• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Incest माँ का चेकअप और चुदाई (नए अंदाज में ) complete Story

Pk8566

Active Member
1,459
1,713
159
इस बात का एहसास हो जाने के बाद की उसकी माँ केबिन में झांक रही है ,जान लेने के बाद हड़बड़ा जाता है।

आप कुछ कह रहे थे डॉक्टर. ?" डॉक्टर. ऋषभ के चुप होते ही विजय ने उसे टोका."ह .. हां" जैसे कोई डरावना सपना टूटा हो, गहरी तन्द्रा से आकस्मात ही यथार्थ में लौटने के उपरांत डॉ ऋषभ हड़बड़ा सा जाता है. और अपनी भाषा को मर्यादित करते हुए विजय से बोला।

"वो .. वो मैं यह कह रहा था, विजय जी! एक ब्रांडेड लुब्रीकेंट ट्यूब सजेस्ट कर रहा हूँ. एनल सेक्स स्टार्ट करने से पहले आप उस ट्यूब को अपने पेनिस पर लगा लिया करना ताकि इंटरकोर्स के दौरान अनचाहा फ्रिक्शन रेड्यूज़ हो सके और चिकनाहट भी बरकरार रहे" वह दवाइयों के पर्चे पर लूब्रिकॅंट का नाम लिखते हुवे बोला. अपनी माँ की ताका-झाँकी के भय से उसके अश्लील अल्फ़ाज़, चेहरे के बेढंगे भाव और लंड का तनाव इत्यादि सभी विकार तीव्रता से सुधार में परिवर्तित हो चले थे.

"यह क्या खुसुर-फुसुर चल रही है ड्र. साहेब ? मुझे कुच्छ समझ नही आया" रीमा ने पुछा, अब वह अनपढ़ थी तो इसमें उसकी क्या ग़लती.
विजय: "अरी भाग्यवान! ड्र. ऋषभ ...."
"तुम चुप रहो जी! हमेशा चपर-चपर करते रहते हो. तो डॉक्टर. साहेब! क्या कह रहे थे आप ?" अपने पति का मूँह बंद करवाने के पश्चात रीमा ड्र. ऋषभ से सवाल करती है, अपने पुत्र-तुल्य प्रेमी के ऊपर तो अब वह अपनी जान भी न्योछावर करने से नही चूकती.

"कुछ ख़ास नही रीमा जी" ड्र. ऋषभ ने सोचा कि अब जल्द से जल्द उन दोनो को क्लिनिक का दरवाज़ा दिखा देना चाहिए ताकि अन्य कोई ड्रामा उत्पन्न ना हो सके. तत-पश्चात दोबारा उसने अपनी निगाहें बंद कंप्यूटर की स्क्रीन से जोड़ दी मगर इस बार उसे विज़िटर'स रूम की खिड़की पर कोई आक्रति नज़र नही आती.

"मैं इतनी भी गँवार नही ड्र. साहेब! आप ने अभी सेक्स, पेनिस और लू .. लू .. लुबी, हां! ऐसा ही कुच्छ बोला था" रीमा ने नखरीले अंदाज़ में कहा. अब कोई कितना भी अनपढ़ क्यों ना सही 'सेक्स' शब्द का अर्थ तो वर्तमान में लगभग सभी को पता होता है. हां! जितना वह नही समझ पाई थी उतने का क्लू देने का प्रयत्न उसने ज़रूर किया.

"वो! रीमा जी" अब तक ड्र. ऋषभ के मन में उसकी माँ का डर व्याप्त था, हलाकी ममता अब खिड़की से हट चुकी थी मगर फिर भी वह फालतू का रिस्क लेना उचित नही समझता.
"मैने विजय जी को सब बता दिया है, घर जा कर आप इन्ही से पुछ लीजिएगा" उसने पीछा छुड़ाने से उद्देश्य से कहा और दवाइयों का पर्चा विजय के हवाले कर देता है.
"हम चलते हैं डॉक्टर.! आप की फीस ?" विजय ने अपनी शर्ट की पॉकेट में हाथ डालते हुवे पुछा मगर रीमा का दिल उदासी से भर उठता है.

