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Erotica जोरू का गुलाम उर्फ़ जे के जी

komaalrani

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जोरू का गुलाम भाग २५० पृष्ठ 1556
एम् -२ --एक मेगा अपडेट पोस्टेड

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जोरू का गुलाम -भाग २५०

एम् -२

मिलिंद नवलकर, मुंतजिर खैराबादी, महेंद्र पांडेय

३८,१७,०७६

"माइसेल्फ मिलिंद नवलकर, फ्रॉम रत्नागिरी। "



मिले तो थे आप एम् या एम् के एक रूप से, पिछले भाग मे।



हल्की मुस्कान, बड़ा सा चश्मा, एक बैग और खिचड़ी बाल, दलाल स्ट्रीट के आसपास या कभी यॉट क्लब के नजदीक तो शाम को बॉम्बे जिमखाना में ढलते सूरज को देखते हुए मिल जाते हैं।



और उनके बाकी रूपों से,


मनोहर राव, थोड़ा दबा रंग , एकदम काले बाल, गंभीर लेकिन कारपोरेट क़ानून की बात हो या कर्नाटक संगीत वो अपनी खोल से बाहर आ जाते थे. दिन के समय बी के सी में लेकिन अक्सर माटुंगा के आस पास, टिफिन खाते वहीँ के किसी पुराने रेस्ट्रोरेंट में,...

मनोज जोशी, चाहे हिंदी बोले या अंग्रेजी,… गुजराती एक्सेंट साफ़ झलकता था। पढ़ाई से चार्टर्ड अकउंटेंट, पेशे से कॉटन ट्रेडिंग में कभी कालबा देवी एक्सचेंज में तो कभी कॉटन ग्रीन में, और अड्डों में कोलाबा कॉजवे, लियोपॉल्ड

महेंद्र पांडे धुर भोजपुरी बनारस के पास के, अभी गोरेगांव में लेकिन जोगेश्वरी, गोरेगांव, और कांदिवली से लेकर मीरा रोड और नाला सोपारा तक, दोस्त, धंधे सब

मुन्तज़िर खैराबादी, मोहमद अली रोड के पास एक गली में कई बार सुलेमान की दूकान पे दिख जाते थे, खाने के शौक़ीन, पतली फ्रेम का चश्मा और होंठों पर हमेशा उस्तादों के शेर, फिल्मो में गाने लिखने की कोशिश नाकामयाब रही थी तो अब सीरियल में कभी भोजपुरी म्यूजिकल के लिए और आक्रेस्ट्रा के लिए



लेकिन असली नाम, ... पता नहीं। सच में पता नहीं।

असल नक़ल में फरक मिटाने के चक्कर में खुद असल नकल भूल चूके थे। हाँ जहाँ जाना हो, जो रूप धरना हो, जो भाषा एक्सेंट, मैनरिज्म, ज्यादा समय नहीं लगता और कई बार तो लोकल में सामने बैठे आदमी को देखकर आधे घंटे में कम्प्लीट एक्सेंट और

मैनरिज्म, उन्हें लगता की शायद उनका असली पेशा ऐक्टिंग हो सकता था और राडा (रॉयल अकेडमी ऑफ ड्रामेटिक आर्ट्स) में उन्होंने एक छोटा मोटा कोर्स भी किया था,



लेकिन ये रूप अलग लग धरने में मेहनत, भी टाइम भी लगता था और कोई जरूरी नहीं की हर बार आपरेशन में वो हर रूप इस्तेमाल करे लेकिन हर आपरेशन में एक नया रूप जरूर वो क्रिएट करते थे, जैसे इस बार मिलन्द नवलकर, और ये भी बात नहीं की ये रूप वो सिर्फआपरेशन के लिए धरते थे, या उसका इस्तेमाल सिर्फ आपरेशन में करते थे, जैसे दो बार वो हिन्दुस्तान सिर्फ चिल करने आये और एक बार बनारस में रहे, महीनों और महेंद्र पांडे के रूप में, दो साल पहले हिन्दुस्तान नेपाल के बार्डर पे, एक आपरेशन था, ईस्टर्न यूपी और वेस्टर्न बिहार और नेपाल के बार्डर का और उसी समय वो पहली बार महेंद्र पांडे बने, और फिर जब बनारस आये तो फिर महेंद्र पांडे, और बोली , स्वराघात सब कुछ और फिर दोस्त यार, और उनके बॉम्बे के कनेक्शन, और कभी कभी साल में एक बार कही और आते जाते, वो इन कनेक्शन को जिंदा भी रखते थे



उसी तरह गरबा के सीजन में कुछ दिन वो बड़ौदा और सूरत में थे, पहले भी आ चुके थे कुछ डायमंड का मामला था और उन्होंने मनोज जोशी का वो गुजराती संस्करण, और वही उनको अंदाज लगा की भावनगर के आस पास जो गुजराती बोली जाती है वो बड़ौदा से एकदम अलग है



जब महीने भर बनारस में थे तभी लखनऊ जाना हुआ और असली मुन्तज़िर खैराबादी, से मुलाक़ात हुयी, बस उन्ही का मैनरिज्म, दाढ़ी, उर्दू,… और कोई कह नहीं सकता था की उनकी जड़ें लखनऊ में नहीं है, और उसका अड्डा बनाया उन्होंने मुंबई में मोहम्मद अली रोड को

इन अलग अलग रूपों के साथ लोकल खानो और लोकल लड़कियों ख़ास तौर से रेड लाइट, (सड़क छाप से लेकर कालगर्ल और एस्कॉट तक) के भी वो पक्के शौक़ीन भी थे और एक्सपर्ट भी,

और इन सबका फायदा उन्हें मिलता था, एक सूत्र को ट्रेस करने के लिए वो एक रूप धरते थे तो उसी आपरेशन से जुड़े दूसरे हिस्से को दूसरे रूप से, और अगर कोई उनके पीछे पड़ा भी रहता था तो वो दोनों को लिंक नहीं कर पाता था,

ये उनका अड़तीसवाँ ऑपरेशन था, और हिन्दुस्तान में छठा, लेकिन अब तक का सबसे मुश्किल,



एक तो कोई और छोर नहीं पता चल रहा था, अमेरिका में बेस्ड एक बड़ी मल्टी नेशनल कम्पनी की शक था की उसको एक्वायर करने के लिए या उसके इंट्रेस्ट को हिट करने के लिए कोई बड़ी कम्पनी आपरेशन चला रही है, और बस इतना पता था की हिन्दुस्तान में जो इनकी सब्सिडियरी है, उसपर कुछ दिन पहले हमला हुआ था, और वो कम्पनी बस हाथ से जाते जाते बची।

और उस को बचाने में जिस का हाथ था उसके बारे में मुश्किल से पांच छह लोगो को मालूम था, लेकिन राइवल कंपनी को कुछ शक था और एक इंडिपेंडेंट कंपनी से उस आदमी के बारे में जिसे रिपोर्ट में उन्होंने सब्जेक्ट कहा था, वो एक बिंदु हो सकता था जिसे पकड़ के आगे बढ़ा जा सकता था



पर परेशानी ये थी की एम् या मिलिंद नवलकर सीधे उस 'सब्जेट; से कांटेक्ट नहीं कर सकते थे, एक तो उन्हें ये पता था की जिस एजेंसी ने रिपोर्ट उस के बारे में बनायी है तो A १ लेवल के फिजिकल और कैमरे के सर्वेलेंस से घिरा होगा, और एक एमरजेंसी कांटेक्ट दिया था लेकिन बहुत दिमाग लगा के ही मेसेज आ सकता है और कई और लोगों के जरिए वो कोडेड मेसेज जब मिला तो काम उनका कुछ आसान हुआ



और मान गए वो वो सब्जेक्ट को, सिर्फ फोटो के जरिये, और किसी और के फोन से,



फ़ूड ट्रक, सर्वेलेंस, डाटा और वो लड़की और उस के जरिये काफी कुछ बाते आगे बढ़ गयी थी और अब उसी को बढ़ाना था
 
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मलाड का मानुष, और शेयर मार्केट

जीरो प्वाइंट यानी ए के अड्डे से जो कुछ हैकिंग हुयी, कैमरे की रिकार्डिंग हुयी, सारा डाटा फ़ूड ट्रक से एक सेटलाइट के जरिये केपटाऊन में गया, साउथ अफ्रीका के समुद्री तट पर और वहीँ डाटा एनालिटिक्स ने फिर से सारा डाटा या कहीं कुछ रिपोर्ट्स भेजीं, और वही से एक मेसेज हिन्दुस्तान में मुंबई में आया, मलाड में किसी के पास, मेसेज सिम्पल था, मोर्स कोड की तरह ' नो एक्टिवटी डिटेकेटेड'

और उसी को मिलन्द नवलकर ने मलाड मानुष का नाम दिया, क्योंकि हिन्दुस्तान में यह साफ़ हो गया की दुश्मन कम्पनी का यह कांटेक्ट प्वाइंट है। और उस का पता कर के आगे बढ़ा जा सकता है, तो जीरो प्वाइंट से फ़ूड ट्रक, वहां से डाटा केपटाउन और विश्लेषण के बाद एक लाइन का मेसेज मुम्बई के मलाड में।

पहली बात मलाड का मानुष, उसका पता पता करना अब मुश्किल था लेकिन असम्भव नहीं और बाद में नवलकर को ये ब्रेन वेव आयी की यह एक तरह से कम्युनिकेशन की ओपनिंग थी। मतलब अगले मेसेज भी उस मलाड वाले को ऐसे ही मिलेंगे और वो पूरी तरह से वन साइडेड कम्युनिकेशन होगा, लेकिन इस चैनल पर निगाह रख कर आगे की बातें जानी जा सकती हैं।

एम् ने अपना सिक्स्थ सेन्स लगाया, उस मलाड मानुष के बारे में, कुछ पुराने कांटेक्ट खगाले और उन्हें पता चल गया की उन्हें क्या करना है,



मनोज जोशी, उनका गुजराती रूप, पिछली बार वो एक वाल स्ट्रीट से दलाल स्ट्रीट तक आये थे, मामला अमेरिका की एक एक इनसाइडर ट्रेडिंग का था, लेकिन उसके तार हिन्दुस्तान और जापान दोनों से जुड़े थे और शेयर मार्केट का बहुत खेल था, और तब उन्होंने शेयर मार्केट में तमाम कांटेक्ट भी बनाये थे, मनोज जोशी बन के, स्टॉक एक्सचेंज के पास की चाय की दुकानों से लेकर, सेबी के आफिस तक,



