क्या बात है. वक्त बदल जाए. किरदार बदल जाए. पर खेल वही रहता है. उस वक्त गुबिया की बहुरिया मतलब गांव की नईकी भौजी इमरती थी. और ऊपर से उसका मरद गया पंजाब. फसल काटने. कमाई करने.
सूरजबली की महतारी बिलकुल सही तो कह रही है. गांव मे क्या देवरो की कमी है. पर उस वक्त वो शर्माती थी. और सूरजबली की हसीं देख कर वो भी समझ गई.
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क्या बात है. वक्त बदल जाए. किरदार बदल जाए. पर खेल वही रहता है. उस वक्त गुबिया की बहुरिया मतलब गांव की नईकी भौजी इमरती थी. और ऊपर से उसका मरद गया पंजाब. फसल काटने. कमाई करने.
सूरजबली की महतारी बिलकुल सही तो कह रही है. गांव मे क्या देवरो की कमी है. पर उस वक्त वो शर्माती थी. और सूरजबली की हसीं देख कर वो भी समझ गई.
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सूरजबली की महतारी बिलकुल सही तो कह रही है. गांव मे क्या देवरो की कमी है. पर उस वक्त वो शर्माती थी. और सूरजबली की हसीं देख कर वो भी समझ गई.
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Thanks so muchNice up fate
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वाह कोमलजी मान गए.मंजू भाभी - किस्सा
और मंजू भाभी ने पता नहीं सच पता नहीं बना के किस्सा सुनाया।
बुच्ची को अपनी ओर खींच के बोलीं
" एकदम बुच्ची वाला किस्सा, लेकिन हम बुच्ची से साल भर छोट ही रहे होंगे,.... मामा के लड़के की शादी, और उनकी कोई सगी बहन तो थी नहीं तो सब रसम और जैसे बुच्ची कोहबर रखा रही है तो हम भी और साथ में सब भौजाई गाँव की,
तो एक भौजाई ने हमको भैया के साथ कमरे में बंद कर दिया और लालटेन भी बाहर ले गयीं, घुप्प अँधेरा। "
“फिर”, शीला और बुच्ची एक साथ बोलीं।
" फिर का, हमार भैया तोहरे भैया ऐसे बुरबक थोड़े थे और मैं खुद उनको अपनी कच्ची अमिया दिखा के ललचाती थी। उनका पैंट पूरा टाइट हो जाता था। तो बस भैया को मौका मिला गया और एक झटके में मेरी फ्राक पकड़ के खींच दी, ऐसे "
और शीला इशारा समझ गयी, झट से उसने पीछे से बुच्ची के दोनों हाथ कस के दबोच लिए और मंजू भाभी ने बुच्ची की फ्राक खींच के मुन्ना बहू के पास फेंक दी, और फ्राक के अंदर कुछ था भी नहीं।
चड्ढी पहले ही भौजाइयों ने उतरवा दी थी।
और इमरतीया और मुन्ना बहू क्यों मौका छोड़तीं, बुच्ची के टिकोरे दोनों ने बाँट लिए और कस कस के रगड़ने मसलने लगीं।
जाँघों के बीच मंजू भाभी का हाथ था, वहां सहलाते बात उन्होंने आगे बढ़ाई,
" अरे जब जुबना पे भाई का हाथ सबसे पहले पड़ता है तो कस के गदराता है। सगा न हो तो ममेरा, फुफेरा, चचेरा जो भी हो और ऊपर से हमर भौजाई कुल, भैया के खूंटे में नउनिया भौजी तेल चुपड़ चुपड़ के एकदम चिक्क्न की थीं और हमरी बुलबुल भी, तो बस, भैया हमार दोनों टांग उठा के बुरिया पे रगड़ रगड़ के, और जब हम अपने मुंह से कहे,
' भैया पेलो न तभी "
फिर, सोच सोच के बुच्ची की भी हाल खराब थी, लेकिन सुनना भी चाहती थी,
" फिर क्या, तोहरे अस बहिन पाय के कोई भाई छोड़ेगा, तो वो भी पेल दिए , और पूरे दस मिनट तक "
और इमरतिया कुछ और सोच रही थी, उसका देवर, सुरजू तो आधे घंटे से पहले झड़ने के नजदीक भी नहीं पहुंचेगा, आज देख चुकी थी वो
