब्जर्वेशन। तुम्हारा बायां हाथ कुछ रुक के चल रहा है और मध्यमा और तर्जनी खास तौर से। ये तभी होता है जब अपर आर्म में चोट हो। दूसरी बात तुम्हारी शर्ट वहां हल्की सी उभरी है, इसका मतलब बैंडेज है। अब ये चोट गोली की नहीं सकती। अगर गोली लगी होती तो तुम अस्पताल में होते इसका मतलब चाकू से लगी है। चाकू किसी ने फेंक के मारा है ये भी घाव से पता चल जाता है अगर भोंका होता तो चोट और तगड़ी होती। फिर नार्मली कोई चाकू चलने वाला साफ्ट पार्ट पे एम करता है और बड़े पार्ट पे। इसका मतलब तुमने किसी को प्रोटेक्ट किया था। ऐसी हालत में ही चाकू इस तरह लग सकता है…”



मैं स्तब्ध रह गया। मुझे लगा की अब वो चुम्मन ने क्या कपड़े पहन रखे थे ये भी बता देंगे। लेकिन डी॰बी॰ ने उनकी तारीफ की और बात काम की ओर मोड़ दी, बिना हैकिंग वेकिंग के काम्प्लिकेशन के।



“हुन्न। उन्होंने एक गहरी हुंकार भरी और एक सन्देश और खाया।
 
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बिंदु मल्लाह

“बिंदु। बिंदु मल्लाह। क्यों ठीक रहेगा ना।

उन्होंने समर्थन की आशा में रीत की ओर देखा और उसने भी गुड़ वाला सन्देश खतम करते हुए हामी भरी।
और फेलू दा फिर चालू हो गए- “हमें एक ऐसे आदमी की तलाश है जो नाव से काशी करवट से शुरू कर अस्सी घाट तक जाता है और वहां से टेलीफोन करता है है न।टेलीफोन करने के लिए नदी में किसी नाव से करता है,?
और हमें उसके टेलीफोन का टाइम और लोकेशन का थोड़ा बहुत अंदाज है।

अब हम तीनों ने हामी भरी।

हमारी लडाई में वो शामिल हो गए थे।


“मल्लाह के अलावा जो घाट के घाटिये होते हैं बच्चे होते हैं, वो आब्जर्व करते हैं और बहुत हेल्पफुल होते हैं। और दूसरी बात मेरे ख्याल से वो आदमी बहुत चालाक है। दार्जिलिंग में तब जटायु भी हमारे साथ था ऐसे ही के एक आदमी से मुलाकात हुई थी चतुर चालाक और मुझे अपने मगज अस्त्र का पूरा प्रयोग करना पड़ा। ये भी इसी तरह का ब्लफ मास्टर लगता है। काशी करवट के पास इस समय सन्नाटा रहता है उसे रात में कहाँ से नाव मिलेगी। वो मेरे ख्याल से चेत सिंह घाट से नाव लेता होगा। वहां नाव तो होती है लेकिन दशाश्वमेध या अस्सी की तरह ज्यादा भीड़ भाड़ नहीं होती। एक बात और उसका घर इन सबसे अलग कहीं होगा। वो कहीं से रिक्शे से आता होगा…”

फेलू दा सोचकर बोले।



हम लोग उठने लगे तो वो बोले। बिंदु से कल सुबह चेत सिंह घाट पे मिल लेना। वैसे तो रात में भी घाट के आस पास रहता है। मैं उसको फोन कर दूंगा कहो तो मैं भी आ जाऊं।



“नहीं नहीं उसकी जरूरत नहीं है। मैं रीत के साथ चला जाऊँगा और मैं आपके टच में रहूँगा। जैसे ही कुछ और पता चलेगा…” डी॰बी॰ बोले और हम लोग बाहर निकल दिए।

लेकिन फेलू दा अभी भी रीत से लसे थे, स्साली मेरी ये साली रीत थी ही ऐसी जो मिले उसका फैन हो जाता था, खैर रीत और फेलू दा की काफी पहले की दोस्ती थी, और मेरा फायदा हो गया की बहुत दिनों के बाद इतना अच्छा संदेश खाने को मिला।

अब रीत रुकी थी मैं और डीबी भी रुक गए लेकिन चलने के पहले फेलू दा ने मुझसे एक सवाल और कर दिया,



" शर्ट तुमने नयी बढ़िया सफ़ेद ली है लेकिन पैंट वही पुरानी पहनी है, किसी मॉल से ली है ?"



