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भाग १०६ - रीत रस्म और गाने
२६,८०,१७७
सुरजू सिंह की माई

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सरजू की निगाह बुच्ची की जाँघों के बीच चिपकी थी, बुच्ची छूटने के लिए छटपटा रही थी। एकदम चिपकी हुयी रस से भीगी मखमली फांके, गोरी गुलाबी, फांके फूली फूली,
लेकिन सुरजू को वहां देखते उसे भी न जाने कैसा कैसा लग रहा था।

और इमरतिया ने गीली लसलसी चासनी से डूबी फांको पर अपनी तर्जनी फिराई, उन्हें अलग करने की कोशिश की और सीधे सुरजू के होंठों पे
" अरे चख लो, खूब मीठ स्वाद है " बोल के बुच्ची का हाथ पकड़ के मुड़ गयी, और दरवाजा बंद करने के पहले दोनों से मुस्करा के बोली,
" अरे कोहबर क बात कोहबर में ही रह जाती है,... और वैसे भी छत पे रात में ताला बंद हो जाता है।
और सीढ़ी से धड़धड़ा के नीचे, बुच्ची का हाथ पकडे, बड़की ठकुराइन दो बार हाँक लगा चुकी थी। बहुत काम था आज दिन में,…
दिन शुरू हो गया था, आज से और मेहमान आने थे, रीत रस्म रिवाज भी शुरू होना था।
---
" जा, अपने देवर के ले आवा, आज का काम शुरू होय, बहुत काम बचा है, अभी सुरजू का बूआ भी नहीं आयी " बार बार दरवाजे की ओर देखते,… सुरजू सिंह की माई इमरतिया से बोली।

आँगन में जमावड़ा लगना शुरू हो गया था औरतों, लड़कियों का।
बड़े सैय्यद की दुल्हिन, अभी डेढ़ साल पहले गौने उतरी थीं, सुरजू क असल भौजाई समझिये, ….और उनकी सास, ….
पश्चिम पट्टी क पंडिताइन भौजी, आधे दर्जन से ज्यादा सुरजू की माई की गाँव क देवरानी, जेठानी, गाँव क बहुएं , लड़किया, काम करने वाली,
आज अभी कोहबर लिखा जाना था, उसके पहले मंडप क पूजा, फिर मानर पूजा जाना था, उसके बाद,
और हर काम में इमरतिया और उसकी टोली वाली सब,
" हे चलो, जल्दी माई गुस्सा हो रही हैं, बूआ तोहार आने वाली हैं और ये सब क्या पहने हो, रस्म में ये सब नहीं "
और सुरजू के मना करते करते पैंट खींच के नीचे, और शर्ट खुद सुरजू ने उतार दी,….
" भौजी ये का, ,,,और दरवाजा भी खुला है "बेचारे सूरजु बोलते रह गए
लेकिन ऐसा जवान मर्द उघाड़े खड़ा हो तो जवान भौजाई क निगाह तो जहाँ पड़नी चाहिए वही पड़ी और इमरतिया खुश हो गयी । समझ गयी देवर सच में उसकी बात मानेंगे।
जैसे कल भौजी ने हुकुम दिया था, एकदम उसी तरह, लंड का टोपा एकदम खुला , लाल भभुका और भौजी कौन जो मौके का फायदा न उठाये। इमरतिया झुक के 'उससे ' बोली,

" सबेरे सबेरे दर्शन होगया बुच्ची की बुरिया का, है न एकदम मस्त। बड़ी मेहनत करनी पड़ेगी उसमे घुसने के लिए, खूब कसी है रसीली लेकिन मजा भी उतना ही आएगा, एकदम कच्ची कोरी में पेलने में, थोड़ी मेहनत, ….थोड़ी जबरदस्ती "
और इमरतिया ने अपनी हथेली में थूक लगा के दस पांच बार उसे आगे पीछे, और वो फनफनाने लगा। लेकिन तभी नीचे से ठकुराइन की आवाज आये, " अरे दूल्हा क लैके जल्दी आओ "
सुरजू को पहनने के लिए एक बिना बांह वाली बनियान और एक छोटी सी थोड़ी ढीली नेकर मिली।
'जल्दी पहनो, अब आज से यही, हर रस्म में, तेल हल्दी चुमावन;" वो बोली और नेकर उसने जान बूझ के ऐसी चुनी थी। अंदर कुछ पहनने का सवाल नहीं, तो जैसे ही टनटनायेगा, साफ़ साफ़ दिखाई देगा और हल्दी लगाते, भौजाई सब जब अंदर तक हल्दी लगाएंगी तो ढीली नेकर में हाथ डालने में आसानी होगी।
और निकलते समय भी दो चार बार कस के नेकर के ऊपर से ही मसल दिया। सीढ़ी से उतरते समय भी बस उसी खूंटे को पकड़ के और नतीजा ये हुआ की जैसे सुरजू आंगन में पहुंचे सब उनकी भौजाइयां सीधे ‘वहीँ’ देख के खुल के मुस्कराने लगी।