मंजू भाभी ने रस लेकर अपनी पहली चुदाई का हाल सुनाया,
कैसे अपने ममेरे भाई से अपनी कसी कोरी चूत फड़वायी।
सुन के तो सब गरमा रही थीं, लेकिन सबसे ज्यादा हालत बुच्ची की खराब हो रही थी। एक तो दो दो खूब खेली खायी भौजाइयां इमरतिया और मुन्ना बहू जम के उसकी छोटी छोटी चूँची रगड़ रही थीं और फिर मंजू भौजी जिस तरह से अपनी हथेली उसकी कुँवारी चुनमुनिया पे मसल रही थी, बुच्ची की बुरिया गीली हो रही थी,
लेकिन उससे भी ज्यादा, बुच्ची की हालत खराब थी ये सोच सोच के की सुरुजू भैया अपना मोटा खूंटा उसकी कसी कोरी बिलिया में घुसाएँगे, केतना दर्द होगा, केतना मजा आएगा। लेकिन उससे रहा नहीं गया, उसने मंजू भौजी से पूछ लिया,
" भौजी बहुत दर्द हुआ होगा न "
" अरे पूछो मत, बहुत। बस जान नहीं निकली और वो भी एक बार नहीं, दो बार। पहली बार जब भैया का सुपाड़ा घुसा, और थोड़ी देर बाद जब झिल्ली फटी, लेकिन मजा भी बहुत आया। अरे पगली बिना दर्द के कहीं मजा आता है, जितना दर्द उतना मजा, लेकिन असली मजा दुबारा आया। "
" कैसे " अभी चारों एक साथ बोली, बुच्ची, शीला, इमरतिया और मुन्ना बहू।
" अरे हमार सब भौजाई नंबरी छिनार" मंजू भाभी बोलीं और बुच्ची और शीला खिलखिला के बोलीं,
" एकदम भौजी, ....कुल भौजी छिनार होती हैं और हम दोनों को तो नम्बरी छिनार "
" अभी बताउंगी कितनी छिनार हूँ हम तीनो, "
हंस के मंजू भाभी बोलीं और आगे का किस्सा बयान किया।
उनके भैया ने बाहर की खिड़की थोड़ी खोल दी थी तो थोड़ी चांदनी आ रही थी, लेकिन बहन चोदने की जल्दी में वो भूल गया था की भौजाइयों ने दरवाजा बाहर से तो बंद कर दिया था लेकिन अंदर से उन लोगो ने नहीं बंद किया है। बस थोड़ी देर में चारो भौजाई अंदर और मंजू के पीछे
" क्यों मंजू, मजा आया हमरे देवर के साथ और चलो अब हमरे सामने, पहले चूस चूस के अपने भैया का फिर से खड़ा करो और एक भौजाई ने कस के मंजू भाभी का गाल दबा के मुंह खोलवा दिया और दूसरे ने मंजू भाभी के भैया का खूंटा पकड़ के उनके मुंह में। छत का दरवाजा बंद था, आधी रात बाकी थी तो किसी के आने का भी खतरा नहीं था। मारे जोश के उसके भैया अपनी बहन का सर पकड़ के गप गप
फिर थोई देर में भौजाइयों ने अपने सामने,
एक बोली
" अरे जंगल में मोरा नाचा किसने देखा, ….जबतक बहन की चुदाई हम सब के सामने "
और दूसरी बोली, " अरे तुम दोनों नौसिखिया हो, हम लोग सब गुन ढंग सिखा देंगे " बस एक ने मंजू भाभी के भाई का खूंटा पकड़ के बिल में और तीसरी ने देवर को ललकारा,
" पेल दे एकबार में "
मंजू भाभी चूतड़ पटकती रहीं, चीखती रही हैं और उनके भैया चोदते रहे।
और उनकी बात खतम होते होते बुच्ची की हालत ख़राब। पता नहीं मंजू भाभी की कहानी सच्ची थी या झूठी लेकिन असर हो गया था , बुच्ची ने मन ही मन तय कर लिया था, अब चाहे जो हो जाए, उसके सूरजु भैया चाहे जितना लजाधुर हों, सोझ हों, लेकिन बुच्ची उनसे चुदवा के रहेगी, भले ही उसे भैया से जिद्द करनी पड़े, खुद बेशर्म होना पड़े, लेकिन वो किसी से कम नहीं है, वो भी अपने भैया का लंड घोंट के रहेगी, अरे जो दुलहिनिया आएगी, उससे तो साल भर ही बड़ी है तो वो घोंट सकती है तो बुच्ची काहें नहीं, और दर्द होगा तो होगा, सबको होता है, कौन वो दुनिया में पहली बार चुदेगी.