मेरे कुछ समझ में नहीं आया, महक के सौजन्य से शर्ट मिली थी, उसी के मॉल से, पुरानी में खून लग गया था लेकिन ये शर्ट वाली बात तो मैंने किसी को नहीं बतायी थी, न रीत को न डीबी को,



लेकिन तबतक फेलू दा ने एक और सवाल दाग दिया और दोनों का जवाब भी दे दिया, मुस्कराते हुए,



अगला सवाल था, ' महक मॉल से लिया है क्या, वो लड़की भी होस्टेज थी लग रहा है "

" अरे यार, पैंट पे तेरे जगह जगह रगड़ने का और चूने का हल्का निशान है, तो जब स्कूल में तुम लोग सीढ़ी पे दीवाल से सट के खड़े रहे होंगे, फायरिंग से बचने के लिए, उस समय का होगा, इस लिए कह रहा हूँ"फेलू दा ने जवाब भी खुद ही दे दिया



और उनकी बात सुन के मेरे मन में महक बल्कि उसके चूजे ऐसे उभार दौड़ गए,





स्साली, कैसे उसने खींच के अपने हाथों से मेरे हाथों को उभार पे दबा रखा था, और उकसा रही थी, जीजू कस के पकड़ो न "

लेकिन अभी तो उड़ गयी होगी, डीबी ने उसके अंकल को बोल दिया था, तीन चार दिन के लिए उसे बाहर भेज देने को तो शाम की फ्लाइट हाँ लेकिन होली के अगले दिन ही आ जाएगी, और जब मैं होली के बाद आऊंगा तो पक्का मिलेगी,

मेरे कान में महक और गुंजा की बात गूँज रही थी, महक गुंजा को हड़का रही थी, " स्साली मेरे ऐसे जीजू होते न तो खुद अब तक पटक के चोद चुकी होती "

लेकिन चिढ़ाने में मेरी गुंजा किसी से कम नहीं है,आखिर गुड्डी की छोटी बहन भी सहेली भी, उसने नहले पे दहला जड़ दिया

" स्साली, छिनार क्या तेरे जीजू नहीं हैं ? "

" एकदम हैं, आने दे होली के बाद, तुझसे पहले नंबर लगाउंगी और ज्यादा सीधापन दिखाया न तो खुद चढ़ के तेरे सामने घोंटूंगी, इत्ते दिनों से कच्ची कली बचा के रखी है, अब इससे बढ़िया लौंडा कहाँ मिलेगा, फड़वाने के लिए "


लेकिन मेरा ध्यान टूटा फेलू दा की आवाज से

" और देखो ये जो तेरी शर्ट है , ब्रांडेड है और इस ब्रांड की शर्ट सिर्फ मॉल में यहाँ मिलती हैं, और दो तीन मॉल में ही तो महक के आलावा बाकि सब तो दूर है, और आज सब दुकाने तो बंद हो गयी थीं, तो कोई ऐसा होगा जिसने शॉप खुलवाई हो, वहां मेडिकल स्टोर भी हो, जहाँ बैंडेज व तो महक मॉल और वो एक सरदार जी की भतीजी के नाम पे है, उन्हें मैं भी जानता हूँ, बस सिम्पल, सिर्फ आब्जर्वेशन की बात है "



" ये तो सिर्फ एक चीज देखते हैं बाकी क्या आब्जर्व करेंगे " रीत मुस्करा के बोली और बात उसकी सही थी, मेरे निगाह उसके पहाड़ो पर अटक गयी थी,



रीत न सिर्फ बाकी चीजों में अपनी उम्र वालो से २५ थी, उभारों के मामले में भी २५ क्या २८ होगी।



लेकिन अब फेलू दा ने बात डीबी से शरू कर दी थी,

" मुझे लगता है ये नाव से फोन करने वाला अकेले नहीं जाता होगा, कोई और होगा उसके साथ, दूसरी बात उस छानबीन से पुलिस जितना दूर रहे उतना अच्छा है, वरना जो इतना केयरफुल है वो अंदाज लगा लेगा "



मुझे और डीबी दोनों को अंदाज था की पुलिस की चलनी में ७२ छेद हैं, तो डीबी रीत की ओर देख के बोले

" एकदम, और ये है न, इससे बच के कहाँ जाएगा वो, "