और उनकी माई भी मुस्करा रही थीं, अपने दुलारे को देख के,… और बुच्ची को हड़काया,
"हे चलो, अपने भैया को बैठाओ, चौकी पे और साथ में रहना,… छोट बहिन हो,... खाली खाली नेग लेने के लिए।"
इमरतिया और बुच्ची सुरजू के पीछे, एकदम सट के, कई बार भौजाइयां रस्म करते करते लड़के को जोर से धक्का दे देती हैं, नाउन और बहन का काम है सम्हालना।
आज सुरुजू क माई फूले नहीं समा रही थी।
ख़ुशी छलक रही थी, वैसे भी उस जमाने के हिसाब से भी सुरजू सिंह की माई की कम उम्र में शादी होगयी, साल भर में गौना।
सूरजु के बाबू से रहा नहीं जा रहा था, तो पहले रात ही, और नौ महीने में ही सूरजु बाहर आ गए। ३५-३६ की उमर होगी, लगती दो चार साल कम ही थीं। भरी भरी देह, खूब खायी पी, लेकिन न मोटापा न आलस। कोई काम करने वाली न आये तो खुद घर का सारा काम अकेले निपटा लेती थीं , गाय भैंस दूहने से झाड़ू पोंछा, रसोई। इसलिए देह भी काम करने वालियों की तरह खूब गठी, हाथ पकड़ ले तो नयी नयी बहुरिया नहीं छुड़ा पाती।

खूब गोरी, चेहरे पर लुनाई भरी थी, गजब का नमक था। चौड़ा माथा, सुतवा नाक, बड़ी बड़ी आँखे, भरे भरे होंठ, लेकिन जो जान मारते थे उनके देवर, नन्दोई के,…. वो थे उनके जोबन, सबसे गद्दर, और उतने ही कड़े। और उनको भी ये बात मालूम थी, सब ब्लाउज एकदम टाइट, आँचल के अंदर से भी कड़ाव उभार, झलकता रहता और दर्जिन को कहना नहीं पड़ता, उसे मालूम था की गला इतना कटेगा की बस जरा सा आँचल हटे और गोलाई गहराई सब दिख जाए, और छोटा इतना हो की नाभि के ऊपर भी बित्ते भर पेट दिखे।
और मजाक, छेड़ने के मामले में, गाने, गवनही के मामले में, अकेले आठ दस नंदों के पेटीकोट का नाड़ा खोल लेती थीं।
आज खुश होने की बात भी थी, एकलौते लड़के की शादी थी, उसके चौके बैठने जा रही थीं।
और लड़का भी ऐसा, माँ को कहना भी नहीं पड़ता था, बस इशारा काफी था।
कहीं से दंगल जीत के आता तो पहले मंदिर फिर सीधे माई के पास, और कुल इनाम माई के गोड़ में रख के बस उनका मुंह देखता।
बौरहा, एकदम लजाधुर, और काम में भी सब खेत बाड़ी यहाँ का भी, अपने ननिहाल का भी, इसलिए आज जितने गाँव के लोग, नाते रिश्तेदार जुटे थे, उतने ही सूरजु की माई के मायके के भी, और फिर बहु भी, पहली बार गाँव में पढ़ी लिखी बहु आ रही थी, नहीं तो चिट्ठी पत्री पढ़ लेती बहुत से बहुत,
इस रस्म में माँ को लड़के के साथ चौके बैठना होता है और माँ आलमोस्ट गोदी में लेके छोटे बच्चे की तरह,
तो जैसे सूरजु की माई ने उन्हें अपनी गोद में खींचा, वो बेचारे लजा गए और कस के डांट पड़ गयी,
" हे काहें को लजा रहे हो। ससुराल जाओगे तो सास गोदी में दुबका के प्यार दुलार करेगी तो खुद उचक के बैठ जाओगे, अरे हमरे लिए तो बच्चे ही हो, "