और अब समय था जोड़ी बनाने का , इमरतिया सोच रही थी की मंजू भाभी खुद बुच्ची का निवान करेगी, लेकिन मंजू भाभी एक चालाक उन्होंने शीला की उकसाया,
" अरे शीलवा, खुद तो गन्ना के खेत में टांग उठाय के मोट मोट लंड घोंटती हो और तोहरी सहेली क बिलिया अभी तक कोरी है , तानी उसकी टांग उठाय के दिखाओ, कैसे लौंडे पेलेंगे उसको "
" एकदम भौजी " हँसते हुए शीला बोली और जब तक बुच्ची समझे, उसकी दोनों टाँगे, शीला के कंधे पे और क्या चूत से चूत पेघिस्सा मारा
मान गयी मंजू भाभी शीला, स्साली पक्की चुदक्कड़ है, खूब गन्ने और अरहर के खेत में कबड्डी खेली होगी। बुच्ची को यही छिनार सुधारेगी।
शीला के पहले धक्के में ही बुच्ची की सिसकी निकल गयी। और कच्चे टिकोरों को देख के न मरदो से रहा जाता है न खेली खायी औरतों से, और रिश्ता अगर ननद भौजाई का हो तो कहना ही क्या।
बस इमरतिया और मुन्ना बहू भी फाट पड़ीं, बुच्ची क चूँची पे।
लेकिन थोड़ी देर में शीला और बुच्ची की जोड़ी तो थी ही, मुन्ना बहू और इमरतिया ने मिल के टुकुर टुकुर देखती मंजू भाभी को छाप लिया और घपाघप, घपाघप,
फिर जब मंजू भाभी निकल पायीं तो उन्होंने इमरतिया को दबोच लिया।
हाँ बुच्ची के लिए इमरतिया ने साफ़ इशारा कर दिया था, एक तो उसकी झड़ने नहीं देना है, बस झड़ने के किनारे तक ले जा के छोड़ दो, जिससे दिन भर कल बुरिया में आग लगी रहे, छनछनाती घूमे। और दूसरे ऊँगली अंदर नहीं करनी, कोरी है तो कोरी ही रहेगी, जबतक मोटा मूसल न घुसे।
सब एक दूसरे से चिपक के सो गए, और मुंह अँधेरे, भिन्सारे शीला और मुन्ना बहू निकल गयीं, ये बोल के की दस बजे के पहले आ जाएंगी।
पांचो की लाज शर्म उसी बोरसी में सुलग के, सुबह होते होते
हाँ दो बातें, जैसे मंजू भाभी ने बोला था की उनकी भाभियों ने किया था, उसी तरह इमरतिया ने बुच्ची की दोनों फांके फैला के बूँद बूँद सौ ग्राम सरसों का तेल टपका दिया, " शादी बियाह का घर है, का पता कब कौन मिल जाए ? और जब मर्दो का खूंटा खड़ा होता न तो वो चिकनाई और तेल नहीं ढूंढते,… बस पटक के पेल देते हैं, इसलिए अपनी सावधानी खुद बरतना चाहिए। "
और मंजू भाभी ने खूब समझाया बुच्ची को सूरजु के बारे में
" अरे हमार देवर तनी ज्यादा ही लजाधुर है, तोहिं को पहल करना पड़ेगा, हरदम उसके आस पास रहो, उसे देख के मुस्कराओ। अपने दोनों चूजे उभार के दिखाओ और जैसे मर्दो की निगाह औरत की चूँची पे रहती है न तो अगर वो तेरे चूजे देखे तो तू उसका खूंटा देखो। वो भी समझ जाएगा।


जादूगद... अरे आप इरोटिका की जादूगर हो. नारी रस कन्या रस मे ही इतना गरमा दिया. मान गए.मुन्ना बहू
और अब मुन्ना बहू का नंबर था, बुच्चीको गरमाने का और रगड़ाई करने का,
और कुछ मामलों में मुन्ना बहू, इमरतिया से भी चार हाथ आगे थी,