और हम सब बाहर निकल पड़े।
 
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रीत -स्पेशल पोलिस आफिसर




शाम ढल रही थी और मुझे बारे बार लग रहा था, अब तक मुझे औरंगाबाद में, गुड्डी के घर होने चाहिए था, गुड्डी के साथ निकलने के लिए। वो गुस्सा भी कर रही होगी, और सही गुस्सा कर रही होगी, कल से जब से मैं आया था, आजमगढ़ चलने के लिए जल्दी मचाये था, मेरा बस चलता तो गुड्डी को लेकर कब का घर पहुँच चूका होता, पर अब रीत को छोड़ के जा भी नहीं सकता था और रीत को डीबी से मिलाने मैं ही लाया और इस चुम्मन के मामले में उलझाया भी मैंने।



फेलू दा तो मेरी बेचैनी देख ही चुके थे, रीत भी समझ रही होगी,

लेकिन वो ये तो भी जान रही थी की मुझे गुड्डी के साथ जाने की जल्दी किस लिए, है .

एक दर्जा ग्यारह में पढ़ने वाली शोख हसीना जिसके चक्कर में कोई सालों से पड़ा हो, उसे ले जाने की जल्दी क्यों होती है,


और उसे तो यहाँ तक मालूम था की गुड्डी की पांच दिन वाली छुट्टी आज खतम हो गयी है।

मुझे बार-बार लग रहा था की देर हो रही है। लेकिन फेलू दा ने जो बात बताई और कान्टैक्ट दिया और। सन्देश खिलाया वो अनमोल था।



डी॰बी॰ ने अचानक रीत का कन्धा पकड़ लिया और बोले रुको- उनकी कुरते की जेबें गुड्डी का पर्स हो रही थी। उन्होंने पांच-छ कुछ छोटी-छोटी डिवाइसेज निकाल ली।
वो उसके महत्व पे प्रकाश डालते उसके पहले ही मैंने दो गड़प ली।

वो सब हाइली सेंसिटिव वीडयो कैमरा थे जो लगभग अँधेरे में भी फोटुयें खींच सकते थे। उन्हें किसी मोबाइल या लैपटाप से अटैच कर देने पे वो रिकार्ड करते रहते। उनका लेंस भी वाइड एंगल था लगभग एक छोटे मोटे कमरे को पूरा कवर करने की ताकत वाला।

बाकी बचे कैमरे रीत को मिले।

फिर उन्होंने मेरे कान में पूछा- “तेरा फोन हैक हो गया है तो वो चुम्मन के सिम की कापी। कहीं…”

“वो मैंने उस सिक्योर्ड सर्वर पे डाल रखा है इसलिए मैं तो उसे एक्सेस कर सकता हूँ अपने मेल आई॰डी॰ और पासवर्ड से लेकिन और कोई नहीं…” मैंने अश्योर किया।



तब तक हम रीत की बाइक के पास पहुँच गए थे। उन्होंने एक बार फिर रीत को रोका और बोले-

“ये तो सटक लेगा। मैं रात में तुमसे कान्टैक्ट करूँगा। तब तक मैं पेपर वर्क कर लूँगा। तुम्हें हम स्पेशल पोलिस आफिसर (एस पी ओ) का डीजिग्नेशन देंगे, एक कार्ड देंगे जो तुम्हें अरेस्ट के लिए अथराइज करेगा, एक सीनियर इंस्पेक्टर के बराबर पावर देगा और तुम्हें चार-पांच और लोगों को रिक्रूट करने के लिए अथराइज करेगा। ये कार्ड मेरी सिग्नेचर और होम सैक्रेटरी के अनुमोदन से जारी होगा। “

रीत खुश और ख़ुशी में उसने एक मुक्का कस के डीबी के सामने ही पीठ पे जबरदस्त मारा और बोली, " और ये रहते भी तो क्या करते, एक क्लास ११ की लड़की तो इनसे, ....मेरा मतलब इनके बस का कुछ है नहीं, इन्हे जाने दीजिये। और मैं हूँ न, एकदम मैं आपके कांटेक्ट में रहूंगी, "



और मुझे देख के कस के आँख मारी।

मैंने चलते चलते डी॰बी॰ को रोका और पूछा- “सी॰ओ॰ का क्या करेंगे। अब तो आलमोस्ट श्योर है की फायरिंग में और ताला बंद करवाने में उसी का हाथ था। और उसके पास चुम्मन का नंबर कहाँ से आया।



“कुछ नहीं…” मुश्कुराकर वो बोले और फिर बात साफ की।



“वो मैंने चेक कर लिया है। वो जो मिस्टीरीयस आदमी है, दो फोन नंबरों से फोन करता है, जिसको हमने जेड कोड नेम दिया है। उसके दो नंबरों से सी॰ओ॰ के पास फोन नहीं आया था। हम उसको अभी आब्जरेवेशन में रखेंगे। और ट्रेस कर रहे हैं। साथ में उसको कुछ फालतू काम दे दूंगा। वीआईपी ड्यूटी टाइप…”