वह कुछ और वक़्त ड्र. ऋषभ के साथ बिताना चाहती थी, फीस के आदान-प्रदान के उपरांत तो उन्हें क्लिनिक से बाहर जाना ही पड़ता.

"नही विजय जी! रीमा जी का रोग ठीक होने के बाद मैं खुद आप से फीस माँग लूँगा" ड्र. ऋषभ की बात सुन कर जहाँ विजय उसकी ईमानदारी पर अचंभित हुवा, वहीं रीमा के तंन की आग अचानक भड़क उठती है.

डॉक्टर . साहेब! कभी हमारे घर पर आएँ और हमे भी आप की खातिरदारी करने का मौका दें" रीमा फॉरन बोली, उसके द्वि-अर्थी कथन का मतलब समझना ड्र. ऋषभ के लिए मामूली सी बात थी परंतु जवाब में वह सिर्फ़ मुस्कुरा देता है.

"हां ड्र.! मेरा नंबर और अड्रेस मैं यहाँ लिख देता हूँ, आप हमारे ग़रीब-खाने में पधारेंगी तो हमे बहुत खुशी होगी" सारी डीटेल'स टेबल पर रखे नोट पॅड में लिखने के उपरांत दोनो पति-पत्नी अपनी कुर्सियों से उठ कर खड़े हो गये. रीमा ने अपने पति के पलटने का इंतज़ार किया और तत-पश्चात अपनी सारी, पेटिकोट समेत पकड़ कर उसके खुरदुरे कपड़े को अपनी चूत के मुहाने पर ठीक वैसे ही रगड़ना शुरू कर देती है जैसे पेशाब करने के पश्चात अमूमन कयि भारतीय औरतें अपनी चूत के बाहरी गीलेपन को पोंच्छ कर सॉफ करती हैं.

"क्या हुवा रीमा ? अब चलो भी" अपनी पत्नी को नदारद पा कर विजय ने पुछा.
"तुमने तो अपनी बीवी को इतने जवान डॉक्टर साहेब के सामने नंगी हो जाने पर विवश कर दिया, अब क्या साड़ी की हालत भी ना सुधारू ?"

रीमा, ड्र. ऋषभ की आँखों में झाँकते हुवे बोली और कुच्छ देर तक अपनी साड़ी की अस्त-व्यस्त हालत को सुधारने के बहाने अपनी चूत को रगड़ती ही रहती है. कॅबिन के दरवाज़े पर खड़े, उसकी प्रतीक्षा करते विजय का तो अब नाम मात्र का भी भय उसके चेहरे पर नज़र नही आ रहा था.
"घर ज़रूर आईएगा डॉक्टर . साहेब! अच्छा! तो अब मैं चलती हूँ" अंततः केबिन के भीतर मौजूद उन दोनो मर्दो पर भिन्न-भिन्न रूप के कहर ढाने के उपरांत अनमने मन से रीमा को विदाई लेनी पड़ती है, ड्र. ऋषभ के साथ ही विजय के चेहरे पर भी सुकून के भाव सॉफ देखे जा सकते थे.
--------------
"उफफफ्फ़" अपनी टाइ की बेहद कसी नाट ढीली करने के बाद ऋषभ कुच्छ लम्हो तक लंबी-लंबी साँसें भरने लगा जो की मानसिक तनाव दूर करने में चिकित्सको का प्रमुख सहायक माध्यम होता है.
"कुच्छ देर और अगर यह औरत यहाँ रहती तो शायद मैं इसको यही चोदने को विवश हो जाता , आई थी अपनी गाँड़ सिलवाने मगर फाड़ कर चली गयी मेरी" उसने मन ही मन सोचा, ढीली पैंट और चुस्त फ्रेंची की जकड में क़ैद उसका हलब्बी लण्ड अब भी ऐंठा हुवा था. मेज़ पर रक्खी घड़ी में वक़्त का अंदाज़ा लगा कर उसने जाना कि उसकी माँ पिछले आधे घंटे से विज़िटर'स रूम के अंदर बैठी उसके फ्री होने का इंतज़ार कर रही थी.

