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Incest माँ का चेकअप और चुदाई (नए अंदाज में ) complete Story

rahulrajgupta

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इस बात का एहसास हो जाने के बाद की उसकी माँ केबिन में झांक रही है ,जान लेने के बाद हड़बड़ा जाता है।

आप कुछ कह रहे थे डॉक्टर. ?" डॉक्टर. ऋषभ के चुप होते ही विजय ने उसे टोका."ह .. हां" जैसे कोई डरावना सपना टूटा हो, गहरी तन्द्रा से आकस्मात ही यथार्थ में लौटने के उपरांत डॉ ऋषभ हड़बड़ा सा जाता है. और अपनी भाषा को मर्यादित करते हुए विजय से बोला।

"वो .. वो मैं यह कह रहा था, विजय जी! एक ब्रांडेड लुब्रीकेंट ट्यूब सजेस्ट कर रहा हूँ. एनल सेक्स स्टार्ट करने से पहले आप उस ट्यूब को अपने पेनिस पर लगा लिया करना ताकि इंटरकोर्स के दौरान अनचाहा फ्रिक्शन रेड्यूज़ हो सके और चिकनाहट भी बरकरार रहे" वह दवाइयों के पर्चे पर लूब्रिकॅंट का नाम लिखते हुवे बोला. अपनी माँ की ताका-झाँकी के भय से उसके अश्लील अल्फ़ाज़, चेहरे के बेढंगे भाव और लंड का तनाव इत्यादि सभी विकार तीव्रता से सुधार में परिवर्तित हो चले थे.

"यह क्या खुसुर-फुसुर चल रही है ड्र. साहेब ? मुझे कुच्छ समझ नही आया" रीमा ने पुछा, अब वह अनपढ़ थी तो इसमें उसकी क्या ग़लती.
विजय: "अरी भाग्यवान! ड्र. ऋषभ ...."
"तुम चुप रहो जी! हमेशा चपर-चपर करते रहते हो. तो डॉक्टर. साहेब! क्या कह रहे थे आप ?" अपने पति का मूँह बंद करवाने के पश्चात रीमा ड्र. ऋषभ से सवाल करती है, अपने पुत्र-तुल्य प्रेमी के ऊपर तो अब वह अपनी जान भी न्योछावर करने से नही चूकती.

"कुछ ख़ास नही रीमा जी" ड्र. ऋषभ ने सोचा कि अब जल्द से जल्द उन दोनो को क्लिनिक का दरवाज़ा दिखा देना चाहिए ताकि अन्य कोई ड्रामा उत्पन्न ना हो सके. तत-पश्चात दोबारा उसने अपनी निगाहें बंद कंप्यूटर की स्क्रीन से जोड़ दी मगर इस बार उसे विज़िटर'स रूम की खिड़की पर कोई आक्रति नज़र नही आती.

"मैं इतनी भी गँवार नही ड्र. साहेब! आप ने अभी सेक्स, पेनिस और लू .. लू .. लुबी, हां! ऐसा ही कुच्छ बोला था" रीमा ने नखरीले अंदाज़ में कहा. अब कोई कितना भी अनपढ़ क्यों ना सही 'सेक्स' शब्द का अर्थ तो वर्तमान में लगभग सभी को पता होता है. हां! जितना वह नही समझ पाई थी उतने का क्लू देने का प्रयत्न उसने ज़रूर किया.

"वो! रीमा जी" अब तक ड्र. ऋषभ के मन में उसकी माँ का डर व्याप्त था, हलाकी ममता अब खिड़की से हट चुकी थी मगर फिर भी वह फालतू का रिस्क लेना उचित नही समझता.
"मैने विजय जी को सब बता दिया है, घर जा कर आप इन्ही से पुछ लीजिएगा" उसने पीछा छुड़ाने से उद्देश्य से कहा और दवाइयों का पर्चा विजय के हवाले कर देता है.
"हम चलते हैं डॉक्टर.! आप की फीस ?" विजय ने अपनी शर्ट की पॉकेट में हाथ डालते हुवे पुछा मगर रीमा का दिल उदासी से भर उठता है.
वह कुछ और वक़्त ड्र. ऋषभ के साथ बिताना चाहती थी, फीस के आदान-प्रदान के उपरांत तो उन्हें क्लिनिक से बाहर जाना ही पड़ता.

"नही विजय जी! रीमा जी का रोग ठीक होने के बाद मैं खुद आप से फीस माँग लूँगा" ड्र. ऋषभ की बात सुन कर जहाँ विजय उसकी ईमानदारी पर अचंभित हुवा, वहीं रीमा के तंन की आग अचानक भड़क उठती है.

डॉक्टर . साहेब! कभी हमारे घर पर आएँ और हमे भी आप की खातिरदारी करने का मौका दें" रीमा फॉरन बोली, उसके द्वि-अर्थी कथन का मतलब समझना ड्र. ऋषभ के लिए मामूली सी बात थी परंतु जवाब में वह सिर्फ़ मुस्कुरा देता है.

"हां ड्र.! मेरा नंबर और अड्रेस मैं यहाँ लिख देता हूँ, आप हमारे ग़रीब-खाने में पधारेंगी तो हमे बहुत खुशी होगी" सारी डीटेल'स टेबल पर रखे नोट पॅड में लिखने के उपरांत दोनो पति-पत्नी अपनी कुर्सियों से उठ कर खड़े हो गये. रीमा ने अपने पति के पलटने का इंतज़ार किया और तत-पश्चात अपनी सारी, पेटिकोट समेत पकड़ कर उसके खुरदुरे कपड़े को अपनी चूत के मुहाने पर ठीक वैसे ही रगड़ना शुरू कर देती है जैसे पेशाब करने के पश्चात अमूमन कयि भारतीय औरतें अपनी चूत के बाहरी गीलेपन को पोंच्छ कर सॉफ करती हैं.

"क्या हुवा रीमा ? अब चलो भी" अपनी पत्नी को नदारद पा कर विजय ने पुछा.
"तुमने तो अपनी बीवी को इतने जवान डॉक्टर साहेब के सामने नंगी हो जाने पर विवश कर दिया, अब क्या साड़ी की हालत भी ना सुधारू ?"