और ये कहकर वो चल दिए, लेकिन चलने के पहले रीत से फिर बोला



" जो मैंने तुम्हे अपना प्राइवेट नंबर दिया है उसी पे बात होगी और जो तुम्हे फोन दिया है उसी से, और तुम्हे एक सीनियर इंस्पेकटर की सारी पावर होंगी, तुम कहीं भी घुस सकती हो, छानबीन कर सकती हो, किसी का पीछा कर सकती हो, घर में छापा मार सकती हो, इनवस्टीगेशन, सर्च और सीजर की सब पावर जो पुलिस में किसी को होंगी वो सब, और आज से ही, और तुम सीधे मुझे रिपोर्ट करोगी। "



और मैंने रीत की बाइक के पीछे आसन जमा लिया। वो बेसबरी हो रही थी। दो बार गुड्डी का फोन आ चुका था। अबकी बाइक उसने सड़क पे सीधे घुसा दी।





मेरे दिमाग का कीड़ा फिर कुलबुला रहा था। मैं निकलने के पहले रीत को किसी और से मिलवाना चाहता था, मैं नहीं चाहता था, रीत अकेले अकेले इस मामले में गली गली भटके और जिस तरह का बम था, दुश्मन खतरनाक ही नहीं था, वो किसी लेवल पर उत्तर सकता था और पुलिस में तो साफ़ था उसकी कम से कम लोवर और मिडल लेवल पे पैठ थी, जिस तरह दो बार गुंजा पे हमला हुआ, एक बार एसिड बॉम्ब और दूसरी बार बॉम्ब से, इसलिए मैं रीत से किसी को निकलने के पहले मिलवाना चाहता था।



मैंने जेब में हाथ डाला, रेडिसन होटल का एक नेपकिन था। मैंने निकाला तो उसमें लिपस्टिक से एक नंबर लिखा हुआ था।



अब मुझे क्लियर हुआ कीड़ा क्या था।

होटल में जो फ्रांसीसी वाइन एक्सपर्ट मिले थे। पहले उन्होंने अपना नाम सिमेनन बताया था जो एक मशहूर फ्रेंच जासूसी कहानी लेखक का नाम है और वो वैसे ही पोपुलर हैं जैसे हिन्दुस्तान पाकिस्तान में इब्ने सफी। और निकलते समय जो नाम बताया था क्लोस्युन। वो पिंक पैंथर सीरिज में फ्रेंच पोलिस इन्स्पेक्टर का नाम है।



फिर मेरे दिमाग की बत्ती जली। उनका चेहरा कुछ पहचाना हुआ सा लग रहा था। प्रेंच पोलिस के किसी सीनियर आफिसर ने एक मैगजीन में दिखाया था। इस हालत में हमें ज्यादा से ज्यादा एक्सपर्ट चाहिये थे। और मैंने कहीं पढ़ा था की कुछ हिंदुस्तान के प्रेम में तो कुछ तंत्र मन्त्र के चक्कर में और कुछ तान्या का असर होगा, जो एक जॉइंट इंडो फ्रेंच प्रोडक्शन थी, वो बनारस न सिर्फ आये बल्कि पेरिस की पुलिस को छोड़ के बनारस के हो कर रह गए और अपने बारे में किसी को बताया भी नहीं।लेकिन अब मेरी याद का पिटारा खुला.

कार्लोस

मैंने बाइक पे बैठे-बैठे तान्या को फोन लगाया और पूछा- “हे सिमोनों कम क्लोस्युन कहाँ हैं…”



“मेरे पास। लेकिन किसी ऐसी वैसी हालत में नहीं। हम दोनों ब्रेड आफ लाइफ में हैं मिलना है…” वो खिलखिला के बोली।



“हाँ एकदम हम लोग अभी आ रहे हैं…” मैंने कहा। हम लोग शिवाला रोड पे ही थे।



मैंने रीत से कहा वो। “ब्रेड आफ लाइफ…” बेकरी की ओर मोड़ ले।



बेकरी के सामने रोकती होई बोली- “अब किससे मिलना है…”



“तान्या से…” मैं बोला।



“तुम यार ठरकी नम्बर एक हो। उधर गुड्डी बिचारी को खुजली मची हुई है। 10 बार फोन आ चुका। इधर तान्या। गुड्डी मुझे इस तान्या के जलवे के बारे में बता चुकी है। एक से मन नहीं भरता क्या तुम लोगों का और तुम्हारा तो हरदम 90 डिग्री पे रहता है क्या बात है…” मुझे खा जाने वाली नजरों से देखते हुए वो बोली।