और उन्हें अंदाज लग गया था की उन्हें अब उसी रूप में जाना होगा, शेयर मार्केट में घुसना होगा इस मलाड मानुष के बारे में पता करने के लिए।

एक और बात ने उनका ध्यान मलाड मानुष के शेयर मार्केट के लिंक से जोड़ा, पिछली बार जब हिन्दुस्तानी कम्पनी पर हमला हुआ था शेयर मार्केट में ही हुआ था और एक बीयर कार्टेल से हुआ था, जो लोग शेयर मार्केट के दाम गिराना चाहते हैं, और उसमे एक्सपर्ट होते हैं और उनके बहुत हथियार होते हैं, किसी कम्पनी के बारे में अफवाहें, अखबारों में प्लांटेड खबरे, उसके इम्पोर्टेन्ट लोगो के कम्पनी छोड़ने से लेकर पहले धीरे धीरे उस कम्पनी के शेयर खरीद के एक झटके में बेचने तक,



पिछली बार भी उन्हें पता चला था की मलाड में कोई है जो बीयर कार्टेल के केंद्र में है, वो कभी कभी स्टॉक एक्सचेंज आता भी है, बहुत सिम्पल , शर्ट पैंट, बाल करने से कढ़े, चालीस -पचास के बीच की उम्र, लेकिन न उस के बारे में ज्यादा लोगो को मालूम है न वो मालूम होने देते है



तो शायद वही होगा, वो मलाड मानुष और उन्होने मन की डायरी में नोट कर लिए और दिमाग प्लान बनाने लगा, लेकिन अभी तुरंत एक और काम था।


 
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ए का अड्डा और सेटलाइट की तस्वीरें


दूसरी बात केपटाउन से सारा डाटा एक एयर होस्टेस के जरिये आएगा, लेकिन सेटलाइट ने जो इमेजिंग की थी वो केपटाउन से मिल गयी थी और वो सरवायलेंस सब्जेक्ट के घर की थी। हाँ उन्होंने तय कर लिया की बार बार सब्जेक्ट कहने से अच्छा था उसे कोई कोड नेम दे दिया जाय तो कुछ सोच के उन्होंने उसे एक कोड दे दिया A और का घर यानी ज़ीरो प्वाइंट यानी ए का अड्डा।

और बहुत ही डिटेल्ड, थ्री डाइमेंशनल, यहाँ तक की ये भी पता चल रहा था की नीचे बेडरूम में एक कपल 'एक्टिव ' था।

वह बड़ी देर तक सब्जेक्ट के घर, मतलब ए के अड्डे को देख रहे थे, थर्मल इमेजिंग से भी रिकार्डिंग हुयी थी, तो बॉडी हीट से पता चल रहा था, घर में कितने लोग हैं और कहाँ है, और सिर्फ दो लोग थे और जिस तरह दोनों बॉडीज चिपकी थीं, साफ़ लग रहा था की क्या हो हो रहा है, और कयोंकि रिकार्डिंग करीब बीस मिनट की थी, और बीस सेकेण्ड के इंटरवल की, तो उन कपल की बाड़ी हीट की १०० पिक्स थीं, और साफ़ पता चल रहा था की दोनों बहुत ही 'एक्टिव' हैं, लेकिन मिलन्द नवलकर को कुछ और देखना था, इस पूरी तर्स्वीर में कुछ गड़बड़ लग रहा था,



और उन्होंने अपने लैपटॉप के दो मिलेट्री ग्रेड सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया, दो मिनट लगा होगा और पिक्चर साफ़ हो गयी।



पहला सॉफ्टवेयर थ्री डी स्केल मैप बनाने में इस्तेमाल होता था, और नेवी सील ने ओसामा बिन लादेन के घर पे हमला करने के पहले सेट मैपिंग के लिए इस्तेमाल किया था, ये सेटलाइट पिक्चर्स के अलग अलग एंगल को जोड़ के स्केल्ड मैप उस घर का बना देता था, और अब उनके पास एक मैप ए के अड्डे का था, सिंगल फ्लोर, घर में कितने कमरे हैं, घुसने का रास्ता कहाँ है , बाहर छोटा सा गार्डेन, लान और उस गार्डेन में कौन कौन से पेड़, यहाँ तक की किचेन में ड्राअर कितने हैं, ये भी मैप ने ड्रा कर दिया और अब उसपे पिक्स को सुपर इम्पोज करके उस घर की एक एक चीज साफ़ समझ में आ रही थी।



लेकिन अभी आठ आने का खेल बाकी था, और उन्होंने एक ट्रायल वर्जन वाला सॉफ्टवेयर उस पर रन कराया, और अब चीजे और साफ़ हो गयीं

कैमरे, ….स्सालो ने कोई कमरा नहीं छोड़ा था जहाँ कैमरे न लगाए हो, और सब कुछ बग कर दिया था, यहाँ तक की बाथरूम और टॉयलेट भी, किचेन भी

और सब मूवमेंट से , और साउंड से आपरेट होने वाले, यानी कुछ नहीं हो रहा होगा तो वो पिक्स नहीं रिकार्ड करेंगे, लेकिन ज़रा भी मूवमेंट होने से, साउंड से यहाँ तक की सांस की आवाज से भी वो एक्टिव हो जाते। और ऐसी ऐसी जगह लगे हैं की कोई फुसफुसा के भी बाते करेगा तो पकड़ में आ जाएगा।



लेकिन उनके समझ में नहीं आ रहा था की गड़बड़ कहाँ है, पूरे घर की पिक्चर साफ़ दिख रही थी, एक एक कैमरे दिख रहे थे, वो कपल दिख रहे थे, यहाँ तक की बाहर लान और पेड़ भी, वो बार बार पिक्चर देख रहे थे, फ़ूड ट्रक वालों को लाइव फीड मिल रही होगी, लेकिन उन्हें भी अब कम से कम उस घर के बारे में पता चल गया था और केपटाउन से डाटा मिलने पर उन्हें भी लाइव फीड तो नहीं लेकिन २४ घण्टे की उस घर की रिकार्डिंग की कॉपी मिल जायेगी और फिर वो उन लोगो को असिस्ट कर सकते हैं।



और अच्चानक मिलन्द नवलकर की चमकी।

ऊपर एक कमरा है जिसके अंदर कोई कैमरा नहीं लगा है, लेकिन वो एक दुछत्ती की तरह है जहाँ बहुत कबाड़ सा है लेकिन एक टेबल पर एक डेस्कटॉप कम्प्यूटर है। उस कमरे के सारे डाइमेंशन एक्सेस के रास्ते उन पिकचर से साफ़ पता लग रहे थे।

थर्मल इमेजिंग से शेप साफ़ साफ़ दिख रहा था, और थ्री डी मैपिंग से एक एक आब्जेक्ट की लम्बाई चौड़ाई गहराई,.... लेकिन सबसे बड़ी बात उस कमरे में कैमरे नहीं थे, और वो मुस्कराये,



उन्हें लग गया अगले दो चार दिनों में क्या होनेवाला है, जल्द से जल्द एक सप्ताह के अंदर, जो उन्हें दिख रहा था, वो दुश्मन के डाटा एनेलिटिक्स और जासूस को भी दिख रहा होगा,

जब बग और छुपे कैमरे टॉयलेट तक में लगाने वाले ने छह छह लगाए थे, घर के किसी कोने में अगर कोई कागज पे भी लिख के दूसरे को मेसेज दे तो दिख जाए तो ऊपर के इस कमरे में न कोई बग और न कोई कैमरा, हाँ बाहर के दरवाजे के ठीक ऊपर एक कैमरा था, जिससे अगर कोई इस कमरे में जाएगा तो पता चल जाएगा।

और वह समझ रहे थे की ऐसा हुआ क्यों, दुछत्ती के कमरे के बाहर जो ताला लगा था वो देखने में आसान लग रहा था, लेकिन था मुश्किल और अगर बग लगाने वाला खोल भी लेता तो बंद कैसे करता और घर वालों को शक हो जाता, तो जिस भी बहाने से वो घर में घुसा, उसने ज्यादा समय नीचे बग लगाने में लगाया और फिर ऊपर उसे लगा की दुछत्ती में कोई आता जाता नहीं होगा, कबाड़ के लिए होगा और जिस तरह से जले लगे थे बाहर ये साफ़ लग भी रहा था,


लेकिन मिलिंद नवलकर के अंदर सबसे बड़ी बात थी, वो चेस के इंटरनेशनल मास्टर भी थे. अगला इस बोर्ड को देख के क्या चलेगा, वो सोच लेते थे. उसके पास भले ही चार पांच ऑप्शन हों लेकिन जो उसकी सोच होगी उसके हिसाब से,.... उन चार पांच ऑप्शन में वो क्या चलेगा, उन्हें पता चल जाता था.



और वो समझ गए की यही पिक्चर वो अज्ञात दुश्मन भी देख रहा होगा, और उस के पास एक ऑप्शन होगा, इस डेस्कटॉप कम्प्यूटर को हैक करना, उसके हार्ड डिस्क का सारा डाटा चुराना, लेकिन उसके लिए वो सामने के दरवाजे से नहीं घुसेगा, उसके लिए पहले घर में घुसो, सीढ़ी पे चढ़ो, ताला तोड़ो और आजकल सबके घर में अलार्म होता है, वो डिसेबल भी कर दो तो,...