रीमा, ड्र. ऋषभ की आँखों में झाँकते हुवे बोली और कुच्छ देर तक अपनी साड़ी की अस्त-व्यस्त हालत को सुधारने के बहाने अपनी चूत को रगड़ती ही रहती है. कॅबिन के दरवाज़े पर खड़े, उसकी प्रतीक्षा करते विजय का तो अब नाम मात्र का भी भय उसके चेहरे पर नज़र नही आ रहा था.
"घर ज़रूर आईएगा डॉक्टर . साहेब! अच्छा! तो अब मैं चलती हूँ" अंततः केबिन के भीतर मौजूद उन दोनो मर्दो पर भिन्न-भिन्न रूप के कहर ढाने के उपरांत अनमने मन से रीमा को विदाई लेनी पड़ती है, ड्र. ऋषभ के साथ ही विजय के चेहरे पर भी सुकून के भाव सॉफ देखे जा सकते थे.
--------------
"उफफफ्फ़" अपनी टाइ की बेहद कसी नाट ढीली करने के बाद ऋषभ कुच्छ लम्हो तक लंबी-लंबी साँसें भरने लगा जो की मानसिक तनाव दूर करने में चिकित्सको का प्रमुख सहायक माध्यम होता है.
"कुच्छ देर और अगर यह औरत यहाँ रहती तो शायद मैं इसको यही चोदने को विवश हो जाता , आई थी अपनी गाँड़ सिलवाने मगर फाड़ कर चली गयी मेरी" उसने मन ही मन सोचा, ढीली पैंट और चुस्त फ्रेंची की जकड में क़ैद उसका हलब्बी लण्ड अब भी ऐंठा हुवा था. मेज़ पर रक्खी घड़ी में वक़्त का अंदाज़ा लगा कर उसने जाना कि उसकी माँ पिछले आधे घंटे से विज़िटर'स रूम के अंदर बैठी उसके फ्री होने का इंतज़ार कर रही थी.

"हेलो माँ ,अंदर आ जाओ, मैं अब बिल्कुल फ्री हो चुका हूँ"
 

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यह कहानी मेरी नहीं है बस मैं इस अधूरी कहानी को पूरा करने जा रहा हूँ ,

कहानी के मुख्य पात्र:


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ममता :उम्र 48 साल ,लम्बाई 5 फ़ीट 4 इंच ,38 -32 -40 फिगर साइज ,बड़े बड़े गुब्बाड़े ऐसे सुगठित स्तन ,चिकना सपाट पेट जिसमे चर्बी का नामोनिशान नहीं ,बड़े बड़े विशालकाय गोल गोल गुदाज मोटे मोटे बेहद उभरे नितम्ब ,पूरा बदन सांचे में ढाला हुआ ,देख़ने में बेहद सूंदर ,अपनी सुडौल चौड़े बदन से किसी का मन हर ले।
उम्र के इस पड़ाव पे भी बेहद कामुक और रतिक्रिया में मन लगाने वाली ,आजकल ये बहुत उदास रहती है जिसका कारण है इनके पति की बीमारी और नपुंसकता ,इसीलिए हर वक़्त इनके दिमाग में सिर्फ सम्भोग की ही आकांक्षा बनी रहती है। बदन हर वक़्त जलता सा रहता है मगर संस्कारी महिला होने के कारण अभी तक ये अपनी मर्यादा को लाँघ नहीं पायी है।

राजेश :ममता के पति ,उम्र 55 साल , गठीला बदन ,शादी के बाद से ही ममता की रतिक्रियाओ की सारी इच्छाएं पूरी करते आये मगर अब पिछले २ सालो से पहले दमा और अब हार्ट अटैक की बीमारी के चलते अब नपुंसकता के भी मरीज हो गए है। इसलिए अपनी पत्नी के साथ सम्भोग कर उसकी प्यास बुझाने में असमर्थ हो गए है

डॉक्टर ऋषभ : ममता और राजेश का पुत्र और कहानी का मुख्य पात्र :६ फ़ीट लम्बाई ,भरा पूरा बलिष्ठ बदन ,पेशे से एक सेक्सोलॉजिस्ट ह। MBBS करने के उपरांत मास्टर डिग्री में मुख्य विशेषज्ञता में सेक्सोलॉजिस्ट स्ट्रीम का चयन ही पिता और पुत्र में टकराव का कारण बन गया ।

अन्य पात्र :
करन :ऋषभ का जुड़वाँ भाई ,कद काठी में बिलकुल ऋषभ जैसा ,पेशे से सॉफ्टवेयर इंजीनियर , अब बैंगलोर में रहता है,इसमें और ऋषभ में बहुत पटती है ,ये लोग अपनी हर बाते एक दूसरे से शेयर करते है ,भाई से ज्यादा ये एक दूसरे के दोस्त है।

नैन्सी :राजेश और ममता की एकलौती बेटी ,करन और ऋषभ की बड़ी बहन ,अपनी माँ के तरह खूबसूरत जिस्म की मल्लिका ,३६-३०-३६ फिगर , बिलकुल अपनी माँ जैसे बड़े बड़े गोल गोल रसभरे और गुदाज चौड़े उभरे हुए नितम्ब



आइये अब कहानी में आगे बढ़ते है .............................।
Badhai ho kahani acchi hai
 

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"सर !! आप की मदर आई हैं" रिसेप्षनिस्ट जूही ने अपने बॉस ड्र. ऋषभ मेहरा को इंटर कॉम के ज़रिए सूचना दी.
"ओक !! उन्हें विज़िटर'स रूम में रिलॅक्स करने को बोलो, मैं फ्री हो कर उनसे मिलता हूँ" ड्र. ऋषभ ने जवाब में कहा.
जूही: "मॅम !! सर ने आप को विज़िटर'स रूम के अंदर वेट करने को कहा है, वे अपने पेशेंट के साथ बिज़ी हैं"
"ठीक है" ड्र. ऋषभ की माँ ममता मुस्कुराते हुवे बोली और विज़िटर'स रूम की तरफ मूड जाती है. ममता विज़िटर्स रूम में पड़े एक बेंच पर बैठ जाती है और पुरे क्लिनिक की साज सज्जा को निहारने लग जाती है।