"हेलो माँ ,अंदर आ जाओ, मैं अब बिल्कुल फ्री हो चुका हूँ"
Super next more
Update
 

p696r

Lust Forever💦
124
431
64
maine story ke start me hi likh diya tha ki ye kahani meri nahi hai ,main bus ise complete kar raha hu ,aur ha ye story kisi bhi site pe complete nahi hai

kahani hai ,use kahani ki tarah lo ,enjoy karo mast raho .
Achhi kahani hai, tumhari agali kahani ka intezar rehega, keep it up 👍
 

rahulrajgupta

New Member
88
294
54
mamta



ममता! एक सभ्य, सुसंस्कृत, महत्वाकांक्षी भारतीय नारी. जितनी कुशल ग्रहणी उससे कहीं ज़्यादा सफल व्यावसायिक महिला, अपने पति की अभिन्न प्रेमिका तो अपने बच्चो की आदर्श.। स्नातक की पढ़ाई के दौरान प्रेम-विवाह और उसके ठीक एक साल बाद माँ बनने का सौभाग्य. कुल मिला कर उसका रहेन-सहेन बेहद सरल व सादा था.
.
राजेश उसी विश्विधयालय में प्राध्यापक की हैसियत से कार्य-रत था जो अपनी ही विद्यार्थी ममता से प्रेम कर बैठता है, परिजनो के दर्ज़नो हस्तक्षेप, अनगिनत दबाव के बावजूद उसने उससे विवाह रचाया और जिसके नतीजन ममता के शिक्षण के दौरान ही उसे नैंसी के रूप उसे में पुत्री रत्न की प्राप्ति हो गयी थी. राजेश की एक लड़के की ख्वाहिश को ममता ने एक एक साथ दो जुड़वाँ लड़को को जन्म दे के पूरा किया।

बच्चो की अच्छी परवरिश के खातिर ममता के पढ़ाई छोड़ देने के फ़ैसले पर राजेश कतयि राज़ी नही हुआ और बीकॉम के उपरांत उसने अपनी पत्नी को एमकॉम भी करवाया. उस पुराने दौर में उतनी शिक्षा एक उच्च कोटि की नौकरी प्राप्त करने हेतु काफ़ी मानी जाती थी, शुरूवात प्राथमिक शाला में अधयापिका के पद पर की और तट-पश्चात एमबीए की उपाधि अर्जित करने के उपरांत आज वह एक मशहूर मल्टिनॅशनल कॉर्पोरेशन में मुख्य एचआर की भूमिका का सफलता-पूर्वक निर्वाह कर रही थी. स्वयं राजेश भी अब अपने सह-क्षेत्र का एचओडी बन चुका था.
राजेश और ममता का आपसी संबंध चाहे मानसिक हो या शारीरिक, बेहद नपा तुला रहा था. दोनो विश्वास की नज़र ना आने वाली किंतु अत्यंत मजबूत डोर से बँधे हुवे थे. ममता का दिन भर दफ़्तर में व्यस्त रहना और घर लौटने के पश्चात भी वह मोबाइल या लॅपटॉप में उलझी रहती मगर राजेश ने कभी उसके काम या व्यस्तता आदि में कोई दखल-अंदाज़ी नही की थी बल्कि कुछ वक्त पिछे तक तो वह खुद अपनी पत्नी के लिए खाने-पीने का इंतज़ाम करता रहा था, उसे कोई आपत्ति नही थी क। परन्तु वर्तमान में तो जैसे सब कुच्छ बदल चुका था. अस्थमा और दिल की बीमारी की चपेट ने राजेश को मंन ही मंन खोखला नही किया अपितु शारीरिक क्षमता से भी अपंग कर दिया था. पुराने दौर में तो वे दोनो लगभग रोज़ाना ही चुदाई किया करते थे परंतु अब तो मानो साप्ताह के साप्ताह बीत जाने पर भी नाम मात्र की अतरंगता संभव नही हो पाती थी.
ममता एक अत्यंत कामुक परन्तु मर्यादित स्वभाव की महिला थी लेकिन चुदाई के दौरान उसकी उत्तेजना कई गुना ज़्यादा बढ़ जाया करती थी. खुद राजेश भी कभी-कभी उसके कामुक स्वाभाव से घबरा सा जाता था, ममता को हमेशा से वाइल्ड सेक्स करने की चाह रही है ,वो जब भी राजेश के साथ कभी पोर्न मूवी देखती तो उसे हमेशा सामान्य से हटकर चुदाई के वीडियो ही पसंद आते थे परन्तु राजेश के सीधे साधे एवं लीक पे चलने वाले वाले स्वभाव के कारण उसने सदैव अपनी बहुतेरी इक्छाओं का दमन ही किय। परन्तु जैसे-जैसे ममता की उमर ढल रही थी उसकी काम-पिपासा दुगुनी गति से बढ़ रही थी. अब तो हालात इतने बदतर हो चले थे कि वह चाह कर भी अपनी कामोत्तजना पर काबू नही रख पा रही थी. कई दिनो से निरंतर उसकी चूत से गाढ़े द्रव्य का अनियंत्रित रिसाव ज़ारी था मगर बिना पुरुष सहयोग के उसका खुल कर झड़ पाना कतई संभव नही हो पा रहा था . प्रचूर मात्रा में रिसाव होने के प्रभाव से उसके सम्पूर्ण जिस्म में हमेशा ही दर्द बना रहता था और सदैव चुदाई के विचारों में मगन उसका मष्तिष्क उसकी पीड़ा को समाप्त होने में लगातार बाधा उत्पन्न कर रहा था.