नंबरी लंड खोर, नमक भी जबरदस्त था, थोड़ी सांवली सलोनी, उम्र में भी इमरतिया से दो चार साल बड़ी ही होगी, बबुआने का तो जिस लौंडे की अभी रेख भी नहीं आनी शुरू हुयी से लेकर, बियाहता मरद तक, शायद ही कोई बचा होगा, जिसके खूंटे को मुन्ना बहू ने मजा न दिया हो,
पर उसकी असली खासियत थी, रेडियो झूठ था उसके आगे, ....गाँव में कौन लौंडिया किससे फंसी है, आज किसके गन्ने के खेत में कौन चुदी,
कौन बबुआने वाली अपने हरवाह से हल जुतवाती है जांघ के बीच तो कौन अपने ग्वाले से दूध दुहवाती है, उसकी मलाई खाती है सब मुन्ना बहू को मालूम था।
दर्जनों को तो वो खुद गन्ने के खेत में कभी निहुरे, कभी टांग उठाये, अहिरौटी भरौटी के लौंडो के साथ पकड़ चुकी है।
और लड़कियों की तरह लौंडों का भी सब हाल मुन्ना बहू मालूम था। ख़ास तौर से १०-१२ जो अहिरोटी, भरौटी के, पासी के लौंडे, पक्के चोदू, न सिर्फ बित्ते भर के लम्बे, मोटे हथियार वाले, बल्कि रगड़ रगड़ के चोदने वाले, पहले धक्के में ही लड़की रोने लगे, चूतड़ पे, पीठ पे मार मार के लाल कर देने वाले, गाल पे, चूँची पे ऐसे कस कस के काटेंगे की चार दिन तक निशान न जाए, नाख़ून से नोचेंगे, और कहीं चीख रुकी तो बस झोंटा पकड़ के, घोड़ी की लगाम की तरह पकड़ के निहुराय के ऐसे खींचेंगे की बस, उसको अंदाज नहीं लगेगा की चुदवाने में ज्यादा दर्द हो रहा है की नोचवाने में
और मलाई कुल देह के भीतर,
जो लड़की उन सबों से चुद के आती, पूरे गाँव को मालूम हो जाता, चार दिन उस की चाल देखके, गाल और चूँची क निशान देख के की किसीसे चुद के आ रही है,
लेकिन सबसे बड़ी बात ये की वो सब मुन्ना बहू के इशारे पे थे, जउने लौंडिया की ओर मुन्ना बहू इशारा कर दें,उसे चोद चोद के के सब चूत क भोसंडा बना देते थे, लेकिन एक बात और थी, की जो स्साली उनसे चुदती थी, वो खुद सहारा लेके, लंगड़ाते फिर खुद ही आ जाती थी उनसे चुदने।
और बुच्ची जब से आयी, मुन्ना बहू की निगाह उस पे थी,
एकदम असली कोरी कच्ची कली, चेहरे से देखने से तो लगता था दूध के दांत भी अभी नहीं टूटे होंगे, लेकिन जोबन पे नजर आये तो कच्ची अमिया अच्छी खासी गदरा रही थीं, गाल भी खूब फूले फूले, एकदम से काटने लायक, लेकिन जिस तरह से लंड का नाम लेने, जरा भी मजाक करने से वो छटकती थी, मुन्ना बहू इन्तजार ही कर रही थीं, मौके का।
और जब कोहबर रखवारी का मौका आया, तो मुन्ना बहू ने बड़की ठकुराइन से बुच्ची की ओर बिना बोले इशारा कर दिया और एक बार बुच्ची का तय होगया
तो कच्चे टिकोरे के लालच में मंजू भाभी भी, मुन्ना बहू और इमरतिया का तो पहले से ही तय था और शीलवा, बुच्ची की पक्की सहेली थी, लेकिन उसको चुदवाती मुन्ना बहू ने पकड़ लिया था तो उसकी भी दबती थी,