घुसने का रास्ता उन्हें दिख रहा था, खिड़की और आलमोस्ट बगल तक आती आम के पेड़ की शाखाएं, उस पेड़ से खिड़की तक पहुँचाना आसान था, और फिर खिड़की खोल के सीधे कमरे में

तो अगर अगले चार पांच दिन में ये कपल रात में कहीं बाहर होगा तो ये हो सकता है, क्या मालूम था की अंदर एक कम्प्यूटर था, और अगली पार्टी उसके राज खगालने के लिए बेचैन होगी।

मतलब कोई फिजिकल इन्वेजन होने वाला है लेकिन जिसमे वो फ़ूड ट्रक वाली टीम नहीं होगी, कोई सेपरेट टीम होगी।

उस कमरे की एक्सेस नहीं मिलने से उन्हें फोन की रिकार्डिंग से पता चला हो की किसी रात वो कपल वहां नहीं रहने वाला होगा और उस समय वो लोग रूम को एक्सेस करने की कोशिश करेंगे।

उस इन्वेजन को मॉनिटर करके, मेन कंपनी तक पहुंचना ज्यादा आसान होगा। लेकिन इसके लिए जरूरी होगा की से कम्युनिकेशन एस्टब्लिश करना, उस बंद कमरे के कम्प्यूटर में कुछ ऐसे ट्राजन डालना जिसके जरिये मेन सोर्स तक पहुंचा जा सके।

मिलिंद नवलकर का मुख्य काम था, कौन कम्पनी अटैक कर रही है इसका पता करना और अब उन्हें लग रहा था की काम हो जायेगा।

ये एक बहुत इम्पोर्टेन्ट प्वाइंट होगा, और उनका दिमाग रेस के घोड़े की तरह दौड़ने लगा, तीन बातें,



पहली बात, जीरो प्वाइंट, या ए के अड्डे से कांटेक्ट करना, लेकिन इस तरह से की वो गाजर वाले, फ़ूड ट्रक वाले या किसी सर्वेलेंस वाले को खबर न हो और उसे इस होने वाले फिजिकल इन्वेजन से आगाह करना, ए है तो बहुत चालाक जिस तरह से उस गाजर वाले की उस लड़की की और फ़ूड ट्रक की पिक्स भेजी, लेकिन इस होने वाले फिजिकल इन्वेजन से आगाह करना, आगाह करना इसलिए जरूरी है की कुछ भी करे वो इसे रोके नहीं और उन्हें जहाँ भी जाना हो उस प्रोग्राम के बारे में फोन पे बात करें और उसे पोस्टपोन न करें, और उस इन्वेजन के पहले उस डेस्कटॉप में कुछ जड़ी बूटी डालना होगा अगले एक दो दिन के अंदर ही, और पहला काम होगा ए का की अगर कुछ ख़ास फ़ाइल हों तो उन्हें हटा लें, लेकन जड़ी बूटी से डाटा में किये किसी चेंज का पता नहीं चलेगा, ये भी नहीं लगेगा की किसी ने डेस्कटॉप को हाथ भी लगाया है दस पंद्रह दिन में।



दूसरी बात, जब वो इनवेडर डाटा हैक करेगा तो उसके साथ ही वो ट्राजन भी, लेकिन किसी भी एंटीवायरस से उस ट्राजन का पता नहीं चलेगा, वो अपना स्ट्रक्चर डाटा फ़ाइल की तरह ही कर लेगा, और उस ट्राजन के साथ जीपीएस लगा होगा तो जहाँ जहाँ डाटा जाएगा उस की लोकेशन पता चल जायेगी। और जियोटैगिंग कर के आगे की बात,



फिर ये डाटा किसी सेटलाइट से नहीं बल्कि कुरियर से यानी फिजिकल ही जाएगा, तो एक नहीं तो दो या तीन कुरियर बदले जाएंगे तो उस हमलावर से अगर कोई चीज चिपक जाए, तो बस उस को टैग करके, फिजिकली उसका पीछा करके, सोर्स तक पहुंचा जा सकता है लेकिन अब इन तीनो कामो के लिए ए से कांटेक्ट करना और वहां कुछ रक्षा मंत्र चलाना जरूरी है,

तो अभी ये दो काम ही थे, एक तो मलाड मानुष का पता करना और दूसरे जीरो प्वाइंट से कम्युनिकेशन एस्टब्लिश करना, और बिना उस घर से कॉनटेक्ट किये,.... ये साफ़ था की घर और आफिस के सारे फ़ोन और कंप्यूटर कम्प्रोमाइज्ड होंगे।



उनका दो घंटे और सोने का प्रोग्राम पानी में चला गया।

उन्हें साढ़े नौ बजे कोलाबा में लियोपॉल्ड में किसी से ब्रेकफास्ट पर मिलना था और फिर पौने ग्यारह बजे कैफे मोंडेगर में।और एक बजे वो एयर होस्टेस आ रही होगी, केपटाउन से डाटा की फ़ाइल ले के उससे मिलना।



एम् पहले लियोपॉल्ड और फिर ठीक ११ बजे कैफे मोंडेगर में थे।

उसके बाद वो दूसरे काम पर लग गए, मलाड मानुष के।

कैफे मोंड़ेगर में जो उनकी बातचीत हुयी उससे काफी कुछ पता चला, मलाड मानुष का न सिर्फ नाम पता बल्कि करीब करीब पूरी कुंडली। मुंबई स्टॉक एक्सचेंज के अलावा बाहर के भी कई स्टॉक एक्सचेंज में वो ट्रेडिंग करता है और उसका एक्सपर्टीज, फायनेसियल्स को जांचना, आगे होने वाले कोलेप्सेज को फोरकास्ट करना,

बल्कि मोंड़ेगर कैफे में उनके मिलने वाले ने तो यहाँ तक कहा की वो मर्सी किलिंग में भी उस्ताद है। मतलब जो कम्पनी डूबने के कगार पे हो ( या कोई उस कम्पनी को डुबाना चाहता हो ) उसे बजाय हलाल करने के वो एक झटके में ख़तम करने में एक्सपर्ट है। शेयर मार्केट में जो भी बीयर वाले आपरेशन होते हैं कहीं न कहीं उसके पीछे उसका दिमाग और हाथ रहता है, यहाँ तक की कई जो सो काल्ड स्टॉक मार्केट के बड़े बड़े बीयर या मंदी वाले एक्सपर्ट हैं उनके पीछे भी उसी का दिमाग काम करता है , लेकिन वो खुल के बहुत कम सामने आता है।

और आखिरी बात फोरेंसिक अकाउंटिंग में भी उसकी पकड़ है और सेबी में मिडिल लेवल में उसके बड़े कांटेक्ट हैं।



रोज शाम को ४ से ५ वो स्टॉक एक्सचेंज में जरूर आता है और उसके बाद यजदानी में बन मसका और नहीं तो बॉम्बे हाउस के बगल में एक चाय की दूकान है वहां पर।

===

और अब वह अगली मुहीम पे लग गए, केपटाउन से डाटा लाने वाली एयरहोस्टेस से कांटेक्ट के लिए और उसके लिए उन्हें एयरपोर्ट जाना था।
 
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अंशिका पांडेय -एयर होस्टेस

और मुंतजिर खैराबादी



एयर होस्टेस का नाम और पिक उनके बंदे ने भेज दिया था, केपटाउन से इंडिगो फ्लाइट थी, दो बजे मुम्बई में लैंड करने वाली थी,



और एक बार नाम और पिक मिल जाए, तो एम् के लिए उसके बारे में पता करना क्या मुश्किल था, उस एयरहोस्टेस की उन्होंने पूरी कुंडली खगाल ली, २१ से ज्यादा लेकिन २२ से कम, साल भर भी नहीं हुआ था इंडिगो ज्वाइन किये, और आज कल की लड़कियां,, जब वह जवानी की सीढियाँ चढ़ रही थी थी तबसे आज तक की उसकी इंस्टाग्राम से उन्होंने निकाल ली, और उसके सारे सोशल मिडिया के आकउंट भी देख लिए,

पैदा बनारस में हुयी, कुछ पढ़ाई बनारस में, कुछ लखनऊ में ( ला मार्टिनयर गर्ल्स )




और कालेज में दिल्ली, वही से इंडिगो, एक दो मिस कालेज टाइट कम्पटीशन में हिस्सा भी लिया और टॉप ५ तक पहुंची भी,



कोई स्टीडी क्या शार्ट टर्म का ब्वाय फ्रेंड भी नहीं था, हाँ दो चार कैजुअल, स्कूल , कालेज और उस के बाद भी, तो साफ़ साफ़ बोले तो चुद गयी थी लेकिन बहुत नहीं चुदी थी न किसी से दिल का मामला था,

और लुक और पोस्ट्स दोनों से लगता था, माल सिर्फ मस्त ही नहीं बहुत गरम है। लेकिन सबसे मजेदार बात ये थी की उसे शेरो शायरी का शौक था, अपनी इंस्टा के पोस्ट पे कैप्शन कुछ चलताऊ शेर अंशिका ने डाल रखे और एक दो जवाब में शेर इस्तेमाल किये



बस एम् ने तय किया, मुंतजिर खैराबादी,।

वह मिलिंद नवलकर या मनोज जोशी के रूप में नहीं मिल सकता था। सारी छानबीन मिलन्द नवलकर के नाम से हो रही थी और शेयर मार्केट के जाल से बातें निकलवाने के लिए और मलाड के मानुष के लिए मनोज जोशी,

तो अगर किसी तरह वो व्योमबाला जो डाटा ले आ रही है, वो कम्प्रोमाइज्ड हो गया, केपटाउन से कोई उसके पीछे पड़ा है तो उसे यह ही पता चलेगा की उसकी मुलाक़ात एक मुंतजिर खैराबादी नाम के इंसान से हुयी, और उस इंसान का इस चक्कर से कोई लेना देना नहीं।



तो बस आधे घंटे से भी कम टाइम लगा उन्हें मुंतजिर खैराबादी का रूप धारण करने पे, एक पुरानी शेरवानी, अलीगढ़ी पाजामा, जेब में घडी और एक मखमली टोपी,

लेकिन जब वो एयरपोर्ट के पास पहुंचे, तो अंशिका का ही मेसेज उनके पास आ गया,
"आप सेंटूर होटल में पहुंचिए, बार में मैं वही मिल जाउंगी, मैं वहीँ रुकी हूँ और पहचान तो आप लेंगे ही,"

उस बेचारी को क्या मालूम था की जब वो जवान होने की कोशिश कर रही थी, तब से आज तक की पिक्स मुंतजिर के जेहन में इंस्टा से निकल के चिपक गयी हैं, लेकिन उन्हें सबसे तसल्ली हुयी, ये बात पढ़ के की, ' मैं वहीँ रुकी हूँ "।


क्या पता किस्मत मेहरवान हो और एक कई दिन का उपवास आज टूट जाए,




और ढेर सारी एयरहोस्टेस बार में मौजूद थीं, कुछ उन्हें चारा डालने वाले भी, लेकिन एक झटके में मुंतजिर ने पहचान लिया, आँखे, वो बड़ी बड़ी हिरणी सी आँखे, चंचल, कजरारे कजरारे नैन, दो बातें उन्होंने अंशिका के फोटो से पकड़ी थी, एक तो उसकी आँखे, गजब की थीं, बहुत ही एक्सप्रेसिव और प्यासी, और दूसरे उसके जोबन, एयरहोस्टेस के टाइट ड्रेस में जैसे जबरदस्ती, ३४ के उभार को ३२ में बंद करने की कोशिश की गयी हो, और वो बगावत पे उतारू हों, और जोबन और बगावत, दोनों ही जितना दबाओ, उतना बढ़ते हैं