क्लिनिक के उद्घाटन के 6 महीने बाद वह दूसरी बार यहाँ आई थी, बेटे की अखंड मेहनत का ही परिणाम था जो उसका क्लिनिक दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर रहा था.
जूही: "सर !! मैने आप को बताया था ना कि मुझे जल्दी घर जाना है .. तो क्या मैं ...."
"पहले यह बताओ !! मिस्टर. & मिसेज़. सिंह के बाद अभी और कितने अपायंट्मेंट्स बाकी हैं ?" ड्र. ऋषभ ने पुछा.
जूही: "सर !! 5 हैं"
ड्र. ऋषभ: "जूही !! वैसे भी आज सारा स्टाफ छुट्टी पर है, मैं अकेले सब कुच्छ कैसे मॅनेज कर सकूँगा ?"
"सर !! बहुत अर्जेंट है वरना मैं कभी नही जाती" वह विनती के स्वर में बोली.
"ह्म्‍म्म !! बाहर गार्ड को बोल कर चली जाओ बट कल से .. नो मोर एक्सक्यूसस" एक ज़िम्मेदार मालिक की भाँति ड्र. ऋषभ ने उसे अंतिम चेतावनी दी, जूही के रोज़ाना के नये-नये नाटको से वह तंग आ चुका था.
जूही: "थॅंक यू सर"
ड्र. ऋषभ: "रूको रूको !! गार्ड को बोलना कि अब किसी को भी क्लिनिक के अंदर ना आने दे. मैं अकेले वाकई हॅंडल नही कर पाउन्गा" सारे अपॉइंटमेंट कैंसिल कर दो और उनको कल आने को बोलना और हां उनको आज के लिए सॉरी कहना मत भूलना।
"शुवर सर !! बाइ टेक केअर" कॉल डिसकनेक्ट करने के उपरांत जूही ने ममता के लिए चाइ-पानी इत्यादि की व्यवस्था की, आख़िर उसके बॉस की माँ जो ठहरी और कुच्छ देर के वार्तालाप के पश्चात क्लिनिक से बाहर निकल जाती है.
"तो बताइए मिस्टर. सिंह ..." ड्र. ऋषभ ने अपने ठीक सामने बैठे मिस्टर. सिंह से पुछा मगर मिसेज़. सिंह ने उसकी बात को बीच में ही काट दिया.
"अरे यह क्या बताएँगे !! दो दो जवान बेटों के बाप हैं लेकिन लेकिन अक़ल दो कौड़ी की भी नही" वह अपने पति की ओर घूरते हुवे घुर्राई.
"ड्र. !! कल रात इन्होने ज़बरदस्ती मेरी गाँड़ मारी .. मारी नही बल्कि फाड़ डाली. उफ़फ्फ़ !! मुझसे तो इस कुर्सी पर भी ठीक से बैठा नही जा रहा" उसने बेशर्मी से अपने पति की बीती करतूत का खुलासा किया.
"रीमा !! स .. सुनो तो" अपनी पत्नी की अश्लीलता से मिस्टर. सिंह हकला गये, ड्र. ऋषभ के कानो से भी धुंवा निकलने लगता है.
"क्या सुनू मैं !! हां हां बोलो ? तुम्हे कितना मना किया था लेकिन तुमने सूखा ही घुसेड दिया. शायद तुम्हे अपनी बीवी की तक़लीफ़ का अंदाज़ा नही विजय, मैं बता नही सकती कि मेरी गाँड़ में इस वक़्त कितना दर्द हो रहा है" वह दोबारा तैश में चिल्लाई.
"ड्र. साहेब !! आप कुच्छ करो वरना...." अपनी सारी के पल्लू को अपने मूँह के भीतर ठूंसते हुवे वह रुन्वासि होने लगती है. उसके पति का तो मूँह ही लटक गया था मानो अपनी ग़लती स्वीकार कर शर्मिंदा हो रहा हो, ए/सी की ठंडी हवा के बावजूद विजय का पूरा चेहरा पसीने से लथ-पथ हो चुका था.
ड्र. ऋषभ ने एक नज़र दोनो मिया बीवी को देखा. मध्यम उमर, यही कोई 40-45 के आस-पास.
"मिसेज़. सिंग !! बिना इनस्पेक्ट किए मैं किसी भी नतीजे पर नही पहुँच सकता, बुरा ना मानें लेकिन यह ज़रूरी है" ड्र. ऋषभ ने मरीज़ के पर्चे पर उसकी डीटेल्स लिखते हुवे कहा, साथ ही डेस्क के कंप्यूटर पर नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट को ब्राउज़ करने लगता है.
"क्या मतलब ड्र. !! मैं समझी नही" रीमा ने पुछा, अब तक का उसका लहज़ा एक-दम गवारों जैसा था जो उसकी मदमस्त अधेड़ जवानी के बिल्कुल विपरीत था.
ड्र. ऋषभ: "मेरा मतलब है !! मुझे आप के रोग से रिलेटेड कुच्छ जाँचें करनी होंगी"
"हां तो ठीक है ना डॉक्टर. !! मैं भी हर जाँच करवाने के लिए तैयार हूँ, कुच्छ भी करो मगर मेरा दर्द ठीक कर दो" किसी याचक की भाँति रीमा बोली, वाकयि वह दर्द से बिलबिला रही थी. उसकी गांड तक कुर्सी पर क्षण मात्र को भी स्थिर नही रह पाई थी, जिसे कभी यहाँ तो कभी वहाँ मटकाते हुवे वह डॉक्टर ऋषभ को अपनी गहन पीड़ा से अवगत करवाने को प्रयास रत थी.
"रिलॅक्स मिसेज़. सिंह !! मैं खुद यही चाहता हूँ कि आप का दर्द जल्द से जल्द समाप्त जाए. विजय जी !! सॉफ लफ़ज़ो में कहना ज़्यादा उचित रहेगा कि मुझे आप की वाइफ के गुदा मार्ग का इंस्पेक्शन करना होगा, अगर आप दोनो तैयार हों तो बताइए. चूँकि मैं एक मेल सेक्शोलॉजिस्ट हूँ तो आप दोनो की इजाज़त मिलना बेहद आवश्यक है" डॉक्टर ऋषभ ने नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट को उनके मध्य रखते हुवे कहा.

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Nice update
 

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इसे ध्यान से पढ़ कर अपनी अनुमति प्रदान करें तभी मैं रीमा जी का हर संभव इलाज शुरू कर पाउँगा और यदि आप किसी फीमेल सेक्शोलॉजिस्ट से परामर्श लेने के इक्षुक हों तो इसी रोड पर ठीक 300 मीटर. आगे डॉक्टर . माया का क्लिनिक है. आप चाहें तो मैं अपने रेफ़्रेन्स से कॉल कर के उन्हें रीमा जी के केस से जुड़ी सारी डीटेल्स बता सकता हूँ" उसने बेहद नम्र स्वर में कहा ताकि अपना प्रभाव उन दोनो के ऊपर छोड़ सके, ख़ास कर रीमा रूपी कामु"क माल पर जिसका पल्लू उसके अत्यंत कसे ब्लाउस के आगे से सरकने की वजह से उसके गोल मटोल मम्मो का पूरा भूगोल वह अपनी कमीनी आँखों से मांपे जा रहा था. उसे खुद पर विश्वास था कि यदि उसने अपने बीते अनुभव का सटीक इस्तेमाल किया तो निश्चित ही उसकी सोची समझी मंशा अति-शीघ्र पूर्ण होने वाली थी.