मे आइ कम इन डॉक्टर. ?" ममता ने कॅबिन के दरवाज़े को खोलते हुवे पुछा, हमेशा की तरह उसके चेहरे पर शर्मीली सी मुस्कान व्याप्त थी परंतु अब उसके साथ दिखावट नामक शब्द का जुड़ाव हो चुका था.
"हां मा! अंदर आ जाओ, तुम्हे मेरी इजाज़त लेने कोई ज़रूरत नही" जवाब में ऋषभ को भी मुस्कुराना पड़ा मगर अपने लंड की ऐंठन से भरपूर स्थिति का ख़याल कर वह कुर्सी से उठ कर अपनी माँ का स्वागत करने का साहस नही जुटा पाता बस इशारे मात्र से ममता को सामने रखी कुर्सी ऑफर करने भर से उसे संतोष करना पड़ता है.
"क्या बात है रेशू! तू कुच्छ परेशान सा दिख रहा है" ममता बोली और तत-पश्चात कुर्सी पर बैठ जाती है, अभी वह बिल्कुल अंजान थी कि उसकी केबिन के भीतर ताक-झाँक करने वाला रहस्य उसके पुत्र पर उजागर हो चुका है और उसी घटना के प्रभाव से वह इतना चिंतित है.

"नही! नही तो माँ " ऋषभ ने अपना थूक निगलते हुवे कहा, उसका मष्तिष्क इस बात को कतई स्वीकार नही का पा रहा था कि कुछ देर पहले उसकी सग़ी माँ ने उसे अपने ही समान अधेड़ उमर की औरत की गान्ड में उंगली पेलते देखा था. ममता के चेहरे के भाव सामान्य होने की वजह से वह निश्चित तौर पर तो नही जानता था कि उसकी माँ ने उस अश्लील घटना-क्रम से संबंधित क्या-क्या देखा परंतु संदेह काफ़ी था कि उसने कुछ न कुछ तो अवश्य ही देखा होगा.

"क्या वाकई ?" ममता ने प्रश्नवाचक निगाहो से उसे घूरा. "इस ए/सी के ठंडक भरे वातावरण में भी तुझे पसीना क्यों आ रहा है ?" वह पुनः सवाल करती है.
कुच्छ वक़्त पूर्व क्लिनिक में गूंजने वाली रीमा की चीख उसके कानो से भी टकराई थी और ना चाहते हुवे भी उसके कदम विजिटर'स रूम की खिड़की तक घिसटते आए थे. माना दूसरो के काम में टाँग अड़ाना उसे शुरूवात से ही ना-पसंद रहा था परंतु अचानक से बढ़े कौतूहल के चलते विवश वह खिड़की से कॅबिन के भीतर झाँकने से खुद को रोक नही पाई थी और अपने बेटे के एक महिला की गांड में ऊँगली पेलने का भयावह द्रश्य उस वक़्त उसकी आँखों ने देखा, विश्वास से परे कि उसकी खुद की गांड के छेद में सिहरन की कपकंपी दौड़ने लगी थी.
 