और फिर जब शीरे वाला मजाक हुआ, और इमरतिया मुन्ना बहू को दिखा के खाली कुल्हड़ ले के अंदर गयी, सूरजु बाबू के पास और लौटी तो सूरजु का बीज बजबजा रहा था,
गाँव में तो ये माना जाता था की कउनो कुँवार लड़की को किसी मरद के बीज का दो बूँद भी खाली चटा दो तो ऐसी चुदवासी होगी की खुद ही उसके लंड पे चढ़ के बैठ जायेगी, और यहाँ तो कुल्हड़ भर मरद की मलाई,
इमरतिया ने मुस्करा के मुन्ना बहू की ओर देखा, और वो भी मुस्करा दी, दोनों ने बिना बोले सोच लिया था, बुच्ची न सिर्फ अपने भैया से चोदी जायेगी, बल्कि दस पंद्रह दिन के अंदर जबरदस्त छिनार, बन के खुद लंड खोजेगी, कम से कम दस पन्दरह लौंडन क घोंट के अपने ननिहाल से वापस जायेगी,
लेकिन मुन्ना बहू ने मंजू भाभी से कहा, मुस्करा कर,
" हे तू सोचत हो, की खाली तुंही भाई चोद हो, हमारी बुच्ची ननद तोहरो नंबर डकाएगीं, देखिये चौबीस घंटे के अंदर अपने भैया का, हमरे सूरजु देवर क लंड घोंटेंगीं, क्यों बुच्ची, अच्छा चल तोहे बतायी, तोहरे भैया कैसे अपने बहिनिया क पेलेंगे ,
और मुन्ना बहू ने हलके से बुच्ची को धक्का दिया और बुच्ची फर्श पे, बस दोनों टाँगे मुन्ना बहू के हाथ में, आराम से फैलाया और फिर अपने दोनों कंधो पे रख के बोली, " देख स्साली, तोहार भाई, ऐसे पहले दोनों टांग अपने कंधे पे रखेंगे, जांघिया बुरिया फैलाएंगे, जितना बुरिया फैलाओगी उतना आसानी से तोहरे भैया क जाएगा सटासट, "
और क्या कस के धक्का मारा अपनी चुदी चुदाई झांटो वाली बुर से, बुच्ची की कच्ची, बिन चुदी बुर पे
उईईई उईईई बेचारी बुच्ची जोर से सिसक पड़ी
लेकिन अभी तो चुदाई शुरू हुयी थी, मुन्ना बहू का एक हाथ बुच्ची की कच्ची अमिया पे और दुसरा पतली कटीली कमरिया पे, और धक्को का जोर बढ़ने लगा
उईईई भौजी नहीं ओह्ह्ह हाँ, लग रहा है, हाँ बहुत अच्छा, नहीं नहीं
बुच्ची कभी चीख रही थी, कभी सिसक रही थी, कुँवारी ननद की मस्ती भरी चीख से बढ़िया और कौन आवाज हो सकती है, मंजू भाभी और इमरतिया भी गरमा रही थीं लेकिन एक ननद और थी न, भले ही खेली खायी थी, बस मंजू भाभी ने बुच्ची की सहेली, शीला को धार दबोचा और उस पे चढ़ गयी, और अपनी बुर उसकी चूत पे रगड़ने लगी।
"जब झिल्ली फटेगी न तोहार तो तोहरे भैया ऐसे तोहार मुंह दबा देंगे, "
मुन्ना बहू बोली और पहले तो हाथ से कस के मुंह दबाया, फिर चुम्मा ले के अपनी जीभ उस कच्ची कली के मुंह में ठेल दी, अब बुच्ची चाह के भी नहीं चीख सकती, और दोनों जोबन बुच्ची के कस कस के रगड़े मसाले जाने लगे और चूत की रगड़ाई भी भर गयी,
और मुन्ना बहू की गालियां भी बढ़ गयीं,
" स्साली, नीचे से धक्का मार, खाली हमरे देवर ऊपर से पेलेंगे, तेरे सारे खानदान की गांड मारु"