अरे डॉक्टर साहेब !! गांड मेरी तो दर्द भी मेरा हुआ ना, रोगी मैं खुद हूँ और जब मुझे ही सब कुछ मंज़ूर है तो फिर यह इजाज़त क्यों देंगे भला ?" मासूमियत से ऐसा कह कर रीमा अपनी कुर्सी से उठी और वहीं अपनी सारी को अपने पेटिकोट से बाहर खिचने लगती है.
"नही नही रीमा जी !! अभी रुकिये, पहले इस नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट पर विजय जी के दस्तख़त हो जाने दीजिए" ड्र. ऋषभ रीमा के पति को घूरता है जो बेहद दुखी मुद्रा में उस सर्टिफिकेट को ऐसे पढ़ रहा था जैसे उसकी प्रॉपर्टी की वसीयत हो और जिसमें उसके बाप ने अपनी सारी दौलत पड़ोसी की औलाद के नाम कर दी हो.
"ईश्ह्ह !! आख़िर तुम चाहते क्या हो विजय ? क्या यही कि तुम्हारी बीवी तड़पते हुवे मर जाए ? हा !! शायद अब तुम्हें मेरी कोई फिकर नही रही" रीमा दोबारा क्रोध से तिलमिलाई.
"लाओ जी डॉक्टर साहेब !! वो ठप्पे वाली स्याही की डब्बी मुझे दो, मैं खुद अपना अंगूठा लगाती हूँ" उसने प्रत्यक्ष-रूप से अपने अनपढ़ होने का सबूत पेश किया. हलाकी वह पूर्व से ऐसी चरित्र-हीन औरत नही थी, पिछले महीने ही अपने गांव से अपने पति के पास दिल्ली आई थी. जीवन-पर्यंत अपनी बूढ़ी सास की देख-भाल के अलावा उसे किसी भी अन्य काम में कोई रूचि नही रही थी मगर आज अपने पति द्वारा सतायी वह अबला नारी किसी अनुभवी रंडी में परिवर्तित हो चली थी. इसकी एक मुख्य वजह डॉक्टर ऋषभ का आकर्षित व्यक्तित्व, सुंदर चेहरा, मांसल कलाई, बेहद गोरी रंगत, अत्यंत निर्मल स्वाभाव इत्यादि विशेताएँ या उसके वस्त्र-विहीन कठोर जिस्म का जितना हिस्सा वह अपनी खुली आँखों में क़ैद कर पाई थी, उसके कोमल हृदय को पिघलाने में सहायक उतना काफ़ी था.
"उम्म्म !! वो तो नही है रीमा जी मगर यह पेन ज़रूर है" डॉक्टर ऋषभ ने अपने हाथ में पकड़ा पेन विजय के चेहरे के सामने घुमाया, अपने समक्ष खड़ी अत्यधिक छरहरे शरीर की स्वामिनी रीमा की अश्लील बातों व हरक़तो के प्रभाव मात्र से उसके पैंट के भीतर छुपे उसके सुषुप्त लन्ड ने अंगड़ाई लेना प्रारंभ कर दिया था.

"डॉक्टर. साहब !! मेरी बीवी और बच्चो से बढ़ कर मेरे लिए कुछ भी नही, चलिए मैं साइन कर देता हूँ. अब आप भी जल्दी से इनका इलाज करना शुरू कर दीजिए" विजय के कथन और मुख पर छाई मायूसी का कहीं से कहीं तक कोई मेल नही बैठ पता, मजबूरी-वश उसे सर्टिफिकेट पर अपने दस्तख़त करने ही पड़ते हैं. यदि वह दो दिन पहले अपने ऑफीस के जवान चपरासी की बातों के फेर में नही आया होता तो यक़ीनन आज उसे यूँ शर्मिंदगी का सामना नही करना पड़ता. हुआ कुछ ऐसा था कि उसके चपरासी ने उसके सामने अपनी नयी-नवेली दुल्हन के संग की जाने वाली संभोग क्रियाओं का अति -उत्तेजक विश्लेषण किया था, ख़ास कर अपनी जवान बीवी की गांड चोदने के मंत्रमुग्ध आनंद की बहुत ज़ोर-शोर से प्रशंशा की थी और उनके दरमियाँ चले उस लंबे वार्तलाप के नतीजन विजय ने पिछली रात ज़बरदस्ती अपनी पत्नी की इच्छा के विरुद्ध उसकी गांड मार ली , जिसे वह स्वयं पहले अप्राक्रातिक यौन संबंध समझता था.

जवान लौन्डे-लौंडिया तो वर्तमान में प्रचिलित चुदाई से संबंधित सभी आसनो का भरपूर लाभ उठाते हैं मगर अधेड़ो की दृष्टिकोण से आज भी एक निश्चित व सामान्य स्थिति में अपनी काम-पीपसा को शांत कर लेना उचित माना जाता है, मुख मैथुन या गुदा-मैथुन को वे सर्वदा ही पाश्चात्य संस्कृति का हवाला दे कर अनुचित करार देते आए हैं.