दुकान में घुसते उसके कंधे पे हाथ रखकर मैं बोला- “और तुम लोगों का क्या एक से मन भरता है…”



“हम लड़कियों की बात और है…” वो ठसके से बोली।



दकान में बहुत लो लाईट थी भीड़ भी बहुत कम थी। मैंने रीत के कान में कहा- “और जहाँ तक 90 डिग्री वाला सवाल है। वो यार मैनुफक्चारिंग डिफेक्ट है। और वैसे भी तुम्हारे जैसे सेक्सी मस्त हसीना के सामने अगर झंडा खड़ा ना रहे तो ये हुस्न की बेइज्जती होगी…”



आज मेरे पिटने का दिन था।



एक जबरदस्त हाथ रीत का मेरी पीठ पे पड़ा। मेरी कराह निकल गई। कंसर्न्ड होकर वो बोली- “हे जोर से लग गई क्या?” और मेरी पीठ सहलाने लगी।



“हाँ पहले मारो और फिर सहलाओ…” यही तुम लोगों की रीत है। मैंने बनावटी से दर्द से मुँह बनाते हुए कहा।



“अच्छा जी। और आप लोग भी तो यही करते हो…” वो बड़ी अदा से अपने गाल पे आई लट को हटाते, मुश्कुराकर आँख नचाकर बोली।



“जी नहीं…” मैंने बड़े भोलेपन से जवाब दिया- “हम सहलाते पहले हैं और मारते बाद में हैं…”



अबकी पीठ पे दुगुनी जोर से हाथ पड़ा और कराहने का मौका नहीं मिला क्योंकि सामने तान्या खड़ी थी। हाय उसने जोर से हाथ मिलाया और हल्के से हाथ दबा दिया।



जवाब में मैंने भी हाथ दबाया लेकिन मेरी निगाहें टाप फ्लोर पे चिपकी थी। उसने एक टाईट टी-शर्ट और लो-कट जीन्स पहन रखी थी और ऊपर से टी-शर्ट को जीन्स के अन्दर टक कर रखा था। उभार उसके लग रहा था शर्ट को फाड़कर बाहर आ जायेगे।



मुझसे तो उसने हाथ मिलाया लेकिन रीत से वो गले मिली जैसे बरसों पुरानी दोस्त हों और हम लोगों को एक अन्दर के कमरे में ले गई।
 
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सिमोनन कम क्लोस्युन यानी कार्लोस


वो सिमोनन कम क्लोस्युन वही थे।



“तो। यू कुड गेस…” वो बोले।

कार्लोस का पूरा किस्सा आंनद बाबू को मालूम था, कुछ पुलिस अकादेमी सिकंदराबाद में पढ़ा, कुछ इंटरपोल के साथ अटैचमेंट में और जितना पढ़ा उससे ज्यादा सुना,

एक से एक कठिन मिस्ट्री सुलझाने में माहिर, चार तो लॉक्ड रूम मिस्ट्री सुलझा चुके थे, अरे वही जिमसे कमरा अंदर से बंद हो और लाश मिले, शक सुसाइड का हो लेकिन हो मर्डर, और एक को तो देख के ही उन्होंने पांच मिनट के अंदर बोल दिया , " कापीकैट, इस ने येलो रूम मिस्ट्री की कॉपी की है " और बस उसी तरह सुलझा दी। लेकिन कार्लोस की असली पकड़ चार बातों में थी,
इन्वेस्टिगेशन, रूप बदल कर पीछा करना, कठिन से कठिन क्राइम सीन को पांच मिनट में समझ लेना और हथियार कोई भी हो उसे चलाने में एक्सपर्ट।

कुछ लोगों का यह भी कहना था की वो किसी क्राइम सिंडिकेट से भी जुड़े थे किसी जमाने में, तो कुछ लोगो का कहना था की उस कनेक्शन की जांच होने वाली थी इसलिए उन्होंने पुलिस और पेरिस दोनों छोड़ दिया। लेकिन वाइन और वीमेन के साथ स्प्रिचुए मामलों में खास तौर से तंत्र में उनकी जो दिलचस्पी थी वो कम लोगों को मालूम थी और वो बनारस में हैं ये तो शायद ही किसी को।