और सूरजु की माई का आँचल ढुलक गया, दोनों जबरदस्त गोलाइयाँ, छलक गयी। पता नहीं मारे बदमाशी के या ऐसे ही। लेकिन जोबन थे उनके जान मारु
गाँव की बहुये जोर जोर से हंसने लगी, एक उनको चिढ़ाते हुए बोली, " अरे जरा नीचे देखिये तो पता चल जाएगा की हमारा देवर बच्चा है,… की बड़ा हो गया,:"
वाकई 'बड़ा' था।
कनखियों से सूरजु की माई ने देखा था, लेकिन अब सीधे वहीँ, नेकर पे निगाह थी। अपने बाबू पे गया था बल्कि उनसे भी आगे, बित्ता भर से कम नहीं होगा और मोटा कितना, लेकिन बहुओं को जवाब देती, मुस्करा के बोलीं,
" हे नजर मत लगावा,… थू, “
और इमरतिया से बोलीं,
" आज ही राय नोन से नजर उतारना हमरे बेटवा की " और इमरतिया क्यों मौका छोड़ती वो बुच्चिया की ओर देख के चिढ़ाते बोलीं,
" तनी काजर ले के टीक देना अपने भैया का, …अच्छी तरह से "
शादी ब्याह में, ख़ास तौर से लड़के के सबसे ज्यादा गरियाई जाती हैं, और कौन लड़के की बहिन और महतारी। और लड़के के महतारी के पीछे पड़ती हैं, लड़के की मामी और बूआ, उनकी महतारी की भाभी और ननद।
तो सूरजु की एक मामी जो कल ही आगयी थीं, सूरजु के ननिहाल से, सूरजु की महतारी को चिढ़ाती बोलीं,
" अरे काहें लजा रही हैं, बचपन में तो बहुत पकड़ा होगा। अंदर हाथ डाल के,.. पकड़ के सहला के देख लीजिये "

सूरजु की माई मुस्करा के रह गयी, वो कुछ और सोच रही थीं, मुस्करा रही थीं, उनका दुलरुआ उनके समधन की बिटिया की का हाल करेगा पहली रात।
और करना भी चाहिए… उसकी महतारी की जिम्मेमदारी है समझा बुझा के भेजे अपनी बिटिया को।
रस्म शुरू हो गयी, ढोलक टनकने लगी, बीच बीच में गाँव की बड़ी औरतें, और इमरतिया भी रस्म में मदद कर रही थीं,
२६,८०,१७७
सुरजू सिंह की माई

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सरजू की निगाह बुच्ची की जाँघों के बीच चिपकी थी, बुच्ची छूटने के लिए छटपटा रही थी। एकदम चिपकी हुयी रस से भीगी मखमली फांके, गोरी गुलाबी, फांके फूली फूली,
लेकिन सुरजू को वहां देखते उसे भी न जाने कैसा कैसा लग रहा था।

और इमरतिया ने गीली लसलसी चासनी से डूबी फांको पर अपनी तर्जनी फिराई, उन्हें अलग करने की कोशिश की और सीधे सुरजू के होंठों पे
" अरे चख लो, खूब मीठ स्वाद है " बोल के बुच्ची का हाथ पकड़ के मुड़ गयी, और दरवाजा बंद करने के पहले दोनों से मुस्करा के बोली,
" अरे कोहबर क बात कोहबर में ही रह जाती है,... और वैसे भी छत पे रात में ताला बंद हो जाता है।
और सीढ़ी से धड़धड़ा के नीचे, बुच्ची का हाथ पकडे, बड़की ठकुराइन दो बार हाँक लगा चुकी थी। बहुत काम था आज दिन में,…
दिन शुरू हो गया था, आज से और मेहमान आने थे, रीत रस्म रिवाज भी शुरू होना था।
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" जा, अपने देवर के ले आवा, आज का काम शुरू होय, बहुत काम बचा है, अभी सुरजू का बूआ भी नहीं आयी " बार बार दरवाजे की ओर देखते,… सुरजू सिंह की माई इमरतिया से बोली।