मुंतजिर ने एक कोने की टेबल दबा ली थी और जैसे ही, अंशिका ने उनकी ओर देखा, उन्होंने जैसे खुद से एक शेर पढ़ा

तिरछी नजर का तीर है मुश्किल से निकलेगा,

दिल उसके साथ निकलेगा, अगर ये दिल से निकलेगा।




और कई एयरहोस्टेस की निगाह उनकी ओर मुड़ गयी, जैसे एक साथ चार पांच बिजलियाँ गिर गयी हों, लेकिन उस पर पर असर हुआ, जिस पर वो चाहते थे,


" तो जनाब शायर भी हैं " उस की शहद से घुली आवाज आयी, और वो खुद उनके टेबल पर,

पिक्चर ने बहुत ज्यादती की थी बेचारी के साथ, उसकी आँखे फोटुओं से भी बहुत ज्यादा नशीली थीं, और जोबन तो ग़दर मचा रहे थे लेकिन एक चीज जो फोटो में नहीं थी अब दिखी, उसका पिछवाड़ा, जबरदस्त, एकदम टाइट, और जिसने भी कामसूत्र पढ़ा है, चुदवासी औरतों की जबरदस्त निशानी

"जनाब की जर्रानवाजी, जब ग़ज़ल खुद चल के आ जाए और ताल्लुक मीर तकी मीर और नासिख़ के शहर से हो तो दो चार लाइने कोई भी लिख लेगा, आदाब, बन्दे को मुंतजिर खैराबादी कहते हैं " एकदम लखनऊ की स्टाइल में उन्होंने आदाब किया

और मजे की बात ये की अंशिका ने भी उसी अंदाज में और खिलखिलाती बोली," नवाबों के शहर में चंद साल मैंने भी गुजारे हैं तो थोड़ा बहुत शायरी का जौक पैदा हो गया . लेकिन इस शहर में पहली बार किसी के लबो पे ऐसा प्यार शेर देखा "

मुंतजिर ने अंशिका के गुलाबी रसीले होंठों पर अगला शेर पढ़ दिया

" नाजुकी उसके लब की क्या कहिये


पखुंड़ी इक गुलाब की-सी है।"


मुंतजिर की निगाहें अब अंशिका के होठों से चिपकी थी, एक बार किस करने को मिल जाए, लेकिन अंशिका मुस्करा उठी

"वाह, वाह, खुदा ए सुखन मीर तकी मीर का शेर,

और उससे भी बड़ी बात अंशिका ने उसी ग़ज़ल के अगल दो शेर तरन्नुम में सुना दिए

चश्म-ए-दिल खोल इस भी आलम पर

याँ की औक़ात ख़्वाब की सी है

बार बार उस के दर पे जाता हूँ

हालत अब इज़्तिराब की सी है




और अब बारी मुंतजिर की थी, वह अमृत पान कर रहे थे ( हिन्दुस्तान की बनी सिंगल माल्ट व्हिस्की,...)

और अंशिका की कजरारी आँखों को दिखाते हुए टोस्ट किया, और उसी ग़ज़ल का आखिरी शेर उन निगाहों के नाम पढ़ दिया,

'मीर' उन नीम-बाज़ आँखों में

सारी मस्ती शराब की सी है




" वाह वाह, अब तक यार तुम थे कहाँ, " अंशिका आप से तुम पर आ गयी और उनके जाम को उनके हाथों से लेकर सीधे अपने लबो पे


अंशिका की सहेलिया बार काउंटर पे खड़े हो के टेक्विला के शॉट ले रही थीं और शायरी का मजा भी उन्होंने अंशिका को उकसाया

" अंशु, शॉट "



और अंशिका के पहले मुंतजिर ने ग्लास उठा के उस टेक्विला के प्रस्ताव पे हामी भर दी, लेकिन अंशु कम नहीं थी,... उसने अपनी कंडीशन अप्लाई कर दी,

" हर शॉट पे दो शेर और वो भी मेरी आँखों पे "
मुंतजिर की आँखों में आँखे डाल के वो बोली और पहले शॉट के पहले ही दो शेर अंशिका की आँखों में झांकते,... उन्होंने पढ़ दिया

खिलना कम, कम कली ने सीखा है,


तेरी आंखों की नीमबाजी से।



शुरुआत मुंतजिर ने मीर के ही शेर से की और फिर एक और

क्या पूछते हो शोख निगाहों का माजरा,

दो तीर थे जो मेरे जिगर में उतर गये।




अंशिका एकदम झूम गयीं और वाह वाह की झड़ी लगा दी और दोनों ने एक साथ पहला शॉट गटक लिया लेकिन अब बेशर्मो की तरह मुंतजिर की निगाह उसके जोबन से चिपकी थी और वो भी कभी अंगड़ाई लेके कभी उभार के उन्हें ललचा रही थी, और अब नंबर था दूसरे शॉट का


लेकिन मुंतजिर ने धीरे से कहा, " अब आगे के शेरो के लिए सिर्फ दाद देने से काम नहीं चलेगा "

" तो और क्या लोगे, " अंशिका ने उसी तरह डबल मीनिंग बात को आगे बढ़ाया, और आंख भी मार दी, फिर जोड़ा,

" ले लेना यार जो मन करे "

और अब दो शेर आँखों पे फिर से सुनाने थे और अंशिका के साथ बाकि एयरहोस्टेस भी शेरो के खजाने की गहराई देख रही थी

तेरा ये तीरे-नीमकश दिल के लिए अजाब है,

या इसे दिल से खींच ले या दिल के पार कर।




जिस अंदाज से अंशिका की आँखों के देख के मुन्तजिर ने कहा, बस वो घायल हो गयी और बोल उठी, " अरे ऐसे शेर पे, तो जिस मुंह से शेर निकला हो उसे चूम लेने का मन करता है "


चूम ले चूम ले, सब एयरहोस्टेस चिल्लाईं, टेक्विला का असर चढ़ रहा था और मुंतजिर ने अगला शेर सुनाया और टेक्विला का शॉट दोनों ने लगा लिया,


दीवानावार दौड़ के कोई लिपट न जाये,

आंखों में आंखें डालकर देखा न कीजिए।




जैसे ही ये शेर ख़तम हुआ, टेक्विला का दूसरा शॉट अंदर गया, अंशिका ने खुले आम उसे चूम लिया,



" तेरी आँखों के तो बहुत दीवाने हैं, लेकिन ऐसा शायर दीवाना पहली बार दिखा, यार अंशिका इसे इनाम दे ही दे " एक एयरहोस्टेस बोली

और तीसरा शॉट जैसे ही दोनों ने उठाया, बाकी एयरहोस्टेस चिल्लाईं, पहले दो शेर उसके बाद शॉट


देखा किये वह मस्त निगाहों से बार-बार,

जब तक शराब आई,. कई दौर चल गये।




अंशिका खूब जोर से चिल्लाई,.... खुश हो के

और तब तक अगला शेर भी अंशिका की आँखों के नाम मुंतजिर ने नजर कर दिया,

फिर न कीजे मेरी गुस्ताख निगाहों का गिला,

देखिये आपने ने फिर प्यार से देखा मुझको।




और टेक्विला के तीन शॉट ही टुन्न करने के लिए काफी होते हैं लेकिन आज सब जोश में थे और अंशिका एकदम खुल गयी थी,



" मुझे आप को कुछ देना था, " धीमे से झुक के अंशिका बोली और उसके जोबन का सब उभार छलक गया।

" तो दो ना " मुंतजिर ने हाथ फैला दिया,

" ऐसे नहीं दूंगी, वो सामान मेरे रूम में मिलेगा, वहां चलना पड़ेगा और कुछ गरम गर्म शेर सुनाने पड़ेंगे, आते हैं की नहीं " अंशिका बोली



" आते हैं, और सुनाऊंगा भी लेकिन वो सच में बेडरुम में ही सुनाये जाते हैं " मुंतजिर का भी नागराज फनफना रहा था



लेकिन दुष्ट सहेलियां उन्होंने चौथा शॉट भी पकड़ा दिया और अबकी मुंतजिर ने बोनस के दो शेर जोड़ के चार शेर अंशिका की आँखों के नाम पे सुना दिए



मस्त आंखों पर घनी पलकों की छाया यूँ थी,

जैसे कि हो मैखाने पर घन घोर घटा छाई हुई।




तुम्हारी आँखों की तौहीन है ज़रा सोचो,

तुम्हारा चाहने वाला शराब पीता है।।




तो मत पियो न, चल उठ यार रूम में चलते हैं, अंशिका लड़खड़ाती उठी, और मुंतजिर ने उन्हें पकड़ लिया लेकिन चलने के पहले बाकी लोगो को सुना दिया, इन मोहतरमा की नज़रों की नजर हैं ये



करने का नहीं कद्र कोई इससे जियादा,

रखता हूँ कलेजे में तेरे तीरे-नीमकश को।




और फिर,



चारासाजों! तुम पहले उनकी नजर को देखो,


फिर मेरे दिल को देखो, मेरे जिगर को देखो।
 
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अंशिका



जैसे कोई प्रोप्राइटरी आइटम को पकड़ के ले जाए, उस तरह अंशिका मुंतजिर को लेकर लिफ्ट में दाखिल हुयी और लिफ्ट में घुसते ही लता की तरह लिपट गयी, और उस की एक दो सहेलियां एयरहोस्टेस भी थी उस का फरक नहीं पड़ रहा था

" हे सुना न वो वाला " अंशिका ने लिबराते हुए कहा,

मुंतजिर ने उसे कस के पकड़ रखा था और एक हाथ अब सीधे उभार पे, बस उसे खुल कर और कस कर दबाते हुए सुना दिया



नैनो से तीर मत चला ,मैं बाबा ना कोई पीर,

तू मेरी महारानी और,मै तेरी चुत का फकीर


लेकिन न अंशिका ने बुरा माना न उसकी सहेली एयरहोस्टेस ने, और अंशिका और चिपक के बोली,

सच्चा प्यार वो नहीं जिस में दिल टूट जाये,

सच्चा प्यार वो है जिस में पलंग टूट जाये!