अन्दर भी फर्नीचर बाहर की तरह थे। लो टेबल।


रीत ने पूरी कहानी उन्हें सुना दी और मैंने एक कापुचिनो और गार्लिक ब्रेड खतम किया।

सब कुछ सुनाने के बाद वो बोले- ये सब काम तो मैंने छोड़ दिया है। बट मुझे मजा बहुत आता है एंड फार सच अ ब्यूटीफुल यंग लेडी। व्हाई नाट। माई फ्रेंड काल मी कार्लोस और उन्होंने रीत से एक बार फिर हाथ मिला लिया।

मैंने ये देखा था की चाहे वो डी॰बी॰ हो या ये कार्लोस। रीत से हाथ मिलाने का मौका कोई नहीं छोड़ता था और वो भी उसी गरम जोशी से हाथ मिलाती थी।



कार्लोस ने कुछ देर सोचा और बोलना शुरू किया- “आई आम श्युर। ये जो। जिसे आप लोग जेड कह रहे हो। एक स्लीपर है…”

मैंने काफी छोड़कर रीत को समझाने की कोशिश की लेकिन कार्लोस ने खुद ही समझा दिया- “ये आदमी काफी दिनों से यहाँ रह रहा होगा, हो सकता है अपने नाम से, हो सकता है, नाम बदल कर। 10 साल, 15 साल, 20 साल। कुछ भी। और इस पूरे पीरियड में ये एकदम नार्मल रहा होगा। और इसके पैरेंट आर्गानिजेशन ने भी इससे साल में एक-दो बार ही कान्टैक्ट किया होगा। लेकिन ये फुल्ली ट्रेंड प्रोफेशनल होगा। जिस तरह से तुम लोगों ने बताया की ये बहुत ही हाई लेवल का आपरेशन लगता है और इसे वो अबार्ट नहीं करेंगे, लेकिन…”

कार्लोस ने मेरी और देखा।


और बात जारी रखी- “दूसरी बात। जैसा आप लोगों ने बताया। ही इज डीलिंग विद कम्मुनिकेशन एंड आपरेशन। प्लान को एक्जिक्यूट करने का जिम्मा उसी का है। इसलिए ये पूरा चांस है की प्लान फाइनली पूरा होने के साथ वो कंट्री छोड़ देगा। एक बात और लाजिस्टिक और फाइनेंसियल सपोर्ट के लिए और लोग होंगे जिनसे उसका कोई सम्बन्ध नहीं होगा…”



मैं. रीत और तान्या उनकी बात सुन रहे थे।

मैंने उनसे बोला की मैं आज जा रहा हूँ और रीत की अनेलिसिस के हिसाब से अभी उनका पूरा शक मेरे ऊपर होगा और यहाँ पर रीत हो कोआर्डिनेट करेगी।

रीत मुझसे टच में रहेगी और बाकी लोग रीत के जरिये मुझसे।



“ये बहुत अच्छा है, कार्लोस ने बोला। आईवुड लव तो बी इन क्लोज टच विद हर। अलोंग विद फ्रेंच वोमेन, इन्डियन वोमेनआर बेस्ट . मैं ये कह सकता हूँ की वो ज्यादा सेंसुअस और रसीली है। तुम मुझे हिंदी और भोजपुरी सिखाना…”

“और आप मुझे फ्रेंच…” रीत ने मुश्कुराकर कहा।


“सिर्फ फ्रेंच भाषा तक सिमित रखना अपनी ये पढाई बाकी और तरह का फ्रेंच मत सिखने लगना…” मैंने मुश्कुरा कर कहा।



“वाह क्यों नहीं?” रीत और तान्या ने एक साथ कहा।



रीत ने मेरी और आँख तरेर कर कहा- “अपने तो होली में भाग जा रहे हो। घर में अपनी बहन के साथ मजा लूटोगे तो मेरी मर्जी…” और जोर से मुश्कुरायी।



कार्लोस ने बोला की अगर वो रोज रात में 8 से 10 तक फोन करता है तो शायद आज भी करे और एक बात और वो इस मोबाइल के अलावा भी इंस्ट्रूमेंट इश्तेमाल करता होगा…”



“और क्या मेरी समझ में नहीं आया…”



“देखो सिम्पल अगर वो थर्ड और फोर्थ ग्रेड के लोगों के लिए इतनी प्रकाशन बरत रहा है तो अगर जो उसके कंट्रोलर होंगे या अगर जैसे आज एक इमरजेंसी की सिचुएय्शन है। तो शायद और स्लीपर से भी उसे बात करने के लिए बोला जाय। मेरा पूरा शक है की वो वन टाइम फोन और इमार्सेट इश्तेमाल करता होगा…”