आँगन में जमावड़ा लगना शुरू हो गया था औरतों, लड़कियों का।
बड़े सैय्यद की दुल्हिन, अभी डेढ़ साल पहले गौने उतरी थीं, सुरजू क असल भौजाई समझिये, ….और उनकी सास, ….
पश्चिम पट्टी क पंडिताइन भौजी, आधे दर्जन से ज्यादा सुरजू की माई की गाँव क देवरानी, जेठानी, गाँव क बहुएं , लड़किया, काम करने वाली,
आज अभी कोहबर लिखा जाना था, उसके पहले मंडप क पूजा, फिर मानर पूजा जाना था, उसके बाद,
और हर काम में इमरतिया और उसकी टोली वाली सब,
" हे चलो, जल्दी माई गुस्सा हो रही हैं, बूआ तोहार आने वाली हैं और ये सब क्या पहने हो, रस्म में ये सब नहीं "
और सुरजू के मना करते करते पैंट खींच के नीचे, और शर्ट खुद सुरजू ने उतार दी,….
" भौजी ये का, ,,,और दरवाजा भी खुला है "बेचारे सूरजु बोलते रह गए
लेकिन ऐसा जवान मर्द उघाड़े खड़ा हो तो जवान भौजाई क निगाह तो जहाँ पड़नी चाहिए वही पड़ी और इमरतिया खुश हो गयी । समझ गयी देवर सच में उसकी बात मानेंगे।
जैसे कल भौजी ने हुकुम दिया था, एकदम उसी तरह, लंड का टोपा एकदम खुला , लाल भभुका और भौजी कौन जो मौके का फायदा न उठाये। इमरतिया झुक के 'उससे ' बोली,

" सबेरे सबेरे दर्शन होगया बुच्ची की बुरिया का, है न एकदम मस्त। बड़ी मेहनत करनी पड़ेगी उसमे घुसने के लिए, खूब कसी है रसीली लेकिन मजा भी उतना ही आएगा, एकदम कच्ची कोरी में पेलने में, थोड़ी मेहनत, ….थोड़ी जबरदस्ती "
और इमरतिया ने अपनी हथेली में थूक लगा के दस पांच बार उसे आगे पीछे, और वो फनफनाने लगा। लेकिन तभी नीचे से ठकुराइन की आवाज आये, " अरे दूल्हा क लैके जल्दी आओ "
सुरजू को पहनने के लिए एक बिना बांह वाली बनियान और एक छोटी सी थोड़ी ढीली नेकर मिली।
'जल्दी पहनो, अब आज से यही, हर रस्म में, तेल हल्दी चुमावन;" वो बोली और नेकर उसने जान बूझ के ऐसी चुनी थी। अंदर कुछ पहनने का सवाल नहीं, तो जैसे ही टनटनायेगा, साफ़ साफ़ दिखाई देगा और हल्दी लगाते, भौजाई सब जब अंदर तक हल्दी लगाएंगी तो ढीली नेकर में हाथ डालने में आसानी होगी।
और निकलते समय भी दो चार बार कस के नेकर के ऊपर से ही मसल दिया। सीढ़ी से उतरते समय भी बस उसी खूंटे को पकड़ के और नतीजा ये हुआ की जैसे सुरजू आंगन में पहुंचे सब उनकी भौजाइयां सीधे ‘वहीँ’ देख के खुल के मुस्कराने लगी।

और उनकी माई भी मुस्करा रही थीं, अपने दुलारे को देख के,… और बुच्ची को हड़काया,
"हे चलो, अपने भैया को बैठाओ, चौकी पे और साथ में रहना,… छोट बहिन हो,... खाली खाली नेग लेने के लिए।"
इमरतिया और बुच्ची सुरजू के पीछे, एकदम सट के, कई बार भौजाइयां रस्म करते करते लड़के को जोर से धक्का दे देती हैं, नाउन और बहन का काम है सम्हालना।
आज सुरुजू क माई फूले नहीं समा रही थी।
ख़ुशी छलक रही थी, वैसे भी उस जमाने के हिसाब से भी सुरजू सिंह की माई की कम उम्र में शादी होगयी, साल भर में गौना।
सूरजु के बाबू से रहा नहीं जा रहा था, तो पहले रात ही, और नौ महीने में ही सूरजु बाहर आ गए। ३५-३६ की उमर होगी, लगती दो चार साल कम ही थीं। भरी भरी देह, खूब खायी पी, लेकिन न मोटापा न आलस। कोई काम करने वाली न आये तो खुद घर का सारा काम अकेले निपटा लेती थीं , गाय भैंस दूहने से झाड़ू पोंछा, रसोई। इसलिए देह भी काम करने वालियों की तरह खूब गठी, हाथ पकड़ ले तो नयी नयी बहुरिया नहीं छुड़ा पाती।