और मुन्तजिर को कमरे की चाभी पकड़ा दी, जवाब मुंतजिर ने कमरे में घुसते घुसते दे दिया,



मांस खाये चर्बी बढ़े,घी खाये खोपड़ा।

दूध पियें, तो लौंड़ा बढ़े,जो फाड़ डाले भोंसड़ा।




और अंशिका ने दो काम किये, एक तो मुन्तजिर को पकड़ के कस के चूम लिया, फिर अपने टॉप से निकाल के वो ड्राइव दे दी, जिसमे से केपटाउन से, और बाथरूम में चेंज के लिए जाते जाते एक टॉवेल उठा के मुंतजिर की ओर मुन्तजिर की ओर उछाल दिया,



और मुंतजिर ने कई काम किये करीब करीब एक साथ, दरवाजे का लॉक चेक किया, अपना लैपटॉप निकाल के वो डिस्क चेक करके लगाया , उस डिस्क की झिल्ली फटी नहीं थी,मतलब अंशिका उस डिस्क को एकदम सेफ्ली ले आयी थी, डाटा कम्प्रोमाइज नहीं हुआ था



और अब अपने उस ख़ास लैपटॉप के सब सॉफ्टेवयर भी उस डिस्क पे चला दिए, और अपने चार सवाल भी जड़ दिए, और सबसे बड़ा सवाल था क्या वो कपल अगले हफ्ते कहीं घर छोड़ के जा रहा है और जारहा है तो कहाँ, कितने दिन के लिए और घर पर कोई रहेगा तो नहीं।



सॉफ्टेवयर सब फोन की रिकार्डिंग सुन के काम की बात निकाल लेता और सारा डाटा उन के कहस बादलों पे रहता जहाँ सात जीन उसके निगहबान थे, बस आधा घंटा से चालीस मिनट लगना था, और हाँ इस बीच ये प्रॉसेस इंटरप्ट नहीं होना था और मुंतजिर को कुछ करना भी नहीं था, और उन चारो सवालों के जावब एन्क्रिप्ट होक उनके मोबाइल पे आ जाते,



और दस मिनट बाद,



अंशिका घोड़ी बनी थी, पलंग टूटने का कोई खतरा नहीं था, क्योंकि वो पलंग पकड़ के फर्श पे निहुरी थी, और मुंतजिर उनपे चढ़े थे

शायरी बंद थी क्योंकि गजल चुद रही थी, शायर चोद रहा था।



तूफ़ान मचा था।



एकदम जिन्नाती चुदाई, लम्बा मोटा तो था ही जनाब मुंतजिर का दीवान लेकिन चोदने ,में वो एकदम गंवार हवाशियाना तरीका इसतमाल कर रहे थे यानी उनके नाख़ून अंशिका की मोटी मोटी कसी कड़ी चूँचियों में धसे थे, नाख़ून नए नए शेर लिख रहे थे, और उनका शेर गुफा में घुसा

और मुंतजिर ऐसे उस्ताद को अंदाज लग गया था की ये ग़ज़ल अभी दर्जन भर मुशायरों में भी नहीं पढ़ी गयी है, चुदी तो है लेकिन अभी तक उन जैसे वहशी चुदककड़ के पल्ले नहीं पड़ी है और शायद दहाई का आंकड़ा भी नहीं पार किया है इस शोख ने,



वो आधा पेल कर के फिर निकाल लेते थे, और फिर दुगनी तेजी से दरेरता,रगड़ता, घिसता उस संकरी गली में घुसता तो चीख निकल जाती उस हसीना के, बस दस पांच मिनट तड़पा के उन्होंने आलमोस्ट सुपाडे तक निकाल के, एक धक्के में जो ठेला तो आधा मूसला अंदर और दूसरे तीसरे धक्के में जो चीखे निकली, लेकिन पांचवे धक्के में मोटा हथोड़ा उस व्योमबाला के बच्चेदानी से टकराया, जिस ऊंचाई तक वो आज तक न उडी होगी वहां मुन्तजिर ने पहुंचा दिया था,



चीखे सिसकियों में बदल गयी थीं, तूफ़ान के पत्ते की तरह वो काँप रही थी और मुन्तजिर समझ रहे थे क्या होरहा है, उन्होएँ अपना घोडा पूरा अंदर घुसा रखा था, उसे पूरी ताकत से दबा रखा था,

अंशिका की आँखे उलट गयी, वो लगभग संज्ञा शून्य हो गयी थी, देह पहले तो खूब कड़ी हो गयी, और पानी से बाहर निकली मच्छी की तरह वो तड़पी,

पहली बार शायद वो झड़ रही थी। उसकी चूत कस कस के सिकुड़ रही थी, लंड को निचोड़ रही थी, जैसे कह रही हो स्साले अब तुझे छोडूंगी नहीं

और मुन्तजिर ने उसे कस के दबोच रखा था, लेकिन दो चार मिनट के इंटरवल के बाद, शायर ने दूसरी ग़ज़ल शुरू की जो जितनी खूबसूरत थी



उतनी ही खतरनाक भी,

होंठों और उँगलियों से लिखी गयी ग़ज़ल, रोमांस की कविता



और एक लड़की के लिए जो अभी कैशोर्य के सपनो से बाहर न हुयी, जिसके लिए रोमांस अभी सेक्स से जायदा दिलकश हो, जिसने कैशोर्य में कदम ही शायरों के शहर लखनऊ में रखा हो,



बिन बोले मुंतजिर बहुत कुछ कह रहे थे, उनके होंठ कभी कान की लर चुम रहे थे कभी कानो में कोई शेर गुनगुना ररहे

अच्छा है दिल के पास रहे, पासबाने -अक्ल,

लेकिन कभी - कभी इसे तन्हा भी छोड़ दें।


( पासबाने-अक्ल --- अक्ल का पहरा )

कभी उँगलियाँ जुल्फों को छेड़ती और उनके होंठ ये शेर गुनगुनाते,

खुला यह राज जब आये वो बाल बिखराये,

कि रौशनी से जियादा हसीन हैं साये।




और गालों को चूम कर,

जुल्फें बिखरी हुई हैं आरिज पर,

बदलियों में चराग जलता है।


( आरिज -गाल )



और धीरे धीरे चूमने की रफ्तार बढ़ने लगी, कभी कंधो पे, कभी बगल में कभी पीठ पे, कभी उँगलियाँ चौड़ी चिकनी पीठ पे कुछ लिखने की कोशिश करते, और अंशिका अब गरम हो रही थी, उन्ह हाँ कर रही थी मचल रही थी, और एक हाथ जो अभी भी उसके जॉबन को कस के दबोचे था, उसने उरोजों को हलके हलके सहला के जवाब दिया, फिर निपल को फ्लिक कर दिया, जुबना से लगी आग वो पिघलती आंच फ़ैल कर अब जाँघों के बीच पहुँच गयी थी, प्रेम गली एक बार फिर से बार बार सिकुड़ रही थी, लेकिन मुंतजिर उसकी शर्म गायब करना चाहते थे

अंत में अंशिका ने धीरे धीरे से जुस्तजू की,

" कर न यार, "

" और झुक के दहकते गुलाबी गुलाबों पे बस भौरे की तरह अपने होठों से छुला के मुंतजिर ने हलके से पूछ लिया,

" क्या करूँ जानम, हुकुम कर "

अंशिका अभी भी कुछ हिचक रही थी फिर भी बोल पड़ी

" अबे स्साले जो अभी तक कर रहे थे, "



और मुंतजिर का जवाब भी जबरदस्त था, उन्होंने बिन बोले अपने अंगूठे से फूलते पचकते क्लिट को दबोच के कस के रगड़ दिया अब तो अंशिका की चूत में आग लग गयी, लंड के लिए वो पागल हो गयी, कस के दबोचने लगी उसे,

" क्या कर रहा था, यार एक बार खुल के बोल दे, स्साली लेने शर्म नहीं घोंटने में शर्म नहीं, सब लाज बोलने में है , कैसी बनारसवाली हो "

और अंशिका समझ गयी, वो क्या सुनना चाहता है बस वो बोल पड़ी,

" चोद स्साले, यहाँ कौन तेरी बहन बैठी, जिसको चोदेगा, चोद स्साले "



और मुन्तजिर ने लंड आलमोस्ट निकाल के क्या धक्का मारा, अंशिका ने पलंग को कस के पकड़ रखा था और मुंतजिर ने भी दोनों हाथों से कमर को जकड़ रखा था, लेकिन उनकी एक आँख लैपटॉप पे लगी थी, करीब आधा डाटा अपलोड हो गया था।



और फिर चुदाई के साथ गाली गलोज सब, और थोड़ी देर में अंशिका पलंग पे लेटी थी, एकदम किनारे चूतड़ बस किनारे लगे और ऊके निचे पलंग के सारे तकिये और मुन्तजिर के कंधे पे वो खुद खड़े,

अंशिका ने कुछ चिढ़ाया, और मुन्तजिर ने लंड पूरा निकाल के जोरदार धक्का मारा और बोले, "स्साली तेरी बहन की चूत मारु "

" मार लेना यार लेकिन कुछ दिन इंतजार करना पड़ेगा, अभी चौदह की है "



मुंतजिर की सब मालूम था, उसका भी इंस्टा उन्होंने चेक कर लिया था, अंशिका की छोटी बहन अनिका सेंट मैरिज में ९वि में थी दो साल से इंस्टा पे थी और रील भी बनाती थी, साइज २८ की लेकिन ३० से कम नहीं लगाती थी, और दोनों बहनों की माँ, जुथिका, एक पक्की सोचलाइट ३७-३८ के आसपास की



लेकिन वो बोले, : स्साली चौदह की है तो पक्की चुदवासी होगी, पर चल पहले तू घोंट "



और कुछ देर बाद जब अंशिका झड़ी तो साथ साथ मुंतजिर भी और हाँ पहले ही उनके कान में अंशिका ने बोल दिया थ। " मैं पिल लेतीं हूँ , अंदर ही झड़ना, सब पानी अंदर "



और झड़ने के बाद भी दस मिनट तक वैसे ही वो पेले रहे,



और दोनों ने एक एक सिगरेट जलाई,अंशिका ने एक पेग बनाया, और थोड़ी देर में सेकंड राउंड भी शुरू हो गया, और अबकी पहले गॉड में लिए लिए फिर खड़े, और अंत में अंशिका खुद उनके ऊपर चढ़ के लिए झड़े जब तो मुन्तजिर ही ऊपर थे