और हलके से बुच्ची नीचे से कमर हिलाने लगी, वो देख रही थी की उसकी सहेली शीला कैसे चुद रही औरत की तरह कैसे चूतड़ उठा के, कमर हिला के मंजू भाभी के साथ मजे ले रही थी, तो वो भी थोड़ा वैसे ही,
" चल बोल, दस बार और जोर जोर से, मैं अपने भाई क लंड लूंगी, सूरजु भैया क लंड घोटूँगी "
बुच्ची धीरे से बोली, तो जोर का एक चांटा उसके चूतड़ पे और मुन्ना बहू जोर से बोली, " स्साली रंडी क बेटी, अइसन बोल क दुवारे तक सुनाई पड़े, बोल कस के "
" ,मैं अपने भैया क लंड लूंगी, मैं सूरजु भैया क लंड घोंटूंगी " अब बुच्ची क लाज कम होती जा रही थी, वो न सिर्फ बोल रही थी सोच भी रही थी
और उधर इमरतिया भी गरमा गयी थी तो दोनों जांघ फैला के शीला के ऊपर चढ़ गयी और शीला ने खुद अपना काम समझ के अपनी भौजी की बुर चाटना शुरू कर दिया,
एक साथ दो दो भौजाई शीला से मजे ले रही थीं, और मुन्ना बहू बुच्ची के साथ, लेकिन फरक ये था की उसने मंजू भाभी के साथ ये तय किया था की बुच्ची को झड़ने नहीं देना है, बस बार बार गरम करके छोड़ देना है तो दिन में लाँडो केसामने जब जायेगी, उसकी चूत में छींटे ककाटेँगे
और ऊँगली भी नहीं करनी है, उसकी फाड़ेंगे, उसके भाई और बाकी लौंडे, बस मस्ती और गरमाने का काम
और बुच्ची की हालत खराब हो रही थी, वो देख रही थी की शीला उसकी सहेली कैसे मस्ती से झड़ रही है , चूस के उसने इमरतिया भुआजी को झाड़ दिया और मंजू भाभी का पानी भी निकल गया, लेकिन बस वही, और जब वो झड़ने के करीब होती, तो मुन्ना बहू कभी उसकी चूँची पे चिकोटी काट लेती तो कभी इमरतिया गाल नोच लेती, कभी मुन्ना बहू रगड़ना रोक देती
" भौजी झाड़ दा न , मोर भौजी, जो जो कहियेगा करुँगी, मोर भौजी बस एक पानी " लेकिन मुन्ना बहू उसे बस गरमा रही थी और फिर जब दो चार बार झड़ते झड़ते बुच्ची रुक गयी, तो मुन्ना बहू उसके ऊपर से उठती बोली,
" अरे भोर हो रही है, अब जा तोहरे भैया जग गए होंगे, उन्ही से झड़वा लो "
सच में आसमन की कालिख कम हो गयी थी, भोर की चिड़िया बोल रही थी, और इमरतिया ने अपने कपड़े ठीक किये और बुच्ची को लेकर निकल दी।




सुपर्ब... क्या जबरदस्त सीन क्रिएट किया है. इमरतिया नाऊन भौजी बुचि को लेकर सूरजबली के कमरे मे पहोच गई. अभी उजाला नहीं हुआ. किसी को पता नहीं चलेगा. सूरजवा तो अपनी बुआ की बेटी अपनी बाहनिया के कच्चे टीकोरों मे ही खो गया.बुच्ची-भोर भिन्सारे
भोर भिन्सारे तो कुल मरदन का खड़ा रहता है, और सूरजु देवर क तो एकदम घोडा, गदहा छाप, इमरतिया यही सोच रही थी,… जब वो बुच्ची के साथ चाय लेकर सुरजू सिंह की कोठरी में पहुंची।
रात भर की मस्ती के बाद बुच्ची की हालत खराब थी, ससुरी शीला इतना हाथ गोड़ जोड़े, की बहिनी एक बार झाड़ दो लेकिन ना, गरमा कर के चूड दे रही थी, और ऊपर से मंजू भाभी क बदमाशी, और ये समय फ्राक के नीचे कुछ पहनी भी नहीं थी, एकदम लस लस कर रही थी, गुलाबो।