Last edited:

Funlover

I am here only for sex stories No personal contact
16,074
23,624
229
बहोत बढ़िया

अगर कहानी को पूरा करो तो और भी मजेदार होगा क्यों की एक अच्छी कहानी थी जो लेखक ने कुच्छ मजबुरियो की वजह से अधूरी छोड़ राखी थी...................

आपकी कोशिश सराहनीय है.............लिखते रहिये........................
 

sunoanuj

Well-Known Member
4,078
10,559
159
इस बात का एहसास हो जाने के बाद की उसकी माँ केबिन में झांक रही है ,जान लेने के बाद हड़बड़ा जाता है।

आप कुछ कह रहे थे डॉक्टर. ?" डॉक्टर. ऋषभ के चुप होते ही विजय ने उसे टोका."ह .. हां" जैसे कोई डरावना सपना टूटा हो, गहरी तन्द्रा से आकस्मात ही यथार्थ में लौटने के उपरांत डॉ ऋषभ हड़बड़ा सा जाता है. और अपनी भाषा को मर्यादित करते हुए विजय से बोला।

"वो .. वो मैं यह कह रहा था, विजय जी! एक ब्रांडेड लुब्रीकेंट ट्यूब सजेस्ट कर रहा हूँ. एनल सेक्स स्टार्ट करने से पहले आप उस ट्यूब को अपने पेनिस पर लगा लिया करना ताकि इंटरकोर्स के दौरान अनचाहा फ्रिक्शन रेड्यूज़ हो सके और चिकनाहट भी बरकरार रहे" वह दवाइयों के पर्चे पर लूब्रिकॅंट का नाम लिखते हुवे बोला. अपनी माँ की ताका-झाँकी के भय से उसके अश्लील अल्फ़ाज़, चेहरे के बेढंगे भाव और लंड का तनाव इत्यादि सभी विकार तीव्रता से सुधार में परिवर्तित हो चले थे.

"यह क्या खुसुर-फुसुर चल रही है ड्र. साहेब ? मुझे कुच्छ समझ नही आया" रीमा ने पुछा, अब वह अनपढ़ थी तो इसमें उसकी क्या ग़लती.
विजय: "अरी भाग्यवान! ड्र. ऋषभ ...."
"तुम चुप रहो जी! हमेशा चपर-चपर करते रहते हो. तो डॉक्टर. साहेब! क्या कह रहे थे आप ?" अपने पति का मूँह बंद करवाने के पश्चात रीमा ड्र. ऋषभ से सवाल करती है, अपने पुत्र-तुल्य प्रेमी के ऊपर तो अब वह अपनी जान भी न्योछावर करने से नही चूकती.

"कुछ ख़ास नही रीमा जी" ड्र. ऋषभ ने सोचा कि अब जल्द से जल्द उन दोनो को क्लिनिक का दरवाज़ा दिखा देना चाहिए ताकि अन्य कोई ड्रामा उत्पन्न ना हो सके. तत-पश्चात दोबारा उसने अपनी निगाहें बंद कंप्यूटर की स्क्रीन से जोड़ दी मगर इस बार उसे विज़िटर'स रूम की खिड़की पर कोई आक्रति नज़र नही आती.

"मैं इतनी भी गँवार नही ड्र. साहेब! आप ने अभी सेक्स, पेनिस और लू .. लू .. लुबी, हां! ऐसा ही कुच्छ बोला था" रीमा ने नखरीले अंदाज़ में कहा. अब कोई कितना भी अनपढ़ क्यों ना सही 'सेक्स' शब्द का अर्थ तो वर्तमान में लगभग सभी को पता होता है. हां! जितना वह नही समझ पाई थी उतने का क्लू देने का प्रयत्न उसने ज़रूर किया.