और अबकी दोनों बहुत देर तक पड़े रहे लेकिन तब तब तक फोन बजा, आधे घंटे में नीचे के मीटिंग के लिए बुलाया था



और एक बार फिर वो बाथरूम में लेकिन बोल के गयी, बस पन्दरह मिनट लगेगा मैं तैयार हो के आती हूँ



वो बाथरूम में और मुंतजिर अपने लैप्टॉप पे सारा डाटा अपलोड भी हो गया था और उनके सवालों का जवाब भी आ गया था।

और जो वो सोच रहे थे, वैसा ही था,



। रविवार की शाम को, इसी रविवार की शाम को यानी चार दिन बाद, वो कपल रात भर के लिए जा रहा था, और उनके साथ शायद एक और कपल होंग। वो लोग शाम को पांच बजे के आसपास और किसी भी हालात में छह बजे तक निकल जाएंगे।



२ जिस जगह के लिए वो जा रहे थे ऐ आई ने उस की भी जांच पड़ताल कर के उस का नक्शा, और सब डिटेल दे दिया था। यह रिसार्ट शर से करीब चालीस पचास किलोमीटर दूर, एक जंगल और छोटी पहाड़ियों के बीच था, रिसार्ट में तीन कमरे थे और किचेन और स्टाफ के नाम पर के लेडी कूक थी। यह एक प्राइवेट कम्पनी का था और अक्सर बड़े अधिकारियों की मस्ती के लिए इस्तेमाल होता था, क्योंकि वहां पूरी प्राइवेसी थी, एक छोटा सा स्वीमिंग पूल था और भी बाकी सभी सुद्विधाये थी।

३ फोन काल से भले ही संडे की रात की बात हुयी हो, लेकिन संडे की शाम से अगले ४८ घंटे तक के लिए बुक था, इसका मतलब की पूरे चांस है की वो लोग मंडे की रात भी वहीँ गुजारे।

४ बुकिंग सब्जेक्ट या ए की पत्नी कोमल ने रिसार्ट बुक किया है और नाम दो लोगो के है, कोमल + १ और सुजाता +१, सुजाता उन की सहेली है। उस रिसार्ट में कोई टेलीफोन कनेक्शन नहीं है, नहीं वो किसी मोबाइल टॉवर से कवर होता है, इसलिए किसी भी नेटवर्क से वो बाहर है



मुंतजिर को बात समझ में आ गयी।



यही सब बातें हमलावर को भी मिली होंगी और उसने भी यही फैसला लिया होगा और रविवार की रात को अमावस्या भी है

और जो जादू मंतर वो ए की रक्षा के लिए और उस से भी बढ़ के उस डेस्कटॉप के जरिये उस उस इनवेडर से चिपक के इन बार बार हो रहे हमलों के स्त्रोत का पता चलेगा और एम् का काम हो जायेगा।



लेकिन उसके लिए उसका ए के अड्डे तक कल शाम या रात तक पहुंचना जरूरी है इसके लिए आज रात या कल सुबह तक अगर बनारस पहुँच जाए तो फिर वहां से ७-८ घंटे में उस टाउनशिप में आसानी से, लेकिन बनारस के लिए कोई भी कूरियर २४ से ४८ घंटा लेगा,

और अब यह अगली परेशानी थी, एक डिवाइस डिजाइन करना जो घंटे भर में हो जाएगा, लेकिन उसे जल्दी से जल्दी बनारस पहुँचाना,



और तभी अंशिका तैयार हो के निकली और उस के टैब पे कम्पनी के मेसेज थे मीटिंग के बारे में

" स्साला, बहनचोद गलती लेकिन मेरी ही थी, और तेरी भी पहले क्यों नहीं मिले स्साले " मुंतजिर को दबोचती अंशिका बोली,

: " हुआ क्या यार " मुंतजिर ने पूछा,

" अरे यार, बम्बई केपटाउन करते करते मैं आजिज आ गयी थी, अभी मेरा दो दिन का ब्रेक भी था तो मैंने सोचा था की मीटिंग के बाद बचा खुचा खेल तेरे साथ आज रात को खेल लूंगी, अभी तो मुशायरा शुरू हुआ है तो बस मैंने सोचा ऐसी ही कोई मीटिंग होगी तो बस एक छोटा सा ब्रेक लेके हम लोग रात में मिलते, पर "



दो मिनट दोनों चुप रहे और फिर अंशिका ही बोली, " मैंने ही बोला था बनारस के लिए, बहुत दिन से गयी नहीं थी तो आज जब मैं तेरे पास रहना चाहती थी, स्सालो ने मेरी डुयटी बनारस के लिए लगा दी और दो दिन का जो रेस्ट यहाँ का था वो बनारस में कर दिया, आज शाम ९ बजे की एक फ्लाइट है , ११ बजे पहुंचेगी, उस की एयरहोस्टेस किसी लौंडे के साथ लगता है गायब हो गयी है, पर पहली बार मैं लिड करुँगी , पार स्साला आज का ही दिन "



" तो क्या हुआ दो दिन बाद मिलेंगे हम लोग यही, क्यों परेशान हो, पर मेरा एक काम कर सकती हो, बनारस का, " मुंतजिर बोले



" स्साले क्या वहां भी कोई माल फंसा रखा है उससे कुछ काम है " हसंते हुए अंशिका दूर हो गयी, पर मुन्तीजीर ने माला साफ़ कर दिया और तय हो गया की शाम पांच बजे तक मुन्तजिर वो पैकेट ला के दे देंगे, अगर मौका होगा तो एक क्विकी भी, साढ़े छह तक अंशिका एयरपोर्ट के लिए निकल जायेगी, हाँ बनारस से जैसे आएगी उसी दिन मिलेगी।



और अब एम् को जल्द मुन्तीजीर से महेंद्र पांडेय बनना था और शाम को एक बार फिर से मुंतजिर लेकिन ये बड़ा काम हो गया , एक तो बनारस का काम, दूसरे केपटाउन से कुरियर का रेगुलर काम,



शाम को वो पैकेट ले के आये, लेकिन अंशिका का मेसेज आ गया था, वो नीचे बार में ही मिलेगी, उस के साथ के बाकी लोग भी वही थे लेकिन एक अच्छी खबर भी उसने दी, बनारस में वो सिर्फ एक ही दिन रहेगी, परसों वापस, और उस के बाद दो दिन का ब्रेक है।



उस ट्राजन वायरस को ' जीरो प्वाइंट ' तक पहुँचाने का।

एक बार अगर वो ट्राजन उस कम्प्यूटर में लोड हो जाएगा और संडे की रात को जैसा उन्हें अंदाज है वो कंप्यूटर हैक हुआ तो उस के सहारे सोर्स तक पहुँचाना आसान हो जाएगा। उस कंप्यूटर में पक्का सेंसिटिव डाटा होंगे और वो सीधे वहीँ तक पहुंचेंगे जो कम्पनी सर्वयालेंस करवा रही है।
 
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ट्राजन वायरस-- महेंद्र पांडे



तो एक बार फिर वो भोजपुरी रूप में आ गए। महेंद्र पांडे

बनारस की एक कम्पनी से बात करना था और एक बार उस कम्पनी का कोई आदमी सोनौली में फंस गया था, नेपाल बार्डर पे तो बड़ी जुगत से उन्होंने उसे छुड़वाया था। कम्पनी का बेस तो बनारस ही था लेकिन वो यूपी बिहार बंगाल और नेपाल में साइबर सिक्योरटी के साथ सर्वयालेंस और इंडस्ट्रियल चेकिंग का भी काम करती थी। और उन्होंने उसे फोन लगा के एकदम उसी अंदाज में काम बता दिया।

काम में भी जुगाड़ था। वो ट्राजन भेजे कैसे अगर सिर्फ पेन ड्राइव भेजते तो एक तो पता नहीं गीता को समझ में आता की नहीं दूसरे शक भी होता।

तो एक पुराने जमाने के नान स्मार्ट फोन में उन्होंने उस वायरस लोडेड पेन ड्राइव को डाला और अब अंशिका के जरिये आज देर रात तक उस एजेंसी के पास और कल उसी के जरिये से गीता के पास,



बनारस में उन्होंने दो काम बताये थे उस एजेंसी को। पहला कोई एजेंट उस लेटर बॉक्स में इस आब्जेक्ट को एक दिन के अंदर डाल देगा और साथ में वही एजेंट दो सीसी टीवी कैमरे एक पेड़ पर लगा देगा एक का फोकस लेटर बॉक्स पर होगा और दूसरे का उस बरगद के पेड़ पर जहाँ सब महिलाएं पूजा करने आती हैं। इन कैमरों की बैटरी ही दस दिन के लिए काफी थी और उसके बाद ये सोलर पावर से रिचार्च भी होते रहते। एम् को पूरा विश्वास था की जो भी खेल होना है हफ्ते दस दिन में हो जाएगा। उन कैमरों का सीधा कांटेक्ट उनसे होता और उन्हें ये पता चल जाता की गीता ने वो मोबाइल कब निकाला या पेड़ पर दो लाल चुनरी सबसे ऊपर बांध कर कोई मेसेज तो नहीं दिया।

लेकिन उसके पहले गीता से कांटेक्ट करना जरूरी था, और बनारस की उस एजेंसी से बात करने के पहले, बल्कि एयरपोर्ट आने से पहले वो गीता से कांटेक्ट कर के ए के पास मेसेज दे आये थे डार्क वेब में कांटेक्ट करने के लिए



और अभी जो बातें उन्हें पता चली थीं वो डार्क वेब में एक बॉट कम्युनिकेट कर देता, इन्वेजन के खतरे के बारे में भी और उसका उपाय भी, एक बार ए को ये संदेश मिल जाता और जो जुगाड़ उन्होंने किया था वो मिल जाता तो आगे के काम के लिए कोई दिक्कत नहीं थी। फिर उस फिजिकल इन्वेजन का वेट करना था और उसे ट्रेस कर के चोर के घर मोर वाली बात पूरी होनी थी।
 
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ज़ीरो प्वाइंट- गीता



लेकिन उसके पहले ज़ीरो प्वाइंट से कम्युनिकेट करना जरुरी था , और वो भी इस तरह की पहली बात तो आधे दर्जन कटआऊट हों बीच में और दूसरे जो मेसेज पास होना है उसमे उनके खुद होने या बात करने की जरूरत न पड़े।