"अब उतारू साड़ी ?" अपने पति को उल्हना देती रीमा ने सवाल किया जैसे पराए मर्द के समक्ष नंगी हो कर उससे बदला लेना चाहती हो, हां काफ़ी हद्द तक उसके अविकसित मष्तिष्क के भीतर कुच्छ ऐसा ही द्वन्द्व चल रहा था.
यहाँ नही रीमा जी !! वहाँ उस एग्जामिनेशन बेंच पर" डॉक्टर ऋषभ अपनी कुर्सी से उठ कर कॅबिन के दाईं तरफ स्थापित मरीज़ो वाले बिस्तर के नज़दीक जाते हुवे बोला. उसके पिछे-पिछे मिस्टर. & मिसेज़. सिंह भी उधर पहुँच गये.
"साड़ी उतारने की को ज़रूरत नही !! बस थोड़ी उँची ज़रूर कर लीजिए" उसके कहे अनुसार रीमा ने फॉरन अपनी साडी को पेटिकोट समेत अपनी पतली बलखाई कमर पर लपेट लिया और बिस्तर पर चढ़ने का भरकस प्रयत्न करने लगती है परंतु अपने गुदा-द्वार की असहनीय पीड़ा से विवश वह इसमें बिल्कुल सफल नही हो पाती.
ड्र. ऋषभ ने उस स्वर्णिम मौके की नज़ाकत को भुनाना चाहा और बिना किसी झेप के तुरंत वह रीमा के मांसल नंगे चुतडो के दोनो दाग-विहीन पाटों को अपने हाथो के विशाल पंजो के दरमियाँ कसते हुए उसके भारी भरकम शरीर को किसी फूल की तरह हवा में काफ़ी उँचाई तक उठा लेता है, कुछ पल अपने अत्यधिक बल का उदाहरण पेश करने के उपरांत उसने उसे बिस्तर की गद्दे-दार सतह पर छोड़ दिया जैसे वह मामूली सी कोई वजन-हीन वस्तु हो.
"उफ़फ्फ़" अपने पुत्र सम्तुल्य पर-पुरुष के हाथो के कठोर स्पर्श को महसूस कर रीमा सिसक उठी.
"मैं तो चड्ढ़ी भी नही पहन पाई !! देखो ना डॉक्टर साहेब इन्होने अपनी वहशियत से किस कदर अपनी नादान पत्नी को अपनी वासना का शिकार बनाया है" बिस्तर पर घोड़ी बन जाने के पश्चात ही उसने अपने चुतडो को वायुमंडल में उभारते हुवे कहा, उसकी कामुक आँखें परस्पर कभी अपने पति के उदासीन चेहरे पर गौर फरमाने लगती तो कभी अपने उस जवान नये प्रेमी के मुख-मंडल पर छाइ खुशी को निहारने में खो सी जाती.
क्रमशः.................................................................
Bhout hi badhiya update
इसे ध्यान से पढ़ कर अपनी अनुमति प्रदान करें तभी मैं रीमा जी का हर संभव इलाज शुरू कर पाउँगा और यदि आप किसी फीमेल सेक्शोलॉजिस्ट से परामर्श लेने के इक्षुक हों तो इसी रोड पर ठीक 300 मीटर. आगे डॉक्टर . माया का क्लिनिक है. आप चाहें तो मैं अपने रेफ़्रेन्स से कॉल कर के उन्हें रीमा जी के केस से जुड़ी सारी डीटेल्स बता सकता हूँ" उसने बेहद नम्र स्वर में कहा ताकि अपना प्रभाव उन दोनो के ऊपर छोड़ सके, ख़ास कर रीमा रूपी कामु"क माल पर जिसका पल्लू उसके अत्यंत कसे ब्लाउस के आगे से सरकने की वजह से उसके गोल मटोल मम्मो का पूरा भूगोल वह अपनी कमीनी आँखों से मांपे जा रहा था. उसे खुद पर विश्वास था कि यदि उसने अपने बीते अनुभव का सटीक इस्तेमाल किया तो निश्चित ही उसकी सोची समझी मंशा अति-शीघ्र पूर्ण होने वाली थी.

अरे डॉक्टर साहेब !! गांड मेरी तो दर्द भी मेरा हुआ ना, रोगी मैं खुद हूँ और जब मुझे ही सब कुछ मंज़ूर है तो फिर यह इजाज़त क्यों देंगे भला ?" मासूमियत से ऐसा कह कर रीमा अपनी कुर्सी से उठी और वहीं अपनी सारी को अपने पेटिकोट से बाहर खिचने लगती है.
"नही नही रीमा जी !! अभी रुकिये, पहले इस नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट पर विजय जी के दस्तख़त हो जाने दीजिए" ड्र. ऋषभ रीमा के पति को घूरता है जो बेहद दुखी मुद्रा में उस सर्टिफिकेट को ऐसे पढ़ रहा था जैसे उसकी प्रॉपर्टी की वसीयत हो और जिसमें उसके बाप ने अपनी सारी दौलत पड़ोसी की औलाद के नाम कर दी हो.
"ईश्ह्ह !! आख़िर तुम चाहते क्या हो विजय ? क्या यही कि तुम्हारी बीवी तड़पते हुवे मर जाए ? हा !! शायद अब तुम्हें मेरी कोई फिकर नही रही" रीमा दोबारा क्रोध से तिलमिलाई.
"लाओ जी डॉक्टर साहेब !! वो ठप्पे वाली स्याही की डब्बी मुझे दो, मैं खुद अपना अंगूठा लगाती हूँ" उसने प्रत्यक्ष-रूप से अपने अनपढ़ होने का सबूत पेश किया. हलाकी वह पूर्व से ऐसी चरित्र-हीन औरत नही थी, पिछले महीने ही अपने गांव से अपने पति के पास दिल्ली आई थी. जीवन-पर्यंत अपनी बूढ़ी सास की देख-भाल के अलावा उसे किसी भी अन्य काम में कोई रूचि नही रही थी मगर आज अपने पति द्वारा सतायी वह अबला नारी किसी अनुभवी रंडी में परिवर्तित हो चली थी. इसकी एक मुख्य वजह डॉक्टर ऋषभ का आकर्षित व्यक्तित्व, सुंदर चेहरा, मांसल कलाई, बेहद गोरी रंगत, अत्यंत निर्मल स्वाभाव इत्यादि विशेताएँ या उसके वस्त्र-विहीन कठोर जिस्म का जितना हिस्सा वह अपनी खुली आँखों में क़ैद कर पाई थी, उसके कोमल हृदय को पिघलाने में सहायक उतना काफ़ी था.
"उम्म्म !! वो तो नही है रीमा जी मगर यह पेन ज़रूर है" डॉक्टर ऋषभ ने अपने हाथ में पकड़ा पेन विजय के चेहरे के सामने घुमाया, अपने समक्ष खड़ी अत्यधिक छरहरे शरीर की स्वामिनी रीमा की अश्लील बातों व हरक़तो के प्रभाव मात्र से उसके पैंट के भीतर छुपे उसके सुषुप्त लन्ड ने अंगड़ाई लेना प्रारंभ कर दिया था.

"डॉक्टर. साहब !! मेरी बीवी और बच्चो से बढ़ कर मेरे लिए कुछ भी नही, चलिए मैं साइन कर देता हूँ. अब आप भी जल्दी से इनका इलाज करना शुरू कर दीजिए" विजय के कथन और मुख पर छाई मायूसी का कहीं से कहीं तक कोई मेल नही बैठ पता, मजबूरी-वश उसे सर्टिफिकेट पर अपने दस्तख़त करने ही पड़ते हैं. यदि वह दो दिन पहले अपने ऑफीस के जवान चपरासी की बातों के फेर में नही आया होता तो यक़ीनन आज उसे यूँ शर्मिंदगी का सामना नही करना पड़ता. हुआ कुछ ऐसा था कि उसके चपरासी ने उसके सामने अपनी नयी-नवेली दुल्हन के संग की जाने वाली संभोग क्रियाओं का अति -उत्तेजक विश्लेषण किया था, ख़ास कर अपनी जवान बीवी की गांड चोदने के मंत्रमुग्ध आनंद की बहुत ज़ोर-शोर से प्रशंशा की थी और उनके दरमियाँ चले उस लंबे वार्तलाप के नतीजन विजय ने पिछली रात ज़बरदस्ती अपनी पत्नी की इच्छा के विरुद्ध उसकी गांड मार ली , जिसे वह स्वयं पहले अप्राक्रातिक यौन संबंध समझता था.