सुरजू ने बुच्ची को देखा तो झट से एक छोटी सी तौलीया लुंगी की तरह लपेट ली, लेकिन सूरजू की निगाह बुच्ची के छोटे छोटे कबूतरों पे चिपक के रह गयी। ढक्क्न तो था नहीं तो दोनों छोटे छोटे कबूतर बाहर निकलने को बेचैन थे, और उनकी चोंचे भी साफ़ साफ़ दिख रही थीं।
सुरजू की निगाह अपनी बूआ की बेटी के चूजों पर चिपकी , और उसे देखते देख, बुच्ची और गरमा गयी। बुच्ची की निगाह भी सीधे, और तम्बू तना एकदम जबरदस्त।
बस इमरतिया को मौका मिल गया, जब तक भाई बहन की देखा देखी हो रही थी, झट से उसने तौलिया सरका दी , और शेर उछलकर बाहर आ गया।
'इत्ता बड़ा, इत्ता मोटा, और केतना गुस्से में लग रहा है,'
बुच्ची की आँखे फटी रह गयीं, कलेजा मुंह में आ गया।
ये नहीं की उसने पहले नहीं देखा था। कहते हैं न की शादी नहीं हुयी तो बरात तो गए हैं, तो कई बार चौकीदारी उसने की थी, जब उसकी सहेली, शीलवा गन्ने के खेत में गाँव के लौंडो के साथ, तो कौन लड़की तांका झांकी नहीं करेगी। लेकिन ये तो हाथ भर का,
सुरजू ने अपनी बुआ की बिटिया को देखते देखा तो झट से तौलिया फिर से ठीक कर लिया और लजा गया, लेकिन बुच्ची जोर से मुस्कराने लगी और बोली, " भैया चाय "
लेकिन इमरतिया तो भौजाई, वो काहें देवर को रगड़ने का मौका छोड़ती, छेड़ते हुए खिलखिला के बोली
" अरे बबुआ किससे लजा रहे हो, हम देख चुके हैं, तोहार बहिनिया देख ली, तोहार माई तो बचपन में खोल खोल के कडुवा तेल लगायी है, मालिश की तब इतना मोटा सुपाड़ा हुआ और जो हमार देवरानी आयंगी दस दिन बाद, तो कोठरिया क दरवाजा बाद में बंद होई, तू एके पहले निकाल के देखाओगे। बहुत दिन शेर पिंजड़े में रह चुका अब जंगल में, घूमने,गुफा में घुसने का टाइम आ गया है। "
जितना सूरज सिंह लजा रहे थे, उतना बुच्ची मुस्करा रही थी, और चाय बढ़ाते बोली,
" लो न भैया, अपने हाथ से बना के लायी हूँ "
और इमरतिया ने फिर रगड़ा अपनी ननद -देवर को, " आज से बुच्ची देंगी तोहे, ले लो ले लो, तोहार बहिन देने को तैयार है और तुम्ही लेने में हिचक रहे हो भैया। "
लेकिन रात की मस्ती के बाद अब बुच्ची भी एकदम गरमाई थी और डबल मीनिंग बात में एक्सपर्ट हो गयी थी, आँखे नचा के वो टीनेजर पलट के जवाब देती बोली
" तो भौजी, क्या खाली भौजी लोग दे सकती हैं, …भैया को बहिनिया नहीं दे सकती हैं ? "
" एकदम दे सकती है काहें नहीं दे सकती, जो चीज भौजी लोगो के पास है वो बहिनियो के पास है तो काहें नहीं दे सकती। और अभी तो तोहरे नयकी भौजी के आने में दस बारह दिन, तो फिर रोज दूनो जून दा। देखो न कितना भूखा है बेचारा "
इमरतिया कौन पीछे रहने वाली थी
लेकिन आज दिन भर उसको बहुत काम था। सब रीत रिवाज रस्म, शादी में जितना काम पंडित का होता है उससे दसो गुना ज्यादा नाउन का।