"वो! रीमा जी" अब तक ड्र. ऋषभ के मन में उसकी माँ का डर व्याप्त था, हलाकी ममता अब खिड़की से हट चुकी थी मगर फिर भी वह फालतू का रिस्क लेना उचित नही समझता.
"मैने विजय जी को सब बता दिया है, घर जा कर आप इन्ही से पुछ लीजिएगा" उसने पीछा छुड़ाने से उद्देश्य से कहा और दवाइयों का पर्चा विजय के हवाले कर देता है.
"हम चलते हैं डॉक्टर.! आप की फीस ?" विजय ने अपनी शर्ट की पॉकेट में हाथ डालते हुवे पुछा मगर रीमा का दिल उदासी से भर उठता है.

वह कुछ और वक़्त ड्र. ऋषभ के साथ बिताना चाहती थी, फीस के आदान-प्रदान के उपरांत तो उन्हें क्लिनिक से बाहर जाना ही पड़ता.

"नही विजय जी! रीमा जी का रोग ठीक होने के बाद मैं खुद आप से फीस माँग लूँगा" ड्र. ऋषभ की बात सुन कर जहाँ विजय उसकी ईमानदारी पर अचंभित हुवा, वहीं रीमा के तंन की आग अचानक भड़क उठती है.

डॉक्टर . साहेब! कभी हमारे घर पर आएँ और हमे भी आप की खातिरदारी करने का मौका दें" रीमा फॉरन बोली, उसके द्वि-अर्थी कथन का मतलब समझना ड्र. ऋषभ के लिए मामूली सी बात थी परंतु जवाब में वह सिर्फ़ मुस्कुरा देता है.

"हां ड्र.! मेरा नंबर और अड्रेस मैं यहाँ लिख देता हूँ, आप हमारे ग़रीब-खाने में पधारेंगी तो हमे बहुत खुशी होगी" सारी डीटेल'स टेबल पर रखे नोट पॅड में लिखने के उपरांत दोनो पति-पत्नी अपनी कुर्सियों से उठ कर खड़े हो गये. रीमा ने अपने पति के पलटने का इंतज़ार किया और तत-पश्चात अपनी सारी, पेटिकोट समेत पकड़ कर उसके खुरदुरे कपड़े को अपनी चूत के मुहाने पर ठीक वैसे ही रगड़ना शुरू कर देती है जैसे पेशाब करने के पश्चात अमूमन कयि भारतीय औरतें अपनी चूत के बाहरी गीलेपन को पोंच्छ कर सॉफ करती हैं.

"क्या हुवा रीमा ? अब चलो भी" अपनी पत्नी को नदारद पा कर विजय ने पुछा.
"तुमने तो अपनी बीवी को इतने जवान डॉक्टर साहेब के सामने नंगी हो जाने पर विवश कर दिया, अब क्या साड़ी की हालत भी ना सुधारू ?"

रीमा, ड्र. ऋषभ की आँखों में झाँकते हुवे बोली और कुच्छ देर तक अपनी साड़ी की अस्त-व्यस्त हालत को सुधारने के बहाने अपनी चूत को रगड़ती ही रहती है. कॅबिन के दरवाज़े पर खड़े, उसकी प्रतीक्षा करते विजय का तो अब नाम मात्र का भी भय उसके चेहरे पर नज़र नही आ रहा था.
"घर ज़रूर आईएगा डॉक्टर . साहेब! अच्छा! तो अब मैं चलती हूँ" अंततः केबिन के भीतर मौजूद उन दोनो मर्दो पर भिन्न-भिन्न रूप के कहर ढाने के उपरांत अनमने मन से रीमा को विदाई लेनी पड़ती है, ड्र. ऋषभ के साथ ही विजय के चेहरे पर भी सुकून के भाव सॉफ देखे जा सकते थे.
--------------
"उफफफ्फ़" अपनी टाइ की बेहद कसी नाट ढीली करने के बाद ऋषभ कुच्छ लम्हो तक लंबी-लंबी साँसें भरने लगा जो की मानसिक तनाव दूर करने में चिकित्सको का प्रमुख सहायक माध्यम होता है.
"कुच्छ देर और अगर यह औरत यहाँ रहती तो शायद मैं इसको यही चोदने को विवश हो जाता , आई थी अपनी गाँड़ सिलवाने मगर फाड़ कर चली गयी मेरी" उसने मन ही मन सोचा, ढीली पैंट और चुस्त फ्रेंची की जकड में क़ैद उसका हलब्बी लण्ड अब भी ऐंठा हुवा था. मेज़ पर रक्खी घड़ी में वक़्त का अंदाज़ा लगा कर उसने जाना कि उसकी माँ पिछले आधे घंटे से विज़िटर'स रूम के अंदर बैठी उसके फ्री होने का इंतज़ार कर रही थी.