बस सिर्फ कम्युनिकेशन चैनल एस्टब्लिश करना था और वो भी एमरजेंसी के लिए जैसे अभी ये बात बतानी जरूरी थी की की जिस रात वो लोग घर से बाहर रहेंगे उसके पहले उस कबाड़ वाले कमरे में रखे कम्प्यूटर में टार्जन डालने होंगे और दो से चार जो बहुत काम इस्तेमाल किये हुए नंबर हो वो कम्युनिकेशन प्वाइंट ज़ीरो प्वाइंट वाले को इस्टैब्लिश करने होंगे। हाँ किस दिन वो कपल रात में बाहर रहेगा, ये उनसे पूछना जरूरी नहीं था। जैसे सरवायलेंस वाले ने पता किया था फोन टेप्स से उसी तरह से उन्ही फोन टेप्स की डाटा माइनिंग करके वो भी निकाल लेंगे और ये काम उनका अपना डिजाइन किया सॉफ्टवेयर झटपटिया तुरंत कर देगा।



लेकिन फिर भी सवाल था की कांटेक्ट कैसे करें और उन्हें याद था की किसी फोन से उन तक पहुँचने का कान्टेकट इंशियेट हुआ था और उसी समय उन्होंने उस की कॉलर आई डी चेक की थी, कोई गीता नाम की थी और उस समय वो फोन सेफ था , लेकिन अभी क्या हालत थी ये तो चेक करना होगा न।



पहले तो एम् ने गीता के फोन की जियो टैगिंग की और सेटलाइट ने जो टारगेट के घर के आस पास का सर्वेलेंस पिक लेके मैप बनाया था, उस से मेल कराया और उस के चेहरे पे ख़ुशी नाच गयी।

गीता का घर उस सरवायलेंस मैप से बाहर था।

घर, आफिस, करीब करीब पूरा टाउनशिप उस मैप में था लेकिन कुछ जगहें नहीं थी और गीता का घर वैसे भी टाउनशिप में नहीं था।

दूसरी बात ये थी की उसका फोन वायरस फ्री भी था इसलिए उससे कम से कम एक से दो बार मेसेज भेजा जा सकता था लेकिन डाटा तो डाटा होता है और नान स्मार्ट फोन हो उसमें भी डाटा तो जाता ही है इसलिए उसे भी हैक किया जा सकता है।

तो बस एम् ने एक ताबीज में मंतर फूंक के गीता के फोन में एक मेसेज भेज दिया और उन्हें विश्वास था की जो सरवायलेंस का टारगेट था उन तक मेसेज पहुँच जाएगा --

मेसेज पहुँच भी गया और गीता से गुड्डी के भैया कम सैंया के पास भी।

लेकिन गीता इतनी समझदार थी की वो मेसेज उसने न तो फॉरवर्ड किया और न घर में बताया हाँ ये जिद उसने जरूर की आफिस जाते हुए उसे वो गीता के घर छोड़ दें अपनी गाडी से और ये पहली बार नहीं था।

गाजर वाले ने गीता को उनके साथ जाते देखा भी लेकिन उसमे उसे ऐसी कोई शक की बात नहीं लगी की शायद गीता का उनसे चक्कर चलता हो। लेकिन गीता ने अपने घर के पहले बिन बोले अपने मोबाइल को उन्हें खोल के दिखा दिया और वो समझ गए मेसेज कहाँ का और क्या है। मेसेज में सिर्फ उनकी पिक्चर थी और कुछ नंबर दिए थे। पिक्चर जिससे गीता समझ जाए की ये किसे दिखाना है और असली चीज वो नंबर थे। वो याद करके उन्होंने फोन में मेसेज डिलीट कर दिए।

वो नंबर उन्हें डार्क वेब के एक कोने में पहुंचाते जहाँ फेम डॉम का असली सौदा होता है।
 
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डार्क वेब

लेकिन डार्क वेब में एक्सेस वो न तो आफिस से कर सकते थे न घर से, कोने कोने में ' कीड़े ' थे और फोन भी, लैपटॉप भी और उनकी सेक्रेटरी का भी फोन और लैपटॉप ' इन्फेकेटेड' और दूसरा सेफ फोन वो आफिस में निकलना नहीं चाहते थे।

लेकिन उनके आफिस पहुँचते ही जैसे उस दिन का शेड्यूल मिसेज डी मेलो ने दिखाया एक मीटिंग उनके सप्लायर्स के साथ थी, जिसका डेढ़ सौ करोड़ का टेंडर उन्होंने अभी फाइनलाइज किया था।

असली खेल था सी एस आर का था, लेडीज क्लब में जो सैटरडे को तीज फेस्टिवल और संडे को तीज प्रिंसेज कुँवारी लड़कियों का था और जो पांच छह पार्टीज स्पांसर कर रही थीं उनमे से एक ये भी थीं। वो किसी होटल में लंच पर मिलाना चाह रहे थे। बस उन्होंने तुरंत लैंड मार्क होटल का नाम ले लिया। ये सही जगह थी शहर से करीब करीब बाहर और वहां से वो बाथरूम में जा के सेफ मोबाइल से या किसी रूम में से डार्क वेब होटल के किसी लैपटॉप से कर सकते.

लैंडमार्क की मीटिंग और लंच लंबा नहीं था लेकिन प्रोडक्टिव था।

पेमेंट शेड्यूल अब बहुत लिबरलाइज थे और उसके चलते न सिर्फ उस कम्पनी ने सप्लाई के रेट भी ७ % काम कर दिए थे बल्कि सी एस आर का अमाउंट भी दूना कर दिया था। लेकिन सी एस आर में कोई कैश कम्पोनेंट नहीं था, वो सिर्फ एक्टिविटी स्पांसर करती थी, जिसमे कॉस्मेटिक्स, लंच और एक दो और चीजें शामिल थी।

हाँ कारपोरेट गिफ्ट्स के नाम पर उन्होंने साफ़ कर दिया था की मिसेज मोइत्रा, उनकी दोनों कबूतरियां और उनकी पुरानी तीनो चमचियाँ शामिल होंगी।



मीटिंग के बाद होटल के ही एक कमरे से उन्होंने डार्क वेब एक्सेस किया, होटल के ही एक लैप टॉप से, जो बिजनेस लाउंज से होटल वालों ने ले कर वहां सेट कर दिया था। पहले तो उन्होंने उसे ' सनीटाइज ' किया और फिर डार्क वेब में घुसे। थोड़ा चक्कर काट के गीता के मोबाइल से जो नंबर उन्हें मिला था उस से एक मशहूर फेम डॉम सैंडी का रूम उन्होंने एक्सेस किया, लेकिन वहां पर फिर एक मेसेज मिला और उस से एक और दरवाजा खुला जो गे साइट्स को ले जाता था जिसमे एक से एक ट्विंक बॉटम्स का सौदा किया जाता था।

असली खेल वहीँ था और वहां दो जस्ट अडल्ट टीन ट्विनक्स के रेट कोट हो रहे थे।



एक मिनट के अंदर वो समझ गए की वो असल में नंबर के जरिये एक मेसेज है जो qwerty कोड में है यानी लैपटॉप के लेटर्स जिस क्रम में हैं बस उन्होंने उसे डी कोड कर के पढ़ना शुरू कर दिया। उनके लिए चार मेसेज थे जो कुल बीस सेकेण्ड में दे दिए गए फिर वो रूम बंद हो गया।



पहला मेसेज था की संडे की शाम को उन्हें कहीं जाना है तो उस प्रोग्राम को कैंसल न करें और उस शाम से २४ घंटे एकदम इलेक्ट्रानिक साइलेंस पर रहें। अपने घर की रूटीन जो नार्मल सिक्योरटी करते हैं वही करें।



अब उनको याद नहीं पड़ रहा था की संडे का क्या प्रोग्राम है , हाँ सैटरडे दिन का प्रोग्राम वो नहीं भूल सकते थे उस दिन उन्हें अपनी दोनों छोटी सालियों का, मिसेज मोइत्रा की दर्जा नौ में पढ़ने वाली जुड़वां बेटियों का योनिछेदन करना है और उनसे ज्यादा वो दोनों मिसेज मोइत्रा की छोरियां उतावली थीं अपने जीजा से खुदाई करवाने के लिए और अगले दिन संडे को तीज प्रिंसेज का प्रोग्राम है उससे उनका कोई लेना देना नहीं है, पर शाम को , उन्हें कुछ याद नहीं आया। और सैटरडे को ही वो रिपोर्ट अमेरिका में पब्लिश होनी है उस समय यहाँ पर रात होगी। लेकिन फिर उन्होंने दिमाग पर जोर डालना बंद कर दिया

हो सकता है कोमल ने कुछ फिक्स किया हो और इतने दिनों में उन्होंने सीख लिया था की बिना दिमाग लगाए बीबी और सास की बात मानने में ही फायदा है।



लेकिन अगला मेसेज ज्यादा काम का था और उसका सब दारोमदार गीता के ऊपर था। गीता के घर के पास ही एक बरगद का पेड़ था वहां हर बुधवार को औरतों का जमावड़ा लगता था शाम के बाद, घंटे दो घंटे। जिसकी जो इच्छा हो उसके लिए लाल चुनरी का एक टुकड़ा फाड़ के बाँधा जाता था, और पूरी होने के बाद पूजा के साथ उसे खोला जाता था। उसी के बगल में नीम का एक पेड़ था वहां एक लेटर बॉक्स टगा था जिसका इस्तेमाल पता नहीं कब से नहीं हुआ था। शायद पोस्ट आफिस वाले उसे हटाना भूल गए थे।

मेसेज के हिसाब से इस बुधवार को गीता को पहले तो उस पूजा में शामिल होना था और फिर बाद में उस लेटर बॉक्स में उनके लिए कोई सामान आएगा उसे निकाल लेना था और उन्हें उनके घर के बाहर किसी जगह पे दे देना था।



गीता का दूसरा इस्तेमाल था की अगर वो किसी इमरजेंसी में कम्युनिकेट करना चाहें तो गीता उस पेड़ पर जो सबसे ऊपर चुनरी का टुकड़ा बंधा होगा उससे ठीक एक बित्ते ऊपर दो चुनरी के टुकड़े एक साथ बांध दे, तो उनके पास कम्युनिकेशन का लिंक पहुँच जाएगा।