जवान लौन्डे-लौंडिया तो वर्तमान में प्रचिलित चुदाई से संबंधित सभी आसनो का भरपूर लाभ उठाते हैं मगर अधेड़ो की दृष्टिकोण से आज भी एक निश्चित व सामान्य स्थिति में अपनी काम-पीपसा को शांत कर लेना उचित माना जाता है, मुख मैथुन या गुदा-मैथुन को वे सर्वदा ही पाश्चात्य संस्कृति का हवाला दे कर अनुचित करार देते आए हैं.

"अब उतारू साड़ी ?" अपने पति को उल्हना देती रीमा ने सवाल किया जैसे पराए मर्द के समक्ष नंगी हो कर उससे बदला लेना चाहती हो, हां काफ़ी हद्द तक उसके अविकसित मष्तिष्क के भीतर कुच्छ ऐसा ही द्वन्द्व चल रहा था.
यहाँ नही रीमा जी !! वहाँ उस एग्जामिनेशन बेंच पर" डॉक्टर ऋषभ अपनी कुर्सी से उठ कर कॅबिन के दाईं तरफ स्थापित मरीज़ो वाले बिस्तर के नज़दीक जाते हुवे बोला. उसके पिछे-पिछे मिस्टर. & मिसेज़. सिंह भी उधर पहुँच गये.
"साड़ी उतारने की को ज़रूरत नही !! बस थोड़ी उँची ज़रूर कर लीजिए" उसके कहे अनुसार रीमा ने फॉरन अपनी साडी को पेटिकोट समेत अपनी पतली बलखाई कमर पर लपेट लिया और बिस्तर पर चढ़ने का भरकस प्रयत्न करने लगती है परंतु अपने गुदा-द्वार की असहनीय पीड़ा से विवश वह इसमें बिल्कुल सफल नही हो पाती.
ड्र. ऋषभ ने उस स्वर्णिम मौके की नज़ाकत को भुनाना चाहा और बिना किसी झेप के तुरंत वह रीमा के मांसल नंगे चुतडो के दोनो दाग-विहीन पाटों को अपने हाथो के विशाल पंजो के दरमियाँ कसते हुए उसके भारी भरकम शरीर को किसी फूल की तरह हवा में काफ़ी उँचाई तक उठा लेता है, कुछ पल अपने अत्यधिक बल का उदाहरण पेश करने के उपरांत उसने उसे बिस्तर की गद्दे-दार सतह पर छोड़ दिया जैसे वह मामूली सी कोई वजन-हीन वस्तु हो.
"उफ़फ्फ़" अपने पुत्र सम्तुल्य पर-पुरुष के हाथो के कठोर स्पर्श को महसूस कर रीमा सिसक उठी.
"मैं तो चड्ढ़ी भी नही पहन पाई !! देखो ना डॉक्टर साहेब इन्होने अपनी वहशियत से किस कदर अपनी नादान पत्नी को अपनी वासना का शिकार बनाया है" बिस्तर पर घोड़ी बन जाने के पश्चात ही उसने अपने चुतडो को वायुमंडल में उभारते हुवे कहा, उसकी कामुक आँखें परस्पर कभी अपने पति के उदासीन चेहरे पर गौर फरमाने लगती तो कभी अपने उस जवान नये प्रेमी के मुख-मंडल पर छाइ खुशी को निहारने में खो सी जाती.
क्रमशः.................................................................
Bhout hi badhiya update
 
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चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े अमूमन सभी चिकित्सको ने कभी आकस्मात तो कभी किसी विशेष परिस्थिति के तहत सरलतापूर्वक अपने मरीज़ को वस्त्र-विहीन देखा होगा मगर डॉक्टर ऋषभ का सेवा-क्षेत्र "यौन विज्ञान" होने के कारण अक्सर उसके क्लिनिक में औरतों की फुल वेराइटी मौजूद रहती थी या यूँ कहना ज़्यादा उचित होगा कि यदि औरतों को क्लासीफ़ाई किया जाता तो शुरू करने के लिए उसका क्लिनिक एक अच्छी जगह माना जा सकता था क्यूँ कि यहाँ हर उमर की, हर साइज़ की, हर धरम की औरत आसानी से देखने मिल जाया करती थी. अपने से-क्षेत्र में महारत हासिल करने के उद्देश्य से उसने जवान, अधेड़, बूढ़ी लगभग सभी क़िस्मो की चूतो का बारीकी से अध्ययन किया था. उनका मांप , व्यास, कोण, लंबाई, चौड़ाई इत्यादि हर तबके की चूत का मानो अब वह प्रकांड विद्वान बन चुका था.

यह तथ्य कतयि झूठा नही की वर्तमान में जितनी भीड़ नॉर्मल एमबीबीएस डॉक्टर'स के क्लिनिक पर जमा होती है उससे कहीं ज़्यादा बड़े हुज़ूम को हम एक सेक्सोलॉजिस्ट क्लिनिक के बाहर पंक्तिबद्ध तरीके से अपनी बारी का इंतज़ार करते हुए देख सकते हैं. आज के वक़्त का शायद हर इंसान (नर हो या मादा) यौन रोग की गिरफ़्त में क़ैद है, वजह भ्रामक विज्ञापन हों या झोला छाप चिकित्सकों की अनुभव-हीन चिकित्सा जिनके बल-बूते पर निरंतर लोग गुमराह होते रहते हैं और अंतत सारी शरम, संकोच भुला कर उन्हें किसी प्रोफेशनल सेक्सोलॉजिस्ट के पास जाना ही पड़ता है.
"अति सर्वत्र वर्जयेत " घनघोर अश्लीलता के इस युग में कोई हस्त्मैतुन की लत से परेशान है तो किसी के वीर्य में प्रजनन शुक्रानुओ का अभाव है, कोई औरत मा नही बंन सकती तो किसी की चूत 24 घंटे सिर्फ़ रिसती ही रहती है. सीधे व सरल लॅफ्ज़ो में कहा जाए तो काम-उत्तेजना के शिकार से ना तो भूतकाल में कोई बच सका था, ना वर्तमान में बच सका है और ना ही भविष्य में बच सकेगा. आगे आने वाली पीढ़ियों में यौन रोग से संबंधित कई लाइलाज बीमारियाँ जन्म से ही मनुष्य के साथ जुड़ी पाई जाएँगी और जिससे जीवन-पर्यंत तक शायद मृत्यु नामक अटल सत्य के उपरांत ही वह मुक्त हो सकेगा.
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डॉक्टर. ऋषभ ने अपने समक्ष बिस्तर पर पसरी रीमा के नंगे चूतड़ का भरपूर चक्षु चोदन करना आरंभ कर दिया. हालांकि चुतडो के पाट आपस में चिपके होने की वजह से वह रोग से संबंधित उसके गुदा-द्वार को तो नही देख पाता परंतु जिस कामुक अंदाज़ में रीमा ने अपने चूतड़ हवा में ऊपर की ओर तान रखे थे, डॉक्टर ऋषभ को उसकी कामरस उगलती चूत की सूजी फाँको का सम्पूर्ण चीरा स्पष्ट रूप से नज़र आ रहा था.