खूब गोरी, चेहरे पर लुनाई भरी थी, गजब का नमक था। चौड़ा माथा, सुतवा नाक, बड़ी बड़ी आँखे, भरे भरे होंठ, लेकिन जो जान मारते थे उनके देवर, नन्दोई के,…. वो थे उनके जोबन, सबसे गद्दर, और उतने ही कड़े। और उनको भी ये बात मालूम थी, सब ब्लाउज एकदम टाइट, आँचल के अंदर से भी कड़ाव उभार, झलकता रहता और दर्जिन को कहना नहीं पड़ता, उसे मालूम था की गला इतना कटेगा की बस जरा सा आँचल हटे और गोलाई गहराई सब दिख जाए, और छोटा इतना हो की नाभि के ऊपर भी बित्ते भर पेट दिखे।
और मजाक, छेड़ने के मामले में, गाने, गवनही के मामले में, अकेले आठ दस नंदों के पेटीकोट का नाड़ा खोल लेती थीं।
आज खुश होने की बात भी थी, एकलौते लड़के की शादी थी, उसके चौके बैठने जा रही थीं।
और लड़का भी ऐसा, माँ को कहना भी नहीं पड़ता था, बस इशारा काफी था।
कहीं से दंगल जीत के आता तो पहले मंदिर फिर सीधे माई के पास, और कुल इनाम माई के गोड़ में रख के बस उनका मुंह देखता।
बौरहा, एकदम लजाधुर, और काम में भी सब खेत बाड़ी यहाँ का भी, अपने ननिहाल का भी, इसलिए आज जितने गाँव के लोग, नाते रिश्तेदार जुटे थे, उतने ही सूरजु की माई के मायके के भी, और फिर बहु भी, पहली बार गाँव में पढ़ी लिखी बहु आ रही थी, नहीं तो चिट्ठी पत्री पढ़ लेती बहुत से बहुत,
इस रस्म में माँ को लड़के के साथ चौके बैठना होता है और माँ आलमोस्ट गोदी में लेके छोटे बच्चे की तरह,
तो जैसे सूरजु की माई ने उन्हें अपनी गोद में खींचा, वो बेचारे लजा गए और कस के डांट पड़ गयी,
" हे काहें को लजा रहे हो। ससुराल जाओगे तो सास गोदी में दुबका के प्यार दुलार करेगी तो खुद उचक के बैठ जाओगे, अरे हमरे लिए तो बच्चे ही हो, "

और सूरजु की माई का आँचल ढुलक गया, दोनों जबरदस्त गोलाइयाँ, छलक गयी। पता नहीं मारे बदमाशी के या ऐसे ही। लेकिन जोबन थे उनके जान मारु
गाँव की बहुये जोर जोर से हंसने लगी, एक उनको चिढ़ाते हुए बोली, " अरे जरा नीचे देखिये तो पता चल जाएगा की हमारा देवर बच्चा है,… की बड़ा हो गया,:"
वाकई 'बड़ा' था।
कनखियों से सूरजु की माई ने देखा था, लेकिन अब सीधे वहीँ, नेकर पे निगाह थी। अपने बाबू पे गया था बल्कि उनसे भी आगे, बित्ता भर से कम नहीं होगा और मोटा कितना, लेकिन बहुओं को जवाब देती, मुस्करा के बोलीं,
" हे नजर मत लगावा,… थू, “
और इमरतिया से बोलीं,
" आज ही राय नोन से नजर उतारना हमरे बेटवा की " और इमरतिया क्यों मौका छोड़ती वो बुच्चिया की ओर देख के चिढ़ाते बोलीं,
" तनी काजर ले के टीक देना अपने भैया का, …अच्छी तरह से "
शादी ब्याह में, ख़ास तौर से लड़के के सबसे ज्यादा गरियाई जाती हैं, और कौन लड़के की बहिन और महतारी। और लड़के के महतारी के पीछे पड़ती हैं, लड़के की मामी और बूआ, उनकी महतारी की भाभी और ननद।
तो सूरजु की एक मामी जो कल ही आगयी थीं, सूरजु के ननिहाल से, सूरजु की महतारी को चिढ़ाती बोलीं,
" अरे काहें लजा रही हैं, बचपन में तो बहुत पकड़ा होगा। अंदर हाथ डाल के,.. पकड़ के सहला के देख लीजिये "

सूरजु की माई मुस्करा के रह गयी, वो कुछ और सोच रही थीं, मुस्करा रही थीं, उनका दुलरुआ उनके समधन की बिटिया की का हाल करेगा पहली रात।
और करना भी चाहिए… उसकी महतारी की जिम्मेमदारी है समझा बुझा के भेजे अपनी बिटिया को।
रस्म शुरू हो गयी, ढोलक टनकने लगी, बीच बीच में गाँव की बड़ी औरतें, और इमरतिया भी रस्म में मदद कर रही थीं,
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