"हेलो माँ ,अंदर आ जाओ, मैं अब बिल्कुल फ्री हो चुका हूँ"
बहुत ही शानदार अपडेट है ! ऐसे ही लिखते रहिए !
 

sunoanuj

Well-Known Member
4,078
10,559
159
अगले भाग की प्रतीक्षा रहेगी !
 

rahulrajgupta

New Member
88
294
54
वो हां! आज ए/सी ठीक से काम नही कर रहा शायद" ऋषभ ने झूट बोलने का प्रयत्न किया जबकि केबिन के भीतर व्याप्त शीतलता बाहर के गरम वायुमंडल से कहीं दूर बर्फ समान ठंडक का नैसर्गिक आनंद का एहसास करवा रही थी.

"कहीं माँ को मेरी उत्तेजना का भान तो नही ?" खुद के ही प्रश्न पर मानो वा हड़बड़ा सा जाता है और भूल-वश अपनी टाइ को रूमाल समझ चेहरे पर निरंतर बहते पसीने को पोंच्छना आरंभ कर देता है.

"पागल लड़के" ममता ने प्रेम्स्वरूप उसे ताना जड़ा और फॉरन अपना पर्स खंगालने लगती है.
"यह ले रूमाल! टाइ खराब मत कर" वह मुस्कुराइ और अपना अत्यंत गोरी रंगत का दाहिना हाथ अपने पुत्र के मुख मंडल के समक्ष आगे बढ़ा देती है, पतली रोम-रहित कलाई पर सू-सज्जित काँच की आधा दर्ज़न चूड़ियों की खनक के मधुर संगीत से ऋषभ का ध्यान आकस्मात ही ममता की उंगलियो पर केंद्रित हो गया और तुरंत ही वह उनकी पकड़ में क़ैद गुलाबी रूमाल को अपने हाथ में खींच लेता है.

"थैंक्स माँ , शायद मैं अपना रूमाल घर पर ही भूल आया हूँ" उसने ममता के रूमाल को अपने चेहरे से सटाया और अती-शीघ्र एक चिर-परिचित ऐसी मनभावन सुगंध से उसका सामना होता है जिसको शब्दो में बयान कर पाना उसके बस में नही थ।।

औरतें अक्सर अपने रूमाल को या तो अपने हाथ के पंजों में जकड़े रहती हैं ताकि निश्चित अंतराल के उपरांत अपने चेहरे की सुंदरता को बरकरार रख सकें या फिर आज की पाश्‍चात संस्कृति के मुताबिक उसे कमर पर लिपटी अपनी साड़ी व पेटिकोट के मध्य लटका लेती है या जिन औरतों को पर्स रखना नही सुहाता वे अमूमन उसे अपने ब्लाउस के भीतर कसे अपने गोल मटोल मम्मो के दरमियाँ ठूँसे रहती हैं और इन तीनो ही स्थितियों में उनके पसीने की गंध उसके रूमाल में घुल जाती है.

"तेरा क्लिनिक तो वाकाई बदल गया रेशू! तू इसी तरह दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करता रहे मेरी कामना है बेटे"

ममता की ममतामयी आँखों में हर उस मा सम्तुल्य खुशी का संचार होता नज़र आया जो अपने पुत्र की कामयाबी पर फूली नही समाती. हालाँकि केबिन की दीवारो पर चारो तरफ टंगी, ख़ास नारी जात के गुप्तांगो व चुदाई के दौरान के अधिकांश आसान जो वर्तमान में प्रचिलित आसन हैं उन्हे प्रदर्शित करती भिन्न-भिन्न तरह की रंगीन तस्वीरें देखने की उसकी इच्छा उतनी प्रबल तो नही थी मगर फिर भी कभी-कभार छुप-छुपा कर वह अपनी तिरछी निगाह क्रम-अनुसार एक के बाद एक उन तस्वीरो के ऊपर अवश्य डालती रही. कुछ देर से सही परंतु उसकी आँखें एक ऐसी विशेष तस्वीर से चिपकी रह जाती हैं जो यक़ीनन उसे उसके ही रोग से संबंधित मालूम पड़ रही थी.