19079748


माफी चाहूँगी डॉक्टर साहेब !! मुझ मोटी औरत को बिस्तर पर चढ़ाने के लिए आप को बेवजह तकलीफ़ उठानी पड़ी" रीमा ने मुस्कुराते हुवे कहा, इस पूरे घटना-क्रम के दौरान प्रथम बार उसका पीड़ासन्न् चेहरा वास्तव में खिल पाया था और "उसके कथन को सुन कर प्रत्युत्तर में डॉक्टर ऋषभ के होंठ भी फैल जाते हैं, यक़ीनन यह कामुक मुस्कान उसके अविश्वसनीय बल प्रयोग की तुच्छ भेंट स्वरूप ही रीमा ने उसे प्रदान की थी.

कैसी तकलीफ़ रीमा जी !! मैने तो बस अपना फ़र्ज़ निभाने का प्रयास किया है" ड्र. ऋषभ ने सामान्य स्वर में कहा.
"मिस्टर. सिंह !! आप इनके नितंब की दरार को खोलें ताकि मैं इनके गुदा-द्वार की वास्तविक हालत का बारीकी से निरीक्षण कर सकूँ" अनचाहे इन्फेक्शन बचने हेतु उसने अपने दोनो हाथो में मेडिकल ग्लव्स पहनते हुए कह।।

विजय की पलकें मूंद गयी, उसकी छोटी सी ग़लती का इतना भीषण परिणाम उसे झेलना होगा उसने ख्वाब में भी कभी नही सोचा था. किसी संस्कारी पति के नज़रिए से यह कितनी शर्मसार स्थिति बन चुकी थी जो उसे स्वयं ही अपनी पत्नी की शरमगाह को किसी तीसरे मर्द के समक्ष उजागर करना पड़ रहा था, हालाँकि मेडिकल पॉइंट ऑफ व्यू से उसका ऐसा करना उचित था परंतु अत्यधिक लाज से उसके हाथ काँप रहे थे. धीरे-धीरे उसके उन्ही हाथो में कठोरता आती गयी और क्षणिक अंतराल के पश्चात ही उसकी पत्नी की गान्ड का अति-संवेदनशील भूरा छेद डॉक्टर ऋषभ की उत्तेजना में तीव्रता से वृद्धि करने लगता है.

"अहह सीईईई ड्र. साहेब" रीमा सिसकारी, उसके पुत्र सम्तुल्य पर-पुरुष ने उसकी सम्पूर्न चूत को अपनी दाईं मुट्ठी के भीतर भींच लिया था, दोनो की कामुक निगाँहें आपस में जुड़ कर उनके तंन की आग को पहले से कहीं ज़्यादा भड़का देने में सहायक थी. फिलहाल तो विजय की आँखें बंद थी परंतु कामुत्तेजित उस द्रश्य को देख सिर्फ़ यही अंदाज़ा लगाया जा सकता था कि उसकी खुली आँखों का भी अब नाम मात्र का भय उन दोनो प्रेमियों पर कोई विशेष अंतर नही ला पाता.
"उम्म्म्म" अचानक से रीमा ने अपने खुश्क होंठो पर अपनी जीभ घुमाई, उसका इशारा सॉफ था कि अब वह ड्र. ऋषभ को अपनी चूत के गाढ़े कामरस का स्वाद चखाने को आतुर थी, मौका तो अवश्य था मगर उसके जवान प्रेमी की हिम्मत जवाब दे जाती है.
"विजय जी !! थोडा ज़ोर लगाइए वरना तो मुझे आप की मदद का कोई लाभ नही मिल पा रहा. वैसे आप की बीवी की गान्ड का छेद फटा ज़रूर है मगर फिर भी आप इनके चुतडो को ताक़त से चौड़ाइए ताकि मैं जान सकूँ कि छेद महज लोशन लगाने भर से ठीक हो जाएगा या मुझे उसके इर्द-गिर्द टाँके कसने पड़ेंगे" अपनी असल औक़ात पर आते हुवे डॉक्टर ऋषभ ने कहा.
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ओह्ह्ह विजय आराम से !! तुम तो चाहते ही नही कि मैं ठीक हो जाउ" अपने पति के बलप्रयोग पर रीमा बिलबिला उठी.

"अगर मेरी गाँड़ के छेद में टाँके लगने की नौबत आई ना तो याद रखना मैं तुमसे तलाक़ ले लूँगी, फिर हिलाते रहना अपना लंड मेरी याद में" अत्यधिक क्रोध से तिलमिला कर उसने चेतावनी दी. बड़ी अजीब विडंबना थी, ड्र. ऋषभ का कहा मानो त्नी चिल्लाए और पत्नी की मानो तो उसका इलाज कैसे संभव हो परंतु लग रहा था जैसे विजय ने काफ़ी हद्द तक इस घटना-क्रम की महत्वता को स्वीकार कर लिया था और तभी उसके उदासीन चेहरे पर अब बेहद गंभीरता के भाव आने लगे थे.
तो प
ड्र. ऋषभ अपनी अनुभवी आँखों का जुड़ाव रीमा के गुदा-द्वार से कर देता है, छेद के आस-पास मामूली सी खरोंचे उसे अवश्य नज़र आई मगर प्रथम गुदा-मैथुन के उपरांत तो लगभग महिला को इतनी पीड़ा झेलना अनिवार्य ही होती है. उसने इस विषय पर भी गौर किया कि कहीं विजय को रीमा की उत्तेजित अवस्था का भान ना हो जाए क्यों कि उसकी पत्नी की चूत तेज़ी से निरंतर बहती जा रही थी. स्वयं उसकी खुद की हालत खराब थी, पैंट की ऊपरी सतह पर बड़ा सा तंबू उभर आया था.