“इमार्सेट मतलब?” रीत ने पूछा



“सेटलाईट फोन…” मैंने बोला।



कार्लोस ने बात आगे बढ़ाई और रीत को समझाते हुए बताया- “वन टाइम फोन में सिर्फ इक बार बात हो सकती है इसलिए उसे ट्रेस करना बड़ा मुश्किल होता है। एक्सेप्ट अगर आपको मालूम हो की कब बात होने वाली है और आप सिगनल इन्तेर्सेप्त कर सकें और बाद में उसे डिसाइफर कर सकें और वो भी मुश्किल होगा क्योंकि उसमें ओन टाइम कोड इश्तेमाल किया जाएगा जो ना पहले न बाद में होगा।



मुझे लग रहा है की आज का दिन बहुत इम्पोर्टेंट है। क्योंकि टाइम उसके लिए भी कम है और उसकी आपरेशनल आर्म। वो आदमी जो बाम्ब डील करने वाला था वही अब नहीं अवेलिबिल है। इसलिए उसे हो सकता है और लोगों से हेल्प लेनी पड़ेगी। वो तो अच्छा है की किसी को बाम्ब के ट्रू नेचर के बारे में पता नहीं चला। वरना वो शायद ओपरेशन अबार्ट कर देते। तो हमें वो बोट आज ही ट्रेस करनी चाहिए…”



“लेकिन बिंदु से तो कल बात हो पाएगी…” मैंने बोला।



“वो रहता तो उसी घाट पे है। चेतसिंह घाट पे। ट्राई करने में क्या हर्ज है। मैं फेलू दा से बात करती हूँ और वैसे भी मैं उसे जानती हूँ…” रीत एकदम जोश में आ गई थी।



लेकिन मुझे गुड्डी के पास जाना था और वो घर से निकल चुकी थी।



तय ये हुआ की रीत कार्लोस के साथ जायेगी चेतसिंह घाट और उस बोट को ट्रेस करने की कोशिश करेगी और तान्या मुझे ड्राप कर देगी।
 
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फागुन के दिन चार भाग ४०

सुलझायी पहेली रीत ने

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रीत ने मेरी पिटाई का काम टेम्पोरेरी तौर पे स्थगित करते हुए ये रहस्योद्घाटन किया की वो क्यों बेवकूफ है।

“ये देखिये गंगाजी…” वो बोली।



नक़्शे में नदी हम लोगों को भी दिख रही थी।

“तो फोन वाला आदमी अगर नाव पे हो तो इन सारी जगहों पे जो टाइम दिखाया गया है वो पहुँच सकता है हमें जगह देखकर लग रहा था लेकिन लोकेशन तो 100 मीटर के आसपास ही होगी…”रीत कुछ सोचते हुए बोली

“हाँ एकदम…” और फिर मैंने एक सवाल डी॰बी॰ से किया- “क्या आप लोगों ने फोन चेक करने वाली वैन तो नहीं चला रखी हैं…” मैंने पूछा।

“हाँ करीब 10 दिन से जब से दंगे की अफवाहें आनी शुरू हुई हैं, लेकिन तुम्हें कैसे पता चला? तीन गाड़ियां हैं, और 24 घंटे चल रही हैं…” डी॰बी॰ बोले।

“उनकी रेंज नदी तक है…” मैंने दूसरा सवाल पूछा।

“हाँ और नहीं। घाट और घाट के पास तक का इलाका कवर होगा लेकिन कोई नदी के बीच में या रामनगर साइड में होगा तो नहीं…” वो बोले।

“बस तो ये साफ है। कोई जरूरी नहीं है की उस आदमी को पता हो इन वान्स के बारे में। लेकिन वो कोई प्रोफेशनल है जो पूरी प्रीकाशन ले रहा है और इन फोन की लोकेशन के बारे में और ओनरशिप के बारे में ज्यादा पता नहीं चल पायेगा वो भी मैंने पता कर लिया है।इन दो घंटो के अलावा। इन नम्बरों का पन्द्रह दिनों में और कोई इश्तेमाल नहीं किया गया। ये सिम बहुत पुराने हैं और प्री पेड़ हैं, आशंका है किसी डेड आदमी के ये सिम होंगे और दो घंटो के अलावा सिवाय आज जब होस्टेज वाले टाइम, एक काल आई थी। उनकी लोकेशन भी नहीं पता चल रही है…”