तीसरा मेसेज था गीता को जो ओब्जेट मिलेगा उसके अंदर एक पेन ड्राइव होगी जिसमे एक सॉफ्ट वेयर होगा जो उन्हें संडे को घर छोड़ने से पहले अपने ऊपर के कमरे में रखे कम्पनी वाले कंप्यूटर में डालना होगा लेकिन उस कम्यूटर के पुराने किसी भी डाटा से उन्हें छेड़ छाड़ नहीं करनी थी।



चौथा मेसेज था दुबारा डार्क वेब या किसी और तरीके से कांटेक्ट के बारे और उसके साथ एक मैप भी दिया था। और वो मैप देख के उनकी कस के फट गयी।

घर, आफिस, और टाउनशिप का बड़ा हिस्सा उसमें शामिल था। और वो डीप सेटलाइट सर्वेलेंस में शामिल था, मतलब की उनकी आवाज की रिकार्डिंग के आधार पर अगर वो किसी और फोन से भी बात करेंगे जो हैक नहीं हुआ है तो भी वो आवाज पहचान ली जायेगी और वो फोन भी हैक किया जाएगा। लेकिन गोल्डन लाइन ये थी की उस मैप के बाहर के एरिया के बाहर के इलाके में वो बिना हैक डिवाइस के जरिये कांटेक्ट कर सकते थे लेकिन उसके लिए भी चेतावनी थी, की किसी जगह का इस्तेमाल दुबारा न करें और मैप के बाहर की चार प्वाइंट्स को सेलेक्ट कर लें।



बात उनकी तुरंत समझ में आ गयी। उनकी कार में और बाकी जी पी एस सर्वयालेंस से उनके पीछे पड़ी ताकतों को पता चला जाता की वो कहाँ गए हैं और अगले २४ घंटे में वो जगह भी उनके डीप सर्वेलेंस नेटवर्क में आ जाती। इसलिए सिर्फ एक बार।

और यह भी कहा गया था की यह भी बहुत जरूरी होने पे ही करें।



एक बार फिर उन्होंने उस लैपटॉप को धो पोंछ के साफ़ कर दिया और फिर कुछ पॉर्न साइट्स देखीं, कुछ फेम डॉम वाले वीडियो अपने पेन ड्राइव पे लोड किये की अगर दुबारा कोई उस लैप टॉप की जांच के तो कुछ तो पता चले।



और फिर वापस अपने आफिस।

और डार्क वेब से एम् को फीड बैक भी मिल गया की मेसेज पहुँच गया



और एम् अब वापस मिलन्द नवलकर के रूप में साउथ बॉम्बे में, गेलार्ड होटल में बैठे बियर का मजा ले रहे थे और अगले कदम के बारे में सोच रहे थे
 
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Rajizexy

❣️and let ❣️
Supreme
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जोरू का गुलाम -भाग २५०

एम् -२

मिलिंद नवलकर, मुंतजिर खैराबादी, महेंद्र पांडेय

३८,१७,०७६

"माइसेल्फ मिलिंद नवलकर, फ्रॉम रत्नागिरी। "



मिले तो थे आप एम् या एम् के एक रूप से, पिछले भाग मे।



हल्की मुस्कान, बड़ा सा चश्मा, एक बैग और खिचड़ी बाल, दलाल स्ट्रीट के आसपास या कभी यॉट क्लब के नजदीक तो शाम को बॉम्बे जिमखाना में ढलते सूरज को देखते हुए मिल जाते हैं।



और उनके बाकी रूपों से,

मनोहर राव, थोड़ा दबा रंग , एकदम काले बाल, गंभीर लेकिन कारपोरेट क़ानून की बात हो या कर्नाटक संगीत वो अपनी खोल से बाहर आ जाते थे. दिन के समय बी के सी में लेकिन अक्सर माटुंगा के आस पास, टिफिन खाते वहीँ के किसी पुराने रेस्ट्रोरेंट में,...

मनोज जोशी, चाहे हिंदी बोले या अंग्रेजी,… गुजराती एक्सेंट साफ़ झलकता था। पढ़ाई से चार्टर्ड अकउंटेंट, पेशे से कॉटन ट्रेडिंग में कभी कालबा देवी एक्सचेंज में तो कभी कॉटन ग्रीन में, और अड्डों में कोलाबा कॉजवे, लियोपॉल्ड

महेंद्र पांडे धुर भोजपुरी बनारस के पास के, अभी गोरेगांव में लेकिन जोगेश्वरी, गोरेगांव, और कांदिवली से लेकर मीरा रोड और नाला सोपारा तक, दोस्त, धंधे सब

मुन्तज़िर खैराबादी, मोहमद अली रोड के पास एक गली में कई बार सुलेमान की दूकान पे दिख जाते थे, खाने के शौक़ीन, पतली फ्रेम का चश्मा और होंठों पर हमेशा उस्तादों के शेर, फिल्मो में गाने लिखने की कोशिश नाकामयाब रही थी तो अब सीरियल में कभी भोजपुरी म्यूजिकल के लिए और आक्रेस्ट्रा के लिए



लेकिन असली नाम, ... पता नहीं। सच में पता नहीं।

असल नक़ल में फरक मिटाने के चक्कर में खुद असल नकल भूल चूके थे। हाँ जहाँ जाना हो, जो रूप धरना हो, जो भाषा एक्सेंट, मैनरिज्म, ज्यादा समय नहीं लगता और कई बार तो लोकल में सामने बैठे आदमी को देखकर आधे घंटे में कम्प्लीट एक्सेंट और

मैनरिज्म, उन्हें लगता की शायद उनका असली पेशा ऐक्टिंग हो सकता था और राडा (रॉयल अकेडमी ऑफ ड्रामेटिक आर्ट्स) में उन्होंने एक छोटा मोटा कोर्स भी किया था,



लेकिन ये रूप अलग लग धरने में मेहनत, भी टाइम भी लगता था और कोई जरूरी नहीं की हर बार आपरेशन में वो हर रूप इस्तेमाल करे लेकिन हर आपरेशन में एक नया रूप जरूर वो क्रिएट करते थे, जैसे इस बार मिलन्द नवलकर, और ये भी बात नहीं की ये रूप वो सिर्फआपरेशन के लिए धरते थे, या उसका इस्तेमाल सिर्फ आपरेशन में करते थे, जैसे दो बार वो हिन्दुस्तान सिर्फ चिल करने आये और एक बार बनारस में रहे, महीनों और महेंद्र पांडे के रूप में, दो साल पहले हिन्दुस्तान नेपाल के बार्डर पे, एक आपरेशन था, ईस्टर्न यूपी और वेस्टर्न बिहार और नेपाल के बार्डर का और उसी समय वो पहली बार महेंद्र पांडे बने, और फिर जब बनारस आये तो फिर महेंद्र पांडे, और बोली , स्वराघात सब कुछ और फिर दोस्त यार, और उनके बॉम्बे के कनेक्शन, और कभी कभी साल में एक बार कही और आते जाते, वो इन कनेक्शन को जिंदा भी रखते थे



उसी तरह गरबा के सीजन में कुछ दिन वो बड़ौदा और सूरत में थे, पहले भी आ चुके थे कुछ डायमंड का मामला था और उन्होंने मनोज जोशी का वो गुजराती संस्करण, और वही उनको अंदाज लगा की भावनगर के आस पास जो गुजराती बोली जाती है वो बड़ौदा से एकदम अलग है



जब महीने भर बनारस में थे तभी लखनऊ जाना हुआ और असली मुन्तज़िर खैराबादी, से मुलाक़ात हुयी, बस उन्ही का मैनरिज्म, दाढ़ी, उर्दू,… और कोई कह नहीं सकता था की उनकी जड़ें लखनऊ में नहीं है, और उसका अड्डा बनाया उन्होंने मुंबई में मोहम्मद अली रोड को

इन अलग अलग रूपों के साथ लोकल खानो और लोकल लड़कियों ख़ास तौर से रेड लाइट, (सड़क छाप से लेकर कालगर्ल और एस्कॉट तक) के भी वो पक्के शौक़ीन भी थे और एक्सपर्ट भी,

और इन सबका फायदा उन्हें मिलता था, एक सूत्र को ट्रेस करने के लिए वो एक रूप धरते थे तो उसी आपरेशन से जुड़े दूसरे हिस्से को दूसरे रूप से, और अगर कोई उनके पीछे पड़ा भी रहता था तो वो दोनों को लिंक नहीं कर पाता था,

ये उनका अड़तीसवाँ ऑपरेशन था, और हिन्दुस्तान में छठा, लेकिन अब तक का सबसे मुश्किल,



एक तो कोई और छोर नहीं पता चल रहा था, अमेरिका में बेस्ड एक बड़ी मल्टी नेशनल कम्पनी की शक था की उसको एक्वायर करने के लिए या उसके इंट्रेस्ट को हिट करने के लिए कोई बड़ी कम्पनी आपरेशन चला रही है, और बस इतना पता था की हिन्दुस्तान में जो इनकी सब्सिडियरी है, उसपर कुछ दिन पहले हमला हुआ था, और वो कम्पनी बस हाथ से जाते जाते बची।

और उस को बचाने में जिस का हाथ था उसके बारे में मुश्किल से पांच छह लोगो को मालूम था, लेकिन राइवल कंपनी को कुछ शक था और एक इंडिपेंडेंट कंपनी से उस आदमी के बारे में जिसे रिपोर्ट में उन्होंने सब्जेक्ट कहा था, वो एक बिंदु हो सकता था जिसे पकड़ के आगे बढ़ा जा सकता था



पर परेशानी ये थी की एम् या मिलिंद नवलकर सीधे उस 'सब्जेट; से कांटेक्ट नहीं कर सकते थे, एक तो उन्हें ये पता था की जिस एजेंसी ने रिपोर्ट उस के बारे में बनायी है तो A १ लेवल के फिजिकल और कैमरे के सर्वेलेंस से घिरा होगा, और एक एमरजेंसी कांटेक्ट दिया था लेकिन बहुत दिमाग लगा के ही मेसेज आ सकता है और कई और लोगों के जरिए वो कोडेड मेसेज जब मिला तो काम उनका कुछ आसान हुआ



और मान गए वो वो सब्जेक्ट को, सिर्फ फोटो के जरिये, और किसी और के फोन से,



फ़ूड ट्रक, सर्वेलेंस, डाटा और वो लड़की और उस के जरिये काफी कुछ बाते आगे बढ़ गयी थी और अब उसी को बढ़ाना था
Awesome interesting & suspenseful update didi
👌👌👌👌👌
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