"आईईई ड्र. साहेब !! अब आप मुझसे किस बात का बदला ले रहे हो ? उफफफ्फ़ .. उंगली .. अंदर उंगली क्यों पेल दी. आह्ह्ह्ह मर गयी रे" रीमा की चीख कॅबिन में तो क्या पूरे क्लिनिक में गूँज उठी, ड्र. ऋषभ ने अपने अंगूठे को बेदर्दी से उसकी गाँड़ के चोटिल छेद के भीतर ठूंस दिया था.
"होश में आओ रीमा !! आख़िर यह तुम्हारा इलाज कर रहे हैं, इनकी भला तुमसे कैसी दुश्मनी" अपनी पत्नी को साहस देते हुवे विजय बोला और साथ ही वह उसके चुतडो को हौले-हौले सहलाने भी लगता है ताकि उसके दर्द को बाँटा जा सके.

"हे हे हे हे !! सब कुच्छ ठीक है रीमा जी. ऋषभ हँसते हुए बोला आप बे-फ़िज़ूल परेशान मत होइए, बाहर से आप की गाँड़ का छेद बिल्कुल सुरक्षित है मगर अंदरूनी ज़ख़्म भी तो जाँचना ज़रूरी है" हंसते हुवे ड्र. ऋषभ अपने अंगूठे को कभी गोल तो कभी तीव्रता से छेद के अंदर-बाहर करना शुरू कर देता है. रीमा की दबी सिसकारियों का ,संगीत उसे बेहद पसंद आ रहा था और अब विजय से भी उसे डरने की कोई आवश्यकता नही थी.
"फटाक !! आप ठीक हैं" अंत-तह अपना मनपसंद कार्य जिसे बधाई-स्वरूप वह सदैव औरतों के मांसल चुतडो पर थप्पड़ लगा कर पूरा करता आया था, रीमा की गान्ड के छेद से अपना अंगूठा बाहर खींचने के उपरांत उसने वही प्रक्रिया उस पर भी दोहराई.

आप तो बस एन्जॉय कीजिये ,डॉक्टर ऋषभ ने रीमा के चूतड़ों को हलके से सहलाते हुए बोला
हे भगवान् तो क्या आप भी गाँड़ मारने का समर्थन करते है डॉक्टर साहब ,रीमा चहुंकते हुए बोली।

नहीं नहीं मेरी राय आपके निजी व्यक्तिगत मामले में बिलकुल नहीं है ,गाँड़ आपकी है आप मरवाये या न मरवाये
ऋषभ मुस्कराते हुए बोला।।।


बीवी की कुशलता की खुशी में विजय ने भी ड्र. ऋषभ के निर्लज्जता-पूर्ण थप्पड़ पर कोई आपत्ति ज़ाहिर नही की बल्कि उससे गले मिल कर उसका शुक्रिया अदा करता है.
"जानू !! आज तो मैं पूरे मोहल्ले में मिठाई बाटुंगा" अत्यधिक प्रसन्नता से अभिभूत वह अपनी पत्नी के चुतडो के दोनो पाट बारी-बारी से चूम कर बोला.
"शरम करो जी शरम करो !! डॉक्टर साहेब हमारे बड़े बेटे की उमर के हैं और उनके सामने ही तुम मेरे चूतड़ चूमने लगे. हा !! विजय तुम कितने बेशरम इंसान हो" उल्टी चोरनी कोतवाल को डान्टे मुहावरे का बखूबी प्रयोग करते हुवे रीमा उसे लताड़ देती है, कल तक वह मर्द उसका पति था, उसके सुख-दुख का साथी मगर आज तो जैसे वह उसे फूटी आँख भी नही सुहा रहा था.

रीमा: "ड्र. साहेब !! क्या आप मुझे बिस्तर से नीचे नही उतारेंगे ?" स्त्री त्रियाचरित्र की तो यह पराकाष्ठा थी.
"हां हां रीमा जी !! क्यों नही डॉक्टर ऋषभ इस बार भी मौके को भुनाने का फ़ैसला करता है और फॉरन वह रीमा के नंगे चुतडो से चिपक गया, बिस्तर की उँचाई ज़्यादा ना होने की वजह से पॅंट के भीतर तने उसके विशाल लंड की प्रचंड ठोकर सीधे रीमा की कामरस से सराबोर चूत पर जा पड़ी. तत-पश्चात उसकी बलखाई पतली कमर पर अपने दोनो हाथ फेरते हुवे डॉ . ऋषभ शीघ्र ही उन्हें उसकी पीठ पर घुमाना शुरू कर देता है.
"अब धीरे-धीरे ऊपर उठने की कोशिश कीजिए, मैं पिछे से सपोर्ट देता हूँ" कहने के उपरांत ही उसने रीमा के दोनो मम्मो को अपने पंजो के बीच मजबूती से जाकड़ लिया और उसके पति के समक्ष मदद का नाटक करते हुवे उसे बिस्तर से नीचे खींच लेता है. कुल मिला कर रीमा रूपी टंच माल अब डॉ ऋषभ पर पूरी तरह से मोहित हो चली थी.

"विजय जी !! भारतीय क़ानून की धारा *** के तहत पति होने के बावजूद आप अपनी पत्नी के ऊपर सेक्स के लिए दबाव नही डाल सकते, फिर आप ने तो इनके साथ बलपूर्वक अप्राक्रातिक गुदा-मैथुन किया था. आप की वाइफ का दिल बहुत सॉफ है वरना इनकी एक लिखित शिक़ायत आप को सलाखों के पिछे पहुँचा सकती थी" अपने पूर्व स्थान पर बैठने के उपरांत डॉ . ऋषभ ने कहा.
मैं आगे से ध्यान रखूँगा डॉक्टर साहिब " विजय ने वादा किया, वह हक़ीक़त में शर्मिंदा था.
"मैने लोशन लिख दिया है रीमा जी !! दिन में 3-4 बार हल्की उंगली से अपनी गाँड़ के छेद की मालिश ज़रूर कीजिएगा, अगर फिर भी कोई दिक्कत पेश आए तो यह मेरा कार्ड है"
"विजय जी !! अगली बार आप भी इनकी गाँड़ मारने से पहले अपना लंड चिकना जरूर ....." ड्र. ऋषभ के बाकी अल्फ़ाज़ मानो उसके मूँह के अंदर ही दफ़न हो कर रह गये क्यों कि बंद कंप्यूटर की एलसीडी स्क्रीन पर उसे विज़िटर'स रूम की खुली खिड़की से उसके केबिन के भीतर झाँकति एक मादा आकृति नज़र आ रही थी और उसकी माँ के अलावा इस वक़्त उस कमरे में कोई अन्य मौजूद ना था.
Mast likh rahe ho bhai.
 
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