नाउन और बूआ सब रस्म में यही दोनों आगे रहती है और उसके अलावा, आना जाना मेहमान आज से, और फिर बड़की ठकुराईआं का पूरा बिस्वास इमरतिया पे और घर में कोई सगी,… चचेरी बहु भी नहीं तो दूल्हे की भौजाई वाला भी
लेकिन निकलने के पहले, अपना हाथ दिखाना नहीं चुकी।
बुच्ची के पीछे खड़ी हो के, एक झटके में उसने बुच्ची का फ्राक ऊपर उठा दिया, और बोली,
" बिन्नो हमरे देवर क तो खूब मजा ले ले के देखा तो जरा अपनी सहेली का भी चेहरा दिखा दो न "
बुच्ची ने छिनरपन कर के अपनी टांगो को चिपकाने की कोशिश की, लेकिन उसका पाला इमरतिया से पड़ा था, और इमरतरिया ने बुच्ची की दोनों टांगों के बीच टाँगे डाल के पूरी ताकत से फैला दिया। पर हालत सुरजू की ख़राब हो रही थी,
एकदम कसी कसी दो फांके, गुलाबी, एकदम चिपकी, लसलसी, जैसे लग रहा था लाख कोशिश करने पे भी दोनों फांके अलग नहीं होंगी, कितना मजा आएगा उसके अंदर ठोंकने में,
सरजू की निगाह बुच्ची की जाँघों के बीच चिपकी थी, बुच्ची छूटने के लिए छटपटा रही थी। लेकिन सुरजू को वहां देखते उसे भी न जाने कैसा कैसा लग रहा था।
और इमरतिया ने गीली लसलसी चासनी से डूबी फांको पर अपनी तर्जनी फिराई, उन्हें अलग करने की कोशिश की और सीधे सुरजू के होंठों पे
" अरे चख लो, खूब मीठ स्वाद है "
बोल के बुच्ची का हाथ पकड़ के मुड़ गयी, और दरवाजा बंद करने के पहले दोनों से मुस्करा के बोली,
" अरे कोहबर क बात कोहबर में ही रह जाती है और वैसे भी छत पे रात में ताला बंद हो जाता है।
और सीढ़ी से धड़धड़ा के नीचे, बुच्ची का हाथ पकडे, बड़की ठकुराइन दो बार हाँक लगा चुकी थी। बहुत काम था आज दिन में
दिन शुरू हो गया था, आज से और मेहमान आने थे, रीत रस्म रिवाज भी शुरू होना था।


मुजे सुगना वाला किस्सा याद है. ओर कुछ झलक का भी इंतजार है. लास्ट लास्ट मे.यह राज भी खुलेगा लेकिन काफी बाद में, हाँ उसमे कुछ आपकी कहानी का भी असर दिखेगा, बस इतना इशारा दे सकती हूँ की अगर आपको होलिका माई वाला सीन याद हो, तो उसमे होलिका माई ( भाग ६७ पृष्ठ ६४३ होलिका माई) ने अपनी उतरन, अपनी उतारी साडी कोमल को ही दी थी और उसका भी बहुत असर था,
लेकिन अभी तो कहानी सुगना के ससुर से शुरू हुयी है, उनकी शादी की तैयारी चल रही है, रीत रस्म, गाने

बहुत बहुत आभारवाह कोमलजी. आप ने तो मोहे रंग दे की याद दिला दी. सगुना के ससुर की ब्याह की बाते. बेचारे कितना शरमाते थे. अब इसमें भी इमरतीया ही नाऊन और भौजी दोनों का फ़र्ज निभा रही थी.
उनकी महतारी भी समझ गई थी की सूरजबली अपनी भौजी को देखता है. तभि तो उन्हें काम दिया
पर शिला उनकी दूर की बहन को मस्त ज़वाब दिया.
हमार भैया दंड पेलते है.
अब लंड पेलेगा.
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