"ह्म्‍म्म! काश पापा भी इसे समझ पाते माँ " ऋषभ हौले से फुसफुसाया मगर जाने क्यों अल्प समय में ही उसे उसकी माँ के रूमाल से कुछ ज़्यादा ही लगाव हो गया था और प्रत्यक्ष-रूप से जानते हुवे कि उसकी माँ ठीक उसके सामने की कुर्सी पर विराजमान है, वह अनेकों बार उस रूमाल में सिमटी मंत्रमुग्ध कर देने वाली गंध को महसूस करता रहा जो उन माँ -बेटे के दरमियाँ मर्यादा, सम्मान इत्यादि बन्धनो की वजह से आज तक महसूस नही कर पाया था.

एक प्रमुख कारण यह भी था कि वर्तमान से पहले उसकी मा ने कभी उसके क्लिनिक का रुख़ नही किया और ममता के आकस्मात ही वहाँ पहुँच जाने से ऋषभ के मस्तिष्क में अब अजीबो-ग़रीब प्रश्न उठने लगे थे, एक द्वन्द्व सा चल रहा था. किसी भी तथ्य का बारीकी से आंकलन करना बुरी आदत नही मानी जा सकती परंतु उसके विचार अब धीरे-धीरे नकारात्मकता की ओर अग्रसर होते जा रहे थे.
"वे भी तुझे बहुत प्यार करते हैं रेशू! हां! बस तेरे करियर के चुनाव की वजह से थोड़ा नाराज़ ज़रूर रहते हैं लेकिन मुझे विश्वास है कि तुम दोनो के बीच का मूक-युद्ध अब कुछ ही दिनो का मेहमान है तो क्यों ना आज से ही डिन्नर हम तीनो एक साथ करने की नयी शुरूवात करें ?"

ममता ने उस विशेष तस्वीर के ऊपर से अपनी नज़र हटा कर कहा और वापस ऋषभ के चेहरे पर गौर फरमाती है. उसका रूमाल उसके पुत्र की नाक के आस-पास मंडरा रहा था, बार-बार वह गहरी साँसें लेने लगता मानो पति राजेश की तरह वह भी अस्थमा का शिकार हो गया हो. जिन बुरे हलातो से ममता अभी गुज़र रही थी उनमें उसे एक और संदेह जुड़ता नज़र आने लगा था. उसे पूरा यकीन था कि आज से पहले उसका कोई भी वस्त्र ऋषभ के इतने करीब नही आ पाया था क्यों कि उसने खुद ही एक निश्चित उमर के बाद अपने पुत्र के शारीरिक संपर्क में आना छोड़ दिया था.

"तुम्हारे बदन की खुश्बू बेहद मादक है ममता" राजेश के अलावा उसकी कई सहेलियों ने दर्ज़नो बार उसे छेड़ा था और हर बार वह शरम से पानी-पानी हो जाया करती थी. है तो मात्र यह एक प्रसंशा ही मगर परिणाम-स्वरूप सीधे उसकी चूत की गहराई पर चोट कर जाया करती थी और शायद उस वक़्त ऋषभ की हरक़त भी उसे उसी बात का स्पष्टीकरण करती नज़र आ रही थी.

"ऐसा क्या है इस रूमाल में जो तू इतनी तेज़-तेज़ साँसे ले रहा है ?" ममता से सबर नही हो पाता और वह फौरन अपने बेटे से पुछ बैठी, तारीफ़ के दो लफ्ज़ तो जहाँ से भी मिलें अर्जित कर लेना चाहिए, फिर थी तो वह एक स्त्री ही और जल्द ही उसे उसके पुत्र का थरथराते स्वर में जवाब भी मिल जाता है.
"तू .. तुम्हारी खुश्बू माँ ! बहुत बहुत अच्छी है"



 
Top