मैंने पूरी इन्फोर्मेशन उनसे शेयर की।

अब डीबी चिंता में डूबे थे और उनकी निगाह रीत पे टिकी थी, शायद उम्मीद की एक किरण यहीं से आये

निगाहें तो मेरी भी रीत पे टिकी थी, उसके गोरे चिकने गाल, एकदम मक्खन जैसे, जिनका रस रंग लगाने के बहाने मेरे हाथों ने खुल के लुटा था, और जिस तरह रीत झुक के बैठी थी, उसके दोनों गोरे गोरे कपोत, टाइट कुर्ती से एकदम खुल के झाँक रहे थे, और उन बगुलों के पंखों पे जो मेरे हाथों ने लाल, नीले कर बैंगनी रंग की कॉकटेल लगाई थी, और उसी बहाने जम के मसला था, साफ़ साफ़ दिख रहे थे, ाकाहिर गुड्डी उसे दी कहती थी तो रिश्ता तो साली का ही हुआ, भले बड़ी साली हो,

और मेरी पापी निगाहें रीत ने पहचान ली, मुस्करायी और कस के टेबल के नीचे मेरे पैरों पर उसका पद प्रहार हुआ जबरदस्त
हल्की सी मेरी चीख निकली, पर डीबी ने इग्नोर कर दिया, उनकी निगाहें अभी भी रीत पर थीं।
क्या बात है. टारगेट तो बहोत शातिर है. DB ने जो कॉल ट्रेस करने वाली वान काम पर लगाई है. वह तो अब तक उसे भी चकमा दे ही रहा है. लास्ट दो घंटे के आलावा पिछले पंद्रह दीनो से कोई कॉल नहीं. हो सकता है की यह नम्बर भी बंद हो जाए.

डी बी भी रीत को उम्मीद भारी नजरों से देख रहा है तो आनंद बाबू की नियत मे खोट शारारत है. जबरदस्त.

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मैं हूँ ना…”-- रीत

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डी॰बी॰ अब पूरी तरह चिंतित लग रहे थे।

फिर उन्होंने रुक रुक कर बोलना शुरू किया-

“तीन बातें हैं। पहली, तुम्हारे इन टेलीफोन नंबरों के अलावा, अगर कोई कनेक्शन मिल सकता था तो वो चुम्मन का था। लेकिन वो एस॰टी॰एफ॰ वालों के कब्जे मैं है। शायद ही वो चुम्मन से सीधे मिला हो। कट आउट इश्तेमाल किया होगा। या फिर फोन के जरिये…”

रीत ने मुझसे कान में पूछा- “कट आउट क्या? कोई बिजली का…”

“अरे नहीं यार। कोई बिचौलिया…” मैंने फुसफुसा के समझाया।

डी॰बी॰ बोल रहे थे- “दूसरी बात टाइम बहुत कम है तीन दिन बाद होली है। तीन दिन के अन्दर पता करना, न्यूट्रलाइज करना और सबसे बड़ी ये है की किसपे भरोसा करूँ किस पे नहीं…”
“मैं हूँ ना…” रीत हिम्मत से बोली।

डी॰बी॰ के चेहरे पे एक हल्की सी मुश्कान दौड़ गई- “वो तो है। बट। कुछ तो करना पड़ेगा ना…” वो बोले।

“एकदम…” रीत बोली।

लेकिन मैं बीच में कूदा-

“मेरी बात तो पूरी होने दो। इन दो नंबरों के और भी डिटेल पता चले हैं। पिछले 10 दिनों में इसी समय यानी 8-10 के बीच, इन्हीं लोकेशंस से। कोयम्बटूर, हैदराबाद, मुम्बई, वड़ोदरा और भटकल। लेकिन ज्यादातर फोन मुंबई वड़ोदरा और हैदराबाद के लिए हैं। जिन नंबरों को ये फोन किये गए थे वो टैग कर लिए गए हैं और उनकी लोकेशन और प्रोफाइल भी घंटे दो घंटे में मिल जायेगी…” मैंने बोला।

इसी बीच मेरे फोन पे तीन-चार मेसेज आ गए थे।
डी बी परेशान है और रीत को भी मस्ती सुझ रही है. कही डी बी को कोई गलतफेमी ना हो जाए.

आनंद बाबू हार चीज पता नहीं धीरे धीरे या बाद मे क्यों बताते है. अलग अलग शहेरो से कॉल आ रहे थे. और अब msg.

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Rajizexy

❣️and let ❣️
Supreme
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53,467
354
फागुन के दिन चार भाग ४१ पृष्ठ ४३५

फेलू दा

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So interesting update having awesome ingredients means complete masala
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